Hindi Kahaniyan : छुअन – क्यों शादी के बंधन से भागती थी स्नेहा

Hindi Kahaniyan :  यदाकदाएफबी पर बात होती थी, आज अचानक स्नेहा का मैसेंजर पर कौल बज उठी.

‘‘गुड मौर्निंग…’’

वही पहले वाली आवाज, वही नटखटपन बातों में, बेबाकी से हंस कर बोलना, ‘‘और बताओ मेरी जान… सबकुछ ठीक है न. मेरे लिए तो वही पहले वाले माधव हो.’’

माधव अपने चिरपरिचित अंदाज में

बोला, ‘‘हां बौस सब ठीक है. जैसे आप छोड़

कर गईं थी वैसा ही हूं. कालेज के पढ़ाई के

बाद आज आप से इस तरह बात हो रही है. वे क्या दिन थे जब हमारी आप से रोज मुलाकातें होती थीं…’’

स्नेहा बात को काटती हुई बीच में ही बोल पड़ीं, ‘‘अगर आप कहें तो मचान रैस्टोरैंट में मिलते हैं.  शाम 4 बजे, मैं इंतजार करूंगी.’’

‘‘हां डियर, आऊंगा,’’ माधव बोला.

स्नेहा हमेशा की तरह समय की पाबंद थी, जो 10 मिनट पहले ही पहुंच गई.

थोड़ी देर में माधव भी आ गया. वही पहली की तरह हाथों में फूलों का गुलदस्ता लिए हुए स्नेहा के सामने जा कर खड़ा हो गया.

स्नेहा पीले रंग की साड़ी में खूब फब रही थी. खुले बाल स्ट्रेट किए हुए और भी सुंदरता में चार चांद लगा रहे थे.

माथे पर एक छोटी सी लाल रंग की बिंदी, आंखों में काजल लगा हुआ. माधव उसे देखता ही रह गया. कुछ न बदली थी वह. बस होंठों पर पहले से ज्यादा लिपस्टिक लगी थी जिस से वह बेहद खूबसूरत लग रही थी.

‘‘अरे जनाब. ऐसे क्या देख रहे हैं? आइए करीब बैठिए,’’ स्नेहा, माधव का हाथ पकड़ कर खींचती हुई बोली.

मगर माधव उस के इस तरह के छूने से पसीने से सराबोर हो गया. क्षणभर के लिए स्तब्ध मानो उसे सांप सूंघ गया हो.

वह सोचने लगा कि क्या आज भी वही प्यार है मेरे दिल में? आज भी वही छुअन

स्नेहा की मुझे पागल बना रही है. वही मादकता इस की आंखों में ठहरी है जो आज तक इस

के जाने बाद मुझे किसी में भी नजर नही आई. आज मैं फिर जी उठा हूं, इस की एक छुअन से. जिंदगी खूबसूरत और रंगीन नजर आ रही है.

वह मन ही मन प्रेम की उन गहराइयों को छू रहा था, जिस की कभी आशा ही न थी.

जब से माधव स्नेहा से मिल कर आया

था तब से उस का बुरा हाल था. उस की बेचैनी कम नहीं हो रही थी. उस की आंखों के सामने स्नेहा का वह खूबसूरत सा चेहरा बारबार झूम जाता. उस का किसी काम में मन नहीं लग

रहा था.

उधर स्नेहा भी बिस्तर पर लेटी हुई

खयालों में गोते लगाती रहती और मन ही मन मुसकराती रहती.

दोनों का प्यार पुन: लौटा तो दोनों तरफ पहले की अपेक्षा और अधिक हिलोरे मारने लगा. उन दोनों में लगातार बातें होने लगी.

दोनों का प्रेम अब एकदूसरे के लिए जरूरत सा हो गया था. रोज किसी न किसी बहाने से मिलना… एकदूसरे के प्रति समर्पित से हो गए. दोनों जब तक एकदूसरे से मिलते नहीं थे तब उन्हें अपनी जिंदगी अधूरी सी महसूस होती.

एक दिन जब स्नेहा मिलने गई तब बातों

ही बातों में शादी का प्रस्ताव रख दिया माधव

के समक्ष.

मगर माधव ने प्रस्ताव सुनते ही कुछ पलों के लिए चुप्पी साध ली…

‘‘अरे क्या हुआ?’’ मैं ने कुछ गलत कहा क्या? स्नेहा माधव के चेहरे के सामने चुटकी बजाते हुए बोली.

‘‘नहीं… नहीं…’’ दबे हुए लहजे में माधव ने उत्तर दिया, ‘‘तो फिर..’’ स्नेहा बोली.

‘‘दरअसल, मेरी शादी हो चुकी थी. इस विषय में मैं आप को बता नहीं पाया था, उस से पहले आप मुझे छोड़ कर चली गई थीं. मेरे घर वालों ने मेरी शादी करा दी थी, मगर मैं तुम्हें

भूल नहीं पाया और अपनी पत्नी को स्वीकार

भी नहीं कर सका, जिस की वजह से वह डिप्रैशन की शिकार हो गई और हर बात को दिल से लगा कर रोज झगड़ती, अपनेआप को ही नुकसान पहुंचाती. एक दिन मैं उसे बिना बताए कहीं चला गया काम के सिलसिले में तो उसे लगा कि मैं उसे छोड़ कर चला गया हूं.

‘‘वह यह बात बरदाश्त न कर सकी और अचानक ब्रेन हैमरेज हुआ और इस दुनिया को छोड़ कर चली गई जिस का मैं आज तक

गुनहगार हूं, स्नेहा. तभी से घरबार त्याग कर मैं अब यही रहता हूं. कभीकभी घर जा कर घर वालों से मिल लेता हूं, मगर जब से आप दोबारा मिली हैं तो फिर से वही नशा चढ़ गया है मुझे आप का… जीने की ललक बढ़ गई है. लेकिन अब शादी नही कर पाऊंगा. पहले मैं तैयार था तो आप नहीं…

‘‘बस… बस… आप की बात सुन ली, समझ ली, पर अब मैं रहूंगी तो सिर्फ आप के साथ ही मैं ने सोच लिया है,’’ स्नेहा एक लंबी सांस भरती हुई तपाक से बोल पड़ी अपने वही पुराने नटखट अंदाज में.’’

‘‘वह कैसे? क्यों आप की शादी नहीं हुई क्या?’’ माधव पुन: अपने चिरपरचित अंदाज में आश्चर्यचकित हो प्रश्न कर बैठा.

‘‘नहीं, मैं ने शादी नहीं की, आप को लगा कि मैं आप को छोड़ कर बहुत खुश थी, तो ऐसा नहीं था. मेरे सामने तमाम मजबूरियां थीं, मैं पढ़ना चाहती थी, आगे कुछ करना चाहती थी, मगर घर की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि आगे अच्छे से पढ़ पाती. फिर भी बहुत मेहनत के बाद आज मैं अपने परों पर हूं अब मुझे किसी के आगे हाथ नही पसारने होंगे, लेकिन मुझे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी.

‘‘पिताजी तो थे नहीं और मेरे ग्रैजुएशन के बाद मां अपने भाइयों के साथ रहने लगीं. मेरी पढ़ाई और सारी जिम्मेदारी उन के सिर पर आ गई. मेरे मामाजी बहुत पैसे वाले थे जिन्होंने मुझे पढ़ने के लिए पैसे तो दिए पर अपने शराब के अड्डे पर आने वाले शराबियों के सामने मुझे शो पीस की तरह पेश करते थे, उन के मनोरंजन के लिए ताकि उन का कारोबार दिनबदिन बढ़ता जाए. इसी वजह से वे मेरे शादी न करने के फैसले से कोई आपत्ती भी नहीं जताते थे, खैर… अब जो भी हो मैं अपने पैरों पर हूं, सब झंझंटों से दूर साफ्टवेयर इंजीनियर के तौर पर काम करती हूं. मां घर संभालती हैं. आप चाहें तो हम तीनों एक छत के नीचे रह सकते हैं.’’

‘‘नहीं आप से बोल चुका हूं अब शादी

नहीं कर सकता. मगर मेरे दिल में

आप के लिए सम्मान, प्यार और अधिक बढ़

गया है.’’

‘‘ओके… मत कीजिए शादी, आप की मरजी जब मन हो तब बोल दीजिएगा क्योंकि अब मैं आप को खोना नहीं चाहती सारी जिंदगी आप के साथ गुजारना चाहती हूं,’’ स्नेहा मायूस हो कर बोली.

‘‘हां स्नेहा… मेरी भी दिली इच्छा है कि हम दोनों एक छत के नीचे रहें जीवनभर,’’ माधव चेहरे पर हलकी मुसकान बिखेरते हुए बोला, ‘‘प्यार के रिलेशन में… शादी करने में ढिंढोरा पीटना होगा, सैकड़ों को जवाब देना होगा.’’

‘‘तो आज ही अपना रूम खाली कर के आ जाओ मेरे घर. मां आप को देख कर बहुत खुश हो जाएंगी. उन्हें भी एक बेटा मिल जाएगा,’’ स्नेहा खुशी से बोली.

‘‘हां, मैं आज ही शाम को सामान ले कर आता हूं… सामान ही क्या है मेरे पास, बस थोड़े कपड़े, बरतन और थोड़ी किताबें.’’

‘‘ठीक है मैं अपनी गाड़ी ले कर खुद आऊंगी शाम को.’’

दोनों की खुशियों का आज जैसे कोई ठिकाना ही नहीं था. जो कभी सपने में भी नहीं सोचा था वह आज पूरा होने जा रहा था.

माधव बाय बोल कर अपने रूम के ओर मुड़ गया और स्नेहा वहीं खड़ी रह गई खुशी से झूमती हुई माधव के दिए लाल गुलाब के फूल को सूंघती हुई. उस को जाते हुए देख कर मन ही मन प्रसन्न हो रही थी और अनंत सपनों को साकार होते हुए आंखों के सामने देख रही थी. संग बिताए हुए हर लमहे को, हर उस छुअन को सहेज कर, समेट कर नई जिंदगी की ओर अग्रसर हो रही थी. नए सिरे से… नए अंदाज से…

Short Stories in Hindi : पुनर्विवाह – शालिनी और मानस का कैसे जुड़ा रिश्ता

Short Stories in Hindi :  मनोज के गुजर जाने के बाद शालिनी नितांत तन्हा हो गई थी. नया शहर व उस शहर के लोग उसे अजनबी मालूम होते थे. पर वह मनोज की यादों के सहारे खुद को बदलने की असफल कोशिश करती रहती. शहर की उसी कालोनी के कोने वाले मकान में मानस रहते थे. उन्होंने ही जख्मी मनोज को अस्पताल पहुंचाने के लिए ऐंबुलैंस बुलवाई थी. मनोज की देखभाल में उन्होंने पूरा सहयोग दिया था. सो, मानस से शालिनी का परिचय पहचान में बदल गया था. मानस ने अपना कर्तव्य समझते हुए शालिनी को सामान्य जीवन गुजारने के लिए प्रोत्साहित करते हुए कहा, ‘‘शालिनीजी, आप कल से फिर मौर्निंगवाक शुरू कर दीजिए, पहले मैं ने आप को अकसर पार्क में वाक करते हुए देखा है.’’

‘‘हां, पहले मैं नित्य मौर्निंगवाक पर जाती थी. मनोज जिम जाते थे और मुझे वाक पर भेजते थे. उन के बाद अब दिल ही नहीं करता,’’ उदास शालिनी ने कहा.

‘‘मैं आप की मनोदशा समझ सकता हूं. 4 साल पहले मैं भी अपनी पत्नी खो चुका हूं. जीवनसाथी के चले जाने से जो शून्य जीवन में आ जाता है उस से मैं अनभिज्ञ नहीं हूं. किंतु सामान्य जीवन के लिए खुद को तैयार करने के सिवा अन्य विकल्प नहीं होता है.’’ दो पल बाद वे फिर बोले, ‘‘मनोजजी को गुजरे हुए 3 महीने से ज्यादा हो चुके हैं. अब वे नहीं हैं, इसलिए आप को अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है. आप खुद को सामान्य दिनचर्या के लिए तैयार कीजिए.’’

मानस ने अपना तर्क रखते हुए आगे कहा, ‘‘शालिनीजी, मैं आप को उपदेश नहीं दे रहा बल्कि अपना अनुभव बताना चाहता हूं. सच कहता हूं, पत्नी के गुजर जाने के बाद ऐसा महसूस होता था जैसे जीवन समाप्त हो गया, अब दुनिया में कुछ भी नहीं है मेरे लिए, किंतु ऐसा होता नहीं है. और ऐसा सोचना भी उचित नहीं है. किंतु मृत्यु तो साथ संभव नहीं है. जिस के हिस्से में जितनी सांसें हैं, वह उतना जी कर चला जाता है. जो रह जाता है उसे खुद को संभालना होता है. मैं ने उस विकट स्थिति में खुद को व्यस्त रखने के लिए मौर्निंगवाक शुरू की, फिर एक कोचिंग इंस्टिट्यूट जौइन कर लिया. रिटायर्ड प्रोफैसर हूं, सो पढ़ाने में दिल लगता ही है. इस के बाद भी काफी समय रहता है, उस में व्यस्त रहने के लिए घर पर ही कमजोर वर्ग के बच्चों को फ्री में ट्यूशन देता हूं तथा हफ्ते में 2 दिन सेवार्थ के लिए एक अनाथाश्रम में समय देता हूं. इस तरह के कार्यों से अत्यधिक आत्मसंतुष्टि तो मिलती ही है, साथ ही समय को फ्रूटफुल व्यतीत करने का संतोष भी प्राप्त होता है. आप से आग्रह करना चाहता हूं कि आप इन कार्यों में मुझे सहयोग दें.

‘‘अच्छा, अब मैं चलता हूं. कल सुबह कौलबैल दूंगा, निकल आइएगा, मौर्निंगवाक पर साथ चलेंगे, शुरुआत ऐसे ही कीजिए.’’

अन्य विकल्प न होने के कारण शालिनी ने सहमति में सिर हिला दिया. सच में मौर्निंगवाक की शुरुआत से वह एक ताजगी सी महसूस करने लगी. उस ने मानस के साथ कमजोर वर्ग के बच्चों को पढ़ाना व अनाथालय में समय देना भी प्रारंभ कर दिया. इन सब से उसे अद्भुत आत्मसंतुष्टि का अनुभव होता. दो दिनों से मानस मौर्निंगवाक के लिए नहीं आए. शालिनी असमंजस में पड़ गई, शायद मानस ने सोचा हो कि शुरुआत करवा दी, अब उसे खुद ही करना चाहिए. शालिनी पार्क तक चली गई. किंतु उसे  मानस वहां भी दिखाई नहीं दिए. जब तीसरे दिन भी वे नहीं आए तब उसे भय सा लगने लगा कि कहीं एक विधवा और एक विधुर के साथ का किसी ने उपहास बना, मानस को आहत तो नहीं कर दिया, कहीं उन के साथ कुछ अप्रिय तो घटित नहीं हो गया, ऐक्सिडैंट…? नहींनहीं, वे ठीक हैं, उन के साथ कुछ भी बुरा नहीं हुआ है. इन्हीं उलझनों में उस के कदम मानस के घर की ओर बढ़ चले. दरवाजे पर ताला पड़ा था. दो पल संकोचवश ठिठक गई, फिर वह उन के पड़ोसी अमरनाथ के घर पहुंच गई. अमरनाथ और उन की पत्नी ने उस का स्वागत करते हुए कहा, ‘‘आइए, शालिनीजी, कैसी हैं? हम लोग आप के पास आने की सोच रहे थे किंतु व्यस्तता के कारण समय न निकाल पाए.’’

शालिनी ने उन्हें धन्यवाद देते हुए पूछा, ‘‘आप के पड़ोसी मानसजी क्या बाहर गए हुए हैं? उन के घर पर…’’

‘‘नहींनहीं, उन्हें डिहाइड्रेशन हो गया था. वे अस्पताल में हैं. हम उन से कल शाम मिल कर आए हैं. अब वे ठीक हैं,’’ अमरनाथजी ने बताया. शालिनी सीधे अस्पताल चल दी. विजिटिंग आवर होने के कारण वह मानस के समक्ष घबराई सी पहुंच गई, ‘‘कैसे हैं आप, क्या हो गया, कैसे हो गया, आप ने मुझे इतना पराया समझा जो अपनी तबीयत खराब होने की सूचना तक नहीं दी. मैं पागलों सी परेशान हूं. न दिन में चैन है न रात में नींद.’’

‘‘ओह शालू, इतना मत परेशान हो, मुझे माफ कर दो. मुझे तुम्हें खबर करनी चाहिए थी किंतु तुम्हें मेरा हाल कैसे मालूम हुआ?’’ मानस ने आश्चर्य से कहा.

‘‘आज मैं हैरानपरेशान अमरनाथजी के घर पहुंच गई. वहीं से सब जान कर सीधी चली आ रही हूं. आप बताइए, अब आप कैसे हैं, तथा यह हाल कैसे हुआ?’’ शालिनी की आंखें सजल हो उठीं. मानस भी भावुक हो उठे, उन्होंने शालिनी का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘प्लीज, परेशान मत हो, मैं एकदम ठीक हूं. उस दिन रामरतन रात में खाना बनाने न आ सका, साढ़े 8 बजे के बाद फोन करता है, ‘सर, आज नहीं आ सकूंगा, पत्नी को बहुत चक्कर आ रहे हैं.’ मैं ने कह दिया कि ठीक है, तुम पत्नी को डाक्टर को दिखाओ, अभी मैं ही कुछ बना लेता हूं. सुबह सब ठीक रहे तो जरूर आ जाना.

‘‘मैं ने कह तो दिया, किंतु कुछ बना न सका. सो, नुक्कड़ की दुकान से पकौड़े ले आया, वही हजम नहीं हुए बस, रात से दस्त और उल्टियां शुरू हो गईं.’’ ‘‘मनजी, आप मुझे कितना पराया समझते हैं. मेरे घर पर, खाना खा सकते थे, किंतु नहीं, आप नुक्कड़ की दुकान पर पकौड़े लेने चल दिए, जबकि आप के घर से दुकान की अपेक्षा मेरा घर करीब है. सिर्फ आप बात बनाते हैं कि तुम्हें अपनत्व के कारण समझाता हूं कि स्वयं को संभालो और सामान्य दिनचर्या का पालन करो. मैं ने आज आप का अपनापन देख लिया.’’ ‘‘सौरी शालू, मुझे माफ कर दो,’’ मानस ने अपने कान पकड़ते हुए कहा, ‘‘वैसे अच्छा ही हुआ, तुम्हें खबर कर देता तो तुम्हारा यह रूप कैसे देख पाता, तुम्हें मेरी इतनी फिक्र है, यह तो जान सका.’’

शालिनी ने हौले से मानस की बांह में धौल जमाते हुए अपनी आंखें पोंछ लीं तथा मुसकरा दी. भावनाओं की आंधी सारी औपचारिकताएं उड़ा ले गई. मानस शालिनी को ‘शालू’ कह बैठे, वही हाल शालिनी का था, वह  ‘मानसजी’ की जगह ‘मनजी’ बोल गई. भावनाओं के ज्वार में मानस भूल ही गए कि उन के कमरे में उन की बेटी सुगंधा भी मौजूद है. शालिनी तो उस की उपस्थिति से अनभिज्ञ थी, अतिभावुकता में उसे मानस के सिवा कुछ दिखाई ही नहीं दिया. एकाएक मानस की नजरें सुगंधा से टकराईं. संकोचवश शालिनी का हाथ छोड़ते हुए उन्होंने परिचय करवाते हुए कहा, ‘‘शालिनी, इस से मिलो, यह मेरी प्यारी बेटी सुगंधा है. यह आई तो औफिस के काम से थी किंतु मेरी तीमारदारी में लग गई.’’

शालिनी को सुगंधा की उपस्थिति का आभास होते ही उस की हालत तो रंगे हाथों पकड़े गए चोर सी हो गई. वह सुगंधा से दोचार औपचारिक बातें कर झटपट विदा हो ली. अस्पताल से लौटते समय शालिनी अत्यधिक सकुचाहट में धंसी जा रही थी. वह भावावेश में क्याक्या बोल गई, न जाने मानस क्या सोचते होंगे. सुगंधा का खयाल आते ही उस की सकुचाहट बढ़ जाती, न जाने वह बच्ची क्या सोचती होगी, कैसे उस का ध्यान सुगंधा पर नहीं गया, वह स्वयं को समझाती. मानस के लिए व्यथित हो कर ही तो वह अस्पताल पहुंच गई थी, भावनाओं पर उस का नियंत्रण नहीं था. इसलिए जो मन में था, जबान पर आ गया. मानस घर आ गए थे. अब वे पूरी तरह स्वस्थ थे. सुगंधा को कल लौट जाना था. सुगंधा ने मानस एवं शालिनी के  परस्पर व्यवहार को अस्पताल में देखा था. इतना तो वह समझ चुकी थी कि दोनों के मध्य अपनत्व पप चुका है, बात जाननेसमझने की इच्छा से उस ने बात छेड़ते हुए कहा, ‘‘पापा, शालिनी आंटी इस कालोनी में नई आई हैं, मैं ने उन्हें पहले कभी नहीं देखा?’’

मानस शांत, गहन चिंता में बैठ गए. सुगंधा ने ही उन्हें टटोलते हुए कहा, ‘‘क्या बात है पापा, नाराज हो गए?’’ ‘‘नहीं, बेटा, तू तो मुझे, मेरे हित में ही समझा रही है किंतु मुझे भय है. शालिनी मुझे स्वार्थी समझ मुझ से दोस्ती न तोड़ बैठे. उस का अलगाव मैं सहन न कर सकूंगा,’’ मानस ने धीरेधीरे कहा. ‘‘पापा, वे आप से प्यार करती हैं किंतु नारीसुलभ सकुचाहट तो स्वाभाविक है न, पहल तो आप को ही करनी होगी.’’ ‘‘मेरी बेटी, इतनी बड़ी हो गई मुझे पता ही नहीं चला,’’ मानस के इस वाक्य पर दोनों ही मुसकरा दिए. सुगंधा लौट गई, किंतु मानस को समझा कर ही नहीं धमका कर गई कि वे जल्दी से जल्दी शालिनी से शादी की बात करेंगे वरना वह स्वयं यह जिम्मेदारी पूरी करेगी. मौर्निंगवाक पर मानस एवं शालिनी सुगंधा के संबंध में ही बातें करते रहे. मानस बोले, ‘‘5 वर्ष हो गए सुगंधा की शादी हुए. जब भी जाती है मन भारी हो जाता है. उस के आने से सारा घर गुलजार हो जाता है, जाती है तो अजीब सूनापन छोड़ जाती है.’’ शालिनी ने कहा, ‘‘बड़ी प्यारी है सुगंधा. खूबसूरत होने के साथसाथ समझदार भी, उस की आंखें तो विशेष सुंदर हैं, अपने में एक दुनिया समेटे हुए सी मालूम होती है वह.’’ मानस खुश होते हुए बोले, ‘‘वह अपनी मां की कार्बनकौपी है. मैं शुभि को अद्भुत महिला कहता था, रूप एवं गुण का अद्भुत मेल था उस के व्यक्तित्व में.’’

शालिनी सुगंधा के साथ विशेष जुड़ाव महसूस करने लगी थी. उस ने सुगंधा के पति, उस की ससुराल के संबंध में विस्तृत जानकारी ली तथा अत्यधिक प्रसन्न हुई कि बहुत समझदार एवं संपन्न परिवार है. मौर्निंगवाक से लौटते समय शालिनी का घर पहले आता है. रोज ही मानस उसे उस के घर तक छोड़ते हुए अपने घर की ओर बढ़ जाते थे, आज शालिनी ने आग्रह करते हुए कहा, ‘‘मनजी, आज आप ब्रेकफास्ट एवं लंच मेरे साथ ही लीजिए. आज ही सुगंधा लौट कर गई है, आप को अपने घर में आज सूनापन ज्यादा महसूस होगा.’’ मानस जल्दी ही मान गए. उन्होंने सोचा, इस बहाने शालिनी से अपने दिल की बात कर सकेंगे. काफी उलझन के बाद मानस ने शालिनी से साफसाफ कहना उचित समझा, ‘‘शालू, मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं किंतु तुम से एक वादा चाहता हूं. यदि तुम्हें मेरी बात आपत्तिजनक लगे तो साफ इनकार कर देना किंतु नाराजगी से दोस्ती खत्म नहीं करना.’’ शालिनी ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा, ‘‘ऐसा क्यों कह रहे हैं, आप की दोस्ती मेरे जीवन का सहारा है, मनजी. खैर, चलिए वादा रहा.’’ ‘‘शालू, मैं तुम से शादी करना चाहता हूं, क्या मेरा सहारा बनोगी?’’ मानस ने शालिनी की आंखों में देखते हुए कहा. शालिनी ने नजरें झुका लीं और धीरे से बोली, ‘‘यह क्या कह बैठे, मनजी, भला यह भी कोई उम्र है शादी रचाने की.’’ ‘‘देखो शालू, हम दोनों अपनेअपने जीवनसाथी को खो कर जीवन की सांध्यबेला में अनायास ही मिल गए हैं. हम दोनों ही तन्हा हैं. हम एकदूसरे का सहारा बन फिर से जीवन में आनंद एवं उल्लास भर सकते हैं. जीवन के उतारचढ़ाव में परस्पर सहयोग दे सकते हैं.

‘‘मैं अपनी पत्नी शुभि को बहुत चाहता था, किंतु बीमारी ने उसे मुझ से छीन लिया. मेरी शुभि भी मुझे बहुत चाहती थी. अपनी बीमारी के संघर्ष के दौरान भी उसे अपनी जिंदगी से ज्यादा मेरे जीवन की फिक्र थी. एक दिन मुझ से बोली, ‘मनजी, मेरा आप का साथ इतना ही था. आप को अभी लंबा सफर तय करना है. अकेले कठिन लगेगा. मेरे बाद अवश्य योग्य जीवनसाथी ढूंढ़ लीजिएगा,’ अपनी शादी वाली अंगूठी मेरी हथेली पर रख कर बोली, ‘इसे मेरी तरफ से स्नेहस्वरूप आप प्यार से उसे पहना देना. मैं यह सोच कर खुश हो लूंगी कि मेरे मनजी के साथ उन की फिक्र करने वाली कोई है.’’’ मानस, अपनी पत्नी को याद कर बेहद गंभीर हो गए थे, दो पल रुक कर स्वयं को संयत कर बोले, ‘‘मैं ने तुम्हें एवं मनोज को भी साथसाथ देखा था, गृहप्रवेश के अवसर पर तथा अस्पताल के दुखद मौके पर. तुम दोनों का प्यार स्पष्टत: परिलक्षित था. मनोज को भी अपनी जिंदगी से ज्यादा तुम्हारे जीवन की चिंता थी. वे सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी ही चिंता व्यक्त करते थे. मैं आईसीयू में उन से मिलने जब भी जाता, सिर्फ तुम्हारे संबंध में चिंता व्यक्त करते थे. उस दिन उन्हें आभास हो चला था कि वे नहीं बचेंगे. अत्यधिक कष्ट में बोले थे, ‘दोस्त, मैं तुम्हें अकसर पुनर्विवाह की सलाह देता था, और तुम हंस कर टाल जाते थे. किंतु अब तुम से वचन चाहता हूं, मेरी शालू को अपना लेना. तुम्हारे साथ वह सुरक्षित है, यह सोच मुझे शांति मिलेगी. हम ने परिवारों के विरोध के बावजूद अंतर्जातीय विवाह किया था. सभी संबंध खत्म हो गए थे. मेरे बाद एकदम अकेली हो जाएगी मेरी शालू. दोस्त, मेरा आग्रह स्वीकार कर लो, मेरे पास समय नहीं है.’

‘‘उन की दर्द भरी याचना पर मैं हां तो न कर सका था किंतु स्वीकृति हेतु सिर अवश्य हिला दिया था. मेरी सहमति जान कर उस कष्ट एवं दर्द में भी उन के चेहरे पर एक स्मिति छा गई थी किंतु शालिनी, तुम्हारी नाराजगी के डर से मैं तुम से कहने का साहस न जुटा सका था. ‘‘सच कहता हूं शालू, सांत्वना और सहयोग ने मनोज के आग्रह के बाद कब प्यार का रूप ले लिया, इस का आभास मुझे भी नहीं हुआ. किंतु मेरे प्यार की सुगंध मेरी बेटी सुगंधा ने महसूस कर ली है,’’ कहते हुए मानस धीरे से मुसकरा दिए. शालिनी नीची नजरें किए हुए शांत बैठी थी. मानस ने ही कहा, ‘‘शालू, मैं ने तुम्हें मनोजजी की, सुगंधा की एवं अपनी भावनाएं बता दी हैं. अंतिम निर्णय तुम ही करोगी. तुम्हारी सहमति के बिना हम कुछ भी नहीं करेंगे.’’ शालिनी ने आहिस्ताअहिस्ता कहना शुरू किया, ‘‘मनोज ने जैसा आग्रह आप से किया था वैसी ही इच्छा मुझ से भी व्यक्त की थी. मुझ से कहा था, ‘

शालू, दुनिया में अकेली औरत का जीवन दूभर हो जाता है. मानसजी भले इंसान हैं तथा विधुर भी हैं. उन का हाथ थाम लेना. तुम सुरक्षित रहोगी तो मुझे शांति मिलेगी.’ मेरी चुप्पी पर अधीर हो कर बोले थे, ‘शालू, मान जाओ, हां कह दो, मेरे पास समय नहीं है.’

‘‘उन की पीड़ा, उन की अधीरता देख मैं ने भी स्वीकृति में सिर हिला दिया था. मेरी स्वीकृति मान उन्होंने हलकी मुसकराहट से कहा था, ‘मेरी शादी वाली अंगूठी मेरी सहमति मान, मानस को पहना देना. उस में लिखा ‘एम’ अब उन के लिए ही है.’ किंतु मैं भी आप की दोस्ती न खो बैठूं, इस संकोच में आप से कुछ कह न सकी,’’ वह हलके से मुसकरा दी. मानस इत्मीनान से बोले, ‘‘चलो, सुगंधा की जिद के कारण सभी बातें साफ हो गईं. मैं तो तुम्हें चाहने लगा हूं, यह स्वीकार करता हूं. तुम्हारा प्यार भी उस दिन अस्पताल में उजागर हो चुका है. मेरी  सुगंधा तो हमारी शादी के लिए तैयार बैठी है. तुम भी इस विषय में अपने बेटे से बात कर लो.’’ शालिनी ने उदासीनता से कहा, ‘‘मेरा बेटा तो सालों पहले ही पराया हो गया. अमेरिका क्या गया वहीं का हो कर रह गया. 4 साल से न आता है न हमारे आने पर सहमति व्यक्त करता है. उस की विदेशी पत्नी है तथा उस ने तो हमारा दिया नाम तक बदल दिया है. ‘‘मनोज के क्रियाकर्म हेतु बहुत कठिनाई से उस से संपर्क कर सकी थी. मात्र 3 दिन के लिए आया था. मानो संबंध जोड़ने नहीं बल्कि तोड़ने आया था. कह गया, ‘यों व्यर्थ मुझे आने के लिए परेशान न किया करें, मेरे पास व्यर्थ का समय नहीं है.’

‘‘अकेली मां कैसे रहेगी, न उस ने पूछा, न ही मैं ने बताया. अजनबी की तरह आया, परायों की तरह चला गया,’’ शालिनी की आंखें भीग आई थीं. मानस ने उस के आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘शालू, जिस बेटे को तुम्हारी फिक्र नहीं है, जिस ने तुम से कोई संबंध, संपर्क नहीं रखा है, उस के लिए क्यों आंसू  बहाना. मैं तुम से एक वादा कर सकता हूं, हम दोनों एकदूसरे का इतना मजबूत सहारा बनेंगे कि हमें अन्य किसी सहारे की आवश्यकता ही नहीं होगी.’’ शालिनी अभी भी सिमटीसकुचाई सी बैठी थी. मानस ने उस की अंतर्दशा भांपते हुए कहा, ‘‘शालू, यह तुम भी जानती होगी तथा मैं भी समझता हूं कि इस उम्र में शादी शारीरिक आवश्यकता हेतु नहीं बल्कि मानसिक संतुष्टि के लिए की जाती है. शादी की आवश्यकता हर उम्र में होती है ताकि साथी से अपने दिल की बात की जा सके. एक साथी होने से जीवन में उमंगउत्साह बना रहता है.’’ फोन के जरिए सुगंधा सब बातें जान कर खुशी से उछलते हुए बोली, ‘‘पापा, इस रविवार यह शुभ कार्य कर लेते हैं, मैं और कुणाल इस शुक्रवार की रात में पहुंच रहे हैं.’’ रविवार के दिन कुछ निकटतम रिश्तेदार एवं पड़ोसियों के बीच मानस एवं शालिनी ने एकदूसरे को अंगूठी पहनाई, फूलमाला पहनाई तथा मानस ने शालिनी की सूनी मांग में सिंदूर सजा दिया.

सभी उपस्थित अतिथियों ने करतल ध्वनि से उत्साह एवं खुशी का प्रदर्शन किया. सभी ने सुगंधा की सोच एवं समझदारी की प्रसंशा करते हुए कहा कि मानस एवं शालिनी के पुनर्विवाह का प्रस्ताव रख, सुगंधा ने प्रशंसनीय कार्य किया है. सुगंधा ने घर पर ही छोटी सी पार्टी का आयोजन रखा था. सोमवार की पहली फ्लाइट से सुगंधा एवं कुणाल को लौट जाना था. शालिनी भावविभोर हो बोली, ‘‘अच्छा होता, बेटा कुछ दिन रुक जातीं.’’ सुगंधा ने अपनेपन से कहा, ‘‘मम्मी, अभी तो हम दोनों को जाना ही पड़ेगा, फाइनल रिपोर्ट का समय होने के कारण औफिस से छुट्टी मिलना संभव नहीं है.’’ ‘‘ठीक है, इस बार जाओ किंतु प्रौमिस करो, दीवाली पर आ कर जरूर कुछ दिन रहोगे,’’ शालिनी ने आदेशात्मक स्वर में कहा. सुगंधा को शालिनी का मां जैसा अधिकार जताना भला लगा. वह भावविभोर हो उस के गले लग गई. उसे आत्मसंतुष्टि का अनुभव हो रहा था. होता भी क्यों नहीं, उसे  मां जो मिल गई थी. दोनों के अपनत्त्वपूर्ण व्यवहार को देख कर मानस की आंखें भी सजल हो उठीं.

Hindi Kahaniyan : वो एक रात

Hindi Kahaniyan :  आज का दिन ही कुछ अजीब था. सुबह से ही कुछ न कुछ हो रहा था. कालेज से आते समय रिकशे की टक्कर. बस बच गई वरना हाथपैर टूट जाते. फिर वह खतरनाक सा आदमी पीछे पड़ गया. बड़ी मुश्किल से रास्ता काट कर छिपतेछिपाते घर पहुंच पाई. उसे घबराया हुआ देख कर मम्मी ने पूछा, ‘‘क्या हुआ अलका बड़ी घबराई हुई है?’’

‘‘कुछ नहीं मम्मी बस यों ही मन ठीक नहीं है,’’ कह कर वह बात टाल गई.

फिर अभीअभी फोन आया कि मौसाजी के बेटे का ऐक्सीडैंट हो गया है सो मम्मीपापा तुरंत चल दिए. उस का सिविल परीक्षा का पेपर था, इसलिए वह नहीं गई. उस पर शाम से ही मौसम अलग रंग में था. रुकरुक कर बारिश हो रही थी. बिजली चमक रही थी. थोड़ा अजीब सा महसूस हो रहा था, परंतु वह अपने को दिलासा दे रही थी बस एक रात की ही तो बात है, वह रह लेगी. रात के 11 बजे थे. अभी उसे और पढ़ना था. सोचा चलो एक कौफी पी ली जाए. फिर पढ़ाई करेगी. वह किचन की तरफ बढ़ी ही थी तभी जोरदार ब्रेक लगने की आवाज आई और फिर एक चीख की. पहले तो अलका थोड़ा घबराई, फिर उस ने मेनगेट खोला तो सामने एक युवक घायल पड़ा था, खून से लथपथ और अचेत. अलका ने इधरउधर देखा कि शायद कोई दिखाई दे, परंतु वहां कोई नहीं था जो उस की हैल्प करता. ‘अगर वह अंदर आ गई तो वह युवक मर भी सकता है,’ कुछ देर सोचने के बाद उस ने उसे उठाने का निश्चय किया. तभी सामने के घर से रवि निकला.

‘‘अरे, रवि देखो तो किसी ने टक्कर मार दी है. बहुत खून बह रहा है. जरा मदद करो… इसे हौस्पिटल ले चलते हैं.’’

‘‘अरे, अलका दीदी ऐक्सीडैंट का केस है, मैं किसी लफड़े में नहीं पड़ना चाहता. आप भी अंदर जाओ,’’ रवि ने कहा.

‘‘अरे, कम से कम इसे उठाओ तो… मैं फर्स्ट एड दे देती हूं… और जरा देखो कोई मोबाइल बगैरा पड़ा है क्या आसपास.’’

रवि ने इधरउधर देखा तो कुछ दूर एक मोबाइल पड़ा था. उस ने उठा कर अलका को दे दिया और फिर दोनों ने सहारा दे कर युवक को ड्राइंगरूम में सोफे पर लिटा दिया. उस के बाद रवि चला गया.

अलका ने उस की पट्टी कर दी. फिर उस ने देखा कि वह कांप

रहा है तो वह अपने भाई के कपड़े ले आई और बोली कि आप कपड़े बदल लीजिए, परंतु वह तो बेहोश था. फिर थोड़ा हिचकते हुए उस ने उस के कपड़े बदल डाले. उसे थोड़ा अजीब लगा, लेकिन अगर वह उस के कपड़े नहीं बदलती तो चोट के साथ उसे बुखार भी आ सकता था.

‘‘ओह गीता,’’ थोड़ा कराहते हुए वह अजनबी युवक बुदबुदाया. अचानक बेहोशी की हालत में उस अजनबी युवक ने अलका का हाथ कस कर पकड़ लिया.

एक पल को अलका घबरा गई. फिर बोली, ‘‘अरे हाथ तो छोडि़ए.’’

मगर वह तो बेहोश था. धीरेधीरे उस की हालत खराब होती जा रही थी.

अब अलका घबराने लगी थी. अगर इसे कुछ हो गया तो क्या होगा. मैं ही पागल थी जो इसे घर ले आई… रवि ने मना भी किया था, मगर मैं ही नहीं मानी. पर न लाती तो यह मर जाता. मैं ने तो सोचा कि पट्टी कर के घर भेज दूंगी पर अब क्या करूं?

तभी अचानक जोर से बिजली कड़की और उस ने बेहोशी में ही उस का हाथ जोर से खींचा और अलका उस के ऊपर गिर पड़ी और फिर अंधेरा छा गया.

सुबह होने को थी. उस की हालत बिगड़ती जा रही थी. अलका ने ऐंबुलैंस बुलाई और उसे हौस्पिटल ले गई. उपचार मिलने के बाद युवक को होश आया तो डाक्टर ने उसे अलका के बारे में बताया कि वही उसे यहां लाई थी.

तब वह युवक बोला, ‘‘धन्यवाद देना तो आप के लिए बहुत छोटी बात होगी अलकाजी… समझ नहीं पा रहा कि मैं आप को क्या दूं.’’

‘‘कुछ नहीं बस आप जल्दी से ठीक हो जाएं,’’ अलका ने कहा.

वह बोला, ‘‘मेरा नाम ललित है और मैं आर्मी में लैफ्टिनैंट हूं. कल मेरी गाड़ी खराब हो गई थी. मैं मैकेनिक की तलाश में अपनी गाड़ी से बाहर आया था. तभी एक कार मुझे टक्कर मार कर चली गई. फिर उस के बाद मेरी आंखें यहां खुलीं. आप ने मेरी जान बचाई आप का बहुतबहुत धन्यवाद वरना गीता मेरा इंतजार ही करती रह जाती.’

‘‘ललितजी क्या आप को रात की बात बिलकुल याद नहीं?’’ अलका ने पूछा.

‘‘क्या मतलब? कौन सी बात?’’

ललित बोला.

‘‘नहीं मेरा मतलब वह कौन था, जिस ने आप को टक्कर मारी थी?’’ अलका जानबूझ कर असलियत छिपा गई.

‘‘नहीं अलकाजी मुझे कुछ याद नहीं आ रहा,’’ दिमाग पर जोर डालते हुए ललित बोला, ‘‘हां, अगर आप को तकलीफ न हो तो कृपया मेरी वाइफ को फोन कर दीजिए. वह परेशान होगी.’’

अब अलका को अपने चारों ओर अंधेरा दिखाई देने लगा. उफ, यह इमोशनल हो कर मैं ने क्या कर डाला और ललित वह तो निर्दोष था और अनजान भी. जो कुछ भी हुआ वह एक  झटके में हुआ और बेहोशी में. ललित की हालत देख कर वह उस से कुछ न कह पाई, पर अब?

जैसेतैसे उस ने अपने को संभाल कर ललित के घर फोन किया और उस की पत्नी के आने पर उसे सबकुछ समझा कर अपने घर लौट आई. जब वह लौट कर आई तो देखा कि मम्मीपापा दरवाजे पर खड़े हैं.

‘‘अरे अलका कहां चली गई थी सुबहसुबह और यह तेरा चेहरा ऐसा लग रहा है जैसे पूरी रात सोई न हो?’’ पापा चिंतित स्वर में बोले.

‘‘ठीक कह रहे हैं अंकलजी… आजकल मैडम ने समाजसेवा का ठेका ले रखा है,’’ रवि

ने कहा.

‘‘चलो, मैं ने तो ले लिया पर तुम तो लड़के हो कर भी नजरें छिपा गए. किसी को मरने से बचाना गलत है क्या पापा?’’

उस के बाद रवि और अलका ने मिल कर पूरी बात बताई और ढूंढ़ा तो वहीं पास में ललित की गाड़ी भी खड़ी मिल गई. बाद में अलका ने ललित के घर वालों को फोन कर के बता दिया तो उस के घर वाले आ कर ले गए.

‘‘बेटा, यह तो ठीक किया परंतु आगे से हमारी गैरमौजूदगी में फिर ऐसा नहीं करना. यह तो ठीक है कि वह एक अच्छा इंसान है, परंतु अगर कोई अपराधी होता तो क्या होता,’’ अलका के पापा बोले.

‘‘अरे, अब छोडि़ए भी न. अंत भला तो सब भला. वैसे भी वह पूरी रात की जगी हुई है,’’ अलका की मम्मी बोलीं, ‘‘चल बेटी चाय पी कर थोड़ा आराम कर ले.’’

अलका अंदर चली गई साथ में एक तूफान भी वह उस रात अकेली थी, मगर पूरी थी और अब जब सब साथ हैं और वह घर में घुस रही है, तो उसे यह क्यों लग रहा है कि वह अधूरी है और यह कमी कभी पूरी होने वाली नहीं थी, क्योंकि जिस ने उसे अधूरा किया था वह तो एक अनजान इंसान था और इस बात से भी अनजान कि उस से क्या हो गया.

धीरेधीरे 1 महीना बीत गया. अलका की परीक्षा अच्छी हो गई और आज उसे लड़के वाले देखने आए थे. मम्मीपापा उन लोगों से बातें कर रहे थे. चायनाश्ता चल रहा था. लड़का डाक्टर था. परिवार भी सुलझा हुआ था.

‘‘रोहित बेटा तुम ने तो कुछ खाया ही नहीं. कुछ तो लो?’’ अलका के पापा बोले.

‘‘बहुत खा लिया अंकल,’’ रोहित ने जवाब दिया.

‘‘भाई साहब, अब तो अलका को बुलवा लीजिए. रोहित कब से इंतजार कर रहा है,’’ थोड़ा मुसकरा कर रोहित की मम्मी बोलीं.

‘‘नहीं मम्मी ऐसी कोई बात नहीं है,’’ रोहित थोड़ा झेंपता सा बोला.

‘‘अरे अलका की मां अब तो सचमुच बहुत देर हो गई है. अब तो अलका को ले आओ.’’

मम्मी अंदर जा कर बोलीं, ‘‘अलका, अब कितनी देर और लगने वाली है… सब इंतजार कर रहे हैं.’’

‘‘बस हो गया मम्मी चलिए,’’ अलका बोली और फिर वह और उस की मम्मी ड्राइंगरूम की तरफ बढ़ने लगीं.

अचानक अलका को लगा कि सबकुछ गोलगोल घूम रहा है और वह

बेहोश हो कर गिर पड़ी. हर तरफ सन्नाटा छा गया कि क्या हुआ. उस के पापा और सब लोग उस तरफ बढ़े तो रोहित बोला कि ठहरिए अंकल मैं देखता हूं. मगर उस ने जैसे ही उस की नब्ज देखी तो उस के चेहरे के भाव बदल गए. हर कोई जानना चाहता था कि क्या हुआ. रोहित ने उसे उठा कर पलंग पर लिटाया और फिर उस के चेहरे पर पानी के छींटे मारे तो उसे थोड़ा होश आया. अलका ने उठने की कोशिश की तो वह बोला लेटी रहो.

‘‘मुझे क्या हो गया अचानक पता नहीं,’’ अलका ने कहा.

‘‘कुछ खास नहीं बस थोड़ी देर आराम करो,’’ कह रोहित ने एक इंजैक्शन लगा दिया.

अब सब को बेचैनी होने लगी खासतौर पर अलका के पापा को. वे बोले, ‘‘रोहित बेटा, बताओ न क्या हुआ अलका को?’’

‘‘कुछ खास नहीं अंकल थोड़ी कमजोरी है और नए रिश्ते को ले कर टैंशन तो हो ही जाती है… अब सबकुछ ठीक है. क्या मैं अलका से अकेले में बात कर सकता हूं?’’

‘‘क्यों नहीं,’’ अलका के पिता बोले.

अलका कुछ असमंजस में थी. सोच रही थी कि क्या हुआ. तभी कमरे में रोहित ने प्रवेश किया. उसे देख कर अलका कुछ सकुचा कर बोली, ‘‘पता नहीं क्या हुआ रोहितजी… बस कमरे में आई और सबकुछ घूमने लगा और मैं बेहोश हो गई.’’

‘‘क्या तुम्हें सचमुच कुछ नहीं मालूम

अलका?’’ रोहित उसे गहरी नजरों से देखते हुए बोला.

‘‘आप तो डाक्टर हैं आप को तो पता होगा कि मुझे क्या हुआ है?’’

‘‘क्या तुम मुझ पर भरोसा कर सकती हो?’’ रोहित ने कहा.

‘‘रोहितजी न तो मैं आप को अच्छी तरह जानती हूं और न ही आप मुझे. फिर भी मैं आप के ऊपर पूरा भरोसा कर सकती हूं.’’

‘‘तो सुनो तुम प्रैगनैंट हो,’’ रोहित ने कहा.

अलका के सिर पर जैसे आसमान गिर गया हो. वह समझ नहीं पा रही थी कि उस दिन की एक छोटी सी घटना इतने बड़े रूप में उस के सामने आएगी. वह आंसू भरी आंखों से रोहित

को देखती रह गई और वह सारा घटनाक्रम

ललित का ऐक्सीडैंट, वह बरसात की रात,

ललित का समागम सब उस की आंखों के सामने तैर गया.

‘‘कहां, कैसे क्या हुआ तुम मुझे बता सकती हो? बेशक हमारी शादी नहीं हुई पर मैं तुम्हें धोखा नहीं दूंगा, उस धोखेबाज की तरह जो तुम्हें मंझधार में छोड़ कर चला गया.’’

‘‘नहीं वह धोखेबाज नहीं था रोहितजी,’’ अलका ने थरथराते हुए कहा.

‘‘फिर यह क्या है जरा बताओगी मुझे?’’ रोहित ने कुछ व्यंग्य से कहा.

‘‘वह तो हालात का मारा था. उस दिन बहुत बरसात हो रही थी. उस का ऐक्सीडैंट हुआ था. बहुत खून बह रहा था. मैं इमोशनल हो गई और उसे अंदर ले आई. सोचा था कि पट्टी बगैरा कर के घर भेज दूंगी पर उस की हालत बिगड़ती गई. वह बेहोश था और बेहोशी की हालत में बारबार अपनी वाइफ का नाम ले रहा था. बस तभी यह हादसा हो गया. मैं तो इसे एक हादसा समझ कर भूल गई थी पर यह इस रूप में सामने आएगा सोचा भी न था. अब क्या होगा राहितजी?’’ वह थरथराते होंठों से बोली.

‘‘कुछ नहीं होगा. जो कहता हूं ध्यान से सुनो. सामान्य हो कर बाहर आ जाओ.’’

रोहित बाहर आया तो सब इंतजार कर रहे थे खासतौर पर अलका के पापा.

‘‘हां रोहितजी, कहिए क्या फैसला है

आप का?’’

‘‘मुझे लड़की पसंद है पापाजी,’’ रोहित मुसकराते हुए बोला.

‘‘भई मियांबीवी राजी तो क्या करेगा काजी,’’ रोहित के पापा हंसते हुए बोले.

‘‘पापाजी एक बात कहनी थी,’’ रोहित ने सकुचाते हुए कहा.

‘‘क्या?’’ अलका के पापा कुछ घबराते हुए बोले.

‘‘पापीजी आप डर क्यों रहे हैं? बस इतना कहना है कि जितनी भी रस्में हैं शादी सहित सब 1 महीने में ही कर दीजिए.’’

‘‘पर 1 महीने में हम पूरी तैयारी कैसे करेंगे बेटा? कुछ और समय दो.’’

‘‘बात यह है पापाजी मुझे आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका जाना है तो मैं सोच रहा इस बीच में शादी भी निबटा ली जाए ताकि अलका भी मेरे साथ अमेरिका चले.’’

‘‘ठीक कह रहा है रोहित. वैसा ही करते हैं. क्यों रोहित की मां?’’ रोहित के पापा बोले.

‘‘जैसा आप लोग ठीक समझें,’’ अनमने से भाव से रोहित की मम्मी बोलीं.

अगले दिन रोहित अपने कमरे में बैठा था. तभी उस की मम्मी चाय ले कर आईं.

‘‘मैं जानता हूं मम्मी आप क्यों परेशान हो… लेकिन आप को मुझ से वादा करना पड़ेगा कि जो कुछ भी मैं आप को बताऊंगा उसे आप किसी से भी शेयर नहीं करेंगी.’’

‘‘चल वादा किया… अब तू इस आननफानन की शादी की मतलब बता.’’

रोहित ने उन्हें उस ऐक्सीडैंट से ले कर सारी बात बताई और वादा लिया कि वे किसी से भी इस बारे में कोई बात नहीं करेंगी यहां तक कि रोहित के पापा और अलका के किसी भी घर वाले से नहीं.

इस तरह चट मंगनी पट ब्याह कर के आज अलका और रोहित हनीमून पर जा रहे हैं. अलका आज बहुत भावुक थी.

रोहित से कहा, ‘‘आप ने न सिर्फ मेरी इज्जत बचाई, बल्कि मेरे पूरे परिवार की भी इज्जत बचा कर मुझे उन की नजरों से गिरने से बचा लिया. मैं आप का यह कर्ज कभी नहीं उतार पाऊंगी.’’

‘‘अलका अब अपने मन पर कोई बोझ मत रखो. जो हुआ उस में न तो तुम्हारा कोई दोष था न उस अनजाने का और न ही इस छोटी सी जान का जो इस दुनिया में अभी आई भी नहीं है. अब यह जो भी आएगा या आएगी वह मेरा ही अंश होगा, बस यह मानना.’’

तभी एअरहोस्टेस की आवाज गूंजी, ‘‘कृपया सभी यात्री अपनीअपनी सीट बैल्ट बांध लें.

Famous Hindi Stories : झूठ बोले कौआ काटे

प्रेम नेगी काफी चिंतित था. शहर में नौकरी तो मिल गई, मगर मकान नहीं मिल रहा था. कई जगह भटकता रहा. उसे कभी मकान पसंद आता, तो किराया ज्यादा लगता. कहीं किराया ठीक लगता, तो बस्ती और माहौल पसंद नहीं पड़ता था. कहीं किराया और मकान दोनों पसंद पड़ते, तो वह अपने कार्यस्थल से काफी दूर लगता. क्या किया जाए, समझ नहीं आ रहा था. आखिर कब तक होटल में रहता. उसे वह काफी महंगा पड़ रहा था.

यों ही एक महीना बीतने पर उस की चिंता और ज्यादा बढ़ गई. एक दोपहर लंच के समय उस ने अपने सीनियर सहकर्मचारियों से अपनी परेशानी कह दी. उस की परेशानी सुन कर वे हंस पड़े.

“बेचारा आशियाना ढूंढ़ रहा है,” एक बुजुर्ग बोल पड़े.

आखिर क्लर्क के ओहदे पर कार्यरत एक शख्स उस की मदद में आया. ओम तिवारी नाम था उस का. लंबा कद. घुंघराले बाल. मितभाषी. वह पिछले 6 साल से यहां कार्यरत था.

“शाम को मेरे साथ चलना,” वह बोला.

उस शाम ओम तिवारी उसे अपनी बाइक पर बिठा कर निकल पडा.  20 मिनट राइड करने के बाद दोनों एक भीड़भाड़ गली से गुजर कर संकरी गली में आए, जिस के दोनों ओर कचोरी, समोसे और गोलगप्पे लिए ठेले वाले खड़े थे और युवक, युवतियां और बच्चे खड़ेखड़े खाने में व्यस्त थे.

कुछ पल के बाद वे एक खुले से मैदान में आए, जहां कुछ मकान दिखाई पड़े. ट्रैफिक के शोरगुल से दूर वहां शांति थी. कुछ मकान को पार करते हुए वे एक डुप्लैक्स के सामने आ कर रुके. बरांडे का गेट खोल कर अंदर प्रवेश किया.

डोर बेल बजाते ही दरवाजा खुला और एक अधेड़ उम्र के आदमी ने उन्हें देखते ही स्वागत किया, “अरे ओम, तुम यहां…”

“चाचाजी, ये मेरे दोस्त हैं प्रेम नेगी,” उस ने तुरंत काम की बात कर डाली, “ये हाल ही में दफ्तर में कैशियर के ओहदे पर नियुक्त हुए हैं. इन्हें किराए पर मकान चाहिए. और मुझे याद आया कि आप का मकान खाली है,“ फिर प्रेम नेगी की तरफ मुड़ कर वह बोला, “ये मेरे चाचाजी हैं, कमल शर्मा. हाल ही में हाईकोर्ट में क्लर्क के ओहदे से रिटायर हुए हैं.“

चाचा कमल शर्मा ने उस छोरे को सिर से पांव तक निरखा और फिर अपने भतीजे की ओर देख कर बोला, “ठीक है, मगर एक शर्त है. आप शादीशुदा हैं तो ही मैं अपना मकान किराए पर दूंगा. वरना मेरा तजरबा है कि कई कुंवारे छोरे यहां बाजारू लड़कियों को लाना शुरू कर देते हैं.“

“लेकिन, मैं तो शादीशुदा हूं,” प्रेम नेगी तुरंत बोल पड़ा और फिर अपने दोस्त ओम तिवारी की तरफ देख कर बोला, “मैं मकान मिलते ही अपनी घरवाली को ले आऊंगा.”

“ठीक है, आइए और मकान देख लीजिए.”

मकान मालिक कमल शर्मा ने उठ कर उन्हें अपने साथ ले कर बगल में जो खाली मकान था, वह दिखा दिया. मकान में 2 कमरे, रसोई और आगे आलीशान बरांडा था. कमरों में अटैच टौयलेट बाथरूम भी थे. उसे मकान पसंद आया.

“किराया 5,000 रुपए प्रति माह,” मकान मालिक कमल शर्मा ने प्रेम नेगी को किराया बता दिया.

फिर चाचा ने अपने भतीजे की तरफ देख कर कहा, “वैसे तो 6 महीने का किराया एडवांस लेने का दस्तूर है, लेकिन क्योंकि तुम्हें मेरा भतीजा ले कर आया है, मैं तुम से सिर्फ 3 महीने का एडवांस लूंगा. बोलो, है मंजूर?”

“मंजूर है,“ प्रेम नेगी खुशी से बोल पडा.

वह अगले ही दिन किराए के मकान में रहने आ गया. उसे मकान तो मिल गया, लेकिन झूठ बोल कर. वह शादीशुदा नहीं था. मकान मालिक से उस ने झूठ बोला था. यहां तक कि ओम तिवारी भी समझ रहा था कि वह शादीशुदा था.

2 सप्ताह यों ही बीत गए, फिर एक रोज मकान मालिक कमल शर्मा ने उस से पूछ ही लिया, “कब ला रहे हो अपनी बीवी को?”

यह सुन कर वह चौंक गया. दिनरात उपाय सोचने लगा. क्या किया जाए? बीवी को कहां से लाए?

एक दोपहर लंच के समय वह खाना खा कर अपनी केबिन में आराम से कुरसी पर आंखें मूंदे बैठा था कि उसे एक लड़की की आवाज सुनाई पड़ी.

“क्या आप ही प्रेम नेगी हैं?” अपनी आंखें खोलते ही वह हैरान रह गया.

एक अत्यंत खूबसूरत लंबे कद वाली, गोल चेहरे पर बड़ी आंखें और कमर तक झुके हुए लंबे बाल, गुलाबी सलवार और हलके हरे कमीज पर सफेद दुपट्टा ओढ़े हुए लड़की उस के सामने थी.

“जी,” वह बोल पड़ा, “कहिए, क्या काम है?”

“मैं रितू कश्यप हूं. 2 दिन पहले ही औडिट सैक्शन में कंप्यूटर औपरेटर की हैसियत से ज्वौइन किया है. मैं ने सुना है कि आप ने हाल ही में अपने लिए मकान ढूंढ़ा है. क्या आप मेरी मदद कर सकते हैं मकान ढूंढ़ने में?”

“जी,” वह एकदम से हड़बड़ा गया, ”आ… आप को मकान चाहिए?” इतना कह कर वह गहरी सोच में डूब गया.

उस के भीतर से आवाज आने लगी. यही मौका है, हां कर दे. इसे ही अपने साथ कमरे में रख ले झूठमूठ अपनी पत्नी बना कर. मगर क्या वह इस के लिए राजी होगी?

“शाम को दफ्तर से छूटते ही मुझे मिलना. मैं जरूर आप की मदद कर दूंगा,” उस ने लड़की को आश्वस्त करते हुए कहा.

शाम को दफ्तर से छूटते ही वह रितू को औटोरिकशा में अंबेडकर पार्क ले आया. दोनों एक बेंच पर बैठे. उस ने थोड़ी देर सोचा. बात कहां से शुरू की जाए. फिर वह बोला, “देखिए रितूजी, मैं आप से झूठ नहीं बोलूंगा. सच ही कहूंगा. मैं ने किराए का मकान झूठ बोल कर लिया है. सरासर झूठ…”

“कैसा झूठ…?“ रितू ने पूछा.

“यही कि मैं शादीशूदा हूं. वैसे, मैं अभी कुंवारा हूं.”

“लेकिन, इस से मुझे क्या…?” रितू ने पूछ लिया.

“यदि तुम्हें मेरे मकान का एक कमरा चाहिए, तो तुम्हें मेरी पत्नी बन कर रहना पड़ेगा, वरना मुझे भी वो मकान खाली करना पड़ेगा.”

“पत्नी बन कर…” वह आश्चर्यचकित रह गई. फिर लड़के को घूरती रही. दिखने में तो अच्छा है. भला भी लगता है. वह सोचने लगी. फिर कालेज में तो बहुत नाटक किए हैं. कई स्मार्ट लडकों को अपने पीछे लट्टू बना कर घुमाया है. एक और नाटक सही. देखते हैं कि कहां तक सफलता हासिल होती है.

“मंजूर है,” वह आत्मविश्वास के साथ बोली.

“क्या…?” वह हक्काबक्का सा रह गया. उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि कोई लड़की इतनी जल्दी इतना बड़ा निर्णय ले सकती है.

“क्या तुम भी मेरे साथ झूठ बोल कर रहोगी?”

“बिलकुल,” वह बोली, ”चलिए, मकान दिखाइए.”

“देखिए रितूजी, ये झूठ सिर्फ मेरे और तुम्हारे बीच ही रहेगा. हमारा मकान मालिक और दफ्तर का कोई भी इस राज को जान न पाए, ध्यान रहे… ये सिर्फ नाटक है,” उस ने चेतावनी दे कर कहा.

“आप बेफिक्र रहिए. चलिए, मकान देखते हैं.“

अगले दिन सवेरेसवेरे रितू अपना सूटकेस ले कर प्रेम के घर चली आई. उस ने मकान के कमरों का निरीक्षण किया. दोनों कमरे अलगअलग थे और दोनों में अटैच बाथरूम और टौयलेट देख कर वह हंस पड़ी.

“वाह, कमरे तो बिलकुल अलग हैं. हम दोनों आराम से अलगअलग रह सकते हैं.”

प्रेम ने मकान मालिक को बुला कर रितू का परिचय अपनी बीवी के तौर पर करवा दिया.

“रितू को यहां एक स्कूल में टीचर की नौकरी मिली है. उस का समय भी दफ्तर की तरह ही 11बजे से 5 बजे है. हम दोनों साथ ही काम पर जाएंगे और लौटेंगे.”

“ठीक ही हुआ. तुम जल्दी ही अपनी बीवी को ले आए,” मकान मालिक ने भी खुश होते हुए कहा.

और फिर नाटक शुरू हो गया.

प्रेम और रितू एकसाथ मकान में रहने लगे, मियांबीवी की तरह. दोनों का प्रवेश द्वार एक ही था, लेकिन बरांडा पार करते हुए दोनों अलगअलग कमरे में दाखिल हो जाते. दोनों साथसाथ दफ्तर जाते और छूटने के बाद बाजार में घूम कर रैस्टोरैंट में शाम का खाना खा कर ही घर लौटते. एकाध महीने बाद ही प्रेम अपने गांव से बाइक भी ले आया. फिर दोनों हमेशा बाइक पर एकसाथ नजर आने लगे. दफ्तर में किसी को जरा सा भी शक नहीं हुआ. यहां तक कि ओम तिवारी को भी नहीं.

दिन तो व्यस्तता में गुजर जाता, लेकिन रात को दोनों अलगअलग कमरे में बिस्तर में लेटे सोचने लगते. प्रेम सोचता, “क्या अजीब परिस्थिति है? कुंवारा होते हुए भी शादीशुदा होने का नाटक करना पड़ रहा है, वह भी एक खूबसूरत लड़की के साथ.”

रितू कभीकभार रात में कुछ आहट सुनते ही जाग उठती. कहीं वह बंदा मेरे कमरे में आने की कोशिश तो नहीं कर रहा? क्या भरोसा? मौका मिलते ही पतिपत्नी के नाटक को सही बना दे. वाह रितू, तू ने भी बड़ी हिम्मत की है. मर्द के साथ रात बिता रही है. यदि कोई अनहोनी हो गई तो…?

व्यस्त दुनिया में कोई क्या कर रहा है, कैसे जी रहा है, यह सोचने की किसी को तनिक भी फुरसत नहीं होती. लेकिन जहां किसी लड़केलड़की के संदिग्ध संबंधों की बात आती है, वहां झूठ ज्यादा देर तक छुपा नहीं रहता और सच सिर चढ़ कर बोलता है. भूख, बीमारी, गरीबी व गंदगी सहन करने वाला समाज यदि कोई अनैतिक संबंधों के बारे में पता चल जाए तो फिर उसे कतई सहन नहीं कर सकता. फिर यदि कुंवारे लड़कालड़की हों, तो फिर बात ही क्या है?

दफ्तर में ओम तिवारी को भी भनक लग गई.

“रितू को नकली बीवी बना कर बड़े मजे लूट रहे हो यार… कभीकभार हमें भी मौका दे दिया करो. आखिर मकान तो हम ने ही दिलवाया है. खाली भी करवा सकते हैं. समझे?“

यह सुन कर प्रेम नेगी के पांव तले जमीन सरक गई.

शाम को उस ने रितू से कहा, “हमारा झूठ पकड़ा गया है. ओम तिवारी को इस का पता चल गया है. वह हमारे मकान मालिक को जरूर बता देगा.”

रितू के चेहरे पर भी चिंता की रेखाएं उभर आईं.

उस रात प्रेम नेगी को नींद नहीं आई. उसे यकीन हो गया कि उस का झूठ अब ज्यादा चलने वाला नहीं था. फिर उसे डर था कि उस की इस मजबूरी का फायदा उठाते हुए कहीं ओम तिवारी उस के घर आ कर रितू के साथ जबरदस्ती न करने लगे. उस की नीयत ठीक नहीं थी. उसे रात भयानक लगने लगी थी. उस ने तय कर लिया कि सवेरे सबकुछ मकान मालिक को सहीसही बता देगा. उस ने अपने सेलफोन की घड़ी में देखा तो रात के साढ़े बारह बज चुके थे, तभी किसी ने उस का दरवाजा खटखटाया.

“नेगी… दरवाजा खोलो. मैं हूं शर्मा… मकान मालिक.”

“इतनी रात… मकान मालिक,“ वह हड़बड़ा गया.

कुछ पल वह सोचता रहा कि दरवाजा खोले या नहीं. खटखटाहट दोबारा हुई.

बिस्तर से उठ कर उस ने दरवाजा खोला.

“नेगीजी… बड़े मजे लूट रहे हो यार,” ओम तिवारी ने कुछ बहक कर कहा. उस ने शराब पी रखी थी और मकान मालिक कमल शर्मा मुसकरा रहा था. वह बोला, “आज की रात ओम यहीं सोएगा, तुम्हारे साथ.”

फिर वे दोनों बेझिझक अंदर घुस आए. ओम तिवारी के हाथ में शराब की बोतल थी और वह नशे में था. मकान मालिक कमल शर्मा के मुंह से भी बदबू आ रही थी. मेज पर बोतल रख कर ओम तिवारी सोफे पर बैठ गया और बहकी हुई आवाज में बोला, “कहां है तुम्हारी नकली बीवी? महबूबा… आज तो हमें उस से ही मिलना है.”

“ तिवारीजी….देखिए रितू बीमार है और अपने कमरे में सो रही है,” वह गिड़गिड़ाने लगा.

फिर उस ने मकान मालिक कमल शर्मा के सामने अत्यंत दीन हो कर कहा, “माफ कीजिए. मैं ने झूठ बोला था. रितू मेरी बीवी नहीं, बल्कि मेरे ही दफ्तर में कार्यरत है. उसे भी मकान की जरूरत थी, इसलिए मैं उसे यहां ले आया. गलती मेरी है. मैं ने झूठ बोला था. आप कहें तो हम कल ही मकान खाली कर देंगे.”

“छोड़ यार… मकान खाली करने को कौन कहता है?” ओम तिवारी नशे में बोल पड़ा, “मुझे तो सिर्फ रितू चाहिए. तुम अकेलेअकेले मजे लूटते हो. आज हमें भी उस का स्वाद चखने दो.”

ओम तिवारी लड़खड़ाता हुआ अंदर के किवाड़ की तरफ आगे बढ़ा, जहां पर रितू सोई हुई थी. उस ने जोर से धक्का दे कर दरवाजा खोलने की कोशिश की.

“दरवाजा खोल जानेमन, हम भी प्रेम के जिगरी दोस्त हैं.”

“नहीं तिवारी, तुम ऐसा नहीं कर सकते,” चीख कर प्रेम उस की ओर लपका और उसे धक्का दे कर दरवाजे से दूर धकेल दिया. मकान मालिक कमल शर्मा ने तभी उस की तरफ लपक कर उसे अपने दोनों हाथों से जकड़ लिया, फिर वहीं पर दोनों के बीच हाथापाई शुरू हो गई.

प्रेम नेगी ने मकान मालिक कमल शर्मा को 2-3  घूंसे जड़ दिए. उधर ओम तिवारी ने जोर से दरवाजे पर लात मारी और दरवाजा खुल गया. कमरे में अंधेरा था. ओम तिवारी ने प्रवेश किया.

“ओह,” अंदर घुसते ही वह जोर से चीखा, जैसे उस पर किसी ने करारा वार किया हो. कमल शर्मा की गिरफ्त से छूटने की कोशिश करते हुए प्रेम चिल्लाया, “रितू, यहां से भाग निकल.” तभी कमरे में लाइट जली और हाथ में टूटा हूआ गुलदस्ता लिए रितू कमरे से बाहर आई.

“छोड़ दे बदमाश, वरना इसी गुलदस्ते से तेरा भी सिर फोड़ दूंगी.”

मकान मालिक कमल शर्मा की तरफ आंखें तरेर कर रितू ने  देखा. कमल शर्मा ने सहम कर देखा, कमरे में ओम तिवारी बेहोश पड़ा हुआ है. उस ने झट से प्रेम को छोड़ दिया.

“रितू, तुम ठीक तो हो,” प्रेम उस की ओर दौड़ आया.

तभी वहां आंगन में पुलिस की जीप आ कर रुकी और तुरंत 2 पुलिस वाले और एक महिला अफसर अंदर आ पहुंचे.

“रितू कश्यप आप हैं?” महिला अफसर ने रितू की तरफ देख कर पूछा.

“ जी मैडम, ये मेरे मकान मालिक हैं- कमल शर्मा और वो जो कमरे में शराब के नशे में धुत्त पड़ा है, वो ओम तिवारी मेरे ही दफ्तर में काम करता है. इन दोनों ने हमारे घर में घुस कर मेरे पति को पीटा और मुझ पर बलात्कार करने की कोशिश की. इन्हें गिरफ्तार कीजिए. कल सुबह हम दोनों थाने आ कर रिपोर्ट लिखवा देंगे.“

“मैं… मैं बेकुसूर हूं,”  बोलतेबोलते मकान मालिक कमल शर्मा की घिग्घी बंध गई. 2 पुलिस वाले बेहोश ओम तिवारी को उठा कर ले गए और महिला अफसर ने मकान मालिक कमल शर्मा को धक्का दे कर कमरे से बाहर धकेल किया.

पुलिस की जीप के जाते ही प्रेम और रितू ने एकदूसरे की ओर बड़े प्यार से देखा.

“रितू… ये पुलिस, तुम ने बुलाई थी?” वह आश्चर्यचकित हो उठा.

“बिलकुल…” रितू ने कहा, “खतरा भांप कर मैं ने ही महिला सुरक्षा हेल्पलाइन पर अपने मोबाइल से फोन कर दिया था.”

“तुम सचमुच बहादुर हो,” कह कर प्रेम ने उस का हाथ चूम लिया.

“तुम भी तो बड़े प्यारे हो, जो मेरी खातिर अपनी जान जोखिम में डाल उन बदमाशों से भिड़ गए,” रितू ने भी प्रेम के गालों पर हलकी सी चुम्मी ले ली.

“मगर, तुम ने झूठ क्यों बोला?” प्रेम ने मुसकरा कर पूछा, “हम पतिपत्नी तो हैं नहीं, फिर कल थाने में रिपोर्ट कैसे लिखवाएंगे?”

“कोई बात नहीं,” रितू खुशी से बोल पड़ी, “कल सुबह 11 बजे हम शादी पंजीकरण के लिए अदालत जाएंगे, फिर कानूनी तौर पर पतिपत्नी बन कर पुलिस थाने में रिपोर्ट लिखवाएंगे. आखिर कब तक झूठ बोलते रहेंगे? वह कहावत है न, झूठ बोले कौआ काटे. बोलो है मंजूर?”

“मंजूर है, मंजूर… बीवीजी,” प्रेम ने उसे आलिंगन में जकड़ लिया.

Latest Hindi Stories : राहें जुदा जुदा – निशा और मयंक की कहानी ने कौनसा लिया नया मोड़

Latest Hindi Stories : ‘‘निशा….’’ मयंक ने आवाज दी. निशा एक शौपिंग मौल के बाहर खड़ी थी, तभी मयंक की निगाह उस पर पड़ी. निशा ने शायद सुना नहीं था, वह उसी प्रकार बिना किसी प्रतिक्रिया के खड़ी रही. ‘निशा…’ अब मयंक निशा के एकदम ही निकट आ चुका था. निशा ने पलट कर देखा तो भौचक्की हो गई. वैसे भी बेंगलुरु में इस नाम से उसे कोई पुकारता भी नहीं था. यहां तो वह मिसेज निशा वशिष्ठ थी. तो क्या यह कोई पुराना जानने वाला है. वह सोचने को मजबूर हो गई. लेकिन फौरन ही उस ने पहचान लिया. अरे, यह तो मयंक है पर यहां कैसे?

‘मयंक, तुम?’ उस ने कहना चाहा पर स्तब्ध खड़ी ही रही, जबान तालू से चिपक गई थी. स्तब्ध तो मयंक भी था. वैसे भी, जब हम किसी प्रिय को बहुत वर्षों बाद अनापेक्षित देखते हैं तो स्तब्धता आ ही जाती है. दोनों एकदूसरे के आमनेसामने खड़े थे. उन के मध्य एक शून्य पसरा पड़ा था. उन के कानों में किसी की भी आवाज नहीं सुनाई दे रही थी. ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो पूरा ब्रह्मांड ही थम गया हो, धरती स्थिर हो गई हो. दोनों ही अपलक एकदूसरे को निहार रहे थे. तभी ‘एक्सक्यूज मी,’ कहते हुए एक व्यक्ति दोनों के बीच से उन्हें घूरता हुआ निकल गया. उन की निस्तब्धता भंग हो गई. दोनों ही वर्तमान में लौट आए.

‘‘मयंक, तुम यहां कैसे? क्या यहां पोस्टेड हो?’’ निशा ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘नहीं, मेरी कंपनी की ओर से एक सैमिनार था उसी को अटैंड करने आया हूं. तुम बताओ, कैसी हो, निशा,’’ उस ने तनिक आर्द्र स्वर में पूछा.

‘‘क्यों, कैसी लग रही हूं?’’ निशा ने थोड़ा मुसकराते हुए नटखटपने से कहा.

अब मयंक थोड़ा सकुंचित हो गया. फिर अपने को संभाल कर बोला, ‘‘यहीं खड़ेखड़े सारी बातें करेंगे या कहीं बैठेंगे भी?’’

‘‘हां, क्यों नहीं, चलो इस मौल में एक रैस्टोरैंट है, वहीं चल कर बैठते हैं.’’ और मयंक को ले कर निशा अंदर चली गई. दोनों एक कौर्नर की टेबल पर बैठ गए. धूमिल अंधेरा छाया हुआ था. मंदमंद संगीत बज रहा था. वेटर को मयंक ने 2 कोल्ड कौफी विद आइसक्रीम का और्डर दिया.

‘‘तुम्हें अभी भी मेरी पसंदनापंसद याद है,’’ निशा ने तनिक मुसकराते हुए कहा.

‘‘याद की क्या बात है, याद तो उसे किया जाता है जिसे भूल जाया जाए. मैं अब भी वहीं खड़ा हूं निशा, जहां तुम मुझे छोड़ कर गई थीं,’’ मयंक का स्वर दिल की गहराइयों से आता प्रतीत हो रहा था. निशा ने उस स्वर की आर्द्रता को महसूस किया किंतु तुरंत संभल गई और एकदम ही वर्षों से बिछड़े हुए मित्रों के चोले में आ गई.

‘‘और सुनाओ मयंक, कैसे हो? कितने वर्षों बाद हम मिल रहे हैं. तुम्हारा सैमिनार कब तक चलेगा. और हां, तुम्हारी पत्नी तथा बच्चे कैसे हैं?’’ निशा ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी.

‘‘उफ, निशा थोड़ी सांस तो ले लो, लगातार बोलने वाली तुम्हारी आदत अभी तक गई नहीं,’’ मयंक ने निशा को चुप कराते हुए कहा.

‘‘अच्छा बाबा, अब कुछ नही बोलूंगी, अब तुम बोलोगे और मैं सुनूंगी,’’ निशा ने उसी नटखटपने से कहा.

मयंक देख रहा था आज 25 वर्षों बाद दोनों मिल रहे थे. उम्र बढ़ चली थी दोनों की पर 45 वर्ष की उम्र में भी निशा के चुलबुलेपन में कोई भी कमी नहीं आई थी जबकि मयंक पर अधेड़ होने की झलक स्पष्ट दिख रही थी. वह शांत दिखने का प्रयास कर रहा था किंतु उस के मन में उथलपुथल मची हुई थी. वह बहुतकुछ पूछना चाह रहा था. बहुतकुछ कहना चाह रहा था. पर जबान रुक सी गई थी.

शायद निशा ने उस के मनोभावों को पढ़ लिया था, संयत स्वर में बोली, ‘‘क्या हुआ मयंक, चुप क्यों हो? कुछ तो बोलो.’’

‘‘अ…हां,’’ मयंक जैसे सोते से जागा, ‘‘निशा, तुम बताओ क्या हालचाल हैं तुम्हारे पति व बच्चे कैसे हैं? तुम खुश तो हो न?’’

निशा थोड़ी अनमनी सी हो गई, उस की समझ में नहीं आ रहा था कि मयंक के प्रश्नों का क्या उत्तर दे. फिर अपने को स्थिर कर के बोली, ‘‘हां मयंक, मैं बहुत खुश हूं. आदित्य को पतिरूप में पा कर मैं धन्य हो गई. बेंगलुरु के एक प्रतिष्ठित, संपन्न परिवार के इकलौते पुत्र की वधू होने के कारण मेरी जिंदगी में चारचांद लग गए थे. मेरे ससुर का साउथ सिल्क की साडि़यों का एक्सपोर्ट का व्यवसाय था. कांजीवरम, साउथ सिल्क, साउथ कौटन, बेंगलौरी सिल्क मुख्य थे. एमबीए कर के आदित्य भी उसी व्यवसाय को संभालने लगे. जब मैं ससुराल में आई तो बड़ा ही लाड़दुलार मिला. सासससुर की इकलौती बहू थी, उन की आंखों का तारा थी.’’

‘‘विवाह के 15 दिनों बाद मुझे थोड़ाथोड़ा चक्कर आने लगा था और जब मुझे पहली उलटी हुई तो मेरी सासूमां ने मुझे डाक्टर को दिखाया. कुछ परीक्षणों के बाद डाक्टर ने कहा, ‘खुशखबरी है मांजी, आप दादी बनने वाली हैं. पूरे घर में उत्सव का सा माहौल छा गया था. सासूमां खुशी से फूली नहीं समा रही थीं. बस, आदित्य ही थोड़े चुपचुप से थे. रात्रि में मुझ से बोले,’ ‘निशा, मैं तुम्हारा हृदय से आभारी हूं.’

‘क्यों.’

मैं चौंक उठी.

‘क्योंकि तुम ने मेरी इज्जत रख ली. अब मैं भी पिता बन सकूंगा. कोई मुझे भी पापा कहेगा,’ आदित्य ने शांत स्वर में कहा.

‘‘मैं अपराधबोध से दबी जा रही थी क्योंकि यह बच्चा तुम्हारा ही था. आदित्य का इस में कोई भी अंश नहीं था. फिर भी मैं चुप रही. आदित्य ने तनिक रुंधी हुई आवाज में कहा, ‘निशा, मैं एक अधूरा पुरुष हूं. जब 20 साल का था तो पता चला मैं संतानोत्पत्ति में अक्षम हूं, जब दोस्त लोग लड़की के पास ले गए, अवसर तो मिला था पर उस से वहां पर कुछ ज्यादा नहीं हो सका. नहीं समझ पाता हूं कि नियति ने मेरे साथ यह गंदा मजाक क्यों किया? मांपापा को यदि यह बात पता चलती तो वे लोग जीतेजी मर जाते और मैं उन्हें खोना नहीं चाहता था. मुझ पर विवाह के लिए दबाव पड़ने लगा और मैं कुछ भी कह सकने में असमर्थ था. सोचता था, मेरी पत्नी के प्रति यह मेरा अन्याय होगा और मैं निरंतर हीनता का शिकार हो रहा था.

‘मैं ने निर्णय ले लिया था कि मैं विवाह नहीं करूंगा किंतु मातापिता पर पंडेपुजारी दबाव डाल रहे थे. उन्हें क्या पता था कि उन का बेटा उन की मनोकामना पूर्र्ण करने में असमर्थ है. और फिर मैं ने उन की इच्छा का सम्मान करते हुए विवाह के लिए हां कर दी. सोचा था कि घरवालों का तो मुंह बंद हो जाएगा. अपनी पत्नी से कुछ भी नहीं छिपाऊंगा. यदि उसे मुझ से नफरत होगी तो उसे मैं आजाद कर दूंगा. जब तुम पत्नी बन कर आई तब मुझे बहुत अच्छी लगी. तुम्हारे रूप और भोलेपन पर मैं मर मिटा.

‘हिम्मत जुटा रहा था कि तुम्हें इस कटु सत्य से अवगत करा दूं किंतु मौका ही न मिला और जब मुझे पता चला कि तुम गर्भवती हो तो मैं समझ गया कि यह शिशु विवाह के कुछ ही समय पूर्व तुम्हारे गर्भ में आया है. अवश्य ही तुम्हारा किसी अन्य से संबंध रहा होगा. जो भी रहा हो, यह बच्चा मुझे स्वीकार्य है.’ कह कर आदित्य चुप हो गए और मैं यह सोचने पर बाध्य हो गई कि मैं आदित्य की अपराधिनी हूं या उन की खुशियों का स्रोत हूं. ये किस प्रकार के इंसान हैं जिन्हें जरा भी क्रोध नहीं आया. किसी परपुरुष के बच्चे को सहर्ष अपनाने को तैयार हैं. शायद क्षणिक आवेग में किए गए मेरे पाप की यह सजा थी जो मुझे अनायास ही विधाता ने दे दी थी और मेरा सिर उन के समक्ष श्रद्धा से झुक गया.

‘‘9 माह बाद प्रसून का जन्म हुआ. आदित्य ने ही प्रसून नाम रखा था. ठीक भी था, सूर्य की किरणें पड़ते ही फूल खिल उठते हैं, उसी प्रकार आदित्य को देखते ही प्रसून खिल उठता था. हर समय वे उसे अपने सीने से लगाए रखते थे. रात्रि में यदि मैं सो जाती थी तो भी वे प्रसून की एक आहट पर जाग जाते थे. उस की नैपी बदलते थे. मुझ से कहते थे, ‘मैं प्रसून को एयरफोर्स में भेजूंगा, मेरा बेटा बहुत नाम कमाएगा.’

‘‘मेरे दिल में आदित्य के लिए सम्मान बढ़ता जा रहा था, देखतेदखते 15 वर्ष बीत चुके थे. मैं खुश थी जो आदित्य मुझे पतिरूप में मिले. लेकिन होनी को शायद कुछ और ही मंजूर था. अकस्मात एक दिन एक ट्रक से उन की गाड़ी टकराई और उन की मौके पर ही मौत हो गई. तब प्रसून 14 वर्ष का था.’’

मयंक निशब्द निशा की जीवनगाथा सुन रहा था. कुछ बोलने या पूछने की गुंजाइश ही नहीं रह गई थी. क्षणिक मौन के बाद निशा फिर बोली, ‘‘आज मैं अपने बेटे के साथ अपने ससुर का व्यवसाय संभाल रही हूं. प्रसून एयरफोर्स में जाना नहीं चाहता था, अब वह 25 वर्ष का होने वाला है. उस ने एमबीए किया और अपने पुश्तैनी व्यवसाय में मेरा हाथ बंटा रहा है या यों कहो कि अब सबकुछ वही संभाल रहा है.’’

थोड़ी देर की चुप्पी के बाद मयंक ने मुंह खोला, ‘‘निशा, तुम्हें अतीत की कोई बात याद है?’’

‘‘हां, मयंक, सबकुछ याद है जब तुम ने मेरे नाम का मतलब पूछा था और मैं ने अपने नाम का अर्थ तुम्हें बताया, ‘निशा का अर्र्थ है रात्रि.’ तुम मेरे नाम का मजाक बनाने लगे तब मैं ने तुम से पूछा, ‘आप को अपने नाम का अर्थ पता है?’

‘‘तुम ने बड़े गर्व से कहा, ‘हांहां, क्यों नहीं, मेरा नाम मयंक है जिस का अर्थ है चंद्रमा, जिस की चांदनी सब को शीतलता प्रदान करती है’ बोलो याद है न?’’ निशा ने भी मयंक से प्रश्न किया.

मयंक थोड़ा मुसकरा कर बोला, ‘‘और तुम ने कहा था, ‘मयंक जी, निशा है तभी तो चंद्रमा का अस्तित्व है, वरना चांद नजर ही कहां आएगा.’ अच्छा निशा, तुम्हें वह रात याद है जब मैं तुम्हारे बुलाने पर तुम्हारे घर आया था. हमारे बीच संयम की सब दीवारें टूट चुकी थीं.’’ मयंक निशा को अतीत में भटका रहा था.

‘‘हां,’’ तभी निशा बोल पड़ी, ‘‘प्रसून उस रात्रि का ही प्रतीक है. लेकिन मयंक, अब इन बातों का क्या फायदा? इस से तो मेरी 25 वर्षों की तपस्या भंग हो जाएगी. और वैसे भी, अतीत को वर्तमान में बदलने का प्रयास न ही करो तो बेहतर होगा क्योंकि तब हम न वर्तमान के होंगे, न अतीत के, एक त्रिशंकु बन कर रह जाएंगे. मैं उस अतीत को अब याद भी नहीं करना चाहती हूं जिस से हमारा आज और हमारे अपनों का जीवन प्रभावित हो. और हां मयंक, अब मुझ से दोबारा मिलने का प्रयास मत करना.’’

‘‘क्यों निशा, ऐसा क्यों कह रही हो?’’ मयंक विचलित हो उठा.

‘‘क्योंकि तुम अपने परिवार के प्रति ही समर्पित रहो, तभी ठीक होगा. मुझे नहीं पता तुम्हारा जीवन कैसा चल रहा है पर इतना जरूर समझती हूं कि तुम्हें पा कर तुम्हारी पत्नी बहुत खुश होगी,’’ कह कर निशा उठ खड़ी हुई.

मयंक उठते हुए बोला, ‘‘मैं एक बार अपने बेटे को देखना चाहता हूं.’’

‘‘तुम्हारा बेटा? नहीं मयंक, वह आदित्य का बेटा है. यही सत्य है, और प्रसून अपने पिता को ही अपना आदर्श मानता है. वह तुम्हारा ही प्रतिरूप है, यह एक कटु सत्य है और इसे नकारा भी नहीं जा सकता किंतु मातृत्व के जिस बीज का रोपण तुम ने किया उस को पल्लवित तथा पुष्पित तो आदित्य ने ही किया. यदि वे मुझे मां नहीं बना सकते थे, तो क्या हुआ, यद्यपि वे खुद को एक अधूरा पुरुष मानते थे पर मेरे लिए तो वे परिपूर्ण थे. एक आदर्श पति की जीवनसंगिनी बन कर मैं खुद को गौरवान्वित महसूस करती हूं. मेरे अपराध को उन्होंने अपराध नहीं माना, इसलिए वे मेरी दृष्टि में सचमुच ही महान हैं.

‘‘प्रसून तुम्हारा अंश है, यह बात हम दोनों ही भूल जाएं तो ही अच्छा रहेगा. तुम्हें देख कर वह टूट जाएगा, मुझे कलंकिनी समझेगा. हजारों प्रश्न करेगा जिन का कोई भी उत्तर शायद मैं न दे सकूंगी. अपने पिता को अधूरा इंसान समझेगा. युवा है, हो  सकता है कोई गलत कदम ही उठा ले. हमारा हंसताखेलता संसार बिखर जाएगा और मैं भी कलंक के इस विष को नहीं पी सकूंगी. तुम्हें वह गीत याद है न ‘मंजिल वही है प्यार की, राही बदल गए…’

‘‘भूल जाओ कि कभी हम दो जिस्म एक जान थे, एक साथ जीनेमरने का वादा किया था. उन सब के अब कोई माने नहीं है. आज से हमारी तुम्हारी राहें जुदाजुदा हैं. हमारा आज का मिलना एक इत्तफाक है किंतु अब यह इत्तफाक दोबारा नहीं होना चाहिए,’’ कह कर उस ने अपना पर्स उठाया और रैस्टोरैंट के गेट की ओर बढ़ चली. तभी मयंक बोल उठा, ‘‘निशा…एक बात और सुनती जाओ.’’

निशा ठिठक गई.

‘‘मैं ने विवाह नहीं किया है, यह जीवन तुम्हारे ही नाम कर रखा है.’’ और वह रैस्टोरैंट से बाहर आ गया. निशा थोड़ी देर चुप खड़ी रही, फिर किसी अपरिचित की भांति रैस्टोरैंट से बाहर आ गई और दोनों 2 विपरीत दिशाओं की ओर मुड़ गए.

चलतेचलते निशा ने अंत में कहा, ‘‘मयंक, इतने जज्बाती न बनो. अगर कोई मिले तो विवाह कर लेना, मुझे शादी का कार्ड भेज देना ताकि मैं सुकून से जी सकूं.’’

Interesting Hindi Stories : दूरियां – राहुल ने क्यों मांगी माफी

Interesting Hindi Stories :  रविवार का दिन था. घंटी बजने की आवाज सुन कर मैं ने दरवाजा खोला. सामने समीर खड़ा था. वह पापा से मिलने आया था. आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका जा रहा था. पापा से बातचीत करने के बाद वह चला गया. यह बेहद खुशी की बात थी, पर पता नहीं मैं क्यों नहीं खुश हो रही थी. मैं नहीं चाहती थी कि समीर अमेरिका जाए. वैसे तो समीर और मैं एकदूसरे को जानते थे और वह मुझे बहुत अच्छा भी लगता था. सब से खुशी की बात यह थी कि हम एक ही कालेज में पढ़ते थे. वह इस साल फाइनल ईयर का टौपर भी था. पापा भी उसी कालेज में प्रिंसिपल थे.

अमेरिका जाने से पहले समीर से एक बार मुलाकात हुई थी. वह बहुत खुश था. मैं चाह कर भी कुछ नहीं बोल पाई. मुझे ऐसा लग रहा था कि वह समझ जाए, पर वह नहीं समझा. पता नहीं, शायद समझ कर भी नासमझी दिखाई थी उस ने लेकिन प्यार कहां कुछ मांगता है, प्यार तो बस प्यार होता है.

वह बोल रहा था,”अरे नेहा, नाराज हो क्या?” मैं ने कहा,”नहीं,” तो उस ने अपने अंदाज में कहा,”अरे, मैं गया और अभी 2 साल में वापस आया. तब तक तुम अपनी पढ़ाई पूरी करो.”

मैं ने कहा,”मुझे भूलोगे तो नहीं न?”

वह बोला,”क्या बात करती हो नेहा, तुम भी कोई भूलने की चीज हो. तुम मुझे हमेशा याद आओगी. पहले मैं उस लायक बन जाऊं कि सर से तुम्हारा हाथ मांग सकूं,” समीर की यही बातें मेरी उम्मीद को और पक्का कर गईं. एक उम्मीद ही तो होती है जो इंसान को जीने का हौसला देती है और जिस के बल पर वह बरसों जी सकता है.

एक नए जोश के साथ मैं फिर से पढ़ाई में बिजी हो गई. मेरा सैकंड ईयर पूरा हुआ. फिर फाइनल ईयर पूरा हुआ. मैं और पढ़ना चाहती थी. एक से एक अच्छे रिश्ते आ रहे थे पर मुझे शादी नहीं करनी थी. मैं पढ़ना चाहती थी. मुझे किसी तरह से समीर के आने तक का समय निकालना था. मैं मम्मी को बारबार बोल रही थी कि मुझे शादी नहीं करनी है. लेकिन पापा और सारे रिश्तेदारों का कहना था कि शादी समय पर हो जानी चाहिए, नहीं तो अच्छेअच्छे रिश्ते हाथ से चले जाते हैं. दादी उधर राग अलाप रही थीं,”बेटा, मेरे जाने से पहले शादी कर दे. नेहा को दुलहन बना देखना चाहती हूं फिर सुकून से जा सकूंगी.”

मैं ने कहा,”दादी, तुम्हें कुछ नहीं होगा, 2 साल मुझे और पढ़ लेने दो फिर तुम जिस से कहोगी उस से शादी कर लूंगी. मगर कोई मानने को ही तैयार नहीं था और न कोई मेरा सुनने वाला. मां मेरी बात को समझ सकती थीं पर उन की भी किसी ने नहीं सुनी.

मैं ने मम्मी से कहा,”मैं समीर से शादी करना चाहती हूं, तो मम्मी ने उलटा मुझे ही समझाया कि बेटा, वह अगर नहीं लौटा तो हम क्या करेंगे? उस ने वहां पर ही किसी से शादी कर ली तो तुम क्या करोगी? तुम इतने इंतजार के बाद क्या करोगी? मैं ने कहा कि ऐसा नहीं होगा और अगर ऐसा कुछ होता है तो मैं शादी हीं नहीं करूंगी. क्या लड़कियां अकेली नहीं रह सकतीं? अगर कोई लड़की पढ़ीलिखी हो, अपने पैरों पर खड़ी हो तो अकेली भी इस समाज से लड़ सकती है.

मां ने कहा,”नेहा, ऐसा नहीं है. समाज को क्या मुंह दिखाएंगे? हमारा समाज हजारों प्रश्न खड़ा करेगा. किसकिस को उत्तर देंगे और पापा और दादी तो सुनेंगे ही नहीं. उचित यही है कि तुम पापा और दादी की बात मान लो.”

फिर मैं ने पापा को मनाने की कोशिश की और कहा,”पापा, मैं 2 साल शादी नहीं करूंगी. मुझे पीजी कर लेने दो फिर मैं शादी करूंगी,” मैं ने किसी तरह से अपनी शादी 2 साल न करने के लिए पापा को राजी कर लिया. अपनी पढ़ाई पूरी की. बीचबीच में समीर से बातें होती रहती थीं. मैं ने पूछा कि कब आओगे समीर? तो उस ने अभी और 2 साल का वक्त मांगा. इतने दिन और रुकना असंभव था क्योंकि पापा रुकने वाले नहीं थे. उन्होंने अच्छा रिश्ता देख कर मेरी शादी तय कर दी. राहुल बहुत नेक इंसान थे. पढ़ेलिखे थे. मुझे शादी करनी पड़ी.

राहुल एक जानेमाने डाक्टर थे. उन को कई बार औपरेशन के लिए बाहर जाना पड़ता था. कभी दिल्ली, कभी मुंबई. वे रिसर्च के काम में भी व्यस्त रहते थे. मैं घर में अकेली बोर हो जाती थी. फिर मैं ने भी जौब करने का निर्णय ले लिया. धीरेधीरे 2 साल कब बीत गए पता भी नहीं चला. मैं जौब में मस्त रहने लगी और राहुल अपने काम में खूब बिजी रहते. कितनेकितने दिनों तक तो हम लोग मिलते भी नहीं थे. इस तरह हमारे आपस की दूरियां बढ़ती गईं. उसी समय समीर भी भारत लौटा था. मैं बहुत खुश थी. हम लोग आएदिन मिला करते थे. वह यहां एक कंपनी खोलना चाहता था. वह हर बात में मेरी राय लेता. कभीकभी मैं जब बहुत उदास हो जाती तो समीर को फोन करती. वह प्यार से मेरी बात सुनता और मुझे बोलता कि ज्यादा टैंशन मत लो. जो हुआ सो हुआ. हम अब एक अच्छे दोस्त तो बन कर रह ही सकते हैं न…

लेकिन पता नहीं मैं क्यों उस के दोस्ती को दोस्ती नहीं बना कर रखना चाहती थी. वह तो मेरा ख्वाब था. समीर को अपने पति के रूप में देखना चाहती थी. वह कभी भी मुझ से नाराज नहीं होता. मेरी बात को अच्छे से सुनता और मेरी फीलिंग्स भी समझता.

अब मैं ज्यादा खुश रहने लगी थी. मुझे औफिस के बाद उस का साथ बहुत अच्छा लगता था. शायद वह भी मेरे साथ अच्छा महसूस करता था. मेरा इंतजार शायद खत्म हुआ था, पर यह भी सच था कि मैं अब वह नेहा नहीं थी जिस पर समीर का पूरा अधिकार हो, फिर भी ऐसा कौन सा हमारे बीच में एक रिश्ता था जो हमें जुदा होने से रोकता था. मेरा भी एक घर था. मैं भी अपने दायरे को नहीं लांघ सकती थी. फिर भी समीर से अलग होना बहुत तकलीफ देता. समीर भी मेरा साथ चाहता था.

राहुल कभीकभी तो 2-3 दिनों के बाद घर लौटते थे. हां, उन का काम था, उन की प्रसिद्धि थी पर इन सब के बीच मैं भी तो थी. शायद इतने सब टैंशन के बीच वे मुझे समय ही नहीं दे पाते थे. उन्हें इस बात का दुख भी था लेकिन वे अपने काम के आगे कुछ भी सोच नहीं पाते थे. मैं भी कुछ पल उन के साथ बिताना चाहती थी. कुछ अपने मन की बात उन्हें बोलना चाहती थी लेकिन वे सुनना ही नहीं चाहते थे. फिर दिनोंदिन दूरियां बढ़ती गईं. मैं ने जौब छोड़ दिया था और समीर के साथ ही काम करने लगी थी. समीर के साथ बिताए लम्हों को याद कर के बस उस में ही खोई रहती.

कई बार जब राहुल घर में रहते थे तब वे मेरा साथ चाहते थे लेकिन मैं अपने काम में व्यस्त रहती थी. मेरी और समीर की दोस्ती का उन को पता चल गया था. वे नहीं चाहते थे कि मैं समीर के साथ काम करूं. मैं सोचती थी कि राहुल खुद डाक्टर हैं लेकिन घर में रहने वाले मरीज को ही नहीं देख पाए कि उस की बीमारी क्या है? अब वे मेरा साथ चाहते थे, मुझे खुशियों से भर देना चाहते थे. मगर जिंदगी एक ऐसे मोड़ पर खड़ी थी कि मैं समझ नहीं पा रही थी कि क्या करूं और क्या नहीं…

समीर से मिलनाजुलना अब राहुल को पसंद नहीं था. एक दिन समीर अमेरिका चला गया. मैं समझ नहीं पाई कि उस ने ऐसा क्यों किया. उस का मैसेज आया था, जिस में उस ने लिखा था,’नेहा, जब कभी जिंदगी में किसी चीज का सल्यूशन नजर न आए तब शायद दूरियां बनाना ही उचित होता है. दुख तो बहुत होता
है, लेकिन जो भी होता है सब के लिए अच्छा होता है और हम को जो रास्ता दिखता है वह सही जगह पहुंचाता है. इसलिए कभीकभी दूरियां भी बहुत कुछ दे जाती हैं…’

मैं मायूस हो कर रास्ते से घर लौट रही थी. तभी राहुल का फोन आया,”तुम जल्दी घर आ जाओ. मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं.”

घर जा कर देखा तो उन्होंने मेरे लिए एक नईनवेली दुलहन जैसा घर सजा रखा था. मुझे देखते ही अपने आगोश में ले कर कहने लगे,”नेहा, मुझे अपने रिसर्च के लिए बैस्ट अवार्ड मिला है और सब तुम्हारी ही वजह से है. तुम नहीं होतीं, तो शायद मैं यह नहीं कर सकता था. यह अवार्ड तुम्हारे लिए है…”

मैं मन ही मन सोच रही थी कि यह मैं क्या कर रही थी? समीर मेरा अतीत था मगर राहुल मेरा वर्तमान. उस दिन उन्होंने मुझे रानी की तरह रखा. जब हम सोने के लिए गए तो हमारे बीच में एक अलग ही रिश्ता था. पता नहीं, कौन किस का गुनहगार था. राहुल ने कहा,” नेहा, मैं ने तुम्हें बहुत दुख दिया. प्लीज, मुझे माफ कर दो. यह सब तुम्हारे लिए ही था. आज से हमारी नई जिंदगी होगी और हर खुशी तुम्हारी होगी और सच, उस दिन हम दोनों सही रीती से एकदूसरे के हो गए. अब तो जिंदगी में खुशियां ही खुशियां थीं. जल्दी ही घर में फूल खिलने वाला था जो हमारी खुशियों को और चार चांद लगाने वाला था. कभीकभी समीर का फोन आता था. लेकिन अब हम एक दोस्त की तरह थे. उस ने अच्छी दोस्ती निभाई थी और एक अच्छे दोस्त की तरह मुझे संभाला और सही रास्ता दिखाया था. अब मैं अपनी जिंदगी से खुश थी. समीर को ले कर कभीकभी सोचती हूं कि कुछ लोग जिंदगी में आते हैं और सही राह दिखा जाते हैं.

Hindi Stories Online : नेवी ब्लू सूट – दोस्ती की अनमोल कहानी

Hindi Stories Online :  मैं हैदराबाद बैंक ट्रेनिंग सैंटर आई थी. आज ट्रेनिंग का आखिरी दिन है. कल मुझे लौट कर पटना जाना है, लेकिन मेरा बचपन का प्यारा मित्र आदर्श भी यहीं पर है. उस से मिले बिना मेरा जाना संभव नहीं है, बल्कि वह तो मित्र से भी बढ़ कर था. यह अलग बात है कि हम दोनों में से किसी ने भी मित्रता से आगे बढ़ने की पहल नहीं की. मुझे अपने बचपन के दिन याद आने लगे थे.

उन दिनों मैं दक्षिणी पटना की कंकरबाग कालोनी में रहती थी. यह एक विशाल कालोनी है. पिताजी ने काफी पहले ही एक एमआईजी फ्लैट बुक कर रखा था. मेरे पिताजी राज्य सरकार में अधिकारी थे. यह कालोनी अभी विकसित हो रही थी. यहां से थोड़ी ही दूरी पर चिरैयाटांड महल्ला था. उस समय उत्तरी और दक्षिणी पटना को जोड़ने वाला एकमात्र पुल चिरैयाटांड में था. वहीं एक तंग गली में एक छोटे से घर में आदर्श रहता था. वहीं पास के ही सैंट्रल स्कूल में हम दोनों पढ़ते थे.

आदर्श बहुत सुशील था. वह देखने में भी स्मार्ट व पढ़ाई में अव्वल तो नहीं, पर पहले 5 विद्यार्थियों में था. फुटबौल टीम का कप्तान आदर्श क्रिकेट भी अच्छा खेलता था. इसलिए वह स्कूल के टीचर्स और स्टूडैंट्स दोनों में लोकप्रिय था. वह स्कूल के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी भाग लेता था. मैं भी उन कार्यक्रमों में भाग लेती थी. इस के अलावा मैं अच्छा गा भी लेती थी. हम दोनों एक ही बस से स्कूल जाते थे.

आदर्श मुझे बहुत अच्छा लगता था. 10वीं कक्षा तक पहुंचतेपहुंचते हम दोनों अच्छे दोस्त बन चुके थे. स्कूल बस में कभीकभी कोई मनचला सीनियर मेरी चोटी को खींच कर चुपचाप निकल जाता था. इस बारे में एक बार मैं ने आदर्श से शिकायत भी की थी कि न जाने इन लड़कों को मेरे बालों से खिलवाड़ करने में क्या मजा आता है.

इस पर आदर्श ने कहा, ‘‘तुम इन्हें बौबकट करा लो… सच कहता हूं आरती, तुम फिर और भी सुंदर और क्यूट लगोगी.’’ मैं बस झेंप कर रह गई थी. कुछ दिन बाद मैं ने मां से कहा कि अब इतने लंबे बाल मुझ से संभाले नहीं जाते. इन पर मेरा समय बरबाद होता है, मैं इन्हें छोटा करा लेती हूं. मां ने इस पर कोई एतराज नहीं जताया था. कुछ ही दिन के अंदर मैं ने अपने बाल छोटे करा लिए थे. आदर्श ने इशारोंइशारों में मेरी प्रशंसा भी की थी. एक बार मैं ने भी उसे कहा था कि स्कूल का नेवीब्लू ब्लैजर उस पर बहुत फबता है. कुछ ही दिन बाद वह मेरे जन्मदिन पर वही नेवीब्लू सूट पहन कर मेरे घर आया था तो मैं ने भी इशारोंइशारों में उस की तारीफ की थी. बाद में आदर्श ने बताया कि यह सूट उसे उस के बड़े चाचा के लड़के की शादी में मिला था वरना उस की हैसियत इतनी नहीं है. शायद यहीं से हम दोनों की दोस्ती मूक प्यार में बदलने लगी थी.

लेकिन तभी आदर्श के साथ एक घटना घटी. आदर्श की 2 बड़ी बहनें भी थीं. उस के पिता एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे. अचानक हार्ट फेल होने से उन का देहांत हो गया. उस के पिता के औफिस से जो रकम मिली, वही अब उस परिवार का सहारा थी. उन्होंने अपने हिस्से की गांव की जमीन बेच कर पटना में छोटा सा प्लाट खरीदा था. अभी बस रहने भर के लिए 2 कमरे ही बनवाए थे. उन का कहना था बाकी मकान बेटियों की शादी के बाद बनेगा या फिर आदर्श बड़ा हो कर इसे आगे बनाएगा. हम दोनों के परिवार के बीच तो आनाजाना नहीं था, पर मैं स्कूल के अन्य लड़कों के साथ यह दुखद समाचार सुन कर गई थी. हम लोग 10वीं बोर्ड की परीक्षा दे चुके थे. आदर्श ने कहा था कि वह मैडिकल पढ़ना चाहता है पर ऐसा संभव नहीं दिखता, क्योंकि इस में खर्च ज्यादा होगा, जो उस के पिता के लिए लगभग असंभव है. एक बार जब हम 12वीं की बोर्ड की परीक्षा दे चुके थे तो मैं ने अपनी बर्थडे पार्टी पर आदर्श को अपने घर बुलाया था. वह अब और स्मार्ट लग रहा था. मैं ने आगे बढ़ कर उस को रिसीव किया और कहा, ‘‘तुम ब्लूसूट पहन कर क्यों नहीं आए? तुम पर वह सूट बहुत फबता है.’’आदर्श बोला, ‘‘वह सूट अब छोटा पड़ गया है. जब सैटल हो जाऊंगा तो सब से पहले 2 जोड़ी ब्लूसूट बनवा लूंगा. ठीक रहेगा न?’’

हम दोनों एकसाथ हंस पड़े. फिर मैं आदर्श का हाथ पकड़ कर उसे टेबल के पास ले कर आई, जहां केक काटना था. मैं ने ही उसे अपने साथ मिल कर केक काटने को कहा. वह बहुत संकोच कर रहा था. फिर मैं ने केक का एक बड़ा टुकड़ा उस के मुंह में ठूंस दिया.केक की क्रीम और चौकलेट उस के मुंह के आसपास फैल गई, जिन्हें मैं ने खुद ही पेपर नैपकिन से साफ किया. बाद में मैं ने महसूस किया कि मेरी इस हरकत पर लोगों की प्रतिक्रिया कुछ अच्छी नहीं थी, खासकर खुद मेरी मां की. उन्होंने मुझे अलग  बुला कर थोड़ा डांटने के लहजे में कहा, ‘‘आरती, यह आदर्श कौन सा वीआईपी है जो तुम इसे इतना महत्त्व दे रही हो?’’मैं ने मां से कहा, ‘‘मा, वह मेरा सब से करीबी दोस्त है. बहुत अच्छा लड़का है, सब उसे पसंद करते हैं.’’

मा ने झट से पूछा, ‘‘और तू?’’

मैं ने भी कहा, ‘‘हां, मैं भी उसे पसंद करती हूं.’’

फिर चलतेचलते मां ने कहा, ‘‘दोस्ती और रिश्तेदारी बराबरी में ही अच्छी लगती है. तुम दोनों में फासला ज्यादा है. इस बात का खयाल रखना.’’

मैं ने भी मां से साफ लफ्जों में कह दिया था कि कृपया आदर्श के बारे में मुझ से ऐसी बात न करें.मैं ने महसूस किया कि आदर्श हमारी तरफ ही देखे जा रहा था, पर ठीक से कह नहीं सकती कि मां की बात उस ने भी सुनी हो, पर उस की बौडी लैंग्वेज से लगा कि वह कुछ ज्यादा ही सीरियस था.  बहरहाल, आदर्श मैथ्स में एमए करने लगा था. मैं ने बीए कर बैंक की नौकरी के लिए कोचिंग ली थी. दूसरे प्रयास में मुझे सफलता मिली और मुझे बैंक में जौब मिल गई. बैंक की तरफ से ही मुझे हैदराबाद टे्रनिंग के लिए भेजा गया. मैं आदर्श से ईमेल और फोन से संपर्क में थी. कभीकभी वह भी मुझे फोन कर लेता था. एक बार मैं ने उसे मेल भी किया था यह जानने के लिए कि क्या हम मात्र दोस्त ही रहेंगे या इस के आगे भी कुछ सोच सकते हैं. आदर्श ने लिखा था कि जब तक मेरी बड़ी बहनों की शादी नहीं हो जाती तब तक मैं चाह कर भी आगे की कुछ सोच नहीं सकता. मुझे उस का कहना ठीक लगा. आखिर अपनी दोनों बड़ी बहनों की शादी की जिम्मेदारी उसी पर थी, पर इधर मुझ पर भी मातापिता का दबाव था कि मेरी शादी हो जाए ताकि बाकी दोनों बहनों की शादी की बात आगे बढ़े. हम दोनों ही मजबूर थे और एकदूसरे की मजबूरी समझ रहे थे. आदर्श हैदराबाद की एक प्राइवेट कंपनी में अकाउंटैंट की पोस्ट पर कार्यरत था. उस की बड़ी बहन की शादी हो चुकी थी. अपनी मां और दूसरी बहन के साथ वह भी हैदराबाद में ही था.

मैं ने उसे फोन किया और ईमेल भी किया था कि आज शाम की फ्लाइट से मैं पटना लौट रही हूं. उस ने जवाब में बस ओके भर लिखा था. वह सिकंदराबाद में कहीं रहता था. उस के घर का पता मुझे मालूम तो था, पर नए शहर में वहां तक जाना कठिन लग रहा था और थोड़ा संकोच भी हो रहा था. मेरी फ्लाइट हैदराबाद के बेगमपेट एयरपोर्ट से थी, मैं एयरपोर्ट पर बेसब्री से आदर्श का इंतजार कर रही थी. बेगमपेट एयरपोर्ट से सिकंदराबाद ज्यादा दूर नहीं था, महज 5 किलोमीटर की दूरी होगी. मैं सोच रही थी कि वह जल्दी ही आ जाएगा, पर जैसेजैसे समय बीत रहा था, मेरी बेसब्री बढ़ रही थी. चैक इन बंद होने तक वह नहीं दिखा तो मैं ने अपना टिकट कैंसिल करा लिया. मैं आदर्श के घर जाने के लिए टैक्सी से निकल पड़ी थी. जब मैं वहां पहुंची तो उस की बहन ने आश्चर्य से कहा, ‘‘आरती, तुम यहां. भाई तो तुम से मिलने एयरपोर्ट गया है. अभी तक तो लौटा नहीं है. शुरू में आदर्श संकोच कर रहा था कि जाऊं कि नहीं पर मां ने उसे कहा कि उसे तुम से मिलना चाहिए, तभी वह जाने को तैयार हुआ. इसी असमंजस में घर से निकलने में उस ने देर कर दी.’’

मैं आदर्श के घर सभी के लिए गिफ्ट ले कर गई थी. मां और बहन को तो गिफ्ट मैं ने अपने हाथों से दिया. थोड़ी देर बाद मैं एक गिफ्ट पैकेट आदर्श के लिए छोड़ कर लौट गई. इसी बीच, आदर्श की बहन का फोन आया और उस ने कहा, ‘‘भाई को ट्रैफिक जैम और उस का स्कूटर पंक्चर होने के कारण एयरपोर्ट पहुंचने में देर हो गई और भाई ने सोचा कि तुम्हारी तो फ्लाइट जा चुकी होगी. मैं उसे तुम्हारी फ्लाइट के बारे में बता चुकी हूं.’’ आदर्श की बहन ने फोन कर उसे कहा, ‘‘भाई, तुम्हारे लिए आरती ने अपनी फ्लाइट कैंसिल कर दी. वह तुम से मिलने घर आई थी, पर थोड़ी देर पहले चली भी गई है. अभी वह रास्ते में होगी, बात कर लो.’’ लेकिन आदर्श ने फोन नहीं किया और न मैं ने किया. आदर्श ने जब घर पहुंच कर पैकेट खोला तो देखा कि उस में एक नेवीब्लू सूट और मेरी शादी का निमंत्रण कार्ड था. साथ में मेरा एक छोटा सा पत्र जिस में लिखा था, ‘बहुत इंतजार किया. मुझे अब शादी करनी ही होगी, क्योंकि मेरी शादी के बाद ही बाकी दोनों बहनों की शादी का रास्ता साफ होगा. एक नेवीब्लू सूट छोड़ कर जा रही हूं. मेरी शादी में इसे पहन कर जरूर आना, यह मेरी इच्छा है.’

एयरपोर्ट से मैं ने उसे फोन किया, ‘‘तुम से मिलने का बहुत जी कर रहा था आदर्श, खैर, इस बार तो नहीं मिल सकी. उम्मीद है शादी में जरूर आओगे. मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी.’’ थोड़ी देर खामोश रहने के बाद आदर्श इतना ही कह पाया था, ‘‘हां… हां, आऊंगा.’’

Famous Hindi Stories : आशा नर्सिंग होम – क्यों आशीष से दूर हो गई रजनी

Famous Hindi Stories :  रजनी उदास है. पति को दिल का दौरा पड़ा हुआ है. वे आशा नर्सिंग होम के औपरेशन थिएटर में है. उन्हें सुबह बेहोशी की हालत में अस्पताल लाया गया था, इलाज किया जा रहा है. औपरेशन थिएटर का दरवाजा बंद है.

अभीअभी उन्हें अंदर ले जाया गया है. बाहर रजनी, उस की बड़ी बहन अनुपमा, युवा भांजा रोहित और जीजा प्रभाकर खड़े हैं. सभी चिंतित हैं, रजनी के पतिदेव के स्वास्थ्य की कामना कर रहे हैं.

रजनी के पति रमेश की उम्र 54 वर्ष है. उन्हें पहली बार दिल का दौरा पड़ा है. मृत्यु नाम ही कितना भयानक है कि मनुष्य, जीव-जंतु हो या प्राणी… मृत्यु से दूर भागने की कोशिश में ही रहते हैं जब तक कि उन का जीवन है, जब तक कि उन की सांसें चल रही हैं.

रजनी, स्वाभाविक है कि, सब से ज्यादा चिंतित है. उस के 2 बच्चे है. 19 वर्षीय सौम्य कालेज की पढ़ाई कर रहा है और 12 वर्षीया नेहा 8वीं कक्षा में है. दोनों पढ़ाई में व्यस्त होने की वजह से घर पर वडोदरा में ही हैं. रजनी वडोदरा में रहती है. भांजे रोहित की एंगेजमैंट के उपलक्ष्य में यहां रमेश के साथ बहन के घर कानपुर आई हुई है.

अब सोफ़े पर बैठी रजनी आंखें मूंदें है. वह सोच रही है कि इस अस्पताल का नाम ‘आशा नर्सिग होम’ है और शादी से पहले उस का नाम भी आशा था. रमेश के साथ शादी होने के बाद उस का नया नाम रजनी हो गया और आज वह अपने असल नाम को याद करती हुई यहां आशा नर्सिंग होम में है. अजीब संयोग है.

अरे, मैँ तो यहां बड़ी बहन अनुपमा के घर, कानपुर आई हुई हूं. यह मेरा मायका है. मां-बाऊजी तो अब नहीं रहे. बाऊजी का घरबार, कपड़े की दुकान… सबकुछ बेच कर बड़े अमर भैया परिवार के साथ अमेरिका में रह रहे हैं. इंजीनियर अमर भैया पहले वहां नौकरी के बहाने गए और बाद में शादी भी अपने औफिस में कार्यरत अमेरिकन लड़की से कर ली. पहले मां और बाद में बाऊजी की मृत्यु हुई और अमर भैया का मानो भारत से नाता ही टूट गया. अब रह गईं हम 2 बहनें, जो सुखदुख में एक दूजी का साथ निभा रही हैं. अनुपमा दीदी के बेटे की कल शाम एंगेजमैंट है.

“हैलो,” कहते हुए रजनी ने फोन कान से सटाया. बेटे का वडोदरा से फोन था.

“कैसे हो मम्मी? पापा का फोन स्विचऔफ आ रहा है.”

“हम कहीं बाहर हैं बेटे, बाद में बात करती हूं,” कहते हुए रजनी ने फोन बंद कर दिया. वह बच्चों को कुछ बताना नहीं चाहती थी क्योंकि वे परेशान हो सकते थे. अब वह फिर से सोचने लगी…

रमेश, दूर की रिश्ते की बूआ के बेटे, को मैं ने ही पसंद किया था. तब मैँ एमए इंग्लिश की पढ़ाई कर रही थी. रमेश इंजीनियर था और बड़ा ही हैंडसम था. सरकारी नौकरी, कार, बड़ा सा मकान… सबकुछ था उस के पास. घर में भी सभी को पसंद था.

“ननकी, तेरी तबीयत ठीक तो है? चिंता न कर. सब ठीक ही होगा. आशा नर्सिग होम यहां का बहुत जानामाना अस्पताल है, ननकी. डा. भट्ट की ख्याति दूरदूर तक है. यहां से कभी कोई पेशेंट निराश नहीं लौटता, ऐसा लौकिक है. ये ले, पानी पी ले. रमेश जी जल्दी स्वस्थ हो जाएंगे. अभी खबर आ जाएगी कि खतरा टल गया है,” कहते हुए अनुपमा ने पानी का गिलास रजनी के हाथ में दिया.

रोहित वहां पड़ी हुई किसी मैगजीन के पन्ने पलट रहा था. सामने सोफ़े पर एक स्त्री गोद में आठदस महीने का बच्चा ले कर बैठी हुई थी जो सो रहा था. रजनी ने देखा कि वह बारबार पल्लू से आंखें पोंछ रही थी. उस का भी कोई अपना अस्पताल में शायद एडमिट था.

रजनी ने फिर पीछे गरदन टिकाई और आंखें मूंद लीं. ननकी नाम कितना प्यारा है. यह नाम मेरा ही है. बचपन में मां, बाबूजी, भैया… सभी तो ननकी ही बुलाते थे मुझे. आशा नाम तो स्कूल और सहेलियों के बुलाने के लिए था और आशीष, मेरा आशीष, भी तो मुझे आशा कह कर ही बुलाता था, लेकिन वह मेरा नहीं हुआ.

डाक्टर का क्या नाम बताया था दीदी ने…हां, डा. भट्ट. मेरी बचपन की सहेली विजया का किराएदार जो छत पर एक कमरा किराए पर ले कर रहता था, आशीष भट्ट नाम था उस का. वह भी मैडिकल स्टूडैंट ही तो था. तब वह एमबीबीएस के सैकंड ईयर में था. लेकिन वह तो राजकोट, गुजरात का रहने वाला था. यहां कानपुर में उस का नर्सिग होम? और इतना बड़ा विदेश से डिग्रियां ले कर आया हुआ कार्डियोलौजिस्ट?

इतने में औपरेशन थिएटर से एक नर्स बाहर आई और अनुपमा के पति से बातें करने लगी. तो रजनी ने आंखें खोलीं और उठ कर तेजी से उस के पास जा कर बोली, “सिस्टर, कैसे हैं रमेश जी? कैसी है अब उन की तबीयत?”

“सौरी बहन जी, अभी उन को होश आया नहीं है. डाक्टर साहब और हम स्टाफ कोशिश कर रहे हैं. यह इंजैक्शन उन के लिए डाक्टर साहब ने मंगवाया है,” कहती हुई नर्स वापस औपरेशन थिएटर में चली गई और फिर दरवाजा बंद हो गया. नर्स प्रभाकर जी के हाथ में एक परचा पकड़ा कर गई थी और वे तुरंत इंजैक्शन लेने वहां से बाहर की ओर चले गए.

अनुपमा अब रजनी के पास आई और उसे वापस सोफ़े पर बैठाते हुए बोली, “ननकी, हिम्मत से काम ले. डाक्टर अपनी कोशिश पूरी कर रहे हैं. देखती जा, तेरे जीजा अभी इंजैक्शन ले कर

आएंगे. मेरा मन कहता है, इंजैक्शन लग जाने के बाद रमेश जी होश में आ ही जाएंगे.”

“ऐसा ही हो दीदी,” कहते हुए रजनी ने पास बैठी अनुपमा के कंधे पर सिर रख दिया. अनुपमा का बेटा रोहित, जो वहीं पर बैठा हुआ था, के मोबाइल की रिंग बज उठी और वह ‘हैलो’ बोलता हुआ वहां से उठ कर थोड़ी दूर जा कर बात करने लगा. अब रजनी ने अनुपमा के कंधे से सिर उठाया और थोड़ी स्वस्थ हो कर पहले की तरह आंखें मूंद कर बैठी. चलचित्र की भांति उस की आंखों के सामने से एकएक दृश्य गुजर रहा था…

‘आशा, क्या तुम मुझ से आज शाम नानाराव पार्क में मिलने आ सकती हो?’ आशीष ने इतने प्यार से पूछा कि मैं मना न कर सकी और चली गई. आशीष ने अपने प्यार का इजहार किया. मैं ने शर्म से आंखें झुकाईं और अपने हाथ में पकड़े पर्स को कस कर दबाया. आशीष ने मेरे हाथ पर हाथ रखा और ‘आशु’ कहते हुए और नजदीक आया. मुझे बहुत अच्छा लग रहा था. एक पुरुष का स्पर्श तनमन में एक जादुई जोश पैदा कर रहा था. उस पहले स्पर्श का अनुभव मैं इस समय भी कर रही हूं. लेकिन क्यों?’ और रजनी ने एकदम से आंखें खोलीं.

दीदी पास नहीं थी. कहां गई होगी? शायद वाशरूम गई होगी. इतने में दीदी आती दिखाई दी और दूसरी तरफ से जीजाजी भी आते दिखाई दिए. रोहित अब भी दूर खड़ा मोबाइल पर बातें कर रहा था. शायद उस की फियांसी का फोन था. जीजाजी ने औपरेशन थिएटर के बाहर खड़े अटेंडैंट को इंजैक्शन का लिफ़ाफ़ा पकड़ाया और उस ने उसे तुरंत अंदर भिजवा दिया.

जीजाजी अब रजनी के साथ बैठे हुए थे. दूसरी तरफ दीदी बैठ गई. इस समय सभी की आंखें औपरेशन थिएटर के दरवाजे पर लगी हुई थीं. लगभग 25 मिनट के बाद दरवाजा खुला और अंदर से डाक्टर भट्ट और उन के पीछे एक डाक्टर व नर्स बाहर आए.

‘ओह, यह तो मेरा वही आशीष भट्ट है,’ देख कर रजनी सन्न रह गई और अपनी जगह पर बैठी रही. लेकिन बहन अनुपमा, प्रभाकर जी और रोहित उठ कर डाक्टर की तरफ चल दिए. उसे सब सुनाई दे रहा था जो डाक्टर भट्ट कह रहे थे.

“अब रमेश जी होश में आ गए हैं और उन की तबीयत ठीक है. अब उन्हें वार्ड में शिफ्ट किया जाएगा. वहां आप उन से मिल सकते हैं. उन की हार्टबीट नौर्मल है. परीक्षण के लिए आज रात उन्हें यहीं रहना पड़ेगा. कल सुबह 10 बजे डिस्चार्ज किया जाएगा. और हां, उन की शराब और सिगरेट की आदत छुड़वा सकते हैं, तो अच्छा रहेगा. यही वजह है उन के दिल के दौरे की,” कहते हुए डा. आशीष भट्ट के चेहरे पर स्मित हास्य था.

वही मोटापा, छोटा कद, आंखों पर मोटा चश्मा… पर ये सब आशीष के व्यक्तित्व में और ज्यादा निखार भर रहा था. अच्छा हुआ कि उन की नजर आशा उर्फ रजनी की तरफ नहीं पड़ी. वह चाहती नहीं थी कि वे उसे देखें. उस ने दूसरी तरफ मुंह घुमाया. डा. भट्ट अब लिफ्ट की ओर जा रहे थे.

“ननकी, अब तो खुश हो ले बहन. तू भी कर लेती बात डाक्टर साहब से. चलो, अब सब ठीक है…” और अनुपमा आगे भी बोलती गई.

लेकिन रजनी अपने खयालों खोई वहीं बैठी रही… आशीष से उस का मिलनाजुलना बढ़ता जा रहा था. वह सोच रही थी कि परसों अपने जन्मदिन पर घर की छोटी सी पार्टी में आशीष को आमंत्रित करूं और सब से उस का परिचय कराऊं. सब को सरप्राइज दूंगी. फिर शादी की बात चलने में देर नहीं लगेगी. मेरे मन में लड्डू फूट रहे थे.

नानाराव पार्क की उसी खास बैंच पर बैठते हुए आशीष ने मिलते ही उदास स्वर में कहा, ‘आशा, मैँ आज रात की ट्रेन से राजकोट जा रहा हूं. पिताजी बीमार हैं, अस्पताल में एडमिट हैं. अभी थोड़ी देर पहले ही बूआ का फोन आया था.’

‘लेकिन आशीष, परसों मेरा बर्थडे है. उस के बाद भी तो जा सकते हो. क्या पिताजी के पास कोई और नहीं है?’ मैं ने थोड़ा जोर दे कर पूछा.

‘नहीं, वैसे मेरी माताजी, बूआ और चाचाचाची हैं, दोनों छोटे भाई भी हैं लेकिन अब मैँ कैसे रुक सकता हूं? मेरे पिताजी…’ कहते हुए आशीष का गला रुंध गया और उस ने रूमाल आंखों से लगाया.

उस के बाद हमारी कोई बातचीत नहीं हुई. घर पहुंच कर मैं ने सोचा कि आशीष को घरवालों की ज्यादा ही फिक्र है. इस के लिए मैँ कोई खास नहीं हूं. और पता नहीं, कल का भी क्या भरोसा?

आशीष ठीक 10 दिनों बाद वापस आया. बीच में एक बार उस का फोन आया लेकिन फोन पर अपने पिताजी के बारे में ही बात करता रहा. वापस आने पर उस को परीक्षा की तैयारी करनी थी. उस के पास मिलने के लिए समय नहीं था.

अब मुझे आशीष में बहुत सी कमियां नजर आने लगी थीं. उस का मोटापा, उस का छोटा कद, उस का मोटे शीशे वाला चश्मा मुझे अखर रहा था. ठीक 15 दिनों बाद वह मिला. बड़े ही प्यार से मिला. अपने ही भविष्य के बारे में ज्यादा बातें की उस ने. कार्डियोलौजी में आगे की डिग्री लेने की बात भी बताई. बीचबीच में मेरा हाथ पकड़ना, आंखों में झांकना, गाल सहलाना आदि क्रियाएं भी प्रेम से अभिभूत हो कर रहा था.

फिर जब उस ने अपनी बहन की बात की, तो मैं ने उसे रोका, कहा, ‘आशीष, अब हम यहीं रुक जाते हैं. तुम अपने घरवालों के ही बन कर रहो. उन की ही चिंता करो. तुम्हारे मन में मेरे लिए प्यार नहीं है, यह मैँ समझ गई हूं. मैँ कभी तुमारे लिए ‘खास’ थी, न बन सकूंगी.’

‘ऐसा नहीं है, आशा. मैं ने तुम से सच्चे दिल से प्यार किया है. ठंडे दिमाग से फिर से मेरे बारे में सोचो. अरे, मैं ने तो भविष्य में बनने वाले अपने नर्सिंग होम का नाम भी ‘आशा नर्सिंग होम’ रखने की सोचा है. जीवन तुम्हारे साथ बिताना चाहता हूं, आशा.’

लेकिन मैँ वहां रुकी नहीं. मैं ने पीछे मुड़ कर उसे देखा भी नहीं. और घर चली आई.

बाद में मेरे न मिलने को शायद वह अपनी हार समझ बैठा और उस ने मुझ से किनारा कर लिया. विजया ने बताया था कि वह पुणे चला गया. फिर मेरी शादी मेरी पसंद के लंबे, गोरे और चश्मा न पहनने वाले इंजीनियर रमेश से हुई, जिस ने इतने वर्षों में अपनी ज्यादातर कमाई जुआ और शेयर मार्केट में उड़ा दी और शराबसिगरेट का तो वह शुरू से ही आदी था. यह बात मैँ उस से शादी करने से पहले जान गई थी लेकिन उस के बाह्य रंगरूप पर मैँ फिदा थी.

रमेश के लिए भी मैँ ‘खास’ कभी नहीं रही. नशे में कई बार मुझ पर उस का हाथ भी उठ जाता था और साथ में गालीगलौज की बौछार करता था. हर रोज शराब पीना ही उस के लिए दिल के दौरे का कारण बना. बाहरी रूपरंग देख कर मैं ने उसे पसंद किया, जो गलत था.

आज रमेश भी भद्दी शक्लवाला और मोटा है. मोटे शीशे का चश्मा भी पहनता है. क्या मिला मुझे? हां, अपने मातापिता और परिवारजनों की चिंता करना, उन के सुखदुख के समय उन के साथ खड़े होना, जितनी बन पड़ें उतनी उन की सहायता करना…यह गुण रमेश में भी है. आशीष को तो मैं ने इसी गुण की वजह से छोड़ दिया था. कितनी नासमझ और नादान थी मैँ, इतने अच्छे गुण को मैं ने दोष समझा.

लेकिन अब रमेश जो भी है, मेरा वर्तमान है. मैँ, कुछ भी हो, उस की शराब की आदत तो छुड़वा कर ही रहूंगी. डा. आशीष भट्ट ने भी यही कहा है. मेरे लिए आज आशीष की सलाह सिरआंखों पर है. मन ही मन अपनेआप को ये सब सूचनाएं देती हुई रजनी उठी और थोड़ी दूर खड़ी अनुपमा के पास जा कर बोली-

“दीदी, मुझे जल्दी रमेश जी के पास ले चलिए, डाक्टर साहब ने मिलने की परमिशन तो दी है न, दीदी?”

रजनी ने पास खड़ी अनुपमा का हाथ पकड़ा और दोनों बहनें अब उस वार्ड की तरफ चल दीं जहां रमेश को शिफ्ट किया गया था. रजनी अब सोच रही थी कि आशीष ने उस से दिल से प्यार किया था. तभी तो उस ने गुजरात छोड़ कर यहां कानपुर में अस्पताल खोला और नाम तो उस ने पहले ही बता दिया था- ‘आशा नर्सिग होम’.

अब आशा उर्फ रजनी को डा. आशीष भट्ट से मिलने की या उस के बारे में ज्यादा जानने की जरूरत नहीं थी. आशीष ने शादी की या नहीं, उस की पत्नी क्या करती है, उस का नाम क्या… इन सब से अब वह अलिप्त रहना चाहती थी. आशीष अब उस का बीता हुआ कल था.

लेखिका- अरुणा कपूर

Hindi Stories Online : कालगर्ल – क्यों पायल का दीवाना हो गया था वह

Hindi Stories Online : मैं दफ्तर के टूर पर मुंबई गया था. कंपनी का काम तो 2 दिन का ही था, पर मैं ने बौस से मुंबई में एक दिन की छुट्टी बिताने की इजाजत ले ली थी. तीसरे दिन शाम की फ्लाइट से मुझे कोलकाता लौटना था. कंपनी ने मेरे ठहरने के लिए एक चारसितारा होटल बुक कर दिया था. होटल काफी अच्छा था. मैं चैकइन कर 10वीं मंजिल पर अपने कमरे की ओर गया.

मेरा कमरा काफी बड़ा था. कमरे के दूसरे छोर पर शीशे के दरवाजे के उस पार लहरा रहा था अरब सागर. थोड़ी देर बाद ही मैं होटल की लौबी में सोफे पर जा बैठा. मैं ने वेटर से कौफी लाने को कहा और एक मैगजीन उठा कर उस के पन्ने यों ही तसवीरें देखने के लिए पलटने लगा. थोड़ी देर में कौफी आ गई, तो मैं ने चुसकी ली. तभी एक खूबसूरत लड़की मेरे बगल में आ कर बैठी. वह अपनेआप से कुछ बके जा रही थी. उसे देख कर कोई भी कह सकता था कि वह गुस्से में थी.

मैं ने थोड़ी हिम्मत जुटा कर उस से पूछा, ‘‘कोई दिक्कत?’’

‘‘आप को इस से क्या लेनादेना? आप अपना काम कीजिए,’’ उस ने रूखा सा जवाब दिया.

कुछ देर में उस का बड़बड़ाना बंद हो गया था. थोड़ी देर बाद मैं ने ही दोबारा कहा, ‘‘बगल में मैं कौफी पी रहा हूं और तुम ऐसे ही उदास बैठी हो, अच्छा नहीं लग रहा है. पर मैं ने ‘तुम’ कहा, तुम्हें बुरा लगा हो, तो माफ करना.’’

‘‘नहीं, मुझे कुछ भी बुरा नहीं लगा. माफी तो मुझे मांगनी चाहिए, मैं थोड़ा ज्यादा बोल गई आप से.’’ इस बार उस की बोली में थोड़ा अदब लगा, तो मैं ने कहा, ‘‘इस का मतलब कौफी पीने में तुम मेरा साथ दोगी.’’ और उस के कुछ बोलने के पहले ही मैं ने वेटर को इशारा कर के उस के लिए भी कौफी लाने को कहा. वह मेरी ओर देख कर मुसकराई. मुझे लगा कि मुझे शुक्रिया करने का उस का यही अंदाज था. वेटर उस के सामने कौफी रख कर चला गया. उस ने कौफी पीना भी शुरू कर दिया था.

लड़की बोली, ‘‘कौफी अच्छी है.’’

उस ने जल्दी से कप खाली करते हुए कहा, ‘‘मुझे चाय या कौफी गरम ही अच्छी लगती है.’’

मैं भी अपनी कौफी खत्म कर चुका था. मैं ने पूछा, ‘‘किसी का इंतजार कर रही हो?’’

उस ने कहा, ‘‘हां भी, न भी. बस समझ लीजिए कि आप ही का इंतजार है,’’ और बोल कर वह हंस पड़ी. मैं उस के जवाब पर थोड़ा चौंक गया. उसी समय वेटर कप लेने आया, तो मुसकरा कर कुछ इशारा किया, जो मैं नहीं समझ पाया था.

मैं ने लड़की से कहा, ‘‘तुम्हारा मतलब मैं कुछ समझा नहीं.’’

‘‘सबकुछ यहीं जान लेंगे. क्यों न आराम से चल कर बातें करें,’’ बोल कर वह खड़ी हो गई.

फिर जब हम लिफ्ट में थे, तब मैं ने फिर पूछा, ‘‘तुम गुस्से में क्यों थीं?’’

‘‘पहले रूम में चलें, फिर बातें होंगी.’’ हम दोनों कमरे में आ गए थे. वह अपना बैग और मोबाइल फोन टेबल पर रख कर सोफे पर आराम से बैठ गई. मैं ने फिर उस से पूछा कि शुरू में वह गुस्से में क्यों थी, तो जवाब मिला, ‘‘इसी फ्लोर पर दूसरे छोर के रूम में एक बूढ़े ने मूड खराब कर दिया.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘बूढ़ा 50 के ऊपर का होगा. मुझ से अननैचुरल डिमांड कर रहा था. उस ने कहा कि इस के लिए मुझे ऐक्स्ट्रा पैसे देगा. यह मेरे लिए नामुमकिन बात थी और मैं ने उस के पैसे भी फेंक दिए.’’ मुझे तो उस की बातें सुन कर एक जोर का झटका लगा और मुझे लौबी में वेटर का इशारा समझ में आने लगा था. फिर भी उस से नाम पूछा, तो वह उलटे मुझ से ही पूछ बैठी, ‘‘आप मुंबई के तो नहीं लगते. आप यहां किसलिए आए हैं और मुझ से क्या चाहते हैं?’’

‘‘मैं तो बस टाइम पास करना चाहता हूं. कंपनी के काम से आया था. वह पूरा हो गया. अब जो मरजी वह करूं. मुझे कल शाम की फ्लाइट से लौटना है. पर अपना नाम तो बताओ?’’

‘‘मुझे कालगर्ल कहते हैं.’’

‘‘वह तो मैं समझ सकता हूं, फिर भी तुम्हारा नाम तो होगा. हर बार कालगर्ल कह कर तो नहीं पुकार सकता. लड़की दिलचस्प लगती हो. जी चाहता है कि तुम से ढेर सारी बातें करूं… रातभर.’’

‘‘आप मुझे प्रिया नाम से पुकार सकते हैं, पर आप रातभर बातें करें या जो भी, रेट तो वही होगा. पर बूढ़े वाली बात नहीं, पहले ही बोल देती हूं,’’ लड़की बोली. मैं भी अब उसे समझने लगा था. मुझे तो सिर्फ टाइम पास करना था और थोड़ा ऐसी लड़कियों के बारे में जानने की जिज्ञासा थी. मैं ने उस से पूछा, ‘‘कुछ कोल्डड्रिंक वगैरह मंगाऊं?’’

‘‘मंगा लो,’’ प्रिया बोली, ‘‘हां, कुछ सींक कबाब भी चलेगा. तब तक मैं नहा लेती हूं.’’

‘‘बाथरूम में गाउन भी है. यह तो और अच्छी बात है, क्योंकि हमाम से निकल कर लड़कियां अच्छी लगती हैं.’’

‘‘क्यों, अभी अच्छी नहीं लग रही क्या?’’ प्रिया ने पूछा.

‘‘नहीं, वह बात नहीं है. नहाने के बाद और अच्छी लगोगी.’’ मैं ने रूम बौय को बुला कर कबाब लाने को कहा. प्रिया बाथरूम में थी. थोड़ी देर बाद ही रूम बौय कबाब ले कर आ गया था. मैं ने 2 लोगों के लिए डिनर भी और्डर कर दिया. इस के बाद मैं न्यूज देखने लगा, तभी बाथरूम से प्रिया निकली. दूधिया सफेद गाउन में वह सच में और अच्छी दिख रही थी. गाउन तो थोड़ा छोटा था ही, साथ में प्रिया ने उसे कुछ इस तरह ढीला बांधा था कि उस के उभार दिख रहे थे. प्रिया सोफे पर आ कर बैठ गई.

‘‘मैं ने कहा था न कि तुम नहाने के बाद और भी खूबसूरत लगोगी.’’

प्रिया और मैं ने कोल्डड्रिंक ली और बीचबीच में हम कबाब भी ले रहे थे. मैं ने कहा, ‘‘कबाब है और शबाब है, तो समां भी लाजवाब है.’’

‘‘अगर आप की पत्नी को पता चले कि यहां क्या समां है, तो फिर क्या होगा?’’

‘‘सवाल तो डरावना है, पर इस के लिए मुझे काफी सफर तय करना होगा. हो सकता है ताउम्र.’’ ‘‘कल शाम की फ्लाइट से आप जा ही रहे हैं. मैं जानना चाहती हूं कि आखिर मर्दों के ऐसे चलन पर पत्नी की सोच क्या होती है.’’

‘‘पर, मेरे साथ ऐसी नौबत नहीं आएगी.’’

‘‘क्यों?’’

मैं ने कहा, ‘‘क्योंकि मैं अपनी पत्नी को खो चुका हूं. 27 साल का था, जब मेरी शादी हुई थी और 5 साल बाद ही उस की मौत हो गई थी, पीलिया के कारण. उस को गए 2 साल हो गए हैं.’’

‘‘ओह, सो सौरी,’’ बोल कर अपनी प्लेट छोड़ कर वह मेरे ठीक सामने आ कर खड़ी हो गई थी और आगे कहा, ‘‘तब तो मुझे आप का मूड ठीक करना ही होगा.’’ प्रिया ने अपने गाउन की डोरी की गांठ जैसे ही ढीला भर किया था कि जो कुछ मेरी आंखों के सामने था, देख कर मेरा मन कुछ पल के लिए बहुत विचलित हो गया था. मैं ने इस पल की कल्पना नहीं की थी, न ही मैं ऐसे हालात के लिए तैयार था. फिर भी अपनेआप पर काबू रखा. तभी डोर बैल बजी, तो प्रिया ने अपने को कंबल से ढक लिया था. डिनर आ गया था. रूम बौय डिनर टेबल पर रख कर चला गया. प्रिया ने कंबल हटाया, तो गाउन का अगला हिस्सा वैसे ही खुला था.

प्रिया ने कहा, ‘‘टेबल पर मेरे बैग में कुछ सामान पड़े हैं, आप को यहीं से दिखता होगा. आप जब चाहें इस का इस्तेमाल कर सकते हैं. आप का मूड भी तरोताजा हो जाएगा और आप के मन को शायद इस से थोड़ी राहत मिले.’’

‘‘जल्दी क्या है. सारी रात पड़ी है. हां, अगर कल दोपहर तक फ्री हो तो और अच्छा रहेगा.’’

इतना कह कर मैं भी खड़ा हो कर उस के गाउन की डोर बांधने लगा, तो वह बोली, ‘‘मेरा क्या, मुझे पैसे मिल गए. आप पहले आदमी हैं, जो शबाब को ठुकरा रहे हैं. वैसे, आप ने दोबारा शादी की? और आप का कोई बच्चा?’’

वह बहुत पर्सनल हो चली थी, पर मुझे बुरा नहीं लगा था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘डिनर लोगी?’’

‘‘क्या अभी थोड़ा रुक सकते हैं? तब तक कुछ बातें करते हैं.’’

‘‘ओके. अब पहले तुम बताओ. तुम्हारी उम्र क्या है? और तुम यह सब क्यों करती हो?’’

‘‘पहली बात, लड़कियों से कभी उम्र नहीं पूछते हैं…’’

मैं थोड़ा हंस पड़ा, तभी उस ने कहना शुरू किया, ‘‘ठीक है, आप को मैं अपनी सही उम्र बता ही देती हूं. अभी मैं 21 साल की हूं. मैं सच बता रही हूं.’’

‘‘और कुछ लोगी?’’

‘‘अभी और नहीं. आप के दूसरे सवाल का जवाब थोड़ा लंबा होगा. वह भी बता दूंगी, पर पहले आप बताएं कि आप ने फिर शादी की? आप की उम्र भी ज्यादा नहीं लगती है.’’ मैं ने उस का हाथ अपने हाथ में ले लिया और कहा, ‘‘मैं अभी 34 साल का हूं. मेरा कोई बच्चा नहीं है. डाक्टरों ने सारे टैस्ट ले कर के बता दिया है कि मुझ में पिता बनने की ताकत ही नहीं है. अब दूसरी शादी कर के मैं किसी औरत को मां बनने के सुख के लिए तरसता नहीं छोड़ सकता.’’ इस बार प्रिया मुझ से गले मिली और कहा, ‘‘यह तो बहुत बुरा हुआ.’’

मैं ने उस की पीठ थपथपाई और कहा, ‘‘दुनिया में सब को सबकुछ नहीं मिलता. पर कोई बात नहीं, दफ्तर के बाद मैं कुछ समय एक एनजीओ को देता हूं. मन को थोड़ी शांति मिलती है. चलो, डिनर लेते हैं.’’ डिनर के बाद मुझे आराम करने का मन किया, तो मैं बैड पर लेट गया. प्रिया भी मेरे साथ ही बैड पर आ कर कंबल लपेट कर बैठ गई थी. वह मेरे बालों को सहलाने लगी.

‘‘तुम यह सब क्यों करती हो?’’ मैं ने पूछा.

‘‘कोई अपनी मरजी से यह सब नहीं करता. कोई न कोई मजबूरी या वजह इस के पीछे होती है. मेरे पापा एक प्राइवेट मिल में काम करते थे. एक एक्सीडैंट में उन का दायां हाथ कट गया था. कंपनी ने कुछ मुआवजा दे कर उन की छुट्टी कर दी. मां भी कुछ पढ़ीलिखी नहीं थीं. मैं और मेरी छोटी बहन स्कूल जाते थे. ‘‘मां 3-4 घरों में खाना बना कर कुछ कमा लेती थीं. किसी तरह गुजर हो जाती थी, पर पापा को घर बैठे शराब पीने की आदत पड़ गई थी. जमा पैसे खत्म हो चले थे…’’ इसी बीच रूम बौय डिनर के बरतन लेने आया और दिनभर के बिल के साथसाथ रूम के बिलों पर भी साइन करा कर ले गया.

प्रिया ने आगे कहा, ‘‘शराब के कारण मेरे पापा का लिवर खराब हुआ और वे चल बसे. मेरी मां की मौत भी एक साल के अंदर हो गई. मैं उस समय 10वीं जमात पास कर चुकी थी. छोटी बहन तब छठी जमात में थी. पर मैं ने पढ़ाई के साथसाथ ब्यूटीशियन का भी कोर्स कर लिया था. ‘‘हम एक छोटी चाल में रहते थे. मेरे एक रिश्तेदार ने ही मुझे ब्यूटीपार्लर में नौकरी लगवा दी और शाम को एक घर में, जहां मां काम करती थी, खाना बनाती थी. पर उस पार्लर में मसाज के नाम पर जिस्मफरोशी भी होती थी. मैं भी उस की शिकार हुई और इस दुनिया में मैं ने पहला कदम रखा था,’’ बोलतेबोलते प्रिया की आंखों से आंसू बहने लगे थे.

मैं ने टिशू पेपर से उस के आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘सौरी, मैं ने तुम्हारी दुखती रगों को बेमतलब ही छेड़ दिया.’’

‘‘नहीं, आप ने मुझे कोई दुख नहीं पहुंचाया है. आंसू निकलने से कुछ दिल का दर्द कम हो गया,’’ बोल कर प्रिया ने आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘पर, यह सब मैं अपनी छोटी बहन को सैटल करने के लिए कर रही हूं. वह भी 10वीं जमात पास कर चुकी है और सिलाईकढ़ाई की ट्रेनिंग भी पूरी कर ली है. अभी तो एक बिजली से चलने वाली सिलाई मशीन दे रखी है. घर बैठेबैठे कुछ पैसे वह भी कमा लेती है.

‘‘मैं ने एक लेडीज टेलर की दुकान देखी है, पर सेठ बहुत पगड़ी मांग रहा है. उसी की जुगाड़ में लगी हूं. यह काम हो जाए, तो दोनों बहनें उसी बिजनेस में रहेंगी…’’ फिर एक अंगड़ाई ले कर उस ने कहा, ‘‘मैं आप को बोर कर रही हूं न? आप ने तो मुझे छुआ भी नहीं. आप को मुझ से कुछ चाहिए तो कहें.’’ मैं ने कहा, ‘‘अभी सारी रात पड़ी है, मुझे अभी कोई जल्दी नहीं. जब कोई जरूरत होगी कहूंगा. पर पार्लर से होटल तक तुम कैसे पहुंचीं?’’

‘‘पार्लर वाले ने ही कहा था कि मैं औरों से थोड़ी अच्छी और स्मार्ट हूं, थोड़ी अंगरेजी भी बोल लेती हूं. उसी ने कहा था कि यहां ज्यादा पैसा कमा सकती हो. और पार्लरों में पुलिस की रेड का डर बना रहता है. फिर मैं होटलों में जाने लगी.’’ इस के बाद प्रिया ने ढेर सारी बातें बताईं. होटलों की रंगीन रातों के बारे में कुछ बातें तो मैं ने पहले भी सुनी थीं, पर एक जीतेजागते इनसान, जो खुद ऐसी जिंदगी जी रहा है, के मुंह से सुन कर कुछ अजीब सा लग रहा था. इसी तरह की बातों में ही आधी रात बीत गई, तब प्रिया ने कहा, ‘‘मुझे अब जोरों की नींद आ रही है. आप को कुछ करना हो…’’ प्रिया अभी तक गाउन में ही थी. मैं ने बीच में ही बात काटते हुए कहा, ‘‘तुम दूसरे बैड पर जा कर आराम करो. और हां, बाथरूम में जा कर पहले अपने कपड़े पहन लो. बाकी बातें जब तुम्हारी नींद खुले तब. तुम कल दिन में क्या कर रही हो?’’

‘‘मुझ से कोई गुस्ताखी तो नहीं हुई. सर, आप ने मुझ पर इतना पैसा खर्च किया और…’’

‘‘नहींनहीं, मैं तो तुम से बहुत खुश हूं. अब जाओ अपने कपड़े बदल लो.’’ मैं ने देखा कि जिस लड़की में मेरे सामने बिना कुछ कहे गाउन खोलने में जरा भी संकोच नहीं था, वही अब कपड़े पहनने के लिए शर्मसार हो रही थी. प्रिया ने गाउन के ऊपर चादर में अपने पूरे शरीर को इतनी सावधानी से लपेटा कि उस का शरीर पूरी तरह ढक गया था और वह बाथरूम में कपड़े पहनने चली गई. थोड़ी देर बाद वह कपड़े बदल कर आई और मेरे माथे पर किस कर ‘गुडनाइट’ कह कर अपने बैड पर जा कर सो गई. सुबह जब तक मेरी नींद खुली, प्रिया फ्रैश हो कर सोफे पर बैठी अखबार पढ़ रही थी.

मुझे देखा, तो ‘गुड मौर्निंग’ कह कर बोली, ‘‘सर, आप फ्रैश हो जाएं या पहले चाय लाऊं?’’

‘‘हां, पहले चाय ही बना दो, मुझे बैड टी की आदत है. और क्या तुम शाम 5 बजे तक फ्री हो? तुम्हें इस के लिए मैं ऐक्स्ट्रा पैसे दूंगा.’’

‘‘सर, मुझे आप और ज्यादा शर्मिंदा न करें. मैं फ्री नहीं भी हुई तो भी पहले आप का साथ दूंगी. बस, मैं अपनी बहन को फोन कर के बता देती हूं कि मैं दिन में नहीं आ सकती.’’ प्रिया ने अपनी बहन को फोन किया और मैं बाथरूम में चला गया. जातेजाते प्रिया को बोल दिया कि फोन कर के नाश्ता भी रूम में ही मंगा ले. नाश्ता करने के बाद मैं ने प्रिया से कहा, ‘‘मैं ने ऐलीफैंटा की गुफाएं नहीं देखी हैं. क्या तुम मेरा साथ दोगी?’’

‘‘बेशक दूंगी.’’

थोड़ी देर में हम ऐलीफैंटा में थे. वहां तकरीबन 2 घंटे हम साथ रहे थे. मैं ने उसे अपना कार्ड दिया और कहा, ‘‘तुम मुझ से संपर्क में रहना. मैं जिस एनजीओ से जुड़ा हूं, उस से तुम्हारी मदद के लिए कोशिश करूंगा. यह संस्था तुम जैसी लड़कियों को अपने पैरों पर खड़ा होने में जरूर मदद करेगी. ‘‘मैं तो कोलकाता में हूं, पर हमारी ब्रांच का हैडक्वार्टर यहां पर है. थोड़ा समय लग सकता है, पर कुछ न कुछ अच्छा ही होगा.’’ प्रिया ने भरे गले से कहा, ‘‘मेरे पास आप को धन्यवाद देने के सिवा कुछ नहीं है. इसी दुनिया में रात वाले बूढ़े की तरह दोपाया जानवर भी हैं और आप जैसे दयावान भी.’’ प्रिया ने भी अपना कार्ड मुझे दिया. हम दोनों लौट कर होटल आए. मैं ने रूम में ही दोनों का लंच मंगा लिया. लंच के बाद मैं ने होटल से चैकआउट कर एयरपोर्ट के लिए टैक्सी बुलाई. सामान डिक्की में रखा जा चुका था. जब मैं चलने लगा, तो उस की ओर देख कर बोला, ‘‘प्रिया, मुझे तुम्हें और पैसे देने हैं.’’

मैं पर्स से पैसे निकाल रहा था कि इसी बीच टैक्सी का दूसरा दरवाजा खोल कर वह मुझ से पहले जा बैठी और कहा, ‘‘थोड़ी दूर तक मुझे लिफ्ट नहीं देंगे?’’

‘‘क्यों नहीं. चलो, कहां जाओगी?’’

‘‘एयरपोर्ट.’’

मैं ने चौंक कर पूछा, ‘‘एयरपोर्ट?’’

‘‘क्यों, क्या मैं एयर ट्रैवल नहीं कर सकती? और आगे से आप मुझे मेरे असली नाम से पुकारेंगे. मैं पायल हूं.’’ और कुछ देर बाद हम एयरपोर्ट पर थे. अभी फ्लाइट में कुछ वक्त था. उस से पूछा, ‘‘तुम्हें कहां जाना है?’’

‘‘बस यहीं तक आप को छोड़ने आई हूं,’’ पायल ने मुसकरा कर कहा.

मैं ने उसे और पैसे दिए, तो वह रोतेरोते बोली, ‘‘मैं तो आप के कुछ काम न आ सकी. यह पैसे आप रख लें.’’ ‘‘पायल, तुम ने मुझे बहुत खुशी दी है. सब का भला तो मेरे बस की बात नहीं है. अगर मैं एनजीओ की मदद से तुम्हारे कुछ काम आऊं, तो वह खुशी शानदार होगी. ये पैसे तुम मेरा आशीर्वाद समझ कर रख लो.’’ और मैं एयरपोर्ट के अंदर जाने लगा, तो उस ने झुक कर मेरे पैरों को छुआ. उस की आंखों से आंसू बह रहे थे, जिन की 2 बूंदें मेरे पैरों पर भी गिरीं. मैं कोलकाता पहुंच कर मुंबई और कोलकाता दोनों जगह के एनजीओ से लगातार पायल के लिए कोशिश करता रहा. बीचबीच में पायल से भी बात होती थी. तकरीबन 6 महीने बाद मुझे पता चला कि एनजीओ से पायल को कुछ पैसे ग्रांट हुए हैं और कुछ उन्होंने बैंक से कम ब्याज पर कर्ज दिलवाया है. एक दिन पायल का फोन आया. वह भर्राई आवाज में बोली, ‘सर, आप के पैर फिर छूने का जी कर रहा है. परसों मेरी दुकान का उद्घाटन है. यह सब आप की वजह से हुआ है. आप आते तो दोनों बहनों को आप के पैर छूने का एक और मौका मिलता.’

‘‘इस बार तो मैं नहीं आ सकता, पर अगली बार जरूर मुंबई आऊंगा, तो सब से पहले तुम दोनों बहनों से मिलूंगा.’’ आज मुझे पायल से बात कर के बेशुमार खुशी का एहसास हो रहा है और मन थोड़ा संतुष्ट लग रहा है.

Hindi Kahaniyan : खूबसूरत – क्यों दुल्हन का चेहरा देखकर हैरान था असलम

Hindi Kahaniyan : असलम ने धड़कते दिल के साथ दुलहन का घूंघट उठाया. घूंघट के उठते ही उस के अरमानों पर पानी फिर गया था. असलम ने फौरन घूंघट गिरा दिया. अपनी दुलहन को देख कर असलम का दिमाग भन्ना गया था. वह उसे अपने ख्वाबों की शहजादी के बजाय किसी भुतहा फिल्म की हीरोइन लग रही थी. असलम ने अपने दांत पीस लिए और दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया.

बड़ी भाभी बरामदे में टहलते हुए अपने रोते हुए मुन्ने को चुप कराने की कोशिश कर रही थीं. असलम उन के पास चला गया.

‘‘मेरे साथ आइए भाभी,’’ असलम भाभी का हाथ पकड़ कर बोला.

‘‘हुआ क्या है?’’ भाभी उस के तेवर देख कर हैरान थीं.

‘‘पहले अंदर चलिए,’’ असलम उन का हाथ पकड़ कर उन्हें अपने कमरे में ले गया.

‘‘यह दुलहन पसंद की है आप ने मेरे लिए,’’ असलम ने दुलहन का घूंघट झटके से उठा कर भाभी से पूछा.

‘‘मुझे क्या पता था कि तुम सूरत को अहमियत दोगे, मैं ने तो सीरत परखी थी,’’ भाभी बोलीं.

‘‘आप से किस ने कह दिया कि सूरत वालों के पास सीरत नहीं होती?’’ असलम ने जलभुन कर भाभी से पूछा.

‘‘अब जैसी भी है, इसी के साथ गुजारा कर लो. इसी में सारे खानदान की भलाई है,’’ बड़ी भाभी नसीहत दे कर चलती बनीं.

‘‘उठो यहां से और दफा हो जाओ,’’ असलम ने गुस्से में मुमताज से कहा.

‘‘मैं कहां जाऊं?’’ मुमताज ने सहम कर पूछा. उस की आंखें भर आई थीं.

‘‘भाड़ में,’’ असलम ने झल्ला कर कहा.

मुमताज चुपचाप बैड से उतर कर सोफे पर जा कर बैठ गई. असलम ने बैड पर लेट कर चादर ओढ़ ली और सो गया. सुबह असलम की आंख देर से खुली. उस ने घड़ी पर नजर डाली. साढ़े 9 बज रहे थे. मुमताज सोफे पर गठरी बनी सो रही थी.

असलम बाथरूम में घुस गया और फ्रैश हो कर कमरे से बाहर आ गया.

‘‘सुबहसुबह छैला बन कर कहां चल दिए देवरजी?’’ कमरे से बाहर निकलते ही छोटी भाभी ने टोक दिया.

‘‘दफ्तर जा रहा हूं,’’ असलम ने होंठ सिकोड़ कर कहा.

‘‘मगर, तुम ने तो 15 दिन की छुट्टी ली थी.’’

‘‘अब मुझे छुट्टी की जरूरत महसूस नहीं हो रही.’’

दफ्तर में भी सभी असलम को देख कर हैरान थे. मगर उस के गुस्सैल मिजाज को देखते हुए किसी ने उस से कुछ नहीं पूछा. शाम को असलम थकाहारा दफ्तर से घर आया तो मुमताज सजीधजी हाथ में पानी का गिलास पकड़े उस के सामने खड़ी थी.

‘‘मुझे प्यास नहीं है और तुम मेरे सामने मत आया करो,’’ असलम ने बेहद नफरत से कहा.

‘‘जी,’’ कह कर मुमताज चुपचाप सामने से हट गई.

‘‘और सुनो, तुम ने जो चेहरे पर रंगरोगन किया है, इसे फौरन धो दो. मैं पहले ही तुम से बहुत डरा हुआ हूं. मुझे और डराने की जरूरत नहीं है. हो सके तो अपना नाम भी बदल डालो. यह तुम पर सूट नहीं करता,’’ असलम ने मुमताज की बदसूरती पर ताना कसा.

मुमताज चुपचाप आंसू पीते हुए कमरे से बाहर निकल गई. इस के बाद मुमताज ने खुद को पूरी तरह से घर के कामों में मसरूफ कर लिया. वह यही कोशिश करती कि असलम और उस का सामना कम से कम हो.

दोनों भाभियों के मजे हो गए थे. उन्हें मुफ्त की नौकरानी मिल गई थी. एक दिन मुमताज किचन में बैठी सब्जी काट रही थी तभी असलम ने किचन में दाखिल हो कर कहा, ‘‘ऐ सुनो.’’

‘‘जी,’’ मुमताज उसे किचन में देख कर हैरान थी.

‘‘मैं दूसरी शादी कर रहा हूं. यह तलाकनामा है, इस पर साइन कर दो,’’ असलम ने हाथ में पकड़ा हुआ कागज उस की तरफ बढ़ाते हुए कहा.

‘‘क्या…?’’ मुमताज ने हैरत से देखा और सब्जी काटने वाली छुरी से अपना हाथ काट लिया. उस के हाथ से खून बहने लगा.

‘‘जाहिल…,’’ असलम ने उसे घूर कर देखा, ‘‘शक्ल तो है ही नहीं, अक्ल भी नहीं है तुम में,’’ और उस ने मुमताज का हाथ पकड़ कर नल के नीचे कर दिया.

मुमताज आंसुओं को रोकने की नाकाम कोशिश कर रही थी. असलम ने एक पल को उस की तरफ देखा. आंखों में उतर आए आंसुओं को रोकने के लिए जल्दीजल्दी पलकें झपकाती हुई वह बड़ी मासूम नजर आ रही थी.

असलम उसे गौर से देखने लगा. पहली बार वह उसे अच्छी लगी थी. वह उस का हाथ छोड़ कर अपने कमरे में चला गया. बैड पर लेट कर वह देर तक उसी के बारे में सोचता रहा, ‘आखिर इस लड़की का कुसूर क्या है? सिर्फ इतना कि यह खूबसूरत नहीं है. लेकिन इस का दिल तो खूबसूरत है.’

पहली बार असलम को अपनी गलती का एहसास हुआ था. उस ने तलाकनामा फाड़ कर डस्टबिन में डाल दिया.

असलम वापस किचन में चला आया. मुमताज किचन की सफाई कर रही थी.

‘‘छोड़ो यह सब और आओ मेरे साथ,’’ असलम पहली बार मुमताज से बेहद प्यार से बोला.

‘‘जी, बस जरा सा काम है,’’ मुमताज उस के बदले मिजाज को देख कर हैरान थी.

‘‘कोई जरूरत नहीं है तुम्हें नौकरों की तरह सारा दिन काम करने की,’’ असलम किचन में दाखिल होती छोटी भाभी को देख कर बोला.

असलम मुमताज की बांह पकड़ कर अपने कमरे में ले आया, ‘‘बैठो यहां,’’  उसे बैड पर बैठा कर असलम बोला और खुद उस के कदमों में बैठ गया.

‘‘मुमताज, मैं तुम्हारा अपराधी हूं. मुझे तुम जो चाहे सजा दे सकती हो. मैं खूबसूरत चेहरे का तलबगार था. मगर अब मैं ने जान लिया है कि जिंदगी को खूबसूरत बनाने के लिए खूबसूरत चेहरे की नहीं, बल्कि खूबसूरत दिल की जरूरत होती है. प्लीज, मुझे माफ कर दो.’’

‘‘आप मेरे शौहर हैं. माफी मांग कर आप मुझे शर्मिंदा न करें. सुबह का भूला अगर शाम को वापस आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते,’’ मुमताज बोली.

‘‘थैंक्स मुमताज, तुम बहुत अच्छी हो,’’ असलम प्यार से बोला.

‘‘अच्छे तो आप हैं, जो मुझ जैसी बदसूरत लड़की को भी अपना रहे हैं,’’ कह कर मुमताज ने हाथों में अपना चेहरा छिपा लिया और रोने लगी.

‘‘पगली, आज रोने का नहीं हंसने का दिन है. आंसुओं को अब हमेशा के लिए गुडबाय कह दो. अब मैं तुम्हें हमेशा हंसतेमुसकराते देखना चाहता हूं.

‘‘और खबरदार, जो अब कभी खुद को बदसूरत कहा. मेरी नजरों में तुम दुनिया की सब से हसीन लड़की हो,’’ ऐसा कह कर असलम ने मुमताज को अपने सीने से लगा लिया.

मुमताज सोचने लगी, ‘अंधेरी रात कितनी भी लंबी क्यों न हो, मगर उस के बाद सुबह जरूर होती है.’

लेखिका- सायरा बानो मलिक

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