हैल्थ टिप्स : प्रसव के बाद

बच्चे को जन्म देने के बाद मां मानसिक रूप से तो स्वस्थ हो जाती है, लेकिन शारीरिक रूप से काफी कमजोर हो जाती है. इस दौरान उस की योनि में परिवर्तन होता है, उसे पेशाब करने में दिक्कत हो सकती है. ऐसे में प्रसव के बाद मां को खुद पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है. खासतौर पर पहले सप्ताह.

मां के शरीर में होने वाले परिवर्तन

यूटरस में दर्द महसूस हो सकता है, खासकर स्तनपान कराने पर यह दर्द शुरू हो सकता है, क्योंकि इस से यूटरस सिकुड़ने लगता है.

स्तनों में दर्द महसूस हो सकता है. उन का आकार बढ़ जाता है.

प्रसव के बाद कुछ सप्ताह तक वैजाइनल डिस्चार्ज होता है. शुरू में यह लाल रंग का होता है. कुछ दिनों बाद रंग भूरागुलाबी होता है. फिर धीरेधीरे हलका होता जाता है. इस दौरान सैनेटरी टौवेल का इस्तेमाल करें.

कई मांएं प्रसव के बाद कुछ दिनों तक रोंआसा सा महसूस करती हैं. ऐसा हारमोन के स्तर में परिवर्तन के कारण होता है.

सामान्य प्रसव के दौरान मांसपेशियों में खिंचाव के कारण पेशाब रोकने में परेशानी हो सकती है. हंसते, खांसते या छींकते हुए पेशाब छूट जाता है.

खास टिप्स

पानी पर्याप्त पीती रहें. यह शरीर को ताकत देता है और उसे हाइड्रेट रखता है.

पहली बार मां बनने पर निपल्स पक या छिल जाते हैं. अत: आप डाक्टर से कोई औइंटमैंट आदि लिखवा लें या फीड कराने के बाद अपना दूध निपल्स पर लगाएं.

प्रसव के बाद अपने हाथों को साफ रखें. हाथों को गरम पानी से साफ करें ताकि आप को सर्दी न लगे. अगर आप को सर्दी लग जाएगी तो बच्चे को भी सर्दी लग जाएगी, जो उस के लिए घातक होती है.

प्रसव के बाद जब भी पेशाब कर के आएं तो कुनकुने पानी से योनि को धो लें. इस से संक्रमण होने का खतरा न के बराबर हो जाएगा.

डिलिवरी के बाद ब्रैस्ट पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है. इस दौरान ज्यादा टाइट ब्रा न पहनें. कौटन की ब्रा ही पहनें. स्तनों को ड्राई न होने दें.

– डा. शिल्पी सचदेव
कंसल्टैंट औब्स्टेट्रिशियन ऐंड गाइनेकोलौजिस्ट

औरतों के हक की बात गुनाह

जब तानाशाह, डिक्टेटर, फौजों के कमांडर आतंक और अत्याचार फैलाते हैं, तो उन की सनक पैसे और पावर के लिए होती है. पर जब धर्म की रक्षा के नाम पर लूट, दंगा, हत्याएं, जीनोसाइड और पूरी कौम के खात्मे की बात होती है, तो नजर औरतों पर होती है. आज धर्म का जो अत्याचार और आतंक दुनिया भर में एक बार फिर सिर उठा रहा है, उस की वजह पिछले दशकों में औरतों को मिलने वाली आजादी है. हर धर्म की जड़ को खाद व पानी देने वाली औरतें ही होती हैं. पहले इन्हें डरा कर गाय बनाया जाता है और फिर थोड़ा चारा दे कर पालतू बना डाला जाता है. हर धर्म में औरतों को गुलाम बनाने की कोशिशें होती हैं और जो धर्म इस में सफल हो जाता है वही पनपता है. आज जो धर्म बड़े पैमाने पर दिख रहे हैं उन में औरतों पर हुए अत्याचारों की कहानियों पर इतने पेज लिखे जा सकते हैं कि अब तक बनाया गया सारा कागज भी कम पड़ जाए.

इसलामिक आतंकवाद का पहला निशाना उन की अपनी औरतें ही हैं जिन्हें वे छूट नहीं देना चाहते और इस तरह का इसलामिक राज कायम करना चाहते हैं, जिस में औरतें गुलाम और पैर की जूती बनी रहें और वे न दिखने वाली धर्म के रिवाजों की जंजीरों की जकड़न में बंधी रहें. अलकायदा, बोको हराम, तालिबानी, इसलामिक स्टेट सब का एक ही मकसद है, अपनी औरतों पर धर्म के नाम पर कंट्रोल करना. भारत में भाजपा सांसद साक्षी महाराज जब कहते हैं कि हर औरत को 4 बच्चे पैदा करने चाहिए, तो वे हिंदुओं की गिनती नहीं बढ़ाना चाहते. वे औरतों को गुलाम बनाए रखना चाहते हैं ताकि वे बच्चों की खातिर धर्म के दलालों की गुलाम बनी रहें. अगर रोमन कैथोलिक और कट्टरपंथी प्रोटेस्टैंट ईसाई गर्भपात को अवैध ठहराते हैं तो इसलिए कि बच्चे के कारण विवाहित या अविवाहित औरतें कमजोर बनी रहें और समझौते करती रहें.

पैरिस में ‘शार्ली एब्दो’ के संपादकों सहित 10 को मार कर धर्म के कठमुल्ले उन आवाजों को बंद करना चाहते हैं जिन्होंने औरतों को हक दिलाए, बराबरी दी, अपने फैसले करने को उकसाया. मोहम्मद साहब का अपमान किया गया, यह कहना बेमतलब की बात है. सलमान रुश्दी या शार्ली एब्दो पर आक्रमण असल में अपने धर्म के प्रगतिशील वर्ग को चेतावनी है कि वह औरतों के हित की बात न करे. हर धर्म औरतों को धर्म के कामकाज में उलझाए रखना चाहता है. लंबी पूजाएं, बुरका, योग, ध्यान, रोजे, इद्दत, शृंगार पर पाबंदी, मंदिरमसजिदों की यात्राएं, अखंड पाठ, चर्च सर्विस आदि का मकसद औरतों का समय लीलना होता है, उन से पूजापाठ के लिए पैसा निकलवाना होता है. हाल के दशकों में पश्चिम में औरतों ने जो प्रगति की है, इसलामिक धर्म साम्राज्य उस से भयभीत है. इसलाम का गढ़ सऊदी अरब घबराया हुआ है इसलिए क्योंकि वहां औरतें छोटेछोटे हक मांग रही हैं. पाकिस्तान डरा है इसलिए क्योंकि वहां मलाला यूसुफजई लड़कियों की पढ़ाई की मांग कर रही है. इन आवाजों को कुचलने का एक तरीका यह है कि धमाके इतने जोर से करो कि आवाजें दब जाएं. चाहे धमाके न्यूयार्क में करने हों, मुंबई में, नाइजीरिया में या फिर पेरिस में ही.

धर्म का निशाना हमेशा औरतें ही रही हैं और आदमियों ने साथ इसीलिए दिया है, क्योंकि इस का पहला लाभ उन्हें ही मिलता है. धर्म के नाम पर ही पति पत्नियों पर कू्ररता कर पाते हैं. उन्हें घर में बंधी गाय या बकरियों की तरह दुह पाते हैं. आज जरूरत है कि हर पढ़ीलिखी औरत अपने हकों के लिए सरकार से नहीं अपने धर्म से लड़े. उस से बराबरी का हक मांगे. उसे भेदभाव वाले रिवाज छोड़ने को मजबूर करे. हम यह बता दें कि जब धर्म ऐसा होगा तो धर्म की दुकानें खुदबखुद बंद हो जाएंगी.

यह कैसा न्याय

न्याय की मांग है कि किसी को उस अपराध की सजा न दी जाए जो उस ने नहीं किया और उस के लिए जरूरी है कि आरोपी को अपने बचाव के सभी तर्क, सुबूत देने व गवाह और आरोप लगाने वालों से जिरह करने का हक हो. पर अभियुक्त, यानी जिस पर अपराध करने का आरोप हो, का यह हक किस तरह पीडि़ता को बारबार अपराध की घटना जीने को मजबूर करता है, यह दिल्ली में 5 दिसंबर, 2014 की रात को एक लड़की का उस के कैब ड्राइवर द्वारा बलात्कार के मामले से साफ है. आमतौर पर मामला दर्ज होने के बाद उसे भुला सा दिया जाता है पर चूंकि कैब अमेरिकी कंपनी उबेर द्वारा मुहैया कराई गई थी और पीडि़ता ने थोड़ी चतुराई भी दिखाई, इसलिए मामला लगातार सुर्खियों में है. इस मामले में 17 जनवरी, 2015 को पीडि़ता का बयान दर्ज हुआ और उसे 10-20 मिनट नहीं 4 घंटे सफाई पक्ष के वकील की जिरह का सामना करना पड़ा. ड्राइवर का वकील यह सिद्ध करने की कोशिश कर रहा है कि या तो संबंध हुआ ही नहीं या फिर यह सहमति से बना संबंध है. कैब ड्राइवर शिव यादव के बारे में जो रिपोर्टें मिली हैं उन के अनुसार वह अपनेआप को लड़कियों का चुंबक समझता है और उस ने बलात्कार जैसे कई कांड किए पर किसी ने शिकायत नहीं की.

न्याय की मांग तो अपनेआप में सही है कि किसी पर झूठे आरोप न लगें पर उस तरह के मामले में बारबार सवालों का जवाब देना कि बलात्कार कब, कैसे, किस जगह, किस माहौल में, कितनी देर तक, क्याक्या बोल कर किया गया एक तरह से एक पीडि़ता को उस पर हुए अत्याचार की फिल्म बारबार देखने को मजबूर करना है.

यही वजह है कि इस तरह के मामलों में पीडि़ताएं आमतौर पर चुप हो कर बैठ जाती हैं कि कौन अपने पर हुए अत्याचार की कथा बारीकी से दोहराए? इस 5 दिसंबर, 2014 के कांड की पीडि़ता को 4 घंटे तक सफाई पक्ष के वकील के सवालों का जवाब देना पड़ा. चाहे सुनवाई बंद कमरे में हुई पर वहां जज महोदय के अतिरिक्त बहुत से और लोग भी मौजूद तो थे ही. क्या कोई पीडि़ता बारबार दोहरा सकती है कि कैसे उस को पकड़ा गया, कैसे उस के कपड़े उतारे गए, कैसे बलात्कारी ने अपने कपड़े उतारे, कैसे उस ने अंगों को छुआ, कैसे बलात्कार हुआ और जब हो रहा था तो वह किस तरह चिल्लाई, क्या बोली. उस समय डरीसहमी युवती ये बातें क्या इसलिए याद रखेगी कि उस से पलपल का हिसाब मांगा जाएगा?

उसे उन लमहों को फिर से जीना होगा, बारबार. कभी पुलिस अधिकारी के सामने, कभी डाक्टरों के सामने, कभी अपने वकील के सामने, कभी अपने मातापिता के सामने, तो कभी जज के सामने बंद कमरे में. बलात्कार के मामले का न्याय होना जरूरी है क्योंकि यह आरोप किसी शरीफ बेगुनाह पर लगाना भी आसान है, अगर युवती अपनी इज्जत ताक पर रख कर किसी को फंसाना या लूटना चाहे. पर जहां वास्तव में बलात्कार हुआ हो वहां क्या हो?

कितने ही समाज इसी कारण सजा बलात्कारी को नहीं बलात्कार की पीडि़ता को देते हैं. धर्मग्रंथ ऐसी घटनाओं से भरे पड़े हैं. इंद्र और अहिल्या का मामला बहुत साफ है कि पति के वेश में आए इंद्र के हाथों बलात्कार का शिकार बनने पर तथाकथित सतयुग में सजा पीडि़ता को भोगनी पड़ी. लगभग हर समाज, हर धर्म में ऐसी घटनाएं हैं, जिन का जम कर प्रचार किया जाता है. पाकिस्तानी धारावाही ‘पिया रे’ में ऐसा ही वाकेआ है जिस में लैंड माफिया पत्रकार पति को धमकाने के लिए पति के सामने नवविवाहिता पत्नी का बलात्कार करवा देते हैं. सजा पत्रकार को देने के बजाय उन्होंने पत्नी को दी और उस का जीवन बरबाद कर दिया. पति ने भी मुंह मोड़ लिया. एक खिलखिलाती जिंदगी सियाह धब्बा बन गई.

बलात्कार को किसी और तरह के सामान्य अपराध की श्रेणी में रखा जाता तो कोई फर्क नहीं पड़ता पर हर समाज ने औरत की अस्मिता को सच्चरित्रता का पैमाना बना कर बलात्कार को मृत्युदंड बना डाला है. उबेर कांड की पीडि़ता ने अगर उस अपराधी को सजा दिलवा भी दी तो भी वह खुद आजीवन कैद में रहेगी. अपराधी के साथ चाहे जो हो वह जीवन भर अपने घर की कालकोठरी में जीने को मजबूर रहेगी. वह हर समय अपराध भाव से डरी रहेगी. लंबी उबाऊ कानूनी प्रक्रिया के बाद भले ही उसे कानून से न्याय मिल जाए पर समाज, घर, दोस्तों, प्रेमियों से कभी न मिलेगा. अगर उस का विवाह हो जाए और सफल रहे, बच्चे मां पर गर्व करें, वह सैलिब्रिटी बने मलाला युसूफजई की तरह, तो ही समझें कि समाज ने सही न्याय किया है.

हैप्पी प्रैगनैंसी

अगर आप गर्भधारण करने की सोच रही हैं, तो उस से पहले कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखना न भूलें:

खानपान का रखें ध्यान: अगर आप गर्भधारण करने का प्लान कर रही हैं, तो गर्भधारण करने से 3 महीने पहले से पौष्टिक खाना खाने की आदत डालें. प्रोटीन, आयरन, कैल्सियम और फौलिक ऐसिड प्रचुर मात्रा में लें. फल, सूखे मेवे, हरी सब्जियां, अनाज, कम वसा वाले डेयरी उत्पाद खाने की आदत डालें. चिप्स, भुनी चीजें, सोडा तथा कैलोरी वाले खाने से बचें.

वजन संतुलित हो: जहां बहुत अधिक दुबला होना गर्भधारण करने में समस्या पैदा करता है, वहीं अधिक मोटा होना भी मधुमेह तथा उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियां दे कर मुश्किलें बढ़ा सकता है. ऐसे में नियमित रूप से हलके व्यायाम करना स्वस्थ गर्भधारण में मददगार होता है. व्यायाम किसी विशेषज्ञा की देखरेख में करें तो ज्यादा बेहतर होगा. टहलना, साइकिल चलाना, स्विमिंग आदि व्यायाम के अच्छे विकल्प हैं.

बेबी बजट बनाएं: इस के लिए अभी से योजना बनाना शुरू कर दें. बेबी फूड, डायपर्स, बच्चे की डाक्टरी जांच, उस की देखभाल आदि की जानकारी लेनी शुरू कर दें. मातृत्वपितृत्व की भूमिका अच्छी तरह निभा पाने के लिए अपना आर्थिक पक्ष मजबूत करें. मैडिकल तथा लाइफ इंश्योरैंस पौलिसीज की जानकारी लें. गर्भधारण करने से पहले अपने डाक्टर, प्रसूति विशेषज्ञा से जरूर सलाह लें.

गर्भधारण करने से 3 महीने पहले से फौलिक ऐसिड लेना शुरू कर दें. यह तंत्रिका नाल के दोषों को दूर करता है, जो मस्तिष्क तथा रीढ़ की हड्डी के गंभीर दोषों का कारण बनते हैं. किशोरावस्था से ही 400 माइक्रोग्राम फोलिक ऐसिड प्रतिदिन लेने की सलाह दी जाती है. 

कौफी से करें परहेज: डाक्टर गर्भधारण करने से पहले और गर्भावस्था के दौरान दिन में 200 मिलीग्राम कैफीन ही लेने की सलाह देते हैं.

शराब के सेवन से बचें: गर्भावस्था के दौरान शराब पीने से बच्चे में जन्मजात विकृतियां आ सकती हैं और उस की सोचनेसमझने की शक्ति भी प्रभावित हो सकती है. अत: इस के सेवन से बचें.

धूम्रपान न करें: अगर आप को धूम्रपान की आदत है तो उसे अभी से छोड़ दें. वरना धूम्रपान गर्भधारण करने में दिक्कतें पैदा कर सकता है. गर्भावस्था के दौरान धूम्रपान करने से बच्चा समय से पहले पैदा हो सकता है, उस का वजन कम हो सकता है. यहां तक कि गर्भपात भी हो सकता है. इसलिए आप ही नहीं, बल्कि अपने साथी को भी इसे छोड़ने की सलाह दें, क्योंकि आप के आसपास दूसरों द्वारा किया गया धूम्रपान भी खतरनाक है.

टीके: अब टीकाकरण सिर्फ बच्चों के लिए ही नहीं रह गया, यह गर्भवती महिलाओं के लिए भी है. गर्भधारण से कम से कम 1 माह पहले रूबेला और चेचक का टीका जरूर लगवा लें.

फैमिली हिस्ट्री: अपने परिवार के इतिहास को ध्यान में रखते हुए संभावित बीमारियों के लिए जैनेटिक टैस्टिंग कराएं. उच्च रक्तचाप, अस्थमा, मधुमेह आदि के रोगी होने पर गर्भधारण से पहले डाक्टरी जांच जरूर करवाएं.

गर्भधारण करने के लिए अधिक उम्र का इंतजार न करें.

अपना कोई खास शौक अपनाएं, जिस में सप्ताह में 1 या 2 दिन कम से कम 20 मिनट आप अपने लिए आराम से गुजार सकें.

गर्भावस्था और पेरैंटिंग पर आधारित किताबें पढ़ें और फिल्में देखें.

अपनी मां या गर्भधारण कर चुकीं परिवार की अन्य महिलाओं से गर्भावस्था के दौरान के उन के अनुभव जानें. प्रसवपीड़ा और प्रसव के दौरान लेने वाली दवाओं आदि पर चर्चा करें. टीकाकरण और बाल पोषण पर भी चर्चा करें. अपने ब्लडग्रुप की जांच करवाएं.               

-डा. नूपुर गुप्ता
कंसल्टैंट औब्स्टेट्रिशियन ऐंड गाइनेकोलौजिस्ट, निदेशक, वैल वूमन क्लीनिक, गुड़गांव

लौटाएं चमक गहनों की

जिस तरह से सोने व चांदी की कीमत आसमान छू रही है, उसे देखते हुए सभी के लिए नए गहने खरीद पाना आसान नहीं है. इस लिहाज से मौजूदा गहनों की साजसंभाल करना ही बेहतर विकल्प होगा. आमतौर पर लोग ‘जब जौहरी के यहां जाएंगे तब इन्हें साफ करा लेंगे’ सोच कर पुराने आभूषणों को यों ही रखे रखते हैं और पुराने गहने अपनी आभा खो देते हैं. धूलमिट्टी, प्रदूषण, क्रीमपाउडर और लगातार पहनने से गहने गंदे भी पड़ जाते हैं या फिर टूट भी जाते हैं. यदि आप चाहें, तो घर में ही अपने कीमती आभूषणों की साफसफाई कर के उन्हें नए जैसा बना सकती हैं. सोने, चांदी, हीरे व मोतियों गहनों को साफ करने के कुछ तरीके पेश हैं:

चांदी के आभूषणों के लिए

चांदी सफेद होती है और धूलमिट्टी से जल्दी काली पड़ जाती है. खट्टे दही में कुछ देर के लिए चांदी के आभूषणों और बरतनों को भिगो दीजिए. थोड़ी ही देर में इन पर चढ़ा सारा मैल निकल जाएगा और ये फिर से चमकने लगेंगे.

चांदी के गहनों को आलू उबाले हुए पानी में भिगो दें. थोड़ी देर बाद इन्हें निकाल कर हलके ब्रश से साफ कर लें, गहने चमक उठेंगे.

1 चम्मच गरम पानी में 1 चम्मच अमोनिया डाल कर चांदी के आभूषण भिगो दें. कुछ देर बाद इन्हें निकाल कर हलका ब्रश करें, चांदी फिर से चमकने लगेगी.

सफेद टूथपाउडर ले कर पेस्ट बना लें. फिर चांदी के आभूषणों और बरतनों पर यह पेस्ट रगड़ कर हलका ब्रश करें, चांदी की चमक लौट आएगी.

आभूषणों को रीठे के पानी में उबालें, उन की चमक वापस आ जाएगी.

सोने के आभूषणों के लिए

उबले रीठे के पानी का प्रयोग आप सोने के आभूषणों को चमकाने में भी कर सकती हैं.

गरम पानी में अच्छी क्वालिटी का डिटर्जैंट पाउडर व 1 चम्मच अमोनिया डाल कर गहनों को कुछ देर के लिए भिगो दें, फिर थोड़ी देर बाद धो लें, नए जैसे चमक उठेंगे.

थोड़े से पानी में 1 चम्मच हलदी डाल कर पानी उबाल लें. फिर सोने के गहनों को डाल कर नर्म ब्रश से हलके हाथ से रगड़ लें, गहने चमकने लगेंगे.

हलके गरम पानी में नीबू निचोड़ कर गहनों को उस में डाल दें. कुछ देर बाद हलके ब्रश से रगड़ें, गहने चमक उठेंगे.

ठंडे चूने के घोल में कुछ देर के लिए सोने के गहनों को डाल दें. कुछ देर बाद उन्हें निकाल कर हलका ब्रश कर लें, गहने चमकने लगेंगे.

मोती के आभूषणों के लिए

मोती के गहनों को साफ रुई में ही रखें. जबकि हीरेजडि़त गहनों को अलगअलग और साफ रुई में रखें.

सफेद टूथपाउडर को हीरे के आभूषणों पर हलके हाथ से रगड़ें, फिर साफ रुई से पोंछ लें. नई आभा आ जाएगी.

मोती के आभूषणों को थोड़ा स्प्रिट लगा कर साफ करें. फिर पुन: रुई में लपेट कर रखें. इन की चमक हमेशा बरकरार रहेगी.

हाई हील का नशा सेहत की दुर्दशा

फैशन या सेहत दोनों में से किसी एक को चुनना हो, तो आमतौर पर युवतियां फैशन को ही चुनती हैं.अब जूतेचप्पलों की ही बात लें. अधिक स्मार्ट दिखने की चाहत में आजकल युवतियांहाई हील पसंद करती हैं और उसे पहन कर फूली नहीं समातीं. लेकिन आप जो कुछ पहन रही हैं, वह सेहत के लिए ठीक भी है या नहीं? कहीं ऐसा न हो कि सौदा महंगा पड़ जाए. युवाओं के पसंदीदा आधुनिक फैशनेबल जूते न सिर्फ पैरों, बल्कि रीढ़ की हड्डी सहित शरीर के अन्य कई अंगों के लिए भी नुकसानदेह साबित हो सकते हैं. नौर्थ लंदन के वैज्ञानिकोें ने विभिन्न आयु समूह की महिलाओं पर शोध के बाद यह नतीजा निकाला है. आइए, देखें कि किस तरह के जूतों से कैसीकैसी समस्याएं पैदा होती हैं:

स्लिप औन शूज: एकदम सपाट होने के कारण ये कमर की मांसपेशियों और रीढ़ की हड्डी को नुकसान पहुचा सकते हैं, जिस से आप को असहनीय दर्द हो सकता है.

बैलेट पंप्स: सपाट होने के साथ इन में हील नहीं होती. इन से पंजे नुकीले हो जाते हैं और घुटनों में तकलीफ होती है.

ट्रेनर्स: लो कट और लेस वाले हलके शूज को युवतियां खूब पसंद करती हैं. इन से पंजों की मांसपेशियों में अकड़न और उन के अंदर की ओर मुड़ जाने की समस्या पैदा हो सकती है. इस से पैरों में गांठ पड़ने के मामले भी सामने आए हैं.

स्टिलस्टोज हील्स : 1 इंच से 10 इंच तक ऊंची हील वाले इन जूतों से चाल तो बिगड़ती ही है, साथ ही कुछ खास विकृतियों के चलते घुटनों, पीठ और कमर में तेज दर्द भी हो सकता है. इन से पिंडलियों की मांसपेशियां भी छोटी हो जाती हैं.

इन दिनों जूतों की दुनिया में ऊंची एड़ी का फैशन छाया हुआ है. यहां तक कि 6-6 इंच ऊंची एड़ी के जूतेचप्पल और सैंडल पहने युवकयुवतियों को देखा जा सकता है. युवक भी ऊंची एड़ी के जूते तो पसंद करने लगे हैं, लेकिन इन के जूतों का तला भी ऊंचा होता है, जबकि महिलाएं जिन चप्पल, सैंडलों को पसंद करती हैं, उन के तले का भाग नीचा और एड़ी ऊंची होती है. ऊंची एड़ी के चप्पल, सैंडल पहन कर आप इठला भले ही लें, लेकिन उन से उपजने वाली परेशानियां भी कुछ कम नहीं हैं. लगातार ज्यादा समय तक इन्हें पहने रहने से नसों में खिंचाव महसूस होने लगता है, मांसपेशियों की शक्ति क्षीण होने लगती है. परिणामस्वरूप पिंडलियों में स्थाई तौर पर दर्द की शिकायत हो जाती है. यही नहीं, ऊंची एड़ी के चप्पलसैंडलों की वजह से कई बार नसों में सूजन भी आ जाती है.

ऊंची एड़ी के चप्पल, सैंडल आप को सामान्यरूप से चलने में भी दिक्कत देते हैं. वक्त आने पर आप उन्हें पहन कर तेज भाग या चल नहीं सकतीं. यदि दौड़ कर बस पकड़नी हो, तो पैरों में मोच आने की आशंका रहती है. कई बार तो गिरने की वजह से हड्डियां भी टूट जाती हैं.

सावधानी जरूरी

ऊंची हील वाले जूते पहनने का शौक महिलाओं के लिए एडि़यों और टखनों में दर्द का कारण बन सकता है. एक ताजा शोध में 64% महिलाओं ने ऐसे जूतों व सैंडलों की वजह से एडि़यों में दर्द की शिकायत की. ब्रिटेन के इंस्टीट्यूट औफ मस्कोस्केलिटल की एक रिसर्च में शोध छात्रा एलिसिया डरफर के अनुसार, ‘महिलाओं को हाई हील वाले जूते पहनने से एडि़यों का दर्द इसलिए होता है, क्योंकि जूतों की संरचना पैरों की कुदरती बनावट के अनुरूप नहीं होती. सख्त, रबड़ की तली वाले जूते पहनने से पुरुषों को भी एडि़यों का दर्द झेलना पड़ सकता है.’

इस से शरीर के भार का गुरुत्व केंद्र बदल जाता है. पैर प्राकृतिक भार वहन नहीं कर पाते. पैरों में दर्द, सूजन और गांठ पड़ने की प्रमुख वजह यही होती है. कभीकभी तो इस का असर कूल्हे, रीढ़ की हड्डियों से होता हुआ कंधों और मस्तिष्क तक भी पहुंच जाता है और यह पीड़ा बरदाश्त से बाहर हो जाती है. यदि आप अपना कद लंबा दिखाना चाहती हैं, तो ऐसे जूतेचप्पल या सैंडल पहनें, जो सभी तरफ से ऊंचे उठे हों, न कि केवल एडि़यों की तरफ से.

महिलाएं खासकर युवतियां हाई हील जूते पहनना पसंद करती हैं, लेकिन आयोवा स्टेट यूनिवर्सिटी के ताजा शोध में इन्हें हड्डियों के लिए खतरनाक पाया गया है. शोधकर्ताओं ने पाया कि इस तरह के जूतों में हील के कारण लगने वाले झटके घुटनों पर भारी दबाव डालते हैं. इस से कुछ समय के बाद जोड़ों में घिसाव शुरू हो जाता है. समय के साथ यह समस्या औस्टियोआर्थराइटिस के रूप में उभरती है. जूतों की हील जितनी ऊंची होगी, समस्या उतनी ही गंभीर हो सकती है. ताजा शोध में यह भी पाया गया है कि हाई हील से महिलाओं की चाल भी बदल जाती है.

हाई हील न केवल पैरों के लिए परेशानी का कारण बनती है अपितु कमर के निचले हिस्से में दर्द की समस्या भी पैदा करती है. शरीर का सारा वजन पैरों के अगले हिस्से पर रहता है. यदि आप लंबे समय तक हाई हील पहनती हैं तो शरीर के जोड़ों में भी तकलीफ होनी शुरू हो जाती है. गर्भवती महिलाओं के लिए ऊंची एड़ीके चप्पल या सैंडल घातक हो सकते हैं. उलटासीधा पैर पड़ जाने पर गर्भस्थ शिशु को नुकसान पहुंच सकता है.

आप जो भी जूतेचप्पल या सैंडलखरीदें, इस बात पर गौर करें कि एडि़यों की ऊंचाई किस चीज से बनाई गई है. आमतौर पर लकड़ी या रबड़ से एडि़यों को ऊंचा किया जाता है. लकड़ी लगी होने से पैरों की शिराओं पर अधिक दबाव पड़ता है अत: रबड़ से बनी एड़ी वाले जूतेचप्पल को प्राथमिकता देनी चाहिए.

खुशबू जो दीवाना बना दे

खुशबू हर किसी को अच्छी लगती है. यह खुद और सामने वाले दोनों के तनमन को खुश रखती है. खुशबू तभी पूरी तरह से अपना प्रभाव छोड़ पाती है जब यह समझदारी से खरीदी जाए. अकसर लोग परफ्यूम शौप पर जाते हैं, परफ्यूम की खुशबू सूंघते हैं और खरीद लेते हैं. हर परफ्यूम की एक अलग खुशबू होती है. हर परफ्यूम के लगाने का अलग तरीका और मौसम होता है. सर्दियों और गरमियों में अलगअलग तरह का परफ्यूम लगाया जाता है. परफ्यूम की खरीदारी में सब से खास बात यह है कि यह मौके के हिसाब से खरीदा जाना चाहिए. इस के साथ ही आप ने जो पहना है और किस समय आप पार्टी में जा रही हैं, यह भी देखना चाहिए. परफ्यूम से जुड़े कुछ टिप्स दिए जा रहे हैं, जो परफ्यूम की खरीदारी में आप की मदद करेंगे :

अगर आप शादी में जा रही हैं तो वुडी या ओरियंटल सेंट खरीद सकती हैं.

महिलाओं के परफ्यूम हलकी खुशबू वाले होते हैं. यह खुशबू लंबे समय तक बनी रहती है. परफ्यूम के अलावा महिलाएं यूडी परफ्यूम, यूडी टायलेट और यूडी कोलोन का प्रयोग भी करती हैं.

यूडी कोलोन में एसेंशियल आयल 4% और यूडी टायलेट में 8% होता है. ये लाइट खुशबू वाले होते हैं, जिस की वजह से ये 2 घंटे तक ही प्रभावशाली रहते हैं. ये परफ्यूम स्प्रे और बोतल दोनों में आते हैं.

यूडी परफ्यूम में एसेंशियल आयल 20% से ज्यादा होता है. इस की खुशबू 3 से 4 घंटे तक बनी रहती है. एसेंशियल आयल ज्यादा होने से इस की कीमत भी ज्यादा होती है.

परफ्यूम बौडी के वार्म प्वाइंट््स जैसे गरदन और कलाइयों पर लगाना चाहिए.

परफ्यूम क्लासिक की खुशबू 6 घंटे तक बनी रहती है. इस की चंद बूंदें ही खुशबू से सराबोर कर देती हैं.

पुरुषों को डियोडरेंट के अलावा कोलोन बहुत अच्छे लगते हैं.

पुरुषों का शेव करने के बाद चेहरा धो कर आफ्टर शेव लगाना गलत तरीका होता है.

शेव करने के बाद पहले आफ्टर शेव लगाएं. इस के कुछ समय बाद चेहरा धोएं.

पुरुषों को बौडी के खास हिस्से पर कोलोन लगाने की जरूरत नहीं होती. उन का चेहरा ही इस के लिए काफी होता है.

पुरुषों को स्ट्रोंग खुशबू वाले परफ्यूम ज्यादा पसंद आते हैं, जिन में मैस्कुलिन टोबैको और मास्क खास हैं.

महिलाओं की अपेक्षा पुरुष अपने परफ्यूम कम बदलते हैं. इसलिए पुरुषों को परफ्यूम खरीदते समय ज्यादा सावधानी बरतनी चाहिए.

गरमी के मौसम में हलकी भीनीभीनी खुशबू वाले परफ्यूम और सर्दियों में तेज खुशबू वाले परफ्यूम खरीदना सही रहता है.

यदि आप वर्किंग विमन हैं तो तेज खुशबू वाले परफ्यूम से बचें. गृहिणियों के लिए पानी में यूडी कोलोन डाल कर नहाना अच्छा रहता है.

कालेज गोइंग लड़कियों को परफ्यूम का प्रयोग नहीं करना चाहिए. तेज खुशबू वाले परफ्यूम का प्रयोग कभी न करें. अगर परफ्यूम लगाना हो तो धीमी खुशबू वाले परफ्यूम का प्रयोग करें.

चंदन की खुशबू वाले परफ्यूम का प्रयोग भी कर सकती हैं.

स्प्रे करने के बाद परफ्यूम की शीशी को कस कर बंद कर दें. इसे छायादार और अंधेरी जगह पर रखें. सूर्य की रोशनी में खुशबू उड़ जाती है.

बनारसी साड़ी, जरदोजी और कढ़ाई वाले कपड़ों पर परफ्यूम का प्रयोग न करें. इस से कपड़ों की चमक कम हो जाती है.

सूती कपड़ों पर भी सीधे परफ्यूम का छिड़काव न करें.

सिंथेटिक कपड़ों पर परफ्यूम स्प्रे ज्यादा करें, क्योंकि इन से खुशबू जल्दी उड़ जाती है.

परफ्यूम का छिड़काव अंदर के कपड़ों पर करें. यहां पर खुशबू ज्यादा समय तक टिकी रहती है.

इंटरनेशनल परफ्यूम का प्रयोग सोचसमझ कर करें. ये परफ्यूम उस देश की जलवायु को ध्यान में रख कर बनाए जाते हैं. इन में रसायन अधिक होता है, जो स्किन को नुकसान पहुंचा सकता है.

आजकल केमिकल परफ्यूम की जगह हर्बल परफ्यूम का प्रयोग ज्यादा किया जाता है. महंगे होने के बावजूद इन के खरीदार बढ़ रहे हैं.

जिम में जाते समय परफ्यूम न लगाएं. जिम में वर्कआउट करते समय पसीना निकलता है, जिस में मिल कर परफ्यूम की खुशबू अजीब सी हो जाती है.

अब मैं लालची हो गई हूं हुमा : कुरैशी

दिल्ली निवासी बौलीवुड की खूबसूरत अदाकारा हुमा कुरैशी को दर्शक उन की सुंदरता और दमदार अभिनय के साथसाथ वजन के कारण भी जानते हैं. कालेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद हुमा थिएटर से जुड़ गईं. 2008 में उन्हें हिंदुस्तान यूनीलीवर के लिए मौडलिंग करने का मौका मिला. उन का फिल्मी सफर अनुराग कश्यप की फिल्म ‘गैंग्स औफ वासेपुर’ से शुरू हुआ. इस फिल्म में हुमा ने मुख्य भूमिका निभा कर बेहतरीन अभिनय की छाप छोड़ी. इस के बाद ‘गैंग्स औफ वासेपुर-2’, ‘लव शव ते चिकन खुराना’, ‘एक थी डायन’, ‘डेढ़ इश्किया’ जैसी फिल्मों में काम कर अपनी अभिनय प्रतिभा से दर्शकों का दिल जीता.

हाल ही में हुमा कुरैशी ने विपुल साडि़यों के नए कलैक्शन को लौंच किया. उसी दौरान उन से रूबरू होने का मौका मिला तो कुछ चटपटे सवालजवाबों का आदानप्रदान हुआ:

आप ने अपने कैरियर की शुरुआत थिएटर व मौडलिंग से की. क्या अब भी आप थिएटर से जुड़ी हुई हैं?

थिएटर मुझे बहुत पसंद है. अगर मौका मिलेगा तो जरूर करना चाहूंगी. पर अब मैं थोड़ी लालची हो गई हूं. अब मुझे फिल्मों में ऐक्टिंग करने में मजा आने लगा है, क्योंकि फिल्मों के जरीए हम ज्यादा लोगों के पास पहुंच पाते हैं.

आप की नजर में सैक्स अपील का मतलब?

मेरे हिसाब से सैक्स अपील का मतलब होता है कि आप किसी चीज को कितना चाहते हैं, आप किसी चीज को कितना पसंद करते हैं, आप उस के कितना पास रहना चाहते हैं. जब हम ट्रैवल करते हैं, तो हमारे फैंस हम से हाथ मिलाते हैं. हमें छूना चाहते हैं. यही सैक्स अपील है. ये कूल हैं और मुझे लगता है सब से कूलैस्ट लोग ही अपीलिंग होते हैं.

आतंकवाद को खत्म करने का कौन सा उपाय सुझाएंगी?

कू्ररता और हिंसा फैलाने के लिए निर्दोषों को मारना अमानवीय कृत्य है. आतंकवाद को खत्म करने के लिए दुनिया का एकजुट होना बेहद जरूरी है.

आप को लगता है कि बौलीवुड में जीरो साइज फिगर का क्रेज खत्म हो गया है?

जी हां, यह तो 1 साल पहले खत्म हो गया था जब मैं ने एक मैगजीन के कवर पेज के लिए फोटो शूट कराया था. असली हिंदुस्तानी लड़की की बौडी में एक ग्रेस होता है. बीच में कुछ सालों के लिए यह पागलपन आया था. पर अब खत्म हो चुका है.

क्या आप को भी साड़ी पहनना पसंद है?

हां, पसंद तो है पर मुझे आदत नहीं है. लेकिन साड़ी हर लड़की को ब्यूटीफुल लुक देती है. साड़ी महिलाओं का खूबसूरत परिधान है. सोरोना डुपोंट साडि़यां बहुत कंफर्टेबल होती हैं. आप उन्हें आसानी से कैरी कर सकती हैं. शिफौन, क्रेप और साटन साडि़यां भी बेहद आरामदायक होती हैं, जो पहनने वालों के स्टाइल और आराम को ध्यान में रख कर बनाई जाती हैं. फिर फूल सी हलकी इन साडि़यों का रखरखाव भी बहुत आसान है.

दिल्ली से मुंबई कैसे पहुंचीं?

मैं मुंबई फिल्मों की वजह से पहुंची. बचपन से ही मुझे फिल्में पसंद थीं और मैं फिल्मों में काम करना चाहती थी. मगर किसी को बताती नहीं थी, क्योंकि अगर दिल्ली की कोई लड़की बोले कि उसे हीरोइन बनना है, तो सब उस का मजाक बनाते. इसलिए अपना कैरियर बनाने के लिए पहले थिएटर में काम किया और फिर मुंबई आ गई.

फिल्म इंडस्ट्री में आप की ऐंट्री काफी धमाकेदार थी, पर ‘गैंग्स औफ वासेपुर’ फिल्म के बाद आप का फिल्मी कैरियर थोड़ा धीमा हो गया. आप क्या कहना चाहेंगी?

मैं फिल्मी फैमिली से नहीं हूं. यहां मेरा कोई अंकल प्रोड्यूसर नहीं है, जो मेरे लिए फिल्में प्रोड्यूस करे. मुझे खुद मेहनत करनी पड़ती है. ऐक्टिंग भी जौब की तरह है. इस  बीच मैं ने 6 फिल्में की हैं और सभी ठीकठाक चली हैं.

शाहरुख की टीवी पर वापसी

यह तो सभी जानते हैं कि शाहरुख खान ने अपने कैरियर की शुरुआत दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले धारावाहिकों से की थी. ‘सर्कस’, ‘फौजी’ जैसे धारावाहिकों ने उन्हें भारतीय दर्शकों के घरघर तक पहुंचाया. शाहरुख ने हाल में मुंबई में एक नए चैनल और अपने एक नए शो के बारे में एलान किया. वे इस चैनल पर एक गेम शो को होस्ट करते नजर आएंगे. इस गेम शो में सवालजवाब होंगे, लेकिन वे गंभीर नहीं, बल्कि मनोरंजक होंगे. शाहरुख ने कहा कि उन का यह शो मनोरंजन से भरपूर होगा. इस में सवालजवाब होंगे, मगर हंसीमजाक के साथ. शाहरुख खान ने कुछ साल पहले ‘कौन बनेगा करोड़पति’ (केबीसी) को होस्ट किया था, लेकिन वह ज्यादा सफल नहीं हुआ था.

एकता को भी गुस्सा आता है.

हर काम में परफैक्शन की चाह रखने के लिए जानी जाने वाली एकता कपूर को उस समय ज्यादा गुस्सा आता है, जब उन की टीम के द्वारा कुछ गड़बड़ हो जाए. हाल ही में कलर्स टीवी के पौपुलर शो ‘मेरी आशिकी तुम से ही’ की प्रोडक्शन टीम ने प्राइम टाइम पर एक ही ऐपिसोड को लगातार 2 दिन दिखाया. जाहिर है कि यह गड़बड़ी प्रोडक्शन यूनिट के किसी व्यक्ति द्वारा हुई. लेकिन जिस ने भी यह गलती की उसे स्वीकारने में वह बहुत डर रहा था. यही वजह रही कि यह गड़बड़ी समय पर रिपोर्ट नहीं की जा सकी. हर किसी को मालूम है कि एकता कपूर काम के मामले में कितनी सख्त हैं. छोटी सी भी गलती उन्हें बरदाश्त नहीं होती. इसलिए जब उन्हें यह मालूम हुआ कि दोषी कौन हैं, उन्होंने उस की छुट्टी करने में बिलकुल भी देर नहीं की.

मैं सब कुछ मन से करती हूं

2006 में आई फिल्म ‘गैंग्स्टर’ की ग्लैमरस अदाकारा को देख कर किसी ने यह नहीं सोचा था कि यह लड़की आगे चल कर अपनी अदाकारी का ऐसा जादू बिखेरेगी कि अच्छेअच्छों की छुट्टी हो जाएगी. यह ग्लैमरस क्वीन कंगना राणावत थी जिस ने बौलीवुड के सफर में फिल्म दर फिल्म काफी तरक्की की. कंगना ने अपनेआप को सिर्फ सैक्स सिंबल बन कर नहीं रहने दिया. उन्होंने कई तरह की भूमिकाएं कीं.

अपने 9 साल के कैरियर में कंगना का नाम कई अभिनेताओं के साथ जोड़ा गया. फिल्म ‘कृष 3’ के बाद उन की और रितिक की भी खबरें आईं. कंगना ने भी कहा कि उन की जिंदगी में कोई खास है. पर उस का नाम बताने से इनकार कर दिया. एक अंगरेजी वैबसाइट के मुताबिक, यह खास कोई और नहीं बल्कि रितिक रोशन हैं. कंगना 2 महीने पहले अपने रिलेशनशिप को ले कर कुछ असमंजस में थीं क्योंकि उस वक्त रितिक और सुजैन के तलाक की प्रक्रिया चल रही थी.

कंगना और रितिक अपने रिलेशनशिप के बारे में कोई खुलासा नहीं करना चाहते, लेकिन फिल्म इंडस्ट्री के एक सूत्र का कहना है कि दोनों एकदूसरे को ले कर काफी सीरियस हैं. वे काफी सालों से एकदूसरे के दोस्त हैं और 2 फिल्मों ‘काइट्स’ और ‘कृष 3’ में साथ काम कर चुके हैं. दूसरी तरफ इन अफवाहों पर रितिक ने नाराज होने के बजाय बेहद शांति से अपनी बात रखी और कहा कि अकेले होने पर उन को क्या कीमत चुकानी पड़ रही है उसे वही जानते हैं. कंगना डायरैक्टर हंसल मेहता की पर्वतारोही बछेंद्री पाल पर बनी बायोपिक मूवी के लिए सिलैक्ट हो गई हैं. इस फिल्म के अलावा ‘तनु वेड्स मनु रिटर्न’ और निखिल आडवाणी की ‘कट्टी बट्टी’ में काम कर रही हैं. इस से तो लगता है साल 2015 कंगना के नाम होने वाला है.

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