दोस्ती: अनिकेत के समझौते के खिलाफ क्या था आकांक्षा का फैसला

आकांक्षाखुद में सिमटी हुई दुलहन बनी सेज पर पिया के इंतजार में घडि़यां गिन रही थी. अचानक दरवाजा खुला, तो उस की धड़कनें और बढ़ गईं.

मगर यह क्या? अनिकेत अंदर आया.

दूल्हे के भारीभरकम कपड़े बदल नाइटसूट पहन कर बोला, ‘‘आप भी थक गई होंगी. प्लीज, कपड़े बदल कर सो जाएं. मुझे भी सुबह औफिस जाना है.’’

आकांक्षा का सिर फूलों और जूड़े से पहले ही भारी हो रहा था, यह सुन कर और झटका लगा, पर कहीं राहत की सांस भी ली. अपने सूटकेस से खूबसूरत नाइटी निकाल कर पहनी और फिर वह भी बिस्तर पर एक तरफ लुढ़क गई.

अजीब थी सुहागसेज. 2 अनजान जिस्म जिन्हें एक करने में दोनों के परिवार वालों ने इतनी जहमत उठाई थी, बिना एक हुए ही रात गुजार रहे थे. फूलों को भी अपमान महसूस हुआ. वरना उन की खुशबू अच्छेअच्छों को मदहोश कर दे.

अगले दिन नींद खुली तो देखा अनिकेत औफिस के लिए जा चुका था. आकांक्षा ने एक भरपूर अंगड़ाई ले कर घर का जायजा लिया.

2 कमरों का फ्लैट, बालकनी समेत अनिकेत को औफिस की तरफ से मिला था. अनिकेत एअरलाइंस कंपनी में काम करता है. कमर्शियल विभाग में. आकांक्षा भी एक छोटी सी एअरलाइंस कंपनी में परिचालन विभाग में काम करती है. दोनों के पिता आपस में दोस्त थे और उन का यह फैसला था कि अनिकेत और आकांक्षा एकदूसरे के लिए परफैक्ट मैच रहेंगे.

आकांक्षा को पिता के फैसले पर कोईर् आपत्ति नहीं थी, पर अनिकेत ने पिता के दबाव में आ कर विवाह का बंधन स्वीकार किया था. आकांक्षा ने औफिस से 1 हफ्ते की छुट्टी ली थी. सब से पहले किचन में जा कर चाय बनाई, फिर चाय की चुसकियों के साथ घर को संवारने का प्लान बनाया.

शाम को अनिकेत के लौटने पर घर का कोनाकोना दमक रहा था. जैसे ही अनिकेत ने घर में कदम रखा, करीने से सजे घर को देख कर उसे लगा क्या यह वही घर है जो रोज अस्तव्यस्त होता था? खाने की खुशबू भी उस की भूख को बढ़ा रही थी.

आकांक्षा चहकते हुए बोली, ‘‘आप का दिन कैसा रहा?’’

‘‘ठीक,’’ एक संक्षिप्त सा उत्तर दे कर अनिकेत डाइनिंग टेबल पर पहुंचा. जल्दी से खाना खाया और सीधा बिस्तर पर.

औरत ज्यादा नहीं पर दो बोल तो तारीफ के चाहती ही है, पर आकांक्षा को वे भी नहीं मिले. 5 दिन तक यही दिनचर्या चलती रही.

छठे दिन आकांक्षा ने सोने से पहले अनिकेत का रास्ता रोक लिया, ‘‘आप प्लीज 5 मिनट

बात करेंगे?’’

‘‘मुझे सोना है,’’ अनिकेत ने चिरपरिचित अंदाज में कहा.

‘‘प्लीज, कल से मुझे भी औफिस जाना है. आज तो 5 मिनट निकाल लीजिए.’’

‘‘बोलो, क्या कहना चाहती हो,’’ अनिकेत अनमना सा बोला.

‘‘आप मुझ से नाराज हैं या शादी से?’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘आप जानते हैं मैं क्या जानना चाहती हूं?’’

‘‘प्लीज डैडी से बात करो, जिन का

फैसला था.’’

‘‘पर शादी तो आप ने की है? आकांक्षा को भी गुस्सा आ गया.’’

‘‘जानता हूं. और कुछ?’’ अनिकेत चिढ़ कर बोला.

आकांक्षा समझ गई कि अब सुलझने की जगह बात बिगड़ने वाली है. बोली, ‘‘क्या यह शादी आप की मरजी से नहीं हुई है?’’

‘‘नहीं. और कुछ?’’

‘‘अच्छा, ठीक है पर एक विनती है आप से.’’

‘‘क्या?’’

‘‘क्या हम कुछ दिन दोस्तों की तरह रह सकते हैं?’’

‘‘मतलब?’’ अनिकेत को आश्चर्य हुआ.

‘‘यही कि 1 महीने बाद मेरा इंटरव्यू है. मुझे लाइसैंस मिल जाएगा और फिर मैं आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चली जाऊंगी 3 सालों के लिए. उस दौैरान आप को जो उचित लगे, वह फैसला ले लीजिएगा… यकीन मानिए आप को परेशानी नहीं होगी.’’

अनिकेत को इस में कोई आपत्ति नहीं लगी. फिर दोनों साथसाथ

नाश्ता करने लगे. शाम को घूमने भी जाने लगे. होटल, रेस्तरां यहां तक कि सिनेमा भी. आकांक्षा कालेजगर्ल की तरह ही कपड़े पहनती थी न कि नईनवेली दुलहन की तरह. उन्हें साथ देख कर कोई प्रेमी युगल समझ सकता था, पर पतिपत्नी तो बिलकुल नहीं.

कैफे कौफीडे हो या काके दा होटल, दोस्तों के लिए हर जगह बातों का अड्डा होती है और आकांक्षा के पास तो बातों का खजाना था. धीरेधीरे अनिकेत को भी उस की बातों में रस आने लगा. उस ने भी अपने दिल की बातें खोलनी शुरू कर दी.

एक दिन रात को औफिस से अनिकेत लेट आया. उसे जोर की भूख लगी थी. घर में देखा तो आकांक्षा पढ़ाई कर रही थी. खाने का कोई अतापता नहीं था.

‘‘आज खाने का क्या हुआ?’’ उस ने पूछा.

‘‘सौरी, आज पढ़तेपढ़ते सब भूल गई.’’

‘‘वह तो ठीक है… पर अब क्या?’’

‘‘एक काम कर सकते हैं, आकांक्षा को आइडिया सूझा,’’ मैं ने सुना है मूलचंद फ्लाईओवर के नीचे आधी रात तक परांठे और चाय मिलती है. क्यों न वहीं ट्राई करें?

‘‘क्या?’’ अनिकेत का मुंह आश्चर्य से खुला रह गया.

‘‘हांहां, मेरे औफिस के काफी लोग जाते रहते हैं… आज हम भी चलते हैं.’’

‘‘ठीक है, कपड़े बदलो. चलते हैं.’’

‘‘अरे, कपड़े क्या बदलने हैं? ट्रैक सूट में ही चलती हूं. बाइक पर बढि़या रहेगा… हमें वहां कौन जानता है?’’

मूलचंद पर परांठेचाय का अनिकेत के लिए भी बिलकुल अलग अनुभव था.

आखिर वह दिन भी आ ही गया जब आकांक्षा का इंटरव्यू था. सुबहसुबह घर का काम निबटा कर वह फटाफट डीजीसीए के लिए रवाना हो गई. वहां उस के और भी साथी पहले से मौजूद थे. नियत समय पर इंटरव्यू हुआ.

आकांक्षा के जवाबों ने एफआईडी को भी खुश कर दिया. उन्होंने कहा, ‘‘जाइए, अपने दोस्तों को भी बताइए कि आप सब पास हो गए हैं.’’

आकांक्षा दौड़ते हुए बाहर आई और फिल्मी अंदाज में टाई उतार कर बोली, ‘‘हे गाइज, वी औल क्लीयर्ड.’’ फिर क्या था बस, जश्न का माहौल बन गया. खुशीखुशी सब बाहर आए. आकांक्षा सोच रही थी कि बस ले या औटो तभी उस का ध्यान गया कि पेड़ के नीचे अनिकेत उस का इंतजार कर रहा है. आकांक्षा को अपने दायरे का एहसास हुआ तो पीछे हट कर बोली, ‘‘आप आज औफिस नहीं गए?’’

‘‘बधाई हो, आकांक्षा. तुम्हारी मेहनत सफल हो गई. चलो, घर चलते हैं. मैं तुम्हें लेने आया हूं,’’ अनिकेत ने मुसकराते हुए बाइक स्टार्ट की.

आकांक्षा चुपचाप पीछे बैठ गई. घर पहुंच कर खाना खा कर थोड़ी

देर के लिए दोनों सो गए. शाम को आकांक्षा हड़बड़ा कर उठी और फिर किचन में जाने लगी तो अनिकेत ने रोक लिया, ‘‘परेशान होने की जरूरत नहीं है. हम आज खाना बाहर खाएंगे या मंगा लेंगे.’’

‘‘ओके,’’ आकांक्षा अपने कमरे में आ कर अपना बैग पैक करने लगी.

‘‘यह क्या? तुम कहीं जा रही हो?’’ अनिकेत ने पूछा.

‘‘जी, आप के साथ 1 महीना कैसे कट गया, पता ही नहीं चला. अब बाकी काम डैडी के पास जा कर ही कर लूंगी. और वहीं से 1 हफ्ते बाद अमेरिका चली जाऊंगी.’’

‘‘तो तुम मुझे छोड़ कर जा रही हो?’’

‘‘जी नहीं. आप से जो इजाजत मांगी थी, उस की आखिरी रात है आज, आकांक्षा मुसकराते हुए बोली.’’

‘‘जानता हूं, आकांक्षा मैं तुम्हारा दोषी हूं. पर क्या आज एक अनुरोध मैं तुम से कर सकता हूं? अनिकेत ने थोड़े भरे गले से कहा.’’

‘‘जी, बोलिए.’’

‘‘हम 1 महीना दोस्तों की तरह रहे. क्या अब यह दोस्ती प्यार में बदल सकती है? इस

1 महीने में तुम्हारे करीब रह कर मैं ने जाना कि अतीत की यादों के सहारे वर्तमान नहीं जीया जाता… अतीत ही नहीं वर्तमान भी खूबसूरत हो सकता है. क्या तुम मुझे माफ कर सकती हो?’’

उस रात आकांक्षा ने कुछ ही पलों में दोस्त से प्रेमिका और प्रेमिका से पत्नी का सफर तय कर लिया, धीरधीरे अनिकेत के आगोश में समा कर.

तुम बहुत अच्छी हो: भाग 3- रीवा के बारे में भावेश क्या जान गया था

रीवा भावेश की भावनाओं से अनजान नहीं थी. सबकुछ देख और सुन कर भावेश की जगह कोई भी होता वह भी ऐसा ही विचलित हो जाता. किसी तरह दिन बीता. रीवा उस से मिलने समय से पहले आ गई थी. आज उस के चेहरे पर वह खुशी नहीं थी जो पिछली बार भावेश को दिखाई दी थी. आते ही उस ने भावेश को गले लगाया. भावेश को उस के लिपटने पर आज वह उत्तेजना  महसूस नहीं हुई जो पिछली 2 मुलाकातों में हुई थी.

‘‘मुझे देख कर खुश नहीं हो?’’

‘‘यह क्या कह रही हो रीवा? आज तुम्हारी आवाज में वह जोश नहीं है जो पिछली मुलाकातों में था.’’

‘‘तुम ठीक कह रहे हो.’’

‘‘तुम्हें देख कर मन में दबी हुई भावनाएं फिर से भड़क गई थीं लेकिन तुम्हारी बातों ने उन पर ठंडा पानी डाल दिया.’’

‘‘तुम्हें सुन कर अच्छा नहीं लगा. जिस ने भुगता होगा उसे कैसा लगा होगा उस की तुम कल्पना भी नहीं कर सकते.’’

‘‘तुम्हारी दुनिया इतनी कैसे बदल गई रीवा?’’

‘‘यहां तक पहुंचने के लिए बहुत संघर्ष किया मैं ने. अपनेआप से लड़ कर तब जा कर इस रूप में आई हूं जिस में मुझे सामने देख रहे हो.’’

‘‘अम्मांबाबूजी को सब पता है?’’

‘‘बाबूजी रहे नहीं. अम्मां को इस के बारे में कोई जानकारी नहीं है. हर महीने रुपए भेज देती हूं और साथ में एक प्यारी सी चिट्ठी जिसे वे बारबार पढ़ सकें. इसी में वे भी खुश हैं और मैं भी.’’

‘‘तुम्हें यह सब करने की जरूरत क्यों पड़ी?’’

‘‘बाबूजी के जाने के बाद घर की हालत बहुत खराब हो गई थी. अपने भी मदद के नाम पर मेरा शोषण करने पर उतर आए थे. घर की हालत देख कर मैं परेशान थी. समझ नहीं आ रहा था क्या करूं. मैं समझ गई वहां रह कर अपने हालात सुधरने वाले नहीं हैं. मुझे वहां से बाहर निकलना होगा. दिल्ली में मां के दूर के रिश्ते के भाई रहते थे. मैं ने सोच लिया उन के पास जा कर कोई काम ढूंढ़ लूंगी. मां को भी यह बात समझ आ गई थी. उन्होंने मुझे शहर जाने की इजाजत दे दी और मैं गांव छोड़ कर शहर चली आई.’’

‘‘फिर क्या हुआ?’’

‘‘जवान लड़की सभी की आंखों में खड़कती है. दूर के मामा भी इस के अपवाद नहीं थे. कुछ दिन तक  मैं ने वह सब सहन किया. नौकरी दिलाने के नाम पर उन्होंने भी मेरा इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था.’’

‘‘तुम्हारे भोलेपन का फायदा उठाया होगा उन्होंने?’’

‘‘तुम जो भी समझ लो लेकिन एक बात मेरी समझ में आ गई थी कि मुझे शहर में जीना है तो गांव का चोगा उतार कर फेंकना होगा. बस मैं ने वही किया. इस दौरान मेरी कुछ पुरुषों से दोस्ती हो गई. वे मेरे नखरे भी उठाते थे और मुझ पर पैसा भी लुटाते.

‘‘किसी तरह महानगर में मैं ने अपनेआप को व्यवस्थित कर लिया और मुंह बोले मामा को छोड़ कर अलग घर में रहने लगी. वहां कोई रोकटोक नहीं थी. मैं अपने हिसाब से जीने के लिए अपनेआप को ढालती चली गई. उस का परिणाम तुम सामने देख रहे हो.’’

‘‘जितनी आसानी से तुम कह रही हो करना उतना ही मुश्किल होता है रीवा.’’

‘‘मैं ने भी उस दौर को झेला है. लोहे को भी सांचे में ढालने के लिए आग में तप कर पीटा जाता है.’’

‘‘तुम्हारी कहानी बड़ी अजीब है. जब तुम अकेली रहने में सक्षम हो गई थी तो फिर प्रवेश तुम्हारी जिंदगी में कहां से आ गया?’’

‘‘बद अच्छा बदनाम बुरा. पुरुषों की दुनिया में मेरी छवि भी अच्छी नहीं थी. बदमाश मुझे परेशान करने लगे. बस उसी से बचने के लिए मैं ने प्रवेश को ढाल बना लिया. उस के साथ रहने से रात को कोई मुझे डिस्टर्ब नहीं करता. मैं जहां जाती हूं अपनी इच्छा से जाती हूं. प्रवेश को इस में कोई एतराज नहीं. वह भी दूध का धुला नहीं है. जैसी मैं हूं वैसा ही वह भी है. उसे मुफ्त में बहुत कुछ मिल जाता है और मुझे साथ रहने के बदले घर.’’

‘‘क्या तुम यह सब छोड़ कर पहली वाली सीधीसादी रीवा नहीं बन सकती?’’

भावेश की बात सुन कर रीवा हंस दी और बोली, ‘‘चोगा बदल देने से क्या हो जाएगा? मैं जिस रास्ते पर चल पड़ी हूं उसे छोड़ कर गांव की पगडंडी में नहीं भटक सकती.’’

‘‘तुम ऐसा क्यों कह रही हो?’’

‘‘सच बताना अगर मैं पहले जैसी बनने की कोशिश करूं तो क्या तुम मेरे अतीत को भुला कर मुझे अपना लोगे?’’

‘‘पिछले एक हफ्ते में मैं ने तुम्हें जाना ही कितना है रीवा? रोज तुम्हारे नए रूप सामने आते हैं. समझ नहीं आता इस में कौन असली है और कौन सा वक्त के साथ ओढ़ा हुआ.’’

‘‘मैं मजाक कर रही थी. मेरे बारे में इतना सब सोचना छोड़ दो. जब मैं ने अपने बारे में सोचना छोड़ दिया तब तुम क्यों सोचते हो? इतने वर्षों बाद मिले हैं. इन पलों को जीने की कोशिश करो बजाय भूत और भविष्य में भटकने के.’’

‘‘तुम ठीक कहती हो.’’

भावेश ने तुरंत वाइन और बीयर और्डर कर दी और साथ में खाना भी. दोनों चियर्स कर के उस का मजा लेने लगे.

रीवा के बारे में बहुत कुछ जानने के बाद भी भावेश की सहानुभूति उस के साथ थी. परिस्थितियों ने उसे ऐसा करने के लिए मजबूर किया वरना वह बहुत अच्छी लड़की थी.

नशे की हालत में वह बोली, ‘‘इतना सबकुछ जान लेने के बाद भी मुझ से मिलना चाहोगे भावेश?’’

‘‘हरेक का अपना एक अतीत होता है उस के बावजूद भी मेरे मन में तुम्हारी पुरानी छवि धूमिल नहीं हुई है.’’

‘‘तुम बहुत अच्छे हो,’’ कह कर वह उस के गले लिपट गई. भावेश ने उसे हौले से अपने से अलग किया और गाड़ी में बैठा कर घर छोड़ने चल पड़ा. घर से कुछ दूर पहले भावेश ने उसे संभल कर गाड़ी से उतारा.

‘‘तुम भी अच्छी हो रीवा. अपना खयाल रखना. गुड बाय,’’ कह कर उस ने मन में उस से फिर कभी न मिलने का संकल्प किया और आगे बढ़ गया.

तुम बहुत अच्छी हो: भाग 2- रीवा के बारे में भावेश क्या जान गया था

सब की नजरें रीवा की तरफ उठ गई थीं. उन की परवाह किए बगैर वह सीधे भावेश के पास आई और गले लग कर अपनत्व का परिचय दे दिया.

भावेश ने पूछा, ‘‘क्या लोगी ठंडा या गरम?’’

‘‘अभी ब्लैक कौफी चलेगी. बाद में सोचते हैं क्या लेना है.’’

भावेश ने कौफी और्डर की. दोनों साथ मिल कर उस का मजा लेने लगे.

भावेश बोला, ‘‘यहां कितने साल हो गए हैं?’’

‘‘3 साल. बाबूजी की मौत के बाद मैं शहर आ गई थी.’’

‘‘वे होते तो शायद तुम इतना बड़ा कदम नहीं उठा पाती.’’

‘‘उन के जाने के बाद घर की हालत ठीक नहीं थी. इसी वजह से मुझे शहर आना पड़ा.’’

‘‘मां से मिलने जाती होंगी?’’

‘‘अभी नहीं जा पाई. सोच रही हूं उन्हें यहां बुला लूं. पता नहीं आने के लिए तैयार होंगी भी या नहीं.’’

‘‘मां बच्चों की खातिर हर परिस्थिति में एडजस्ट हो जाती है तुम बुलाओगी तो जरूर आएंगी.’’

‘‘मुझे अब गांव का वातावरण रास नहीं आता. यहां की आदत हो गई है.’’

‘‘यहां कहां काम करती हो? कौन सी कंपनी जौइन की है?’’

‘‘तुम्हारी तरह बड़ी कंपनी नहीं है.’’

‘‘मैं ने तुम्हें अपनी कंपनी का नाम भी नहीं बताया.’’

‘‘मैं ने कल तुम्हारा विजिटिंग कार्ड देख कर तुम्हारे बारे में पता लगा लिया. जीने के लिए बहुत कुछ सीखना पड़ता है और साथ ही समझते भी करने पड़ते हैं,’’ बातें करते हुए काफी देर हो गई थी.

‘‘आज बातों से ही पेट भरने का इरादा है क्या?’’ रीवा बोली.

‘‘तुम बताओ क्या लोगी?’’

‘‘मुझे वाइन पसंद है और तुम्हें?’’

‘‘मैं बीयर ले लूंगा. खाना भी और्डर कर देते हैं. आने में टाइम लगेगा.’’

‘‘नौनवैज में कुछ भी चलेगा. वैसे मुझे फिश ज्यादा पसंद है.’’

रीवा की बात सुन कर भावेश बुरी तरह  चौंक गया. उसे ठीक से याद था कि उन का परिवार शुद्ध शाकाहारी था. रीवा की बातों में अतीत और वर्तमान की हर बात पर विरोधाभास देख कर वह बार बार चौंक रहा था. यह सब उस की समझ से परे था कि उस में इतना परिवर्तन कैसे आ गया?

‘‘किस सोच में डूब गए?’’

‘‘कुछ नहीं.’’

‘‘यह सब छोड़ो और लाइफ ऐंजौय करो,’’ रीवा बोली.

दोनों ने चियर्स कह कर ड्रिंक लेनी शुरू की. खाना खाने में काफी देर हो गई

थी. रीवा को थोड़ा नशा भी हो गया था फिर भी वह बहुत संतुलित हो कर बातें कर रही थी.

‘‘काफी रात हो गई है. चलो चलते हैं,’’ कह कर रीवा उठी.

भावेश उस के साथ बाहर चला आया. बोला, ‘‘मैं तुम्हें घर छोड़ दूं?’’

‘‘नहीं यार प्रवेश ने देख लिया तो गड़बड़ हो जाएगी.’’

‘‘यह प्रवेश कौन है?’’

‘‘मैं तुम्हें बताना भूल गई थी.’’

‘‘तुम्हारा बौयफ्रैंड?’’

‘‘मैं इस के साथ लिव इन रिलेशनशिप में हूं. इस के साथ ही रहती हूं.’’

‘‘तुम ने कहा था शादी नहीं की?’’

‘‘झूठ थोड़े ही कहा था. साथ रहते हैं

इस का मतलब यह तो नहीं कि हम ने शादी कर ली.’’

‘‘कब से चल रहा है यह सब?’’

‘‘2 साल हो गए. दरअसल, जब मैं गांव से आई थी तो उस ने मेरी यहां एडजस्ट होने में काफी मदद की थी. उस से दोस्ती हो गई और हम एक ही छत के नीचे साथ रहने लगे.’’

यह सुन कर भावेश का नशा उतर गया. रीवा को ले कर पिछले 2 दिन में उस ने बहुत सारी कल्पनाएं कर ली थीं जो एक झटके में जमीन पर आ गईं.

भावेश ने रीवा को घर से कुछ दूरी पर छोड़ दिया. लड़खड़ाती हुई रीवा घर की ओर बढ़ गई. भावेश भी किसी तरह अपनेआप को संभाल कर घर चला आया. रीवा की बात सुन कर वह बहुत परेशान हो गया था. आधुनिकता के नाम जो कुछ हो सकता था रीवा उस सब का जीताजागता उदाहरण थी. उस ने सोच लिया था कि वह उस के बारे में सबकुछ जान कर रहेगा.

दूसरे दिन दोपहर में रीवा का फोन आ गया, ‘‘मेरे बारे में जान कर लगता है तुम्हें बहुत ठेस लगी.’’

‘‘ऐसी बात नहीं है.’’

‘‘झूठ मत बोलो. मैं सब समझती हूं. अगर यह सब तुम्हें पहले दिन ही बता देती तो तुम मुझ से मिलने न आते.’’

‘‘यह तुम्हारी गलतफहमी है. हमतुम बचपन के साथी हैं. इन सब बातों से हमारा रिश्ता थोड़े ही छूट जाएगा.’’

‘‘तुम्हारी बात सुन कर मुझे अच्छा लगा. इतनी बड़ी दुनिया में जीने के लिए बहुत कुछ करना पड़ता है. बहुत मुश्किल से मैं ने भी अपनेआप को परिस्थितियों को झेलने के लिए तैयार किया है. मैं अपनी जिंदगी में खुश हूं.’’

‘‘मुझे अभी काफी काम है. बाकी बातें मिलने पर हो जाएंगी.’’

‘‘कब मिलोगे?’’

‘‘जब तुम कहो.’’

‘‘ठीक है. कल शाम मिलते हैं उसी जगह पर,’’ रीवा बोली. भावेश ने गुड बाय कर दिया.

रीवा को भी सुन कर अच्छा लगा कि भावेश ने उस की किसी बात का बुरा नहीं माना. भावेश के दिमाग में कई तरह की आंधियां चल रही थीं. एक ही सिक्के के दो पहलू देख कर वह उसे एकसाथ जोड़ नहीं पा रहा था और न ही उसे इस का कोई सूत्र मिल रहा था. वह समझ नहीं पा रहा था इस दोस्ती को आगे बढ़ाए या नहीं.

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तुम बहुत अच्छी हो: भाग 1- रीवा के बारे में भावेश क्या जान गया था

‘‘औफिस  से लौटते हुए भावेश सीधे मौल की ओर चला गया. उसे अपने लिए एक नई ड्रैस खरीदनी थी. अगले हफ्ते हैड औफिस में एक बड़ा अधिवेशन होने वाला था. वह खरीदारी कर के जैसे ही शौप से मुड़ा सामने से उसे एक खूबसूरत लड़की आते दिखाई दी. छोटी सी स्कर्ट और स्लीवलैस टौप में दुबलीपतली लड़की बहुत खूबसूरत लग रही थी. अचानक उस की नजरें उस पर टिक गईं. उसे वह चेहरा जाना पहचाना सा लगा. जिस से वह चेहरा मेल खा रहा था उस की इस रूप में कल्पना नहीं की जा सकती थी.

भावेश का मन यह मानने के लिए भी तैयार नहीं था. उस ने भी एक गहरी नजर भावेश पर डाली. अनायास उस के मुंह से निकल गया, ‘‘रीवा.’’

उस ने पलट कर देखा. नजरें मिलते ही वह उसे पहचान गई और पलट कर सीधे भावेश के गले लग गई. बोली, ‘‘भावेश तुम? उम्मीद नहीं थी तुम से इस तरह कभी मुलाकात होगी.’’

हड़बड़ा कर भावेश ने इधरउधर देखा. शुक्र था वहां कोई नहीं था. जल्दी से अपने को अलग करते हुए बोला, ‘‘मैं भी तुम्हें पहचान नहीं पाया. मन इस बात को स्वीकार नहीं कर पा रहा था. इसीलिए अनायास तुम्हारा नाम मुंह से निकल गया.’’

‘‘अच्छा ही हुआ. मुझे भी तुम पहचाने से लगे थे. तुम्हारी ओर से कोई परिचय न पा कर मैं ने यह बात अपने दिमाग से झटक दी. कितने बदल गए हो तुम भावेश.’’

‘‘तुम ने कभी अपने ऊपर नजर डाली है. तुम क्या थी और क्या हो गई?’’

‘‘कुछ भी तो नहीं बदला है. बस कपड़े और स्टाइल बदल गया.’’

‘‘इसी से असली पहचान बनती है. मैं ने हमेशा तुम्हें सीधीसादी, कुरतासलवार और चुन्नी मे लिपटी, लंबी चुटिया वाली लड़की के रूप में देखा. मैं सोच भी कैसे सकता था तुम इतनी बदल सकती हो. खैर छोड़ो इस बात को. यहां कैसे आना हुआ?’’

‘‘अकसर खरीदारी करने के लिए यहां चली आती हूं.’’

‘‘चलो सामने कैफे में चल कर कौफी पीते हैं.’’

दोनों खरीदारी भूल कर कैफे में पहुंच गए. दोनों  एकदूसरे को हसरत भरी निगाहों से देख रहे थे .भावेश ज्यादा नहीं बदला था लेकिन रीवा ने सिर से ले कर पैर तक एकदम अपना हुलिया बदल दिया था.

‘‘यहां क्या कर रही हो रीवा, लगता है किसी अच्छी कंपनी में काम मिल गया है.’’

‘‘यही समझ लो. तुम्हारे बारे में पता लग गया था कि तुम एक मल्टीनैशनल कंपनी में काम कर रहे हो.’’

‘‘किस ने बताया?’’

‘‘बहुत दिन पहले तुम्हारे दोस्त रुपेश से मुलाकात हुई थी. उसी ने बताया था. तुम पढ़ने में अच्छे थे. स्वाभाविक था किसी अच्छी जगह नौकरी कर रहे होंगे.’’

‘‘पढ़ने में तुम भी हमेशा अव्वल रही. शायद उसी की बदौलत तुम यहां तक पहुंची हो? घर वालों ने तुम्हें इतनी आसानी से आने दिया?’’

‘‘जहां चाह वहां राह. बस यही सोच कर घर से निकल पड़ी और आज मजे में हूं. घर वाले भी खुश हैं और मैं भी.’’

‘‘घरगृहस्थी बसाई या नहीं?’’

‘‘मैं इतनी जल्दी इन झमेलों में पड़ने वाली नहीं हूं. पहले थोड़ा जिंदगी के मजे ले लूं उस के बाद देखी जाएगी आगे क्या करना है,’’ बात करते हुए काफी देर हो गई थी.

‘‘जिस काम के लिए आई हो वह तो रह गया.’’

‘‘कोई बात नहीं  मैं कल आ कर कर लूंगी. मुझे कोई जल्दबाजी नहीं. तुम अभी तक सिंगल हो या…’’

‘‘अभी सिंगल ही हूं.’’

‘‘अच्छा किया. जल्दी रिश्तों में बंध जाने से जिंदगी के मजे चले जाते हैं,’’ रीवा ठहाका लगाते हुए बोली.

थोड़ी देर बाद दोनों अपनेअपने घर चले आए. भावेश उसे घर छोड़ना चाहता था लेकिन रीवा टाल गई. घर आ कर भावेश के दिमाग पर अभी तक रीवा ही छाई हुई थी. नए रंग रूप में उसे देख कर वह हैरान रह गया था. दोनों एक ही छोटे गांव में पलेबढ़े थे. दोनों ने इंटर तक साथ पढ़ाई की थी. वह क्लास में लड़कियों में पढ़ाई में सब से आगे रहती थी. सीधीसादी रीवा को उस ने हमेशा साधारण पहनावे में देखा था. उस के पिताजी खेती कर घर का गुजारा करते थे और भावेश के पिताजी प्राथमिक विद्यालय में टीचर थे. उसे रीवा हमेशा से अच्छी लगती थी.

रीवा किसी से ज्यादा घुलतीमिलती नहीं थी. उस की सब से अच्छी सहेली प्रीति थी. उसी से वह घुलमिल कर बात करती थी. बाकी किसी को वह कभी नजर उठा कर देखती तक नहीं थी. इंटर करने के बाद वह पढ़ाई के लिए शहर चला आया था. उस के बाद रीवा का क्या हुआ उसे कोई खबर नहीं मिली. शहर की भागदौड़ में उस का गांव से नाता छूट गया. पिताजी रिटायर हो गए थे और वे भी शहर में एक छोटा घर बना कर रहने लगे थे.

मास्टर्स डिगरी पूरी कर के भावेश ने एमबीए कर लिया था और इस बड़े शहर आ कर अच्छीखासी नौकरी कर रहा था. वह अभी 27 साल का था. रीवा भी इतनी ही रही होगी. गांव से संबंध रखने वाली लड़की का अभी तक कुंआरा रहना उस की समझ से परे था. जहां तक वह उस के मांबाबूजी को जानता था वे संकुचित विचारों के समाज की परवाह करने वाले लोग थे. रीवा ने पहले उस से कभी आमनेसामने खड़े हो कर बात भी नहीं की थी और आज वही रीवा मौल में जिस तरह उस से लिपट गई उस की उसे सपने में भी कल्पना नहीं थी.

उस क्षण को याद कर भावेश एक बार फिर रोमांचित हो गया. स्कूल में प्यार प्रदर्शित करने के लिए वह कभी उस से आंखें मिला कर बात भी नहीं कर पाया था और आज इतने सालों बाद रीवा ने खुद आगे बढ़ कर उसे ऐसे गले लगा लिया था मानो कितने सालों के बिछड़े हुए हों. बातों ही बातों में भावेश ने उस का फोन नंबर ले लिया था. घर आ कर उस का वह आकर्षक रूप उस की नींद उड़ा रहा था. उस का जी चाहा तुरंत नंबर मिला कर उस से बात कर ले. तभी अंतर्मन ने उसे ऐसा करने से रोक दिया कि इतने समय बाद मुलाकात होते ही उतावली दिखाने की जरूरत नहीं है.

भावेश ने अपने हाथ रोक लिए. उस के बारे में सोचतेसोचते कब नींद आ गई उसे पता ही नहीं चला. सुबह उठ कर औफिस जाने की तैयारी में व्यस्त हो गया. आज उसे औफिस की ओर सब स्मार्ट लड़कियां रीवा के सामने एकदम फीकी लग रही थीं.

मानवी से भावेश की अच्छी दोस्ती थी लेकिन आज वह उस से बात करने के लिए जरा भी उत्सुक नहीं था. रोज औफिस आते ही पहले उसी के कैबिन में खड़ा हो जाता था.

भावेश का बदला हुआ व्यवहार देख कर मानवी बोली, ‘‘क्या बात है कोई परेशानी है?’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है. एक काम दिमाग में घूम रहा है उसी की वजह से आज मैं तुम्हें समय नहीं दे पाया,’’ भावेश बात बदल कर बोला.

‘‘ठीक है पहले तुम अपनी समस्या सुलझ लो हम बाद में बात करते हैं,’’ कह कर वह भी अपने काम में व्यस्त हो गई.

भावेश को औफिस में काम के दौरान रीवा ही दिखाई दे रही थी. जब वह अपने पर संयम न रख सका तो लंच टाइम में उस ने रीवा को कौल किया.

‘‘लगता है कल से मेरे ही ख्वाबों में खोए हुए हो,’’ रीवा हंसते हुए बोली.

भावेश को लगा जैसे किसी ने उस की चोरी पकड़ ली. बोला, ‘‘तुम्हें कैसे पता?’’

‘‘एक औरत हूं. मर्दों की आंखों के भाव और दिल के जज्बात पढ़ने बखूबी आते हैं मुझे.’’

‘‘खैर, छोड़ो यह बताओ क्या हम आज शाम को मिल सकते हैं?’’

‘‘आज नहीं भावेश. मुझे जरूरी काम है. कल कोशिश करती हूं.’’

रीवा की बातों से जो चमक भावेश के चेहरे पर आई थी वह यह सुन कर बुझ गई. अपने को संयत कर वह बोला, ‘‘कोई बात नहीं  मैं एक दिन और इंतजार कर लेता हूं.’’

‘‘वह तो करना ही पड़ेगा.’’

‘‘कल इतने सालों बाद तुम्हें देख कर अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ. कितनी बदल गई हो तुम.’’

?‘‘बदलाव तो समय की मांग है. मैं उस का अपवाद नहीं हूं. तुम अपने को देखो तुम भी तो बदल गए.’’

‘‘ठीक कह रही हो. एक मुलाकात समय के बड़े से बड़े अंतराल को भर देती है. लगता ही नहीं हम इतने सालों बाद मिले.’’

‘‘झूठ मत बोलो. लगा तो जरूर होगा. इस से पहले मैं ने तुम से कभी बात भी नहीं की थी.’’

‘‘वह माहौल कुछ और था. अब समय कुछ और चल रहा है. अब तुम भी आत्मनिर्भर हो और मैं भी. ठीक है कल मिलने पर ढेर सारी बातें होंगी,’’ बाय कह कर रीवा ने फोन काट दिया.

भावेश महसूस कर रहा था कि उस की बातें बहुत प्रैक्टिकल थीं. उन में कोई बनावट नहीं दिखाई दे रही थी. कुछ देर तक उस के ख्वाबों में रहने के बाद वह वर्तमान में लौट आया और अपने काम में व्यस्त हो गया. शाम की चाय उस ने मानवी के साथ पी. उस का बदला हुआ व्यवहार वह महसूस कर रही थी लेकिन कुछ कह कर अपने को छोटा नहीं दिखाना चाहती थी.

भावेश को अगले दिन का इंतजार था. मैसेज कर के मिलने की जगह और समय बता दिया था. औफिस से छूटते ही भावेश वहां पहुंच गया. अभी 15 मिनट बाकी थे. उस से समय काटे नहीं कट रहा था. उसे खुद समझ नहीं आ रहा था वह रीवा को देख कर इतना बेचैन क्यों हो गया? इतने सालों से उस ने उस के बारे में सोचा तक नहीं और कल उसे देखते ही मन में दबी भावना मुखर हो गई थी. तभी दूर से उसे रीवा आती दिखाई दी. उस ने आज और भी छोटे कपड़े पहने थे.

वरमाला: सोमेश और किरन की जिंदगी में खलनायक कौन बन के आया

‘‘किरन, तुम अंदर जाओ,’’ बेलाजी किरन को अपने मंगेतर सोमेश के साथ जाने को तैयार खड़ा देख कर बोलीं.

किरन सकपका गई पर मां का आदेश टाल नहीं सकी. सोमेश की समझ में भी कुछ नहीं आया पर कुछ उलटासीधा बोल कर बेलाजी को नाराज नहीं करना चाहता था वह.

‘‘मम्मी, रवींद्रालय में एक नाटक का मंचन हो रहा है. बड़ी कठिनाई से 2 पास मिले हैं. आप आज्ञा दें तो हम दोनों देख आएं,’’ वह अपने स्वर को भरसक नम्र बनाते हुए बोला.

‘‘देखो बेटे, हम बेहद परंपरावादी लोग हैं. विवाह से पहले हमारी बेटी इस तरह खुलेआम घूमेफिरे, यह हमारे समाज में पसंद नहीं किया जाता. किरन के पापा बहुत नाराज हो रहे थे,’’ बेलाजी कुछ ऐसे अंदाज में बोलीं मानो आगे कुछ सुनने को तैयार ही न हों.

‘‘मम्मी, बस आज अनुमति दे दीजिए. इस के बाद विवाह होने तक मैं किरन को कहीं नहीं ले जाऊंगा,’’ सोमेश ने अनुनय किया.

‘‘कहा न बेटे, मैं किरन के पापा की

इच्छा के विरुद्ध कुछ नहीं कर सकती,’’ वे बेरुखी से बोलीं.

सोमेश दांत पीसते हुए बाहर निकल गया. बड़ी कठिनाई से उस ने नाटक के लिए पास का प्रबंध किया था. उसे बेलाजी से ऐसे व्यवहार की उम्मीद नहीं थी.

किरन से उस की सगाई 2 माह पूर्व हुई थी. तब से वे दोनों मिलतेजुलते रहे थे. उन के साथ घूमनेफिरने पर कभी किसी ने कोई आपत्ति नहीं की थी. फिर आज अचानक परंपरा की दुहाई क्यों दी जाने लगी? सोमेश ने क्रोध में दोनों पास फाड़ दिए और घर जा पहुंचा.

‘‘क्या हुआ, नाटक देखने नहीं गए

तुम दोनों?’’ सोमेश को देखते ही उस की मां ने पूछा.

‘‘नहीं, उन के घर की परंपरा नहीं है यह.’’

‘‘कौन सी परंपरा की बात कर रहा है तू?’’

‘‘यही कि विवाहपूर्व उन की बेटी अपने मंगेतर के साथ घूमेफिरे.’’

‘‘किस ने कहा तुम से यह सब?’’

‘‘किरन की मम्मी ने.’’

‘‘पर तुम दोनों तो कई बार साथ घूमने

गए हो.’’

‘‘परंपराएं बदलती रहती हैं न मां.’’

‘‘बहुत देखे हैं परंपराओं की दुहाई देने वाले. उन्हें लगता होगा जैसे हम कुछ जानते ही नहीं. जबकि सारा शहर जानता है कि किरन की बड़ी बहन ने घर से भाग कर शादी कर ली थी. तुम ने किरन को पसंद कर लिया, नहीं तो ऐसे घर की लड़की से विवाह कौन करता.’’

‘‘छोड़ो न मां, हमें उस की बहन से क्या लेनादेना. वैसे मुझे ही क्यों, किरन तो आप को भी बहुत भा गई है,’’ कह कर सोमेश हंसा.

‘‘यह हंसने की बात नहीं है, सोमू. मुझे तो दाल में कुछ काला लगता है. नहीं तो इस तरह के व्यवहार का क्या अर्थ है? किरन से साफ पूछ ले. कोई और तो नहीं है उस के मन में?’’

‘‘मां, दोष किरन का नहीं है. वह तो मेरे साथ आने को तैयार थी. पर उस की मम्मी

के व्यवहार से मुझे बहुत निराशा हुई. उन से मुझे ऐसी आशा नहीं थी,’’ सोमेश उदास स्वर में बोला.

‘‘समझ क्या रखा है इन लोगों ने. जैसे चाहेंगे वैसे व्यवहार करेंगे?’’ बेटे की उदासी देख कर रीनाजी स्वयं पर नियंत्रण खो बैठीं.

‘‘शांति मां, शांति. पता तो चलने दो कि माजरा क्या है.’’

‘‘कब तक शांति बनाए रखें हम. हमारा कुछ मानसम्मान है या नहीं. मुझे तो लगता है कि हमें इस संबंध को तोड़ देना चाहिए. तभी इन लोगों की अक्ल ठिकाने आएगी.’’

‘‘ठीक है मां. पापा को आने दो. उन से विचार किए बिना हम कोई निर्णय भला कैसे ले सकते हैं,’’ सोमेश ने मां को शांत करने का प्रयत्न किया.

‘‘वे तो अगले सप्ताह ही लौटेंगे. आज ही फोन आया था. वे घर में रहते ही कब हैं,’’ रीना ने अपना पुराना राग अलापा.

‘‘क्या करें मां, पापा की नौकरी ही ऐसी है,’’ सोमेश ने कंधे उचका दिए थे और रीनाजी चुप रह गईं.

अगले दिन सोमेश अपने औफिस पहुंचा ही  था कि किरन का फोन आया.

‘‘कहो, इस नाचीज की याद कैसे आ गई?’’ सोमेश हंसा.

‘‘तुम्हें मजाक सूझ रहा है. यहां मेरी जान पर बनी है,’’ किरन रोंआसी हो उठी.

‘‘कल मेरा घोर अपमान करने के बाद अब तुम्हारी जान को क्या हुआ?’’ सोमेश ने रूखे स्वर में पूछा.

‘‘इसीलिए तो फोन किया है तुम्हें. अभी गेलार्ड चले आओ. बहुत जरूरी बात करनी है,’’ किरन ने आग्रह किया.

‘‘मैं यहां काम करता हूं. तुम्हारी तरह कालेज में नहीं पढ़ता हूं कि कालेज छोड़ कर गेलार्ड में बैठा रहूं.’’

‘‘पता है, यह जताने की जरूरत नहीं है कि तुम बहुत व्यस्त हो और मुझे कोई काम नहीं है. बहुत जरूरी न होता तो मैं तुम्हें कभी फोन नहीं करती,’’ किरन का भीगा स्वर सुन कर चौंक गया सोमेश.

‘‘ठीक है, तुम वहीं प्रतीक्षा करो मैं

10 मिनट में वहां पहुंच रहा हूं.’’

सोमेश को देखते ही किरन फूटफूट कर रो पड़ी.

‘‘क्या हुआ? कुछ बोलो तो सही,’’ सोमेश किरन को सांत्वना देते हुए बोला था.

‘‘मां ने मुझे आप से मिलने को मना

किया है.’’

‘‘यह तो मैं कल ही समझ गया था. पर उन्हें हुआ क्या है?’’

‘‘वे यह मंगनी तोड़नी चाहती हैं.’’

‘‘पर क्यों?’’

‘‘पापा को कोई और पसंद आ गया है, कहते हैं कि मंगनी ही तो हुई है कौन सा विवाह हो गया है.’’

‘‘ऐसी क्या खूबी है उन महाशय में.’’

‘‘सरकारी नौकरी में हैं वे महाशय.’’

‘‘तो क्या हुआ?’’

‘‘पापा कहते हैं कि सरकारी नौकरी वाले की जड़ पाताल में होती है.’’

‘‘तो जाओ रहो न पाताल में, किस ने रोका है,’’ सोमेश हंसा.

‘‘तुम्हें मजाक सूझ रहा है. यहां मेरी जान पर बनी है.’’

‘‘पहेलियां बुझाना छोड़ो और यह बताओ कि तुम क्या चाहती हो?’’

‘‘मुझे लगा तुम अच्छी तरह जानते हो कि मैं क्या चाहती हूं. मैं तो किसी और से विवाह की बात सोच भी नहीं सकती,’’ किरन रोंआसी हो उठी.

‘‘फिर भला समस्या क्या है? अपने मम्मीपापा को बता दो कि और किसी के चक्कर में न पड़ें.’’

‘‘सब कुछ कह कर देख लिया पर वे कुछ सुनने को तैयार ही नहीं हैं. अब तो तुम ही कुछ करो तो बात बने.’’

‘‘फिर तो एक ही राह बची है. हम दोनों भाग कर शादी कर लेते हैं.’’

‘‘नहीं सोमेश, मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगी. दीदी ने ऐसा ही किया था. तब हम ने इतनी बदनामी और शर्म झेली थी कि आज वह सब याद कर के मन कांप उठता है.’’

‘‘पर हमारे सामने और कोई राह नहीं बची किरन.’’

‘‘सोचो सोमेश, कोई तो राह होगी. नहीं तो मैं जीतेजी मर जाऊंगी.’’

‘‘इतनी सी बात पर इस तरह निराश होना अच्छा नहीं लगता. मेरा विश्वास करो, हमें कोई अलग नहीं कर सकता. तुम बस इतना करो कि अपने इन प्रस्तावित भावी वर महोदय का नाम और पता मुझे ला कर दो.’’

‘‘यह कौन या कठिन कार्य है. जगन नाम है उस का. यहीं सैल्स टैक्स औफिस में कार्य करता है. तुम्हें दिखाने के लिए फोटो भी लाई हूं. किरन ने अपने पर्स में से फोटो निकाली.’’

‘‘अरे, यह तो स्कूल में मेरे साथ पढ़ता था. तब तो समझो काम बन गया. मैं आज ही जा कर इस से मिलता हूं. यह मेरी बात जरूर समझ जाएगा.’’

‘‘इतना आशावादी होना भी ठीक नहीं है. मेरी सहेली नीरा इन महाशय से मिल कर उन्हें सब कुछ बता चुकी है. पर वे तो अपनी ही बात पर अड़े रहे. कहने लगे कि सगाई ही तो हुई है, कौन सा विवाह हो गया है. अभी तो बेटी बाप के घर ही है.’’

‘‘बड़ा विचित्र प्राणी है यह, पर तुम चिंता मत करो. मैं इसे समझाऊंगा,’’ सोमेश ने आश्वासन दिया.

‘‘पता नहीं, अब तो मुझे किसी पर विश्वास ही नहीं रहा. मातापिता ही मेरी बात नहीं समझेंगे यह मैं ने कब सोचा था,’’ किरन सुबक उठी.

‘‘चिंता मत करो. कितनी भी बाधाएं क्यों न आएं हमारे विवाह को कोई रोक नहीं सकता,’’ सोमेश का दृढ़ स्वर सुन कर किरन कुछ आश्वस्त हुई.

समय मिलते ही सोमेश जगन से मिलने जा पहुंचा था.

‘‘पहचाना मुझे?’’ सोमेश बड़ी गर्मजोशी से जगन के गले मिलते हुए बोला.

‘‘तुम्हें कैसे भूल सकता हूं. तुम तो हमारी क्लास के हीरो हुआ करते थे. कहो आजकल क्या कर रहे हो?’’ जगन अपने विशेष अंदाज में बोला.

‘‘एक सौफ्टवेयर कंपनी में काम करता हूं.’’

‘‘कितना कमा लेते हो.’’

‘‘20 लाख रुपए प्रति वर्ष का पैकेज है. तुम अपनी सुनाओ.’’

‘‘अपनी क्या सुनाऊं, मित्र. तुम्हारे 20 लाख रुपए मेरी कमाई के आगे कुछ नहीं हैं. यह फ्लैट मेरा ही है और ऐसे 3 और हैं. मुख्य बाजार में 3 दुकानें हैं. घर में कितना पैसा कहां पड़ा है, मैं स्वयं भी नहीं जानता,’’ जगन ने बड़ी शान से बताया. तभी नौकर ने सोमेश के सामने मिठाई, नमकीन, मेवा आदि सजा दिया.

‘‘साहब, चाय लेंगे या ठंडा?’’ उस ने प्रश्न किया.

‘‘ठंडा ले आओ. साहब चाय नहीं पीते,’’  उत्तर जगन ने दिया.

‘‘तुम्हें अब तक याद है?’’ सोमेश ने अचरज से उसे देखा.

‘‘मुझे सब भली प्रकार याद है. तुम लोग किस प्रकार मेरा उपहास करते थे, मैं तो यह भी नहीं भूला. दोष तुम लोगों का नहीं था. मैं था ही फिसड्डी, खेल में भी और पढ़ाई में भी. पर मौसम कुछ ऐसा बदला कि जीवन में वसंत

छा गई.’’

‘‘ऐसा क्या हो गया, जो तुम मंत्रमुग्ध हुए जा रहे हो?’’

‘‘तुम तो मेरे बचपन के मित्र हो, तुम से क्या छिपाना. पापा ने जोड़तोड़ कर के मुझे सैल्स टैक्स औफिस में क्लर्क क्या लगवाया, मेरे लिए तो सुखसंपन्नता का द्वार ही खोल दिया. अब मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है. पर अब भी मैं सादा जीवन उच्च विचार में विश्वास करता हूं. क्या करूं दीवारों के भी कान होते हैं, इसलिए सावधान रहना पड़ता है.’’

‘‘तुम कुछ भी कहो पर ईमानदारी से जीवनयापन का अपना ही महत्त्व है,’’ सोमेश ने तर्क दिया.

‘‘अब मैं स्कूल का छात्र नहीं हूं सोमेश, कि तुम मुझे डांटडपट कर चुप करा दोगे. सत्य और ईमानदारी की बातें अब खोखली सी लगती हैं. मेरी भेंट तो किसी ईमानदार व्यक्ति से हुई नहीं आज तक. तुम्हें मिले तो मुझ से भी मिलवाना. जिस समाज में पैसा ही सब कुछ

हो, वहां इस तरह की बातें बड़ी हास्यास्पद लगती हैं.’’

‘‘छोड़ो यह सब, मैं तो एक जरूरी

काम से आया हूं,’’ सोमेश बहस को आगे बढ़ाने के मूड में नहीं था, इसलिए बात को बदलते हुए बोला.

‘‘कहो न, सैल्स टैक्स औफिस में किसी मित्र या संबंधी का केस फंस गया क्या? मेरी पहुंच बहुत ऊपर तक है.’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं है. मैं तो एक व्यक्तिगत काम से आया हूं.’’

‘‘कहो न, मुझ से जो बन पड़ेगा मैं करूंगा.’’

‘‘तुम कल एक लड़की देखने जा रहे

हो न?’’

‘‘देखने नहीं, मिलने जा रहा हूं. पहली बार कोई लड़की मुझे बहुत भा गई है.’’

‘‘मेरी बात तो सुनो पहले, अपनी राम कहानी बाद में सुनाना. उस लड़की से मेरा संबंध पक्का हो गया है, अत: तुम उस से मिलने का खयाल अपने दिमाग से निकाल दो.’’

‘‘यह आदेश है या प्रार्थना?’’

‘‘तुम जो भी चाहो समझने के लिए स्वतंत्र हो, पर तुम्हें मेरी यह बात माननी ही पड़ेगी.’’

‘‘तुम भी मेरी बात समझने की कोशिश करो मित्र. मेरा किरन के घर जाने का कार्यक्रम

तय हो चुका है. अब मना करूंगा तो बुरा लगेगा. क्यों न हम यह निर्णय कन्या के हाथों में ही छोड़ दें. स्वयंवर में वरमाला तो उसी के हाथ में होगी. है न,’’ जगन ने अपना पक्ष सामने रखा.

‘‘तो तुम मुझे चुनौती दे रहे हो? बहुत पछताओगे, बच्चू. तुम लाख प्रयत्न कर लो, किरन कभी तुम से विवाह करने को तैयार

नहीं होगी.’’

‘‘यह तो समय ही बताएगा,’’ जगन हंसा.

‘‘ठीक है, मैं तुम्हारी चुनौती स्वीकार करता हूं. जाओ मिल लो उस से पर तुम्हारे हाथ निराशा ही लगेगी,’’ सोमेश जगन से विदा लेते हुए उठ खड़ा हुआ.

ऊपर से शांत रहने का प्रयत्न करते हुए भी सोमेश मन ही मन तिलमिला उठा था. समझता क्या है अपने को. ऊपर की कमाई के बल पर इठला रहा है. किरन इसे कभी घास नहीं डालेगी.

सोमेश ने जगन से मिलने के

बाद किरन को फोन नहीं किया. वह व्यग्रता से किरन के फोन की प्रतीक्षा कर रहा था.

 

2 दिन बाद वह घर पहुंचा ही था कि किरन

का फोन आया, ‘‘समझ में नहीं आ रहा

कि तुम्हें कैसे बताऊं,’’ वह बड़े ही नाटकीय अंदाज में बोली.

‘‘कह भी डालो, जो कहना चाहती हो.’’

‘‘क्या करूं, मातापिता की इच्छा के सामने झुकना ही पड़ा. मैं उन का दिल दुखाने का साहस नहीं जुटा सकी. आशा है, तुम मुझे क्षमा कर दोगे.’’

उत्तर में सोमेश ने क्या कहा था, अब

उसे याद नहीं है. पर उस घटना की टीस कई माह तक उस के मनमस्तिष्क पर छाई रही. भ्रष्टाचार का दानव उस के निजी जीवन को भी लील जाएगा, ऐसा तो उस ने स्वप्न में भी नहीं सोचा था. कौन कहेगा कल तूफान गुजरा था यहां से.

कई साल बाद जब अनायास एक पार्टी में गहनों से लदीफदी किरन से मुलाकात हुई तो उस ने बताया कि उस दिन जगन कोई 4 लाख रुपयों का सैट ले कर आया था. जहां लड़के वाले दहेज मांगते हैं, वहां लड़का पहली मुलाकात में महंगा सैट देगा तो कौन सौफ्टवेयर इंजीनियर से शादी करेगा. किरन पार्टी की भीड़ में इठलाती हुई गुम हो गई.

प्यार : संजय को क्यों हो गया था कस्तूरी से प्यार

‘‘अरे संजय… चल यार, आज मजा करेंगे,’’ बार से बाहर निकलते समय उमेश संजय से बोला. दिनेश भी उन के साथ था.

संजय ने कहा, ‘‘मैं ने पहले ही बहुत ज्यादा शराब पी ली है और अब मैं इस हालत में नहीं हूं कि कहीं जा सकूं.’’

उमेश और दिनेश ने संजय की बात नहीं सुनी और उसे पकड़ कर जबरदस्ती कार में बिठाया और एक होटल में जा पहुंचे.

वहां पहुंच कर उमेश और दिनेश ने एक कमरा ले लिया. उन दोनों ने पहले ही फोन पर इंतजाम कर लिया था, तो होटल का एक मुलाजिम उन के कमरे में एक लड़की को लाया.

उमेश ने उस मुलाजिम को पैसे दिए. वह लड़की को वहीं छोड़ कर चला गया.

वह एक साधारण लड़की थी. लगता था कि वह पहली बार इस तरह का काम कर रही थी, क्योंकि उस के चेहरे पर घबराहट के भाव थे. उस के कपड़े भी साधारण थे और कई जगह से फटे हुए थे.

संजय उस लड़की के चेहरे को एकटक देख रहा था. उसे उस में मासूमियत और घबराहट के मिलेजुले भाव नजर आ रहे थे, जबकि उमेश और दिनेश उस को केवल हवस की नजर से देखे जा रहे थे.

तभी उमेश लड़खड़ाता हुआ उठा और उस ने दिनेश व संजय को बाहर जाने के लिए कहा. वे दोनों बाहर आ गए.

अब कमरे में केवल वह लड़की और उमेश थे. उमेश ने अंदर से कमरा बंद कर लिया. संजय को यह सब बिलकुल भी अच्छा नहीं लग रहा था, लेकिन उमेश और दिनेश ने इतनी ज्यादा शराब पी ली थी कि उन्हें होश ही न था कि वे क्या कर रहे हैं.

काफी देर हो गई, तो संजय ने दिनेश को कमरे में जा कर देखने को कहा.

दिनेश शराब के नशे में चूर था. लड़खड़ाता हुआ कमरे के दरवाजे पर पहुंच कर उसे खटखटाने लगा. काफी देर बाद लड़की ने दरवाजा खोला.

उस लड़की ने दिनेश से कहा कि उस का दोस्त सो गया है, उसे उठा लो. नशे की हालत में चूर दिनेश उस लड़की की बात सुनने के बजाय पकड़ कर उसे अंदर ले गया और दरवाजा बंद कर लिया.

संजय दूर बरामदे में बैठा यह सब देख रहा था. दिनेश को भी कमरे में गए काफी देर हो गई, तो संजय ने दरवाजा खड़काया.

इस बार भी उसी लड़की ने दरवाजा खोला. वह अब परेशान दिख रही थी. उस ने संजय की तरफ देखा और कहा, ‘‘ बाबू, ये लोग कुछ कर भी नहीं कर रहे और मेरा पैसा भी नहीं दे रहे हैं.

मुझे पैसे की जरूरत है और जल्दी घर भी जाना है,’’ कहते हुए उस लड़की का गला बैठ सा गया.

संजय ने लड़की को अंदर चलने को कहा और थोड़ी देर में उसे उसी होटल के दूसरे कमरे में ले गया. उस ने जाते हुए देखा कि उमेश और दिनेश शराब में चूर बिस्तर पर पड़े थे.

संजय ने दूसरे कमरे में उस लड़की को बैठने को कहा. लड़की घबराते हुए बैठ गई. वह थोड़ा जल्दी में लग रही थी. संजय ने उसे पास रखा पानी पीने को दिया, जिसे वह एक सांस में ही पी गई.

पानी पीने के बाद वह लड़की खड़ी हुई और संजय से बोली, ‘‘बाबू, अब जो करना है जल्दी करो, मुझे पैसे ले कर जल्दी घर पहुंचना है.’’

संजय को उस की मासूम बातों पर हंसी आ रही थी. उस ने उसे पैसे दे दिए तो उस ने पैसे रख लिए और संजय को पकड़ कर बिस्तर पर ले गई और अपने कपड़े उतारने लगी.

संजय ने उस का हाथ पकड़ा और कपड़े खोलने को मना किया. लड़की बोली, ‘‘नहीं बाबू, कस्तूरी ऐसी लड़की नहीं है, जो बिना काम के किसी से भी पैसे ले ले. मैं गरीब जरूर हूं, लेकिन भीख नहीं लूंगी.’’

संजय अब बोल नहीं पा रहा था. तभी कस्तूरी ने संजय का हाथ पकड़ा और उसे बिस्तर पर ले गई, यह सब इतना जल्दी में हुआ कि संजय कुछ कर नहीं पाया.

कस्तूरी ने जल्दी से अपने कपड़े उतारे और संजय के भी कपड़े उतारने लगी. अब कस्तूरी संजय के इतने नजदीक थी कि उस के मासूम चेहरे को वह बड़े प्यार से देख रहा था. वह कस्तूरी की किसी बात का विरोध नहीं कर पा रहा था. उस के मासूम हावभाव व चेहरे से संजय की नजर हटती, तब तक कस्तूरी वह सब कर चुकी थी, जो पतिपत्नी करते हैं.

कस्तूरी ने जल्दी से कपड़े पहने और होटल के कमरे से बाहर निकल गई. संजय अभी भी कस्तूरी के खयालों में खोया हुआ था.

समय बीतता गया, लेकिन संजय के दिमाग से कस्तूरी निकल नहीं पा रही थी.

एक दिन संजय बाजार में सामान खरीद रहा था. उस ने देखा कि कस्तूरी भी उस के पास की ही एक दुकान से सामान खरीद रही थी.

संजय उस को देख कर खुश हुआ. उस ने कस्तूरी को आवाज दी तो कस्तूरी ने मुड़ कर देखा और फिर दुकानदार से सामान लेने में जुट गई.

संजय उस के पास पहुंचा. कस्तूरी ने संजय की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया. कस्तूरी ने सामान खरीदा और दुकान से बाहर निकल गई.

संजय उसे पीछे से आवाज देता रहा, लेकिन उस ने अनसुना कर दिया.

कुछ दिन बाद संजय को कस्तूरी फिर दिखाई दी. उस दिन संजय ने कस्तूरी का हाथ पकड़ा और उसे भीड़ से दूर खींच कर ले गया और उस से उस की पिछली बार की हरकत के बारे में पूछना चाहा, तो संजय के पैरों की जमीन खिसक गई. उस ने देखा, कस्तूरी का चेहरा पीला पड़ चुका था और वह बहुत कमजोर हो गई थी. उस ने अपनी फटी चुनरी से अपना पेट छिपा रखा था, जो कुछ बाहर दिख रहा था.

कस्तूरी वहां से जाने के लिए संजय से जोरआजमाइश कर रही थी. संजय ने किसी तरह उसे शांत किया और भीड़ से दूर एक चाय की दुकान पर बिठाया.

संजय ने गौर से कस्तूरी के चेहरे की तरफ देखा, तो उस का दिल बैठ गया. कस्तूरी सचमुच बहुत कमजोर थी. संजय ने कस्तूरी से उस की इस हालत के बारे में पूछा, तो पहले तो कुछ नहीं बोली, लेकिन संजय ने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरा तो वह रोने लगी.

संजय कुछ समझ नहीं पा रहा था. कस्तूरी ने अपने आंसू पोंछे और बोली, ‘‘बाबू, मेरी यह हालत उसी दिन से है, जिस दिन आप और आप के दोस्त मुझे होटल में मिले थे.’’

संजय ने उस की तरफ सवालिया नजरों से देखा, तो वह फिर बोली, ‘‘बाबू, मैं कोई धंधेवाली नहीं हूं. मैं उस गंदे नाले के पास वाली कच्ची झोंपड़पट्टी में रहती हूं. उस दिन पुलिस मेरे भाई को पकड़ कर ले गई थी, क्योंकि वह गली में चरसगांजा बेच रहा था. उसे जमानत पर छुड़ाना था और मेरे मांबाप के पास पैसा नहीं था. अब मुझे ही कुछ करना था.

‘‘मैं ने अपने पड़ोस में सब से पैसा मांगा, लेकिन किसी ने नहीं दिया. थकहार कर मैं बैठ गई तो मेरी एक मौसी बोली कि इस बेरहम जमाने में कोई मुफ्त में पैसा नहीं देता.

‘‘मौसी की यह बात मेरी समझ में आई और मैं आप और आप के दोस्तों तक पहुंच गई.’’

कस्तूरी चुप हुई, तो संजय ने अपने चेहरे के दर्द को छिपाते हुए पूछा, ‘‘तुम्हारी यह हालत कैसे हुई?’’

कस्तूरी ने कहा, ‘‘बाबू, यह जान कर आप क्या करोगे? यह तो मेरी किस्मत है.’’

संजय ने फिर जोर दिया, तो कस्तूरी बोली, ‘‘बाबू, उस दिन आप के दिए गए पैसे से मैं अपने भाई को हवालात से छुड़ा लाई, तो भाई ने पूछा कि पैसे कहां से आए. मैं ने झूठ बोल दिया कि किसी से उधार लिए हैं.’’

थोड़ी देर चुप रहने के बाद वह फिर बोली, ‘‘बाबू, सब ने पैसा देखा, लेकिन मैं ने जो जिस्म बेच कर एक जान को अपने शरीर में आने दिया, तो उसे सब नाजायज कहने लगे और जिस भाई को मैं ने बचाया था, वह मुझे धंधेवाली कहने लगा और मुझे मारने लगा. वह मुझे रोज ही मारता है.’’

यह सुन कर संजय के कलेजे का खून सूख गया. इस सब के लिए वह खुद को भी कुसूरवार मानने लगा. उस की आंखों में भी आंसू छलक आए थे.

कस्तूरी ने यह देखा तो वह बोली, ‘‘बाबू, इस में आप का कोई कुसूर नहीं है. अगर मैं उस रात आप को जिस्म नहीं बेचती तो किसी और को बेचती. लेकिन बाबू, उस दिन के बाद से मैं ने अपना जिस्म किसी को नहीं बेचा,’’ यह कहते हुए वह चुप हुई और कुछ सोच कर बोली, ‘‘बाबू, उस रात आप के अच्छे बरताव को देख कर मैं ने फैसला किया था कि मैं आप की इस प्यार की निशानी को दुनिया में लाऊंगी और उसी के सहारे जिंदगी गुजार दूंगी, क्योंकि हम जैसी गरीब लड़कियों को कहां कोई प्यार करने वाला जीवनसाथी मिलता है.’’

इतना कह कर कस्तूरी का गला भर आया. वह आगे बोली, ‘‘बाबू, यह आप की निशानी है और मैं इसे दुनिया में लाऊंगी, चाहे इस के लिए मुझे मरना ही क्यों न पड़े,’’ इतना कह कर वह तेजी से उठी और अपने घर की तरफ चल दी.

यह सुन कर संजय जैसे जम गया था. वह कह कर भी कुछ नहीं कह पाया. उस ने फैसला किया कि कल वह कस्तूरी के घर जा कर उस से शादी की बात करेगा.

वह रात संजय को लंबी लग रही थी. सुबह संजय जल्दी उठा और बदहवास सा कस्तूरी के घर की तरफ चल दिया. वह उस के महल्ले के पास पहुंचा तो एक जगह बहुत भीड़ जमा थी. वह किसी अनहोनी के डर को दिल में लिए भीड़ को चीर कर पहुंचा, तो उस ने जो देखा तो जैसे उस का दिल बाहर निकलने की कोशिश कर रहा हो.

कस्तूरी जमीन पर पड़ी थी. उस की आंखें खुली थीं और चेहरे पर वही मासूम मुसकराहट थी.

संजय ने जल्दी से पूछा कि क्या हुआ है तो किसी ने बताया कि कस्तूरी के भाई ने उसे चाकू से मार दिया है, क्योंकि सब कस्तूरी के पेट में पल रहे बच्चे की वजह से उसे बेइज्जत करते थे.

संजय पीछे हटने लगा, अब उसे लगने लगा था कि वह गिर जाएगा. तभी पुलिस का सायरन बजने लगा तो भीड़ छंटने लगी.

संजय पीछे हटते हुए कस्तूरी को देख रहा था. उस का एक हाथ अपने पेट पर था और शायद वह अपने प्यार को मरते हुए भी बचाना चाहती थी. उस के चेहरे पर मुसकराहट ऐसी थी, जैसे उन खुली आंखों से संजय को कहना चाहती हो, ‘बाबू, यह तुम्हारे प्यार की निशानी है, पर इस में तुम्हारा कोई कुसूर नहीं है.’

संजय पीछे मुड़ा और अपने घर पहुंच कर रोने लगा. वह अपनेआप को माफ नहीं कर पा रहा था, क्योंकि अगर वह कल ही उस से शादी की बात कर लेता तो शायद कस्तूरी जिंदा होती.

बारिश होने लगी थी. बादल जोर से गरज रहे थे. वे भी कस्तूरी के प्यार के लिए रो रहे थे.

राजू बन गया जैंटलमैन

लेखक- राजीव कैलाशचंद

माफ कीजिए, पहले मैं आप को अपने बारे में बता तो दूं. मैं देश की सब से मजबूत दीवारों में से एक हूं. यह किसी कंपनी का इश्तिहार नहीं है. मैं तिहाड़ जेल की दीवार हूं. हिंदी में कहावत है न कि दीवारों के भी कान होते हैं. मैं भी सुनती हूं, देखती हूं, महसूस करती हूं, पर बोल नहीं पाती, क्योंकि मैं गूंगी हूं.

एक बार जो मेरी दहलीज के बाहर कदम रख देता है, वह मेरे पास दोबारा न आने की कसम खाता है. न जाने कितनों ने मेरे सीने पर अपने आंसुओं से अपनी इबारत लिखी है.

कैदियों के आपसी झगड़ों की वजह से अनगिनत बार उन के खून के छींटे मेरे दामन पर भी लगे, फिर दोबारा रंगरोगन कर मुझे नया रूप दे दिया गया.

समय को पीछे घुमाते हुए मैं वह दिन याद करने लगी, जब राजू ने पहली बार मुझे लांघ कर अंदर कदम रखा था. चेहरे पर मासूमियत, आंखों में एक अनजाना डर और होंठों पर राज भरी खामोशी ने मेरा ध्यान उस की ओर खींचा था. मैं उस के बारे में जानने को बेताब हो गई थी.

‘‘नाम बोल…’’ एक अफसर ने डांटते हुए पूछा था.

‘‘जी… राजू,’’ उस ने मासूमियत से जवाब दिया था.

‘‘कौन से केस में आया है?’’

‘‘जी… धारा 420 में.’’

‘‘किस के साथ चार सौ बीसी कर दी तू ने?’’

‘‘जी, मेरे बिजनैस पार्टनर ने मेरे साथ धोखा किया है.’’

‘‘और बंद तुझे करा दिया. वाह रे हरिश्चंद्र की औलाद,’’ अफसर ने ताना मारा था.

अदालत ने उसे 14 दिन की न्यायिक हिरासत में यहां मेरे पास भेज दिया था.

पुलिस वाले राजू को भद्दी गालियां देते हुए एक बैरक में छोड़ गए थे. बैरक में कदम रखते ही कई जोड़ी नजरें उसे घूरने लगी थीं. अंदर आते ही उस के आंसुओं के सैलाब ने पलकों के बांध को तोड़ दिया था. सिसकियों ने खामोश होंठों को आवाज की शक्ल दे दी थी.

मन में दर्द कम होने के बाद जैसे ही राजू ने अपना सिर ऊपर उठाया, उस ने अपने चारों ओर साथी कैदियों का जमावड़ा देखा था. कई हाथ उस के आंसुओं को पोंछने के लिए आगे बढ़े. कुछ ने उसे हिम्मत दी, ‘शांत हो जा… शुरूशुरू में सब रोते हैं. 2-3 दिन में सब ठीक हो जाएगा.’

‘‘घर की… बच्चों की याद आ रही है,’’ राजू ने सहमते हुए कहा था.

‘‘अब तो हम ही एकदूसरे के रिश्तेदार हैं,’’ एक कैदी ने जवाब दिया था.

‘‘चल, अब खाना खा ले,’’ दूसरे कैदी ने कहा था.

‘‘मुझे भूख नहीं है,’’ राजू ने सिसकते हुए जवाब दिया था.

‘‘भाई मेरे, कितने दिन भूखा रहेगा? चल, सब के साथ बैठ.’’

एक कैदी उस के लिए खाना ले कर आ गया और बाकी सब उसे खाना खिलाने लगे थे.

राजू को उम्मीद थी कि उस के सभी दोस्त व रिश्तेदार उस से मुलाकात करने जरूर आएंगे, लेकिन जल्दी ही उस की यह गलतफहमी दूर हो गई. हर मुलाकात में उसे अपनी पत्नी के पीछे सिर्फ सन्नाटा नजर आता था. हर मुलाकात उस के हौसले को तोड़ रही थी.

राजू की हिरासत के दिन बढ़ने लगे थे. इस के साथ ही उस का खुद पर से भरोसा गिरने लगा था. उस के जिस्म में जिंदगी तो थी, लेकिन यह जिंदगी जैसे रूठ गई थी.

हां, साथी कैदियों के प्यार भरे बरताव ने उसे ऐसे उलट हालात में भी मुसकराना सिखा दिया था.

इंजीनियर होने की वजह से जेल में चल रहे स्कूल में राजू को पढ़ाने का काम मिल गया था. उस के अच्छे बरताव के चलते स्कूल में पढ़ने वाले कैदी

उस से बात कर अपना दुख हलका करने लगे थे.

यह देख कर एक अफसर ने राजू को समझाया था, ‘‘इन पर इतना यकीन मत किया करो. ये लोग हमदर्दी पाने के लिए बहुत झूठ बोलते हैं.’’

‘‘सर, ये लोग झूठ इसलिए बोलते हैं, क्योंकि ये सच से भागते हैं…’’ राजू ने उन से कहा, ‘‘सर, किसी का झूठ पकड़ने से पहले उस की नजरों से उस के हालात समझिए, आप को उस की मजबूरी पता चल जाएगी.’’

अपने इन्हीं विचारों की वजह से राजू कैदियों के साथसाथ जेल के अफसरों का भी मन जीतने लगा था.

एक दिन जमानत पाने वाले कैदियों की लिस्ट में अपना नाम देख कर वह फूला न समाया था. परिवार व रिश्तेदारों से मिलने की उम्मीद ने उस के पैरों में जैसे पंख लगा दिए थे.

वहां से जाते समय जेल के बड़े अफसर ने उसे नसीहत दी थी, ‘‘राजू, याद रखना कि बारिश के समय सभी पक्षी शरण तलाशते हैं, मगर बाज बादलों से भी ऊपर उड़ान भर कर बारिश से बचाव करता है. तुम्हें भी समाज में ऐसा ही बाज बनना है. मुश्किलों से घबराना नहीं, क्योंकि कामयाबी का मजा लेने के लिए यह जरूरी है.’’

‘‘सर, मैं आप की इन बातों को हमेशा याद रखूंगा,’’ कह कर राजू खुशीखुशी मुझ दीवार से दूर अपने घर की ओर चल दिया था.

राजू को आज दोबारा देख कर मेरी तरह सभी लोग हैरानी से भर उठे. वह सभी से गर्मजोशी से गले मिल कर अपनी दास्तान सुना रहा था. मैं ने भी अपने कान वहीं लगा दिए.

राजू ने बताया कि बाहर निकल कर दुनिया उस के लिए जैसे अजनबी बन गई थी. पत्नी के उलाहने व बड़े होते बच्चों की आंखों में तैरते कई सवाल उसे परिवार में अजनबी बना रहे थे. वह समझ गया था कि उस की गैरहाजिरी में उस के परिवार ने किन हालात का सामना किया है.

राजू के रिश्तेदार व दोस्त उस से मिलने तो जरूर आए, लेकिन उन की नजरों में दिखते मजाक उस के सीने को छलनी कर रहे थे. उस की इज्जत जमीन पर लहूलुहान पड़ी तड़प रही थी.

राजू के होंठों ने चुप्पी का गहना पहन लिया था. उस की चुनौतियां उसे आगे बढ़ने के लिए कह रही थीं, लेकिन मतलबी दोस्त उस की उम्मीद को खत्म कर रहे थे.

राजू इस बात से बहुत दुखी हो गया था. जेल से लौटने के बाद घरपरिवार और यारदोस्त ही तो उस के लिए सहारा बन सकते थे, पर बाहर आ कर उसे लगा कि वह एक खुली जेल में लौट आया है.

दुख की घनघोर बारिश में सुख की छतरी ले कर आई एक सुबह के अखबार में एक इश्तिहार आया. कुछ छात्रों को विज्ञान पढ़ाने के लिए एक ट्यूटर की जरूरत थी.

राजू ने उन बच्चों के मातापिता से बात कर ट्यूशन पढ़ाने का काम शुरू कर दिया. अपनी जानकारी और दोस्ताना बरताव के चलते वह जल्दी ही छात्रों के बीच मशहूर हो गया. उस ने साबित कर दिया कि अगर कोशिश को मेहनत और लगन का साथ मिले, तो वह जरूर कामयाबी दिलाएगी.

छात्रों की बढ़ती गिनती के साथ उस का खुद पर भी भरोसा बढ़ने लगा. यह भरोसा ही उस का सच्चा दोस्त बन गया.

प्यार और भरोसा सुबह और शाम की तरह नहीं होते, जिन्हें एकसाथ देखा न जा सके. धीरेधीरे पत्नी का राजू के लिए प्यार व बच्चों का अपने पिता के लिए भरोसा उसे जिंदगी के रास्ते पर कामयाब बना रहा था.

यह देख कर राजू ने अपनी जिंदगी के उस अंधेरे पल में रोशनी की अहमियत को समझा और एक एनजीओ बनाया.

यह संस्था तिहाड़ जेल में बंद कैदियों को पढ़ालिखा कर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए जागरूक करेगी.

अपने इसी मकसद को पूरा करने के लिए ही राजू ने मेरी दहलीज के अंदर दोबारा कदम रखा, लेकिन एक अलग इमेज के साथ.

मुझे राजू के अंदर चट्टान जैसे हौसले वाला वह बाज नजर आया, जो अपनी हिम्मत से दुख के बादलों के ऊपर उड़ रहा था.

नन्हा मेहमान: क्या मिल पाया वह डौगी

‘‘मम्मी… मम्मी,’’ चिल्लाता 10 वर्षीय ऋषभ तेजी से मकान की दूसरी मंजिल में पहुंच गया. उस के पीछेपीछे 8 वर्षीय छोटी बहन मान्या भी खुशीखुशी अपनी स्कर्ट को संभालती चली आ रही थी.

अल्मोड़ा शहर की ऊंचीनीची, घुमावदार सड़कों से बच्चे रोज ही लगभग 2 किलोमीटर पैदल चल कर अपने मित्रों के संग कौंवैंट

स्कूल आतेजाते हैं. सभी बच्चे हंसतेबोलते कब स्कूल से घर और घर से स्कूल पहुंच जाते, उन्हें इस का एहसास ही नहीं होता, जबकि पीठ में बस्ते का भार भी रहता. रितिका भी दोपहर तक बच्चों के घर पहुंचने के दौरान अपने सारे काम निबटा लेती. बच्चों को खिलापिला कर होमवर्क करने को बैठा देती. तभी दो घड़ी अपनी आंख   झपका पाती.

आज ऋ षभ की आवाज सुन कर कमरे से निकल बरामदे में आ गईं. मन में अनेक आशंकाओं ने इतनी देर में जन्म भी ले लिया. सड़क दुर्घटना, हादसा और भी तमाम खयालात दिमाग में दौड़ गए.

‘‘यह देखो मैं क्या लाया?’’ शरारती ऋ षभ ने अपने हाथों में थामे हुए लगभग 2 महीने के पिल्ले को   झुलाते हुए कहा.

मान्या अपनी मम्मी के मनोभावों को पढ़ने में लगी हुई थी. उसे मम्मी खुश दिखती तो वह अपना योगदान भी जाहिर करती, नहीं तो सारा ठीकरा ऋ षभ के सिर फोड़ देती.

‘‘सड़क से पिल्ला क्यों उठा कर लाए? अभी इस की मां आती होगी, जब तुम्हें काटेगी तभी तुम सुधरोगे,’’ रितिका गुस्से से बोली.

‘‘सड़क का नहीं है मम्मी, हमारे स्कूल में जो आया हैं, उन्होंने दिया है. ये स्कूल में पैदा हुए हैं. आयाजी ने कहा है जिन्हें पालने हैं वे ले जाएं. स्कूल में तो पहले ही 4 भोटिया डौग हैं,’’ ऋ षभ ने सफाई देते हुए उसे फर्श पर रख दिया. पिल्ला सहम कर कोने में बैठ गया और अपने भविष्य के फैसले का इंतजार करने लगा.

‘‘चलो हाथमुंह धोलो, खाना खाओ. इसे कल स्कूल वापस ले जाना. हम नहीं रखेंगे. तुम्हारे पापा को कुत्तेबिल्ले बिलकुल पसंद नहीं हैं.’’

‘‘पर पापा के घर में गाय तो है न, दादी गाय पालती हैं,’’ मान्या बीच में बोली.

‘‘गाय दूध देती है,’’ रितिका ने तर्क दिया.

‘‘कुत्ता भौंक कर चौकीदारी करता है,’’ मान्या का तर्क सुन कर ऋ षभ की आंखों में चमक आ गई.

‘‘मु  झे इस पिल्ले पर कोई एतराज नहीं है, मगर तुम्हारे पापा डांटेंगे तो मेरे पास मत आना.’’

मम्मी की बात सुन कर दोनों के मुंह उतर गए.

रितिका पुराने प्लास्टिक के कटोरे में दूध में ब्रैड के टुकड़े डाल कर ले आई, जिसे देख कर पिल्ला लपक कर कटोरी के बगल में खड़ा हो गया. ऋ षभ और मान्या की तरफ ऐसे देखने लगा मानो उन से इजाजत ले रहा हो और अगले ही पल कटोरे पर टूट पड़ा. कटोरे को पूरा चाट कर खुशी से अपनी दुम हिलाने लगा.

‘‘आंटी, आंटी…’ की तेज आवाज नीचे आंगन से आ रही थी. रितिका ने ऊपर बरामदे से नीचे   झांका. नीचे आगन से ऋ षभ की उम्र की

2 लड़कियां स्कूल ड्रैस पहने खड़ी थी.

‘‘क्या हुआ बेटा?’’ रितिका ने उन दोनों को पहले कभी नहीं देखा था.

‘‘आंटी ऋ षभ हमारा पिल्ला ले कर भाग आया,’’ उन दोनों में से एक ने कहा.

‘‘  झूठ… इसे आयाजी ने मु  झे दिया था,’’ ऋषभ ने सफाई दी.

‘‘मम्मी यह पिल्ला स्कूल से ही लाया गया है. रास्ते में हम चारों ने इसे बारीबारी गोद में पकड़ा था. जब घर पास आने लगा तो तृप्ति इसे अपने घर ले जाने लगी तो भैया इसे अपनी गोद में ले कर भागता हुआ घर आ गया,’’ मान्या ने स्पष्टीकरण दिया.

‘‘आंटी ऋ षभ ने पहले कहा था कि तुम चाहो तो अपने घर ले जा सकती हो, लेकिन वह बाद में भाग गया,’’ वह फिर बोली.

रितिका को कुछ सम  झ ही नहीं आया कि वह किसे क्या सम  झाए.

‘‘मैं तो अब इसे किसी को भी नहीं दूंगा. मैं ने इस पर बहुत खर्चा कर दिया है,’’ ऋ षभ ने फैसला सुनाया.

‘‘क्या खर्चा किया?’’ उस ने नीचे से पूछा.

‘‘एक कटोरा दूध और ब्रैड मैं इसे खिला चुका हूं. अब यह मेरा है,’’ ऋषभ ने जिद पकड़ ली.

‘‘सुनो बेटा, आज तुम इसे यही रहने दो. घर जा कर अपनी मम्मी से पूछ लेना कि वे पिल्ले को घर में रख लेंगी. वे अगर सहमत होंगी तो मैं यह पिल्ला तुम्हें दे दूंगी. यहां तो ऋषभ के पापा इसे नहीं रखने देंगे. कल तुम्हें लेना होगा तो बता देना वरना वापस स्कूल चला जाएगा,’’ रितिका ने सम  झाया तो दोनों लड़कियों ने सहमति में सिर हिला दिया और वापस चली गईं.

‘‘खबरदार यह पिल्ला घर के अंदर नहीं आना चाहिए. इसे यही बरामदे में गद्दी डाल कर रख दो. तुम दोनों अंदर आ जाओ.’’

रितिका की बात सुन कर ऋषभ ने उसे पतली डोरी से दरवाजे से बांध दिया. उस के पास गद्दी बिछा कर कटोरे में पानी भर दिया. भोजन के बाद दोनों अपना होमवर्क करने लगे. बाहर पिल्ला लगातार कूंकूं करने लगा. दोनों बच्चे अपनी मम्मी का मुंह ताकते कि शायद वे रहम खा कर उसे अंदर आने दें, मगर रितिका ने उन्हें अपनी पढ़ाई पर ध्यान देने को कहा. कुछ देर बाद पिल्ले ने कूंकूं करना बंद कर दिया.

होमवर्क खत्म होते ही दोनों लपक कर बरामदे में आ गए, ‘मम्मीमम्मी’ इस बार मान्या और ऋ षभ दोनों एकसाथ पुकार रहे थे.

रितिका को   झपकी सी आ गई थी. शोर सुन कर वह तुरंत बाहर को लपकी.

‘‘मम्मी हमारा पिल्ला खो गया,’’ दोनों रोआंसे स्वर में एकसाथ बोले. पिल्ले के गले से बंधी डोरी की गांठ खुली पड़ी थी. डोरी की गांठ ढीली थी, जो पिल्ले की जोरआजमाइश करने के कारण खुल गई थी.

‘‘यहीं कहीं होगा, मेजकुरसी के नीचे देखो.’’

‘‘सीढि़यों से नीचे तो नहीं गया?’’ ऋ षभ ने शंका जताई.

रितिका ने सीढि़यों की तरफ देखा. सीढि़यां नीचे सड़क को जाती हैं.

‘‘मम्मी कहीं वह किसी गाड़ी के नीचे न आ जाए,’’ मान्या को चिंता हुई.

‘‘मु  झे नहीं लगता कि वह सीढि़यां उतर पायेगा, लेकिन अगर बरामदे में नहीं है तो नीचे आंगन में देखो.

वह अखरोट और नारंगी के पौधे के नीचे जो   झाडि़यां हैं हो सकता है उन में छिपा हो.’’

रितिका के ऐसा कहते ही वे दोनों सीढि़यों से नीचे को दौड़ पड़े. उन के पीछे रितिका भी उतर कर आ गई.

उसे भी मन ही मन अफसोस हो रहा था कि काश वह उसे कमरे के अंदर अपनी आंखों के सामने ही रखती.

नीचे की मंजिल में रहने वाले किराएदार के बच्चे भी पिल्ला खोजो अभियान में  शामिल हो गए 2 घंटे बीत गए. सूर्य के ढलने के साथ ही अंधेरा छाने लगा तो रितिका बच्चों को ऊपर ले आई. बच्चों के चेहरे पर छाई उदासी से उस का मन दुखी हो गया. बच्चों को बहलाते हुए बोली, ‘‘अब तुम्हारे पापा के घर लौटने का समय हो गया है. पिल्ले की बात मत करना. अच्छा हुआ वह खुद चला गया.’’

दोनों बच्चे टीवी के आगे बैठ कर कार्टून देखने लगे. मन ही मन वे बेहद दुखी हो रहे थे.

पापा ने घर आने के कुछ देर बाद उन से पूछा, ‘‘होमवर्क कंप्लीट कर लिया?’’

‘‘हां पापा,’’ मान्या ने तुरंत जवाब दिया.

‘‘आज क्या मिला होमवर्क में?’’ प्रकाश ने पूछा.

‘‘पापा आज केवल मैथ्स और इंग्लिश में रिटेन होमवर्क मिला था. ओरल भी सब याद कर लिया है,’’ मान्या अपनी कौपी निकाल कर पापा को दिखाने लगी.

‘‘पापा इंग्लिश में ऐस्से लिखना था- माई पैट एनिमल’’ मान्या रोआंसी हो कर बोली.

‘‘तो क्या नहीं लिखा अभी तक?’’ प्रकाश ने पूछा.

‘‘लिख लिया माई पैट डौग,’’ मान्या का गला रुंध गया. उसे पिल्ला याद आ गया.

‘‘पापा मेरा भी होमवक चैक कर लीजिए,’’ ऋ षभ भी अपनी कौपी उठा लाया. उस ने मान्या को वहां से चले जाने का इशारा किया. मान्या अपनी कौपी उठा कर रसोई में अपनी मम्मी के पास आ गई.

मम्मी रात के भोजन की तैयारी में व्यस्त थी. मान्या को देख कर बोली, ‘‘भूख लगी है मान्या? बस 5 मिनट रुको.’’

‘‘नहीं मेरा कुछ भी खाने का मन नहीं है. वह पिल्ला अंधेरे में कितना डर रहा होगा न. मम्मी आज आप ने डौग के ऊपर निबंध लिखवाया. मु  झे पूरा याद भी हो गया पिल्ले की वजह से. उस की लैग्स, उस की टेल, उस की आईज.’’

रितिका ने पलट कर मान्या के बालों को प्यार से सहला दिया. रात को  सोते समय दोनों बच्चे रितिका के पास आ गए.

‘‘जाओ तुम दोनों अपनेअपने कमरे में,’’ रितिका ने कहा.

आज दोनों बच्चों को नींद नहीं आ रही थी. उन को उदास देख कर रितिका ने कहा, ‘‘आज मैं तुम्हें एक सच्ची कहानी सुनाती हूं.’’

‘‘किस की कहानी है?’’ ऋ षभ ने पूछा.

‘‘कुत्ते और बिल्ली की,’’ रितिका ने कहा.

‘‘हां मैं सम  झ गया आप अपनी बिल्ली और मामाजी के कुत्ते की कहानी सुनाएंगी. मैं ने उन दोनों के साथ में बैठे हुए फोटो देखा है,’’ ऋ षभ ने कहा.

‘‘हां मैं ने भी देखा है. दोनों एक ही पोज में कालीन पर बैठे हुए हैं,’’ मान्या बोली.

‘‘सुनो कुत्ते और बिल्ली के हमारे घर में आने की कहानी,’’ रितिका हंस कर बोली.

जुलाई का महीना था. बाहर बारिश हो रही थी. सड़कों के गड्ढे भी पानी से भर गए थे. तभी म्याऊंम्याऊं करती आवाज ने सब का ध्यान आकर्षित कर लिया. नन्हे से भीगे हुए बिल्ली के बच्चे को देख कर मैं अपने को रोक न सकी. उसे कपड़े से पकड़ कर अंदर ले आई. सब ने सोचा बारिश बंद हो जाएगी तो चला जाएगा. मगर वह नहीं गया. हमारे ही घर में रहने लगा. हां कभीकभी घर से घंटों गायब भी रहता, मगर शाम तक लौट आता.’’

‘‘मम्मी मामाजी के डौग शेरू से उस की लड़ाई नहीं हुई?’’ मान्या बोली.

‘‘नहीं जब मेरी पूसी 1 साल की हो गई उन्हीं दिनों हम शेरू को रोड से उठा कर घर लाए थे. वह तो पूसी से डरता था. पूसी अपना अधिकार सम  झती थी. उस के ऊपर खूब गुर्राती. बाद में उस के साथ खेलने लगी. दोनों में दोस्ती हो गई. जब शेरू का आकार पूसी से बड़ा भी हो गया वह तब भी पूसी से डरता था. अब उस बेचारे को क्या मालूम कि वह कुत्ता है और बिल्ली को उस से डरना चाहिए. वह अपनी पूरी जिंदगी बिल्ली से डरता रहा,’’ रितिका बोली.

यह सुन कर दोनों बच्चे हंसने लगे.

‘‘चलो बच्चों देर हो गई जा कर सो जाओ,’’ पापा अपना लैपटौप बंद

कर बोले. बच्चे तुरंत उठ कर चले गए.

आधी रात को खटरपटर सुन कर प्रकाश की नींद खुल गई. उस ने कमरे की बत्ती जलाई और इधरउधर देखने लगा.

रितिका ने पूछा, ‘‘क्या हो गया?’’

‘‘मु  झे बहुत देर से कुछ आवाजें सुनाई दे रही हैं.’’

‘‘कैसी आवाजें? वह चोर के छिपे होने की आशंका से घबराई और उठ कर बैठ गई.’’

तभी बैड के नीचे से पिल्ला निकल कर  कूंकूं करने लगा. उसे देख कर प्रकाश को   झटका लगा.

‘‘यह पिल्ला कहां से अंदर आ गया?’’ वह आश्चर्य से चीख पड़ा.

बच्चे पापा की आवाज सुन कर भागते हुए आ गए. पिल्ले ने उन्हें देख कर दुम हिलानी शुरू कर दी.

‘‘पापा इसे हम स्कूल से ले कर आए थे. मगर यह हमें शाम को नहीं मिला. हम ने सोचा यह खो गया है,’’ ऋ षभ ने बताया.

‘‘पापा लगता है यह शैतान तो चुपके से अंदर आ गया और आप के बैड के नीचे सो गया मान्या ने कहा,’’ मान्या ने कहा.

‘‘हां बेचारा चिल्लाचिल्ला के थक गया होगा,’’ ऋ षभ ने कहा.

‘‘कल बच्चे इसे स्कूल छोड़ आएंगे,’’ रितिका ने सफाई दी.

‘‘पापा क्या हम इसे पाल नहीं सकते?’’ मान्या ने पूछा.

प्रकाश ने एक पल अपने बच्चों के आशंकित चेहरों को देखा फिर हामी भर दी.

‘‘थैंक्स पापा. मैं इस का नाम ब्रूनो रखूंगी,’’ मान्या बोली.

‘‘नहीं इस का नाम शेरू होगा,’’ ऋ षभ ने कहा.

जो पिल्ले को घुमाने ले जाएगा, उस की पौटी साफ करेगा उसी को नाम रखने का अधिकार होगा,’

’ रितिका की बात सुन कर ऋ षभ और मान्या एकदूसरे का मुंह देखने लगे.

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