एक ही तरह का नाश्ता खाकर हो चुकी हैं बोर, तो ब्रेकफास्‍ट में बनाएं ब्रेड डोसा

क्‍या आप वही रोज रोज एक ही प्रकार का नाश्‍ता बनाते और खिलाते हुए बोर हो चुकी हैं? तो इंतजार मत कीजिये और झट से बनाना सीखिये ब्रेड डोसा. जी हां, चौंकिये नहीं, ब्रेड का भी डेासा बनता है.

सुबह के समय जब आपको कुछ समझ ना आए और फ्रिज में ब्रेड पड़ी हो तो, आप आराम से ब्रेड डोसा बना सकती हैं. इसमें आपको बिल्‍कुल भी समय नहीं लगेगा.

इसे बनाने के लिये आपको सफेद ब्रेड की आवश्‍यकता होगी. अगर आप इसे और भी पौष्टिक बनाना चाहती हैं तो, इसे मल्‍टीग्रेन ब्रेड या वीट ब्रेड से बनाएं.

कितने सदस्‍यों के लिये- 3

तैयारी में समय- 30 मिनट

पकाने में समय- 20 मिनट

सामग्री

सफेद ब्रेड- 10 पीस

रवा – 1/2 कप

दही- 1/2 कप

चावल का आटा- 1/2 चम्‍मच

नमक- स्‍वादअनुसार

छौंकने के लिये सामग्री- तेल- 2 चम्‍मच

जीरा- 1/2 चम्‍मच

राई- 1/2 चम्‍मच

उरद दाल- चम्‍मच

कडी पत्‍ती- 2-3

हरी मिर्च- 2

प्‍याज- 1

अदरक- 1/2 इंच पीस

बनाने की विधि

– ब्रेड की स्‍लाइस को चारों ओर से काट दें. फिर सभी ब्रेड के पीस को पानी में कम से कम 2 मिनट के लिये भिगो कर निकाल कर प्‍लेट में रख दें.

– अब एक बरतन में सूजी, नमक, चावल का पावडर और पानी मिला कर पेस्‍ट बनाएं.

– अब ब्रेड के पीस में से पानी निचोड़ें और घोल में मिक्‍स करें.

– फिर इसमें दही मिलाएं और अच्‍छी तरह से फेंटे.

– अब इस एक पैन में दो बूंद तेल गरम करें, उसमें जीरा, राई, उरद दाल, कडी पत्‍ती, अदरक, प्‍याज और हरी मिर्च काट कर सौते करें.

– जब प्‍याज गोल्‍डन ब्राउन हो जाए तब इसे पैन से हटा दें.

– अब इस मिश्रण को ब्रेड़ वाले डोसे के घोल में मिक्‍स करें.

– अब तवा गरम करें और उसे पोछ लें.

– उस पर एक कल्‍छुल डोसे का घोल फैलाएं.

– डोसे को पतला बनाएं और उसके बीच में दो फिर कर सक‍ती हैं.

मोहमोह के धागे: मानसिक यंत्रणा झेल रही रेवती की कहानी

वीर प्रताप के घर के सामने रिश्तेदार, पड़ोसियों और दूरदराज के सभी जानने वालों की भीड़ इकट्ठी हो गई थी. दुखद सन्नाटा पसरा था. लोग सिर  झुकाए खड़े थे. बीचबीच में महिलाओं के दिल दहलाने वाली रोने की आवाजें बाहर तक आ जाती थीं. दरअसल, कल ही वीर प्रताप का बड़ा बेटा रणवीर, जम्मू के पास कुछ आतंकवादियों के साथ होने वाली मुठभेड़ में शहीद हो गया था. खबर मिलते ही लोग जमा होने लगे.

जब रणवीर का पार्थिव शरीर ले कर घर पहुंचे तो हाहाकार मच गया. एक ओर शहीद रणवीर की जयजयकार से आसपास का सारा इलाका गुंजित हो रहा था, दूसरी ओर उस के पार्थिव शरीर को देखते ही घर में रुदन, चीखपुकार का दृश्य दिल दहला रहा था. शाम होतेहोते पूरे राजकीय सम्मान के साथ रणवीर का अंतिम संस्कार हो गया.

घर में गहरी उदासी छाई थी. रणवीर की मां को अभी तक यकीन नहीं हो रहा था कि उस का लाड़ला दुनिया से विदा हो चुका है. वे रो नहीं रही थीं बल्कि विस्फारित आंखों से देख रही थीं. कुछ महिलाएं उन्हें रुलाने की असफल कोशिश कर रही थीं.

सब से दयनीय हालत शहीद रणवीर की पत्नी रेवती की थी. रेवती सिर्फ 3 वर्षों पहले इस घर में सजीले रणवीर की बहू बन कर आई थी. राजपूती कदकाठी, चेहरे पर नूर, आंखों में अथाह मस्तीभरी थी. इन्हीं गुणों को देख रणवीर ने पहली बार देखने पर ही विवाह की हामी भर दी थी. दानदहेज न मिलने की आशंका पहले से ही थी. रेवती पितृविहीन थी. घर में मां और छोटा भाई था. रेवती के बहू बन कर आते ही घर में उजाला सा हो गया. रणवीर 2 महीने की छुट्टी पर आता. घर में रौनक हो जाती थी.

दोनों भाई मिल कर रेवती से हंसीमजाक करते थे. रेवती हाजिरजवाब थी. उस के खुशमिजाज स्वभाव से सारा घर गुलजार रहता. वही रेवती आज पति की मृत्यु के गहरे आघात से बेहोश पड़ी थी. विवाह के 2 महीने बाद ही रणवीर चला गया था. रेवती ने ससुराल में बड़ी बहू की जिम्मेदारी को बड़ी कुशलता से संभाल लिया था. रणवीर साल में एक या दो बार आता. परिवार को साथ नहीं रख सकता था. इसलिए रेवती ससुराल में ही रही.

जिस रेवती के रूपशृंगार से सारा घर दमकता था, उसी शृंगार को उजाड़ने के लिए रूढि़वाद समाज डट कर खड़ा हो गया. रिश्तेनाते, पड़ोस की महिलाएं बेहोश रेवती को पानी डालडाल कर होश में ला रही थीं. उन में से कुछ बड़ी बेदर्दी से उस की चूडि़यां तोड़ने, मांग का सिंदूर, बिंदी मिटाने, मंगलसूत्र, पायल, और बिछुए जैसी सुहाग की निशानियां उतारने के लिए बड़ी तत्परता से जुटी थीं. रेवती के ऊपर अमानवीय अत्याचार इस पढ़ेलिखे समाज के सामने होते रहे. परंतु कहीं से कोई विरोध का स्वर नहीं उठा.

देखतेदेखते चौथे की बैठक भी हो गई. थोड़ी सी जयजयकार करवा कर बेचारा रणवीर पत्नी को निसंतान छोड़ कर दुनिया से चला गया. पीछे अनेक ज्वलंत समस्याएं रह गईं जो अभी पत्नी और परिवार वालों को सुल झानी शेष थीं.

हर साल देश में आतंकवाद के नाम पर, नक्सलवादियों के हमलों में निर्दोष जवान शहीद होते हैं. चंद दिनों की जयजयकार कर समाज उन्हें भुला देता है और उन के परिवारों को  असहाय हाल में छोड़ दिया जाता है. उन को किनकिन संकटों से गुजरना पड़ता है, यह तो उन की विधवाएं या परिवार ही जानते हैं. परिवार वाले क्याक्या कुर्बानियां देते हैं, यह कोई नहीं जानता.

रेवती के इस उजड़े रूप को देखना सभी के लिए मुश्किल था. सहसा देख कर विश्वास नहीं होता कि यह वही रेवती है जो राजस्थान की परंपरागत पोशाक लहंगाचुनर, जो चटकीले रंगों के होते हैं, लाख की चूडि़यां, माथे पर बोरला, पैरों में पायल पहने छमछम करती घर में घूमा करती थी.

अभी 2 महीने पहले ही तो रणवीर के छोटे भाई राजवीर की शादी में कितना नाची थी. सारे रिश्तेदार देखते ही रह गए. कभी घूमरघूमर कर पद्मावती की तरह नाचती, तो कभी ‘मोरनी बागा में बोले आधी रात में…’ गाने की धुन पर नाचती. रणवीर को भी पकड़ कर साथ नाचने के लिए बाध्य करती. रोशनी से नहाई कोठी आज रणवीर की शहादत के बाद अंधेरे में डूबी सी उदास खड़ी थी.

कुछ दिनों बाद दुनिया पहले की तरह चलने लगी. राजवीर का औफिस उसी शहर में था. उस ने औफिस जाना शुरू कर दिया. देवरानी भी एक स्कूल में लग गई. रेवती को कुछ समय के लिए मायके भेज दिया गया. मायके में मां और भाईभाभी ही थे. मायके में जा कर रेवती का मन और व्यथित हो गया. रणवीर के साथ, या राखी, भाईदूज पर जब वह आती तो मां, भाईभाभी मानो बिछबिछ जाते. पूरे सजधज में जब वह आती तो महल्ले के लोग भी उस को देख रश्क करते. मां बचाई जमापूंजी से अच्छी से अच्छी खातिर करने की कोशिश करतीं. रेवती सब के लिए उपहार और मिठाई ले कर जाती. इस बार हालात बदल चुके थे.

रेवती का ऐसा उजड़ा रूप, मुख पर गहरी उदासी देखी नहीं जा रही थी. उस के मायके में पहुंचते ही एक बार फिर रुदनविलाप के स्वर गूंजे. बहुत नजदीकी पड़ोस वाले भी आ कर जमा हो गए. कुछ महिलाएं आत्मीयता और सहानुभूति दिखाने के लिए स्वर में स्वर मिला रोेने लगीं. कुछ पड़ोसिनें तो बजाय रेवती को दिलासा देने के, उस के बुरे समय के किस्से कहने लगीं. कुछ देर बाद मातमपुरसी को आई महिलाओं को हाथ जोड़ते हुए विदा किया गया. रेवती एक मूर्ति की तरह अंदर सिर  झुका कर बैठ गई.

मायके में कुछ दिन निकल गए. पर अब रेवती को अपने प्रति सब का बदला हुआ व्यवहार महसूस होने लगा. मां की डोर भी भाईभाभी के हाथ में थी. विधवा बेटी के लिए कुछ नहीं कर पातीं. उधर, भाभी का फुसफुसाते हुए उस के बारे में बातें करना वह कितनी बार सुन चुकी थी. जब भाभी तैयार हो कर घूमने या किसी आयोजन में जातीं, तो रेवती से छिप कर निकलतीं. मां भी इशारोंइशारों में रेवती को संकेत दे चुकी थीं कि शुभ अवसरों पर कमरे के अंदर ही बैठना.

रेवती का मन अब मायके से उचाट हो गया था. जाए तो कहां जाए? जब तक ससुराल से कोई बुलाए नहीं, वहां भी तो नहीं जा सकती. एक दिन अचानक देवर लेने आ गया. उसे कुछ तसल्ली हो गई. दरअसल, रणवीर के औफिस में कुछ जरूरी कागजात पर साइन करने के लिए रेवती को बुलाया गया था. रेवती उसी दिन ससुराल के लिए लौट गई. मां या भाईभाभी किसी ने भी उसे दोबारा आने को नहीं कहा. रेवती का दिल अंदर ही अंदर टुकड़ेटुकड़े हो गया. इसी मायके के लिए वह कैसी उतावली रहा करती थी.

ससुराल में भी जा कर मन को शांति न मिली. 3-4 दिन ससुर के साथ रणवीर के औफिस जाने में बीत गए. जो पैसा मिला, उस की रेवती के नाम की एफडी बनवा दी गई. पहले सास और बहू मिल कर घर के काम पूरे कर लिया करती थीं. शाम को देवरानी भी साथ देती थी. अब सास एकदम कमजोर हो गई थीं. बातचीत भी कम ही करतीं. ससुर सारा दिन अखबार या टीवी देख समय बिताते. देवरदेवरानी सुबह से गए, शाम को घर आते.

देवरानी रसोई में आ कर रेवती का हाथ बंटाती. वह अपनी स्कूल की दिनचर्या, सहकर्मियों के साथ की गई बातचीत, बच्चों की मासूम शरारतों के बारे में बताती रहती. रेवती के पास तो कुछ भी नहीं होता बताने को. वह मन मसोस कर काम में लगी रहती. सोचती, एक बच्चा ही होता तो जिंदगी कट जाती. अब सास तो शारीरिक कमजोरी की वजह से कहीं आतीजाती न थीं. घर में ही सोच में पड़ी रहतीं. किसी विशेष दिन या त्योहार पर रेवती ही परिवार की ओर से मंदिर में चढ़ावा, दान आदि देने जाने लगी.

एक दिन रेवती ने सुना कि मंदिर में एक बहुत पहुंचे हुए साधु महाराज

10 दिन के लिए आने वाले हैं. वह कई सालों में से किसी घने अरण्य में तपस्या में लीन थे. उन्हें सिद्धि प्राप्त हो गई है. अब वे मानव कल्याण हेतु विभिन्न मंदिरों में जा कर प्रवचन देंगे और भक्तों की समस्याओं का निदान करेंगे. यह सुन रेवती को मानो राह मिल गई. उस ने सोचा, साधुमहाराज से अपने कष्टों के निवारण के लिए उपाय पूछेगी.

अगले दिन रेवती ने जल्दी ही घर के काम निबटा लिए. वह मंदिर में जा कर साधुमहाराज के दर्शन के लिए खड़ी हो गई. कुछ ही देर में एक फूलों से सजी जीप में अपने अनुयायियों के साथ एक युवा साधु उतरे. उन के उतरते ही वहां खड़ी भीड़ ने फूलों की वर्षा के साथ गगनभेदी जयजयकार से पूरा इलाका गुंजित कर दिया. मंदिर के अन्य सेवकजनों ने उन्हें बड़े सम्मान से अंदर ले जा कर एक ऊंची गद्दी पर विराजमान कर दिया.

अब रेवती का उत्साह बढ़ गया. अगले दिन उतावली हो समय से पहले ही मंदिर में जा बैठी. साधुमहाराज पुजारी के साथ जब प्रवचन हौल में पधारे तो उन की नजर गद्दी के ठीक सामने अकेली बैठी रेवती पर पड़ी.श्वेत वस्त्र, सूनी मांग, सूनी कलाइयां देख उन्हें सम झते देर न लगी कि कोई विधवा है. वे धीमे स्वर में पुजारी से रेवती का सारा परिचय पता कर आंखें बंद कर गद्दी पर विराजमान हो गए. देखतेदेखते हौल खचाखच भर गया.

प्रवचन के बीच आज उन्होंने एक ऐसा भजन गाने के लिए चुना जब कृष्ण गोपियों से दूर चले जाते हैं. गोपियां उन के विरह में रोती हुई गाती हैं- ‘आन मिलो आन मिलो श्याम सांवरे, वन में अकेली राधा खोईखाई फिरे…’ लोग स्वर से स्वर मिलाने लगे. रेवती की आंखों से अविरल आंसू बह रहे थे. अंत में प्रसाद वितरण के बाद लोग चले गए तो रेवती भी उठ खड़ी हुई. अचानक उस ने देखा साधुमहाराज उसे रुकने का संकेत कर रहे हैं. वह असमंजम में इधरउधर देख खड़ी हो गई.

साधुमहाराज ने उसे अपनी गद्दी के पास बुला कर बैठने को कहा. डरती, सकुचाती रेवती बैठ गई तो उन्होंने रेवती के बारे में जो पुजारी से जानकारी हासिल की थी, सब अपने ज्योतिष ज्ञान के आधार पर रेवती को कह डाली. भोली रेवती हैरान हो उठी. उन के कदमों पर लोट गई, बोली, ‘‘यह सब सत्य है.’’

साधु महाराजजी ने कहा, ‘‘जब मैं पूजा के समय गहरे ध्यान में था तो एक फौजी मु झे ध्यानावस्था में दिखाई देता है. मानो कुछ कहना चाहता हो. अब सम झ में आया वह तुम्हारा शहीद पति ही है जो मेरे ध्यान ज्ञान के जरिए कोई संदेश देना चाहता है. कल जब मैं ध्यान में बैठूंगा तो उस से पूछूंगा.’’

भोलीभाली रेवती उस के शब्दजाल में फंसती गई. रेवती ने साधु के पैर पकड़ लिए, बोली, ‘‘महाराज, मेरा कल्याण करो.’’

साधु महाराज ने उसे हिदायत दी, ‘‘देवी, ध्यान रखना यह बात हमेशा गुप्त रखना वरना मेरी ज्ञानध्यानशक्ति कमजोर पड़ जाएगी. मैं फिर तुम्हारे लिए कुछ न कर पाऊंगा. जाओ, अब घर जाओ.’’

प्रसाद ले कर रेवती घर पहुंची. उस ने सासससुर को बड़े आदर से खाना परोसा. रणवीर की शहादत के बाद वह अवसाद की ओर चली गई थी. अब खुद ही उस से निकलने लगी है. इस का कारण मंदिर जाना, पूजापाठ में मन लगाना ही सम झा गया. दिन बीतते जा रहे थे. एक दिन प्रवचन के बाद साधुमहाराज ने एकांत में रेवती को बुलाया और कहा, ‘‘मु झे साधना के दौरान तुम्हारे पति ने दर्शन दिए. उस ने कहा, ‘मैं रेवती को इस तरह अकेला असहाय अवस्था में छोड़ आया था. अब मैं फिर उसी घर में जन्म ले कर रेवती का दुख दूर करूंगा.’’’

परममूर्खा और भावुक रेवती पांखडी साधुमहाराज की बातें सुन कर आंसुओं में डूब गई.

साधुमहाराज ने आगे कहा, ‘‘पर उसे दोबारा उसी घर में जन्म लेने से बुरी शक्तियां रोक रही हैं. उस के लिए मु झे बड़ी पूजा, यज्ञ, साधना करनी पड़ेगी. इस सब के लिए बहुत धन की जरूरत है जो तुम जानती हो हम साधुयोगियों के पास नहीं होता. अगर तुम कुछ मदद करो तो तुम्हारे पति का पुनर्जन्म लेना संभव हो सकता है.’’

यह सुन रेवती गहरी सोच में डूब गई. रेवती को इस तरह चुप देख साधु बोले, ‘‘नहींनहीं, इतना सोचने की जरूरत नहीं है. अगर नहीं है, तो रहने दो. मैं तो तुम्हारे पति की भटकती आत्मा की शांति के बारे में सोच रहा था.’’

रेवती को पता था 4-5 हजार रुपए उस की अलमारी में रखे हैं या फिर खानदानी गहने जो देवर की शादी के समय निकाले गए थे. कुछ व्यस्तता और बाद में रणवीर की मृत्यु के बाद किसी को बैंक में रखवाने की सुधबुध न रही. रेवती ने सोचा पति ही नहीं, तो गहने किस काम के. यह सोच कर बोली, ‘‘महाराज, रुपए तो नहीं, पर कुछ गहने हैं? वह ला सकती हूं क्या?’’

मक्कार संन्यासी बोला, ‘‘अरे, जेवर से तो बहुत दिक्कत हो जाएगी, पर क्या करूं बेटी, तुम्हें असहाय भी नहीं छोड़ना चाहता. चलो, कल सवेरे 8 बजे मैं यहां से प्रस्थान करूंगा, तुम जो देना चाहती हो, चुपचाप यहीं दे जाना.’’

रेवती पूरी रात करवट बदलती रही. उसे सवेरे का इंतजार था. उस ने रात को ही एक गुत्थीनुमा थैली में सारे गहने और 4 हजार रुपए रख लिए थे. वह पाखंडी साधुमहाराज से इतनी प्रभावित थी कि इस सब का परिणाम क्या होगा, एक बार भी नहीं सोचा. सवेरे उठ जल्दी से काम पूरा कर साधु को विदा देने मंदिर पहुंच गई. साधुमहाराज जीप में बैठ चुके थे. रेवती घबरा गई. वह बिना सोचेसम झे भीड़ को चीरती हुई जीप के पास पहुंच गई और पैरों में पोटली रख, पैर छू बाहर निकल आई.

रेवती भी भीड़ में धक्के खाती अंदर जा श्रद्धालुओं के साथ साधुमहाराज के सामने नीचे बिछी दरी पर जा बैठी. एक लोटा ताजा जूस पी कर साधुमहाराज ने अपना प्रवचन देना आरंभ कर दिया. बीचबीच में वे भजन भी गाते जिस में जनता उन का अनुकरण करती. रेवती तो साधुमहाराज के बिलकुल सामने बैठी थी. वह तो ऐसी मंत्रमुग्ध हुई कि आंखों से अविरल आंसू बह निकले. प्रसाद ले अभिभूत सी घर पहुंची.

बहुत दिनों बाद आज न जाने कैसे वह सासससुर से बोली, ‘‘आप दोनों का खाना लगा दूं?’’ दोनों ने हैरानी से हामी भर दी. रणवीर की मृत्यु के बाद रेवती एकदम चुप हो गई थी. घर में किसी से बात न करती. बेमन से खाना बना अपने कमरे में चली जाती. देवरदेवरानी अपने काम पर चले जाते. दोपहर को ससुर कांपते हाथों से खाना गरम कर पत्नी को देते और खुद भी खा लेते. रेवती बहुत कम खाना खाती. कभी कोई फल, कभी दही या छाछ पी लेती. उस की भूख मानो खत्म सी हो गई थी. उस ने जल्दी से खाना गरम किया और दोनों की थालियां लगा लाई. यही नहीं, पास बैठ कर मंदिर में सुने प्रवचन के बारे में भी बताने लगी.

सासससुर दोनों ने सांत्वना की सांस ली, चलो, अच्छा हुआ बहू का किसी ओर ध्यान तो लगा. वे इतने नए एवं उच्च विचारों के नहीं थे कि बहू की दूसरी शादी के बारे में सोचते अथवा आगे पढ़ाई करवाने की सोचते. राजस्थान के परंपरागत रूढि़वादी परिवार के थे जो इतना जानते थे कि पति की मृत्यु के साथ उस की पत्नी का जीवन भी खत्म हो गया. पति की आत्मा की शांति हेतु आएदिन व्रतअनुष्ठान चलते रहे. बहू का पूजापाठ में रु झान देख कर दोनों ने उस की प्रशंसा करते हुए रोज समय पर मंदिर जाने की सलाह दी.

कुछ दिनों बाद ही एक दिन देवरानी को चक्कर और उलटियां आ रही थीं. डाक्टर ने मुआयना कर के 2 माह के गर्भ की सूचना दी. घर में थोड़ी सी खुशी की लहर घूम गई. रेवती की खुशी का ठिकाना न रहा. वह सम झी, साधु की साधना का फल है. वह दिनरात देवरानी की सेवा में लग गई. सभी संतुष्ट थे.

9वें महीने में रेवती की देवरानी नीता ने एक सुंदर बेटे को जन्म दिया. घर में छाई मुर्दनी धीरेधीरे तिरोहित होती गई. जहां तक रेवती का सवाल, उस में अलग सा परिवर्तन आ गया था. अब देवरानी से उस का ध्यान हट कर सारा ध्यान बच्चे की ओर लग गया था. नीता को भी देखभाल की जरूरत थी. रेवती सारा दिन बच्चे को गोद में लिए बैठी रहती. कभी मालिश करती, कभी स्नान करवा के डेटौल में उस के कपड़े धो कर डालती. बच्चा दूध के लिए रोता तो जा कर नीता को देती. नीता को अब खलने लगा था.

रीता ने 6 महीने की मैटरनिटी लीव ले रखी थी. अब वह चलनेफिरने लगी थी. अपने बच्चे का काम करना चाहती थी. पर रेवती उसे मौका नहीं देती. किचन का काम अधूरा पड़ा रहता. चायनाश्ता, लंच का कुछ समय न रहा था. सब की प्रश्नवाचक निगाहें रेवती पर उठने लगीं. कुछ समय तो परिवार वाले रेवती में आए इस बदलाव का कारण जानने की कोशिश करते रहे लेकिन किसी नतीजे पर न पहुंच पा रहे थे. मान लिया नवजात बच्चे के काम कर उसे संतुष्टि मिलती थी पर अब वह अपनी देवरानी नीता के मां बनने की खुशियों में बाधा बन रही थी.

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एक दिन तो हद ही हो गई. रेवतीकिचन का सारा काम अधूरा छोड़, बच्चे को ले मंदिर चली गई. बच्चा भूख के मारे रोने लगा. पर वह पूरे मंदिर परिसर की परिक्रमा करती रही. नीता नहा कर निकली, तो बच्चा नदारद. वह घबरा गई. सभी लोग रेवती और बच्चे को खोजने लगे. करीब आधे घंटे बाद रेवती भूख से बिलबिलाते, रोते बच्चे को ले कर जब घर आई तो नीता, जो सदैव जेठानी की इज्जत करती थी, उन के ऊपर हुए वैधव्य के वज्रपात के कारण ऊंची आवाज में बात न करती थी, गुस्से में फट पड़ी. उस ने रेवती की गोद से बच्चा छीनते हुए खरीखोटी सुना डाली.

रेवती को यह उम्मीद न थी. वह स्तब्ध रह गई. नीता ने चिल्ला कर कहा कि आज के बाद आप मेरे बच्चे को हाथ नहीं लगाएं. यह सुन रेवती के दिमाग में पाखंडी साधु की बात याद आई. जब तुम्हारा पति पुनर्जन्म लेगा तो बहुत लोग उसे तुम से दूर करने का प्रयास करेंगे. तुम हिम्मत न हारना. अब रेवती का दिमाग गुस्से से भर गया. वह चिल्लाने लगी, ‘‘किस का बच्चा, कौन सा बच्चा? यह बच्चा मेरे पति रणवीर हैं जिन्होंने इस घर में पुनर्जन्म लिया है. यह मेरा बच्चा है, मेरा रहेगा.’’ यह कह वह बच्चे को छीनने लगी. घरवालों ने बड़ी कठिनाई से दोनों को अलगअलग किया.

साधु महाराज ने उसे हिदायत दी, ‘‘देवी, ध्यान रखना यह बात हमेशा गुप्त रखना वरना मेरी ज्ञानध्यानशक्ति कमजोर पड़ जाएगी. मैं फिर तुम्हारे लिए कुछ न कर पाऊंगा. जाओ, अब घर जाओ.’’ सारे परिवार में खलबली मच गई. सब नीता को सम झाने लगे. रेवती की ओर से माफी मांगने लगे. नीता सम झदार लड़की थी. वह ससुराल वालों की आज्ञा की अवहेलना नहीं करना चाहती थी. सो, चुप्पी लगा गई.

रेवती, नीता की इस घोषणा से सतर्क हो गई. उस के दिमाग में साधु ने जो बातें भरी थीं वे घर बना चुकी थीं. रातरातभर वह गहरी सोच में डूबी रहती. उस के दिमाग में एक अजीब सी हलचल शुरू हो गई. वह दिमागी रुग्णता का शिकार हो गई.

एक दिन सासससुर किसी आयोजन में गए हुए थे. राजवीर औफिस गया था. नीता बच्चे को पालने में सुला कर नहाने चली गई. रेवती ने मौका पा एक बैग में कुछ कपड़े, दूध की बोतल रखी. कुछ रुपए उस के पास थे. वह बच्चे को एक चादर में लपेट कर दबेपांव घर से निकल गई. उसे स्वयं पता नहीं था कि कहां जाना है. सामने जाते हुए औटो को रोक स्टेशन चलने को कह दिया. स्टेशन आने पर हरिद्वार का टिकट ले लोगों से पूछतीपूछती प्लेटफौर्म नंबर-2 पर आ गई. उस ने साधुमहाराज के मुंह से हरिद्वार, ऋषिकेश का नाम बारबार सुना था.

उधर, नीता ने जब घर में बच्चे और रेवती को न देखा तो उसे रेवती की सारी योजना सम झ आ गई. उस ने बिना समय गंवाए पुलिस स्टेशन जा कर बच्चे और रेवती की फोटो दे कर सारी बात बताई. पुलिस सक्रिय हो गई. उस ने फिर पति, सास, ससुर रेवती के मायके में सब को सूचित किया. देखतेदेखते पुलिस ने बस अड्डे, टैक्सी स्टैंड, रेलवे स्टेशन खबर व फोटो भिजवा दीं. नीता की सू झबू झ और पुलिस की दौड़भाग से रेवती को हरिद्वार जाने वाली गाड़ी के प्लेटफौर्म से पकड़ लिया गया.

रेवती ने पुलिस को देख हंगामा कर दिया. वह किसी तरह भी बच्चा सौंपने को तैयार नहीं थी. उस ने एक ही रट लगा रखी थी कि यह मेरा रणवीर है. साधुमहाराज की तपस्या के बल पर मु झे वापस मिला है. जबरन लेडी कांस्टेबल ने बच्चे को उस की पकड़ से छुटकारा दिलवाया. रेवती अनर्गल प्रलाप करते हुए बेहोश हो गई.

लगभग एक महीने तक रेवती का मानसिक रोगों के अस्पताल में इलाज हुआ. डाक्टरों की स्नेहपूर्ण काउंसलिंग से उसे वास्तविकता से रूबरू करवाया गया. धीरेधीरे उसे अपनी नामस झी का भान हुआ. ससुराल वालों को जब रेवती द्वारा गहने देने की बात पता चली तो सब स्तब्ध रह गए. रेवती की नाजुक हालत को देख वे सब खून का घूंट पी कर रह गए. राजवीर ने मंदिर जा कर उस पाखंडी साधु की काली करतूत से सब को अवगत कराया. किसी के मोबाइल में साधु की प्रवचन करते समय की फोटो थी. उस ने प्रिंटआउट निकलवा पुलिस स्टेशन में दे कर गहने लूटने की घटना बना कर रिपोर्ट लिखवाई, पुलिस एक बार फिर अपने काम में जुट गई.

अब रेवती बहुत शर्मिंदा थी. वह नए सैशन में ऐडमिशन ले कर आगे पढ़ना चाहती थी. इस के लिए उस ने डरतेडरते सासससुर से कहा. वे दोनों पहले ही उस की नामस झी से नाखुश थे. पहले तो उन्होंने गहने गंवाने के कारण रेवती को खरीखोटी सुनाई, उस के बाद कालेज में ऐडमिशन की मांग को सिरे से खारिज कर दिया. रेवती एक बार फिर निराशा के अंधकार में डूब गई. उस दिन छुट्टी होने के कारण राजवीर घर पर ही था.

रेवती का पढ़ाई का प्रस्ताव रखना, मातापिता द्वारा खारिज करना ये सब बातें राजवीर सुन रहा था. वह नए जमाने के क्रांतिकारी विचारों का युवक था. रणवीर केवल उस का भाई ही नहीं, वरन पक्का दोस्त भी था. उसे यह सब नागवार गुजरा. वह रेवती भाभी की पीड़ा और अकेलेपन से वाकिफ था. वह भाभी के भविष्य को सुधारने के लिए कुछ करना चाहता था. अचानक ऐसा संयोग बना कि उसे रेवती को इस घोर निराशा से बाहर निकालने का मौका हाथ लगा.

राजवीर का एक दोस्त समीर था, जिस की पत्नी अचानक प्रसव के समय एक  प्यारी सी बच्ची को जन्म दे कर चल बसी. पति पर तो दुख और मुसीबत का मानो पहाड़ ही टूट गया. घर में कोई न था जो बच्ची को संभाल लेता. बच्ची को जब तक कोई संभालने वाला न मिल जाता, नर्स उसे संभाल रही थी. उस ने दोस्त से अपनी रेवती भाभी के लिए पूछा. दोस्त समीर ने तुरंत हामी भर दी. वह राजवीर का शुक्रिया करते नहीं थक रहा था पर इस में भी राजवीर को एक आशंका थी कि रेवती को उस बिना मां की बच्ची को संभालने की अनुमति उस के रूढि़वादी मातापिता की ओर से मिलेगी या नहीं.

दूसरी समस्या यह थी कि रेवती और उस के परिवार को बच्ची को संभालने के लिए समीर के घर जा कर रहना मान्य होगा या नहीं. पहली समस्या का हल तो निकल गया. रेवती को बच्ची संभालने की अनुमति तो मिल गई पर रेवती और परिवार को समीर के घर जा कर रहना मान्य नहीं था. मातापिता की त्योरियों में भी बल पड़ गए. राजवीर को भी खरीखोटी सुननी पड़ी.

खैर, रेवती बच्ची को ले कर आ तो गई पर घर के कामों के चलते बच्ची को संभाल नहीं पा रही थी. घर में हर समय 2-2 बच्चों के काम, उन के रोने के शोरगुल के कारण कामकाज में लापरवाही होते देख राजवीर ने एक घरेलू हैल्पर रख ली. रेवती ने देखा कि सभी का ध्यान राजवीर के बेटे की ओर था. बच्ची की उपेक्षा हो रही थी. बच्ची रोती रहती, रेवती काम में लगी रहती. हैल्पर भी दूसरों के काम करती रहती. उस की बात पर ध्यान नहीं देती थी. रेवती को बच्ची से बहुत लगाव हो गया था. अब उस ने हिम्मत कर के बच्ची की केयरटेकर के रूप में समीर के घर रहने का फैसला कर लिया.

समीर एक शरीफ और सम झदार लड़का था. घरभर के एतराज के बावजूद राजवीर, रेवती को समीर के घर ले गया. समीर सवेरे ही औफिस निकल जाता, शाम को आ कर थोड़ी देर अपनी बच्ची से खेलता. जब वह सो जाती तो रेवती उसे अपने कमरे में ले जाती. रेवती के कुशल हाथों ने समीर के अस्तव्यस्त घर को संभाल लिया. बच्ची को पिता का भी भरपूर प्यार मिलने लगा. रेवती संतुष्ट थी. वह दिल की गहराइयों से बच्ची को प्यार करने लगी थी.

देखतेदेखते बच्ची 5 साल की हो गई. बच्ची के 5वें जन्मदिन पर राजवीर ने समीर से मिल कर एक योजना बनाई. समीर रेवती के लिए गुलाबी साड़ी और चूडि़यां लाया और बोला, ‘‘रेवतीजी, इन 5 सालों में आप ने मेरे घर और बच्ची के लिए इतना कुछ किया जिस का मैं उपकार जीवनभर नहीं उतार सकता. क्षमा चाहता हूं. मेरे घर और बच्ची को आप ने जैसे संभाला, वह कोई अपने घर का सदस्य ही संभाल सकता है. मैं आप को केयरटेकर न मान कर बहुत ऊंचा दर्जा देता हूं. आप भी आज इस समाज की वर्जनाओं को तोड़ कर चाहें तो इस साड़ी और चूडि़यों को पहन कर मेरे मन की बात मान सकती हैं.

‘‘अब मैं आप को अपने जीवनसाथी के रूप में देख कर समाज के रूढि़वादी बंधनों को तोड़ना चाहता हूं. अगर आप को मंजूर नहीं, तो कोई बात नहीं. मु झे बुरा नहीं लगेगा. बच्ची 5 साल की हो चुकी है, मैं इसे होस्टल में भेजने का इंतजाम कर लूंगा.’’

रेवती भी जिंदगी में इतने कटु अनुभव  झेल चुकी थी कि और कुछ सहने की हिम्मत न थी. समीर की सज्जनता, सादगी और चरित्र की महानता वह परख चुकी थी. उसे भी इस घर और बच्ची के साथ समीर से भी मोह हो चुका था. ससुराल और मायके में राजवीर एकमात्र हितैषी था. उस के मन में खुशी की एक लहर सी उठी. अगले दिन बच्ची के जन्मदिन की शाम को रेवती ने पूरे घर को सजा कर समीर की दी गुलाबी साड़ी और चूडि़यां पहन लीं. मेहमानों के आने से पहले घर में यह गाना गूंजने लगा, ‘ये मोहमोह के धागे, तेरी उंगलियों से जा उल झे…’

समीर केक ले कर आया तो रेवती का यह बदला रूप देख आश्चर्य और खुशी में डूब गया. उस ने खुशी से बच्ची को गोद में उठा गोलगोल घुमाना शुरू कर दिया. रेवती ने जब उसे ऐसा करते देखा, तो भागती हुई आई, बोली, ‘‘अरे, मेरी बच्ची को चक्कर आ जाएंगे.’’ और दोनों जोर से हंस पड़े.

मैं जौइंट फैमिली में रहती हूं, रोजरोज की किचकिच और झगड़े से परेशान हूं, क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं संयुक्त परिवार में रहती हूं. सासससुर अच्छे ओहदे पर थे. अब रिटायर्ड हैं जबकि मेरे पति और जेठजी अच्छी कंपनियों में काम करते हैं. ननद की शादी अभी नहीं हुई है. घर में किसी चीज की दिक्कत नहीं है यानी हर सुखसुविधा है पर आएदिन रोजरोज की किचकिच और झगड़े से परेशान रहने लगी हूं. पति चाहते हैं कि हम सब एक ही परिवार में रहें इसलिए चाह कर भी उन्हें अलग फ्लैट में रहने के लिए नहीं कह सकती. कृपया बताएं क्या करूं?

जवाब-

घर में छोटीबड़ी बातों पर तकरार होना आम बात है. कहते हैं जहां तकरार होती है वहीं प्यार भी होता है. मगर जब मतभेद मनभेद में बदल कर बड़े झगड़े का रूप लेने लगें तो यह जरूर चिंता की बात होती है. फिलहाल, आप के घर में हालात इतने खराब नहीं हुए हैं कि पति के साथ अलग रहने की सोची जाए. घर का झगड़ा किसी बड़े झगड़े का रूप न ले, इस से बचने की पहल आप को खुद करनी होगी.

इस दौरान अगर कोई गुस्से में है अथवा कुछ बोल रहा हो तो फायदा इसी में है कि दूसरे को शांत रहना चाहिए. ताली एक हाथ से नहीं बजती.

संयुक्त परिवार में तकरार आमतौर पर कामकाज को ले कर भी होती है. इसलिए बेहतर यही होगा कि घर के कामकाज को भी व्यवस्थित रूप से मिलजुल कर

करा जाए. छोटीबड़ी बातों को नजरअंदाज कर आगे बढ़ने में ही समझदारी है.

लोग एकल परिवारों में रहते हुए अपने सपनों को पंख नहीं दे पाते, जबकि संयुक्त परिवार इस के बेहतर अवसर देता है. संयुक्त परिवार में पलेबढ़े बच्चे भी आम बच्चों की तुलना में मानसिक व शारीरिक रूप से अधिक श्रेष्ठ होते हैं. इसलिए इस अवसर को आपसी झगड़ों में न गंवा कर मिलजुल कर रहने में ही भलाई है.

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दिवाली पर ‘भूल भुलैया और सिंघम अगेन’ रिलीज, क्या मौजूदा सरकार को खुश करने का फौर्मूला है ?

1 नवंबर दिवाली के मौके पर दो बड़ी फिल्में रिलीज हुई जिन में एक तो भूल भुलैया 3 है और दूसरी सिंघम अगेन 3 दोनों ही फिल्मों में एक आम बात नजर आई और वह थी मौजूदा सरकार को खुश करने का फौर्मूला, ताकि इतनी बड़े बजट की फिल्म धर्म जाति के झंझट में ना पड़े और ना ही सेंसर बोर्ड में मुसलमान डायरेक्टर हिंदू एक्टर,के नाम पर धर्म के साथ खिलवाड़ आदि, हमारे देवी देवताओं की बेइज्जती का इल्जाम मेकर्स और ऐक्टर्स पर पर ना लगे और उनकी फिल्म किसी प्रौब्लम में ना आए इसी बात को ध्यान में रखकर दोनों ही फिल्मों में मौजूदा सरकार को खुश करने के लिए राम भगवान का नाम इस्तेमाल किया गया है.

भूल भुलैया 3 में जहां पर गाने हरे राम हरे राम से लेकर फिल्म में कई दृश्य में राम का नाम लिया गया है. वही सिंघम अगेन 3 रामायण को बेस करके बनाई गई है जहां एक तरफ सिंघम 1 और सिंघम अगेन 2 एक्शन, क्राइम और थ्रिलर से भरी हुई थी. वही सिंघम अगेन 3 की कहानी रामायण पर आधारित है.

हालांकि फिल्म पूरी तरह से पौराणिक नहीं है लेकिन फिल्म का आधार रामायण है. पिछले कुछ समय से कई सारी फिल्में धर्म और अंधविश्वास के चलते सेंसर में धक्के खा रही है शायद इसीलिए सिंघम अगेन 3 और भूल भुलैया 3 के मेकर्स ने मौजूदा सरकार की दखल अंदाजी को संभालने के लिए यह तरीका अपना लिया है. जिसके चलते दोनों ही फिल्में बौक्स औफिस पर फिलहाल धमाल मचा रही है. गौरतलब है अगर भाजपा सांसद और ऐक्ट्रेस कंगना रनौत ने भी कोई ऐसा फार्मूला फिल्म में चिपका दिया होता. तो उनकी फिल्म को इतने सारे कट नहीं मिलते और ना ही फिल्म सेंसर में अटकती.

फैशन जगत को लगा सदमा, रोहित बल के निधन पर सैलिब्रिटीज ने अपनी संवेदनाएं कुछ इस तरह कीं व्यक्त

इंडियन फैशन को दुनिया भर में अलग पहचान दिलाने वाले फेमस फैशन डिजाइनर रोहित बल के निधन से एंटरटेनमेंट और फैशन इंडस्ट्री दोनों में शोक की लहर दौड़ गई है. दिवाली के माहौल में जब सबलोग फेस्टिवल एंजौय कर रहे थे तब रोहित को दिल्ली के सफदरजंग एंक्लेव के आश्लोक अस्पताल में भर्ती कराया गया था. जहां हार्ट प्रौब्लम की वजह से उनका निधन हो गया. 2 नवंबर को शाम 5 बजे नई दिल्ली के लोधी रोड श्मशान घाट में रोहित बल का अंतिम संस्कार किया गया. सोशल मीडिया पर सेलेब्स और फैंस ने रोहित को नम आंखों से श्रद्धांजलि दी है.

सोशल मीडिया पर संवेदनाएं

आपको बता दे शुक्रवार को हार्ट प्रौब्लम के चलते 63 साल के डिजाइनर रोहित बल का निधन हो गया. फिल्म इंडस्ट्री के लोगों ने उनके निधन पर सोशल मीडिया पर अपनी संवेदनाएं व्यक्त कीं और डिजाइनर रोहित से जुड़ी मेमोरीज शेयर की. सोनम कपूर और अनन्या पांडे जैसे बौलीवुड अभिनेताओं से लेकर डिजाइनर मनीष मल्होत्रा तक, कई लोगों ने रोहित बल को श्रद्धांजलि देने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया.

सलमान खान

बौलीवुड के एक्टर सलमान खान ने भी डिजाइनर रोहित बल के निधन पर शोक जताते हुए एक पोस्ट शेयर की है. X पर सलमान खान ने लिखा, ‘रेस्ट इन पीस रोहित.’
Rest in peace Rohit
#RohitBal

सोनम कपूर

सोनम कपूर ने रोहित बल की एक फोटो इंस्टाग्राम स्टोरी पर शेयर कर लिखा-‘डियर गुड्डा, जब मैं तुम्हारी बनाई कमाल की ड्रेस में दिवाली मनाने जा रही थी, तो मुझे तुम्हारे निधन की खबर मिली. मैं खुशनसीब हूं कि तुम्हें जानने का मौका मिला. तुम्हारे बनाए कपड़े पहने और कई बार तुम्हारे शोज के लिए रैंप पर चली. उम्मीद करती हूं कि तुम्हें अब शांति मिली होगी. हमेशा तुम्हारी सबसे बड़ी फैन रहूंगी.’

करण जौहर

बौलीवुड के फिल्म मेकर भी इस डिजाइनर की याद में भावुक हो उठे. अपनी पोस्ट में करण ने लिखा कि जब उन्हे रोहित के निधन की खबर मिली उस वक्त वो उन्हीं के डिजाइनर के ही आउटफिट को कैरी किए एक पार्टी के लिए जा रहे थे. उन्होंने डिजाइनर से उनके कलेक्शन की और भी आउटफिट्स की रिक्वेस्ट भेजी हुई थी.

करीना कपूर खान

बौलीवुड एक्ट्रेस करीना कपूर ने रोहित बल की फोटोज शेयर कर ब्लैक, रेड और व्हाइट कलर के हार्ट इमोजी बनाए. वहीं डायरेक्टर मधुर भंडारकर को भी रोहित बल के निधन से गहरा धक्का लगा.

निधन की खबर FDCI के आधिकारिक इंस्टाग्राम हैंडल पर

डिजाइनर रोहित के निधन की खबर शुक्रवार को फैशन डिजाइन काउंसिल औफ इंडिया (FDCI) के आधिकारिक इंस्टाग्राम हैंडल पर शेयर की गई. पोस्ट में लिखा गया है, “हम दिग्गज डिजाइनर रोहित बल के निधन पर शोक व्यक्त करते हैं. वे फैशन डिजाइन काउंसिल औफ इंडिया (FDCI) के संस्थापक सदस्य थे. ट्रौडिशनल पैटर्न और मौडर्न सेंसिबिलिटी के अपने यूनिक मिश्रण के लिए जाने, जाने वाले रोहित बल के काम ने इंडियन फैशन को फिर से डिफाइन किया और जनरेशन को इंस्पायर्ड किया. कलात्मकता और नवाचार (Artistry and Innovation) के साथसाथ आगे की सोच की उनकी विरासत फैशन की दुनिया में जिंदा रहेगी. शांति से आराम करें गुड्डा.”

एक साल बाद रनवे पर

रोहित पिछले काफी समय से बीमार चल रहे थे. अक्टूबर 2024 में, हेल्थ प्रौब्लम के लगभग एक साल बाद रनवे पर लौटे. उन्होंने लैक्मे फैशन वीक के ग्रैंड फिनाले में अपना कलेक्शन “कायनात: ए ब्लूम इन द यूनिवर्स” प्रस्तुत किया था. जहां बौलीवुड एक्ट्रेस अनन्या पांडे उनके लिए शो स्टौपर बनी थीं. रैंप पर रोहित थोड़ा लड़खड़ाए थे वो नजारा देख फैंस को रोहित की सेहत की चिंता सताने लगी थी.

इंडिया के साथसाथ विदेशों में भी पहचान

लगभग 37 साल से ज्यादा समय फैशन इंडस्ट्री में बिताने वाले रोहित बल को इंडिया के साथसाथ विदेशों में भी अपने यूनिक कलेक्शन की वजह से एक बड़ी पहचान मिली। उन्होंने निधन से दो हफ्ते पहले ही रैंप पर अपना आखिरी कलेक्शन शो लैक्मे इंडिया फैशन वीक था, जहां बौलीवुड एक्ट्रेस अनन्या पांडे उनके लिए शो स्टौपर बनी थीं. रैंप पर रोहित थोड़ा लड़खड़ाए थे वो नजारा देख फैंस को रोहित की सेहत की चिंता सताने लगी थी.

पति की तानाशाही से परेशान होकर किसी और लड़के को पसंद करती हूं, लेकिन इजहार करने से डरती हूं …

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 47 वर्षीय महिला हूं. मेरे पति बहुत ही तानाशाह किस्म के इनसान हैं. हमेशा अपनी बात मनवाते हैं. दूसरों की भावनाओं कतई कद्र नहीं करते हैं. मेरी किसी इच्छाअनिच्छा की उन्हें तनिक भी परवाह नहीं है. घर में वही होता है जो वे चाहते हैं. यहां तक कि सहवास जैसी इच्छा भी तभी पूरी होती है जब वे चाहते हैं. मेरा मन है या नहीं, यह जानने की वे कभी कोशिश नहीं करते हैं. मुझे तो लगता है कि वे मुझे बिलकुल प्यार नहीं करते. उन के साथ जिंदगी बदतर होती जा रही है. कुछ समय से मैं एक लड़के को मन ही मन चाहने लगी हूं. उस के साथ सहवास करने का मन करता है. हालांकि वह लड़का मुझे पसंद करता है या नहीं, मैं यह नहीं जानती. उस के सम्मुख प्यार का इजहार करते हुए डर लगता है. कृपया बताएं क्या करूं?

जवाब-

इतने बरसों से आप पति के साथ रह रही हैं. अब अचानक आप को उन में खोट नजर आने लगा है. कारण, एक जवान लड़के को देख कर आप खयाली पुलाव पकाने लगी हैं. आप को अपनी उम्र का ध्यान रखना चाहिए. आप कोई किशोरी नहीं अधेड़ उम्र की महिला हैं, जिसे अपनी लालसा पर नियंत्रण करना आना चाहिए, क्योंकि इस तरह के बचकाने व्यवहार से आप को कुछ हासिल नहीं होगा सिवा जगहंसाई के.

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वह जमाना गया, जिस में बेटे श्रवण कुमार की तरह पूरी पगार मांबाप के हाथों या पांवों में रख देते थे और फिर अपने जेबखर्च के लिए मांबाप का मुंह ताकते थे यानी उन्हें अपनी कमाई अपनी मरजी से खर्च करने का हक नहीं था.

परिवार सीमित होने लगे तो बच्चों के अधिकार बढ़तेबढ़ते इतने हो गए हैं कि उन्हें पूरी तरह आर्थिक स्वतंत्रता कुछ अघोषित शर्तों पर ही सही मगर मिल गई है. इन एकल परिवारों में पत्नी का रोल और दखल आमदनी और खर्च दोनों में बढ़ा है, साथ ही उस की पूछपरख भी बढ़ी है.

भोपाल के जयंत एक संपन्न जैन परिवार से हैं और पुणे की एक सौफ्टवेयर कंपनी में क्व18 लाख सालाना सैलरी पर काम कर रहे हैं. जयंत की शादी जलगांव की श्वेता से तय हुई तो शादी के भारीभरकम खर्च लगभग क्व20 लाख में से उन्होंने क्व10 लाख अपनी बचत से दिए. श्वेता खुद भी नौकरीपेशा है. जयंत से कुछ कम सैलरी पर एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करती है.

शादी तय होने से पहले दोनों मिले तो ट्यूनिंग अच्छी बैठी. उन के शौक और आदतें दोनों मैच कर चुके थे. दोनों ने 4 दिन साथ एकदूसरे को समझने की गरज से गुजारे और फिर अपनी सहमति परिवार को दे दी. जयंत श्वेता के सादगी भरे सौंदर्य पर रीझा तो श्वेता अपने भावी पति के सरल स्वभाव और काबिलीयत से प्रभावित हुई. इन 4 दिनों का घूमनेफिरने और होटलिंग का खर्च पुरुष होने के नाते स्वाभाविक रूप से जयंत ने उठाया. दोनों ने एकदूसरे की सैलरी के बारे में कोई बात नहीं की.

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Anupama फेम रुपाली गांगुली का था एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर, सौतेली बेटी ने लगाए गंभीर आरोप

‘अनुपमा’ (Anupama) स्टार रुपाली गांगुली अपने किरदार की वजह से लोगों के बीच काफी पौपुलर हैं. वह अकसर लाइमलाइट में बनी रहती हैं. अनुपमा की कहानी में बदलाव आने के कारण इस शो की टीआरपी डाउन हुई है, लेकिन रुपाली गांगुली पर्सनल लाइफ को लेकर चर्चा में आ गई हैं. अनुपमा की रियल लाइफ की सौतेली बेटी ईशा वर्मा ने उन पर गंभीर आरोप लगाया है. आइए जानते हैं क्या है पूरा मामला…

रियल लाइफ में अनुपमा की हैं दो सौतेली बेटियां

दरअसल, रुपाली गांगुली (Rupali Ganguly) के पति अश्विन वर्मा की पहले से दो शादियां टूट चुकी हैं.  पहले रिश्ते से दो बेटियां भी हैं. इनकी एक बेटी ईशा वर्मा ने रुपाली गांगुली पर एक पोस्ट कर आरोप लगाया है. ईशा का पोस्ट सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. इस पोस्ट में रुपाली गांगुली से जुड़े कई खुलासे किए गए हैं.

क्या रुपाली गांगुली हैं निर्दयी औरत?

वायरल पोस्ट के अनुसार, रुपाली गांगुली के पति अश्विन वर्मा की दो शादियां है. दरअसल, ईशा ने इस पोस्ट में लिखा है कि “वह एक निर्दयी औरत है जिसने मुझे मेरी बहन से अलग कर दिया. मुंबई आने से पहले वह कैलिफोर्निया और न्यू जर्सी में 13-14 साल तक रहे हैं. जब भी मैं अपने पिता को फोन करने की कोशिश करती थी तो, वह चिल्लाना शुरू कर देती थी. उसने हमारी असली फैमिली की जिंदगी बर्बाद कर दी और लोगों से कहती है कि ये उनका सच्चा प्यार है.”

पति अश्विन वर्मा को खिलाती थीं दवाइयां

इतना ही नहीं रिपोर्ट के अनुसार, ईशा ने अपनी सौतेली मां रुपाली गांगुली की तुलना रिया चक्रवर्ती और सुशांत राजपुत से करते हुए उन्हें उनके पिता से अलग करने का आरोप लगाया है. वह मेरे पिता को अजीब दवाइयां खिलाती थीं और उनकी लाइफ कंट्रोल करती है. ईशा ने ये भी बताया कि जब वह तीन साल की थी तो उनके पिता के साथ रुपाली गांगुली का अफेयर था.

आपको ये भी बता दें कि ईशा ने सालों पहले सोशल मीडिया पर एक फोटो शेयर की थी, जिसमें वह, रुपाली गांगुली और अपने पिता के साथ डिनर करते दिख रही हैं.

अश्विन वर्मा ने नोट शेयर कर दी सफाई

हालांकि इस पोस्ट को लेकर रुपाली गांगुली का कोई रिएक्शन नहीं आया है. लेकिन अश्विन वर्मा ने अपनी बेटी को लेकर सफाई दी है. रुपाली गांगुली के पति ने सोशल मीडिया पर एक नोट शेयर किया है, एक्स पर रुपाली गांगुली के पति ने लिखा, मेरे पिछले रिश्तों से दो बेटियां हैं, रुपाली और मैं इस बारे में हमेशा बात करते हैं कि मैं इसकी बहुत परवाह करता हूं. मैं समझता हूं कि मेरी छोटी बेटी अभी भी बहुत दुखी रहती है.अपने मातापिता के रिश्ते के टूटने से वह दुखी हैं क्योंकि तलाक एक कठिन अनुभव है, जो उस शादी के बाद बच्चों को बहुत प्रभावित करता है और नुकसान पहुंचा सकता है.’

अश्विन वर्मा ने आगे लिखा, लेकिन शादियां कई कारणों से खत्म हो जाती हैं और मेरी दूसरी पत्नी के साथ मेरे रिश्ते में कई चुनौतियां थीं, जिसके कारण हम अलग हो गए. ये चुनौतियां मेरे और उसके बीच थी. और इसका किसी दूसरे से कोई लेनादेना नहीं था.मैं केवल यही चाहता हूं यह मेरे बच्चों और मेरी पत्नी के लिए सबसे अच्छा हो और मीडिया द्वारा किसी को भी निगेटिविटी में खींचते हुए देखकर मुझे दुख होता है.’

रिपोर्ट्स के अनुसार, रुपाली गांगुली के पति की दो शादियां टूट चुकी हैं. पहली शादी प्रियंका मेहरा से हुई, दूसरी सपना वर्मा से और तीसरी शादी रुपाली गांगुली से हुई. रुपाली और अश्विन वर्मा ने 12 सालों तक एकदूसरे को डेट किया था.

दीया और सुमि: क्या हुआ था उसके साथ

“अरे दीया, चलो मुसकरा भी दो अब. इस दुनिया की सारी समस्याएं केवल तुम्हारी तो नहीं हैं,” सुमि ने कहा तो यह लाजवाब बात सुन कर दीया हंस दी और उस ने सुमि के गाल पर एक मीठी सी चपत भी लगा दी.

“अरे सुनो, हां, तो यह चाय कह रही है कि गरमगरम सुड़क लो ठंडी हो जाऊंगी तो चाय नहीं रहूंगी,” सुमि ने कहा.

“अच्छा, मेरी मां,” कह कर दीया ने कप हाथों में थामा और होंठों तक ले आई. सुमि के हाथ की गरम चाय घूंटघूंट पी कर मन सचमुच बागबाग हो गया उस का.

“चलो, अब मैं जरा हमारे दिसु बाबा को बाहर सैर करा लाती हूं. तुम अपना मन हलका करो और यह संगीत सुनो,” कह कर सुमि ने 80 के दशक के गीत लगा दिए और बेबी को ले कर बाहर निकल गई.

दीया ने दिसु के बाहर जाने से पहले उसे खूब प्यार किया…’10 महीने का दिसु कितना प्यारा है. इस को देख कर लगता है कि यह जीवन, यह संसार कितना सुंदर है,’ दीया ने मन ही मन सोचा और खयालों में डूबती चली गई.

यादों के सागर में दीया को याद आया 2 साल पहले वाला वह समय, जब मेकअप रूम में वह सुमि से टकरा गई थी. दीया तैयार हो रही थी और सुमि क्लब के मैनेजर से बहस करतेकरते मेकअप रूम तक आ गई थी. वह मैनेजर दीया को भी कुछ डांस शो देता था, पर दीया तो उस से भयंकर नफरत करती थी. दीया का मन होता कि उस के मुंह पर थूक दे, क्योंकि उस ने दीया को नशीली चीजें पिला कर जाने कितना बरबाद कर डाला था. आज वह मैनेजर सुमि को गालियां दे रहा था.

आखिरकार सुमि को हां करनी पड़ी, “हांहां, इसी बदन दिखाती ड्रैस को पहन कर नाच लूंगी.”

यह सुन कर वह धूर्त मैनेजर संतुष्ट हो कर वहां से तुरंत चला गया और जातेजाते बोलता रहा, “जल्दी तैयार हो जाना.”

“क्या तैयार होना है, यह रूमाल ही तो लपेटना है…” कह कर जब सुमि सुबक रही थी, तब दीया ने उसे खूब दिलासा दिया और कहा, “सुनो, मैं आप का नाम तो नहीं जानती, पर यही सच है कि हम को पेट भरना है और
उस कपटी मैनैजर को पैसा कमाना है. जानती हो न इस पूरी धरती की क्या बिसात, वहां स्वर्ग में भी यह दौलत ही सब से बड़ी चीज है.”

इस तरह माहौल हलका हुआ. सुमि ने अपना नाम बताया, तब उन दोनों ने एकदूसरे के मन को पढ़ा. कुछ बातें भी हुईं और उस रात क्लब में नाचने के बाद अगले दिन सुबह 10 बजे मिलने का वादा किया.

आधी रात तक खूबसूरत जवान लड़कियों से कमर मटका कर और जाम पर जाम छलका कर उन के मालिक, मैनेजर या आयोजक सब दोपहर बाद तक बेसुध ही रहने वाले थे. वे दोनों एक पार्क में मिलीं और बैंच पर बैठ गईं. दोनों कुछ पल खामोश रहीं और सुमि ने बात शुरू की थी, फिर तो एकदूसरे के शहर, कसबे, गांव, घरपरिवार और घुटन भरी जिंदगी की कितनी बातें एक के बाद एक निकल पड़ीं और लंबी सांस ले कर सुमि बोली, “कमाल है न कि यह समय भी कैसा खेल दिखाता है. जिन को हम ने अपना समझ कर अपनी हर समस्या साझा कर ली, वे ही दोस्त से देह के धंधेबाज बन गए, वह भी हमारी देह के.”

“हां सुमि, तुम सही कह रही हो. कल रात तुम को देखा तो लगा कि हम दोनों के सीने में शायद एकजैसा दर्द है,” कहते हुए दीया ने गहरी सांस ली. आज कितने दिनों के बाद वे दोनों दिल की बात कहसुन रही थीं.

सुमि को तब दीया ने बताया कि रामपुर में उस का पंडित परिवार किस तरह बस पूजा और अनुष्ठान के भरोसे ही चल रहा था, पर सारी दुनिया को कायदा सिखा रहे उस घर में तनिक भी मर्यादा नहीं थी. उस की मां को उस के सगे चाचा की गोद में नींद आती और पिता से तीसरेचौथे दिन शराब के बगैर सांस भी न ली जाती.

“तो तुम कुछ कहती नहीं थी?” सुमि ने पूछा.

“नहीं सुमि, मैं बहुत सांवली थी और हमारे परिवार मे सांवली लड़की किसी मुसीबत से कम नहीं होती, तो मैं घर पर कम रहती थी.”

“तुम कहां रहती थी?”

“सुमि, मैं न बहुत डरपोक थी और जब भी जरा फुरसत होती तो सेवा करने चली जाती. कभी कहीं किसी के बच्चों को पढ़ा देती तो किसी के कुत्तेबिल्ली की देखभाल करती बड़ी हो गई तो किसी की रसोई तक संभाल देती पर यह बात भीतर तक चुभ जाती कि कितनी सांवली है, इस को कोई पसंद नहीं करेगा,” दीया तब लगातार बोलती रही थी.

सुमि कितने गौर से सुन रही थी. अब वह एक सहेली पा कर उन यादों के अलबम पलटने लगी.

दीया बोलने लगी, “एक लड़का मेरा दोस्त बन गया. उस ने कभी नहीं कहा कि तुम सांवली हो और जब जरूरत होती वह खास सब्जैक्ट की किताबें और नोट्स आगे रखे हुए मुझे निहारता रहता.

“इस तरह मैं स्कूल से कालेज आई तो अलगअलग तरह की नईनई बातें सीख गई. मेरे कसबे के दोस्तों ने बताया था कि अगर कोई लड़का तुम से बारबार मिलना चाहे तो यही रूप सच्चे मददगार का भी रूप है और मैं ने आसानी से इस बात पर विश्वास कर लिया था.”

एक दिन इसी तरह कोई मुश्किल सब्जैक्ट समझाते हुए उस लड़के के एकाध बाल उलझ कर माथे पर आ गए थे तो दीया का मन महक गया. उस के चेहरे पर हलकीहलकी उमंग उठी थी.

हालांकि दीया की उम्र 20 साल से ज्यादा नहीं थी, पर उस के दिल पर एक स्थायी चाहत थी, जिस का रास्ता बारबार उसी अपने और करीबी से लगने वाले मददगार लड़के के पास जाता दिखाई देता था.

दीया कालेज में पढ़ने वाले उस लड़के का कोई इतिहासभूगोल जानती नहीं थी और जानना भी नहीं चाहती थी. सच्चा प्यार तो हमेशा ईमानदार होता है, वह सोचती थी. एक दिन वह अपने घर से रकम और गहने ले कर चुपचाप
रवाना हो गई. वह बेफिक्र थी, क्योंकि पूरे रास्ते उस का फरिश्ता उस को गोदी मे संभाले उस के साथ ही तो था और बहुत करीब भी था.

दीया उस लड़के के साथ बिलकुल निश्चिंत थी, क्योंकि उस को जब भी अपने मददगार यार के चेहरे पर मुसकराहट दिखाई देती थी, वह यही मान लेती थी कि भविष्य सुरक्षित है, जीवन बिलकुल मजेदार होने वाला है. आने वाले दिन तो और भी रसीले और चमकदार होंगे.

मगर दीया कहां जानती थी कि वे कोरे सपने थे, जो टूटने वाले थे. यह चांदनी 4-5 दिन में ही ढलने लगी. एक दिन वह लड़का अचानक उठ कर कहीं चला गया. दीया ने उस का इंतजार किया, पर वह लौटा नहीं, कभी नहीं.

उस के बाद दीया की जिंदगी बदल गई. वह ऐसे लोगों के चंगुल में फंस जो उसे यहांवहां नाचने के लिए मजबूर किया गया. इतना ही नहीं उस को धमकी मिलती कि तुम्हारी फिल्म बना कर रिलीज कर देंगे, फिर किसी कुएं या पोखर मे कूद जाना.

दीया को कुछ ऐसा खिलाया या पिलाया जाता कि वह सुबह खुद को किसी के बैडरूम में पाती और छटपटा जाती. कई दिनों तक यों ही शहरशहर एक अनाचारी से दूसरे दुराचारी के पलंग मे कुटने और पिसने के बाद वह सुमि से मिल गई.

सुमि ने दीया को पानी की बोतल थमा दी और बताया, “मैं खुद भी अपने मातापिता के मतभेद के बीच यों ही पिसती रही जैसे चक्की के 2 पाटों में गेहूं पिस जाता है. मां को आराम पसंद था पिता को सैरसपाटा और लापरवाही भरा जीवन. घर पर बस नौकर रहते थे. हमारे दादा के बगीचे थे. पूरे साल रुपया ही बरसता रहता था. अमरूद, आम से ले कर अंगूर, अनार के बगीचे.”

“अच्छा तो इतने पैसे मिलते थे…” दीया ने हैरानी से कहा.

“हां दीया, और मेरी मां बस बेफिक्र हो कर अपने ही आलस में रहती थी. पिता के बाहर न जाने कितने अफेयर चल रहे थे. वे बाजारू औरतों पर दौलत लुटा रहे थे, पर मां मस्तमगन रहती. इस कमजोरी के तो नौकर भी खूब मजे लेते. वे मां को सजधज कर तैयार हो कर बाहर सैरसपाटा करने में मदद करते और घर पर पिता को महंगी शराब के पैग पर पैग बना कर देते.

“मां और पिता दोनों से नौकरों को खूब बख्शीश मिलती और उन की मौज ही मौज होती, लेकिन जब भी मातापिता एक दूसरे के सामने पड़ते तो कुछ पल बाद ही उन दोनों में भयंकर बहस शुरू हो जाती, कभी रुपएपैसे के हिसाब को ले कर तो कभी मुझे ले कर कि मैं किस की जिम्मेदारी हूं.

“मेरा अकेला उदास मन मेरे हमउम्र पडो़सी मदन पर आ गया था. वह हर रोज मेरी बातें सुनता, मुझे पिक्चर दिखा लाता और पढ़ाई में मेरी मदद करता. कालेज में तो मेरा एक ही सहारा था और वह था मदन.

“पर एक दिन वह मेरे घर आया और शाम को तैयार रहना कह कर मुझे एक पार्टी में ले गया जहां मुझे होश आया तो सुबह के 5 बज रहे थे. मेरे अगलबगल 2 लड़के थे, मगर मदन का कोई अतापता ही नहीं था.

“मैं समझ गई थी कि मेरे साथ क्या हुआ है. मैं वहां से भागना चाहती थी, पर मुझे किसी ने बाल पकड़ कर रोक दिया और कहा कि कार में बैठो. वे लोग मुझे किसी दूसरे शहर ले गए और शाम को एक महफिल में सजधज कर शामिल होने को कहा.

“वह किसी बड़े आदमी की दावत थी. मैं अपने मातापिता से बात करने को बेचैन थी, मगर मुझे वहां कोई गोली खिला दी गई और मेरा खुद पर कोई कंट्रोल न रहा. फिर मेरी हर शाम नाचने में ही गुजरने लगी.”

“ओह, सुमि,” कह कर दीया ने उस के हाथ पर हाथ रख दिया था. आज 2 अजनबी मिले, पर अनजान होते हुए भी कई बातें समान थीं. उन की सरलता का फायदा उठाया गया था.

“देखो सुमि, हमारे फैसले और प्राथमिकता कैसे भी हों, वे होते तो हमारे ही हैं फिर उन के कारण यह दिनचर्या कितनी भी हताशनिराश करने वाली हो, दुविधा कितना भी हैरान करे, हम सब के पास 1-2 रास्ते तो हर हाल ही में रहते ही हैं और चुनते समय हम उन में से भी सब से बेहतरीन ही चुनते हैं, पर जब नाकाम हो जाते है, तो खुद को भरम में रखते हुए कहते हैं कि और कोई रास्ता ही नही था. इस से नजात पाए बिना दोबारा रास्ता तलाशना बेमानी है,” कह कर दीया चुप हो गई थी.

अब सुमि कहने लगी, “हमारे साथ एक बात तो है कि हम ने भरोसा किया और धोखा खाया, पर आज इस बुरे वक्त में हम दोनों अब अकेले नहीं रहेंगे. हम एकदूसरे की मदद के लिए खड़े हैं.”

“हां, मैं तैयार हूं,” कह कर दीया ने योजना बनानी शुरू की. तय हुआ कि 2 दिन बाद अपना कुछ रुपया ले कर रेल पकड़ कर निकल जाएंगी. उस के बाद जो होगा देखा जाएगा, अभी इस नरक से तो निकल लें.

यह बहुत अच्छा विचार था. 2 दिन बाद इस पर अमल किया. सबकुछ आराम से हो गया. वे दोनों चंडीगढ़ आ गईं. वहां उन्होंने एक बच्चा गोद लिया.

दीया यही सोच रही थी कि कुछ आवाज सी हुई. सुमि और दिसु लौट आए थे.

सुमि ने दीया की गीली आंखें देखीं और बोली, “ओह दीया, यह अतीत में डूबनाउतरना क्या होता है, क्यों होता है, किसलिए होता है, मैं नहीं जानती, क्योंकि मैं गुजरे समय के तिलिस्म में कभी पड़ी ही नहीं. मैं वर्तमान में जीना पसंद करती हूं. बीते समय और भविष्य की चिंता में वे लोग डूबे रहते हैं, जिन के पास डूबने का और कोई साधन नहीं होता…”

“अच्छा, मेरी मां,” कह कर दीया ने सुमि को अपने गले लगा लिया.

सिसकती दीवारें: क्यों अकेला पड़ गया वह

सामने वाले घर में खूब चहलपहल है. आलोकजी के पोते राघव का पहला बर्थडे है. पूरा परिवार तैयार हो कर इधर से उधर घूम रहा है. घर के बच्चों का उत्साह तो देखते ही बनता है. आलोकजी ने घर को ऐसे सजाया है जैसे किसी का विवाह हो. वैसे तो उन के घर में हमेशा ही रौनक रहती है. भरेपूरे घर में आलोकजी, उन की पत्नी, 2 बेटे और 1 बेटी, सब साथ रहते हैं. कितना अच्छा है सामने वाला घर, कितना बसा हुआ, जीवन से भरपूर. और एक मैं, लखनऊ के गोमतीनगर के सब से चहलपहल वाले इलाके में कोने में अकेला, वीरान, उजड़ा हुआ खड़ा हूं. मेरे कोनेकोने में सन्नाटा छाया है. सन्नाटा भी ऐसा कि सालों से खत्म होने का नाम नहीं ले रहा.

अब ऐसे अकेले जीना शायद मेरी नियति है. बस, हर तरफ धूलमिट्टी, जर्जर होती दीवारें, दीवारों से लटकते लंबे जाले, गेट पर लगा ताला जैसे कह रहा हो, खुशी के सब दरवाजे बंद हो चुके हैं. हर आहट पर किसी के आने का इंतजार रहता है मुझे. तरस गया हूं अपनों के चेहरे देखने के लिए, पर यादें हैं कि पीछा ही नहीं छोड़तीं.

मैं हमेशा से ऐसा नहीं था. मैं भी जीवन से भरपूर था. मेरा भी कोनाकोना चमकता था. मेरी सुंदरता भी देखते ही बनती थी. मालिक के कहकहों के साथ मेरी दीवारें भी मुसकराती थीं. सजीसंवरी मालकिन इधर से उधर पायल की आवाज करती घूमती थीं. मालिक के बेटे बसंत और शिषिर इसी आंगन में तो पलेबढ़े हैं. उन से छोटी कूहू और पीहू ने इसी आंगन में तो गुड्डेगुडि़या के खेल रचाए हैं. यह अमरूद का पेड़ मालिक ने ही तो लगाया था. इसी के नीचे तो चारों बच्चों ने अपना बचपन बिताया है.

हाय, एकएक घटना ऐसे याद आती है जैसे कल ही की बात हो. मालिक अंगरेजी के अध्यापक थे. बहुत ज्ञानी, धैर्यवान और बहुत ही हंसमुख. मालिक को पढ़नेलिखने का बहुत शौक था. कालेज से आते, खाना खा कर थोड़ा आराम करते, फिर अपने स्टडीरूम में कालेज के गरीब बच्चों को मुफ्त ट्यूशन पढ़ाते थे. कभीकभी तो उन्हें खाना भी खिला दिया करते थे. आज भी याद है मुझे उन बच्चों की आंखों में मालिक के प्रति सम्मान के भाव. जब भी मालिक को फुरसत होती, साफसफाई में लग जाते. किसी और पर हुक्म चलाते मैं ने कभी नहीं देखा उन्हें.

मालिक 50 के ही तो हुए थे तब, जब ऐसा सोए कि उठे ही नहीं. मेरा तो कोनाकोना उन की असामयिक मृत्यु पर दहाड़ें मारमार कर रोया. मालकिन के आंसू देखे नहीं जा रहे थे. शिषिर ही तो अपने पैरों पर खड़ा हो पाया था, बस. वह तो मालकिन ने हिम्मत की और बच्चों को चुप करवातेकरवाते खुद को भी संभाल लिया. याद है मुझे, मालिक के जो रिश्तेदार शोक प्रकट करने आए थे, सब धीरेधीरे यह कह कर चले गए थे कि कोई जरूरत हो तो बताना. उस के बाद तो सालों मैं ने किसी की शक्ल नहीं देखी. मालकिन भी इतिहास की टीचर थीं. मालिक के सहयोग से ही वे अपने पैरों पर खड़ी हो सकी थीं. मालिक हमेशा यही तो कहते थे कि हर औरत को पढ़नालिखना चाहिए, तभी तो मालकिन मालिक के जाने के बाद सब संभाल सकीं.

चारों बच्चों के विवाह की जिम्मेदारी मालकिन ने मालिक को याद करते हुए बड़ी कुशलता से निभाई. सब अपनेअपने जीवन में व्यस्त होते जा रहे थे. बस, मैं मूकदर्शक, घर की बदलती हवा में सांस ले रहा था. घर में बदलाव की जो हवा चली थी उस में मुझे अपने भविष्य के प्रति कुछ चिंता सी होने लगी थी.

शिषिर की पोस्ंिटग दिल्ली हो गई. वह अपनी पत्नी रेखा और बेटे विपुल के साथ वहां चला गया. बसंत की पत्नी रेनू और उस की 2 बेटियों, तन्वी और शुभी से घर में बहुत रौनक रहती. कूहू और पीहू की शादी भी बहुत अच्छे घरों में हो गई. सब बच्चों की शादियों में, फिर उन के बच्चों के जन्म के समय मैं कई दिन तक रोशनी से जगमगाता रहा.

लेकिन फिर अचानक पता नहीं क्यों रेनू मालकिन से दुर्व्यवहार करने लगी. एक दिन मालकिन स्कूल से आईं तो रेनू ने उन के आराम के समय जोरजोर से टीवी चला दिया. मालकिन ने धीरे करने के लिए कहा तो रेनू ने कटु स्वर में कहा, ‘मां, आप तो बाहर से आई हैं, मैं घर के कामों से अब फ्री हुई हूं, क्या मैं थोड़ा टाइमपास नहीं कर सकती?’

मालकिन को गुस्सा आया पर वे बोलीं कुछ नहीं. फिर रोज छोटी बहू कोई न कोई बात छेड़ कर हंगामा करने लगी. मालकिन को भी गुस्सा आने लगा, बसंत से दबे शब्दों में कहा तो उस ने तो हद ही कर दी. उन्हें ही कहने लगा, ‘मां, आप को समझना चाहिए, रेनू भी क्या करे, घर के सारे काम, आप का खानापीना, कपड़े सब वह ही तो करती है.’

मालकिन की आंखों की नमी मुझे आज भी याद है, उन्होंने इतना ही कहा था, ‘उस से कह दे, कल से मेरा खाना न बनाए, मैं बना लूंगी.’ आज सोचता हूं तो लगता है मालिक शायद बहुत दूरदर्शी थे, क्या उन्हें अंदाजा था कभी यह दिन आएगा, मुझे उन्होंने इस तरह से ही बनाया था कि मेरे 2-2 कमरों के साथ 1-1 किचन था.

बसंत और रेनू शायद यही चाहते थे. 2 दिन के अंदर रेनू ने अपना किचन अलग कर लिया. मैं रो पड़ा, लेकिन मेरे आंसू तो कोई देख नहीं सकता था. बस, ऐसा लगा मालिक ने मेरी दीवारों को अपने हाथ से सहलाया हो.

हद तो तब हो गई जब बसंत ने शराब पीनी शुरू कर दी. अब वह रोज पी कर मालकिन से झगड़ा करने लगा. मालकिन का गुस्सा भी दिन पर दिन बढ़ता जा रहा था. उन्हें लगता वे जब आत्मनिर्भर हैं तो क्यों किसी की बात सुनें. उन का स्वभाव भी दिन पर दिन उग्र होता जा रहा था. कूहूपीहू आतीं तो घर के बदले रंगढंग देख कर दुखी होतीं.

मालकिन ने एक दिन शिषिर को बुला कर सब बताया. उस ने बसंत को समझाया तो बसंत ने कहा, ‘मां की इतनी ही फिक्र है तो ले जाओ अपने साथ इन्हें.’

मालकिन फटी आंखों से बेटे के शब्दों के प्रहार झेलती रहीं.

बसंत गुर्राया, ‘इन्हें कहो, अपनी तनख्वाह हमें दे दिया करें, हम फिर रखेंगे इन का ध्यान.’

शिषिर चिल्लाया, ‘इतनी हिम्मत, दिमाग खराब हो गया तुम्हारा?’

दोनों में जम कर बहस हुई, नतीजा कुछ नहीं निकला. शिषिर के जाने के बाद बसंत और उपद्रव करने लगा.

मालकिन को कुछ समझ नहीं आया तो उन्होंने एक राजमिस्त्री को बुलवा कर मेरे बीचोंबीच दीवार खड़ी करवा दी, बसंत ने कहा, ‘हां, यह ठीक है, आप उधर चैन से रहो, हम इधर चैन से रहेंगे.’

और देखते ही देखते 2 दिन में मेरे 2 टुकड़े हो गए. मेरी आंखों से अश्रुधारा बह चली, मालिक को याद कर मैं फूटफूट कर रोया. ऐसा लगा मालिक बीच की दीवार को देख उदास खडे़ हैं. लगा कि काश, मालकिन और बसंत ने थोड़ा शांति से काम लिया होता तो मेरे यों 2 टुकड़े न होते.

बात यहीं थोड़े ही खत्म हुई. कुछ दिन बाद शिषिर, कूहू और पीहू आईं, मालकिन सब को देख कर खुश हुईं, शिषिर ने मालकिन, बसंत, कूहू, पीहू को एकसाथ बिठा कर कहा, ‘यह तो कोई बात नहीं हुई, इस मकान के 2 हिस्से आप लोगों ने अपने मन से कर लिए, मेरा हिस्सा कौन सा है?’

मालकिन चौंकी थीं, ‘क्या मतलब?’

‘मतलब यही, आधा आप ने ले लिया, आधा इस ने, मेरा हिस्सा कौन सा है?’

‘हिस्से थोड़े ही हुए हैं बेटा, मैं ने तो रोजरोज की किचकिच से तंग आ कर दीवार खड़ी करवा दी, मैं अपना कमातीखाती हूं, नहीं जरूरत है मुझे किसी की.’

बसंत गुर्राया, ‘बस, अब वही मेरा हिस्सा है, मेरा घर वहीं सैट हो गया.’

शिषिर ने कहा, ‘नहीं, यह नहीं हो सकता.’

कूहू बोली, ‘मां, हमें भैया ने इसलिए यहां आने के लिए कहा था. साफसाफ बात हो जाए, आजकल लड़कियों का भी हिस्सा है संपत्ति में, बसंत भैया, आधा नहीं मिल सकता आप को, घर में हमारा भी हिस्सा है.’

मालकिन सब के मुंह देख रही थीं. बसंत ने कहा, ‘दिखा दिया सब ने लालच. आ गए न सब अपनी औकात पर.’

खूब बहस हुई, मालकिन ने कहा, ‘ये झगड़े बंद करो, आराम से भी बात हो सकती है.’

बसंत पैर पटकते हुए अपने हिस्से वाली जगह में चला गया, शिषिर बाहर निकल गया, कूहूपीहू ने मां के गले में बांहें डाल दीं. बेटियों का स्नेह पा कर मालकिन की आंखें भर आई थीं. पीहू ने कहा, ‘मां, हमें गलत मत समझना, हम अपने लालची भाइयों को अच्छी तरह समझ गई हैं. हमें कुछ हिस्सा नहीं चाहिए, शिषिर भैया ने कहा था, मकान बेच देते हैं. मां किसी के साथ रहना चाहेंगी तो रह लेंगी या किराए पर रह लेंगी.’

कूहू ने कहा, ‘मां, यह घर हमें बहुत प्यारा है, हम इसे नहीं बेचने देंगी.’

मैं तो हमेशा की तरह चुपचाप सुन रहा था, घर की बेटियों पर बहुत प्यार आया मुझे.

कूहू और पीहू अगले दिन चली गई थीं. उन के जाने के बाद शिषिर इस बात पर अड़ गया कि उसे बताया जाए कि उस का हिस्सा कौन सा है, वह अपने हिस्से को बेच कर दिल्ली में ही मकान खरीदना चाहता था. झगड़ा बढ़ता ही जा रहा था. हाथापाई की नौबत आ गई थी.

अंतत: फैसला यह हुआ कि मुझे बेच कर 3 हिस्से कर दिए जाएंगे, आगे क्या करना है, इस विषय पर बहस कर शिषिर भी चला गया लेकिन फिर भी बसंत ने मालकिन को चैन से नहीं रहने दिया. थक कर मालकिन ने भी एक फैसला ले लिया, अपने हिस्से में ताला लगा कर अपना जरूरी सामान ले कर वे किराए के मकान में रहने चली गईं. मैं उन्हें आवाज देता रह गया. मेरी आहों ने किसी के दिल को नहीं छुआ. वे हवा में ही बिखर कर रह गईं.

तभी से मेरे दुर्दिन शुरू हो गए. जिस आंगन में मालिक अपनी मनमोहक आवाज में कबीर के दोहे गुनगुनाया करते थे वहां अब शराब और ताश की महफिलें जमतीं. छोटी बहू मना करती तो बसंत उस पर हाथ उठा देता. 2 भाइयों को मां के किराए पर रहने का अफसोस नहीं हुआ.

कूहू और पीहू अपने ससुराल से ही कोशिश कर रही थीं कि सब ठीक हो जाए, फिर दोनों भाइयों ने मिल कर यह फैसला किया कि बसंत भी कहीं किराए पर रहेगा जिस से थोड़ी तोड़फोड़ के बाद मेरे 3 हिस्से करने में उसे कोई परेशानी न हो. उन्होंने एक बार भी यह नहीं सोचा कि मैं सिर्फ ईंटपत्थर का एक मकान ही नहीं हूं, मैं वह घर हूं जिसे बनाने में मालिक ने, उन के पिता ने, एक ईमानदार सहृदय अध्यापक ने अपनी सारी मेहनत से एकएक पाई जोड़ कर मजदूरों के साथ खुद भी रातदिन लग कर कभी अपने स्वास्थ्य की भी चिंता नहीं की थी.

हर बार मालकिन जब भी किसी काम से यहां आईं, मेरे मन का कोनाकोना खिल गया. लेकिन उन के जाते ही मैं ऐसे रोया जैसे मां अपने बच्चे को छोड़ कर चली गई हो. बसंत ने अभी जाने की जल्दी नहीं दिखाई तो शिषिर ने गुस्से में एक नोटिस भेज दिया. बात कानून तक पहुंचते ही बढ़ गई. मैं ने सुना, एक दिन शिषिर आया, कह रहा था, ‘कूहू और पीहू का क्या मतलब है मकान से. उन्हें एक घुड़की दूंगा, चुप हो जाएंगी. बस, अब तुम जल्दी जाओ यहां से. मुझे अपना हिस्सा बेच कर दिल्ली में मकान खरीदना है.’

बसंत की बातों से अंदाजा हुआ कि मालकिन भी अब यहां नहीं आना चाहतीं. मैं बुरी तरह आहत हुआ. बसंत भी चला गया. मैं खालीपन से भर गया. अब मेरे आकार, बनावट की नापतोल होने लगी. कोनाकोना नापा जाता, लोग आते मेरी बनावट, मेरे रूपरंग पर मोहित होते. एक दिन कोई कह रहा था, ‘इस घर की लड़कियां कोर्ट चली गई हैं, वे पेपर्स पर साइन नहीं कर रही हैं. सब बच्चों के साइन किए बिना मकान बिक भी तो नहीं सकता आजकल, उन्होंने केस कर दिया है.’

मैं उन की बात सुन कर हैरान रह गया, फिर एक दिन कुछ लोग आए, गेट पर एक बड़ा ताला लगा कर नोटिस चिपका कर चले गए, मेरा केस अब कानून के हाथ में चला गया है, नहीं जानता हूं कि मेरा क्या होगा.

काश, मालकिन कहीं न जातीं, बसंत भी यहीं रहता फिर मुझे वह सब देखने को नहीं मिलता जिसे देख कर मैं जोरजोर से रो रहा हूं. पिछले हफ्ते ही मेरे पीछे वाली दीवार कूद कर रात को 2 बजे 3 लड़के एक लड़की को जबरदस्ती पकड़ कर ले आए. उन्होंने लड़की के मुंह पर कपड़ा बांध दिया था. पहले लड़कों ने खूब शराब पी, फिर उस लड़की की इज्जत लूट ली. लड़की चीखने की कोशिश ही करती रह गई, दुष्ट लड़कों ने उस के हाथ भी बांध दिए थे. मैं रोकता रह गया लेकिन मेरी सुनता कौन है. मेरे अपनों ने मेरी नहीं सुनी, वे दुष्ट लड़के तो पराए थे. क्या करता. इस अनहोनी को होते देख, बस, आंसू ही बहाता रहा.

डर गया हूं मैं. क्या यह सब फिर तो नहीं देखना पडे़गा. मेरा भविष्य क्या है, मुझे नहीं पता. काश, मैं यों न उजड़ा होता. एक घरआंगन में कोमल भावनाओं, स्मृतियों व अपनत्व की अनुभूति के सिवा होता ही क्या है? मेरी आंखें झरझर बहती रहती हैं.

अरे, हैप्पी बर्थडे की आवाजें आ रही हैं. सामने राघव ने शायद केक काटा है. आह, कितनी रौनक है सामने, और यहां? नहींनहीं, मैं सामने वाले घर से ईर्ष्या नहीं कर रहा हूं, मैं तो अपने समय पर, अपने अकेलेपन पर रो रहा हूं और अपनों से पुनर्मिलन की प्रतीक्षा कर रहा हूं. सिसकती दीवारें कभी मालिक को याद करती हैं, कभी मालकिन को, कभी बच्चों को. पता नहीं कब तक यों रहना होगा, अकेले, उदास, वीरान.

हस्तरेखा: शिखा ने कैसे निकाला रोहिणी की समस्या का हल

अचानक ही मैं बहुत विचलित हो गई. मन इतना उद्वेलित था कि कोई भी काम नहीं कर पा रही थी. बिलकुल सांपछछूंदर जैसी स्थिति हो गई. न उगलते बनता न निगलते. मेरा अतीत यहां भी मेरे सामने आ खड़ा हुआ था.

देखा जाए तो बात बहुत छोटी सी थी. शिखा, मेरी 16 वर्षीय बेटी, शाम को जब स्कूल से लौटी तो आते ही उस ने कहा, ‘‘मां, वह शर्मीला है न.’’

मेरी आंखों में प्रश्नचिह्न देख कर उस ने आगे कहा, ‘‘अरे वही, जो उस दिन मेरे जन्मदिन पर साड़ी पहन कर आई थी.’’

हाथ की पत्रिका रख कर रसोई की तरफ जाते हुए मैं ने पूछा, ‘‘हां, तो क्या हुआ उसे?’’

‘‘उसे कुछ नहीं हुआ. उस की चचेरी दीदी आई हुई हैं, मुरादाबाद से. पता है, वे हस्तरेखाएं पढ़ना जानती हैं,’’ स्कूल बैग को वहीं बैठक में रख कर जूते खोलती हुई शिखा ने कहा.

मैं चौकन्नी हो उठी. रसोई की ओर जाते मेरे कदम वापस बैठक की तरफ लौट पड़े. शिखा इस सब से अनजान अब तक जूते और मोजे उतार चुकी थी. गले में बंधी टाई खोलते हुए वह बोली, ‘‘कल रविवार है, इसलिए हम सभी सहेलियां शर्मीला के यहां जाएंगी और अपनेअपने हाथ दिखा कर उन से अपना भविष्य पूछेंगी.’’

मैं सोच में डूब गई कि आज यह अचानक क्या हो गया? मेरे भीतर एक ठंडा शिलाखंड सा आ गिरा? क्या इतिहास फिर अपनेआप को दोहराने आ पहुंचा है? क्या यह प्रकृति का विधान है या फिर मेरी अपनी लापरवाही? क्या नाम दूं इसे? क्या समझूं और क्या समझाऊं इस शिखा को? क्या यह एक साधारण सी घटना ही है, रोजमर्रा की दूसरी कई बातों की तरह? लेकिन नहीं, मैं इसे इतने हलके रूप में नहीं ले सकती.

शाम को खाना बनाते समय भी मन इसी ऊहापोह में डूबा रहा. सब्जी में मसाला डालना भूल गई और दाल में नमक. खाने की मेज पर भी सिर्फ हम दोनों ही थीं. उस की लगातार चलती बातों का जवाब मैं ‘हूंहां’ से हमेशा की ही तरह देती रही. लेकिन दिमाग पूरे समय कहीं और ही उलझा रहा. क्या इसे सीधे ही वहां जाने से मना कर दूं? लेकिन फिर खयाल आया कि उम्र के इस नाजुक दौर पर यों अपने आदेश को थोपना सही होगा?

आज तक कितना सोचसमझ कर, एकएक पग पर इस के व्यक्तित्व को निखारने का हर संभव प्रयास करती रही हूं. तब ऐसी स्थिति में यों एकदम से उस के खुले व्यवहार पर अपने आदेश का द्वार कठोरता से बंद कर पाऊंगी मैं?

नहीं, मैं ऐसा हरगिज नहीं कर सकती. तो क्या सबकुछ विस्तार से बता कर समझाना होगा उसे? अपना ही अतीत खोल कर रख देना पडे़गा इस तरह तो. अगर मैं ऐसा कर दूं तो शिखा की नजरों में मेरा तो अस्तित्व ही बिखर जाएगा. एक खंडित प्रतिमा बन कर क्या मैं उसे वह सहारा दे सकूंगी, जो उस के लिए हवा और पानी जैसा ही आवश्यक है?

मैं आगे सोचने लगी, ‘परंतु कुछ भी हो, यों ही मैं इसे किसी भी अनजान धारा में बहते हुए चुप रह कर नहीं देख सकती. शिखा के जन्म से ले कर आज तक मनचाहा वातावरण दे कर मैं इसे वैसा ही बना पाई हूं, जैसा चाहती थी सभ्य, सुशील, संवेदनशील और आत्मविश्वास से भरपूर. अपने जीवन की इस साधना को खंडित होने से बचाना है मुझे. ‘यही सब सोचतेविचारते मैं ने रात का काम निबटाया. अखिल दफ्तर के काम से बाहर गए हुए थे. अगर वे यहां होते तो मैं इतनी उद्विग्न न होती.

अखिल मेरे मन की व्यथा जानते हैं. मेरी भावनाओं की कद्र है उन के मन में. यही सोचते हुए मैं ने बची दाल, सब्जी फ्रिज में रखी, दूध को संभाला, रसोई का दरवाजा बंद किया और आ कर अपने बिस्तर पर लेट गई. शिखा मेरे हावभाव से कुछ हैरान तो थी, एकाध बार पूछा भी उस ने पर मैं ही मुसकरा कर टाल गई. उस से बात करने से पहले मैं अपनेआप को मथ लेना चाहती थी.

अंधेरे में भी आशा की एक किरण अचानक कौंधी. मैं सोचने लगी, ‘आवश्यक तो नहीं कि शिखा के हाथ की रेखाएं उस के विश्वासों और आकांक्षाओं के प्रतिकूल ही हों पर यह भी तो हो सकता है कि ऐसा न हो. तब क्या होगा? क्या वह भी मेरी तरह…?’ यह सोच कर ही मैं सिहर उठी, जैसे ठंडे पानी का घड़ा किसी ने मेरे बिस्तर पर उड़ेल दिया हो.

मेरा अतीत चलचित्र की तरह मेरी ही आंखों के सामने घूम गया…

मैं डाक्टर बनना चाहती थी. इसलिए प्री मैडिकल टैस्ट यानी  ‘पीएमटी’ की तैयारी में जीजान से जुटी थी. 11वीं तक हमेशा प्रथम आती रही. 80 प्रतिशत से कम अंक तो कभी आए ही नहीं. आत्मविश्वास मुझ में कूटकूट कर भरा था. बड़ी ही संतुलित जिंदगी थी. मातापिता का प्यार, विश्वास, भाइयों का स्नेह, उच्चमध्यवर्ग का आरामदेह जीवन और उज्ज्वल भविष्य.

प्रथम वर्ष का परीक्षाफल आने ही वाला था. इस के 1 दिन पहले की बात है. मैं सुबह 4 बजे से उठ कर अपनी पढ़ाई में जुटी थी. 10 बजतेबजते ऊब उठी. मां पंडितजी के पास किसी काम के लिए जा रही थीं. मैं भी यों ही उन के साथ हो ली, एकाध घंटा तफरीह मारने के अंदाज में.

पंडितजी ने मां के प्रणाम का उत्तर देते ही मुझे देख कर कहा, ‘अरे, यह तो रोहिणी बिटिया है. देखो तो, कितनी जल्दी बड़ी हो गई है. कौन सी कक्षा में आ गई इस वर्ष?’

मैं ने उन्हें बताया तो सुन कर बड़े प्रसन्न हुए और बोले, ‘अच्छाअच्छा, तो पीएमटी की तैयारी चल रही है. प्रथम वर्ष का परिणाम तो नहीं आया न अभी. वह क्या है, अपना सुरेश, मेरा नाती, उस ने भी प्रथम वर्ष की ही परीक्षा दी है.’

‘पंडितजी, आजकल में परिणाम आने ही वाला है,’ मां ने ही जवाब दिया था.

मैं तो अपनी आदत के अनुरूप उन के आसपास रखी पुस्तकों में उलझ गई थी.

मेरी ओर देख कर पंडितजी मुसकराए, ‘भई, यह तो हर वर्ष पूरे जिले में अपने विद्यालय का नाम रोशन करती है. आप तो मिठाई तैयार रखिए, इस बार भी अव्वल ही आएगी.’

मां भी इस प्रशंसा से खुश थीं. वे हंस कर बोलीं, ‘मुंह मीठा तो अवश्य ही होगा आप का. आज यह साथ आ ही गई है तो हाथ बांचिए न इस का.’

मां इन सब बातों में बहुत विश्वास रखती हैं, यह मुझे मालूम था. मुझे स्वयं भी जिज्ञासा हो आई. भविष्य में झांकने की आदिम लालसा मेरे भीतर एकाएक जाग उठी. मैं ने अपना हाथ पंडितजी की ओर फैला दिया.

उन्होंने भी सहज ही मेरा हाथ पकड़ा और लकीरों की उधेड़बुन में खो गए. लेकिन जैसेजैसे समय बीतता गया, उन के माथे की लकीरें गहरी होती गईं. फिर कुछ झिझकते हुए से बोले, ‘बेटी, अपने व्यवसाय को ले कर अधिक ऊंचे सपने न देखो. बहुत अच्छा भविष्य है तुम्हारा. बहुत अच्छा घरवर…’

मैं आश्चर्यचकित उन की ओर देख रही थी और मां परेशान हो चली थीं. शायद सोच रही थीं कि नाहक इस लड़की को साथ लाई, घर पर ही रहती तो अच्छा था.

आखिर मां बोल उठीं,  ‘पंडितजी, छोडि़ए, मैं तो आप के पास किसी और काम से आई थी.’’

लेकिन अचानक मां की दृष्टि मेरे बदरंग होते चेहरे पर पड़ी और वे चुप हो गईं.

कुछ पलों की उस खामोशी में मेरे भीतर क्याक्या नहीं हुआ. पहले तो अपमान की ज्वाला से जैसे मेरे सर्वांग जल उठा. मुझे लगा, मेरे चेहरे से भाप निकल कर आसपास का सबकुछ जला डालेगी. अपने भीतर की इस आग से मैं स्वयं भयभीत थी कि अगले ही पल मेरा शरीर हिमशिला सा ठंडा हो गया. मैं पसीने से भीग गई.

मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मैं कहां हूं और मेरे चारों ओर क्या हो रहा है. सन्नाटे के बीच मां की आवाज बहुत दूर से आती प्रतीत हुई, ‘चल, रोहिणी, तेरी तबीयत ठीक नहीं लगती. घर चलें.’

इस के बाद पंडितजी से उन्होंने क्या बोला, कब मैं खाना खा कर सो गई, मुझे कुछ याद नहीं. सब यंत्रचालित सा  होता रहा.

अगली सुबह जब मेरी नींद खुली तो मैं उस आरंभिक सदमे से बाहर आ चुकी थी. दिमाग की शून्यता फिर विचारों से धीरेधीरे भरने लगी थी. एकएक कर पिछले दिन का वृत्तांत मेरे सामने क्रम से आने लगा और विचार व्यवस्थित होने लगे.

मैं सोचने लगी कि यह मेरी कैसी पराजय है और क्यों? मैं तो पूरी मेहनत कर रही हूं. सामने ही तो सुखद परिणाम भी दिख रहे हैं, फिर यह सबकुछ मरीचिका कैसे बन सकता है? मैं अपने मन को दृढ़ करने के प्रयत्न में लगी थी. दरअसल, मां ने मुझे अकेला छोड़ दिया था.

पर यह सब तो मेरी जीवनसाधना पर कुठाराघात था. अब तक तो यही जाना था कि जीतोड़ कर की गई मेहनत कभी असफल नहीं होती. पर अब इस संदेह के बीज का क्या करूं? दादाजी भी तो कहते हैं कि हस्तरेखाओं में कुछ न कुछ तो लिखा ही रहता है. पर पढ़ना तो कोई विरला ही जानता है. मन को दिलासा दिया कि ंशायद पंडितजी पढ़ना जानते ही नहीं.

पर शक तो अपना फन फैलाए खड़ा था. असहाय हो कर मैं एकाएक रो पड़ी थी. पर फिर अपनेआप को संभाला, उठी और इस शक के फन को कुचलने की तैयारी में जुट गई. खूब मेहनत की मैं ने. मातापिता भी आश्वस्त थे मेरी पढ़ाई और आत्मविश्वास से. पर शक मेरे भीतर ही भीतर कुलबुला रहा था और शायद यही कुलबुलाहट उस दुर्घटना का कारण बनी.

मैं पहला पेपर देने जा रही थी. भाई मुझे परीक्षा भवन के बाहर तक छोड़ कर चला गया. अंदर जाने के लिए सड़क पार करने लगी कि जाने कहां से मेरा भविष्य निर्देशक बन एक ट्रक आया और मुझे एक जबरदस्त टक्कर लगा कर चलता बना. कुछ ही पलों में सब हो गया. समझ तब आया जब मैं हाथ में आई बाजी हार चुकी थी. अस्पताल में मेरी आंखें खुलीं. मेरे हाथों और सिर पर पट्टियां बंधी थीं. शरीर दर्द से अकड़ रहा था और मातापिता व भाई रोंआसे चेहरे लिए पास खड़े थे.

यहीं मुझ से दूसरी गलती हुई. मैं ने हार मान ली. मैं फिर उठ खड़ी होती, अगली बार परीक्षा देती तो मेरे सपने पूरे हो सकते थे. लेकिन मेरे साथसाथ घर में सभी मुझे छू कर लौटी मौत से आतंकित थे. सो, मेरे तथाकथित ‘भाग्य’ से सभी ने समझौता कर लिया. किसी ने मुझे इस दिशा में प्रोत्साहित नहीं किया. मेरा तो मन ही मर चुका था.

बीएससी 2 साल में पूरी की ही थी कि अखिल के घर से मेरे लिए रिश्ता आ गया.

अखिल को मैं बचपन से जानती थी. मैं ने ‘हां’ कर दी. उम्मीद थी, इन के साथ सुखी रहूंगी और सुखी भी रही. 18 साल हो गए विवाह को, कभी हमारे बीच कोई गंभीर मनमुटाव नहीं हुआ. घर में सभी सदस्य एकदूसरे को इज्जत व प्यार देते हैं.

मेरे मन में अपनी असफलता की फांस आरंभ में तो बहुत गहरी धंसी थी. लेकिन अखिल के प्यार ने इसे हलका कर दिया था. अनुकूल वातावरण में हृदय के घाव भर ही जाते हैं. लेकिन अनजाने में मेरी अपनी बेटी ने ही इस घाव को कुरेद कर हरा कर दिया था. मेरे सपनों, मेरी आकांक्षाओं और असफलताओं के बारे में कुछ भी तो नहीं जानती, शिखा.

मैं फिर सोच में डूब गई कि उसे किस तरह से समझाऊं. खुद की की गई गलतियां मैं उसे दोहराते हुए नहीं देख सकती थी. ऐसा नहीं कि मैं अपनी आकांक्षाएं उस के द्वारा पूरी कर लेना चाहती थी, लेकिन उस के अपने सपने मैं किसी भी सूरत में पूरे होते देखना चाहती थी. इस के लिए मुझे दुविधा के इस घेरे से बाहर निकलना ही था.

मैं बिस्तर से उठ खड़ी हुई. सोचा कि अभी देखूं शिखा क्या कर रही है? उस के कमरे का दरवाजा खुला था, बत्ती जल रही थी. मेज पर झुकी हुई शायद वह गणित के सूत्रों में उलझी हुई थी.

नंगे पैर जाने के कारण मेरे कदमों की आहट वह नहीं सुन सकी थी.

‘‘शिखा, सोई नहीं अभी तक?’’ मैं ने पूछा तो वह चौंक उठी.

‘‘ओह मां, आप भी, कैसे चुपके से आईं. डरा ही दिया मुझे. अभी तो सवा 11 ही हुए हैं. आप क्यों नहीं सोईं’’, झुंझलाते हुए वह मुझ से ही प्रश्न कर बैठी.

मैं धीरे से बोली, ‘‘बेटी, कल तुम शर्मीला के घर जाना चाहती हो न? उस की बहन, जो ज्योतिष…’’

‘‘अरे हां, लेकिन इस वक्त, यह कोई बात है करने की. यह तो फालतू की बात है. मैं तो विश्वास भी नहीं करती. बस, ऐसे ही थोड़ा सा परेशान करेंगे दीदी को,’’ शैतानी से हंसते हुए वह बोली.

मेरे चेहरे की तनी हुई रेखाओं को शायद ढीला पड़ते उस ने देख लिया था. तभी एकाएक गंभीर हो उठी और बोली, ‘‘मां, मालूम है, पिताजी क्या कहते हैं?’’

‘‘क्या?’’ मैं समझ नहीं पा रही थी किस संदर्भ में बात करना चाहती है मेरी शिखा.

‘‘पिताजी कहते हैं कि इंसान, उस की इच्छाशक्ति और उस की मेहनत, ये सब हर चीज से ऊपर होते हैं.’’

अपनी मासूम बिटिया के मुंह से इतनी बड़ी बात सुन कर मैं रुई के फाहे सी हलकी हो गई.

अपने कमरे में आ कर बिस्तर पर लेटते हुए मैं ने अनुभव किया कि शिखा मुझ पर नहीं गई, यह तो लाजवाब है. लेकिन नहीं, यह लड़की लाजवाब नहीं, यह तो मेरा जवाब है. फिर मुसकराते हुए मैं नींद के आगोश में समा गई.

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