अमित कहते कि मैं अपने शक को छोड़ दूं, तो वे फौरन लेने आ जाएंगे. मैं चाहती थी कि वे निशा से संबंध तोड़ लें. हम दोनों अपनी जिद पर अड़े रहे, तो इस विषय पर हमारा वार्तालाप होना ही बंद हो गया. बड़े औपचारिक रूप में हम फोन पर एकदूसरे से सतही सा वार्तालाप करते. वे रात को कभी रुकने आते,
तो भी हमारे बीच खिंचाव सा बना रहता. बैडरूम में भी इस का प्रभाव नजर आता. दिल से एकदूसरे को प्रेम किए हमें महीनों बीत गए थे. मैं उन से खूब लड़झगड़ कर समस्या नहीं सुलझा पाई. मौन नाराजगी का फिर लंबा दौर चला, पर निशा का मामला हल नहीं हुआ. मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि अपनी इस उलझन का अंत कैसे करूं. अमित से दूर रह कर मैं दुखी थी और निशा के कारण उन के पास जाने को भी मन नहीं करता था.
एक दिन मैं ने वर्माजी के घर के पिछले हिस्से से धुआं उठते देखा. उन का घर हमारे घर के बिलकुल सामने है. यह घटना रात के साढ़े 11 बजे के करीब घटी.
‘‘आग, आग… मम्मीपापा, सामने वाले वर्माजी के घर में आग लग गई है,’’ मैं ने बालकनी में से कदमों कर अपने छोटे भाई, मम्मीपापा व अमित को अपने पास बुला लिया.
गहरे काले धुएं को आकाश की तरफ उठता देख वे एकदम से घबरा उठे. अमित और मेरे भाई भी तेज चाल से उस तरफ चल पड़े.
चंद मिनटों में 8-10 पड़ोसी वर्माजी के गेट के सामने इकट्ठे हो गए. सभी उन्हें आग लगने की चेतावनी देते हुए बहुत ऊंची आवाज में पुकार रहे थे. एक के बाद एक महल्ले के घरों में रोशनी होती चली गई.
जब तक वर्माजी बदहवास सी हालत में बाहर आए तब तक 15-20 पड़ोसी उन के गेट के सामने मौजूद थे. उन्होंने लोगों की आकाश की तरफ उठी उंगलियों की दिशा में देखा और काले धुएं पर नजर पड़ते ही बुरी तरह चौंक पड़े.
अपनी पत्नी, बेटे और बहू को पुकारते हुए वर्माजी घर में भागते हुए वापस घुसे. उन के पीछेपीछे जो कई लोग अंदर घुसे उन में अमित और मेरा भाई सब से आगे थे.
बाकी लोग गेट के पास खड़े रह कर आग लगने के कारण और स्थान के बारे में चिंतित घबराए अंदाज में चर्चा करने लगे. जो वहां मौजूद नहीं थे, वे अपने घर की बालकनी से घटनास्थल पर नजर रखे थे.
घर के भीतरी भाग से सब से पहले मेरा भाई बाहर आया. उसे मुसकराता देख हम सभी की जान में जान आई.
‘‘सब कुछ ठीक है अंदर,’’ उस ने ऊंची अवाज में सब से कहा, ‘‘पिछले बरामदे में रखी अखबारों की रद्दी पर एक चिनगारी से आग लग गई थी. धुआं घर के अंदर नहीं, बल्कि बाहर बरामदे में लगी आग से उठ रहा था.’’
लोग जाग गए थे, इसलिए जल्दी से वापस घरों में नहीं घुसे. बाहर सड़क पर खड़े हो कर उन के बीच दुनिया भर के विषयों पर बातें चलती रही.
अमित करीब डेढ़ घंटे बाद शयनकक्ष में आया. मुझे पलंग पर सीधा बैठा देख
उस ने कहा, ‘‘अब जल्दी उत्तेजना के कारण नींद नहीं आएगी. बेकार ही सब परेशान हुए.’’
‘‘काले, गाढ़े धुएं को देख कर मैं ने यही अंदाजा लगाया था कि आग घर में लगी होगी. कितना गलता निकला मेरा अंदाजा,’’ बोलते हुए मुझे ऐसा लगा मानो मैं खुद से बात कर ही रही हूं.
कुछ देर सोच में डूबे रहने के बाद अमित ने पूछा, ‘‘असलियत में क्या इस वक्त तुम कुछ और कहना चाह रही हो, प्रिया?’’
‘‘हां, मेरे मन में कुछ देर पहले अचानक दिलोदिमाग को झटका देने वाला एक विचार उभरा था. तब से मैं उसी के बारे में सोच रही हूं.’’
‘‘अपनी मन की बात मुझ से भी कहो.’’
‘‘अमित, अगर हम तुम्हारे व निशा के अवैध प्रेम संबंध…’’
‘‘उस के और मेरे बीच कोई अवैध संबंध नहीं है,’’ अमित ने नाराजगी भरे अंदाज में मुझे टोका.
‘‘मेरी पूरी बात जरा धीरज से सुनो, प्लीज.’’
‘‘अच्छा, कहो.’’
‘‘अमित, कहीं से उठता हुआ धुआं देख कर यह अंदाजा लगाना क्या गलत होता है कि वहां आग का केंद्र जरूर होगा?’’
‘‘अरे, आग होगी, तभी तो धुआं पैदा होगा.’’
‘‘लेकिन मानवीय संबंधों में, खासकर स्त्रीपुरुष के प्रेम संबंधों में… उस में भी अवैध प्रेम संबंध की अगर बात करें, तो धुआं आग के बिना और आग के कारण दोनों तरह से पैदा हो सकता है.’’
‘‘मुझे तुम्हारी बात समझ में नहीं आई’’ अमित उलझन का शिकार बने नजर आए.
‘‘देखो, निशा और तुम्हारे बीच अगर अवैध प्रेम संबंध हैं तो वह आग का केंद्र हुआ. लोग तुम्हारे अवैध प्रेम संबंध की जो चर्चा करते हैं, उसे हम उस आग से उठता धुआं कहेंगे.’’
‘‘अब तक मैं अच्छी तरह समझ रहा हूं तुम्हारी बात,’’ अमित का पूरा ध्यान मुझ पर केंद्रित था.
‘‘तुम कहते हो, तुम्हारा निशा से गलत संबंध नहीं है और दुनिया इस बारे में भिन्न राय रखती है. इस मामले में धुआं तो मौजूद है, पर आग के बारे में मतभेद है.’’
‘‘मैं कहता हूं कि आग मौजूद नहीं है,’’ अमित ने एकदम शब्द पर जोर दिया.
‘‘आज मैं तुम्हारे कहे पर पूरी तरह विश्वास करूंगी, अमित, क्योंकि मैं ने अपनी आंखों से कभी ऐसा कुछ नहीं देखा जिसे मैं आग की लपट कहूं… और न ही मुझे कोई व्यक्ति ऐसा मिला है जो कहे कि उस ने आग को… यानी निशा और तुम्हें गलत ढंग से कुछ कहतेकरते अपनी आंखों से देखा या कानों से सुना हो. सब धुएं की चर्चा करते हैं और…’’
‘‘और क्या?’’ अमित मेरे पास आ कर बैठ गए.
‘‘और मुझे धुएं पर विश्वास कर के आग की मौजूदगी नहीं मान लेनी चाहिए थी. मैं ने ख्वाहमख्वाह अपनी आंखों से धुएं के कारण आंसू बहाए. मैं अपनी गलती मानती हूं,’’
मैं ने झुक कर अमित के हाथों को कई बार चूम लिया.
‘‘निशा सदा मेरी बहुत अच्छी दोस्त रही है और इस संबंध की पवित्रता व ताजगी को नष्ट करने की मेरे दिल में कोई चाह नहीं है. मेरे दिल में सिर्फ तुम्हारा राज था, है और रहेगा, प्रिया,’’ अमित ने बारीबारी से मेरी आंखों को चूमा, तो मेरे पूरे जिस्म में सुखद करंट सा दौड़ गया.
‘‘देखो, कभी किसी दूसरी स्त्री के साथ आग का केंद्र पैदा न होने देना, नहीं तो हमारी खुशियों और सुखशांति को जला डालेगी. धुएं की चिंता मैं आगे कभी नहीं करूंगी, पर आग का केंद्र मुझे दिखा तो मैं अपनी जान…’’
‘‘ऐसा कभी नहीं होगा पगली,’’ अमित ने मेरे मुंह पर हाथ रख दिया.
निशा को ले कर मेरे दिलोदिमाग पर महीनों से बना भारी बोझ एकदम उतर गया था. अमित की मजबूत बांहों के घेरे में कैद हो कर मुझे उतना ही आनंद मिला जितना जब मैं नईनेवली दुलहन बनी थी, तब मिला था.