जानें काम के बीच क्यों जरूरी है झपकी, पावर नैप के ये हैं फायदे

अकसर औफिस में लंच के बाद आलस्य या नींद हावी हो जाती है. ऐसे में कुछ काम करते ही नहीं सूझता. बारबार आंखें बंद हो जाती हैं. मन करता है कि कोई एकांत कोना मिल जाए जहां कुछ देर की झपकी ले जी जाए. वैज्ञानिक इसी झपकी को पौवर नैप कहते हैं, जिसे ले लेना बहुत जरूरी है. इस से आप का काम बिलकुल भी प्रभावित नहीं होता है, बल्कि पौवर नैप लेने के बाद आप दोगुनी ऊर्जा के साथ तेजी से अपना काम निबटा सकते हैं.

 

1. पावर नैप कितनी देर

आप को फिर से तरोताजा करने वाली पौवर नैप जरूरत के अनुसार 10 मिनट, 20 मिनट या फिर एक घंटा तक की हो सकती है. आदर्श पौवर नैप 20 मिनट की मानी जाती है. लगातार 8 घंटे काम करने के दौरान कुछ देर के लिए ली गई एक पौवर नैप आप को दोबारा रीचार्ज कर देती है और आप बेहतर तरीके से काम कर पाते हैं.

इंसान पूरे दिन में 2 बार ऐसा महसूस करता है कि उसे नींद आ रही है. यह मानव शरीर का स्वभाव है. आप चाहें भी तो इसे रोक नहीं सकते. दिन में ली गई एक झपकी वास्तव में पूरी रात की नींद के बराबर आप को एनर्जी देती है.

अंतरिक्ष एजेंसी नासा के अनुसार, 26 मिनट तक कौकपिट में सोने वाला पायलट बाकी पायलटों की तुलना में 54 प्रतिशत सतर्क और नौकरी के प्रदर्शन में 34 प्रतिशत ज्यादा बेहतर देखा गया है. नासा में नींद के विशेषज्ञों ने नैप के प्रभावों पर शोध करने पर पाया कि नैप लेने से व्यक्ति के मूड, सतर्कता और प्रदर्शन में काफी सुधार होता है.

10 मिनट की झपकी आप को पूरी रात की नींद जैसा फ्रैश महसूस करवा सकती है. आप 10 से 20 मिनट के बीच ली गई पौवर नैप से बिना सोए रातभर की नींद जैसा फायदा उठा सकते हैं. खास बात यह है कि 10 मिनट की झपकी लेने से मांसपेशियों के बनने से ले कर याददाश्त के मजबूत होने तक में सहायता मिलती है.

दोपहर के वक्त लंच के बाद 20 से 30 मिनट की पौवर नैप सब से अच्छी है, मगर ज्यादा नींद आती हो, तो भी एक घंटे से ज्यादा नहीं सोना चाहिए, वरना आप के शरीर की जैविक घड़ी प्रभावित हो जाएगी और रात की नींद में खलल पड़ेगा.

2. नैप के लिए शांत कोना ढूंढें

पौवर नैप से अधिकतम लाभ पाने के लिए आप को एक शांतिपूर्ण, ठंडी और आरामदायक जगह ढूंढ़नी चाहिए, जहां दूसरे लोग आप को परेशान न करें. औफिस में कौन्फ्रैंस रूम का कोना हो या कार पार्किंग स्थल, 10 से 15 मिनट यहां खामोशी से आंख बंद कर के बिताए जा सकते हैं. लगभग 30 प्रतिशत कौर्पोरेट औफिस में लंच के बाद एम्प्लाइज को आधा घंटे का वक्त पौवर नैप के लिए दिया जाता है. इस से उन के काम की गति और क्षमता में बढ़ोतरी होती है.

अगर आप किसी स्कूलकालेज में पढ़ाते हैं, तो वहां की लाइब्रेरी इस काम के लिए सब से बेहतर जगह है. वहां शांति और खाली जगह होती है. आप सड़क पर जा रहे हों और आप को झपकी लगी हो तो किसी पार्किंग स्थल पर कार खड़ी कर के 10-15 मिनट की झपकी ले लेनी चाहिए.

अकसर देखा गया है कि कार ड्राइव करने वाले लोग नींद आने पर तंबाकूगुटका का सेवन नींद भगाने के लिए करते हैं, जो सेहत के लिए बहुत खतरनाक है. बेहतर है कि नींद आने पर किसी सेफ जगह पर गाड़ी खड़ी कर के झपकी मार ली जाए. इस से नींद तो भागती ही है, शरीर और दिमाग पहले से अधिक ऊर्जा महसूस करने लगते हैं.

3. कम रोशनी का स्थान चुनें

पौवर नैप लेते वक्त लाइट औफ कर दें. बेहतर हो कि आप कोई अंधेरा कमरा चुनें ताकि आंख बंद करते ही आप को नींद आ जाए. अंधेरा होने से आप की आंखों की मांसपेशियों को आराम मिलेगा और दिमागी तनाव भी दूर होगा. यदि अंधेरा स्थान उपलब्ध न हो तो आप स्लीपमास्क या धूप का चश्मा आंखों पर चढ़ा लें और आराम से सो जाएं. इस के अलावा जिस जगह आप पौवर नैप लें, वह स्थान बहुत गरम या बहुत ठंडा नहीं होना चाहिए. आप की नैपिंग आरामदायक हो, इसलिए एक शीतल लेकिन आरामदायक जगह तलाश करिए.

4. शांतिदायक संगीत सुनें

रिलैक्सिंग म्यूजिक आप के दिमाग को सही स्थिति में ला सकता है. यदि आप अपनी कार में पौवर नैप ले रहे हैं, तो कोई हलका संगीत लगा लें, इस से नींद अच्छी आती है. अगर आप काम की वजह से ज्यादा तनाव में हैं और आंख बंद करने पर भी आप को नींद नहीं आती है तो कुछ व्यायाम करें. आंख बंद कर के एक से सौ तक गिनती गिनें या कोई मनपसंद गीत गुनगुनाएं. इस के बाद आप को जल्द ही नींद आ जाएगी और जागने पर दिमाग तनावमुक्त महसूस होगा.

5. नैप की अवधि

आप खुद तय करें कि आप कितनी देर तक नैप लेना चाहते हैं. एक पौवर नैप 10 से 30 मिनट के बीच की होनी चाहिए. वैसे तो, छोटे और लंबी नैप्स भी विभिन्न लाभ प्रदान कर सकती हैं. आप का शरीर खुद आप को बता देगा कि आप को कितनी देर तक नैप लेनी है. बस उस समयसीमा का पालन आप हर दिन समान रूप से करें. यदि आप के पास अधिक समय नहीं है, लेकिन आप इतनी नींद में हैं कि आप जो कुछ भी कर रहे हैं, उसे जारी नहीं रख पा रहे हैं, तो 2 से 5 मिनट की नैप, जिसे ‘नैनो नैप’ कहा जाता है, लें. यह आप को नींद से निबटने में मदद कर सकती है.

5 से 20 मिनट के लिए नैप आप की सतर्कता, स्टैमिना, और मोटरपरफौर्मेंस बढ़ाने के लिए बहुत अच्छी होती है. इन नैप्स को ‘मिनी-नैप्स’ के रूप में जाना जाता है. 20 मिनट की नींद बहुत आदर्श नैप मानी जाती है. एक पौवरनैप मस्तिष्क को अपने शौर्टटर्म मैमोरी में एकत्रित अनावश्यक जानकारी से छुटकारा पाने में भी मदद करती है और मसलमैमोरी में सुधार भी लाती है. 20 मिनट की पौवर नैप से आप के नर्वस सिस्टम में मौजूद इलैक्ट्रिकल सिग्नल्स आप को अधिक आराम किया हुआ और सतर्क महसूस कराने के अलावा आप के मसलमैमोरी में शामिल न्यूरौन्स के बीच के संबंध को मजबूत भी करती है, जिस से आप का मस्तिष्क तेजी से और अधिक सटीक तरीके से काम करने लगता है. यदि आप बहुत से महत्त्वपूर्ण तथ्यों को याद करने की कोशिश कर रहे हैं, उदाहरणस्वरूप किसी परीक्षा के लिए, तो पावर नैप लेनी विशेषरूप से उपयोगी हो सकती है.

6. पावर नैप से पहले कौफी पिएं

यह बात अजीब लग सकती है कि पौवर नैप से पहले कौफी पिएं क्योंकि कौफी का इस्तेमाल नींद को दूर भगाने के लिए किया जाता है. परंतु 20 मिनट की पौवर नैप लेने से पहले अगर आप कौफी का एक प्याला पी लेते हैं तो यह कौफी आप के शरीर में तुरंत अवशोषित नहीं होती है.

कौफी पहले आहार नाल से गुजरती है और फिर शरीर में अवशोषित होने में उसे 45 मिनट का वक्त लगता है. इस दौरान आप 20-25 मिनट की पौवर नैप ले लें तो जागने के बाद शरीर में मौजूद कौफी आप को और ज्यादा ताजगी से भर देगी और आप दोगुनी ऊर्जा के साथ अपने काम का संचालन कर सकते हैं. इस प्रयोग से आप 7 से 8 घंटे तक बिना रुके काम कर सकते हैं.

तरकीब: क्या खुद को बचा पाई झुमरी

लेखक- जयप्रकाश

रतन सिंह की निगाहें पिछले कई दिनों से झुमरी पर लगी हुई थीं. वह जब भी उसे देखता, उस के मुंह से एक आह निकल जाती. झुमरी की खिलती जवानी ने उस के तनमन में एक हलचल सी मचा दी थी और वह उसे हासिल करने को बेताब हो उठा था. वैसे भी रतन सिंह के लिए ऐसा करना कोई बड़ी बात न थी. वह गांव के दबंग गगन सिंह का एकलौता और बिगड़ैल बेटा था. कई जरूरतमंद लड़कियों को अपनी हवस का शिकार उस ने बनाया था. झुमरी तो वैसे भी निचली जाति की थी. झुमरी 20वां वसंत पार कर चुकी एक खूबसूरत लड़की थी. गरीबी में पलीबढ़ी होने के बावजूद जवानी ने उस के रूप को यों निखारा था कि देखने वालों की निगाहें बरबस ही उस पर टिक जाती थीं. गोरा रंग, भरापूरा बदन, बड़ीबड़ी कजरारी आंखें और हिरनी सी मदमस्त चाल.

इस सब के बावजूद झुमरी में एक कमी थी. वह बोल नहीं सकती थी, पर उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था. वह अपनेआप में मस्त रहने वाली लड़की थी. झुमरी घर के कामों में अपनी मां की मदद करती और खेत के काम में अपने बापू की. उस के बापू तिलक के पास जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा था, जिस के सहारे वह अपने परिवार को पालता था. वैसे भी उस का परिवार छोटा था. परिवार में पतिपत्नी और 2 बच्चे, झुमरी और शंकर थे. अपनी खेती से समय मिलने पर तिलक दूसरों के खेतों में भी मजदूरी का काम कर लिया करता था. गरीबी में भी तिलक का परिवार खुश था. परंतु कभीकभी पतिपत्नी यह सोच कर चिंतित हो उठते थे कि उन की गूंगी बेटी को कौन अपनाएगा?

झुमरी इन सब बातों से बेखबर मजे में अपनी जिंदगी जी रही थी. वह दिमागी रूप से तेज थी और गांव के स्कूल से 10 वीं जमात तक पढ़ाई कर चुकी थी. उसे खेतखलिहान, बागबगीचों से प्यार था. गांव के दक्षिणी छोर की अमराई में झुमरी अकसर शाम को आ बैठती और पेड़ों के झुरमुट में बैठे पक्षियों की आवाज सुना करती. कोयल की आवाज सुन कर उस का भी जी चाहता कि वह उस के सुर में सुर मिलाए, पर वह बोल नहीं सकती थी. झुमरी की इस कमी को रतन सिंह ने अपनी ताकत समझा. उस ने पहले तो झुमरी को तरहतरह के लालच दे कर अपने प्रेमजाल में फांसना चाहा और जब इस में कामयाब न हुआ, तो जबरदस्ती उसे हासिल करने का मन बना लिया. रात घिर आई थी. चारों तरफ अंधेरा हो चुका था. आज झुमरी को खेत से लौटने में देर हो गई थी. पिछले कई दिनों से उस की ताक में लगे रतन सिंह की नजर जब उस पर पड़ी, तो उस की आंखों में एक तेज चमक जाग उठी.

मौका अच्छा जान कर रतन सिंह उस के पीछे लग गया. एक तो अंधेरा, ऊपर से घर लौटने की जल्दी. झुमरी को इस बात का एहसास ही नहीं हुआ कि कोई उस के पीछे लगा हुआ है. वह चौंकी तब, जब अमराई में घुसते ही रतन सिंह उस का रास्ता रोक कर खड़ा हो गया. ‘‘मैं ने तुम्हारा प्यार पाने की बहुत कोशिश की…’’ रतन सिंह कामुक निगाहों से झुमरी के उभारों को घूरता हुआ बोला, ‘‘तुम्हें तरहतरह से रिझाया. तुम से प्रेम निवेदन किया, पर तू न मानी. आज अच्छा मौका है. आज मैं छक कर तेरी जवानी का रसपान करूंगा.’’ रतन सिंह का खतरनाक इरादा देख झुमरी के सारे तनबदन में डर की सिहरन दौड़ गई. उस ने रतन सिंह से बच कर निकल जाना चाहा, पर रतन सिंह ने उसे ऐसा नहीं करने दिया. उस ने झपट कर झुमरी को अपनी बांहों में भर लिया.

झुमरी ने चिल्लाना चाहा, पर उस के होंठों से शब्द न फूटे. झुमरी को रतन सिंह की आंखों में वासना की भूख नजर आई. रतन सिंह झुमरी को खींचता हुआ अमराई के बीचोंबीच ले आया और जबरदस्ती जमीन पर लिटा दिया. इस के पहले कि झुमरी उठे, वह उस पर सवार हो गया. झुमरी उस के चंगुल से छूटने के लिए छटपटाने लगी. दूसरी ओर वासना में अंधा रतन सिंह उस के कपड़े नोचने लगा. उस ने अपने बदन का पूरा भार झुमरी के नाजुक बदन पर डाल दिया, फिर किसी भूखे भेडि़ए की तरह उसे रौंदने लगा. झुमरी रो रही थी, तड़प रही थी, आंखों ही आंखों में फरियाद कर रही थी, लेकिन रतन सिंह ने उस की एक न सुनी और उसे तभी छोड़ा, जब अपनी वासना की आग बुझा ली. ऐसा होते ही रतन सिंह उस के ऊपर से उठ गया. उस ने एक उचटती नजर झुमरी पर डाली. जब उस की निगाहें झुमरी की निगाहों से टकराईं, तो उस को एक झटका सा लगा. झुमरी की आंखों में गुस्से की चिनगारियां फूट रही थीं, पर अभीअभी उस ने झुमरी के जवान जिस्म से लिपट कर जवानी का जो जाम चखा था, इसलिए उस ने झुमरी के गुस्से और नफरत की कोई परवाह नहीं की और उठ कर एक ओर चल पड़ा.

इस घटना ने झुमरी को झकझोर कर रख दिया था. वह 2 दिन तक अपने कमरे में पड़ी रही थी. झुमरी के मांबाप ने जब उस से इस की वजह पूछी, तो उस ने तबीयत खराब होने का बहाना बना दिया था. कई बार झुमरी के दिमाग में यह बात आई थी कि वह इस के बारे में उन्हें बतला दे, पर यह सोच कर वह चुप रह गई थी कि उन से कहने से कोई फायदा नहीं. वे चाह कर भी रतन सिंह का कुछ बिगाड़ नहीं पाएंगे, उलटा रतन सिंह उन की जिंदगी को नरक बना देगा. इस मामले में जो करना था, उसे ही करना था. रतन सिंह ने उस की इज्जत लूट ली थी और उसे इस के किए की सजा मिलनी ही चाहिए थी. पर कैसे?

झुमरी ने इस बात को गहराई से सोचा, फिर उस के दिमाग में एक तरकीब आ गई. रात आधी बीत चुकी थी. सारा गांव सो चुका था, पर झुमरी जाग रही थी. वह इस समय अमराई से थोड़ी दूर बांसवारी यानी बांसों के झुरमुट में खड़ी हाथों में कुदाल लिए एक गड्ढा खोद रही थी. तकरीबन 2 घंटे तक वह गड्ढा खोदती रही, फिर हाथ में कटार लिए बांस के पेड़ों के पास पहुंची. उस ने कटार की मदद से बांस की पतलीपतली अनेक डालियां काटीं, फिर उन्हें गड्ढे के करीब ले आई. डालियों को चिकना कर उन्हें बीच से चीर कर उन की कमाची बनाईं, फिर उन की चटाई बुनने लगी. अपनी इच्छानुसार चटाई बुनने में उसे तकरीबन 3 घंटे लग गए.

चटाई तैयार कर झुमरी ने उसे गड्ढे के मुंह पर रखा. चटाई ने तकरीबन एक मीटर दायरे के गड्ढे के मुंह को पूरी तरह ढक लिया. यह चटाई किसी आदमी का भार हरगिज सहन नहीं कर सकती थी. सुबह होने में अभी चंद घंटे बचे थे. हालांकि बांसों के इस झुरमुट की ओर गांव वाले कम ही आते थे और दिन में यह सुनसान ही रहता था, फिर भी झुमरी कोई खतरा मोल लेना नहीं चाहती थी. उस ने जमीन पर बिखरे बांस के सूखे पत्तों को इकट्ठा कर उन का ढेर लगा दिया. इस काम से निबट कर झुमरी ने बांस की चटाई से गड्ढे का मुंह ढका, पर उस पर पत्तों को इस तरह डाल दिया, ताकि चटाई पूरी तरह ढक जाए और किसी को वहां गड्ढा होने का एहसास न हो. गड्ढे से निकली मिट्टी को उस ने अपने साथ लाई टोकरी में भर कर गड्ढे से थोड़ी दूर डाल दिया.

काम खत्म कर झुमरी ने एक निगाह अपने अब तक के काम पर डाली, फिर अपने साथ लाए बड़े से थैले में अपना सारा सामान भरा और थैला कंधे पर लाद कर घर की ओर चल पड़ी. 7 दिनों तक झुमरी का यह काम चलता रहा. इतने दिन में उस ने 7 फुट गहरा गड्ढा तैयार कर लिया था. गड्ढे में उतरने और चढ़ने के लिए वह अपने साथ घर से लाई सीढ़ी का इस्तेमाल करती थी. काम पूरा कर उस ने पत्ते डाले, फिर अपने अगले काम को अंजाम देने के बारे में सोचती. रतन सिंह ने झुमरी की इज्जत लूट तो ली थी, परंतु अब वह इस बात से डरा हुआ था कि कहीं झुमरी इस बात का जिक्र अपने मांबाप से न कर दे और कोई हंगामा न खड़ा हो जाए. परंतु जब 10 दिन से ज्यादा हो गए और कुछ नहीं हुआ, तो उस ने राहत की सांस ली. अब उसे रात की तनहाई में वो पल याद आते, जब उस ने झुमरी के जवान जिस्म से अपनी वासना की आग बुझाई थी. जब भी ऐसा होता, उस का बदन कामना की आग में झुलसने लगता था.

इस बीच रतन सिंह ने 1-2 बार झुमरी को अपने खेत की ओर जाते या आते देखा था, परंतु उस के सामने जाने की उस की हिम्मत न हुई थी. पर उस दिन अचानक रतन सिंह का सामना झुमरी से हो गया. वह विचारों में खोया अमराई की ओर जा रहा था कि झुमरी उस के सामने आ खड़ी हुई. उसे यों अपने सामने देख एकबारगी तो रतन सिंह बौखला गया था और झुमरी को देखने लगा था. झुमरी कुछ देर तक खामोशी से उसे देखती रही, फिर उस के होंठों पर एक दिलकश मुसकान उभर उठी. उसे इस तरह मुसकराते देख रतन सिंह ने राहत की सांस ली और एकटक झुमरी के खूबसूरत चेहरे और भरेभरे बदन को देखने लगा. इस के बावजूद जब झुमरी मुसकराती रही, तो रतन सिंह बोला, ‘‘झुमरी, उस दिन जो हुआ, उस का तुम ने बुरा तो नहीं माना?’’

झुमरी ने न में सिर हिलाया.

‘‘सच…’’ कहते हुए रतन सिंह ने उस की हथेली कस कर थाम ली, ‘‘इस का मतलब यह है कि तू फिर वह सब करना चाहती है?’’ बदले में झुमरी खुल कर मुसकराई, फिर हौले से अपना हाथ छुड़ा कर एक ओर भाग गई. उस की इस हरकत पर रतन सिंह के तनमन में एक हलचल मच गई और उस की आंखों के सामने वो पल उभर आए, जब उस ने झुमरी की खिलती जवानी का रसपान किया था. झुमरी को फिर से पाने की लालसा में रतन सिंह उस के इर्दगिर्द मंडराने लगा. झुमरी भी अपनी मनमोहक  अदाओं से उस की कामनाओं को हवा दे रही थी. झुमरी ने एक दिन इशारोंइशारों में रतन सिंह से यह वादा कर लिया कि वह पूरे चांद की आधी रात को उस से अमराई में मिलेगी. आकाश में पूर्णिमा का चांद हंस रहा था. उस की चांदनी चारों ओर बिखरी हुई थी. ऐसे में रतन सिंह बड़ी बेकरारी से एक पेड़ के तने पर बैठा झुमरी का इंतजार कर रहा था.

झुमरी ने आधी रात को यहीं पर उस से मिलने का वादा किया था, परंतु वह अब तक नहीं आई थी. जैसेजैसे समय बीत रहा था, वैसेवैसे रतन सिंह की बेकरारी बढ़ रही थी. अचानक रतन सिंह को अपने पीछे किसी के खड़े होने की आहट मिली. उस ने पलट कर देखा, तो उस का दिल धक से रह गया. वह झटके से उठ खड़ा हुआ. उस के सामने झुमरी खड़ी थी. उस ने भड़कीले कपड़े पहन रखे थे, जिस से उस की जवानी फटी पड़ रही थी. जब झुमरी ने रतन सिंह को आंखें फाड़े अपनी ओर देखा पाया, तो उत्तेजक ढंग से अपने होंठों पर जीभ फेरी. उस की इस अदा ने रतन सिंह को और भी बेताब कर दिया. रतन सिंह ने झटपट झुमरी को अपनी बांहों में समेट लेना चाहा, लेकिन झुमरी छिटक कर दूर हो गई.

‘‘झुमरी, मेरे पास आओ. मेरे तनबदन में आग लगी है, इसे अपने प्यार की बरसात से शांत कर दो,’’ रतन सिंह बेचैन होते हुए बोला. झुमरी ने इशारे से रतन सिंह को खुद को पकड़ लेने की चुनौती दी. रतन सिंह उस की ओर दौड़ा, तो झुमरी ने भी दौड़ लगा दी. अगले पल हालत यह थी कि झुमरी किसी मस्त हिरनी की तरह भाग रही थी और रतन सिंह उसे पकड़ने के लिए उस के पीछे दौड़ रहा था. झुमरी अमराई से निकली, फिर बांस के झुरमुट की ओर भागी. वह उस गड्ढे की ओर भाग रही थी, जिसे उस ने कई दिनों की कड़ी मेनत से तैयार किया था. वह जैसे ही गड्ढे के नजदीक आई, एक लंबी छलांग भरी और गड्ढे की ओर पहुंच गई. झुमरी के हुस्न में पागल, गड्ढे से अनजान रतन सिंह अचानक गड्ढे में गिर गया. उस के मुंह से घुटीघुटी सी चीख निकली.

कुछ देर तक तो रतन सिंह कुछ समझ ही नहीं पाया कि क्या हो गया है. वह बौखलाया हुआ गड्ढे में गिरा इधरउधर झांक रहा था, पर जैसे ही उस के होशोहवास दुरुस्त हुए, वह जोरजोर से झुमरी को मदद के लिए पुकारने लगा. परंतु उधर से कोई मदद नहीं आई. झुमरी की ओर से निराश रतन सिंह खुद ही गड्ढे से बाहर निकलने की कोशिश करने लगा. उस ने अपने दोनों हाथ ऊपर उठा कर गड्ढे के किनारे को पकड़ना चाहा, परंतु वह उस की पहुंच से दूर था. रतन सिंह ने उछल कर बाहर निकलने की 2-4 बार नाकाम कोशिश की. आखिरकार वह गड्ढे का छोर पकड़ने में कामयाब हो गया. उस ने अपने बदन को सिकोड़ कर अपना सिर ऊपर उठाया. उस का सिर थोड़ा ऊपर आया, तभी उस की नजर झुमरी पर पड़ी. उस के हाथों में कुदाल थी और उस की आंखों से नफरत की चिनगारियां फूट रही थीं. इस के पहले कि रतन सिंह कुछ समझता, झुमरी ने कुदाल का भरपूर वार उस के सिर पर किया.

रतन सिंह की दिल दहलाने वाली चीख से वह सुनसान इलाका दहल उठा. उस का सिर फट गया था और खून की धारा फूट पड़ी थी. गड्ढे का किनारा रतन सिंह के हाथ से छूट गया और वह गिर पड़ा था. गड्ढे में गिरते ही रतन सिंह ने अपना सिर थाम लिया. उस की आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा था और उस पर बेहोशी छाने लगी थी. उस के दिमाग में एक विचार बिजली की तरह कौंधा कि यह झुमरी का फैलाया हुआ जाल था, जिस में फंसा कर वह उसे मार डालना चाहती है. तभी रतन सिंह के सिर पर ढेर सारी मिट्टी आ गिरी. उस ने अपनी बंद होती आंखें उठा कर ऊपर की ओर देखा, तो झुमरी टोकरी लिए वहां खड़ी थी. अगले ही पल वह बेहोशी के अंधेरों में गुम होता चला गया. झुमरी ने मिट्टी से पूरा गड्ढा भर दिया, फिर उस पर पत्तियां डाल कर उठ खड़ी हुई. उस ने सिर उठा कर ऊपर देखा. आकाश में पूर्णिमा का चांद हंस रहा था. थोड़ी देर बाद झुमरी कंधे पर थैला लादे अपने घर को लौट रही थी.

मेरे पति सैक्स के दौरान हिंसक हो जाते हैं, क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

28 वर्षीय विवाहित महिला हूं. शादी हुए 2 साल हो गए हैं. ससुराल में किसी चीज की कमी नहीं है. पति सरकारी सेवा में हैं और ओहदेदार हैं. वे स्कूल में टौपर स्टूडैंट थे तो कालेज में यूनिवर्सिटी टौपर. अपने कार्यालय में भी उन के कामकाज पर कभी किसी ने उंगली नहीं उठाई. मगर समस्या मेरी व्यक्तिगत जिंदगी को ले कर है और ऐसी है जिस का अब तक सिर्फ मेरी मां को और मेरी सासूमां को पता है. दरअसल, पति सैक्स संबंध बनाने के दौरान हिंसक व्यवहार करते हैं. वे मुझे पोर्न मूवी साथ देखने को कहते हैं और फिर सैक्स संबंध बनाते हैं. इस दौरान वे मेरे कोमल अंगों को जोरजोर से मसलते हैं और उन पर दांत भी गड़ा देते. कभी-कभी तो मेरी ब्रैस्ट से खून तक निकलने लगता है. इस असहनीय पीड़ा के बाद मेरा बिस्तर पर से उठना मुश्किल हो जाता है. पति मेरी इस हालत को देख कर अफसोस करते हैं और बारबार सौरी भी बोलते हैं. कभीकभी तो मन करता है आत्महत्या कर लूं. हालांकि पति मेरी जरूरत की हर चीज का खयाल रखते हैं और मेरा उन से दूर होना उन्हें इतना अखरता है कि वे मेरे बिना एक पल भी नहीं रह पाते. अगर पति सिर्फ मानसिक पीड़ा पहुंचाते और प्यार नहीं करते तो कब का उन्हें तलाक दे देती पर लगता है शायद वे किसी मानसिक रोग से ग्रस्त हैं और यही सोच कर मैं भी पति का साथ नहीं छोड़ पाती. मैं ने अपनी सासूमां, जो मुझे अपनी बेटी से बढ़ कर प्यार करती हैं, से यह बात बताई तो वे खामोश रहीं. सिर्फ इतना ही कहा कि धीरेधीरे सब नौर्मल हो जाएगा. उधर मां से बताया तो वे आगबबूला हो गईं और सब के साथ बैठ कर इस विषय पर बात करना चाहती हैं. अभी इस की जानकारी मेरे पिता को नहीं है, क्योंकि मैं जानती हूं कि वे इस मुद्दे पर चुप नहीं बैठेंगे. पति, ससुराल और मायके का रिश्ता पलभर में खत्म हो सकता है. कुछ समझ नहीं आ रहा कि क्या करूं? कृपया सलाह दें?

जवाब-

आप की समस्या को देखते हुए ऐसा लगता है कि आप के पति को सैक्सुअल सैडिज्म का मनोविकार है. ऐसे मनोरोगी सामान्य जिंदगी में तो नौर्मल रहते हैं, इन के आचरण पर किसी को शक नहीं होता पर सैक्स क्रिया के दौरान ये हिंसक हो जाते हैं और इन्हें परपीड़ा मसलन, दांत गड़ाना, नोचना, संवेदनशील अंगों पर प्रहार करना, तेज सैक्स करने में आनंद आता है. कभीकभी तो ऐसे मनोरोगी सैक्स पार्टनर को इतनी अधिक पीड़ा पहुंचाते हैं कि संबंधों पर विराम लग जाता है. हालांकि अपने किए पर इन्हें बाद में पछतावा भी होता है और फिर से ऐसी गलती न करने का वादा भी करते हैं, मगर सैक्स के दौरान सब भूल जाते हैं. आप के साथ भी ऐसा है और आप ने यह अच्छा किया कि अपनी मां और सासूमां को इन सब बातों की जानकारी दे दी. ऐसे मनोरोगी को भावनात्मक सहारे की जरूरत होती है. सामान्य व्यवहार के समय आप पति से इस बारे में बात करें. पति के साथ अधिक से अधिक वक्त बिताएं. साथ घूमने जाएं, शौपिंग करें, अच्छा साहित्य पढ़ने को प्रेरित करें. बेहतर होगा कि किसी अच्छे सैक्सुअल सैडिज्म के विशेषज्ञ से पति का उपचार कराएं. फिर भी उम्मीद की कोई किरण नजर नहीं आती दिखे तो पति से तलाक ले कर दूसरी शादी कर लें.

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या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

‘अल्फा’ की शूटिंग से पहले शर्वरी ने दिखाया अपनी फिटनेस का जलवा, वाश बोर्ड एब्स हुए वायरल!

बौलीवुड की नई और लोकप्रिय अभिनेत्री शर्वरी इस साल अपने शानदार प्रदर्शन के कारण सुर्खियों में हैं. मुंजा, महाराज और वेदा जैसी फिल्मों में उनकी दमदार अदाकारी ने लोगों का दिल जीत लिया है. अब, जैसे ही शर्वरी अपनी आगामी फिल्म अल्फा के एक और शेड्यूल के लिए तैयार हो रही हैं, उन्होंने सोशल मीडिया पर अपने वॉश बोर्ड एब्स दिखाकर सभी को बड़ा फिटनेस मोटिवेशन दिया है!

शर्वरी ने अपने ग्लैमरस फिटनेस फोटोज को कैप्शन दिया, “इन माय फिट पूकी एरा.” यशराज फिल्म्स स्पाई यूनिवर्स की फिल्म अल्फा के तीसरे शेड्यूल की शुरुआत होने जा रही है, और शर्वरी अपने फिटनेस के चरम पर हैं. इस फिल्म में वह आलिया भट्ट के साथ नजर आएंगी, जिसे लेकर शरवरी बोहत उत्साहित है .

आलिया भट्ट और शर्वरी की अल्फा, यशराज फिल्म्स की पहली महिला स्पाई फिल्म है. यशराज फिल्म्स ने घोषणा की है कि उनकी यह बहुप्रतीक्षित एक्शन एंटरटेनर अल्फा, जो YRF स्पाई यूनिवर्स की पहली महिला प्रधान फिल्म है,इस फ़िल्म की शूटिंग जोरो शोरो से चल रही है . इस फिल्म का निर्माण आदित्य चोपड़ा कर रहे हैं.

बौलीवुड सुपरस्टार आलिया भट्ट फिल्म में मुख्य भूमिका निभाते नजर आएंगी, और उनके साथ उभरती हुई अभिनेत्री और YRF की होमग्रोन टैलेंट शर्वरी होंगी. दोनों इस बहुप्रतीक्षित स्पाईवर्स फिल्म में सुपर एजेंट की भूमिका में दिखाई देंगी, जिसे शिव रवैल निर्देशित कर रहे हैं.अल्फा एक्शन और मनोरंजन से भरपूर फ़िल्म है, क्योंकि आदित्य चोपड़ा इस फिल्म को बड़े परदे का भव्य अनुभव बनाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. इस फिल्म में शानदार दृश्य और रोमांचक एक्शन सीक्वेंस के साथ साथ कई अप्रत्याशित ट्विस्ट भी देखने को मिलेंगे.

Vivek Oberoi ने आइफा अवार्ड में सलमान खान पर कसा तंज, शाहरुख खान को क्यों कहा ‘बहुत अच्छे इंसान’

हाल ही में आबू धाबी में अवार्ड फंक्शन के दौरान विवेक ओबेरौय ने शाहरुख खान के साथ स्टेज शेयर किया और उसी दौरान मौके पर चौका मारते हुए जहां एक और विवेक ओबेरौय ने स्टेज पर शाहरुख खान की तारीफ के पुल बांध दिए तो वही सलमान खान (Salman Khan) को नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. विवेक ओबेरौय ने शाहरुख की तारीफ करते हुए कहा कि वह शाहरुख के बहुत बड़े फैन हैं. क्योंकि शाहरुख बहुत अच्छे एक्टर ही नहीं बहुत अच्छे इंसान भी हैं.

विवेक ओबेरौय ने सलमान पर तंज कसते हुए आगे कहा. पावर और फेम तो बहुत लोगों के पास होता है. लेकिन शाहरुख अपने पावर को लोगों को एम पावर करने के लिए इस्तेमाल करते हैं. शाहरुख जहां अपनी तारीफ सुनकर मुस्कुराते नजर आए. वहीं लोगों को यह समझने में देर नहीं लगी की विवेक ओबरौय ने शाहरुख का सहारा लेकर सलमान की बेइज्जती कर दी है. गौरतलब है सलमान और ऐश्वर्या राय के ब्रेकअप और झगड़े के बीच विवेक ओबेरौय ने बहती गंगा में हाथ धोने की कोशिश की थी और ऐश्वर्या राय को अपनी गर्लफ्रेंड बताने का सिलसिला शुरू कर दिया था. इसके बाद सलमान खान विवेक ओबेरौय से इतना चिढ़ गए थे कि उन्होंने विवेक का फिल्मी करियर बर्बाद कर दिया. ऐसा विवेक ओबेरौय और फिल्म इंडस्ट्री वालों का कहना है. अपना करियर बचाने के लिए विवेक ओबेरौय ने सलमान से माफी भी मांगी थी. लेकिन सलमान ने विवेक ओबेरौय को कभी माफ नहीं किया.

जिस वजह से अच्छा एक्टर होने के बावजूद और कई हिट फिल्में देने के बावजूद विवेक ओबेरौय को फिल्म इंडस्ट्री वालों ने अपने से दूर कर दिया. अपनी इसी खुन्नस और गुस्से को विवेक ओबेरौय ने आईफा अवार्ड के दौरान शाहरुख की तारीफ करके और सलमान पर तंज कसके पूरा किया. जहां तक सलमान की बात है . तो अब सलमान को इन बातों से कोई खास फर्क नहीं पड़ता. क्योंकि उनकी जिंदगी में आलरेडी इतनी टेंशन और तकलीफें हैं कि विवेक ओबरौय की तारीफ या बुराई सलमान के लिए कोई मायने नहीं रखती.

FIR के राइटर ने कपिल शर्मा के शो को क्यों कहा ‘सबसे घटिया’, इस हफ्ते कपूर सिस्टर्स खोलेंगी कई राज

The Great Indian Kapil Show : द ग्रेट इंडियन कपिल शर्मा शो के फैंस की कमी नहीं है. यह पौपुलर शो टीवी के बाद नेटफ्लिकस पर दिखाया जा रहा है. इस शो को लेकर अलगअलग रिव्यूज आते हैं. कुछ लोगों को यह शो काफी पसंद आता है, तो वहीं कुछ लोग ये कहते हैं कि कपिल सैलिब्रिटीज को अपने शो पर बुलाकर मजाक उड़ाते हैं.

FIR के राइटर ने बताया सबसे घटिया शो

एक रिपोर्ट के मुताबिक हाल ही में टीवी शो FIR के राइटर अमित आर्यन ने इस शो को लेकर एक यू-ट्यूब चैनल से बातचीत की. उन्होंने कहा, ”कपिल शर्मा का शो सबसे बुरा शो है. उन्होंने आगे ये भी कहा कि इस शो में अश्लील कंटैंट दिखाए जाते हैं और महिलाओं का मजाक उड़ाया जाता है.”

आज की जेनरेशन इसी को कौमेडी समझ रही है. अमित आर्यन ने आगे ये भी कहा कि ”अगर आज मैं घटिया बात करूं, किसी का मज़ाक उड़ाऊं, किसी को मोटा कहूं, काला बोलूं, बौडी शेमिंग करूं तो लोग हंसेंगे. मगर आपकी भी तो कुछ जिम्मेदारी होनी चाहिए.”

किसी का मजाक उड़ाकर कौमेडी करना गलत है

अमित ने कहा कि किसी का मजाक उड़ाकर कौमेडी पैदा करना गलत है. हालांकि इस शो को लेकर फैंस काफी ऐक्साइटेड रहते हैं. हाल ही में इस शो से जुड़ा एक क्लिप सामने आया है, क्लिप में करिश्मा कपूर करीना के अटपटे सवाल का जवाब देते नजर आ रही हैं. करीना अपनी बहन करिश्मा का सीक्रेट भी बता रही हैं.

कपूर सिस्टर्स कपिल शर्मा के शो में करेंगी एंट्री

कपिल के शो में कपूर सिस्टर्स दर्शकों का फुल एंटरटेनमैंट करेंगी. वीडियो के अनुसार, कपिल ने दोनों का शानदार वेलकम किया. कपिल कहते हैं कि मेरे एक तरफ करीना, एक तरफ करिश्मा, इसके बाद चाहे गोली मार दो.

करीना ने सैफ को किया प्रपोज?

कपिल शर्मा बेबो से सवाल करते हैं कि करीना या सैफ में से किसने पहले प्रपोज किया था. करीना इसका हंसते हुए जवाब देती हैं और कहती हैं कि जितना मैं खुद को जानती हूं, मैंने ही उनको बताया होगा. क्योंकि सब जानते हैं कि मैं अपनी फेवरिट हूं. कपिल ने सैफ के टैटू के बारे में भी पूछा, इस पर करीना ने बताया कि मैंने ही सैफ से कहा कि अगर मुझसे प्यार करते हो तो मेरे नाम का टैटू बनवाओ.

करिश्मा ने कृष्णा अभिषेक के साथ की हूक स्टेप

इसके बाद शो में कृष्णा अभिषेक की एंट्री होती है. वह करिश्मा के साथ हुक स्टेप करते हैं. करिश्मा उन्हें चीची भैया कहकर बुलाती है, इसके बाद कृष्णा कहते हैं कि ये जो आपने भैया बोला है, यह बात मुझे अंदर तक लगी है.

करिश्मा का क्रश सीक्रेट

कपिल के शो में ये भी देखने को मिलेगा कि करीना अपनी बहन करिश्मा के क्रश सीक्रेट के बारे में बताएंगी. कपिल जब करिश्मा के क्रश के बारे में पूछते हैं तो करीना कहती हैं कि मुझे लगता है कि सलमान खान पहले क्रश थे. ये सुनकर करिश्मा शौक्ड दिखती हैं. यूजर्स ने इस क्लिप पर काफी सारे कमेंट्स किए हैं. इस एपिसोड को लेकर दर्शक ऐक्साइटेड हैं और अच्छा फीडबैक दे रहे हैं.

मैट्रिमोनियल: पंकज को क्यों दाल में कुछ काला नजर आ रहा था

पंकज कई दिनों से सोच रहा था कि रामचंदर बाबू के यहां हो आया जाए, पर कुछ संयोग ही नहीं बना. दरअसल, महानगरों की यही सब से बड़ी कमी है कि सब के पास समय की कमी है. दिल्ली शहर फैलता जा रहा है.

15-20 किलोमीटर की दूरी को ज्यादा नहीं माना जाता. फिर मैट्रो ने दूरियों को कम कर दिया है. लोगों को आनाजाना आसान लगने लगा है. पंकज ने तय किया कि  कल रविवार है, हर हाल में रामचंदर बाबू से मुलाकात करनी ही है.

किसी के यहां जाने से पहले एक फोन कर लेना तहजीब मानी जाती है और सहूलियत भी. क्या मालूम आप 20 किलोमीटर की दूरी तय कर के पहुंचें और पता चला कि साहब सपरिवार कहीं गए हैं. तब आप फोन करते हैं. मालूम होता है कि वे तो इंडिया गेट पर हैं. मन मार कर वापस आना पड़ता है. मूड तो खराब होता ही है, दिन भी खराब हो जाता है. पंकज ने देर करना मुनासिब नहीं समझा, उस ने मोबाइल निकाल कर रामंचदर बाबू को फोन मिलाया.

रामचंदर बाबू घर पर ही थे. दरअसल, वे उम्र में पंकज से बड़े थे. वे रिटायर हो चुके हैं. उन्होंने 45 साल की उम्र में वीआरएस ले लिया था. आज 50 के हो चुके हैं.

‘‘हैलो, मैं हूं,’’ पंकज ने कहा.

‘‘अरे वाह,’’ उधर से आवाज आई, ‘‘काफी दिनों बाद तुम्हारी आवाज सुनाई दी. कैसे हो भाई.’’

‘‘मैं ठीक हूं. आप कैसे हैं?’’

‘‘मुझे क्या होना है. बढि़या हूं. कहां हो?’’

‘‘अभी तो औफिस में ही हूं, कल क्या कर रहे हैं, कहीं जाना तो नहीं है?’’

‘‘जाना तो है. पर सुबह जाऊंगा. 10-11 बजे तक वापस आ जाऊंगा. क्यों, तुम आ रहे हो क्या?’’

‘‘हां, बहुत दिन हो गए.’’

‘‘तो आ जाओ. मैं बाद में चला जाऊंगा या नहीं जाऊंगा. जरूरी नहीं है.’’

‘‘नहीं, नहीं. मैं तो लंच के बाद ही आऊंगा. आप आराम से जाइए. वैसे जाना कहां है?’’

‘‘वही, रिनी के लिए लड़का देखने. नारायणा में बात चल रही थी न. तुम्हें बताया तो था. फोन पर साफ बात नहीं कर रहे हैं, टाल रहे हैं. इसलिए सोचता हूं एक बार हो आऊं.’’

‘‘ठीक है, हो आइए. पर मुझे नहीं लगता कि वहां बात बनेगी. वे लोग मुझे जरा घमंडी लग रहे हैं.’’

‘‘तुम ठीक कह रहे हो. मुझे भी यही लगता है. कल फाइनल कर ही लेता हूं. फिर तुम अपनी भाभी को तो जानते ही हो.’’

‘‘ठीक है, बल्कि यही ठीक होगा. भाभीजी कैसी हैं, उन का घुटना अब कैसा है?’’

‘‘ठीक ही है. डाक्टर ने जो ऐक्सरसाइज बताई है वह करें तब न.’’

‘‘और नीरज आया था क्या?’’

‘‘अरे हां, आजकल आया हुआ है. एकदम ठीक है. तुम्हारे बारे में आज ही पूछ भी रहा था. खैर, तुम कितने बजे तक आ जाओगे?’’

‘‘मैं 4 बजे के करीब आऊंगा.’’

‘‘ठीक है. चाय साथ पिएंगे. फिर खाना खा कर जाना.’’

‘‘रिनी की कहीं और भी बात चल रही है क्या? देखते रहना चाहिए. एक के भरोसे तो नहीं बैठे रहा जा सकता न.’’

‘‘चल रही है न. अब आओ तो बैठ कर इत्मीनान से बात करते हैं.’’

‘‘ठीक है. तो कल पहुंचता हूं. फोन रखता हूं, बाय.’’

मोबाइल फोन का यही चलन है. शुरुआत में न तो नमस्कार, प्रणाम होता है और न ही अंत में होता है. बस, बाय कहा और बात खत्म.

रामचंदर बाबू के एक लड़का नीरज व लड़की रिनी है. रिनी बड़ी है. वह एमबीए कर के नौकरी कर रही है. साढे़ 6 लाख रुपए सालाना का पैकेज है. नीरज बीटैक कर के 3 महीने से एक मल्टीनैशनल कंपनी में जौब कर रहा है. रामचंदर बाबू रिनी की शादी को ले कर बेहद परेशान थे. दरअसल, उन के बच्चे शादी के बाद देर से पैदा हुए थे. पढ़ाई, नौकरी व कैरियर के कारण पहले तो रिनी ही शादी के लिए तैयार नहीं थी, जब राजी हुई तब उस की उम्र 28 साल थी. देखतेदेखते समय बीतता गया और रिनी अब 30 वर्ष की हो गई, लेकिन शादी तय नहीं हो पाई. नातेरिश्तेदारों व दोस्तों को भी कह रखा था. अखबारों में भी विज्ञापन दिया था. मैट्रिमोनियल साइट्स पर भी प्रोफाइल डाल रखा था. अब जब अखबार ने उन का विज्ञापन 30 प्लस वाली श्रेणी में रखा तब उन्हें लगा कि वाकई देर हो गई है. वे काफी परेशान हो गए.

पंकज जब उन के यहां पहुंचा तो 4 ही बजे थे. रामचंदर बाबू घर पर ही थे. पंकज का उन्होंने गर्मजोशी से स्वागत किया. उन के चेहरे पर चमक थी. पंकज को लगा रिनी की बात कहीं बन गई है.

‘‘क्या हाल है रामचंदर बाबू,’’ पंकज ने सोफे पर बैठते हुए पूछा.

‘‘हाल बढि़या है. सब ठीक चल रहा है.’’

‘‘रिनी की शादी की बात कुछ आगे बढ़ी क्या?’’

‘‘हां, चल तो रही है. देखो, सबकुछ ठीक रहा तो शायद जल्द ही फाइनल हो जाएगा.’’

‘‘अरे वाह, यह तो बहुत अच्छा हुआ. नारायणा वाले तो अच्छे लोग निकले.’’

‘‘नारायणा वाले नहीं, वे लोग तो अभी भी टाल रहे हैं. मैं गया था तो बोले कि 2-3 हफ्ते में बताएंगे.’’

‘‘फिर कहां की बात कर रहे हैं?’’

रामचंदर बाबू खिसक कर उस के नजदीक आ गए.

‘‘बड़ा बढि़या प्रपोजल है. इंटरनैट से संपर्क हुआ है.’’

‘‘इंटरनैट से? वह कैसे?’’

‘‘मैं तुम्हें विस्तार से बताता हूं. इंटरनैट पर मैट्रिमोनियल की बहुत सी साइट्स हैं. वे लड़के और लड़कियां की डिटेल रखते हैं. उन पर अकाउंट बनाना होता है, मैं ने रिनी का अकाउंट बनाया था. मुंबई के बड़े लोग हैं. बहुत बड़े आदमी हैं. अभी पिछले हफ्ते ही तो मैं ने उन का औफर एक्सैप्ट किया था.’’

‘‘लड़का क्या करता है?’’

‘‘लड़का एमटैक है आईआईटी मुंबई से. जेट एयरवेज में चीफ इंजीनियर मैंटिनैंस है. 22 लाख रुपए सालाना का पैकेज है. तुम तो उस का फोटो देखते ही पसंद कर लोगे. एकदम फिल्मी हीरो या मौडल लगता है. अकेला लड़का है. कोई बहन भी नहीं है.’’

‘‘चलिए, यह तो अच्छी बात है. उस का बाप क्या करता है?’’

‘‘बिजनैसमैन हैं. मुंबई में 2 फैक्टरियां हैं.’’

‘‘2 फैक्टरियां? फिर तो बहुत बड़े आदमी हैं.’’

‘‘बहुत बड़े. कहने लगे इतना कुछ है उन के पास कि संभालना मुश्किल हो रहा है. लड़के का मन बिजनैस में नहीं है, नहीं तो नौकरी करने की कोई जरूरत ही नहीं है. कह रहे थे बिजनैस तो रिनी ही संभालेगी, एमबीए जो है. घर में 3-3 गाडि़यां हैं,’’ रामचंदर बाबू खुशी में कहे जा रहे थे.

‘‘इस का मतलब है कि आप की बात हो चुकी है.’’

‘‘बात तो लगभग रोज ही होती है. एक्सैप्ट करने के बाद साइट वाले कौंटैक्ट नंबर दे देते हैं. जितेंद्रजी कहने लगे कि जब से आप से बात हुई है, दिन में एक बार बात किए बिना चैन ही नहीं मिलता. कई बार तो रात के 12 बजे भी उन का फोन आ जाता है. व्यस्त आदमी हैं न.’’

‘‘कुछ लेनदेन की बात हुई है क्या?’’

‘‘मैं ने इशारे में पूछा था. कहने लगे, कुछ नहीं चाहिए. न सोना, न रुपया, न कपड़ा. बस, सादी शादी. बाकी वे लोग बाद में किसी होटल में पार्टी करेंगे. होटल का नाम याद नहीं आ रहा है. कोई बड़ा होटल है.’’

‘‘घर में और कौनकौन है?’’

‘‘बस, मां हैं और कोई नहीं है. नौकरचाकरों की तो समझो फौज है.’’

‘‘आप ने रिश्तेदारी तो पता की ही होगी. कोई कौमन रिश्तेदारी पता चली क्या?’’

‘‘मैं ने पूछा था. दिल्ली में कोई नहीं है. मुंबई में भी सभी दोस्तपरिचित ही हैं. वैसे बात तो वे सही ही कह रहे हैं. अब हमारी ही कौन सी रिश्तेदारियां बची हैं. एकाध को छोड़ दो तो सब से संबंध खत्म ही हैं. मेरे बाद नीरज और रिनी क्या रिश्तेदारियां निबाहेंगे भला. खत्म ही समझो.’’

‘‘चलिए, ठीक ही है. बात आगे तो बढ़े.’’ वैसे मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है, ‘‘शादीब्याह का मामला है, कुछ सावधानियां तो बरतनी ही पड़ती हैं.’’

‘‘हां, सो तो है ही. मैं सावधान तो हूं ही. पर सावधानी के चक्कर में इतना अच्छा रिश्ता कैसे छोड़ दूं. रिनी की उम्र तो तुम देख ही रहे हो.’’

‘‘नहीं, मेरा यह मतलब नहीं था. फिर भी जितना हो सके बैकग्राउंड तो पता कर ही लेना चाहिए.’’

‘‘वो तो करूंगा ही भाई.’’

चायवाय पी कर पंकज वापस चला गया. सबकुछ तो ठीक था पर एक बात थी जो अजीब लग रही थी उसे. आखिर उन लोगों को रिनी में ऐसी कौन सी खासियत नजर आ गई थी जो वे शादी के लिए एकदम तैयार हो गए. बहरहाल, शादीब्याह तो जहां होना है वहीं होगा, फिर भी चलतेचलते उस ने इतना कह ही दिया कि आप एक बार मुंबई जा कर परिवार, फैक्टरियां वगैरह देख आइए. कम से कम तसल्ली तो हो जाएगी. उन्होंने जाने का वादा किया.

अगले शनिवार रामचंदर बाबू ने पंकज को फोन किया.

‘‘अरे, कहां हो भाई? क्या हाल है?’’ मुझे उन का स्वर उत्तेजित लगा.

‘‘मैं घर पर ही हूं,’’ पंकज ने कहा, ‘‘क्या हुआ. सब ठीक तो है.’’

‘‘हां, सब ठीक है. कल का कोई प्रोग्राम तो नहीं है?’’

‘‘नहीं. पर हुआ क्या, तबीयत वगैरह तो ठीक है न?’’

‘‘तबीयत तो ठीक है. अरे, वह रिनी वाला संबंध है न. वही लोग कल आ रहे हैं.’’

‘‘आ रहे हैं? पर क्यों?’’

‘‘अरे, लड़की देखने भाई. सब ठीक रहा तो कोई रस्म भी कर देंगे.’’

‘‘जरा विस्तार से बताइए. पर रुकिए, क्या आप मुंबई हो आए, घरपरिवार देख आए क्या?’’

‘‘अरे, कहां? मैं बताता हूं. तुम्हारे जाने के बाद उन का फोन आ गया था. काफी बातें होती रहीं. पौलिटिक्स पर भी उन की अच्छी पकड़ है. बडे़ बिजनैसमैन हैं. 2-2 फैक्टरियां हैं. पौलिटिक्स पर नजर तो रखनी ही पड़ती है. फिर मैं ने उन से कहा कि अपना पूरा पता बता दीजिए, मैं आ कर मिलना चाहता हूं. कहने लगे आप क्यों परेशान होते हैं. लेकिन आना चाहते हैं तो जरूर आइए. वर्ली में किसी से भी स्टील फैक्टरी वाले जितेंद्रजी पूछ लीजिएगा, घर तक पहुंचा जाएगा. कहने लगे कि फ्लाइट बता दीजिए, ड्राइवर एयरपोर्ट से ले लेगा.’’

‘‘बहुत बढि़या.’’

मैं ने कहा, हवाईजहाज से नहीं, मैं तो ट्रेन से आऊंगा. तो बोले टाइम बता दीजिएगा, स्टेशन से ही ले लेगा. बल्कि वे तो जिद करने लगे कि हवाईजहाज का टिकट भेज देता हूं. 2 घंटे में पहुंच जाइएगा. मैं ने किसी तरह से मना किया.’’

‘‘फिर?’’

‘‘फिर क्या. मैं रिजर्वेशन ही देखता रह गया और कल सुबहसुबह ही उन का फोन आ गया.’’

‘‘अच्छा.’’

‘‘हां. उन्होंने बताया कि वे 15 दिनों के लिए स्वीडन जा रहे हैं. वहां उन का माल एक्सपोर्ट होता है न. पत्नी भी साथ में जा रही हैं. पत्नी की राय से ही उन्होंने फोन किया था. उन की पत्नी का कहना था कि जाने से पहले लड़की देख लें. और ठीक हो तो कोई रस्म भी कर देंगे. सो, बोले हम इतवार को आ रहे हैं.’’

‘‘बड़ा जल्दीजल्दी का प्रोग्राम बन रहा है. क्या लड़का भी साथ में आ रहा है?’’

‘‘ये लो. लड़का नहीं आएगा भला. बड़ा व्यस्त था. पर जितेंद्रजी ने कहा कि आप ने भी तो नहीं देखा है. लड़कालड़की दोनों एकदूसरे को देख लें, बात कर लें, तभी तो हमारा काम शुरू होगा न.’’

‘‘यह तो ठीक बात है. कहां ठहराएंगे उन्हें.’’ पंकज जानता था कि रामचंदर बाबू का मकान बस साधारण सा ही है. एसी भी नहीं है. सिर्फ कूलर है.

‘‘ठहरेंगे नहीं. उसी दिन लौट जाएंगे.’’

‘‘पर आएंगे तो एयरपोर्ट पर ही न.’’

‘‘नहीं भाई, बड़े लोग हैं. उन की पत्नी ने कहा कि जब जा ही रहे हैं तो लुधियाना में अपने भाई के यहां भी हो लें. अब उन का प्रोग्राम है कि वे आज ही फ्लाइट से लुधियाना आ जाएंगे. ड्राइवर गाड़ी ले कर लुधियाना आ जाएगा. कल सुबह 8 बजे घर से निकल कर 11 बजे तक दिल्ली पहुंच जाएंगे व लड़की देख कर लुधियाना वापस लौट जाएंगे. वहीं से मुंबई का हवाईजहाज पकडेंगे. ड्राइवर गाड़ी वापस मुंबई ले जाएगा.’’

‘‘बड़ा अजीब प्रोग्राम है. उन के साले के पास गाड़ी नहीं है क्या, जो मुंबई से ड्राइवर गाड़ी ले कर आएगा. उस की भी तो लुधियाना में फैक्टरी है.’’

‘‘बड़े लोग हैं. क्या मालूम अपनी गाड़ी में ही चलते हों.’’

‘‘क्या मालूम. लेकिन आप जरा घर ठीक से डैकोरेट कर लीजिएगा.’’

‘‘अरे, मैं बेवकूफ नहीं हूं भाई, मेरा घर उन के स्तर का नहीं है. होटल रैडिसन में 6 लोगों का लंच बुक कर लिया है. पहला इंप्रैशन ठीक होना चाहिए.’’

‘‘चलिए, यह आप ने अच्छा किया. नीरज तो है ही न.’’

‘‘वह तो है, पर भाई तुम आ जाना. बड़े लोग हैं. तुम ठीक से बातचीत संभाल लोगे. मैं क्या बात कर पाऊंगा. तुम रहोगे तो मुझे सहारा रहेगा. तुम साढ़े 10 बजे तक रैडिसन होटल आ जाना. हम वहीं मिल जाएंगे.’’

‘‘मैं समय से पहुंच जाऊंगा. आप निश्चित रहें.’’

सारी बातें उसे कुछ अजीब सी लग रही थीं. पंकज ने मन ही मन तय किया कि रामचंदर बाबू से कहेगा कि कल कोई रस्म न करें. जरा रुक कर करें और हो सके तो मुंबई से लौट कर करें.

पंकज घर से 10 बजे ही होटल रैडिसन के लिए निकल गया. आधा घंटा तो लग ही जाना था. आधे रास्ते में ही था कि मोबाइल की घंटी बजी. नंबर रामचंदर बाबू का ही था.

‘‘क्या हो गया रामचंदर बाबू. मैं रास्ते में हूं, पहुंच रहा हूं.’’

‘‘अरे, जल्दी आओ भैया, गजब हो गया.’’

‘‘गजब हो गया? क्या हो गया.’’

‘‘तुम आओ तो. लेकिन जल्दी आओ.’’

‘‘मैं बस 10 मिनट में रैडिसन पहुंच जाऊंगा.’’

‘‘रैडिसन नहीं, रैडिसन नहीं. घर आओ, जल्दी आओ.’’

‘‘मैं घर ही पहुंचता हूं, पर आप घबराइए नहीं.’’

अगले स्टेशन से ही उस ने मैट्रो बदल ली. क्या हुआ होगा. फोन उन्होंने खुद किया था. घबराए जरूर थे पर बीमार नहीं थे. कहीं रिनी ने तो कोई ड्रामा नहीं कर दिया.

दरवाजा नीरज ने खोला. सामने ही सोफे पर रामचंदर बाबू बदहवास लेटे थे. उन की पत्नी पंखा झल रही थीं व रिनी पानी का गिलास लिए खड़ी थी. पंकज को देखते ही झटके से उठ कर बैठ गए.

‘‘गजब हो गया भैया, अब क्या होगा.’’

‘‘पहले शांत हो जाइए. घबराने से क्या होगा. हुआ क्या है?’’

‘‘ऐक्सिडैंट…ऐक्सिडैंट हो गया.’’

‘‘किस का ऐक्सिडैंट हो गया?’’

‘‘जितेंद्रजी का ऐक्सिडैंट हो गया भैया. अभी थोड़ी देर पहले फोन आया था. अरे नीरज, जल्दी जाओ बेटा. देरी न करो.’’

नीरज ने जाने की कोई जल्दी नहीं दिखाई.

‘‘एक मिनट,’’ पंकज ने रामचंदर बाबू को रोका. ‘‘पहले बताइए तो क्या ऐक्सिडैंट हुआ, कहां हुआ. कोई सीरियस तो नहीं है?’’

‘‘अरे, मैं क्या बताऊं,’’ रामचंदर बाबू जैसे बिलख पड़े, ‘‘कहीं वे मेरी रिनी को मनहूस न समझ लें. अब क्या होगा भैया.’’

‘‘मैं बताता हूं अंकल,’’ नीरज बोला जो कुछ व्यवस्थित लग रहा था, ‘‘अभी साढ़े 9-10 बजे के बीच में जितेंद्र अंकल का फोन आया था. उन्होंने बताया कि ठीक 8 बजे वे लुधियाना से दिल्ली अपनी कार से निकल लिए थे. उन की पत्नी व बेटा भी उन के साथ थे. दिल्ली से करीब 45 किलोमीटर दूर शामली गांव के पहले उन की विदेशी गाड़ी की किसी कार से साइड से टक्कर हो गई. कोई बड़ा एक्सिडैंट नहीं है. सभी लोग स्वस्थ हैं. किसी को कोई चोट नहीं आई है.’’

‘‘तब समस्या क्या है, वे आते क्यों नहीं?’’

‘‘कार वाले ने समस्या खड़ी कर दी. वह पैसे मांग रहा है. कोई दारोगा भी आ गया है.’’

‘‘फिर?’’

‘‘कार वाले से 50 हजार रुपए में समझौता हुआ है.’’

‘‘तो उन्होंने दे दिया कि नहीं.’’

‘‘उन के पास नकद 25 हजार रुपए ही हैं. उन्होंने बताया कि पास में ही एक एटीएम है. पर अंकल का कार्ड चल ही नहीं रहा है.’’

‘‘अरे, तुम जा कर उन के खाते में 25 हजार डाल क्यों नहीं देते बेटा.’’ रामचंदर बाबू कलपे, ‘‘अब तक तो डाल कर आ भी जाते.’’

पंकज ने प्रश्नसूचक दृष्टि से नीरज की तरफ देखा.

‘‘अंकल के ड्राइवर का एटीएम कार्ड चल रहा है. पर उस के खाते में रुपए नहीं हैं. अंकल ने पापा से कहा है कि वे ड्राइवर के खाते में 25 हजार रुपए जमा कर दें, वे दिल्ली आ कर मैनेज कर देंगे. ड्राइवर का एटीएम कार्ड भारतीय स्टेट बैंक का है. मैं वहीं जमा कराने जा रहा हूं.’’

‘‘एक मिनट रुको नीरज. मुझे मामला कुछ उलझा सा लग रहा है. रामचंदर बाबू आप को कुछ अटपटा नहीं लग रहा है?’’

‘‘कैसा अटपटा?’’

‘‘उन्होंने अपने साले से लुधियाना, जहां रात में रुके भी थे, रुपया जमा कराने के लिए क्यों नहीं कहा?’’

‘‘शायद रिश्तेदारी में न कहना चाहते हों.’’

‘‘तो आप से क्यों कहा? आप से तो नाजुक रिश्तेदारी होने वाली है.’’

‘‘शायद मुझ पर ज्यादा भरोसा हो.’’

‘‘कैसा भरोसा? अभी तो आप लोगों ने एकदूसरे का चेहरा भी नहीं देखा है. फिर 2-2 फैक्टरियों के किसी मैनेजर को फोन कर के रुपया जमा करने को क्यों नहीं कहा?’’

‘‘अरे, दिल्ली से 45 किलोमीटर दूर ही तो हैं वे. मुंबई दूर है.’’

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‘‘क्या बात करते हैं? कंप्यूटर के लिए क्या दिल्ली क्या मुंबई. लड़का भी तो साथ है. उस का भी कोई कार्ड नहीं चल रहा है. आजकल तो कईकई क्रैडिटडैबिट कार्ड रखने का फैशन है.’’

‘‘क्या मालूम?’’ रामचंदर बाबू भी सोच में पड़ गए.

‘‘किसी का कार्ड नहीं चल रहा है. सिर्फ ड्राइवर का कार्ड चल रहा है. बात जरा समझ में नहीं आ रही है.’’

‘‘तो क्या किया जाए भैया. बड़ी नाजुक बात है. अगर सच हुआ तो बात बिगड़ी ही समझो.’’

‘‘इसीलिए तो मैं कुछ बोल नहीं पा रहा हूं?’’

‘‘नहीं. तुम साफ बोलो. अब बात फंस गई है.’’

‘‘यह फ्रौड हो सकता है. आप रुपया जमा करा दें और फिर वे फोन ही न उठाएं तो आप उन्हें कहां ढूंढ़ेंगे?’’

‘‘25 हजार रुपए का रिस्क है,’’ नीरज धीरे से बोला.

‘‘मेरा तो दिमाग ही नहीं चल रहा है. इसीलिए तो तुम्हें बुलाया है. बताओ, अब क्या किया जाए?’’

‘‘नीरज, तुम्हें अकाउंट नंबर तो बताया है न.’’

‘‘हां, ड्राइवर का अकाउंट नंबर बताया है. स्टेट बैंक का है. इसी में जमा करने को कहा है.’’

‘‘चलो, सामने वाले पीसीओ पर चलते हैं. तुम उन को वहीं से फोन करो और कहो कि बैंक वाले बिना खाता होल्डर की आईडी प्रूफ के रुपया जमा नहीं कर रहे हैं. कह देना मैं मैनेजर साहब के केबिन से बोल रहा हूं. आप इन्हीं के फैक्स पर ड्राइवर की आईडी व अकाउंट नंबर फैक्स कर दें. वैसे, ऐसा कोई नियम नहीं है. 25 हजार रुपए तक जमा किया जा सकता है. हो सकता है वे ऐसा कुछ कहें. तो कहना, लीजिए, मैनेजर साहब से बात कर लीजिए. तब फोन मुझे दे देना. मैं कह दूंगा कि अब यह नियम आ गया है.’’

‘‘इस से क्या होगा?’’

‘‘आईडी और अकाउंट नंबर का फैक्स पर आ गया तो रुपया जमा कर देंगे, वरना तो समझना फ्रौड है.’’

‘‘अगर वहां फैक्स सुविधा न हुई तो?’’ रामचंदर बाबू बोले.

‘‘जब एटीएम है तो फैक्स भी होगा. फिर उन्हें तो कहने दीजिए न.’’

‘‘ठीक है. ऐसा किया जाए. इस में कोई बुराई नहीं है.’’ रामचंदर बाबू के दिमाग में भी शक की सूई घूमी. पंकज व नीरज पीसीओ पर आए. उस का फैक्स नंबर नोट किया व फिर नीरज ने फोन मिलाया.

‘‘अंकल नमस्ते,’’ नीरज बोला, ‘‘मैं रामचंदरजी का बेटा नीरज बोल रहा हूं.’’

उधर से कुछ कहा गया.

‘‘नहीं अंकल, बैंक वाले रुपए जमा नहीं कर रहे हैं. कह रहे हैं अकाउंट होल्डर का आईडी प्रूफ चाहिए. मैं बैंक से ही बोल रहा हूं,’’ नीरज उधर की बात सुनता रहा.

‘‘लीजिए, आप मैनेजर साहब से बात कर लीजिए,’’ नीरज ने फोन काट दिया.

‘‘क्या हुआ,’’ मैं ने दोबारा पूछा.

‘‘उन्होंने फोन काट दिया,’’ नीरज बोला.

‘‘काट दिया? पर कहा क्या?’’

‘‘मैं ने अपना परिचय दिया तो अंकल ने पूछा कि रुपया जमा किया कि नहीं. मैं ने बताया कि बैंक वाले जमा नहीं कर रहे हैं, तो अंकल बिगड़ गए, बोले कि इतना सा काम नहीं हो पा रहा है. मैं ने जब कहा कि लीजिए बात कर लीजिए तो फोन ही काट दिया.’’

‘‘फिर मिलाओ.’’

नीरज ने फिर से फोन मिलाया लेकिन लगातार स्विच औफ आता रहा.

पंकज ने राहत की सांस ली. ‘‘अब चलो.’’

वे दोनों वापस घर आ गए व रामचंदर बाबू को विस्तार से बताया.

‘‘हो सकता है गुस्सा हो गए हों, परेशान होंगे,’’ वे सशंकित थे.

‘‘आप मिलाइए.’’ रामचंदर बाबू ने भी फोन मिलाया पर स्विच औफ आया.

‘‘15 मिनट रुक कर मिलाइए.’’

15-15 मिनट रुक कर 4 बार मिलाया गया. हर बार स्विच औफ ही आया.

‘‘ये साले वाकई फ्रौड थे,’’ आखिरकार रामचंदर बाबू खुद बोले, ‘‘नहीं तो हमारी रिनी कौन सी ऐसी हूर की परी है कि वे लोग शादी के लिए मरे जा रहे थे. उन का मतलब सिर्फ 25 हजार रुपए लूटना था.’’

‘‘ऐसे नहीं,’’ पंकज ने कहा, ‘‘अभी और डिटेल निकालता हूं.’’

उस ने अपने दोस्त अखिल को फोन किया जो एसबीआई की एक ब्रांच में था. उस ने उस अकाउंट नंबर बता कर खाते की पूरी डिटेल्स बताने को कहा. उस ने देख कर बताया कि उक्त खाता बिहार के किसी सुदूर गांव की शाखा का था.

‘‘जरा एक महीने का स्टेटमैंट तो निकालो,’’ पंकज ने कहा.

‘‘नहीं यार, यह नियम के खिलाफ होगा.’’

पंकज ने जब उसे पूरा विवरण बताया तो वह तैयार हो गया. ‘‘बहुत बड़ा स्टेटमैंट है भाई. कई पेज में आएगा.’’

‘‘एक हफ्ते का निकाल दो. मैं नीरज नाम के लड़के को भेज रहा हूं. प्लीज उसे दे देना.’’

‘‘ठीक है.’’

नीरज मोटरसाइकिल से जा कर स्टेटमैंट ले आया. एक सप्ताह का स्टेटमैंट 2 पेज का था. 6 दिनों में खाते में 7 लाख 30 हजार रुपए जमा कराए गए थे व सभी निकाल भी लिए गए थे. सारी जमा राशियां 5 हजार से 35 हजार रुपए की थीं. उस समय खाते में सिर्फ 1,300 रुपए थे. स्टेटमैंट से साफ पता चल रहा था कि सारे जमा रुपए अलगअलग शहरों में किए गए थे. रुपए जमा होते ही रुपए एटीएम से निकाल लिए गए थे. अब तसवीर साफ थी. रामचंदर बाबू सिर पकड़ कर बैठ गए.

‘‘देख लिया आप ने. एक ड्राइवर के खाते में एक हफ्ते में 7 लाख से ज्यादा जमा हुए हैं. फैक्टरियां तो उसी की होनी चाहिए.’’

‘‘मेरे साथ फ्रौड हुआ है.’’

‘‘बच गए आप. कहीं कोई लड़का नहीं है. कोई बाप नहीं है. कोई फैक्टरी नहीं है. यहीं कहीं दिल्ली, मुंबई या कानपुर, जौनपुर जगह पर कोई मास्टरमाइंड थोड़े से जाली सिमकार्ड वाले मोबाइल लिए बैठा है और सिर्फ फोन कर रहा है. सब झूठ है.’’

‘‘मैं महामूर्ख हूं. उस ने मुझे सम्मोहित कर लिया था.’’

‘‘यही उन का आर्ट है. सिर्फ बातें कर के हर हफ्ते लाखों रुपए पैदा

कर रहे हैं. इस की तो एफआईआर होनी चाहिए.’’

रामचंदर बाबू सोच में पड़ गए और बोले, ‘‘जाने दो भैया. लड़की का मामला है. बदनामी तो होगी ही, थाना, कोर्टकचहरी अलग से करनी पड़ेगी. फिर हम तो बच गए.’’

‘‘आप 25 हजार रुपए लुटाने पर भी कुछ नहीं करते. कोई नहीं करता. किसी ने नहीं किया. लड़की का मामला है सभी के लिए. कोई कुछ नहीं करेगा. यह वे लोग जानते हैं और इसी का वे फायदा उठा रहे हैं.’’

‘‘हम लोग तुम्हारी वजह से बच गए.’’

‘‘एक बार फोन तो मिलाइए रामचंदर बाबू. हो सकता है वे लोग रैडिसन में इंतजार कर रहे हों.’’

रामचंदर बाबू ने फोन उठा कर मिलाया व मुसकराते हुए बताया, ‘‘स्विच औफ.’’

बाद में पंकज ने अखिल को पूरी बात बता कर बैंक में रिपोर्ट कराई व खाते को सीज करा दिया. पर एक खाते को सीज कराने से क्या होता है.

और बाद में, करीब 6 महीने बाद रिनी की शादी एक सुयोग्य लड़के से हो गई. मजे की बात विवाह इंटरनैट के मैट्रिमोनियल अकाउंट से ही हुआ. रिनी अपनी ससुराल में खुश है.

आलिया से लेकर सलमान खान, इन बौलीवुड कलाकारों के विवादित बयानों पर हुआ बवाल

वैसे तो हर किसी को सोचसमझ कर बोलना चाहिए लेकिन खासतौर पर उन लोगों को जो लोगों में मशहूर हैं और हजारों लोगों द्वारा उन की बातों को तूल दिया जाता है, ऐसे लोग जब गलत बयानबाजी करते हैं तो उन को इस का बहुत बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ता है.

इस का जीताजागता उदाहरण ऐक्ट्रैस और सांसद कंगना राणावत हैं जो अपने विवादित और बेवकूफ भरे कमैंट्स से हमेशा मुंह की खाती हैं. उन्होंने हाल ही में किसानों पर विवादित बयान दिया और एअरपोर्ट पर एक महिला से जोरदार थप्पड़ भी खाई। ट्विटर पर गलत बयान दिया, तो ट्विटर वालों ने अकाउंट ही बंद कर दिया।

कंगना के बोल

राहुल गांधी, जो कांग्रेस के सब से प्रतिष्ठित नेता हैं उन के लिए भी सोशल मीडिया पर इंटरव्यू के दौरान कंगना ने बेहद भद्दे कमैंट्स किए कि राहुल गांधी साइको हैं, ड्रग्स लेते हैं, टौम ऐंड जैरी फिल्में देखते हैं। कंगना ने कुछ देर के लिए लाइमलाइट तो बटोर ली लेकिन उन की खुद की ही फिल्म जो इंदिरा गांधी पर बनी है, सैंसर बोर्ड में अटक गई.

अभिनय कम बयानबाजी ज्यादा

सांसद होने के बावजूद कंगना सिर्फ गलत कमैंट्स के अलावा कुछ और नहीं कर पाईं. यहां तक की अपनी फिल्म भी सैंसर बोर्ड में पास नहीं करा पाईं.

राहुल गांधी पर फालतू कमैंट्स कर के बीजेपी वालों को भी परेशान कर दिया जिस के चलते बीजेपी वालों ने कंगना से पल्ला झाड़ते हुए उन्हें इस तरह की बयानबाजी पर रोक लगाने के लिए भी कहा.

इसी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कई कमैंट्स विपक्षी पार्टियों द्वारा उन को ट्रोल करने के लिए धड़ल्ले से इस्तेमाल किए जाते हैं.

सलमान भी पीछे नहीं

बौलीवुड के सुपरस्टार सलमान खान जो लाखोंकरोड़ों दिलों की धड़कन हैं, देर रात ट्विटर पर ऐसे कमैंट्स डाल देते थे कि सुबह उन के जागने तक बवाल हो जाता था, जिस के बाद पिता सलीम को सलमान की तरफ से माफी मांगनी पड़ती थी या फिर सलमान खुद ही दूसरे कमैंट ट्विटर पर डाल कर माफी मांग लेते थे.

कपिल का भङास

इसी तरह स्टैंडअप कौमेडियन कपिल शर्मा ने भी कुछ समय पहले एक रिपोर्टर के साथ गुस्से में गलत बातें कर के और ट्विटर पर विवादित बयान दे कर अपने लिए अच्छीखासी मुसीबत खड़ी कर ली थी, जिस का खामियाजा उन को भुगतना पड़ा था.

आमिर खान ने भी शाहरुख को ले कर एक कमैंट पास कर दिया था कि शाहरुख खान को मैं रोज सुबह बिस्कुट खिलाता हूं क्योंकि मेरे कुत्ते का नाम शाहरुख है.

करीना के गलत बोल

करीना कपूर ने अपने कमैंट के जरीए ऐश्वर्या को बड़ी उम्र का बता दिया था. सोनम कपूर ने ऐश्वर्या राय को आंटी बोल दिया था क्योंकि उन के अनुसार ऐश्वर्या ने उन के डैडी के साथ काम की थी इसलिए वह उन की आंटी जैसी हैं.

इसी तरह डाइरैक्टर महेश भट्ट ने अपनी बेटी पूजा भट्ट के लिए कमैंट कर दिया था कि अगर वह मेरी बेटी नहीं होती तो मैं उस से शादी कर लेता.

नासमझ आलिया

आलिया भट्ट ने देश का पहला प्रधानमंत्री पृथ्वीराज चौहान को बता दिया था। इस के बाद वह बहुत ज्यादा ट्रोल हुई थीं और उन के सामान्य ज्ञान पर जगहंसाई भी हुई थी.

इसी तरह अनन्या पांडे, किरण राव, सोनाक्षी सिन्हा आदि भी अपने अटपटे बयानों को ले कर न सिर्फ ट्रोल हुई हैं बल्कि मजाक का विषय भी बनी हैं.

ऐसे में, यह कहना गलत नहीं होगा कि जिस तरह फिल्मी सितारों को उन के अभिनय की वजह से हमेशा याद रखा जाता है उसी तरह उन के बोले गए शब्द या कमैंट्स जिस से उन की छवि अच्छी और खराब बनती है वह भी हमेशा लोगों को याद रहती है. इसलिए बहुत जरूरी है कि नेता हो या अभिनेता हर किसी को पब्लिक प्लेटफौर्म पर बहुत सोचसमझ कर बोलना चाहिए ताकि वह मजाक का विषय न बनें और न ही अपने विवादित बयानों से मुसीबत में घिरें.

पेरैंट्स हों या दोस्त, आलोचनात्मक रवैये से न खोएं आत्मविश्वास

किशोरावस्था यानी टीनऐज शारीरिक और मानसिक विकास की एक महत्त्वपूर्ण अवधि है. इस अवधी
में एक टीनऐज के तौर पर आप बहुत कुछ सीख रहे होते हैं. आप के अपने दोस्तों, पेरैंट्स और
सिबलिंग्स के साथ रिश्ते नई शक्ल ले रहे होते हैं. टीनऐजर्स के लिए यही वक्त होता है अपना भविष्य और कैरियर को एक रूप देने का.

ऐसी स्थिती में पेरैंट्स एक खास भूमिका अदा करते हैं जोकि उन के मानिसक विकास को प्रभावित
करती है. अकसर आप ने देखा होगा कि टीनेजर्स के पेरैंट्स अपने बच्चों को तरहतरह से परखते हैं और
उन की परख पर खरे न उतर पाने के कारण अकसर अपने बच्चों की आलोचना करने से भी कतराते भी नहीं.

आलोचना जरीया हो

पेरैंट्स के अनुसार आलोचना एक जरीया हो टीनऐजर्स को अपनी परफौर्मेंस में सुधार करने के लिए, प्रेरित करने के लिए.

एक ने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा,”बचपन में जब पापा मेरे मार्क्स देख कर कहते कि ओह, गणित में तो बहुत कम अंक आए हैं, बेटा. मगर कोई बात नहीं अगली बार कोशिश करो अच्छा करने की. वहीं मेरी मां मुझे नीचे के कमरे से कुछ लाने के लिए कहतीं और फिर अचानक ही कहतीं कि रहने दो तेरे बस की नहीं है, तो पता नहीं क्यों मैं हतोत्साहित होने के बजाय वह काम करने के लिए ज्यादा उत्साहित हो जाती.”

लेकिन आज के समय टीनऐजर्स इस तरह के छोटे बडे क्रिटिसिज्म को नकारात्मक तरीके से ले लेते हैं और अपनेआप को कमजोर और डीमोटीवेट करने लगते हैं.

आइए, जानें कैसे अपनेआप को एक टीनऐजर्स के तौर पर आप क्रिटिसिज्म से बचा सकते हैं :

क्रिटिसिज्म को लें पौजिटिव

टीनऐजर्स में दोस्तों के साथ बने रहने का सामाजिक दबाव होता है, जिन में से कुछ दोस्त हमेशा आगे होते हैं. वे बेहतर दिखते हैं, ज्यादा समझदारी से काम लेते हैं, स्कूल में अधिक उपलब्धियां हासिल करते हैं और अधिक लोकप्रिय और कूल होते हैं.

सुबहसुबह स्कूल के दिनों के लिए तैयार होने की बात है आप वहीं अपनी आलोचना शुरू कर देते हैं.
‘मैं कैसा दिख रहा/रही हूं’,’मेरी दोस्त कितनी सुंदर दिखती है’,’ मेरा दोस्त अच्छा नंबर लाया है’,’वह स्पोर्ट्स में कितना अच्छा है…’ आदि आप खुद की आलोचना कर के अपना कौन्फिडेंस खो देते हैं.

ऐसा करने से बचें. हर व्यक्ति की अपनी एक सीमा और खासियत होती है. आप का सुंदर दिखना
उतना जरूरी नहीं है जितना कि आप का प्रभावी दिखना. खुद की तुलना किसी के साथ न करें चाहे वह आप का दोस्त या फिर भाई या बहन ही क्यों न हो. ऐसा करना खुद के साथ क्रूरता करने जैसा ही है. ऐसा कर के आप अपना आत्मविश्वास खो देंगे और अगर यह क्रिटिसिज्म आप के पेरैंट्स द्वारा किया गया है तो याद रखें कि आप के पेरैंट्स की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे आप की लिमिट्स और प्रतीभा को बढ़ाने की कोशिश करते रहें.

इसलिए उन के द्वरा किये गए क्रिटिसिज्म को नकारात्म रूप से न लें. इस को ले पौजीटिव वे में रहें और अपनी परफौर्मेंस को सुधारने की कोशिश करते रहे.

क्रिटिसिज्म को न होने दें हावी

अमेरिका के मशहूर राइटर विलियम गिलमोर सिम्स कहते हैं, “आलोचना का भय प्रतिभा की मृत्यु है.”

इसलिए कभी भी क्रिटिसिज्म यानी आलोचना को अपने ऊपर हावी न होने दें. टीनऐजर्स क्योंकि
भावुकता से भरे होते हैं इसलिए अकसर टीनऐजर्स किसी भी तरह के छोटेबङे क्रिटिसिज्म को दिल से
लगा लेते हैं जिस से उन की परफौर्मेंस गिरती चली जाती है. ऐसा न करें.

हैल्दी क्रिटिसिज्म को अपनाएं और अनहैल्दी क्रिटिसिज्म को नजरअंदाज करते चलें, बिलकुल वैसे ही जैसे अकसर आप की परफौर्मेंस को नजरअदाज कर दिया जाता है.

पेरैंट्स के लिए

टीनऐजर्स के लिए क्रिटिसिज्म से ज्यादा जरूरी है प्रोत्साहन. क्रिटिसिज्म और प्रोत्साहन का बैलेंस टीनऐजर्स को मजबूत बनाता है लेकिन सिर्फ क्रिटिसिज्म उन्हें अकसर कमजोर करता है खासकर पेरैंट्स की तरफ से किया गया क्रिटिसिज्म.

यह टीनऐजर्स में सैल्फ डाउट्स और अंडर कौन्फिडैंस पैदा करता है जिसे समझने में अकसर टीनऐजर्स को एक लंबा वक्त लग जाता है.

इसलिए कभी भी गुस्से में आलोचना न करें. कभी भी सुधार या दंड देने के लिए आलोचना न करें.

केवल आलोचना का उपयोग न करें
और ‘क्या आप मूर्ख हैं’,’आप कभी नहीं सीखेंगे’,’आप कुछ भी ठीक से नहीं कर सकते…’ जैसे शब्दों से बचें.

कैरियर में पाना चाहते हैं सफलता, तो ऐसे बढ़ाएं खुद का आत्मविश्वास

हेमंत एक वैब डिजाइनर है और अपने क्षेत्र में माहिर है. हाल ही में उसे पुरानी कंपनी से यह कहते हुए निकाल दिया गया कि आप क्लाइंट्स से ठीक से बात नहीं कर पाते और न ही उन्हें समझा पाते हैं। हमें एक ऐसे व्यक्ति की जरूरत है जो क्लाइंट्स से ठीक से बात कर पाए.

यह कहानी केवल हेमंत की नहीं है, बल्कि कई युवा केवल इसी वजह से अपने कैरियर और निजी जिंदगी में मात खा रहे हैं. व्हाट्सऐप और इंस्टाग्राम के इस युग में जिसे सोशल मीडिया कहा जाता है, युवा और
टीनऐजर्स अपनी कम्युनिकेशन स्किल्स पर काम करना भूलता जा रहा है. उन्हें सोशल मीडिया से इनपुट तो मिल रहा है लेकिन आउटपुट नहीं. यही वजह है कि जब भी वे किसी गंभीर स्थिति में पड़ते हैं, तो अपनी बात ठीक ढंग से रख नहीं पाते और फेल हो जाते हैं.

बात को प्रभावी ढंग से दूसरों तक पहुंचाना कम्युनिकेशन स्किल्स का एक हिस्सा है जोकि आप के जीवन के पर्सनल और प्रोफैशनल दोनों हिस्सों में काम आता है. तो आइए, जानते हैं कि कैसे आप अपनी कम्युनिकेशन स्किल्स को सुधार सकते हैं और अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं :

सुनो और सीखो

कम्युनिकेशन स्किल्स का सब से जरूरी हिस्सा है सुनना. जब कोई व्यक्ति आप के सामने अपनी बात कह रहा हो तो उसे ध्यान से सुनें. आप ने देखा होगा जब टीचर या इंटरव्यू लेने वाला आप से कुछ सवाल करता है तो वह बहुत ही ध्यान से आप की बात सुन रहा होता है.

सामान्य जीवन में लोग चाहते हैं कि उन की बात सुनी जा रही है. अपनी प्रतिक्रिया तैयार करने के बजाय, वास्तव में दूसरे व्यक्ति की बात सुनें. कहीं भी कोई संशय हो तो उसे स्पष्ट करने की कोशिश करें और आगे बढें.

भाषा का रखें ध्यान

आप किस से बात कर रहे हैं, यह मायने रखता है. जब आप किसी दोस्त से बात कर रहे हों, तो सामान्य
भाषा का इस्तेमाल करना ठीक है, लेकिन अगर आप अपने बौस को ईमेल या टैक्स्ट कर रहे हैं, तो किसी भी अनौपचारिक भाषा का इस्तेमाल न करें. शिष्टाचार वाले शब्दों का चुनाव करें. साफसुथरी भाषाशैली का इस्तेमाल करें.

बौडी लैंग्वेज हो बेहतर

शारीरिक भाषा यानी बाडी लैंग्वेज मायने रखती है. बहुत ज्यादा ऐक्टिव और अनऐक्टिव न दिखें. बातबात पर उछलें नहीं, बातों को ध्यान से सुनें और जवाब दें और बात करते समय आंख से आंख मिलाए रखें ताकि दूसरे व्यक्ति को पता चले कि आप उन की बातें ध्यान से सुन रहे हैं.

भाषा/बोली को साफ रखें

जब आप बोलें तो न वह बात बहुत तेजी से कही जाए कि सुनने वाले को दोबारा पूछना पङे और न ही बात इतनी स्लो हो कि सामने वाला आप की बात को काटना और अपनी बात कहना शुरू कर दे.

बोली को सुधारने के लिए आप आईने के सामने किताब को जोरजोर से पढ़ने और खुद का विश्लेषण करें. देखें कि आप को कहांकहां सुधार की जरूरत है. आप कब अटकते हैं और कहां अटकते हैं.

बात खत्म होने का इंतजार करें

अपनी बात बोलने से पहले सामने वाले की बात के पूरे होने का इंतजार करें तभी अपनी बात बोलें. तपाक से बात के बीच में न कूदें जैसे अकसर दोस्ती में होता है.

अगर बात ज्यादा लोगों के बीच में हो रही हो तो अपनी बात बोलने से पहले अपना हाथ उठाएं और इजाजत लें. ऐसा करने से आप को अपनी बात स्पष्ट रूप से बोलने का मौका मिलेगा.

नोट्स बनाने की रखें आदत

हमेशा एक आदत बनाएं। जब भी कोई चीज चरूरी लगे उसे नोट यानी लिख लें. जब आप किसी दूसरे व्यक्ति से बात कर रहे हों या जब आप किसी मीटिंग में हों, तो नोट्स लें और अपनी याद्दाश्त पर निर्भर न रहें. नोट्स बनाने की आदत आप की स्किल्स में भी सुधार करती है क्योंकि आप उसे सुन कर लिख रहे हैं तो वे चीज आप को अधिक समय तक याद रहेगी, इस की संभावना बढ़ जाती है.

टैक्टिंग यानी मैसेज करने और फोन पर बात न करने की आदत करें दूर

आजकल युवा और टीनऐजर्स इंट्रोवर्ट होने के नाम पर सिर्फ टैक्टिंग पर बात करना पसंद करते हैं. ऐसा करने से आप की कम्युनिकेशन स्किल्स पर गहरा प्रभाव पङता है.

अपने प्रोफैशनल लाइफ से कुछ साल पहले और बाद तक आदत डालें कि बात फोन पर हो जिस से आप की कम्युनिकेशन स्किल
बेहतर हो नकि आप में अचानक लोगों से बात करने पर झिझक हो.

कभीकभी फोन उठाना बेहतर होता है, अगर आप को लगता है कि आप के पास कहने के लिए बहुत कुछ है.

बोलने से पहले सोचें

हमेशा बोलने से पहले रुकें। जो पहली बात दिमाग में आए उसे न कहें. एक पल रुकें और ध्यान से
देखें कि आप क्या कहने वाले हैं और कैसे कहने वाले हैं. यह एक आदत आप को शर्मिंदगी से
बचाएगी. अगर आप के पास कहने के लिए कुछ नहीं है तो हङबङी में जबाव देने और बात कहने से बचें.
पहले सोचें फिर बोलें.

सकारात्मक सोच रखें

कोशिश करें कि आप का ऐटीट्यूड पौजिटिव हो. सभी से बात करें जो भी आप से बात करना चाह रहा है. किसी को नजरअंदाज न करें। यह आप के लिए एक निगेटिव पौइंट साबित हो सकता है.

पौजिटिव ऐटीट्यूड बनाए रखें और मुसकराएं. यहां तक ​​कि जब आप फोन पर बात कर रहे हों, तब भी मुसकराएं क्योंकि आप का पौजिटिव ऐटीट्यूड दिखेगा और दूसरे व्यक्ति को इस का एहसास होगा.

जब आप अकसर मुसकराते हैं और पौजिटिव ऐटीट्यूड दिखाते हैं, तो लोग आप के प्रति भी पौजिटिव
ऐटीट्यूड देते हैं.

सैल्फ कौन्फिडैंस बनाए रखें

अपना कौन्फिडैंस हमेशा बनाए रखें. अकसर लोग आप को अपनी पर्सनल और प्रोफैशनल लाइफ में नीचा या कमतर दिखाने की कोशिश करते हैं जिस से अकसर लोग अपना कौन्फिडैंस खोने लगते हैं. ऐसा न करें. किसी भी कारण से अपना कौन्फिडैंस न खोएं.

अगर आप को अपने अंदर कोई कमी लगती है तो उसे पूरा करने की कोशिश करें और निगेटिव सोच रखने वाले लोगों से दूर रहें. ऐसा करने से आप अपने अंदर का कौन्फिडैंस बनाए रख पाएंगे.

कम्युनिकेशन स्किल्स एक महत्त्वपूर्ण पहलू है. अपनी कम्युनिकेशन स्किल्स पर काम करते रहें. खुद को पहले से बेहतर तरीके से और कौन्फिडैंस के साथ रखने से कामयाबी की संभावनाएं
बढ़ जाती हैं.

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