एक सफर ऐसा भी: क्या था स्वरुप का प्लान

दिल्ली के प्रेमी युगलों के लिए सब से मुफीद और लोकप्रिय जगह है लोधी गार्डन. स्वरूप और प्रिया हमेशा की तरह कुछ प्यारभरे पल गुजारने यहां आए थे. रविवार की सुबह थी. पार्क में हैल्थ कौंशस लोग मौर्निंग वाक के लिए आए थे. कोई दौड़ लगा रहा था तो कोई ब्रिस्क वाक कर रहा था. कुछ लोग तरहतरह के व्यायाम करने में व्यस्त थे, तो कुछ उन्हें देखने में. झील के सामने लगी लोहे की बैंच पर बैठे प्रिया और स्वरूप एकदूसरे में खोए थे. प्रिया की बड़ीबड़ी शरारतभरी निगाहें स्वरूप पर टिकी थीं. वह उसे लगातार निहारे जा रही थी.

स्वरूप ने उस के हाथों को थामते हुए कहा, ‘‘प्रिया, आज तो तुम्हारे इरादे बड़े खतरनाक लग रहे हैं.’’

वह हंस पड़ी, ‘‘बिलकुल जानेमन. इरादा यह है कि तुम्हें अब हमेशा के लिए मेरा हाथ थामना होगा. अब मैं तुम से दूर नहीं रह सकती. तुम ही मेरे होंठों की हंसी हो. भला हम कब तक ऐसे छिपछिप कर मिलते रहेंगे?’’ और फिर प्रिया गंभीर हो गई.

स्वरूप ने बेबस स्वर में कहा, ‘‘अब मैं क्या कहूं? तुम तो जानती ही हो मेरी मां को… उन्हें तो वैसे ही कोई लड़की पसंद नहीं आती उस पर हमारी जाति भी अलग है.’’

‘‘यदि उन के राजपूती खून वाले इकलौते बेटे को सुनार की गरीब बेटी से इश्क हो गया है तो अब हम दोनों क्या कर सकते हैं? उन को मुझे अपनी बहू स्वीकार करना ही पड़ेगा. पिछले 3 साल से कह रही हूं… एक बार बात कर के तो देखो.’’

‘‘एक बार कहा था तो उन्होंने सिरे से नकार दिया था. तुम तो जानती ही हो कि मां के सिवा मेरा कोई है भी नहीं. कितनी मुश्किलों से पाला है उन्होंने मुझे. बस एक बार वे तुम्हें पसंद कर लें फिर कोई बाधा नहीं. तुम उन से मिलने गईं और उन्होंने नापसंद कर दिया तो फिर तुम तो मुझ से मिलना भी बंद कर दोगी. इसी डर से तुम्हें उन से मिलवाने नहीं ले जाता. बस यही सोचता रहता हूं कि उन्हें कैसे पटाऊं.’’

‘‘देखो अब मैं तुम से तो मिलना बंद नहीं कर सकती. ऐसे में तुम्हारी मां को पटाना ही अंतिम रास्ता है.’’

‘‘पर मेरी मां को पटाना

ऐसी चुनौती है जैसे रेगिस्तान में पानी खोजना.’’

‘‘ओके, तो मैं यह चुनौती स्वीकार करती हूं. वैसे भी मुझे चुनौतियों से खेलना बहुत पसंद है,’’ बड़ी अदा के साथ अपने घुंघराले बालों को पीछे की तरफ झटकते हुए प्रिया ने कहा और फिर उठ खड़ी हुई.

‘‘मगर तुम यह सब करोगी कैसे?’’ स्वरूप ने उठते हुए पूछा.

‘‘एक बात बताओ. तुम्हारी मां इसी वीक मुंबई जाने वाली हैं न किसी औफिशियल मीटिंग के लिए… तुम ने कहा था उस दिन.’’

‘‘हां, वे अगले मंगल को निकल रही हैं. आजकल में रिजर्वेशन भी करानी है मुझे.’’

‘‘तो ऐसा करो, एक के बजाय 2 टिकट करा लो. इस सफर में मैं उन की हमसफर बनूंगी, पर उन्हें बताना नहीं,’’ आंखें नचाते हुए प्रिया ने कहा तो स्वरूप की प्रश्नवाचक निगाहें उस पर टिक गईं.

प्रिया को भरोसा था अपने पर. वह जानती थी कि सफर के दौरान आप सामने वाले को बेहतर ढंग से समझ पाते हैं. जब हम इतने घंटे साथ बिताएंगे तो हर तरह की बातें होंगी. एकदूसरे को इंप्रैस करने का मौका मिलेगा. यह तय हो जाएगा कि वह स्वरूप की बहू बन सकती है. उस ने मन ही मन फैसला कर लिया था कि यह उस की आखिरी परीक्षा है.

स्वरूप ने मुसकराते हुए सिर तो हिला दिया था पर उसे भरोसा नहीं था. उसे प्रिया का आइडिया बहुत पसंद आया था. पर वह मां के जिद्दी धार्मिक व्यवहार को जानता था. फिर भी उस ने हां कर दी. उसी दिन शाम उस ने मुंबई राजधानी ऐक्सप्रैस के एसी 2 टियर श्रेणी में

2 टिकट (एक लोअर और दूसरा अपर बर्थ) रिजर्व करा दिए. जानबूझ कर मां को अपर बर्थ दिलाई और प्रिया को लोअर.

जिस दिन प्रिया को मुंबई के लिए निकलना था, उस से 2 दिन पहले से वह अपनी तैयारी में लगी थी. यह उस की जिंदगी का बहुत अहम सफर था. उस की खुशियों की चाबी यानी स्वरूप का मिलना या न मिलना इसी पर टिका था. प्रिया ने वे सारी चीजें रख लीं, जिन के जरीए उसे स्वरूप की मां पर इंप्रैशन जमाने का मौका मिल सकता था.

ट्रेन शाम 4.35 पर नई दिल्ली स्टेशन से छूटनी थी. अगले दिन सुबह 8.35 ट्रेन का मुंबई अराइवल था. कुल 16 घंटों का सफर था. इन

16 घंटों में उसे स्वरूप की मां को जानना था और अपना सही और पूरा परिचय देना था.

वह समय से पहले ही स्टेशन पहुंच गई और बहुत बेसब्री से स्वरूप और उस की मां के आने का इंतजार करने लगी. कुछ ही देर में उसे स्वरूप आता दिखा, साथ में मां भी थी. दोनों ने दूर से ही एकदूसरे को आल द बैस्ट कहा.

ट्रेन के आते ही प्रिया सामान ले कर अपनी बर्थ की तरफ

बढ़ गई. सही समय पर ट्रेन चल पड़ी. आरंभिक बातचीत के साथ ही प्रिया ने अपनी लोअर बर्थ मां को औफर कर दी. उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया, क्योंकि उन्हें घुटनों में दर्द रहने लगा था. वैसे भी बारबार ऊपर चढ़ना उन्हें पसंद नहीं था. उन की नजरों में प्रिया के प्रति स्नेह के भाव झलक उठे. प्रिया एक नजर में उन्हें काफी शालीन लगी. दोनों बैठ कर दुनियाजहान की बातें करने लगीं. मौका देख कर प्रिया ने उन्हें अपने बारे में सारी बेसिक जानकारी दे दी कि कैसे वह दिल्ली में रह कर जौब कर अपने मांबाप का सपना पूरा कर रही है. दोनों ने साथ ही खाना खाया.

प्रिया का खाना चखते हुए मां ने पूछा, ‘‘किस ने बनाया तुम ने या कामवाली रखी है?’’

‘‘कामवाली तो है आंटी पर खाना मैं खुद ही बनाती हूं. मेरी मां ने मुझे सिखाया है कि जैसा खाओ अन्न वैसा होगा मन. अपने हाथों से बनाए खाने की बात ही अलग होती है… इस में सेहत और स्वाद के साथ प्यार जो मिला होता है.’’

उस की बात सुन कर मां मुसकरा उठीं, ‘‘तुम्हारी मां ने तो बहुत अच्छी बातें सिखाई हैं. जरा बताओ और क्या सिखाया है उन्होंने?’’

‘‘कभी किसी का दिल न दुखाओ, जितना हो सके दूसरों की मदद करो. आगे बढ़ने के लिए दूसरे की मदद पर नहीं, बल्कि अपनी काबिलीयत और परिश्रम पर विश्वास करो. प्यार से सब का दिल जीतो.’’

प्रिया कहे जा रही थी और मां गौर से सुन रही थीं. उन्हें प्रिया की बातें बहुत पसंद आ रही थीं. इसी बीच मां बाथरूम के लिए उठीं कि अचानक झटका लगने से डगमगा गईं और किनारे रखे ब्रीफकेस के कोने से पैर में चोट लग गई. चोट ज्यादा नहीं लगी थी, मगर खून निकल आया. मां को बैठाया और फिर अपने बैग में रखे फर्स्ट ऐड बौक्स को खोलने लगी.

मां ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘तुम हमेशा यह डब्बा ले कर निकलती हो?’’

‘‘हां आंटी, चोट मुझे लगे या दूसरों को मुझे अच्छा नहीं लगता. तुरंत मरहम लगा दूं तो दिल को सुकून मिल जाता है. वैसे भी जिंदगी में हमेशा किसी भी तरह की परेशानी से लड़ने के लिए तैयार रहना चाहिए,’’ कहते हुए प्रिया ने तुरंत चोट वाली जगह पर मरहम लगा दिया और इस बहाने उस ने मां के पैर भी छू लिए.

मां ने प्यार से उस का गाल थपथपाया और पूछने लगीं, ‘‘तुम्हारे पापा क्या करते हैं? तुम्हारी मां हाउसवाइफ  हैं या जौब करती हैं?’’

प्रिया ने बिना किसी लागलपेट के साफ स्वर में जवाब दिया, ‘‘मेरे पापा सुनार हैं और वे ज्वैलरी शौप में काम करते हैं. मेरी मां हाउसवाइफ हैं. हम 2 भाईबहन हैं. छोटा भाई इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहा है और मैं यहां एक एमएनसी कंपनी में काम करती हूं. मेरी सैलरी अभी

80 हजार प्रति महीना है. उम्मीद करती हूं कि कुछ सालों में अच्छा मुकाम हासिल कर लूंगी.’’

‘‘बहुत खूब,’’ मां के मुंह से निकला. उन की प्रशंसाभरी नजरें प्रिया पर टिकी थीं, ‘‘बेटा और क्या शौक हैं तुम्हारे?’’

‘‘मेरी मम्मी बहुत अच्छी डांसर हैं. उन्होंने मुझे भी इस कला में निपुण किया है. डांस के अलावा मुझे कविताएं लिखने और फोटोग्राफी करने का भी शौक है. तरहतरह की डिशेज तैयार करना और सब को खिला कर वाहवाही लूटना भी बहुत पसंद है.’’

ट्रेन अपनी गति से आगे बढ़ रही थी और इधर प्रिया और मां की बातें भी बिना किसी रुकावट जारी थीं.

कोटा और रतलाम स्टेशनों के बीच ट्रेन 140 किलोमीटर प्रति घंटे की तेज रफ्तार से चल रही थी कि अचानक एक झटके से रुक गई. दूरदूर तक जंगली सूना इलाका था. आसपास न तो आवागमन के साधन थे और न खानेपीने की चीजें थीं. पता चला कि ट्रेन करीब 8-9 घंटे वहीं खड़ी रहनी है. दरअसल, पटरी में क्रैक की वजह से ट्रेन के आगे वाला डब्बा उलट गया था. यात्री घायल तो नहीं हुए, मगर अफरातफरी जरूर मच गई थी. क्रेन आने और पलटे डब्बे को हटाने में काफी समय लगना था.

ऐक्सीडैंट 11 बजे रात में हुआ था और अब सुबह हो चुकी थी. यह

इलाका ऐसा था कि दूरदूर तक चायपानी तक की दुकान नजर नहीं आ रही थी. ट्रेन के पैंट्री कार में भी अब खाने की चीजें खत्म हो चुकी थीं. 12 बज चुके थे. मां सोच रही थीं कि चाय का इंतजाम हो जाता तो चैन आता. तब तक प्रिया पैंट्री कार से गरम पानी ले आई. अपने पास रखा टीबैग, चीनी और मिल्क पाउडर से उस ने फटाफट चाय तैयार की और फिर टिफिन बौक्स निकाल कर उस में से दाल की कचौडि़यां और मठरी आदि कागज की प्लेट में रख कर नाश्ता सजा दिया. टिफिन बौक्स निकालते समय मां ने गौर किया था कि प्रिया के बैग में डियो के अलावा भी कोई स्प्रे है.

‘‘यह क्या है प्रिया?’’ मां ने उत्सुकता से पूछा.

प्रिया बोली, ‘‘आंटी, यह पैपर स्प्रे है ताकि किसी बदमाश से सामना हो जाए तो उस के गलत इरादों को सफल न होने दूं. सिर्फ  यही नहीं अपने बचाव के लिए मैं हमेशा एक चाकू भी रखती हूं. मैं खुद कराटे में ब्लैक बैल्ट होल्डर हूं. खुद की सुरक्षा का पूरा खयाल रखती हूं.’’

‘‘बहुत अच्छा,’’ मां की खुशी चेहरे पर झलक रही थी, ‘‘अच्छा प्रिया यह बताओ कि तुम अपनी सैलरी का क्या करती हो? खुद तुम्हारे खर्चे भी काफी होंगे. आखिर अकेली रहती हो मैट्रो सिटी में और फिर औफिस में प्रेजैंटेबल दिखना भी जरूरी होता है. आधी सैलरी तो उसी में चली जाती होगी.’’

‘‘अरे नहीं आंटी ऐसा कुछ नहीं है. मैं

अपनी सैलरी के 4 हिस्से करती हूं. 2 हिस्से यानी 40 हजार भाई की इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए पापा को देती हूं. एक हिस्सा खुद पर खर्च करती हूं और बाकी के एक हिस्से से फ्लैट का किराया देने के साथ कुछ पैसे सोशल वर्क में लगाती हूं.’’

‘‘सोशल वर्क?’’ मां ने हैरानी से पुछा.

‘‘हां आंटी, जो भी मेरे पास अपनी समस्या ले कर आता है उस का समाधान ढूंढ़ने का प्रयास करती हूं. कोई नहीं आया तो खुद ही गरीबों के लिए कपड़े, खाना वगैरह खरीद कर बांट देती हूं.’’

तभी ट्रेन फिर चल पड़ी. दोनों की बातें भी चल रही थीं. मां ने प्रिया की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘मेरा भी एक बेटा है स्वरूप. वह भी दिल्ली में जौब करता है.’’

स्वरूप का नाम सुनते ही प्रिया की आंखों में चमक उभर आई. अचानक मां ने प्रिया की तरफ देखते हुए पूछा, ‘‘अच्छा, यह बताओ बेटे कि आप का कोई बौयफ्रैंड है या नहीं? सचसच बताना.’’

प्रिया ने 2 पल मां की आंखों में झांका और फिर नजरें झुका कर बोली, ‘‘जी है.’’

‘‘उफ…’’ मां थोड़ी गंभीर हो गईं, ‘‘बहुत प्यार करती हो उस से? शादी करने वाले हो तुम दोनों?’’

प्रिया को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या जवाब दे. इस तरह की बातों का हां में जवाब देने का अर्थ है खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना. फिर भी जवाब तो देना ही था. सो वह हंस कर बोली, ‘‘आंटी, शादी करना तो चाहते हैं, मगर क्या पता आगे क्या लिखा है. वैसे आप अपने बेटे के लिए कैसी लड़की ढूंढ़ रही हैं?’’

‘‘ईमानदार, बुद्धिमान और दिल से खूबसूरत.’’

दोनों एकदूसरे की तरफ  कुछ पल देखती रहीं. फिर प्रिया ने पलकें झुका लीं. उसे समझ नहीं आ रहा था कि मां से क्या कहे और कैसे कहे. दोनों ने ही इस मसले पर फिर बात नहीं की. प्रिया के दिमाग में बड़ी उधेड़बुन चलने लगी थी. उसे समझ नहीं आ रहा था कि मां ने उसे पसंद किया या नहीं. उस ने स्वरूप को वे सारी बातें मैसेज कर के बताईं. मां भी खामोश बैठी रहीं. प्रिया कुछ देर के लिए आंखें बंद कर लेट गई. उसे पता ही नहीं चला कि कब उसे नींद आ गई. मां के आवाज लगाने पर वह हड़बड़ा कर उठी तो देखा मुंबई आ चुका था और अब उसे मां से विदा लेनी थी.

स्टेशन पर उतर कर वह खुद ही बढ़ कर मां के गले लग गई. मन में एक अजीब सी घबराहट थी. वह चाहती थी कि मां कुछ कहें पर ऐसा नहीं हुआ. मां से विदा ले कर वह अपने रास्ते निकल आई. अगले दिन ही फ्लाइट पकड़ कर दिल्ली लौट आई.

फिर वह स्वरूप से मिली और सारी बातें विस्तार से बताईं. बौयफ्रैंड वाली बात भी. स्वरूप भी कुछ समझ नहीं सका कि मां को प्रिया कैसी लगी. मां 2 दिन बाद लौटने वाली थीं. दोनों ने 2 दिन बड़ी उलझन में गुजारे. उन की जिंदगी का फैसला जो होना था.

नियत समय पर मां लौटीं. स्वरूप बहुत बेचैन था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि मां से कैसे पूछे. वह चाहता था कि मां खुद ही उस से प्रिया की बात छेड़े, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. एक दिन और बीत गया. अब तो स्वरूप की हालत खराब होने लगी. अंतत: उस ने खुद ही मां से पूछ लिया, ‘‘मां आप का सफर कैसा रहा? सह यात्री कैसे थे?’’

‘‘सब अच्छा था,’’ मां ने छोटा सा जवाब दिया.

स्वरूप और भी ज्यादा बेचैन हो उठा. उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे पूछे मां से. उस से रहा नहीं गया तो उस ने सीधा पूछ लिया, ‘‘और वह जो लड़की थी जाते समय साथ… उस ने आप का खयाल तो रखा?’’

‘‘क्यों पूछ रहे हो? जानते हो क्या उसे?’’ मां ने प्रश्नवाचक नजरें उस पर टिका दीं.

स्वरूप घबरा गया जैसे उस की चोरी पकड़ी गई हो, ‘‘जी ऐसा कुछ नहीं. मैं तो बस ऐसे ही पूछ रहा था.’’

‘‘ओके, सब अच्छा रहा. अच्छी थी लड़की,’’ मां फिर छोटा सा जवाब दे कर बाहर निकलने लगीं. लेकिन फिर ठहर गईं. बोलीं, ‘‘हां एक बात बता दूं कि मेरे साथ जो लड़की थी न उस की कई बातों ने मुझे अचरज में डाल दिया. जानते हो मेरे दाहिने पैर में चोट लगी तो उस ने क्या किया?’’

‘‘क्या किया मां?’’ अनजान बनते हुए स्वरूप ने पूछा.

‘‘मेरे दाहिने पैर में मरहम लगाने के बहाने उस ने मेरे दोनों पैरों को छू लिया. फिर जब मैं ने उस से यह पूछा कि क्या उस का कोई बौयफ्रैंड है तो 2 पलों के लिए उस के दिमाग में एक जंग सी छिड़ गई. लग रहा था जैसे वह सोच रही हो कि अब मुझे क्या जवाब दे. एक बात और जानते हो, तेरा नाम लेते ही उस की नजरों में अजीब सी चमक आई और पलकें झुक गईं. मैं समझ नहीं सकी कि ऐसा क्यों है?’’

मां की बातें सुन कर स्वरूप के चेहरे पर घबराहट की रेखाएं खिंच गईं. वह एकटक मां की तरफ देखे जा रहा था जैसे मां उस के ऐग्जाम का रिजल्ट सुनाने वाली हैं.

मां ने फिर कहा, ‘‘एक बात और बताऊं स्वरूप, जब वह सो

रही थी तो उस की मोबाइल स्क्रीन पर मुझे तुम्हारे कई सारे व्हाट्सऐप मैसेज आते दिखे, क्योंकि उस ने तुम्हारे मैसेज पौप अप मोड में रखे थे. मैसेज कुछ इस तरह के थे, ‘‘डोंट वरी प्रिया. मां के साथ तुम्हारा यह सफर हम दोनों की जिंदगी के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण

है. मां बस एक बार तुम्हें पसंद

कर लें फिर हम हमेशा के लिए एक हो जाएंगे.

‘‘फिर तो मेरा शक यकीन में बदल गया कि तुम दोनों मिल कर मुझे बेवकूफ बना रहे हो,’’ कहतेकहते मां थोड़ी गंभीर हो गईं.

‘‘नहीं मां ऐसा नहीं है,’’ उस ने मां के कंधे पकड़ कर कहा.

मां झटके से अलग होती हुई बोलीं, ‘‘देखो स्वरूप एक बात अच्छी तरह समझ लो…’’

‘‘क्या मां?’’ स्वरूप डरासहमा सा बोला.

‘‘यही कि तुम्हारी पसंद…’’ कहतेकहते मां रुक गईं.

स्वरूप को लगा जैसे उस की धड़कनें रुक जाएंगी.

तभी मां खिलखिला कर हंस पड़ीं, ‘‘जरा अपनी सूरत तो देखो. ऐसे लग रहे हो जैसे ऐग्जाम में फेल होने के बाद चेहरा बन गया हो तुम्हारा. मैं तो कह रही थी कि तुम्हारी पसंद बहुत अच्छी है. मुझे बस ऐसी ही लड़की चाहिए थी बहू के रूप में… सर्वगुणसंपन्न… रियली आई लाइक योर चौइस.’’

मां के शब्द सुन कर स्वरूप अपनी खुशी रोक नहीं पाया और मां के गले से लग गया, ‘‘आई लव यू मां.’’

मां प्यार से बेटे की पीठ थपथपाने लगीं.

बौलीवुड शहंशाह का है आज हैप्पी बर्थडे, जानें 82 साल के Amitabh Bachchan का डाइट प्लान

Happy Birthday Amitabh Bachchan : कला एक ऐसा माध्यम है जो समाज को तोड़ने के लिए नहीं बल्कि जोड़ने के लिए काम करता है . एक कलाकार खुद को संघर्षों की भट्टी में तपाता है, वक्त की ठोकर को सहकर जग में प्रकाश फैलाता है. ऐसा हम नहीं कह रहे बल्कि सदी के महानायक श्री अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) का कहना है जिनका जन्म 11 अक्टूबर 1942 को हुआ. आज भी वह फिल्मों में ही नहीं सोशल मीडिया पर भी पूरी तरह एक्टिव हैं. छोटे परदे से लेकर बड़े परदे तक उनका सक्रिय रहना सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है. सिर्फ आम दर्शक ही नहीं फिल्म इंडस्ट्री वालों के भी वह रोल मौडल है . पेश है इसी सुपरस्टार से संबंधित दिलचस्प बातों के खास अंश उनके जन्मदिन शुभ अवसर पर…

अमित जी के दिल से निकली दिलचस्प बातें…

अपने जन्मदिन के अवसर पर अमिताभ बच्चन को बचपन में गिफ्ट लेना बहुत पसंद था .उनके अनुसार जब मेरे मातापिता मेरे जन्मदिन के उपलक्ष्य में घर में पार्टी रखते थे तो मेरा ध्यान सिर्फ गिफ्ट पर होता था मेरी यही इच्छा रहती थी कि मेरे लिए कौनसा गिफ्ट आ रहा है. उस दौरान मुझे बर्थडे गिफ्ट से इतना प्यार था कि मैं गिफ्ट लेकर सीधा अपने कमरे में भाग जाता था यह देखने के लिए कि गिफ्ट पौकेट के अंदर क्या है. अब इस उम्र में मुझे धूमधाम से बर्थडे मनाना पसंद नहीं है. क्योंकि जिनके साथ में बर्थडे मनाता था और मुझे खुशी मिलती थी वह मेरे पिताजी हरिवंश राय बच्चन हैं. उनके बगैर मुझे बर्थडे मनाना इतना पसंद नहीं आता. लेकिन घरवाले और मेरे प्रशंसक मेरा जन्मदिन मनाए बगैर नहीं मानते. इसलिए उनकी खुशी के लिए मैं अपना बर्थडे मना लेता हूं. क्योंकि मैंने जीवन में लोगों का प्यार पाकर ही अपनी मंजिल तय की है. इसलिए मेरा जीवन उनका है,उनको मैं नाराज नहीं कर सकता.

82 वर्षीय बौलीवुड के सुपरस्टार अमिताभ बच्चन की फिटनेस का राज , उनका डाइट प्लान और फिटनेस सीक्रेट….

82 वर्षीय अमिताभ बच्चन एक ऐसे एक्टर हैं जो इस उम्र में भी एकदम फिट है पौजिटिव हैं और इस उम्र में भी अभिनय क्षेत्र में डांस ,एक्शन, कौमेडी इमोशनल दृश्य करने में नहीं हिचकिचाते. शूटिंग के दौरान जहां अन्य कलाकार अपनी वैन में जाकर बैठ जाते हैं . वही अमिताभ बच्चन सेट पर ही मौजूद रहकर अन्य कलाकारों की ना सिर्फ शूटिंग देखते हैं , बल्कि उनकी हौसला आफजाई भी करते हैं. इस उम्र में अभी भी वह फिट पौजिटिव दिखाई देते हैं . ऐसे में सभी को यह जानने की उत्सुकता रहती है कि आखिर अमित जी की फिटनेस का राज क्या है . पिछले दिनों अपने ब्लौग में अमित जी ने अपना डाइट प्लान और फिटनेस सीक्रेट शेयर किया. जिसके अनुसार अमित जी वर्कआउट रूटीन में लापरवाही नहीं बरतते, अपने ट्रेनर के कहे अनुसार वौकिंग जौगिंग, वेट ट्रेनिंग, करते हैं इसके अलावा मानसिक शांति के लिए 8 घंटे की नींद जरूर लेते हैं मेडिटेशन का सहारा लेकर वह अपने आप को मानसिक तौर पर फिट रखते हैं. वह बहुत ज्यादा खाने के शौकीन नहीं है इसलिए बहुत लिमिटेड खाना खाते हैं. ताकि आलस से दूर रह सके
खाने में शक्कर का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं करते. खाने में ओट्स, अंडा, साबुत अनाज, और फल सब्जी का सेवन करते हैं. दिन में 20 मिनट का वाक सुबह के टाइम जरूर करते हैं. अमित जी के अनुसार अगर आपको फिट रहना है तो पौजिटिव सोच का पालन करना बहुत जरूरी है. क्योंकि हम जितना निगेटिव सोचते हैं उससे कहीं ज्यादा निगेटिव हमारी जिंदगी में होता है.

साउथ और बौलीवुड स्टार के रोल मौडल हैं अमिताभ बच्चन….

शहंशाह सुपरस्टार कहलाने वाले अमिताभ बच्चन सिर्फ आम दर्शकों के लिये ही नहीं बल्कि बौलीवुड और साउथ के स्टारों के भी दिलों पर राज करते हैं . बौलीवुड स्टार हो या साउथ के एक्टर हर कोई अमित जी को अपना रोल मौडल मानते हैं. जैसे के साउथ के प्रसिद्ध एक्टर अल्लू अर्जुन के अनुसार वह अमित जी को अपना रोल मौडल मानते हैं क्योंकि 82 साल में भी उनकी सक्रियता मुझे आश्चर्यचकित करती है और मेरी बड़ी इच्छा है कि मैं भी उनकी तरह बड़ी उम्र तक इतना ही काम करता रहूं और ऐसे ही दर्शकों का प्यार पाता रहूं. साउथ के स्टार प्रभास अमित जी के साथ काम करके अपने आप को धन्य मानते हैं प्रभास के अनुसार मैंने अपनी पूरी जिंदगी में अमित जी जितना शालीन सभ्य और बेहतरीन एक्टर नहीं देखा. वैसे तो मैं पहले से ही उनका फैन था. लेकिन अब मैं उनको अपना रोल मौडल मानता हूं.

साउथ के सुपरस्टार रजनीकांत भी अमिताभ बच्चन के जबरदस्त फैन हैं क्योंकि रजनीकांत का मानना है अमित जी ने अपनी जिंदगी में बहुत सारे उतारचढ़ाव देखे हैं. एक समय ऐसा भी था जब उनका डाउनफौल हो गया था . लेकिन उन्होंने कभी भी हार नहीं मानी. दिन में 18 घंटे काम करके अमित जी अपना पैसा और नाम शोहरत दोनों वापस पा लिया. अमित जी के साथ मैंने जब भी काम किया है बहुत कुछ सीखा है. यही वजह है कि मैं उनको अपना रोल मौडल और गुरु मानता हूं. साउथ के स्टारों के अलावा शाहरुख खान आमिर खान, कपिल शर्मा, आदि सभी बौलीवुड स्टार्स अमिताभ बच्चन को अपना रोल मौडल मानते हैं. यही वजह है कि सुपरस्टार अमिताभ बच्चन को महानायक के खिताब से नवाजा जाता है और वह करोड़ों दिलों पर राज करते हैं.

Festival में धर्मगुरुओं का दखल क्यों ? त्योहार तो खुशियों की है चाबी

हमारे देश में हर साल कई तरह के त्योहार (Festival) मनाए जाते हैं. ये त्योहार लोगों को उन की रोजमर्रा की दिनचर्या से सिर्फ कुछ समय का ब्रेक ही नहीं देते हैं बल्कि जश्न मनाने और अपनों के साथ रिश्ते मजबूत करने का मौका भी देते हैं. इन त्योहारों का मतलब उपवास करना या धार्मिक रीतिरिवाजों को निभाना नहीं बल्कि जिंदगी में प्यार और उत्साह भरना है. इन्हें धर्म से नहीं बल्कि खुशियों से जोड़ कर देखना चाहिए. प्राचीनकाल से हर त्योहार कुछ खास मतलब से मनाया जाता रहा है.कभी कृषि कार्य आरंभ करने की खुशी, कभी फसल काटने का हर्ष तो कभी मौसम के बदलाव का संकेत. ये बहुआयामी उत्सव हैं.

आज हम ने भले ही इन्हें रीतिरिवाजों और धार्मिक कर्मकांडों में इतना ज्यादा डुबो रखा है कि इन के असली अर्थ और आनंद को भूल गए हैं. फैस्टिवल का मतलब तो हंसीखुशी और ऐंजौय करने का दिन है न कि पूजापाठ करने का दिन. याद रखिए यह पंडितों और धर्मगुरुओं की तिजोरी भरने का दिन नहीं है बल्कि अपने लिए खुशियां ढूंढ़ कर लाने का दिन है. त्योहार की खासीयत है कि यह एकसाथ सब का होता है. आप बर्थडे मनाते हैं, ऐनिवर्सरी मनाते हैं, ये सब दिन आप के पर्सनल होते हैं, आप की फैमिली के लिए खास होते हैं. मगर फैस्टिवल्स पूरे देश में एकसाथ मनाए जाते हैं. हरकोई उसी दिन फैस्टिवल मना रहा होता है. इस का आनंद ही अलग होता है.धर्म का दखल क्योंमगर धर्म ने हमारी खुशियों, हमारे फैस्टिवल्स पर कब्जा कर रखा है. अगर इंसान पैदा होता है तो धर्म और धर्मगुरु आ जाते हैं. धर्मगुरु इस बहाने पैसा कमाते हैं. इंसान मरता है तो भी धर्मगुरुओं की चांदी हो जाती है. जबकि कोई इंसान पैदा या मर रहा है या शादी कर रहा है उस में धर्म का या धर्मगुरुओं का दखल क्यों? इसी तरह कोई भी फैस्टिवल हो धर्मगुरु, पंडित, पुजारी सब अपनी चांदी करने की कोशिश में लग जाते हैं.लोग आंख बंद कर उन के हिसाब से चलते हैं. उन के हिसाब से पूजापाठ में पूरा दिन बिताते हैं और फिर दानधर्म के नाम पर अपनी मेहनत से कमाई हुई दौलत उन पर लुटा देते हैं.

यह फैस्टिवल नहीं हुआ यह तो एक तरह से बस पंडितों की चांदी हुई.मानसिक सेहत के लिए लाभकारी हैं ये फैस्टिवल्सत्योहार यानी खुशियों को महसूस करने का मौका है. अपने सांस्कृतिक महत्त्व से परे त्योहारों का हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा लाभ होता है. ये अपनेपन की भावना को बढ़ावा देने, तनाव दूर करने और सकारात्मकता फैलाने में बेहद महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. त्योहार ऐसा मौका होता है जब लोग जिंदगी की तमाम चुनौतियों के बावजूद एकसाथ मिल कर मौजमस्ती करते हैं, खातेपीते हैं और खुशियां मनाते हैं. दीपावली, रक्षाबंधन और क्रिसमस जैसे आने वाले त्योहार लोगों के बीच प्यार और सद्भाव को बढ़ावा देते हैं.नवरात्रि का त्योहार हो या दीवाली, क्रिसमस हो या नइया ईयर ये सभी देश के ज्यादातर हिस्सों में काफी धूमधाम से मनाए जाते हैं. त्योहार अपने साथ खुशी और उत्साह लाते हैं.

हैल्थ ऐक्सपर्ट्स भी मानते हैं कि त्योहार हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर डालते हैं. यह एक ऐसा समय होता है जब लोग चिंताओं और परेशानियों को भूल त्योहार के रंग में रंग जाते हैं. गरबा नाइट्स से ले कर पटाखे जलाने या मिठाइयां खाने जैसी कई ऐक्टिविटीज हैं जिन में आप हिस्सा ले सकते हैं. स्वादिष्ठ खाना, करीबी लोगों के साथ वक्त बिताना, फैस्टिव वाइब सभी हम सभी को दिल से खुश कर देते हैं.तनाव से राहतत्योहारों का मौसम ऐसा होता है जब हरकोई सब से अच्छा दिखना चाहता है. महिलाएं अपनी स्किन की देखभाल करती हैं. चेहरे के मास्क से ले कर नेलपौलिश और मेहंदी लगाना या सौंदर्य प्रसाधनों के साथ प्रयोग करना उन्हें भाने लगता है. ये चीजें शरीर और मन को आराम और सुकून देती हैं. जब आप इन का इस्तेमाल करती हैं तो आप को ऐसा लगता है जैसे आप अपना खयाल रख रही हैं. यह सोच तनाव हारमोन को कम करती है. त्वचा को रगड़ना और थपथपाना जैसी सरल क्रियाएं आप की हृदय गति और चिंता को कम करने में मदद कर सकती हैं.

जब आप क्लींजिंग, टोनिंग, मौइस्चराइजिंग जैसे कामों पर ध्यान केंद्रित करती हैं तो आप शांत महसूस करती हैं जिस का आप के मानसिक स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है.कई अध्ययनों के अनुसार उत्सव के लिए तैयार होने के दौरान बालों को ब्रश करना और स्टाइल देना, शौपिंग करना, नईनई ड्रैसेज पहनना, मेहंदी लगाना जैसे छोटेमोटे प्रयास भी आत्मविश्वास को बढ़ाते हैं और यौवन की अनुभूति देते हैं. हम खुद को खूबसूरत महसूस करते हैं. हमारा दिल और दिमाग उस दौरान काफी स्फूर्तिवान और आनंदित रहता है.त्योहारों के दौरान घर को सजाना, जश्न की तैयारी करना जैसी ऐक्टिविटीज का असर हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है. भले ही हम इन सब कामों को कर थक जाते हैं लेकिन इन से दिमाग और शरीर को नई ऊर्जा मिलती है. तनाव पैदा करने वाले हारमोन का स्तर कम होता चला जाता है.

जब आप त्योहार मनाते हैं, लोगों से मिलते हैं तो आप की दिल की धड़कनें भी सही चलती हैं और बेचैनी दूर रहती है.अगर आप त्योहारों में पूरी तरह से हिस्सा लेते हैं तो आप देखेंगे कि ये किस तरह एक थेरैपी की तरह काम करते हैं. शोध से पता चलता है कि मेकअप या घर की सजावट बेचैनी को दूर करती है. इस से आप के दिमाग में स्ट्रैस कम होता है और नकारात्मक खयाल नहीं आते.आत्मविश्वास बढ़ता हैजब आप अच्छे से तैयार होती हैं और मेकअप कर खूबसूरत दिखती हैं तो इस से सुरक्षा और ताकत की भावना आती है. दरअसल, मेकअप और अच्छे कपड़े आप का आत्मविश्वास बढ़ाने का काम करते हैं. सजनेसंवरने से हमारे शरीर में औक्सीटोसिन नाम का हारमोन रिलीज होता है, जिस से भावनाएं पौजिटिव होती हैं.सकारात्मक सोचत्योहार लोगों में आशा और सकारात्मक सोच का संचार करने में मदद करते हैं. इस दौरान लोग उत्साह का अनुभव करते हैं.

इस से लोगों का मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है. त्योहार निश्चित रूप से हमें रोजमर्रा की नीरस दिनचर्या से एक ब्रेक देते हैं. इस से लोगों में सकारात्मक भावनाएं पैदा होती हैं और बोरियत की भावना कम होती है.त्योहारों में भाग लेना और उन की तैयारी करना, डांसगाने के प्रोग्रामों में अपनी अच्छी परफौर्मैंस देना व्यक्ति को जीत का एहसास कराता है. किसी भी कार्य को पूरा करना, पकवान पकाना, दीए जलना, खुशियां फैलाना आदि लोगों में प्रेरणा और आत्मसम्मान को बढ़ावा देते हैं.त्योहार व्यक्ति को वर्तमान में मौजूद रहने के लिए प्रेरित करते हैं. ये व्यक्ति को विभिन्न गतिविधियों में शामिल करते हैं जैसेकि भोजन का स्वाद लेना, डांस करना, संगीत बजाना, हंसीखुशी से मिलनामिलाना और छोटों की सराहना करना. इस से लोगों में सकारात्मकता बढ़ती है. त्योहार हमारे जीवन में खुशियां ले कर आते हैं. हम अपने आसपास कई खुशमिजाज लोगों को देखते हैं.

इस का हमारे मूड पर सीधा असर पड़ता है, साथ ही यह एक ऐसा समय होता है जब आप अपने परिवार के लोगों के साथ क्वालिटी टाइम बिताते हैं, गपशप करते हैं और ऐसे काम करते हैं जो आप को खुश करती हैं. त्योहार हमारे जीवन का एक हिस्सा बन जाते हैं और यही कारण है कि लोग एकसाथ क्वालिटी टाइम बिताने के लिए इकट्ठा होते हैं.यह परिवार के साथ घूमने का अच्छा समय होता हैआजकल जीवन में अकसर लोग एकाकी हो गए हैं. हरकोई आत्मनिर्भर है फिर भी काफी व्यस्त है. ये छुट्टियां आप को एकसाथ लाती हैं और आप को अपने परिवार, आनंद और उत्सव का एहसास कराती हैं जो आप के मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है. त्योहार आप को महसूस कराते हैं कि आप के पास लोग हैं जिन्हें आप का साथ पसंद है. सा?ा खुशी हमेशा अकेले बैठने से बेहतर होती है. त्योहार मूड के सकारात्मक पक्ष और शरीर में खुशी के हारमोन के उत्पादन को बढ़ाते हैं. ये एकाकीपन को चुनौती देते हैं. त्योहारों के दौरान ऐसी कई गतिविधियां होती हैं जो आप का उत्साह बढ़ाती हैं और आप को अपने बारे में अच्छा महसूस कराती हैं.

कुछ नया सोचेंहमेशा जरूरी नहीं कि त्योहारों को एक ही तरह से मनाया जाए या एक ही तरह से सारी बातें की जाएं, वही पुराने रीतिरिवाज, वही पाठपूजन और वही दिनभर लेनदेन. कोशिश करें कि हर बार त्योहारों को एक नए तरीके से मनाया जाए. एक नए जज्बे के साथ कुछ अलग करें. अगर हर बार आप त्योहार पर अपने घर में धूम मचाते हैं तो इस बार किसी खास रिश्तेदार के घर चले जाएं और मिल कर फैस्टिवल मनाएं या फिर इस बार आप कुछ नया खरीदें. घर की जरूरत की कुछ बड़ी चीज जैसे गाड़ी वगैरह या रसोई का बड़ा सामान ताकि वह फैस्टिवल यादगार बन जाए. आप इस दिन नए घर में शिफ्ट कर सकते हैं या नया घर खरीद सकते हैं.यही नहीं आप फैस्टिवल के दिन किसी और के बारे में भी सोचें. किसी अनजान को खुशियों का उपहार दें. किसी अनाथालय चले जाएं या किसी वृद्धाश्रम चले जाएं. वहां सब के साथ मिल कर खुशियां मनाएं. उन लोगों के चेहरों पर मुसकान लाएं.

किसी गरीब बस्ती में चले जाएं और मिठाइयां बांटें. कुछ ऐसा कीजिए जो आप हर बार नहीं करते और उसे कर आप को बहुत खुशी मिले.कहीं घूमने जाएंजरूरी नहीं कि फैस्टिवल का मतलब घर में ही रौनक बढ़ाई जाए या घर को सजाया जाए अथवा नए कपड़े पहने जाएं. कभी आप ऐसा भी करें कि कहीं घूमने निकल जाएं. लंबी छुट्टी मिल जाती है. सैटरडेसंडे और त्योहार के 2 दिन मिला कर 3-4 दिन के लिए कहीं घूमने जा सकते हैं वरना औफिस और घर के बाद आप को कहीं जाने का समय नहीं मिलता. यही समय है अपनी जिंदगी जीने का या अपनों के करीब आने का. यही वह समय है जब आप कुछ नई जगह ऐक्सप्लोर कर सकते हैं.कहीं ऐसी जगह घूमने जाएं जहां आप अपनी पसंद के हिसाब से घूम सकें. फिर वैसे भी फैस्टिवल हर जगह मनाया जाता है तो आप कहीं भी हों वहां पर आप फैस्टिवल का मजा भी ले सकते हैं.फैस्टिवल पार्टीकभी ऐसा भी कीजिए कि फैस्टिवल के दिन या उस से 1-2 दिन पहले आप फैस्टिवल पार्टी रखें.

अपने घर में सब को बुलाएं जो आप के करीब हैं या आप के दोस्त और रिश्तेदार हैं. उन सब के साथ मिल कर कुछ वक्त साथ बिताएं. धूम मचाएं और गानों पर डांस करें. सारी परेशानी, चिंता और कमियां भूल कर बस खुशियां और खुशियां ही बटोरें. आप घर में मिठाइयां बना सकते हैं. कुछ नमकीन वगैरह तैयार करें.घर का एक कमरा अच्छे से सजा दें. सब के साथ समय बिताएं. गेम्स खेलें. एकदूसरे के दिल का हाल जाने. साथ समय बिताएं और खानापीना करें. हंसीमजाक करें. जिंदगी का एक दिन इतना खूबसूरत बना लीजिए कि उस दिन की यादें महीनोंसालों तक कायम रहें.दिल को छूने वाले गिफ्टफैस्टिवल एक ऐसा मौका है जब आप किसी को उस का मनपसंद गिफ्ट दे कर उस के चेहरे पर मुसकराहट ला सकते हैं. उस की जिंदगी को संवार सकते हैं. उसे नई खुशी दे सकते हैं.

जरूरी नहीं कि आप कोई महंगी चीज ही खरीदें. आप किसी के लिए अगर उस की जरूरत की चीज खरीदते हैं और गिफ्ट के रूप में उसे इस दिन देते हैं तो वह कभी आप को भूल नहीं पाएगा. आप गौर करें कि किस को किस चीज की जरूरत है और फिर फैस्टिवल के मौके पर उसे बहाने से वह चीज दे सकते हैं.वह शख्स आप का अपना भी हो सकता है या पराया भी, अनजान भी. मगर आप अगर इस तरह किसी को गिफ्ट देते हैं तो आप को अंदर से खुशी मिलेगी. आप का अपना कोई कई महीने से किसी चीज के लिए आप को कह रहा है तो बस यही समय है जब आप उसे वह चीज ला कर दें और फिर देखें कैसे वह आप के गले लग जाता है.पूजापाठ नहीं खुशियां बटोरेंफैस्टिवल का मतलब यह नहीं कि आप सुबह से पूजापाठ की तैयारी में लगे रहें. बाजार से पूजा का सामान ले कर आएं. पंडित के घर जा कर उस को न्योता दे कर आएं और फिर प्रसाद बनाने और पूजा का सामान व्यवस्थित करने में लग जाएं. खुद नहाधो कर पूजापाठ करने लग जाएं और फिर पंडितजी के आने का इंतजार करें.

फिर जब पंडित पूजा शुरू करें तो सुबह से रात शाम तक बस उसी में लगी रहें.फैस्टिवल का मतलब पूजापाठ में समय लगाना नहीं बल्कि खुशियां बटोरने में समय लगना होता है. फैस्टिवल हमारे लिए आते हैं ताकि हम अपने दिलोदिमाग में, अपनी जिंदगी में कुछ परिवर्तन ला सकें. कुछ खुशियां बटोर सके. लेकिन महिलाएं धार्मिक रीतिरिवाजों में सुबह से रात तक बिजी रहती हैं और फिर वे इतनी थक जाती हैं कि फैस्टिवल का आनंद ही नहीं ले पातीं.फैस्टिवल दिमाग को तनाव मुक्त करने के लिए आते हैं न कि अपने दिमाग को पूजापाठ में लगाने के लिए. अगर आप बस इसी सोच में रह जाएं कि कहीं कोई रिवाज छूट न जाए, कुछ गलत न हो जाए, पूजा में कोई कमी न रह जाए तो आप को कुछ और करने का समय ही नहीं मिलेगा. अकसर देखा जाता है महिलाएं अपने बच्चों और पति को डांटती रहती हैं कि ऐसे करो वैसे करो. यह चीज ले कर आओ वह काम करो. कई दफा खुद ही बाजार चली जाती हैं पूजा के लिए सामग्री लाने के लिए.घर में फैस्टिवल के दिन कोई पूजा के लिए लकडि़यां ला रहा है तो कोई खास तरह के पत्ते. इसी तरह खास तरह की पूजा की सामग्री लानी भी जरूरी हो जाता है. इंसान का पूरा दिन इसी सब में निकल जाता है. कुछ लोग मंदिर जाते हैं तो मसजिद, चर्च जाते हैं. पूरा दिन इस तरह से बिता देते हैं. इस तरह फैस्टिवल मनाने का कोई फायदा नहीं. आप फैस्टिवल में जिंदगी जीने का प्रयास करें. पूरे उत्साह और प्यार से इस दिन को ऐंजौय करें.

धर्म के नाम पर लड़कियों को कंट्रोल करने की साजिश, मुहरा बन रही हैं बेटियां,

9 अगस्त की रात कोलकाता के आरजी कर मैडिकल कालेज में एक ट्रेनी डाक्टर के साथ रेप और हत्या की घटना से समूचे देश में चिकित्सक समुदाय और आम जनता क्षुब्ध है. डाक्टर्स हड़ताल पर चले गए. नीट की कठोर परीक्षा पास कर डाक्टर बन कर रोगियों की सेवा का सपना देखने वाली बेटी अपने अस्पताल में ही दरिंदगी का शिकार हो गई.

पीडि़ता डाक्टर की पोस्टमार्टम और बायोप्सी रिपोर्ट में दिल दहलाने वाले खुलासे हुए हैं. दरिंदे हवस में इतने अंधे हो गए थे कि उन्होंने पीडि़ता डाक्टर के प्राइवेट पार्ट को बुरी तरह से चोट पहुंचाई. पीडि़ता के शरीर पर दरिंदगी के 25 निशान मिले, जिन में बाहर 16 और अंदरूनी भाग में 9 जख्म पाए गए. फिर बाद में उस का गला दबा कर हत्या कर दी गई. मगर यह कोई पहली बार नहीं हुआ है जहां एक लड़की का रेप कर उस की हत्या कर दी गई हो. 2012 में ऐसे ही निर्भया कांड हुआ था जहां एक लड़की की बड़ी ही बेदर्दी के साथ समूहिक रेप के बाद उस की हत्या कर दी गई थी. उस के प्राइवेट पार्ट में रौड घुमाई गई थी.

इन 12 सालों में कुछ भी तो नहीं बदला और शायद न कभी बदलेगा क्योंकि कोलकाता कांड के ठीक 2 दिन बाद उत्तराखंड के रुद्रपुर में एक 20 वर्षीय नर्स की रेप के बाद हत्या कर दी गई. नर्स 30 जुलाई की रात को लापता हुई और 8 अगस्त को उस की लाश ?ाडि़यों में पड़ी मिली. उस नर्स का सिर बुरी तरह कुचल दिया गया था.बताया जा रहा है कि उसी अस्पताल के एक डाक्टर ने उस के साथ दुष्कर्म किया और उसे जान से मारने की धमकी देते हुए जातिसूचक शब्दों से अपमानित भी किया. इस घिनौने काम में एक नर्स और वार्डबौय ने उस डाक्टर का साथ दिया था.

इंसान या हैवान

12 अगस्त को ही दिल्ली से उत्तराखंड जाने वाली रोडवेज बस में एक नाबालिग लड़की से गैंगरेप किया गया. पीडि़त लड़की उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद की रहने वाली थी. जोधपुर में 3 साल की बच्ची की साथ दरिंदगी की गई. बच्ची गरीब थी और वह अपनी मां के पास मंदिर के बाहर सो रही थी. आरोपी उसे आइसक्रीम खिलाने के बहाने से ले गया और उस के साथ रेप किया फिर उसे वहीं मंदिर के बाहर छोड़ गया. बच्ची के कपड़े खून से लथपथ थे और शरीर पर कई जगह खरोंच के निशान थे. बच्ची का होंठ में काटा गया था. वहीं मेरठ में 2 साल की बच्ची के साथ रेप कर उस की हत्या कर दी गई और लाश को नाले में फेंक दिया गया.

बिहार के मुजफ्फरपुर में एक 9वीं क्लास की छात्रा के साथ गैंगरेप कर उस की हत्या कर दी गई. आरोपियों ने पीडि़त लड़की की ब्रैस्ट काट दी. प्राइवेट पार्ट पर चाकू से वार किया और उस के मुंह में कपड़ा बांध दिया. मातापिता को अपनी बेटी की लाश एक पोखर में मिली. उस के अगलबगल मांस के चिथड़े और खून के धब्बे पड़े थे. पीडि़त लड़की के मातापिता का कहना है कि रविवार रात 5 लोग उस के घर जबरन घुस आए और यह बोल कर उन की बेटी को उठा ले गए कि हम तुम्हारी बेटी के साथ रेप करेंगे.

पशु समाज

आखिर कैसे लोगों में इतनी हिम्मत आ जाती है कि वे एक लड़की का बलात्कार कर उस की हत्या कर देते हैं? लड़की को उस के घर से उस के मांबाप के सामने यह कह कर उठा ले जाते हैं कि हम तुम्हारी बेटी का रेप करेंगे. आखिर यह कैसे देश और समाज में रह रहे हैं हम जहां इंसान के भेष में दरिंदे घूम रहे हैं? यह पुरुष समाज नहीं पशु समाज है.

हमारे देश में मैडिकल क्षेत्र में महिला डाक्टर का दायरा तेजी से बढ़ रहा है. कुल डाक्टरों में लगभग 50 फीसदी महिलाएं हैं. हाल के कुछ वर्षों में चिकित्सा क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामलों में 25 फीसदी की वृद्धि हुई है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, हर 4 में से एक महिला डाक्टर को कभी न कभी अपने कार्यस्थल पर हिंसा या यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है. महिलाओं के खिलाफ यौन अपराधों में कमी दिखाई नहीं दे रही है.

भारत में महिला पहलवानों द्वारा ?ोले गए कथित यौन उत्पीड़न के हाल के मामलों में आंतरिक शिकायत समितियों के कार्यकारिणी की कमी और उत्पीड़न की रिपोर्टिंग के संबंध में ‘विशाखा दिशानिर्देश’ के पहल की आवश्यकता को उजागर किया है.

द्य इस से पूर्व एक प्रमुख पत्रकार प्रिया रमाणी का मामला चर्चित रहा था जहां 2018 में ‘मी टू’ आंदोलन में उन्होंने अपने पूर्व नियोक्ता एम.जे. अकबर पर कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के कुछ दशक पुराने मामले का खुलासा किया था. इस

मामले में पीडि़ता ने पुलिस में मामला दर्ज नहीं कराया था और उस जमाने में यौन उत्पीड़न की शिकायतों के निवारण के लिए कोई आंतरिक तंत्र मौजूद नहीं था.

द्य 1997 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तैयार किए विशाखा दिशानिर्देश का सरकारी और निजी दोनों संस्थानों द्वारा पालन किया जाना चाहिए तथा नियोक्ताओं को कार्यस्थल पर महिलाओं के मूल अधिकारों का उल्लंघन करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. लेकिन इस के बावजूद हाल के वर्षों में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न दुनियाभर में महिलाओं को प्रभावित करने वाले सब से अधिक दबावकारी मुद्दों में एक के रूप में उभरा है.

2022 में राष्ट्रीय महिला आयोग को महिलाओं के विरुद्ध अपराधों की लगभग 31 हजार शिकायतें मिलीं जो 2014 के बाद उच्चतम संख्या को सूचित करती हैं. इन में लगभग 54.5% शिकायतें उत्तर प्रदेश से प्राप्त हुईं. दिल्ली ने 3,004 शिकायतें दर्ज कराईं, जिस के बाद महाराष्ट्र 1,381, बिहार 1,368 और हरियाणा 1, 362 का स्थान रहा.

भरती, वेतन, पदोन्नति या अवसर सभी मामलों में महिलाओं को कार्यस्थल पर प्राय: भेदभाव का सामना करना पड़ता है.

नैशनल क्राइम ब्यूरो (एनसीआरबी) की ओर से हर साल जारी होने वाले आंकड़े बताते हैं कि इंडियन मैडिकल ऐसोसिएशन की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 5 वर्षों में डाक्टरों के खिलाफ हिंसा के मामलों में 75% की वृद्धि हुई है. कोलकाता में हुई इस घटना ने ड्यूटी पर तैनात डाक्टरों की सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं को और बड़ी दिया है. ऐसी घटनाएं जौब करने वाली और बाहर रह कर पढ़ाई करने वाली लड़कियों के मनोबल को कमजोर कर रही हैं.

दंडनीय अपराध

सरकार ने कानून बनाने का भरोसा दिलाया था जिस में चिकित्सक क्षेत्र से जुड़ी महिलाओं की सुरक्षा के संबंध में सुरक्षात्मक कदम उठाए जाएंगे- वैसे कामकाजी महिलाओं के लिए ऐसे कानून पहले से बने हैं. नौनवर्किंग महिलाओं की सुरक्षा के लिए भी कानून बने हैं. घूर कर देखना, छूना, डबलमीनिंग बातें करना यह सब बलात्कार के दायरे में आता है और यह दंडनीय माना गया है. लेकिन बावजूद इस के क्या सजा हो पाती है?

यौन अपराधों के खिलाफ प्रभावी कानूनी रोकथाम के लिए आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 2013 में लागू किया गया था. इस के अलावा आपराधिक कानून अधिनियम, 2018 को 12 वर्ष से कम उम्र की लड़की के साथ बलात्कार के लिए मृत्युदंड सहित और भी अधिक कठोर दंडात्मक प्रावधानों को निर्धारित करने के लिए लागू किया गया था. अधिनियम में अन्य बातों के साथसाथ जांच और सुनवाई को 2 महीने के

भीतर पूरा करने का भी आदेश दिया गया था. लेकिन इन सब के बावजूद ऐसे मामले रुक नहीं रहे हैं. वजह यह है कि अपराधियों को शीघ्र सजा नहीं मिलती.

लड़कियों और महिलाओं के साथ दरिंदगी करने वाले जानते हैं कि उन्हें बचाने वाला बैठा है. कोई उन का कुछ नहीं बिगाड़ सकता. बिलकीस बानों से गैंगरेप के 11 दोषियों को बड़े सम्मान के साथ सजा से बरी कर दिया गया था. इतना ही नहीं उन का फूलमाला से स्वागत भी किया जैसे वे कोई किला फतह कर लौटे हों.

कोलकाता रेप: मर्डर केस की आटोप्सी रिपोर्ट में कई खुलासे हुए. पोस्टमार्टम में यौन हिंसा जैसे कई सुबूत मिले. इस के अनुसार पीडि़ता के सिर, चेहरे, गरदन, हाथ और गुप्तांग पर 14 से ज्यादा चोटों के निशान हैं. साथ ही मौत की वजह हाथों से गला दबाना माना गया है. मृत्यु के तरीकों को हत्या माना गया है. साथ ही रिपोर्ट में सैक्सुअल असोल्ट की आशंका भी जताई गई है. जारी रिपोर्ट के अनुसार, पीडि़ता के गुप्तांग में सफेद, गाड़ा, चिपचिपा तरल पाया गया है और फेफड़ों में रक्तस्राव, खून के थक्के जमने की बात कही गई है. हालांकि फ्रैक्चर का कोई संकेत नहीं मिला है. बताया जा रहा है कि आधी नींद में अचानक हमले के बाद ट्रेनी डाक्टर ने बचाव के लिए चीखने की कोशिश की होगी, मगर उस का मुंह दबा दिया गया, फिर उस का गला घोंटा गया. इस कारण ट्रेनी डाक्टर की थायराइड का कार्टिलेज भी टूट गया.

ट्रेनी महिला डाक्टर की मां ने खुलासा किया कि हमले से पहले के दिनों में उन की बेटी ने अस्पताल जाने के बारे में अनिच्छा जताई थी. मां ने कहा कि वह कहती थी कि उसे अब आरजी कर जाना पसंद नहीं है.

ट्रेनी डाक्टर का सपना गोल्ड मैडल हासिल करने का था. दर्जी पिता ने अपनी एकलौती संतान को पढ़ाने के लिए दिनरात मेहनत की ताकि बेटी का सपना पूरा हो सके. बेटी ने भी पढ़ाई में कोई कसर नहीं छोड़ी. जिंदगीभर परिवार ने संघर्ष किया. बेटी ने कोलकाता के घनी आबादी वाले उपनगर सोदेपुर से आरजी कर तक का सफर तय किया. अब बेटी की बारी थी अपने मातापिता का कर्ज चुकाने की लेकिन उस से पहले ही वह इस दुनिया से चली गई.

दरिंदगी की इंतिहा

इसी तरह की एक हैवानियत 51 साल पहले मुंबई के किंग एडवर्ड मैमोरियल अस्पताल में हुई थी. मुंबई के उस अस्पताल में ठीक वैसा ही कुछ हुआ था जो कोलकाता के मैडिकल कालेज में हुआ है. मुंबई में अरुणा शानबाग नाम की एक नर्स दरिंदों के निशाने पर थी मगर उसे यह बात नहीं पता थी. अरुणा शानबाग की 1 महीने बाद शादी होने वाली थी, मगर शादी के पहले ही 27 नंबर, 1973 को अस्पताल के अंदर ही सोहनाल वाल्मीकि नामक एक वार्ड बौय ने उन के साथ बलात्कार किया.

फिर पकड़े जाने के डर से उस ने कुत्ते की चेन से अरुणा शानबाग का गला घोंट दिया और उसे मरा हुआ समझ कर वहां से भाग गया. लेकिन वह मरी नहीं थी. वह कभी जिंदा भी नहीं कहलाई. वह कोमा में चली गई. इस के बाद पूरे 42 साल तक वह कोमा में रही. उस के लिए अदालत से इच्छा मृत्यु की मांग भी की गई पर अदालत ने इनकार कर दिया.

42 साल तक अरुणा जिंदगी और मौत के साथ लेटी रही जैसे बिस्तर पर दोनों साथसाथ सो रही हों. 42 साल बाद अचानक जिंदगी चुपके से बिस्तर से उतर कर चली गई. शायद मौत को उस पर दया आ गई और वह उसे अपने साथ ले कर चली गई. निमोनिया की वजह से उस की मौत हो गई. अरुणा के गुनहगार को बाद में सिर्फ 7 साल की सजा हुई. सजा काट कर वह 1980 में जेल से बाहर आ गया. रिहाई के बाद नाम और पहचान बदल कर दिल्ली के किसी अस्पताल में नौकरी भी की. यहां दोषी तो जी गया और निर्दोष जी कर भी मरी पड़ी रही पूरे 42 साल तक. कैसा इंसाफ है यह?

बदला कुछ नहीं आज भी कुछ नहीं बदला है. गुनहगार खुलेआम घूम रहा है और निर्दोष सजा काट रहा है. एक शोर उठता है, फिर खामोशी छा जाती है. फिर खामोशी टूटती है और शोर उठता है. इस बार यह खामोशी कोलकाता में टूटी और शोर भी उठा, लेकिन फिर खामोशी छा जाएगी. निर्भया से पहले और निर्भया से बाद यही तो होता रहा है.

मगर कुछ बेरहम इंसान को उस की मौत पर भी दया नहीं आई. यहां भी वे लड़की को ही दोष दे रहे हैं कि गलती लड़की की ही होगी. जरूर उस ने छोटे कपड़े पहने होंगे. रात को अकेले बाहर निकली ही क्यों? एक शख्स ने तो यह तक कह दिया कि लड़की को घर से बाहर निकलने ही मत दो. उसे घर में बंद रखो, घर के कामकाज सिखाओ. लेकिन ऐसे ज्ञान बघारने वाले लोग यह भूल जाते हैं कि लड़की अपने घर में भी सुरक्षित नहीं है.

देश के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि महिला डाक्टर अपने बौयफ्रैंड के साथ थी, वहीं एक और नेता का सु?ाव है कि महिलाएं रात में ड्यूटी न करें. वैसे इस का सुरक्षा से कोई लेनादेना नहीं है लेकिन महिलाओं को चाहिए कि वे देर रात बाहर न जाया करें. लेकिन कहने वाले यह भूल गए कि कैद में तो खूंख्वार जानवरों को रखा जाता है. कोलकाता मामले के बाद अभी महाराष्ट्र के एक स्कूल बदलापुर में 3 और 4 साल की 2 बच्चियों के साथ रेप हुआ.

न्याय या राजनीति

कोलकाता मामले को ले कर देश के नेतागण गुनहगारों को उन के किए की सजा दिलवाने के बदले एकदूसरे पर ही कीचड़ उछाल कर अपनीअपनी रोटियां सेंकेने में लगे हैं. ममता सरकार पर विपक्ष लगातार हमलावर है. भारतीय जनता पार्टी ने ममता बनर्जी को ‘बेशर्म’ कहा और उन के इस्तीफे की मांग की.

बीजेपी लगातार राज्य की कानून व्यवस्था को ले कर टीएमसी पर हमला कर रही है.बीजेपी की नेता स्मृति ईरानी ने कोलकाता महिला डाक्टर रेप केस को ले कर ममता सरकार पर जोरदार हमला करते हुए कहा कि निश्चित रूप से जब उस का रेप हो रहा था वह महिला अत्याचार से जू?ा रही थी. सवाल यह उठता है कि क्या किसी ने भी उस फ्लोर पर उस महिला के चिल्लाने की आवाज नहीं सुनी? वह कौन है जिस की वजह से अस्पताल में वह रेपिस्ट आश्वस्त था कि रेप के बाद वह घर लौट सकता है? एक लड़की का रेप होता है अपने ही अस्पताल में और किसी को पता नहीं चलता है?

स्मृति ईरानी ने ममता बनर्जी पर हमला करते हुए आगे कहा, ‘‘मैं दोबारा कह रही हूं कि तेरा रेप मेरा रेप की राजनीति बंद करें ममता बनर्जी. प्रदेश का होम मिनिस्टर ममता बनर्जी हैं. हैल्थ चार्ज किस के पास है? मुख्यमंत्री कौन है? तो वह किस के खिलाफ प्रदर्शन कर रही थीं? अपने खिलाफ? प्रोटैस्टर अनसेफ हैं. रेपिस्ट और मोब सेफ हैं. यह कहां का न्याय है?’’

सरकार से सवाल

भाजपा के ही एक के बाद एक और नेता राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव भाटिया ने एक प्रैस कौन्फ्रैंस में कहा कि ‘ममता बनर्जी… ममताविद्वंसक’ है. आरोप लगाए कि ममता बनर्जी ने सुबूत मिटाए और गुनहगारों का साथ दिया.

एक तरफ जहां पश्चिम बंगाल में विपक्षी दल बीजेपी और सीपीआई ने ममता सरकार को घेरा वहीं अब ब्लौक के सहयोगी दलों ने भी ममता सरकार के उठाए कदमों पर सवाल खड़ा किया है. एक के बाद एक राजनेता अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं और एकदूसरे पर जम कर आरोपप्रत्यारोप लगा रहे हैं.

एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि पीडि़ता को न्याय दिलाने की जगह आरोपियों को बचाने की कोशिश, अस्पताल और स्थानीय प्रशासन पर गंभीर प्रश्न खड़े करता है. इस घटना ने सोचने पर मजबूर कर दिया है कि अगर मैडिकल कालेज जैसी जगहों पर डाक्टर्स सेफ नहीं हैं तो किस भरोसे अभिभावक अपनी बेटियों को पढ़ने बाहर भेजें?

बढ़ती आलोचना के बीच ममता बनर्जी ने भी पलटवार किया और कहा कि हाथरस, उन्नाव और मणिपुर में जब ऐसी घटनाएं हुईं तब केंद्र ने कितनी केंद्रीय टीमों को वहां भेजा था? बंगाल में अगर किसी को चूहा भी काट ले तो केंद्र की 55 टीमें आ जाती हैं.

निर्भया केस के बाद बने कठोर कानून भी ऐसे अपराधों को रोक पाने में असफल क्यों है? हाथरस, उन्नाव, बिहार, और उत्तराखंड से ले कर कोलकाता तक महिलाओं के खिलाफ लगातार बढ़ती घटनाओं पर हर पल, हर वर्ग को मिल कर गंभीर विचार करने की जरूरत है. लेकिन यहां ‘तेरा रेप मेरा रेप’ की राजनीति चल रही है.

कोई उन परिवारों के बारे में सोचे जिन की बेटियों की रेप के बात बड़ी निर्ममता के साथ हत्या कर दी गई. लेकिन सब यहां अपनी ही रोटियां सेंकने में लगे हैं और जनता भी कुछ दिन हल्ला कर चुप हो जाएंगी क्योंकि यही तो होता आया है हमेशा.

फेसबुक पर कुछ लोगों का कहना है कि बेटियों को घर में बंद रखो. उन्हें बाहर मत निकलने दो. लेकिन क्या घर में बंद रखने से बच जाएंगी बेटियां? घर में उन के साथ कोई अपना ही उन का शोषण नहीं करेगा इस बात की क्या गारंटी है? मर्द पर जब हवस सवार होता है उस वक्त वह किसी का बाप या भाई नहीं होता, मर्द बन जाता है जिस के लिए अपनी सगी बेटी, बहन भी माल नजर आती है जिसे वे नोच खा जाना चाहता है.

धर्म के नाम पर लड़कियों को कंट्रोल करने की साजिश

देश और समाज में आज भी ऐसे दकियानूसी सोच वाले लोग हैं जो लड़कियों को कंट्रोल में रखना चाहते हैं. वे नहीं चाहते कि लड़कियां पढ़लिख कर आगे बढ़ें. धर्म के कट्टर और धर्म के ठेकेदार पूरा जोर लगा देते हैं कि लड़कियां स्कूलकालेज न जा कर धर्म मंदिरों के फेरे लगाएं, व्रतउपवास करें. शादी के बाद अपने परिवार, पति, बच्चों का खयाल रखें. धर्म के नाम पर जितनी मोटी बेडि़यां डाल सकते हैं वे महिलाओं के पैरों में डालते हैं. लेकिन लड़कों को खुला आजाद छोड़ दिया जाता है. उस के लिए कोई बंधन नहीं होता है.

धर्म के ठेकेदार नहीं चाहते कि लड़कियां पढ़लिख कर डाक्टरइंजीनियर बन कर अपने पैरों पर खड़ी हों. उन्हें लगता है कि अगर लड़कियां ज्यादा पढ़लिख गईं तो परिवार की बात नहीं मानेंगी, अपनी मनमरजी करेंगी. अगर कोई लड़की अपनी मरजी से शादी कर ले तो हायतोबा मच जाती है, लड़की का कत्ल तक करवा दिया जाता है. लेकिन वहीं लड़का करे तो कोई दिक्कत नहीं है. महिलाओं पर तरहतरह की पाबंदियां लगाने का मकसद ही यही है कि वे सदा पुरुषों के अधीन रहे.

आज भी संस्कृति, संस्कार और परिवार के नाम पर वही घिसेपिटे रिवाज हैं कि औरतों का काम घर संभालना, बच्चे पैदा करना है. आखिर यह कहां लिखा है कि घर के काम औरतें ही कर सकती हैं पुरुष नहीं? यह सब पितृसत्तात्मक चाल है ताकि पुरुषों को घरगृहस्थी की जिम्मेदारी न उठानी पड़े और वे बाहर मौज कर सकें और औरतों पर अपना हुक्म चला सकें, उन्हें अपनी निगरानी में रख सकें.

दयनीय स्थिति

क्या महिलाएं कोई गुलाम हैं या कोई वस्तु जिस पर हमेशा निगरानी रखी जानी चाहिए? मनु स्मृति में लिखा है कि महिलाओं का स्वभाव ही पुरुषों को उत्तेजित करना और बहकाना है इसलिए जो समझदार हैं वे महिलाओं से दूर रहें.

इस तरह के नियम समाज को प्रगतिशील सोच रखने से रोकते हैं. इसलिए आज ग्रामीण इलाकों में महिलाओं की स्थिति दयनीय है. उन्हें केवल सैक्स की वस्तु या चीज के तौर पर देखना पुरुषवादी विकृति और समाज के लिए खतरा है. मनुस्मृति में और आज भी केवल महिलाओं के लिए ही नियम निर्धारित किए गए हैं, पुरुषों के लिए कुछ नहीं. पितृसतात्मक समाज के कारण महिलाओं को आज भी अपने अस्तित्व और अस्मिता के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है.

लड़कियों को अपनी यौनइच्छा पर काबू रखने की सलाह दी जाती है. मगर पुरुष अपनी यौनइच्छा किसी के भी साथ कहीं पर भी, जोरजबरदस्ती से पूरी कर सकता है. कैसा न्याय है यह? आखिर मुहरा महिलाओं और लड़कियों को ही क्यों बनाया जाता है?

क्या है एलईडी Face Mask ? क्यों तेजी से हो रहा है यह पौपुलर

आजकल त्वचा की देखभाल के क्षेत्र में अत्याधुनिक तकनीकें तेजी से लोकप्रिय हो रही हैं और इन में से एक है एलईडी फेस मास्क. (Face Mask) पहले तो एलईडी थेरैपी (LED Therapy) त्वचा के डाक्टर द्वारा ही दी जाती थी लेकिन अब एलईडी मास्क की मदद से हम घर पर भी इस थेरैपी को ले सकते हैं.

यह मास्क घर पर उपयोग करने के लिए एक सुरक्षित और प्रभावी विकल्प है, जिस से आप अपनी त्वचा को स्वस्थ और चमकदार बना सकते हैं.

एलईडी फेस मास्क क्या है, कैसे यह त्वचा की समस्याओं को हल करता है, और इस में कौनकौन सी एलईडी लाइट्स का उपयोग किया जाता है, आइए जानते हैं :

एलईडी फेस मास्क क्या है

एलईडी (लाइट एमिटिंग डायोड) फेस मास्क एक विशिष्ट प्रकार का फेस मास्क है, जिस में विभिन्न रंगों की एलईडी लाइट्स लगी होती हैं.यह मास्क त्वचा के विभिन्न स्तरों पर असर डालता है और अलगअलग त्वचा की समस्याओं को हल करने के लिए विभिन्न प्रकार की लाइट्स का इस्तेमाल करता है.हर रंग की लाइट एक विशेष समस्या के उपचार में सहायक होती है।

एलईडी लाइट्स और उन के उपयोग

एलईडी फेस मास्क में आमतौर पर 3-7 विभिन्न रंगों की एलईडी लाइट्स होती हैं, जिन में से प्रत्येक एक विशिष्ट त्वचा समस्या पर काम करती है.आइए, जानते हैं कि कौन सी लाइट किस समस्या को हल करने में मदद करती है :

नीली लाइट (Blue Light 415nm) :

नीली लाइट मुख्य रूप से मुंहासों के उपचार के लिए उपयोग की जाती है.यह त्वचा के अंदर मौजूद बैक्टीरिया को नष्ट करती है, जो कीलमुंहासों का कारण बनते हैं.साथ ही, यह त्वचा में औयल प्रोडक्शन को नियंत्रित करती है, जिस से त्वचा कम औयली होती है.नीली लाइट मुंहासों की सूजन को भी कम करने में सहायक होती है।

लाल लाइट (Red Light – 630nm) :

लाल लाइट को ऐंटी एजिंग के लिए सब से अधिक प्रभावी माना जाता है.यह त्वचा में कोलाजन उत्पादन को बढ़ावा देती है, जो त्वचा को जवां और ताजगीभरा बनाता है.लाल लाइट झुर्रियों, फाइन लाइंस और त्वचा का ढीलापन जैसी समस्याओं को कम करने में मदद करती है.इस के अलावा, यह लाइट त्वचा की मरम्मत और पुनर्जनन को भी तेज करती है।

हरी लाइट (Green Light 520nm) :

हरी लाइट का उपयोग दागधब्बों को हलका करने और त्वचा की रंगत को समान करने के लिए किया जाता है.यह लाइट मेलानिन उत्पादन को नियंत्रित करती है, जो त्वचा पर काले धब्बों और हाइपरपिग्मैंटेशन का कारण होता है.साथ ही, हरी लाइट त्वचा को शांत करती है और लालिमा को कम करती है।

पीली लाइट (Yellow Light – 590nm) :

पीली लाइट सूजन और लालिमा को कम करने में प्रभावी होती है.यह संवेदनशील त्वचा के लिए विशेष रूप से उपयोगी होती है और त्वचा की ऐलर्जी या जलन को कम करती है.पीली लाइट त्वचा के रक्त परिसंचरण को भी बेहतर बनाती है, जिस से त्वचा में प्राकृतिक चमक आती है।

बैंगनी लाइट (Purple Light 600nm) :

बैंगनी लाइट नीली और लाल लाइट का संयोजन होती है और इसे त्वचा के उपचार में डूअल लाभ के लिए उपयोग किया जाता है.यह न केवल मुंहासों को ठीक करती है, बल्कि त्वचा की मरम्मत और पुनर्निर्माण प्रक्रिया को भी तेज करती है.इस के उपयोग से त्वचा की बनावट में सुधार आता है और दागधब्बे कम होते हैं।

सफेद लाइट (White Light – 510nm) :

सफेद लाइट त्वचा की गहराई तक पहुंच कर मांसपेशियों की टोन और त्वचा की लोच को सुधारने में मदद करती है.यह लाइट त्वचा को कसाव देती है और त्वचा की सतह के नीचे के टिशूज में सुधार करती है।

सियान लाइट (Cyan Light 490nm) :

सियान लाइट त्वचा में उत्तेजना और जलन को कम करने में सहायक होती है.यह त्वचा की रिकवरी प्रोसेस को तेज करती है, खासकर अगर त्वचा पर कोई चोट हो।

एलईडी फेस मास्क का उपयोग कैसे करें

एलईडी फेस मास्क का उपयोग सरल है.इसे साफ चेहरे पर पहन कर 10-20 मिनट तक उपयोग किया जा सकता है.हर प्रकार की त्वचा और समस्या के लिए अलगअलग एलईडी लाइट्स का उपयोग करना चाहिए.

इसे सप्ताह में 2-3 बार उपयोग करने की सलाह दी जाती है, हालांकि मास्क के निर्देशों का पालन करना आवश्यक है.आप इस मास्क को लगा कर अपने निजी काम भी कर सकते हैं.

क्या एलईडी फेस मास्क सुरक्षित है

एलईडी फेस मास्क का उपयोग सामान्य रूप से सुरक्षित माना जाता है, लेकिन अगर आप की त्वचा संवेदनशील है या किसी विशेष समस्या से पीड़ित है, तो उपयोग से पहले त्वचा विशेषज्ञ से सलाह लें.

मास्क का उपयोग करते समय आंखों की सुरक्षा का भी ध्यान रखें, क्योंकि कुछ लाइट्स आंखों के लिए नुकसानदायक हो सकती हैं.

एलईडी फेस मास्क त्वचा की देखभाल में एक क्रांतिकारी कदम है.यह विभिन्न त्वचा समस्याओं को हल करने के लिए वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित तकनीक का उपयोग करता है.

इस मास्क का नियमित उपयोग आप की त्वचा को साफ, चमकदार और युवा बनाए रखने में मदद कर सकता है.हालांकि, इस के सर्वोत्तम परिणामों के लिए इसे सही तरीके से और नियमित रूप से उपयोग करना बेहद जरूरी है.

भोर की सुनहरी किरण : नंदिता की क्या थी सच्चाई

राइटर- रेखा शाह आरबी

22 वर्षीय नंदिता बहुत सुंदर थी. मगर उस के सुंदर चेहरे पर आज सुबह से ही ?ां?ालाहट और परेशानी नजर आ रही थी. वह आज बहुत परेशान थी. सुबह से बहुत सारा काम कर चुकी थीं. फिर भी बहुत सारा निबटाना था. कंप्यूटर पर बिल अपलोड करते हुए जब सुरेश जो इस बड़ी सी शौप में चपरासी था सब की देखभाल करना उसी की जिम्मेदारी थी. सब को पानी देना, कस्टमर को चायपानी पिलाना सब उस की जिम्मेदारी थी. सुरेश ने जब आ कर कहा कि नंदिताजी आप को बौस बुला रहे हैं तो नंदिता का मन किया कि सिर दीवार से टकरा कर अपना सिर फोड़ दे.

मन में एक भददी गाली देते हुए सोचने लगी कि कमीना जब तक 4 बार देख न ले उसे चैन नहीं पड़ता है. एक तो जब उस के कैबिन में जाओ लगता है नजर से ही खा जाएगा. उस की नजर, नजर न हो कर इंचीटेप बन जाती है और इंचइंच नापने लगता है… खूसट बुड्ढे को अपनी बीवी अच्छी नहीं लगती. सारी दुनिया की औरतें अच्छी लगती हैं और लड़कियां अच्छी लगती है… हां कुदरत ने दिल खोल कर दौलत दी है तो ऐयाशी सू?ोगी ही… एक को छोड़ो 4 भी रख सकता है… पैसे की कौन सी कमी है.

लेकिन भला हो इस की बीवी का जिस ने इस की चाबुक खींच कर रखी है… और उस के आगे इस की चूं नहीं निकलती है. नहीं तो अब तक न जाने कितनी लड़कियों की जिंदगी बरबाद कर चुका होता.’’

नंदिता यह सब सिर्फ सोच सकती थी. बोल नहीं सकती थी अत: उस ने सुरेश से कहा, ‘‘भैया, आप चलिए मैं आती हूं.’’

इस बड़ी से मौलरूपी दुकान की असली मालिक तो थी. औफिस में सभी जानते थे कि गौतम और सुनिधि की लवमैरिज थी.

घर वालों ने बेटी को गंवाने के डर से गरीब गौतम को तो स्वीकार कर लिया लेकिन उस की गरीबी को नहीं स्वीकार कर सके. अमीर मांबाप सुनिधि को इतनी धनसंपत्ति दे गए कि उस की भी गिनती शहर के अमीरों में होने लगी थी.

आकर्षण की एक अवधि होती है. उस के बाद हकीकत सामने आने ही लगती है. सुनिधि को बहुत जल्दी गौतम की रंगीनमिजाजी का पता चल गया. सुनिधि खानदानी लड़की थी. गौतम की लाख छिछोरी हरकतें जानती थी लेकिन फिर भी पति के रूप में उसे मानती थी. वह उस के बच्चों का पिता था.

मगर अपनी अमीरी की धौंस जमाने से भी बाज नहीं आती थी और यह सारी कहानी पूरा औफिस जानता था. मुंह पर कोई भले ही कुछ नहीं कहता था लेकिन पीठ पीछे खूब सब बातें करते थे.

वैसे गौतम कोई बुड्ढा इंसान नहीं था. वह तो नंदिता बस खुन्नस में उसे बूढ़ा कहा करती थी और वह भी अपने मन में. गौतम 50 के आसपास हैंडसम इंसान था. कम से कम अपनी बीवी से तो ज्यादा सुंदर था. उस की सुंदरता और बात करने की कला से ही तो सुनिधि ने उस से प्रभावित हो कर उस से शादी की थी और गौतम ने उस की रईसी से प्रभावित हो कर उस से शादी की थी, जिस के मजे वह अब ले रहा था.

नंदिता को आज चौथी बार बुलावा था. मन तो कर रहा था कि सीधे उस के कैबिन में जा कर उस के मुंह पर बोल आए कि कमीने बुड्ढे मु?ो नहीं करनी है तेरी नौकरी, रख अपनी नौकरी अपने पास. लेकिन वह जानती थी चाचा ने बड़ी मुश्किल से यहां पर रखवाया था और सैलरी भी अच्छीखासी मिल रही थी. बुड्ढे को बरदाश्त करना उस की मजबूरी थी. नंदिता को यहां पर काम करने में कोई दिक्कत नहीं थी बल्कि नौकरी भी काफी ऐशोआराम वाली थी. दिनभर दुकान की खरीदबिक्री के बिल कंप्यूटर पर अपलोड करते रहना. दुकान इलैक्ट्रौनिक उपकरणों की थी.

वैसे भी नंदिता का गणित बहुत अच्छा था. हिसाबकिताब रखते रखना जिस में उसे कोई दिक्कत नहीं आती थी. बस दिक्कत उस का बौस खड़ूस गौतम ही था, जिस की हर महिला पर गंदी नजर रहती थी. नंदिता तो फिर भी जवान थी, खूबसूरत थी.

खैर, उस ने लंबी सांस छोड़ कर अपने चेहरे का जियोग्राफी सही किया और स्माइल सजा कर उस ने कैबिन का दरवाजा नोक किया.

गौतम तो जैसे इंतजार में बैठा था. बत्तीसी दिखाते हुए बोला, ‘‘आओआओ नंदिता कुरसी पर बैठो.’’

नंदिता ने स्माइल पास करते हुए पूछा, ‘‘सर आप ने किस लिए बुलाया?’’

‘‘नंदिता तुम तो आते ही बस काम के पीछे पड़ जाती हो. काम तो होता ही रहेगा. अरे कभी हम काम के अलावा भी तो बातें कर सकते हैं… एकदूसरे के दोस्त बन सकते हैं… जिंदगी जीने के लिए होती है.’’

नंदिता उस के मन के भाव खूब सम?ा रही थी पर बिलकुल अनजान बनते हुए मासूम बन कर कहा, ‘‘हां सर लेकिन वह काम पैंडिंग पड़ा है उसे पूरा करना है.’’

‘‘अरे यार… कल पूरा कर लेना. आज कोई दुनिया खत्म होने नहीं जा रही.’’

गौतम को बहुत दिनों के बाद आज नंदिता अकेले मिली थी वरना जब भी आती तो कभी अपने साथ कलीग तो कभी कोई न कोई और आ ही जाता. इसलिए वह मौके का पूरा इस्तेमाल कर लेना चाहता था.

वह अपनी कुरसी से उठ कर नंदिता की कुरसी के पास आ गया और उस के कंधों पर अपने हाथ रख कर बोला, ‘‘नंदिता बहुत दिनों से मैं ने कोई फिल्म नहीं देखी. चलो किसी दिन फिल्म देखने चला जाए अकेले फिल्म देखने को जाने को मन ही नहीं करता है.’’

नंदिता ने अपने मन में गाली देते हुए कहा कि हरामखोर मैं तेरी बेटी की उम्र की हूं और तुझे मेरे साथ फिल्म देखनी है. अपनी बेटी के साथ चला जा या अपनी बीवी के साथ क्यों नहीं जाता है?

स्माइल पास करते हुए नंदिता बोली, ‘‘सर औफिस के बाद घर पर मुझे बहुत सारा काम रहता है. मुझे अपने भाई नवीन को पढ़ाना भी होता है. उस के ऐग्जाम आने वाले हैं इसलिए मैं नहीं जा सकती कृपया मुझे माफ करें.’’

नंदिता महसूस कर रही थी कि गौतम को स्माइल से ही चारों धाम प्राप्त हो गए हैं. लेकिन आखिर क्या करती रोजीरोटी का सवाल था वरना जवाब तो वह भी अपने तमाचे के द्वारा बहुत अच्छे से दे सकती थी अपने कंधों पर हाथ रखने के बदले पर नहीं दे सकती थी.

तब तक अचानक नंदिता की नजर  गौतम के सिर के ऊपर लगी हुई एलईडी पर चली गई, जिस में पूरे औफिस का सीसीटीवी कैमरा चलता था. नंदिता ने देखा बौस की बीवी सुनिधि आ रही है.

नंदिता की तो बांछें ही खिल गईं. मगर गौतम ने अभी तक अपनी बीवी को नहीं देखा था. इसीलिए बहुत तरंग में बात कर रहा था. उस की बीवी तो बीवी थी उसे नोक कर के आने की कोई जरूरत नहीं थी.

डाइरैक्ट वह औफिस के अंदर चली आई और नंदिता को वहां बैठा देख कर और उस के आगेपीछे चक्कर काटते गौतम को देख कर वह लालपीली हो गई. लेकिन उस ने नंदिता से कुछ नहीं कहा. इधर नंदिता का दिल कर रहा था कि उस को गले लगा कर उस के गाल चूम ले गौतम की बकवास से मुक्त दिलाने के लिए.

नंदिता बौस से इजाजत ले कर अपनी टेबल पर चली आई. लेकिन अंदर जो कुछ भी हो रहा था वह कुछ अच्छा नहीं हो रहा था. वह दूर बैठी टेबल से हावभाव देख कर बखूबी अंदाजा लगा रही थी और उस को मजा आ रहा था. जैसी करनी वैसी भरनी.

कुछ देर बाद उस की बीवी उस के कैबिन से निकली और उस की टेबल के पास से गुजरते हुए अपनी आंखों से अंगारे बरसाते हुए निकल गई. नंदिता अपने कंधे उचकाते हुए अपने मन में सोच रही थी कि मु?ो आप के इस बुड्ढे में मेरी कोई रुचि नहीं है. यह तो खुद ही कमीना है. मेरे पीछे पड़ा रहता है. अगर मजबूरी नहीं होती तो कब का इसे लात मार कर यहां से चली गई होती.’’

इन सब के बीच यह बात तो भूल हो गई कि आखिर गौतम ने बुलाया किसलिए था. चाहे गौतम लाख रंगीनमिजाज सही लेकिन कर्मचारियों से काम लेने के मामले में बहुत टाइट इंसान था और इस में कोई भेदभाव नहीं करता था चाहे लड़का हो या लड़की और यही उस की सफलता का भी राज था.

वैसे भी शाम के 4 बजने वाले थे और उस की शिफ्ट पूरी हो रही थी. उस ने सोच लिया कल जा कर गौतम  से जानकारी ले लूंगी.

उधर गौतम जब शाम को घर पहुंचा तो सुनिधि भरी हुई पड़ी थी. देखते ही गौतम पर भड़क उठी और चिल्लाने लगी, ‘‘गौतम अपनी हरकतों से बाज आ जाओ. बच्चे बड़े हो रहे हैं. क्यों चाहते हो कि मैं उन के सामने तुम्हें जलील करूं. अभी तक तो मैं तुम्हारी सारी हरकतों पर परदा डालती आ रही लेकिन ऐसा ही रहा तो

तुम न घर के रहोगे न घाट के. मुझे और मेरी जायदाद को संभालने के लिए मेरे पास मेरे बच्चे हैं. मु?ो तुम्हारी इतनी भी जरूरत नहीं है कि तुम्हारी छिछोरी हरकतें बरदाश्त करती फिरूं,’’ कहते हुए कमरे का दरवाजा जोर से बंद करते हुए वह चली गई.

इधर नंदिता घर पहुंची तो उसे बहुत भूख लग आई थी. अपनी मां सुमित्रा को कुछ बनाने के लिए कहने के बजाय खुद ही बनाने के लिए किचन में चली गई. किचन क्या थी रूम के ही एक पार्ट को डिवाइड कर के एक तरफ किचन और एक तरफ नंदिता का बिस्तर लगा था.

कुछ भारी बनाने का मन नहीं था. इसलिए उसने अपने लिए थोड़ा सा पोहे बना लिया और बना कर ज्यों ही खाने के लिए बैठी तब तक उस का छोटा भाई नवीन आ गया.

हाथमुंह धो कर नवीन नंदिता के पास ही आ कर बैठ गया और उसे पोहा खाते हुए देख कर बोला, ‘‘दीदी क्या बना कर खा रही हो? मुझे भी खिलाओ. मुझे भी भूख लगी है.’’

‘‘खाना है तुझे तो उधर से चम्मच ले कर आओ और इसी में बैठ कर खा लो. बेकार में और बरतन गंदे करने की जरूरत नहीं है,’’ नंदिता खातेखाते बोली.

दोनों भाईबहन एक ही प्लेट से खाने लगे. जब भी नंदिता नवीन को देखती थी उस के अंदर वात्सल्य उमड़ पड़ता था.

दिनभर लोगों की गंदी नजरों का सामना करते हुए दुनिया में एक यही मर्द जात थी जिस पर वह आंख मूंद कर भरोसा कर सकती थी वरना दुनिया तो अकेली लड़की के लिए भेडि़या बन जाती है.

आंखों से ही बलात्कार कर लेती है, जिसे नंदिता बहुत आसानी से महसूस कर लेती थी. नंदिता क्या दुनिया की सारी लड़कियां इस बात को महसूस कर लेती हैं कि कौन किस नजर से उन्हें देख रहा है. मगर कई बार देख कर भी अनजान बनना पड़ता है.

नंदिता को सोच में डूबा हुआ और चुपचाप खाते देख कर नवीन बोला, ‘‘क्या हुआ दीदी?’’

नंदिता बोली, ‘‘कुछ नहीं हुआ चुपचाप खा.’’

‘‘लेकिन दीदी मु?ो आप को कुछ बताना है.’’

‘‘हां तो बता क्या बात है?’’

‘‘दीदी मैं और मेरे दोस्त साहिल और समर तीनों लोग सोच रहे हैं की नौकरी लगना इतना आसान नहीं है… परीक्षा के बाद हम लोग मिल कर अपनी बड़ापाव और चाइनीज फूड वैन लगाएंगे. आजकल इस बिजनैस में बहुत कमाई है. पूरे परिवार का खर्च आराम के साथ चला लूंगा. सारी तैयारी हो चुकी है. बस आप से पूछना बाकी था.’’

‘‘और यह सब तुम ने कब सोचा?’’ नंदिता आश्चर्य मिश्रित स्वर में बोली.

‘‘यह तो हम लोगों ने बहुत पहले से सोचा था बस परीक्षा खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं,’’ नवीन खातेखाते बोला.

‘‘और पिकअप वैन कहां से लाओगे? वह तो बहुत महंगी मिलती है?’’

‘‘अरे दीदी उस की चिंता मत करो. हम लोग नई पिकअप नहीं लेंगे. साहिल के पापा पहले पिकअप चलाते थे जो अब जर्जर अवस्था में है लेकिन मरम्मत के बाद वह फूड वैन बनाने के काबिल हो जाएगी.’’

‘‘फिर भी कुछ तो खर्च आएगा. बरतन आदि की भी तो जरूरत पड़ेगी?’’

‘‘उन सब का इंतजाम हो चुका है. आप चिंता मत कीजिए. मैं तो बस इतना चाहता हूं कि जल्द से जल्द यह फूड वैन चालू हो जाए ताकि मैं आप और मां की जिम्मेदारी अच्छे से उठा लूं. उस के बाद आप के पास नौकरी करने की विवशता भी नहीं रहेगी.आपका मन करेगा तो कीजिएगा नहीं तो नहीं कीजिएगा.’’

‘‘तू ऐसा क्यों बोल रहा है?’’

तो नवीन रोष में आते हुए बोला, ‘‘दीदी, क्या मुझे पता नहीं है आप का मालिक कितना

घटिया आदमी है. जब मैं उस दिन आप के औफिस गया था तो वह आप को काफी गंदी नजरों से देख रहा था.’’

नंदिता नवीन के आगे निरुत्तर थी. वह उसे क्या बताती कि दुनिया के सारे मर्द गैरलड़की के लिए जानवर ही होते हैं. बहुत कम किसी की बहनबेटी को बहनबेटी सम?ाते हैं.

‘‘ठीक है तुम्हारा काम शुरू हो जाएगा

तो मैं अपनी नौकरी के बारे में फिर से विचार करूंगी.’’

नवीन मुसकराते हुए चला गया.

नंदिता के मन में कहीं गहरे संतोष उतरने लगा. अब वह ज्यादा दिन मजबूर नहीं रहेगी और न किसी की गलत हरकतों को बरदाश्त करना पड़ेगा. इस सोच ने ही उस के चेहरे पर ढेर सारी मुसकराहट बिखेर दी. जैसे सवेरा होते ही आसमान में सूरज की सुनहरी किरणें फैल जाती हैं जैसे बादलों को चीर कर सूरज निकल आया हो.

Pregnancy में प्रोटीन की कमी हो सकती है खतरनाक, डाइट में खाएं ये फूड्स

प्रेगनेंट महिलाओं (Pregnancy) को अधिक पोषण की जरूरत होती है और इस दौरान उन्‍हें प्रोटीन समेत कई पोषक तत्‍व लेने बहुत जरूरी होते हैं ताकि शिशु का सही विकास हो सके.

गर्भावस्‍था के नौ महीनों के दौरान भ्रूण के विकास के लिए रोजाना 75 ग्राम से 100 ग्राम तक प्रोटीन लेना होता है. प्रेग्‍नेंसी में गर्भाशय के ऊतकों के विकास के लिए प्रोटीन बहुत जरूरी होता है. इस के अलावा भी गर्भावस्‍था में प्रोटीन युक्‍त आहार लेने से कई फायदे होते हैं

प्रोटीन युक्‍त आहार

आप दूध से बने उत्‍पादों से प्रोटीन ले सकती हैं. दही, अंडा, दूध, चीज और पनीर को अपने भोजन में शामिल करें. इस के अलावा सूखे मेवों और बीजों में भी प्रचुर मात्रा में प्रोटीन होता है. पिस्‍ता, नारियल और बादाम का नियमित इस्तेमाल करें, सूरजमुखी के बीजों, तिल के बीजों और कद्दू के बीजों में भी प्रचुर मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है.

छोले, दालें, सोया से बने उत्‍पाद और राजमा को भी अपने भोजन में शामिल करें. प्रोटीन के लिए नाश्‍ते में ओट्स लें. प्रोटीनयुक्‍त आहार से ब्‍लड शुगर का लैवल ठीक रहता है और शरीर को ऐनर्जी भी मिलती है. दो चम्‍मच पीनट बटर से 7 ग्राम प्रोटीन मिलता है.

प्रोटीन का है ये काम

प्रोटीन बॉडी में टिश्यू रिपेयर करने, हार्मोन बनाने, जरूरी बॉडी केमिकल बनाने और हड्डियों, त्वचा और ब्लड के लिए ब्लॉक बनाने का काम करता है.

पत्ता गोभी

पत्ता गोभी को सलाद और सब्जी दोनों तरह से खाया जा सकता है. प्रोटीन के अच्छे स्रोत खाद्य पदार्थों में यह भी खास स्थान रखती है.

​पालक

प्रोटीन से भरपूर सब्जियों में पालक भी प्रमुख स्थान रखता है. आप इसे जूस के रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं.

​हरी मटर

आप हरी मटर का सूप बना कर भी पी सकते हैं. इस से भी आप के शरीर को काफी मात्रा में प्रोटीन की पूर्ति होगी.

मशरूम

मशरूम की सब्जी अकसर हर घर में बनती है. प्रोटीन की पूर्ति के लिए मशरूम भी बहुत बढ़िया विकल्प हो सकता है.

​केल

प्रोटीन से भरपूर सब्जियों के मामले में केल को सब से पहली गिना जाता है. इस की पत्तियां गहरे हरे रंग की होती हैं. इस में भरपूर मात्रा में प्रोटीन होता है.

​​ब्रोकली

प्रोटीन से भरपूर होने के साथसाथ ब्रोकली में हमारे शरीर के लिए जरूरी कई अन्य पोषक तत्व भी पाए जाते हैं.

​आलू

आलू ज्यादातर घरों में रोजाना खाया जाता है.. एक आलू में लगभग 5 से 10 ग्राम प्रोटीन की मात्रा हो सकती है.

​शतावरी

शतावरी भी हरी सब्जियों में प्रोटीन का प्रमुख स्रोत मानी जाती है. कई लोग इसे फ्राई कर के भी खाते हैं.

आर्टिचोक

आर्टिचोक, प्रोटीन से भरपूर सब्जियों में खास स्थान रखती है. इसे फ्राई कर के बटर सॉस के साथ भी खाया जा सकता है.

क्‍या गर्भावस्‍था में प्रोटीन सप्‍लीमेंट ले सकते हैं

आहार से प्रोटीन लेने के अलावा प्रेगनेंट महिलाएं सप्‍लीमेंट से भी शरीर में प्रोटीन की पूर्ति कर सकती है. प्रेग्‍नेंसी में जिन पोषक तत्‍वों की सब से ज्‍यादा जरूरत होती है, सप्‍लीमेंट्स से उन की पूर्ति की जाती है. मॉर्निंग सिकनेस और पाचन संबंधी समस्‍याओं से छुटकारा पाने का ये आसान तरीका है.

हालांकि प्रेग्‍नेंसी में महिलाओं को डॉक्‍टर के परामर्श के बाद ही कोई सप्‍लीमेंट खाने चाहिए.

गर्भावस्‍था की तीसरी तिमाही में प्रोटीन

प्रेग्‍नेंसी की तीसरी तिमाही में महिलाओं को प्रोटीन की सब से ज्‍यादा जरूरत होती है. इस दौरान शिशु के मस्तिष्‍क का विकास तेजी से हो रहा होता है, इसलिए प्रोटीन की ज्यादा जरूरत पड़ती है.मछली, अंडे और मीट से सब से ज्‍यादा प्रोटीन मिलता है, इसलिए इस समय इन चीजों का सेवन अधिक करें.

शरीर में प्रोटीन की जरूरत

प्रोटीन हमारी बॉडी के लगभग हर हिस्से के लिए जरूरी होता है. यह हमारी स्किन सेल्स और बॉडी सेल्स के निर्माण में तो मदद करता ही है साथ ही, मेमॉरी सेव करने और डायजेशन को दुरुस्त रखने में भी मदद करता है.

ऐसे बनता है प्रोटीन

प्रोटीन अमीनो एसिड से बनता है. अमीनो एसिड 20 तरह के होते है, जो हमें फ्रूट्स, वेजिटेबल्स, एग्स, मीट, आदि से मिलते हैं. दालें और ड्राइफ्रूट्स भी प्रोटीन से भरपूर होते हैं. इसलिए इन का हमारी डेली डायट में शामिल होना बेहद जरूरी है.

प्रोटीन का निर्माण अलगअलग तरह के अमीनो एसिड्स से मिल कर होता है. ये अलगअलग तरह के अमीनो एसिड्स अलगअलग तरह का प्रोटीन बनाते हैं यानी प्रोटीन भी किसी एक प्रकार का नहीं होता, इस के भी कई टाइप होते हैं, जो हमें अलगअलग फूड्स के जरिए मिलते हैं.

प्रोटीन हमारे शरीर में क्या काम करता है?

प्रोटीन हमारे शरीर में मैसेंजर की तरह काम करता है. यह शरीर में आने वाले वायरस और बैक्टीरिया को पहचानने वाली सेल्स के निर्माण से ले कर इम्युनिटी सेल्स तक इन वायरस के अटैक की जानकारी पहुंचाने तक हर क्रिया में शामिल होता है.

प्रोटीन हमारी याददाश्त को बनाए रखने में मदद करता है जैसा हम ने ऊपर बताया कि प्रोटीन कई प्रकार का होता है और शरीर के अलगअलग हिस्सों में यह अलग तरह से काम करता है. बात जब ब्रेन की आती है तो प्रोटीन मेमरी स्टोरेज में महत्वपूर्ण रोल अदा करता है.

प्रोटीन हमारे पाचन तंत्र को दुरुस्त बनाए रखता है. इस से हमारा पेट साफ रहता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है. खासतौर पर एक नवजात बच्चे के लिए मां का पहला दूध जीवनदायिनी औषधि की तरह होता है, क्योंकि यह दूध प्रोटीन से भरपूर होता है, जो नवजात शिशु के शरीर को रोगों से लड़ने की क्षमता देता है.

प्रोटीन रिच फूड्स

उपरोक्त खाद्य पदार्थों के अलावा कुछ ऐसे फूड्स हैं, जो हमारे शरीर में प्रोटीन की कमी को पूरा करते हैं. इन्हें कितनी मात्रा में डेली डायट का हिस्सा बना कर हम कितना प्रोटीन प्राप्त कर सकते हैं यहां जानें…

-एक कप दूध में 8 ग्राम प्रोटीन होता है.
-1 अंडे में 6 ग्राम प्रोटीन होता है.
-1 कप योगर्ट में 9 ग्राम प्रोटीन होता है।
-2 चम्मच पीनट्स बटर में 8 ग्राम प्रोटीन , 4 से 5 बादाम में करीब 7 ग्राम प्रोटीन होता है.
-100 ग्राम चिकन में 25 ग्राम प्रोटीन होता है. वाइट ब्रेड की 2 स्लाइस में 5 ग्राम प्रोटीन होता है.
-100 ग्राम मछली में 20 ग्राम प्रोटीन होता है.

हर दिन कितना प्रोटीन चाहिए

महिलाओं में ९20 से 70 साल की उम्र में 45 से 50 ग्राम प्रोटीन प्रतिदिन चाहिए होता है. जबकि पुरुषों को हर दिन 55 से 60 ग्राम प्रोटीन की जरूरत होती है. बच्चों में प्रोटीन की सब से अधिक जरूरत होती है. इन में 3 साल की उम्र से 20 साल की उम्र तक 15 से 45 और 50 ग्राम तक प्रोटीन की जरूरत होती है, जो इन की उम्र के अनुसार निर्धारित होती है. साथ ही दिमाग में यह बात जरूर रखें कि बच्चा जो डायट ले रहा है, उस डायट का 10 से 20 प्रतिशत प्रोटीन रिच होना चाहिए.

इन लोगों को होती है अधिक प्रोटीन की जरूरत

कुछ लोगों में सामान्य लोगों से अधिक प्रोटीन की जरूरत होती है. इन में खासतौर पर गर्भवती महिलाएं, नवजात बच्चे और जिन लोगों की रोगप्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है, वे लोग शामिल हैं. इन्हें प्रोटीन की सही मात्रा में और सब से अधिक जरूरत होती है.

बच्चों में एक खास बीमारी होती है जिसे क्वाशिऑरकोर (Kwashiokor) कहते हैं. यह बच्चों की ऐसी बीमारी है, जो मुख्य रूप से प्रोटीन की कमी के कारण होती है. ऐसे बच्चे बेहद दुबलेपतले होते हैं, लेकिन इन का पेट निकला होता है.

*क्वाशिऑरकोर बीमारी के शिकार बच्चों में हाथपैर में सूजन होती है.इन्हें डायरिया हो जाता है और ऐसे बच्चे आमतौर पर गुमसुम रहते हैं.

*बच्चों में प्रोटीन की कमी के कारण मेंटल रिटार्डेशन भी हो सकता है. इसलिए बच्चों की डायट प्रोटीन रिच होनी बेहद जरूरी है. अगर यहां बताए गए लक्षणों में कोई भी दिक्कत आपको बच्चे में नजर आती है तो उसे तुरंत डॉक्टर को दिखाएं साथ ही प्रोटीन रिच डायट के बारे में पूरी जानकारी हासिल करें.

इन बीमारियों में नहीं लेनी चाहिए प्रोटीन डायट

-जिन लोगों को प्रोटीन से एलर्जी होती है, उन्हें ऐसी डायट लेने से बचना चाहिए.

-क्रॉनिक किडनी डिजीज से गुजर रहे मरीजों को प्रोटीन रिच डायट नहीं लेनी चाहिए.

-अगर बच्चे को फिनायलकिटोन्यूरिया (Phenylketonuria)नामक बीमारी है तो भी बच्चे को प्रोटीन डायट नहीं देनी चाहिए.

प्रोटीन की कमी से हो सकती हैं ये बीमारियां

* प्रोटीन की कमी के कारण हमें जोड़ों का दर्द, मांसपेशियों में अकड़न, जल्दी थकान जैसी शारीरिक दिक्कतें हो सकती हैं. कई अन्य बीमारियां भी घेर सकती हैं.

* अगर प्रोटीन की कमी बहुत अधिक हो जाती है तो शरीर में हीमोग्लोबिन कम हो जाता है. साथ ही खून में वाइट ब्लड सेल्स की कमी भी हो सकती है. इस से हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है.

* रूखे बेजान बाल, नाखून और त्वचा में रूखापन, बारबार बीमार पड़ना. किसी दर्द का बना रहना. ये सभी दिक्कतें प्रोटीन की कमी के कारण होती हैं.

* अगर हमारे खाने में प्रोटीन की कमी होती है तो हमारा ब्रेन भी सही प्रकार से काम नहीं कर पाता है, क्योंकि ब्रेन में एक हिस्सा प्रोटीन से निर्मित होता है, जो मेमॉरी स्टोरेज की तरह काम करता है. प्रोटीन डायट के अभाव में हमारी याददाश्त कमजोर हो सकती है.

* शरीर में प्रोटीन की कमी होने पर हड्डियां कमजोर हो जाती हैं. सिर्फ कैल्शियम ही नहीं बल्कि मजबूत हड्डियों के लिए प्रोटीन की भी जरूरत होती है. क्योंकि यह हड्डियों को मजबूती देने का काम करता है. प्रोटीन से बोन्स का वॉल्यूम बना रहता है.

प्रोटीन की कमी

यदि आप गर्भावस्‍था में पर्याप्‍त मात्रा में प्रोटीन नहीं लेती हैं तो इस की वजह से वजन कम होने, बारबार संक्रमण और मांसपेशियों में थकान महसूस होती है.

इस के अलावा सूजन, बारबार मूड बदलना, कमजोरी और भूख लगना भी प्रोटीन की कमी के संकेत होते हैं. अगर ये संकेत मिल रहे हैं तो डॉक्‍टर से बात कर के अपनी डायट में प्रोटीन युक्‍त आहार की मात्रा बढ़ा दें.

* प्रोटीन की कमी का कोई भी लक्षण दिख रहा है तो डॉक्‍टर से बात करें. आप को प्रेग्‍नेंसी के किसी भी महीने या तिमाही में प्रोटीन की कमी हो सकती है. हर महीने गर्भस्‍थ शिशु के विकास पर नजर रखें और अपनी रोजाना की डायट में प्रोटीन को शामिल करें.

अगर आप शाकाहारी हैं तो सोया से बनी उत्‍पादों, बींस, नट्स, दालों और दूध से बने उत्‍पादों से अपनी प्रोटीन की जरूरत को पूरा करें.

आप को यह बात समझनी चाहिए कि गर्भावस्‍था में आप को अपने लिए ही नहीं बल्कि अपने शिशु के लिए भी खाना है, इसलिए जितना हो सके अपने आहार में पौष्टिक चीजों को शामिल करें.

वाइफ की प्रैग्नेंसी का असर मैरिड लाइफ पर पड़ रहा है, मैं क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मेरी बीवी पेट से है और 7वां महीना चल रहा है. मेरा हमबिस्तरी करने का मन करता है, पर बीवी मना करती है. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब

आप को खुद पर काबू रखना चाहिए. ऐसी हालत में बिना बीवी की इच्छा के हमबिस्तरी करना बच्चे के भी लिए नुकसानदेह हो सकता है.

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प्रेगनेंसी में इन 6 उपायों से लें सेक्स का आनंद

पत्नी के प्रेगनेंट होते ही दोनों के मन में ये सवाल आने स्वाभाविक हैं कि क्या इस अवस्था में सेक्स करना ठीक है, क्या इससे गर्भस्थ शिशु को कोई हानि हो सकती है या गर्भवती स्त्री को कोई तकलीफ हो सकती है?

जैसे-जैसे गर्भावस्था बढ़ती जाती है महिला की शारीरिक परेशानी बढ़ने लगती है और सेक्स के सामान्य तरीके अपनाना इसलिए कठिन हो जाता है. प्रेगनेंसी में गर्भवती महिला के उदर पर किसी प्रकार का दबाव उसके तथा भ्रूण दोनों के लिए कष्टदायी तथा नुकसानदेह हो सकता है.

वैसे छठे या सातवें माह तक की गर्भावस्था में सेक्स किया जा सकता है, लेकिन विशेष सावधानी के साथ. इसके लिए डॉक्टर की सलाह पर विशेष प्रकार के आसन अपनाए जा सकते हैं.

गर्भावस्था में सेक्स के उपाय

पत्नी के गर्भावती होने का पता चलते ही प्रथम दो माह तक सम्बन्धों का त्याग करने का प्रयास करें. अन्तिम एक माह में भी सेक्स से दूर रहने का प्रयास करें. प्रसव के पश्चात् लगभग चार सप्ताह तो वैसे ही निकल जाते हैं. इसमें अधिकांश व्यक्ति सेक्स के प्रति इच्छुक भी नहीं रहता है.

  1. गर्भ की स्थिति के प्रथम तथा अन्तिम सप्ताह में योनि प्रवेश से बचना चाहिए. हां सप्ताह में 2-3 बार शारीरिक छेड़छाड़ द्वारा आनन्द प्राप्त किया जा सकता है. ऐसे समय पत्नी अपनी हथेलियों द्वारा स्खलन में मदद कर सकती है. अनेक स्थितियों में व्यक्ति को इसमें शारीरिक सम्बन्धों जितना आनन्द प्राप्त हो जाता है. यहां इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि पत्नी पर दबाव नहीं डालें. पति को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि गर्भ के समय पत्नी के साथ ऐसा कोई व्यवहार नहीं करें जिससे उसके मन-मस्तिष्क पर विपरीत प्रभाव पड़ें.
  2. लिंग प्रवेश पूरी तरह न करके सिर्फ आधा प्रवेश करें. कोहनियों को नीचे टिकायें और बहुत धीरे-धीरे घर्षण करें. शिश्न मुण्ड सबसे ज्यादा संवेदनशील होता है. स्खलन में लिंग मुण्ड की संवेदनशीलता प्रमुख भूमिका निभाती है. इसलिए केवल शिश्न मुण्ड ही प्रवेश करके धीरे-धीरे घर्षण किये जायें तो भी व्यक्ति पूर्ण आनन्द प्राप्त कर सकता है. ध्यान रहे कि लिंग का पूरा प्रवेश नहीं होना चाहिए और न घर्षणों में तीव्रता होनी चाहिए. अपने शरीर का भार कोहनियों पर रखें. स्त्री शरीर पर बोझ नहीं पड़ना चाहिए.
  3. गर्भावस्था के अन्तिम तीन महीनों मे स्थिति को थोड़ा बदलें. अभी भी लिंग का प्रवेश पूरा नहीं करना है. केवल शिश्न मुण्ड ही प्रवेश करायें. हथेलियों को नीचे टिकायें और हाथ एकदम सीधे रखें. ऐसा करने से आपका शरीर स्त्री शरीर से काफी ऊंचा रहेगा. इस अवस्था में गर्भ अपने समय की पूर्णता को प्राप्त कर रहा होता है. पेट का उभार काफी बढ़ जाता है, ऐसे में अपने शरीर जितना सम्भव हो, उतना दूर रखने का ही प्रयास करें. हथेलियां नीचे टिकाकर हाथों को एकदम सीधा करने से पुरुष का शरीर पर्याप्त रूप से ऊंचा उठा रहेगा. इस स्थिति में भूलकर भी लिंग को पूरी तरह से प्रविष्ठ नहीं करना है.
  4. गर्भावस्था में करवट बदल कर भी सम्बन्ध बनाए जा सकते हैं. ऐसे में कुछ व्यक्तियों के साथ समस्या हो सकती है, लिंग प्रवेश में कठिनाई हो सकती है, फिर भी आधा अथवा केवल शिश्न मुण्ड का प्रवेश किया जा सकता है. ऐसी स्थिति में पुरुष शरीर का भार स्त्री पर नहीं पड़ता है.
  5. कुछ विद्वानों का मानना है कि लिंग प्रवेश से बचने के लिए उत्तेजित लिंग को योनि पर रगड़ने मात्र से भी स्खलन किया जा सकता है. स्त्री की वेजाइना को हाथों द्वारा सहलाकर उसे भी आनन्दित किया जा सकता है. विद्वानों का ऐसा भी मानना है कि गर्भावस्था में सम्बन्ध बनाने का मुख्य उद्देश्य मात्र स्खलन होता है. यह स्खलन योनि पर रगड़कर किया जा सकता है. बहुत से व्यक्ति ऐसे समय में हस्तमैथुन को भी सहीं मानते हैं किन्तु विवाह के बाद हस्तमैथुन के लिए व्यक्ति तुरन्त तैयार नहीं हो पाता. खासकर उस समय तो बिल्कुल नहीं जब पत्नी उपस्थित हो.
  6. इसके अलावा व्यक्ति यदि उचित समझे तो अपने चिकित्सक से राय ले सकता है. सम्भव है कि वह कुछ अन्य सही आसनों के बारे में राय दे सके अथवा व्यक्ति स्वयं अपनी सूझ-बूझ एवं विचार कर रास्ता निकाल सकता है.

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Kitchen को देना चाहती हैं मौडर्न और ट्रैंडी लुक, तो फौलो करें ये टिप्स

किचन (Kitchen)  घर का सब से अहम हिस्सा है, क्योंकि परिवार को सेहतमंद रखने की शुरुआत यहीं से होती है. ऐसे में किचन को स्वच्छ और खूबसूरत बनाए रखना बहुत महत्त्वपूर्ण है. आजकल किचन को मौडर्न बनाने और इसे स्वच्छ रखने के कई विकल्प उपलब्ध हैं. ये विकल्प न सिर्फ आप की किचन को खूबसूरत और आधुनिक बनाते हैं, बल्कि आप की जरूरत के अनुसार किचन को व्यवस्थित भी करते हैं.

मौड्युलर किचन के नाम से प्रचलित इन विकल्पों में वुडन वर्क, टाइल्स वर्क और स्टील आयरन वर्क प्रमुख हैं. खूबसूरत और स्टाइलिश किचन में काम करने का मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी होता है. ऐसे वातावरण में काम करने से जहां आप का मन खुश रहता है, वहीं आप काम को बेहतर ढंग से करने की कोशिश करती हैं.

व्यवस्थित और खूबसूरत किचन

किचन को खूबसूरत बनाने के साथसाथ उसे व्यवस्थित रखना भी जरूरी है, ताकि किचन में काम करते समय आप को किसी तरह की असुविधा न हो. आइए, जानें कुछ टिप्स जिन्हें फौलो करने पर आप किचन को और्गेनाइज्ड व खूबसूरत बना सकती हैं:

  1. – अगर आप के कैबिनेट के नीचे वाले हिस्से में स्पेस है, तो आप उस हिस्से में बौक्सेज लगवा लें. इस से आप को अलग से डस्टबिन रखने की जरूरत नहीं पड़ेगी.
  2. – किचन को आकर्षक कलरफुल जार, क्यूब कोस्टर्स, टूथपिक होल्डर्स, आर्टिफिशियल फ्रूट्स, वैजिटेबल्स, कलरफुल बास्केट्स व नैपकिंस से सजाएं.
  3. – किचन को खूबसूरत दिखाने के लिए कंट्रास्ट कलर की टाइल्स, जिन में बौर्डर और खूबसूरत मोटिफ्स बने होते हैं, लगवाएं. किचन के फ्लोर को आकर्षक दिखाने के लिए आप विनायल फ्लोरिंग, सिरैमिक टाइल्स, लैमिनेटेड टाइल्स अपनी जरूरत व पसंद के अनुसार चुन सकती हैं.
  4. – किचन में रखें मौडर्न किचन ऐप्लायंसेज, जिन से आप का वक्त तो बचेगा ही, साथ ही आप की किचन भी मौडर्न गैजेट्स से सजी अच्छी लगेगी.
  5. – किचन को तरोताजा दिखाने के लिए किचन में रखें नैचुरल फ्लौवर्स, जो आप को पौजिटिव ऐनर्जी देंगे.
  6. – किचन के काउंटर को साफ रखें. वे गैजेट्स जो रोजाना काम में आते हैं जैसे कौफी मेकर, इलैक्ट्रिक कैटल, मिक्सर ग्राइंडर, चौपर उन्हें काउंटर पर रखें जबकि टोस्टर, एयरफ्रायर आदि के लिए कैबिनेट में जगह बनाएं. ऐसा करने से किचन व्यवस्थित होने के साथसाथ आकर्षक भी दिखेगी.
  7. – किचन में लकड़ी व ग्लास की ऐसी वाल यूनिट बनवाएं, जिस में क्रौकरी आदि रखी जा सके. ऐसा करना किचन को खूबसूरत व मैनेज्ड दिखाएगा.
  8. – आजकल के कौंपैक्ट घरों में किचन स्पेस काफी कम होती है. ऐसे में उसे हाइजीनिक बनाए रखना बेहद जरूरी है. किचन को हाइजीनिक बनाए रखने में इलैक्ट्रिक चिमनी की भूमिका अहम है. यह चिमनी किचन को स्वच्छ रखने में मदद करने के साथसाथ किचन को स्टाइलिश लुक भी देती है.
  9. – किचन में खाना बनते समय गंदगी फैलती रहती है, इसलिए किचन की दीवारों और फर्श की खूबसूरती बनाए रखने के लिए टाइल्स का विकल्प चुनें. टाइल्स न सिर्फ आसानी से साफ हो जाती हैं, बल्कि आप के किचन को मौडर्न और स्टाइलिश लुक भी देती हैं.

किचन डिजाइनिंग टिप्स

चूंकि किचन आप की पसंदनापसंद, रहने के तौरतरीके को दर्शाती है, इसलिए उस का इंटीरियर करवाते समय इन बातों का रखें खयाल: मौड्यूलर किचन: मौड्यूलर किचन में अलमारियां, रैक्स और शैल्फ मीडियम डैंसिटी फाइबर या लकड़ी के बने होते हैं. ऐसी किचन में जगह का अच्छा उपयोग होता है और इन्हें अपनी जरूरत और पसंद के अनुसार बनवाया जा सकता है. इन में बिल्ट इन सिंक, ओवन, चिमनी ग्रिल और माइक्रोवेव की भी सुविधा मिलती है. किचन का कोई भी डिजाइन बनवाएं, लेकिन ध्यान रहे गैस चूल्हा, फ्रिज और सिंक ट्राइऐंग्यूलर वर्क एरिया में हों.

किचन टौप :

किचन का काउंटर टौप ग्रेनाइट का लगवाएं. ग्रेनाइट पत्थर की साफसफाई करना आसान होता है. आप चाहें तो किचन की डैकोरेशन से मैच करता ग्रेनाइट का रंग चुन सकती हैं. बाजार में कई तरह के बनेबनाए काउंटर भी मिलते हैं, जो आप की किचन के डिजाइन व कलर के साथ मैच करते हैं.

लाइटिंग :

किचन डिजाइन करते समय ध्यान रहे कि किचन में पर्याप्त रोशनी हो. रोशनी नैचुरल और इनडायरैक्ट दोनों होनी चाहिए. इनडायरैक्ट लाइटिंग में आप हैलोजन या फ्लोरोसैंट लाइटिंग करवा सकती हैं. यदि किचन को और भी अलग लुक देना हो तो पेंडैंट लाइटिंग भी करवा सकती हैं. अनेक डिजाइनों में उपलब्ध सीलिंग से एक मैटल की रौड से जुड़ी यह लाइटिंग खूबसूरत दिखने के साथसाथ उपयोगी भी होती है.

डैकोरेशन :

मौड्यूलर किचन को मौडर्न टच देने के साथसाथ उस को डैकोरेटिव बनाना भी जरूरी होता है. ऐसा करने से किचन की रौनक दोगुनी हो जाती है. किचन में रंगबिरंगी प्लेट्स व क्रौकरी का प्रयोग करें. इस के अलावा किचन को फ्रैश लुक देने के लिए बीड्स व सैंटेड कैंडल्स से भी सजा सकती हैं. किचन की दीवार को स्टाइलिश लुक देने के लिए किचन से संबंधित कोई पेंटिंग लगाएं. इस से किचन का रंगरूप तो बदलेगा ही, साथ ही किचन में नई ताजगी का एहसास भी होगा.

क्लीनिंग टिप्स

किचन की साफ सफाई के लिए पेश हैं कुछ घरेलू टिप्स:

– बरतनों को साफ करने वाला डिश बार आप के किचन की सफाई में भी बेहद काम आता है. कुकिंग टौप, किचन टौप और सिंक को साफ करने के लिए आप डिश बार का इस्तेमाल कर सकती हैं. कुनकुने पानी में थोड़ा सा डिश बार मिला कर घोल तैयार कर लें. फिर स्क्रबर या सूती कपड़े को इस घोल में डिप कर के हलके हाथों से कुकिंग टौप, किचन टौप को साफ करें और फिर सूखे कपड़े से पोंछ दें. इस घोल का इस्तेमाल आप किचन फ्लोर को साफ करने में भी कर सकती हैं.

– आप के किचन का फ्लोर हरदम चमचमाता रहे इस के लिए आप ब्लीच का इस्तेमाल भी कर सकती हैं. लेकिन टाइल्स वाले किचन फ्लोर पर ब्लीच का इस्तेमाल न करें. टाइल्स पर यदि कोई दाग लग गया हो, तो कुनकुने पानी में डिटर्जैंट मिला कर कुछ देर के लिए दाग पर डाल कर छोड़ दें. अब स्क्रबर से दाग को साफ करने से दाग गायब हो जाएगा.

– ध्यान रखें कि किचन के फ्लोर, किचन टौप और सिंक के पास हरदम पानी न पड़ा रहे. किचन महिलाओं के लिए वह जगह है जो न सिर्फ उन के पूरे परिवार की सेहत का माध्यम होती है, बल्कि उन का सब से ज्यादा समय वहीं व्यतीत होता है. इसलिए घर की इस सब से महत्त्वपूर्ण जगह का स्वच्छ और सुंदर रहना बहुत जरूरी है.

लिफाफाबंद चिट्ठी : ट्रेन में चढ़ी वह महिला क्यों मदद की गुहार लगा रही थी

मैंने घड़ी देखी. अभी लगभग 1 घंटा तो स्टेशन पर इंतजार करना ही पड़ेगा. कुछ मैं जल्दी आ गया था और कुछ ट्रेन देरी से आ रही थी. इधरउधर नजरें दौड़ाईं तो एक बैंच खाली नजर आ गई. मैं ने तुरंत उस पर कब्जा कर लिया. सामान के नाम पर इकलौता बैग सिरहाने रख कर मैं पांव पसार कर लेट गया. अकेले यात्रा का भी अपना ही आनंद है. सामान और बच्चों को संभालने की टैंशन नहीं. आराम से इधरउधर ताकाझांकी भी कर लो.

स्टेशन पर बहुत ज्यादा भीड़ नहीं थी. पर जैसे ही कोई ट्रेन आने को होती, एकदम हलचल मच जाती. कुली, ठेले वाले एकदम चौकन्ने हो जाते. ऊंघते यात्री सामान संभालने लगते. ट्रेन के रुकते ही यात्रियों के चढ़नेउतरने का सिलसिला शुरू हो जाता. उस समय यह निश्चित करना मुश्किल हो जाता था कि ट्रेन के अंदर ज्यादा भीड़ है या बाहर? इतने इतमीनान से यात्रियों को निहारने का यह मेरा पहला अवसर था. किसी को चढ़ने की जल्दी थी, तो किसी को उतरने की. इस दौरान कौन खुश है, कौन उदास, कौन चिंतित है और कौन पीडि़त यह देखनेसमझने का वक्त किसी के पास नहीं था.

किसी का पांव दब गया, वह दर्द से कराह रहा है, पर रौंदने वाला एक सौरी कह चलता बना. ‘‘भैया जरा साइड में हो कर सहला लीजिए,’’ कह कर आसपास वाले रास्ता बना कर चढ़नेउतरने लगे. किसी को उसे या उस के सामान को चढ़ाने की सुध नहीं थी. चढ़ते वक्त एक महिला की चप्पलें प्लेटफार्म पर ही छूट गईं. वह चप्पलें पकड़ाने की गुहार करती रही. आखिर खुद ही भीड़ में रास्ता बना कर उतरी और चप्पलें पहन कर चढ़ी.

मैं लोगों की स्वार्थपरता देख हैरान था. क्या हो गया है हमारी महानगरीय संस्कृति को? प्रेम, सौहार्द और अपनेपन की जगह हर किसी की आंखों में अविश्वास, आशंका और अजनबीपन के साए मंडराते नजर आ रहे थे. मात्र शरीर एकदूसरे को छूते हुए निकल रहे थे, उन के मन के बीच का फासला अपरिमित था. मुझे सहसा कवि रामदरश मिश्र की वह उपमा याद आ गई, ‘कैसा है यह एकसाथ होना, दूसरे के साथ हंसना न रोना. क्या हम भी लैटरबौक्स की चिट्ठियां बन गए हैं?’

इस कल्पना के साथ ही स्टेशन का परिदृश्य मेरे लिए सहसा बदल गया. शोरशराबे वाला माहौल निस्तब्ध शांति में तबदील हो गया. अब वहां इंसान नहीं सुखदुख वाली अनंत चिट्ठियां अपनीअपनी मंजिल की ओर धीरेधीरे बढ़ रही थीं. लेकिन कोई किसी से नहीं बोल रही थी. मैं मानो सपनों की दुनिया में विचरण करने लगा था.

‘‘हां, यहीं रख दो,’’ एक नारी स्वर उभरा और फिर ठकठक सामान रखने की आवाज ने मेरी तंद्रा भंग कर दी. गोद में छोटे बच्चे को पकड़े एक संभ्रांत सी महिला कुली से सामान रखवा रही थी. बैंच पर बैठने का उस का मंतव्य समझ मैं ने पांव समेट लिए और जगह बना दी. वह धन्यवाद दे कर मुसकान बिखेरती हुई बच्चे को ले कर बैठ गई. एक बार उस ने अपने सामान का अवलोकन किया. शायद गिन रही थी पूरा आ गया है या नहीं? फिर इतमीनान से बच्चे को बिस्कुट खिलाने लगी.

यकायक उस महिला को कुछ खयाल आया. उस ने अपनी पानी की बोतल उठा कर हिलाई. फिर इधरउधर नजरें दौड़ाईं. दूर पीने के पानी का नल और कतार नजर आ रहें थे. उस की नजरें मुड़ीं और आ कर मुझ पर ठहर गईं. मैं उस का मंतव्य समझ नजरें चुराने लगा. पर उस ने मुझे पकड़ लिया, ‘‘भाई साहब, बहुत जल्दी में घर से निकलना हुआ तो बोतल नहीं भर सकी. प्लीज, आप भर लाएंगे?’’

एक तो अपने आराम में खलल की वजह से मैं वैसे ही खुंदक में था और फिर ऊपर से यह बेगार. मेरे मन के भाव शायद मेरे चेहरे पर लक्षित हो गए थे. इसलिए वह तुरंत बोल पड़ी, ‘‘अच्छा रहने दीजिए. मैं ही ले आती हूं. आप थोड़ा टिंकू को पकड़ लेंगे?’’

वह बच्चे को मेरी गोद में पकड़ाने लगी, तो मैं झटके से उठ खड़ा हुआ, ‘‘मैं ही ले आता हूं,’’ कह कर बोतल ले कर रवाना हुआ तो मन में एक शक का कीड़ा बुलबुलाया कि कहीं यह कोई चोरउचक्की तो नहीं? आजकल तो चोर किसी भी वेश में आ जाते हैं. पीछे से मेरा बैग ही ले कर चंपत न हो जाए? अरे नहीं, गोद में बच्चे और ढेर सारे सामान के साथ कहां भाग सकती है? लो, बन गए न बेवकूफ? अरे, ऐसों का पूरा गिरोह होता है. महिलाएं तो ग्राहक फंसाती हैं और मर्द सामान ले कर चंपत. मैं ठिठक कर मुड़ कर अपना सामान देखने लगा.

‘‘मैं ध्यान रख रही हूं, आप के सामान का,’’ उस ने जोर से कहा.

मैं मन ही मन बुदबुदाया कि इसी बात का तो डर है. कतार में खड़े और बोतल भरते हुए भी मेरी नजरें अपने बैग पर ही टिकी रहीं. लौट कर बोतल पकड़ाई, तो उस ने धन्यवाद कहा. फिर हंस कर बोली, ‘‘आप से कहा तो था कि मैं ध्यान रख रही हूं. फिर भी सारा वक्त आप की नजरें इसी पर टिकी रहीं.’’

अब मैं क्या कहता? ‘खैर, कर दी एक बार मदद, अब दूर रहना ही ठीक है,’ सोच कर मैं मोबाइल में मैसेज पढ़ने लगा. यह अच्छा जरिया है आजकल, भीड़ में रहते हुए भी निस्पृह बने रहने का.

‘‘आप बता सकते हैं कोच नंबर 3 कहां लगेगा?’’ उस ने मुझ से फिर संपर्कसूत्र जोड़ने की कोशिश की.

‘‘यहीं या फिर थोड़ा आगे,’’ सूखा सा जवाब देते वक्त अचानक मेरे दिमाग में कुछ चटका कि ओह, यह भी मेरे ही डब्बे में है? मेरी नजरें उस के ढेर सारे सामान पर से फिसलती हुईं अपने इकलौते बैग पर आ कर टिक गईं. अब यदि इस ने अपना सामान चढ़वाने में मदद मांगी या बच्चे को पकड़ाया तो? बच्चू, फूट ले यहां से. हालांकि ट्रेन आने में अभी 10 मिनट की देर थी. पर मैं ने अपना बैग उठाया और प्लेटफार्म पर टहलने लगा.

कुछ ही देर में ट्रेन आ पहुंची. मैं लपक कर डब्बे में चढ़ा और अपनी सीट पर जा कर पसर गया. अभी मैं पूरी तरह जम भी नहीं पाया था कि उसी महिला का स्वर सुनाई दिया, ‘‘संभाल कर चढ़ाना भैया. हां, यह सूटकेस इधर नीचे डाल दो और उसे ऊपर चढ़ा दो… अरे भाई साहब, आप की भी सीट यहीं है? चलो, अच्छा है… लो भैया, ये लो अपने पूरे 70 रुपए.’’

मैं ने देखा वही कुली था. पैसे ले कर वह चला गया. महिला मेरे सामने वाली सीट पर बच्चे को बैठा कर खुद भी बैठ गई और सुस्ताने लगी. मुझे उस से सहानुभूति हो आई कि बेचारी छोटे से बच्चे और ढेर सारे सामान के साथ कैसे अकेले सफर कर रही है? पर यह सहानुभूति कुछ पलों के लिए ही थी. परिस्थितियां बदलते ही मेरा रुख भी बदल गया. हुआ यों कि टी.टी. आया तो वह उस की ओर लपकी. बोली, ‘‘मेरी ऊपर वाली बर्थ है. तत्काल कोटे में यही बची थी. छोटा बच्चा साथ है, कोई नीचे वाली सीट मिल जाती तो…’’

मेरी नीचे वाली बर्थ थी. कहीं मुझे ही बलि का बकरा न बनना पड़े, सोच कर मैं ने तुरंत मोबाइल निकाला और बात करने लगा. टी.टी. ने मुझे व्यस्त देख पास बैठे दूसरे सज्जन से पूछताछ आरंभ कर दी. उन की भी नीचे की बर्थ थी. वे सीटों की अदलाबदली के लिए राजी हो गए, तो मैं ने राहत की सांस ले कर मोबाइल पर बात समाप्त की. वे सज्जन एक उपन्यास ले कर ऊपर की बर्थ पर जा कर आराम से लेट गए. महिला ने भी राहत की सांस ली.

‘‘चलो, यह समस्या तो हल हुई… मैं जरा टौयलेट हो कर आती हूं. आप टिंकू को देख लेंगे?’’ बिना जवाब की प्रतीक्षा किए वह उठ कर चल दी. मुझ जैसे सज्जन व्यक्ति से मानो इनकार की तो उसे उम्मीद ही नहीं थी.

मैं ने सिर थाम लिया कि इस से तो मैं सीट बदल लेता तो बेहतर था. मुझे आराम से उपन्यास पढ़ते उन सज्जन से ईर्ष्या होने लगी. उस महिला पर मुझे बेइंतहा गुस्सा आ रहा था कि क्या जरूरत थी उसे एक छोटे बच्चे के संग अकेले सफर करने की? मेरे सफर का सारा मजा किरकिरा कर दिया. मैं बैग से

अखबार निकाल कर पढ़े हुए अखबार को दोबारा पढ़ने लगा. वह महिला तब तक लौट आई थी.

‘‘मैं जरा टिंकू को भी टौयलेट करा लाती हूं. सामान का ध्यान तो आप रख ही रहे हैं,’’ कहते हुए वह बच्चे को ले कर चली गई. मैं ने अखबार पटक दिया और बड़बड़ाया कि हां बिलकुल. स्टेशन से बिना पगार का नौकर साथ ले कर चढ़ी हैं मैडमजी, जो कभी इन के बच्चे का ध्यान रखेगा, कभी सामान का, तो कभी पानी भर कर लाएगा…हुंह.

तभी पैंट्रीमैन आ गया, ‘‘सर, आप खाना लेंगे?’’

‘‘हां, एक वैज थाली.’’

वह सब से पूछ कर और्डर लेने लगा. अचानक मुझे उस महिला का खयाल आया कि यदि उस ने खाना और्डर नहीं किया तो फिर स्टेशन से मुझे ही कुछ ला कर देना पड़ेगा या शायद शेयर ही करना पड़ जाए. अत: बोला, ‘‘सुनो भैया, उधर टौयलेट में एक महिला बच्चे के साथ है. उस से भी पूछ लेना.’’

कुछ ही देर में बच्चे को गोद में उठाए वह प्रकट हो गई, ‘‘धन्यवाद, आप ने हमारे खाने का ध्यान रखा. पर हमें नहीं चाहिए. हम तो घर से काफी सारा खाना ले कर चले हैं. वह रामधन है न, हमारे बाबा का रसोइया उस ने ढेर सारी सब्जी व पूरियां साथ रख दी हैं. बस, जल्दीजल्दी में पानी भरना भूल गया, बल्कि हम तो कह रहे हैं आप भी मत मंगाइए. हमारे साथ ही खा लेना.’’

मैं ने कोई जवाब न दे कर फिर से अखबार आंखों के आगे कर लिया और सोचने लगा कि या तो यह महिला निहायत भोली है या फिर जरूरत से ज्यादा शातिर. हो सकता है खाने में कुछ मिला कर लाई हो. पहले भाईचारा गांठ रही है और फिर… मुझे सावधान रहना होगा. इस का आज का शिकार निश्चितरूप से मैं ही हूं.

जबलपुर स्टेशन आने पर खाना आ गया था. मैं कनखियों से उस महिला को खाना निकालते और साथ ही बच्चे को संभालते देख रहा था. पर मैं जानबूझ कर अनजान बना अपना खाना खाता रहा.

‘‘थोड़ी सब्जीपूरी चखिए न. घर का बना खाना है,’’ उस ने इसरार किया.

‘‘बस, मेरा पेट भर गया है. मैं तो नीचे स्टेशन पर चाय पीने जा रहा हूं,’’ कह मैं फटाफट खाना खत्म करते हुए वहां से खिसक लिया कि कहीं फिर पानी या और कुछ न मंगा ले.

‘‘हांहां, आराम से जाइए. मैं आप के सामान का खयाल रख लूंगी.’’

‘ओह, बैग के बारे में तो भूल ही गया था. इस की नजर जरूर मेरे बैग पर है. पर क्या ले लेगी? 4 जोड़ी कपड़े ही तो हैं. यह अलग बात है कि सब अच्छे नए जोड़े हैं और आज के जमाने में तो वे ही बहुत महंगे पड़ते हैं. पर छोड़ो, बाहर थोड़ी आजादी तो मिलेगी. इधर तो दम घुटने लगा है,’ सोचते हुए मैं नीचे उतर गया. चाय पी तो दिमाग कुछ शांत हुआ. तभी मुझे अपना एक दोस्त नजर आ गया. वह भी उसी गाड़ी में सफर कर रहा था और चाय पीने उतरा था. बातें करते हुए मैं ने उस के संग दोबारा चाय पी. मेरा मूड अब एकदम ताजा हो गया था. हम बातों में इतना खो गए कि गाड़ी कब खिसकने लगी, हमें ध्यान ही न रहा. दोस्त की नजर गई तो हम भागते हुए जो डब्बा सामने दिखा, उसी में चढ़ गए. शुक्र है, सब डब्बे अंदर से जुड़े हुए थे. दोस्त से विदा ले कर मैं अपने डब्बे की ओर बढ़ने लगा. अभी अपने डब्बे में घुसा ही था कि एक आदमी ने टोक दिया, ‘‘क्या भाई साहब, कहां चले गए थे? आप की फैमिली परेशान हो रही है.’’

आगे बढ़ा तो एक वृद्ध ने टोक दिया, ‘‘जल्दी जाओ बेटा. बेचारी के आंसू निकलने को हैं,’’ अपनी सीट तक पहुंचतेपहुंचते लोगों की नसीहतों ने मुझे बुरी तरह खिझा दिया था.

मैं बरस पड़ा, ‘‘नहीं है वह मेरी फैमिली. हर किसी राह चलते को मेरी फैमिली बना देंगे आप?’’

‘‘भैया, वह सब से आप का हुलिया बताबता कर पूछ रही थी, चेन खींचने की बात कर रही थी. तब किसी ने बताया कि आप जल्दी में दूसरे डब्बे में चढ़ गए हैं. चेन खींचने की जरूरत नहीं है, अभी आ जाएंगे तब कहीं जा कर मानीं,’’ एक ने सफाई पेश की.

‘‘क्या चाहती हैं आप? क्यों तमाशा बना रही हैं? मैं अपना ध्यान खुद रख सकता हूं. आप अपना और अपने बच्चे का ध्यान रखिए. बहुत मेहरबानी होगी,’’ मैं ने गुस्से में उस के आगे हाथ जोड़ दिए.

इस के बाद पूरे रास्ते कोई कुछ नहीं बोला. एक दमघोंटू सी चुप्पी हमारे बीच पसरी रही. मुझे लग रहा था मैं अनावश्यक ही उत्तेजित हो गया था. पर मैं चुप रहा. मेरा स्टेशन आ गया था. मैं उस पर फटाफट एक नजर भी डाले बिना अपना बैग उठा कर नीचे उतर गया. अपना वही दोस्त मुझे फिर नजर आ गया तो मैं उस से बतियाने रुक गया. हम वहीं खड़े बातें कर रहे थे कि एक अपरिचित सज्जन मेरी ओर बढ़े. उन की गोद में उसी बच्चे को देख मैं ने अनुमान लगा लिया कि वे उस महिला के पति होंगे.

‘‘किन शब्दों में आप को धन्यवाद दूं? संजना बता रही है, आप ने पूरे रास्ते उस का और टिंकू का बहुत खयाल रखा. वह दरअसल अपने बीमार बाबा के पास पीहर गई हुई थी. मैं खुद उसे छोड़ कर आया था. यहां अचानक मेरे पापा को हार्टअटैक आ गया. उन्हें अस्पताल में भरती करवाना पड़ा. संजना को पता चला तो आने की जिद पकड़ बैठी. मैं ने मना किया कि कुछ दिनों बाद मैं खुद लेने आ जाऊंगा पर उस से रहा नहीं गया. बस, अकेले ही चल पड़ी. मैं कितना फिक्रमंद हो रहा था…’’

‘‘मैं ने कहा था न आप को फिक्र की कोई बात नहीं है. हमें कोई परेशानी नहीं होगी. और देखो ये भाई साहब मिल ही गए. इन के संग लगा ही नहीं कि मैं अकेली सफर कर रही हूं.’’

मैं असहज सा महसूस करने लगा. मैं ने घड़ी पर नजर डाली, ‘‘ओह, 5 बज गए. मैं चलता हूं… क्लाइंट निकल जाएगा,’’ कहते हुए मैं आगे बढ़ते यात्रियों में शामिल हो गया. लिफाफाबंद चिट्ठियों की भीड़ में एक और चिट्ठी शुमार हो गई थी.

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