किस करने में लगाए 12 घंटे

कैटरीना के साथ अपने प्यार की घोषणा कर चुके रणबीर कपूर को इस खबर से जरूर आपत्ति हो सकती है, क्योंकि कैटरीना ने किस करने का रिहर्सल रणबीर के साथ नहीं आदित्य रौय कपूर के साथ किया है. कैटरीना अभिषेक कपूर की फिल्म ‘फितूर’ में फिरदौस का किरदार निभा रही हैं. इस फिल्म में एक किस सीन, जो श्रीनगर में फिल्माया गया था जल्दी ही ओके हो गया. पर दूसरे सीन को करने में दोनों को 12 घंटे का समय लग गया. इस एक सीन को ठीक ढंग से शूट करने में दोनों के पसीने छूट गए. यह सीन चार्ल्स डिकेंस के उपन्यास ‘द ग्रेट एक्सपेक्टेशन्स’ से लिया गया है. अभिषेक कपूर के निर्देशन में बन रही यह फिल्म उस उपन्यास पर ही आधारित है. इस में एक चित्रकार नूर (आदित्य रौय कपूर) की प्रेम कहानी है, जो फिरदौस (कैटरीना) से प्यार करता है.

ट्रैंड मैचिंग ज्वैलरी का

महिलाओं में ज्वैलरी शृंगार का प्रतीक होने के साथसाथ फैशन स्टेटमैंट भी बन चुकी है. महिलाएं आज फैशन के साथ खुद को अपडेट रखना चाहती हैं और ज्वैलरी खरीदते समय ट्रैंड के साथसाथ क्वालिटी भी खोजती हैं. पीसी ज्वैलर्स ने फेसबुक और ट्विटर सोशल नैटवर्किंग साइट्स पर पीसीजे दीवा के नाम से अकाउंट खोले हैं, जिन में हर दिन ज्वैलरी और फैशन से जुड़े नए टिप्स मिलेंगे और उन पर आप ज्वैलरी की खूबसूरत रेंज देख सकेंगी. ज्वैलरी का ट्रैंड समय के साथ बदलता रहता है. सुंदर दिखने के लिए इस बदलाव के साथ अपडेट रहना भी जरूरी है.

फैशन ट्रैंड

ज्योमैट्रिक ज्वैलरी वाले गहने सिंपल और सोबर होते हैं. ऐलिगैंट ज्वैलरी पहनने वाले लोगों के लिए ये परफैक्ट होते हैं. ये गहने स्क्वेयर, रैक्टैंगुलर, सर्कल इत्यादि शेप में होते हैं.

पीकौक डिजाइंस ऐवरग्रीन हैं. इन दिनों महिलाओं में पीकौक डिजाइन के इयररिंग्स फैशन में हैं.

इस सीजन में फ्लौवर डिजाइंस भी खास हैं जिस में इयररिंग्स, अंगूठी और कड़े फैशन में हैं.

इन दिनों ओल्ड डिजाइंस फिर से फैशन में हैं, जिस में माथापट्टी, झूमर, वोरला इत्यादि महिलाओं की पहली पसंद हैं.

ऐंटीक लुक में गोल्ड के साथ कुंदन, पोलकी और मीना जड़े हुए गहने चलन में हैं.

ड्रैस के साथ मिक्समैच करें

फौर्मल ड्रैस के साथ सिंपल डिजाइन वाली ज्वैलरी ही पहनें.

रैक्टैंगुलर सिल्वर इयररिंग्स को कभी भी फ्लोरल या लेस वाली ड्रैसेज के साथ न पहनें.

ट्रैंगल शेप वाली इयररिंग्स टीशर्ट के बजाय शर्ट और फौर्मल ड्रैस पर ज्यादा सूट करती हैं.

इंडोवैस्टर्र्न ड्रैस के साथ ज्योमैट्रिकल डिजाइंस की ज्वैलरी पहनें.

कभी भी प्रिंट वाले कपड़ों के साथ मल्टीकलर स्टोन के गहने न पहनें.

ईवनिंग गाउन के साथ बोल्ड रिंग या ब्रैसलेट ट्राई करें. ध्यान रखें कि थोड़ा सा कंट्रास्ट हो.

अगर आप की शर्ट स्लीवलैस है तो आप कोई भी ज्वैलरी न पहनें. अगर आप पहनेंगी तो वह काफी भद्दी लगेगी.

रूबी, टरकाइज और ब्राइट कलर्ड बीड्स वाले गहने ब्लैक आउटफिट के साथ पहनें.

चुनें ज्वैलरी

अगर ज्वैलरी का चुनाव करते समय फेस कट का ध्यान रखा जाए तो पर्सनैलिटी और भी निखर जाती है. अगर आप का चेहरा गोल है तो लौंग इयररिंग्स पहनें. इस से चेहरा लंबा लगेगा और आप सुंदर भी लगेंगी. अगर आप का गोल चेहरा है तो आप को छोटे टौप्स व चौकोर स्टाइल वाले नैकपीस पहनने से बचना चाहिए, क्योंकि ये चेहरे को और भी गोल दिखाते हैं. लंबे चेहरे वाली महिलाओं पर इयरस्टड्स फबते हैं. इन्हें लटकने वाली इयररिंग्स पहनने से बचना चाहिए.

घरेलू कलह का कारण पारिवारिक राजनीति

पारिवारिक संबंधों में अब ज्यादा बिखराव आने लगा है. घरेलू हिंसा और तलाक की घटनाओं में दिन ब दिन इजाफा हो रहा है. आए दिन अखबारों और न्यूज चैनलों में ऐसी खबरें पढ़नेसुनने को मिल जाती हैं. इस संबंध में कुछ लोगों का कहना है कि पारिवारिक बिखराव का मुख्य कारण औरतें हैं, जो अपने अहं के तहत अपने पति और परिवार के अन्य लोगों को महत्त्व नहीं देती हैं. यह तो कहनेसुनने की बात है, इस का वास्तविक कारण क्या है, यह गौर करने वाली बात है. यों तो अब संयुक्त परिवार बहुत कम रह गए हैं, फिर भी परिवार में कलह होता है, जिस की वजह से संबंधों में दरार आने लगती है. सगेसंबंधी परिवार से दूर रहते हुए भी फोन कर के या कभीकभार मिलने के नाम पर अपनी कुटिल चालों से पतिपत्नी के संबंधों में जहर घोलते रहते हैं.

वसुंधरा की शादी 7-8 महीने पहले हुई थी. हालांकि अपने पति परमीत से उस ने इंगेजमैंट के बाद करीब 3 महीने डेटिंग की थी, लेकिन ससुराल का वातावरण उस के लिए एकदम नया था. वसुंधरा की सास बेटे के सामने तो उसे बेटीबेटी कह कर बुलातीं, मगर जब बेटा सामने नहीं होता तो उसे खूब खरीखोटी सुनातीं. वसुंधरा को अपनी सास की चालबाजी समझ नहीं आती थी. वह हैरान रह जाती थी. सास की शिकायत अपने पति से करती, तो वह यह कह कर डांट देता कि तुम बिना बात मेरी मां को बदनाम कर रही हो, वे कितना प्यार करती हैं तुम्हें.

सास के साथसाथ ननद भी भाभी के साथ चाल चलने से बाज नहीं आती थी. वसुंधरा को लगता जैसे वह किसी राजनीति के अखाड़े में आ गई है, जहां हर कोई अपनी सरकार बनाना चाहता है. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह ऐसा क्या करे कि उस की जिंदगी ढर्रे पर आ जाए. हालात दिनपरदिन बिगड़ते जा रहे थे. जब बात बहुत ज्यादा बढ़ गई, तो वह अपने मायके आ गई. मनमुटाव इतना ज्यादा हो गया कि नौबत तलाक तक की आ गई. वह तो गनीमत है कि परमीत की बूआ ने बात संभाल ली और फिर दोनों का रिश्ता सहज हो गया.

प्यार व सौहार्द

वसुंधरा की तरह और न जाने कितनी लड़कियों को ससुराल में सास, ननद और जेठानी की चालों का शिकार होना पड़ता है. यह सच है कि ससुराल में सब के साथ संबंधों को सुचारु रूप से चलाने के लिए पहल बहू को ही करनी पड़ती है, लेकिन एक सच यह भी है कि जब तक उसे ससुराल वालों का पूरा सहयोग नहीं मिलेगा वह अपनी तरफ से कुछ नहीं कर पाएगी. संबंधों की नींव विश्वास और समर्पण के सहारे चलती है. ससुराल जाने के बाद एक लड़की का सामना अलगअलग लोगों और रिश्तों से होता है. जो लड़की अपने मातापिता के साथ लाड लड़ाती और भाईबहनों के साथ लड़तेझगड़ते हुए बड़ी होती है उसे शादी के बाद एक ऐसे परिवेश में जाना पड़ता है, जहां का वातावरण और लोग सब नए होते हैं. रिश्ते कांच की तरह नाजुक होते हैं. जरा सी भी चूक उन में ऐसी दरार डाल देती है, जिसे जोड़ पाना बहुत मुश्किल होता है. जिस तरह एक हाथ से ताली नहीं बजती है, ठीक उसी तरह पारिवारिक संबंधों में प्यार और सौहार्द लाने के लिए सास और बहू दोनों को एकदूसरे को सहयोग देने की जरूरत होती है.

संबंधों में पौलिटिक्स

यों तो सासबहू, ननदभाभी, जेठानीदेवरानी के संबंधों में थोड़ीबहुत नोकझोंक होती रहती है, लेकिन ये रिश्ते राजनीतिक दलों की तरह गुटबंदी कर लें, तो फिर पारिवारिक वातावरण सहज नहीं रह पाता. समय के साथ संबंधों में बदलाव आए हैं. पहले संयुक्त परिवार थे अब एकल परिवारों का चलन आ गया है. लेकिन आज भी एक चीज में कोई बदलाव नहीं आया है और वह है रिश्तों में पौलिटिक्स. खुद को दूसरों से अच्छा दिखाने की जद्दोजेहद पहले भी थी और आज भी है. इस लालसा के तहत परिवार में सामदामदंडभेद सभी रीतियों का पालन किया जाता है. एकल परिवारों के मुकाबले संयुक्त परिवारों में यह पौलिटिक्स ज्यादा होती है, क्योंकि वहां सास, बहू, ननद, जेठानी सभी अपनीअपनी सत्ता बनाना चाहती हैं. जहां उन्हें लगने लगता है कि उन का वर्चस्व कम हो रहा है, वहां वे अपनी तिकड़मों से एकदूसरे को कमतर दिखाने को तत्पर हो जाती हैं. फिर चाहे इस के लिए उन्हें कुछ भी क्यों न करना पड़े, वे हिचकती नहीं.

सासबहू का रिश्ता नोकझोंक से भरा होता ही है, लेकिन उन में एकदूसरे को नुकसान पहुंचाने की भावना जरा कम रहती है. हां, अपनेआप को दूसरे से प्रतिभाशाली दर्शाने की इच्छा जरूर रहती है. छोटीछोटी बातों को ले कर दोनों के बीच मतभेद शुरू होता है. जैसे अगर नई बहू ने सास की मरजी के बिना रसोई में कोई बदलाव कर दिया तो यह बात सास को नागवार गुजरने लगेगी या फिर बेटे ने किसी बात में अपनी पत्नी का साथ दे दिया तो सास को यह लगने लगता है कि बहू ने उन का बेटा छीन लिया. ये सारी बातें धीरेधीरे दोनों के रिश्ते में कड़वाहट घोलने लगती हैं और फिर घर घर न रह कर राजनीति का अखाड़ा बन जाता है, जिस में सासबहू अपनीअपनी चालों से एकदूसरे को शिकस्त देने की कोशिश में जुट जाती हैं.

सत्ता की सनक

घरेलू राजनीति के संबंध में नोएडा के एक काल सैंटर में कार्यरत रजनी शर्मा का कहना है, ‘‘मेरी शादी को 20-22 साल हो चुके हैं. मेरी बेटी की उम्र 19 साल है, लेकिन आज भी आए दिन मेरा घरेलू राजनीति से सामना होता रहता है. मैं जब शादी कर के आई थी तो सास ही घर में अकेली महिला थीं. हर जगह उन की ही चलती थी. मैं नौकरी भी करती थी और घर का पूरा काम भी. ऐसे में अगर कोई रिश्तेदार मेरी तारीफ कर देता, तो यह बात सास को पसंद नहीं आती. उन्हें लगने लगा कि अब उन की पूछ कम हो गई है. फिर उन्होंने ऐसेऐसे दांवपेच खेलने शुरू कर दिए कि मुझे अपने पति के साथ पहने हुए कपड़ों में ही घर छोड़ना पड़ा. आज इतने दिनों के बाद भी उन की तिकड़मबाजी वैसे ही चलती है. अब अगर बच्चे दोचार दिनों के लिए उन के पास चले जाएं, तो उन्हें भी मेरे खिलाफ भड़काती हैं. उन की गलत मांगों को भी पूरा कर के यह बताती हैं कि कोई बात नहीं अगर तेरी मम्मी तेरी बात नहीं मानतीं. मैं हूं न तेरे साथ.’’

इस तरह की बातें घरघर में होती हैं. परिवार में अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए दूसरों को नीचा दिखाने के कार्यक्रम चलते रहते हैं. कई घरों में तो सास व ननद बहू को उस के पति के ज्यादा नजदीक तक नहीं होने देना चाहतीं, क्योंकि उन्हें लगता है कि इस से उन का बेटा या भाई उन से दूर हो जाएगा. लेकिन इस तरह की सोच गलत है. सच यही है कि पतिपत्नी का रिश्ता इतना गहरा होता है कि देरसवेर उन के बीच विपरीत हालात में भी प्यार पनपता ही है. इस संबंध में गोरखपुर की मनोरमा का कहना है, ‘‘जब मैं ब्याह कर के आई, तो कुछ ही दिनों बाद मेरे पति दुबई चले गए. वहां से जब उन का फोन आता, तो मेरी सास व ननदें उन के साथ बात नहीं करने देती थीं. खुद उन से बात करतीं और मुझ से कहतीं कि मेरा बेटा तुम्हें छोड़ देगा. मेरा रंग सांवला है इस बात को ले कर हमेशा मुझे प्रताडि़त करतीं. फिर कुछ साल बाद जब मेरे पति छुट्टी पर आए, तो मेरी हालत देख दोबारा दुबई न जाने का फैसला किया. अब हमारी 1 बेटी है. मेरे पति मेरा और बच्ची का पूरा ध्यान रखते हैं. इस से मेरी सास और ननद खुश नहीं रहतीं. हमेशा यही कहती हैं कि मैं ने उन से उन का बेटा, भाई छीन लिया लेकिन इस में जरा सी भी सचाई नहीं है. हम उन के प्रति अपने सभी दायित्वों का निर्वाह करते हैं. लेकिन वे अभी भी हमें साथ रहने नहीं देना चाहतीं.’’

लोग घरेलू कलह का सारा दोष फिल्मों और टीवी पर मढ़ देते हैं, इस में भी सचाई है, लेकिन यह पूरी तरह से सच भी नहीं है. अगर ऐसा होता तो जिन जगहों पर उन की पहुंच नहीं है, वहां इस तरह की घटनाएं क्यों होती हैं? इस का जवाब है कि धार्मिक प्रवचन और धर्मगुरुओं की बातें लोगों को इस के लिए उकसाने में अहम भूमिका निभाती हैं. प्रवचन सुनने जाने वाली औरतों को बांधे रखने के लिए तथाकथित धर्मगुरु सास को कैसे छकाया जाए और बहू को कैसे उस की औकात दिखाई जाए इस के नुसखे बताते हैं. रहीसही कसर आने वाली औरतों की संगति से वहां पूरी हो जाती है.

टीवी की भूमिका भी कुछ कम नहीं

सबंधों में आई इस गिरावट के लिए टीवी सीरियलों और फिल्मों को भी जिम्मेदार माना जाता है. कुछ हद तक यह बात सही भी है. कहीं न कहीं टीवी पर दिखाए जा रहे धारावाहिकों में इसी तरह की हरकतें दिखाई जाती हैं, जो परिवार को राजनीतिक चालें चलना सिखाती हैं. सीरियल ‘ना बोले तुम न मैं ने कुछ कहा’ में मेघा की जेठानी रेणु उसे नीचा दिखाने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहती है. इसी तरह से ‘दिया और बाती’ धारावाही में देवरानी मीनाक्षी दिन भर षड्यंत्र रचने को तत्पर रहती है. इस में वह अपनी जेठानी और ननद दोनों को फंसाने में लगी रहती है. यह एक सीरियल की बात नहीं  है. सारे सीरियलों में इसी तरह की बातें दिखाई जाती हैं. सीरियल ही क्यों फिल्में भी इस के प्रभाव से अछूती नहीं हैं. फिल्म ‘बीवी हो तो ऐसी’ में बिंदू की तिकड़मी चालों से पूरा परिवार परेशान रहता है. पूरा परिवार उस की तानाशाही की वजह से तनाव में रहता है, लेकिन कोई भी उस से कुछ नहीं कह पाता. बिंदू को सबक सिखाने के लिए बेटा फारूक शेख अपनी पसंद से रेखा से शादी कर लेता है.

बिंदू को ऐसा लगता है जैसे रेखा ने उस से उस के बेटे को छीन लिया है और उस के एकछत्र साम्राज्य में सेंध लगा दी है. इसलिए वह अपनी बहू रेखा को अपने घर और बेटे के दिल से निकालने के लिए तरहतरह की चालें चलने लगती है. उस पर चोरी का इलजाम लगाने तक से नहीं चूकती. इस के लिए उस की अलमारी में कीमती जेवरात रखवा देती है. अगर आप सोच रहे हों कि बहू को नीचा दिखाने के लिए ऐसी घटनाएं सिनेमा में ही होती हैं, तो ऐसा हरगिज नहीं है, क्योंकि बात चाहे सिनेमा की हो, धारावाहिकों की हो या फिर असल जिंदगी की, हर जगह रिश्तों में इस तरह की राजनीति चलती रहती है.

पुरुष भी कम नहीं

ऐसा नहीं कि सिर्फ घर की महिलाएं ही राजनीति करती हैं. पुरुष भी कम नहीं. वे भी बराबर इस तरह की गतिविधियों में सक्रिय रहते हैं. धारावाहिकों में तो पुरुष औरतों के साथ इस तरह की राजनीतिक चालों में बराबर चलते ही हैं, असल जिंदगी में भी वे कम नहीं. नई बहू को प्रताडि़त करने में बीवी और बेटी के साथ उन की भागीदारी भी कम नहीं रहती है. आए दिन होने वाली दहेज से संबंधित हत्याओं में स्त्रीपुरुष दोनों का बराबर योगदान रहता है. भले ही यह कहा जाए कि उस ने औरत के बहकावे में आ कर ऐसा किया, लेकिन पुरुषों का दिमाग कुचक्र रचने में औरतों से चार कदम आगे ही रहता है.

राजनीति करने के कारण

अब सवाल उठता है कि घर में इस तरह की राजनीति क्यों होती है जिस में एकदूसरे को अपने से कमतर दिखाने की या उसे नुकसान पहुंचाने की भावना निहित रहती है? इस के जवाब में मैक्स के वरिष्ठ मनोचिकित्सक समीर पारिख का कहना है, ‘‘जब सामने वाले को यह लगने लगता है कि उस के वजूद को खतरा पहुंचने वाला है या फिर किसी दूसरे के आने से उस ने परिवार में अब तक अपनी जो जगह बनाई है वह खतरे में पड़ने वाली है तो असुरक्षा की भावना से ग्रस्त होने के कारण उस का दिमाग इस तरह की राजनीति करने लगता है जिस से कि वह दूसरे की छवि को धूमिल कर सके. घरेलू राजनीति में सास, बहू व ननद की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है. जब बहू घर में आती है तो सास और ननद असुरक्षा की भावना से ग्रस्त हो जाती हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि उन के बेटे और भाई पर अब दूसरी औरत का अधिकार उन के मुकाबले ज्यादा होगा. ऐसे में वे बहू के विरुद्ध षड्यंत्र रचने में जुट जाती हैं.

धर्म भी सिखाता राजनीति

अगर यह कहा जाए कि हमारे समाज में व्याप्त धार्मिक संस्थाएं पारिवारिक राजनीति को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाती हैं, तो यह किसी भी तरह गलत नहीं होगा. ऐसा नहीं है कि पारिवारिक राजनीति आधुनिकता की देन है वरन सदियों से पारिवारिक संबंधों पर राजनीति हावी रही है. अगर आप पौराणिक ग्रंथों पर नजर डालें, तो वहां कुचक्री राजनीति देखने को मिल जाएगी. फिर चाहे वह तुलसीदास रचित रामचरित मानस हो या फिर महाभारत. इन दोनों ही ग्रंथों में पारिवारिक राजनीति के ढेरों उदाहरण देखने को मिल जाते हैं. दशरथ की महारानी कैकेयी अपनी दासी मंथरा के साथ मिल कर ऐसा कुचक्र रचती है कि राम को 14 वर्ष का वनवास और उस के बेटे भरत को राजसिंहासन मिल जाता है. रामायण में रावण और विभीषण का प्रकरण हो या फिर बालि और सुग्रीव का प्रसंग, सभी पारिवारिक प्रपंच के उदाहरण हैं. महाभारत में दुर्योधन अपने ही चचेरे भाइयों के खिलाफ साजिश रचता है. उन का राज्य हड़पने के साथसाथ उन्हें मारने की भी कोशिश करता है. धार्मिक ग्रंथों के साथसाथ ऐतिहासिक ग्रंथों में भी पारिवारिक राजनीति के अनेक उदाहरण देखने, पढ़ने को मिल जाते हैं. महाभारत, रामायण जैसे पौराणिक ग्रंथ तो पारिवारिक राजनीति से भरे हुए हैं. इन्हें पढ़ने वला न चाहते हुए भी पारिवारिक राजनीति में उलझने लगता है.

कहने को तो यह कहा जाता है कि औरतों को धर्म का पालन करना चाहिए, प्रवचन सुनने चाहिए इस से सद्बुद्धि आती है, लेकिन सचाई यह है कि जो औरतें घर में रह कर अच्छी किताबें, पत्रपत्रिकाएं पढ़ती हैं या फिर काम पर जाती हैं उन के मुकाबले धार्मिक प्रवचन सुनने वाली महिलाएं ज्यादा प्रपंच रचती हैं.

चमकती त्वचा प्रैगनैंसी के बाद भी

जल्द ही आप मां बनने वाली हैं, यह खबर आप को बेहद उत्साहित कर देती है. और अगर आप पहली बार मां बन रही हैं तब तो यह एहसास बेहद खास होता है. जैसे ही आप को यह खबर मिलती है, आप को एक जिम्मेदारी का एहसास होता है. एक नई जिंदगी को दुनिया में लाने की जिम्मेदारी, बच्चे की देखभाल की जिम्मेदारी, बच्चे को बेहतर ढंग से बड़ा करने की जिम्मेदारी और भी बहुत कुछ. एक छोटे से पल में आप का मन ये सारे सपने बुन लेता है. अपने ही अंश को अपनी गोद में लेने का एहसास तो आप के लिए खास होता ही है, लेकिन इस के साथ महिलाओं के सामने कुछ ऐसी समस्याएं भी आती हैं, जिन से निबटना थोड़ा कठिन होता है. ये समस्याएं हैं वजन से जुड़ी, हारमोनल बदलाव के चलते बारबार मूड बदलना और त्वचा संबंधी समस्याएं. बच्चे के जन्म के बाद, मां पर उस की देखभाल की अतिरिक्त जिम्मेदारी आती है जोकि दिनरात चलती है. हालांकि वह इन सारी जिम्मेदारियों को ऐंजौय भी करती है.

बच्चे को अपने पेट में पालने की प्रक्रिया पहले ही चेहरे की चमक चुरा लेती है. बाद में बच्चे की देखभाल में नींद पूरी न होने, तनाव और थकान के चलते समस्या और बढ़ जाती है. हालांकि कोई मां इस को ले कर कभी कोई शिकायत नहीं करती, लेकिन मां बनने के बाद त्वचा पर आने वाला असर तकरीबन हर महिला को परेशान करता है. इस दौरान होने वाली त्वचा संबंधी समस्याएं सिर्फ पीली, बेजान और बिना चमक वाली त्वचा तक ही सीमित नहीं रहतीं. कुछ लोगों में थायराइड का स्तर बहुत ज्यादा बढ़ जाता है और इस की वजह से चेहरे पर लाललाल चकत्ते उभर आते हैं. ये चकत्ते आसानी से पीछा नहीं छोड़ते. ऐसे मामलों में किसी त्वचा रोग विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए. त्वचा संबंधी अन्य मामूली समस्याओं के लिए कई कौस्मैटिक प्रोसीजर उपलब्ध हो चुके हैं. सब से महत्त्वपूर्ण बात यह है कि आप को अपने जीवन में आई खुशी को ऐंजौय करने और उस की जिम्मेदारियां उठाने के साथसाथ अपनी त्वचा की देखभाल भी करनी चाहिए.

स्किन ट्रीटमैंट

आजकल कुछ स्किन ट्रीटमैंट ऐसे हैं जो आप के लिए फायदेमंद हो सकते हैं.

कैमिकल पील्स

यह एक ऐक्सफोलिएटिंग प्रोसीजर है. इस से त्वचा की बेजान हो चुकी परत निकल जाती है. 2-3 सिटिंग के बाद, त्वचा की नई परत भी उभर कर आने लगती है. यह प्रक्रिया बेहद साधारण होती है और इस के लिए आप को सिर्फ 15-20 मिनट का समय लगता है. इस की सिटिंग्स आप की त्वचा की जरूरत पर निर्भर करती हैं. इस प्रोसीजर में त्वचा की ऊपरी परत को ऐक्सफोलिएट करने के लिए कैमिकल सौल्यूशंस का इस्तेमाल किया जाता है. त्वचा की रंगत के लिए आमतौर पर जो पील इस्तेमाल किए जाते हैं, उन में ग्लायकोलिक पील, विट सी और लैक्टिक पील आदि शामिल हैं. प्रोसीजर पूरा होने के बाद त्वचा पर कोई टैनिंग नहीं रहती और आप को मिलता है एक ताजा, जीवंत और चमकदार चेहरा.

स्किन बूस्टर

चमकदार और जीवंत त्वचा पाने का दूसरा बेहतरीन विकल्प होता है डर्मल फिलर का इस्तेमाल. त्वचा को लचकदार और चमकदार बनाए रखने में रेस्टिलेन विटाल बेहतरीन भूमिका निभाता है. आधुनिक काल का डर्मल फिलर रेस्टिलेन विटाल कुछ ही मिनटों पर एक साधारण सी प्रक्रिया में इस्तेमाल किया जा सकता है, जो त्वचा पर जादुई असर दिखाता है. और सब से अच्छी बात यह है कि त्वचा पर इस का असर कुछ ही समय तक नहीं रहता, बल्कि हाइड्रोफिलिक ह्यालुरोनिक ऐसिड, जो त्वचा में पानी को सोखने और रोक कर रखने की क्षमता बढ़ाता है, का असर 1 साल तक रहता है. रेस्टिलेन विटाल जब त्वचा की ऊपरी परत में इंजैक्शन से लगाया जाता है तब यह त्वचा को गहराई तक नमी और पोषण देता है. ह्यालुरोनिक ऐसिड जैल को त्वचा की बाहरी परत में माइक्रोइंजैक्शन से लगाया जाता है और यह त्वचा को भीतर से प्राकृतिक रूप से नमी देता है, जिस से त्वचा मुलायम और चमकदार बनती है.

त्वचा में कसाव लाने के लिए

त्वचा की डलनैस कई तरह के लेजर के इस्तेमाल से भी ठीक की जा सकती है. अफर्म फै्रक्शनल लेजर, मेडलाइट लेजर और एनडीवाईएजी 1064 एनएम त्वचा की रंगत ठीक करने में बेहतरीन भूमिका निभाता है. लेजर त्वचा को भेद कर इस की बाहरी परत वाली खून की नलिकाओं तक पहुंचता है. ये नलिकाएं बहुत ज्यादा गरमी की वजह से डैमेज हो जाती हैं. इस प्रक्रिया में डैमेज हो चुकी कोशिकाएं खत्म हो जाती हैं और नई कोशिकाएं बनने लगती हैं. ऐसे में चमकदार त्वचा के लिए रास्ता बन जाता है. 

डायमंड पौलिशिंग/माइक्रोडर्माऐबे्रजन

त्वचा की कई तरह की समस्याओं से निबटने में यह कारगर है और समस्याओं में मुंहासों से ले कर त्वचा की रंगत का बेतरतीब होना, चकत्ते उभरना और निशान आना तक शामिल है. टैनिंग की समस्या से नजात पाने के लिए भी डायमंड पौलिशिंग एक बेहतरीन विकल्प है. इस तकनीक में बिजली से चलने वाले एक उपकरण का इस्तेमाल किया जाता है, जिस के सिरे पर डायमंड लगे होते हैं. इसे चेहरे पर घुमाया जाता है. यह प्रोसीजर, जो त्वचा की मृत कोशिकाओं को हटाने के साथसाथ नई कोशिकाओं के बनने में मददगार होता है, सभी प्रकार की त्वचा पर इस्तेमाल किया जा सकता है और बेहतरीन परिणाम देता है.           

– डा. चैत्रा वी आनंद कौस्मोडर्मा स्किन ऐंड लेजर क्लीनिक

पीठे वाली ग्वारफली

सामग्री

250 ग्राम ग्वारफली

1 छोटा चम्मच बारीक कटा लहसुन

2 छोटे चम्मच अदरक व हरीमिर्च बारीक कटी

1/2 छोटा चम्मच मेथीदाना

1 लालमिर्च साबूत

1 बड़ा चम्मच भुने चनों का पाउडर

1 बड़ा चम्मच चावल का आटा

1 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

1 बड़ा चम्मच सरसों का तेल

नमक स्वादानुसार.

विधि

ग्वारफली को उबलते पानी में 5 मिनट पकाएं. फिर पानी निथार दें. फलियों के दोनों ओर से रेशे निकालें और 2-2 इंच के टुकड़े काट लें. एक नौनस्टिक कड़ाही में तेल गरम कर के मेथीदाना और साबूत लालमिर्च का तड़का लगाएं. फिर लहसुन को पारदर्शी होने तक भून कर हलदी डालें. उस के बाद ग्वारफलियों के टुकड़े और नमक डाल कर उलटेंपलटें. धीमी आंच पर गलने तक पकाएं. फिर इस में अदरक, हरीमिर्च व चने का पाउडर डालें और 1 मिनट उलटपलट कर चावल का आटा बुरकें व उलटेंपलटें. 2 मिनट ढक कर पकाएं. गरमगरम सब्जी को फुलकों या परांठों के साथ सर्व करें.

सहजन फली चिल्ड सूप

सामग्री

6 सहजन की फलियां

1/2 छोटा चम्मच जीरा पाउडर

थोड़ा सा हींग पाउडर

1 छोटा चम्मच चाटमसाला

1 छोटा चम्मच काला नमक

थोड़ी सी पुदीनापत्ती

1 बड़ा चम्मच नीबू का रस

नमक स्वादानुसार.

विधि

सहजन की फलियों को पीलर से छील कर 4-4 इंच के टुकड़े कर लें. एक प्रैशरपैन में करीब 5 कप पानी में उन्हें 1 सीटी आने तक पकाएं. ठंडा कर के मिक्सी में पीसें और सूप छलनी से छान लें. इस में 4 कप ठंडा पानी मिलाएं. सभी मसाले और नीबू का रस डालें. फ्रीजर में 1 घंटा रखें. फिर पुदीनापत्ती से सजा कर सर्व करें.

सेमफली के शामी कबाब

सामग्री

200 ग्राम सेम की फलियां

50 ग्राम आलू उबले व मैश किए

1/2 कप हरे मटर उबले व मैश किए

50 ग्राम पनीर कद्दूकस किया

50 ग्राम भुने चनों का आटा

1 छोटा चम्मच अदरक व लहसुन का पेस्ट

2 हरीमिर्चें बारीक कटी

1 छोटा चम्मच गरममसाला

2 बड़े चम्मच धनियापत्ती बारीक कटी

1 छोटा चम्मच चाटमसाला

1 छोटा चम्मच अदरक कद्दूकस किया

थोड़ा सा रिफाइंड औयल

नमक स्वादानुसार.

विधि

फलियों को धो कर उन के दोनों तरफ के किनारे निकालें. एक भगोने में पानी उबालें और फिर उस में फलियों को 3-4 मिनट तक पकाएं. पानी निथारें और फलियों को कपड़े में रख कर थपथपा कर हैंडचौपर से बारीक कर लें. इस में बाकी सारी सामग्री मिलाएं. फिर छोटेछोटे शामी कबाब बनाएं और नौनस्टिक तवे पर थोड़ा तेल डाल कर धीमी आंच पर उलटपलट कर लाल होने तक सेंकें. चटनी या सौस के साथ सर्व करें.

क्रिस्पी ग्वारफली

सामग्री

100 ग्राम ग्वार की फलियां

1/4 कप चावल का आटा

1/4 कप कौर्नफ्लोर

1/4 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

थोड़ा सा रिफाइंड औयल

लालमिर्च पाउडर और नमक स्वादानुसार.

विधि

ग्वार की फलियों के दोनों किनारे काट लें. एक भगोने में पानी उबालें और उस में चुटकी भर खाने वाला सोडा व 1/4 छोटा चम्मच नमक डालें. इस में फलियां डाल कर 3-4 मिनट उबालें. पानी निथार कर ठंडा पानी डालें और इन्हें कपड़े में रख कर थपथपा लें. चावल के आटे में कौर्नफ्लोर, नमक, मिर्च व हलदी पाउडर डाल कर पकौड़े लायक घोल बनाएं. 1-1 फली को इस मिश्रण में लपेट कर गरम तेल में सुनहरा होने तक तलें. क्रिस्पी ग्वारफलियां तैयार हैं.

शिक्षा हमेशा काम आती है: रश्मि

टैलीविजन जगत की सर्वाधिक सफल धारावाहिक बनाने वाली प्रोड्यूसर रश्मि शर्मा ने 2006 में ‘रश्मि शर्मा टैलीफिल्म्स’ की स्थापना की थी. तब से ले कर आज तक उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. उन्हें पता होता है कि कौन सी कहानी धारावाहिक के माध्यम से कैसे लोगों को पसंद आएगी. यही वजह है कि उन के कई धारावाहिकों ने 1 हजार ऐपिसोड पूरे किए. रश्मि शर्मा मध्यवर्गीय परिवार से हैं. उन के पिताजी केंद्रीय विद्यालय में प्रिंसिपल थे. उन का जन्म स्थान जयपुर है. पिता की जौब ट्रांसफर वाली थी, इसलिए उन्हें कई छोटेबड़े शहरों में पढ़ाई करनी पड़ी. 7वीं कक्षा के बाद उन की सारी पढ़ाई मुंबई में हुई. रश्मि के परिवार में उन के अलावा उन के मातापिता और एक भाई है.

रश्मि कहती हैं कि वे खाली नहीं बैठ सकतीं. हमेशा कुछ न कुछ करते रहना पसंद है. खाली वक्त मिलता है तो किताबें पढ़ना और घूमना पसंद है. इस के अलावा शौपिंग का भी बहुत शौक है. दुबई, अमेरिका घूमना ज्यादा पसंद करती हैं. केयरिंग और इमोशनल हैं. छोटीछोटी बातें भी उन के लिए काफी माने रखती हैं. वे साधारण जीवन में विश्वास रखती हैं.

क्रिएटिव काम करना था

रश्मि को बचपन से ही कुछ क्रिएटिव करने का शौक था. ऐसे में जब उन्हें एक मीडिया कंपनी में काम करने का अवसर मिला तो उन की राह आसान हो गई. उन्हें पता चला कि उन्हें क्या बनना है. उन्होंने निर्देशन का काम किया. क्रिएटिव हैड बन कर कई बड़ेबड़े प्रोडक्शन हाउस के शो टीवी पर लाईं, जिन में ‘सात फेरे’, ‘विदाई’, ‘बेटियां’, ‘रब्बा इश्क न होवे’, ‘पिया का घर’ आदि धारावाहिक शामिल थे. अब तक वे तय कर चुकी थीं कि उन्हें अपने लिए कुछ करना है.

पति से मिली प्रेरणा

उद्यमी बनने के पीछे किस की प्रेरणा थी. इस पर रश्मि शर्मा कहती हैं, ‘‘हम दूसरों के लिए काम कर रहे थे. पैसे के अलावा बाकी सब काम मैं कर रही थी. कहानी शुरू होने से ले कर टीवी तक पहुंचने तक की पूरी जर्नी करनी पड़ती थी. उसी दौरान मेरी मुलाकात धारावाहिक निर्देशक पवन कुमार मारूत से हुई. हम दोनों के विचार एक थे. अत: हम ने खुद प्रोड्यूस करने की सोची. मेरे पति पवन ने काफी सहयोग दिया. 2006 में हमारी कंपनी ‘रश्मि शर्मा टैलीफिल्म्स’ शुरू हो गई.’’ ‘रश्मि शर्मा टैलीफिल्म्स’ का पहली धारावाहिक ‘राजा की आएगी बारात’ स्टार प्लस पर प्रसारित हुआ. इस के बाद ‘साथ निभाना साथिया’, पलकों की छांव में, ‘ससुराल सिमर का’ आदि कई धारावाहिक आए. ‘ससुराल सिमर का’, ‘स्वरागिनी’, ‘तुम ऐसे ही रहना’, ‘भाग्यलक्ष्मी’ और ‘साथ निभाना साथिया’ धारावाहिक आजकल प्रसारित हो रहे हैं.

रश्मि कहती हैं कि हर किसी की काम करने की कुछ सीमाएं होती हैं उस से आगे वह नहीं बढ़ सकता. किसी उत्पाद के मालिक आप तब तक नहीं बन सकते जब तक कि आप ने उस का खुद निर्माण न किया हो. क्रिएटिव क्षेत्र में हर कोई सौ प्रतिशत मेहनत करता है.

अच्छेबुरे पल

जीवन के अच्छे और बुरे पल कब थे, इस पर वे कहती हैं, ‘‘मेरे जीवन का सब से अच्छा पल वह था जब मेरी पवन के साथ शादी हुई. उस के बाद पवन के सपोर्ट के चलते मेरे जीवन में आज तक सबकुछ अच्छा ही हुआ.’’ रश्मि शर्मा महिलाओं को संदेश देते हुए कहती हैं, ‘‘आज की महिलाओं को चाहिए कि वे बेसिक शिक्षा जरूर पूरी करें. किसी प्रोफैशन के लालच में पढ़ाई न छोड़ें. अगर पढ़ाई पूरी हो तो किसी भी समय आप किसी भी क्षेत्र में जा सकती हैं और सफल हो सकती हैं. ‘‘बात शादी से पहले की हो या बाद की अपने लिए जरूर कुछ न कुछ करें. अपनी आत्मनिर्भरता बढ़ाएं. अगर महिलाएं वित्तीय सहयोग किसी रूप में परिवार को देती हैं तो पति भी चकित रह जाते हैं.’’

उफ, यह लहंगा बड़ा महंगा

भारीभरकम 18 किलोग्राम का लहंगा और 11 करोड़ रुपए की ज्वैलरी. जिस की सुरक्षा के लिए 45 गार्ड तैनात हों उन के बीच रह कर राजस्थान की गरमी में शूटिंग करने वाली ऐक्ट्रैस सयामी खेर की हिम्मत की दाद जरूर देनी चाहिए. सयामी राकेश ओमप्रकाश मेहरा की फिल्म ‘मिर्जिया’ से अपना कैरियर शुरू कर रही हैं. इसी फिल्म से अनिल कपूर के बेटे हर्षवर्धन कपूर भी डेब्यू कर रहे हैं. फिल्म में सयामी की शादी की शूटिंग चल रही है. श्रद्धा ने भारी पोशाक, गहने और गरमी के बीच इस सीन को बेहतरीन ढंग से अंजाम दिया. सीक्वैंस को देखते हुए राकेश ने जूनियर आर्टिस्टों की ड्रैस का भी अच्छे से ध्यान रखा है. उन्होंने हर आर्टिस्ट के लिए सही कपड़ों का चयन किया और 500 लोगों के लिए पगडि़यां और कौस्ट्यूम बनवाए. बताया जाता है कि सजावट के लिए 7 ट्रक गेंदे के फूल कोलकाता से मंगवाए गए.

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