वन मिनट प्लीज: क्या रोहन और रूपा का मिलन दोबारा हो पाया- भाग 1

‘‘रूपा जल्दी आओ.’’ ‘‘वन मिनट प्लीज.’’ रोहन भुनभुना उठा, ‘‘वन मिनट, वन मिनट करते हुए आधा घंटा हो गया.’’ अम्मां सम  झाते हुए बोलीं, ‘‘धीरज रखो. लड़कियों को सजने में देर लगती है.’’
‘‘अम्मां जाम में फंस गए तो होगा यह कि होस्ट ही आखिर में पहुंचेगा.’’

रूपा तैयार हो कर अपने कमरे से निकली. उस ने अम्मां का हाथ पकड़ा और गाड़ी में जा कर बैठ गई. रोहन उसे अपलक निहारता रह गया. लाल साड़ी में वह बहुत सुंदर लग रही थी. वह तेजी से गाड़ी चला कर होटल पहुंचा. वहां लोगों का आना शुरू हो चुका था.

आज उस ने होटल अशोक में शानदार पार्टी का आयोजन किया था. यह उस की ऐडवर्टाइजिंग कंपनी का वार्षिक समारोह था. साथ ही उसे अपनी पत्नी रूपा को सब से मिलवाना था. यह उस के लिए दोहरी खुशी का दिन था.

रोहन माइक पकड़ कर बोला, ‘‘माई डियर फ्रैंड्स, आज खुशी के अवसर पर मैं आप सब के सामने बड़े भाई जैसे दोस्त समीर का सच्चे दिल से शुक्रिया अदा करता हूं, जिन्होंने मु  झे जीने की राह दिखाई. मैं निराश हो कर टूटे हुए दिल से पुणे आया था, लेकिन उन की मदद से यह कंपनी बनाई और आप के सहयोग से आज हम कहां हैं आप सब जानते हैं. और ये हैं मेरी पत्नी रूपा जो मेरे बगल में खड़ी हैं. इन्हें मैं आप सब से मिलवाना चाह रहा था, जिस के लिए आज का दिन मु  झे उपयुक्त लगा.

रोहन का दोस्त ऋषभ बोला, ‘‘क्यों यार, बड़े छिपे रुस्तम निकले, शादी कर ली, लेकिन किसी को हवा भी नहीं लगने दी.’’ हिमांशु उस के कान में फुसफुसाया, ‘‘बहुत सुंदर है भाभी, कहां छिपा रखी थी?’’
वह हंस पड़ा. ज्ञान बोला, ‘‘रोहन तू बड़ा लकी है. चमकता हुआ बिजनैस और दमकती हुई बीवी दोनों एकदूसरे के लिए ही बने हो.’’

समीर, उस का पार्टनर पार्टी की व्यवस्था देख रहा था. पार्टी में खूब रौनक हो रही थी. उस ने रूपा के मम्मीपापा  को भी फोन कर के बुलाया था. पार्टी देर रात तक चलती रही. पीनापिलाना भी बदस्तूर जारी था, परंतु रोहन ने ड्रिंक को हाथ भी नहीं लगाया.

आज रूपा बहुत खुश थी. ऐसे ही रोहन की तो उस ने कल्पना की थी. आज उस  के मम्मीपापा और भैयाभाभी ने भी देख लिया कि रोहन कहां से कहां पहुंच चुका है. आज वह मन ही मन सोच रही थी कि यह तो गर्व की बात है कि उसे रोहन जैसा अच्छा पति मिला है, लेकिन उस ने क्या किया? उस ने तो रोहन पर अत्याचार करने में कोई भी कसर नहीं छोड़ी थी.

पार्टी बहुत अच्छी तरह समाप्त हो गई थी. घर आ कर रोहन नाइट सूट पहन कर आया और उसे किस करते हुए बोला, ‘‘रूपा, तुम खुश तो हो न?’’ ‘‘हां रोहन मैं बहुत खुश हूं लेकिन शर्मिंदा भी हूं कि अपने हीरे जैसे पति को कोयला सम  झ कर मैं ने कितना सताया है, वह उस के मुंह पर उंगली रख कर बोला, ‘‘अब पिछली बातें भूल जाओ. आज को ऐंजौय करो और उस का आनंद उठाओ.’’

दिन भर का थका हुआ रोहन बैड पर लेटते ही गहरी नींद में सो गया, लेकिन आज रूपा की आंखों से नींद उड़ गई थी. उस के जीवन के सारे उतारचढ़ाव उस की आंखों के सामने पिक्चर की रील की तरह घूम रहे थे. ऐसा लगता है कि कल की ही बात है जब उस ने एम.बी.ए. में ऐडमिशन लिया था. वहां नए बैच की पार्टी में रोहन पर उस की निगाह पड़ी. रोहन कविताएं लिखता था. उस ने स्टेज से कविताएं सुनाई थीं, तो पूरा हौल तालियों से गूंज उठा था. लोगों की फरमाइश पर उस ने एक गाना भी सुनाया था. फिर तो कालेज के सारे फंक्शन रोहन के बिना अधूरे होते थे.

पहली नजर में ही रोहन उस की निगाहों में बस गया था. लेकिन रोहन ने तो उस की ओर निगाहें उठा कर भी नहीं देखा था. वह कई बार उस की तारीफ करने के लिए उस के पास गई भी थी, परंतु वह उस को देख कर अनदेखा करता रहा. उस के रवैये के कारण वह अपमानित महसूस कर रही थी.

फिर मन ही मन उस ने रोहन को सबक सिखाने की ठान ली. एक दिन वह उस के पास पहुंच गई और कौफी पीने के लिए उसे कैफेटेरिया में ले कर गई. बस उस दिन से उन दोनों की मुलाकातें शुरू हो गईं. वह रोज एक नई कविता लिख कर लाता, वह सुनती कम, बस अपलक उसे निहारती रहती. धीरेधीरे वह उस को पाने के लिए पागल हो उठी थी. अब पढ़ाईलिखाई में उस का मन नहीं लगता था. कालेज के बाद वह रोहन के रूम में पहुंच जाया करती थी.

फाइनल सैमेस्टर की परीक्षा के दिन आ गए थे. एक दिन रोहन ने उस से कहा था, ‘रूपा, अब कुछ दिनों के लिए हम लोगों का मिलनाजुलना बंद रहेगा, क्योंकि अब मु  झे अपने ऐग्जाम की तैयारी करनी है.’
वह छूटते ही बोल पड़ी थी, ‘क्यों, क्या केवल तुम्हारा ही ऐग्जाम है, मेरा नहीं? मेरी हैल्प कौन करेगा?’
वह उस को सम  झाते हुए बोला था, ‘देखो रूपा, तुम्हारे नंबर या पोजिशन कुछ खराब भी आई तो तुम्हें तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा. तुम्हारे घर वाले किसी रईस परिवार के लड़के के साथ तुम्हारी शादी कर देंगे. फिर तुम बड़ीबड़ी गाडि़यों में घूमा करोगी. पर मेरा तो पूरा भविष्य ही इस रिजल्ट पर निर्भर करता है. मेरा यदि कैंपस सिलैक्शन न हुआ या ढंग की नौकरी न मिली तो मेरे लिए तो रोटी के भी लाले पड़ जाएंगे और मैं अपनी अम्मां को मुंह दिखाने लायक भी नहीं रहूंगा. उन्होंने बहुत मेहनत कर मु  झे पढ़ाया है. प्लीज रूपा, मु  झे माफ कर दो,’ और बाय कर के वह तेजी से चला गया था.

उस ने 2-3 दिन तो किसी तरह बिताए. फिर उसे रोहन के बिना दुनिया वीरान लगने लगी तो वह उस के कमरे में एक दिन पहुंच गई थी. फिर वही सिलसिला चालू हो गया था. एक पल में दोनों के बीच वह सब भी हो गया जो नहीं होना चाहिए था. इस के लिए रोहन को बहुत पछतावा हो रहा था, परंतु वह तो मन ही मन मुसकरा रही थी. अब रोहन पूरी तरह से उस का हो चुका था.

रिजल्ट आने वाला था. रोहन बहुत घबराया हुआ था. नतीजा तो वही हुआ, जो होना था. उस की पोजिशन खराब हो गई थी. उस का कैंपस सिलैक्शन भी नहीं हुआ. वह तो बस किसी तरह से पास हो पाया था. लेकिन रूपा को कोई परवाह नहीं थी.

नौकरी न मिलने के कारण रोहन बहुत परेशान और उदास रहता था. एक शाम जब रूपा रोहन के साथ कैफेडे में कौफी पी रही थी, तो वहां राघव भैया मीटिंग के लिए आ गए. उन्होंने उसे रोहन के साथ देख लिया तो घर में तूफान मचा दिया था. मम्मीपापा भी राघव भैया के साथ चिल्लाने लगे और उस के घर से निकलने पर पाबंदी लगा दी गई. कमरे के अंदर रोरो कर उस का कितना बुरा हाल हो गया था.

पापा ने   झटपट उस का रिश्ता एक रईस परिवार में तय कर दिया. उस के लाख मना करने पर भी पापा उस की शादी की तैयारियों में लगे हुए थे. उस की इच्छा को कोई सम  झने को तैयार नहीं था. वह रोहन को प्यार करने लगी थी और वह उस के साथ शादी कर लेना चाहती थी. एक दिन मौका लगते ही वह भाग कर उस की बांहों में जा कर सिसक उठी थी, ‘रोहन प्लीज, मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकूंगी. मेरे पेट में तुम्हारी निशानी पल रही है. तम्हें अभी मंदिर में चल कर मेरे साथ शादी करनी पड़ेगी, नहीं तो मैं अपनी जान दे दूंगी.’

रोहन बच्चे की बात सुन कर बहुत घबरा गया था. वह रोंआसा हो उठा था. और बोला, ‘रूपा, मैं बहुत गरीब परिवार से हूं्. मेरी मां एक प्राइमरी स्कूल में टीचर हैं. उन बेचारी ने मेरे लिए बहुत से ख्वाब देख रखे हैं. मेरे इस तरह से शादी करने पर वे टूट जाएंगी? और मेरी नौकरी भी अभी नहीं लगी है.

‘फिर मैं साइकिल पर चलने वाला और तुम्हारे पास अपनी कार है. भला बताओ मेरा और तुम्हारा क्या मेल? मैं तुम्हारी जिम्मेदारी कैसे उठा पाऊंगी? प्लीज, मेरा कहना मानो, अपने घर लौट जाओ. इसी में हम दोनों की भलाई है.’

‘मेरी भी सुनो प्लीज, अच्छी तरह सम  झ लो कि मैं अपने घर से भाग कर आई हूं. अब लौट कर जाने का कोई प्रश्न ही नहीं है. बच्चे की बात सुन कर तो पापा मु  झे गोली मार देंगे. घर लौटने से तो अच्छा है, तुम मेरे लिए जहर ला दो.’

परेशानहाल रोहन अपने सिर पर हाथ रख कर बैठ गया था. ‘मुंह लटका कर बैठने से थोड़े ही कुछ होगा,’ वह बोली, ‘चलो तम्हारी अम्मां के पास चलते हैं. वे जो भी कहेंगी वह मैं मान लूंगी. वे मेरी स्थिति को सम  झेंगी.’

रोहन उसे अपने घर ले कर गया था. वहां एक छोटे से मकान के एक पोर्शन में उस की अम्मां रहती थी. दूसरा पोर्शन किराए पर चढ़ा था. उस की अम्मां सरोज बेटे के साथ लड़की को देख सन्नाटे में आ गई थीं. वे कुछ सम  झ पातीं इस से पहले ही वह उन के गले से लग कर यह कहते हुए फूटफूट कर रोने लगी थी, ‘मैं रोहन के बिना एक पल भी नहीं रह सकती. मैं उस के बच्चे की मां बनने वाली हूं. मेरे पापा मेरी शादी किसी और लड़के के साथ कर रहे हैं. मैं घर से भाग कर आ गई हूं. हो सकता है वे मु  झे ढूंढ़ते हुए पुलिस ले कर आप के घर आ जाएं.’

अम्मां अपने बेटे की करतूत सुन कर क्रोधित हो उठीं. बेटे के गाल पर जोरदार तमाचा लगा कर बोलीं, ‘तू पैदा होते ही क्यों नहीं मर गया था? आज तेरी वजह से मेरा सिर शर्म से   झुक गया है.’ उन्होंने तुरंत रूपा को अपने एक पड़ोसी के यहां छिपा दिया था. कुछ ही देर में उस के पापा उसे खोजते हुए पुलिस ले कर आ गए थे. पुलिस लड़की भगाने के आरोप में रोहन को अपने साथ पकड़ कर ले जाने वाली थी, तभी वह बाहर निकल कर रोहन का हाथ पकड़ कर खड़ी हो गई थी और बोल पड़ी थी, ‘मैं बालिग हूं ये मेरे पति हैं. मैं इन के साथ शादी कर चुकी हूं.’ दरअसल, वह रोहन को सच में प्यार करने लगी थी.

पापा अपना माथा पीटते हुए यह कह कर चले गए थे, ‘आज से मेरातेरा कोई रिश्ता नहीं है. अभी 6 महीने में तेरा प्यार का भूत उतर जाएगा. तब तु  झे सम  झ आएगा कि तू ने कितनी बड़ी गलती की है.’
रोहन की तो बोलती ही बंद थी. सब कुछ इतना अप्रत्याशित घटा था कि वह कुछ विश्वास ही नहीं कर पा रहा था. अम्मां परेशान थीं कि पराई लड़की और वह भी उम्मीद से है, इस परेशानी से कैसे निबटें? फिर अगले दिन ही वे 8-10 लोगों के सामने मंदिर में फेरे करवा कर उसे अपनी बहू बना कर अपने घर ले आई थीं.

इस तरह की शादी की तो उस ने कभी कल्पना भी नहीं की थी परंतु रोहन को पा कर वह बहुत खुश थी.
लेकिन रईस परिवार की नाजों से पली लाडली थी वह. उस ने अपने हाथों से कभी चाय भी नहीं बनाई थी, तो वह भला घर के काम करना क्या जाने? अम्मां ने उस की सचाई को सम  झा था और इस कारण उस से कोई उम्मीद नहीं की थी.

26 January Special: परंपराएं- भाग 3- क्या सही थी शशि की सोच

प्रवेश करने पर स्वागत करने वालों की छोटी सी टोली दिखाई दी, जो अपनेआप में महत्त्वपूर्ण नहीं थी, परंतु जो वहां हुआ वह बड़ा नाटकीय था. स्वागतियों का सरदार एक लंबा, तगड़ा पहरेदार लगता था. उस ने लाल रंग की सुगठित वरदी पहनी हुई थी और वह प्रत्येक मेहमान के आगमन की घोषणा कर रहा था. अभी मैं इस दृश्य को अपनी आंखों में भर ही रही थी कि घोषणा सुनाई दी, ‘सावधान, सर्वमान्य श्रीमती और श्री मजूमदार पधार रहे हैं.’ उस घोेषणा में लयबद्धता थी, एकरूपता थी, यदि आप मेहमान हैं तो अवश्य ही माननीय होंगे.

जिस परिसर में मेहमान एकत्र हो रहे थे वह भोजकक्ष से सटा था. वहीं पर सब के लिए अल्पाहार और पेय आदि की व्यवस्था थी. उस की छत से लटकता, तराशे कांच से बना हुआ विशाल झाड़फानूस अपने चारों ओर एक भव्य आभा बिखेर रहा था. वे प्रकाशपुंज सचमुच एक विचित्र विलासमय गरिमा से भरे थे. जूली और उस का पति कीथ, मेहमानों का स्वागत बड़ी तन्मयता से कर रहे थे. जब जूली की नजर मुझ पर पड़ी, वह उस विशाल कमरे में एकत्र लगभग 300 मेहमानों को लांघ कर मेरी ओर लपकी. उस ने मुझे अपने बाहुपाश में जकड़ लिया और बोली, ‘‘मैं तुम्हें बता नहीं सकती कि तुम्हें यहां देख कर मुझे कितनी प्रसन्नता हो रही है.’’

फिर वह मुझे अपनी बचपन की सहेली डौरिस की ओर खींच कर ले गई, ‘‘मैं ने तुम दोनों को एक ही मेज पर रखा है. मुझे विश्वास है कि तुम दोनों एकदूसरे से बात करने में नहीं थकोगी.’’

जूली ने ठीक ही कहा था. डौरिस  जूली की बचपन की सहेली  थी. प्राथमिक शिक्षा से ले कर विश्वविद्यालय तक वे साथ ही पढ़ी थीं. बिना किसी भूमिका के डौरिस ने मुझ से कहा, ‘‘क्या तुम मेरे हैट के बारे में नहीं पूछोगी?’’

पुआल से बना, डौरिस के कंधों पर पूरी तरह छाया वह हैट मुझे कुछ पुराना सा लगा. मेरी समझ में नहीं आया कि क्या कहूं.

‘‘हां, अवश्य बताइए. एकदम बिरला लगता है,’’ मैं बोली.

‘‘वह तो है. यह हैट मैं ने जूली के विवाह पर पहना था.’’

‘‘क्या कहा, 40 साल पुराना, मैं नहीं मानती.’’

‘‘मेरा विश्वास करो. चाहो तो बाद में जूली से पूछ लेना. लेकिन इस हैट की कहानी यहीं समाप्त नहीं हो जाती. जब जूली की शादी हुई, मैं फैशन के मामले में बिलकुल नादान थी. विवाह के अवसर पर जब मैं चर्च पहुंची तो मैं ने देखा कि मेरे अलावा सभी स्त्रियों ने हैट लगाए हुए थे. मेरे असमंजस को मेरी दादी ने भांप लिया और अपना हैट उतार कर मेरे सिर पर रख दिया.’’

‘‘अविश्वसनीय, इस का मतलब यह हुआ कि न केवल तुम ने इसे 40 वर्ष पूर्व जूली के विवाह में पहना बल्कि यह उस से भी पुराना है.’’

‘‘हां, इस के किनारों पर लगी पाइपिंग के अतिरिक्त यह वैसा का वैसा है, जैसा मेरी दादी ने मुझे दिया था.’’

धीरेधीरे सभी मेहमानों से मेरी दुआसलाम हो गई. जूली की मौसी की पुत्री अपने पति पाम्पडूस के साथ ग्रीस से आई थी. जूली के पति के भाई विलियम और उस की पत्नी न्यूयार्क से आए थे. पीटर आस्ट्रेलिया से, डेविड हौंगकौंग से. आयरलैंड, जरमनी, स्पेन और इटली से भी रिश्तेदार आए थे. इंगलैंड और स्कौटलैंड से आए मेहमानों की संख्या अधिक थी.

स्पष्ट था कि उस पार्टी में परिवार और घनिष्ठ मित्रों के अलावा कोई और व्यक्ति नहीं था. जूली ने मुझे इतना निकट समझा, इस के लिए मुझे स्वयं पर गर्व हुआ.

मेहमानों के इस जमावड़े में एक थी जूली की भांजी, कैथरीन. वह विकलांग थी और ह्वील चेयर पर आई थी. सभी रिश्तेदार उस से मिलने के लिए होड़ लगाते मालूम हो रहे थे. 23 वर्षीय कैथरीन के पैरों की बनावट कुछ ऐसी थी कि कुछ देर के लिए खड़ी तो अवश्य हो सकती थी परंतु अधिक चलफिर नहीं सकती थी. वह आयकर विभाग में काम करती थी और अपनी अपंगता के होते हुए भी एक विचित्र प्रकार के आत्मविश्वास से भरी लगती थी.

जब हम भोज के लिए अपनी पूर्वनिर्धारित मेज पर पहुंचे तो उस पर तैनात वेटर ने मेरा विशेष स्वागत किया. ‘‘निश्ंिचत रहिए, आप दोनों के लिए शाकाहारी भोजन की विशेष व्यवस्था की गई है. आशा है आप को हमारा व्यंजन चुनाव पसंद आएगा.’’

‘‘ओह, धन्यवाद, हम ने तो इस बारे में सोचा भी नहीं था. मुझे विश्वास है कि सबकुछ स्वादिष्ठ ही होगा.’’

हमारी मुख्य तश्तरियों पर व्यंजन सूची के अतिरिक्त एक पुस्तिका रखी थी. मैं ने उसे उठाया, तो जाना कि वह एक व्यंजन नुस्खा पुस्तक थी. डौरिस ने मेरे कान में कहा, ‘‘इस पुस्तक को जूली के वृहत परिवार ने तैयार किया है, सभी ने उस के लिए कुछ न कुछ लिखा है. पुस्तक तो एक बहाना है जिस के माध्यम से उन लोगों ने 1 लाख पाउंड एकत्र किए जिस से एक घर खरीद कर उसे आधुनिक सुविधाओं से संपन्न कर कैथरीन को सौंप दिया. मेरा अनुमान है कि वृहत परिवार के प्रत्येक वयस्क सदस्य ने औसतन 1 हजार पाउंड इस काम के लिए दिए थे.’’

उस कल्पनातीत उदारता की बात सुन कर मेरे मन में जूली के परिवार के प्रति एक विशेष आदरभाव उभर आया. कोई दिखावा नहीं, कोई आडंबर नहीं. एक पारिवारिक समस्या थी, जिस का आकलन किया गया और फिर सभी ने यथासामर्थ्य उस के लिए योगदान किया. न दया, न भावनाओं का अतिरेक और न ही कृत्य के लिए प्रशंसा की चाह.

भोज की समाप्ति और चायकौफी परोसे जाने के बीच एक परदे पर जूली और कीथ के वैवाहिक जीवन की झलकियां छायाचित्रों के माध्यम से प्रस्तुत की गईं. पृष्ठभूमि में आवाज शायद मार्क की थी. हरेक चित्र एक पूरी कहानी था. उस चित्रमाला में उन के पहले मकान का चित्र था. पालतू बिल्ली थी. कीथ के मातापिता, भाईबहन और उन के बच्चों को यथोचित स्थान दिया गया था. मार्क और फियोना के बापटाइज होने, उन के प्रथम दिन स्कूल जाने आदि महत्त्वपूर्ण दिनों की यादें गुथी थीं. वरौनिका का पहली बार घुड़सवारी करने का प्रयत्न, 3 टांग की दौड़ और तैराकी में जीते पुरस्कार, सभी दर्ज थे. और अंत में कीथ के साथ जूली का चित्र उस पोशाक में जिसे पहन कर वह पहली बार कीथ से मिली थी.

इस के बाद सारी रोशनियां बंद कर दी गईं. भोजकक्ष पूरी तरह अंधेरे में डूब गया था. और तब 2-3 क्षण के अंतराल के बाद मंच रोशनियों से जगमगा गया. उस चमकीले प्रकाशपुंज में स्नान करती एक कन्या खड़ी थी. समझने और पहचानने में सभी को कठिनाई हुई. वह जूली नहीं, 15 वर्षीया वरौनिका थी, वही पोशाक पहने हुए जिसे पहन कर जूली पहली बार कीथ से मिली थी. लाल रंग की उस लंबी पोशाक में व्याप्त सफेद रंग की वृत्ताकार बुंदकियां छठे दशक के फैशन की प्रदर्शनी करती जान पड़ती थीं. सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से भर गया था.

कुछ क्षण उस कृत्रिम ज्योत्स्ना में स्नान करने के बाद वरौनिका मंच से नीचे उतर आई. वह बारीबारी से हरेक मेज पर गई और वहां बैठे लोगों के साथ उस ने बड़े चाव से छायाचित्र खिंचवाए. जब वह मेरे पास पहुंची तो मैं ने उस से कहा, ‘‘वरौनिका, तुम इस ड्रैस में बहुत सुंदर लग रही हो.’’

वह इतरा कर खड़ी हो गई, ‘‘हां, ठीक अपनी दादी की तरह.’’

मैं ने उस का माथा चूमा. मैं कल्पना की अपनी दुनिया में चली गई और सोचने लगी कि क्या मेरी अपनी पौत्री मेरी किसी पोशाक को इतने गर्व से पहनेगी?

26 January Special: परंपराएं- भाग 1- क्या सही थी शशि की सोच

जूली से मेरी पहली मुलाकात वर्षों  पहले तब हुई थी जब मैं ने इंगलैंड के एक छोटे शहर से स्थानीय जल आपूर्ति कंपनी के मरम्मत एवं देखभाल विभाग में काम करना शुरू किया था. हमारे विभाग का अध्यक्ष ऐरिक, मुझे एकएक कर के सभी कर्मियों के पास ले गया और उन से मेरा परिचय कराया. पहले परिचय में इतने नाम और चेहरे कैसे याद हो सकते थे, परंतु वह एक अनिवार्य औपचारिकता थी, जिसे ऐरिक निभा रहा था.

जब हम एक महिला के पास पहुंचे, वह दूरभाष पर किसी व्यक्ति का संदेश ले रही थी. दूसरी ओर से कोई चिल्लाए जा रहा था, और वह ‘जी हां’ और ‘हूं’ आदि से अधिक कुछ कह नहीं पा रही थी. ऐरिक और मैं थोड़ा हट कर प्रतीक्षा में खड़े हो गए थे. आखिरकार वह एकतरफा वार्त्ता समाप्त हुई.

‘‘ये हैं जूली, हमारे विभाग की मणि. ये न हों तो हम न जाने क्या करें,’’ ऐरिक ने परिचय कराया, ‘‘जूली यहां आने वाली सभी शिकायतें एकत्र करती हैं.’’

‘‘पहले तो इतनी शिकायतें नहीं आती थीं. जो आती थीं उन का समाधान ढूंढ़ना भी कठिन नहीं होता था. परंतु अब तो जैसे लोगों को शिकायत करने का शौक ही हो गया है,’’ जूली मुसकराई.

‘‘ये हैं शशि मजूमदार. आशा है मैं ने उच्चारण ठीक किया,’’ ऐरिक ने कहा, ‘‘ये आप के और इंजीनियरों की टोलियों के बीच कड़ी का काम करेंगी. आशा है आप दोनों महिलाएं एकदूसरे का काम पसंद करेंगी.’’

जूली मेरी ही तरह छोटे कद की,    इकहरे बदन वाली थी. आयु में   मुझ से 7-8 वर्ष अधिक थी, परंतु दूर से दिखने वाले कुछ अंतरों के बावजूद हमारी रुचियों में बहुत समानता थी. हम ने न केवल एकदूसरे को पसंद किया बल्कि शीघ्र ही मित्र भी बन गईं. यद्यपि जूली की मेज इमारत की पहली मंजिल पर थी और मैं बैठती थी तीसरी मंजिल पर, फिर भी चाहे मिनट दो मिनट के लिए ही सही, हम दिन में 1-2 बार अवश्य मिलती थीं. लंच तो सदैव ही साथ करती थीं और खूब गपें मारती थीं.

जूली दिन में प्राप्त हुई शिकायतों का सारांश तैयार कर के मेरे पास भेज देती थी. उन में से अधिकांश बिल की भरपाई या आपूर्ति काटे जाने आदि से संबंधित होती थीं, जिन्हें मैं सीधे वित्त विभाग को भेज देती थी. कुछ पत्रों का उत्तर ‘असुविधा के लिए क्षमायाचना’ होता, जिन्हें जनसंपर्क विभाग के लोग संभालते थे. शेष मरम्मत और रखरखाव की समस्याओं से जुड़े होते थे. उन्हें मैं ऐरिक के इंजीनियरों की टोलियों के पास भेज देती ताकि उपयुक्त कार्यवाही की जा सके.

बहुधा जूली शिकायत करने वालों के चटपटे किस्से सुनाती. ऐसे ही टैलीफोन पर मुआवजे के लिए गरजने वाले एक आदमी की नकल करते हुए जूली ने कहा, ‘‘पिछले 4 सालों में 2 बार बरसात का पानी मेरे घर में घुस चुका है. दोनों बार सारे कालीन खराब हुए और फर्नीचर भी बरबाद हुआ.’’

फिर जरा रुक कर उस ने आगे कहा, ‘‘अब अगर मौसम बदल जाने के कारण बरसात अधिक होने लगे तो वह बेचारा क्या करे जल आपूर्ति कंपनी से खमियाजा लेने के अतिरिक्त. घर की ड्योढ़ी 4-5 इंच ऊंची करना या बरसात होने से कुछ समय पहले रेत से भरी 3-4 बोरियां अपने दरवाजे के सामने रखना तो बड़े झंझट का काम था, जो उस की सोच से बाहर भी था.’’

‘‘बेचारा,’’ हम दोनों के मुंह से एक साथ निकला.

इसी प्रकार एक दिन जूली ने एक स्त्री की करुण गाथा सुनाई. उस दिन वाटर सप्लाई कंपनी के लोग आ कर उस के घर का पानी का कनैक्शन बंद कर गए थे. वह नाराजगी से भरी सीधी टैलीफोन पर थी, ‘मेरे परिवार में 2 छोटे बच्चे हैं, एक पति. कैसे उन का पालन करूं? आप लोग मनमानी करते हो. किसी की सुविधाअसुविधा का तनिक भी ध्यान नहीं. बस, उठे और टोंटी बंद कर डाली,’ सुबकतेसुबकते वह स्त्री मुझे संबोधित कर के बोली, ‘मिस, यदि मेरी जगह आप होतीं तो क्या करतीं?’ जूली ने मुझे बताया कि उस ने उस स्त्री से कुछ नहीं कहा. फिर बड़े नाटकीय ढंग से मेरे अति निकट आ कर बोली, ‘‘मैं अपना बिल अवश्य चुकाती और यह नौबत आने ही न देती.’’

एक व्यक्ति के गरजनेभड़कने की कथा जूली अकसर सुनाती थी. उस दिन वह बड़े उत्साह से आ कर बोली, ‘‘आज वही आदमी फिर फोन पर था. वही, जो पहाड़ी पर बने एक मकान की छठी मंजिल पर बने एक फ्लैट में रहता है. आज वह फिर भड़का, ‘गरमियां शुरू हो गई हैं और बरसात भी कई दिनों से नहीं हुई है. बताओ कि किस दिन से पानी का राशन शुरू होगा?’ मैं ने कहा, ‘श्रीमानजी, हमारी कोई नीति पानी का राशन करने की नहीं है. सूखे की स्थिति में पानी का प्रैशर घट जाने के कारण कुछ ऊंचे स्थानों में पानी घंटे दो घंटे के लिए नहीं पहुंच पाता. लेकिन बताइए कि क्या पानी आज भी बंद है?’ उस ने कहा कि आज तो बंद नहीं है. इस पर मैं थोड़ा झुंझला गई और मैं ने कहा, ‘तो आज क्यों फोन कर रहे हो?’ उस ने तुरंत फोन रख दिया.’’

मैं ने जूली को सलाह दी, ‘‘यदि वह व्यक्ति दोबारा फोन करे तो उस से कहना कि उस के लिए यह अच्छा है कि वह इस शहर में रहता है. यदि वह भारत जैसे देश के किसी शहर में जा कर एक पहाड़ी पर बने मकान की ऊंची मंजिल में फ्लैट ले कर रहे तो जितने समय यहां पानी नहीं आता उतने समय आए पानी से उसे काम चलाना पड़ेगा.’’

‘‘तुम जानती हो शशि, मैं ऐसा नहीं कह सकती,’’ जूली ने कहा, ‘‘और यदि कहा, तो तुम जानती हो कि मुझे क्या उत्तर मिलेगा. तुम्हारा बस चले तो इस देश में भी वैसा ही हो जाए.’’

इस के बाद हम दोनों के लिए काम करना कठिन हो गया. हम दोनों उस काल्पनिक उत्तर के बारे में सोचसोच कर बहुत देर तक हंसती रहीं.

हमारी गपशप सहकर्मियों या शिकायत करने वालों की चर्चा तक ही सीमित नहीं रहती थी. हम लोग अकसर हर विषय पर बातें करते थे. कंपनी की गपशप पर कानाफूसी, अखबारों में छपी चटपटी खबरें, पारिवारिक गतिविधियां, सभी कुछ. जूली के 2 बच्चे थे. 1 बेटा और  1 बेटी. बेटे का नाम मार्क था. वह विवाह के बाद अपनी पत्नी फियोना के साथ रहता था. बेटी सिमोन का विवाह तो अवश्य हुआ परंतु 1 ही वर्ष के भीतर तलाक हो गया था. उस के बाद वह वापस अपने मातापिता के साथ रहने लगी थी. एक दिन जब जूली काम पर आई तो उस के चेहरे को देख कर मैं समझ गई कि अवश्य ही कुछ बात है. पूछने पर उस ने बताया कि वह मार्क से तंग आ गई है. जूली के अनुसार मार्क और फियोना पिछले बृहस्पतिवार उस के घर आए थे. उन्होंने केवल इतना बताया कि वे लंबे सप्ताहांत के लिए प्राग जा रहे हैं और अपनी पुत्री, वरौनिका को हमारे पास छोड़ गए.

‘‘यह तो ठीक है कि वरौनिका हमें प्रिय है,’’ जूली ने बताया, ‘‘और उस की देखभाल करना कुछ कठिन नहीं परंतु उन्हें यह तो सोचना चाहिए कि हमारी भी अपनी जिंदगी है. हम पूरे सप्ताह वरौनिका के साथ ही लगे रहे. कहीं भी नहीं जा पाए.’’

तोहफा: भाग 1- रजत ने सुनयना के साथ कौन-सा खेल खेला

जब सुनयना 5 वर्ष की थी तभी उसे पता लग गया था कि वह बहुत सुंदर है. जब भी वह अपने मातापिता के साथ कहीं जाती, तो लोग उस के रंगरूप की तारीफ करते जैसे, ‘मोहन आप की बेटी कितनी प्यारी है. जब इस उम्र में ही इतनी सुंदर है तो आगे चल कर गजब ढाएगी.’

ऐसी बातें सुन कर उस के मातापिता की छाती गर्व से चौड़ी हो जाती. वे अपनी बेटी को बहुत ज्यादा लाड़प्यार देते और उस के नाजनखरे उठाने को तैयार रहते. सुनयना बातबात पर ठुनकती, मचलती. वह जान गई थी कि उस का रूप एक ऐसा औजार है जिस के जरीए वह जिस से जो चाहे करा ले. उस की एक मुसकान पर लोग निहाल हो जाते हैं और उस के माथे पर आई शिकन से उन के होश फाख्ता हो जाते हैं.

स्कूल में भी लड़के उस के आगेपीछे डोलते. कोई उस के लिए नोट्स कौपी कर रहा होता, तो कोई उस का स्कूल बैग लादे फिर रहा होता और कोई उसे अपना टिफिन खिला रहा होता. उस के ऐसे बहुत से दिलफेंक आशिक थे, जो उस की एक झलक के लिए लालायित रहते और उसे देख कर आहें भरते. सुनयना यह जान कर मन ही मन इतराती.

उस के मातापिता चौकन्ने हो गए थे. उन्होंने उस पर पहरा बैठा दिया था. उन के घर में काम करने वाली एक बूढ़ी औरत हमेशा उस के साथ कालेज भेजी जाती, जो उस की जासूसी कर के उस की हर एक गतिविधि की खबर उस के मांबाप को देती.

कालेज में जल्दी ही उस की कुछ अंतरंग सहेलियां बन गईं. सब की सब चुलबुली और नटखट थीं. उन के गुट को लोग चांडाल चौकड़ी के नाम से पुकारते. उन्हें जब पढ़ाई से फुरसत मिलती तो वे बैठ कर सोचतीं कि आज किसे बुद्धू बनाया जाए. इस खेल में उन सब को बड़ा आनंद आता था. कभी वे आवाज बदल कर किसी लड़के को फोन करतीं. उसे किसी होटल या पार्क में आ कर मिलने का निमंत्रण देतीं. और जब लड़का उस जगह पर पहुंच कर बेवकूफों की तरह इधरउधर ताकता और पलपल अधीर होता, तो वे छिप कर देखतीं और हंसी से लोटपोट होतीं. कभी वे सिनेमा का एक ऐक्स्ट्रा टिकट खरीद कर किसी बुद्धू लड़के को पकड़ाती और कहतीं ‘‘यह टिकट फालतू है. आप चाहें तो ले सकते हैं.’’

और जब वह लड़का उन की बातों में आ कर टिकट ले कर ले कर उन के पास आ बैठता तो वे सब उस से चुहल करतीं.

एक दिन कालेज में एक सुंदर नौजवान आया. उसे देखते ही कालेज में एक हलचल मच गई. लड़कियों में उत्तेजना की एक लहर दौड़ गई. वे अपने क्लासरूम से निकल कर उस की एक झलक पाने को उतावली हो उठीं. उन सब में उस लड़के से पहचान बनाने की होड़ सी लग गई. सुनयना भी उस पर फिदा हो गई.

उस का नाम रजत था. वह शहर के मशहूर उद्योगपति दिवाकर लाल का बेटा था और उस ने इस कालेज में ऐडमिशन लिया था. वह अपनी हाईफाई कार से कालेज आता. बढि़या से बढि़या डिजाइनर कपडे़ पहनता. लेकिन पढ़ाई के नाम पर मस्ती करता. अधिकांश समय वह क्लास कट कर के कैंटीन में अपने यारदोस्तों से घिरा बैठा रहता और आनेजाने वाली लड़कियों पर फबती कसता. लेकिन लड़कियां उस की दीवानी थीं.

सुनयना ने नाकभौं सिकोड़ कर सब को सुना कर यह कहा कि उसे रजत में कोई दिलचस्पी नहीं, लेकिन मन ही मन वह यह सोच कर जरा असहज हुई कि उस के रूप का जादू रजत पर अभी तक क्यों नहीं चल पाया था? पर वह किसी भी हालत में पहल करने को तैयार न थी. अगर रजत पैसे की घमंड से भरा था तो वह भी अपने रूप के मद में चूर थी.

एक दिन कालेज में एक फैशन शो का आयोजन किया गया, जिस में  सुनयना और उस की सखियों ने भी भाग लिया. सुनयना ने सब से आखिर में स्टेज पर प्रवेश किया. उस ने एक भड़कीली जरदोजी के काम वाली घाघराचोली पहन रखी थी और उस के माथे पर मांगटीका सजा था, जो उस की खूबसूरती में चार चांद लगा रहा था.

उसे देख लोग सीटी बजाने लगे. सारा हौल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. उस ने स्टेज पर बलखाती चाल चलते हुए कनखियों से नोट किया कि दर्शकों की पहली कतार में रजत अपने दोस्तों से घिरा बैठा था और उस की ओर एकटक देख रहा था. सुनयना का दिल जोर से धड़क उठा. अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे उस ने मन ही मन मुसकरा कर सोचा.

कार्यक्रम समाप्त हुआ और जैसे ही सुनयना कपड़े बदल कर ग्रीनरूम से बाहर निकली तो देखा कि बाहर रजत खड़ा था.

‘‘कौंग्रैट्स,’’ उस ने बड़ी आत्मीयता से कहा, ‘‘आप तो कमाल की मौडलिंग करती हैं. मेरे पिता हमारे मिल की बनी साडि़यों की लिए आप के साथ अनुबंध करना चाहते हैं. मैं ने उन से बात की है. आप को मुंहमांगे पैसे मिलेंगे.’’

इस तरह उन की दोस्ती की शुरुआत हुई. सुनयना रजत के रईसी ठाठ से प्रभावित हुई, तो उस के आकर्षक व्यक्तित्व ओर भी खिंचती चली गई. सुनयना उस के साथ बड़ीबड़ी गाडि़यों में सफर करने लगी और फाइव स्टार होटलों में खाने लगी. हर दिन एक नया प्रोग्राम बनता. कभी मड आइलैंड की सैर कर रहे हैं तो कभी गोवा घूमने या जुहू बीच में तैरने जा रहे हैं. हर शनिवार को किसी डिस्को में उन की शाम गुजरती.

दिन पर दिन बीतते गए. एक दिन उस ने पाया कि एकएक कर के उस की सब सहेलियों की शादी हो चुकी है. वह अकेली बची है, जो अपनी पढ़ाई पूरी कर चुकी है और समय काटने के लिए नौकरी करने के लिए बाध्य है. थोड़े दिनों बाद उस ने नरीमन प्वाइंट में एक होटल में नौकरी कर ली और उस के मातापिता दिनरात उस से शादी के लिए तकाजा कर रहे थे.

‘‘ऐसे कितने दिन चलेगा बिट्टो?’’ उस की मां चिंतित हो कर कहतीं, ‘‘तू 25 साल पार कर चुकी है. कब तक इस रजत के भरोसे बैठी रहेगी? माना कि वह बहुत अच्छा लड़का है. उस से अच्छा रिश्ता हम तेरे लिए ढूंढ़ ही नहीं सकते. पर बेटी क्या तू ने कभी उस का दिल टटोलने की कोशिश की है? उस के मन में क्या है यह कौन जाने? इन रईसजादों का क्या ठिकाना. तुझ से शादी भी करेगा या यों ही अटकाए रखेगा? तेरी उम्र ज्यादा हो जाएगी तो ढंग का लड़का मिलना मुश्किल हो जाएगा. फिर तू न इधर की रहेगी न उधर की.’’

‘‘हम तेरे भले के लिए ही कहते हैं,’’ उस के पिता ने समझाया, ‘‘रजत से मिल कर किसी नतीजे पर आना तेरे लिए बहुत जरूरी है. ऐसा न हो कि आगे चल कर वह तुझे टरका दे. हमें तेरी फिक्र लगी है.’’

सुनयना सही मौके की तलाश में थी. उस रोज उस का जन्मदिन था. रजत उसे एक शानदार होटल में खाना खिलाने ले गया और उसे एक सुंदर सी डिजाइनर साड़ी भेंट की. फिर जब वह उसे घर छोड़ने जाने लगा तो सुनयना मुसकरा कर बोली, ‘‘इस बेहतरीन शाम के लिए शुक्रिया, मुझे यह शाम हमेशा याद रहेगी.’’

‘‘तुम्हारा अगला जन्मदिन हम और धूमधाम से मनाएंगे’’

‘‘पता नहीं अगले साल हम कहां होंगे.’’

‘‘क्यों?’’ रजत ने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘तुम्हारा कहीं जाने का इरादा है क्या?’’

‘‘मेरे मातापिता  हाथ धो कर मेरे पीछे पड़े हैं कि मैं शादी कर लूं. मेरी वजह से उन की रातों की नींद हराम हो गई है.’’

‘‘तुम क्या चाहती हो?’’

‘‘तुम तो जानते हो रजत मेरे दिल का हाल फिर भी यह सवाल करते हो. पिछले 4 सालों से हम दोनों साथसाथ हैं. हमारे सब दोस्त जानते हैं कि मैं तुम्हारी गर्लफ्रैंड हूं. तुम्हारे बिना मेरा कोई वजूद नहीं है.’’

‘‘मैं जानता हूं,’’ रजत ने उस का हाथ अपने हाथों में ले कर प्यार से चूमा, ‘‘मैं भी तो तुम्हारा दीवाना हूं. आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई है.’’

‘‘लेकिन इस प्यार का अंजाम क्या होगा?’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘क्या हम दोनों हमेशा यों ही गर्लफ्रैंडबौयफ्रैंड बने रहेंगे? क्या हम शादी नहीं करेंगे?’’

‘‘अरे यार शादी में क्या रखा है. जहां तक मैँ ने देखा है 2 प्रेमियों की शादी हुई नहीं कि उन का प्यार काफूर हो जाता है. अब मेरे मम्मीडैडी को ही ले लो. उन का प्रेम विवाह हुआ था. पर अब एक ही घर में अजनबियों की तरह रहते हैं. मैं ने कभी उन्हें एकदूसरे से प्यार जताते नहीं देखा. दोनों अपनीअपनी राह चलते हैं. सच पूछो तो मेरी शादी की संस्था में बिलकुल आस्था नहीं है.’’

‘‘इस का मतलब है कि तुम कभी शादी नहीं करोगे?’’ वह परेशान हो उठी.

‘‘रिलैक्स यार, बेकार टैंशन मत लो लेकिन सुनो मेरे दिमाग में एक बात आई है. शादी करने के बजाय क्यों न हम साथसाथ रहने लगें?’’

‘‘साथसाथ तुम्हारा मतलब बिना शादी के?’’ उस की आंखें फैल गईं.

तुम्हीं ने दर्द दिया है

उस दिन मैं टेलीविजन के सामने बैठी अपनी 14 साल की बेटी के फ्राक में बटन लगा रही थी. पति एक हाथ में चाय का गिलास लिए अपना मनपसंद धारावाहिक देखने में व्यस्त थे. तभी दरवाजे पर घंटी बजी और मैं उठ कर बाहर आ गई.

दरवाजा खोला तो सामने मकानमालिक वर्माजी खड़े थे. मैं ने बड़े आदर से उन्हें भीतर बुलाया और अपने पति को आवाज दे कर ड्राइंगरूम में बुला लिया और बड़े विनम्र स्वर में बोली, ‘‘अच्छा, क्या लेंगे आप. चाय या ठंडा?’’

‘‘नहीं, इन सब की तकलीफ मत कीजिए. बस, आप बैठिए, एक जरूरी बात करनी है,’’ वर्माजी बेरुखी से बोले.

मैं अपने पति के साथ जा कर बैठ गई. थोड़ा आश्चर्य हुआ कि इतनी सुबहसुबह कैसे आना हुआ. फिर अपने विचारों को विराम दे कर चेहरे पर बनावटी मुसकान ला कर उन्हें देखने लगी.

‘‘मुझे इस मकान की जरूरत है. आप कहीं और मकान ढूंढ़ लीजिए,’’ उन्होंने एकदम सपाट स्वर में कहा.

‘‘क्या?’’ मेरे पति के मुंह से निकला, ‘‘पर मैं ने तो 11 महीने की लीज पर आप से मकान लिया है. आप इस तरह बीच में छोड़ने के लिए कैसे कह सकते हैं.’’

‘‘सर, मेरी मजबूरी है इसलिए कह रहा हूं. और फिर यह मेरा हक है कि मैं जब चाहे आप से मकान खाली करवा सकता हूं.’’

दोनों के बीच विवाद को बढ़ता देख कर मैं ने बेहद विनम्र स्वर में कहा, ‘‘पर ऐसा क्या कारण है भाई साहब जो आप को अचानक इस मकान की जरूरत पड़ गई. हम ने तो हमेशा समय पर किराया दिया है. फिर आप का तो और भी एक मकान है. आप उसे क्यों नहीं खाली करवा लेते.’’

‘‘कारण आप भी जानती हैं. मुझे पहले से पता होता तो आप को कभी भी यह मकान न देता. मेरा 1 महीने का कमीशन और सफेदी कराने में जो पैसा खर्च हुआ, सो अलग.’’

‘‘पर ऐसा क्या किया है हम ने?’’ मैं चौंक गई.

‘‘कारण आप की बेटी है और उस की बीमारी है. पिछले मकान से भी आप को इसलिए निकाला गया क्योंकि आप की बेटी को एड्स है और ऐसी घातक बीमारी के मरीज को मैं अपने घर में नहीं रख सकता. फिर कालोनी के कई लोगों को भी एतराज है.’’

‘‘भाई साहब, यह बीमारी कोई संक्रामक रोग तो है नहीं और न ही छुआछूत से फैलती है. यह तो हर जगह साबित हो चुका है और फिर हम दोनों में से यह किसी को भी नहीं है.’’

‘‘यह सब न मैं सुनना चाहता हूं और  न ही पासपड़ोस के लोग. अधिक पैसा कमाने की होड़ में आप लोग जरा भी नहीं समझते कि बच्चे किस तरफ जा रहे हैं. किन से मिलते हैं. बाहर क्याक्या गुल खिलाते हैं.’’

‘‘वर्माजी,’’ मेरे पति चीख पड़े, ‘‘आप के मुंह में जो आए कहते चले जा रहे हैं. आप को मकान खाली चाहिए मिल जाएगा पर इस तरह के अपशब्द और लांछन मुंह से मत निकालिए.’’

‘‘10 दिन बाद मकान की चाबियां लेने आऊंगा,’’ कह कर वर्माजी उठ कर चले गए.

उन के जाते ही मैं निढाल हो कर सोफे पर पसर गई. तभी भीतर से चारू आई और मुझ से आ कर लता की तरह लिपट कर रोने लगी. मेरे पति मेरे पास आ कर बैठ गए. कुछ कहतेकहते उन की  आवाज टूट गई, चेहरा पीला पड़ गया मानो वही दोषी हों.

अतीत चलचित्र सा मानसपटल पर तैरने लगा और एक के बाद एक कितनी ही घटनाएं उभरती चली गईं, जिन्हें मैं हमेशा के लिए भूल जाना चाहती थी.

मैं उस दिन किटी पार्टी से लौटी ही थी कि फोन की घंटी बजने लगी. फोन चारू के स्कूल से उस की क्लास टीचर का था. मेरे फोन उठाते ही वह हांफती हुई बोलीं, ‘आप चारू की मम्मी बोल रही हैं.’

मेरे ‘हां’ कहने पर वह बिना रुके बोलती चली गईं, ‘कहां थीं आप अब तक. मैं तो काफी समय से आप को फोन मिला रही हूं. आप के पति भी अपने आफिस में नहीं हैं.’

‘क्यों, क्या हुआ?’ मैं थोड़ा घबरा गई.

‘चारू सीढि़यों से फिसल कर नीचे गिर गई थी. काफी खून बह गया है. हम ने फौरन उसे फर्स्ट एड दे दी है. अब वह ठीक है. आप उसे यहां से ले जाइए,’ वह एक ही सांस में बोल गईं.

मैं ने बिना देर किए आटो किया और चारू के स्कूल पहुंच गई. वह मेडिकल रूम में लेटी थी और मुझे देख कर थोड़ा सुबकने लगी. मैं ने झट से उसे सीने से लगाया. तब तक वहां पर बैठी एक टीचर ने बताया कि आज हमारी नर्स छुट्टी पर थी. इसलिए पास के क्लीनिक से उस को मरहमपट्टी करवा दी है तथा एक पेनकिलर इंजेक्शन भी दिया है. मैं उसे थोड़ा सहारा दे कर घर ले आई. 1-2 दिन में चारू पूरी तरह ठीक हो गई और स्कूल जाने लगी.

इस बात को कई महीने हो गए. एक दिन सुबहसुबह मेरे पति ने बताया कि प्रगति मैदान में पुस्तक मेला चल रहा है. मैं भी जाने को तैयार हो गई पर चारू थोड़ा मुंह बनाने लगी.

‘ममा, वहां बहुत चलना पड़ता है. मैं घर पर ही ठीक हूं.’

‘क्यों बेटा, वहां तो तुम्हारी रुचि की कई पुस्तकें होंगी. तुम्हें तो किताबों से काफी लगाव है. खुद चल कर

अपनी पसंद की पुस्तकें ले लो,’ मेरे पति बोले.

‘नहीं पापा, मेरा मन नहीं है,’ कह कर वह बैठ गई, ‘अच्छा, आप मेरे लिए कामिक्स ले आना और इंगलिश हैंडराइटिंग की कापी भी. टीचर कहती हैं मेरी हैंडराइटिंग आजकल इतनी साफ नहीं है.’

‘क्यों तबीयत ठीक नहीं है क्या?’ मैं ने उस को अलग कमरे में ले जा कर पूछा. मुझे लगा कहीं उस के पीरियड्स न होने वाले हों, शायद इसीलिए वह थोड़ा जाने के लिए आनाकानी कर रही हो.

पति ने थोड़ा जोर से कहा, ‘नहीं बेटा, तुम को साथ ही चलना पड़ेगा. मैं ऐसे तुम को घर पर अकेला नहीं छोड़ सकता.’

वह अनमने मन से तैयार हो गई. पर मैं ने महसूस किया कि वह मेले में जल्दी ही बैठने की जिद करने लगती. फिर उसे एक तरफ बिठा कर हम लोग घूमने चले गए.

घर आतेआते वह फिर से एकदम निढाल हो गई. अगले दिन स्कूल की छुट्टी थी. मैं उसे ले कर डाक्टर के पास गई. उस ने थोड़े से टेस्ट लिख दिए जो 1-2 दिन में कराने थे. 2 दिन बाद फिर से ब्लड टेस्ट के लिए खून लिया चारू का.

अगले दिन सुबहसुबह डाक्टर का फोन आ गया और मुझे फौरन अस्पताल में बुलाया. पति तब आफिस जाने वाले थे. उन की कोई जरूरी मीटिंग थी. मैं ने कहा कि 12 बजे के बाद मैं आ कर मिल लेती हूं. पर वह बड़े सख्त लहजे में बोलीं कि आप दोनों ही फौरन अभी मिलिए. मैं थोड़़ा बिफर सी गई कि ऐसा भी क्या है कि अभी मिलना पड़ेगा पर वह नहीं मानीं.

हमारे पहुंचते ही डाक्टर बोलीं, ‘मुझे आप दोनों का ब्लड टेस्ट करना पड़ेगा.’

‘हम दोनों का?’ मैं एकदम मुंह बना कर बोली.

‘मैं ने आप की बेटी का 2 बार ब्लड टेस्ट किया है. मुझे बड़े खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि उसे एड्स है.’

‘क्या?’ हम दोनों ही चौंक गए. मेरी सांसें तेज होती गईं और छाती जोरजोर से धड़कने लगी. मैं ने अविश्वास से डाक्टर की तरफ देख कर कहा, ‘आप ने सब टेस्ट ठीक से तो देखे हैं, ऐसा कैसे हो सकता है?’

‘ऐसा ही है. अब देखना यह है कि यह बीमारी कहीं आप दोनों में तो नहीं है.’

मेरे तो प्राण ही सूख गए. मुझे स्वयं पर भरोसा था और अपने पति पर भी. फिर भी एक बार के लिए मेरा विश्वास डोल गया. यह सब कैसे हो गया था. हमारा ब्लड ले लिया गया. लगा जैसे सबकुछ खत्म हो गया है. मेरे पति उस दिन आफिस नहीं गए और न ही मेरा मन किसी काम में लगा.

दूसरे दिन हम दोनों की रिपोर्ट आ गई और रिपोर्ट निगेटिव थी. मैं ने डाक्टर को चारू के बारे में सबकुछ बताया और आश्वासन दिलाया कि उस के साथ कहीं कोई दुर्व्यवहार नहीं हुआ.

बातोंबातों में डाक्टर ने एकएक कर के बहुत सारे प्रश्न पूछे. तभी अचानक मुझे याद आया कि जब वह स्कूल में सीढि़यों से नीचे गिरी थी तो बाहर से एक इंजेक्शन लगवाया था. डाक्टर की आंखें फैल गईं.

‘आप के पास उस के ट्रीटमेंट और इंजेक्शन की परची है?’

‘ऐसा तो मुझे स्कूल वालों ने कुछ नहीं दिया पर एक टीचर कह रही थी कि उसे इंजेक्शन दिया था और इस बात की पुष्टि चारू ने भी की थी.’

हम लोग उसी क्षण स्कूल में जा कर प्रिंसिपल से मिले और अपनी सारी व्यथा सुनाई.

प्रिंसिपल पहले तो बड़े मनोयोग से सारी बातें सुनती रहीं फिर थोड़ी देर के लिए उठ कर चली गईं. उन के वापस आते ही मेरे पति ने कहा कि यदि आप उस टीचर को किसी तरह बुला दें जो चारू को क्लीनिक में ले कर गई थी तो हमें कारण ढूंढ़ने में आसानी होगी. कम से कम हम उस पर कोई कानूनी काररवाई तो कर सकते हैं.

‘क्या आप को उस का नाम मालूम है?’ वह बड़े ही रूखे स्वर में बोलीं.

चारू उस समय हमारी साथ थी पर वह इस बात का कोई ठीक से उत्तर नहीं दे सकी. इस पर प्रिंसिपल ने बड़ी लापरवाही से उत्तर दिया कि मैं मामले की छानबीन कर के आप को बता दूंगी.

मेरे पति आपे से बाहर हो गए. उन की खीज बढ़ती गई और धैर्य चुकता गया.

‘हमारे साथ इतना बड़ा हादसा हो गया और हम किस मानसिक दौर से गुजर रहे हैं, इस बात का अंदाजा है आप को. एक तो आप के स्कूल में उस दिन नर्स नहीं थी, उस पर जो उपचार बच्ची को दिया गया उस का भी आप के पास ब्योरा नहीं है. आप सबकुछ कर सकती हैं पर आप कुछ करना नहीं चाहती हैं. इसीलिए कि आप का स्कूल बदनाम न हो जाए. मैं एकएक को देख लूंगा.’

‘आप को जो करना है कीजिए, पर इस तरह चिल्ला कर स्कूल की शांति भंग मत कीजिए,’ वह लगभग खड़े होते हुए बोलीं.

दोषियों को दंड दिलवाने की इच्छा भी बेकार साबित हुई. चारू की रिपोर्ट से हम ने थोड़ेबहुत हाथपैर मारे पर सुबूतों के अभाव में दोषी डाक्टर एवं उस का स्टाफ बिना किसी बाधा के साफ बच कर निकल गया और जो हमारी बदनामी हुई, वह अलग.

हां, यदि प्रिंसिपल चाहती तो उन को सजा हो सकती थी पर वह क्लीनिक तो चलता ही प्रिंसिपल के इशारे पर था. स्कूल में प्रवेश से पहले सभी विद्यार्थियों को एक सामान्य हेल्थ चेकअप एवं सर्टिफिकेट की जरूरत होती थी जो वहीं से मिल सकता था.

चारू को एड्स होने की बात दावानल की भांति शहर भर में फैल गई. हम लोगों को हेय नजरों से देखा जाने लगा. चारू की स्कूल में भी हालत लगभग ऐसी ही थी.

सरकार के सारे बयान कि एड्स कोई छुआछूत की बीमारी नहीं है व छूने से एड्स नहीं फैलता, लगभग खोखले हो चुके थे. मेरे घर पर भी कालोनी वालों का आना लगभग न के बराबर हो गया. किटी पार्टी छूट गई. बरतन मांजने वाली भी काम से किनारा कर गई. हम लोग उपेक्षित एवं दयनीय से हो कर रह गए थे. हम सुबह से शाम तक 20 बार जीते 20 बार मरते.

यह जानते हुए भी कि इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है फिर भी अपने मन को समझाने के लिए जिस ने जो बताया मैं ने कर डाला. जिस का असर मेरे तनमन पर यह पड़ा कि मैं खुद को बीमार जैसा अनुभव करने लगी थी. यह जिंदगी तो मौत से भी कहीं ज्यादा कष्ट- दायक थी.

एक दिन चारू रोती हुई स्कूल से आई और कहने लगी कि क्लास टीचर ने उसे सब से अलग और पीछे बैठने के लिए कह दिया है. कहा ही नहीं, अलग से इस बात की व्यवस्था भी कर दी है. मेरा दिल भीतर तक दहल गया. इस छोटे से दिल के टुकड़े को जीतेजी अलग कैसे कर दूं. वह बिलखती रही और मैं चुपचाप तिलतिल सुलगती रही.

मैं ने वह स्कूल और घर छोड़ दिया तथा इस नई कालोनी में घर ले लिया और पास ही के स्कूल में चारू को एडमिशन दिलवा दिया, यही सोच कर कि जब तक यह स्कूल जा सकती है जाए. उस का मन लगा रहेगा. पर यहां भी हम से पहले हमारा अतीत पहुंच गया.

अचानक पति के कहे शब्दों से मेरी तंद्रा टूटी और मैं वर्तमान में आ गई.

हमें 10 दिन के भीतर मकान खाली करना है यह सोच कर हम फिर से परेशान हो उठे. जैसेजैसे समय बीतता जा रहा था हमारी चिंता और बेचैनी भी बढ़ती जा रही थी.

एक दिन सुबहसुबह दरवाजे की घंटी बजी तो मैं परेशान हो उठी. मुझे दरवाजे और टेलीफोन की घंटियों से अब डर लगने लगा था. मैं ने दरवाजा खोला. सामने एक बेहद स्मार्ट सा व्यक्ति खड़ा था. उस ने मेरे पति से मिलने की इच्छा जाहिर की. मैं बड़े सत्कार से उसे भीतर ले आई. मेरे पति के आते ही वह खड़ा हो गया. फिर बड़ी विनम्रता से हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘मैं डा. चौहान हूं, चाइल्ड स्पेशलिस्ट. आप ने शायद मुझे पहचाना नहीं.’’

‘‘मैं आप को कैसे भूल सकता हूं,’’ सकते में खड़े मेरे पति बोले, ‘‘आप की वजह से तो मेरी यह हालत हुई है. आप के क्लीनिक के इंजेक्शन की वजह से तो मेरी बच्ची को एड्स हो गया. अदालत से भी आप साफ छूट गए. अब क्या लेने आए हैं यहां? एक मेहरबानी हम पर और कीजिए कि हम तीनों को जहर दे दीजिए.’’

‘‘सर, आप मेरी बात तो सुनिए. आप जितनी चाहे बददुआएं मुझे दीजिए, मैं इसी का हकदार हूं. जो गलती मेरे क्लीनिक से हुई है उस के लिए मैं ही जिम्मेदार हूं. मेरी ही लापरवाही से यह सबकुछ हुआ है. कोर्ट ने मुझे बेशक छोड़ दिया पर आप का असली गुनहगार मैं हूं. और यह एक बोझ ले कर मैं हर पल जी रहा हूं,’’ और हाथ जोड़ कर वह मेरी ओर देखने लगा. स्वर पछतावे से भरा प्रतीत हुआ.

‘‘मैं ने इस शहर को छोड़ कर पास के शहर में अपना नया क्लीनिक खोल लिया है. इनसान दुनिया से तो भाग सकता है पर अपनेआप से नहीं. मैं मानता हूं कि मेरा अपराध अक्षम्य है पर फिर भी मुझे प्रायश्चित्त करने का मौका दीजिए.

‘‘मैं अपने सूत्रों से हमेशा आप के परिवार पर नजर तो रखता रहा पर यहां तक आने और माफी मांगने की हिम्मत नहीं जुटा सका. अभी कल ही मुझे पता चला कि आप पर फिर से मकान का संकट आ पड़ा है तो मैं यहां तक आने की हिम्मत कर सका हूं.

‘‘मैं जहां रहता हूं वहीं नीचे मेरा क्लीनिक है. मैं चाहता हूं कि आप लोग मेरे साथ चल कर मेरे मकान में रहिए. मुझे आप से कोई किराया नहीं चाहिए बल्कि आप की चारू का उपचार मेरी देखरेख में चलता रहेगा. मुझे एक बड़ी खुशी यह होगी कि मेरे लिए आप लोगों की सेवा का मौका मिलेगा,’’ कहतेकहते वह मेरे चरणों में गिर पड़ा. उस का स्वर जरूरत से ज्यादा कोमल एवं सहानुभूति भरा था.

मुझे समझ में नहीं आया कि मैं क्या करूं. उस का स्वर भारी और आंखें नम थीं. उस के यह क्षण मुझे कहीं भीतर तक छू गए. अचानक मां के स्वर याद आ गए, ‘अतीत कड़वा हो या मीठा, उसे भुलाने में ही हित है.’

‘‘मुझे सोचने के लिए समय चाहिए. मैं कल तक आप को उत्तर दूंगी.’’

‘‘मैं कल आप का उत्तर सुनने नहीं बल्कि आप को लेने आ रहा हूं. मेरा आप का कोई खून का रिश्ता तो नहीं पर अपना अपराधी समझ कर ही मेरी प्रार्थना स्वीकार कर लीजिए,’’ कहते- कहते उस का गला भर गया और आंसू छलक आए.

उस के इन शब्दों में आत्मीयता और अधिकार के भाव थे. आंखें क्षमायाचना कर रही थीं.

चुनाव मेरा है

सर्जिकल वार्ड में शाम का राउंड लगाने के बाद डा. प्रशांत और सिस्टर अंजलि ड्यूटी रूम में आ बैठे. एक जूनियर सिस्टर उन दोनों के सामने चाय का कप रख गई.

‘‘आज का डिनर मेरे साथ करोगी?’’ प्रशांत ने रोमांटिक अंदाज में अंजलि की आंखों में झांका.

‘‘मेरे साथ डिनर करने के बाद घर देर से पहुंचोगे तो रीना मैडम को क्या सफाई दोगे?’’ अंजलि की आंखों में शरारत भरी चमक उभरी.

‘‘कह दूंगा कि एक इमरजेंसी आपरेशन कर के आ रहा हूं.’’

‘‘पत्नी से झूठ बोलोगे?’’

‘‘झूठ क्यों बोलूंगा?’’ प्रशांत मेज के नीचे अपने दाएं पैर के पंजे से अंजलि की पिंडली सहलाते हुए बोला, ‘‘डिनर के बाद तुम्हारे रूम पर चल कर ‘इमरजेंसी’ आपरेशन करूंगा न मैं.’’

‘‘बीमारी डाक्टर को हो और आपरेशन कोई और कराए, ऐसा इलाज मेरी समझ में नहीं आता,’’ और अपने इस मजाक पर अंजलि खिलखिला कर हंसी तो उस के व्यक्तित्व का आकर्षण प्रशांत की नजरों में और बढ़ गया.

अविवाहित अंजलि करीब 30 साल की थी. रंगरूप व नैननक्श खूबसूरत होने के साथसाथ उस में गजब की सेक्स अपील थी. उस के चाहने वालों की सूची में बडे़छोटे डाक्टरों के नाम आएदिन जुड़ते रहते थे. अपनी जिम्मे- दारियों को निभाते समय उस की कुशलता भी देखते बनती थी.

प्रशांत के मोबाइल की घंटी बजने से उन के बीच चल रहा हंसीमजाक थम गया. उस ने कौल करने वाले का नंबर देख कर बुरा सा मुंह बनाया और अंजलि से बोला, ‘‘कबाब में हड्डी बनाने वाली छठी इंद्री कुदरत ने सब पत्नियों को क्यों दी हुई है?’’

‘‘पत्नी के साथ बेईमानी करते हो और ऊपर से उसे ही भलाबुरा कह रहे हो. यह गलत बात है जनाब, चलो, प्यारीप्यारी बातें कर के रीना मैडम को खुश करो,’’ अंजलि बिलकुल सामान्य व सहज बनी रही.

‘‘तुम मेरी गर्लफ्रैंड हो कर मेरी पत्नी से ईर्ष्याभाव नहीं रखती हो क्या?’’

‘‘जिस पर हंसने की उस के पति ने ही ठान रखी हो, उस से क्या जलना?’’ यह जवाब दे कर अंजलि एक बार और खिलखिला कर हंसी और फिर अपने काम में जुट गई.

अपनी पत्नी रीना से प्रशांत ने 5-7 मिनट बातें कीं, फिर अपना मोबाइल चार्जर पर लगाने के बाद वह अंजलि से गपशप करने लग गया.

‘‘सोचती हूं तुम्हारे साथ डिनर पर चली ही चलूं,’’ अंजलि शरारत भरे अंदाज में मुसकराई, ‘‘बोलो, कहां ले चलोगे?’’

‘‘जहन्नुम में,’’ प्रशांत भन्ना उठा, ‘‘तुम ने सुन लिया न कि रीना ने रात वाले शो के टिकट ले कर आने की बात अभीअभी फोन पर मुझ से की है. मुझे किलसाने को तुम अब डिनर पर चलने की बात नहीं करोगी तो कब करोगी?’’

‘‘यों क्यों गुस्सा हो रहे हो जानेमन,’’ अंजलि ने प्रशांत की आवाज की बढि़या नकल उतारी, ‘‘आज रात बीवी को खुश करो और कल प्रेमिका का नंबर लगाना. कितने लकी हो तुम. पांचों उंगलियां घी में हैं तुम्हारी.’’

‘‘हां, ठीक कह रही हो,’’ प्रशांत बोला, ‘‘जिस दिन रीना को इस चक्कर का पता लगेगा, उसी दिन मेरा सिर कड़ाही में भी होगा.’’

‘‘देखो रोमियो, तुम क्या समझते हो कि मैडम को इस बारे में पता नहीं है. अरे, ऐसे चक्करों की खबर दुनिया वाले फटाफट पत्नी तक पहुंचा देते हैं. मैडम जिस तरह से मुझे मुलाकात होने पर पहली बार देखती हैं, उन नजरों में समाए कठोरता और चिढ़ के क्षणिक भावों को मैं खूब पहचानती हूं.’’

‘‘पर मैं ने तो तुम दोनों को सदा आपस में खूब हंसहंस कर बातें करते ही देखा है.’’

‘‘वह हंसना झूठा है, जानेमन.’’

‘‘किसी दिन वह तुम से लड़ पड़ी तो क्या होगा?’’

‘‘वैसा कुछ नहीं होगा क्योंकि जिंदगी के प्रति मेरा जो नजरिया है… जो मेरी फिलौसफी है वह मैं ने उन्हें कई बार समझाई है.’’

‘‘मुझे भी बताओ न जो तुम ने रीना से कहा है.’’

‘‘फिलहाल मेरी उस फिलौसफी को तुम नहीं समझोगे…और न ही उसे तुम्हें समझाने का सही समय अभी आया है,’’ रहस्यमयी अंदाज में अंजलि मुसकराई और फिर दोनों का ध्यान एक मरीज के तीमारदार की तरफ चला गया जो उन से कुछ कहना चाहता था.

प्रशांत को उस व्यक्ति के साथ एक मरीज को देखने जाना पड़ा. उस की गैरमौजूदगी में उस के मोबाइल की घंटी बज उठी और जो नंबर उस में नजर आ रहा था उसे अंजलि ने पहचाना. उस की आंखों में पहले सोचविचार के भाव उभरे और फिर उस की मुखमुद्रा कठोर होती चली गई.

प्रशांत के लौटने तक उस ने खुद को पूरी तरह सहज बना लिया था. उस ने आ कर ‘मिस्ड’ कौल का नंबर पढ़ा और फिर बाहर कोरिडोर में चला गया.

वहां उस ने 10 मिनट किसी से फोन पर बातें कीं. अंजलि को वह इधर से उधर घूमता ड्यूटी रूम से साफ नजर आ रहा था.

‘यू बास्टर्ड,’ अंजलि होंठों ही होंठों में हिंसक लहजे में बुदबुदाई, ‘‘अगर मेरे साथ ज्यादा चालाकी दिखाने की कोशिश की तो वह सबक सिखाऊंगी कि जिंदगी भर याद रखोगे.’

प्रशांत के वापस लौटने तक अंजलि  ने अपनी भावनाओं पर पूरी तरह नियंत्रण कर के उस से मुसकराते हुए पूछा, ‘‘किस से यों हंसहंस कर बातें कर रहे थे?’’

‘‘एक पुराने दोस्त के साथ,’’ प्रशांत ने टालने वाले अंदाज में जवाब दिया.

‘‘रीना मैडम से मेरे सामने बात करते हो तो इस पुराने दोस्त से बातें करने बाहर क्यों गए?’’

‘‘यों ही कुछ व्यक्तिगत बातें करनी थीं,’’ प्रशांत हड़बड़ाया सा नजर आने लगा.

‘‘सौरी, जानेमन.’’

‘‘सौरी क्यों कह रही हो? तुम सोचती हो कि मैं किसी दोस्त से नहीं बल्कि किसी सुंदर लड़की से बातें कर रहा था? उस पर लाइन मार रहा था?’’ प्रशांत अचानक ही चिढ़ा सा नजर आने लगा.

‘‘अरे, मैं ऐसा कुछ नहीं सोच रही हूं क्योंकि मुझ जैसी सुंदर प्रेमिका के होते हुए तुम किसी दूसरी लड़की पर लाइन मारने की बेवकूफी भला क्यों करोगे?’’ अपना चेहरा उस के चेहरे के काफी पास ला कर अंजलि ने कहा और फिर रात वाली सिस्टर को चार्ज देने के काम में व्यस्त हो गई.

कुछ देर बाद ड्यूटी समाप्त कर के प्रशांत चला गया. अंजलि जानती थी कि उसे घर पहुंचने में आधे घंटे से कम  समय लगेगा.

आधे घंटे के बाद उस ने प्रशांत के घर फोन किया. उस की पत्नी रीना ने उखड़े मूड़ में उसे खबर दी कि प्रशांत घर पर नहीं है. इमरजेंसी आपरेशन आ जाने के कारण वह देर तक आपरेशन थिएटर में रुकेगा.

यह खबर सुनते ही अंजलि की आंखों में गुस्से और नाराजगी के भाव एकदम से बढ़ गए. वह अस्पताल से बाहर आई और रिकशा कर के शास्त्री नगर पहुंची.

उस का शक सही निकला था.

डा. प्रशांत की लाल मारुति कार सिस्टर सीमा के घर के सामने खड़ी थी. उस के मोबाइल पर उस ने सीमा के घर के फोन का नंबर शाम को पढ़ लिया था.

उस ने रिकशे वाले को अपने घर की तरफ चलने की हिदायत दी. सारे रास्ते वह क्रोध व ईर्ष्या की आग में सुलगती रही.

सीमा और वह कभी अच्छी सहेलियां हुआ करती थीं. दोनों बेइंतहा खूबसूरत थीं. उन की जोड़ी को साथ चलते देख कर लोग अपनी राह से भटक जाते थे.

सीमा का बौयफ्रैंड उन दिनों रवि होता था और उस के साथ जरा खुल कर हंसनेबोलने के कारण सीमा को शक हो गया और वह अंजलि से एक दिन बुरी तरह से लड़ी थी.

तब से उन के बीच कभी सीधे मुंह बातें नहीं हुईं. दोनों डाक्टरों के बीच बराबर की लोक प्रियता रखती थीं. यह भी सच था कि जो व्यक्ति एक के करीब होता वह दूसरी को फूटी आंख न भाता.

‘‘कमीनी, जान- बूझ कर मेरा दिल दुखाने के लिए प्रशांत पर जाल फेंक रही है. इस बेवकूफ डाक्टर को जल्दी ही मैं ने तगड़ा सबक नहीं सिखाया तो मेरा नाम अंजलि नहीं.’’

घर पहुंचने तक अंजलि का पारा सातवें आसमान तक पहुंच गया था.

अगली सुबह अपने असली मनोभावों को छिपा कर उस ने प्रशांत से मुसकराते हुए पूछा, ‘‘कैसी थी कल की फिल्म?’’

पहले प्रशांत उलझन का शिकार बना और फिर जल्दी से बोला, ‘‘कोई खास नहीं… बस, ठीक ही थी.’’

‘‘गुड,’’ अंजलि दवाओं की अलमारी की तरफ चल पड़ी.

‘‘सुनो, आज शाम डिनर पर चल रही हो?’’

‘‘सोचूंगी,’’ लापरवाह अंदाज में जवाब दे कर वह अपने काम में व्यस्त हो गई.

उस दिन उस ने डा. प्रशांत से सिर्फ काम की बातें बड़ी औपचारिक सी मुसकान होंठों पर सजा कर कीं. शाम तक वह समझ गया कि उस की प्रेमिका उस से नाराज है.

प्रशांत के कई बार पूछने पर भी अंजलि ने अपने खराब मूड का कारण उसे नहीं बताया. ड्यूटी समाप्त करने के समय तक प्रशांत का मूड भी पूरी तरह से बिगड़ चुका था.

अगले दिन भी जब अंजलि ने अजीब सी दूरी उस से बनाए रखी तब प्रशांत गुस्सा हो उठा.

‘‘तुम्हारी प्राबलम क्या है? क्यों मुंह फुला रखा है तुम ने कल से?’’ और अंजलि का हाथ पकड़ कर प्रशांत ने उसे अपने सामने खड़ा कर लिया.

‘‘मेरे व्यवहार से तुम्हें तकलीफ हो रही है, मेरे हीरो?’’ भौंहें ऊपर चढ़ा कर  अंजलि ने नाटकीय स्वर में पूछा.

‘‘बिलकुल हो रही है.’’

‘‘और तुम्हें मेरे बदले व्यवहार का कारण भी समझ में नहीं आ रहा है?’’

‘‘कतई समझ में नहीं आ रहा है,’’ प्रशांत कुछ बेचैन हो उठा.

‘‘इस बारे में रात को बात करें?’’

‘‘इस का मतलब तुम डिनर पर चल रही हो मेरे साथ,’’ प्रशांत खुश हो गया.

‘‘डिनर मेरे फ्लैट में हो तो चलेगा?’’

‘‘चलेगा नहीं दौड़ेगा,’’ प्रशांत ने उस का हाथ जोशीले अंदाज में दबा कर छोड़ दिया.

ड्यूटी समाप्त करने के बाद दोनों साथसाथ प्रशांत की कार में अंजलि के फ्लैट में पहुंचे.

अंदर प्रवेश करते ही प्रशांत ने उसे अपनी बांहों के घेरे में ले कर चूमना शुरू किया. अंजलि के खूबसूरत जिस्म से उठने वाली मादक महक उस के अंगअंग में उत्तेजना भर रही थी.

अंजलि ने उसे जबरदस्ती अपने से अलग किया और संजीदा लहजे में बोली, ‘‘मैं तुम्हें अपने बारे में कुछ बताने के लिए आज यहां लाई हूं. शांति से बैठ कर पहले मेरी बात सुनो, रोमियो.’’

‘‘बातें क्या हम बाद में नहीं कर सकते हैं?’’

‘‘बाद में तुम कुछ सुनने की स्थिति में कभी रहते हो?’’

‘‘देखो, मैं ज्यादा देर बातें कहनेसुनने के मूड में नहीं हूं, इस का ध्यान रखना,’’ प्रशांत पैर फैला कर सोफे पर बैठ गया.

कुछ पलों तक अंजलि ने प्रशांत के चेहरे को ध्यान से देखा और फिर बोली, ‘‘तुम्हें 3 महीने पुरानी वह रात याद है जब मैं अपनेआप बिना किसी काम के तुम से मिलने डाक्टरों के आराम करने वाले कमरे में पहुंची थी?’’

‘‘जिस दिन किसी इनसान की लाटरी खुले उस दिन को वह भला कैसे भूल सकता है?’’

‘‘अपने प्रेमी के रूप में तुम्हें चुनने के बाद उस रात तुम्हारे साथ सोने का फैसला मैं ने अपनी खुशी व इच्छा को ध्यान में रख कर लिया था और अब तक सैकड़ों पुरुषों ने मुझ से शादी करने की इच्छा जाहिर की है पर

कभी शादी न करने का चुनाव भी मेरा अपना है.’’

‘‘ऐसा कठिन फैसला क्यों किया है तुम ने?’’

‘‘अपने स्वभाव को ध्यान में रख कर. मैं उन औरतों में से नहीं हूं जो किसी एक पुरुष की हो कर सारा जीवन गुजार दें. मेरी जिंदगी में प्रेमी सदा रहेगा. पति कभी नहीं.’’

‘‘तुम्हारी विशेष ढंग की सोच ही शायद तुम्हें और औरतों से अलग कर तुम्हारी खास पहचान बनाती है, जानेमन. मैं तुम्हारी जैसी आकर्षक स्त्री के संपर्क में पहले कभी नहीं आया हूं. प्रशांत की आंखों में उस के लिए प्रशंसा के भाव उभरे.’’

‘‘शायद कभी आओगे भी नहीं,’’ अंजलि उठ कर उस के पास आ बैठी, ‘‘क्योंकि अपने व्यक्तित्व को पुरुषों की नजरों में गजब का आकर्षक बनाने के लिए मैं ने खासी मेहनत की है. अपने प्रेमी के शरीर, दिल और दिमाग तीनों को सुख देने की कला मुझे आती है न?’’

अंजलि ने झुक कर प्रशांत का कान हलके से काटा तो उस के पूरे बदन में करंट सा दौड़ गया. अंजलि ने उसे अपने होंठों का भरपूर चुंबन लेने दिया. प्रशांत की सांसें फिर से उखड़ गईं.

प्रशांत के आवारा हाथों को अपनी गिरफ्त में ले कर अंजलि ने आगे कहा, ‘‘अपने प्रेमी मैं बदलती आई हूं और बदलती रहूंगी, फिर भी मैं खुद को बदचलन नहीं समझती हूं क्योंकि एक वक्त में मेरा सिर्फ एक प्रेमी होता है जिस के प्रति मैं पूरी तरह से वफादार रहती हूं. और ऐसी ही आशा मुझे अपने प्रेमी से भी रहती है.’’

‘‘तब यह बताओ कि मेरे जैसे शादीशुदा प्रेमी की पत्नी से तुम्हें चिढ़ नहीं होती है, ऐसा क्यों, अंजलि? तुम्हें उस पत्नी की अपने प्रेमी के जीवन में मौजूदगी क्यों स्वीकार है? वफादारी महत्त्वपूर्ण है तो तुम अविवाहित पुरुषों को ही अपना प्रेमी क्यों नहीं चुनती

हो?’’ अंजलि के मनोभावों को समझने की उत्सुकता प्रशांत के मन में बढ़ गई.

‘‘प्रेमी चुनते हुए मैं विवाहित- अविवाहित के झंझट में न पड़ कर सिर्फ अपने मन की पसंद को ध्यान में रखती

हूं. जनाब, जो विवाहित पुरुष मेरा होने को तैयार है वह अपनी पत्नी के प्रति बेवफा या उस से ऊबा हुआ तो साबित हो ही गया. जो पत्नी अपने पति को अपने आकर्षण में बांध कर रखने में अक्षम है, उस से मुझे भला

क्यों ईर्ष्या होगी. लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या?’’ प्रशांत ने साफ देखा कि अंजलि की आंखों में कठोरता के भाव पैदा हो गए थे.

‘‘लेकिन मैं अपने वर्तमान प्रेमी के प्रति सदा वफादार रहती हूं, इसलिए उस का पत्नी के अलावा कहीं इधरउधर मुंह मारना भी मुझे पसंद नहीं. मैं ने आज तक किसी पुरुष के सामने उस के प्रेम को पाने के लिए हाथ नहीं फैलाए हैं. अपने प्रेम संबंधों को शुरू भी मैं करती हूं और उन का अंत भी.

‘‘अपनी जीवनशैली मैं ने खुद चुनी है. पापपुण्य, सहीगलत व नैतिकअनैतिक को नहीं बल्कि अपनी खुशियों को मैं ने अपने जीवन का आधार बनाया है और अपने जीवन से मैं पूरी तरह से संतुष्ट व सुखी हूं,’’ आवेश भरे अंदाज में बोलते हुए अंजलि का मुंह लाल हो उठा.

‘‘यों तनावग्रस्त हो कर तुम यह सब बातें मुझे क्यों सुना रही हो?’’ प्रशांत ने माथे पर बल डाल कर पूछा.

‘‘तुम्हें यह एहसास कराने के लिए कि तुम कितने खुशकिस्मत हो,’’ अंजलि की आवाज और सख्त हो गई, ‘‘मैं तुम्हें खुश रखने में एक्सपर्ट हूं, डाक्टर प्रशांत. मेरा रूप और जिस्म अनूठा है. तुम्हारे मन को समझ कर उसे सुखी रखने की कला मुझे बखूबी आती है. लोग तुम से इस कारण ईर्ष्या करते हैं कि मैं तुम्हारी प्रेमिका हूं…चाहे मुंह से वह मुझे चरित्रहीन कहें पर दिल से वे भी मुझ पर लट्टू हुए रहते हैं. इतना सबकुछ पा कर भी तुम ने सिस्टर सीमा के प्रेमजाल में फंसने की मूर्खतापूर्ण इच्छा को अपने मन में क्यों पनपने दिया?’’

‘‘तुम्हें जबरदस्त गलतफहमी…’’

‘‘डा. प्रशांत, अगर तुम इस वक्त झूठ बोलोगे, तो तुम्हारी मुझ से जुडे़ रहने की सारी संभावना समाप्त हो जाएगी,’’ अंजलि ने साफ शब्दों में उसे धमकी दी.

‘‘सीमा के साथ थोड़ाबहुत हंसी- मजाक करने का यों बुरा मत मानो जानेमन. तुम चाहोगी तो मैं उस से बिलकुल बात करना छोड़ दूंगा,’’ अंजलि  का गुस्सा कम करने के लिए प्रशांत ने फौरन सुलह का प्रयास शुरू किया.

कुछ देर गंभीरता से उस का चेहरा निहारने के बाद अंजलि ने उसे चेतावनी दी, ‘‘आज पहली और आखिरी वार्निंग मैं तुम्हें दे रही हूं. मुझे ‘डबलक्रौस’ करने की कोशिश कभी की तो फिर मुझे सदा के लिए भूल जाना. अपनी पत्नी से जितनी खुशियां पा सकते हो पा लेना लेकिन किसी सीमा जैसी की तरफ आंख उठा कर देखा तो पछताओगे.’’

‘‘मैं तुम्हारी बात समझ गया और अब तुम ये किस्सा समाप्त भी करो,’’ प्रशांत ने पास आ कर उसे अपनी बांहों में भर लिया.

अंजलि का मूड फौरन बदला. उस ने गर्मजोशी के साथ प्रशांत की इस पहल का स्वागत किया.

चंद मिनटों का आनंद देने के बाद अंजलि ने उसे कठिनाई से अलग कर के हलकेहलके अंदाज में कहा, ‘‘टे्रलर यहीं खत्म होता है जानेमन. पूरी फिल्म कल रात पर छोड़ो.’’

‘‘क्या मतलब?’’ प्रशांत चौंका.

‘‘मतलब यह कि अब तुम रीना मैडम के पास अपने घर चले जाओ.’’

‘‘पर क्यों?’’

‘‘क्योंकि मैं तुम्हें सोचने का समय दे रही हूं. अगर कल मेरे आगोश में लौटने की इच्छा तुम्हारे मन में हो तो मेरी शर्तों को ध्यान रखना नहीं तो गुडबाय.’’

अंजलि की बात सुन कर एक बार तो प्रशांत की आंखों में तेज गुस्सा झलका लेकिन जब अपने दिल को टटोला तो पाया कि जादूगरनी अंजलि से दूर वह नहीं रह सकता.

‘‘कम से कम एक कप चाय तो पिला कर विदा करो,’’ प्रशांत की बेमन वाली मुसकान में उस की हार छिपी थी और अपनी जीत पर अंजलि दिल खोल कर हंसने लगी.

अंतर्भास: भाग 1- आखिर क्या चाहती थी कुमुद

घर पर अकसर मैं अकेला होता… अकेला होने पर एक भी पल ऐसा न गुजरता जब मेरे दिमाग में कुमुद न होती. मैं यह निरंतर समझने की कोशिश करता रहता कि आखिर कुमुद जैसी सुंदर, युवा, पढ़ीलिखी और सरकारी नौकरी में लगी, बुद्धिमान लड़की ने जयेंद्र जैसे बदसूरत, अपने से दोगुनी उम्र वाले 2 बच्चों के पिता से शादी कैसे कर ली? जयेंद्र को इस महल्ले में लोग सब से बेवकूफ, प्रतिभाहीन, खब्ती आदमी मानते थे.

लोभी इतना कि बीमार बीवी का उस ने ठीक से इलाज इसलिए नहीं कराया क्योंकि इलाज में पैसा ज्यादा खर्च होता जबकि शहर में उस के पास 2-3 बड़े गोदाम थे, जिन का अच्छाखासा किराया आता था. उस का अपना निजी टैंट हाउस भी था. बच्चे पढ़ने में कमजोर थे इसलिए कुमुद उन्हें ट्यूशन पढ़ाने आया करती थी. जयेंद्र के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी पर अखबार वह खरीदता नहीं था. उस के घर में बच्चों की किताबकापियों के अलावा और कोई किताब कहीं दिखाई नहीं देती थी.

कुमुद से मेरा परिचय कुछ इस तरह हुआ कि एक दिन पड़ोस में दांतों के एक नकली डाक्टर के गलत इंजेक्शन लगाने से मरीज की मृत्यु हो गई जिस के कारण उस के घर वालों ने डाक्टर की दुकान पर हमला कर दिया. लड़ाईझगड़ा, गालीगलौज और मारपीट के समय कुमुद वहीं से गुजर रही थी. वह घबरा कर मेरे चबूतरे पर चढ़ आई. मैं ने उस को आतंकित और कांपते देखा तो उस से कह दिया कि आप भीतर घर में चली जाएं. यहां झगड़ा बढ़ सकता है. कुछ सकुचा कर वह अंदर चली आई और फिर बातें हुईं.

वह शहर के डिगरी कालिज से एम.ए. कर रही थी और पड़ोस के जयेंद्र के बच्चों को पढ़ा रही थी. ‘‘चाय बना कर लाता हूं,’’ मैं यह कह कर चाय बनाने चला गया और इस दौरान उस ने मेरे कमरे में रहने वाले का जीवन और चरित्र समझने की कोशिश की थी. साफ लगा, लड़की तेज है, बेवकूफ नहीं. बातों से पता चला कि वह नौकरी ढूंढ़ रही थी…पर किसी नौकरी के लिए कोशिश करो तो सब से पहले यही पूछा जाता है कि कंप्यूटर आता है? इंटरनेट का ज्ञान है? ईमेल कर लेते हो? पर शहर में जो अच्छे सिखाने वाले संस्थान हैं, उन की फीस बहुत है. वह उस के वश की नहीं और घटिया संस्थानों में कुछ सिखाया नहीं जाता.

‘‘आप कहें तो मैं अपने उस संस्थान के मालिक से बात करूं जहां मैं सीखता हूं…शायद मेरे कहने पर वह कम फीस में सिखाने को राजी हो जाए,’’ मैं ने कह तो दिया पर सोच में पड़ गया कि अगर वह राजी न हुआ तो? व्यापारी है. बाजार में पैसा कमाने बैठा है. मेरे कहने पर किसी को ओबलाइज क्यों करेगा? हां, उस की एक कमजोर नस मैं ने दबा रखी है. इंटरनेट पर वह साइबर कैफे चलाता है और कम उम्र के लड़के- लड़कियों को अश्लील वेबसाइट पर सर्फिंग करने देता है…पुलिस को इस की जानकारी है. 1-2 बार पुलिस ने उस पर छापा डालने की योजना भी बनाई, पर चूंकि एक अखबार में पार्टटाइम क्राइम रिपोर्टर होने के कारण मेरा परिचय पुलिस विभाग में बहुत हो गया है, हर कांड जिसे पुलिस खोलती है, उस की बहुत अच्छी रिपोर्टिंग मैं करता हूं और अकसर पुलिस वालों को उन की तसवीरों के साथ खबर में छापता हूं, इसलिए वे बहुत खुश रहते हैं मुझ से.

यही नहीं क्राइम होने पर मुझे वे तुरंत सूचित करते हैं और अपने साथ तहकीकात के वक्त ले भी जाते हैं. जबजब कंप्यूटर कैफे पर छापा डालने की पुलिस ने योजना बनाई, मैं ने पुलिस को या तो रोका या कंप्यूटर मालिक को पहले ही सूचित कर दिया जिस से वह लड़केलड़कियों को पहले ही अपने कैफे से हटा देता.

अगले दिन जब वह पड़ोसी जयेंद्र के घर बच्चों को सुबह ट्यूशन पढ़ाने जा रही थी, मैं ने उसे अपने चबूतरे पर से आवाज दी, ‘‘कुमुदजी…’’ वह ठिठक गई. बिना हिचक चबूतरे पर चढ़ आई. अपनी कुरसी से उठ कर मैं खड़ा हो गया और बोला, ‘‘मैं ने आप की कंप्यूटर सिखाने के लिए अपने संस्थान के मालिक से बात कर ली है. शाम का कोई वक्त निकालें आप…’’ ‘‘कितनी फीस लगेगी?’’ उस का प्रश्न था. ‘‘आप उस की चिंता न करें. वह सब मैं देखूंगा, हो सकता है, मेरी तरह आप भी वहां फ्री सीखें…’’

मैं ने बताया तो वह कुछ सकुचाई. शायद सुंदर लड़कियों को सकुचाना भी चाहिए. आज की दुनिया लेनदेन की दुनिया है. कैश न मांगे, कुछ और ही मांग बैठे तो? संकोच ही नहीं, उस के भीतर चल रहे मानसिक द्वंद्व को भी मैं ताड़ गया था. कहानियों, उपन्यासों का पाठक हूं… आदमी की, उस के मन की, उस के भीतर चल रही उथलपुथल की मुझे बहुत अच्छी समझ है. और यह समझ मुझे हिंदीअंगरेजी के उपन्यासों ने दी है. आदमी को समझने की समझ, किसी आदमी का बहुआयामी चित्रण जितनी अच्छी तरह किसी अच्छे उपन्यास में होता है, शायद किसी अन्य विधा में नहीं. इसीलिए आज के युग का उपन्यास महाकाव्य कहलाता है.

कुमुद का संकोच मेरी समझ में आ गया था सो मुसकरा दिया, ‘‘आप पर आंच नहीं आने दूंगा…यह विश्वास रखें.’’ ‘‘मेरे लिए आप भी यह सब क्यों करेंगे…’’ कुमुद कहने के बाद हालांकि मुसकरा दी थी. ‘‘मैं आप के कहने का आशय समझ गया,’’ हंस कर बोला, ‘‘किसी और लालच में नहीं, सिर्फ एक अच्छी दोस्त के लिए और उस से दोस्ती की खातिर…हालांकि इस छोटे शहर में स्त्री व पुरुष के बीच दोस्ती का एक ही मतलब निकाला जाता है, पर आप विश्वास रखें, बीच की सीमा रेखा का अतिक्रमण भी नहीं करूंगा…हालांकि आप का रूपसौंदर्य मुझे परेशान जरूर करेगा, क्योंकि सौंदर्य की अपनी रासायनिक क्रिया होती है…

‘‘आप ने बाहर हो रहे झगड़े के दौरान जब हमारी बैठक में बैठ कर चाय पी और हमारा परिचय हुआ तो आप से सच कहता हूं, मन में अनेक भाव आए, रात को भी ठीक से नींद नहीं आई, आप बारबार सपनों में आती रहीं पर मैं ने अपने मन को समझा लिया कि हर सुंदर लगने वाली चीज हमें जीवन में मिल जाए, यह जरूरी नहीं है…फिल्मों की तमाम हीरोइनें हमें बहुत अच्छी लगती हैं पर हम सब जानते हैं, वे आकाश कुसुम हैं…कभी मिलेंगी नहीं…’’ खिलखिला कर हंस दी कुमुद. हंसी तो उस के गोरे, भरे गालों में प्रीति जिंटा जैसे डिंपल बने जिन्हें मैं अपलक देखता रहा देर तक.

अंतर्भास: भाग 2- आखिर क्या चाहती थी कुमुद

वह बोली, ‘‘कुछ भी हो, आप दिल के एकदम साफ व्यक्ति हैं. जो मन में होता है, उसे कह देते हैं.’’ ‘‘कुमुद, तुम ने अंगरेजी विषय ही क्यों चुना एम.ए. के लिए?’’ एक दिन उस से पूछा. वह हिंदी और अंगरेजी के उपन्यास समान रूप से ले जा कर पढ़ने लगी थी. ‘‘कई कारण हैं. एक तो यह कि यहां के महिला महाविद्यालय में प्राचार्या ने वचन दिया है कि यदि एम.ए. में मेरी प्रथम श्रेणी आई तो बी.ए. की कक्षाओं को पढ़ाने के लिए फिलहाल वह मुझे रख लेंगी. दूसरा कारण, अपने महाविद्यालय में अंगरेजी के जो विभागाध्यक्ष हैं वह मुझे बहुत मानने लगे हैं. कह रहे थे, शोध करा देंगे. यदि पीएच.डी. करने का अवसर मिल गया तो एक प्रकार से मेरी शिक्षा पूरी हो जाएगी और कहीं ठीकठाक जगह नौकरी मिल जाएगी. तीसरा कारण, अंगरेजी पढ़ी लड़की को नौकरी आसानी से मिल जाती है.’’ ‘‘असली कारण तो तुम ने बताया ही नहीं,’’ भेद भरी मुसकान के साथ मैं बोला. ‘‘कौन सा?’’ उस की आंखों में भी शरारत थी. ‘‘अंगरेजी पढ़ी लड़की को अच्छा घर और वर भी मिल जाता है,’’ कह कर मैं हंस दिया. झेंप गई वह.

कुमुद कंप्यूटर सीखने जाने लगी थी. कई बार वह फीस के बारे में पूछ चुकी थी, पर उसे फीस न संस्थान मालिक ने बताई, न मैं ने. वह पढ़ती रही. काफी सीख भी गई. एक दिन बोली, ‘‘अगर कहीं से आप सेकंड हैंड कंप्यूटर दिलवा दें तो मैं घर पर कुछ जौब वर्क कर सकती हूं.’’ अगले दिन अपने संस्थान से ही एक नया असंबल किया हुआ कंप्यूटर ले कर उस के घर पहुंच गया, ‘‘तुम्हारे जन्मदिन का तोहफा, कुमुद.’’ वह एकदम खिल सी गई, ‘‘आप को कैसे पता चला कि आज मेरा जन्मदिन है?’’

‘‘कंप्यूटर संस्थान में तुम ने अपना फार्म भरा था, उस में तुम्हारा बायोडाटा देखा था.’’ ‘‘आप सचमुच जासूस किस्म के व्यक्ति हैं…क्राइम रिपोर्टर हैं, कहीं कोई क्राइम तो नहीं करेंगे?’’ वह हंसतीहंसती एकदम चुप हो गई थी क्योंकि उस की मां वहां आ गई थीं. उस ने कंप्यूटर अपनी मां को दिखाया. फिर मेरे लिए चाय बनाने चली गई. कुमुद की मां वहां रह गई थीं. संकोच भरे स्वर में कुछ हिचकती सी बोलीं, ‘‘आप की बहुत तारीफ करती है कुमुद. सचमुच आप ने उसे बहुत सहारा दिया है. हम आप का अहसान हमेशा मानेंगे.’’

मैं समझ रहा था, यह किसी अन्य बात को कहने की भूमिका है. यों ही कोई किसी की प्रशंसा नहीं करता. हर बात, हर व्यवहार आदमी बहुत चालाकी से, अपने मतलब के अनुसार करता है. अखबारी दुनिया में रहने से आदमी को अच्छी तरह समझने लगा हूं. पहले यह समझ नहीं थी. कुछ रुक कर चेहरा झुकाए हुए वह बोलीं, ‘‘कुमुद जहां बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने जाती है, आप की गली वाले जयेंद्रजी के घर…’’ इतना कहती हुई वह हिचकीं फिर बोलीं, ‘‘एक दिन वह यहां आए थे… बड़े आदमी हैं…आप भी जानते होंगे उन्हें…2 बच्चे हैं. पत्नी की बीमारी से मृत्यु हो गई है. मुझे कुछ खास उम्र नहीं लगी उन की…बस, शक्लसूरल जरा अच्छी नहीं है पर पैसे वाले आदमी की शक्लसूरत कहां देखी जाती है…कुमुद का हाथ मांग रहे थे…कह रहे थे कि बच्चे कुमुद से बहुत हिलमिल गए हैं…अगर कुमुद राजी हो जाए तो वह उस से शादी कर लेंगे…इस बारे में आप की क्या राय है?’’

मैं सन्नाटे में आ गया था. लगा, जैसे किसी ने चहकती चिडि़यों वाले बेर के विशाल पेड़ पर पूरी ताकत से बांस जड़ दिया है और सारी चिडि़यां एकाएक फुर्र हो गई हैं. बाहरभीतर का सारा चहकता शोर एकदम थम गया है. मैं भौचक्का उन की तरफ ताकता रह गया. मन हुआ, कंप्यूटर उठा ले जाऊं और कुमुद चाय ले कर आए उस से पहले ही इस घर से बाहर निकल जाऊं, पर ऐसा किया नहीं. काठ बना ज्यों का त्यों बैठा रहा. कुमुद चहकती चिडि़या की तरह खुश थी. उसे कंटीला ही सही एक ऊंचा बेर का वृक्ष मिल गया था. वह बेखौफ उस घने वृक्ष पर अपना घोंसला बना सकती थी. घर आ कर सारी स्थितियों पर मैं ने गंभीरता से सोचाविचारा. कुमुद ने मेरी अपेक्षा जयेंद्र को क्यों पसंद किया?

मैं अपनी असफलता पर बहुत दुखी ही नहीं, एक तरह से अपनेआप से क्षुब्ध और असंतुष्ट भी था. एक बार को मन हुआ कि बाजार से सल्फास की गोलियां ले आऊं और रात को खा कर सो जाऊं. फिर लगा कि यह तो कायरता होगी. आखिर इतना पढ़ालिखा हूं, समझ है, क्या इस तरह की बातें मुझे सोचनी चाहिए? इस में कुमुद का दोष कहां है? उस ने जो किया, जो सोचा, उस में उस की गलती कहां है? कोई भी चतुर और समझदार लड़की यही करती जो उस ने किया. आखिर जयेंद्र की तुलना में वह मुझे क्यों चुनती?

फिर मैं ने अपने मन की बात उस से कभी खुल कर कही भी नहीं. हो सकता है, वह सिर्फ एक दोस्त के रूप में ही मुझे देखतीमानती और समझती रही हो. जरूरी कहां है कि जो दोस्त है, उसे वह अपने जीवन का साथी भी बनाए? क्यों बनाए? सिर्फ दोस्त भी तो मान सकती है. कभी उस ने अपना ऐसा मन भी जाहिर नहीं किया कि वह मुझे इस रूप में पसंद करती है.

फिर कुमुद के इस फैसले से मैं खिन्न क्यों हूं? गुस्से से क्यों भभक रहा हूं? गलती खुद मुझ से हुई है. अगर दोस्ती से आगे बढ़ कर उसे चाहने लगा था तो मुझे उस से अपने मन की बात कहनी चाहिए थी. चूक उस से नहीं, मुझ से हुई है. उस से कहा क्यों नहीं? संकोच था, झिझक थी कि अगर इनकार कर दिया तो? और इनकार करने के कारण भी थे… 2 हजार की अखबार में क्राइम रिपोर्टर की मामूली नौकरी. 3 कमरों का साधारण घर. किराए पर उठी 3 दुकानें. मेरी आर्थिक हैसियत क्या है? मन की बात कहने पर अगर वह इनकार कर देती तो बहुत संभव था, मैं अपनेआप को रिजेक्टिड मान कर क्रोध में भड़क उठता और कोई गलत फैसला कर बैठता.

कुमुद मुझे बहुत अच्छी लगती है. मैं उस का बहुत सम्मान करता हूं. अच्छी दोस्त है वह मेरी. उस की एक झलक पाने के लिए, उस की एक मुसकान देखने के लिए, उस के गालों पर प्रीति जिंटा जैसे डिंपलों को देखने के लिए, मैं चकोर बना उस की ओर ताकता रहता हूं. ‘‘क्यों, चिडि़या हाथ नहीं आई?’’ कंप्यूटर संस्थान के मालिक ने मेरी स्थिति से असली मामला भांप लिया. कंप्यूटर के सामने चुप और उदास बैठा रहा. कुछ बोला नहीं. कुछ देर के मौन के बाद उस ने कहा, ‘‘बरखुरदार… मैं ने तुम से ज्यादा दुनिया देखी है. जयेंद्र जो एकएक पैसा दांत से पकड़ता है, तुम्हारी कुमुद पर फिदा हो गया था. कुमुद ने उस से नौकरी के लिए कहा तो एक अफसर की बेटी की शादी में मुफ्त टैंट लगा शादी का पूरा इंतजाम किया.

नयनतारा : बेकसूर विनायक ने किस गलती का कर रहा था प्रायश्चित्त

बगुले के पंखों की तरह झक सफेद बर्फ, रुई के छोटेछोटे फाहों के रूप में गिर रही थी. यह सिलसिला परसों शुरू हुआ था और लगा था, कभी रुकेगा नहीं. लेकिन पूरे 44 घंटे बाद बर्फबारी थमी. पता नहीं रात के कितने बजे थे. आकाश में पूरा चांद मुसकरा रहा था. विनायक बिस्तर पर उठ कर बैठ गया. उस ने अपने एक हाथ से दूसरा हाथ छुआ. लेकिन पता न चल सका कि बुखार उतरा या नहीं. जब बर्फ गिरनी शुरू हुई थी तो उसे होश था. उस ने 2 गोलियां खाई थीं. लेकिन उन से कुछ हुआ नहीं था. उस ने अनुमान लगाया कि वह पूरे 2 दिनों तक अवचेतनावस्था में अपने बिस्तर में पड़ा रहा था. भूखप्यास तथा 2 दिनों तक बिस्तर में निष्क्रिय पड़े रहने से उपजी थकान ने शरीर के हर हिस्से में दर्द भर दिया था.

विनायक ने खिड़की के शीशे के पीछे मुसकरा रहे चांद के साथ आंख लड़ाने का खेल शुरू किया. 1 मिनट, 2 मिनट, फिर उस ने थक कर अपनी आंखें नीचे झुका लीं. उस ने अपनेआप से कहा, ‘इश्क करने में भला कोई चांद से जीता है, जो मैं जीतूंगा. जीतता तो यहां इतना लाचार, इस कदर तनहा क्यों पड़ा होता.’

दूनागिरि के उस उपेक्षित से बिमलजी के मकान की दूसरी मंजिल का खुलाखुला सहमासहमा सा कमरा. विनायक ने अपने अंतर में दस्तक दी, ‘दोस्त, तुम अपनी जिंदगी की किताब के तमाम पन्ने मथुरा, हरिद्वार, ऋषिकेश, नैनीताल और न जाने कहांकहां के होटलों, गैस्टहाउसों में छितरा कर अब आखिरी पन्ना फाड़ कर फेंक देने के लिए यहां आ गए हो.’

खिड़की के उस पार चमक रहा चांद फिर धुंध में सिमट गया. बाहर रेशारेशा बन कर गिर रही बर्फ फिर दिखलाई पड़ने लगी. दोस्त का पैगाम… ‘लो भई विनायक, मौत आ गई,’ आ गया, ‘एक परी आएगी, तुम से तुम्हारी जिंदगी छीन कर ले जाएगी. फिर इस धरती पर तुम्हारी पहचान खत्म, नयन की याद खत्म,’ उस ने घुटनों में अपना सिर रख कर अपने सिर्फ एक ऐसे गुनाह से रिहाई पाने की कोशिश की, जो कि उस ने किया ही नहीं था.

पतझड़, पेड़ों की पातविहीन नंगी डालें, नीचे गिरे हुए अरबोंखरबों पत्ते, फिर वसंत आएगा, फिर नई कोंपलें, नए फल, नए फूल उगेंगे. मौत से जिंदगी छीन लाने का वही पुराना खेल. अब के बिछुड़े कब मिलें, कहां मिलें, मिलें भी कि न मिलें, कुछ पता नहीं. लेकिन नयन से माफी वसूलने की बात…और कमरे के भीतर भूख, प्यास, बुखार से छटपटा रहा विनायक.

‘प्रायश्चित्त…स्वीकारोक्ति से तुम अपनी की गलती से नजात पा सकते हो?’ बहुत पहले एक वृद्धा के मुख से उस ने ये शब्द सुने थे. प्रायश्चित्त वह कर रहा है, लेकिन स्वीकारोक्ति? ‘कहां पाऊं नयन को जो स्वीकारोक्ति करूं?’

रजाई की परतों में छिपी यातना से बेहोश हो रही विनायक की काया. कल, परसों, नहीं, 5 साल पहले…

अपने पिता की विनायक को कुछ याद नहीं थी. सभी कहते थे कि वह अपने पिता की हूबहू नकल है. उसे मां की याद है. मामूली बुखार से हार कर वे चल बसी थीं. घर में बड़े भाई सुधाकर, भाभी अहिल्या तथा उन की 11 साल की बेटी कालिंदी, यही उस के अपने शेष थे. कालिंदी पूरी आफत थी. सारा दिन लौन में तितलियां पकड़ने से ले कर बंगले के बाहर लगे आम, कटहल, नीबू तथा जामुन के पेड़ों की खोहों से गिलहरी, चिडि़या के बच्चे पकड़ने का काम वह पूरे उत्साह के साथ किया करती थी. इसी से विनायक ने उस का नाम नौटी यानी शरारती रख दिया था.

दूनागिरि का वह मकान…दूसरी मंजिल का कमरा. बर्फ व अंधड़ से बिजली के खंभे टूट गए थे. पानी सप्लाई की लाइनें फट चुकी थीं. बिजली नहीं, पानी नहीं. उसे निपट अकेला छोड़ कर उस के मकानमालिक बिमलजी सपरिवार नीचे लालकुंआ चले गए थे.

उस ने नीचे उतर कर उन का घर टटोला. मिट्टी के सकोरे में डबलरोटी के टुकड़े, एक बोतल में थोड़ा सा कड़वा तेल, 2 दौनों में बांध कर सहेजा हुआ पावडेढ़पाव गुड़, एक छींके पर टंगे हुए गिनती के 15 आलू और इतने ही प्याज. छींके में ही 10 ग्राम चाय का पैकेट रखा था. बिमलजी की पत्नी 45 वर्ष की अधेड़, निखरे रंग की सुंदर, सुघढ़ महिला थीं. उन्होंने एक बार दबे मन से विनायक के लिए कुछ करने की बात कही थी लेकिन बिमलजी ने यह कह कर, ‘मरने वाले के साथ खुद नहीं मरा जाता,’ उन्हें चुप करा दिया था.

चिमटे से बर्फ खोद कर उस ने स्टोव पर अपने लिए बगैर दूध वाली गुड़ की चाय बनाई. बर्फ से सख्त डबलरोटी के एक टुकड़े को चाय में डुबोडुबो कर खाया. पर लगा, कुछ भी भीतर जाने को तैयार नहीं है. उस ने पूरी मनोशक्ति लगा कर भीतर के पदार्थ को बाहर आने से रोका. विनायक को लगा कि चायरोटी के बावजूद उस की 2 दिनों की भूखी काया की प्रतिरोधक शक्ति में कोई वृद्घि नहीं हुई है. बिस्तर में घुसते ही अर्धचेतनावस्था ने उसे फिर घेर लिया.

भैया, भाभी और नौटी, जो कि छठी क्लास में फिर फेल हो गई थी, फेल होने का उसे कोई मलाल नहीं था. विनायक ने नौटी को पढ़ाने की कोशिश की, मगर नतीजा…वह खुद भी लड़की के साथ तितलियों, गिलहरियों के पीछे भागने लगा. अहिल्या कभी खीझ कर तो कभी मुसकरा कर अपना माथा पीटने लगती, ‘कमाल की लड़की जन्मी है मेरी कोख से…आज चाचा को गिलहरी के पीछे दौड़ा रही है, कल बाप को दौड़ाएगी और फिर ससुराल जा कर मेरा नाम रोशन करेगी.’

नयन…हां, नयन को ही खोज कर लाया था, विनायक. 20 साल की लंबी, सांवली, छरहरी बंगाली लड़की…सदर मुकाम खुलना…वहीं से अपने चाचा राखाल के साथ शरणार्थी बन कर वह 1981 में बंगलादेश की सीमा पार कर पहले कलकत्ता, फिर वहां से दिल्ली और अंत में दिल्ली से गाजियाबाद आई थी. राखाल, भैया की कपड़े की दुकान में काम करता था. दिनभर ग्राहक निबटाने के बाद वह रात 9 बजे पूरा हिसाबकिताब निबटा कर गुलजारी लाला के ठेके से शराब पीता हुआ अपने घर लौटता था. पैसे के लिए मुंह न फाड़ने वाला राखाल दारू वाले ऐब के अलावा बाकी सब मामलों में सीधासादा, काम से काम रखने वाला एक मुनासिब किस्म का आदमी था.

प्रथम श्रेणी में एमए करने के बाद विनायक भी सुबह 9 से 12 बजे तक दुकान में बैठता था. दुकान में ही भोजन कर के लाइब्रेरी चला जाता, जहां से पढ़ कर शाम को 5-6 बजे तक घर वापस आता. कुछ देर वह नौटी को पढ़ाता या उस के साथ खेलता. भाभी के साथ रात 9 साढ़े 9 बजे खाना खाता. फिर 2-3 घंटे पढ़ता और सो जाता.

वह अखिल भारतीय या इसी किस्म की दूसरी सेवाओं में जाना चाहता था. उस की भाभी भी यही चाहती थीं, लेकिन भैया, विनायक की बात सुन कर धमकी देने लगते थे, ‘भई, हम से अकेले यह सब नहीं होता. यदि विनायक नौकरी पर गया तो मैं दुकान बंद कर घर बैठ जाऊंगा.’

एक दिन भैया किसी पेशी में कोर्ट गए हुए थे. वह अकेला राखाल के साथ दुकान देख रहा था कि एक लड़का उस के सामने तह की हुई एक चिट्ठी फेंक कर भाग गया.

पत्र 2 लाइनों का था, ‘जुबली रेस्तरां में फौरन मिलिए. किसी के जीवनमरण का प्रश्न है. हरे रंग की साड़ी और उसी रंग के ब्लाउज में आप मुझे पहचान जाएंगे.’

विनायक शर्मीला लड़का था. लड़कियों का सामना पड़ने पर तो उस की जान ही निकल जाती थी. सोचा, जाऊं या न जाऊं? लेकिन जीवनमरण का प्रश्न. उंह, ऐसा तो झूठ भी लिखा जा सकता है. पता नहीं कौन हो,

कैसे चालचलन की हो. बात भैया के कानों तक पहुंच सकती है और उन के मुंह से भाभी के कानों तक भी. इस के बाद दुनियाभर के सवालों का सिलसिला.

रेस्तरां के केबिन में अपने सामने विनायक को बैठाते हुए उस ने कहा, ‘मेरा नाम नयन है. मैं आप को जानती हूं. मेरे बारे में आप, बस, इतना जान लें कि मैं आप की दुकान के कर्मचारी राखाल की भतीजी हूं.’

‘ओह,’ विनायक की घबराहट में थोड़ी कमी आई.

‘मेरे चाचाजी आजकल खूब शराब पीने लगे हैं. मेरी दिवंगत चाची को चाचाजी बहुत प्यार करते थे. वे कहते हैं, ‘नयन, तेरी चाची मुझे रोज रात में दिखाई देती है. जब नहीं पीता तो नहीं दिखाई देती.’ अब बताइए, मैं उन्हें कैसे रोकूं? आप और आप के भैया हमारे अन्नदाता हैं. हम आप के आश्रित हैं. एक आश्रिता की याचना समझ कर आप इस मामले में कुछ कीजिए.’

‘आप वैसे करती क्या हैं?’ समस्या का समाधान विनायक की समझ में न आ रहा था. सो, फिलहाल इस से नजात पाने के लिए उस ने वार्त्ता का रुख मोड़ा.

‘एमए कर रही हूं, अंगरेजी साहित्य में.’

‘बीए में कौन सी डिवीजन थी?’

‘प्रथम.’

विनायक को लगा कि इस समय भी नौटी बगीचे में गिलहरियों के पीछे भाग रही होगी. ‘आप क्या मेरा एक काम कर सकती हैं?’

‘हां, यदि मेरी सामर्थ्य में हुआ तो.’

‘आप मेरी नौटी को पढ़ा दिया कीजिए.’

‘नौटी, यानी?’

‘मेरी भतीजी, छठी क्लास में फेल हो गई है.’

‘पढ़ा दूंगी, 2 घंटे रोज ठीक रहेगा?’

‘बिलकुल ठीक रहेगा. क्या लेंगी?’

‘मैं ने कहा न, मैं आप लोगों की आश्रिता हूं. जैसा आप उचित समझें.’

‘8 सौ रुपए महीना ठीक रहेगा?’

‘कल से पढ़ाना शुरू कर दूंगी. लेकिन मेरा काम?’

‘यह काम मेरा नहीं, भाभी के करने का है. आप उन्हीं से कहिएगा. आप उन्हें नहीं जानतीं, वे सबकुछ कर सकती हैं. वे जितने अधिकार से मेरी बात भैया तक पहुंचाती हैं, उतने ही अधिकार से आप की बात भी पहुंचाएंगी.’

इस के बाद उचितअनुचित बहुतकुछ हो गया. पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती रहती है और प्रकृति इस घूमती धरती के वासियों को किस्मकिस्म के अनजाने खेल खिला कर हंसाती, रुलाती रहती है.

उम्मीद से जल्दी ही राखाल बाबू का निधन हो गया. भाभी नयन को अपने घर ले आईं. दारुण दुखों की बेला में वह पूस की धूप की तरह नयन के जख्मों को ठोंकती हुई बोलीं, ‘अच्छाखासा लड़का देख कर तुम्हारे हाथ पीले कर दूंगी. बस, अपनी जिम्मेदारी खत्म. तब तक यहीं रहो, मेरी छोटी बहन की तरह.’

नौटी थोड़ाबहुत पढ़ने लगी थी. नयन यदाकदा विनायक को दिखाई पड़ जाती. हालांकि दोनों एक ही घर में रह रहे थे.

एक दिन नौटी ने विनायक से कहा, ‘चाचू, अपनी तसवीर बनवाओगे?’

‘तसवीर? तू बनाएगी?’

‘मैं नहीं, नयन दीदी बनाएंगी. उन्होंने मेरी और मां की तसवीरें बनाई हैं. तुम भी बनवा लो. सच, बहुत सुंदर बनाती हैं.’

अगले दिन नौटी, विनायक को जबरदस्ती नयन के कमरे में ले गई. उस समय वह कहीं बाहर गई हुई थी. किसी लड़की के कमरे में उस की अनुपस्थिति में घुसना अच्छी बात नहीं होती, लेकिन वह गया. नौटी की जिद के आगे, हार कर गया. कमरे में चारों तरफ विभिन्न आकार की लगी पेंटिंग्स को दिखलाते हुए नौटी ने सगर्व कहा, ‘देखा चाचू, मैं कहती थी न कि हमारी नयन दीदी…’

नौटी की बात पूरा होने से पहले नयन ने कमरे में अपने पैर रखे, ‘आप?’

लज्जा, शर्म से विनायक का चेहरा काला पड़ गया, जैसे कोई चोर चोरी के माल के साथ रंगे हाथों पकड़ लिया गया हो.

‘क्षमा चाहता हूं. यह नौटी उचितअनुचित कुछ नहीं समझती.’

‘इस में अनुचित क्या हुआ?’ नयन सहजता के साथ बोली, ‘आप का घर है. मेरा तो यहां अपना चौका तक नहीं है. भाभी ने सबकुछ अपने में समेट लिया है वरना मैं आप को चाय पिलाती.’

‘इतनी सारी पेंटिंग्स स्कैच, सब आप ने बनाए हैं?’

‘हां.’

‘बहुत अच्छे बने हैं.’

‘जैसे भी हैं, ये मेरे अपनों जैसे अंतरंग हैं. ये मुझ से बातें करते हैं और मैं इन से बतियाती हूं. इन की बातें, इन के सुखदुख और दर्दव्यथाएं इन के चित्रों में भर देती हूं.’

रात को खाना खाते समय भाभी ने पूछा, ‘मुन्ना, बोल तो कैसा लगा?’

‘क्या, कैसा लगा?’

‘नयन का कमरा, उस की बनाई तसवीरें और वह खुद?’

उसे लगा, एक अपराधबोध, जो दब चुका था, फिर कराह बन कर उभर रहा है. विनायक को कोई जवाब न देता पा कर भाभी फिर कहने लगीं, ‘वैसे, लड़की है अच्छी, रंग थोड़ा दबा जरूर है पर चेहरे से नजर हटाने को जी नहीं चाहता. बंगालिन है, मांसमछली जरूर खाती होगी. अपना वैष्णवों का घर है. और फिर, हम बनिए हैं और वह ब्राह्मण. ब्राह्मण माने गुरुजन. बिना मांबाप की बेटी. उसे देख कर मन न जाने कैसा हो जाता है. कौन जाने किस कुपात्र, सुपात्र के हाथ पड़े. पर मन करता है कि मैं अपने वे कंगन नयन के हाथों में पहना दूं जो कभी मांजी ने मुझे पहनाए थे.’

‘भाभी, एक अनजान लड़की का इतना मोह,’ भाभी की व्यथा देख कर विनायक को अजीब सा लगा.

‘मुन्ना, वैसे एक बात मैं तुझे बता दूं, अगर मैं अपनी पर आ जाऊं तो तेरे भैया की मुझ से बाहर जाने की हिम्मत नहीं हो सकती. दुकान उन की है, पर यह घर मेरा है.’

‘भाभी, जो होना नहीं, उस पर इतनी मायाममता क्यों, किसलिए?’

‘होना तो नहीं है,’ भाभी आंचल से आंखें पोंछने लगीं, ‘अगर हो जाता तो सच, मैं जी जाती.’

‘मतलब यह कि तुम्हारी नजर में मेरी पसंदनापसंद कुछ नहीं?’

‘तू, तू क्या है, मेरी पसंद के सामने सिर झुका लेने के अलावा क्या कोई दूसरा उपाय है तेरे पास? तू मुझ से बाहर जाएगा तो मैं मर नहीं जाऊंगी. ’

विनायक की मुट्ठियां भिंच गईं, ‘मुझे भाभी का और भाभी को नयन का इतना मोह.’

‘भाभी को नयन इतनी अच्छी लगती है,’ विनायक बिस्तर में लेटा सोचता रहा, ‘काश, मैं पृथ्वीराज चौहान की तरह उस का हरण कर भाभी के चरणों में उसे डाल कर उन को सुखी कर सकता तो…’

उस रात विनायक देररात तक सो न सका. नीचे नयन के कमरे में बत्ती जल रही थी. विनायक शराब नहीं पीता, कोई दूसरा नशा भी नहीं करता, लेकिन नयन के कमरे में जल रही बत्ती को देख कर उसे ऐसा लगा, मानो तेज शराब की आधी से ज्यादा बोतल का नशा उस पर सवार हो गया हो. उन्मादी की तरह वह एक के बाद एक सीढि़यां लांघता हुआ बिना द्वार खटखटाए नयन के कमरे में घुस गया. वह तन्मय भाव से रंगों को स्कैच में भर रही थी. विनायक को देखते ही वह सख्त लहजे में बोली, ‘घड़ी इस वक्त रात के साढ़े 12 से ज्यादा बजा रही है. और आप बिना द्वार खटखटाए चुपके से एक चोर की तरह मेरे कमरे में घुस आए. आप को शर्र्म नहीं आई?’

विनायक की सांस फूल रही थी. होश या बेहोशी में उस के मुंह से निकला, ‘वैसे, पानी मक्खन से भी कोमल होता है, परंतु उन्माद आने पर वह मजबूत दीवार तोड़ डालता है. जो रोके रुक न पा रहा हो, मेरी दशा भी कुछ ऐसे ही पानी जैसी है. मैं आप से कुछ कहना चाहता हूं, कुछ मांगना चाहता हूं…’

‘आप होश में नहीं हैं. लगता है आप ने नशा कर रखा है. आप अभी जाइए.’

विनायक संभला नहीं और लड़खड़ा गया. फिर चीख कर बोला, ‘जब आप कहती हैं तो ठीक है, समझिए मुझ पर नशा ही सवार है. मगर किस का, यह आप समय रहने पर ही जानेंगी. बाकी आज मैं आप से अपनी बात कह कर रहूंगा, फिर चाहे जो भी हो जाए. चाहे मैं मर जाऊं, चाहे आप मर जाएं. लेकिन मैं…’

‘विनायक बाबू, इस वक्त आप जाइए. मैं आप की आश्रिता हूं. जो आश्रय देता है, वह महान होता है,’ इतना कहने के बाद उस ने पूरी शक्ति के साथ विनायक को अपने कमरे से बाहर ढकेल कर दरवाजा बंद कर लिया.

अगली सुबह नयन न जाने कहां चली गई. विनायक पूरी रात सो न पाया था. सुबह 6 बजे उस की पलक झपकी थी. तभी भाभी ने उसे झकझोर कर जगाया था, ‘मुन्ना, उठ तो. देख, नयन अपने कमरे में नहीं है. न जाने कहां चली गई. उस के कपडे़, उस की अटैची भी नहीं है. बाकी सबकुछ जैसा का तैसा पड़ा है.’

कमरे के बाहर एक नया दिन जन्म ले रहा था और भीतर, जहां विनायक लेटा था, एक अंधेरा फैलता जा रहा था. विनायक बड़बड़ाया, ‘भाभी, जाओ, अपना काम देखो. नयन को भूल जाओ. वह वापस न आने के लिए ही गई है.’

‘मेरी तो कोई बुरी इच्छा नहीं थी. मैं ने तो उस का देहईमान कभी पाना नहीं चाहा था,’ विनायक हथेलियों के बीच दोनों कनपटियां दबाए सोच रहा था, ‘आश्रयदाता कहां था? मैं तो भाभी की बात उस से कहने गया था. मगर कैसे, छिछि, सोच कर लज्जा आती है. प्रायश्चित्त, हां, मैं यही करूंगा. नौकरी, चाकरी, दुकान…कुछ नहीं करना है मुझे. अब मेरी कोई मंजिल नहीं है सामने, केवल रास्ते हैं. नयन से अधिक दीनहीन, बन कर अनजानी राहों पर भटकूंगा.’

विनायक कई बार नयन के कालेज गया. किसी ने कहा कि वह पहाड़ों पर चली गई है तो किसी ने बताया कि वह एक अनजाने गांव में अज्ञातवास कर रही है. वह सबकुछ छोड़छाड़ कर स्वयं को दंड देने के लिए अनजानी राहों पर निकल पड़ा. नयन की कहानियां, कविताएं, लेख प्रकाशित होते रहते थे, उन के जरिए उस ने उस का पता जानने की कोशिश की. हर बार एक पोस्टबौक्स नंबर उसे दे दिया जाता. वह वहां यानी पोस्टऔफिस पहुंचता पर पता चलता कि वह उस जगह को छोड़ कर कहीं और चली गई है. इसी तरह कई माह बीत गए.

और अब, चारों तरफ बर्फ ही बर्फ है. बिजली नहीं, पानी नहीं, खाना नहीं. जनशून्य धरती. दूनागिरि का एकाकी प्रवास और वह, तिलतिल कर पूरी तरह चुकचुका एक निस्सहाय जीव, धीरेधीरे मनमस्तिष्क पर सैकड़ों केंचुओं की तरह रेंगरेंग कर बढ़ रही अवचेतना.

सहसा कोई खट्टी सी, मीठी सी चीज विनायक को अपने गले के नीचे उतरती महसूस हुई.

‘‘कौन, बिमलजी?’’ आप लौट जाएं?’’ विनायक कराहा.

‘‘ज्यादा बात नहीं, अच्छे बच्चे की तरह, जो दिया जा रहा है, उसे लेते जाओ.’’

‘‘तो क्या आप बिमलजी की पत्नी हैं?’’

कोई जवाब न मिला. विनायक को लगा कि वह खट्टामीठा तरल पदार्थ ऐसे ही हजारों सालों से इन्हीं हाथों से पीता चला आ रहा है. 2 हाथ धीरे से रेंग कर उस के तलुए सहलाने लगे. तब ऐसा लगा, मानो प्राण आंखों तक लौट आए हैं.

उस ने धीरे से आंखें खोली, ‘‘नयन, आप?’’

‘‘आप नहीं, तुम कहो. मैं भी तुम्हें तुम ही कहूंगी.’’

‘‘यहां कैसे पहुंची?’’

‘‘रानीखेत के पोस्टऔफिस में अपनी डाक लेने गई थी,’’ नयन ने जवाब दिया, ‘‘वहां मुझे एक अधेड़ दंपती मिले. वहां तुम्हारा जिक्र होने से जाना कि तुम उन्हीं के मकान में रह रहे थे. बिमलजी की पत्नी कह रही थीं, ‘उस गाजियाबाद के आदमी को मरने के लिए अकेला छोड़ कर हम ने अच्छा नहीं किया,’ बस, मैं सब समझ गई कि वह तुम हो. उन से पता पूछ कर यहां चली आई.’’

‘‘लेकिन मैं, मेरा दोष, क्या तुम ने मुझे…?’’

‘‘गाजियाबाद में मेरी एक सहेली है, वह मुझे तुम्हारे, तुम्हारे घर के बारे में समाचार भेजती रहती है. उसी ने बताया कि तुम अपनी भाभी के हुक्म से उस रात मेरे कमरे में भाभी की बात कहने चले आए थे.’’

मेज पर रखे गुलदस्ते में 20 दिन पुराने गुलाब के फूल रखे थे. विनायक ने उस में से एक मुरझाया फूल निकाला, ‘‘जरा घूमो, तुम्हारे जूड़े में मैं यह गुलाब तो लगा दूं.’’

‘‘खबरदार, जो मेरे बालों में फूलवूल लगाया,’’ नयन ने आंखें तरेरीं, ‘‘मुझे तुम्हारा सामान बांधना है. पिघल रही बर्फ पर ड्राइवर जीप कैसे लाया और कैसे नीचे ले जाएगा, यह वह ही जानता होगा. जूड़े में लगा फूल देख कर वह क्या सोचेगा.’’

‘‘लेकिन यह फूल, इस का मैं क्या करूं?’’

‘‘संभाल कर रखे रहो. मैं ने गाजियाबाद फोन कर दिया है. अब तक भैया, भाभी और नौटी खुनौली पहुंच चुके होंगे. वहां चल कर भाभी के सामने यह फूल मेरे जूड़े में लगाना. अगर लगा सके तो मैं तुम्हारी गुलाम, वरना तुम्हें सारी जिंदगी मेरी…’’

‘‘देख लेना, भाभी के सामने मैं यह फूल लगा ही दूंगा. लेकिन तुम मेरी गुलाम बन कर नहीं, मेरी आंखों का तारा, मेरी नयनतारा बन कर रहोगी.’’

नीचे जीपचालक हौर्न बजा रहा था.

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