ऐसा भी होता है बौयफ्रैंड: प्रिया के साथ दीपक ने क्या किया

सफेद कपड़े पहने होने के बावजूद उस का सांवला रंग छिपाए नहीं छिप रहा था. करीब जा कर देखने से ही पता चलता था कि उस के गौगल्स किसी फुटपाथी दुकान से खरीदे गए थे. बालों पर कई बार कंघी फिरा चुका वह करीब 20-22 साल की उम्र का युवक पिछले एक घंटे से बाइक पर बैठा कई बार उठकबैठक लगा चुका था यानी कभी बाइक पर बैठता तो कभी खड़ा हो जाता. काफी बेचैन सा लग रहा था. इस दौरान वह गुटके के कितने पाउच निगल चुका, उसे शायद खुद भी न पता होगा. गहरे भूरे रंग के गौगल्स में छिपी उस की निगाहों को ताड़ना आसान नहीं था. अलबत्ता जब भी उस ने उन्हें उतारने की कोशिश की, तो साफ जाहिर था कि उस की निगाहें गर्ल्स स्कूल की इमारत के दरवाजे से टकरा कर लौट रही थीं. तभी उस दरवाजे से एक भीड़ का रेला निकलता नजर आया. अब तक बेपरवाह वह युवक बाइक को सीधा कर तन कर खड़ा हो गया.

इंतजार के कुछ ही पल बेचैनी में गुजरे, तभी पसीनापसीना हुए उस लड़के के चेहरे पर मुसकराहट खिल उठी. उस ने एक बार फिर बालों पर कंघी फिराई और गौगल्स ठीक से आंखों पर चढ़ाए. मुंह की आखिरी पीक पिच्च से थूकते हुए होंठों को ढक्कन की तरह बंद कर लिया.

तेजी से अपनी तरफ आती लड़की को पहचान लिया था, वह प्रिया ही थी. प्रिया खूबसूरत थी और उस के चेहरे पर कुलीनता की छाप थी. खूबसूरत टौप ने उस में गजब की कशिश पैदा कर दी थी. बाइक घुमाते हुए उस ने पीछे मुड़ कर देखने की कोशिश नहीं की, लेकिन उसे एहसास हो गया था कि प्रिया बाइक की पिछली सीट पर बैठ चुकी है. तभी उसे अपनी पीठ पर पैने नाखून चुभने का एहसास हुआ और हड़बड़ाया स्वर सुनाई दिया, ‘‘प्लीज, जल्दी करो, मेरी सहेलियों ने देख लिया तो गजब हो जाएगा?’’

‘‘बाइक पर किक मारते ही लड़के ने पूछा, ‘‘कहां चलना है, सिटी मौल या…’’

फर्राटा भरती बाइक के शोर में लड़के को सुनाई दे गया था, ‘‘कहीं भी…जहां तुम ठीक समझो?’’

‘‘कहीं भी?’’ प्रिया की आवाज में घुली बेचैनी को वह समझ गया था. फिर भी मजाकिया लहजे में बोला. ‘‘तो चलें वहीं, जहां पहली बार…’’ बाकी शब्द पीठ पर चुभते नाखूनों की पीड़ा में दब गए. लेकिन इस बार उस के कथन में मजाक का पुट नहीं था… ‘‘तो फिर सिटी मौल चलते हैं?’’

‘‘नहीं, वहां नहीं,’’ प्रिया जैसे तड़प कर बोली, ‘‘तुम समझते क्यों नहीं दीपक, मुझे तुम से कुछ जरूरी बात करनी है.’’

तभी दीपक ने अपना एक हाथ पीछे बढ़ा कर लड़की की कलाई थामने की कोशिश की तो उस ने अपना गोरा नाजुक हाथ उस के हाथ में दे दिया और उस की पीठ से चिपक गई? दीपक को बड़ी सुखद अनुभूति हुई, तभी बाइक जोर से डगमगाई. उस ने फौरन लड़की का हाथ छोड़ दिया और बाइक को काबू करने की कोशिश करने लगा.

‘‘क्या हुआ?’’ लड़की घबरा कर बोली. अब वह दीपक की पीठ से परे सरक गई.

‘‘बाइक का पहिया बैठ गया मालूम होता है,’’ दीपक बोला, ‘‘शायद पंचर है,’’ उस ने बाइक को सड़क के किनारे लगाते हुए खड़ी कर दी. अब तक वे शहर से काफी दूर आ चुके थे. यह जंगली इलाका था और आसपास घास के घने झुरमुट थे.

तब तक प्रिया उस के करीब आ गई थी. उस ने आसपास नजर डालते हुए कहा, ‘‘अब वापस कैसे चलेंगे?’’ उस के स्वर में घबराहट घुली थी. लड़के ने एक पल चारों तरफ नजरें घुमा कर देखा, चारों तरफ सन्नाटा पसरा था. दीपक ने प्रिया की कलाई थाम कर उसे अपनी तरफ खींचा. प्रिया ने इस पर कोई एतराज नहीं जताया, लेकिन अगले ही पल अर्थपूर्ण स्वर से बोली, ‘‘क्या कर रहे हो?’’

‘‘तनहाई हो, लड़कालड़की दोनों साथ हों और मिलन का अच्छा मौका हो तो लड़का क्या करेगा?’’ उस ने हाथ नचाते हुए कहा.

प्रिया छिटक कर दूर खड़ी हो गई. ‘‘ये सब गलत है, यह सबकुछ शादी के बाद, अभी कोई गड़बड़ नहीं. अभी तो वापसी की जुगत करो,’’ प्रिया ने बेचैनी जताई, ‘‘कितनी देर हो गई? घर वाले पूछेंगे तो उन्हें क्या जवाब दूंगी?’’

दीपक ने बेशर्मी से कहा, ‘‘यह तुम सोचो,’’ इस के साथ ही वह ठठा कर हंस पड़ा और लपक कर प्रिया को बांहों में भर लिया, ‘‘ऐसा मौका बारबार नहीं मिलता, इसे यों ही नहीं गंवाया जा सकता?’’

‘‘लेकिन जानते हो, अभी मेरी उम्र शादी की नहीं है. अभी मैं सिर्फ 15 साल की हूं, इस के लिए तुम्हें 3 साल तक  इंतजार करना होगा,’’ प्रिया ने उस की गिरफ्त से मुक्त होने की कोशिश की.

‘‘लेकिन प्यार करने की तो है,’’ और उस की गिरफ्त प्रिया के गिर्द कसती चली गई. प्रिया का शरीर एक बार विरोध से तना, फिर ढीला पड़ गया. घास के झुरमुटों में जैसे भूचाल आ गया. करीब के दरख्तों पर बसेरा लिए पखेरू फड़फड़ कर उड़ गए.

करीब एक घंटे बाद दोनों चौपाटी पहुंचे और वहां बेतरतीब कतार में खड़े एक कुल्फी वाले से फालूदा खरीदा. गिलास से भरे फालूदा का हर चम्मच निगलने के बाद प्रिया दीपक की बातों पर बेसाख्ता खिलखिला रही थी. उन के बीच हवा गुजरने की भी जगह नहीं थी, क्योंकि दोनों एकदूसरे से पूरी तरह से सटे बैठे थे.

सलमान खान बनने की कोशिश में दीपक आवारागर्दी पर उतर आया था और उस ने प्रिया के गले में अपनी बांह पिरो दी थी. लेकिन इस पर प्रिया को कोई एतराज नहीं था. उस ने फालूदा खा कर गिलास ठेले वाले की तरफ बढ़ा दिया. प्रिया के पर्स निकालने और भुगतान करने तक दीपक कर्जदार की तरह बगलें झांकता रहा. उस ने ऐसे मौकों पर मर्दों वाली तहजीब दिखाने की कोई जहमत नहीं उठाई.

3 युवक एक मोटरसाइकिल पर आए और प्रिया के पास आ कर रुके. शायद ये दीपक के यारदोस्त थे. उन्होंने हाथ तो उस की तरफ हिलाया, लेकिन असल में सब प्रिया की तरफ देख रहे थे. प्रिया ने उड़ती सी नजर उन पर डाली और दूसरी तरफ देखने लगी.

उन्होंने दीपक का हालचाल पूछा तो वह उन की तरफ बढ़ा और दांत निपोरने के साथ ही मोटरसाइकिल पर पीछे बैठे लड़के की पीठ पर धौल जमाया, ऐसे ही मूड बन गया था यार, आइसक्रीम खाने का..’’

‘‘बढि़या है…बढि़या है यार…’’ इस बार वह लड़का बोला जो बाइक चला रहा था. वह प्रिया से मुखातिब हो कर बोला, ‘‘मैं, आप के फ्रैंड का जिगरी दोस्त.’’

यह सुन प्रिया मुसकराई. उस के चेहरे पर आए उलझन के भाव खत्म हो गए. लड़के ने उस की तरफ बढ़ने के लिए कदम बढ़ाए, लेकिन एकाएक ठिठक कर रह गया. प्रिया कंधे पर रखा बैग झुलाती हुई सामने पार्किंग में खड़ी अपनी स्कूटी की तरफ बढ़ी. उस लड़के ने खास अदा के साथ हाथ हिलाया. प्रिया एक बार फिर मुसकराई और स्कूटी से फर्राटे से आगे बढ़ गई.

यह देख चंदू निहाल हो गया. उस ने हकबकाए से खड़े दीपक पर फब्ती कसी. ‘‘अबे, क्यों बुझे हुए हुक्के की तरह मुंह बना रहा है? लड़की तू ने फंसाई तो क्या हुआ? दावत तो मिलबैठ कर करेंगे न?’’ तब तक दीपक भी कसमसा कर उन के बीच में सैंडविच की तरह ठुंस गया. बाइक फौरन वहां से भाग निकली. चंदू के ठहाके बाइक के शोर में गुम हो चुके थे.

2 महीने बाद… पुलिस स्टेशन के उस कमरे में गहरा सन्नाटा पसरा हुआ था. पैनी धार जैसी नीरवता पुलिस औफिसर के सामने बैठी एक कमसिन लड़की की सिसकियों से भंग हो रही थी. उस का चेहरा आंसुओं से तरबतर था. वह कहीं शून्य में ताक रही थी. शायद कुरसी पर बैठे उस के मातापिता थे, उन के चेहरे सफेद पड़ चुके थे. शर्म और ग्लानि के भाव उन पर साफ दिखाई दे रहे थे. पुलिस औफिसर शायद प्रिया की आपबीती सुन चुका था. उस का चेहरा गंभीर बना हुआ था. उन्होंने सवालिया निगाहों से प्रिया की तरफ देखा, ‘‘तुम्हारी उस लड़के से जानपहचान कैसे हुई?’’

प्रिया का मौन नहीं टूटा. इस बार औफिसर की आवाज में सख्ती का पुट था, ‘‘जो कुछ हुआ तुम्हारी नादानी से हुआ, लेकिन अब मामला पुलिस के पास है तो तुम्हें सबकुछ बताना होगा कि तुम्हारी उस से मुलाकात कैसे हुई?’’

प्रिया ने शायद पुलिस औफिसर की सख्ती भांप ली थी. एक पल वह उलझन में नजर आई, फिर मरियल सी आवाज में बोली, ‘‘एक बार मैं शौप पर कुछ खरीद रही थी, लेकिन जब पैसे देने लगी तो हैरान रह गई, मेरा पर्स मेरी जेब में नहीं था. उधर, दुकानदार बारबार तकाजा कर कह रहा था, ‘कैसी लड़की हो? जब पैसे नहीं थे तो क्यों खरीदा यह सब.’ मुझे याद नहीं रहा कि पर्स कहां गिर गया था, लेकिन दुकानदार के तकाजे से मैं शर्म से गड़ी जा रही थी. तभी एक लड़का, मेरा मतलब, दीपक अचानक वहां आया और दुकानदार को डांटते हुए बोला, ‘कैसे आदमी हो तुम?’ लड़की का पर्स गिर गया तो इस का मतलब यह नहीं हुआ कि तुम उसे इस तरह बेइज्जत करो? अगले ही पल उस ने जेब से पैसे निकाल कर दुकानदार को थमाते हुए कहा, ‘यह लो तुम्हारे पैसे.’ इस के साथ ही वह मुझे हाथ पकड़ कर बाहर ले आया.’’

प्रिया ने डबडबाई आंखों से पुलिस औफिसर की तरफ देखा और बात को आगे बढ़ाया, ‘‘यह सबकुछ इतनी अफरातफरी में हुआ कि मैं उसे न तो पैसे देने से रोक सकी और न ही उस से अधिकारपूर्वक हाथ पकड़ कर खुद को शौप से बाहर लाने का कारण पूछ सकी.’’

‘‘फिर क्या हुआ?’’ पुलिस औफिसर ने सांत्वना देते हुए पूछा, ‘‘फिर अगली मुलाकात कब हुई और यह मुलाकातों का सिलसिला कैसे चल निकला.’’

इस बार वहां बैठे दंपती एकटक बेटी की ओर देख रहे थे. उन की तरफ से आंखें चुराते हुए प्रिया ने बातों का सूत्र जोड़ा, ‘‘फिर यह अकसर स्कूल की छुट्टी के बाद मुझ से मिलने लगा. हम कभी आइसक्रीम शौप जाते, कभी मूवी या फिर घंटों गार्डन में बैठे बतियाते रहते.’’

‘‘मतलब वह लड़का पूरी तरह तुम्हारे दिलोदिमाग पर छा गया था?’’

प्रिया ने एक पल अपने मातापिता की तरफ देखा. उन का हैरत का भाव प्रिया से बरदाश्त नहीं हुआ, लेकिन पुलिस औफिसर की बातों का जवाब देते हुए उस ने कहा, ‘‘हां, मुझे यह अच्छा लगने लगा था. वह जब भी मिलता, मुझे गिफ्ट देता और कहता, ‘बड़ी हैसियत वाला हूं मैं, शादी तुम्हीं से करूंगा.’’

‘‘अभी शादी की उम्र है तुम्हारी?’’ पुलिस औफिसर के स्वर में भारीपन था. प्रिया चाह कर भी बहस नहीं कर सकी. उस ने सिर झुकाए रखा, ‘‘दरअसल, सहेलियां कहती थीं कि जिस का कोई बौयफ्रैंड नहीं उस की कोई लाइफ नहीं. बस, मुझे दीपक को पा कर लगा था कि मेरी लाइफ बन गई है.’’

‘‘क्योंकि तुम्हें बौयफ्रैंड मिल गया था, इसलिए,’’ पुलिस औफिसर ने बीच में ही बात काटते हुए कहा, ‘‘क्या उस से फ्रैंडशिप का तुम्हारे मातापिता को पता था? जब तुम देरसवेर घर आती थी तो क्या बहाने बनाती थी?’’ पुलिस औफिसर ने तीखी निगाहों से दंपती की तरफ भी देखा, लेकिन वे उन से आंख नहीं मिला सके.

उस की मम्मा ने अपना बचाव करते हुए कहा, ‘‘हम से तो इतना भर कहा जाता था कि आज सहेली की बर्थडे पार्टी थी या ऐक्स्ट्रा क्लास में लेट हो गई या फिर…’’ लेकिन पति को घूरते देख उस ने अपने होंठ सी लिए.

पुलिस औफिसर ने बात काटते हुए कहा, ‘‘कैसे गैरजिम्मेदार मांबाप हैं आप? लड़की जवानी की दहलीज पर कदम रख रही है, उस के आनेजाने का कोई समय नहीं है, और आप को उस की कतई फिक्र नहीं है, लड़की की बरबादी के असली जिम्मेदार तो आप हैं. मेरी नजरों में तो सजा के असली हकदार आप लोग हैं.’’

लड़की को घूरते हुए पुलिस औफिसर ने बोला, ‘‘बौयफ्रैंड का मतलब भी समझती हो तुम? बौयफ्रैंड वह है जो हिफाजत करे, भलाई सोचे. तुम पेरैंट्स को बेवकूफ बना रही थी और लड़का तुम को  इमोशनली बेवकूफ बना रहा था.’’

पुलिस औफिसर के स्वर में हैरानी का गहरा पुट था, ‘‘कैसा बौयफ्रैंड था तुम्हारा कि उस ने तुम्हारे साथ इतना बड़ा फरेब किया? तुम्हें बिलकुल भी पता नहीं लगा. विश्वास कैसे कर लिया तुम ने उस का कि उस ने तुम्हारी आपत्तिजनक वीडियो क्लिपिंग बना ली और तुम्हें जरा भी भनक नहीं लगी?’’

‘‘वह कहता था कि मेरा फिगर मौडलिंग लायक है, मुझे विज्ञापन फिल्मों में मौका मिल सकता है, लेकिन इस के लिए मुझे बस थोड़ी झिझक छोड़नी पड़ेगी. काफी नर्वस थी मैं, लेकिन कोल्डड्रिंक पीने के बाद कौन्फिडैंस आ गया था.’’

झल्लाते हुए पुलिस औफिसर ने कहा, ‘‘नशा था कोल्डड्रिंक में क्या, और उस कौन्फिडैंस में तुम ने क्या कुछ गंवा दिया, पता नहीं है तुम्हें?’’ क्रोध से बिफरते हुए पुलिस औफिसर ने लड़की को खा जाने वाली नजरों से देखा.

खुश्क होते गले में प्रिया ने जोर से थूक निगला. उस ने बेबसी से गरदन हिलाई और चेहरा हथेली से ढांप कर फफक पड़ी. उस की सिसकियां तेज होती चली गईं. अपनी ही बेवकूफी के कारण उसे यह दिन देखना पड़ा था. दीपक पर उस ने आंख मूंद कर भरोसा कर लिया था, इसलिए उस के इरादे क्या हैं, यह नहीं समझ सकी. काश, उस ने समझदारी से काम लिया होता. पर अब क्या हो सकता था.

पति को उनके परिवार से दूर रखना क्या सही फैसला है?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 22 वर्षीय विवाहिता हूं. विवाह को अभी 4 महीने ही हुए हैं. हम दोनों पतिपत्नी बहुत खुश हैं. सासससुर इंदौर में रहते हैं. पर इधर एक परेशानी हो गई है. मेरी ननद जो पिछले महीने हमारी ही हाउसिंग सोसाइटी में शिफ्ट हो गई है, बेवक्त आ जाती है, जिस से हम लोग अपना कोई घूमनेफिरने का प्रोग्राम नहीं बना पाते. पति यों तो अपनी बहन को बहुत चाहते हैं, पर उस के कारण हमारी प्राइवेसी में खलल पड़ता है, यह वे भी महसूस करने लगे हैं. घर से पति का कार्यालय काफी दूर पड़ता है, इसलिए हम सोच रहे हैं कि कार्यालय के पास ही कोई फ्लैट देख लें. इस से हम लोग अपने लिए कुछ अधिक समय निकाल पाएंगे. क्या यह उचित रहेगा?

जवाब-

आजकल एकल परिवार का ट्रैंड चल पड़ा है. आप शादी के बाद अकेले रहे हैं. इसीलिए आप को अपनी ननद की मौजूदगी अखर रही है. वैसे उसे भी यह सोचना चाहिए कि ऐसे समय न आए जिस से आप लोगों को कोई परेशानी न हो. आप की यह सोच भी वाजिब है कि पति के कार्यालय के पास घर ले लें. इस से आप को पति का साथ भी अधिक मिलेगा और ननद से भी थोड़ी दूरी हो जाएगी. इस से आपस में प्यार भी बना रहेगा.

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‘‘बताओ न हर्ष, तुम मुझ से कितना प्यार करते हो?’’

‘‘पीहू, रोजरोज यह सवाल पूछ कर क्या तुम मेरा प्यार नापती हो,’’ हर्ष ने पीहू की आंखों में आंखें डाल कर जवाब दिया.

‘‘यस मिस्टर, मैं देखना चाहती हूं कि जैसेजैसे हमारी रोज की मुलाकातें बढ़ती जा रही हैं वैसेवैसे मेरे लिए तुम्हारा प्यार कितना बढ़ रहा है.’’

‘‘क्या तुम्हें नजर नहीं आता कि मैं तुम्हारे लिए पागल हुआ रहता हूं. तुम्हारे ही बारे में सोचता रहता हूं. अब तो यारदोस्त भी कहने लगे हैं कि तू पहले वाला हर्ष नहीं रहा. कुछ तो बात है. पहले तो तू व्हाट्सऐप ग्रुप में सब के साथ कितना ऐक्टिव रहता था. इंस्टाग्राम पर रोज तेरी स्टोरी होती थी.’’

‘‘तो तुम उन्हें क्या जवाब देते हो?’’ पीहू हर्ष के बालों में उंगलियां फेरते

हुए बोली.

हर्ष ने पीहू की कमर में हाथ डाला और उसे अपने और करीब लाते हुए बोला, ‘‘क्या जवाब दूं कि आजकल मेरे ध्यान में, बस, कोई एक छाई रहती है, जिस की कालीकाली आंखों ने मुझे दीवाना बना दिया है. जिस की हर अदा मुझे मदहोश कर देती है. अब तुम्हारा दोस्त किसी काम का नहीं रहा.’’

हर्ष का यह फिल्मी अंदाज पीहू के मन को गुदगुदा गया. हर्ष की ये प्यारभरी बातें उसे बहुत भातीं. मन करता था कि वह उस की तारीफ करता रहे और वह सुनती रहे. एक अजीब से एहसास से सराबोर हो जाता था उस का तनमन.

वाकई हर्ष ने उस की जिंदगी में आ कर उसे जीने का नया अंदाज सिखा दिया था. जिंदादिल, दूसरों की मदद करने में हमेशा आगे, दोस्तों का चहेता, दिल से रोमांटिक, स्मार्ट, इंटैलिजैंट, कितनी खूबियां हैं उस में. बहुत खुशनसीब समझती है वह अपनेआप को कि हर्ष जैसा लवर उसे मिला.

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समझौते स्त्री के ही हिस्से में क्यों ?

अंकिता और अनुज ने लव मैरिज की थी. शुरुआत में दोनों एक ही औफिस में थे, मगर बाद में अंकिता ने कंपनी बदल ली. दोनों एकदूसरे से बहुत प्यार करते थे और कोई भी फैसला लेने से पहले आपस में सलाह जरूर करते थे. कुछ दिनों से अंकिता के सासससुर भी उन के पास हैदराबाद में आ कर रहने लगे थे क्योंकि वे अपने छोटे पोते रवि के साथ समय बिताना चाहते थे. अंकिता अपने सासससुर का बहुत खयाल रखती थी.

इसी बीच अंकिता को एक असाइनमैंट के लिए मुंबई जाने का और्डर मिला. इस असाइनमैंट के बाद प्रमोशन मिलना तय था. अंकिता बहुत दुविधा में थी. अगर वह मुंबई नहीं जाती तो प्रमोशन तो मिलता ही नहीं नौकरी भी खतरे में आ जाती, जबकि उस के लिए अनुज और रवि को छोड़ कर मुंबई जाने का फैसला भी आसान नहीं था.

ऐसे में जब अंकिता ने अपनी सास से बात की तो वे सहजता से बोलीं, ‘‘बेटा कंप्रोमाइज तो औरतों को ही करना पड़ता है. मुझे देख अपनी लेक्चररशिप की जौब छोड़ तेरे ससुर के साथ उतनी दूर दिल्ली में जा कर बस गई. शादी के बाद जब फिर नौकरी का फैसला लिया तो अनुज पेट में आ गया. सास ने साफ मना कर दिया. बस तब से खशीखुशी होममेकर की जिंदगी बिता रही हूं. मु?ो इस बात का कोई गिला नहीं कि जिंदगी में मु?ो कई बार कंप्रोमाइज करने पड़े. आखिर नारी का दायित्व यही है कि वह पति की अनुगामिनी बने.’’

‘‘जी ठीक है. मैं यह जौब ही छोड़ दूंगी. कोई और देख लूंगी. वैसे भी रवि को छोड़ कर मैं नहीं जा सकती.’’

शाम जब अनुज आया और उस ने अंकिता का फैसला जाना तो वह भड़क उठा, ‘‘यह क्या कह रही हो? इस असाइनमैंट और प्रमोशन के लिए तुम कितने समय से उत्साहित थी. अब मौका आया है तो यह मौका छोड़ना चाहती हो?’’

‘‘तो क्या करूं? सब छोड़ कर कैसे जा सकती हूं?’’

‘‘क्यों नहीं जा सकती? अगर यह मौका मुझे मिलता तो क्या मैं नहीं जाता और तुम अकेले घर नहीं संभालती? तब तुम कंप्रोमाइज करती. अब मैं करूंगा. मां के साथ मिल कर मैं रवि को संभाल लूंगा. तुम बस जाने की तैयारी करो. वैसे भी कोई हमेशा के लिए तो जाना नहीं है. 2-3 महीने की बात है सो हम एडजस्ट कर लेंगे.’’

अनुज की बात सुन कर अंकिता की आंखों में आंसू आ गए. वह समझो गई कि अनुज जैसा हसबैंड पा कर उसे कभी अपने सपनों से समझोते नहीं करना पड़ेगा. वह प्यार से पति के गले

लग गई.

अनुज ने थोड़ा प्रयास कर अपनी मां को भी इस फैसले के लिए राजी कर लिया. अंकिता की नजरों में पति के लिए सम्मान काफी बढ़ गया.

पुरुष भी कर सकता है समझौता

इसी तरह दिल्ली में रहने वाली 34 वर्षीय प्रिया माथुर के पति बैंकिंग के क्षेत्र में हैं और वह मौडलिंग में है. फिर भी दोनों के बीच एडजस्टमैंट को ले कर कभी कोई दिक्कत नहीं हुई. दोनों उस वक्त से अच्छे दोस्त थे जब प्रिया मौडलिंग के क्षेत्र में नहीं थी. मगर शादी के बाद अच्छीखासी इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ कर मौडलिंग के क्षेत्र में आने के प्रिया के निर्णय में पति की पूरी सहमति थी. यहां तक कि पहले असाइनमैंट के लिए उसे ले कर मुंबई जाने का काम भी उस के पति ने किया था. इस के लिए बाकायदा उस ने 4 दिनों की छुट्टी भी ली थी.

दरअसल, जब 2 इंसानों के बीच सच्चा प्यार होता है तो वे दो शरीर और एक प्राण बन जाते हैं. उन के सपने और दुनिया सब एक हो जाते हैं. ऐसे में जब समझोते का समय आता है तो यह नहीं देखना चाहिए कि समझोता केवल स्त्री को करना जरूरी है. पुरुष भी समझोता कर सकता है. मगर समाज में ऐसे उदाहरण कम ही दिखने को मिलते हैं. ज्यादातर मामलों में घरपरिवार में यही उम्मीद की जाती है कि वही समझोता करे.

हमेशा स्त्री ने ही किए समझोते

अपने रिश्तों को बनाए रखने के लिए स्त्रियां हमेशा समझोता करने को तैयार होती रही हैं क्योंकि रिश्तों को निभाना और बचाए रखना उन के लिए सब से महत्त्वपूर्ण होता है. हम ने परिवार में, समाज में और रिश्तेदारों को भी अकसर सलाह देते देखा और सुना है कि ‘बेटा थोड़ा एडजस्ट कर लो,’ ‘थोड़ाबहुत एडजस्ट तो हर लड़की को करना पड़ता है,’ ‘जौब के बारे में बाद में सोचना पहले परिवार संभालो’ जैसी हिदायतें महिलाओं को मिलती रहती हैं.

यह माना जाता रहा है कि रिश्तों को निभाने की जिम्मेदारी केवल महिलाओं की ही होती है. यही नहीं इस पुरुषप्रधान समाज में महिलाओं को विनम्र और त्यागशील  होने की सलाह भी दी जाती है ताकि वे अपनी शादीशुदा जिंदगी को कोई नुकसान न पहुंचाएं. उन से कहा जाता है कि उन के लिए बाकी सारी चीजें बाद में आती हैं. सब से पहले जो माने रखता है वह है उन का रिश्ता.

शादी के बाद एडजस्टमैंट इशूज के कारण होते झोगड़े

मगर स्त्री पर जबरदस्ती थोपे गए इन समझोतों का नतीजा यह निकलता है कि वह अपना मन मार कर और सपनों का गला घोंट कर जीने को विवश हो जाती हैं. महिलाएं मन ही मन में किलसती रहती हैं और चिडचिड़े स्वभाव की हो जाती हैं. यही वजह है कि अकसर लोग कहते हैं पत्नी के रंग शादी के बाद बदल जाते हैं. यह सच है. दरअसल, शादी के बाद महिलाओं की मनोस्थिति बदलती है और इस में कई बार उन का दोष भी नहीं होता है. साइंस भी यह मानती है कि शादी के शुरुआती 6 महीनों में ही कई बार पतिपत्नी के झोगड़े बहुत बढ़ जाते हैं.

साइकोलौजी टुडे के एक सर्वे की रिपोर्ट कहती है कि डेटिंग के समय के बाद शादी और शादी के बाद झोगड़े होना पूरी तरह से नौर्मल है. इस का अहम कारण एडजस्टमैंट है क्योंकि शादी के बाद एक महिला को बहुत ज्यादा एडजस्टमैंट करना होता है.

उदाहरण के लिए उन्हें नए घर में एडजस्टमैंट की टैंशन रहती है. शादी के बाद महिलाओं का घर बदल जाता है. नए रिश्ते जुड़ते हैं जबकि पुराने रिश्ते दूर हो जाते हैं. नए घर में एडजस्ट करने में भी उन्हें दिक्कतें आती हैं. ऐसे में वे ज्यादा चिड़चिड़ी हो जाती हैं. अगर किसी महिला को ऐसा लगता है कि नए घर में उसे ठीक से अपनाया नहीं जा रहा है तो भी उसे समस्या हो सकती है. बचपन से जवान होने तक महिलाएं बिलकुल अलग माहौल में रहती हैं. शादी के बाद नया माहौल उन्हें परेशान कर सकता है.

इसी तरह अधूरी इच्छाएं और टूटते सपने भी उन्हें परेशान करते हैं. कई बार शादी के तुरंत बाद ऐसा महसूस होने लगता है कि कुछ इच्छाएं अधूरी रह गई हैं. उन्हें अपने सपने पीछे छोड़ने पड़ते हैं. कई महिलाएं अपने कैरियर, जौब, शहर, काम आदि सबकुछ के साथ कंप्रोमाइज कर लेती हैं और ऐसे में उन का चिड़चिड़ा होना बहुत स्वाभाविक है.

दुनिया के सब से जटिल रिश्तों में से एक है पतिपत्नी का संबंध. पतिपत्नी चाहें तो 2 दोस्तों की तरह भी जिंदगी बिता सकते हैं, लेकिन कई बार होता यह है कि वे हर वक्त लड़तेझोगड़ते और कुढ़ते हुए जीवनयापन करते हैं और फिर अलग भी हो जाते हैं. आजकल स्त्रियां खुद भी पति को छोड़ कर अलग रहने का फैसला करने लगी हैं.

दरअसल, पतिपत्नी के रिश्ते में स्त्री का आत्मसम्मान बेहद महत्त्वपूर्ण होता है. आज के दौर में स्त्री की तरफ से रिश्ते उस वक्त टूटतेबिखरते हैं जब उस के आत्मसम्मान को बारबार ठेस पहुंचती है और इस में कुछ भी गलत नहीं है. गुजरे जमाने में स्त्री सिर्फ आत्मसमर्पण जानती थी. इसलिए रिश्ते बने रहते थे. तब ज्यादातर स्त्रियां अपने जीवनसाथी के अत्याचारों को चुपचाप सहती रहती थीं. मगर उन की जिंदगी में समझोतों के सिवा कुछ नहीं होता था. आज की स्त्री जानती है कि उस का अपना वजूद है, अपना आत्मसम्मान है और इसे बचाए रखना उस की और उस के पति दोनों की जिम्मेदारी है.

पति भी क्यों न करें समझोता

लोगों को यह समझोना चाहिए कि आपस में प्यार बनाए रखने और खूबसूरत जिंदगी जीने के लिए पति को भी समझोते करने के लिए तैयार रहना चाहिए. समझोते के लिए मिल कर काम करना जरूरी है. एकदूसरे की बातें सुनने और उन का सम्मान करने की जरूरत है. हो सकता है शादी से पहले आप को अकेले फैसले लेने की आदत हो. मगर शादी के बाद हालात बदल जाते हैं. अब दोनों को मिल कर फैसले लेने चाहिए. वैसे भी जब 2 लोग मिल कर फैसले लेते हैं तो इस के नतीजे बेहतर निकलते हैं.

पतियों के लिए पत्नी की बातें को ध्यान से सुनना और उन पर गहराई से सोचना जरूरी है. शादी के सलाहकार जौन एम. गौटमैन अपनी किताब में लिखते हैं, ‘‘आप का जीवनसाथी जो कहता या सोचता है जरूरी नहीं कि आप उसे राजी हों, मगर यह जरूरी है कि आप उस की बात ध्यान से सुनें और उस पर गहराई से सोचें. जब आप का साथी किसी समस्या के बारे में आप से खुल कर बात कर रहा हो तो उस वक्त अगर आप सिर्फ हाथ बांध कर ‘न’ में सिर हिलाते रहें तो समस्या कभी नहीं सुलझो पाएगी और न ही आप की बातचीत कभी आगे बढ़ पाएगी.’’

समझोते के लिए एकदूसरे के प्रति सम्मान का होना जरूरी है. कोई भी ऐसे जीवनसाथी के साथ रहना पसंद नहीं करेगा जो हमेशा यह माने कि उस की सोच ही सही है या उस की बात माननी ही पड़ेगी. दरअसल, पति और पत्नी दोनों को एकदूसरे की बात माननी चाहिए न कि हमेशा अपनी बात पर अड़े रहना चाहिए.

सोच में बदलाव

देश और समाज के विकास के लिए महिलाओं की भूमिका कितनी महत्त्वपूर्ण है इस का अंदाजा राष्ट्रीय स्तर पर देखा जा सकता है. आज महिलाओं को आत्मनिर्भर जिंदगी जीने और सपने पूरे करने के मौके दिए जा रहे हैं. उन्हें परदे की ओट से बाहर लाने की मुहिम चलाई जा रही है. लोग यह समझो रहे हैं कि स्त्री की तरक्की समाज के विकास के लिए कितनी जरूरी है. आरएसएस जैसे संघ जो धर्म के नाम पर सत्ता चलाते हैं और महिलाओं को पीछे रखते हैं, उन को भी अब लगने लगा है कि बिना महिलाओं के तरक्की संभव नहीं है. इसलिए वे भी अब महिलाओं को आगे लाने पर जोर दे रहे हैं.

हाल ही में आरएसएस प्रमुख भागवत ने नागपुर में एक पुस्तक के विमोचन के अवसर पर कहा कि अगर हम विश्व गुरु के रूप में भारत का निर्माण करना चाहते हैं तो सिर्फ पुरुषों की भागीदारी ही काफी नहीं है बल्कि महिलाओं की समान भागीदारी की भी आवश्यकता है. एक तरफ हम उन्हें जगतजननी के रूप में मानते हैं, लेकिन दूसरी तरफ हम उन्हें घर में गुलामों की तरह मानते हैं. हमें महिलाओं को अच्छा वातावरण देने की जरूरत है. उन्हें प्रबुद्ध, सशक्त और शिक्षित किया जाना चाहिए और यह प्रक्रिया घर से शुरू होनी चाहिए.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के बाद से हर साल नागपुर में दशहरे पर कार्यक्रम का आयोजन किया जाता रहा है. 1925 के बाद इस कार्यक्रम में हमेशा कोई पुरुष ही मुख्य अतिथि के तौर पर शिरकत करता आया है. लेकिन पहली बार इस प्रोग्राम में संघ ने किसी महिला को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया. इस वर्ष कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में पर्वतारोही संतोष यादव शामिल हुईं. संतोष यादव पहली ऐसी महिला हैं जिन्होंने 2 बार माउंट ऐवरेस्ट की चढ़ाई की है.

अपना व्यक्तित्व ऐसा बनाएं कि पुरुष समझोता करने को खुद तैयार रहे

खुद को छुईमुई या फिर दरवाजे की ओट से बाहर की दुनिया झोंकने वाली डरीसहमी सी औरत बना कर न रखें. अपने वजूद को पहचानें. आप किसी से कम नहीं. पुरुष के समान ही आप के पास योग्यता है, काबिलीयत और हिम्मत है. इस का प्रयोग करें. खुद को ऊंचाइयों तक ले जाएं जहां से समाज का भेदभाव आप पर कोई असर न कर सके. आप अपने बल पर जीने की हिम्मत रखें. किसी पर आश्रित लता बनने के बजाय खुद सामर्थ्यशील बनें. आप अपने जीवनसाथी को एहसास दिलाएं कि आप के बिना वे कितने अधूरे हैं. उन की जिंदगी में हर जगह अपनी उपस्थिति और अहमियत साबित करें. उन्हें महसूस होने दें कि आप के बिना वे जी नहीं सकेंगे. आप का कोई विकल्प उन के पास नहीं.

पुरुष को स्त्री की ज्यादा जरूरत है

याद रखें कि स्त्री पुरुष के बिना आराम से जी सकती है, मगर पुरुष के लिए स्त्री के बिना जीना मुमकिन नहीं. स्त्री के बिना वह वाकई अधूरा है. बात घर चलाने की हो या शारीरिक जरूरतों की एक स्त्री के बिना पुरुष मारामारा फिरता है. उस का कोई ठिकाना नहीं रह जाता. स्त्री के बिना घर का मैनेजमैंट पूरी तरह हिल जाता है. पुरुष को न तो ठीक से खाना बनाना आता है और न ही बच्चों को संभालना. न तो वे राशन और सब्जी के झोमेलों को संभाल पाते हैं और न घर की साफसफाई ही रख पाते हैं.

किसी पुरुष की पहली पत्नी चली जाए तो क्या पता दूसरी कैसी आए यह सवाल जरूर उठता है. पुरुष सैक्सुअली भी पत्नी के ऊपर डिपैंडैंट रहता है. इस के विपरीत एक औरत आराम से अकेली या बिना पुरुष के रह सकती है. उसे घर संभालना भी आता है, पैसे भी कमा सकती है और अपनी जरूरतों की प्राथमिकता भी तय कर सकती है. इसलिए पुरुषों को यह समझोना चाहिए कि औरत को तकलीफ देने या हर बात में झोकाने से अच्छा है कि वे खुद भी समझोते कर अपनी और पत्नी की जिंदगी खूबसूरत और आसान बना ले.

इतनी कोमल न बनें कि कोई भी आप को अपने अनुसार चलाने लगे

महिलाएं तन के साथ मन से भी कोमल होती हैं. मगर इस का मतलब यह नहीं कि आप कठोर बनना जानें ही नहीं. जरूरत पड़ने पर स्त्री को भी कठोर बनना होता है वरना लोग उसे अपने हिसाब से चलाने लगते हैं. जिंदगी में सबकुछ दूसरों की मरजी अनुसार करना उचित नहीं. जो आप को अच्छा लगता है वह करना भी जरूरी है. खुद को माटी का पुतला बना कर न रखें कि पुरुष उसे अपने सांचे में ढाल ले. घर हो या बाहर अपनी आवाज उठानी भी जरूरी है वरना लोग भूल जाएंगे कि आप का भी कोई वजूद है. अगर आप को कुछ करना है तो घरवालों की अनुमति लें. मगर यदि वे बेवजह आप को अनुमति नहीं दे रहे या समझोता करने को मजबूर करें तो दृढ़ता से अपना पक्ष रखें और वही करें जो आप को सही लगे. धीरेधीरे पति भी आप की बात मानने लगेंगे.

धर्म और कर्मकांड के बजाय आपने आप पर समय खर्च करें

अकसर घर की महिलाएं अपना ज्यादातर समय और शक्ति कर्मकांडों और धार्मिक गतिविधियों में बरबाद करती हैं. हर दूसरे दिन कोई खास पूजा या अनुष्ठान की तैयारी, भजनपूजन, व्रतउपवास इन्हीं सबों में लिप्त रहती हैं. वे यह नहीं समझोतीं कि समय अमूल्य है. इसी समय का उपयोग यदि वे अपने लिए करें तो उन का कायाकल्प हो जाए. वे चाहें तो इस समय का उपयोग अपने गुणों को निखारने और नई कला सीखने में कर सकती हैं. इस से उन का व्यक्तित्व स्ट्रौंग बनेगा और आय अर्जित करने की क्षमता

भी विकसित होगी. वे आत्मनिर्भर बनेंगी और

उन्हें नाहक जीवन में समझोते नहीं करने पड़ेंगे, उलटा उन के पति उन की कीमत सम?ोंगे और

उन के लिए किसी भी तरह कंप्रोमाइज करने को तैयार रहेंगे.

 

Winter Recipe: ब्रेकफास्ट में मक्के के आटे से बनाएं ये डिश, इस वीकेंड करें ट्राई

Winter Recipe: सुबह का नाश्ता एक गृहिणी के लिए अक्सर बहुत बड़ी समस्या होती है. सर्दियों का मौसम प्रारम्भ हो चुका है और मक्का खाना दिनों में बहुत सेहतमंद होता है. मक्के में निहित फाइबर, कार्बोहाइड्रेट, मिनरल्स आदि स्वास्थ्यप्रद होता है. आज हम आपको मक्के के आटे से बनने वाली 2 रेसिपी बनाना बता रहे हैं जिन्हें घर में उपलब्ध सामग्री से ही बड़ी आसानी से बनाया जा सकता है.

-मकई चीज बौल्स

कितने लोगों के लिए          8

बनने में लगने वाला समय    30 मिनट

मील टाइप                        वेज

सामग्री

मक्के का आटा             2 कप

उबले आलू                  2

बारीक कटी सब्जियां      2 कप

(गाजर, मटर, शिमला मिर्च, बींस)

बारीक कटा प्याज          1

किसा अदरक               1छोटी गांठ

बारीक कटी हरी मिर्च       4

हल्दी पाउडर                    1/4 टीस्पून

लाल मिर्च पाउडर             1/4 टीस्पून

काली मिर्च पाउडर            1/4 टीस्पून

नमक                              स्वादानुसार

अमचूर पाउडर                1/2 चम्मच

बारीक कटा हरा धनिया      1लच्छी

ब्रेड क्रम्ब्स                        2 टेबलस्पून

चीज क्यूब्स                      2

तलने के लिए पर्याप्त मात्रा में तेल

विधि

सभी सब्जियों को 1/4 कप पानी और 1/4 टीस्पून नमक डालकर प्रेशर कुकर में 2 सीटी लेकर उबाल लें. ब्रेड क्रम्ब्स को छोड़कर सभी सब्जियों, उबले आलू, मसालों, अदरक, हरी मिर्च और हरी धनिया को एकसाथ अच्छी तरह मिलाएं. चीज क्यूब्स को चार भाग में काट लें. तैयार मिश्रण एक बड़ा चम्मच मिश्रण लेकर हथेली पर फैलाएं और बीच में चीज क्यूब रखकर अच्छी तरह बंद कर दें. इसी प्रकार सारे बॉल्स तैयार कर लें. अब इन्हें ब्रेड क्रम्ब्स में लपेटकर गर्म तेल में सुनहरा होने तक तलकर बटर पेपर पर निकालें गर्म गर्म बॉल्स को टोमेटो सॉस के साथ सर्व करें.

-स्पाइसी मैगी परांठा

कितने लोगों के लिए          6

बनने में लगने वाला समय     20मिनट

मील टाइप                         वेज

सामग्री

मक्के का आटा              1 कप

बारीक कटी पालक          1 कप

उबला किसा आलू           1

हींग                              1/4 टीस्पून

नमक                            1/4 टीस्पून

जीरा                             1/4 टीस्पून

अजवाइन                     1/4 टीस्पून

अदरक, हरी मिर्च पेस्ट      1 टीस्पून

मैगी मसाला                   1 टेबलस्पून

चाट मसाला                   1टीस्पून

सेंकने के लिए                 तेल

विधि

तेल और चाट मसाला को छोड़कर समस्त सामग्री को एक साथ एक बाउल में अच्छी तरह मिक्स कर लें. तैयार मिश्रण में से छोटी छोटी बॉल्स लेकर हल्के हाथ से चकले पर परांठा बनाएं और गर्म तवे पर दोनों तरफ तेल लगाकर सुनहरा होने तक सेंके.ऊपर से चाट मसाला स्प्रिंकल करके सर्व करें.

Winter Health Tips : क्या आप भी हैं मौसमी ऐलर्जी से परेशान, तो इन टिप्स को करें फौलो

Winter Health Tips: सर्दियों की ऐलर्जी आप को बीमार कर सकती है. इस से आप की नाक बहनी शुरू हो जाती है अथवा बंद हो जाती है, साथ ही गले में खराश भी हो जाती है. आंखों में खुजलाहट और लाली आ जाती है और छींक और कफ की समस्या बढ़ जाती है. फफूंदी, धूलमिट्टी, जानवरों की खुश्की और परफ्यूम जैसी चीजें ऐलर्जी की समस्या बढ़ाने का काम करती हैं और सर्दी के मौसम में आप के शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाती है. इस मौसम की सर्दीजुकाम एक मामूली समस्या होती है, लेकिन ऐलर्जी लंबे समय तक परेशान करती है.

फफूंदी, धूलमिट्टी व जानवरों की खुश्की जैसी चीजें वैसे तो पूरे साल वातारवण में मौजूद रहती हैं, लेकिन ठंड के मौसम में ये इसलिए ज्यादा सक्रिय हो जाती हैं क्योंकि लोग कमरे की सारी खिड़कियां और दरवाजे आदि बंद कर लेते हैं और ठंड के बचाव के लिए रूम हीटर आदि चला लेते हैं. ऐसे में कमरे का वातावरण इन चीजों के पनपने के लिए अनुकूल हो जाता है.

आइए, अब जानिए इस मौसम की ऐलर्जी की खास वजहों के बारे में विस्तार से, जो घर के अंदरूनी वातावरण में ही मौजूद होती हैं:

फफूंदी के जीवाणु: सांस लेने के दौरान अस्थमा के मरीजों के शरीर में जब वातावरण में मौजूद फफूंदी के जीवाणु प्रवेश कर जाते हैं तब बीमारी गंभीर रूप ले लेती है. ये जीवाणु आप को नजर नहीं आते. ये तो बाथरूम और बेसमैंट जैसी नमी वाली जगहों पर पनपते हैं. इस मौसम में हवा में उड़ रहे कटी फसल के कण भी समस्या बढ़ाने की वजह बनते हैं.

धूल के कण: ये घर के अंदर साफ दिखने वाले वातावरण में भी मौजूद रहते हैं. इन से आंखों से पानी आने, नाक बंद होने और लगातार छींक आने जैसी समस्याएं बढ़ जाती हैं. ये आप के तकियों, गद्दों, कमरे की सजावटी चीजों, परदों और कारपेट आदि में जमा रहते हैं.

जानवरों की खुश्की: ठंड में ऐलर्जी की समस्या बढ़ाने का काम पालतू जानवरों की लार और मूत्र में मौजूद प्रोटीन के तत्त्व करते हैं, जिसे जानवरों की खुश्की कहते हैं. यह बहुत ही हलकी होती है और आसानी से आप के कपड़ों, जूतों और बालों में चिपक जाती है.

आप क्या करें: इस मौसम की कोई भी समस्या, जैसे नाक बहना, खांसी, आंखों में खुजली व जलन, छींक आना और आंखों के आसपास काले घेरे अगर 1 हफ्ते से अधिक समय तक बरकरार रहें तो डाक्टर से संपर्क करना चाहिए. इस के अलावा बचाव के कुछ उपायों को अपना लेना हमेशा बेहतर रहता है.

घर के वैंटिलेशन का करें इंतजाम: जैसे ही सर्दियां आती हैं हम कंबल, गद्दों, सौफ्ट टौयज, तकिए और ऊनी कपड़ों से नजदीकी बढ़ा लेते हैं. इन चीजों में धूल के कण आसानी से अटक जाते हैं. हम अपनी खिड़कियां और दरवाजे बंद कर लेते हैं और कंपाने वाली ठंड से बचने के लिए घर में हीटर जला लेते हैं. इस का नतीजा यह होता है कि घर में सूरज की रोशनी प्रवेश नहीं कर पाती, जिस के चलते फफूंदी पनपती है. सर्दियों में कई बार ऐग्जिमा की समस्या भी बढ़ जाती है, जिस का संबंध धूलकणों से ऐलर्जी से होता है. इस से बचाव के लिए सूरज की रोशनी को घर में आने दें.

बनाएं एक ऐक्शन प्लान: परदों और कारपेट आदि को नियमित रूप से वैक्यूम क्लीनर की सहायता से साफ करें. अपने कंबल और स्वैटर आदि को कम से कम हफ्ते में एक बार धूप में जरूर रखें.

रहें सावधान: धूम्रपान करने और अगरबत्ती जलाने से बचें. मिट्टी के कणों और फफूंदी पनपने को रोकने के लिए घर में नमी के स्तर को सामान्य रखें. इस के लिए ह्यूमिडिफायर और डीह्यूमिडिफायर का इस्तेमाल करें.

अपने घर को करें स्कैन: आप को नियमित रूप से अपने घर की अच्छी तरह जांच करनी चाहिए और ऐसी जगहों की सफाई करनी चाहिए, जहां जीवाणुओं के पनपने की आशंका हो. अपने बेसमैंट की सफाई करें और ऐसी चीजों को हटा दें, जिन में मिट्टी के कण जमा होने का खतरा हो.

ऐलर्जी को कभी नजरअंदाज न करें. डाक्टर को दिखाएं. इस से आप को उस के लिए दवाओं, स्प्रे और इनहेलर जैसी चीजों के बारे में जानकारी मिल जाएगी, जो ठंड में आप को ऐलर्जी से राहत दिलाएगी.

– डा. सतीश कौल
कोलंबिया एशिया हौस्पिटल, गुड़गांव.

Winter Wear : सर्दियों में स्टाइल का परफैक्ट कौम्बिनेशन है कौर्ड सेट, जानें ड्रैस के बारे में सबकुछ

Winter Wear: सर्दियों में स्टाइलिश दिखना थोड़ा मुश्किल हो सकता है, क्योंकि ठंड से बचाव के लिए हमें गर्म कपड़े पहनने पड़ते हैं. लेकिन फैशन की दुनिया में “कार्ड सेट” ने इस चुनौती का शानदार समाधान पेश किया है. सर्दियों के लिए बने ये कोऔर्डिनेटेड सेट न केवल आरामदायक होते हैं, बल्कि बेहद ट्रैंडी और स्टाइलिश भी लगते हैं. आइए जानें कि सर्दियों में कौर्ड सेट का ये ट्रेंड क्या है और कैसे आप इसे अपने वार्डरोब का हिस्सा बना सकते हैं।

कौर्ड सेट क्या है?

कौर्ड सेट एक प्रकार का आउटफिट है जिसमें टौप और बौटम एक ही तरह के कपड़े और डिजाइन में होते हैं. ये सेट पूरी तरह से मैचिंग होते हैं और इनका लुक सेम रहता है, जिससे एक स्टाइलिश और फैशनेबल लुक बनता है. सर्दियों में कौर्ड सेट के कई विकल्प मौजूद हैं, जैसे स्वेटर और पैंट सेट, जैकेट और स्कर्ट सेट, या फुल स्लीव टौप और जौगर्स सेट.

सर्दियों में कौर्ड सेट ट्रेंड की खासियतें

1.आराम और स्टाइल का मिक्सअप: सर्दियों के कौर्ड सेट को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि ये गर्माहट देने के साथ-साथ स्टाइलिश भी दिखें. इनमें वूल, निटेड फैब्रिक, या फ्लीस जैसे गर्म कपड़े होते हैं, जो ठंड से बचाते हैं.

2.एक्सेसरीज़ की जरूरत कम: चूंकि कौर्ड सेट अपने आप में एक कम्पलीट लुक प्रदान करते हैं, इसलिए इन्हें स्टाइल करने के लिए ज्यादा एक्सेसरीज़ की जरूरत नहीं होती. बस एक अच्छा जैकेट, बूट्स, और आप तैयार हैं!

3.वर्क फ्रौम होम से लेकर आउटिंग तक: कौर्ड सेट की खास बात ये है कि इन्हें आप घर पर आराम से पहन सकते हैं, साथ ही बाहर कहीं मिलनेजुलने या छोटी पार्टी में भी पहन सकते हैं. ये सेट कैजुअल और फौर्मल, दोनों लुक्स में उपलब्ध हैं.

4.मिनिमलिस्ट लुक: कौर्ड सेट से आप एक स्लीक और मिनिमलिस्ट लुक पा सकते हैं, जो आजकल के फैशन में काफी लोकप्रिय है. यह फैशन ट्रेंड उन लोगों के लिए खास है जो ज्यादा तामझाम पसंद नहीं करते और साधारण तरीके से स्टाइलिश दिखना चाहते हैं.

सर्दियों में कौर्ड सेट कैसे पहनें?

1.लेयरिंग के साथ: सर्दियों में कौर्ड सेट के साथ एक स्टाइलिश कोट, लौन्ग जैकेट, या शाल को लेयर करें. इससे न केवल आप ठंड से सुरक्षित रहेंगे, बल्कि डिफरैंट लुक लगेगा.

2.शूज का सही चुनाव: कौर्ड सेट के साथ एंकल बूट्स, स्नीकर्स या हील बूट्स काफी अच्छे लगते हैं. अगर आप फौर्मल लुक चाहती हैं, तो हील्स का चुनाव करें, वहीं कैजुअल लुक के लिए स्नीकर्स बढ़िया विकल्प हैं.

3.स्कार्फ या मफलर जोड़ें: सर्दियों में स्टाइलिश दिखने के लिए कौर्ड सेट के साथ स्कार्फ या मफलर पहनें. यह लुक को और भी आकर्षक बना देगा और आपको गर्म भी रखेगा.

4.बैग का चुनाव: मिनिमलिस्ट लुक को कंप्लीट करने के लिए एक क्लासिक स्लिंग बैग या हैंडबैग कैरी करें. यह पूरे आउटफिट में एक एलिगेंस जोड़ता है.

कौर्ड सेट ट्रेंड इन विंटर

1.कश्मीरी या ऊनी सेट: ठंडे मौसम में कश्मीरी या ऊनी कॉर्ड सेट बेहद आरामदायक और गर्म होते हैं. ये सेट ऑफिस से लेकर कैजुअल आउटिंग तक के लिए परफेक्ट हैं.

2.निटेड सेट: निटेड कौर्ड सेट सर्दियों में काफी पसंद किए जाते हैं. इनका फैब्रिक न केवल गर्म होता है, बल्कि पहनने में भी हल्का और आरामदायक महसूस होता है.

3.ट्रैक सूट स्टाइल कॉर्ड सेट: यह कॉर्ड सेट वर्क फ्रौम होम या कैजुअल आउटिंग के लिए परफेक्ट है. ट्रैक सूट स्टाइल के कौर्ड सेट आपको स्टाइलिश के साथसाथ एक्टिव लुक भी देते हैं.

4.फ्लीस सेट: अगर आप सर्दियों में ज्यादा ठंड महसूस करते हैं, तो फ्लीस सेट आपके लिए बेहतरीन विकल्प है. ये बहुत गर्म और आरामदायक होते हैं, साथ ही काफी ट्रैंडी भी दिखते हैं.

एक खूबसूरत मोड़ : शेखर और मीना को क्यों अलग होना पड़ा?

‘‘कुछ भी नहीं बदला न इन 12 सालों में.’’

‘‘हां सचमुच. क्या तुम मुझे माफ कर पाए शेखर?’’  यह पूछती मीना की पनीली आंखें भर आईं पर मन हर्षित था. अनायास हुई यह मुलाकात अप्रत्याशित सही पर उसे क्षमा मांगने का अवसर मिल ही गया था. होंठों पर मुसकान ऐसे आ चिपकी जैसे बड़ी जिद्द के बाद भी जो खिलौना न मिला हो और वही बर्थडे गिफ्ट के रैपर खोलते ही अनायास हाथों में आ गया हो.

‘‘तुम से नाराज नहीं था यह कहना गलत होगा. मुझे ऐसा लगा था कि तुम से कभी बात नहीं कर सकूंगा मगर देख तुझे देखते ही सब भूल गया,’’ शेखर एक ही सांस में बोलता चला गया फिर उस ने अपनी शिकायत रखी, ‘‘तू तो ऐसे गई कि मुड़ कर भी नहीं देखा. हमारे जीवन से जुड़े फैसले अकेले कैसे ले लिए?’’

‘‘मैं ने कब लिए. तुम्हारे लिए ही तुम से दूर हुई. मैं तुम्हें सफलता के शिखर पर देखना चाहती थी शेखर. मेरे पीछे तुम्हारी पढ़ाई नहीं हो रही थी. आज तुम इतने बड़े औफिसर हो. मैं साथ होती तो यह संभव होता? बोलो, जवाब दो?’’

मीना बस मुसकराए जा रही थी. लंबी जुदाई के बाद मिली थी सो वह 1-1 क्षण जी लेना चाहती थी.

‘‘क्यों नहीं होता? तुम्हारा साथ मिलता तो सब हो जाता.’’

‘‘क्लासेज छोड़ कर दीवानों की तरह घूमते थे तुम. मैं तुम्हारी सफलता का कारण बनना चाहती थी, असफलता का नहीं,’’ मीना ने गहरी सांस लेते हुए कहा.

‘‘पता नहीं यार पर ऐसा क्या चाह लिया था. कोई ताजमहल तो नहीं मांग लिया था. एक तू मिल जाती और मैं आईएएस बन जाता इतना ही न. मगर नहीं. मैं जो चाहता हूं वह मुझे कभी नहीं मिलता,’’ कह कर आसमान की ओर देखने लगा जैसे उस की एक नाराजगी प्रकृति से भी हो.

‘‘तुम सुखी गृहस्थी जी रहे हो, अच्छे पद पर हो. आखिर तुम्हारे पापा तो तुम्हें ऐसे ही तो देखना चाहते थे,’’ कह मीना शेखर की आंखों मे देखने लगी. वही आंखें जिन में अपना प्रतिबिंब देख कभी शर्म से दोहरी हो जाती थी. जिन होंठों की मुसकान पर सदा वारी जाती पर न जाने क्यों वे सभी सूने पड़े थे जो कभी उस के प्रेम से लबरेज रहा करते थे.

सालों बाद दोनों यों मिलेंगे यह सोचा न था. मीना मायके से अकेली लौट रही थी और शेखर अपने मातापिता से मिलने जा रहा था. बड़ी मुश्किल से एकदूसरे को भुला कर अपनीअपनी जिंदगी जीना शुरू ही किया था कि नियति ने उन्हें फिर से मिला दिया. बिना कुदरत की मरजी के पत्ता भी नहीं खड़कता. आज उस की ही हरी ?ांडी रही होगी जो बरसों के बिछड़े प्रेमियों का एअरपोर्ट पर अचानक आमनासामना हो गया और फिर वे अतीत के पन्नों में ऐसे उल?ो कि उन की फ्लाइट मिस हो गई.

‘‘कुछ खाएगी?’’

‘‘हूं… चिली चिकन विद गार्लिक सौस.’’

इस डिश का नाम सुनते ही शेखर के होंठों पर मुसकान आ गई जिसे देख कर मीना को भी तसल्ली हुई. प्यार के कुछ निशां अब भी बाकी थे. यही उन की फैवरिट डिश थी जिसे वे हर रविवार खाया करते थे. आज एअरपोर्ट पर मेनलैंड चाइना में साथ बैठ कर खाने लगे.

‘‘तू अब भी वैसी ही प्यारी दिखती है.’’

‘‘यह तुम्हारा प्यार है शेखर. जब तक तुम्हारा प्यार मुझ में रहेगा मैं प्यारी ही रहूंगी.’’

इस बार मन भावुक था. आंखें छलक आईं. जज्बात ही थे आखिर कब तक काबू में

रहते. कभी उन नयनयुग्मों ने एक होने के सपने सजाए थे. मीना के नयनों की नमी शेखर को न भिगो पाई. उस ने सूखी आंखों से उस की ओर देखा जैसे इस मीना को वह पहचानता ही न हो. उस के चेहरे पर आए बदलाव ने मीना को सहमा दिया.

पल दो पल की खामोशी के बाद शेखर ने पूछा, ‘‘सब ठीक है न तेरे साथ?’’

‘‘बस कुछ ही देर का साथ है और फिर तुम्हें देखने को तरस जाऊंगी इसलिए ही…’’ अवरुद्ध कंठ से इतना ही निकला.

‘‘इतना ही चाहती थी तो तब कहां थी जब मुझे तेरी जरूरत थी? मैं ने आईएएस परीक्षा निकाल ली थी. इंटरव्यू की तैयारी के दौरान बस एक ही खयाल कि मुझे तू मिलेगी या नहीं. बस इन्हीं सवालों से जंग लड़ते न जाने कितनी ही रातें आंखों में कटीं. स्ट्रैस लैवल कितना हाई था कि जब इंटरव्यू देने गया था. ऊपर से जितने मुंह उतनी बातें. सब कहते थे कि तुम ने मुझे बरबाद कर दिया है.’’

उस की सीधी बातें सीने को चीरती थीं. एक नाराजगी थी शायद या उस का आहत स्वाभिमान. बातों में एक तीखापन जैसे प्यार पर से विश्वास ही उठ चुका हो.

‘‘सब कौन और तुम भी यही सोचते हो?’’

‘‘नहीं, पर बाकी सब यही कहते हैं.’’

‘‘तुम्हारे दोस्त तो पहले भी मेरे दुश्मन थे. तुम क्या सोचते हो, मेरे लिए यह माने रखता है.’’

‘‘तुम्हारी कोई मजबूरी रही होगी. मैं ने तुम्हें कभी गलत नहीं समझ. इसी बात का तो दुख है मेरी पत्नी को.’’

‘‘पत्नी? पर तुम ने तो कहा था आजीवन मेरी प्रतीक्षा करोगे?’’

‘‘कर ही रहा था. मेरा चयन फौरेन सर्विस में हो गया था. ट्रेनिंग के दौरान तुम्हारे घर वालों से बारबार कौंटैक्ट करता रहा, तुम्हें याद करता रहा पर तुम्हारी शादी हो गई थी. तुम्हारी ही बातें करतेकरते मेरी बैचमेट सपना मेरे नजदीक आई और मेरे जीवन की हकीकत बन गई. अब तुम कुछ अपने बारे में बताओ?’’

‘‘मेरी शादी मेरी मरजी के विरुद्ध राजेश के साथ हुई. मैं ने उसे अपनी पूरी कहानी बता दी ताकि वह मुझे छोड़ दे पर वह पारंपरिक इंसान निकला. शादी को सिरियसली निभाने लगा.’’

‘‘तू खुश है?’’

‘‘मैं दोहरी जिंदगी जी रही हूं. तुम्हें भुला न सकी शेखर. सुखदुख में, तनहाइयों में बस तुम ही याद आते रहे. कभी बादलों में तुम्हारा अक्स ढूंढ़ा करती तो कभी पुरानी बातों को याद कर खुश हो जाया करती.’’

‘‘मैं भी कहां भुला सका. अपने गम कम करने के लिए शराब का सहारा भी लिया पर इस का भी कोई लाभ नहीं हुआ. जिंदगी जीने के लिए सही फलसफा जरूरी है, जिसे मैं भी देर से ही सम?ा पाया.

‘‘अव्वल तो यह कि जब अकेली थी तभी मेरे पास आती तो जैसे भी होता मैं संभाल लेता. दूसरा यह कि जब अपने ही घर वालों को मना न सकी तब कोई कदम उठा न सकी तो अब अपनी जिंदगी जिस में और लोग भी शामिल हैं, उसे खुशी से न जीना गलत है.’’

कितनी हिम्मत से उस ने मीना की बेवफाई को निभाया था. वह उसे एकटक देखे जा रही थी. हमेशा उस के लिए स्नेह के भाव रखने वाला शेखर पहली बार उसे प्रश्नों के कठघरे में रख रहा था. क्या सचमुच उस ने उस के प्रति इतना अन्याय किया है जितना उसे इलजाम मिल रहा है? क्या उस की कोशिशों में कमी रह गई? उस ने तो आखिर तक शादी के लिए हां नहीं कही थी तो क्या उसे भाग कर उस के पास जाना चाहिए था? मगर वह भागना नहीं चाहती थी. उसे शेखर और अपना परिवार सब एकसाथ चाहिए और वह भी पूरे सम्मान के साथ.

‘‘तुम नहीं समझोगे एक स्त्री का दिल, प्यार होता है तो होता है और नहीं होता तो नहीं होता है. इस के लिए खूबसूरती, महानता या आदर्शों की कसौटी नहीं होती. मसलन, ज्यादा महान, खूबसूरत या आदर्श व्यक्ति से प्यार हो ही जाएगा, यह नहीं कह सकते. न ही इस में कोई प्रतिदान होता है. हां, तुम्हें तब भूलना संभव था जब तुम गलत होते. एक बहाने से मन को समझ लेती कि किसी गलत इंसान के लिए एक सही इंसान को क्यों दुखी करूं मगर तुम ने तो कभी कुछ गलत किया ही नहीं था.’’

‘‘गलतसही की कसौटी पर मत तोलो. जो हो गया है उसे स्वीकार करो और जिंदगी का एहसान उतारते हुई नहीं बल्कि खुश हो कर जीयो. तमाम कोशिश कर के भी हम मिल न सके तो शायद इसे ऐसे घटना ही था. अब हम इतना तो कर ही सकते हैं कि अपने परिवार के साथ खुश रहें. मैं ने भी यह सब अपने अनुभव से ही सीखा. बड़ी मुश्किल से संभला हूं. अब अपनी उस पत्नी को जिस ने हम दोनों के बारे में सब जानते हुए भी मु?ा से प्यार किया और मेरा साथ दिया है, उस से बेवफाई नहीं कर सकता. और फिर यह सोचो न हम एकदूसरे के जीवन में प्यार बन कर आए. यह क्या कम है. उन की सोचो जिन का पूरा जीवन निकल जाता है मगर प्यार नाम के पंछी से कोई परिचय तक नहीं होता.’’

सही तो कह रहा था शेखर. पत्नी के प्रति उस की निष्ठा देख कर दिल भर आया. ऐसे इंसान का किसी के जीवन में होना ही बड़ी बात थी. उस से मिलना ही तो उस के जीवन का सब से खूबसूरत मोड़ था. वहीं से उस का सबकुछ बदल गया था. बचपन छूट गया था. सम?ादार हो गई थी. शेखर न आता तो क्या वह इतनी बदलती? नहीं न? इस का मतलब उन्हें ऐसे ही मिलना था. एकदूसरे को संवारने के लिए, यह सोच कर आंसू थमने लगे.

तभी शेखर ने कहा, ‘‘चल, अब वापसी के टिकट देखते हैं, घर पहुंचना है न.’’

शेखर की आवाज पर हंसी आ गई. घर तो पहुंचना ही होगा. टिकट ले कर दोनों ने एक बार फिर से एकदूसरे की आंखों में देखा. बस 1 मिनट के लिए ही उन में अपनी छवि देख पाई फिर एक चिंतित पति व व्याकुल पिता दिखा. उसे भी राजेश और बेटे अमन की याद आई. उन की जिंदगियां अलग मोड़ ले चुकी थीं. खुश थे या नहीं यह कहना वाकई मुश्किल था पर दोनों ही जिम्मेदार इंसान अपनीअपनी मंजिल यानी गेट की ओर चल पड़े. यह विश्वास और भी गहरा हो गया कि कुछ रिश्ते कभी नहीं बदलते, बस प्राथमिकताएं बदल जाती हैं.

शेखर और मीना जो कभी गहरे प्यार में थे पर उन्होंने बड़ी वफा से बेवफाई को भी स्वीकार कर लिया. प्यार जरूरत के अनुसार कुरबान होना होता है.

उड़ान: बेटी के साथ क्यों रहना चाहती थी धृति की मां

आज धृति की खुशी का कोई ठिकाना न था. घर पहुंच कर वह जल्द से जल्द अपनी मां को यह खुशखबरी सुना देना चाहती थी. आखिर कितने लंबे इंतजार के बाद और उस के अथक परिश्रम के कारण वह इसे प्राप्त करने में सफल हुई थी.

अपनी मां के चेहरे की उस चमक, उस खुशी को देखने के लिए वह बेताब हुए जा रही थी. उस ने मन ही मन सोचा बस, अब बहुत हो गया.  वह अब और अपनी मम्मी को यहां अकेली इस नर्क में नहीं रहने देगी. वह उन्हें इस बार अवश्य अपने साथ ले जाएगी.

धृति को अमेरिका से आए हुए 2 महीने बीत चुके थे. उस ने आते ही अपनी मम्मी के वीजा के लिए अप्लाई कर दिया था. काफी भागदौड़ के बाद आज उसे अपनी मम्मी के लिए अमेरिका का वीजा मिल गया था.

उसे याद आता है कि  कैसे उस के डाक्टर बनने पर उस की मम्मी का चेहरा खुशी से खिल उठा था और आज फिर से उसे अपनी मम्मी के चेहरे पर आई उस खुशी की चमक को देखने का मौका मिलेगा… हां, इसी दिन के लिए तो उस ने इतनी मेहनत की थी.

ये सब सोचते हुए उस के कदम जैसे ही घर के दरवाजे पर पड़े उस के कानों में किसी अजनबी के स्वर सुनाई दिए. अजनबी. नहीं,  यह तो कोई जानापहचाना स्वर है… उस ने कहां सुनी थी  यह आवाज?

घर का दरवाजा खुला हुआ था. कमरे में दाखिल होते ही जिस अजनबी शख्स पर उस की नजर पड़ी उस शख्स के चेहरे की धुंधली सी तसवीर उस के मस्तिष्क में कहीं खिंची हुई थी.

उस की मम्मी ड्राइंगरूम के एक कोने में चुपचाप गरदन झकाए खड़ी थी. वहीं सोफे पर एक तरफ उस के मामा और नानी बैठे हुए थे और वह व्यक्ति सामने के सोफे पर बैठा हुआ था. चेहरे पर वही चिर परिचित अकड़ लिए हुए…

कमरे के अंदर दाखिल होते ही धृति के कानों में नानी के ये शब्द सुनाई पड़े. वे उस की मम्मी को समझते हुए बड़े ही उपदेशात्मक स्वर में बोले जा रही थी, ‘‘पति पत्नी का संबंध जन्मजन्मांतर का होता है रत्ना… उसे इतनी आसानी से तोड़ा नहीं जा सकता. आखिर विपिन बाबू सबकुछ भुला कर तुम्हें एक बार फिर से अपनाना चाहते हैं तो तुम्हारा भी यह दायित्व है कि तुम सबकुछ भुला कर उन्हें माफ कर दो…’’

नानी की ये बातें धृति के कानों में तीर की भांति चुभीं और वह गुस्से में तमतमा उठी और फिर क्रोधपूर्ण नजरों से नानी की ओर देखते हुए बोली, ‘‘क्यों नानी… आखिर क्यों… आखिर मम्मी को क्यों सबकुछ भूल कर इन्हें माफ कर देना चाहिए?’’

धृति का इस तरह बीच में बोल पड़ना उस की नानी को जरा भी नहीं भाया और वे अपनी आंखों के इशारे से धृति को चुप रहने का संकेत देते हुए बोलीं, ‘‘तुम बीच में मत बोलो… तुम में अभी इतनी समझ नहीं है… अरे, पति है यह इस का… पति की गलतियों को भुला कर आगे बढ़ने में ही इस की भलाई है…’’

मगर धृति का गुस्सा शांत नहीं हुआ बल्कि वह और भी चिढ़ गई, फिर अपनी नानी की बातों पर खीजते हुए बोली, ‘‘अरे वाह नानी… बचपन से तुम मम्मी को पत्थर के देवता का पूजना सिखाती रहीं और फिर उन की शादी के बाद पति को ही देवता बना कर पूजने की सीख देने लगीं… तुम्हारी इन्हीं सब सीख की वजह से पिता नाम के इस प्राणी ने मेरी मम्मी पर वर्षों जुल्म ढाए हैं,’’ धृति का क्रोध शांत नहीं हो रहा था.

उस की मम्मी इन सभी बातों से आहत सिर झकाए चुपचाप खड़ी थी. अपनी पीड़ा को छिपाने के लिए उस ने अपने होंठ दांत से काट लिए… उस की आंखों में आंसू थे.

धृति को यह बात बिलकुल बरदाश्त नहीं हो रही थी कि इतने वर्षों बाद कोई उन की जिंदगी में अचानक आ धमकता है और अपना अधिकार मांग रहा है… उस के जेहन में बचपन की वह कड़वी यादें फिर से जीवंत होने लगी थीं…

उस के पिता द्वारा उस की मम्मी पर किए जाने वाले असंख्य जुल्म, उन पर होने वाले अत्याचारों को वह कैसे भुला सकती… उस का मन घृणा से भर उठा और फिर घृणा की दृष्टि से अपने पिता की ओर देखा.

तभी उस के कानों में उस के मामा के शब्द गूंज पड़े, ‘‘चुप करो… पिता है यह

तुम्हारा… थोड़ी तो तमीज के दायरे में रहो.’’

मगर प्रकाश की बातों ने धृति के मन में पिता के प्रति उस की नफरत को और भी भड़का दिया. वह गुस्से में बोली, ‘‘पिता… पिता होने की कौन सी जिम्मेदारी निभाई है इन्होंने जो आज अचानक पिता होने का अधिकार जताने आ गए? ये सिर्फ मेरे जन्म के कारण मात्र हैं इस से ज्यादा कुछ नहीं…’’

‘‘पढ़ाईलिखाई ने इस लड़की का दिमाग खराब कर दिया है… डाक्टर क्या बन गई बड़ों से बात करने की तमीज ही भूल गई…’’ प्रकाश ने अपनी भानजी धृति पर आंखें तरेरते हुए कहा.

‘‘बस यही सोच… इसी सोच की वजह से आप लोगों ने मम्मी की पढ़ाई छुड़वा कर इतनी कम उम्र में उन की शादी करा दी… अरे, आप लोगों ने यह तक नहीं देखा कि लड़का उम्र में इन से कितना बड़ा है… उस का स्वभाव कैसा है…’’

‘‘एक पढ़ेलिखे इंजीनियर लड़के से तेरी मां की शादी करवाई थी हम ने… समाज में इस से बड़ी पहचान और इस से बड़ा रुतबा भला क्या चाहिए था इसे… और इसे क्या किसी भी लड़की को और क्या चाहिए और फिर पढ़लिख कर क्या हासिल कर लेती… ज्यादा पढ़लिख कर कौन सी नौकरी करनी थी… आखिर घर ही तो संभालना था… लेकिन इस जिम्मेदारी को भी ठीक तरह से निभा न सकी यह,’’ प्रकाश ने गरजते हुए कहा.

भाई की बातें सुन कर रत्ना की आंखों से आंसू छलक पड़े. आखिर उस का क्या

कसूर था… किस बात के लिए उसे दोषी ठहराया जा रहा था? उस की आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बहने लगी, जिन में न जाने कितने वर्षों का दर्द… पीड़ा… अवहेलना, प्रताड़ना. जमा थी. जाने कैसीकैसी यातनाएं, कैसेकैसे नर्क का पानी जमा पड़ा था जो आज उस की आंखों से बहने लगा था. उस के मानसपटल पर अतीत की वे तमाम स्मृतियां 1-1 कर उभर आई थीं, जिन्हें वह भूले से भी याद नहीं करना चाहती थी… जिंदगी के जिस दुखद अध्याय को पीछे छोड़ वह किसी प्रकार आगे बढ़ पाई थी, उसे ही अब दोहराने की कोशिश की जा रही थी. जिस व्यक्ति ने इतने वर्षों से कभी उस का हाल तक जानना जरूरी नहीं समझ, उसे उस की बेटी पर अब अपना अधिकार चाहिए था…

आखिर ये सब अब किस लिए क्योंकि उस की बेटी अब योग्य बन गई है. तब यह व्यक्ति कहां था? इस व्यक्ति ने तो सालों पहले उसे और उस की बेटी को अकेली निसहाय छोड़ दिया था… दिल्ली से बनारस तक का सफर भूखीप्यासी ने अकेले ही तय… हाथ में 1 रुपए तक नहीं… सोचतेसोचते रत्ना का शरीर निशक्त हो गया. वह दीवार का सहारा ले कर वहीं जमीन पर घुटनों के बल बैठ गई.

आज यहां तक पहुंचने में मांबेटी ने कौनकौन से दिन न देखे थे… कैसेकैसे कष्ट उन्होंने न सहे थे… उस की बेटी ने अपने परिश्रम, अपनी काबिलीयत के दम पर यह मुकाम हासिल किया था. उस के डाक्टर बनने के सपने को पूरा करने में उस ने भी तो जीतोड़ मेहनत की थी. छोटीमोटी नौकरी तक की.

जिंदगी के इन कठिन संघर्षों ने उस की बेटी को बहुत ही समझदार बना दिया था. वैसे तो धृति बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि की थी, लेकिन जिस तरह आग में तपने के बाद ही सोने में निखार आता है वैसे ही जिंदगी के तमाम कष्टों ने, कठिनाइयों ने उसे बेहद समझदार और साहसी बना दिया था.

वर्षों पहले रत्ना और उस की बेटी को अकेली ट्रेन में बैठा कर, अभी आता हूं कह कर, विपिन वापस नहीं आया था. तब दिल्ली से किसी तरह अपनी 9 साल की बेटी के साथ भूखीप्यासी वह बनारस पहुंच तो गई थी, लेकिन आगे के सफर के लिए उस के पास पैसे तक नहीं थे. फिर भी वह किसी तरह अपनी ससुराल पहुंची थी, जहां उस के सासससुर ने भी उसे साथ रखने से मना कर दिया था और फौरन उसे उस की बेटी के साथ उस के मायके पहुंचा दिया गया.

रत्ना अपनी ससुराल वालों की आंखों में उसी वक्त से कांटों की तरह चुभ रही थी जिस वक्त उस ने बेटी को जन्म दिया था और अब उस के पति के द्वारा इस प्रकार से त्यागे जाने से उन लोगों ने भी अपना पल्ला झड़ लिया था.

रत्ना सहानुभूति और अपनापन की उम्मीद लगाए अपने मायके के दहलीज पर

खड़ी थी. अपनी कल्पनाओं में उस ने सोचा कि मां अभी आ कर उसे सीने से लगा लेगी. भाई प्यार से उस के सिर पर हाथ रखेगा, उस पर हुए जुल्म के लिए उस के पति और उस की ससुराल वालों से जवाब तलब करेगा, परंतु इस के ठीक विपरीत मां और भाई ने तब भी उसे ही दोषी करार दिया था. उस का कोई अपराध नहीं होते हुए भी वह उन के समक्ष एक अपराधी की भांति खड़ी थी और अपराध भी क्या… अपनी गृहस्थी ठीक से नहीं चला सकने का अपराध… अपने पति को खुश नहीं रख सकने का अपराध… और पति भी कैसा, जिसे रत्ना के बोलने, उठने, बैठने, हंसने तक पर आपत्ति थी… बेहद संकीर्ण मानसिकता का पति… रत्ना उस के सभी अत्याचार चुपचाप सहती रहती और फिर एक दिन उसे बेटी को जन्म देने का अपराधी घोषित कर उस का तिरस्कार कर दिया गया.

‘‘तुम्हें अपने पति एवं ससुराल वालों के साथ निभाना नहीं आया… जरूर तुम ने ही कुछ गलती की होगी… अरे, चार बातें सह ही लेती तो क्या हो जाता आखिर वह तुम्हारे ससुराल वाले हैं?’’ मां ने भी उसी की कमियां गिनाई थीं.

‘‘तुम्हारी शादी कर के हम ने अपने सिर का बोझ हलका कर लिया था अब वापस आ कर हमारे सिर का बोझ बढ़ा दिया… अरे, समाज और बिरादरी का कुछ तो खयाल रखा होता,’’ भाई ने धिक्कारते हुए कहा.

आंसुओं में डूबी रत्ना के पास अपने ही मां और भाई के द्वारा तिरस्कार

का दुख झेलने के अलावा और कोई चारा न था. उस की 9 साल की बेटी सहमी हुई सी अपनी मां के पल्लू को थामे हुए अपनी ही नानी और मामा के द्वारा अपनी ही मां को तिरस्कृत होते देख रही थी.

लाचार और बेबस रत्ना ने तब बस इतना कहा था, ‘‘मैं आप सभी पर बोझ नहीं बनूंगी… मैं कुछ भी कर के कोई भी काम अपने लिए ढूंढ़ लूंगी,’’ इतना कहतेकहते उस का गला भर्रा गया था.

चूंकि रत्ना को यह बात उस वक्त अच्छे से पता थी कि उस के जैसी साधारण पढ़ीलिखी लड़की के लिए नौकरी या कोई ढंग का काम ढूंढ़ पाना आसान नहीं, लेकिन फिर भी उस ने हिम्मत नहीं हारी थी. शुरुआत में तो उस ने सिलाईकढ़ाई से ले कर छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने तक का हर काम किया और आज अपनी बेटी को इस योग्य बना पाई थी.

रत्ना के मन के किसी कोने से टीस सी उठने लगी थी. उस के मन में रहरह कर एक ही सवाल उठ रहा था कि आखिर उस के साथ जो कुछ हुआ उस सब में उस का क्या कुसूर था? पति की मार खा कर भी वह उस अनचाहे बेमेल रिश्ते को निभाने की कोशिश करती रही थी, लेकिन इस सब के बावजूद जब उस के पति ने उसे धोखे से छोड़ दिया तब भी उस के अपनों ने उसे ही दोषी ठहरा दिया. जिंदगी में उसे रिश्तों के खोखलेपन के सिवा और कुछ भी तो नहीं मिला था. झठे रिश्तों के बंधन में बंधी वह अपनी अस्मिता की तलाश करती भी तो कैसे निरंतर तिरस्कार और उपेक्षा के डंक ने तो उस के पूरे वजूद को ही छलनी कर दिया था.

अपनी मां को रोता देख धृति का गुस्सा फूट पड़ा. अपने नेत्रों में अंगारे भर कर उस ने अपने पिता और मामा की ओर बड़ी ही घृणा से देखा.

धृति को अपनी ओर नफरत भरी नजरों से देखता हुआ देख विपिन सकपका सा गया और फिर अनुनय के स्वर में बोला, ‘‘बीती बातों को याद करने से क्या फायदा… मैं तुम दोनों को वापस ले जाने आया हूं… आखिर पिता होने के कारण मेरा भी तुम पर उतना ही अधिकार है जितना तुम्हारी मां का तुम पर है. तुम्हारे प्रति मेरा प्यार… तुम्हारी मां की अपेक्षा किसी कदर कम नहीं है…’’

‘‘झठ… बिलकुल झठ,’’ धृति के चेहरे पर घृणा, हिकारत… हैरानी ये सारे भाव एकसाथ उमड़ पड़े.

‘‘मैं झठ क्यों बोलूंगा… झठ बोल कर मुझे क्या मिलेगा?’’ विपिन ने हकलाते हुए कहा.

‘‘सहानुभूति, आप खुद को लाचार दिखा कर सहानुभूति बटोरने की कोशिश कर रहे हैं… और फिर इस सब के पीछे आप का कोई न कोई निजी स्वार्थ छिपा हुआ है. आप व्यर्थ का दिखावा न करें. इस से कुछ भी हासिल नहीं होगा. आप ने मम्मी पर जो भी अत्याचार किए हैं… आप के गुनाहों की कोई माफी नहीं है… हम दोनों की जिंदगी में आप की कोई आवश्यकता नहीं है… आप मेरे लिए सिर्फ एक अजनबी हैं मिस्टर विपिन.’’

‘‘एक पिता की जरूरत तुम्हें जिंदगी के हर मोड़ पर पड़ेगी. मैं तुम्हें वह सुरक्षा और संरक्षण देना चाहता हूं जिस की तुम हकदार हो और जो एक बेटी के रूप में तुम्हें अपने पिता से मिलना चाहिए. एक पिता होने के नाते मैं तुम्हारा दायित्व उठाना चाहता हूं,’’ विपिन ने लगभग गिड़गिड़ाने के अंदाज में कहा.

‘‘संरक्षण, सुरक्षा, दायित्व, क्या आप इन भारीभरकम शब्दों का मतलब भी समझते हैं?  मिस्टर विपिन संरक्षण और सुरक्षा की बात वह इंसान कर रहा है जिस के साए में मेरी मम्मी की जिंदगी सब से ज्यादा असुरक्षित थी… आप दायित्वों का बोझ नहीं उठा सकेंगे. पिछले 15 वर्षों में जो कार्य आप ने नहीं किया अब वह क्यों  करेंगे? दरअसल, आप हमें सहारा देने नहीं हम से सहारा मांगने आए हैं, लेकिन उसे सीधेसीधे कहने की आप में हिम्मत नहीं है,’’ और फिर धृति ने घृणा भरी नजरों से विपिन की ओर देखा.

‘‘पढ़ाई ने सच में इस लड़की का दिमाग खराब कर दिया है… मैं तो कहता हूं यह सारी गलती रत्ना की है, जो अपनी बेटी को इतनी छूट दे रखी है… शुरू से ही यदि इस ने इसे नियंत्रण में रखा होता तो आज यह नौबत ही नहीं आती,’’ प्रकाश ने अपनी भानजी पर आंखें तरेरते हुए कहा.

‘‘नियंत्रण, किस नियंत्रण की बात करते हैं आप? वही जो आप ने मम्मी पर कर रखा था, जिस के कारण वह कभी खुल कर सांस तक नहीं ले सकी? खुले आसमान में उड़ान भरना तो बहुत दूर की बात थी उन्हें तो अपने हिस्से के सपने तक देखने की आजादी नहीं दी आप लोगों ने.’’

धृति क्रोधपूर्ण नजरों से अपने मामा और पिता की ओर देखती हुई बोले जा रही

थी, ‘‘अरे आप जैसे पुरुष तो महिलाओं को देवी भी तभी तक मानते हैं जब तक कि वह आप के बनाए गए दायरों के अंदर होती है, आप के द्वारा बनाई गई सीमाओं और मान्यताओं का पालन करती है परंतु जैसे ही वह आप के बनाए गए रूढि़वादी बंधनों को तोड़ कर मुक्त और स्वतंत्र होने की कोशिश करती है, आप के द्वारा वह कुलटा करार दी जाती है क्योंकि उस के इस

कृत्य से आप जैसे पुरुषों को अपना साम्राज्य खतरे में दिखता है. आप को अपना सिंहासन डोलता नजर आता है, लेकिन मैं ऐसी किसी भी रूढि़वादी बंधन की परवाह नहीं करती जिंदगी में ऊंचाइयों को छूने के लिए, उड़ान भरने के लिए, मुझे किसी सहारे, किसी संरक्षण की जरूरत नहीं है. ऐसे नीच और स्वार्थी पिता की जरूरत तो हरगिज नहीं है.

‘‘मैं ने अकेले अपने दम पर अपने मुकाम को हासिल किया है. ऐसे किसी भी रूढि़वादी बंधन की परवाह नहीं की है… इन तमाम सामाजिक पाबंदियों, बंधनों को तोड़ कर ही अपने सपनों को साकार किया है… हां, उन्हीं बंधनों को जिन बंधनों ने मेरी मम्मी को सदा से कैद कर रखा है, लेकिन अब और नहीं. इस बार मैं अपनी मम्मी को भी साथ ले जाने के लिए आई हूं.’’

फिर धृति ने अपनी मम्मी की आंसुओं के अपने हाथों से पोंछते हुए कहा, ‘‘मम्मी, अब आप को इन लोगों के लिए और आंसू बहाने की कोई आवश्यकता नहीं है. मैं आप को यहां और नहीं रहने दे सकती. मम्मी आज ही आप का वीजा मिला है. मैं तभी आप को बताना चाहती थी. खैर, इस बार आप मेरे साथ अमेरिका चल रही हैं. जिन बंधनों ने आप को दुख के सिवा कुछ नहीं दिया उन से मुक्त होने का समय अब आ गया है,’’ धृति का इशारा अपने पिता और मामा की ओर था, ‘‘आप अगले हफ्ते ही मेरे साथ अमेरिका के लिए उड़ान भरेंगी.’’

फिल्म इंडस्ट्री में Kiara Advani का शानदार सफर, लखनऊ में गेम चेंजर का टीजर करेंगी लौन्च

नवाबों के शहर लखनऊ में एक खास इवेंट होने वाला है, जिसमें बौलीवुड की फेमस ऐक्ट्रैस कियारा आडवाणी (Kiara Advani) अपने सहकलाकार राम चरण और प्रतिष्ठित निर्देशक एस. शंकर के साथ अपनी आने वाली पेन इंडिया फिल्म “गेम चेंजर” का बहुप्रतीक्षित टीजर लौन्च करने जा रही हैं. यह इवेंट 9 नवंबर को होगा. इसी के साथ यह पहली पैन-इंडिया फिल्म बन गई है, जिसका टीजर लखनऊ में लौन्च होगा. आमतौर पर पैन-इंडिया फिल्मों के टीजर मुंबई और दिल्ली में लौन्च किए जाते हैं.

शानदार सफर

फिल्म इंडस्ट्री में कियारा का सफर बहुत ही शानदार रहा है.अपनी पेन इंडिया अपील के लिए जानी जाने वाली कियारा ने विभिन्न फिल्म इंडस्ट्रीज़ के बीच एक पुल का काम किया है, जिससे वह देशभर में एक प्रिय चेहरा बन गई हैं. उनके साथ इस इवेंट में शामिल हो रहे हैं राम चरण, जो न केवल भारत में बल्कि विश्व स्तर पर भी अपनी पहचान बना चुके हैं.अपने दमदार अभिनय और करिश्माई स्क्रीन प्रजेंस के लिए प्रसिद्ध राम चरण ने अपने लिए एक खास जगह बनाई है. कियारा की पहली तेलुगु फिल्म महेश बाबू के साथ थी जो एक बड़ी हिट रही, और अब वह दूसरी बार राम चरण के साथ काम कर रही हैं, जिससे इस प्रोजेक्ट को लेकर दर्शकों में और भी उत्साह बढ़ गया है.

भव्य टीजर लौन्च इवेंट

लखनऊ में होने वाला यह टीज़र लौन्च इवेंट भव्य होने की उम्मीद है, और प्रशंसक फिल्म की पहली झलक देखने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं.जब कियारा, राम चरण और एस. शंकर मंच पर एक साथ आएंगे, तो यह सभी के लिए एक अविस्मरणीय अनुभव बन जाएगा.लंबे वक्त से कियारा अपनी आगामी फिल्म ‘गेम चेंजर’ को लेकर सुर्खियां बटोर रही हैं. इस फिल्म में उनकी जोड़ी साउथ के अभिनेता राम चरण के साथ बनी है.

ग्लोबल लेवल पर धमाल मचाने को तैयार

“गेम चेंजर” एक सिनेमाई महाकाव्य (cinematic epic) बनने जा रही है, और कियारा आडवाणी और राम चरण के साथ, यह फिल्म देशभर में ही नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर भी धमाल मचाने के लिए तैयार है.गेम चेंजर’ 10 जनवरी, 2025 को सिनेमाघरों में दस्तक देने को तैयार है.यह एक राजनीतिक एक्शन थ्रिलर है, जिसके निर्देशन शंकर है.

सलमान के बाद शाहरुख खान को भी मिली जान से मारने की धमकी, इस कांड के पीछे कौन है मुख्य आरोपी?

आज की ताजा स्थिति में खासतौर पर मुस्लिम ऐक्टर्स जिन्हें लगातार जान से मारने की धमकी मिल रही है फिर चाहे वह सलमान खान हो या स्टैंडअप कौमेडियन मुनव्वर फारुकी. अंदरूनी तौर पर इतना डर गए हैं कि पब्लिक प्लेस में भीड़ के बीच चलते हुए 10-10 बौडीगार्ड होने के बावजूद इन ऐक्टर्स के चेहरे पर खौफ नजर आता है इस डर से की पता नहीं कहां से कौन गोली चला दे.

जो ऐक्टर को चीरते हुए निकल सकती है. हाल ही में ऐसा कांग्रेस नेता बाबा सिद्दीकी के साथ हो चुका है, इसीलिए बाकी सब ऐक्टर्स के चेहरे पर डर साफ नजर आ रहा है. क्योंकि खुलकर वार करने वाले से छिप कर वार करने वाला ज्यादा खतरनाक होता है. ऐसे में अगर बात ऐक्टर के परिवार वालों की भी हो तो यह डर और बढ़ जाता है . जैसे कि सलमान खान के पिता सलीम खान को भी जान से मारने की धमकी मिली थी. फिलहाल सलमान के बाद 5 अक्टूबर 2024 को शाहरुख खान को भी अज्ञात नंबर से जान से मारने की धमकी मिली.

जिसकी रिपोर्ट शाहरुख खान ने बांद्रा पुलिस स्टेशन में की. जिसके बाद पुलिस पूरी तरह चौकन्नी हो गई और उस अज्ञात नंबर की जांच करनी शुरू की. जांच करने के बाद पता चला की धमकी वाला कौल रायपुर से किया गया था . जब पुलिस रायपुर पहुंची और उसे नंबर के बारे में पता किया तो वह नंबर किसी डौक्टर का निकला जिसका नाम फैजान है.

शाहरुख को जान से मारने की धमकी के पीछे 50 लाख की फिरौती की रकम थी. जब डौक्टर फैजान को हिरासत में लेने के बाद जांच पड़ताल की गई तो पता चला कि फैजान का फोन चोरी हो गया था, जिसकी रिपोर्ट उन्होंने रायपुर पुलिस स्टेशन में करवाई थी और इसी फोन का इस्तेमाल शाहरुख खान को धमकाने के लिए किया गया. पुलिस तहकीकात कर रही है कि इस सारे कांड के पीछे कौन मुख्य आरोपी है.

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