वह कब गहरी नींद सो गया, कल्पना को पता ही नहीं चला. भीतरबाहर से थकीहारी कल्पना भी शीघ्र ही सो जाना चाहती थी, पर नींद तो मानो उस की आंखों से कोसों दूर थी. बंद पलकों में बजाय नींद के अतीत की भूलीबिसरी स्मृतियां उमड़घुमड़ रही थीं.
कल्पना एक मध्यवर्गीय परिवार की इकलौती लड़की थी. उस के पिता कृष्णगोपाल की खिलौनों की एक दुकान थी. उन के पड़ोसी घनश्यामलाल कमल के सगे मामा थे. घनश्यामलाल के शहर में दूध के डेरों बूथ थे और बहुत अच्छा काम था. वे काफी पढ़ेलिखे थे इसलिए उस के पिता व घनश्याम घर से बाहर पड़े तख्तों पर घंटों देश की राजनीति और समाज पर चर्चा करते थे.
कल्पना कमल को बचपन से जानती थी. हर साल गरमी की छुट्टियां नैनीताल में बिताने की गरज से कमल का परिवार घनश्यामलाल के यहां आ कर ठहरता था. दोनों घरों में आंगन एक ही था. वह, कमल और उस के 2 अन्य भाईबहन एकसाथ आंखमिचौली खेला करते थे. वह उन के साथ ही खाने भी बैठ जाती और प्राय: रात तो उन के उस बड़े पलंग पर भी जा पहुंचती, जिस पर कमल और उस के छोटे भाईबहन सोते थे. वह बिना किसी संकोच के उन के बीच जा लेटती थी.
कुछ वर्ष बाद कमल ने कल्पना के साथ ही कालेज जीवन में पदार्पण किया था. चूंकि कमल के मामामामी बेऔलाद थे, इसलिए उन्होंने कमल को बजाय होस्टल के अपने पास ही रहने के लिए राजी कर लिया था. दोनों साथसाथ कालेज जाते, साथसाथ ही घर लौटते. उस के पिता और कमल के मामाजी के बीच गहरी आत्मीयता होने के कारण कालेज या घर में उन दोनों के मिलनेजुलने पर कोई रोकटोक नहीं थी.
कल्पना के मन में यह धारण बचपन से ही बैठ गई थी कि कमल पर अन्य लोगों की अपेक्षा उस का कुछ विशेष अधिकार है. उस विशेषाधिकार की भावना से कमल पर वह खूब रोब जमाती थी और उस पर ज्यादती भी करती थी. वह सहनशील बन कर उस की प्रत्येक इच्छा व आज्ञा का पालन करता और जब कभी ऐसा न करता तो कल्पना उसे जो भी सजा देती उसे वह सहर्ष स्वीकार कर लेता था.
प्राय: कल्पना की मां उस के पिता से दबे स्वर में कहती थी, ‘‘देखो, दोनों की जोड़ी कितनी अच्छी लगती है पर…’’
कल्पना तब सम?ादार हो गई थी. मां की इस बात ने उस के मन में कमल के प्रति उस की धारणा को और भी मजबूत कर दिया था. उसे पूरा विश्वास था कि कमल ही उस का जीवनसाथी बनेगा और उसे स्वयं फिर इस संबंध पर कोई आपत्ति नहीं थी. हां वह मां के ‘पर…’ को नहीं सम?ा पाई थी.
बीए की परीक्षा खत्म होते ही कमल अपने मामामामी, उस के मातापिता व उस से विदा लेकर अपने घर चला गया था. चलते वक्त वह उस से यह वादा कर गया था कि शीघ्र ही परिवार सहित लौटेगा. कमल के चले जाने के बाद पहली बार उसे महसूस हुआ था मानो कमल के बिना नैनीलाल की प्रत्येक वस्तु व स्थान का आकर्षण फीका पड़ गया है. अपनेआप को भी वह अस्तित्वहीन सम?ाने लगी थी.
तीसरे दिन उसे कमल का पत्र मिला था. पत्र पढ़तेपढ़ते उस के चेहरे की उदासी बढ़ती चली गई थी. कमल ने लिखा था कि मां की तबीयत खराब होने के कारण उस का परिवार इस साल नैनीताल नहीं जा सकेगा. उस ने वादा पूरा न कर सकने पर खेद प्रकट किया था.
उस के बाद वह रोती हुई घर आ गई. अगले ही दिन उसे पता चला कि कमल और उस के मातापिता कमल की दादी के देहांत के कारण बाजपुर चले गए हैं. कमल फिर नहीं लौटा. उस के मैसेज पहले की तरह आते रहे. कल्पना को मालूम था कि उस का एडवैंचर कमल के मोबाइल में कैद है इसलिए वह भी सामान्य बना रही.
कुछ दिन बाद उस के मांबाप राजीव को ढूंढ़ कर लाए तो उस ने शादी को तुरंत हां कर दी और कमल को आमंत्रण भी भेज दिया. कमल ने मैसेज भी किया कि वह आएगा और तोहफे में एक मोेबाइल दे जाएगा. पर शादी पर वह नहीं आया तो कल्पना को हरदम एक अनजाना भय लगा रहता कहीं कमल उस का भंडाफोड़ न कर दे. आज उस का आना, इस तरह बेतकल्लुफी से मिलना उस पर भारी पड़ रहा था.
मगर कल्पना पर तो मानो कोई भूत सवार ही गया था. कमल की बातों का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा था. उस ने कमल को अनेक उलटीसीधी बातें कह डाली थीं. बेचारा कमल हार कर चुप हो गया था. खून के आंसू रोता उस का मन चाह रहा था कि कहीं एकांत में पहुंच कर मन की भड़ास निकाल ले. मगर पुरुष होने के कारण वह ऐसा नहीं कर सका था. कल्पना ने दृढ़ निश्चय कर लिया था कि वह कमल को दिखा देगी कि नारी का स्वाभिमान कितनी बड़ी चीज होती है.
राजीव ने वकालत पास करने के बाद अपनी प्रैक्टिस शुरू कर दी थी. दोनों ही पक्षों के आधुनिक विचार होने के कारण उन का विवाह बेहद साधारण ढंग से हुआ था. विवाह के दौरान वह खामोशी की प्रस्तर प्रतिमा बनी रही थी. उस ने कोई भी आपत्ति नहीं की थी. उलटा कमल को ईर्ष्या की आग में जलाने के लिए उस ने उसे शादी का कार्ड भी भेजा था पर कमल नहीं आया था. उस का पत्र आया था. उस ने लिखा था:
‘‘कल्पना,
‘‘तुम्हारे विवाह में सम्मिलित होने पर मु?ो बेहद प्रसन्नता होती, पर अकस्मात ही हृदयरोग से ग्रस्त मां का निधन हो जाने के कारण मैं पहुंचने में असमर्थ हूं. आशा है मेरी विवशता सम?ाते हुए मेरे न आने को अन्यथा न ले कर क्षमा करोगी. मेरी शुभकामनाएं हमेशा तुम्हारे साथ रहेंगी.
‘‘-कमल’’
पत्र में पिछली किसी बात का उल्लेख न देख कर सहसा तब उस ने ठंडे दिल से सोचा था, कहीं वास्तव में वह कमल के प्रति गलतफहमी की शिकार तो नहीं है. संभव है, कमल अपनी जगह पर सही हो. उस ने सचमुच में ही कभी उसे मित्र से ज्यादा अहमियत न दी हो. मन में जागे इन विचारों ने उस के दिल से कमल के प्रति समाई पूरी घृणा दूर कर दी थी. इस के बाद तो उसे कमल से कोई शिकवाशिकायत नहीं रह गई थी. तब उस ने औपचारिकता के नाते कमल को शोक भरा पत्र भी लिख दिया था.
राजीव की समीपता में 1 वर्ष कब बीत गया, कल्पना को कभी इस का एहसास तक नहीं हुआ.