वैभव खेबट एक दिन के लिए मुंबई गया था. उसे विदा करने के बाद उस की पत्नी नेहा और भाभी वंदना घर से बाहर जाने को तैयार हो गईं.
‘‘कोई भी मुश्किल आए, तो फोन कर देना. हम फौरन वहीं पहुंच जाएंगे,’’ इन की सास शारदा ने दोनों को हौसला बढ़ाया.
‘‘इसे संभाल कर रख लो,’’ ससुर रमाकांत ने एक चैकबुक वंदना को पकड़ाई, ‘‘मैं ने 2 ब्लैंक चैक साइन कर दिए हैं. आज इस समस्या का अंत कर के ही लौटना.’’
‘‘जी, पिताजी,’’ एक आत्मविश्वासभरी मुसकान वंदना के होंठों पर उभरी.
दोनों बहुओं ने अपने सासससुर के पैर छू कर आशीर्वाद लिया और दरवाजे की तरफ चल पड़ीं. रमाकांत जब से शहर आए हैं, शहरी बन कर जी रहे हैं पर उन के पिता गांव के चौधरी थे और जानते थे कि टेढी उंगली से घी निकालना आसान नहीं है पर निकाला जा सकता है. वे तो कितने ही चुनाव जीत चुके थे और उन के चेलेचपाटे हर तरफ बिखरे पड़े थे. वे अपने बेटे की जिंदगी बचाने के लिए कुछ भी करने को तैयार थे.
कार से उन्हें रितु के फ्लैट तक पहुंचने में 40 मिनट का समय लगा.
‘‘नेहा, ध्यान रहे कि तुम्हें उस के सामने कमजोर नहीं दिखना है. नो आंसुं, नो गिड़गिड़ाना, आंखों में नो चिंता, ओके.’’ वंदना ने रितु के फ्लैट के दरवाजे के पास पहुंच कर अपनी देवरानी को हिदायतें दीं.
‘‘ओके,’’ नेहा ने मुसकराने के बाद एक गहरी सांस खींची और आने वाली चुनौती का सामना करने को तैयार हो गई.
मैजिक आई में से उन दोनों को देखने के बाद रितु ने दरवाजा खोला और औपचारिक सी मुसकान होंठों पर सजा कर बोली, ‘‘कहिए.’’
‘‘रितु, मैं वंदना खास हूं और यह मेरी देवरानी नेहा है,’’ वंदना ने शालीन लहजे मैं उसे परिचय दिया.
नामों से उन दोनों को पहचानने में रितु को कुछ देर लगी, पर जब नामों का महत्त्व उस की समझ में आया, तो उस के चेहरे का रंग एकदम से फीका पड़ गया था.
‘‘मुझ से क्या काम है आप दोनों को?’’ अपनी आवाज में घबराहट के भावों को दूर रखने की कोशिश करते हुए उस ने सवाल किया.
‘‘तुम ने शायद अभी तक हमें पहचाना नहीं है?’’
‘‘आप वैभव सर की भाभी और ये सर की वाइफ हैं न.’’
‘‘करैक्ट,’’ वंदना ने उस की बगल से हो कर फ्लैट के अंदर कदम रखा, ‘‘आगे की बात हम अंदर बैठ कर करें, तो तुम्हें कोई एतराज होगा?’’ “आइए,” अब घबराहट की जगह चिंता के भाव रितु की आवाज में पैदा हुए और उस ने एक तरफ हो कर वंदना व नेहा को अंदर आने का पूरा रास्ता दे दिया.
ड्राइंगरूम में उन दोनों के सामने सोफे पर बैठते हुए रितु ने पूछा, ‘‘आप चाय या कुछ ठंडा लेंगी?’’
‘‘नो, थैंक्स, हम जो बात करने आए हैं, उसे शुरू करें?’’ वंदना एकदम से गंभीर हो गई.
‘‘करिए,’’ रितु ने बड़ी हद तक अपनी भावनाओं नियंत्रित कर लिया था.
वंदना ने अर्थपूर्ण लहजे में नेहा की तरफ देखा. नेहा ने एक बार अपना गला साफ किया और रितु से मुसकराते हुए कहा, ‘‘तुम सचमुच किसी फिल्मस्टार जैसी सुंदर हो. वैभव को अपने प्रेमजाल में फंसाना तुम्हारे लिए बड़ा आसान रहा होगा.’’
‘‘न, न, सफाई दे कर इस आरोप से बचने की कोशिश मत करो, रितु,’’ वंदना ने रितु को कुछ बोलने से पहले ही टोक दिया, ‘‘इन तसवीरों को देख लोगी, तो हम सब का काफी वक्त बरबाद होने से बच जाएगा. इन के प्रिंट कुछ दिनों पहले ही लिए गए हैं. मोबाइल पर और बहुत सी हैं.” और वंदना ने अपने बैग से निकाल कर कुछ तसवीरें रितु को पकड़ा दीं.
उन पर नजर डालने के बाद पहले तो रितु डर सी गई, लेकिन धीरेधीरे उस की आंखों से गुस्सा झलकने लगा. उस ने तसवीरें मेज पर फेंक दीं और खामोश रह कर उन दोनों की तरफ आक्रामक नजरों से देखने लगी.
‘‘इन तसवीरों से साफ जाहिर हो जाता है कि तुम वैभव की रखैल हो और…’’
‘‘आप तमीज से बात कीजिए, प्लीज,’’ रितु ने वंदना को गुस्से से भरी आवाज में टोक दिया.
‘‘आई एम सौरी, पर शादीशुदा आदमी से संबंध रखने वाली स्त्री को रखैल नहीं तो फिर क्या कहते हैं, रितु?’’
‘‘आप दोनों यहां से चली जाओ. मैं इस बारे में कोई भी बात वैभव की मौजूदगी में ही करूंगी.’’
‘‘ऐसा,’’ वंदना झटके से उठी और रितु का हाथ मजबूती से पकड़ कर बोली, ‘‘आओ, मैं इस खिडक़ी से तुम्हें कुछ दिखाना चाहती हूं.’’
रितु को लगभग खींचती सी वंदना खुली खिडक़ी के पास ले आई और नीचे सडक़ पर खड़े एक व्यक्ति की तरफ इशारा कर बोली, ‘‘यह आदमी रुपयों की खातिर कुछ भी कर सकता है और दौलत की हमारे पास कोई कमी नहीं है. इस तथ्य से तुम भलीभांति परिचित न होतीं, तो वैभव को अपने जाल में फंसाती ही नहीं.’’
‘‘आज यह आदमी हमारे साथ तुम्हारा फ्लैट देखने आया है. हमें उंगली टेढ़ी करने को मजबूर मत करो, नहीं तो अपने भलेबुरे के लिए तुम खुद जिम्मेदार होगी.’’
वंदना ने उसे से धमकी धीमी पर बेहद कठोर आवाज में दी थी. एक बार को तो ऐसा लगा कि रितु भडक़ कर तीखा जवाब देगी, पर उस ने ऐसा करना उचित नहीं समझा और वापस अपनी जगह आ बैठी.
जब रितु ने कुछ और बोलने के लिए मुंह नहीं खोला तो नेहा ने वार्त्तालाप आगे बढ़ाया, ‘‘हमारी तुम से कोई दुश्मनी नही है, रितु, लेकिन हम आज इस समस्या का स्थाई हल निकाल कर ही यहां से जाएंगी. हमें उम्मीद है कि तुम ऐसा करने में अपना पूरा सहयोग दोगी.’’
‘‘मुझ से कैसा सहयोग चाहिए?’’ रितु ने माथे में बल डाल कर पूछा.
‘‘तुम्हारे इस सवाल का जवाब देने से पहले मैं तुम से कुछ पूछना चाहती हूं.’’
‘‘क्या?’’
‘‘यही कि तुम्हें वैभव चाहिए या उसे छोड़ कर उस की जिंदगी से बहुत दूर चली जाने की अच्छीखासी कीमत.’’
‘‘क्या मतलब?’’ रितु जोर से चौंक पड़ी.
‘‘मतलब मैं समझाती हूं,’’ वंदना बीच में बोल पड़ी, ‘‘देखो, अगर तुम्हें विश्वास हो कि वैभव और तुम्हारे बीच प्यार की जड़ें मजबूत और गहरी हैं, तो तुम उसी को चुनो. नेहा वैभव को तलाक दे देगी क्योंकि वह उसे किसी के भी साथ बांटने को तैयार नहीं है. लेकिन अगर तुम वैभव के साथ सिर्फ मौजमस्ती के लिए प्रेम का खेल खेल रही हो, तो हम तुम्हें इस खेल को सदा के लिए खत्म करने की कीमत देने को तैयार हैं.’’
‘‘मुझे नहीं लगता कि तुम वैभव को आसानी से तलाक देने के लिए तैयार हो जाओगी,’’ कुछ पलों के सोचविचार के बाद रितु ने नेहा को घूरते हुए ऐसी शंका जाहिर की, तो देवरानी व जेठानी दोनों ठहाका मार कर इकट्ठी हंस पड़ीं.
अपनी हंसी पर काबू पाते हुए नेहा ने जवाब दिया, ‘‘यू आर वेरी राइट, रितु. जिस इंसान के साथ मैं 5 साल से शादी कर के जुड़ी हुई हूं और जो मेरी 2 साल की बेटी का पिता है, यकीनन उसे मैं आसानी से तलाक नहीं दूंगी. मुझे बड़ी मेहनत करनी पड़ेगी इस काम को करने के लिए.’’
‘‘तुम्हें कैसी मेहनत करनी पड़ेगी,’’ रितु की आंखों में उलझन के भाव उभरे.
‘‘मुझे वैभव के मन में अपने लिए इतनी नफरत पैदा करनी पड़ेगी कि वह मुझे तलाक देने पर तुल जाए. उस के दिल को बारबार गहरे जख्म देने पड़ेंगे, माई डियर.’’
‘‘और यह काम तुम कैसे करोगी?’’
‘‘बड़ी आसानी से. तुम उसे अगर बहुत प्यारी होगी, तो वह तुम्हें दुख और परेशान देख कर जरूर गुस्से और नफरत से धधकता ज्वालामुखी बन जाएगा.’’
वंदना ने उस की बात का आगे खुलासा किया, ‘‘नेहा रोज तुम से मिलना शुरू कर देगी. तुम्हें तंग करने और तुम्हारा नुकसान करने का कोई मौका यह नहीं चूकेगी. वैभव इसे मना करेगा पर यह न मानेगी. बस, कुछ दिनों में ही वैभव इस से बहुत ज्यादा खफा हो कर तलाक लेने की जिद पकड़ लेगा और तुम्हारी लौटरी निकल आएगी.’’
‘तुम दोनों पागल हो. प्लीज, मेरा दिमाग न खराब करो और यहां से जाओ,’’ रितु ने चिढ़े अंदाज में उन के सामने हाथ जोड़ दिए.
‘‘इस ने मुझे पागल कहा है. मैं पागल नहीं हूं,’’ नेहा अचानक ही जोर से चिल्लाई और उस की अगली हरकत रितु का खून सुखा गई. गुस्से से कांप रही नेहा ने पास में रखा सुंदर फूलदान उठाया और उसे फर्श पर पटक कर चूरचूर कर दिया.
फूलदान के टूटने की आवाज में बुरी तरह से डरी हुई रितु के चीखने की आवाज दब गई थी.
‘‘जैसे चोर को चोर कहो तो वह गुस्सा हो जाता है, वैसे ही पागल हो पागल कहो तो वह नाराज हो उठता है. इस फूलदान के टूटने की टैंशन मत लो. हर टूटफूट को मैं नोट कर रही हूं और उन की कीमत चुका कर जाऊंगी,’’ वंदना ने धीमी आवाज में रितु से कहा और फिर बैग से डायरी निकाल कर उस में पैन से फूलदान की कीमत एक हजार रुपए लिख ली.
नेहा ने टूटे फूलदान का जोड़ीदार मेज पर से उठाया और कमरे में इधर से उधर चहलकदमी करने लगी. बीचबीच में वह जब भी रितु को घूर कर देखती, तो उस बेचारी का डर के मारे दिल कांप जाता.
‘‘टैंशन मत लो, यार. ये इंसानों के साथ हिंसा नहीं करती है,’’ वंदना की इस सलाह को मानते हुए नेहा अपनी जगह आ कर बैठ गई.
कुछ देर तो नेहा ने रितु को गुस्से से घूरना जारी रखा. फिर अचानक बड़ी प्यारी सी मुसकान वह अपने होंठों पर लाई और उस से पूछा, ‘‘तो मेरी सौतन को वैभव चाहिए, या उसे छोडऩे की कीमत.’’
‘‘म…मैं वैभव की जिंदगी से निकल जाऊंगी,’’ रितु ने थूक सटकते हुए जवाब दिया.
‘‘गुड, वैरी गुड,’’ नेहा ने खुश हो कर ताली बताई, ‘‘लेकिन हमें कैसे विश्वास हो कि तुम सच कह रही हो.’’
‘‘मैं सच ही बोल रही हूं.’’
‘‘भाभी, क्या हमें इस की बात पर विश्वास कर लेना चाहिए,’’ नेहा वंदना की तरफ घूमी.
‘‘हमारा विश्वास है कि ये अपने कार्यों से जीतेगी, न कि सिर्फ बातों से,’’ वंदना ने अजीब सा मुंह बनाते हुए जवाब दिया.
‘‘हमारे गांवों में जब भी चौपाल पर फैसले होते थे, लोग तब तो हां कर देते थे पर बाद में मुकर जाते थे. हां, जिन औरतों के मर्द दूसरी औरतों के चक्कर में पड़ जाते थे वे तो देवी आने का नाटक बहुत दिनों तक कर सकती थीं. कौन जाने कितनी असल में मानसिक बीमार होती थीं, कितनी स्वांग करती थीं. नेहा ने कहां, क्या सीखा, मैं नहीं जानती.’’
‘‘और हमारा विश्वास जीतने वाले कार्य क्या हैं, भाभी?’’
‘‘नौकरी से इस्तीफा देने के बाद इस शहर को हमेशा के लिए छोड़ कर जाना.’’
‘‘तुम पाग…’’ फूलदान वाली घटना को याद कर रितु ने अपनी जबान को शब्द पूरा करने से रोका और उन से झगड़ालू लहजे में बोली, ‘‘जो काम हो नहीं सकता, उसे करने के लिए मुझे मत कहो. मैं अपनी अच्छीखासी नौकरी छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी.’’
वंदना ने अपने मोबाइल पर एक नंबर मिलाते हुए रितु से कहा, ‘‘मेरे ससुर मिस्टर आनंद खेवट की सोसाइटी में बड़ी धाक है और उन की पहुंच ऊंचे लोगों तक है. उन्होंने तुम्हारा तबादला तुम्हारी होम सिटी बेंगलुरु की शाखा में करा दिया है. मैं तुम्हारे एमडी मिस्टर राजन से तुम्हारी बात कराती हूं.’’ तुम जानती हो न रिजर्वेशन वालों का समाज कई बार एकजुट हो जाता है.
संपर्क स्थापित होते ही वंदना ने मिस्टर राजन से कहा, ‘‘सर, मैं आनंद खेबट की बड़ी बहू वंदना बोल रही हूं. उन्होंने आप से बात…जी, मैं रितु को फोन देती हूं. थैंक यू वैरी मच, सर.’’
वंदना ने मोबाइल रितु को पकड़ा दिया था. उस बेचारी को अपने एमडी से मजबूरन बात करनी पड़ी.
‘‘गुड मौर्निंग सर. …नहीं सर, यह तो मेरे लिए अच्छी खबर है. सर, क्या मैं आज ही चार्ज दे सकती हूं. आई एम ग्रेटफुल टु यू, सर. थैंक यू वैरी मच, सर. गुड डे टु यू, सर.’’
वंदना का मोबाइल वापस करते हुए उस ने हैरान लहजे में पूछा, ‘‘जिस तबादले के लिए मैं सालभर से नाकाम कोशिश कर रही थी, उसे इतनी आसानी से तुम लोगों ने कैसे करा लिया?’’
‘‘अभी तुम ने देखा ही क्या है. अब इसे भी लगेहाथ संभाल लो,’’ उस की प्रशंसा को नजरअंदाज करते हुए वंदना ने बेंगलुरु का एक प्लेन टिकट उसे पकड़ा दिया, “इस का बोर्डिंग पास भी ले लिया गया है.”
‘‘यह आज शाम की फ्लाइट है,’’ नेहा ने अपनी आवाज में नकली मिठास घोल कर उसे समझाया.
‘‘इस तरह की जोरजबरदस्ती मैं नहीं सहूंगी. मैं तुम लोगों के साथ सहयोग करने को तैयार हूं, पर अपनी सहूलियत को ध्यान में रख कर ही मैं बेंगलुरु जाने का कार्यक्रम बनाऊंगी,’’ रितु एकदम से चिढ़ उठी.
‘‘अपनी सहूलियत का ध्यान रखोगी तो तुम्हारा 5 लाख रुपए का नुकसान हो जाएगा.’’
‘‘वह कैसे?’’
‘‘तुम्हारी जिंदगी को अस्तव्यस्त करने वाली इतनी ज्यादा हलचल पैदा करने का हम इतना ही मुआवजा तुम्हें देना चाहते हैं.’’
‘‘रियली.’’
‘‘यैस.’’
‘‘लेकिन, मुझे पैकिंग करनी होगी, चार्ज देने औफिस भी जाना है. मुझे 2-3 दिन का समय…’’
‘‘कतई नहीं मिलेगा,’’ वंदना ने उसे टोक दिया, ‘‘यह डील इसी बात पर निर्भर करती है कि तुम आज ही वैभव की जिंदगी से सदा के लिए निकल जाओ. फिर एक सूटकेस को पैक करने में देर ही कितनी लगती है.’’
‘‘मेरे बाकी के सामान का क्या होगा.’’
‘‘उसे कभी बाद में आ कर ले जाना. हम दोनों आज भी पैकिंग कराने में तुम्हारी हैल्प करेंगी और उस दिन भी जब तुम बाकी का सामान लेने वापस आओगी.’’
‘‘मेरा सारा जरूरी सामान एक सूटकेस में नहीं आएगा.’’
‘‘तुम किसी नई जगह नहीं, बल्कि अपने मातापिता के घर जा रही हो. फिर 5 लाख रुपयों से तुम मनचाही खरीदारी कर सकती हो.’’
‘‘मुझे इस फ्लैट का किराया देना है.’’
‘‘वह भी हम दे देंगे और तुम्हारे 5 लाख रुपए में से वह रकम काटेंगे भी नहीं. और कोई समस्या मन में पैदा हो रही हो, तो बताओ.’’
रितु को इस सवाल का कोई जवाब नहीं सूझा, तो वंदना और नेहा दोनों की आंखों में सख्ती के भाव उभर आए.
पहले वंदना ने उसे चेतावनी दी, ‘‘इस फ्लैट का अगले 3 महीने तक किराया हम देंगे. तुम्हारे सामान को बेंगलुरु तक भिजवाने का खर्चा भी हमारे सिर होगा. तुम्हारा ट्रांसफर मनचाही जगह हो ही गया है. ऊपर से तुम्हें 5 लाख रुपए और मिलेंगे.’’
‘‘इन सब के बदले में हम इतना चाहते हैं कि तुम वैभव की जिंदगी से पूरी तरह से निकल जाओ. न कभी उसे फोन करना, न कभी उस के फोन का जवाब देना. क्या तुम्हें हमारी यह शर्त मंजूर है?’’
रितु कुछ जवाब देती उस से पहले नेहा बोल पड़ी, ‘‘रितु, तुम्हारे मन में हमें डबल क्रौस कर वैभव से किसी भी तरह जुड़े रहने का खयाल आ सकता है. उस स्थिति में तुम हमारी यह चेतावनी ध्यान रखना.’’
‘‘वैभव की दौलत तुम्हें उस की तरफ आकर्षित करती है, तो उस दौलत के ऊपर हम दोनों का भी हक है, यह तुम कभी मत भूलना. आज हम वैभव की गलती का मुआवजा तुम्हें खुशी से दे रहे हैं. अगर कल को तुम ने हमें धोखा दिया, तो उस की दौलत की ताकत के बल पर हम तुम्हारा भारी नुकसान करने में जरा भी नहीं हिचकिचाएंगी.’’
‘‘मैं वैभव सर से कोई संबंध नहीं रखूंगी,’’ नेहा की आंखों से फूट रही चिनगारियों से घबरा कर रितु ने फौरन वादा किया और फिर हिम्मत कर के आगे बोली, ‘‘लेकिन मुझे 5 लाख रुपए की रकम मिल जाएगी, मैं इस बात का कैसे विश्वास करूं?’’
‘‘अगर हमारा चैक बाउंस हो जाए, तो तुम भी अपना वादा तोड़ कर वैभव से फिर संबंध जोड़ लेना.’’
‘‘ठीक बात है. मुझे रुपए मिल गए तो मैं उन की जिंदगी से हमेशा के लिए निकल जाऊंगी.’’
‘‘क्या तुम सच बोल रही हो?’’
‘‘बिलकुल.’’
‘‘हमें किसी तरह की शिकायत ले कर तुम से मिलने बेंगलुरु तो नहीं आना पड़ेगा?’’
‘‘न…नहीं.’’
‘‘अपना भलाबुरा पहचानती हो, तो अपने इस वादे को कभी न तोडऩा,’’ नेहा ने अचानक ही दूसरा फूलदान उठा कर फर्श पर दे मारा, तो रितु की इस बार भी चीख निकल गई.
वे दोनों रितु को गुस्से से घूर रही थीं. बुरी तरह से डरी रितु उन की आंखों में देखने की हिम्मत पैदा नहीं कर सकी और उस ने नजरें झुका लीं.
‘‘अब उठो और फटाफट पैकिंग करनी शुरू करो,’’ वंदना के इस आदेश पर रितु फौरन उठ कर अपने शयन कक्ष की तरफ चल पड़ी थी.