गेम नहीं घर से बाहर हुए स्वामी ओमजी

बिग बॉस के घर में एक ट्विस्ट देखने को मिला है. स्वामी ओमजी को बिग बॉस ने सीक्रेट रूम में रखा है, जहां से वह सभी घरवालों की गतिविधियों को देख सकते हैं. उधर घरवालों को लग रहा है कि ओमजी गेम से बाहर हो गए हैं. अब यह देखना मजेदार होगा कि जब ओमजी घर में वापस आते हैं, तो क्या होता है.

वैसे अभी ओमजी के घर से जाने के बाद घरवाले उन्हें खासा मिस कर रहे हैं. यही कारण है कि मनु पंजाबी और मनवीर गुर्जर को स्वामी के जाने के बाद फूट-फूटकर रोते हुए देखा गया, जबकि बाकी घर वाले भी अपने स्तर पर ओमजी की बात कर उन्हें याद कर रहे थे. सूत्रों के मुताबिक तो स्वामी को एक खुफिया कमरे में भेज दिया गया है.

यहां पर बैठे-बैठे ओम स्वामी सभी घर वालों पर नजर बनाए रखेंगे. मतलब यह हुआ कि अभी बाबा घर से बाहर नहीं हुए हैं. वो तो कुछ दिन बाद फिर से घर में एंट्री मारेंगे. ऐसे में ट्विस्ट आना बाकी है.

देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में घर वालों के बीच क्या समीकरण बनते हैं. ओमजी के घर से बाहर जाने के पहले तक गौरव चोपड़ा-मोनालिसा, बानी और लोपामुद्रा के बीच का विवाद सुर्खियां में रहा है. यह कितनी आगे जाएगा यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा.

MUST READ : 5 फायदे प्यार की झप्पी के

MUST READ : शादी से पहले शारीरिक संबंध 

MUST READ : ऑनलाइन सेक्स फैंटेसी का नया कारोबार

हुमा कुरैशी ने छोड़ दी ‘गुलाब जामुन’

हुमा कुरैशी देखने में जितनी खूबसूरत हैं, उतनी ही दमदार उनकी एक्टिंग भी है और यह बात उन्होंने ‘गैग्स ऑफ वासेपुर’, ‘बदलापुर’, ‘डेढ़ इश्किया’ और ‘हाईवे’ जैसी फिल्मों से साबित भी की है. वहीं आने वाले समय में भी उनकी कई अच्छी फिल्में आने वाली हैं, जिनमें अक्षय कुमार के साथ ‘जॉली एलएलबी 2’ भी शामिल है.

हालांकि खबर है कि हुमा ने एक मजेदार फिल्म में काम करने से इंकार कर दिया है, जिसमें पहले उन्होंने दिलचस्पी दिखाई थी और मजेदार फिल्म इसलिए क्योंकि इसका टाइटल ही है ‘गुलाब जामुन’. अब सोचिए जब टाइटल इतना मजेदार है तो फिल्म कितनी मजेदार होगी. अब चलिए बताते हैं वो वजह, जिसके कारण हुमा ने कथित तौर पर यह फिल्म छोड़ दी.

दरअसल, इस फिल्म की शूटिंग जून में ही शुरू होने वाली थी, मगर अब तक इसका कुछ अता-पता नहीं है. रिपोर्टों के मुताबिक, स्क्रिप्ट पर अच्छे से काम करने की जरूरत थी, जिसकी वजह से शूटिंग में देरी हो गई. ऐसे में अब चर्चा है कि हुमा ने और इंतजार करने की बजाय सर्वेश मेवारा की इस फिल्म को छोड़ने का फैसला कर लिया, जो कि बतौर निर्देशक उनकी पहली फिल्म होगी.

सोनपुर का प्रसिद्ध पशु मेला

भारत में हर छोटी-बड़ी घटनायें किसी त्यौहार से कम नहीं होती. चाहे किसी की चुनावी जीत हो या पशुओं का मेला. त्यौहारों की खासियत भी यह है कि चाहे कोई व्यक्ति उनसे जुड़ा हो या न हो पर उनसे अछुता नहीं रह सकता. बिहार के सोनपुर में लगने वाला पशु मेला भी कुछ ऐसा ही है. यह एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला है. हर साल यह नवंबर-दिसंबर के बीच लगता है.

देश और दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से पशु प्रेमी इस मेले में हिस्सा लेने के लिए आते हैं. मेले में कुत्ते, भैंस, टट्टू, फारसी घोड़े, ऊंट, हाथी आदि जैसे जानवरों की प्रदर्शनी लगती है. इन सबके अलावा पर्यटक मेले में अनेक प्रकार की वस्तुयें भी खरीद सकते हैं. मेले में कई सारी चीजें जैसे कपड़े, गहने, बर्तन,खिलौने आदि के दुकान सजते हैं.  कुछ लोग मेले में करतब और खेल दिखा कर भी मेले में आए लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं.

यह अद्वितीय पर्व कार्तिक पूर्णिमा के समय प्रारम्भ होता है और दो सप्ताह तक चलता है. सोनपुर गंगा और गंडक नदी का संगम स्थल है, मेले के अलावा कई भक्त यहां इस समय गंगा नदी में डुबकी लगाने के लिए भी आते हैं. इस मेले को ‘हरिहरक्षेत्र मेला’ के नाम से भी जाना जाता है जबकि स्थानीय लोग इसे ‘छत्तर मेला’ पुकारते हैं.

यह मेला पहले हाजीपुर में लगता था. सिर्फ हरिहर नाथ की पूजा सोनपुर में होती थी लेकिन बाद में मुगल बादशाह औरंगजेब के आदेश से मेला भी सोनपुर में ही लगने लगा. सोनपुर हाजीपुर से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जो बिहार के सबसे प्रगतिशील क्षेत्रों में से एक है. हाजीपुर में कई आकर्षक पर्यटक स्थल स्थित हैं. विश्व विख्यात गांधी सेतु जो गंगा नदी पर बनाया गया है हाजीपुर में ही है.  

सोनपुर कैसे पहुंचें?

सोनपुर सड़क मार्ग और रेलमार्ग द्वारा आराम से पहुंचा जा सकता है. बिहार की राजधानी पटना से यह सिर्फ 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जो हवाईमार्ग, रेलमार्ग और सड़कमार्ग से आसानी से जुड़ा हुआ है. अगर आप हाजीपुर पहुंच रहे हैं तो वहां कोई भी लोकल टैक्सी या ऑटो रिक्शा बुक कर आराम से सोनपुर पहुंच सकते हैं.

तो इस नवंबर तैयार हो जाइए एशिया के सबसे बड़े पशु मेले का साक्षी बनने के लिए और दुनिया के अलग रंगों और संस्कृति का अनुभव करने के लिए.

स्वीट एंड टेस्टी काजू कतली

काजू कतली का नाम सुनते ही सबके मुंह में पानी आ जाता है. क्या आपने कभी अपने घर पर काजू कतली बनाया है? नहीं. तो घर पर कुछ ऐसे बनाएं सबका फेवरिट काजू कतली…

सामग्री

400 ग्राम काजू पाउडर

50 मिलीलीटर पानी

थोड़ा सा इलायची पाउडर

15 ग्राम घी

जरूरतानुसार सिल्वर फौइल

100 ग्राम चीनी.

विधि

एक पैन में पानी और चीनी डाल कर पकाएं. इस में इलायची पाउडर और घी डाल कर चाशनी तैयार करें. चाशनी में काजू पाउडर डाल कर थोड़ा गाढ़ा होने तक पकाएं. तैयार मिश्रण को औयल से ग्रीस की गई ट्रे में निकालें. मिश्रण ठंडा हो जाए तो इसे फ्लैट कर के सिल्वर फौइल से सजाएं और मनचाहे आकार में काट कर परोसें.

महिलाओं में दिल की बीमारी का जोखिम

दिल की बीमारी का जोखिम महिलाओं और पुरुषों में बराबर ही रहता है. हालांकि पुरुषों और महिलाओं में कार्डियोलौजी अलग तरह से काम करता है. पुरुषों और महिलाओं में कार्डियोवैस्क्युलर बीमारियों के साझे जोखिम कारकों (डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, खून में कोलैस्ट्रौल का बढ़ा स्तर और धूम्रपान) के अलावा और भी ऐसे कारक हैं, जो महिलाओं में कार्डियोवैस्क्युलर बीमारी का जोखिम बढ़ा देते हैं.

ऐसे में महिलाओं के लिए यह जानना जरूरी है कि किन किन कारणों से हार्ट डिजीज होने का खतरा रहता है.

रजोनिवृत्ति और ऐस्ट्रोजन की हानि

महिलाओं के शरीर में बनने वाला हारमोन ऐस्ट्रोजन हृदय की बीमारियों से प्राकृतिक सुरक्षा मुहैया कराता है. उम्र बढ़ने के साथसाथ प्राकृतिक ऐस्ट्रोजन की कमी से उन में रजोनिवृत्ति के बाद हृदय की बीमारी का जोखिम बढ़ सकता है. अगर रजोनिवृत्ति का कारण गर्भाशय या अंडाशय निकालने की सर्जरी की गई हो, तो जोखिम और बढ़ जाता है.

गर्भनिरोधक गोलियां

गर्भनिरोधक गोलियां खाने वाली कुछ गोलियां हृदय की बीमारी का जोखिम पैदा कर सकती हैं खासकर उन महिलाओं में जो धूम्रपान करती हैं या जिन्हें उच्च रक्तचाप रहता है.

तनाव, मोटापा और अवसाद

तनाव, मोटापा और अवसाद अच्छे खासे जोखिम कारणों में हैं, जो तुलनात्मक रूप से महिलाओं को ज्यादा प्रभावित करते हैं.

डायबिटीज

डायबिटीज की शिकार महिलाओं की कार्डियोवैस्क्युलर बीमारी से मौत का जोखिम डायबिटीज वाले पुरुषों की तुलना में ज्यादा होता है. गर्भावस्था के दौरान अस्थायी डायबिटीज भी महिलाओं में जोखिम बढ़ा देती है.

हृदय की कई तरह की बीमारियां महिलाओं में पुरुषों की तुलना में ज्यादा आम हैं. जैसे स्ट्रोक, हाइपरटैंशन, ऐंडोथेलियल डिसफंक्शन और कंजैस्टिव हार्ट फेल्योर.

आज हैल्थकेयर समाज में सब से चर्चित विषय है. अत: महिलाओं को इस बात के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए कि वे अपने लक्षणों पर ध्यान दें और समय पर रोगनिदान हेतु उपचार का चुनाव करें.

कार पामिस्ट्री से वधू का चयन

पहलेजमाने में लड़केलड़की का विवाह कुंडली मिलान पर निर्भर करता था. पंडितजी कुंडली से लड़केलड़की के गुणों का मिलान करते थे. अगर ज्यादातर गुण मिल जाते थे तो दोनों परिवारों में खुशी की लहर दौड़ जाती थी कि अरे 34 गुण मिल रहे हैं. चलो अब पूरा रास्ता आगे के लिए साफ है. फिर गोद भराई, फलदान, सगाई आदि रस्मों की तिथि तय कर दी जाती थी. मगर इतने सारे गुणों के मिलने के बावजूद हर स्त्रीपुरुष में कुछ अवगुण या कहें कमियां तो होती ही हैं, जिन के कारण पतिपत्नी में मतभेद हो जाते हैं. यदि ये मतभेद बढ़तेबढ़ते मनभेद बन जाएं तो फिर अलगावरूपी नफरत व घृणारूपी अलाव में दोनों जलने लगते हैं और फिर जिंदगी की लौ बुझने की बेला आने तक यह अलगाव का अलाव जलता रहता है.

मगर अब नए दौर में कुंडली देख कर गुण मिलाने का चलन कम होता जा रहा है. अब तो दूसरी चीजें देखी जाती हैं. अब सब से बड़ा गुण लड़की की शिक्षा है और उस के ऊपर भी वह कितनी कमाऊ  है. लड़के में भी यही चीजें देखी जाती हैं. कमाऊ  लड़की बाकी गुणों के नाम से कितनी भी उबाऊ क्यों न हो वह सहर्ष पसंद कर ली जाती है. इस सब के बावजूद रिश्ते में अलगाव बढ़ता जा रहा है. ऐसे में मातापिता क्या करें कि ऐसा रिश्ता, ऐसी लड़की मिल जाए जिस से कि जिंदगी भर निभ जाए? वैसे अब निकट भविष्य में इस बात पर भी आश्चर्य प्रकट किया जाएगा… न कहो ऐसे लोगों को सार्वजनिक कार्यक्रमों में सम्मानित किया जाने लगे.

गंगू के पास एक लेटैस्ट तरकीब है. काफी मेहनत व अभ्यास के बाद यह विकसित हुई है. व्यक्तित्व का अनुमान लगाने के लिए हमारे यहां सैकड़ों तरीके हैं जैसे कोई किसी की हैंडराइटिंग देख कर व्यक्तित्व का अनुमान लगाता है, कोई नंबर के आधार पर यह काम करता है, तो कोई फूल देख कर, सूंघ कर पर्सनैलिटी व भविष्य बताता है. कोई किसी और आधार पर. लेकिन आजकल यह तकनीक भावी वधू के चयन में शतप्रतिशत कामयाब हो रही है. वैसे आजकल उलटा भी होने लगा है कि वधू वर को पसंद करने लगी है.

इस नई तकनीक में आप को ज्यादा कुछ नहीं करना है बस यह वाच करना है कि प्रोस्पैक्टिव वधू कार कैसे चलाती है? इस के पीछे भी एक कहानी है. एक दिन सुबहसुबह गंगू के वाक पर जाते समय बाजू से एक कार निकली. इस में क्या खास है? खास तब होता जब कार के स्टेयरिंग पर किसी खूसट के नहीं वरना एक खूबसूरत लड़की के कोमल हाथ होते.

सामने से एक कार आ रही थी. सड़क संकरी थी, लेकिन उस खूबसूरत मुहतरमा ने अपनी गाड़ी सड़क से नहीं उतारी, बल्कि सामने वाले को गाड़ी सड़क के नीचे उतारने के लिए मजबूर कर दिया. बस यहीं से यह विधा शुरू हुई. गंगू ने अब इस का अध्ययन करना शुरू कर दिया कि लड़कियां कार किस परिस्थिति में और कैसे चलाती हैं? इस में बड़ी मशक्कत करनी पड़ी. कई बार कार का पीछा करना पड़ा. पिटनेकुटने तक की भी नौबत आई. लेकिन 6 माह की कड़ी मेहनत के बाद कुछ तथ्य सामने आए हैं, जो आप के लाभार्थ पेश हैं. इसी से ‘कार पामिस्ट्री’ नामक व्यक्तित्व पढ़ने की एक नई विधा का जन्म भी हो गया है.

पहला तथ्य यह कि यदि आप इस तरह की लड़की को अपने घर की बहू बनाने की सोच रहे हैं, तो समझ लें कि यह पैट्रीआर्कल  नहीं मैट्रीआर्कल प्रकार के परिवार में विश्वास करने वाली है. भावी वर पर यह बम पर्सनैलिटी हावी होने की कोशिश हरदम करेगी. पति को कंट्रोल करने की चाबी कार की चाबी की तरह हमेशा इस के पास रहेगी. दूसरा यदि कार ट्रैफिक में फंसी है, आगे कारों का रेला है उस के बाद भी पीछे की कार में बैठी लड़की यदि तेज हौर्न लगातार बजा रही है, तो आप को वार्न किया जाता है कि यह बेहद तेज स्वभाव की लड़की है. यह इंतजार नहीं कर सकती. जो चाहती है वह उसे तुरंत चाहिए. यहां अंधेर चलेगा, लेकिन देर नहीं.

तीसरा कार का गियर बदलते समय यदि लड़की कार को झटका सा देती है तो मान कर चलिए कि इस में आत्मविश्वास की कुछ कमी है. कुछ किया तो किया नहीं किया तो नहीं किया. लेकिन वह ऐसा नहीं सोचती, वह समझती है कि वह शहर की सब से अच्छी कार चलाने वाली है. अत: ऐसी लड़की यदि रसोई में कोई डिश बनाती है और स्वाद में वह आप की विश से कम है, तो कमी का कमैंट न करने की सलाह है. घुमाफिरा कर बात करें वरना वह बुरा मान जाएगी. सचाई हमेशा कड़वी लगती है.

चौथा जो लड़की यह जान कर भी कि थोड़ी ही दूरी पर ट्रैफिक बहुत है या मोड़ अथवा स्पीड ब्रेकर है. जहां कार धीमे करनी ही होगी तो भी कार तेजी से चलाती हो तो मान कर चलिए कि यह सेव ऐनर्जी के सिद्धांत पर विश्वास नहीं करती. घर की लाइट, पंखे, एसी आदि बंद करने के लिए आप को एक आदमी अलग से रखना पड़ेगा या आप का लाड़ला यह काम करने का मन पक्का कर ले अथवा आप को बत्ती कनैक्शन वालों की तरह बिजली मुफ्त में मिलती हो तो चिंता की बात नहीं है.

5वां यदि लड़की कार बैक करते समय पीछे न देख कर यह मान कर चलती है कि पीछे वाला अपनेआप देख कर हट जाएगा, क्योंकि सब को अपनी जान प्यारी होती है तो यह बेपरवाह व्यक्तित्व की निशानी है. यह किसी की चिंताविंता नहीं करेगी. यदि घर में बै्रड के 2 ही पीस व 1 एग बचा है तो यह उन्हें गटक लेगी और यह सोचेगी कि जिसे जरूरत पड़ेगी अपनेआप और ले आएगा.

छटा इसे सुन कर तो आप को छटी का दूध याद आ जाएगा? यदि लड़की बहुत तेज स्पीड से कार चलाती है. फिर चाहे गलीमहल्ला हो या बाजार अथवा हाईवे, तो आप मान कर चलिए कि यह तनावयुक्त पर्सनैलिटी के लक्षण हैं, कोई काम सुकून से न करने की आदत की पहचान है. हमेशा टैंशन में जीने को फैशन मानने वाली है.

7वां यदि लड़की कार चलाते समय गड्ढों में भी तेज गति से कार डाल देती है, तो इस का मतलब है कि वह बिंदास स्वभाव की है, यदि मौल में आप के साथ जाएगी तो आप की जेब का सारा माल खत्म हो जाएगा? ऐसे में लड़के क्रैडिट कार्ड साथ न रखें वरना कंगाल हो जाएंगे. यदि बंगाल के हो कर दिल्ली में काम कर रहे हैं, तो वापस बंगाल जाना पड़ेगा, क्योंकि वह जानती है कि ऐसा करने से कार की मैंटेनैंस का बिल बढ़ेगा, लेकिन कौन कार धीमी करे. लेकिन इस का दूसरा पक्ष भी है कि ऐसी लड़की बोल्ड होती है. कहीं मौका आने पर साहस दिखाने के मामले में पति महोदय भले ही क्लीनबोल्ड हो जाएं, लेकिन वह हो सकता है चैन स्नैचर की तबीयत से धुलाई कर उसे फटीचर बना दे, क्योंकि जोखिम लेने में इसे आनंद आता है.

8वां पीछे से पौंपौं करती किसी गाड़ी को यदि यह तुरंत साइड दे दे तो यह ऐडजस्टिंग नेचर की है कि जाजा तू ही बड़े बाप का है. जल्दी से निकल जा और यदि पीछे से पौंपौं करती कार के पौ बजा दे यानी उसे साइड न दे तो यह आसानी से ऐडजस्ट न करने वाली है.

अब अगर आप भी अपने कपूत या सपूत का रिश्ता तय करने की सोच रहे हैं, तो लड़की देखनेदिखाने के दौरान और चीजों पर समय बरबाद न कर केवल लड़की से कार चलवा कर देख लें.

‘कुछ ऐसा करो कि लोग आप को आप के काम से जानें’

जहां लोग अपने बच्चों को दो वक्त की रोटी नहीं दे पाते, वहीं सुशीला सिंह 20 सालों से लगातार कई अनाथ बच्चियों को खूबसूरत जिंदगी दे रही हैं. सुशीला के द्वारा किया जा रहा यह काम सराहनीय है.

यों शुरू हुआ कारवां

सुशीला बताती हैं कि बचपन से समाजसेवा की ओर मेरा रुझान रहा है. बहुत छोटी उम्र में मैं अपने घर (राजस्थान) से एक मिशनरी के साथ इंदौर, मुंबई जैसे शहरों में समाजसेवा करने आई थी. एक संस्था के अंतर्गत काम करते हुए मैं ने कई केसेज देखे, जो इनसानियत को शर्मसार करने वाले थे. रैड लाइट एरिया में महिलाओं, नाबालिग और मासूम बच्चियों के साथ बदसलूकी की जा रही थी. स्ट्रीटगर्ल्स की जिंदगी दरिंदों ने बदतर बना दी थी. हालांकि अपराधियों को हम ने सलाखों के पीछे पहुंचवा दिया. लेकिन मन में एक सवाल टीस बन कर चुभता कि शाम 5 बजे हमारे घर लौट जाने के बाद इन बच्चियों का क्या होगा? बारबार सिर उठाते इस सवाल ने मुझे संस्था की स्थापना करने पर मजबूर कर दिया.

मुंबई में अपने बसेबसाए घर को छोड़ कर मैं पति के साथ ठाणे के उत्तन गांव में आ बसी और 1996 में 4 अनाथ बच्चियों के साथ मैं ने ‘आमचा घर’ संस्था की स्थापना की.

आसान नहीं थी राह

अपने संघर्ष के बारे में सुशीला ने बताया कि संस्था की स्थापना तो कर दी, लेकिन इसे चलाने के लिए पैसे नहीं थे. तब महसूस हुआ कि पैसा हार्डवर्क और डैडिकेशन से भी बड़ा होता है. शुरुआत में मेरे पति ने काफी मदद की. परिवार वाले ताने देते ‘लोग पैसा कमाते हैं तुम गवां रही हो, पागल हो गई हो’ लेकिन मैं पीछे नहीं हटी.

स्कूल में बच्चियों के दाखिले के लिए कुछ संस्थाएं मदद के लिए आगे आईं, पर वे चाहते थे कि बच्चियां मराठी माध्यम से पढे़ं, जबकि मैं उन्हें अंगरेजी माध्यम से पढ़ाना चाहती थी. मैं खुद हिंदी माध्यम से पढ़ी थी. गांव में मैं बकरियां चराया करती थी और मेरी मां बकरियों का दूध बेच कर मेरी फीस भरती थीं. मुंबई आने पर मुझे महसूस हुआ कि अंगरेजी आना जरूरी है. मेरे मन में बस यही खयाल आता कि अगर ये मेरे अपने बच्चे होते, तो क्या मैं इन्हें सिर्फ मराठी माध्यम से पढ़ाती? एक बात यह भी थी कि इन बच्चियों पर पहले से अनाथ की मुहर लगी थी.

गर्व महसूस होता है

अपने काम पर सुशीला को गर्व है. वे कहती हैं कि रैड लाइट एरिया में कार्यरत महिलाएं जो एड्स की वजह से मर गईं, उन के बच्चों को भी ‘आमचा घर’ ने पनाह दी. धीरेधीरे बच्चियों की संख्या बढ़ने लगी. बाहर के स्कूलों में पढ़ाना बहुत मुश्किल हो रहा था, इसलिए लोन ले कर मैं ने ‘आमचा घर’ स्कूल खोला, जहां पढ़ाई के साथसाथ बच्चियों को कंप्यूटर ट्रेनिंग और कराटे भी सिखाए जाते है. मेरे सारे बच्चे अंगरेजी में बात करते हैं. कई बच्चे आज हाई पोस्ट पर कार्यरत हैं. कुछ शादी कर के सैटल हो गई हैं. मेरे 20 साल के अनुभव में मेरा एक भी बच्चा गलत राह पर नहीं गया है.

मैं अपने बच्चों से यही कहती हूं कि मैं ने अपना सब कुछ छोड़ कर समाजसेवा की, आप भी कुछ ऐसा करो कि लोग आप को आप के काम से जानें.

बेचारे नहीं मेरे बच्चे

सुशीला कहती हैं कि मेरे बच्चे कहीं से भी बेचारे नहीं लगते, क्योंकि कोई जना अगर दोनों संस्थाओं को 500-500 देता है, तो कुछ संस्था बच्चों पर 250 खर्च करती है, लेकिन मैं पूरे 500 बच्चों पर खर्च करती हूं, जिस से बच्चों में काफी सुधार देखने को मिलता है, जबकि बाकी बच्चे आज भी बेचारे नजर आते हैं, इसलिए उन्हें ज्यादा डोनेशन दिया जाता है.

अपनी निजी जिंदगी के बारे में बात करते हुए सुशीला कहती हैं कि हालांकि मैं ने अपनी पूरी जिंदगी ‘आमचा घर’ के बच्चों को समर्पित कर दी है, लेकिन इस बीच मैं अपनी पारिवारिक जिम्मेदारी निभाने के लिए भी वक्त निकालती हूं.

जीवन का सहारा

अपने काम से फ्री होने के बाद मैं अपने पति के साथ क्वालिटी टाइम बिताना नहीं भूलती. मैं उन के साथ दिन भर में हुई सारी बातें शेयर करती हूं. इस दौरान हम नईनई योजनाएं भी बनाते हैं, जैसे छुट्टियों में हम कहां घूमने जाएंगे इत्यादि.

जब अपने ससुराल जाती हूं, तो बहू की सारी जिम्मेदारी निभाती हूं और जब अपने मायके राजस्थान में होती हूं, तो घर की छोटी बेटी बन जाती हूं. मैं अपनी निजी जिंदगी और अपने काम को अलगअलग रखती हूं.

मेरा मानना है कि परिवार के सहयोग के बिना किसी भी काम में सफलता पाना दुश्वार हो जाता है.

अपने कठिन फैसले के बारे में बताते हुए सुशीला कहती हैं कि हम ने तय किया था कि हम अपनी संतान पैदा नहीं करेंगे. इन्हीं बच्चियों की परवरिश करेंगे. मुझे कभी इस बात का एहसास नहीं हुआ कि ये हमारे अपने बच्चे नहीं हैं.

आज भी जब मुसीबत आती है, तो ये बच्चियां ससुराल छोड़ कर आ जाती हैं. इन से मैं ने यह जाना है कि जरूरी नहीं है कि आप का अपना बच्चा, आप का खून ही आप को संभाले. ऐसे बच्चे भी जीवन का सहारा बन सकते हैं.

स्टाइलिश पोशाक के साथ लौंच हुई वोल्वो एस 90

फैशन और लक्ज़री दोनों साथ-साथ चलते हैं, इसी बात को ध्यान में रखते हुए पिछले दिनों मुंबई में लक्ज़री कार वोल्वो एस 90 का लौंच डिज़ाइनर अबू जानी और संदीप खोसला के स्टाइलिश पोशाक के साथ किया गया. आजकल भारत में लोगों का रुझान नई और लक्ज़री कारों की ओर अधिक बढ़ रहा है. यह गाड़ी दुनिया की सबसे आकर्षक और सुरक्षित लक्ज़री कार है.

कोमल नापा लेदर से बनी इसकी सीटें वेंटिलेटेड है, जिसे अपनी इच्छानुसार गर्म और ठंडा किया जा सकता है. इसके अलावा विंटेज लुक को लेकर इसे नया रूप दिया गया है. इस कार की खासियत यह है कि गाड़ी चलाने वाले और बैठने वाले दोनों ही इसमें सफ़र कर सुकून अनुभव करते है.

इस अवसर पर वोल्वो ऑटो इंडिया के मैनेजिंग डायरेक्टर टॉम वोन बोन्सडोर्फ़ने कहा कि फैशन का कार से सीधा संबंध होता है. लक्ज़री कार के साथ अगर फैशन भी वैसा ही हो, तो उसकी खूबसूरती और बढ़ जाती है. अबू जानी और संदीप खोसला के कपड़ों ने यह सिद्ध कर दिया कि एक अच्छी गाड़ी के साथ एक स्टाइलिश ड्रेस, इसे और भी आकर्षक बनाती है.

 

उमर अब्दुल्ला पर कानूनी फंदा

यह सितंबर, 2011 की बात है जब जम्मूकश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट कर यह स्वीकारा था कि उन के और उन की पत्नी पायल अब्दुल्ला के बीच अलगाव हो चुका है. लेकिन यह उन का व्यक्तिगत मामला है, इसलिए गुजारिश है कि लोग और मीडिया उन की निजता का ध्यान रखने का कष्ट करें.

सितंबर, 2016 तक झेलम का कितना पानी बह चुका, यह कोई नहीं नाप सकता, लेकिन ठीक 5 साल बाद उमर अब्दुल्ला और पायल के बीच कुछ खास नहीं रह गया था. जब पायल ने दिल्ली की एक अदालत में एक अर्जी दाखिल करते हुए अपने पति से बतौर गुजाराभत्ता क्व15 लाख महीने की मांग की. उस से पहले दिल्ली की ही अरुण कुमार आर्य की अदालत ने उमर अब्दुल्ला द्वारा दायर तलाक की अर्जी खारिज करते हुए कहा था कि वादी उमर ऐसी एक भी स्थिति दिखाने में नाकाम रहे हैं, जिस में प्रतिवादी पायल के साथ संबंध बनाए रखना उन के लिए असंभव हो रहा हो.

कलह और मतभेद

उमर अब्दुल्ला ने अपने वाद पक्ष में यह दावा किया था कि 2007 से उन के और उन की पत्नी के बीच किसी तरह के संबंध नहीं हैं. 1 सितंबर, 1994 को शादी करने के बाद वे दोनों 2009 से अलग रह रहे हैं. इन के 2 बेटे हैं जो मां के साथ रहते हैं. इस फैसले के खिलाफ उमर ने हाई कोर्ट में अपील की और पायल ने गुजाराभत्ते का दावा ठोंक दिया, जिस की बाबत अपनी बात रखने के लिए अदालत ने उमर अब्दुल्ला को 27 अक्तूबर की तारीख दी.

अब तक ये पतिपत्नी दोनों एकदूसरे पर आरोपप्रत्यारोप से खुद को यथा संभव बचाते रहे हैं लेकिन अब लगता है कि पानी सिर से गुजर चुका है और होगा वही जो तलाक के आम मुकदमों में होता है. एक अदालत ही है जहां जा कर अच्छेअच्छों की सारी ठसक और समझदारी हवा हो जाती है और वे सीधेसीधे सच और झूठ दोनों बोलने को मजबूर हो जाते हैं कि यह नकचढ़ी है, जिद्दी है, मेरे साथ नहीं रहती. उधर पत्नी कहती है कि इन के पास मेरे लिए वक्त नहीं होता. ये भी कम कू्रर नहीं हैं.

तब कहीं जा कर अदालत मानती है कि वाकई अब कलह और मतभेदों के चलते पतिपत्नी साथ नहीं रह सकते. लिहाजा, कुछ शर्तों पर तलाक की डिक्री दे दी जाए. ये शर्तें आमतौर पर यही होती हैं कि पतिपत्नी को अपनी हैसियत के मुताबिक इतना गुजाराभत्ता देगा और महीने में 1 दिन बच्चों से मिल सकेगा वगैरहवगैरह.

प्यार से अलगाव तक

उमर अब्दुल्ला का नाम किसी पहचान का मुहताज नहीं, जिन के पिता फारूख अब्दुल्ला भी जम्मूकश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और उन के दादा शेख अब्दुल्ला की भी घाटी में खासी पूछ थी. अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उमर ने दिल्ली के नामी ओबेराय होटल में नौकरी कर ली.

यहां पायल नाम की खूबसूरत युवती भी नौकरी करती थी जिस के रहने का अपना एक खास अंदाज था. पायल मूलतया सिख हैं और उन के पिता मेजर जनरल रामनाथ सेना से सेवानिवृत्त हुए थे. तब इन दोनों ने जवानी की दहलीज में पहला कदम रखा था. होटल में जानपहचान हुई जो प्यार में और फिर प्यार शादी में तबदील हो गया.

उमर की पारिवारिक पृष्ठभूमि के लिहाज से यह कतई हैरत की बात नहीं थी, क्योंकि उन के पिता ने भी इसी तरह अंतरधर्मीय शादी की थी. लेकिन बावजूद इस के फारूख अब्दुल्ला बेटे के इस फैसले से खुश नहीं थे. घाटी के मुसलमानों को भी यह शादी रास नहीं आई थी और कश्मीरी पंडितों ने भी इस पर भौंहें सिकोड़ी थीं.

लेकिन लव मैरिज करने वाले किसी की परवाह नहीं करते. शादी के बाद 4-5 साल तो रोमांस में गुजर गए. पायल उमर के साथ हर सामाजिक और राजनीतिक समारोह में नजर आईं. इसी दौरान उन के 2 बेटे जाहिद और जमीर हुए. पायल दिल्ली में ही रह कर अपना ट्रैवलिंग का कारोबार संभालने लगीं.

फिर शुरू हुई खटपट. वजह उमर का राजनीति में सक्रिय होना था जो उन्हें विरासत में मिली थी. वे सांसद और केंद्रीय मंत्री भी बने और फिर 2008 में जम्मू कश्मीर में सब से कम उम्र के मुख्यमंत्री बने.

मुकदमेबाजी का दौर

2008-09 के चुनाव में उन की पार्टी नैशनल कौंफ्रैंस को सब से ज्यादा सीटें मिली थीं. कांग्रेस से उस का गठबंधन था. एक मुख्यमंत्री की अपनी व्यस्तताएं और जिम्मेदारियां होती हैं और वह राज्य अगर जम्मू कश्मीर हो तो वे और बढ़ जाती हैं. इस के बाद भी उमर बीवीबच्चों से मिलने दिल्ली आते रहते थे. अब तक पायल पति को मिले सरकारी आवास में रहने चली गई थीं. उन्हें व बेटों को जेड श्रेणी की सुरक्षा मिली हुई थी. उमर को आवंटित दिल्ली के अकबर रोड के टाइप 8 आवास में वे बीते अगस्त तक रहीं. 2014 का चुनाव नैशनल कौंफ्रैंस हारी तो विरोधियों की नजर इसे ले कर तिरछी होने लगी. नतीजतन, पायल पर इसे खाली करने के लिए दबाव बढ़ने लगा और फिर भारी विवाद के चलते अदालती आदेश पर उन्हें बेइज्जत हो कर इसे खाली करना पड़ा.

फिर जो मुकदमेबाजी का दौर चला तो नतीजा सामने है कि उमर अब्दुल्ला एक बेबस पति की तरह कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं, जिस में तलाक मिल भी जाए तो उन की दांपत्य की कसक कायम रहेगी और आम पतियों की तरह वे यह सोचने से मजबूर होंगे कि आखिर पायल से शादी कर उन्हें मिला क्या?

मिला भी तो क्या

इन दोनों के विवाद और फसाद की जड़ में किस की कितनी गलती है, इस का बहुत छोटा हिस्सा ही अदालत में सामने आ पाएगा, लेकिन सोचने वाली बात यह है कि आखिरकार उमर को मिला क्या और उन की गलती क्या है?

उमर दरअसल कानून के साथसाथ पत्नी की ज्यादतियों के भी शिकार रहे हैं. उन की मानें तो 8-9 सालों से कोई सुख उन्हें बीवीबच्चों का नहीं मिल रहा. पायल अपनी मरजी से अलग दिल्ली में रहीं और बच्चों को भी साथ रखा. उन का सारा खर्च उमर उठाते रहे और आगे भी उठाने को बाध्य रहेंगे.

जब पत्नी साथ नहीं रह रही तो पति क्यों उस का आर्थिक बोझ उठाए, यह बात विवाद की है. वह अलग रहते पति को कोई शारीरिक, पारिवारिक, भावनात्मक या सामाजिक सुख नहीं देती और खुद सुकून से पति के पैसों पर विलासी जिंदगी जीती है. यही जिंदगी जीते रहने के लिए पायल ने 15 लाख महीना उमर से मांगे हैं, जिन में 10 लाख खर्चे के और 5 लाख मकान के लिए बताए गए हैं.

पतिपत्नी के विवादों की तरह अब 2 मुकदमे समानांतर चल रहे हैं. इधर निचली अदालत ने उमर की तलाक की अर्जी खारिज करते हुए उन की मुसीबतें और बढ़ा दी हैं तो पायल ने भी मौका पा कर भारीभरकम रकम मांग डाली, जबकि 2011 में हवा यह उड़ी थी कि इन दोनों का तलाक परस्पर सहमति से हो चुका है और उमर एक टीवी ऐंकर से शादी करने जा रहे हैं, पर यह कोरी अफवाह थी.

इस विवाद का असर उमर के राजनीतिक जीवन और आत्मविश्वास पर साफ दिख रहा है. घाटी के हालात हिंसक हैं, जिन्हें प्रभावी तरीके से वे पार्टी के हित में नहीं भुना पा रहे हैं. हालांकि अपनी मौजूदगी बनाए रखने के लिए मुख्यमंत्री महबूबा सईद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमले करते रहे हैं. लेकिन उन में वह धार नहीं दिखती जो विपक्ष के एक नेता में इस नाजुक मौके पर होनी चाहिए.

गलती किस की

पायल जैसी महत्त्वाकांक्षी मध्यवर्गीय युवतियां राजनीति नहीं समझतीं तो न समझें पर पति की बेचारगी और तनहाई पर भी उन्हें कोई तरस नहीं आता. पायल की खुदगर्जी भी साफ दिख रही है कि वह अगर आसानी से तलाक ले लेगी तो उस से वे सारी सुविधाएं छिन जाएंगी जो पति की वजह से उसे मिली हुई हैं. इन में जेड सुरक्षा भी शामिल है.

मुकदमों का फैसला होने तक उमर अब्दुल्ला दूसरी शादी भी नहीं कर सकते, क्योंकि यह भी कानूनन जुर्म होगा, तो सहज सोचने वाली बात है कि एक पति जिसे पत्नी से कुछ नहीं मिल रहा, जो अपने बच्चों को गले से नहीं लगा सकता और पत्नी के गुजारे के लिए भी खर्चा देने को बाध्य होता है उसे आखिरकार मिलता क्या है और उस की गलती क्या एक पति होना भर रहती है?

पब्लिक रोती रहे सरकार को क्या

देश के सारे शहर पटरियों पर लगने वाली दुकानों और खाने के ढाबों से परेशान हैं. कुछ शहरों में तो बेहद भीड़भाड़ वाले इलाके में पहले तो दुकानदार अपना सामान दुकान से निकाल कर 5-7 फुट तक पटरी पर सजा देते हैं और फिर उस के आगे जगह बचती है तो असली पटरी वाले दुकानें लगा लेते हैं. कहीं भी एक बार दुकान लग गई और 4-5 दिन चल गई तो इस जगह पर परमानैंट कब्जा समझिए, चाहे उस से गंद फैले, ट्रैफिक रुके, सड़क पर चलने को मजबूर होना पड़े.

आम संभ्रांत मध्यवर्गीय शहरी इन पटरी वालों को जम कर कोसता है और इन्हें राजनीतिबाजों और पुलिस वालों की देन समझता है. औरत किट्टी पार्टियों में और आदमी ग्रुपों में इन पर हल्ला मचाते रहते हैं और लगता है कि मानो इतने विरोध के बावजूद सरकार के कानों में जूं तक नहीं रेंगती.

सरकार सुने या न सुने, पहली बात तो यह समझ लेनी चाहिए कि पटरी की दुकानें चलती तभी हैं जब वहां बिक्री हो. इसलिए दोषी दुकानदार नहीं, खरीददार हैं, जो इन से सामान खरीदते हैं और इन्हें दानापानी देते हैं. लंबी गाडि़यों में चलने वाले अकसर इन पटरी दुकानों से ड्राइव इन शौपिंग करते नजर आ सकते हैं और इस दौरान जहां वे दुकानदार से ज्यादा पैसे दे कर सामान खरीदते हैं, क्योंकि यह सुविधाजनक है, वहीं वे सड़क पर ट्रैफिक रोकते समय यह भूल जाते हैं कि चाय की चुसकियों के समय वे ही पौलीटिशियनों और अफसरों को गालियां देते हैं.

पटरियों पर दुकानें इस वजह से भी पनप रही हैं कि हर शहर में गांवोंकसबों से आने वाले फटेहाल से लोगों की गिनती बढ़ रही है, जिन्हें बड़ी दुकानों और एअरकंडीशंड मौलों में जाने में हिचक होती है.

शहरों को जिंदा रखने के लिए करोड़ों लोग गांव छोड़ कर शहरों में छोटेमोटे काम करने आ रहे हैं और वहां झोंपडि़यों और छोटे मकानों में ठुंसठुंस कर रह रहे हैं. उन्हें सामान तो चाहिए पर सामान किस ब्रैंड का और किस क्वालिटी का है, इस से उन्हें कोई मतलब नहीं. उन्हें सामान मुहैया कराना दुकानों के बस का नहीं, क्योंकि शहरों में दुकानों की कीमतें बेहद बढ़ गई हैं और जहां खाली जगह मिले वहीं बनी दुकानें ही उन्हें सामान दे सकती हैं.

दुकानदार भी बहुत होते हैं, क्योंकि ज्यादातर के पास कोई हुनर होता ही नहीं. वे थोक बाजार से सामान ले कर पटरी पर बेचते हैं और एक ही सामान 1 मील की दूरी पर 20-25 पटरी दुकानों पर मिल जाएगा. जब तक शहरों के प्रबंधक दुकानों का प्रबंध न करेंगे, पटरी दुकानें लगेंगी ही. यह साफसुथरी सड़क पर चाहे कब्जा हो, इस का कोई सरल उपाय नहीं है.   

 

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें