सूनी गोद में किलकारियां

गीता की शादी को जब 3 साल हो गए और फिर भी वह मां नहीं बन पाई तो सास, ननद, भाभी से ले कर पासपड़ोस की महिलाओं तक के बीच कानाफूसी होने लगी. तरहतरह के प्रश्न पूछे जाने लगे तो गीता का चिंतित होना स्वाभाविक था. हालांकि उस के पति 1-2 साल और भी पिता बनने के मूड में नहीं थे, लेकिन पत्नी का दबाव पड़ने के बाद दोनों इन्फर्टिलिटी सेंटर गए. चिकित्सक ने दोनों का परीक्षण करने के बाद कुछ जांचें कराने को कहा. जांच रिपोर्ट आई तो पता चला कि उस के पति सुभाष की वीर्य रिपोर्ट में गड़बड़ी है. वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या नगण्य है. शुक्राणुओं का निर्माण हो ही नहीं रहा है. मतलब एजुस्पर्मिया की शिकायत है. चिकित्सक ने बताया कि इसी कारण वे पिता नहीं बन पा रहे हैं. पत्नी में किसी भी तरह की कमी नहीं है, न गर्भाशय में, न ट्यूब में और न ही ओवरी में. मासिक भी नियमित है और अंडा भी समय पर बन रहा है. उस के बाद चिकित्सक ने सुभाष को कुछ दवा लिख कर दी और कहा कि इसे ले कर देखिए, हो सकता है इस से कुछ फायदा हो. करीब डेढ़ साल तक इलाज चलता रहा, लेकिन फिर भी जब कोई फायदा नहीं हुआ तो अंत में गीता को कृत्रिम गर्भाधान कराने की सलाह दी गई.

क्या है कृत्रिम गर्भाधान

कृत्रिम गर्भाधान क्या होता है, यह कम लोगों को ही पता है. पुरुष के वीर्य में शुक्राणुओं की कमी के कारण होने वाले बां झपन को दूर करने की यह आधुनिक विधि है, जिस के अंतर्गत गर्भधारण के लिए महिलाओं के गर्भाशय में कृत्रिम विधि से बिना सहवास के शुक्राणुओं को प्रवेश कराया जाता है ताकि वे डिंब से फर्टिलाइज कर सकें और भ्रूण का निर्माण हो सके. यदि श्ुक्राणु को गर्भाशय के अग्रभाग यानी सर्विक्स में स्थापित कराया जाता है तो उसे इंट्रासर्वाइकल और यूटरस में कराया जाता है तो इंट्रायूट्राइन इन्सेमिनेशन कहा जाता है. यह विधि बां झपन दूर करने के लिए एसिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलोजी के अंतर्गत आती है. इस में पति के या फिर स्पर्म बैंक से किसी अनजान डोनर के शुक्राणु लिए जाते हैं.

आजकल अकेली औरतों में बिना मेल पार्टनर के स्पर्म बैंक से स्पर्म ले कर मां बनने की प्रवृत्ति बड़ी तेजी से फैल रही है. ऐसी स्थिति में बच्चे की मां को जेनेटिक या ग्रास्टेशनल मदर तथा स्पर्म डोनर को जेनेटिक या बायोलोजिकल फादर कहा जाता है. कई बार पति में शुक्राणुओं की संख्या अत्यधिक कम होती है या फिर दूसरे विषैले पदार्थ मिले होते हैं, जिस के कारण गर्भधारण में कठिनाई होती है. ऐसी स्थिति में शुक्राणुओं को वाश कर उन्हें सांद्रित किया जाता है ताकि उन की संख्या पर्याप्त हो जाए और शुक्राणु डिंब के साथ आसानीपूर्वक संयोग कर सकें. कई बार यूटरस का आकार ही ऐसा होता है कि जिस के कारण शुक्राणु डिंब में फर्टिलाइज करने की स्थिति में नहीं होते. ऐसी स्थिति में भी पति के वीर्य को कृत्रिम विधि से गर्भाशय के अंदर प्रवेश कराया जाता है. यदि किसी पुरुष के वीर्य में शुक्राणु नहीं हैं यानी बनते ही नहीं हैं तो ऐसी स्थिति में किसी दूसरे पुरुष का वीर्य दानस्वरूप ले कर या फिर स्पर्म बैंक से खरीद कर कृत्रिम विधि से महिला के गर्भाशय में प्रवेश कराया जाता है. इसे ही कृत्रिम गर्भाधान कहा जाता है.

स्पर्म बैंक क्या है

स्पर्म बैंक उस बैंक को कहते हैं जहां वीर्य स्टोर किया जाता है. यह सामान्यत: दूसरे बैंकों जैसे ब्लड बैंक, आई बैंक या दूसरे कमर्शियल बैंक की तरह होता है. ब्लड बैंक में ब्लड, आई बैंक में आंखें और वीर्य बैंक में वीर्य स्टोर किया जाता है. यहां 2 तरह का वीर्य संग्रहीत किया जाता है, एक खुद का तथा दूसरा डोनर का. खुद का वीर्य जमा करने के पीछे यह उद्देश्य होता है कि भविष्य में संतानप्राप्ति की इच्छा होने की स्थिति में उस का उपयोग कर संतान सुख प्राप्त किया जा सके.

डोनर का चुनाव चुनौतीपूर्ण

किसी भी दंपती के लिए स्पर्म बैंक से डोनर स्पर्म का चुनाव काफी चुनौती भरा होता है. पति के रहते किसी दूसरे पुरुष के स्पर्म से गर्भधारण करना भी पतिपत्नी दोनों के लिए काफी कठिन, चुनौती भरा और दुखदायी होता है. इस के लिए दोनों को मानसिक और मनोवैज्ञानिक रूप से तैयार होना पड़ता है. कई दंपती यह सोचते हैं कि कम से कम 50% तो हम लोगों का अंश रहेगा ही. मैं उस का पिता नहीं रहूंगा, पर मेरी पत्नी तो उस की मां रहेगी. यही सोच कर कई दंपती इस कृत्रिम विधि का सहारा लेते हैं. यदि आप भी कृत्रिम गर्भाधान की बात सोच रहे हैं और स्पर्म बैंक से वीर्य खरीदना चाहते हैं तो आप को सब से पहले यह निर्णय लेना होगा कि आप को किस तरह के लोगों का स्पर्म चाहिए. इस के लिए आप को पत्नी के साथ मिलबैठ कर यह निश्चित करना होगा कि पुरुष का रंग, बाल, आंखें, कैसी होनी चाहिए. आप को डोनर का नामपता छोड़ कर सारी जानकारी मिल जाएगी. आप बैंक से डोनर का बायोडाटा ले कर अच्छी तरह अध्ययन कर लें और पूरी तसल्ली होने के बाद ही वीर्य खरीदें.

कृत्रिम गर्भाधान के लिए वीर्य का संग्रह सामान्यत: हस्तमैथुन द्वारा किया जाता है. कई बैंक इस के लिए डोनर को विशेष कंडोम मुहैया कराते हैं. संग्रह की व्यवस्था बैंक में ही होती है इस के लिए जरूरी है कि कम से कम पिछले 3 दिनों तक डोनर का वीर्य क्षय न हुआ हो यानी इस दौरान उस ने हस्तमैथुन या सहवास न किया हो. इस स्थिति में वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या पर्याप्त होती है. बैंक द्वारा दिए गए ट्यूब या पौट में वीर्य संग्रह किया जाना चाहिए. ध्यान रहे कि संग्रह के समय इस की थोड़ी सी भी मात्रा बरबाद न होने पाए.

वीर्य संग्रह के बाद 30 से 45 मिनट के बाद वह तरल पदार्थ में तबदील हो जाता है जिसे ‘लिक्वीफैक्शन’ कहते हैं. इस में समान मात्रा में एक विशेष रसायन क्रायोप्रोटेक्टेंट मिला कर इसे एक प्लास्टिक ट्यूब में डाल कर लेबल और सील किया जाता है. इस के बाद इस ट्यूब को लिक्विड नाइट्रोजन से भरे क्रायो टैंक में रखा जाता है, जिस का तापमान -19 डिग्री सेल्सियस होता है. उस के बाद दूसरे दिन टैंक से ट्यूब निकाल कर शुक्राणुओं की संख्या तथा सक्रियता की जांच की जाती है. इस की संख्या 20 से 40 मिलियन, सक्रियता 70 से 80% तथा 60% से अधिक जीवित होने की स्थिति में उसे संग्रह के लिए उपयुक्त माना जाता है अन्यथा उसे नष्ट कर दिया जाता है.

संग्रह करने योग्य स्पर्म को पुन: सील कर क्रायो टैंक में रख कर कम से कम 6 माह के लिए स्टोर किया जाता है, इस अवधि को क्वारेंटाइन पीरियड कहा जाता है. इस बीच 3-3 महीने के अंतराल में एड्स, हैपेटाइटिस तथा गुप्त रोगों के लिए डोनर के रक्त की जांच की जाती है. डोनर को इस तरह की कोई बीमारी नहीं होने की स्थिति में जरूरतमंद लोगों को कृत्रिम गर्भाधान के लिए स्पर्म दिया जाता है.

यह विधि सब के लिए नहीं

यह विधि हर उस महिला के लिए उपयुक्त नहीं है जिस के पति के वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या पर्याप्त नहीं है या एजुस्पर्मिक हैं इस की भी कुछ सीमाएं हैं जैसे इस विधि को अपनाने वाली महिला पूर्णरूपेण स्वस्थ हो. उसे न तो हारमोन संबंधी और न ही प्रजनन संबंधी कोई बीमारी हो. उस का मासिक नियमित हो, गर्भाशय का कैंसर, क्षयरोग, ट्यूमर पौलिप न हो. उसे ल्यूकोरिया, सिफलिस जैसे गुप्त रोग भी नहीं होने चाहिए. मरीज को फैलोपियन ट्यूब की कोई बीमारी न हो और कम से कम एक नली खुली होनी चाहिए ताकि फर्टिलाइजेशन की क्रिया सफलतापूर्वक पूरी हो सके. इस के लिए चिकित्सक मरीज को लैप्रोस्कोपिक विधि या फिर साल्पिंगोग्राम कराने की सलाह देते हैं. गर्भाशय में पाई जाने वाली खराबी की जांच के लिए पैप स्मेयर एग्जामिनेशन कराने की सलाह दी जाती है.

कृत्रिम गर्भाधान के पहले महिला को निम्न दौर से गुजरना पड़ता है :

उचित काउंसलिंग के बाद दंपती से कृत्रिम गर्भाधान के लिए सहमतिपत्र साइन कराया जाता है.

महिला की कम से कम एक फैलोपियन ट्यूब खुली होनी चाहिए. ऐसी महिला का ही इस विधि से गर्भ ठहर सकता है.

ओवरी में अंडे का निर्माण हुआ है या नहीं और ओवरी से अंडा कब बाहर निकलने वाला है, इस का भी पता लगाना होता है.

महिला के मासिकचक्र की निगरानी करनी होती है. इस के लिए चिकित्सक बेसिक बौडी टेंपरेचर पर निगरानी रखते हैं. ओव्युलेशन के समय महिला का सामान्य शारीरिक तापक्रम थोड़ा बढ़ जाता है. इस के अतिरिक्त ओव्युलेशन किट्स, अल्ट्रासाउंड या रक्त जांच की सहायता ली जाती है.

इस विधि से गर्भधारण के बाद सामान्य सहवास के द्वारा गर्भधारण वाली स्थिति होती है. गर्भधारण के बाद रूटीन चेकअप के लिए यदि आप चिकित्सक बदल रहे हैं तो कोई कृत्रिम गर्भाधान हुआ है, उन्हें कभी भी पता नहीं चलेगा और अपने बच्चे के जन्म प्रमाणपत्र पर आप अपने पति का नाम लिखा सकती हैं. यहां यह ध्यान देना जरूरी है कि कृत्रिम गर्भाधान और डोनर की पहचान को दृढ़तापूर्वक गुप्त रखना होगा. इस बात को अपने बच्चे, अपने दोस्तों तथा सगेसंबंधियों को भी नहीं बताना चाहिए.

नसनस में बसा है पंडवानी गायन तीजनबाई

पद्मश्री और पद्मभूषण सहित कई सम्मानों एवं पुरस्कारों से सम्मानित की जा चुकीं पंडवानी की मशहूर गायिका तीजनबाई की गायिकी में 59 साल की उम्र में भी खनक और अभिनय में लचक बरकरार है. पंडवानी गायन के दौरान मंच पर उन की हुंकार, फुफकार, ललकार से अनोखा समां बंध जाता है. हाथ में लिए तानपूरे को वे कभी गदा तो कभी रथ, कभी द्रौपदी के बाल तो कभी दुशासन के बाल के तौर पर प्रस्तुत कर डालती हैं.

तीजनबाई कहती हैं कि जब वे मंच पर महाभारत की कथा को परफौर्म कर रही होती हैं, तो वे किसी दूसरी ही दुनिया में पहुंच जाती हैं. जनता की तालियों की गड़गड़ाहट से उन के अंदर गजब की उमंगें जवां हो उठती हैं. पंडवानी के बारे में वे बताती हैं कि महाभारत की कहानी के पात्र पांडवों की कहानी को सुरताल से सजाना ही पंडवानी है. वे कहानी के संवादों को संगीत और अभिनय के साथ मंच पर प्रस्तुत करती हैं.

रंग लाई मेहनत

पिछले दिनों पटना पुस्तक मेले में पंडवानी पेश करने पहुंचीं तीजनबाई ने मुलाकात के दौरान बताया कि वे महज 13 साल की उम्र से पंडवानी गायन कर रही हैं और अब तक वे 212 शिष्यों को इस की तालीम दे चुकी हैं. उन के शिष्य भी पंडवानी गायन को आगे बढ़ा रहे हैं. 24 अप्रैल, 1956 को छत्तीसगढ़ के भिलाई जिले के गनियारी गांव में पैदा हुईं तीजन के पिता और मां नहीं चाहते थे कि वे पंडवानी गायिका बनें. मगर अपनी जिद और मेहनत के बूते उन्हें पंडवानी लोकगीत नाट्य की पहली महिला कलाकार बनने का गौरव हासिल हुआ.

पंडवानी गायन के प्रति रुझान कब और कैसे जगा, के सवाल के जवाब में तीजन बताती हैं, ‘‘बचपन में एक दिन नहर की ओर जा रही थी तो रास्ते में अपने नाना ब्रजलाल को पंडवानी गायन करते देखा. जिस अंदाज में वे पंडवानी गा रहे थे उसे सुन कर मेरा रोमरोम सिहर उठा. उस के बाद मैं रोज छिपछिप कर नाना का गायन सुनने लगी. एक दिन नाना ने मुझे छिप कर सुनते हुए पकड़ लिया. फिर अपने पास बुला कर पूछा कि यहां क्या कर रही हो? तब मैं ने सब सचसच बता दिया. नाना ने कहा कि जो कुछ सुना है उसे मुझे गा कर सुनाओ. मैं ने 1-1 लाइन सुना दी, तो नाना की आंखों में आंसू छलक आए. उन्होंने मुझे दुलारते हुए कहा कि मेरे घर में ही रत्न है और मुझे पता नहीं चला. उस के बाद नाना ने मुझे पंडवानी सिखाना शुरू किया. जब मां और गांव वालों को पता चला तब सब ने खूब तानेउलाहने दिए. पर मैं ने किसी की नहीं सुनी और पंडवानी गाती रही.’’

उमड़ पड़ती है भीड़

वे लोकगीत और संगीत के खत्म होने के बारे में कहती हैं कि हर चीज का अच्छा और बुरा दौर आता है. मगर अपने काम में डटे रहेेंगे तो कामयाबी मिलनी तय है. यह कहना गलत होगा कि लोकगीतों के कद्रदान अब नहीं रहे. लोकगीत और संगीत के प्रोग्राम में आज भी कद्रदानों की भीड़ उमड़ती है और लोग दिल से वाहवाह करते हैं. इस से कलाकारों का हौसला कई गुना बढ़ जाता है. फिल्मों में गायकी के बारे में तीजन कहती हैं कि कई औफर मिलते हैं पर उन्हें अपने काम और प्रोग्रामों से ही फुरसत नहीं मिलती है. ‘भारत एक खोज’ धारावाहिक में गाने के लिए डायरैक्टर श्याम बेनेगल ने उन्हें मुंबई बुलाया था. वहां बड़े कलाकारों का जमघट देख तीजन घबरा गईं. वे उन पलों को याद करते हुए कहती हैं, ‘‘सैट पर बड़ेबड़े कलाकारों को देख कर मैं नर्वस हो गई. अभिनेता अमरीश पुरी ने मेरी घबराहट को भांप लिया. मैं ने उन से कहा कि मैं मुंबई में नई हूं, इसलिए नर्वस हो रही हूं. पता नहीं ठीक से गा पाऊंगी या नहीं? तब अमरीश पुरी ने मेरा हौसला बढ़ाते हुए कहा कि श्याम बेनेगल के पिंजरे में जो भी आता है वह शेर ही होता है.’’

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गर्भनाल जीवन की डोर

गर्भ में पल रहे शिशु के लिए गर्भनाल जीवन की डोर होती है. अब यही गर्भनाल स्टेम कोशिका प्रतिरोपण के महत्त्वपूर्ण विकल्प के रूप में सामने आई है, जिस से मस्तिकाघात, कैंसर, रक्त, आनुवंशिक एवं हृदय से जुड़े रोगों के उपचार को नई दिशा मिली है. इस प्रणाली को गर्भनाल स्टेम कोशिका बैंकिंग कहा जाता है. इन बैंकों में गर्भनाल में मौजूद स्टेम कोशिकाओं को वर्षों तक संरक्षित रखा जाता है.

गर्भनाल की लंबाई

गर्भनाल की लंबाई 300 सैं.मी. और चौड़ाई 3 सैं.मी. होती है. गर्भनाल में 380 हेलिसेक होते हैं. उन महिलाओं को, जिन की गर्भनाल सामान्य से बड़ी होती है, परेशानी महसूस होती है. ऐसे में बच्चे की स्थिति खराब हो सकती है और गर्भाशय उलटा हो सकता है, जिस से गर्भ में बच्चे की मौत भी हो सकती है.

कब काटें गर्भनाल

जन्म के समय नवजात की गर्भनाल को देर से काटने से उसे काफी फायदा होता है. एक शोध के अनुसार, करीब 4 हजार महिलाओं और उन के नवजातों के अध्ययन में पाया गया कि जिन नवजातों की गर्भनाल देर से काटी गई उन के रक्त में आयरन का स्तर अधिक पाया गया. कई देशों में मां और बच्चे को जोड़ने वाली गर्भनाल को जन्म के 1 मिनट से भी कम समय के भीतर काट दिया जाता है. लेकिन गर्भनाल को जल्दी काटने से मां के शरीर से बच्चे के शरीर में जाने वाले रक्त की मात्रा कम हो जाती है. इस से बच्चे के रक्त में आयरन की मात्रा प्रभावित होती है. कुछ शोधों में यह भी पाया गया है कि जन्म के 1 मिनट के बाद गर्भनाल काटने से नवजात में पीलिया का खतरा थोड़ा बढ़ जाता है. इसलिए जन्म के समय गर्भनाल काटे जाने के समय का निर्धारण काफी सोचसमझ कर करें.

कुछ अध्ययनों में यह भी पाया गया कि यदि किसी नवजात की गर्भनाल पतली हो तो उस के बड़े होने पर उस में दिल के दौरे का जोखिम अन्य लोगों की तुलना में दोगुना हो जाता है.

गर्भनाल गांठ

गर्भनाल में गांठ बड़ी परेशानी का सबब बन सकती है. यह गांठ रक्त और पोषक तत्त्वों के मां से बच्चे में पास होने में बाधा पैदा कर सकती है. ऐसा होने पर विशेषज्ञ की सलाह जरूरी हो जाती है. तब शल्यक्रिया द्वारा सुरक्षित प्रसव करवाया जा सकता है.

वरदान है गर्भनाल

बच्चे की गर्भनाल को काटे जाने के बाद प्लैसेंटा गर्भनाल के संरक्षण के लिए बैंकों के द्वारा अत्यधिक उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है. गर्भनाल से रक्त को निकालने के बाद उसे बैंक में भेजा जाता है, जहां उसे शून्य से 196 डिग्री सैल्सियस नीचे के तापमान पर तरल नाइट्रोजन में फ्रीज कर के संरक्षित किया जाता है. इस प्रक्रिया से रक्त को कई सालों तक सुरक्षित रखा जा सकता है.

गर्भनाल की स्टेम कोशिकाओं को नवप्रसव स्टेम कोशिकाओं के नाम से भी जाना जाता है. स्टेम कोशिकाएं मानव शरीर की मास्टर कोशिकाएं होती हैं, जिन में शरीर की 200 से भी अधिक प्रकार की कोशिकाओं में से हर कोशिका में विकसित होने की क्षमता होती है. स्टेम कोशिकाओं में जीवन भर विभाजन करने की खास क्षमता होती है और मृत या क्षतिग्रस्त हो चुकी कोशिकाओं की जगह लेने की क्षमता होती है, इसलिए अब डाक्टर अस्थिमज्जा जैसे परंपरागत स्रोत की तुलना में गर्भनाल रक्त से स्टेम कोशिकाओं को प्राप्त करने को तरजीह दे रहे हैं. विश्व भर में स्टेम कोशिकाओं का इस्तेमाल कई बीमारियों के इलाज के लिए किया जा रहा है. 

कौस्मैटिक स्किन ऐंड होम्योक्लीनिक की होम्योफिजीशियन  डा. करुणा मल्होत्रा से बातचीत पर आधारित.

जब जरूरत हो आया की

जब पतिपत्नी दोनों ही कामकाजी हों और घरपरिवार भी न्यूकिलीयर साइज की हो तब घर के नन्हेमुन्नों की देखभाल की समस्या होती ही है. इसीलिए जरूरत होती है एक अदद आया की, जो बच्चे की देखभाल भी कर सके और घर को भी अपनत्व का एहसास दे सके. यहां प्रश्न यह उठता है कि ऐसी आया लाई कहां से जाए? इस के लिए कई प्लेसमेंट एजेंसियां हैं, जो फीस ले कर आप की जरूरत को पूरा करती हैं. आइए, जानते हैं कि ये एजेंसियां कैसे आयाएं मुहैया कराती हैं और इन एजेंसियों से कैसे सावधान रहें.

प्लेसमेंट एजेंसियां कैसीकैसी

किसी प्लेसमेंट एजेंसी से संपर्क करने से पूर्व उस के बारे में अच्छी तरह जानना जरूरी है. ये एजेंसियां आमतौर पर एक अच्छी फीस ले कर आया दिलवाती हैं. अगर एक आया पसंद न हो तो दूसरी और फिर तीसरी आया का इंतजाम भी ये करती हैं. 1 साल बाद फिर से कांटेक्ट को रिन्यू कर के ये एजेंसियां दोबारा से फीस लेती हैं. आया को रखने से पहले प्लेसमेंट एजेंसी की गुडविल को जरूर ध्यान में रखें.

कई एजेंसियां बेईमानी भी कर जाती हैं. रमोला के साथ ऐसा ही हुआ. उस ने एजेंसी से एक आया रखवाई. 2 दिन रहने के बाद वह चलती बनी और एजेंसी वाले आजकल करतेकरते कोई आया नहीं भेज पाए और फिर बाद में उन्होंने बताया कि हम पैसे वापस नहीं करते. बहुत कुछ कहनेसुनने के बाद उन्होंने एक चैक दिया, जो बाउंस हो गया. पुलिस से कहनेसुनने के बाद भी वे थोड़े से पैसे दे कर चलते बने. अगर आप कोर्ट के आंकड़े देखें तो प्लेसमेंट एजेंसियों की ठगी के ढेरों केस विचाराधीन मिलेंगे. फिर भी जरूरत होने पर इन्हीं के द्वारा आया का इंतजाम करना पड़ता है. धोखा खा कर पछताने से बेहतर होगा कि इन से डील करते समय इन के बारे में जानकारी हासिल अवश्य कर लें और सब कुछ देख कर ही आया का इंतजाम करें.

कैसीकैसी आयाएं

आया को घर में रखने से पहले इन के कुछ नेगेटिव पहलू भी समझ लें. वैशाली की बेटी करीब 1 साल की थी. उस ने बेटी के लिए आया का इंतजाम किया. आया युवा थी. वह घर में बच्ची को देखती. शाम को जब वैशाली और रवि लौटते तो उन्हें लगता कि आया बहुत अच्छी तरह बच्ची को रख रही है. एक दिन वैशाली की तबीयत ठीक नहीं थी. वह छुट्टी ले कर अचानक घर लौटी तो देख कर हतप्रभ रह गई. आया अपने बौयफेंड के साथ आपत्तिजनक अवस्था में थी और बच्ची गहरी नींद में सो रही थी. वैशाली के तो पैरों तले जमीन ही निकल गई. बाद में पता चला कि वह रोज बच्ची को नींद की दवा दे देती थी. वह जानती थी कि कुछ दवा से नींद भी आ जाती है और बाद का समय अपने प्रेमी के साथ गुजारती थी. बच्ची दवा के असर से उनींदी सी रहती थी. बमुश्किल उस आया को घर से निकाला.

इसी प्रकार एक और आया बड़े बच्चे को तंबाकू खिला देती थी पर उस का भांडा जल्दी फूट गया और बाद में पुलिस ने उस की अच्छी खबर ली. आयाओं के बुरे व्यवहार की कहानियां अकसर सुनने में आती हैं. एक आया बच्चे को बहुत पीटती थी और डरा कर रखती थी कि किसी को न बताएं. कुछ साल पहले यह खबर अखबारों की सुर्खियां भी बनी थीं. इन सब चर्चाओं का मकसद यही है कि आया रखते समय आप सावधानी बरतें और कुछ बातों का ध्यान अवश्य रखें :

आया से जुड़ी आप की जिम्मेदारियां

सब से पहले आया का पुलिस वैरिफिकेशन कराएं. इलाके के थाने में उस का फोटो, पता और जानकारी रजिस्टर कराएं. इस से एक तो आया को भी डर रहेगा, दूसरे, आप की सुरक्षा भी रहेगी. आजकल सब जानते ही हैं कि किसी नौकर या आया को रखने से पूर्व उस का आईडैंटिटीफिकेशन जरूरी होता है. आप बेहिचक यह कराएं.

आया का मेडिकल चैकअप भी अवश्य करा लें. यह ध्यान जरूर रखें कि उसे कोई छूत की बीमारी तो नहीं है. छोटे बच्चे बड़े कोमल होते हैं, उन के साथ रहने वाली आया रोगमुक्त होनी चाहिए.

आया की हाईजीन का पूरा ध्यान रखना भी जरूरी है. वह रोज नहा कर साफ कपड़े पहने और अपने हाथ धो कर साफ रखे. तभी वह बच्चे को गोद में ले या उसे खिलाए.

उस को यह भी समझा कर रखें कि जब बच्चा सो रहा हो तभी वह कुछ समय के लिए आराम कर ले पर बच्चे का ध्यान भी रखे. कई बार ऐसा भी होता है कि बच्चा सो रहा है तो आया भी सो जाती है और बच्चा बेड से गिर जाता है. इन सब बातों का विशेष ध्यान रखें. बच्चा बहुत छोटा है तो सोने के बाद उस के चारों ओर कुशन या तकिए लगा कर वह अपने अन्य काम निबटा सकती है.

आया को हिदायत दें कि वह 1-2 बार फोन कर के स्वयं बच्चे के बारे में बताए कि वह क्या कर रहा है. बीचबीच में आप भी फोन करती रहें. इस से आया को ध्यान रहेगा कि आप कभी भी उस के बारे में पूछ सकती हैं.

अकसर आया की निगाहें बच्चे के दूध आदि पर होती है. उस का सब से अच्छा तरीका यही है कि स्वयं ही आया से कह दीजिए कि बच्चे को दूध उबाल कर दे. जो बचेगा उस से वह अपनी चाय बना ले. थोड़ा ज्यादा दूध दें, जिस से उस की नीयत भी नहीं बिगड़ेगी और वह बच्चे को आराम से दूध भी पिला देगी. बचे हुए दूध को तो उसे ही लेना है, वह चाय बनाए या खुद ले, उसे एक स्वतंत्रता तो मिलेगी ही. थोड़ा विश्वास तो आप को उस पर करना ही होगा.

आया थोड़ी ज्यादा उम्र की ही रखें. छोटी उम्र की आयाओं से डर रहता है कि उन के प्रेमी बन जाएंगे या घर में भी उन का रहना ठीक नहीं है. बड़ी परिपक्व आयु की आया ज्यादा मैच्योरिटी से काम करेगी.

समयसमय पर आया का मेडिकल चेकअप कराती रहें.

आया को बिना बात सब के बीच डांटें भी नहीं, यह उसे बुरा लग सकता है. आखिर उस का भी स्वाभिमान होता है. अलग से जा कर उसे जो कहना है, आराम से कह दें. मान लीजिए उस की कोई बात आप पसंद नहीं कर रहीं तो गंभीर शब्दों में उसे समझा जिए कि यह आप को पसंद नहीं है.

बातों का ध्यान रखें तो आया एक अच्छी मददगार साबित हो सकती हैं.

भाग्यश्री को नहीं भा रहा है शो

हाल ही में ‘लौट आओ तृषा’ से भाग्यश्री ने पूरे 27 साल बाद स्क्रीन पर वापसी की थी, लेकिन वे इस महीने इस शो को बायबाय कहने वाली हैं. जब किसी की फिल्म या शो अच्छा चलता है, तो वह उसे प्रमोट करने की कोशिश करता है, लेकिन लगता है कि भाग्यश्री कुछ अलग ही हैं. जब उन की चीजें पीक पर होती हैं, तो वे उन्हें बाय करने में समय नहीं लगातीं. वे बताती हैं कि इस शो में उन के कैरेक्टर अमृता को सभी दर्शकों ने काफी सराहा और मैं यही मैंटेन करना चाहती थी. लेकिन मैं इसे फुजूल में घसीटना नहीं चाहती. अगर इस में कुछ खास और इंटरैस्टिंग होता तो सही था, लेकिन बेवजह का खींचना मुझे सही नहीं लगता. वैसे देखा जाए तो मुझे अपनी चीजों को पीक पर छोड़ने के लिए जाना जाता है.

सौंदर्य समस्याएं

मैं 32 वर्षीय महिला हूं. मेरी समस्या यह है कि मेरे चेहरे की त्वचा बहुत खुश्क है और चेहरे पर पिंपल्स के दाग भी हैं, जिन की वजह से चेहरा बहुत भद्दा लगता है. कृपया चेहरे से पिंपल्स के दागों को हटाने का कोई घरेलू उपाय बताएं?

चेहरे से पिंपल्स के दागों को हटाने से पहले पिंपल्स के होने के कारणों को जानना जरूरी है. कई बार तैलीय ग्रंथियों के अधिक सक्रिय होने के कारण या हारमोनल बदलाव के कारण पिंपल्स अधिक होते हैं. जहां तक घरेलू उपाय की बात है तो पिंपल्स के दागों को हटाने के लिए संतरे के छिलकों को पाउडर बना कर उस में हलदी व नीबू का रस मिला कर पिंपल्स के दागों पर लगाएं और फिर सूखने तक लगा रहने दें. अगर पिंपल्स कील वाले हैं, तो मीठे सोडे में पानी मिला कर पेस्ट बनाएं और पिंपल्स पर लगाएं. पिंपल्स हटने के बाद ओपनपोर्स पर मुलतानी मिट्टी का पैक, खीरे का रस या टोनर लगाएं.

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मैं 35 वर्षीय महिला हूं. मेरी समस्या यह है कि मेरे चेहरे पर काफी झांइयां हैं, जिन की वजह से चेहरा निस्तेज सा लगता है और कोई भी मेकअप अच्छा नहीं दिखता. झांइयां हटाने का कोई घरेलू उपाय बताएं?

कई बार चेहरे पर झांइयां खून की कमी के कारण होती हैं. इस के अलावा प्रैगनैंसी में कमजोरी होने और सनबर्न के कारण भी चेहरे पर झांइयां हो जाती हैं. अगर इन में से कोई कारण हो तो उस का इलाज कराएं. इस के अलावा घरेलू उपाय के तौर पर झांइयों से छुटकारा पाने के लिए झांइयों पर दही व खीरे का रस लगाएं. सनबर्न से होने वाली झांइयां को हटाने के लिए पपीते के पल्प को मैश कर के झांइयों पर लगाएं. धूप में निकलने से पहले सनस्क्रीन लगाएं. अगर ऐनीमिया से पीडि़त हैं तो आयरन टैबलेट लें. भोजन में पालक व टमाटर अधिक मात्रा में लें.

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मैं एक मध्य आयुवर्ग की महिला हूं. आंखों के नीचे के काले घेरों से परेशान हूं. उन्हें हटाने का कोई उपाय बताएं?

आंखों के नीचे काले घेरे ज्यादा देर तक टीवी देखने, कंप्यूटर पर काम करने या फिर नींद पूरी न होने के कारण होते हैं. इन्हें हटाने के लिए टी बैग्स को उबाल कर फ्रीजर में ठंडा कर के उन पर लगाएं. इस के अलावा आलू या खीरे के रस में कौटन को डुबो कर आंखों पर लगाएं. आंखों के नीचे की त्वचा चेहरे की त्वचा की अपेक्षा अधिक सैंसिटिव होती है. अत: उसे ज्यादा मौइश्चराइज करने की जरूरत होती है. इस के लिए हर 4 घंटे बाद आंखों के नीचे मौइश्चराइजर लगाएं. इस के अलावा आंखों को खोलनेबंद करने की ऐक्सरसाइज करें. जरूर लाभ होगा.

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मेरी उम्र 15 साल है. मैं अपने डार्क लिप्स को ले कर परेशान हूं. क्या होंठों को प्राकृतिक रूप से गुलाबी बनाया जा सकता है? कृपया घरेलू उपाय बताएं?

कुछ लोगों के होंठों का रंग जैनेटिक कारणों से डार्क होता है. फिर भी डार्कनैस को थोड़ा हलका किया जा सकता है. इस के लिए रोजवाटर में वैसलीन मिला कर होंठों पर लगाएं. इस के अलावा पपीते के बीजों को पीस कर उस में नीबू के रस की बूंदें मिलाएं और फिर इस पेस्ट को होंठों पर लगाएं. नीबू में ब्लीचिंग एजेंट होता है, जो होंठों के गहरे रंग को हलका करने में मदद करता है.

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मैं अपने झड़ते बालों की वजह से बहुत परेशान हूं. बहुत उपाय कर लिए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. कृपया बालों को झड़ने से रोकने के लिए कोई उपाय बताएं?

बालों के झड़ने का कारण हारमोनल बदलाव भी हो सकता है. इस के अलावा कई बार कैमिकल प्रोडक्ट्स जैसे, हार्श शैंपू, हेयरकलर या कैमिकल हेयर ट्रीटमैंट की वजह से भी बाल झड़ने लगते हैं. बालों को झड़ने से बचाने के लिए आप रात को दूध के साथ 1 चम्मच फ्लैक्स सीड्स खाएं. इस के अलावा बालों पर मेथीदाना पाउडर में आंवला व शिकाकाई पाउडर मिला कर लगाएं. अगर बाल औयली हों तो पेस्ट में दही भी मिलाएं और अगर बाल औयली न हों तो दूध मिलाएं. इस के अलावा आप बाजार में उपलब्ध जेसवैंड जैल में ऐलोवेरा जूस या पल्प मिला कर स्कैल्प पर 1/2 घंटे के लिए लगाएं. फिर इसे केवल पानी से धोएं. शैंपू न करें.

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मेरी बेटी की उम्र 10 वर्ष है. वह अंडरआर्म्स में हो रहे दानों से परेशान है. स्लीवलेस पहनने पर दाने बहुत खराब लगते हैं. कृपया कोई उपाय बताएं?

अंडरआर्म्स में दाने होने का कारण अधिक पसीना आना या फिर बैक्टीरियल इन्फैक्शन हो सकता है. उन से बचने के लिए वहां की त्वचा को हमेशा ड्राई रखें. उसे कौटन के कपड़े पहनाएं और दानों पर ऐंटीसैप्टिक लोशन व ऐस्ट्रिंजैंट और एैब्जौर्ब पाउडर लगाएं. इस से जरूर आराम मिलेगा.

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मेरी स्किन सांवली है जिस वजह से मैं हलका मेकअप ही करती हूं. लेकिन मेरा मेकअप ज्यादा देर तक टिका नहीं रहता, जल्दी खराब हो जाता है. मेकअप देर तक टिके इस के लिए क्या करूं?

पहले आप चेहरा ऐस्ट्रिंजैंट से अच्छी तरह से साफ करें. फिर चेहरे पर आइस क्यूब रगड़ें. मेकअप से पहले बेस लगाएं. फाउंडेशन अपनी स्किन टोन से एक टोन डार्क लें और इसे डौटडौट कर स्किन में अच्छी तरह मर्ज करें. फिर इस पर डस्क पाउडर का प्रयोग करें. मेकअप देर तक टिका रहेगा.

समस्याओं का समाधान कौस्मेटोलौजिस्ट संगीत सभरवाल द्वारा बताए गए.

पास्ता इन टैंगी सौस

सामग्री

2 कप पास्ता , 1/4 कप गाजर पतली लंबाई में कटी , 1/4 कप हरी शिमलामिर्च लंबाई में कटी , 1/4 कप ब्रोकली के छोटे टुकड़े, 6 टमाटर मीडियम आकार के , 50 ग्राम अदरक कद्दूकस किया , 1/4 छोटा चम्मच दालचीनी पाउडर , 1/4 छोटा चम्मच कालीमिर्च पाउडर , 10-12 तुलसी की पत्तियां द्य नमक स्वादानुसार.

विधि

पास्ता को 8 कप पानी में गलने तक उबालें और फिर पानी से निथार लें. टैंगी सौस बनाने के लिए टमाटरों को छोटे टुकड़ों में काटें फिर अदरक के साथ आंच पर 6-7 मिनट पकाएं. मिक्सी में पीस कर छान लें. पुन: मिश्रण को आंच पर रखें. इस में नमक, दालचीनी पाउडर, कालीमिर्च पाउडर और तुलसी की पत्तियां डाल कर धीमी आंच पर 2 मिनट पकाएं. ब्रोकली, गाजर और शिमलामिर्च को गरम सौस में डाल कर 1 मिनट पकाएं. 10 मिनट ढक कर रखें. पुन: गरम करें और पास्ता के साथ मिक्स कर के गरमगरम सर्व करें.

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