पूरे देश में महिलाओं का सशक्तीकरण आंदोलन जोरशोर से चल रहा था. कहीं छोटीछोटी गोष्ठियों तो कहीं बड़ीबड़ी सभाओं के द्वारा महिलाओं को सशक्तीकरण के लिए जाग्रत किया जा रहा था. एक दिन हम भी महिला सशक्तीकरण आंदोलन की अध्यक्षा नीलम का भाषण सुनने उन की सभा में पहुंच गए. यह तो अनादिकाल से ही चला आ रहा है कि जहां महिलाएं हों, उन के पीछेपीछे पुरुष पहुंच ही जाते हैं. लेकिन हम इस परंपरा के तहत महिलाओं की सभा में नहीं पहुंचे थे. हमें तो अपने लेख के लिए कुछ सामग्री चाहिए थी, जो जीवंत सत्य और यथार्थपरक हो.

नीलम मंच से कह रही थीं, ‘‘बहनो, इस पुरुष जाति ने युगोंयुगों से हम पर अत्याचार किए हैं. कभी अहिल्या को शाप दे कर शिला बना दिया, तो कभी सीता को घर से निकाल दिया. हद तो तब हो गई बहनो, जब भरी सभा में कौरवों ने द्रौपदी का चीरहरण कर लिया. बहनो, इस पुरुषप्रधान समाज में आज भी यही हो रहा है. हम इसे बरदाश्त करने वाली नहीं. क्या बहनो, हमें यह सब बरदाश्त करना चाहिए?’’ ‘‘नहींनहीं बिलकुल नहीं,’’ भीड़ से जोरदार आवाज आई. फिर जोरदार तालियां बजीं. कुछ महिलाओं ने खड़े हो कर ‘नीलम जिंदाबाद’, के नारे भी लगाए.

‘‘बहनो, दुख तो इस बात का है कि इन मर्दों ने आज भी महिलाओं को दोयम दर्जे का बना रखा है. कोई 4 बीवियां रखने का अधिकार रखता है, तो कोई चुटकी बजाते ही तलाक दे देता है. बहनो, तुम्हीं बताओ हमें 4 पति रखने का अधिकार क्यों नहीं? महंगाई के इस जमाने में एक पति की आमदनी से ढंग से घर का खर्च चलता है क्या? 4 पति होंगे तो हमें 4 गुना खर्च करने को मिलेगा कि नहीं? हमें सरकार के सामने यह मांग रखनी चाहिए कि औरत को भी एक से अधिक पति रखने का कानूनी अधिकार मिलना चाहिए.’’

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