मोटापे से नहीं कमैंट से डर लगता है

भारी वजन वाली और गोलमटोल महिलाओं को आजकल मोटी, भैंस, कद्दू, हैवी बम, गोलगप्पा, डबलरोटी, ट्रक, बुलडोजर, टैंकर, टैडीबीयर, थुलथुल, ड्रम या फिर भरी हुई बोरी आदि शब्दों से पुकारना एक चलन जैसा बन गया है. पर ऐसा नहीं है कि इन शब्दों का प्रयोग सिर्फ पुरुष ही महिलाओं के लिए करते हों, आजकल तो महिलाएं भी एकदूसरे के लिए इन शब्दों का इस्तेमाल करने से नहीं हिचकतीं. इन शब्दों में मोटी कहना तो जैसे एक जुमला ही बन गया है. कोई अगर पतली हो तो भी ‘मोटी सुन’ और अगर मोटी है, तो ‘ऐ मोटी सुन’ कहना आम हो गया है. इस तरह का प्रयोग सुनने में अच्छा और मजाकिया तो लगता ही है और शायद उस मोटी ने, जिस से कहा गया, इसे सीरियसली लिया भी न हो पर कभीकभी ये 2 शब्द उसे बड़े चुभते हैं और उस की सब के सामने इंसल्ट हो जाती है.

आजकल महिलाओं का लाइफस्टाइल काफी बदला है. जैसे वर्किंग महिलाएं औफिस पहुंचने की जल्दी में बे्रकफास्ट छोड़ देती हैं और उस कारण हैवी लंच लेती हैं. उन्हें लगता है उन्होंने पूरी डाइट ले ली. पर क्या उन्हें पता है कि इस तरह का लाइफस्टाइल आप का मोटापा बढ़ा रहा है?

आखिर किन परिस्थितियों में उन्हें अपने मोटापे का एहसास होता है, आइए जानें:

यहां कोई पतला ही बैठ सकता है

सुबह समय से औफिस पहुंचने की जल्दी सभी को होती है. ऐसे में सवारी गाड़ी में सीट काफी भागदौड़ और धक्कामुक्की के बाद ही मिलती है.

कंचन एक दिन ऐसी ही धक्कामुक्की में फंसी हुई थी. वह असल में उस दिन थोड़ी देर से घर से निकली थी. देर से निकलने पर सवारी गाडि़यों के लिए बड़ी मारामारी हो जाती है. खैर, जैसे ही कंचन एक आरटीवी में चढ़ने वाली थी कि कंडक्टर ने उस से कहा, ‘‘मैडम, आप नहीं आ सकतीं.’’

कंचन को यह बात समझ में नहीं आई पर वह धक्का मारते हुए चढ़ गई. कंडक्टर ने फिर उस से कहा, ‘‘आप से मना किया था न कि आप नहीं आ सकतीं. यहां पर कोई पतला ही बैठ सकता है.’’

यह सुनते ही कंचन आरटीवी से उतर गई पर वह बहुत उदास हो गई, क्योंकि उसे मोटे होने का एहसास पहली बार हुआ था. उस दिन परेशान हो कर वह औफिस भी नहीं जा पाई.

मोटी से शादी, न बाबा न…

फिल्म ‘हीरो नंबर 1’ के एक सीन में कादर खान अपने बेटे गोविंदा को एक लड़की की तसवीर भेजता है और कहता है कि तू फोटो देख ले, तुझे इसी से शादी करनी होगी. गोविंदा जैसे ही वह तसवीर देखता है चौंक जाता है, क्योंकि वह एक मोटी लड़की की होती है. उसे देखते ही गोविंदा नाराज होते हुए कहता है कि मर जाऊंगा पर इस लड़की से शादी नहीं करूंगा. असल जिंदगी में भी भारी वजन वाली लड़कियों के रिश्ते आसानी से नहीं होते. गोलमटोल, हट्टीकट्टी लड़कियों को शादी के लिए काफी समझौते करने पड़ते हैं.

रिश्तेदार के सामने कही गई मोटी

30 साल की अर्चना की शादी 3 साल पहले हुई थी. शादी में सब कुछ ठीक चल रहा था. लेकिन कभीकभी लड़ाई या नोकझोंक होने पर उस का पति विनोद उस को मोटी कह देता था. हद तो तब हो गई जब यह शब्द विनोद ने किसी रिश्तेदार के सामने कह डाला. अर्चना को विनोद द्वारा कहे जाने वाले इस शब्द से अब तक बुरा नहीं लगा था पर किसी और के सामने कहे गए उसी शब्द ने अर्चना का कई दिन तक मुंह फुलाए रखा.

फोटो पर कमैंट ने दिखाई हकीकत…

रूही ने अपने दोस्तों के साथ खींचे कई फोटो फेसबुक पर अपलोड किए. फोटो अपलोड करने के कुछ देर बाद ही ढेरों लाइक्स की बौछारें शुरू हो गईं और कमैंट्स भी आने लगे. एक कमैंट में उसी के दोस्त ने उसे ट्रक की संज्ञा दी तो रूही को यह बात बहुत चुभी, क्योंकि वह अपने मोटापे को अब तक बुरा नहीं मानती थी. पर इस तरह के कमैंट ने उसे मोटा होना फील करा दिया.

खबरें कुछ बी टाउन की

एक जमाना था जब सिर्फ भारी वजन की तारिकाओं का ही बोलबाला था, क्योंकि तब वे जीरो साइज फिगर या किसी डाइटीशियन को फौलो नहीं करती थीं. वे बड़ी बेबाक और दमदार ऐक्टिंग के जलवे बिखेरतीं बड़े परदे पर दिखती थीं और खूब शोहरत बटोरती थीं, क्योंकि उन के फैंस की कमी न थी. नई पीढ़ी के कलाकारों में लोलो यानी करीना कपूर ने जीरो फिगर दिखा कर जहां सब को चकित किया, वहीं जीरो साइज के दीवाने भी बहुत हुए. तब तो जैसे हर अदाकारा या युवती अपनी फिगर को ले कर सजग दिखने लगी. फिर तो तमाम लड़कियां अपना ज्यादातर समय जिम में बिताने लगीं. अब भी कुछ अदाकारा और युवतियां इस ओर फोकस कर रही हैं, फिर भी अगर देखें तो मोटापा एक बार फिर परदे पर छाने लगा है.

सोनाक्षी सिन्हा

सोनाक्षी सिन्हा तो जैसे बी टाउन की नं. 1 मोटी हीरोइन बन कर उभरी हैं. सोनाक्षी के हर इंटरव्यू में उन की फिगर से जुड़ा सवाल तो जरूर होता है. हालांकि वे कभी भी इस बात का विरोध नहीं करतीं, बल्कि शालीन तरीके से सभी सवालों के जवाब देती हैं. हाल ही में सोनाक्षी ने इंस्टाग्राम पर अपना एक फोटो पोस्ट किया और पूछा कि मैं क्या अब कंकाल बन जाऊं? देखा जाए तो सोनाक्षी को अपनी फिगर से कोई प्रौब्लम नहीं है. वे लगातार फिल्मों में दिख रही हैं और उन की फिल्में लगातार हिट भी हो रही हैं. सोनाक्षी का कहना है कि जब देखने वाले मुझे पसंद कर रहे हैं, तो कहने वालों से फर्क नहीं पड़ता.

परिणीति चोपड़ा

परिणीति अपनी पहली फिल्म ‘रिकी वर्सेस रिकी बहल’ में मोटी तो थीं ही उन्हें खातीपीती लड़की का रोल भी मिला, उन की छवि का आकलन इस तरह से भी किया जाता है. परिणीति मानती हैं कि उन से खाने पर कंट्रोल नहीं होता. कुछ समय पहले अपनी फिल्म ‘किल दिल’ के प्रमोशन के दौरान ‘कौमेडी नाइट्स विद कपिल’ में उन के कोस्टार रणवीर सिंह ने उन की पोल खोली कि ये पिज्जा खाने की दीवानी हैं. इस से इन का वजन बढ़ भी जाए तो इन्हें फर्क नहीं पड़ता. ये हमेशा अपने चुलबुले अंदाज में कहती आ रही हैं कि ऐक्टिंग देखिए, मोटापा नहीं.

विद्या बालन

बी टाउन में मोटापे की शुरुआत देखी जाए तो विद्या बालन ने की. विद्या का बोल्ड रूप और मोटापा उन की फिल्म ‘डर्टी पिक्चर’ में सिल्क के किरदार में नजर आया. हालांकि विद्या का रूप भले ही उन के फैंस ने पसंद किया हो पर मीडिया ने उन पर उन की पर्सनैलिटी से जुड़े तमाम तरह के सवालों की बौछार कर डाली.

हुमा कुरैशी

हुमा कुरैशी की भी फिगर सोनाक्षी, विद्या की तरह ही भारीभरकम है. वे भी शुरू से ही भारी वजन की ऐक्ट्रैस रही हैं. इन की भी ऐक्टिंग और मोटापे के खूब चर्चे हैं. इन से भी इंटरव्यू में इन की फिगर से संबंधित तमाम सवाल पूछे जाते रहे हैं.

साउथ की फिल्मों में मोटापा

साउथ की फिल्मों में तो बस आप को मोटी हीरोइनें ही दिखेंगी. हीरो भी अधिकतर मोटे होते हैं. वहां शायद ऐक्टिंग को ज्यादा महत्त्व दिया जाता है, मोटापे को नहीं. बी टाउन की विद्या बालन, माही गिल, सोनाक्षी सिन्हा, परिणीति चोपड़ा, हुमा कुरैशी आदि भी ऐसी हीरोइनों में शुमार हैं, जो सिर्फ अपनी ऐक्टिंग को तवज्जो देती हैं, अपनी फिगर को नहीं. ऐसा करना उन सभी के लिए एक करारा जवाब भी है, जो हीरोइन को स्लिमट्रिम देखना चाहते हैं. पुरानी फिल्मों में भी हम देखेंगे तो पाएंगे कि ज्यादातर हीरोइनें जैसे वैजयंतीमाला, माला सिन्हा, हेमा मालिनी, मुमताज, गीता बाली, विद्या सिन्हा वगैरह मोटी थीं. पर उन पर कभी भी किसी ने कोई टिप्पणी नहीं की. उन की भी तब ऐक्टिंग ही देखी जाती थी.

बदलें लाइफस्टाइल

अगर आप स्लिमट्रिम बनना चाहती हैं तो कुछ बातों पर ध्यान दे कर अपनर लाइफस्टाइल बदलें. फूड: जो महिलाएं आजकल कामकाजी हैं वे जल्दी औफिस आने के चलते बे्रकफास्ट स्किप करने लगी हैं और उसी के चलते वे हैवी लंच कर लेती हैं, जो मोटापे को बढ़ावा देता है. आप की बौडी में कैलोरी की कमी भी न हो और कैलोरी ज्यादा भी न पहुंचे, इस के लिए आप डाइटीशियन से सलाह लें. सही व उचित डाइट चार्ट के जरीए आप उसे फौलो कर आइडियल फिगर पा सकती हैं.

ऐक्सरसाइज: वर्किंग होने के चलते आजकल की महिलाओं के पास टाइम की कमी है. हालांकि वे पार्लर में तो फेशियल या स्पा लेने के लिए घंटों बैठ सकती हैं पर अपने वजन को कंट्रोल में करने के लिए आधा घंटा नहीं दे सकतीं. रोजाना ऐक्सरसाइज करना बेहद जरूरी है. ऐसा कर आप अपनी सारी परेशानियों से नजात पा सकेंगी. फिटनैस ऐक्सपर्ट से सलाह लें और अपने वजन पर कंट्रोल करें.

ड्रैसेज: मोटी या भारी वजन की महिलाओं को फिट कपड़े पहनने से बचना चाहिए. कुछ महिलाएं फैशन में इतना डूब जाती हैं कि अपनी फिगर को नहीं देखतीं. वे ऐसे कपड़े पहन लेती हैं, जिस से मजाक का पात्र बनती हैं. ऐसा न करें, बल्कि डार्क टोन के कपड़े पहनने से फिगर कुछ हद तक कम दिखती है.

टारगेट: अपने वजन को कम रखने का टारगेट बनाएं लेकिन यह सोच कर इतनी ऐक्सरसाइज न करें कि एक दिन में ही वजन कम हो जाएगा. अपनी वेस्ट और पेट का माप लें और उस के हिसाब से ऐक्सरसाइज पर ध्यान दें. गलत ऐक्सरसाइज भी न करें. इस से शरीर पर गलत प्रभाव पड़ेगा. ऐक्सपर्ट की राय लें. रोजाना आप का एक स्टैप आप को फिट बना देगा.

डाक्टर की सलाह

मोटापा कम करने के लिए सब से पहले क्वांटिटी का जरूर खयाल रखें ताकि आप ओवरईटिंग न करें.

मीठा खाने से बचें. जैसे चीनी, आइसक्रीम, केक, पुडिंग आदि.

हो सके तो सौफ्ट ड्रिंक का सेवन भी कम करें या बंद कर दें.

तली हुई चीजें जैसे पकौड़े, परांठे, पूरीकचौड़ी, पापड़ आदि बंद करें.

हमेशा बैलेंस्ड डाइट ही लें.

ऐक्सरसाइज करना बेहद जरूरी है. सप्ताह में 5-6 दिन रोजाना 1 घंटा वाकिंग, साइक्लिंग, अपने अनुसार करें.

मोटापे से होने वाली परेशानियां हैं, ब्लडप्रैशर का बढ़ना, ब्लड शुगर का लैवल हाई होना, कोलैस्ट्रौल प्रौब्लम, हार्ट प्रौब्लम और जौइंट्स में होने वाला पेन आदि.

कैलोरी का कोई उचित मापदंड नहीं है, क्योंकि बौडी के अनुसार यह सब का अलगअलग होता है. लेकिन फिर भी करीब 1,500 से 1,800 कैलोरी स्त्रीपुरुष दोनों के लिए दिन भर में बहुत है.

– डा. शीला कृष्णा स्वामी

डाइट ऐंड न्यूट्रीशियन कंसल्टैंट, नोवा हौस्पिटल, बैंगलुरु.

महके कोना कोना

घर को महकाने का चलन बेहद पुराना है. होम फ्रैगरेंस का इस्तेमाल इसलिए किया जाता है ताकि घर से निकलने वाली अन्य तरह की दुर्गंध को कम किया जा सके. फ्रेश खुशबू वाला घर हमेशा स्वच्छता का एहसास दिलाता है. यही कारण है कि लोग अपने घरों को मनपसंद खुशबू से महकाना पसंद करते हैं. बाजार में अनेक तरह के होम फ्रैगरेंस मौजूद हैं, जिन में से आप अपनी सुविधा व पसंद के मुताबिक चुनाव कर अपने घर को महका सकते हैं. रूम फ्रैगरेंस को कई कैटेगरियों व खुशबुओं में बांटा गया है. सैशे, पौटपोरी, सेंट आयल, एअर फ्रैशनर्स, रूम स्प्रे, परफ्यूम डिस्पेंसर, अरोमा लैंप, प्लग इन, सेंटेड कैंडल्स आदि.

होम फ्रैगरेंस प्रोडक्ट्स बनाने वाली डेल्टा एक्सपर्ट्स कंपनी की डिजाइनर आरती का कहना है कि घर में इस्तेमाल की जाने वाली प्राकृतिक व अप्राकृतिक खुशबुएं कई तरह की होती हैं, कई खुशबूदार तेलों को मिला कर भी विशेष तरह की महक तैयार की जाती है. जैसे रोज और जैसमीन को मिला कर स्पेशल मूड क्रिएट किया जाता है. इन्हें आप कैंडल, अगरबत्ती, एअर स्प्रे, होम स्प्रे आदि के रूप में बाजार से खरीद सकते हैं. ये अधिक महंगे भी नहीं होते हैं. आरती के अनुसार फ्रैगरेंस की कई कैटेगरियां होती हैं जैसे फ्रूट्स कैटेगरी में जहां वैनिला, स्ट्राबेरी, चौकलेट आदि फ्रैगरेंस आते हैं, वहीं फ्लोरल कैटेगरी में इंडियन स्पाइस, जैसमीन, रोज, लैवेंडर आदि.

अपनी पसंद के मुताबिक लोग विभिन्न तरह के फ्रैगरेंस को अपने घर में इस्तेमाल करते हैं. बाथरूम की बात की जाए तो यहां अधिकतर लेमनग्रास फ्रैगरेंस का इस्तेमाल किया जाता है. फाइवस्टार होटल हो या अन्य कोई होटल, हर जगह इन फ्रैगरेंसेस का इस्तेमाल किया जाता है. होम फ्रैगरेंसेस के प्रति बढ़ती रुचि के कारण ही इस का बाजार दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा है.

होम फ्रैगरेंस अगरबत्तियां

खुशबू के लिए अगरबत्ती का इस्तेमाल नया नहीं है. हां, इतना जरूर कहा जा सकता है कि पहले जहां अगरबत्तियां कुछ गिनीचुनी खुशबुओं में ही उपलब्ध थीं वहीं आज ये अनगिनत खुशबुओं में मिलती हैं. पुराने समय में अगरबत्ती व इस के धुएं को मेडिसिन के रूप में इस्तेमाल किया जाता था. अगरबत्तियां एक बेहतरीन होम फ्रैगरेंस के तौर पर भी सदा से इस्तेमाल की जाती हैं. अगरबत्तियां कई तरह की खुशबूदार लकडि़यों, जड़ीबूटियों, खुशबूदार आयल, गरममसाला, जैसमीन, पचोली (भारत का एक सुगंध देने वाला पौधा), संडलवुड, गुलाब, देवदार आदि प्राकृतिक खुशबुओं से तैयार की जाती हैं. इन्हें नेचुरल फ्रैगरेंसेस कहा जाता है, जबकि इन्हें आर्टिफिशल खुशबुओं जैसे स्ट्राबेरी, भांग व अफीम के पौधे आदि से भी तैयार किया जाता है. अगरबत्तियां 2 प्रकार की होती हैं- डायरेक्ट बर्न और इनडायरेक्ट बर्न. जैसा कि नाम से ही जाहिर है, डायरेक्ट बर्न अगरबत्ती स्टिक को सीधे जला दिया जाता है और वह लंबे समय तक सुलग कर वातावरण को महकाए रखती है, जबकि इनडायरेक्ट बर्न अगरबत्ती में फ्रैगरेंस मैटेरियल को किसी मैटल की हौट प्लेट या आंच आदि पर रखा जाता है, जिस से वह गरम हो कर घर को महक ाती रहती है. यह स्टिक फार्म में न हो कर मैटेरियल फार्म में होती है.

अगरबत्तियां कई आकारों में मिलती हैं जैसे स्टिक, धूप, पाउडर आदि. इन के प्रयोग से आप कम खर्च में घर को महका सकते हैं. इन की खुशबू से मक्खियां व मच्छर भी दूर रहते हैं.

फ्रैगरेंस कैंडल्स

आप के घर में सजी डिजाइनर फ्रैगरेंस कैंडल देख कर कोई भी आसानी से यह अंदाजा नहीं लगा सकता कि आप के घर से आने वाली भीनीभीनी खुशबू में इस आकर्षक कैंडल का हाथ है. आज बाजार में इतने यूनीक डिजाइनों, रंगों व खुशबुओं में फ्रैगरेंस कैंडल्स मौजूद हैं कि हर किसी पर दिल आ जाए. डिजाइनर अरोमा लैंप को आप अपने घर में कहीं भी रखें, यह अपना काम बखूबी करेगा. एक विशेष तरह के बने इस लैंप में पानी की कुछ बूंदों में आरोमा आयल डाल दिया जाता है, जिस से घर लंबे समय तक महकता रहता है. ये बेहद आकर्षक होते हैं.

रीड डिफ्यूजर

रीड डिफ्यूजर के बारे में अभी भारत में कम लोग ही जानते हैं लेकिन यह तेजी से लोगों की पसंद बन रहा है. रीड डिफ्यूजर फ्रैगरेंस कैंडल का अच्छा विकल्प है. इस में नैचुरल व सिंथेटिक दोनों तरह के आयल्स का इस्तेमाल किया जाता है. यह खुशबू को कमरे की हवा में अच्छी तरह घोल कर लंबे समय तक घर को महकाता है. इसे अगरबत्ती या फ्रैगरेंस कैंडल्स की तरह समयसमय पर जलाने की जरूरत नहीं होती. यह अनेक तरह की खुशबुओं, शेप्स व साइजों में बाजार में उपलब्ध है, जो एक सुरक्षित तरीके से आप के घर को खुशबूदार बनाता है. रीड डिफ्यूजर में आप को बोतल या कंटेनर, सैंटेड आयल व रीड्स मिलती हैं. बोतल या कंटेनर में आयल को भर दिया जाता है व इस में एक रीड स्टिक डाल दी जाती है और बस, आप का पूरा घर महक जाता है, मस्ती भरी खुशबू के साथ.

कई लोग सोचते होंगे कि इस रीड डिफ्यूजर को घर में किस जगह पर रखा जाए तो कई लोग इसे किचन, बाथरूम, लिविंगरूम, ड्राइंगरूम या बेडरूम में रखना पसंद करते हैं तो कई इसे अपने आफिस आदि में भी रखते हैं ताकि काम करते समय एम्लाई रिलैक्स व शांति महसूस करें. यह नर्सिंगहोम्स, स्पा और ब्यूटी शौप्स आदि में भी इस्तेमाल किया जाता है. यह कई साइजों में मिलता है. आप अपने कमरे के आकार व जरूरत के मुताबिक इसे खरीद सकते हैं.

कैंडल वार्मर्स

कैंडल वार्मर मोम को गरम करता है और इस पिघले हुए मोम से निकलने वाली खुशबू से सारा घर महक जाता है. इस कैंडल को जलाने की जरूरत नहीं होती, बल्कि धीरेधीरे पिघलने वाले मोम से निकलने वाली खुशबू लंबे समय तक घर को महकाती है. यह उन लोगों के लिए अच्छा विकल्प है, जो सैंटेड कैंडल को बिना जलाए उस की महक पाना चाहते हैं. एअर फ्रैशनर्स स्प्रे को आप आसानी से इस्तेमाल कर सकती हैं. यह हवा को महकाता है और घर में आने वाली अन्य दुर्गंधों को प्रभावहीन बनाता है. एअर फ्रैशनर्स स्प्रे एक छोटी सी खूबसूरत कैन में उपलब्ध होते हैं जिन्हें प्रयोग में न आने पर आसानी से स्टोर भी किया जा सकता है. छोटे कैंस को आप दीवार पर भी लगा सकते हैं, जिन में लगे एक बटन को पुश कर के आप घर को जब चाहे महका सकते हैं. इस के अलावा फ्रैगरेंस स्टिक भी मिलती है जिसे आप सफाई करते समय वैक्यूम क्लीनर बैग में रख सकते हैं. इस से आप के घर का कोनाकोना महक उठेगा व स्वच्छता का एहसास दिलाएगा. ये फ्रैगरेंस स्प्रे कैंस अनेक सुंदर डिजाइनों में उपलब्ध हैं.

फ्रैगरेंस पोटपोरी

फ्रैगरेंस पोटपोरी का इस्तेमाल कर आप प्राकृतिक तौर पर अपने घरआंगन को महका सकते हैं. प्राकृतिक खुशबूदार सूखे हुए पौधों के भागों व अन्य फ्रैगरेंस सामग्री को लकड़ी या सिरेमिक के बने डेकोरेटिव बाउल या फिर बारीक कपड़े के थैले में संजोया जाता है. ये बाजार में कई आकर्षक पैकेटों में मिलते हैं. इन से निकलने वाली धीमीधीमी खुशबू हवा के साथ घर के कोनेकोने में भर जाती है. अगर आप बाजार में मिलने वाले होम फै्रगरेंस का इस्तेमाल नहीं करना चाहते तो घर पर भी होम फ्रैगरेंस बना सकते हैं. किसी मिट्टी या सिरेमिक के पौट में पानी भर कर उस में ताजे गुलाब की पंखुडि़यां डाल दें. चाहें तो इस में खुशबूदार आयल की कुछ बूंदें भी मिला दें. इसे आप सेंटर या साइड टेबल के बीचोंबीच सजा कर रख दें. इसे घर की खिड़की या दरवाजे पर भी टांगा जा सकता है. हवा के साथ इस की महक पूरे घर में फैल जाएगी और यह होम फ्रैगरेंस का काम करेगा.

पैक्ड फूड आंख मूंद न खाएं

रैडी टु ईट या कहिए पैक्ड फूड आज की फास्ट लाइफ में घरघर दस्तक दे चुका है. कहीं समय न मिलने की मजबूरी तो कहीं इस के बेहतरीन स्वाद ने लोगों को इस का दीवाना बना दिया है. पैक्ड फूड में खानेपीने की चीजों की लंबी सूची है. इसे बनाने के लिए न तो घंटों किचन में खड़े होने की जरूरत है और न ही पसीना बहाने की. बस पैकेट या ढक्कन खोलो और खा या पी लो. यह इन तैयार पैकेटों का ही कमाल है कि खाने में बेहतरीन स्वाद लाने के लिए अब मसालों को कूटनेपीसने की जरूरत नहीं पड़ती. आज हर मसाले का पेस्ट बाजार में उपलब्ध है. पर क्या ये खाद्यपदार्थ हमारे स्वास्थ्य के लिहाज से भी उतने ही सुरक्षित हैं जितने कि बनाने की सहूलत के मामले में?

इस संबंध में केसर के सीईओ अमन सहगल बताते हैं कि बेशक रैडी टु ईट फूड या पैक्ड फूड खाने में कितना भी सुरक्षित क्यों न हो, लेकिन घर के बने ताजा खाने की कभी बराबरी नहीं कर सकता. न ही पैक्ड फूड को कंप्लीट डाइट के तौर पर लिया जा सकता है. वजह इसे आकर्षक बनाने के लिए इस में मिलाए गए आर्टिफिशियल कलर और प्रिजर्वेटिव के कारण कई बीमारियां होने की संभावना रहती है. जैसे, पेट में गैस बनने की समस्या, पाचनतंत्र से जुड़ी समस्या आदि. साथ ही प्रोसैसिंग के दौरान खाद्यपदार्थ से काफी सारे पौष्टिक तत्त्व निकल जाते हैं. अत: जब कभी रैडी टु ईट फूड लेना पड़े तो सब से पहले फूड लैवल में लिखित निम्न बातों को ध्यान से पढ़ना न भूलें:

खानेपीने की आइटम खरीदते समय सब से पहले डब्बे या पैकेट पर छपी सूचना को पढ़ना न भूलें. इस जानकारी का आप के स्वास्थ्य के साथ चोलीदामन का साथ होता है.

उसी खाद्यपदार्थ को तरजीह दें, जिस के बारे में विस्तृत सूचना दी गई हो. इस जानकारी के तहत प्रोडक्ट के उत्पादन व ऐक्सपायरी डेट के अलावा प्रोडक्ट में प्रयुक्त किए जाने वाली सामग्री, उस में मौजूद न्यूट्रिशनल वैल्यू व प्रयोग करने के संबंध में लिखा होता है.

बिना लैवल का कोई भी खाद्यपदार्थ न खरीदें. ऐसा फूड आप के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकता है.

जब भी खानेपीने का डब्बाबंद चीज खरीदें तो हमेशा नामी ब्रैंड को ही तरजीह दें. वजह ब्रैंडेड कंपनी कभी अपनी गुणवत्ता से समझौता नहीं करती.

नूडल्स, बिस्कुट, रस, ब्रैड जैसी आइटम्स मैदे से बनी के बजाय आटे से बनी चीजों को प्राथमिकता दें.

पेयपदार्थ चाहे जूस हो अथवा कोल्ड ड्रिंक एक बार कैप खोलने के बाद ज्यादा दिन तक फ्रिज में स्टोर न करें.

कुछ फूड आइटम्स प्रोटीनयुक्त होती हैं तो कुछ फाइबरयुक्त. इन्हें किसी भी समय लिया जा सकता है और इन से कोई हानि भी नहीं होती है. फाइबरयुक्त खाद्यपदार्थ डिटौक्सीफिकेशन करने में मदद करते हैं. इन्हें किसी भी उम्र का व्यक्ति ले सकता है.

फैट, शुगर और साल्ट के कई नाम और प्रकार होते हैं. डायबिटीज, हृदय रोग और मोटापे के मरीजों के लिए जरूरी है कि इन की सही जानकारी रखें.

तत्त्वों की सूची में पहले स्थान पर मौजूद तत्त्व अनुपात में सब से ज्यादा होता है.

फैट, कोलैस्ट्रौल, सोडियम या साल्ट को सीमित मात्रा में ही लें. सूची में पहले या दूसरे स्थान पर होने पर इन का सेवन न करें.

100 ग्राम फूड आइटम में फैट की मात्रा 10 ग्राम से कम होनी चाहिए. 3 ग्राम फैट या उस से कम हो तो उसे लो फैट माना जाता है.

प्रत्येक सर्विंग में 140 एमजी से कम नमक होना चाहिए.

शुगर की मात्रा पर नजर रखें. शुगर और स्टार्च के रूप में कार्बोहाइड्रेट्स की कुल मात्रा देखें.

जिस खाद्यपदार्थ में फाइबर की मात्रा ज्यादा हो उसी को वरीयता दें. प्रति 100 ग्राम में 3 ग्राम से ज्यादा फाइबर होना चाहिए.

कई फूड आइटम्स में लो कोलैस्ट्रौल या कोलैस्ट्रौल फ्री लिखा होता है, लेकिन इस की जगह सैचुरेटेड फैट ज्यादा हो सकता है.

इसी तरह से लो शुगर या नो शुगर की जगह फू्रक्टोज, डैक्स्ट्रोज जैसे दूसरे तत्त्व हो सकते हैं.

कम फैट के चक्कर में न पड़ें, क्योंकि वास्तविकता और दावों में फर्क हो सकता है.

मुर्ग की रसीद

सामग्री

4 चिकन लेग पीस

8 से 10 कलियां लहसुन

1 छोटा चम्मच नीबू का रस

1 बड़ा चम्मच दही

2 हरीमिर्चें

1 छोटा चम्मच बेसन

1 बड़ा चम्मच अदरकलहसुन पेस्ट

थोड़ी सी धनियापत्ती

1/2 छोटा चम्मच गरममसाला

1 छोटा चम्मच तेल

1 बड़ा चम्मच क्रीम

4 से 5 छोटी इलायची

1 बड़ा चम्मच मक्खन

1 छोटा चम्मच चाटमसाला

नमक स्वादानुसार.

विधि

चिकन लेग पीस को इतना चीरें कि उस में रसीद कट आ सके. फिर एक बाउल में अदरकलहसुन का पेस्ट, नमक, नीबू का रस मिलाएं और उस में चिकन पीस को मैरिनेट करें. इस मिश्रण को 1/2 घंटा के लिए अलग रख दें. फिर एक बाउल में दही, बेसन, इलायची पाउडर, क्रीम, हरीमिर्च का मिश्रण तैयार करें और इस में चिकन पीस को मैरिनेट करें. अब 4 से 5 घंटे के लिए मिश्रण को फ्रिज में रख दें. फिर तेल लगा कर चिकन तंदूर में 5 से 6 मिनट रोस्ट करें. फिर इस में मक्खन लगा कर 2 से 3 मिनट तक और पका कर गरमगरम सर्व करें.

मोतीचूर के लड्डू जैसे हैं कपिल

अभिनेत्री एली अवराम को हास्य कलाकार कपिल शर्मा के साथ काम करने में बहुत मजा आ रहा है. कपिल अब्बासमस्तान की फिल्म ‘किस को प्यार करूं’ से अपना अभिनय कैरियर शुरू कर रहे हैं, जिस में उन के साथ एली हैं. एली उन की प्रतिभा से हैरान हैं. एली ने एक कार्यक्रम में कहा, ‘‘मुझे उन के साथ काम करने में बहुत मजा आ रहा है. कपिल बहुत मजेदार हैं. वे अपनी डबल चिन से मुझे मोतीचूर के लड्डू जैसे लगते हैं और बहुत मस्तमौला हैं.’’

सजाएं सपनों का घर

डाइनिंग टेबल की सजावट बहुत जरूरी है, क्योंकि इस पर सब कुछ सुविधाजनक रूप से रखा जा सकता है. इस पर चायना सिल्क का टेबलक्लाथ बिछाएं. टेबल के आसपास कोई खूबसूरत पौधा या गुलदस्ता रखेंगी तो चाय पीने का मजा दोगुना हो जाएगा. कुछ औपचारिक मेहमान रात के खाने पर आ रहे हैं तो सजावट भी कुछ विशेष प्रकार की होनी चाहिए. सब से पहले टेबल को फूलों से सजाएं. मैरून तथा पीले रंगों के गुलाबों से पोर्सलीन के प्याले सजाएं. नैपकिन होल्डर सिल्वर प्लेटेड हों तो सोने में सुहागा. बेज रंग के ओरगेंजा के नैपकिन होने चाहिए.

कम खर्च में घर को सजाएं

अपने घर को नेचुरल लुक देने के लिए फूलों और मोमबत्तियों का प्रयोग बहुत सस्ता और किफायती होता है.

फूल यदि प्राकृतिक ले सकें तो ठीक आजकल नकली फूल भी बाजार में मिलते हैं. आप उन का उपयोग कर सकती हैं.

अपने कमरे को कैंडल्स से सजाते समय हमेशा विषम संख्या वाली कैंडल्स से सजाएं.

यही बात फूलदान डेकोरेशन के समय भी लागू होती है. फूलदान में फूलों की संख्या विषम रखें, जैसे- 5, 7, 11 अथवा 21 की रख सकती हैं.

फूलदान से सजाएं कमरा

फूलदान एक कमरे में एक से ज्यादा न रखें.

अगर एक से ज्यादा फूलदान एक ही कमरे में रखने हों तो सब से पहले छोटे और सब से आखिर में बड़ा साइज, ऐसे क्रम में सजाएं, जिस से कमरे को नया लुक मिलेगा.

फूलदानों के बीच मीडियम साइज का फोटो फ्रेम भी रख सकती हैं.

अगर ड्राइंगरूम बड़ा हो तो चारों कोनों में या 2 कोनों में हैंगिंग लैंप लगवाएं. वहां स्विच बोर्ड को हमेशा नीचे रखें ताकि वह दिखाई न दे. ड्राइंगरूम में ट्यूबलाइट से परहेज करना बेहतर है.

ड्राइंगरूम में अगर 2 खिड़कियों के बीच लंबा गैप हो तो वहां लंबी तसवीरों की जगह चौड़ी तसवीरों का प्रयोग करें. ऐसा करने से कमरा खालीखाली नहीं लगेगा.

ड्राइंगरूम का फर्नीचर सदैव आकर्षक रखें. इस की डिजाइन परंपरागत हो या आधुनिक पर लुभावनी होनी चाहिए.

किसी की जबान पर लगाम नहीं लगा सकती : सोनम

अभिनेत्री सोनम कपूर ने बहुत कम समय में फिल्म इंडस्ट्री में अपनी एक अलग पहचान बना ली है. वे हर फिल्म में अलग किरदार निभाते नजर आती हैं. इन दिनों सोनम ‘प्रेम रतन धन पायो’, ‘बैटल फौर बिटोरा’ में काम करने के अलावा नीरजा भनोट पर बन रही बायोपिक फिल्म में नीरजा भनोट का किरदार निभाने को ले कर उत्साहित हैं. उन का कहना है कि वे सिर्फ सशक्त नारी पात्र ही निभाती हैं.

उन से हुई गुफ्तगू के कुछ अहम अंश पेश हैं:

क्या फिल्म के दृश्य या पात्र कलाकार की निजी जिंदगी पर असर करते हैं?

जी, हां. 10 साल काम करने के बाद मुझे इस बात का एहसास हुआ है कि कलाकार जिस किरदार को निभाता है, उस से कुछ न कुछ लेता है. फिल्म ‘रांझणा’ में जोया के किरदार में एक सैडनैस थी, जो मेरे जेहन से अब तक नहीं निकली है. यह अच्छी बात है. इंसान के व्यक्तित्व में एक ग्रैविटी लाती है, एक गहराई लाती है. ‘बेवकूफियां’ की बात करूं तो उस लड़की में एक इंडिपैंडैंट था. प्यार के लिए एक लगाव था. उस का मानना था कि पैसे से कुछ नहीं होता है. वह एक चीज मेरी जिंदगी में रह गई. ‘खूबसूरत’ फिल्म का मिली का मेरा किरदार मेरी निजी जिंदगी से काफी मिलताजुलता था.

आप ने फिल्म ‘सांवरिया’ में सलमान खान के साथ काम किया था. उस के बाद हर फिल्म में हमउम्र कलाकारों के साथ काम किया. अब एक बार फिर सूरज बड़जात्या की फिल्म ‘प्रेम रतन धन पायो’ में काम कर रही हैं. कहीं इस की मूल वजह यह तो नहीं कि आप की समसामयिक अभिनेत्रियां बड़ी उम्र के हीरों के साथ काम कर के शोहरत बटोर रही हैं, तो आप ने भी यह सोचा? 

सलमान खान के साथ मैं ने ‘सांवरिया’ की थी, जो चली नहीं थी. इसलिए यह कोई फौर्मूला नहीं है कि बड़ी उम्र या स्टार कलाकारों के साथ फिल्म करने पर सफलता मिल जाएगी. आप मेरी फिल्मों को देखेंगे, तो पाएंगे कि मैं अपने बलबूते पर बहुत लोकप्रिय हूं. मैं ने जो कुछ किया है, वह सोशल मीडिया पर बहुत चर्चित है. मैं सलमान खान के साथ 8 साल बाद ‘प्रेम रतन धन पायो’ कर रही हूं. पर ट्विटर या फेसबुक पर मेरी जो लोकप्रियता है, वह मैं ने अपने बल पर पाई है. मेरे फैंस किसी की वजह से नहीं बने हैं. इमरान खान या फवाद खान की वजह से मेरी लोकप्रियता बढ़ी है. मेरी वजह से उन की शोहरत कितनी बढ़ी, यह तो मैं नहीं जानती.

फवाद खान का कहना है कि आप की वजह से उन्हें शोहरत मिल रही है?

ऐसा न कहें. फवाद खान बहुत लोकप्रिय हैं. उन की लोकप्रियता की वजह से फिल्म ‘खूबसूरत’ चल गई. इमरान खान की वजह से ‘आई हेट लव स्टोरी’ चल गई. धनुष भी इतने लोकप्रिय हैं कि ‘रांझणा’ चल गई.

‘रांझणा’ का सीक्वल बन रहा था?

मुझे इतना पता है कि फिल्मकार इस वक्त ‘तनु वैड्स मनु’ का सीक्वल बना रहे हैं. अब ‘रांझणा’ का सीक्वल कैसे बनेगा, मेरी समझ में नहीं आता, क्योंकि ‘रांझणा’ में तो धनुष के पात्र की मौत हो चुकी है.

आप भी अब बायोपिक फिल्मों पर जोर देने लगी हैं?

आप का इशारा नीरजा भनोट की जिंदगी पर बन रही फिल्म की ओर है. मैं बता दूं कि यह फिल्म मुझे 2 साल पहले मिली थी. मैं इस फिल्म को ले कर चर्चा नहीं करना चाहती थी. पर पता नहीं कैसे यह खबर बाहर आ गई. शीघ्र ही इस फिल्म की शूटिंग शुरू हाने वाली है.

आप फिल्म ‘बैटल फौर बिटोरा’ भी कर रही हैं?

अनुजा चौहाण के उपन्यास ‘बैटल फौर बिटोरा’ पर आधारित यह कौमेडी फिल्म है, जिस में मैं सांसद हूं, जिसे विपक्षी पार्टी के नेता से प्यार हो जाता है. इतना ही नहीं, एक मुकाम पर दोनों एकदूसरे के खिलाफ चुनाव भी लड़ते हैं. यह एक प्रेम कहानी वाली फिल्म है, पर कौमेडी युक्त. इस का निर्माण मेरे पिता अनिल कपूर कर रहे हैं. अभी इस की स्क्रिप्ट लिखी जा रही है.

खबर उड़ी थी कि आप के पापा ने सूरज बड़जात्या को फोन किया, जिस की वजह से आप को फिल्म ‘प्रेम रतन धन पायो’ मिली?

यदि मेरे पापा किसी निर्देशक को फोन कर के मुझे फिल्म में लेने की बात कहते, तो आज मेरा कैरियर कहीं और चला गया होता. पर मेरे पापा ने ऐसा कभी नहीं किया. सूरज बड़जात्या के साथ उन्होंने कभी काम नहीं किया. उन से उन का कोई रिश्ता भी नहीं है. हकीकत यह है कि सूरज बड़जात्या ने फिल्म ‘रांझणा’ देखी थी. उस में उन्हें मेरी ऐक्टिंग बहुत पसंद आई. तब उन्होंने मुझे खुद फोन कर के इस फिल्म के साथ जुड़ने की बात कही.

हाल ही में आप को स्टारडस्ट अवार्ड मिला. तब भी कहा गया कि किसी खास दबाव में आ कर आप को अवार्ड देने के लिए एक नई कैटेगरी बनाई गई?

मैं किसी की जबान पर लगाम नहीं लगा सकती. सच कहूं तो मुझे खुद नहीं पता था कि मुझे अवार्ड मिलने वाला है. मुझे लगा कि मुझे तो जैकलीन को जा कर अवार्ड देना है. क्या आप को नहीं लगता कि मुझे अवार्ड मिलना चाहिए था?

आप ने कहा कि सोशल मीडिया, ट्विटर व फेसबुक पर आप बहुत लोकप्रिय हैं. क्या यह लोकप्रियता बौक्स औफिस पर प्रभाव डालती है?

पता नहीं. यदि मेरा दिमाग इस ढंग से चलता, तो मैं बहुत बड़ी निर्माता बन सकती थी. मैं इतना जानती हूं कि सोशल मीडिया पर जो लोकप्रियता मिलती है, वह अंतर्राष्ट्रीय स्तर की होती है. इसी वजह से मेरी फिल्म ‘खूबसूरत’ अमेरिका, इंगलैंड सहित कई देशों में ज्यादा देखी गई.

प्रियंका के कारण छोड़ी फिल्म

सोनाक्षी आजकल काफी दरियादिल हो गई हैं. तभी तो एक फिल्म इसलिए छोड़ दी, क्योंकि उस फिल्म को करने में प्रियंका चोपड़ा का इंटरैस्ट था. सोनाक्षी सिन्हा के पास ‘सुंदरकांड’ नाम की फिल्म का प्रपोजल आया था और इस फिल्म की निर्देशक प्रिया मिश्रा ने ‘सुंदरकांड की स्क्रिप्ट भी सोनाक्षी के पास पहुंचाई थी. उसे पढ़ने के बाद सोनाक्षी ने इस फिल्म को करने का मन बना लिया था, लेकिन जैसे ही उन्हें पता चला कि इस फिल्म को करने में प्रियंका चोपड़ा की रुचि पहले से ही है, उन्होंने प्रियंका की खातिर इस फिल्म को करने से मना कर दिया. इसे कहते हैं दरियादिली.

पति सावधान गर पत्नी के नाम है मकान

बदलते सामाजिक परिवेश में दांपत्य जैसा मधुर रिश्ता भी अर्थप्रधान हो चला है. हाल ही में प्रौपर्टी पर हक जताने के चलते पत्नियों द्वारा पतियों को घर से बेघर करने के जो मामले सामने आ रहे हैं, वे साफ संकेत देते हैं कि यदि समय रहते कुछ जरूरी कदम न उठाए गए तो घरों को टूटने से बचाना मुश्किल नहीं नामुमकिन होगा…

बगैर किसी ठोस वजह के पत्नी को छोड़ना पहले जैसा आसान नहीं रह गया है. पति किसी तरह पत्नी को छोड़ भी दे तो कानून उसे आर्थिक जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ने देता.. भारतीय समाज में पत्नियां मकान के लिए पतियों को घर से बाहर निकालेंगी, यह शायद ही किसी ने सोचा होगा. आज अगर ऐसा हो रहा है, तो बात पतियों के सोचने की है वे घर को टूटने से किस तरह बचाएं… ‘‘घर खर्च में पतिपत्नी दोनों किसी न किसी तरह सहयोग करते हैं, इसलिए एक पक्ष संपत्ति पर अपना मालिकाना हक यह कहते हुए नहीं जता सकता कि घर उस के नाम है और वह उस की किस्त चुका रहा है,’’ यह कहते हुए बीती 16 फरवरी को मुंबई की एक अदालत ने एक मामले की सुनवाई करते हुए पत्नी की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिस में उस ने लोखंडवाला स्थित फ्लैट से पति को बाहर निकालने की गुहार लगाई थी. इस मामले में पत्नी की दलील यह थी कि उस ने कर्ज ले कर फ्लैट खरीदा था और वही उस की किस्त भरती है.

अदालत ने पत्नी की दलील को खारिज करते हुए पति के पक्ष में फैसला सुनाया. पति का कहना था कि हर महीने वह घर खर्च के लिए क्व90 हजार देता है और आज के वक्त में यह तय कर पाना मुश्किल है कि पतिपत्नी में से किस ने कितना खर्च किया है.

दिलचस्प फैसला

इस दिलचस्प मामले पर फैसला देते हुए कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि बहुत पहले जब पुरुष नौकरी करने जाते थे तो संपत्ति आमतौर पर उन के नाम पर खरीदी जाती थी. अब समय बदल गया है और ऐसा शायद ही कोई क्षेत्र हो जहां महिलाओं ने अपनी मौजूदगी दर्ज न करवाई हो. मुंबई कोर्ट का यह फैसला भले ही एक पत्नी के विरोध में गया लगता हो पर बारीकी से देखने पर पता चलता है कि दरअसल यह महिलाओं के हक में है कि वे कमाऊ हो कर गृहस्थी के खर्चों की जिम्मेदारी उठाने लगी हैं. जायदाद उन के नाम होने लगी है और वे इसी बिना पर पतियों को बाहर भी निकालने लगी हैं, जो किसी भी नजरिए से न्यायसंगत और परिवार के हक में नहीं कहा जा सकता. ज्यादा नहीं 20-25 साल पहले तक हालत यह थी कि पति जब मन में आता था पत्नी को घर से बाहर निकाल देता था और पत्नी उफ तक नहीं कर पाती थी. अब दौर जागरूकता का है, कानून पत्नियों के साथ है. ऐसे में बगैर किसी ठोस वजह के पत्नी को छोड़ना पहले जैसा आसान नहीं रह गया है. पति किसी तरह पत्नी को छोड़ भी दे तो कानून उसे आर्थिक जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ने देता. वह कहता है, जो भी हो पत्नी को गुजाराभत्ता दो वरना सजा भुगतने को तैयार रहो.

कुछ साल पहले तक जो माहौल पत्नियों के हक में था वह अब पतियों की तरफ बेवजह मुड़ता नजर नहीं आ रहा. तेजी से ऐसे मामले सामने आ रहे हैं जिन में पत्नियां पतियों को घर से यह कहते हुए बाहर खदेड़ रही हैं कि जाओ मकान तो हमारे नाम है. इस में कानूनी खामियां तो अपनी जगह हैं ही लेकिन महिलाओं का शिक्षित और नौकरीपेशा होना उन में जागरूकता लाने के साथसाथ उन्हें पुरुषों के प्रति हिंसक भी बना रहा है. एक सभ्य समाज में अगर पति द्वारा पत्नी को घर से निकालने को स्वीकृति नहीं दी जा सकती तो यह बात पत्नियों पर भी लागू होनी चाहिए.

कुछ आपबीती

मुंबई की अदालत के फैसले से साफ यह भी हुआ कि अब अदालतें घरों में झांकने लगी हैं. वे देखने लगी हैं कि घर खर्च दरअसल कैसे चलता है. यह जरूरी भी है, क्योंकि पतिपत्नी के बीच कई विवाद ऐसे होते हैं, जिन्हें सुलझाने के लिए कानून की धाराओं, उद्धरणों और गवाहोंसुबूतों की नहीं, बल्कि सामान्य समझ और अनुभव की जरूरत होती है. जज इस के अपवाद नहीं होते, इसलिए बेहतर तरीके से न्याय कर पाते हैं इस फैसले से हफ्ता भर पहले भोपाल का एक ऐसा ही पीडि़त पति विनय गोविंदपुरा महिला परामर्श केंद्र में गुहार लगाने गया था. विनय का यह कहना था कि उस की और रश्मि की शादी को 15 साल हो गए हैं. इस दौरान उन के 2 बेटियां हुईं. रश्मि भी नौकरी करती है. 4 साल पहले दोनों ने एक संयुक्त बैंक खाता खोल कर एक मकान अयोध्या नगर इलाके में खरीदा तो दोनों खुश थे कि चलो अपना मकान हो गया. अब बेटियों की तालीम और शादी की जिम्मेदारी भी वक्त रहते पूरी कर लेंगे.

लेकिन मकान खरीदते ही रश्मि का व्यवहार बदलने लगा. वह बातबात में विनय से झगड़ने लगी. विनय इस की वजह समझ पाता उस के पहले ही रश्मि ने एक दिन पुलिस थाने जा कर उस के खिलाफ मारपीट की शिकायत दर्ज करा दी. इतना ही नहीं, भोपाल से बाहर दूसरे शहर में नौकरी कर रहे विनय से उस ने अपनी जान को खतरा बताते हुए उसे घर से ही निकाल दिया. अब हालत यह है कि विनय जब भी भोपाल आता है तो लौज में रुकता है. उस मकान की आधी किस्त भी उस की तनख्वाह से कट रही है. मकान मकान ही रह गया घर नहीं बन पाया. विनय पर खर्चों की तिहरी मार पड़ रही है. पहली किस्त भरने की, दूसरी दूसरे शहर में रह कर अपना खर्च उठाने की और तीसरी भोपाल आए तो लौज में ठहरने व खानेपीने की.

इस मामले में दिलचस्प बात यह भी है कि रश्मि के मायके वाले विनय के साथ हैं और रश्मि के किए का समर्थन नहीं, बल्कि विरोध कर रहे हैं. हालांकि विनय ने यह आरोप भी लगाया कि रश्मि ने एक तलाकशुदा को साथ रख लिया है.

फसाद की जड़

साफ दिख रहा है कि फसाद की जड़ कीमती मकान है, जिसे रश्मि कब्जाना चाहती है. जल्द ही यह मामला भी अदालत में होगा. तब भी अदालत को बारीकी से देखना पड़ेगा कि मकान खरीदने और घर चलाने में पतिपत्नी की भागीदारी कितनी है और अहम बात यह कि क्या पत्नी को इस तरह पति को घर से बाहर करने का हक है जो अपनी बेटियों से मिलने को भी तरस जाता है? यह कू्ररता नहीं तो क्या है, जो संयुक्त नाम से खरीदे गए एक मकान की वजह से है? कोई भी अदालत पतिपत्नी को जबरन साथ रहने के लिए मजबूर नहीं कर सकती. लेकिन उसे दोनों के बीच के मकान के विवाद को बेहद निष्पक्ष हो कर देखना पड़ेगा.

दांपत्य मतभेदों व विवादों में शुरुआती दौर में परामर्श केंद्र और अदालतें मशवरा दे कर गृहस्थी बनाएबचाए रखने की अपनी जिम्मेदारी निभाती हैं, लेकिन जायदाद के मामलों में काम सलाह से नहीं, बल्कि विश्लेषण से चलेगा. महिलाओं के प्रति कानून अपेक्षाकृत ज्यादा नर्म रहे हैं. उन्हें पति की जायदाद में भी हिस्सा मिलता है और पिता की जायदाद में भी. आर्थिक निश्चिंतता और सुरक्षा जरूरी है पर देखा यह जाना चाहिए कि जायदाद बनाने में पत्नी का आर्थिक सहयोग कितना था. इस आंकड़े पर यकीन करने में हैरानी होना स्वाभाविक है कि अकेले भोपाल में पिछले 1 साल से 140 मामले ऐसे दर्ज हुए, जिन में पत्नियों ने पति को घर से बाहर निकाला. ज्यादातर मामलों में मकान या तो पत्नी के नाम था या फिर संयुक्त नाम से खरीदा गया था, जिस का पूरा फायदा पत्नियों ने उठाया.

एक और मामले में प्राइवेट कालेज में व्याख्याता नेहा पति सुयश को बाहर का रास्ता दिखा मकान पर कब्जा कर बैठ गई. इस दंपती ने शादी के बाद संयुक्त आमदनी के दम पर नेहा के नाम से फ्लैट खरीदा था. सुयश भी पेशे से लैक्चरर है. बकौल सुयश, फ्लैट खरीदने के बाद नेहा के तेवर बेहद आक्रामक हो चले थे. वह बगैर किसी बात के झगड़ा करने लगी थी और उस के मायके वालों का भी खासा दखल घर में बढ़ गया था. एक दफा बेवजह नेहा ने झगड़ा किया और उस के मायके वाले भी उस का साथ देने आ गए तो सुयश ने विरोध दर्ज कराया. इस पर उन सभी ने उसे घर से बाहर कर दिया.

पहले क्या होता था

ऐसे दृश्य 70-80 के दशक की न केवल हिंदी फिल्मों में आम थे, बल्कि हर किसी को अपने आसपास भी देखने को मिल जाते थे, जिन में पति और ससुराल वाले पत्नी को मामूली गलती या फिर बगैर किसी गलती के भी घर के बाहर दरदर की ठोकरें खाने के लिए बेरहमी से निकाल देते थे. यह हकीकत है कि अब जमाना वाकई बदल गया है. पत्नी की जगह पति बाहर निकाला जा रहा है. 140 ऐसे मामले एक शहर में दर्ज होना बताता है कि वास्तविक पीडि़तों की तादाद हजारों में है. कई पति शर्म, डर और आज नहीं तो कल पत्नी को समझ आ जाएगी जैसी बातें सोच कर जैसेतैसे गुजारा कर रहे हैं. मगर अब रिश्तों की हदें टूट रही हैं, जो बताती हैं कि समाज का पुरुषप्रधान रहना अगर एतराज और औरतों पर ज्यादतियों की बात थी तो अब समाज के स्त्रीप्रधान होने से क्या फायदा हो रहा है? घर अब भी टूट रहे हैं. फर्क बस इतना आया है कि अब पति घर से बाहर निकाले जा रहे हैं, बावजूद इस सच के कि वे आर्थिक रूप से पत्नी पर निर्भर नहीं जैसे कभी पत्नियां होती थीं.

नेहा और सुयश का मामला परामर्श केंद्र से नहीं सुलझा तो वहां से उन्हें अदालत जाने का परामर्श दिया गया. इन दोनों का विवाह एक मकान के चलते टूटने के कगार पर है, जो तलाक के लिए अदालत जाने को मजबूर हैं. वहां सुयश को साबित करना पड़ेगा कि क्व1 करोड़ के इस विवादित हो गए मकान में उस ने कितना पैसा लगाया था. सामाजिक और भावनात्मक रूप से तनाव में रह रहा सुयश अब आर्थिक रूप से भी टूटने के कगार पर है.

अर्थप्रधान होता दांपत्य

लगाया गया पैसा मिलेगा या नहीं, यह अब अदालत तय करेगी, लेकिन इन विवादों से यह बात जरूर साबित होती है कि दांपत्य के माने तेजी से बदल रहे हैं. पत्नी अब पति में भावनात्मक सहारा नहीं ढूंढ़ रही और न ही सामाजिक सुरक्षा चाह रही. वह सिर्फ आर्थिक हित साध रही है, जो वाकई समाज और परिवार के लिहाज से चिंता की बात है. यह आर्थिक हित दरअसल आर्थिक स्वार्थ है. अधिकतर नए दंपतियों में पतिपत्नी दोनों कमाते हैं पर संयुक्त जायदाद बनाना उन की मजबूरी होती है, लेकिन विश्वास इस में कहीं होता ही नहीं. एकल परिवारों के बढ़ते चलन और पत्नियों के कामकाजी होने के चलते उन में भविष्य की चिंता स्वभाविक बात है. इस के लिए वे अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा निवेश भी करती हैं और बचत भी करती हैं. न्यू कपल्स में हो यह रहा है कि खर्च का बड़ा हिस्सा पति देता है यह उस के पति होने की अहम तुष्टि नहीं बल्कि उत्तरदायित्व है. लेकिन अधिकांश पत्नियां खुद के बारे में ही सोचती नजर आती हैं.

मायके वालों का दखल

भोपाल के जहांगीराबाद इलाके के नूर मियां ने भी परामर्श केंद्र में अपनी शिकायत दर्ज कराई कि उन की बीवी साजदा ने विवादों के चलते उन्हें घर से निकाल दिया है. बकौल नूर मियां उन्होंने शादी के बाद 2 मकान अपनी कमाई से खरीदे, लेकिन गलती यह की कि दोनों पत्नी साजदा के नाम करा दिए. साजदा ने झगड़ाफसाद शुरू किया और अपने भाई से मिल कर उन्हें घर से बेघर कर दिया. शाहजहानाबाद थाने में दोनों की काउंसलिंग की गई, लेकिन कोई हल नहीं निकला तो उन्हें भी अदालत जाने की सलाह मिली. इस मामले में भी मायके वालों का दखल अहम रहा, जिस में पत्नी का साथ उस का वह भाई दे रहा है जिस की अहम जिम्मेदारी बहन की घरगृहस्थी बनाए रखना थी यानी मायके वालों का साथ और दखल भी पतियों को बेघर करने में अहम भूमिका निभा रहा है.

भोपाल से बैंगलुरु शिफ्ट हो गए ऐसे ही एक पति आदित्यएक नामी प्राइवेट कंपनी में क्व8 लाख सालाना के पैकेज पर काम करते हैं. उन की पत्नी चारू को भी इतने ही पैसे मिलते हैं, जो दूसरी कंपनी में सौफ्टवेयर इंजीनियर है. शादी के 4 साल बाद आदित्य को लगा कि उस का अकाउंट खाली हो रहा है और पत्नी का भरता जा रहा है, तो उस का माथा ठनका. यों ही किसी बहाने उस ने पत्नी से पैसे मांगे तो उस ने देने से साफ मना कर दिया. दलील यह दी कि यह तो मेरी कमाई है क्यों दूं? किराए के फ्लैट में रह रहे इस दंपती की हालत 6 साल बाद क्या होगी, यह सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है. अब आदित्य ने भी हाथ खींचना शुरू कर दिया है. पर कलह की शुरुआत हो चुकी है.

उठता सवाल

संयुक्त परिवार टूट रहे हैं. ऐसे में पति के साथ अकसर कोई नहीं होता, जो विवाद सुलझाने और उन से निबटने में सहयोग करे. ऐसी स्थिति में क्या मकानजायदाद खरीदने में पत्नी पर भरोसा किया जाना चाहिए, यह सवाल बहुत बड़े पैमाने पर उठने लगा है. इन तमाम मामलों में दिलचस्प और काबिलेगौर बात यह है कि विवाद शादी के 10 साल बाद शुरू हुए. पत्नियों की नीयत तब बदली जब मकान उन के नाम या पति के साथ संयुक्त रूप से खरीदा गया. ज्यादातर पत्नियों ने खुद अपनी तरफ से झगड़ाफसाद शुरू किया. मंशा पति को प्रताडि़त कर मकान हथियाने की थी.इन उजागर मामलों से ऐसा लगता है कि महिलाएं अपनी स्वतंत्र पहचान और अस्तित्व बनाना चाहती हैं, जो कतई हरज की बात नहीं, लेकिन गलती यह कर रही हैं कि इस के लिए पति, परिवार की अनदेखी कर रही हैं और पैसों को ही सब कुछ मान बै ठी हैं. ये पत्नियां जाहिर है, खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रही हैं. बुढ़ापे में जब ये अकेली रहेंगी तो जायदाद का उपभोग नहीं, बल्कि उसे बरबाद करेंगी. इन के इर्दगिर्द कोई शुभचिंतक या सहायक नहीं होगा, उलटे मुफ्त में जायदाद हड़पने वाले खुदगर्जों की भीड़ होगी.

पतिपत्नी का रिश्ता अगर अर्थप्रधान इन मामलों से होता माना जाए तो उस का एक मियाद के बाद टूटना तय है और स्वाभाविक भी है. भारतीय समाज में पत्नियां मकान के लिए पतियों को घर से बाहर निकालेंगी, यह तो कभी किसी ने सोचा भी न होगा. ऐसा हो रहा है तो बात पतियों के सोचने की है कि एहतियात बरतें और घर को टूटने से बचाएं. अगर पत्नी कमाती है और मकानजायदाद खरीदने में अपना पैसा लगाती है तो यह उस का मालिकाना हक अपने लगाए गए पैसे के अनुपात में बनता है. इस पर एतराज की बात नहीं. एतराज की बात उस का पूरे घर को अपना मान बैठना है.

ये भी हैं वजहें

जाहिर है, दांपत्य ठहराव का शिकार एक मियाद के बाद बनता है. कभी अंतरंग रहे पतिपत्नी पैसों की आपाधापी के चलते एकदूसरे का भरोसा खोते अजनबी होते जाते हैं और उन्हें इस का पता भी नहीं चलता. तेजी से कम होते सामाजिक दबाव और पारिवारिक जिम्मेदारियों की कमी भी इस की वजह है. पत्नियों को अब पहले की तरह कोल्हू के बैल की तरह घर के कामों में जुतना नहीं पड़ रहा, बरतन नहीं मांजने पड़ते. न ही कपड़े धोने पड़ते हैं. ये स्थितियां उन की पहचान खत्म कर रही हैं. नए जमाने की युवतियां तो मां बनने से भी कतराने लगी हैं, वजह सिर्फ यह नहीं कि वे फिगर खराब होने से डरती हैं, बल्कि यह भी है कि वे मातृत्व की अहम जिम्मेदारी उठाने से घबराने लगी हैं. जो महिला वात्सल्य और ममता से खुद को पैसों के लिए दूर रखेगी उस का पति के प्रति क्रूर होना स्वभाविक ही है.

एक मुकाम पर आ कर आजकल सामाजिक पहचान भी माने नहीं रखती. तेजी से बढ़ते शहर, अपनों से दूरियां, टूटती रिश्तेदारियां और इन से भी ज्यादा अहम बात आर्थिक असुरक्षा इस के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार है. यह नौबत न आए, इस के लिए पतिपत्नी के बीच कमाई और पैसों में पारदर्शिता का रहना बेहद आवश्यक है.

बालों का झड़ना रोके पीआरपी थेरैपी

आजकल बाल झड़ना महिलाओं और पुरुषों की प्रमुख समस्या बन गई है. इन के झड़ने का कारण आनुवंशिक, तनाव, बालों की ठीक प्रकार से देखभाल न करने के साथसाथ कोई चिकित्सकीय भी हो सकता है. लेकिन आप घबराएं नहीं अब विदेशों में ही नहीं, भारत में भी पीआरपी थेरैपी को बालों की समस्याओं को दूर करने की एक क्रांतिकारी पद्धति के रूप में देखा जा रहा है. इस तकनीक की सब से अच्छी बात यह है कि इस में न तो सर्जरी करने की जरूरत होती है और न ही इस का कोई साइड इफैक्ट होता है.

क्या है पीआरपी थेरैपी

पीआरपी को प्लैटलेट्स रिच प्लाज्मा थेरैपी के नाम से जाना जाता है. इस प्रक्रिया में जिस व्यक्ति का उपचार किया जा रहा होता है उसी का रक्त लिया जाता है. इस रक्त का अपकेंद्रन किया जाता है ताकि प्लैटलेट्स के साथ प्लाज्मा ट्यूब में एकत्र हो जाए. यह प्लाज्मा जिस में प्लैटलेट्स और ग्रोथ फैक्टर्स की मात्रा अधिक होती है, ऊतकों के पुनर्निर्माण और क्षतिग्रस्त ऊतकों को ठीक करने में काफी उपयोगी होता है. पीआरपी में सामान्य रक्त की तुलना में 5 गुना अधिक प्लाज्मा होता है. इस के अलावा इस में प्लैटलेट्स और ग्रोथ फैक्टर भी काफी मात्रा में होता है. इस थेरैपी का आधार यह है कि प्लैटलेट्स घावों के भरने में मुख्य भूमिका निभाते हैं, इसलिए इन का संभावित प्रभाव बालों के विकास को बढ़ावा देने में कारगर तरीके से किया जा सकता है. एक बार में 20 एमएल रक्त लिया जाता है. इस से प्लैटलेट्स को अलग करने के बाद इस में ऐक्टिवेटर मिलाए जाते हैं, जो प्लैटलेट्स को ऐक्टिवेट कर देते हैं ताकि जहां क्षति हुई है वहां यह बेहतर तरीके से कार्य कर सके.

कैसे कार्य करती है

सब से पहले प्रभावित क्षेत्र को सुन्न करने के लिए सामान्य ऐनेस्थीसिया दिया जाता है, फिर विशेष माइक्रो सूई की सहायता से पीआरपी को पूरी खोपड़ी, भौं या दाढ़ी के उन क्षेत्रों में इंजैक्ट किया जाता है जहां उपचार किया जाना है. पीआरपी को प्रभावित क्षेत्र पर डर्मारोलर के द्वारा भी इन्फ्यूज किया जाता है. डर्मारोलर का प्रयोग करने से पहले त्वचा पर सुन्न करने वाली सामान्य क्रीम लगा दी जाती है. 1-1 महीने के अंतराल पर 4 से 6 सिटिंग्स की आवश्यकता होती है. 6 महीने से 1 साल के अंतराल पर एक बूस्टर सैक्शन होता है.

यह उपचार न केवल बालों के विकास को बढ़ावा देता है, बल्कि हेयर फौलिकल को शक्तिशाली भी बनाता है. चूंकि इस में रक्त निकाला जाता है और कई सूइयां चुभोई जाती हैं, इसलिए यह कष्टदायक लग सकता है. लेकिन इस थेरैपी के दौरान सामान्य ऐनेस्थीसिया का प्रयोग कष्ट को लगभग समाप्त कर देता है. इस में कई इंजैक्शन लगाए जाते हैं. एक सिटिंग में 60 से 90 मिनट लगते हैं.

साइड इफैक्ट्स

इस थेरैपी में कोई बाहरी पदार्थ शरीर में नहीं पहुंचाया जाता है, इसलिए इस का कोई साइड इफैक्ट नहीं होता है. कोरिया और अमेरिका में इस पर कई अध्ययन किए गए हैं, जिन में इसे विश्वसनीय और सुरक्षित होने की बात कही गई है. वैसे इस की सफलता की दर प्रत्येक रोगी के साथ बदल सकती है. पीआरपी थेरैपी से ऐलर्जी की आशंका भी नहीं होती है, क्योंकि इस में प्लाज्मा रोगी के अपने रक्त से ही उत्पन्न किया जाता है. पीआरपी में श्वेत रक्त कणिकाओं की भी काफी मात्रा होती है, जो संक्रमण के विरुद्ध शरीर के स्वाभाविक सुरक्षक हैं, इसलिए संक्रमण का खतरा बेहद कम होता है. 99% लोगों में कोई दर्द नहीं होता. 1% लोगों में इंजैक्शन लगाने के कारण थोड़ी सी जलन हो सकती है.

हालांकि इस तकनीक के समर्थन में अभी वैज्ञानिक प्रमाण कम हैं. लेकिन क्लीनिकल स्टडीज ने यह प्रमाणित किया है कि लंबे समय तक उपयोग करने से पीआरपी के बालों के विकास पर सकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं.

पीआरपी थेरैपी के लाभ

झड़ते बालों को रोकने का यह एक नौनसर्जिकल समाधान है. यह एक बायोमैट्रिक्स तकनीक है, जो क्षतिग्रस्त ऊतकों को ठीक करती है और उन की पुनर्रचना करती है. यह थेरैपी पतले पड़ चुके बालों के हेयर फौलिकल को शक्तिशाली बना कर उन्हें घना करने में सहायता करती है. पीआरपी में कोशिकाओं के विकास को बढ़ावा देने वाले कारक होते हैं. यह मेल और फीमेल पैटर्न दोनों प्रकार के हेयर लौस में उपयोगी होता है. यह उन के लिए भी बहुत कारगर है, जिन में गंजेपन की समस्या आनुवंशिक नहीं है. लेकिन यह थेरैपी हर किसी के लिए नहीं है.

वैंपायर फेसलिफ्ट

चेहरे के लिए की जाने वाली पीआरपी थेरैपी को वैंपायर फेसलिफ्ट कहा जाता है. इस का प्रयोग चेहरे पर बारीक लकीरों, झुर्रियों और मुंहासों के दागों को मिटाने व कोलेजन के निर्माण में सहायता करने के लिए किया जाता है.

किन लोगों के लिए है कारगर

जिन के बाल अधिक मात्रा में झड़ रहे हों.

जिन के बालों के विकसित होने की गति बेहद धीमी हो.

गर्भावस्था के दौरान अत्यधिक बाल झड़ने की समस्या से पीडि़त महिलाओं के लिए.

हेयर डाई या बालों को सीधा करवाने की प्रक्रिया से बालों के तेजी से झड़ने को रोकने के लिए.

बालों के प्रत्यारोपण के बाद भी इस तकनीक का उपयोग प्रत्यारोपित बालों को शक्ति देने और उन्हें विकसित करने के लिए किया जाता है.

– डा. रोहित बत्रा
सर गंगा राम हौस्पिटल

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