पारिवारिक विवाद पर कानून की कैंची

धन्यवाद सर्वोच्च न्यायालय. आप ने सैकड़ों नहीं लाखों परिवारों को केवल एक निर्णय से उजड़ने से बचा लिया है. आप ने देश के कानूनों में से सब से ज्यादा दुरुपयोग किए जाने वाले दहेज कानून के आतंकी शूलों को कुंद कर दिया है, जिस से पतिपत्नी विवादों में धौंस व धमकियों की जगह अब मानमनौअल, सहजता, समरसता और सहनशीलता को मिल सकती है.

भारतीय दंड विधान की धारा 498 ए, जिस के अंतर्गत कोई भी पत्नी ससुराल वालों द्वारा दहेज मांगने पर पुलिस में शिकायत कर सकती है, सामाजिक कानूनों में सब से ज्यादा खतरनाक साबित हुआ है. इस के तहत मिले अधिकार के बल पर लाखों औरतों ने अपने पतियों को ही नहीं, उन के मातापिता, भैयाभाभी, बहनबहनोई, भतीजों, दादादादी आदि को भी पुलिस की गिरफ्त में पहुंचा दिया. छोटे से पारिवारिक विवाद पर दियासलाई से घर जलाने का काम इस कानून की 2 पंक्तियों ने किया है.

सर्वोच्च न्यायलय ने अभी सिर्फ यह कहा है कि कोई पुलिस अधिकारी इस प्रावधान में की गई शिकायत पर तब तक गिरफ्तारी नहीं करेगा जब तक दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 41 के दिए गए निर्देश पूरी तरह लागू न हो जाएं. ये निर्देश किसी भी व्यक्ति को तभी पकड़ कर जेल भेजने का हक देते हैं, जब अन्य बातों समेत उस व्यक्ति के भाग जाने का डर हो.

पुलिस ने इन निर्देशों की जम कर अवहेलना की और हर शिकायत पर पूरे परिवार को बंद कर डाला. वह भूल गई कि इस कदम के बाद पतिपत्नी कभी दोबारा न मिल सकेंगे, एक छत के नीचे न रह पाएंगे.

पत्नियों की पहले धमकी होती थी कि कुएं में कूद जाऊंगी. अब यह धमकी होने लगी है कि पूरे घर को चक्की पिसवा दूंगी. इस धमकी के डर से पति बहुत से मामलों में पत्नी की जबान को सहन कर लेता है पर उस धमकी के चलते पति व पत्नी के बीच प्रेम, त्याग और भरोसे की जगह डर और घुटन ले लेती है. पति अपने घर में कैदी की तरह रहने को मजबूर हो जाता है और कई वर्ष बीत जाते हैं लेकिन पतिपत्नी का संबंध केवल बनावटी मुखौटे सा ही रहता है.

धारा 41 के अंतर्गत पुलिस कुछ ही मामलों की शिकायत पर किसी को गिरफ्तार कर सकती है. लेकिन यहां तो हर पुलिस वाला अपने कांटे भर के अधिकार को बोफोर्स तोप के बम के अधिकार के समान बना डालता है. वह शिकायत मिलते ही जीप ले कर घर पहुंच कर सारे घर वालों को बांध कर ले आता है. और तब पत्नी विजयी मुसकान से ससुराल वालों से कहती है कि अब करो मेरी खुशामदें.

इस धारा 41 को सही माने में लागू किया जाए तो देश के थानों की हवालातें खाली रह जाएं और जेलों में भीड़ कम हो जाए. सर्वोच्च न्यायालय ने तो कानून की सही व्याख्या कर दी है पर क्या देश की पुलिस मानेगी.

सैफ ने उतरवाए इलियाना के कपड़े

कहीं और दिमाग मत लगाइए. दरअसल, इलियाना को अपनी फिल्म ‘हैप्पी ऐंडिंग’ की शूटिंग के दौरान एक स्ट्रिप सीन के लिए ऐक्टिंग करनी थी. सीन के मुताबिक, लास एंजिल्स और सैन फ्रांसिस्को के बीच पैसिफिक कोस्ट हाईवे पर इलियाना और सैफ को गाड़ी में लिफ्ट लेनी थी. जब लिफ्ट मांगने पर भी कोई कार वहां नहीं रुकी, तो सैफ ने इलियाना को लिफ्ट लेने की खातिर कपड़े उतारने के लिए कहा. मजे की बात यह है कि सैफ के कहने पर इलियाना ने वहां से गुजर रहे गाड़ी वालों को आकर्षित करने के लिए अपने कपड़े उतारने शुरू भी कर दिए. इस के बाद क्या हुआ, यह पता नहीं चल पाया है. वैसे इलियाना का यह स्ट्रिप सीन देखने के लिए आप को अगले महीने तक का इंतजार करना होगा, क्योंकि ‘हैप्पी ऐंडिंग’ 21 नवंबर में रिलीज होगी.

आईवीएफ में नई तकनीक

प्रौद्योगिकी ने हमारे जीने के तरीके को बदल दिया है और इस मामले में चिकित्सा का क्षेत्र भी अलग नहीं है. आईवीएफ के क्षेत्र में आधुनिक चिकित्सकीय प्रक्रियाओं की मदद से नि:संतान दंपती अब अपने सपनों को साकार करने लगे हैं और नई तकनीक में आए सुधार के कारण आईवीएफ विशेषज्ञ अब प्रक्रिया और भी अधिक प्रभावी बना रहे हैं.

ऐसी ही एक प्रक्रिया सिंगल ब्लास्टोसिस्ट हस्तांतरण है. इस के बारे में गुड़गांव स्थित बौर्न हौल क्लीनिक में आईवीएफ विशेषज्ञ डा. संदीप तलवार बताते हैं, ‘‘इस में हमारे पास सर्वश्रेष्ठ भू्रण का चयन करने का विकल्प होता है क्योंकि अंतिम स्थिति तक केवल सब से मजबूत भू्रण ही जीवित रह पाते हैं.

‘‘इस चरण में भू्रण को पूर्ण सक्रिय ‘इम्ब्रायोनिक जीनोम’ के साथ शरीर में सामान्य रूप से प्रत्यारोपित कर दिया जाता है. तीसरे दिन के भू्रणों की तुलना में ये ‘ब्लास्टोसिस्ट’ अधिक स्वस्थ एवं मजबूत होते हैं और इन का प्रत्यारोपण दर अधिक होता है.’’

इस प्रक्रिया को आईवीएफ लैब के क्लीन रूम में किया जाता है और इस तरह के लैब एशिया में सिर्फ गुड़गांव और कोच्चि स्थित बौर्न हौल क्लीनिक में ही उपलब्ध हैं. आईवीएफ लैब के क्लीन रूम को इस तरह से डिजाइन किया जाता है कि उस में रोगाणु और नैनों कण कम से कम पैदा हों क्योंकि रोगाणुओं और नैनों कणों के कारण गर्भाधारण दर में कमी आ जाती है.

बौर्न हौल क्लीनिक में आईवीएफ विशेषज्ञ डा. मोनिका सचदेव के अनुसार, ब्लास्टोसिस्ट हस्तांतरण सर्वाधिक ताकतवर के जीवित रहने की अवधारणा पर आधारित है. इस में इस चरण में सभी भू्रणों में से सब से मजबूत भू्रण ही जीवित रहते हैं. 5वें दिन के ब्लास्टोसिस्ट डाक्टरों के लिए यह जानने का सर्वश्रेष्ठ माध्यम बनते हैं कि किस भू्रण के हस्तांतरण से स्वस्थ गर्भाधान एवं स्वस्थ बच्चे का जन्म होगा.

ब्लास्टोसिस्ट हस्तांतरण तकनीक

परंपरागत इन विट्रो निषेचर (आईवीएफ) चक्र में महिला के अंडे को निकाला जाता है और उसे निषेचित किया जाता है. अगर सब कुछ ठीकठाक रहा, तो 3 दिन बाद भू्रण को गर्भाशय में स्थानांतरित कर दिया जाता है. परंपरागत तरीके में चूंकि यह पूर्वानुमान करने में दिक्कत होती है कि तीसरे दिन कौन से भू्रण गर्भाधान की स्थिति पैदा करेगा. ऐसे में इस उम्मीद में 4 या अधिक भू्रण प्रत्यारोपित कर दिए जाते हैं कि कोई न कोई भू्रण गर्भाधान की स्थिति पैदा करेगा तथा बच्चे का जन्म होगा.

अब तक गर्भाधान करने का यही तरीका अपनाया जाता रहा है. लेकिन अब अनेक नि:संतान दंपती परंपरागत तकनीक की बजाय ब्लास्टोसिस्ट हस्तांतरण तकनीक को अपना रहे हैं ताकि स्वस्थ औलाद पा सकें. अनेक केंद्रों पर किए गए अध्ययनों से पता चला है कि ब्लास्टोसिस्ट से बेहतर गर्भाधान दर हासिल होता है.

मनीषा करेंगी वापसी

कैंसर की जंग से लड़ कर आईं बीते दिनों की ऐक्ट्रैस मनीषा कोइराला बी टाउन में फिर से आने वाली हैं. मनीषा ने 1991 में राजकुमार संतोषी की फिल्म से बौलीवुड में ऐंट्री की थी. अब वे दोबारा फिल्मों में वापसी भी उन्हीं की फिल्म से करना चाहती हैं. मनीषा के प्रबंधक सुब्रतो घोष ने कहा कि मनीषा अब बिलकुल स्वस्थ हैं. वे इस समय फिल्मों की पटकथाओं पर विचार कर रही हैं और उन्होंने संतोषी की फिल्म में काम करने का मन बना लिया है.

क्रैडिट कार्ड नहीं पति का पर्स

आप ने क्रैडिट कार्ड ले रखा है? ठीक है, लेकिन उस समय जब समधीजी के साथ रेस्तरां गए और कार्ड ने जवाब दे दिया, तो बेइज्जती हो गई न. क्रैडिट कार्ड कब मुंह मोड़ ले पता नहीं. आप ने समय पर भुगतान नहीं किया, पिन नंबर भूल गए, बिल ज्यादा बड़ा था, कार्ड ऐक्सपायर कर गया और आप ने ध्यान नहीं दिया वगैरह. ऐसा कुछ भी हो तो बड़ी बेइज्जती होती है.

मगर चिंता न करें. बराक ओबामा, अमेरिका के राष्ट्रपति, दुनिया के नंबर 1 शक्तिशाली व्यक्ति को भी यह सहना पड़ता है. साहब न्यूयार्क के एक रेस्तरां में पत्नी मिशेल के साथ गए पर जब क्रैडिट कार्ड से भुगतान करना चाहा तो कार्ड अकड़ गया. कहा पैसे नहीं देगा. रेस्तरां बेचारा भौचक्का. पता चला ओबामा साहब उस कार्ड को इस्तेमाल कम करते हैं इसलिए

चल नहीं रहा. जब पत्नी मिशेल ओबामा ने अपना कार्ड दिया तो बात आगे बनी.

वैसे आश्चर्य यह है कि अमेरिका में रेस्तरां ने बिल पेश करने की हिम्मत दिखाई. यहां तो नेता 50 का टोल टैक्स देने में आनाकानी करते हैं. आम रेस्तराओं का तो छोडि़ए, होटलों तक का किराया नहीं देते. वे अपनेआप को खास समझते हैं, देश का मालिक समझते हैं, चाहे पार्टी के महल्ला समिति के कनिष्ठ सचिव मात्र हों.

क्रैडिट कार्ड को असल में सुविधाजनक करैंसी नोट से ज्यादा समझना ही नहीं चाहिए और जेब में हमेशा 2 दिन लायक का कैश अवश्य होना चाहिए. क्रैडिट कार्ड वाले चाहे जितना हल्ला मचा लें, कैश बैक सुविधाएं दे दें, लौयल्टी पौइंट दे दें, अंतत: उन्हें ज्यादा खर्चना ही पड़ता है. कैश का अपना अलग लाभ है. क्रैडिट कार्ड को बेचना, उस से दुकानदार से पैसा वसूलना, पूरा तामझाम रखना, स्टेटमैंट भेजना सब खर्चीला है, जो इस्तेमाल करने वाला देता है. इसे कम से कम इस्तेमाल करें.

आजकल आइडैंटिटी थैफ्ट भी होने लगी है. लोग नंबर व पिन उड़ा कर आप के क्रैडिट कार्ड पर मजे लेते रहेंगे और अंतत: आप को ही भुगतना होगा. दुनिया भर में लाखों को हर साल चूना लगता है और यह दुरुपयोग न हो इसलिए कम इस्तेमाल हो रहे कार्ड अपनेआप मुंह बंद कर देते हैं, जैसे बराक ओबामा के कार्ड ने कर दिया. अब चूंकि औरतें भी जम कर कार्ड इस्तेमाल कर रही हैं उन्हें तो दोगुना होशियार रहना होगा क्योंकि वे तो कार्ड को पति का पर्स समझती हैं कि जब चाहे जितना निकाल लो.

ये सब्जियां खाएं रोग भगाएं

अकसर देखा गया है कि फिट रहने के लिए लोग महंगे संसाधनों का प्रयोग करते हैं. जैसे जिम जाना, लंबेचौड़े डाइट प्लान अपनाना, प्रोटीन सप्लीमैंट्स लेना इत्यादि. इस के बावजूद भी न तो वे फिटनैस बरकरार रख पाते हैं और न ही निरोग रहने का आनंद उठा पाते हैं. दरअसल, यदि हम अपने रोजमर्रा के खाने पर ध्यान दें तो पता चलेगा कि सेहत का राज तो आसानी से उपलब्ध खाद्यपदार्थों में ही छिपा है, जैसे कि इन सब्जियों को ही ले लें:

बींस और अन्य फलीदार सब्जियां

इन में भरपूर फाइबर होते हैं और ऐंटीऔक्सीडैंट, प्रोटीन, आयरन, मैग्नीशियम, पोटैशियम, कौपर, जिंक और विटामिन बी, सी भी पाए जाते हैं. इन के घुलनशील फाइबर कोरोनरी हार्ट डिजीज का खतरा कम करते हैं. इन से डायबिटीज की आशंका घटाती है और इन में मौजूद कुछ खास तत्त्व आंतों के कैंसर से बचाते हैं. इन में कैलोरी काफी कम होती है, इसलिए ये मोटापा कम करने में भी सहायक हैं. हरी और पीली बींस में विटामिन के होता है जो हड्डियों को स्वस्थ रखता है. काली बींस में फोलेट होता है जो गर्भ में बच्चे के विकास में अहम भूमिका निभाता है.

चुकंदर

इस में आयरन, विटामिन और मिनरल्स भरपूर होते हैं. हाई ब्लडप्रैशर पर काबू पाने के लिए चुकंदर बहुत काम की चीज है. यह खून को साफ करता है और हीमोग्लोबिन बढ़ाता है. कब्जनाशक है और त्वचा के लिए भी बढि़या है. चुकंदर डला हुआ उबला पानी पीना मुंहासों का नाश करता है. पीलिया, हेपेटाइटिस में भी इस का रस कमाल करता है. इस के रस में नाइट्रेट होता है, जो रक्त के दबाव को कम करता है यानी दिल की बीमारी में भी यह फायदेमंद है.

शिमलामिर्च

विटामिन ए, ई, बी और सी से भरपूर मगर कैलोरी में कम यानी सख्त रोग प्रतिरोधी. आंखों, बालों, त्वचा और दिल के लिए बढि़या. मोटापे को रोके, कैंसर की भी विरोधी. इस में कैप्सेइसिन तत्त्व होता है, जिस के बारे में कहा जाता है कि यह खराब कोलैस्ट्रौल को कम करता है. डायबिटीज को काबू में रखता है और दर्दनाशक भी है. इस का सल्फर कई तरह के कैंसर से बचाव करता है.

ब्रोकली

लोहा, विटामिन ए और सी, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, कैल्सियम, क्रोमियम, ऐंटीऔक्सीडैंट और फाइटोकैमिल्स जैसी चीजें एकसाथ होने से यह बड़े काम की चीज है. खून की कमी दूर करती है, कामशक्ति बढ़ाती है, आंखों के लिए बढि़या है और बढ़ती उम्र से भी लड़ती है.

पत्तागोभी

विटामिनों से भरपूर. पेट के लिए बढि़या. इस में विटामिन सी, ए, ई और बी होते हैं. कैलोरी कम होती है. एक खास तरह का रसायन भी इस में होता है, जो कोशिकाओं का संवर्धन करता है. यह ऐंटीऔक्सीडैंट का भंडार होती है और मोतियाबिंद व कैंसर की दुश्मन कहलाती है.

गाजर

गाजर में विटामिन ए और बीटा कैरोटिन होने से यह आंखों के लिए बहुत बढि़या है. बीटा कैरोटिन कोशिकाओं को बूढ़ा होने से भी बचाते हैं. विशेषज्ञों ने इस में फालकैरिनोल और फालकैरिंडिओ नाम के तत्त्व पाए हैं जो फेफड़ों, स्तन और आंतों के कैंसर से विशेष रूप से लड़ते हैं. इस का विटामिन ए और ऐंटीऔक्सीडैंट स्वस्थ त्वचा, बालों और नाखूनों का भी मित्र है. गाजर को कच्चा, उबाल कर या कुचल कर घावों पर भी लगाया जाता है क्योंकि इस में ऐंटीसैप्टिक तत्त्व भी हैं. गाजर खून को साफ करती है और दिल के रोग को पास नहीं आने देती. दांत और मसूड़े भी स्वस्थ रहते हैं.

फूलगोभी

फूलगोभी विटामिन सी और मैग्नीशियम के लिए जानी जाती है और ये दोनों ही ऐंटीऔक्सीडैंट के गुण रखते हैं. फूलगोभी में अनेक फाइटोन्यूट्रिएंट होते हैं. ये सारे तत्त्व मिल कर दिल की बीमारियों, इन्फैक्शन और लगभग सभी प्रकार के कैंसर से लड़ते हैं. इस में ओमेगा-3 फैट्स और विटामिन के भी है. आर्थ्राइटिस, डायबिटीज, अल्सर और मोटापे के खिलाफ काम करते हैं. इस में एक फाइटोन्यूट्रिएंट ग्लूकोसीनोलेट होता है, जो लिवर का बढि़या मित्र है यानी फूलगोभी जहरीले तत्त्वों से शरीर की रक्षा करती है. ग्लूकोसीनोलेट का ही दूसरा रूप ग्लूकोरेफेनिन भी इस में है, जो पेट में कैंसर, अल्सर पैदा करने वाले बैक्टीरिया को मारता है. इस में मौजूद पोटैशियम हाइपरटैंशन को भी कम करता है. इस में न कोलैस्ट्रौल होते हैं और न संतृप्त वसा, इसलिए वजन कम करने में भी मददगार है.

लहसुन

लहसुन गजब का ऐंटीऔक्सीडैंट और ऐंटीबायोटिक है. इस का ऐलिसिन नाम का तत्त्व न केवल बाल झड़ने से रोकता है, बल्कि चेहरे के दागधब्बों, मुंहासों व त्वचा की जलन को भी मिटाता है. लहसुन के ऐंटीऔक्सीडैंट रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं और जुकाम आदि को पास नहीं फटकने देते. यह कैंसर का विरोधी और दिल का दोस्त है. विशेषज्ञों ने वजन घटाने में भी इसे कारगर पाया है. इस का ऐंटीफंगल गुण हाथपैरों के फंगस इन्फैक्शन को दूर करता है. यह कोलैस्ट्रौल और ब्लडप्रैशर को कम करता है, कामोत्तेजना बढ़ाता है.

चमचम

सामग्री

2 कप ताजा छेना, 1 बड़ा चम्मच सूजी, 2 बड़े चम्मच मैदा, 1 बड़ा चम्मच घी, 1/4 चम्मच बेकिंग पाउडर.

सामग्री चाशनी बनाने के लिए

500 ग्राम चीनी, 1 लिटर पानी, 1 छोटा चम्मच दूध.

चमचम बनाने की विधि

कलाई से ऊपर हथेली के पोर से छेना को बिलकुल महीन मैश कर लें. अब इस में सूजी, मैदा, घी और बेकिंग पाउडर डाल कर अच्छी तरह मिला लें और कुछ देर रखा रखें.

अब इस मिश्रण से मनचाहे साइज की लोइयां लें और चमचम का आकार दें. चमचम को चाशनी में डाल कर धीमी आंच पर लगभग आधे घंटे तक छोड़ दें. चमचम पकता रहेगा और चाशनी भी थोड़ा गाढ़ा हो जाएगा. अब चाशनी में से चमचम निकाल लें.

चाशनी बनाने की विधि

चीनी और पानी को एकसाथ मिला कर गरम होने रखें. उबाल आने पर 1 चम्मच दूध डाल कर कुछ देर उबालें. दूध डालने से चाशनी पर चीनी की गंदगी तैरने लगेगी. उसे जालीदार छलनी से निकाल लें.

हुमा का डायमंड लव

‘गैंग औफ वासेपुर’ फिल्म की टीम की सिर्फ हुमा कुरैशी ही ऐसी अभिनेत्री हैं, जिन की चर्चा हर समय होती है. फिर चाहे वह उन की फिजीक को ले कर हो या स्टाइल को ले कर. एक बात को ले कर तो हुमा छाई रहती हैं. वह है उन का गहनों खासकर हीरों के प्रति लगाव. तभी तो ‘डेढ़ इश्किया’ फिल्म में उन्होंने अपनी दादी के गहनों को पहना था. पिछले दिनों जब एक कंपनी का डायमंड कलैक्शन लौंच करने हुमा पहुंचीं, तो ऊपर से नीचे तक वे हीरों के गहनों से लदी थीं. यहां पर भी वे अपने हीरों के प्रति प्रेम को छिपा नहीं पाईं और बोलीं कि क्लासिकल ज्वैलरी मुझे हमेशा लुभाती है.

हुमा का नाम फिल्ममेकर अनुराग कश्यप और ऐक्टर शाहिद कपूर से जुड़ चुका है लेकिन अभी भी वे यही कहती हैं कि वे किसी से कमिटेड नहीं हैं. हुमा जल्द ही श्रीराम राघवन की फिल्म ‘बदलापुर’ में नजर आएंगी.

अवैध कब्जे खाली हों

नेताओं की बीवियों और बच्चों को अब दिल्ली में मिले आलीशान मकान स्मारक के नाम से नहीं मिलेंगे. मोदी सरकार ने फैसला किया है कि मंत्री पद पर रहे लोगों को मृत्यु या पद छोड़ने के बाद बड़ा घर छोड़ना पड़ेगा. बहुत से नेताओं ने दिल्ली के आलीशान बंगलों पर कब्जा कर रखा है और कुछ में अब तीसरी पीढ़ी रह रही है. अभी हाल ही में चौधरी चरण सिंह के पुत्र, पूर्व मंत्री अजीत सिंह से मकान खाली करवाया गया तो जम कर हल्ला हुआ पर सरकार अड़ी रही.

पद पर काम करने के लिए दिया गया मकान तब एकदम खाली हो जाना चाहिए जब व्यक्ति पद पर न रहे. असल में बुद्धिमानी तो यही है कि पदासीन व्यक्ति की पत्नी नए घर में जाने से इनकार कर दे क्योंकि नेताओं के पद कब छिन जाएं पता नहीं. उसे तो पति से कहना चाहिए कि चाहे छोटा हो, अपना या किराए का मकान लो, जो पद जाने के बाद खाली न करना पड़े.

स्मारक के नाम पर बड़े मकान का आनंद पीढि़यों भोगना तो और गलत है. मायावती ने अच्छा किया कि उन्होंने जैसेतैसे दिल्ली के चाणक्यपुरी इलाके में अपना मकान पार्टी के चंदे से बनवा कर उसे गैरसरकारी स्मारक का नाम दे दिया और अब जी चाहे तो वे वहां रह सकती हैं. सभी को यही करना चाहिए.

लेकिन सवाल यह है कि मोदी सरकार धर्म के नाम पर नित बन रहे स्मारकों को क्या रोक सकती है? वे भी तो जनता की जमीन पर अतिक्रमण हैं. खेती की जमीन को उद्योग या रिहायशी जमीन में बदलवाना हो तो हजार अड़चनें हैं, धर्मस्थल तो रातोंरात बन जाएगा. फिर लाउडस्पीकर बजाने लगेंगे, दुकानें खुल जाएंगी और आसपास वालों का जीना मुहाल हो जाएगा. पर धर्म का नाम आते ही पार्टियों को सांप सूंघ जाएगा. सरकारी जमीन यदि धर्म के नाम पर निछावर हो सकती है तो स्मारकों को क्यों छेड़ा जाए, पूछा जा सकता है.

अवैध कब्जे हर तरह के खाली हों, चाहे उन पर खादी का कपड़ा ढका हो या कोई और.

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