अस्पतालों में लापरवाही जिम्मेदार कौन

बीती 5-6 जनवरी, 2014 को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के जनकपुरी इलाके में स्थित माता चानन देवी अस्पताल के डाक्टरों एवं प्रशासन द्वारा एक नवजात के प्रति जो असंवेदनहीनता बरती गई और जिस के चलते उसे अपनी जान गंवानी पड़ी, वह किसी को भी शर्मसार कर देने के लिए काफी है. नवजात के पिता द्वारा भरपूर रकम अदा करने के बावजूद इलाज में कोताही बरतने, जांच के नाम पर उसे इधर से उधर टहलाने और फिर नवजात की मौत के बाद उस के शव को मौर्च्युरी में रखने के बजाय कचरे में फेंक देने की घटना ने डाक्टरी पेशे को कलंकित कर दिया.

यह तो अच्छा हुआ कि नवजात के पिता ने समय रहते उस के शव को खोज निकाला. इस प्री मैच्योर नवजात बच्ची का जन्म जनकपुरी इलाके के सी-2 स्थित खन्ना नर्सिंग होम में हुआ था. हालत खराब होने पर वहां के डाक्टरों ने उसे चानन देवी अस्पताल भेज दिया. वहां के डाक्टरों ने बच्ची के सिर में इंटरनल ब्लीडिंग की बात कहते हुए उस का इलाज शुरू कर दिया, लेकिन वे उसे बचाने में नाकाम रहे. बच्ची ने देर रात दम तोड़ दिया. बच्ची के पिता राजेश वर्मा ने कलेजे पर पत्थर रख कर सब्र कर लिया और अस्पताल प्रशासन से मिन्नत की कि बच्ची के शव को मौर्च्युरी में रख दिया जाए ताकि वे सुबह आ कर उसे ले जाएं और अंतिम संस्कार कर सकें. इस पर उन्हें क्व1,500 रुपए प्रति नाइट का शुल्क जमा करने के लिए कहा गया. राजेश ने मौर्च्युरी का यह शुल्क अदा कर दिया, लेकिन अगली सुबह जब वे अस्पताल की मौर्च्युरी में पहुंचे, तो उन्हें अपनी बच्ची का शव वहां नहीं मिला. इस पर उन्होंने पूछताछ की, तो अस्पताल के कर्मचारी भड़क गए. इसी बीच एक कर्मचारी ने राजेश को पास खड़े एक ट्रक की ओर इशारा किया, जिस में अस्पताल का कचरा भरा हुआ था. राजेश ने बिना समय गंवाए ट्रक का सारा कचरा उलटपुलट डाला. आखिरकार उन्हें अपनी मृत बच्ची का शव क्षतविक्षत हालत में मिल गया. फिर शोरशराबा हुआ, पुलिस आई, रिपोर्ट दर्ज हो गई और काररवाई का आश्वासन पीडि़त के हाथों थमा दिया गया, जैसा कि ऐसे मौकों पर अकसर होता है.

लगा सिर्फ दर्द ही हाथ

लगभग  32 हजार चानन देवी अस्पताल में और उस से पहले नर्सिंग होम में एक मोटी रकम खर्च करने के बाद राजेश एवं उन की पत्नी नीतू के हाथ सिर्फ बच्ची का शव और जीवन भर सालते रहने वाला दर्द ही लगा. हालांकि अस्पताल प्रशासन ने इस बाबत 4 विशेषज्ञों की एक समिति गठित कर दी है, जो मामले की जांच करेगी. लेकिन इस से एक मातापिता को उस की संतान तो वापस नहीं मिल जाएगी. बच्ची की मौत से ज्यादा उस के शव के प्रति अस्पताल द्वारा बरती गई बेकद्री से उपजे दर्द को मरहम तो नहीं मिल जाएगा. बताते हैं कि वर्ष 2008 और 2010 में भी इस अस्पताल के डाक्टरों द्वारा इलाज में बरती गई लापरवाही के चलते 2 लोगों की मौत हो चुकी है, जिस के लिए हंगामा और शव के साथ प्रदर्शन तक हुआ तथा पुलिस को हस्तक्षेप कर के मामला शांत कराना पड़ा.

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

 2013 के अक्तूबर माह की 24 तारीख को जब सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता स्थित एएमआरआई अस्पताल एवं 3 डाक्टरों को इलाज में लापरवाही बरतने के मामले में दोषी पाते हुए 5 करोड़ 96 लाख का मुआवजा देने का आदेश दिया था, तो जनसामान्य के अंदर एक नई उम्मीद ने जन्म लिया था कि अब कोई अस्पताल अथवा डाक्टर अपनी जिम्मेदारी से भागने के बारे में नहीं सोचेगा.

सुप्रीम कोर्ट क न्यायाधीशों, जस्टिस एस.जे. मुखोपाध्याय एवं जस्टिस वी. गोपाल गौड़ा की खंडपीठ ने अपना उक्त फैसला अमेरिका में बसे भारतीय मूल के डाक्टर कुणाल साहा के पक्ष में दिया था. 1998 में उन की पत्नी अनुराधा की एएमआरआईअस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई थी. नैशनल कंज्यूमर फोरम ने 2011 में डाक्टर साहा को 1 करोड़ 73 लाख अदा करने का आदेश दिया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने बढ़ाते हुए कहा कि अस्पताल पीडि़त को 6 फीसदी की दर से ब्याज भी दे. दोषी डाक्टरों बलराम प्रसाद एवं सुकुमार मुखर्जी को 10-10 लाख और बैद्यनाथ हलदर को 5 लाख रुपए उक्त मुआवजा राशि में शामिल करने का आदेश दिया गया.

इस के 4 दिनों बाद ही खबर आई कि छत्तीसगढ़ के एक बड़े सरकारी अस्पताल में एक महिला डाक्टर को बरखास्त कर दिया गया. उक्त महिला डाक्टर पर एक बलात्कार पीडि़त बच्ची के इलाज में लापरवाही बरतने का आरोप था. बताते हैं कि स्त्रीरोग विशेषज्ञा डाक्टर आभा डहरवाल वहां कौंट्रैक्ट पर नियुक्त थीं. उक्त बलात्कार पीडि़त बच्ची रात के 3 बजे गंभीर हालत में अस्पताल लाई गई थी, लेकिन समय पर सूचना मिलने के बावजूद डाक्टर आभा सुबह 9 बजे तक अस्पताल नहीं पहुंचीं. नतीजतन, बच्ची पूरी रात तड़पती रही. मामला सामने आने पर अस्पताल प्रशासन ने जांच की. आरोपी डाक्टर ने जांच कमेटी को यह कह कर गुमराह करने का प्रयास भी किया कि वे 1 घंटे के अंदर अस्पताल पहुंच गई थीं. लेकिन नए सिरे से जांच होने और अस्पताल के प्रवेश द्वार का रिकौर्ड देखने पर पता चला कि उन का बयान झूठा था. जांच रिपोर्ट मिलते ही राज्य प्रशासन ने उन की सेवाएं खत्म कर दीं.

कार्यप्रणाली

इलाज में लापरवाही, औपरेशन के दौरान मरीज के शरीर में कैंची, तौलिया आदि छोड़ देना और मरीज की मौत हो जाने के बाद उस के शव के साथ अमानवीय व्यवहार केवल सरकारी एवं अर्द्धसरकारी अस्पतालों का स्वभाव नहीं है, बल्कि अच्छे इंतजाम का दावा करने और उस के लिए बतौर फीस मोटी रकम वसूलने वाले निजी अस्पतालों में भी अकसर ऐसा देखा जाता है कि समुचित तरीके से इलाज न हो पाने की वजह से मरीज की मौत हो जाने के बाद अस्पताल प्रशासन उस के शव को तब तक घर वालों के सुपुर्द नहीं करता, जब तक इलाज की पाईपाई अदा न हो जाए.

अपवादों को छोड़ दीजिए, तो अधिकतर नर्सिंग होम्स की कार्यप्रणाली में तो यह देखने को मिलता है कि वे अपने इलाके में और आसपास निजी प्रैक्टिस करने वाले डाक्टरों, वे चाहे डिगरीधारी हों या झोलाछाप, के साथ एक नैटवर्क संचालित करते हैं, जो उन्हें मरीजों को तब हैंडओवर करते हैं जब मामला उन के हाथ से निकल जाता है. नर्सिंग होम्स एक बार फिर मरीजों पर ऐक्सपैरिमैंट करते हैं, उन के परिवारजन को नोचतेखसोटते या सीधेसीधे कहा जाए तो लूटते हैं और जब उन के हाथ से भी तोते उड़ जाते हैं, तो वे बड़े निजी, सरकारी व अर्द्धसरकारी अस्पतालों को अपने संपर्कों के माध्यम से अपने मरीज हवाले कर देते हैं. इस से वे अपनी जिम्मेदारी से बच जाते हैं और पैसा मनमाफिक खींच ही चुके होते हैं.

सरकारी अस्पताल

सरकारी अस्पतालों का तो कहना ही क्या. दिल्ली हो या उत्तर प्रदेश अथवा देश का अन्य कोई पिछड़ा राज्य, सब जगह हालत एक सी है. वर्ष 2011 की बात है. देश के सब से बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के कानपुर महानगर के जिला अस्पताल उर्सला में कर्मचारियों की लापरवाही के चलते एक गंभीर रूप से घायल शख्स कुत्तों के मुंह का निवाला बन गया. मामला यह था कि ग्वालटोली थाना अंतर्गत खलासी लाइन निवासी 40 वर्षीय सिकंदर खान शाम को देर से घर जाते समय बिजली के खंभे में उतरे करंट की चपेट में आ गए. इलाकाई लोगों ने उन्हें छुड़ाया और पुलिस को इत्तिला दी. पुलिस ने सिकंदर को तुरंत उर्सला अस्पताल के आपातकालीन विभाग में दाखिल करा दिया. देर रात करीब साढ़े 3 बजे अस्पताल के पास रहने वाले कुछ आवारा एवं आदमखोर कुत्ते वार्ड नंबर 1 में घुस आए, जहां उन्होंने गंभीर रूप से घायल सिकंदर को नोचनाखसोटना शुरू कर दिया. सिकंदर चिल्लाए तो आसपास के मरीजों के तीमारदारों ने कुत्तों को खदेड़ने की कोशिश की और अस्पताल के कर्मचारियों को खबर दी. लेकिन मौके पर कोई नहीं पहुंचा तो कुत्तों ने सिकंदर को नोचनोच कर अधमरा कर दिया. जब तक आला पुलिस अधिकारी और डाक्टर खबर पा कर वहां पहुंचते, सिकंदर ने दम तोड़ दिया. तब प्रशासन की ओर से कराई गई प्राथमिक जांच में प्रथमदृष्टया दोषी करार दिए गए 2 संविदा कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया. अस्पताल प्रशासन ने संविदा कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली. लेकिन रात्रि ड्यूटी के लिए नियत डाक्टर, नर्स अथवा किसी सहायक चिकित्सकीय कर्मचारी के खिलाफ कोई काररवाई नहीं की गई.

ऐसा भी हो रहा

लोग यह खबर सुन कर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करते या अव्यवस्था को ले कर अपना माथा ठोंकते, तभी बौद्धिक महानगरी इलाहाबाद के एक पुराने एवं नामी अस्पताल के डाक्टरों की करतूत खुल कर सामने आ गई. यहां के स्वरूपरानी नेहरू चिकित्सालय के एक जूनियर डाक्टर ने अपने सीनियर्स की प्रतिष्ठा को दांव पर लगाते हुए 3 अधीनस्थ चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों के जरीए 2 ऐसे मरीजों को घने जंगल में फिंकवा दिया जिन का कोई नहीं था यानी वे लावारिस थे. हुआ यह कि झूंसी में अंदावा ओवरब्रिज के समीप जब 3 लोगों ने एक ऐंबुलैंस से 2 मरणासन्न मरीजों को निकाल कर घनी झाडि़यों में फेंका तो वहां से गुजर रहे राहगीरों को कुछ शंका हुई. उन्होंने बिना समय गंवाए पुलिस को घटना और ऐंबुलैंस के नंबर से अवगत करा दिया. पुलिस ने तत्परता दिखाई और घटना को अंजाम दे कर लौट रही ऐंबुलैंस को घेर लिया. जब ऐंबुलैंस में सवार लोगों से पूछताछ हुई तो सचाई जान कर पुलिस के भी होश उड़ गए. पकड़े गए लोगों में स्वरूपरानी नेहरू चिकित्सालय का 1 ऐंबुलैंस चालक और 2 वार्ड बौय थे, जो एक जूनियर डाक्टर के कहने और पैसों का लालच देने पर उक्त मरीजों को ठिकाने लगाने जंगल ले गए थे.

समस्या की जड़

यह वह देशव्यापी बीमारी है, जिस ने पूरे सिस्टम को बरबाद कर रखा है. कोई अपने कर्तव्य को सही तरीके और ईमानदारी के साथ अंजाम नहीं देना चाहता. अकसर लोग अपने कार्यक्षेत्र से संबंधित आवश्यक ज्ञान अर्जित नहीं करना चाहते और जिन्हें काम आता है, वे करना नहीं चाहते. लाख नियम, प्रावधानों के बावजूद अनुशासनहीनता चरम पर है. जिस का जो काम है, उसे वह करना नहीं चाहता और जिसे उस काम को नहीं करना चाहिए उस पर वह काम थोप दिया जाता है. अस्पतालों में अकसर देखा गया है कि वार्ड बौय एवं सफाईकर्मियों से इलाज संबंधी ऐसे काम कराए जाते हैं, जिन का उन्हें रंचमात्र भी ज्ञान नहीं होता. अपनी नौकरी बचाए रखने की गरज उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर कर देती है. नतीजा अकसर मरीजों की मौत अथवा उन की हालत पहले से ज्यादा बदतर हो जाने की शक्ल में सामने आता है.

अव्यवस्था के जिम्मेदार कई

अस्पतालों में अव्यवस्था और लापरवाही के लिए सिर्फ डाक्टरों एवं कर्मचारियों को दोषी ठहराने मात्र से काम नहीं चलने वाला. मरीजों के तीमारदार, रिश्तेदार भी कई बार अव्यवस्था के सूत्रधार साबित होते हैं. बातबात पर डाक्टरों एवं कर्मचारियों से भिड़ने, गालीगलौज और मारपीट करने की घटनाएं भी अकसर प्रकाश में आती रहती हैं. जरूरत से ज्यादा संख्या में तीमारदारों का आवागमन भी अस्पताल के कामकाज में बाधक बनता है. ऐसे में जरूरी यह भी है कि समस्या के निदान के लिए न सिर्फ डाक्टर एवं अन्य चिकित्सा कर्मचारी, बल्कि मरीज एवं उन के परिवार के लोग भी आत्मावलोकन करें.

बांझ पुरुष नपुंसक नहीं

देश में लगभग 11 करोड़ दंपती संतान सुख से वंचित हैं और इन में से 40% मामलों में पुरुष साथी की कमियों के कारण बच्चा नहीं हुआ. चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि देश में लगभग 4 करोड़ पुरुषों के बांझ होने का अनुमान है. संतान सुख से वंचित जोड़ों के पुरुष सदस्य शर्म के मारे इलाज के लिए आगे नहीं आते और अपनी निर्दोष पत्नियों को जीवन भर बांझ होने का उलाहना सुनने के लिए बाध्य कर देते हैं  यह जरूरी नहीं है कि जो पुरुष बांझ हो वह नपुंसक भी हो. किसी व्यक्ति का नपुंसक होना और बांझ होना 2 अलगअलग बातें हैं. संभोग न कर पाना नपुंसकता है, लेकिन संभोग शक्ति होते हुए भी स्त्री को गर्भवती न कर पाना बांझपन कहलाता है. कई व्यक्ति, जो ऊपर से स्वस्थ, हृष्टपुष्ट होते हैं और सफल संभोग करते हैं, वे भी संतान सुख से वंचित रहते हैं.

पुरुषों में बांझपन कई कारणों से हो सकता है. कई बार एकसाथ अनेक कारण मिल कर पुरुषों को बांझ कर देते हैं, तो कई बार एक ही कारण इतना सशक्त होता है कि पुरुष बांझ रह जाता है. पुरुषों में बांझपन का सब से बड़ा कारण वीर्य दोष होता है. यदि पुरुष स्वस्थ है तो वीर्य की 15 बूंदों में ही साढ़े 7 करोड़ शुक्राणु होने चाहिए. इन में अधिकांश शुक्राणु स्वस्थ और सक्रिय होने आवश्यक हैं. यदि इन शुक्राणुओं में अधिकांश अस्वस्थ या निष्क्रिय होंगे तो गर्भधारण नहीं होगा.

शुक्राणु कमजोर होने की वजह से पुरुष अपनी पत्नी को गर्भवती करने में असमर्थ रहते हैं. पुरुषों में बांझपन का सब से बड़ा कारण वीर्य दोष ही होता है.

वीर्य दोष के कई कारण हो सकते हैं जैसे आहारविहार, चोट, मानसिक परेशानी, गलसुआ, बेरिकोसील और एक्सरे के कुप्रभाव की वजह से पुरुष का वीर्य दूषित हो जाता है और वह प्रजनन करने लायक नहीं रह जाता. कई बार यह भी होता है कि शुक्राणु निर्माण की प्रक्रिया बराबर चल रही होती है, लेकिन वीर्य में वे अनुपस्थित रहते हैं तो इस का मतलब यह है कि शुक्राणुओं के वीर्य में मिलने के मार्ग में कहीं अवरोध है. इस अवरोध को आपरेशन द्वारा ठीक कराया जा सकता है.

मानसिक नपुंसकता

पुरुषों में बांझपन का एक कारण उन का नपुंसक होना भी हो सकता है. शारीरिक संरचना में कोई जन्मजात विकार हो तो व्यक्ति संबंध बनाने में सफल नहीं हो पाता. कई बार मानसिक नपुंसकता की वजह से भी वह बांझ रहता है. मानसिक नपुंसकता की वजह से वह संभोग ही नहीं कर पाता है और हर बार वह असफल रहता है. मानसिक नपुंसकता 2 प्रकार की हो सकती है. एक तो यह कि समय पर अंग उत्तेजित ही न हो, इस वजह से संभोग ही न कर पाए. दूसरी स्थिति में जैसेतैसे उत्तेजित तो हो जाता है, लेकिन संबंध बनाने से पूर्व ही वीर्य स्खलित हो जाता है. शीघ्रपतन भी बांझपन का एक कारण बनता है, क्योंकि इस में संबंध बनाने के प्रयास में ही वीर्यपात हो जाता है और ऐसे में शुक्राणु व अंडाणु का संपर्क ही नहीं हो पाता है.

कई बार तो यह भी देखा गया है कि पतिपत्नी दोनों संतानोत्पात्त के लिए पूर्णत: योग्य होते हैं और किसी में कोई दोष नहीं होता, फिर भी बच्चा नहीं होता. इस का सब से बड़ा कारण है कि वे सही समय पर संबंध नहीं बनाते. यह एक संयोग हो सकता है कि जब वे संबंध बनाते हों, उस समय स्त्री के अंडाणु नहीं बनते हों. मानसिक स्थिति और संबंध बनाने के बीच बड़ा नाजुक संबंध है. यदि आप किसी चिंता या तनाव को पालें अथवा व्यग्र या भयग्रस्त हो कर संबंध बनाएंगे, तो स्त्री को गर्भ ठहरना मुशकिल होगा.

अत्यधिक तनाव

तंबाकू और सिगरेट के अत्यधिक सेवन से वीर्य में शुक्राणुओं की बनावट और संख्या पर दुष्प्रभाव से पुरुषों में बांझपन का खतरा बढ़ा है. पुरुष जननेंद्रिय को गरम कर देने वाले वातावरण में काम करने से भी पुरुष बांझ हो सकता है. यही कारण है कि जिन कारखानों में भट्टियों, जहरीले रसायन तथा एक्सरे जैसी किरणों का प्रयोग होता है, वहां के श्रमिकों के बांझ होने के आसार ज्यादा रहते हैं. लगातार नाइलोन का जांघिया पहनने से भी पुरुष बांझ हो सकते हैं. कई मामलों में पाया गया है कि घर और बाहर के झंझटों से महिलाएं और पुरुष इतने तनावग्रस्त रहते हैं कि शारीरिक क्षमताओं के बावजूद बेमेल मानसिक दशाओं के कारण गर्भधारण नहीं हो पाता. परीक्षणों से यह सिद्ध हुआ है कि ऐसे तनावग्रस्त दंपतियों को यदि एक माह घर से दूर खुशनुमा माहौल में रखा जाए, तो उन्हें संतान प्राप्त हो सकती है.

मधुमेह से भी पुरुषों में बांझपन आ सकता है. इसी प्रकार थायराइड जैसी बीमारी भी पुरुष बांझपन का कारण बन सकती है. जन्मजात शारीरिक नपुंसकता के लिए पुरुषों को चाहिए कि वे किसी कुशल चिकित्सक को बताएं. आजकल चिकित्सा विज्ञान काफी उन्नत है और आपरेशनों के जरिए जन्मजात विकृतियों को ठीक भी किया जा सकता है.

सफल संभोग जरूरी

मानसिक नपुंसकता केवल मनोवैज्ञानिक बीमारी है. शरीर स्वस्थ हो, लेकिन मन अशांत हो तो बात नहीं बन सकती. सफल संभोग के लिए शरीर एवं मन दोनों से व्यक्ति को स्वस्थ एवं प्रसन्न होना चाहिए. तभी वह कुछ कर सकता है. अत: अपने मन से पूर्व अनुभव को त्याग कर पूर्ण आत्मविश्वास के साथ संबंध बनाना चाहिए. फिर देखिए, सारी नपुंसकता छूमंतर. जब भी संबंध बनाएं, दोनों प्रसन्नचित्त हो कर और सारी चिंताओं से मुक्त हो कर भयरहित वातावरण में बनाएं. हो सकता है बात बन जाए. पुरुषों में नपुंसकता और बांझपन दूर करने और संतानसुख का शर्तिया दावा करने वाले अनेक बोगस किंतु आकर्षक विज्ञापन अखबारों में छपते हैं और दीवारों पर पोस्टर के रूप में भी लगते हैं. ये नीमहकीम आप का धन लूटते हैं. यदि आप में कोई कमजोरी है तो किसी योग्य, कुशल एवं अनुभवी चिकित्सक से परीक्षण एवं उपचार कराना चाहिए.

वीर्य को पुष्ट बनाने तथा शुक्राणुओं की संख्या बढ़ाने के लिए कुछ समय के लिए उपचार किया जाता है. इन से शुक्राणु स्वस्थ व गतिशील हो जाते हैं तथा उन की संख्या बढ़ जाती है और वे गर्भधारण कराने में सक्षम हो जाते हैं.

टोनेटोटकों से परहेज

एक बात और जादूटोने से बांझपन दूर नहीं होता. कितने ही टोटके कर लिए जाएं, जब तक पतिपत्नी दोनों पूरी तरह सामान्य नहीं होते, संतान नहीं हो सकती. इसी प्रकार यज्ञ, हवन, व्रत, उपवास और सूर्य उपासना आदि से संतान नहीं हो सकती. यदि कोई खराबी है तो वह उचित उपचार से ही दूर हो सकती है. यदि व्रत और सूर्य उपासना से संतान होती तो आज विश्व में सभी औलाद वाले होते. यदि किसी दंपती को संभोगरत रहने के बावजूद संतान सुख नहीं मिल पा रहा है, तो सब से पहले पुरुष को अपनी जांच करानी चाहिए, क्योंकि पुरुष की जांच सब से सरल है व कम समय में पूरी हो जाती है. यदि जांच में सब कुछ ठीक निकले तो स्त्री की जांच करानी चाहिए.

बांझ दंपतियों के लिए टेस्ट ट्यूब द्वारा बच्चे को जन्म देने की पद्धति एक वरदान है, किंतु अत्यधिक खर्चीली होने के कारण गरीब और मध्यवर्गीय दंपतियों के लिए टेस्ट ट्यूब बेबी पाना एक सपना हो गया है. इस प्रणाली में लगभग 40 हजार रुपए लगभग खर्च आता है. चूंकि इस पद्धति में  20% मामलों में ही सफलता मिलती है इसलिए बेहतर है कि बांझ दंपती इस खर्चीली विधि को अपनाने के बजाय बच्चा गोद लेने की सामाजिक प्रथा को अपनाएं.

बांहों का बुलावा

किसी भी कीमत पर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. पूरी तरह शेपअप बौडी में शरीर का हर अंग संतुलित व सुगठित होता है. शरीर का कोई भी बेडौल अंग पूरे शरीर की फिटनेस व खूबसूरती को बिगाड़ देता है. खूबसूरत बांहों में सुडौल कंधे व खूबसूरत कलाइयां भी आती हैं. मोटी, थुलथुली, लटकती बांहें किसी भी खूबसूरत, स्लिमट्रिम महिला की खूबसूरती को कम कर देती हैं. बांहों का फैट भी शरीर के किसी अन्य अंग के फैट की तरह ही होता है, जिसे व्यायाम द्वारा सुडौल व सुगठित बनाया जा सकता है. ‘फिट जोन’ के संचालक अमरजीत के अनुसार, ‘‘जिम में उपलब्ध आधुनिक मशीनोें व उपकरणों की मदद से थुलथुली, लटकती बांहों को सुडौल व सुगठित बांहों में बदला जा सकता है. ट्रेडमिल जौगर, क्रास ट्रेनर, आई टेक साइकिल आदि के प्रयोग से बांहोें को खूबसूरत व सुडौल बनाया जा सकता है.’’

बांहों के फैट को कम करते समय कुछ खास बातों का ध्यान रखना चाहिए.

शरीर के फैट को कम करें

बांहों के किसी खास हिस्से के फैट को कम करने की कोशिश न करें. बांहों के फैट को दूर करने के लिए अपने पूरे शरीर से फैट को कम कीजिए. जब आप शरीर के बढ़े फैट को कम करने के लिए व्यायाम करती हैं तो बांहों के बढ़े फैट में भी कमी आती है.

कार्डियोवस्कुलर व्यायाम

ऐसा करना आप की लटकती मोटी बांहों के लिए फायदेमंद हो सकता है. वाकिंग, साइकिलिंग, रोइंग और स्केटिंग भी बांहों को सुडौल बनाने में मददगार साबित होते हैं.

वेट ट्रेनिंग

मांसपेशियों की वेट ट्रेनिंग से बांहों की मांसपेशियां टोन होती हैं, जो बांहों की सुंदरता बढ़ाती हैं. बाइसेप्स कर्ल्स, ट्राइसेप्स प्रेस डाउन, पुल अप्स पुश अप्स और डिप्स बांहों को शेप देने के सब से प्रभावी व्यायाम हैं.

तीव्र व्यायाम कीजिए

बांहों के फैट को अधिकतम घटाने के लिए तीव्र व्यायाम अधिक लाभदायक होते हैं. एक्सरसाइज की समय सीमा महत्त्वपूर्ण नहीं है. महत्त्वपूर्ण है करने का तरीका.

फैट बर्निंग व सही डाइट

खानपान में घटती पौष्टिकता व जंक फूड का कसता शिकंजा भी शरीर के किसी भी अंग के बढ़ते फैट का सब से बड़ा कारण होता है. इसलिए बांहों के फैट को कम करने के लिए भोजन में संतुलित व पौष्टिक आहार को शामिल करें. डाइटीशियन व न्यूट्रीशनिस्ट शिखा शर्मा के अनुसार, ‘‘रोजाना के भोजन में भरपूर हरी सब्जियां खाएं, चाहे वे सलाद के रूप में हों या पकी हुईं. नाश्ते व लंच से पहले फल अवश्य खाएं. हड्डियों की मजबूती के लिए दूध व दूध से बने पदार्थ भोजन में शामिल करें. शरीर में फैट न बने, इसलिए दिन भर में 5 छोटे चम्मच से अधिक तेल का प्रयोग न करें. चीनी भी 4 छोटे चम्मच से अधिक न लें. रोजाना 8 से 10 गिलास पानी जरूर पीएं. कुल मिला कर सही डाइट व कुछ मिनटों की एक्सरसाइज आप की बांहों को सुडौल व आकर्षक बना देगी, जिन्हें देख कर किसी का भी मन कहेगा, ‘बांहों में चली आओ…

डायमंड ज्वेलरी के लैटेस्ट ट्रेंड

ज्वेलरी के प्रति महिलाओं का प्रेम जगजाहिर है. कुछ को यह विरासत में मिलती है तो कुछ इसे ही अपनी पूंजी मानती हैं, पर आज की महिलाओं के लिए यह स्टाइल स्टेटमेंट बन गई है. आर्थिक आत्मनिर्भरता और मोटे सैलरी पैकेज ने उन्हें इस लायक बनाया है कि अब वे अपनी पसंद और लैटेस्ट फैशन के अनुरूप ज्वेलरी खरीदती हैं. इस में डायमंड की मांग सब से ज्यादा है. डायमंड एक ऐसा स्टोन है, जो कभी भी आउट औफ फैशन नहीं होता. आजकल वाइट मेटल जैसे प्लेटिनम में जड़े डायमंड के सेट, इयररिंग्स, अंगूठियां आदि फैशन में हैं. यह स्टाइल न सिर्फ बेहद स्मार्ट लगता है बल्कि फ्यूचरिस्टिक भी है. यह एक प्रकार का फ्यूजन स्टाइल है. ऐसी ज्वेलरी की डिजाइन का कांसेप्ट इंडियन होता है लेकिन स्टाइल और मेटल वेस्टर्न होते हैं.

एंगेजमेंट रिंग में इस वर्ष चौकोर प्रिंसेस कट डायमंड रिंग का बोलबाला है. यह कट न सिर्फ एंगेजमेंट रिंग बल्कि पैंडेंट, इयररिंग्, ब्रेसलेट आदि में भी खूब इस्तेमाल किया जा रहा है. महिलाओं में अब बाएं हाथ के बजाय दाएं हाथ में डायमंड रिंग पहनने का ट्रेंड चल पड़ा है. अंगूठी पहनने के शौकीनों में इस वर्ष 3 स्टोन वाली रिंग खरीदने के प्रति जबरदस्त क्रेज नजर आ रहा है. इस में बीच वाला स्टोन सब से बड़ा होता है व दोनों ओर 2 छोटे स्टोन या डायमंड लगे होते हैं.

कलर्ड डायमंड ज्वेलरी का क्रेज  चौकोर कट के अलावा दूसरा स्टाइल है पेव सेट डायमंड. इस स्टाइल में छोटेछोटे साइज के हीरों से पूरी डिजाइन भर दी जाती है. यदि आप को रंगीन स्टोन वाली ज्वेलरी पहनने का शौक है तो खुश हो जाइए, फैंसी कलर्ड डायमंड वाली ज्वेलरी आप ही  के लिए हैं. अब पारदर्शी डायमंड का जमाना गया और रंगबिरंगे हीरों ने उन की जगह ले ली है. गहरे नीले, चमकीले लाल, भूरे, औरेंज, गुलाबी, पीले, हरे रंगों के हीरे न सिर्फ दुर्लभहैं बल्कि महंगे भी हैं. इन रंगों में सब से लोकप्रिय और पसंदीदा रंग है पीला. कलर्ड डायमंड वाली यह ज्वेलरी दुलहनें अपने ब्राइडल लहंगे या साड़ी के रंग से मेलखाते रंगों में खरीद सकती हैं.

इन रंगबिरंगे हीरों को विभिन्न प्रकार के कट दिए जाते हैं, जिन में प्रमुख है एशर कट, कुशन कट, रेडिएंट कट, क्रिस कट, लिली कट आदि. नैकलेस के पैंडेंट की डिजाइन पर इस वर्ष डिजाइनर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं. हीरे या कीमती पत्थरों के बड़ेबड़े जड़ाऊ पैंडेंट कई लडि़यों वाले हैवी नैकलेस में जोड़े गए हैं. उत्कृष्ट कारीगरी व बोल्ड डिजाइन वाली यह भारी व बोल्ड ज्वेलरी पीढ़ी दर पीढ़ी पहनी जाती रहेगी. चौकोर शेप के अलावा हार्ट शेप या बटरफ्लाई डिजाइन वाले ब्रोच, पैंडेंट आदि भी चलन में हैं.

कान की बालियों का आकार भी इस बार छोटा हो गया है. बिलकुल कान से चिपकी हुई वाइट मेटल से बनी बालियां युवा लड़कियों और महिलाओं को भी खासी लुभा रही हैं. इस के साथ ही यह भी मानना होगा कि इस नए ट्रेंड ने बड़ेबड़े डैंगल इयररिंग्स और शैंडेलियर इयररिंग्स का क्रेज कम नहीं किया है और ब्राइडल ज्वेलरी में इन्हीं का बोलबाला है. पर्ल इयररिंग्स तो हैं ही सदाबहार.

चोकर हमेशा से ही महिलाओं का प्रिय आभूषण रहा है और फिलहाल इस के आउट औफ फैशन होने की कोई संभावना नहीं है. ये चोकर डबल और ट्रिपल लडि़यों वाले क्रिस्टल और पर्ल के कांबिनेशन में उपलब्ध हैं. हां, इस चोकर को ले कर ज्वेलरी डिजाइनरों ने नया एक्सपेरिमेंट यह किया है कि बड़े से क्रिस्टल ब्रोच को भी साटिन के रिबन या रेशमी धागे में पिरो कर चोकर का रूप दे दिया है. इस पैंडेट को इस के अतिरिक्त ब्रेसलेट, हैडबैंड आदि के रूप में भी पहना जा सकता है. चोकर के साथ मैचिंग इयररिंग्स या शैंडेलियर पहन कर उसे ग्लैमरस बनाया जा सकता है. रिसेप्शन के फंक्शन के लिए यह आइडियल ज्वेलरी पीस है.

टेनिस ब्रेसलेट का ट्रेंड

ब्रेसलेट्स ऐसी फैशन एक्सेसरी हैं जो हमेशा ट्रेंड में अंदरबाहर होती रहती हैं. फिलहाल ये फैशन में हैं. बड़ेबड़े ब्रेसलेट, कंगन आदि महिलाओं को खूब भा रहे हैं. स्वरोस्की क्रिस्टल हर सीजन में हौट हैं. युवतियों को टेनिस ब्रेसलेट खूब लुभा रहा है. बेहद सलीक और रंगबिरंगे डायमंड्स से सजे ये ब्रेसलेट्स आकर्षक शेप्स और डिजाइंस में बनाए गए हैं और पहनने पर बड़े स्मार्ट लगते हैं, जबकि चूडि़यों में इनैमल वर्क वाली पछेली डायमंड की चूडि़यां काफी लोकप्रिय हैं. ब्राइडल डायमंड ज्वेलरी की रेंज में डायमंड के साथ साउथ सी पर्ल, पन्ने और माणिक आदि का उपयोग किया जा रहा है. प्रीशियस स्टोन के साथ डायमंड की फ्यूजन ज्वेलरी इस साल का लैटेस्ट ट्रेंड है. यह ज्वेलरी न सिर्फ आप के खास मौके पर आप को खास बनाएगी बल्कि जीवन भर आप का साथ निभाएगी. आखिर ऐसे ही तो नहीं कहा जाता, गहने वही जो कशिश बढ़ाएं, जब तक रहें साथ.

स्टाइलिश शीयर फैब्रिक

जब गरमियां आने वाली हैं तो क्यों न फैब्रिक की बात की जाए. आप के दिमाग में कोई पतला या झीना कपड़ा ही आया होगा. लेकिन इस बार शीयर गारमैंट्स भी पसीने को कम करने में आप की सहायता करेंगे. शीयर कौटन के साथ ही मलमल, जार्जेट, लेस, नैट, शिफोन भी शीयर कैटेगरी यानी झीने और मुलायम कपड़ों की श्रेणी में आते हैं. शीयर कपड़े के टौप्स आज आसानी से देखे जा रहे हैं.

कवरअप

इसे लाइट ऐज एअर फैब्रिक कहा जा रहा है यानी ऐसा कपड़ा जो खूबसूरती से कवरअप के साथ ही हवा की तरह हलकेपन का एहसास भी बनाए रखे. शीयर ड्रैस को आप कौटन की शमीज के साथ भी ट्राई कर सकती हैं बशर्ते शमीज कुरती से थोड़ी लंबी हो. बस, इस के लिए रंगों का सही संयोजन बनाना होगा. इन्हें गहरे नीले रंग की जींस या चूड़ीदार के साथ ट्राई कीजिए. अगर आप ऐडवैंचर की शौकीन हैं तो बिकनी टौप के साथ भी शीयर टौप्स को अपना सकती हैं.

स्टाइल

हलका और उड़ने वाला कपड़ा होने की वजह से इस की स्लीव्ज को अलगअलग अंदाज में सिलवा सकती हैं. खासतौर पर गहरे या बोट नैक के साथ यह अच्छा लगता है. अपनी ड्रैस को और ज्यादा आकर्षक बनाने के लिए इस में बड़ा सा ब्रोच या बो भी लगाई जा सकती है.

रंग व डिजाइन

शीयर फैब्रिक सब से ज्यादा गहरे रंगों में अच्छी लगती है. हलके फ्लोरल, जिओमैट्रिक, पोल्का डाट्स भी इस में अच्छे लगते हैं. लेकिन बड़ेबड़े और गहरे प्रिंट्स से दूर रहें. हलकी कढ़ाई या पैच वर्क इस की खूबसूरती को और बढ़ाते हैं. यलो, पेस्टल, पिंक, मिंट, आयल ब्लू और पीच रंग में भी ये लुभाते हैं.

ध्यान रखें

शीयर कपड़ों के साथ नुकीली एक्सेसरीज न पहनें. अलमारी में रखते वक्त इन्हें बड़े पेपर में लपेट दें ताकि ये दूसरे कपड़ों से खराब न हों. इन्हें रगड़ने या ब्लीच की जरूरत नहीं होती.

जब खरीदें सनग्लासेज

सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणें न सिर्फ त्वचा को नुकसान पहुंचाती हैं, बल्कि आंखों पर भी बुरा असर डालती हैं. ऐसे में धूप का चश्मा इन हानिकारक किरणों से आंखों को सुरक्षित रखता है. मगर आप लोगों से पूछें कि उन्हें धूप के चश्मे की जरूरत क्यों पड़ती है, तो अधिकतर का जवाब होगा कि इसे वे सिर्फ फैशन ऐक्सैसरी के तौर पर इस्तेमाल करते हैं, क्योंकि इस से वे स्टाइलिश दिखते हैं. कुछ लोग यह भी कह सकते हैं कि वे तेज धूप से राहत के लिए इसे पहनते हैं और बहुत सारे लोग तो इस की जरूरत से ही इनकार कर देंगे. सिर्फ कुछ लोगों को यह जानकारी होगी कि धूप का चश्मा उन की आंखों की सूर्य की खतरनाक अल्ट्रावायलेट किरणों से रक्षा करता है.

आंखों की सुरक्षा

सूर्य की किरणों के लगातार संपर्क से मोतियाबिंद जैसी समस्याओं का संबंध भी है. आंखों में सनबर्न होने से फोटोकेराटाइटिस नामक बीमारी का खतरा भी बढ़ता है, यहां तक कि सूर्य की इन हानिकारक किरणों से कैंसर होने का भी खतरा रहता है. सूर्य की इन खतरनाक किरणों से त्वचा के बचाव के लिए तो काफी सतर्कता बरती जाती है, मगर आंखों के लिए भी सनस्क्रीन की जरूरत होती है, इस बारे में कोई बात नहीं करता है. जब भी हम धूप का चश्मा खरीदने जाते हैं तब क्या हम अपने दिमाग में यह बात रखते हैं कि धूप का चश्मा सिर्फ फैशन ऐक्सैसरी नहीं, बल्कि आंखों की सेहत की सुरक्षा का उपकरण भी है?

आंखों को भी चाहिए सनस्क्रीन

सूर्य की पराबैगनी किरणें न सिर्फ त्वचा को, बल्कि आंखों को भी नुकसान पहुंचाती हैं. लंबे समय तक इन के संपर्क से आंखों को स्थायी नुकसान भी हो सकता है. अल्ट्रावायलेट लाइट रेज जिसे यूवीए और यूवीबी कहते हैं, में रेटिना और कोर्निया को नुकसान पहुंचाने की क्षमता होती है. मगर भारत में जहां त्वचा के बचाव के लिए अधिकतर लोग सनस्क्रीनलोशन लगाना नहीं भूलते हैं, वहीं आंखों को सुरक्षित करने के बारे में कोई नहीं सोचता है. इतना ही नहीं, जो लोग धूप का चश्मा पहनते हैं वे भी इस बात पर गौर नहीं करते कि उन का चश्मा आंखों को सूर्य की खतरनाक किरणों से सुरक्षित कर भी सकता है अथवा नहीं.

चश्मा खरीदने से पहले

लोगों के बीच एक अन्य सब से बड़ा भ्रम यह भी है कि वे धूप के चश्मे को सिर्फ गरमी के मौसम की ऐक्सैसरी मानते हैं. मगर सर्दियों में धूप भले ही कम तेज होती हो, लेकिन अल्ट्रावायलेट किरणें हर मौसम में एकजैसी खतरनाक होती हैं. अत: हमें अपनी इस धारणा को बदलने की और इन डार्क ग्लासेज को अपनी आंखों का दोस्त समझने की जरूरत है. धूप का चश्मा खरीदते समय इस के स्वास्थ्य से जुड़े पहलुओं का भी ध्यान रखें ताकि आप का पैसा लगाना बेकार न जाए. चश्मा खरीदते समय यह जरूर जांच लें कि आप जो चश्मा खरीद रहे हैं उस से आप की आंखों को अल्ट्रावायलेट किरणों से सुरक्षा मिलेगी भी या नहीं. मौउ जिम कंपनी आंखों को खतरनाक अल्ट्रावायलेट किरणों से सुरक्षा देने वाले धूप के चश्मों का उत्पादन करती है. मौउ जिम की पैटेंटेड 9 लेयर वाली पोलराइज्ड प्लस 2 तकनीक अल्ट्रावायलेट किरणों से 100 फीसदी और चमक से 99.9 फीसदी सुरक्षा प्रदान करती है. मौउ जिम पहली ऐसी कंपनी है, जो अपने लैंस को बेहतर बनाने के लिए पृथ्वी के 3 रेयर तत्त्वों और अन्य कारकों का इस्तेमाल करती है.

मौउ जिम के धूप के चश्मे प्रैस्क्रिप्शन में भी उपलब्ध हैं ताकि वे लोग भी इन का लाभ उठा सकें, जिन्हें आंखों की रोशनी की समस्या हो. मौउ जिम के धूप के चश्मे के साथ वे बाहर निकलते समय आंखों की रोशनी के साथसाथ अल्ट्रावायलेट किरणों से सुरक्षा भी सुनिश्चित कर सकते हैं. तो देर किस बात की, आप भी अपनी पसंद का ऐसा धूप का चश्मा खरीदें, जो आंखों की सेहत के लिए भी उपयुक्त हो.       
 

-आई. रहमतुल्ला
प्रबंध निदेशक मौउ जिम, इंडिया

ग्लोइंग फेस

सुंदर चेहरा हर किसी को भाता है और चेहरे का ग्लो करना आप की पर्सनैलिटी पर काफी असर डालता है. यहां चेहरे पर चमक लाने के लिए कुछ उपाय बताए जा रहे हैं:

एंटीपोर्स पैक

1 छोटा टमाटर कद्दूकस कर लें. इस में 1 बड़ा चम्मच जौ का आटा व कुछ बूंदें नीबू के रस की मिलाएं. इसे फिर चेहरे पर लगाएं. 2 महीने तक हफ्ते में 1 दिन इस पैक को लगाएं. त्वचा में कसावट लाने के लिए 1 पके केले को मैश करें. उस में 2 बड़े चम्मच बेसन और 1 अंडे की सफेदी मिलाएं. चेहरे पर 15 मिनट तक लगा कर कुनकुने पानी से धो लें. हफ्ते में 1 बार यह पैक लगाएं.

स्किन टाइटनिंग पैक

1 आड़ू की गुठली निकाल कर मैश करें. इस में कुछ बूंदें औलिव आयल और 1 अंडे की सफेदी मिलाएं. इसे चेहरे पर 20 मिनट तक लगा कर रखें. कुनकुने पानी से धो लें.

1 आलू का रस, 2 बड़े चम्मच जौ का आटा, 1 छोटा चम्मच शहद और 1 अंडे की जर्दी को मिलाएं. कच्चे दूध से चेहरा साफ कर इस पैक को 10 मिनट तक चेहरे पर लगा कर रखें. ठंडे पानी से चेहरा धो लें. गुलाबजल में रुई के फाहे डुबो कर चेहरे पर लगाएं.

प्रोटीन पैक

1 बड़ा चम्मच उरद दाल रात भर भिगो कर रखें. सुबह उस का पेस्ट बना कर चेहरे पर लगाएं. आधे घंटे के बाद चेहरा धो लें. चेहरे को नमी व पोषण दोनों मिलेंगे और त्वचा ब्लीच भी हो जाएगी.

ऐंटीसनबर्न पैक

दूध और दही नेचुरल ऐंटीसनबर्न हैं. दोनों में से किसी एक में रुई को डुबो कर चेहरे पर 15 मिनट तक लगा कर रखें. चेहरे को ठंडे पानी से धो लें. 1 टुकड़ा पपीता, 1 बड़ा चम्मच दही और 2 चम्मच जौ के आटे को मिला कर चेहरे और गरदन पर लगाएं. 15 मिनट के बाद चेहरा धोने के बाद टोनर प्रयोग करें. गुलाबजल भी चेहरे पर लगा सकती हैं.

बेरी पैक

रसभरी और स्ट्राबेरी दोनों को बराबर मात्रा में ले कर दही के साथ मैश करें. चेहरे को क्लींजिंग मिल्क से साफ करने के बाद मिश्रण को लगाएं. आधे घंटे बाद चेहरा धो लें. इस पैक से चेहरे की मृत त्वचा निकल जाती है.

झुर्रियां हटाने के लिए पैक

1 खीरा मैश किया हुआ, 1 अंडे की सफेदी, 2 बड़े चम्मच मेयोनीज और 1 छोटा चम्मच औलिव आयल को एकसाथ मिला कर चेहरे को साफ कर लगाएं. 20 मिनट के बाद चेहरा धो लें. इस पैक को हफ्ते में 3-4 बार लगा सकती हैं. शहद, नीबू और वेजीटेबल आयल को मिला कर चेहरे पर 10 मिनट तक लगाएं और कुनकुने पानी से धो लें. यह रूखी त्वचा के लिए अच्छा पैक है. घर में फेशल करने के बाद इस पैक का प्रयोग करें.

आयल कंट्रोल पैक

सेब को कद्दूकस कर चेहरे पर लगाएं और 20 मिनट के बाद चेहरा ठंडे पानी से धो लें. तैलीय त्वचा के लिए लाभकारी है.

अल्फा हाइड्रोक्साइड पैक

चेहरे, गरदन, बांहों को कच्चे दूध से साफ कर इस को रुई के फाहे से लगाएं. 10 मिनट बाद त्वचा को धो लें.

सौंदर्य समस्याएं

मैं 20 वर्षीय अविवाहित युवती हूं. मेरी समस्या यह है कि मेरी पीठ में बहुत से स्ट्रैच मार्क्स हैं. मैं उन से कैसे नजात पा सकती हूं?

अगर आप के स्ट्रैच मार्क्स हलके हैं, तो उन के लिए आप उन पर गुलाबजल, नीबू और ग्लिसरीन मिला कर मसाज करें या मसाज क्रीम का इस्तेमाल करें. आजकल बाजार में ऐंटी स्ट्रैच मार्क्स या ऐंटी रैशेज के नाम से मसाज क्रीम उपलब्ध हैं. लेकिन अगर आप के स्ट्रैच मार्क्स ज्यादा गहरे हैं, तो उन के लिए आप को प्लास्टिक सर्जरी का औप्शन लेना पड़ेगा.

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मेरे चेहरे पर छोटेछोटे दाने निकल आए हैं. उन का समाधान बताएं?

चेहरे पर छोटे दाने डस्ट की ऐलर्जी, ड्राईनैस और चेहरे पर मसाज की कमी की वजह से होते हैं. उन से बचने के लिए प्रतिदिन चेहरे की बायो स्क्रब से क्लीनिंग करें और उस के बाद फेसपैक जरूर लगाएं. और अगर आप फेसवाश कर रही हैं तो मौइश्चराइजर जरूर लगाएं.

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मैं 36 वर्षीय हूं. मेरे माथे पर बहुत से पिंपल्स और डार्क स्पौट हैं. मैं उन के लिए लेजर ट्रीटमैंट करवाना चाहती हूं. क्या वह मेरे लिए सेफ रहेगा? उस का कोई साइड इफैक्ट तो नहीं होगा?

लेजर ट्रीटमैंट बालों से छुटकारा पाने के लिए किया जाता है न कि पिंपल्स या डार्क स्पौट्स की समस्या के लिए. आप उन के लिए चेहरे को रोजाना अच्छी तरह साफ करें और उन पर अच्छी क्वालिटी का क्रीम लगाएं. दागधब्बों से बचने के लिए आप अधिक तेलयुक्त भोजन से दूर रहें और हमेशा जैल वाले फेसवाश या जैल वाले सनस्क्रीन लोशन का इस्तेमाल करें. इस से राहत मिलेगी.

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मेरे फेस पर ब्लैकहैड्स हैं. उन्हें हटाने का घरेलू उपाय बताएं?

ब्लैकहैड्स को अच्छे से क्लीन करने के लिए आप को एक बार पार्लर जा कर उन्हें निकलवाना पड़ेगा. इस के बाद फेस की केयर के लिए आप रेड्यूसिंग लोशन को चेहरे पर सुबहशाम लगाएं. इसे लगाने से ब्लैकहैड्स निकलना बंद हो जाएंगे.

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मेरी पूरी बौडी स्किन बहुत डार्क है. मैं कई प्रोडक्ट यूज कर चुकी हूं, लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा. क्या मेरे लिए पूरी बौडी की वैक्सिंग कराना ठीक रहेगा? नहीं तो मुझे कोई और उपाय बताएं?

आप रोजाना स्क्रब वाला फेसवाश इस्तेमाल करें, साथ ही मूस वाला बौडी क्लीनर, जो आजकल फोम बेस वाला होता है, को स्पौंज में ले कर बौडी पर रगड़ें. इसे रोजाना करने से स्किन साफ हो जाएगी. इस के बाद बौडी लोशन लगाना न भूलें और जैसे आप नहाते वक्त साबुन का यूज करती हैं वैसे ही आप बौडी क्लीनर का इस्तेमाल करें.

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मेरी त्वचा औयली है और मेरे चेहरे पर पिंपल्स के दाग हैं. मैं क्या करूं, समझ नहीं आ रहा. कृपया आप कोई घरेलू उपाय बताएं.

आप नीबू के छिलके को चेहरे पर रगड़ें. ऐसा करना चेहरे से अतिरिक्त औयल को तो हटाएगा ही, आप की स्किन को साफ भी करेगा. इस के अलावा आप पानी में नीबू डाल कर सेवन करें और पानी ज्यादा से ज्यादा पीएं.

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मेरी समस्या यह है कि मेरे चेहरे पर बहुत बाल हैं. उन से कैसे छुटकारा मिल सकता है? कोई घरेलू उपाय बताएं?

आप जौ का आटा लें और उसे थोड़े पानी के साथ घोल बना लें. इस को चेहरे पर लेप की तरह लगाएं. सूख जाने पर इसे पानी की सहायता से रगड़ कर उतारें या मसाज कर के. इस से जो भी हलके बाल होंगे वे हट जाएंगे. अगर मोटे बाल हैं तो वे हारमोंस डिस्टर्बैंस की वजह से हैं. इस के लिए तुरंत डाक्टर से सलाह लें.

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मेरी बौडी, ब्रैस्ट और पीठ पर बहुत बाल हैं. मैं उन को कैसे रिमूव करूं बताएं?

आप इस के लिए वैक्सिंग करा सकती हैं. वैक्सिंग के बाद पैक लगाएं या फिर स्किन के अनुसार कोई ऐंटीसैप्टिक जरूर लगाएं. इस से वैक्सिंग के बाद दाने नहीं निकलेंगे. साथ ही वैक्सिंग के तुरंत बाद कोई सिंथैटिक कपड़ा न पहनें क्योंकि इस से भी दाने हो सकते हैं व लाल चकत्ते पड़ सकते हैं. सूती कपड़े ही पहनें. इस से राहत मिलेगी.

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मैं 25 वर्षीय हूं. मेरी समस्या सफेद बालों की है और मेरे बाल अधिक टूटते भी हैं. उन्हें काला करने और टूटने से बचाने का कोई उपाय बताएं. साथ ही मेरी अंडरआर्म्स रेजर का इस्तेमाल करने की वजह से काली हो गई हैं. कोई क्रीम या टिप बताएं, जिस से उन का रंग पहले जैसा हो जाए?

ऐसा लगता है कि आप के शरीर में प्रोटीन की कमी है. इस के लिए हैल्दी डाइट लें और विटामिन सी युक्त चीजें खाएं. उस में आंवले का इस्तेमाल जरूर करें. इस से बाल काले रहते हैं. सिर धोने के बाद कंडीशनर अप्लाई करें या फिर 8-10 दिन के अंदर एक बार हेयर स्पा बाहर या घर पर जरूर लें. ये चीजें बालों की मजबूती के लिए जरूरी हैं. घर से बाहर निकलते वक्त सिर को अच्छी तरह से कवर कर के ही जाएं. अंडरआर्म्स की टैनिंग के लिए उन पर नीबू का रस रगड़ें या फिर ब्लीच का इस्तेमाल कर सकती हैं. रोजाना बौडी लोशन का भी इस्तेमाल करें, सफाई रखें और दिन में कम से कम 2 बार गीले तौलिए से अंडरआर्म्स साफ करें. ऐसा करने से आप जल्द ही अंडरआर्म्स के ब्लैक रंग से छुटकारा पा सकेंगी.

समस्याओं के समाधान ब्यूटी ऐक्सपर्ट रेणू माहेश्वरी द्वारा दिए गए.

सुरवीन बनी सिंगर

बौलीवुड की सिंगर्स की लिस्ट में एक नया नाम और शामिल हो गया है. वे हैं प्रियंका, श्रुति हासन और आलिया के बाद सुरवीन चावला. अपनी पिछली दोनों फिल्मों में जम कर देह प्रदर्शन के बाद सुरवीन जल्द ही अपनी अपकमिंग फिल्मों के लिए गाना भी गाएंगी. इसीलिए हर सुबह वे गायन का रियाज करती हैं. सुरवीन फिलहाल मीत ब्रदर्स के साथ गाने की तैयारी कर रही हैं. मीत ब्रदर्स सुरवीन की आवाज से काफी प्रभावित हैं. वे कहते हैं कि गायकी के लिए उन का डैडिकेशन बहुत बढि़या है. उन की आवाज भी बहुत बढि़या है. हम जल्द ही एक चार्टबस्टर सौंग सब के सामने लाएंगे.

चलो कहीं घूम आएं…

याद कीजिए फिल्म ‘जिंदगी न मिलेगी दोबारा’ में रितिक, फहरान और अभय देओल के बैचलर ट्रिप को. इस ट्रिप ने रितिक उर्फ अर्जुन की जिंदगी बदल दी थी. हमेशा काम में फंसे रहने वाले अर्जुन को इस सफर ने जीने का नया नजरिया दिया. कुछ लोग काम के सिलसिले में घूमने निकलते हैं, कुछ रिलैक्स होने के लिए, तो कुछ रोमांच महसूस करने के लिए. मकसद जो भी हो, पर्यटन हमें रोजरोज की आपाधापी और तनाव भरी दिनचर्या से आजादी दे कर मन और शरीर को पुनर्जवां और तरोताजा बनाता है और अपनों के करीब आने का मौका देता है.

पर्यटन एक प्राकृतिक इलाज

आधुनिक समय में इंसान काम के बोझ से इस कदर दबा हुआ है कि उसे सांस लेने की भी फुरसत नहीं. ऐसे में पर्यटन आप को जिंदगी के तनावों और चिंताओं से दूर ला कर एक खुशनुमा माहौल देता है. आप की आंखें प्राकृतिक नजारों का आनंद लेती हैं, त्वचा को धूप का स्पर्श मिलता है. खुली हवा में सांस लेने से आप के लंग्स को ताजा हवा मिलती है. यह आप के दिल की सेहत के लिए भी अच्छा है. मैडिकल ऐक्सपर्ट्स दिल को स्वस्थ रखने के लिए 6 माह में एक बार लंबे ट्रिप पर जाने की सलाह देते हैं. रिसर्च बताते हैं कि पर्यटन ब्लडप्रैशर एवं कोलैस्ट्रौल घटाता है. दिल के लिए खतरनाक स्ट्रैस हारमोन, एपिनेफ्रीन के लैवल को कम करता है.

यात्रा के दौरान आप का अच्छाखासा शारीरिक व्यायाम भी हो जाता है. आप भले ही समुद्र किनारे घूम रहे हों, स्विमिंग कर रहे हों, किसी ऐतिहासिक शहर के स्मारकों को देख रहे हों या राइडिंग कर रहे हों, आप का शरीर ऐक्टिव रहता है. कहीं आप को सीढि़यां चढ़नी पड़ती हैं, तो कहीं बैग ढोने पड़ते हैं. ये सारी गतिविधियां कैलोरी बर्न करने के लिए मुफीद हैं. इस से स्टैमिना तो बढ़ता ही है, नींद भी अच्छी आती है और आप तरोताजा हो कर वापस लौटते हैं. एक स्टडी के मुताबिक जो महिलाएं 2 साल में एक बार से भी कम घूमने निकलती हैं, डिप्रैशन की ज्यादा शिकार होती हैं. जबकि साल में 2 बार पर्यटन करने वाली महिलाएं मानसिक रूप से स्वस्थ रहती हैं.

रिश्तों में नई जान

शादी के बाद नए युगल को हनीमून पर भेजने का रिवाज सदियों पुराना है. यह सफर उन्हें एकदूसरे के करीब आने और जिंदगी की जिम्मेदारियों को उठाने के लिए मन से तैयार करता है. शादी के बाद अकसर घरबाहर की दौड़भाग में हम दुनिया की सब से मूल्यवान पूंजी, प्यार के लिए वक्त नहीं निकाल पाते. रोमांस तो जीवन से गायब होता ही है, सैक्स भी रूटीन वर्क बन कर रह जाता है. ऐसे में हम रिश्तों को ऐंजौय नहीं करते. हमें लगने लगता है जैसे हम जिंदगी जी नहीं रहे वरन ढो रहे हैं. ऐसे में किसी खूबसूरत पर्यटन स्थल के लिए निकल कर हम रिश्ते में नई जान फूंक सकते हैं. एकदूसरे की बांहों में कुछ सुकून के पल गुजार सकते हैं. पर्यटन इस के लिए माहौल के साथ मौका भी देता है.

सोचिए, किसी सुहानी शाम को जब आप दोनों अकेले सागर किनारे बैठे हों, सूरज की किरणें धीरेधीरे सागर के दामन में समा रही हों, लहरें गुनगुना रही हों और रेशमी हवाओं की छुअन तनमन को प्यार के एहसास से सराबोर कर रही हो, तो क्या ऐसे में आप उन्हें आगोश में लेने को आतुर नहीं हो उठेंगे? यकीन कीजिए, इन पलों को भरपूर जीने के बाद आप खुद में अजीब सी ताजगी और ऊर्जा महसूस करेंगे. भले ही 10 दिनों के लिए ही आप घूमने गए हों पर उस की स्मृतियां महीनों मन को महकाती रहेंगी.

यंग, स्मार्ट और सैक्सी

बेलर कालेज औफ मैडिसिन, यूएसए की एक टीम ने गहन रिसर्च के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि छुट्टियों में टै्रवलिंग व्यक्ति को यंग महसूस करने में मदद करती है. वैज्ञानिक डेविड के मुताबिक, पहले कभी नहीं देखी हुई जगह की यात्रा करने से इंसान का मस्तिष्क एक अनोखे एहसास से भर उठता है. यह उसी तरह की खुशी होती है, जैसी एक बच्चे को कुछ नया हासिल करने के बाद होती है. घूमने के लिए आप ने कितना वक्त निकाला यह महत्त्वपूर्ण नहीं. आप भले ही 2 दिन के लिए जाएं, 10 दिन के लिए या 2 महीने के टूअर पर निकलें, सफर से लौटने पर आप का मन जवान और शरीर तरोताजा होगा.

सफर आप को स्मार्ट बनाता है. सफर के दौरान अलगअलग परिस्थितियों से निबटना, दौड़भाग करना आप को चुस्ती देता है. फिल्म ‘जिंदगी न मिलेगी दोबारा’ में जिस तरह रितिक, फरहान और अभय देओल ने अपने डर को दूर किया, वैसा कुछ आप भी कर सकते हैं. आप को जिस चीज से डर लगता है, वही करें. मसलन, स्विमिंग, राफ्टिंग, स्केटिंग, हौर्स राइडिंग, पहाड़ों पर चढ़ना, हवाई यात्रा या फिर सुरंगों और भूलभुलैया में भटकना. कुछ ऐसा आजमाइए कि आप के मन का डर भाग जाए. सफर के दौरान आप को काफी कुछ नया सीखने को मिलता है. आप नईनई जगहें जाते हैं, नए लोगों से मिलते हैं, उन से बातें करते हैं, उन की परंपरा, रीतिरिवाजों को समझते हैं. इस से जानकारी बढ़ती है. तरहतरह के फैशन से रूबरू होते हैं, जो अच्छा लगता है आप उसे आजमाते हैं. जायका बदलता है. आप खुली हवा में घूमते हैं, तरहतरह की चीजें खाते हैं. प्रकृति का स्पर्श आप की त्वचा को कांतिमय बनाता है तो मन की खुशी अंदर से चेहरे को चमक देती है.

खुद से एक मुलाकात

प्रकृति की गोद में, रम्य शांत वातावरण के बीच आप को खुद से मुलाकात करने का मौका मिलता है. कोई डैडलाइन नहीं, कोई मीटिंग, कोई घरेलू कामकाज नहीं. बस आप सुनते हैं अपने दिल की आवाज. आप अपने बारे में सोच सकते हैं, खुद को टटोल सकते हैं. जिंदगी के जिस मुकाम पर आज आप हैं उस से और बेहतर कैसे बनें, जिंदगी में यदि कुछ कमी है तो उसे कैसे पूरा करें, इन बातों का विश्लेषण करने और अपने अंदर झांकने का पर्यटन से अच्छा कोई बहाना नहीं हो सकता. फिर जब आप घूम कर वापस रोजमर्रा की जिंदगी में लौटते हैं तो आप के मन में कोई कन्फ्यूजन नहीं रहता.

नया नजरिया

पर्यटन हमें सोचने का नया नजरिया और जीने के नए आयाम देता है. जब आप रूटीन वर्क, ट्विटर, फेसबुक वगैरह से दूर कहीं पर्यटन के लिए निकलते हैं, तो रिश्तों में नया जुड़ाव आता है. यही नहीं, जब आप किसी खूबसूरत शहर में घूमने के खयाल से निकलते हैं, तो आप की आंखों के आगे उन लोगों के जीवन की हकीकत भी आती है, जिन के पास रहने को घर नहीं, खानेपहनने को भोजन और कपड़े नहीं. तब आप को इस बात का एहसास होता है कि जो आप के पास है, कितना जरूरी है और नाहक ही छोटीछोटी बातों को ले कर आप तनाव में रहते हैं.

इसी तरह 24 घंटे घर या औफिस के बंद कमरे में बैठ कर आप को नए आइडियाज नहीं आ सकते. प्राकृतिक सुंदरता से सराबोर जगह जब आप घूमने जाते हैं तो वहां के खुले वातावरण में आप के दिमाग में नए विचार खुदबखुद आने लगते हैं. आप का दिमाग खुलता है और वहां से लौट कर भी आप स्वयं को ज्यादा क्रिएटिव और ऊर्जा से भरपूर महसूस करते हैं.

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