बिठाएं मां और पत्नी में सामंजस्य

अक्सर जब एक लड़की की शादी होती है और वो ससुराल जाती है तो अपने घर को छोड़कर उसे अपने ससुराल को अपनाना होता है. एक नया परिवार मिलता है. पति उसे अपना ज्यादा वक्त देता है और ये सही भी भला ऐसे में जब एक लड़की अपना सबकुछ छोडकर आपके पास आई है तो आपका उसे वक्त देना बिल्कुल भी गलत नहीं है क्योंकि एक-दूसरे को समझने और जानने के लिए साथ में वक्त बिताना बहुत जरूरी है.लेकिन जब पति ऐसा करता है तो अक्सर मां को लगता है कि लड़की घर में आई नहीं कि मेरे बेटे को मुझसे दूर कर दिया.घर को तोड़ दिया. मेरा बेटा दिनभर उससे चिपका रहता है और भला मेरी अब कहां सुनेगा अब तो कोई और है इसकी जिंदगी में ऐसे में बेटे का रिश्तों को संभालना तोड़ा कठिन हो जाता है.जब घर में नए रिश्ते बनते हैं तो उनको वक्त देना पड़ता है और फिर ये तो पति-पत्नी का रिश्ता है.यदि बेटा मां की ज्यादा बात माने तो ऐसे में पत्नी को लगता है कि उसका पति उसे वक्त नहीं देता मां के पल्लू से चिपका रहता है.ऐसे में कुल मिलाकर यदी कोई बीच में फंसता तो है वो है लड़का जो बेटा और पति दोनों ही है.अब ऐसे में उसे कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे वो अपनी मां और पत्नी में सामंजस्य बिठा सके.

1. मां के महत्व को न होने दें कम

सबसे पहले तो पुरुष को अपनी मां से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए क्योंकि वो एकमात्र वो इंसान है इस दुनिया में जो आपको इस दुनिया में लाती है,बिना किसी शर्त और स्वार्थ के प्रेम करती है.आपको पाल-पोस कर बड़ा करती है हसदम आपका ख्याल रखती है. इसलिए उनके इस प्यार को कभी कम मत समझे पुरूष,भले ही शादी हो जाए पत्नी आ जाए लेकिन अपनी मां का महत्व कभी कम मत होने दें.उनकी बातों को सुने,समझे और उनके साथ वक्त भी बिताए.

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2. मां की हां में हां मिलाने से बचें

अगर आपसे मां कभी आपकी पत्नी की शिकायत करें तो कभी भी हां में हां न मिलाएं बल्कि समझाएं कि ऐसा नहीं है उनकी बहू इतनी भी बुरी नहीं है साथ ही ये भी कहें चलो ठिक है मां मैं उसे समझा दूंगा.अगर गलती है तो ही अन्यथा अपनी मां को भी प्यार से समझा सकते हैं.

3. पत्नी को भी समझाएं

शिकायत वाली बात पत्नी पर भी लागू होती है अगर वो पति से उसके मां की बुराई करती है तो अपनी पत्नी को भी समझाएं और दोनों को आपस में मिला कर रखें कभी झगड़ा या मन में खटास न पैदा होने दें.ये आपकी जिम्मेदारी बनती है कि दोनों में सही गलत को समझकर ही फैसले करें.

4. वाइफ को दें समय

अगर आपकी पत्नी दिनरात आपका इंतजार करे और उसे बिल्कुल भी समय न दें तो, ये बिल्कुल भी सही नहीं है,क्योंकि वो आपके लिए सबकुछ छोड़कर आयी है इसलिए उसे पति का वक्त मिलना उसाक हक है.कभी भी अपने और अपनी पत्नी के बीच अहंकार को न आने दें प्यार से रिश्ता बनाए.

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5. मां को समझना है जरूरी

बेटे को अपनी मां को समझाना चाहिए कि अब घर में और रिश्तों में कुछ बदलाव हुए हैं जो उन्हें समझने होंगे.घर में एक नया सदस्य और आ गया जो अब हमारे परिवार का हिस्सा है तो बदलाव तो होंगे ही.मां को भी इन बातों को समझना होगा साथ ही पत्नी को भी परिवार को पति के मां को समझना होगा.उनकी मनोस्थिति को समझना होगा तभी रिश्ते निभा पाएंगे.

उनकी जरूरत आपका उपहार और बहुत सारा प्यार

कोई हमारी जिंदगी में कितना महत्वपूर्ण है इसे हम शब्दों में बयां नहीं कर सकते, क्योंकि अहसासों की जुबां नहीं होती. उन्हें तो बस महसूस किया जाता है एकदूसरे के प्रति लगाव और विश्वास के जरीए. आप कितना खयाल रखते हैं किसी का, कितनी शिद्दत से याद करते हैं इसे जताने का एक खूबसूरत मौका होता है त्योहार. खासकर दीवाली वह समय है जब आप दिल के रिश्तों को प्यार की रोशनी से संवार सकते हैं.

दीवाली जानी जाती है आतिशबाजी और रोशनी की बहार के साथसाथ दिलों को जोड़ते उपहारों के लिए. उपहार न हो तो बात नहीं बनती. दीवाली के मौके पर आप अपने करीबियों, रिश्तेदारों, मित्रों, पड़ोसियों को उपहार दे कर अपने रिश्ते की नींव मजबूत बनाते हैं. दीवाली का उपहार देते वक्त सामने वाले की जरूरत का खास खयाल रखना जरूरी होता है.

1. जब चुनना हो गिफ्ट

बजट तय करें-  उपहार का चुनाव करने से पहले जरूरी है उस के लिए अपना बजट तय करना. जरूरी नहीं कि बेहद कीमती तोहफा ही अच्छा हो. उपहार में देने वाले की भावना ज्यादा महत्त्वपूर्ण होती है. इसलिए अपनी जेब के अनुसार ही तोहफे का चुनाव करें. बेकार की चीजें उपहार में देने की मात्र औपचारिकता निभाने से बेहतर है कि 2-3 लोगों के बजट को मिला कर कोई अच्छा और उपयोगी उपहार दिया जाए. या फिर सस्ती, मगर काम की चीज गिफ्ट की जाए.

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2. उम्र के अनुसार हो उपहार

छोटे बच्चों को सौफ्ट टौएज पसंद आते हैं तो थोड़ा बड़े बच्चे इलैक्ट्रौनिक टौएज से खेलना पसंद करते हैं. इसी तरह कालेज जाने वाली लड़कियों को उपहार में कोई मेकअप प्रोडक्ट, आर्टिफिशियल ज्वैलरी, स्टोल या सनग्लासेज दिए जा सकते हैं तो किसी शादीशुदा दोस्त को परफ्यूम सैट, पिक्चर फ्रेम या घर का कोई सजावटी सामान उपहार में देना अच्छा रहेगा. हर उम्र की अपनी पसंदनापसंद और जरूरतें होती है.

3. उस की रुचि में हमारी खुशी

हर व्यक्ति की अपनी अलग पसंद होती है. अपने उपहार को खास बनाने के लिए जरूरी है कि आप सामने वाले की पसंदनापसंद और रुचि के अनुसार ही उपहार चुनें. ध्यान दें कि वह अकसर कौन से रंग पहनना पसंद करता है, उस की पसंदीदा गतिविधियां क्या हैं, उस के घर की सजावट कैसी है, उस का पसंदीदा साहित्य या खेल कौन सा है, उसी हिसाब से आप उस के लिए उपहार का चुनाव करें.

4. समझते हैं आप की जरूरत

आप यदि रिश्तों में मिठास और प्यार बढ़ाना चाहती हैं तो दीवाली से बेहतर कोई दिन नहीं हो सकता. पत्नीबच्चे और मांबाप हों या फिर दोस्त या रिश्तेदार, किसी की कोई तकलीफ या कमी यदि आप लंबे समय से महसूस कर रहे हैं तो दीवाली के दिन वह चीज उपहार में दे कर रिश्तों में नई रोशनी फैला सकती हैं. इस से सामने वाला यह समझ पाएगा कि आप उस की कितनी परवाह करती हैं और वह भावनात्मक जुड़ाव महसूस करने लगेगा.

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फैमिली के साथ ऐसे स्पेशल बनाएं फेस्टिवल

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में फेस्टिवल ही हमें हंसी-खुशी से सराबोर करते हैं पर आजकल फेस्टिवल पर महंगी चीजें खरीदने, महंगी चीजों से घर की सजावट करने और महंगे गिफ्टों के आदानप्रदान को ही अपनी शान समझा जाने लगा है. इन्हीं बेजान वस्तुओं में लोग अपनी खुशी ढूंढ़ने लगे हैं जबकि यह खुशी क्षणिक होती है. ऐसे में अपने परिवार के साथ फेस्टिवल को कैसे मनाया जाए ताकि वह आप और आप के परिवार के लिए यादगार बन जाए और उस की अनुभूति हमेशा आप को गुदगुदाती रहे. आइए हम बताते हैं:

प्राथमिकताओं पर अमल

इस फेस्टिवल पर आप यह जानने की कोशिश करें कि अब तक आप अपनी प्राथमिकताओं पर अमल करने में सफल रहे या नहीं. अगर नहीं तो इस फेस्टिवल पर सब कुछ छोड़ कर अपने परिवार के साथ रहें. इस अवसर पर परिवार को ज्यादा से ज्यादा समय दें. परिवार की इस भावना को समझें कि वह बजाय किसी महंगी वस्तु के केवल और केवल आप का साथ चाहता है.

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त्योहारों पर प्रियजनों के साथ समय बिताना बहुत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि अपने परिवार से प्यारा और कुछ नहीं होता है. जिन्हें हम दिल से प्यार करते हैं उन के साथ कनैक्ट होने का यह सब से बैस्ट समय होता है. जब हम सारे गिलेशिकवे भुला कर एकसाथ फेस्टिवल मनाते हैं तो उस का आनंद ही कुछ और होता है.

पुरानी यादों को दें नया रंग

पेरैंट्स अपने बच्चों की बचपन की तसवीरों का अलबम बना कर इस फेस्टिवल पर उन्हें भेंट करें. इस से वे अपनी पुरानी यादों से जुड़ेंगे. इस से उन्हें जो खुशी होगी वह आप को और खुशी प्रदान करेगी.

इसी तरह बच्चे भी अपने पेरैंट्स की पुरानी तसवीरों को खोजें. फिर उन्हें फ्रेम करवा कर उन्हें गिफ्ट करें. इस फेस्टिवल पर पेरैंट्स के लिए इस से अच्छा और कोई उपहार नहीं. ऐसे उपहार ही एकदूसरे को भावनात्मक रूप से जोड़ते हैं.

यादों को संजोएं कुछ ऐसे

अपने बच्चों के पहले खिलौने से ले कर उन के रिपोर्ट कार्ड व कपड़ों तक को संजोएं. फिर उन्हें रैप करा कर बच्चों को गिफ्ट करें. माना कि गुजरा समय भले लौट कर न आता हो. पर आप इन छोटीछोटी चीजों से अपने बच्चों को फ्लैशबैक में पहुंचा कर सुखद अनुभूति दे सकते हैं कि वे बचपन में इन खिलौने से खेलते थे. ये कपड़े पहनते थे, उन के ऐसे मार्क्स आते थे.

बच्चों को उन के पूर्वजों से रूबरू करवाएं

आजकल एकल परिवारों के चलते बच्चे अपने पूर्वजों से अनजान रहते हैं. ऐसे में आप का फर्ज बनता है कि आप इस फेस्टिवल पर उन्हें अपने पूर्वजों से रूबरू होने का मौका दें खास कर बेटा, बहू, दामाद, बेटी, पोतीपोते को कि वे कैसे दिखते थे, उन में क्या खासीयत थी. इस के लिए आप पुरानी तसवीरों को अपडेट कर के उन्हें दें और उन्हें उन की बातें बताएं. अगर कोई पूर्वज अभी जीवित है, तो उन से इन्हें मिलाएं. इस से बच्चे तो खुश होंगे ही. उन से मिल कर बुजुर्गों को भी बहुत खुशी होगी. ऐसा करने से बच्चे भी परिवार के अन्य लोगों से मिल कर उन्हें जान सकेंगे कि हमारे परिवार में कौनकौन है.

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ईट टुगैदर

अपने परिवार के साथ लंच या डिनर का प्रोग्राम ऐसी जगह बनाएं, जो परिवार के सभी सदस्यों को पसंद हो. ऐसे माहौल में हंसीखुशी के अलावा और कोई बात न हो. एकदूसरे की बातों को सुनें, समझें, रुचियों के बारे में जानें. ऐसा करने से अपनेपन की भावना तो जगेगी ही, साथ ही इन सब बातों के बीच खाने का मजा भी बढ़ जाएगा.

लौंगड्राइव पर जाएं

इस फेस्टिवल पर अपनी खुशियों को आप अपने परिवार को लौंगड्राइव पर ले जा कर पूरी कर सकते हैं. इस से आप का भरपूर मनोरंजन होगा. पूरे परिवार का एकसाथ सफर करना यादगार ट्रिप बन जाएगा, क्योंकि ऐसे मौके कम ही आते हैं जब पूरी फैमिली एकसाथ कहीं जाए.

इस तरह यह फेस्टिवल आप और आप के परिवार के लिए यादगार बन जाएगा और आप इन सुनहरी यादों में सालोंसाल खोए रहेंगे.

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सास करती हैं बहुओं में भेदभाव…..

शायद ये सुन कर आपको हैरानी हो और थोड़ा अजीब लगे लेकिन आज भी समाज में ससुराल में बहुओं के साथ भेदभाव होता है.इसमें कोई दोराय नहीं कि सास और बहू के बीच में नोक-झोंक न हो. कहीं पढ़ा था मैंने कि बेटी अगर चीनी है जिसके बिना जिंदगी में कोई मिठास नहीं,तो बहू नमक है जिसके बिना जीवन में कोई स्वाद नहीं. अक्सर सास और बहू के रिश्तों में खटास सी पैदा हो जाती है….इसका एक सबसे बड़ा कारण हैं सासों का यह मानना कि बहू तो बहू होती है और बेटी…बेटी होती है..हालांकि कुछ प्रतिशत ऐसी सासें हैं जो बहू को केवल बेटी का दर्जा देते ही नहीं हैं बल्कि उसको बेटी मानती  भी हैं. सास बहू के रिश्तों में और भेदभाव के कुछ कारण हैं…..

1. बहू को सिर्फ एक बहू के नजरिये से देखना

सास का ये मानना की बहू कभी बेटी नहीं बन सकती है. बहू को सिर्फ एक बहू के नजरिये से देखना. कभी उसके साथ बेटी जैसा बर्ताव न करना. बहुएं घर का सारा काम करती हैं साथ अपने पति के जरूरतों का भी खयाल रखती हैं. ऐसे में ये जरूरी है कि सास अपने बहू को बेटी के समान रखें ताकि बहू भी उतनी ही इज्जत दें सास को जितनी वो अपनी मां को देती हैं.

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2. दूसरा भेदभाव का सबसे बड़ा कारण है दहेज.. 

दूसरा भेदभाव का सबसे बड़ा कारण है दहेज.. अगर कई बहुएं होती हैं तो अक्सर सास उस बहू को ज्यादा तवज्जों देती हैं जो ज्यादा दहेज लाती है और अपने सास की चकचागिरी करती हैं. सास को लगता है कि उसके लिए ज्यादा दहेज वाली बहू ही अच्छी होती है. इसलिए बाकी बहुओं को ज्यादा तवज्जों न देकर भेदभाव करती हैं.

3. अक्सर सासें ये सोचती हैं कि उनका बेटा कितना बदल गया है

अक्सर सासें ये सोचती हैं कि उनका बेटा कितना बदल गया है. शादी के बाद सिर्फ अपनी पत्नी पर ध्यान देता है और उसी के बारे में सोचता है मेरी तो सुनता ही नहीं है. एक ये सोच भी सास को भेदभाव की दहलीज तक ला ही देता है जब सास बेटी और बहू में भेदभाव करती हैं.

4.अगर बहू वर्किंग वुमन है तो 

अगर बहू वर्किंग वुमन है तो वो शादी के बाद भी अपना काम जारी रखती है जिसके चलते वो घर के कामों में ज्यादा योगदान नहीं दे पाती तो बाकी की बहुओं को सास से उसकी चुगली करने और कान भरने का मौका मिल जाता है. आजकल सास,बहु और सस्पेंस जैसी कहानी केवल धारावाहिकों में ही नहीं बल्कि असल जिंदगी में भी दिखती है.

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हम एक उदाहरण से ये समझ सकते हैं कि इंदिरा गांधी को  पूरब और पश्चिम का मिश्रण बहुत पसंद था इसलिए उन्होंने अपने एक बहू को मानेकशौ से कार्डन ब्लू बनाना सीखने के लिए भेजा तो दूसरी बहू सोनिया गांधी को हिंदुस्तानी सीखने के लिए भेजा.लेकिन कहा जाता है कि इंदिरा गांधी मेनका से ज्यादा सोनिया गांधी को चाहती थी. मतलब उस वक्त भी भेदभाव था और आज तो है ही. अगर बहू सेवा न करे तो बूरी बन जाती है सास के नजरों में भले ही घर के सारे काम करती हो और सास को आराम देती हो,  लेकिन आज समाज को आइना देखने की जरूरत है. सासों को बदलने की जरूरत है…जब तक वो अपनी बहू को बेटी नहीं मानेंगी और बाकी बहुओं से तुलना करना बंद नहीं करेंगी तब तक उनको भी वो प्यार और अपनापन नहीं मिल पाएगा जो एक बहू से मिलना चाहिए…क्योंकि वक्त है बदलाव का….

Edited by Rosy

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