समझौता करना पड़ता है

फिल्म ‘तारे जमीं पर’ में काम कर चुकीं टिस्का ने ‘ऐक्टिंग स्मार्ट’ नाम से एक किताब लिखी है, जो बौलीवुड में कैरियर बनाने पर आधारित है. अपनी इसी किताब के बारे में एपीजे कोलकाता साहित्य महोत्सव में बताते हुए उन्होंने कास्टिंग काउच के बारे में कहा, ‘‘यह मांग और पूर्ति का सवाल है. यहां मांग से कहीं ज्यादा कलाकारों की भरमार है, इसलिए निर्मातानिर्देशक फिल्मों में मौका देने के लिए अपनी निजी मांग रखते हैं. मैं ने कभी इस इंड्रस्ट्री में दुष्कर्म जैसा वाकेआ नहीं सुना. राहत की बात यह है कि समलैंगिक निर्देशकों की संख्या काफी है, तो महिलापुरुषों के लिए समस्या समान है. महिलाओं की तरह ही पुरुषों को भी इस से गुजरना पड़ता है. ‘हां’ या ‘न’ कहना आप का चुनाव है.’’

 

विदिशा से नोबेल पुरस्कार तक का सफर

नोबेल: यह भी जानें

डायनामाइट के आविष्कारक अल्फ्रेड नोबेल के नाम पर वर्ष 1901 में नोबेल पुरस्कार की शुरुआत हुई थी. कैलाश सत्यार्थी के अलावा जिन भारतीयों या भारतीय मूल के विदेशी नागरिकों को यह सम्मान मिला है वे हैं- गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर, सर सी.वी. रमन, डा. हरगोबिंद खुराना, मदर टेरेसा (अल्बानिया मूल की भारतीय), सुब्रमण्यम चंद्रशेखर, अमर्त्य सेन और वेंकटरमन रामाकृष्ण.

असाधारण पुरस्कार या खिताब हमेशा असाधारण लोगों के हिस्से ही आते हैं. इस नाते कैलाश सत्यार्थी निस्संदेह असाधारण हैं. पर उन से भी असाधारण हैं उन की पत्नी सुमेधा, जिन्होंने एक लंबी लड़ाई पति के साथ कंधे से कंधा मिला कर लड़ी, उन की प्रेरणा बनी रहीं, हर अभियान में पति का साथ दिया. मुश्किल से मुश्किल वक्त में उन की हिम्मत नहीं टूटने दी. बीते दिनों जब मध्य प्रदेश सरकार ने कैलाश सत्यार्थी के सम्मान में मुख्यमंत्री निवास में एक समारोह आयोजित किया तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने कैलाश की उपलब्धि का श्रेय सुमेधा को भी दिया.

परिवार, परिचय और परिणय

विदिशा के एसएटीआई कालेज से इलैक्ट्रिक इंजीनियरिंग की डिगरी लेने के बाद आर्य समाज से प्रभावित कैलाश ने सीधे दिल्ली का रुख किया. उन दिनों आर्य समाज की प्रमुख पत्रिका ‘जनज्ञान’ में वे छिटपुट लिखते रहते थे. इस नाते उन का परिचय इस पत्रिका के संपादक मंडल और प्रकाशकों पंडिता राकेशरानी और उन के पति पंडित भारतेंदु नाथ से था. इन की बड़ी बेटी सुमेधा तब 20 साल की थीं. वे पत्रिका का कामकाज भी देखती थीं. वे कैलाश सत्यार्थी को नाम से जानती थीं. एक अनिश्चित भविष्य और उतना ही अनिश्चित उद्देश्य ले कर दिल्ली पहुंचे कैलाश को जब भोजन के लिए सुमेधा के घर आमंत्रित किया गया तो यहां डिनर पर दोनों की विधिवत और अनौपचारिक मुलाकात हुई.

बहरहाल, सुमेधा और कैलाश का यह पहला परिचय और घरेलू माहौल में मुलाकात, जिस में उन के मातापिता और चारों बहनें भी थीं, पहली नजर का प्यार साबित हुई. उस दौर में प्यार का इजहार एकदम और बेचैनी में न जा कर इत्मीनान से किया जाता था. बात बढ़ी और कुछ छोटीमोटी रुकावटों के साथ शादी के मुकाम तक जा पहुंची. 8 अक्तूबर, 1978 को दिल्ली के करोल बाग स्थित आर्य समाज मंदिर इस का गवाह बना. कैलाश के परिवार के सदस्य और सुमेधा के परिवार वालों सहित सैकड़ोें परिचित विवाह में शामिल हुए. शादी के दूसरे दिन ही 9 अक्तूबर को सुमेधा कैलाश की पत्नी बन कर विदिशा आ गईं. उन का असल इम्तिहान अब शुरू होना था.

जज्बे की इज्जत

छोटे से शहर विदिशा में तब सभी एकदूसरे को जानते थे. इस विवाह की भी चर्चा हर कहीं थी. अब तक कैलाश का नाम समाजसेवा के क्षेत्र में लिया जाने लगा था. स्वामी अग्निवेश और छत्तीसगढ़ के श्रमिक नेता शंकर गुहा नियोगी से उन का परिचय अंतरंगता और परस्पर सहयोग की सीमाएं छूने लगा था. अग्निवेश को तो उन का गुरु तक कहा जाने लगा था, जिन्होंने कैलाश के जज्बे की इज्जत करते हुए अपने कैंप में सम्मानजनक स्थान और कार्य दिया.

ससुराल खट्टीमीठी

सुमेधा अब पहले जैसी स्वतंत्र नहीं रह गई थीं. अपने परिवार के मामले में सारी जानकारियां कैलाश उन्हें पहले ही दे चुके थे. पहली चुनौती थी एक भरेपूरे संयुक्त परिवार में बहू के रूप में खरा उतरने की. ससुराल में परंपरागत ढंग से उन का स्वागत किया गया. सभी ने मुंहदिखाई की रस्म में कुछ न कुछ उपहार दिया. सुमेधा के सौंदर्य को सराहते हुए हर किसी ने यही कहा कि बहू तो बहुत सुंदर है. पर संयुक्त परिवारों में बहू का सही आकलन गृहस्थी संभाल लेने की क्षमता से होता है. शुरू के 3 दिन तो रीतिरिवाजों में कट गए. इसी दौरान सुमेधा ने महसूस किया कि उन की ससुराल भी लगभग आर्य समाजी मिजाज की है. जल्द ही चूल्हेचौके की जिम्मेदारी भी उन्हें सौंप दी गई. इतने सारे लोगों का खाना बनाना, सारे बरतन साफ करना आसान काम नहीं था. इस पर दिक्कत यह थी कि घर में गैस का चूल्हा न था. लकड़ी वाले चूल्हे पर खाना पकाना पड़ता था. हर तीसरे दिन पूरे घर को गोबर से लीपने का काम भी सुमेधा करती थीं.

नहीं दिया शिकायत का मौका

सुमेधा की दिनचर्या अब बहुत बदल गई थी. कलम की जगह झाड़ू ने ले ली थी. सुबह बहुत जल्दी उठ कर वे रसोई में जाती थीं तो देर रात तक वहीं खपती रहती थीं. अच्छी बात यह थी कि ससुराल के सभी लोग उन का ध्यान रखते थे और ननदें, जेठानी सभी काम में हाथ बंटाते थे. इसी दौरान उन्हें घर के रीतिरिवाज भी समझाए जाते थे.

दिल्ली का रुख

सुमेधा और कैलाश दोनों हंसमुख स्वभाव के थे. धीरेधीरे सुमेधा विदिशा में ऐसी रम गईं कि मायके दिल्ली की याद कभीकभार ही आती थी. जल्द ही रोज कहीं न कहीं महफिल जमने लगी. कभी अरुण भैया के यहां तो कभी सलीम भाई के यहां. कभीकभी ओम भाई साहब के यहां भी जाना होता था और मुंहबोले भाई अवध भैया के यहां तो घर नजदीक होने के कारण कभी भी. उसे उन्होंने अपना स्थानीय मायका बना लिया था. 1 साल गुजरा तो फिर मकसद सामने आने लगा पर ससुराल वालों का मोह इतना था कि सुमेधा तय नहीं कर पा रही थीं कि क्या करें. यही हाल कैलाश का भी था. एक मन करता था दिल्ली जा कर अपना काम शुरू किया जाए तो दूसरा कहता था क्या फायदा इतना अच्छा घर है. इतने चाहने वाले लोग हैं. पूरा खयाल रखते हैं. कितना लाड़प्यार करते हैं और जिंदगी में क्या चाहिए. लेकिन कैलाश को कुछ और ही चाहिए था. लिहाजा, साल भर कशमकश में रहने के बाद उन्होंने दिल्ली का रुख करने का फैसला ले लिया.

कल तक जो लोग और खुद सुमेधा भी इस बात को ले कर शंकित रहती थीं कि अगर कहीं ससुराल में पटरी न बैठी तो क्या होगा, वही अब इस फैसले के बाद एकदूसरे को नम आंखों और रुंधे गले से देखते थे. सुमेधा ससुराल का अभिन्न हिस्सा बन चुकी थीं. अपने कच्चे कमरे की आदत उन से छोड़ी नहीं जा रही थी. घर तो घर आसपड़ोस के लोग भी उन्हें चाहने लगे थे. और तो और रोजाना उन के हाथ से रोटी खाने वाली गाएं और कुत्ते भी नियत समय पर आ धमकते थे.

रंग लाने लगी मेहनत

3 साल पहले मायका छोड़ने पर उन्हें उतना दुख नहीं हुआ था जितना अब ससुराल छोड़ने पर हो रहा था. दिल्ली पहुंचीं तो फिर वहीं की हो कर रह गईं. कैलाश का बचपन बचाओ अभियान शुरू हो कर देश से विदेशों तक में फैलने लगा. आर्थिक अभाव यहां भी था, लेकिन सुमेधा ने कभी कैलाश तक उन की आंच नहीं पहुंचने दी. उलटे वे हर वक्त पति को प्रोत्साहित करती रहतीं कि लगे रहो. एक दिन जरूर आप की मेहनत रंग लाएगी और दुनिया आप को सलाम करेगी. 80 से ले कर 90 तक का वक्त बेहद कठिनाइयों भरा था. इसी दौरान उन्होंने 1 बेटे को भी जन्म दिया. कैलाश के काम को सराहने वालों की कमी नहीं थी, लेकिन आलोचक भी कम न थे. कई दफा वे आलोचनाओं से विचलित हुए पर हर बार सुमेधा ने अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए पति की हिम्मत बंधाई और उन्हें अपनी क्षमताओं का एहसास कराया. जब भी ससुराल में जरूरत पड़ी वे दौड़ीदौड़ी गईं.

एक संपूर्ण पत्नी

इस के बाद विदेशों में कई अहम पुरस्कार कैलाश सत्यार्थी को मिले. लेकिन जो मिलना था वह अभी बाकी था और जब नोबेल शांति पुरस्कार मिला तो सुमेधा एक संपूर्ण पत्नी के रूप में दुनिया के सामने भी आईं. पर यह कोई नहीं समझ पाया कि कैलाश को नोबेल यों ही नहीं मिल गया. इस के पीछे सुमेधा की भूमिका और त्याग कम महत्त्वपूर्ण नहीं, जिन्होंने पति को तमाम झंझटों और परेशानियों से दूर रखा. हमेशा प्रोत्साहन देती रहीं. बेटे और बेटी की परवरिश में भी वे खरी उतरीं और इस से भी अहम बात कभी पति के स्वाभिमान से समझौता नहीं किया.

समाजसेवा, लेखन, संगीत, कला कभी हमारे देश में व्यावसायिक नजरिए से नहीं देखे गए. ये प्रतिभावान फालतू लोगों के काम समझे जाते रहे हैं. ऐसे लोगों की पत्नियां अकसर भविष्य को ले कर आशंकित रहती हैं और घबरा भी जाती हैं. कई लोगों की प्रतिभा तो इसलिए ही सामने नहीं आ पाती कि उन की पत्नियां सहयोग नहीं करतीं. उन की नजर में पति पैसा कमाने की मशीन भर होता है.

होम लोन इंश्योरैंस

जीवन में कई अहम फैसलों में एक घर खरीदने का फैसला भी होता है. घर भी ऐसा, जो हर लिहाज से अपनी पसंद का हो. पिछले 1 दशक में इस अहम फैसले ने कई परिवारों को अपना मनचाहा आशियाना दिया और इसे उपलब्ध कराने में सब से बड़ी भूमिका निभाई होम लोन यानी घर के लिए मिलने वाले कर्ज ने. कर्ज जैसे बोझिल शब्द से लोगों ने नई सदी में पीछा छुड़ा, लोन शब्द को अपनाया. यही लोन हर आमोखास भारतीय के जीवन का हिस्सा बन गया और देश चल पड़ा आर्थिक विकास की ओर. होम लोन के बारे में जब बात होगी तो बैंक क्षेत्र में आए जबरदस्त विकास की बात होगी. लोन के जरिए मिलने और होने वाली सुविधाओं की बात होगी. साथ ही, कर्ज के साथ आने वाले मुफ्त भय को भगाने के लिए होम लोन इंश्योरैंस की बात तो होगी ही.

होम लोन इंश्योरैंस

यह लोन लेने के बाद पहला सही कदम माना जाता है. किसी भी जरूरी चीज का बीमा करा लेने में ही समझदारी मानी जाती है. लेकिन इस कदम को उठाने से पहले कई ऐसे सवाल हैं, जिन्हें आप को खुद से पूछ लेना चाहिए. ऐसा इसलिए, क्योंकि कुछ भी हो यह एक कर्ज है और इस का बीमा कराने का अर्थ होता है थोड़ा और पैसा जेब से निकालना.

इसे कराना क्यों जरूरी

होम लोन लेने का सीधा अर्थ है अपने पास घर की सहूलियत के साथ कर्ज चुकाने की जिम्मेदारी भी बांध लेना. यह भले ही लेते समय पैरों में पड़ी बेडि़यों जैसा न लगे, मगर किसी अनहोनी के समय जरूर परिवार के सपनों को चकनाचूर कर सकता है. लोने लेने वाला व्यक्ति किसी अनहोनी का शिकार हो भी जाए तो भी कर्ज देने वाला तो अपनी बकाया रकम मांगेगा ही. ऐसे में यदि परिवार में आप ही अकेले कमाने वाले हैं तो स्थिति और भी गंभीर हो जाती है. इसी समस्या से कम खर्च में छुटकारा दिलाता है होम लोन का इंश्योरैंस. होम लोन का इंश्योरैंस करवा लेने पर लोन चुकाने वाले के साथ किसी भी जानलेवा हादसे के बाद लोन और प्रौपर्टी की रखवाली का जिम्मा बीमा कंपनी का हो जाता है.

होम लोन इंश्योरैंस क्या है

इस बीमा पालिसी को लेने के बाद लोन लेने वाले की असमय मृत्यु या उस के अपंग होने के बाद भी लोन पर ली गई प्रौपर्टी और परिवार पर कोई आंच नहीं आती. इस का अर्थ यह हुआ कि आप सालाना थोड़ी राशि अधिक चुका कर अपने लोन, प्रौपर्टी और खुद पर आने वाले संकट के बारे में थोड़ा निश्ंिचत हो सकते हैं. मिसाल के तौर पर आप ने 20 लाख रुपए का लोन लिया है और अगले 2 साल में आप ने करीब 2 लाख रुपए लौटा दिए हैं. अब भी 18 लाख रुपए का कर्ज आप के सिर पर है और ऐसे में आप किसी दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं. आप के घर में कोई और कमाने वाला नहीं है, जिस से आप लोन की मासिक किस्त चुकता कर सकें. ऐसी स्थिति में यदि आप ने होम लोन का बीमा नहीं करा रखा है, तो आप के घर पर लेनदार बैंक या संस्थान कब्जा कर सकता है. ऐसे में आप के परिवार के सिर पर से छत तो छिनेगी ही, मानसिक आघात भी पहुंचेगा.

यह बीमा पालिसी कैसे काम करती है

होम लोन इंश्योरैंस, टर्म लाइफ इंश्योरैंस पालिसी की तरह होता है, जिस में लाइफ कवर बकाया होम लोन राशि जितना होता है और यह आप के लोन चुकाने की तय समय सीमा के मुताबिक ही होता है. जैसेजैसे आप मासिक किस्तों में लोन चुकता करते रहते हैं, वैसेवैसे आप की बकाया लोन राशि की तरह आप की इंश्योरैंस की राशि भी कम होती चली जाती है.

इस की कीमत क्या है

इस की कीमत लोन लेने वाले व्यक्ति की उम्र, लोन की राशि और लोन की अवधि पर निर्भर करती है. इस की दरें किसी व्यक्ति के लिए की जाने वाली बीमा पालिसी से कम ही होती हैं. आप इस के प्रीमियम का भुगतान मासिक किस्तों में या फिर एकमुश्त कर सकते हैं. कुछ बैंक लोन की मासिक किस्त के साथ ही इस को लेने की सुविधा मुहैया कराते हैं.

इसेकौन ले सकता है

इस तरह की पालिसी के लिए कम से कम 18 वर्ष की आयु और अधिकतम 50 वर्ष तक के लोग उपयुक्त हैं. यह पालिसी व्यक्तिगत या मिलेजुले रूप में ली जा सकती है. इस तरह की पालिसी के लिए अधिकतर मैडिकल जांच की आवश्यकता होती है. यदि लोन लेने वाला व्यक्ति पूरा लोन चुका देता है तो यह पालिसी अपनेआप खत्म हो जाती है.

जानकारों की राय

‘अपना पैसा डौट कौम’ के सीईओ और जानेमाने लोन एक्सपर्ट हर्ष रूंगटा भी होम लोन इंश्योरैंस को प्राथमिकता देते हैं और इसे बेहद जरूरी मानते हैं. साथ ही उन का यह भी कहना है कि यह जरूरी नहीं कि हर कोई होम लोन इंश्योरैंस कराने में कामयाब हो. ऐसा इसलिए कि बीमा कंपनी भी लोन लेने वाले व्यक्ति की हैल्थ के बारे में निश्ंिचत हो जाना चाहती है. इस के लिए इंश्योरैंस देने वाली कंपनी हैल्थ चैकअप कराती है और पूर्णत: फिट होने की स्थिति में ही व्यक्ति को यह बीमा मिल पाता है. उम्र और हैल्थ दोनों का बीमा कराते समय प्रीमियम पर भी इस का असर होता है. हर्ष के मुताबिक होम लोन इंश्योरैंस को अनिवार्य कर देना चाहिए.

निजी निवेश सलाहकार प्रदीप गुप्ता ने बताया कि यदि कोई व्यक्ति 25 लाख रुपए का होम लोन लेता है तो उसे प्रोटैक्ट करने के लिए सभी बीमा कंपनियों के पास टर्म इंश्योरैंस प्लान मौजूद हैं जिन में व्यक्ति की मृत्यु होने की स्थिति में बीमा कंपनी पूरे लोन की भरपाई करती है. साथ ही, यदि व्यक्ति अपंग हो जाता है, तो ऐसे में इंश्योरैंस का किसी भी तरह का प्रीमियम अदा नहीं करना पड़ता और इंश्योरैंस कंपनी हर साल ढाई लाख रुपए मुआवजे के तौर पर लोन देने वाले बैंक को अदा करती है, जिस से होम लोन की किस्तों की भरपाई होती है. मार्केट में मौजूद लगभग हर बड़ी होम लोन और लाइफ इंश्योरैंस कंपनी जैसे एलआईसी, आईसीआईसीआई, एचडीएफसी आदि 30 वर्ष की आयु के लिए प्रति वर्ष करीब 6 से 7 हजार रुपए में 25 लाख तक का होम लोन प्रोटैक्शन प्लान मुहैया कराती हैं. उम्र 30 से ऊपर होने पर प्रीमियम की दर भी बढ़ जाती है. एलआईसी यानी भारतीय जीवन बीमा निगम में यह स्कीम 25 लाख रुपए से अधिक की राशि के लिए जीवन अमूल्य के नाम से मौजूद है और 25 लाख रुपए से कम के होम लोन प्रोटैक्शन के लिए जीवन अनमोल के नाम से ग्राहकों के लिए उपलब्ध है.

डीफाल्ट से बचना जरूरी

इन 2 टर्म प्लान्स के अलावा एलआईसी में शुद्ध रूप से होम लोन प्रोटैक्शन के लिए एक और प्लान मौजूद है मार्गेज रिडेंपशन प्लान. इस में यों तो सभी लाभ मौजूद हैं, लेकिन इस में प्रवेश सीमा केवल 50 वर्ष तक ही है और 65 वर्ष के होते ही यह अपनेआप बंद हो जाती है. इस के अलावा एचडीएफसी लाइफ की तरफ से इस प्लान को एचडीएफसी होम लोन प्रोटैक्शन प्लान का नाम दिया गया है. प्लान के फीचर्स लगभग बाकी प्लान के जैसे ही हैं, बस इन में न्यूनतम मासिक प्रीमियम राशि को 2,000 रुपए तक सीमित रखा गया है और इंश्योरैंस की अधिकतम राशि 30 लाख रुपए तक ही रखी गई है.

आईसीआईसीआई प्रूडैंशियल ने अपनी पालिसी का नाम होम एश्योर रखा है. इस में प्रवेश की सीमा 60 वर्ष तक रखी गई है. साथ ही 70 वर्ष की आयु तक लोन पर प्रोटैक्शन मिलता है, लेकिन इंश्योरैंस की समय अवधि 2 साल से ले कर 22 साल तक ही मौजूद है. लोन की सीमा पर इस में कोई बंदिश नहीं है. जिन प्लान्स का यहां जिक्र किया गया है उन सभी पर इनकम टैक्स के सैक्शन 80 सी और 80 डी के तहत टैक्स में राहत का प्रावधान है. निवेश गुरु और प्योर ग्रोथ के मैनेजिंग डायरैक्टर आकाश जिंदल कहते हैं कि बाजार में इतने प्रौपर्टी डेवैलपर और होम लोन देने वाली कंपनियां मौजूद हैं कि ग्राहक के पास औप्शन की कमी नहीं. एक अच्छा ग्राहक जहां होम लोन से ले कर उस के इंश्योरैंस तक का ध्यान रखता है, वहीं उसे उस डेवैलपर के बारे में भी सचेत रहना चाहिए. आप ने लोन का इंश्योरैंस करा भी रखा हो तो भी डेवैलपर के डीफाल्ट करने की गुंजाइश बनी रहती है और ऐसे में कोई भी इंश्योरैंस मददगार नहीं होता.

यह भी जानें

इस बात का ध्यान रखें कि जितनी अवधि का आप ने लोन लिया है कम से कम उतनी अवधि का बीमा जरूर कराएं और साथ ही जिस कंपनी से आप ने होम लोन लिया है उस के फेवर में उस बीमा पालिसी को एंडोर्स जरूर कराएं. होम लोन देने वाली कंपनी से ही इस तरह का प्लान लेना जरूरी नहीं, बाजार में मौजूद किसी भी इंश्योरैंस कंपनी से ऐसा प्लान लिया जा सकता है.

इनकम टैक्स की प्लानिंग करें

जनवरी का महीना आते ही वेतनभोगी कर्मचारियों को इनकम टैक्स की चिंता होनी शुरू हो जाती है. औफिस वालों द्वारा भी कर्मचारियों से साल भर में किए गए निवेश का हिसाबकिताब मांगा जाता है. हिसाबकिताब का ब्योरा न देने पर औफिस वाले जनवरी, फरवरी, मार्च के महीनों में इनकम टैक्स काटना शुरू कर देते हैं. आइए जानें, अपना इनकम टैक्स कैसे कैलकुलेट करें:

सब से पहले यह जान लें कि आप की वेतन से प्राप्त होने वाली आय के अलावा अन्य स्रोतों से होने वाली कौनकौन सी आय इस में जुड़ेगी.

वेतन के अलावा किसी अन्य प्रोफेशन से होने वाली आय.

जमीनजायदाद से होने वाली आय.

शौर्ट टर्मकैपिटल गेन से होने वाली आय.

सेविंग बैंक अकाउंट से मिलने वाला ब्याज.

पोस्ट औफिस सेविंग्स स्कीमों, किसान विकास पत्र, एनएससी आदि से मिलने वाला ब्याज.

न जुड़ने वाली आय

पी.पी.एफ., ई.पी.एफ. पर मिला ब्याज.

पोस्ट औफिस में खुले सेविंग अकाउंट पर मिला ब्याज.

शेयर्स और म्यूचुअल फंड्स के बेचने से हुआ लौंग टर्म कैपिटल गेन.

नजदीकी रिश्तेदारों से मिले गिफ्ट्स.

खेती से हुई आमदनी.

विरासत में मिली जायदाद (जायदाद से मिलने वाले किराए पर टैक्स लगेगा.)

इनकम टैक्स कैलकुलेट करने के लिए सब से पहले सभी स्रोतों से प्राप्त आमदनी की गणना करें. मान लीजिए आप का सालाना वेतन क्व 3 लाख है. क्व 8,640 प्रौविडेंट फंड कट गया. बाकी बचे क्व 2,91,360. सेविंग बैंक अकाउंट से आप को साल में क्व 1,160 ब्याज मिला, शेयर्स आदि पर शौर्ट टर्म कैपिटल गेन हुआ

4,200 और क्व 3,600 साल भर में आप को पोस्ट आफिस की मंथली सेविंग स्कीम से प्राप्त हुए. अब आप की आय हो गई क्व 2,91,360+

1,160+क्व 4,200+क्व 3,600 = क्व 3,00,320.

इस पूरी रकम पर इनकम टैक्स नहीं लगेगा. इनकम टैक्स के नियमों के अनुसार सरकार ने कुछ छूटें प्रदान कर रखी हैं, जो निम्न हैं.

किराए में छूट

इनकम टैक्स की धारा 80 जीजी के अनुसार आप मकान के लिए दिए गए किराए पर भी टैक्स में छूट के हकदार हैं. यदि आप मकान का किराया दे रहे हैं और आप को वेतन में मकान का किराया भत्ता नहीं दिया जाता तो इस छूट को निम्न तरीके से लिया जा सकता है.

भुगतान किया गया किराया-कुल आय का 10%

क्व 2,000/- प्रतिमाह

कुल आय का 25%

इन तीनों में से जो भी सब से कम हो, उसे आप अपनी कुल आय में से घटा सकते हैं. इस के लिए आप को फार्म 10 बी भर कर देना होगा और उस में बताना होगा कि आप किराया दे रहे हैं और आप को किराया भत्ता प्राप्त नहीं होता. यदि आप को वेतन में किराया भत्ता मिलता है और आप उस से अधिक किराया दे रहे हैं तो आप सिर्फ उतनी ही छूट के हकदार होंगे जितना आप को दफ्तर से वेतन में किराया भत्ता मिलता है.

धारा 80 सी, 80 सी.सी.सी., 80 सी.सी.डी.

धारा 80 सी की विभिन्न उपधाराओं के तहत पहले 1 लाख रुपए तक की छूट मिलती थी. पिछले साल सरकार ने कुछ सरकारी इन्फ्रास्ट्रक्चर बांड्स में निवेश करने पर क्व 20,000 की छूट और दे दी है.

धारा 80 सी और उस की उपधाराओं के अंतर्गत निम्न इन्वैस्टमैंट्स पर भी छूट मिलती है.

प्रौविडेंट फंड की रकम.

पी.पी.एफ. (पब्लिक प्रौविडेंट फंड) में जमा राशि. पब्लिक प्रौविडेंट फंड में साल भर में अधिकतम क्व 70,000 निवेश किए जा सकते हैं.)

नैशनल सेविंग सर्टिफिकेट्स में निवेशित राशि.

सरकारी बैंकों में 5 साल के लिए एफ.डी. में निवेशित राशि.

एल.आई.सी. के प्रीमियम.

पोस्ट आफिस में 5 साल के लिए टर्म डिपोजिट में जमा राशि.

यूनिट लिंक्ड इंश्योरैंस प्लान में जमा राशि.

इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम्स में लगा धन.

टैक्स सेविंग म्यूचुअल फंड्स में लगाई गई राशि.

सीनियर सिटिजन स्कीम्स में जमा की गई राशि.

2 बच्चों की स्कूल या कालेज की फीस.

होम लोन के प्रिंसिपल अमाउंट के तौर पर चुकाई जा रही रकम.

धारा 80 डी

धारा 80 डी के तहत मैडिक्लेम में दिया गया प्रीमियम कर में छूट के योग्य है. यह छूट तभी मिलेगी जब पेमेंट चैक द्वारा की गई हो.

15,000 तथा दिया गया प्रीमियम कर मुक्त होता है. अगर मातापिता बुजुर्ग हैं और उन के लिए भी मैडिक्लेम का प्रीमियम अदा किया जा रहा है तो अतिरिक्त छूट भी मिलती है.

शारीरिक या मानसिक रूप से विकलांग आश्रित के इलाज के लिए सालाना क्व 50,000 की अतिरिक्त छूट प्राप्त होती है.

धारा 80 डीडीबी के अंतर्गत कैंसर, थैलिसीमिया, एड्स आदि बीमारियों सेग्रस्त व्यक्तियों के इलाज पर खर्च होने वाली रकम में अधिकतम क्व 40,000 पर छूट प्राप्त होती है.

धारा 80 ई में हायर एजुकेशन लोन चुकाने में ब्याज के तौर पर दी गई रकम पर छूट प्राप्त होती है.

धारा 80 यू के अंतर्गत शारीरिक या मानसिक रूप से विकलांगों को क्व 75,000 तक की छूट प्राप्त होती है.

धारा 24 बी के अंतर्गत हाउसिंग लोन अमाउंट के ब्याज के तौर पर दी जा रही रकम पर छूट प्राप्त होती है. इस की अधिकतम सीमा क्व 1.5 लाख है. लोन

अप्रैल, 1999 के बाद लिया होना चाहिए और 3 साल में प्रौपर्टी खरीद ली जानी चाहिए अन्यथा छूट क्व 30,000 रह जाएगी.

मैडिकल रिइम्बर्समैंट

वेतनभोगी को क्व 15,000 तक प्रतिवर्ष मैडिकल रिइम्बर्समैंट की छूट प्राप्त होती है. इस के लिए मैडिकल खर्चों का प्रमाणपत्र देना होगा.

यात्रा भत्ता

वेतनभोगियों को ट्रैवल लीव अलाउंस के रूप में भी आयकर में छूट प्राप्त होती है. एलटीए एक बार टैक्सेबल होता है, फिर दूसरी या तीसरी बार टैक्स छूट के साथ मिलता है. एलटीए सिर्फ देश में की गई यात्रा पर मिलता है. बेहतर यही है, अभी से अपने इनकम टैक्स की प्लानिंग करें और निश्चिंत हो जाएं.                     

म्यूचुअल फंड में निवेश से पहले

बढ़ती महंगाई को देखते हुए भविष्य के लिए बचत करना बहुत जरूरी है और निवेशकों के पास बाजार में निवेश करने के अनेक विकल्प हैं. उन में म्यूचुअल फंड निवेशकों के लिए निवेश करने का बेहतरीन विकल्प है. म्यचुअल फंड योजना के तहत खरीदी गई यूनिटों से इकट्ठी धनराशि को फंड मैनेजर द्वारा विभिन्न प्रतिभूतियों जैसे शेयर, डिबैंचर या फिर मुद्रा बाजार में निवेश किया जाता है. इस तरह म्यूचुअल फंड आम लोगों के लिए निवेश का उचित विकल्प है. इस में निवेश अपेक्षाकृत कम लागत पर विविध प्रतिभूतियों में किया जाता है. निवेशकों की जरूरतों, लक्ष्यों, आयु, वित्तीय स्थिति, जोखिम आदि के आधार पर म्यूचुअल फंड की अनेक योजनाएं हैं. जिस स्कीम में निवेशक जितनी रकम लगाता है उसे उस के निवेश के अनुसार यूनिटें प्रदान की जाती हैं. प्रत्येक यूनिट का मूल्य म्यूचुअल फंड के पोर्टफोलियो के बाजार में प्रदर्शन के हिसाब से बदलता रहता है. एक समय में यूनिट का मौजूदा भाव उस का नैट ऐसेट वैल्यू (एनएवी) कहलाता है.

म्यूचुअल फंड के प्रकार

म्यूचुअल फंड क्लोज ऐंडेड और ओपन ऐंडेड होता है. क्लोज ऐंडेड म्यूचुअल फंड को न्यू फंड औफर (एनएफओ) के दौरान खरीदा व परिपक्वता के बाद बेचा जाता है जबकि ओपन ऐंडेड स्कीम में निवेश या निवेश की निकासी कभी भी की जा सकती है. निवेशक जरूरत अनुसार इस का लाभ उठा सकते हैं. म्यूचुअल फंड का संचालन एक ऐसेट मैनेजमैंट कंपनी करती है. फंड का चुनाव करते समय जिस फंड में पैसा लगाएं उस फंड के बारे में यह जान लें कि वह उस पैसे का निवेश कहांकहां कर रहा है. लिक्विड फंड: अगर निवेश 3 से 6 महीनों के लिए करना है तो लिक्विड फंड का चुनाव करें. इस फंड की परिपक्वता 91 दिनों में हो जाती है.

टैक्स बचत योजनाएं: ये योजनाएं निवेशकों को समयसमय पर टैक्स नियमों के तहत टैक्स में छूट प्रदान करवाती हैं और म्यूचुअल फंडों के माध्यम से इक्विटी शेयरों में दीर्घकालीन निवेश को प्रोत्साहित करती हैं. अगर आप लंबी अवधि के लिए म्यूचुअल फंड में निवेश करना चाहते हैं तो सिप यानी सिस्टेमैटिक इनवैस्टमैंट प्लान के तहत निवेश कर सकते हैं. इस में 1 किस्त की निश्चित राशि एक स्कीम में नियमित रूप से निवेश की जाती है. यह स्कीम आप को एक बार में भारी पैसा निवेश करने की जगह म्यूचुअल फंड में कम अवधि का निवेश करने की आजादी देती है.

डेट फंड: इस तरह के फंड का उद्देश्य निवेशकों को सुरक्षित निवेश के जरीए लाभ प्रदान करना होता है. आमतौर पर ऐसी योजनाओं का पैसा सरकारी प्रतिभूतियों, बौंड्स व कौरपोरेट डिबैंचरों में लगाया जाता है.

बैलेंस फंड: यह फंड निवेश का बेहतर माध्यम समझा जाता है. इस तरह के फंडों में एक निश्चित अनुपात में निवेशकों का पैसा इक्विटी व डेट दोनों तरह के फंडों में निवेश किया जाता है. यह फंड उन निवेशकों के लिए बेहतर है, जो अपने पैसे को धीरेधीरे बढ़ते देखना चाहते हैं.

इक्विटी फंड: यह उन निवेशकों के लिए बेहतर साबित होता है, जो लंबी अवधि के लिए पैसा लगा कर लाभ कमाना चाहते हैं. इस स्कीम के तहत आप के पैसे का प्रमुख हिस्सा शेयरों में निवेश किया जाता है.

म्यूचुअल फंड में निवेश के लाभ

म्यूचुअल फंड में निवेश से आप अनुभवी और विशेषज्ञों की सेवाएं प्राप्त कर सकते हैं.

एक म्यूचुअल फंड में निवेश द्वारा आप एकसाथ कई कंपनियों में निवेश करते हैं.

म्यूचुअल फंड लंबी अवधि से ले कर छोटी अवधि तक में कमाई का मौका देते हैं.

ओपन ऐंडेड योजना में तुरंत एनएवी संबंधी मूल्य पर अपनी धनराशि प्राप्त कर सकते हैं. क्लोज ऐंडेड व रिटायरमैंट योजना में आप अपनी यूनिटें स्टौक ऐक्सचेंज में चालू बाजार मूल्य पर बेच सकते हैं या मौजूदा नैट ऐसेट वैल्यू पर और यूनिट खरीद सकते हैं.

म्यूचुअल फंड आप को अपने विभिन्न लक्ष्यों व जरूरतों के अनुसार तरहतरह की योजनाएं प्रदान करते हैं.

सेबी द्वारा पंजीकृत होने के कारण म्यूचुअल फंड सेबी द्वारा निवेशकों के हितों की रक्षा को ध्यान में रख कर बनाए गए निर्धारित नियमों के तरह ही अपना काम करते हैं.

अनमोल है मां का दूध

ब्रैस्ट फीडिंग न सिर्फ शिशु के लिए अच्छी मानी जाती है, बल्कि मां के स्वास्थ्य के लिए भी बेहद आवश्यक है क्योंकि ब्रैस्ट फीडिंग कराने से भविष्य में ब्रैस्ट कैंसर और यूटरस कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा कम हो जाता है. इस के अतिरिक्त यह गर्भावस्था के दौरान बढ़े वजन को कम करने में भी मदद करता है.

स्तनपान कराने की तकनीक

बच्चे के जन्म के तुरंत बाद ही उसे अपने स्तन से लगा लें.

शिशु को स्तनपान कराते समय इस बात का ध्यान रखें कि आरामदायक आसन में बैठी या लेटी हों. इस बात का भी ध्यान रखें कि स्तनपान कराते समय शिशु का चेहरा स्तन की दिशा में हो और उस का पेट आप के चेहरे की दिशा में हो.

शिशु के मुंह से तब तक स्तन न हटाएं जब तक वह खुद मुंह न फेरे. कई बार बच्चा दूध पीतेपीते सो जाता है लेकिन दूध पीना बंद नहीं करता.

स्तनपान के समय होने वाली आम समस्याएं

अतिरिक्तता: शिशु के जन्म के कुछ दिन बाद आप के स्तन में अतिरिक्त दूध बनने की दशा में सूजन और दर्द हो सकता है. इस तकलीफ से नजात पाने के लिए शिशु को जल्दीजल्दी स्तनपान कराएं.

निपल में दरार पड़ना: यह स्थिति तब आती है जब स्तनपान के समय शिशु सही तरह से निपल मुंह में नहीं लेता. निपल के फटने पर उस पर नारियल का तेल या फिर अपने ही स्तन से निकला हुआ दूध लगाएं. दर्द की स्थिति में डाक्टर से सलाह लें.

डकार दिलवाने में दिक्कत: शिशु को प्रत्येक फीड के बाद डकार दिलाना जरूरी है. इस के लिए शिशु को अपने कंधे के सहारे लें और आहिस्ताआहिस्ता उस की पीठ सहलाएं.

पोसिटिंग: फीडिंग के समय शिशु कभीकभी कुछ मात्रा में दूध बाहर निकाल देता है. यह शिशु का सामान्य व्यवहार है, इसलिए घबराएं नहीं.

हिचकी लेना, छींकना या जम्हाई लेना: स्तनपान के समय बच्चे को कभीकभी हिचकी आने लगती है. ऐसे में उसे पानी पिलाने की जगह कंधे ले कर हलके हाथों से थपकी दें.

घुटन: फीडिंग के दौरान बच्चे का उलटी करना इस बात का संकेत है कि वह सही तरह से सांस नहीं ले पा रहा और घुटन की वजह से उसे उलटी हो गई है. इस स्थिति में बच्चे को उलटा कर के उस की पीठ पर थपकी दें.  

– डा. विवेक जैन

एचओडी, नियोनैटोलौजी विभाग, फोर्टिस अस्पताल, शालीमार बाग

जिंदगी 2 मिनट नूडल्स नहीं

रिश्तों में सब कुछ इंस्टैंट की चाह कहावतों को भी बदलने लगी है. बदलते समय के साथ ‘चट मंगनी पट ब्याह’ वाली कहावत बदल कर ‘चट ब्याह पट तलाक’ वाली हो गई है. युवाओं में ‘चट झगड़ा पट तलाक’ का ट्रैंड जोर पकड़ रहा है. प्रेम संबंधों से जुड़ी रहने वाली अमेरिकी पौप स्टार जैनिफर लोपेज अब तक 3 बार तलाक ले चुकी हैं. ऐक्टर मौडल ओजानी नोआ से उन का वैवाहिक संबंध 1 वर्ष से भी कम समय तक चला तो डांसर क्रिस जूड के साथ वे 2 साल कुछ महीने ही रहीं. वहीं गायक मार्क ऐलोनी के साथ भी उन का वैवाहिक संबंध ज्यादा समय नहीं चला. ऐसे में अगर भारत की बात की जाए तो एक खबर पर नजर डालें, जिस में भोजपुर की सुनीता 2 दिन पहले शादी का जोड़ा पहन कर आई थी और 2 दिन बाद ही पति क नापसंद कर के तलाक की अर्जी ले कर कोर्ट पहुंच गई.

ऐसा ही मामला बीकानेर में भी सामने आया, जिस में फेसबुक पर शुरू हुई प्रेम कहानी के चलते 1 हफ्ते में एक जोड़े ने शादी रचाई और हनीमून के दौरान हुए झगड़े के अगले ही दिन दोनों ने आपसी सहमति से तलाक ले लिया. अगर आप चट ब्याह और पट तलाक की वजह जानेंगे तो हैरान रह जाएंगे. जैसे औफिस से लेट आना, साथ ड्रिंक न करना. कुल मिला कर धैर्य की कमी और अत्यधिक महत्त्वाकांक्षा रिश्तों को कमजोर कर रही है और अग्नि को साक्षी मान कर जीवन भर साथ निभाने का वादा करने वाले विवाह के कुछ ही दिनों बाद रिश्ता तोड़ कर अलग दुनिया बसा रहे हैं. इंस्टैंट दोस्ती और बे्रकअप की बात करें तो बिग बौस के पिछले सीजन में करीब आए गौहर और कुशाल टंडन के अलग होने की खबर रिश्ते में इंस्टैंट नजदीकी और इंस्टैंट दूरी का ताजा उदाहरण है.

फास्ट फूड, फास्ट ट्रैक वाचेज, स्पीडी बाइक्स, 2 मिनट नूडल्स, हाई स्पीड इंटरनैट, औनलाइन शौपिंग, औनलाइन पिज्जा और्डर, औनलाइन मूवी टिकट बुकिंग, रैस्टोरैंट की टेबल बुकिंग सब कुछ एक टच एक क्लिक पर. और तो और खूबसूरत दिखने के लिए भी इंस्टैंट ग्लो. कुल मिला कर इंस्टैंट और स्पीड आज के युवाओं की लाइफ का मुख्य फंडा है. उन की पौलिसी मूव औन यानी आगे बढ़ने की है. आज जिसे पाने के लिए वे बेकरार हैं कल उसे रिजैक्ट भी कर देते हैं. दौड़तेभागते युवाओं की जिंदगी के हर हिस्से में जल्दबाजी की परछाईं देखने को मिलती है. युवाओं के इस बदले व्यवहार और नजरिए के पीछे क्या कारण छिपे हैं और उन के इस व्यवहार का उन की जिंदगी पर क्या प्रभाव पड़ता है आइए, जानते हैं:

फास्ट फूड का फंडा

जिंदगी की सब से जरूरी जरूरत यानी खानापीना भी युवाओं को इंस्टैंट और फास्ट चाहिए. पहले वे भूख लगने पर भोजन बनने का इंतजार करते थे, लेकिन आज उन्हें मिनटों में थ्री कोर्स मील चाहिए, फिर चाहे वह स्टार्टर हो, मेन कोर्स हो या स्वीट डिश, सब कुछ फास्ट और इंस्टैंट होना चाहिए.

तेज बनाती तकनीक

तकनीक ने युवाओं को इतना तेज बना दिया है कि वे मैसेज भी इंस्टैंट करते हैं और तो और मैसेज भी शौर्ट फौर्म में भेजते हैं. सोशल नैटवर्किंग साइट्स उन की सैकंड लाइफ बन गई हैं, उन से वे हर सैकंड दोस्तों से जुड़े रहते हैं. दोस्तों को बर्थडे विश करना हो, गिफ्ट भेजना हो वे औनलाइन शौपिंग का सहारा लेते हैं. बाजार के धक्के खाना उन्हें गंवारा नहीं. वे सिर्फ एक क्लिक पर विश्वास रखते हैं. अगर उन का बस चले तो वे टैलीपेथी से कम्युनिकेट करें. स्मार्ट फोन में मौजूद सुविधाओं ने उन्हें और जल्दबाज बना दिया है. वे अपने सभी औफिस के व पर्सनल काम उसी पर निबटाते हैं. चलतेफिरते, सफर करते वे सब से कनैक्टेड रहते हैं. अब वे लाइबे्ररी में जा कर किताबें पढ़ने के बजाय औनलाइन नौवल्स पढ़ते हैं, संगीत का भी आनंद उठाते हैं.

रिश्ते भी इंस्टैंट

किसी भी चीज के लिए इंतजार न करने वाली यह पीढ़ी रिश्तों में भी शौर्टकर्ट अपनाती है. हर चीज उसे समय से पहले और जल्दी से जल्दी चाहिए. वह समय से पहले सब कुछ पा लेना चाहती है. फिर चाहे बात सैक्स की ही क्यों न हो. कई बार तो इस जल्दबाजी में वह अनैतिक रास्ता अपना कर अपराध के रास्ते भी चल पड़ती है. नौकरी, रिश्ते, फ्रैंड, फैशन, ब्यूटी हर क्षेत्र में उसे सब कुछ जल्दी चाहिए. हर समय उसे बदलाव व नए की चाहत रहती है. वह किसी भी चीज से बहुत जल्दी बोर भी हो जाती है. पहले जिस गर्लफ्रैंड को पटाने के लिए युवक जद्दोजेहद करता है कल कोई और पसंद आ जाने पर उसे छोड़ भी तुरंत देता है. उस के लिए हर चीज की ऐक्सपायरी डेट है. वह किसी भी चीज से कमिटेड नहीं रहना चाहता. उस की दोस्ती भी इंस्टैंट है. जहां दोस्त से अनबन हुई, उस की कोई बात पसंद नहीं आई, वह एक क्लिक से उसे फ्रैंडलिस्ट से डिलीट कर देता है. औनलाइन डेटिंग, लिव इन रिलेशनशिप उस की इसी इंस्टैंट चाहत का परिणाम हैं. वह हेयर कलर, फैशन, ब्यूटी प्रोडक्ट्स की तरह दोस्ती और रिश्ते बदलता है. उस की जिंदगी की टैगलाइन मूव औन यानी आगे बढ़ने वाली हो गई है.

सुपर से ऊपर बनने की चाहत में वह जौब होपिंग यानी जल्द से जल्द नौकरी बदलता है. उस का एकमात्र उद्देश्य सिर्फ ऊंचाई पर पहुंच कर सब कुछ जल्द से जल्द पा लेना है. लेकिन वह यह नहीं जानता कि जो सफलता जल्दी मिलती है वह टिकाऊ नहीं होती. वैवाहिक रिश्तों में भी वह चट मंगनी पट ब्याह करता है, लेकिन रिश्तों को समझने के धैर्य के अभाव में वह झटपट तलाक के मुकाम पर भी पहुंच जाता है. लेकिन उसे इस बात का कोई पछतावा नहीं होता, क्योंकि वह रिश्तों में भी इंस्टैंट चेंज चाहता है. जो चीज उस के मनमुताबिक, मनमरजी की नहीं वह उस से बंधा नहीं रहना चाहता. वह किसी भी रिश्ते में समझौता नहीं करना चाहता. और तो और युवतियां भी अपने कैरियर व खूबसूरती की खातिर गर्भधारण कर के मां बनने के लिए 9 महीनों का इंतजार नहीं करना चाहतीं. वे मां बनने के लिए सैरोगेसी का सहारा लेने लगी हैं. नौर्मल डिलिवरी की जगह सिजेरियन कराने लगी हैं ताकि उन्हें इंतजार न करना पड़े.

जमाने के साथ चलना जरूरी

सब कुछ जल्दी पा लेने वाले युवाओं की इस चाह को एशियन इंस्टिट्यूट औफ मैडिकल साइंस, फरीदाबाद की मनोवैज्ञानिक मीनाक्षी मनचंदा ‘इंस्टैंट ग्रेटिफिकेशन’ नाम देती हैं. इस चाहत में कोई भी जल्द से जल्द आनंद या संतुष्टि पा लेना चाहता है. मीनाक्षी कहती हैं, ‘‘युवाओं के इस स्वभाव का कारण कहीं न कहीं आसपास का माहौल है फिर चाहे वह स्कूल, कालेज या घर में मातापिता ही क्यों न हों. वे बचपन से बच्चे को हर काम जल्दी करने, आगे रहने के लिए प्रेरित करते रहते हैं. बारबार कहते हैं कि सुस्त लोगों को कोई पसंद नहीं करता, जमाना तेज चलने वालों का है यानी बच्चों को हर काम जल्दी करने के लिए प्रेरित करते हैं. मातापिता का यही रवैया उन्हें हर चीज में जल्दबाजी या हर चीज को इंस्टैंट चाहने की ख्वाहिश पैदा करता है. अभिभावक उन्हें हर चीज मांगने से पहले उपलब्ध करा देते हैं. इस से भी उन में धैर्य की कमी हो जाती है और जब उन्हें जीवन के किसी भी क्षेत्र में कोई चीज मनमुताबिक नहीं मिलती तो वे या तो बदला लेने लगते हैं या फिर डिप्रैशन में चले जाते हैं.

‘‘वे छोटी से छोटी बात पर भी कहासुनी करने लगते हैं. हर बात को प्रैस्टिज इश्यू बना लेते हैं और खुद पर नियंत्रण खो बैठते हैं. उपभोक्ता कंपनियां उन के इसी इंस्टैंट ग्रैटीफिकेशन की चाह का फायदा उठा रही हैं और उन के इसी स्वभाव को ध्यान में रखते हुए प्रोडक्ट लौंच कर रही हैं. फिर चाहे वे फूड प्रोडक्ट्स हों, ब्यूटी प्रोडक्ट्स हों, कारें अथवा बाइक्स सब में स्पीड और इंस्टैंट की बात की जाती है. ऐसे में युवा इंस्टैंट ग्रैटीफिकेशन की चाहत से भला कैसे बच सकते हैं

‘‘संयुक्त परिवारों का टूटना भी युवाओं के इस स्वभाव का कारण है. समय के अभाव के कारण मातापिता उन्हें प्रौपर मार्गदर्शन नहीं दे पाते और इसी कारण से वे जीवन की सचाई से रूबरू नहीं हो पाते और प्रेम में प्रेमिका द्वारा इनकार करने पर उस पर तेजाब फेंक दिया जाता है, सैक्स के लिए मना करने पर लड़की का रेप हो जाता है. सड़क पर आगे निकलने की जगह न दी तो गोलियां चल जाती हैं. रिश्तों में परिपक्वता का स्थान स्वार्थ व आत्मसंतुष्टि ने ले लिया है. लेकिन आत्मसंतुष्टि की यह चाहत उन्हें स्थायित्व की जगह भटकाव की ओर ले जा रही है. ऐसे में जरूरी है कि मातापिता बच्चों को इंस्टैंट सारी सुविधाएं उपलब्ध कराने के बजाय जीवन की वास्तविकता से उन का परिचय कराएं, उन का प्रौपर मार्गदर्शन करें, उन्हें धैर्य का पाठ पढ़ाएं ताकि वे सफलता के साथसाथ सुकून भी पा सकें.’

शेप में लाएं फिगर

अकसर गर्भवती महिलाओं को यह फिक्र सताती है कि पता नहीं वे गर्भावस्था के बाद फिर से अपना पुराना रूप पा सकेंगी या नहीं. अगर आप भी उन में शामिल हैं, तो चिंता न करें. अगर आप संतुलित और पोषक भोजन व सही ऐक्सरसाइज करेंगी और अपनी सोच सकारात्मक रखेंगी तो जब आप का बच्चा पहली सालगिरह मनाएगा, तब तक आप फिर से अपनी वही छरहरी काया और आकर्षक लुक पा चुकी होंगी. संतुलित और पोषक भोजन जरूरी: संतुलित और पोषक भोजन करें ताकि आप का शरीर बच्चे के विकास और खुद के शरीर में हो रहे बदलावों के लिए तैयार हो सके. कहा जाता है कि गर्भवती को अपनी खुराक दोगुनी कर देनी चाहिए. लेकिन वास्तविकता यह है कि शुरू के 6 महीनों में अतिरिक्त कैलोरी लेने की जरूरत नहीं होती क्योंकि इस दौरान बच्चे के अंग विकसित होते हैं. बच्चे का वजन 7वें, 8वें और 9वें महीने में बढ़ता है. इन 3 महीनों में गर्भवती को अपनी खुराक डेढ़ गुनी कर देनी चहिए. इस दौरान ताजा फल, सब्जियां, साबूत अनाज, सूखा मेवा, गुड़, दूध, दूध उत्पाद और अगर मांसाहारी हों तो मछली और अंडों का सेवन जरूर करें.

गर्भावस्था के दौरान ऐस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरौन हारमोंस का स्तर बढ़ने से कई महिलाओं को कब्ज की समस्या हो जाती है, जिस से बचने के लिए 3-4 लिटर पानी दिन में जरूर पीएं. पूरी नींद लें: गर्भवती को पूरी नींद की जरूरत होती है, इसलिए 8-10 घंटे की नींद जरूर लें. शारीरिक रूप से सक्रिय रहें: लेकिन गर्भावस्था के दौरान भी अपनी सामान्य दिनचर्या जारी रखें. घर का काम करें. अगर नौकरी करती हैं तो औफिस जाएं.

प्रसव के बाद: गर्भावस्था में शरीर कई बदलावों से गुजरता है. उसे फिर से पूरी तरह पहले वाले रूप में आने में समय लगता है. इसलिए पुराना आकार पाने में जल्दबाजी न करें.

बच्चे को स्तनपान जरूर कराएं: गर्भावस्था के दौरान जो वसा जमा हो जाती है उस का उपयोग दूध के निर्माण में होता है, जिस से शरीर पर वसा की परतें प्राकृतिक रूप से कम होने लगती हैं. बच्चे को दूध पिलाने में प्रतिदिन औसतन 600 से 800 कैलोरी इस्तेमाल होती है, जिस से डिलिवरी के बाद मां को वजन कम करने में आसानी होती है.

धीमी शुरुआत करें: अगर सामान्य डिलिवरी हुई हो तो 2 महीने तक कोई ऐक्सरसाइज न करें. अगर सीसैक्शन हुई हो तो इस अवधि को 3 महीनों तक बढ़ा दें. जब ऐक्सरसाइज शुरू करें तो शुरू में 10-15 मिनट से ज्यादा देर न करें. कठिन ऐक्सरसाइज करने से पैल्विक फ्लोर पर दबाव पड़ता है, जिस से ब्लीडिंग शुरू हो सकती है.

डिप्रैशन से बचें: बच्चे के जन्म के बाद ऐस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरौन हारमोंस के स्तर में गिरावट आती है, जो पोस्टपार्टम डिप्रैशन का कारण बनता है. इस दौरान मूड स्विंग्स बहुत होता है. मगर यह अस्थायी अवस्था है, जो 1 से 4 सप्ताह में अपनेआप समाप्त हो जाती है. लेकिन लक्षण अधिक गंभीर हो जाएं और 4 सप्ताह से अधिक समय तक बने रहें, तो तुरंत डाक्टर से संपर्क करें.

इन बातों का भी रखें ध्यान

दिन की शुरुआत 1 गिलास कुनकुने पानी में 1 चम्मच शहद डाल कर पीने के साथ करें.

दिन में 3 बार मेगा मील खाने के बजाय 6 बार मिनी मील खाएं.

वसा, नमक और चीनी का सेवन कम मात्रा में करें.

चाय और कौफी का सेवन कम करें.

सलाद नियमित रूप से खाएं.

जंक फूड, सोडा आदि से बचें.

साबूत अनाज, मौसमी फल, सब्जियां, सूखा मेवा और वसारहित दूध व दूध से बने उत्पादों को अपने भोजन में शामिल करें.   
-डा. निशा जैन
एच.ओ.डी. गाइनेकोलौजिस्ट, सरोज सुपरस्पैश्यलिटी हौस्पिटल, नई दिल्ली.

स्वास्थ्य सुलझन

मेरी उम्र 27 साल है. मैं सैक्स को ले कर कमजोरी महसूस कर रही हूं. यह क्या मेरे द्वारा स्वयं सैक्स की इच्छा जाग्रत करने की आदत की वजह से है? यानी क्या हस्तमैथुन की वजह से शारीरिक कमजोरी हुई है? कृपया मुझे इस समस्या के परिणाम के बारे में बताएं, क्योंकि जल्द ही मेरी शादी होने वाली है?

हस्तमैथुन यौन तनाव से राहत का स्वीकार्य तरीका है. इस से किसी तरह की विकृति या यौन कमजोरी नहीं होती है. हस्तमैथुन से जुड़ी गलतफहमी ही यौन कमजोरी की वजह बनती है. यह सिर्फ एक मिथक है. इस से परे रह कर आप शादी के लिए खुद को तैयार रखिए.

मेरी उम्र 34 और पति की 37 वर्ष है. मेरी शादी को 4 साल हो चुके हैं, लेकिन मैं गर्भधारण करने में सक्षम नहीं हो पा रही हूं. मैं थायराइड की समस्या से भी जूझ रही हूं. मेरे अंडाणुओं की संख्या भी कम है. मेरे पति के वीर्य की मात्रा 12 एमएल है. मेरा सवाल यह है कि क्या मैं आईयूआई ट्रीटमैंट के बिना दवा के जरीए गर्भधारण कर सकती हूं? क्या आप आईयूआई से गुजरने से पहले शुक्राणुओं को बढ़ाने के लिए कोई दवा बता सकते हैं?

आप ने जो सूचना दी है वह अधूरी है. एग काउंट जैसी कोई चीज नहीं होती है. आप के साथ डिंबक्षरण की समस्या हो सकती है. इसे दवा और कूप विकास के अल्ट्रासाउंड के जरीए निगरानी से सही किया जा सकता है. जैसा आप ने कहा, उस से लगता है कि आप के पति का स्पर्म काउंट 12 मिलियन यानी 1.2 करोड़ है. उस की जांच के लिए उन्हें किसी मूत्ररोग विशेषज्ञ के पास ले जाएं. स्पर्म काउंट को बढ़ाने के लिए खुद दवा लेना उलटा पड़ सकता है. बेहतर होगा कि मूत्ररोग विशेषज्ञ से जांच करवाने के बाद ही उपचार करवाएं.

मेरी उम्र 27 वर्ष है. मेरी शादी को 4 वर्ष हो गए हैं. मेरी समस्या यह है कि मैं सैक्स के दौरान दर्द महसूस करती हूं. दर्द की वजह से पति का लिंग मेरे अंग में अंदर तक नहीं पहुंचता है. मैं बेहद चिंतित हूं, क्योंकि हम बच्चा पैदा करने की योजना बना रहे हैं. मुझे क्या करना चाहिए?

शारीरिक संबंध बनाते वक्त वैजाइना में दर्द डिसपरुनिआ कहलाता है. यौन चिंता या तनाव की वजह से आप की उम्र में ऐसा होना सामान्य बात है. ल्यूबिक जैली जैसे ल्यूब्रिकेशन के इस्तेमाल से इस परेशानी से बचा जा सकता है. लेकिन समस्या के लगातार बने रहने पर स्त्रीरोग विशेषज्ञा से जांच करवाना जरूरी है.

मेरा मासिकधर्म नियमित तौर पर आता है और यह 24 दिन के चक्र वाला है. मेरा पिछला पीरियड 4 तारीख को आया था और मेरे पति ने मेरे साथ 17 तारीख को सैक्स किया. हम ने कंडोम का इस्तेमाल किया था इसलिए वीर्य योनि में स्खलित नहीं हुआ था, लेकिन इस महीने मेरे पीरियड में विलंब हो गया है. मेरा कोई इलाज वगैरह भी नहीं चल रहा है, जिस से यह प्रक्रिया प्रभावित हुई हो. मैं 27 तारीख को बीमार पड़ गई तो मैं ने सोचा कि शायद इस वजह से पीरियड में विलंब हो गया है. मैं क्या करूं?

किसी तरह की बीमारी मासिकधर्म के चक्र को बिगाड़ सकती है. फिर भी दवा की दुकानों में आसानी से मिलने वाली युरिन प्रैगनैंसी किट से शक दूर किया जा सकता है.

मेरी उम्र 23 साल है. मेरा पिछला पीरियड 14 तारीख को आया था, जो 4 दिन तक चला. मैं ने 8 दिन बाद सुरक्षित सैक्स किया. साथ ही 6 घंटे के अंदर आईपिल भी ले ली. सामान्य तौर पर मेरा पीरियड चक्र 28 दिन का है. लेकिन इस बार यह 2 सप्ताह पीछे चल रहा है. मैं ने अगले महीने 14, 19 और 21 तारीख को 3 होम युरिन टैस्ट भी करवाए, जो सभी नैगेटिव निकले. दूसरे दिन एक बीटा एचसीजी टैस्ट भी करवाया था. वह भी नैगेटिव (1.2) निकला. सामान्य तौर पर पीरियड के दौरान मुझे पेट में भारी दर्द रहता था, लेकिन अब मैं रोज पेट में हलकाहलका दर्द महसूस करती हूं. मैं क्या करूं?

चूंकि कई जांचों में गर्भवती न होने की बात सामने आ चुकी है, इसलिए यह तो स्पष्ट है कि आप गर्भवती नहीं हैं. मासिकधर्म के अंतराल में गड़बड़ी आईपिल की वजह से हुई है. अगर आप के पेट के निचले हिस्से में दर्द रहता है तो कृपया अल्ट्रासाउंड करवा लें. दर्द का कारण पता चलने पर उपचार में आसानी रहेगी.

मैं जब 16 साल की थी, तो अपने जननांग के बारे में नहीं जानती थी. मैं अंग को कभीकभी जोर से दबा देती थी. लेकिन ऐसा 7-8 बार करने के बाद भी मुझे सैक्स की इच्छा नहीं होती थी. मैं ने कई स्त्रीरोग विशेषज्ञाओं से अपनी जांच करवाई, लेकिन उन्हें यह बात नहीं बताई. उन्होंने मेरी योनि की जांच की और कहा कि सब कुछ ठीक है. लेकिन मैं परेशानी महसूस कर रही हूं. कृपया बताएं कि मुझे क्या समस्या है और क्या आप उस का उपचार बता सकते हैं? मुझ पर शादी का दबाव पड़ रहा है, इसलिए मैं बेहद चिंतित हूं. मेरा पीरियड सामान्य है.

यह सब विवाहपूर्व की चिंता है. जननांग को दबाने से कोई नुकसान नहीं होता है. हर कोई, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, किसी न किसी रूप में अपने जननांग को स्पर्श करता है. यह हर किसी के लिए, चाहे वह किसी उम्र का हो, सामान्य है.

मेरी उम्र 18 साल है. जब मैं ने अपने बौयफ्रैंड के साथ पहली बार सैक्स किया तो मेरे गुप्तांग से खून नहीं निकला. ऐसा क्यों, मैं तो तब तक वर्जिन थी?

ऐसा शायद इसलिए हुआ, क्योंकि हो सकता है कि उन्होंने आप को पर्याप्त गहराई तक पैनिटे्रट नहीं किया या कसरत या हस्तमैथुन की वजह से आप की कौमार्य झिल्ली पहले से फट चुकी हो.

डा. शैलेंद्र कुमार गोयल सैक्सोलौजिस्ट, हैल्पिंग डौक.कौम

हैल्थ टिप्स : प्रसव के बाद

बच्चे को जन्म देने के बाद मां मानसिक रूप से तो स्वस्थ हो जाती है, लेकिन शारीरिक रूप से काफी कमजोर हो जाती है. इस दौरान उस की योनि में परिवर्तन होता है, उसे पेशाब करने में दिक्कत हो सकती है. ऐसे में प्रसव के बाद मां को खुद पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है. खासतौर पर पहले सप्ताह.

मां के शरीर में होने वाले परिवर्तन

यूटरस में दर्द महसूस हो सकता है, खासकर स्तनपान कराने पर यह दर्द शुरू हो सकता है, क्योंकि इस से यूटरस सिकुड़ने लगता है.

स्तनों में दर्द महसूस हो सकता है. उन का आकार बढ़ जाता है.

प्रसव के बाद कुछ सप्ताह तक वैजाइनल डिस्चार्ज होता है. शुरू में यह लाल रंग का होता है. कुछ दिनों बाद रंग भूरागुलाबी होता है. फिर धीरेधीरे हलका होता जाता है. इस दौरान सैनेटरी टौवेल का इस्तेमाल करें.

कई मांएं प्रसव के बाद कुछ दिनों तक रोंआसा सा महसूस करती हैं. ऐसा हारमोन के स्तर में परिवर्तन के कारण होता है.

सामान्य प्रसव के दौरान मांसपेशियों में खिंचाव के कारण पेशाब रोकने में परेशानी हो सकती है. हंसते, खांसते या छींकते हुए पेशाब छूट जाता है.

खास टिप्स

पानी पर्याप्त पीती रहें. यह शरीर को ताकत देता है और उसे हाइड्रेट रखता है.

पहली बार मां बनने पर निपल्स पक या छिल जाते हैं. अत: आप डाक्टर से कोई औइंटमैंट आदि लिखवा लें या फीड कराने के बाद अपना दूध निपल्स पर लगाएं.

प्रसव के बाद अपने हाथों को साफ रखें. हाथों को गरम पानी से साफ करें ताकि आप को सर्दी न लगे. अगर आप को सर्दी लग जाएगी तो बच्चे को भी सर्दी लग जाएगी, जो उस के लिए घातक होती है.

प्रसव के बाद जब भी पेशाब कर के आएं तो कुनकुने पानी से योनि को धो लें. इस से संक्रमण होने का खतरा न के बराबर हो जाएगा.

डिलिवरी के बाद ब्रैस्ट पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है. इस दौरान ज्यादा टाइट ब्रा न पहनें. कौटन की ब्रा ही पहनें. स्तनों को ड्राई न होने दें.

– डा. शिल्पी सचदेव
कंसल्टैंट औब्स्टेट्रिशियन ऐंड गाइनेकोलौजिस्ट

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