मैंआईएम से सेना आयुद्ध कोर में स्थाई कमीशन ले कर निकली तो मेरे पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. मैं ने कंप्यूटर इंजीनियरिंग की तो यूपीएससी ने तकनीकी अफसरों की वेकैंसी निकाली. मैं ने अप्लाई किया तो मु झे इस कोर में इन्वैंटरी कंट्रोल अफसर के लिए चुना गया. मेरी पहली पोस्टिंग पठानकोट की एक और्डिनैंस यूनिट में हुई थी.

मेरे लैफ्टिनैंट बनने के मूल में एक जबरदस्त कहानी है. मैं प्रतिलिपि पर एक अनजान पूर्व आर्मी अफसर की प्रकाशित कहानियों से प्रभावित थी. जहां वे कहानियों में भारतीय सेना की बहादुरी के बारे में लिखते थे, वहीं जवानों के व्यक्तिगत जीवन की समस्याओं से भी देशवासियों को अवगत करवाते थे.

मैं शुरू से ही आर्मी अफसरों से प्रभावित थी. मैं मन से आर्मी अफसर से शादी करना चाहती

थी. मम्मीपापा भी मेरे इंजीनिरिंग का डिप्लोमा करने के बाद मेरी शादी की तैयारी कर रहे थे. मेरी इच्छा का उन के सामने कोई महत्त्व नहीं था.

मैं ने इन अनजान आर्मी अफसर को उन की कहानियों पर अपनी प्रतिक्रिया दी और फौलो किया. उन की फ्रैंड रिक्वेस्ट आई जिसे मैं ने सहर्ष स्वीकार किया.

बातोंबातों में मैं ने उन से अपनी इच्छा जताई तो उन्होंने मेरी शिक्षा पूछी. मैं ने बताया कि इंजीनियरिंग का डिप्लोमा कर रही हूं, शिक्षा कम है. सेना के अफसरों को उच्च शिक्षा प्राप्त लड़कियां चाहिए होती हैं.

उन्होंने कहा, ‘‘आप खुद आर्मी अफसर क्यों नहीं बनती हैं?’’

मैं ने कहा, ‘‘सर, यह कैसे हो सकता है?’’

उन्होंने कहा, ‘‘अगर आप के डिप्लोमा में 90% नंबर आते हैं तो आप को बीटैक में एडमिशन मिल सकती है. आप इतने नंबर लें और बीटैक करें.’’

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