करना पड़ता है: धर्म ने किया दानिश और याशिका को दूर- भाग 2

‘‘यशिका, तुम्हारे पापा का औफिस कहां है?’’

‘‘क्यों आंटी? आप उन से मिलना चाहती हैं?’’

‘‘नहीं, ऐसे ही पूछ रही हूं.’’

‘‘एन. मौल के पीछे वाली रोड पर उन का औफिस है, कभी वहां जाते हैं, कभी घर में ही जो औफिस बना रखा है, वहां लोग आतेजाते रहते हैं.’’

अगले दिन नौशीन ने औफिस से छुट्टी ली. यशिका के पिता ललित के औफिस पहुंचीं, बाहर रखी एक चेयर पर बैठ गईं.

वहां काम करने वाले सुनील ने उन के पास जा कर आने का कारण पूछा तो नौशीन ने कहा, ‘‘ललितजी से मिलना है, जरूरी काम है, मु?ो उन की हेल्प चाहिए.’’

शिंदे ने जाकर ललित को बताया तो उन्होंने कहा, ‘‘अरे यार, इसे टरकाओ, अभी मु?ो बहुत लोगों से मिलना है.’’

‘‘बोला साहब. कह रही है आज आप नहीं मिल पाए तो कल फिर आएगी.’’

‘‘हां, ठीक है, बाद में देखेगें.’’

उस दिन नौशीन ललित से नहीं मिल पाईं, फिर वे घर जा कर अपना औफिस का काम करती रहीं. अब वह मन ही मन बहुत कुछ ठान चुकी थीं. अगले दिन वे फिर उन के औफिस पहुंचीं. इस बार ललित ने उन्हें अंदर बुला ही लिया. करीब 50 साल की बेहद स्मार्ट, स्टाइलिश नौशीन जैसे ही उन्हें ‘हैलो सर’ बोलती हुई अंदर आई, वे अचानक पता नहीं क्यों खड़े हो गए, फिर धम्म से अपना सिर हिलाते हुए उन्हें भी बैठने का इशारा किया. नौशीन के पास से आती कीमती परफ्यूम की खुशबू को उन्होंने गहरी सांस ले कर अपने अंदर उतारा.

नौशीन ने बेहद सभ्य तरीके से अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘मैं नीलकंठ वैली में फ्लैट लेना चाहती हूं, पर वहां का बिल्डर मुसलिम्स को कोई भी फ्लैट नहीं बेच रहा है. यह गलत बात है न? क्या हम इंसान नहीं?

‘‘क्या हम यहां के नागरिक नहीं? यह भेदभाव क्या अच्छा लगता है? और कोई भी

उसे इस बात के लिए टोक भी नहीं रहा. आप

की बहुत तारीफ सुनी है, इसीलिए आप के पास चली आई.’’

ललित तो नौशीन के बात करने के ढंग में, उस की पर्सनैलिटी के जादू के असर में बैठे थे, बोले, ‘‘मैं देखता हूं क्या हो सकता है. आप अपना फोन नंबर लिखवा दीजिए. मैं जल्द ही आप से बात करूंगा.’’

नौशीन ललित के औफिस से क्या उठी, ललित का दिल जैसे नौशीन के साथ उड़ चला. वे खुद बहुत गुड लुकिंग, स्मार्ट इंसान थे. नौशीन का परिचय जान कर खुश हुए थे. अकेली अपने बेटे के साथ रहती हैं, जौब करती हैं, वे नौशीन से इस पहली मुलाकात में ही बहुत इंप्रैस्ड हो गए थे. जल्द ही उन्होंने शिंदे को कह कर बिल्डर को फोन लगवाया, उन्हें एक फ्लैट नौशीन की इच्छानुसार बुक करने के लिए कहा, फिर उन्होंने नौशीन को फोन किया, ‘‘बिल्डर से बात हो गई है, अब आप उस एरिया में जो फ्लैट चाहें, बुक कर सकती हैं.’’

 

नौशीन ने शुक्रिया कहते हुए बड़े अपनेपन से कहा, ‘‘आप ने तो कमाल कर

दिया. आप तो बिलकुल वैसे ही अच्छे इंसान निकले जैसा सुना था. अब आप थोड़ा सा भी टाइम निकाल कर मेरे घर चाय पर जरूर आइए. इतना तो आप को करना पड़ेगा.’’

ललित बड़े धर्मसंकट में पड़े. एक मुसलिम के घर चाय पीने जाएंगे? उफ, आज तक तो किसी मुसलिम के घर पैर नहीं रखा, चायपानी पीना तो दूर की बात है.

नौशीन की मीठी सी आवाज फिर सुनाई दी, ‘‘ओह, सम?ा. आप शायद हमारे घर न आना चाहें, कोई बात नहीं.’’

‘‘अरे, नहींनहीं, संडे को आता हूं, आप की भी छुट्टी होगी.’’

नौशीन ने अब दानिश और यशिका को अपने पास बैठा कर ये सब बता दिया तो दोनों हंसते हुए उन से लिपट गए.

दानिश ने कहा, ‘‘मम्मी, आप क्याक्या सोच लेती हैं. यह क्या कर रही हैं?’’

‘‘करना पड़ता है बेटा, अपने बच्चों को खुशियां देने के लिए कुछ कदम उठाने जरूरी होते हैं. वे हमारे घर आएं, तुम से मिलें, यहां थोड़ा टाइम बिताएं, तो उन के पूर्वाग्रह कुछ दूर होंगे. अब यशिका, तुम इस संडे को यहां मत आना. इस संडे तुम्हारे पापा हमारे मेहमान होंगे, मेरे होने वाले समधी पहली बार आ रहे हैं,’’ कहते कहते नौशीन ने प्यार से दोनों को गले लगा लिया.

संडे शाम 5 बजे शोल्डर कट बाल, छोटी सी बिंदी, डार्क ब्लू कलर की प्लेन शिफौन साड़ी, स्टाइलिश ब्लाउज, अपने सदाबहार परफ्यूम की खुशबू बिखेरते नौशीन ने जब डोरबैल बजने पर अपने फ्लैट का दरवाजा खोला तो ब्लैक टीशर्ट और जींस पहने ललित ने उन्हें बुके देते हुए मुसकरा कर कहा, ‘‘यह आप के लिए.’’

नौशीन ने ‘‘अरे, वाह, थैंक यू’’ कहते हुए फूल लिविंगरूम के एक कोने में रखे वास में लगा दिए, फिर दानिश को आवाज दे कर उन से मिलवाने के लिए बुलाया. दानिश ने आ कर उन्हें नमस्ते करते हुए उन के पांव छू कर उन्हें प्रणाम किया. ललित तो जैसे मंत्रमुग्ध से सुंदर से सोफे पर बैठ कर लिविंग रूम का इंटीरियर देखते हुए मन ही मन तारीफ कर रहे थे. नौशीन ने वहीं बैठते हुए कहा, ‘‘आप का आना बहुत अच्छा लगा, मु?ो तो लग ही नहीं रहा था कि आप हमारे घर आएंगे.’’

‘‘अरे, क्यों नहीं लग रहा था?’’

नौशीन ने जरा उदास होते हुए कहा, ‘‘कई कारण हैं. आप तो सब जानते ही हैं कि आजकल क्या माहौल है. क्या ही कहा जाए. वह तो आप जैसे खुली सोच वाले

लोग कभी मिल जाएं तो मिल कर खुशी होती है, बस हमारा देश, समाज आप जैसों की दरियादिली पर ही चल रहा है.’’

ललित जानते थे कि नौशीन जैसा कह रही है, वैसा बिलकुल नहीं है. वे भी वैसे ही हैं, जैसों के कारण नफरतें बढ़ती जा रही हैं पर क्या कहते. सामने बैठी महिला और उस के बेटे की सभ्यता ने मन मोह लिया था.

नौशीन ने कहा, ‘‘दानिश, आप लोग बातें करो, मैं चाय लाती हूं.’’

जब तक नौशीन किचन में रही, दानिश से हुई बातों ने ललित का मन खुश कर दिया. इतना विचारवान लड़का, इतने मैनर्स, इतनी नौलेज. यशिका इकलौती संतान थी, दानिश से बातें करते हुए उन्हें लगा कि जैसे एक जमाना हो गया है उन्हें ऐसे किसी लड़के से बातें किए.

अंतर्द्वंद्व: आखिर क्यूं सीमा एक पिंजरे में कैद थी- भाग 2

‘‘खूबसूरत और प्रतिभाशाली बीवी की प्रशंसा हर शौहर को करनी चाहिए,’’ सतीशजी ने मुसकराते हुए कहा तो किसी पराए मर्द की ऐसी बातें सुन कर सीमा सकुचा गई.

सतीशजी के यह कहने के बाद रमेशजी एक नजर सीमा पर डाली. सतीश सही कह रहे थे. सीमा वास्तव में खूबसूरत थी. उजला रंग, तीखे नैननक्श और सांचे में ढला हुआ बदन, वह ढलती उम्र में भी बहुत खूबसूरत लग रही थी. मगर कुछ सामाजिक दायरों का लिहाज होने के कारण वे उस समय उस की प्रशंसा तो नहीं कर सके पर वे मन ही मन सीमा की खूबसूरती के कायल जरूर हो गए. सतीशजी के बारबार कहने पर सीमा ने अपनी बनाई हुई कुछ पेंटिंग्स रमेशजी को दिखाईं.

‘‘कमाल है. आप के हाथों में तो जादू है. काफी खूबसूरत पेंटिग्स हैं. शायद मेरी वाली से भी अधिक. आप को तो फिर से पेंटिंग्स बनाना शुरू कर देना चाहिए.’’

‘‘यही तो मैं कहता हूं,’’ सतीश ने रमेशजी की बात का समर्थन करते हुए कहा.

 

हालांकि सीमा बहुत शर्मीले स्वभाव

की थी परंतु रमेशजी के खुले

और मिलनसार व्यक्तित्व को देख कर उस की ?ि?ाक थोड़ी कम हो गई थी. इस पर रमेशजी और अपने पति सतीश से मिली प्रशंसा ने उस का मनोबल भी बढ़ा दिया और उस ने मन ही मन सोचा कि मु?ो फिर से अपनी कला को प्रज्ज्वलित करना चाहिए.

वह बोली, ‘‘आप ठीक कहते हैं मु?ो फिर से पेंटिंग्स बनाना शुरू कर देना चाहिए. वैसे भी इन दिनों पारिवारिक जिम्मेदारियां कम होने के कारण अकेलापन भी अधिक महसूस होता है. पेंटिंग्स बनाने से थोड़ा वक्त भी कट जाएगा.’’

और एक दिन सीमा ने फिर से पेंटिंग्स बनाने का मन बना कर ब्रश, रंगों और कैनवस की दुनिया में प्रवेश किया.

जब पेंटिंग्स तैयार हो गईं तो वह स्वयं हैरान थी कि  उस की कला अभी तक मरी नहीं थी क्योंकि पेंटिंग्स बहुत खूबसूरत बनी थीं. सतीश को पेंटिंग्स दिखाती हुई सीमा ने कहा, ‘‘रमेश बाबू की प्रेरणा से ही मैं अपनी इस कला को पुनर्जीवित कर पाई हूं. इसलिए इन पेंटिंग्स की तारीफ पाने के असली हकदार तो वही हैं.’’

सतीशजी भी सीमा की कला की दाद दिए बिना नहीं रह सके और इसी खुशी में उन्होंने तुरंत रमेशजी को फोन मिलाया.

‘‘सर आप के प्रोत्साहन से मेरी पत्नी ने फिर से पेंटिंग्स बनाना शुरू कर दिया है और बहुत ही सुंदर पेंटिंग्स बनाई हैं. आप ही उस की प्रेरणा के स्रोत हैं. यह सब आप के प्रोत्साहन से ही संभव हुआ है. आज सीमा बहुत खुश है. वह आप को धन्यवाद देना चाहती है. लीजिए सीमा आप से बात करेगी,’’ कह कर उन्होंने फोन सीमा को पकड़ा दिया.

चूंकि सीमा संकोची स्वभाव की थी. अत: उस ने इशारे से बात करने के लिए मना किया परंतु सतीश के पुन: आग्रह करने पर उस ने फोन हाथ में लिया और धीरे से कहा, ‘‘आप ने मु?ो फिर से पेंटिंग्स करने के लिए प्रोत्साहित किया उस के लिए मैं आभारी हूं.’’

‘‘इस में आभार कैसा. मैं नहीं कहता तो कोई और कहता क्योंकि आप में योग्यता है और वह एक न एक दिन तो बाहर आनी ही थी.’’

अब तो सीमा की दबी कला ने फिर से जोर मारना शुरू कर दिया और वह तन्मयता से अपनी इस कला को उभारने में जुट गई. शीघ्र ही उस ने 10-12 सुंदर पेंटिंग्स और बना लीं.

 

दोपहर का वक्त था. सीमा खाना खा कर आराम

करने ही जा रही थी कि तभी फोन की घंटी बजी.

‘‘हैलो सीमाजी, मैं रमेश बोल रहा हूं,’’ सीमा के हेलो बोलते ही उधर से आवाज आई.

‘‘नमस्ते सर,’’ इस तरह अचानक रमेशजी का फोन आया देख सीमा हैरान थी. हालांकि रमेशजी जब घर आए थे तो सतीश ने उन्हें सीमा का नंबर दिया था परंतु वे इस तरह उसे फोन करेंगे उस ने नहीं सोचा था.

रमेशजी बोले, ‘‘सीमाजी, हमारे शहर में एक कला प्रदर्शनी लग रही है. मैं चाहता हूं कि आप की पेंटिंग्स भी उस प्रदर्शनी में लगाई जाएं. मेरे खयाल से काफी अच्छा रिस्पौंस आएगा.’’

रमेश बाबू की बात सुन कर सीमा घबरा गई और बोली, ‘‘नहींनहीं मैं अभी उस प्रदर्शनी में पेंटिंग्स नहीं लगा सकती. अभी मेरी कला इतनी उत्कृष्ट नहीं हुई है कि मैं उस की प्रदर्शनी करूं.’’

सीमा की बात सुन कर रमेश बोले, ‘‘हीरे की कदर स्वयं हीरा नहीं जानता. मेरे कहने से तुम उस प्रदर्शनी में हिसा लो. यह प्रदर्शनी तुम्हारी कला के लिए एक नए आयाम खोल देगी. तुम एक अच्छी कलाकार तो हो परंतु तुम्हारे अंदर आत्मविश्वास की कमी है. इस प्रदर्शनी में अपने चित्रों का प्रदर्शन कर के तुम अपना आत्मविश्वास बढ़ा सकती हो. यह तुम्हारे लिए बहुत अच्छा मौका है.’’

‘‘मगर इतनी पेंटिंग्स को प्रदर्शनीस्थल तक पहुंचाना भी बहुत कठिन कार्य है. मेरे पति बहुत व्यस्त रहते हैं. शायद वे इस काम के लिए समय नहीं निकाल पाएं,’’ सीमा ने प्रदर्शनी में न जाने का एक और सटीक बहाना सोचा.

‘‘आप उस बात की चिंता मत करो. मैं अपनी पेंटिंग्स भी उस प्रदर्शनी में लगा रहा हूं. मैं अपनी पेंटिंग्स के साथ आप की पेंटिंग्स भी ले जाऊंगा और यदि आप जाना चाहेंती तो आप को भी अपने साथ ले जाऊंगा. मेरे खयाल से आप को प्रदर्शनी में हिस्सा जरूर लेना चाहिए.’’

अब सीमा के पास कोई बहाना नहीं बचा था. प्रदर्शनी का दिन आ पहुंचा. सीमा और रमेश बाबू अपनीअपनी पेंटिंग्स समेत प्रदर्शनीस्थल पर पहुंच गए और जैसाकि अपेक्षित था सीमा की पेंटिंग्स को बहुत अच्छा रिस्पौंस मिला.

यह देख कर सीमा फूली न समाई और घर आ कर सतीश से बोली, ‘‘यदि रमेशजी आग्रह न करते तो मैं कभी इस प्रदर्शनी में नहीं जाती. उन के कारण ही आज मु?ो इतनी प्रसिद्धि हासिल हुई है.’’

सतीशजी तो पहले ही रमेशजी के कायल थे. इस घटना के बाद और हो गए और इस के बाद रमेशजी, सतीश और सीमा के मिलनेजुलने का सिलसिला चल निकला.

दिल्लगी: क्या था कमल-कल्पना का रिश्ता- भाग 2

खाने के बाद राजीव और कमल बाहर बालकनी में रखी कुरसियों पर आ बैठे. बीना को कमल के रहने का प्रबंध गैस्टरूम कक्ष में करने का आदेश देने के बाद कल्पना भी बाहर आ गई. तीनों ने वहीं कौफी पी. काफी रात तक ड्राइंगरूम में मजलिस जमी रही. राजीव कल्पना को बराबर छेड़ रहा था. मौका मिलने पर कमल भी पीछे नहीं रहा. कल्पना सम?ा नहीं पा रही थी कि क्यों दोनों ही उसे तंग करने पर आमादा हैं.

औपचारिकता व सभ्यता के एहसास ने उसे उन के समीप ही बैठे रहने पर विवश कर दिया. कमल को छोड़ने के बाद राजीव के साथ सीढि़यां उतरते हुए कल्पना ने मन पर छाया बो?ा कुछ समय के लिए हलका महसूस किया. लेकिन थोड़ी देर बाद ही उस के विचार उसे फिर कुरेदने लगे.

 

जिस कमरे में वह लेटी पड़ी है उसी के ऊपर वाले कमरे में एक ऐसा आदमी

मौजूद है, जो कभी भी उस के सुखी, शांत व हंसतेमुसकराते दांपत्य जीवन को तहसनहस कर सकता है. इस एहसास तले दबी कल्पना राजीव के समीप ही डबलबैड पर लेटी सोने की असफल चेष्टा करते हुए कसमसाती रही.

दरअसल, राजीव से शादी से पहले कल्पना कमल के पीछे शादी के लिए सोचने लगी थी. दोनों वैसे तो पड़ोसी होने के नाते बहुत मिलते थे पर कभी प्यार जैसी बात नहीं हुई. कमल ने कभी उस का हाथ तक नहीं पकड़ा. हां जब चाहे वह उसे धौल जमा देता, उस की चोटी पकड़ लेता पर सब में दोस्तानापन होता था, प्यार की भावना नहीं.

व्हाट्सऐप पर उस के ‘आई लव यू’ मैसेज का वह गोलमोज जवाब ‘यू आर ग्रेट,’ ‘यू आर ए ब्यूटी,’ ‘यू आर माई बैस्ट फ्रैंड’ कर के देता था.

कल्पना की सहेलियां अकसर कहतीं कि उसे पटा ले वरना वह उड़ जाएगा या कोई उसे उड़ा ले जाएगा. कल्पना को भी लगता कि उस जैसे हैंडसम लड़के को कौन छोड़ेगा. इसलिए एक दिन उस ने एक एडवैंचरस कार्य करने का प्लान बनाया.

कमल का घर पास था. उस के मातापिता कब घर में रहते हैं कब नहीं, उसे मालूम रहता था. एक दिन जब पेरैंट्स बाहर गए हुए थे और वह अकेला था, दिन में कल्पना ने साइड के एक डोर को खोल दिया. रात को जब सब सो गए तो वह उठी. उस ने बेहद सैक्सी अंडरगारमैंट पहने और ऊपर से शाल ओड़ ली. रात के 12 बजे वह अपने घर से निकल कर चुपके से उस के घर के पिछले दरवाजे से उस के घर में घुस गई.

कमल के बैड पर पहुंच कर उस ने शाल उतार फेंकी. कमल ढीलेढाले पाजामे में बिना बनियान के लेटा हुआ था. उस ने उसे लपक कर बांहों में ले लिया. इस से पहले कि कमल सम?ा पाता कि क्या हो रहा है, उस ने कमल के मोबाइल से 4-5 शौट ले लिए और एक वीडियो भी चालू कर दिया. वह कमल को अपना प्यार जताना चाहती थी, सबकुछ दे देना चाहती थी.

कमल ने संभलने के बाद बैड लाइट लैंप जलाया और कल्पना को इस हालत में देख कर चीखा. ‘‘होश में आओ, कल्पना… यह क्या कर रही हो?’’

‘‘होश में तुम नहीं हो जानू. मैं कब से ऐसे मौके की तलाश में हूं और तुम भाव ही नहीं देते. मेरे पास अब यही रास्ता बचा है कमल,’’ कल्पना ने आधी मदहोशी में कहा.

 

कमल ने उसे एक चांटा मारा और धक्का देता हुआ बोला, ‘‘यह तुम्हारा

पागलपन है, कल्पना. हम अच्छे दोस्त हो सकते हैं पर प्रेमी नहीं. मैं और तुम शादी नहीं कर सकते क्योंकि तुम्हारे मातापिता मु?ा जैसे ओबीसी के साथ कभी शादी नहीं होने देंगे. मै अपनी दोस्ती पर तुम्हारे इस पागलपन की छाया भी नहीं पड़ने दूंगा. तुम मेरी सब से अच्छी दोस्त हो और रहोगी पर अब घर जाओ. मु?ो सम?ाने की कोशिश करो, कल्पना हम बचपन के साथी हैं. जिंदगी भर साथ रहेंगे.’’

इसी तरह राजीव न जाने क्या सोच कर पड़ापड़ा मुसकरा दिया. कल्पना में अचानक आया परिवर्तन उस से छिपा नहीं था. वह अनुभव कर रहा था कि जब से कमल आया है, कल्पना कुछ दबीदबी, उमड़ीउखड़ी और भयभीत सी नजर आ रही है मानो उसे कमल का आना अच्छा न लगा हो या उस की तरफ से उसे किसी विशेष खतरे की संभावना हो.

सहसा उस ने चौंकने का उपक्रम करते हुए कल्पना से पूछा, ‘‘अरे, तुम अभी तक सोई नहीं.’’

‘‘न जाने क्यों नींद नहीं आ रही,’’ कल्पना ने उस की तरफ करवट लेते हुए कहा, ‘‘लाइट बुझा दो.’’

राजीव ने हाथ बढ़ा कर लाइट का स्विच औफ कर दिया और नाइट बल्व जला दिया. कुछ देर चुप रहने के बाद वह फिर बाला, ‘‘कल्पना, मैं देख रहा हूं, जब से  कमल गया है, तुम कुछ उदास, गुमसुम और डरी सी लग रही हो. तुम्हारी चंचलता न जाने कहां गायब हो गई. क्या तुम्हें उस का आना अच्छा नहीं लगा?’’

‘‘नहीं तो, ऐसा आप से किस ने कहा,’’ कल्पना संभलतेसंभलते भी चौक गई.

‘‘कमल को देखते ही तुम्हारे चेहरे की रंगत उड़ जाना, आंखों में विस्मय की परछाइयां ?िलमिलाना और पलकों का स्थिर हो जाना क्या ये सब लक्षण इस बात के संकेत नहीं हैं?’’ राजीव ने उसे कुरेदा.

‘‘यह प्रतिक्रिया तो किसी भी पुराने परिचित था मित्र को सहसा सामने देख कर होनी संभव है.’’

‘‘खैर, छोड़ो, वैसे एक बात कहूं?’’ राजीव ने लापरवाही से कहा. दरअसल, कल्पना को इस प्रकार बात गोल करते देख उस की चंचलता फिर लौट आई थी.

‘‘कहिए.’’ कल्पना ने कहा.

‘‘कमल मु?ा से कहीं अधिक खूबसूरत है और तुम्हारा बचपन और कालेज जीवन भी उस के साथ बीता है.’’

कल्पना उस का आशय नहीं सम?ा पाई. इसलिए चुप ही रही.

‘‘तुम्हारी जोड़ी मेरी अपेक्षा कमल के साथ खूब जमती.’’

कल्पना स्तब्ध रह गई. आश्चर्य और भय के कारण बुरी तरह धड़कते दिल के साथ आंखें फाड़े वह राजीव को देखती रह गई. चूंकि नाइट बल्व राजीव के पीछे था इसलिए अंधेरे में डूबे उस के चेहरे के भाव न पढ़ सकने की स्थिति में कोई सही अनुमान नहीं लगा पाई. उस ने सोचा, वह इसे पति की चंचलता सम?ो या स्पष्टवादिता या अपने और कमल के पिछले जीवन के संबंधों पर व्यंग्य. एक बार फिर वह भय, आशंका और अपराधबोध की विचित्र स्थिति में फंस गई. यदि राजीव उस के और कमल के पूर्व संबंधों को जान गया है तो आगे की मात्र कल्पना से ही वह सिहर उठी, उस का संपूर्ण शरीर सूखे पत्ते की भांति कांप गया.

‘‘नाराज हो गई हो क्या?’’ राजीव ने हंस कर पूछा. फिर कल्पना के चेहरे पर पड़ते नाइट बल्ब के मध्यम उजाले में उस की आंखों में ?ांकने का प्रयत्न करने लगा.

‘‘नहीं तो,’’ कल्पना ने बलपूर्वक हंसते हुए अपनी नजरें चुरा लीं.

‘‘अच्छा, अब सो जाओ. रात काफी बीत गई है,’’ कह कर सचमुच राजीव ने पलकें मूंद लीं.

करना पड़ता है: धर्म ने किया दानिश और याशिका को दूर- भाग 1

‘क्यासोच रही हो मम्मी?’’

नौशीन ने एक ठंडी सांस ले कर कहा, ‘‘सोचने को तो अब बहुत कुछ है, बेटा. तुम ने तो बहुत गलत जगह दिल लगा लिया,’’ कहतेकहते वे अपने बेटे दानिश को देख कर परेशानी में भी मुसकरा दी जो उन का स्वभाव था.

दानिश गंभीर रहा, आजकल परेशान तो मांबेटा दोनों ही थे. दानिश को अपनी सहकर्मी यशिका से मुहब्बत हो गई थी और अब वह उस से शादी करना चाहता था. मुलुंड, मुंबई में नौशीन और दानिश, ये 2 ही थे घर में.

नौशीन के पति अब इस दुनिया में नहीं थे. नौशीन ने अपने बेटे की बहुत अच्छी परवरिश अकेले ही की थी. वे खुद भी एक अच्छी कंपनी में कार्यरत थीं. मांबेटा अब दोस्तों की तरह थे. दानिश ने जब पहली बार यशिका से उन्हें मिलवाया, वे उस से मिल कर खुश ही हुईं थीं. वैसे भी आजकल मांएं बच्चों की पसंद में अपनी सहमति खुशीखुशी दे देती हैं और नौशीन तो महानगर में ही पलीबढ़ी, खुली सोच वाली महिला थीं. उन का मायका, ससुराल सब मुंबई में ही थे पर नौशीन उन सब की पुरातनपंथी सोच से अलग थलग रहने में ही सुकून पातीं.

आज शनिवार था. नौशीन और दानिश की औफिस की छुट्टी थी. शाम के 5 बजे थे. डोरबैल हुई तो नौशीन ने दानिश से कहा, ‘‘जाओ, दरवाजा तुम ही खोलो. तुम्हारे लिए ही कोई आया होगा.’’

यह मांबेटे का खेल था कि दोनों कोशिश करते कि दरवाजा उसे न खोलना पड़े. सब्जी, दूध वाला आता तो दानिश हंसता, ‘‘जाओ, आप के लिए ही कोई आया है.’’

 

यह यशिका के आने का ही टाइम था. दोनों जानते थे. वह अकसर शनिवार की शाम

आती. कभी तीनों डिनर पर निकल जाते, कभी मूवी देखने चले जाते, कभी घर पर ही तीनों अच्छा हंसीमजाक कर टाइम पास करते. देखने में एकदम परफैक्ट फैमिली पिक्चर लगती पर अभी कहां. अभी तो इस मुहब्बत के सामने जाति की दीवार ऐसे खड़ी थी जिसे हटाने के लिए रोज नए मंसूबे बनते, धराशायी होते.

यशिका ही थी. आते ही उस ने हाथ सैनिटाइज किए, अपना बैग एक तरफ पटका, नौशीन के गले मिली और दानिश को ‘हाय’ कहते हुए नौशीन के पास बैठ गई. पहले आम हालचाल हुए फिर यशिका ने जोश से पूछा, ‘‘आंटी, आज तो बड़ी मुश्किल से घर से निकली. पापा पता नहीं क्यों आज फ्री थे. आज उन की कोई राजनीति वाली बैठक नहीं थी. घर में ही मु?ो पकड़ कर पूछने लगे कि शादी के बारे में क्या सोचा है. मैं ने कहा कि जब सोचूंगी, आप को ही बताउंगी तो बोले कि मु?ो बस इतना ही कहना है कि लड़का अपनी जाति का हो, बस यह ध्यान रखना. मैं ने सोचा, आज मौका मिला है तो मैं भी उन्हें कुछ हिंट दे देती हूं, मैं ने कहा कि पापा, किसी को पसंद करना अपने हाथ में थोड़े ही होता है. देखो, कौन पसंद आता है. कास्ट का क्या है, इंसान अच्छा होना चाहिए, बस, आंटी, पापा को जैसे करंट लगा. बोले कि ये सब फिल्मी बातें मत करो मु?ा से. जातबिरादरी से बाहर किसी को पसंद करने की सोचना भी मत.

‘‘तुम्हारा भी नुकसान होगा, उस लड़के का भी. इस धमकी पर मु?ो गुस्सा तो बहुत आया, पर चुप रह गई और मेरी मम्मी. क्या कहूं उन्हें. पापा की हर गलत बात को चुपचाप सहती हैं, कभी उन्हें किसी भी गलत बात का विरोध करते नहीं देखा और घरों में मांएं कम से कम अपने बच्चों के लिए तो खड़ी हो जाती हैं और मेरे घर में तो मेरी मम्मी ने मु?ो ही इस बात पर आंख दिखाई. आंटी, आप ही कुछ करो.’’

नौशीन हंस पड़ीं, ‘‘वाह, इश्क तुम लोग फरमाओ, समाधान मैं ढूंढूं. तुम्हारे नेता कट्टर पापा से मैं निबटूं?’’

दानिश ने कहा, ‘‘मां हो मेरी. कुछ तो आप को करना ही पड़ेगा. हमें नहीं पता, पर आप ही देखो, मम्मी, कैसे क्या करना है.’’

दोनों बच्चों को स्पेस देते हुए नौशीन ‘अभी आती हूं’ कह कर अपने रूम में चली गईं. दानिश की पसंद यशिका उन्हें भी पसंद थी. वे चाहती थीं कि जल्दी से उन की शादी हो जाए. पर यशिका के पापा कट्टर हिंदू थे, जो किसी भी तरह एक मुसलिम लड़के से अपनी बेटी का विवाह हरगिज न होने देते. लोकल न्यूजपेपर में उन की गतिविधियां नौशीन अच्छी तरह पढ़ चुकी थीं पर कुछ तो करना पड़ेगा. उन्होंने बैठेबैठे बहुत सोचा कि वे कैसे उन्हें इस विवाह के लिए मना सकती हैं, वे बहुत सुंदर, स्मार्ट और होशियार थीं. इस समस्या को सुल?ाने का समाधान उन्हें जब सू?ा तो मन ही मन खुद को शाबाशी दे बैठीं. खयाल ही ऐसा आया था कि उन्हें अपने आइडिया पर रोमांच भी हुआ और हंसी भी आई.

नौशीन लिविंग रूम में आईं, बच्चों को अपने आइडिया के बारे में अभी नहीं बताना चाहती थीं. धीरेधीरे आराम से हर कदम सोच कर आगे बढ़ाना चाहती थीं. दोनों टीवी पर कोई शो देख रहे थे, नौशीन ने पूछा,

दिल्लगी: क्या था कमल-कल्पना का रिश्ता- भाग 1

हाथमुंहधो कर राजीव कल्पना के साथ खाना खाने बैठा ही था कि मेड बीना ने भीतर आ कर कहा, ‘‘साहब, बाहर एक साहब खड़े हैं, वे अपनेआप को मेमसाहब का परिचित बताते हैं.’’

‘‘अरे, तो उन्हें सम्मानपूर्वक अपने साथ क्यों नहीं ले आई? भला यह भी कोई पूछने की बात थी?’’ राजीव ने प्लेट में सब्जी डालते हुए हाथ रोक कर कहा. इस के साथ ही उस ने कल्पना की ओर देखा.

कल्पना चौंक उठी. अचानक उस के शरीर में कंपकपाहट सी दौड़ गई. उस ने कल्पना की ओर देखा.

कल्पना चौंक उठी. अचानक उस के शरीर में कंपकंपाहट सी दौड़ गई. उस ने सोचा, बिना सूचित किए एकाएक यह कौन आ टपका.

‘‘हैलो,’’ आगंतुक को यह कहते ही कल्पना हैरान रह गई. सामने खड़े जने के आने की तो उसे स्वप्न में भी आशा नहीं थी. उसे आगंतुक के ‘हैलो’ का जवाब देने का भी खयाल नहीं रहा.

मंदमंद मुसकराता राजीव कल्पना के चेहरे पर आतेजाते भावों को ध्यान से देख रहा था. उस के लिए आगंतुक का सिर्फ इतना ही परिचय काफी था कि वह कल्पना का परिचित है. उस ने सोफे से उठ कर उत्साहपूर्वक आगे बढ़ कर आगंतुक से हाथ मिलाया और उसे अपने निकट ही सोफे पर स्थान देते हुए आत्मीयता से बोला, ‘‘आइए, वैलकम.’’

‘‘थैंक्यू,’’ आगंतुक ने बे?ि?ाक बैठते हुए कहा.

कल्पना अब भी उसे विस्फारित नेत्रों से देखे जा रही थी.

वह उत्साह भरे स्वर में बोला, ‘‘कल्पना, यह क्या बजाय हमारा इंट्रोडक्शन कराने के तुम मु?ो इस तरह देख रही हो जैसे मैं  कोई भूत हूं.’’

कल्पना ने तुरंत संभल कर मुसकराने की कोशिश करते हुए राजीव से कहा, ‘‘राजीव, इन से मिलो, ये हैं मेरे बचपन के साथी व कालेज के क्लीग कमल.’’

‘‘बहुत खुशी हुई आप से मिल कर,’’ राजीव ने हंस कर कमल से कहा.

‘‘और ये हैं मेरे हसबैंड एडवोकेट राजीव,’’ कल्पना ने कमल से कहा.

‘‘जानता हूं,’’ कमल ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘आप इन्हें जानते हैं, लेकिन वे कैसे?’’ कल्पना का दिल तेजी से धड़क उठा और चेहरा पीला पड़ गया.

‘‘वाह, यह भी खूब रही,’’ कमल ने हंस कर कहा, ‘‘भूल गईं. तुम ने अपनी शादी का जो इनवाइट मु?ो भेजा था उस पर इन का नाम भी छपा था.’’

‘‘ओह, यह तो मैं भूल ही गई,’’ कल्पना ने चैन की सांस ली.

‘‘मैं यह भी बखूबी जानता हूं कि भूल जाना तुम्हारी पुरानी आदत है,’’ कमल ने कहा तो कल्पना ने चौंक कर उन की तरफ देखा. लेकिन वह मुसकराते हुए आगे बोला, ‘‘चाय में चीनी या सब्जी में नमकमिर्च डालना भूल जाने पर तुम आंटी से डांट खायाकरती थी. क्लास में जो पढ़ाया जाता था वह तुम सहेलियों के साथ गपशप में भूल जाती थी और फिर बाद में घर आ कर मेरा भेजा चाट जाया करती थी.’’

 

कल्पना को कमल का हासपरिहास बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा

था. उस का कहा प्रत्येक शब्द उसे भीतर तक बींधता चला जा रहा था. पर प्रत्यक्ष में वह राजीव के सामने अपने चेहरे के भावों पर नियंत्रण पाने की असफल चेष्टा कर रही थी. उस के जीवन में परीक्षा की यह घड़ी भी आएगी, ऐसा तो उस ने कभी सोचा भी नहीं था.

‘‘कल्पना, लगता है कमल तुम्हारी आदतों से भलीभांति परिचित हैं, क्या इसीलिए तुम इन्हें लंच का न्योता देना भी भूल गई हो,’’ राजीव ने हंस कर कहा, ‘‘अब तुम बचपन के दोस्त हो तो यहीं रहोगे. तुम्हारा बैग कहा है?’’

कमल ने कहा, ‘‘वह अभी बाहर कार में है. मैं भुगतान कर के ले कर आता हूं.’’

दोनों न जाने क्यों कमल को छेड़ने पर तुल गए थे.

कल्पना अपनी भूल पर अत्यधिक लज्जित हो उठी. इस के साथ ही वह मन ही मन राजीव पर भी ?ां?ाला उठी कि मेरी जान पर बनी है और ये इसे घर में ठहरा रहे हैं. इन्हें छेड़छाड़ की सू?ा रही है. अपनी ?ां?ालाहट, भय और ?ोंप का मिलाजुला एहसास मिटाने की गरज से ही वह उन के पास से चुपचाप उठ कर कमल के लिए प्लेट आदि लेने रसोई में चली गई.

‘‘कंपनी के एक काम से दिल्ली आया था. अचानक याद आया कि कल्पना भी तो दिल्ली में ही रहती है. यह याद आते ही यहां चला आया.’’ कमल कुछ जोर से बोला और फिर वह टैक्सी का भुगतान करने चला गया.

टेबल पर प्लेट रखते हुए राजीव से कहे कमल के ये शब्द सुने तो कल्पना सहसा ठिठक कर रुक गई. उस का भयभीत दिल और भी तेजी से धड़कने लगा. वह बुरी तरह विचलित हो उठी, कमल को यहां आने की क्या जरूरत थी. उसे दिल्ली में ठहरने के लिए एक से बढ़ कर एक सुंदर स्थान मिल जाता. क्या बिगाड़ा है मैं ने कमल का, जो वह मेरे शांत जीवन में तूफान लाने आ पहुंचा है.

कितनी कोशिशों के बाद मैं इसे भुलाने में सफल हो सकी थी. अब फिर उसी पीड़ा भरी स्थिति से दोबारा गुजरना पड़ेगा. कमल के सामने राजीव को कभी भी मेरे पूर्व संबंधों का आभास हो सकता है. तब क्या राजीव के दिल में मेरा वही स्थान रह सकेगा, जो आज है? मेरा सुखमय दांपत्य जीवन क्या अब विषैले अतीत से सुरक्षित रह सकेगा?

तभी कल्पना ने राजीव का स्वर सुना. कमल आ चुका था. वह कह रहा था, ‘‘बहुत अच्छा किया आप ने. चलिए, इसी बहाने आप से मिलने का मौका प्राप्त हो गया वरना क्या पता हमारी मुलाकात कभी होती भी या नहीं. लेकिन आप मैरिज के समय कल्पना के यहां दिखाई क्यों नहीं दिए?’’

‘‘जी हां, आप लोगों का विवाह जून में हुआ था और मैं उन दिनों कालेज बंद होने के कारण अपने घर बाजपुर गया हुआ था. कल्पना ने मु?ो शदी का इनवाइट भी भेजा था, लेकिन अकस्मात दिल का दौरा पड़ने से मां का निधन हो जाने के कारण मैं विवाह में शरीक नहीं हो सका,’’ कमल ने जवाब में कहा.

‘‘क्षमा कीजिए, यह जिक्र छेड़ कर मैं ने बेकार आप का दिल दुखाया,’’ राजीव ने खेद भरे स्वर में कहा.

‘‘कोई बात नहीं, मेरे विचार में तो मर जाने वालों की याद में आंसू बहाना भावुकता के सिवा और कुछ नहीं,’’ कमल ने पहले की सहजता से कहा.

‘‘डाइनिंगटेबल पर चलिए. खाना ठंडा हो रहा है,’’ कल्पना ने आ कर उन की बातों का सिलसिला तोड़ दिया.

कल्पना देखते ही राजीव के होंठों पर फिर शरारत भरी मुसकराहट उभर आई.

‘‘भई वाह, खाना बनाने के मामले में तो अब तुम बहुत होशियार हो गई हो. लगता है, यह सब राजीव की ही करामात है,’’ मटर पुलाव का पहला कौर खाते ही कमल ने कहा.

‘‘नहीं भाई, मैं वकील हूं. कोई खानसामा नहीं,’’ राजीव ने हंस कर कहा.

सुन कर कमल तो हंसा ही, भयभीत और अपराधबोध से घिरी कल्पना भी एक पल के लिए सबकुछ भूल कर हंस पड़ी पर दूसरे ही क्षण वह फिर गंभीर हो गई मानो उस ने हंस करकोई अपराध कर दिया हो.

पहला कौर खाते ही कमल किसी भी चीज की तारीफ करना नहीं भूला था. कल्पना को आज भी याद है अच्छा खाना मिलने पर तारीफ के पुल बांध देना उस की पुरानी आदत है. विचारों में खोई कल्पना से थैंक्स कहते भी नहीं बन पड़ा.

अंतर्द्वंद्व: आखिर क्यूं सीमा एक पिंजरे में कैद थी- भाग 1

सीमाऔर सतीश ने ज्यों ही औफिस में प्रवेश किया, वे उस की साजसज्जा देख कर हैरान रह गए. एक वकील का औफिस और इतना खूबसूरत. इस की तो उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी. सारे दिन अपराधियों की संगति और ?ाठफरेबों का सहारा ले कर रोजीरोटी कमाने वाले एक वकील का औफिस इतना कलात्मक भी हो सकता है, सचमुच हतप्रभ कर देने वाली बात थी.

औफिस में सभी दीवारों पर सुंदर कलात्मक कलाकृतियां सुसज्जित थीं. सामने वाली दीवार पर एक बड़े शीशे के पीछे बहुत ही सुंदर मौडर्न आर्ट टगी थी. औफिस कंप्यूटर, एअरकंडीशनर आदि आधुनिक उपकरणों से भी परिपूर्र्ण था. कुल मिला कर औफिस का वातावरण बहुत ही खुशनुमा और जिंदादिल था.

सीमा और सतीश औफिस की खूबसूरती में ही डूबे हुए थे कि तभी रमेशजी ने प्रवेश किया. उन की उम्र लगभग 60-65 वर्ष की रही होगी परंतु चेहरे और कपड़ों से वे 50-55 के ही नजर आ रहे थे. काली पैंट और सफेद शर्ट में बहुत ही सभ्य, आकर्षक और खूबसूरत लग रहे थे. उन के आकर्षक व्यक्तित्व को देख कर सीमा और सतीश पहली नजर में ही उन से प्रभावित हुए बिना न रह सके.

‘‘कमाल है आप ने अपने औफिस की सजावट बहुत खूबसूरती से कर रखी है. एक वकील से हमें ऐसी उम्मीद नहीं थी,’’ सतीश ने हंसते हुए कहा. हालांकि उस का यह रमेशजी से पहला ही परिचय था फिर भी अपने बातूनी स्वभाव और रमेशजी के हमउम्र होने का उस ने यहां पूरापूरा फायदा उठाया और अपने मन की बात उन से प्रथम मुलाकात और प्रथम वार्त्तालाप में ही कह दी.

सतीश की बात सुन कर सीमा भी मुसकराई और बोली, ‘‘हांहां बहुत ही सुंदर पेंटिंग्स हैं. काफी कीमती भी होंगी. आप ये कहां से लाए?’’

सीमा की बात सुन कर रमेशजी मुसकराने लगे और बोले, ‘‘अरे पेंटिंग्स तो मुफ्त की ही हैं क्योंकि इन्हें बनाने वाला कलाकार अपना ही है.’’

‘‘अरे वाह इतनी सुंदर पेंटिंग्स और वे भी मुफ्त में. माना कि कलाकार अपना ही है फिर भी उस की कला की तो दाद देनी ही पड़ेगी. जब कभी उन से मिलेंगे तो उन की प्रशंसा अवश्य करेंगे,’’ सतीश ने कहा.

 

सतीश की बात सुन कर रमेशजी फिर मुसकराए और बोले, ‘‘फिर देरी

किस बात की. कीजिए प्रशंसा क्योंकि वह अदना सा कलाकार आप के सामने ही है.

सतीश और सीमा के आश्चर्य का ठिकाना न रहा यानी ये सब पेंटिंग्स वकील बाबू ने बनाई हैं.

‘‘अचंभे की बात है साहब. फिर तो आप को वकालत छोड़ कर यही काम करना चाहिए था. कहां यह ?ाठफरेब का धंधा और कहां एक कलाकार का जीवन. दोनों का कोई मेल ही नहीं है.’’

रमेशजी को भी सतीश की बातें भा रही थीं शायद. कोई बहुत दिनों बाद उन से इतनी आत्मीयता से बात कर रहा था वरना लोग तो बहुत आते थे परंतु अपने मतलब की बात कर चले जाते थे. उन के निजी जीवन और उन की पसंदनापसंद का खयाल किसी को भी नहीं था.

वे बोले, ‘‘सतीशजी यह पेट बड़ा पापी होता है और कभीकभी पेट भरने के लिए अपनी इच्छाओं और आकांक्षाओं का गला घोंटना पड़ता है. आप तो जानते ही हैं कि कलाकारों को अकसर अपना पेट काटना पड़ता है. अत: अपनी तथा अपने परिवार की गुजरबसर करने के लिए मु?ो पेंटिंग्स बनाना छोड़ कर वकालत का काम शुरू करना पड़ा. फिर भी मैं समय मिलने पर अपना यह शौक पूरा करता हूं.’’

‘‘मेरी पत्नी सीमा भी बहुत सुंदर पेंटिंग्स बनाती है,’’ सतीश ने कहा.

‘‘अब कहां बनाती हूं. मैं ने तो पेंटिंग्स बनाना कब का छोड़ दिया है,’’ सीमा ने सतीश की बात को काटते हुए कहा. उसे सतीश का इस तरह किसी गैर के सामने अपनी पत्नी की प्रशंसा करना कुछ सुखद पर अजीब सा लग रहा था. सतीश सीमा के मामले में ज्यादा पजैसिव हैं.

‘‘क्यों छोड़ दिया. यह तो अच्छा शौक है. आप को पेंटिंग्स बनाना जारी रखना चाहिए था,’’ रमेशजी ने सीमा की ओर मुंह कर के कहा.

सीमा को उन के पूछने का ढंग बड़ा ही अच्छा लगा. फिर उस ने उत्तर दिया, ‘‘गृहस्थी की जिम्मेदारियां निभातेनिभाते स्त्रियों को अपनी शौक ताक पर रखने ही पड़ते हैं. यही मेरे साथ हुआ. बच्चों का पालनपोषण करने में इतनी मशगूल हो गई कि मु?ो स्वयं की कोई खबर ही नहीं रही.’’

‘‘अब तो आप के बच्चे बड़े हो गए होंगे,’’ रमेशजी ने एक नजर सीमा पर डालते हुए कहा.

हालांकि सीमा उम्र में अधिक बड़ी नजर नहीं आ रही थी फिर भी सतीशजी की उम्र को देख कर उस की उम्र का अंदाजा लगाया जा सकता था कि वह भी लगभग 50 के आसपास तो अवश्य होगी.

‘‘हां बच्चे तो काफी बड़े हो गए हैं और दोनों ही होस्टल में रहते हैं. इंजीनियरिंग कर रहे हैं. कभीकभार ही घर आते हैं. मगर अब पेंटिंग्स बनाने की इच्छा नहीं होती. मु?ो यह भी लगता है अब मैं कभी पेंटिंग्स नहीं बना पाऊंगी. वैसे भी मैं कोई महान कलाकार तो हूं नहीं. यों ही बस थोड़ेबहुत रंग भर लेती थी कैनवास पर,’’ सीमा ने रमेश बाबू से कहा जैसे चाहती हो कि वे उसे फिर से पेंटिंग्स बनाने का आग्रह न करें.

‘‘अजी साहब बहुत सुंदर पेंटिग्स बनाती है. मैं तो इसे कहकह कर थक गया. शायद आप के कहने से ही यह मान जाए. आप एक दिन हमारे घर आइए और देखिए कि इस का हाथ कितना सधा हुआ है,’’ सतीश का यह बदला सा व्यवहार सीमा को नया लग रहा था. क्या कोविड-19 के बाद अपनों की फिक्र अब ज्यादा होने लगी है?

‘‘अवश्य आऊंगा,’’ रमेशजी ने मुसकराते हुए कहा और फिर वे सतीशजी की फाइल देखने में व्यस्त हो गए.

घर पहुंच कर सतीश और सीमा अपनीअपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गए और भूल ही गए कि वे रमेशजी को घर आने का न्योता दे आए हैं.

संयोग की बात थी कि एक दिन बाद ही रमेशजी को उन्हीं के घर की तरफ एक और क्लाइंट से मिलने आना था सो आतेआते उन्होंने सोचा क्यों न फिर ना एक मुलाकात सतीश और सीमाजी से भी कर ली जाए. वे दोनों ही उन के मन को भा गए थे. अत: उन्होंने सतीशजी को फोन मिलाया.

संयोग से सतीशजी घर पर ही थे और उन्होंने रमेशजी के घर आने का स्वागत किया.

‘‘आप ने क्याक्या पेंटिंग्स बनाई हैं क्या मु?ो दिखाएंगे?’’ रमेशजी ने सीमा से कहा.

‘‘कुछ खास नहीं. इन की तो आदत मेरी प्रशंसा नहीं करने की है पर आप की पेंटिंग्स देख कर कुछ बदल से गए हैं,’’ सीमा ने सकुचाते हुए कहा.

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