इन महिलाओं के बेहद करीब थे Mahatma Gandhi, ‘सरला देवी’ को माना था आध्यात्मिक पत्नी

महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) ऐसी शख्सियत हैं, जिनके बारे में सिर्फ भारत ही नहीं विदेशों में भी उनके बारे में अध्ययन किया जाता है. दुनियाभर में गांधीजी बापू के नाम से प्रसिद्ध हैं. इस दुनिया में जीवित न रहते हुए भी गांधीजी हमेशा के लिए अमर हैं. कल देशभर में महात्मा गांधी का जन्मदिन गांधी जयंती के रूप में मनाया जाएगा. इस दिन हर साल पूरे देश में सार्वजनिक अवकाश रहता है.

किसी से ये बात छिपी नहीं है कि देश को आजाद कराने में महात्मा गांधी का कितना बड़ा योगदान था. देश की आजादी के लिए सत्य और अहिंसा को भी हथियार बनाया जा सकता है, ये बात कोई इस महापुरुष से सिखें. अंग्रेजों के चंगुल से देश को आजाद कराने में गांधीजी ने जो भूमिका निभाई, इस बात को भारत कभी नहीं भुला सकता है.

महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 में हुआ था. 78 साल की उम्र में नाथूराम गोडसे ने गोली चलाकर उन्हें मार दिया. बताया जाता है कि जब उनकी हत्या हुई तो उनके साथ कुछ महिलाएं भी थीं. महात्मा गांधी हमेशा अपने करीबियों से घिरे रहते थे. इस भींड़ में कुछ महिलाएं भी शामिल थीं. जो गांधीजी की विचारों से बेहद प्रभावित थीं. इनकी जिंदगी में महात्मा गांधी के विचारों ने गहरा असर किया. ये महिलाएं भी गांधीजी के उसी रास्ते पर चलीं. आइए जानते हैं. गांधी जयंती के मौके पर बापू के जीवन से जुड़ी महिलाओं के बारे में…

मनु गांधी

कहा जाता है कि बहुत कम उम्र में ही मनु महात्मा गांधी के रास्ते पर चल पड़ी थीं. वह बापू के दूर की रिश्तेदार थीं. जब मनु उनके पास गई थीं तो महात्मा गांधी काफी बूढ़े हो चुके थे. तब मनु ने बापू के बूढ़े शरीर को सहारा दिया. उन दिनों बापू मनु के कंधे का सहारा लेकर चलते थे. गांधीजी के साथ मनु साल 1928 से लेकर उनके आखिरी दिनों में भी साथ रही थीं.

मीराबेन

मेडेलीन यानी मीराबेन ब्रिटिश एडमिरल सर एडमंड स्लेड की बेटी थीं. एक अफसर की बेटी होने के नाते उनकी जिंदगी अनुशासन में गुजरी. उनका संगीत में बहुत दिलचस्पी था. उन्होंने कई संगीतकारों पर लिखा. वह महात्मा गांधी से इतनी प्रभावित थीं कि उन्होंने बायोग्राफी भी लिख डाली.

मेडलीन ने महात्मा गांधी को चिट्ठी लिखकर अपने अनुभवों के बारे में बताया और गांधीजी के आश्रम जाने की इच्छा जाहिर की. वह अक्टूबर 1925 में मुंबई के रास्ते अहमदाबाद पहुंचीं. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक मेडेलीन ने गांधीजी से अपनी पहली मुलाकात के बारे में इस तरह बताया- ‘जब मैं वहां दाखिल हुई तो सामने से एक दुबला शख्स सफेद गद्दी से उठकर मेरी तरफ बढ़ रहा था. मैं जानती थी कि ये शख्स बापू थे. मैं हर्ष और श्रद्धा से भर गई थी. मुझे बस सामने एक दिव्य रौशनी दिखाई दे रही थी. मैं बापू के पैरों में झुककर बैठ जाती हूं. बापू मुझे उठाते हैं और कहते हैं- तुम मेरी बेटी हो.’ मेडेलिन को नाम मीराबेन के नाम से जाना जाता है.

सरला देवी चौधरानी

सरला देवी रविंद्रनाथ टैगोर की भतीजी भी थी. वह भी गांधीजी के बेहद करीब थीं. सरला देवी संगीत और लेखन प्रेमी थीं. गांधी और सरला ने खादी के प्रचार के लिए देशा का दौरा किया. एक रिपोर्ट में ये भी दावा किया गया है कि लाहौर में गांधीजी सरला के घर पर रुके थे. उस समय सरला के स्वतंत्रता सेनानी पति रामभुज दत्त चौधरी जेल में थे. ये वो दौर था जब गांधीजी और सरला दोनों एकदूसरे के बेहद करीब रहें. लेकिन बाद गांधीजी ने सरला से खुद दूरी बना ली. दोनों के रिश्तों की खबर बाहर आने लगी. गांधी सरला को अपनी ‘आध्यात्मिक पत्नी’ भी बताते थे. सरला गांधीजी के साथ 1872 से लेकर 1945 तक रहीं थीं.
सुशीला प्यारेलाल की बहन थीं. महादेव देसाई के बाद गांधी के सचिव बने प्यारेलाल पंजाबी परिवार से थे.

डा सुशीला नय्यर

महात्मा गांधी के सचिव महादेव देसाई के बाद प्यारेलाल बने. जो पंजाबी परिवार से ताल्लुक रखते थे. सुशीला प्यारेलाल की बहन थीं. दोनों भाईबहन गांधीजी के बहुत बड़े समर्थक थे. उनकी मां ने इस बात को लेकर विरोध भी किया था लेकिन इसके बावजूद भी दोनों महात्मा गांधी के पास आए थे. बाद में इनकी मां भी गांधीजी से जुड़ गई.

सुशीला ने डौक्टरी की पढ़ाई की थीं. इसके बाद वह महात्मा गांधी की निजी डौक्टर बनीं. गांधीजी के आखिरी दिनों में सुशीला भी उनके साथ रहीं थीं. मनु और आभा के अलावा अक्सर गांधी जिसके कंधे पर अपने बूढ़े हाथ रखकर सहारा लेते, उनमें सुशीला भी शामिल थीं.

अर्पण : क्यों रो पड़ी थी अदिति

लेखिका- स्नेहा सिंह

आदमकद आईने के सामने खड़ी अदिती स्वयं के ही प्रतिबिंब को मुग्धभाव से निहार रही थी. उस ने कान में पहने डायमंड के इयरिंग को उंगली से हिला कर देखा. खिड़की से आ रही धूप इयरिंग से रिफ्लैक्ट हो कर उस के गाल पर पड़ रही थी, जिस से वहां इंद्रधनुष चमक रहा था. अदिती ने आईने में दिखाई देने वाले अपने प्रतिबिंब पर स्नेह से हाथ फेरा. फिर वह अचानक शरमा सी गई. इसी के साथ वह बड़बड़ाई, ‘‘वाऊ, आज तो हिमांशु मुझे जरूर कौंप्लीमैंट देगा.’’

फिर उस के मन में आया कि यदि यह बात मां सुन लेतीं, तो कहती कि हिमांशु कहती है? वह तेरा प्रोफैसर है.

‘‘सो ह्वाट?’’ अदिती ने कंधे उचकाए और आईने में स्वयं को देख कर एक बार फिर मुसकराई. अदिती शायद कुछ देर तक स्वयं को इसी तरह आईने में देखती रहती, लेकिन तभी मां की आवाज उस के कानों में पड़ी, ‘‘अदिती, खाना तैयार है.’’

‘‘आई मम्मी,’’ कह कर अदिती बाल ठीक करते हुए डाइनिंग टेबल की ओर भागी.

अदिती का यह लगभग रोज का कार्यक्रम था. प्रोफैसर साहब के यहां जाने से पहले आईने के सामने वह अपना अधिक से अधिक समय स्वयं को निहारते हुए बिताती थी. शायद आईने को भी ये सब अच्छा लगने लगा था, इसलिए वह भी अदिती को थोड़ी देर बांधे रखना चाहता था. इसीलिए तो वह उस का इतना सुंदर प्रतिबिंब दिखाता था कि अदिती स्वयं पर ही मुग्ध हो कर निहारती रहती.

आईना ही क्यों अदिती को तो जो भी देखता, देखता ही रह जाता. वह थी ही इतनी सुंदर. छरहरी, गोरी काया, बड़ीबड़ी मछली काली आंखें, घने काले लंबे रेशम जैसे बाल. वह हंसती, तो सुंदरता में चार चांद लगाने वाले उस के गालों में गड्ढे पड़ जाते थे.

उस की मम्मी उस से अकसर कहती थीं, ‘‘तू एकदम अपने पापा जैसी लगती है. एकदम उन की कार्बन कौपी.’’

इतना कहतेकहते अदिती की मम्मी की आंखें भर आतीं और वे दीवार पर लटक रही अदिती के पापा की तसवीर को देखने लगतीं. अदिती जब 2 साल की थी, तभी उस के पापा का देहांत हो गया था. अदिती को तो अपने पापा का चेहरा भी ठीक से याद नहीं था. उस की मम्मी जिस स्कूल में नौकरी करती थीं, उसी स्कूल में अदिती की पढ़ाई हुई थी. अदिती स्कूल की ड्राइंग बुक में जब भी अपने परिवार का चित्र बनाती, उस में नानानानी, मम्मी और स्वयं होती थी. अदिती के लिए उस का इतना ही परिवार था.

अदिती के लिए पापा यानी घर दीवार पर लटकती तसवीर से अधिक कुछ नहीं थे. कभी मम्मी की आंखों से पानी बन कर बहते, तो कभी अलबम के ब्लैक ऐंड ह्वाइट तसवीर में स्वयं की गोद में उठाए खड़ा पुरुष यानी पापा. अदिती की क्लासमेट अकसर अपनेअपने पापा के बारे में बातें करतीं.

टैलीविजन के विज्ञापनों में पापा के बारे में देख कर अदिती शुरूशुरू में कच्ची उम्र में पापा को मिस करती थी, परंतु धीरेधीरे उस ने मान लिया कि उस के घर में 2 स्त्रियां वह और उस की मम्मी रहती हैं और आगे भी वही दोनों रहेंगी.

बिना बाप की छत्रछाया में पलीबढ़ी अदिती कालेज की अपनी पढ़ाई पूरी कर के कब कमाने लगी, उसे पता ही नहीं चला. वह फाइनल ईयर में पढ़ रही थी, तभी वह अपने एक प्रोफैसर हिमांशु के यहां पार्टटाइम नौकरी करने लगी थी.

डा. हिमांशु एक जानेमाने साहित्यकार थे. यूनिवर्सिटी में हैड औफ डिपार्टमैंट. अदिती इकौनोमिक ले कर बीए करना चाहती थी. परंतु हिमांशु का लैक्चर सुनने के बाद उस ने हिंदी को अपना मुख्य विषय चुना था. डा. हिमांशु अदिती में व्यक्तिगत रुचि लेने लगे थे. उसे नईनई पुस्तकें सजैस्ट करते, किसी पत्रिका में कुछ छपा होता, तो पेज नंबर सहित रैफरैंस देते. यूनिवर्सिटी की ओर से प्रमोट कर के 1-2 य्ेमिनारों में भी अदिती को भेजा था. अदिती डा. हिमांशु की हर परीक्षा में प्रथम आने के लिए कटिबद्ध रहती थी. इसीलिए डा. हिमांशु० अदिती से हमेशा कहते थे कि वे उस में बहुत कुछ देख रहे हैं. वह जीवन में जरूर कुछ बनेगी.

डा. हिमांशु जब भी अदिती से यह कहते, तो कुछ बनने की लालसा अदिती में जोर मारने लगती. उन्होंने अदिती को अपनी लाइब्रेरी में पार्टटाइम नौकरी दे रखी थी. डा हिमांशु जानेमाने नाट्यकार, उपन्यासकार और कहानीकार थे. उन की हिंदी की तमाम पुस्तकें पाठ्यक्रम में लगी हुई थीं. उन का लैक्चर सुनने और मिलने वालों की भीड़ लगी रहती थी. वे यूनिवर्सिटी से घर आते, तो रात 10 बजे तक उन से मिलने वालों की लाइन लगी रहती. नवोदित लेखकों से ले कर नाट्य जगत, साहित्य जगत और फिल्मी दुनिया के लोग भी उन से मिलने आते थे.

अदिती यूनिवर्सिटी में डा. हिमांशु को मात्र अपने प्रोफैसर के रूप में जानती थी. डा. हिमांशु पूरी क्लास को मंत्रमुग्ध कर देते हैं, यह भी उसे पता था. उसी क्लास में अदिती भी तो थी. अदिती डा. हिमांशु की क्लास कभी नहीं छोड़ती थी.

लंबे, स्मार्ट, सुदृढ़ शरीर वाले डा. हिमांशु की आंखों में एक अजीब सा तेज था. सामान्य रूप से वे हलके रंग की शर्ट और ब्लू डैनिम पहनने वाले डा. हिमांशु पढ़ने के लिए सुनहरे फ्रेम वाला चश्मा पहनते, तो अदिती मुग्ध हो कर उन्हें ताकती ही रह जाती. जब वे अदिती के नोट्स या पेपर्स की तारीफ करते, तो उस दिन अदिती हवा में उड़ने लगती.

फाइनल ईयर में जब डा. हिमांशु की क्लास खत्म होने वाली थी, तो एक दिन प्रोफैसर साहब ने उसे मिलने के लिए डिपार्टमैंट में बुलाया.

अदिती उन के कक्ष में पहुंची, तो उन्होंने कहा, ‘‘अदिती मैं देख रहा हूं कि इधर तुम्हारा ध्यान पढ़ाई में नहीं लग रहा है. तुम अकसर मेरी क्लास से गायब रहती हो. पहले 2 सालों में तुम फर्स्ट क्लास आई हो. यदि तुम्हारा यही हाल रहा, तो इस साल तुम पिछले दोनों सालों की मेहनत पर पानी फेर दोगी.’’

अदिती कोई भी जवाब देने के बजाय रो पड़ी.

डा. हिमांशु अपनी कुरसी से उठ कर अदिती के पास आ कर खड़े हो गए. उन्होंने अपना एक हाथ अदिती के कंधे पर रख दिया. उन के हाथ रखते ही अदिती को लगा, जैसे वह हिमालय के हिमाच्छादित शिखर के सामने खड़ी है. उस के कानों में घंटियों की आवाजें गूंजने लगी थीं.

‘‘तुम्हें किसी से प्रेम हो गया है क्या?’’ प्रोफैसर हिमांशु ने पूछा.

अदिती ने रोतेरोते गरदन हिला कर इनकार कर दिया.

‘‘तो फिर?’’

‘‘सर मैं नौकरी करती हूं. इसलिए पढ़ने के लिए समय कम मिलता है.’’

‘‘क्यों?’’ डा. हिमांशु ने आश्चर्य से कहा, ‘‘शायद तुम्हें शिक्षा के महत्त्व का पता नहीं है. शिक्षा केवल कमाई का साधन ही नहीं है. शिक्षा संस्कार, जीवनशैली और हमारी परंपरा है. कमाने के चक्कर में तुम्हारी पढ़ाई में रुचि खत्म हो गई है. इस तरह मैं ने तमाम विद्यार्थियों की जिंदगी बरबाद होते देखी है.’’

‘‘सर…’’ अदिती ने हिचकी लेते हए कहा, ‘‘मैं पढ़ना चाहती हूं, इसीलिए तो नौकरी करती हूं.’’

डा. हिमांशु ने अदिती के सिर पर हाथ रख कर कहा, ‘‘आई एम सौरी… मुझे पता नहीं था.’’

‘‘इट्स ओके सर.’’

‘‘क्या काम करती हो?’’

‘एक वकील के औफिस में टाइपिस्ट हूं.’’

‘‘मैं नई किताब लिख रहा हूं. मेरी रिसर्च असिस्टैंट के रूप में काम करोगी?’’ डा. हिमांशु ने पूछा तो अदिती ने आंसू पोंछते हुए ‘हां’ में गरदन हिला दी.

उसी दिन से अदिती डा. हिमांशु की रिसर्च असिस्टैंट के रूप में काम करने लगी.  इस बात को आज 2 साल य्हो गए हैं. अदिती ग्रेजुएट हो गयी है. वह फर्स्ट क्लास फर्स्ट आई थी यूनिवर्सिटी में. डा. हिमांशु एक किताब खत्म होते ही अगली पर काम शुरू कर देते. इस तरह अदिती का काम चलता रहा. अदिती ने एमए में एडमीशन ले लिया था.

डा. हिमांशु अकसर उस से कहते, ‘‘अदिती, तुम्हें पीएचडी करनी है. मैं तुम्हारे नाम के आगे डाक्टर लिखा देखना चाहता हूं.’’

फिर तो कभीकभी अदिती बैठी पढ़ रही होती, तो कागज पर लिख देती, डा. अदिती हिमांशु. फिर शरमा कर उस कागज पर इतनी लाइनें खींचती कि वह नाम पढ़ने में न आता. परंतु बारबार कागज पर लिखने की वजह से यह नाम अदिती के हृदय में इस तरह रचबस गया कि वह एक भी दिन डा. हिमांशु को न देखती, तो उस का समय काटना मुश्किल हो जाता.

पिछले 2 सालों में अदिती डा. हिमांशु के घर का एक हिस्सा बन गई थी. सुबह घंटे डेढ़ घंटे डा. हिमांशु के घर काम कर के वह उन के साथ यूनिवर्सिटी जाती. फिर 5 बजे उन के साथ ही उन के घर आती, तो उसे अपने घर जाने में अकसर रात के 8-9 बज जाते. कभीकभी तो 10 भी बज जाते. डा. हिमांशु मूड के हिसाब से काम करते थे. अदिती को भी कभी घर जाने की जल्दी नहीं होती थी. वह तो डा. हिमांशु के साथ अधिक से अधिक समय बिताने का बहाना ढूंढ़ती रहती थी.

इन 2 सालों में अदिती ने देखा था कि डा. हिमांशु को जानने वाले तमाम लोग थे. उन से मिलने भी तमाम लोग आते थे. अपना काम कराने और सलाह लेने वालों की भी कमी नहीं थी. फिर डा. हिमांशु एकदम अकेले थे. घर से यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी से घर… यही उन की दिनचर्या थी.

वे कहीं बाहर जाना या किसी गोष्ठी में भाग लेना पसंद नहीं करते थे. बड़ी मजबूरी में ही वे

किसी समारोह में भाग लेने जाते थे. अदिती को ये सब बड़ा आश्चर्यजनक लगता था क्योंकि डा. हिमांशु का लैक्चर सुनने के लिए अन्य यूनिवर्सिटी के स्टूडैंट आते थे, जबकि वे पढ़ाई के अलावा किसी से भी कोई फालतू बात नहीं करते थे.

अदिती उन के साथ लगभग रोज ही गाड़ी से आतीजाती थी. परंतु इस आनेजाने में शायद ही कभी उन्होंने उस से कुछ कहा हो. दिन के इतने घंटे साथ बिताने के बावजूद डा. हिमांशु ने काम के अलावा कोई भी बात अदिती से नहीं की थी. अदिती कुछ कहती, तो वे चुपचाप सुन लेते. मुसकराते हुए उस की ओर देख कर उसे यह आभास करा देते कि उन्होंने उस की बात सुन ली है.

किसी बड़े समारोह या कहीं से डा. हिमांशु वापस आते, तो अदिती बड़े ही अहोभाव से उन्हें देखती रहती. उन की शाल ठीक करने के बहाने, फूल या किताब लेने के बहाने, अदिती उन्हें स्पर्श कर लेती. टेबल के सामने डा. हिमांशु बैठ कर लिख रहे होते, तो अदिती उन के पैर में अपना पैर स्पर्श करा कर संवेदना जगाने का प्रयास करती.

डा. हिमांशु भी उस की नजरों और हावभाव से उस के मन की बात जान गए थे. फिर भी उन्होंने अदिती से कभी कुछ नहीं कहा. अब तक अदिती का एमए हो गया था. वह डा. हिमांशु के अंडर ही रिसर्च कर रही थी. उस की थिसिस भी अलग तैयार ही थी.

अदिती को भी आभास हो गया था कि डा. हिमांशु उस के मन की बात जान गए हैं. फिर भी वे ऐसा व्यवहार करते हैं, जैसे उन्हें कुछ पता ही न हो. डा. हिमांशु के प्रति अदिती का आकर्षण धीरेधीरे बढ़ता ही जा रहा था. आईने के सामने खड़ी स्वयं को निहार रही अदिती ने निश्चय कर लिया था कि आज वह डा. हिमांशु से अपने मन की बात अवश्य कह देगी. फिर वह मन ही मन बड़बड़ाई कि प्रेम करना कोई अपराध नहीं है. प्रेम की कोई उम्र भी नहीं होती.

इसी निश्चय के साथ अदिती डा. हिमांशु के घर पहुंची. वे लाइब्रेरी में बैठे थे. अदिती उन के सामने रखी रैक से टिक कर खड़ी हो गई. उस की आंखों से आंसू बरसने की तैयारी में थे. उन्होंने अदिती को देखते ही कहा, ‘‘अदिती बुरा मत मानना, मेरे डिपार्टमैंट में प्रवक्ता की जगह खाली है. सरकारी नौकरी है. मैं ने कमेटी के सभी सदस्यों से बात कर ली है. तुम अपनी तैयारी कर लो. तुम्हारा इंटरव्यू फौर्मल ही होगा.’’

‘‘परंतु मुझे यह नौकरी नहीं करनी है,’’ अदिती ने यह बात थोड़ी ऊंची आवाज में कही. उस की आंखों में आंसू भर आए थे.

डा. हिमांशु ने मुंह फेर कर कहा, ‘‘अदिती, अब तुम्हारे लिए हमारे यहां काम नहीं है.’’

‘‘सचमुच?’’ अदिती ने उन के एकदम नजदीक जा कर पूछा.

‘‘हां, सचमुच,’’ अदिती की ओर देखे बगैर बड़े ही मृदु और धीमी आवाज में डा. हिमांशु ने कहा, ‘‘अदिती वहां वेतन बहुत अच्छा मिलेगा.’’

‘‘मैं वेतन के लिए नौकरी नहीं करती?’’ अदिती और भी ऊंची आवाज में बोली, ‘‘सर, आप ने मुझे कभी समझ ही नहीं.’’

डा. हिमांशु कुछ कहते, उस के पहले ही अदिती उन के एकदम करीब पहुंच गई. दोनों के बीच अब मात्र हथेली भर की दूरी रह गई थी. उस ने डा. हिमांशु की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘सर, मैं जानती हूं, आप सबकुछ जानतेसमझते हैं… प्लीज इनकार मत कीजिएगा.’’

अदिती की आंखों के आंसू आंखों से निकल कर उस के कपोलों को भिगोते हुए नीचे तक बह गए थे. वह कांपते स्वर में बोली, ‘‘आप के यहां काम नहीं है? इस अधूरी पुस्तक को कौन पूरा करेगा? जरा बताइए तो चार्ली चैपलिन की आत्मकथा कहां रखी है? बायर की कविताएं कहां हैं? विष्णु प्रभाकर या अमरकांत की नई किताबें कहां रखी हैं?’’

डा. हिमांशु चुपचाप अदिती की बातें सुन रहे थे. उन्होंने दोनों हाथ बढ़ा कर अदिती के गालों के आंसू पोंछे और एक लंबी सांस ले कर कहा, ‘‘तुम्हारे आने के पहले मैं किताबें ही खोज रहा था. तुम नहीं रहोगी, तो भी मैं किताबें ढूंढ़ लूंगा.’’

अदिती को लगा कि उन की आवाज यह कहने में कांप रही है.

उन्होंने आगे कहा, ‘‘इंसान पूरी जिंदगी ढूंढ़ता रहे, तो भी शायद उसे न मिले और यदि मिले भी, तो इंसान ढूंढ़ता रहे. उसे फिर भी प्राप्त न हो सके ऐसा भी हो सकता है.’’

‘‘जो अपना हो, उस का तिरस्कार कर के,’’ इतना कह कर अदिती दो कदम पीछे हटी और चेहरे को दोनों हाथों में छिपा कर रोने लगी. फिर लगभग चीखते हुए बोली, ‘‘क्यों?’’

डा. हिमांशु ने थोड़ी देर तक अदिती को रोने दिया. फिर उस के नजदीक जा कर कालेज में पहली बार जिस सहानुभूति से उस के कंधे पर हाथ रखा था, उसी तरह उस के कंधे पर हाथ रखा. अदिती को फिर एक बार लगा कि हिमालय के शिखरों की ठंडक उस के सीने में समा गई है. कानों में घंटियां बजने लगीं. उस ने स्नेहिल नजरों से डा. हिमांशु को देखा. फिर आगे बढ़ कर अपनी दोनों हथेलियों में उन के चेहरे को भर कर चूम लिया.

फिर वह डा. हिमांशु से लिपट गई. वह इंतजार करती रही कि उन की बांहें उस के इर्दगिर्द लिपटेंगी. परंतु ऐसा नहीं हुआ. उस ने डा. हिमांशु की ओर देखा. वे चुपचाप बिना किसी प्रतिभाव के आंखें फाड़े उसे ताक रहे थे. उन का चेहरा शांत, स्थितप्रज्ञ और निर्विकार था.

‘‘आप मुझ से प्यार नहीं करते?’’

डा. हिमांशु मात्र उसे देखते रहे.

‘‘मैं आप के लायक नहीं हूं?’’

डा. हिमांशु के होंठ कांपे, पर शब्द नहीं निकले.

‘‘मैं अंतिम बार पूछती हूं,’’ अदिती की आवाज के साथ उस का शरीर भी कांप रहा था. स्त्री हो कर स्वयं को समर्पित कर देने के बाद भी पुरुष के इस तिरस्कार ने उस के पूरे अस्तित्व को हिला कर रख दिया था. उस की आंखों से आंसुओं की जलधारा बह रही थी.

एक लंबी सांस ले कर वह बोली, ‘‘मैं पूछती हूं, आप मुझे प्यार करते हैं या नहीं या फिर मैं आप के लिए केवल एक तेजस्विनी विद्यार्थिनी से अधिक कुछ नहीं हूं,’’ फिर उन की कालर पकड़ कर झकझरते हुए बोली, ‘‘सर, मुझे अपनी बातों के जवाब चाहिए.’’

डा. हिमांशु उसी तरह जड़ बने थे. अदिती ने लगभग धक्का मार कर उन्हें छोड़ दिया. रोते हुए वह उन्हें अपलक ताक रही थी. उस ने दोनों हाथों से आंसू पोंछे. पलभर में ही उस का हावभाव बदल गया. उस का चेहरा सख्त हो गया. उस की आंखों में घायल बाघिन का जनून आ गया था. उस ने चीखते हुए कहा, ‘‘मुझे इस बात का हमेशा पश्चात्ताप रहेगा कि मैं ने एक ऐसे आदमी से प्यार किया, जिस में प्यार को स्वीकार करने की ताकत ही नहीं है. मैं तो समझती थी कि आप मेरे आदर्श हैं, समर्थ्यवान हैं, परंतु आप में एक स्त्री को सम्मान के साथ स्वीकार करने की हिम्मत ही नहीं है.

‘‘जीवन में यदि कभी समझ में आए कि मैं ने आप को क्या दिया है, तो उसे स्वीकार कर लेना. जिस तरह हो सके, उस तरह क्योंकि आज के आप के तिरस्कार ने मुझे छिन्नभिन्न कर दिया है. जो टीस आप ने मुझे दी है, हो सके तो उसे दूर कर देना क्योंकि इस टीस के साथ जीया नहीं जा सकता,’’ इतना कह कर अदिती तेजी से पलटी और बाहर निकल गई. उस ने एक बार भी पलट कर नहीं देखा.

कुछ दिनों बाद अदिती अखबार पढ़ रही थी, तो अखबार में छपी एक सूचना पर उस

की नजर अटक गई. सूचना थी ‘प्रसिद्ध साहित्यकार, यूनिवर्सिटी के हैड आफ दि डिपार्टमैंट डा. हिमांशु की हृदयगति रुकने से मृत्यु हो गई है उन का…’

अदिती ने इतना पढ़ कर पन्ना पलट दिया. रोने का मन तो हुआ, लेकिन जी कड़ा कर के उसे रोक दिया. अगले दिन अखबार में डा. हिमांशु के बारे में 3-4 लेख छपे थे, परंतु अदिती ने उन्हें पढ़े बगैर ही उस पन्ने को पलट दिया.

इस के 4 दिन बाद ही पाठ्य पुस्तक मंडल की ओर से ब्राउन पेपर में लिपटा एक पार्सल अदिती को मिला. भेजने वाले का नाम उस पर नहीं था. अदिती ने जल्दीजल्दी उस पैकेट को खोला तो उस में वही पुस्तक थी, जिसे वह अधूरी छोड़ आई थी. अदिती ने प्यार से उस पुस्तक पर हाथ फेरा. लेखक का नाम पढ़ा. उस ने पहला पन्ना खोला, किताब के नाम आदि की जानकारी… दूसरा पन्ना खोला…

‘‘‘अर्पण…’ मेरे जीवन की एकमात्र स्त्री को, जिसे मैं ने हृदय से चाहा, फिर भी उसे कुछ दे न सका. यदि वह मेरी एक पल की कमजोरी को माफ कर सके, तो मेरी इस पुस्तक को अवश्य स्वीकार कर लेना.’’

उस किताब को सीने से लगाने के साथ ही अदिती एकदम से फफक कर रो पड़ी. पूरा औफिस एकदम से चौंक पड़ा. सभी उठ कर उस के पास आ गए. हरकोई एक ही बात पूछ रहा था, ‘‘क्या हुआ अदिती? क्या हुआ?’’

रोते हुए अदिती मात्र गरदन हिला रही थी. उसे खुद पता नहीं था कि उसे क्या हुआ.

ऐक्टर Govinda के पैर में लगी गोली, रिवौल्वर साफ करते समय हुआ ये हादसा

Govinda: बौलीवुड एक्टर गोविंदा के फैंस के लिए हैरान कर देने वाली खबर सामने आई है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, गोविंदा के घुटने में गोली लग गई है और ये गोली एक्टर को अपने ही रिवौल्वर से लगी है. जानकारी के अनुसार, ये हादसा तब हुआ, जब गोविंदा अपनी रिवौल्वर साफ कर रहे थे और गलती से गोली चल गई, जो घुटने में जाकर लगी. यह घटना आज ही यानी मंगलवार की सुबह 4.45 की है.

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मुंबई के इस अस्पताल में भर्ती हैं गोविंदा

 

खबरों के अनुसार, ऐक्टर आईसीयू में भर्ती है. गोविंदा की हालत में अब सुधार होने की खबर है. गोविंदा Criti Care अस्पताल में भर्ती है, वहां से अभी कोई जानकारी नहीं मिली है.

अभिनेता के मैनेजर ने  जारी किया बयान

गोविंदा के मैनेजर ने इस घटना के बारे में अपडेट दिया. रिपोर्ट के मुताबिक एक्टर के मैनेजर शशि सिन्हा ने बयान जारी कर बताया कि एक्टर कोलकाता जाने की तैयारी कर रहे थे और वह सूटकेस में जब अपनी लाइसेंसी रिवौल्वर रख रहे थे तभी उनके हाथ से रिवौल्वर नीचे गिर गई और गोली चल गई और सीधा उनके पैर पर लगी. हालांकि डौक्टर ने उनके पैर से गोली निकाल दी है. गोविंदा की बेटी अभी हौस्पिटल में उनके साथ मौजूद हैं. एक्टर को दो दिनों तक हौस्पिटल में औब्जर्वेशन में रखा जाएगा.

जब ये घटना हुई तो पत्नी नहीं थीं मुंबई

रिपोर्ट के मुताबिक जब यह घटना हुआ तो, गोविंदा की पत्नी सुनीता आहूजा मुंबई में नहीं थी. गोविंदा के वर्क फ्रंट की बात करे, तो वह लंबे समय से फिल्मों से दूर है. एक्टर रियलिटी शोज का हिस्सा बनते हैं और कंटेस्टेंट्स का उत्साह बढ़ाते हैं. अभिनेता की पत्नी सुनीता आहूजा भी चर्चे में रहती हैं और उनका बेबाक अंदाज दर्शकों को खूब पसंद आता है.

पौडकास्ट के दौरान सुनिता आहूजा कहीं ये बात

सुनीता आहूजा ने कुछ दिनोंं पहले ही एक पौडकास्ट में अपनी शादी के बारे में जिक्र किया था.  उन्होंने कुछ पाबंदियों के बारे में बताया, जिनका उन्हें सामना करना पड़ा.  उन्होंने बताया कि वह मुंबई के समृद्ध पाली हिल में पलीबढ़ी थीं, जबकि गोविंदा विरार से थे. यह एक ऐसा अंतर था जिससे उन्हें शुरू में जूझना पड़ा. सुनीता ने आगे ये भी बताया कि जब टीना का जन्म हुआ था, तब गोविंदा उनके पास नहीं थे.

जीत गया जंगवीर: क्यों जगवीरी से नहीं मिलना चाहती थी मुनिया

‘‘खत आया है…खत आया है,’’ पिंजरे में बैठी सारिका शोर मचाए जा रही थी. दोपहर के भोजन के बाद तनिक लेटी ही थी कि सारिका ने चीखना शुरू कर दिया तो जेठ की दोपहरी में कमरे की ठंडक छोड़ मुख्यद्वार तक जाना पड़ा. देखा, छोटी भाभी का पत्र था और सब बातें छोड़ एक ही पंक्ति आंखों से दिल में खंजर सी उतर गई, ‘दीदी आप की सखी जगवीरी का इंतकाल हो गया. सुना है, बड़ा कष्ट पाया बेचारी ने.’ पढ़ते ही आंखें बरसने लगीं. पत्र के अक्षर आंसुओं से धुल गए. पत्र एक ओर रख कर मन के सैलाब को आंखों से बाहर निकलने की छूट दे कर 25 वर्ष पहले के वक्त के गलियारे में खो गई मैं.

जगवीरी मेरी सखी ही नहीं बल्कि सच्ची शुभचिंतक, बहन और संरक्षिका भी थी. जब से मिली थी संरक्षण ही तो किया था मेरा. जयपुर मेडिकल कालेज का वह पहला दिन था. सीनियर लड़केलड़कियों का दल रैगिंग के लिए सामने खड़ा था. मैं नए छात्रछात्राओं के पीछे दुबकी खड़ी थी. औरों की दुर्गति देख कर पसीने से तरबतर सोच रही थी कि अभी घर भाग जाऊं. वैसे भी मैं देहातनुमा कसबे की लड़की, सब से अलग दिखाई दे रही थी. मेरा नंबर भी आना ही था. मुझे देखते ही एक बोला, ‘अरे, यह तो बहनजी हैं.’ ‘नहीं, यार, माताजी हैं.’ ऐसी ही तरहतरह की आवाजें सुन कर मेरे पैर कांपे और मैं धड़ाम से गिरी. एक लड़का मेरी ओर लपका, तभी एक कड़कती आवाज आई, ‘इसे छोड़ो. कोई इस की रैगिंग नहीं करेगा.’

‘क्यों, तेरी कुछ लगती है यह?’ एक फैशनेबल तितली ने मुंह बना कर पूछा तो तड़ाक से एक चांटा उस के गाल पर पड़ा. ‘चलो भाई, इस के कौन मुंह लगे,’ कहते हुए सब वहां से चले गए. मैं ने अपनी त्राणकर्ता को देखा. लड़कों जैसा डीलडौल, पर लंबी वेणी बता रही थी कि वह लड़की है. उस ने प्यार से मुझे उठाया, परिचय पूछा, फिर बोली, ‘मेरा नाम जगवीरी है. सब लोग मुझे जंगवीर कहते हैं. तुम चिंता मत करो. अब तुम्हें कोई कुछ भी नहीं कहेगा और कोई काम या परेशानी हो तो मुझे बताना.’ सचमुच उस के बाद मुझे किसी ने परेशान नहीं किया. होस्टल में जगवीरी ने सीनियर विंग में अपने कमरे के पास ही मुझे कमरा दिलवा दिया. मुझे दूसरे जूनियर्स की तरह अपना कमरा किसी से शेयर भी नहीं करना पड़ा. मेस में भी अच्छाखासा ध्यान रखा जाता. लड़कियां मुझ से खिंचीखिंची रहतीं. कभीकभी फुसफुसाहट भी सुनाई पड़ती, ‘जगवीरी की नई ‘वो’ आ रही है.’ लड़के मुझे देख कर कन्नी काटते. इन सब बातों को दरकिनार कर मैं ने स्वयं को पढ़ाई में डुबो दिया. थोड़े दिनों में ही मेरी गिनती कुशाग्र छात्रछात्राओं में होने लगी और सभी प्रोफेसर मुझे पहचानने तथा महत्त्व भी देने लगे.

जगवीरी कालेज में कभीकभी ही दिखाई पड़ती. 4-5 लड़कियां हमेशा उस के आगेपीछे होतीं.

एक बार जगवीरी मुझे कैंटीन खींच ले गई. वहां बैठे सभी लड़केलड़कियों ने उस के सामने अपनी फरमाइशें ऐसे रखनी शुरू कर दीं जैसे वह सब की अम्मां हो. उस ने भी उदारता से कैंटीन वाले को फरमान सुना दिया, ‘भाई, जो कुछ भी ये बच्चे मांगें, खिलापिला दे.’ मैं समझ गई कि जगवीरी किसी धनी परिवार की लाड़ली है. वह कई बार मेरे कमरे में आ बैठती. सिर पर हाथ फेरती. हाथों को सहलाती, मेरा चेहरा हथेलियों में ले मुझे एकटक निहारती, किसी रोमांटिक सिनेमा के दृश्य की सी उस की ये हरकतें मुझे विचित्र लगतीं. उस से इन हरकतों को अच्छी अथवा बुरी की परिसीमा में न बांध पाने पर भी मैं सिहर जाती. मैं कहती, ‘प्लीज हमें पढ़ने दीजिए.’ तो वह कहती, ‘मुनिया, जयपुर आई है तो शहर भी तो देख, मौजमस्ती भी कर. हर समय पढ़ेगी तो दिमाग चल जाएगा.’

वह कई बार मुझे गुलाबी शहर के सुंदर बाजार घुमाने ले गई. छोटीबड़ी चौपड़, जौहरी बाजार, एम.आई. रोड ले जाती और मेरे मना करतेकरते भी वह कुछ कपड़े खरीद ही देती मेरे लिए. यह सब अच्छा भी लगता और डर भी लगा रहता. एक बार 3 दिन की छुट्टियां पड़ीं तो आसपास की सभी लड़कियां घर चली गईं. जगवीरी मुझे राजमंदिर में पिक्चर दिखाने ले गई. उमराव जान लगी हुई थी. मैं उस के दृश्यों में खोई हुई थी कि मुझे अपने चेहरे पर गरम सांसों का एहसास हुआ. जगवीरी के हाथ मेरी गरदन से नीचे की ओर फिसल रहे थे. मुझे लगने लगा जैसे कोई सांप मेरे सीने पर रेंग रहा है. जिस बात की आशंका उस की हरकतों से होती थी, वह सामने थी. मैं उस का हाथ झटक अंधेरे में ही गिरतीपड़ती बाहर भागी. आज फिर मन हो रहा था कि घर लौट जाऊं.

मैं रो कर मन का गुबार निकाल भी न पाई थी कि जगवीरी आ धमकी. मुझे एक गुडि़या की तरह जबरदस्ती गोद में बिठा कर बोली, ‘क्यों रो रही हो मुनिया? पिक्चर छोड़ कर भाग आईं.’ ‘हमें यह सब अच्छा नहीं लगता, दीदी. हमारे मम्मीपापा बहुत गरीब हैं. यदि हम डाक्टर नहीं बन पाए या हमारे विषय में उन्होंने कुछ ऐसावैसा सुना तो…’ मैं ने सुबकते हुए कह ही दिया.

‘अच्छा, चल चुप हो जा. अब कभी ऐसा नहीं होगा. तुम हमें बहुत प्यारी लगती हो, गुडि़या सी. आज से तुम हमारी छोटी बहन, असल में हमारे 5 भाई हैं. पांचों हम से बड़े, हमें प्यार बहुत मिलता है पर हम किसे लाड़लड़ाएं,’ कह कर उस ने मेरा माथा चूम लिया. सचमुच उस चुंबन में मां की महक थी. जगवीरी से हर प्रकार का संरक्षण और लाड़प्यार पाते कब 5 साल बीत गए पता ही न चला. प्रशिक्षण पूरा होने को था तभी बूआ की लड़की के विवाह में मुझे दिल्ली जाना पड़ा. वहां कुणाल ने, जो दिल्ली में डाक्टर थे, मुझे पसंद कर उसी मंडप में ब्याह रचा लिया. मेरी शादी में शामिल न हो पाने के कारण जगवीरी पहले तो रूठी फिर कुणाल और मुझ को महंगेमहंगे उपहारों से लाद दिया.

मैं दिल्ली आ गई. जगवीरी 7 साल में भी डाक्टर न बन पाई, तब उस के भाई उसे हठ कर के घर ले गए और उस का विवाह तय कर दिया. उस के विवाह के निमंत्रणपत्र के साथ जगवीरी का स्नेह, अनुरोध भरा लंबा सा पत्र भी था. मैं ने कुणाल को बता रखा था कि यदि जगवीरी न होती तो पहले दिन ही मैं कालेज से भाग आई होती. मुझे डाक्टर बनाने का श्रेय मातापिता के साथसाथ जगवीरी को भी है. जयपुर से लगभग 58 किलोमीटर दूर के एक गांव में थी जगवीरी के पिता की शानदार हवेली. पूरे गांव में सफाई और सजावट हो रही थी. मुझे और पति को बेटीदामाद सा सम्मानसत्कार मिला. जगवीरी का पति बहुत ही सुंदर, सजीला युवक था. बातचीत में बहुत विनम्र और कुशल. पता चला सूरत और अहमदाबाद में उस की कपड़े की मिलें हैं.

सोचा था जगवीरी सुंदर और संपन्न ससुराल में रचबस जाएगी, पर कहां? हर हफ्ते उस का लंबाचौड़ा पत्र आ जाता, जिस में ससुराल की उबाऊ व्यस्तताओं और मारवाड़ी रिवाजों के बंधनों का रोना होता. सुहाग, सुख या उत्साह का कोई रंग उस में ढूंढ़े न मिलता. गृहस्थसुख विधाता शायद जगवीरी की कुंडली में लिखना ही भूल गया था. तभी तो साल भी न बीता कि उस का पति उसे छोड़ गया. पता चला कि शरीर से तंदुरुस्त दिखाई देने वाला उस का पति गजराज ब्लडकैंसर से पीडि़त था. हर साल छह महीने बाद चिकित्सा के लिए वह अमेरिका जाता था. अब भी वह विशेष वायुयान से पत्नी और डाक्टर के साथ अमेरिका जा रहा था. रास्ते में ही उसे काल ने घेर लिया. सारा व्यापार जेठ संभालता था, मिलों और संपत्ति में हिस्सा देने के लिए वह जगवीरी से जो चाहता था वह तो शायद जगवीरी ने गजराज को भी नहीं दिया था. वह उस के लिए बनी ही कहां थी. एक दिन जगवीरी दिल्ली आ पहुंची. वही पुराना मर्दाना लिबास. अब बाल भी लड़कों की तरह रख लिए थे. उस के व्यवहार में वैधव्य की कोई वेदना, उदासी या चिंता नहीं दिखी. मेरी बेटी मान्या साल भर की भी न थी. उस के लिए हम ने आया रखी हुई थी.

जगवीरी जब आती तो 10-15 दिन से पहले न जाती. मेरे या कुणाल के ड्यूटी से लौटने तक वह आया को अपने पास उलझाए रखती. मान्या की इस उपेक्षा से कुणाल को बहुत क्रोध आता. बुरा तो मुझे भी बहुत लगता था पर जगवीरी के उपकार याद कर चुप रह जाती. धीरेधीरे जगवीरी का दिल्ली आगमन और प्रवास बढ़ता जा रहा था और कुणाल का गुस्सा भी. सब से अधिक तनाव तो इस कारण होता था कि जगवीरी आते ही हमारे डबल बैड पर जम जाती और कहती, ‘यार, कुणाल, तुम तो सदा ही कनक के पास रहते हो, इस पर हमारा भी हक है. दोचार दिन ड्राइंगरूम में ही सो जाओ.’

कुणाल उस के पागलपन से चिढ़ते ही थे, उस का नाम भी उन्होंने डाक्टर पगलानंद रख रखा था. परंतु उस की ऐसी हरकतों से तो कुणाल को संदेह हो गया. मैं ने लाख समझाया कि वह मुझे छोटी बहन मानती है पर शक का जहर कुणाल के दिलोदिमाग में बढ़ता ही चला गया और एक दिन उन्होंने कह ही दिया, ‘कनक, तुम्हें मुझ में और जगवीरी में से एक को चुनना होगा. यदि तुम मुझे चाहती हो तो उस से स्पष्ट कह दो कि तुम से कोई संबंध न रखे और यहां कभी न आए, अन्यथा मैं यहां से चला जाऊंगा.’

यह तो अच्छा हुआ कि जगवीरी से कुछ कहने की जरूरत नहीं पड़ी. उस के भाइयों के प्रयास से उसे ससुराल की संपत्ति में से अच्छीखासी रकम मिल गई. वह नेपाल चली गई. वहां उस ने एक बहुत बड़ा नर्सिंगहोम बना लिया. 10-15 दिन में वहां से उस के 3-4 पत्र आ गए, जिन में हम दोनों को यहां से दोगुने वेतन पर नेपाल आ जाने का आग्रह था. मुझे पता था कि जगवीरी एक स्थान पर टिक कर रहने वाली नहीं है. वह भारत आते ही मेरे पास आ धमकेगी. फिर वही क्लेश और तनाव होगा और दांव पर लग जाएगी मेरी गृहस्थी. हम ने मकान बदला, संयोग से एक नए अस्पताल में मुझे और कुणाल को नियुक्ति भी मिल गई. मेरा अनुमान ठीक था. रमता जोगी जैसी जगवीरी नेपाल में 4 साल भी न टिकी. दिल्ली में हमें ढूंढ़ने में असफल रही तो मेरे मायके जा पहुंची. मैं ने भाईभाभियों को कुणाल की नापसंदगी और नाराजगी बता कर जगवीरी को हमारा पता एवं फोन नंबर देने के लिए कतई मना किया हुआ था.

जगवीरी ने मेरे मायके के बहुत चक्कर लगाए, चीखी, चिल्लाई, पागलों जैसी चेष्टाएं कीं परंतु हमारा पता न पा सकी. तब हार कर उस ने वहीं नर्सिंगहोम खोल लिया. शायद इस आशा से कि कभी तो वह मुझ से वहां मिल सकेगी. मैं इतनी भयभीत हो गई, उस पागल के प्रेम से कि वारत्योहार पर भी मायके जाना छूट सा गया. हां, भाभियों के फोन तथा यदाकदा आने वाले पत्रों से अपनी अनोखी सखी के समाचार अवश्य मिल जाते थे जो मन को विषाद से भर जाते. उस के नर्सिंगहोम में मुफ्तखोर ही अधिक आते थे. जगवीरी की दयालुता का लाभ उठा कर इलाज कराते और पीठ पीछे उस का उपहास करते. कुछ आदतें तो जगवीरी की ऐसी थीं ही कि कोई लेडी डाक्टर, सुंदर नर्स वहां टिक न पाती. सुना था किसी शांति नाम की नर्स को पूरा नर्सिंगहोम, रुपएपैसे उस ने सौंप दिए. वे दोनों पतिपत्नी की तरह खुल्लमखुल्ला रहते हैं. बहुत बदनामी हो रही है जगवीरी की. भाभी कहतीं कि हमें तो यह सोच कर ही शर्म आती है कि वह तुम्हारी सखी है. सुनसुन कर बहुत दुख होता, परंतु अभी तो बहुत कुछ सुनना शेष था. एक दिन पता चला कि शांति ने जगवीरी का नर्सिंगहोम, कोठी, कुल संपत्ति अपने नाम करा कर उसे पागल करार दे दिया. पागलखाने में यातनाएं झेलते हुए उस ने मुझे बहुत याद किया. उस के भाइयों को जब इस स्थिति का पता किसी प्रकार चला तो वे अपनी नाजों पली बहन को लेने पहुंचे. पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी, अनंत यात्रा पर निकल चुकी थी जगवीरी.

मैं सोच रही थी कि एक ममत्व भरे हृदय की नारी सामान्य स्त्री का, गृहिणी का, मां का जीवन किस कारण नहीं जी सकी. उस के अंतस में छिपे जंगवीर ने उसे कहीं का न छोड़ा. तभी मेरी आंख लग गई और मैं ने देखा जगवीरी कई पैकेटों से लदीफंदी मेरे सिरहाने आ बैठी, ‘जाओ, मैं नहीं बोलती, इतने दिन बाद आई हो,’ मैं ने कहा. वह बोली, ‘तुम ने ही तो मना किया था. अब आ गई हूं, न जाऊंगी कहीं.’ तभी मुझे मान्या की आवाज सुनाई दी, ‘‘मम्मा, किस से बात कर रही हो?’’ आंखें खोल कर देखा शाम हो गई थी.

महिलाओं के लिए असुरक्षित माहौल, कौन है इसका जिम्मेदार ?

‘ कब तक लौटोगी,’ ‘अभी रुको’, ‘कैसे जाओगी’, ‘अकेली मत जाओ’, ‘पहुंच कर कौल कर देना’, ‘मैं छोड़ देता हूं’  – ये बहुत सामान्य लाइनें हैं जिन्हें लड़कियां बचपन से सुनते हुए बड़ी होती हैं. हमारे घरों में अक्सर 10 -11 साल का लड़का भी अपनी जवान और बालिग बहन की सुरक्षा के लिए उसके साथ बाहर जाने पर भेजा जाता है. यानी 10 साल का लड़का 20 साल की लड़की के देखे ज्यादा मजबूत माना जाता है. इतना मजबूत कि अपनी कमजोर बहन को मर्दों की दुनिया में सुरक्षा दे सके.

हालात ये हैं कि अपनी सुरक्षा की चिंता में और सुरक्षित यात्रा हो इस की कोशिश में महिलाएं कितनी भी रकम खर्च करने को तैयार रहती हैं. वर्ल्ड बैंक के द्वारा दिल्ली में महिलाओं पर किए गए शोध के अनुसार महिलाएं सुरक्षित रास्तों से यात्रा करने के लिए हर साल 17,500 रुपये का अतिरिक्त खर्च उठाने को तैयार रहती हैं.

मगर जब बात फिटनेस और खुद को मजबूत बनाने की आती है तो महिलाएं पीछे हट जाती हैं. घरवाले भी उन्हें ऐसा करने को मजबूर करते हैं. हाल ही में फिटनेस को ले कर एक सर्वे किया गया. अपनी तरह का यह पहला सर्वे था जिसमें राष्ट्रीय स्तर पर यह समझने की कोशिश की गई कि देशवासियों के बीच स्पोर्ट्स और फिजिकल एक्टिविटी का क्या लेवल है. इसका सबसे दिलचस्प पहलू यह रहा कि इस मामले में भी जेंडर का भेद साफ साफ दिखा. हालांकि पारंपरिक तौर पर देखा जाए तो महिलाएं घर में काफी ज्यादा शारीरिक श्रम करती हैं फिर भी आधुनिक मानदंडों पर फिजिकल फिटनेस बनाए रखने के लिए की जाने वाली गतिविधियों में आधी आबादी की हिस्सेदारी काफी कम है. खासकर शहरों में रहने वाली लड़कियां फिज़िकली सब से ज्यादा इनएक्टिव पाई गई.

यह सर्वे एक नौन प्रौफिट और्गनाइजेशन स्पोर्ट्स एंड सोसायटी ऐक्सेलरेटर और डेलबर्ग अडवाइजर्स, एशिया पैसिफिक ने मिलकर किया था. इस रिपोर्ट के मुताबिक 45% भारतीय मानते हैं कि लड़कियों को स्पोर्ट्स एक्टिविटी में शामिल नहीं होना चाहिए क्योंकि अगर चोटवोट लग गई तो उन की शादी में दिक्कत होगी. पार्क जैसे सार्वजनिक स्थानो पर जाना भी लड़कियों की सेफ्टी के लिहाज से ठीक नहीं माना जाता. 20% महिलाओं और लड़कियों को प्रेग्नेंसी और पीरियड्स के दिनों में एक्सरसाइज करने से रोक दिया जाता है.

कई महिलाएं और लड़कियां इस डर से भी एक्सरसाइज से बचती है कि अगर मसल मजबूत हो गए तो वे कोमलांगी नहीं दिखेगी. जबकि हमारी पितृसत्ता मानसिकता यह कहती है कि एक लड़की की खूबसूरती का अहम् हिस्सा उस का कोमलांगी होना है. अगर मजबूत मसल्स वाला शरीर होगा तो पुरुषों को उन्हें प्यार करने में मजा नहीं आएगा साथ ही फिर वे कमजोर नहीं रह जाएंगी. ऐसे में वह पुरुषों की हुकूमत नहीं सहेंगी और पुरुष भी उन पर अपनी तथाकथित मर्दानगी नहीं दिखा पाएंगे.

इस सोच को बढ़ावा देने में सब से आगे हमारा धर्म है जो स्त्रियों को पुरुष के अधीन और कमजोर बने रहने की सीख देता है. इन सब बातों का नतीजा यह निकलता है कि स्त्रियां पुरुषों के देखे फिज़िकली कमजोर रह जाती हैं और अपनी सुरक्षा खुद नहीं कर पातीं। वे हमेशा ही डरी सहमी घर से निकलती हैं या किसी पुरुष को रक्षा हेतु साथ रखती हैं. देश में महिलाओं की सुरक्षा का प्रश्न केवल पारिवारिक नहीं बल्कि एक बड़ी सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक समस्या बन चुकी है. शहर हो या गांव जब बात महिलाओं की सुरक्षा की आती है तो कई तरह के सवाल सामने आ जाते हैं.

अपनी सुरक्षा के लिए मानसिक और आर्थिक खामियाजा उठा रही हैं महिलाएं

झारखण्ड के हजारीबाग की रहने वाली 40 वर्षीय अनु अविवाहित है और छोटे बच्चों के स्कूल में टीचर का काम करती है. जब भी उस के स्कूल में किसी साथी टीचर के बच्चों का बर्थडे की वजह से या स्कूल के कार्यक्रम में देर तक रहना पड़ता है तो वह अकेली घर नहीं जा पाती है. वह कहती है, “ हमारे इलाके में 8 बजे के बाद किसी लड़की का अकेले घर या कहीं भी जाना सुरक्षित नहीं माना जाता है. इसी वजह से मैं सबके साथ वापस लौटती हूं या फिर कोई पुरुष टीचर घर तक छोड़ते हैं. अगर ऐसी कोई व्यवस्था नहीं हो पाती तो मैं कार्यक्रम में नहीं जाती. ”

भले ही यह बात छोटी सी लगे मगर समस्या बड़ी है. कई दफा जरुरी काम होने के बावजूद लड़कियों को निकलने में डर लगता है. अगर किसी के घर में रात के समय कोई इमरजेंसी आ जाए या कोई बीमार हो तो वह डिसाइड नहीं कर पाती कि क्या करे क्योंकि उसे अकेले बाहर निकलने की हिम्मत नहीं होती.

सामान्य रूप से महिलाओं के लिए पैदल चलना और सार्वजनिक ट्रांसपोर्ट पहले विकल्प होते हैं. पर ज्यादा दूर पैदल चलना आसान नहीं. रात में तो यह लड़कियों के लिए बिलकुल भी सुरक्षित नहीं. सार्वजनिक ट्रांसपोर्ट सेवा भी भीड़भाड़ और आवारा लोगों की मौजूदगी के कारण ज्यादा सुरक्षित नहीं रह जाती। वैसे भी सार्वजनिक वाहनों के लिए प्रतीक्षा करना काफी मुश्किल होता है.

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार शहरों की लगभग आधी आबादी नुकसान में है क्योंकि शहरों में महिलाओं के लिए वातावरण उचित नहीं है. यह इस तथ्य के बावजूद है कि पहले से कहीं अधिक लोग लगभग 4.4 अरब लोग या वैश्विक आबादी का 55 फीसद शहरों में रहते हैं. यह संख्या साल 2050 तक दोगुनी होने वाली है जिसमें प्रत्येक 10 में से सात लोग शहरी वातावरण में रहेंगे. इसके बावजूद शहर या गांव महिलाओं की सुरक्षा के अनुसार नहीं डिजाइन किया जाता.

यात्रा के दौरान बहुत सी समस्याओं का सामना करती हैं महिलाएं

कोलकाता में महिलाओं के लिए सार्वजनिक परिवहन तक पहुंचने में रोजमर्रा के संघर्ष पर एक शोध किया गया. साइंस डायरेक्ट में छपे इस शोध के अनुसार पैदल चलने, ऑटो-रिक्शा और बसों तक पहुंचने में मुख्य बाधाओं में भारी यातायात, तेज गति से चलने वाले वाहन, लापरवाही से वाहन चलाना, बसों में भीड़ भाड़ और छेड़छार, असुरक्षित तरीके से चढ़ना और उतरना और फुटपाथों का अभाव शामिल है. ये बाधाएं महिलाओं को असुरक्षित महसूस कराती हैं, उनके सार्वजनिक वाहन के विकल्प को प्रभावित करती हैं और यात्रा के समय को बढ़ाती हैं. सार्वजनिक परिवहन की पहुंच में चुनौतियां महिलाओं को अक्सर ज्यादा महंगे विकल्प चुनने के लिए मजबूर करती हैं जिसका असर उन के काम और पारिवारिक जीवन पर पड़ता है.

असुरक्षित रहने का मानसिक खामियाजा

जब एक लड़की रात में घर लौटती है और उसे पता होता है कि देर होगी तो ऐसे में वह सब से पहले घरवालों को बताती है. गाड़ी का नंबर, लोकेशन आदि घरवालों को देती हैं. ट्रिप डिटेल्स शेयर करती हैं. फिर भी अगर असुरक्षित महसूस होता है तो जिस इलाके से गुजरती है वहां के किसी दोस्त या परिचित को फोन पर बताते हुए चलती हैं कि उसी इलाके से क्रॉस कर रही हूं.

यही वजह है कि यात्रा महिलाओं के लिए तनाव भरा होता है. देश में शायद ही कोई पुरुष हो जिसने कभी अपने वाहन का नंबर प्लेट सुरक्षा के मद्देनजर परिजनों से साझा किया होगा या अपनी लाइव लोकेशन अपने बचाव के लिए किसी को भेजा होगा. सड़क पर उत्पीड़न या सार्वजनिक स्थानों पर यौन उत्पीड़न दुनिया भर में एक गंभीर समस्या है. दिल्ली में  एक शोध के मुताबिक 16 से 49 वर्ष की 95 प्रतिशत महिलाएं सार्वजनिक स्थानों पर असुरक्षित महसूस करती हैं. महिलाओं को यौन उत्पीड़न से काफी मनोवैज्ञानिक नुकसान होता है और वे इस तरह की घटनाओं से बचने के लिए सक्रिय रूप से सावधानी बरतती हैं. एक शोध के अनुसार देश में 40 या उससे कम आयु की 84 प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि वे उत्पीड़न या उसके डर के कारण अपने शहर के किसी निश्चित क्षेत्र में जाने से बचती हैं.

अकेली महिला के तौर पर उन का फील्ड वर्क करना और दुसरे शहर जाना भी मुश्किल होता है. कभी रात में लौटना हुआ तो एक दिन ज्यादा रुकना पड़ता है. अगर ये संभव नहीं है तो रात में वापस आकर किसी के यहां रुक कर सुबह निकलती हैं. उन्हें होटल लेते वक्त भी ध्यान रखना होता है कि रूम बिल्कुल अंदर का न हो, स्टाफ ठीक हो और होटल की लोकेशन भी सही हो. इन सब में होटल का खर्च ज्यादा आता है. निश्चित रूप से खुद की सुरक्षा की चिंता एक अतिरिक्त काम है जो लड़कियों को अपनी सुरक्षा के लिए करना पड़ता है.यही नहीं महिलाओं को यह भी चिंता करनी होती है कि किस जगह क्या पहनना उचित होगा, कहां किस समय जाना है, कितनी देर तक बाहर रहना है ताकि वह सुरक्षित रह सकें.

समाज और प्रशासन का योगदान भी जरूरी

महिलाएं अपनी सुरक्षा को ले कर भयभीत न रहें और सहजता से घर से बाहर की गतिविधियों में भाग लें इसके लिए सब से पहले जरुरी है को वे खुद की फिटनेस का ख़याल रखें और फिज़िकली स्ट्रांग बनने का प्रयास करें. इस के अलावा सड़कों और परिवहन के बुनियादी ढांचे को महिलाओं की जरूरतों के हिसाब से और सुरक्षित बनाया जाना चाहिए. सार्वजनिक परिवहन को और अधिक सुलभ बनाना चाहिए. पैदल यात्रा के लिए सही तरीके के फुटपाथ, जगह जगह स्ट्रीट लाइटें और वाशरूम हों, बस स्टैंड और स्टेशन जैसे व्यस्त इलाकों में अतिरिक्त सुरक्षा का इंतजाम होनी चाहिए.

दिल्ली सामूहिक बलात्कार और हत्या के एक साल बाद जस्टिस वर्मा समिति सिफारिश करती है कि सभी सड़कों पर स्ट्रीट लाइट, 24 घंटे सार्वजनिक परिवहन, पुलिस बूथों और कियोस्क की संख्या में वृद्धि और जेंडर के प्रति संवेदनशील पुलिसिंग का प्रस्ताव किया जाए. लेकिन असल में हालात चिंताजनक है. ये भी समझने की जरूरत है कि हमें महिलाओं के लिए नियम बनाने की नहीं बल्कि कुल मिलाकर एक सुरक्षित समाज बनाने की जरूरत है जहां इसकी जिम्मेदारी केवल महिलाओं पर नहीं बल्कि नागरिक समाज, प्रशासन और न्यायिक व्यवस्था पर भी ठहराया जा सके.

बाथरूम की गंदगी से हो सकते हैं बीमार, रोजाना करें इसकी सफाई

राइटर-  शोभना अग्रवाल

झिलमिलाते परदे चमकता फर्नीचर, आकर्षक कालीन सभी रेखा के वैभव की कहानी कह रहे थे. घर का सजा कोनाकोना उस की सूझबूझ का परिचायक था. इतने सारे लोगों को खाने का निमंत्रण दे कर भी वह कितनी कुशलता से सबकुछ संभाल रही थी. मन ही मन मैं रेखा की तारीफ करते नहीं थक रही थी.

खाना खाने के बाद मुझे बाथरूम जाने की आवश्यकता महसूस हुई. पूछने पर रेखा मुझे बाथरूम के दरवाजे तक छोड़ पुन: काम में व्यस्त हो गई.

बाथरूम की दशा: मगर यह क्या? बाथरूम अपनी उपेक्षा पर आंसू बहा रहा था. सीलन, पेशाब व गीले कपड़ों की गंध मुझे अंदर आने से रोक रही थी. एक ओर बिना धुले कपड़ों का ढेर, दूसरी ओर छोटे बच्चों के सूसू, पौटी की चढ्ढी व नैपकिन पड़े थे. बाथरूम की दशा देख कर मुझे ऐसा लगा मानो घर की सजावट उचित नहीं थोथी है. यह बाथरूम सिल्क पर लगे टाट के पैबंद सरीखा है

अहमियत न समझना: प्राय: घरों में कमरों की सजावट एवं सफाई पर ही ध्यान दिया जाता है. बाथरूम को, अभी बहुत काम है बाद में देखेंगे सोच उपेक्षित ही छोड़ दिया जाता है. मगर यह सोच उचित नहीं है. बाथरूम को भी घर का एक आवश्यक  हिस्सा मान कर सफाई और सजावट की जानी चाहिए मेहमानों को खयाल में रख कर भी बाथरूम की उपेक्षा न करें. जो अतिथि आप के घर आता है उस तो बाथरूम की आवश्यकता हो ही सकती है. इस के गंदा होने पर घर की चमकदमक खोखली सी प्रतीत होगी.

रोशनी, पानी और हवा: बाथरूम कैसा भी हो अर्थात छोटा या बड़ा, उस में पर्याप्त हवा का प्रबंध होना आवश्यक है. यदि इस ओर ध्यान न दिया तो कभी परेशानी भी आ सकती है. दम घुटने जैसी या चक्कर आने की संभावना हो सकती है. छोटेछोटे या बड़े रोशनदान और खिड़की की व्यवस्था अवश्य देख लें. पानी व रोशनी भी उतनी ही आवश्यक है. इस का भी अवश्य ध्यान करें.

फ्यूज बल्ब बदल दिया जाए. पानी के नल में निरंतर पानी आए. पानी नल में उचित मात्रा में आना चाहिए. मेहमानों के आने के समय विशेष सावधानी बरतें. कभीकभी नल में कचरा आ जाता है और नल से कम पानी आने लगता है. उस की सफाई कर दें या करवा दें. पानी के निष्कासन का भी उचित प्रबंध होना जरूरी है. यदि संभव है तो निकास पंखा भी लगवाएं.

बाथरूम: अब तो घरों में बाथरूम कमरों से जुड़ा कर ही बनाएं जाते हैं. ऐसे में सफाई की अधिक आवश्यकता होती है. यह सेहत के लिए भी जरूरी है. चाहे स्वयं करें अथवा करवाएं, बाथरूम सदैव हर हाल में साफ ही रहना चाहिए. थोड़ी सी सुगंध की व्यवस्था भी हो तो सोने में सुहागा होगा. भीनीभीनी सुगंध मनभावक होगी.

आवश्यक चीजें: बाथरूम में आवश्यक चीजें भी यथास्थान होनी चाहिए. यह घर वालों की कुशलता की परिचायक होंगी. सभी कार्य केवल गृहिणी पर छोड़ देना उचित न होगा. भलीभांति देख लें कि वहां पर मग, बालटी, साबुन, तौलिया आदि रखा हो.

सजावट: यथा संभव बाथरूम में थोड़ी सी सजावट भी कर दें. जहां ठीक लगे वहां पायदान बिछा दें. 1 या 2 फूलदान भी सजा सकते हैं. जरूरत होने पर कागज या प्लास्टिक के फूल भी सजा सकते हैं. सजावट के लिए आप  बोतल या छोटी शीशी में मनी प्लांट आदि भी लगा सकते हैं. जगह के अनुसार छोटीबड़ी तसवीर भी लगाई जा सकती है. यदि चाहं तो परदे भी लगा सकते हैं.

प्रतिदिन की सफाई: बाथरूम की रोज सफाई होनी जरूरी है. यदि आप स्वयं सफाई करते हैं तो समय के अनुसार तय कर लें. नहाने से पहले का समय भी ले सकते हैं. दीवार और फर्श साफ करने के लिए बाजार से कोई भी वस्तु खरीद सकते हैं. वैसे तो आजकल विभिन्न प्रकार के टाइल्स लगाते हैं जो थोड़ी ही सफाई से साफ रहती हैं. मैले या गीले कपड़े रोज ही धो लिए जाए तो अच्छा रहता है वरना उन्हें किसी ढक्कन वाली टोकरी में या बालटी में रख दें और जल्दी से जल्दी धो डालें.

डायबिटीज से बचना है, तो ऐक्सपर्ट के इन टिप्स को करें फौलो

डायबिटीज यानी मधुमेह एक ऐसी स्थिति है जब आप के शरीर में रक्त शर्करा (ग्लूकोज) का स्तर बहुत अधिक हो जाता है. यह तब विकसित होता है जब आप का आगनाशय पर्याप्त इंसुलिन नहीं बनाता है या बिलकुल भी नहीं बनाता है या आप का शरीर इंसुलिन के प्रभावों पर ठीक से प्रतिक्रिया नहीं करता है. डायबिटीज किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकती है. अगर इस का सही तरीके से इलाज न कराया जाए तो यह शरीर के कई हिस्सों को प्रभावित कर सकती है और अन्य बीमारियों को जन्म दे सकती है. कुछ सरल उपायों से डायबिटीज की जटिलताओं से बचा जा सकता है.

आइए, जानते हैं मैरिंगो एशिया हौस्पिटल गुरुग्राम के डा. शिबल भट्टाचार्य से कि इस की जटिलताओं से कैसे बचा जा सकता है:

नियमित ब्लड शुगर की जांच करें

डायबिटीज के कौंप्लिकेशन से बचने के लिए सब से जरूरी है कि आप अपने ब्लड शुगर के स्तर को नियमित रूप से जांचते रहें. ब्लड शुगर की जांच से आप को पता चलेगा कि आप का शुगर लैवल सही है या नहीं. अगर यह नौर्मल  स्तर से ऊपर है तो आप को इसे कंट्रोल करने के लिए कदम उठाने की जरूरत होगी.

ब्लड शुगर की जांच के लिए घर पर ग्लूकोमीटर का इस्तेमाल किया जा सकता है. इस के अलावा समयसमय पर डाक्टर से सलाह लेना भी जरूरी है. डाक्टर आप को शुगर कंट्रोल करने के लिए जरूरी दवाइयां और डाइट प्लान दे सकते हैं.

सही डाइट फौलो करें

डायबिटीज के मरीजों को अपने खानेपीने का विशेष ध्यान रखना चाहिए. अनियंत्रित खानपान से शुगर लैवल बढ़ सकता है, जिस से कई प्रकार की समस्याएं हो सकती हैं. इसलिए डायबिटीज के मरीजों को संतुलित और हैल्दी डाइट का पालन करना चाहिए.

फाइबर युक्त भोजन करें: फाइबर युक्त भोजन जैसे साबूत अनाज, सब्जियां और फल खाने से शुगर लैवल नियंत्रित रहता है.

प्रोटीन का सेवन बढ़ाएं: दाल, अंडा, मछली और दही जैसे प्रोटीन युक्त आहार से शरीर को ऐनर्जी मिलती है और शुगर भी कंट्रोल में रहता है.

मीठे का सेवन कम करें: मीठे खाने का सेवन करने से शुगर लैवल तेजी से बढ़ सकता है. इसलिए मिठाई, शुगर युक्त पेय और पैकेज्ड फूड्स से बचें.

छोटेछोटे भाग में खाना खाएं: दिन में 5-6 बार छोटेछोटे मील्स लेने से ब्लड शुगर लैवल स्थिर रहता है.

नियमित व्यायाम करें

व्यायाम से शरीर में शुगर का स्तर कंट्रोल में  रहता है और वजन भी कंट्रोल में रहता है. डायबिटीज के मरीजों के लिए नियमित व्यायाम करना बहुत जरूरी है. व्यायाम से न केवल ब्लड शुगर नियंत्रित होती है, बल्कि यह हृदय, फेफड़ों और शरीर के अन्य अंगों को भी स्वस्थ रखता है.

ब्रिस्क वाक: हर रोज 30 मिनट तक तेज चलने की आदत डालें. इस से शरीर में इंसुलिन का उपयोग सही तरीके से होता है.

योग और ध्यान: योग और ध्यान से तनाव कम होता है, जिस से शुगर लैवल कंट्रोल में रहता है. डायबिटीज के मरीजों के लिए प्राणायाम और हलके योगासन भी लाभकारी होते हैं.

स्ट्रैंथ ट्रेनिंग: हलका वजन उठाने से मांसपेशियों की ताकत बढ़ती है और शरीर में शुगर की खपत होती है, जिस से ब्लड शुगर कंट्रोल रहती है.

तनाव से बचें

तनाव डायबिटीज के मरीजों के लिए एक बड़ा दुश्मन है. जब हम तनाव में होते हैं तो शरीर में कोर्टिसोल नामक हारमोन का स्तर बढ़ जाता है जो ब्लड शुगर को बढ़ा सकता है. इसलिए तनाव से बचना जरूरी है.

मैडिटेशन करें: मैडिटेशन करने से मानसिक शांति मिलती है और तनाव कम होता है.

अच्छी नींद लें: पर्याप्त और गहरी नींद से शरीर को आराम मिलता है, जिस से तनाव कम होता है.

पसंदीदा गतिविधियों में शामिल हों: जो चीजें आप को खुशी देती हैं जैसेकि पढ़ना, संगीत सुनना या चित्रकारी करना, उन्हें अपने रूटीन में शामिल करें.

दवाइयों का सही तरीके से सेवन करें

डायबिटीज को कंट्रोल करने के लिए अकसर दवाइयों की जरूरत होती है. आप को अपनी दवाइयों का सेवन समय पर और डाक्टर के निर्देशानुसार ही करना चाहिए. अगर आप दवाइयों का सही तरीके से सेवन नहीं करते हैं

तो इस से ब्लड शुगर का स्तर असामान्य हो सकता है और इस से कौंप्लिकेशन का खतरा बढ़ जाता है.

डाक्टर से नियमित जांच कराएं: अपनी दवाइयों की सही खुराक और असर के बारे में जानने के लिए डाक्टर से समयसमय पर परामर्श लें.

इंसुलिन का सही तरीके से इस्तेमाल करें: अगर आप को इंसुलिन लेने की जरूरत है तो इसे सही तरीके से और समय पर लें.

धूम्रपान और शराब से बचें

धूम्रपान और शराब दोनों डायबिटीज के मरीजों के लिए बेहद खतरनाक हो सकते हैं. धूम्रपान करने से हृदयरोग, फेफड़ों की बीमारी और नसों को नुकसान हो सकता है, वहीं शराब का अधिक सेवन ब्लड शुगर लैवल को अस्थिर कर सकता है.

धूम्रपान छोड़ें: अगर आप धूम्रपान करते हैं, तो इसे तुरंत बंद करें. यह डायबिटीज के कौंप्लिकेशन को रोकने में मदद करेगा.

शराब का सेवन न करें: अगर आप शराब का सेवन करते हैं तो इसे तत्काल छोड़ दें.

स्नैक्स में परोसें टिक्की दो प्याजा, आज ही ट्राई करें ये रेसिपी

स्नैक्स में आज हम आपने नई रेसिपी बताएंगे, जिसे आप आसानी से अपनी फैमिली के लिए बना सकती हैं. ये कम समय में बनने वाली रेसिपी है, जिसे आप कभी भी ट्राई कर सकते हैं. आइए आपको बताते हैं टिक्की दो प्याजा की खास रेसिपी…

हमें चाहिए-

–  1 कटोरी चावल का आटा

–  2 लाल प्याज

–  2 हरा प्याज

–  1 छोटा चम्मच हलदी

–  1 छोटा चम्मच हरीमिर्च बारीक कटी

–  एकचौथाई छोटा चम्मच अजवाइन

–  1 छोटा चम्मच चाटमसाला

–  1 छोटा चम्मच लालमिर्च कुटी

–  1 बड़ा चम्मच मूंगफली भुनीकुटी

–  1 बड़ा चम्मच धनियापत्ती कटी

–  तेल तलने के लिए

–  मटरा टिक्की के साथ परोसने के लिए

–  नमक स्वादानुसार.

विधि

दोनों तरह के प्याज के बारीक लच्छे काट लें. हरे प्याज के पत्तों को भी बारीक काट लें. चावल का आटा और सारे मसाले कटे प्याज में मिला कर अच्छी तरह मसल लें. आवश्यकतानुसार पानी मिला कर मिश्रण इतना गाढ़ा रखें कि टिक्की बन सके. कड़ाही में तेल गरम करें. प्याज के मिश्रण की छोटीछोटी टिकिया बनाएं और धीमी आंच पर सुनहरा कुरकुरा होने तक तल लें. मटरा बनाने के लिए उबले मटरों में नीबू, चाटमसाला, प्याज, लाल चटनी, हरी चटनी डाल कर अच्छी तरह मिक्स करें और टिक्कियों के साथ परोस दें.

रिटायरमेंट: शर्माजी के साथ क्या हुआ रिटायरमेंट के बाद

मेरी नौकरी का अंतिम सप्ताह था, क्योंकि मैं सेवानिवृत्त होने वाला था. कारखाने के नियमानुसार 60 साल पूरे होते ही घर बैठने का हुक्म होना था. मेरा जन्मदिन भी 2 अक्तूबर ही था. संयोगवश राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्मदिन पर.

विभागीय सहयोगियों व कर्मचारियों ने कहा, ‘‘शर्माजी, 60 साल की उम्र तक ठीकठाक काम कर के रिटायर होने के बदले में हमें जायकेदार भोज देना होगा.’’ मैं ने भरोसा दिया, ‘‘आप सब निश्ंिचत रहें. मुंह अवश्य मीठा कराऊंगा.’’

इस पर कुछ ने विरोध प्रकट किया, ‘‘शर्माजी, बात स्पष्ट कीजिए, गोलमोल नहीं. हम ‘जायकेदार भोज’ की बात कर रहे हैं और आप मुंह मीठा कराने की. आप मांसाहारी भोज देंगे या नहीं? यानी गोश्त, पुलाव…’’ मैं ने मुकरना चाहा, ‘‘आप जानते हैं कि गांधीजी सत्य व अहिंसा के पुजारी थे, और हिंसा के खिलाफ मैं भी हूं. मांसाहार तो एकदम नहीं,’’ एक पल रुक कर मैं ने फिर कहा, ‘‘पिछले साल झारखंड के कुछ मंत्रियों ने 2 अक्तूबर के दिन बकरे का मांस खाया था तो उस पर बहुत बवाल हुआ था.’’

‘‘आप मंत्री तो नहीं हैं न. कारखाने में मात्र सीनियर चार्जमैन हैं,’’ एक सहकर्मी ने कहा. ‘‘पर सत्यअहिंसा का समर्थक तो हूं मैं.’’

फिर कुछ सहयोगी बौखलाए, ‘‘शर्माजी, हम भोज के नाम पर ‘सागपात’ नहीं खा सकते. आप के घर ‘आलूबैगन’ खाने नहीं जाएंगे,’’ इस के बाद तो गीदड़ों के झुंड की तरह सब एकसाथ बोलने लगे, ‘‘शर्माजी, हम चंदा जमा कर आप के शानदार विदाई समारोह का आयोजन करेंगे.’’ प्रवीण ने हमें झटका देना चाहा, ‘‘हम सब आप को भेंट दे कर संतुष्ट करना चाहेंगे. भले ही आप हमें संतुष्ट करें या न करें.’’

मैं दबाव में आ कर सोचने लगा कि क्या कहूं? क्या खिलाऊं? क्या वादा करूं? प्रत्यक्ष में उन्हें भरोसा दिलाना चाहा कि आप सब मेरे घर आएं, महंगी मिठाइयां खिलाऊंगा. आधाआधा किलो का पैकेट सब को दे कर विदा करूंगा. सीनियर अफसर गुप्ता ने रास्ता सुझाना चाहा, ‘‘मुरगा न खिलाइए शर्माजी पर शराब तो पिला ही सकते हैं. इस में हिंसा कहां है?’’

‘‘हां, हां, यह चलेगा,’’ सब ने एक स्वर से समर्थन किया. ‘‘मैं शराब नहीं पीता.’’

‘‘हम सब पीते हैं न, आप अपनी इच्छा हम पर क्यों लादना चाहते हैं?’’ ‘‘भाई लोगों, मैं ने कहा न कि 2 अक्तूबर हो या नवरात्रे, दीवाली हो या नववर्ष…मुरगा व शराब न मैं खातापीता हूं, न दूसरों को खिलातापिलाता हूं.’’

सुखविंदर ने मायूस हो कर कहा, ‘‘तो क्या 35-40 साल का साथ सूखा ही निबटेगा?’’ कुछ ने रोष जताया, ‘‘क्या इसीलिए इतने सालों तक आप के मातहत काम किया? आप के प्रोत्साहन से ही गुणवत्तापूर्ण उत्पादन किया? कैसे चार्जमैन हैं आप कि हमारी अदनी सी इच्छा भी पूरी नहीं कर सकते?’’

एक ने व्यंग्य किया, ‘‘तो कोई मुजरे वाली ही बुला लीजिए, उसी से मन बहला लेंगे.’’ नटवर ने विचार रखा, ‘‘शर्माजी, जितने रुपए आप हम पर खर्च करना चाह रहे हैं उतने हमें दे दीजिए, हम किसी होटल में अपनी व्यवस्था कर लेंगे.’’

इस सारी चर्चा से कुछ नतीजा न निकलना था न निकला. यह बात मेरे इकलौते बेटे बलबीर के पास भी पहुंची. वह बगल वाले विभाग में बतौर प्रशिक्षु काम कर रहा था.

कुछ ने बलबीर को बहकाया, ‘‘क्या कमी है तुम्हारे पिताजी को जो खर्च के नाम से भाग रहे हैं. रिटायर हो रहे हैं. फंड के लाखों मिलेंगे… पी.एफ. ‘तगड़ा’ कटता है. वेतन भी 5 अंकों में है. हम उन्हें विदाई देंगे तो उन की ओर से हमारी शानदार पार्टी होनी चाहिए. घास छील कर तो रिटायर नहीं हो रहे. बुढ़ापे के साथ ‘साठा से पाठा’ होना चाहिए. वे तो ‘गुड़ का लाठा’ हो रहे हैं…तुम कैसे बेटे हो?’’

बलबीर तमतमाया हुआ घर आया. मैं लौट कर स्नान कर रहा था. बेटा मुझे समझाने के मूड में बोला, ‘‘बाबूजी, विभाग वाले 50-50 रुपए प्रति व्यक्ति चंदा जमा कर के ‘विदाई समारोह’ का आयोजन करेंगे तो वे चाहेंगे कि उन्हें 75-100 रुपए का जायकेदार भोज मिले. आप सिर्फ मिठाइयां और समोसे खिला कर उन्हें टरकाना चाहते हैं. इस तरह आप की तो बदनामी होगी ही, वे मुझे भी बदनाम करेंगे. ‘‘आप तो रिटायर हो कर घर में बैठ जाएंगे पर मुझे वहीं काम करना है. सोचिए, मैं कैसे उन्हें हर रोज मुंह दिखाऊंगा? मुझे 10 हजार रुपए दीजिए, खिलापिला कर उन्हें संतुष्ट कर दूंगा.’’

‘‘उन की संतुष्टि के लिए क्या मुझे अपनी आत्मा के खिलाफ जाना होगा? मैं मुरगे, बकरे नहीं कटवा सकता,’’ बेटे पर बिगड़ते हुए मैं ने कहा. ‘‘बाबूजी, आप मांसाहार के खिलाफ हैं, मैं नहीं.’’

‘‘तो क्या तुम उन की खुशी के लिए मद्यपान करोगे?’’ ‘‘नहीं, पर मुरगा तो खा ही सकता हूं.’’

अपना विरोध जताते हुए मैं बोला, ‘‘बलबीर, अधिक खर्च करने के पक्ष में मैं नहीं हूं. सब खाएंगेपीएंगे, बाद में कोई पूछने भी नहीं आएगा. मैं जब 4 महीने बीमारी से अनफिट था तो 1-2 के अलावा कौन आया था मेरा हाल पूछने? मानवता और श्रद्धा तो लोगों में खत्म हो गई है.’’ पत्नी कमला वहीं थी. झुंझलाई, ‘‘आप दिल खोल कर और जम कर कुछ नहीं कर पाते. मन मार कर खुश रहने से भी पीछे रह जाते हैं.’’

कमला का समर्थन न पा कर मैं झुंझलाया, ‘‘श्रीमतीजी, मैं ने आप को कब खुश नहीं किया है?’’ वे मौका पाते ही उलाहना ठोक बैठीं, ‘‘कई बार कह चुकी हूं कि मेरा गला मंगलसूत्र के बिना सूना पड़ा है. रिटायरमेंट के बाद फंड के रुपए मिलते ही 5 तोले का मंगलसूत्र और 10 तोले की 4-4 चूडि़यां खरीद देना.’’

‘‘श्रीमतीजी, सोने का भाव बाढ़ के पानी की तरह हर दिन बढ़ता जा रहा है. आप की इच्छा पूरी करूं तो लाखों अंटी से निकल जाएंगे, फिर घर चलाना मुश्किल होगा.’’ श्रीमतीजी बिगड़ कर बोलीं, ‘‘तो बताइए, मैं कैसे आप से खुश रहूंगी?’’

बलबीर को अवसर मिल गया. वह बोला, ‘‘बाबूजी, अब आप जीवनस्तर ऊंचा करने की सोचिए. कुछ दिन लूना चलाते रहे. मेरी जिद पर स्कूटी खरीद लाए. अब एक बड़ी कार ले ही लीजिए. संयोग से आप देश की नामी कार कंपनी से अवकाश प्राप्त कर रहे हैं.’’ बेटे और पत्नी की मांग से मैं हतप्रभ रह गया.

मैं सोने का उपक्रम कर रहा था कि बलबीर ने अपनी रागनी शुरू कर दी, ‘‘बाबूजी, खर्च के बारे में क्या सोच रहे हैं?’’ मैं ने अपने सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘बेटा, तुम अभी स्थायी नौकरी में नहीं हो. प्रशिक्षण के बाद तुम्हें प्रबंधन की कृपा से अस्थायी नौकरी मिल सकेगी. पता नहीं तुम कब तक स्थायी होगे. तब तक मुझे ही घर का और तुम्हारा भी खर्च उठाना होगा. इसलिए भविष्यनिधि से जो रुपए मिलेंगे उसे ‘ब्याज’ के लिए बैंक में जमा कर दूंगा, क्योंकि आगे ब्याज से ही मुझे अपना ‘खर्च’ चलाना होगा. अत: मैं ने अपनी भविष्यनिधि के पैसों को सुरक्षित रखने की सोची है.’’

श्रीमतीजी संभावना जाहिर कर गईं कि 20 लाख रुपए तक तो आप को मिल ही जाएंगे. अच्छाखासा ब्याज मिलेगा बैंक से. उन के इस मुगालते को तोड़ने के लिए मैं ने कहा, ‘‘भूल गई हो, 3 बेटियों के ब्याह में भविष्यनिधि से ऋण लिया था. कुछ दूसरे ऋण काट कर 12 लाख रुपए ही मिलेंगे. वैसे भी अब दुनिया भर में आर्थिक संकट पैदा हो चुका है, इसलिए ब्याज घट भी सकता है.’’

बलबीर ने टोका, ‘‘बाबूजी, आप को रुपए की कमी तो है नहीं. आप ने 10 लाख रुपए अलगअलग म्यूचुअल फं डों में लगाए हुए हैं.’’

मैं आवेशित हुआ, ‘‘अखबार नहीं पढ़ते क्या? सब शेयरों के भाव लुढ़कते जा रहे हैं. उस पर म्यूचुअल फंडों का बुराहाल है. निवेश किए हुए रुपए वापस मिलेंगे भी या नहीं? उस संशय से मैं भयभीत हूं. रिटायर होने के बाद मैं रुपए कमाने योग्य नहीं रहूंगा. बैठ कर क्या करूंगा? कैसे समय बीतेगा. चिंता, भय से नींद भी नहीं आती…’’ श्रीमतीजी ने मेरे दर्द और चिंता को महसूस किया, ‘‘चिंतित मत होइए. हर आदमी को रिटायर होना पड़ता है. चिंताओं के फन को दबोचिए. उस के डंक से बचिए.’’

‘‘देखो, मैं स्वयं को संभाल पाता हूं या नहीं?’’ तभी फोन की घंटी बजी, ‘‘हैलो, मैं विजय बोल रहा हूं.’’

‘‘नमस्कार, विजय बाबू.’’ ‘‘शर्माजी, सुना है, आप रिटायर होने जा रहे हैं.’’

‘‘हां.’’ ‘‘कुछ करने का विचार है या बैठे रहने का?’’ विजय ने पूछा.

‘‘कुछ सोचा नहीं है.’’ ‘‘मेरी तरह कुछ करने की सोचो. बेकार बैठ कर ऊब जाओगे.’’

‘‘मेरे पिता ने भी सेवामुक्त हो कर ‘बिजनेस’ का मन बनाया था, पर नहीं कर सके. शायद मैं भी नहीं कर सकूंगा, क्यों जहां भी हाथ डाला, खाली हो गया.’’ विजय की हंसी गूंजी, ‘‘हिम्मत रखो. टाटा मोटर्स में ठेका पाने के लिए रजिस्ट्रेशन कराओ. एकाध लाख लगेंगे.’’

बलबीर उत्साहित स्वर में बोला, ‘‘ठेका ले कर देखिए, बाबूजी.’’ ‘‘बेटा, मैं भविष्यनिधि की रकम को डुबाने के चक्कर में नहीं पड़ना चाहता.’’

बलबीर जिद पर उतर आया तो मैं बोला, ‘‘तुम्हारे कहने पर मैं ने ट्रांसपोर्ट का कारोबार किया था न? 7 लाख रुपए डूब गए थे. तब मैं तंगी, परेशानी और खालीहाथ से गुजरने लगा था. फ ांके की नौबत आ गई थी.’’ बलबीर शांत पड़ गया, मानो उस की हवा निकल गई हो.

तभी मोबाइल बजने लगा. पटना से रंजन का फोन था. आवाज कानों में पड़ी तो मुंह का स्वाद कसैला हो गया. रंजन मेरा चचेरा भाई था. उस ने गांव का पुश्तैनी मकान पड़ोसी पंडितजी के हाथ गिरवी रख छोड़ा था. उस की एवज में 50 हजार रुपए ले रखे थे. पहले मैं रंजन को अपना भाई मानता था पर जब उस ने धोखा किया, मेरा मन टूट गया था.

‘‘रंजन बोल रहा हूं भैया, प्रणाम.’’ ‘‘खुश रहो.’’

‘‘सुना है आप रिटायर होने वाले हैं? एक प्रार्थना है. पंडितजी के रुपए चुका कर मकान छुड़ा लीजिए न. 20 हजार रुपए ब्याज भी चढ़ चुका है. न चुकाने से मकान हाथ से निकल जाएगा. मेरे पास रुपए नहीं हैं. पटना में मकान बनाने से मैं कर्जदार हो चुका हूं. कुछ सहायता कीजिएगा तो आभारी रहूंगा.’’ मैं क्रोध से तिलमिलाया, ‘‘कुछ करने से पहले मुझ से पूछा था क्या? सलाह भी नहीं ली. पंडितजी का कर्ज तुम भरो. मुझे क्यों कह रहे हो?’’

मोबाइल बंद हो गया. इच्छा हुई कि उसे और खरीखोटी सुनाऊं. गुस्से में बड़बड़ाता रहा, ‘‘स्वार्थी…हमारे हिस्से को भी गिरवी रख दिया और रुपए ले गया. अब चाहता है कि मैं फंड के रुपए लगा दूं? मुझे सुख से जीने नहीं देना चाहता?’’ ‘‘शांत हो जाइए, नहीं तो ब्लडप्रेशर बढे़गा,’’ कमला ने मुझे शांत करना चाहा.

सुबह कारखाने पहुंचा तो जवारी- भाई रामलोचन मिल गए, बोले, ‘‘रिटायरमेंट के बाद गांव जाने की तो नहीं सोच रहे हो न? बड़ा गंदा माहौल हो गया है गांव का. खूब राजनीति होती है. तुम्हारा खाना चाहेंगे और तुम्हें ही बेवकूफ बनाएंगे. रामबाबू रिटायरमेंट के बाद गांव गए थे, भाग कर उन्हें वापस आना पड़ा. अपहरण होतेहोते बचा. लाख रुपए की मांग कर रहे थे रणबीर दल वाले.’’ सीनियर अफसर गुप्ताजी मिल गए. बोले, ‘‘कल आप की नौकरी का आखिरी दिन है. सब को लड्डू खिला दीजिएगा. आप के विदाई समारोह का आयोजन शायद विभाग वाले दशहरे के बाद करेंगे.’’

कमला ने भी घर से निकलते समय कहा था, ‘‘लड्डू बांट दीजिएगा.’’

बलबीर भी जिद पर आया, ‘‘मैं भी अपने विभाग वालों को लड्डू खिलाऊंगा.’’ ‘‘तुम क्यों? रिटायर तो मैं होने वाला हूं.’’

वह हंसते हुए बोला, ‘‘बाबूजी, रिटायरमेंट को खुशी से लीजिए. खुशियां बांटिए और बटोरिए. कुछ मुझे और कुछ बहनबेटियों को दीजिए.’’ मुझे क्रोध आया, ‘‘तो क्या पैसे बांट कर अपना हाथ खाली कर लूं? मुझे कम पड़ेगा तो कोई देने नहीं आएगा. हां, मैं बहनबेटियों को जरूर कुछ गिफ्ट दूंगा. ऐसा नहीं कि मैं वरिष्ठ नागरिक होते ही ‘अशिष्ट’ सिद्ध होऊं. पर शिष्ट होने के लिए अपने को नष्ट नहीं करूंगा.’’

मैं सोचने लगा कि अपने ही विभाग का वेणुगोपाल पैसों के अभाव का रोना रो कर 5 हजार रुपए ले गया था, अब वापस करने की स्थिति में नहीं है. उस के बेटीदामाद ने मुकदमा ठोका हुआ है कि उन्हें उस की भविष्यनिधि से हिस्सा चाहिए. रामलाल भी एक अवकाश प्राप्त व्यक्ति थे. एक दिन आए और गिड़गिड़ाते हुए कहने लगे, ‘‘शर्माजी, रिटायर होने के बाद मैं कंगाल हो गया हूं. बेटों के लिए मकान बनाया. अब उन्होंने घर से बाहर कर दिया है. 15 हजार रुपए दे दीजिए. गायभैंस का धंधा करूंगा. दूध बेच कर वापस कर दूंगा.’’

रिटायर होने के बाद मैं घर बैठ गया. 10 दिन बीत गए. न विदाई समारोह का आयोजन हुआ, न विभाग से कोई मिलने आया. मैं ने गेटपास जमा कर दिया था. कारखाने के अंदर जाना भी मुश्किल था. समय के साथ विभाग वाले भूल गए कि विदाई की रस्म भी पूरी करनी है. एक दिन विजय आया. उलाहने भरे स्वर में बोला, ‘‘यार, तुम ने मुझे किसी आयोजन में नहीं बुलाया?’’

मैं दुखी स्वर में बोला, ‘‘क्षमा करना मित्र, रिटायर होने के बाद कोई मुझे पूछने नहीं आया. विभाग वाले भी विभाग के काम में लग कर भूल गए…जैसे सारे नाते टूट गए हों.’’ कमला ताने दे बैठी, ‘‘बड़े लालायित थे आधाआधा किलो के पैकेट देने के लिए…’’

बलबीर को अवसर मिला. बोला, ‘‘मांसाहारी भोज से इनकार कर गए, अत: सब का मोहभंग हो गया. अब आशा भी मत रखिए…आप को पता है, मंदी का दौर पूरी दुनिया में है. उस का असर भारत के कारखानों पर भी पड़ा है. कुछ अनस्किल्ड मजदूरों की छंटनी कर दी गई है. मजदूरों को चंदा देना भारी पड़ रहा है. वैसे भी जिस विभाग का प्रतिनिधि चंदा उगाहने में माहिर न हो, काम से भागने वाला हो और विभागीय आयोजनों पर ध्यान न दे, वह कुछ नहीं कर सकता.’’

विजय ने कहा, ‘‘यार, शर्मा, घर में बैठने के बाद कौन पूछता है? वह जमाना बीत गया कि लोगों के अंदर प्यार होता था, हमदर्दी होती थी. रिटायर व्यक्ति को हाथी पर बैठा कर, फूलमाला पहना कर घर तक लाया जाता था. अब लोग यह सोचते हैं कि उन का कितना खर्च हुआ और बदले में उन्हें कितना मिला. मुरगाशराब खिलातेपिलाते तो भी एकदो माह के बाद कोई पूछने नहीं आता. सचाई यह है कि रिटायर व्यक्ति को सब बेकार समझ लेते हैं और भाव नहीं देते.’’ मैं कसमसा कर शांत हो गया…घर में बैठने का दंश सहने लगा.

मेरे पति जबरदस्ती करते हैं, मैं परेशान हो गई हूं…

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मेरी शादी को 3 साल हो चुके हैं. पति रोजाना मुझ से संबंध बनाते हैं. मना करने पर वे मारपीट कर के जबरन संबंध बनाते हैं. मैं क्या करूं?

जवाब

आप के पति कोई गुनाह नहीं कर रहे हैं, बस उन का तरीका गलत है. यही काम वे प्यार से भी कर सकते हैं. आप को भी अगर कोई तकलीफ होती है, तो उस बारे में पति को तसल्ली से बता सकती हैं. जब आप इतनी गहराई से जुड़ी हैं, तो बात करने में झिझकना नहीं चाहिए. वैसे, पति का हक है आप के साथ संबंध बनाना, लिहाजा मना न करें.

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हमारे देश में महिलाओं को पुरुषों का हमकदम बनाने के लिए महिला आयोग बनाया गया है. हर राज्य में आयोग की एक फौज है, जहां महिलाओं की परेशानियां सुनी और सुलझई जाती हैं. लेकिन बीते कुछ समय से महिला आयोग संस्था की चाबियों का गुच्छा कुछ ज्यादा ही भारी हो गया है, इसलिए वह संभाले नहीं संभल रहा है और जमीन पर गिरने लगा है. केरल महिला आयोग में भी ऐसा ही कुछ हुआ.

आयोग की अध्यक्ष एम सी जोसेफिन ने घरेलू हिंसा की शिकार एक महिला को रूखा सा जवाब देते हुए टरका दिया. दरअसल, आयोग अध्यक्षा टीवी पर लाइव महिलाओं की परेशानी सुन रही थीं. इसी बीच घरेलू हिंसा की शिकार एक महिला आयोग की अध्यक्षा को फोन पर अपनी आपबीती सुनाते हुए कहने लगी कि उस के पति और ससुराल वाले उसे काफी परेशान करते हैं.

अध्यक्षा को जब पता चला कि लगातार हिंसा सहने के बाद भी महिला ने कभी उस की शिकायत पुलिस में नहीं की, तो वे भड़क गईं और रूखे अंदाज में कहा कि अगर हिंसा सहने के बाद भी पुलिस में शिकायत नहीं करोगी तो भुगतो. उन का पीडि़ता पर झल्लाने का वीडियो वायरल हुआ तो उन्होंने अपने पद का ही त्याग कर दिया.

मगर जातेजाते वे यह कहना नहीं भूलीं कि औरतें फोन कर के शिकायत तो करती हैं, लेकिन जैसे ही पुलिसिया काररवाई की बात आती है, पीछे हट जाती हैं. इस के बाद से आयोग अध्यक्षा घेरे में आ गईं कि कैसे इतने ऊंचे पद पर बैठी महिला, तकलीफ में जीती किसी औरत से इस तरह रुखाई से बात कर सकती है. बात भले ही आ कर अध्यक्षा की रुखाई पर सिमट गई, लेकिन गौर करें तो मामला कुछ और ही है.

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