दीवाली की दोपहर को अपने दोस्त नीरज से मोहित की मुलाकात तब हुई जब वह तेज चाल से नेहा के घर की तरफ जा रहा था.
‘‘यार, हां या न में जवाब कब देगा?’’ नीरज ने उस से हाथ मिलाते हुए पूछा.
‘‘अभी सोच रहा हूं कि क्या जवाब दूं,’’ मोहित ने कहा.
‘‘मेरे भाई, तू 32 साल का हो रहा है. शादी करेगा तो बच्चे भी होंगे. क्या यह अच्छा नहीं रहेगा कि तेरे 60 साल का होने से पहले वे सैटल हो जाएं?’’
‘‘कह तो तू ठीक ही रहा है पर मैं दोबारा शादी करने के झंझट में फंसना नहीं चाहता.’’
‘‘दोस्त, मेरी विधवा साली समझदार भी है और सुंदर भी. आज मेरे ससुराल वाले मेरे यहां आए हुए हैं. वह भी आई है. तू एक बार सब से मिल तो ले.’’
‘‘मिलने के लिए किसी और दिन कार्यक्रम बनाउंगा. अभी जरा जल्दी में हूं,’’ कह कर मोहित ने विदा लेने के लिए हाथ आगे बढ़ा दिया.
‘‘वे ज्यादा इंतजार नहीं कर सकते.’’
‘‘तो तू उन से कह दे कि वे किसी और से रिश्ते के लिए भी अपनी खोज जारी रखें,’’ मोहित ने जान छुड़ाने वाले अंदाज में कहा और नीरज से हाथ मिलाने के बाद आगे बढ़ गया.
नेहा के घर पहुंचते ही उस ने उस के पति संदीप के हाथ में 2 हजार रुपए पर्स से निकाल कर पकड़ाए और कहा, ‘‘राहुल और मेघा को पटाखे दिलवा लाओ.’’
‘‘इतने रुपयों के पटाखे…’’
‘‘आप जल्दी जाओ,’’ मोहित ने उसे आगे नहीं बोलने दिया, ‘‘त्योहार के दिन बच्चों को पूरी खुशी मिलनी चाहिए.’’
‘‘तुम भी साथ चलो.’’
‘‘नहीं, मैं तो नेहा के हाथ की बनी चाय पिऊंगा. सुबह से घर की सफाई कर के थक गया हूं.’’
‘‘तब हम निकलते हैं. थैंक यू, मोहित,’’ संदीप ने आभार प्रकट किया और फिर अपने दोनों बच्चों को बुलाने के लिए उन के कमरे की तरफ चला गया.
उन तीनों के बाजार जाने के बाद नेहा दरवाजा बंद कर के मुड़ी तो मोहित ने अपनी बांहें फैला दीं. नेहा बड़ी अदा से मुसकराती हुई पास आई और उस की बांहों में समा गई.
‘‘चलो, दीवाली सैलिब्रेट कर ली जाए,’’ मोहित उस के कान में प्यार से फुसफुसाया.
‘‘ऐसे सैलिब्रेशन के लिए तो मैं हर वक्त तैयार रहती हूं. वैसे, जनाब ने थकाने वाला क्या काम किया है आज अपने घर में?’’ नेहा ने शोख अदा से पूछा.
‘‘कुछ नहीं किया है, जानेमन. सारी ऐनर्जी अब शुरू होने वाली मौजमस्ती के लिए बचा कर रखी हुई है.’’
‘‘पटाखों पर इतना खर्चा करने की क्या जरूरत थी?’’
‘‘राहुल और मेघा को खुश देख कर मुझे बहुत खुशी मिलेगी.’’
‘‘तुम्हारा साथ मेरी बहुत बड़ी ताकत है, मोहित.’’
‘‘तुम्हें बांहों में भर कर मैं भी बहुत ताकतवर हो जाता हूं. तुम आज मेरी गिफ्ट की हुई साड़ी ही पहनोगी न?’’
‘‘यह भी कोई पूछने की बात है?’’
‘‘फिलहाल तो यह साड़ी मुझे अपनी राह का रोड़ा नजर आ रही है.’’
‘‘2 दिनों में ही इतनी बेसब्री?’’
‘‘है न हैरानी की बात? तुम ने पता नहीं कैसा जादू कर रखा है मुझ पर.’’
‘‘जादूगरनी तो मैं हूं ही. हैप्पी दीवाली,’’ नेहा ने उस के गाल पर चुंबन अंकित कर दिया.
‘‘हैप्पी दीवाली,’’ मोहित ने उस के गुलाबी होंठों से अपने होंठ जोड़े और उसे गोद में उठा कर बैडरूम की तरफ चल पड़ा.
‘‘यू आर वैरी ब्यूटीफुल.’’
‘‘झूठे.’’
‘‘आई लव यू.’’
‘‘फिर झूठ.’’
‘‘अभी देता हूं मैं अपने सच्चे प्यार का सुबूत.’’
‘‘मुझ से हमेशा सच्चा प्यार नहीं किया तो तुम्हारी जान ले लूंगी या अपनी दे दूंगी,’’ आवेश में आ कर नेहा का उस के बदन से जोर से लिपटना मोहित को बहुत उत्तेजक लगा था.
जब संदीप बाजार से अपने बच्चों के लिए खरीदारी कर के लौटा, उस समय तक नेहा नहा चुकी थी और मोहित अपने घर जाने को तैयार नजर आ रहा था.
‘‘मैं 8 बजे तक यहां आ जाऊंगा. तब हम सब जम कर पटाखे फोड़ेंगे;’’ राहुल का गाल प्यार से थपथपा कर मोहित दरवाजे की तरफ चल दिया.
‘‘हम अभी थोड़े से बम जला लें, चाचू?’’ राहुल ने मोहित से इजाजत मांगी.
‘‘चाचू, प्लीज, हां बोल दो न,’’ मेघा बोली.
‘‘नहीं, मेरे आने के बाद शुरू करना पटाखे बजाना,’’ उन दोनों को ऐसी हिदायत दे मोहित घर से बाहर निकल आया.
उस ने घर पहुंच कर देखा कि उस का छोटा भाई अपनी पत्नी शिखा के साथ लाइटें सजाने में लगा हुआ था. वह उन दोनों को डिस्टर्ब किए बिना अंदर चला गया. वहां सब से पहले उस की मां से मुलाकात हुई.
‘‘तू कहां था?’’ मां ने पूछा.
‘‘बाजार तक गया था.’’
‘‘तेरे पिताजी की दवा लानी थी. बाजार जा रहा था तो बता कर क्यों नहीं गया?’’
‘‘दवा मनोज से मंगवा लेतीं.’’
‘‘वह घर सजाने के काम में लगा हुआ है.’’
‘‘ठीक है, मैं दवा थोड़ी देर के बाद ला दूंगा.’’
‘‘कल उन्हें डाक्टर के पास भी ले कर चलना है.’’
‘‘ठीक है, डाक्टर के यहां भी चलेंगे. और कुछ?’’
‘‘नहीं.’’
‘‘अब मैं नहाने जाऊं?’’
मोहित नेहा के घर पहुंचने के लिए आतुर था, पर बहुत जल्दी करतेकरते भी 8 बज गए. वह नेहा के घर जाने के लिए निकल रहा था कि मनोज का साला और सलहज दीवाली की शुभकामनाएं देने आ पहुंचे.
मोहित को चुपचाप घर से बाहर जाते देख मां ने टोक दिया, ‘‘ऐसे कैसे उन लोगों से बिना मिले जा रहा है?’’
‘‘उन से पापा और तुम मिलो न,’’ मोहित चिढ़ कर बोला.
‘‘तेरे पापा की तबीयत ठीक नहीं है. उन के बाद घर का बड़ा तू ही है. जा, उन के पास जा कर कुछ देर तो बैठ,’’ मां ने कहा.
‘‘बड़ा कह कर मुझ पर सारी जिम्मेदारियां लादने की कोशिश मत किया करो. अभी मैं अपने दोस्तों से मिलने जा रहा हूं.’’
‘‘क्या हम तुझे बोझ लगने लगे हैं?’’ मां की आंखों में आंसू तैरने लगी.
‘‘बेकार की बातें करने में तुम्हारा जवाब नहीं.’’
‘‘थोड़ी देर बैठ कर चले जाना उस चालाक नेहा के घर,’’ मां चिढ़ कर बोलीं.
‘‘तुम बिना वजह किसी को बुरा क्यों बता रही हो?’’
‘‘जो तुझे लूटलूट कर खा रहे हैं, उन्हें चालाक न कहूं तो क्या कहूं?’’
‘‘अपनी कमाई मैं जैसे चाहूंगा वैसे खर्च करूंगा. तुम लोगों को किसी चीज की कमी तो नहीं होने देता हूं न?’’
‘‘अच्छा, अब बहस कर के न अपना दिमाग खराब कर, न मेरा. कुछ देर के बाद जहां जाना हो चले जाना. देख, मनोज और शिखा दोनों को बुरा लगेगा अगर तू मेहमानों से बिना मिले चला गया.’’
‘‘ठीक है. मैं 10 मिनट बैठ कर चला जाऊंगा,’’ अनिच्छा से मोहित बैठक की तरफ चल पड़ा.
उसे निकलतेनिकलते साढ़े 8 बजे गए क्योंकि उन लोगों के साथ उसे चाय पीनी पड़ी थी.
‘‘भाईसाहब, जो पटाखे आप खरीद कर लाए हैं, उन्हें नहीं फोड़ेंगे हमारे साथ?’’ शिखा ने उसे बाहर जाते देख पूछा.
‘‘मैं कुछ देर में आता हूं,’’ शिखा के सवाल से मन में उभरी अजीब सी बेचैनी को नियंत्रण में रखते हुए मोहित बाहर निकल आया.
बहुत तेज चल कर वह नेहा के घर पहुंचा पर वहां का दृश्य देख उस के तनमन में आग सी लग गई. वे चारों पटाखे चला रहे थे.
‘‘राहुल, मैं ने मना किया था न मेरे आने से पहले पटाखे छोड़ने को,’’ मोहित गुस्से से बोला.
‘‘आप इतनी देर से क्यों आए हो?’’ राहुल ने शिकायती अंदाज में उस से उलटा सवाल पूछ लिया.
‘‘क्या तुम थोड़ी देर इंतजार नहीं कर सकते थे?’’
‘‘चाचू, बाकी सब भी तो पटाखे चला रहे हैं. आप मुझे ही क्यों डांट रहे हो?’’ राहुल रोंआसा हो उठा.
‘‘आज त्योहार के दिन इसे मत डांटो,’’ नेहा ने पास आ कर राहुल को सिर पर हाथ फेर कर प्यार किया तो वह बम जलाने के लिए भाग गया.
मोहित की नजर अचानक संदीप की तरफ उठी तो उसे साफ नजर आया कि वह उसे ऐसे घूर रहा है, जैसे वह उस के यहां खलनायक बन कर आया हो. उस की आंखों में अपने लिए हमेशा इज्जत और आभार प्रकट करने वाले भावों को देखने के आदी मोहित को उस के बदले तेवर जरा भी अच्छे नहीं लगे. उस ने संदीप को घूरा तो वह फौरन उस के सामने से हट कर बच्चों के पास चला गया.
‘‘पटाखे तो तुम लोगों ने लगभग खत्म कर दिए हैं. अब क्या करें?’’ मोहित ने माहौल को सहज बनाने के लिए अपनेआप को शांत करने की कोशिश की.
‘‘कुछ और पटाखे नहीं मंगवा सकते?’’ नेहा ने बड़ी अदा से उस की आंखों में झांकते हुए सवाल किया.
‘‘ठीक है. मैं पटाखे लाने बाजार जाता हूं,’’ वह उसी पल मुड़ा और चल दिया. नेहा ने आवाज दे कर उसे रोकना भी चाहा पर गुस्से से भरे मोहित ने एक बार भी उस की तरफ पलट कर नहीं देखा.
मोहित बाजार न जा कर घर की तरफ चल पड़ा. उस का मूड बहुत ज्यादा खराब हो रहा था. उसे बचपन से ही पटाखे चलाने का बहुत शौक था. आज पटाखे न चला पाने की वजह से उस के मन में खीज व गुस्सा दोनों धीरेधीरे बढ़ते जा रहे थे.
अपने घर के पास पहुंच उस ने देखा कि मनोज शिखा का हाथ पकड़ कर उस से पटाखे जलवा रहा था. जब जलाया गया बम बहुत जोर की आवाज के साथ फटा तो शिखा डर कर मनोज से लिपट गई.
इस दृश्य को देख मोहित को अपनी दिवंगत पत्नी की याद आई. सिर्फ एक दीवाली का त्योहार दोनों ने साथसाथ मनाया था. बिलकुल ऐसे ही ममता बम की तेज आवाज सुन बारबार उस की बांहों में कैद हो जाती थी. ममता की आई याद से उस की आंखों में आंसू तैर उठे.
उस के पिताजी घर से बाहर नहीं आए थे. मनोज और शिखा के पास रुकने के बजाय वह उन के कमरे की तरफ चल पड़ा.
‘‘हर कोई अपनी मस्ती में मगन है. किसी को मेरी बीमारी की फिक्र नहीं. बम की तेज आवाज के कारण मेरा दिल बैठा जा रहा है,’’ पिताजी ने उसे देखते ही शिकायतें करनी शुरू कर दीं.
‘‘कान में डालने को रुई दूं?’’ बड़ी कठिनाई से मोहित अपनी चिढ़ को काबू में रख सका था.
‘‘नहीं, पर यह देखो कि लोगों में बुद्धि बिलकुल नहीं है. इस मनोज को ही देखो. वह जानता है कि मैं बीमार हूं पर फिर भी कितनी तेज आवाज से फटने वाले पटाखे लाया है.’’
‘‘इतना गुस्सा मत करो, पापा.’’
‘‘किसी का दुखदर्द कोई दूसरा नहीं समझ सकता है,’’ मोहित के यों समझाने पर पापा उसी से खफा हो गए.
‘‘आप बिलकुल ठीक कह रहे हैं. यह बात सभी पर लागू होती है,’’ मोहित गहरी सांस छोड़ता हुआ बोला, ‘‘मैं कुछ देर के लिए छत पर घूमने जा रहा हूं.’’
छत पर घूमते हुए उस ने नीचे झांका तो देखा कि मनोज और शिखा अभी भी पूरे जोश से पटाखे जला रहे थे. पटाखों, मिठाइयों और नेहा की साड़ी के ऊपर 10 हजार से ज्यादा खर्च कर देने के बावजूद त्योहार मनाने की कोई खुशी उस का मन इस पल महसूस नहीं कर रहा था.
तभी उस के मोबाइल की घंटी बज उठी. फोन नेहा का था.
‘‘तुम कितनी देर में आ रहे हो?’’ नेहा की आवाज में चिंता झलक रही थी.
‘‘मैं नहीं आ रहा हूं,’’ उस ने नाराज लहजे में जवाब दिया.
‘‘बेकार की बात मत करो. तुम्हें खाना हमारे साथ ही खाना है.’’
‘‘अब खाना भी मेरे बगैर क्यों नहीं खा लेते?’’
‘‘दीवाली के दिन मुझ से लड़ोगे क्या?’’
‘‘मुझे किसी से लड़ने का कोई हक नहीं है.’’
‘‘तुम यहां आ तो जाओ. फिर मैं तुम्हें मना लूंगी. देखो, बच्चे भी बारबार तुम्हें पूछ रहे हैं.’’
‘‘किसलिए?’’
‘‘तुम कह कर गए थे न कि और पटाखे ले कर आ रहे हो. अब पटाखे मत लाना पर आ जरूर जाओ.’’
तभी नीचे से आती मां की तीखी आवाज मोहित के कानों तक पहुंची, ‘‘अरे, मोहित, अपने पिताजी की दवा तो ले आ. उन्हें रात की खुराक लेनी है.’’
उस ने नीचे झांका तो शिखा मनोज से लिपटी खड़ी नजर आई. उन के सामने अनार जल रहा था. उस की रोशनी में उन के चेहरे पर छाए खुशी के भाव उसे साफ नजर आए. उस के देखते ही देखते मनोज ने झुक कर शिखा का गाल चूम लिया.
‘‘सौरी, मैं नहीं आ रहा हूं… न अभी और न फिर कभी,’’ उस की आवाज में अचानक सख्ती के भाव उभर आए.
‘‘ये कैसी अजीब बात कह रहे हो?’’ नेहा ने घबराई सी आवाज में पूछा.
‘‘मैं अजीब नहीं बल्कि अपने हित की बात कर रहा हूं. आज मुझे एक सबक मिला है. मुझे दूसरों की खुशियों की खातिर अब अपनी जिंदगी की खुशियों का और दिवाला नहीं निकलवाना है. आज से मैं स्वार्थी बनने जा रहा हूं.
‘‘अपने को मेरे करीब दिखाने वाला हर इंसान मेरी कमाई पर ऐश कर रहा है. मुझ से प्यार करने और मेरे शुभचिंतक होने का दिखावा करने वालों में मेरे घर वाले भी हैं, तुम भी हो. और मेरे एहसानों के नीचे दबे रहने की रातदिन बात करने वाला तुम्हारा नपुंसक पति भी है. अब तुम सब में से कोई भी मुझे…’’
‘‘मोहित, चुप हो जाओ,’’ नेहा ने आवाज ऊंची कर के उसे खामोश करने की कोशिश की.
‘‘तारीफ, आभार, कर्तव्य या सैक्स अपील के बल पर अब कोई बेवकूफ नहीं बना पाएगा मुझे. मेरी तरफ से गुडबाय हमेशा के लिए,’’
उस ने झटके से फोन बंद किया और आवेश भरे अंदाज में सीढि़यों की तरफ बढ़ चला.
‘‘मैं बाजार जा रहा हूं पापा की दवा लाने,’’ बाहर जाने वाले दरवाजे के पास पहुंच कर उस ने अपनी मां को आवाज दी.
‘‘अगर सब के साथ खाना खाना है तो जल्दी आना,’’ मां का यह रूखा सा जवाब सुन कर उस का पारा और चढ़ गया.
चंद मिनटों बाद उस का गुस्सा कुछ कम हुआ तो उस ने अपने भविष्य से जुड़ा एक महत्त्वपूर्ण फैसला कर लिया. दवा खरीदने के बाद उस ने अपने दोस्त नीरज के घर जाने का मन बना लिया. वह उस की विधवा साली से मिलना चाहता था. अपना घर बसाने की चाह उस के मन में पलपल बलवती होती जा रही थी.
तभी उस के फोन की घंटी बज उठी. उसे स्क्रीन पर नेहा का नंबर दिखा तो उस ने फोन स्विच औफ ही कर दिया.