मैंने अपने मौसी के देवर से गुपचुप तरीके से शादी की है, लेकिन घरवाले इस रिश्ते को ऐक्सेप्ट नहीं कर रहे…

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 25 साल की लड़की हूं, अपनी मौसी के देवर से प्यार करती हूं. वह भी मुझसे बहुत प्यार करते हैं. हमने कुछ दिनों पहले शादी कर ली. इस बात को सिर्फ हमदोनों जानते हैं. हमने घरवालों को बताया तो हमारे इस रिश्ते को किसी ने स्वीकार नहीं किया और जबरदस्ती मेरे पति की दूसरी शादी की तारीख पक्की कर दी. हमदोनों कई बार संबंध भी बना चुके हैं. अब मुझे समझ नहीं आ रहा क्या करूं?

जवाब

अगर आप दोनों एकदूसरे से इतना ही प्रेम करते थे तो गुपचुप तरीके से शादी करने की जरूरत नहीं थी. आप शादी के लिए अपनी फैमिली को मनाते हैं. जैसा कि आपने कहा कि आपका बौयफ्रैंड मौसी का देवर था. आप अपनी मौसी से ही इस बारे में बताती. उन्हें घरवालों से शादी की बात करने के लिए रिक्वेस्ट करती. हो सकता कि वह मान जाती. अब तो आपदोनों ने शादी कर ली है और घरवाले ने आपके पति की दूसरी शादी की डेट फिक्स कर दी है. ऐसे में आप दोनों को बहुत समझदारी से काम लेनी होगी. आप अपने फैमिली को किसी भी एक सदस्य को इस शादी को मनाने के लिए रिक्वेस्ट करें, अगर कोई एक भी तैयार हो जाता है, तो बाकी घरवाले भी मान जाएंगे.

इसके अलावा आप कोर्ट मैरिज (Court Marriage) भी कर सकते हैं, जिससे शादी मान्य होगी और आपकी शादी कोई तोड़ भी नहीं सकता.

कोर्ट मैरिज के क्या हैं नियम

अगर आप भी कोर्ट मैरिज करने का प्लान कर रहे हैं तो कुछ बातों का आपको खयाल रखना होगा. आज इस आर्टिकल में हम आपको कोर्ट मैरिज से जुड़ी नियमों के बारे में बताएंगे. कोर्ट मैरिज में किसी भी धर्म या जाति के लड़केलड़की की शादी हो सकती है. लेकिन इसमें शर्त यह है कि लड़की और लड़का दोनों बालिग होने चाहिए और दोनों अपनी मर्जी से शादी कर रहे हों.

कोर्ट मैरिज सभी तरह के दस्तावेज जमा कराने होते हैं, जिसके बाद तारीख तय होती है. इस दौरान कोई भी रीति रिवाज नहीं होते, सिर्फ पतिपत्नी को पेपर पर साइन करने होते हैं.

कोर्ट मैरिज के लिए आधार कार्ड, दसवीं की मार्कशीट, निवास प्रमाण पत्र, जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट साइज फोटो की जरूरत होती है, तो वहीं तलाकशुदा के मामले में सर्टिफिकेट और विधवा के मामले में डेथ सर्टिफिकेट दिखाना पड़ता है.

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मुट्ठीभर बेर: माया ने मन में क्या ठान रखा था

घने बादलों को भेद, सूरज की किरणें लुकाछिपी खेल रही थीं. नीचे धरती नम होने के इंतजार में आसमान को ताक रही थी. मौसम सर्द हो चला था. ठंडी हवाओं में सूखे पत्तों की सरसराहट के साथ मिली हुई कहीं दूर से आ रही हुआहुआ की आवाज ने माया को चौकन्ना कर दिया.

माया आग के करीब ठिठक कर खड़ी हो गई. घने, उलझे बालों ने उस की झुकी हुई पीठ को पूरी तरह से ढक रखा था. उस के मुंह से काले, सड़े दांत झांक रहे थे. वह पेड़ के चक्र से बाहर देखने की कोशिश करने लगी, लेकिन उस की आंखों को धुंधली छवियों के अलावा कुछ नहीं दिखाई दिया. कदमों की कोई आहट न आई.

शिकारियों की टोली को लौटने में शायद वक्त था. उस ने अपने नग्न शरीर पर तेंदुए की सफेद खाल को कस कर लपेट लिया. इस बार ठंड कुछ अधिक ही परेशान कर रही थी. ऐसी ठंड उस ने पहले कभी नहीं महसूस की. गले में पड़ी डायनासोर की हड्डियों की माला, जनजाति में उस के ऊंचे दर्जे को दर्शा रही थी. कोई दूसरी औरत इस तरह की मोटी खाल में लिपटी न थी, सिवा औलेगा के.

औलेगा की बात अलग थी. उस का साथी एक सींग वाले प्राणी से लड़ते हुए मारा गया था. पूरे 2 पूर्णिमा तक उस प्राणी के गोश्त का भोज चला था. फिर औलेगा मां भी बनने वाली थी. उस भालू की खाल की वह पूरी हकदार थी जिस के नीचे वह उस वक्त लेट कर आग ताप रही थी. पर सिर्फ उस खाल की, माया ने दांत भींचते हुए सोचा.

आग बिना जीवन कैसा था, यह याद कर माया सिहर गई. आग ही थी जो जंगली जानवरों को दूर रखती थी वरना अपने तीखे नाखूनों से वे पलभर में इंसानों को चीर कर रख देते. झाडि़यों से उन की लाल, डरावनी आंखें अभी भी उन्हें घूरती रहतीं.

माया ने झट अपने 5 बच्चों की खोज की. उस से बेहतर कौन जानता था कि बच्चे कितने नाजुक होते हैं. सब से छोटी अभी चल भी नहीं पाती थी. वह भाइयों के साथ फल कुतर रही थी. सभी 3 दिनों से भूखे थे. आज शिकार मिलना बेहद जरूरी था. आसमान से बादल शायद सफेद फूल बरसाने की फिराक में थे. फिर तो जानवर भी छिप जाएंगे और फल भी नहीं मिलेंगे. ऊपर से जो थोड़ाबहुत मांस माया ने बचा कर रखा था, वह भी उस के साथी ने बांट दिया था.

माया परेशान हो उठी. तभी उस की नजर अपने बड़े बेटे पर पड़ी. वह एक पत्थर को घिस कर नुकीला कर रहा था, पर उस का ध्यान कहीं और था. माकौ-ऊघ टकटकी लगा कर औलेगा को देख रहा था सामक-या के धमकाने के बावजूद. क्या उसे अपने पिता का जरा भी खौफ नहीं? पिछले दिन ही इस बात पर सामक-या ने माकौ-ऊघ की खूब पिटाई की थी. माकौ-ऊघ ने बगावत में आज शिकार पर जाने से इनकार कर दिया और सामक-या ने जातेजाते मांस का एक टुकड़ा औलेगा को थमा दिया. वही टुकड़ा जो माया ने अपने और बच्चों के लिए छिपा कर रखा था. माया जलभुन कर रह गई थी.

एक सरदार के लिए सामक-या का कद खास ऊंचा नहीं था. पर उस से बलवान भी कोई नहीं था. एक शेर को अकेले मार डालना आसान नहीं. उसी के दांत को गले में डाल कर वह सरदार बन बैठा. और जब तक वह माया पर मेहरबान था, माया को कोई चिंता नहीं. ऐसा नहीं कि सामक-या ने किसी और औरत की ओर कभी नहीं देखा, पर आखिरकार वापस वह माया के पास ही आता. माया भी उसे भटकने देती, बस, ध्यान रखती कि सामक-या की जिम्मेदारियां न बढ़ें. नवजात बच्चे आखिर बहुत नाजुक होते हैं. कुछ भी चख लेते हैं, जैसे जहरीले बेर.

माया की इच्छा हुई एक जहरीला बेर औलेगा के मुंह में भी ठूंस दे, पर अभी उस के कई रखवाले थे, उस का अपना बेटा भी. पूरी जनजाति उस के पीछे पड़ जाएगी. खदेड़खदेड़ कर उसे मार डालेगी.

कुछ रातों बाद…

बर्फ एक सफेद चादर की भांति जमीन पर लेटी हुई थी. कटा हुआ चांद तारों के साथ सैर पर निकला था. मैमौथ का गोश्त खा कर मर्द और बच्चे गुफा के भीतर सो चुके थे. औरतें एकसाथ आग के पास बैठी थीं. कुछ ऊंघ रही थीं तो कुछ की नजर बारबार बाहर से आती कराहने की आवाज की ओर खिंच जाती. सुबह सूरज उगने से पहले ही औलेगा छोटी गुफा में चली गई थी और अभी तक लौटी नहीं थी. रात गहराती गई. चांद ने अपना आधा सफर खत्म कर लिया. पर औलेगा की तकलीफ का अंत न हुआ. अब औरतें भी सो चली थीं, सिवा माया के.

कदमों की आहट ने उस का ध्यान आकर्षित किया. औलेगा के साथ बैठी लड़की पैर घसीटते हुए भीतर घुसी. वह धम्म से आग के सामने बैठ गई और थकी हुई, घबराई हुई आंखों से माया को देखने लगी. तभी औलेगा की तेज चीख सुनाई दी. माया झट से उठी और मशाल ले कर चल पड़ी. दूसरी मुट्ठी में उस ने बेरों पर उंगलियां फेरीं.

औलेगा का नग्न शरीर गुफा के द्वार पर, आग के सामने लेटा, दर्द से तड़प रहा था. बच्चा कुछ ही पलों की दूरी पर था. और थोड़ी ही देर में एक नन्ही सी आवाज गूंज उठी. पर औलेगा का तड़पना बंद नहीं हुआ. शायद वह मरने वाली थी. माया मुसकरा बैठी और बच्चे को ओढ़ी हुई खाल के अंदर, खुद से सटा लिया. भूखे बच्चे ने भी क्या सोचा, वह माया का दूध चूसने लगा.

अचंभित माया के हाथ से सारे बेर गिर गए. वह कुछ देर भौचक्की सी बैठी रही, औलेगा को कराहते हुए देखती रही. उस की नजर सामने की झाडि़यों से टिमटिमाती लाल आंखों पर पड़ी. बस, आग ने ही उन्हें रोक रखा था. और आग ही ठंड से राहत भी दे रही थी. औलेगा की आंखें बंद हो रही थीं. माया ने आव देखा न ताव, मुट्ठीभर मिट्टी आग पर फेंकी, बच्चे को कस कर थामा, मशाल उठाई और चलती बनी. न औलेगा की आखिरी चीखें और न ही एक और बच्चे की पहली सिसकी उसे रोक पाई.

सीरियल में लीप आने के बाद क्या अनुज-अनुपमा होंगे जुदा? आध्या पर फूटेगा डौली का गुस्सा

टीवी सीरियल अनुपमा (Anupama) की कहानी कुछ ही दिनों में एक नई मोड़ लेगी. जल्द ही सीरियल में 15 साल का लीप आने वाला है, जिससे शो में कई कालाकर नजर नहीं आएंगे, तो कुछ नए चेहरे भी सीरियल अनुपमा में दिखाई देंगे. लेकिन इससे पहले इन दिनों सीरियल में हाई वोल्टेज ड्रामा चल रहा है. आइए जानते हैं अनुपमा के अपकमिंग एपिसोड के बारे में…

अनुपमा अपनी बेटी की बनी ढाल

शो में डिंपी की मौत हो गई, जिससे शाह परिवार पर एक बार फिर से दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है. तो वहीं डिंपी ने डौली के मौत का आरोप आध्या पर लगाया है. आप शो में देख सकते हैं कि वह बारबार सबको बोल रही है कि डिंपी की मौत की जिम्मेदार आध्या है. लेकिन अनुपमा अपनी बेटी की सुरक्षा कवच बनकर खड़ी है.

आध्या हुई बेहोश

शो के अपकमिंग एपिसोड में दिखाया जाएगा कि अनुपमा सबको संभालने की कोशिश कर रही है. डिंपी की मौत के बाद आशा भवन में मातम छाया हुआ है. तो दूसरी तरफ अंश बारबार अपनी मां के बारे में पूछता है. ऐसे में पाखी उस चिल्लाती है और अंश फूटफूट कर रोने लगता है. तो वहीं आध्या का पारा हाई होता है और डिंपी का नाम लेकर चिखने लगती है. इतना ही नहीं वह अनुपमा को भी धक्का देती है, लेकिन डौली इस हालत में भी उसे डिंपी की मौत का जिम्मेदार बताती है. दूसरी तरफ अनुपमा अपनी बेटी का साथ देती है और शाह परिवार से लड़ती है. आध्या बेहोश हो जाती है. दूसरी तरफ टीटू अंश का ख्याल रखता है.

अनुज को खाई में धक्का देगा अंकुश

शो में ये भी दिखाया जाएगा कि अनुज अनुपमा को बारबार फोन करेगी और तब अनुज को पता चलेगा कि आशा भवन में कुछ गलत हुआ है. अनुपमा अनुज को तुरंत आने के लिए कहेगी ऐसे भी अगली फ्लाइट की टिकट बुक कर लेता है. तभी एयरपोर्ट पर उसे लगता है कि कोई उसका पीछा कर रहा है और एयरपोर्ट के बाहर उसे अंकुश मिलेगा. अंकुश गिरगिट की तरह अपना रंग बदलेगा और उससे माफी मांगेगा. वह अनुज को कहीं सूनसान जगह पर ले जाएगा और खाई में धक्का दे देगा.

क्या अनुज कपाड़िया की शो से होगी छुट्टी

हाल ही में अनुपमा से जुड़ा एक प्रोमो सामने आया है. जिसमें लीप के बाद शो की झलक दिखाई गई है. इस प्रोमो को देखकर ये लगता है कि शो में काफी कुछ बदलने वाला है. अनुपमा का लुक पूरी तरह बदल गया है और नए कालाकार नजर आ रहे हैं. अनुपमा में अब शिवम खजुरिया लीड ऐक्टर की भूमिका निभाएंगे.  प्रोमो में शाह परिवार में पर सिर्फ बापू जी नजर आए हैं, जिस वजह से माना जा रहा है कि बाकी सभी कलाकारों की छुट्टी हो जाएगी. शो में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या लीप आने के बाद अनुज कपाड़िया की भी छुट्टी हो जाएगी?

दूसरा प्यार : क्या शादी के बाद अभिषेक को भूल पाई अहाना

सुबह के 11 बजे थे. दरवाजे की घंटी बजी तो अहाना ने बाहर आ कर देखा. यह क्या. शादी का कार्ड? किस ने भेजा होगा? लिफाफा खोला तो लाल और सुनहरे अक्षरों में ‘अभिषेक वैड्स रौशनी’ देख कर आंखों से खुशी के आंसू छलक आए. नैनों से अकस्मात हुई वर्षा में मनमयूर नाच उठा. जब मन की चंचलता काबू में न रही तो वह अतीत की यादों में खो गई….

अभिषेक उस का सहपाठी था जिस के 2 ही अरमान थे. पहला आईएएस में चयन और दूसरा अहाना का जीवनपर्यंत का साथ. अभिषेक सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहा था और अहाना पोस्ट ग्रैजुएशन फाइनल ईयर में थी. दोनों के मन में एक ही सवाल आता कि उन की मुहब्बत अंजाम तक पहुंचेगी या नहीं? उन का साथ हमेशा के लिए होगा कि नहीं?

वह कहते हैं न कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. जब उन के प्यार की बात अहाना के पिता तक पहुंची तो वे बुरी तरह बिफर गए. कड़क कर बोले, ‘‘पढ़ने गए थे तो पढ़ाई करते. प्यार में पड़ने की क्या जरूरत थी?’’

वैसे भी ‘जाके पैर न फटे बिवाई सो क्या जाने पीर पराई’ जो इस राह पर चले ही न हों उन्हें पैरों में चुभने वाले कांटों का अंदाजा भला कैसे होता. अभिषेक के घर में भी लगभग वही प्रतिक्रियाएं थीं. सचाई तो यह थी कि उन के प्रेम को किसी ने नहीं सम?ा. दोनों का मासूम प्यार परिवार के हित में बलि चढ़ गया.

‘‘तुम्हारे पिता का आत्मसम्मान बहुत ज्यादा है. वे टूट जाएंगे पर ?ाकेंगे नहीं. अगर उन्हें कुछ हो गया तो मैं अकेली कैसे तुम सब की देखभाल करूंगी? मेरी पूरी गृहस्थी चरमरा जाएगी. तुम्हारे बहनभाइयों का क्या होगा?’’

मां ने हर संभव मानसिक दबाव बना डाला था, जबकि अहाना अभिषेक के प्यार में आकंठ डूबी थी. उस का स्थान किसी और को देने की सोच भी नहीं सकती थी. जननी व जनक के आशीर्वाद देने वाले हाथ याचना में जुड़े थे. जो हाथ आज तक देते आए थे वे कुछ मांगने के लिए जोड़े गए थे. पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई थी और दिमाग सुन्न हुआ जा रहा था. उसे अपनी खुशियां देनी थीं. अपने जीवन का हक अदा करना था. मातापिता से तो जिद भी कर लेती पर बहनभाइयों के प्रति अपराधबोध ले कर कहां जाती. बड़े ही बेमन से उस ने उन की इच्छा के आगे समर्पण कर दिया. उसे पता था कि उस की सांसें चलेंगी पर जीवन न होगा और ऐसा अनर्थ आजीवन होगा.

दूल्हा, बराती, गाजेबाजे जैसे सब तैयार ही बैठे थे. मन धिक्कारता रहा, मन रोता रहा. मगर उस ने खुद को मिटा कर दुलहन का लिबास पहन लिया. चट मंगनी पट ब्याह संपन्न हो गया. दर्द जब हद से बढ़ जाये तो साथ सैलाब लाता है. एक ऐसा सैलाब जो अपने साथ सब बहा ले जाता है और ऐसा ही हुआ जब पति ने पूछा, ‘‘तुम इतनी इंटैलीजैंट और स्मार्ट हो, तुम्हारी शादी तो ‘क्लास वन अफसर’ से हो सकती थी तुम खुद भी कुछ बन सकती थी. ऐसे में मु?ो क्यों चुना? क्या तुम्हारे पेरैंट्स तुम से प्यार नहीं करते?’’

यह सुनते ही अहाना फूटफूट कर रो पड़ी. फिर तो आंसुओं के साथ सारा गुबार बाहर आ गया.

‘‘पसंद तो मैं ने भी आईएएस ही किया था भावी आईएएस पर अपने सम्मान के लिए मेरे अपनों ने मेरे सपनों पर पानी फेर दिया.’’

आकाश उस के पति के लिए यह सुनना और सम?ाना आसान न था. कुछ पलों की खामोशी के बाद अहाना को शांत करते हुए बोला, ‘‘आज से हमारे सुखदुख एक हैं. मैं तुम्हारे जीवन में खुशियां लाऊंगा.’’

अहाना आश्चर्य से उस की ओर देखते हुए पूछ बैठी, ‘‘आप को मेरे प्यार की बात बुरी नहीं लगी? मैं ने तो इस विषय पर आज तक आलोचना ही सही है?’’

‘‘नहीं. प्यार तो दिलों का मेल है जो जानेअनजाने में हो जाता है. लड़कों को भी होता है. लड़कियां दिल से लगा बैठती हैं और लड़के व्यावहारिकता अपनाते हैं. तुम तो मु?ो बस यह बताओ कि मैं तुम्हारी मदद कैसे करूं?’’

‘‘यह तो मु?ो भी नहीं पता पर अपना पक्ष रखने का भी अधिकार नहीं मिला मु?ो. काश कि मैं एक बार उस से मिल पाती. उस से किया वादा न निभाने के लिए क्षमा मांग पाती…’’

पत्नी की सचाई ने मन मोह लिया. जाने कैसे पर एक दर्द का रिश्ता जुड़ गया. उसे समझ में आ गया कि जबरन हुए विवाह से अहाना घुट रही है. वर्तमान को स्वीकार करने में अभिषेक ही मददगार साबित होगा. यह सोच कर आकाश ने अहाना को उस की खोई हुई खुशियों से रूबरू कराने का फैसला किया. उस ने कालेज रिकौर्ड्स से अभिषेक का पता किया.

अभिषेक ने एअरफोर्स जौइन कर लिया था और ट्रेनिंग के लिए हैदराबाद गया था. यह जानकारी मिलते ही आकाश ने दफ्तर से 1 हफ्ते की छुट्टी ली और अहाना से हनीमून के लिए सामान पैक करने के लिए कहा. आकाश की मंशा से अनजान अहाना ने सामान पैक कर लिया. वहां जा कर जो खुशियां मिलीं उस से तो वह हमेशा के लिए आकाश की हो कर रह गई.

आकाश ने अभिषेक को होटल में मिलने के लिए बुलाया. यह अहाना के लिए बहुत बड़ा सरप्राइज था. अभिषेक को देख कर बहुत खुश हुई. उसे खुश देख कर आकाश को मानसिक शांति मिल रही थी. अभिषेक थोड़ा किंकर्तव्यविमूढ़ था पर जल्द ही आकाश के स्वभाव ने उसे भी कंफर्टेबल कर दिया. वह दिन में अपनी ट्रेनिंग खत्म कर रोज शाम को मिलने आता. रात का खाना सब साथ खाते, हंसतेगुनगुनाते और फिर लंबी वाक पर निकल जाते. अभिषेक और आकाश की खूब बातें होतीं और यह देख कर अहाना को लगता जैसे उस की दुनिया फिर से खूबसूरत हो गई है.

इस तरह 5 दिन निकल गए तो छठे दिन आकाश ने अपनी खराब तबीयत का बहाना बना कर दोनों को एकसाथ टहलने भेज दिया. जानता था कि एक बार अकेले में मिल कर ही वे अपना मन हलका कर सकेंगे. अहाना का अपराधबोध से बाहर आना उन के सुखी दांपत्य के लिए जरूरी था.

‘‘तुम्हें तो आईएएस बनना था फिर एअरफोर्स क्यों जौइन कर लिया अभिषेक?’’ अहाना ने पूछा.

‘‘तुम से बिछड़ने के बाद आसमान से इश्क हो गया… देखो. कैसे सुखदुख में एक सी छत्रछाया देता है हमें…’’ अभिषेक ने कहा.

‘‘उफ, फिलौस्फर, मु?ा से नाराज हो? हम दोनों के जीवन का फैसला मैं ने न जाने अकेले क्यों ले लिया…’’ अहाना ने कहा.

‘‘न अहाना. बिलकुल नहीं. मैं जानता हूं, तुम ने हर संभव कोशिश की होगी. गलती हमारी नहीं बल्कि हमारे परिवार वालों की है जिन्होंने हमारी खुशियों पर अपनी खुशियों को तरजीह दी. उन के निर्णय का हमारी जिंदगी पर क्या असर होगा इस की भी परवाह नहीं की.’’

‘‘आखिर हम ने ऐसा क्या मांग लिया था अभि?’’

‘‘उन का अभिमान हमारे स्वाभिमान से बहुत बड़ा है सो उन्होंने अपनी ही बात ऊपर रखी. खैर, जो हो न सका उस का कितना रोना रोया जाए. बेहतरी इसी में है कि जो मिला है उस की कद्र करो. आकाश बहुत अच्छा इंसान है जिस ने तुम्हारा इतना खयाल रखा और हमारे रिश्ते को सम्मान की नजर से देखा. यह जो आज हम मिल रहे हैं यह उसी महान इंसान की बदौलत है… जो मिला है वह भी कम तो नहीं.’’

अहाना और अभिषेक इन खूबसूरत पलों को हमेशा के लिए संजो लेना चाहते थे. तभी एक जरूरतमंद इंसान ‘जोड़ी सलामत रहे’ की दुआ देते हुए पैसे मांगने लगा.

‘‘इस बार पैसे तू देगी अहाना,’’ अभि ने छूटते ही कहा तो अहाना खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘यों ही हंसती रहा कर.’’

‘‘मेरी छोड़ो अपनी बताओ अभिषेक. तुम क्या करोगे अकेले?’’ उस के स्वर में दर्द था, उस की चिंता थी.

‘‘शादी करूंगा और क्या… स्मार्ट आदमी हूं. इतनी बुरी शक्ल तो नहीं है मेरी…’’

‘‘हा… हा… हा…’’ अहाना तो उस के सैंस औफ ह्यूमर की फैन थी.

दोनों के कहकहे देर तक उन वादियों में गूंजते रहे. ऐसा लग रहा था मानो सब पर तरुणाई छा गई हो. ठंडी हवाएं उन्हें छू कर वापस लौट आती मानो पकजमपकड़ाई खेल रही हों. चांद जो उन के अद्भुत प्रेम का सब से बड़ा गवाह था, वह भी उन के मधुर वार्त्तालाप को सुन कर मंदमंद मुसकरा रहा था.

कितनी पवित्रता थी उन की सोच में… वे साथ थे और नहीं भी. ऐसे निश्छल प्रेम पर आकाश भला क्या संदेह करता. वह तो बस इतना चाहता था कि विरही व अतृप्त हृदय तृप्त हो जाएं ताकि अहाना खुशीखुशी अपनी नई जिंदगी जी सके.

अभिषेक ने घड़ी देखी 10 बज गए थे. उस ने अहाना को होटल तक

छोड़ा और उस से विदा लेते हुए एक वादा लिया, ‘‘वादा कर हमेशा खुश रहेगी?’’

‘‘वादा.’’

‘‘मेरी दुनिया भी रौशन हो जाए ऐसी दुआ करना. सुना है अपनों की दुआओं में बड़ी ताकत होती है,’’ जातेजाते अभिषेक ने अहाना से कहा.

‘‘जरूर,’’ अहाना ने हामी भरी.

इस बात के 6 महीने ही बीते और आज शादी का निमंत्रणपत्र पा कर वह अपराधबोध से बाहर आ गई. वह अभिषेक की खुशी में बहुत खुश थी. उस की दुआ जो कुबूल हो गई थी.

‘‘उफ सोचतेसोचते शाम हो गई. आकाश आते ही होंगे.’’

वह आकाश की पसंद की पोशाक पहन कर तैयार हो गई. महीनों बाद उस का मन आजाद पंछी सा उड़ना चाह रहा था.

कौन कहता है कि प्यार दोबारा नहीं होता. वह आकाश से यों ही तो नहीं जुड़ गई है. हां. इस में थोड़ा वक्त लगा. किसी भी रिश्ते की मजबूती के लिए प्यार, विश्वास व वक्त तीनों लगते हैं. रिश्ते की नींव रखते वक्त ही निवेश करना पड़ता है. आकाश ने जिस सम?ादारी से अहाना को संभाला ऐसा कम ही देखने को मिलता है.्र

सच जब 2 दिल एकदूसरे के दर्द को जीने लगते हैं तो प्यार गहरा होता जाता है. ऐसे में पहला प्यार बचपना और दूसरा ज्यादा अपना लगता है.

महिलाओं को सजग रहना है जरूरी, आत्मरक्षा के लिए लें ट्रेनिंग

लेखिक- शीला श्रीवास्तव 

महिलाओं के प्रति दिनबदिन बढ़ते अपराधों की खबरें यकीनन डराने वाली हैं. अपनी बेटियों को ले कर आज सभी पेरैंट्स चिंतित नजर आ रहे हैं. इस मामले में कभीकभी अपने भी संदेह के घेरे में आने लगते हैं. असुरक्षा की इस घड़ी में बेहतरी की मांग करना कतई गलत नहीं है लेकिन खुद की सुरक्षा के लिए खुद का सजग रहना भी जरूरी है.

आइए, कुछ ऐसे पहलुओं को समझने की कोशिश करते हैं, जिन के जरीए हम खुद अपनी सुरक्षा कर सकते हैं:

अपना व्यवहार मर्यादित रखें

सार्वजनिक जगहों पर आप के हावभाव, उठनेबैठने का तरीका, बोलचाल का ढंग सब माने रखते हैं. एक चूक सामने वाले व्यक्ति को आगे बढ़ने का मौका दे सकती है. लोगों के सामने खुद को दृढ़ और निर्भीक दर्शाएं ताकि अकेला देख कर उन्हें यह न लगे कि आप डरी हुई है. अकसर डरी हुई लड़कियों के साथ ज्यादा वारदातें होती हैं.

किसी से ज्यादा हंसीमजाक करना भी ठीक नहीं है. जहां तक संभव हो देर रात बाहर न जाएं. दूर का काम दिन में निबटा लें.

तकनीक को अपनी ताकत बनाएं

तकनीक को अपनी ताकत बनाएं. किसी भी औटो, टैक्सी, कैब में बैठने से पहले गाड़ी का नंबर नोट कर घर के किसी सदस्य को भेज दें. सोशल नैटवर्किंग साइट पर आप का एक स्टेटस भी आप की मदद कर सकता है. कुछ जरूरी इमरजैंसी नंबर भी अपने मोबाइल में सेव कर के रखें.

आत्मरक्षा के लिए ट्रेनिंग लें

अपनी सुरक्षा के लिए सैल्फ डिफैंस ट्रेनिंग भी ले सकती हैं जैसे कोई आक्रमणकारी आप को पकड़ने की कोशिश करे तो पीछे की ओर छुड़ाने के बजाय थोड़ा नीचे हो जाएं. इस के बाद पूरी ताकत से व्यक्ति की छाती पर अपना सिर मारें. उसे संभलने का मौका दिए बगैर उस व्यक्ति की दोनों टांगों के बीच जोर से अपना घुटना मारें.

परिस्थिति चाहे कितनी भी बुरी हो, आप को हार नहीं माननी चाहिए. मुश्किल घड़ी में फोन, आसपास रखी चींजें जैसे ईंट, पत्थर, लोहा, लकड़ी आदि सब का प्रयोग करें. हो सकता है सामने वाला व्यक्ति आप का साहस देख डर कर भाग जाए. यदि आप ऐसी किसी स्थिति में फंस जाएं तो ये ट्रिक्स अजमा सकती हैं. इस के अलावा तेज दौड़ने का भी अभ्यास रखें.

क्या रखें हमेशा साथ

अपनी सुरक्षा के लिए पैपर स्प्रे, कोई नुकीली चीज, पेपर वेट आदि हमेशा साथ रखें. जब खतरा महसूस करें तो इन का इस्तेमाल करने से न हिचकें.

घर पर भी रखें अपना ध्यान

हादसे कहीं भी हो सकते हैं इसलिए घर में भी सावधान रहें. जिसे आप नहीं जानतीं, उस के लिए दरवाजा न खोलें. अपराधी भेष बदल कर जैसे प्लंबर, गार्ड, दूध वाला, केवल वाले आदि के रूप में भी आ जाते हैं. बिना बुलाए अगर ऐसा कोई व्यक्ति आप के घर आने की कोशिश करे तो आप दरवाजा बिलकुल न खोलें.

अपनी छठी इंद्री का करें इस्तेमाल

लड़कियों के पास सिक्स्थ सैंस यानी छठी इंद्री का वरदान होता है. आने वाले खतरे को लड़कियां जल्दी भांप लेती हैं. इसलिए जब भी कुछ असहज महसूस करें तो तुरंत उस जगह से बाहर निकल जाएं.

सजग रहना जरूरी

खुद की सुरक्षा के लिए हमेशा सजग रहें.

आप चाहें अकेली हों या फिर किसी दोस्त के साथ, किसी सुनसान जगह पर टहलनेघूमने न जाएं. शौर्ट कट के चक्कर में सुनसान रास्तों से आनेजाने से बचें.

कभी औफिस में देर हो जाए तो बौस से औफिस स्टाफ कार में घर भिजवाने का निवेदन करें. औफिस की गाड़ी से घर जाते समय घर के लोगों को सूचित करें.

ड्राइव करते समय कार के शीशे और सैंट्रल लौक लगा कर रखें. सुनसान इलाकों में कार कतई न रोकें.

यात्रा के दौरान किसी पर भरोसा न करें. होटल में कमरा बुक करते समय कमरे की बारीकी से जांच कर लें. अकेले में किसी को कमरे में घुसने की अनुमति न दें. बाथरूम में कहीं कैमरा आदि तो नहीं लगा है यह चैक जरूर करें. ज्यादातर मौल और शौपिग कौंप्लैक्स की पार्किंग बेसमैंट में होती है. ऐसे में यदि रात गए किसी काम से अकेले मौल जाना पड़े तो कोशिश करें कि वाहन बाहर किसी पार्किंग में लगाएं. सूने बेसमैंट एरिया में जाने का खतरा न उठाएं.

देर रात बाहर घूमना, देर रात औफिस या कोचिंग से पैदल घर आना भी आप को खतरे में डाल सकता है. इसलिए समय का ध्यान रखें.

Married Life में दरार के क्या हैं संकेत, ‘एकदूसरे को स्पेस न देना’

आजकल शादी (Married Life) के 2-3 साल के भीतर ही तलाक होने के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. व्यवहार विशेषज्ञों, मनोवैज्ञानिकों और समाजशास्त्रियों की मानें तो सगाई से शादी के बीच के 2-3 महीनों और विवाह के शुरुआती 3 महीनों में भावी दंपती या विवाहित जोड़े की कंपैटिबिलिटी का पता चल जाता है. भावी या हो चुके पतिपत्नी अपने इस गोल्डन पीरियड में आपस में कैसे बातें करते हैं और एकदूसरे के साथ कैसे पेश आते हैं, इस पर रिश्ते के सफल या असफल होने का दारोमदार होता है.

विशेषज्ञों के मुताबिक ये निम्न बातें यह संकेत बहुत जल्दी दे देती हैं कि यह रिश्ता टिकने वाला नहीं और यदि टिक भी गया, तो इस में सिवा कड़वाहट के कुछ नहीं रहने वाला:

व्यक्तित्व को कम कर के आंकना:

साइकोथेरैपिस्ट एवं लेखिका एबी रोडमैन का मानना है कि जब भावी पति या पत्नी एकदूसरे के व्यक्तित्व को कम कर के आंकते हैं, उन के पेशे या व्यवसाय को घटिया या दोयम दर्जे का समझते हैं या फिर किसी दूसरे को उस के बारे में बताने में संकोच महसूस करते हैं, तो ये लक्षण रिश्ते के लिए अच्छे नहीं माने जाते. ऐसे जोड़े जिंदगी भर अपने पार्टनर को कमतर समझ कर उस से खराब व्यवहार करते हैं. बारबार पार्टनर को घटिया पेशे में होने का एहसास करा कर उस का जीना दूभर कर देते हैं, उस के मन में हीनभावना भर देते हैं. नतीजतन घर में आए दिन कलह रहने लगती है और फिर जल्द ही संबंधों के तार ढीले पड़ जाते हैं.

सोच और शौक हैं अलगअलग:

लड़का और लड़की हर बात पर अलग राय रखते हैं, उन के शौक अलग हैं, पहनावे का अंदाज अलग है, सोच अलग है, तो शुरूशुरू की छिटपुट तकरार और छींटाकशी के धीरेधीरे मनमुटाव और फिर बडे़ झगड़े में तबदील होने में ज्यादा देर नहीं लगती. जहां लड़की का जरूरत से ज्यादा मौडर्न और बिंदास होना लड़के को अखरता है, वहीं लड़के की सरल जीवनशैली लड़की की नजर में उसे भोंदू और बैकवर्ड समझने के लिए काफी है. लड़का या लड़की में से कोई एक मांसाहारी हो और दूसरा शुद्ध शाकाहारी, तो भी इस गाड़ी के रास्ते में अटकने का खतरा बढ़ जाता है. पौलिटिकल सोच और मतभेद भी अनबन की वजह बन सकते हैं.

एकदूसरे को स्पेस न देना:

मनोविज्ञानी डा. अमरनाथ मल्लिक कहते हैं, ‘‘लड़का और लड़की जब एकदूसरे के साथ शादी के बंधन में बंधने का निर्णय लेते हैं, तो आपसी प्यार जताना, एकदूसरे पर अधिकार जमाना आदि सामान्य बातें हैं. लेकिन जब लड़का या लड़की एकदूसरे के मिनटमिनट का हिसाब चाहने लगें, दिन भर खुद से ही बातें और खुद पर ही ध्यानाकर्षण की चाह करने लगें और ऐसा न हो पाने पर ताने कसें, उलाहने दें, झगड़ा करने लगें, तो समझ जाना चाहिए कि इस संबंध का लंबा खिंचना मुश्किल है. कई बार तो देखा जाता है कि लड़का या लड़की सवाल पूछ कर नाक में दम कर देती है. कहां थे, क्या कर रहे थे, फोन क्यों नहीं किया आदि. अगर पिंड छुड़ाने के लिए कोई जवाब दे दिया जाए, तो उस की क्रौस वैरीफिकेशन करते हैं, जिस से मामला और बिगड़ जाता है.’’

रूखा और अशिष्ट व्यवहार:

मैरिज ऐंड फैमिली थेरैपिस्ट कैरिल मैकब्राइड कहते हैं, ‘‘सगाई के बाद लड़का और लड़की घूमनेफिरने भी जाते हैं और रेस्तरां में डिनर या लंच भी करते हैं. ऐसे में लड़के या लड़की का दूसरे लोगों के साथ व्यवहार, उस के स्वभाव का सही परिचायक होता है. कोई व्यक्ति खुद से आर्थिक, सामाजिक रूप से कमजोर लोगों के साथ कैसा व्यवहार करता है यह देख कर आप आसानी से अंदाजा लगा सकते हैं कि लौंगटर्म में वह आप के साथ और होने वाले बच्चों के साथ कैसा व्यवहार करेगा. अगर लड़का या लड़की रेस्तरां में वेटर के साथ, टैक्सी ड्राइवर या रिकशाचालक के साथ, किसी हौकर या सेल्समैन के साथ बेअदबी से बात करे, तो समझ जाएं कि यही उस का असली व्यवहार है.’’

डेटिंग ऐक्सपर्ट मरीना सबरोची इस बात की पुष्टि करते हुए कहती हैं, ‘‘रिश्ते के शुरुआती चरण में लड़का और लड़की एकदूसरे का दिल जीतने की कोशिश करते हैं, इसलिए बढ़चढ़ कर एकदूसरे के साथ कृत्रिम व्यवहार भी कर सकते हैं, लेकिन दूसरों के साथ उन के व्यवहार को देख कर ही उन का वास्तविक स्वभाव सामने आता है.’’

हर बात की आलोचना:

‘मैरिड पीपल: स्टेइंग टुगैदर इन द ऐज औफ डाइवोर्स’ की लेखिका फ्रांसिन क्लैग्सब्रुन ने अपनी किताब के रिसर्च वर्क के दौरान ऐसे 87 जोड़ों से बातचीत की जो 15 या ज्यादा साल से सुखी और सफल वैवाहिक जीवन जी रहे थे. फ्रांसिन ने उन से विवाह की सफलता के महत्त्वपूर्ण तत्त्व जानने के लिए सवाल किए तो जवाब में जो सब से महत्त्वपूर्ण तत्त्व सामने आया वह था- एकदूसरे का आदर करना और पार्टनर को उस की आदतों के साथ स्वीकार करना.

फ्रांसिन कहती हैं, ‘‘आदर करना प्यार की एक कला है, जो हर दंपती को आनी चाहिए. समझदार और व्यावहारिक दंपती एकदूसरे की कमियां नहीं, बल्कि खूबियां खोजते हैं, जबकि नासमझ जोड़े बातबात में एकदूसरे की आलोचना करते हैं, आदतों में खोट निकालते हैं और जानेअनजाने अपने पार्टनर की भावनाओं को आहत करते हैं. जाहिर है ऐसे जोड़ों का रिश्ता ज्यादा समय तक नहीं टिक पाता.’’

घर के दूसरे सदस्यों को महत्त्व न देना:

मनोविज्ञान सलाहकार डा. रूपा तालुकदार बताती हैं, ‘‘शादी होने पर पत्नी को पति के घर के दूसरे सदस्यों से तालमेल भी बैठाना होता है और उन्हें मानसम्मान भी देना पड़ता है. इसी प्रकार पति को भी पत्नी के मायके के सदस्यों के प्रति सम्मान भी जताना चाहिए और उन की भावनाओं की कद्र भी करनी चाहिए. लेकिन पति या पत्नी अगर एकदूसरे के परिवार के सदस्यों की चर्चा से चिढ़ते हों, उन के लिए सम्मानसूचक शब्दों का इस्तेमाल न करते हों और बातबात में उन के विचारों, पहनावे और आदतों का मखौल उड़ाते हों, तो यह समझना कठिन नहीं है कि यह रिश्ता लंबे समय तक निभना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि शादी के बाद सिर्फ पतिपत्नी तक ही दुनिया सीमित नहीं रहती.’’

हाइजीन मैंटेन न करना:

डा. अमरनाथ मल्लिक बताते हैं, ‘‘जो लड़केलड़कियां साफसुथरे नहीं रहते और हाइजीन मैंटेन नहीं करते उन के अलगाव की संभावनाएं बहुत ज्यादा होती हैं. वजह साफ है कि जो शुरुआती दौर इंप्रैशन जमाने का होता है उसी में अगर यह हाल है, तो आगे चल कर तो इस से भी ज्यादा लापरवाही झलकने वाली है. जरा सोचिए कि जिस व्यक्ति के पास आप को चौबीसों घंटे रहना है, उस के साथ बिस्तर शेयर करना है और शारीरिक संबंध स्थापित करने हैं, वह अगर साफसुथरा नहीं रहता, शरीर से बदबू आती है, कपड़े बेतरतीब रहते हों, तो आप उस के साथ कैसे जीवन निर्वाह कर सकते हैं? आखिर सैक्स संबंध और निकटता तो वैवाहिक जीवन की महत्त्वपूर्ण धुरी है.’’

महत्त्वपूर्ण बातें शेयर न करना:

डा. अमरनाथ मल्लिक के अनुसार, ‘‘भावी पतिपत्नी के जीवन की कोई महत्त्वपूर्ण घटना हो, जैसे नौकरी छूट गई, नई जौब मिली,

बिजनैस में बड़ा नुकसान हुआ, घर में किसी का जन्मदिन है या ऐसी ही कोई और बात जिस के बारे में आप को अपने पति या पत्नी से पता न चले, बल्कि उस के फेसबुक स्टेटस या म्यूचुअल फ्रैंड्स से पता चले, तो भावनाओं का आहत होना तय है. इस से यह भी पता चलता है कि पार्टनर की नजर में आप बहुत महत्त्वपूर्ण नहीं हैं या आप पर खास कौन्फिडैंस नहीं है.’’

ध्यान रखें, इन्हीं खामियों की वजह से रिश्तों की नींव बुरी तरह हिल जाती है.

मुसकान: सुनीता की जिंदगी में क्या हुआ था

‘‘आंटी, आप बारबार मुझे इस तरह क्यों घूर रही हैं?’’ मेघा ने जब एक 45 साल की प्रौढ़ा को अपनी तरफ बारबार घूरते देखा तो उस से रहा न गया. उस ने आगे बढ़ कर पूछ ही लिया, ‘‘क्या मेरे चेहरे पर कुछ लगा है?’’

‘‘नहीं बेटा, मैं तुम्हें घूर नहीं रही हूं. बस, मेरा ध्यान तुम्हारी मुसकराहट पर आ कर रुक जाता है. तुम तो बिलकुल मेरी बेटी जैसी दिखती हो, तुम्हारी तरह उस के भी हंसते हुए गालों पर गड्ढे पड़ते हैं,’’ इतना कह कर सुनीता पीछे मुड़ी और अपने आंसुओं को पोंछती हुई मौल से बाहर निकल गई. तेज कदमों से चलती हुई वह घर पहुंची और अपने कमरे में बैड पर लेट कर रोने लगी. उस के पति महेश ने उसे आवाज दी, ‘‘क्या हुआ, नीता?’’ पर वह बोली नहीं. महेश उस के पास जा कर पलंग पर बैठ गया और सुनीता का सिर सहलाता रहा, ‘‘चुप हो जाओ, कुछ तो बताओ, क्या हुआ? किसी ने कुछ कहा क्या तुम से?’’

‘‘नहीं,’’ सुनीता भरेमन से इतना ही कह पाई और मुंह धो कर रसोई में नाश्ता बनाने के लिए चली गई. महेश को कुछ समझ में नहीं आया. वह सुनीता से बहुत प्यार करता है और उस की जरा सी भी उदासी या परेशानी उसे विचलित कर देती है. वह उसे कभी दुखी नहीं देख सकता. वह प्यार से उसे नीता कहता है. वह उस के पीछेपीछे रसोई में चला गया और बोला, ‘‘नीता, देखो, अगर तुम ऐसे ही दुखी रहोगी तो मेरे लिए बैंक जाना मुश्किल हो जाएगा. अच्छा, ऐसा करता हूं कि आज मैं बैंक में फोन कर देता हूं छुट्टी के लिए. आज हम दोनों पूरे दिन एकसाथ रहेंगे. तुम तो जानती ही हो कि जब तुम्हारे होंठों की मुसकान चली जाती है तो मेरा भी मन कहीं नहीं लगता.’’

‘‘मुसकान तो कब की हमें छोड़ कर चली गई है,’’ सुनीता के इन शब्दों से महेश को पलभर में ही उस की उदासी का कारण समझ में आ गया. आखिरकार, जिंदगी के 20 साल दोनों ने एकसाथ बिताए थे, इतना तो एकदूसरे को समझ ही सकते थे.

‘‘उसे तो हम मरतेदम तक नहीं भूल सकते पर आज अचानक, ऐसा क्या हो गया जो तुम्हें उस की याद आ गई?’’

सुनीता ने मौल में मिली लड़की के बारे में बताया, ‘‘वह लड़की हमारी मुसकान की उम्र की ही होगी, यही कोई 16-17 साल की. पर जब वह मुसकराती है तो एकदम मुसकान की तरह ही दिखती है. वही कदकाठी, गोरा रंग. मैं तो बारबार चुपकेचुपके उसे देख रही थी कि उस ने मेरी चोरी पकड़ ली और पूछ लिया, ‘आंटी, आप ऐसे क्या देख रहे हैं?’ मैं कुछ कह नहीं पाई और घर वापस आ गई,’’ सुनीता ने फिर कहा, ‘‘चलो, अब तुम तैयार हो जाओ. मैं तुम्हारा खाना पैक कर देती हूं. अब मैं ठीक हूं,’’ और वह रसोई में चली गई. महेश तैयार हो कर बैंक चला गया पर सुनीता को रहरह कर बेटी मुसकान का खयाल आता रहा. एक जवान बेटी की मौत का दर्द क्या होता है, यह कोई सुनीता व महेश से पूछे. मुसकान खुद तो चली गई, इन से इन के जीने का मकसद भी ले गई. 4 साल पहले उन्होंने अपनी इकलौती बेटी को एक दुर्घटना में खो दिया था. हर समय उन के दिमाग में यही खयाल आता था कि क्यों किसी ने मुसकान की मदद नहीं की? अगर कोई समय रहते उसे अस्पताल ले गया होता तो शायद आज वह जिंदा होती. उस पल की कल्पना मात्र से सुनीता के रोंगटे खड़े हो गए और वह फफकफफक कर रोने लगी.

जी भर कर रो लेने के बाद सुनीता जब उठी तो अचानक उसे चक्कर आ गया और वह सोफे का सहारा ले कर बैठ गई. ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ. थोड़ी कमजोरी महसूस हो रही थी तो वह बैडरूम में जा कर पलंग पर ढेर हो गई और फिर उसे याद नहीं कि वह कब तक ऐसे ही पड़ी रही. दरवाजे की घंटी की आवाज से वह उठी और बामुश्किल दरवाजे पर पहुंची. महेश उस के लिए उस का मनपसंद चमेली के फूलों का गजरा लाया था. चमेली की खुशबू उसे बहुत अच्छी लगती थी. पर आज ऐसा न था. आज उसे कुछ अच्छा न लग रहा था, चाह कर भी वह उस गजरे को हाथों में न ले पाई. जैसे ही महेश उस के बालों में गजरा लगाने के लिए आगे बढ़ा तो उस ने उसे रोक दिया, ‘‘प्लीज महेश, आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है.’’

‘‘क्या हुआ? क्या तुम अभी तक सुबह वाली बात से परेशान हो?’’ महेश ने कहा और उस का हाथ पकड़ कर उसे सोफे पर अपने पास बैठा लिया. ‘‘आज सुबह से ही कमजोरी महसूस कर रही हूं और चाह कर भी उठ नहीं पा रही हूं,’’ सुनीता ने बताया. महेश ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘अरे कुछ नहीं है. वह सुबह वाली बात ही तुम सोचे जा रही होगी और मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि तुम ने खाना भी नहीं खाया होगा.’’सुनीता चुपचाप अपने पैरों को देखती रही.

‘‘अच्छा चलो, आज बाहर खाना खाते हैं. बहुत दिन हुए मैं अपनी बीवी को बाहर खाने पर नहीं ले कर गया.’’ महेश सुनीता को उस उदासी से छुटकारा दिलाना चाहता था जो हर पल उसे डस रही थी. उस के लिए शायद यह दुनिया की आखिरी चीज होगी जो वह देखना चाहेगा – सुनीता का उदास चेहरा. उस के तो दो जहान और सारी खुशियां सुनीता तक ही सिमट कर रह गई थीं, मुसकान के जाने के बाद. दोनों तैयार हो कर पास के होटल में खाना खाने चले गए. महेश ने उन सभी चीजों को मंगवाया जो सुनीता की मनपसंद थीं ताकि वह उदासी से बाहर आ सके.

‘‘अरे बस करो, मैं इतना नहीं खा पाऊंगी,’’ जब महेश बैरे को और्डर लिख रहा था तो उस ने बीच में ही कह कर रोक दिया.

‘‘अरे, तुम अकेले थोडे़ ही न खाओगी, मैं भी तो खाऊंगा. भैया, तुम जाओ और फटाफट से सारी चीजें ले आओ. मैं अपनी बीवी को अब और उदास नहीं देख सकता.’’ एक हलकी मुसकान सुनीता के होंठों पर फैल गई. यह सोच कर कि महेश उस से कितना प्यार करता है और अपनेआप पर उसे गर्व भी हुआ ऐसा प्यार करने वाला पति पा कर. खाना खाने के बाद सुनीता की तबीयत कुछ संभल गई. दोनों मनपसंद आइसक्रीम खा कर घर लौट आए. इतनी गहरी नींद में सोई सुनीता कि सुबह देर से आंख खुली. उस ने खिड़की से बाहर झांक कर देखा तो बादल घिरे हुए थे. फिर उस ने पास लेटे महेश को देखा. वह चैन की नींद सो रहा था. एक रविवार को ही तो उसे उठने की जल्दी नहीं होती बाकी दिन तो वह व्यस्त रहता है. फ्रैश हो कर वह रसोई में चली गई चाय बनाने. जब तक चाय बनी, महेश उठ कर बैठक में अखबार ले कर बैठ गया. रोज का उन का यही नियम होता था-एकसाथ सुबहशाम की चाय, फिर अपनेअपने काम की भागदौड़. बाहर बादल गरजने लगे और फिर पहले धीरे, फिर तेज बारिश होने लगी. अचानक सुनीता को लगा कि कोई बाहर खड़ा है. उस ने खिड़की में से झांका. एक लड़की खड़ी थी. उस ने जल्दी से दरवाजा खोला तो देखा वह वही मौल वाली लड़की थी. उसे दोबारा देख कर सुनीता बहुत खुश हुई, ‘‘अरे बेटा, तुम आ जाओ, अंदर आ जाओ.’’

‘‘नहीं आंटी, मैं यहीं ठीक हूं,’’ उस ने डरते हुए कहा. वह कौन सा उसे जानती थी जो उस के घर के अंदर चली जाती. सुनीता ने बड़े प्यार से उस का हाथ पकड़ा और उसे खींच कर अंदर ले आई.

‘‘आंटी, आप यहां रहती हैं? मैं तो कई बार इधर से गुजरती हूं पर मैं ने आप को नहीं देखा.’’ ‘‘हां बेटा, मैं जरा घर में ही व्यस्त रहती हूं.’’

‘‘आंटी, आई एम सौरी. शायद मैं ने आप का दिल दुखाया,’’ मेघा ने कहा.

महेश एक पल को मेघा को देख कर हतप्रभ रह गया. उसे अंदाजा लगाते देर नहीं लगी कि वह मौल वाली लड़की ही है, ‘‘आओ बेटा बैठो, हमारे साथ चाय पियो.’’ उस ने घबराते हुए महेश से नमस्ते की और बोली, ‘‘अंकल, मैं चाय नहीं पीती.’’

‘‘मुसकान भी चाय नहीं पीती थी. बस, कौफी की शौकीन थी. आजकल के बच्चे कौफी ही पसंद करते हैं,’’ ऐसा बोल कर सुनीता रसोई में चली गई. मेघा भी उस के पीछेपीछे रसोई में चली गई.

‘‘तुम्हारा घर पास में ही है शायद?’’ सुनीता ने पूछा.

‘‘हां आंटी, अगली गली में सीधे हाथ को मुड़ते ही जो तीसरा छोटा सा घर है वही मेरा है,’’ मेघा ने बताया. ‘‘अच्छा, वह नरेश शर्मा के साथ वाला?’’ महेश ने पूछा.

‘‘जी हां, वही. मैं रोज यहां से अपने कालेज जाती हूं. आज रविवार है सो अपनी सहेली से मिलने जा रही थी. बारिश तेज हो गई, इसलिए यहीं पर रुक गई.’’ ‘‘कोई बात नहीं बेटा, यह भी तुम्हारा ही घर है. जब मन करे आ जाया करना, तुम्हारी आंटी को अच्छा लगेगा,’’ महेश ने कहा, ‘‘जब से मुसकान गई है तब से इस ने अपनेआप को इस घर में बंद कर लिया है, बाहर ही नहीं निकलती.’’ ‘‘मेरा नहीं मन करता किसी से भी बात करने का. जब से मुसकान गई है…’’ इतना बोलते ही सुनीता की रुलाई छूट गई तो मेघा ने उस के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘आंटी, यह मुसकान कौन है?’’

‘‘मुसकान हमारी बेटी थी जिसे 4 साल पहले हम ने एक ऐक्सिडैंट में खो दिया.’’ मेघा ने देखा सुनीता आंटी लाख कोशिश करे अपना दुख छिपाने की पर फिर भी उदासी उन पर, अंकल पर और पूरे घर पर पसरी हुई थी.

इस बीच महेश बोले, ‘‘हौसला रखो नीता, मैं हूं न तुम्हारे साथ, बस मुसकान का इतना ही साथ था हमारे साथ.’’ इधर, मेघा ने अब जिज्ञासा जाहिर की, ‘‘आंटी, आप मुझे विस्तार से बताइए, क्या हुआ था.’’ ‘‘बेटा, हमारी शादी के 3 साल बाद मुसकान हमारे घर आई तो हमें ऐसा लगा कि इक नन्ही परी ने जन्म लिया है. हमारे घर में उस की मुसकराहट हूबहू तुम्हारे जैसी थी, ऐसे ही गालों में गड्ढे पड़ते थे.’’

‘‘ओह, तो इसलिए उस दिन आप मुझे मौल में बारबार मुड़मुड़ कर देख रही थीं.’’ ‘‘हां बेटा, अब तुम्हें सचाई पता चल गई, अब तो तुम नाराज नहीं होना अपनी आंटी से,’’ महेश ने कहा.

‘‘नहीं अंकल, वह तो मैं कब का भूल गई.’’

‘‘खुश रहो बेटा,’’ कहते हुए महेश चाय पीने लगे. सुनीता ने मेघा को बताना जारी रखा, ‘‘मुसकान को बारिश में घूमना बहुत पसंद था. हमारे लाड़प्यार ने उसे जिद्दी बना दिया था. इकलौती संतान होने से वह अपनी सभी जायजनाजायज बातें मनवा लेती थी. जब उस ने 10वीं की परीक्षा पास की तो स्कूटी लेने की जिद की. हम ने बहुत मना किया कि तुम अभी 15 साल की हो, 18 की होने पर ले लेना, पर वह नहीं मानी. खानापीना, हंसना, बोलना सब छोड़ दिया. हमें उस की जिद के आगे झुकना पड़ा और हम ने उसे स्कूटी ले दी. मैं ने उसे ताकीद की कि वह स्कूटी यहीं आसपास चलाएगी, दूर नहीं जाएगी. इसी शर्त पर मैं ने उसे स्कूटी की चाबी दी. वह मान गई और हम से लिपट गई. ‘‘उस दिन वह जिद कर के स्कूटी से अपनी सहेली के घर चली गई. हम उस का इंतजार कर रहे थे. उस दिन भी ऐसी ही बारिश हो रही थी. 2 घंटे बीत गए तब सिटी अस्पताल से फोन आया, ‘जी, हमें आप का नंबर एक लड़की के मोबाइल से मिला है. आप कृपया कर के जल्द सिटी अस्पताल पहुंच जाएं.’ ‘‘डर और घबराहट के चलते मेरे पैर जड़ हो गए. हम दोनों बदहवास से वहां पहुंचे. देखा, हमारी मुसकान पलंग पर लेटी हुई थी, औक्सीजन लगी हुई थी, सिर पर पट्टियां बंधी हुई थीं और साथ वाले पलंग पर उस की सहेली बेहोश थी. जब उसे होश आया तो उस ने बताया, ‘हम दोनों बारिश में स्कूटी पर दूर निकल गईं. पास से एक गाड़ी ने बड़ी तेजी से ओवरटेक किया, जिस से हमें कच्चे रास्ते पर उतरना पड़ा और उस गीली मिट्टी में स्कूटी फिसल गई. हम दोनों गिर गए और बेहोश हो गए. उस के बाद हम यहां कैसे पहुंचे, नहीं मालूम.’ ‘‘इसी बीच डाक्टर आ गए. उन्होंने मुझे और महेश को बताया कि सिर पर चोट लगने से बहुत खून बह गया है. हम ने सर्जरी तो कर दी है पर फिर भी अभी कुछ कह नहीं सकते. अभी 48 घंटे अंडर औब्जर्वेशन में रखना पड़ेगा. डाक्टर की बात सुन कर हम रोने लगे. ये भी परेशान हो गए. पलभर में हमारी दुनिया ही बदल गई. नर्स ने कहा, ‘घबराइए नहीं, सब ठीक हो जाएगा,’ तकरीबन 2 घंटे बाद मुसकान को होश आया,’’ बोलतेबोलते सुनीता का गला रुंध आया तो वह चुप हो गई.

‘‘फिर क्या हुआ अंकल? प्लीज, आप बताइए?’’ मेघा ने डरते हुए पूछा. महेश के चेहरे पर अवसाद की गहरी परत छा गई थी तो सुनीता ने कहा, ‘‘वह जब होश में आई तो उस से कुछ कहा ही नहीं गया. बस, अपने हाथ जोड़ दिए और हमेशा के लिए शांत हो गई.’’ और फिर सुनीता फूटफूट कर रोने लगी. उन का रुदन देख कर मेघा की भी रुलाई छूट गई. उसे समझ नहीं आया कि वह उन से क्या कहे. उस ने सुनीता और महेश का हाथ अपने हाथों में ले कर बस इतना ही कहा, ‘‘मुझे अपनी मुसकान ही समझिए और मैं पूरी कोशिश करूंगी आप की मुसकान बनने की.’’

उन दोनों के मुंह से बस इतना ही निकला, ‘‘खुश रहो बेटा.’’ बाहर बारिश थम चुकी थी और अंदर तूफान गुजर चुका था. मेघा वापस आने का वादा कर के वहां से चली गई. उस से बातें कर के दोनों बहुत हलका महसूस कर रहे थे. दोनों रविवार का दिन अनाथ आश्रम में गरीब बच्चों के साथ बिताते थे. दोनों कपड़े बदल कर वहां चले गए. मेघा जब भी कालेज जाती तो अकसर सुनीता और महेश को बाहर लौन में बैठे देखती तो कभी हाथ हिलाती, कभी वक्त होता तो मिलने भी चली जाती थी. वक्त गुजरने लगा. मेघा के आने से सुनीता अपनी सेहत को बिलकुल नजरअंदाज करने लगी. यदाकदा उसे चक्कर आते थे, कई बार आंखों के आगे धुंधला भी नजर आता तो वह सब उम्र का तकाजा समझ कर टाल जाती. इंतजार करतेकरते 10 दिन हो गए पर मेघा नहीं आई, न ही वह कालेज जाती नजर आई. दोनों को उस की चिंता हुई और जब दोनों से रहा नहीं गया तो वे एक दिन उस के घर पहुंच गए. दरवाजे की घंटी बजाई तो एक 49-50 साल की अधेड़ महिला ने दरवाजा खोला, ‘‘कहिए?’’

‘‘क्या मेघा यहीं रहती है?’’ महेश ने पूछा.

‘‘जी हां, आप सुनीता और महेशजी हैं?’’

सुनीता ने उत्सुकता से जवाब दिया, ‘‘हां, मैं सुनीता हूं और ये मेरे पति महेश हैं.’’

‘‘आप अंदर आइए. प्लीज,’’ बोल कर सुगंधा उन्हें कमरे में ले आई. पूरा घर 2 कमरों में सिमटा था. एक बैडरूम और एक बैठक, बाहर छोटी सी रसोई और स्नानघर. मेघा यहां अपनी मां सुगंधा के साथ अकेली रहती थी उस के पिताजी, जब वह बहुत छोटी थी तब ही संसार से जा चुके थे. सुगंधा एक स्कूल में अध्यापिका थी जिस से उन का घर का गुजारा चलता था. ‘‘मेघा कहां है? बहुत दिन हुए, वह घर नहीं आई तो हमें चिंता हुई. हम उस से मिलने आ गए,’’ सुनीता ने चिंता व्यक्त की.

‘‘वह दवा लेने गई है,’’ सुगंधा ने कहा.

‘‘आप को क्या हुआ बहनजी?’’ महेश ने पूछा.

सुगंधा उदास हो गई, ‘‘मेरी दवा नहीं भाईसाहब, वह अपनी दवा लेने गई है.’’

‘‘उसे क्या हुआ है?’’ दोनों ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘2-3 साल पहले की बात है. इसे बारबार यूरीन इनफैक्शन हो जाता था. डाक्टर दवा दे देते तो ठीक हो जाता पर बाद में फिर हो जाता. पिछले 10 दिनों से इनफैक्शन के साथ बुखार भी है. पैरों में सूजन भी आ गई है. मैं ने बहुत मना किया पर फिर भी जिद कर के दवा लेने चली गई. अभी आ जाएगी.’’

‘‘डाक्टर ने क्या कहा?’’ सुनीता ने पूछा.

‘‘डाक्टर को डर है कि कहीं किडनी फेल्योर का केस न हो,’’ कह कर वे रोने लगीं. सुनीता ने उठ कर उन्हें गले से लगा लिया और सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘सुगंधाजी, ऐसा कुछ नहीं होगा. सब ठीक हो जाएगा.’’

‘‘सुनीताजी, डाक्टर ने कुछ टैस्ट करवाए हैं. कल तक रिपोर्ट आ जाएगी,’’ सुगंधा ने बताया. इतने में मेघा आ गई. उस की मुसकान होंठों से गायब हो चुकी थी, रंग पीला पड़ गया था, आंखों के आसपास सूजन आ गई थी, वह बहुत कमजोर लग रही थी. सुनीता और महेश उसे देख कर सन्न रह गए. वे वहां ज्यादा देर न बैठ सके. चलते समय महेश ने मेघा के सिर पर हाथ रखा और सुगंधा से कहा, ‘‘बहनजी, कल हम आप के साथ रिपोर्ट लेने चलेंगे,’’ ऐसा कह कर वे दोनों अपने घर लौट आए. घर आ कर सुनीता सोफे पर ऐसी ढेर हुई कि काफी देर तक हिली ही नहीं. जब महेश ने उस से अंदर जा कर आराम करने को कहा तो वह अपनेआप को चलने में ही असमर्थ पा रही थी. महेश उसे सहारा दे कर अंदर ले गया, ‘‘परेशान न हो, सब ठीक हो जाएगा.’’ अगले दिन दोनों सुगंधा के साथ अस्पताल चले गए. उन पर पहाड़ टूट पड़ा जब डाक्टर ने बताया, ‘यह केस किडनी फेल्योर का है. अब मेघा को डायलिसिस पर रहना होगा जब तक डोनर किडनी नहीं मिल जाती.’ सुगंधा तो बेहोश हो कर गिर ही जाती अगर महेश ने उसे सहारा न दिया होता. उस ने उसे कुरसी पर बैठाया और पानी पिलाया, ‘‘हिम्मत रखिए सुगंधाजी, अगर आप ऐसे टूट जाएंगी तो मेघा को कौन संभालेगा? हम जल्दी मेघा के लिए डोनर ढूंढ़ लेंगे, आप चिंता न करें.’’

मेघा की बीमारी से दोनों परिवारों पर दुख का पहाड़ टूट पड़ा. सुनीता तो अब ज्यादातर बीमार ही रहने लगी और अचानक एक दिन बेहोश हो कर गिर पड़ी. महेश अभी बैंक जाने के लिए तैयार ही हो रहा था कि धम्म की आवाज से रसोई में भागा तो देखा सुनीता नीचे फर्श पर बेहोश पड़ी हुई है. उस के हाथपैर फूलने लगे पर फिर हिम्मत कर के उस ने एंबुलैंस को फोन कर के बुलाया. इमरजैंसी में उसे भरती किया गया और सारे टैस्ट किए गए पर कुछ हासिल न हो सका. सुनीता हमेशा के लिए चली गई. डाक्टर ने जब कहा, ‘‘यह केस ब्रेन डैड का है, हम उन्हें बचा न पाए,’’ तो महेश धम्म से कुरसी पर गिर गया और सुनीता का चेहरा उस की आंखों के आगे घूमने लगा. पता नहीं वह कितनी देर वहीं पर उसी हाल में बैठा रहा कि अचानक वह फुरती से उठा और डाक्टर के पास जा कर बोला, ‘‘डाक्टर साहब, मैं सुनीता के और्गन डोनेट करना चाहता हूं. मैं चाहता हूं कि सुनीता की किडनी मेघा को लगा दी जाए.’’ डाक्टर ने फटाफट सारे टैस्ट करवाए और सुगंधा व मेघा को अस्पताल में बुला लिया. संयोग ऐसा था कि सुनीता की किडनी ठीक थी और वह मेघा के लिए हर लिहाज से ठीक बैठती थी. खून और टिश्यू सब मिल गए. औपरेशन के बाद डाक्टर ने कहा, ‘‘औपरेशन कामयाब रहा. बस, कुछ दिन मेघा को यहां अंडर औब्जर्वेशन रखेंगे और फिर वह घर जा कर अपनी जिंदगी सामान्य ढंग से जिएगी.’’

सुगंधा ने आगे बढ़ कर महेश के पांव पकड़ लिए और रोने लगीं. महेश ने उन्हें उठाते हुए कहा, ‘‘सुगंधाजी, आप रोइए नहीं. बस, मेघा का खयाल रखिए.’’ घर आ कर सब क्रियाकर्म हो गया. बारीबारी से लोग आते रहे, अफसोस प्रकट कर के जाते रहे. अंत में महेश अकेला रह गया सुनीता की यादों के साथ. उस ने उठ कर सुनीता की फोटो पर हार चढ़ाया. अपने चश्मे को उतार कर अपनी आंखों को साफ करते हुए बोला, ‘‘देखा नीता, हमारी मुसकान को तो मैं बचा नहीं पाया, पर इस मुसकान को तुम ने बचा लिया.’’ जैसे ही महेश पलटा तो उस ने देखा कि उस के पीछे मेघा खड़ी थी और उसी ‘डिंपल’ वाली मुसकान के साथ जैसे कह रही हो कि आप अकेले नहीं हैं, यह ‘मुसकान’ है आप के साथ.

Rose Water में छिपे हैं खूबसूरती के ये राज, Skin Care रूटीन में करें शामिल

गुलाब (Rose Water) जहां आपके आंगन को खूबसूरत बनाने का काम करते हैं , आपकी सेंटर टेबल पर रखे फ्लावर पोट में सजकर उसकी शोभा को बढ़ाते हैं. इसकी भीनीभीनी खुशबू घर को भी महकाने का काम करती है. साथ ही गुलाब से आप अपने प्यार का भी इज़हार करते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि गुलाब आपकी स्किन के लिए भी मैजिक का काम करता है. तभी तो सदियों से स्किन केयर (Skin Care) रूटीन में रोज वाटर का इस्तेमाल हो रहा है. तो आइए जानते हैं कि आप समर में रोज वाटर को अपने चेहरे पर लगाकर किस तरह से उसे खूबसूरत बना सकती हैं.

स्किन को ठंडक पहुंचाए 

गर्मियों में स्किन पर सबसे ज्यादा एलर्जी की प्रोब्लम होती है. स्किन पर एक्ने होने से स्किन पर ज्यादा इर्रिटेशन होने के साथ स्किन जलती भी है. साथ ही चिलचिलाती धूप स्किन को तंग करके रख देती है. जो आपके सुकून चेन को छीनने का काम करती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि रोज वाटर में एंटीइंफ्लेमेटरी प्रोपर्टीज होती हैं , जो स्किन को ठंडक पहुंचाने के साथसाथ आपके कांप्लेक्सन को भी इम्प्रूव करने का काम करता है.

एंटी एजिंग प्रोपर्टीज 

हर कोई चाहता है कि वो हमेशा यंग ही रहे. स्किन पर कभी भी झुर्रियां नजर न आए. स्किन की रौनक गायब न हो. लेकिन यह तभी संभव है जब हम अपनी स्किन की प्रोपर केयर करते हैं. और अगर आप इस केयर में रोज वाटर को शामिल कर लेंगे तो स्किन की खोई रंगत वापिस आ जाएगी. क्योंकि इसमें ढेरों एन्टिओक्सीडैंट्स होते हैं , जो सेल्स को डैमेज होने से बचाते हैं. क्योंकि इन एन्टिओक्सीडैंट्स में लिपिड पेरोओक्सिडेशन निरोधात्मकता प्रभाव होता है,  जो सेल्स को किसी भी तरह के नुकसान से बचाने का काम करता है.

दागधब्बों को कम करे 

रोज वाटर में एंटीसेप्टिक प्रोपर्टीज होती हैं , जो स्किन पर किसी भी कारण से पड़े कट, बर्न व दागधब्बों को हटाने में सक्षम है. साथ ही ये स्किन इंफेक्शन के खतरे को भी कम करने का काम करता है. 2010 की एक स्टडी के अनुसार , गुलाब जल व गुलाब का तेल एक अत्यधिक प्रभावी जीवाणुरोधी है, जोकि  मुंहासों से जुड़े एक बैक्टीरिया प्रोपिनोबैक्टीरियम एक्ने को मारने में सक्षम है. इसलिए रोजाना रोज वाटर से फेस क्लींनिंग करना फायदेमंद साबित होता है.

पीएच लेवल को बैलेंस में रखे

अगर स्किन का पीएच लेवल बैलेंस में नहीं होता है तो स्किन ढेरों प्रोब्लम्स जैसे एक्ने, फाइन लाइन्स, ब्रेकआउट्स जैसी समस्याओं का सामना करती है. एक्सपर्ट्स की राय में स्किन का  पीएच लेवल 4. 6 से 6 के बीच होना चाहिए. और इसे बनाए रखने के लिए आप केमिकल्स वाले स्किन केयर प्रोडक्ट्स से दूर रहें. जबकि रोज वाटर स्किन के पीएच लेवल के बैलेंस को बनाए रखने का काम करता है. क्योंकि रोज वाटर का पीएच लेवल 5. 5 के मध्य होता है. इसकी ये प्रोपर्टी त्वचा को उसके सामान्य पीएच लेवल को बनाए रखने में मदद करती है.

रिफ्रेश स्किन 

अगर स्किन को हाइड्रेट व रिफ्रेश करने की बात आए तो रोज वाटर से बेस्ट कुछ नहीं. क्योंकि ये पूरी तरह से केमिकल फ्री जो होता है. साथ ही ये धूलमिट्टी व पोलुशन के कारण स्किन पर जमा गंदगी व एक्सेस आयल को रिमूव करके स्किन को हाइड्रेट व रिफ्रेश फील देने का काम करता है. वो भी बिना स्किन के  पीएच लेवल को बिगाड़े हुए .

आंखों की सूजन कम करे 

आई पफ्फीनेस व आंखों के नीचे काले घेरे आने की समस्या आम है. लेकिन ये जहां दिखने में अच्छे नहीं लगते , वहीं इर्रिटेट भी करते हैं. लेकिन रोज वाटर इसका सोलूशन है.  ये आंखों में इंफेक्शन की प्रोब्लम से भी निजात दिलवाने का काम करता है. क्योंकि इसमें एंटीइंफ्लामेटरी प्रोपर्टीज  होती हैं . जो आंखों में इंफेक्शन व जलन से राहत दिलवाने का काम करती हैं . इसके लिए आप रूई पर थोड़ा सा गुलाब जल लगाकर उसे आंखों पर लगाएं. इससे आंखों को ठंडक मिलने के साथ वे रिलैक्स होंगी और आंखो के नीचे के काले घेरे भी कम होंगे. क्योंकि इसमें स्किन लाइटनिंग क्वालिटीज जो हैं.

सनबर्न से छुटकारा दिलवाए 

सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों के संपर्क में आने से स्किन बर्न हो जाती है. जिससे स्किन टोन में बदलाव आने के साथ स्किन काफी वार्म नजर आती है. यहां तक कि स्किन पर जलन तक होने लगती है, जो स्किन पर इर्रिटेशन पैदा करने का काम करती है. जबकि रोज वाटर में एंटी इंफ्लेमेटरी प्रोपर्टीज होती हैं , जो स्किन की रेडनेस, एक्ने को इम्प्रूव  करने के साथसाथ सनबर्न से हुई जलन को भी शांत करने का काम करता है.

पोर्स को क्लीन करे 

धूलमिट्टी के कारण हमारे स्किन के पोर्स में गंदगी जमा हो जाती है. ऐसे में अगर इन्हें क्लीन नहीं किया जाता तो ये ब्लैकहेड्स, वाइटहेड्स व एक्ने का कारण बनते हैं.  लेकिन रोज वाटर में एनस्टिंजेंट प्रोपर्टीज होती हैं , जो पोर्स को क्लीन करके स्किन को बेदाग बनाने का काम करती है.

दे पिंकी लिप्स 

हर कोई चाहता है कि उसके लिप्स हाइड्रेट रहने के साथसाथ पिंकीपिंकी लगे. इसके लिए कभी हम महंगे लिप्ग्लोस खरीदते हैं तो कभी लिप बाम. लेकिन इससे सिर्फ कुछ घंटों के लिए पिंकी लुक मिलता है. लेकिन रोज वाटर में मॉइस्चराइजिंग प्रोपर्टीज होने के कारण ये लिप्स को हाइड्रेट व नेचुरल रूप से पिंकिश लुक देने का काम करते हैं. जो  आपकी खूबसूरती की बढ़ाने का काम करता है.

बेस्ट रोज वाटर 

– कामा आयुर्वेदा प्योर रोज वाटर  , आपकी स्किन को सोफ्ट व हाइड्रेट रखने का काम करता है. साथ ही इसकी पोर्स को टाइट करने वाली क्वालिटी होने के कारण ये ऑयली व एक्ने प्रोन स्किन के लिए काफी अच्छी साबित होती है.  ये कलर व प्रेसेर्वटिवेस फ्री होने के कारण स्किन को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता है. इसके 50 मिलीलीटर पैक की कीमत 300 रुपए के करीब है.

– इंडस वैली फेशियल टोनर, जैसा नाम वैसा काम. ये स्किन को फेशियल जैसा ग्लो देने का काम करता है. साथ ही ये स्किन को सोफ्ट बनाने के साथसाथ एजिंग, डार्क स्पोट्स व झुर्रियों को भी काफी हद तक कंट्रोल करने का काम करता है. इसके 250 मिलीलीटर पैक की कीमत 250 रुपए के करीब है.

– खादी प्योर रोज मिस्ट आपकी स्किन को डस्ट से बचाकर क्लीयर स्किन देने का काम करता है. ये प्रोडक्ट केमिकल फ्री है. इसके 100 मिलीलीटर पैक की कीमत 450  रुपए के करीब है.

– वाओ रोज मिस्ट स्किन के पीएच लेवल को बैलेंस में रखकर स्किन के नेचुरल मोइस्चर को बैलेंस में रखने का काम करता है. ये पैराबीन व अल्कोहल फ्री है. इसके 200 मिलीलीटर पैक की कीमत 350 रुपए के करीब है. तो फिर अपनी स्किन को रोज वाटर से रखें हाइड्रेट व ग्लोइंग.

पति से अलग रहना चाहती हूं, लेकिन वह मुझे कभी तलाक नहीं देंगे, क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 35 वर्षीय विवाहिता और एक 13 वर्षीय बेटे की मां हूं. मेरे पति सरकारी अधिकारी हैं. रोज शराब पी कर लड़ाईझगड़ा करते हैं. अब तो मारपीट भी करने लगे हैं. मैं 15 सालों से यातनापूर्ण जीवन जी रही हूं. मातापिता बिरादरी में अपनी इज्जत की खातिर मायके में नहीं रखना चाहते. विवाहपूर्व में सरकारी स्कूल में टीचर थी. चाहती हूं कि पति से अलग हो कर दोबारा से किसी स्कूल में नौकरी कर लूं और अपने बच्चे को सही ढंग से पालूं. मेरे पिता सेवानिवृत्त हैं. वे या मां बीचबीच में मेरे पास आ कर रह सकते हैं. क्या मेरा निर्णय सही है? मैं जानती हूं कि मेरे पति मुझे कभी तलाक नहीं देंगे पर मुझे इस से कोई फर्क नहीं पड़ता.

जवाब-

यदि आप को लगता है कि आप के पति सुधरने वाले नहीं हैं तो उन का अत्याचार सहने और बच्चे को स्वस्थ वातावरण देने के लिए आप यह कदम उठा सकती हैं. आप को चाहिए कि पहले आप अपने लिए नौकरी तलाशें. उस के बाद ही रहने की व्यवस्था हो जाने के बाद पति को अपने निर्णय से अवगत कराएं. संभव है आप के इस कठोर निर्णय से आप के पति को अपराधबोध हो और वे सुधर जाएं. कई बार दूर जाने से भी रिश्तों में मधुरता लौट आती है. 

सवाल-

मैं जानना चाहती हूं कि 2 लड़कियों के परस्पर चुंबन करने से कोई नुकसान तो नहीं होता?

जवाब-

रोमांचित होने पर एकदूसरे का चुंबन लेने से कोई नुकसान नहीं होता. यह खुशी का इजहार करने का एक तरीका है.

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स्मिता को जिस तलाक की चाह थी वह मिल गया था, लेकिन जिस रूप, जवानी पर उसे घमंड था वह वक्त के साथ ढल चुकी थी. अब वह जाए तो जाए किस के पास, कौन था उस का हाथ थामने वाला?

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ब्रैकफास्ट में बनाएं काबुली मखाना टिक्की, ये रही रेसिपी

अगर आप फेस्टिव सीजन में हेल्दी और टेस्टी स्नैक्स ट्राय करना चाहते हैं तो काबुली मखाना टिक्की आपके लिए अच्छा औप्शन है.

सामग्री

11/2 कप सफेद उबले चने

–  1/2 कप चने की दाल –

  1 बड़ा चम्मच हरे मटर

  1/2 कप फीके मखाने

–  1/2 कप कुकिंग औयल

–  चाटमसाला, नमक, हरीमिर्च, गरममसाला और लालमिर्च आवश्यकतानुसार.

विधि

चनों को 6-7 घंटे पानी में भिगोए रखने के बाद कुकर में पानी, नमक व 1-2 बूंदें तेल की डाल कर 80% उबाल लें. ठंडा होने पर मिक्सर में पीस लें. ध्यान रहे पानी न हो. चने की दाल को भी कुकर में पानी, नमक व हलदी डाल कर 50% पका लें. मखानों को कड़ाही में रोस्ट कर के मिक्सी में दरदरा पीस लें. मटरों को भी अलग से दरदरा कर लें. अब चना दाल और मटरों को तेल में छौंक लगा कर सारे मसाले डालें. हरीमिर्च को बारीक पीस कर डालें. एक बाउल में मखाने व चने ले कर छोटेछोटे गोले बनाएं. उन में दाल व मटर की भरावन भरें और टिक्की की शेप दें. ऐसे ही सारी टिकियां बना कर नौनस्टिक तवे पर शैलो फ्राई करें. दोनों तरफ से सुनहरा होने के बाद नैपकिन पर निकालें और फिर गरमगरम ही हरी चटनी व इमली की चटनी के साथ सर्व करें.

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