सेक्टर 36 से लेकर तुम्बाड़ 2 तक, इस वीकेंड को मजेदार बनाने के लिए देखें ये New Movies

वीकेंड का हर किसी को बेसब्री से इंतजार रहता है. हफ्ते में अगर दो दिन खुलकर एंजौय करने का मौका मिल जाए, तो ये वीकेंड हमारे लिए एनर्जी बूस्टर की तरह काम करता है. अगर आप भी इस वीकेंड अपनी छुट्टियों का भरपूर आनंद उठाना चाहते हैं, तो ये नई हिंदी फिल्में (New Movies) जरूर देखें. इन फिल्मों को देखकर आपका वीकेंड मजेदार हो जाएगा.

 

स्त्री 2

यह फिल्म 15 अगस्त के मौके पर रिलीज हई. बौक्स औफिस पर इस फिल्म ने बम्पर कमाई की. अगर आपने यह फिल्म नहीं देखी है, तो इस वीकेंड जरूर देखें. यह हौरर कमेडी फिल्म आपका दिल जीत लेगी. अभी तक के कलैक्शन की बात करें तो स्त्री 2 ने 42 दिनों में लगभग 581 करोड़ रुपए का कलेक्शन कर लिया है. यह फिल्म जल्द ही 100 करोड़ रुपए के आंकड़े को छूने वाली है.

इस फिल्म में राजकुमार राव और श्रद्धा कपूर के अलावा पंकज त्रिपाठी, अभिषेक बनर्जी, अपारशक्ति खुराना, सुनीता राजवार ने अहम किरदार निभाया है. इस फिल्म की कहानी चंदेरी गांव में सरकटे के आतंक के ईर्दगिर्द घूमती है जिसने गांव की महिलाओं को अगवा कर दहशत फैलाया है.

कहां शुरू कहां खत्म

यह फिल्म 20 सितंबर को रिलिज हुई. यह फिल्म औरतों को घूंघट से बाहर निकालने का मैसेज देती है. आप इस फिल्म को भी वीकेंड लिस्ट में जोड़ सकते हैं. इस फिल्म से ध्वनि भानुशाली का डेब्यू हुआ है. जो एक पौपुलर सिंगर भी हैं.

फिल्म की कहानी ध्वनि भानुशाली यानी मीरा नाम की एक लड़की की है, जो अपनी शादी के दिन घर से भाग जाती है. इसका कारण ये है कि और शादी करने के लिए उससे पूछा तक नहीं गया. और उसकी शादी भी फिक्स कर दी गई. उस लड़की के जीवन में कई उतार-चढ़ाव आते हैं. इस फिल्म की कहानी आपका दिल छू लेगी.

जो तेरा है वो मेरा है

राज त्रिवेदी द्वारा निर्देशित कौमेडी फिल्म जो तेरा है वो मेरा है दर्शकों को एंटरटेन करने के लिए शानदार फिल्म है. यह फिल्म एक साधारण कहानी के साथ पारिवारिक भी है. इस फिल्म में अमित सियाल , परेश रावल , सोनाली कुलकर्णी , सोनाली सहगल और अन्य कलाकार हैं.

इस फिल्म की कहानी मितेश (अमित सियाल) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो बचपन से ही एक बंगले का सपना देखता है. उसकी पत्नी और प्रेमिका दोनों है. वह कैसे सबको खुश रखने की कोशिश करता है. इस फिल्म में ये देखना काफी दिलचस्प है.

तुम्बाड़ 2

फिल्म तुम्बाड़ 2 कुछ दिनों पहले ही रिलीज हुई. आप इस मूवी को भी इस वीकेंड एंजौय कर सकते हैं. इस फिल्म का निर्देशन राही अनिल बर्वे ने किया है. यह फिल्म डरावनी है और इसमें कई विचित्र दृश्य हैं. तुम्बाड़ पार्ट 1 साल 2018 में रिलिज किया गया था, जो दर्शकों का काफी पसंद आया था.

सेक्टर 36

विक्रांत मेसी  की फिल्म सेक्टर 36 डरावनी है. अगर आपको डरावनी फिल्में पसंद है, तो इस वीकेंड ‘सेक्टर 36’ को मिस न करें. इस फिल्म में कोठी में काम करने वाला आदमी छोटे बच्चों को मारता है और लाशों के टुकड़ों  को कोठी में ही दफना देता है. वो ऐसा क्यों करता है, ये जानने के लिए पूरी फिल्म देखना होगा. 12 वीं फेल के बाद जिस विक्रांत मैसी  को दर्शकों से काफी प्यार मिला था. इस फिल्म के किरदार में भी उन्होंने जबरदस्त ऐक्टिंग की हैं. 14 सिंतबर को यह फिल्म रिलीज हुई थी.

लीप के बाद Anupama को टक्कर देने आएगी ये ऐक्ट्रैस, क्या आध्या का किरदार निभाएंंगी शिवांगी जोशी?

टीवी का पौपुलर सीरियल अनुपमा (Anupama) लगातार कई दिनों से सुर्खियों में हैं. इस शो में वनराज का किरदार निभाने वाले सुधांशु पांडे ने सीरियल को अलविदा कह दिया. तो वहीं कुछ दिनों पहले ये भी खबर आई कि काव्या यानी मदालसा शर्मा ने भी इस शो को छोड़ दिया है.

रिपोर्ट में बताया गया कि इस शो में 15 साल का लीप दिखाया जाएगा. जिसमें कई कलाकारों की छुट्टी होगी. रुपाली गांगुली (अनुपमा) और गौरव खन्ना (अनुज) भी इस शो में नजर नहीं आएंगे. जिससे फैंश काफी निराश हो गए थे. लेकिन वहीं इस सीरियल से जुड़ा एक बड़ा अपडेट सामने आया, जिसमें बताया गया कि लीप आने के बाद अनुपमा की लीड ऐक्ट्रैस रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना शो में नजर आएंगे.

लीप के बाद अनुपमा की कहानी में होगा ये बदलाव?

सीरियल में लीप आने के बाद शो की कहानी में कई नए बदलाव आएंगे. रिपोर्ट्स की माने तो शो की कहानी काजल नाम की लड़की के इर्दगिर्द घूमेगी. काजल एक जिंदा दिल, मौज मस्ती करने वाली लड़की का किरदार होगा. जो अपने पिता को बहुत प्यार करती है, लेकिन अपनी मां की गलती के कारण वह अपने पिता को खो देती है. वह अपनी मां को पिता की मौत का जिम्मेदार मानती है. ऐसे में वह अपना घर छोड़ देती है.

खबरों के अनुसार, सीरियल में दिखाया जाएगा कि काजल अकेले अपने पिता का सपना कैसे पूरा करने के लिए संघर्ष करती है. वह एक ऐसी लड़की है, जो गरीब लोगों का मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहती है. किरदार के बारे में जानकर तो ऐसा लग रहा है कि यह लड़की अनुपमा की तरह लोगों को जमकर ज्ञान देने वाली है. खैर ये तो सीरियल में लीप के आने के बाद ही काजल के किरदार के बारे में विस्तार से पता चलेगा.

क्या शिवांगी जोशी अनुपमा में लेंगी एंट्री?

ये रिश्ता क्या कहलाता है फेम शिवांगी जोश जो शो में 7 सालों तक नायरा का किरदार निभाया था. दर्शकों ने इस किरदार को खूब पसंद किया था. ऐसे में खबर आ रही है कि शिवांगी जोशी के आध्या के किरदार में नजर आ सकती है. एक रिपोर्ट में बताया गया है कि उन्हें इस किरदार के लिए अप्रोच किया गया है.

सीरियल के लेटेस्ट एपिसोड में लव एंगल दिखाया जा रहा है. जिसमें मीनू और सागर की प्रेम कहानी को फोकस किया जा रहा है. शो में आप देखेंगे कि सागर मीनू को लेकर टेंशन में रहता है. तो दूसरी तरफ डौली मीनू को लेकर अंदर आती है. तोषु और पाखी डांस करते हु आते हैं. डौली बताती है कि मीनू का रिश्ता पक्का कर दिया है और डौली मान गई है. ये सुनकर सब हैरान हो जाते हैं और सागर का दिल टूट जाता है.

पाखी को आध्या घर से निकालेगी बाहर

शो में आगे दिखाया जाएगा कि शाह परिवार के सभी लोग मीनू का इंतजार करते हैं. तभी डिंपी सबको बताती है कि मीनू और सागर घर से गायब है. ऐसे में डौली का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ जाता है. वह अनुपमा को खूब खरीखोटी सुनाती है. इतना ही नहीं अनुपमा पर सागर और मीनू को भगाने का आरोप भी लगाती है.  दूसरी तरफ आध्या भड़क जाती है और अपनी मां के साथ इस बदतमीजी का करारा जवाब देती है. आध्या पाखी को खूब सुनाती है और घर से बाहर निकलने के लिए कह देती है.

मीनू और सागर भागकर करेंगे शादी

दूसरी तरफ सागर और मीनू शादी करके आ जाते हैं. डौली ये बर्दाश्त नहीं कर पाती है. वह अपनी बेटी का मांग साफ करने लगती है, लेकिन अनुपमा बीच में आकर रोकती है. शो में ये देखना दिलचस्प होगा सागर और मीनू की शादी को लेकर अनुपमा क्या फैसला करेगी?

बबूल का माली: क्यों उस लड़के को देख चुप थी मालकिन

लेखक- नारायण शांत

लड़का अपने शहर रायपुर को छोड़ कर भिलाई पहुंच गया, वहां के बारे में वह बहुत कुछ सुन चुका था. वह किसी घरेलू नौकरी की तलाश में था ताकि उसे पढ़नेलिखने की सुविधा भी मिल सके. ऐसा ही एक परिवार था, जहां से दोचार दिन में ही नौकरनौकरानियां काम छोड़ कर चल देते, क्योंकि उस घर की मालकिन के कर्कश स्वभाव से तंग आ कर वे टिक ही नहीं पाते थे. एक दिन लड़का उसी बंगले के सामने जा खड़ा हुआ और उस मालकिन से नौकरी देने का आग्रह करने लगा.

पहले तो उस ने लड़के की बातों पर कोई गौर नहीं किया, लेकिन फिर बोली, ‘‘लड़के, तुम क्याक्या काम कर सकते हो ’’ लड़के का आग्रह सुन कर मालकिन को लगा कि जरूर वह पहले कहीं काम कर चुका है. वह उस से बोली, ‘‘ठीक है, आज और अभी से मैं तुम्हें काम पर रखती हूं.’’

‘‘मालकिन, एक शर्त मेरी भी है,’’ लड़के ने हाथ जोड़ कर कहा.

‘‘बताइए, क्या है तुम्हारी शर्त ’’

‘‘मैं काम के बदले पैसा नहीं लूंगा बल्कि आप मुझे खाना, कपड़ा और मेरी पढ़ाईलिखाई की व्यवस्था कर दें,’’ लड़के ने दयनीय स्वर में कहा. पहले तो यह सुन कर मालकिन हड़बड़ा गई लेकिन अपनी मजबूरी को देखते हुए उस ने कह दिया, ‘‘ठीक है, लेकिन पढ़ाई-लिखाई के कारण घर का काम प्रभावित नहीं होना चाहिए.’’ लड़के को उस घर में काम मिल गया. वह सब से आखिर में सोता और सवेरे सब से पहले उठ कर काम शुरू कर देता. फिर काम निबटा कर स्कूल जाता. लड़का इस घर, नौकरी और पढ़ाईलिखाई, सभी से बड़ा खुश था. वह अपना काम भी पूरी ईमानदारी, लगन और मेहनत से करता. मालकिन को घरेलू नौकरचाकरों पर रोब झाड़ने की बुरी आदत थी, लेकिन उसे भी लड़के में जरा भी खोट दिखाई नहीं दिया. वह उस के काम से खुश थी.

घर वालों से प्यार और अपनापन मिलने के बावजूद लड़का इस बात का बराबर खयाल रखता कि वह एक नौकर है और उसे पढ़लिख कर एक दिन अच्छा आदमी बनना है. अपनी विधवा मां और भाईबहनों का सहारा बनना है. इधर इतना अच्छा और गुणी नौकर आज तक इस परिवार को नहीं मिला था. घर के बच्चों और खुद मालिक को दिनरात इसी बात का खटका लगा रहता था कि कहीं मालकिन इसे भी निकाल न दे. उधर आदत से मजबूर मालकिन उस लड़के से लड़ने का बहाना ढूंढ़ रही थी. एक दिन वह सोचने लगी कि यह दो कौड़ी का छोकरा इस घर में इतना घुलमिल कैसे गया  न काम में सुस्ती, न अपनी पढ़ाईलिखाई में आलस और खाने के नाम पर बचाखुचा जो कुछ भी मिल जाए खा कर वह इतना खुश रहता है. एक दिन मालकिन ने सब की उपस्थिति में लड़के से कहा, ‘‘देखो, अब से तुम हर महीने अपना वेतन ले लिया करना, ताकि तुम अपने खानेपीने, रहने और पढ़नेलिखने का अलग से इंतजाम कर सको.’’

लड़का आश्चर्य से मालकिन की ओर देखने लगा. उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था. उस ने विनम्रतापूर्वक कहा, ‘‘मालकिन, मुझे मौका दो मैं अपना काम और अच्छी तरह से करूंगा.’’ लड़के की बातों से ऐसा लगा जैसे मातापिता की सेवा करने वाले इकलौते और गरीब श्रवणकुमार को किसी राजा ने अपना शिकार समझ कर आहत कर दिया हो और बाकी लोग राजा के डर से मात्र मूकदर्शक बने बैठे हों. मालकिन को अपने पति और बच्चों की चुप्पी से ठेस लगी. वह भीतर ही भीतर तिलमिला कर रह गई, लेकिन कुछ नहीं बोली. अब तक ऐसे मौकों पर सभी उस का साथ दिया करते थे, लेकिन इस बार घर के सब से छोटे बच्चे ने ही टोक दिया, ‘‘मां, इस तरह इस बेचारे को अलग करना ठीक नहीं.’’

यह सुन कर मालकिन आगबबूला हो गई और चिढ़ कर बोली, ‘‘यह छोटा सा चूहा भी अच्छेबुरे की पहचान करने लगा है और मैं अकेली ही इस घर में अंधी हूं.’’वहां पर कुछ देर के लिए अदालत जैसा दृश्य उपस्थित हो गया. न्यायाधीश की मुद्रा में साहब ने कहा,  ‘‘किसी नौकर को निकालने या रखने के नाम से ही घर वाले आपस में लड़ने लगें तो नौकर समझ जाएगा कि इस घर में राज किया जा सकता है.’’

‘‘क्या मतलब ’’ मालकिन की आवाज में कड़कपन था.

‘‘मतलब साफ है, नौकर से मुकाबला करने के लिए हमें आपसी एकता मजबूत कर लेनी चाहिए,’’ साहब ने शांत स्वर में कहा. मालकिन अपनी गलती स्वीकार करने के पक्ष में नहीं थी. बुरा सा मुंह बनाते हुए वह भीतर कमरे में चली गई. साहब ने बाहर जाते हुए लड़के को समझा दिया कि वह उन की बातों का बुरा न माने और भीतर कमरे में सब को समझाते हुए कहा कि लड़के पर कड़ी नजर रखी जाए. जहां तक हो सके उसे रंगेहाथों पकड़ा जाना चाहिए, ताकि उसे भी तो लगे कि उस ने गलती की है, चोरी की है और उस से अपराध हुआ है.

वह दिन भी आ गया, जब लड़के को निकालने के बारे में अंतिम निर्णय लिया जाना था. लड़का उस समय रसोई साफ कर रहा था. घर के सभी सदस्य एक कमरे में बैठ गए. साहब ने पूछा, ‘‘अच्छा, किसी को कोई ऐसा कारण मिला है, जिस से लड़के को काम से अलग किया जा सके ’’ मालकिन चुप थी. उसे अपनेआप पर ही गुस्सा आ रहा था कि वह भी कैसी मालकिन है, जो एक गरीब नौकर में छोटी सी खोट भी नहीं निकाल सकी. मालकिन की गंभीरता और चुप्पी को देख कर साहब ने मजाक में ही कह दिया, ‘‘मुझे नहीं लगता कि बबूल में भी गुलाब खिल सकते हैं.’’

‘‘जिस माली की सेवा में दम हो, वह बबूल और नागफनी में भी गुलाब खिला सकता है,’’ मालकिन के मुंह से ऐसी बात सुन कर, दोनों बच्चों और साहब का मुंह आश्चर्य से खुला रह गया. जब बात बनने के लक्षण दिखने लगे तो साहब ने कहा, ‘‘देखो भाई, जो भी कहना है, साफसाफ कह दो. बेचारे लड़के का मन दुविधा में क्यों डाल रहे हो ’’ तब मालकिन ने चिल्ला कर उस लड़के को बुलाया. लड़का आया तो मालकिन ऐसे चुप हो गई, जैसे उस ने लड़के को पुकारा ही न हो. वह ऐसे मुंह फुला कर बैठ गई, जैसे लड़के की कोई बड़ी गलती उस ने पकड़ ली हो.

अभीअभी बबूल, नागफनी, गुलाब और माली की बातें करने वाली मालकिन को फिर यह कैसी चाल सूझी  यह सोच कर साहब ने कहा, ‘‘जो कहना है साफसाफ कह दो, बेचारा कहीं और काम कर लेगा.’’

‘‘मुझे साफसाफ कहने के लिए समय चाहिए,’’ मालकिन बोली और वैसे ही मुंह फुला कर बैठी रही.

‘‘और कब तक इस बेचारे को अधर में लटका कर रखोगी, जो कहना है अभी कह दो,’’ साहब ने कहा, इस बार साहब और बच्चों ने भी तय कर लिया था कि मालकिन की इस तरह बारबार नौकर बदलने की आदत को सुधार कर ही दम लेंगे. मालकिन ने ताव खा कर कहा, ‘‘तो सुनो, जब तक यह लड़का अपने पांव पर खड़ा नहीं हो जाता, तब तक इसी घर में रहेगा, समझे.’’ एकाएक मालकिन में हुए इस परिवर्तन से सभी को आश्चर्य तथा अपार खुशी हुई. वैसे बबूल, नागफनी, गुलाब और माली वाली बातों का खयाल आते ही, सब को लगा कि मालकिन लड़के को पहले से ही अच्छी तरह परख चुकी थी और उस की जिंदगी संवारने के लिए मन ही मन अंतिम निर्णय भी ले चुकी थी.

जब 40 की उम्र के बाद मिले खोया हुआ प्यार…

हर स्त्री जब उम्र के इस दौर से गुजर रही होती है यानी 40 के पार. हलका भरा हुआ बदन, चेहरे पर जीवन के अनुभव से आया हुआ आत्मविश्वास, मांबाप, भाईबहन की बंदिशों से आजाद. बच्चे भी काफी हद तक निर्भर बन चुके होते हैं, पति भी अपने कार्यक्षेत्र में ज्यादा मशरूफ हो जाते हैं यानी कुल मिला कर औरत को थोड़ा समय मिलता है अपने ऊपर ध्यान देने का. फिर आज के समय में सोशल मीडिया के माध्यम से बहुत से नए मित्र बन जाते हैं या पुराने बिछड़े हुए प्रेमी युगल इस सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर भी मिल जाते हैं.

अब जब नए मित्र  बनेंगे या पुराने मित्र मिलेंगे तो उन के बीच कुछ आकर्षण होना स्वाभाविक है. विवाह के बाद जीवन के 15 से 20 वर्ष तो घरपरिवार बनाने में, बच्चों की परवरिश में बीत जाते हैं यानी अब एक बार फिर स्त्री खुद को नजर उठा कर आईने में देखती है तो नजर आता है कि पहले का रूप तो गायब ही हो गया है. अचरज तो इस बात का है कि पता ही नहीं चला कि कहां गायब हुआ है.

खुद को अकेला न समझें

अब अवसाद में घिरने के बजाय स्त्री फिर कमर कसती है इस बार खुद को निखारने, संवारने की. खोए हुए शौक को पूरा करने के लिए. अब इस राह पर चलते हुए वह खुद को अकेला पाती है. पति व्यस्त हैं. बच्चे अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए मेहनत कर रहे हैं. अब वह ढूंढ़ती है कोई हो जो उसे समय दे सके, उसे प्रोत्साहित कर सके और शायद इस में कुछ गलत भी नहीं है. अब अगर कोई उसे सराहता है, उस की खूबियां उसे गिनाता है तो आखिर स्त्री को अच्छा क्यों नहीं लगेगा? भई लगना भी चाहिए.

तो बहुत अच्छे से समझ लें. इस में कुछ भी गलत नहीं है. अब आप कोई 16 साल की लड़की नहीं हैं. आप किसी की मां हैं, पत्नी, सास, चाची, नानी, दादी, बुआ, मामी हैं तो किसी की महिला मित्र क्यों नहीं बन सकतीं क्योंकि इन सभी रिश्तों को निभाने के बाद भी एक स्त्री एक ऐसे पुरुष को ढूंढ़ती है जो उसे मन से पूर्ण कर दे. उस की रूह को छू ले क्योंकि जिस्म का कुंआरापन तो शादी के बाद मिट ही जाता है, किंतु रूह अनछुई ही रह जाती है. सब की नहीं तो बहुतों की. देह की दहलीज से कोसों दूर.

इस में कोई बुराई नहीं

अगर मन से मन मिल सकता है तो कोई बुराई नहीं है. बरसों पहले देखी ‘खामोशी’ फिल्म के एक गाने के पंक्तियां यहां लिखूंगी, ‘‘हम ने देखी है उन आंखों की महकती खुशबू प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो सिर्फ एहसास है ये रूह से महसूस करो हाथ से छू के इसे रिश्तों का इलजाम न दो…’’

आप के मित्र भी किसी के पति, पिता, ससुर, चाचा, नाना, दादा होंगे तो अब यहां साथसाथ जीनेमरने की कसमें खाने का या

रिश्तों में बंधने या बांधने का कोई प्रश्न या औचित्य नहीं है. शायद उम्र के इस दौर में जिंदगी के खट्टेमीठे अनुभव साझा करने के लिए वे भी एक दोस्त ढूंढ़ रहे हों कि किसी को बता सकें कि उन्हें आज भी शाम को समुंदर के किनारे डूबता सूरज देखना अच्छा लगता है या वे डायरी में कभीकभी कुछ लिखते हैं आदिआदि.

एक बात और लिखूंगी कि कोई भी रिश्ता बुरा या गंदा नहीं होता है. हम उस रिश्ते को किस ढंग से निभाते हैं उस रिश्ते की सफलता या असफलता उस पर निर्भर करती है.

हमेशा खुश रहें

हमारी सब से बड़ी जिम्मेदारी खुद को खुश रखने की होती है. जब हम खुद खुश होंगे तभी हम अपने अपनों को भी ज्यादा खुशी दे पाएंगे. अब अगर हमारी खुशी कहीं गुम हो गई है तो उसे खोजने में अगर हमारा कोई मित्र या शुभचिंतक हमारी कोई मदद कर रहा है तो यह कोई गलत नहीं है. आप अब इतनी परिपक्व हो चुकी हैं कि किसी से चंद मिनट अकेले बात कर सकती हैं, कभी एक कौफी पी सकती है, कभी चैट कर सकती हैं.

तो बस अगर आप का कोई ऐसा मित्र है आप के जीवन में तो खुद को खुशहाल समझें न कि अपने को अपनी ही नजर में गिरी हुई, बदचलन औरत समझें.

तलाक लेने के बाद क्या अच्छे जीवन की शुरुआत नहीं हो सकती?

बचपन से सुनती आई थी बेटियां बाप की इज्जत होती हैं, भाई का मान होती हैं और विवाह के बाद पति का सम्मान होती हैं, बेटे का हौसला होती हैं. इसी लीक पर समाज की गाड़ी दौड़ रही है यानी जन्म से मृत्यु तक का सफर पुरुष संरक्षण में ही गुजरता है और सबकुछ सामान्य रूप से चलता रहता है. किंतु प्रश्न तब खड़ा होता है जब किसी कारण से किसी लड़की का तलाक हो जाता है यानी गाड़ी पटरी से उतर जाती है.

यहां पर मैं पति के मृत्यु का मुद्दा नहीं उठाऊंगी वह एक अलग प्रश्न है. हालाकि पति की मृत्यु के बाद भी अकेली औरत को दिक्कत तो कमोबेश वैसी ही आती है. किंतु तलाक के केस में लड़की अपने पति से संबंध विच्छेद कर लेती है यानी अस्वीकार कर देती है रिश्ते को.

अमूमन तो लड़कियों को मानसिक रूप से इस बात के लिए बचपन से ही तैयार कर दिया जाता है कि तुम कितना भी पढ़लिख लो तुम्हें शादी के बाद अपने पति और उन के घर वालों के मुताबिक ही जीवन जीना होगा और आज भी मातापिता विवाह के वक्त यह तो देखते हैं कि लड़का आर्थिक रूप से कितना सफल है. किंतु वह नहीं देखते कि लड़की की परवरिश उन्होंने जिस परिवेश में की है उस की भावी ससुराल का परिवेश कमोबेश वैसा ही है या नहीं.

तलाक के बाद

जब हम एक छोटा पौधा ले कर आते हैं तो यह देखते हैं यह पौधा किस तरह की मिट्टी और जलवायु में फूलताफलता है. उसे वैसा ही वातावरण देते हैं या फिर उसे नए पर्यावरण में विकसित होने में ज्यादा समय लगने पर भी धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करते हैं. किंतु अफसोस बेटियों को नए घर में एकदम विपरीत परिस्थितियों में भी उन के मातापिता प्रत्यारोपित कर देते हैं और उन के ससुराल वाले भी उन से मनीप्लांट की तरह पानी में, मिट्टी में हर जगह हराभरा रहने की अपेक्षा करने लगते हैं. अगर बेचारी लड़की मनीप्लांट के बजाय गुलाब हुई तो फिर तो कांटों से उस का सामना हर दिन, हर पल होता है.

अब पुन: मूल प्रश्न पर आती हूं. एक पढ़ीलिखी आत्मनिर्भर लड़की या आत्मनिर्भरता की योग्यता रखने वाली लड़की का जीवन तलाक के बाद  सामान्य क्यों नहीं रह पाता?

वह कहां रहेगी, यह प्रश्न सौसौ मुंह वाले नाग की तरह फन उठाए डसने को तैयार रहता है. उसे मातापिता या भाईभाभी के साथ ही रहने को कहा जाता है. जहां चाहे उस के आत्मसम्मान को हर पल छलनी ही क्यों न किया जाता हो. वह कमाए भी और घर में दोयम दर्जे का स्थान भी पाए. भाभी के कटाक्ष सहे. मांबाप की आंखों में उन की परवरिश पर धब्बा लगाने का उल्हाना देखे. शायद ही कोई कहता है कि तुम ने ठीक किया. क्यों भई आखिर औरत को अपनी पसंद न पसंद से जीने का अधिकार क्यों नहीं है?

समाज जीने नहीं देता

लड़की अगर यह कह दे कि उन का चाल चलन ठीक नहीं है तो सबसे पहले मां ही कहती है बेटी सुधर जाएगा. तुम प्यार से सम?ाओ आदिआदि या पूरी शाकाहारी बेटी का पति मांसाहारी भोजन करता है तो उस को कहा जाता है तुम भी ढल जाओ. उदाहरण अनगिनत हैं. लड़कियां भी बहुत हद तक बरदाश्त कर जाती हैं या कह लें अंदर से मर जाती हैं. कुछ जिंदा लाश जैसी जीती हैं.

कुछ अगर साहस कर जीने के लिए उस बंधन को तोड़ने का साहस कर भी लेती हैं तो समाज उन्हें जीने नहीं देता. उन के अलग रहने के फैसले को उन की बदचलनी का सुबूत मान लिया जाता है. कुछ अपवाद भी होगे किंतु मैं बात बहुतायत लड़कियों की कर रही हूं. उन्हें सामान्य रूप से अगर ससुराल में कुछ ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों से दोचार होना पड़ता है जो उन्हें लगता है कि बरदाश्त करने योग्य नहीं हैं तो उन्हें बिना दबाव या तनाव के विवाह विच्छेद करने का मौका मिलना चाहिए.

कठिन है रिश्ते को धोना

यहां हम यह नहीं कह रहे कि आप अपनी ससुराल में सामंजस्य न बैठाएं. हम कह रहे हैं कि आप तलाक के बाद होने वाले संघर्षपूर्ण जीवन अपमान आदि से डर कर कुछ ऐसा मत सहें जो कि सहना गलत हो. चाहे पति का आचरण हो या उस के किसी दूरपास के रिश्तेदार द्वारा यौन शौषण हो या सास अथवा ससुराल वालों की अमानवीय यातनाएं हों. मैं उन परिस्थितियों का उदाहरण तो नहीं दे सकती किंतु इतना कहूंगी कि आप अपने आत्मसम्मान को बचा कर ही अपना रिश्ता कायम रखें.

अगर आप का आत्मसम्मान ही मर गया है तो फिर आप के रिश्ते की मृत्यु निश्चित है और मरा हुआ रिश्ता लाश के समान भारी हो जाता है जिसे ढोना बहुत कठिन हो जाता है. हर बीतते दिन के साथ उस से दुर्गंध आती है. फिर कुकुरमुत्ते से उगते हैं अवैथ संबंध. खराब होती हैं कई और जिंदगियां. इसलिए तलाक को समाज का कोढ़ नहीं समझें.

जैसे विवाह एक सामान्य बात है वैसे ही विवाह के टूटने को भी सामान्य रूप से ही लें और तलाक लिए हुए लड़के और लड़की को भी सामान्य इंसान ही सम?ों. उन को अपनी चटपटी खबरों का जरीया न बनाएं. वे जैसे रहना चाहें उन्हें रहने दें. अगर मातापिता के साथ बेटी नहीं रहना चाहती है तो उसे स्वावलंबी बनाने में मदद करें.

जीवन जीने के लिए

पैतृक संपत्ति में से उन के हिस्से को उन्हें दे कर उन्हें सहयोग करें. अगर बेटी पहले से स्वावलंबी है और तलाक के बाद आप के साथ रहती है तो उसे कभी अपमानित या कमतर मत जताएं. अब जब समाज बहुत आगे निकल गया है किसी भी कारण से अगर दोनों का सामंजस्य बहुत सारी ईमानदार कोशिश के बाद भी ठीकठाक नहीं चल रहा है तो दोनों को अपनी राहें अलगअलग करने दें न कि रीतिरिवाज, समाज के भय से जबरदस्ती के बो?ा तले दब कर पूरी जिंदगी बरबाद करने दें.

जीवन सिर्फ जीने के लिए होता है. तिलतिल कर मरने के लिए नहीं. मरना तो तय है तो क्यों न जी लें जरा. झूठी खुशी का मुखौटा पहन कर जो कर बनने से अच्छा है सच के साथ स्वावलंबी जीवन जीएं और किसी भी मोड़ पर कोई नया मुकाम आप को फिर मिल भी सकता है तो उसे सहज रूप से अपनाएं.

अगर आप खुश नहीं हैं तो आप इस बात को गंभीरता से लें. आप सिर्फ समाज के डर से या मातापिता भाई के सम्मान को ठेस लगेगी इस डर से मानसिक तनाव को ?ोलते हुए विवाह में मत बनी रहें. हां, आप को पूरी स्थिति का आकलन बहुत ही गंभीरता से करना होगा. मैं रिश्ते को तोड़ने की वकालत नहीं कर रही हूं बस इतना ही कह रही हूं कि आप अपने रिश्ते को बचाने की पूरी ईमानदार कोशिश करिए और करनी भी चहिए. किंतु अपने आत्मसम्मान और अपनी आजादी को दांव पर लगा कर नहीं. आप की सब से बड़ी जिम्मेदारी आप स्वयं हैं.

खुद को खुश रखिए

खुद के सम्मान और गरिमा को बनाए रखिए. खुद को हद से ज्यादा न झुकाएं न गिराएं और अगर आप को ईमानदारी से पूरी परिस्थिति का अवलोकन करने पर लगता है कि नहीं साथ में रहना संभव नहीं है तो बड़े ही व्यावहारिक रूप से कुछ प्रश्नों के उत्तर तलाशें जैसेकि पति का घर छोड़ने के बाद आप को कहां रहना होगा? क्या करना होगा? स्वावलंबी बनने के लिए आप क्या कर सकती हैं आदिआदि.

पैसों में आप का गुजारा सम्मानपूर्वक हो सकेगा? इन प्रश्नों के संतोषजनक उत्तर खोज लेने के बाद ही आप कोई ठोस कदम उठाएं.

ध्यान रखें कि हो सकता है मातापिता या भाईबहन आप को ऐसा फैसला लेने में कोई सहयोग न करें. इस के 2 प्रमुख कारण हैं- पहला यह कि इन्हें ऐसा लगता है कि तलाक लेने को समाज अच्छी नजर से नहीं देखेगा और कहीं न कहीं उन के दामन पर भी दाग दिखेगा और दूसरा कारण है कि कहीं आप उन पर बोझ न बन जाएं. अत: अपने फैसले पर उन से बहुत ज्यादा सकारात्मक उत्तर की अपेक्षा न रखें.

फैसला खुद के हिसाब और परिस्थिति के हिसाब से लें. भावना में बह कर कोई फैसला न लें. बस एक बात कहूंगी कि रिश्तों को बचाने के लिए थोड़ा सा झुक जाएं लेकिन अगर बारबार आप को ही झुकना पड़े तो फिर रुक जाएं. तलाक खुशियों के लिए अपने दरवाजे बंद करना नहीं है. हो सकता है तलाक एक अच्छे जीवन की शुरुआत हो.

पुराने सोफे को दें न्यू लुक, घर पर ही आजमाएं ये आसान टिप्स एंड ट्रिक्स

पुराना सोफा देखने में उबाऊ लगने लगा है और किसी काम का नहीं रहा, इसलिए आप उसे बदलना चाहते हैं तो जरा रुकिए, कुछ आसान और सस्ते तरीकों से इसे नया लुक दिया जा सकता है. ये तरीके न केवल आप के पैसे बचाएंगे बल्कि सोफे को स्टाइलिश और नया भी बना देगा.

आइए, जानते हैं कि कैसे आप कम बजट में भी अपने पुराने सोफे को नया बना सकते हैं :

कपड़ा बदलना

सोफा का कपड़ा बदलवाने से पहले आप अपने इलाके में फर्नीचर रिपेयर करने वाले या अपहोल्स्ट्री विशेषज्ञों से बात करें. अच्छे से रिसर्च करें ताकि वे आप को सही सुझाव दे सकें कि कौन सा फैब्रिक या मैटीरियल आप के सोफे के लिए अच्छा रहेगा, साथ ही लागत के बारे में भी वे आप को सटीक जानकारी दे सकते हैं. यह सब से अच्छा और प्रभावी तरीका है कि आप अपने सोफे के पुराने कपड़े को बदलवा लें. यह प्रक्रिया रिअफोल्स्ट्री कहलाती है.

आप नए कपड़े का चुनाव अपने घर की सजावट के अनुसार कर सकते हैं. बाजार में कई तरह के विकल्प उपलब्ध हैं, जैसे लेदर (चमड़ा), वैलवेट (मखमली कपड़ा), कौटन लिनेन. इस प्रक्रिया से आप का सोफा न केवल नया दिखेगा, बल्कि घर के इंटीरियर के साथ मेल भी खाएगी.

कुशन या फोम को बदलवाना

अगर सोफा के कुशन या फोम घिस चुके हैं और बैठने में आराम नहीं रह गया है, तो उन्हें बदलवाना एक अच्छा विकल्प हो सकता है. नई फोम या कुशन से सोफा और आरामदायक हो जाएगा और इस की लाइफ भी बढ़ जाएगी.

लकड़ी के हिस्सों की मरम्मत और पौलिश

अगर आप के सोफे में लकड़ी का फ्रेम या आर्मरेस्ट हैं, तो उन्हें मरम्मत कर के और पौलिश करवा कर आप उसे एकदम नया लुक दे सकते हैं. पुरानी लकड़ी को ठीक करवा कर या फिर उसे नए रंग से पेंट करवा कर उस की चमक को वापस लाया जा सकता है. इस से सोफा का लुक काफी नया लगने लगेगा.

थ्रो कुशन और ऐक्सेसरीज

अगर आप अपने सोफे को थोड़ा और आकर्षक बनाना चाहते हैं, तो उस पर कुछ नए थ्रो कुशंस और ऐक्सेसरीज रख सकते हैं. रंगबिरंगे और स्टाइलिश कुशंस से सोफा का लुक तुरंत बदल जाता है. आप कंट्रास्ट रंगों का उपयोग कर सकते हैं ताकि सोफा और कमरे की सजावट में नयापन आ सके.

प्रोफैशनल सोफा रीडिजाइन सर्विस

अगर आप पूरी तरह से नया डिजाइन चाहते हैं, तो आप किसी प्रोफैशनल से सोफे की मरम्मत या डिजाइन बदलवा सकते हैं. प्रोफैशनल डिजाइनर या फर्नीचर मेकर सोफा के कपड़े, फोम और यहां तक कि फ्रेम को भी नया डिजाइन दे कर इसे बिलकुल नया रूप दे सकते हैं.

सोफा स्लिपकवर का इस्तेमाल

अगर आप सोफा को पूरी तरह बदलवाना नहीं चाहते हैं, तो आप एक अच्छा स्लिपकवर (सोफा कवर) भी इस्तेमाल कर सकते हैं. यह तुरंत सोफे का लुक बदलने का सस्ता और आसान तरीका है. बाजार में कई तरह के स्लिपकवर उपलब्ध हैं जो अलगअलग रंगों और डिजाइनों में आते हैं.

बजट बना कर चलें

मरम्मत की लागत आप के सोफे की हालत, कपड़े के प्रकार और इस्तेमाल की गई सामग्री पर निर्भर करेगी. साधारण मरम्मत के लिए यह ₹2,000 से ₹5,000 के बीच हो सकता है जबकि ज्यादा काम होगा तो थोड़ा अधिक खर्च हो सकता है.आप कारीगर से पहले ही बातचीत कर के एक अनुमानित बजट तय कर लें.

औनलाइन और औफलाइन तुलना

आजकल फर्नीचर नवीनीकरण के लिए औनलाइन और औफलाइन दोनों तरह के विकल्प मौजूद हैं. आप ई कौमर्स साइट्स जैसे अमेजन, फ्लिपकार्ट, अरबन लैदर आदि पर पुराने फर्नीचर को नया करने के लिए उपलब्ध कवर, गद्दे और कुशन जैसे विकल्प देख सकते हैं. वहीं, लोकल फर्नीचर मार्केट या फर्नीचर की दुकानों पर जा कर भी आप विभिन्न प्रकार के फैब्रिक और मरम्मत सेवाओं के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.

ट्रैंड्स पर ध्यान दें

सोफे के डिजाइन और फैब्रिक में ट्रैंड्स तेजी से बदलते हैं. नए सोफे के डिजाइन और रंगों का अध्ययन करें और देखें कि कौन सा स्टाइल आजकल लोकप्रिय हैं. उदाहरण के लिए वैलवेट फैब्रिक, मिनिमलिस्ट डिजाइन और मौड्यूलर सोफे आजकल चलन में हैं. आप इंटरनैट पर चल रहे नए ट्रैंड्स के बारे में पिंटरेस्ट, इंस्टाग्राम या डिजाइन पत्रिकाओं से जानकारी ले सकते हैं.

फीडबैक को पढ़ें

सोफे से जुड़े औनलाइन ग्राहकों के फीडबैक आप को यह समझने में मदद कर सकते हैं कि जो सामान आप खरीद रहे हैं उस की क्वालिटी कैसी है.

उदाहरण के लिए, यदि आप किसी औनलाइन स्टोर से सोफा कवर या गद्दे खरीद रहे हैं, तो ग्राहकों के फीडबैक और रेटिंग्स को ध्यान में रखें. इस से आप घटिया उत्पादों से बच सकते हैं और सही चुनाव कर सकते हैं.

ऐक्सपर्ट्स से सलाह लें

सोफा बनवाने से पहले मार्केट रिसर्च करें. आप अपने इलाके में फर्नीचर रिपेयर करने वाले या अपहोल्स्ट्री विशेषज्ञों से संपर्क कर सकते हैं. वे आप को सही सुझाव दे सकते हैं कि कौन सा फैब्रिक या मैटीरियल आप के सोफे के लिए सब से अच्छा रहेगा, साथ ही लागत के बारे में भी सटीक जानकारी दे सकते हैं.

औफर्स और वारंटी जरूर लें

जब आप नए सोफे को बनवा रहे हैं , तो यह भी देखना महत्त्वपूर्ण है कि क्या वे स्पैशल औफर या स्कीम दे रहे हैं या कोई वारंटी मिल रही है. कुछ दुकानदार सोफा कवर या गद्दों पर वारंटी प्रदान करते हैं, जो आप को लौग लाइफ सुरक्षा देता है. इस के अलावा यदि आप किसी ऐक्सपर्ट से पुराने सोफे को नया करवा रहे हैं, तो यह सुनिश्चित करें कि वे अपने काम की गारंटी दे रहे हों.

बेईमान बनाया प्रेम ने: क्या हुआ था पुष्पक के साथ

लेखिका- रफत बेगम

अगर पत्नी पसंद न हो तो आज के जमाने में उस से छुटकारा पाना आसान नहीं है. क्योंकि दुनिया इतनी तरक्की कर चुकी है कि आज पत्नी को आसानी से तलाक भी नहीं दिया जा सकता. अगर आप सोच रहे हैं कि हत्या कर के छुटाकारा पाया जा सकता है तो हत्या करना तो आसान है, लेकिन लाश को ठिकाने लगाना आसान नहीं है. इस के बावजूद दुनिया में ऐसे मर्दों की कमी नहीं है, जो पत्नी को मार कर उस की लाश को आसानी से ठिकाने लगा देते हैं. ऐसे भी लोग हैं जो जरूरत पड़ने पर तलाक दे कर भी पत्नी से छुटकारा पा लेते हैं. लेकिन यह सब वही लोग करते हैं, जो हिम्मत वाले होते हैं. हिम्मत वाला तो पुष्पक भी था, लेकिन उस के लिए समस्या यह थी कि पारिवारिक और भावनात्मक लगाव की वजह से वह पत्नी को तलाक नहीं देना चाहता था. पुष्पक सरकारी बैंक में कैशियर था. उस ने स्वाति के साथ वैवाहिक जीवन के 10 साल गुजारे थे. अगर मालिनी उस की धड़कनों में न समा गई होती तो शायद बाकी का जीवन भी वह स्वाति के ही साथ बिता देता.

उसे स्वाति से कोई शिकायत भी नहीं थी. उस ने उस के साथ दांपत्य के जो 10 साल बिताए थे, उन्हें भुलाना भी उस के लिए आसान नहीं था. लेकिन इधर स्वाति में कई ऐसी खामियां नजर आने लगी थीं, जिन से पुष्पक बेचैन रहने लगा था. जब किसी मर्द को पत्नी में खामियां नजर आने लगती हैं तो वह उस से छुटकारा पाने की तरकीबें सोचने लगता है. इस के बाद उसे दूसरी औरतों में खूबियां ही खूबियां नजर आने लगती हैं. पुष्पक भी अब इस स्थिति में पहुंच गया था. उसे जो वेतन मिलता था, उस में वह स्वाति के साथ आराम से जीवन बिता रहा था, लेकिन जब से मालिनी उस के जीवन में आई, तब से उस के खर्च अनायास बढ़ गए थे. इसी वजह से वह पैसों के लिए परेशान रहने लगा था. उसे मिलने वाले वेतन से 2 औरतों के खर्च पूरे नहीं हो सकते थे. यही वजह थी कि वह दोनों में से किसी एक से छुटकारा पाना चाहता था. जब उस ने मालिनी से छुटकारा पाने के बारे में सोचा तो उसे लगा कि वह उसे जीवन के एक नए आनंद से परिचय करा कर यह सिद्ध कर रही है. जबकि स्वाति में वह बात नहीं है, वह हमेशा ऐसा बर्ताव करती है जैसे वह बहुत बड़े अभाव में जी रही है. लेकिन उसे वह वादा याद आ गया, जो उस ने उस के बाप से किया था कि वह जीवन की अंतिम सांसों तक उसे जान से भी ज्यादा प्यार करता रहेगा.

पुष्पक इस बारे में जितना सोचता रहा, उतना ही उलझता गया. अंत में वह इस निर्णय पर पहुंचा कि वह मालिनी से नहीं, स्वाति से छुटकारा पाएगा. वह उसे न तो मारेगा, न ही तलाक देगा. वह उसे छोड़ कर मालिनी के साथ कहीं भाग जाएगा.

यह एक ऐसा उपाय था, जिसे अपना कर वह आराम से मालिनी के साथ सुख से रह सकता था. इस उपाय में उसे स्वाति की हत्या करने के बजाय अपनी हत्या करनी थी. सच में नहीं, बल्कि इस तरह कि उसे मरा हुआ मान लिया जाए. इस के बाद वह मालिनी के साथ कहीं सुख से रह सकता था. उस ने मालिनी को अपनी परेशानी बता कर विश्वास में लिया. इस के बाद दोनों इस बात पर विचार करने लगे कि वह किस तरह आत्महत्या का नाटक करे कि उस की साजिश सफल रहे. अंत में तय हुआ कि वह समुद्र तट पर जा कर खुद को लहरों के हवाले कर देगा. तट की ओर आने वाली समुद्री लहरें उस की जैकेट को किनारे ले आएंगी. जब उस जैकेट की तलाशी ली जाएगी तो उस में मिलने वाले पहचानपत्र से पता चलेगा कि पुष्पक मर चुका है.

उसे पता था कि समुद्र में डूब कर मरने वालों की लाशें जल्दी नहीं मिलतीं, क्योंकि बहुत कम लाशें ही बाहर आ पाती हैं. ज्यादातर लाशों को समुद्री जीव चट कर जाते हैं. जब उस की लाश नहीं मिलेगी तो यह सोच कर मामला रफादफा कर दिया जाएगा कि वह मर चुका है. इस के बाद देश के किसी महानगर में पहचान छिपा कर वह आराम से मालिनी के साथ बाकी का जीवन गुजारेगा.

लेकिन इस के लिए काफी रुपयों की जरूरत थी. उस के हाथों में रुपए तो बहुत होते थे, लेकिन उस के अपने नहीं. इस की वजह यह थी कि वह बैंक में कैशियर था. लेकिन उस ने आत्महत्या क्यों की, यह दिखाने के लिए उसे खुद को लोगों की नजरों में कंगाल दिखाना जरूरी था. योजना बना कर उस ने यह काम शुरू भी कर दिया. कुछ ही दिनों में उस के साथियों को पता चला गया कि वह एकदम कंगाल हो चुका है. बैंक कर्मचारी को जितने कर्ज मिल सकते थे, उस ने सारे के सारे ले लिए थे. उन कर्जों की किस्तें जमा करने से उस का वेतन काफी कम हो गया था. वह साथियों से अकसर तंगी का रोना रोता रहता था. इस हालत से गुजरने वाला कोई भी आदमी कभी भी आत्महत्या कर सकता था.

पुष्पक का दिल और दिमाग अपनी इस योजना को ले कर पूरी तरह संतुष्ट था. चिंता थी तो बस यह कि उस के बाद स्वाति कैसे जीवन बिताएगी? वह जिस मकान में रहता था, उसे उस ने भले ही बैंक से कर्ज ले कर बनवाया था. लेकिन उस के रहने की कोई चिंता नहीं थी. शादी के 10 सालों बाद भी स्वाति को कोई बच्चा नहीं हुआ था. अभी वह जवान थी, इसलिए किसी से भी विवाह कर के आगे की जिंदगी सुख और शांति से बिता सकती थी. यह सोच कर वह उस की ओर से संतुष्ट हो गया था.

बैंक से वह मोटी रकम उड़ा सकता था, क्योंकि वह बैंक का हैड कैशियर था. सारे कैशियर बैंक में आई रकम उसी के पास जमा कराते थे. वही उसे गिन कर तिजोरी में रखता था. उसे इसी रकम को हथियाना था. उस रकम में कमी का पता अगले दिन बैंक खुलने पर चलता. इस बीच उस के पास इतना समय रहता कि वह देश के किसी दूसरे महानगर में जा कर आसानी से छिप सके. लेकिन बैंक की रकम में हेरफेर करने में परेशानी यह थी कि ज्यादातर रकम छोटे नोटों में होती थी. वह छोटे नोटों को साथ ले जाने की गलती नहीं कर सकता था, इसलिए उस ने सोचा कि जिस दिन उसे रकम का हेरफेर करना होगा, उस दिन वह बड़े नोट किसी को नहीं देगा. इस के बाद वह उतने ही बड़े नोट साथ ले जाएगा, जितने जेबों और बैग में आसानी से जा सके. पुष्पक का सोचना था कि अगर वह 20 लाख रुपए भी ले कर निकल गया तो उन्हीं से कोई छोटामोटा कारोबार कर के मालिनी के साथ नया जीवन शुरू करेगा. 20 लाख की रकम इस महंगाई के दौर में कोई ज्यादा बड़ी रकम तो नहीं है, लेकिन वह मेहनत से काम कर के इस रकम को कई गुना बढ़ा सकता है. जिस दिन उस ने पैसे ले कर भागने की तैयारी की थी, उस दिन रास्ते में एक हैरान करने वाली घटना घट गई. जिस बस से वह बैंक जा रहा था, उस का कंडक्टर एक सवारी से लड़ रहा था. सवारी का कहना था कि उस के पास पैसे नहीं हैं, एक लौटरी का टिकट है. अगर वह उसे खरीद ले तो उस के पास पैसे आ जाएंगे, तब वह टिकट ले लेगा. लेकिन कंडक्टर मना कर रहा था.

पुष्पक ने झगड़ा खत्म करने के लिए वह टिकट 50 रुपए में खरीद लिया. उस टिकट को उस ने जैकेट की जेब में रख लिया. आत्महत्या के नाटक को अंजाम तक पहुंचाने के बाद वह फोर्ट पहुंचा और वहां से कुछ जरूरी चीजें खरीद कर एक रेस्टोरैंट में बैठ गया. चाय पीते हुए वह अपनी योजना पर मुसकरा रहा था. तभी अचानक उसे एक बात याद आई. उस ने आत्महत्या का नाटक करने के लिए अपनी जो जैकेट लहरों के हवाले की थी, उस में रखे सारे रुपए तो निकाल लिए थे, लेकिन लौटरी का वह टिकट उसी में रह गया था. उसे बहुत दुख हुआ. घड़ी पर नजर डाली तो उस समय रात के 10 बज रहे थे. अब उसे तुरंत स्टेशन के लिए निकलना था. उस ने सोचा, जरूरी नहीं कि उस टिकट में इनाम निकल ही आए इसलिए उस के बारे में सोच कर उसे परेशान नहीं होना चाहिए. ट्रेन में बैठने के बाद पुष्पक मालिनी की बड़ीबड़ी कालीकाली आंखों की मस्ती में डूब कर अपने भाग्य पर इतरा रहा था. उस के सारे काम बिना व्यवधान के पूरे हो गए थे, इसलिए वह काफी खुश था.

फर्स्ट क्लास के उस कूपे में 2 ही बर्थ थीं, इसलिए उन के अलावा वहां कोई और नहीं था. उस ने मालिनी को पूरी बात बताई तो वह एक लंबी सांस ले कर मुसकराते हुए बोली, ‘‘जो भी हुआ, ठीक हुआ. अब हमें पीछे की नहीं, आगे की जिंदगी के बारे में सोचना चाहिए.’’

पुष्पक ने ठंडी आह भरी और मुसकरा कर रह गया. ट्रेन तेज गति से महाराष्ट्र के पठारी इलाके से गुजर रही थी. सुबह होतेहोते वह महाराष्ट्र की सीमा पार कर चुकी थी. उस रात पुष्पक पल भर नहीं सोया था, उस ने मालिनी से बातचीत भी नहीं की थी. दोनों अपनीअपनी सोचों में डूबे थे. भूत और भविष्य, दोनों के अंदेशे उन्हें विचलित कर रहे थे. दूर क्षितिज पर लाललाल सूरज दिखाई देने लगा था. नींद के बोझ से पलकें बोझिल होने लगी थीं. तभी मालिनी अपनी सीट से उठी और उस के सीने पर सिर रख कर उसी की बगल में बैठ गई. पुष्पक ने आंखें खोल कर देखा तो ट्रेन शोलापुर स्टेशन पर खड़ी थी. मालिनी को उस हालत में देख कर उस के होंठों पर मुसकराहट तैर गई. हैदराबाद के होटल के एक कमरे में वे पतिपत्नी की हैसियत से ठहरे थे. वहां उन का यह दूसरा दिन था. पुष्पक जानना चाहता था कि मुंबई से उस के भागने के बाद क्या स्थिति है. वह लैपटौप खोल कर मुंबई से निकलने वाले अखबारों को देखने लगा.

‘‘कोई खास खबर?’’ मालिनी ने पूछा.

‘‘अभी देखता हूं.’’ पुष्पक ने हंस कर कहा.

मालिनी भी लैपटौप पर झुक गई. दोनों अपने भागने से जुड़ी खबर खोज रहे थे. अचानक एक जगह पुष्पक की नजरें जम कर रह गईं. उस से सटी बैठी मालिनी को लगा कि पुष्पक का शरीर अकड़ सा गया है. उस ने हैरानी से पूछा, ‘‘क्या बात है डियर?’’

पुष्पक ने गूंगों की तरह अंगुली से लैपटौप की स्क्रीन पर एक खबर की ओर इशारा किया. समाचार पढ़ कर मालिनी भी जड़ हो गई. वह होठों ही होठों में बड़बड़ाई, ‘‘समय और संयोग. संयोग से कोई नहीं जीत सका.’’

‘‘हां संयोग ही है,’’ वह मुंह सिकोड़ कर बोला, ‘‘जो हुआ, अच्छा ही हुआ. मेरी जैकेट पुलिस के हाथ लगी, जिस पुलिस वाले को मेरी जैकेट मिली, वह ईमानदार था, वरना मेरी आत्महत्या का मामला ही गड़बड़ा जाता. चलो मेरी आत्महत्या वाली बात सच हो गई.’’

इतना कह कर पुष्पक ने एक ठंडी आह भरी और खामोश हो गया.

मालिनी खबर पढ़ने लगी, ‘आर्थिक परेशानियों से तंग आ कर आत्महत्या करने वाले बैंक कैशियर का दुर्भाग्य.’ इस हैडिंग के नीचे पुष्पक की आर्थिक परेशानी का हवाला देते हुए आत्महत्या और बैंक के कैश से 20 लाख की रकम कम होने की बात लिखते हुए लिखा था—‘इंसान परिस्थिति से परेशान हो कर हौसला हार जाता है और मौत को गले लगा लेता है. लेकिन वह नहीं जानता कि प्रकृति उस के लिए और भी तमाम दरवाजे खोल देती है. पुष्पक ने 20 लाख बैंक से चुराए और रात को जुए में लगा दिए कि सुबह पैसे मिलेंगे तो वह उस में से बैंक में जमा कर देगा. लेकिन वह सारे रुपए हार गया. इस के बाद उस के पास आत्महत्या करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा, जबकि उस के जैकेट की जेब में एक लौटरी का टिकट था, जिस का आज ही परिणाम आया है. उसे 2 करोड़ रुपए का पहला इनाम मिला है. सच है, समय और संयोग को किसी ने नहीं देखा है.’

बेटी का सुख: बेटा-बेटी में क्या फर्क समझ पाए माता पिता

मैं नहीं जानती बेटे क्या सुख देते हैं, किंतु बेटी क्या सुख देती है यह मैं जरूर जानती हूं. मैं नहीं कहती बेटी, बेटों से अच्छी है या कि बेटे के मातापिता खुशहाल रहेंगे. किंतु यह निश्चित तौर पर आज 70 वर्ष की उम्र में बेटी की मां व उस के 75 वर्षीय पिता कितने खुशहाल हैं, यह मैं जानती हूं. जब वह मेरे घर आती है तो पहनने, ओढ़ने, सोने, बिछाने के कपड़ों का ब्योरा लेती है. बिना इजाजत, बिना मुंह खोले फटापुराना निकाल कर, नई चादर, तकिए के गिलाफ, बैडकवर आदि अलमारी में लगा जाती है. रसोईघर में कड़ाही, भगौने, तवा, चिमटे, टूटे हैंडल वाले बरतन नौकरों में बांट, नए उपकरण, नए बरतन संजो जाती है.

हमारे जूतेचप्पलों की खबर भी खूब रखती है. चलने में मां को तकलीफ होगी, सो डाक्टर सोल की चप्पल ले आती है. पापा के जौगिंग शूज घिस गए हैं, चलो, नए ले आते हैं. वे सफाई देते हैं, ‘अभी तो लाया था.’ ‘कहां पापा, 2 साल पुराना है, फिर आप रोज घूमने जाते हैं, आप को अच्छे ब्रैंड के जौगिंग शूज पहनने चाहिए.’ बाप के पैरों के प्रति बेटी की चिंता देख कर सोचती हूं, ‘बेटे इस से अधिक और क्या करते होंगे.’ जब हम बेटी के घर जाते हैं तब जिस क्षण हवाईजहाज के पहिए धरती को छूते हैं, उस का फोन आ जाता है, ‘जल्दी मत करना, आराम से उतरना, मैं बाहर ही खड़ी हूं.’ एअरपोर्ट के बाहर एक ड्राइवर की तरह गाड़ी बिलकुल पास लगा कर सूटकेस उठाने और कार की डिक्की में रखने में दोनों के बीच प्यारी, मीठी तकरार कानों में पड़ती रहती है, ‘पापा, आप नहीं उठाओ, मम्मी तुम बैठ जाओ, हटो पापा, आप की कमर में दर्द होगा…’

‘तेरे से तो मैं ज्यादा मजबूत हूं, अभी भी.’ उन दोनों की बातें कानों में चाशनी घोल देती हैं. घर के दरवाजे पर स्वागत करती वैलकम नानानानी की पेंटिंग हमारी तसवीरों के साथ चिपकाई होती है. घर का कोनाकोना चहक रहा होता है, शीशे सा साफसुथरा घर हमारे रहने की व्यवस्था, छोटीछोटी चीजों को हमारे लिए पहले से ला कर कमरे में, बाथरूम में रख दिया गया होता है. पापा के लिए उन की पसंद का नाश्ता, चायबिस्कुट मेज पर रखा होता है. उन की पसंद की सब्जियां जैसे करेले, लौकी, तुरई, विशेषरूप से इंडियन शौप से ला कर रखे गए होते हैं.

हमारी पसंद के पकवान ऐसे परोसे जाते मानो हम शाही मेहमान हों. कितने बजे पापा चाय पिएंगे, अपनी कामवाली को सौसौ हिदायतें, ट्रे में गिलास, जग और पानी का खयाल, बिजली का स्विच कहां है, लिफ्ट कौन से फ्लोर पर रुकती है, सुबह पापा घूमने निकलें, उस से पहले उन का फोन वहां के सिमकार्ड के साथ उन के साथ दे देना. दोपहर हो या रात या दिन, हमारे रुटीन का इतना ध्यान रखती है. तकिया ठीक है कि नहीं, एसी अधिक ठंडा तो नहीं है, रात में कमरे का चक्कर मार जाती है मानो हम कोई छोटे बच्चे हों.

‘बेटा, तू सो जा, इतनी चिंता क्यों करती है, तेरा इतना व्यस्त दिन जाता है, पूरा दिन चक्करघिन्नी सी घूमती है, दसदस बार गाड़ी चलाती है, सड़कें नापती है…’ पर वह सुनीअनसुनी कर देती है. बेटियां, बस, ऐसी ही होती हैं. नहीं जानती कि बेटे क्या करते हैं पर बेटी तो चेहरे के भाव पढ़ कर अंतर्मन तक उतर जाती है.

मुझे अपनी 65 वर्षीय मां की बरबस याद चली आई. उस दिन भी 11 बजे थे. लगभग 20-25 साल पहले हम दिल्ली में पोस्टेड थे. मायका पास था, करीब 2 घंटे दूर. सो महीनेपंद्रह दिनों में वृद्ध मातापिता से मिलने चली जाया करती थी. सुबह की बस पकड़ कर घर पहुंची. रिकशा से उतर कर अम्मा को ढूंढ़ा, देखा, घर के एक किनारे खामोश बैठी थीं. बहुत क्षीण लग रही थीं. चेहरा उतरा हुआ. आंखें विस्फारित, फटीफटी सी. पैनी कंटीली झाड़ी सी सूखी झुरियों को, देखते ही समझ गई कि उन्हें प्यास लगी है. भाग कर रसोई में गई. एक लोटा ठंडा नीबू पानी बनाया.

जब उन्होंने 2 गिलास पानी एक के बाद एक गले से नीचे उतार लिए तब अपनी धोती से गिलास पकड़ेपकड़े रुंधे गले से बोलीं, ‘आज मेरा व्रत है, सुबह से किसी ने नहीं पूछा कि तुम ने कुछ लिया कि नहीं.’ वे अपने पति, मेरे पिता के बड़े से घर में रहती थीं, जहां उन का बेटाबहू व 2 पोतियां, आधा दर्जन नौकरचाकर दिनरात काम करते थे. पुत्रवती खुशहाल अवश्य होती है, किंतु उस दिन पुत्रवती मां की गीली आंखें मेरे मानस पर शिलालेख की भांति अमिट छाप छोड़ गईं. ‘आज बड़ी ढीली लग रही हो?’ बेटी ने एक दिन मुझे देर तक सोते देखा तब पास आ कर माथे पर हाथ रखा और थर्मामीटर लगाया. लगभग 100 डिगरी बुखार था. उसी क्षण ब्लडप्रैशर, शुगर आदि सब चैक होने शुरू हो गए. सारे काम एक तरफ, मां की तबीयत पर सब का ध्यान केंद्रित हो गया, बारीबारी, सब हाल पूछने आते.

‘नानी, यू औलराइट?’ धेवता गले लगा कर के स्कूल जाता, धेवती ‘टेक केयर, नानी’ कह कर जाती. बेटी मेरी पसंद की किताबें लाइब्रेरी से ले आई थी. दामाद से ले कर कामवाली तक मात्र थोड़े से बुखार में ऐसी सेवा कर रहे थे मानो मैं अंतिम सांसें ले रही हूं. यह बात जब मैं ने कह दी तो बिटिया के झरझर आंसू टपकने लगे, ‘अच्छा बाबा, मैं अभी नहीं मर रही, पर तू ही बता, 70वें साल में चल रही हूं…’ उस का उदास चेहरा देख कर चुप हो गई. किंतु बोझिल यादों का पुलिंदा अपने बूढ़े मांबाप के बुढ़ापे की ओर एक बार फिर खुल गया. अपने बूढ़े मातापिता को उन के बेटे यानी मेरे भाई के घर में नितांत अकेले समय काटते देखा था. मैं यह नहीं कहती कि उन्होंने क्या किया, किंतु उन्होंने क्या नहीं किया, उस का दर्द टीस बन कर शिरायों में उमड़ताघुमड़ता अवश्य है.

एक प्रोफैसर पिता ने कभी अच्छे दिनों में जमीन खरीद कर एक साधारण सा घर बनाया था. बिना मार्बल, बिना ग्रेनाइट लगाए. उन के जाने के बाद घर, बंगला बन गया. उसे करोड़ों की संपत्ति का दरजा मिल गया. मातापिता की जबानी ख्वाहिश तथा लिखित वसीयत, पांचों बेटों को बराबर दी गई संपत्ति की धज्जियां उड़ा दी गईं. उन का आदेश, उन की इच्छा को झूठ, उन की लिखी वसीयत को बकवास कह कर पुत्र ने रद्दी में फेंक दिया. बेटियां पराई हो जाती हैं, फिर भी आप से जुड़ी रहती हैं. वे एक नहीं, 3 घरों में बंटी रहती हैं. बेटियां पलपल की खबर रखने वाली, मन की धड़कन सुनने वाली बेटियां होती हैं. बेटे क्या करते हैं मुझे नहीं मालूम, किंतु बेटियां क्या करती हैं, अनुभव कर रही हूं. अपने रिटायर्ड पैंशनयाफ्ता पिता के बैंक बैलेंस की धड़कन पर पूरी नजर रखती हैं, उन के आत्मसम्मान को ठेस न पहुंचे, चुपचाप उन के पर्स में डौलर सरका जाती हैं.

देखो, बावली कितने डौलर रख गई है मेरे पर्स में… जानती है उस के पापा को सब्जीफल खरीदने का शौक है, किंतु अपने रुपए से कितना सामान ला सकेंगे.

मेरे ही एक भाई ने मुझे प्रैक्टिकल होने का पाठ पढ़ाया था, जब मां बीमार थीं और मृत्यु से पहले कोमा में चली गई थीं. चेन्नई से आए भाई वापस जाना चाहते थे, उन्होंने अपनी पत्नी से फोन पर मेरे सामने ही बात की थी, ‘क्या करूं? वापस आ जाऊं, कुछ औफिस का काम है.’

उधर से, ‘नहीं, वहीं रुको, एक ही बार आना.’ (निधन के बाद, 2 बार का हवाई खर्च क्यों करना, मां आज नहीं तो 2-4 दिनों में निबट जाएंगी) अनकही हिदायत का अर्थ. और एक तरफ यूरोप से मात्र 15 दिनों के लिए बेटी अपनी बीमार मां से मिलने चली आई थी, जरा भी प्रैक्टिकल नहीं थी. बेटे क्या करते हैं, क्या नहीं, निष्कर्ष निकालना, निर्णय लेना उचित नहीं. बहुत से बेटों वाले उपरोक्त तर्क का जोरदार खंडन करेंगे. मैं तो सिर्फ आपबीती बता रही हूं क्योंकि मेरा कोई बेटा नहीं है. आपबीती ही नहीं, जगबीती का उदाहरण समक्ष आया जब डाक्टर रवि वर्मा ने अपना अनुभव शेयर किया.

उन के पिता ने वृद्धाश्रम बनाया था जिस में 30 कमरे थे और वे बिना शुल्क उन बुजुर्गों की सेवा कर रहे थे जिन को देखने वाला कोई नहीं था. वे बता रहे थे, ‘बुजुर्गों के रिश्तेदार आदि, अलबत्ता तो कोई नहीं आता है, आता है तो भी हम उन्हें उन के कमरे में नहीं जाने देते.’ वे आगे बताते हैं, ‘अकसर बेटे आते थे और अपने पिता को मारपीट कर उन की 8-10 हजार रुपए की पैंशन की रकम छीन कर ले जाते थे. अब हम ने नियम बना दिया है कि मिलने वाले हमारे सामने सिर्फ औफिस में मिल सकते हैं.’ और फिर उन्होंने जोड़ा, ‘बेटियां आती हैं तो अपने वृद्ध मातापिता के लिए कुछ फल, मिठाई, कपड़ालत्ता ले कर आती हैं, बेटे तो सिर्फ छीनने आते हैं.’ यह उन का अनुभव है, मेरा नहीं.

हमारे यहां 13 से ले कर 25 वर्ष की लड़कियां घरों में काम करने आती हैं. उन के भाई महंगे मोबाइल फोन, मोटरसाइकिल, नए फैशन की जींस, और सारा दिन चौराहे पर जमघट लगाए धींगामस्ती करते हैं. 16 वर्षीय मेरी कामवाली रोज अपना मोबाइल याद करती है, ‘तीन बहनों में एक ही तो है, उस ने मांग लिया मैं कैसे न करती. हम अपने भाई को कभी न नहीं करते.’ जन्म से एक मानसिकता, बेटे को घीचुपड़ी, बेटी को बचीखुची. निश्चित रूप से बेटे भी बहुतकुछ करते होंगे, किंतु बेटियां क्या करती हैं, यह मैं दावे से कह सकती हूं. बेटियां मन से जुड़ी रहती हैं, वे कदम से कदम मिला कर अपना समय आप को देती हैं और यकीन मानिए, बुढ़ापे में समय बेशकीमती है, 5 बेटों के मेरे बाऊजी कितने अकेले थे, देखा है उन के चेहरे पर व्यथा के बादलों को.

5 में से 4 तो बाहर रहते थे. साल में एकाध बार मिलने आते थे. किंतु जो उन के साथ उन के घर में रहता था उस के बारे में बाऊजी एक दिन मुझ से बोले, ‘देख, तेरा छोटा भाई सामने के दरवाजे से अंदर आएगा और, परेड करता बाएं मुड़, सीधा अपने कमरे में चला जाएगा. मैं सामने बैठा उसे दिखाई नहीं देता.’ और ऐसा ही हुआ. 6 महीने बाद जब मिलने गई तो पता चला भाई ने अब सामने का दरवाजा छोड़, बरामदे से ही अलग प्रवेशद्वार प्रयोग करना शुरू कर दिया था. बूढ़ा व्यक्ति अपनी स्मृति के गलियारों में भटकता है. वह अपने गांव, अपने पुराने दिनों को किसी के साथ बांटना चाहता है. बस, यही बेटियां घंटों अपने बाप के साथ उन के देहात के मास्टरजी के रोचक किस्से सुनती हैं.

इसलिए, मैं शायद नहीं जानती, पूरी तरह वाकिफ नहीं हूं कि बेटे भी ये सब करत हैं, किंतु अपनी बेटी अपने पापा के साथ समय जैसे धन को खूब लुटाती है. समय बदल रहा है, आज का वृद्ध कह रहा है, हमें अपना स्पेस चाहिए, आधुनिक युग में फाइवस्टार ओल्डएज होम बन रहे हैं. वे ओल्डएज होम नहीं, कब्र कहलाते हैं. न बेटे की न बेटी की किसी की जरूरत नहीं. सभी सुविधाओं से लैस इस प्रकार की व्यवस्था की जा रही है जहां, खाना, रहना, अस्पताल, जिम, मनोरंजन के साधन, हरेभरे लौन, पार्क आदि घरजैसी बल्कि घर से बढ़ कर तमाम जरूरतों का ध्यान रखते हुए, प्रौपर्टी बन और बिक रही हैं.

दृष्टिकोण बदल रहा है. मांबाप कह रहे हैं, यदि बच्चों को पालापोसा तो क्या उन से हम बदला लें? हम ने उन्हें जन्म दे कर उन पर कोई एहसान नहीं किया. सो, उन्हें बुढ़ापे की लाठी की तरह इस्तेमाल करना बंद करो. इस प्रकार की अवधारणा तूल पकड़ रही है. तब तो बेटेबेटी का किस्सा ही खत्म. बेटे कैसे होते हैं? बेटियों से बेहतर, कि बदतर, टौपिक निरर्थक, चर्चा बेमानी और तर्क अर्थहीन. किंतु ऐसे पांचसितारा कब्र में रहने वाले कितने और कौन हैं, अपने देश की कितनी फीसदी जनता उस का उपभोग कर सकती है? मेरे देश का अधिकांश वयोवृद्ध आज भी बेटीबेटे की ओर आशातीत नजरों से निहारता है.

क्या मोटापे के कारण प्रैग्नेंसी में प्रौब्लम आ सकती है?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 28 वर्षीय घरेलू महिला हूं. मेरी लंबाई 5 फुट 4 इंच और वजन 85 किलोग्राम है. मैं और मेरे पति फैमिली प्लान करना चाहते हैं. क्या मोटापे के कारण गर्भावस्था के दौरान जटिलताएं होने का खतरा बढ़ जाता है?

जवाब-

यह बात बिलकुल सही है कि मोटापे के कारण गर्भावस्था और प्रसव के दौरान कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. आप गर्भावस्था के दौरान वजन नहीं घटा सकतीं न ही आप को प्रयास करना चाहिए. अगर आप का वजन अधिक है या आप मोटी हैं तो आप को कम से कम 1 साल पहले अपनी प्रैगनैंसी प्लान करना चाहिए ताकि गर्भावस्था तथा प्रसव के दौरान जटिलताएं न हों और आप एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकें. नियमित रूप से ऐक्सरसाइज करें, प्रतिदिन 100-200 कैलोरी का इनटेक कम कर दें, इस से 1 वर्ष में आप बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के 5 से 10 किलोग्राम तक वजन कम कर लेंगी. अगर कोई महिला मोटापे से छुटकारा पाने के लिए वेट लौस सर्जरी करना चाहती है, तो यह जरूरी सुझाव है कि इसे गर्भधारण की योजना बनाने से कम से कम 18 महीने पहले कराएं.

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गर्भधारण करना किसी भी महिला के लिए सब से बड़ी खुशी की बात और शानदार अनुभव होता है. जब आप गर्भवती होती हैं, तो उस दौरान किए जाने वाले प्रीनेटल टैस्ट आप को आप के व गर्भ में पल रहे शिशु के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी देते हैं. इस से ऐसी किसी भी समस्या का पता लगाने में मदद मिलती है, जिस से शिशु के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ सकता है जैसे संक्रमण, जन्मजात विकार या कोई जैनेटिक बीमारी. ये नतीजे आप को शिशु के जन्म के पहले ही स्वास्थ्य संबंधी फैसले लेने में मदद करते हैं.

यों तो प्रीनेटल टैस्ट बेहद मददगार साबित होते हैं, लेकिन यह जानना भी महत्त्वपूर्ण है कि उन के परिणामों की व्याख्या कैसे करनी है. पौजिटिव टैस्ट का हमेशा यह मतलब नहीं होता है कि आप के शिशु को कोई जन्मजात विकार होगा. आप टैस्ट के नतीजों के बारे में अपने डाक्टर से बात करें और उन्हें समझें. आप को यह भी पता होना चाहिए कि नतीजे मिलने के बाद आप को सब से पहले क्या करना है.

डाक्टर सभी गर्भवती महिलाओं को प्रीनेटल टैस्ट कराने की सलाह देते हैं. कुछ महिलाओं के मामले में ही जैनेटिक समस्याओं की जांच के लिए अन्य स्क्रीनिंग टैस्ट कराने की जरूरत पड़ती है.

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या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

पतिव्रता : धीरज क्यों मांग रहा था दया की भीख

पूरे समर्पण के साथ पतिव्रता का धर्म निभाने वाली वैदेही के प्रति उस के पति की मानवीय संवेदनाएं दम तोड़ चुकी थीं. रात की खामोशी को तोड़ते हुए दरवाजा पीटने की बढ़ती आवाज से चौंक कर भास्कर बाबू जाग गए थे. घड़ी पर नजर डाली तो रात के 2 बजे थे. इस समय कौन हो सकता है? यह सोच कर दिल किसी आशंका से धड़क उठा.

उन्होंने एक नजर गहरी नींद में सोती अपनी पत्नी सौंदर्या पर डाली और दूसरे ही क्षण उसे झकझोर कर जगा दिया. ‘‘क्या हुआ? कौन है?’’ वह हड़बड़ा कर उठ बैठी. ‘‘क्या हुआ, यह तो मुझे भी नहीं पता पर काफी देर से कोई हमारा दरवाजा पीट रहा है,’’ भास्कर ने स्पष्ट किया. ‘‘अच्छा, पर आधी रात को कौन हो सकता है?’’ सौंदर्या ने कहा और दरवाजे के पास जा कर खड़ी हो गई. ‘‘कौन है? कौन दरवाजा पीट रहा है?’’ उस ने प्रश्न किया. ‘‘आंटी, मैं हूं प्रिंसी.’’ ‘‘यह तो धीरज बाबू की बेटी प्रिंसी का स्वर है,’’ सौंदर्या बोली और उस ने दरवाजा खोल दिया. देखा तो प्रिंसी और उस की छोटी बहन शुचि खड़ी हैं. ‘‘क्या हुआ, बेटी?’’ सौंदर्या ने चिंतित स्वर में पूछा. ‘‘मेरी मम्मी के सिर में चोट लगी है, आंटी. बहुत खून बह रहा है,’’ प्रिंसी बदहवास स्वर में बोली. ‘‘तुम्हारे पापा कहां हैं?’’ ‘‘पता नहीं आंटी, मम्मी को मारनेपीटने के बाद कहीं चले गए,’’ प्रिंसी सुबक उठी. सौंदर्या दोनों बच्चियों का हाथ थामे सामने के फ्लैट में चली गई. वहां का दृश्य देख कर तो उस के होश उड़ गए. उस की पड़ोसिन वैदेही खून में लथपथ बेसुध पड़ी थी.

वह उलटे पांव लगभग दौड़ते हुए अपने घर पहुंची और पति से बोली, ‘‘भास्कर, वैदेही बेहोश पड़ी है. सिर से खून बह रहा है. लगता है उस के पति भास्कर ने सिर फाड़ दिया है. बच्चियां रोरो कर बेहाल हुई जा रही हैं.’’ ‘‘तो कहो न उस के पति से कि वह अस्पताल ले जाए, हम कब तक पड़ोसियों के झमेले में पड़ते रहेंगे.’’ ‘‘वह घर में नहीं है.’’ ‘‘क्या? घर में नहीं है….पत्नी को मरने के लिए छोड़ कर आधी रात को कहां भाग गया डरपोक?’’ ‘‘मुझे क्या पता, पर जल्दी कुछ करो नहीं तो वैदेही मर जाएगी.’’ ‘‘तुम्हीं बताओ, आधी रात को बच्चों को अकेले छोड़ कर कहां जाएं?’’ भास्कर खीज उठा. ‘‘तुम्हें कहीं जाने की जरूरत नहीं, बस, जल्दी से फोन कर के एंबुलेंस बुला लो. तब तक मैं श्यामा बहन को जगा कर बच्चों के पास रहने की उन से विनती करती हूं,’’ इतना कह कर सौंदर्या पड़ोसिन श्यामा के दरवाजे पर दस्तक देने चली गई थी और भास्कर बेमन से फोन कर एंबुलेंस बुलाने की कोशिश करने लगा. श्यामा सुनते ही दौड़ी आई और दोनों पड़ोसिनें मिल कर वैदेही के बहते खून को रोकने की कोशिश करने लगीं. एंबुलेंस आते ही बच्चों को श्यामा की देखरेख में छोड़ कर भास्कर और सौंदर्या वैदेही को ले कर अस्पताल चले गए.

‘‘इस बेचारी की ऐसी दशा किस ने की है? कैसे इस का सिर फटा है?’’ आपातकालीन कक्ष की नर्स ने वैदेही को देखते ही प्रश्नों की झड़ी लगा दी. ‘‘देखिए, सिस्टर, यह समय इन सब बातों को जानने का नहीं है. आप तुरंत इन की चिकित्सा शुरू कीजिए.’’ ‘‘यह तो पुलिस केस है. आप इन्हें सरकारी अस्पताल ले जाइए,’’ नर्स पर वैदेही की गंभीर दशा का कोई प्रभाव नहीं पड़ा. भास्कर नर्स के साथ बहस करने के बजाय मरीज को सरकारी अस्पताल ले कर चल पडे़. वैदेही को अस्पताल में दाखिल करते ही गहन चिकित्सा कक्ष में ले जाया गया. कक्ष के बाहर बैठे भास्कर और सौंदर्या वैदेही के होश में आने की प्रतीक्षा करने लगे. बहुत देर से खुद पर नियंत्रण रखती सौंदर्या अचानक फूटफूट कर रो पड़ी. झिलमिलाते आंसुओं के बीच पिछले कुछ समय की घटनाएं उस के दिलोदिमाग पर हथौडे़ जैसी चोट कर रही थीं. कुछ बातें तो उस के स्मृति पटल पर आज भी ज्यों की त्यों अंकित थीं. उस रात कुछ चीखनेचिल्लाने के स्वर सुन कर सौंदर्या चौंक कर उठ बैठी थी. कुछ देर ध्यान से सुनने के बाद उस की समझ में आया था कि जो कुछ उस ने सुना वह कोई स्वप्न नहीं बल्कि हकीकत थी. चीखनेचिल्लाने के स्वर लगातार पड़ोस से आ रहे थे. अवश्य ही कहीं कोई मारपीट पर उतर आया था. सौंदर्या ने पास सोते भास्कर पर एक नजर डाली थी. क्या गहरी नींद है.

एक बार सोचा कि भास्कर को जगा दे पर उस की गहरी नींद देख कर साहस नहीं हुआ था. वह करवट बदल कर खुद भी सोने का उपक्रम करने लगी पर चीखनेचिल्लाने के पूर्ववत आते स्वर उसे परेशान करते रहे थे. सौंदर्या सुबह उठी तो सिर बहुत भारी था. ‘क्या हो गया? सुबह के 7 बजे हैं. अब सो कर उठी हो? आज बच्चों की छुट्टी है क्या?’ भास्कर ने चाय की प्याली थामे कमरे में प्रवेश किया था. ‘पता नहीं क्या हुआ है जो सुबह ही सुबह सिरदर्द से फटा जा रहा है.’ ‘चाय पी कर कुछ देर सो जाओ. जगह बदल गई है इसीलिए शायद रात में ठीक से नींद न आई हो,’ भास्कर ने आश्वासन दिया तो सौंदर्या रोंआसी हो उठी थी. ‘सोचा था अपने नए फ्लैट में आराम से चैन की बंसी बजाएंगे. पर यहां तो पहली ही रात को सारा रोमांच जाता रहा.’ ‘ऐसा क्या हो गया? उस दिन तो तुम बेहद उत्साहित थीं कि पुरानी गलियों से पीछा छूटा. नई पौश कालोनी मेें सभ्य और सलीकेदार लोगों के बीच रहने का अवसर मिलेगा,’ भास्कर ने प्रश्न किया था. ‘यहां तो पहली रात को ही भ्रम टूट गया.’ ‘ऐसा क्या हो गया जो सारी रात नींद नहीं आई,’ भास्कर ने कुछ रोमांटिक अंदाज में कहा, ‘प्रिय, देखो तो कितना सुंदर परिदृश्य है. उगता हुआ सूरज और दूर तक फैला हुआ सजासंवरा हराभरा बगीचा. एक अपना वह पुराना बारादरी महल्ला था जहां सूर्य निकलने से पहले ही लोग कुत्तेबिल्लियों की तरह झगड़ते थे. वह भी छोटीछोटी बातों को ले कर. ‘इतना प्रसन्न होने की जरूरत नहीं है. वह घर हम अवश्य छोड़ आए हैं पर वहां का वातावरण हमारे साथ ही आया है.’ ‘क्या तात्पर्य है तुम्हारा?’ ‘यही कि जगह बदलने से मानव स्वभाव नहीं बदल जाता. रात को पड़ोस के फ्लैट से रोनेबिलखने के ऐसे दयनीय स्वर उभर रहे थे कि मेरी तो आंखों की नींद ही उड़ गई. बच्चे भी जोर से चीख कर कह रहे थे कि पापा मत मारो, मत मारो मम्मी को.’ ‘अच्छा, मैं ने तो समझा था कि यह सभ्य लोगों की बस्ती है, पुरानी बारादरी थोडे़ ही है. यहां के लोग तो मानवीय संबंधों का महत्त्व समझते होंगे पर लगता है कि…

सौंदर्या ने पति की बात बीच में काट कर वाक्य पूरा किया, ‘कि मानव स्वभाव कभी नहीं बदलता, फिर चाहे वह पुरानी बारादरी महल्ला हो या फिर शहर का सभ्य सुसंस्कृत आधुनिक महल्ला.’ ‘तुम ने मुझे जगाया क्यों नहीं, मैं तभी जा कर उस वीर पति को सबक सिखा देता. अपने से कमजोर पर रौब दिखाना, हाथ उठाना बड़ा सरल है. ऐसे लोगों के तो हाथ तोड़ कर हाथ में दे देना चाहिए.’ ‘देखो, बारादरी की बात अलग थी. यहां हम नए आए हैं. हम क्यों व्यर्थ ही दूसरों के फटे में पांव डालें,’ सौंदर्या ने सलाह दी. ‘यही तो बुराई है हम भारतीयों में, पड़ोस में खून तक हो जाए पर कोई खिड़की तक नहीं खुलती,’ भास्कर खीज गया था. दिनचर्या शुरू हुई तो रात की बात सौंदर्या भूल ही गई थी पर नीलम और नीलेश को स्कूल बस मेें बिठा कर लौटी तो सामने के फ्लैट से 3 प्यारी सी बच्चियों को निकलते देख कर ठिठक गई थी. सब से बड़ी 10 वर्षीय और दूसरी दोनों उस से छोटी थीं. तीनों लड़कियां मानों सौंदर्य की प्रतिमूर्ति थीं. सीढि़यां चढ़ते ही सामने के फ्लैट का दरवाजा पकडे़ एक महिला खड़ी थी.

दूधिया रंगत, तीखे नाकनक्श. सौंदर्या ने महिला का अभिवादन किया तो वह मुसकरा दी थी. बेहद उदास फीकी सी मुसकान. ‘मैं आप की नई पड़ोसिन सौंदर्या हूं,’ उस ने अपना परिचय दिया था. ‘जी, मैं वैदेही’ इतना कहतेकहते उस ने अपने फ्लैट में घुस कर अंदर से दरवाजा बंद कर लिया था, मानो कोई उस का पीछा कर रहा हो. भारी कदमों से सौंदर्या अपने फ्लैट में आई थी. अजीब बस्ती है. यहां कोई किसी से बात तक नहीं करता. इस से तो अपनी पुरानी बारादरी अच्छी थी कि लोग आतेजाते हालचाल तो पूछ लेते थे. दालचावल बीनते, सब्जी काटते पड़ोसिनें बालकनी में भी छत पर खड़ी हो सुखदुख की बातें तो कर लेती थीं और मन हलका हो जाता था. पर इस नए परिवेश में तो दो मीठे बोल सुनने को मन तरस जाता था. यही क्रम जब हर 2-3 दिन पर दोहराया जाने लगा तो सौंदर्या का जीना दूभर हो गया. बारादरी में तो ऐसा कुछ होने पर पड़ोसी मिल कर बात को सुलझाने का प्रयत्न करते थे, पर यहां तो भास्कर ने साफ कह दिया था कि वह इस झमेले में नहीं पड़ने वाला. और वह कानों में रूई के फाहे लगा कर चैन की नींद सोता था. पड़ोसियों के पचडे़ में न पड़ने के अपने फैसले पर भास्कर भी अधिक दिनों तक टिक नहीं पाया. हुआ यों कि कार्यालय से लौटते समय अपने फ्लैट के ठीक सामने वाले फ्लैट के पड़ोसी धीरज द्वारा अपनी पत्नी पर लातघूंसों की बरसात को भास्कर सह नहीं सका था.

उस ने लपक कर उस का गिरेबान पकड़ा था और दोचार हाथ जमा दिए. ‘मैं तो आप को सज्जन इनसान समझता था पर आप का व्यवहार तो जानवरों से भी गयागुजरा निकला,’ भास्कर ने पड़ोसी की बांह इस प्रकार मरोड़ी कि वह दर्द से कराह उठा था. भास्कर ने जैसे ही धीरज का हाथ छोड़ा वह शेर हो गया. ‘आप होते कौन हैं हमारे व्यक्तिगत मामलों में दखल देने वाले. मेरी पत्नी है वह. मेरी इच्छा, मैं उस से कैसा भी व्यवहार करूं.’ ‘लानत है तुम्हारे पति होने पर जो मारपीट को ही अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हो,’ दांत पीसते हुए भास्कर पड़ोसी की ओर बढ़ा पर दूसरे ही क्षण वैदेही हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाने लगी थी. ‘भाई साहब, मैं आप के हाथ जोड़ती हूं, आप हमारे बीच पड़ कर नई मुसीबत न खड़ी करें.’ भास्कर को झटका सा लगा था. दूसरी ओर अपने फ्लैट का द्वार खोले सौंदर्या खड़ी थी. वैदेही पर एक पैनी नजर डाल कर भास्कर अपने फ्लैट की ओर मुड़ गया था. सौंदर्या उस के पीछे आई थी. वह सौंदर्या पर ही बरस पड़ा था. ‘कोई जरूरत नहीं है ऐसे पड़ोसियों से सहानुभूति रखने की. अपने काम से काम रखो, पड़ोस में कोई मरे या जिए. नहीं सहन होता तो दरवाजेखिड़कियां बंद कर लो, कानों में रूई डाल लो और चैन की नींद सो जाओ.’ सौंदर्या भास्कर की बात भली प्रकार समझती थी. उस का क्रोध सही था पर चुप रहने के अलावा किया भी क्या जा सकता था. धीरेधीरे सौंदर्या और वैदेही के बीच मित्रता पनपने लगी थी. ‘क्या है वैदेही, ऐसे भी कोई अत्याचार सहता है क्या? सिर पर गुलम्मा पड़ा है, आंखों के नीचे नील पडे़ हैं जगहजगह चोट के निशान हैं… तुम कुछ करती क्यों नहीं,’ एक दिन सौंदर्या ने पूछ ही लिया था. ‘क्या करूं दीदी, तुम्हीं बताओ. मेरे पिता और भाइयों ने साम, दाम, दंड, भेद सभी का प्रयोग किया पर कुछ नहीं हुआ. आखिर उन्होंने मुझे मेरे हाल पर छोड़ दिया. मुझे तो लगता है एक दिन ऐसे ही मेरा अंत आ जाएगा.’ ‘क्या कह रही हो. इस आधुनिक युग में भी औरतों की ऐसी दुर्दशा? मुझे तो तुम्हारी बातें आदिम युग की जान पड़ती हैं.’ ‘समय भले ही बदला हो दीदी पर समाज नहीं बदला. जिस समाज में सीताद्रौपदी जैसी महारानियों की भी घोर अवमानना हुई हो वहां मेरी जैसी साधारण औरत किस खेत की मूली है.’ ‘मैं नहीं मानती, पतिपत्नी यदि एकदूसरे का सम्मान न करें तो दांपत्य का अर्थ ही क्या है.’ ‘हमारे समाज में यह संबंध स्वामी और सेवक का है,’ वैदेही बोली थी.

‘बहस में तो तुम से कोई जीत नहीं सकता. इतनी अच्छी बातें करती हो तुम पर धीरज को समझाती क्यों नहीं,’ सौंदर्या मुसकरा दी थी. ‘समझाया इनसान को जाता है हैवान को नहीं,’ वैदेही की आंखें डबडबा आईं और गला भर आया था. सौंदर्या गहन चिकित्सा कक्ष के बाहर बेंच पर बैठी थी कि चौंक कर उठ खड़ी हुई. अचानक ही वर्तमान में लौट आई वह. ‘‘मरीज को होश आ गया है,’’ सामने खड़ी नर्स कह रही थी, ‘‘आप चाहें तो मरीज से मिल सकती हैं.’’ सौंदर्या को देखते ही वैदेही की आंखों से आंसुओं की धारा बह चली. ‘‘मैं घर चलता हूं. कल काम पर भी जाना है,’’ भास्कर ने कहा. ‘‘भाई साहब, अब भी नाराज हैं क्या? कोई भूल हो गई हो तो क्षमा कर दीजिए इस अभागिन को,’’ वैदेही का स्वर बेहद धीमा था, मानो कहीं दूर से आ रहा हो. ‘‘गांधी नगर में मेरी बहन रहती है. उसे आप फोन कर दीजिएगा,’’ इतना कह कर वैदेही ने फोन नंबर दिया पर वह चिंतित थी कि न जाने कब तक अस्पताल में रहना पड़ेगा. भास्कर घर पहुंचा तो धीरज वापस आ चुका था. उसे देख कर बाहर निकल आया. ‘‘वैदेही कहां है?’’ उस ने प्रश्न किया. ‘‘कौन वैदेही? मैं किसी वैदेही को नहीं जानता,’’ भास्कर तीखे स्वर में बोला. ‘‘देखो, सीधे से बता दो नहीं तो मैं पुलिस को सूचित करूंगा,’’ धीरज ने धमकी दी. ‘‘उस की चिंता मत करो, पुलिस खुद तुम्हें ढूंढ़ती आ रही होगी.

वैसे तुम्हारी पतिव्रता पत्नी तो तुम्हारे विरोध में कुछ कहेगी नहीं, पर हम तुम्हें छोड़ेंगे नहीं,’’ भास्कर का क्रोध हर पल बढ़ता जा रहा था. तभी भास्कर ने देखा कि उस माउंट अपार्टमेंट के फ्लैटों के दरवाजे एकएक कर खुल गए थे और उन में रहने वाले लोग मुट्ठियां ताने धीरज की ओर बढ़ने लगे थे. ‘‘इस राक्षस को सबक हम सिखाएंगे,’’ वे चीख रहे थे. भास्कर के होंठों पर मुसकान खेल गई. इस सभ्यसुसंस्कृत लोगों की बस्ती में भी मानवीय संवेदना अभी पूरी तरह मरी नहीं है. उसे वैदेही और उस की बच्चियों के भविष्य के लिए आशा की नई किरण नजर आई. उधर धीरज वहां से भागने की राह न पा कर हाथ जोडे़ सब से दया की भीख मांग रहा था.

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