शर्मा एक्सक्लूसिव पैट शौप

रिटायरमैंट के 4 दिन बाद ही घर बैठेबैठे घर वालों की गालियां सुनतेसुनते शर्माजी का दिमाग और टांगें जाम हो गईं तो उन्होंने कुछ ऐसा करने की सोची कि टांगों और दिमाग की तंदुरुस्ती के साथसाथ घर वालों की चिकचिक से भी छुटकारा मिले और इनकम का सोर्स भी हो जाए. रिटायरमैंट के बाद वैसे भी पगार आधी हो गई है. पर पैसा और शोहरत चाहे कितनी भी हो, कम ही लगती है. इन के लिए इनसान तो छोडि़ए, उसे बनाने वाला तक क्याक्या नहीं करता. जिस के मुंह इन दोनों का बेस्वाद सा स्वाद लग जाए, उसे हद से ले कर जद तक कोई अर्थ नहीं रखते.

तनीबनीठनी बीवी के हाथों की ठंडी पर ठंडी कौफी पीने, विचार पर विचार करने, महल्ले का व्यापारिक सर्वे और उस के गहन विश्लेषण से निकले नतीजों के बाद शर्माजी को लगा कि महल्ले में कुत्तों की संख्या इनसानों की जनसंख्या से अधिक है. पर उन के लिए कोई दुकान नहीं है, जहां से कुत्ते अपने मालिक को आदेश दे कर अपने हिसाब से अपनी पसंद का सामान मंगवा सकें. ऐसे में अगर महल्ले में कुत्तों के लिए एक जनरल स्टोर खुल जाए तो महल्ले के कुत्तों को अपनी पसंद का सामान मंगवाने के लिए अपने मालिकों को शहर न भेजना पड़े. इस से कुत्तों का काम भी हो जाएगा और चार पैसों की इनकम भी.

शर्माजी अपना प्रोजैक्ट फाइनल करने से पहले महल्ले के 4 कुत्तों के शौक के बारे में कुत्ता मालिकों से भी मिले. उन का इंटरव्यू किया. उन का विश्लेषण करने के बाद वे अंतिम रूप से इस नतीजे पर पहुंच गए कि महल्ले में कुत्तों की दुकान की इनसानों की दुकान से अधिक सख्त जरूरत है. उन्होंने मन बना लिया कि वे महल्ले में कुत्तों के लिए जनरल स्टोर खोल कर ही दम लेंगे. इनसान उन्हें जो समझें, सो समझें.

अपने इरादे पर अंतिम मुहर लगाने कल वे मेरे घर आए. उस वक्त मैं अपने स्वदेशी कुत्ते के बाल संवार रहा था. मैं स्वदेशी का हिमायती तो नहीं हूं, पर मुझे हर कुत्ता एक सा ही लगता है. इनसानों को हम चाहे देशविदेश में बांट लें, पर कुत्तों को मैं एक सा ही मानता हूं. कुत्ता चाहे देशी हो या विदेशी उस के पास एक अदद पूंछ तो जरूर होती है. कुत्ता काटनेभूंकने से नहीं, पूंछ से ही अधिक पहचाना जाता है. वैसे जब से इनसान ने भूंकना, काटना शुरू किया है तब से कुत्ते शरीफ होने लगे हैं.

असल में मुझे उस वक्त अपने कुत्ते के साथ सैर करने जाना था. कई महीनों से पता नहीं मैं क्यों उस की फिटनैस को ले कर अपनी फिटनैस से अधिक चिंतित हूं. अपने बाल सैर करने जाने पर संवेरे हों या न, इस से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. अपना पेट खराब हो, मुझे इस से कोई फर्क नहीं पड़ता. कुत्ते का हाजमा ठीक तो मेरा खुद ही ठीक. जब आप के साथ कुत्ता घूमने निकला हो तो लोग आप के बालों के संवरे होने के प्रति उतने सजग नहीं होते जितने कुत्ते के सजेसंवरे होने को ले कर होते हैं. इनसान का क्या, वह तो होता ही सजनेसंवरने के लिए है. पर असली आदर्श मालिक वह है जो अपने कुत्ते को अपने से अधिक सजासंवार कर रखे.

‘‘कहिए शर्माजी, कैसे आना हुआ? कैसे कट रही है रिटायरमैंट के बाद?’’ मैं ने कुत्ते के बाल संवारने के बाद उसी कंघी से अपने बाल संवारे तो कुत्ते की श्रद्घा मेरे प्रति देखने लायक थी. उसे उस वक्त लग रहा था जैसे मैं उस का मालिक न हो कर वह मेरा मालिक हो.

उन्होंने मेरे मन में कुत्ते के प्रति इतना अगाध प्रेम देखा तो बिन सोचेसमझे मेरे कुत्ते के पांव छूते हुए कहा, ‘‘समझो, मेरी निकल पड़ी.’’

‘‘क्या निकल पड़ी शर्माजी?’’ मैं हैरान. कल तक जो गली के इनसान तो इनसान कुत्तों तक को गाली देते थे, आज कुत्तों के प्रति उन के मन में इतना स्नेह कहां से उमड़ आया? कहीं हृदय परिवर्तन तो नहीं?

‘‘दुकान. अगर महल्ले में आप जैसे कुत्तों के 4 भी कुत्ता उपासक निकल आएं तो समझो मेरी शौप निकल पड़ी,’’ कह वे मुसकराते हुए भगवान को हाथ जोड़ खिसक लिए.

और अगले दिन उन के घर की सड़क के साथ लगते कमरे पर मैं ने एक बड़ा सा साइन बोर्ड लगा देखा. ‘शर्मा ऐक्सक्लूसिव शौप.’ मैं हैरानपरेशान. वाह, क्या खूबसूरत बोर्ड बनवाया था. दूर से ही ऐसा चमक रहा था कि नयनसुख तक उस बोर्ड को मजे से पढ़ ले. जिस महल्ले में इनसानों की किराने की दुकान की जरूरत थी वहां शर्मा पैट शौप और वह भी ऐक्सक्लूसिव? समाज में इनसानों से अधिक संभ्रांत कुत्ते कब से हो गए? कुत्तों की जरूरतें इनसानों से महत्त्वपूर्ण कब से हो गईं समाज में? मैं मन ही मन कुछ सोचने लगा कि तभी मेरा कुत्ता मेरी सोच भांप गया कि मेरे दिमाग के भीतर क्या पक रहा है. सो उस ने मुझे घूरा तो मैं ने सोचना बंद कर दिया.

अभी मैं उस साइन बोर्ड को मुसकराते हुए घूर ही रहा था कि शर्माजी सजेधजे बाहर निकले. वाह, ऐसी सजधज? ऐसे तो वे अपने विवाह पर भी न सजेधजे होंगे. मुझे देख एक बिजनैसमैन के नाते वे हद से अधिक मुझ में दिलचस्पी लेते हुए बोले, ‘‘वर्माजी, कैसा लगा मेरा इनोवेटिव आइडिया?’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मैं ने काफी समय तक सर्वे के बाद तय किया कि महल्ले में और तो सब कुछ है पर कुत्तों के लिए अलग से ऐक्सक्लूसिव पैट शौप नहीं. कई बार मैं ने यह भी देखा है कि इनसानों के स्टोर से कुत्ते अपना सामान लेते शरमाते से हैं या कि इनसानों के सामने उन के स्टोर में आते ही नहीं. वे वहां खुल कर अपनी पसंद की चीजें ले नहीं पाते और मनमसोस कर रह जाते हैं. सो मैं ने सोचा कि बस अब यही काम करूं. इस बहाने राहु की सेवा भी हो जाएगी और चार पैसे की इनकम भी.’’

‘‘मतलब, आम के आम, गुठलियों के दाम, पर भाई साहब जो 60 साल तक गुठलियों के दाम ही लेते रहे हों, रिटायरमैंट के बाद आम के ही पैसे कैसे लेंगे?’’ दिमाग ने बका.

‘‘ऐसा ही कुछ समझिए बस. मैं चाहता हूं कि कल आप इस दुकान की ओपनिंग अपने कुत्ते से करवा मुझे कृतार्थ करें.’’

‘‘इस मौके पर और कौनकौन पधार रहे हैं?’’ मैं ने जिज्ञासावश पूछा तो वे बोले, ‘‘पासपड़ोस के कुत्ते वाले अपनेअपने कुत्ते के साथ पधार रहे हैं. स्नैक्स भी रखे हैं.’’

‘‘किस के लिए? कुत्तों के लिए या…’’

‘‘नहीं, दोनों के लिए.’’

‘‘पर मेरे हिसाब से दुकान की ओपनिंग किसी विदेशी कुत्ते वाले से करवाते तो… वे इस मामले में ज्यादा टची और फसी होते हैं. इसीलिए…

‘‘करवाता तो उन से ही पर वे इस मामले में ज्यादा टची और फसी होते हैं. उन के नखरे सहने की मेरी हिम्मत नहीं. ऊपर से मैं वसुधैव कुटुंबकम में विश्वास रखता हूं, भले ही एक छत तक के नीचे बंधुत्व न बचा हो. मैं मान कर चला हूं कि समस्त धरा के आदमी एक हों या न पर समस्त धरा के कुत्ते एक ही परिवार के होते हैं. सब कुत्ते एक से होते हैं. दूसरे, हमारे आसपास अभी बहुमत स्वदेशी कुत्तों का ही है. इसलिए भी मैं ने…’’ मुझे लगा कि बंदा बिजनैस के गुर दुकान खुलने से पहले ही सीख गया. कुत्तों का माल बेच कर बहुत आगे तक जाएगा.

‘‘तो क्याक्या रख रहे हो शर्मा पैट शौप में कुत्तों के लिए?’’ मैं ने यों ही पूछा था पर उन्हें लगा जैसे मेरी उन की दुकान में जिज्ञासा हो.

‘‘कुत्तों का हर जरूरी सामान. सूई से ले कर सिंहासन तक सारी रेंज एक ही छत के नीचे उपलब्ध होगी. क्वालिटी से कोई समझौता नहीं. देश में इनसानों को कुत्तों का सामान खिलाया जा रहा हो तो खिलाया जाता रहे, पर मेरी दुकान में आदमियों के सामान से ज्यादा बेहतर क्वालिटी रहेगी उस की. कोई ठगी नहीं. ठगने को देश पड़ा है. इसलिए बेजबान कुत्तों को क्यों ठगा जाए? कुत्तों के कपड़ों, साबुन, शैंपू से ले कर उन के ब्रेकफास्ट, लंच, डिनर तक सब कुछ तक मतलब, कंप्लीट रेंज औफ पैट और वह भी बिलकुल कम प्रौफिट के साथ या यों समझिए कि मैं रिटायरमैंट के बाद बस कुत्तों की सेवा में अपने को लगा अपना परलोक सुधारना चाहता हूं. रेट्स ऐसे वाजिब की कुत्ते तो कुत्ते, कुत्तों के मालिक तक कुत्तों के प्रोडक्ट्स तक खरीदने से ले कर यूज करने तक से गुरेज न करें.’’

‘‘मतलब?’’ मुझे शांत सा गुस्सा आने लगा था.

‘‘औरिजनल प्रोडक्ट्स बिलकुल मिट्टी के दाम. अच्छा, तो मैं कल के लिए आप को चीफ गैस्ट फाइनल समझूं न? अभी बहुत काम पड़े हैं वर्माजी. और हां, कल ठीक 10 बजे आ जाएं आप खुदा के लिए. माफ कीजिएगा, बीवी के साथ आप अपने कुत्ते सौरी डियरैस्ट वन को प्लीज जरूर लाएं. अभी स्नैक्स, फोटोग्राफर, मीडिया वगैरह का इंतजाम वैसे ही पड़ा है. अब तो जब तक फंक्शन में खापी कर हुड़दंग न मचे, अखबारों में फोटो, खबर न छपे, टीवी पर खबर न दौड़े तब तक मरने से ले कर जीने तक के फंक्शन नीरस ही लगते हैं.’’

इस से पहले कि मैं कुछ कहता वे शर्मा पैट शौप के उद्घाटन के लिए जरूरी इंतजाम करने निकल पड़े.

 

मेरा बौयफ्रैंड बिजी रहता है, मुझे लगता है कि मैं उस की लाइफ में एक्सिस्ट ही नहीं करती

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल 

मेरे बौयफ्र्रैंड की नईनई जौब लगी है. टूरिंग जौब है. अब वह बहुत बिजी रहता है. कौल तक नहीं करता. मैं ही जबतब उसे फोन करती रहती हूं. मुझे ऐसा लगने लगा है जैसे मैं उस की लाइफ में एक्सिस्ट ही नहीं करती. पहले मुझ से फोन पर कितनी लंबीलंबी बातें करता था. मेरी तारीफें करता था. अब बस हांहूं करता है. मैं ही बोलती रहती हूं. शिकायत करती हूं तो कहता है मेरी स्थिति समझने की कोशिश कर. मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता. ऐसे रिलेशनशिप का क्या फायदा. कैसे अपने मन को समझाऊं?

जवाब

वैसे आप को हालफिलहाल बौयफ्रैंड की स्थिति को समझना चाहिए. नई जौब है, उस पर फोकस जरूरी है. उसे एडजैस्ट होने का टाइम दीजिए. जौब आप दोनों की लाइफ के लिए जरूरी है, यह बात आप भी समझती होंगी. थोड़ा पेशेंस रखें. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. बौयफ्रैंड को समझने, साथ देने का यही समय है. आप के व्यवहार से वह भी समझेगा कि आप कितना उस से प्यार करती हैं. आप के साथ उस का फ्यूचर कैसा होगा.

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नशा : नीरा किसके इंतजार में चक्कर लगा रही थी

आगंतुकों के स्वागत सत्कार के चक्कर में बैठक से मुख्य दरवाजे तक नीरा के लगभग 10 चक्कर लग चुके थे, लेकिन थकने के बजाय वे स्फूर्ति ही महसूस कर रही थीं, क्योंकि आगंतुकों द्वारा उन की प्रशंसा में पुल बांधे जा रहे थे. हुआ यह था कि नीरा की बहू पूर्वी का परीक्षा परिणाम आ गया था. उस ने एम.बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी. लेकिन तारीफों के पुल बांधे जा रहे थे नीरा के. पूर्वी तो बेचारी रसोई और बैठक के बीच ही चक्करघिन्नी बनी हुई थी. बीचबीच में कोई बधाई का जुमला उस तक पहुंचता तो वह मुसकराहट सहित धन्यवाद कह देती. आगंतुकों में ज्यादातर उस की महिला क्लब की सदस्याएं ही थीं, तो कुछ थे उस के परिवार के लोग और रिश्तेदार. नीरा को याद आ रहा था इस खूबसूरत पल से जुड़ा अपना सफर.

जब महिला क्लब अध्यक्षा के चुनाव में अप्रत्याशित रूप से उन का नाम घोषित हुआ था, तो वे चौंक उठी थीं. और जब धन्यवाद देने के लिए उन्हें माइक थमा दिया गया था, तो साथी महिलाओं को आभार प्रकट करती वे अनायास ही भावुक हो उठी थीं, ‘‘आप लोगों ने मुझ पर जो विश्वास जताया है उस के लिए मैं आप सभी की आभारी हूं. मैं प्रयास करूंगी कि अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाते हुए आप लोगों की अपेक्षाओं पर खरी उतरूं.’’

लेकिन इस तरह का वादा कर लेने के बाद भी नीरा का पेट नहीं भरा था. वे चाहती थीं कुछ ऐसा कर दिखाएं कि सभी सहेलियां वाहवाह कर उठें और उन्हें अपने चयन पर गर्व हो कि अध्यक्षा जैसे महत्त्वपूर्ण पद के लिए उन्होंने सर्वथा उपयुक्त पात्र चुना है. बहुत सोचविचार के बाद नीरा को आखिर एक युक्ति सूझ ही गई. बहू पूर्वी को एम.बी.ए. में प्रवेश दिलवाना उन्हें अपनी प्रगतिशील सोच के प्रचार का सर्वाधिक सुलभ हथियार लगा. शादी के 4 साल बाद और 1 बच्चे की मां बन जाने के बाद फिर से पढ़ाई में जुट जाने का सास का प्रस्ताव पूर्वी को बड़ा अजीब लगा. वह तो नौकरी भी नहीं कर रही थी.

उस ने दबे शब्दों में प्रतिरोध करना चाहा तो नीरा ने मीठी डांट पिलाते हुए उस का मुंह बंद कर दिया, ‘‘अरे देर कैसी? जब जागो तभी सवेरा. अभी तुम्हारी उम्र ही क्या हुई है? मेरे दिमाग में तो तुम्हें आगे पढ़ाने की बात शुरू से ही थी. शुरू में 1-2 साल तो मैं ने सोचा मौजमस्ती कर लेने दो फिर देखा जाएगा. पर तब तक गोलू आ गया और तुम उस में व्यस्त हो गईं. अब वह भी ढाई साल का हो गया है. थोड़े दिनों में नर्सरी में जाने लगेगा. घर तो मैं संभाल लूंगी और ज्यादा जरूरत हुई तो खाना बनाने वाली रख लेंगे.’’

‘‘लेकिन एम.बी.ए. कर के मैं करूंगी क्या? नौकरी? मैं ने तो कभी की नहीं,’’ पूर्वी कुछ समझ नहीं पा रही थी कि सास के मन में क्या है?

‘‘पढ़ाई सिर्फ नौकरी के लिए ही नहीं की जाती. वह करो न करो तुम्हारी मरजी. पर इस से ज्ञान तो बढ़ता है और हाथ में डिगरी आती है, जो कभी भी काम आ सकती है. समझ रही हो न?’’

‘‘जी.’’

‘‘मैं ने 2-3 कालेजों से ब्रोशर मंगवाए हैं. उन्हें पढ़ कर तय करते हैं कि तुम्हें किस कालेज में प्रवेश लेना है.’’

‘‘मुझे अब फिर से कालेज जाना होगा? घर बैठे पत्राचार से…’’

‘‘नहींनहीं. उस से किसी को कैसे पता चलेगा कि तुम आगे पढ़ रही हो?’’

‘‘पता चलेगा? किसे पता करवाना है?’’ सासूमां के इरादों से सर्वथा अनजान पूर्वी कुछ भी समझ नहीं पा रह थी.

‘‘मेरा मतलब था कि पत्राचार से इसलिए नहीं क्योंकि उस की प्रतिष्ठा और मान्यता पर मुझे थोड़ा संदेह है. नियमित कालेज विद्यार्थी की तरह पढ़ाई कर के डिगरी लेना ही उपयुक्त होगा.’’

पूर्वी के चेहरे पर अभी भी हिचकिचाहट देख कर नीरा ने तुरंत बात समेटना ही उचित समझा. कहीं तर्कवितर्क का यह सिलसिला लंबा खिंच कर उस के मंसूबों पर पानी न फेर दे.

‘‘एक बार कालेज जाना आरंभ करोगी तो खुदबखुद सारी रुकावटें दूर होती चली जाएंगी और तुम्हें अच्छा लगने लगेगा.’’

वाकई फिर ऐसा हुआ भी. पूर्वी ने कालेज जाना फिर से आरंभ किया और आज उसे डिगरी मिल गई थी. उसी की बधाई देने नातेरिश्तेदारों, पड़ोसियों, पूर्वी  की सहेलियों और नीरा के महिला क्लब की सदस्याओं का तांता सा बंध गया था. पूर्वी से ज्यादा नीरा की तारीफों के सुर सुनाई पड़ रहे थे.

‘‘भई, सास हो तो नीरा जैसी. इन्होंने तो एक मिसाल कायम कर दी है. लोग तो अपनी बहुओं की शादी के बाद पढ़ाई, नौकरी आदि छुड़वा कर घरों में बैठा लेते हैं. सास उन पर गृहस्थी का बोझ लाद कर तानाशाही हुक्म चलाती है. और नीरा को देखो, गृहस्थी, बच्चे सब की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले कर बहू को आजाद कर दिया. ऐसा कर के उन्होंने एक आदर्श सास की भूमिका अदा की है. हम सभी को उन का अनुसरण करना चाहिए.’’

‘‘अरे नहीं, आप लोग तो बस ऐसे ही…’’ प्रशंसा से अभिभूत और स्नेह से गद्गद नीरा ने प्रतिक्रिया में खींसे निपोर दी थीं.

‘‘नीरा ने आज एक और बात सिद्ध कर दी है,’’ अपने चिरपरिचित रहस्यात्मक अंदाज में सुरभि बोली.

‘‘क्या? क्या?’’ कई उत्सुक निगाहें उस की ओर उठ गईं.

‘‘यही कि अपने क्लब की अध्यक्षा के रूप में उन का चयन कर के हम ने कोई गलती नहीं की. ये वास्तव में इस पद के लिए सही पात्र थीं. अपने इस प्रगतिशील कदम से उन्होंने अध्यक्षा पद की गरिमा में चार चांद लगा दिए हैं. हम सभी को उन पर बेहद गर्व है.’’ सभी महिलाओं ने ताली बजा कर अपनी सहमति दर्ज कराई. ये ही वे पल थे जिन से रूबरू होने के लिए नीरा ने इतनी तपस्या की थी. गर्व से उन की गरदन तन गई.

‘‘आप लोग तो एक छोटी सी बात को इतना बढ़ाचढ़ा कर प्रस्तुत कर रहे हैं. सच कहती हूं, यह कदम उठाने से पहले मेरे दिल में इस तरह की तारीफ पाने जैसी कोई मंशा ही नहीं थी. बस अनायास ही दिल जो कहता गया मैं करती चली गई. अब आप लोगों को इतना अच्छा लगेगा यह तो मैं ने कभी सोचा भी नहीं था. खैर छोडि़ए अब उस बात को…कुछ खानेपीने का लुत्फ उठाइए. अरे सुरभि, तुम ने तो कुछ लिया ही नहीं,’’ कहते हुए नीरा ने जबरदस्ती उस की प्लेट में एक रसगुल्ला डाल दिया. शायद यह उस के द्वारा की गई प्रशंसा का पुरस्कार था, जिस का नशा नीरा के सिर चढ़ कर बोलने लगा था.

‘‘मैं आप लोगों के लिए गरमगरम चाय बना कर लाती हूं,’’ नीरा ने उठने का उपक्रम किया.

‘‘अरे नहीं, आप बैठो न. चाय घर जा कर पी लेंगे. आप से बात करने का तो मौका ही कम मिलता है. आप हर वक्त घरगृहस्थी में जो लगी रहती हो.’’

‘‘आप बैठिए मम्मीजी, चाय मैं बना लाती हूं,’’ पूर्वी बोली.

‘‘अरे नहीं, तू बैठ न. मैं बना दूंगी,’’ नीरा ने फिर हलका सा उठने का उपक्रम करना चाहा पर तब तक पूर्वी को रसोई की ओर जाता देख वे फिर से आराम से बैठ गईं और बोली, ‘‘यह सुबह से मुझे कुछ करने ही नहीं दे रही. कहती है कि हमेशा तो आप ही संभालती हैं. कभी तो मुझे भी मौका दीजिए.’’

पूर्वी का दबा व्यक्तित्व आज और भी दब्बू हो उठा था. सासूमां के नाम के आगे जुड़ती प्रगतिशील, ममतामयी, उदारमना जैसी एक के बाद एक पदवियां उसे हीन बनाए जा रही थीं. उसे लग रहा था उसे तो एक ही डिगरी मिली है पर उस की एक डिगरी की वजह से सासूमां को न जाने कितनी डिगरियां मिल गई हैं. कहीं सच में उसे कालेज भेजने के पीछे सासूमां का कोई सुनियोजित मंतव्य तो नहीं था?…नहींनहीं उसे ऐसा नहीं सोचना चाहिए.

‘‘पूर्वी बेटी, मैं कुछ मदद करूं?’’ बैठक से आवाज आई तो पूर्वी ने दिमाग को झटका दे कर तेजी से ट्रे में कप जमाने आरंभ कर दिए, ‘‘नहीं मम्मीजी, चाय बन गई है. मैं ला रही हूं,’’ फिर चाय की ट्रे हाथों में थामे पूर्वी बैठक में पहुंच कर सब को चाय सर्व करने लगी. विदा लेते वक्त मम्मीजी की सहेलियों ने उसे एक बार फिर बधाई दी.

‘‘यह बधाई डिगरी के लिए भी है और नीरा जैसी सास पाने के लिए भी, सुरभि ने जाते वक्त पूर्वी से हंस कर कहा.’’

‘‘जी शुक्रिया.’’

अंदर लौटते ही नीरा दीवान पर पसर गईं और बुदबुदाईं, ‘‘उफ, एक के बाद एक…हुजूम थमने का नाम ही नहीं ले रहा है. थक गई मैं तो आवभगत करतेकरते.’’ जूठे कपप्लेट उठाती पूर्वी के हाथ एक पल को ठिठके पर फिर इन बातों के अभ्यस्त कानों ने आगे बढ़ने का इशारा किया तो वह फिर से सामान्य हो कर कपप्लेट समेटने लगी.

‘‘मीनाबाई आई नहीं क्या अभी तक?’’ नीरा को एकाएक खयाल आया.

‘‘नहीं.’’

‘‘ओह, फिर तो रसोई में बरतनों का ढेर लग गया होगा. इन बाइयों के मारे तो नाक में दम है. लो फिर घंटी बजी…तुम चलो रसोई में, मैं देखती हूं.’’

फिर इठलाती नीरा ने दरवाजा खोला, तो सामने पूर्वी के मातापिता को देख कर बोल उठीं, ‘‘आइएआइए, बहुतबहुत बधाई हो आप को बेटी के रिजल्ट की.’’

‘‘अरे, बधाई की असली हकदार तो आप हैं. आप उसे सहयोग नहीं करतीं तो उस के बूते का थोड़े ही था यह सब.’’

‘‘अरे आप तो मुझे शर्मिंदा कर रहे हैं. मैं ने तो बस अपना फर्ज निभाया है. आइए, बैठिए. मैं पूर्वी को भेजती हूं,’’ फिर पूर्वी को आवाज दी, ‘‘पूर्वी बेटा. तुम्हारे मम्मीपापा आए हैं. अब तुम इन के पास बैठो. इन्हें मिठाई खिलाओ, बातें करो. अंदर रसोई आदि की चिंता मुझ पर छोड़ दो. मैं संभाल लूंगी.’’

नीरा ने दिखाने को यह कह तो दिया था. पर अंदर रसोई में आ कर जो बरतनों का पहाड़ देखा तो सिर पकड़ लिया. मन ही मन बाई को सौ गालियां देते हुए उन्होंने बैठक में नाश्ता भिजवाया ही था कि देवदूत की तरह पिछले दरवाजे से मीनाबाई प्रकट हुई.

‘‘कहां अटक गई थीं बाईजी आप? घर में मेहमानों का मेला सा उमड़ आया है और आप का कहीं अतापता ही नहीं है. अब पहले अपने लिए चाय चढ़ा दो. हां साथ में मेहमानों के लिए भी 2 कप बना देना. मैं तो अब थक गई हूं. वैसे आप रुक कहां गई थीं?’’

‘‘कहीं नहीं. बहू को साथ ले कर वर्माजी के यहां गई थी इसलिए देर हो गई.’’

‘‘अच्छा, काम में मदद के लिए,’’ नीरा को याद आया कि अभी कुछ समय पूर्व ही मीनाबाई के बेटे की शादी हुई थी.

‘‘नहींनहीं, उसे इस काम में नहीं लगाऊंगी. 12वीं पास है वह. उसे तो आगे पढ़ाऊंगी. वर्माजी के यहां इसलिए ले गई थी कि वे इस की आगे की पढ़ाई के लिए कुछ बता सकें. उन्होंने पत्राचार से आगे पढ़ाई जारी रखने की कही है. फौर्म वे ला देंगे. कह रहे थे इस से पढ़ना सस्ता रहेगा. मेरा बेटा तो 7 तक ही पढ़ सका. ठेला चलाता है. बहुत इच्छा थी उसे आगे पढ़ाने की पर नालायक तैयार ही नहीं हुआ. मैं ने तभी सोच लिया था कि बहू आएगी और उसे पढ़ने में जरा भी रुचि होगी तो उसे जरूर पढ़ाऊंगी.’’

‘‘पर 12वीं पास लड़की तुम्हारे बेटे से शादी करने को राजी कैसे हो गई?’’ बात अभी भी नीरा को हजम नहीं हो रही थी. 4 पैसे कमाने वाली बाई उसे कड़ी चु़नौती देती प्रतीत हो रही थी.

‘‘अनाथ है बेचारी. रिश्तेदारों ने किसी तरह हाथ पीले कर बोझ से मुक्ति पा ली. पर मैं उसे कभी बोझ नहीं समझूंगी. उसे खूब पढ़ाऊंगीलिखाऊंगी. इज्जत की जिंदगी जीना सिखाऊंगी.’’

‘‘और घर बाहर के कामों में अकेली ही पिसती रहोगी?’’

‘‘उस के आने से पहले भी तो मैं सब कुछ अकेले ही कर रही थी. आगे भी करती रहूंगी. मुझे कोई परेशानी नहीं है, बल्कि जीने का एक उद्देश्य मिल जाने से हाथों में गति आ गई है. लो देखो, बातोंबातों में चाय तैयार भी हो गई. अभी जा कर दे आती हूं. मैं ने कड़क चाय बनाई है. आधा कप आप भी ले लो. आप की थकान उतर जाएगी,’’ कहते हुए मीनाबाई ट्रे उठा कर चल दी. नीरा को अपना नशा उतरता सा प्रतीत हो रहा था.

हुस्न और इश्क: शिखा से आखिर सब क्यों जलते थे

सौरभ के साथ शादी होने से पहले मेरा रूपयौवन हमेशा मेरे लिए परेशानी का कारण बनता रहा. अपनी खूबसूरत बेटी को समाज में मौजूद भेडि़यों से बचाने की चिंता में मेरे मम्मीपापा मेरे ऊपर कड़ी निगाह रखते थे. उन की जबरदस्त सख्ती के चलते भेडि़ए ही नहीं, बल्कि मेमने भी मेरे नजदीक आने का मौका नहीं पा सके. ‘‘सारा दिन शीशे के सामने खड़ी न रहा कर… बाजार जाने के लिए इतना क्यों सजधज रही है… लड़कों के साथ ज्यादा हंसेगीबोलेगी तो बदनाम हो जाएगी. पढ़ाई में ध्यान लगा पढ़ाई में…’’ मेरे मम्मीपापा मुझे देखते ही ऐसा भाषण देना शुरू कर देते थे.

मेरी बड़ी बहन भी सुंदर है, पर मुझ से बहुत कम. ऐसा 2 बार हुआ कि उसे देखने लड़के वाले आए पर पसंद मुझे कर गए. इन दोनों घटनाओं के बाद मैं उस की नजरों में खलनायिका बन गई. बहन का बहन पर से ऐसा विश्वास उठा कि राकेश जीजाजी के साथ अब भी अगर वह मुझे अकेले में बातें करते देख ले तो सब काम छोड़ कर हमारे बीच आ जमती है. मैं किसी तरह का गलत व्यवहार करने की कुसूरवार नहीं हूं, पर उस बेचारी का शायद विश्वास डगमगा गया है. मुझे लड़कियों के कालेज में दाखिला दिलाया ही जाना था, पर मेरे मम्मीपापा का यह कदम भी मेरी परेशानियों को कम नहीं कर सका. वहां मुझे अपनी सहेलियों की जलन का सामना करना पड़ा.

पहले तो मुझे सहेलियों के खराब बरताव पर गुस्सा आता था पर फिर बाद में सहानुभूति होने लगी. वे बेचारियां महंगी ड्रैस में भी उतनी सुंदर व आकर्षक नहीं लगती थीं जितनी कि मैं साधारण से कपड़ों में लगती. मैं साथ होती तो उन के बौयफ्रैंड उन पर कम ध्यान देते और मेरी तरफ देख कर ज्यादा लार टपकाते. मेरा कोई बौयफ्रैंड नहीं बन सका. मेरे मम्मीपापा ने मेरी 2-3 सहेलियों को अपना जासूस बना रखा था. कभीकभी तो मुझे बाद में पता लगता था कि कोई लड़का मुझ में दिलचस्पी लेने लगा है, पर उन के जासूस उन तक यह खबर पहले पहुंचा देते.

बाद में मेरी जान को जो मुसीबत खड़ी होती थी उस से बचने को मैं ने लड़कों के साथ फ्लर्ट करने का मजा कभी नहीं लिया. अपना सारा इतराना, सारी अदाएं, सारी रोमांटिक छेड़छाड़ सब कुछ मैं ने अपने भावी जीवनसाथी के लिए मन में सुरक्षित रख छोड़ा था.

भला हो सौरभ की मम्मी का जिन्होंने अपने काबिल व स्मार्ट बेटे के लिए तगड़ा दहेज लेने के बजाय चांद सी सुंदर बहू लाने की जिद पकड़ रखी थी. सौरभ से शादी हो जाना

मेरी जिंदगी की सब से बड़ी लौटरी के निकलने जैसा था. हम दोनों ने मनाली में हनीमून का जो पूरा

1 सप्ताह गुजारा वे दिन मेरी जिंदगी के सब से खूबसूरत और मौजमस्ती से भरे दिन गिने जाएंगे. मेरी सुंदरता ने उन के दिलोदिमाग पर जादू सा कर दिया था. मुझे अपनी मजबूत बांहों में कैद कर के जब वे मेरे रूप की तारीफ करना शुरू करते तो पूरे कवि नजर आते… ‘‘लोगों की आंखों में हमारी जोड़ी को देख कर जो तारीफ के भाव पैदा होते हैं वे मेरे दिल को गुदगुदा जाते हैं शिखा. तुम तो जमीन पर उतर आई परी हो… स्वर्ग से आई अप्सरा हो… रुपहले परदे से मेरी जिंदगी में उतर आई बौलीवुड की सब से सुंदर हीरोइन से भी ज्यादा सुंदर मेरे दिल की रानी हो,’’ वे मेरी यों तारीफ करते तो मैं खुद पर इतना उठती थी.

हनीमून से लौटने के बाद मेरे सासससुर और ननद ने मुझे सिरआंखों पर बैठा कर रखा. रिश्तेदार और पड़ोसी जब घर में आ कर मेरी सुंदरता की तारीफ करते तो मेरे ससुराल वालों के सिर गर्व से ऊंचे हो जाते. घर में आने वाले हर इंसान की मेरे रंगरूप की यों दिल खोल कर तारीफ करना महीने भर तक तो मेरी ससुराल वालों को अच्छी तरह  हजम हुआ पर इस के बाद बदहजमी का सबब बन गया. ‘‘सूरत के साथ सीरत अच्छी न हो तो लड़कियों को ससुराल में बहुत नाम सुनने को मिलते हैं, बहूरानी. जरा काम करते हुए हाथ जल्दीजल्दी चलाया करो,’’ मेरी सास ने जिस दिन रसोई में मेरी ऐसी आलोचना करने की शुरुआत करी, मैं समझ गई कि अब इस घर में सुखशांति व आराम से जीने का समय समाप्त होने की तरफ चल पड़ा है.

घरगृहस्थी के काम करने में मैं उतनी ही कुशल हूं जितनी मेरी ननद नेहा, पर मेरी सास को सिर्फ मेरे ही काम में नुक्स निकालने होते हैं. वे अपने द्वारा कुशलता से किए गए काम का उदाहरण सामने रख कर मुझे नीचा दिखाने का कोई मौका मुश्किल से ही हाथ से निकलने देती हैं. ‘‘मैं आप से सारा काम सीखने को तैयार हूं मम्मी. आप मुझे डांटा कम और सिखाया ज्यादा करो न,’’ मैं ने बड़े लाड़ से एक शाम अपनी यह इच्छा सासुमां के सामने जाहिर करी पर उन्होंने इसी बात को पकड़ कर घर में हंगामा खड़ा कर दिया था.

‘‘जो काम सीखना चाहता हो उसे अपनी जबान को काबू में और आंखों व कानों को खुला रखना चाहिए बहूरानी. मैं क्या पागल हूं, जो बिना बात तुझे डांटती हूं? अपने घर से सब

काम सीख कर आती तो मुझे कुछ कहने की जरूरत ही नहीं पड़ती. मुझे इन से प्यार और इज्जत करानी हो तो घर के कामों में कुशल बनो,’’ मुझे ऐसी ढेर सारी बातें सुनाने के बाद सासुमां ने मुंह फुला कर घर में घूमना शुरू कर दिया तो कुछ ही देर में इस घटना की जानकारी हर किसी को हो गई. उस रात पति ने भी मेरे दिल को जख्मी करने की शुरुआत कर दी, ‘‘शिखा, अब सारा दिन सिर्फ सजधज कर घूमने से काम नहीं चलेगा. मां को घर में बहू के आने का सुख मिलना चाहिए… तुम उन से बहस करने के बजाय सही ढंग से काम करना सीखो. घर

की सुखशांति तुम्हारे कारण बिलकुल नहीं बिगड़नी चाहिए,’’ यों भाषण देते हुए सौरभ मुझे मेरे प्यार में पागल प्रेमी नहीं, बल्कि जबरदस्ती नुक्स निकालने वाले आलोचक नजर आ रहे थे.

सौरभ के अचानक बदले व्यवहार ने मेरे दिल को तो चोट पहुंचाई कि मेरी आंखों से आंसू बह चले. तब उन्होंने फौरन मुझे छाती से लगा कर प्यार करना शुरू कर दिया. उन का छूना मुझे हमेशा मदहोश सा कर देता था, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ. मेरे जेहन में रहरह कर उन की आंखों में उभरे अजीब से संतोष के भाव व्यक्त करता उन का चेहरा उभर रहा था. ये भाव उन की आंखों में तब उभरे थे जब मैं ने उन का भाषण सुन कर आंसू बहाने शुरू किए थे.

इस तरह के भाव मैं जब से होश संभाला है तब से बहुतों की आंखों में देखती आई हूं.

मुझे डांट कर रुला देने में अगर मेरे मम्मीपापा सफल हो जाते थे तो ऐसा ही संतोष उन की आंखों में झलकता था. मेरा कोई काम बिगाड़ कर या मुझे नीचा दिखाने के बाद मेरी बहन की आंखें ऐसे ही भाव दिखाती थीं. मेरी कालेज

की सहेलियां अपने खराब व्यवहार से मुझे अकेलेपन व उदासी का शिकार बना देने के बाद इसी तरह से संतोषी भाव से मुसकराती नजर आती थीं. ‘मेरे जीवनसाथी के दिल में भी मेरी

सुंदरता ने जलन के भाव पैदा कर दिए हैं’ यह विचार अचानक मेरे मन में कौंधा तो मैं उन के कंधे से लग फूटफूट कर रोने लगी. जिस जीवनसाथी के साथ मैं ने अपनी सारी खुशियां और मन की सुखशांति जोड़ रखी थी, वह भी मेरी सुंदरता के कारण हीनभावना का शिकार बन बैठेगा, यह एहसास मुझे अंदर तक झकझोर गया. सौरभ का व्यवहार मेरे प्रति बदलने लगा था.

मैं ने ध्यान से सोचा तो सौरभ के व्यवहार में पिछले दिनों धीरेधीरे आए अंतर को पकड़ लिया. जब भी उन का कोई दोस्त मेरी तारीफ करता या मेरे साथ हंसीमजाक करने लगता तो उन्हें मैं ने कई बार संजीदा हो कर खिंचाखिंचा सा व्यवहार करते देखा था. अपने पुराने अनुभवों के आधार पर मैं बखूबी जानती थी कि आगे क्या होने वाला है. धीरेधीरे सौरभ की टोकाटाकी बढ़ती और फिर वे मुझे नीचा दिखाने की कोशिश शुरू कर देते. पहले अकेले में और फिर अन्य लोगों के सामने.

आगे चल कर हमारे मधुर संबंध बिगड़ जाएंगे, इस सोच ने मुझे रात भर जगाया और ढेर सारे खामोश आंसू मेरी आंखों से गिरवा दिए. अपनी सास के कटु व्यवहार को सहन करने की ताकत मुझे में थी पर सौरभ के प्यार में रत्तीभर भी कमी आए, यह मुझे स्वीकार नहीं था. ‘मुझे कुछ करना ही होगा. अपनी शादीशुदा जिंदगी को मैं उन के मन में पैदा हो रही जलन की कड़वाहट से कभी खराब नहीं होने दूंगी,’

मन ही मन ऐसा सोच कर मैं ने अगली सुबह बिस्तर छोड़ा. अपने विवाहित जीवन की खुशियां तय करने का एक सूत्र मेरी पकड़ में जरूर आया. मनाली में भी बहुत से लोगों ने मेरी सुंदरता की तारीफ करी थी और सौरभ कभी किसी से रत्तीभर नाराज नहीं हुए थे उलटा मेरी तारीफ सुन कर उन की छाती गर्व से फूल जाती थी.

यहां उन के रिश्तेदार, परिचित और दोस्त मेरी तारीफ करते हैं, तो वे जलन का शिकार बन रहे हैं. उन की प्रतिक्रिया में ऐसा अंतर क्यों पैदा हो रहा है? इस सवाल का जवाब शायद मैं ने ढूंढ़ भी लिया था. मनाली में मेरी तारीफ करने वाले लोग

हम दोनों के लिए अजनबी थे. वे हमारी जिंदगी का हिस्सा नहीं थे. उन के द्वारा करी गई मेरी तारीफ सौरभ को अपनी उपेक्षा नहीं लगती थी. वे उन लोगों की बातों को ऐसे नहीं लेते थे जैसे हम दोनों के व्यक्तित्वों के बीच तुलना की जा रही हो.

अब मेरी तारीफ उन के अंदर नकारात्मक भावनाएं पैदा करवा रही थी. इस गलत प्रतिक्रिया की जड़ों को मुझे किसी भी कीमत पर मजबूत नहीं होने देना था. अपनी विवाहित जिंदगी में से मैं प्यार व रोमांस की गरमाहट कभी नहीं खोना चाहती थी. उन के एक पक्के दोस्त मयंक ने अगले दिन अपनी शादी की सालगिरह के उपलक्ष्य में हमें अपने घर डिनर पर आमंत्रित किया. वहां जाने के लिए जब पूरी तरह से तैयार हो कर मैं सौरभ के सामने आई तो मारे हैरानी के उन का मुंह खुला का खुला रह गया.

अपने को तैयार करने में मै ने सचमुच बहुत मेहनत करी थी और मैं बला की खूबसूरत लग भी रही थी. पार्टी में इन के करीबी दोस्त और मयंक के घरवाले ही मौजूद थे. सभी एकदूसरे से अच्छी तरह परिचित थे, इसलिए ड्राइंगहौल में खूब हल्लागुल्ला हो रहा था.

‘‘शिखा के आते ही कमरे में रोशनी की मात्रा कितनी ज्यादा बढ़ गई है न?’’ इन के दोस्त नीरज के इस मजाक पर सभी लोग ठहाके मार कर हंस पड़े. ‘‘अपने सौरभ का तो बिजली का खर्चा बचने लगा है, यारो. अब तो शिखा के कारण अपने कमरे में ट्यूबलाइट जलाने की कोई जरूरत ही नहीं रही इसे,’’ राजीव के इस मजाक पर एक बार फिर ठहाकों की आवाज से कमरा गूंज उठा. ‘‘दोस्तो, रोशनी के कारण सोने में दिक्कत तो जरूर आती होगी अपने यार को.’’

‘‘अरे, रात भर सोता ही कौन है,’’ इस बार मिलेजुले ठहाकों की ऊंची आवाज आसपास के घरों तक जरूर पहुंच गई होगी. मैं ने साफ महसूस किया कि सौरभ अब जबरदस्ती मुसकरा रहे थे. उन्हें मेरा सब के हंसीमजाक का केंद्र बन जाना अच्छा नहीं लगा था. अपने दोस्तों की आंखों में मेरे रूपरंग के लिए तारीफ के भाव देख कर वे तनाव से भरे नजर आने लगे थे.

मैं ने अपनी गरदन घुमा कर उन्हें अपनी नजरों का केंद्र बना लिया. उन के कान के पास अपने होंठ ले जा कर मैं ने पहले चुंबन की हलकी सी आवाज निकाली और फिर प्यार से उन की आंखों में झांकते हुए दिलकश अंदाज में मुसकराने लगी. हमारे चारों तरफ लोग दिल खोल कर हंसबोल रहे थे, पर मेरा ध्यान पूरी तरह से अपने जीवनसाथी के चेहरे पर केंद्रित था मानो इस पल पूरे कमरे में मेरे लिए सौरभ के अलावा कोई और मौजूद ही न हो.

उन का पूरा ध्यान केंद्रित कर मैं ने उन के सभी दोस्तों को अजनबियों की श्रेणी में खड़ा कर दिया था. वे तो इधरउधर देख भी रहे थे, पर जब भी उन्होंने मेरी तरफ देखा तो हर बार मुझे अपने चेहरे को प्यार भरे अंदाज में ताकते हुए पाया. मानो वे मेरे प्यार में खो जाना चाहते हों.

वे अचानक खुशी भरे अंदाज में मुसकराने लगे तो मेरा चेहरा फूल सा खिल उठा. ‘‘आई लव यू,’’ मैं ने बहुत धीमी आवाज में कहा और फिर शरमा कर नजरें झुका लीं.

अपने जीवनसाथी को जलन की भावना से आजाद करने का तरीका मैं ने ढूंढ़ लिया था. उस रात कोईर् भी मेरी जरा सी तारीफ करता तो मैं फौरन मुसकराते हुए सौरभ की तरफ यों प्यार से देखने लगती मानो कह रही हूं कि वह मेरी नहीं आप की पत्नी की तारीफ हो रही है, जनाब. आप संभालिए अपने इस दोस्त को व्यक्तिगत तौर पर. इन के मुंह से अपनी तारीफ सुनने में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है. मुझे लगता है कि मैं ने अपने विवाहित जीवन की रोमांस भरी मौजमस्ती को सदा तरोताजा रखने का तरीका ढूंढ़ लिया है. मेरी खूबसूरती अब उन के मन में मायूसी व जलन पैदा करने का कारण कभी नहीं बनेगी. जरा सी समझदारी दिखा कर मैं ने हुस्न और इश्क की उम्र को बढ़ा दिया है.

बहू पढ़ी लिखी हो मगर कामकाजी क्यों नहीं ? क्या घरेलू लड़कियां हैं पहली पसंद

भले ही भारतीय समाज में लड़कियों की पढ़ाई और करियर के प्रति सोच बदल रही हो जिस वजह से पहले के मुकाबले उच्च शिक्षित लड़कियों की संख्या बढ़ी है. लेकिन जब बात शादी की आती है तो कामकाजी लड़कियों को कम ही पसंद किया जाता है. पढ़ी लिखी, बड़ी डिग्री वाली लड़कियां स्वीकार्य तो होती हैं लेकिन वे शादी के बाद हाउसवाइफ के तौर पर ही रहें इसे ही बेहतर माना जाता है.

हाल में जारी एक स्टडी में यह बात सामने निकल कर आई है कि भारत के शादी के बाजार में आज भी घरेलू लड़कियां ज्यादा पसंद की जाती हैं. कामकाजी महिलाओं को मैट्रिमोनियल साइट्स पर कम पसंद किया जाता है. यानी जो महिलाएं काम करती हैं उन्हें मैट्रिमोनियल वेबसाइट्स पर मैच मिलने की संभावना कम होती है. यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड के ब्लावतनिक स्कूल ऑफ गवर्नमेंट से डॉक्टरेट कर रही दिवा धर के शोध के मुताबिक भारतीय लोगों में शादी के लिए नौकरीपेशा लड़कियों की मांग बहुत कम हैं.

इस नतीजे पर पहुंचने के लिए दिवा ने मैट्रिमोनियल वेबसाइट पर 20 फेक प्रोफाइल बनाई. सभी की प्रोफाइल्स में उम्र, लाइफस्टाइल, कल्चर, डाइट, खाना जैसी चीजें बिलकुल एक सी लिखी. फर्क बस नौकरी का था. नौकरी करती हैं, करना चाहती हैं और कितना कमाती है, इन फैक्टर्स को अलग अलग रखा. दिवा ने अलग अलग कास्ट ग्रुप के लिए ये प्रोफाइल्स बनाई.

इस स्टडी में पाया गया कि जो लड़कियां काम नहीं करती हैं उन्हें नौकरीपेशा लड़कियों के मुकाबले 15-22 प्रतिशत अधिक पसंद किया गया. सामान्य रूप से हर सौ आदमी ने उस महिला को रिस्पांस दिया जिसने कभी काम नहीं किया है. वहीं कामकाजी महिलाओं की प्रोफाइल पर केवल 78-85 प्रतिशत ही रिस्पांस दिया गया. जिन प्रोफाइल्स में यह लिखा था कि वह नौकरी नहीं करती हैं उन प्रोफाइल्स पर पुरुषों के सबसे ज्यादा रिस्पांस मिले. जिन प्रोफाइल्स पर यह लिखा था कि अभी वे नौकरी कर रही हैं लेकिन शादी के बाद उनकी नौकरी करने की कोई इच्छा नहीं है और वे नौकरी छोड़ देंगी पुरुषों के रिस्पांस के मामले में ऐसी प्रोफाइल्स दूसरे नंबर पर रही . जिन प्रोफाइल पर लड़कियों ने शादी के बाद भी नौकरी करने की बात कही थी उन्हें सब से कम पसंद किया गया. दिलचस्प बात यह है कि जो लड़कियां शादी के बाद काम करना जारी रखना चाहती हैं उनमें ऊंची सैलरी कमाने वाली लड़कियों को मिड रेंज सैलरी वाली से ज्यादा वरीयता दी गई. इसी तरह अध्ययन में पुरुषों का खुद से ज्यादा कमाने वाली लड़कियों की प्रोफाइल्स पर रिस्पांस देने के चांस 10 प्रतिशत कम पाए गए.

दरअसल पितृसत्तात्मक समाज में अगर एक महिला नौकरी नहीं करती है तो यह उस की मर्जी या पिछड़ेपन की निशानी नहीं बल्कि उस के संस्कारी होने का प्रमाण है. अगर लड़की नौकरी और करियर में आगे बढ़ने की आकांक्षाएं रखती हैं तो उसे शादी के लिए रिश्ते मिलने में मुश्किलें आने लगती हैं क्योंकि लड़के वालों को लगता है कि वह ठीक से घर नहीं संभाल पाएगी.

ज्यादातर घरों में मर्द जहां शान से नौकरी कर और पैसे कमा कर अपनी औरत पर धौंस जमाते हैं वहीं औरत पूरे दिन घर का काम संभालने के बाद भी मर्द के पैर की जूती समझी जाती है. वह अपनी मर्जी से कहीं आ जा नहीं सकती, अपने मन का कुछ खरीद नहीं सकती, अपनी बात सामने नहीं रख सकती. उसे केवल सर झुका कर घरवालों और पति का हुक्म मानना पड़ता है. क्योंकि सदियों से चली आ रही सोच के मुताबिक़ औरतों का काम है, बच्चे पालना और खाना बनाना जबकि बाहर से पैसे कमा कर लाना मर्दों का काम है. यह सोच एक बेड़ी की तरह है जो स्त्री को उस की आज़ादी और स्वाभिमान से जीने के हक़ से दूर कर देती है. आज के बदलते दौर में भी कई लोगों को बहुएं पढ़ी लिखी तो चाहिए लेकिन नौकरीपेशा नहीं.

लेबर फ़ोर्स में महिलाओं की भागीदारी है कम

यही वजह है कि आज भी लेबर फ़ोर्स में महिलाओं की भागीदारी बहुत कम है. हाल ही में जारी नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस (एनएसओ) के लेबर फोर्स सर्वे में बताया गया कि 15 वर्ष से ऊपर की कामकाजी जनसंख्या में महिलाओं की भागीदारी 28.7 प्रतिशत है जबकि पुरुषों की भागीदारी 73 प्रतिशत है. वहीं नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार देश में केवल 32 प्रतिशत शादीशुदा महिलाएं नौकरी करती हैं. वर्ल्ड बैंक के डेटा के अनुसार भी भारत में लेबर फोर्स में लगातार गिरावट देखी जा रही है. साल 2005 के बाद से इसमें लगातार गिरावट देखने को मिल रही है. 2005 में भारत में लेबर फोर्स में 26.7 प्रतिशत महिलाएं थीं. साल 2021 में गिरावट के साथ केवल 20.3 प्रतिशत महिलाएं लेबर फोर्स में हैं.

भारत में पुरुषों में यह आंकड़ा 98 प्रतिशत है. 15 से 49 साल की शादीशुदा महिलाओं में से मात्र 32 प्रतिशत महिलाएं घर से बाहर जाकर नौकरी करती हैं. दूसरी ओर सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के डेटा के मुताबिक 21 मिलियन महिलाएं कार्यक्षेत्र से घट गई. भारत में 15 प्रतिशत कामकाजी महिलाओं को उनके काम का वेतन नहीं मिल पाता है. वहीं पुरुषों में काम के बदले वेतन न मिलने का प्रतिशत 4 फीसदी है.

भारतीय महिलाओं में यह बहुत सामान्य है कि महिलाएं अपनी कमाई खर्च करने का फैसला पति के साथ मिलकर लेती हैं. सैलरी पाने वाली महिलाएं खुद या पति के साथ मिलकर तय करती हैं कि पैसा कैसे खर्च किया जाएगा.

बहू पढ़ी लिखी हो मगर कामकाजी नहीं का कांसेप्ट

ज्यादातर मामलों में देखा जाता है कि ससुराल वाले पढ़ी लिखी लड़की तो चाहते हैं मगर उस का काम पर जाना पसंद नहीं करते. तर्क दिया जाता है कि उन का परिवार संपन्न है तो नौकरी की क्या ज़रूरत है. ये भी समझा जाता है कि नौकरी करने वाली लड़की को घर संभालने का कम वक़्त मिलेगा जिससे घर के कामों में दिक्कत आएगी. क्यूंकि भारत में आम धारणा यही है कि घर संभालना महिलाओं का काम है.

लोगों को लगता है कि अगर बहू नौकरी करने घर के बाहर जाएगी और उसके हाथ में पैसे होंगे तो वह घर वालों को कुछ समझेगी नहीं. जब लड़की आर्थिक रूप से इंडिपेंडेंट होगी तो अपने लिए खुद फैसले लेगी और इस से उस पर ससुराल वालों का अधिकार कम हो जाएगा. घर की इज्ज़त का नाम दे कर बहुओं का जम कर शोषण किया जाता है जो कामकाजी बहुओं के साथ संभव नहीं हो सकेगा.

कई पुरुषों में यह सोच हावी रहती है कि महिलाएं नौकरी करेंगी तो उन का संपर्क अधिक बढ़ेगा. घर से बाहर निकल कर बाहर के पुरुषों से बात करेंगी. यह उन्हें बर्दाश्त नहीं होता है.

पुरुषों को लगता है कि नौकरी करने पर महिलाएं उन पर आश्रित नहीं रहेंगी. वो खुद फैसले ले सकेंगी और उनकी चलेगी नहीं. इसलिए वे नौकरीपेशा महिलाओं को पसंद नहीं करते.

कुछ लोगों को लगता है कि घर की औरतों का काम घर संभालना है. बाहर जाकर काम करने पर कैसे कैसे लोग देखते हैं और वैसे भी औरतों की कमाई से क्या कभी घर चलता है?

कुछ लोग शादी के लिए वर्किंग वुमेन प्रेफर करते हैं मगर कंडिशन यह होती है कि उसका जो काम हो वह पति के बिजनेस से जुड़ा हो. वह जो काम करे पति के साथ मिलकर करे तो बेहतर होगा. वह घर से बाहर जाकर काम न करे.

कामकाजी पत्नी होने के फायदे

पति को यह बात समझनी चाहिए कि अगर पत्नी नौकरी करेगी तो कहीं न कहीं इकोनॉमिकली हेल्प मिलेगी. कभी किसी वजह से यदि पति की नौकरी चली जाए या पति को कुछ हो जाए तो पत्नी घर परिवार को अच्छी तरह संभाल सकती है.

पूरे दिन इधर उधर की बातों में समय बर्बाद करने से अच्छा है कि वह चार लोगों से मिले, कुछ नया सीखे और अपनी काबिलियत दिखाए. वैसे भी यदि किसी को अफेयर करना है तो वह बाहर जा कर ही नहीं बल्कि घर में रह कर भी कर सकती है.

पत्नी कामकाजी होगी तो पति की समस्याओं को समझ सकेगी. कोई समस्या आने पर उस का हल निकालने में मदद कर सकेगी.

पति के साथ बात करने के लिए उस के पास हजारों विषय होंगे. घरेलू महिलाएं अक्सर पति के आते ही उस से घर वालों या सास ननद की बुराई करे में लग जाती हैं या फिर दूसरी घरेलू समस्याओं का रोना ले कर बैठ जाती हैं. मगर एक कामकाजी महिला के पास फ़ालतू बातों के लिए समय ही नहीं होगा.

पति अक्सर इस बात से भी परेशान रहते हैं कि पत्नी सैटरडे संडे आराम नहीं करने देती. कहीं न कहीं जाने की जिद करती है. मगर ज़रा सोचिए जब पत्नी खुद ही 5 दिन काम कर के थकी होगी तो वह कहीं जाने को कैसे कहेगी? वह तो खुद ही छुट्टी के दिन अपनी नींद पूरी कर रही होगी.

कामकाजी पत्नी के साथ फिल्म देखने या कहीं पार्टी में जाना भी आसान होता है. घरवालों की सहमति लेने की जरूरत नहीं. बस दोनों ऑफिस से एक समय छुट्टी ले कर निकलें और वहीं से कहीं भी चले जाएं. रात आने में देर हो तो पेरेंट्स से कह दें कि ऑफिसियल काम था. पेरेंट्स साथ नहीं रहते तो और भी किसी को जवाब देने की जरूरत नहीं.

पेट पर बाल होने के कारण शौर्ट टौप या ब्लाउज नहीं पहन पाती, मैं क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मेरे पेट पर बाल हैं. उन के कारण मैं शौर्ट टौप या ब्लाउज नहीं पहन पाती. क्या मैं उन्हें शेविंग से हटा सकती हूं?

जवाब-

जी नहीं, आप रेजर के इस्तेमाल से उन्हें नहीं हटा सकतीं क्योंकि इस से दोबारा और अधिक बाल आ जाएंगे. यदि आप के पेट पर कम बाल हैं तो आप उन को ब्लीच कर सकती हैं. ब्लीच से बाल हलके रंग के हो जाएंगे. जब तक ये बाल हलके दिखेंगे तब तक परेशान होने की जरूरत नहीं है.

आप इन्हें दूर करने के लिए हेयर रिमूवल क्रीम का इस्तेमाल कर सकती हैं. केवल इस बात का ध्यान रखें कि जो क्रीम आप उपयोग में ले रही हैं वह आप की स्किन को सूट करे. आप पेट के बाल वैक्सिंग से हटाने के लिए पल्स लाइट लेजर के उपयोग भी कर सकती हैं.

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हेयरलेस दिखना सब को अच्छा लगता है खासकर गरमी के मौसम में शौर्ट ड्रैस में तो यह जरूरी ही हो जाता है. आप चाहें शेविंग, वैक्सिंग या ट्वीचिंग करा सकती हैं. अब घर बैठे आप खुद लेजर हेयर रिमूवर से अनचाहे बालों से छुटकारा पा सकती हैं. लेजर हेयर रिमूवर क्या है: लेजर प्रकाश किरणों से हेयर फौलिकल्स को जला कर नष्ट कर दिया जाता है, जिस के चलते हेयर रिप्रोडक्शन नहीं हो पाता है. इस प्रोसैस में एक से ज्यादा सिटिंग्स लेनी पड़ती हैं.

सैल्फ लेजर हेयर रिमूवर:

लेजर तकनीक 2 तरीकों से बाल हटाती है- एक आईपीएल और दूसरा लेजर हेयर रिमूवर. दोनों एक ही सिद्धांत पर काम करती हैं- हेयर फौलिकल्स को नष्ट करना. आमतौर पर घर में हैंड हेल्ड आईपीएल रिमूवर का इस्तेमाल किया जाता है. हालांकि, इस में लेजर बीम नहीं होती फिर भी इंटैंस पल्स लाइट बीम द्वारा यह टारगेट एरिया के बालों की जड़ों तक पहुंच कर फौलिकल्स को लेजर की तरह मार देती हैं जिस के चलते वह एरिया बहुत दिनों तक हेयरलेस रहता है. इसे चेहरे पर भी यूज कर सकती हैं पर आंखों को बचा कर.

आईपीएल हेयर रिमूवर किस के लिए सही है: आधुनिक विकसित तकनीक से निर्मित आईपीएल रिमूवर सभी तरह के बालों से छुटकारा पाने का दावा करता है. आमतौर पर त्वचा और बालों के रंग में कंट्रास्ट यानी स्पष्ट अंतर रहने पर यह अच्छा परिणाम देता है, जैसे फेयर स्किन और डार्क स्किन में यह उतना अच्छा काम नहीं कर सकता है क्योंकि इसे मैलानिन और फौलिकल्स में अंतर सम झने में कठिनाई होती है. ऐसे में स्किन बर्न की संभावना रहती है.

वैम्पायर की बिग बौस 18 में धांसू एंट्री, घरवालों के नाक में करेगा दम

टीवी का फेमस कंट्रोवर्शियल शो ‘बिग बौस 18’ लगातार चर्चे में है. इस रियलिटी शो का प्रीमियर 6 अक्टूबर को होने वाला है. शो से जुड़े प्रोमो वीडियोज सोशल मीडिया पर सामने आ रहे हैं. जिससे फैंस काफी ऐक्साइटेड हैं.

बिग बौस 18 में वैम्पायर की धांसू एंट्री 

‘बिग बौस 18’ में अब तक कई कंटेस्टैंट्स कंफर्म हो चुके हैं. शो में अब तक शिल्पा शिरोडकर (Shilpa Shirodkar), शहजादा धामी (Shehzada Dhami) और चाहत पांडे का नाम कंफर्म हो चुका है. अब इसी बीच ‘बिग बौस’ से जुड़ा एक नया वीडियो सामने का एक नया वीडियो सामने आया है, जिसमें  वैम्पायर यानी विवियन डीसेना (Vivian Dsena) बिग बौस हाउस में एंट्री लेते दिख रहे हैं. इस प्रोमो वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है, इस देख फैंस की एक्साइटमेंट बढ़ गई है.

ब्लैक सूट में फैस के दिल पर छा गए

आप इस वीडियो में देख सकते हैं कि ब्लैक कलर के सूट में वैम्पायर धांसू एंट्री करते नजर आ रहे हैं. वीडियो में विवियन खुद बोल रहे हैं, ‘कलर्स का बेटा और अब बिग बौस में आ रहा हूं सबका बाप बनने.’
इस प्रोमो को शेयर करते हुए कैप्शन में लिखा है, ‘जो है कलर्स का बेटा, अब सबका बाप बनने आ रहा है.’ इस प्रोमो वीडियो पर फैंस अपना प्यार लूटा रहे हैं और वैम्पायर का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं.

ईसाई धर्म को छोड़ इस्लाम धर्म करते हैं फौलो

विवियन डीसेना टीवी के फेमस ऐक्टर हैं. उन्होंने प्यार की ये एक कहानी, मधुबाला और शक्ती जैसे शोज में मुख्य किरदार निभाया है. वैम्पायर अपने किरदार से दर्शकों का दिल जीतने में कामयाब रहे. क्या आप जानते हैं विवियन डीसेना ने अपना धर्म बदल लिया था. साल 2019 में उन्होंने अपना धर्म बदल लिया था. ये क्रिश्चन थे पर इन्होंने इस्लाम धर्म को अपना लिया था.एक इंटरव्यू में वैम्पायर ने बताया कि उनका जन्म भले ही ईसाई परिवार में हुआ है, लेकिन वह अब ईस्लाम धर्म को फौलो करते हैं. उन्होंने खुद इस बात का खुलासा किया था कि साल 2019 के रामजान महीने में इस्लाम फौलो करना शुरू किया था.

पहली शादी टूटी, गुपचुप तरीके से की दूसरी शादी

आपको बता दें कि विवियन की पहली शादी टूट गई थी. वाहबिज दोराबजी से ऐक्टर ने पहली शादी की थी. साल 2021 में इनका तलाक हो गयाा. दूसरी शादी साल 2022 में विवियन ने अपनी लौन्ग टाइम पार्टनर रही नौरान एली से बहुत निजी तरीके से शादी की. रिपोर्ट के अनुसार नौरान मिस्र की रहने वाली हैं और वह एक पत्रकार रह चुकी हैं. दोनों ने मिस्र में शादी की. दोनों की एक बेटी भी है.

पतझड़ का अंत

सुहाग सेज पर बैठी सुषमा कितनीसुंदर लग रही थी. लाल जोड़े में सजी हुई वह बड़ी बेताबी से अपने पति समीर का इंतजार कर रही थी. एकाएक दरवाजा खुला और समीर मुसकराता हुआ कमरे में दाखिल हुआ. सुषमा समीर को देखते ही रोमांचित हो उठी. समीर ने अंदर आ कर धीरे से दरवाजा बंद किया. पलंग पर बिलकुल पास आ कर वह बैठ गया. फिर सुषमा का घूंघट उठा कर उसे आत्मविभोर हो देखने लगा.

सुषमा उसे इस तरह गौर से देखने पर बोली, ‘‘क्या देख रहे हो?’’

‘‘तुम्हें, जो आज के पहले मेरी नहीं थी. पता है सुसु, पहली बार मैं ने जब तुम्हें देखा था तभी मुझे लगा कि तुम्हीं मेरे जीवन की पतवार हो और अगर तुम मुझे नहीं मिलतीं तो शायद मेरा जीवन अधूरा ही रहता,’’ फिर समीर ने अपने दोनों हाथ फैला दिए और सुषमा पता  नहीं कब उस के आगोश में समा गई.

उस रात सुषमा के जीवन के पतझड़ का अंत हो गया था. शायद  40 साल के कठिन संघर्ष का अंत हुआ था.

सुषमा और समीर दोनों खुश थे, बहुत खुश. एकदूसरे को पा  कर उन्हें दुनिया की तमाम खुशियां नसीब हो गई थीं.

प्यार और खुशी में दिन कितनी जल्दी बीत जाते हैं पता ही नहीं चलता. देखते ही देखते 1 साल बीत गया और आज सुषमा की शादी की पहली सालगिरह थी. दोनों के दोस्तों के साथ उन के घर वाले भी शादी की सालगिरह पर आए थे.

घर में अच्छीखासी रौनक थी. घरआंगन बिजली की रोशनी से ऐसा सजा था जैसे  घर में शादी हो.

सुषमा के घर वालों ने जब यह साजोसिंगार देखा तो उन का मुंह खुला का खुला रह गया और छोटी बहन जया अपनी मां से बोली, ‘‘मां, दीदी को इतना सबकुछ करने की क्या जरूरत थी. अरे, शादी की सालगिरह है, कोई दीदी की  शादी तो नहीं.’’

सुषमा की मां बोलीं, ‘‘हमें क्या, पैसा उन दोनों का है, जैसे चाहें खर्च करें.’’

शादी की पहली सालगिरह बड़ी धूमधाम से मनी. जब सभी लोग चले गए तब सुषमा ने अपनी मां से आ कर पूछा, ‘‘मां, तुम खुश तो हो न, अपनी बेटी का यह सुख देख कर?’’

‘‘हां, खुश तो हूं बेटी. तेरा जीवन तो सुखमय हो गया, पर प्रिया और सचिन के बारे में सोच कर रोना आता है. उन दोनों बिन बाप के बच्चों का क्या होगा?’’

‘‘मां, तुम ऐसा क्यों सोचती हो. मैं हूं न, उन दोनों को देखने वाली. तुम्हारे दामादजी भी बहुत अच्छे हैं. मैं जैसा कहती हूं वह वैसा ही करते हैं. जब मैं ने एक बहन की शादी कर दी तो दूसरी की भी कर दूंगी. और हां, सचिन की भी तो अब इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी हो गई है.’’

‘‘हां, पूरी हो तो गई है, लेकिन कहीं नौकरी लगे तब न.’’

‘‘मां, तुम घबराओ नहीं, हम कोशिश करेंगे कि उस की नौकरी जल्दी लग जाए.’’

‘‘सुषमा, हमें तो बस, एक तेरा ही सहारा है बेटी. जब तू हमें छोड़ कर चली आई तो हम अपने को अनाथ समझने लगे हैं.’’

अभी सुषमा और मां बातें कर ही रहे थे कि समीर आ गया. वह हंसते हुए बोला, ‘‘क्यों सुसु, आज मां आ गईं तो मुझे भूल गईं. मैं कब से तुम्हारा खाने पर इंतजार कर रहा हूं.’’

मां की ओर देख कर सुषमा बोली, ‘‘मां, अब तुम सो जाओ. रात काफी बीत गई है. हम भी खाना खा कर सोएंगे. सुबह हमें कालिज जाना है.’’

सुषमा जब कमरे में आई तो समीर थाली सजाए उस का इंतजार कर रहा था, ‘‘सुसु, कितनी देर लगा दी आने में. यहां मैं तुम्हारे इंतजार में बैठा पागल हो रहा था. थोड़ी देर तुम और नहीं आतीं तो मेरा तो दम ही निकल जाता.’’

‘‘समीर, आज के दिन ऐसी अशुभ बातें तो न कहो.’’

‘‘ठीक है, अब हम शुभशुभ ही बातें करेंगे. पहले तुम आओ तो मेरे पास.’’

‘‘समीर, हमारी शादी को 1 साल बीत गया है लेकिन तुम्हारा प्यार थोड़ा भी कम नहीं हुआ, बल्कि पहले से और बढ़ गया है.’’

‘‘फिर तुम मेरे इस बढ़े हुए प्यार का आज के दिन कुछ तो इनाम दोगी.’’

‘‘बिलकुल नहीं, अब आप सो जाइए. सुबह मुझे कालिज जल्दी जाना है.’’

‘‘सुसु, अभी मैं सोने के मूड में नहीं हूं. अभी तो पूरी रात बाकी है,’’ वह मुसकराता हुआ बोला.

सुबह सुषमा जल्दी तैयार हो गई और कालिज जाते समय मां से बोली, ‘‘मां, मैं दोपहर में आऊंगी, तब तुम जाना.’’

‘‘नहीं, सुषमा, मैं भी अभी निकलूंगी. पर तुझ से एक बात कहनी थी.’’

‘‘हां मां, बोलो.’’

‘‘प्रिया का एम.ए. में दाखिला करवाना है. अगर 5 हजार रुपए दे देतीं तो बेटी, उस का दाखिला हो जाता.’’

‘‘ठीक है मां, मैं किसी से पैसे भिजवा दूंगी.’’

‘‘सुषमा, एक तेरा ही सहारा है बेटी, मैं  तुझ से एक बात और कहना चाहती हूं कि ज्यादा  फुजूलखर्ची मत किया कर.’’

‘‘मां, तुम्हें तो पता है कि मैं ने बचपन से ले कर 1 साल पहले तक कितना संघर्ष किया है. जब पिताजी का साया हमारे सिर से उठ गया था तब से ही मैं ने घर चलाने, खुद पढ़ने और भाईबहनों को पढ़ाने के लिए क्याक्या नहीं किया. अब क्या मैं अपनी खुशी के लिए इतना भी नहीं कर सकती?’’

‘‘मैं ऐसा तो नहीं कह रही हूं. फिर भी पैसे बचा कर चल. हमें भी तो देखने वाला कोई नहीं है.’’

आज सुबह ही जया का फोन आया कि दीदी, आज मंटू का जन्मदिन है. तुम और जीजाजी जरूर आना.

‘‘ हां, आऊंगी.’’

‘‘और हां, दीदी, एक बात तुम से कहनी थी. तुम ने अपनी फें्रड की शादी में जो साड़ी पहनी थी वह बहुत सुंदर लग रही थी. दीदी, मेरे लिए भी एक वैसी ही साड़ी लेती आना, प्लीज.’’

‘‘ठीक है, बाजार जाऊंगी तो देखूंगी.’’

‘‘दीदी, बुरा न मानो तो एक बात कहूं?’’

‘‘हां, बोलो.’’

‘‘तुम अपनी वाली साड़ी ही मुझे दे दो.’’

‘‘जया, वह तुम्हारे जीजाजी की पसंद की साड़ी है.’’

‘‘तो क्या हुआ. अब तुम्हारी उम्र तो वैसी चमकदमक वाली साड़ी पहनने की नहीं है.’’

‘‘जया, मेरी उम्र को क्या हुआ है. मैं तुम से 5 साल ही तो बड़ी हूं.’’

यह सुनते ही जया ने गुस्से में फोन रख दिया और सुषमा फोन का रिसीवर हाथ में लिए सोचने लगी थी.

दुनिया कितनी स्वार्थी है. सब अपने बारे में ही सोचते हैं. चाहे वह मेरी अपनी मां, भाईबहन ही क्यों न हों. मैं ने सभी के लिए कितना कुछ किया है और आज भी जिसे जो जरूरत होती है पूरी कर रही हूं. फिर भी किसी को मेरी खुशी सुहाती नहीं. जब मैं ने शादी का फैसला किया था तब भी घर वालों ने कितना विरोध किया था. कोई नहीं चाहता था कि मैं अपना घर बसाऊं. वह तो बस, समीर थे जिन्होंने मुझे अपने प्यार में इतना बांध लिया कि मैंउन के बगैर रहने की सोच भी नहीं सकती थी.

सुषमा की आंखों में आंसू झिल- मिलाने लगे थे. समीर पीछे से आ कर बोले, ‘‘जानेमन, इतनी देर से आखिर किस से बातें हो रही थीं.’’

‘‘जया का फोन था. समीर, आज उस के बेटे का जन्मदिन है.’’

‘‘तो ठीक है, शाम को चलेंगे दावत खाने…और हां, तुम वह नीली वाली साड़ी शाम को पार्टी में  पहनना. उस दिन जब तुम ने वह साड़ी पहनी थी तो बहुत सुंदर लग रही थीं. बिलकुल फिल्म की हीरोइन की तरह.’’

‘‘समीर, लेकिन वह साड़ी तो जया मांग रही है.’’

‘‘क्या?’’

‘‘हां, वैसे मैं ने उस से कहा है कि वह आप की पसंद की साड़ी है.’’

‘‘तुम पार्टी में जाने के लिए कोई दूसरी साड़ी पहन लेना और वह साड़ी उसे दे देना, आखिर वह तुम्हारी बहन है.’’

‘‘समीर, तुम कितने अच्छे हो.’’

‘‘हां, वह तो मैं हूं, लेकिन इतना भी अच्छा नहीं कि नाश्ते के बगैर कालिज जाने की सोचूं.’’

सुषमा और समीर एकदूसरे को पा कर बेहद खुश थे. दोनों के विचार एक थे. भावनाएं एक थीं.

एक दिन सुषमा का भाई सचिन आया और बोला, ‘‘दीदी, मुझे कुछ रुपए चाहिए.’’

‘‘किसलिए?’’

‘‘शहर से बाहर एकदो जगह नौकरी के लिए साक्षात्कार देने जाना है.’’

‘‘कितने रुपए  लगेंगे?’’

‘‘10 हजार रुपए दे दो.’’

‘‘इतने रुपए का क्या करोगे सचिन?’’

‘‘दीदी,  इंटरव्यू देने के लिए अच्छे कपड़े, जूते भी तो चाहिए. मेरे पास अच्छे कपड़े नहीं हैं.’’

‘‘सचिन, अभी मैं इतने रुपए तुम्हें नहीं दे सकती. तुम्हारे जीजाजी की बहुत इच्छा है कि हम शिमला जाएं. शादी के बाद हम कहीं गए नहीं थे न.’’

‘‘दीदी,  तुम्हारी  शादी हो गई वही बहुत है. अब इस उम्र में घूमना, टहलना ये सब बेकार के चोचले हैं. मुझे पैसे की जरूरत है, वह तो तुम दे नहीं सकतीं और यह फालतू का खर्च करने को तैयार हो.’’

‘‘सचिन, क्या हम अपनी खुशी के लिए कुछ नहीं कर सकते. अरे, इतने दिनों से तो मैं तुम लोगों के लिए ही करती आई हूं और जब अपनी खुशी के लिए अब करना चाहती हूं तो बातबात पर तुम लोग मुझे मेरी उम्र का एहसास दिलाते हो.

‘‘सचिन, प्यार की कोई उम्र नहीं होती. वह तो हर उम्र में हो सकता है. जब मैं खुश हूं, समीर खुश हैं तो तुम लोग क्यों दुखी हो?’’

समीर उस दिन अचानक जिद कर बैठे कि सुसु, आज मैं अपने ससुराल जाना चाहता हूं.

‘‘क्यों जी, क्या बात है?’’

‘‘अरे, आज छुट्टी है. तुम्हारे घर के सभी लोग घर पर ही होंगे. फिर जया भी तो आई होगी. और हां, नए मेहमान के आने की खुशखबरी अपने घर वालों को नहीं सुनाओगी?’’

‘‘ठीक है, अगर तुम्हारी इच्छा है तो चलते हैं, तुम्हारे ससुराल,’’ सुषमा मुसकरा दी थी.

सुषमा आज काफी सजधज कर मायके आई थी. लाल रंग की साड़ी से मेल खाता ब्लाउज और उसी रंग की बड़ी सी बिंदी अपने माथे पर  लगा रखी थी. उस ने सोने के गहनों से अपने को सजा लिया था.

मां उसे देख कर मुसकरा दीं, ‘‘क्या बात है, आज तू बड़ी सज कर आई है.’’

अभी सुषमा कुछ कहना चाह रही थी कि प्रिया बोली, ‘‘बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम.’’

प्रिया की बातें सुन कर सुषमा का खून खौल उठा पर वह कुछ बोली नहीं.

मां ने आदर के साथ बेटी को बिठाया और दामादजी से हाल समाचार पूछे.

सुषमा बोली, ‘‘मां, खुशखबरी है. तुम नानी बनने वाली हो.’’

मां यह सुन कर बोलीं, ‘‘चलो, ठीक है. एक बच्चा हो जाए. फिर अपना दुखड़ा रोने लगीं कि सचिन की नौकरी के लिए 50 हजार रुपए चाहिए. बेटी, अगर तुम दे देतीं तो…’’

सुषमा बौखला उठी. मां की बात बीच में काट कर बोली, ‘‘मां, अब और नहीं, अब बहुत हो गया. मुझे जितना करना था कर दिया. अब सब बड़े हो गए हैं और वे अपनी जिम्मेदारी खुद उठा सकते हैं. मैं आखिर कब तक इस घर को देखती रहूंगी.

‘‘मैं  जब 12 साल की थी तब से ही तुम लोगों की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ढो रही हूं. रातरात भर जाग कर मैं एकएक पैसे के लिए काम करती थी. फिर सभी को इस योग्य बना दिया कि वे अपनी जिम्मेदारियां खुद उठा सकें.

‘‘अब मेरा भी अपना परिवार है. पति हैं, और अब घर में एक और सदस्य भी आने वाला है. मैं अब तुम सब के लिए करतेकरते थक गई हूं मां. अब मैं जीना चाहती हूं, अपने लिए, अपने परिवार के लिए और अपनी खुशी के लिए.

‘‘जिंदगी की  खूबसूरत 40 बहारें मैं ने यों ही गंवा दीं, अब और नहीं. मेरे जीवन के पतझड़ का अंत हो गया है. अब मैं खुश हूं, बहुत खुश.’’

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लम्हों ने खता की थी: क्या डिप्रैशन से निकल पाई रिया

गुरमीत पाटनकर के 30 साल के लंबे सेवाकाल में ऐसा पेचीदा मामला शायद पहली दफा सामने आया था. इस बहुराष्ट्रीय कंपनी में पिछले वर्ष पीआरओ पद पर जौइन करने वाली रिया ने अपनी 6 वर्ष की बच्ची के लिए कंपनी द्वारा शिक्षण संबंधित व्यय के पुनर्भरण के लिए प्रस्तुत आवेदन में बच्ची के पिता के नाम का कौलम खाली छोड़ा था. अभिभावक के नाम की जगह उसी का नाम और हस्ताक्षर थे. उन्होंने जब रिया को अपने कमरे में बुला कर बच्ची के पिता के नाम के बारे में पूछा तो वह भड़क कर बोली थी, ‘‘इफ क्वोटिंग औफ फादर्स नेम इज मैंडेटरी, प्लीज गिव मी बैक माइ एप्लीकेशन. आई डोंट नीड एनी मर्सी.’’ और बिफरती हुई चली गई थी. पाटनकर सोच रहे थे, अगर इस अधूरी जानकारी वाले आवेदनपत्र को स्वीकृत करते हैं तो वह (रिया) भविष्य में विधिक कठिनाइयां पैदा कर सकती है और अस्वीकृत कर देते हैं तो आजकल चलन हो गया है कि कामकाजी महिलाएं किसी भी दशा में उन के प्रतिकूल हुए किसी भी फैसले को उन के प्रति अधिकारी के पूर्वाग्रह का आरोप लगा देती हैं.

अकसर वे किसी पीत पत्रकार से संपर्क कर के ऐसे प्रकरणों का अधिकारी द्वारा महिला के शारीरिक शोषण के प्रयास का चटपटा मसालेदार समाचार बना कर प्रकाशितप्रसारित कर के अधिकारी की पद प्रतिष्ठा, सामाजिक सम्मान का कचूमर निकाल देती हैं. रिया भी ऐसा कर सकती है. आखिर 2 हजार रुपए महीने की अनुग्रह राशि का मामला है. टैलीफोन की घंटी बजने से उन की तंद्रा भंग हुई. उन्होंने फोन उठाया, मगर फोन सुनते ही वे और भी उद्विग्न हो उठे. फोन उन की पत्नी का था. वह बेहद घबराई हुई लग रही थी और उन से फौरन घर पहुंचने के लिए कह रही थी.

घर पहुंच कर उन्होंने जो दृश्य देखा तो सन्न रह गए. रिया भी उन के ही घर पर थी और भारी डिप्रैशन जैसी स्थिति में थी. कुछ अधिकारियों की पत्नियां उसे संभाल रही थीं, दिलासा दे रही थीं, मगर उसे रहरह कर दौरे पड़ रहे थे. बड़ी मुश्किल से उन की पत्नी उन्हें यह बता पाई कि उस की 6 वर्षीय बच्ची आज सुबह स्कूल गई थी. लंचटाइम में वह पता नहीं कैसे सिक्योरिटी के लोगों की नजर बचा कर स्कूल से कहीं चली गई. उस के स्कूल से चले जाने का पता लंच समाप्त होने के आधे घंटे बाद अगले पीरियड में लगा. क्लासटीचर ने उस को क्लास में न पा कर उस की कौपी वगैरह की तलाशी ली. एक कौपी में लिखा था, ‘मैं अपने पापा को ढूंढ़ने जाना चाहती हूं. मम्मी कभी पापा के बारे में नहीं बतातीं. ज्यादा पूछने पर डांट देती हैं. कल तो मम्मी ने मुझे चांटा मारा था. मैं पापा को ढूंढ़ने जा रही हूं. मेरी मम्मी को मत बताना, प्लीज.’

स्कूल प्रशासन ने फौरन बच्ची की डायरी से अभिभावकों के टैलीफोन नंबर देख कर इस की सूचना रिया को दे दी और स्कूल से बच्ची के गायब होने की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज करा दी. सभी स्तब्ध थे यह सोचते हुए कि क्या किया जाए. तभी कालोनी कैंपस में एक जीप रुकी. जीप में से एक पुलिस इंस्पैक्टर और कुछ सिपाही उतरे और पाटनकर के बंगले पर भीड़भाड़ देख कर उस तरफ बढ़े. पाटनकर खुद चल कर उन के पास गए और उन के आने का कारण पूछा. इंस्पैक्टर ने बताया कि स्कूल वालों ने जिस हुलिए की बच्ची के गायब होने की रिपोर्ट लिखाई है उसी कदकाठी की एक लड़की किसी अज्ञात वाहन की टक्कर से घायल हो गई. जिसे अस्पताल में भरती करा कर वे बच्ची की मां और कंपनी के कुछ लोगों को बतौर गवाह साथ ले जाने के लिए आए हैं.

इंस्पैक्टर का बयान सुन कर रिया तो मिसेज पाटनकर की गोदी में ही लुढ़क गई तो वे इंस्पैक्टर से बोलीं, ‘‘देखिए, आप बच्ची की मां की हालत देख रहे हैं, मुझे नहीं लगता कि वह इस हालत में कोई मदद कर पाएगी. हम सभी इसी कालोनी के हैं और वह बच्ची स्कूल से आने के बाद इस की मां के औफिस से लौटने तक मेरे पास रहती है इसलिए मैं चलती हूं आप के साथ.’’ अब तक कंपनी के अस्पताल की एंबुलैंस भी मंगा ली गई थी. इसलिए कुछ महिलाएं अचेत रिया को ले कर एंबुलैंस में सवार हुईं और 2-3 महिलाएं मिसेज पाटनकर के साथ पुलिस की जीप में बैठ गईं. अस्पताल पहुंचते ही शायद मातृत्व के तीव्र आवेग से रिया की चेतना लौट आई. वह जोर से चीखी, ‘‘कहां है मेरी बच्ची, क्या हुआ है मेरी बच्ची को, मुझे जल्दी दिखाओ. अगर मेरी बच्ची को कुछ हो गया तो मैं किसी को छोड़ूंगी नहीं, और मिसेज पाटनकर, तुम तो दादी बनी थीं न पिऊ की,’’ कहतेकहते वह फिर अचेत हो गई.

बच्ची के पलंग के पास पहुंचते ही मिसेज पाटनकर और कालोनी की अन्य महिलाओं ने पट्टियों में लिपटी बच्ची को पहचान लिया. वह रिया की बेटी पिऊ ही थी. बच्ची की स्थिति संतोषजनक नहीं थी. वह डिलीरियम की स्थिति में बारबार बड़बड़ाती थी, ‘मुझे मेरे पापा को ढूंढ़ने जाना है, मुझे जाने दो, प्लीज. मम्मी मुझे पापा के बारे में क्यों नहीं बतातीं, सब बच्चे मेरे पापा के बारे में पूछते हैं, मैं क्या बताऊं. कल मम्मी ने मुझे क्यों मारा था, दादी, आप बताओ न…’ कहतेकहते अचेत हो जाती थी. बच्ची की शिनाख्त होते ही पुलिस इंस्पैक्टर ने मिसेज पाटनकर को बच्ची की दादी मान कर उस के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि कुछ दिन पहले वे दोपहर को महिला कल्याण समिति की बैठक में जाने के लिए निकली थीं. तभी रिया की बच्ची, जो अपनी आया से बचने के लिए अंधाधुंध दौड़ रही थी, उन से टकरा गई थी. बच्ची ने उन से टकराते ही उन की साड़ी को जोर से पकड़ कर कहा था, ‘आंटी, मुझे बचा लो, प्लीज. आया मुझे बाथरूम में बंद कर के अंदर कौकरोच छोड़ देगी.’

बच्ची की पुकार की आर्द्रता उन्हें अंदर तक भिगो गई थी. इसलिए उन्होंने आया को रुकने के लिए कहा और बच्ची से पूछा, ‘क्या बात है?’ तो जवाब आया ने दिया था कि यह स्कूल में किसी बच्चे के लंचबौक्स में से आलू का परांठा अचार से खा कर आई है और घर पर भी वही खाने की जिद कर रही है. मेमसाब ने इसे दोपहर के खाने में सिर्फ बर्गर और ब्रैड स्लाइस या नूडल्स देने को कहा है. यह बेहद जिद्दी है. उसे बहुत तंग कर रही है, इस ने खाना उठा कर फेंक दिया है, इसलिए वह इसे यों ही डरा रही थी. मगर बच्ची उन की साड़ी पकड़ कर उन से इस तरह चिपकी थी कि आया ज्यों ही उस की तरफ बढ़ी वह उन से और भी जोर से चिपक कर बोली, ‘आंटी प्लीज, बचा लो,’ और उन की साड़ी में मुंह छिपा कर सिसक उठी तो उन्होंने आया को कह दिया, ‘बच्ची को वे ले जा रही हैं, तुम लौट जाओ.’

कालोनी में उन की प्रतिष्ठा और व्यवहार से आया वाकिफ थी, इसलिए ‘मेमसाब को आप ही संभालना’, कह कर चली गई थी. उन्होंने मीटिंग में जाना रद्द कर दिया और अपने घर लौट पड़ी थीं. घर आने तक बच्ची उन की साड़ी पकड़े रही थी. पता नहीं कैसे बच्ची का हाथ थाम कर घर की तरफ चलते हुए वे हर कदम पर बच्ची के साथ कहीं अंदर से जुड़ती चली गई थीं. घर आ कर उन्होंने बच्ची के लिए आलू का परांठा बनाया और उसे अचार से खिला दिया. परांठा खाने के बाद बच्ची ने बड़े भोलेपन से उन से पूछा था, ‘आंटी, आप ने आया से तो बचा लिया, आप मम्मी से भी बचा लोगी न?’

मासूम बच्ची के मुंह से यह सुन कर उन के अंदर प्रौढ़ मातृत्व का सोता फूट निकला था कि उन्होंने बच्ची को गोद में उठा लिया और प्यार से उस के सिर पर हाथ फेर कर बोलीं, ‘हां, जरूर, मगर एक शर्त है.’

‘क्या?’ बच्ची ने थोड़ा असमंजस से पूछा. जैसे वह हर समझौता करने को तैयार थी.

‘तुम मुझे आंटी नहीं, दादी कहोगी, कहोगी न?’

बच्ची ने उन्हें एक बार संशय की नजर से देखा फिर बोली, ‘दादी, आप जैसी होती है क्या? उस के तो बाल सफेद होते हैं, मुंह पर बहुत सारी लाइंस होती हैं. वह तो हाथ में लाठी रखती है. आप तो…’

‘हां, दादी वैसी भी होती है और मेरी जैसी भी होती है, इसलिए तुम मुझे दादी कहोगी. कहोगी न?’

‘हां, अगर आप कह रही हैं तो मैं आप को दादी कहूंगी,’ कह कर बच्ची उन से चिपट गई थी.

उस दिन शाम को जब रिया औफिस से लौटी तो आया द्वारा दी गई रिपोर्ट से उद्विग्न थी, मगर एक तो मिस्टर पाटनकर औफिस में उस के अधिकारी थे, दूसरे, कालोनी में मिसेज पाटनकर की सामाजिक प्रतिष्ठा थी, इसलिए विनम्रतापूर्वक बोली, ‘मैडम, यह आया बड़ी मुश्किल से मिली है. इस शैतान ने आप को पूरे दिन कितना परेशान किया होगा, मैं जानती हूं और आप से क्षमा चाहती हूं. आप आगे से इस का फेवर न करें.’ इस पर उन्होंने बड़ी सरलता से कहा था, ‘रिया, तुम्हें पता नहीं है, हमारी इस बच्ची की उम्र की एक पोती है. हमारा बेटा यूएसए में है इसलिए मुझे इस बच्ची से कोई तकलीफ नहीं हुई. हां, अगर तुम्हें कोई असुविधा हो तो बता दो.

‘देखो, मैं तो सिर्फ समय काटने के लिए महिला वैलफेयर सोसायटी में बच्चों को पढ़ाने का काम करती हूं. मैं कोई समाजसेविका नहीं हूं. मगर पाटनकर साहब के औफिस जाने के बाद 8 घंटे करूं क्या, इसलिए अगर तुम्हें कोई परेशानी न हो तो बच्ची को स्कूल से लौट कर तुम्हारे आने तक मेरे साथ रहने की परमिशन दे दो. मुझे और पाटनकर साहब को अच्छा लगेगा.’

‘मैडम, देखिए आया का इंतजाम…’ रिया ने फिर कहना चाहा तो उन्होंने बीच में टोक कर कहा, ‘आया को तुम रखे रहो, वह तुम्हारे और काम कर दिया करेगी.’ सब तरह के तर्कों से परास्त हो कर रिया चलने लगी तो उन्होंने कहा, ‘रिया, तुम सीधे औफिस से आ रही हो. तुम थकी होगी. मिस्टर पाटनकर भी आ गए हैं. चाय हमारे साथ पी कर जाना.’

‘जी, सर के साथ,’ रिया ने थोड़ा संकोच से कहा तो वे बोलीं, ‘सर होंगे तुम्हारे औफिस में. रिया, तुम मेरी बेटी जैसी हो. जाओ, बाथरूम में हाथमुंह धो लो.’

उस दिन से रिया की बेटी और उन में दादीपोती का जो रिश्ता कायम हुआ उस से वे मानो इस बच्ची की सचमुच ही दादी बन गईं. मगर जब कभी बच्ची उन से अपने पापा के बारे में प्रश्न करती, तो वे बेहद मुश्किल में पड़ जाती थीं. इंस्पैक्टर को यह संक्षिप्त कहानी सुना कर वे निबटी ही थीं कि डाक्टर आ कर बोले, ‘‘देखिए, बच्ची शरीर से कम मानसिक रूप से ज्यादा आहत है. इसलिए उसे किसी ऐसे अटैंडैंट की जरूरत है जिस से वह अपनापन महसूस करती हो.’’ स्थिति को देखते हुए मिसेज पाटनकर ने बच्ची की परिचर्या का भार संभाल लिया.

करीब 4-5 घंटे गुजर गए. बच्ची होश में आते ही, उसी तरह, ‘‘मुझे पापा को ढूंढ़ने जाना है, मुझे जाने दो न प्लीज,’’ की गुहार लगाती थी.

बच्ची की हालत स्थिर देखते हुए डाक्टर ने फिर कहा, ‘‘देखिए, मैं कह चुका हूं कि बच्ची शरीर की जगह मैंटली हर्ट ज्यादा है. हम ने अभी इसे नींद का इंजैक्शन दे दिया है. यह 3-4 घंटे सोई रह सकती है. मगर बच्ची की उम्र और हालत देखते हुए हम इसे ज्यादा सुलाए रखने का जोखिम नहीं ले सकते. बेहतर यह होगा कि बच्ची को होश में आने पर इस के पापा से मिलवा दिया जाए और इस समय अगर यह संभव न हो तो उन के बारे में कुछ संतोषजनक उत्तर दिया जाए. आप बच्ची की दादी हैं, आप समझ रही हैं न?’’

अब मिसेज पाटनकर ने डाक्टर को पूरी बात बताई तो वह बोला, ‘‘हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं मगर बच्ची के पापा के विषय में आप को ही बताना पड़ेगा.’’ बच्ची को मिसेज सान्याल को सुपुर्द कर मिसेज पाटनकर रिया के वार्ड में आ गईं. रिया को होश आ गया था. वह उन्हें देखते ही बोली, ‘‘मेरी बेटी कहां है, उसे क्या हुआ है, आप कुछ बताती क्यों नहीं हैं? इतना कहते हुए वह फिर बेहोश होने लगी तो मिसेज पाटनकर उस के सिरहाने बैठ गईं और बड़े प्यार से उस का माथा सहलाने लगीं.

उन के ममतापूर्ण स्पर्श से रिया को कुछ राहत मिली. उस की चेतना लौटी. वह कुछ बोलती, इस से पहले मिसेज पाटनकर उस से बोलीं, ‘‘रिया, बच्ची को कुछ नहीं हुआ. मगर वह शरीर से ज्यादा मानसिक रूप से आहत है. अब तुम ही उसे पूरी तरह ठीक होने में मदद कर सकती हो.’’ मिसेज पाटनकर बोलते हुए लगातार रिया का माथा सहला रही थीं. रिया ने इस का कोई प्रतिवाद नहीं किया तो उन्हें लगा कि वह उन से कहीं अंतस से जुड़ती जा रही है.

थोड़ी देर में वह क्षीण स्वर में बोली, ‘‘मैं क्या कर सकती हूं?’’

‘‘देखो रिया, बच्ची अपने पापा के बारे में जानना चाहती है. हम उसे गोलमोल जवाब दे कर या उसे डांट कर चुप करा कर उस के मन में संशय व संदेह की ग्रंथि को ही जन्म दे रहे हैं. इस से उस का बालमन विद्रोही हो रहा है. मैं मानती हूं कि वह अभी इतनी परिपक्व नहीं है कि उसे तुम सबकुछ बताओ, मगर तुम एक परिपक्व उम्र की लड़की हो. तुम खुद निर्णय कर लो कि उसे क्या बताना है, कितना बताना है, कैसे बताना है. मगर बच्ची के स्वास्थ्य के लिए, उस के हित के लिए उसे कुछ तो बताना ही है. यही डाक्टर कह रहे हैं,’’ इतना कहते हुए मिसेज पाटनकर ने बड़े स्नेह से रिया को देखा तो उन्हें लगा कि वह उन के साथ अंतस से जुड़ गई है.

रिया बड़े धीमे स्वर में बोली, ‘‘अगर मैं ही यह सब कर सकती तो उसे बता ही देती न. अब आप ही मेरी कुछ मदद कीजिए न, मिसेज पाटनकर.’’

‘‘तुम मुझे कुछ बताओगी तो मैं कुछ निर्णय कर पाऊंगी न,’’ मिसेज पाटनकर ने रिया का हाथ अपने हाथ में स्नेह से थाम कर कहा.

रिया ने एक बार उन की ओर बड़ी याचनाभरी दृष्टि से देखा, फिर बोली, ‘‘आज से 7 साल पहले की बात है. मैं एमबीए कर रही थी. हमारा परिवार आम मध्य परिवारों की तरह कुछ आधुनिकता और कुछ पुरातन आदर्शों की खिचड़ी की सभ्यता वाला था. मैं ने अपनी पढ़ाई मैरिट स्कौलरशिप के आधार पर पूरी की थी. इसलिए जब एमबीए करने के लिए बेंगलुरु जाना तय किया तो मातापिता विरोध नहीं कर सके. एमबीए के दूसरे साल में मेरी दोस्ती संजय से हुई. वह भी मध्यवर्ग परिवार से था. धीरेधीरे हमारी दोस्ती प्यार में बदल गई. मगर आज लगता है कि उसे प्यार कहना गलत था. वह तो 2 जवान विपरीत लिंगी व्यक्तियों का आपस में शारीरिक रूप से अच्छा लगना मात्र था, जिस के चलते हम एकदूसरे के साथ ज्यादा से ज्यादा रहना चाहते थे.

‘‘5-6 महीने बीत गए तो एक दिन संजय बोला, ‘रिया, हमतुम दोनों वयस्क हैं. शिक्षित हैं और एकदूसरे को पसंद करते हैं, काफी दिन से साथसाथ घूमतेफिरते और रहते हुए एकदूसरे को अच्छी तरह समझ भी चुके हैं. यह समय हमारे कैरियर के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण है. इस में क्लासैज के बाद इस तरह रोमांस के लिए मिलनेजुलने में समय बिताना दरअसल समय का ही नहीं, कैरियर भी बरबाद करना है. अब हमतुम जब एकदूसरे से इतना घुलमिल गए हैं तो होस्टल छोड़ कर किसी किराए के मकान में एकसाथ मिल कर पतिपत्नी बन कर क्यों नहीं रह लेते. आखिर प्रोजैक्ट में भी किसी पार्टनर की जरूरत होगी.’

‘‘‘मगर एमबीए के बीच में शादी, वह भी बिना घर वालों को बताए, उन की रजामंदी के…’ मैं बोली तो संजय मेरी बात बीच में ही काट कर बोला था, ‘मैं बैंडबाजे के साथ शादी करने को नहीं, हम दोनों की सहमति से आधुनिक वयस्क युवकयुवती के एक कमरे में एक छत के नीचे लिव इन रिलेशनशिप के रिश्ते में रहने की बात कर रहा हूं. इस तरह हम पतिपत्नी की तरह ही रहेंगे, मगर इस में सात जन्म तो क्या इस जन्म में भी साथ निभाने के बंधन से दोनों ही आजाद रहेंगे.’

‘‘मैं संजय के कथन से एकदम चौंकी थी. तो संजय ने कहा था, ‘तुम और्थोडौक्स मिडिल क्लास की लड़कियों की यही तो प्रौब्लम है कि तुम चाहे कितनी भी पढ़लिख लो मगर मौडर्न और फौरवर्ड नहीं बन सकतीं. तुम्हें तो ग्रेजुएशन के बाद बीएड कर के किसी स्कूल में टीचर का जौब करना चाहिए था. एमबीए में ऐडमिशन ले कर अपना समय और इस सीट पर किसी दूसरे जीनियस का फ्यूचर क्यों बरबाद कर दिया.’

‘‘उस के इस भाषण पर भी मेरी कोई प्रतिक्रिया नहीं देख कर वह मानो समझाइश पर उतर आया, बोला, ‘अच्छा देखो, आमतौर पर मांबाप लड़की के लिए अच्छा सा लड़का, उस का घरपरिवार, कारोबार देख कर अपने तमाम सगेसंबंधी और तामझाम जोड़ कर 8-10 दिन का वक्त और 8-10 लाख रुपए खर्च कर के जो अरेंज्ड मैरिज नाम की शादी करते हैं क्या उन सभी शादियों में पतिपत्नी में जिंदगीभर निभा पाने और सफल रहने की गारंटी होती है? नहीं होती है न. मेरी मानो तो मांबाप का अब तक का जैसेतैसे जमा किया गया रुपया, उन के भविष्य में काम आने के लिए छोड़ो. देखो, यह लिव इन रिलेशनशिप दकियानूसी शादियों के विरुद्ध एक क्रांतिकारी परिवर्तन है.

हम जैसे पढ़ेलिखे एडवांस्ड यूथ का समर्थन मिलेगा तभी इसे सामाजिक स्वीकृति मिलेगी. अब किसी को तो आगे आना होगा, तो हम ही क्यों नहीं इस रिवोल्यूशनरी चेंज के पायोनियर बनें. सो, कमऔन, बी बोल्ड, मौडर्न ऐंड फौरवर्ड. कैरियर बन जाने पर और पूरी तरह सैटल्ड हो जाने पर हम अपनी शादी डिक्लेयर कर देंगे. सो, कमऔन. वरना मुझे तो मेरे कैरियर पर ध्यान देना है. मुझे अपने कैरियर पर ध्यान देने दो.’ ‘‘एक तो संजय से मुझे गहरा लगाव हो गया था, दूसरे, मुझे उस के कथन में एक चुनौती लगी थी, अपने विचारों, अपनी मान्यताओं और अपने व्यक्तित्व के विरुद्ध. इसलिए मैं ने उस का समर्थन करते हुए उस के साथ ही अपना होस्टल छोड़ दिया और हम किराए पर एक मकान ले कर रहने लगे. ‘‘मकानमालिक एक मारवाड़ी था जिसे हम ने अपना परिचय किसी प्रोजैक्ट पर साथसाथ काम करने वाले सहयोगियों की तरह दिया. वह क्या समझा और क्या नहीं, बस उस ने किराए के एडवांस के रुपए ले व मकान में रहने की शर्तें बता कर छुट्टी पाई.

‘‘धीरेधीरे 1 साल बीत चला था. इस बीच हम ने कई बार पतिपत्नी वाले शारीरिक संबंध बनाए थे. इन्हीं में पता नहीं कब और कैसे चूक हो गई कि मैं प्रैग्नैंट हो गई. ‘‘मैं ने संजय को यह खबर बड़े उत्साह से दी मगर वह सुन कर एकदम खीझ गया और बोला, ‘मैं तो समझ रहा था कि तुम पढ़ीलिखी समझदार लड़की हो. कुछ कंट्रासैप्टिव पिल्स वगैरह इस्तेमाल करती रही होगी. तुम तो आम अनपढ़ औरतों जैसी निकलीं. अब फटाफट किसी मैटरनिटी होम में जा कर एमटीपी करा डालो. बच्चे पैदा करने के लिए और मां बनने के लिए जिंदगी पड़ी है. अगले महीने कुछ मल्टीनैशनल कंपनी के प्रतिनिधि कैंपस सिलैक्शन के लिए आएंगे इसलिए एमटीपी इस सप्ताह करा लो.’

‘‘मैं सन्न रह गई थी संजय की बातें सुन कर. क्या यही सब सुनने के लिए मैं मौडर्न, फौरवर्ड और बोल्ड बनी थी? आज कई साल पहले कालेज में एक विदुषी लेखिका का भाषण का एक वाक्य याद आने लगा, ‘हमें नारी मुक्ति चाहिए, मुक्त नारी नहीं,’ और इन दोनों की स्थितियों में अंतर भी समझ में आ गया.

‘‘मैं ने इस स्थिति में एक प्रख्यात नारी सामाजिक कार्यकर्ता से बात की तो वह बड़ी जोश में बोली कि परिवार के लोगों और युगयुगों से चली आ रही सामाजिक संस्था विवाह की अवहेलना कर के और वयस्क होने तथा विरोध नहीं करने पर भी शारीरिक संबंध बनाना स्वार्थी पुरुष का नारी के साथ भोग करना बलात्कार ही है. इस के लिए वह अपने दल को साथ ले कर संजय के विरुद्ध जुलूस निकालेगी, उस का घेराव करेगी, उस के कालेज पर प्रदर्शन करेगी. इस में मुझे हर जगह संजय द्वारा किए गए इस बलात्कार की स्वीकृति देनी होगी. इस तरह वह संजय को विवाह पूर्व यौन संबंध बनाने को बलात्कार सिद्ध कर के उसे मुझ से कानूनन और सामाजिक स्वीकृति सम्मत विवाह करने के लिए विवश कर देगी अथवा एक बड़ी रकम हरजाने के रूप में दिलवा देगी, मगर इस के लिए मुझे कुछ पैसा लगभग 20 हजार रुपए खर्च करने होंगे. सामाजिक कार्यकर्ता की बात सुन कर मुझे लगा कि मुझे अपनी मूर्खता और निर्लज्जता का ढिंढोरा खुद ही पीटना है और उस के कार्यक्रम के लिए मुझे ही एक जीवित मौडल या वस्तु के रूप में इस्तेमाल होने के लिए कहा जा रहा है.

‘‘इस के बाद मैं ने एक प्रौढ़ महिला वकील से संपर्क किया जो वकील से अधिक सलाहकार के रूप में मशहूर थीं. उन्होंने साफ कह दिया, ‘अगर संजय को कानूनी प्रक्रिया में घसीट कर उस का नाम ही उछलवाना है तो वक्त और पैसा बरबाद करो. अदालत में संजय का वकील तुम से संजय के संपर्क से पूर्व योनि शुचिता के नाम पर किसी अन्य युवक के साथ शारीरिक संबंध नहीं होने के बारे में जो सवाल करेगा, उस से तुम अपनेआप को सब के सामने पूरी तरह निर्वस्त्र खड़ा हुआ महसूस करोगी. मैं यह राय तुम्हें सिर्फ तुम से उम्र में बड़ी होने के नाते एक अभिभावक की तरह दे रही हूं.

‘अगर तुम किसी तरह अदालत में यह साबित करने में सफल भी हो गईं कि यह बच्चा संजय का ही है और संजय ने उसे सामाजिक रूप से अपना नाम दे भी दिया तो जीवन में हरदम, हरकदम पर कानून से ही जूझती रहोगी क्या. देखो, जिन संबंधों की नींव ही रेत में रखी गई हो उन की रक्षा कानून के सहारे से नहीं हो पाएगी. यह मेरा अनुभव है. तुम्हारा एमबीए पूरा हो रहा है. तुम्हारा एकेडैमिक रिकौर्ड काफी अच्छा है. मेरी सलाह है कि तुम अपने को मजबूत बनाओ और बच्चे को जन्म दो. एकाध साल तुम्हें काफी संघर्ष करना पड़ेगा. 3 साल के बाद बच्चा तुम्हारी प्रौब्लम नहीं रहेगा. फिर अपना कैरियर और बच्चे का भविष्य बनाने के लिए तुम्हारे सामने जीवन का विस्तृत क्षेत्र और पूरा समय होगा.’

‘‘‘मगर जब कभी बच्चा उस के पापा के बारे में पूछेगा तो…’ मैं ने थोड़ा कमजोर पड़ते हुए कहा था तो महिला वकील ने कहा था, ‘मैं तुम से कोई कड़वी बात नहीं कहना चाहती मगर यह प्रश्न उस समय भी अपनी जगह था जब तुम ने युगयुगों से स्थापित सामाजिक, पारिवारिक, संस्था के विरुद्ध एक अपरिपक्व भावुकता में मौडर्न तथा बोल्ड बन कर निर्णय लिया था. मगर अब तुम्हारे सामने दूसरे विकल्प कई तरह के जोखिमों से भरे हुए होंगे. क्योंकि प्रैग्नैंसी को समय हो गया है. वैसे अब बच्चे के अभिभावक के रूप में मां के नाम को प्राथमिकता और कानूनी मान्यता मिल गई है. बाकी कुछ प्रश्नों का जवाब वक्त के साथ ही मिलेगा. वक्त के साथ समस्याएं स्वयं सुलझती जाती हैं.’’’

इतना सब कह कर रिया शायद थकान के कारण चुप हो गई. थोड़ी देर चुप रह कर वह फिर बोली, ‘‘मुझे लगता है आज समय वह विराट प्रश्न ले कर खड़ा हो गया है, मगर उस का समाधान नहीं दे रहा है. शायद ऐसी ही स्थिति के लिए किसी ने कहा होगा, ‘लमहों ने खता की थी, सदियों ने सजा पाई,’’’ यह कह कर उस ने बड़ी बेबस निगाहों से मिसेज पाटनकर को देखा. मिसेज पाटनकर किसी गहरी सोच में थीं. अचानक उन्होंने रिया से पूछा, ‘‘संजय का कोई पताठिकाना…’’ रिया उन की बात पूरी होने के पहले ही एकदम उद्विग्न हो कर बोली, ‘‘मैं आप की बहुत इज्जत करती हूं मिसेज पाटनकर, मगर मुझे संजय से कोई मदद या समझौता नहीं चाहिए, प्लीज.’’

‘‘मैं तुम से संजय से मदद या समझौते के लिए नहीं कह रही, पर पिऊ के प्रश्न के उत्तर के लिए उस के बारे में कुछ जानना तो होगा. जो जानती हो वह बताओ.’’

‘‘उस का सिलेक्शन कैंपस इंटरव्यू में हो गया था. पिछले 4-5 साल से वह न्यूयार्क के एक बैंक में मैनेजर एचआरडी का काम कर रहा था. बस, इतना ही मालूम है मुझे उस के बारे में किसी कौमन फ्रैंड के जरिए से,’’ रिया ने मानो पीछा छुड़ाने के लिए कहा. रिया की बात सुन कर मिसेज पाटनकर कुछ देर तक कुछ सोचती रहीं, फिर बोलीं, ‘‘हां, अब मुझे लगता है कि समस्या का हल मिल गया है. तुम्हें और संजय को अलग हुए 6-7 साल हो गए हैं. इस बीच में तुम्हारा उस से कोई संबंध तो क्या संवाद तक नहीं हुआ है.

‘‘उस के बारे में बताया जा सकता है कि वह न्यूयार्क में रहता था. वहीं काम करता था. वहां किसी विध्वंसकारी आतंकवादी घटना के बाद उस का कोई पता नहीं चल सका कि वह गंभीर रूप से घायल हो कर पहचान नहीं होने से किसी अस्पताल में अनाम रोगी की तरह भरती है या मारा गया. अस्पताल के मनोचिकित्सक को यही बात पिऊ के पापा के बारे में बता देते हैं. वे अपनेआप जिस तरह और जितना चाहेंगे पिऊ को होश आने पर उस के पापा के बारे में अपनी तरह से बता देंगे और आज से यही औफिशियल जानकारी होगी पिऊ के पापा के बारे में.’’

‘‘लेकिन जब कभी पिऊ को यह पता चलेगा कि यह झूठ है तो?’’ कह कर रिया ने बिलकुल एक सहमी हुई बच्ची की तरह मिसेज पाटनकर की ओर देखा तो वे बोलीं, ‘‘रिया, वक्त अपनेआप सवालों के जवाब खोजता है. अभी पिऊ को नर्वस ब्रैकडाउन से बचाना सब से बड़ी जरूरत है.’’

‘‘ठीक है, जैसा आप ठीक समझें. पिऊ ठीक हो जाएगी न, मिसेज पाटनकर?’’ रिया ने डूबती हुई आवाज में कहा.

‘‘पिऊ बिलकुल ठीक हो जाएगी, मगर एक शर्त रहेगी.’’

‘‘क्या, मुझे आप की हर शर्त मंजूर है. बस, पिऊ…’’

‘‘सुन तो ले,’’ मिसेज पाटनकर बोलीं, ‘‘अस्पताल से डिस्चार्ज हो कर पिऊ स्वस्थ होने तक मेरे पास रहेगी और बाद में भी तुम्हारी अनुपस्थिति में वह हमेशा अपनी दादी के पास रहेगी. बोलो, मंजूर है?’’ उन्होंने ममतापूर्ण दृष्टि से रिया को देखा तो रिया डूबती सी आवाज में ही बोली, ‘‘आप पिऊ की दादी हैं या नानी, मैं कह नहीं सकती. मगर अब मुझे लग रहा है कि मेरे कुछ मूर्खतापूर्ण भावुक लमहों की जो लंबी सजा मुझे भोगनी है उस के लिए मुझे आप जैसी ममतामयी और दृढ़ महिला के सहारे की हर समय और हर कदम पर जरूरत होगी. आप मुझे सहारा देंगी न? मुझे अकेला तो नहीं छोड़ेंगी, बोलिए?’’ कह कर उस ने मिसेज पाटनकर का हाथ अपने कांपते हाथों में कस कर पकड़ लिया.

‘‘रिया, मुझे तो पिऊ से इतना लगाव हो गया है कि मैं तो खुद उस के बिना रहने की कल्पना कर के भी दुखी हो जाती हूं. मैं हमेशा तेरे साथ हूं. पर अभी इस वक्त तू अपने को संभाल जिस से हम दोनों मिल कर पिऊ को संभाल सकें. अभी मेरा हाथ छोड़ तो मैं यहां से जा कर मनोचिकित्सक को सारी बात बता सकूं,’’ कह कर उन्होंने रिया के माथे को चूम कर उसे आश्वस्त किया, बड़ी नरमी से अपना हाथ उस के हाथ से छुड़ाया और डाक्टर के कमरे की ओर चल पड़ीं.

अभिषेक बच्चन से लेकर करिश्मा कपूर तक, इन बौलीवुड हस्तियों की अधूरी रही प्रेम कहानी

फिल्म ‘जांबाज’ का मशहूर गाना, ‘हर किसी को नहीं मिलता यहां प्यार जिंदगी में, खुशनसीब है वो जिन को है मिली ये बहार जिंदगी में…’ यह गाना फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े कई नामचीन लोगों पर पूरी तरह फिट बैठता है. जिन्होंने नाम, शोहरत, पैसा सबकुछ कमाया लेकिन प्यार के मामले में असफल रहे.

कुछ सितारों ने शादी ही नहीं की, तो कुछ लोगों ने अपने प्यार के नाम पर ही पूरी जिंदगी निकाल दी। और तो और कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने प्यार में असफलता के बाद आत्महत्या तक कर ली. इसलिए तो प्यार के मामले में कहा जाता है कि यह बीमारी ऐसी है जो लाइलाज है.

किसी शायर ने खूब कहा है,’यह इश्क नहीं आसां बस इतना समझ लीजिए, एक आग का दरिया है और डूब के जाना है…’ सब से पहले तो सच्चा प्यार मिलना ही आसान नहीं होता और अगर मिल जाए तो उसे संभालना उस से भी ज्यादा मुश्किल होता है.

इस बात का एहसास तब होता है जब हमारा सच्चा प्यार हमें हमेशा के लिए छोड़ कर चला जाता है और हमें एहसास होता है कि हम जिस से बहुत ज्यादा प्यार करते थे, जिस के साथ घंटों बातें करते थे वह हमारी जिंदगी से हमेशा के लिए दूर चला गया है।

बौलीवुड के सुपरस्टार सलमान खान इस बात के जीताजागता उदाहरण हैं जिन्होंने प्यार तो कई बार किया, लेकिन उस को सही ढंग से निभा नहीं पाए, फिर चाहे वह ऐश्वर्या राय हो, कैटरीना कैफ या संगीता बिजलानी ही.

सलमान खान अच्छे ऐक्टर, अच्छे भाई, अच्छे बेटे तो साबित हुए लेकिन प्यार के नाम पर असफल साबित हुए, जिस के चलते सलमान खान ने अभी तक शादी नहीं की.

बौलीवुड में कई और ऐसे सितारे हैं जिन्होंने प्यार में असफलता के चलते अपना जीवन अकेले ही गुजरने का फैसला किया लेकिन अपने प्यार को वह दिल से नहीं निकाल पाए . पेश हैं ऐसे ही कुछ सितारों पर एक नजर :

दिलीप कुमार कामिनी कौशल : फिल्मों में दिखाए जाने वाले प्यार में ज्यादातर प्यार को मंजिल मिल जाती है, लेकिन हकीकत में इस के विपरित होता है। किसी को प्यार में नाकामी मिलती है तो किसी को धोखा। ट्रैजेडी किंग दिलीप कुमार हीरोइन कामिनी कौशल से बहुत प्यार करते थे लेकिन कामिनी कौशल के घर वाले इस प्यार के खिलाफ थे इसलिए दिलीप कुमार और कामिनी कौशल का प्यार असफल रहा।

धर्मेंद्र और मीना कुमारी : इन दोनों का गहरा प्यार था। मीना कुमारी ने ही धर्मेंद्र को इंडस्ट्री में लाया था, लेकिन चूंकि पहले से ही धर्मेंद्र शादीशुदा और बच्चों के बाप थे इसलिए इस प्यार को कोई सफलता नहीं मिली। मीना कुमारी इस सदमे को बरदाश्त नहीं कर पाई थीं और इसीलिए वह शराब में डूब गई थीं।

देव आनंद और सुरैया : इन का प्यार भी जगजाहिर था। उस दौरान सुरैया सफल हीरोइन थी जिस वजह से देवानंद को बहुत फायदा भी मिला था अपना अभिनय कैरियर संवारने में।

लेकिन चूंकि सुरैया मुसलिम और देव आनंद हिंदू थे, इस वजह से यह प्यार भी असफल रहा.

नरगिस और राज कपूर : इसी तरह नरगिस और राज कपूर की प्रेम कहानी भी चर्चित प्रेम कहानी में से एक थी। राज कपूर शादीशुदा थे इसलिए यह प्यार सफल नहीं हो पाया।

परवीन बौबी महेश भट्ट : मशहूर अभिनेत्री परवीन बौबी महेश भट्ट के प्यार में पागल थी। उस दौरान महेश भट्ट शादीशुदा थे और परवीन बौबी टौप की हीरोइन थीं। इस वजह से इन के प्यार को कोई मंजिल नहीं मिली और इस दौरान परवीन बौबी मानसिक बीमारी से ग्रस्त हो गई थीं। इस बीमारी के चलते ही वे गुजर गई थीं।

करिश्मा कपूर और अभिषेक बच्चन : इन की प्रेमकहानी 7 सालों तक चली। करिश्मा कपूर और अभिषेक बच्चन की सगाई भी हुई थी लेकिन बाद में यह शादी टूट गई और प्यार भी नाकाम रहा.

रवीना टंडन और अक्षय कुमार : इन की भी प्यार और सगाई हो गई थी लेकिन यह प्यार और सगाई नाकाम रही। अक्षय कुमार का शिल्पा शेट्टी के साथ भी सीरियस वाला प्यार हुआ था लेकिन अक्षय कुमार ने शिल्पा शेट्टी को धोखा दे दिया.

सूरज पंचोली और जिया खान : सूरज पंचोली के प्यार में डूबी जिया खान अपने प्यार में असफलता के चलते आत्महत्या कर ली थी.

ऐसे में यह कहना गलत न होगा कि पूरी दुनिया को प्यार का पाठ पढ़ाने वाले फिल्मी सितारे खुद ही सच्चे प्यार को तरस गए. जिन को हजारोंकरोड़ों लोग चाहने वाले हैं लेकिन वे जिस को चाहते थे उसे पाने में नाकाम रहे.

एकतरफा प्यार

बौलीवुड में कई ऐसे सितारे हैं जिन का प्यार एकतरफा था, जैसे करण जौहर ट्विंकल खन्ना से प्यार करते थे. लेकिन ट्विंकल खन्ना सिर्फ दोस्त मानती थी. इसलिए यह प्यार असफल रहा।

मशहूर ऐक्टर व डाइरैक्टर गुरुदत्त वहीदा रहमान से प्यार करते थे लेकिन वहीदा रहमान शादीशुदा थी, जिस के चलते प्यार में असफलता के बाद उन्होंने आत्महत्या कर ली थी।

संजीव कुमार हेमा मालिनी से बहुत प्यार करते थे लेकिन हेमा मालिनी धर्मेंद्र से प्यार करती थी, इसलिए हेमा मालिनी के न बोलने पर, खबरों की मानें तो उस के बाद ही संजीव कुमार को दिल का दौरा पड़ा था।

इसी तरह अमिताभ बच्चन और रेखा के बीच लव स्टोरी आज भी जगजाहिर है, जिस में रेखा ने तो अपने प्यार का इजहार खुल कर किया, लेकिन अमिताभ बच्चन ने कभी भी खुल कर रेखा को ले कर बात नहीं की और न ही कभी प्यार का इजहार किया।

डाइरैक्टर संजय लीला भंसाली भी किसी लड़की से प्यार करते थे जो इंडस्ट्री के बाहर की थी। उस से शादी न होने की वजह से संजय लीला भंसाली अभी तक कुआंरे हैं।

मशहूर डांसर कल्पना अय्यर खलनायक अमजद खान से प्यार करती थी जिस के लिए उन्होंने बाद में शादी नहीं की.

सुलक्षणा पंडित जो पहले की मशहूर हीरोइन रहीं, उन्होंने संजीव कुमार से सच्चा प्यार किया था। संजीव कुमार की मौत के बाद वे मानसिकतौर पर बीमार हो गई थीं और सुलक्षणा पंडित ने फिर कभी शादी नहीं की.

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