Summer Special

Hey Girls,
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Digital fashion is the interplay between digital technology and couture: a distinctive way to manufacture fabrics and bridge personal and digital realms to reach customers using technologies via desktops and smartphones. Fashion designers model the fusion of creativity with digital avenues to bring in more polished reach with cost benefit for both designers and customers. 
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राधिका की प्राइवेसी में सेंध

फिल्म ‘बदलापुर’ में अपने किरदार के लिए वाहवाही मिलने के बाद राधिका आप्टे अपनी कामयाबी में सब से बड़ा हाथ थिएटर का मानती हैं. मराठी फिल्मों की अभिनेत्री राधिका  की कुछ न्यूड तसवीरें सैल्फी सोशल मीडिया पर वायरल हो गई थीं. हालांकि राधिका ने कहा है कि वे तसवीरें व वीडियो मेरे नहीं हैं. किसी ने मोर्फिंग कर के मुझे बदनाम करने की नीयत से ऐसा काम किया है. मैं इस के खिलाफ संबंधित इंटरनैट साइट पर कानूनी कार्यवाही करूंगी. राधिका ने रितेश देशमुख अभिनीत मराठी फिल्म ‘लाई भारी’ व फिल्म ‘शोर इन द सिटी’ में तुषार कपूर के साथ काम किया था. आप की जानकारी के लिए यह भी बता दें कि बौलीवुड का यह पहला मामला नहीं है जब किसी अभिनेत्री की न्यूड तसवीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुई हों. इस से पहले टीवी जगत की नामी अभिनेत्री मोना सिंह का एमएमएस क्लिप भी वायरल हो गया था. अब देखना यह है कि साइबर क्राइम डिपार्टमैंट इस मामले को कैसे हैंडल करता है. राधिका आप्टे बौलीवुड की आने वाली फिल्म ‘हंटर’ में दिखाई देंगी.

सच से लोगों को मिर्ची लग जाती है : मल्लिका शेरावत

बौलीवुड तारिका मल्लिका शेरावत हमेशा सुर्खियों में बनी रहती हैं. पिछले दिनों कांस फिल्म फैस्टिवल के समापन समारोह में जब मल्लिका ने यह बयान दिया कि बौलीवुड में महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं है, तो उन के इस बयान पर बौलीवुड में हंगामा मच गया.

पेश हैं, उन से हुई गुफ्तगू के कुछ अहम अंश:

अपने 12 साल की अभिनय यात्रा को किस तरह से देखती हैं?

मेरी इस यात्रा में काफी उतारचढ़ाव रहे. मुझे हैरानी है कि 12 साल के बाद भी मैं फिल्म इंडस्ट्री में टिकी हुई हूं, जबकि मैं देखती हूं कि कई कलाकार 1-2 साल बाद ही गायब हो जाते हैं. कुछ कलाकार तो महज एक फिल्म करने के बाद ही गायब हो जाते हैं. मगर मैं अपने प्रशंसकों के आशीर्वाद और सहयोग से यहां टिकी हुई हूं.

बौलीवुड से क्या सीखा?

पहले मैं फिल्म हिट होने पर बहुत खुश हो जाती थी, तो फ्लौप होने पर डिप्रैशन में चली जाती थी. फिर धीरेधीरे समझ में आया कि कलाकार के हाथ सिर्फ काम को ईमानदारी से अंजाम देना होता है. बौलीवुड में भाईभतीजावाद बहुत ज्यादा है. यह मुझे अच्छा नहीं लगता. बौलीवुड की प्रगति के लिए इस में बदलाव की जरूरत है. तभी अच्छी फिल्में बना सकेंगी. नए लेखक, निर्देशक और नए कलाकारों को काम देना बहुत जरूरी है.

आप ने 12 साल के अभिनय सफर में सब से कम फिल्में कीं, फिर भी सब से ज्यादा चर्चा में रहती हैं?

बिलकुल सही कहा आप ने. मगर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि बौलीवुड में हमेशा कई ग्रुप सक्रिय रहते हैं. ऐसे में जब मुझे कोई अच्छी फिल्म मिल जाती है, तो सभी परेशान हो उठते हैं. बौलीवुड में मेरा कोई गौड फादर नहीं. मेरा कोई लोकप्रिय बौयफ्रैंड नहीं है. इन वजहों से मैं कई फिल्में खो बैठती हूं. चूंकि मैं तेजतर्रार हूं, बोल्ड हूं, इसलिए थोड़ाबहुत मैनेज कर लेती हूं.

फिल्म ‘डर्टी पौलिटिक्स’ में आप ने अनोखी देवी का किरदार निभाया है, जो पावर हासिल करने के लिए अपने शरीर का शस्त्र की तरह उपयोग करती है. क्या आप को नहीं लगता कि पूरे विश्व की हर नारी ऐसा करती है?

नारी का अपने शरीर का शस्त्र की तरह उपयोग करना अच्छा भी है और बुरा भी. बहुत कुछ हालात पर निर्भर करता है. यदि औरत अपने शरीर को शस्त्र की तरह गलत काम के लिए उपयोग करती है, तो इस के पीछे उस की अपनी कुछ मजबूरी हो सकती है. कोई भी औरत खुशीखुशी अपना शोषण नहीं करवाती.

फिल्म ‘ख्वाहिश’ में आप के किसिंग सीन की चर्चा हुई थी. पर अब तो हर अभिनेत्री किसिंग सीन करती नजर हाती है?

जब मैं ने इस ट्रैंड को सैट किया था, उस वक्त लोगों को बहुत बुरा लगा था. पर अब सभी मेरी नकल कर रहे हैं. इस पर अब कोई आपत्ति नहीं करता. इस की एक वजह यह है कि अब पूरे समाज में बदलाव आ गया है. अब तो गांवों में भी इंटरनैट मौजूद है, जिस पर सब कुछ उपलब्ध है. जब मैं ने अपने कैरियर की शुरुआत की थी, तब इंटरनैट संस्कृति हावी नहीं थी इसलिए लोगों को बुरा लगा था. अब तो लोग इसे सामान्य बात मानने लगे हैं. जब मैं ने बिकनी पहनी थी, तब लोगों ने खूब हंगामा मचाया था. पर अब कोई अभिनेत्री बिकनी पहनती है, तो हल्ला नहीं मचता है.

विदेशों में भारत की खासकर औरतों की छवि खराब करने का आप पर आरोप लगा है?

मैं ने कहा था कि हमारे देश में गैंगरेप हो रहे हैं, भ्रूण हत्याएं हो रही हैं. हमारा समाज औरतों को ले कर बहुत रिग्रैसिव है. अब इस में मैं ने क्या गलत कहा? मुझे बहुत चोट लगी, जब मेरे ही देश में कुछ लोगों ने उलटे मुझ पर आरोप लगाए. मुझे सच बोलने की सजा दी गई. मैं ने जो कुछ कहा, वह हमारे देश की कड़वी सचाई है. जब मैं सच बोलती हूं, तो लोगों को मिर्ची लग जाती है.

आप छोटे शहरों की लड़कियों को आगे बढ़ने के लिए किस बात पर ध्यान देने को कहेंगी?

हमारे यहां लड़की पर बहुत सीमाएं हैं, उसे उन्हीं सीमाओं में रहना चाहिए. लोग लड़की को बहुत बड़ी जिम्मेदारी मानते हैं और उसे बिना पढ़ाएलिखाए घर से विदा करने की सोच रखते हैं. इस सोच को बदलने की जरूरत है. हर लड़की को सब से पहले पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए. यदि परिवार में औरतें पढ़ी हों, तो पूरा परिवार शिक्षित हो जाता है, परिवार प्रगति की ओर जाता है.

औरतों के साथ हो रहे अपराधों की मूल वजह क्या है?

इस की एकमात्र वजह यही है कि लोगों में डर नहीं है. उन्हें पता है कि हमारे देश में कानून व्यवस्था सख्त नहीं है. अपराध करने पर यदि पकड़े गए, तो तुरंत जमानत पर छूट जाएंगे. केस 20-30 साल तक चलता रहेगा. हमारे यहां कानून न्याय प्रक्रिया बहुत धीमी है. निर्भया कांड के आरोपियों को आज तक फांसी नहीं लगी.

आप को अमेरिकन सीरियल ‘हवाई फाइव’ कैसे मिला? इस में आप का क्या किरदार है?

यह जैकी चैन के साथ काम करने का फल है. फिल्म देखने के बाद उन्होंने मुझ से संपर्क किया. मैं ने इस में अफगान औरत का किरदार निभाया है. वह तालिबान के चंगुल से अपने पति सहित पूरे गांव को बचाती है, इस के लिए मुझे पश्तो भाषा भी सीखनी पड़ी.

अमेरिका और भारत में काम करने में क्या फर्क है?

अमेरिका में फिल्मों व टीवी सीरियलों का बजट ज्यादा होता है. वहां बहुत कोल्ड लोग हैं. वहां अपनापन नहीं है. सिर्फ मशीन की तरह काम करते हैं. वहां कलाकार को दर्शकों का प्यार भी नहीं मिलता.

भारतीय फिल्मों को विदेशों में वह स्थान नहीं मिल पा रहा है, जो मिलना चाहिए?

क्योंकि हम ने अभी तक कोई ऐसी फिल्म ही नहीं बनाई जोकि क्रौस ओवर हो. जबकि चाइनीज, कोरियन, ईरानी फिल्में पूरे विश्व में पसंद की जाती हैं. दूसरी बात हमारे देश में टांग खींचने की आदत है. जब किसी भारतीय फिल्म को औस्कर अवार्ड के लिए भेजा जाता है, तो उस फिल्म की सपोर्ट में खड़े होने के बजाय कई फिल्मकार विरोध में खड़े हो जाते हैं. हमारे लोगों में जलन की भावना बहुत है. अगर कोई तरक्की कर रहा होता है, तो दूसरे खुश नहीं होते. लोग अपनी ही इंडस्ट्री के खिलाफ बोलना शुरू कर देते हैं.

लव इन रिलेशनशिप पर क्या कहना चाहेंगी?

मैं मौडर्न लड़की हूं फिर भी मेरी राय में एक लड़के और एक लड़की को शादी के बाद ही एकसाथ रहना चाहिए.

क्यों देते हैं लोग गालियां

तेरी मां की…कार पीछे कर,’’ गली के एक कोने से आवाज आई, तो दूसरी तरफ से सुनाई पड़ा, ‘‘तेरी बहन की… तू पीछे कर अपनी कार.’’ हुआ यह था कि एक कार की पार्किंग के लिए अपने को बुद्धिजीवी कहने वाले 2 व्यक्ति एकदूसरे को जी भर कर मांबहन की गालियां दे रहे थे. क्या अपने को मर्द कहने वाले ये लोग अपने दम पर एक कार तक पार्क नहीं कर सकते थे?

आजकल हम अकसर घरों, बाजारों और औफिसों में इस तरह की भाषा का प्रयोग होते देखते हैं. मजे की बात तो यह है कि इस तरह की भाषा का प्रयोग लड़कों के साथसाथ लड़कियां भी करती मिल जाती हैं. यह एक ऐसी मानसिकता है, जो दर्शाती है कि आज के इस आधुनिक युग में लड़कियां अपने को लड़कों के बराबर दर्शाने के लिए हर संभव कोशिश कर रही हैं. उस के लिए चाहे अभद्र भाषा का प्रयोग ही क्यों न करना पड़े. पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में आई वृद्धि को देख कर लगता ही नहीं कि समाज सभ्य हो रहा है. जहां एक ओर समाज का एक वर्ग अपनी बेटियों को पढ़ालिखा कर आत्मनिर्भर बना रहा है, उसी समाज का एक बड़ा वर्ग बेटियों को बोझ समझता है और उन्हें जन्म लेने से पहले ही मार देता है.

महिला सुरक्षा के नाम पर कई कानून बनाए गए. कई न्यूज चैनलों पर कईकई दिनों तक बहस भी दिखाई गई पर क्या महिलाओं पर जुर्म रुक गए? कुछ माननीय नेता नसीहत देते हैं कि लड़कियों को रात में घर से नहीं निकलना चाहिए और उन्हें छोटे कपड़े नहीं पहनने चाहिए. रेप रोकना है तो लड़कियों की शादी बचपन में ही कर दो. कोई जरा इन से पूछे कि उस 2 साल की बच्ची ने कैसे छोटे कपड़े पहने थे, जिस का बलात्कार हुआ. और पंजाब की उस 15 साल की लड़की का क्या दोष था, जिस का यौन शोषण दिनदहाड़े कानून के रक्षक ही 3 महीने से कर रहे थे. बात छोटे कपड़ों या रात के अंधेरे की नहीं है, बात है तो सिर्फ मानसिकता की.

किसी औरत का बलात्कार हो जाता है, तो उस के साथ थोड़ीबहुत सहानुभूति देखी जाती है. उस के इंसाफ की भी आवाज उठाई जाती है. पर हर घर, हर गली, हर नुक्कड़ पर रोज न जाने कितनी बार एक औरत के कपड़े उतारे जाते हैं. न जाने दिन में कितनी बार उस के गुप्तांगों की चर्चा की जाती है. न जाने कितने मर्द बिना डर के सरेआम अपनी जबान से निकाली गालियों द्वारा औरतों का बलात्कार करते हैं. पर उन्हें रोका नहीं जाता, उन्हें सजा नहीं दी जाती.

औरत ही निशाना क्यों

बिहार के एक गांव में एक युवक ने एक लड़की से बदला लेने के लिए उस के साथ बलात्कार किया. उस के बाद उस लड़की के भाइयों ने उस युवक की घर की औरतों को पूरे गांव में नंगा घुमाया. दंतेवाडा की रहने वाली सोनी सौरी के पति पर माओवादियों की मदद करने का इलजाम था. पर इस सब से अलग सोनी अपने और अपने आसपास के उन बच्चों को शिक्षा देना चाहती थी, जिन के घर वाले या तो जेल में थे या उन पर माओवादियों की मदद के इलजाम थे ताकि वे बच्चे शिक्षा के महत्त्व को समझें और अपना नया आकाश खोजें. पर सोनी की यह कोशिश शायद कुछ लोगों को रास नहीं आई, तो उसे गिरफ्तार कर कई प्रकार की यातनाएं दी गईं. इसी तरह की बहुत सी खबरें आए दिन अखबारों में आती हैं तो बहुत होहल्ला मचता है. कई महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाली संस्थाएं सड़कों पर उतर आती हैं. पर जब हर रोज दिन में कई बार सरेआम गालियों के जरीए औरतों का अपमान किया जाता है, तब तो सब को यह सामान्य लगता है.

बस में एक कालेज जाने वाली लड़की ने 2-3 बार एक लड़के को ठीक से खड़ा होने को कहा. पर जब वह लड़का नहीं माना तो उस लड़की ने आसपास खड़े लोगों से कहा. तब कुछ लोग उस लड़के पर टूट पड़े. किसी ने कहा, ‘‘साले तेरी बहन की… क्या तेरे घर में मांबहन नहीं हैं?’’

तो किसी ने कहा, ‘‘कुत्ती की औलाद लड़की छेड़ता है,’’ यानी हर तरफ से गलियां की बौछार होने लगी और उस लड़के को बस से उतार दिया गया. अब जरा सोचिए, उस लड़के ने एक लड़की को छेड़ा और उस के बाद उस लड़की की मदद करने वाले उस बस के हर मर्द ने औरतों को जलील किया. पर ऐसा करने पर उन लोगों का किसी ने विरोध नहीं किया. क्यों किसी को जलील करने के लिए महिलाओं को जलील किया जाता है? क्यों उन के निजी अंगों को इस प्रकार गालियों के जरीए बोलबोल कर सरेआम खोल कर रख दिया जाता है?

गालियां तोड़तीं औरतों का मनोबल

समाज का एक बड़ा वर्ग औरतों को समान अधिकार देने के दावे करता है पर उसी समाज में औरतों का मनोबल तोड़ने के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग किया जाता है. घर हो या औफिस यह खोखला समाज औरतों को सम्मान भरी नजर से तभी देखता है, जब वे सिर से पांव तक कपड़ों में लिपटी रहती हैं. औफिस में अगर किसी महिला कर्मचारी को तरक्की मिले तो पुरुष कर्मचारी कहते हैं, ‘‘देखा…कुत्ती औरत होने का फायदा उठा रही है. बौस के साथ सोई होगी वरना इतनी जल्दी तरक्की कैसे मिल जाती?’’

इस के अलावा यदि कोई औरत आधुनिक कपड़ों में औफिस जाती है या रात को देर से घर आती है, तो समाज के लोग कहते हैं, ‘‘चालू है रात भर मजे मारती है’’ और इस के विपरीत अगर कोई मर्द औफिस से देर से आता है, तो कहते हैं, ‘‘बेचारा कितनी मेहनत करता है.’’ एक औफिस की पार्टी, जो देर रात तक चलनी थी, का हिस्सा बनने के लिए शिखा ने अपने पति से इजाजत मांगी तो बदले में उस के पति ने गुस्से से कहा, ‘‘ज्यादा उड़ो मत. इन देर रात की पार्टियों में क्या होता है, क्या मैं नहीं जानता. चुपचाप औफिस का काम करो और घर आओ.’’  लेकिन कुछ दिन बाद शिखा का पति जब औफिस की एक पार्टी में जाने के लिए तैयार हो रहा था, तब शिखा की हिम्मत नहीं हुई उस से वही कहने की जो वह कुछ दिन पहले पति से सुन चुकी थी. यह सिर्फ शिखा ही नहीं हर उस औरत के साथ होता है, जो मर्दों के समान काम तो करती है पर उसे मर्दों के समान सम्मान नहीं मिल पाता. मिलती है तो बस आत्मविश्वास को ठेस पहुंचाने वाली टिप्पणी.

बिना बात के भी दी जाती हैं गालियां

निधि का पति उस के और अपने बच्चों के साथ टीवी पर क्रिकेट का मैच देख रहा था. अचानक भारतीय खिलाड़ी ने कैच छोड़ दिया तो वह जोरजोर से चिल्लाने लगा, ‘‘इस की मां की… साले बहन… ने कैच छोड़ दिया.’’ उस के पास बैठी उस की 5 साल की बेटी ने निधि की ओर देखा और कहा कि मम्मी, पापा गंदी बात क्यों कर रहे हैं? ऐसा अकसर देखा गया है कि बहुत से लोगों का वाक्य गालियों के बिना पूरा ही नहीं होता. उन के लिए यह एक आम बात है. वे किसी खुशी, गम या गुस्से में किसी की भी मांबहन की इज्जत बातोंबातों में सरेआम उतार देते हैं और बच्चे जो घर में सुनते हैं वही बोलते भी हैं. कई लोगों को बातबात पर मां और बहन की गाली देना का जैसे शौक होता है. हर वाक्य के बाद उन के मुंह से गाली निकलती है. उन को यह तक खयाल नहीं रहता कि उन के आसपास उन की मांबहनें और बच्चे भी हैं. इस तरह के वाक्यों और गलियों का असर हमारे आने वाले कल यानी हमारे बच्चों पर पड़ता है.

लोगों को अपने घरों से ही पहला बदलाव करना चाहिए. उन्हें समझना और बच्चों को समझाना चाहिए कि औरतें मात्र गाली खाने वाली या भोग की वस्तु नहीं हैं. वे समाज की सम्मानित प्राणी हैं. ऐसा होने पर घर में नारी की इज्जत होता देख आप का बच्चा बाहर भी उन की इज्जत करेगा.

बच्चे भी बन रहे ऐसे

एक पार्क में 12 से 15 साल के कुछ बच्चों के बीच किसी बात को ले कर झगड़ा हो गया. देश का भविष्य कहे जाने वाले इन बच्चों की जबान से मांबहन की गालियां इस तरह निकल रही थीं जैसे यह इन सब के लिए रोज की सामान्य भाषा हो. एक बच्चे के वाक्य ने तो मुझे अंदर तक हिला दिया. उस ने कहा, ‘‘ज्यादा बोलेगा तो तेरी बहन की… में मिर्च डाल दूंगा.’’ इस वाक्य को सुनने के बाद मुझे 16 दिसंबर का दामिनी केस याद आ गया, जिस में कुछ हैवानों ने उस लड़की के सभी निजी अंगों को छलनी कर दिया था. शायद उन लोगों की मानसिकता बचपन से ही औरत के निजी अंगों के साथ इस तरह की हैवानियत करने की रही होगी और आज पार्क में गालियां देते ये बच्चे भी कुछ हद तक उसी राह पर थे. दरअसल, वे इतनी छोटी उम्र में ही जान चुके हैं कि अगर किसी को नीचा दिखाना हो, तो उस के घर की महिलाओं पर आक्रमण करो. उस की मां या बहन को गाली दो. बदला लेने के लिए महिलाओं पर हमले की भावना आगे जा कर समाज के लिए घातक है, यह बात हमें समझनी चाहिए.

धर्म भी पीछे नहीं

औरतों के लिए कहे जाने वाले खराब शब्दों में कुछ शब्द तो हमारे धर्म के ठेकेदारों की ही देन है. इस का एक उदाहरण है डायन प्रथा, जो आज भी देश के कई गांवों में औरतों पर अत्याचार और उन का शोषण करने के लिए इस्तेमाल की जाती है. आए दिन बिहार और उत्तर प्रदेश के कई गांवों में महिलाओं को जंजीरों में बांध कर रखा जाता है और उन को निर्वस्त्र घुमाया जाता है, उन के गुप्तांगों को चोट पहुंचाई जाती है और कुछ मामलों में तो डायन कहलाने वाली औरतों को जिंदा तक जला दिया जाता है. यह सब सिर्फ धर्म की आड़ में किया जाता है और गांव के धार्मिक लोग इसे अपने गांव और गांव वालों की रक्षा के लिए की जाने वाली पूजा कहते हैं, जो शर्म की बात है. क्या आप ने आज तक किसी ऐसी भूत प्रथा का नाम सुना है, जिस में पुरुषों को गांव की भलाई के लिए जिंदा जला दिया जाता हो?

अगर धर्म के ठेकेदारों के कहने पर किसी भी औरत को देवी या डायन माना जा सकता है, तो क्यों ये लोग समाज को औरतों की इज्जत करने के लिए नहीं कहते? क्यों ये गालियां देने को पाप करने जैसा नहीं मानते? हम अकसर देखते हैं कि दीवारों पर देवीदेवताओं का फोटो लगा दिया जाता है ताकि कोई उस दीवार पर पेशाब न करे. जब जगहजगह खुले में लोग पेशाब न करें, इस के लिए देवीदेवताओं की मदद लेने से समाज पीछे नहीं हटता, तो लोगों को गालियां देने से रोकने के लिए कोई सख्त कदम क्यों नहीं उठाता?

नहीं बदला नजरिया

समाज कितना भी शिक्षित हो जाए पर आज भी एक बड़े वर्ग का औरतों को देखने का नजरिया नहीं बदला है. आज भी आमतौर पर जो वाक्य घरों में प्रयोग किए जाते हैं, उन में भी औरतों की दशा साफ नजर आती है. एक लड़की को पैदा होने से ले कर मरने तक कुछ अपमान भरे शब्दों और वाक्यों का सामना करना पड़ता है, जो उस के आत्मविश्वास को चोट पहुंचाते हैं. जैसे: डायन, कुलटा, छिनाल, कुतिया, ज्यादा जबान चलाई तो काट दूंगा. यह घर मेरा है. मैं कमाता हूं, उठा कर बाहर फेंक दूंगा.

तेरे बाप ने अपनी मुसीबत मेरे गले बांध दी.

2 पैसे क्या कमाने लगी साली सिर पर बैठेगी.

जब तक बेटा नहीं होता चुपचाप बच्चे पैदा करती जा वरना निकल यहां से.

अब तू सिखाएगी मुझे क्या करना है.

तेरे बाप का नौकर हूं जो तेरी सुनूं.

अगर बेटा किसी लड़की के साथ घूमे तो ‘लड़का जवान हो रहा है’ कहा जाता है और लड़की किसी लड़के के साथ देखी जाए, तो ‘बेशर्म हो गई है घर की इज्जत मिट्टी में मिला दी’ कहते हैं.

लड़की होने पर कहा जाता है कि चलो जी अब बचत करना शुरू कर दो, इस के दहेज के लिए.

अरे क्या करेगी पढ़लिख कर? घर का काम सिखाओ इस को. दूसरे घर जा कर काम आएगा.

पैदा होते ही मर जाती.

हजारों वाक्य और शब्द हैं, जो रोज औरतों के आत्मविश्वास को तोड़ते हैं. उन्हें अबला और कमजोर होने का एहसास दिलाते हैं. साथ ही इस बात का भी कि उस का औरत होना पाप है. हमें इस समाज को बदलना होगा. कुछ छोटीछोटी बातों से शुरुआत कर के हम औरतों को ही आने वाले कल को सुधारना होगा. कुछ छोटी किंतु खास बातें ये हैं.

अगर बच्चा गाली दे तो उसे तुरंत टोकें या उस को सख्ती से मना करें.

अपने आसपास अगर कोई औरत घरेलू हिंसा का शिकार हो रही हो, तो उस के खिलाफ आवाज उठाएं और उस औरत को जागरूक करें.

बेटी में आत्मविश्वास जगाएं ताकि मुश्किल के वक्त वह समाज का सामना कर सके.

बेटी और बेटे दोनों के फोन और दोस्तों पर नजर रखने के साथसाथ उन की संगत का भी ध्यान रखें. उन के दोस्तों की पूरी जानकारी रखें.

अपनी बेटी से यह न कहें कि तू लड़की है, यह तेरे बस का नहीं या लोग क्या कहेंगे.

बेटी को उस के अधिकारों की जानकारी दें.

बच्चों को खासकर बेटे को औरतों की इज्जत करना सिखाएं. उसे बताएं कि महिलाएं सम्माननीय हैं.

अगर कोई गाली देता हो तो उसे सख्त शब्दों से टोक दें.

छोटी सी पहल से ही आने वाले अच्छे कल की शुरुआत होगी और जल्द ही वह आसमान मिल जाएगा, जहां महिलाएं आजादी से उड़ान भर पाएंगी.

निवेश एक नहीं कई जगह

आज रिश्ते से ऊपर पैसे की अहमियत हो गई है, तो बचत भी बहुत जरूरी है. महिलाएं आर्थिक तौर पर अब किसी पर निर्भर नहीं रहीं, खुद कमाने, खुद खर्च करने के लिए स्वतंत्र हैं. आमतौर पर कहा जाता है कि महिलाएं बहुत खर्चीली होती हैं लेकिन अब जब उन्हें आफिसों में दिनरात खटना पड़ता है, कड़ी मेहनत करनी पड़ती है तो पैसे की वैल्यू भी वे अच्छी तरह जानती हैं.ताजा बजटों में हालांकि निवेश में महिलाओं को अलग से कोई फायदा नहीं दिया गया है.

निवेश संबंधी मामलों की सलाहकार एवं एक्समार्ट इंटरनेशनल की डायरेक्टर प्रीति जैन कहती हैं कि कमाई के साथसाथ महिलाओं को अपनी बचत का निवेश कई जगह करना चाहिए. ताकि वे अपना और परिवार का भविष्य सुरक्षित तथा चिंतारहित बना सकें. निवेश के लिए कई फैक्टर हैं. आप अविवाहित हैं या विवाहित, बच्चे और आश्रित कितने हैं, इन सब बातों को देखते हुए निवेश की प्लानिंग करनी चाहिए. सब से महत्त्वपूर्ण बात यह है कि आप केवल एक ही जगह नहीं, कई जगह निवेश करें ताकि कम से कम आप अपना और परिवार का भविष्य सुरक्षित बना सकें.

पी.पी.एफ., पी.एफ. (लौंग टर्म निवेश)

आप चाहे वेतनभोगी हों या बिजनेस विमन, अपनी बचत का करीब 25% लौंग टर्म योजनाओं में निवेश कर सकती हैं. दीर्घकालीन निवेश में पब्लिक प्रोविडेंट फंड, प्रोविडेंट फंड और लाइफ इंश्योरेंस में 15 से 25 साल तक का निवेश किया जाना चाहिए.

पी.पी.एफ. और पी.एफ. योजनाओं में मौजूदा समय में 8% वार्षिक रिटर्न मिल रहा है.

एल.आई.सी.

एल.आई.सी. में महिलाओं के लिए कई स्कीमें हैं. इन में बीमारी, एक्सीडेंट, लोन सुविधा कवर होने के साथसाथ परिपक्वता में मोटी राशि मिल जाती है. एल.आई.सी. में 5 से 7% रिटर्न मिलता है. यह सेल्फ इनवेस्टमेंट है. प्रीति जैन बताती हैं कि इस से आप खुद और आप की फैमिली सुरक्षित रहती है. परिवार पर दबाव नहीं पड़ता. मुसीबत के समय बच्चों की पढ़ाई, बीमारी, विवाह जैसे काम रुकते नहीं.

इक्विटी [शेयर मार्केट]

इस के बाद अगर आप के पास सरप्लस मनी बचती है तो हाई रिस्क और हाई रिटर्न के लिए इक्विटी सेक्टर यानी शेयर मार्केट है. यहां आप के धन में गुणात्मक बढ़ोतरी होती रहती है. लेकिन इस में रिस्क को ध्यान में रखना होगा. इस में फंडामेंटल स्ट्रोंग कंपनियां हैं जैसे बैंकिंग सेक्टर, पावर सेक्टर, आई.टी. सेक्टर, आटो सेक्टर, मेटल सेक्टर, टेक्सटाइल, इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर आदि.

बैंकिंग में सब से पौपुलर और विश्वसनीय है एस.बी.आई., एच.डी.एफ.सी, आई.सी.आई.सी.आई., आई.डी.बी.आई. आदि.

पावर सेक्टर में एन.टी.पी.सी. यह पब्लिक के लिए सब से भरोसेमंद है.

आई.टी. में इनफोसिस, विप्रो, टी.सी.एस. प्रमुख हैं.

मेटल में हिंडालको, सेल, टिस्को हैं.

आटो सेक्टर में मारुति, हीरो होंडा महत्त्वपूर्ण हैं.

टेक्सटाइल में रिलायंस इंडस्ट्रीज, ग्रासिम आदि तथा इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में डी.एल.एफ., यूनिटेक का नाम आता है.

गोल्ड में निवेश

महिलाओं को आभूषणों से अधिक ही लगाव होता है. लिहाजा वे गोल्ड, सिल्वर  आदि में निवेश कर सकती हैं. लेकिन इस में अधिक नहीं, क्योंकि एक हद से अधिक फायदा इस में नहीं मिलता. इस में अपनी बचत का 15 से 25% ही निवेश करें तो ज्यादा ठीक रहेगा. सोनेचांदी जैसी धातुओं में उतारचढ़ाव चलता रहता है.

एन.एस.सी. में निवेश

एन.एस.सी. एक लौंग टर्म व सेफ निवेश योजना है. यह भी आप के लिए फायदेमंद रहेगी.

प्रौपर्टी में निवेश

अपनी बचत के हिसाब से प्रौपर्टी में भी निवेश किया जा सकता है. अगर इक्विटी में आप को अच्छा प्रोफिट मिलता है तो उस हिस्से को डाइवर्ट कर के रीयल एस्टेट में ट्रांसफर कर देना चाहिए. प्रीति कहती हैं कि मान लीजिए, आप ने इक्विटी में 15 हजार रुपए लगा रखे हैं और 2-3 साल में वह 15 गुणा हो जाता है. यह राशि दोढाई लाख हो जाती है तो उसे रीयल एस्टेट में शिफ्ट कर देना समझदारी है. अन्यथा क्या पता आप की यह राशि दोढाई लाख से कब 5-10 हजार रुपए पर आ लुढ़के.

म्यूचुअल फंड

यह सिस्टेमैटिकल इनवेस्टमेंट प्लान है. इस में इनवेस्टर पैसा डायरेक्ट न लगा कर फंड मैनेजर के माध्यम से लगाता है. इस में आप हर महीने अपनी सेविंग के हिसाब से धन लगा सकती हैं. इस में 15 से 20% रिटर्न मिल जाता है. यह मार्केट कंडीशन पर निर्भर करता है. यह भी रिस्की है. इस के अलावा आर.डी. अकाउंट में भी निवेश किया जा सकता है. एक खास बात और जरूरी है, वह है आप को कुछ प्रतिशत लिक्विडिटी के लिए सेविंग अकाउंट में इमरजेंसी के लिए रखना चाहिए. यह बचत आप किसी भी वक्त जरूरी काम पड़ने पर निकाल सकती हैं. इस तरह 3-4 या सुविधा के अनुसार ज्यादा योजनाओं में डिवाइड कर के निवेश किया जा सकता है. आप को पोर्टफोलियो बना कर निवेश करना चाहिए.

हैड और बौडी मसाज क्यों जरूरी

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में लोग अपने ऊपर कम ध्यान दे पाते हैं. ऐसे में सही मसाज उन के लिए बहुत उपयोगी होती है, क्योंकि मसाज केवल ब्लड सर्कुलेशन ही नहीं बढ़ाती, वह तो आप की थकान, तनाव सब दूर कर देती है. आजकल ‘मी टाइम’ बहुत आवश्यक हो चला है और लोग इस के प्रति जागरूक हो गए हैं, इसलिए आप को अपने रिहायशी क्षेत्र के आसपास मसाज पार्लर आसानी से मिल जाते हैं. इस के बारे में मुंबई की त्वारिका ब्यूटीपार्लर ऐंड मसाज सैंटर की ऐक्सपर्ट गीता उमप बताती हैं कि वैसे औयल मसाज तो सालों से चली आ रही है, लेकिन अब लोग हैड मसाज और बौडी मसाज दोनों कराना पसंद करते हैं क्योंकि इस से रक्त प्रवाह तो बढ़ता ही है, साथ ही सिरदर्द, तनाव और थकान से राहत भी मिलती है.

मसाज दरअसल एक प्रकार की पौलिश है, जो तेल के द्वारा की जाती है. मसाज से शरीर में स्फूर्ति आती है और त्वचा में कसाव आता है.

मसाज कई तरह से की जाती है, खास तरीके निम्न हैं:

मसाज का सब से पुराना तरीका चंपी मसाज है. जो सिरदर्द से आराम और स्कैल्प को पोषण देने के लिए की जाती है. इस से बालों में चमक भी आती है. इस में सिर की मालिश के लिए आमंड औयल, औलिव औयल, कोकोनट औयल आदि का प्रयोग किया जाता है.

औयल को थोड़ा गरम कर के बालों को विभाजित कर रुई के फाहे से स्कैल्प पर लगाया जाता है. फिर उंगली के पोरों से घुमावदार मालिश बहुत धीरेधीरे की जाती है ताकि बाल उलझें और गिरें नहीं.

आयुर्वेदिक मसाज का आजकल काफी प्रचलन है. इस के लिए चावल और जड़ीबूटियों को मिला कर तेल के साथ भिगो कर भाप के द्वारा पकाया जाता है. बाद में इसे मलमल के कपड़े में डाल कर शरीर पर रगड़ा जाता है. ऐसा माना जाता है कि इस से ई प्रकार के दर्द से राहत मिलती है.

अरोमैटिक मसाज अधिकतर तनावग्रस्त होने पर की जाती है. इस में सुगंधित तेल का प्रयोग होता है, जिस से दिमाग बिलकुल शांत हो जाता है, चिंताएं दूर हो जाती हैं.

कलारी मसाज खासतौर से केरल में हर्बल तेलों से की जाती है. शरीर को लचीला बनाने वाली कलारी मसाज केरल में कुश्ती के अभ्यास से जुड़ी प्राचीन कला है.

थाई मसाज थाई प्रणाली पर आधारित मसाज है. इस में शरीर की ऊर्जा को एक केंद्र में लाना पड़ता है. इस मालिश से व्यक्ति तनाव से राहत पाता है.

गीता बताती हैं कि हैड मसाज 8 दिन में एक बार करना आवश्यक है. जबकि बौडी मसाज महीने में एक बार करवा लेनी चाहिए ताकि आप पूरी तरह स्फूर्ति महसूस करें. मसाज के समय शरीर के आवश्यक केंद्र बिंदु पर प्रैशर देना जरूरी है, इसलिए हमेशा ऐक्सपर्ट से मसाज करवाना सही होता है.

कब कराएं हैड और बौडी मसाज

किस उम्र से मसाज करवानी चाहिए? इस के बारे में पूछने पर नैचुरल हेयर ऐंड ब्यूटी सैलून की नैशनल स्किन ट्रेनर करपागम बताती हैं कि हैड मसाज किसी भी उम्र में कराई जा सकती है, लेकिन बौडी मसाज 25 वर्ष की उम्र के बाद कराई जानी चाहिए. मसाज केवल सुंदरता के लिए उपयोगी ही नहीं, यह कई रोगों से भी मुक्ति दिलाती है. दक्षिण भारत के केरल में आयुर्वेदिक मसाज को दवा के साथ करवाया जाए, तो कई बीमारियां दूर हो सकती हैं. मोटापा, त्वचा संबंधी रोगों और अंगघात आदि रोगों के लिए यह मसाज काफी लाभप्रद होती है. इस थेरैपी को पिझिचिल, शिरोधारा आदि नाम से जाना जाता है. इस के आगे करपागम बताती हैं कि मसाज में औयल काफी महत्त्वपूर्ण है, जिस में अरोमा औयल, हर्बल, आमंड और औलिव औयल त्वचा का लचीलेपन और मजबूती को बढ़ाते हैं. रैग्युलर मसाज और आयुर्वेदिक थेरैपी अलगअलग हैं. रैग्युलर मसाज बौडी को रिलैक्स करती है जबकि आयुर्वेदिक थेरैपी में लगातार चिकित्सा से बीमारी ठीक की जाती है. पर दोनों के लिए ऐक्सपर्ट के पास जाना सही होता है.

जैली टंबलर

सामग्री

1 पैकेट स्ट्राबैरी जैली

1 पैकेट लैमन जैली

1 पैकेट औरेंज जैली

1/2 कप गाजर कसी

4-5 स्ट्राबैरी

1 संतरा

1 बड़ा चम्मच बंदगोभी के लच्छे

2 बड़े चम्मच खीरा कटा

9-10 अंगूर.

विधि

3 जैली को अलगअलग पैकेट पर लिखी विधि के अनुसार बना लें. स्ट्राबैरी जैली में गाजर और स्ट्राबैरी के टुकड़े काट कर मिला लें. लैमन जैली में कटे अंगूर, बंदगोभी तथा खीरा डाल कर मिला लें. औरेंज जैली में संतरे की फांके मिला लें. अब इन तीनों जैलियों को अलगअलग जमने के लिए फ्रीजर में रख दें. जब ये आधी जम जाएं तो इन्हें चम्मच से हिला दें. अब एक सुंदर गिलास में पहले एक रंग की आधी जमी जैली, फिर दूसरे रंग की और फिर तीसरे रंग की जैली भर दें. ऐसे ही अन्य गिलास तैयार कर लें. इन गिलासों को पूरी तरह जैली के जमने तक फ्रिज में रख दें. परोसने के लिए चाहें तो जैली को डीमोल्ड कर के सर्विंश डिश में परोसें या फिर गिलासों को यों ही सर्व करें.

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