संस्कार: क्या जवान बेटी के साथ सफर करना सही था

जवान बेटी के साथ अकेले सफर करते रेलगाड़ी के कंपार्टमैंट में जवान लड़कों के ग्रुप के कारण वह अपने को असुरक्षित महसूस कर रही थी. लगभग 3 वर्ष बाद मैं लखनऊ जा रही थी. लखनऊ मेरे लिए एक शहर ही नहीं, एक मंजिल है क्योंकि वह मेरा मायका है. उस शहर में पांव रखते ही जैसे मेरा बचपन लौट आता है. 10 दिनों बाद भैया की बड़ी बेटी शुभ्रा की शादी थी. मैं और मेघना दोपहर की गाड़ी से जा रही थीं. मेरे पति राजीव बाद में पहुंचने वाले थे. कुछ तो इन्हें काम की अधिकता थी, दूसरे, इन की तो ससुराल है. ऐनवक्त पर पहुंच कर अपना भाव भी तो बढ़ाना था.

मेरी बात और है. मैं ने सोचा था कुछ दिन वहां चैन से रहूंगी, सब से मिलूंगी, बचपन की यादें ताजा करूंगी और कुछ भैयाभाभी के काम में भी हाथ बंटाऊंगी. शादी वाले घर में सौ तरह के काम होते हैं.

अपनी शादी के बाद पहली बार मैं शादी जैसे अवसर पर मायके जा रही थी. मां का आग्रह था कि मैं पूरी तैयारी के साथ आऊं. मां पूरी बिरादरी को दिखाना चाहती थीं आखिर उन की बेटी कितनी सुखी है, कितनी संपन्न है या शायद दूर के रिश्ते की बूआ को दिखाना चाहती होंगी, जिन का लाया रिश्ता ठुकरा कर मां ने मुझे दिल्ली में ब्याह दिया था. लक्ष्मी बूआ भी तो उस दिन से सीधे मुंह बात नहीं करतीं.

शुभ्रा के विवाह में जाने का मेरा भी चाव कुछ कम नहीं था, उस पर मां का आग्रह. हम दोनों, मांबेटी ने बड़े ही मनोयोग से समारोह में शामिल होने की तैयारी की थी. हर मौके पर पहनने के लिए नई तथा आधुनिक पोशाक, उस से मैचिंग चूडि़यां, गहने, सैंडल और न जाने क्याक्या जुटाया गया.

पूरी उमंग और उत्साह के साथ हम स्टेशन पहुंचे. राजीव हमें विदा करने आए थे. हमारे सहयात्री कालेज के लड़के थे जो किसी कार्यशाला में भाग लेने लखनऊ जा रहे थे. हालांकि गाड़ी चलने से पहले वे सब अपने सामान के यहांवहां रखरखाव में ही लगे थे, फिर भी उन्हें देख कर मैं कुछ परेशान हो उठी. मेरी परेशानी शायद मेरे चेहरे से झलकने लगी थी जिसे राजीव ने भांप लिया था. ऐसे में वे कुछ खुल कर तो कह न पाए लेकिन मुझे होशियार रहने के लिए जरूर कह गए. यही कारण था कि चलतेचलते उन्होंने उन लड़कों से भी कुछ इस तरह से बात की जिस से यात्रा के दौरान माहौल हलकाफुलका बना रहे.

गाड़ी ने रफ्तार पकड़ी. हम अपनी मंजिल की तरफ बढ़ने लगे. लड़कों में अपनीअपनी जगह तय करने के लिए छीनाझपटी, चुहलबाजी शुरू हो गई.

वैसे, मुझे युवा पीढ़ी से कभी कोई शिकायत नहीं रही. न ही मैं ने कभी अपने और उन में कोई दूरी महसूस की है. मैं तो हमेशा घरपरिवार के बच्चों और नौजवानों की मनपसंद आंटी रही हूं. मेरा तो मानना है कि नौजवानों के बीच रह कर अपनी उम्र के बढ़ने का एहसास ही नहीं होता, लेकिन उस समय मैं लड़कों की शरारतों और नोकझोंक से कुछ परेशान सी हो उठी थी.

ऐसा नहीं कि बच्चे कुछ गलत कर रहे थे. शायद मेरे साथ मेघना का होना मुझे उन के साथ जुड़ने नहीं दे रहा था. कुछ आजकल के हालात भी मुझे परेशान किए हुए थे. देखने में तो सब भले घरों के लग रहे थे फिर भी एकसाथ 6 लड़कों का गु्रप, उस पर किसी बड़े का उन के साथ न होना, उस पर उम्र का ऐसा मोड़ जो उन्हें शांत, सौम्य तथा गंभीर नहीं रहने दे रहा था. मैं भला परेशान कैसे न होती.

मेरा ध्यान शुभ्रा की शादी, मायके जाने की खुशी और रास्ते के बागबगीचों, खेतखलिहानों से हट कर बस, उन लड़कों पर केंद्रित हो गया था. थोड़ी ही देर में हम उन लड़कों के नामों से ही नहीं, आदतों से भी परिचित हो गए.

घुंघराले बालों वाला सांवला सा, नाटे कद का अंकित फिल्मों का शौकीन लगता था. उस के उठनेबैठने में फिल्मी अंदाज था तो बातचीत में फिल्मी डायलौग और गानों का पुट था. एक लड़के को सब सैम कह कर बुला रहे थे. यह उस के मातापिता का रखा नाम तो नहीं लगता था, शायद यह दोस्तों द्वारा किया गया नामकरण था.

चुस्तदुरुस्त सैम चालढाल और पहनावे से खिलाड़ी लगता था. मझली कदकाठी वाला ईश गु्रप का लीडर जान पड़ता था. नेवीकट बाल, लंबी और घनी मूंछें और बड़ीबड़ी आंखों वाले ईश से पूछे बिना लड़के कोई काम नहीं कर रहे थे. बिना मैचिंग की ढीलीढाली टीशर्ट पहने, बिखरे बालों वाला, बेपरवाह तबीयत वाला समीर था जो हर समय चुइंगम चबाता हुआ बोलचाल में इंग्लिश भाषा के शब्दों का इस्तेमाल ज्यादा कर रहा था.

मेरे पास बैठे लड़के का नाम मनीष था. लंबा, गोराचिट्टा, नजर का चश्मा पहने वह नीली जींस और कीमती टीशर्ट में बड़ा स्मार्ट लग रहा था. कुछ शरमीले स्वभाव का पढ़ाकू सा लगने वाला मनीष कान में ईयर फोन और एक हाथ में मोबाइल व दूसरे हाथ में एक इंग्लिश नौवेल ले कर बैठा ही था कि आगे बढ़ कर रजत ने उस का नौवेल छीन लिया. रजत बड़ा ही चुलबुला, गोलमटोल हंसमुख लड़का था. हंसते हुए उस के दोनों गालों पर गड्ढे पड़ते थे. रजत पूरे रास्ते हंसताहंसाता रहा. पता नहीं क्यों, मुझे लगा उस की हंसी, उस की शरारतें सब मेघना के कारण हैं. इसलिए हंसना तो दूर, मेरी नजरों का पहरा हरदम मेघना पर बैठा रहा.

मेरे ही कारण मेघना बेचारी भी दबीघुटी सी या तो खिड़की से बाहर झांकती रही या आंखें बंद कर के सोने का नाटक करती रही. अपने हमउम्र उन लड़कों के साथ न खुल कर हंस पाई न ही उन की बातचीत में शामिल हो सकी. वैसे, न मैं ही ऐसी मां और न मेघना ही इतनी पुरातनपंथी लड़की है. वह तो हमेशा सहशिक्षा में ही पढ़ी है. वह क्या कालेज में लड़कों के साथ बातचीत, हंसीमजाक नहीं करती होगी. फिर भी न जाने क्यों, शायद घर से दूरी या अकेलापन मेने मन में असुरक्षा की भावना को जन्म दे गया था.

उन से परिचय के आदानप्रदान और बातचीत में मैं ने कोई विशेष रुचि नहीं दिखाई. मुझे लगा वे मेघना तक पहुंचने के लिए मुझे सीढ़ी बनाएंगे. उन लड़कों की बहानों से उठी नजरें जब मेघना से टकरातीं तो मैं बेचैन हो उठती. उस दिन पहली बार मेघना मुझे बहुत ही खूबसूरत नजर आई और पहली बार मुझे बेटी की खूबसूरती पर गर्व नहीं, भय हुआ. मुझे शादी में इतने दिन पहले इस तरह जाने के अपने फैसले पर भी झुंझलाहट होने लगी थी. वास्तव में मायके जाने की खुशी में मैं भूल ही गई थी कि आजकल औरतों का अकेले सफर करना कितना जोखिम का काम है. वे सभी खबरें जो पिछले दिनों मैं ने अखबारों में पढ़ी थीं, एकएक कर के मेरे दिमाग पर दस्तक देने लगीं.

कई घंटों के सफर में आमनेसामने बैठे यात्री भला कब तक अपने आसपास से बेखबर रह सकते हैं. काफी देर तक तो हम दोनों मुंह सी कर बैठी रहीं लेकिन धीरेधीरे दूसरी तरफ से परिचय पाने की उत्सुकता बढ़ने लगी. शायद यात्रा के दौरान यह स्वाभाविक भी था. यदि सामने कोई परिवार बैठा होता तो क्या खानेपीने की चीजों का आदानप्रदान किए बिना हम रहतीं और अगर सफर में कुछ महिलाओं का साथ होता तो क्या वे ऐसे ही अजनबी बनी रहतीं. उन कुछ घंटों के सफर में तो हम एकदूसरे के जीवन का भूगोल, इतिहास, भूत, वर्तमान सब बांच लेतीं.

चूंकि वे जवान लड़के थे और मेरे साथ मेरी जवान बेटी थी इसलिए उन की उठी हर नजर मुझे अपनी बेटी से टकराती लगती. उन की कही हर बात उसी को ध्यान में रख कर कही हुई लगती. उन की हंसीमजाक में मुझे छींटाकशी और ओछापन नजर आ रहा था. कुछ घंटों का सफर जैसे सदियों में फैल गया था. दोपहर कब शाम में बदली और शाम कब रात में बदल गई मुझे खबर ही न हुई क्योंकि मेरे अंदर भय का अंधेरा बाहर के अंधेरे से ज्यादा घना था.

हालांकि जब भी कोई स्टेशन आता, लड़के हम से पूछते कि हमें चायपानी या किसी अन्य चीज की जरूरत तो नहीं. उन्होंने मेघना को गुमसुम बैठे बोर होते देखा तो अपनी पत्रपत्रिकाएं भी पेश कर दीं और वे अपनेअपने मोबाइल में व्यस्त हो गए. जबजब उन्होंने कुछ खाने के लिए पैकेट खोले तो बड़े आदर से पहले हमें औफर किया, हालांकि, हम हमेशा मना करती रहीं.

मैं ने अपनेआप को बहुत समझाया कि जब आपत्ति करने लायक कोई बात नहीं, तो मैं क्यों परेशान हो रही हूं, मैं क्यों सहज नहीं हो जाती. लेकिन तभी मन के किसी कोने में बैठा भय फन फैला देता. कहीं मेरी जरा सी ढील, बात को इतनी दूर न ले जाए कि मैं उसे समेट ही न सकूं. मैं तो पलपल यही मना रही थी कि यह सफर खत्म हो और मैं खुली हवा में सांस ले सकूं.

कानपुर स्टेशन आने वाला था. गाड़ी वहां कुछ ज्यादा देर के लिए रुकती है. डब्बे में स्वाभाविक हलचल शुरू हो गई थी. तभी एक अजीब सा शोर कानों में टकराने लगा. गाड़ी की रफ्तार धीमी हो गई थी. स्टेशन आतेआते बाहर का कोलाहल कर्णभेदी हो गया था. हर कोई खिड़कियों से बाहर झांकने की कोशिश कर ही रहा था कि गाड़ी प्लेटफौर्म पर आ लगी. बाहर का दृश्य सन्न कर देने वाला था. हजारों लोग गाड़ी के पूरी तरह रुकने से पहले ही उस पर टूट पड़े थे. जैसे, शेर शिकार पर झपटता है. स्टेशन पर चीखपुकार, लड़ाईझगड़ा, गालीगलौज, हर तरफ आतंक का वातावरण था.

इस से पहले कि हम कुछ समझते, बीसियों लोग डब्बे में चढ़ कर हमारी सीटों के आसपास, यहांवहां जुटने लगे, जैसे गुड़ की डली पर मक्खियां चिपकती चली जाती हैं. वह स्टेशन नहीं, मानो मनुष्यों का समुद्र पर बंधा हुआ बांध था जो गाड़ी के आते ही टूट गया था. प्लेटफौर्म पर सिर ही नजर आ रहे थे. तिल रखने को भी जगह नहीं थी.

कई सिर खिड़कियों से अंदर घुसने की कोशिश कर रहे थे. मेघना ने घबरा कर खिड़की बंद करनी चाही तो कई हाथ अंदर आ गए जो सबकुछ झपट लेना चाहते थे. मेघना को पीछे हटा कर सैम और अंकित ने खिड़कियां बंद कर दीं. पलट कर देखा तो मनीष, रजत और ईश, तीनों अंदर घुस आए आदमियों के रेवड़ को खदेड़ने में लगे थे. किसी को धकिया रहे थे तो किसी से हाथापाई हो रही थी. समीर ने सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए जल्दीजल्दी सारा सामान बंद खिड़कियों के पास इकट्ठा करना शुरू कर दिया.

लड़कों को उन धोतीकुरताधारी, निपट देहातियों से उलझते देख कर जैसे ही मैं ने हस्तक्षेप करना चाहा तो ईश और सैम एकसाथ बोल उठे, ‘‘आंटीजी, आप दोनों निश्चिंत हो कर बैठिए. बस, जरा सामान पर नजर रखिएगा. इन से तो हम निबट लेंगे.’’

तब याद आया कि सुबह लखनऊ में एक विशाल राजनीतिक रैली होने वाली थी, जिस में भाग लेने यह सारी भीड़ लखनऊ जा रही थी. लगता था जैसे रैली के उद्देश्य और उस की जरूरत से उस में भाग लेने वाले अनभिज्ञ थे. ठीक वैसे ही उस रैली के परिणाम और इस से आम आदमी को होने वाली परेशानी से रैली के आयोजक भी अनभिज्ञ थे.

पूरी गाड़ी में लूटपाट और जंग छिड़ी थी. जैसे वह गाड़ी न हो कर शोर और दहशत का बवंडर था जो पटरियों पर दौड़ता चला जा रहा था. लड़कों का पूरा ग्रुप हम दोनों मांबेटी की हिफाजत के लिए डट गया था. एक मजबूत दीवार खड़ी थी हमारे और अनचाही भीड़ के बीच. उन छहों की तत्परता, लगन, और निष्ठा को देख कर मैं मन ही मन नतमस्तक थी. उस पल शायद मेरा अपना बेटा भी होता तो क्या इस तरह अपनी मां और बहन की रक्षा कर पाता?

कानपुर से लखनऊ तक के उस कठिन सफर में वे न बैठे न उन्होंने कुछ खायापिया. इस बीच वे अपनी शरारतें, चुहलबाजी, फिल्मी अंदाज, सबकुछ भूल गए थे. उन के सामने जैसे एक ही उद्देश्य था, हमारी और सामान की हिफाजत.

मैं आत्मग्लानि की दलदल में धंसती जा रही थी. इन बच्चों के लिए मैं ने क्या धारणा बना ली थी, जिस के कारण मैं ने एक बार भी इन से ठीक व्यवहार नहीं किया. एक बार भी इन से प्यार से नहीं बोली, न ही इन के हासपरिहास या बातचीत में शामिल हुई. क्या परिचय दिया मैं ने अपनी शिक्षा, अनुभव, सभ्यता तथा संस्कारों का? और बदले में इन्होंने इतना दिया, इतना शिष्ट सम्मान तथा सुरक्षा.

उस दिन पहली बार एहसास हुआ कि वास्तव में महिलाओं का अकेले यात्रा करना कितना असुरक्षित है. साथ ही, एक सीख भी मिली कि कम से कम शादीब्याह तय करते हुए या यात्रा पर निकलने से पहले हमें शहर में होने वाली राजनीतिक रैलियों, जलसे, जुलूसों की जानकारी भी ले लेनी चाहिए. उस दिन महिलाओं के साथ घटी दुर्घटनाएं अखबारों के मुखपृष्ठ व टैलीविजन चैनलों की सुर्खियां बन कर रह गईं. कुछ घटनाओं को तो वहां भी जगह नहीं मिल पाई.

लखनऊ स्टेशन का हाल तो उस से भी बुरा था. प्लेटफौर्म तो जैसे कुरुक्षेत्र का मैदान बन गया था. सामान, बच्चे, महिलाओं को ले कर यात्री उस भीड़ से निबट रहे थे. चीखपुकार मची थी. भीड़ स्टेशन की दुकानें लूट रही थी. दुकानदार अपना सामान बचाने में लगे थे. प्रलय का सा आतंक हर यात्री के चेहरे पर स्पष्ट नजर आ रहा था. मेरी तो आंखों के सामने अंधेरा सा छाने लगा था. इतना सारा कीमती सामान और साथ में खूबसूरत जवान बेटी. उस पर ऐसी भीड़ जिस की कोई नैतिकता, न सोच, बस, एक उन्माद होता है.

वैसे तो भैया हमें लेने स्टेशन आए हुए थे लेकिन उस भीड़ में हम उन्हें कहां मिलते. उस भीड़ में तो सामान उठाने के लिए कुली भी न मिल सका. उन लड़कों के पास अपना तो मात्र एकएक बैग था. अपने बैग के साथ सैम ने हमारी बड़ी अटैची ले ली. छोटी अटैची मेरे मना करने पर भी मनीष ने ले ली. हालांकि उस में पहिए लगे हुए थे तो परेशानी की बात नहीं थी. मेघना के पास की बोतल तथा मेरे पास मात्र मेरा पर्स रह गया. हमारे दोनों बैग भी ईश और अंकित के कंधों पर लटक गए थे. उन सब ने भीड़ में एकदूसरे के हाथ पकड़ कर एक घेरा सा बना लिया जिस के बीच हम दोनों चल रही थीं. उन्होंने हमें स्टेशन से बाहर ऐसे सुरक्षित निकाल लिया जैसे आग से बचा कर निकाल लाए हों.

मेरे पास उन का शुक्रिया अदा करने के लिए शब्द नहीं थे. उस दिन अगर वे नहीं होते तो पता नहीं क्या हो जाता, इतना सोचने मात्र से मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं. मैं ने जब उन का आभार प्रकट किया तो उन्होंने बड़े ही सहज भाव से मुसकराते हुए कहा था, ‘‘क्या बात करती हैं आप, यह तो हमारा फर्ज था.’’

दिल से मैं ने उन्हें शुभ्रा की शादी में शामिल होने की दावत दी लेकिन उन का आना संभव नहीं था क्योंकि वे मात्र 4 दिनों के लिए लखनऊ एक कार्यशाला में शामिल होने आए थे. उन के लिए 10 दिन रुकना असंभव था. फिर भी एक शाम हम ने उन्हें खाने पर बुलाया. सब से उन का परिचय करवाया. वह मुलाकात बहुत ही सहज, रोचक और यादगार रही. सभी लड़के सुशिक्षित, सभ्य तथा मिलनसार थे.

हम लोग अकसर युवा पीढ़ी को गैरजिम्मेदार, संस्कारविहीन तथा दिशाविहीन कहते हैं लेकिन हमारा ही अंश और हमारे ही दिए संस्कारों को ले कर बड़ी हुई यह युवा पीढ़ी भला हम से अलग सोच वाली कैसे हो सकती है. जरूर उन्हें समझने में कहीं न कहीं हम से ही चूक हो जाती है.

अचानक से बढ़ गई है Air Purifier की मांग, खरीदने से पहले जानिए कुछ जरूरी बातें

जिस तरह गरमी में एसी की जरूरत आवश्यक है, उसी तरह प्रदूषण से बचने के लिए प्यूरीफायर (Air Purifier) का होना भी आवश्यक हो गया है. दिल्ली में तो प्रदूषण का स्तर इस कदर बढ़ जाता है कि लोगों को सांस तक लेने में परेशानी होने लगती है जिस कारण खांसी, जुखाम, बुखार जैसी समस्या हो जाती है व फेफड़ों में भी समस्या होने लगती है.

बढ़ती मांग

यह समस्या सिर्फ मौजूदा समय की नहीं है, बल्कि हर साल की है. वायु गुणवत्ता मनकों के मुताबिक 201 से 300 तक का सूचकांक को खराब श्रेणी में माना जाता है व 301 से 400 तक के सूचकांक को अत्यंत खराब श्रेणी में रखा जाता है. वहीं आजकल देश की राजधानी में प्रदूषण का स्तर 363 के आंकड़े को पार कर गया है. वाराणसी व शिमला जैसी जगहें भी बढ़ते प्रदूषण से अछूते नहीं रहे.

ऐसे में जरूरी है कि एक अच्छा प्यूरीफायर खरीदने की. लेकिन इन्हें खरीदने से पहले आप को सही जानकारी होना आवश्यक है.

किन बातों का रखें ध्यान

फिल्टर के चयन के बारे में सही जानकारी हो. फिल्टर आमतौर पर 2 तरह के आते हैं हेपा (HEPA) फिल्टर और कार्बन फिल्टर. HEPA फिल्टर 0.3 माइक्रौन तक के सूक्ष्म कणों को हवा से हटाने तक की गुणवत्ता रखता है. धूल, पराग, धुआं और अन्य छोटे प्रदूषकों से बचाने के लिए यह फिल्टर बैस्ट होते हैं.

कार्बन फिल्टर रसोई, धूम्रपान या कैमिकल गैसों से बचाव के लिए अच्छा औप्शन होते हैं.

खरीदारी करने से पहले

खरीदारी करने से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि घर के जिस एरिया में इसे रखने वाले हैं वह कमरे के हिसाब से उपयुक्त हो.

कम आवाज वाला 35-50 डेसिबल के बीच का शोर स्तर सामान्य माना जाता है इसलिए नौइस लेवल अवश्य जांच लें.

यूवी और आयन टैक्नोलौजी से लेस प्यूरीफायर बैक्टीरिया और वायरस को नष्ट करते हैं.

स्मार्ट फीचर्स

स्मार्ट फीचर के लिए एयर क्वालिटी सेंसर, औटो मोड, टाइमर सैटिंग्स, और मोबाइल ऐप कनैक्टिविटी जैसी सुविधा से लेस प्यूरीफायर खरीद सकते हैं, ये थोड़े महंगे आते हैं.

एयर प्यूरीफायर के फिल्टर को समयसमय पर बदलने की आवश्यकता होती है. अच्छी क्वालिटी का प्यूरीफायर खरीदना आप के लिए आरामदायक हो सकता है.

दीवाली का इंतजार बेसब्री से करती हूं : ईशा संजय, मराठी ऐक्ट्रैस

दीवाली का त्योहार हर व्यक्ति के लिए खुशियों और रोशनी का त्योहार है। बच्चों से ले कर वयस्क सभी को दीवाली में दीए जलाना, अच्छे कपड़े पहनना, मनपसंद पकवान बनाना और साथ में मिलजुल कर ऐंजौय करना होता है. ऐसे में कुछ सैलिब्रिटीज हैं, जो इसे अपने परिवार के अलावा अपने आसपास के लोगों के साथ इसे मनाना पसंद करते हैं, क्योंकि उन के चेहरे की खुशी उन्हें आनंदित करती है.

आइए, जानते हैं जी मराठी की शो ‘लाखात एक आमचा दादा’ में राजश्री की भूमिका निभाने वाली अभिनेत्री ईशा संजय इस बार दीवाली किस तरह मना रही हैं, जिसे उन्होंने सैट पर पूरी टीम के साथ मनाई है, क्योंकि उन के साथ काम करने वालों के साथ दीवाली मनाने का अनुभव उन के लिए बहुत अलग होता है.

खूबसूरत अनुभव

अपने अनुभव को शेयर करती हुई ईशा कहती हैं कि सैट पर मैं ने इस बार अच्छी तरह दीवाली मनाई है. शूट पर पहले दीवाली मनाने का एक फायदा यह है कि दीवाली से पहले ही हम सभी दीवाली मना लेते हैं, जो प्री दिवाली होती है. असल में सैट पर रोज साथ काम करते हुए सारे टीम के लोग परिवार बन जाते हैं, क्योंकि यहां बहुत सारा समय इन के साथ बिताना पड़ता है। ऐसे में उन के साथ दीवाली की खुशियों को बांटना एक अलग ही अनुभव होता है. मैंने अपनी टीम के भावेश दादा को इस बार चौकलेट गिफ्ट किया है, क्योंकि वे सैट के प्रौपर्टी का बहुत अच्छी तरह से ध्यान रखते हैं, साथ ही वे किसी काम को करने से कभी मना नहीं करते। वे बहुत ही विनम्र स्वभाव के हैं. वैसे तो मैं पटाखे नहीं जलाती, लेकिन इस बार सैट पर मैं ने फुलझड़ी जलाई है.

मिलनेमिलाने का त्योहार

खुशियों के इस त्योहार को ईशा अपने परिवार और आसपास के लोगों के साथ मनाती हैं. वे कहती हैं कि दीवाली का त्योहार मेरे घर में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है. सालभर मैं इस का इंतजार करती हूं. इस दिन सब से मिलना मुझे बहुत पसंद है.

सजावट में कमी नहीं

दीवाली पर घर की सजावट के बारे में ईशा कहती हैं कि मेरे घर में मेरी मां बहुत अच्छी रंगोली बनती है, कभी फूल तो कभी रंगों के मिश्रण से वे तरहतरह के रंगोली बनाती हैं, जो उन के मूड पर निर्भर करता है. उन का थीम हर साल अलग होता है. मैं भी उन के साथ रंगोली बनाने की कोशिश करती हूं, लेकिन मुझ से इतना अच्छा नहीं बन पाता है. इसलिए मैं अधिकतर लाइटिंग पर अधिक ध्यान देती हूं, जिस में लंबी स्ट्रिंग लाइट, जो जलतीबुझती रहती है, जिसे बालकनी में मैं लगाती हूं. इस के अलावा कंदील, दीए, मोमबत्तियां हर तरह के रोशनी से घर को सजाती हूं, जो दिखने में बहुत अच्छा लगता है.

बनते हैं स्वादिष्ठ व्यंजन

मुझे मिठाइयां बहुत पसंद हैं, खासकर दीवाली पर मेरी मां हर तरह की मिठाइयां और नमकीन बनाती हैं, जिस में बेसन के लड्डू, रवा लड्डू, चकली, करंजी आदि खास होते हैं. मुझे याद है कि बचपन से मैं ने मां को बाहर से मिठाई मंगाते हुए नहीं देखा है, क्योंकि उन्हें बाहर की मिठाई पसंद नहीं. मेरी बहन जो अमेरिका में रहती है, उस के पास भी ये सारी चीजें भेजती हैं. मेरे लिए भी घर पर रखती हैं. इसलिए ऐसी मिठाइयां और नमकीन मां दीवाली पर 2 बार बनाती हैं, जिस में मैं मां का हाथ बटाती हूं. करीब 15 दिन पहले से मां की तैयारी शुरू हो जाती है. वैसे तो मां के हाथ का बना सबकुछ मुझे पसंद है, लेकिन उन में चकली सब से अधिक पसंद है, क्योंकि दीवाली के बाद भी मैं सुबह
की चाय चकली के साथ खाती हूं.

मिलती हैं छुट्टियां

दीवाली को पसंद करने की वजह सब से मिलना ईशा के लिए खास होता है, क्योंकि दीवाली के अलावा उन्हें काम से छुट्टी नहीं मिल पाती, इसलिए इस दिन पूरी तरह से फ्री हो कर परिवारजनों और फ्रैंड्स से मिलना उन के लिए बहुत खास होता है, क्योंकि पहले इतना दूर वह कभी नहीं रहीं, इसलिए अब तो उन्हें दीवाली पर घर जाने की बहुत अधिक इच्छा रहती है. साथ ही वे बहुत बातूनी भी हैं, इसलिए सब से खूब बातें करती हैं.

सुपर पावर मिलने पर

सुपर पावर मिलने पर ईशा उन की टीम में काम करने वाले लाइट बौय, स्पौट बौय आदि सभी के लिए दीवाली पर कम से कम 5 दिन की छुट्टी देना चाहेगी, ताकि वे जहां भी रहते हों, घर जा कर परिवार के साथ इस त्योहार को अच्छी तरह से मना सकें.

अंत में इस दीवाली पर ईशा सभी से कहना चाहती हैं कि आप सभी इस बार परिवारजनों और दोस्तों से मिल कर अपनी खुशियों को बांटें. इंस्टाग्राम और फेसबुक का सहारा न लें, पटाखे न फोड़ें, कलरफुल लाइट्स से घरों को सजाएं, ताकि प्रदूषण में कमी आए.

मेरा मंगेतर मुझसे बहुत प्यार करता है, लेकिन उसकी बहन अजीब बिहेव करती है…

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मेरी दो महीने बाद शादी होने वाली है. मेरा होने वाला पति मुझसे बहुत प्यार करता है. हर हफ्ते हम मिलते हैं. शादी की शौपिंग भी करवाता है, लेकिन एक समस्या है कि उसकी बहन और मां जब भी मुझसे बात करती हैं कि अजीब तरीके से बात करती हैं, अकसर तंज कसती रहती हैं.

उसकी बहन कहती है कि भाभी जब आप घर आ जाएंगी, तो उसके बाद मैं आराम करूंगी, घर का काम आप करोगे, तो वहीं सासू मां कहती हैं कि बहू तुम्हें शादी के बाद तो नौकरी छोड़नी होगी, घर तो तुम्हें ही संभालना है. मैंने अपने फिऔंसे से ये सारी बातें बताई, तो वह कहता है कि उनकी बातों पर ध्यान न दों. शादी के बाद भी तुम्हें उतनी ही आजादी मिलगी, जैसे तुम्हारे पैरेंट्स ने तुम्हें रखा है, अब मुझे समझ नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूं, क्योंकि शादी के बाद सास और ननद भी साथ ही रहेंगी, आप ही बताएं इस स्थिति में मैं क्या करूं?

जवाब

देखिए ये सवाल आपका बहुत उलझा हुआ है, जैसा कि आपने कहा कि आपके होने वाले पति आपसे बहुत प्यार करते हैं, वह आपको समझते भी हैं. हालांकि ये भी बात सही है कि सास और ननद भी साथ रहेंगी. चूंकि आप वर्किंग हैं, आपकी होने वाली सास जौब छोड़कर घर संभालने की बात कर रही हैं.

हम आपको ये सलाह देंगे कि सबसे पहले आप अपने होने वाले पति से इसके बारे में खुलकर बात करें कि शादी बाद भी आप जौब करना चाहती हैं. जैसा कि घर के कामों को लेकर भी आपकी होने वाली ननद तंज कस रही है, इसके लिए ज्यादा चिंता न करें, अगर आपका पार्टनर आपको समझता है, वह मैनेज कर लेंगे. आप उस घर की सदस्य बनकर जा रही हैं न कि कोई मेड. घर के कामों को सबको मिल बांटकर करना चाहिए. इसके अलावा आप हाउस हैल्पर भी रख सकती हैं, आपके मन में जो कन्फ्यूजन हैं, आप इस बारे में अपने होने वाले पति से बात करें, अगर वह आपको समझते हैं, तो शादी के बाद भी आपको परेशानी नहीं होगी.

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पुरुषों को ये बातें नहीं आती पसंद

पत्नियों का किसी भी बात को ले कर हर समय रोना पति को उकता देता है. अकसर पत्नियां पति का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए छोटीछोटी चालों का सहारा लेने लगती हैं. लेकिन जरा सी बात का बतंगड़ बना कर जल्दी ही परेशान हो कर रोने लग जाना पति को पसंद नहीं होता है.

अकसर देखा जाता है कि शादी के कुछ समय बाद ही महिलाएं अपनी वेशभूषा के प्रति लापरवाह हो जाती हैं. गुडि़या सी दिखने वाली महिला की मुसकराहट कहीं गायब हो जाए और पूरे दिन मैक्सी पहने और छोटा सा जूड़ा बनाए घूमती रहे, तो पति को कोफ्त होना लाजिम है. घर के कामकाज का रोना रोते हुए अस्तव्यस्त कपड़ों और बिखरे बालों वाली महिला को पुरुष पसंद नहीं करते हैं.

सैक्स के मामले में पत्नी का उत्साहित न होना, हमेशा बेरुखी से पेश आना या बिस्तर पर ठंडा होना भी पति पसंद नहीं करते हैं. सैक्स के प्रति खुलापन ही पति बिस्तर पर पसंद करते हैं.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर 8588843415 पर  भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

साड़ी, बिंदी, गहनों से सजी नई न्‍याय की देवी पर लगा है मनुवादी मुहर

न्‍याय की देवी की नई मूर्ति को देश के उच्‍चतम न्‍यायालय में लगा दिया गया है. इस नई मूर्ति के हाथों में अब पहले की तरह तलवार नहीं है बल्‍कि उसकी जगह संविधान ने ले ली है. इस प्रतिमा को सुप्रीम कोर्ट की लाइब्रेरी में लगाई गई है. इस मूर्ति को देखने के बाद यह न्‍याय की कम और मंदिर की देवी अधिक लग रही है. नई मूर्ति ने साड़ी पहन रखी है, साड़ी को भारतीय परिधान के रूप में जाना जाता है इसलिए नई मूर्ति को साड़ी में देखने की बात तक तो ठीक है लेकिन इसे गहनों से लादने की बात हजम नहीं हो रही. न्‍याय की देवी की नई प्रतिमा में उनके गले में अलग अलग साइज और डिजाइन के कई हार हैं. इतना ही नहीं कानों में भी आभूषण पहना दिया है. मंदिर में रखी देवियों की प्रतिमा की तरह दिखाने के लिए सिर पर एक मुकुट भी पहना दिया है. इतना ही नहीं मूर्तिकार शिल्‍पकार विनोद गोस्‍वामी ने प्रतिमा के माथे पर बिंदी तक लगा डाली है. सही अर्थों में कहा जाए तो इस नई मूर्ति को देख कर ऐसा लग रहा है क‍ि वापस हम मनुस्‍मृत‍ि के युग में चले गए हों.

पुराने जमाने की औरत बनाने की कोशिश

जहां तक प्रतिमा के माथे पर बिंदी लगाने की बात है, तो यह भी तर्क का मुद्दा है. हिंदुस्‍तान में रहने वाले हर नागरि‍क को पता है कि सिर पर बिंदी लगाने वाली अधिकांश महिलाएं हिंदू धर्म से आती हैं. ऐसे में धर्म निरपेक्ष मुल्‍क में एक सार्वजनिक और विशेष महत्‍व रखने वाली न्‍याय की मू‍र्ति के माथे पर बिंदी क्‍यों ? अगर बुर्का को धर्म विशेष से जोड़ कर देखा जाता है, तो बिंदी को क्‍यों नहीं देखा जाना चाहिए .

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार न्‍यायमूर्ति वायएस चंद्रचूड़ के कहने पर लेडी औफ जस्टिस को नया रूप दिया गया है. न्‍यायमूर्ति चंद्रचूड़ का मानना है कि कानून अंधा नहीं है यह सबको समान रूप से देखता है. उनके अनुसार, मूर्ति के एक हाथ में संविधान होना चाहिए न कि तलवार ताक‍ि भारत के हर नागरिक तक यह संदेश पहुंचे कि अदालतें संवैधानिक नियम कानूनों के अनुसार न्‍याय देती है, तलवार के आधार पर नहीं जो हिंसा का प्रतीक है. इसमें संदेह नहीं कि न्‍यायमूर्ति की सोच सही है लेकिन मूर्ति को गहनों से लदीफदी बनाने की वजह समझ नहीं आ रही है. मूर्ति में एक प्रगतिशील भारतीय नारी की छवि क्‍यों नजर नहीं आती. इसे देखने के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि यह राजामहाराजाओं वाली कौमिक बुक की रानी हो. कहीं न कहीं यह नई छवि उस पुरानी सोच को बढ़ावा देती है, जो औरतों को सजाधजा कर घर की चाहरदीवारी में रखने का हिमायती था.

पुराने सामंती सोच रखने वाले जमींदार की घर की बहूएं हो या पौराणिक कथाओं की सीता, द्रौपदी जैसी राजकुमारियां. तत्‍कालिक समाज में इसका वर्णन उन नारियों की तरह किया गया, जो समाज की विकृत मानसिकता की शिकार हुई. इन्‍हें गहनों में लाद कर रखा गया, दुनिया भर के ऐशोआराम इनके कदमों में लाद दिए, इसके बावजूद किसी पर चरित्रहीन का आरोप लगा कर जंगल में रहने को भेज दिया गया, तो किसी को पांच पुरुषों की भोग की वस्‍तु बना दिया गया. क्‍या इस प्रतिमा में समाज में हो रहे बदलावों के अनुसार स्‍त्री को नहीं दर्शाया जाना चाहिए था. क्‍या इस मूर्ति में इस युग की उन महिलाओं की छवि की झलक नहीं होनी चाहिए थी जो अपनी बुद्धिबल और ज्ञान से आसमान में भी सुराख करने का हौसला रख रही हैं.

लेडी औफ जस्टिस का भारत तक का सफर

पुरानी न्‍याय की देवी यानि लेडी औफ जस्टिस का जिक्र रोमन कला मे “जस्टिटिया” के नाम से मिलता है, जो प्राचीन रोम में न्याय का प्रतीक थी. कुछ जगह इसे ग्रीक देवी डाइक/ऐस्ट्रेया के रूप में भी माना जता है. प्राचीन मिस्र की सभ्‍यता में इस तरह की मूर्ति, जिसे माएट कहा गया . उस देवी को वहां सत्‍य, संतुलन और ब्रह्मांडीय व्‍यवस्‍था की देवी कहा गया. इसकी उत्‍पत्‍त‍ि 2300ईपू मानी जाती है. माएट के हाथ में तलवार के साथसाथ सच का प्रतीक पंख हुआ करता था. इसके बाद प्राचीन ग्रीस में भी थेह्मिस नाम की एक देवी का जिक्र आता है उसे भी न्‍याय का प्रतीक माना गया. इस मूर्ति के हाथ में तराजू, तलवार और समृद्ध‍ि के प्रतीक के रूप में बाल्‍टी पकड़े हुए दिखाया गया. भारत की पुरानी न्‍याय की मूर्ति इस थेह्मिस के ज्‍यादा करीब है क्‍योंकि इसके आंखों पर भी पट्टी बंधी हुई है. आंखों पर पट्टी बांधे थेह्मिस के जरिए ही सबसे पहले पूरे विश्‍व को यह संदेश दिया मिला कि न्याय अपने मूल रूप में कभी अंधा नहीं था बल्‍कि हमेशा से अलर्ट था. प्राचीन रोम में रहने वालों ने थेह्मिस को जस्टिटिया के रूप में स्‍वीकारा. उस काल में सम्राट औगस्टस ने जस्टिटिया को रोम के कानून से जोड़ कर एक मजबूत स्थिति दी. यहीं से लेडी औफ जस्टिस की मूर्ति को बल मिला.

हिंदू राष्‍ट्र की म‍हिला क्‍या ऐसी ही होगी

मिस्र, ग्रीक, रोम सभी जगह महिलाओं को न्‍याय से जोड़ कर देखा गया. ईसा से पूर्व के उस युग में भी उसके अस्‍तित्‍व को महत्‍व दिया लेकिन आज के प्रगतिशील युग में बनी यह नई न्‍याय की देवी वापस मनुवादी और संघी सोच को बल दे रही है. उस सोच को बढ़ावा दे रही है जिसका जिक्र तसलीमा नसरीन ने भी किया था क‍ि महिलाओं को पायल सजाने के लिए नहीं पहनाया जाता बल्‍कि उस पर नजर रखने के लिए पायल पहनाते हैं, ताकि पायल की छमछम से यह पता करना आसान हो कि वह अपनी चौखट, सीमा या हद को लांघने की कोशिश करे, तो उसके पंख कुतर दिए जाए.

आज की न्‍याय की मूर्ति संघ की हिंदू राष्‍ट्र की विचारधारा के बेहद करीब नजर आती है क्‍योंकि उस राष्‍ट्र की कल्‍पना करने पर महिलाओं का जो रूप उभरता है वह इसके काफी करीब है, माथे पर बिंदी लगाए, सिर पर मुकुट सजाए, गहनों से लदी हिंदू औरत. जिसका ग्रंथों में गुनगान होता है और गर्भ में मारने का प्‍लान होता है.

लाजवंती: दीपक को क्या मिली उसके गुनाहों की सजा

नींद में ही बड़बड़ाते हुए राधेश्याम ने फोन उठाया और कहा, ‘‘कौन बोल रहा है?’’

उधर से रोने की आवाज आने लगी. बहुत दर्दभरी व धीमी आवाज में कहा, ‘पापा, मैं लाजो बोल रही हूं… उदयपुर से.’

राधेश्याम घबराता हुआ बोला, ‘‘बेटी लाजो क्या हुआ? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न? तुम इतना धीरेधीरे क्यों बोल रही हो? सब ठीक है न?’’

लाजवंती ने रोते हुए कहा, ‘पापा, कुछ भी ठीक नहीं है. आप जल्दी से मु झे लेने आ जाओ. अगर आप नहीं आए, तो मैं मर जाऊंगी.’

राधेश्याम घबरा कर बोला, ‘‘बेटी लाजो, ऐसी बात क्यों कह रही है? दामाद ने कुछ कहा क्या?’’

लाजवंती बोली, ‘पापा, आप जल्दी आ जाना. अब मैं यहां रहना नहीं चाहती. मैं रेलवे स्टेशन पर आप का इंतजार करूंगी.’

फोन कट गया. दोनों पतिपत्नी बहुत परेशान हो गए.

तुलसी ने रोते हुए कहा, ‘‘मैं आप को हमेशा से कहती रही हूं कि एक बार लाजो से मिल कर आ जाते हैं, लेकिन आप को फुरसत कहां है.’’

राधेश्याम ने कहा, ‘‘मु झे लगता है, दामाद ने ही लाजो को बहुत परेशान किया होगा.’’

तुलसी ने रोते हुए कहा, ‘‘अब मैं कुछ सुनना नहीं चाहती हूं. आप जल्दी उदयपुर जा कर बेटी को ले आओ. न जाने वह किस हाल में होगी.’’

‘‘अरे लाजो की मां, अब रोना बंद कर. वह मेरी भी तो बेटी है. जितना दुख तु झे हो रहा है, उतना ही दुख मु झे भी है. तुम औरतें दुनिया के सामने अपना दुख दिखा देती हो, हम मर्द दुख को मन में दबा देते हैं, दुनिया के सामने नहीं कर रख पाते हैं.’’

राधेश्याम उसी समय उदयपुर के लिए रेल से निकल गया. उस के मन में बुरे विचार आने लगे थे. वह पुरानी यादों में खो गया.

लाजवंती राधेश्याम और तुलसी की एकलौती संतान थी. दोनों पतिपत्नी लाजवंती को प्यार से लाजो कह कर पुकारते थे. उन्होंने उस की हर ख्वाहिश पूरी की थी.

लाजवंती की उम्र शादी के लायक हो चुकी थी, इसीलिए राधेश्याम को थोड़ी चिंता हुई. वह दौड़भाग कर लाजवंती के लिए अच्छा वर तलाश करने लगा, पर जहां वर अच्छा मिलता और वहां खानदान अच्छा नहीं मिलता. जहां खानदान अच्छा मिलता, वहां वर अच्छा नहीं मिलता.

बहुत दौड़भाग के बाद राधेश्याम ने चित्तौड़गढ़ शहर में लाजवंती का रिश्ता तय कर दिया.

लाजवंती का ससुर भूरालाल वन विभाग से कुछ महीने पहले रिटायर हुआ था. उस के 2 बेटे थे. बड़ा बेटा मनोज चित्तौड़गढ़ में ही बैंक में कैशियर के पद पर काम करता था, जबकि छोटा बेटा दीपक उदयपुर में एक प्राइवेट कंपनी में काम करता था. उसी से लाजवंती का रिश्ता तय हुआ था.

भूरालाल की पत्नी की मौत हो चुकी थी. वह दीपक की कुछ गलत आदतों से चिंतित था. जब लाजवंती जैसी होनहार व पढ़ीलिखी लड़की के साथ शादी

हो जाएगी तो दीपक सभी बुरी आदतों को भूल जाएगा, इसलिए भूरालाल चिंता से कुछ मुक्त हुआ.

राधेश्याम ने धूमधाम से लाजवंती की शादी की. दहेज भी खूब दिया. विदाई के बाद वे दोनों घर में अकेले रह गए.

जब लाजवंती पहली बार ससुराल आई तो उसे ससुराल में जितना प्यार मिलना चाहिए था, नहीं मिला. वह मायूस हो गई. लाजवंती की जेठानी का बरताव उस के प्रति अच्छा नहीं था, न ही उस के पति का बरताव अच्छा था.

शादी होते ही दीपक उदयपुर में नौकरी पर चला गया. वह लाजवंती को साथ में नहीं ले गया था.

जब लाजवंती दोबारा ससुराल आई, तो ससुर भूरालाल का विचार था कि बहू दीपक के साथ रहे, लेकिन दीपक उसे अपने साथ नहीं रखना चाहता था.

जब भूरालाल ने दीपक को सम झाया व उस को भलाबुरा कहा, तब जा कर मजबूरी में वह लाजवंती को अपने साथ ले गया.

उदयपुर में वे किराए के मकान में रहने लगे. दीपक की सब से बुरी आदत थी जुआ खेलना व शराब पीना, जिस से वह घर पर हमेशा देर रात तक पहुंचता था. इस बात से लाजवंती बहुत परेशान थी. दीपक की तनख्वाह भी जुए व शराब में खर्च होने लगी थी, इसलिए महीने के अंत में कुछ नहीं बच पाता था.

एक दिन ससुर भूरालाल अचानक उदयपुर दीपक के घर पहुंच गया. उस समय लाजवंती पेट से थी.

बहू लाजवंती की ऐसी दयनीय हालत देख कर भूरालाल ने रोते हुए कहा, ‘बेटी, मैं तेरा गुनाहगार हूं. मेरी वजह से तेरी यह हालत हुई है. मु झे माफ कर देना.’

लाजवंती ने अपने ससुर को सम झाते हुए कहा, ‘इस में आप का कोई कुसूर नहीं है, आप मत रोइए. मैं आप के बेटे को सुधार नहीं सकी. मैं ने पूरी कोशिश की, लेकिन नाकाम रही.’

भूरालाल बेमन से चित्तौड़गढ़ लौट गया. लाजवंती की ऐसी हालत देख वह दुखी था. इसी गहरी चिंता की वजह से एक दिन भूरालाल को अचानक हार्टअटैक आ गया और उस की मौत हो गई.पर भूरालाल की मौत से दीपक की जिंदगी में कोई बदलाव नहीं आया.

समय पंख लगा कर उड़ने लगा. लाजवंती के एक बेटा हो गया, जो अब 5 साल का हो गया था. लाजवंती सिलाई कर के अपना घरखर्च चला रही थी.

कुछ महीने बाद दीपक की नौकरी छूट गई, क्योंकि वह हमेशा शराब पी कर औफिस जाने लगा था, इसलिए कंपनी वालों ने उसे नौकरी से निकाल दिया. उस को घर बैठे एक महीना बीत गया.

एक दिन दीपक ने लाजवंती के सोने के कंगन चुरा कर बाजार में बेच दिए. जब लाजवंती को पता चला तो दोनों के बीच लड़ाई झगड़ा हुआ. उस ने लाजवंती को मारापीटा.

एक दिन दीपक घर देरी से पहुंचा. उस समय लाजवंती दीपक के आने का इंतजार कर रही थी. दीपक ने बहुत ज्यादा शराब पी रखी थी. आज वह जुए में 10,000 रुपए हार गया था. आज उस का लाजवंती से कुछ और चीज छीनने का इरादा था.

दीपक के आते ही लाजवंती ने थाली में खाना रख दिया. इस के बाद वह सोने के लिए जाने लगी कि तभी दीपक ने लाजवंती का हाथ पकड़ कर कहा, ‘लाजवंती, रुको. मुझे तुम से एक बात कहनी है.’

लाजवंती सम झ गई कि आज इस का नया नाटक है, फिर भी उस ने पूछा, ‘क्या बात है?’

दीपक ने कहा, ‘तुम मेरे पास तो आओ.’

लाजवंती उस के पास आ कर बोली, ‘मु झे बहुत नींद आ रही है. क्या बात करनी है, जल्दी कहो.’

दीपक ने लाजवंती का हाथ पकड़ कर बड़े प्यार से कहा, ‘मैं जो तुम से मांगना चाहता हूं, वह मु झे दोगी क्या?’

लाजवंती ने कहा, ‘क्या चाहिए आप को? मेरे पास देने लायक ऐसा कुछ भी नहीं है.’

दीपक ने लाजवंती को सम झाते हुए कहा, ‘मैं आज 10,000 रुपए जुए में हार गया हूं. वे रुपए मैं दोबारा जीतना चाहता हूं इसलिए मु झे तुम्हारी खास चीज की जरूरत है.’

लाजवंती ने कहा, ‘इस में मैं क्या कर सकती हूं? आप ने तो जुए व शराब में सबकुछ बेच दिया है. अब क्या बचा है? मु झे बेचना चाहते हो क्या?’

दीपक ने बड़े प्यार से कहा, ‘तुम भी कैसी बातें करती हो? मैं तुम्हें कैसे बेच सकता हूं, तुम तो मेरी धर्मपत्नी हो. मु झे तो तुम्हारा मंगलसूत्र चाहिए.’

लाजवंती ने गुस्सा जताते हुए कहा, ‘आप को कुछ शर्म आती है कि नहीं. यह मंगलसूत्र सुहाग की निशानी है. कुछ दिन पहले आप ने मेरे सोने के कंगन बेच दिए, मैं ने कुछ नहीं कहा, अब मंगलसूत्र बेच रहे हो, कुछ तो शर्म करो, आप कुछ भी कर लो, मैं मंगलसूत्र नहीं दूंगी.’

जब लाजवंती ने मंगलसूत्र देने से साफ मना कर दिया, तो दीपक को बहुत गुस्सा आया. वह बोला, ‘मैं तेरी फालतू बकवास नहीं सुनना चाहता हूं, इस समय मु झे केवल तुम्हारा मंगलसूत्र चाहिए. मु झे मंगलसूत्र दे दे.’

लाजवंती ने कहा, ‘मैं नहीं दूंगी मंगलसूत्र, यह मेरी आखिरी निशानी बची है.’

दीपक ने लाजवंती का हाथ पकड़ कर अपने पास खींचा और जलती हुई सिगरेट से उस के हाथ को दाग दिया. लाजवंती को बहुत दर्द हुआ.

लाजवंती ने दर्द से कराहते हुए कहा, ‘आप चाहे मु झे मार डालो, लेकिन मैं मंगलसूत्र नहीं दूंगी.’

इस के बाद दीपक ने लाजवंती का हाथ पकड़ कर उस के बदन को जलती हुई सिगरेट से जगहजगह दाग दिया. लाजवंती जोरजोर से चिल्लाने लगी.

लाजवंती के चिल्लाने से महल्ले वाले वहां इकट्ठा हो गए तो दीपक उन सब के सामने लाजवंती पर बदचलन होने का आरोप लगाने लगा.

लाजवंती ने रोते हुए कहा, ‘आप को  झूठ बोलते हुए शर्म नहीं आती. मेरे बदन को आप ने छलनी कर दिया. मु झे जलती हुई सिगरेट से दागा. मेरा कुसूर इतना सा था कि मैं ने अपना मंगलसूत्र आप को नहीं दिया और मैं यह मंगलसूत्र आप को नहीं दूंगी क्योंकि यह मेरी आखिरी निशानी है.’

लाजवंती की ऐसी हालत देख कर महल्ले वालों की आंखों में आंसू आ गए. सभी दीपक को भलाबुरा कहने लगे. दीपक ने उन्हें गालियां देते हुए दरवाजा बंद कर लिया और दोबारा लाजवंती को पीटने लगा.

लाजवंती ने अपने पापा को फोन लगाया, तो दीपक ने उस के हाथ से मोबाइल छीन कर फर्श पर फेंक दिया जिस से मोबाइल फोन टूट गया.

दीपक ने लाजवंती को फिर बुरी तरह से मारा, जिस से वह बेहोश हो गई. दीपक उस के गले से मंगलसूत्र खींच कर रात को ही घर से गायब हो गया.

जब अचानक रात को लाजवंती के बच्चे की नींद खुली तो मां को अपने पास न पा कर वह रोने लगा और बरामदे में चला आया और उस के पास बैठ गया. जब लाजवंती को होश आया तो उस ने अपने बेटे को गले से लगा लिया.

लाजवंती ने पाया कि उस के गले से मंगलसूत्र गायब था. वह सम झ गई थी कि दीपक ले गया है. उस ने घड़ी की तरफ देखा. सुबह के 5 बज चुके थे.

लाजवंती ने कुछ सोचते हुए अपने बेटे को साथ लिया और घर से निकल गई. पड़ोस की एक औरत से मोबाइल मांग कर अपने पापा को फोन लगा दिया.

पापा से बात कर के लाजो सीधी रेलवे स्टेशन की तरफ भागी. वह प्लेटफार्म के फ्लाईओवर की सीढि़यों पर अपने पापा का इंतजार करने लगी.

लाजवंती अपने खयालों में खोई थी कि उस के बेटे ने देखा कि कई छोटेछोटे बच्चे हाथ में कटोरा ले कर भीख मांग रहे थे. वह भी अपने छोटेछोटे हाथ आगे कर के भीख मांगने लगा.

इधर जब राधेश्याम की नींद खुली, तो वह उदयपुर पहुंच गया था.

उदयपुर स्टेशन पर उतर कर राधेश्याम जाने लगा, तभी अचानक कोई पीछे से उस की धोती पकड़ कर खींचने लगा.

राधेश्याम ने पीछे मुड़ कर देखा कि एक नन्हा बच्चा उन की धोती पकड़ कर हाथ आगे कर के भीख मांग रहा था.

राधेश्याम ने उस बच्चे को दुत्कारते हुए धक्का दिया, तो बच्चा दूर जा गिरा और रोने लगा.

बच्चे के रोने की आवाज सुन कर लाजवंती वहां आई. वह अपने बच्चे के पास जा कर उसे उठाने लगी.

राधेश्याम की नजर बेटी लाजो पर पड़ी. वह बोला, ‘‘लाजो, तुम यहां… ऐसी हालत में… तुम्हारी यह हालत किस ने बनाई?’’

लाजवंती ने देखा कि इस अनजान शहर में कौन लाजो कह कर पुकार रहा है. जब उस ने नजर उठा कर देखा तो सामने पापा खड़े हैं. वह जल्दी से दौड़ते हुए अपने पापा के गले लग कर रोने लगी.

राधेश्याम ने हिम्मत से काम लेते हुए अपने आंसुओं पर काबू पाते हुए कहा, ‘‘बेटी लाजो, आंसू मत बहा. मैं तु झे लेने ही आया हूं. चल, घर चलते हैं.’’

उस समय प्लेफार्म पर दूसरे मुसाफिरों ने पिता व बेटी को इस तरह आंसू बहाते हुए अनमोल मिलन व अनोखा प्यार देखा तो सभी भावुक हो गए.

राधेश्याम अपनी बेटी व नाती को ले कर गांव आ गया.

लाजवंती के साथ दीपक ने जो जोरजुल्म किए थे, लाजवंती ने अपनी मां व पिता को साफसाफ बता दिया.

लाजवंती ने कुछ महीनों बाद ही दीपक से तलाक ले लिया और नई जिंदगी की शुरुआत की.

भूल भुलैया 3 के गाने पर माधुरी दीक्षित संग परफौर्म करते हुए गिरीं Vidya Balan

हाल ही में मुंबई के रौयल ओपेरा हाउस जिसका निर्माण ब्रिटिश के जमाने में करीबन 1911 में हुआ था. और इस स्टेज पर परफौर्म करना हर कलाकार भी अपनी शान समझते हैं. इसी रौयल ओपेरा हाउस में भूल भुलैया 3 के प्रसिद्ध गीत आमी जे तोमार…. गाने पर माधुरी दीक्षित नेने और विद्या बालन ने बेहतरीन डांस परफौर्मेंस दिया . डांसिंग दिवा माधुरी दीक्षित के साथ डांस करना विद्या बालन का सपना था. लिहाजा अपने इस डांस परफौर्मेंस को लेकर विद्या बालन बहुत ज्यादा एक्साइटेड भी थी. जिसके चलते जब माधुरी दीक्षित और विद्या बालन ने स्टेज पर डांस करना शुरू किया तो उसी दौरान विद्या बालन डांस करतेकरते बैलेंस बिगड़ने की वजह से अचानक स्टेज पर गिर गईं.

लेकिन गिरने के बावजूद विद्या ने अपना डांस जारी रखा ताकि लोगों को समझ ना आए कि वह डांस करते हुए गिरी हैं और उन्होंने अपना पूरा डांस कंप्लीट किया. लेकिन क्योंकि वह बहुत नर्वस हो गई थीं इसलिए माधुरी दीक्षित ने विद्या बालन को गिरते वक्त भी पूरा कवर किया. ताकि विद्या बालन असहज ना महसूस करें. इतना ही नहीं माधुरी दीक्षित ने विद्या बालन के अचानक गिरने को लेकर कौमेडी करते हुए कहा कि मैं सोच रही थी कि मैं भी विद्या के साथ स्टेज पर गिर जाऊं और हम दोनों मेरा वाला गाना मार डाला… वाला स्टेप करने लगे. जो फिल्म देवदास का गाना है और जिस पर माधुरी का यादगार डांस है.

माधुरी की यह बात सुनकर स्टेज पर मौजूद सभी लोग ठहाका लगाकर हंसने लगे . बात यही खत्म नहीं हुई वहां मौजूद सभी के कहने पर माधुरी दीक्षित और विद्या बालन ने फिर से पूरा डांस किया और इस बार बेहतरीन तरीके से खूबसूरत डांस को अंजाम दिया. भूषण कुमार निर्मित और अनीज बज़्मी के डायरेक्शन में बनी भूल भुलैया 3 में इस बार विद्या बालन और माधुरी दीक्षित खास भूमिका में नजर आएंगे फिल्म के अन्य कलाकार कार्तिक आर्यन और तृप्ति डिमरी विजय राज राजपाल यादव और संजय मिश्रा है. भूल भुलैया 3 दिवाली के मौके पर 1 नवंबर को रिलीज हो रही है.

दूरदर्शन पर फिर लौटा शाहरुख खान का शो Fauji, विक्की जैंन लेंगे किंग खान की जगह

कहते हैं चढ़ते सूरज को सभी सलाम करते हैं ऐसा ही कुछ हाल शाहरुख खान का है जिनकी शुरुआत 1989 में दूरदर्शन चैनल में टीवी पर सीरियल फौजी से हुई थी. और आज उन्होंने इंडस्ट्री में अपनी खास जगह बना ली है जिसके चलते उनका नाम दुनिया के सबसे खूबसूरत मर्दों में आ रह है. इसी बात का फायदा उठाते हुए दूरदर्शन चैनल एक बार फिर फौजी सीरियल दूरदर्शन पर प्रसारित कर रहा है यह सीरियल 24 अक्टूबर से सोमवार से गुरुवार डीडी नेशनल पर प्रसारित किया जा चुका है. राजकुमार कपूर द्वारा निर्देशित फौजी (Fauji) भारतीय सेना के कमांडो रेजीमेंट की ट्रेनिंग पर आधारित है.

वहीं दूसरी ओर अभिनेत्री अंकिता लोखंडे के पति विक्की जैन कलर्स के रियलिटी शो बिग बौस और
लाफ्टर शेफ करने के बाद अब अभिनय की दुनिया में कदम रखने जा रहे हैं, विक्की जैन शाहरुख खान के सीरियल फौजी के सिक्वेल में शाहरुख खान वाला किरदार निभाते नजर आएंगे. अंकिता लोखंडे के पति के नाम से जाने जाने वाले विक्की जैन ने बिग बौस के दौरान सलमान खान के सामने अपने दिल की बात कहते हुए कहा था कि जब उन्हें लोग अंकिता लोखंडे का पति कहते हैं तो उन्हें यह बात अच्छी नहीं लगती. वह खुद अपनी अलग पहचान बनाना चाहते हैं. इसी बात को मद्दे नजर नजर रखते हुए विक्की जैन ने शाहरुख खान के सीरियल फौजी की सिक्वेल से अभिनय की दुनिया में कदम रखा है.

वह इस सीरियल के प्रोड्यूसर भी हैं और विक्की जैन निर्माता संदीप सिंह के साथ मिलकर फौजी 2 बनाया है . इस सीरियल में विक्की जैन के साथ ऐक्ट्रैस के रूप में गौहर खान नजर आएंगी. मस्तमौला टाइप के विक्की जैन जो हमेशा पार्टी करते नजर आते हैं वह अब अभिनय के मैदान में कितना खरे उतरते हैं , यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा. लेकिन शाहरुख खान की फौजी के जरिए उनकी एक्टर बनने की इच्छा तो पूरी ही हो जाएगी.

फर्स्ट ईयर: दोस्ती के पीछे छिपी थी प्यार की लहर

कालेज शुरू हुए कुछ दिन बीते थे मगर फिर भी पहले साल के विद्यार्थियों में हलचल कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी. युवा उत्साह का तकाजा था और कुछ कालेजलाइफ का शुरुआती रोमांच भी था. एक अजीब सी लहर चल रही थी क्लास में, दोस्ती की शुरुआत की. हालांकि दोस्ती की लहर तो ऊपरी तौर पर थी, लेकिन सतह के नीचे कहीं न कहीं प्यार वाली लहरों की भी हलचल जारी थी. दोस्ती की लहर तो आप ऊपरी तौर पर हर जगह देख सकते थे, लेकिन प्यार की लहर देखने के लिए आप को किसी सूक्ष्मदर्शी की जरूरत पड़ सकती थी. कनखियों से देखना, इक पल को एकदूसरे को देख कर मुसकराना, ये सब आप खुली आंखों से कहां देख सकते हैं. जरा ध्यान देना पड़ता है, हुजूर. मैं खुद कुछ उलझन में था कि वह मुझे देख कर मुसकराती है या फिर मुझे कनखियों से देखती है. खैर, मैं ठहरा कवि, कहानीकार. मेरे अतिगंभीर स्वभाव के कारण जो युवतियां मुझ में शुरू में रुचि लेती थीं वे अब दूसरे ठिठोलीबाज युवकों के साथ घूमनेफिरने लगी थीं. यहां मेरी रुचि का तो कोई सवाल ही नहीं था, भाई, मेरे लिए भागते चोर की लंगोटी ही काफी थी, लेकिन मेरे पास तो उस लंगोटी का भी विकल्प नहीं छूटा था.

लेकिन कुछ लड़कों का कनखियों से देखने व मुसकराने का सिलसिला जरा लंबा खिंच गया था और प्यार का धीमाधीमा धुआं उठने लगा था, अब वह धुआं कच्चा था या पक्का, यह तो आग सुलगने के बाद ही पता चलना था. खैर, उन सहपाठियों में मेरा दोस्त भी शामिल था. गगन नाम था उस का. वह उस समय किसी विनीशा नाम की लड़की पर फिदा हो चुका था. दोनों का एकदूसरे को कनखियों से देखने का सिलसिला अब मुसकराहटों पर जा कर अटक चुका था. मैं इतना बोरिंग और पढ़ाकू था कि मुझे अपने उस मित्र के बारे में कुछ पता ही नहीं चल सकता था. खैर, उस ने एक दिन मुझे बता ही दिया.

’’यार कवि, तुझे पता है विनीशा और मेरा कुछ चल रहा है,’’ गगन ने हलका सा मुसकराते हुए मुझे बताया था. ’’कौन विनीशा?’’ मेरा यह सवाल था, क्योंकि मैं अपने संकोची व्यवहार के कारण क्लास की सभी लड़कियों का नाम तक नहीं जानता था.

पास ही हामिद भी खड़ा था, जो मेरे बाद गगन का क्लास में सब से अच्छा दोस्त था. उस ने बताया, ’’अरे, वह जो आगे की बैंच पर बैठती है,’’ हामिद ने मुझे इशारा किया. ’’कौन निशा?’’ मैं ने अंदाजा लगाया, क्योंकि मैं खुद शुरू में उस लड़की में रुचि लेता था, इसलिए उस का नाम मुझे मालूम था.

’’नहीं यार, निशा के पास जो बैठती है,’’ गगन ने फिर मुसकराते हुए बताया था. ’’अच्छा वह,’’ अब मैं मुसकरा रहा था, मैं अब उस लड़की को चेहरे से पहचान गया था. ’’उस का नाम विनीशा है,’’ मैं ने हलका सा आश्चर्य व्यक्त किया था.

’’हां यार, वही,’’ गगन ने हलका भावुक हो कर कहा था. ’’अच्छा, तो मेरे लायक कोई काम इस मामले में, मैं ने हंसते हुए पूछा था.

’’नहीं यार, तू तो मेरा दोस्त है. तुझे तो मैं अपनी पर्सनल फीलिंग बताऊंगा ही,’’ गगन ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा था. वह पल ऐसा था, जिस में भले ही विनीशा का जिक्र था, लेकिन मुझे हमेशा वह पल मेरा अपना ही लगा. वह एहसास था एक अच्छी और सच्ची दोस्ती की शुरुआत का. मैं मुसकराया और धीमे से बोला, ’’मेरी विशेज हमेशा तुम्हारे साथ हैं, तो मैं चलूं. मुझे लाइब्रेरी जाना है.’’

’’हां, चल ठीक है,’’ गगन के इतना कहते ही मैं लाइब्रेरी की ओर चल दिया. मुझे किसी विनीशा की फिक्र नहीं थी लेकिन एक ताजा सा खयाल था नई दोस्ती की शुरुआत का. वह क्लास की लहर कहीं न कहीं मुझ में भी दौड़ रही थी.

अगले दिन जब मैं कालेज के हाफटाइम में कुछ समय के लिए कालेज की सीढि़यों पर बैठा था, तो राजन मिला. ’’हाय राजन,’’ मैं इतना कह कर कालेज के गेट के बाहर वाली सड़क के पार मैदान में देखने लगा.

तभी मेरी नजरें मैदान में जाने से पहले उस सड़क पर ठहर गईं जहां गगन निशा के साथ टहल रहा था. मेरे मन में कई सवाल उठे कि गगन तो विनीशा को पसंद करता है तो फिर निशा के साथ क्या कर रहा है. खैर, मैं ने हाफटाइम के बाद गगन के क्लास में आने पर उस से पूछा, ’’यार गगन, तू तो कह रहा था कि तू विनीशा को पसंद करता है, फिर निशा?’’

’’अरे, मैं विनीशा के बारे में ही उस से बात कर रहा था,’’ गगन ने गंभीरता से बताया. ’’फिर,’’ मैं ने पूछा था.

’’वह बता रही थी कि विनीशा का पहले से ही कोई बौयफ्रैंड है,’’ उस ने उतनी ही गंभीरता से बताया. ’’हूं… अभी,’’ मैं ने भी गंभीरता व्यक्त की थी.

’’मैं यार, फिर भी उस से एक बार मिलना चाहता हूं,’’ गगन में कहीं न कहीं उम्मीद अभी भी दबी नहीं थी. ’’ठीक है, फिर बताना. अच्छा हो कि निशा की बात गलत हो,’’ मैं ने मुसकराते हुए कहा, फिर पूरी क्लास पढ़ाई में लग गई, क्योंकि हमारे टीचर अब थोड़े सख्ती बरत रहे थे.

अगले दिन तक गगन विनीशा से मिल चुका था और मुझे बता रहा था, ’’यार, वह तो मुझे कन्फ्यूज कर रही है, उस का बौयफ्रैंड है तो वह सीधीसीधी बात क्यों नहीं कहती?’’ ’’हो सकता है वह अपने बौयफ्रैंड से छुटकारा पाना चाहती हो, ब्रेकअप करना चाहती हो,’’ मैं ने उसे समझाया, जबकि मैं खुद इन मामलों में अनाड़ी था.

’’हां यार, देखते हैं. मैं खुद समझ नहीं पा रहा हूं,’’ गगन गंभीर था. खैर, फिर यों ही चलता रहा और आखिर में पहले सैमेस्टर की परीक्षाएं करीब आ गईं. तब तक मैं विनीशा और गगन के चक्कर को भूल ही गया था.

रिजल्ट आया, गगन पास तो हो गया था, लेकिन पूरी क्लास की अपेक्षा उसे कम नंबर मिले थे. गगन उन दिनों हामिद के साथ ज्यादा रहने लगा था. दूसरे सैमेस्टर में तो वह मेरे साथ ज्यादा रहा ही नहीं, लेकिन दूसरे साल में वह अब फिर मेरे साथ रहने लगा था. मैं ने एक दिन उस से विनीशा का जिक्र किया, तो वह बताने लगा, ’’यार, मैं ने उस लड़की की खूबियां देखी थीं, लेकिन कमियां नहीं देखी थीं. वह मुझे उलझाए बैठी थी. उस का बौयफै्रंड था तो भी वह मुझ से क्या चाह रही थी, मैं समझ नहीं पा रहा था. एक दिन वह मेरा इंतजार करती रही और मैं उस से मिलने नहीं गया.’’

’’हूं… मतलब सब ओवर,’’ मैं ने मुसकरा कर पूछा. ’’देखो कवि, एक बात बताऊं,’’ वह मुझे अकसर कवि ही कहता था, ’’तेरे और मेरे जैसे लोग इस कालेज में लाखों रुपए फीस दे कर कोई लक्ष्य ले कर आए हैं और ये सब फालतू चीजें हमें अपने लक्ष्य से भटका देती हैं.’’

मैं उसे ध्यान से सुन रहा था और गौर भी कर रहा था. ’’यार, तू ने देखा न, पिछले सैमेस्टरों में मेरा क्या रिजल्ट रहा,’’ वह मेरी तरफ देख रहा था.

’’अब तू ही बता. एक लड़की के प्यार के पीछे मैं ने कितना कुछ खो दिया,’’ वह गंभीर था. ’’हां यार, मैं तुझे पहले ही कहने वाला था, पर मुझे लगा कि तू बुरा मान जाएगा,’’ मैं ने आज अपने दिल की बात कह दी.

’’नहीं यार, तू तो मेरा दोस्त है. अब तो मैं ने तय कर लिया है कि फालतू यारीदोस्ती व प्यारमुहब्बत में पड़ूंगा ही नहीं और बस, तेरे और दोचार लोगों के साथ ही रहूंगा,’’ उस ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा, ’’दोस्त, तुम मिडिल क्लास पर्सन हो, और तुम आज को ऐंजौय करने की नहीं बल्कि भविष्य संवारने की सोचते हो.’’ ’’वह तो है,’’ मैं ने मुसकरा कर कहा.

’’और मैं भी फालतू बातों से ध्यान हटा कर अपना भविष्य संवारना चाहता हूं,’’ उस का हाथ मेरे कंधे पर ही था. वह भावुक हो गया था. हमारी दोस्ती की यह लहर मुझे अभी भी ताजी महसूस हो रही थी. उस के बाद से अब तक वह मेरे साथ ही रहता है. कालेज में विनीशा की तरफ देखता भी नहीं है. क्लास में खाली समय में भी पढ़ता रहता है.

वह समय पर एनसीसी जौइन नहीं कर पाया था, लेकिन अपनी मेहनत के बलबूते पर अब वह एनसीसी में न सिर्फ सिलैक्ट हो गया, बल्कि एक कैंप भी अटैंड कर के आया है. कैंप में फायरिंग सीखने के बाद अब वह एक और कैंप में एयर फ्लाइंग के लिए भी जाने वाला है. उस का लक्ष्य आर्मी या पुलिस में जाना है और वह उस के करीब भी नजर आने लगा है. गगन एक विशालकाय समुद्र की लहरों को चीरते हुए सतह पर आने लगा है, जिस में कई नौजवान गोते खाते रहते हैं. फर्स्ट ईयर के बाद अब सैकंड ईयर उस का ज्यादा मजे में व उद्देश्यपूर्ण ढंग से बीत रहा है.

अब की न जाएगी बहार

Writer – Nidhi Mathur

‘‘अनन्या, चल न, घर जा कर फोन पर बात कर लेना,’’ नंदिनी ने अपनी सखी अनन्या का हाथ खींचते हुए कहा.

‘‘अरे, बस एक मिनट. मेरी होने वाली भाभी का फोन है,’’ अनन्या बोली.

तीसरी सहेली वत्सला कुछ नाराज होते हुए बोली, ‘‘तू तो अब हमारे साथ शौपिंग करेगी नहीं. दुनिया में सिर्फ तेरे भाई की शादी नहीं हो रही है जो तू घंटों फोन पर अपनी होने वाली भाभी से चिपकी रहती है. आज इतनी मुश्किल से हम तीनों ने अपना शौपिंग का प्रोग्राम बनाया था. तू फिर से फोन पर चिपक गई.’’

नंदिनी बोली, ‘‘तुम दोनों को भूख लगी है या नहीं? मुझे तो जोर की भूख लगी है.’’

शौपिंग करते हुए अनन्या बोली, ‘‘न बाबा मेरी भाभी एम.जी. रोड के एक रैस्टोरैंट में मुझे लंच के लिए बुला रही है, तो आज तुम दोनों मुझे माफ करो. मैं तो अपनी भाभी के साथ ही लंच करने वाली हूं. अपना प्रोग्राम हम लोग फिर किसी दिन बना लेंगे.’’

वत्सला और नंदिनी के कुछ कहने के पहले ही अनन्या ने एक औटो एम.जी. रोड के लिए किया और फिर वह फुर्र हो गई.

‘‘नंदिनी, इस की भाभी को वाकई गर्व होना चाहिए कि उसे अनन्या जैसी ननद मिल रही है,’’ वत्सला बोली, ‘‘अरे तू उस की दीदी को क्यों भूल गई? वान्या दीदी भी तो अपनी भाभी को उतना ही प्यार करती है.’’

‘‘हां भई,’’ नंदिनी ने कहा, ‘‘फैमिली हो तो इस अनन्या के जैसी, इतना प्यार करते हैं सभी घर में एकदूसरे को. वह तो भैया ने थोड़ी सी शादी में लापरवाही कर दी.’’

वत्सला बोली, ‘‘ठीक है न, जब उन का मन किया तभी तो शादी के लिए हां की. इस की भाभी को तो कोई भी कष्ट नहीं होगा ससुराल में. चलो हम लोग तो लंच करें.’’

अनन्या, वान्या और जलज अपनी मां के साथ बैंगलुरु में रहते थे. जलज सब से बड़ा था, उस के बाद वान्या और सब से छोटी थी अनन्या. जलज और वान्या में तो 2 साल का फर्क था पर अनन्या जलज से 5 साल और वान्या से 3 साल छोटी थी. उन के पिताजी की कुछ वर्ष पहले मृत्यु हो गई थी और तब से ये चारों ही बैंगलुरु में रहते थे. जलज एक आईटी कंपनी में सौफ्टवेयर इंजीनियर था और उस की कैरियर ग्रोथ बहुत अच्छी थी. बस उस ने अभी तक कोई लड़की पसंद नहीं की थी. वान्या और अनन्या की शादी हो चुकी थी और दोनों के 1-1 बेटा था. अब इतने सालों बाद जलज को अपनी कम्युनिटी में ही एक लड़की पसंद आई तो मां ने चट मंगनी और पट शादी करने का फैसला कर लिया.

वान्या और अनन्या तो खुशी से उछल ही पड़ीं. उन की होने वाली भाभी का नाम समृद्धि था. अब तो आए दिन उन के भाभी के साथ प्रोग्राम बनने लगे. जलज कभी उन के साथ चला जाता था पर ज्यादातर तो वान्या और अनन्या ही समृद्धि को घेरे रहती थीं.

इतने सालों बाद यह खुशी उन के जीवन में आई थी तो वे अपने होने वाली भाभी पर ढेरों प्यार लुटा रही थीं. करीब 1 महीने बाद जलज और समृद्धि की धूमधाम से शादी हो गई. नंदिनी और वत्सला तो खासतौर से समृद्धि के पास अनन्या की शिकायत ले कर पहुंचीं, ‘‘पता है भाभी, आप के साथ टाइम स्पैंड करने के लिए यह अनन्या तो अपनी सखियों को भूल ही गई.’’

अनन्या चहकते हुए बोली, ‘‘तुम लोग भी देख लो. मेरी भाभी है ही ऐसी.’’

समृद्धि भी यह छेड़छाड़ सुन कर धीमेधीमे मुसकराती रही. समय अपनी गति से चल रहा था.

नंदिनी और वत्सला अनन्या से उस की भाभी के बारे में बात करती रहती थीं. अनन्या अपनी भाभी को ले कर शौपिंग पर जाती थी तो सहेलियों का मिलनाजुलना कुछ कम हो चला था. हां, फोन पर अकसर बातें हो जाया करती थीं.

अभी जलज की शादी को 1 साल ही हुआ था कि एक दिन अनन्या बड़े दुखी मन से अपनी सहेलियों नंदिनी व वत्सला से मिली.

नंदिनी बोली, ‘‘क्या हुआ मैडम? आज मुंह क्यों लटका रखा है?’’

वत्सला ने कहा, ‘‘चल पहले चाट खाते हैं, फिर आगे की बातें करेंगे.’’

मगर अनन्या बोली, ‘‘नहीं यार. मुझे तुम दोनों को कुछ बताना है. चाट आज रहने दो.’’

नंदिनी बोली, ‘‘क्या हुआ? कुछ सीरियस है क्या? तू ऐसे क्यों बैठी हुई है?’’

इस पर अनन्या सिर झुका कर बोली, ‘‘मेरे भैया का डिवोर्स फाइल हो रहा है.’’

वत्सला चौंक कर बोली, ‘‘यह तू क्या बोल रही है? तू तो अपनी भाभी की इतनी तारीफ करती थी? तेरी उस के साथ इतनी पटती थी? अचानक से डिवोर्स कैसे?’’

फिर जो अनन्या ने बताया उसे सुन कर तो नंदिनी और वत्सला दोनों हक्कीबक्की रह गईं.

जलज की शादी के बाद मां ने गांव जाने की इच्छा प्रकट की. अब उन के मन को तसल्ली हो गई थी और वह अपना समय अपने रिश्तेदारों के साथ बिताना चाहती थीं. जलज को ले कर उन के मन में जो चिंता थी वह अब दूर हो गई थी.

अपनी बहू समृद्धि का उन्होंने खूब दुलार किया. उसे गहनों और कपड़ों से लाद दिया और फिर मां मन की शांति के लिए अपने गांव चली गईं. उन का मन वहीं लगता था क्योंकि उन के सारे रिश्तेदार वहीं थे.

जलज और समृद्धि अपना जीवन अपने हिसाब से जी रहे थे. न कोई टोकाटाकी, न कोई हिसाबकिताब और न ही कोई रिश्तेदारी का ?ां?ाट. हां, वान्या और अनन्या जरूर समृद्धि के साथ अपने कार्यक्रम बनाती रहती थीं. फिर अचानक समृद्धि का व्यवहार बदलने लगा. वह अपनी ननदों के साथ कुछ रूखेपन से पेश आने लगी.

पहले तो ननदों को समझ नहीं आया कि समृद्धि अब हर बार मिलने से मना क्यों कर देती. मगर वान्या सम?ादार थी तो उस ने अनन्या को भी समझाया कि जलज और समृद्धि को एकदूसरे के साथ समय देना ही बेहतर होगा. अनन्या और वान्या ने भाईभाभी के साथ अपने प्रोग्राम बनाने बिलकुल बंद कर दिए. वे दोनों तो वैसे भी नई भाभी का अकेलापन मिटाने का प्रयास कर रही थीं.

जलज और समृद्धि अब ज्यादातर समय एकदूसरे के साथ बिताने लगे थे. समृद्धि क्योंकि पूरा दिन घर पर रहती थी तो जलज ने उसे औनलाइन योगा क्लास जौइन करने की सलाह दी.

शादी के बाद वैसे भी पकवान खाखा कर समृद्धि का वेट थोड़ा सा बढ़ गया था. वैसे समृद्धि को दिनभर में कोई काम नहीं होता था क्योंकि वह जौब नहीं कर रही थी और जलज को काफी अच्छी सैलरी मिल रही थी.

समृद्धि के परिवार में 1 भाई और 1 बहन ही थी. उस के भाई की भी शादी नहीं हुई थी. समृद्धि की शादी हो जाने की वजह से उस के भाई को घर का काम संभालने में बहुत परेशानी आने लगी. जब तक समृद्धि थी उस का खानापीना नियमपूर्वक चल रहा था पर अब उसे औफिस के साथसाथ घर भी देखना पड़ता था तो वह खीज जाता था.

एक दिन वह समृद्धि के घर आया तो समृद्धि खुशीखुशी उसे अपनी शादीशुदा जिंदगी के बारे में बताने लगी, ‘‘पता है भैया, अब तो मैं नीचे बाजार जा कर घर का सारा सामान ले आती हूं और घर के छोटीमोटी रिपेयर भी कर देती हूं, साथ ही मैं ने एक औनलाइन योगा क्लास भी जौइन कर ली है.’’

समृद्धि का भाई समीर थोड़े खुराफाती दिमाग का था. बहन की बातों से उस के दिमाग का बल्ब जला. ऊपर से तो उस ने अपनी खुशी जताई पर अंदर से वह अपनी बहन की खुशी से जलभुन गया.

इस का एक कारण शायद यह भी था कि वह सम?ाता था उस का आराम समृद्धि की शादी की वजह से खत्म हो गया है. अब उस ने अपना पासा फेंका. बोला, ‘‘अरे तू जब मेरे पास थी तो तु?ो घर की कोई रिपेयरिंग नहीं करने देता था मैं. औनलाइन किसी को बुला क्यों नहीं लेती है? रिपेयरिंग वगैरह के काम क्या लड़कियां करती हैं? जलज पूरा दिन क्या करता है? घर में तेरा हाथ नहीं बंटाता?’’

‘‘अरे नहीं भैया. जलज तो रात को आते हैं तो उन्हें इन सब की फुरसत नहीं होती. मैं पूरा दिन घर में रहती हूं इसलिए ये सब अपनेआप ही कर लेती हूं.’’

‘‘अच्छा, पहले तो तू कभी ऐक्सरसाइज वगैरह नहीं करती थी. अब यह योगा क्लास क्यों जौइन की है?’’

‘‘वह जलज ने कहा कि मेरा शादी के बाद डिनर पार्टीज अटैंड करकर के थोड़ा सा वेट बढ़ गया है, बस इसीलिए.’’

‘‘अच्छा तो अब जलज मेरी बहन को खाने पर ताने भी देगा?’’

‘‘नहीं भैया क्या बात कर रहे हैं? उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं कहा.’’

‘‘मैं सब समझ गया हूं, जलज को भी आजकल की लड़कियों की तरह एक सुंदर, स्लिम लड़की चाहिए. इसीलिए वह तुझे ऐसी सलाह दे रहा है. पर मुझे तो मेरी बहन बिलकुल मोटी नहीं लगती. आगे से अगर तुझे कुछ रिपेयरिंग का काम कराना हो तो मुझे फोन कर देना. तेरी ननदें भी बस घूमनेफिरने की ही शौकीन हैं. काम में तेरी मदद क्यों नहीं करतीं?’’

थोड़ी देर बाद समीर चला गया पर उस के हाथ एक मौका लग गया. अब वह जलज के पीछे घर जाजा कर समृद्धि के कान भरता रहता. उसी ने सब से पहले समृद्धि को अनन्या और वान्या से मुंह मोड़ने को कहा, जिस की वजह से वह उन से बेरुखी जता रही थी.

एक दिन उस ने समृद्धि के जेवर देख कर कहा, ‘‘तेरी ननदें यहां आतीजाती रहती हैं. तू अपने सारे गहने उन से छिपा कर हमारे घर में रख दे. क्या भरोसा किसी त्योहार के बहाने तुझ से कुछ मांग लें और फिर वापस न करें. उन्हें बोल देना तेरे सारे जेवर बैंक में हैं.’’

‘‘पर भैया, वे तो अब यहां नहीं आतीं. उन्होंने कहा है कि जलज और मैं अपना वक्त एकदूसरे के साथ बिताएं.’’

‘‘तू बहुत भोली है समृद्धि पर इन ननदों से जरा बच कर रहना,’’ कह कर समीर चला गया. मगर समृद्धि के मन में जहर का बीज बो गया.

समीर अब समृद्धि को जलज और उस के पूरे परिवार के खिलाफ भड़काता रहता, ‘‘तेरी सास को अभी गांव नहीं जाना चाहिए था. तेरा काम में हाथ बंटाती, तुझे अपने साथ रखती, घर संभालना सिखाती.

‘‘ मेरी छोटी बहन के ऊपर कितनी जिम्मेदारी आ गई है. तेरी ननदें शादी के पहले तो बहुत आती थीं, अब उन्होंने भी तुम दोनों से मुंह मोड़ लिया है. तू कैसे इन सब के साथ निभा रही है? मुझे तो तुझे देख कर बहुत दुख होता है.’’

समीर से आए दिन यह सब सुनसुन कर समृद्धि का भी मन बदलने लगा. अब वह अपने भाई की बातों में सचाई ढूंढ़ने लगी. हालांकि भाई का सच उसे नजर नहीं आया.

समीर चाह रहा था कि समृद्धि किसी तरह वापस घर आ कर उस का खानापीना संभाल ले. वह स्वार्थ में इतना अंधा हो गया कि उसे अपनी बहन के सुखदुख की कोई परवाह नहीं थी.

धीरेधीरे समृद्धि के सारे अच्छे जेवर और कपड़े समीर ने मंगवा कर अपने घर रख लिए. एक दिन जलज जब घर आया तो खाना नहीं बना था. जलज का दिन काफी व्यस्त रहा था और वह जल्दी खाना खा कर सोना चाहता था पर समृद्धि ने जानबूझ कर देर करी.

समीर ने समृद्धि के दिमाग में बैठा दिया था कि जलज उसे बाई का दर्जा दे रहा. जलज ने जब खाने के बारे में पूछा तो समृद्धि ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारे घर की बाई नहीं हूं. कल से घर में खाना बनाने वाली लगा लो, मैं ये सब काम नहीं करूंगी.’’

जलज समृद्धि की बातें सुन कर हैरान हुआ पर वह बहस नहीं करना चाहता था

इसलिए मैगी खा कर सोने चला गया. अब समृद्धि समीर के उकसाने से न तो वान्या और अनन्या के फोन उठाती, न ही अपनी सास से बात करती तथा न ही घर का कोई काम करती. उस ने बातबेबात जलज से भी उल?ाना शुरू कर दिया था. जलज वैसे ही थका हुआ देर से घर आता था तो वह पहले तो समृद्धि को मनाता था. फिर उस के तानों को अनसुना करने लगा.

उधर समीर अपनी योजना सफल होते देख खुश था. वह तो चाह ही रहा था कि समृद्धि का घर टूटे और वह वापस आए. एक दिन समृद्धि ने जलज से बिना बात के ?ागड़ा किया और समीर के घर चली गई. वहां पर समीर ने उसे इतना भड़काया कि 1 महीने बाद ही उस ने डिवोर्स के पेपर्स भेज दिए.

जलज को इस में समीर का हाथ साफ नजर आया पर उसे यह नहीं पता था कि उस ने समृद्धि को कितना भड़का रखा है. उसे सिर्फ समीर पर शक हुआ क्योंकि वही उस की पीठपीछे घर आता था. अनन्या ने भी वही कहा कि उसे अंदर की बात तो पता नहीं पर इस में समीर का हाथ हो सकता है.

केवल डिवोर्स तक ही मामला रहता तो ठीक भी था पर समीर के उकसाने पर समृद्धि ने वान्या और अनन्या पर भी दहेज के आरोप में केस कर दिया. यही नहीं, गांव में रह रही उन की मां का नाम भी उस में शामिल कर लिया. अनन्या, वान्या ने जब अपने ऊपर केस के बारे में सुना तो वे सन्न रह गईं. दोनों बहनों का प्यारा बड़ा भाई जिस की शादी उन्होंने इतने चाव से की थी, आज एक टूटे रिश्ते का दर्द सह रहा था. ये सब बातें अनन्या ने अपनी सहेलियों के साथ एक दिन चाय पर डिस्कस कीं. कोर्ट केस म्यूचुअल अंडरस्टैंडिंग पर सुल?ाने के समीर ने क्व25 लाख मांगे.

अनन्या ने कहा, ‘‘जब हम लोग गलत नहीं हैं तो एक भी पैसा नहीं देंगे. कोर्ट में केस चलने दो, हम भी देख लेंगे.’’

वान्या ने सम?ाया भी कि कोर्टकचहरी अपने देश में सालोंसाल लगा देते हैं, हम लोग पैसा दे कर ही छूट जाते हैं. समीर और समृद्धि क्व25 लाख से कम में केस बंद करने को तैयार नहीं थे.

हमेशा हंसनेखिलखिलाने वाली अनन्या अब अकसर परेशान रहने लगी. उन सब को कोर्ट में तारीख आने पर बुलाया जाता और जज हर बार अगली तारीख दे देता. जलज भी चुपचुप रहने लगा था.

एक दिन अचानक जलज अनन्या के घर आया और बोला कि वह जौब छोड़ रहा है. अनन्या ने फोन कर के वान्या को भी वहीं बुला लिया, ‘‘देखो न दीदी, भैया क्या कह रहे हैं, अच्छीखासी जौब छोड़ रहे हैं.’’

वान्या ने पूछा, ‘‘भैया आप जौब क्यों छोड़ रहे हैं?’’

जलज बोला, ‘‘क्या करूंगा जौब कर के? रोज सुबह जाओ, रात को घर आ कर खाना खा कर सो जाओ. किस के लिए पैसे कमाऊं?’’

यह सुन कर अनन्या और वान्या शौकड हो गईं. जलज से ऐसे व्यवहार की उन्हें बिलकुल उम्मीद नहीं थी. उधर जलज अब हर चीज से उदासीन होने लगा था. जिंदगी ने उस के साथ जो मजाक किया था उसे उस ने कुछ ज्यादा ही सीरियसली ले लिया था. वह घर में बंद हो गया. मां उस के पास वापस आ गई थीं. वे उसे बहुत सम?ातीं, मगर जलज ने चुप्पी ओढ़ ली थी. न तो वह दोस्तों से मिलने को तैयार था, न दूसरी जौब ढूंढ़ने को और न ही बहनों के साथ समय बिताने को.

अगली केस डेट पर समीर समृद्धि के साथ आया था. सब ने उसे और समृद्धि को देख कर मुंह फेर लिया. समीर अंदर से जलभुन गया और ऊपर से जलज को धमकी भरे स्वर में बोला, ‘‘तूने जौब छोड़ दी न? अच्छा किया. अब मैं देखता हूं तू कहां नौकरी करता है. तू जहां भी जाएगा मैं वहां जा कर तेरी ऐसी बदनामी करूंगा कि तू भी सोचेगा तूने मेरी बहन के साथ इतना गलत व्यवहार क्यों किया.’’

वान्या चिल्लाई, ‘‘एक तो चोरी ऊपर से सीनाजोरी. भैया ने तुम्हारे साथ क्या गलत किया है?’’

अनन्या ने वान्या को समझाया कि कोर्ट में कुछ भी उलटासीधा न बोले. वह सब उन के खिलाफ जा सकता है. तीनों भाईबहन चुपचाप कोर्ट की प्रोसीडिंग के लिए अंदर चले गए.

इसी तरह 2-3 साल और गुजर गए. जलज के दोनों केसों का कोई भी निर्णय नहीं हुआ. आखिर वान्या, अनन्या और उन की मां ने फैसला किया कि एक बार फिर आउट औफ कोर्ट सैटलमेंट की बात की जाए. समीर भी हाथ में पैसा न आता देख कर फ्रस्ट्रेटेड हो रहा था. 8 लाख में 3 साल बाद म्यूचुअल सैटलमैंट से दोनों केस डिसाइड हो गए. अब समृद्धि और जलज के रास्ते कानूनी तौर पर अलग थे. कहने के लिए तो यह मुसीबत का अंत था मगर जलज के लिए एक और कुआं. सब रिश्तेदारों ने अनन्या और वान्या को सलाह दी कि जलज के लिए दूसरा रिश्ता देख कर उस की नई जिंदगी की शुरुआत करें. जलज इधर किसी और ही रास्ते पर चल पड़ा था, जहां सिर्फ अंधेरा ही था. वह सीवियर डिप्रैशन में चला गया था. वह कुछ दिन बैंगलुरु रहता और कुछ दिन गांव में पर अब उस की नौकरी करने की बिलकुल इच्छा नहीं थी. अनन्या और वान्या ने प्यार से बहुत सम?ाने की कोशिश की, मगर सब बेकार. जलज को लगता था कि जिंदगी ने उस के साथ बहुत बड़ी नाइंसाफी की है.

एक दिन अनन्या बोली, ‘‘भैया शुक्र है कि मुसीबत से जल्दी पीछा छूट गया. आप पीछे न देख कर आगे का जीवन बनाएं.’’

उस दिन पहली बार जलज अपनी छोटी बहन पर बरस पड़ा, ‘‘तेरे पास सबकुछ है न,

परिवार, पैसा, प्यार इसीलिए तू मुझे भाषण देती रहती है. मुझे तेरी कोई नसीहत नहीं चाहिए, न ही किसी और का लैक्चर मुझे सुनना है. वान्या से भी कह दे कि मुझे कुछ सिखाने की कोशिश न करे.’’

मां दूसरे कमरे में सो रही थीं. जलज का चिल्लाना सुन कर जब वे आईं तो देखा कि अनन्या रो रही थी और जलज फिर भी चिल्लाए जा रहा था. मां ने उसे जब शांत करने की कोशिश की तो वह बोला, ‘‘तुम अपनी प्यारी बेटियों के पास जा कर रहो. यहां रहोगी तो इन की तरह तुम भी मुझे सीख देती रहोगी.’’

अनन्या को लगा कि यह कुछ भी कहने या करने का वक्त नहीं. उस ने चुपचाप मां के कपड़े एक बैग में डाले और उसे जबरन अपने साथ ले गई. उसे लगा कि जलज को कुछ दिन अकेला छोड़ देंगे तो शायद वह संभल जाएगा. मगर जलज संभलने की राह पर नहीं चल रहा था. उस ने अपनी जिंदगी और भी बदतर कर ली. उसे जो मन में आता वह खा लेता, नहीं तो भूखा ही रह जाता. स्ट्रैस की वजह से उस की आंखों के नीचे काले घेरे पड़ गए थे और उस को स्किन प्रौब्लम भी हो गई थी. वह घर में हर समय परदे बंद रखता और कोई भी लाइट नहीं जलाता.

एक बार वान्या उसे डाक्टर के पास ले गई. डाक्टर ने कहा कि उसे बहुत स्ट्रैस है. जब तक वह कम नहीं होता तब तक जलज की स्किन प्रौब्लम ठीक नहीं होगी.

अनन्या जलज से अब बात नहीं करती थी. फिर एक दिन जलज ने उसे सौरी बोलने के लिए फोन किया और कहा कि वह मां को घर छोड़ जाए. अनन्या को लगा कि शायद जलज को पछतावा हो रहा है. मगर जलज अब किसी के बारे में सोचनासम?ाना ही नहीं चाहता था. वह जिंदगी से पूरी तरह उखड़ चुका था. अलबत्ता बहनों से वह वापस मिलने लगा था. पर वह पहले जैसा लाड़ करने वाला भाई न हो कर एक चिड़चिड़ा और बददिमाग इंसान बन गया था.

एक दिन शाम को जलज अनन्या के घर गया तो उस ने एक नई सूरत देखी. तभी अनन्या ने उस का इंट्रोडक्शन कराया, ‘‘भैया, यह है हमारी नई पड़ोसिन कमल. यह अभी 2 हफ्ते पहले ही हमारे पड़ोस में शिफ्ट हुई है.’’

जलज ने निर्विकार भाव से अभिवादन किया और दूसरे कमरे में जा कर टीवी देखने लगा. थोड़ी देर में उसे बाहर से हंसने की आवाजें सुनाई देने लगीं. वह थोड़ा इरिटेट तो हुआ पर उस ने अपने पर काबू रखा. फिर उसे लगा कि अनन्या और कमल शायद कुछ गुनगुना रही हैं. करीब 1 घंटे बाद बाहर से आवाजें आनी बंद हुईं तो जलज उठ कर उस रूम में गया. वहां पर अनन्या अकेली बैठी हुई थी. अनन्या ने जलज को कमल के बारे में बताना शुरू किया. असल में कमल के पति ने किसी और लड़की के प्यार में फंस कर उसे छोड़ दिया था. पर कमल ने परिस्थितियों से हार नहीं मानी. वह बहुत अच्छा गाती थी तो उस ने सिंगिंग कंपीटिशंस में पार्ट लेना शुरू कर दिया था और बाद में गाने को ही अपना प्रोफैशन और जिंदगी दोनों बना लिया था. उस के साथ भी जीवन में काफी कुछ घटा था पर वह बिलकुल निराश या दुखी नहीं थी. यह सब अनन्या ने जानबू?ा कर जलज को बताया ताकि वह थोड़ा मोटिवेट हो सके.

अनन्या अब कोशिश करती थी कि जब जलज उस के घर आए तो वह वान्या और कमल को भी बुला ले. कमल आते ही महफिल में चार चांद लगा देती. उस का दिल बड़ा साफ था और उसे किसी से कोई शिकायत नहीं थी. एकाध बार अनन्या ने जलज और कमल को अकेले भी छोड़ दिया. जलज को कमल में एक हमदर्द दिखाई देने लगा. वह अपने दिल की बात मां व बहनों से नहीं करता था पर उसे लगा कि कमल शायद उसे समझा कर उस के साथ सिंपैथाइज करेगी. जलज ने बिलकुल गलत सोचा था.

कमल ने न तो कोई अफसोस जताया और न ही सिंपैथाइज किया. उस ने जलज को कहा कि जो बीत गया उस को अपना आज बना कर बैठने में कोई बुद्धिमानी नहीं. कमल ने कहा, ‘‘मूव

औन जलज. सब की लाइफ में कोई न कोई प्रौब्लम आती है. अगर हम प्रौब्लम को पकड़ कर बैठ जाएंगे तो जिंदगी की असली ख़ूबसूरती नहीं देख पाएंगे.’’

जलज को अभी तक कोई ऐसा नहीं मिला था जिस ने उस के साथ सिंपैथाइज न किया हो. मगर कमल तो शायद किसी दूसरी मिट्टी की ही बनी थी. दूसरी बार जलज ने जब फिर अपने लिए कमल से सिंंपैथी चाही तो कमल ने उसे जवाब दिया, ‘‘मैं जीवन को भरपूर जीने में विश्वास रखती हूं. मेरे सामने प्लीज अपना दुखड़ा मत रोइए. हो सके तो जीवन के सारे रंगों को ऐंजौय करना सीखिए.’’

यह जलज के लिए एक बहुत बड़ा झटका था पर कहते हैं न अपोजिट्स अट्रैक्ट. शायद जलज को कहीं पर कमल की बात सही लगी. अब अगर वह कमल से मिलता तो उस की बातों को सम?ाने की कोशिश करता. बोलता वह अभी भी कम ही था पर वान्या, अनन्या और उन की मां के लिए यह एक बहुत बड़ा पौजिटिव साइन था. अब वे लोग पिकनिक, शौपिंग के प्रोग्राम बनाते और जलज को भी जबरदस्ती ले जाते.

फिर एक दिन कमल ने उसे अपने सिंगिंग प्रोग्राम के लिए इनवाइट किया. उस प्रोग्राम में कमल ने इतने अच्छे गाने गाए कि जलज भी मुग्ध हो गया. आखिर एक दिन जलज ने अपनी दोनों बहनों और मां को बुला कर कहा कि वह कमल के साथ आगे की जिंदगी गुजारना चाहेगा.

अनन्या तो यही चाहती थी, मगर उस ने फिर भी कहा कि उन सब को कमल से बात करनी चाहिए. कमल जब अगली बार मिली तो अनन्या ने ही अपने भाई का प्रपोजल उस के सामने रखा. कमल को इस बात की बिलकुल आशा नहीं थी. बोली, ‘‘जलज मैं तुम्हारा साउंडिंग बोर्ड नहीं बनना चाहती. मैं बेचारी भी नहीं हूं. न ही मैं तुम्हारी तरह हूं. जो बीत गया वह मेरे जीवन का एक हिस्सा था लेकिन उसे पकड़ कर मैं रोती नहीं हूं. तुम आगे बढ़ने में विश्वास नहीं करते हो. हमारा कोई मेल ही नहीं है.’’

जलज को कुछ ऐसे ही जवाब की अपेक्षा थी इसलिए उस ने थोड़ा समय मांगा. उस ने कमल का दोस्त बनने की इच्छा जाहिर की. कमल ने उसे एक ही शर्त पर अलौ किया कि वह पुरानी या कोई भी नैगेटिव बात नहीं करेगा और सब से पहले काउंसलर को मिल कर अपने डिप्रैशन का इलाज कराएगा. जलज इस के लिए भी तैयार हो गया.

काउंसलिंग सैशंस में जलज कमल के साथ जाने लगा. इस चीज के लिए वह कमल को मना पाने में कामयाब हो गया था. डाक्टर ने उसे बताया कि उसे दवाई की जरूरत नहीं है मगर अपना आउटलुक चेंज करना होगा. दुनिया कितनी खूबसूरत है, यह सम?ाना था और बीती हुई जिंदगी को भी ऐक्सैप्ट करना था. धीरेधीरे ही सही मगर जलज भी यह सब सम?ाने लगा. कमल ने उसे एक पौजिटिव दोस्त की तरह बहुत हिम्मत दी. अनन्या, वान्या और मां तो उस के सपोर्ट सिस्टम थे ही. इस सब में लगभग सालभर लग गया.

नए साल के दिन जलज कमल को ले कर अनन्या के घर गया और उस ने बताया कि उस ने फिर से एक आईटी कंपनी में इंटरव्यू दिया था और उस का चयन भी हो गया है. फिर उसने सब के सामने कमल से कहा, ‘‘क्या अब मैं तुम्हारे साथ आगे का जीवन प्लान कर सकता हूं?’’

कमल ने मुसकराते हुए हां कह दी. घर में जैसे एक बार फिर उत्सव का सा माहौल हो गया. गाड़ी कुछ समय के लिए पटरी से उतर जरूर गई थी मगर अब फिर से वापस नई राह पर चलने वाली थी. हां, इस सफर में एक नया और बेहतरीन साथी भी अब जुड़ गया था. खुशियां फिर से लौट आई थीं.

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