सीताफल से बनाएं ये टेस्टी रेसिपी, स्वाद के साथ सेहत भी

Writer- Pratibha Agnihotri

हरे रंग का, मोटी त्वचा, और छोटी बड़ी आंखों व काले रंग के बीजों वाला सीताफल या शरीफा मुख्य रूप से ट्रौपिकल और हाई एल्टिट्यूड पर पाया जाने वाला फल है. यह स्वाद में बेहद मीठा सर्दियों में ही पाया जाने वाला मौसमी फल है. अधिकांश फलों की ही भांति इसमें भी फाइबर, विटामिन्स, और मिनरल्स पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं. यह दिल,आंखों और पाचन क्षमता को दुरुस्त करता है. यूं तो इसे फल के रूप में भी आराम से खाया जा सकता है परन्तु इससे बने कई मीठे व्यंजन बहुत स्वादिष्ट लगते हैं.आज हम आपको सीताफल से बनने वाली 2 रेसिपीज बनाना बता रहे हैं जिन्हें आप बड़ी आसानी से बना सकतीं है तो आइए देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाया जाता है-

-सीताफल शीरा

कितने लोगों के लिए             1 कप

बनने में लगने वाला समय      30 मिनट

मील टाइप                            वेज

सामग्री

पके शरीफा                        4

बारीक सूजी                         1 कप

फूल क्रीम दूध                       3 कप

पिसी शकर                        1 टेबलस्पून

इलायची पाउडर                   1/4 टीस्पून

घी                                      2 टेबलस्पून

बारीक कटी मेवा                 1/4 कप

विधि

शरीफे को धोकर बीच से दो हिस्सों में हाथ से तोड़ लें. चम्मच की सहायता से गूदे को एक बाउल में निकाल लें. अब इसे ब्लेंडर से ब्लेंड कर लें इससे बीज अलग हो जाएंगे. अब कांटे क़ी मदद से सारे बीजों को अलग कर दें. मेवा को सूखा ही कढाई में धीमी आंच पर भूनकर प्लेट में निकाल लें. अब पैन को गैस पर रखकर सूजी और दूध को अच्छी तरह मिलाएं. लगातार चलाते हुए गाढ़ा होने तक पकाएं. जैसे ही मिश्रण लगभग गाढ़ा होने लगे तो मेवा, शकर, इलायची पाउडर, शरीफे का गूदा और घी डालकर धीमी आंच पर 2 से 3 मिनट तक भूनकर गैस से हटा लें.

-शरीफा डिलाइट

कितने लोगों के लिए             8

बनने में लगने वाला समय       30 मिनट

मील टाइप                           वेज

सामग्री

शरीफे का गूदा                  1 कप

ब्रेड स्लाइस                       2

फुल क्रीम दूध                   1/2 लीटर

कन्डेन्स्ड मिल्क                 1/4 टिन

मिल्क पाउडर                   1 टेबलस्पून

बारीक कटे पिस्ता              1टेबलस्पून

केसर के धागे                    6-7

बटर                                1 टेबलस्पून

विधि

ब्रेड स्लाइस के किनारों को काटकर अलग कर दें और इसे 8 टुकड़ों में काट लें. पैन में बटर डालकर एकदम धीमी आंच पर इन टुकड़ों को क्रिस्पी होने तक रोस्ट कर लें. दूसरे पैन में केसर के धागे डालकर दूध गर्म करें जब उबाल आ जाये तो कन्डेन्स्ड मिल्क और मिल्क पाउडर डालकर अच्छी तरह चलाएं. गैस बंद कर दें और शरीफे का गूदा मिलाएं. ब्रेड के टुकड़े और मेवा डालकर सर्व करें.

पतिपत्नी के बीच कब होती है ‘वो’ की एंट्री, जानें एक्सट्रा मैरिटल अफेयर के कारण

रूटीन जहां हमें व्यवस्थित रखता है वहीं कई बार बोर भी कर देता है. वर्षों तक साथ रहने के बाद जीवनसाथी के प्रति हम लापरवाह से हो जाते हैं. ‘टेकन फौर ग्रांटेड’ होते ही हर अच्छाई कर्तव्य और हर बुराई अवगुण हो जाती है. आज के जमाने की तकनीक भी हमारी निजता को बनाए रखने में कारगर है. फलतया ऐक्सट्रा मैरिटल अफेयर्स आज आम हो गए हैं. क्यों हो जाते हैं पार्टनर बेवफा? क्या दैहिक विविधता की तलाश होती है या जीवन में नएपन की, रोमांस की जरूरत महसूस करते हैं या भावनात्मक साथ की? छिपाने और झूठ बोलने का रोमांच उन्हें अच्छा लगता है या वाकई वे आसक्त रहते हैं? आइए जानते हैं:

महिलाएं ध्यान चाहती हैं: विवाह काउंसलर और विशेषज्ञों का मानना है कि महिलाएं अकेलेपन को कम करना चाहती हैं. वे इसीलिए मित्रता करती हैं कि कोईर् उन्हें ध्यान से सुने. विवाहित जीवन में अकसर पति या बच्चे महिला को समझ नहीं पाते और यही उन के जीवन की सब से बड़ी विडंबना बन जाती है.

बीइंग ऐप्रिशिएटेड: ऐप्रिशिएट होने की इच्छा हम सब को होती है. हम में से प्रत्येक दूसरे से प्रशंसा सुन कर संतुष्टि पाता है. पर विवाह के गुजरते वर्षों में एकदूसरे को ऐप्रिशिएट करना हम कम कर देते हैं.

पुरुष अपनी पावर और इंटेलैक्ट के लिए पहचाने जाना चाहते हैं: पुरुषों को अपनी व्यवस्था संबंधी योग्यताओं पर बहुत नाज होता है. वे स्ट्रौंग ह्यूमंस के रूप में पहचाने जाना चाहते हैं.

स्त्रियों को डिजायरेबल लगना पसंद है: स्त्रियों को सैल्फ ऐस्टीम और सैक्सी फील करने के लिए पुरुषों के ध्यान की आवश्यकता महसूस होती है.

ईगो बूस्ट होता है: विपरीत लिंगी के साथ बिताए थोड़े समय में ईगो को बूस्ट मिलता है और मन को तसल्ली. स्वयं के प्रति आप पुन: आश्वस्त से हो जाते हैं. कौन्फिडैंस वापस लौट आता है.

स्पाउस एकदूसरे का भावनात्मक सहारा नहीं बनना चाहते: शादी के बाद पतिपत्नी एकदूसरे की भावनात्मक जरूरतें पूरी करने से बचते हैं. उन्हें डर होता है कि दूसरा कहीं उन्हें अपना गुलाम न बना ले. वे सच सुनना पसंद नहीं करते. अपनी भावनाएं भी कई बार एकदूसरे से छिपा लेते हैं. शादी, शादी नहीं युद्ध का मैदान बन जाती है.

असंतोष पनपता है: विवाह में जब मन नहीं मिलते, अंडरस्टैंडिंग गड़बड़ा जाती है तो असंतोष सा पनपने लगता है. यही असंतोष किसी दूसरे की तरफ आकर्षित करता है और ऐक्सट्रा मैरिटल अफेयर पनपते हैं.

साइकिएट्रिस्ट के अनुसार, इनसान हमेशा किसी ऐसे साथ की तलाश में रहता है जो उसे उस की कमियों और खूबियों के साथ स्वीकार सके. जब आप किसी के साथ कंफर्टेबल होते हैं तो आप ज्यादा संयम नहीं रख पाते, बस यहीं से शुरुआत होती है अफेयर की.

आप को अपना तथाकथित पार्टनर (अफेयर वाला) जन्मोंजन्मों का साथी लगने लगता है. उस का साथ आप में एक नशा सा भरने लगता है और फिर आप नैतिकताअनैतिकता की सारी सीमाएं लांघ जाते हैं. सामने आया अवसर और अफेयर थ्रिल आप से कई ऐसे काम करवाता है जिस पर खुद आप को भी यकीन नहीं आता.

आप अपनी प्रत्येक हरकत को सही ठहराते हैं, आप को लगने लगता है कि आप को नए संबंध बनाने का पूरा हक है. शारीरिक भूख अफेयर को एक मदमस्त कर देने वाले रोमांच से भर देती है. नएपन की चाह, उस से उपजा एहसास बहुत हद तक इन रिश्तों को टिकाए रखता है.

यदि आप के साथ भी ऐसा कुछ हुआ हो, आप के पार्टनर का यह सच आप को पता चले कि वह आप को बिना बताए किसी और से मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ है, तो यकीनन आप टूट जाएंगे.

आप अलग तरीके से रीऐक्ट करेंगे: गुस्से, दुख, उत्तेजना से भरे आप उस के हर काम को, हर क्रिया को शक की निगाहों से देखेंगे. आप सोचने लगेंगे कि क्या वह हमेशा से आप से झूठ बोलता रहा? दूसरे के प्रति आकर्षित होने का उस का कारण क्या था? क्या वह आप से बेहतर था?

शारीरिक भावनात्मक स्तर पर बेवफाई से दिल टूटता है: रिश्ते छिन्नभिन्न हो जाते हैं. जिस का दिल टूटता है कई बार तो वह अपनेआप में सिमट सा जाता है पर कई लोग पार्टनर को उसी अफेयर के बारे में बारबार जाहिर कर के बेइज्जत करते हैं.

हर अफेयर का मतलब पुराने रिश्तों का हमेशा के लिए टूट जाना नहीं होता: हो सकता है आप के बच्चों की खातिर आप को साथ रहना पड़े या बूढ़े मांबाप को आप दुख न पहुंचाना चाहते हों. तलाक से जुड़े हर पहलू पर सोचसमझ कर निर्णय लेने के बाद आप यदि हर तरह के परिणाम के लिए तैयार हों तो संबंध खत्म कर दीजिए.

क्या रिश्ता तोड़ने योग्य मुद्दा है: अपने जीवन पर नजर डालिए. क्या आप दोनों साथ में खुश और संतुष्ट रहे हैं? क्या आप एकदूसरे के पूरक हैं? यदि उत्तर हां में है तो फिर सिर्फ एक अफेयर के कारण अपना रिश्ता खत्म न कीजिए.

धमकाइए मत और भीख भी मत मांगिए: अफेयर का पता चलने के बाद साथी को ब्लैकमेल करना, धमकाना या उस से दया की भीख मांगना गलत है. अपनी गरिमा बनाए रखें. अपने पार्टनर के साथ कनैक्टेड रहने के लिए आप को स्वयं का व्यक्तित्व लुभावना और बोल्ड बनाए रखना पड़ेगा.

ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर रिश्ते का अंत नहीं: रिसर्च बताते हैं कि शुरुआत में भले ही लगे पर ऐसे अफेयर 3-4% ही विवाह में तबदील होते हैं. बाकी भी ज्यादा समय नहीं चलते.

समय निकालिए: ऐक्सट्रा मैरिटल अफेयर का पता चलते ही निष्कर्ष पर मत पहुंचिए. समय निकाल धैर्य से सोचिए. कह देने के बाद आप वापस नहीं आ सकते या तो रिश्ता निभाना पड़ेगा या तुरंत छोड़ना पड़ेगा.

सोचसमझ कर निर्णय लें:  सचाई उगलवाने से पहले आप को मालूम होना चाहिए कि आप कितना सह पाएंगे. क्या आप उस के शारीरिक संबंधों की बात सुन कर उद्वेलित हो उठेंगे या उस के भावनात्मक स्तर पर जुड़ाव से परेशान होंगे.

सचाई जानें: क्या आप तलाक ले कर अकेले गुजारा कर लेंगे? क्या आप आर्थिक रूप से सक्षम हैं? पतिपत्नी पर घर के कामों के लिए और पत्नी पति पर आर्थिक दृष्टि से निर्भर होती है. अत: सोचसमझ कर निर्णय लेना सही रहता है.

माफ करना सीखें: यदि पार्टनर गलती मान रहा है और ‘आगे से कभी ऐसा नहीं होगा’ कह रहा है तो आप भी उस के आचरण को परखने के बाद उसे माफ कर दीजिए. गलती सभी से होती है.

प्रोफैशनल की मदद लें: विवाह काउंसलर इस काम में अपने प्रोफैशनल स्किल्स से आप की मदद कर सकता है. उस से मदद लेना रिश्ता जोड़ने के लिए अच्छा है.

हम सभी इनसान हैं. मानव स्वभाव के कारण हम से कईर् गलतियां हो जाती हैं. शादी जैसे बंधन जिसे निभाने में सालों लग जाते हैं, उसे ऐसे ही तोड़ देना सही नहीं.

विवाह के टूटने का दंश समाज को, बच्चों को, बुजुर्ग मातापिता को भुगतना पड़ता है. इसीलिए ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स पर भी कड़ा मन रख कर माफ कर के नए अटूट रिश्ते की शुरुआत की जा सकती है.

बौयफ्रैंड के बदले बिहेवियर से परेशान हो गई, मैं क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 22 वर्षीय युवती हूं. अपने मौसाजी के भतीजे से प्यार करती हूं. साल भर हुआ है हम दोनों को मिले हुए. हम दोनों शादी करना चाहते हैं. लड़के के घर वालों को कोई ऐतराज नहीं है पर मेरे पापा इस रिश्ते के लिए राजी नहीं हैं. हम दोनों के बीच शारीरिक संबंध भी बन चुके हैं. अब समस्या यह है कि आजकल मेरा बौयफ्रैंड मुझ से कुछ उखड़ाउखड़ा रहता है. दरअसल मुझ से पहले वह किसी और लड़की से प्रेम करता था. अब उस की शादी हो चुकी है. लगता है वह लड़की दोबारा उस के संपर्क में आ गई है. पूछने पर भड़क उठता है. मेरी शक करने की आदत उसे नागवार गुजरती है. बताएं, क्या करूं?

जवाब

आप ने साफ नहीं लिखा है कि आप के पिता आप के बौयफ्रैंड जो आप का रिश्तेदार भी है के साथ रिश्ते के क्यों खिलाफ हैं. मातापिता हमेशा अपने बच्चों का भला चाहते हैं. इसलिए विचार करें कि आप के पिता क्यों उस से आप की शादी नहीं करना चाहते. इस के अलावा आप को यह भी संदेह है कि आप के प्रेमी ने अपनी पूर्व प्रेमिका से फिर से संबंध बना लिए हैं. ऐसे में आप को शादी के लिए जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए. इस रिश्ते को थोड़ा और समय देना चाहिए. इस से आप को अपने प्रेमी को जानने का मौका मिलेगा. तब यदि आप को लगे कि आप का संदेह बेबुनियाद है, आप का प्रेमी आप के प्रति संजीदा है और साथ ही आप के पिता के ऐतराज की भी कोई खास वजह नहीं है तब आप इस विवाह के लिए पिता को मनाने का प्रयास कर सकती हैं. यदि वे राजी नहीं होते तो कोर्ट मैरिज कर सकती हैं. मगर जो भी फैसला करें सोचसमझ कर करें.

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या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Winter Special : रूखे हाथ बन जाएंगे मक्खन से मुलायम, फौलो करें ये टिप्स एंड ट्रिक्स

हम अपने हर छोटेबड़े काम को करने के लिए सबसे पहले हाथ ही बढ़ाते हैं. पर क्या हम अपने हाथों का उतना ध्यान रख पाते हैं जितना रखना चाहिए? शायद नहीं.

हाथ अक्सर उपेक्षित ही रह जाते हैं और इस वजह से ये रूखा और भद्दा नजर आने लगता है. रूखे और बेजान हाथों के लिए कई कारक उत्तरदायी हो सकते हैं. कई बार शुष्क हवा, ठंडा मौसम, सूरज की तेज रोशनी, पानी से अत्यधिक संपर्क, केमिकल्स और कठोर साबुन के इस्तेमाल से भी हाथ बेकार हो जाते हैं.

इसके अलावा कई मेडिकल कंडिशन्स भी हाथों को रूखा बना देती हैं. अगर आपके हाथ भी रूखे और बदसूरत हो गए हैं तो इन घरेलू उपायों का अपनाकर आप एकबार फिर मक्खन जैसे हाथ पा सकती हैं:

1. औलिव औयल के इस्तेमाल से हाथ कोमल बनते हैं. इसमें पर्याप्त मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट्स, हेल्दी फैटी एसिड्स पाए जाते हैं जो रूखे हाथों को कोमल और मुलायम बनाने का काम करते हैं. इससे हाथों में मॉइश्चर बना रहता है.

2. ओटमील के इस्तेमाल से भी हाथों का रूखापन और खुरदुरापन ठीक हो जाता है. ये एक नेचुरल क्लींजिंग की तरह काम करता है. इसमें मौजूद प्रोटीन हाथों की नमी को बनाए रखता है जिससे त्वचा मुलायम बनी रहती है.

3. नारियल तेल में फैटी एसिड्स का एक अनोखा मिश्रण मौजूद होता है, जो ड्राई स्किन के लिए बेहतरीन होता है. इसके अलावा ये सूरज की रोशनी में झुलस गए हाथों को निखारने का काम भी करता है.

4. मिल्क क्रीम का इस्तेमाल करके भी आप अपने हाथों को मक्खन की तरह बना सकती हैं. मिल्क क्रीम में हाई फैट होता है और ये एक नेचुरल मॉइश्चराइजर है. इसमें मौजूद लैक्टिक एसिड त्वचा के pH लेवल को भी मेंटेन करने में मदद करता है.

5. शहद भी एक नेचुरल मॉइश्चराइजर है. इसमें एंटीऑक्सीडेंट पर्यापत मात्रा में होता है. ये त्वचा की नमी को त्वचा में लॉक करने का काम करता है, जिससे त्वचा मुलायम बनी रहती है.

6. एलोवेरा का इस्तेमाल भी काफी कारगर है. ये त्वचा की नमी को बनाए रखने के साथ ही हाथों पर एक लेयर बना देता है जिससे हाथ बाहरी कारकों से प्रभावित होने से बचे रहते हैं.

7. इसके अलावा दही और केले को भी हाथों पर मलने से हाथ मुलायम बने रहते हैं. दही के इस्तेमाल से हाथों की टैनिंग भी दूर हो जाती है.

यादों के नश्तर: क्या मां से दूर हो पाई सियोना

सियोना का मोबाइल काफी देर से बज रहा था. वह  जानबूझ कर अपनी मां के फोन को इग्नोर कर रही थी. बारबार फोन कटता और फिर से उस की मां उसे कौल करतीं. लेकिन शायद वह फैसला कर चुकी थी कि आज फोन नहीं उठाएगी. मगर उस की मां थीं कि बारबार फोन मिलाए जा रही थीं. हार कर उस ने मोबाइल बंद कर दिया और लैपटौप औन कर अपने ब्लौग पर कुछ नया टाइप करने लगी.

डायरी से शुरू हुआ सफर अब ब्लौग का रूप ले चुका था. अपने फैंस के कमैंट पढ़ कर सियोना एक पल को मुसकरा उठती पर दूसरे ही पल उस की आंखें नम भी हो जातीं.

ऐसा आज पहली बार नहीं हुआ था. सियोना अकसर अपनी मां का फोन आते देख विचलित हो उठती. उस के मन में गुस्से का ज्वार अपने चरम पर होता और वह मां का फोन इग्नोर कर देती. यदि कभी फोन उठाती भी तो नपेतुले शब्दों में बात करती और फिर मैं बिजी हूं कह कर फोन काट देती.

सियोना की मां एकाकी जीवन जी रही थीं. पिताजी तो अपने दफ्तर के काम में अति व्यस्त रहते. कभीकभार अपनी बेटी के लिए समय निकाल कर उस से बात करते या यों कहें कि अपनी बेटी के बारे में जानकारी लेते.

सौफ्टवेयर कंपनी में काम करने वाली सियोना चेहरे से आकर्षक, बोलने में बहुत सभ्य थी, लेकिन उस के व्यवहार में कुछ कमियां उसे दूसरों से कमतर ही रखतीं. न तो वह किसी से खुल कर बात कर पाती और न ही किसी को अपने करीब आने देती. अपनेआप को खुद में समेटे बहुत अकेली सी थी. बस ब्लौग ही उस का एकमात्र सहारा था जहां वह अपने दर्द को शब्दों में ढाल देती.

आज सुबह जब सियोना उठी तो व्हाट्सऐप पर मां का मैसेज था कि सियोना तुम्हें कितने फोन किए. उठाती क्यों नहीं? फिर फोन बंद आने लगा… क्या बात है बेटी?

संदेश पढ़ कर उस के होंठों पर कुटिल मुसकान तैर गई. फिर धीरे से

बुदबुदाई कि अब तुम्हें मेरी याद सताने लगी मां जब मैं ने खुद को अपने अंदर समेट लिया है.

तभी उस के पिताजी का फोन आया. बोली, ‘‘जी पापा, कहिए कैसे हैं?’’

‘‘मैं तो ठीक हूं बेटी पर तुम्हारी मां बहुत परेशान हो रही है… तुम से बात करना चाहती है. कहती है कि तुम फोन नहीं उठा रही सो मैं ने अपने फोन से तुम्हारा नंबर डायल कर के देखा… लो अपनी मां से बात कर लो.’’

मजबूरन सियोना को मां से बात करनी पड़ी, ‘‘हां, बोलो मां क्या बात है? कहो किसलिए फोन कर रही थीं?’’

‘‘किसलिए? क्या मैं अपनी बेटी को बिना कारण फोन नहीं कर सकती?’’

सियोना को अपनी मां द्वारा उस पर हक जताने पर उलझन सी महसूस होने लगी थी. मन का कसैलापन उस के चेहरे पर साफ दिखने लगा था. उस के नथुने फूल गए थे और आंखों से अंगारे बरस रहे थे. कुछ सोच कर बोली, ‘‘क्या बात है आज कहीं बाहर जाने को नहीं मिला क्या? वह तुम्हारा सत्संग गु्रप क्या बंद है आजकल?’’

‘‘हां, वह तो धीरेधीरे छूट ही गया. घुटने में दर्द जो हो रहा है… अब कहां बाहर आनाजाना होता है… सारा दिन घर में अकेली पड़ी रहती हूं… अपने पापा को तो तू जानती ही है. पहले तो अपने दफ्तर के काम में व्यस्त रहते हैं और फिर उस के बाद अपनी किताबों में आंखें गड़ाए रहते हैं.’’

‘‘अच्छा अब और कुछ कहना है? मुझे दफ्तर जाने को देर हो रही है. नईर् नौकरी है न बहुत सोच कर चलना पड़ता है,’’ सियोना बोली.

‘‘कहां बेटी तू दूसरे शहर चली गई… यहीं रहती हमारे पास तो अच्छा रहता… इतना बड़ा घर काटने को दौड़ता है… कामवाली सफाई कर देती है, कुक 3 समय का खाना एकसाथ ही नाश्ते के समय बना देती है. ठंडा खाना फ्रिज से निकाल कर माइक्रोवैव में गरम करती हूं, न कोई स्वाद न कोईर् नई रैसिपी. बस वही एक ही तरह की दाल रोज बना देती है. तड़के में प्याज नहीं डालती. बस दाल के साथ उबाल देती है. ऐसा लगता है अब जीवन यहीं समाप्त हो गया है… तू रहती तो कम से कम कामवाली से काम तो करवा लेती.’’

‘‘हां मां समझती हूं तुम्हें बेटी नहीं, अभी भी एक टाइमपास और जरूरत पूरा करने वाला जिन्न चाहिए जो जैसा तुम कहो करे, जहां तुम कहो तुम्हें ले जाए और जब तुम चाहो तुम्हारे सामने मुंह खोले,’’ कहतेकहते उस की आंखें नम हो आईं और फिर उस ने फोन काट दिया.

दफ्तर पहुंच अपने काम में जुट गई. हां, दफ्तर में उस के बौस उस से हमेशा खुश रहते. काम की कीड़ा जो है वह… जब तक पूरा न कर ले चैन की सांस नहीं लेती. कई बार तो टी ब्रेक और लंच टाइम में भी अपने लैपटौप में घुसी रहती है. आज भी उस की नजरें तो लैपटौप में ही गड़ी थीं, लेकिन दिमाग पुरानी स्मृतियों में खोया था. हर वाकेआ उस की निगाहों के आगे ऐसे तैर रहा था जैसे अभी की बात हो… कहां भूल पाती है वह एक पल को भी हर उलाहने, हर बेइज्जती को…

जब सियोना मात्र 10 साल की थी तो एक सहेली के जन्मदिन की पार्टी में गई. सब सहेलियां सजधज कर पहुंचीं. स्कूल में 2 चोटियां करने वाली सारा ने आज बाल धो कर खोले हुए थे. सभी कह रहे थे कि तुम्हारे बाल कितने सिल्की और शाइनी हैं… बिलकुल स्ट्रेट, सामने से कटी फ्रिज कितनी सुंदर लग रही है. ऊपर से तुम्हारा गुलाबी फ्रौक, तुम बेबी लग रही हो. सब के साथ सियोना को भी यही एहसास हुआ था. किंतु वह स्वयं तो अपने कपड़ों के बटन भी ठीक से नहीं लगा पाई थी.

क्या करती मां तो घर पर थीं नहीं… हर संडे उन का किसी न किसी के घर भजनसत्संग जो होता है… और बाल तो उस ने भी सुबह धोए थे. लंबे बाल शाम तक उलझ गए थे, जिन्हें ठीक करना उसे नहीं आता था. सो वह एक रबड़बैंड बांध कर ऐसे ही पार्टी में आ गई थी. आज उसे पहली बार अपनी मां की अनदेखी का एहसास हुआ था और शर्मिंदगी भी.

जिस लड़की के जन्मदिन की पार्टी थी उस की मां ने पार्टी में थोड़ा खाना भी हाथ से बनाया था, केक भी स्वयं बेक किया था. केक इतना स्वादिष्ठ था कि देखते ही सभी उस पर जैसे लपक पड़े थे. उस की मां के हाथ के बनाए खाने की भी सब तारीफ कर रहे थे और केक से तो जैसे मन ही नहीं भर रहा था.

सियोना को अपने जन्मदिन की याद हो आई जब उस की मां ने सारी सहेलियों को बुला कर बाजार से लाया केक काटा और बाजार के बौक्स में पैक्ड खाना सब को हाथ में दिया और कहा घर जा कर खा लेना. इस बात को पहले तो वह समझ नहीं थी, किंतु अब उसे एहसास हुआ था कि उस की सहेली की मां ने कितने शौक से अपनी बेटी के जन्मदिन की तैयारी की थी. वह स्वयं भी उस की मां के बनाए खाने को खा कर उंगलियां चाटती रह गई थी और फिर पार्टी के अंत में अपनी सहेली की मां से बोली, ‘‘आंटी, क्या मैं घर के लिए भी खाना ले जा सकती हूं?’’

वह मासूम नहीं समझती थी कि यह समाज की नजर में एक व्यावहारिक दोष है, पेटभर खाना खाने के बाद भी वह मांग रही है. उस की सहेली की मां ने उसे घर के लिए खाना तो दिया, किंतु अगले दिन उस की सहेलियां उस की खिल्ली उड़ा रही थीं कि यह खाना मांग कर ले जाती है और वह जवाब में कुछ न बोल पाई. बस मन मसोस कर रह गई. कैसे बताती वह सब को कि उस के घर में तो कुक ही खाना बनाती है. सो वह स्वादिष्ठ खाने को देख अपनेआप को रोक न पाई.

उस की मां तो सहेलियों के साथ कभी इस तीर्थ पर जातीं, तो कभी उस तीर्थ पर. कभी उस पंडे की कथा सुनने 10 दिनों तक बनठन कर जाने का समय हमेशा रहता था जहां नाचना और भरपूर खाना होता था पर बेटी के लिए समय नहीं होता.

4-5 दिन पहले ही फिर उस की मां का फोन आया. उस ने न चाहते हुए भी फोन उठाया, क्योंकि वह जानती थी कि यदि उस ने मां से बात न की तो पिताजी जरूर फोन करेंगे.

फोन उठाते ही मां कहने लगीं, ‘‘मन नहीं लगता सारा दिन घर में पड़ेपड़े.’’

‘‘क्यों मां तुम्हारे पास तो स्मार्ट फोन है… अपनी सहेलियों से वीडियो कौल कर लिया करो… तुम्हें उन के दर्शन हो जाएंगे और उन्हें तुम्हारे या कभी उन्हें घर ही बुला लिया करो… अब तुम तो चलफिर नहीं सकतीं.’’

‘‘किसे कर लूं फोन? सब की सब अपने परिवारों में मस्त हैं. किसी के बेटीदामाद अमेरिका से आए हैं, तो कोई अपने पोते से मिलने बेटे के घर गई है. जो थोड़ी जवान औरतें हैं वे अपने बच्चों में व्यस्त हैं. किसी को फुरसत नहीं मेरे लिए… तेरे पापा भी अब तो दूरदूर रहते हैं. कुछ बोलती हूं तो कहते हैं भजन लगा देता हूं म्यूजिक सिस्टम में या फिर टीवी देख लो… कोई पास बैठ कर बात नहीं करना चाहता.’’

‘‘अच्छा मां मैं फोन रखती हूं हमारे बौस का तबादला दूसरे शहर में हो रहा है. सभी को मिल कर उन की फेयरवैल पार्टी की तैयारी करनी है,’’ कह उस ने फोन काट दिया और अपने बौस के लिए गिफ्ट लेने बाजार निकल गई.

रिकशे में बैठेबैठे उसे फिर अपने अतीत का एक नश्तर चुभ गया… जब वह 12 साल की थी. उस की एक सहेली के पिताजी का तबादला हुआ था और वह सपरिवार पुणे जा रही थी. सभी सहेलियों को मिल कर उस के लिए स्नैक्स लाने थे. उस सहेली को जो गिफ्ट देना चाहे वह गिफ्ट भी ले जा सकती थी.

शाम 5 बजे का समय तय कर सभी लौन में पहुंचने वाले थे कि अचानक मौसम बदला और बारिश आ गई. एक सहेली की मां ने सलाह दी कि उस के घर में पार्टी कर लो वरना तुम्हारा सारा मजा किरकिरा हो जाएगा. सारी सहेलियां उस के घर पहुंच अपनाअपना स्नैक्स एकदूसरे को दिखा रही थीं. जब सियोना की सहेली ने उस से पूछा कि तुम क्या लाई हो तो उस का जवाब था, ‘‘मेरे घर में कुछ था ही नहीं तो मैं क्या लाती?’’

तभी दूसरी सहेली आई और बोली, ‘‘मैं बाहर सुपर मार्केट से कुछ स्नैक्स ले कर आती हूं. सियोना तुम भी सुपर मार्केट से ले आओ स्नैक्स.’’

सियोना ने मां से फोन पर बात की तो मां ने कहा, ‘‘बिस्कुट रखे हैं घर में ले जाओ.’’

‘‘मां, जब घर में कुछ था तो मुझे खाली हाथ क्यों भेज दिया तुम ने? क्यों किसी न किसी तरह मुझे दूसरों के सामने नीचा दिखाती हो मां,’’ और गिफ्ट तो कुछ ले कर ही नहीं गई थी वह अपनी सहेली के लिए. जब फेयरवैल पार्टी कर सब ने उसे गिफ्ट दिया तो वह खाली हाथ थी. बस सब को गिफ्ट देते देखती रही.

सियोना की समझ में नहीं आता कि आखिर ऐसा क्यों करती थीं मां. वे गरीब तो नहीं थे… पिताजी की अच्छी आमदनी थी. घर में कुक और कामवाली तो तब भी आती थीं. मां स्वयं सोशल सर्किल मैंटेन करती थीं, लेकिन उस के बारे में कभी क्यों न सोचा? न जाने उस के रहनसहन और मूर्खताभरे व्यवहार के चलते लोग उस के बारे में क्या बातें बनाते होंगे… कभीकभी तो ऐसा लगता जैसे सारी सहेलियां उसे इग्नोर करने लगी हैं… सब एकसाथ खेलतीं पर कई बार उसे बताया भी न जाता कि सब किस के घर खेलेंगी. वह सब को इंटरकौम करती तब कहीं जा कर उसे कुछ मालूम होता.

अगली सुबह 6 बजे ही मां का फोन आया. सियोना ने नींद से जाग कर देखा और फिर से चादर ओढ़ कर सो गई. फिर जब वह जागी तो देखा मां का मैसेज था कि बेटी, मैं तुम से मिलने आ रही हूं. तुम्हारे पिताजी को बोला है कि मुझे सियोना के पास छोड़ आओ… कुछ दिन तुम्हारे साथ रहूंगी तो जी बहल जाएगा.

अब तो सियोना का गुस्सा 7वें आसमान पर था कि मां तुम मेरा पीछा क्यों नहीं छोड़तीं… वह बड़बड़ाते हुए नहाधो कर दफ्तर पहुंची. लैपटौप औन किया और काम में लग गई. किंतु आज कहां काम में मन लगने वाला था. दिमाग में तो जैसे कोई हथौड़े मार रहा था. उस का सिर चकराने लगा था. उस ने बैग से सिरदर्द की दवा निकाली और पानी के साथ गटक ली.

अब मां को आने को तो मना नहीं कर सकती. कुछ दिन बाद मां उस के घर आ पहुंची थी. मां के आते ही उस का रूटीन बिगड़ गया. सियोना उन्हें समय पर नाश्ताखाना दे देती, किंतु बात कम ही करती. उस की मां उस के आगेपीछे घूमतीं तो वह कह देती, ‘‘मां क्यों हर वक्त मुझे डिस्टर्ब करती हो… लेट कर आराम करो वरना तुम्हारे घुटने का दर्द बढ़ जाएगा.’’

जैसे ही वह दफ्तर से आती उस की मां चाय की रट लगा देतीं. जब तक वह हाथमुंह धो कर आती तब तक तो उस की मां का स्वर तेज हो चुका होता, ‘‘अरे, पूरा दिन अकेली पड़ी रहती हूं बेटी… अब तो तू चाय बना कर मेरे पास आ जा 2 घड़ी के लिए.’’

‘‘मां तुम भी न बस क्या कहूं… तुम्हें तो चौबीसों घंटे की नौकरानी चाहिए… मुझ से कोई लेनादेना नहीं तुम्हें.’’

‘‘कैसी बातें करती है तू… भला मां को चाय बना कर देने से कोई

नौकरानी हो जाती है… तुम्हें पालपोस कर बड़ा किया है मैं ने तो क्या इतना भी हक नहीं कि तुम से चाय बनवा लूं?’’

‘‘हूं… तो मुझे हिसाब चुकता करना है तुम्हारा… तुम ने मुझे पैदा किया, लेकिन सही परवरिश नहीं दी मां.’’

‘‘अरे, कैसी बातें करती हो… सारा दिन अकेले पड़ेपड़े मेरी पीठ थक जाती है… जरा कुछ बोलती हूं तो तू काटने को दौड़ती है.’’

‘‘तो मां बाहर खुली जगह में थोड़ा टहल आया करो.’’

अगले दिन जब सियोना दफ्तर से आई तो टेबल पर चाय के कप लुढ़के पड़े थे. रसोई में स्लैब पर चायपत्ती व चीनी बिखरी थी और चींटियां घूम रही थीं. बिस्कुट का डब्बा भी खुला पड़ा था.

सियोना रसोई से ही चीखी, ‘‘मां, आज घर में कोई आया था क्या मेरे पीछे से?’’

‘‘चीखती क्यों है, यहीं बाहर एक सहेली बनी थी कल… मैं ने उसे आज घर बुला लिया. सारा दिन घर पर पड़े बोर होती हूं. तु?ो तो मेरे लिए फुरसत नहीं. किसी से थोड़ा बोलचाल लूं तो मन हलका हो जाता है.’’

‘‘मां अपना बोलनाचालना बाहर तक ही सीमित रखो. रसोई का कितना बुरा हाल किया है… घर में मिट्टी ही मिट्टी हो रही है. सहेली से बोल देतीं कि चप्पलें बाहर ही खोले.’’

‘‘उफ, तुम्हारे घर क्या आई तू तो बड़ा एहसान दिखा रही है मुझ पर जैसे मैं तो तेरी कुछ लगती ही नहीं… क्या तुम्हारी पहचान के लोग नहीं आते घर पर?’’

‘‘नहीं आते मां, मुझे आदत नहीं किसी को घर बुलाने की. तुम ने क्या कभी मुझे अपनी सहेलियों को घर बुलाने दिया था? तुम हमेशा कह देतीं कि घर गंदा हो जाता है जब तुम्हारी सहेलियां आती हैं. सारा सामान इधरउधर कर देती हैं. बारिश और गरमियों के दिनों में मैं अकेली घर पर पड़ी रहती थी. तुम तो सत्संग और मंदिरों के फेरे लगाने में व्यस्त रहीं और मैं सदा घर पर अकेली. बाहर तुम नहीं निकलने देतीं और यदि किसी को बुलाना चाहती तो तुम सदा ही टोक दिया करतीं.’’

‘‘हद हो गई… कब की बातें मन में लिए बैठी है… मुझे तो ये सब याद भी नहीं.’’

‘‘पर मैं भूलने वाली नहीं मां. तुम्हारा दिया हर दंश अच्छी तरह याद है मुझे. न भरने वाले नासूर दिए हैं तुम ने मुझे.’’

तभी पिताजी का फोन आया तो बोली, ‘‘पापा, मां का वापसी का टिकट बुक करा दीजिए… मां यहां बोर हो रही हैं… मुझे तो समय नहीं मिलता…’’

‘‘हां बेटी, मैं स्वयं ही आ कर ले जाता हूं. मैं तो पहले ही जानता था कि वह तुम से ज्यादा दिन नहीं निभा पाएगी.’’

‘‘जातेजाते मां ने भरे मन से सियोना से कह दिया, ‘‘अब मैं तभी आऊंगी जब तू बुलाएगी.

‘‘अलविदा मां, मैं तुम्हें कभी नहीं बुलाऊंगी. तुम से पीछा छुड़ाने के लिए ही मैं ने नौकरी के लिए दूसरा शहर चुना पर तुम तो यहां भी मुझे चैन से नहीं रहने देती,’’ उस के नथुने फूले हुए थे और मन ही मन सोच रही थी कि हो सका तो किसी दूसरे देश में नौकरी ढूंढ़ेगी मां ताकि तुम से छुटकारा मिल सके. तुम्हारे दिए घाव न जाने क्यों भरते ही नहीं मां. काश, तुम मुझे जन्म ही न देतीं और फिर भरे मन से दफ्तर रवाना हो गई.

आज लैपटौप खोलते ही सब से पहले उस ने मां को फेसबुक पर ब्लौक किया. उस के बाद फोन उठाया और व्हाट्सऐप पर भी ब्लौक कर दिया… एक गहरी सांस ले कर काम में जुट गई. द्य

Bigg Boss 18 : विवियन डीसेना ने मल्लिका शेरावत से क्यों कहा ‘दूर रहकर करो बात करीब मत आओ’

बिग बौस 18 की शुरुआत हो चुकी है और बहुत सारी नौटंकी के साथ बौलीवुड स्टारों का अपनी फिल्मों को प्रमोट करने के लिए शो में आना भी शुरू हो गया है . जिसके चलते हाल ही में सिंघम अगेन 3 प्रमोट करने के लिए रोहित शेट्टी, अजय देवगन भी शो में आए थे. इन दोनों से पहले एक समय की हौट एंड सेक्सी हीरोइन मर्डर फेम मल्लिका शेरावत भी अपनी फ़िल्म विक्की विद्या का वो वाला वीडियो प्रमोट करने के लिए बिग बौस में पधारी थी.

शो में बतौर गेस्ट एंटर करते ही सबसे पहले मल्लिका ने शो के होस्ट सलमान खान पर लाइन मारना शुरू कर दिया. जिसके चलते उन्होंने सलमान खान को चुंबन तक दे दिया. बौलीवुड में लंबे चुंबन दृश्यों के लिए प्रसिद्ध मलीका का स्वामिपय पाकर सलमान भी असहज महसूस कर रहे थे . इसके बाद मल्लिका बिग बौस के घर में गई और वहां मौजूद सब मर्दों के साथ फ्लर्ट करने लगी वहीं पर मौजूद विवियन डीसेना के साथ भी जब मल्लिका ने फ्लर्ट करने की कोशिश की तो उन्होंने मल्लिका से साफसाफ कह दिया विवियन डीसेना को पास आकर बात करने वाले लोग पसंद नहीं है. बेहतर होगा कि मल्लिका भी दूर से बात करें.

यह सुनते ही मल्लिका का मुह छोटा हो गया और वह विविन के पास से खसक ली. शायद मल्लिका ने इस बेज्जती के बारे में सोचा नही था. हौट एंड सेक्सी मल्लिका जिनको देखकर जैकी चैन जैसे विदेशी प्रसिद्ध एक्टर की भी आंखें बड़ी हो जाती है . होंग कौन्ग एक्टर जैकी चैन ने मल्लिका के साथ फ़िल्म द मिथ में काम दिया था. और वहां पर मल्लिका को हाथों हाथ लिया गया था. ऐसे में एक टीवी एक्टर का मुंह तोड़ जवाब शायद मल्लिका को पसंद नहीं आया.

जहां तक विवियन की बात है तो छोटे पर्दे के पौपुलर एक्टर हैं .जिन्हें कलर्स वाले पिछले 8 सालो से शो में आने के लिए औफर दे रहे हैं. लेकिन विविन लगतार इनकार कर रहे थे. इस बात का जिक्र सलमान खान ने भी शो में किया. पर्सनल लाइफ में विवियन प्यार में धोखा खा चुके हैं  और धर्म परिवर्तन करके उन्होंने दूसरी शादी कर ली है. जिस वजह से नई बीबी के डर से विविन शो की लड़कियों से भी 5 फुट की दूरी बनाए हुए है. आने वाली हौट एंड सेक्सी हीरोइन को भी घास नहीं डाल रहे. शायद बीवी का डर हर डर से बड़ा होता है.

क्या देसी गर्ल के साथ शादीशुदा Shahrukh Khan का था अफेयर, जानें इस लव स्टोरी की सच्चाई

SRK Birthday: रोमांस के किंग शाहरुख खान (Shahrukh Khan) हर लड़की के ख्वाबों के राज हैं. बौलीवुड के बादशाह के साथ काम करने की  ख्वाहिश हर ऐक्ट्रेस की होती है. उनकी फैन फौलोइंग सिर्फ देश में ही नहीं विदेश में भी है. हर कोई ऐक्टर की एक झलक पाने के लिए बेताब रहता है. शाहरुख खान ने अपने ऐक्टिंग के दम पर बादशाह का टैग हासिल किया है. जब वह किसी भी रोमांटिक गाने पर बाहें फैलाकर, नजरें झुकाना और फिर अपनी हिरोइन की तऱफ देखना ये सब कर के शाहरुख अपने फीमेल फैंस की दिल की धड़कनों को बढ़ा देते हैं.

आज 2 नवंबर को शाहरुख खान अपना 59 वां बर्थडे सेलिब्रैट कर रहे हैं. इस उम्र में शाहरुख खान फिल्म इंडस्ट्री पर राज कर रहे हैं. फैंस को अपने फेवरेट ऐक्टर के फिल्मों का बेसब्री से इंतजार करते हैं. आज आपको शाहरुख खान के बर्थडे पर उनके लाइफ से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से के बारे में बताएंगे.

प्रियंका चोपड़ा के साथ था अफेयर ?

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक शाहरुख खान और प्रियंका चोपड़ा की नजदीकियों के कारण उनका घर टूटने की कगार पर था. गौसिप के अनुसार, शादीशुदा शाहरुख खान और प्रियंका चोपड़ा डान 2 के सेट पर एकदूसरे को दिल दे चुके थे. इस फिल्म के सेट के उनका प्यार परवान चढ़ा था. हालांकि इस बात को शाहरुख और प्रियंका ने कभी इसे न नकारा और न कभी अफेयर को ऐक्सेप्ट किया.

शाहरुख ने प्रियंका को किया था प्रोपज?

सोशल मीडिया पर एक वीडियो काफी वायरल हुआ था, जिसमें वह पीसी के लिए गाना गाते दिखे थे. उस गाने में वह अंग्रेजी में कहते दिखे थे- मैरी मी मैरी मी… वहीं प्रियंका हैरानी से उन्हें देखती और हंसती दिखीं थीं. उनके अफेयर से रिलेटेड रूमर्स सोशल मीडिया पर अकसर चर्चा में रहती हैं. खबरों के अनुसार शाहरुख खान के बैस्ट फ्रैंड करण जौहर ने गौरी खान को संभाला और उनकी शादी को बचाया.

अफेयर की खबरों पर किंग खान ने किया था रिएक्ट

एक इंटरव्यू के अनुसार, शाहरुख खान ने प्रियंका चोपड़ा संग नाम जुड़ने पर रिएक्शन दिया. बौलीवुड लाइफ के एक रिपोर्ट के अनुसार, किंग खान ने कहा कि ‘मुझे ये बात ज्यादा खराब लगती है कि मेरे साथ एक लड़की को वो सम्मान नहीं दिया जा रहा है जैसा मैं सभी का औरतों को करता हूं. मैं माफी मांगता हूं, इसलिए नहीं कि मैंने कुछ किया है बल्कि इसलिए वह मेरी दोस्त है. इसलिए मुझे ये बहुत अपमानजनक लगा. वह मेरे सबसे अच्छे दोस्तों में से एक है और मेरे दिल के बहुत करीब है और हमेशा रहेगी. हमने दोस्त के तौर पर स्क्रीन पर बहुत अच्छा समय बिताया है. ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि दोस्ती खराब होती है.

एक करीबी  दोस्त ने शाहरुख-पीसी के रिश्ते की बताई सच्चाई

शाहरुख-प्रियंका के अफेयर को लेकर किंग खान के करीबी दोस्त विवेक वासवानी ने भी एक इंटरव्यू में बड़ा बयान दिया था. उन्होंने शाहरुख-प्रियंका के डेटिंग का सच बताया था. रिपोर्ट के मुताबिक विवेक ने कहा कि शाहरुख खान ने अपनी जिंदगी में सिर्फ एक ही लड़की से प्यार किया है और वह हैं गौरी खान. उनके दोस्ती के रहे हैं, लेकिन शाहरुख खान का सैक्स को लेकर कोई रिलेशनशिप नहीं रहा था. विवेक ने ये भी बताया कि जबसे मैं उन्हें जानता हूं, बादशाह पूरी जिंदगी में एक ही महिला को समर्पित रहे हैं. प्रियंका चोपड़ा के साथ उनके अफेयर की खबरें सिर्फ रूमर है.

बेटी सुहाना खान के साथ ‘किंग’ में आएंगे नजर

फिल्म की बात करे तो शाहरुख खान को आखिरी बार उन्हें डंकी में देखा गया था. जो 2023 में रिलीज हुई थी.  जल्द ही बादशाह अपनी बेटी सुहाना खान के साथ फिल्म किंग में नजर आने वाले हैं. फैंस को इस मूवी का बेसब्री से इंतजार है.

मां बेटी: क्यों गांव लौटने को मजबूर हो गई मालती

मालती काम से लौटी थी… थकीमांदी. कुछ देर लेट कर आराम करने का मन कर रहा था, पर उस की जिंदगी में आराम नाम का शब्द नहीं था. छोटा वाला बेटा भूखाप्यासा था. वह 2 साल का हो गया था, पर अभी तक उस का दूध पीता था.

मालती के खोली में घुसते ही वह उस के पैरों से लिपट गया. उस ने उसे अपनी गोद में उठा कर खड़ेखड़े ही छाती से लगा लिया. फिर बैठ कर वह उसे दूध पिलाने लगी थी.

सुबह मालती उसे खोली में छोड़ कर जाती थी. अपने 2 बड़े भाइयों के साथ खोली के अंदर या बाहर खेलता रहता था. तब भाइयों के साथ खेल में मस्त रहने से न तो उसे भूख लगती थी, न मां की याद आती थी.

दोपहर के बाद जब मालती काम से थकीमांदी घर लौटती, तो छोटे को अचानक ही भूख लग जाती थी और वह भी अपनी भूखप्यास की परवाह किए बिना या किसी और काम को हाथ लगाए बेटे को अपनी छाती का दूध पिलाने लगती थी.

तभी मालती की बड़ी लड़की पूजा काम से लौट कर घर आई. पूजा सहमते कदमों से खोली के अंदर घुसी थी. मां ने तब भी ध्यान नहीं दिया था. पूजा जैसे कोई चोरी कर रही थी. खोली के एक किनारे गई और हाथ में पकड़ी पोटली को कोने में रखी अलमारी के पीछे छिपा दिया.

मां ने छोटू को अपनी छाती से अलग किया और उठने को हुई, तभी उस की नजर बेटी की तरफ उठी और उसे ने पूजा को अलमारी के पीछे थैली रखते हुए देख लिया.

मालती ने सहज भाव से पूछा, ‘‘क्या छिपा रही है तू वहां?’’

पूजा चौंक गई और असहज आवाज में बोली, ‘‘कुछ नहीं मां.’’

मालती को लगा कि कुछ तो गड़बड़ है वरना पूजा इस तरह क्यों घबराती.

मालती अपनी बेटी के पास गई और उस की आंखों में आंखें डाल कर बोली, ‘‘क्या है? तू इतनी घबराई हुई क्यों है? और यहां क्या छिपाया है?’’

‘‘कुछ नहीं मां, कुछ नहीं…’’ पूजा की घबराहट और ज्यादा तेज हो गई. वह अलमारी से सट कर इस तरह खड़ी हो गई कि मालती पीछे न देख सके.

मालती ने जोर से पकड़ कर उसे परे धकेला और तेजी से अलमारी के पीछे रखी पोटली उठा ली.

हड़बड़ाहट में मालती ने पोटली को खोला. पोटली का सामान अंदर से सांप की तरह फन काढ़े उसे डरा रहे थे… ब्रा, पैंटी, लिपस्टिक, क्रीम, पाउडर और तेल की शीशी…

मालती ने फिर अचकचा कर अपनी बेटी पूजा को गौर से देखा… उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ. उस की बेटी जवान तो नहीं हुई थी, पर जवानी की दहलीज पर कदम रखने के लिए बेचैन हो रही थी.

मालती का दिल बेचैन हो गया. गरीबी में एक और मुसीबत… बेटी की जवानी सचमुच मांबाप के लिए एक मुसीबत बन कर ही आती है खासकर उस गरीब की बेटी की, जिस का बाप जिंदा न हो. मालती की सांसें कुछ ठीक हुईं, तो बेटी से पूछा, ‘‘किस ने दिया यह सामान तुझे?’’

मां की आवाज में कोई गुस्सा नहीं था, बल्कि एक हताशा और बेचारगी भरी हुई थी.

पूजा को अपनी मां के ऊपर तरस आ गया. वह बहुत छोटी थी और अभी इतनी बड़ी या जवान नहीं हुई थी कि दुनिया की सारी तकलीफों के बारे में जान सके. फिर भी वह इतना समझ गई थी कि उस ने कुछ गलत किया था, जिस के चलते मां को इस तरह रोना पड़ रहा था. वह भी रोने लगी और मां के पास बैठ गई.

बेटी की रुलाई पर मालती थोड़ा संभली और उस ने अपने ममता भरे हाथ बेटी के सिर पर रख दिए.

दोनों का दर्द एक था, दोनों ही औरतें थीं और औरतों का दुख साझा होता है. भले ही, दोनों आपस में मांबेटी थीं, पर वे दोनों एकदूसरे के दर्द से न केवल वाकिफ थीं, बल्कि उसे महसूस भी कर रही थीं.

पूजा की सिसकियां कुछ थमीं, तो उस ने बताया, ‘‘मां, मैं ले नहीं रही थी, पर उस ने मुझे जबरदस्ती दिया.’’

‘‘किस ने…?’’ मालती ने बेचैनी से पूछा.

‘‘गोकुल सोसाइटी के 401 नंबर वाले साहब ने…’’

‘‘कांबले ने?’’ मालती ने हैरानी से पूछा.

‘‘हां… मां, वह मुझ से रोज गंदीगंदी बातें करता है. मैं कुछ नहीं बोलती तो मुझे पकड़ कर चूम लेता है,’’ पूजा जैसे अपनी सफाई दे रही थी.

मालती ने गौर से पूजा को देखा. वह दुबलेपतले बदन की सांवले रंग की लड़की थी, कुल जमा 13 साल की… बदन में ऐसे अभी कोई उभार नहीं आए थे कि किसी मर्द की नजरें उस पर गड़ जाएं.

हाय रे जमाना… छोटीछोटी बच्चियां भी मर्दों की नजरों से महफूज नहीं हैं. पलक झपकते ही उन की हैवानियत और हवस की भूख का शिकार हो जाती हैं.

मालती को अपने दिन याद आ गए… बहुत कड़वे दिन. वह भी तब कितनी छोटी और भोली थी. उस के इसी भोलेपन का फायदा तो एक मर्द ने उठाया था और वह समझ नहीं पाई थी कि वह लुट रही थी, प्यार के नाम पर… पर प्यार कहां था वह… वह तो वासना का एक गंदा खेल था.

इस खेल में मालती अपनी पूरी मासूमियत के साथ शामिल हो गई थी. नासमझ उम्र का वह ऐसा खेल था, जिस में एक मर्द उस के अधपके बदन को लूट रहा था और वह समझ रही थी कि वह मर्दऔरत का प्यार था.

वह एक ऐसे मर्द द्वारा लुट रही थी, जो उस से उम्र में दोगुनातिगुना ही नहीं, बाप की उम्र से भी बड़ा था, पर औरतमर्द के रिश्ते में उम्र बेमानी हो जाती है और कभीकभी तो रिश्ते भी बदनाम हो जाते हैं.

तब मालती भी अपनी बेटी की तरह दुबलीपतली सांवली सी थी. आज जब वह पूजा को गौर से देखती है, तो लगता है जैसे वही पूजा के रूप में खड़ी है.

मालती बिलकुल उस का ही दूसरा रूप थी. जब वह अपनी बेटी की उम्र की थी, तब चोगले साहब के घर में काम करती थी. वह शादीशुदा था, 2 बच्चों का बाप, पर एक नंबर का लंपट… उस की नजरें हमेशा मालती के इर्दगिर्द नाचती रहती थीं.

चोगले की बीवी किसी स्कूल में पढ़ाती थी, सो वह सुबह जल्दी निकल जाती थी. साथ में उस के बच्चे भी चले जाते थे. बीवी और बच्चों के जाने के बाद मालती उस घर में काम करने जाती थी.

चोगले तब घर में अकेला होता था. पहले तो काफी दिनों तक उस ने मालती की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया और कभी कोई ऐसी बात नहीं कही, जिस से लगे कि वह उस के बदन का भूखा था.

शायद वह उसे बच्ची समझता था. वह काम करती रहती थी और काम खत्म होने के बाद चुपचाप घर चली आती थी.

पर जब उस ने 13वें साल में कदम रखा और उस के सीने में कुछ नुकीला सा उभार आने लगा, तो अचानक ही एक दिन चोगले की नजर उस के शरीर पर पड़ गई. वह मैलेकुचैले कपड़ों में रहती थी.

झाड़ूपोंछा करने वाली लड़की और कैसे रह सकती थी. कपड़े धोने के बाद तो वह खुद गीली हो जाती थी और तब बिना अंदरूनी कपड़ों के उस के बदन के अंग शीशे की तरह चमकने लगते थे.

ऐसे मौके पर चोगले की नजरों में एक प्यास उभर आती और उस के पास आ कर पूछता था, ‘‘मालती, तुम तो गीली हो गई हो, भीग गई हो. पंखे के नीचे बैठ कर कपड़े सुखा लो,’’ और वह पंखा चला देता.

मालती बैठती नहीं खड़ेखड़े ही अपने कपड़े सुखाती. चोगले उस के बिलकुल पास आ कर सट कर खड़ा हो जाता और अपने बदन से उसे ढकता हुआ कहता, ‘‘तुम्हारे कपड़े तो बिलकुल पुराने हो गए हैं.’’

‘‘जी…’’ वह संकोच से कहती.

‘‘अब तो तुम्हें कुछ और कपड़ों की भी जरूरत पड़ती होगी?’’ मालती उस का मतलब नहीं समझती. बस, वह उस को देखती रहती.

वह एक कुटिल हंसी हंस कर कहता, ‘‘संकोच मत करना, मैं तुम्हारे लिए नए कपड़े ला दूंगा. वे वाले भी…’’

मालती की समझ में फिर भी नहीं आता. वह अबोध भाव से पूछती, ‘‘कौन से कपड़े…’’

चोगले उस के कंधे पर हाथ रख कर कहता, ‘‘देखो, अब तुम छोटी नहीं रही, बड़ी और समझदार हो रही हो. ये जो कपड़े तुम ने ऊपर से पहन रखे हैं, इन के नीचे पहनने के लिए भी तुम्हें कुछ और कपड़ों की जरूरत पड़ेगी, शायद जल्दी ही…’’ कहतेकहते उस का हाथ उस की गरदन से हो कर मालती के सीने की तरफ बढ़ता और वह शर्म और संकोच से सिमट जाती. इतनी समझदार तो वह हो ही गई थी.

चोगले की मेहनत रंग लाई. धीरेधीरे उस ने मालती को अपने रंग में रंगना शुरू कर दिया.चोगले की मीठीमीठी बातों और लालच में मालती बहुत जल्दी फंस गई. घर का सूनापन भी चोगले की मदद कर रहा था और मालती की चढ़ती हुई जवानी. उस की मासूमियत और भोलेपन ने ऐसा गुल खिलाया कि मालती जवानी के पहले ही प्यार के सारे रंगों से वाकिफ हो गई थी.

तब मालती की मां ने उस में होने वाले बदलाव के प्रति उसे सावधान नहीं किया था, न उसे दुनियादारी समझाई थी, न मर्द के वेष में छिपे भेडि़यों के बारे में उसे किसी ने कुछ बताया था.

भेद तब खुला था जब उस का पेट बढ़ने लगा. सब से पहले उस की मां को पता चला था. वह उलटियां करती तो मां को शक होता, पर वह इतनी छोटी थी कि मां को अपने शक पर भी यकीन नहीं होता था. यकीन तो तब हुआ जब उस का पेट तन कर बड़ा हो गया.

मां ने मारपीट कर पूछा, तब बड़ी मुश्किल से उस ने चोगले का नाम बताया. बड़े लोगों की करतूत सामने आई, पर तब चोगले ने भी उस की मदद नहीं की थी और दुत्कार कर उसे अपने घर से भगा दिया था. बाद में एक नर्सिंगहोम में ले जा कर मां ने उस का पेट गिरवाया था.

अपना बुरा समय याद कर के मालती रो पड़ी. डर से उस का दिल कांप उठा. क्या समय उस की बेटी के साथ भी वही खिलवाड़ करने जा रहा था, जो उस के साथ हुआ था? गरीब लड़कियों के साथ ही ऐसा क्यों होता है कि वे अपना बचपन भी ठीक से नहीं बिता पातीं और जवानी के तमाम कहर उन के ऊपर टूट पड़ते हैं?

मालती ने अपनी बेटी पूजा को गले से लगा लिया. जोकुछ उस के साथ हुआ था, वह अपनी बेटी के साथ नहीं होने देगी. अपनी जवानी में तो उस ने बदनामी का दाग झेला था, मांबाप को परेशानियां दी थीं. यह तो केवल वह या उस के मांबाप ही जानते थे कि किस तरह उस का पेट गिरवाया गया था. किस तरह गांव जा कर उस की शादी की गई थी.  फिर कई साल बाद कैसे वह अपने मर्द के साथ वापस मुंबई आई थी और अपने मांबाप के बगल की खोली में किराए पर रहने लगी थी.

आज उस का मर्द इस दुनिया में नहीं था. 4 बच्चे उस की और उस की बड़ी बेटी की कमाई पर जिंदा थे. पूजा के बाद 3 बेटे हुए थे, पर तीनों अभी बहुत छोटे थे. पिछले साल तक उस का मर्द फैक्टरी में हुए एक हादसे में जाता रहा.

पति की मौत के बाद ही मालती ने अपनी बेटी को घरों में काम करने के लिए भेजना शुरू किया था. उसे क्या पता था कि जो कुछ उस के साथ हुआ था, एक दिन उस की बेटी के साथ भी होगा.

जमाना बदल जाता है, लोग बदल जाते हैं, पर उन के चेहरे और चरित्र कभी नहीं बदलते. कल चोगले था, तो आज कांबले… कल कोई और आ जाएगा. औरत के जिस्म के भूखे भेडि़यों की इस दुनिया में कहां कमी थी. असली शेर और भेडि़ए धीरेधीरे इस दुनिया से खत्म होते जा रहे थे, पर इनसानी शेर और भेडि़ए दोगुनी तादाद में पैदा होते जा रहे थे.

मालती के पास आमदनी का कोई और जरीया नहीं था. मांबेटी की कमाई से 5 लोगों का पेट भरता था. क्या करे वह? पूजा का काम करना छुड़वा दे, तो आमदनी आधी रह जाएगी. एक अकेली औरत की कमाई से किस तरह 5 पेट पल सकते थे?

मालती अच्छी तरह जानती थी कि वह अपनी बेटी की जवानी को किसी तरह भी इनसानी भेडि़यों के जबड़ों से नहीं बचा सकती थी. न घर में, न बाहर… फिर भी उस ने पूजा को समझाते हुए कहा, ‘‘बेटी, अगर तू मेरी बात समझ सकती है तो ठीक से सुन… हम गरीब लोग हैं, हमारे जिस्म को भोगने के लिए यह अमीर लोग हमेशा घात लगाए रहते हैं. इस के लिए वे तमाम तरह के लालच देते हैं. हम लालच में आ कर फंस जाते हैं और उन को अपना बदन सौंप देते हैं.

‘‘गरीबी हमारी मजबूरी है तो लालच हमारा शाप. इस की वजह से हम दुख और तकलीफें उठाते हैं.

‘‘हम गरीबों के पास इज्जत के नाम पर कुछ नहीं होता. अगर मैं तुझे काम पर न भेजूं और घर पर ही रखूं तब भी तो खतरा टल नहीं सकता. चाल में भी तो आवाराटपोरी लड़के घूमते रहते हैं.

‘‘अमीरों से तो मैं तुझे बचा लूंगी. पर इस खोली में रह कर इन गली के आवारा कुत्तों से तू नहीं बच पाएगी. खतरा सब जगह है. बता, तुझे दुनिया की गंदी नजरों से बचाने के लिए मैं क्या करूं?’’ और वह जोर से रोने लगी.

पूजा ने अपने आंसुओं को पोंछ लिया और मां का हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘मां, तुम चिंता मत करो. अब मैं किसी की बातों में नहीं आऊंगी. किसी का दिया हुआ कुछ नहीं लूंगी. केवल अपने काम से काम रखूंगी.

‘‘हां, कल से मैं कांबले के घर काम करने नहीं जाऊंगी. कोई और घर पकड़ लूंगी.’’

‘‘देख, हमारे पास कुछ नहीं है, पर समझदारी ही हमारी तकलीफों को कुछ हद तक कम कर सकती है. अब तू सयानी हो रही है. मेरी बात समझ गई है. मुझे यकीन है कि अब तू किसी के बहकावे में नहीं आएगी.’’

पूजा ने मन ही मन सोचा, ‘हां, मैं अब समझदार हो गई हूं.’

मालती अच्छी तरह जानती थी कि ये केवल दिलासा देने वाली बातें थीं और पूजा भी इतना तो जानती थी कि अभी तो वह जवानी की तरफ कदम बढ़ा रही थी. पता नहीं, आगे क्या होगा? बरसात का पानी और लड़की की जवानी कब बहक जाए और कब किधर से किधर निकल जाए, किसी को पता नहीं चलता.

पूजा अभी छोटी थी. जवानी तक आतेआते न जाने कितने रास्तों से उसे गुजरना पड़ेगा… ऐसे रास्तों से जहां बाढ़ का पानी भरा हुआ है और वह अपनी पूरी होशियारी और सावधानी के साथ भी न जाने कब किस गड्ढे में गिर जाए.

वे दोनों ही जानती थीं कि जो वे सोच रही थीं, वही सच नहीं था या जैसा वे चाह रही हैं, उसी के मुताबिक जिंदगी चलती रहेगी, ऐसा भी नहीं होने वाला था.

दिन बीतते रहे. मालती अपनी बेटी की तरफ से होशियार थी, उस की एकएक हरकत पर नजर रखती. उन दोनों के बीच में बात करने का सिलसिला कम था, पर बिना बोले ही वे दोनों एकदूसरे की भावनाओं को जानने और समझने की कोशिश करतीं.

पर जैसेजैसे बेटी बड़ी हो रही थी, वह और ज्यादा समझदार होती जा रही थी. अब वह बड़े सलीके से रहने लगी थी और उसे अपने भावों को छिपाना भी आ गया था.

इधर काफी दिनों से पूजा के रंगढंग में काफी बदलाव आ गया था. वह अपने बननेसंवरने में ज्यादा ध्यान देती, पर इस के साथ ही उस में एक अजीब गंभीरता भी आ गई थी. ऐसा लगता था, जैसे वह किन्हीं विचारों में खोई रहती हो. घर के काम में मन नहीं लगता था.

मालती ने एक दिन पूछ ही लिया, ‘‘बेटी, मुझे डर लग रहा है. कहीं तेरे साथ कुछ हो तो नहीं गया?’’

पूजा जैसे सोते हुए चौंक गई हो, ‘‘क्या… क्या… नहीं तो…’’

‘‘मतलब, कुछ न कुछ तो है,’’ उस ने बेटी के सिर पर हाथ रख कर कहा.

पूजा के मुंह से बोल न फूटे. उस ने अपना सिर झुका लिया. मालती समझ गई, ‘‘अब कुछ बताने की जरूरत नहीं है. मैं सब समझ गई हूं, पर एक बात तू बता, जिस से तू प्यार करती है, वह तेरे साथ शादी करेगा?’’

पूजा की आंखों में एक अनजाना सा डर तैर गया. उस ने फटी आंखों से अपनी मां को देखा. मालती उस की आंखों में फैले डर को देख कर खुद सहम गई. उसे लगा, कहीं न कहीं कोई बड़ी गड़बड़ है.

डरतेडरते मालती ने पूछा, ‘‘कहीं तू पेट से तो नहीं है?’’

पूजा ने ऐसे सिर हिलाया, जैसे जबरदस्ती कोई पकड़ कर उस का सिर हिला रहा हो. अब आगे कहने के लिए क्या बचा था.

मालती ने अपना माथा पीट लिया. न वह चीख सकती थी, न रो सकती थी, न बेटी को मार सकती थी. उस की बेबसी ऐसी थी, जिसे वह किसी से कह भी नहीं सकती थी.

जो मालती नहीं चाहती थी, वही हुआ. उस की जिंदगी में जो हो चुका था उसी से बेटी को आगाह किया था. ध्यान रखती थी कि बेटी नरक में न गिर जाए. बेटी ने भी उसे भरोसा दिया था कि वह कोई गलत कदम नहीं उठाएगी, पर जवानी की आग को दबा कर रख पाना शायद उस के लिए मुमकिन नहीं था.

मरी हुई आवाज में उस ने बस इतना ही पूछा, ‘‘किस का है यह पाप…?’’

पूजा ने पहले तो नहीं बताया, जैसा कि आमतौर पर लड़कियों के साथ होता है. जवानी में किए गए पाप को वे छिपा नहीं पातीं, पर अपने प्रेमी का नाम छिपाने की कोशिश जरूर करती हैं. हालांकि इस में भी वे कामयाब नहीं होती हैं, मांबाप किसी न किसी तरीके से पूछ ही लेते हैं.

पूजा ने जब उस का नाम बताया, तो मालती को यकीन नहीं हुआ. उस ने चीख कर पूछा, ‘‘तू तो कह रही थी कि कांबले के यहां काम छोड़ देगी?’’

‘‘मां, मैं ने तुम से झूठ बोला था. मैं ने उस के यहां काम करना नहीं छोड़ा था. मैं उस की मीठीमीठी और प्यारी बातों में पूरी तरह भटक गई थी. मैं किसी और घर में भी काम नहीं करती थी, केवल उसी के घर जाती थी.

‘‘वह मुझे खूब पैसे देता था, जो मैं तुम्हें ला कर देती थी कि मैं दूसरे घरों में काम कर के ला रही हूं, ताकि तुम्हें शक न हो.’’

‘‘फिर तू सारा दिन उस के साथ रहती थी?’’

पूजा ने ‘हां’ में सिर हिला दिया. ‘‘मरी, हैजा हो आए, तू जवानी की आग बुझाने के लिए इतना गिर गई. अरे, मेरी बात समझ जाती और तू उस के यहां काम छोड़ कर दूसरों के घरों में काम करती रहती, तो शायद किसी को ऐसा मौका नहीं मिलता कि कोई तेरे बदन से खिलवाड़ कर के तुझे लूट ले जाता. काम में मन लगा रहता है, तो इस काम की तरफ लड़की का ध्यान कम जाता है. पर तू तो बड़ी शातिर निकली… मुझ से ही झूठ बोल गई.’’

पूजा अपनी मां के पैरों पर गिर पड़ी और सिसकसिसक कर रोने लगी, ‘‘मां, मैं तुम्हारी गुनाहगार हूं, मुझे माफ कर दो. एक बार, बस एक बार… मुझे इस पाप से बचा लो.’’

मालती गुस्से में बोली, ‘‘जा न उसी के पास, वह कुछ न कुछ करेगा. उस को ले कर डाक्टर के पास जा और अपने पेट के पाप को गिरवा कर आ…’’

‘‘मां, उस ने मना कर दिया है. उस ने कहा है कि वह पैसे दे देगा, पर डाक्टर के पास नहीं जाएगा. समाज में उस की इज्जत है, कहीं किसी को पता चल गया तो क्या होगा, इस बात से वह डरता है.’’

‘‘वाह री इज्जत… एक कुंआरी लड़की की इज्जत से खेलते हुए इन की इज्जत कहां चली जाती है? मैं क्या करूं, कहां मर जाऊं, कुछ समझ में नहीं आता,’’ मालती बोली.

मालती ने गुस्से और नफरत के बावजूद भी पूजा को परे नहीं किया, उसे दुत्कारा नहीं. बस, गले से लगा लिया और रोने लगी. पूजा भी रोती जा रही थी.

दोनों के दर्द को समझने वाला वहां कोई नहीं था… उन्हें खुद ही हालात से निबटना था और उस के नतीजों को झेलना था.

मन थोड़ा शांत हुआ, तो मालती उठी और कपड़ेलत्ते व दूसरा जरूरी सामान समेट कर फटेपुराने बैग में भरने लगी. बेटी ने उसे हैरानी से देखा. मां ने उस की तरफ देखे बिना कहा, ‘‘तू भी तैयार हो जा और बच्चों को तैयार कर ले. गांव चलना है. यहां तो तेरा कुछ हो नहीं सकता. इस पाप से छुटकारा पाना है. इस के बाद गांव में रह कर ही किसी लड़के से तेरा ब्याह कर देंगे.’’

आत्मग्लानि : आखिर क्यों घुटती जा रही थी मोहनी

मधु ने तीसरी बार बेटी को आवाज दी,  ‘‘मोहनी… आ जा बेटी, नाश्ता ठंडा हो गया. तेरे पापा भी नाश्ता कर चुके हैं.’’

‘‘लगता है अभी सो रही है, सोने दो,’’ कह कर अजय औफिस चले गए.

मधु को मोहनी की बड़ी चिंता हो रही थी. वह जानती थी कि मोहनी सो नहीं रही, सिर्फ कमरा बंद कर के शून्य में ताक रही होगी.

‘क्या हो गया मेरी बेटी को? किस की नजर लग गई हमारे घर को?’ सोचते हुए मधु ने फिर से आवाज लगाई. इस बार दरवाजा खुल गया. वही बिखरे बाल, पथराई आंखें. मधु ने प्यार से उस के बालों में हाथ फेरा और कहा, ‘‘चलो, मुंह धो लो… तुम्हारी पसंद का नाश्ता है.’’

‘‘नहीं, मेरा मन नहीं है,’’ मोहनी ने उदासी से कहा.

‘‘ठीक है. जब मन करे खा लेना. अभी जूस ले लो. कब तक ऐसे गुमसुम रहोगी. हाथमुंह धो कर बाहर आओ लौन में बैठेंगे. तुम्हारे लिए ही पापा ने तबादला करवाया ताकि जगह बदलने से मन बदले.’’

‘‘यह इतना आसान नहीं मम्मी. घाव तो सूख भी जाएंगे पर मन पर लगी चोट का क्या करूं? आप नहीं समझेंगी,’’ फिर मोहनी रोने लगी.

‘‘पता है सबकुछ इतनी जल्दी नहीं बदलेगा, पर कोशिश तो कर ही सकते हैं,’’ मधु ने बाहर जाते हुए कहा.

‘‘कैसे भूल जाऊं सब? लाख कोशिश के बाद भी वह काली रात नहीं भूलती जो अमिट छाप छोड़ गई तन और मन पर भी.’’

मोहनी को उन दरिंदों की शक्ल तक याद नहीं, पता नहीं 2 थे या 3. वह अपनी सहेली के घर से आ रही थी. आगे थोड़े सुनसान रास्ते पर किसी ने जान कर स्कूटी रुकवा दी थी. जब तक वह कुछ समझ पाती 2-3 हाथों ने उसे खींच लिया था. मुंह में कपड़ा ठूंस दिया. कपड़े फटते चले गए… चीख दबती गई, शायद जोरजबरदस्ती से बेहोश हो गई थी. आगे उसे याद भी नहीं. उस की इसी अवस्था में कोई गाड़ी में डाल कर घर के आगे फेंक गया और घंटी बजा कर लापता हो गया था.

मां ने जब दरवाजा खोला तो चीख पड़ीं. जब तक पापा औफिस से आए, मां कपड़े बदल चुकी थीं. पापा तो गुस्से से आगबबूला हो गए. ‘‘कौन थे वे दरिंदे… पहचान पाओगी? अभी पुलिस में जाता हूं.’’

पर मां ने रोक लिया, ‘‘ये हमारी बेटी की इज्जत का सवाल है. लोग क्या कहेंगे. पुलिस आज तक कुछ कर पाई है क्या? बेकार में हमारी बच्ची को परेशान करेंगे. बेतुके सवाल पूछे जाएंगे.’’

‘‘तो क्या बुजदिलों की तरह चुप रहें,’’ ‘‘नहीं मैं यह नहीं कह रही पर 3 महीने बाद इस की शादी है,’’ मां ने कहा.

पापा भी कुछ सोच कर चुप हो गए. बस, जल्दी से तबादला करवा लिया. मधु अब साए की तरह हर समय मोहनी के साथ रहती.

‘‘मोहनी बेटा, जो हुआ भूल जाओ. इस बात का जिक्र किसी से भी मत करना. कोई तुम्हारा दुख कम नहीं करेगा. मोहित से भी नहीं,’’ अब जब भी मोहित फोन करता. मां वहीं रहतीं.

मोहित अकसर पूछता, ‘‘क्या हुआ? आवाज से इतनी सुस्त क्यों लग रही हो?’’ तब मां हाथ से मोबाइल ले लेतीं और कहतीं, ‘‘बेटा, जब से तुम दुबई गए हो, तभी से इस का यह हाल है. अब जल्दी से आओ तो शादी कर दें.’’

‘‘चिंता मत करिए. अगले महीने ही आ रहा हूं. सब सही हो जाएगा.’’

मां को बस एक ही चिंता थी कहीं मैं मोहित को सबकुछ बता न दूं. लेकिन यह तो पूरी जिंदगी का सवाल था. कैसे सहज रह पाएगी वह? उसे तो अपने शरीर से घिन आती है. नफरत सी हो गई है, इस शरीर और शादी के नाम से.

‘‘सुनो, हमारी जो पड़ोसिन है, मिसेज कौशल, वह नाट्य संगीत कला संस्था की अध्यक्ष हैं. उन का एक कार्यक्रम है दिल्ली में. जब उन्हें मालूम हुआ कि तुम भी रंगमंच कलाकार हो तो, तुम्हें भी अपने साथ ले कर जाने की जिद करने लगी. बोल रही थी नया सीखने का मौका मिलेगा.’’

‘‘सच में तुम जाओ. मन हलका होगा. 2 दिन की ही तो बात है,’’ मां तो बस, बोले जा रही थीं. उन के आगे मोहनी की एक नहीं चली.

बाहर निकल कर सुकून तो मिला. काफी लड़कियां थीं साथ में. कुछ बाहर से भी आई थीं. उस के साथ एक विदेशी बाला थी, आशी. वह लंदन से थी. दोनों साथ ठहरे थे, एक ही कमरे में. जल्दी ही मोहनी और वे दोस्त बन गए, पर फिर भी मोहनी अपने दुख के कवच से निकल नहीं पा रही थी. एक रात जब वे होटल के कमरे में आईं तो मोहनी उस से पूछ बैठी, ‘‘आशी, तुम भी तो कभी देर से घर ती होंगी? तुम्हें डर नहीं लगता?’’

‘‘डर? क्यों डरूं मैं? कोई क्या कर लेगा. मार देगा या रेप कर लेगा. कर ले. मैं तो कहती हूं, जस्ट ऐंजौय.’’

‘‘क्या? जस्ट ऐंजौय…’ मोहनी का मुंह खुला का खुला रह गया.

‘‘अरे, कम औन यार. मेरा मतलब है कोई रेप करे तो मैं क्यों जान दूं? मेरी क्या गलती? दूसरे की गलती की सजा मैं क्यों भुगतूं. हम मरने के लिए थोड़ी आए हैं. वैसे भी जो डर गया समझो मर गया.’’

आशी की बात से मोहनी को संबल मिला. उसे लगा आज कितने दिन बाद दुख के बादल छंटे हैं और उसे इस आत्मग्लानि से मुक्ति मिली है. फिर दोनों खिलखिला कर हंस पड़ीं.

रैडी टू ईट से बनाएं मजेदार व्यंजन, खाने वाले करेंगे जम कर तारीफ

आईटी सैक्टर में काम करने वाले समरेश को खाना बनाना नहीं आता, लेकिन उसे अपने होम टाउन से निकल कर मुंबई काम के लिए आना पड़ा। सैलरी अच्छी है, काम मन मुताबिक है, ऐसे में न कहने की कोई गुंजाइश नहीं रही. वह सीधे समान ले कर मुंबई आ गया, यहां उस ने कुछ दिन तक बाहर का बना भोजन खाया, लेकिन इतना औयली और फ्राइड खा कर वह तंग हो गया और अंत में एक दिन मां से पूछ कर दाल चावल बना कर खाया, उसे बहुत अच्छा लगा, लेकिन हर दिन दाल चावल खाना उस के बस की बात नहीं थी.

उसे कुछ अलग और चटपटा खाने का मन हुआ और बाजार जा कर वह रैडी टू ईट मलाई कोफ्ता ले कर आया। निर्देशानुसार बनाने पर उसे वह डिश बहुत अच्छी लगी. आज वह अकसर ऐसे रेडी टू ईट डिशेज ले कर आता है और उसे पका कर थोड़ी हरी धनिया की पत्तियों से गार्निश कर लेता है, जिस से उस का स्वाद और भी अच्छा बन जाता है।

एक दिन तो उस ने अपने 2 दोस्तों को बुला कर भी खाना खिलाया, इस से दोस्त भी खुश नजर आए, क्योंकि रैडी टू ईट रैसिपी का स्वाद आजकल ओरिजिनल घर के पके हुए डिशेज की तरह मिलने लगे हैं। ऐसे में कामकाजी महिलाएं भी इस का प्रयोग कर रही हैं.

प्रचलित कैसे हुआ

रैडी टू ईट फूड यानि पहले से पकाया और पैक किया गया भोजन युद्ध के दौरान सेनाओं के लिए तैयार किया जाता था, क्योंकि युद्ध के दौरान सैनिकों को पैदल ही ज्यादा राशन ले जाना होता था, इसलिए वजन कम करने के लिए डब्बाबंद मांस को हलके संरक्षित मांस से बदल कर ले जाया जाने लगा।

ईजी टू कुक पहले से पका हुआ और पैक किया हुए ऐसे भोजन को किसी तैयारी या पकाने की जरूरत नहीं होती. ज्यादातर इसे कुछ मिनटों के लिए ओवन में रखा जाता है, गरम किया जाता है और खाया जाता है. इन खाद्य पदार्थों को तैयार भोजन भी कहा जाता है। इस में वेज और नौनवेज दोनों प्रकार के व्यंजन पाए जाते हैं.

असल में रैडी टू ईट फूड पहले से पकाया हुआ और पैक किया हुआ भोजन होता है, जिसे खाने से पहले किसी तरह की तैयारी या पकाने की जरूरत नहीं होती, जो आज की तारीख में कामकाजी महिलाएं और पुरुष आराम से प्रयोग कर सकते हैं, क्योंकि उस पर दिए गए निर्देशों के अनुसार इसे पकाने पर इस का स्वाद एकदम ओरिजिनल होता है.

बढ़ी है लोकप्रियता

विकसित और विकासशील देशों में रैडी टू ईट फूड की लोकप्रियता अब काफी बढ़ चुकी है. इस की वजह उभरती अर्थव्यवस्थाओं में श्रमिकों की बढ़ती संख्या और लंबे कार्य घंटों की वजह से लोग रैडी टू ईट फूड खाना पसंद कर रहे हैं. नई तकनीक से बने ये प्रोसेस्ड फूड में पोषक तत्त्व भी बरकरार रहते हैं. जैसे प्रोटीन, विटामिन बी और आयरन, जिसे खरीदते वक्त व्यक्ति जांच कर ले सकता है. ये प्रोसेस्ड फूड को पाश्चुरीकरण, खाना पकाने और सुखाने जैसी विधियों से तैयार किया जाता है. इन विधियों से खाद्य पदार्थों में हानिकारक जीवाणुओं का विकास रुकता है और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी नहीं होता.

बचत समय की

ऐसा देखा गया है कि काम से थक कर आने के बाद पूरी तरह से खाना बनाना किसी भी महिला या पुरुष के लिए संभव नहीं होता, ऐसे में वे या तो बाजार से मंगवा कर कुछ जंक फूड खा लेते हैं या कुछ फूड जो घर में पड़ी हो, उसे खा कर पेट भर लेते हैं। लगातार ऐसे असंतुलित भोजन से व्यक्ति में कई प्रकार के विटामिंस और मिनरल्स की कमी हो सकती है. रैडी टू ईट फूड ऐसे में सब से फायदेमंद साबित होता है, जो चुटकियों में बन जाती है और टेस्ट को भी नहीं बिगाड़ती.

ये फूड केवल वयस्कों के लिए ही नहीं, बच्चे और गर्भवती महिलाओं के लिए भी उपयुक्त हो सकता है. पिछले दिनों से बिहार के कुछ स्थानों पर जहां कुपोषण की मात्रा अधिक होने की वजह से वहां ऐसे रैडी टू ईट में प्री मिक्स लड्डू, नमकीन दलिया, अंकुरित अनाज बांटे गए ताकि उन्हें प्रोटीन, विटामिंस और कैलोरी मिले, जिस से वे स्वस्थ रह सकें.

रैडी टू ईट भोजन खरीदते समय रखें ध्यान

पैकेट पर लिखे न्यूट्रिशनल फैक्ट्स और इंग्रीडिऐंट्स को चैक करें. ट्रांस फैट्स या ज्यादा नमक या सोडियम न हो, इसे देख लें. शुगर और हाई फ्रक्टोज कौर्न सीरप जैसे आर्टिफिशियल स्वीटनर कम हों, इस का ध्यान रखें.

लो फैट फूड में फैट की मात्रा 3 ग्राम से अधिक न हो. अगर किसी प्रोडक्ट पर सोडियमफ्री लिखा है, तो उस में सोडियम की मात्रा 5 ग्राम से ज्यादा न हो. पैक्ड ग्रेन प्रोडक्ट्स में होल ग्रेन या होल व्हीट लिखा हो. किसी भी फूड आइटम का सर्विंग साइज क्या है और उससे कितनी कैलोरी मिल रही है, इस की जानकारी रखें.

प्रोटीन और फाइबर की मात्रा ज्यादा हो

फाइबर की कमी होने पर ताजा सब्जियां, उबली हुई सब्जियां, फलियां या साबुत अनाज मिलाएं.
इस प्रकार देखा जाए तो कामकाजी महिलाओं और पुरुषों के लिए रैडी टू ईट भोजन एक गेम चैंजर बन गया है.

जैसेजैसे अधिक महिलाएं कार्यरत हो रही हैं, साथ ही कई भूमिकाएं और जिम्मेदारियां निभाती हैं। रैडी टू ईट जैसे भोजन या व्यंजन समय बचत में प्रमुखता हासिल की है. इन में अगर आप का बेसिक खाना बनाने की आइडियाज है, तो 2 व्यंजनों को मिला कर तीसरा व्यंजन भी बनाया जा सकता है। मसलन, रैडी टू ईट गुलाबजामुन को अगर रैडी टू ईट खीर में मिलाया जाए, तो तीसरा टैस्टी डिश बन सकता है, जिसे किसी पार्टी या त्योहार पर परोसा जा सकता है.

कामकाजी महिलाओं को अकसर समय की कमी का सामना करना पड़ता है, ऐसे में रैडी टू ईट भोजन एक व्यावहारिक समाधान प्रदान करता है, जो लंबे दिनों के बाद श्रमसाध्य भोजन तैयार करने से बचाता है और महिलाएं अपना कीमती समय परिवार के साथ बिता सकती हैं.

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