खुश रहें स्वस्थ रहें

आज के दौर में हर कोई किसी ना किसी परेशानी से जूझ रहा है. ये परेशानी तब और ज्यादा बढ़ गयी जब से कोरोना महामारी ने अपनी दस्तक दी. ऐसे में तनाव, चिंता और मूड को सही रखना भी जरूरी है. हमारे अंदर इमोशन ही तो हैं जो समय समय पर बदलते रहते हैं. तमाम विशेषज्ञों और उनकी शोध के मुताबिक हमारा व्यवहार, तनाव को नियंत्रित करने के लिए काफी मददगार होता है.

हम जब भी परेशानी में होते हैं तो उसमें ख़ुशी ढूंढना काफी मुश्किल काम है. परेशानी तनाव का सबसे बड़ा सबब बन सकती है. हमें ऐसे समय में खुश रहने की सबसे ज्यादा जरूरत है, जब चारों तरफ से नकारात्मकता हमारे ऊपर हावी हो रही हो. यकीन मानिये ये बिलकुल भी नामुमकिन नहीं है.
ये कैसे करना है, चलिए जानते हैं.

1. तनाव से रहें दूर-

तनाव हमारे लिए जानलेवा भी साबित हो सकता है. अगर हम खुद को इससे जितना हो सके दूर रखेंगे उतना ही फायदा हमें ही मिलेगा. कोरोना महामारी के प्रकोप के बीच स्थितियां भी कुछ यूं हो गयी हैं कि तनाव पास ही आ रहा है. ऐसे में ब्लडप्रेशर को समान्य रखना भी काफी जरूरी है. इसलिए अच्छी हेल्थ और ख़ुशी के लिए डॉक्टर भी आपको तनाव से दूरी बनाने की अच्छी सलाह देंगे.

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2. कितना काम का ध्यान?-

काफी लोग होते हैं जो अपनी परेशानी के दौर में ध्यान लगाना पसंद करते हैं. लेकिन हर कोई ध्यान नहीं लगा सकता. कुछ लोग शांति का अभ्यास तो करते हैं लेकिन उनको सफलता नहीं मिलती. ऐसे में जरूरी है कि अगर आप भी ध्यान लगाने में अपना मन एकाग्र नहीं कर पाते तो कोई और रास्ता ढूंढें जो आपको शांति और ख़ुशी दे. आप उन बातों के बारे में ना सोचें जो आपको तनाव देती हैं.

3. ना छोड़ें उम्मीद-

उम्मीद ही तो मात्र एक ऐसी चीज होती है जिस पर पूरी दुनिया टिकी हुई है. उम्मीद के जरिये आप बड़ी से बड़ी मुश्किल परिस्थियों में खुद को ख़ुशी महसूस करा सकते हैं. अगर आपने नकारात्मक परिस्थिति में सब कुछ सकारात्मक बनाए की ठान लें तो आपको जीत जरुर मिलेगी.

4. कहीं ज्यादा सकारात्मकता ना पड़ जाए भार-

जी हां आगे आप हर वक्त सकारात्मकता के बारे में ज्यादा ध्यान देते हैं या खुश रहने के बारे में ही सोचते रहते हैं तो ये आर्टिफिशियल या बनावटी लग सकता है. कभी कभी इसका प्रभाव उल्टा भी पड़ सकता है. क्योंकि हम जितना ध्यान अपनी ख़ुशी की ओर केन्द्रित करते हैं उतना ही मन उदास होता है. और आप कभी कभी खुद के बारे में बुरा भी महसूस कर सकते हैं.

5. छोटी-छोटी चीजों पर दें ध्यान-

ये विकल्प आपके लिए फायदे का सौदा हो सकता है. कभी कभी हमें छोटी से छोटी चीजें भी वो ख़ुशी देती हैं, जो बड़ी चीजें नहीं दे पाती. विशेषज्ञों की मानें तो सकारात्मकता मनोविज्ञान पर आधारित होती है. हमारा छोटी सी चीज भी मूड बेहतर बना सकती है तो फिर खुद सोचिये किसी बड़ी ख़ुशी के पीछे भागने से क्या फायदा?

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6. खुद को खोजिये-

परेशानी के बीच इंसान खुद के अस्तित्व को भुलाने लगता है. ऐसे में आपको खुद को खोजना चाहिए. आप अपना समय घर की साफ़ सफाई में लगाइए. इससे आपका मन केन्द्रित रहेगा. क्योंकि एक गंदा कमरा भी कहीं ना कहीं सकारात्मकता पर असर डालता है. साथ ही गंदा रसोई आपके स्वाश्थ्य को खराब करता है. इसलिए अगर आप घर में अपना समय बिताते हैं तो अपना समय साफ़ सफाई में लगाएं. इससे आप संक्रमण से भी बचे रहेंगे और आपकी हेल्थ भी सही रहेगी.

7. सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर हो कंट्रोल-

इस बात से ऐतराज नहीं किया जा सकता कि सोशल मीडिया बुरी खबरों से भरा हुआ है. हालांकि आप इसके जरिये खुद को अपडेट रखने के साथ अपने दूर दराज के दोस्तों और परिजनों के साथ जुड़े रहने का मौका भी मिलता है. आप सोते वक्त सोशल मीडिया का इस्तेमाल ना करें. आप अपने परिवार वालों के साथ या उन लोगों के साथ समय बिताएं जो आपके अपने हैं और आपके करीब हैं. इससे आपको ख़ुशी मिलेगी.

तो ये कुछ ऐसी टिप्स हैं, जिनकी मदद से आप बड़ी से बड़ी परेशानी को हराकर अपने लिए ख़ुशी के दो पलों को चुरा सकते हैं. इस वक्त पूरा विश्व ऐसे दौर से गुजर रहा है जहां चारों ओर नकारात्मकता ही है. ऐसे में आपको अपना ख़ास ख्याल खुद ही रखना है. आप खुद को तनाव मुक्त तभी बना पाएंगे जब आप परेशानी से दूर रहेंगे. और आपको परेशानी से दूर कैसे रहना है उसके लिए आपकी मदद हमारा ये लेख करेगा.

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यह एक लंबा समय रहा है कि हम कोविड 19 जैसी महामारी के साथ रह रहे हैं, और हमारे राष्ट्र और प्रिय लोगों की स्थिति के साथ बुरे से बदतर होता देख , दुखी , तनावग्रस्त और उदास महसूस करना सामान्य है. ये समय आसान नहीं हैं, और ऐसे में खुद को यह विश्वास दिलाना की एक दिन सब बेहतर हो जाएगा , बहुत मुश्किल है. अगर आप भी तनाव महसूस कर रहे हैं और बेचैनी को झेलना मुश्किल हो रहा है, तो आप भी अपने मन को शांत करने के लिए एसेंशियल ऑयल की मदद ले सकते हैं.

स्ट्रेस दूर करने में काम आते हैं ये एसेंशियल ऑयल :

तनाव से भरा दिमाग़ शायद आजकल देशभर में एक आम बात हो गई है. कोरोना वायरस की महामारी से आज पूरी दुनिया जूझ रही है. ऐसे में हम आशा करते हैं कि सभी इस आपदा से मज़बूती से लड़ेंगे. आप जानते हैं कि तनाव, उदासी और डिप्रेशन आपके हार्मोन पर बहुत बुरा प्रभाव डाल सकते हैं और शारीरिक बीमारी और मानसिक बीमारी का कारण बन सकते हैं. ऐसे में  खुद को शांत करने के लिए एसेंशियल ऑयल का उपयोग करना चाहिए. अपने आप को आराम देने के लिए आप इन तेलों को अलग-अलग तरीकों से उपयोग में ला सकते हैं ,  जैसे कि  इसे अपने नहाने के पानी में उपयोग कर सकते हैं , या अपने पैरों पर लगा सकते हैं , या अपने कमरे में छिड़क सकते हैं. हमने उन तेलों की एक सूची तैयार की है , जिनका आपको इस समय में उपयोग करना चाहिए:

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1. चंदन का तेल

आपको तनाव से मुक्त करने के लिए सबसे अच्छा तेल चंदन का तेल है. आप इसे एक डिफ्यूज़र या अपने नहाने के पानी में डाल सकते हैं या हर दिन इत्र के रूप में उपयोग कर सकते हैं और यह निश्चित रूप से यह आपको तनाव मुक्त कर  देगा. यही कारण है कि लोग चंदन का उपयोग तिलक के रूप में करते हैं क्योंकि यह आपके दिमाग को तुरंत ठंडा कर देता है.

2. जैस्मीन ऑयल

एक अन्य तेल जो तनाव और डिप्रेशन से निपटने में बहुत मदद करता है, वह है जैस्मिन ऑयल. यह तेल शादियों और मंदिरों में बहुत उपयोग किया जाता है क्योंकि यह तेल आपको तुरंत शांत करता है और आपकी मसल्स को आराम देता है.

3. रोज़ ऑयल

चिंता का इलाज करने के लिए एक और  अद्भुत तेल है , वो है रोज़ ऑयल या गुलाब का तेल है. इस तेल का आप अपने नहाने के पानी में या इत्र के रूप में प्रयोग करें.

4. लैवेंडर ऑयल

हम सभी कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों को देख वास्तव में चिंतित हैं. वायरस से जुड़ी हर रोज़ आ रही ख़बरें हम सभी को काफी तनाव दे रही हैं जिससे रात में नींद आने में भी तकलीफ होती है , इसलिए नींद आने में मदद करने के लिए आप लैवेंडर ऑयल का उपयोग करें. यह तेल एक  एंटी-स्ट्रेस और एंटी-वायरल तेल है जो आपको सोने में मदद करता है. आप अपने मन को शांत करने के लिए इसे डिफ्यूज़र या अपने नहाने के पानी में इस्तेमाल कर सकते हैं. या फिर आप इसकी कुछ बूंदें लें और अपने पैरों के तलवों और हथेली पर मलें  जिससे आपको सोने में सहायता मिलेगी.

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5. इलंग इलंग ऑयल

अपने घर के बुजुर्गों की देखभाल करना महत्वपूर्ण है. उनके पास कई ऐसी समस्या होती है जिन्हे वे किसी से नहीं बताते. उनकी चिंता और डिप्रेशन को दूर करने में , उनकी मदद करने के लिए इलंग इलंग ऑयल का उपयोग करें. नहाने के बाद इसे उनके बालों पर लगाएं, या आप उनके  पैरों को इलंग इलंग के पानी में भिगो सकते हैं या वे इसे हर दिन इत्र के रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं.

तनाव इंसान की सेहत को किस हद तक बिगाड़ सकता है, यह बात किसी से छुपी नहीं है. स्ट्रेस से शरीर की सुंदरता को भी नुकसान पहुंचता है. यही वजह है कि सेहत सौंदर्य और खुशी के लिए तनाव दूर किया जाना बेहद जरूरी होता है. तो यह कुछ एसेंशनल ऑयल है जो जरूर आपको तनाव से मुक्त कर देंगे और आप फिर से अच्छा महसूस करेंगे.

स्ट्रैस भी दूर करती है बुनाई

आंकड़ों के अनुसार 2020 में 80% भारतीय काम, हैल्थ व अन्य आर्थिक कारणों से स्ट्रैस की गिरफ्त में आए हैं. यही नहीं, दिनप्रतिदिन किसी न किसी कारण से हम स्ट्रैस का शिकार होते हैं, जिस से उबरने के लिए हम ऐंटीस्ट्रैस चीजें करने के बारे में सोचने को विवश हैं ताकि हम खुश रह सकें, प्रोडक्टिव सोच सकें व स्ट्रैस से खुद को बाहर निकाल सकें.

ऐसे में हाल के समय में बुनाई स्ट्रैस से बाहर निकालने का बहुत ही बेहतरीन विकल्प है, जबकि बुनाई को ले कर कुछ लोगों का मानना है कि इस से इंसान सुस्त, आलसी बनता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि बुनाई से आप ऐक्टिव रहते हैं, चीजों पर अच्छी तरह फोकस कर पाते हैं, रिलैक्स मूड में रहते हैं, नैगेटिव चीजों से दूर रहते हैं, यह कहना भी ज्यादा नहीं होगा कि यह हमारे ब्रेन के लिए स्ट्रैस बस्टर का काम करती है.

जानते हैं, बुनाई से हमें क्याक्या फायदे मिलते हैं:

मैडिटेशन का काम करे

जिस तरह मैडिटेशन से आप का मन शांत हो कर आप खुद पर ध्यान केंद्रित कर पाते हैं, उसी तरह बुनाई से आप एक जगह ध्यान लगा कर यानी अपने बुनाई के लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित कर के खुद को तनाव से दूर रख पाते हैं.

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अनेक शोधों में यह साबित हुआ है कि बुनाई उन लोगों को तनाव से राहत देने का काम करती है, जो जल्दी उत्साहित हो जाते हैं, तनाव में आ जाते हैं या फिर छोटीछोटी बातों को ले कर टैंशन ले लेते हैं, यह उन्हें मानसिक रूप से स्वस्थ रखने में मदद करती है.

आप ने कई बार नोटिस किया होगा कि आप परेशान होने पर अपने हाथपैरों को हिलाते होंगे या फिर पेन से खेलते होंगे. आप में से कुछ लोगों ने इन संवेदनाओं को महसूस किया होगा या कुछ ने इस से मिलताजुलता किया होगा. जानेअनजाने में, हमारा ब्रेन इस तरह की गतिविधियों में शामिल हो कर हमारी परेशान होने वाली भावनाओं को कम करने में मदद करता है. उसी तरह जब हम बुनाई के जरीए एक ही चीज को बारबार दोहराते हैं तो उस से हमारे ब्रेन में हैप्पी हारमोंस सक्रिय हो कर हमें रिलैक्स करने के साथ ही हमें खुश करने का काम भी करते हैं.

बुनाई एक तरह से मैडिटेशन के समान है, क्योंकि जिस तरह आप मैडिटेशन के दौरान अपने पूरे ध्यान को सांस लेने पर केंद्रित करते हैं, उसी तरह बुनाई में भी ज्यादातर कार्य आप के हाथों पर केंद्रित होता है.

रखे प्रोडक्टिव

आलसी बने रहने व काम न करने के कारण भी हम धीरेधीरे स्ट्रैस की गिरफ्त में आने लगते हैं या यह कह सकते हैं कि यह स्ट्रैस का एक महत्त्वपूर्ण लक्षण है.

लेकिन जब हम बुनाई के जरीए एक ही चीज को बारबार दोहराते हैं तो हमें अच्छा महसूस होने के साथसाथ हमें यह भी लगता है कि हम ने आज कुछ बेहतर किया है, जिस की शायद हम ने उम्मीद भी न की हो. इस की खास बात यह भी है कि आप बुनाई करते हुए दूसरे काम भी कर सकते हैं. जैसे आप नैटफ्लिक्स या फिर टीवी पर अपना फैवरिट प्रोग्राम अथवा फिर सीरीज भी देख सकते हैं यानी एकसाथ दो काम.

बुरी आदतों से दूर रखे

हर समय स्ट्रैस में रहने से आप का मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ने के साथसाथ अन्य मुश्किलें भी बढ़ सकती हैं, जैसे गंभीर अवसाद, ज्यादा खाने की आदत, ऐनोरेक्सिया आदि जो आप की मुश्किलों को और बढ़ा सकते हैं, जबकि बुनाई एक सामान्य सी गतिविधि है, फिर भी आप को अन्य गंभीर विकारों के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार करती है.

सेहत वाले लाभ

जो लोग दिल से संबंधित बीमारी या फिर अन्य समस्याएं जैसे पोस्ट ट्रोमैटिक स्ट्रैस डिसऔर्डर, तनाव, क्रोनिक पेन आदि समस्याओं से ग्रस्त होते हैं, उन के लिए अपने जीवन में स्ट्रैस को दूर करने के लिए कुछ स्ट्रैस से राहत देने वाली गतिविधियों को करना जरूरी होता है. ऐसे में बुनाई भी एक ऐसी गतिविधि है, जिसे इन स्थितियों में थेरैपिस्ट भी करने की सलाह देते हैं.

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इसलिए बिना किसी हिचकिचाहट आप बुनाई को अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बना लें और अपनी जिंदगी को तनावरहित हो कर जीएं.

बढ़ता कमर का साइज

आप कई तरह के योगा और एक्सेरसाइज़ करते हैं जिससे आपका वजन कम हो जाए. लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी पेट और कमर के इर्द गिर्द मोटापा और चर्बी को हटाना बेहद मुश्किल होता है. देखा जाए तो पेट में जमा चर्बी काफी जिद्दी होती है. इसे हटने में काफी समय लगता है. अगर आपने भी अपना वजन कम कर लिया है लेकिन पेट और कमर का साइज़ जस का तस है. और कम होने के बजाय ये बढ़ता जा रहा है तो आप इसे इग्नोर ना करें. ये कई कारणों की वजह से हो सकती है. ये कारण क्या है, और उसके लिए क्या करना चाहिए. जानने के पढ़ते रहिये हमारा ये खास लेख.

1. कहीं ज्यादा तो नहीं हो रहा कार्ब्स-

कार्ब्स को अन्हेल्थी खाने की सूची में गिना जाता है. रोजमर्रा के आगार में ये किसी भी रूप में शरीर में पहुंच सकता है. जिससे शरीर में इंसुलिन का स्तर बढ़ने लगता है और कैलोरी हावी होने लगती है. जो शरीर में जाकर वसा का रूप ले लेती है. इससे निजात पाने के लिए आप क्या कहा रहे हैं उसपर ध्यान दें. कार्ब्स की कमी आपके लिए फायदेमंद हो सकती है. इसके आलावा वजन घटाने के लिए आप अच्छे कार्ब्स के बारे में भी जानकारी ले लें.

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2. लो फैट भी जिम्मेदार-

जी हां जब भी खाना खाते हैं तो उस खाने से वसा यानि की फैट की मात्रा भी बढ़ जाती है. जिससे खाना बेस्वाद सा लगने लगता है. बाहर के फ़ूड में लोग अधिकतर स्वाद बढ़ाने के लिए कृतिम स्वादों को मिलाते हैं. जो शरीर में जाकर डाइजेस्ट नहीं हो पाता और पेट के इर्द गिरफ़ कमर के पास जाकर जमने लगता है. इसलिए विशेषज्ञ भी वसा की जगह ओमेगा-3 जैसे फैटी ऐसिड का चुनाव करें.

3. जंक फ़ूड-

अधिकतर लोग जंक फ़ूड को बड़े ही चाव से खाते हैं. जिसमें बाहरी हानिकारक मसाले काफी होते हैं. लोग इस बात से अनजान होते हैं कि जो जंक फ़ूड या प्रोसेस्ड फ़ूड वो खाते हैं उसमें हाई सोडियम मिला होता है. अगर आप वास्तव में अपना वजन कम करना चाहते हैं तो नमक और सोडियम को खाना कम कर दें.

4. पानी की कमी-

पानी पीने से शरीर हाइड्रेट रहता है आठ है डाइजेशन भी सही रहता है. कई लोग पानी कम पीते हैं. उन्हें काफी नुक्सान हो सकता है. पर्याप्त मात्रा में पानी पीने से भूख कम लगती है और शरीर से विषाक्त पदार्थ भी बाहर निकलते हैं. बेहतरीन डाइजेशन और और फैट को हटाने के लिए एक दिन में कम से कम दो लीटर पानी जरुर पिएं.

5. नींद की कमी-

पर्याप्त नींद ना लेना आपके हार्मोन्स का संतुलन बिगाड़ देती है. जिससे वजन भी बढ़ने लगता है. अगर आप अच्छी तरह से सोते हैं, शरीर बिगड़े हुए हार्मोन्स को संतुलित रखता है और वजन भी घटाता है. कम से कम 8 घंटे की नींद जरुर लें.

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6. ठीक से खाना ना चबाना-

बचपन से ही हमें इस बात की सीख दी जाती है कि खाने को आराम से और चबा-चबाकर खाना चाहिए. इसके बाद भी कई लोग ऐसे होते हैं जो जल्दबाजी में खाना खाते हैं और उसे ठीक से चबाते नहीं हैं. जल्दी खाने के चक्कर में आप ज्यादा खाना कहा लेते हैं. जो मोटापे का कारण बन जाता है. आप चबा-चबाकर खाना खाने से आपकी भूख जल्दी मिट जाती है.

इन सबके अलावा तनाव से भी फैट बढने लगता है. जिससे कई तरह की बीमारियां होने लगती हैं. अगर आपका भी वजन कम होने के बाद पेट में या कमर के आस-पास फैट जमा होने लगे तो कारणों को जानकर उनका समाधान सही समय पर कर लें.

आनलाइन स्कूलिंग का तनाव

ऑनलाइन लर्निंग के कई फायदे हैं, लेकिन रेग्युलर स्कूलिंग पैटर्न में बदलाव से छात्रों के सीखने या ज्ञान हासिल करने के तौर-तरीकों पर प्रभाव पड़ा है. ऑनलाइन स्कूलिंग कम सक्रियता से संबद्ध है जो छात्रों को कम उत्साहित बनाती है. स्कूल के अंदर मुहैया कराया जाने वाला उचित और ढांचागत लर्निंग परिवेष अपने घर की चारदीवारी के अंदर हासिल नहीं होता है. लर्निंग स्ट्रक्चर में इस तरह के बड़े बदलाव ने कुछ छात्रों को भ्रमित और चिंताग्रस्त बना दिया है.

अध्ययनों के अनुसार, यह साबित हुआ है कि छात्र जब किसी सीमित ढांचे में नहीं होते हैं या साथी छात्रों से घिरे नहीं रहते हैं तो वे कम प्रोत्साहित महसूस करते हैं. यह कई मामलों में सही है, क्योंकि छात्र वर्चुअल लर्निंग के बजाय आमने-सामने वाला पारस्परिक संवाद पसंद करते हैं. इस महामारी के दौरान जो अन्य कारक सामने आया, वह यह है कि किस तरह से छात्रों को मौजूदा लाॅकडाउन के बीच उत्साहित बनाए रखा जाए. घर पर सांत्वना और आराम करने की प्रवृत्ति शिक्षा की उत्पादकता में कमी लाती है और कई छात्र अपना अध्ययन करने में विलंब करते हैं. यह शिक्षकों के लिए भी समान रूप से चिंताजनक है, क्योंकि हरेक छात्र के लिए अलग से फीडबैक मुहैया कराना चुनौतीपूर्ण हो जाता है, खासकर डिजिटल प्लेटफाॅर्म के जरिये. इन समस्याओं का मुकाबला करने के लिए हमें ऑनलाइन स्कूलिंग की सही स्थिति जानने की जरूरत होगी. इस बारे में कुछ खास बातें बता रहीं है.
मनोचिकित्सक अनुजा कपूर, जिससे इस समस्या से आसानी से निकला जा सके.

ज्यादातर अभिभावक इसे लेकर कम चिंतित रहते हैं कि उनके बच्चे को किस तरह से समझदार बनाया जाए, जिससे कि वे अपने बच्चों पर ध्यान केंद्रित करें अध्ययन सामग्री के लिए उन्हें प्रभावित कर सकें जिससे वे अच्छे नंबर ला सकें. लर्निंग, ज्ञान, कौशल, मूल्यों (चाहे वे कितने भी सरल और आसान हों) को सीखने की प्रक्रिया छात्र और शिक्षक दोनों के लिए संदेह के बगैर सबसे कठिन कार्य है.

आनलाइन स्कूलिंग के तनाव के कारण, अभिभावक अपने बच्चों में कई तरह के व्यावहारिक बदलाव देखते हैं, जिनमें अनुचित विवाद, इनकार करने, टकराव, अवहेलना आदि मुख्य रूप से शामिल हैं, और कुछ बच्चों में इस तरह के व्यवहार नई बात नहीं हैं. इस दौर के दौरान, माता-पिता से समर्थन और उचित मार्गदर्शन बेहद जरूरी है.

नीचे ऐसे कुछ सुझाव दिए जा रहे हैं जो तनाव की स्थिति से निपटने, चिंता और सोशल डिस्टेंसिंग और घरों में सीमित रहने के दबाव को दूर करने में मददगार होंगेः

प्रोत्साहित बने रहेंः जब आपके घर का कोई छोटा सा कमरा आपके लिए क्लासरूम बन जाता है तो छात्रों को अपनी स्कूल लाइफ को संतुलित बनाए रखना या प्रेरित बने रहना मुश्किल हो जाता है. अभिभावकों को छात्रों को इस तरह के तनाव की स्थिति से मुकाबले के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए.

रुटीन बनाएंः दैनिक कार्यों और गतिविधियों को पूरा करने के लिए, उसी तरह से साप्ताहक प्लानर बनाए जैसे कि स्कूल में छात्र इस पर अमल करते हैं. अपने लक्षयों को प्राथमिकता दें और सुनिष्चित करें कि बच्चा लगन के साथ इस प्लानर पर अमल करे.

अच्छी नींद लेंः तनाव से निपटने का सबसे आसान तरीका है अच्छी और पर्याप्त नींद लेना. अच्छी नींद न सिर्फ आनलाइन लर्निंग से पैदा होने वाले तनाव से निपटने के लिए जरूरी है बल्कि इससे सामान्य तौर पर भी आपके तनाव को दूर करने में मदद मिलती है.

सोशल नेटवर्कों के जरिये दोस्तों से बात करेंः स्कूल मे छात्र नियमित तौर पर सहपाठियों के संपर्क में बने रहते थे, लेकिन इस महामारी और आनलाइन स्कूलिंग ने इसका विकल्प छीन लिया है और उसके बजाय उन्हें सोशल डिस्टेंसिंग पर जोर देने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है. अभिभावकों को बच्चों को उनके दोस्तों से वीडियो चैट के जरिये बात करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए, जिससे कि उनके तनाव के स्तर में कमी लाई जा सके.

अच्छी नींद, स्वस्थ आहार और शारीरिक गतिविधि, सभी मजबूत मानसिक स्वास्थ्य और तनावमुक्त जिंदगी के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं. चूंकि बच्चे इस महामारी से ज्यादा प्रभावित हुए हैं और आनलाइन स्कूलिंग ने उन्हें उनकी नियमित जंदगी से अलग रहने का अनुभव महसूस कराया है. अपने बच्चे के रुटीन को उनके कौशल और दिलचस्पी के आधार पर व्यक्तिगत बनाएं, जिससे कि वे साथियों से अलग-थलग या दूर रहने की भावना महसूस न करें.

दफ़्तर के तनाव घर की कढ़ाई में

आज रंजना को ऑफिस में बॉस की डांट सुननी पड़ी थी. पिछले कुछ दिनों से उस की बेटी की तबीयत खराब चल रही है इसलिए ऑफिस में काम पर पूरा ध्यान नहीं दे पा रही थी. उधर सब से पक्की सहेली से भी किसी बात पर कहासुनी हो गई थी. इसलिए घर लौटते समय भी उस का मन काफी भारी था. दिल कर रहा था कि घर पहुंचते ही कोई गरमागरम चाय पिलाए ताकि सर दर्द थोड़ा कम हो जाए. पर वह जानती थी कि ऐसा हो नहीं सकता. बेटी की तबीयत खराब है और बेटा अभी बहुत छोटा है. पति महोदय तो 9 बजे से पहले घर में घुसते नहीं हैं.

परेशान सी वह घर में घुसी और तभी बेटा उस से चॉकलेट की मांग करते हुए उस से लिपट गया. रंजना ने उसे परे करते हुए बैठना चाहा तो वह रोने लगा. इस पर रंजना को बहुत तेज गुस्सा आ गया. उस ने बेटे को एक चपत लगा दी. बेटा जोरजोर से रोने लगा. अब तो रंजना का सिर दर्द से और भी ज्यादा फटने लगा. किसी तरह बेटे को चुप करा कर वह रसोई में गई और चाय बना कर ले आई. फिर खाने की तैयारी करने लगी. खाना बनाने में उसे बिल्कुल भी दिल नहीं लगा तो उस ने सुबह की सब्जी गर्म की और परांठे बना कर बच्चों को परोस दिया. जब पति घर लौटे और यह खाना देखा तो उन का मुंह बन गया. रात में छोटी सी बात पर दोनों में झगड़ा हो गया और रंजना रोती हुई सो गई.

जाहिर है कि रंजना अपने ऑफिस के तनाव को घर ले कर आई थी जिस की वजह से उसे घर में भी सुकून नहीं मिला. यही नहीं घर के दूसरे सदस्यों को भी उस के इस तनाव का शिकार बनना पड़ा.

दफ़्तर का तनाव घर लाने से घर की शांति भंग होती है| जिस खाने के लिए हम पैसे कमाते है यदि आप का तनाव उसी खाने को बर्बाद कर दे तो फिर कमाने का क्या फायदा ? आप जैसा खाना खाते हैं वैसा ही आप का स्वभाव बनता है. खाने से ही आप किसी के दिल तक पहुँच सकते हैं और खाना ही आप को निरोगी और मजबूत बनता है. फिर इस खाने के प्रति लापरवाही कैसे की जा सकती है?

इसलिए बेहतर है कि काम से लौट कर खाना बनाते समय सारे तनाव और दिक्कतें रसोई से बाहर ही रखें तभी आप की गृहस्थी सुखद रह पाएगी.

यदि आप कामकाजी महिला हैं और आप का पूरा दिन बाहर नौकरी और फिर घर की देखरेख मे निकल जाता है. आप ऑफिस के तनाव भी घर ले कर जाती हैं तो सावधान हो जाइये. ऐसा कर के आप कभी खुश नहीं रह पाएंगी बल्कि अक्सर खुद को शारीरिक व मानसिक रूप से थका व खीजा हुआ महसूस करेंगी.

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जरूरी है कि आप ऑफिस के तनाव ऑफिस में ही छोड़ कर फ्री और प्रसन्न मन के साथ घर पहुंचें. इस संदर्भ में रिलेशनशिप एक्सपर्ट डॉ आरती दहिया कुछ उपाय बता रही हैं जिस से आप की निज़ी ज़िंदगी व काम दोनोें में सुधार आ सकता है:

1. ऑफिस से जब आप घर आती हैं तो घर में घुसते ही रसोई में न जाएं. कुछ देर सुकून से बैठ कर दिन भर की शारीरिक व मानसिक थकान उतारें, चाय पीएं और फिर खाना बनाने के लिए रसोई मे जाएं.

2. अच्छा होगा कि घर आते वक़्त बच्चों के लिए उन की मनपसंद वस्तु जैसे खाने की कोई चीज़ या कोई खिलौना आदि ले कर आएं. घर में घुसते ही जब आप वह चीज़ बच्चे के हाथ में रखेंगी तो उस के चेहरे पर मुस्कान खिल जायेगी और उस की ख़ुशी देख कर आप का दिल भी खुश हो जाएगा.

3. घर आने के बाद कोई भी काम शुरू करने से पहले बच्चों और घर के बड़ों के साथ समय ज़रूर व्यतीत करें. यदि पति भी ऑफिस से उस समय तक आ जाएं तो ऑफिस के तनाव भूल कर थोड़ा समय उन के साथ भी बैठें और चाय के साथ स्नैक्स का आनद लें. घर आ कर एकदूसरे से बातचीत करें और एकदूसरे के दिन के बारे में जानें. बाद में रात में जब समय मिले तो आराम से अपनी समस्याएं या ऑफिस की परेशानियां अपने जीवनसाथी से डिसकस करें. वे आप को समझेंगे और आप की समस्या का समाधान भी बताने का प्रयास करेंगे. इस से आप का रिश्ता और गहरा होगा.

4. काम से आ कर घर मे खुशबूदार कैंडल्स जलाएं व स्लो म्यूजिक चलाएं. इस से घर का वातावरण अच्छा होगा और आप का मन भी शांत होगा. रास्ते में भी म्यूजिक सुनते हुए या किताबें पढ़ते हुए आएं इस से दिमाग में तनाव की बातें नहीं आएंगी और आप फ्रेश महसूस करेंगी.

5. अगर आप के घर के आसपास कोई पार्क है तो ऑफिस से आते समय थोड़ी देर वहाँ बैठ कर नेचर के साथ समय गुज़ारें ताकि आप के दिमाग से तनाव गायब हो जाए.

6. आप रास्ते में मोबाइल पर भी जोक्स या वीडियो देख सकती हैं इस से आप का ध्यान बाकी निगेटिव बातो से हट जाएगा.

7. अगर आप के पास कोई पालतू जानवर है जैसे कुत्ता, बिल्ली, आदि तो कोशिश करे कि काम से घर लौट कर या छुट्टी वाले दिन उन के साथ कुछ वक़्त ज़रूर गुजारें. इस से आप के मन को शांति मिलेगी और उन्हे भी अच्छा लगेगा.

8. ऑफिस से आ कर पहले अपनी बॉडी को डिटॉक्स करें. ठंडे पानी से नहाएं. मन तरोताजा हो जाएगा.

9. घर का काम घर में और ऑफिस का काम ऑफिस में करने की आदत रखें. ऑफिस के काम घर में करने की कोशिश न करें.

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पेरोल कंपनी पैचेक्स द्वारा कराये गए एक सर्वे के अनुसार 60 फीसदी कर्मचारियों का कहना है कि वे औसतन पूरे हफ्ते में 3 या उस से ज्यादा दिन तनावग्रस्त महसूस करते हैं. 70 फीसदी कर्मचारी अपने तनाव के स्तर को 5 में से 3 अंक देते हैं. ज्यादातर कर्मचारियों ने यह भी कहा कि काम करने के लंबे घंटों के वजह से उन्हें तनाव होता है.

एक हालिया सर्वे के मुताबिक भारत में तनाव बहुत तेजी से बढ़ता जा रहा है. 35 से 49 साल के उम्र वाले 89 फीसदी भारतीय तनावग्रस्त हैं जबकि 50 से अधिक उम्र वाले 64 फीसदी लोग इस समस्या से जूझ रहे हैं. 35 से 49 साल की उम्र वाले लोग कामकाजी तबके का सब से बड़ा हिस्सा हैं.

महिलाओं की तुलना में पुरुषों को अधिक तनाव होता है. हालांकि दोनों के बीच का फर्क बहुत ज्यादा नहीं है और फासला सिर्फ 10 फीसदी का ही है. दफ्तरों में 84 फीसदी लोगों को तनाव है जबकि 74 फीसदी का मानना है कि उन के सहकर्मी भी इसी का शिकार हैं.

क्योंकि रिश्ते अनमोल होते हैं…

क्या कभी आपने सोचा है कि जो लोग हर मुश्किल घड़ी में हमारा साथ देते हैं हम उन्हें कितना समय दे पाते हैं. क्या अपने जीवन में हम उनकी अहमियत को समझते हैं अगर हां तो कितना…हमें शायद ये लगता है कि ये तो हमारे अपने हैं कहां जाएंगे, लेकिन धीरे-धीरे वो कब और कैसे हमसे दूर होते जाते हैं हमें पता भी नहीं चलता. हमें ऐसा लगता है कि हम इनके लिए ही तो दिन रात मेहनत करते हैं काम करते हैं. शायद इसी बहाने के साथ हम एक ऐसी दुनिया की तरफ भागने लगते हैं जिसकी कोई सीमा नहीं.

हम क्यों भाग रहे हैं किसके लिए भाग रहे हैं कभी गौर से सोचते भी नहीं. रोज सुबह के बाद दिन, महीने और फिर साल…बस यूं ही गुजरते रहते हैं. जबकि असल में जिंदगी का मतलब भीड़ में भागना नहीं है. हां ये सच है कि हमारे लिए काम और सक्सेस दोनों जरूरी. इसके लिए हेल्दी कंपटीशन की भावना हमारे अंदर होनी चाहिए लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि हम हमेशा काम को प्राथमिकता दें और परिवार को भूल जाएं. भई, जीवन में सब कुछ जरूरी है इसलिए काम और परिवार के बीच संतुलन बनाना बहुत महत्वपूर्ण है. आखिर, काम के नाम पर हमेशा आपके अपनों को ही कंप्रमाइज क्यों करना पड़े.

लॉकडाउन ने दी सबक

लॉकडाउन ने सबको परिवार की अहमियत हो सिखा ही दी. साथ ही हम सभी को यह सबक भी दिया कि जिंदगी में भले एक दोस्त हो लेकिन वह सच्चा हो. सिर्फ दिखावे के लिए सोशल मीडिया पर भीड़ बढ़ाने वाले रिश्तों से कोई फर्क नहीं पड़ता बल्कि रियल लाइफ में कितने लोग आपका साथ देते हैं इससे फर्क पड़ता है.

रिलेशनशिप बॉन्डिंग क्यों जरूरी है

डॉक्टर नेहा गुप्ता (मेदांता हॉस्पिटल गुड़गांव) का कहना है कि, अगर अपने लोगों से बॉडिंग स्ट्रांग होती है तो हम मेंटली फिट रहते हैं और हमारी इम्यूनिटी भी स्ट्रांग होती है. आज के समय में रिश्ते लाइक और कमेंट में उलझ कर रह गए हैं. ऐसे में हमारे अहम रिश्ते दम तोड़ते जा रहे हैं और हम वर्चुअल दुनिया में ही खुशियां मना रहे हैं, जबकि यह झूठी और बनावटी दुनिया है.

बाद में पछताने से बेहतर है कि कुछ छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर अपने अनमोल रिश्तों को जीवन भर के लिए अपना बना लें. फिर चाहे वे आपके परिवार के सदस्य हों, दोस्त हों या ऑफिस के सहकर्मी. याद रखिए रिश्ते तोड़ना आसान हैं लेकिन इसके बाद के परिणामों का भुगतना मुश्किल होता है.

रिश्तों को मजबूत बनाने के टिप्स

माफी मांगने या माफ करने में न हिचकिचाएं

एक-दूसरे पर विश्‍वास करना सीखें

खुलकर बात करें चाहे वे माता-पिता हों या बच्चे

नोक-झोंक प्यार का हिस्सा हैं इन्हें दिल पर न लें

रिश्ते तोड़ने का ख्याल मन से निकाल दें

सहकर्मी के साथ मजबूत रिश्ते बनाने के टिप्स

खुद पहल करते हुए बातचीत शुरू करें और काम के अलावा भी एक-दूसरे को जानने की कोशिश करें.
अगर ऑफिस में कोई आपसे रिश्ता न रखना चाहे तो नकारात्मक राय न बनाएं और सिर्फ ऑफिस संबंधी कामों में ही उसकी मदद करें.

सहकर्मियों में कॉमन इंट्रेस्ट तलाशें इससे दोस्ती करने में काफी आसानी होती है.

कलीग्स से रिलेशन स्ट्रांग करने के लिए अपनी बड़े या छोटे पद को भूलकर सबसे एक समान फ्रेंडली व्यवहार करें.

जब भी किसी सहकर्मी को आपकी जरूरत पड़े तो बिना हिचकिचाए उसकी मदद करें.

पर्सलन और प्रोफेशनल लाइफ को बैलेंस करना है जरूरी

परिवार के सदस्यों, दोस्तों की अक्सर यही शिकायत रहती है कि हम उन्हें समय नहीं देते. जबकि हमें जब भी उनकी जरूरत होती है वे हमारे साथ होते हैं. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हम घर और काम को बैलेंस करके नहीं चलते हैं.

समय को बर्बाद न करें

काम के समय को पर्सनल चीजों में न गवाएं वरना ऑफिस का काम आपके लिए बोझ बन जाएगा और तय समय में पूरा भी नहीं हो पाएगा. अगर ऑफिस के समय ही काम खत्म हो जाएगा तभी आप बिना किसी टेंशन के अपनी दूसरी जिम्मेदारियों को निभा पाएंगे.

जरूरत से ज्यादा बोझ पड़ेगा भारी

अगर आपको अपनी क्षमता पता है और संकोच के कारण काम के लिए मना नहीं कर पा रहे हैं तो इस आदत को बदल दीजिए. आप अपने सीनियर्स से विनम्रता के साथ कह सकते हैं कि पहले आप जो काम कर रहे हैं उसे खत्म करने के बाद नए काम को पूरा कर पाएंगे.

महत्त्व के हिसाब से प्राथमिकता तय करें

अगर आप अपनी वर्क लाइफ को बैलेंस करना चाहते हैं तो सबसे पहले अपनी प्राथमिकता तय करें. आपको रोज बहुत से काम करने होते हैं लेकिन आपको यह पता होता है कि कौन सा काम ज्यादा जरूरी है और किस काम को थोड़े समय के लिए टाला जा सकता है. इससे आपका दिमाग शांत रहेगा और काम भी हो जाएगा.

तनाव के कोरोना से जूझती कामकाजी महिलाएं

विश्व में जब भी कोई आपदा या महामारी आती है, तो लोग उससे जूझते हैं, लड़ते हैं और फिर उससे पार पाकर बाहर आते हैं.  पर उसका दुष्प्रभाव सदियों तक रहता है, खासकर मनुष्य के शरीर पर और उससे ज्यादा मन पर.

ठीक वैसे ही जैसे आज हम कोरोना से लड़ रहे हैं. कल को इस महामारी की वैक्सीन बनने और उचित स्वास्थ विज्ञान के होने से हम निश्चित ही इस पर विजय प्राप्त कर लेंगे, पर इसके मनोवैज्ञानिक प्रभाव से हम कब और कैसे उबरेंगे, यह कह पाना फिलहाल तो बहुत ही कठिन है.

जहां आज इस वैश्विक बीमारी ने लाखों लोगों को प्रभावित किया है, वहीं मौत का आंकड़ा भी कम नहीं है. एक और जहां इससे पुरुष, स्त्रियां, बच्चे सभी प्रभावित हो रहे हैं, पर इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव महिलाओं पर खासकर नौकरीपेशा महिलाओं पर अलग ही तरीके से पड़ रहा है. एकदम अदृश्य कोरोना वायरस की तरह.

यह डर बेवजह नहीं है. यूएन वीमेन एशिया पैसिफिक का मानना है कि आपदाएं हमेशा जेंडर इनइक्वालिटी को और भी खराब कर देती हैं. एक महिला के लिए तो यह एक दोहरी नहीं, बल्कि तिहरी जिम्मेदारी सी आई है. घर की जिम्मेदारियां, ऑफिस की जिम्मेदारीयां, और अब कोविड 19 संग आईं नई जिम्मेदारियों के संग तालमेल बिठाना अपने आप में जैसे एक सुपर स्पेशिएलिटी ही है.

स्कूलबंदी का तनाव

एक सर्वेक्षण के मुताबिक भारत में सिर्फ प्राथमिक कक्षाओं में जाने लायक 5.88 करोड़ लड़कियां और 6.37 करोड़ लड़के हैं. लगभग हर घर में स्कूल जाते बच्चों के अनुसार ही घर के कामों की रूटीन बैठाई जाती है.अचानक ही कोरोना के कारण हुए इस स्कूलबंदी ने सामंजस्य घटक का कार्य किया है.

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अब सोचिए कि उन महिलाओं का क्या जिन्होंने बच्चों के स्कूल के हिसाब से घर के कार्यो को सेट किआ था? अब वही बच्चे न तो स्कूल ही जा पा रहे हैं, न ही कोचिंग, खेल के मैदान और पार्क की तो बात ही छोड़ दो. यहां तक कि बच्चो की संख्या अगर 2 या 2 से अधिक है तो घर को अखाड़ा बनते भी देर नही लगती. यह सिरदर्दी उन घरों में और ज्यादा बढ़ गई है जहां महिलाएं नौकरीपेशा हैं. नौकरी के साथ साथ बच्चों का मेलोड्रामा, उनके अपने साइकोलॉजिकल ट्रॉमा, बड़े बच्चो में पढ़ाई का प्रेशर और छोटे बच्चों की ऑनलाइन क्लासेज… कामकाजी महिलाओं में तनाव बढ़ाने का आसान रास्ता.

गौर करने की बात है कि एक 5 वर्षीय बच्चे की मम्मी को कितनी मशक्कत करनी पड़ती होगी उसकी एलकेजी क्लास के लिए… ऑनलाइन स्क्रीन के सामने बिठाना, पढ़ाई करवाना और साथ ही साथ अपने दूसरे जरूरी काम भी करना.

वर्क फ्रॉम होम- समस्या या समाधान

वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में केवल 27 प्रतिशत महिलाओं नौकरी करती हैं. इस कम आंकड़े की एक महत्वपूर्ण वजह घर में इसके अनुकूल वातावरण का न होना भी है. आज कोविड 19 से कारण बहुत सारी कंपनियों ने सितंबर महीने तक वर्क फ्रॉम होम दे रखा. घर में माहौल का न होना, घरेलू कार्य और बच्चे सब मिलकर इस सुविधा को असहज करते हैं.

टीसीएस में कार्यरत एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर का कहना है कि बच्चों की धमाचौकड़ी की वजह से घर में ऑफिस के काम के प्रति एकाग्रता नहीं बन पा रही है जिस से काम में रुकावट पैदा हो रही है. कई बार तो उनके सोने के बाद काम करना पड़ता है जो बहुत ही थकाऊ प्रोसेस है.

आप जैसे ही काम करने के लिए बैठते हैं, बच्चो की फरमाइशों की लिस्ट आ जाती है. आप उन्हें पूरा करते हैं, तबतक वर्क फ्रंट से अलग ही प्रेशर बन चुका होता है.कई बार तो ऐसा होता है कि आपकी एक इम्पोर्टेन्ट क्लाइंट मीटिंग की वी सी चल रही होती और आपके बच्चे बीच में आकर अपनी शरारतें करने लगते हैं या कभी कभी आपस में ही इस कदर गुत्थमगुत्था हो जाते हैं कि आपको तब कैमरा ऑफ के साथ मीटिंग म्यूट करनी पड़ती है और उनके झगड़े सुलझाने होते हैं.वापस मीटिंग में आने के बाद आपके व्यवहार में चिड़चिड़ाहट आना भी स्वभाविक हो जाता है और एक अच्छी खासी मीटिंग का सत्यानाश हो जाता है.

घरेलू हिंसा की भयावता

कोरोना के कारण उपजे अवसाद और आर्थिक तंगी ने एक ऐसा कॉकटेल बना दिया है जो घरेलू हिंसा को बढ़ावा दे रहा है. यहां तक कि मुम्बई हाईकोर्ट भी इस बात को स्वीकारता है कि कोरोना काल के इस दौर में घरेलू हिंसा के मामले भी अपने आप मे एक रिकॉर्ड बना रहे हैं खासकर भारत जैसे विकासशील देश में जो कि वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के अनुसार महिलाओं की सहभागिता (अर्थोपार्जन में) के अनुसार विश्व के 130 देशों के आगे 120वीं रैंक पर है.

कोविड 19 ने दुनिया का आयाम ही बदल दिया है. वर्क फ्रंट में काम की तंगी, व्यवसायों का ठप्प होना, करोड़ों अरबों रुपयों का नुकसान होना एक अवसाद तो उत्पन्न कर ही रहा है ऊपर से भविष्य की चिंता अलग ही विकराल रूप ले रही है और इन सबका एकमात्र शिकार होती हैं घर की महिलाएं जिन पर सारे तनाव घरेलू हिंसा के रूप में बेवजह रिलीज किए जाते हैं.

ऑफिस का तनाव

अब जबकि लोकडाउन तकरीबन खत्म हो चुका है, बहुत सारे कार्यलय खुल चुके हैं और लोगों को  ऑफिस बुलाया जाने लगा है, ऐसे वक्त में हॉउस हैल्पर का न होना (इसमें रिवर्स माइग्रेशन का भी एक अहम योगदान है), स्कूल और क्रेशेज का न खुलना जैसी समस्याएं और भी मुश्किलें पैदा कर रही हैं. ऐसे में महिलाओं का जॉब खोना और कई बार पूरी तल्लीनता से काम न कर पाने की वजह से वेतन कटौती का भी सामना करना पड़ रहा है.

ऐसी ही एक सिंगल मदर हैं जो एक मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छी पोजिशन पर हैं. उनका 6 साल का बच्चा है. पहले जहां बच्चे को स्कूल छोड़ने के बाद वे ऑफिस आती थीं, स्कूल के बाद बच्चा वहीं क्रेश में उनके ऑफिस से लौटने तक रहता था. कोविड के कारण अब यह संभव नही है.घर पर फिर भी कुछ मुश्किलों से ही सही पर बच्चे की देखरेख के साथ ऑफिस का काम हो पाता था, पर चूंकि अब औफिस जाना ही है और स्कूल और क्रेश बंद हैं, तो यह एक अलग ही समस्या सामने खड़ी हो गई है.

फ्रंटलाइन वर्कर्स

वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन के अनुसार स्वास्थ्य विभाग में 70 प्रतिशत सहभागिता महिलाओं की है. घर की दोहरी जिम्मेदारी तो उन्हें परेशान करती ही है, ऊपर से कार्यस्थल की परेशानियां अलग ही होती हैं. कितनी ही जगहों पर तो महिलाओं के साथ अभद्रता की भी रिपोर्ट आ रही हैं.वहीं पर महिलाओं को हाईजीन की भी परेशानी आ रही है, जो पीपीई किट के उपयोग के कारण 10-10 घंटे तक वाशरूम तक का भी प्रयोग नहीं करने के कारण हो रहा है.

कोविड 19 के रोगियों के साथ काम करने की वजह से खुद को परिवारों से आइसोलेट करके रखना भी एक समस्या है. परिवार से दूर रहना भी चिंता में एक इजाफा ही है. छोटे छोटे बच्चों को उनकी माँ से दूर बिलखते देख तो जैसे कलेजा ही फाड़ देता है. आंसुओं से भीगे अपने बच्चों के गालों को वीडियो कॉलिंग में देखना और पुचकार के साथ उन्हें पोंछ न पाने का मर्म सिर्फ एक मां ही समझ सकती है.

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इन सारी परेशानियों के साथ साथ कोविड 19 के भयावह वातावरण का अवसाद, परिवार की चिंता यहां तक कि छोटे छोटे बच्चों की बढ़ती स्क्रीन टाइमिंग भी महिलाओं को परेशान कर रही है, पर इन सब मुसीबतों के बीच लोगों खासकर महिलाओं का मैगजीनों के प्रति बढ़ता रुझान बताता है कि सोशल डिस्टेनसिंग और परिवार और हाउस हेल्पर की अनुपस्थिति में उन्हें एक सच्चा साथी मिल पा रहा है, जो उन्हें उनके लिए वक्त दे रहा है.

#coronavirus: कोरोना के तनाव से Youngsters को बचाना है जरूरी

“कोरोना वायरस” के बढ़ते प्रकोप के चलते स्कूलों में भी छुट्टियां हो गई है. बच्चे अपने घरों में कैद हो गए हैं. ना तो उनको अपने दोस्तों से मिलने दिया जा रहा ना ही वो घर से बाहर निकल कर खेलकूद पा रहे. छोटे बच्चे तो किसी भी तरह से अपने पैरेंट्स की बात मान भी ले रहे पर किशोरावस्था के बच्चे यह बात नही समझ पा रहे ऐसे में बच्चों में अनावश्यक रूप से तनाव फैल रहा. यह हालत गंभीर हो रही है ऐसे में पैरेंट्स को चाहियें की वो बच्चो के साथ समझदारी से पेश याए. साइको थेरेपिस्ट सुप्रीति बाली ने कुछ टिप्स दिए और कहा कि इस तरह से पैरेंट्स अपने किशोरावस्था के बच्चो को “करोना क्राइसेस” में अनावश्यक तनाव से बचा सकते है.

1. बच्चे अपने दोस्तों के साथ खेलने का अवसर नही पा रहे. उनको लगातर घर पर रहना पड़ रहा है. ऐसे में उनके अंदर फैलने वाली निराशा से बचाएं. पैरेंट्स उनकी निराशा को समझे और उनकी भावनाओं सुने बिना कोई निर्णय ना दे.

2. बच्चो को तनाव से बचने के लिए जरूरी है कि बच्चो की नींद का एक तय समय रखे. समय पर सोने और जागने से बॉडी का सिस्टम ठीक रहता है बच्चो में अनावश्यक तनाव नही बढ़ता है.

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3. बच्चो को बाहरी लोगों से बचा कर रखें. जिससे संक्रमित लोगो से उनको बचाया जा सके.

 4 . करोना को लेकर अपने डर, तनाव और चिंता बच्चो पर  थोपे.

 5 . कोरोना महामारी के बारे में  स्पष्ट रूप से उनसे बात करना चाहिए. जानकारी कम होने की वजह से वो अधिक चिंता करते हैं.

6 . माता-पिता और भाई-बहनों के साथ मिलकर तनाव पूर्ण माहौल को आपस मे बांटना चाहिए.  दिमाग की शांति के लिए माहौल प्रदान करे.

 7 . अनावश्यक समाचारों और ऐसे दोस्तो से उनको दूर रखें जिंसमे उनको तनाव होने का खतरा हो.

 8 . बच्चे के साथ संपर्क में रहें. सोशल मीडिया और वीडियो कॉलिंग पर अपने रिश्तेदारों से जुड़ने के लिए कहें.

 9. एक माता-पिता के रूप में आप बच्चो से निरन्तर जुड़े रहे. उनके अंदर छोटी छोटी स्किल डेवलपमेंट के काम सिखाये.

 10. बच्चो के पुराने फोटो एल्बम देखें “चंपक” बच्चो की रूचिकर पत्रिकाओं की कहानियां  उनको पढ़ाये.

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मां-बाप को रखना है तनाव से दूर तो उन्हें सिनेमा दिखाएं

सिनेमा किसे नहीं पसंद होता. पर फिल्में हमेशा मनोरंजन के लिए नहीं होती, ये हमें बहुत कुछ सिखाती भी हैं. कई शोधों में ये बात सामने आई है कि जो लोग सिनेमा देखते हैं, ना देखने वालों की तुलना में उनका दिमाग ज्यादा सक्रिय रहता है, उनमें रचनात्मकता अच्छी होती है और मानसिक तौर पर वो ज्यादा स्वस्थ होते हैं. इस खबर में हम आपको सिनेमा से जुड़ा एक रोचक जानकारी देने वाले हैं.

हाल ही में हुए एक अध्ययन में ये बात सामने आई कि सिनेमा, थिएटर जैसे माध्यमों से नियमित रूप से संपर्क में रहने वाले बुजुर्ग तनाव से दूर रहते हैं. तनाव एक गंभीर समस्या है, जिससे लाखों लोग प्रभावित होते हैं, विशेषकर बुजुर्ग.

शोध में 50 वर्ष से ज्यादा के करीब ढाई सौ लोगों को शामिल किया गया था. इस अध्ययन में ये बात सामने आई कि लोग जो प्रत्येक दो-तीन महीने में फिल्म, नाटक या प्रदर्शनी देखते हैं, उनमें तनाव विकसित होने का जोखिम 32 फीसदी कम होता है, वहीं जो महीने में एक बार जरूर इन सब चीजों का लुत्फ उठाते हैं, उनमें 48 फीसदी से कम जोखिम रहता है.

ब्रिटेन में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, इन सांस्कृतिक गतिविधियों की शक्ति सामाजिक संपर्क, रचनात्मकता, मानसिक उत्तेजना और सौम्य शारीरिक गतिविधि के संयोजन में बेहद लाभकारी है.

जानकारों के मुताबिक, ये सारे माध्यम कई तरह के मानसिक विकारों से लड़ने में हमारी मदद करते हैं. जब आप इन माध्यमों से जुड़ते हैं तो आपके दिमाग को काफी आराम मिलता है. वो रिलैक्स पोजिशन में होता है. खास कर के जो लोग उम्र के एक खास पड़ाव पर खड़े हैं उन्हें जरूरत है कि खुद को तनाव से दूर रखने के लिए इस तरह के माध्यमों का सहारा लें.

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