तो ब्रेकअप नहीं बनेगा सिरदर्द

माना कि पहले प्यार को भूलना आसान नहीं होता, पर दिनरात उस के गम में आंसू बहाने से जिंदगी और भी मुश्किल बन सकती है. बदलते समय के अनुसार बे्रकअप के बाद अपनी लाइफ को हसीन बनाने का एक फंडा टीवी पर एक ऐड में दिखाया गया है, जिस में एक लड़की का अपने बौयफ्रैंड से बे्रकअप हो जाता है. वह परेशान हो कर अपने लुक को चेंज करती है. हेयर कट करवा कर फेसबुक पर अपना फोटो अपलोड करती है.

इस के अलावा दोस्तों के साथ घूमनेफिरने, स्विमिंग आदि की तसवीरें भी डालती है ताकि बे्रकअप की यादों से उबर सके.

मौडर्न युग का मौडर्न फंडा

आजकल मौडर्न गर्ल्स मेकओवर का फंडा ही अपना रही हैं. अब वे ब्रेकअप के बाद खुद को घर में कैद कर के रोतीबिलखती नहीं और न ही दूसरे के कंधे पर सिर रख कर अपना दुखड़ा सुनाती हैं. आज वे अपने गम को दूर करने का खुद प्रयास करती हैं, क्योंकि वे आत्मनिर्भर जो हैं. अब वे अपने क्रैडिट कार्ड, डेबिट कार्ड उठाती हैं और अपना कौन्फिडैंस गेन करने के लिए अपने वार्डरोब व लुक्स को अपडेट करने लग जाती हैं.

खास बात यह है कि तमाम सैलिब्रिटीज भी इसी तरह अपने टूटे दिल पर मरहम लगा रही हैं.

सैलिब्रिटीज के मेकओवर का फंडा

फिल्म स्टार जौन अब्राहम से लंबे समय तक रिलेशन रखने के बाद हुए बे्रकअप से उबरना फिल्म अभिनेत्री बिपाशा बसु के लिए आसान नहीं था, लेकिन तमाम तरीकों को फौलो कर के वे इस में सफल रहीं. इस में सब से ज्यादा सहयोग रहा मेकओवर का. उन का नया डीप रैड हेयर कलर और फिटनैस रिज्यूम बयां करता है कि वे आगे बढ़ रही हैं, अपनी लाइफ को अपने तरीके से ऐंजौय कर रही हैं.

इसी तरह दीपिका पादुकोण ने रणबीर कपूर से ब्रेकअप के बाद खुद को इस गम से उबारा तो सिद्धार्थ माल्या से अलग होने के बाद भी उन्होंने अपना फ्रस्ट्रेशन जिम में वर्कआउट कर के दूर किया. ऐसे ही कंगना राणावत भी अपने बे्रकअप ब्लूज से इसी तरह बाहर निकलीं.

बौलीवुड तारिकाओं ने ही नहीं, हौलीवुड की तारिकाओं ने भी बे्रकअप पेन दूर करने का यही तरीका अपनाया.

ऐक्टर रयान रेनौल्ड से जब स्कैरलेट जौनसन का बे्रकअप हुआ तो उन्होंने नया हेयरकट करवाया. ड्रयू बेरीमूर ने भी अटैंशन पाने के लिए यही तरीका अपनाया. जस्टिन टिंबरलेक से हुए बे्रकअप के बाद कैमरून डियाज ने न सिर्फ हेयर शौर्ट कराए, बल्कि चार्मिंग ड्रैसेज पर भी खूब पैसा खर्च किया.

2004 में मिस टीन इंटरनैशनल का खिताब जीतने वाली आस्ट्रेलिया की प्रोफैशनल बौक्सर लौरिन ईगल ने बौयफ्रैंड से ब्रेकअप के बाद एक डेटिंग ऐप पर अपना प्रोफाइल बनाया. वाटर स्कीइंग चैंपियन रह चुकीं लैरिन का पिछले साल रग्बी लीग स्टार टौड कारन से बे्रकअप हो गया था. कई महीनों तक अकेले रहने के बाद अब लौरिन ने नए पार्टनर की तलाश में टिंडर नाम के डेटिंग ऐप पर अपना अकाउंट बनाया और इस ऐप पर बिकनी में लगाया अपना प्रोफाइल.

यह ऐप लोकेशन के आधार पर प्रोफाइल शौर्टलिस्ट करता है. लौरिन फिटनैस पर भी ध्यान देती हैं और वे अपनी पिक्स और वीडियो सोशल मीडिया पर अपने फैंस से शेयर करती हैं.

सामाजिक दायरा बढ़ाएं

फोर्टिस हौस्पिटल, मैंटल हैल्थ और बिहेवियरल साइंसेज के डायरैक्टर डाक्टर समीर पारिख कहते हैं, ‘‘बे्रकअप के बाद कोई भी डिप्रैशन में जा सकता है. ऐसे में कुछ लोग बस अपने रिलेशन का पोस्टमार्टम करते हैं तो कुछ ब्रेकअप के बाद रिफौर्मेशन का रास्ता पकड़ते हैं. बहुत से लोग इस से उबरने के लिए बदलाव की इच्छा रखते हैं. बे्रकअप से उबरने के लिए सिर्फ लुक्स में चेंज लाना ही काफी नहीं है, बल्कि इस से उबरने के लिए सोशल सर्कल में चेंज लाना भी बहुत जरूरी है, क्योंकि लोगों से मिलनाजुलना भी आप को रिफ्रैश रखेगा. बे्रकअप होने पर अपने परिवार के साथ ज्यादा समय बिताएं.’’

जो लोग ब्रेकअप के दर्द को खुद पर हावी नहीं होने देते और जिंदगी को नए सिरे से जीने का प्रयास करते हैं वे औरों से ज्यादा खुशहाल होते हैं. यही नहीं ऐसे लोग खुद को ज्यादा आकर्षक भी मानने लगते हैं. इस से उन के आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होती है.

डाक्टर समीर पारिख का कहना है कि नया लाइफस्टाइल किसी क्लोज पर्सन के दूर चले जाने के दर्द को कम करता है. लेकिन ऐक्सपर्ट इस के लिए ज्यादा प्रयास के लिए मना करते हैं. इसलिए अगर आप के सामने भी बे्रकअप से उबरने के लिए मेकओवर का औप्शन आए तो उसे वैसा रखें जो नौर्मल लाइफस्टाइल में सैट हो जाए.

मेकओवर के औप्शन

वार्डरोब अपडेट, फिटनैस, ऐरोबिक, बौडी या हेयर स्पा, हेयर कट, ट्रैवल जैसे तमाम तरीके हैं, जो आप को बे्रकअप ब्लूज से उबारेंगे.

मेकओवर के द्वारा लोग अपनी कमजोरी को दूर कर के अपीयरैंस तक में स्ट्रौंग नजर आने लगते हैं. ऐक्सपर्ट मानते हैं कि बे्रकअप के बाद नया हेयरस्टाइल या हेयर कलर अथवा नई डै्रस कौन्फिडैंस लैवल बढ़ाती है.

ब्रिटेन में हजारों लोग बे्रकअप के दर्द को खत्म करने के लिए हिप्नोथेरैपी (सम्मोहन) का अनोखा तरीका अपना रहे हैं और यह तरीका काफी कारगर भी साबित हो रहा है.

सम्मोहन विशेषज्ञा आलिया फ्रैंक इस तकनीक के जरीए दिल टूटने से परेशान कई महिलाओं और पुरुषों का इलाज कर रही हैं. इस में पीडि़त व्यक्ति से कहा जाता है कि पूर्व प्रेमी पर पत्थर आदि फेंकने की कल्पना करें. इस से गुस्सा बाहर निकल जाता है और मन शांत हो जाता है.

केबीसी पैसे ही नहीं यहां दिल भी जीते जाते हैं

‘कौन बनेगा करोड़पति’ शो ने अपने प्रतिभागियों और विजेताओं के दिल में जीत का ऐसा जज्बा कायम किया है कि उन के लिए यह शो उन की जिंदगी का अहम मोड़ साबित हुआ है. आइए, पिछले कुछ सीजन के विजेताओं के अनुभव से आप को रूबरू कराते हैं:

केबीसी यानी ‘कौन बनेगा करोड़पति’ 2010 में क्व1 करोड़ की धनराशि जीतने वाली राहत तसलीम अपनी कामयाबी के अनुभव को हम से साझा करते हुए कहती हैं, ‘‘झारखंड के छोटे से शहर गिरिडीह की महिला के लिए क्व1 करोड़ जीतना किसी सपने के सच होने जैसा था. कभी नहीं सोचा था कि मैं वहां तक पहुंचूंगी और क्व1 करोड़ जीत पाऊंगी.’’

‘केबीसी में पैसे ही नहीं दिल भी जीते जाते हैं,’ इस टैग लाइन के बारे में राहत तसलीम कहती हैं, ‘‘यह टैग लाइन पहले ही बन जानी चाहिए थी. महानायक अमिताभ बच्चन जिस तरह धैर्य के साथ प्रतियोगियों का दिल जीतते हैं वह काबिलेतारीफ है. अमिताभ प्रतियोगियों के साथ उन के स्तर पर आ कर बात करते हैं. वहां का पूरा माहौल दोस्ताना व घर जैसा होता है.

‘‘अमिताभ बच्चन से पहली बार मिलना और उन के व्यक्तित्व व उन की आवाज में खो जाना मेरे लिए अनूठा अनुभव था. अभी तक जिन्हें सिर्फ फिल्मों में देखा था, उन के रूबरू बैठ कर उन से बात करना हमेशा यादगार अनुभव रहेगा.’’

‘कौन बनेगा करोड़पति’ 2013 में पहली महिला करोड़पति बनने का गौरव हासिल करने वाली, उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के संसारपुर की रहने वाली फिरोज फातिमा कहती हैं, ‘‘जब मैं ने क्व1 करोड़ जीते तो मुझे बिलकुल विश्वास नहीं हो रहा था. लेकिन इतनी मेहनत के बाद अच्छा परिणाम मिला, तो बेहद खुशी हुई. जब अमिताभजी ने मुझे गले लगाया तो खुशी का एहसास दोगुना हो गया. मुझे लगा कि कुछ कर गुजरने का सपना और हौसला हो तो बड़ी से बड़ी बाधाएं भी आगे बढ़ने से नहीं रोक सकतीं.

‘‘पैसे कमाने के वैसे तो बहुत से जरीए हैं, लेकिन केबीसी के जरीए जीत हासिल करने से मुझे पैसों के साथसाथ लोगों का अपनापन भी मिला. सब ने मेरी जीत अपनी जीत समझी और मुझे उन का प्यार मिला. इसलिए ‘केबीसी में सिर्फ पैसे ही नहीं दिल भी जीते जाते हैं’, यह कथन हकीकत का ही पर्याय है.’’

अमिताभ बच्चन के साथ केबीसी में भाग लेने के अनुभव के बारे में फिरोज कहती हैं, ‘‘उन के साथ गुजारे वक्त को मैं कभी नहीं भूल सकती. एक सैलिब्रिटी, जिस से मिलने की चाह सभी को होती है, उस के साथ इतना वक्त गुजारना, गेम खेलना और फिर जीतना एक अनूठा और यादगार अनुभव था.’’

मुंबई के एक मध्यवर्गीय परिवार से तअल्लुक रखने वाली चंडीगढ़ मूल की निवासी सनमीत कौर ‘कौन बनेगा करोड़पति’ 2012 की सब से बड़ी धनराशि जीतने वाली पहली महिला हैं. सनमीत ने एक टैलीफोनिक साक्षात्कार में अपनी इस जीत के अनुभव के बारे में बताया.

उन्होंने कहा, ‘‘केबीसी का विजेता बनना मेरी जिंदगी का सब से बड़ा सपना था. मुझे शुरू से कुछ करने व अपनेआप को साबित करने की चाहत थी. केबीसी की विजेता बन कर मुझे लगा कि अब मैं दुनिया से कह सकती हूं कि वह एक महिला को कभी कमतर न समझे. हौट सीट पर बैठ कर मैं ने अपने सारे इमोशंस एक तरफ रख दिए थे और जैसे ही अमिताभ सर ने मुझे मेरे जीतने की सूचना दी, मुझे यकीन ही नहीं हुआ कि मैं ने इतनी बड़ी रकम जीत ली है. तब अमिताभ मुझे यकीन दिलाने के लिए मेरे पास आए और मुझे गले से लगा लिया.

‘केबीसी में पैसे ही नहीं दिल भी जीते जाते हैं,’ इस पर सनमीत ने कहा, ‘‘केबीसी ने मेरी जिंदगी ही बदल दी. यहां से न केवल मैं ने पैसा जीता बल्कि लोगों का दिल भी जीता है. जैसे ही लोगों को मेरे जीतने का पता चला, मेरे पास सभी तरफ से दुआएं और बधाई के संदेश आने लगे. ऐसा लगा कि अचानक हमारा परिवार बहुत बड़ा हो गया है. इस जीत से मैं ने लोगों का दिल जीता है. अगर पहले मेरी जिंदगी सोना थी तो अब ‘सोने में सुहागा’ हो गई है. लोगों ने मुझे पहचानना शुरू कर दिया और मैं एक सैलिब्रिटी बन गई.

‘‘मेरी दादी अमिताभ बच्चन की बहुत बड़ी फैन थीं. उन की फिल्म ‘मर्द’ उन की फैवरेट मूवी थी. जब मैं अमिताभ सर से पहली बार मिली तो मुझे अपनी दादी की याद आ गईं. उन से मिल कर ऐसा लगा जैसे मेरी लौटरी लग गई. विश्वास ही नहीं हो रहा था कि वे मेरे सामने खड़े हैं. मेरे हाथपैर ठंडे हो रहे थे. तब उन्होंने मुझे समझाया, मेरा उत्साह बढ़ाया. मुझे सहज कराया. उन के साथ डांस करना, बातें करना एक अनूठा अनुभव था. ‘ही इज लाइक फादर फौर माई फैमिली.’

स्मार्ट मौम परिवार रखे खुशहाल

जब हम मां की बात करते हैं तो कई बार हालबेहाल औरत की छवि सामने आती है, जो अपने बच्चों और घरगृहस्थी के बीच संतुलन बनाने में लगी रहती है. इस कशमकश में कई बार वह मानसिक रूप से परेशान हो जाती है. उस में चिड़चिड़ापन बढ़ने लगता है, जो कई बार उसे परिवार और बच्चों से दूर ले जाता है. मगर अब हालात बदल रहे हैं. समाज में ऐसी स्मार्ट मौम्स की संख्या तेजी से बढ़ रही है जो घरपरिवार, बच्चों, पति व समाज सभी के साथ कदम से कदम मिला कर चल रही हैं. ऐसी स्मार्ट मौम्स घरपरिवार के साथसाथ समाज को भी खुशहाल बनाए रखने में अहम भूमिका अदा कर रही हैं.

आइए, सब से पहले आप को मिलवाते हैं एक ऐसी सैलिब्रिटी स्मार्ट मौम से, जो अपने प्रोफैशन के साथसाथ अपने बच्चों और परिवार का तो खयाल रखती ही हैं, समाज को भी समय देती हैं.

जी हां, हम बात कर रहे हैं फिल्म अभिनेत्री सेलिना जेटली की. मिस इंडिया से फिल्म अभिनेत्री बनीं सेलिना जेटली के पिता वी.के. जेटली सेना में अफसर थे. उन की मां अफगान की थीं. वे सेना में नर्स थीं. सेलिना के भाई सेना में हैं. खुद सेलिना भी पायलट बन कर सेना में जाना चाहती थीं. उन्होंने बी.काम. किया है. पढ़ाई के दौरान ही उन्हें सौंदर्य प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने का मौका मिलने लगा. 2001 में वे मिस इंडिया बनीं. यहीं से उन की शुरुआत फिल्मों में हुई. ‘जानशीन’ और ‘नो ऐंट्री’ जैसी अनेक फिल्मों में उन की अदाकारी को दर्शकों ने काफी पसंद किया. वे फिल्मी दुनिया की सब से खूबसूरत व बोल्ड अभिनेत्रियों में से एक मानी जाती हैं.

सेलिना ने आस्ट्रेलिया के रहने वाले बिजनैसमैन पीटर हाग से 2011 में शादी की. पीटरहाग दुबई में अपना बिजनैस करते हैं. शादी के बाद सेलिना ने जुड़वां बेटों विराज हाग और विंस्टन हाग को जन्म दिया. उन्होंने मां बनने के बाद भी खुद को फिट और स्मार्ट बनाए रखा. अब वे दुबई से मुंबई बसने की तैयारी कर रही हैं ताकि अपने फिल्मी कैरियर को दोबारा शुरू कर सकें.

शादी और बच्चों के साथ कैरियर

पहले फिल्मों में काम करने वाली ज्यादातर अभिनेत्रियां शादी के बाद फिल्मों से रिटायरमैंट ले लेती थीं. इस कारण कई बार वे शादी उम्र की ढलान पर करती थीं मगर अब ऐसा नहीं है. विश्व सुंदरी और सफल फिल्म अभिनेत्री ऐश्वर्या राय बच्चन ने अपने कैरियर की ऊंचाई के दौरान ही फिल्म अभिनेता अभिषेक बच्चन से शादी की. शादी के बाद आराध्या को जन्म दिया. ऐश्वर्या का परिवार देश का सब से मशहूर फिल्मी परिवार है. उन के पति अभिषेक के अलावा ससुर अमिताभ बच्चन और सास जया बच्चन बड़े कलाकार हैं. सभी अपनेअपने काम में व्यस्त रहते हैं. ऐसे में ऐश्वर्या ने बेटी के बड़े होने तक उस का पूरा ध्यान रखा. इस दौरान वे पूरी तरह से फिल्मी चकाचौंध से दूर रहीं. अब बेटी स्कूल जाने लायक हो गई है तो ऐश्वर्या फिर से अपने फिल्मी कैरियर पर ध्यान देने लगी हैं.

2000 में मिस यूनिवर्स का ताज जीतने वाली लारा दत्ता उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद शहर की रहने वाली हैं. इन के पिता एल.के. दत्ता और मां जेनिफर दत्ता ने लारा को मौडलिंग की दुनिया में कदम बढ़ाने में पूरापूरा सहयोग दिया. मिस यूनिवर्स बनने के बाद लारा दत्ता ने अपना फिल्मी कैरियर शुरू किया. जब उन का फिल्मी कैरियर ऊंचाइयों पर था तब लारा ने टैनिस स्टार महेश भूपति से शादी कर ली. शादी के बाद लारा के बेटी हुई, जिस का नाम सायरा भूपति रखा. लारा की बेटी भी अब स्कूल जाने वाली हो गई है, इसीलिए लारा भी दोबारा फिल्मी कैरियर शुरू करने वाली हैं.

ऐसी ही स्मार्ट मौम्स की लिस्ट में एक बड़ा नाम शिल्पा शेट्टी का भी है. राज कुंद्रा से शादी करने के बाद शिल्पा ने विवान नाम के बेटे को जन्म दिया. बेटे के जन्म के बाद भी शिल्पा ने अपना फिल्मी कैरियर बनाए रखा. आज भी वे फिल्मों, टीवी और मौडलिंग में पूरी तरह सक्रिय हैं. इस के साथ ही आईपीएल क्रिकेट टीम की मालकिन भी हैं. उन की फिगर देख कर नई से नई हीरोइन भी मात खा सकती है.

2 बच्चों की मां करिश्मा कपूर भी अपना फिल्मी कैरियर फिर से शुरू करने की तैयारी में हैं. 40 साल की करिश्मा कपूर फिल्मी दुनिया के मशहूर कपूर खानदान की बेटी हैं.

बिजनैसमैन संजय कपूर से शादी के बाद उन के 2 बच्चे समिएरा कपूर और किआन राजकपूर हुए. जिस समय करिश्मा ने फिल्मी दुनिया छोड़ी थी उन का फिल्मी कैरियर धूम मचा रहा था. फिल्मी दुनिया के हर बड़े अभिनेता के साथ उन्होंने हिट फिल्में दीं. शादी और बच्चों के बाद वे वापस फिल्मी दुनिया में धूम मचाने की तैयारी कर रही हैं.

फिल्मी स्मार्ट मौम्स की सूची में मंदिरा बेदी, मलाइका अरोड़ा खान, नंदिता दास और श्रीदेवी का नाम भी उल्लेखनीय है. मलाइका अरोड़ा, नंदिता दास और श्रीदेवी ने भी बच्चों की परवरिश के साथसाथ अपने फिल्मी कैरियर को जारी रखा.

पूरी तरह फिट और हैल्दी

बात केवल फिल्मी स्मार्ट मौम्स की ही नहीं है. समाज में हमें तमाम ऐसी स्मार्ट मौम्स नजर आती हैं. सरकारी से ले कर प्राइवेट औफिसों तक में काम करने वाली तमाम स्मार्ट मौम्स ने अपने को इतना स्मार्ट बनाया है कि वे अपनी उम्र से कई साल तक कम नजर आती हैं. इन का सब से बड़ा राज इन की सेहत में छिपा होता है. फिट और हैल्दी महिलाएं ज्यादा स्मार्ट होती हैं. कई बार ज्यादा वजन वाली महिलाएं भी अपने काम में इतना स्मार्ट होती हैं कि कम उम्र की महिलाएं उन के सामने टिक ही नहीं पाती हैं.

2 बेटियों की मां सोनिया कपूर एक प्राइवेट औफिस में काम करती हैं. वे कंपनी के मालिक की करीब 20 सालों से सैके्रटरी हैं. उन का वजन भले ही औफिस में काम करने वाली छरहरी लड़कियों से कुछ ज्यादा हो पर वे अपने काम और व्यवहार से सभी को मंत्रमुग्ध कर लेती हैं. यही नहीं वे अपने घरपरिवार और बेटियों को भी पूरा समय देती हैं. ज्यादा वजन होने के बावजूद वे पूरी तरह फिट और हैल्दी हैं.

पूनम चौहान अपने घर से 25 किलोमीटर दूर स्कूल में बच्चों को पढ़ाने जाती हैं. उन की एक छोटी बेटी है. वह स्कूल जाने लगी है. पूनम सब से पहले बेटी को स्कूल पहुंचाती हैं. इस के बाद पब्लिक ट्रांसपोर्ट से स्कूल जाती हैं. दोपहर को स्कूल से लौटते हुए बेटी को भी घर लाती हैं.

वे कहती हैं, ‘‘जमाना बदल गया है. अब पतिपत्नी दोनों ही कमाने लगे हैं. पति भी पूरा सहयोग देते हैं. इस के बाद भी महिलाओं के हिस्से में ज्यादा काम आता है. ऐसे में सब से बड़ी जरूरत यह होती है कि हम शांत रहें. समझदारी के साथ टाइमटेबल बनाएं ताकि कोई जरूरी काम रह न जाए, और काम को सही तरह से करने के लिए जरूरी है कि हम अपनी हैल्थ का पूरा ध्यान रखें. समयसमय पर जरूरी चैकअप कराते रहें. ज्यादा काम करने के लिए ज्यादा ऐनर्जी की जरूरत होती है. ऐसे में हैल्दी फूड खाएं.’’

पतियों का टाइम बचाती हैं स्मार्ट मौम्स

स्मार्ट मौम्स केवल वे ही नहीं हैं जो नौकरी करती हैं या अपना बिजनैस. स्मार्ट मौम्स हाउसवाइफ के रूप में भी बहुत अच्छी तरह घरपरिवार की देखभाल करती हैं. इस से पतियों का न केवल समय बचता है, बल्कि वे अपना काम ज्यादा बेहतर तरीके से कर पाते हैं.

सुहानी की शादी दीपक के साथ हुई. सुहानी ने एम.बी.ए. किया था, लेकिन वे हाउसवाइफ बनीं. इस बात का उन्हें कोई अफसोस नहीं था. दरअसल, दीपक की नई नौकरी थी. उन्हें अपनी जौब में ज्यादा समय देना होता था. सुहानी के साथ उन के सासससुर भी रहते थे, जो अकसर बीमार रहते थे. दीपक उन की देखभाल नहीं कर सकता था. ऐसे में जब दीपक को सुहानी का साथ मिला तो रास्ता दिखा. अब वह अपनी नौकरी पर पूरा ध्यान देने लगा. सुहानी ने घर का पूरा काम संभाल लिया. ऐसेमें दीपक को औफिस में काम करने का पूरा मौका मिला और वह सफलता की सीढि़यां चढ़ने लगा.

सुहानी के मां बनने के बाद भी दीपक को कभी कोई परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा. सुहानी घर के छोटेबड़े काम जैसे बिजलीपानी का बिल जमा करना, राशन की खरीदारी करना, दवा आदि लाना खुद करती हैं. इस के लिए उन्होंने कभी दीपक को परेशान नहीं किया. दीपक को घर की जिम्मेदारियों से दूर रह कर नौकरी में आगे बढ़ने का पूरा मौका मिला.

सुहानी कहती हैं, ‘‘मैं हाउसवाइफ की जगह अपने को हाउस मैनेजर के रूप में देखती हूं. लेकिन अब बेटी बड़ी हो गई है. अत: मैं भी नौकरी कर के घर चलाने में पति की मदद करना चाहती हूं.’’

सुहानी जैसी कई पत्नियां समाज में हैं, जो घरपरिवार को संभाल कर अपनेअपने पति की मदद कर रही हैं. ये भी किसी स्मार्ट मौम से कम नहीं हैं.

बदल रही है सोच

महिला रोगों की जानकार डाक्टर रमा श्रीवास्तव कहती हैं, ‘‘लड़कियों की शादी की उम्र में अब बदलाव होने लगा है. अब लड़कियों की शादी 25 से 30 साल के बीच होने लगी है. ऐसे में लड़कियां पहले बच्चे पैदा कर के फिर अपने कैरियर को आगे बढ़ाने लगी हैं. स्मार्ट रहने से इन्हें कई लाभ होते हैं. सब से पहला यह कि 30 की उम्र के बाद भी नौकरी मिल जाती है. सरकारी से ज्यादा प्राइवेट नौकरियों के आने से लड़कियों को मां बनने के बाद भी कैरियर संवारने के मौके मिलने लगे हैं. सही उम्र में पढ़ाई शुरू करने से भी यह बदलाव होने लगा है. सही उम्र में शादी करने से लड़कियों के मां बनने की संभावना भी ज्यादा होती है.’’

22 साल की उम्र में ग्रैजुएशन करने वाली निहारिका की शादी 24 साल में हो गई. उस के बाद उन्होंने पढ़ाई जारी रखी. 26 साल में वे मां बन गईं. जब उन की बेटी स्कूल जाने लगी तो निहारिका जौब करने के लिए तैयार हो गईं. अब वे जौब और घर दोनों को बखूबी संभाल रही हैं. उन्हें किसी तरह की परेशानी नहीं होती है. वे

खुद यह योजना बनाती हैं कि कहां से और किस तरह से बचत की जाए? कैसे घर का खर्च चलाएं?

निहारिका कहती हैं, ‘‘सही उम्र में शादी होने से परिवार की जिम्मेदारियां समय पर पूरी हो जाती हैं. नौकरी करने के लिए भी समय मिल जाता है. आज पतिपत्नी मिल कर काम करें तो ज्यादा बेहतर होगा. पति को भी स्मार्ट पत्नी पर गर्व होता है. उसे लगता है कि पत्नी अगर ऐसा कर सकती है तो उसे सहयोग देना चाहिए. इस से दोनों के बीच बेहतर तालमेल बनता है.’’

अपना बिजनैस करने वाली अनीता मिश्रा कहती हैं, ‘‘अब महिलाओं को हर काम करने में महारत हासिल हो रही है. ऐसे में वे स्मार्ट और हैल्दी रहें, तो लाइफ बेहतर हो जाती है. स्मार्ट मौम को किसी काम के लिए किसी दूसरे का मुहताज नहीं होना पड़ता है. अगर आप को स्कूटी, स्कूटर या कार जैसे वाहन चलाने आते हैं तो आप को कहीं आनेजाने के लिए पति या फिर किसी और की जरूरत नहीं पड़ती है. ऐसे में समय और पैसा दोनों ही बचता है.’’

महिलाओं के काम करने से केवल घरपरिवार का ही भला नहीं होता है, देश का भी भला होता है. किसी भी देश की तरक्की में महिलाओं की भी बड़ी भूमिका होती है.

यहां मौत आसानी से मिलती है

सड़कों पर आजकल अकसर लिखा दिखता है, ‘संभल के, घर पर कोई इंतजार कर रहा है.’ मगर घर में जो इंतजार कर रहे होते हैं उन में सब से ज्यादा दुखदर्द भारत में ही झेला जाता है. भारत में हर साल साढ़े 11 लाख लंबी सड़कों पर कोई डेढ़ लाख लोग मारे जाते हैं, गोलियों से नहीं, ट्रकों, गाडि़यों से. भारत का नाम दुनिया में सड़कों पर मारे जाने वालों में से सब से ऊपर है.

ठीक है, देश बड़ा है. यहां 47 लाख मील लंबी सड़कें हैं और 12 करोड़ वाहन हैं. पर अमेरिका में, जो हम से ढाई गुना बड़ा है, 65 लाख मील लंबी सड़कों और 25 करोड़ वाहनों से 33 हजार लोग मरते हैं. और चीन की 41 लाख मील लंबी सड़कों पर 20 करोड़ वाहनों से 70 हजार. 2 गुने परिवारों को रोताबिलखता छोड़ने और लगभग 1 लाख औरतों को बिना वजह विधवा बनाने के लिए दोषी देश की सरकार और समाज दोनों हैं.

सड़कों पर दुर्घटनाओं का अकसर कारण खराब सड़कें, खराब वाहन तो होते ही हैं, खराब तरीके से चलाना और खासतौर पर शराब पी कर चलाना होता है. यह वह मौत है, जो शरीर की गलतियों से नहीं केवल और केवल आदमी की गलती से हुई होती है. यह वह मौत होती है, जो टाली जा सकती है पर किसी की लापरवाही के कारण होती है और उस का जिम्मेदार हर वह जना होता है जो स्टेयरिंग या हैंडल थामे होता है.

इस मौत का दर्द सब से ज्यादा होता है, क्योंकि यह अचानक होती है और महीनों यह दुख रहता है कि अगर यह न होता, वह न होता तो मौत न होती. इस मौत को, अफसोस कि देश की सरकार व शासन दोनों बड़े निश्चिंत भाव से लेते हैं. मानो यह तो लिखा हुआ ही है कि मौत कब आने वाली है, तो हम क्यों भगवान और भाग्य में अपना दखल दें?

इन मौतों में बड़ी जिम्मेदारी लोगों की अपनी लापरवाही है. सड़कों पर कब्जा करना तो यहां जन्मसिद्ध अधिकार बन गया है. सड़कें बनने से पहले ही सड़कों के किनारे दुकानें लगनी शुरू हो जाती हैं और जो सड़क वाहनों के लिए बनी है उस के दोनों तरफ बस्तियां उग जाती हैं और लोग सड़कें बिना इधरउधर देखे पार करना अपना हक समझते हैं. सड़कों को छोटी करना, उन पर मंदिर बनाना, दुकान बनाना, पार्किंग बनाना लोग इस तरह करते हैं जैसे सड़क के किनारे पेशाब करना.

शराब के ठेके अपना काम मुस्तैदी से करते हैं. हर सड़क पर बड़ेबड़े बोर्ड दिखेंगे: यहां शराब है. यानी पिओ और मरो. शराब पी कर गाड़ी चलाने में कुछ और ही मजा आता है. लगता है, हाथ में ट्रक, कार नहीं टैंक है, जो धाएंधाएं करता मारता चला जाएगा.

देश की सरकार को इस की चिंता नहीं है. इसलिए सर्वोच्च न्यायालय ने एक समिति बनाई है जो इस बारे में सलाह देगी. पर क्या सरकार इस तरह की सलाह को मानती है? यहां सरकार में लोग शासन करने आते हैं, सेवा करने नहीं. प्रबंध होता है तो इसलिए कि इस बहाने पैसा बनता है. यहां किसी को किसी की जान की कोई परवाह है ही नहीं.

फूल भी कांटे भी

गृहशोभा का जुलाई (प्रथम), 2014 ‘मौनसून स्पैशल’ बहुत ज्ञानवर्धक रहा. इस का शीर्ष लेख ‘बचें यौन बंधक बनने से’ अहम जानकारी से रूबरू कराता है.आज स्त्री सुरक्षा के लिए काफी होहल्ला मचा रहता है, पर यौन बंधक बना कर औरतों को प्रताडि़त करने के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं. जो स्त्रियां, किशोरियां, युवतियां इस कंटीले रास्ते में लहूलुहान होती हैं, इस के दर्द को वही जानती हैं. यौन शोषण करने वाले ये दरिंदे भोलीभाली स्त्रियों को पूर्वनियोजित योजनानुसार अपने जाल में फंसाते हैं.

यौन बंधक बना कर शारीरिक, मानसिक शोषण करने वाले इन राक्षसों से बचाव के लिए यह जानकारी सचमुच प्रशंसनीय है.

-डा. पूनम पांडे, राजस्थान

गृहशोभा का ‘मौनसून स्पैशल’ लाजवाब रहा. महिलाओं की संपूर्ण पत्रिका गृहशोभा हमें विविध क्षेत्रों की नवीनतम जानकारी से अवगत कराते हुए जिंदगी जीने की कला सिखाती है.

इस अंक में प्रकाशित लेख ‘हम दो हमारा एक भी नहीं’ बहुत कुछ सोचने के लिए मजबूर करता है. अपने स्वार्थ के लिए कहें या फिर महंगाई के चलते हम 1 से ज्यादा बच्चों का पालनपोषण करने में असमर्थ हैं. ऐसे में बूआ, काका, मामा, मौसी आदि का नामोनिशान मिट जाएगा.

संयुक्त परिवार तो एक इतिहास बन कर रह जाएगा. जब बच्चों का कोई भाईबहन ही नहीं होगा तो ये रिश्ते खत्म हो जाएंगे, आज की पीढ़ी के पास यह सोचने तक का समय नहीं है. 

-चंद्र कला बेगवानी, पश्चिम बंगाल

गृहशोभा का जुलाई (प्रथम) 2014 ‘मौनसून स्पैशल’ बहुत पसंद आया. संपादकीय टिप्पणी ‘मानवता की लूट’ मन को झंकृत कर गई.

मानवता पर तेजाब फेंकते ये लुटेरे अस्पतालों, मंदिरों जैसी जगहों को भी नहीं बख्शते. इन की खुद की संवेदना तो मर ही चुकी होती है, ये दूसरों का दर्द महसूस करने वालों की संवेदना को भी मारने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. मंदिरों में 5-5 सौ रुपए दे कर दर्शन करने वालों की भी कोई कमी नहीं है. अगर इंसान कोई गलत काम न करने, किसी का दिल न दुखाने की ठान ले तो इस से बड़ा परोपकार और कोई नहीं.

संपादकीय में हमेशा ज्वलंत सामाजिक मुद्दों को व्यापक रूप से हमारे सामने प्रस्तुत किया जाता है, जो वास्तव में सराहनीय कार्य है.

-मीनाक्षी सिंह, गुजरात

सर्वश्रेष्ठ पत्र
गृहशोभा के ‘मौनसून स्पैशल’ में विहंगम के अंतर्गत प्रकाशित टिप्पणी ‘अब की बार यह कैसी सरकार’ आम जनता के हित में है. गृहशोभा शुरू से ही आम जनता की आवाज रही है. काश कि मोदीजी भी गृहशोभा पढ़ते हों ताकि हमारी आवाज उन तक पहुंचे.

वाकई कैसी सरकार है यह. कांगे्रस ने 60 सालों में उतना नहीं रुलाया जितना मोदी सरकार ने कुछ महीने में ही जनता को रुला दिया. अब देखना यह है कि 5 सालों में और क्याक्या होता है. जिन मुद्दों को उठा कर मोदीजी चुनाव जीते, वे मुद्दे अब कौन सी फाइल में बंद हो गए हैं, यह खुद मोदीजी भी जानते होंगे.

जब मोदीजी महंगाई पर ही नियंत्रण नहीं कर पा रहे, तो ऐसे में उन की बुलेट ट्रेन चलाने की बात जनता को कैसे हजम होगी? अगर इंसान को आकाश छूना है तो 1-1 कदम उठा कर चलना पड़ता है. उछल कर आकाश छूने वाला मुंह के बल ही गिरता है. बेहतर होता यदि मोदी सरकार पहले छोटेछोटे कामों को अंजाम देते हुए जनता का विश्वास जीतती.

-मनीषा सिंह, महाराष्ट्र

गृहशोभा के जुलाई (प्रथम) 2014 ‘मौनूसन स्पैशल’ में प्रकाशित कहानी ‘दूध के दांत’ में रोहित ने अहम भूमिका निभा अपनी मां के जीवन में खुशियों की बरसात कर मौनसून के आगमन की ठंड का एहसास कराया. सच, बच्चों की निर्णयक्षमता कठिन कामों को सरलता से अंजाम दे देती है?

-शगुफ्ताअतीब काजी, महाराष्ट्र

गृहशोभा जुलाई (प्रथम) 2014 ‘मौनसून स्पैशल’ दिल को छू गया. अतिप्रिय पत्रिका गृहशोभा में प्रकाशित लेख ‘मछली खा रहे हैं या प्लास्टिक’ से जाना कि आखिर प्लास्टिक समुद्र में जा कर समुद्री जीवों को हानि पहुंचा रहा है. मना कि प्लास्टिक का प्रयोग जीवजंतुओं व पृथ्वी के लिए हानिकारक सिद्ध हो रहा है, मगर इस के फायदे भी तो देखें. अगर प्लास्टिक का प्रयोग न होता तो कागज बनाने के लिए जोर पेड़ों को काटने पर रहता. फलस्वरूप अब तक कागज दुर्लभ वस्तु बन गई होती. ऐसे में सही यही होगा कि प्लास्टिक को डिस्पोजल करने का जल्दी से जल्दी कोई तरीका ढूंढ़ा जाए.

-नूपुर अग्रवाल, उत्तर प्रदेश

गृहशोभा का ‘मौनसून स्पैशल’ संग्रहणीय अंक रहा. इस अंक में प्रकाशित लेख ज्ञानवर्धक व जानकारीपूर्ण थे. मौनसून से संबंधित लेख ‘ताकि खुल कर लें रिमझिम का मजा’ जहां पढ़ने के बाद मन पुलकित हो गया, वहीं ‘मौनसून में क्या पहनें क्या नहीं’ हमें फैशन के लेटैस्ट स्टाइल से रूबरू कराता प्रतीत हुआ. कुल मिला कर यह अंक दिल को छू लेने वाला था.

-जाह्नवी, दिल्ली

हिंदुस्तान की पहली महिला जासूस

लड़कियों से जब ‘तुम बड़ी हो कर क्या बनोगी?’ यह सवाल पूछा जाता है तो आमतौर पर डाक्टर, इंजीनियर, वकील, आर्टिस्ट आदि आम जवाब सुनने को मिलते हैं. लेकिन आप की बेटी आप से यह कहे कि मैं जासूस बनूंगी, तो यकीनन आप के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगेंगी.

वैसे हम टीवी चैनल्स पर जो जासूसी सीरियल्स देखते हैं उन में स्त्री हमेशा सहायक की भूमिका में या फिर मजाकिया भूमिका में दिखती है. लेकिन हिंदुस्तान की पहली महिला जासूस रजनी पंडित एक साहसी जासूस हैं. यह बात उन्होंने समयसमय पर कई नामचीन लोगों, बिजनैसमैनों व नौकरीपेशा लोगों की समस्याएं सुलझा कर साबित कर दिखाई है.

ऐसे हुई शुरुआत

शुरू से ही सोशल वर्क की चाहत रखने वाली रजनी पंडित ने सब से पहले अपने कालेज में बुराई के रास्ते पर चलने वाली एक लड़की का पीछा कर के सारे सुबूत उस की मां के हाथों में सौंपे थे.

प्रोफैशनल तरीके से जासूसी कैसे शुरू की? इस सवाल का जवाब देते हुए रजनी ने कहा कि उन्होंने एक पत्रकार का केस ले कर उस की समस्या सुलझाई थी. उस वक्त उस पत्रकार ने उन पर अखबार में आर्टिकल लिखा था. फिर समाचारपत्र, दूरदर्शन, मैगजीन वगैरह का ध्यान उन पर गया. एक समय था जब उन के जासूसी प्रोफैशन का विज्ञापन छापने तक के लिए कोई भी अखबार तैयार नहीं हो रहा था. वही आगे उन का इंटरव्यू छापने लगे. तब बहुत से जातिधर्म में फंसे हुए लोग उन के पास अपनी समस्याएं ले कर आने लगे. सही बात तो यह है कि उन्होंने कामयाबी से जो केसेज सुलझाए उन की वजह से लोग उन के पास आने लगे.

‘मूवर्स ऐंड शेकर्स’ प्रोग्राम में उन से मुलाकात होने के बाद दुबई के एक व्यक्ति ने उन से मिल कर अपनी समस्या उन्हें सुलझाने के लिए दी थी और रजनी ने वह केस भी हमेशा की तरह कामयाबी से सुलझाया.

जासूसी का अलग अंदाज

कोई भी केस जब रजनी अपने हाथ में लेती हैं, तब उस केस में वे किसी को भी ऐक्सपोज नहीं करती हैं. सभी सुबूत इकट्ठा कर वे उन्हें केस देने वाले के हाथ में सौंपती हैं और तटस्थ रह कर उस की गलतियां समझाने का प्रयास करती हैं.

गलत तरीके से प्यार करने वाले बच्चों की भी वे काउंसलिंग करती हैं. और 2,000 से भी ज्यादा केसेज की गुत्थी उन्होंने सुलझाई है. कई बार पुलिस अधिकारी भी लोगों को रजनी के पास जाने की सलाह देते हैं.

आज रजनी का चेहरा एक जासूस के रूप में सुपरिचित चेहरा है. उन से जब यह पूछा गया कि अगर कोई अपराधी आप को जासूस के रूप में पहचान लेता है तो आप क्या करती हैं? उन्होंने हंसते हुए कहा कि ज्यादातर मेरे सहचर फील्ड में काम करते हैं, लेकिन इस के पीछे ब्रेन पावर मेरी होती है. इस के लिए कई बार बैठ कर आपस में चर्चा की जाती है. कभी पुलिस ने टोका तो ऐन वक्त पर कौन सा बहाना बनाना है, यह बात भी तय की जाती है.

एक बार एक केस सुलझाते वक्त उन्होंने एक भिखारी का वेश धारण किया था और इस के लिए वे कुछ दिन भिखारियों के दल में भी रही थीं. एक घर में तो वे 6 महीने तक नौकरानी बन कर रही थीं. इस केस में एक औरत ने अपने साथी के साथ मिल कर अपने पति और बेटे की हत्या कर के सारी जायदाद अपने नाम कराने का प्रयास किया था. उस औरत के ससुराल के लोगों ने उन्हें यह केस सौंपा था. इस केस में उस औरत ने कोई भी सुबूत पीछे नहीं छोड़ा था और नैचुरल डैथ का नकली डैथ सर्टिफिकेट भी बनवाया था.

इस के लिए नौकरानी के वेश में 6 महीने रह कर उन्होंने उस औरत का विश्वास जीत लिया था. जब उस का सहचर आता था तो वे दोनों मलयालम भाषा में ही बात करते थे. इस के लिए रजनी ने एक टेपरिकौर्डर साथ रखा था, जिस से उन दोनों की बातें टेप कर के वे उन के रिश्तेदारों से उन की बात समझ लेती थीं. एक बार उन का झगड़ा टेप कर के उन्होंने रखा था और वह टेप सुनने के बाद उन्हें पता चला कि झगड़ा जायदाद व पैसों के लिए चल रहा था और उस महिला ने ही अपने साथी से मिल कर पति और बेटे का खून किया था.

आज देश भर में कई जगहों पर औरतों, लड़कियों पर अत्याचार हो रहा है. इस के लिए शरीर प्रदर्शन के साथ 7 बजे के पहले घर न आना जैसी बातें जिम्मेदार हैं क्या? इस प्रश्न पर उन्होंने कहा कि आज लड़कियां पढ़लिख कर बड़े ओहदे पर काम कर रही हैं. उन्हें काम करने के लिए दूर जगहों पर जाना पड़ता है. ऐसे में किसी भी लड़की के लिए 7 बजे के पहले घर आना मुमकिन नहीं है. लेकिन शरीर प्रदर्शन करना मुझे उचित नहीं लगता है. कई बार लड़कियां कम कपड़ों में बाहर निकलती हैं, लेकिन वे कपड़े कंफर्टेबल नहीं होते. फिर भी किसी अनजाने शख्स की नजरें हम पर टिकी रहें, हम इतने सस्ते नहीं हैं.

जासूस बनने में दिलचस्पी रखने वाली लड़कियों के लिए उन का कहना था कि अगर आप को एक जासूस के रूप में कैरियर बनाना है, तो इस के लिए दिलचस्पी होने के साथ साहसी होना भी जरूरी है. और सब से महत्त्वपूर्ण बात यह है कि सामने जो भी हालात आएं उन का सामना करने के लिए आप का हाजिरजवाब होना बहुत ही जरूरी है.

जब भारी पड़ा अंधविश्वास

9 मई 2014…मौडल और टीवी धारावाहिकों में चरित्र भूमिका निभाने वाली अभिनेत्री ने जब मुंबई के चारकोप पुलिस थाने जा कर आपबीती सुनाई तो सबइंस्पैक्टर भोसले के होश उड़ गए. वे उस की बात सुन कर यह सोचते रहे कि क्या 21वीं सदी में भी पढ़ीलिखी लड़की जादूटोना और भूतप्रेत में विश्वास कर सकती है? उस की वजह से ठगी का शिकार हो सकती है? वे उस की दुख भरी कहानी सुनते रहे.

यह लड़की 7 साल पहले अभिनय के लिए मुंबई आई. काफी संघर्ष के बाद इसे मौडलिंग और टीवी धारावाहिकों में काम मिलने लगा तो यह मुंबई में रहने लगी. वहीं इस की मुलाकात एक नवोदित संघर्षरत मौडल व ऐक्टर से हुई. करीब 3 साल तक की जानपहचान और प्यार के बाद इन दोनों ने मंगनी कर ली. इस लड़की ने उस ऐक्टर की पूरी सहायता की, लेकिन जब उसे एक बड़े धारावाहिक में लीड रोल मिल गया तो उस ने इस लड़की से दूरियां बना लीं. वह इस का फोन तक नहीं उठाता था.

मुंहबोले भाई का सहारा

तनाव में आ कर इस लड़की ने अपने मुंहबोले भाई को जून, 2013 में सारी बातें बताईं, तो उस ने इसे 60 वर्षीय तांत्रिक बाबा भगवानदास के पास चलने की सलाह दी, जो माहिम में रहता है. दोनों जब वहां गए तो भगवानदास ने इसे बताया कि तुम्हारे ऊपर भूतप्रेत और पिशाच का साया है. मैं उस का इलाज कर सकता हूं, लेकिन इस के लिए तुम्हें पूजापाठ और कुछ खर्च करना पड़ेगा.

यह लड़की राजी हो गई. इसे लगा कि पूजापाठ से उस का आशिक फिर से उस की जिंदगी में आ जाएगा, इसलिए लड़की 70 हजार ले कर अगले दिन उस बाबा के पास गई. वहां पूजापाठ के बाद बाबा ने बताया कि वह उस के अंदर की प्रेतात्मा को योनिद्वार के जरीए बाहर निकालेगा. ऐसी बात सुन कर लड़की घबरा गई और वहां से चल दी.

उस बाबा का चेला इस्माइल शेख, इस लड़की से 2-3 दिन बाद मिला. उस ने अपनेआप को साईं बाबा का भक्त बताया और कहा कि भगवानदास की बात अगर वह नहीं मानेगी तो उस की और अधिक क्षति होगी. उस ने यह भी बताया कि जब साईं बाबा का प्रवेश किसी के अंदर होता है तो वह उस की मनोकामना आसानी से पूरी कर सकता है. पूजापाठ की बात इस बार उस ने इस लड़की के घर पर करने की बात कही और यह भी कहा कि पूजा के दौरान वह 3 महीने तक उस के घर पर ही रहेगा.

फिर 3 महीने तक वह पूजा करता रहा. लड़की और अधिक परेशान रहने लगी. एक दिन इस ने इस्माइल से घर से निकल जाने को कहा. इस्माइल तरकीबें सोचता रहा और फिर उस ने आखिर दांव खेला. उस ने कहा कि इस बार वह ऐसी पूजापाठ करेगा जिस का असर कारगर रहेगा. इस के लिए उसे 25 लाख कैश की आवश्यकता होगी. इस से उस का प्रेमी पूरी तरह से उस के पास लौट आएगा. अंधविश्वास से घिरी इस मौडल ने 25 लाख इस्माइल को दे दिए, जिन्हें इस्माइल ने एक बौक्स में रखा और उसे मीरा रोड स्थित एक गोदाम में ले गया.

पूजापाठ के दौरान वह बारबार वेश बदलता रहा और कई प्रकार की आवाजें निकाल कर उसे सुनाता रहा. उस ने कहा कि उस पर प्रेत की छाया है और उस से मुक्ति दिलाने के बहाने उस ने इस का यौन शोषण किया और कहा कि वह इस बौक्स को अपने घर पर रखे और तब तक न खोले जब तक वह उसे खोलने को न कहे. नहीं तो पैसा गायब हो जाएगा. इस के बाद इस मौडल की बातचीत इस्माइल से होती रही लेकिन दिसंबर, 2013 के बाद से उस का फोन बंद होने का जवाब आने लगा. इस मौडल ने उसे कई बार फोन किया तो एक बार फोन मिल गया. इस्माइल ने बताया कि वह अपने गांव केरल में है.

रिपोर्ट दर्ज कराई

इधर परेशान इस मौडल ने एक दिन उत्सुक हो कर बौक्स खोला तो देखा वह खाली था. पूछने पर इस्माइल शेख कई प्रकार की घुमावदार बातें करने लगा. तंग आ कर मौडल उस के मुंबई आने का इंतजार करती रही. उस के मुंबई आने के बाद वह सीधे थाने पहुंची और दोनों को गिरफ्तार करवाया. इस वक्त भगवानदास और इस्माइल शेख दोनों पुलिस हिरासत में हैं.

इस मौडल का कहना था कि वह यहां अकेले रहती है. उस का परिवार दूसरे राज्य में रहता है. घर की सब से बड़ी लड़की होने की वजह से वह अपनी बात परिवार से शेयर नहीं करती. वह अंधविश्वासी नहीं पर लगातार मानसिक और शारीरिक तनाव में होने की वजह से भटक गई.

पुलिस सबइंस्पैक्टर भोसले कहते हैं कि महिलाएं अकसर ऐसे बाबाओं और तांत्रिकों की शिकार होती हैं. इस ऐक्ट्रैस को पहले ही पुलिस, मनोरोग चिकित्सक या काउंसलर के पास जाना चाहिए था. हमारे यहां एक महिला दक्षता टीम है, जिस में महिला और काउंसलर दोनों महिलाएं हैं. किसी भी हादसे या रेप की शिकार हुई और ठगी जाने वाली महिलाओं की यह टीम पूरी सहायता करती है.

महिलाओं के इस तरह के बाबाओं की शिकार होने के पीछे उन की मानसिक अवस्था होती है, जिस को ये शातिर लोग आसानी से समझ जाते हैं. महाराष्ट्र अखिल भारतीय अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के फाउंडर व और्गेनाइजर प्रोफैसर श्याम मानव कहते हैं कि पढ़ेलिखे शिक्षित वर्ग के लोग भी इस प्रकार के जादूटोना, भूतप्रेत में विश्वास करते हैं, क्योंकि बचपन से उन के अंदर कोई लौजिकल थिंकिंग नहीं पनपती. इस के अलावा उन्हें घर से ले कर टीवी, फिल्मों तक हर जगह अंधविश्वास पर आधारित कार्यक्रम देखने को मिलते हैं. आजकल के लगभग सभी धारावाहिकों के पूजापाठ और धर्म पर आधारित शो देख कर महिलाएं मन ही मन उस पर विश्वास करने लगती हैं. सब से अधिक अंधविश्वास बौलीवुड में पनपता है.

एक प्रकार का चक्रव्यूह

पढ़लिख कर भी व्यक्ति अपनी समस्या के समाधान के लिए भगवान, साधुसंत, बाबा, तांत्रिक आदि की शरण में जाता है. महिलाएं मानसिक रूप से कमजोर होती हैं. ऐसे में तांत्रिक, बाबा सभी उन का शारीरिक शोषण करते हैं. हालांकि अभी महाराष्ट्र में जादूटोना विरोधी कानून 24 अगस्त, 2013 को नरेंद्र दाभोलकर की हत्या के बाद पारित किया गया पर यह अभी तक सही ढंग से काम नहीं कर पा रहा है. जब तक काफी लोग और मीडिया बड़े पैमाने पर इस के लिए काम नहीं करेगा तब तक ऐसी घटनाएं होती रहेंगी. ये मौडल भी अंधविश्वासी है इसीलिए ऐसे बाबा के शरण में गई. जबकि इसे मानसिक परेशानी के लिए परिवार या डाक्टर की सलाह लेनी चाहिए थी.

पुरुष इन बाबाओं की संगत में इसलिए कम आते हैं, क्योंकि पुरुषों से सिर्फ पैसा मिलता है जबकि महिलाओं से पैसा लेने के अलावा शारीरिक संबंध भी ये साधुसंत बना लेते हैं. यह एक प्रकार का चक्रव्यूह होता है जिस में व्यक्ति बुरी तरह फंस जाता है. इसे कम करने के लिए बचपन से बच्चों की मानसिकता को बदलने की आवश्यकता है.

लापरवाही की भेंट चढ़ा मासूम

एक विदेशी महिला अपने बच्चों को कार में बंद कर पब में चली गई तो यह खबर हमारे देश में जिस ने भी पढ़ी उस महिला को जम कर कोसा और खुद के भारतीय होने पर फख्र किया कि देखो हम हिंदुस्तानी मांबाप कितने सजग होते हैं. इन विदेशियों को तो बच्चों की कतई फिक्र नहीं होती. ये तो मौजमस्ती के लिए बच्चे पैदा करते हैं.

मगर इस खबर के मात्र 4 दिन बाद ही भारतीय मांबाप का वह फख्र तब हवा हो गया जब मध्य प्रदेश के भोपाल में ढाई साल के बच्चे की कार में दम घुटने से मौत हो गई. हादसा घोर लापरवाही की देन था.

भोपाल के व्यस्ततम बाजार न्यू मार्केट के निवासी दीपक जैन 4 जुलाई, 2014 को सुबह 10 बजे अपने मांबाप, बेटे अतिशय और पत्नी के साथ मंदिर गया था. मकान के नीचे ही इन की दुकान है. उस दिन गरमी भी बहुत थी. जैन परिवार जब घर लौटा तब तक सूरज आग उगलने लगा था. खाना खा कर दुकान खोलने की जल्दी थी. इसलिए दीपक ने अपनी कार पार्किंग में खड़ी की और सभी लोग घर चल पड़े. किसी को ध्यान नहीं रहा कि मासूम अतिशय कार में ही रह गया है.

2 घंटे बाद दीपक को ध्यान आया कि आज तो अतिशय को प्ले स्कूल में दाखिला दिलाने ले जाना है. दीपक ने यह बात पत्नी को बताई तो अतिशय की याद आई. मंदिर से आए ढाई घंटे बीत चुके थे. शुरू में उन्होंने यह सोच खुद को तसल्ली दी कि दादाजी के साथ दुकान में चला गया होगा.

जब दीपक व उस की पत्नी दुकान में गए तो अतिशय वहां नहीं था. तब वे अतिशय को इधरउधर ढूंढ़ने लगे कि कहीं खेल रहा होगा.

तभी किसी को ध्यान आया कि कहीं अतिशय कार में तो नहीं रह गया. आशंका सच निकली. जब वे भागते हुए कार के पास पहुंचे तो अतिशय पीछे की सीट पर लेटा था.

हमेशा के लिए सो गया

अतिशय को कार में सोते देख उस के परिवार वालों की जान में जान आई. लेकिन कार की चाबी किसी के पास नहीं थी, इसलिए कोई चाबी लेने घर भागा. डरा देने वाली बात यह थी कि इतना होहल्ला मचने के बाद भी अतिशय चेतनाहीन था. तब अंदाजा लगाया गया कि गरमी के चलते बेहोश हो गया होगा.

चाबी नहीं मिली तो गाड़ी का सैंट्रल लौक तोड़ कर अतिशय को बाहर निकाला गया, पर वह हिलडुल नहीं रहा था. अत: उसे तुरंत पास स्थित बच्चों के अस्पताल में ले गए.

मगर वहां डाक्टरों ने अतिशय को मृत घोषित कर दिया. जिस मासूम को कुछ देर पहले की तरह चहकते रहना चाहिए था, वह अभिभावकों की लापरवाही से हमेशा के लिए सो गया था. अतिशय की मौत कार्डियो रैस्पिरेटरी अरैस्ट से हुई थी.

खबर आग की तरह फैली. जिस ने भी सुनी धक से रह गया. अतिशय की मां दहाड़ें मारमार कर रो रही थी. उस के मुंह से बारबार यही निकल रहा था कि मेरी छोटी सी भूल ने बेटे की जान ले ली. मैं खुद को जिंदगी भर माफ नहीं कर पाऊंगी.

कुछ देर के मातम के बाद दीपक का परिवार अतिशय को भदभदा स्थित शमशान में दफना आया. पर पुलिस को खबर लगी तो वह बयान लेने आ पहुंची. इस पर जैन परिवार ने घोर एतराज जताया. लेकिन पुलिस ने अतिशय की मौत का प्रकरण दर्ज किया. दूसरे दिन उस का शव पोस्टमार्टम के लिए बाहर निकाला गया. यह महज खानापूर्ति थी ताकि इस शक की कोईगुंजाइश न रहे कि यह हादसा साजिश नहीं था.

सजा क्यों नहीं

इतनी घोर लापरवाही क्यों हुई और क्या इसे माफ कर देना चाहिए? इन में से दूसरे सवाल का साफ जवाब किसी के पास नहीं, क्योंकि लापरवाही से बच्चे को खतरे या जोखिम में छोड़ने वाले अभिभावकों के खिलाफ कार्यवाही के लिए हमारे देश में कोई कानून नहीं बना है.

जिन बच्चों की बेहतर परवरिश और भविष्य के लिए मांबाप हाड़तोड़ मेहनत कर पैसा कमाते हैं उन की हिफाजत के लिए वे कुछ नहीं करते. अतिशय को तो कार से उठाने के लिए नौकर भी नहीं था. अगर लोग जल्दबाजी में भी कार से उतरते हैं तो भी एक दफा सरसरी तौर पर सीटों की तरफ जरूर देख लेते हैं कि कहीं कुछ छूट तो नहीं गया.

ध्यान रखें

यह हादसा एक सबक भी है कि किसी को भी किसी भी मामले में लापरवाह नहीं होना चाहिए खासतौर से छोटे बच्चों के मामले में. उन के हाथ कार की चाबी, चाकू, कीटनाशक आदि न पड़े. उन्हें सीढि़यों से भी दूर रखा जाए. उन के खानेपीने और खेलने पर नजर रखी जाए. पानी के गहरे बरतन, टंकियां उन की पहुंच से दूर रखें. बिजली के स्विच इलैक्ट्रिक टेप से ढके हों. टे्रन या बस में सफर के दौरान बच्चा दरवाजे की तरफ न जा पाए.

अच्छी परवरिश हिफाजत और जिंदा रहना बच्चे के हक हैं और यह मांबाप की जिम्मेदारी है. इस में लापरवाही से बच्चे का नुकसान हो या मौत हो जाए तो उसे न्याय और दोषियों को सजा दिलाए जाने वाले कानून का होना जरूरी है.

टीनएजर्स लिंजरी सयानेपन की ओर एक कदम

अंडरगारमैंट्स अब केवल जरूरत नहीं रह गए हैं, बल्कि इस से भी कहीं अधिक कुछ हैं. तभी तो हौलीवुड की केटी होम्स ने अब तक की सब से महंगी लिंजरी अपनी शादी के मौके पर पहन कर एक रिकौर्ड बनाया है. कहते हैं, केटी होम्स की शादी की लिंजरी साढ़े 3 हजार डालर की थी, जिसे जरमन डिजाइनर ने तैयार किया था. शायद अब तक सब से महंगी लिंजरी केटी होम्स के पास ही हो. अब तक सब से महंगी लिंजरी फ्रांसीसी कंपनी शैटिंगली की हुआ करती थी. लेकिन केटी के जरमन डिजाइनर ने सब से महंगी लिंजरी बना कर इस के सारे रिकौर्ड तोड़ दिए.

व्यक्तित्व निखारने में लिंजरी का भी खासा योगदान होता है. किस तरह के मौके पर किस तरह की ड्रैस हो, यह तो पुरानी बात हो गई. यह समझ तो कमोबेश देरसवेर ज्यादातर को आ चुकी है. लेकिन अब तो जरूरी बात यह है कि किस ड्रैस में अंडरगारमैंट्स किस तरह का हो? वैसे तो डिपार्टमैंटल स्टोर्स में हर तरह के अंडर या इनरगारमैंट्स मिल जाते हैं. लेकिन इतनी तरह की वैराइटी देख कर सिर चकरा जाना स्वाभाविक है. किस मौके पर कौन सी लिंजरी उपयुक्त है, यह आलेख इस बात को फोकस करता है.

कुछ साल पहले कोलकाता फिल्म फैस्टिवल में ‘एमाज ब्रा’ नामक एक मैक्सिकन फिल्म का प्रदर्शन किया गया था. यह फिल्म एक टीनएज लड़की के इर्दगिर्द घूमती है जिस का पहली बार लिंजरी पहनने का अनुभव बड़ा गजब का था. ऐसेऐसे कारनामे हुए कि हंसतेहंसते दर्शक लोटपोट हो गए. फिल्म तक तो यह सब ठीक है, लेकिन आज के जमाने में कौन सी ऐसी लड़की होगी, जो ड्रैस के साथ लिंजरी जैसे इनरवियर के मामले में भी ऐजुकेट होना नहीं चाहेगी.

लिंजरी दरअसल एक फेंच शब्द है. इनरवियर के मामले में फ्रांसीसी हमेशा नपेतुले होते हैं, बल्कि कहना चाहिए कि इस मामले में वे कलात्मकता के कायल होते हैं. वे फैशन, परफ्यूम और लिंजरी के बेहद शौकीन हुआ करते हैं. आज भी लिंजरी के तमाम उम्दा ब्रौंडों में हसीनाओं को फेंच ब्रौंड ही भाते हैं. फैशन की दुनिया की मान्यता है कि हौलीवुड से ले कर बौलीवुड की बहुत सारी हीरोइनों तक की कर्वी बौडी और ब्रैस्टलाइन का रहस्य लिंजरी में छिपा है. दूसरे शब्दों में, उन के कसे सौंदर्य का श्रेय लिंजरी को ही जाता है.

लिंजरी सिर्फ एक अंडरगारमैंट नहीं है, खासकर टीनएज लड़कियों के लिए, बल्कि सयानेपन की ओर एक कदम बढ़ाने की प्रतीक है. टीनएजर्स की समस्या यह है कि यह उम्र होती ही है वजहबेवजह सकुचानेसिमटने की. लिंजरी के बारे में जानकारी न हो तो वार्डरोब में ख्वाहमख्वाह लिंजरियों की भीड़ बढ़ती जाती है.

यहां हम कुछ खास तरह की लिंजरियों का जिक्र कर रहे हैं.

केमिज

यह कंधे से ले कर जांघ तक की लंबाई का इनरवियर होता है. इस की खासीयत यह है कि यह एक कट का होता है. लेकिन आजकल विभिन्न कट्स में भी उपलब्ध है. बौडी के निचले हिस्से से यह जरा ढीलाढाला होता है.

नेगलिजी

यह घुटने से लगभग 6 इंच ऊपर तक का होता है. यह भी ढीलाढाला साटन का इनरवियर है. इसीलिए इसे नाइटवियर के रूप में ज्यादा पसंद किया जाता है. यह बहुत ही आरामदायक इनरवियर है.

पिगनेयर सेट

यह भी साटन का गाउननुमा इनरवियर है. इसे नेगलिजी के साथ मैचिंग कर के लेना ठीक रहता है. वक्त जरूरत पर दोनों को साथ इस्तेमाल किया जा सकता है.

बेबी डौल

यह पार्टी इनरवियर के लिए आदर्श लिंजरी है. ब्रा के नीचे, कमर के ऊपर खूबसूरत सा फ्रिल होता है. इस के साथ मैचिंग पैंटी भी होती है.

बस्टियार

स्टै्रपलेस लौंग ब्रा होती है. दिखने में बहुत कुछ कोरसेट जैसा होता है, पर कोरसेट नहीं होता है. यह क्लियोपेट्रा बस्टियार भी कहलाता है. जाहिर है क्लियोपेट्रा का इनरवियर इसी तरह का था. वैसे आज यह केट विंसलेट से ले कर एंजेलिना जौली तक का पसंदीदा इनरवियर है. यह भी स्टै्रपलेस होता है, लेकिन पीछे से इसे पतली डोरी से बांध कर पहना जाता है. इस की खूबसूरती इसी में है कि इसे सही तरीके से बांधा जाए, ताकि क्लीवेज और कमर दोनों छरहरी दिखें.

अकसर टीनएज में बौडी के ऊपरी हिस्से को ले कर साइकोलौजिकल समस्या होती है. कुछ टीनएजर्स, जो खुद को फ्लैट चेस्टेड मानती हैं या स्तन के आकार के छोटे होने से तनावग्रस्त होती हैं, उन सब की समस्या का समाधान लिंजरी में है.

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