रूठों को मनाए Sorry

सीमा उदास बैठी थी. तभी उस के पति का फोन आया और उन्होंने उसे ‘सौरी’ कहा. सीमा का गुस्सा एक मिनट में शांत हो गया. दरअसल, सुबह सीमा का अपने पति से किसी बात पर झगड़ा हो गया था. गलती सीमा की नहीं थी, इसलिए वह उदास थी. लड़ाईझगड़े हर रिश्ते में होते हैं पर सौरी बोल कर उस झगड़े को खत्म कर के रिश्तों में आई कड़वाहट दूर की जा सकती है. यह इतनी छोटी सी बात है. लेकिन बच्चे तो क्या, बड़ों की समझ में भी यह बात न जाने क्यों नहीं आती.

हर रिश्ते में कभी न कभी मतभेद होता है. अच्छा और बुरा दोनों तरह का समय देखना पड़ता है. कभीकभी रिश्तों में अहंकार हावी हो जाता है और दिन में हुआ विवाद रात में खामोशी की चादर बन कर पसर जाता है. अपने साथी की पीड़ा और उस से नाराजगी के बाद जीवन नरक लगने लगता है. फिर हालात ऐसे हो जाते हैं कि आप समझ नहीं पाते कि सौरी बोलें तो किस मुंह से. पर सौरी बोलने का सही तरीका आप के जीवन में आई कठिनाई और मुसीबत को काफी हद तक दूर कर रिश्तों में आई कड़वाहट को कम कर सकता है. यह तरीका हर किसी को नहीं आता. यह भी एक हुनर है. जब आप अपने रिश्तों के प्रति सतर्क नहीं होते और हमेशा अपनी गलतियों को नजरअंदाज करते रहते हैं, तभी हालात बिगड़ते हैं. आप इस बात से डरे रहते हैं कि आप का सौरी बोलना इस बात को साबित कर देगा कि आप ने गलतियां की हैं. यही बात कई लोग पसंद नहीं करते. अगर आप सौरी नहीं कहना चाहते तो आप के पास और भी तरीके हैं यह जताने कि आप अपने बरताव और अपने कहे शब्दों के लिए कितने दुखी हैं.

कैसे कहें सौरी

शुरुआत ऐसे शब्दों से करें जिन से आप के जीवनसाथी, दोस्त या रिश्तेदार को यह लगे कि आप उस से अपने बरताव के लिए वाकई बहुत शर्मिंदा हैं. कई बार ऐसा भी होता है कि लोग आपस में हो रहे विवाद या बहस को खत्म करने के लिए वैसे ही सौरी बोल देते हैं. लेकिन उन्हें अपने किए पर कोई भी पश्चात्ताप नहीं होता. अगर आप सच में अपने बरताव के लिए माफी मांग रहे हैं तो यह जरूर तय कर लें कि आप में अपनेआप को बदलने की इच्छा है. दूसरी बात यह है कि आप सौरी बोल कर अपनी सारी गलतियों को स्वीकार रहे हैं न कि सफाई दे कर अपने बरताव के लिए बहस कर रहे हैं. ये सारी बातें आप के साथी को यह एहसास कराएंगी कि आप सच में अपनी गलतियों के लिए शर्मिंदा हैं और उन सब को छोड़ कर आगे बढ़ना चाहते हैं. बीती बातों को भूल कर एक नई शुरुआत करना चाहते हैं.

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कई लोगों को सौरी बोलने में काफी असहजता महसूस होती है तो कई लोग सौरी बोलने से कतराते हैं. लेकिन सौरी कह कर आप न केवल मन का बोझ हलका करते हैं, बल्कि सामने वाले व्यक्ति के मन की पीड़ा को भी दूर कर देते हैं. इस के दूरगामी नतीजे सामने आते हैं. आप किसी भी गलती के लिए सौरी बोल कर उसे बड़ी बात बनने से रोक सकते हैं. सौरी एक ऐसा शब्द है, जिसे बोलने से टूट रहे रिश्ते को आप न केवल बचाते हैं, बल्कि उस से और भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं. फिर धीरेधीरे पुरानी बातें खत्म हो जाती हैं.

भेंट भी दें

सौरी बोलने के साथ आप अपने साथी को फूल या जो भी उन्हें पसंद हो, वह भेंट कीजिए. अगर डांस करना पसंद है तो उन्हें बाहर डांस के लिए ले जाइए और डांस करतेकरते उन्हें सौरी बोल दीजिए. कौफी हाउस या रेस्तरां में बैठ कर एक नई पहल करते हुए भी अपने किए पर खेद जता सकते हैं. जिस ने भी झगड़ा शुरू किया है या झगड़े की कोई भी वजह रही हो, उस पर कभी तर्कवितर्क नहीं करना चाहिए. पीछे मुड़ कर देखने का कोई फायदा भी नहीं है. आप यह तय कर लें कि आप सच में खेद महसूस कर रहे हैं. तय कर लीजिए कि आप केवल सामने वाले को खुश करने के लिए उसे सौरी नहीं बोल रहे. अपने पार्टनर की भावनाओं की कद्र करें और उन्हें तकलीफ देने की कोशिश न करें. अगर झगड़ा बहुत बढ़ गया है तो थोड़ी देर के लिए उन्हें अकेला छोड़ दें. उन्हें काल कर के या एसएमएस कर के परेशान न करें. 1-2 दिन इंतजार करें, फिर सारी बातें भुला कर अपना और अपने साथी का झगड़ा वहीं खत्म करें. अपनी गलती मान लेना सब से बड़ी बात है. इस से आप का और दुखी साथी का मन निर्मल हो जाता है. इसलिए जहां कहीं भी यह लगे कि आप गलत हैं, अपना जीवनसाथी हो या दफ्तर का साथी या फिर कोई भी रिश्तेदार, उसे सौरी बोल कर गिलेशिकवे दूर कर लीजिए. देर मत कीजिए वरना गांठें बढ़ती जाएंगी. सच मानिए यह सौरी बोलना अपनेआप में जादू से कम नहीं.

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सैक्सुअल हैल्थ से जुड़ी प्रौब्लम का जवाब बताएं?

सवाल-

मुझे 3 हफ्तों से 99 से 100 डिग्री बुखार रहा. पेशाब के साथ कुछ उजला डिस्चार्ज भी होता है. पैथोलौजिस्ट ने पेशाब में संक्रमण की शंका जाहिर की है. कृपया बताएं मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब-

आप की मूत्रनली में संक्रमण की आशंका लगती है, इसलिए कल्चर टैस्ट के लिए पेशाब दे कर आप रिपोर्ट का इंतजार किए बगैर इलाज शुरू कर दें. आप को इलाज के अलावा भी काफी सावधानियां बरतनी होंगी, जैसेकि 24 घंटे में कम से कम डेढ़ लिटर पानी पीना, हर बार पेशाब करने के बाद जननांग को अच्छी तरह साफ करना और ब्लैडर को यथासंभव खाली रखना.

सवाल-

मैं 25 वर्षीय अविवाहिता हूं और वजन 45 किलोग्राम है. मुझे पेशाब करते समय योनिमुख में जलन महसूस होती है. खुजली नहीं होती है, लेकिन योनि से सफेद चिपचिपा सा डिस्चार्ज होता है, जिस से दुर्गंध आती है. मैं ने पेशन की पूरी माइक्रोस्कोपी करवाई है. रिपोर्ट में मेरा पीएच का स्तर 5, विशिष्ट घनत्व 1.005 था और नाइट्राइट्स तथा बिलिरुबिन नैगेटिव था. मैं ने बैक्टीरिया का पता लगाने के लिए यूरिन कल्चर भी करवाया. डाक्टर ने कैंडिड क्रीम और वी वौश लिखा, लेकिन कोई फायदा नहीं हो रहा है. सलाह दें क्या करूं?

जवाब

डाक्टर ने आप को फंगल इन्फैक्शन मान कर दवा लिखी है. आप की मूत्रनली में इन्फैक्शन (यूटीआई) हो सकता है. इस संबंध में चिकित्सक से परामर्श लें. उचित दवा लेने से आप की यह समस्या जरूर दूर हो जाएगी.

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सवाल-

मेरी एक्सरे रिपोर्ट में पेशाब की थैली में 5-6 एमएम का स्टोन दिखा है, लेकिन किडनी के एक्सरे में स्टोन नहीं दिखा है. बड़ी आंत में कुछ टेढ़ापन हो गया है, जिस से मेरा पाचन गड़बड़ा गया है और कभीकभी मुझे पेट के दाहिनी ओर दर्द भी होता है. कई दवाएं ले लीं, लेकिन अभी तय नहीं कि स्टोन निकल गया है या है. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब-

अगर आप का स्टोन मूत्रथैली और मूत्रनली के संधिस्थल पर है, तो वह स्वत: निकल जाएगा. दिन में भरपूर पानी पीएं. हर घंटे बाद 1 गिलास. भोजन करने के 2 घंटे बाद 1 गिलास पानी में साइट्रोसोडा पाउडर घोल कर रोजाना 3 बार पीएं. कुछ स्टोन एक्सरे में दिखाई नहीं देते हैं, इसलिए 2 सप्ताह के बाद अल्ट्रासाउंड करा लें. अगर उस में अभी भी स्टोन दिखाई दे तो तुरंत चिकित्सक से परामर्श लें.

सवाल-

मैं 27 वर्षीय गृहिणी हूं. 10 वर्षों से मूत्र असंयम से परेशान हूं. छींकने, खांसने, हंसने पर भी पेशाब निकल जाता है. 2 बार यूरोडायनैमिक जांच करवा चुकी हूं. 3 महीने पहले जांच में पता चला कि ब्लैडर की मूत्रधारण क्षमता केवल 22 एमएल है. दवाएं ले रही हूं, लेकिन अभी भी पेशाब रोकना मुश्किल हो जाता है. बताएं मूत्र असंयम को कैसे ठीक करूं?

जवाब

आप के विवरण से लगता है आप बेहद कम धारण क्षमता वाले ब्लैडर के साथसाथ मिश्रित मूत्र असंयम से भी पीडि़त हैं. आप कोई ऐंटीकोलिनर्जिक दवा ले रही होंगी, जो काम नहीं कर रही है. समस्या के विस्तृत विश्लेषण, पेशाब की जांच, साइटोस्कोपी और अन्य परीक्षणों के लिए किसी मूत्र विशेषज्ञ से परामर्श करें. इस प्रकार के कम धारण क्षमता वाले ब्लैडर के मामले में टीबी जैसे पुराने संक्रमण के बारे में भी निश्चिंत हो जाना जरूरी है.

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सवाल-

मेरी पत्नी की उम्र 24 वर्ष है. उसे मूत्र संक्रमण है, जिस के कारण अकसर बुखार हो जाता है. उस के पेट में दर्द भी रहता है. साइड इफैक्ट के डर से ऐंटीबायोटिक्स लेने से वह घबराती है. बताएं क्या करें?

जवाब

यौन समागम के बाद विशेषकर नवविवाहित स्त्रियों में मूत्रनली संक्रमण होना सामान्य बात है. बारबार और देर तक यौन समागम से होने वाली जलन और खरोंच के कारण ऐसा होता है. इस के लक्षण में पेशाब करते समय जलन या पीड़ा, बारबार पेशाब लगना, पेशाब का रंग मटमैला होना, पेशाब के साथ खून और पेड़ू में दर्द होना शामिल है. यह मूत्रनली का स्थानिक संक्रमण है. संक्रमण के कारण उन का ल्यूकोसाइट बढ़ गया है और संक्रमण दूर करने के लिए उन्हें कुछ समय तक ऐंटीबायोटिक्स लेनी होगी. आप अपने डाक्टर से मूत्र संक्रमण के प्रति संवेदनशील और बिना साइड इफैक्ट वाले ऐंटीबायोटिक्स देने को कहें.

– समस्याओं के समाधान प्रसूति एवं स्त्रीरोग विशेषज्ञा डा. उमा रानी द्वारा.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

जब Tour पर हों पति

बड़े चाव से मेरे मातापिता ने मेरी शादी सुधीर से की. हमारी अरेंज मैरिज थी. घरबार और लड़का मेरे मातापिता को पसंद थे, बस सुधीर के घर वालों ने पहले ही बोल दिया था कि लड़के ने इंजीनियरिंग अभीअभी पूरी की है. जल्द ही उसे नौकरी के लिए दूसरे शहर जाना पड़ेगा. वहां सैटल होते ही आप की बेटी को भी वहां ले जाएगा. मेरे मातापिता भी राजी हो गए और मैं भी, क्योंकि मातापिता अपने बच्चे के लिए अच्छा ही सोचते हैं. लेकिन शादी होते ही सुधीर का बाहर रहना मेरी बरदाश्त के बाहर हो गया. हम दोनों में खटपट शुरू हो गई. लेकिन इस में सुधीर की कोई गलती नहीं थी. वे भी तो अपने कैरियर पर ही फोकस कर रहे थे. इसी बीच मेरी स्कूल की

एक दोस्त मिली, जिस ने मुझे कुछ ऐसी बातें समझाईं कि उन से मेरी शादीशुदा जिंदगी में बदलाव आ गया.

यदि आप के पति भी ज्यादातर टूअर पर रहते हैं या फिर कुछ समय के लिए बाहर रहने गए हैं तो कैसे आप दोनों अपनी रिलेशनशिप को मजबूत बना कर रख सकते हैं, आइए जानें:

भावनात्मक रूप से जुड़ें

जरूरी नहीं है कि जब हम आमनेसामने बैठे हों तभी अपने भाव प्रकट कर सकते हैं. जब हम एकदूसरे से दूर होते हैं तो पूरे दिन में हलकीफुलकी बात फोन पर कर के भी अपने भाव प्रकट कर सकते हैं. इस तरह की हलकीफुलकी बातचीत यह दर्शाती है कि आप एकदूसरे की बहुत परवाह करते हैं. रिश्ते को बड़ी समझदारी से निभाते हैं. पूरा दिन व्यस्त रहने के बाद यदि आप रात को थोड़ी देर एकदूसरे से फोन पर बात कर लेते हैं तो भी मन हलका हो जाता है, साथ ही आप को अकेलापन भी महसूस नहीं होता.

न हो बातचीत में लंबा गैप

यदि आपस में बातचीत किए लंबा समय हो जाता है, तो आप दोनों के बीच एक लंबा फासला आ जाता है, जिस से मनमुटाव आना स्वाभाविक है. आप रोज बात करते हैं, तो आप को एकदूसरे के बारे में पता चलता रहता है. इसलिए जरूरी है कि आपसी बातचीत में लंबा गैप न आने दें.

एकदूसरे को समझें

किसी भी रिश्ते में फूट जरूरी नहीं कि दूर रहने से ही पड़े. यदि आप उस रिश्ते को समझेंगे नहीं तो तनाव आना ही है. ऐसे में जरूरी है कि एकदूसरे को समझने के लिए एकसाथ समय बिताएं, फिर चाहे वह फोन पर बात करने में बिताएं या ईमेल अथवा मैसेज करें. बात करते समय ध्यान दें कि साथी को किन बातों को करने से खुशी मिलती है. उन पर रिसर्च करें. अगली बार फोन पर बात करने पर उन से जुड़े टौपिक पर बात करें.

हमेशा साथ दें

ध्यान रखें कि आप का पार्टनर किसी समस्या में फंसा है, तो उसे मानसिक तौर से धैर्य बंधाएं. जितना हो सके अपना सहयोग दें, क्योंकि यदि उसे समस्याओं को अकेले झेलने की आदत हो जाएगी तो उसे आप की भी परवाह नहीं होगी. उसे ऐसे समय में खुश रहने की सलाह देते रहें. साथ ही कुछ ऐसी बातें भी करें, जिन से साथी का मूड फ्रैश हो जाए.

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विश्वास बनाए रखें

किसी भी रिश्ते में बेहद जरूरी है कि एकदूसरे पर विश्वास रखें. लौंग डिस्टैंस रिलेशनशिप में यह थोड़ा कठिन कार्य हो जाता है, लेकिन आपसी मतभेद न हों इस का पूरा प्रयास करें. एकदूसरे पर विश्वास बनाए रखें. झूठ बोलने से कभी न कभी झूठ सामने आ ही जाता है, जो बाद में आप के रिश्ते को प्रभावित कर सकता है, इसलिए बेहतर है अपने पार्टनर को पहले ही सच बता कर चलें.

रिश्तों में बनी रहती है गरमाहट

दूर रहने पर रिश्तों में और भी अधिक मजबूती आ जाती है, क्योंकि आप को दूर रहने पर ही पता चलता है कि आप एकदूसरे से कितना प्यार करते हैं. इस के अलावा आप को मिलने का एक अलग सा उत्साह बना रहता है. घंटों साथ बैठ कर बात करने की चाहत के लिए आप तरहतरह की प्लानिंग करते रहते हैं.

कैसे रखें खुद को व्यस्त

यदि आप के हसबैंड टूअर पर या बाहर रहते हैं, तो इस तरह खुद को व्यस्त रखें:

– अपनेआप को किसी भी कार्य में व्यस्त रखें. यदि वर्किंग हैं तो बेहद अच्छी बात है और अगर नहीं हैं तो अपनी पसंद के किसी कार्य को अपना टाइमपास बना लें.

– फिट रहने की कोशिश करें. यदि आप फिट रहेंगी तो नकारात्मक विचार भी मन में नहीं आएंगे. इस के लिए शाम या सुबह थोड़ा समय अपनेआप को दें.

– क्रिएटिव बनें. कुछ अलग हट कर करें. हसबैंड के टूअर से आने से पहले घर की अच्छी तरह साफसफाई कर के रखें. इस से

उन को और आप को दोनों को अच्छा महसूस होगा.

– कुकिंग में नया ऐक्सपैरिमैंट करें जो आप के हसबैंड को पसंद हो. उन के आने पर कुछ नया बनाएंगी तो उन्हें अच्छा लगेगा.

– घिसीपिटी बातों में अपना वक्त बेकार न करें. कई लोग मनोबल को गिराने की कोशिश करते हैं. आप उन की बातों को एक कान से सुनें दूसरे से निकाल दें, जो आप को सही लगता हो, वही करें.

– यदि आप के बच्चे हैं तो उन की पढ़ाई पर ध्यान दें. बच्चों के साथ तो वैसे भी वक्त का पता  नहीं चलता है.

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लाएं कुछ नयापन

रिश्तों में मिठास और नयापन बनाए रखने के लिए पेश हैं कुछ टिप्स:

– हमेशा ध्यान रखें कि यदि आप के हसबैंड टूअर या जौब के सिलसिले में बाहर रहते हैं, तो आप उन से हमेशा सकारात्मक तरीके से ही बात करें.

– आप दोनों एकदूसरे को दिन की शुरुआत गुड मौर्निंग के मैसेज से कर सकते हैं.

– कुछ ऐसे मैसेज या टैक्स्ड एकदूसरे को भेज सकते हैं, जिन से मन खुश हो जाए.

– किसी दिन सरप्राइज दें. साथ ही बताए बिना उन के पास पहुंच जाएं. फिर देखिएगा उस की खुशी का ठिकाना नहीं रहेगा.

– विडियो चैट करें. इस से आप को लगेगा आप आमनेसामने ही बैठे हैं.

– जब आप के पति छुट्टी पर घर आ रहे हों, तो कुछ नया प्लान करें जहां आप फुरसत से एकदूसरे के लिए समय निकाल सकें.

– हमेशा शिकायतों को ही एकदूसरे के सामने न रखें. अगर शिकायत रखनी भी है, तो कुछ इस तरह कि कल तुम मुझ से बिना बात किए ही सो गए.

– एकदूसरों के परिवार की चिंता जाहिर करें. इस से महसूस होता है कि आप को एकदूसरे के पविर की भी चिंता है.

रिश्ते में है समर्पण जरूरी

समर्पण शब्द सुनते ही नजरों के सामने फैल जाता है एक बड़ा सा कैनवस, जिस पर कोई एक विचार या भावना नहीं, बल्कि अनेक चित्र एकसाथ उभरते हैं. जैसे मातापिता और संतानें, व्यक्ति और उस का लक्ष्य, व्यवसाय तथा व्यवसायी और इन सब से अलग और महत्त्वपूर्ण चेहरा होता है पतिपत्नी का. इन सभी चित्रों में एक बात जो मुखर है, वह यह कि किसी संबंध के प्रति स्वयं को पूरी तरह से सौंप देने का ही नाम समर्पण है.

समर्पण का विस्तृत आकाश

मेरी बचपन की सहेली मोहिनी के पिता मुख्य चिकित्साधिकारी थे. मोहिनी की मां उस के जन्म के पूर्व ही अपनी दोनों आंखें गंवा चुकी थीं पर क्या मजाल कि अंकल ने आंटी को एक पल के लिए भी आंखों की कमी खलने दी हो. पार्टी हो या सिनेमाहाल, उत्सव हो या समारोह, वे हर स्थान पर आंटी का हाथ अपने हाथों में लिए रहते तथा सतत कमेंट्री करते रहते. यही नहीं, उन के घर में कोई नई खरीदारी की जाए तो तुरंत बच्चों को आदेश देते कि जाओ, मम्मी को दिखा लाओ. आंटी सामान को छू कर अपनी सहमतिअसहमति जतातीं परंतु अंकल उन के ‘छूने’ को भी देखने का नाम ही देते. यह उन के प्रति एक विलक्षण समर्पण था. दांपत्य जीवन की शुरुआत करते समय पतिपत्नी आजीवन एकदूसरे के प्रति निष्ठावान बने रहने तथा एकदूसरे से सुखदुख में साथ निभाने के वादे करते हैं. यही समर्पण की पहली सीढ़ी है. पतिपत्नी दोनों ही अलगअलग वातावरण में पलेबढ़े होते हैं. दोनों की पारिवारिक पृष्ठभूमि, जीवनशैली, शिक्षादीक्षा तथा शारीरिक एवं मानसिक क्षमताओं में भिन्नता होना स्वाभाविक है.

ऐसी स्थिति में एक सफल और सुखी गृहस्थ जीवन की कल्पना तभी की जा सकती है, जब पतिपत्नी दोनों ही एकदूसरे के गुणदोषों, पारिवारिक, सामाजिक व आर्थिक दायित्वों को सहज रूप से स्वीकारें. आवश्यकतानुसार स्वयं को बदलने और तालमेल बैठाने की कोशिश करें. यह प्रयास ‘मैं’ और ‘तुम’ से अलग ‘हम’ का एक संसार बसाने का होना चाहिए.

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पति की पत्नी से अपेक्षाएं

दिल्ली के वरिष्ठ मैरिज काउंसलर अमृत कपूर का मानना है कि अधिकांश मामलों में आपसी मनमुटाव की शुरुआत सैक्स संबंधों से ही होती है. पतियों की यह शिकायत होती है कि उन की पत्नी सैक्स के मामले में असक्रिय है तथा थके होने और मूड न होने का बहाना बना कर उन्हें टालतीटरकाती रहती है, जिस के कारण वे तनावग्रस्त हो जाते हैं. शारीरिक समर्पण वैवाहिक जीवन की एक अनिवार्य अभिव्यक्ति अवश्य है पर इकलौता मानदंड नहीं. सैक्स को विषय बना कर पत्नी को दुख देना पतियों के एकतरफा स्वार्थीपन को उजागर करता है न कि पत्नी के प्रति प्रेम को. पति भूल जाता है कि पत्नी भी एक व्यक्तित्व है. पत्नी रातोरात पति तथा उस के परिवार को अपना सर्वस्व मान कर उन के अनुरूप ढल जाए, ऐसा सोचना गलत होगा. अत: पतियों को चाहिए कि वे धैर्य तथा समझदारी से काम लें. वे जीवनसाथी के निजी सुखदुख का भागीदार बनने का कार्य भी उतने ही प्यार, सहानुभूति, अपनत्व तथा उत्साह से करें जैसा कि वे पत्नी से चाहते हैं.

पारिवारिक शांति का आधार

स्त्री को पिता का घर छोड़ कर पति के नए तथा अजनबी परिवार में स्वयं को बसाने से ले कर पति, परिवार तथा संतान के प्रति कर्तव्यों को निभाने के अनेक कठिन पड़ावों पर अपने समर्पण की परीक्षा देनी पड़ती है. पत्नी का यह समर्पण कहनेसुनने में तो बड़ा सरल प्रतीत होता है मगर इसे करना आसान नहीं होता. यदि स्त्री अपने उत्तरदायित्वों को भलीभांति समझ कर एकएक कदम बढ़े तो यह कार्य सुगम हो जाएगा. स्त्री में वह शक्ति और समायोजन क्षमता होती है, जिस के सहारे वह सरलता से स्वयं को किसी भी परिस्थिति में ढाल लेती है. बंगाल की वयोवृद्ध समाजसेविका सुनंदा बनर्जी अपने युवावस्था के दिनों को याद करते हुए बताती हैं, ‘‘उन दिनों समर्पण प्राय: एकतरफा ही होता था. पुरुषों तथा परिवार की आशाओं पर खरा उतरने की जंग में स्त्री का सारा जीवन होम हो जाता था. परंतु आज परिस्थितियां बदल चुकी हैं. आज यदि घर की सुखशांति के लिए पत्नी एक कदम आगे बढ़ाती है, तो पति एवं परिवार की ओर से उसे दोगुना प्रेम, सम्मान तथा उत्साह मिलता है.’’

बलिदान नहीं सामंजस्य

वैवाहिक जीवन के तनावों तथा अवसादों से ग्रस्त, जो विवाहित जोड़े मनोरोगचिकित्सकों का द्वार खटखटाने पहुंच जाते हैं, उन में एक साझा पहलू यह पाया जाता है कि वे अहं के टकराव का शिकार होते हैं. उन में एकदूसरे के ऊपर प्रभुत्व जमाने की तीव्र इच्छा होती है. उन की शिकायत अकसर यही होती है कि उन का जीवनसाथी उन्हें उंगलियों पर नचाना चाहता है, बलि का बकरा बना रखा है, मेरा तो सब कुछ होम हो गया आदि. ऐसी स्थिति में मनोरोगचिकित्सक उन्हें यही समझाते हैं कि वैवाहिक जीवन कोई बलिवेदी नहीं है जिस पर एक के लिए दूसरा कुरबान हो जाता है. गृहस्थ जीवन एक ऐसा कर्मक्षेत्र है जिस में सुखदुख, उतारचढ़ाव तथा ऊंचनीच आते ही रहते हैं. पतिपत्नी दोनों को इन्हें सहज रूप से स्वीकार कर आपसी प्रेम, तालमेल तथा सूझबूझ के साथ जीवन चलाना चाहिए. आपस में सुंदर सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास दोनों ओर से हो, एकतरफा नहीं. एकदूसरे पर रोब जमा कर समर्पण की मांग करना सरासर अशिष्टाचार तथा असभ्यता ही है.

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समर्पण के मार्ग की रुकावट

दिल्ली के वरिष्ठ ऐडवोकेट राकेश दीवान के अनुसार, वर्तमान समय में अधिकतर नवविवाहित जोड़े अपनी जिम्मेदारियों से भागते हैं. विवाह के पूर्व जिन सपनों की दुनिया में ये जीते हैं, उस से बाहर आ कर व्यावहारिक जगत के रिश्ते निभाना उन के लिए कठिन हो जाता है और विवाह के कुछ ही समय उपरांत इन में तूतू, मैंमैं शुरू हो जाती है. ये जोड़े एकदूसरे के अधिकार और कर्तव्यों को मुद्दा बना कर परस्पर आरोपप्रत्यारोप करते हैं, जिस से इन का दांपत्य बिखर जाता है. विवाह चाहे अरेंज्ड मैरिज हो या लव मैरिज, दोनों ही स्थितियों में 2 भिन्नभिन्न व्यक्तियों को एकसाथ रहने का अभ्यास करना पड़ता है. पतिपत्नी के रिश्ते में कोई छोटा या बड़ा नहीं होता. दोनों ही का योगदान बराबर का होता है, अलबत्ता दोनों की क्रियाप्रतिक्रिया का रूप और तरीका अलगअलग हो सकता है. गृहस्थ जीवन कोई कोर्टकचहरी नहीं, जहां समयअसमय अधिकार बनाम कर्तव्य का मुकदमा चलाया जाए. इस जंग में हासिल कुछ भी नहीं होता है. हाथ आती है तो  केवल जगहंसाई, दांपत्य में दरार और पारिवारिक विघटन.    

 सफल दांपत्य के 10 गुर

विवाह के पूर्व होने वाले जीवनसाथी की पसंदनापसंद तथा पारिवारिक पृष्ठभूमि की विशेष जानकारी कर लें.

विवाह के पश्चात आजीवन एकदूसरे के प्रति निष्ठावान बने रहें.

पतिपत्नी एकदूसरे के परिवार, रिश्तेदारों तथा रीतिरिवाजों का सम्मान करें.

पतिपत्नी एकदूसरे के गुणदोषों को स्वीकारने तथा संपूर्ण सामंजस्य का नियमित अभ्यास करें.

एकदूसरे से अनावश्यक तथा सीमा के बाहर की अपेक्षाएं न रखें.

परस्पर स्नेह और सम्मान का प्रदर्शन करें. भूल कर भी ‘अहंकार’ को बीच में न आने दें.

पतिपत्नी दोनों ही एकदूसरे के क्रोध, चिड़चिड़ाहट और झल्लाहट आदि को सामान्य मानवीय प्रतिक्रिया समझ कर स्वीकार करें.

घर, बाहर, परिवार एवं बच्चों की जिम्मेदारियों को यथासंभव मिलबांट कर निभाएं. जो कर सकें उसे अवश्य करें और जो न कर पाएं उस के लिए विनम्रतापूर्वक ‘न’ कह दें.

जीवनसाथी के प्रति समर्पण का प्रदर्शन करने के लिए समयसमय पर उस की प्रशंसा अवश्य करें तथा उसे खुश करने के छोटेछोटे उपाय भी करें.

अपने गृहस्थ जीवन को सुखी रखने के लिए मार्गदर्शन अवश्य लें, मगर हस्तक्षेप कदापि स्वीकार नहीं करें.

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तन से पहले मन के तार जोड़ें

4 सहेलियां कुछ अरसे बाद मिली थीं. 2 की जल्दी शादी हुई थी तो 2 कुछ बरसों का वैवाहिक जीवन बिता चुकी थीं. ऐसा नहीं कि उन में और किसी विषय पर बात नहीं हुई. बात हुई, लेकिन बहुत जल्द ही वह पहली बार के अनुभव पर आ टिकी.

पहली सहेली ने पूछा, ‘‘तुम फोन पर ट्रेन वाली क्या बात बता रही थी? मेरी समझ में नहीं आई.’’

दूसरी बोली, ‘‘चलो हटो, दोबारा सुनना चाह रही हो.’’

तीसरी ने कहा, ‘‘क्या? कौन सी बात? हमें तो पता ही नहीं है. बता न.’’

दूसरी बोली, ‘‘अरे यार, कुछ नहीं. पहली रात की बात बता रही थी. हनीमून के लिए गोआ जाते वक्त हमारी सुहागरात तो ट्रेन में ही मन गई थी.’’

तीसरी यह सुन कर चौंकी, ‘‘हाउ, रोमांटिक यार. पहली बार दर्द नहीं हुआ?’’

दूसरी ने कहा, ‘‘ऐसा कुछ खास तो नहीं.’’

तीसरी बोली, ‘‘चल झूठी, मेरी तो पहली बार जान ही निकल गई थी. सच में बड़ा दर्द होता है. क्यों, है न? तू क्यों चुप बैठी है? बता न?’’

चौथी सहेली ने कहा, ‘‘हां, वह तो है. दर्द तो सह लो पर आदमी भी तो मनमानी करते हैं. इन्होंने तो पहली रात को चांटा ही मार दिया था.’’

बाकी सभी बोलीं, ‘‘अरेअरे, क्यों?’’

चौथी ने बताया, ‘‘वे अपने मन की नहीं कर पा रहे थे और मुझे बहुत दर्द हो रहा था.’’

पहली बोली, ‘‘ओह नो. सच में दर्द का होना न होना, आदमी पर बहुत डिपैंड करता है. तुम विश्वास नहीं करोगी, हम ने तो शादी के डेढ़ महीने बाद यह सबकुछ किया था.’’

दूसरी और तीसरी बोलीं, ‘‘क्यों झूठ बोल रही हो?’’

पहली सहेली बोली, ‘‘मायके में बड़ी बहनों ने भी सुन कर यही कहा था, उन्होंने यह भी कहा कि लगता है मुझे कोई धैर्यवान मिल गया है, लेकिन मेरे पति ने बताया कि उन्होंने शादी से पहले ही तय कर लिया था कि पहले मन के तार जोडूंगा, फिर तन के.

‘‘मुझे भी आश्चर्य होता था कि ये चुंबन, आलिंगन और प्यार भरी बातें तो करते थे, पर उस से आगे नहीं बढ़ते थे. बीच में एक महीने के लिए मैं मायके आ गई. ससुराल लौटी तो हम मन से काफी करीब आ चुके थे. वैसे भी मैं स्कूली दिनों में खूब खेलतीकूदती थी और साइकिल भी चलाती थी. पति भी धैर्य वाला मिल गया. इसलिए दर्द नहीं हुआ. हुआ भी तो जोश और आनंद में पता ही नहीं चला.’’

पतिपत्नी के पहले मिलन को ले कर अनेक तरह के किस्से, आशंकाएं और भ्रांतियां सुनने को मिलती हैं. पुरुषों को अपने सफल होने की आशंका के बीच यह उत्सुकता भी रहती है कि पत्नी वर्जिन है या नहीं. उधर, स्त्री के मन में पहली बार के दर्द को ले कर डर बना रहता है.

आजकल युवतियां घर में ही नहीं बैठी रहतीं. वे साइकिल चलाती हैं, खेलकूद में भाग लेती हैं, घरबाहर के बहुत सारे काम करती हैं. ऐक्सरसाइज करती हैं, नृत्य करती हैं. ऐसे में जरूरी नहीं कि तथाकथित कुंआरेपन की निशानी यानी उन के यौनांग के शुरू में पाई जाने वाली त्वचा की झिल्ली शादी होने तक कायम ही रहे. कई तरह के शारीरिक कार्यों के दौरान पैरों के खुलने और जननांगों पर जोर पड़ने से यह झिल्ली फट जाती है, इसलिए जरूरी नहीं कि पहले मिलन के दौरान खून का रिसाव हो ही. रक्त न निकले तो पुरुष को पत्नी पर शक नहीं करना चाहिए.

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अब सवाल यह उठता है कि जिन युवतियों के यौनांग में यह झिल्ली विवाह के समय तक कायम रहती है, उन्हें दर्द होता है या नहीं. दर्द का कम या ज्यादा होना झिल्ली के होने न होने और पुरुष के व्यवहार पर निर्भर करता है. कई युवतियों में शारीरिक कार्यों के दौरान झिल्ली पूरी तरह हटी हो सकती है तो कई में यह थोड़ी हटी और थोड़ी उसी जगह पर उलझी हो सकती है. कई में यह त्वचा की पतली परत वाली होती है तो कई में मोटी होती है.

स्थिति कैसी भी हो, पुरुष का व्यवहार महत्त्वपूर्ण होता है. जो पुरुष लड़ाई के मैदान में जंग जीतने जैसा व्यवहार करते हैं, वे जोर से प्रहार करते हैं, जो स्त्री के लिए तीखे दर्द का कारण बन जाता है. ऐसे पुरुष यह भी नहीं देखते कि संसर्ग के लिए राह पर्याप्त रूप से नम और स्निग्ध भी हुई है या नहीं. उन के कानों को तो बस स्त्री की चीख सुनाई देनी चाहिए और आंखों को स्त्री के यौनांग से रक्त का रिसाव दिखना चाहिए. ऐसे पुरुष, स्त्री का मन नहीं जीत पाते. मन वही जीतते हैं जो धैर्यवान होते हैं और तन के जुड़ने से पहले मन के तार जोड़ते हैं व स्त्री के संसर्ग हेतु तैयार होने का इंतजार करते हैं.

भले ही आप पहली सहेली के पति की तरह महीना, डेढ़ महीना इंतजार न करें पर एकदम से संसर्ग की शुरुआत भी न करें. पत्नी से खूब बातें करें. उस के मन को जानने और अपने दिल को खोलने की कोशिश करें. पर्याप्त चुंबन, आलिंगन करें. यह भी देखें कि पत्नी के जननांग में पर्याप्त गीलापन है या नहीं. दर्द के डर से भी अकसर गीलापन गायब हो जाता है. ऐेसे में किसी अच्छे लुब्रीकैंट, तेल या घी का इस्तेमाल करना सही रहता है. शुरुआत में धीरेधीरे कदम आगे बढ़ाएं. इस से आप को भी आनंद आएगा और पत्नी को दर्द भी कम होगा.

कई युवतियों के लिए सहवास आनंद के बजाय दर्द का सबब बन जाता है. ऐसा कई कारणों से होता है, जैसे :

कुछ युवतियों में वल्वा यानी जांघों के बीच का वह स्थान जो हमें बाहर से दिखाई देता है और जिस में वेजाइनल ओपनिंग, यूरिथ्रा और क्लीटोरिस आदि दिखाई देते हैं, की त्वचा अलग प्रकार की होती है, जो उन्हें इस क्रिया के दौरान पीड़ा पहुंचाती है. त्वचा में गड़बड़ी से इस स्थान पर सूजन, खुजली, त्वचा का लाल पड़ जाना और दर्द होने जैसे लक्षण उभरते हैं. त्वचा में यह समस्या एलर्जी की तरह होती है और यह किसी साबुन, मूत्र, पसीना, मल या पुरुष के वीर्य के संपर्क में आने से हो सकती है.

सहवास के दौरान दर्द होने पर तुरंत डाक्टर को दिखाना चाहिए. सहवास से पहले पर्याप्त लुब्रीकेशन करना चाहिए. पुरुष को यौनांग आघात में बल का प्रयोग नहीं करना चाहिए. वही काम मुद्राएं अपनानी चाहिए जिन में स्त्री को कम दर्द होता हो. इस से भी जरूरी बात यह है कि पहले मन के तार जोडि़ए. ये तार जुड़ गए तो तन के तार बहुत अच्छे और स्थायी रूप से जुड़ जाएंगे.    – सहवास के दौरान पर्याप्त लुब्रीकेशन न होने से भी महिला को दर्द का एहसास हो सकता है.

– महिला यौनांग में यीस्ट या बैक्टीरिया का इन्फैक्शन भी सहवास में दर्द का कारण बनता है.

– एक बीमारी एंडोमेट्रिआसिस होती है, जिस में गर्भाशय की लाइनिंग शरीर के दूसरे हिस्सों में बनने लगती है. ऐसा होने पर भी सहवास दर्दनाक हो जाता है.

– महिला के यौनांग की दीवारों के बहुत पतला होने से भी दर्द होता है.

– यूरिथ्रा में सूजन आ जाने से भी सहवास के दौरान दर्द होता है.

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जब शौहर का मिजाज हो आशिकाना

रंगीन, आशिकमिजाज पति पाना भला किस औरत की दिली तमन्ना न होगी? अपने ‘वे’ इश्क और मुहब्बत के रीतिरिवाजों से वाकिफ हों, दिल में चाहत की धड़कन हो, होंठों पर धड़कन का मचलता इजहार रहे, तो इस से ज्यादा एक औरत को और क्या चाहिए? शादी के बाद तो इन्हें अपनी बीवी लैला लगती है, उस का चेहरा चौदहवीं का चांद, जुल्फें सावन की घटाएं और आंखें मयखाने के प्याले लगते हैं. लेकिन कुछ साल बाद ही ऐसी बीवियां कुछ घबराईघबराई सी, अपने उन से कुछ रूठीरूठी सी रहने लगती हैं. वजह पति की रंगीनमिजाजी का रंग बाहर वाली पर बरसने लगता है.

यही करना था तो मुझ से शादी क्यों की

शादी से पहले विनय और रमा की जोड़ी को लोग मेड फौर ईचअदर कहते थे. शादी के बाद भी दोनों आदर्श पतिपत्नी लगते थे. लेकिन वक्त गुजरने के साथसाथ विनय की आंखों में पहले वाला मुग्ध भाव गायब होने लगा. राह चलते कोई सुंदरी दिख जाती, तो विनय की आंखें उधर घूम जातीं. रमा जलभुन कर खाक हो जाती. जब उस से सहा न जाता, तो फफक पड़ती कि यही सब करना था, तो मुझ से शादी ही क्यों की? क्यों मुझे ठगते रहते हो?

तब विनय जवाब देता कि अरे भई, मैं तुम से प्यार नहीं करता हूं. यह तुम ने कैसे मान लिया? तुम्हीं तो मेरे दिल की रानी हो.

सच यही था कि विनय को औफिस की एक लड़की आकर्षित कर रही थी. खुशमिजाज, खिलखिलाती, बेबाक मंजू का साथ उसे बहुत भाने लगा था. उस के साथ उसे अपने कालेज के दिन याद आ जाते. मंजू की शरारती आंखों के लुकतेछिपते निमंत्रण उस की मर्दानगी को चुनौती सी देते लगते और उस के सामने रमा की संजीदा, भावुक सूरत दिल पर बोझ लगती. रमा को वह प्यार करता था, अपनी जिंदगी का एक हिस्सा जरूर मानता था, लेकिन रोमांस के इस दूसरे चांस को दरकिनार कर देना उस के बस की बात न थी.

ये मेरे पति हैं

इसी तरह इंदिरा भी पति की आशिकाना हरकतों से परेशान रहती थी. उस का बस चलता तो देबू को 7 तालों में बंद कर के रखती. वह अपनी सहेलियों के बीच भी पति को ले जाते डरती थी. हर वक्त उस पर कड़ी निगाह रखती. किसी पार्टी में उस का मन न लगता. देबू का व्यक्तित्व और बातचीत का अंदाज कुछ ऐसा था कि जहां भी खड़ा होता कहकहों का घेरा बन जाता. महिलाओं में तो वह खास लोकप्रिय था. किसी के कान में एक शेर फुसफुसा देता, तो किसी के सामने एक गीत की पंक्ति ऐसे गुनगुनाता जैसे वहां उन दोनों के सिवा कोई है ही नहीं. उस की गुस्ताख अदाओं, गुस्ताख नजरों पर लड़कियों का भोला मन कुरबान हो जाने को तैयार हो जाता. उधर इंदिरा का मन करता कि देबू के गले में एक तख्ती लटका दे, जिस पर लिख दे कि ये मेरे पति हैं, ये शादीशुदा हैं, इन से दूर रहो.

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बेवफा होने का मन तो हर मर्द का चाहता है

घर में अच्छीखासी पत्नी होते हुए भी आखिर कुछ पति क्यों इस तरह भटकते हैं? यह सवाल मनोवैज्ञानिक एवं मैरिज काउंसलर से पूछा गया, तो उन्होंने एक ऐसी बात बताई, जिसे सुन कर आप को गुस्सा तो आएगा, लेकिन साथसाथ मर्दों के बारे में एक जरूरी व रोचक जानकारी भी प्राप्त होगी. उन का कहना था कि मर्दों के दिलोदिमाग व खून में ही कुछ ऐसे तत्त्व होते हैं, जो उन के व्यवहार के लिए बुनियादी तौर पर काफी हद तक जिम्मेदार होते हैं यानी कुदरत की तरफ से ही उन्हें यह बेवफाई करने की शह मिलती है.

इस का मतलब यह भी निकलता है कि बेवफा होने का मन तो हर मर्द का चाहता है, पर किसी की हिम्मत पड़ती है किसी की नहीं. किसी को मौका मिल जाता है, किसी को नहीं. किसी की पत्नी ही उसे इतना लुभा लेती है कि उसे उसी में नित नई प्रेमिका दिखती है, तो कुछ में आरामतलबी का मद्दा इतना ज्यादा होता है कि वे यही सोच कर तोबा कर लेते हैं कि कौन इश्कविश्क का लफड़ा मोल ले.

अब सवाल उठता है कि सामाजिक सभ्यता के इस दौर में आखिर कुछ पति ही इन चक्करों में क्यों पड़ते हैं? लीजिए, इस प्रश्न का उत्तर भी मनोवैज्ञानिकों के पास हाजिर है. जरा गौर करें:

पत्नी से आपेक्षित संतोष न मिलना

अकसर इन पतियों के अंदर एक अव्यक्त अतृप्ति छिपी रहती है. सामाजिक रीतिरिवाजों का अनुसरण कर के वे शादी तो कर लेते हैं, गृहस्थ जीवन के दौरान पत्नी से प्रेम करते हैं, फिर भी कहीं कोई हूक मन में रह जाती है. या तो पत्नी से वे तनमन की पूर्ण संतुष्टि नहीं पा पाते या फिर रोमांस की रंगीनी की हूक मन को कचोटती रहती है. जहां पत्नी से अपेक्षित संतोष नहीं मिलता, वहां बेवफाई का कुछ गहरा रंग इख्तियार करने का खतरा रहता है. कभीकभी इस में पत्नी का दोष होता है, तो कभी नहीं.

माफ भी नहीं किया जा सकता

रवींद्रनाथ टैगोर की एक कहानी का यहां उदाहरण दिया जा सकता है. हालांकि पत्नी नीरू के अंधे होने का कारण पति ही होता है, फिर भी पति एक अन्य स्त्री से चुपचाप विवाह करने की योजना बना डालता है. वह पत्नी नीरू से प्यार तो करता है, लेकिन फिर भी कहीं कुछ कमी है. जब पति की बेवफाई का पता नीरू को चलता है, तो वह तड़प कर पूछती है, ‘‘क्यों तुम ने ऐसा सोचा?’’

तब वह सरलता से मन की बात कह देता है, ‘‘नीरू, मैं तुम से डरता हूं. तुम एक आदर्श नारी हो. मुझे चाहिए एक साधारण औरत, जिस से मैं झगड़ सकूं, बिगड़ सकूं, जिस से एक साधारण पुरुष की तरह प्यार कर सकूं.’’

नीरू का इस में कोई दोष न था, लेकिन पति के व्यवहार को माफ भी नहीं किया जा सकता. हां, मजबूरी जरूर समझी जा सकती है. मगर सब पत्नियां नीरू जैसी तो नहीं होतीं.

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औरतें इतनी खूबसूरत क्यों होती हैं

‘‘पत्नी तो हमारी ही हस्ती का हिस्सा हो जाती है भई,’’ कहते हैं एक युवा शायर, ‘‘अब अपने को कोई कितना चाहे? कुदरत ने दुनिया में इतनी खूबसूरत औरतें बनाई ही क्यों हैं? किसी की सुंदरता को सराहना, उस से मिलना चाहना, उस के करीब आने की हसरत में बुराई क्या है?’’

इन शायर साहब की बात आप मानें या न मानें, यह तो मानना ही पड़ेगा कि रोमांस और रोमानी धड़कनें जिंदगी को रंगीन जरूर बनाती हैं. कुछ पति ऐसे ही होते हैं यानी उन्हें एकतरफा प्यार भी रास आता है.

सुबह का वक्त है. निखिलजी दफ्तर जाने की तैयारी में लगे हैं. सामने सड़क पर सुबह की ताजा किरण सी खूबसूरत एक लड़की गुजरती है. मुड़ कर इत्तफाकन वह निखिलजी के कमरे की ओर देखती है और निखिलजी चेहरे पर साबुन मलतेमलते खयालों में खो जाते हैं.

पत्नी चाय ले कर आती है, तो देखती है कि निखिलजी बाहर ग्रिल से चिपके गुनगुना रहे हैं, ‘जाइए आप कहां जाएंगे…’

‘‘अरे कौन चला गया?’’ पत्नी पूछती है.

तब बड़ी धृष्टता से बता भी देते हैं, ‘‘अरे कितनी सुंदर परी अभी इधर से गई.’’

‘‘अच्छाअच्छा अब जल्दी करो, कल पहले से तैयार हो कर बैठना,’’ और हंसती हुई अंदर चली जाती है.

यही बात निखिलजी को अपनी पत्नी की पसंद आती है. ‘‘लाखों में एक है,’’  कहते हैं वे उस के बारे में, ‘‘खूब जानती है कहां ढील देनी है और कहां डोर कस कर पकड़नी है.’’

लेकिन वे नहीं जानते कि इस हंसी को हासिल करने के लिए पत्नी को किस दौर से गुजरना पड़ा है. शादी के लगभग 2 साल बाद ही जब निखिलजी अन्य लड़कियों की प्रशंसा करने लगे थे, तो मन ही मन कुढ़ गई थी वह. जब वे पत्रिकाओं में लड़कियों की तसवीरें मजे लेले कर दिखाते तो घृणा हो जाती थी उसे. कैसा आदमी है यह? प्रेम को आखिर क्या समझता है यह? लेकिन फिर धीरेधीरे दोस्तों से, छोटे देवरों से निखिलजी की इस आदत का पता चला था उसे.

‘‘अरे, ये तो ऐसे ही हैं भाभी.’’

दोस्त कहते, ‘‘इसे हर लड़की खूबसूरत लगती है. हर लड़की को ले कर स्वप्न देखता है, पर करता कुछ नहीं.’’

और धीरेधीरे वह भी हंसना सीख गई थी, क्योंकि जान गई थी कि प्रेम निखिल उसी  से करते हैं बाकी सब कुछ बस रंगीनमिजाजी  की गुदगुदी है.

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मजा न बन जाए सजा

हिमाचल प्रदेश की एक महिला नेता का बाथरूम का बना वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ तो उसे इस का खमियाजा भुगतना पड़ा. पार्टी ने उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया. इस के अलावा समाज में बदनामी अलग हुई. पूरे वीडियो को देखने के बाद साफ लगता है कि यह वीडियो दोनों की मरजी से बना था और उन का इस में कोई गलत उद्देश्य भी नहीं था. दोनों ने इसे एकदूसरे को ब्लैकमेल करने के इरादे से नहीं बनाया था. इस के अचानक सोशल मीडिया पर आने से यह उन के लिए हर तरह से नुकसानदायक साबित हुआ.

यह कोई पहला मामला नहीं है, जिस में अंतरंग पलों का बना वीडियो गले की हड्डी बन गया. कुछ समय पहले ऐसा ही मामला मथुरा के एक पंडे का भी सामने आया था. पंडा के अपनी विदेशी शिष्या के साथ सैक्सी पोजों के कई वीडियो थे, जो उन के अपने लैपटौप पर थे. एक दिन लैपटौप खराब हो गया.

पंडा ने जब लैपटौप बनने के लिए दिया तो वहां से वे वीडियो बन गए और सीडी के जरीए बाजार में पहुंच गए. उस समय व्हाट्सऐप प्रयोग में नहीं था. इस वजह से मथुरा की वह घटना सीडी के जरीए ही चर्चा में आई थी.

सोशल मीडिया के चलते ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं, जिन में नेताओं सहित कई बड़े लोगों के सैक्सी पलों के बने वीडियो वायरल हो कर चर्चा में आ चुके हैं. उन का असर उन की जिंदगी पर पड़ चुका है. कई लोगों ने ऐसे वीडियो वायरल होने के बाद खुद को नुकसान पहुंचाने का प्रयास भी किया है.

प्रेमीप्रेमिका या पतिपत्नी के बीच बनने वाले ऐसे वीडियो वायरल होने के बाद वे उन की छवि को नुकसान पहुंचा सकते हैं. ऐसे में जरूरी है कि ऐसे वीडियो या फोटो न ही बनाए जाएं.

ब्लैकमेलिंग का साधन:

20 साल की रेखा यादव ने अपने बौयफ्रैंड विशाल गुर्जर के साथ ‘किस’ करते हुए एक वीडियो बना लिया था. खेलखेल में बना यह वीडियो दोनों ने केवल आपसी रिश्ते की गहराई को दिखाने के लिए बनाया था. कुछ समय के बाद वह वीडियो डिलीट भी कर दिया. मगर रेखा की एक सहेली पूनम ने रेखा का मैमोरी कार्ड ले लिया. उस में से पूनम का अपना कोई डेटा डिलीट हो गया, जो बहुत जरूरी था. उस ने अपने एक साथी दीपक से पूछा तो उस ने बताया कि एक ऐसा सौफ्टवेयर है, जिस से डिलीट डेटा भी रिकवर किया जा सकता है.

दीपक ने पूनम से मैमोरी कार्ड ले कर उस का डेटा रिकवर किया. उस में रेखा यादव और उस के बौयफ्रैंड विशाल गुर्जर का ‘किस’ वाला वीडियो भी रिकवर हो गया. अब दीपक ने रेखा यादव को ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया.

तकनीक का गलत इस्तेमाल

सौफ्टवेयर इंजीनियर दीपक जाटव बताते हैं कि अब ऐसेऐसे सौफ्टवेयर हैं जो मैमोरी कार्ड या कंप्यूटर लैपटौप से वे फोटो या वीडियो भी रिकवर कर सकते हैं, जो काफी समय पहले डिलीट किए जा चुके हों. ऐसे में एक ही रास्ता बचता है कि ऐसे सैक्सी पलों के फोटो या वीडियो बनाने से बचें भले ही आप का आपस में कितना भी गहरा रिश्ता क्यों न हो.

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कई बार यह भी देखा गया है कि जब आपसी रिश्ते टूटते हैं तो लोग ऐसे फोटो या वीडियो वायरल कर देते हैं. सोशल मीडिया अब ऐसा माध्यम बन गया है कि देशदुनिया के एक कोने से ऐसी चीजों का दूसरे कोने तक पहुंचने में समय नहीं लगता है. ऐसी घटनाएं जीवन के बहुत महत्त्वपूर्ण समय पर सामने आती हैं. उस समय लोग यही सोचते हैं कि ऐसा काम किया ही क्यों था?

आमतौर पर प्रेमिका को भरोसा होने लगता हैकि शादी तो होनी ही है तो क्या फर्क पड़ता है अगर सैक्स करते हुए वीडियो बना लिया जाए.

कैरियर की तबाही

अंतरंग पलों के ये फोटो और वीडियो कईर् बार ऐसे समय पर सामने आते हैं जब कैरियर में कुछ बेहतर हासिल करना होता हो. कई नेताओं के हाल ही में ऐसे वीडियो वायरल हुए हैं. अब तो सौफ्टवेयर के जरीए वीडियो में भी चेहरे को बदला जा सकता है.

पिछले दिनों गुजरात के नेता हार्दिक पटेल का ऐसा ही वीडियो वायरल हुआ जब वे वहां की सरकार के खिलाफ बड़ी लड़ाई लड़ रहे थे. ऐसे नेताओं, अफसरों, फिल्मी क्षेत्र के लोगों और समाजसेवियों की संख्या कम नहीं होती है. सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो वायरल होना कोई बड़े अचंभे वाली बात नहीं रह गई है.

ऐसी घटनाएं भले ही कानूनी रूप से गलत मानी जाती हों, वायरल करने वालों के खिलाफ आईटी ऐक्ट में मुकदमा भी हो सकता है पर यह काफी कठिन काम होता है. सजा के पहले ही जिस का वीडियो या फोटो वायरल होता है वह टूट कर तबाह हो जाता है.

समाज पर प्रभाव

सोशल मीडिया के माध्यम होने के बाद ऐसे वीडियो और फोटो बहुत तेजी से वायरल होने लगे हैं, जिन का समाज पर खराब प्रभाव पड़ने लगा है. हाल के दिनों में लोगों का हौसला इतना बढ़ गया है कि बलात्कार जैसी घटनाओं के वीडियो उन के खुद के गले की फांस बन गए. पुलिस ने उन्हीं वीडियोज को आधार बना कर पहले उन की पहचान की बाद में उन्हें जेल भेज दिया. ऐसे में ये वीडियो अपराधी को जेल भेजने के साधन भी बन गए.

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अपराध प्रवृत्ति के लोग ऐसे वीडियो बना कर पोर्न साइटों को बेचने का धंधा भी करते हैं. ये लोग लड़कियों को प्रेम के झांसे में फंसा कर पहले उन के साथ पोर्न वीडियो शूट करते हैं और फिर बाद में पोर्न साइट पर इन्हें बेच देते हैं.

ऐसे में अंतरंग पलों के बने ये वीडियो कितने घातक हो सकते हैं, इस का अंदाजा लगाना भी आसान नहीं होता है. इन से बचने का एक ही तरीका है कि अंतरंग पलों के ऐसे वीडियो बनाने से बचें. कई बार भावुकता और प्रेम की गहराई को जताने के लिए बने ये वीडियो कब वायरल हो कर गले की हड्डी बन जाएंगे, पता ही नहीं चलेगा. अत: ऐसी शर्मनाक हालत से बचने के लिए जरूरी है कि अंतरंग पलों के वीडियो और फोटो लेने से बचें. अंतरंग पल आप के अपने होते हैं.

हैप्पी रिलेशनशिप के लिए अपनाएं ये 8 मूलमंत्र

रिश्तों की नाजुक डोर को थामना मुश्किल होता है. इस डोर को न तो ढील दें और न ही जरूरत से ज्यादा खींचें. कुछ लोग आसानी से रिश्ते बना लेते हैं, किंतु अत्यधिक मानसिक उत्तेजना और हड़बड़ाहट के कारण रिश्तों को तबाह कर लेते हैं. यहां आदमी और जानवर के अंतर को समझना बेहद जरूरी है. मनोवैज्ञानिक ए. मैस्लो के अनुसार, मानवीय जरूरतें 5 प्रकार की होती हैं. पहली है- मूलभूत शारीरिक जरूरत. इसे सरल भाषा में रोटी, कपड़ा और मकान की जरूरत कह सकते हैं. दूसरी जरूरत है- सुरक्षा की. तीसरी प्यार की, हर कोई एकदूसरे से प्यार और सम्मान की अपेक्षा रखता है. चौथी जरूरत है सैल्फ रेस्पैक्ट की और 5वीं सैल्फ ऐक्चुलाइजेशन की यानी हम जो बनना चाहते हैं वैसा बनने का जनून होना है.

रिश्ते और संवाद

रिश्तों और संवाद का बहुत गहरा संबंध है. जितना मधुर और उपयुक्त संवाद होता है वैसा ही रिश्ता बनता चला जाता है. दिमाग के स्तर पर 2 व्यक्तियों के मन में क्या और कैसी प्रतिक्रिया होती है, इस का अनुमान लगा पाना कठिन होता है. एक बार हम किसी को अपने संवाद द्वारा हर्ट कर देते हैं या अपमानजनक संवाद कर बैठते हैं तो संबंध बिगड़ जाता है. संबंध बिगड़ने के साथ ही संवाद बिगड़ने लगता है. संवाद के बिगड़ते ही रिश्ते को उसी मानसिक और नैगेटिव परिपेक्ष्य में लेना शुरू हो जाता है. अत: जरूरी है कि हम कम्यूनिकेशन की प्रक्रिया पर ध्यान दें. अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करने में सब्र से काम लें. लेखिका नीतू गुप्ता का कथन है कि गलती होने पर माफी मागने में शरमाएं नहीं. यदि आप का दोस्त या लाइफपार्टनर स्वयं गलती करने पर क्षमा मांगे तो उसे झट से माफ कर दें यानी क्षमाशील बनें. संबंध चाहे मम्मीपापा, भाईबहन, दोस्तों के बीच हो या फिर पतिपत्नी के बीच, हर संबंध की अपनी अहमियत होती है. किसी रिश्ते को कमजोर न समझें. हर रिश्ते की कद्र करनी चाहिए ताकि रिश्ते का भरपूर आनंद लिया जा सके. जब संबंधों में कटुता होती है, नफरत होती है तो यह दोनों पक्षों के लिए और समान रूप से दुखदाई होती है. हर हाल में नैगेटिव सोचने से बचें.

लोगों के दिल तक पहुंचें

एक देवर थकाहारा घर लौटा तो भाभी से 1 गिलास  पानी इस प्रकार मांगा, ‘‘ए कानी भाभी एक गिलास पानी ले आओ.’’ भाभी को यह सुन कर गुस्सा आ गया. बोलीं, ‘‘तुम्हें पानी मांगने की तमीज नहीं है. तुम्हें पानी पिलाए मेरी जूती. खुद ले कर पी लो.’’ 1 घंटे बाद दूसरा देवर घर आया तो आदर के साथ बोला, ‘‘भाभी मैं थका आया हूं. बहुत प्यास लगी है. प्लीज, 1 गिलास पानी दो.’’ भाभी को बहुत अच्छा लगा. बोलीं, ‘‘पानी भी पिलाऊंगी और फिर 1 गिलास शरबत बना कर भी दूंगी, क्योंकि तुम ने कितने आदर से पानी मांगा है. मुझे यह बहुत अच्छा लगा है.’’ रिश्तों को मजबूत बनाता है आप का व्यवहार. आप के दिल में क्या है, यह आप के व्यवहार में परिलक्षित होता है. आगे रिलेशनशिप को मजबूत बनाने के कुछ पौइंट्स दिए जा रहे हैं. अपनी जिंदगी में इन पौइंट्स को अपनाएं. फिर देखें कि लोग किस कदर आप को प्यार करते हैं:

1. रिश्तों में इमोशनल मैच्युरिटी होनी चाहिए. सब के लिए इमोशंस बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं. लेकिन इमोशनल होते ही मानसिकता को झटका लगता है. ऐसे में रिश्तों को बहुत सूझबूझ के साथ संभालना ही रिश्तों को बनाए रखता है. इमोशनल मैच्युरिटी इस बात से प्रमाणित होती है कि किसी छोटी और नजरअंदाज किए जाने लायक बात को मुद्दा न बनाया जाए. तुनकमिजाजी काम बिगाड़ती है.

2. खासतौर पर यदि पतिपत्नी दोनों या दोनों में से एक संदेह का शिकार हो तो रिश्ता बिगड़ने में देर नहीं लगती है. संदेह रिश्तों को बिगाड़ने के लिए दीमक की तरह काम करता है. रिश्तों का आधार विश्वास हो तो जीने का आनंद ही अद्भुत और स्थाई होता है. अत: शक को रिश्तों के बीच न आने दें. शक की संभावना तब बहुत बढ़ जाती है जब पतिपत्नी अपने दोस्तों का सर्कल बहुत विस्तृत बना लेते हैं. और मेलजोल जरूरत से ज्यादा बढ़ा लेते हैं.

3. जिन घरों में बच्चों के सामने मातापिता लड़तेझगड़ते रहते हैं या पति पत्नी को घर आए मेहमानों के सामने बेइज्जत और हर्ट कर देता है वहां रिश्तों को अच्छा बनाए रखना कितना मुश्किल होता है, इस बात का अंदाजा आप सहज लगा सकते हैं. घर का माहौल अच्छा बनाए रखना घर के लिए जरूरी है. रिश्तों में जान भरने की कोशिश तो कर के देखें, फिर जीना बहुत आसान हो जाएगा.

4. रिश्तों की मजबूती के लिए यह बहुत जरूरी है कि हम पूर्वधारणा से बचें. ये हैं पूर्वधारणाएं:

दोस्त धोखेबाज हो सकते हैं़  उन पर विश्वास नहीं किया जा सकता है. उन्हें अपनी विश्वसनीयता प्रूव करने का मौका दिया जाना चाहिए. अगर वे ठीक प्रमाणित होते हैं तभी भरोसा किया जा सकता है.

सासबहू के संबध अच्छे नहीं होते हैं, यह पूर्वधारणा सासबहू दोनों के लिए रचनात्मक सोच अपनाने में बाधक बनती है.

प्रेम का मूलमंत्र है प्यार पाने के लिए प्यार देना. अधिकतर देखा जाता है कि हम प्यार पाना चाहते हैं बगैर प्यार अपनी तरफ से दिए और बिना अपनी ओर से प्रयत्न किए.

5. मनोवैज्ञानिक और चिकित्सक डा. एरिक बर्न की सलाह है कि हमें अपने मन की 3 स्थितियों का खास खयाल रखना चाहिए. ये मैंटल ईगो स्टेट हैं- चाइल्ड, पेरैंट और अडल्ट़ रिलेशन के लिए इन ईगो स्टेट को समझना जरूरी है. चाइल्ड ईगो स्टेट हम से वह व्यवहार कराता है जो विद्रोह या क्रोधित करता है. पेरैंट ईगो स्टेट हम से वह व्यवहार कराता है जो मार्गदर्शन और निर्देश करता है. अडल्ट ईगो स्टेट हम से वह व्यवहार कराता है, जो तर्कबुद्धि के मानदंड पर खरा उतरता है. व्यवहार करते समय अगर हम इन 3 ईगो स्टेट को संतुलित कर लेते हैं, तो हम रिश्तों को बखूबी निभाने में सफल हो जाते हैं.

6. यह मान कर चलें कि 2 लोगों के विचारों का मेल न खाना स्वाभाविक है. जीवन को सुखी और आनंदमय बनाना हमारा संयुक्त प्रयास है. बुरे वक्त में एकदूसरे का साथ देना अच्छा गुण है. रिश्तों के एहसास को जिंदा रखें.

7. मुसकराहट ऐसी चीज है जो स्वयं को सकारात्मक सोच देती है. इसलिए मुसकराएं और दूसरों को खुश रखें. रिश्तों में उतनी ही उम्मीदें रखें जितनी आसानी से पूरी हो सकें. खुश और संतुष्ट रहने के लिए अच्छे लोगों के सर्कल में रहें. अच्छा माहौल बनाना सब के हित में है.

8. आज से ही रिश्तों से संबंधित जो फैसले आप ले रहे हैं उन का अध्ययन करें कि क्या वे फैसले ठीक हैं या गलत. गलत फैसलों से खुद को बचाएं. अपने रिश्तों में विश्वसनीयता और पारस्परिक सौहार्द की भावना को प्रबल बनाएं. आखिर यह आप की जिंदगी है. इसे आप जिम्मेदारी के साथ नहीं संभालेंगे तो कैसे अपने संपर्क में आने वाले लोगों को सुख, संतुष्टि और आनंद का साधन बना पाएंगे? जिंदगी एक लंबा सफर है. इस की बारीकियों को समझने की कोशिश करें.

जानें क्या होता है मिड एज सिंड्रोम

अकसर हम 40-45 साल के कुछ ऐसे लोगों को देखते हैं, जो युवाओं की तरह भड़कीले कपड़े पहने उन के जैसा ही व्यवहार करते नजर आते हैं. कुछ इस से भी आगे बढ़ कर अपने से काफी छोटी उम्र के लोगों की ओर आकर्षित होते हैं और उन्हें भी अपनी ओर आकर्षित करने के लिए तरहतरह के नुसखे तथा पैतरे आजमाते दिखते हैं. इस तरह की स्थितियां जब सहजता की सीमा को पार करने लगती हैं, तो वे मिड लाइफ क्राइसिस, मिड लाइफ सिंड्रोम अथवा मिड एज सिंड्रोम कही जाती हैं. इस पर काफी अध्ययन और शोध भी हुए हैं.

होता क्या है

40-45 की उम्र तक पहुंचतेपहुंचते व्यक्ति कैरियर, गृहस्थी आदि में काफी हद तक सैटल हो जाता है. तब उस के पास अपने बारे में सोचनेविचारने का समय रहता है. ऐसे में अकसर उसे यह महसूस होता है कि युवावस्था उस के हाथ से निकलती जा रही है. वह जीवन की रोजमर्रा की जुगत में ठीक से उस का उपयोग नहीं कर पाया. अत: वह तरहतरह से उसे ठहराना, पकड़ना तथा भरपूर जीना चाहता है. ऐसे में समाज की मान्यताएं, सोच, हदें और सीमाएं उस की इस मनमरजी में बाधक लगती और बनती हैं. तब उस के भीतरबाहर द्वंद्व की स्थिति होती है, जो मिड लाइफ क्राइसिस कही जाती है.

पुरुषों में ज्यादा

वैसे यह क्राइसिस स्त्रीपुरुष दोनों में होती है, परंतु पुरुषों की तुलना में स्त्रियों में कम व देर से होती है और कम समय रहती है. पुरुषों में स्त्रियों की अपेक्षा नेचर और स्थितियों के साथ समायोजन की क्षमता कम होती है तथा वे अपनी मरजी से जीवन जीने के अधिक अभ्यस्त होते हैं, इसलिए भी उम्र की फिसलन उन की इच्छाओं में ज्यादा बढ़ोतरी करने लगती है. मनोचिकित्सक डा. संजय चुघ के अनुसार, इस क्राइसिस में व्यक्ति को लगता है कि उस की आधी जिंदगी बीत चुकी है. बची हुई जिंदगी वह अपनी मरजी से जीए. वह पहनावे, फिटनैस वगैरह का खास ध्यान रखने लगता है और युवा दिखने की भी काफी कोशिश करता है. अपनी जिंदगी में आई रिक्तता को भरने के लिए वह उस में ऐक्साइटमैंट लाना चाहता है. इस फेर में वह रोमांस तथा फ्लर्टिंग खोजने लगता है. उस का व्यवहार किशोरावस्था के व्यवहार जैसा होने लगता है. सिर्फ मनोवैज्ञानिक कारण ही नहीं हारमोनल बदलाव को भी इस के लिए जिम्मेदार माना गया है.

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स्त्रियों में कम क्यों

मनोचिकित्सकों के अनुसार स्त्रियां जीवन के तनावों, दबावों तथा हारमोनल बदलावों को सहज एवं प्राकृतिक रूप से टैकल कर लेती हैं. कई कार्यों, गतिविधियों में जीवन को व्यस्त कर लेती हैं. आमतौर पर खालीपन उन्हें खलता नहीं. वे उसे किसी न किसी तरह भर लेती हैं. इस मुद्दे पर कई स्त्रियों से बातचीत की तो उन्होंने इस के बारे में बताया. डा. पूनम आनंद लाजपत नगर, दिल्ली के विद्यालय में साइंस की शिक्षिका हैं. वे कहती हैं, ‘‘हम ने ये उम्र पार कर ली पर हमें इस की क्राइसिस का आभास इसलिए नहीं हुआ कि हमारे लिए बच्चों का कैरियर सैटलमैंट और जीवन के अन्य लक्ष्य भी महत्त्वपूर्ण हैं.’’ गुड़गांव केंद्रीय विहार में कार्यरत एक सौंदर्य विशेषज्ञा कहती हैं, ‘‘मेरे पास हर उम्र की महिलाएं आती हैं और वे सभी हर उम्र में सुंदर दिखना चाहती हैं. 44-45 की उम्र में भी एज क्राइसिस मैं ने उन में नहीं देखी. वे तो हमेशा ही जवान व सुंदर दिखना चाहती हैं.’’

डा. वीरेंद्र सक्सेना कहते हैं, ‘‘मैं फिल्मी पत्रिका ‘माधुरी’ का संपादक रहा. उस के लिए काम संबंधों पर शोध के दौरान किए गए इंटरव्यूज में मैं ने पाया कि स्त्रियां जीवन में मिले खाली समय को निरर्थक नहीं समझतीं, वे चीजों को बहुत सकारात्मकता से देखती हैं तथा खाली समय का भी सार्थक निवेश करती हैं.’’

क्या हो सकते हैं लक्षण

पदप्रतिष्ठा को भूल कर प्यार, रोमांस का तलबगार हो जाना.

कभीकभी पदप्रतिष्ठा को दांव पर भी लगा देना.

विवाहेतर संबंधों में दिलचस्पी.

दांपत्य में एकरसता, ऊब या बासीपन अनुभव करना.

सोशल साइट्स, इंटरनैट, अश्लीलता आदि की ओर रुझान बढ़ना.

हास्यास्पद हरकतें.

ब्रिटेन में मिड एज क्राइसिस पर हुए शोध में कई लक्षण प्रकाश में आए जैसे:

अपने से 20-25 वर्ष कम उम्र की लड़कियों से फ्लर्टिंग.

पुराने साथियों और लोगों को खोजना.

मित्र या अपनों की खुशी में खुश न होना.

उम्र छिपाना.

बाल झड़ने, तोंद बढ़ने अथवा बाल सफेद होने आदि की चिंता.

क्या इस क्राइसिस का है समाधान

जीवन की स्थितियों को सहजता से ले कर समायोजन कर लेते हैं, उन्हें इस क्राइसिस का अनुभव तो दूर, उन का तो इस का नाम तक लिए बिना जीवन गुजर जाता है. जीवन को लक्ष्य से जोड़े रखना बेहतर है. प्रोफैशनल जीवन के अलावा छोटेछोटे अन्य लक्ष्य भी बनाए जा सकते हैं. रुचियों और अधूरी इच्छाओं को समय दिया जा सकता है.

उम्र के हर पड़ाव का है चार्म

हर उम्र का अपना मजा है, अपना चार्म है. जिस बचपन या यौवन को इस उम्र की क्राइसिस में याद किया जा रहा है, उम्र के उस दौर में भी क्राइसिस कम न थी. अपनेआप को साबित करने, पढ़नेलिखने तथा अन्य हारमोनल तनावदबाव तथा आकर्षण भी बाधक थे. उम्र के अनुरूप व्यवहार, रहनसहन तथा हावभाव अच्छे लगते हैं. अगर बच्चे कहने लगें कि पापा को क्या हो गया? या डैडी तो बड़ी छिछोरी हरकतें करते हैं…, तो इस तरह की बातें कहीं का नहीं रहने देतीं. सर्दीगरमी, बरसात की तरह ही हर उम्र का मौसमी फ्लेवर है.

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लाइफ बिगिन्स आफ्टर फोर्टी

40 के बाद सही आनंदमय जीवन के चार्म को इस कहावत के जरीए दर्शाया गया है. यही तो समय है जब पैसे से ले कर कैरियर तक की सही कमान हाथ में आती है. इस का आनंद लेना आसपास के लोगों से सीखा जा सकता है. दुनिया भर की कई मशहूर हस्तियां 40 के बाद ही मुकाम पर पहुंचीं.

काबू न किए जाने पर किरकिरी

इस उम्र की क्राइसिस को मैनेज न कर पाने पर बहुत किरकिरी होती है. पुरुषों में तो 60-70 साल की उम्र तक यह सिंड्रोम रह सकता है, जिस की वजह से बिल क्लिंटन, बलुस्की और दुनिया की कई और भी जानीमानी हस्तियों की बहुत किरकिरी हुई है. मैनेज न किए जाने पर यह तनाव दबाव का रूप ले कर सफलता को असफलता, चरित्र को चरित्रहीनता और गुण को अवगुण में तबदील कर सकता है.

आ रही है अवेयरनैस

इस क्राइसिस के प्रति दुनिया भर में जागरूकता लाई जा रही है. पुराने समय में भी इस तरह की मनोवृत्तियों को कहावतों, मुहावरों के जरीए दर्शाने का प्रयास रहा है. जैसे सींग कटा कर बछड़ों में शामिल होना, बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम और पचपन में दिन बचपन के वगैरह.

बौलीवुड में भी ‘बीवी नं. 1’, ‘गैंड मस्ती’, ‘नो ऐंट्री’ जैसी फिल्में बनी हैं, जो इस एज क्राइसिस की ओर ध्यान दिला कर बचाव का संदेश देती हैं.

बच कर रहना ठीक

दांपत्य में एकरसता, उपेक्षा न आने दी जाए. जीवनसाथी के जीवन की रिक्तता को पूरा किया जाए. नवीनता और बदलाव की इच्छा को साथी द्वारा सैक्स, रहनसहन और लाइफस्टाइल की नईनई तकनीकें अपना कर टैकल किया जा सकता है. जब भी ऐसा एज सिंड्रोम सिर उठाए, तो उसे सकारात्मक व सही दिशा दे कर जीवन का और लुत्फ लिया जा सकता है. कुछ लोग जीवन में नए लक्ष्य और कार्यों के लिए उत्सुक, सीखने के लिए आतुर और घूमने के लिए व्याकुल नजर आते हैं वे काफी हद तक इसे सही दिशा में स्वयं ही मोड़ लेते हैं.

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जानें शादी से जुड़ी जिज्ञासाओं का जवाब

शादी तय होते ही हर लड़की के मन में जहां एक तरफ अनकही खुशी होती है वहीं दूसरी ओर मन में डर भी रहता है कि न जाने नया घर, वहां के रीतिरिवाज, घर के लोग कैसे होंगे? क्या मैं उस माहौल में सहज महसूस कर पाऊंगी? ऐसे तमाम सवालों के साथसाथ एक अहम पहलू यानी सैक्स जीवन को ले कर भी मन में अनगिनत जिज्ञासाएं होती हैं, जिन के बारे में वह हर बात को शेयर करने वाली मां से भी नहीं पूछ पाती है और न ही भाभी अथवा बहन से.

सैक्स संबंधी जिज्ञासाएं एक विवाहयोग्य लड़की के मन में होना आम बात है. इसी विषय पर बात करते हुए 2 महीने पूर्व विवाह के बंधन में बंधी रीमा कहती है कि विवाह तय होते ही मैं ने मां से पूछा कि मां पहली रात के बारे में सोच कर घबराहट हो रही है, क्या होगा जरा बताइए? तब मां ने झुंझलाते हुए जवाब दिया कि घबराओ नहीं, सब ठीक होगा. जब विवाहित सहेली से पूछा तो उस ने कहा कि संबंध बनाते समय बड़ा दर्द होता है. पर अब अपने अनुभव से कह सकती हूं कि यदि आप मानसिक और शारीरिक रूप से सहज हैं, साथ ही पति का स्नेहपूर्ण स्पर्श है, तो कोई समस्या नहीं आती.

भले आज कितनी ही प्रीमैरिटल काउंसलिंग संस्थाएं खुल गई हों पर जरूरी नहीं कि हर लड़की का परिवार एक बड़ी फीस दे कर अपनी बेटी को वहां भेज सके. मगर सवाल उठता है कि भावी दुलहन अगर मन की जिज्ञासाओं को अपनी मां से नहीं पूछ सकती, भाभी, बहन और सहेली भी उसे ठीक से नहीं बताएंगी और बताएंगी भी तो वे उन के निजी अनुभव होंगे और जरूरी नहीं कि भावी दुलहन के साथ भी वैसा ही हो, ऐसे में वह क्या करे? हम ने विवाहयोग्य लड़कियों व जिन के विवाह होने वाले हैं, ऐसी कई लड़कियों से उन के मन की जिज्ञासाओं को जाना कि वे मोटेतौर पर मन में किस प्रकार की जिज्ञासाएं रखती हैं. प्रस्तुत हैं, उन की जिज्ञासाएं…

जिज्ञासाएं कैसी कैसी

हर लड़की के मन में जिज्ञासा उपजती है कि क्या प्रथम मिलन के दौरान रक्तस्राव होना जरूरी है? क्या यही कौमार्य की पहचान है? क्या प्रथम मिलन पर बहुत दर्द होता है? इन के अलावा यदि विवाहपूर्व किसी और से शारीरिक संबंध रहा है तो क्या पति को उस का पता चल जाएगा? क्या माहवारी के दौरान सैक्स किया जा सकता है? क्या रात में 1 से अधिक बार शारीरिक संबंध स्थापित करने पर शरीर में कमजोरी आ जाती है? कौन सा गर्भनिरोधक उपाय अपनाएं ताकि तुरंत गर्भवती न हो, आदि.

इन सभी प्रश्नों के उत्तर देते हुए मदर ऐंड चाइल्ड हैल्थ स्पैशलिस्ट व फैमिली प्लानिंग काउंसलर डा. अनीता सब्बरवाल ने बताया कि प्रथम समागम के समय खून आने का कौमार्य से कोई संबंध नहीं होता. दरअसल, बढ़ती उम्र में खेलकूद या व्यायाम आदि के दौरान भी हाइमन नाम की पतली झिल्ली फट जाती है और लड़कियों को इस का पता भी नहीं चलता. इस के अलावा जो लड़कियां हस्तमैथुन करती हैं उन की झिल्ली भी फट सकती है. अत: विवाहयोग्य लड़कियों को मन से यह बात निकाल देनी चाहिए कि खून न आने से कौमार्य पर प्रश्नचिह्न लग सकता है.

इसी तरह प्रथम मिलन पर दर्द होना भी जरूरी नहीं है. अकसर शर्म और झिझक के कारण लड़कियां सैक्स के दौरान सहज नहीं हो पातीं, जिस के कारण योनि में गीलापन नहीं आ पाता और शुष्कता के कारण दर्द होता है. इसलिए संबंध बनाते समय पति का साथ दें. विवाहपूर्व बने शारीरिक संबंधों के बारे में पति को तब तक पता नहीं चल सकता जब तक पत्नी स्वयं न बताए.

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ऐसे ही माहवारी के दौरान सैक्स करने से कोई हानि नहीं होती. फिर भी सैक्स न किया जाए तो अच्छा है, क्योंकि एक तो पत्नी वैसे ही रक्तस्राव, पीएमएस जैसी तकलीफों से गुजर रही होती है, उस पर कई पति ओरल सैक्स पर जोर डालते हैं, जो सही नहीं है. अधिकांश लड़कियों के मन में यह जिज्ञासा भी बहुत रहती है कि सैक्स अधिक बार करने से कमजोरी आती है. दरअसल, ऐसा नहीं है, पत्नियां पतियों की सैक्स आवश्यकता से अनजान होती हैं. इस कारण उन्हें लगता है कि अधिक बार सैक्स करना हानिकारक होगा, जबकि ऐसा कुछ नहीं है. हां, फैमिली प्लानिंग उपाय के लिए अच्छा होगा कि पत्नी किसी स्त्रीरोग विशेषज्ञा से मिले ताकि वह शादी के बाद तुरंत गर्भवती न हो कर वैवाहिक जीवन का पूर्ण आनंद उठा सके.

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ध्यान देने योग्य बातें

सैक्स संबंधी जानकारी इंटरनैट पर आधीअधूरी मिलती है. अत: उस पर ध्यान न दें.

फैंटेसी में न जिएं और ध्यान रखें कि हर चीज हर किसी को नहीं मिलती.

यदि कोई बीमारी है जैसे डायबिटीज, अस्थमा आदि तो उस की जानकारी विवाहपूर्व ही भावी पति को होनी चाहिए. इसी तरह पति को भी कोई बीमारी हो तो उस का पता पत्नी को होना चाहिए.

मन की यह जिज्ञासा कि ससुराल वाले कैसे होंगे तो ध्यान रखें, हर घर के तौरतरीके अलग होते हैं. जरूरी यह है कि बड़ेबुजुर्गों को सम्मान दें, घर के तौरतरीकों को अपनाने की कोशिश करें तथा अपनी मुसकराहट व काम से सब का दिल जीतें. मन में जितनी भी सैक्स संबंधी जिज्ञासाएं हैं उन्हें किसी अच्छी पत्रिका के सैक्स कालम के अंतर्गत प्रकाशित होने वाले लेखों को पढ़ कर शांत करें.

यदि किसी समस्या का समाधान लेखों में न मिले तो उसे किसी पत्रिका के ‘सैक्स कालम’ में लिख कर भेजें. ऐसे कालमों की समस्याओं के समाधान योग्य डाक्टरों से पूछ कर ही प्रकाशित किए जाते हैं.

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