शादी पहले या कैरियर, कौनसा औप्शन लाइफ के लिए है सही?

हरेक के सामने शादी करने का सवाल कभीनकभी आता ही है. आजकल की भागती जिंदगी और कैरियर की आपाधापी में यह सवाल और भी अहम हो गया है कि शादी करने की उम्र क्या हो.

शादी करने की सरकारी और कानूनी उम्र के इतर हमारे देश में आमतौर पर 20 से 25 साल की उम्र को शादी करने के लिए सही समझ जाता है. बदलती सोच के मद्देनजर जहां कुछ लोग 25 से 30 साल की उम्र को सही उम्र बताने लगे हैं, वहीं 27 साल के बृजेश का कहना है कि अब पैमाना कुछ और हो गया है. वह कहता है कि लोग सोचते हैं कि 32 से 35 साल के बीच शादी कर लेंगे. दरअसल, 20 से 30 साल की उम्र तक तो इंसान अपने कैरियर को सैट करने में ही लगा रहता है. तब शादी के लिए सोच पाना उस के लिए मुश्किल होता है.

सोचने का तरीका सब का अलग होता है. एक प्राइवेट फर्म में जौब करने वाले सिबेस्टीन का कहना है कि कैरियर की महत्त्वाकांक्षा खत्म नहीं होती. ऐसे में शादी के लिए सही उम्र वही है, जब इंसान मानसिकरूप से उस के लिए तैयार हो. समाज ने या फिर आप के पेरैंट्स ने शादी के लिए क्या उम्र तय कर रखी है, इस से कोई मतलब नहीं. बात यह है कि जब तक कोई मानसिकरूप से इस के लिए तैयार न हो शादी नहीं करनी चाहिए.

अपनी सोच के मुताबिक बिंदेश्वर कुमार, जो कालेज में लैक्चरर हैं, ने 34 साल की उम्र में शादी की. अब उन की एक बेटी है और खुशहाल छोटा सा परिवार है, लेकिन वे मानते हैं कि देर से शादी करने में कभीकभी वह नहीं मिल पाता जो शायद आप ने सोचा होता है. कई बार अच्छे विकल्प मिल जाते हैं, तो कई बार ठीकठाक विकल्प भी मिलना मुश्किल हो जाता है. मेरे कई दोस्त हैं, महिला भी और पुरुष भी, जिन्हें अब सही मैच नहीं मिल पा रहा है.

जरूरत नए नजरिए की

नई पीढ़ी कुछ भी सोचे, लेकिन समाज इस मामले में थोड़ा अलग है. यहां वक्त से शादी न हो, तो लोग बातें बनाने लग जाते हैं. ऐसे में मातापिता कितनी भी नई सोच के और व्यावहारिक क्यों न हों, उन्हें आखिरकार रहना तो समाज में ही है. मुंबई में एक मल्टीनैशनल कंपनी में मैनेजर के पद पर काम कर रहे अनीस अहमद कहते हैं, ‘‘मैं जब भी औफिस से घर जाता हूं तो लगता है कि कहीं आज फिर शादी को ले कर नई टैंशन न खड़ी हो. इस से घर के सुकून में खलल पड़ता है, साथ ही मातापिता की सेहत पर भी असर पड़ता है. उन्हें चिंता रहती है कि बच्चों की शादी नहीं हो रही है. गाहेबगाहे उन्हें लोगों की बातें सुनने को मिलती हैं.’’

इस तरह शादी लायक उम्र होने के बाद इंसान पर शादी के लिए भावनात्मक रूप से भी काफी दबाव होता है.

औप्शन शादी का

वैसे शादी की बहस के बीच आजकल एक और चलन परवान चढ़ रहा है और वह है लिवइन रिलेशनशिप का यानी शादी से पहले साथसाथ रहना, बृजेश जैसे जवानों का इस चलन में चाहे ज्यादा विश्वास न हो, लेकिन यह उसी माहौल में हो रहा है जिस का वे भी हिस्सा हैं.

बृजेश कहता है, ‘‘शहरों में ऐसे युवाओं की संख्या बढ़ रही है, जिन्हें लिवइन रिलेशनशिप का चलन पसंद आ रहा रहा है. न सिर्फ यह ट्रैंडी है, बल्कि शादी जैसी बाध्यता भी इस में नहीं है. लेकिन भारतीय समाज में इस की स्वीकार्यता एक बड़ा मुद्दा है.’’

लिवइन रिलेशन, दरअसल शादी का एक प्रारूप जैसा है, जिस में शादी का बंधन नहीं, बल्कि गठबंधन होता है, जिसे कोई पार्टनर जब चाहे तोड़ दे.

Parenting Tips : बच्चों को देना चाहते हैं अच्छी परवरिश, तो मातापिता के लिए ये टिप्स हैं बड़े काम की

मोबाइल, इंटरनैट और बदलते लाइफस्टाइल के बीच बच्चों की सही परवरिश आसान नहीं रह गई है. बच्चे सब से पहले अपने मातापिता से ही सीखते हैं. आप का व्यवहार, आप की आदतें बच्चे सीखेंगे और वैसा ही दूसरों के साथ करेंगे क्योंकि यह लाइफटाइम के लिए उन की आदत बन जाएगी, जो उन के फ्यूचर के लिए ठीक नहीं होगी. इसलिए अगर अच्छे मातापिता बनना है और बच्चों की परवरिश ठीक ढंग से करनी है तो आज से ही अपनी इन आदतों को बदल लें:

जराजरा सी बात पर डांटने से बचें

कई बार बच्चों पर छोटीछोटी बातों पर चिल्लाना या उन्हें डांटना आप की आदत बन जाती है. पढ़ाते या कुछ समझते वक्त अगर बच्चे को कुछ सम?ा नहीं आ रहा है तो डांटने के बजाय उसे प्यार से समझाएं क्योंकि ऐसा करने से बच्चा सवाल पूछने से डरेगा नहीं वरना आप का उस पर छोटीछोटी बातों पर चिल्लाना उसे गुस्सैल व चिड़चिड़ा बना सकता है.

खुद फैसला करने दें

बच्चों को आजादी देनी चाहिए. इस से उन में सोचनेसम?ाने का विकास होता है. बच्चों को जब आप काम की आजादी देंगे तो उन की क्रिएटिविटी में निखार आएगा. छोटीछोटी बातों में अपनी राय की आदत में बदलाव लाएं. जब बच्चे आप से अपनी समस्या शेयर करें तब उन का उचित मार्गदर्शन करें क्योंकि जब बच्चे अपनी प्रौब्लम्स आप से शेयर करेंगे तब आप दोनों के बीच की बौंडिंग भी अच्छी होगी.

अपनी नाराजगी को न बताएं

कभीकभी ऐसा भी होता है कि बच्चों की कुछ आदतें पेरैंट्स को अच्छी नहीं लगतीं. ऐसी स्थिति में उन्हें भलाबुरा न बोलें. उन पर बातबात पर दोष न डालें. अच्छी पेरैंटिंग का मतलब यह होता है कि आप कितना भी गुस्सा

या नाराज क्यों न हो, बच्चों के सामने यह बात जाहिर नहीं होनी चाहिए. इस के लिए सही समय का इंतजार करें. तब उन्हें कुछ समय निकाल कर समझाएं.

दूसरे बच्चों से कंपेयर न करें

हर बच्चे की अपनी खासीयत होती है. इसलिए कभी भी अपने बच्चे को दूसरे बच्चों से कंपेयर न करें. इस से कई बार बच्चे में आत्मविश्वास की कमी आती है. हो सकता है कि आप का बच्चा किसी एक काम में दूसरों से अच्छा न कर रहा हो लेकिन कोई ऐसी भी ऐक्टिविटी होगी, जिस में वह सब से आगे होगा. इसलिए उसे उस की इस खासीयत के बारे में बताएं और उसे उस फील्ड में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें.

हर मांग को न करें पूरी

आजकल घरों में 1 या 2 ही बच्चे होते हैं जिस के कारण हर बच्चे को हर समय पूरा अटैंशन देते और उस की हर मांग को पूरा किया जाता है जिस के चलते वह कई बार जिद्दी हो जाता है. बच्चों की मांग से पहले ही उन की इच्छा पूरी करना उन्हें बिगाड़ सकता है. कई मातापिता ऐसे होते हैं कि बच्चे कुछ भी मांगें तुरंत ला कर दे देते हैं. ऐसे में ध्यान रखना चाहिए कि यह आदत बच्चों पर गलत प्रभाव डाल सकती है. इसलिए जब भी कुछ लाएं तो इस बात का खयाल रहे कि बच्चे को उस की जरूरत होनी चाहिए या उसे पहले कुछ करने के लिए कहें. उस के बाद ही यह चीज मिलेगी यह उसे बता दें ताकि उसे एहसास रहे कि मांग हर बार पूरी  नहीं होगी.

कम करें मोबाइल, इंटरनैट का इस्तेमाल

आजकल मोबाइल, इंटरनैट के जमाने में बच्चे ज्यादातर वक्त स्मार्टफोन और अन्य गैजेट्स के साथ बिताने लगे हैं. ऐसे में उन की आंखों और मैंटल हैल्थ पर असर पड़ता है. उन का विकास भी प्रभावित होता है. इसलिए उन्हें एक निश्चित समय सीमा के लिए ही मोबाइल एवं इंटरनैट का इस्तेमाल करने दें और गेम्स आदि खेलने के लिए उन्हें आउट डोर गेम्स खलने की सलाह दें ताकि वे शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहें, साथ ही जो नियम बच्चों के लिए बनाएं उन्हें खुद भी अपनाएं.

धैर्य की सब से ज्यादा जरूरत

पेरैंट्स को चाहिए कि वे अपने बच्चों को धैर्य रखना और शांत रहना सिखाएं. डिजिटल स्क्रीन के सामने ज्यादा समय बिताने के कारण बच्चे चिड़चिड़े हो रहे हैं. वे अपना धैर्य खो रहे हैं क्योंकि मोबाइल और इंटरनैट ने हर चीज तुरंत होने का आदी बना दिया है. किसी भी काम में थोड़ी भी देर उन्हें बरदाश्त नहीं. उन्हें हर चीज चंद उंगलियों को घुमाने से तुरंत मिल रही है. यदि वह नहीं मिल रही तो गुस्सा भी बहुत जल्दी आ रहा है इसलिए मातापिता की जिम्मेदारी है बच्चों को बताएं कि धैर्य कभी नहीं खोना चाहिए. जीवन में सफलता पाने के लिए धैर्य एक पूंजी की तरह काम करता है. अगर बच्चे में शुरू से ही यह गुण डाला जाए तो वह आगे चल कर काफी सफल हो सकता है और यह आदत उसे विपरीत परिस्थितियों से निकलने में भी मदद करेगी.

नखरे को प्यार न समझें

कई बार जब बच्चे जिद करते हैं तो मातापिता उन्हें वह करने की छूट दे देते हैं जो बच्चे करना चाहते हैं. इसलिए कभी ऐसी सिचुएशन आए तो बच्चे को प्यार से सम?ाना चाहिए. उस के नखरे को कभी प्यार नहीं सम?ाना चाहिए. अच्छी पेरैंटिंग के लिए भावनाओं पर काबू रखना जरूरी होता है. इस से बच्चा सही और गलत के बीच का अंतर सीख पाता है.

खुद में बदलाव लाएं

अच्छी पेरैंटिंग के लिए कई आदतों मातापिता को खुद भी छोड़ देनी चाहिए. इससे बच्चों का भविष्य शानदार हो सकता है. बच्चों पर आरोप मढ़ने से अच्छा है कि आप अपनी छोटीछोटी बुरी आदतों को छोड़ दें और उन की परवरिश पर ध्यान लगाएं. बच्चों की अच्छी परवरिश करनी है तो पेरैंट्स को उनके साथ ऐसी चीजें कभी नहीं करनी चाहिए जो उन के दिलदिमाग पर गहरा असर डाल सकती हैं.

आप का पेरैंटिंग स्टाइल बच्चे के वर्तमान और भविष्य को बहुत हद तक निर्धारित करता है. आप किस तरह से बच्चों की परवरिश कर रहे हैं, उन के किन सवालों के क्या जवाब दे रहे हैं और उन की बदमाशियों और शरारतों पर किस तरह से रिएक्ट कर रहे हैं, यह बच्चों के कैरेक्टर को सही ढंग से बनाने में बहुत बड़ा योगदान निभाता है. आप का पेरैंटिंग स्टाइल सिर्फ आप के बच्चे ही नहीं भविष्य में बच्चे के बच्चे की परवरिश में भी बड़ा योगदान निभाएगा क्योंकि आप का बच्चा आज जो आप से सीखेगा भविष्य में अपने बच्चों पर भी वही लागू करेगा.

फैमिली के लिए बनाएं हेल्दी और टेस्टी ज्वार वड़ा, फौलो करें ये टिप्स

बदलते मौसम में हेल्दी चीजें खानी चाहिए. हालांकि जब बात टेस्ट की आती है तो कई बार लोग हेल्थ की आती है तो लोग अनदेखा कर देते हैं. इसीलिए आज हम आपको ज्वार वड़ा की रेसिपी के बारे में बताएंगे, जिसे आप बदलते मौसम में आसानी से बनाकर अपनी फैमिली को खिला सकती हैं.

हमें चाहिए

–  3/4 कप बेसन

–  1 कप ज्वार आटा

–  1/2 कप दही

–  1 हरीमिर्च

–  1 कली लहसुन

–  1 छोटा टुकड़ा अदरक

–  1 कप पालक बारीक कटा

–  तलने के लिए तेल

–  नमक स्वादानुसार.

बनाने का तरीका

एक बाउल में बेसन, ज्वार आटा, दही व नमक मिला लें. इसी में लहसुन, अदरक व हरीमिर्च पीस कर डालें. अब पालक और 1/2 कप पानी आटे में अच्छी तरह मिला कर मिक्स कर लें. छोटेछोटे वड़े बना कर कड़ाही में तेल गरम कर तलें और फिर सौस के साथ गरमगरम परोसें.

प्रैशर प्रलय: पार्टी में क्या हुआ था

‘‘प्रैशर आया?’’ हाथी जैसी मस्त चाल से झूमते हुए अंदर आते ही जय ने पूछा. ‘‘अरे जय भैया आप को ही आया लगता है, जल्दी जाइए न वाशरूम खाली है,’’ प्रश्रय की छोटी बहन प्रशस्ति जोर से हंसी.

‘‘क्यों बिगाड़ता रहता है जय मेरे बेटे का सुंदर नाम. पहले ढंग से बोल प्रश्रय…’’ नीला, बेटे के नर्सरी के दोस्त संजय को आज भी दोस्त का सही नाम लेने के लिए सता कर खूब मजे लेती. बचपन में जय तोतला था तो उस के मुंह से अलग ही नाम निकलता. धीरेधीरे तो बोल जाता पर जल्दी में कुछ और ही बोल जाता. अब तो उस ने प्रश्रय को पै्रशर ही बुलाना शुरू कर दिया. अमूमन वह सीरियस बहुत कम होता. सीरियस होता तो भी प्रैशर सिंह ही पुकारता और प्रश्रय उसे तोतला. ‘‘अरे आंटीजी छोड़ो भी, कितनी बार कहा आसान सा नाम रख दो. इतना मुश्किल नाम क्यों रख दिया. अब हम ने सही नाम तो रख दिया प्रैशर सिन्हा… हा… हा… अरे मोदीजी की क्या खबर है. कुछ पता भी है, आज क्या नया इजाद कर डाला?’’

‘‘क्या?’’ सब का मुंह खुल गया, फिर कोई नई ‘बंदी’, ‘नोटबंदी’? सब सोच ही रहे थे कि वह मोदीजी… मोदीजी कहते हुए किचन में चला आया. ‘‘ओह… क्या जय भैया…’’ सब भूल ही जाते जय प्रश्रय की नईनवेली पत्नी मुदिता को मोदीजी कहना शुरू किया है.

‘‘अरे मुदिता भी नहीं कह पाता, सिंपल तो है. तो मोदीजी क्या भाभी ही कहा कर… कोई और भाभी तो है नहीं.’’ ‘‘मैं तो भैया मोदीजी ही कहूंगा, रोज नया ही कुछ देखने को मिल जाता है. कुछ नया फिर किया?’’ ‘‘किया है न तभी तो स्कूटी से प्रश्रय साथ दूध लेने गई है. बना रही थी हलवा उस में पानी इतना डाला कि वह लपसी बन गया. अब उसे सुधार कर फटाफट खीर बनाने का प्रोग्राम है. लो आ गए दोनों…’’ नीला मुसकरा कर बोलीं.

‘‘हमारे भैया भी तो महा कंजूस… कुछ वैस्ट नहीं करने देते…’’ ‘‘राम मिलाई जोड़ी… आगे नहीं बकूंगा वरना प्रैशर सिन्हा को प्रैशर आ जाएगा. बहुत मारेगा फिर…’’ कहते हुए उस ने प्रशस्ति के हाथ पर जोर से ताली मारी, हंसा और फिर उंगली से उसे चुप रहने का इशारा किया.

‘‘जल्दी भाभी… आप की नई ईजाद डिश ‘एग प्लस’ वह आमलेट में ब्रैड की फिलिंग वाले यम्मी नाश्ते से तो हमारा अभी आधा पेट ही भरा,’’ प्रशस्ति ने जानबूझ कर जबान होंठों पर फिराई, ‘‘आप चूक गए जय भैया उस स्पैशल नाश्ते को…’’ बहन प्रशस्ति छेड़ कर मुसकरा उठी. ‘‘क्याक्या वह ब्रैड में अंडे की स्टफिंग तो खाई है पर अंडे में ब्रैड की स्टफिंग? देखा तश्तरी, मैं ने सही नाम ही दिया है मोदीजी नमस्ते, मेरे लिए तो जरूर, जल्दी…’’ उस ने पेट सहलाते हुए भूखा होने का एहसास दिलाया.

मुदिता ने हंसते हुए प्रतिक्रिया दी, ‘‘मैं अभी सबकुछ, आप के लिए भी लाई…’’ और फिर किचन में चली गई. ‘‘क्यों मजाक बनाता है मेरी नईनवेली का तोतले? वह बुरा नहीं मानती. फिर इस का मतलब क्या?’’ प्रश्रय ने उस की पीठ पर हंसते हुए एक धौल जमा दी.

‘‘क्यों भई, प्रैशर सिन्हा तो प्रैशर में आ गया. तश्तरी तू उठ, उसे ठंडा हो कर बैठने

दे ढक्कन…’’ ‘‘लो अब एक और नामकरण मेरा… क्या है भैया,’’ वह रूठते हुए बोली.

‘‘ठीक ही तो है पर्यायवाची ही तो है तश्तरी का ढक्कन,’’ प्रश्रय हंस कर उसे सरकाते हुए बैठ गया.

‘‘यही तो काम होता है तश्तरी का,’’ दोनों हंसने लगे तो 15 साल की प्रशस्ति पीछे जा कर दोनों को हलकेहलके घूंसे बरसाने लगी. ‘‘अरे, रुकरुक ढक्कन… देख प्रैशर की तो डाई उतरने लगी है,’’ जय उस के बालों को निहारते हुए उन पर हाथ फिराने लगा.

‘‘अरे यार, मैं डाई लगाता कहां हूं जो छूटने लगेगी… पागल है क्या?’’ वह थोड़ा हैरानपरेशान हुआ, नवेली बहू मुदिता भी ध्यान लगा कर सुनने जो लगी थी. ‘‘बड़ी मार खाएगा, मेरी इज्जत का फालूदा क्यों निकालने पर लगा रहता है?’’

‘‘लो भई, प्रैशर सिन्हा तो जरा से में प्रैशर में आ गए.’’ ‘‘अबे समझ न, पैदा ही अच्छी डाई लगवा कर हुआ था, ऊपर वाले के सैलून से. अब और कितने सालों चलेगी आखिर. 30 का तू होने को आया…’’

‘‘ओए तू कितने का होने आया स्वीट सिक्सटीन?’’ वह चिढ़ कर बोला. ‘‘तुझे भी पता है शक्ल से तो स्वीट सिक्सटीन ही लगता है और दिल से ट्वैंटी वन और दिमाग से फोर्टी फोर…’’ कौलर ऊंचा करते हुए अकड़ से बोला.

‘‘मुझे तो तू हर तरह से फोर्टी फोर नहीं, फोरट्वैंटी लगता है.’’ ‘‘भई वकालत क्या यों ही चल जाएगी. इसीलिए तो ये विस्कर्स भी सफेद कलर कर रखे हैं कि लोग थोड़ा अनुभवी वकील समझें… वैसे मुझे तो तुझ से बढि़या डाई लगा कर भेजा है कुदरत ने और फिर प्रैशर सिन्हा तुझ से छोटा भी तो हूं,’’ बात मुदिता तक पहुंचाने के लिए वह तेज स्वर में बोला.

‘‘अच्छा?’’ मुदिता नाश्ते की ट्रे के साथ वहीं आ गई थी.

‘‘अच्छा क्या… केवल 4 दिनों का ही अंतर है महाराज. 1 ही महीना 1 ही साल दोनों पैदा हुए हैं…’’

‘‘तू फिर प्रैशर में आ गया, मजाक में भी सीरियस…’’ उस ने ऐसा चेहरा बनाया कि सभी हंस पड़े. फिर नाश्ते के लिए टेबल पर जा बैठे. मुदिता फिर कुछ लाने किचन में चली गई. तभी मुदिता का टेबल पर रखा मोबाइल बजने लगा.

‘‘देखना किस का है प्रश्रय… उठा लो, मैं आई.’’

‘‘दे भई,’’ प्रश्रय ने उसे मोबाइल पास करने को कहा. ‘‘गदाधर भीम…’’ कहते हुए उस ने मुसकरा कर मोबाइल उसे थमा दिया. मुदिता की बहन मुग्धा के नाम का सरलीकरण उस ने यही कर दिया था.

प्रश्रय ने उसे उंगली से चुप रहने का इशारा किया और बात करने लगा. ‘‘नमस्ते जीजू, जीजी कहां है? उस ने अपना मोबाइल जो मुझे दिया फिर उस में कुछ टाइप हो कर मेरे सिर को चला गया. अब मैं

क्या करूं. मेरा मूड बहुत औफ है जीजू, दीजिए उन को… अपना घटिया फोन मुझे हैल्प के लिए थमा दिया.’’ ‘‘देता हूं 1 सैकंड… किचन में है… पर अब क्या टाइप हो कर सैंड हो गया?’’

‘‘जीजू वह कैमिस्ट्री सर को मैं ने प्रश्न भेजने के लिए लिखा था ‘यू सैंड’

तो ई की जगह ए टाइप हो गया. फिर मैं ने ‘सौरी’ लिखा तो एस की जगह डब्ल्यू सैंड हो गया.’’ ‘‘क्याक्या मतलब…’’

‘‘यू सांड…वरी सर… अब क्या करूं जीजी के फोन ने तो कहीं का न छोड़ा… सर बहुत गुस्सा हो गए,’’ और उस का रोना शुरू हो गया. ‘‘अरे कौन वह विवेक शर्मा ही पढ़ाता है न तुम्हें…यहीं तो रहता है. मैं बात कर लूंगा. कोई गुस्सा नहीं रहेगा. अब रोना बंद करो और लो जीजी से बात करो.’’

‘‘सांड… वरी…’’ जय की हंसी छूट गई. वह पेट पकड़े हंसे जा रहा था. ‘‘मरवाएगा क्या पागल?’’

‘‘इसे बताया ही क्यों,’’ नीला के होंठों पर भी मुसकान खेलने लगी. ‘‘पहले ही बोला था मुझे दिया होता तो अब तक ठीक कर दिया होता,’’ जय किसी तरह हंसी कंट्रोल करते हुए बोला.

‘‘छांट कर ससुराल ढूंढ़ी है. सभी कलाकार हैं. हा… हा…’’ ‘‘ज्यादा मत हंस. तेरी भी शादी छांट कर ही करवाऊंगा, तोतले… जहां लड़की का तो ऐसा मुश्किल नाम होगा कि तू नाम ही सोचता रह जाएगा,’’ प्रश्रय जोर से हंसा.

‘‘ठीकवीक नहीं करना. से नया स्मार्ट फोन चाहिए अपने बर्थडे पर पहले ही वादा कर चुकी हूं. इसी 24 को तो है संडे को… मम्मी ने सब को बुलाया है. आप को भी आना है जय भैया… आंटी को भी लाना है,’’ मुदिता भी आ कर खाली सीट पर बैठ गई. ‘‘अरे बिलकुल. आप की आज्ञा शिरोधार्य.’’

‘‘यार, इतना महंगा फोन अभी बच्ची ही तो है… 11वीं क्लास कुछ होती है?’’ ‘‘लो प्रैशर सिन्हा का प्रैशर फिर बढ़ गया… अच्छा ही तो है रोजरोज गदाधर सायरन तुझे नहीं सुनना पड़ेगा.’’

‘‘अरे इतनी क्या कंजूसी. एक ही साली है, तेरी शादी के बाद उस का पहला जन्मदिन है. सही तो वादा किया है मुदिता ने,’’ नीला मुसकराई.

रविवार को मुदिता के घर जन्मदिन की खूब चहलपहल हो रखी थी. प्रश्रय और जय परिवार के साथ ठीक समय पर पहुंच गए. बर्थडे गर्ल मुग्धा बाकी मेहमानों को छोड़ उन की ओर लपकी और गिफ्ट का डब्बा मुदिता के हाथ से खींच लिया, ‘‘मेरा मोबाइल

है न…’’ ‘‘अरे रुकरुक, पहले सब से मिल… हम सब को विश तो कर लेने दे…’’

‘‘ओकेओकेओके… नमस्तेनमस्ते आंटी, आंटीजी, जीजू भैया दी… थैंकयू… थैंकयू… थैंकयू सब को,’’ उस ने गिफ्ट लेनेके उतावलेपन में इतनी जल्दीजल्दी कहा कि सभी हंस पड़े. ‘‘और मोहित कैसे हो यार? कैसी चल रही है तुम्हारी फाइनल ईयर की पढ़ाई? कभी तो मिलने आ जाया करो घर. कब हैं ऐग्जाम्स?’’ मोहित मुदिता का भाई जिसे जय मिसफिट, कभी लाल हिट कहता, घर भर में उसे वही तेज दिमाग व गोरा लगता था.

‘‘अरे छोड़ यार लाल हिट, सारे प्रश्न कौकरोचों को तुझे तो मार ही डालना है… आज के दिन भी पढ़ाई की बातें ही करेगा… बता आंटीअंकल कहां हैं? दोनों दिख नहीं रहे? नमकमिर्च… पेपरसाल्ट, मेरे अंकलआंटी तेरे मम्मीपापा रौनक कुछ कम लग रही है. मजा नहीं आ रहा,’’ जय ने कुतूहल से पूछा. तभी दोनों आ गए… सक्सेनाजी दोनों हाथों से पैंट संभालने में लगे हुए थे और गोलमटोल मैडम ने केक का डब्बा और एक पैकेट थामा हुआ था. सब से नमस्तेनमस्ते हुई पर दोनों की तूतू मैंमैं अभी भी चालू थी.

‘‘नाड़ा तेरा टूटा तो बैल्ट निकलवा मेरी आफत कर डाली. अब मेहमानों के सामने मेरी फजीहत… सब की तूही जिम्मेदार है…’’ ‘‘चुप करो अकेले तो कोई काम करते नहीं बनता. टेलर से ब्लाउज लेना न होता तो मैं जाती भी न आज तुम्हारे साथ.’’

‘‘तेरा सामान कौन लाता? कम खाया कर वरना नाड़ा न टूटता तेरा… वह तो शुक्र मना मेरा कि मैं ने तुम्हें अपनी बैल्ट मौके पर ही बांधने को दे दी.’’ ‘‘हांहां, क्यों नहीं. भूल गए पहली बार ससुराल कैसी पुरानी बैल्ट पहन कर पहुंच गए थे, जो पटाक से टूटी तो चुपके से मैं ने ही नाड़ा ला कर तुम्हारी इज्जत बचाई थी. बड़े हीरो की तरह शर्ट बिना खोंसे बाहर निकाल कर आए थे कि पुरानी बैल्ट दिखेगी नहीं… हां नहीं तो लो थामो अपना वालेट…’’

‘‘भगवान ने रात बनाई है वरना तो चौबीसों घंटे मुझ से लड़ाई ही करती रहो तुम…’’ मिसेज सक्सेना की साड़ी पर चमकती बैल्ट देख माजरा समझ सभी मुसकरा रहे थे. जय, प्रश्रय के कानों के पास मुंह ले जा कर बुदबुदा उठा, ‘‘राम मिलाए जोड़ी…’’

प्रश्रय ने उसे घूर कर देखा तो उस ने मुसकराते हुए अपने होंठों पर चुप की उंगली रख ली.

‘‘नमस्ते पापा,’’ प्रश्रय चरण छूने झुका था. ‘‘अरे रुकोरुको वरना हाथ उठा कर

आशीष दिया तो गड़बड़ हो जाएगी,’’ वे हंसे और बैठ गए.

‘‘हां अब ठीक है… खुश रहो,’’ उन्होंने दोनों हाथों से आशीर्वाद दिया.

‘‘भागवान, मौके की नजाकत समझो, जल्दी जा कर मेरी बैल्ट ला दो…’’ वे बैठ कर वालेट में नोट गिनगिन कर कुछ परेशान से दिखने लगे…

‘‘लगता है शौप में हजार के 2 नोट देने की जगह 3 नोट दे डाले मैडम ने. 10 होने चाहिए थे अब 9 ही हैं.’’ ‘‘अरे नहीं…’’

‘‘नमस्ते अंकल… लाइए मैं देखता हूं… होंगे इसी में, आंटीजी इतनी भी भुलक्कड़ नहीं… अरे, बहुत गड़बड़ कर दी है आप ने तभी तो… पिताजी की तसवीर उलटी रखेंगे तो क्या होगा. यह देखिए सारे पिताजी को सीधा कर दिया. अब गिन लीजिए पूरे हैं…’’ मिस्टर सक्सेना के साथ औरों का मुंह भी सोच में खुला रह गया था…

‘‘अरे पिताजी मतलब बापू, गांधीजी…’’ उस ने मुसकरा कर वालेट वापस थमा दिया, ‘‘अब गिनिए पूरे हैं ना?’’ ‘‘अच्छा ऐसा भी होता है क्या… मुझे तो मालूम ही नहीं था,’’ उन का मुंह अभी भी खुला हुआ था.

‘‘अरे पापा इस की तो मजाक करने की आदत है. आप को मालूम तो है…’’ प्रश्रय मुसकराया. ‘‘यह लो अपनी बैल्ट… मोहित जल्दी जा गाड़ी में मेरा चश्मा रह गया है उठा ला. नए चश्में के साथ मेरा फोटो सब से रोबदार आती है,’’ उन्होंने मिस्टर सक्सेना की ओर देखते हुए कहा.

‘‘मम्मी सिर पर लगा रखा है पहले देख तो लो…’’ ‘‘देखती कैसे इस की असली आंखें तो सर पर थीं…’’ मिस्टर सक्सेना चिढ़ कर चहक उठे.

‘‘आप भी न भाई साहब भाभी को छेड़ने का कोई मौका नहीं चूकते,’’ नीला मुसकराई. ‘‘सच में प्यारी सी हैं भाभीजी, चहकती

ही अच्छी लगती हैं,’’ जय की मम्मी शांता ने सहमति दर्शाई. ‘‘गजानन का हुक्म हो गया है, चलना ही पड़ेगा…’’ उन्होंने मुसकराते हुए जय, प्रश्रय की ओर देखा. हंसे तो हिल कर उन का शरीर भी साथ देने लगा.

‘‘जानते हो इन का असली नाम तो गजगामिनी था… नए नामकरण में क्या खाली तुम ही उस्ताद हो?’’ वह मुसकराए. ‘‘पर मैं कभी बुला ही नहीं पाया. इतने लंबे नाम से खाली गज कैसे कहता, मार ही डालती, तो गजानन पुकारने लगा,’’ वे ठठा कर हंस पड़े.

‘‘तभी तो आप के बिना माहौल जम नहीं रहा था.’’

‘‘बस 10-10 मिनट रुकिए, मम्मी वह वैशाली पहुंचने वाली है. 1 घंटा पहले एअरपोर्ट से निकली हैं… मुंबई से आ चुकी हैं. उस की दीदी और पापामम्मी भी साथ हैं… दी का कोई ऐग्जाम है. अभीअभी उस का फोन आया.’’

‘‘अरे वाह वैष्णवी… मेरी सहेली कितने सालों बाद हम मिलेंगे मम्मी…’’ मुदिता खुशी से चीखी और मम्मी के गले लिपट गई. डगमगा गया था संतुलन मम्मी का. किसी तरह मोटे शरीर को संभाला. ‘‘छोड़छोड़ मुदि, अभी तो मैं गिर जाती.’’

‘‘अच्छा… हिमांशु अंकल सपरिवार… सही मौके पर…’’ ‘‘तब तक आप लोग कुछकुछ खातेपीते रहो. कोल्ड ड्रिंक्स और लो, बहुत वैराइटी है…’’ गजगामिनी ने पास आ कर बोला.

शीतल बाल पेय बहुत हो लिया आंटीजी अब थोड़ा बड़ों का उष्णोदक मिल जाए तो… मीठा गरम पानी बढि़या… मतलब बींस पाउडर वाला या लीफ वाला…’’ ‘‘मतलब मम्मीजी कौफीचाय की तलब लग रही है इसे…’’ प्रश्रय ने मुसकराते हुए घबराई गजगामिनी को क्लीयर कर दिया.

‘‘आए, हय मैं तो घबरा ही गई कि कोई बीमारी हो गई क्या… अच्छाअच्छा मैं बनवाती हूं अभी,’’ वह मस्त लुढ़कती सी चली गई.

चाय का दौर चल ही रहा था कि मुग्धा की सहेली वैशाली, दीदी वैष्णवी, सुधांशु अंकल व ललिता आंटी आ गए. 3 साल पहले वे दिल्ली इसी कालोनी में रहते थे. बच्चों का स्कूल में भी साथ हो गया तो दोनों परिवारों में अच्छी दोस्ती हो गई थी. फिर सुधांशुजी का परिवार अहमदाबाद शिफ्ट हो गया. वहां प्रोफैसर पद

पर यूनिवर्सिटी में उन की नियुक्ति हो गई थी. सभी अपने पुराने दोस्तों से मिल कर प्रसन्न हो गए. सभी से उन का परिचय कराया जाने लगा. मुदिता वैष्णवी को ले कर प्रश्रय के पास

ले आई, ‘‘मिल, ये तेरे जीजाजी हैं, तू तो शादी में थी नहीं.’’

‘‘नमस्ते जीजाजी… मी वैष्णवी… हाऊ हैंडसम यू आर… हये बहुत लकी है मुदिता तू यार.’’

‘‘अब नजर न लगा मेरे पति को, क्या पता तू मुझ से भी लकी निकले, मुझ से सुंदर जो है.’’ ‘‘इन से मिलो ये हैं जय भैया. प्रश्रय के दोस्त बड़े मजाकिया स्वभाव के हैं. जानती हो प्रश्रय को ये प्रैशर सिन्हा और प्रश्रय इन्हें तोतला पुकारते हैं बचपन से.’’

‘‘हाय, माइसैल्फ वैष्णवी एलएलबी. मुदिता की टैंथ ट्वैल्थ की फ्रैंड,’’ वैष्णवी ने नमस्ते की. ‘‘नमस्ते, पर आप को बता दूं अब मैं तोतला बिलकुल नहीं हूं… वलना तोल्त में तेस तैसे ललता तिनियल लायल जो हूं.’’

वैष्णवी हंस पड़ी. ‘‘क्या मैं जान सकता हूं कौन सा मीठा साबुन चख कर आप आई हैं मुंबई से?’’

‘‘आप की उजली दंत कांति ने मुझे प्रश्न के लिए मजबूर कर दिया,’’ वह गंभीर होते

हुए बोला. ‘‘मीठा साबुन… मतलब?’’ वह सोचने लगी थी. साथ ही मुदिता भी. फिर बोली, ‘‘ओ गुड आप भी लौयर हैं. मेरी भी कानून में बहुत रुचि है, व्यक्ति को सिविलाइज्ड बनाता है कानून. इसीलिए मैं ने एलएलबी किया. अब सिविल जजी का ऐग्जाम ही देने आई हूं यहां.’’

‘‘अरे ठाट से वकालत कीजिए, ढेरों पैसे बनाइए, जजी में क्या रखा है? आप के पास जो केस आएगा समझो जीताजिताया है.’’ ‘‘वह कैसे?’’

‘‘ओ जय भैया, बातें बाद में बनाना. किस से बातें कर रहे हो… यह तो बताओ पहले… ‘वैष्णवी’ बोल के तो दिखाओ, तब मानेंगे हम वरना कुछ तो है बचपन का वह असर अभी भी हम तो यही कहेंगे… मालूम है अब बस आप नया नाम ही दे दोगे, चलो वही दे दो इसे भी,’’ वह मुसकराई.

‘‘मोदीजी माफी…’’ उस ने हंसते हुए हाथ जोड़ दिए. छोटी बहन वैशाली ने जय का प्रश्न सुन लिया था. पापा सुधांशु को पूछने भी चली गई. जहां पहले ही वैष्णवी की शादी के लिए सुधांशु और ललिता को चिंतित देख गजगामिनी नीला और जय की शादी के लिए परेशान शांता सभी अपने सुयोग्य ऐडवोकेट लड़के जय की तारीफ और उस के मजाकिया स्वभाव की भी चर्चा

किए बैठे थे. ‘‘ओ गौड मतलब मंजन टूथपेस्ट… मीठा साबुन? हा… हा… कोलगेट,’’ प्रोफैसर सुधांशु जवाब दे कर हंसे थे.

‘‘मुझे भी मिलाओ उस भैया से,’’ मुग्धा व वैशाली उसे बुलाने चलीं आईं. ‘‘चलचल हीरो बन रहा था न आज तेरी बात ही पक्की करवा देता हूं इसी वैष्णवी से… शांता आंटी की तेरी शादी की चिंता खत्म…

बेटा अब बोल के दिखा नाम या कोई और नाम रख,’’ प्रश्रय उस के कानों में फुसफुसा कर हंसे जा रहा था. वह जय को पकड़ कर वहां ले गया जहां सुधांशु और उस के ससुर मिस्टर सक्सेना पत्नियों के साथ बैठे थे.

हंसीमजाक चलता रहा. केक कटा, खानापीना, नाचगाना और

खूब मस्ती होती रही. बड़ों ने उसी बीच जय और वैष्णवी की रजामंदी ले कर उन की शादी भी तय कर दी. ‘‘जय भैया अब तो नाम लेना ही पड़ेगा, बोलिए वैष्णवी… या नाम बिगाडि़ए हमारे जैसा…’’

‘‘बेशोन दही या नवी मुंबई जो पसंद हो…’’ झट से बोल कर जय जोर से हंसा. सारे बच्चे, बड़े ‘बेशोन दही’ और ‘नवी मुंबई’ कह कर वैष्णवी को चिढ़ाने लगे. ये… ये… उस ने सोफे पर बैठे हुए एक कुशन से जय पर सटीक निशाना लगाया और फिर हंसते हुए कहा, ‘‘अरे ये जय नहीं प्रलय… और फिर कुशन में अपना मुंह छिपा लिया.’’

फिर तो सब का कुशन एकदूसरे पर फेंकने का खेल चल पड़ा. हुड़दंग का जंगल लौ अचानक वैष्णवी को सिविल लौ से और भी अच्छा लगने लगा था.

औफिस गर्ल के लिए परफैक्ट हैं ये मेकअप टिप्स, स्किन रहेगी हैल्दी

महिलाओं को 2 चीजें सब से ज्यादा प्यारी होती हैं- हैल्दी बौडी और मेकअप. इस से न केवल उन में निखार आता है, बल्कि वे स्मार्ट और ऐक्टिव भी नजर आती हैं और अगर वे औफिस में काम करती हैं तो अपनी ब्यूटी को ले कर ज्यादा ही सतर्क रहती हैं.

इस सतर्कता में अच्छा खाना और सही मेकअप बहुत ज्यादा माने रखता है वरना स्वाति जैसा हाल भी हो सकता है.

स्वाति एक मल्टीनैशनल कंपनी में काम करती है, पर औफिस में किस तरह का मेकअप करना है या क्या खानापीना है, इसे ले कर वह बेपरवाह हो जाती है. एक तो वह अपने आकार में कुछ ज्यादा ही हैल्दी है और उस पर मेकअप भी हैवी कर लेती है, इसलिए पीठ पीछे उस का बहुत मजाक बनता है.

मगर इस का हल क्या है? क्या औफिस के लिए कोई खास तरह का मेकअप होता है? क्या सही खानपान किसी औफिस गर्ल को सब की चहेती बना सकता है? ऐसा क्या किया जाए  कि कोई महिला अपने औफिस में हंसी का पात्र न बने?

इन सब सवालों के जवाब देते हुए डाइटीशियन और मेकअप आर्टिस्ट नेहा सागर कहती हैं, ‘‘किसी लड़की खासकर औफिस गर्ल के लिए अच्छा खानपान और मेकअप में बैलेंस बनाना कोई रौकेट साइंस यानी मुश्किल काम नहीं है. औफिस में काम का तनाव होने की वजह से अपनी डाइट पर पूरा ध्यान देना चाहिए. कुछ छोटीछोटी बातों का ध्यान रख कर कोई भी औफिस गर्ल खुद को सेहतमंद रख सकती है.

‘‘जहां तक मेकअप की बात है तो औफिस में ज्यादा हैवी मेकअप जरूरी नहीं है. अपने रंगरूप और बौडी शेप के हिसाब से मेकअप करने से भी बात बन सकती है.’’

किसी औफिस गर्ल को अपनी डाइट और मेकअप का कैसे खयाल रखना चाहिए, इस के लिए नेहा सागर कुछ टिप्स बता रही हैं, जिन पर गौर करें:

ब्यूटी टिप्स

-औफिस के लिए हमेशा लाइट और न्यूड मेकअप ही किया जाना चाहिए, जिस में लाइट कलर का आईशैडो और लाइट कलर की लिपस्टिक का इस्तेमाल किया जाना चाहिए.

-औफिस में फाउंडेशन का भी इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन फेस पर हाईलाइटर का इस्तेमाल न करें.

-औफिस में लिपस्टिक या लिप ग्लौस का खास खयाल रखें कि वह बिलकुल भी अलग कलर का न हो. औफिस के लिए पिंक, पीच, मोव और न्यूड ब्राउन कलर इस्तेमाल करें.

-औफिस के लिए फेस पर फाउंडेशन को स्किन के कलर के हिसाब से इस्तेमाल करने की कोशिश करें. दिन में लिक्विड फाउंडेशन इस्तेमाल करें.

-अगर स्किन औयली है तो फेस को 3-4 घंटे में ड्राई टिशू पेपर से हलके हाथ से साफ करें.

डाइट टिप्स

-औफिस जाने से पहले नाश्ता जरूर करें.

-ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर के अलावा पूरे दिन में फ्रूट मील जरूर लें. सीजन का हर फ्रूट खाएं. इस से बौडी में मिनरल्स और विटामिंस की मात्रा पूरी होती है. फू्रट्स को नाश्ता, लंच और डिनर से अलग समय पर ही खाने की कोशिश करें.

-कोशिश करें कि औफिस के लिए रैडी टु ईट मील साथ रखें जैसे फ्रूट्स में केला, सेब, अमरूद, नाशपाती आदि. ज्यादा देर से कटे फल न खाएं.

-फू्रट्स के अलावा रैडी टु ईट मील में भुने मखाने, चने और सूखे मेवे भी शामिल किए जा सकते हैं.

-रोजाना खूब पानी पीएं. बाहर का खुला पानी न पीएं, क्योंकि उस से बीमार होने का खतरा बना रहता है.

-खाना खाने के लिए कम से कम 15 मिनट का समय जरूर निकालें. चबाचबा कर खाएं.  हमेशा हैल्दी फूड खाएं. इस से बौडी में ऐनर्जी बनी रहेगी.

न्यूली मैरिड कपल के लिए हेल्थ से जुड़ी परेशानियों के बारे में बताएं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 24 वर्षीय नवविवाहित युवती हूं. जब भी पति सहवास करते हैं, मुझे भीतर बहुत जलन और खुजली महसूस होती है. क्या यह किसी गंभीर समस्या के लक्षण हैं? मुझे इस के लिए क्या करना चाहिए?

जवाब-

आप ने जिस प्रकार के लक्षण बताए हैं, उस से लगता है कि आप की योनि में संक्रमण हो सकता है. अच्छा होगा कि आप समय गंवाए बिना किसी अस्पताल में जा कर किसी योग्य गाइनोकोलौजिस्ट से मिलें. वे अंदरूनी जांच करने के साथसाथ योनि से आने वाले स्राव की भी जांच करवा कर यह बता सकेंगी कि यह संक्रमण किस किस्म का है. फिर उस के अनुसार ही दवा लेने से यह रोग जाता रहेगा. इस बात का ध्यान रखना होगा कि आप अपने साथसाथ अपने पति को भी जांच के लिए ले जाएं. किसी भी यौन रोग से छुटकारा पाने के लिए यह बेहद जरूरी है कि पतिपत्नी दोनों साथसाथ इलाज करवाएं वरना रोग दोबारा हो जाता है.

ये भी पढ़ें-  

ये बात तो आप जानती ही हैं कि अत्यधिक गर्मी की वजह से शरीर में पानी की कमी हो जाती है और इस वजह से लोगों को और खास तौर से स्त्रियों को यूटीआई यानि कि यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन की समस्या हो जाती है.

कहीं आप भी तो अंजान नहीं है इस बीमारी से? आपको ऐसी कोई समस्या न हों इसलिए तेज गर्मी के मौसम में आपको सावधान रहना चाहिए. आइये हम आपको बताते हैं इसके लक्षणों के बारे में.

लक्षण :

  • यूरिन में जलन
  • प्राइवेट पा‌र्ट्स में खुजली या दर्द
  • थोड़ा-थोड़ा यूरिन डिस्चार्ज होना
  • ज्यादा दुर्गध के साथ, यूरिन का रंग अधिक पीला होना
  • कंपकपाहट के साथ बुखार आना
  • भूख न लगना
  • कमजोरी और थकान होना.

अगर आप भी ऊपर दी गईं किन्हीं भी समस्याओं से गुजर रहीं हैं तो आपको तुरंत इसका इलाज करना होगा.

हम यहां आपको इससे निपटने के लिए कुछ उपाय बताने जा रहे हैं…

बचाव :

1. बाहर खुले में बिकने वाली चीजें न खाएं. क्योंकि खून में होने वाला इन्फेक्शन यूरिन तक पहुंचकर ‘यूटीआई’ का कारण बन जाता है.

2. टॉयलेट और इनरवेयर की सफाई का पूरा ध्यान रखें. खास तौर से पब्लिक टॉयलेट के इस्तेमाल से पहले और बाद में फ्लश का इस्तेमाल जरूर करें.

3. ज्यादा से ज्यादा मात्रा में तरल पदार्थो का सेवन करें.

4. इस मौसम में पसीने की वजह से स्त्रियों में वजाइनल इन्फेक्शन की भी समस्या हो जाती है. आमतौर पर इस तरह के संक्रमण में वजाइना से सफेद रंग के तरल पदार्थ का डिस्चार्ज होता है.

5. इस मौसम में स्विमिंग पूल के क्लोरीन युक्त पानी की वजह से भी कभी-कभी यह संक्रमण हो जाता है. इस समस्या से बचने के लिए स्विमिंग के बाद व्यक्तिगत सफाई का विशेष रूप से ध्यान रखें और हमेशा कॉटन के इनरवेयर का इस्तेमाल करें.

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इतवार की एक शाम: कैसे बढ़ गई शैलेन के जीवन की खुशियां

शामहोने को थी. पहाड़ों के रास्ते में शाम गहरा रही थी. शैलेन गाड़ी में बैठा सोच रहा था कि कहां मुंबई की भीड़भाड़ और कहां पहाड़ की शुद्ध हवा. आज कई सालों के बाद वह अपने घर अपने मातापिता से मिलने जा रहा था. उस का घर कूर्ग में था. कूर्ग अपनी खूबसूरती और कौफी के बागानों के लिए मशहूर है. उस की बहन इरा, जो उस की बहन कम और दोस्त ज्यादा थी, अमेरिका से आई हुई थी. ज्यादातर तो उस के माता और पिता उस के  पास मुंबई में रहते थे, क्योंकि मल्टीनैशनल कंपनी में काम करने वाले शैलेन के पास समय की कमी थी. वह अपने परिवार के साथ मुंबई में रहता था. लेकिन इस बार इरा आई थी और वह अपना समय इस बार कूर्ग में बिताना चाहती थी. उसी से मिलने और अपने बचपन की यादें ताजा करने के लिए शैलेन 3 दिन के लिए अपने घर जा रहा था. मायसोर से आगे चावल के खेतों और साफसुथरे गांवों को पीछे छोड़ती उस की गाड़ी आगे बढ़ रही थी. उस के घर तक पहुंचने का रास्ता बहुत सुंदर था.

सहसा शैलेन को याद आया कि इरा ने उसे फोन पर बताया था कि इस बार वह अपनी बचपन की सहेलियों के साथ अपने स्कूल जाना चाहती है. इस बार इस के पास समय की कमी नहीं थी. इरा और उस की सहेलियां सब एक ही स्कूल में पढ़ती थीं. वे सब एकसाथ उस स्कूल को देखना चाहती थीं और कई सालों बाद आज आखिर वह मौका आ ही गया था.

‘चलो, ठीक ही है,’ शैलेन ने मन ही मन सोचा. वह भी तो उसी स्कूल में पढ़ता था. इरा और उस की सहेलियों से 3 क्लास सीनियर.

दोनों भाईबहन एकदूसरे के हमदर्द तो थे ही, हमराज भी थे. पढ़ाईलिखाई के मामले में एकदूसरे के राज छिपा कर रखते थे सब से.

यह सोचतेसोचते शैलेन मुसकरा उठा. उसे इरा

की सहेलियां याद आईं. वे सब भी इरा की

तरह हुल्लड़बाज थीं. कई बार वह इरा की सहेलियों को छोड़ने उन के घर गया था. उस ने इरा की कई सहेलियों को साइकिल चलाना भी सिखाया था.

इस बार शैलेन इरा से पूछेगा कि उस की वे सब शैतान सहेलियां कैसी हैं और कहां हैं? वैसे तो आजकल फेसबुक और व्हाट्सऐप के जमाने में सब ही एकदूसरे के बारे में जानते हैं. शैलेन को इरा की सहेलियों के नाम और चेहरे याद आने लगे. ये चेहरे और नाम वैसे तो कोई खास अहमियत उस के जीवन में नहीं रखते थे, लेकिन वह इन सब के साथ अपने बचपन का जुड़ाव महसूस करता था. शैलेन को याद आया कि जब उस की शादी मुंबई से होनी तय हुई थी तो इरा की सहेलियों को बहुत निराशा हुई थी. वे सब उस की शादी में शामिल होना चाहती थीं, क्योंकि हुल्लड़ मचाने का इस से अच्छा मौका और कहां मिलता? बाद में जब रिसैप्शन कूर्ग में तय हुआ तो सब के चेहरे की हंसी लौटी.

गाड़ी कौफी बागानों से होती हुई

गुजर रही थी और शैलेन के दिमाग में इरा की सहेलियों के नाम आ जा रहे थे. इन सब चेहरों

से परे एक चेहरा ऐसा भी था जिस की याद आते ही शैलेन का जीवन के प्रति उत्साह और लगन दोनों बढ़ जाते थे. यह चेहरा वेदा का था. वेदा भी इरा की खास सहेलियों में थी. वेदा की खासीयत यह थी कि वह अपने चेहरे की शैतानी को मासूमियत में बदल लेती थी. वैसे तो शैलेन

इरा की सभी सहेलियों से मिलताजुलता था, लेकिन एक इतवार की शाम कुछ ऐसा हुआ जिस के बाद से उसे वेदा से मिलने में हिचकिचाहट होने लगी.

शैलेन को वेदा से मिले अब 16 साल से भी ऊपर हो चुके हैं. वह शैलेन की रिसैप्शन में भी नहीं आ पाई थी. उस इतवार की शाम को कुछ ऐसा हुआ था जो शैलेन को आज भी जीने की प्रेरणा देता है. वैसे तो एक खुशनुमा जिंदगी जीने के लिए जो कुछ भी चाहिए वह सबकुछ शैलेन के पास था पर फिर भी इतवार की उस शाम के बिना सबकुछ अधूरा होता. आज से 16 साल पहले सोशल मीडिया नहीं था. उन दिनों चिट्ठियां यानी प्रेम पत्रों से काम चलाया जाता था. उस इतवार की शाम को ऐसी ही एक चिट्ठी शैलेन को भी मिली थी. उस चिट्ठी में शैलेन की बहुत तारीफ की गई थी और हर तरह की मदद के लिए (साइकिल सिखाने, होमवर्क में मदद करवाने आदि) शुक्रिया अदा करने के बाद अंत में यह लिखा था कि शैलेन उस रात 8 बजे उस के फोन का इंतजार करे. पत्र के अंत में वेदा का नाम लिखा था.

शैलेन चिट्ठी हाथ में लिए वहीं बैठे का बैठा रह गया. वैसे तो उस चिट्ठी में प्यार का इजहार बहुत साफ शब्दों में नहीं किया था पर यह निश्चित था कि चिट्ठी लिखने वाली लड़की वेदा थी. वह उसे पसंद करती थी. पहली और शायद आखिरी बार ऐसा हुआ था कि किसी महिला ने उस की यों तारीफ की हो. वैसे तो महानगर में और उस के विदेश प्रवास में अनेक महिला मित्रों ने और महिला सहकर्मियों ने उस की प्रशंसा की थी पर उन सब में बनावटीपन ज्यादा था. इस चिट्ठी और इस में व्यक्त भावनाएं शैलेन को ओस की बूंदों की तरह लगती थीं.

उन दिनों भावनाओं में गरमाहट होती थी, आजकल की तरह ठंडापन नहीं. आज भी वह चिट्ठी शैलेन के पास कहीं पड़ी होगी. जब कभी शैलेन को वह चिट्ठी और उस में लिखी बातें याद आती थीं तो उस की थकान का एक अंश गायब हो जाता था.

वह उस इतवार की रात को फोन का इंतजार करने लगा. मगर 8 बजे का समय गलत

सोचा था वेदा ने. इतवार की रात को शैलेन के पिताजी सब के साथ ही खाना खाते थे और

फोन वहीं डाइनिंगहौल में ही रखा था. वेदा किसी और दिन को फोन करने का रख सकती थी.

शैलेन रात को 8 बजने का इंतजार करने लगा. फोन आया और 8 बजे आया जैसाकि चिट्ठी में लिखा था. फोन पिताजी ने उठाया. जब वे घर में होते थे तो वही फोन उठाते थे. पर फोन कट गया और दोबारा नहीं आया.

आगे के कुछ दिन शैलेन ने वेदा के बारे में सोचते हुए बिताए. इस के बाद उस का वेदा से मिलना हुआ तो पर उन हालात में नहीं जहां चिट्ठी के बारे में कोई बात हो सके. इस के बाद सब अपने जीवन में धीरेधीरे आगे बढ़ते गए.

शैलेन मुंबई आ गया, इरा अमेरिका चली गई और वेदा बैंगलुरु. फिर बाद में सुना कि वेदा की शादी भी बैंगलुरु में हो गई. लेकिन शैलेन

उस चिट्ठी को भूल नहीं पाया. आज भी इतवार की ही शाम थी और शैलेन अपने घर अपने परिवार से मिलने जा रहा था. उस की गाड़ी अब घुमावदार रास्तों से हो कर घर की ओर जा रही थी. अचानक मोबाइल बज उठा. देखा तो इरा का फोन था.

‘‘और कितनी देर लगेगी? इरा ने बेताबी

से पूछा.’’

‘‘बस आधा घंटा और… कौफी तैयार रख… मैं पहुंच रहा हूं,’’ शैलेन ने जवाब दिया.

तभी इरा ने कहा, ‘‘गैस हु इज देअर

विद मी?’’

अचानक इस सवाल से शैलेन अचकचा उठा. भला कौन हो सकता है?

तभी इरा बोल पड़ी, ‘‘इट्स माई डियर

फ्रैंड, वेदा.’’

शैलेन का दिल धड़क उठा. उसे एक बार फिर उस चिट्ठी और इतवार की शाम की याद आ गई. वह मुसकरा उठा. उसे इस बात की खुशी थी कि वेदा यहां है. शाम गहरा चुकी थी और वह अपने घर के गेट पर पहुंच चुका था. अंदर पहुंच कर उस ने अपने मातापिता के पैर छुए.

तभी पीछे से आवाज आई, ‘‘हाय, हाऊ आर यू?’’

शैलेन ने पीछे घूम कर देखा तो वेदा

खड़ी थी.

‘‘हाय वेदा, कैसी है?’’ शैलेन ने जवाब में हंसते हुए कहा.

‘‘औल वैल,’’ वेदा का जवाब आया.

शैलेन ने देखा कि वेदा में बहुत ज्यादा अंतर नहीं आया है. वही आंखें, वही चेहरा, वही मासूमियत और इन सब के पीछे वही शरारती चेहरा. कुछ औपचारिक बातों और घरपरिवार के हालचाल लेने के बाद वे सब कौफी पीने लगे. शैलेन मन ही मन सोचने लगा कि क्या वेदा इतवार की उस शाम को भूल चुकी है? वैसे देखा जाए तो भूलने जैसा था भी क्या? एक चिट्ठी को तो बड़ी आसानी से भुलाया जा सकता है. पर आखिर कुछ भी हो वह चिट्ठी वेदा ने उसे खुद ही लिखी थी. अपनी खुद की लिखी चिट्ठी को वह एकदम कैसे भूल गई? वैसे भी आजकल फेसबुक की दुनिया में एक अदना सी चिट्ठी की औकात ही क्या? पर उन दिनों चिट्ठियों में ही दिल बसते थे.

उस चिट्ठी ने शैलेन को एक एहसास दिया था, पसंद किए जाने का एहसास,

स्वीकारे जाने का एहसास और इन सब से ऊपर एक अच्छे इंसान होने का एहसास.

ये एहसास जीवन में हवा और पानी की तरह जरूरी तो नहीं हैं, लेकिन इन का होना जीवन को और खूबसूरत बनाता है. पर कमाल है, वेदा को तो जैसे कुछ याद ही नहीं है. यह सही है कि  वेदा और शैलेन दोनों ही अपनीअपनी जिंदगी में व्यस्त हैं पर फिर भी बीते हुए समय के कुछ अंशों को तो याद किया ही जा सकता है. वेदा ने जिन भावनाओं को एक दिन चिट्ठी में उकेरा था वे शैलेन की न होते हुए भी उसे याद थीं, पर लगता है वेदा भूल चुकी थी.

पहली बार शैलेन को इस मामले में बेचैनी हुई. रात के 10 बजे थे और वह बालकनी में बैठा था. तभी इरा कौफी लिए बाहर आई. शैलेन वैसे तो इरा से कुछ नहीं छिपाता था पर न जाने क्या सोच कर वेदा की चिट्ठी की बात उसे नहीं बताई थी. आज सालों बाद शैलेन को लगा कि वेदा की चिट्ठी की बात इरा को बताई जाए. इरा वहीं बैठ कर कौफी पी रही थी और अपने मोबाइल में कुछ देख रही थी.

‘‘वेदा कहीं काम करती है?’’ शैलेन ने भूमिका बांधी.

‘‘हां,’’ छोटा सा उत्तर दे कर इरा फिर मोबाइल में व्यस्त हो गई.

‘‘कहां?’’ शैलेन ने बात आगे बढ़ाई.

‘‘उस का एनजीओ है बैंगलुरु में, वहीं,’’ इरा की निगाहें अपने मोबाइल पर ही थीं.

शैलेन ने आगे बात करने के लिए गला साफ किया, फिर बोला, ‘‘तुम्हें पता है, वेदा ने मुझे एक चिट्ठी लिखी थी बहुत पहले जब तुम लोग कालेज में थीं. मैं ने उस चिट्ठी का कोई जवाब नहीं दिया था.’’

इरा ने अब मोबाइल छोड़ कर भाई की तरफ देखा, ‘‘कौन सी चिट्ठी वही जो छोटू के हाथ से भिजवाई गई थी?’’ इरा ने उदासीनता से पूछा.

‘‘हांहां, वही… तुम्हें पता था?’’ शैलेन को अब इरा की उदासीनता पर गुस्सा आने लगा कि उसे छोड़ कर और सब लोग जो उस चिट्ठी से जुड़े हैं, इतने उदासीन क्यों हैं?

‘‘वह चिट्ठी वेदा ने नहीं लिखी थी,

मधू और चंदा ने लिखी थी,’’ इरा ने जम्हाई लेते हुए कहा.

‘‘क्या मतलब? मधु और वेदा ने लिखी थी? क्यों?’’ शैलेन ने इस अप्रत्याशित जानकारी के बाद सवाल किया. मधु और वेदा भी इरा की सहेलियां थीं और बहुत शरारती भी थीं.

शैलेन के इस सवाल पर इरा हंसने लगी, ‘‘अरे भाई, तू भूल गया उस दिन पहली अप्रैल थी.’’

मधु और चंदा का चेहरा शैलेन की आंखों के सामने घूम गया.

‘‘पर नीचे नाम तो वेदा का लिखा था?’’ शैलेन ने पूछा.

‘‘अब नीचे किसी न किसी का नाम तो लिखना ही था, तो वेदा का ही लिख दिया,’’ इरा ने जवाब दिया.

‘‘क्या वेदा को यह बात मालूम थी?’’ शैलेन ने हक्काबक्का होते हुए पूछा.

‘‘कौन सी बात? चिट्ठी वाली? पहले तो नहीं पर बाद में उन्होंने मुझे और वेदा को बता दिया था कि उन लोगों ने तुम्हें पहली अप्रैल पर वेदा के नाम से बेवकूफ बनाया है,’’ इरा ने अलसाते हुए कहा.

‘‘पर उन्हें वेदा का नाम नहीं लिखना चाहिए था,’’ शैलेन ने जैसे अपनेआप से कहा.

‘‘हां, लिखना तो नहीं चाहिए था, बट इट इज नौट मैटर, बिकौज दे न्यू दैट यू आर ए जैंटलमैंन,’’ इरा ने उनींदी आंखों से जवाब दिया.

शैलेन मन ही मन यह सोच कर मुसकरा उठा कि शायद पहली बार ऐसा हुआ होगा कि पहली अप्रैल पूरे 16 सालों तक मना हो. पर जो भी हो, इस वाकेआ ने उस के जीवन की खुशियों को बढ़ाया ही था भले वह उसे मूर्ख बनाने का प्रयास ही क्यों न रहा हो. अनजाने में ही उन लड़कियों ने कुछ ऐसा कर दिया था कि उस से शैलेन के जीवन की खुशियां बढ़ गई थीं.

भाभी की वजह से मेरा भाई झगड़ा करता है, मैं क्या करूंं ?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं अपने भाई और भाभी के साथ रहती हूं. मैं अभी ग्रेजुएशन फाइनल ईयर में हूं. मेरी समस्या यह है कि मेरी भाभी हर वक्त मुझ पर नजर रखती है. मैं फोन पर भी किसी से बात करती हूं, तो वह भाई से मेरी शिकायत करती है. भाभी की वजह से मेरा भाई भी मुझ पर शक करता है, उसे लगता है कि मैं पढ़ाई नहीं कर रही, मैं परिवार को धोखा दे रही हूं और वह मुझे अक्सर सुनाता रहता है, अब मैं क्या करूं?

जवाब

जैसा कि आपने बताया कि आप अपने भाई के साथ पढ़ाई के लिए रहती हैं. हो सकता है आपकी भाभी नहीं चाहती हैं कि आप उनदोनों के साथ रहें इसलिए वह आपके भाई से आपकी शिकायत करती है. इन बातों से आपके पढ़ाई पर भी असर पड़ता होगा. ऐसे में आपको अपने भाई से समझदारी से बात करनी होगी. आप अलग पीजी या हौस्टल में भी रहकर अपनी पढ़ाई कर सकती हैं. घर में रहने से अगर माहौल खराब होता है, तो अलग भी रहकर आप अपने लाइफ पर फोकस करें. रही बात शक की, तो बौयफ्रैंड रखना कोई गलत बात नहीं बशर्ते आप अपने करियर पर भी ध्यान दें.

भाईबहन के रिश्ते को इस तरह बनाएं स्ट्रौंग

कई बार भाईबहन में इतना झगड़ा बढ़ जाता है कि दोनों एकदूसरे के दुश्मन बन जाते हैं. लेकिन अगर आप भाईबहन के रिश्ते को मजबूत करना चाहते हैं, तो इन टिप्स को फौलो कर सकती हैं.

  • इसके लिए सबसे पहले ये सोचना बंद करना होगा कि मैं ही सही हूँ क्योंकि किसी भी लड़ाई में थोड़ी थोड़ी ग़लती दोनों पक्षों की होती है.ऐसे में बजाय दूसरे की कमी पर ध्यान रखने के अपनी कमी को पहचानने का प्रयास करें .
  • भाई बहन एक दूसरे के सबसे बड़े राजदार होते हैं ऐसी कई बातें होती हैं जो वो सिर्फ एक दूसरे से शेयर करते हैं पर कई बाद क्रोध या आवेश में एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए वो राज की बात किसी के सामने भी बोल देते हैं .ऐसा करने से कुछ समय को तो मानसिक संतुष्टि होती है पर बाद में अपराधबोध होने लगता है.
  • इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि ये लड़ाई तो कुछ समय की है पर रिश्ता तो जीवन भर का है इसलिए लड़ाई के झोंके में एक दूसरे के राज सार्वजनिक करने से बचें.

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दोनों पतियों से हुई मारपीट, Shweta Tiwari कहलाईं ‘घर तोड़ने वाली’

Happy Birthday Shweta Tiwari : बोल्ड ऐक्ट्रैस श्वेता तिवारी (Shweta Tiwari) आज 4 अक्टूबर को अपना 44वां बर्थडे मना रही हैं. उन्हें टीवी का ऐश्वर्या राय भी कहा जाता है. श्वेता तिवारी ने कई शोज में काम किया है. लेकिन घरघर में श्वेता कसौटी जिंदगी की प्रेरणा के नाम से फेमस हुईं. उनका ये किरदार लोगों का दिल जीतने में कामयाब रहा.

श्वेता का रियल लाइफ भी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. आज उनके बर्थडे के मौके पर श्वेता के जीवन से जुड़ी खास बातों के बारे में जानेंगे.

उत्तर प्रदेश में हुआ था जन्म

श्वेता तिवारी का जन्म 4 अक्टूबर 1980 को इलाहाबाद उत्तरप्रदेश में हुआ था. उनके पिता का नाम अशोक और मां का नाम निर्मला है. उनका एक भाई भी है, जिनका नाम निदान है.

‘दुश्मन’ से की थी करियर की शुरूआत

ऐक्ट्रैस ने अपने करियर की शुरूआत टीवी के शो दुश्मन से की थी. लेकिन उन्हें बालाजी टेलीफिल्म्स के शो कसौटी जिन्दगी से पहचान मिली. इसके अलावा वह कई टीवी शोज में नजर आईं.

बिग बौस 4 की विनर श्वेता तिवारी

श्वेता तिवारी ने कई सारे रियलिटी शोज़ में भाग लिया जिसमे इस जंगल से मुझे बचाओ और बिगबौस जैसे शो शामिल हैं. इन दोनों शोज में वह विवादों में रहीं. सलमान खान ने बिग बौस 4 की विनर श्वेता तिवारी को चुना.

भोजपुरी फिल्मों में भी किया काम

मनोज तिवारी और श्वेता तिवारी की जबरदस्त केमेस्ट्री भोजपुरी फिल्मों में देखने को मिली. दोनों की औनस्क्रीन जोड़ी को लोगों ने खूब पसंज किया. उनकी पहली भोजपुरी फिल्म का नाम था ‘कब अइबू अंगनवा हमार’. फिल्मों के अलावा दोनों कई भोजपुरी गानों में भी साथ नजर आए.

श्वेता तिवारी की वजह से मनोज तिवारी का टूट घर ?

टीवी का रियलिटी शो बिग बौस में भी इन्होंने धमाल मचाया. दोनों की बौन्डिंग दर्शकों को खूब पसंद आई. लेकिन मनोज तिवारी की ऐक्स वाइफ रानी तिवारी को श्वेता नहीं पसंद थी. वह मनोज और श्वेता पर शक करती थी. श्वेता पर मनोज तिवारी का घर तोड़ने का भी आरोप लगा. दरअसल बिग बौस में मनोज तिवारी ने उनकी ऐक्स वाइफ और श्वेता से जुड़ी काफी बातें भी की थी. उन्होंने बताया था कि रानी कैसे उन पर शक करती थी. उन्हें लगता था कि मेरा और श्वेता का अफेयर चल रहा है. इतना सबकुछ होने के बाद श्वेता और मनोज तिवारी आज भी अच्छे दोस्त हैं.

दोनों पतियों से हुई मारपीट

श्वेता तिवारी ने पहली शादी राजा चौधरी से साल 1998 में की थी, लेकिन दोनों का रिश्ता साल 2007 में टूट गया. रिपोर्ट के अनुसार श्वेता ने राजा पर मारपीट और घरेलू हिंसा के आरोप लगाए थे. इसके बाद श्वेता ने दूसरी शादी साल 2013 में अभिनव कोहली से की. शादी से पहले उन्होंने अभिनव को 3 साल तक डेट भी किया था. लेकिन ये रिश्ता भी लंबे समय तक नहीं चला. साल 2019 में अभिनव पर घरेलू हिंसा का आरोप लगाते हुए श्वेता तिवारी ने शिकायत की और उसी साल दोनों का तलाक हो गया.

श्वेता तिवारी को मिले कई बार धोखे

एक इंटरव्यू के अनुसार, श्वेता तिवारी को अपनी जिंदगी में कई बार धोखे मिले हैं. जिससे वह डील करना सीख गई हैं. एक इंटरव्यू के अनुसार, श्वेता तिवारी ने कहा, ”जब पहली बार आपको कोई चीट करता है, तो ये आपको बहुत बुरा लगता है. आप रोते हैं, बुरा महसूस करते हैं. आप सब ठीक करने की कोशिश करते हैं. पर धीरेधीरे मैंने ये सीख लिया कि इसे मैं अपने ऊपर हावी नहीं होने दूंगी. अब मुझे अगर कोई हर्ट करता है तो मैं बहुत ही सिंपली उससे डिटैच हो जाती हूं. उनकी फितरत है कि मुझे हर्ट करें और मैंने अपने को ऐसा बना लिया है कि मैं हर्ट नहीं होउं.’ श्वेता तिवारी दो बच्चों की मां हैं. एक बेटी और एक बेटा. बेटी पलक 23 साल की हैं. जो फैंस के बीच छाई रहती हैं. वह अपनी मां की कार्बन कौपी हैं.

क्या फिर से श्वेता तिवारी रिलेशनशिप में हैं?

हाल ही में खबर आई थी कि श्वेता फिर से रिलेशनशिप हैं. उनका नाम फहमान खान से जोड़ा जा रहा था. लेकिन एक इंटरव्यू में फहमान ने श्वेता तिवारी संग नाम पर रिएक्ट किया और कहा कि ये बिल्कुल भी सच नहीं है. वह तो ऐक्ट्रैस को गुरु जी मानते हैं. लेकिन लोग इसका गलत मतलब निकालते हैं.

श्रीमतीजी और प्याज लहसुन

संडे की छुट्टी को हम पूरी तरह ऐंजौय करने के मूड में थे कि सुबहसुबह श्रीमतीजी ने हमें डपटते हुए कहा, ‘‘अजी सुनते हो, लहसुन बादाम से महंगा हो गया और प्याज सौ रुपए किलोग्राम तक जा पहुंचा है.’’

इतनी सुबह हम श्रीमतीजी के ऐसे आर्थिक, व्यावसायिक और सूचनापरक प्रवचनों का भावार्थ समझ नहीं पा रहे थे. तभी अखबार एक तरफ पटकते हुए वे पुन: बोलीं, ‘‘लगता है अब हमें ही कुछ करना पड़ेगा. सरकार की कुंभकर्णी नींद तो टूटने से रही.’’

हम ने तनिक आश्चर्य से पूछा, ‘‘भागवान, चुनाव भी नजदीक नहीं हैं. इसलिए

फिलहाल प्याजलहसुन से सरकार गिरनेगिराने के चांस नहीं दिख रहे हैं. सो व्यर्थ का विलाप बंद करो.’’

श्रीमतीजी तुनक कर बोलीं, ‘‘तुम्हें क्या पता है, आजकल हो क्या रहा है. आम आदमी की थाली से कभी दाल गायब हो रही है तो कभी सब्जियां. सरकार को तो कभी महंगाई नजर ही नहीं आती.’’

व्यर्थ की बहस से अब हम ऊबने लगे थे, क्योंकि हमें पता है कि आम आदमी के रोनेचिल्लाने से कभी महंगाई कम नहीं होती. हां, माननीय मंत्री महोदय जब चाहें तब अपनी बयानबाजी और भविष्यवाणियों से कीमतों में उछाल ला सकते हैं. चीनी, दूध की कीमतों को आसमान तक उछाल सकते हैं. राजनीति का यही तो फंडा है- खुद भी अमीर बनो और दूसरों के लिए भी अमीर बनने के मौके पैदा करो. लूटो और लूटने दो, स्विस बैंक का खाता लबालब कर डालो.

श्रीमतीजी घर के बिगड़ते बजट से पूरी तरह टूट चुकी हैं. रोजमर्रा की वस्तुओं के बढ़ते दामों ने जीना मुहाल कर रखा है. इसलिए वे एक कुशल अर्थशास्त्री की तरह गंभीर मुद्रा में हमें सुझाव देने लगीं, ‘‘क्यों न हम अपने लान की जमीन का सदुपयोग कर के प्याजलहसुन की खेती शुरू कर दें?’’

हम भौचक्के से उन्हें निहारते हुए बोले, ‘‘खेती और लान में?’’

श्रीमतीजी ने तुरंत हमारी दुविधा भांपते हुए कहा, ‘‘फूलों से पेट नहीं भरता. जापान में तो लोग 2-4 फुट जमीन में ही पूरे घर के लिए सब्जियां पैदा कर लेते हैं.’’

हम श्रीमतीजी के असाधारण भौगोलिक ज्ञान के आगे नतमस्तक थे. हमें लगा जैसे मैनेजमैंट ऐक्स्पर्ट हमें प्रबंधन के गुर सिखा रहा है. उन्होंने अपना फाइनल निर्णय देते हुए घोषणा की, ‘‘अब अपने लान में सब्जियों की खेती की जाएगी. एक बार खर्चा तो होगा, लेकिन देखना शीघ्र ही मेरा आइडिया अपना ‘साइड बिजनैस’ बन जाएगा. आम के आम और गुठलियों के दाम.’’

 

हैरान थे हम उन की अक्लमंदी पर. शीघ्र ही हमें अपनी रजाई छोड़ कर कड़ाके की सर्दी में लान की खुदाई में जुटना पड़ा.

तभी एक सूटेडबूटेड सज्जन अपनी कार से उतर कर हमारे लान में तशरीफ लाए. हम कुछ समझ पाते, उस से पूर्व ही उन्होंने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘मैं नवरंगी लाल, हौर्टीकल्चर ऐक्स्पर्ट. आप के यहां से मेरी विजिट के लिए डिमांड आई थी. मैं उसी सिलसिले में आया हूं.’’

लगभग 1 घंटे की मशक्कत के बाद उन्होंने एक फाइल बना कर हमारे समक्ष प्रस्तुत की, जिस में उस जमीन का ‘बैस्ट यूज’ कर के तरहतरह की सब्जियां उगाने का ‘ब्ल्यू प्रिंट’ तैयार किया गया था. उस में बड़ी तफसील से 1-1 इंच जमीन के उपयोग और सीजन के हिसाब से फसल तैयार करने का पूरा खाका समझाया गया था.

2 फुट में प्याज, 1 फुट में लहसुन, 2 फुट में आलू, 6 इंच में टमाटर… इत्यादि की तकनीकी जानकारी देख कर श्रीमतीजी फूली नहीं समा रही थीं. 10×10 फुट के लान से अब उन्हें उम्मीद हो गई कि शीघ्र ही इतनी सब्जियों का उत्पादन होने लगेगा कि ट्रक भरभर कर सब्जियां सप्लाई की जा सकेंगी.

मि. नवरंगी लाल ने जब अपनी विजिट का 5,000 रुपए का बिल हमें थमाया तो हमारा दिमाग घूम गया. जिस काम को एक साधारण सा माली 2-4 सौ रुपए में कर जाता, उस काम के 5,000 रुपए का भुगतान? सब्जियों के उत्पादन का हमारा चाव एक झटके में ही ठंडा पड़ने लगा.

श्रीमतीजी ने तुरंत हमें समझाते हुए फरमाया, ‘‘हमेशा बड़ी सोच रखो, तभी सफलता के शिखर को छू पाओगे. देखना, ये 5,000 रुपए कैसे 50,000 रुपयों में बदलते हैं.’’

अब धंधे की व्यावसायिक बातों को हम क्या समझते. हम ने तो इतनी उम्र कालेज में छात्रों को पढ़ा कर ही गंवाई थी. खैर, मि. नवरंगी लाल का पेमैंट कर के उन्हें विदा किया गया.

हमें अगले दिन कालेज से छुट्टी लेनी पड़ी, क्योंकि श्रीमतीजी के साथ सब्जियों के बीज, खाद आदि की खरीदारी जो करनी थी. उस दिन करीब 7 हजार रुपए का नश्तर लग चुका था, लेकिन श्रीमतीजी बेहद खुश नजर आ रही थीं.

घर आए तो एक नई समस्या ने दिमाग खराब कर दिया. अपने छोटे से खेत में बीजारोपण कैसे हो, क्योंकि खेतीबाड़ी का ज्ञान हम दोनों में से किसी को भी नहीं था. कृषि वैज्ञानिक महाशय तो ऐक्स्पर्ट राय दे गए थे, लेकिन उन के ‘ऐक्शन प्लान’ को अमलीजामा पहनाने के लिए अब एक अदद माली की सख्त जरूरत थी. इसलिए तुरंत माली की सेवाएं भी ली गईं. माली ने जमीन तैयार कर खाद, बीज डाल दिए. भांतिभांति की सब्जियों का बीजारोपण हो चुका था.

 

माली की जरूरत तो अब रोज पड़ने वाली थी, क्योंकि जब तक कृषि तकनीक में प्रवीणता, दक्षता हासिल न कर ली जाती, तब तक तो उस की सेवाएं लेना हमारी विवशता थी. इसलिए उसे 5,000 रुपए मासिक वेतन पर रख लिया गया. श्रीमतीजी की दिनचर्या भी अब बदल चुकी थी. अब उन का ज्यादातर समय अपने ‘खेत’ में उग रहे ख्वाबों को तराशने में ही व्यतीत होने लगा था. 10 दिन बीततेबीतते कुछ क्यारियों में कोंपलें फूटने लगीं. श्रीमतीजी उन्हें देख कर इस तरह तृप्त होतीं जैसे मां अपने बेटे की अठखेलियां देख कर वात्सल्यभाव में निहाल हो जाती हैं. धीरेधीरे प्याजलहसुन, आलू, टमाटर, पालक, मेथी की फसल बड़ी होने लगी. अब पूरी कालोनी में हमारी श्रीमतीजी के नए प्रयोग की चर्चा होने लगी. दूरदूर से लोग हमारे ‘कृषि उद्योग’ को देखने आने लगे. श्रीमतीजी उन के सामने बड़े गर्व से अपने कृषि हुनर का सजीव प्रदर्शन करतीं.

वह दिन हमारी श्रीमतीजी के लिए बड़ा खुशनसीब था, जिस दिन हमारी फसल पर फल आते नजर आने लगे. मटर की छोटीछोटी फलियां, गोभी, पालक, मिर्चें, बैगन व धनिया देखदेख कर मन पुलकित होने लगा. लेकिन तभी एक प्राकृतिक आपदा ने हमारी खुशी पर बे्रक लगा दिया. एक अनजाना संक्रमण बड़ी तेजी से फैला और हमारी फसल को पकने से पूर्व ही नष्ट करने लगा.

समझदार और अनुभवी माली ने तुरंत हमें कीटनाशकों की एक सूची थमा दी. हम तुरंत दौड़ेदौड़े पूरे 10,000 रुपयों के कीटनाशक ले आए. साथ ही, छिड़काव करने वाले उपकरण भी लाने पड़े.

चूंकि श्रीमतीजी पर सब्जियां उगाने का जनून सवार था, इसलिए वे कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थीं. कीटनाशकों के छिड़काव से संक्रमण पर रोक लगी और फसल पुन: तेजी से बढ़ने लगी. अब सब्जियों के उपभोग के दिन नजदीक आ रहे थे. परिवार में एक नया जोश, नई उमंग छाने लगी थी.

 

हमारे खर्चे की बात उठाते ही श्रीमतीजी तुरंत हमारी बात काटते हुए तर्क देतीं, ‘‘यह इनवैस्टमैंट है, जब आउटपुट आएगा तब देखना कितना फायदा होता है. वैसे भी रोज मंडी जा कर सब्जी लाने में कितना समय, धन और पैट्रोल खर्च होता है. उस लिहाज से तो हम अब भी फायदे में ही हैं.’’

उस दिन अचानक श्रीमतीजी की चीख सुन कर हमारी नींद टूटी. तुरंत बाहर दौड़े आए तो ज्ञात हुआ कि हमारे लान की चारदीवारी फांद कर कोई चोर हमारी नवजात प्याजलहसुन की फसल को चुरा कर चंपत हो गया है. क्यारियां खुदी पड़ी थीं, एकदम सूनी जैसे नईनवेली दुलहन के शरीर से सारे आभूषण और वस्त्र उतार लिए गए हों. हम हैरान रह गए. श्रीमतीजी पर जैसे वज्रपात हो गया हो. बेचारी इस सदमे से उबर नहीं पा रही थीं. वे बेहोश हो कर गिर पड़ीं. फसल पकती, उस से पूर्व ही चोर सब्जियों पर हाथ साफ कर गया था.

होश में आते ही श्रीमतीजी बोलीं, ‘‘चलो पुलिस थाने, रपट लिखवानी है.’’

हम ने कहा, ‘‘एफ.आई.आर.?’’

वे बोलीं, ‘‘और नहीं तो क्या? ऐक्शन तो लेना ही पड़ेगा वरना उस की हिम्मत और बढ़ेगी. वह फिर आ धमकेगा.’’

पुलिस भला हमारी श्रीमतीजी की भावनाओं को क्या समझती. उस ने हमारी शिकायत को बड़े मजाकिया ढंग से टालते हुए कहा, ‘‘सब्जियों की चोरी की एफ.आई.आर. भला कैसे लिखी जा सकती है? पुलिस के पास इतना वक्त ही कहां है? वी.आई.पीज की सुरक्षा से महत्त्वपूर्ण तो आप का लान है नहीं कि वहां पुलिस तैनात कर दी जाए.’’

हम निराश हो कर लौट आए. प्राइवेट सिक्युरिटी हायर करने की भी बात आई, लेकिन खर्चा बहुत ज्यादा था. हमें लगा 10-20 हजार रुपए सिक्योरिटी के नाम पर भी सही. शायद तभी हम अपनी उत्पादित सब्जियों का मजा लूट सकें वरना चोर छोड़ते कहां हैं फलसब्जियां.

अब हम ने एक चौकीदार रख लिया है. श्रीमतीजी पूर्ण मुस्तैदी से सब्जियों के पकने के इंतजार में हैं और हम 5-10 किलोग्राम प्याजलहसुन और आलूटमाटर के उत्पादन पर आए 30-35 हजार रुपए के खर्चे का हिसाब लगाने में बेदम हुए पड़े हैं.

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