संपेरन- भाग 1: क्या था विधवा शासिका यशोवती का वार

‘‘तुम्हारी सूचना विश्वसनीय तो है?’’ शंकराचार्य मंदिर के मुख्यद्वार पर पुरोहित के पांव सहसा रुक गए.

‘‘स्वामी जयेंद्र ने आज तक आप को अविश्वसनीय सूचना नहीं दी है.

1-2 बार नहीं, जितनी बार भी आप पूछेंगे, मेरी सूचना अपरिवर्तित रहेगी कि विधवा यशोवती कश्यपपुर (कश्मीर) की शासिका मनोनीत की गई हैं.’’

‘‘तो क्या राज्य के पंडितों, ज्ञानीध्यानी व्यक्तियों और शिक्षाविदों को एक विधवा की अधीनता स्वीकार करनी होगी? यह बात क्या नीति, वेद, उपनिषद, धार्मिक शिक्षाओं व शालीनता के विपरीत नहीं होगी? प्रात: जीवनचर्या प्रारंभ करने से पूर्व राज्य निवासियों द्वारा ईश्वर के साथ ऐसी स्त्री का  नाम उच्चारित करना क्या पापाचार नहीं होगा?’’ कपिल का स्वर आक्रोशपूर्ण हो गया.

‘‘विप्रश्रेष्ठ, इस से तो भारत व अन्य पड़ोसी  राज्यों में भी हमारी हेठी होगी. सब लोग हमारी बुद्धि व मानसिक संतुलन पर तरस खाएंगे,’’ पुरोहित के साथ चलती भीड़ में से कोई बोल उठा.

‘‘निश्चय ही राज्य की सधवाएं इस प्रस्ताव का घोर विरोध करेंगी,’’ मुख में तांबूल दबाए, चंचल नयनों में काजल व होंठों पर लाल मिस्सी सज्जित युवती का स्वर सुन कर कपिल मन ही मन हर्षित हो उठा.

‘‘एक तो नारी,

ऊपर से विधवा? शिव…शिव…ऐसी शासिका के राज्य में रहने की अपेक्षा आत्महत्या कर लेना या राज्य से कहीं अन्यत्र पलायन कर लेना ही हमारे लिए उचित रहेगा,’’ एक अन्य पुरुष स्वर ने भी कपिल का समर्थन किया.

‘‘यदि आप सब लोगों की सहमति है तो मैं रानी यशोवती के सिंहासनारोहण के विरुद्ध अपने आत्मदाह की घोषणा करता हूं.’’

पुरोहित कपिल की घोषणा का भीड़ ने तुमुल हर्ष व तालियों से स्वागत किया.

‘‘जयेंद्र, तुम कश्यपपुर के प्रत्येक स्त्रीपुरुष तक मेरा यह  प्रण पहुंचा दो कि यदि विधवा यशोवती को राज्य की गद्दी पर बैठाया गया तो राज्यारोहण के दिन ही कोंसरनाग से उत्पन्न वितस्ता (झेलम) की लहरों में डूब कर मैं

अपने प्राण दे दूंगा.’’

‘‘महाज्ञानी, अपने प्रण के साथ हमारे इस निर्णय को भी जोड़ लें कि आप के बाद भी कश्यपपुर का पुरुष समुदाय प्रतिदिन इसी प्रकार अपने प्राण देता रहेगा, जब तक वह दुष्टा राज्य की गद्दी से स्वयं विमुख नहीं हो जाती अथवा उसे सिंहासन से हटा नहीं दिया जाता.’’

शंकराचार्य मंदिर में एक निश्चित समय पर संध्या काल में कपिल द्वारा प्रतिदिन 1-2 घंटे तक पारलौकिक ज्ञान व दर्शन जैसे विषयों पर प्रवचन दिया जाता था. उस के शब्दों में चमत्कार था. उस की वाणी ओजस्वी थी. देवा-लय के निकट

के स्त्रीपुरुष बड़ी संख्या में इन प्रवचनों को सुनने के लिए एकत्रित होते थे.

धर्म व दर्शन के साथसाथ कपिल नीति व कूटनीति का भी पंडित था. अपने गहन अध्ययन के बल पर उस ने चाणक्यनीति का एकएक शब्द कंठस्थ कर लिया था. इन्हीं सब बातों के आधार पर राज्य की नीतियों में उस का अत्यधिक हस्तक्षेप था.

कश्यपपुर के शासकों का पुरोहित कपिल के बढ़ते प्रभाव पर चिंतित होना स्वाभाविक था, पर साथ ही यह भी एक तथ्य था कि उस के सहयोग से शासकों को सफलता भी प्राप्त हो जाती थी. अत: ब्राह्मणवाद के बढ़ते प्रभाव के साथ शासकों की सफलता निश्चित होती जाती थी.

संक्षेप में, शासकों व पुरोहित दोनों ने ही एकदूसरे के अस्तित्व को स्वाभाविक रूप में स्वीकार कर लिया था, पर यशोवती के शासिका बन जाने से कपिल को अपना प्रभाव समाप्त होता दिखाई दिया. वह पुरुषोचित अहं व दंभ के कारण एक नारी का आधिपत्य कैसे सहन कर सकता था.

कपिल के साथ कश्यपपुर की जनता ने यशोवती के राज्यारोहण को अस्वीकार कर दिया था. पुरोहित के मस्तिष्क में इस के लिए कुछ कुतर्क थे, पर भीड़ ने तो केवल अंधानुभक्ति के वशीभूत हो कर ही यह निर्णय लिया था. परिणामस्वरूप यशोवती के विरुद्ध गालियों व कटु वचनों का प्रयोग किया गया. उस की हंसी उड़ाई गई. उस के संबंध में निम्नस्तरीय बातें कही गईं.

शंकराचार्य मंदिर में जमा भीड़ में नारियों की भी अच्छीखासी संख्या थी, पर उन में से अधिकतर का उद्देश्य केवल कपिल के प्रवचनों को सुनना तथा घर के उबाऊ वातावरण से थोड़ी देर के लिए मुक्ति प्राप्त करना था. अत: कपिल बिना किसी औपचारिकता के उन के रूखेसूखे जीवन का एक मनोरम व अविभाज्य अंग बन चुका था. प्रत्येक मूल्य पर वे आनंद के इस साधन को अक्षुण्ण बनाए रखना चाहती थीं. इसीलिए पुरुषों के साथ स्वर मिला कर नारियों ने भी यशोवती को वारांगना सिद्ध कर दिया.

देवालय की भीड़ में एक युवती बिलकुल मौन थी. कपिल उस की सहमति प्राप्त करने के लिए, यशोवती के विरुद्ध विषवमन करते हुए बारबार उस की ओर निहार रहा था. उसे मौन देख कर वह दूसरी ओर दृष्टि मोड़ लेता था. अपनी चालढाल व वेशभूषा से वह कुलीनवर्गीय लग रही थी.

अपने लंबे चोगे के साथ उस ने अपने मुख, नाक तथा होंठों को एक पारदर्शक रेशमी घूंघट से ढक रखा था. घूंघट के बीच टुकुरटुकुर ताकती उस की आंखों में एक अनोखा आकर्षण था. उन में सागर की गहराई थी. कई सुरापात्रों की लालिमा जैसे उन में सिकुड़सिमट गई थी. अपने निकट खड़ी परिचारिका के कानों में वह कुछ फुसफुसाई.

‘‘महोदय,’’ कपिल को संबोधित करते हुए परिचारिका बोली, ‘‘आप में से किसी ने कभी रानी यशोवती से भेंट भी की है?’’

‘‘नहीं तो,’’ सकुचा कर कपिल ने प्रत्युत्तर दिया.

‘‘क्यों न अपना अभियान प्रारंभ करने से पूर्व आप एक बार उन से भेंट कर लें.’’

‘‘महादेवी, रथ स्वयं कभी संचालित नहीं होता, बैल या घोड़े उसे चलाते हैं. अत: रथ तो अपने स्थान पर मौन खड़ा रहता है. वह पुकारपुकार कर अपने संचालनकर्ता को नहीं बुलाएगा. यशोवती व मुझ में आप को कौन क्या प्रतीत होता है, यह मैं आप पर ही छोड़ता हूं. मेरा निश्चय अटल है. वितस्ता की जलराशि जल्दी ही मेरा समाधिस्थल बनेगी.’’

घूंघट ओढ़े युवती फिर भी मौन खड़ी रही.

पुरोहितवाद का विषैला जादू शीघ्र कश्यपपुर की जनता के सिर चढ़ कर बोला. रानी यशोवती के विरुद्ध अचानक ही नगर के चतुर्मार्गों व राजपथों पर जनता का आक्रोश फूट पड़ा, प्रतिदिन नए जुलूसों, भाषणों व गोष्ठियों द्वारा यशोवती को शासिका बनाए जाने के विरुद्ध तीव्र लोकमत प्रकट किया गया.

आंदोलनकर्ता मुख्य रूप से ‘विधवा रानी नाक कटानी, ‘एक ध्येय, उद्देश्य बनाओ, यशोवती से देश ब

चाओ’ अथवा ‘जब तक है सांसों में सांस, नहीं चलेगा विधवा राज’ जैसे नारों से कश्यपपुर को गुंजाते रहे.

आंदोलनकर्ताओं पर जब कुछ अत्याचार किए गए तो आंदोलन और भी अधिक भड़क उठा. लगता था कि कपिल की सफलता असंदिग्ध है.

एक रात्रि को दूसरे प्रहर में कपिल शंकराचार्य मंदिर में निद्रा में लीन था. दिन भर यशोवती विरोधी अभियान के कारण वह थक गया था. उस के अन्य साथी भी निद्रा में मग्न थे. अचानक किसी ने उसे झिंझोड़ कर जगा दिया. पूरी तरह नींद खुलने पर उस ने दीपक के प्रकाश में 4 राज्य सैनिकों को अस्त्रशस्त्रों से सुसज्जित देखा.

‘‘कहिए, क्या बात है?’’

‘‘तुम्हें इसी पल हमारे साथ चलना है.’’

‘‘पर कहां व क्यों?’’

‘‘जनसाधारण के प्रश्नों के उत्तर देना शासनाधिकारियों के लिए आवश्यक नहीं है. हमें केवल इतना ज्ञात है कि आनाकानी करने पर हम तुम्हें जबरदस्ती ले जाएंगे. ऐसा ही हमें आदेश है. आदेशकर्ता का नाम भी हम नहीं बताएंगे.’’

‘‘उस का नाम तो मैं ज्ञात कर लूंगा, पर क्या तुम मेरे प्राणों की सुरक्षा का वचन देते हो?’’

‘‘वचन? शासन के वचन का क्या तुम कोई मूल्य समझते हो? हम तो प्रतिपल वचन दे कर उसी क्षण उसे तोड़ भी डालते हैं. फिर भी हम तुम्हें आश्वस्त कर सकते हैं कि अभी तुम्हारे प्राण लेने की कोई योजना नहीं है. वैसे भी तुम ने राजनीतिक आंदोलन प्रारंभ करने से पूर्व क्या शासन को कोई सूचना दी थी या उस की अनुमति मांगी थी? यदि नहीं तो तुम्हें अपने प्राणों की आशा तो उसी पल छोड़ देनी चाहिए थी. चलो, उठ कर खड़े हो जाओ.’’

‘‘मैं एक बार अपने विश्वस्त मित्रों व साथियों से तो बात कर लूं.’’

‘‘मित्र व साथी?’’ एक सैनिक अट्टहास कर उठा, ‘‘इन्हीं के बल पर क्या तुम ने राज्य क्रांति का बीड़ा उठाया है? तुम्हारे ‘साथी व मित्र’ हमारे आगमन का समाचार सुनते ही नौ दो ग्यारह हो गए हैं. विश्वास न हो तो चारों ओर दृष्टि डाल कर देख लो. वास्तव में एक क्षुद्र भुनगा होते हुए, कश्यपपुर साम्राज्य रूपी पर्वतमाला को चूरचूर करने का निर्णय ले कर तुम ने अपनेआप को सब की हंसी का पात्र बना लिया है. चलो, शीघ्रता करो.’’

‘‘पर यदि मेरे प्राण ले लिए जाएं तो यह तथ्य मेरे सगेसंबंधियों तक तो पहुंचा दिया जाए.’’

‘‘प्राणों की चिंता में घुलने वाले कापुरुष, तुम्हें अपने प्राण इतने ही प्यारे थे तो जनता का नेतृत्व क्यों संभाला था? क्यों उसे भ्रमित किया? मैं विश्वास दिलाता हूं कि तुम्हारे प्राण लिए जाएंगे तो कश्यपपुर की जनता ही नहीं, पड़ोसी देशों तक इस की सूचना पहुंचेगी. अभी तुम इतने महान नहीं बने हो कि तुम से भयभीत हो कर शासन तुम्हें गुप्त रूप से प्राणदंड दे दे. सैनिको, इसे उठा कर बाहर पालकी में ले जा कर डाल दो.’’

क्वार्टर: क्या हुआ था धीमा के साथ

कुंजू प्रधान को घर आया देख कर धीमा की खुशी का ठिकाना न रहा. धीमा की पत्नी रज्जो ने फौरन बक्से में से नई चादर निकाल कर चारपाई पर बिछा दी. कुंजू प्रधान पालथी मार कर चारपाई पर बैठ गया. ‘‘अरे धीमा, मैं तो तुझे एक खुशखबरी देने चला आया…’’ कुंजू प्रधान ने कहा, ‘‘तेरा सरकारी क्वार्टर निकल आया है, लेकिन उस के बदले में बड़े साहब को कुछ रकम देनी होगी.’’ ‘‘रकम… कितनी रकम देनी होगी?’’ धीमा ने पूछा. ‘‘अरे धीमा… बड़े साहब ने तो बहुत पैसा मांगा था, लेकिन मैं ने तुम्हारी गरीबी और अपना खास आदमी बता कर रकम में कटौती करा ली थी,’’ कुंजू प्रधान ने कहा. ‘‘पर कितनी रकम देनी होगी?’’ धीमा ने दोबारा पूछा. ‘‘यही कोई 5 हजार रुपए,’’ कुंजू प्रधान ने बताया. ‘‘5 हजार रुपए…’’ धीमा ने हैरानी से पूछा, ‘‘इतनी बड़ी रकम मैं कहां से लाऊंगा?’’

‘‘अरे भाई धीमा, तू मेरा खास आदमी है. मुझे प्रधान बनाने के लिए तू ने बहुत दौड़धूप की थी. मैं ने किसी दूसरे का नाम कटवा कर तेरा नाम लिस्ट में डलवा दिया था, ताकि तुझे सरकारी क्वार्टर मिल सके. आगे तेरी मरजी. फिर मत कहना कि कुंजू भाई ने क्वार्टर नहीं दिलाया,’’ कुंजू प्रधान ने कहा. ‘‘लेकिन मैं इतनी बड़ी रकम कहां से लाऊंगा?’’ धीमा ने अपनी बात रखी. ‘‘यह गाय तेरी है…’’ सामने खड़ी गाय को देखते हुए कुंजू ने कहा, ‘‘क्या यह दूध देती है?’’ ‘‘हां, कुंजू भाई, यह मेरी गाय है और दूध भी देती है.’’ ‘‘अरे पगले, यह गाय मुझे दे दे. इसे मैं बड़े साहब की कोठी पर भेज दूंगा. बड़े साहब गायभैंस पालने के बहुत शौकीन हैं. तेरा काम भी हो जाएगा.’’ कुंजू प्रधान की बात सुन कर धीमा ने रज्जो की तरफ देखा, मानो पूछ रहा हो कि क्या गाय दे दूं? रज्जो ने हलका सा सिर हिला कर रजामंदी दे दी.

रज्जो की रजामंदी का इशारा पाते ही कुंजू प्रधान के साथ आए उस के एक चमचे ने फौरन गाय खोल ली. रास्ते में उस चमचे ने कुंजू प्रधान से पूछा, ‘‘यह गाय बड़े साहब की कोठी पर कौन पहुंचाएगा?’’ ‘‘अरे बेवकूफ, गाय मेरे घर ले चल. सुबह ही बीवी कह रही थी कि घर में दूध नहीं है. बच्चे परेशान करते हैं. अब घर का दूध हो जाएगा… समझा?’’ कुंजू प्रधान बोला. ‘‘लेकिन बड़े साहब और क्वार्टर?’’ उस चमचे ने सवाल किया. ‘‘मुझे न तो बड़े साहब से मतलब है और न ही क्वार्टर से. क्वार्टर तो धीमा का पहली लिस्ट में ही आ गया था. यह सब तो ड्रामा था.’’ कुंजू प्रधान दलित था. जब गांव में दलित कोटे की सीट आई, तो उस ने फौरन प्रधानी की दावेदारी ठोंक दी थी, क्योंकि अपनी बिरादरी में वही तो एक था, जो हिंदी में दस्तखत कर लेता था. उधर गांव के पहले प्रधान भगौती ने भी अपने पुराने नौकर लालू, जो दलित था, का परचा भर दिया था, क्योंकि भगौती के कब्जे में काफी गैरकानूनी जमीन थी.

उसे डर था, कहीं नया प्रधान उस जमीन के पट्टे आवंटित न करा दे. इस जमीन के बारे में कुंजू भी अच्छी तरह जानता था, तभी तो उस ने चुनाव प्रचार में यह खबर फैला दी थी कि अगर वह प्रधान बन गया, तो गांव वालों के जमीन के पट्टे बनवा देगा. जब यह खबर भगौती के कानों में पड़ी, तो उस ने फौरन कुंजू को हवेली में बुलवा लिया था, क्योंकि भगौती अच्छी तरह जानता था कि अगला प्रधान कुंजू ही होगा. कुंजू और भगौती में समझौता हो गया था. बदले में भगौती ने कुंजू को 50 हजार रुपए नकद व लालू की दावेदारी वापस ले ली थी. लिहाजा, कुंजू प्रधान बन गया था. आज धीमा के क्वार्टर के लिए नींव की खुदाई होनी थी. रज्जो ने अगरबत्ती जलाई, पूजा की. धीमा ने लड्डू बांट कर खुदाई शुरू करा दी थी. नकेलु फावड़े से खुदाई कर रहा था, तभी ‘खट’ की आवाज हुई. नकेलु ने फौरन फावड़ा रोक दिया.

फिर अगले पल कुछ सोच कर उस ने दोबारा उसी जगह पर फावड़ा मारा, तो फिर वही ‘खट’ की आवाज आई. ‘‘कुछ है धीमा भाई…’’ नकेलु फुसफुसाया, ‘‘शायद खजाना है.’’ नकेलु की आंखों में चमक देख कर धीमा मुसकराया और बोला, ‘‘कुछ होगा तो देखा जाएगा. तू खोद.’’ ‘‘नहीं धीमा भाई, शायद खजाना है. रात में खोदेंगे, किसी को पता नहीं चलेगा. अपनी सारी गरीबी खत्म हो जाएगी,’’ नकेलु ने कहा. ‘‘कुछ नहीं है नकेलु, तू नींव खोद. जो होगा देखा जाएगा.’’ नकेलु ने फिर फावड़ा मारा. जमीन के अंदर से एक बड़ा सा पत्थर निकला. पत्थर पर एक आकृति उभरी हुई थी. ‘‘अरे, यह तो किसी देवी की मूर्ति लगती है,’’ सड़क से गुजरते नन्हे ने कहा. फिर क्या था. मूर्ति वाली खबर गांव में जंगल की आग की तरह फैल गई और वहां पर अच्छीखासी भीड़ जुट गई. ‘‘अरे, यह तो किसी देवी की मूर्ति है…’’ नदंन पंडित ने कहा, ‘‘देवी की मूर्ति धोने के लिए कुछ ले आओ.’’ नदंन पंडित की बात का फौरन पालन हुआ. जुगनू पानी की बालटी ले आया. बालटी में पानी देख कर नदंन पंडित चिल्लाया, ‘‘अरे बेवकूफ, पानी नहीं गाय का दूध ले कर आ.’’ नदंन पंडित का इतना कहना था कि जिस के घर पर जितना गाय का दूध था, फौरन उतना ही ले आया. गांव में नदंन पंडित की बहुत बुरी हालत थी.

उस की धर्म की दुकान बिलकुल नहीं चलती थी. आज से उन्हें अपना भविष्य संवरता लग रहा था. नंदन पंडित ने मूर्ति को दूध से अच्छी तरह से धोया, फिर मूर्ति को जमीन पर गमछा बिछा कर 2 ईंटों की टेक लगा कर रख दिया. उस के बाद 10 रुपए का एक नोट रख कर माथा टेक दिया. इस के बाद नंदन पंडित मुुंह में कोई मंत्र बुदबुदाने लग गया था. लेकिन उस की नजर गमछे पर रखे नोटों पर टिकी थी. गांव वाले बारीबारी से वहां माथा टेक रहे थे. धीमा और रज्जो यह सब बड़ी हैरानी से देख रहे थे. उन की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि अब क्या होगा. ‘‘यह देवी की जगह है, यहां पर मंदिर बनना चाहिए,’’ भीड़ में से कोई बोला. ‘हांहां, मंदिर बनना चाहिए,’ समर्थन में कई आवाजें एकसाथ उभरीं. दूसरे दिन कुंजू प्रधान के यहां सभा हुई. सभा में पूरे गांव वालों ने मंदिर बनाने का प्रस्ताव रखा और आखिर में यही तय हुआ कि मंदिर वहीं बनेगा, जहां मूर्ति निकली है और धीमा को कोई दूसरी जगह दे दी जाएगी. धीमा को गांव के बाहर थोड़ी सी जमीन दे दी गई, जहां वह फूंस की झोंपड़ी डाल कर रहने लगा था.

धीमा अब तक अच्छी तरह समझ चुका था कि सरकारी क्वार्टर के चक्कर में उस की पुश्तैनी जमीन भी हाथ से निकल चुकी है. मंदिर बनने का काम इतनी तेजी से चला कि जल्दी ही मंदिर बन गया. गांव वालों ने बढ़चढ़ कर चंदा दिया था. आज मंदिर में भंडारा था. कई दिनों से पूजापाठ हो रहा था. नंदन पंडित अच्छी तरह से मंदिर पर काबिज हो चुका था. खुले आसमान के नीचे फूंस की झोंपड़ी के नीचे बैठा धीमा अपने बच्चों को सीने से लगाए बुदबुदाए जा रहा था, ‘‘वाह रे ऊपर वाले, इनसान की जमीन पर इनसान का कब्जा तो सुना था, मगर कोई यह तो बताए कि जब ऊपर वाला ही इनसान की जमीन पर कब्जा कर ले, तो फरियाद किस से करें?’’

नशा- भाग 1: क्या नेहा के लिए खुद को बदल पाया सुमित

सुबह 10 बजे के करीब मैं नेहा से मिलने उस के घर पहुंची. उस ने सुमित की जिंदगी से निकलने का फैसला क्यों किया है, मैं यह जानना चाहती थी.

मेरे सवाल को सुन कर वह बहुत परेशान हो उठी. कुछ देर खामोश रहने के बाद उस ने बोलना शुरू किया, ‘‘अनु दीदी, उस की शराब पीने की आदत उस का स्वास्थ्य भी बरबाद कर रही है और हमारे बीच भी ऐसी खाई पैदा कर दी है, जिसे भरने में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है,’’ और वह रोंआसी हो उठी.

‘‘क्या वह बहुत पीने लगा है?’’ मैं ने चिंतित लहजे में पूछा.

‘‘दीदी, सूरज डूबने के बाद उस के लिए शराब पीने से बचना संभव ही नहीं. घर में उस के मम्मीपापा दोनों पीते हैं. सुमित दोस्तों के यहां हो या क्लब में, शराब का गिलास उस के हाथ में जरूर नजर आएगा. बिजनैस बढ़ाने के लिए पीनापिलाना जरूरी है, वह इस उसूल को मानने वाला है. यह बात अलग है कि अब तक वह अपने बिजनैस में 10 लाख से ज्यादा रुपए डुबो चुका है.’’

‘‘तुम तो उसे दिल से प्यार करती थीं?’’

‘‘वह तो आज भी करती हूं दीदी, पर अब उस का साथ निभाना नामुमकिन हो गया है.’’

‘‘प्यार में बड़ी ताकत होती है, नेहा. तुम्हें यों हार नहीं माननी…’’

‘‘दीदी, आप मुझ पर कोशिश न करने का इलजाम न लगाओ, प्लीज,’’ उस की आंखों में आंसू भर आए, ‘‘मैं ने सुमित के सामने हाथ जोड़े… गिड़गिड़ाई… रोई… नाराज हुई… गुस्सा किया पर उस ने शराब छोड़ने के झूठे वादे ही किए, छोड़ी नहीं.

‘‘मैं ने उस से बोलना छोड़ा, तो वह सुधरने के बजाय मारपीट और गालीगलौज पर उतर आया… एक नहीं कई बार उस ने मुझ पर हाथ उठाया.’’

कुछ देर खामोश रहने के बाद मैं ने उस से पूछा, ‘‘वह शराब पीना छोड़ दे, तो क्या तुम उसे अपनी जिंदगी में दोबारा लौटने दोगी?’’

‘‘दीदी, मुझे झूठी आशा मत बंधाइए.’’

‘‘तुम मेरे सवाल का तो जवाब दो.’’

‘‘मैं ने तो सुमित के साथ ही जिंदगी गुजारने का सपना देखा है, दीदी. पर अब कभी शादी न करने का विचार मुझे जंचने लगा है… प्रेम पर से मेरा विश्वास उठ गया है,’’ वह बहुत उदास हो उठी.

‘‘तुम शाम को क्लब आओ, नेहा. मैं अभी सुमित से मिलने जा रही हूं. उस से क्या बात हुई, तुम्हें शाम को बताऊंगी,’’ उस का हाथ प्यार से दबा कर मैं उठ खड़ी हुई थी.

कुछ देर बाद सुमित के घर में व्याप्त तनाव को मैं ने अंदर कदम रखते ही महसूस किया. उस के पिता सुरेंद्र अंकल गुस्से से भरे थे. सीमा आंटी की सूजी आंखें साफ बता रही थीं कि वे कुछ देर पहले खूब रोई हैं.

सुमित से मैं करीब 3 महीने बाद मिल रही थी. उस का चेहरा मुझे सूजा सा नजर आया. आंखों के नीचे काले गड्ढे थे.

वे सब मुझे घर का सदस्य मानते थे. चिंता के कारण को अंकल और आंटी मुझ से ज्यादा देर छिपा नहीं पाए.

सुमित को नाराजगी से घूरते हुए सुरेंद्र अंकल ने मुझे बताया, ‘‘अनु, यह पहले ही लाखों रुपए का नुकसान करा चुका है. अब 20 लाख रुपए की और मांग है नवाबजादे की. यह किसी लायक होता तो मैं कहीं से इंतजाम जरूर करता पर इस को फिर अपने दोस्तों की सलाह पर चल कर नुकसान उठाना है. मुझे अब 1 रुपया भी नहीं लगाना इस के बिजनैस में.’’

‘‘बेकार की बातें कर के अपना और मेरा दिमाग मत खराब करो डैड. आप की रकम मैं साल भर में लौटा दूंगा,’’ सुमित बड़ी कठिनाई से अपने गुस्से को काबू में रख पा रहा था.

‘‘इस बार इस की मदद कर दीजिए,’’ अपनी पत्नी के इस सुझाव की प्रतिक्रिया में सुरेंद्र अंकल ने उन्हें बेहद गुस्से से देखा.

‘‘महत्त्वपूर्ण फैसले शांत मन से करने चाहिए, क्रोध या टकराव की भावना के वश में हो कर नहीं, अंकल. सुमित की परेशानी आप हल नहीं करेंगे तो कौन हल करेगा?’’ इन के झगड़े के बीच मैं खुद को बड़ा असहज व परेशान महसूस कर रही थी.

‘‘इस की मुसीबत की जड़ इस के वे दोस्त हैं अनु, जिन्हें शराब पी कर मौजमस्ती करने के अलावा कोई काम नहीं है और वह लड़की नेहा, जो इसे दुत्कारती रहती है और यह है कि उस के आगेपीछे घूमे जा रहा है… अरे, क्या कमी है इस के लिए अच्छी लड़कियों की? मैं एक से एक…’’

‘‘मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है आप की किसी भी एक से एक बढि़या लड़की में. मेरा इस घर में दम घुटता है,’’ कह कर सुमित झटके से उठा और बाहर चला गया.

मैं उठ कर उस के पीछे भागी. वह मुझ से भी बात करने के मूड में नहीं था. शाम को क्लब में मिलने का वादा कर के वह अपनी फैक्टरी चला गया.

बाद में सुरेंद्र अंकल ने मुझ से सुमित की शिकायतें दिल भर कर कीं. सीमा आंटी जब भी अपने बेटे का पक्ष लेतीं, दोनों के बीच फौरन झगड़ा शुरू हो जाता.

लंच मैं ने अंकलआंटी के साथ ही किया. वे दोनों बीयर पीते हुए खा रहे थे.

‘‘सोलन में तो बहुत ठंड पड़ती है. तुम ने वहां भी अब तक ड्रिंक लेना शुरू नहीं किया है, अनु?’’ सीमा आंटी ने अपना बीयर का गिलास भरते हुए पूछा.

‘‘नहीं, आंटी,’’ मैं ने जबरदस्ती मुसकराते हुए जवाब दिया.

सुरेंद्र अंकल ने पहली बार वार्त्तालाप में हिस्सा लेते हुए हंस कर कहा, ‘‘जिंदगी के हर मोड़ पर आजकल जबरदस्त कंपीटीशन है. युवावर्ग टैंशन का शिकार है और उसे दूर करने के लिए पीना उस की जरूरत बन गया है.’’

‘‘आज का युवावर्ग कम पिएगा अगर हम ड्रिंक करने को सामाजिक स्वीकृति देना बंद कर दें. पीने को सामाजिक जीवन का स्वीकृत हिस्सा बना कर हम ठीक नहीं कर रहे हैं. इस से होने वाले नुकसानों को मुझे गिनाने की जरूरत नहीं है,’’ मैं ने जज्बाती अंदाज में अपने दिल की बात कही.

उन दोनों ने मेरी बात सुन कर भी अनसुनी सी कर दी. अपनी किसी गलती को सच्चे मन से स्वीकार कर के बदलाव लाना क्या आसान काम है?

शाम को सुमित की शराब पीने की लत ने जो रंग दिखाया, उसे मैं गहरे दुख और अफसोस के साथ ही बयान कर रही हूं.

ऐन वक्त पर पापा के एक दोस्त उन से मिलने आ गए, इस कारण हम उस शाम क्लब कुछ देर से पहुंचे थे. हौल में प्रवेश करने से पहले ही सुमित की नशे में लड़खड़ाती गुस्से से भरी आवाज हमारे कानों तक पहुंची. अंदर का दृश्य देख कर हमारा दिमाग घूम गया.

नशा- भाग 2: क्या नेहा के लिए खुद को बदल पाया सुमित

सुमित को 4 लोगों ने पकड़ रखा था. उस के सामने नेहा अपने मम्मीपापा के साथ खड़ी डरीसहमी नजर आ रही थी.

अपनी और नेहा व उस के परिवार की इज्जत को ताक पर रख सुमित चिल्ला रहा था, ‘‘आई लव यू, नेहा. तुम मुझ से दूर होने की सोचना भी मत… तुम्हारे बिना मैं जिंदा नहीं रह सकता…’’

उस ने अपने को आजाद कराने के लिए पूरी ताकत लगाई, तो अपना संतुलन खो कर गिर पड़ा. भीड़ में उपस्थित कई लोग मुसकराने लगे.

क्लब सैक्रेटरी ने नेहा के पापा से कहा, ‘‘आप मेरे साथ आइए, सर. क्लब में ऐसा गंदा, बेहूदा व्यवहार सहन नहीं किया जाएगा. मैं सख्त कार्यवाही करूंगा.’’

‘‘तुम मेरे पास रुको, नेहा,’’ सुमित ने खड़े हो कर उन सब का रास्ता रोकने की कोशिश की.

‘‘इसे बाहर का रास्ता दिखाओ और जब इस के पिताजी आएं, तो उन से कहना कि मुझ से मिलें,’’ ऐसी हिदायत क्लब के सुरक्षाकर्मियों को दे कर क्लब सैक्रेटरी उन तीनों को लाइब्रेरी में ले गया. चारों सुरक्षाकर्मी सुमित को जबरदस्ती बाहर ले चले.

‘‘मुझे छोड़ो, यू इडियट्स. मेरी भी यहां रुकने में कोई दिलचस्पी नहीं है,’’ सुमित ने झटका दे कर खुद को उन की पकड़ से आजाद किया और डगमगाते कदमों से मुख्यद्वार की तरफ बढ़ा.

‘‘सुमित, रुको,’’ वह मेरी बगल से गुजरा तो मैं ने उस का बाजू थाम कर उसे रोकने का प्रयास किया.

‘‘मुझे छोड़ो, अनु,’’ उस ने तेज झटके से मेरा हाथ हटाया और गुस्से से भरी आवाज में बोला, ‘‘यह मरेगी मेरे हाथों.’’

मैं ने पल भर को उस की आंखों में झांका था. आंखों में मुझे जो वहशीपन नजर आया, वह इस बात का सुबूत था कि यह इनसान इस वक्त किसी के भी साथ मारपीट और कैसी भी बदतमीजी कर सकता है.

‘‘इस ने शराब नहीं छोड़ी, तो नेहा को इस से कभी कोई रिश्ता नहीं रखना चाहिए,’’ मां की इस टिप्पणी से मैं पूरी तरह से सहमत थी.

सुमित इस वक्त नशे और भावनात्मक उथलपुथल का शिकार था. मैं ने अपने बड़े भैया अरुण से उस के साथ रहने की प्रार्थना की, तो वे फौरन सुमित के पीछेपीछे बाहर चले गए.

कुछ देर बाद सुरेंद्र अंकल और सीमा आंटी भी आ गए. उन्हें वहां हुए तमाशे की जानकारी फौरन मिल गई. दोनों लाइब्रेरी में क्लब सैक्रेटरी और नेहा व उस के मातापिता से मिलने चले गए.

घंटे भर के अंदर सुरेंद्र अंकल मामले को ठंडा करने में सफल हो गए. नेहा अपने मातापिता के साथ घर चली गई. सुमित और अरुण भैया से फोन पर संपर्क न स्थापित हो पाने के कारण हम सब की चिंता बढ़ती जा रही थी.

करीब 11 बजे अरुण भैया का फोन आया, ‘‘हमारी फिक्र मत करो. सब ठीक है. सुमित मेरे साथ है और 2-3 घंटों के बाद मैं उसे उस के घर छोड़ दूंगा.’’

क्लब से हम सब लोग सुरेंद्र अंकल के यहां आ गए. सुमित और अरुण भैया को ले कर सभी बुरीबुरी आशंकाएं व्यक्त कर रहे थे.

वे दोनों करीब 3 बजे रात घर लौटे. सुमित की हालत देख कर हम सब भौचक्के रह गए. उस के कपड़े जगहजगह से फटे हुए थे. दाहिनी आंख सूजी हुई थी. चेहरे पर जख्मों व खरोंचों के निशान थे. अरुण भैया का हाल इतना बुरा नहीं था, पर दोनों की हालत देख कर यह अंदाजा लगाना कठिन नहीं था कि उन का कहीं जबरदस्त झगड़ा हुआ है.

सुमित बहुत परेशान नजर आ रहा था. किसी से बिना बोले वह अपने कमरे में चला गया.

अरुण भैया ने संक्षेप में हमें बताया कि नशे की हालत में ड्राइव कर रहे सुमित ने कार को एक तिपहिया स्कूटर से टकरा दिया था. गलती स्कूटर चालक की थी, पर सुमित को नशे में देख कर सब ने उसे ही कुसूरवार मान लिया था.

स्थिति इस कारण ज्यादा बिगड़ी क्योंकि सुमित पहले ही जबरदस्त गुस्से का शिकार बना हुआ था. मैं ने उसे बहुत नियंत्रण में रखना चाहा, पर वह उस चालक से उलझता ही चला गया.

पहले हाथ सुमित ने छोड़ा और फिर उसे कई लोगों के थप्पड़, घूंसे सहने पड़े. नशे में धुत्त कोई अमीरजादा आम इनसान से दुर्व्यवहार करे, यह बात जनता को उत्तेजित कर गई और सुमित दुर्घटना का कुसूरवार न होते हुए भी बुरी तरह पिट गया.

पुलिस की जिप्सी घटनास्थल पर पहुंच गई. पुलिस दोनों को थाने ले आई. वहां स्कूटर चालक व सुमित दोनों को लौकअप में बंद कर दिया. थाने में 5 घंटे बिताने के बाद अब हम घर लौट पाए हैं.

‘‘तुम ने मुझे फौरन फोन क्यों नहीं किया?’’ सारी बात सुन कर सुरेंद्र अंकल ने गुस्से से कांपती आवाज में भैया से प्रश्न किया.

‘‘सुमित ने ऐसा करने से मना किया था,’’ अरुण भैया ने रूखे से स्वर में जवाब दिया.

सुमित के मातापिता उस के कमरे की तरफ चले गए. कुछ देर बाद सीमा आंटी और सुरेंद्र अंकल हमारे पास और भी ज्यादा दुखी हालत में लौटे. उन दोनों से सुमित ने बात करने से इनकार कर के अपने कमरे का दरवाजा खोलने से मना कर दिया था.

अरुण भैया घर लौटना चाहते थे, पर मैं ने सुमित से मिल कर जाने की जिद पकड़ ली.

‘‘वह दरवाजा नहीं खोलेगा,’’ सीमा आंटी की इस चेतावनी को नजरअंदाज कर मैं सुमित से मिलने चल पड़ी.

सुमित और मैं साथसाथ बड़े हुए हैं. हम दोनों के बीच दिल का गहरा रिश्ता है. मैं ने सिर्फ 1 बार उस से कहा और उस ने दरवाजा खोल दिया.

सुमित सिर झुकाए खामोश पलंग पर बैठ गया. मेरी समझ में बात शुरू करने का कोई तरीका नहीं आया तो मैं उस का हाथ पकड़ कर खामोश उस के पास बैठ गई.

उस की आंखों से आंसू बहने और फिर कंपकंपाती आवाज में शब्द बाहर आने लगे.

‘‘अनु, मैं उस स्कूटर वाले के साथ हवालात में बंद था,’’ उस की आवाज में पीड़ा के गहरे भाव साफ झलक रहे थे, ‘‘वह बीड़ी का धुआं बारबार मेरे मुंह पर फेंक रहा था. मुझे हिंसक नजरों से घूर रहा था… मैं कुछ कहता, तो बात बढ़ती… मारपीट होती… उस का कुछ नहीं जाता और मैं अपनी नजरों में और गिर जाता.

‘‘कल रात मुझे क्लब के सुरक्षाकर्मियों ने भी धक्के दिए… सिपाहियों ने धक्के दिए… गालीगलौज की… जिन की कोई औकात नहीं, उन छोटे लोगों ने मुझे बुरी तरह बेइज्जत किया.

‘‘क्या मैं इतना बुरा इनसान हूं, अनु?

नशा- भाग 3: क्या नेहा के लिए खुद को बदल पाया सुमित

क्यों नहीं कोई मेरा अपना मुझे बेइज्जत होने से बचाने आया? मम्मीपापा कहां थे? तुम कहां थीं? वे सब जो लोग मुझ से दोस्ताना अंदाज में हंसतेबोलते हैं, उन्होंने मेरा साथ क्यों नहीं दिया?’’

‘‘तुम ने अरुण भैया को हमें फोन करने से क्यों रोका था, सुमित? हमें सूचना मिल जाती तो, तुम्हारे बंद होने की नौबत ही न आती,’’ मेरा स्वर भी रोंआसा हो उठा था.

‘‘अरुण भैया झूठ बोल रहे हैं. मैं ने बारबार उन्हें बुलाया, पर वे मुझ से मिलने से कतराते रहे… मैं बहुत गुस्सा हूं उन से.’’

‘‘अब न गुस्सा होओ और न ही दुखी. आज की रात को एक खराब सपने की तरह भूल जाओ, सुमित,’’ मैं ने कोमलस्वर मेंउसे समझाया.

‘‘इस रात को मैं कभी नहीं भूल सकूंगा,  अनु… इतनी बेइज्जती… मेरा तो आत्महत्या करने का मन कर रहा है. कैसे मिलाऊंगा मैं लोगों से नजरें?’’ उस ने पीडि़त स्वर में कहा.

‘‘बेकार की बात मुंह से न निकालो सुमित,’’ मैं गुस्सा हो उठी, ‘‘तुम ने शराब न पी रखी होती तो जो हुआ है, वह कभी न घटता.’’

‘‘जिसे अपनों का प्यार नहीं मिलता, शराब ही तो उसे जीने का सहारा देती है, अनु.’’

‘‘वाह, क्या डायलाग बोला है,’’ मैं व्यंग्यात्मक लहजे में बोली, ‘‘गालियां देने व मारपीट करने के बाद नेहा से प्यार पाने की उम्मीद तुम कर कैसे सकते हो?’’

‘‘क्या नेहा… क्या पापा… क्या मम्मी… मैं किसी के लिए भी महत्त्वपूर्ण नहीं हूं, अनु. इन सब के गलत व्यवहार ने ही मुझे ज्यादा पीने की आदत डलवाई है,’’ वह गुस्सा हो उठा.

‘‘और पीने का नतीजा आज रात तुम ने देख लिया है. अब तो शराब पीने से तोबा कर लो, सुमित.’’

उस ने कोई जवाब न दे कर खामोशी अख्तियार कर ली, तो मैं ने भावुक लहजे में कहा, ‘‘यह शराब तुम्हारे हर रिश्ते में जहर घोल कर हंसीखुशी और प्रेम को नष्ट कर रही है, सुमित. तुम्हें पीना छोड़ना ही होगा.’’

‘‘इस वक्त शराब और अपने लिए सिर्फ नफरत ही नफरत है मेरे मन में अनु, लेकिन पीना छोड़ना आसान नहीं. पहले भी मैं ने कई बार कोशिश की है, पर मेरे दोस्त जोर डाल कर मुझे कमजोर बना देते हैं… शराब छोड़ने का मेरा वादा झूठा ही साबित होगा… मैं फिर हार जाऊंगा अनु.’’ वह और ज्यादा निराश नजर आने लगा.

‘‘इस बार नहीं हारने दूंगी मैं तुम्हें,’’ मैं ने मजबूत स्वर में उस का धैर्य बंधाया, ‘‘तुम आज शाम को ही मेरे साथ सोलन चलो. अपने दोस्तों से दूर वहां के स्वस्थ, शांत वातावरण में कुछ दिन गुजारने के बाद तुम अपने भीतर नया जोश, नया उत्साह, नई इच्छाशक्ति पैदा कर सकोगे. तुम एक ऐसा भिन्न इनसान बन कर लौटोगे जिसे जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए शराब की जरूरत ही नहीं पड़ेगी. जिसे शराब का नशा जीने के नशे के सामने बेहद फीका लगने लगेगा. बस, अब तुम मेरे साथ चलने से इनकार मत करना, प्लीज.’’

कुछ पल मेरे चेहरे पर नजरें जमाए रखने के बाद उस ने कोमल अंदाज में मेरी आंखों से बह आए आंसुओं को पोंछा और फिर मुसकराने का प्रयास करते हुए बोला, ‘‘मेरी प्यारी दोस्त… मेरी प्यारी बहन, मैं चलूंगा तेरे साथ.’’

‘‘इस के लिए मैं अपने पति को फोन कर देती हूं. वे खुश होंगे तुम्हें मेरे साथ आया देख कर, सुमित. थैंक यू…थैंक यू वैरी मच. अब सब ठीक हो जाएगा, देखना,’’ मारे खुशी के मैं उस की छाती से लग कर रोने लगी.

करीब आधे घंटे के बाद हम जब अपने घर लौट रहे थे, तब अरुण भैया ने मेरे मन में कुलबुलाहट मचा रहे मेरे सवाल का जवाब मुझे दिया.

‘‘हां अनु, मैं ने जानबूझ कर सुमित के लौकअप में बंद होने की सूचना नहीं दी थी,’’ भैया गंभीर लहजे में बोले, ‘‘थाने में मुझे मेरे साथ पढ़ा इंस्पेक्टर नरेश मिला. नशे का शिकार सुमित उस के साथ भी बदतमीजी से पेश आया था. उसे सही नसीहत देने के लिए कुछ घंटों के लिए सुमित को लौकअप में उस बदतमीज, दबंग स्कूटर चालक के साथ बंद कर दिया जाए, यह आइडिया मेरे दोस्त इंस्पेक्टर का ही था.

‘‘मैं चाहता तो वह सुमित को जल्दी जाने देता, लेकिन उस की बात मेरी समझ में आई. सुमित लौकअप में गुजारे ये चंद घंटे कभी नहीं भुला सकेगा.’’

मैं ने कुछ देर खामोशी के साथ उन के कहे पर सोचविचार किया तो यह बात समझ में आई कि उन की तरकीब कठोर तो थी पर अपना प्रभाव सुमित के दिलोदिमाग पर छोड़ने में सफल रही. कुछ घंटों के आराम के बाद मैं अपना सामान बांधने में जुट गई.

नेहा के अलावा मैं ने सुमित के कुछ अन्य करीबी दोस्तों को भी फोन पर उस के मेरे साथ सोलन जाने की सूचना दे दी थी. इन सभी की दिली इच्छा थी कि सुमित किसी भी तरह शराब के नशे से मुक्त हो जाए.

हमें रात की बस पकड़नी थी. बसअड्डे तक जाने के लिए टैक्सी का इंतजाम अरुण भैया ने कर दिया. सुमित उसी टैक्सी में अपने मातापिता के साथ बैठ कर हमारे घर 7 बजे के करीब आ गया.

हमारे ड्राइंगरूम में कदम रखते ही वह चौंक पड़ा. उसे विदा करने के लिए उस के 2 अच्छे दोस्त, उस के चाचा का पूरा परिवार और हमारी एक पुरानी स्कूल टीचर अलका मैडम उपस्थित थीं, जिन का सुमित कभी सब से प्यारा शिष्य हुआ करता था.

सभी ने सुमित को प्यार से गले लगाया और आशीर्वाद देने के साथसाथ हौसला बढ़ाने वाले शब्द भी कहे.

‘‘बड़ों का स्नेह व छोटों से मानसम्मान पाने के लिए खुद को बदल डालो, सुमित.’’ अलका मैडम ने जब सुमित का माथा चूमा, तब उन की आंखों में आंसू झिलमिला रहे थे.

‘‘तुम अपना खयाल रखना, सुमित. मैं कोशिश करूंगा कि शराब से हमारे परिवार के हर सदस्य का नाता टूट जाए,’’ खुद शराब न पीने वाले सुमित के चाचाजी का इशारा अपने बड़े भैयाभाभी की तरफ था.

‘‘मेरे बेटे, मैं समझ गया हूं कि नुकसानदायक चीज कम मात्रा में भी नुकसान पहुंचाती है. हम कम मात्रा को छोड़ दें तो कोई भी सीमा तोड़ कर ज्यादा मात्रा का शिकार कैसे बनेगा? तुम जल्दी से स्वस्थ हो कर आओ… मेरा वादा है कि तुम्हें अपने घर में… हम दोनों के हाथों में कभी शराब नजर नहीं आएगी,’’ अपने बीमार नजर आते युवा बेटे को गले लगाते हुए सुरेंद्र अंकल और सीमा आंटी दोनों आंसू बहा रहे थे.

‘‘हमारे होते हुए तू यहां की फिक्र न करना, यार. हम अंकल के साथ तेरे बिजनैस की देखभाल करेंगे. बस, तू जल्दी से हंसतामुसकराता लौट आ यारों के बीच,’’ अपने दोस्तों की हौसला बढ़ाने वाली बातें सुन कर सुमित पहली बार हौले से मुसकरा पड़ा था.

टैक्सी वाले ने हौर्न बजा कर सब का ध्यान आकर्षित न किया होता, तो ये विदाई की घडि़यां बड़ी लंबी खिंचतीं. जल्दी से सामान रखवाने के बाद हम दोनों टैक्सी में बैठ गए.

शुभकामनाओं के साथ सब ने हाथ हिला कर हमें विदा किया. इस वक्त वहां ऐसा कोई नहीं था जिस की पलकें नम न हों.

कुछ देर खामोश रहने के बाद सुमित ने भरे गले से कहा, ‘‘मैं इन सब लोगों को अब और दुखी नहीं करूंगा… इन्हें निराश नहीं करूंगा. अपने को बदल डालूंगा मैं, अनु.’’

‘‘गुड,’’ मैं मुसकराई, ‘‘तुम्हारा जोश बढ़ाने के लिए एक और चीज है मेरे पास. यह लो,’’ और मैं ने एक कार्ड उसे पकड़ाया, जो नेहा मुझे 2 घंटे पहले आ कर दे गई थी.

‘जल्दी स्वस्थ होने के लिए मेरी ढेर सारी शुभकामनाएं. मैं तुम्हारा इंतजार कर रही हूं… जल्दी लौटना,’ कार्ड में नेहा द्वारा लिखे गए इन शब्दों को पढ़ सुमित का चेहरा खिल उठा.

मैं ने सुमित का हाथ प्यार से पकड़ा और मुसकराती हुई बोली, ‘‘जिंदगी की चुनौतियों का सामना करने के लिए हमें किसी भी तरह के नशे की जरूरत नहीं होती है, सुमित. जीवन को कर्म के स्तर पर गहराई से जीने का अपना मजा है… अपना नशा है, मेरे दोस्त.’’

‘‘मुझे उस असली नशे के काबिल तुम ही बनाना. सोलन में बंदा तुम्हारा ही हुक्म बजाएगा, मैडम अनु.’’ उस के इस जवाब पर हम दोनों का सम्मिलित ठहाका टैक्सी में गूंजा और सुमित के भावी बदलाव को ले कर मेरा मन आशा और विश्वास से भर उठा.

संकट की घड़ी: क्यों डर गया था नीरज

उस ने घड़ी देखी. 7 बजने को थे. मतलब, वह पूरे 12 घंटों से यहां लगा हुआ था. परिस्थिति ही कुछ ऐसी बन गई थी कि उसे कुछ सोचनेसमझने का अवसर ही नहीं मिला था.

जब से वह यहां इस अस्पताल में है, मरीज और उस के परिजनों से घिरा शोरगुल सुनता रहा है. किसी को बेड नहीं मिल रहा, तो किसी को दवा नहीं मिल रही. औक्सीजन का अलग अकाल है. बात तो सही है. जिस के परिजन यहां हैं या जिस मरीज को जो तकलीफ होगी, यहां नहीं बोलेगा, तो कहां बोलेगा. मगर वह भी किस को देखे, किस को न देखे. यहां किसी को अनदेखा भी तो नहीं किया जा सकता. बस किसी तरह अपनी झल्लाहट को दबा सभी को आश्वासन देना होता है. किसी को यह समझने की फुरसत नहीं कि यहां पीपीई किट पहने किस नरक से गुजरना होता है. इसे पहने पंखे के नीचे खड़े रहो, तो पता ही नहीं चलता कि पंखा चल भी रहा है या नहीं. और यहां सभी को अपनीअपनी ही पड़ी है.

ठीक है कि सरकारी अस्पताल है और यहां मुसीबत में हारीबीमारी के वक्त ही लोग आते हैं. मगर इस कोरोना के चक्कर में तो जैसे मरीजों की बाढ़ आई है. और यहां न फिजिकल इंफ्रास्ट्रक्चर है और न ह्यूमन रिसोर्सेज हैं. सप्लाई चेन औफ मेडिसिन का कहना ही क्या! किसी को कहो कि मरीज के लिए दवा बाहर से खरीदनी होगी या औक्सीजन का इंतजाम करना होगा, तो वह पहली नजर में ऐसे देखता है, मानो उसी ने अस्पताल से दवाएं या औक्सीजन गायब करवा दिया हो या वही उस की ब्लैक मार्केटिंग करवा रहा हो.

ऐसी खबरें अखबारों और सोशल मीडिया में तैर भी रही हैं. मगर फिर भी ऐसे में एक डाक्टर करे तो क्या. उस का काम मरीजों का इलाज करना है, न कि ब्लैक मार्केटियरों को पकड़ना या सुव्यवस्था कायम करना है. आखिर किस समाज में अच्छेबुरे लोग नहीं होते. फिर भी दवाएंऔक्सीजन आदि की व्यवस्था करा भी दें, तो ऐसे देखेंगे, मानो उसी पर अहसान कर रहा हो.

सैकंड शिफ्ट में आई नर्स मीना के साथ वह वार्ड का एक चक्कर लगा वापस लौटा. थोड़ी देर बाद उस ने उस से पूछा, “डाक्टर भानु आए कि नहीं?” “सर, उन्होंने फोन किया था कि थोड़ी देर में बस पहुंचने ही वाले हैं.”

“देखो, मैं अभी निकल रहा हूं. 10 घंटे से यहां लगा हुआ हूं. अगर और रुका, तो मैं कहीं बेहोश ना हो जाऊं, ऐसा मुझे लग रहा है.”

“ठीक है सर, मैं आप की हालत देख रही हूं. आप घर जाइए.” उस ने सावधानी से पहले पीपीई किट्स को और उस के बाद अपने गाउन और दस्ताने को खोला. इन्हें खोलते हुए उसे ऐसा लगा जैसे वह किसी दूसरी दुनिया से बाहर निकला हो. इस के बाद उस ने स्वयं को सैनिटाइज करना शुरू किया. वहां से बाहर निकल कर अपनी कार के पास आया. वहां थोड़ी भीड़ कम थी. फिर भी उस ने मास्क हटा जोर से सांस खींच फेफड़ों में हवा भरी.

विगत समय के डाक्टर यही तो गलती करते थे कि अपने कमरे में जा कर गाउन, दस्ताने के साथ मास्क को भी हटा लेते थे. जबकि वहां के वातावरण में वायरस तो होता ही था, जो उन्हें अपनी चपेट में ले लेता था.

कार को सावधानी के साथ चलाते हुए वह मुख्य मार्ग पर आया. हालांकि शाम 7 बजे से लौकडाउन है. फिर भी कुछ दुकानें खुली हैं और लोग चहलकदमी करते नजर आ रहे हैं. ‘कब समझेंगे ये लोग कि वे किस खतरनाक दौर से गुजर रहे हैं ’ वह बुदबुदाया, ‘भयावह हो रहे हालात, प्रशासन की चेतावनी और सख्ती के बावजूद परिस्थितियों को समझ नहीं रहे हैं ये लोग.’

अपने घर के पास पहुंच कर उस ने चैन की सांस ली. उस ने हार्न बजा कर ही अपने आने की सूचना दी.  घर का दरवाजा खुला था और ढाई वर्ष का बेटा नीरज बरामदे में ही खेल रहा था. “पापा आ गए मम्मी,” कहते हुए वह दौड़ कर गेट तक आ गया था. मीरा घर से बाहर निकली और गेट को पूरी तरह से खोल दिया था. उस ने सावधानी से कार को घर के सामने पार्क किया. तब तक नीरज कार के चारों ओर चक्कर लगाता रहा. उस के कार के उतरते ही वह उस से चिपट पड़ा, तो उस ने उसे जोर से ढकेला और चिल्लाने लगा, “मीरा, तुम्हें अक्ल नहीं है, जो बच्चे को इस तरह खुले में छोड़ दिया.

“मैं अस्पताल से आ रहा हूं और यह मुझ से चिपक रहा है. दिनभर घर में टैलीविजन पर सीरियल देखती रहती हो. तुम्हें क्या पता कि वहां क्या चल रहा है. हमेशा जान जोखिम में डाल कर काम करना होता है वहां. संभालो नीरज को. और बाथरूम में गीजर औन किया है कि नहीं. कि मुझे ही वहां जा कर उसे औन करना होगा.”

“कहां का गुस्सा कहां उतारते हो,” धक्का खा कर गिरे बेटे को उठाते हुए मीरा बोली, “यह बच्चा क्या समझेगा कि बाहर क्या चल रहा है. प्ले स्कूल भी बंद है. घर में बंदबंद बच्चा आखिर करे क्या?” बाथरूम में जा कर उस ने अपने सारे कपड़े उतार कर एक टब में छोड़ दिए. फिर इस गरमी में भी पानी के गरम फव्वारे से साबुन लगा स्नान करने लगा.

नहाधो कर जब वह बाहर आया, तो उसे कुछ चैन मिला. एक कोने में उस की नजर पड़ी तो देखा कि नीरज अभी तक सुबक रहा था. वह उस की उपेक्षा कर अपने कमरे में चला तो गया, मगर उसे ग्लानि सी महसूस हो रही थी. बच्चे को उसे इस तरह ढकेलना नहीं चाहिए था.

मगर, क्या उस ने गलत किया. अस्पताल के परिसर में दिनभर कार खड़ी थी. वह खुद कोरोना पेशेंटों से जूझ कर आया था. कितनी भी सावधानी रख लो, इस वायरस का क्या ठिकाना कि कहां छुप कर चिपका बैठा हो. वह तो उस ने उसी के भले के लिए उसे किनारे किया था. नहींनहीं, किनारे नहीं किया था, बल्कि उसे ढकेल दिया था.

जो भी हो, उस ने उस के भले के लिए ही तो ऐसा किया था. अस्पताल से आने के बाद उस का दिमाग कहां सही रहता है. कोई बात नहीं, वह उसे मना लेगा. बच्चा है, मान जाएगा.  इसी प्रकार के तर्कवितर्क उस के दिमाग में चलते रहे .वह ड्राइंगरूम में आया. मीरा उस के लिए ड्राइंगरूम में चायनाश्ता रख गई.

12 साला बेटी मीनू उसे आ कर बस देख कर चली गई. और वह वहां अकेला ही बैठा रहा. फिर वह उठा और नीरज को गोद में उठा लाया.  पहले तो वह रोयामचला और उस की गिरफ्त से भाग छूटने की कोशिश करने लगा. अंततः वह उस की बांहों में मुंह छुपा कर रोने लगा. मीरा उसे चुपचाप देखती रही. उस का मुंह सूजा हुआ था. रोज की तो यही हालत है. वह क्या करे, कहां जाए. उस की इसी तुनकमिजाजी की वजह से उस ने अपनी स्कूल की लगीलगाई नौकरी छोड़ दी थी. और इन्हें लगता है कि मैं घर में बैठी मटरगश्ती करती हूं.

उस ने मीरा को आवाज दी, तो वह आ कर दूसरे कोने में बैठ गई.“तुम मुझे समझने की कोशिश करो,” उसी ने चुप्पी तोड़ी, “बाहर का वातावरण इतना जहरीला है, तो अस्पताल का कैसा होगा, इस पर विचार करो. वहां से कब बुलावा आ जाए, कौन जानता है.” “दूसरे लोग भी नौकरी करते हैं, बिजनेस करते हैं,” मीरा बोली, “मगर, वे अपने बच्चों को नहीं मारते… और न ही घर में उलटीसीधी बातें करते हैं.”

“अब मुझे माफ भी कर दो बाबा,” वह बोला, “अभी अस्पताल की क्या स्थिति है, तुम क्या जानो. रोज लोगों को अपने सामने दवा या औक्सीजन की कमी में मरते देखता हूं. मैं भी इनसान हूं. उन रोतेबिलखते, छटपटाते परिजनों को देख मेरी क्या हालत होती है, इसे समझने का प्रयास करो. और ऐसे में जब तुम लोगों का ध्यान आता है, तो घबरा जाता हूं.”

“मैं ने कब कहा कि आप परेशान नहीं हैं. तभी तो इस घर को संभाले यहां पड़ी रहती हूं. फिर भी आप को खुद पर नियंत्रण रखना चाहिए. ऐसा क्या कि नन्हे बच्चे पर गुस्सा उतारने लगे.” मीरा वहां से उठी और एक बड़ा सा चौकलेट ला कर उसे छिपा कर देती हुई बोली, “ये लीजिए और नीरज को यह कहते हुए दीजिए कि आप खास उस के लिए ही लाए हैं. बच्चा है, खुश हो जाएगा.”

मीरा की तरकीब काम कर गई थी. उस के हाथ से चौकलेट ले कर नीरज बहल गया था. पहले उस ने चौकलेट के टुकड़े किए. एकएक टुकड़ा पापामम्मी के मुंह में डाला. फिर एक टुकड़ा बहन को देने चला गया.  फिर पापा के पास आ कर उस की बालसुलभ बातें शुरू हो गईं. वह उसे ‘हांहूं’ में जवाब देता रहा. उस ने घड़ी देखी, 9 बज रहे थे. और उस पर थकान और नींद हावी हो रही थी. अचानक नीरज ने उसे हिलाया और कहने लगा, “अरे, आप तो सो रहे हैं. मम्मीमम्मी, पापा सो रहे हैं.”

मीरा किचन से निकल कर उस के पास आई और बोली, “आप बुरी तरह थके हैं शायद. इसीलिए आप को नींद आ रही है. मैं खाना निकालती हूं. आप खाना खा कर सो जाइए.” डाइनिंग टेबल तक वह किसी प्रकार गया. मीरा ने खाना निकाल दिया था. किसी प्रकार उस ने खाना खत्म किया और वापस कमरे में आ कर अपने बेड पर पड़ रहा. नीरज उस के पीछेपीछे आ गया था. उसे मीरा यह कहते हुए अपने साथ ले गई कि पापा काफी थके हैं. उन्हें सोने दो.

सचमुच थकान तो थी ही, मगर अब चारों तरफ शांति है, तो उसे नींद क्यों नहीं आ रही. वह उसी अस्पताल में क्यों घूम रहा है, जहां हाहाकार मचा है. कोई दवा मांग रहा है, तो किसी को औक्सीजन की कमी हो रही है. बाहर किसी जरूरतमंद मरीज के लिए उस के परिवार वाले एक अदद बेड के लिए गुहार लगा रहे हैं, घिघिया रहे हैं. और वह किंकर्तव्यविमूढ़ हो विवश सा खड़ा है.

दृश्य बदलता है, तो बाहर कोई सरकार को, तो कोई व्यवस्था को कोस रहा है. कैसेकैसे बोल हैं इन के, ‘ये लालची डाक्टर, इन का कभी भला नहीं होगा… इस अस्पताल के बेड के लिए भी पैसा मांगते हैं… सारी दवाएं बाजार में बेच कर कहते हैं कि बाजार से खरीद लाओ… और औक्सीजन सिलिंडर के लिए भी बाजार में दौड़ो… क्या करेंगे, इतना पैसा कमा कर? मरने के बाद ऊपर ले जाएंगे क्या? इन के बच्चे कैसे अच्छे होंगे, जब ये कुकर्म कर रहे हैं?’

“नीरज… नीरज, मीनू कहां हो… कहां हो तुम,” वह चिल्लाया, तो मीरा भागीभागी आई, “क्या हुआ जी…? क्यों घबराए हुए हो…? कोई बुरा सपना देखा क्या…?”वह बुरी तरह पसीने से भीगा थरथर कांप रहा था. मीनू और नीरज भयभीत नजरों से उसे देख रहे थे. वह नीरज को गोद में भींच कर रोने लगा था. बेटी मीनू का हाथ उस के हाथ में था. मीरा उसे सांत्वना दे रही थी, “चिंता मत कीजिए. यह संकट की घड़ी भी टल जाएगी. सब ठीक हो जाएगा.”

प्यार की तलाश में: क्या सोहनलाल को मिला सच्चा प्यार

सोहनलाल बचपन से ही सच्चे प्यार की खोज में यहांवहां भटक रहे हैं. वैसे तो वे 60 साल के हैं, पर उन का मानना है कि दिल एक बार जवान हुआ तो जिंदगीभर जवान ही रहता है. रही बात शरीर की तो उस महान इनसान की जय हो जिस ने मर्दाना ताकत बढ़ाने वाली दवाओं की खोज की और जो उन्हें ‘साठा सो पाठा’ का अहसास करा रही हैं.

उन्होंने कसरत कर के अपने बदन को भी अच्छाखासा हट्टाकट्टा बना रखा है और नएनए फैशन कर के वे हीरो टाइप दिखने की भी लगातार कोशिश करते रहते हैं.

सोहनलाल का रंग भले ही सांवला हो, पर खोपड़ी के बाल उम्र से इंसाफ करते हुए विदाई ले चुके हैं, पान खाखा कर दांत होली के लाल रंग में रंगी गोपी से हो चुके हैं, पर ठीकठाक आंखें, नाक और कसरती बदन… कुलमिला कर वे हैंडसम होने के काफी आसपास हैं. उन के पास रुपएपैसों की कमी नहीं है इसलिए उन की घुमानेफिराने से ले कर महंगे गिफ्ट देने तक की हैसियत हमेशा से रही है. लिहाजा, न तो कल लड़कियां मिलने में कमी थी और न ही आज है.

ऐसी बात नहीं है कि सोहनलाल को प्यार मिला नहीं. प्यार मिलने में तो न बचपन में कमी रही, न जवानी में और न ही अब है, क्योंकि प्यार के मामले में हमारे ये आशिक मैगी को भी पीछे छोड़ दें. मैगी फिर भी

2 मिनट लेगी पकने में, पर इन्हें सैकंड भी नहीं लगता लड़की पटाने में. इधर लड़की से आंखें चार, उधर दिल ‘गतिमान ऐक्सप्रैस’ हुआ.

कुलमिला कर लड़की को देखते ही प्यार हो जाता है और लड़की को भी उन से प्यार हो, इस के लिए वे भी प्रेमपत्र

से ले कर फेसबुक और ह्वाट्सऐप जैसी हाईटैक तकनीक तक का इस्तेमाल कर डालते हैं.

सोहनलाल अनेक बार कूटे भी गए हैं, पर ‘हिम्मत ए मर्दा, मदद ए खुदा’ कहावत पर भरोसा रखते हुए उन्होंने हिम्मत नहीं हारी.

प्यार के मामले में सोहनलाल ने राष्ट्रीय एकता को दिखाते हुए ऊंचनीच, जातिभेद, रंगभेद जैसी दीवारों को तोड़ते हुए अपनी गर्लफ्रैंड की लिस्ट लंबी

कर डाली, जिस में सब हैं जैसे धोबन की बेटी, मेहतर की भांजी, पंडितजी की बहन, कालेज के प्रोफैसर की बेटी, स्कूल मास्टर की भतीजी वगैरह.

सोहनलाल की पहली सैटिंग मतलब पहले प्यार का किस्सा भी मजेदार है. उन के महल्ले की सफाई वाली की भांजी छुट्टियों में ननिहाल आई हुई

थी और अपनी मामी के साथ शाम को खाना मांगने आती थी (उन दिनों मेहतर शाम को घरघर बचा हुआ खाना लेने आते थे).

उन्हीं दिनों ये महाशय भी एकदम ताजेताजे जवान हो रहे थे. लड़कियों को देख कर उन के तन और मन दोनों में खनखनाहट होने लगी थी. हर लड़की हूर नजर आती थी. सो, जो पहली लड़की आसानी से मिली, उसी पर लाइन मारना शुरू हो गए.

दोनों के नैना चार हुए और इशारोंइशारों में प्यार का इजहार भी

हो गया.

लड़की भी इन के नक्शेकदम पर चल रही थी यानी नईनई जवान हो रही थी इसलिए अहसास एकदम सेम टू सेम थे.

कनैक्शन एकदम सही लगा. दोनों के बदन में करंट बराबर दौड़ रहा था. सो, आसानी से पट गई. बाकी काम

मां की लालीलिपस्टिक ने कर दिया

जो इन्होंने चुरा कर लड़की को गिफ्ट में दी थी.

एक दिन मौका देख कर सोहनलाल उस लड़की को ले कर घर के पिछवाड़े की कोठरी में खिसक लिए, यह सोच कर कि किसी ने नहीं देखा.

अभी प्यार का इजहार शुरू ही हुआ था कि लड़की की मामी आ धमकीं और झाड़ू मारमार कर इन की गत बिगाड़ डाली और धमकी भी दे डाली, ‘‘आगे से मेरी छोरी के पीछे आया तो झाड़ू से तेरा मोर बना दूंगी और तेरे मांबाप को भी बता कर तेरी ठुकाई करा डालूंगी.’’

बेचारे आशिकजी का यह प्यार तो हाथ से गया, पर जान में जान आई कि घर वालों को पता नहीं चला.

इस के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. वे पूरी हिम्मत से नईनई लड़कियों पर हाथ आजमाने लगे. कभी पत्थर में प्रेमपत्र बांध कर फेंके तो कभी आंखें झपका कर मामला जमा लिया और सच्चे प्यार की तलाश ही जिंदगी का एकमात्र मकसद बना डाला.

वैसे भी बाप के पास रुपएपैसों की कमी नहीं थी और जमाजमाया कारोबार था. सो, लाइफ सैट थी.

यह बात और है कि लड़की के साथ थोड़े दिन घूमफिर कर सोहनलाल को अहसास हो जाता था कि यह सच्चा प्यार नहीं है और फिर वे दोबारा जोरशोर से तलाश में जुट जाते.

सोहनलाल की याददाश्त तो इतनी मजबूत है कि शंखपुष्पी के ब्रांड एंबेसडर बनाए जा सकते हैं. मिसाल के तौर पर उन की गर्लफ्रैंड की लिस्ट पढ़ कर किसी भी भले आदमी को चक्कर आ जाएं, पर मजाल है सोहनलाल एक भी गर्लफ्रैंड का नाम और शक्लसूरत भूले हों.

कृपया सोहनलाल को चरित्रहीन टाइप बिलकुल न समझें. उन का मानना है कि हम कपड़े खरीदते वक्त कई जोड़ी कपड़े ट्राई करते हैं तब जा कर अपनी पसंद का मिलता है. तो बिना ट्राई करे सच्चा प्यार कैसे मिलेगा?

एक बार तो लगा भी कि इस बार तो सच्चा प्यार मिल ही गया. सो, उन्होंने चटपट शादी कर डाली.

सोहनलाल बीवी को ले कर घर पहुंचे तो मां और बहनों ने खूब कोसा. बाप ने तो पीट भी डाला… दूसरी जाति की लड़की को बहू बनाने की वजह से. पर उन पर कौन सा असर होने वाला था, क्योंकि इतनी बार लड़कियों के बापभाई जो उन्हें कूट चुके थे, इसलिए उन का शरीर यह सब झेलने के लिए एकदम फिट हो चुका था.

सब सोच रहे थे कि प्यार का भूत सिर पर सवार था इसलिए शादी की, पर बेचारे सोहनलाल किस मुंह से बताते कि इस बार वे सच्ची में फंस चुके थे. यह रिश्ता प्यार का नहीं, बल्कि मजबूरी

का था.

दरअसल, कहानी में ट्विस्ट यह था कि वह लड़की यानी वर्तमान पत्नी सोहनलाल के एक खास दोस्त की बहन थी और दोस्त से मिलने अकसर उस के घर जाना होता था, इसलिए इन का नैनमटक्का भी दोस्त की बहन से शुरू

हो गया.

दोस्त चूंकि उन पर बहुत भरोसा करता था और उस कहावत में विश्वास रखता था कि ‘चुड़ैल भी सात घर छोड़ कर शिकार बनाती है’ तो बेफिक्र था.

लेकिन सोहनलाल तो आदत से मजबूर थे और ऐसे टू मिनट मैगी टाइप आशिक का किसी चुड़ैल से मुकाबला हो भी नहीं सकता, इसलिए उन्होंने लड़की पूरी तरह पटा भी ली और पा भी ली जिस के नतीजे में सोहनलाल ने कुंआरे बाप का दर्जा हासिल करने का पक्का इंतजाम कर लिया था.

पर चूंकि मामला दोस्त के घर की इज्जत का था और दोस्त पहलवान था इसलिए छुटकारा पाने के बजाय पत्नी बनाने का रास्ता सेफ लगा. इस में दोस्त की इज्जत और अपनी बत्तीसी दोनों

बच गए.

प्यार का भूत तो पहले ही उतर चुका था सोहनलाल का, अब जो मुसीबत गले पड़ी थी, उस से छुटकारा भी नहीं पा सकते थे… इसलिए मारपीट और झगड़ों का ऐसा दौर शुरू हुआ जो आज तक नहीं थमा और न ही थमी है सच्चे प्यार की तलाश.

इन लड़ाईझगड़ों के बीच जो रूठनेमनाने के दौर चलते थे, उन्होंने सोहनलाल को 4 बच्चों का बाप भी बना डाला. उन की बीवी ने भी वही नुसखा आजमाया जो अकसर भारतीय बीवियां आजमाती हैं यानी बच्चों के पलने तक चुपचाप भारतीय नारी बन कर जितना हो सके सहन करो और बच्चों के लायक बनते ही उन के नालायक बाप को ठिकाने लगा डालो.

सोहनलाल की हालत घर में पड़ी टेबलकुरसी से भी बदतर हो गई.

बीवी ने घर में दानापानी देना बंद कर दिया था. अब बेचारे ने पेट की आग शांत करने के लिए ढाबों की शरण ले ली और बाकी की भूख मिटाने के लिए फेसबुक व दूसरे जरीयों से सहेलियों की तलाश में जुट गए, जिस में काफी हद तक वे कामयाब भी रहे.

वैसे भी 60 पार करतेकरते बीवी के मर्डर और सच्चे प्यार की तलाश 2 ही सपने तो हैं जो वे खुली आंखों से भी देख सकते थे.

सोहनलाल में एक सब से बड़ी खासीयत यह है, जिस से लोग उन्हें इज्जत की नजर से देखते हैं. उन्होंने हमेशा अपनी हमउम्र लड़की या औरत के अलावा किसी को भी आंख उठा कर नहीं देखा. छिछोरों या आशिकमिजाज बूढ़ों की तरह हर किसी को देख कर लार नहीं टपकाते, न ही छेड़खानी में यकीन रखते हैं.

बस, जो औरत उन के दिल में उतर जाए, उसे पाने के सारे हथकंडे आजमा डालते हैं. वह ऐसा हर खटकरम कर डालते हैं जिस से उस औरत के दिल में उतर जाएं.

प्यार की कला में तो वे इतने माहिर?हैं कि कोई भी तितली माफ कीजिए औरत एक बार उन के साथ कुछ वक्त बिता ले तो उन के प्यार के जाल में खुदबखुद फंसी चली आएगी और तब तक नहीं जाएगी जब तक सोहनलाल खुद आजाद न कर दें.

वैसे भी महोदय को इस खेल को खेलते हुए 40 साल से ऊपर हो चुके हैं इसलिए वे इस कला के माहिर खिलाड़ी बन चुके हैं. साइकिल के डंडे से ले

कर कार की अगली सीट तक अनेक लड़कियों और लड़कियों की मांओं को वे घुमा चुके हैं.

आज सोहनलाल जिस तरह की औरत के साथ अपनी जिंदगी बिताना चाहते हैं, उसे छोड़ कर हर तरह की औरत उन्हें मिल रही है.

सब से बड़ी बात तो यह है कि वे अपनी वर्तमान पत्नी को छोड़े बिना ही किसी का ईमानदार साथ चाहते हैं.

एक बार धोखा खा चुके हैं इसलिए इस बार अपनी ही जाति की सुंदर, सुशील, भारतीय नारी टाइप का वे साथ पाना चाहते हैं.

अब कोई उन से पूछे कि कोई सुंदर, सुशील और भारतीय नारी की सोच रखने वाली औरत इस उम्र में नातीपोते खिलाने में बिजी होगी या प्रेम के चक्कर में पड़ेगी? लेकिन सोहनलाल पर कोई असर होने वाला नहीं. वे बेहद आशावादी टाइप इनसान हैं और खुद को कामदेव का अवतार मानते हुए अपने तरकश के प्रेम तीर को छोड़ते रहते हैं, इस उम्मीद के साथ कि किसी दिन तो उन का निशाना सही बैठेगा ही और उस दिन वे अपने सच्चे प्यार के हाथों में हाथ डाल कर कहीं ऐसी जगह अपना आशियाना बनाएंगे जहां यह जालिम दुनिया उन्हें तंग न कर पाए.

हमारी तो यही प्रार्थना है कि हमारे सोहनलालजी को उन की खोज में जल्दी ही कामयाबी मिले.

गहरी नजर: मोहन को आशु ने कैसे समझाया

इंसपेक्टर मोहन देशपांडे अदालत से बाहर निकल रहे थे तो उन के साथ चल रही आशु हाथ हिलाहिला कर कह रही थी, ‘‘मैं बिलकुल नहीं मान सकती. भले ही अदालत ने उसे बेगुनाह मान कर बाइज्जत बरी कर दिया है, लेकिन मेरी नजरों में जनार्दन हत्यारा है. वही पत्नी का कातिल है. यह दुर्घटना नहीं, बल्कि जानबूझ कर किया गया कत्ल था और इसे अचानक हुई दुर्घटना का रूप दे दिया गया था.’’

‘‘लेकिन शक की कोई वजह तो होनी चाहिए,’’ मोहन देशपांडे ने आगे बढ़ते हुए कहा, ‘‘हम ख्वाहमख्वाह किसी पर आरोप तो नहीं लगा सकते. अदालत ठोस सबूत मांगती है, सिर्फ हवा में तीर चलाने से काम नहीं चलता.’’

‘‘जनार्दन ने अपनी पत्नी का कत्ल किया है. यह सच है.’’ आशु ने चलते हुए मुंह फेर कर कहा, ‘‘इस में शक की जरा भी गुंजाइश नहीं है.’’

‘‘अच्छा, अब इस बात को छोड़ो और कोई दूसरी बात करो.’’ मोहन ने कहा, ‘‘कई अदालत उसे रिहा कर चुकी है.’’

‘‘मेरी बात मानो,’’ आशु ने कहा, ‘‘जनार्दन को भागने मत दो. वह वाकई मुजरिम है. अगर वह हाथ से निकल गया तो तुम सारी जिंदगी पछताते रहोगे.’’

‘‘आखिर तुम मेरा मूड क्यों खराब कर रही हो?’’ इंसपेक्टर मोहन ने नाराज होते हुए कहा, ‘‘मैं ने सोचा था कि अदालत से फुरसत पाते ही हम कहीं घूमनेफिरने चलेंगे, जबकि तुम फिर जनार्दन आगरकर का किस्सा ले बैठीं. मुझे लगता है, इस घटना ने तुम्हारे दिलोदिमाग पर गहरा असर डाला है?’’

‘‘हां, शायद तुम ठीक कह रहे हो,’’  आशु ने कहा.

उस समय उस की नजरें एक ऐसे आदमी पर जमी थीं, जो लिफ्ट से बाहर निकल रहा था. वही जनार्दन आगरकर था. मोहन देशपांडे भी उसे ही देख रहा था. आशु तेजी से उस की ओर बढ़ते हुए बोली, ‘‘मोहन, तुम यहीं रुको, मैं अभी आई.’’

मोहन ने उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन वह रुकी नहीं. जनार्दन आगरकर मध्यम कद का दुबलापतला आदमी था. लेकिन चेहरेमोहरे से वह अपराधी लग रहा था. उस का एयरकंडीशनर के स्पेयर पार्ट्स सप्लाई का काम था. 15 दिनों पहले उस की पत्नी पहाड़ की चोटी से गहरे खड्ड में गिर कर मर गई थी. उस समय वह उस की तसवीर खींच रहा था. उस की पत्नी सुस्त और काहिल औरत थी, सोने की दवा लेने की वजह से हमेशा नींद में रहती थी.

जनार्दन पहाड़ की उस चोटी पर उसे घुमाने ले गया था, ताकि उस की तबीयत में कुछ सुधर हो सके और वह नींद की स्थिति से मुक्त हो सके. उस पहाड़ के पीछे बर्फ से ढकी चोटियां दिख रही थीं. जनार्दन ने पत्नी से फोटो खींचने के लिए कहा. वह फोटो खींच रहा था, तभी न जाने कैसे उस की पत्नी का पैर फिसल गया और वह 50 फुट नीचे गहरी खाई में जा गिरी.

जनार्दन आगरकर के लिफ्ट से बाहर आते ही आशु ने उसे घेर लिया. दोनों में बातें होने लगीं. आशु उस से जोश में हाथ हिलाहिला कर बातें कर रही थी. जबकि जनार्दन शांति से बातें कर रहा था. वह आशु के हर सवाल का जवाब मुसकराते हुए दे रहा था.

इस बीच इंसपेक्टर मोहन देशपांडे का मन कर रहा था कि वह उस आदमी का मुंह तोड़ दे. क्योंकि उसे भी पता था इसी ने पत्नी का कत्ल किया था. लेकिन कोई सबूत न होने की वजह से वह बाइज्जत बरी हो गया था. जनार्दन चला गया तो आशु इंसपेक्टर मोहन के पास आ गई. इसंपेक्टर मोहन ने पूछा, ‘‘क्या बात है, तुम जनार्दन के पास क्यों गई थीं?’’

आशु ने जवाब देने के बजाए होंठों पर अंगुली रख कर चुप रहने का इशारा किया. इस के बाद फुसफुसाते हुए बोली, ‘‘हमें जनार्दन का पीछा करना होगा. ध्यान रखना, वह निकल न जाए. समय बहुत कम है, इसलिए जल्दी करो. मैं रास्ते में तुम्हें सब बता दूंगी.’’

आशु सिर घुमा कर इधरउधर देख रही थी. अचानक उस ने कहा, ‘‘वह रहा, वह उस लाल कार से जा रहा है, जल्दी करो.’’

उन की गाड़ी लाल कार का पीछा करने लगी. जनार्दन की कार पर नजरें गड़ाए हुए मोहन ने पूछा, ‘‘आखिर इस की क्या जरूरत पड़ गई तुम्हें?’’

‘‘देखो मोहन, जनार्दन समझ रहा है कि अदालत ने उसे रिहा कर दिया है. इस का मतलब मामला खत्म. जबकि मेरे हिसाब से उस का मामला अभी खत्म नहीं हुआ है. अब हमें उस से असली बात मालूम करनी है.’’ आशु ने कहा.

‘‘तुम ने जनार्दन आगरकर से क्या बातें की थीं?’’

‘‘मैं ने कहा था कि मैं उस की अदाकारी की कायल हूं. अदालत के कटघरे में उस ने जिस मासूमियत का प्रदर्शन किया, वह वाकई तारीफ के काबिल था. मैं ने उस के आत्मविश्वास की तारीफ की तो उस ने मुझे रायल क्लब चलने को कहा.’’

‘‘तो क्या तुम उस के साथ वहां जाओगी? यह अच्छी बात नहीं है.’’ मोहन ने कहा.

‘‘मैं क्लब में उसे खूब शराब पिला कर उस से सच उगलवाना चाहती हूं.’’ आशु ने इत्मीनान के साथ कहा.

‘‘लेकिन मैं तुम्हें इस तरह का फालतू काम करने की इजाजत नहीं दूंगा.’’ मोहन ने नाराज हो कर कहा.

‘‘अच्छा, इस बात को छोड़ो और ड्राइविंग पर ध्यान दो. जनार्दन आगरकर की कार दाईं ओर घूम रही है. उसे नजर से ओझल मत होने देना, वरना जिंदगी भर पछताओगे.’’

‘‘आखिर तुम्हारे दिमाग में चल क्या रहा है? जनार्दन आगरकर की रिहाई के बाद भी तुम उस का पीछा क्यों कर रही हो?’’ मोहन ने जनार्दन की कार पर नजरें जमाए हुए पूछा.

‘‘देखो मोहन,’’ आशु ने गंभीरता से कहा, ‘‘अदालत में जनार्दन ने खुद को इस तरह दिखाया था, जैसे वह बहुत दुखी है, लेकिन उस की आंखें भेडि़ए जैसी चमक रही थीं. उस के अंदाज में काफी सुकून लग रह था, जैसे वह पत्नी को खत्म कर के बहुत खुश हो. उस के भावनाओं का अंदाजा एक औरत ही लगा सकती है और मैं ने उस के दोगलेपन को अच्छी तह महसूस किया है.

‘‘अपनी तसल्ली के लिए ही मैं उस से बात करने गई थी. उस की बातों से मैं ने अंदाजा लगा लिया कि यह आदमी बहुत ही चालाक और दगाबाज है. उस ने पत्नी को धक्का दे कर मारा है.’’

‘‘अच्छा तो तुम ने इस हद तक महसूस कर लिया?’’ मोहन ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तुम्हें तो सीबीआई में होना चाहिए था.’’

जनार्दन की कार दाईं ओर घूमी तो आशु ने कहा, ‘‘अब यह कहां जा रहा है?’’

‘‘अपने घर… आगे इसी इलाके में वह रहता है.’’ मोहन ने कहा.

जर्नादन ने अदालत में माना था कि उस के अपनी पत्नी से अच्छे संबंध नहीं थे. दोनों में अकसर कहासुनी होती रहती थी. यह बात जनार्दन के पड़ोसियों ने भी बताई थी. आशु ने कहा, ‘‘जनार्दन ने अदालत में कहा था कि वह अपनी पत्नी को घुमाने के लिए पहाड़ों की उस चोटी पर ले गया था. कैमरा भी साथ ले गया था, इसलिए वहां एक सुंदर चट््टान पर उस ने पत्नी को खड़ा कर दिया, ताकि उस की यादगार तसवीर खींच सके.

‘‘इधर उस ने तसवीर खींची और उधर उस की पत्नी का पैर चट्टान से फिसल गया. जनार्दन ने उस समय की खींची हुई तसवीर भी अदालत में पेश की थी. सवाल यह है कि उस ने वह तसवीर सबूत के लिए अदालत में क्यों पेश की, उस की क्या जरूरत थी?’’

‘‘हां, यह बात तो वाकई गौर करने वाली थी,’’ मोहन ने कहा, ‘‘इस का मतलब यह है कि इस के पीछे कोई चक्कर था.’’

‘‘काश! वह तसवीर मैं देख पाती,’’ आशु ने कहा, ‘‘उस तसवीर से कोई न कोई सुराग जरूर मिल सकता है.’’

‘‘तसवीर देखनी है? वह तो मेरे पास है.’’ कह कर मोहन ने अपनी जेब से पर्स निकाला और उस में से एक तसवीर निकाल कर आशु की तरफ बढ़ा दी.

आशु ने तसवीर ले कर उसे गौर से देखते हुए कहा, ‘‘चलो, इस से एक बात तो साबित हो गई कि तुम इस फैसले से संतुष्ट नहीं हो. तभी तो यह तसवीर साथ लिए घूम रहे हो. तुम्हारी नजरों में भी जनार्दन खूनी है.’’

‘‘हां आशु, कई चीजें ऐसी थीं कि जिन्होंने मुझे उलझन में डाल दिया था.’’

तसवीर को देखते हुए आशु बोली, ‘‘कितनी प्यारी औरत थी. शायद जनार्दन ने उसे इंश्योरेंस के लालच में मार डाला है या फिर किसी दूसरी औरत का चक्कर हो सकता है. लेकिन मुझे लग रहा है कि यह तसवीर दुर्घटना वाले दिन की नहीं है. यह तसवीर पहले की उस समय की है, जब पतिपत्नी में अच्छे संबंध थे. इस में जनार्दन की पत्नी बहुत खुश दिखाई दे रही है, जो इस बात का सबूत है कि यह तसवीर अच्छे दिनों की है.’’

‘‘तुम्हारे विचार से जनार्दन ने पत्नी को कैसे मारा होगा?’’ मोहन ने पूछा.

‘‘जनार्दन ने पत्नी को घर पर मारा होगा या फिर कार में.’’ आशु ने कहा, ‘‘संभव है, जनार्दन उसे जान से न मारना चाहता रहा हो, लेकिन वार जोरदार पड़ गया हो, जिस से वह मर गई हो. इस के बाद जनार्दन ने एक पुरानी तसवीर निकाली, जिस में वह पहाड़ की चोटी पर खड़ी मुसकरा रही थी. उस के बारे में उस ने यह कहानी बना दी. पत्नी की लाश को ले जा कर पहाड़ की चोटी से नीचे खड्ड में गिरा दी.’’

बातें करते हुए आशु की नजरें जनार्दन की कार पर ही टिकी थीं. उस की कार एक अपार्टमेंट में दाखिल हुई, तभी आशु ने कहा, ‘‘तुम ने मृतका के कपड़ों को देखा था? क्या वह वही कपड़े पहने थी, जो इस तसवीर में पहने है.’’

‘‘हां बिलकुल, मैं यह देख चुका हूं.’’ मोहन ने कहा.

‘‘अगर जनार्दन ने पत्नी को खत्म करने के बाद तसवीर वाले कपड़े पहनाए होंगे तो सलीके से नहीं पहनाया होगा.’’ आशु ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘कोई न कोई गलती उस ने जरूर की होगी.’’

‘‘मैं ने मुर्दाघर में लाश देखी थी. लाश पर वही कपड़े थे, जो तसवीर में है.’’ मोहन ने कहा.

‘‘वह तो ठीक है, तुम एक मर्द हो. इस मामले में कोई न कोई गलती जरूर रह गई होगी.’’ आशु ने कहा, ‘‘अगर मैं तुम्हारे साथ होती तो बहुत ही सूक्ष्मता से निरीक्षण करती.’’

आशु तसवीर को गौर से देखती हुई बोली, ‘‘इन छ: बटनों की लाइन के बारे में तुम्हारा क्या खयाल है? क्या यह लाइन उस के कोट पर उस समय भी थी, जब लाश मुर्दाघर में लाई गई थी?’’

‘‘हां, यह लाइन मौजूद थी.’’ मोहन ने कहा.

‘‘उस के कोट के दाईं तरफ वाले कौलर के करीब?’’ आशु ने पूछा.

‘‘हां,’’ मोहन ने सिर हिलाते हुए कहा.

जनार्दन की कार अब तक पार्किंग में दाखिल हो चुकी थी. मोहन ने भी खाली जगह देख कर अपनी कार रोक दी. जनार्दन उन दोनों को देख चुका था. वह कार से उतरा और उन की ओर बढ़ा. उस के चेहरे पर नाराजगी साफ झलक रही थी. उस ने कहा, ‘‘तुम लोग मेरा पीछा क्यों कर रहे हो? जबकि अदालत ने मुझे बेकसूर मान लिया है. मैं तुम्हारे खिलाफ मानहानि का मुकदमा करूंगा.’’

मोहन ने धैर्यपूर्वक कहा, ‘‘नाराज होने की जरूरत नहीं है. हम किसी दूसरे मामले में इधर आए हैं. उस से तुम्हारा कोई संबंध नहीं है.’’

‘‘अच्छा तो फिर यह लड़की अदालत के बाहर मेरे पास क्यों आई थी?’’ जनार्दन ने पूछा.

‘‘मेरा इस मामले से कोई लेनादेना नहीं है.’’ मोहन ने कहा.

‘‘तुम मेरा पीछा कर रहे हो, मैं इस बात की शिकायत करूंगा. मेरा वकील तुम्हारे खिलाफ अदालत में मुकदमा दायर करेगा.’’

‘‘जनार्दन, अदालत ने तुम्हें बरी कर दिया तो क्या हुआ, हमारी नजर में तुम अब भी अपराधी हो. तुम बच नहीं सकोगे.’’ आशु ने कहा.

आशु की बात सुन कर जनार्दन ने तीखे स्वर में कहा, ‘‘आखिर दिल की बात जुबान पर आ ही गई? मुझे शक था कि तुम मेरे पीछे लगी हो.’’

‘‘हां, मैं तुम्हारे पीछे लगी हूं,’’ आशु ने लगभग चीखते हुए कहा, ‘‘तुम ने अदालत में अपनी पत्नी की जो तसवीर पेश की थी, वह दुर्घटना वाले दिन की नहीं है. तुम ने यह तसवीर पहले कभी खींची थी. बताओ, तुम ने यह तसवीर अदालत में पेश कर के क्या साबित करने की कोशिश की?’’

आशु की बात सुन कर जनार्दन के चेहरे का रंग उड़ने सा लगा. बड़ी मुश्किल से उस ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारी किसी बात का जवाब नहीं दूंगा, क्योंकि अदालत में सवालजवाब हो चुका है. अब जो भी बात करनी है, मेरे वकील से करना.’’ कह कर वह अपार्टमेंट की सीढि़यों की तरफ बढ़ गया.

‘‘मेरे खयाल से हमें कुछ भी हासिल नहीं हुआ,’’ मोहन ने कहा, ‘‘लेकिन तुम ने मुझे एक आइडिया जरूर दे दिया. मैं उस तसवीर को दोबारा देखना चाहूंगा.’’

कह कर मोहन ने आशु से वह तसवीर ले ली और उसे गौर से देखने लगा. अचानक वह उत्साह से बोला, ‘‘तुम ठीक कह रही हो, सबूत मिल गया.’’

कह कर मोहन अपार्टमेंट की ओर बढ़ा तो आशु ने पूछा, ‘‘कहां जा रहे हो?’’

‘‘अपराधी को पकड़ने, अगर मैं ने जरा भी देर कर दी तो वह फरार होने में सफल हो जाएगा.’’ मोहन ने कहा.

आशु भी मोहन के साथ चल पड़ी. लौबी में जनार्दन के नाम की प्लेट लगी थी. जिस पर फ्लैट नंबर 102 लिखा था. दोनों उस के फ्लैट के सामने थे. मोहन ने दरवाजे पर दस्तक देने के बजाए जोरदार ठोकर मारी. दरवाजा खुल गया तो दोनों आंधीतूफान की तरह अंदर दाखिल हुए. जनार्दन बैड पर रखे सूटकेस में जल्दीजल्दी सामान रख रहा था.

दोनों को देख कर वह चीखा, ‘‘क्यों आए हो यहां, क्या चाहते हो मुझ से?’’

मोहन ने उस की नजरों के सामने उस की पत्नी की तसवीर लहराते हुए कहा, ‘‘यह लड़की बहुत अक्लमंद है. इस ने तो कमाल ही कर दिया. मुझे भी पीछे छोड़ दिया. तुम ने अपनी पत्नी को इसी फ्लैट में मारा था, फिर उस की लाश को अपनी कार में डाल कर उस पहाड़ की चोटी पर ले गए थे. जहां से उसे गहरी खाई में फेंक दिया था.’’

‘‘देखो इंसपेक्टर,’’ जनार्दन ने अकड़ने के बजाए नरमी से कहा, ‘‘इस मुकदमे का फैसला सुनाया जा चुका है और इस तसवीर ने यह साबित कर दिया है कि…’’

‘‘इसी तसवीर ने तो तुम्हें झूठा साबित किया है,’’ मोहन ने कहा, ‘‘तुम ने यह तसवीर काफी समय पहले खींची थी. लेकिन जब तुम ने अपनी पत्नी का कत्ल किया तो उसे हादसे का रूप देने के लिए उस की लाश को तसवीर वाले कपड़े पहना दिए.

‘‘लेकिन जब लाश को पुलिस ने खाई से निकाल कर अपने कब्जे में लिया तो तुम्हें लगा कि तुम ने लाश को जो कोट पहनाया है, उस में तुम से एक गलती हो गई है. उस में बटनों की लाइन दाईं तरफ थी, जबकि तसवीर में बाईं तरफ है.’’

‘‘तुम बिलकुल अंधे हो, तसवीर को गौर से देखो.’’ जनार्दन ने गुस्से में कहा.

‘‘मेरी बात अभी पूरी नहीं हुई है.’’ ’’ मोहन ने कहा, ‘‘जब तुम्हें अपनी गलती का अहसास हुआ तो तुम ने तसवीर का निगेटिव पलट कर नई तसवीर बनवा ली. नई तसवीर में मृतका के कोट के दाएं कौलर के नीचे बटनों की लाइन दिखाई दे रही है, यही तसवीर तुम ने हमें दी थी. लेकिन तुम यहां एक गलती कर गए. निगेटिव को उलटने से कोट के कौलर के साथ भी सब कुछ उलटा हो गया. आमतौर पर पुरुषों के कोट के दाईं कौलर की तरफ बटन.’’

अभी मोहन की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि जनार्दन ने उस की तरफ छलांग लगा दी. लेकिन इंसपेक्टर मोहन ने उस का बाजू पकड़ लिया और उसे घुमाते हुए दीवार पर दे मारा. इस के बाद जनार्दन को उठा कर उस के सूटकेस के पास फेंक कर कहा, ‘‘मिस्टर जनार्दन, अब तुम अपना अपराध स्वीकार कर लो.’’

तभी जनार्दन ने अपनी जेब से पिस्तौल निकाल कर मोहन और आशु की तरफ तान कर कहा, ‘‘तुम दोनों अपने हाथ ऊपर उठा लो, वरना मैं गोली मर दूंगा. कोई होशियारी मत दिखाना.’’

जनार्दन ने दूसरे हाथ से सूटकेस बंद करते हुए कहा, ‘‘मेरे रास्ते से हट जाओ. मैं और लाशें अपने नाम के साथ नहीं जोड़ना चाहता.’’

‘‘मूर्ख आदमी, तुम ज्यादा दूर अपनी कार नहीं जा सकोगे, क्योंकि मैं ने उस में गड़बड़ी कर दी है.’’ मोहन ने उसे घृणा देखते हुए कहा.

‘‘ठीक है, मैं तुम्हारी कार ले जाऊंगा.’’ जनार्दन ने कहा, ‘‘लाओ, उस की चाबी मेरे हवाले करो.’’

‘‘ठीक है,’’ यह कह कर मोहन ने चाबी निकालने के लिए जेब में हाथ डालना चाहा.

‘‘खबरदार, जेब में हाथ मत डालो. मुझे बताओ कि चाबी किस जेब में है. मैं खुद निकाल लूंगा.’’ जनार्दन चिल्लाया.

‘‘मेरे कोट की दाईं जेब में.’’ मोहन ने कहा.

जनार्दन ने उस के कोट की दाईं जेब की ओर हाथ बढ़ाया. उसी समय फायर हुआ, जिस की आवाज से कमरा गूंज उठा. इस के साथ ही जनार्दन बौखला कर दूर जा गिरा और आशु जोरजोर से चीखने लगी. फिर जमीन पर गिर पड़ी. दरअसल वह फायर जनार्दन ने किया था, मगर बौखलाहट के कारण वह फायर बेकार चला गया.

इंसपेक्टर मोहन के लिए इतनी मोहलत काफी थी. उस ने जनार्दन के कंधे पर फ्लाइंग किक मार कर उसे गिरा दिया. थोड़ी ही देर में उस ने जनार्दन के हाथों में हथकडि़यां लगा दीं. फिर उस ने आशु को उठा कर बैड पर बिठाया. उसे तसल्ली दी और किचन से पानी ला कर पिलाया.

थोड़ी देर बाद आशु संभल गई. मोहन ने कहा, ‘‘सुनो आशु, पहले तो मैं ने मजाक में कहा था कि तुम जैसी लड़की हमारे पुलिस स्क्वायड में शामिल नहीं होनी चाहिए. लेकिन अब मैं पूरी गंभीरता से कह रहा हूं कि तुम हमारे पुलिस स्क्वायड की अहम जरूरत हो. अगर तुम हमारे साथ शामिल हो गईं तो न जाने कितने केस हल हो जाएंगे, तमाम अपराधी कानून की गिरफ्त में आ जाएंगे और बेकसूर लोगों को रिहाई मिल जाएगी.’’

यह सुन कर आशु मुसकराने लगी.

वो एक उम्र: पिकनिक पर नेहा के साथ क्या हुआ

‘‘उठोनेहा, स्कूल नहीं जाना क्या? बस निकल जाएगी. फिर स्कूल कैसे जाएगी?’’ नीना ने उसे  झं झोड़ कर उठाया.

‘‘आज तबीयत ठीक नहीं है. स्कूल नहीं जाऊंगी,’’ नेहा ने करवट बदली. नीना ने अटैच्ड बाथरूम का गेट खोला तो नेहा लपक कर बिस्तर से उठी और मां का हाथ पकड़ लिया, ‘‘मैं ने जब कह दिया तबीयत ठीक नहीं है तो नहीं है. बाथरूम में क्या ताक झांक कर रही हो? क्या आप को पीरियड नहीं आते?’’

अपनी लड़की के मुंह से इतना सुनते ही नीना की भृकुटि तन गईर्, कुछ नहीं बोली और चुपचाप नेहा के कमरे से बाहर आ गई. मां के जाते ही नेहा ने कमरे का दरवाजा बंद कर दिया.

‘‘जब बोल दिया तो जासूसी करने की क्या जरूरत है? खुद को पीरियड नहीं आते क्या?’’ 14 साल की नेहा बड़बड़ाती हुई फिर से बिस्तर में पसर गईर्.

नीना भी मन ही मन भन्ना रही थी, ‘‘ये लड़कियां एक बार टीनएज हो जाएं तो हाथ से निकल जाती हैं. सुनती भी नहीं हैं.’’

थोड़ी देर में नीना भी औफिस के लिए निकल गई.

यह उम्र ही कुछ ऐसी है. शारीरिक और मानसिक बदलाव से लड़कियों की सोच

और दुनिया बदल जाती है. खेल और पढ़ाई से आगे शारीरिक आकर्षण, सुंदरता और लड़कों में रुचि बढ़ने लगती है.

नेहा अब टीवी अधिक देखने लगी थी. टीवी और फिल्म अभिनेत्रियों के बदन से अपनी तुलना करने लगी.

बाथरूम में अपनी फिगर देखते समय उस के मन में अभिनेत्रियां ही थीं. उन के जैसे हावभाव करने लगी. उस का मन भी वैसे फैशन करने को करता. मगर मम्मी भी न… खुद तो सजसंवर कर मटकती हुई औफिस निकल

जाएंगी और मेरे ऊपर दुनियाभर की रिस्ट्रक्शन. माई फुट, यह न करो, वह न करो. खुद सारे काम करती हैं.

नित्य नए फैशन कर के औफिस जाती हैं. मैं कुछ नया पहनने की इच्छा जाहिर करूं तब सौ पाबंदियां. माई फुट.

नहाने के बाद नेहा इंटरनैट पर सर्च करती रही. मन ही मन बुदबुदाती रही, अब क्याक्या पूंछूं. जरूरी बातें भी हांहूं कर के टाल देती हैं. जो बात मम्मी से मालूम होनी चाहिए वह इंटरनैट से मालूम करनी पड़ती है.

शाम को नेहा की फ्रैंड अहाना का फोन आया, ‘‘स्कूल क्यों नहीं आई?’’

‘‘मिलने आजा,’’ नेहा बोली.

‘‘आती हूं.’’

थोड़ी देर में दोनों पक्की सहेलियां गप्पे ठोक रही थीं.

‘‘यह जो तेरे नीचे वाले फ्लैट में लड़का रहता है. उसे कोई कामधंधा नहीं है. जब भी तेरे से मिलने आती हूं बालकनी में खड़ा मिलता है.’’

‘‘स्मार्ट है, लड़कियों को देखता है, आसपास की कई लड़कियां उस पर मरती हैं.’’

‘‘हां देखने में तो डैशिंग है. तू बात करती है?’’

‘‘यार एक बार बात क्या कर ली मम्मी

ने घर में तीसरा महायुद्ध कर दिया कि पढ़ाई

छोड़ नैनमटक्का करती रहती है. मैं उन के मुंह नहीं लगती.’’

‘‘आज विहान तेरी सीट को देखे जा रहा था. तू आई नहीं आज तो बड़ा परेशान रहा. मैम ने उस ने प्रश्न पूछ लिया. वह तेरे खयालों में गुम था… बेचारे को पनिशमैंट मिल गया.’’

‘‘रियली?’’

‘‘और नहीं तो क्या.’’

‘‘लड़का हैंडसम है. हलकी मूंछें, दाढ़ी. बस मुसीबत एक है, रहता दूर है. आसपास रहता तो मिल भी लेते.’’

‘‘और सुना बिगबौस शुरू हो रहा है.’’

‘‘टीवी पर तो देख ही नहीं सकते. सैंसरबोर्ड बैठा हुआ है. मेरे कमरे से टीवी हटा कर ड्राइंगरूम में रख दिया. खुद अपने कमरे में धीमी आवाज में देते हैं और मुझे देखने नहीं देते. मालूम नहीं, मम्मी लोग को बिगबौस से क्या प्रौब्लम है. मजा आ जाता है देखकर.’’

नेहा के स्कूल नहीं जाने के कारण आज नीना औफिस से जल्दी लौट आई. मां को देख कर नेहा की भृकुटि तन गई.

‘जासूसी करने जल्दी चली आई,’ वह मन ही मन बुदबुदाई.

‘‘हैलो आंटी,’’ अहाना ने तुरंत बात बदली. दोनों फ्रैंड्स किताब खोल कर पढ़ाई पर चर्चा कर रही थीं.

‘‘नेहा, तबीयत कैसी है?’’

‘‘मां, यह तो कल ठीक होगी.’’

‘‘टेक केअर,’’ नीना अपने कमरे में चली गई.

नेहा ने मां को कमरे में बंद हो कर फोन पर बात करते सुना और जलभुन गई. नौटंकी कर रही हैं. मेरी तबीयत की फिक्र थी, तो छुट्टी कर लेतीं. जल्दी आ कर भी कौन से तीर चला दिए. खुद फोन पर लगी हुई हैं. मैं फोन उठा लूं तो आफत आ जाती है. कान लगाकर फोन सुनती हैं, किस को कर रही हूं. खुद को प्राइवेसी चाहिए. मेरे ऊपर सैंसरशिप.’’

‘‘क्या सोच रही है?’’

‘‘सैंसरशिप.’’

‘‘ठीक टाइम पर याद दिला दिया. मेरे घर पर भी सैंसर बोर्ड की चेयर वूमन राह तक रही होगी,’’ अहाना किताब उठा कर चलती बनी.

नीचे उतरकर अहाना ने ऊपर देखा. नीचे के फ्लैट वाला लड़का अभी भी बालकनी में टंगा था. एक नजर उस पर डाली और फटाफट घर की ओर कदम तेज किए, ‘‘लड़के में दम है. लगता है इस के घर सैंसरबोर्ड नहीं है. मांबाप को चिंता नहीं, लड़का पढ़ता भी है या लुढ़कने की तैयारी में है. बाप का मोटा बिजनैस होगा, तभी लड़कियों को देखने के लिए पूरी शाम बालकनी में टंगा रहता है,’ वह मन ही मन सोच रही.

सैटरडे सुबह ही नीना ने नेहा को शाम को तैयार रहने को कहा कि पार्टी में जाना है.

‘‘किसकी पाटी है?’’

‘‘राहुल अंकल की मैरिज ऐनिवर्सरी है.’’

पार्टी के नाम पर नेहा चहक उठी कि कम से कम वहां सैंसरशिप तो नहीं होगी. थोड़ी मौजमस्ती होगी मांबाप अपने मैं मस्त रहेंगे और हम अपने में. राहुल अंकल का लड़का अनिरुद्ध भी तो अब बड़ा होगा. अरे मेरी उम्र का है.

शाम को नीना का कोई रोकटोक नहीं थी. फंक्शन में जाना है. बच्चे स्मार्ट नजर आने चाहिए.

अत: आज नेहा को पूरी आजादी मिल गई. डिजाइनर ड्रैस, मेकअप. नेहा जब तैयार होकर कमरे से बाहर आई, तो नीना कभी खुद को देखती, कभी नेहा को. आज वह उसे कौंप्लैक्स दे रही थी.

फंक्शन में सभी नेहा से अधिक बात कर रहे थे, उस की खूबसूरती पर

कौप्लिमैट्स दे रहे थे. पहली बार नीना को महसूस हुआ, अब नेहा बड़ी हो गईर् है. वह उस से अधिक जानकारी रखती है, जिस तरह से वह सब से बात कर रही है.

फंक्शन शुरू होते सभी अपने ऐज गु्रप में घुलमिल गए. नेहा अनिरुद्ध के साथ गपशप में व्यस्त थी. राहुल अंकल नेहा के पिता के मित्र थे, जो पहले पड़ोस में रहते थे, फिर मकान बदल कर दूर कालिनी में चले गए. नेहा अनिरुद्ध को बचपन से जानती थी. अब एक लंबे अरसे के बाद मिलना हुआ.

अनिरुद्ध और नेहा बात करते हुए थोड़ा

कोने में चले गए. डिजाइनर ड्रैस और मेकअप में नेहा तरुणी नहीं, एक वयस्क युवती दिख रही थी. शारीरिक उभार और संरचना पर अनिरुद्ध की नजर टिक गई, जो उस से 2 साल बड़ा था.

अनिरुद्ध का उसे कामुक नजरों से देखना रोमांचित कर रहा था. आज उस का मन 1 अभिनेत्रियों की तरह अदाएं दिखा कर के अनिरुद्ध को रि झाने का कर रहा था. अनुरुद्ध ने उस का हाथ पकड़ा. दोनों एकदूसरे का हाथ सहला रहे थे. उन को प्रेम की अनिभूति प्रथम बार होने लगी. दोनों एकदूसरे का पहला क्रश हो गए.

‘‘हर काम कभी न कभी पहली बार करना होता है. यह तो नार्मल है. सभी पीते है, टेस्ट करो स्वीट हाटग नेहा. मैं भी ले रहा हूं.’’ एक पेग अनिरुद्ध ने अपने होठों से लगाया.

नेहा और अनिरुद्ध एकदम सटे खड़े थे. शरीर स्पर्श से एक नई अनुभूति का एहसास नेहा को हो रहा था. आज पहली बार वह स्वतंत्र थी. वह किशोरी नहीं, युवती है. अनिरुद्ध का चेहरा उस के चेहरे के समीप आया. अनिरुद्ध 1 मिनट तक नेहा की जुल्फों में उंगलियां फेरता रहा, फिर अचानक एक हलका सा चुंबन नेहा के गाल पर अंकित कर दिया. नेहा ने कोई ऐतराज नहीं जताया. एक हलकी सी मुसकराहट के साथ अलविदा कहा.

नेहा के मांबाप अपनी धुन में थे. वे फंक्शन की बातें कर रहे थे. नेहा के चेहरे पर बड़ी सी मुसकान थी. आज उस ने पहली बार मस्त आजाद जीवन जीया है.

बाकी रात उस ने बिस्तर पर करवटें बदलते बिताई. नींद आंखों से कोसों दूर थी. वह अपनी शारीरिक बनावट देखती रही और कटरीना कैफ से तुलनात्मक अध्ययन करने लगी. अनिरुद्ध का स्पर्श उसे खयालों में रोमांचित कर रहा था. नेहा के जीवन का नया अध्याय आरंभ हो चुका था. उस का केंद्रबिंदु अब पढ़ाई नहीं, बल्कि अपने को सजनेसंवारने पर स्थापित हो गया था. सुबह 6 बजे उस की आंख लगी.

संडे छुट्टी का दिन था. मंदमंद मुसकराते कल रात के फंक्शन की बातें उस के दिल और दिमाग में छाई रहीं.

शाम को अहाना का फोन आया. फोन पर नेहा चहकती हुई अनिरुद्ध की बातें

बताती रही. दोनों का विषय शारीरिक संरचना, लड़की और लड़के की चाहत पर केंद्रित रहा.

अहाना को जलन होने लगी कि नेहा जीवन का वह अनुभव प्राप्त कर गई, जो उसे अभी तक नहीं मिला.

मंडे स्कूल में नेहा को देख कर विहान का चेहरा खिल गया. क्लास शुरू होने में थोड़ा समय था. शुक्रवार की पढ़ाई के बारे में वह विहान से बात करने  लगी. वह विहान के बहुत नजदीक आ गई. दोनों की सांसें मिलने लगीं. कोई बात नहीं कर रहा था. स्कूल था वरना दोनों लिपटने को आतुर लग रहे थे.

क्लास में विहान नेहा के बारे में सोच रहा था. टीचर ने उसे खयालों में देखते ही प्रश्न पूछा. विहान को मालूम ही नहीं चला कि प्रशन उस से पूछा जा रहा है. वह सीट पर बैठा रह गया. टीचर ने उसे क्लास से बाहर खड़े होने का फिर से पनिशमैंट दे दिया. विहान की पनिशमेंट के बाद नेहा सतर्क हो गई. वह खयालों से बाहर आई. अहाना उस पर बराबर नजर गड़ाए हुई थी. यह तो गईर् काम से.

नेहा के दिमाग में पढ़ाई कम होती जा रही थी. उस के मस्तिष्क की कोशिकाओं में अब शारीरिक आकर्षण, संरचना, स्पर्श और सैक्स के विषय ने स्थान अधिक कब्जा लिया.

अगले सप्ताह स्कूल की पिकनिक का आयोजन हुआ. स्कूल विद्यार्थियों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया. 4 बसें एक  झील किनारे खूबसूरत पिकनिक स्पाट के लिए स्कूल से रवाना हुईं.

नेहा और विहान हाथ में हाथ डाले एक वीरान से कोने की ओर अग्रसर थे. अहाना उन के पीछे थी. उस के दिमाग में हलचल थी कि वे दोनों क्या करते हैं?

वीरान से कोने में नेहा ने अपना सिर विहान के कंधे पर टिका दिया. विहान की उंगलियां नेहा की जुल्फों में उल झी थीं. दोनों के शरीर में एकदूसरे के स्पर्श से जलतरंग उत्पन्न हो रही थी. अहाना दूर से उचकउचक कर दोनों को देख रही थी.

अधिक विद्यालयों के कारण स्कूल अध्यापक भी अधिक संख्या में पिकनिक पर उपस्थित थे. इंग्लिश टीचर सपना को अहाना का एक कोने में उचक कर देखना शंकित कर गया. उसने अहाना की पीठ थपथपाई. अहाना घबराहट में पसीने से नहा गई. मिस सबरवाल ने चारों और देखा और माजरा सम झ गईर्. अहाना का हाथ पकड़ कर नेहा और विहान के आगे खड़ी हो गईर्. नेहा और विहान के चेहरे एकदूसरे को किस करने के लिए आगे बढ़ रहे थे. सपना ने अपना हाथ दोनों के होंठों के बीच रखा. दोनों के घबराहट में पसीने छूट गए.

अनुभवी सपना ने किसी को नहीं डांटा. मुसकराते हुए विहान के साथ नेहा और अहाना को सम झाया, ‘‘अभी यह कार्य करने के लिए तुम छोटे हो. अभी की एक किस शारीरिक संबंधों में कैसे परिवर्तित होगी, तुम्हें खुद नहीं मालूम होगा.

‘‘मित्रता और शारीरिक संबंधों के बीच एक लक्ष्मण रेखा का होना अति आवश्यक है. यह रेखा ताउम्र जीवन में साथसाथ चलती है. इस उम्र में लड़के और लड़की के बीच शारीरिक आकर्षण स्वाभाविक है. मैं अनुचित नहीं मानती. तुम्हें हर क्षेत्र में साथसाथ चलना है. एकदूसरे का पूरक बनना है. स्कूल के बाद कालेज फिर औफिस में लड़का और लड़की एकसाथ काम करेंगे. हंसो और खुल कर बातें करो. अपना कैरियर चुनो, फिर जीवन में सैटल होने के बाद इस तरफ सोचना. अभी एक गलत कदम तुम्हारा भविष्य उजाड़ सकता है.’’

सपना में एक मित्र की तरह तीनों को सम झाया. तीनों ने उन से माफी मांगी.

‘‘तुम दोस्तों की तरह स्कूल और बाहर रहो. तुम्हारा कोई भी प्रश्न हो, मु झ से कभी भी पूछना, चाहे सैक्स के बारे में ही क्यों न हो क्योंकिमु झे मालूम है यह बात तुम अपने घर पर किसी से नहीं कर सकोगे. अब तुम पिकनिक ऐंजौय करो. अपने मन से अपराधबोध मिटा दो क्योंकि गलत काम हुआ नहीं,’’ और सपना ने तीनों से हाथ मिलाया और उन की पीठ थपथपाई.

‘‘थैंकयू मैम,’’ तीनों ने एकस्वर में कहा.

‘‘ऐसे नहीं मुसकराते हुए,’’ कह सपना बाय कहते हुए मुख्य पिकनिक की ओर मुड़ गई नेहा, अहाना और विहान हाथ में हाथ डाले सपना के पीछेपीछे चल रहे थे.

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