लेखक- रााकेश भ्रमर
अनिल के दिमाग में कई सारे चित्र एकसाथ कौंध गए. रीना के खाते में कुछेक लाख रुपए होंगे, जो ब्लैक से व्हाइट किए थे, कुछ लाख घर में पड़े थे. 10 लाख रुपए तो हो जाएंगे, परंतु कुछ दिनों पहले ही उस ने ‘कैश डाउन’ पर एक घर बुक किया था, अलौट होने पर एकसाथ पूरा पैसा भरना पड़ेगा. इसी साल अलौट हो जाएगा.
उस ने कहा, ‘‘आप ने पहली बार मुझ से कुछ कहा है, मना तो नहीं करूंगा, परंतु रकम छोटी नहीं?है. मेरी भी अपनी जरूरतें?हैं. समय सब का एकजैसा नहीं रहता. कल क्या होगा, कोई नहीं जानता. इसलिए मैं पहले ही कह देता हूं. थोड़ाथोड़ा कर के पैसा लौटाते रहिएगा. इसे बिना ब्याज का उधार समझिएगा, दान नहीं.’’ अनिल की स्पष्टता से सासससुर के चेहरे लटक गए, परंतु कहीं बात न बिगड़ जाए, ससुरजी जल्दी से बोले, ‘‘अरे बेटा, यह भी कोई कहने की बात?है.’’
और इस तरह रीना के दूसरे भाई की किराने की दुकान गली में खुल गई.
3 वर्षों बाद
रीना एक बेटे की मां बनी. उस की छठी खूब धूमधाम से मनाई गई. बेटी का चौथा जन्मदिन आया, तो उस का जश्न भी एक बड़े होटल में मनाया गया.
इस के बाद पता नहीं किस की नजर अनिल के सुखी परिवार पर पड़ गई. उस की शिकायत विजिलैंस और एंटी करप्शन विभाग में किसी ने कर दी. जांच शुरू हुई तो रीना के फर्जी कारोबार की भी जांच होने लगी.
अनिल के हाथ से सारे प्रोजैक्ट्स वापस ले लिए गए. उस की पोस्टिंग औफिस में कर दी गई. वहां कमाई का कोई अवसर नहीं था. वह सूखे रेगिस्तान में एकएक बूंद के लिए तरसने लगा.
उन दिनों घर का माहौल बीमार और थकाथका सा था. हर कोने में मनहूसियत और बोझिलता थी. अनिल और रीना भी आपस में कम ही बात करते. उन्हें लगता कुछ बोलेंगे, तो कहीं कुछ अप्रिय न घटित हो जाए.
ऐसे दिनों की अपेक्षा किसी ने नहीं की थी.
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उन के बुरे दिन थे, परंतु उन को सांत्वना और आश्वासन देने वाला कोई नहीं था. यहां तक कि रीना के मम्मीपापा और भाई भी एक अटूट दूरी बनाए हुए थे. इस का स्पष्ट कारण भी था कि कहीं अनिल उन से पैसे वापस न मांग बैठे.
इसी बीच, उस का मकान बन कर तैयार हो गया और बिल्डर की तरफ से पूर्ण भुगतान के लिए डिमांड नोटिस आ गई. अनिल वैसे ही परेशान?था. इन्क्वारी की वजह से ऊपरी आमदनी ठप थी. वेतन से कितनी बचत होती थी, रीना का हाथ पहले की तरह खुला हुआ था. हफ्ते नहीं तो महीने में एक बार अपने और बच्चों के लिए खरीदारी करती ही?थी.
जोड़तोड़ कर के भी पैसे पूरे नहीं हो रहे थे. ठेकेदारों ने भी उस से दूरी बना रखी थी. सच भी तो है, बिना मतलब के कोई किसी को क्यों घास डालेगा. अनिल अब हर ठेकेदार के लिए एक मामूली क्लर्क के समान था.
बहुत सोचबिचार कर अंत में उस ने निर्णय लिया और रीना से कहा, ‘‘अपने पापा से पैसे के लिए कहो, वरना मकान हाथ से निकल जाएगा.’’
रीना ने आश्चर्य से कहा, ‘‘मैं? आप कहते तो शायद दे भी दें. मेरे कहने पर देंगे?’’
‘‘तुम एक बार कह कर तो देखो,’’ उस ने जोर दिया.
‘‘मैं मम्मी से कह सकती हूं.’’
‘‘ठीक है, उन्हीं से कहो.’’
दूसरे दिन रीना स्वयं मम्मी के यहां गई. कुछ देर इधरउधर की बातें करने के बाद बोली, ‘‘मम्मी, आप को तो मालूम है, इन के खिलाफ जांच चल रही?है. पता नहीं, कब तक चलेगी. इसी बीच मकान का अलौटमैंट लैटर आ गया. बकाया राशि 3 महीने के अंदर जमा करनी है. वे कह रहे थे, आप अगर कुछ रुपए वापस कर दें…’’
उस की मम्मी ने रीना को ऐसे देखा जैसे उस ने कोई अनहोनी बात कह दी थी, या उस के सिर पर सींग उग आए थे. कड़े स्वर में बोली, ‘‘हमारे पास पैसे कहां?’’
‘‘आप से पैसे नहीं मांग रही हूं. जो आप ने लिए?हैं, वह वापस मांग रही हूं,’’ रीना ने ऐसे कहा जैसे मम्मी ने उस की बात नहीं समझी?थी.
‘‘मैं भी उन्हीं पैसों की बात कर रही हूं जो तुम लोगों ने दिए थे, सब दुकान में लगा दिए. क्या मेरे पास रखे?हैं. और बिटिया, क्या हम ने वापस देने के लिए मांगे थे?’’ दामादजी की कोई पसीने की कमाई?थी? घूस में लिए थे. और कमा लेंगे.’’
‘‘क्या?’’ रीना के सिर में जैसे बम फटा हो, ‘‘यह आप क्या कह रही हो, मम्मी?’’
‘‘हां, ठीक कह रही हूं. दामादजी की अभी लंबी नौकरी है. आज नहीं तो कल, फिर से ऊपरी आमदनी वाली जगह पर लग जाएंगे. हमारे पास क्या जरिया?है? कहां से लौटाएंगे? दो पैसे की इन्कम से?घर चलाएंगे या जोड़जोड़ कर तुम्हें लौटाएंगे,’’ मम्मी ने साफ मना कर दिया.
रीना लगभग रोंआसी हो गई. उस का मम्मी से लड़ने का मन कर रहा था, परंतु उद्वेग में उस का गला भर आया और वह केवल इतना ही कह सकी, ‘‘वे मुझे घर से निकाल देंगे.’’
‘‘उस की तू चिंता मत कर. अभी तेरी शादी के 7 साल नहीं हुए हैं. अनिल ने अगर ऐसी कोई हिमाकत की तो उसे दहेज कानून में फंसा दूंगी.’’
‘‘आप ऐसा करोगी?’’ रीना ने हैरानी से पूछा.
‘‘हां, इसलिए चुपचाप अपने घर जा और आज के बाद पैसे मांगने यहां मत आना.’’
रीना के हृदय में हाहाकार मचा हुआ था. मस्तिष्क में आंधियां सी चल रही थीं. शरीर जैसे झंझावात से डांवांडोल हो रहा?था. छोटे बच्चे को गोदी में लिए जब गिरतेपड़ते वह घर पहुंची, तो ऐसे हांफ रही थी जैसे किसी वीरान रेगिस्तान में उसे जंगली जानवरों ने दौड़ा लिया था और वह बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचा कर घर तक पहुंची थी.
अनिल घर पर ही?था. उस की दशा देख कर वह समझ गया, पूछा, ‘‘उन्होंने मना कर दिया?’’
रीना ने अपने पति के चेहरे को देखा. वह बहुत मासूम और निरीह लग रहा था. रीना को उस पर तरस आया. मन हुआ उस के गले लग कर खूब रो ले, परंतु वह केवल इतना ही कह सकी, ‘‘हां’’
‘‘मैं जानता था, यही होगा. पैसा ऐसा है ही कि वह रिश्तों को बनाता कम, बिगाड़ता ज्यादा?है. यही बात मैं सदा तुम से कहता था.’’
‘‘हां, आज मैं समझ गई हूं कि पैसे के आगे सगे मांबाप भी कैसे पराए हो जाते हैं.’’
‘‘पराए तो फिर भी पैसे वापस कर देते?हैं, लेकिन अपने कभी नहीं करते. पैसे के लिए वे ईमानधर्म और रिश्ते सब खराब कर लेते?हैं.’’
‘‘अब आप क्या करोगे?’’ उस ने रांआसे स्वर में पूछा.
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‘‘मैं तो किसी न किसी प्रकार पैसे का प्रबंध कर लूंगा, परंतु आज एक प्रण लेता हूं, चाहे कोई कितना भी बड़ा लालच दे, मैं घूस के पैसे को हाथ नहीं लगाऊंगा. मैं नहीं चाहता, मेरे मासूम बच्चों पर उस पैसे की छाया पड़े और वे बिगड़ जाएं. रिश्ते बिगड़ गए, तो कोई बात नहीं. फिर बन जाएंगे. परंतु अगर औलाद खराब निकल गई तो जीवनभर का रोना रहेगा.’’
‘‘मैं भी यही चाहती हूं. पैसे के कितने रंग मैं ने देख लिए. यह कैसे लोगों के मन में पाप भरता है, यह?भी देख लिया. यह सुख कम, दुख ज्यादा देता?है.’’
‘‘हां, चलो उठो. आज से हम एक नया जीवन आरंभ करेंगे, उस ने रीना की गोदी से छोटे मुन्ने को ले लिया.’’
रीना ने उस के कंधे पर अपना सिर रख दिया. उस के सारे झंझावात मिट चुके थे.?