ब्रोकली ऐंड बेसन सब्जी

सामग्री

250 ग्राम ब्रोकली कटी हुई

2 बड़े चम्मच तेल

1/2 छोटा चम्मच जीरा

1/8 छोटा चम्मच हींग

1 बड़ा चम्मच लहसुन कटा हुआ

स्वादानुसार हरीमिर्च कटी हुई

1/2 कप बेसन

1/4 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

1/4 छोटा चम्मच जीरा पाउडर

1/2 छोटा चम्मच सूखा अमचूर पाउडर

1/4 छोटा चम्मच गरममसाला

1/2 छोटा चम्मच धनिया पाउडर

1/4 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर,

नमक व नीबू का रस स्वादानुसार.

विधि

एक नौनस्टिक कड़ाही में 1 बड़ा चम्मच तेल मध्यम आंच पर गरम करें. फिर इस में जीरा मिलाएं. जब जीरा चटकने लगे तब हींग, लहसुन और हरीमिर्च मिला कर 15 सैकंड भूनें. अब ब्रोकली डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. फिर इसे ढक कर 2-3 मिनट पकाएं. फिर अलग बरतन में बेसन, हलदी पाउडर, जीरा पाउडर, सूखा अमचूर पाउडर, गरममसाला, नमक, धनिया पाउडर और लालमिर्च पाउडर मिलाएं. अब 1 बड़ा चम्मच तेल इस में मिलाएं. फिर ब्रोकली पर बेसन मिश्रण ऊपर से डालें, लेकिन इसे मिक्स न करें. अब ढक कर 5 मिनट पकाएं. फिर आंच से हटा कर नीबू का रस मिलाएं और गरमा गरम चपाती और चावलदाल के साथ सर्व करें.

बेक्ड दूधी कोफ्ता करी

सामग्री

1 कप लौकी कद्दूकस की हुई

1/4 कप गेहूं का आटा

1/4 कप बेसन

1/2 छोटा चम्मच मिर्च पाउडर

1/4 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

एक चुटकी सोडा

स्वादानुसार नमक.

गे्रवी के लिए

6 टमाटर

3 सूखी व साबूत लालमिर्च

2 छोटे चम्मच धनिया

2 छोटे चम्मच हरीमिर्च कटी हुई

2 छोटे चम्मच अदरकलहसुन का पेस्ट

1/2 छोटा चम्मच चीनी

1/2 छोटा चम्मच मिर्च पाउडर

1/2 छोटा चम्मच धनिया पाउडर

1/2 छोटा चम्मच कौर्नफ्लोर

2 बड़े चम्मच लो फैट दूध में घुला हुआ

3 छोटे चम्मच तेल

स्वादानुसार नमक.

सजाने के लिए: 2 बड़े चम्मच कटी धनियापत्ती.

विधि

दूधी कोफ्ता बनाने के लिए सभी सामग्री को एक बरतन में अच्छी तरह मिलाएं. फिर इस मिश्रण को बराबर हिस्से में गोल आकार में बनाएं और माइक्रोवेव में हाई स्टीम में 15 मिनट स्टीम दे कर एक तरफ रख दें. ग्रेवी के लिए एक बरतन में पानी भर कर उस में टमाटर मिलाएं. फिर कुछ देर बाद टमाटर को छील कर मिक्सी में डाल कर स्मूद प्यूरी बना कर एक तरफ रख दें. फिर कश्मीरी सूखी मिर्च और धनिया को पीसें और एक तरफ रख दें.

अब एक नौनस्टिक कड़ाही में तेल गरम करें. इस में हरीमिर्च व अदरकलहसुन पेस्ट को 30 सैकंड धीमी आंच में भूनें. अब पहले से तैयार टमाटर प्यूरी, 3-4 कप पानी, चीनी और नमक को अच्छी तरह से मिलाएं और उबालें. फिर लालमिर्च पाउडर, धनिया पाउडर और कौर्नफ्लोर मिल्क के मिश्रण को डालें और कुछ मिनट उबालें. करी तैयार हो जाएगी. अब तैयार कोफ्तों को करी में मिला कर 5-10 मिनट पकाएं. फिर गरमगरम धनियापत्ती से सजा कर सर्व करें.

नूडल्स फ्रिटर्स

सामग्री

1 कप बेसन

2 टेबल स्पून कौर्नफ्लोर

1 कप नूडल्स उबाले हुए

2 मशरूम छोटेछोटे कटे हुए

1/2 कप बंदगोभी पतलीपतली कटी हुई

1-2 हरीमिर्च बारीक कटी हुई

1 इंच अदरक लंबे पतले टुकड़ों में कटा

2 बड़े चम्मच बारीक कटी धनियापत्ती

1/4 छोटा चम्मच लालमिर्च

तेल पकौड़े तलने के लिए

नमक स्वादानुसार.

विधि

किसी प्याले में बेसन और कौर्नफ्लोर डालें और थोड़ाथोड़ा पानी डाल कर गुठलियां खत्म होने तक घोलें. फिर पानी डाल कर, पकौड़े का घोल बनाएं. घोल को 4-5 मिनट तक फेंट कर घोल को एकदम चिकना बना लें. अब घोल में नमक, लालमिर्च, हरीमिर्च, धनियापत्ती, अदरक, मशरूम, पत्तागोभी और नूडल्स डाल कर अच्छी तरह सारी चीजों को मिक्स करें. अब कड़ाही में तेल डाल कर गरम करें. उस में चम्मच या हाथ से थोड़ाथोड़ा मिश्रण उठा कर डालें और पकौड़ों को पलटपलट कर गोल्डन ब्राउन होने तक तलें. तले पकौड़े किसी प्लेट में बिछे नैपकिन पेपर पर निकाल कर रखें. फिर उन्हें टोमैटो सौस या हरी धनिया की तीखी चटनी के साथ सर्व करें.

सैक्स में नाकामी कब

सैक्स पतिपत्नी के रिश्ते को मजबूत बनाता है, यह हम सभी जानते हैं. मगर सफल सैक्स के लिए स्वस्थ शरीर के साथसाथ मन का स्वस्थ होना भी बहुत जरूरी है. सैक्स में कबकब नाकामी मिलती है, इस पर चर्चा के दौरान सर गंगाराम अस्पताल के डा. अनिल अरोड़ा ने विस्तार से बताया :

शिथिलता : सैक्स की इच्छा होने पर पुरुष इंद्रिय की ओर रक्तसंचार का प्रभाव बढ़ता है, जिस से इंद्रिय में उत्थान और कठोरता आती है. यदि आप का पार्टनर भय, चिंता, तनाव से परेशान हो तो इंद्रिय की कठोरता समाप्त या फिर कम हो जाती है. ऐसे पतियों को मानसिक रूप से नपुंसक कहा जाता है.

मानसिक तनाव : सैक्स में नाकामी का एक कारण मानसिक भी है. इंद्रिय उत्थान नर्वस स्टिम्युलेशन पर आधारित होता है. जब संवेदना नहीं मिलती है तब उत्थान का अभाव होता है. सैक्स की प्रबल इच्छा होते हुए भी पति इंद्रिय शिथिलता के कारण सैक्स करने में असमर्थ होता है.

तीखे, गरम, खट्टे का अधिक सेवन : तीखी, खट्टीमीठी, गरम चीजों का अधिक सेवन करने से वीर्य विकृत हो जाता है. परिणामस्वरूप पतिपत्नी सैक्स का पूरी तरह से आनंद नहीं उठा पाते हैं.

प्रजनन अंग में रोग : प्रजनन अंग का रोग भी इंद्रिय उत्थान क्रिया में बाधा डालता है, जिस से पतिपत्नी दोनों ही सैक्स को ऐंजौय नहीं कर पाते हैं. कई बार पति के अंग में चोट लगने से भी उत्थान नहीं हो पाता है. इस के अलावा कई बार मन और शरीर दोनों का कामावेग से उत्तेजित होने पर सहवास क्रिया में प्रवृत्त होने पर पति अतिशीघ्र स्खलित हो जाता है.

पत्नी के सहयोग का अभाव : यदि पत्नी सहवास के दौरान पति को पूर्णरूप से सहयोग नहीं करती है या फिर अपने सजनेसंवरने अथवा शरीर की साफसफाई का ध्यान नहीं रखती है तो इस से भी पति के मन में सैक्स के प्रति अरुचि पैदा हो जाती है.

गैरजरूरी नियम बनाना : कई बार संबंध बनाने के दौरान पत्नी कुछ गैरजरूरी नियम बना लेती है जैसे लाइट औफ न करना, नए तरीके आजमाने के लिए मना करना, जल्दी करो की रट लगाना आदि से भी संबंध बनाने में नाकामी का सामना करना पड़ता है.

कभी पहल न करना : परिणय संबंध के लिए पत्नी द्वारा हमेशा पति की ही बाट जोहना, खुद कभी पहल न करना भी पति को अच्छा नहीं लगता है. पति भी चाहता है कि पत्नी भी पहल करे.

उत्साह की कमी : सहवास के दौरान पतिपत्नी दोनों को उत्साह के साथ हंसतेबोलते, चुहलबाजी करते हुए सहयोग करना चाहिए. यदि पत्नी ऐसा नहीं करती, तो पति को लगता है कि पत्नी केवल औपचारिकता निभा रही है.

आर्गेज्म की परवाह न करना : जिस तरह पत्नी चाहती है कि वह सैक्स में पति को पूरी तरह संतुष्ट कर सके, ठीक उसी तरह पति भी चाहता है कि वह पत्नी को पूर्णरूप से संतुष्ट कर सके, मगर यह तभी संभव हो सकता है जब दोनों ही मानसिक व शारीरिक रूप से एकदूसरे से जुड़ कर सैक्स का आनंद लें.

इम्युनिटी बढ़ाता है : सैक्स पूरे शरीर को प्रभावित करता है. यह दिलदिमाग के साथसाथ रोगप्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है.

जकड़न से छुटकारा : यदि पति या पत्नी स्टिफनेस की समस्या से परेशान रहते हों तो सहवास क्रिया उन की मदद करेगी. दरअसल, यह एक ऐसी क्रिया है, जिस से शरीर की सभी मसल्स की एक्सरसाइज हो जाती है, स्टिफनेस जैसी तकलीफ से भी छुटकारा मिलता है. कोलेस्टेराल नियंत्रित रहता है, रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, सर्दीजुकाम की समस्या कम होती है.

पेनकिलर है : शरीर के किसी भी हिस्से में दर्द हो तो सैक्स से परहेज न करें, क्योंकि सैक्स करने से दर्द से राहत मिलेगी. यह तनाव भी दूर करता है.

खूबसूरती : यदि पतिपत्नी दोनों ही खुल कर सैक्स सुख को अपनाते हैं, तो इस से उन की खूबसूरती ही नहीं बढ़ती, अपितु उम्र भी बढ़ती है.

डा. अनिल बताते हैं कि सैक्स की कमजोरी में टेस्टोस्टेरान का प्रयोग किया जाता है. यानी पुरुष हारमोन से इलाज किया जाता है. यह उन रोगियों के लिए ही उपयोगी सिद्ध होता है, जिन के शरीर में सचमुच कामोत्तेजना की कमी होती है. इस तरह सैक्स की नाकामी को दूर कर के सुखद सैक्स जिंदगी जीना आज की भागमभाग वाली जिंदगी के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण है.

मैं प्रशंसक के लिए काम नहीं करता : अमिताभ बच्चन

बौलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन की फरवरी माह में फिल्म ‘शमिताभ’ रिलीज हुई, जिस में उन के साथ धनुष और अक्षरा हासन हैं. इस फिल्म के सहनिर्माता अभिषेक बच्चन हैं. पेश हैं, अमिताभ से हुई मुलाकात के कुछ खास अंश:

आर. बालकी जब आप के पास ‘शमिताभ’ की स्क्रिप्ट ले कर आए थे, उस वक्त आप को इस में ऐसी क्या बात नजर आई कि आप ने तय कर लिया कि इस का निर्माण भी किया जाए

हम लोग भी थोड़ा बहुत प्रोडक्शन करते रहते हैं. आर. बालकी के साथ हम पहले भी फिल्में बना चुके हैं. एक दिन अभिषेक ने मुझ से पूछा कि क्यों न हम इस फिल्म को मिल कर बनाएं? तब मैं ने उस से कहा कि ठीक है.

फिल्म ‘शमिताभ’ को ले कर क्या कहेंगे?

यह फिल्म सिनेमा की पृष्ठभूमि पर एक ऐसी रोचक कहानी है, जो अब तक किसी भी फिल्म का हिस्सा नहीं रही है. फिल्म में 2 इंसान हैं, जिन की उम्र में काफी अंतर है. मगर दोनों में कुछ कमियां और कुछ खूबियां हैं. दोनों एकदूसरे के साथ जुड़ कर सफलता के नए मानदंड स्थापित करते हैं. मगर एक मुकाम पर दोनों का ईगो आडे़ आ जाता है, फिर उन में विद्रोह हो जाता है. फिल्म में अक्षरा हासन एक कैटालिस्ट की तरह हैं. वे समझ जाती हैं कि इन दोनों की कमियां क्या हैं और कैसे दोनों एकदूसरे की कमियों को पूरा कर सकते हैं. वे इन दोनों को एकसाथ लाने का काम करती हैं.

70 व 80 के दशक में आप ने एक ऐंग्री यंग मैन के हीरोइज्म को पेश किया था. अब वह नहीं रहा. यह जो हीरोइज्म बदला है, उसे ले कर क्या कहना चाहेंगे?

सिनेमा का हीरो कैसा हो, यह हमें समय बताता है. 70 के दशक में लेखकों को लगा था कि हमारे देश में जो कुछ हो रहा है, वह सही नहीं है. उस वक्त देश की नौजवान पीढ़ी के अंदर विद्रोह था, आक्रोश था. इसी वजह से जो किरदार फिल्मों में निखर कर आते थे, उस से लोग आईडैंटिफाई करते थे. उस वक्त युवा पीढ़ी को लगता था कि फिल्म में यह जो किरदार निभाया गया है, वह हमारी बात कर रहा है. बाद में धीरेधीरे वह दौर खत्म हो गया. फिर रोमांस का दौर आया. उस दौर में जो हीरो चमके, वे सभी रोमांटिक हीरो बन गए. उस के बाद फिर नया हीरो आया. मुझे लगता है कि अब एक बार फिर यह दौर भी बदलेगा और फिल्मों में नया हीरोइज्म सामने आएगा.

क्या आप मानते हैं कि इन दिनों जिस तरह से फिल्मों में भारी मात्रा में ऐक्शन दिखाया जा रहा है, क्या वह हमारे समाज का हिस्सा है?

यह तो जनता से ही पता चलेगा. जब फिल्म सौ या 2 सौ करोड़ कमा ले, तो क्या कहेंगे? लोग तो यही कहेंगे कि यही सही है, तो इस में हमारा कुछ लेनादेना नहीं है.

मगर बौक्स औफिस के इन सौ या 2 सौ करोड़ के आंकड़ों को ले कर भी कई तरह के सवाल उठ रहे हैं?

इस के बारे में मुझे ज्यादा जानकारी नहीं है. लेकिन इस प्रश्न का सही जवाब डिस्ट्रीब्यूटर या फाइनैंसर अथवा फिल्म के निर्माण में जो फंडिंग करते हैं, वही दे सकते हैं. मैं ने इस तरफ कभी ध्यान नहीं दिया. मुझे पता नहीं है कि यह क्या होता है. मुझे तो यह भी नहीं पता कि फिल्म का व्यवसाय कैसे होता है. पर हम सुनते रहते हैं कि फलां फिल्म ने सौ करोड़ कमाए, फलां फिल्म ने 2 सौ करोड़ कमाए. अच्छी बात है यदि फिल्में कमा रही हैं. इस से फिल्म इंडस्ट्री को फायदा ही है.

फिल्म जगत में हर दिन नएनए बदलाव आ रहे हैं. भविष्य में क्या होगा, क्या इस का कोई एहसास आप कर पा रहे हैं?

इस का जवाब देना बड़ा मुश्किल है. 30 साल पहले हम ने कभी सोचा भी नहीं था कि टीवी हमारे सामने इतना बड़ा माध्यम बन कर उभरेगा अथवा सोशल मीडिया प्रबल होगा. भविष्य का कुछ पता नहीं चल सकता, क्योंकि आए दिन नए आविष्कार होते रहते हैं. मैं ने सुना है कि टीवी भी 85% फिल्म केंद्रित हो गया है. सोशल मीडिया हो या इंटरनैट, वहां भी ज्यादातर सामग्री फिल्मों की ही होती है, तो फिल्म मूलमंत्र रहेगा. आज की पीढ़ी के पास समय की कमी है. कम समय होने का मतलब यह नहीं है कि उस के पास समय नहीं है. समय होता है, पर उस में तीव्रता बहुत है. वह चाहती है कि बड़ी तेजी से काम हो जाए. पहले किसी बात को कहने के लिए 4-5 या 10 वाक्यों का सहारा लेना पड़ता था, पर अब ऐसा नहीं है. अब शब्दावली कम होती जा रही है. आज की पीढ़ी ‘कूल’, ‘रौकिंग’ जैसे शब्दों में ही सारी बात खत्म कर देती है.

धारावाहिक ‘युद्ध’ करने का अनुभव कैसा रहा?

इस धारावाहिक को जितनी टीआरपी मिलनी चाहिए थी उतनी नहीं मिली. दर्शकों ने इसे ज्यादा पसंद नहीं किया.

क्या वजह रही?

यही कि लोगों ने इसे नहीं देखा. लेकिन इस धारावाहिक में काम करने का मेरा अनुभव अच्छा रहा. मुझे वहां जा कर काम करना अच्छा लगता था. मुझे लगता है कि धीरेधीरे यह सारा माहौल बदलेगा. लोग चाहेंगे कि टीवी पर और ज्यादा बेहतरीन काम हो. मैं भी निरंतर टीवी पर कुछ न कुछ काम करता रहूंगा.

आप अभिनय जगत के साथसाथ सोशल मीडिया में भी सुपर स्टार बने हुए हैं. अब आगे क्या करने वाले हैं?

मैं ने कभी कोई काम यह सोच कर नहीं किया कि मुझे इस से इतने प्रशंसक मिलेंगे. सोशल मीडिया से मेरा जुड़ाव इत्तफाकन हुआ. किसी ने कहा कि आप की वैबसाइट होनी चाहिए, क्योंकि आप के नाम पर सौ से डेढ़ सौ वैबसाइट बनी हुई हैं और सभी में कोई न कोई गलत जानकारी दी गई है. लोग उसे सही मान रहे हैं. तब मैं ने उस से पूछा कि यह वैबसाइट क्या बला है? तब उस ने मुझे दिखाया, तो सारी बात मेरी समझ में आई.

मैं ने देखा कि मेरे बारे में कुछ गलत समाचार भी थे. मैं ने उस से पूछा कि यदि वैबसाइट बनाई जाए, तो कितना समय लगेगा? उस ने कहा कि 6-7 माह में बना देगा. उस ने मुझ से कहा कि आप अपने परिवार वालों से व अपने से संबंधित सारी जानकारी मुझे दे दीजिए. तब मैं ने उस से कहा कि 6-7 माह कौन इंतजार करेगा. कोई ऐसा रास्ता बताओ ताकि जल्दी हो जाए. तब उस ने मुझे ‘ब्लौग’ के बारे में बताया. उस ने कहा कि सुबह लिखिए, शाम तक छप जाएगा. मुझे लगा कि यही ठीक है. मैं ने कुछ लिखा फिर उसे टाइप कर ब्लौग पर पोस्ट कर दिया. अगले दिन एक रिस्पौंस आ गया. मुझे लगा कि यह तो बहुत अच्छी बात है. मैं ने जो कुछ लिखा, उसे किसी ने तो पढ़ा. मैं ने उसे जवाब दे दिया. अगले दिन 3 रिस्पौंस आ गए. धीरेधीरे रिस्पौंस की संख्या बढ़ती चली गई. अब मेरा परिवार काफी बड़ा हो गया है. ब्लौग के साथ जुड़े लोगों को मैं ने ‘ऐक्सटैंडेड फैमिली’ का नाम दिया है. ये बड़े कमिटेड लोग हैं. ये हर दिन मेरे ब्लौग पढ़ते हैं और अपना रिस्पौंस देते हैं.

कभी कोई आलोचना करता है?

हां, लोग आलोचना भी करते हैं. प्रशंसा भी करते हैं और गालीगलौज भी करते हैं. सब कुछ करते हैं. हमें सब अच्छा लगता है. देखिए, कोई भी इंसान हर काम अच्छा नहीं कर सकता. उस की आलोचना तो होनी ही चाहिए. ये मेरे प्रशंसक ही हैं, जो मेरे काम की आलोचना करते हैं. यदि आप एक ऐसे माध्यम से जुड़े हैं, जो आप की बातों को संसार भर में फैलाता है और आप यह मान कर चलते हैं कि कोई आप की बुराई नहीं करेगा, तो यह अच्छी बात नहीं है. आप को इस माध्यम में बहुत संभल कर चलना होगा.

आप की आने वाली फिल्में?

अप्रैल माह में सुजीत सरकार द्वारा निर्देशित कौमेडी व ड्रामा फिल्म ‘पीकू’ रिलीज होगी. इस के अलावा बिजय नांबियार द्वारा निर्देशित फिल्म ‘वजीर’ कर रहा हूं, जिस में मेरे साथ फरहान अख्तर भी हैं.

अब इश्क लड़ाएंगी ऐश्वर्या

हम रीयल लाइफ इश्क की नहीं रील लाइफ इश्क की बात कर रहे हैं. दरअसल, खबर है कि करण जौहर की अपकमिंग मूवी ‘ए दिल है मुश्किल’ में ऐश्वर्या अहम रोल प्ले कर रही हैं, जिस में उन के साथ पाकिस्तानी ऐक्टर फवाद खान को लिया जा रहा है. फवाद फिल्म ‘खूबसूरत’ से बी टाउन में डेब्यू कर चुके हैं और हाल ही में उन्हें बैस्ट डेब्यू ऐक्टर का अवार्ड भी मिला है. शायद इसीलिए उन्हें ऐश के अपोजिट कास्ट करने के लिए अप्रोच किया गया है. गौरतलब है कि फिल्म में रणबीर कपूर और अनुष्का शर्मा भी अहम रोल में हैं.

लहराती जुल्फें हेयर रिप्लेसमेंट से

गंजापन एक ऐसी समस्या है, जो न सिर्फ पुरुषों में, बल्कि महिलाओं में भी तेजी से उभर रही है. इस की वजह जेनेटिक होने के साथसाथ आधुनिक जीवनशैली और हमारी डाइट भी है. महिलाओं में यह समस्या बालों के पतले होने और फिर छोटेछोटे धब्बों में गंजेपन के रूप में दिखाई देने लगती है, विशेषकर मेनोपाज के बाद या उस दौरान. हेयर ट्रांसप्लांट, हेयर वीविंग, बांडिंग व विग लगाने जैसी अनेक सर्जिकल व नौनसर्जिकल प्रक्रियाएं व अनेक मेडिकल थेरैपियों का प्रयोग इसे ठीक करने के लिए किया जाता है. पिछले कुछ वर्षों में नौनसर्जिकल हेयर रिप्लेसमेंट तकनीकें ज्यादा लोकप्रिय हुई हैं, खासकर मेल पैटर्न बैल्डनेस में. इस बारे में हम ने बात की रिचफील ट्रिकोलोजी सेंटर, मुंबई की ट्रिकोलोजिस्ट डा. सोनल शाह से. प्रस्तुत हैं उन के साथ हुए साक्षात्कार के अंश :

नौनसर्जिकल हेयर रिप्लेसमेंट क्या है?

यह एक केयरफ्री हेयर ट्रीटमेंट होता है, जो आप के बालों को देता है बिलकुल नैचुरल लुक. यह ठीक न होने वाले गंजेपन, एलोपीसिया व बालों के गिरने की समस्याओं के लिए एक बेहतरीन विकल्प है. अभी भी आमतौर पर यह धारणा है कि हेयर रिप्लेसमेंट या बाल प्रतिरोपण का मतलब विग पहनना ही है, पर ऐसा नहीं है.आधुनिक तकनीक ने ऐसे परिणाम दिए हैं, जो अतिसूक्ष्म, अत्यधिक आरामदायक, अत्यधिक नैचुरल तो होते ही हैं, साथ ही उन की सहायता ले कर सुगमता से जीवन बिताया जा सकता है. इस तकनीक में सिर की त्वचा के लिए एक पतली, हलकी और पारदर्शी झिल्ली तैयार की जाती है, जिसे व्यक्ति के बालों के साथ मिलाया जाता है और फिर इसे सिर की त्वचा के साथ जोड़ कर असली बालों के साथ बुना जाता है ताकि एक नैचुरल प्रभाव बन सके. ऐसा करने से झिल्ली बालों के रंग, घनत्व व स्टाइल के साथ इस तरह मिक्स हो जाती है कि पता ही नहीं लगता कि किसी तरह की झिल्ली का प्रयोग किया गया है.

इस झिल्ली को एक खास किस्म के बांडिंग मैटीरियल से जोड़ा जाता है, जिस से इस के निकलने का न तो डर होता है न ही इस के लगे होने का पता चलता है. यहां तक कि खेलते हुए भी इसे आराम से पहना जा सकता है.

इस के ट्रीटमेंट की क्या विधि होती है?

ज्यादातर नौनसर्जिकल हेयर रिप्लेसमेंट की शुरुआत एक डिजाइन कंसल्टेशन से होती है. यह डिजाइन कंसल्टेशन यह सुनिश्चित करती है कि जो उत्पाद या झिल्ली तैयार की गई है, वह आप के बालों के रंग व स्टाइल के अनुरूप हो. डिजाइन तैयार करने के बाद उस उत्पाद को बनाने में कुछ महीनों का समय लग जाता है. इस झिल्ली को डर्माबेस कहा जाता है, जिस के ऊपर आर्टिफिशियल या रेव्यूलेशन हेयर बुने जाते हैं. ये बाल मानव बाल ही होते हैं जिन्हें केमिकली ट्रीट कर तैयार किया जाता है. इस डर्मा फिल्म को व्यक्ति की हेयरलाइन के चारों ओर फिट कर दिया जाता है. यह फिल्म या झिल्ली पूरी तरह से हवादार, हलकी व पारदर्शी होती है. बाजार में तैयार झिल्लियां भी उपलब्ध हैं, जिन का आप अपने बालों के कलर व स्टाइल के अनुसार चयन कर खरीद सकते हैं. हालांकि इस तरह बाजार से खरीदी झिल्ली लगाने की सलाह कम ही दी जाती है, क्योंकि वह कई बार बालों के इफेक्ट के अनुरूप नहीं बैठ पाती है.

डिजाइनिंग की स्टेज पूरी होने के बाद, प्रक्रिया के 2 अन्य मुख्य तत्त्व होते हैं. सब से पहली होती है झिल्ली. बाजार में कई प्रकार की झिल्लियां उपलब्ध है , पर सब से उपयुक्त रहती है मोनोफिलामेंट, पोलीयूरेथिन व लेस. व्यक्ति की जरूरत के हिसाब से चिकित्सक इन में से चुनाव करता है. मोनोफिलामेंट में छिद्र होते हैं, इसलिए यह ऐसे लोगों के लिए उपयुक्त रहती है, जिन की त्वचा को श्वास या हवा की जरूरत होती है. पोलीयूरेथिन दिखाई नहीं देती है और इस के लगे होने का पता नहीं चलता है. लेस सब से नैचुरल लुक प्रदान करती है, क्योंकि यह पारदर्शी होती है और इस का इस्तेमाल पुरुषों के गंजेपन के सब से अधिक दिखाई पड़ने वाली जगहों पर हेयरलाइन बनाने के लिए किया जाता है.

दूसरी स्टेज होती है झिल्ली को सिर की त्वचा पर चिपकाना. इस के लिए ऐसे एडहेसिव का उपयोग किया जाता है, जो पारभासक (ट्रांसल्यूसेंट) होता है और जो पानी या पसीने से भी नहीं हटता है. सिर की त्वचा में यह पदार्थ ठीक से चिपक जाए, इस के लिए कुछ बालों को उतारने की भी जरूरत पड़ती है. पुरुषों के गंजेपन के उपलब्ध उपचारों में नौनसर्जिकल हेयर रिप्लेसमेंट ही क्यों चुनना चाहिए?

अधिकांश पुरुषों में मेडिकल तरीके से बालों की ग्रोथ करना कारगर साबित नहीं होता, ऐसे में उन के लिए नौनसर्जिकल हेयर रिप्लेसमेंट ही उपयुक्त विकल्प रहता है. सर्जरी में आप के मौजूदा बालों को ले कर पूरे सिर में फैलाया जाता है, इसलिए सर्जरी की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि आप के मौजूद बाल पर्याप्त ढंग से बाल डोनर एरिया से फैल सकें और अगर कभी बाद में बाल झड़ने लगते हैं तो दोबारा सर्जरी कराने की आवश्यकता पड़ती है. लेकिन नौनसर्जिकल हेयर रिप्लेसमेंट में ऐसा नहीं होता, क्योंकि इस में व्यक्ति के मौजूदा बालों के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की जाती है.

महिलाओं के लिए भी यह उपयुक्त क्यों रहता है?

महिलाओं के लिए यह इसलिए उपयुक्त होता है, क्योंकि इस से बाल उलझने का डर नहीं रहता. बाल उलझे नहीं, इस के लिए इस में बालों के क्यूटिकल्स को निकाल दिया जाता है. इस ट्रीटमेंट से बालों में कंघी करना, शैंपू व उन्हें कोई स्टाइल देना आसान होता है. 

क्या नौनसर्जिकल हेयर रिप्लेसमेंट के लिए खास केयर की आवश्यकता होती है?

इस में लगातार देखभाल की आवश्यकता होती है ताकि इस का इफेक्ट हमेशा नैचुरल लगे. आप इसे लगाने के बाद सैलून में अपने बाल ट्रिम नहीं करा सकते हैं, केवल डाक्टर की देखरेख में ही ऐसा किया जा सकता है, वरना फिल्म को दोबारा फिट करने की भी नौबत आ जाती है. व्यक्ति के अपने पीछे के व साइड के बाल लंबे होने लगते हैं तो उन्हें कम से कम 45 दिनों बाद कटवाने के लिए चिकित्सक के पास जाना चाहिए. वैसे भी 45 दिनों बाद फिल्म ढीली हो जाती है, जिसे दोबारा टाइट किया जाता है. साल डेढ़ साल बाद नई फिल्म लगाई जा सकती है.

नौनसर्जिकल हेयर रिप्लेसमेंट में कितना खर्च आता है?

इस का खर्च इस बात पर निर्भर करता है कि आप कौन से प्रोडक्ट का प्रयोग कर रहे हैं. आमतौर पर इस का खर्च 10,000 रुपए से ले कर 30,000 रुपए के बीच आता है.

सांसों में भरें ताजगी

दुर्गंधभरी सांसें सामाजिक और निजी रिश्तों में सड़ांध पैदा कर देती हैं. तनमन और रिश्तों में ताजगी बनाए रखने के लिए ताजी और दुर्गंधरहित सांसों का होना जरूरी है. बदबूदार सांसें किसी भी व्यक्ति को आप से दूर होने को मजबूर करती हैं. कई कारणों से सांसें बदबूदार हो जाती हैं, ऐसे में उन की देखभाल बेहद जरूरी है. सांसों में ताजगी भरने के लिए पेश हैं, कुछ खास टिप्स :

सुबह उठ कर और रात को सोने से पहले ब्रश करने की क्रिया में संभव हो तो थोड़ा बदलाव लाएं. प्रतिदिन 2 बार ब्रश करने के बजाय हर भोजन के बाद ब्रश करें. इस के साथ ही जबान साफ करना भी न भूलें.

खाने के बाद कुल्ला जरूर करें. दांतों और मूसड़ों के बीच में खाना फंस जाता है, जो ब्रश करने से भी साफ नहीं होता है. दांतों के अच्छे स्वास्थ्य के लिए कुल्ला करना बेहद जरूरी है, लेकिन ताजी सांसों के लिए दांतों के बीच में से सड़ती हुई फंसी चीजों को फ्लासिंग (स्वच्छ, बारीक व मजबूत धागे से सफाई) के द्वारा निकालना बेहद जरूरी है.

अगर आप को बहुत जल्दीजल्दी एसिडिटी होने की शिकायत रहती है तो यह भी सांसों में दुर्गंध का कारण हो जाता है. ऐसे में सांसों को ताजा बनाए रखने के लिए एक एंटासिड गोली जादुई कमाल करती है. 

दांतों की सफाई

शरीर में सल्फर बनाने वाली चीजें जैसे प्याज, लहसुन और बंदगोभी से परहेज करें. ये बदबू पैदा करती हैं. अगर ऐसी चीजें आप की पसंदीदा चीजों की लिस्ट में शुमार हैं तो इन के सेवन के बाद मुंह में सौंफ, इलायची या लौंग रखें. पर किसी खास से मिलने जाना हो या मीटिंग में जाने की बात हो तब इन्हें खाने से परहेज करें. संभव हो तो अपने पर्स में हमेशा शुगरफ्री मिंट या इलायची फ्लेवर्ड च्यूइंगम रखें. इस का इस्तेमाल खाना खाने के बाद करें या जब भी मुंह से बदबू आने का एहसास हो, तब च्यूइंगम चबा लें. जिस च्यूइंगम में मीठा स्वाद बनाने के लिए जायलिटोल स्वीटनर हो, उस का इस्तेमाल करें.

माउथवाश का इस्तेमाल करें. यह मुंह में बनने वाले बैक्टीरिया को मारता है.

खूब पानी पीएं, पूरे दिन थोड़ाथोड़ा कर के पानी पीने से दांतों में फंसे अनाज के छोटेछोटे कण पेट में चले जाते हैं.

बैलेंस डाइट लें. इस से अपच की परेशानी नहीं होगी और मुंह से बदबू नहीं आएगी.

मुंह में हमेशा नमी रखें. सूखे मुंह से बदबू आती है.

खानपान का रखें खयाल

 कई लोगों की सांसों में प्राकृतिक तौर पर दुर्गंध होती है. कुछ खास आदतें अपनी दिनचर्या में शामिल करने से इस दुर्गंध को दूर किया जा सकता है. जैसे मेथी की चाय पीने की आदत. मेथी के बीजों को 1/2 लीटर पानी में धीमी आंच पर 15 मिनट तक उबालें, फिर इसे छान कर पी लें. चाहें तो इस में चीनी मिला लें. इस के अलावा 2 कप पानी मेें थोड़ी सी अजवाइन के साथ 2-4 लौंग उबाल लें. इसे ठंडा कर के रखें और इस से कुल्ला करें. प्राकृतिक दुर्गंध हटाने के लिए एक और उपाय यह है कि 1 गिलास पानी में 1 नीबू निचोड़ लें और इस पानी से दिन में 2-3 बार गरारे करें.

आजकल हर कोई फिटनेस के लिए लो कार्बोहाइड्रेट डाइट ले रहा है. कम कार्बोहाइड्रेट लेने की वजह से शरीर में ऊर्जा के लिए काबर्ोेहाइड्रेट की जगह फैट बर्न होता है, जिस से कीटोन या एसिटोन नामक पदार्थ बनते हैं. यह बदबूदार पदार्थ होता है, जो समूचे शरीर के साथ मुंह में भी पैदा होता है. इस से मुंह में दुर्गंध पैदा होती है. इस से बचने के लिए केला खाएं. बदबूदार सांसों की एक वजह डायबिटीज भी हो सकती है. इस बीमारी में शरीर ग्लूकोज की जगह फैट बर्न करता है और इस से कीटोन पदार्थ बनने लगता है और सांसों में बदबू पैदा होती है. डायबिटीज पर काबू बनाए रखें.

डाक्टर से परामर्श

अगर किन्हीं कारणों से शरीर ट्राइमिथायलामाइन नामक केमिकल को नहीं तोड़ पाता है तो यह तत्त्व सलाइवा में घुलने लगता है, इस से भी सांसों में

दुर्गंध पैदा होती है. इस के अलावा यह केमिकल पसीने में भी मिल जाता है, जिस से पसीना भी अति बदबूदार हो जाता है. इस स्थिति को ट्राइमिथायलामाइनुरिया कहते हैं. इस की पहचान खुद नहीं की जा सकती है. अगर आप को अचानक से सांसों में बदबू और शरीर से आने वाली दुर्गंध का एहसास होने लगे तो डाक्टर को दिखाएं.

अनियमित खानपान की आदतों की वजह से कब्ज की शिकायत आम है. यह भी सांसों को बदबूदार बनाने का काम करती है. इस के लिए सांसों की बदबू का नहीं, कब्जियत का ट्रीटमेंट कराना जरूरी होता है. और उस की सलाह को अमल में अवश्य लाएं.

साइनस से ग्रसित लोगों को भी सांसों की दुर्गंध की शिकायत होती है. नाक में होने वाले कंजेशन से छुटकारा पाने पर सांसों की बदबू से छुटकारा पाया जा सकता है.

दवाओं के साइड इफेक्ट न केवल शरीर के स्वास्थ्य को क्षति पहुंचाते हैं, बल्कि अंदरूनी तौर पर सांसों में बदबू भी फैलाते हैं. गलत दवा या दवा के साइड इफेक्ट से मुंह सूखने की शिकायत रहती है, जिस से सलाइवा ठीक तरह से नहीं बन पाता है और परिणामस्वरूप सांसों में बदबू हो जाती है.

कई लोगों को साइकोलोजिकल तौर पर यह गलतफहमी हो जाती है कि उन के मुंह से बदबू आती है, जबकि सच में ऐसा नहीं होता है. ऐसी स्थिति को सुडो हैलिटोसिस कहते हैं. इस का इलाज मनोरोग चिकित्सक से कराएं.

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