बहुत जरूरी है प्रोफैशनल होना

सफल प्रोफैशनल वह है जो अपनी जौब के प्रति वफादार हो और अपने सहयोगियों की टीम को साथ ले कर चले. जौब हासिल करने व कैरियर में कामयाब होने के लिए सिर्फ अच्छी एजुकेशन ही काफी नहीं है, बल्कि इस के लिए आप का प्रोफैशनल होना भी बहुत जरूरी है, ताकि आप खुद को अपनी जौब के लिए योग्य साबित कर सकें.

महेश और सुरेश दोनों एक ही कंपनी में, एक ही पद पर कार्यरत थे. महेश जहां प्रगति की सीढि़यां चढ़ता गया वहीं सुरेश की पदोन्नति नहीं हुई. उसे अपने पुराने पद पर ही बना रहना पड़ा. महेश की कामयाबी के पीछे उस का बेहतर प्रोफैशनल होना था. किसे कहते हैं बेहतर प्रोफैशनल? आइए जानते हैं.

– बेहतर प्रोफैशनल वही हो सकता है जिस में सभी क्लालिटीज हों. समय पर औफिस आना और समय पर काम पूरा करना एक अच्छे प्रोफैशनल की निशानी है.

– जो विषम परिस्थितियों में भी घबराता न हो. अपना काम सही ढंग से करता हो. हर परिस्थिति में दूसरों की बातें सुनता हो और किसी को नीचा दिखाए बिना अपनी बात सामने रखता हो.

– प्रोफैशनल वह है जो भारत में फैल रही धर्म और जाति के चक्कर में हेट कौंसपिरैंसी का हिस्सा न बने और हरेक को बराबर की जगह दे, बराबर का मौका दे.

– अच्छा प्रोफैशनल वह है जो चुनावों में तो भाग ले पर न अंधपूजन में लगे और न पूजा पर्यटन का शिकार बने.

– जो अपने कार्यों को सूचीबद्ध तरीके से करता हो. औफिस में अपना समय ठीक तरह से मैनेज करता हो और दूसरों को भी इस ओर प्रेरित करता हो.

– जो दबाव में भी अपना मानसिक संतुलन न खोता हो. साथ ही, अपने काम की समयसीमा का भी ध्यान रखता हो तथा टालमटोल की आदत से बचता हो.

– जो अपनी जिम्मेदारियां और कंपनी के नियमकायदे की जानकारी रखता हो. अनुशासन में रह कर खुद भी व अपने सहयोगियों को भी अनुशासन की सीख देता हो. कंपनी व अपनी प्रगति के लिए प्रयत्नशील हो.

– जो अच्छे या बुरे दोनों हालात में काम करना जानता हो. अपनी जिम्मेदारियां सम?ाता हो.

– जो अच्छेबुरे सभी को साथ ले कर चलता हो. सभी के हितों की बात करते हुए आगे बढ़ता हो. अपना गुस्सा दूसरों पर न निकालता हो और सभी के कामों में सा?ोदारी करता हो.

– जो दूसरों की समस्याएं सुनता हो और उन्हें निबटाने में विशेष रुचि लेता हो. सभी की बातों को तवज्जुह देता हो. एक प्रोफैशनल द्वारा दूसरे सहयोगियों की बात सुनने का मतलब है कि अगर दूसरों से अच्छा आइडिया मिलता है, तो वह उसे स्वीकार करते हुए अमल में लाए.

– प्रोफैशनल के लिए प्रगति का मार्ग सदैव खुला रहता है. वह अपने मकसद में कामयाब होता है. कभी भी काम की कठिनाइयों से घबराता नहीं. वह काम को सरल करने की कोशिश में रहता है.

– जो अपनी कार्यकुशलता व व्यवहार से दूसरों को भी आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करता हो. नएनए विचार सब को देता हो और उन्हें काम करने के लिए प्रेरित करता हो.

आप भी यदि अपनी जौब में कामयाब होना चाहते हैं तो एक अच्छे प्रोफैशनल की तरह काम करने की आदत डालें क्योंकि बिना इस के प्रगति संभव नहीं है.    –

टैलेंट निखार करें कमाई

राधिका को कुकिंग का शौक था पर विवाह के बाद घर के कामकाज में ऐसी उलझी कि उस का शौक पीछे छूट गया. वह अकसर कहती रहती थी कि उस की इच्छा तरहतरह के फ्यूजन, थाई कौंटीनेंटल व्यंजन बनाने की होती है, पर क्या करे फुरसत ही नहीं मिलती है. घर का वही रोजमर्रा का खाना बनातेबनाते समय बीत जाता है.

रोहिनी शर्मा का भी कुछ ऐसा ही हाल है. शादी के पहले उस ने एमसीए का कोर्स किया था और अच्छी कंपनी में नौकरी भी लग गई थी. शादी के बाद वह अपने पति के साथ लखनऊ से रांची आ गई. उस ने सोचा कि कुछ महीने बाद कोई नौकरी ढूंढ़ लेगी. मगर समय बीतता गया और उस ने जौब के लिए ट्राई ही नहीं किया. उस के पति ने कई दफा कहा कि जौब ढूंढ़ने की कोशिश करे, पर वह हर बार काम का बहाना बना कर टालती रही.

इस बीच उसे 2 बच्चे भी हो गए. उस की सहेली ने कहा कि वह घर के बाहरी हिस्से में कंप्यूटर ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट खोल ले. इस से वह घर और इंस्टिट्यूट दोनों को आसानी से मैनेज कर सकेगी. मगर रोहिनी हर बार घर के काम और बच्चों की देखभाल का रोना रोती रही.

ज्यादातर घरेलू महिलाएं यही सोच कर अपनी उम्र और समय बरबाद करती रहती हैं कि वे बहुत कुछ करना चाहती हैं पर कैसे करें? घर और परिवार के काम से ही कहां फुरसत मिलती है? अगर वे नौकरी या अपना बिजनैस करने लगीं तो उन के पति और बच्चों को कौन देखेगा? वे टीवी सीरियल देख कर और इधरउधर की गप्पें लड़ा कर अपना समय बेकार कर देती हैं और चाह कर भी अपने पैरों पर खड़े होने और अपनी मेहनत से घर के खर्च में हाथ बंटाने का मौका गंवा देती हैं.

स्कूल की प्रिंसिपल डाक्टर नीना कुमार कहती हैं कि औरतों को काम करने के मौके हमेशा रहे हैं, पर घरपरिवार की वजह से वे खुद की प्रतिभा को खुद ही दबा कर बैठ जाती हैं, जबकि ज्यादातर हाउसवाइफ खाली समय में अपने शौक को निखार कर खासी कमाई कर सकती हैं.

समय का सदुपयोग

पति के दफ्तर और बच्चों के स्कूल जाने के बाद खाली समय का बढि़या इस्तेमाल किया जा सकता है. घर का कामकाज निबटाने के बाद औरतें अपनी हौबी को डैवलप कर सकती हैं. रश्मि जैसी कई औरतें इस की मिसाल हैं. रश्मि के पति पुलिस में नौकरी करते हैं. वे अकसर घर से बाहर ही रहते हैं. बच्चों के स्कूल चले जाने के बाद खाली बचे समय में उस ने कपड़े की सजावटी डौल मेकिंग का काम शुरू कर दिया. अपने उत्पाद को वह आसपास की दुकानों में देने लगी. 3 साल में उस के वर्क की डिमांड इतनी बढ़ गई कि सारे और्डर को अकेले पूरा कर पाना मुमकिन नहीं रहा. शुरू में उस ने अपनी 2 सहेलियों को काम में शामिल किया. आज उस के साथ 12 औरतें जुड़ी हुई हैं.

सामाजिक कार्यकर्ता अनिता सिन्हा कहती हैं कि घरेलू महिलाएं टाइम मैनेजमैंट सीख कर अपने खाली समय का बेहतर उपयोग कर अपने शौक को डैवलप ही नहीं कर सकती हैं, बल्कि अच्छी कमाई भी कर सकती हैं. पति और बच्चों के घर से जाने के पहले वे खाना वगैरह तो बना ही लेती हैं. उन के जाने के बाद घर के छोटेमोटे काम निबटा कर नहाधो लें. उस के बाद उन के पास समय ही समय है. 12 बजे से शाम के 5 बजे तक वे घर में रह कर ही कोई काम कर सकती हैं.

पेंटिंग, ऐप्लिक, डौल मेकिंग, कंप्यूटर जौब वर्क, जैम, जैली, अचार आदि बनाने का काम कर के अपने समय का बेहतर इस्तेमाल कर सकती हैं. घर के काम का बहाना बनाने वाली महिलाओं को यह समझना चाहिए कि वे अपने खाली समय का उपयोग कर के अपने घर की माली हालत को बेहतर बनाने में बहुत बड़ी मददगार साबित हो सकती हैं.

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20 Tips: बच्चों को खेल-खेल में सिखाएं काम की बातें

तेजी से बदलती जीवनशैली का प्रभाव क्या केवल आप के जीवन पर ही पड़ रहा है? क्या समय की कमी सिर्फ आप को ही परेशान करती है? औफिस की व्यस्तता और मल्टीटास्किंग से क्या आप ही परेशान हैं? नहीं, ये तमाम बातें आप के अलावा आप के बच्चों को भी परेशान करती हैं. जिन की वजह से अकसर वे चिड़चिड़े और आलसी दिखते हैं और आप की बात नहीं मानते हैं. उन्हें छोटीछोटी बातें समझाने में भी दिक्कत आती है.

पेरैंट्स होने के नाते आप परेशान हो जाते हैं. 6 से 12 साल की उम्र बहुत से बदलावों की होती है. इस दौरान शारीरिक बदलावों के साथसाथ बच्चों में स्वभाव को ले कर भी कई तरह के बदलाव देखे जाते हैं. लेकिन वह उम्र होती है जब बच्चों को कई अहम बातों के बारे में बताना जरूरी होता है. ऐसे में विशेषज्ञों की राय काफी महत्त्वपूर्ण हो जाती है. खासतौर से कामकाजी पेरैंट्स के लिए यह किसी चुनौती से कम नहीं कि वे अपने छोटे या बढ़ते बच्चों को कैसे समझाएं या उन के साथ कैसे डील करें.

  1. पढ़ाई में लगाएं फन का तड़का
  2. बच्चों के साथ उन की फन ऐक्टिविटीज में भाग लें.
  3. बच्चों को पेंटिंग का बहुत शौक होता है. इस कार्य में उन का अच्छा दोस्त बना जा सकता है.
  4. उन्हें बताएं कि कौन से 2 रंग मिलाने पर कौन सा नया रंग बनता है.
  5. उन से अपने बचपन की बातें शेयर करें. उन्हें यह न बताएं कि आप बचपन में हर काम में बहुत निपुण थे, बल्कि बताएं कि फलां कार्य करने में आप को भी बहुत परेशानी होती थी.
  6. बच्चों के संग समय बिताएं. उन के साथ टीवी देखें. उन की पसंदनापसंद के बारे में पूछें.
  7. अपना टेस्ट उन के साथ शेयर करें. मसलन, अगर आप उन्हें बताना चाहते हैं कि बाहर गरमी से आने पर तुरंत फ्रिज का ठंडा पानी पीने से गला खराब हो सकता है, तो इस बात पर अमल भी कर के दिखाएं.
  8. अगर आप पिता हैं तो छुट्टी वाले दिन उन के साथ उन के स्कूल बैग का हालचाल जानें. उन के दोस्त बनें, डांटफटकार करने वाले पिता नहीं.
  9. अपनी रुचियां उन पर न थोपें, बल्कि उन की पसंदीदा चीजों संग अपनी रुचि भी जाहिर करें.
  10. उन्हें मजेमजे में बताएं कि शैतानियों में क्या अच्छाबुरा होता है. जैसेकि हर इनसान को पेड़ पर चढ़ना आना चाहिए, लेकिन पेड़ से गिरने पर जोर की चोट भी लग सकती है. इसलिए अपने सामने उन्हें ऐसा करने की सलाह दें.
  11. किसी अनजान से बात न करें. यह बात उन्हें किसी ऐक्टिविटी के माध्यम से समझाने की कोशिश करें. हो सके तो इस तरह की बातें अपने बच्चों को उन के दोस्तों के सामने समझाएं.
  12. छुट्टी वाले दिन सुबह जल्दी उठ कर पार्क जाएं, जौगिंग करें. यह बात केवल मौखिक रूप से न समझाएं, बल्कि छुट्टी वाले दिन आप खुद भी जल्दी उठ कर बच्चों के साथ पार्क जाएं.
  13. गुड और बैड टच के बारे में प्यार से समझाएं
  14. बच्चे बहुत जिज्ञासु होते हैं खासतौर पर बढ़ती उम्र में जब वे अपने और अपने पेरैंट्स के शरीर में अंतर देखते हैं.
  15. वे इस बात की ओर भी बहुत जल्दी ध्यान देते हैं कि लड़के और लड़की के शरीर में काफी अंतर होता है.
  16. जब बच्चा आप से अपने प्राइवेट अंगों के बारे में कुछ पूछे तो उसे समझाएं कि लड़की और लड़के में यह अंतर उन के प्रजनन अंगों की वजह से होता है.
  17. बच्चे को निजी अंगों के वैज्ञानिक नाम बताने से झिझकें नहीं. आप नहीं बताएंगे तो वह बाहर से कुछ और ही सीख कर आएगा.
  18. उन्हें बताएं और किताब का हवाला दें कि देखो किताब में इसे पेनिस या इसे वैजाइना कहते हैं.
  19. 2-3 साल के बच्चे को अच्छे और बुरे स्पर्श के बारे में बताने का सब से अच्छा समय होता है. उन्हें बताएं कि कोई अनजान उन के निजी अंगों को नहीं छू सकता. केवल मातापिता उन्हें छू सकते हैं.
  20. उन्हें बताएं कि अगर कोई अनजान व्यक्ति उन के निजी अंगों को छूता है तो उन्हें क्या करना चाहिए.

– डा. संदीप गोविल, मनोचिकित्सक, सरोज सुपर स्पैश्यालटी अस्पताल, नई दिल्ली

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न्यू बौर्न के Hygiene से जुड़ी बातों का रखें ख्याल

नए बच्चे के आगमन के साथ पूरे परिवार में खुशी की लहर दौड़ जाती है. मातापिता के लिए अपने बच्चे की मुसकान से अधिक कुछ नहीं होता. यह मुसकान कायम रहे, इस के लिए जरूरी है बच्चे का स्वस्थ रहना. शिशु जब 9 माह तक मां के गर्भ में सुरक्षित रह कर बाहर आता है तो एक नई दुनिया से उस का सामना होता है, जहां पर हर पल कीटाणुओं के संक्रमण के खतरों से उस के नाजुक शरीर को जू झना पड़ता है. ऐसे में जरूरी है, उस के खानपान और रखरखाव में पूरी तरह हाईजीन का खयाल रखना.

स्नान

डा. बी.एल. कपूर मेमोरियल हास्पिटल की चाइल्ड स्पेशलिस्ट डा. शिखा महाजन बताती हैं, ‘‘नवजात शिशु को शुरुआत में स्पंज बाथ कराना चाहिए, खासकर तब तक जब तक नाभिनाल गिर न जाए. आमतौर पर 4 से 10 दिनों में नाभिनाल सूख कर गिर जाती है. इस से पूर्व उसे नहलाएं नहीं, हलके गरम पानी में तौलिया भिगो कर पूरे शरीर को पोंछें. नाभिनाल को दिन में 2 बार डाक्टरों द्वारा बताए गए स्प्रिट से साफ करें. जहां तक हो सके, उस जगह को सूखा रखें. पाउडर, घी या तेल न लगाएं. ध्यान रखें कि इस में इन्फेक्शन या दर्द न हो. यदि आप को खून, लाली या पस दिखे तो तुरंत डाक्टर से संपर्क करें.’’

बच्चा थोड़ा बड़ा हो जाए तो उसे प्लास्टिक के बाथटब में नहला सकती हैं. नहलाते वक्त त्वचा की सलवटों (स्किन क्रीजेज), अंडरआर्म्स, गले, उंगलियोें के बीच, घुटनों के नीचे और यूरिनरी पार्ट्स की अच्छी तरह से सफाई करें, पर साबुन का ज्यादा प्रयोग न करें. सिर और पौटी वाली जगह पर ही साबुन लगाएं. बच्चों को आम साबुन या शैंपू से न नहलाएं बल्कि बेबीसोप व शैंपू से नहलाएं. घर का बना उबटन व कच्चे दूध से भी बच्चे को नहला सकती हैं. पर इस बात का ध्यान रखें कि उबटन, साबुन या दूध के कण बच्चे के शरीर पर लगे न रहें. नहला कर उसे वार्मरूम में ले जाएं और सौफ्ट टौवल से धीरेधीरे पोंछते हुए पूरा शरीर सुखा दें.

मालिश

चाइल्ड स्पेशलिस्ट डा. शिखा महाजन कहती हैं, ‘‘मालिश की जितनी उपयोगिताएं गिनाई जाती हैं उतनी होतीं नहीं. पर मुख्य लाभ है, मांबच्चे का भावनात्मक जुड़ाव. स्पर्श संवेदना के जरिए बच्चे और मालिश करने वाले व्यक्ति के बीच रिश्ता गहरा होता है. इसलिए बेहतर होगा कि मालिश बच्चे का कोई निकट संबंधी करे. नौकरानी को यह काम न सौंपें, क्योंकि हो सकता है उस के हाथ गंदे हों या फिर वह कड़े हाथ से मालिश कर दे.

‘‘मालिश हमेशा वेजीटेबल आयल से करें. नारियल, तिल या बादाम तेल से हफ्ते में 2 दिन मसाज करें. पर इस के लिए सरसों के तेल का प्रयोग न करें. यह हार्ड होता है. बच्चे को इस से एलर्जी हो सकती है.’’ बच्चे की मालिश का एक फायदा यह भी होता है कि इस से उसे अच्छी नींद आती है. शिशु की टांगों की मालिश करने से उसे बड़ा आराम मिलता है और वह रात को चैन से सोता है.

मसाज करते वक्त ध्यान रखें

कमरा गरम और आरामदेह हो.

हाथों की चूडि़यां व अंगूठियां उतार दें.

वैक्सिनेशन वाले हिस्से पर मालिश न करें.

बच्चे की नाक या कानों में तेल न डालें.

मालिश करने के कुछ समय बाद बच्चे को नहला दें.

यदि शिशु को बुखार हो तो मालिश न करें.

नेल कटिंग

बच्चों को अपनी उंगली चूसने की आदत होती है खासकर तब जब उन के दांत निकल रहे होते हैं. ऐसे में यदि उन के नाखून गंदे हों तो इन्फेक्शन पेट में चला जाता है. इस के अलावा नाखूनों से बच्चा दूसरों को और कभीकभी अपनी स्किन को भी नोच लेता है. इसलिए जरूरी है कि उस के नाखूनों को काटा जाए. शुरू में नाखून बहुत ही कोमल होते हैं. नेलफाइलर से क्लीन कर के उस से नाखून काट सकती हैं. बेबीसीजर/क्लिपर का प्रयोग भी कर सकती हैं. बच्चा सो रहा हो, उस वक्त नाखून काटना आसान होता है. नहलाने के बाद बच्चे के नाखून नरम हो जाते हैं. नवजात शिशु के नाखून उस समय हाथ से भी तोड़े जा सकते हैं.

काजल

बच्चे की आंखें खूबसूरत और बड़ी दिखाने के चाव में उसे रोज काजल न लगाएं. ‘काजल से आंखें बड़ी होती हैं’ यह एक मिथ है. इस से इन्फेक्शन का खतरा रहता है. घर में बना काजल भी नुकसानदेह होता है. बाजार के काजल में लेड और अन्य कई हानिकारक केमिकल होते हैं, जिन से बच्चों की आंखों की रोशनी जा सकती है. इसी तरह बच्चे को ज्यादा पाउडर भी न लगाएं.

कपड़ों की सफाई

बच्चों के कपड़े साफ पानी में किसी गुणवत्ता वाले माइल्ड प्रोडक्ट से धोएं, क्योंकि डिटरजेंट में मौजूद हार्ड केमिकल्स कपड़ों से पूरी तरह साफ नहीं होते और बच्चों की नाजुक स्किन में खुजली, लाली जैसी समस्याएं पैदा करते हैं. जब भी कपड़े धोएं, पानी से उन्हें अच्छी तरह साफ करें ताकि केमिकल्स का थोड़ा सा भी असर न रहे. कपड़े धो कर उन्हें धूप या हवा में सुखाएं. धूप में इन के कीटाणु मर जाते हैं. बच्चे की नैपी को साबुन से धोने के बाद डेटोल के पानी से धोएं. शिशु के कंबल, बिछावन, ओढ़ने की चद्दर आदि को भी हर दूसरे दिन धूप में सुखाएं.

पौटी ट्रेनिंग

बच्चों में निश्चित समय पर पौटी करने की आदत डलवाएं. जब बच्चे बहुत छोटे होते हैं तो सुसकारने (शी…शी…) की आवाज के द्वारा उन्हें सूसू, पौटी कराने की कोशिश की जाती है. दूध पीने के बाद बच्चा जल्दी सूसू करता है, इसलिए दूध पिलाने के 15-20 मिनट बाद बच्चे को सूसू कराएं. यदि सर्दी का मौसम है तो हर आधेपौने घंटे बाद सूसू कराएं. बच्चों के लिए छोटी पौटी चेयर मिलती है. बच्चे को इस पर बैठा कर सूसू, पौटी कराएं ताकि वह पौटी मैनर्स सीख सके. बीमारी की स्थिति में यदि बच्चा 5 घंटे तक पेशाब न करे तो फौरन डाक्टर के पास ले जाएं. जब वे थोड़े बड़े हो जाएं तो उन्हें समय पर टायलेट में बैठाएं. यदि बच्चे ने पैंटी में ही पौटी कर दी हो तो तुरंत सफाई करें. पौटी उस के शरीर से अच्छी तरह साफ कर दें. फिर उस जगह को अच्छी तरह तौलिए से पोंछ कर सुखा दें ताकि उस की स्किन में कोई प्रौब्लम न हो.

नैपी चेंज करना

बच्चों की स्किन नाजुक होती है. भीगी नैपी देर तक रह जाए तो रैशेज हो सकते हैं. इस से बचने के लिए नैपी गीली होते ही बदल दें. यदि डायपर पहनाती हैं तो जल्दीजल्दी डायपर बदलें. दिन में 7-8 बार डायपर चेंज करना जरूरी होता है. डायपर हमेशा अच्छी कंपनी का और सौफ्ट होना चाहिए.

दूध

मां का दूध छोटे बच्चे के लिए संपूर्ण आहार है. 6 माह तक बच्चे को मां का ही दूध दें. यदि ऐसा न हो सके तो पाश्चराइज्ड दूध दें. कच्चा दूध कभी न दें, इस से इन्फेक्शन हो सकता है. बच्चे को पिलाए जाने वाले दूध की बोतल की सफाई का भी ध्यान रखें. बोतल में दूध डालने से पहले बोतल को पानी में उबाल कर उस की सफाई करें. हर 6 महीने में बोतल का निप्पल बदलें. खिलौने वगैरह भी अच्छी तरह साफ कर के दें और खिलौने अच्छी क्वालिटी के प्लास्टिक से बने हुए ही खरीदें.

ओरल हाईजीन

मुंह में दूध की बोतल रखेरखे सुलाने की आदत छोटे बच्चों के दांतों पर भारी पड़ सकती है. दूध मीठा होता है, इस से उन के दांतों में कैविटी की शिकायत हो सकती है. दूध पीने और सोने से पहले हलके से उन के दांत पोंछ दें या उन्हें खुद ब्रश करने को प्रेरित करें.

दानों की समस्या

कई बार गरमी, लार या दूध उगलने की वजह से छोटे बच्चों की स्किन पर दानों की समस्या हो जाती है. गलत दवा या स्किन को सूट न करने वाले कपड़े भी इस की वजह बन सकते हैं. आवश्यक सावधानी और सफाई का खयाल रखने से यह समस्या खुद ठीक हो जाती है. गरमी के मौसम में दानों पर बेबी पाउडर बुरकें. यदि 2-3 माह तक दाने ठीक न हों तो डाक्टर से संपर्क करें.

कुछ और बातों का खयाल जरूरी

कुछ नवजात बच्चों की ब्रेस्ट को दबाने पर दूध निकलता है. यह मां के हारमोन का असर होता है. ऐसी स्थिति में बारबार उसे छुएं या दबाएं नहीं. इस से इन्फेक्शन या जख्म होने का डर रहता है. कुछ दिनों में यह समस्या स्वयं ठीक हो जाती है.

बच्चे के शरीर पर ज्यादा बाल हैं तो इन्हें हटाने की कोशिश में आटे की लोई, उबटन, क्रीम वगैरह न लगाएं. ये खुद हट जाएंगे.

गंदे हाथों से बच्चे को न छुएं.

बाहर से आ कर एकदम बच्चे को न गोद में  उठाएं और न ही उसे तत्काल दूध पिलाएं.

नवजात शिशु के सिर पर यदि बाल हैं तो उन्हें कंघी न करें. थोड़ा बड़ा होने पर उस के लिए सौफ्ट हेयर ब्रश या बेबी कांब लाएं.

शिशु को बारबार चूमना ठीक नहीं, इस से उसे संक्रमण होने का खतरा रहता है.

कुछ भी खाने से पहले हाथ धोने की आदत बच्चे में डालें.

बच्चे को कभी भी गिरी हुई चीज उठा कर खाने न दें.

खयाल रखें

बच्चे को रोज नहलाएं. जाड़े के दिनों में आमतौर पर मांएं नहलाने से हिचकिचाती हैं, ऐसा करना ठीक नहीं. बच्चा बीमार है तो भी उस के शरीर को भीगे तौलिए से पोंछ जरूर दें.

बच्चे के नहाने का टब वगैरह रोज साफ करें. उस के बाथटब को दूसरे काम में न लें. नहलाने के लिए माइल्ड/बेबी सोप का प्रयोग करें. ध्यान रखें, उस के लिए प्रयुक्त तौलिया भी सौफ्ट हो और इसे घर के दूसरे सदस्य प्रयोग में न लाएं.

बच्चे को जहां तक हो सके, सौफ्ट कपड़े पहनाएं खासकर गरमी में कौटन के हलके कपड़े ही अच्छे रहते हैं. टेरीकोट मिक्स कपड़ों से उस की कोमल त्वचा पर रैशेज हो सकते हैं.

बच्चे को खिलाते वक्त नैपकीन/बिब बांधना न भूलें. यदि वह दूध उलट दे या कपड़े भीग जाएं तो तुरंत उन्हें बदल दें.

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Summer Special: मस्ती नहीं निखार का समय है छुट्टियां

गरमी की छुट्टियों को अकसर किशोर घूमनेफिरने या फिर घर में ही टीवी देख कर, मोबाइल, इंटरनैट पर गेम खेल कर या सोने और खेलने में बिताते हैं जबकि छुट्टियां मौजमस्ती का नहीं बल्कि खुद में निखार लाने का समय है अत: छुट्टियों का लुत्फ उठाएं, मौजमस्ती करें, लेकिन अपने संपूर्ण निखार को नजरअंदाज न करें वरना छुट्टियां बीतने पर पछतावा महसूस होगा.

पर्सनैलिटी निखारें :

छुट्टियों में किशोर अपनी पर्सनैलिटी निखार सकते हैं. किसी से हुई पहली मुलाकात आप के व्यक्तित्व को दर्शाती है. अत: छुट्टियों में कोशिश कर पर्सनैलिटी निखारें.

नैगेटिव थिंकिंग छोड़ें पौजिटिव थिंकिंग रखें. अपने बात करने के तरीके, पहनने व खानेपीने की आदत में सुधार लाएं. इस से आप की पर्सनैलिटी में निखार आएगा. अगर खुद इन बातों पर अमल न कर सकें तो घर के आसपास पर्सनैलिटी डैवलपमैंट की क्लासेज भी जौइन कर सकते हैं.

हौबी निखारें :

छुट्टियों के दौरान न तो पढ़ाई का बोझ होता है और न मम्मीपापा रोकटोक करते हैं. अत: इस समय आप अपनी हौबी को निखारें.

अगर आप को पेंटिंग का शौक है तो पेंटिंग बनाएं. म्यूजिक का शौक है तो म्यूजिक सीखें, बागबानी, कुकिंग, स्विमिंग, क्राफ्ट, डैकोरेशन आदि के शौक पूरे करने के लिए छुट्टियों का समय बहुत अनुकूल और कारगर है.

अंगरेजी सुधारें :

हिंदी माध्यम के छात्रों के साथ अकसर अंगरेजी की समस्या आती है, क्योंकि किसी भी प्रतियोगी परीक्षा, इंटरव्यू, जौब में अंगरेजी का ज्ञान एक अनिवार्य आवश्यकता है. अत: हिंदी माध्यम के छात्र फ्लुएंट अंगरेजी न बोल पाने के कारण पिछड़ जाते हैं, अत: छुट्टियों का समय आप अपनी अंगरेजी सुधारने में लगा सकते हैं.

रोज अंगरेजी अखबार पढ़ें. अपने दोस्तों, मातापिता व भाईबहन से अंगरेजी में बात करने की कोशिश करें. इस से आप को अंगरेजी बोलने में परेशानी नहीं होगी व आप अपनी कमी सुधार सकेंगे. जो शब्द समझ न आएं या जिन का मतलब मालूम न हो उन्हें शब्दकोश में देखें.

इस प्रकार छुट्टियों का सदुपयोग भी होगा और आप की अंगरेजी में सुधार भी. चाहें तो इंगलिश लर्निंग की क्लासेज जौइन कर सकते हैं.

कमजोर विषय को आसान बनाएं :

कभीकभी कुछ किशोर यह कहते पाए जाते हैं कि मेरा फलां विषय कमजोर है या मेरे पल्ले ही नहीं पड़ता. मैथ्स से तो मुझे डर लगता है. तो ऐसे किशोरों के लिए छुट्टियों का समय पूर्णतया अनुकूल है. वे चाहें तो पढ़ाई, होमवर्क करने के साथसाथ कमजोर विषय पर ध्यान दे सकते हैं.

जिस विषय में आप को जो समझ नहीं आता दोस्तों से पूछें, टीचर्स से पूछें, किसी होशियार छात्र के घर जा कर उस से समझें. नोट्स बनाएं. बारबार पढ़ने, समझने से आप को वह विषय भी आसान लगने लगेगा और छुट्टियों के बाद उस विषय की बाजी क्लास में आप केहाथ लगेगी.

सेहत निखारें :

पढ़ाई के बोझ तले दबे किशोर कैरियर, पढ़ाई, किताबों के अलावा कुछ सोच ही नहीं पाते. अच्छे अंक लाने का दबाव उन्हें तनाव में ला देता है, जिस का उन की सेहत पर बुरा असर पड़ता है.

छुट्टियां मस्ती के साथसाथ सेहत बनाने का भी अच्छा समय है. छुट्टियों में खानपान अच्छा खाएं, व्यायाम करें, चाहें तो जिम जौइन कर लें.

दिनचर्या सुधारें :

अकसर किशोरों की पढ़ाई स्कूल के टाइम घर आने, पढ़ने, खेलने के समय में अनियमितता पाईर् जाती है. स्कूल के समय की बात अलग है, अब आप खाली हैं अत: छुट्टियों में टाइमटेबल बनाएं जो सारे दिन के कामों के साथसाथ आप को मस्ती का समय भी दे.

सुबह उठने की आदत डालें. सैर, जौगिंग करने जाएं, आ कर नहाने धोने के बाद पढ़ाई के घंटे, मस्ती, टीवी देखने का समय आदि टाइमटेबल में लिखें व उसी के अनुरूप दिनचर्या ढालें.

घर के कामों में भागीदार बनें :

अभी तक तो आप स्कूल जा रहे थे इसलिए मम्मी उठ कर नाश्ता देतीं और आप खाते फिर स्कूल जाते और घर वापस आने के बाद खापी कर पसर जाते थे, लेकिन अब इस रूटीन को बदलें. मम्मी के साथ घर के कामों में हाथ बंटाएं. मशीन में कपड़े धुलवाएं, मां झाड़ूपोंछा करें तो आप फर्नीचर की डस्टिंग कर दें.

इसी तरह पापा के औफिस जाने पर उन के बैंक के काम निबटाना, पौस्टऔफिस के काम या फिर रद्दी बेचने, घर में लगे पौधों की देखरेख जैसे काम, बिजली के काम, घर के खराब उपकरण ठीक कराने की जिम्मेदारी भी निभा सकते हैं.

कुकिंग सीखें :

खाना बनाना सिर्फ लड़कियों को ही नहीं लड़कों को भी आना चाहिए. छुट्टियों की मस्ती केसाथसाथ आप किचन में मां की सहायता कर सकते हैं. यही नहीं अपनी पसंद के व्यंजन नैट पर देख कर मां की सहायता से बना भी सकते हैं.

पार्टटाइम जौब करें :

अगर आप छुट्टियों का पूरा मजा लेना चाहते हैं तो मस्ती के साथसाथ पार्टटाइम जौब भी कर सकते हैं. इस से न केवल घर की आर्थिक स्थिति अच्छी होगी बल्कि आप को अनुभव भी हासिल होगा साथ ही आप आत्मनिर्भर भी बनेंगे.

इस प्रकार किशोर घर में सिर्फ मौजमस्ती कर छुट्टियां बिताने के बजाय अपने निखार में इस समय को लगाएं तो न केवल छुट्टियों का सदुपयोग होगा बल्कि किशोर एक उत्कृष्ट जीवन की नींव रख पाएंगे. छुट्टियों के बाद आप के हाथ में हुनर, कौंफिडैंस, आत्मनिर्भरता व अनुभव भी होगा और आप जीवन में आगे बढ़ने की रहा प्रशस्त कर पाएंगे. तो हो जाएं तैयार, मस्ती संग निखार हेतु.

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Back to Office : ऐसे बैठाएं तालमेल

कोरोना वायरस के कारण औफिस क्या बंद हुए औफिस फ्रैंड्स की आपसी बातचीत ही कम हो गई. अब सिर्फ काम के सिलसिले में ही बात होती थी. औफिस में जो ग्रुप मस्ती होती थी वह अब न तो जूम मीटिंग में थी और न ही मैसेज में वह बात थी. ऐसा एहसास हो रहा था जैसे हम अपनों से काफी दूर हो गए थे. घर से काम होने के कारण वर्कलोड भी काफी बढ़ गया था, जिस कारण औफिस फ्रैंड्स से दिन में कई बार बात जरूर होती थी, लेकिन वह बात सिर्फ काम तक ही सीमित रहती थी. न घूमनाफिरना और न वह मस्ती, हम सभी उसे मिस कर रहे थे. मन ही मन यही सोच रहे थे कि काश फिर से औफिस खुल जाएं ताकि हम वही पुरानी मस्ती फिर से कर सकें.

आखिर फिर से धीरेधीरे जीवन पटरी पर आने लगा और औफिस भी खुलने लगे. एक दिन जूम मीटिंग के जरीए बौस से पता चला कि अगले हफ्ते से औफिस खुल रहे हैं. यह खबर सुन कर ऐसा लगा कि फिर से हमें खुली हवा में सांस लेना का मौका मिल रहा है.

काम के साथसाथ हम अब अपने औफिस फ्रैंड्स के साथ मस्ती भरे पल भी बिता पाएंगे, जोकि वर्क फ्रौम होम में संभव नहीं था. ऐसे में जब फिर लौट रहे हैं औफिस के पुराने दिन तो आपस में ट्यूनिंग बैठाने के लिए फिर से दोहराएं कुछ चीजों को ताकि कुछ सालों की दूरी कुछ ही समय में फिर दूर हो सके. तो जानिए इस के लिए क्या करें:

एकदूसरे को गिफ्ट्स दें

गिफ्ट लेना किसे पसंद नहीं होता है. ऐसे में जब आप इतने लंबे समय के बाद औफिस जा रहे हैं तो मन में ऐक्साइटमैंट तो बहुत होगी ही क्योंकि इतने दिनों बाद औफिस को देखेंगे, औफिस फ्रैंड्स से मिलेंगे, उन के साथ बातें करेंगे. ऐसे में जब आप उन से मिलें तो उन्हें यह कह कर गिफ्ट दें कि यह तेरे बर्थडे का गिफ्ट है, जो मैं तुम्हें दूर रहने के कारण दे नहीं पाई थी.

इस से आप की औफिस दोस्त को एहसास होगा कि अभी भी आप को उस का खयाल है. इस से फिर दोबारा से ट्यूनिंग बैठाने में आसानी होगी या फिर आप उस की पसंद की चीज गिफ्ट में दे कर पुराने दिनों की याद को फिर से ताजा कर सकते हैं.

टी टाइम में करें मस्ती

वर्क फ्रौम होम के दौरान जिस टी टाइम को आप मिस कर रहे थे, अब उसे फिर से जी लेने का समय आ गया है क्योंकि औफिस जो खुल गया है. रामू चाय की दुकान पर औफिस वर्क से ले कर पर्सनल टौपिक्स जो शेयर होते थे. ऐसे में अब जब आप औफिस लौट रहे हैं, तो टी टाइम को ऐंजौय करना न भूलें. यह सोच कर टी टाइम को न छोड़ें कि घर में तो हम ने टी टाइम लेना ही छोड़ दिया था.

जान लें कि टी टाइम से न सिर्फ आप खुद को फ्रैश फील करेंगे बल्कि इस के बहाने औफिस दोस्तों के साथ फिर खुल कर बातचीत होगी, हंसीमजाक होगा, पुराने दिन फिर लौट आएंगे और यह टी टाइम आपस में बौंडिंग को स्ट्रौंग बनाने में मदद करेगा.

लंच टाइम में लंच भी मस्ती भी

घर में तो जब मन करा तब लंच कर लिया और यह लंच भी काम के साथसाथ एक टेबल पर या बैड पर अकेले बैठ कर कर लिया. जो न तो खाने का आनंद लेने दे रहा था और न ही इस ब्रेक में हम मस्ती कर पा रहे थे. अगर थोड़ा रिलैक्स करने का सोचा भी तो भी हाथ में फोन पर या तो फेसबुक देख रहे होते थे या फिर व्हाट्सऐप अथवा कुछ और खंगालने में लगे रहते थे जो औफिस के लंच टाइम से बिलकुल अलग था, जिसे हम घर में मिस करने के अलावा कुछ नहीं कर सकते थे.

लेकिन अब जब आप का औफिस खुल गया है तो लंच टाइम में पहले की तरह दोस्तों के साथ कुछ ही मिनटों में लंच कर के मस्ती के लिए कभी पास की मार्केट में निकल जाओ या फिर लंच ब्रेक में मस्ती भरे पल स्पैंड करो, पुरानी यादों को बातों से ताजा करो. इस मस्ती से आप फिर से पहले की तरह एकदूसरे से जुड़ पाएंगे.

औफिस के बाद आउटिंग

पहले जब आप का औफिस खत्म हो जाता था और उस के बाद आप कभी औफिस के दोस्तों के साथ खाने के लिए कभी पास की लोकल मार्केट या फिर शौपिंग करने चले जाते थे. याद है न आप को वे दिन. लेकिन बीच में वर्क फ्रौम होम के कारण इस सब पर ब्रेक सा लग गया था.

लेकिन अब जब दोबारा औफिस जाने का मौका मिल रहा है तो औफिस वर्क के साथसाथ औफिस के बाद आउटिंग या फिर मस्ती जरूर करें. इस से एक तो औफिस के स्ट्रैस से छुटकारा मिलेगा, दूसरा आप अपने औफिस के फ्रैंड्स के साथ दिल खोल कर मस्ती भी कर पाएंगे.

बीचबीच में गौसिप

घर से जब हम काम कर रहे थे तो न तो काम का वह मजा आ रहा था क्योंकि बीचबीच में ऐंटरटेन करने वाले औफिस के दोस्त जो नहीं थे. साथ में बोरियत अलग थी. ऐसे में बैक टू औफिस आप को इस बोरियत से छुटकारा दिलाएगा क्योंकि अब काम के साथसाथ गौसिप, मस्ती, एकदूसरे की टांगखिंचाई जो होगी.

इसलिए खुद को रिफ्रैश करने के लिए काम के बीच में छोटेछोटे ब्रैक जरूर लें ताकि इस से काम के न्यू आइडियाज मिलने के साथसाथ आप थोड़ीथोड़ी देर में खुद को तरोताजा कर सकें क्योंकि सिर्फ और सिर्फ काम करते रहने से बोरियत होने के साथसाथ काम से इंटरैस्ट भी हटता है.

चटपटी बातों के लिए भी समय

वर्क फ्रौम होम जितना शुरू में अच्छा लग रहा था, उतना बाद में उस से ऊबने लगे. ऐसे में बैक टु औफिस इस बोरियत से तो आप को बाहर निकालेगा ही, साथ ही आप को औफिस के दोस्तों के साथ चटपटी बातों के लिए भी समय मिल जाएगा जैसे यार प्रिया छोटी ड्रैस में कितनी हौट लग रही है, देखो रोहन नेहा को इंप्रैस करने के लिए उस के आगेपीछे ही घूमता रहता है.

लग रहा है कि इस बार स्नेहा टारगेट को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक चली जाएगी, वगैरावगैरा. ऐसी बातें भले ही हमें शोभा नहीं देती हैं, लेकिन ऐसी बातें कर के मजा बहुत आता है.

रोमांस का भी मिलेगा मौका

अरे घर में बैठ कर काम करने से हम औफिस में रोमांस को काफी मिस करते थे. अब जब किसी को देख या मिलजुल ही नहीं रहे थे तो किसी पर क्रश होना तो बहुत दूर की बात थी. ऐसे में अब जब औफिस दोबारा से खुल गए हैं तो काम, मस्ती के साथसाथ रोमांस का भी फुल मजा ले सकेंगे जो आप में नई ऊर्जा का संचार करने का काम करेगा. आप जिसे पसंद कर रहे हैं उसे देख कर काम करने का मजा ही अलग होगा. भले ही यह मस्ती के लिए हो, लेकिन आप को ऐसा कर के खुशी बहुत मिलेगी.

नए लोगों को जानने का मौका

इस दौरान बहुत से लोगों ने औफिस छोड़ा होगा व उन के बदले बहुत से नए लोगों ने औफिस जौइन किया होगा, लेकिन वर्क फ्रौम होम के कारण आप की उन नए लोगों से बौंडिंग उतनी स्ट्रौंग नहीं बन पाई होगी, जितनी दूसरे लोगों से. ऐसे में बैक टू औफिस में आप को नए लोगों को जानने, उन्हें सम झने, उन से कुछ नया सीखने का भी मौका मिलेगा, साथ ही आप भी उन्हें काम के बेहतर टिप्स दे पाएंगे जो आप लोगों को एकदूसरे के करीब लाने का काम करेगा.

मोटिवेट करें

भले ही वर्क फ्रौम होम के कारण आप सभी काफी समय तक एकदूसरे से दूर रहे हैं, लेकिन अब जब दोबारा से औफिस जाने का मौका मिल रहा है तो एकदूसरे को पहले की तरह मोटिवेट करना न भूलें. उन्हें काम में हैल्प भी करें, उन्हें गुड वर्क के लिए मोटिवेट भी करें. इस से आप सब के बीच दोबारा से स्ट्रौंग बौंडिंग बनेगी. यह आप के स्ट्रैस को भी कम करने का काम करेगा क्योंकि जब आप किसी को मोटिवेट करेंगे तो वह भी आप को प्रोत्साहित किए बिना नहीं रहेगा, जो आप की प्रोडक्टिविटी को बढ़ाने में मददगार साबित होगा. इस तरह आप फिर से बैक टु औफिस में ट्यूनिंग बैठा सकते हैं.

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30 की उम्र में कहां करें निवेश

आज का दौर अनिश्चिंतताओं से भरा हुआ है. कभी महामारियों का हमला, तो कभी रोजगार का संकट युवाओं को संपन्न व खुशहाल जीवन जीने के रास्ते में रोड़े अटकाता है. ऐसे में स्मार्ट इनवैस्टमैंट यानी सुरक्षित और मुनाफेदार निवेश ही आप के जीवन की संपन्नता की नींव को मजबूत कर सकता है.

तो आइए फाइनैंशियल कंसल्टैंट राघेंद्र मिश्रा से जानते हैं युवाओं के लिए सब से सुगम, सुरक्षित और सर्वोत्तम निवेश विकल्प क्या है:

स्टैप 1: टर्म इंश्योरैंस

अगर बात करें 30 की उम्र की तो अकसर इस उम्र तक हम अपनी जिम्मेदारियों को सम   झने लगते हैं ऐसे में हमारा पहला और सब से अहम कदम होना चाहिए कि हम टर्म इंश्योरैंस लें क्योंकि जीवन में कब, क्या हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता. कब हम जीवन को अलविदा कह दें किसी को पता नहीं होता. ऐसे में टर्म इंश्योरैंस असली जीवन बीमा प्लान है, जो आप के परिवार को आप के जाने के बाद फाइनैंशियल सपोर्ट प्रदान करने का काम करता है.

इस के अंतर्गत पौलिसी की अवधि के दौरान बीमा करवाने वाले व्यक्ति की अकाल मृत्यु होने पर यह इंश्योरैंस पौलिसी के अंतर्गत बनाए गए नौमिनी को एकमुश्त राशि प्रदान करता है. इसलिए टर्म इंश्योरैंस आज बेहद जरूरी हो गया है. इस बात का ध्यान रखें कि जितनी जल्दी आप टर्म इंश्योरैंस ले लेंगे उतना ही आप को कम प्रीमियम देना पड़ेगा.

बैस्ट टर्म इंश्योरैंस प्लान कैसे चुनें

–  आप को हमेशा कंपनी का क्लेम सैटलमैंट रेशो देखना चाहिए ताकि आप को ज्ञात हो जाए कि परिवार पर मुसीबत आने पर कंपनी कितने समय में क्लेम सेटलमैंट कर देती है वरना बाद में परिवार को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है.

–  आप को कंपनी के ब्रैंड और उस की मार्केट में क्या अहमियत है, इस की जांच जरूर करनी चाहिए.

–  किसी भी कंपनी का प्लान अच्छी तरह चैक

करने के बाद ही टर्म इंश्योरैंस लेना चाहिए. उस में यह भी चैक कर लें कि उस में क्या कवर है और क्या नहीं तथा कितने साल तक का कवर है. इस से पौलिसी के चयन में आसानी होगी.

–  टर्म इंश्योरैंस आप की वार्षिक सैलरी का लगभग 10 गुणा होना चाहिए.

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स्टैप 2: हैल्थ इंश्योरैंस

हैल्थ इंश्योरैंस पौलिसी मुश्किल समय में परिवार पर बिना बो   झ डाले आर्थिक सहायता प्रदान करने का काम करती है. सोचिए अगर आप के परिवार में अचानक कोई अपना बीमार हो जाए और आप ने कोई हैल्थ पौलिसी न ली हो, तो आप सब से पहले बिना सोचेसम   झे उस का इलाज तो करवाएंगे ही, लेकिन इस इलाज के दौरान जो आप को शारीरिक व पैसों के कारण आर्थिक मार    झेलनी पड़ेगी वह आप की कमर तोड़ देगी.

इस से हो सकता है कि आप की फ्यूचर प्लानिंग भी पूरी तरह से बिगड़ जाए. इसलिए जरूरी है समय रहते हैल्थ इंश्योरैंस लेने की ताकि आप के साथसाथ आप का परिवार भी इस में कवर हो जाए और मुसीबत की घड़ी में यह इंश्योरैंस आप के बड़े काम का साबित हो. हैल्थ इंश्योरैंस वैसे तो छोटी उम्र से ही ले लेना चाहिए ताकि कम प्रीमियम देने के साथसाथ आप अपनी और अपनी फैमिली की हैल्थ संबंधित चिंताओं से मुक्त हो जाएं.

लेकिन यदि आप इसे लेने में लेट हो गए हैं तो आप अभी भी इसे ले सकते हैं क्योंकि उम्र के साथ बीमारियों का डर बढ़ सकता है. जान लें कि कुछ बीमारियां पहले साल से ही कवर नहीं होतीं. इन का कुछ वेटिंग पीरियड होता है. ऐसी स्थिति में आप की पौकेट पर बो   झ पड़ सकता है.

नोट: आप को बता दें कि इंश्योरैंस न सिर्फ आप को सुरक्षा देते हैं बल्कि टैक्स सेविंग में भी आप की मदद करते हैं.

काम के हैल्थ इंश्योरैंस

इनडिविजुअल हैल्थ इंश्योरैंस: इस में पौलिसी का लाभ केवल एक व्यक्ति यानी सिंगल व्यक्ति ही उठा सकता है. इसलिए यह पौलिसी आप तभी लें जब आप अकेले हों.

फैमिली हैल्थ इंश्योरैंस: इस में आप अपने साथ अपने परिवार को कवर कर सकते हैं. इस में समइनशोरेड परिवार के सभी सदस्यों पर लागू होता है.

टौपअप हैल्थ इंश्योरैंस: अगर आप के पास पहले से कोई हैल्थ इंश्योरैंस है तो आप अपना प्रीमियम कवरेज बढ़ाने के लिए टौपअप हैल्थ इंश्योरैंस भी ले सकते हैं. इस का प्रीमियम हैल्थ इंश्योरैंस पौलिसी के मुकाबले काफी कम होता है क्योंकि इस का इस्तेमाल केवल तभी होगा, जब आप अपनी हैल्थ इंश्योरैंस पौलिसी का पूरा समऐश्योर्ड यूज कर चुके हों. आजकल कुछ हैल्थ पौलिसीज आप को फिटनैस के हिसाब से छूट भी देती हैं. आप अपने हैल्दी लाइफस्टाइल से इन पौलिसीज में प्रीमियम भी बचा सकते हैं.

स्टैप 3: इनवैस्टमैंट के लिए म्यूचुअल फंड

स्टैप 1 और स्टैप 2 जीवन की अनिश्चिंतताओं में आप के परिवार को सुरक्षा प्रदान करने का काम करता है. लेकिन खुद को फाइनैंशियल स्ट्रौंग बनाने यानी बचत करने के लिए, अपनी छोटीबड़ी जरूरतों को पूरा करने के लिए  म्यूचुअल फंड में इनवैस्ट करना आज काफी बेहतर विकल्प है क्योंकि इस में अच्छा व टिकाऊ रिटर्न जो मिल रहा है. ‘सिक्यूरिटी ऐक्सचेंज बोर्ड औफ इंडिया’ ने इस में रिस्क और सेफ्टी के आधार पर 17-18 तरह की कैटेगरी डिवाइड की हैं, जिन में आप अपनी जरूरत, रिटर्न व रिस्क को देखते हुए इंनैस्ट कर सकते हैं.

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आप को बता दें कि सिप यानी सिस्टेमैटिक इनवैस्टमैंट प्लान के जरीए इस में निवेश करने वालों की संख्या काफी ज्यादा है क्योंकि इस में आप अपनी पसंद की म्यूचुअल फंड स्कीम में रैग्युरली एक निश्चित रकम इनवैस्ट कर सकते हैं. यह आप मंथली, क्वार्टली व सेमीऐनुअली किसी भी मोड़ का चयन कर के आसानी से अपने फाइनैंशियल गोल को पूरा कर सकते हैं.

कैसेकैसे म्यूचुअल फंड्स

डेब्ट्स फंड: ये ऐसे फंड्स होते हैं , जो एक निश्चित इनकम रिटर्न देते हैं.

गिल्ट फंड: यहे फंड आप का पैसा सिर्फ गवर्नमैंट सिक्युरिटीज में ही इनवैस्ट करते हैं, जिस से रिस्क न के बराबर होता है.

लिक्विड फंड्स: ये ऐसे फंड्स होते हैं, जिन्हें किसी भी समय यानी जरूरत पड़ने पर बंद करवाए जा सकते हैं. यह काफी सेफ तरीका है.

इक्विलिटी फंड: इस में रिस्क ज्यादा है तो रिटर्न भी ज्यादा मिलता है क्योंकि इस में आप का पैसा स्टौक मार्केट में लगता है. म्यूचुअल फंड में इनवैस्टमैंट के जरीए आप अपने गोल्स जैसे गाड़ी खरीदना, घर खरीदना, बच्चे की हायर स्टडीज के लिए पैसे जमा करना, बच्चों की मैरिज के लिए या फिर रिटायरमैंट तक के लिए इस में निवेश कर के बड़ी आसानी से गोल प्लानिंग कर सकते हैं.

स्टैप 4: रिटायरमैंट प्लानिंग

वैसे 30 की उम्र में अगर रिटायरमैंट की बात करें तो दूर की कल्पना प्रतीत होती है. लेकिन कब हम जिम्मेदारियों से घिर कर 30 से 50 के हो जाते हैं, पता ही नहीं चलता. ऐसे में अगर 50 की उम्र में रिटायरमैंट प्लानिंग के बारे में सोचेंगे तब तक काफी देर हो चुकी होगी.

इसलिए जरूरी है 30 में ही इस के बारे में विचार कर निवेश शुरू कर देना ताकि 60 के बाद आप ठाटबाट से रह सकें वरना पैसे की तंगी बुढ़ापे में आप का सुखचैन छीन कर रख देगी क्योंकि कम उम्र में निवेश करने पर आप को ज्यादा रिटर्न जो मिलता है. इस के लिए आप निम्न प्लान में इनवैस्ट कर सकते हैं:

म्यूचुअल फंड : अगर आप प्राइवेट नौकरी में हैं तो आप को छोटी उम्र से ही रिटायरमैंट के लिए एक सिस्टेमैटिक वे में म्यूचुअल फंड में इनवैस्ट करना शुरू कर देना चाहिए. इस के लिए आप अपने अनुमानित खर्चों के हिसाब से रिटायरमैंट के बाद कितने पैसों की जरूरत पड़ेगी उस का टारगेट बना कर छोटीछोटी सिप में इनवैस्टमैंट कर के सेफली पैसा जमा कर सकते हैं. इस में आप अपनी सुविधा के हिसाब से तारीख का चयन कर के निवेश कर सकते हैं.

पीपीएफ: आप प्रौविडैंट फंड में भी निवेश कर सकते हैं. यह भारत सरकार द्वारा दी जाने वाली एक सेवानिवृत्ति बचत योजना है, जिस का उद्देश्य रिटायरमैंट के बाद सभी को सिक्योर जीवन प्रदान करना है. इस के तहत आप साल में कम से कम 500 रुपए और ज्यादा से ज्याद डेढ़ लाख रुपए जमा कर सकते हैं.

पैंशन फंड: यह एक तरह की पैंशन योजना है, जो लंबी अवधि तक लागू रहती है. यह पैंशन योजना तुलनात्मक रूप से मैच्योरिटी पर बेहतर रिटर्न प्रदान करती है.

यूलिप: इसे यूनिट लिंक्ड इंश्योरैंस प्लान कहा जाता है. इस में लाइफ कवर के साथसाथ कंपनीज निवेश का भी मौका देती हैं.

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स्टैप 5: इमरजैंसी फंड भी है जरूरी

पिछले 2 साल में दुनिया ने ऐसा समय देखा है, जिस की हम ने कभी कल्पना भी नहीं की थी, जिस के कारण बहुत से लोगों ने अपनी नौकरियां खो दीं, अपनों को खोया और यहां तक कि अपनों को बचाने के लिए काफी पैसे खर्च करने पड़े. इसलिए आज के समय की जरूरत है इमरजैंसी फंड की, जो आप की आकस्मिक जरूरतों में आप की बैकबोन का काम करेगा. इस के लिए आप के पास कम से कम 6 महीने से 1 साल तक के सभी जरूरी खर्चों के बराबर का फंड होना चाहिए.

इस के लिए आप अपने पैसों को लिक्विड फंड, हाई इंटरैस्ट सेविंग अकाउंट में इनवैस्ट कर सकते हैं और इमरजैंसी की स्थिति में आप इस फंड का इस्तेमाल कर के लोन लेने से भी बच सकते हैं. लेकिन इस बात का भी ध्यान रखें कि इमरजैंसी की स्थिति में ही इस फंड का इस्तेमाल करें.

10 बेबी स्किन केयर टिप्स

उस दिन माया बहुत परेशान थी. वह पति और 4 महीने की बच्ची के साथ अपनी कार में मायके जा रही थी. लंबा सफर तय करना था. दिल्ली से मायके यानी इलाहाबाद पहुंचने में 7-8 घंटे लग गए थे. उस पर बारिश का मौसम था. बेटी को ठंड न लग जाए इस

वजह से 2-3 ऐक्स्ट्रा कपड़े भी पहना रखे थे. बेटी आधे रास्ते तो सोती हुई गई, मगर फिर परेशान करने लगी. वह कसमसा रही थी और रोने भी लगी थी. घर पहुंच कर माया ने देखा कि उस की स्किन में कई जगह लाल चकत्ते और दाने से हो गए हैं.

जब माया की मां ने बच्ची को गोद में लिया तो कहने लगीं कि लगता है इसे घमौरियां हो गई हैं. टाइट कपड़ों या नमी वाले मौसम में लंबी यात्रा से छोटे बच्चों में पसीने की वजह से यह प्रौब्लम हो जाती है. उन्होंने तुरंत बच्ची के टाइट कपड़ों को उतार कर ढीले और आरामदायक कपड़े पहनाए और थोड़ा बेबी पाउडर भी लगाया. फिर दूध पिला कर उसे सुला दिया. सुबह जब उठी तो उसे नौर्मल देख कर माया की जान में जान आई.

दरअसल, बच्चे की स्किन वयस्कों की तुलना में 3 गुना ज्यादा सैंसिटिव और कोमल होती है. यही वजह है कि उन की स्किन पर अकसर रैशेज, दाने या ड्राइनैस की समस्या आ जाती है. मां के गर्भ के बाहर आने के बाद बच्चे की स्किन नए वातावरण में खुद को एडजस्ट करने की कोशिश कर रही होती है. इसी वजह से शिशुओं की स्किन को अतिरिक्त देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता होती है.

ऐसे में बेबी की स्किन की केयर करने में कई बातों का खास ध्यान रखना होता है जैसे:

सूरज की रोशनी

जन्म के शुरुआती दिनों में बेबी को डाइरैक्ट सनलाइट में ले कर नहीं आना चाहिए. इस से बच्चों को सनबर्न हो सकता है. अगर आप कहीं बाहर जा रहे हैं और बच्चा लंबे समय तक धूप में रहने वाला है तो उसे पूरी बांह के कपड़े, फुल पैंट पहनाएं और कैप लगाएं, साथ ही बाकी खुले हुए हिस्सों में बेबी सेफ सनस्क्रीन लगाना बेहतर रहेगा.

जब बच्चा बड़ा हो जाए तो उसे कुछ समय के लिए धूप में ले जाया जा सकता है. इस से विटामिन डी मिलता है.

कौटन के कपड़े पहनाएं

बच्चों को गरमी से रैशेज बहुत आसानी से हो जाते हैं क्योंकि उन की स्किन फोल्ड्स में पसीना बहुत ज्यादा आता है. इसलिए बच्चों को जितना हो सके कौटन के कपड़े पहनाने चाहिए. ये सौफ्ट, पसीना सोखने वाले और काफी कंफर्टेबल होते हैं. सिंथैटिक कपड़ों से बच्चों को ऐलर्जिक रिएक्शन हो सकते हैं.

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मसाज जरूरी

यह बहुत जरूरी है कि आप नियमित रूप से बच्चे की मालिश करें. मालिश से शरीर में ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है और इस से आप के बच्चे की स्किन बेहतर बनेगी. बच्चों की मालिश के लिए नारियल, सरसों, बादाम या जैतून के तेल को चुन सकती हैं. इस से उन की स्किन को पोषण मिलेगा और स्किन हाइड्रेट और मौइस्चराइज रहेगी.

मालिश से पहले तेल को कुनकुना कर लें. बच्चे की मसाज करते समय इस बात का ध्यान रखें कि कमरे का तापमान 280 सी से 320 सी के बीच होना चाहिए. हलके गरम कमरे में ही बच्चे की मसाज करें और ज्यादा से ज्यादा 5 से 7 मिनट तक ही करें.

साफसफाई पर दें ध्यान

अपने बच्चे को नियमित अंतराल पर वेट वाइप्स से साफ करें. उसे रोजाना नहलाने के बजाए आल्टरनेटिव दिनों में नहलाएं. स्पौंज बाथ ज्यादा दें.

अगर बच्चा बहुत ही छोटा है तो उसे हफ्ते में 3 बार केवल स्पौंज बाथ दें और 4 बार नौर्मल बाथ. स्पौंज बाथ देने के लिए एक स्पौंज या बहुत ही मुलायम कपड़े को कुनकुने पानी में भिगो लें. इस के बाद बहुत ही हलके हाथों से बेबी के पूरे शरीर को पोंछ लें.

नहलाने के लिए एक जैंटल कैमिकल फ्री क्लींजर या बेबी बौडी वाश चुनें जो स्किन को कोमल और स्वस्थ रखने में मदद करता हो. रोजाना सफाई करने से आप के बच्चे को किसी तरह का इन्फैक्शन आदि नहीं होता खासकर जाड़े में अधिक कपड़े पहनने की वजह से पसीने के कारण बच्चे की स्किन के पोर्स बंद हो जाते हैं. नहाने से बंद हुए छिद्रों को खोलने में मदद मिलती है. बौडी के पोर खुलने से बच्चा फ्रैश महसूस करेगा. सर्दियों में बच्चे को 5 मिनट से ज्यादा न नहलाएं.

ज्यादा गरम पानी से न नहलाएं

कई बार माताएं यह गलती करती हैं कि ठंड के मौसम में शिशु को सर्दीजुकाम के खतरे से बचाने के लिए बहुत गरम पानी से नहला देती हैं. मगर याद रखें कि गरम पानी शिशु की स्किन के लिए नुकसानदेह हो सकता है. इसलिए सादे पानी में थोड़ा सा गरम पानी मिला कर शिशु को नहलाएं.

सौफ्ट टौवेल ही यूज करें

नहलाने के बाद बेबी की स्किन को बहुत ही सौफ्ट टौवेल से पोंछ लें. यह जरूर ध्यान रखें कि आप जिस भी टौवेल का यूज करें वह मुलायम होने के साथसाथ साफ भी हो. एक बात का और ध्यान रखना चाहिए कि उस के कपड़े माइल्ड डिटर्जैंट से ही धोने चाहिए. वयस्कों के डिटर्जैंट में कई हानिकारक कैमिकल्स होते हैं जो बच्चे के कपड़ों पर रह सकते हैं. इस से बच्चे की स्किन पर इरिटेशन या रैशेज हो सकते हैं.

स्किन को 2 बार लोशन से मौइस्चराइज करें

नहलाने और स्किन को टौवेल से पोंछने के बाद बच्चे की स्किन को मौइस्चराइज करने की जरूरत होती है. बेबी की स्किन बहुत जल्दी ड्राई हो जाती है. इसलिए उसे लगातार हाइड्रेट रखने की जरूरत होती है. बेबी की स्किन पर दिन में 2 बार मौइस्चराइज, बेबी क्रीम या मिल्क लोशन अप्लाई किया जा सकता है.

एक बार नहाने के तुरंत बाद और दूसरी बार शाम के समय. यहां यह ध्यान रखने की जरूरत है कि मौइस्चराइजर अच्छी क्वालिटी का होना चाहिए. इस में मुख्य रूप से पानी के अलावा प्रोपिलीन ग्लाइकोल होना चाहिए. प्रोपिलीन बच्चे की नाजुक स्किन को मुलायम और नर्म बनाए रखता है.

डायपर रैशेज का रखें ध्यान

छोटे बच्चे को डायपर से जल्दी रैशेज हो जाते हैं क्योंकि उस की स्किन बहुत कोमल और संवेदनशील होती है. इसलिए अपने बच्चे को कस कर या बहुत लंबे समय तक डायपर पहना कर न रखें. डायपर से अगर रैशेज हो भी गए हों तो उसे खुला रहने दें और बेबी पाउडर लगाएं.

इस से बच्चे को आराम मिलेगा. बहुत देर तक उसे गीले डायपर में न रहने दें. रैशेज वाली जगह पर नारियल का तेल भी लगा सकती हैं. यह फंगल इन्फैक्शन होने से रोकता है और बच्चे की स्किन को राहत पहुंचाता है. बच्चे के लिए ऐसे डायपर का चुनाव करें जो सौफ्ट और ज्यादा सोखने वाला हो.

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सही उत्पाद करें इस्तेमाल

शिशु की स्किन बड़ों से बहुत अलग होती है, इसलिए उस की स्किन की जरूरतें भी अलग होती हैं. अगर आप शिशु की स्किन पर बड़ों के लिए इस्तेमाल होने वाले उत्पादों का इस्तेमाल करेंगी तो उस की स्किन को नुकसान पहुंच

सकता है. बाजार में बच्चों के लिए अलग से साबुन, क्रीम, पाउडर और मौइस्चराइजर उपलब्ध होते हैं, जिन का इस्तेमाल आप शिशु के लिए कर सकती हैं.

बच्चे के नाखूनों का भी रखें ध्यान

बच्चे के नाखूनों को छोटा रखना भी जरूरी है. कई बार बच्चा अपने नाखूनों से ही खुद को चोट पहुंचा लेता है, साथ ही इन में मैल भरने से इन्फैक्शन का भी खतरा रहता है क्योंकि बच्चा अकसर अपने हाथों को मुंह में डालता रहता है. बच्चे के नाखून बढ़ते भी बहुत जल्दी हैं. उन्हें काटने के लिए नेल क्लीपर पर का इस्तेमाल करें और बेहद सावधानी से इन्हें काटें.

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जानें क्या हैं रैंट ऐग्रीमैंट से जुड़ी बारीकियां

किराया आज के समय में आय का एक अच्छा और बेहतर साधन है. आज जहां कोई भी मकान जैसी प्रौपर्टी का मालिक अपनी खाली पड़ी प्रौपर्टी को किराए पर दे कर अपनी आय बढ़ा सकता है, वहीं दूसरी तरफ किराए के मकान उन लोगों के लिए वरदान समान हैं, जो पैसे न होने के कारण अपना आशियाना नहीं बना पाते. लेकिन किराए पर ऐसी प्रौपर्टी को लेते या देते समय जो सब से महत्त्वपूर्ण चीज होती है, वह है रैंट एग्रीमैंट.

रैंट एग्रीमैंट वह होता है, जो किसी भी प्रौपर्टी को किराए पर देने से पहले किराएदार और मकानमालिक के समझौते से तैयार किया जाता है. इस रैंट एग्रीमैंट में मकानमालिक की सारी शर्तें लिखित रूप में होती हैं, जिस पर मकानमालिक व किराएदार की सहमति के बाद ही दस्तखत होते हैं. रैंट एग्रीमैंट भविष्य के लिए लाभदायक सिद्ध होता है. अगर किसी भी प्रकार के बदलाव का प्रस्ताव मकानमालिक या किराएदार द्वारा रखा जाना हो, तो उस के लिए 30 दिन पहले नोटिस दिया जाता है.

रैंट ऐग्रीमैंट में बहुत सी ऐसी बातों को ध्यान में रखना जरूरी होता है, जो मकानमालिक और किराएदार दोनों के लिए आवश्यक होती हैं. वे बातें इस प्रकार हैं :

– रैंट एग्रीमैंट हमेशा स्टैंप पेपर पर ही बनाया जाता है. इस पर मकानमालिक और किराएदार दोनों के दस्तखत होने जरूरी होते हैं.

– रैंट एग्रीमैंट में किराएदार व मकानमालिक का नाम साफसाफ लिखा होना चाहिए. साथ ही किराए पर दी जाने वाली जगह का पूरा पता भी दिया होना चाहिए.

– रैंट एग्रीमैंट में किराए की ठीक जानकारी आवश्यक होती है, साथ ही किराया देने की समय अवधि की तारीख भी होनी चाहिए और किस दिन से विलंब शुल्क लगाया जाएगा, यह भी साफसाफ लिखा होना चाहिए.

– रैंट एग्रीमैंट में किराएदार द्वारा जमा की जाने वाली सिक्योरिटी मनी का उल्लेख होना ही चाहिए.

– तारीख व दिन से कितने समय के लिए प्रौपर्टी किराए पर दी जा रही है, यह लिखा होना भी बहुत जरूरी होता है.

– मकानमालिक द्वारा क्याक्या सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं, उस की जानकारी भी रैंट एग्रीमैंट में होनी चाहिए तथा प्रौपर्टी के साथ अन्य कौन सी सामग्री भी साथ प्रदान की जा रही है, जैसे पंखा, गीजर, लाइट फिटिंग आदि भी लिखे होने चाहिए.

– किराएदार को घर छोड़ने या मकानमालिक द्वारा घर छुड़वाने से एक महीने पहले नोटिस देना जरूरी होता है.

– मकानमालिक रैंट एग्रीमैंट बनवाने के लिए किसी वकील से भी बातचीत कर सकता है या स्टैंडर्ड रैंट एग्रीमैंट फार्म का प्रयोग कर सकता है.

– रैंट के घर में रहने वाले व प्रयोग करने वाले 18 वर्ष की आयु से ऊपर के विवाहित और अविवाहित सभी सदस्यों के नाम रैंट एग्रीमैंट में लिखे जाते हैं, जिस से बाद में प्रौपर्टी की देखरेख की जिम्मेदारी सभी की हो और किराए से जुड़ी रकम भी किसी एक से ली जा सके.

– मकान मालिक किराएदार के बारे में पूछताछ कर सकता है, जिस से वह उस से जुड़ी आसामाजिक गतिविधियों व आपराधिक पृष्ठभूमि को जान सके.

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कुछ महत्त्वपूर्ण बातें

रैंट एग्रीमैंट से जुड़ी ऐसी ही कुछ बारीकियां जानने के लिए दिल्ली के एक लीगल एडवाइजर यश गुप्ता से बातें हुईं. उन्होंने कुछ महत्त्वपूर्ण बातें समझाईं-

किसी भी रैंट एग्रीमैंट को साइन करते समय या बनवाते समय मकानमालिक और किराएदार दोनों को ही कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखना चाहिए. जैसे, मकानमालिक को जहां किराएदार से जुड़ी पूरी जानकारी होनी चाहिए, वहीं कहीं मकानमालिक कोई धोखा तो नहीं कर रहा. इस की जानकारी किराएदार को होनी चाहिए. दूसरा, कितने समय से कितने समय तक के लिए प्रौपर्टी किराए पर दी जा रही है, साथ ही बिजली, पानी व हाउस टैक्स का बिल कौन देगा. क्या वह किराए में ही सम्मिलित है या किराए से अलग है. यह स्पष्ट होना चाहिए.

किराया कितने समय बाद बढ़ाया जाएगा और कितना, यह सब भी रैंट एग्रीमैंट में साफसाफ शब्दों में लिखा जाना चाहिए. मकानमालिक की सबलैटिंग से जुड़ी नीति के बारे में भी रैंट एग्रीमैंट में लिखा होना चाहिए. किराए के मकान के कायदेकानून की जानकारी होना आवश्यक ओ.पी. सक्सेना (ऐडीशनल पब्लिक प्र्रौसीक्यूटर, दिल्ली सरकार)

रैंट कंट्रोल ऐक्ट : यह कानून किसी भी रिहायशी या व्यावसायिक प्रौपर्टी, जो किराए पर ली या दी जाती है, उस पर लागू होता है और किराएदार एवं मकानमालिक के सिविल राइटस की रक्षा करता है. इस कानून का सही फायदा उस दशा में होता है, जब प्रौपर्टी का किराया रु. 3500 प्रति माह तक या इस से कम हो. यदि किराया रु. 3500 से ज्यादा है और किराएदार व मकानमालिक में कोई विवाद उत्पन्न होता है, तो अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा.

रैंट एग्रीमैंट : रैंट एग्रीमैंट नोटरी के वकील की मदद से बनवाया जा सकता है. इस में कुछ खास बातों का ध्यान में रखना आवश्यक है.

1. किराएदार व मकानमालिक का पूरा नाम व सही पता दर्ज हो.

2. किराए के लिए निर्धारित की गई रकम के साथ डिपाजिट की गई सिक्योरिटी व एडवांस का जिक्र अवश्य हो.

3. यदि बिजल पानी का भुगतान किराए में नहीं है, तो इस का जिक्र भी आवश्यक है.

4. किराएदार से जबरन मकान खाली नहीं कराया जा सकता : रैंट एग्रीमैंट में एक महीने के नोटिस का प्रावधान होने के बावजूद कोई भी मकानमालिक किराएदार से जबरदस्ती मकान खाली नहीं करा सकता. यदि कोई मकानमालिक ऐसा करने की कोशिश करे, तो अदालत में उस के खिलाफ अर्जी दी जा सकती है और स्टे आर्डर लिया जा सकता है.

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रि-टीनेंसी का केस न हो : मकान लेने से पहले किराएदार को यह जान लेना आवश्यक है कि जिस से वह मकान ले रहा है, वही मकान का असली मालिक है. यदि ऐसा नहीं है, तो मकान किराए पर देने वाले के पास टीनेंसी का अधिकार होना चाहिए. यदि यह सावधानी न बरती जाए, तो मकान का असली मालिक बिना किसी नोटिस के मकान खाली करा सकता है.

किराएदार की पूरी जानकारी : मकानमालिक के लिए आवश्यक है कि वह किराएदार की सही पहचान, मूल निवास, कार्यालय व आचरण के साथ इस बात की भी पूरी जानकारी जुटा ले कि वह किराया देने की हैसियत रखता है या नहीं. बाद में यदि किराएदार 1-2 महीने तक किराया नहीं भी दे पाता, तो मकानमालिक बिना अदालत का सहारा लिए मकान खाली नहीं करा सकता.

मकान की मैंटेनंस : मकान में होने वाली रिपेयरिंग व साल में एक बार रंगाईपुताई का दायित्व मकानमालिक का बनता है. किराएदार को कानूनन ये अधिकार प्राप्त हैं तथा इस के बारे में वह मकानमालिक को कह सकता है और रैंट एग्रीमैंट में भी इस का जिक्र कर सकता है.

किराए की बढ़ोतरी : रैंट एग्रीमैंट 11 महीने तक वैध होता है और नए एग्रीमैंट में पहले कानूनन किराए में 10% की वृद्धि का प्रावधान है. यदि मकानमालिक इस से ज्यादा किराया बढ़ाने का दबाव बनाता है, तो किराएदार को आपत्ति जताने का अधिकार है. किराया तय करने से पहले उस क्षेत्र के आसपास के मकानों से किराए का अंदाजा अवश्य लें.

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Winter Special: बचे ऊन से बनाएं कुछ नया

आप ने स्वैटर के लिए ऊन खरीदा तो थोड़ा ज्यादा ही लिया, क्योंकि आप यह जानती हैं कि बाद में ऊन खरीदने पर अकसर रंग में फर्क आ जाता है. ऐसा कई बार होने से ऊन के बहुत सारे छोटेबड़े गोले आप के पास इकट्ठा हो जाते हैं, जिन्हें संभालना एक मुसीबत है, क्योंकि गोले आपस में बुरी तरह उलझ भी जाते हैं. ऐसा न हो, इस से बचने के लिए क्यों न बचे ऊन का सुंदर प्रयोग कर इस सीजन में कुछ नया बना लिया जाए. आइए जानिए कि आप क्याक्या बना सकती हैं:

मोबाइल कवर

सामग्री: थोड़ा सा सफेद और लाल रंग का ऊन, लाल रंग के मोती, 10 नं. का क्रोशिया.

विधि: सफेद ऊन से 25 चे. बना लें. दूसरी ला. में 5 चे. बुनें, चा. से 3 चे. के बाद जोड़ दें. इसी कम्र में पूरी ला. बुनें. तीसरी ला. में 5 चे. बुनें, 2 चे. छोड़ कर तीसरी चे. में चा. से जोड़ें.

इसी तरह 15 ला. बुनें. दूसरा भाग भी इसी तरह बना कर सूई से सिल लें. लाल ऊन से कवर के चा. से किनारा और हैंडिल बुनें. नीचे की ओर 20 चे. बना कर गोले में जोड़ें. इसी तरह दूसरा भी बुनें. लाल मोतियों से सजाएं.

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ज्वैलरी सैट

सामग्री: लाल, पीले, हरे रंग के ऊन, सफेद और लाल रंग के मोती, 4 पीस सजावट के लिए लटकन, 3 हुक, थोड़ा सा टुकड़ा बकरम का, 12 नं. का क्रोशिया, पतली सूई.

विधि: तीनों रंगों के ऊन से मनचाही लंबाई की चे. बनाएं. पीले ऊन को बीच में रख कर 8 चे. लाल और 8 चे. हरे ऊन की ले कर गोल शेप दें. बीच में सूईधागे से मोती लगाएं. इसी क्रम को ऊपर तक दोहराएं. दूसरी लड़ी भी इसी प्रकार बनेगी.

पेंडिन बनाने के लिए: ओवल शेप में बकरम काट कर हरे, लाल, पीले रंगों के ऊन से लंबी चेन बुन कर चिपका दें. मोती लगाएं. बीच में ओवल शेप का शीशा लगाएं. नीचे की ओर लटकन लगाएं.

झुमके बनाने के लिए पेंडिन की तरह बकरम पर चे. बुन कर लगाएं. ऊपर हुक लगाएं, नीचे की तरफ लटकन लगाएं.

फूलों वाली टोकरी

सफेद ऊन से 12 चे. बनाएं. स्लिप स्टिच से 2 ला. बुनें. 6 ला.चा. बुनें. राउंड शेप में पूरी टोकरी बुनें. लाल और सफेद ऊन से किनारा और हैंडिल बनाएं. लेजीडेजी स्टिच से लाल फूल और हरी पत्तियां बनाएं.

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टैडी बीयर

सफेद ऊन से 10 चे. बना कर जोड़ें. ड.क्रो. में 4 ला. बुनें. अगली ला. में 6 चा. की 4 ला., 4 चा. सफेद ऊ. से, 6 चा. ब्राउन, 4 ला., 4 चा. सफेद से बुनें. सफेद ऊन से आउटलाइन बुनें. टैडी बीयर का चेहरा बनाने के लिए 6 चे. का घेरा बनाएं. 2 ला.चा. बुनें. ब्राउन ऊन से 1 ला.चा. की बुनें. कान के लिए 6-6 चा. की 4 ला. बुनें. इसी तरह दूसरा भाग बुना जाएगा. मोटी सूई से दोनों भागों को सिल लें. साइड में थोड़ा सा खुला रहने दें. वहां से टैडी में रुई भर दें. काले ऊन से आंख, मुंह, नाक की शेप बना दें. गले में लाल ऊन से बो बना कर बांध दें.

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