ब्रैंडेड कपड़े सैलेब्स की पहली पसंद, हर अवसर पर पहन सकते हैं ये ड्रैस

एक मल्टीनैशनल कंपनी में काम करने वाली सुमन हमेशा ब्रैंडेड कपड़े पहनती है, क्योंकि उसे उस के रंग, फिटिंग और लुक काफी ऐलीगेंट और सुंदर दिखते हैं। पहले वह रोड साइड कपड़े खरीदती थी, लेकिन कुछ दिनों में उस के रंग उड़ जाते थे और उस की फिटिंग भी कई बार सही नहीं होती थी, इस वजह से उन कपड़ों को उसे बहुत जल्दी ही किसी दूसरे को देना पड़ता था. इसलिए वह पिछले 5 सालों से ब्रैंडेड कपड़े ही पहनती है, क्योंकि ये कपड़े महंगे भले ही होते हैं, लेकिन उस की ड्यूरेबिलिटी अधिक होती है.

सुमन को देख कर उस की सहेलियां भी ब्रैंडेड कपड़े खरीद रही हैं। उन के हिसाब से ब्रैंडेड कपड़े महंगे भले होते हैं, लेकिन उन का लुक काफी समय तक एकजैसा रहता है.

असल में ब्रैंडेड कपड़े महंगे होते हैं, लेकिन उस की स्टाइल, फिटिंग, रंग, फैब्रिक आदि बाकी आम कपड़ों से अच्छी होती है, जिसे अधिक पैसे देने के बाद भी आज के यूथ खरीदते हैं, क्योंकि वे अच्छा कमाते हैं और इन ब्रैंडेड कपड़ों की वजह से उन का औफिस में भी अलग इमेज होता है.

इतना ही नहीं, ब्रैंड्स अपने कस्टमर के प्रति हमेशा ईमानदार होते हैं, ताकि वे उस ब्रैंड्स के कपड़े बारबार खरीदें. ब्रैंड्स आजकल स्टैटस का प्रतीक बन चुका है, इसलिए आज का यूथ इस ओर अधिक से अधिक आकर्षित है.

डिजाइनरों का भी मानना है कि कभी ऐसा समय था, जब आम इंसान हाई ऐंड कपड़ों को खरीदना नहीं चाहते थे, क्योंकि ऐसे कपड़े केवल धनी लोगों के लिए समझे जाते थे, लेकिन आज ऐसा नहीं है। अधिक से अधिक यूथ हाई ऐंड कपड़ों की मांग करते हैं. इस की खास वजह औनलाइन में आजकल हजारों ब्रैंड्स अपने कपड़े और ऐक्सेसरीज बेचती हैं, जो उन के बजट में आ जाते हैं, जिस से वे उन्हें
खरीद सकते हैं. इस के अलावा ब्रैंडेड कपड़े पहनने से व्यक्ति का आत्मविश्वास बढ़ता है, वे भीड़ में खुद को अलग महसूस कर सकते हैं। यही वजह है कि सारे ब्रैंड एक से एक सुंदर और आकर्षक कपड़ों को मार्केट में ला कर ग्राहकों को संतुष्ट करने की कोशिश करती है. इतना ही नहीं पर्यावरण संरक्षण में भी ब्रैंडेड कपड़े ही आते हैं, क्योंकि फैशन इंडस्ट्री से निकले वैस्ट पदार्थ बड़ी मात्रा में प्रदूषण फैलाते हैं,

सस्टैनेबल कपड़ों पर आजकल अधिक जोर दिया जा रहा है, ऐसे में ब्रैंडेड कपड़े स्लो फैशन को बढ़ावा देते हैं, जिस से प्रदूषण कम होता है.

ब्रैंडेड कपड़े पहनने के फायदे निम्न हैं :

आरामदायक कपड़े

ब्रैंडेड कपड़ा पहनने पर आराम महसूस कराता है। हाई क्वालिटी के मैटिरियल्स से बने होने की वजह से यह आरामदायक होता है लंबे समय तक पहने रहने पर भी असहजता महसूस नहीं होती, फिर चाहे आप फ्लाइट में सफर कर रहे हों या औफिस में काम कर रह हों।

अपने ऐसे कपड़े आप को रिलैक्स्ड फील कराते हैं. ब्रैंडेड कपङे सभी साइज में होते हैं और इन के साइज भी सही तरह से बने होते हैं. कोई भी अपनी साइज के कपड़े खरीद कर पहन सकता है और खुश रह सकता है.

ऐलिगेंस जबरदस्त

ब्रैंडेड कपड़े स्टाइल में ऐलीगेंस को बढ़ाती है और शालीनता को टौप प्रायोरिटी पर रखती है. इन कपड़ों से व्यक्ति की फैशन सेंस का पता चलता है. इन कपड़ों के रंग फेड नहीं होते, इसलिए इन्हें कई बार पहना जा सकता है। इन कपड़ों के साथ अगर कुछ ऐक्सेसरीज पहनने पर इसशकी खूबसूरती आकर्षक हो जाती है.

लौंग लास्टिंग होती है

ऐसा देखा गया है कि लोकल कपड़े सस्ते मैटिरियल के बने होते हैं, इन कपड़ों की खरीदारी में व्यक्ति के पैसे तो बचते हैं, लेकिन ये अधिक दिनों तक नहीं टिकते. 2-3 बार धोने पर इस के रंग उड़ जाते हैं, जिसे पहनना मुश्किल होता है. ब्रैंडेड कपड़े महंगे जरूर होते हैं, लेकिन हाई क्लास मैटिरियल के बने होने की वजह से काफी सालों तक एकजैसे रहते है. लोकल कपड़ों के खरीदने पर बारबार पैसे खर्च करने पड़ते हैं, जबकि ब्रैंडेड में एक बार अधिक पैसे खर्च करने पर पोशाक सालोसाल चलते हैं.

हर अवसर पर पहनने लायक

ब्रैंडेड पोशाक हर अवसर पर बारबार पहनने लायक होते हैं, इसलिए इन कपड़ों पर एक बार पैसा खर्च करना होता है, जो सालों तक अच्छा रहता है. चाहे आप जिम में जाएं या पार्टी या कैजुअल ड्रैस करें ब्रैंडेड कपड़े हमेशा ही आरामदायक और कौन्फिडेंट का अनुभव कराते हैं. बड़ेबड़े ब्रैंड्स जैसे प्यूमा, नाइकी जैसे खासकर जिम या वर्कआउट के लिए सुंदर कपड़े तैयार करते हैं. इन सभी पोशाकों में अगर आप ने ऐक्सेसरीज जैसे ईयररिंग्स, कड़े और अंगूठी पहनती हैं तो इस का अलग लुक दिखता है.

इस प्रकार कपड़ों की गुणवत्ता, डिजाइन और अनुभव ही किसी ब्रैंड को मार्केट में स्थापित करने की कोशिश करती है, जिस से ग्राहक उन के कपड़े पहनें.

सैलेब्स की पहली पसंद

यह भी सही है कि ऐक्टिंग के फील्ड में काम करने वाले सेलिब्रिटीज ब्रैंडेड कपड़ों को अधिकतर पहनते हैं, जिसे देख कर दर्शक प्रभावित होते हैं और हर ब्रैंड को ऐंडोर्स करने के लिए सैलिब्रिटीज होते हैं, जो उन के ब्रैंड वैल्यू को बढ़ाते हैं.

इंडस्ट्री में ब्रैंडेड कपड़े पहनने वाले स्टार्स में सब से अधिक अभिनेत्री सोनम कपूर का नाम आता है। वह हर तरह के डिजाइन को ट्राई करना पसंद करती है.

अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा, दीपिका पादुकोण, ऐश्वर्या राय, आलिया भट्ट के अलावा रणवीर सिंह भी कान्स के रैड कार्पेट पर नएनए डिजाइन के साथ रैंप वौक करते हैं. इन सब में सोशल मीडिया का बहुत बड़ा हाथ होता है। जिन कलाकारों के फौलोवर्स सब से अधिक होते हैं, उन के कपड़ों की मांग भी बाजार में
अधिक होती है.

इन्फ्लुएंसर्स : नए जमाने के पंडेपुजारी

वास्तुशास्त्र के नाम पर लोगों की  मानसिकता से खिलवाड़ करने वाले इन्फ्लुएंसर्स का एक नया धंधा जोर पकड़ रहा है. आधुनिक तकनीक और सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर ये लोग पौराणिक कथाओं और अंधविश्वासों को बढ़ावा देते हुए अजीबोगरीब दावे करते हैं. इन के चैनलों पर व्यूअर्स की बाढ़ है.

यह समझना बड़ी बात नहीं कि किसी को अपनी दुकान चलाने के लिए ज्यादा से ज्यादा दिखना पड़ता है, खासकर, धर्म के मामले में यह बात ज्यादा सटीक बैठती है. भारत में हर गलीमहल्ले में आलूटमाटर की पटरियों जैसे मंदिर खुले हैं. पटरी वाले भगवान से ले कर एसी वाले भगवान तक की यात्रा चंद दिनों में हो जाती है. एसी का भौतिक सुख भगवान का तो पता नहीं पर वहां बैठा अध्यात्मिक पुजारी जरूर लेता है. लोग चाहते न चाहते भी बीच सड़क सिर  झुकाते चलते हैं, हाथ जोड़ते हैं, हैसियत से अधिक दान करते हैं, यही रीतिनीति है. यह बात धर्म की ठेकेदारी करने वाले जानते हैं कि भारत में सब से बड़ा व्यापार दानपिंड का है. इस में इन्वैस्टमैंट के नाम पर जीरो और मुनाफा 100 टका.

धर्म की ठेकेदारी चलाने वाले कई डिपार्टमैंटों में बंटे हुए हैं. पुजारीपंडों की बिरादरी, बाबासंतों की बिरादरी, कथावाचकों की बिरादरी और ज्योतिषियों व वास्तुशास्त्रियों की अलग बिरादरी. हैरानी यह कि डिजिटल युग में एक बिरादरी धर्मांध इन्फ्लुएंसर्स की भी उग आई है. काम सब का एक, लोगों को कर्मकांडी और पाखंडी बनाना और इस के एवज में खूब दान जमाना. जैसे रटेरटाए श्लोक और मंत्र पुजारी बांचता है वैसे ही इन्फ्लुएंसर्स भी एक धुन में रटीरटाई बातें करते हैं, कुछ नया नहीं है. पुजारी का दान आटादाल, चावल, घर संपत्ति, पैसा लेना है तो इन्फ्लुएंसर्स का दान फौलोअर्स और सब्सक्राइबर्स की शक्ल में है.

हालफिलहाल ऐसे इन्फ्लुएंसर्स आने लगे हैं जो अपने चैनल पर पाखंड का चूर्ण बांट रहे हैं. इन्हें सुनने वाले काल्पनिक रहस्यों में उल झे हुए हैं. सुनाने वाले अश्वत्थामा के जिंदा होने के गप्पों से ले कर कर्ण के छिपे कवच पर डेढ़दो घंटे की लंबी वीडियो अपलोड कर रहे हैं. ये यह भी दावा कर रहे हैं कि अतीत में लाखों गुरुकुल थे. लेकिन वे यह नहीं बताते कि उन में से पढ़ने का अधिकार कितनों और किन्हें था?

इन्हीं इन्फ्लुएंसर्स की पोडकास्ट में ऋषि कश्यप और उन की पत्नी के पुत्रों के रहस्य की चर्चाएं हैं तो वहीं उड़ने वाले, मणिधर, इच्छाधारी सांपों के रहस्य भी हैं. शेषनाग से ले कर संजीवनी बूटी, सोमरस से ले कर बर्बरीक घटोत्कच, इच्छामृत्यु से ले कर गरुड़ वाहन तक सब देखने को मिल जाता है. अच्छे व महंगे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने के बाद सोशल मीडिया के ये इन्फ्लुएंसर्स रंगबिरंगे आधुनिक लिबास में कैमरे, माइक और चमकदार स्टूडियो में बैठ कर बताते हैं कि वेदों में ही सारा ज्ञान छिपा है. यही लोग वास्तु पर दिशा ज्ञान दे रहे हैं, इस के छिपे वैज्ञानिक पहलुओं को बता रहे हैं.

घूमफिर कर सभी धर्मांधी इन्फ्लुएंसर्स के चैनलों में एक ही तरह के वास्तुशास्त्री तैर रहे हैं. कभी इस चैनल तो कभी उस चैनल में गोता लगा रहे हैं. ऐसा लग रहा है मानो लोगों को लालबु झक्कड़ और मूर्ख बनाने की सुपारी इन्हीं को दी गई है. यह सुपारी ऐसी है जो प्रसाद में चढ़ाई गई लगती है, थोड़ी कसैली थोड़ी कड़वी पर आगे आराम देगी, यह सोच कर घंटों व्यूअर्स को चुसवाया जा रहा है. ऐसा ही एक वास्तुशास्त्री पंकित गोयल है. यह वास्तुशास्त्री होने के साथसाथ इन्फ्लुएंसर भी है. अपने चैनल के अलावा हर दूसरे इन्फ्लुएंसर्स के पोडकास्ट में इस की मौजूदगी बताती है कि अपनी दुकान चलाने के खेल में ज्यादा से ज्यादा दिखना इस ने सीख लिया है.

अपनी वैबसाइट में दिल्ली का रहने वाला पंकित गोयल खुद को भारत का सर्वश्रेष्ठ वास्तुशास्त्री होने का क्लेम करता है. उस की वैबसाइट पर वास्तु के कोर्स की डिस्क्रिप्शन है, यानी पैसा कूटने के तरीके भी जानता है. आचार्य पंकित गोयल नाम से उस का यूट्यूब चैनल भी है, जहां वह वास्तु की जानकारियां देता है. इस के चैनल में 5 लाख से अधिक सब्सक्राइबर्स हैं और अभी तक यह एक हजार से अधिक वीडियो डाल चुका है.

यह अपने एक वीडियो में बेडरूम का वास्तुशास्त्र बताता है. यह बताता है कि एक अच्छे बेडरूम के लिए 16 दिशाओं में विभाजित नक्शा होना जरूरी है. इस के साथ सोने की दिशा उत्तर की तरफ नहीं होनी चाहिए. यह इसी वीडियो में बताता है कि साउथवैस्ट दिशा पितरों, मृग देवताओं, स्किल्स, इंद्र देवता व जया देवता की होती है. ये सारे देवता आप को अच्छा बिसनैसमैन बनाते हैं. इस लिहाज से घर में जो सब से ज्यादा स्किल्ड व्यक्ति है या पैसे लाने वाला व्यक्ति है उसे इस दिशा में अपना रूम बनाना चाहिए.

इस के अलावा यह बाकी वास्तुशास्त्रियों के ज्ञान का खंडन करता है और बताता है कि सोते समय आप का सिर साउथवैस्ट दिशा की तरफ आए. यह वैस्ट और नौर्थवैस्ट दिशा में बेड रखने को मना यह कहते करता है कि इस दिशा में सुसाइडल थौट आते हैं. यदि ऐसा है, फिर तो वास्तुशास्त्रियों को ही असली सोशियोलौजिस्ट, इकोनौमिस्ट और साइक्लोजिस्ट घोषित कर दिया जाना चाहिए.

यह अपनी एक और वीडियो ‘घर के पास यह न हो’ में बताता है कि नया घर खरीदते समय घर के आसपास क्याक्या चीजें नहीं होनी चाहिए. यह बताता है कि घर उस जगह विकसित नहीं हो पाता जहां मंदिर हो. इस का वह कारण बताता है कि मंदिर अपनेआप में एक शक्ति है और घर स्पेस एलिमैंट में कन्वर्ट होने लगता है. इस पर सुहागा यह बताता है कि हौस्पिटल भी नजदीक न हो. इस के नुकसान बताते कहता है कि नजदीक हौस्पिटल होने से व्यक्ति के ज्यादा चक्कर लगने लगते हैं, कर्जे बढ़ जाते हैं, यहां तक कि जो डाक्टर अपने घर में क्लिनिक बना लेते हैं उन्हें ही हैल्थ इश्यूज होने लगते हैं. इस के अलावा पुलिसथाना भी नहीं होना चाहिए. अब इन बातों का क्या आधार है? कौन सी रिसर्च है, किस तरह के केसेज हैं? इस पर कोई चर्चा नहीं करता.

खुद सोचिए, घर में लगे पौधे किस दिशा में हों, इस का तर्क वास्तुशास्त्र है. बताया जाता है कि यह उत्तरा, स्वाति, हस्त, रोहिणी और मूल नक्षत्रों में करना चाहिए. क्या बकवास है. कोई भी साधारण व्यक्ति सामान्य से जैविक विज्ञान की जानकारी ले कर यह खुद से तय कर सकता है कि घर में प्लांट के लिए खाद, रोशनी, धूप, पानी की जरूरत है, इस में वास्तु का क्या काम?

पंकित गोयल अपनी एक वीडियो में बताता है कि कौन से नंबर का घर कभी नहीं लेना चाहिए. इस वीडियो को 3 लाख से अधिक लोगों ने देखा है. इस में वह कुंडली और नंबरों के बीच के गणित को बताता है. वह बताता है कि यदि आप को मरी हुई इन्वैस्टमैंट मिले 8 नंबर प्लौट की तो आप बिना सोचे, आंख बंद कर के ले लें. यह आप को फायदा ही देगी. कोई सवाल पूछ सकता है कि क्या तब भी जब वह पंकित के कहे अनुसार मंदिर और हौस्पिटल के नजदीक हो? या तब भी जब वह ऐसी जगह में हो जहां न पानी की व्यवस्था हो न ट्रांसपोर्ट की?

इस के अलावा पंकित के चैनल में ढेरों वीडियोज हैं. कहीं वह सीढि़यों का वास्तु बताता है कहीं छत का, कहीं वह कुबेर की दिशा बताता है, कहीं सास व बहू के क्लेश में वास्तु के रोल की बात करता है. यानी वह हरेक कारण के पीछे वास्तु की बातें करता है. आप की शादी नहीं हो रही तो आप का वास्तुदोष है, आप की नौकरी नहीं लग रही तो वास्तुदोष है, आप के पास पैसों की तंगी है तो वास्तु का वास्तुदोष, आप डिप्रैशन में हैं तो वास्तुदोष, आप के घर में कुछ अनहोनी हो गई तो वास्तुदोष.

यानी सीधा मतलब है भैया, आप को अगर इन वास्तुदोषों को ठीक करना है, सुखशांति की जिंदगी बितानी है, क्लेश से मुक्ति चाहिए तो आचार्य पंकित गोयल से संपर्क करिए, जिस का कौन्टैक्ट नंबर उस ने बड़ेबड़े अक्षरों में अपने यूट्यूब चैनल पर दिया हुआ है. सारा माजरा यही तो है. लोग डर में रहें. पंकित सिर्फ अपने चैनल पर ही वास्तुशास्त्र के टिप्स नहीं देता बल्कि वह दूसरे इन्फ्लुएंसर्स के पोडकास्ट पर भी गैस्ट स्पीकर के रूप में जाता रहता है.

खुद को नंबर वन वास्तुशास्त्री होने का क्लेम करने वाला पंकित भारत के कथित नंबर वन पोडकास्टर रणवीर अलाहबादिया के चैनल पर भी जा चुका है. ‘वास्तुशास्त्र फौर बिगिनर्स’ के नाम से यह शो पूरे 2 घंटे 35 मिनट का है. इस पोडकास्ट में ऐसीऐसी पाखंडी और रहस्यभरी घटनाओं का जिक्र है कि निर्देशक रामगोपाल वर्मा को भी हौरर फिल्मों के लिए छत्तीसों आइडियाज मिल जाएं. न बातों का सिर न पैर, कहीं की बात को कहीं जोड़ कर पूरी बकवास इस एक शो में की गई है. हैरानी यह कि इसे देखने वालों की संख्या 14 लाख से अधिक है. हैरानी यह भी कि इस तरह की वीडियोज की बमबार्डिंग इस चैनल में खूब की गई.

ऐसे ही यह पंकित उसी समय के अंतराल में ‘रियलहिट’ नाम के चैनल में भी जाता है. यहां यह स्वर विज्ञान के रहस्य की बात करता है, बताता है कि इस से धनलाभ कैसे प्राप्त करें. एक घंटे के वीडियो में यह नहीं बताया जाता कि पैसे मेहनत और काम करने से आते हैं, बल्कि एक ध्यानमुद्रा में बैठे रहने से धन बनाया जाता है. अरे मूर्ख, एक जगह बैठने से क्या पत्ता हिला है भला? पर नहीं, हर चीज के आगे विज्ञान जोड़ने से ये पाखंडी अपनी सिद्धि साबित करते हैं.

आज अगर यूट्यूब पर वास्तु पोडकास्ट सर्च की जाए तो सब से पहला नाम पंकित गोयल का ही आता है. वह इसलिए क्योंकि उस ने प्रचार का तरीका ढूंढ़ लिया है. वह इन्फ्लुएंसर्स मार्केट में घुस चुका है. बिना सिरपैर बातें करने वाले तमाम बकैत इन्फ्लुएंसर्स के पास जा कर वह अपना प्रचार कर रहा है. इन्हें देखने वाले व्यूअर्स यहां से कचरा बटोर रहे हैं और ऊलजलूल बातें यहांवहां करते हैं. यही लोग हैं जो चंद्रयान को भी वास्तु से जोड़ते हैं, इस के पीछे का विज्ञान बताते हैं, लेकिन गटर में उतरने वाले लोगों पर खामोश हो जाते हैं कि इस में कौन सा वास्तु काम कर रहा है. हैरानी नहीं होगी कि ये ओलिंपिक में मिले इक्कादुक्का मैडल का भी वास्तुशास्त्र बताते दिख जाएं. आज यही कुतर्की इन्फ्लुएंसर्स नए जमाने के पंडेपुजारी हैं, यही बाबासंत हैं, यही काथावाचक हैं जो घटों बांच रहे हैं और यही समाज को खोखला भी कर रहे हैं.

सैक्सी एंड बोल्ड इमेज के साथ टाइपकास्ट की शिकार हुईं तृप्ति डिमरी

बौलीवुड में टाइप कास्टिंग नई बात नहीं है. यह एक ऐसा ट्रैप है जिस में कोई ऐक्टर या ऐक्ट्रैस फंस जाए तो उस से निकलना मुश्किल हो जाता है. हाल ही में तृप्ति डिमरी का नाम भी इसी लिस्ट में जुड़ता दिखाई दे रहा है. उन्होंने अपनी शुरुआती फिल्मों में जो इंटैंस और वर्सेटाइल परफौर्मेंस दी थी, वह दर्शकों के दिलों में बस गई थी. खासतौर पर, ‘बुलबुल’, ‘लैला मजनू’ और ‘कला’ जैसी फिल्मों में उन के किरदार ने दर्शकों और क्रिटिक्स का दिल जीत लिया था, लेकिन ‘एनिमल’ और ‘बैड न्यूज’ जैसी फिल्मों में उन के द्वारा दिए गए बोल्ड एंड सैक्सी सीन्स ने उन्हें एक नई छवि में ढाल दिया है, जिसे अब वह छोड़ नहीं पा रही हैं.

हालांकि ऐक्टिंग के मामले में इन दोनों फिल्मों में क्रिटिक्स से उन्हें तारीफ मिली मगर औडियंस ने उन के उस हिस्से को चर्चा का केंद्र बनाया जिस में वे इंटिमेट सीन करते दिखाई दे रही थीं. इस से पहले वाली फिल्मों में उन के काम को वह चर्चा नहीं मिली जितनी इन 2 फिल्मों ने उन्हें दी. इन दोनों ही फिल्मों का कंटैंट बोल्ड था, नया था. लेकिन कहते हैं न, आप किस तरह की चर्चाओं में ज्यादा बने रहते हैं उसी से आप की इमेज निर्धारित होती है, इस समय तृप्ति के साथ यही हो रहा है.

सैक्सी इमेज तक

तृप्ति डिमरी ने 2020 में रिलीज हुई फिल्म ‘बुलबुल’ से फिल्मों में एंट्री की. कम लोगों ने यह फिल्म देखी मगर जिन्होंने देखी, उन के काम की प्रशंसा की और फिल्म इंडस्ट्री में उन्हें सीरियस व वर्सेटाइल ऐक्ट्रैस के रूप में थोड़ीबहुत पहचान मिली. ‘बुलबुल’ में उन्होंने मासूमियत से ले कर दमदार औरत तक का जो ट्रांसफौर्मेशन दिखाया, वह काबिलेतारीफ था. इस के बाद आई ‘कला’ फिल्म ने उन की पोजीशन को और मजबूत किया.

फिर आई फिल्म ‘एनिमल’. इस फिल्म में उन के किरदार ने छोटे से रोल में ही अपनी छाप छोड़ी. लेकिन अफसोस कि उन की इमेज एक सैक्सी और बोल्ड ऐक्ट्रैस के रूप में हुई. फिल्म में उन के और रणबीर कपूर के इंटिमेट सीन थे. एक सीन में वे सैमी न्यूड दिखाई देती हैं. यह सीन कहानी का हिस्सा था और तृप्ति ने इसे बहुत ही सरलता से निभाया. लेकिन दर्शकों ने उन की इस इमेज को पकड़ लिया.

सैक्सी इमेज का फायदा और नुकसान

तृप्ति डिमरी ने ‘एनिमल’ में जो इंटिमेट सीन किया, उस के बाद उन का नाम हर जगह चर्चा में आ गया. सोशल मीडिया पर उन के फौलोअर्स की संख्या रातोंरात बढ़ गई. लोग उन की बोल्डनैस की तारीफें करने लगे, लेकिन इस के साथ ही, वे एक टाइपकास्ंिटग की शिकार भी हो गईं.

जैसे ही वे सोशल मीडिया पर ‘भाभी 2’ और नैशनल क्रश के रूप में जानी गईं, उन्होंने अपनी फीस कई गुना बढ़ा दी. अगली फिल्म ‘बैड न्यूज’ में भी तृप्ति का बोल्ड अवतार दिखा, जिस ने इस टाइपकास्ट को और भी मजबूत कर दिया. अब तृप्ति को जिस तरह से प्रोजैक्ट किया जा रहा है उस से लगता है कि वे धीरेधीरे एक ही तरह के रोल्स में फंसती जा रही हैं. सोशल मीडिया पर भी उन की ऐक्ंिटग की कोई चर्चा नहीं है बल्कि उन के लुक्स और इंटिमेट सीन की चर्चा है. यही वजह है कि तृप्ति की अधिकतर इमेज जो यहांवहां फ्लो होती है वह बोल्ड ही होती है, यहां तक कि ब्रैंड एंडोर्समैंट वाले भी उन्हें हौट ऐक्ट्रैस के रूप में ही इंट्रोड्यूस करते हैं.

खतरे में कैरियर

बौलीवुड में टाइपकास्टिंग एक गंभीर मुद्दा है, जो न केवल कलाकारों के कैरियर को प्रभावित करता है बल्कि उन की पहचान को भी सीमित कर देता है. टाइपकास्टिंग का अर्थ है किसी अभिनेता या अभिनेत्री को एक विशेष प्रकार की भूमिका में बारबार कास्ट किया जाना, जिस से वह उस छवि से बाहर नहीं निकल पाता. यह समस्या खासकर तब और भी सीरियस हो जाती है जब बात ऐक्ट्रैसेस की हो.

उदाहरण के लिए, मल्लिका शेरावत ऐसी अभिनेत्री हैं जो अपनी एरोटिक इमेज के कारण रातोंरात मशहूर हो गईं. फिल्म ‘मर्डर’ (2004) में उन के बोल्ड अवतार ने उन्हें रातोंरात स्टार बना दिया. लेकिन इस के बाद उन की पहचान उस एक ही प्रकार की भूमिकाओं में सीमित हो गई. औडियंस उन्हें उसी किरदार में देखने की चाह रखने लगे. मल्लिका ने अपनी एक इमेज बनाई जो एक सेट औडियंस को आकर्षित करती थी लेकिन इस के कारण उन का कैरियर आगे नहीं बढ़ सका. वे उस टाइपकास्ट इमेज से बाहर नहीं निकल पाईं और उन की सफलता सीमित हो गई.

उर्वशी रौतेला का भी उदाहरण लिया जा सकता है. वे भी ग्लैमरस और बोल्ड भूमिकाओं के लिए जानी जाती हैं. उन की इस छवि ने उन्हें फिल्मों में एक विशेष प्रकार की भूमिकाओं तक सीमित कर दिया, जिस से उन का कैरियरग्रोथ बाधित हो गया है.

यह समस्या सिर्फ ऐक्ट्रैस तक सीमित नहीं है, बल्कि कई ऐक्टर भी टाइपकास्ंिटग का शिकार होते हैं. उदाहरण के लिए, राजपाल यादव को अकसर कौमेडी भूमिकाओं में देखा गया है, जो उन के अभिनय के अन्य पहलुओं को छिपा देता है. गोविंदा भी एक समय पर सिर्फ कौमेडी और डांसिंग की भूमिकाओं में सीमित हो गए थे, जिस से उन के कैरियर में भी स्थिरता आ गई थी. रेखा को एक समय पर सिर्फ ग्लैमरस रोल्स में कास्ट किया जाता था लेकिन उन्होंने अपनी इमेज बदलने के लिए कई फिल्मों में चुनौतीपूर्ण किरदार निभाए.

हालांकि महिलाओं के लिए यह समस्या और भी चुनौतीपूर्ण होती है क्योंकि उन की इमेज का सीधा प्रभाव उन के कैरियर व समाज में उन की पहचान पर पड़ता है. तृप्ति डिमरी, जो ‘बुलबुल’ और ‘कला’ जैसी फिल्मों में अपनी अभिनय क्षमता का प्रदर्शन कर चुकी हैं, ने एक इंटरव्यू में इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे टाइपकास्ंिटग से बचने के लिए उन्हें सोचसम?ा कर भूमिकाएं चुननी पड़ती हैं. उन्होंने बताया कि बौलीवुड में एक अभिनेत्री के लिए विविधतापूर्ण भूमिकाओं को निभाना कितना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि एक बार यदि कोई विशेष इमेज बन जाती है तो उस से बाहर निकलना बेहद कठिन होता है.

कुल मिला कर, टाइपकास्टिंग ऐसा फंदा है जो कलाकारों को एक ही प्रकार की भूमिकाओं में बांध देता है, जिस से उन की क्रिएटिविटी और कैरियर की संभावनाएं सीमित हो जाती हैं. मल्लिका शेरावत और उर्वशी रौतेला के उदाहरण हमें यह सिखाते हैं कि एक ऐक्ट्रैस के लिए अपनी पहचान को विविधतापूर्ण बनाना कितना जरूरी है ताकि वे सिर्फ एक इमेज तक सीमित न रह जाएं और अपने कैरियर में आगे बढ़ सकें.

इस टाइपकास्टिंग का तात्कालिक फायदा तृप्ति को जरूर मिला है. वे चर्चा में हैं, लोग उन के बारे में बात कर रहे हैं और उन की फैनफौलोइंग बढ़ रही है. लेकिन लंबे समय में यह उन के कैरियर के लिए नुकसानदायक हो सकता है.

बौलीवुड में टाइपकास्टिंग से बाहर निकलना आसान नहीं होता, लेकिन तृप्ति ने जिस तरह से शुरुआती फिल्मों में काम किया है उस से लगता है कि उन में दम है. लेकिन जरूरी यह है कि दर्शकों में बनी इस इमेज को वे लगातार चैलेंज करती रहें. ऐसा कुछ प्रियंका चोपड़ा, दीपिका पादुकोण, विद्या बालन और आलिया भट्ट करती दिखाई दी हैं. यही कारण है कि वे आज सफल अभिनेत्रियां हैं.

भविष्य की उम्मीदें

तृप्ति डिमरी के पास अभी भी वक्त है कि वे इस टाइपकास्टिंग के ट्रैप से बाहर निकलें. उन्हें चुनौतियों से भरे रोल्स को चुनना होगा जो उन की ऐक्ंिटग स्किल्स को फिर से सामने लाएं. आने वाली फिल्मों में अगर उन्हें वर्सेटाइल किरदार मिलते हैं तो वे इस इमेज से बाहर निकल सकती हैं.

तृप्ति डिमरी का कैरियर इस वक्त एक क्रौसरोड पर खड़ा है. एक तरफ उन की बोल्ड इमेज है जो उन्हें तात्कालिक सफलता दिला रही है तो दूसरी तरफ उन का ऐक्टिंग टैलेंट है जो उन्हें लंबे समय तक इंडस्ट्री में टिकने में मदद करेगा. अगर वे अपनी इमेज को ले कर सावधान नहीं रहीं तो वे टाइपकास्टिंग के इस ट्रैप में फंस सकती हैं, फिर जिस से निकलना मुश्किल होगा. लेकिन अगर वे अपने टैलेंट पर भरोसा रखती हैं और सही प्रोजैक्ट्स का चुनाव करती हैं तो वे बौलीवुड में लंबी पारी खेल सकती हैं.

पुरातन सोच के शिकंजे में महिलाएं

युग चाहे कोई भी हो महिलाएं स्वयं को द्वापर युग में ही खड़ा पाती हैं, जबकि द्वापर युग से ले कर वर्तमान समय तक का एक लंबा फासला मानव सभ्यता ने तय किया है. इस लंबे समय में मानव सभ्यता ने काफी प्रगति की है, अनेक वैज्ञानिक तकनीकों का इजाद किया है, फिर भी महिलाओं को देखने का, उन्हें आंकने का समाज का नजरिया पुरातन सोच और मानसिकता के दायरे में ही सीमित है. समाज महिलाओं को अपनी कुंठित विचारधारा की पकड़ से मुक्त नहीं होने देना चाहता.

उन की आजादी पर अंकुश लगाने की उस की दलील इसी पुरातन सोच के इर्दगिर्द मंडराती रही है, जबकि आधुनिक समाज में महिलाएं स्वतंत्र हैं. उन्हें स्वतंत्रता के वे सारे अधिकार प्राप्त हैं जो हर इंसान को जन्म लेने के साथ प्राप्त होते हैं. विवाह संस्था को बचाने के नाम पर उन की प्रकृतिप्रदत आजादी को कैसे छीना जा सकता है? बच्चे पैदा करने के लिए उन्हें विवाह के बंधन में बांधा जाना अनिवार्य कैसे बताया जा सकता है?

महाभारतरामायण की कथाओं को सच मान कर उसे अपना आदर्श बताने वाला यह समाज क्या यह बता सकता है कि जहां मात्र देवताओं का आवाहन कर पुत्रों को जन्म देने की परंपरा रही है, कुंती अपनी कुंआरी अवस्था में सूर्य देव का आवाहन कर करण को जन्म दे सकती है, जब धृतराष्ट्र की बेवफाई से आहत हो कर गांधारी, वेदव्यास से पुत्रवती होने का आशीर्वाद प्राप्त कर 2 वर्ष तक गर्भधारण के पश्चात भी संतान नहीं प्राप्त करने पर क्रोधवश अपने गर्भ पर जोर से मुक्के का प्रहार किया जिस से उस का गर्भ गिर गया.

तब वेदव्यास ने गांधारी के गर्भ से निकले मांस पिंड पर अभिमंत्रित जल छिड़क कर 99 पुत्र और एक कन्या की उत्पत्ति की तब विवाह संस्था के नियम क्यों खंडित नहीं हुए थे बल्कि इन्हें आदर्श के रूप में देखा जाता रहा है. इन कथाओं के तथाकथित इस तरह के तमाम चरित्रों को बड़े ही आदर की दृष्टि से देखा जाता रहा है, इन्हें पूज्य माना जाता रहा है.

दोहरा मानदंड

देखा जाए तो हमारा यह समाज महिलाओं के लिए हमेशा से ही दोहरे मानदंड को अपनाता रहा है, नैतिकता की वेदी पर महिलाओं की बलि चढ़ाता रहा है. कभी संस्कृति की दुहाई दे कर? तो कभी तथाकथित शादी संस्था को बचाने के नाम पर महिलाओं को नियंत्रित करने की कोशिश करता रहा है.

हम सांस तो आधुनिक, वैज्ञानिक युग में ले रहे हैं लेकिन जी रहे हैं पुरातन सोच के तहत. आज का आधुनिक समाज जब इन कथाओं पर यकीन रख सकता है, उन्हें मानसम्मान दे सकता है? तो सरोगेसी जैसी वैज्ञानिक तकनीक पर उंगली कैसे खड़ी कर सकता है?

इन पुरातनी कहानियों में सरकंडे से भी बच्चे की उत्पत्ति की कहानी दर्ज है जोकि द्रोणाचार्य के जन्म से जुड़ी हुई है. महर्षि भारद्वाज मुनि गंगा में स्नान करती ध्रवाची को देख कर आसक्त हो गए जिस के कारण उन का वीर्य स्खलन हो गया जिसे उन्होंने द्रोण (यज्ञ कलश) में रख दिया जिस से बालक द्रोण पैदा हुए.

अधिकार से वंचित क्यों

अहिल्या से ले कर द्रौपदी, सीता और उर्मिला तक की कहानी जिस में महिलाओं को सिर्फ निष्ठा, कर्तव्यपरायणता और त्याग के ही पाठ पढ़ाए गए हैं. माधवी की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. माधवी जिसे सिर्फ घोड़े के लिए बेचा गया बाद में उस का गृहस्थ जीवन के लिए कोई मोह ही नहीं बचा तो आधुनिक युग में सांस ले रही महिलाएं, लड़कियां शादी संस्था को बचाने के लिए उत्तरदायित्वों में क्यों बांधी जाएं?

क्यों आधुनिक काल की महिलाएं माधवी की तरह अपनी कोख का उपयोग सिर्फ दिव्य पुरुषों के जन्म के लिए करें? अपनी मनमरजी से वे अपनी कोख से बच्चे पैदा करने या न करने के नैसर्गिक अधिकार से वंचित क्यों की जाएं? क्या समाज और कानून की ऐसी सोच उन्हें पुरातन युग की ओर नहीं धकेल रही? क्यों महिलाओं की कोख सिर्फ पुरुषों की बनाई हुई दुनिया के हिसाब से बच्चे पैदा करने के लिए बाध्य हो?

संविधानप्रदत मौलिक अधिकार शादी करने या कुंआरी रहने के अधिकार को कैसे छीना जा सकता है जबकि द्वापर युग में कुंती कुंवारी मां बन सकती थी, सरकंडे से बच्चा पैदा हो सकता था, जल कुंड से बच्चे पैदा हो सकते थे तो सरोगेसी से क्यों नहीं? विवाह संस्था को बचाए रखने के नाम पर क्या यह महिलाओं के मौलिक अधिकार का हनन नहीं है?

सुप्रीम कोर्ट द्वारा अविवाहित महिलाओं को सरोगेसी के जरीए मां बनने की अनुमति देने की मांग वाली याचिका पर यह दलील कि मां बनने के और भी कई रास्ते हैं, वह शादी कर के ही बच्चा पैदा कर सकती है. बच्चे को गोद ले सकती है.

मौलिक अधिकारों की रक्षा

उस की यह दलील क्या महिलाओं की स्वतंत्रता मौलिक अधिकारों एवं जीवन जीने के अधिकारों पर अंकुश नहीं है? कोर्ट के लिए देश की विवाह संस्था की रक्षा किया जाना जरूरी है या किसी महिला के मौलिक स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा ज्यादा जरूरी है? पश्चिमी देशों की तर्ज पर नहीं चल सकने की हिदायत देना, विवाह से पहले बच्चा नहीं होना चाहिए ऐसा दिशा निर्देश कोर्ट के द्वारा दिया जाना, क्या महिलाओं से उन के जीवन जीने के अधिकारों को छीने जाने की कोशिश नहीं है? क्या यह निर्देश उन्हें पुरातन युग की ओर नहीं धकेल रहा?

इस से तो यही सिद्ध होता है न कि महिलाएं सांस तो स्वतंत्र भारत में ले रही हैं लेकिन जीवन जीने के लिए उन के इर्दगिर्द पुरातन सोच की दीवारें खड़ी की जा रही हैं.

जीने की आजादी

विवाह संस्था आखिर समाज के लिए इतना जरूरी क्यों है? क्या विवाह के नाम पर लिए गए फेरे, मंत्र उच्चारण अग्निकुंड, ग्रह नक्षत्र के मेल, मंगल दोष निराकरण, जन्मपत्रिका मिलान यह सबकुछ इस बात की गारंटी देते हैं कि विवाहित जोड़े के बीच कभी तलाक नहीं होगा?

जबकि आजाद भारत में संविधान के मूल अधिकारों में विशिष्ठ स्वातंर्त्य के अधिकार प्रत्येक नागरिक को प्राप्त हैं, प्रदत्त अधिकारों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता भी शामिल है. मूल अधिकारों में वर्णित अनुच्छेद ‘21’ किसी भी व्यक्ति को चाहे वह महिला हो या पुरुष सम्मान से और निजता से जीवन जीने की आजादी देता है.

तो सुप्रीम कोर्ट द्वारा अविवाहित महिलाओं को सरोगेसी के जरीए मां बनने की अनुमति देने पर रोक क्या न्याय संगत है? इस संदर्भ में उस की दलील क्या आधुनिक समाज की महिलाओं को द्वापर युग की ओर, पुरानी सोच की ओर नहीं धकेल रहा है? इस पर विचार करने की जरूरत है.

हीरे की अंगूठी : क्या नैना से शादी कर पाया राहुल

लेखक- सुधा शुक्ला

नैना थी ही इतनी खूबसूरत. चंपई रंग, बड़ीबड़ी आंखें, पतली नाक, छोटेछोटे होंठ. वह हंसती तो लगता जैसे चांदी की छोटीछोटी घंटियां रुनझुन करती बज उठी हों. उस के अंगअंग से उजाले से फूटते थे.

राहुल और नैना दोनों शहर के बीच बहते नाले के किनारे बसी एक झुग्गी बस्ती में रहते थे. नीचे गंदा नाला बहता, ऊपर घने पड़ों की ओट में बने झोंपड़ीनुमा कच्चेपक्के घरों में जिंदगी पलती. बड़े शहर की चकाचौंध में पैबंद सी दिखती इस बस्ती में राहुल अपने मातापिता और छोटी बहन के साथ रहता था और यहीं रहती थी नैना भी.

राहुल के पिता रिकशा चलाते, मां घरघर जूठन धोती. नैना की मां भी यही काम करती और उस के बाबा पकौड़ी की फेरी लगाते.

नैना बड़े चाव से पकौड़ी बनाती, खट्टीमीठी चटनी तैयार करती, दही जमाती, प्याज, अदरक, धनिया महीनमहीन कतरती और सबकुछ पीतल की चमकती बड़ी सी परात में सजा कर बाबा को देती.

बाबा परात सिर पर उठाए गलीगली चक्कर काटते. दही, चटनी, प्याज डाल कर दी गई पकौड़ी हाथोंहाथ बिक जातीं.

नैना के बाबा को अच्छे रुपए मिल जाते, पर हाथ आए रुपए कभी पूरे घर तक न पहुंचते. ज्यादातर रुपए दारू में खर्च हो जाते. फिर नैना के बाबा कभी नाली में लोटते मिलते तो कभी कहीं गिरे पड़े मिलते.

ऐसे गलीज माहौल में पलीबढ़ी नैना की खूबसूरती पर हालात की कहीं कोई छाया तक नहीं झलकती थी. राहुल सबकुछ भूल कर नैना को एकटक देखता रह जाता था.

नैना के दीवानों की कमी न थी. कितने लोग उस के आगेपीछे मंडराया करते, पर उन में राहुल जैसा कोई दूसरा था ही नहीं.

राहुल भी कम सुंदर न था. भला स्वभाव तो था ही उस का. गरीबी में पलबढ़ कर, कमियों की खाद पा कर भी उस की देह लंबी, ताकतवर थी. एक से एक सुंदर लड़कियां उस के इर्दगिर्द चक्कर काटतीं, पर कोई किसी भी तरह उसे रिझा न पाती, क्योंकि उस के मन में तो नैना बसी थी.

नैना के मन में बसी थी हीरे की अंगूठी. उसे बचपन से हीरे की अंगूठी पहनने का चाव था. सोतेजागते उस के आगे हीरे की अंगूठी नाचा करती. अपनी इसी इच्छा के चलते एक दिन नैना ने सारे बंधन झुठला दिए. प्रीति की रीति भुला दी.

बस्ती के एक छोर पर पत्थर की टूटी बैंच पर नैना बैठी थी. काले रंग की छींट की फ्रौक पहने, जिस पर सफेद गुलाबी रंग के गुलाब बने थे. फ्रौक की कहीं सिलाई खुली, कहीं रंग उड़ा, पर वह पैर पर पैर चढ़ाए किसी राजकुमारी की सी शान से बालों में जंगली पीला फूल लगाए बैठी थी. सब उसी को देख रहे थे.

इतराते हुए बड़ी अदा से नैना बोली, ‘‘जो मेरे लिए हीरे की अंगूठी लाएगा, मैं उसी से शादी करूंगी.’’

नैना की ऐसी विचित्र शर्त सुन कर सब की उम्मीदों पर जैसे पानी फिर गया. राहुल को तो अपने कानों पर यकीन ही नहीं हुआ.

धन्नो काकी यह तमाशा देख कर ठहरीं और हाथ नचाते हुए बोलीं, ‘‘घर में खाने को भूंजी भांग नहीं, उतरन के कपड़े, मांगे का सम्मान, मां घरघर जूठे बरतन धोए, बाप फेरी लगाए और दारू पीए और ये पहनेंगी हीरे की अंगूठी,’’ ऐसा कह कर वे आगे बढ़ गईं.

रंग में भंग हुआ. शायद नैना का प्रण टूट ही जाता, पर तभी राहुल के मुंह से निकला, ‘‘मैं पहनाऊंगा तुम्हें हीरे की अंगूठी,’’ और सब हैरानी से उसे देखते रह गए.

राहुल, जिस के घर में खाने के भी लाले थे, बीमार पिता की दवा के लिए पूरे पैसे नहीं थे, छत गिर रही थी, एक छोटी बहन ब्याहने को बैठी थी, उस राहुल ने नैना को हीरे की अंगूठी देने का वचन दे दिया. वह भी उसे जो उस का इंतजार करेगी भी या नहीं, यह वह नहीं जानता.

सचमुच राहुल के लिए हीरे की अंगूठी खरीदना और आकाश के तारे तोड़ना एक समान था. अभी तो वह पढ़ रहा है. बड़ा होनहार लड़का है वह. टीचर उसे बहुत प्यार करते हैं. उस की मदद के लिए तैयार रहते हैं.

राहुल पढ़लिख कर कुछ बनना चाहता है. राहुल की मां भी चाहती है कि वह पढ़लिख कर अपनी जिंदगी संवारे, इसीलिए वह हाड़तोड़ मेहनत कर राहुल को पढ़ा रही है.

राहुल की मां 35-36 साल की उम्र में ही 60 साल की दिखने लगी है. उसे लगता है कि उस का बेटा जग से निराला है. एक दिन वह पढ़लिख कर बड़ा आदमी बनेगा और उस की सारी गरीबी दूर हो जाएगी, इसीलिए जब उसे पता चला कि राहुल ने नैना को हीरे की अंगूठी पहनाने का वचन दिया है तो उस के मन को गहरी ठेस लगी. थकी आंखों की चमक फीकी हो कर बुझ सी गई.

राहुल में ही तो उस की मां के प्राण बसते थे. अब तक मन में एक इसी आस के भरोसे कितनी तकलीफ सहती आई है कि राहुल बड़ा होगा तो उस के सारे कष्ट दूर देगा. वह भी जीएगी, हंसेगी, सिर उठा कर चलेगी. आज उस का यह सपना पानी के बुलबुले सा फूट गया.

अब क्या करे? राहुल तो अब ऐसी तलवार की धार पर, कांटों भरी राह पर चल पड़ा है जिस के आगे अंधेरे ही अंधेरे हैं.

मां ने राहुल को समझाने की भरसक कोशिश की और कहा, ‘‘अभी तू इन सब बातों में मत पड़ बेटा. बहुत छोटा है तू. पहले पढ़लिख कर कुछ बन जा, फिर यह सब करना.’’

‘‘मुझे रुपए चाहिए मां.’’

‘‘रुपए पेड़ों पर नहीं फलते. हम लोग तो पहले से ही सिर से पैर तक कर्ज में डूबे हैं.’’

‘‘मां, तुम नहीं समझोगी इन सब बातों को.’’

‘‘मुझे समझना भी नहीं है. मेरे पास बहुतेरे काम हैं. तू अभी…’’ मां की बात पूरी होने से पहले ही राहुल बिफर उठता. अब वह अपनी मां से, अपनों से दूर होता जा रहा था. नैना और हीरे की अंगूठी अब राहुल और उस के अपनों के बीच एक ऐसी दीवार के रूप में खड़ी हो गई थी जो हर पल ऊंची होती जा रही थी. उसे तो एक ही धुन सवार थी कि जल्दी से जल्दी ढेर सारा पैसा कमाना है ताकि हीरे की अंगूठी खरीद सके.

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राहुल जबतब किसी सुनार की दुकान के बाहर खड़ा हो कर अंदर देखा करता था. एक दिन उसे अंदर झांकते देख दरबान ने डांट कर भगा दिया. नैना को पाने की ख्वाहिश में वह अपनी हैसियत वगैरह सब भूल गया था.

राहुल को यह भी नहीं समझ आया कि वह नैना को प्यार करता है और नैना हीरे की अंगूठी को प्यार करती है. उस ने तो बस अपनी कामना का उत्सव मनाना चाहा, समर्पण के बजाय अपनी इच्छा को पूरा करने का जरीया बनाना चाहा.

राहुल अपनी पढ़ाई छोड़ इस शहर से बहुत दूर जा रहा था. जाने से पहले नैना से विदा लेने आया वह. भुट्टा खाती, एक छोटी सी मोटी दीवार पर बैठी पैर हिलाती नैना को वह अपलक देखता रहा.

नैना से विदा लेते हुए राहुल की आंखें मानो कह रही थीं, ‘काश, तुम जान सकती, पढ़ सकतीं मेरा मन और देख सकतीं मेरे दिल के भीतर जिस में बस तुम ही तुम हो और तुम्हारे सिवा कोई नहीं और न होगा कभी.

‘मैं ने वादा किया है तुम से, मैं लौट कर आऊंगा और सारे वचन निभाऊंगा. लाऊंगा अपने साथ अंगूठी जो होगी हीरे से जड़ी होगी, जैसी तुम्हारी उजली हंसी है. तुम मेरा इंतजार करना नैना. कहीं और दिल न लगा लेना. मैं जल्दी आ जाऊंगा. तुम मेरा इंतजार करना.’

राहुल अपने परिवार को छोड़ सब के सपने ताक पर रख हीरे की अंगूठी खरीदने के जुगाड़ में चल पड़ा. मां पुकारती रह गई. घर की जिम्मेदारियां गुहार लगाती रहीं. सुनहरा भविष्य पलकें बिछाए बैठा रह गया और राहुल सब को छोड़ कर दूसरी ओर मुड़ गया.

शहर आ कर राहुल ने 18-18 घंटे काम किया. ईंटगारा ढोना, अखबार बांटना, पुताई करना से ले कर न जाने कैसेकैसे काम किए. वहीं उसे प्रकाश मिला था, जो उसे गन्ना कटाई के लिए गांव ले गया. हाथों में छाले पड़ गए. गोरा रंग जल कर काला पड़ गया, पर रुपए हाथ में आते गए. हिम्मत बढ़ती गई.

अंधेरी स्याह रातों में कहीं कोने में गुड़ीमुड़ी सा पड़ा राहुल सोते समय भी सुबह का इंतजार करता रहता. मीलों दूर रहती नैना को देखने के लिए वह छटपटाता रहता.

समय का पहिया घूमता रहा. दिन, हफ्ते, महीने बीतते गए. हीरे की अंगूठी की शर्त लोग भूल गए, पर राहुल नहीं भूला. बड़ी मुश्किल से, कड़ी मेहनत से आखिरकार उस ने पैसे जोड़ कर अंगूठी खरीद ही ली.

इस बीच कितनी बार ये पैसे निकालने की नौबत आई, मां बीमार पड़ी, बहन की शादी तय होतेहोते पैसे की कमी के चलते रुक गई, वह खुद भी बीमार पड़ा, घर के कोने की छत टपकने लगी, पर उस ने इन पैसों पर आंच न आने दी और आज बिना एक पल गंवाए वह हीरे की अंगूठी ले कर जब नैना के घर की ओर चला तो पैर जैसे जमीन पर नहीं पड़ रहे थे.

राहुल शहर से लौट कर सब से पहले अपनी मां के गले कुछ ऐसे लिपटा मानो कह रहा हो, ‘मां, तेरा राहुल जीत गया. अब नैना को तुम्हारी बहू बनाने से कोई नहीं रोक सकता, क्योंकि तेरा राहुल नैना की शर्त पूरी कर के ही लौटा है.’

मां ने उस का ध्यान तोड़ते हुए कहा, ‘‘तुम ठीक हो न बेटा? कहां चले गए थे तुम इतने दिनों तक? क्या तुम्हें अपनी बीमार मातापिता और बहन की याद भी नहीं आई?’’ कहते हुए वह सिसकने लगी.

‘‘मां, अब रोनाधोना बंद करो. अब मैं आ गया हूं न. अपनी नैना को तेरी बहू बना कर लाने का समय आ गया. अब तुम्हें कोई काम नहीं करना पड़ेगा.’’

‘‘हां बेटा, अब काम ही क्या है… तेरे मातापिता अब बूढ़े हो चले हैं. जवान बहन घर में बैठी है. तुम जिस नैना के लिए हीरे की अंगूठी लाए हो न, उसे पहले ही कोई और हीरे की अंगूठी पहना कर ले जा चुका है.’’

‘‘झूठ न बोलो मां. हां, मेरी नैना को कोई नहीं ले जा सकता.’’

‘‘ले जा चुका है बेटा. तेरी नैना को हीरे की अंगूठी से प्यार था, तुझ से नहीं, जो उसे कोई और पहना कर ले गया. तुझे रूपवती लड़की चाहिए थी, गुणवती नहीं और उसे हीरे की अंगूठी चाहिए थी, हीरे जैसा लड़का नहीं.

‘‘उसे हीरे की अंगूठी तो मिल गई, पर हीरे की अंगूठी देने वाला पक्का शराबी है. तुम हो कि ऐसी लड़की के लिए घर, मातापिता और बहन सब छोड़ कर चल दिए.’’

‘‘बस मां, बस करो अब,’’ राहुल रोते हुए कमरे से बाहर निकल गया.

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राहुल को लगा कि वह भीड़ भरी राह पर सरपट दौड़ा चला जा रहा है. गाडि़यां सर्र से दाएंबाएं, आगेपीछे से गुजर रही हैं. उसे न कुछ दिखाई दे रहा है, न सुनाई दे रहा है. एकाएक किसी का धक्का लगने से वह गिरा. आधा फुटपाथ पर और आधा सड़क पर. हां, प्यार के पागलपन में कितनाकुछ गंवा दिया, यह समझ आते ही पछतावे से भरा राहुल उठ खड़ा हुआ.

सपना टूटते ही राहुल अपनेआप को सहजता की राह पर चला जा रहा था, अपनी बहन के लिए हीरे जैसे लड़के की तलाश में.

कई बार लगता है कि मेरे पति का किसी और के साथ संबंध है…

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 31 वर्षीय वर्किंग वूमन हूं. पति भी वर्किंग हैं. हमारी शिफ्ट ड्यूटी की वजह से हमारे बीच ठीक से बातचीत नहीं हो पाती है. यह हमारे झगड़े का कारण बन गया है. अब तो हालत यह हो गई है कि लीव वाले दिन भी हम बात नहीं करते. हमारे बीच प्यार खत्म सा हो गया है. कई बार मुझे यह भी लगता है कि मेरे पति का किसी और के साथ अफेयर है. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

पतिपत्नी के रिश्ते में कभी प्यार तो कभी तकरार होना स्वाभाविक है. आप की लाइफ इतनी बिजी हो गई है कि आप अपने परिवार के साथ ज्यादा टाइम नहीं बिना पाते. पतिपत्नी के रिश्ते को मजबूत करने के लिए एकदूसरे को समय दें. एकदूसरे की रिस्पैक्ट करना बहुत जरूरी है. जो भी बात आप को परेशान कर रही हो उसे अपने पार्टनर से शेयर करें और फिर साथ मिल कर उस का समाधान निकालें. फिर भी समाधान न निकल पाए तो काउंसलर या कपल थेरैपिस्ट की मदद लें.

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कहते हैं इंसान के विचार समुद्र की लहरों की तरह हरदम मचलने को तैयार रहते हैं, वहीं उस की भावनाओं की कोई थाह नहीं होती और यही भावनाएं हमें अपनों से जोड़े रखती हैं. भावनात्मक रिश्ता सीधा दिल से जा कर जुड़ता है. जरूरी नहीं कि भावनात्मक रिश्ता सिर्फ अपनों से ही जोड़ा जाए बल्कि यह कभी भी किसी के भी साथ जुड़ सकता है.

कई भावनात्मक रिश्ते ऐसे होते हैं, जिन का कोई नाम नहीं होता. इन में एकदूसरे के प्रति प्रेम, अपनेपन का भाव होता तो है लेकिन जरूरी नहीं कि इन के बीच शारीरिक आकर्षण भी हो. इसे हम दिल का रिश्ता कहते हैं. इस में उम्र का कोई बंधन नहीं होता है.

पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के 24 वर्षीय बेटे बिलावल भुट्टो और पाकिस्तान की 35 वर्षीय विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार के बीच कुछ ऐसा ही रिश्ता देखने को मिला, जिस में उम्र का कोई बंधन नहीं दिखा.

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या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

दर्द का एहसास : क्या हुआ मृणाल की बेवफाई का अंजाम

‘‘हैलो,एम आई टौकिंग टु मिस्टर मृणाल?’’ एक मीठी सी आवाज ने मृणाल के कानों में जैसे रस घोल दिया.

‘‘यस स्पीकिंग,’’ मृणाल ने भी उतनी ही विनम्रता से जवाब दिया.

‘‘सर, दिस इज निशा फ्रौम होटल सन स्टार… वी फाउंड वालेट हैविंग सम मनी,

एटीएम कार्ड ऐंड अदर इंपौर्टैंट कार्ड्स विद

योर आईडैंटिटी इन अवर कौन्फ्रैंस हौल. यू

आर रिक्वैस्टेड टु कलैक्ट इट फ्रौम रिसैप्शन,

थैंक यू.’’

सुनते ही मृणाल की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. वह कल अपनी कंपनी की तरफ से एक सेमिनार अटैंड करने इस होटल में गया था. आज सुबह से ही अपने पर्स को ढूंढ़ढूंढ़ कर परेशान हो चुका था. निशा की इस कौल ने उस के चेहरे पर सुकून भरी मुसकान ला दी.

‘‘थैंक यू सो मच निशाजी…’’ मृणाल ने कहा, मगर शायद निशा ने सुना नहीं, क्योंकि फोन कट चुका था. लंच टाइम में मृणाल होटल सन स्टार के सामने था. रिसैप्शन पर बैठी खूबसूरत लड़की को देखते ही उस के चेहरे पर एक बार फिर मुसकान आ गई.

‘‘ऐक्सक्यूज मी, माइसैल्फ मृणाल… आप शायद निशाजी हैं…’’ मृणाल ने कहा तो निशा ने आंखें उठा कर देखा.

‘‘ओ या…’’ कहते हुए निशा ने काउंटर के नीचे से मृणाल का पर्स निकाल कर उस का फोटो देखा. तसल्ली करने के बाद मुसकराते हुए उसे सौंप दिया.

‘‘थैंक्स अगेन निशाजी… इफ यू डोंटमाइंड, कैन वी हैव ए कप औफ कौफी प्लीज…’’ मृणाल निशा का यह एहसान उतारना चाह रहा था.

‘‘सौरी, इट्स ड्यूटी टाइम… कैच यू लेटर,’’ कहते हुए निशा ने जैसे मृणाल को भविष्य की संभावना का हिंट दे दिया.

‘‘ऐज यू विश. बाय द वे, क्या मुझे आप

का कौंटैक्ट नंबर मिलेगा? ताकि मैं आप को कौफी के लिए इन्वाइट कर सकूं?’’ मृणाल ने उस की आंखों में झांकते हुए कहा तो निशा ने अपना विजिटिंग कार्ड उस की तरफ बढ़ा दिया. मृणाल ने थैंक्स कहते हुए निशा से हाथ मिलाया और कार्ड को पर्स में डालते हुए होटल से बाहर आ गया.

‘‘कोई मिल गया… मेरा दिल गया… क्या बताऊं यारो… मैं तो हिल गया…’’ गुनगुनाते हुए मृणाल ने घर में प्रवेश किया तो उषा को बड़ा आश्चर्य हुआ. रहा नहीं गया तो आखिर पूछ ही लिया, ‘‘क्या बात है, बड़ा रोमांटिक गीत गुनगुना रहे हैं? ऐसा कौन मिल गया?’’

‘‘लो, अब गुनगुनाना भी गुनाह हो गया?’’ मृणाल ने खीजते हुए कहा.

‘‘गुनगुनाना नहीं, बल्कि आप से तो आजकल कुछ भी पूछना गुनाह हो गया,’’ उषा ने भी झल्ला कर कहा.

‘‘जब तक घर से बाहर रहते हैं, चेहरा 1000 वाट के बल्ब सा चमकता रहता है, घर

में घुसते ही पता नहीं क्यों फ्यूज उड़ जाता है,’’ मन ही मन बड़बड़ाते हुए उषा चाय बनाने

चल दी.

चाय पी कर मृणाल ने निशा का कार्ड

जेब से निकाल कर उस का नंबर अपने मोबाइल में सेव कर लिया. फिर उसे व्हाट्सऐप पर

एक मैसेज भेजा, ‘हाय दिस इज मृणाल…

हम सुबह मिले थे… आई होप कि आगे भी मिलते रहेंगे…’

रातभर इंतजार करने के बाद अगली सुबह रिप्लाई में गुड मौर्निंग के साथ निशा की एक स्माइली देख कर मृणाल खुश हो गया.

औफिस में फ्री होते ही मृणाल ने निशा को फोन लगाया. थोड़ी देर हलकीफुलकी औपचारिक बातें करने के बाद उस ने फोन रख दिया. मगर यह कहने से नहीं चूका कि फुरसत हो तो कौल कर लेना.

शाम होतेहोते निशा का फोन आ ही गया. मृणाल ने मुसकराते हुए कौल रिसीव की, ‘‘कहिए हुजूर कैसे मिजाज हैं जनाब के?’’ मृणाल की आवाज में रोमांस घुला था.

निशा ने भी बातों ही बातों में अपनी अदाओं के जलवे बिखेरे जिन में एक बार फिर मृणाल खो गया. लगभग 10 दिनों तक यही सिलसिला चलता रहा. दोनों एकदूसरे से अब एक हद तक खुल चुके थे.

आज मृणाल ने हिम्मत कर के निशा के सामने एक बार फिर कौफी पीने का प्रस्ताव रखा जिसे निशा ने स्वीकार लिया. हालांकि मन ही मन वह खुद भी उस का सान्निध्य चाहने लगी थी. अब तो हर 3-4 दिन में कभी निशा मृणाल के औफिस में तो कभी मृणाल निशा के होटल में नजर आने लगा था.

2 महीने हो चले थे. निशा मृणाल की बोरिंग जिंदगी में एक ताजा हवा के झौंके की तरह

आई और देखते ही देखते अपनी खुशबू से उस के सारे वजूद को अपनी गिरफ्त में ले लिया. मृणाल हर वक्त महकामहका सा घूमने लगा. पहले तो सप्ताह या 10 दिन में वह अपनी शारीरिक जरूरतों के लिए उषा के नखरे भी उठाया करता था, मगर जब से निशा उस की जिंदगी में आई है उसे उषा से वितृष्णा सी होने लगी थी. वह खयालों में ही निशा के साथ अपनी जरूरतें पूरी करने लगा था. बस उस दिन का इंतजार कर रहा था जब ये खयाल हकीकत में ढलेंगे.

दिनभर पसीने से लथपथ, मुड़ेतुड़े कपड़ों और बिखरे बालों में दिखाई देती उषा उसे अपने मखमल से सपनों में टाट के पैबंद सी लगने लगी. उषा भी उस के उपेक्षापूर्ण रवैए से तमतमाई सी रहने लगी. कुल मिला कर घर में हर वक्त शीतयुद्ध से हालात रहने लगे. उषा और मृणाल एक बिस्तर पर सोते हुए भी अपने बीच मीलों का फासला महसूस करने लगे थे. मृणाल का तो घर में जैसे दम ही घुटने लगा था.

अब मृणाल और निशा को डेटिंग करते हुए लगभग 3 महीने हो चले थे. आजकल मृणाल कभीकभी उस के मैसेज बौक्स में रोमांटिक शायरीचुटकुले आदि भी भेजने लगा था. जवाब

में निशा भी कुछ इसी तरह के मैसेज भेज देती थी, जिन्हें पढ़ कर मृणाल अकेले में मुसकराता रहता. कहते हैं कि इश्क और मुश्क यानी प्यार और खुशबू छिपाए नहीं छिपते. उषा को भी मृणाल का यह बदला रूप देख कर उस पर कुछकुछ शक सा होने लगा था. एक दिन जब मृणाल बाथरूम में था, उषा ने उस का मोबाइल चैक किया तो निशा के मैसेज पढ़ कर दंग रह गई.

गुस्से में तमतमाई उषा ने फौरन उसे आड़े हाथों लेने की सोची, मगर फिर कुछ दिन और इंतजार करने और पुख्ता जानकारी जुटाने का खयाल कर के अपना इरादा बदल दिया और फोन वापस रख कर सामान्य बने रहने का दिखावा करने लगी जैसे कुछ हुआ ही नहीं.

एक दिन मृणाल के औफिस की सालाना गैटटुगैदर पार्टी में उस की सहकर्मी रजनी ने उषा से कहा, ‘‘क्या बात है उषा आजकल पति को ज्यादा ही छूट दे रखी है क्या? हर वक्त आसमान में उड़ेउड़े से रहते हैं.’’

‘‘क्या बात हुई? मुझे कुछ भी आइडिया नहीं है… तुम बताओ न आखिर क्या चल रहा

है यहां?’’ उषा ने रजनी को कुरेदने की

कोशिश की.

‘‘कुछ ज्यादा तो पता नहीं, मगर लंच टाइम में अकसर किसी का फोन आते ही मृणाल औफिस से बाहर चला जाता है. एक दिन मैं ने देखा था… वह एक खूबसूरत लड़की थी,’’ रजनी ने उषा के मन में जलते शोलों को हवा दी.

उषा का मन फिर पार्टी से उचट गया. घर पहुंचते ही उषा ने मृणाल से सीधा सवाल किया, ‘‘रजनी किसी लड़की के बारे में बता रही थी… कौन है वह?’’

‘‘है मेरी एक दोस्त… क्यों, तुम्हें कोई परेशानी है क्या?’’ मृणाल ने प्रश्न के बदले प्रश्न उछाला.

‘‘मुझे भला क्या परेशानी होगी? जिस का पति बाहर गुलछर्रे उड़ाए, उस पत्नी के लिए तो यह बड़े गर्व की बात होगी न…’’ उषा ने मृणाल पर ताना कसा.

‘‘कभी तुम ने अपनेआप को शीशे में देखा है? अरे अच्छेभले आदमी का मूड खराब करने के लिए तुम्हारा हुलिया काफी है. अब अगर मैं निशा के साथ थोड़ा हंसबोल लेता हूं तो तुम्हारे हिस्से का क्या जाता है?’’ मृणाल अब आपे से बाहर हो चुका था.

‘‘मेरे हिस्से में था ही क्या जो जाएगा… जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो किसी और को क्या दोष दिया जाए…’’ उषा ने बात आगे बढ़ाना उचित नहीं समझा और कमरे की लाइट बंद कर के सो गई.

इस शनिवार को निशा का जन्मदिन था. मृणाल ने उस से खास अपने लिए

2-3 घंटे का टाइम मांगा था जिसे निशा ने इठलाते हुए मान लिया था. सुबह 11 बजे होटल सन स्टार में ही उन का मिलना तय हुआ. उत्साह और उत्तेजना से भरा मृणाल निर्धारित समय से पहले ही होटल पहुंच गया था. निशा उसे एक वीआईपी रूम में ले कर गई. बुके के साथ मृणाल ने उसे ‘हैप्पी बर्थडे’ विश किया और एक हलका सा चुंबन उस के गालों पर जड़ दिया. मृणाल के लिए यह पहला अवसर था जब उस ने निशा को टच किया था. निशा ने कोई विरोध नहीं किया तो मृणाल की हिम्मत कुछ और बढ़ी. उस ने निशा को बांहों के घेरे में कस कर होंठों को चूम लिया. निशा भी शायद आज पूरी तरह समर्पण के मूड में थी. थोड़ी ही देर में दोनों पूरी तरह एकदूसरे में समा गए.

होटल के इंटरकौम पर रिंग आई तो दोनों सपनों की दुनिया से बाहर आए. यह रूम शाम को किसी के लिए बुक था, इसलिए अब उन्हें जाना होगा. हालांकि मृणाल निशा की जुल्फों की कैद से आजाद नहीं होना चाह रहा था, क्योंकि आज जो आनंद उस ने निशा के समागम से पाया था वह शायद उसे अपने 10 साल के शादीशुदा जीवन में कभी नहीं मिला था. जातेजाते उस ने निशा की उंगली में अपने प्यार की निशानीस्वरूप एक गोल्ड रिंग पहनाई. एक बार फिर उसे किस किया और पूरी तरह संतुष्ट हो दोनों रूम से बाहर निकल आए.

अब तो दिनरात कौल, मैसेज, व्हाट्ऐप, चैटिंग… यही सब चलने लगा. बेकरारी

हद से ज्यादा बढ़ जाती थी तो दोनों बाहर भी मिल लेते थे. इतने पर भी चैन न मिले तो महीने में 1-2 बार होटल सन स्टार के किसी खाली कमरे का उपयोग भी कर लेते थे.

निशा के लिए मृणाल की दीवानगी बढ़ती ही जा रही थी. हर महीने उस की सैलरी का एक बड़ा हिस्सा निशा पर खर्च होने लगा था. नतीजतन घर में हर वक्त आर्थिक तंगी रहने लगी. उषा ने कई बार उसे समझाने की कोशिश की, समाज में रहने के कायदे भी बताए, मगर मृणाल तो जैसे निशा के लिए हर रस्मरिवाज तोड़ने पर आमादा था. ज्यादा विरोध करने पर कहीं बात तलाक तक न पहुंच जाए, यही सोच कर पति पर पूरी तरह से आश्रित उषा ने इसे अपनी नियति मान कर सबकुछ वक्त पर छोड़ दिया और मृणाल की हरकतों पर चुप्पी साध ली.

सालभर होने को आया. मृणाल अपनी दोस्ती की सालगिरह मनाने की

प्लानिंग करने लगा. मगर इन दिनों न जाने क्यों मृणाल को महसूस होने लगा था कि निशा का ध्यान उस की तरफ से कुछ हटने सा लगा है. आजकल उस के व्यवहार में पहले जैसी गर्मजोशी नहीं रही थी. कई बार तो वह उस का फोन भी काट देती. अकसर उस का फोन बिजी भी रहने लगा है. उस ने निशा से इस बारे में बात करने की सोची, मगर निशा ने अभी जरा बिजी हूं, कह कर उस का मिलने का प्रस्ताव टाल दिया तो मृणाल को कुछ शक हुआ.

एक दिन वह उसे बिना बताए उस के होटल पहुंच गया. निशा रिसैप्शन पर नहीं थी. वेटर से पूछने पर पता चला कि मैडम अपने किसी मेहमान के साथ डाइनिंगहौल में हैं. मृणाल उधर चल दिया. उस ने जो देखा वह उस के पैरों के नीचे से जमीन खिसकाने के लिए काफी था. निशा वहां सोफे पर अपने किसी पुरुष मित्र के कंधे पर सिर टिकाए बैठी थी. उस की पीठ हौल के दरवाजे की तरफ होने के कारण वह मृणाल को देख नहीं पाई.

मृणाल चुपचाप आ कर रिसैप्शन पर बने विजिटर सोफे पर बैठ कर निशा का इंतजार करने लगा. लगभग आधे घंटे बाद निशा अपने दोस्त का हाथ थामे नीचे आई तो मृणाल को यों अचानक सामने देख कर सकपका गई. फिर अपने दोस्त को विदा कर के मृणाल के पास आई.

‘‘मैं ये सब क्या देख रहा हूं?’’ मृणाल ने अपने गुस्से को पीने की भरपूर कोशिश की.

‘‘क्या हुआ? ऐसा कौन सा तुम ने दुनिया का 8वां आश्चर्य देख लिया जो इतना उबल रहे हो?’’ निशा ने लापरवाही से अपने बाल झटकते हुए कहा.

‘‘देखो निशा, मुझे यह पसंद नहीं… बाय द वे, कौन था यह लड़का? उस ने तुम्हारा हाथ क्यों थाम रखा था?’’ मृणाल अब अपने गुस्से को काबू नहीं रख पा रहा था.

‘‘यह मेरा दोस्त है और हाथ थामने

से क्या मतलब है तुम्हारा? मैं क्या तुम्हारी

निजी प्रौपर्टी हूं जो मुझ पर अपना अधिकार जता रहे हो?’’ अब निशा का भी पारा चढ़ने

लगा था.

‘‘मगर तुम तो मुझे प्यार करती हो न?

तुम्हीं ने तो कहा था कि मैं तुम्हारा पहला प्यार हूं…’’ मृणाल का गुस्सा अब निराशा में बदलने लगा था.

‘‘हां कहा था… मगर यह किस किताब में लिखा है कि प्यार दूसरी या तीसरी बार नहीं किया जा सकता? देखो मृणाल, यह मेरा निजी मामला है, तुम इस में दखल न ही दो तो बेहतर है. तुम मेरे अच्छे दोस्त हो और वही बने रहो

तो तुम्हारा स्वागत है मेरी दुनिया में अन्यथा तुम कहीं भी जाने के लिए आजाद हो,’’ निशा ने

उसे टका सा जवाब दे कर उस की बोलती बंद कर दी.

‘‘लेकिन वह हमारा रिश्ता… वे ढेरों बातें… वह मिलनाजुलना… ये तुम्हारे हाथ में मेरी अंगूठी… ये सब क्या इतनी आसानी से एक ही झटके में खत्म कर दोगी तुम? तुम्हारा जमीर तुम्हें धिक्कारेगा नहीं?’’ मृणाल अब भी हकीकत को स्वीकार नहीं कर पा रहा था.

‘‘क्यों, जमीर क्या सिर्फ मुझे ही धिक्कारेगा? जब तुम उषा को छोड़ कर मेरे

पास आए थे तब क्या तुम्हारे जमीर ने तुम्हें धिक्कारा था? वाह, तुम करो तो प्यार… मैं

करूं तो बेवफाई… अजीब दोहरे मानदंड हैं तुम्हारे… क्या अपनी खुशी ढूंढ़ने का अधिकार सिर्फ तुम पुरुषों के ही पास है? हम महिलाओं को अपने हिस्से की खुशी पाने का कोई हक नहीं?’’ निशा ने मृणाल को जैसे उस की औकात दिखा दी.

आज उसे उषा के दिल के दर्द का एहसास हो रहा था. वह महसूस कर पा रहा

था उस की पीड़ा को. क्योंकि आज वह खुद भी दर्द के उसी काफिले से गुजर रहा था. मृणाल भारी कदमों से उठ कर घर की तरफ चल दिया जहां उषा गुस्से में ही सही, शायद अब भी उस के लौटने का इंतजार कर रही थी.

बौलीवुड के ये स्टार्स इंटिमेट सीन्स के दौरान हुए आउट औफ कंट्रोल

बौलीवुड की कई फिल्में सिर्फ इंटिमेट सीन्स की वजह से सुर्खियों में छायी रहीं. फिल्ममेकर्स इन फिल्मों को दिलचस्प बनाने के लिए इंटीमेट सीन्स को बढ़ावा देते हैं. कई बार इसी वजह से फिल्में हिट भी होती हैं और दर्शकों का भी भरपूर मनोरंजन होता है.

पहले किसिंग सीन के दौरान फूलों और हंसों का दिखाया जाता था मिलन

एक समय ऐसा भी था जब लोग सिनेमाघरों में मूवी देखने जाते थे और उस फिल्म में जब किसिंग सीन की बारी आती थी तो फूलों और हंसों का मिलन स्क्रीन पर दिखाया जाता था. लेकिन अब समय बदल चुका है, मूवीज या ओटीटी पर दिखाए जाने वाले वेब सीरिजों में बोल्ड सीन खुलेआम दिखाए जा रहे हैं. जो लोगों का ध्यान अपनी तरफ खिंच रहे हैं.

सैक्सी मूवीज या वेब सीरिज आप घर बैठे ही मोबाइल पर आराम से देख सकते हैं. ऐसे में आज हम आपको कुछ एक्टर्स और एक्ट्रैस के बारे में बताएंगे जो हौट सीन की शूटिंग करते दौरान आउट औफ कंट्रोल हो गए थे.

ये बौलीवुड सैलिब्रिटीज हौट सीन के दौरान हो गए थे बेकाबू

नरगिस फाखरी

फिल्म ‘अजहर’ में सीरियल किसर के नाम से जाने वाले इमरान हाशमी ने किसिंग सीन दिए थे. हालांकि इमरान ने कई फिल्मों में हौट सीन दिए हैं. इस फिल्म में इमरान को नरगिस के साथ लिपलौक करना था. दोनों की इस फिल्म में मुख्य भूमिका थी. किसिंग सीन की शूटिंग चल रही थी, यह सीन पूरा हुआ तो डायरेक्टर ने कट बोला, इसके बावजूद भी नरगिस इमरान को लगातार किस किए जा रही थी. ये भी सुनने में आया था कि इमरान हाशमी पीछे हटने लगे, इसके बावजूद नरगिस किस करती जा रही थी.

जैकलीन और टाइगर श्राफ

साल 2016 में आई फिल्म ” फ्लाइंग जट्ट” में लीड रोल में जैकलीन फर्नांडिज और टाइगर श्राफ और कई कलाकार थे. इस फिल्म में टाइगर और जैकलीन को लिपलौक करना था जिसे शूट किया जा रहा था और ये दोनों एकदूसरे में इतने डूब चुके थे कि डायरेक्टर के कट बोलने के बाद भी इन्हें कुछ सुनाई नहीं दिया और ये एकदूसरे के काफी क्लोज थे.

रणबीर कपूर

फिल्म ये जवानी है दीवानी को लोगों ने खूब पसंद किया था. इसमें दीपिका पादुकोण और रणबीर कपूर की ने शानदार एक्टिंग की थी, यह एक रोमांटिक फिल्म थी इनके अलावा और कई एक्टर्स ने अहम किरदार निभाए थे, इस फिल्म के एक सीन में रणबीर कपूर को एवलिन शर्मा के पैर को छूना था, इस दौरान रणबीर आउट औफ कंट्रोल हो गए और शूटिंग पूरा होने के बाद भी नहीं रुके.

चेतना और रूसलान मुमताज

फिल्म ‘आई डोंट लव यू’ में कई बोल्ड सींस दिखाए गए हैं. यह फिल्म सुर्खियों में थी. लेकिन शूटिंग के दौरान कुछ ऐसा हुआ जिसे देखकर सब दंग रह गए. इस फिल्म में चेतना और रूसलान मुमताज को किसिंग सीन करना था और इस सीन का शूटिंग खत्म होने के बाद भी दोनों एकदूसरे को किस किए जा रहे थे. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार एक्टर रुसलान मुमताज ने एक सीन करते हुए ऐक्ट्रैस चेतना पांडे के कपड़े खोल दिए थे, जिससे ऐक्ट्रैस बुरी तरह भड़क गई थी. लेकिन बाद में रुसलान ने चेतना से माफी मांगी.

सिद्धार्थ मल्होत्रा

फिल्म ए जेंटलमैन में सिद्धार्थ मल्होत्रा और जैकलिन फर्नांडीज की रोमांटिक कैमिस्ट्री देखनो को मिली थी. यह काफी सुर्खियों में छायी हुई थी. इसी फिल्म के गाने लगी ना छूटे में जैकलीन और सिद्धार्थ का रोमांस देखने को मिला था. इस गाने की शूटिंग के दौरान दोनों को एकदूसरे को किस करना था, यह सीन खत्न होने के बाद भी दोनों उस मोमेंट में पूरी तरह से डब चुके थे.

नजरिया : अजन्मे बच्चे का लिंग परीक्षण

आज आशी जब अपनी जुड़वां बेटियों को स्कूल बस में छोड़ने आई तो रोज की तरह नहीं खिलखिला रही थी. मैं उस की चुप्पी देख कर समझ गई कि जरूर कोई बात है, क्योंकि आशी और चुप्पी का तो दूरदूर तक का वास्ता नहीं है.

आशी मेरी सब से प्यारी सहेली है, जिस की 2 जुड़वां बेटियां मेरी बेटी प्रिशा के स्कूल में साथसाथ पढ़ती हैं. मैं आशी को 3 सालों से जानती हूं. मात्र 21 वर्ष की उम्र में उस का अमीर परिवार में विवाह हो गया था और फिर 1 ही साल में 2 जुड़वां बेटियां पैदा हो गईं. रोज बच्चों को बस में बैठा कर हम दोनों सुबह की सैर को निकल जातीं. स्वास्थ्य लाभ के साथसाथ अपने मन की बातों का आदानप्रदान भी हो जाता. किंतु उस के चेहरे पर आज उदासी देख कर मेरा मन न माना तो मैं ने पूछ ही लिया, ‘‘क्या बात है आशी, आज इतनी उदास क्यों हो?’’

‘‘क्या बताऊं ऋचा घर में सभी तीसरा बच्चा चाहते हैं. बड़ी मुश्किल से तो दोनों बेटियों को संभाल पाती हूं. तीसरे बच्चे को कैसे संभालूंगी? यदि एक बच्चा और हो गया तो मैं तो मशीन बन कर रह जाऊंगी.’’

‘‘तो यह बात है,’’ मैं ने कहा, ‘‘तुम्हारे पति निखिल क्या कहते हैं?’’

‘‘निखिल को नहीं उन की मां को चाहिए बच्चा. उन का कहना है कि इतनी बड़ी जायदाद का कोई वारिस मिल जाता तो अच्छा रहता. असल में उन्हें एक पोता चाहिए.’’

‘‘पर क्या गारंटी है कि इस बार पोता ही होगा? यदि पोती हुई तो क्या वारिस पैदा करने के लिए चौथा बच्चा भी पैदा करोगी?’’

‘‘वही तो. पर निखिल की मां को कौन समझाए. फिर वे ही नहीं मेरे अपने मातापिता भी यही चाहते हैं. उन का कहना है कि बेटियां तो विवाह कर पराए घर चली जाएंगी. वंशवृद्धि तो बेटे से ही होती है.’’

‘‘तुम्हारे पति निखिल क्या कहते हैं?’’

‘‘वैसे तो निखिल बेटेबेटी में कोई फर्क नहीं समझते. किंतु उन का भी कहना है कि पहली बार में ही जुड़वां बेटियां हो गईं वरना क्या हम दूसरी बार कोशिश न करते? एक कोशिश करने में कोई हरज नहीं… सब को वंशवृद्धि के लिए लड़का चाहिए बस… मेरे शरीर, मेरी इच्छाओं के बारे में तो कोई नहीं सोचता और न ही मेरे स्वास्थ्य के बारे में… जैसे मैं कोई औरत नहीं वंशवृद्धि की मशीन हूं… 2 बच्चे पहले से हैं और बेटे की चाह में तीसरे को लाना कहां तक उचित है?’’

मैं सोचती थी कि जमाना बदल गया है, लेकिन आशी की बात सुन कर लगा कि हमारा समाज आज भी पुरातन विचारों से जकड़ा हुआ है. बेटेबेटी का फर्क सिर्फ गांवों और अनपढ़ घरों में ही नहीं वरन बड़े शहरों व पढ़ेलिखे परिवारों में भी है. यह देख कर मैं बहुत आश्चर्यचकित थी. फिर मैं तो सोचती थी कि आशी का पति बहुत समझदार है… वह कैसे अपनी मां की बातों में आ गया?

आशी मन से तीसरा बच्चा नहीं चाहती थी. न बेटा न बेटी. अब आशी अकसर अनमनी सी रहती. मैं भी सोचती कि रोजरोज पूछना ठीक नहीं. यदि उस की इच्छा होगी तो खुद बताएगी. हां, हमारा बच्चों को बस में बैठा कर सुबह की सैर का सिलसिला जारी था.

एक दिन आशी ने बताया, ‘‘ऋचा मैं गर्भवती हूं… अब शायद रोज सुबह की सैर के लिए न जा सकूं.’’

उस की बात सुन मैं मन ही मन सोच रही थी कि यह शायद निखिल की बातों में आ गई या क्या मालूम निखिल ने इसे मजबूर किया हो. फिर भी पूछ ही लिया, ‘‘तो अब तुम्हें भी वारिस चाहिए?’’

‘‘नहीं. पर यदि मैं निखिल की बात न मानूं तो वे मुझे ताने देने लगेंगे… इसीलिए सोचा कि एक चांस और ले लेती हूं. अब वही फिर से 9 महीनों की परेड.’’

इस के बाद आशी को कभी मौर्निंग सिकनैस होती तो सैर पर नहीं आती. देखतेदेखते 3 माह बीत गए. फिर एक दिन अचानक आशी मेरे घर आई. उसे अचानक आया देख मुझे लगा कि कुछ बात जरूर है. अत: मैं ने पूछा, सब ठीक तो है? कोई खास वजह आने की? तबीयत कैसी है तुम्हारी आशी?’’

आशी कहने लगी, ‘‘कुछ ठीक नहीं चल रहा है ऋचा… निखिल की मम्मी को किसी ने बताया है कि आजकल अल्ट्रासाउंड द्वारा गर्भ में ही बच्चे का लिंग परीक्षण किया जाता है… लड़की होने पर गर्भपात भी करवा सकते हैं. अब मुझे मेरी सास के इरादे ठीक नहीं लग रहे हैं.

2 दिन से मेरे व निखिल के पीछे बच्चे के लिंग की जांच कराने के लिए पड़ी हैं.’’

‘‘यह तो गंभीर स्थिति है… तुम सास की बातों में मत आ जाना… निखिल को समझा दो कि तुम अपने बच्चे का लिंग परीक्षण नहीं करवाना चाहती,’’ मैं ने कहा.

15 दिन और बीत गए. आशी की सास रोज घर में आशी के बच्चे का लिंग परीक्षण करवाने के लिए कहतीं. निखिल की बहन भी फोन कर निखिल को समझाती कि आजकल तो उन की जातबिरादरी में सभी गर्भ में ही बच्चे का लिंग परीक्षण करवा लेते हैं ताकि यदि गर्भ में कन्या हो तो छुटकारा पा लिया जाए.

पहले तो निखिल को ये सब बातें दकियानूसी लगीं, पर फिर धीरेधीरे उसे भी लगने लगा कि यदि सभी ऐसा करवाते हैं, तो इस में बुराई भी क्या है?

उस दिन आशी अचानक फिर से मेरे घर आई. इधरउधर की बातों के बाद मैं ने पूछा, ‘‘कैसा महसूस करती हो अब? मौर्निंग सिकनैस ठीक हुई या नहीं? अब तो 4 महीने हो गए न?’’

‘‘ऋचा क्या बताऊं. आजकल न जाने निखिल को भी क्या हो गया है. कुछ सुनते ही नहीं मेरी. इस बार जब चैकअप के लिए गई तो डाक्टर से बोले कि देख लीजिए आप. पहले ही हमारी 2 बेटियां हैं, इस बार हम बेटी नहीं चाहते. ऋचा मुझे बहुत डर लग रहा है. अब तक तो बच्चे में धड़कन भी शुरू हो गई है… यदि निखिल न समझे और फिर से लड़की हुई तो कहीं मुझे गर्भपात न करवाना पड़े,’’ वह रोतेरोते कह रही थी, ‘‘नहीं ऋचा यह तो हत्या है, अपराध है… यह बच्चा गर्भ में है, तो किसी को नजर नहीं आ रहा. पैदा होने के बाद तो क्या पता मेरी दोनों बेटियों जैसा हो और उन जैसा न भी हो तो क्या फर्क पड़ता है. उस में भी जान तो है. उसे भी जीने का हक है. हमें क्या हक है अजन्मी बेटी की जान लेने का… यह तो जघन्य अपराध है और कानूनन भी यह गलत है. यदि पता लग जाए तो इस की तो सजा भी है. लिंग परीक्षण कर गर्भपात करने वाले डाक्टर भी सजा के हकदार हैं.’’

आशी बोले जा रही थी और उस की आंखों से आंसुओं की धारा बहे जा रही थी. मेरी आंखें भी नम हो गई थीं.

अत: मैं ने कहा, ‘‘देखो आशी, तुम्हें यह समय हंसीखुशी गुजारना चाहिए. मगर तुम रोज दुखी रहती हो… इस का पैदा होने वाले बच्चे पर भी असर पड़ता है. मैं तुम्हें एक उपाय बताती हूं. यदि निखिल तुम्हारी बात समझ जाए तो शायद तुम्हारी समस्या हल हो जाए… तुम्हें उसे यह समझाना होगा कि यह उस का भी बच्चा है. इस में उस का भी अंश है… एक मूवी है ‘साइलैंट स्क्रीम’ जिस में पूरी गर्भपात की प्रक्रिया दिखाई गई है. तुम आज ही निखिल को वह मूवी दिखाओ. शायद उसे देख कर उस का मन पिघल जाए. उस में सब दिखाया गया है कि कैसे अजन्मे भू्रण को सक्शन से टुकड़ेटुकड़े कर दिया जाता है और उस से पहले जब डाक्टर अपने औजार उस के पास लाता है तो वह कैसे तड़पता है, छटपटाता है और बारबार मुंह खोल कर रोता है, जिस की हम आवाज तो नहीं सुन सकते, किंतु देख तो सकते हैं. किंतु यदि उस के अपने मातापिता ही उस की हत्या करने पर उतारू हों तो वह किसे पुकारे? जब उस का शरीर मांस के लोथड़ों के रूप में बाहर आता है तो बेचारे का अंत हो जाता है. उस का सिर क्योंकि हड्डियों का बना होता है, इसलिए वह सक्शन द्वारा बाहर नहीं आ पाता तो किसी औजार से दबा कर उसे चूरचूर कर दिया जाता है… उस अजन्मे भू्रण का वहीं खात्मा हो जाता है. बेचारे की अपनी मां की कोख ही उस की कब्र हो जाती है. कितना दर्दनाक है… यदि वह भू्रण कुछ माह और अपनी मां के गर्भ में रह ले तो एक मासूम, खिलखिलाता हुआ बच्चा बन जाता है. फिर शायद सभी उसे बड़े प्यार व दुलार से गोद में उठाए फिरें. मुझे ऐसा लगता है कि शायद निखिल इस मूवी को देख लें तो फिर शायद अपनी मां की बात न मानें.

‘‘ठीक है, कोशिश करती हूं,’’ कह आशी थोड़ी देर बैठ घर चली गई.

मैं मन ही मन सोच रही थी कि एक औरत पुरुष के सामने इतना विवश क्यों हो जाती है कि अपने बच्चे को जन्म देने में भी उसे अपने पति की स्वीकृति लेनी होती है?

खैर, आशी ने रात को अपने पति निखिल को ‘साइलैंट स्क्रीम’ मूवी दिखाई. मैं बहुत उत्सुक थी कि अगले दिन आशी क्या खबर लाती है?

अगले दिन जब आशी बेटियों को स्कूल बस में बैठाने आई तो कुछ चहक सी रही थी, जो अच्छा संकेत था. फिर भी मेरा मन न माना तो मैं उसे सैर के लिए ले गई और फिर एकांत मिलते ही पूछ लिया, ‘‘क्या हुआ आशी, निखिल तुम्हारी बात मान गए? तुम ने मूवी दिखाई उन्हें?’’

वह कहने लगी, ‘‘हां ऋचा तुम कितनी अच्छी हो. तुम ने मेरे लिए कितना सोचा… जब रात को मैं ने निखिल को ‘साइलैंट स्क्रीम’ यूट्यूब पर दिखाई तो वे मुझे देख स्वयं भी रोने लगे और जब मैं ने बताया कि देखिए बच्चा कैसे तड़प रहा है तो फूटफूट कर रोने लगे. फिर मैं ने कहा कि यदि हमारे बच्चे का लिंग परीक्षण कर गर्भपात करवाया तो उस का भी यही हाल होगा… अब निखिल ने वादा किया है कि वे ऐसा नहीं होने देंगे. चाहे कुछ भी हो जाए.’’

मैं ने सोचा काश, आशी जो कह रही है वैसा ही हो. किंतु जैसे ही निखिल ने मां को अपना फैसला सुनाया कि चाहे बेटा हो या बेटी उसे कोई फर्क नहीं पड़ता. वह अपने बच्चे का लिंग परीक्षण नहीं करवाएगा तो उस की मां बिफर पड़ीं. कहने लगीं कि क्या तू ने भी आशी से पट्टी पढ़ ली है?’’

‘‘मां, यह मेरा फैसला है और मैं इसे हरगिज नहीं बदलूंगा,’’ निखिल बोला.

अब तो निखिल की मां आशी को रोज ताने मारतीं. निखिल का भी जीना हराम कर दिया था. निखिल ने मां को समझाने की बहुत कोशिश की कि वह आशी को ताने न दें. वह गर्भवती है, इस बात का ध्यान रखें.

आशी तो अपने मातापिता के घर भी नहीं जाना चाहती थी, क्योंकि वे भी तो यही चाहते थे कि बस आशी को एक बेटा हो जाए.

निखिल मां को समझाता, ‘‘मां, ये सब समाज के लोगों के बनाए नियम हैं कि बेटा वंश बढ़ाता है, बेटियां नहीं. इन के चलते ही लोग बेटियों की कोख में ही हत्या कर देते हैं. मां यह घोर अपराध है… तुम्हारी और दीदी की बातों में आ कर मैं यह अपराध करने जा रहा था, किंतु अब ऐसा नहीं होगा.’’

निखिल की बातें सुन कर एक बार को तो उस की मां को झटका सा लगा, पर पोते की चाह मन से निकलने का नाम ही नहीं ले रही थी.

अगले दिन जब निखिल दफ्तर गया तो उस की मां आशी को कोसने लगीं, ‘‘मेरा बेटा कल तक मेरी सारी बातें मानता था… अब तुम ने न जाने क्या पट्टी पढ़ा दी कि मेरी सुनता ही नहीं.’’

अब घर में ये कलह बढ़ती ही जा रही थी. आज आशी और निखिल दोनों ही मां से परेशान हो कर मेरे घर आए. मैं ने जब उन की सारी बातें सुन लीं तो कहा, ‘‘एक समस्या सुलझती नहीं की दूसरी आ जाती है. पर समाधान तो हर समस्या का होता है.’’

अब मां का क्या करें? रोज घर में क्लेश होगा तो आशी के होने वाले बच्चे पर भी तो उस का बुरा प्रभाव पड़ेगा,’’ निखिल बोला.

मैं ने उन के जाने के बाद अपनी मां से आशी व निखिल की मजबूरी बताते हुए कहा, ‘‘मां, क्या आप आशी की डिलिवरी नहीं करवा सकतीं? बच्चा होने तक आशी तुम्हारे पास रह ले तो ठीक रहेगा.’’

मां कहने लगीं, ‘‘बेटी, इस से तो नेक कोई काम हो ही नहीं सकता. यह तो सब से बड़ा मानवता का काम है. मेरे लिए तो जैसे तुम वैसे ही आशी, पर क्या उस के पति मानेंगे?’’

‘‘पूछती हूं मां,’’ कह मैं ने फोन काट दिया.

अब मैं ने निखिल के सामने सारी स्थिति रख दी कि वह आशी को मेरी मां के घर छोड़ दे.

मेरी बात सुन कर निखिल को हिचकिचाहट हुई.

तब मैं ने कहा, ‘‘निखिल आप भी तो मेरे पति जब यहां नहीं होते हैं तो हर संभव मदद करते हैं. क्या मुझे मेरा फर्ज निभाने का मौका नहीं देंगे?’’

मेरी बात सुन कर निखिल मुसकरा दिया, बोला, ‘‘जैसा आप ठीक समझें.’’

‘‘और आशी जब तुम स्वस्थ हो जाओ तो तुम भी मेरी कोई मदद कर देना,’’ मैं ने कहा. यदि हम एकदूसरे के सुखदुख में काम न आएं तो सहेली का रिश्ता कैसा?

मेरी बात सुन आशी ने भी मुसकरा कर हामी भर दी. फिर क्या था. निखिल आशी की जरूरत का सारा सामान पैक कर आशी को मेरी मां के पास छोड़ आ गया.

वक्त बीता. 9 माह पूरे हुए. आशी ने एक सुंदर बेटी को जन्म दिया, जिस की शक्ल हूबहू आशी की सास व पति से मिलती थी.

उस के पति निखिल ने जब अपनी बेटी को देखा तो फूला न समाया. वह आशी को अपने घर चलने को कहने लगा, लेकिन मेरी मां ने कहा कि बेटी थोड़ी बड़ी हो जाए तब ले जाना ताकि आशी स्वयं भी अपने स्वास्थ्य का ध्यान रख सके.

इधर आशी की मां निखिल से रोज पूछतीं, ‘‘निखिल बेटा, आशी को क्या हुआ बेटा या बेटी?’’

‘‘मां, बेटी हुई है पर जाने दो मां तुम्हें तो पोता चाहिए था न.’’

मां जब पूछतीं कि किस जैसी है बेटी तेरे जैसी या आशी जैसी. तो वह कहता कि मां क्या फर्क पड़ता है, है तो लड़की ही न.

अब आशी की सास से रहा नहीं जा

रहा था. अत: एक दिन बोलीं, ‘‘आशी को कब लाएगा?’’

‘‘मां अभी बच्ची छोटी है. थोड़ी बड़ी हो जाने दो फिर लाऊंगा. यहां 3 बच्चों को अकेली कैसे पालेगी?’’

यह सुन आशी की सास कहने लगीं, ‘‘और कितना सताएगा निखिल… क्या तेरी बच्ची पर हमारा कोई हक नहीं? माना कि मैं पोता चाहती थी पर यह बच्ची भी तो हमारी ही है. हम इसे फेंक तो न देंगे? अब तू मुझे आशी और मेरी पोती से कब मिलवाएगा यह बता?’’

निखिल ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘अगले संडे को मां.’’

अगले रविवार ही निखिल अपनी मां को मेरी मां के घर ले गया. निखिल की मां आशी की बच्ची को देखने को बहुत उत्सुक थीं. उसे देखते ही लगीं शक्ल मिलाने. बोलीं, ‘‘अरे, इस की नाक तो बिलकुल आशी जैसी है और चेहरा निखिल तुम्हारे जैसा… रंग तो देखो कितना निखरा हुआ है,’’ वे अपनी पोती की नाजुक उंगलियों को छू कर देख रही थीं और उस के चेहरे को निहारे जा रही थीं.

तभी आशी ने कहा, ‘‘मां, अभी तो यह सोई है, जागेगी तब देखिएगा आंखें बिलकुल आप के जैसी हैं नीलीनीली… आप की पोती बिलकुल आप पर गई है मां.’’

यह सुन आशी की सास खुश हो उठीं और फिर मेरी मां को धन्यवाद देते हुए बोलीं, ‘‘आप ने बहुत नेक काम किया है बहनजी, जो आशी की इतनी संभाल की… मैं किन शब्दों में आप का शुक्रिया अदा करूं… अब आप इजाजत दें तो मैं आशी को अपने साथ ले जाऊं.’’

‘‘आप ही की बेटी है बेशक ले जाएं… बस इस का सामान समेट देती हूं.’’

‘‘अरे, आप परेशान न हों. सामान तो निखिल समेट लेगा और अगले रविवार को वह आशी को ले जाएगा. अभी जल्दबाजी न करें. तब तक मैं आशी के स्वागत की तैयारियां भी कर लेती हूं.’’

अगले रविवार को निखिल आशी व उस की बेटी को ले कर अपने घर आ गया. उस की मां ने घर को ऐसे सजाया था मानो दीवाली हो. आशी का कमरा खूब सारे खिलौनों से सजा था. आशी की सास उस की बेटी के लिए ढेर सारे कपड़े लाई थीं.

जब आशी घर पहुंची तो निखिल की मां दरवाजे पर खड़ी थीं. उन्होंने झट से अपनी पोती को गोद में ले कर कहा, ‘‘आशी, मुझे माफ कर दो. मैं अज्ञान थी या यों कहो कि पोते की चाह में अंधी हो गई थी और सोचनेसमझने की क्षमता खत्म हो गई थी. लेकिन बहू तुम बहुत समझदार हो. तुम ने मेरी आंखें खोल दीं… मुझे व हमारे पूरे घर को एक घोर अपराध करने से बचा लिया. अब सारा घर खुशियों से भर गया है. फिर वे अपनी बेटी व अन्य रिश्तेदारों को समझाने लगीं कि कन्या भू्रण हत्या अपराध है… उन्हें भी बेटेबेटी में फर्क नहीं करना चाहिए. बेटियां भी वंश बढ़ा सकती हैं, जमीनजायदाद संभाल सकती हैं. जरूरत है तो सिर्फ हमें अपना नजरिया बदलने की.’’

अटूट बंधन: प्रकाश ने आखिर कैसी लड़की का हाथ थामा

बारिश थी कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी. आधे घंटे से लगातार हो रही थी. 1 घंटा पहले जब वे दोनों रैस्टोरैंट में आए थे, तब तो मौसम बिलकुल साफ था. फिर यह अचानक बिन मौसम की बरसात कैसी? खैर, यह इस शहर के लिए कोई नई बात तो नहीं थी परंतु फिर भी आज की बारिश में कुछ ऐसी बात थी, जो उन दोनों के बोझिल मन को भिगो रही थी. दोनों के हलक तक कुछ शब्द आते, लेकिन होंठों तक आने का साहस न जुटा पा रहे थे. घंटे भर से एकाध आवश्यक संवाद के अलावा और कोई बात संभव नहीं हो पाई थी.

कौफी पहले ही खत्म हो चुकी थी. वेटर प्याले और दूसरे बरतन ले जा चुका था. परंतु उन्होंने अभी तक बिल नहीं मंगवाया था. मौन इतना गहरा था कि दोनों सहमे हुए स्कूली बच्चों की तरह उसे तोड़ने से डर रहे थे. प्रकाश त्रिशा के बुझे चेहरे के भावों को पढ़ने की कोशिश करता पर अगले ही पल सहम कर अपनी पलकें झुका लेता. कितनी बड़ीबड़ी और गहरी आंखें थीं त्रिशा की. त्रिशा कुछ कहे न कहे, उस की आंखें सब कह देती थीं.

इतनी उदासी आज से पहले प्रकाश ने इन आंखों में कभी नहीं देखी थी. ‘क्या सचमुच मैं ने इतनी बड़ी गलती कर दी, पर इस में आखिर गलत क्या है?’ प्रकाश का मन इस उधेड़बुन में लगा हुआ था.

‘होश वालों को खबर क्या, बेखुदी क्या चीज है…’ दोनों की पसंदीदा यह गजल धीमी आवाज में चल रही थी. कोई दिन होता तो दोनों इस के साथसाथ गुनगुनाना शुरू कर देते पर आज…

आखिरकार त्रिशा ने ही बात शुरू करनी चाही. उस के होंठ कुछ फड़फड़ाए, ‘‘तुम…’’

‘‘तुम कुछ पूछना चाहती हो?’’ प्रकाश ने पूछ ही लिया.

‘‘हां, कल तुम्हारा टैक्स्ट मैसेज पढ़ कर मैं बहुत हैरान हुई.’’

‘‘जानता हूं पर इस में हैरानी की क्या बात है?’’

‘‘पर सबकुछ जानते हुए भी तुम यह सब कैसे सोच सकते हो, प्रकाश?’’ इस बार त्रिशा की आवाज पहले से ज्यादा ऊंची थी.

प्रकाश बिना कुछ जवाब दिए फर्श की तरफ देखने लगा.

‘‘देखो, मुझे तुम्हारा जवाब चाहिए. क्या है यह सब?’’ त्रिशा ने उखड़ी हुई आवाज से पूछा.

‘‘जो मैं महसूस करने लगा हूं और जो मेरे दिल में है, उसे मैं ने जाहिर कर दिया और कुछ नहीं. अगर तुम्हें बुरा लगा हो तो मुझे माफ कर दो, लेकिन मैं ने जो कहा है उस पर गौर करो.’’ प्रकाश रुकरुक कर बोल रहा था, लेकिन वह यह भी जानता था कि त्रिशा अपने फैसले पर अटल रहने वाली लड़की है.

पिछले 3 वर्षों से जानता है उसे वह, फिर भी न जाने कैसे साहस कर बैठा. पर शायद प्रकाश उस का मन बदल पाए.

त्रिशा अचानक खड़ी हो गई. ‘‘हमें चलना चाहिए. तुम बिल मंगवा लो.’’

बिल अदा कर के प्रकाश ने त्रिशा का हाथ पकड़ा और दोनों बाहर चले आए. बारिश धीमी हो चुकी थी. बूंदाबांदी भर हो रही थी. प्रकाश बड़ी सावधानी से त्रिशा को कीचड़ से बचाते हुए गाड़ी तक ले आया.

त्रिशा और प्रकाश पिछले 3 वर्ष से बेंगलरु की एक प्रतिष्ठित मल्टीनैशनल कंपनी में कार्य करते थे. त्रिशा की आंखों की रोशनी बचपन से ही जाती रही थी. अब वह बिलकुल नहीं देख सकती थी. यही वजह थी कि उसे पढ़नेलिखने व नौकरी हासिल करने में हमेशा बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा था. पर यहां प्रकाश और दूसरे कई सहकर्मियों व दोस्तों को पा कर वह खुद को पूरा महसूस करने लगी थी. वह तो भूल ही गई थी कि उस में कोई कमी है.

वैसे भी उस को देख कर कोई यह अनुमान ही नहीं लगा सकता था कि वह देख नहीं सकती. उस का व्यक्तित्व जितना आकर्षक था, स्वभाव भी उतना ही अच्छा था. वह बेहद हंसमुख और मिलनसार लड़की थी. वह मूलतया दिल्ली की रहने वाली थी. बेंगलुरु में वह एक वर्किंग वुमेन होस्टल में रह रही थी. प्रकाश अपने 2 दोस्तों के साथ शेयरिंग वाले किराए के फ्लैट में रहता था. प्रकाश का फ्लैट त्रिशा के होस्टल से आधे किलोमीटर की दूरी पर ही था.

रोजाना त्रिशा जब होस्टल लौटती तो प्रकाश कुछ न कुछ ऐसी हंसीमजाक की बात कर देता, जिस कारण त्रिशा होस्टल आ कर भी उस बात को याद करकर के देर तक हंसती रहती. परंतु आज जब प्रकाश उसे होस्टल छोड़ने आया तो दोनों में से किसी ने भी कोई बात नहीं की. होस्टल आते ही त्रिशा चुपचाप उतर गई. उस का सिर दर्द से फटा जा रहा था. तबीयत कुछ ठीक नहीं मालूम होती थी.

डिनर के वक्त उस की सहेलियों ने महसूस किया कि आज वह कुछ अनमनी सी है. सो, डिनर के बाद उस की रूममेट और सब से अच्छी सहेली शालिनी ने पूछा, ‘‘क्या बात है त्रिशा, आज तुम्हें आने में देरी क्यों हो गई? सब ठीक तो है न.’’

‘‘हां, बिलकुल ठीक है. बस, आज औफिस में काम कुछ ज्यादा था,’’ त्रिशा ने जवाब तो दिया पर आज उस के बात करने में रोज जैसी आत्मीयता नहीं थी.

शालिनी को ऐसा लगा जैसे त्रिशा उस से कुछ छिपा रही थी. फिर भी त्रिशा को छेड़ने के लिए गुदगुदाते हुए उस ने कहा, ‘‘अब इतनी भी उदास मत हो जाओ, उन को याद कर के. जानती हूं भई, याद तो आती है, पर अब कुछ ही दिन तो बाकी हैं न.’’

त्रिशा अपनी आदत के अनुसार मुसकरा उठी. शालिनी को जरा परे धकेलते हुए बोली, ‘‘जाओ, मैं नहीं करती तुम से बात. जब देखो एक ही रट.’’

तभी अचानक त्रिशा का मोबाइल बज उठा.

‘‘उफ, कितनी लंबी उम्र है उन की. नाम लिया और फोन हाजिर,’’ शालिनी उछल पड़ी. ‘‘खूब इत्मीनान से जी हलका कर लो. मैं तो चली,’’ कहती हुई शालिनी कमरे से बाहर निकल गई.

दरअसल, बात यह थी कि कुछ ही दिनों में त्रिशा का प्रेमविवाह होने वाला था. डा. आजाद, जिन से जल्द ही त्रिशा का विवाह होने वाला था, लखनऊ विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक थे. त्रिशा और आजाद ने दिल्ली के एक स्पैशल स्कूल से साथसाथ ही पढ़ाई पूरी की थी. उस के बाद आजाद अपने घर लखनऊ वापस आ गए थे. वहीं से उन्होंने उच्च शिक्षा हासिल की और फिर अपनी रिसर्च भी पूरी की. रिसर्च पूरी करने के कुछ ही दिनों बाद उन्हें यूनिवर्सिटी में ही जौब मिल गई. ऐसा लगता था कि त्रिशा और आजाद एकदूसरे के लिए ही बने थे.

स्कूल में लगातार पनपने वाला लगाव  और आकर्षण एकदूसरे से दूर हो कर प्यार में कब बदल गया, पता ही नहीं चला. शीघ्र ही दोनों ने विवाह के अटूट बंधन में बंधने का फैसला कर लिया. दोनों के न देख पाने के कारण जाहिर है परिवार वालों को स्वीकृति देने में कुछ समय तो लगा, पर उन दोनों के आत्मविश्वास और निश्छल प्रेम के आगे एकएक कर सब को झुकना ही पड़ा.

त्रिशा के बेंगलुरु आने के बाद आजाद बहुत खुश थे. ‘‘चलो अच्छा है, वहां तुम्हें इतने अच्छे दोस्त मिल गए हैं. अब मुझे तुम्हारी इतनी चिंता नहीं करनी पड़ेगी.’’

‘‘अच्छी बात तो है, पर इस बेफिक्री का यह मतलब नहीं कि आप हमें भूल जाएं,’’ त्रिशा आजाद को परेशान करने के लिए यह कहती तो आजाद का जवाब हमेशा यही होता, ‘‘खुद को भी कोई भूल सकता है क्या.’’

आज जब त्रिशा आजाद से बात कर रही थी तो आजाद को समझते देर न लगी कि त्रिशा आज उन से कुछ छिपा रही है, ‘‘क्या बात है, आज तुम कुछ परेशान हो?’’

‘‘नहीं तो.’’

‘‘त्रिशा, इंसान अगर खुद से ही कुछ छिपाना चाहे तो नहीं छिपा सकता,’’ आजाद की आवाज में कुछ ऐसा था, जिसे सुन कर त्रिशा की आंखें डबडबा आईं. ‘‘मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है. मैं आप से कल बात करती हूं,’’ यह कह कर त्रिशा ने फोन डिसकनैक्ट कर दिया.

अगले दिन त्रिशा और प्रकाश के बीच औफिस में भी कोई बात नहीं हुई. ऐसा पहली बार ही हुआ था. प्रकाश का मिजाज आज एकदम उखड़ाउखड़ा था.

‘‘चलो,’’ शाम को उस ने त्रिशा के पास आ कर कहा. रास्तेभर दोनों ने कोई बात नहीं की. होस्टल आने ही वाला था कि त्रिशा ने खीझ कर कहा, ‘‘तुम कुछ बोलोगे भी कि नहीं?’’

‘‘मुझे तुम्हारा जवाब चाहिए.’’

कितनी डूबती हुई आवाज थी प्रकाश की. 3 साल में त्रिशा ने प्रकाश को इतना खोया हुआ कभी नहीं देखा था. पिछले 2 दिन में प्रकाश में जो बदलाव आए थे, उन पर गौर कर के त्रिशा सहम गई. ‘क्या वाकई प्रकाश… क्या प्रकाश… नहीं, ऐसा नहीं हो सकता,’ त्रिशा का मन विचलित हो उठा. ‘मुझे तुम से कल बात करनी है. कल छुट्टी भी है. कल सुबह 11 बजे मिलते हैं. गुडनाइट,’’ कहते हुए त्रिशा गाड़ी से उतर गई.

जैसा तय था, अगले दिन दोनों 11 बजे मिले. बिना कुछ कहेसुने दोनों के कदम अनायास ही पार्क की ओर बढ़ते चले गए. त्रिशा के होस्टल से एक किलोमीटर की दूरी पर ही शहर का सब से बड़ा व खूबसूरत पार्क था. ऐसे ही छुट्टी के दिनों में न जाने कितनी ही बार वे दोनों यहां आ चुके थे. पार्क के भीतरी गेट पर पहुंच कर दोनों को ऐसा लगा जैसे आज असाधारण भीड़ उमड़ पड़ी हो.

भीड़भाड़ और चहलपहल तो हमेशा ही रहती है यहां, पर आज की भीड़ में कुछ खास था. सैकड़ों जोड़े एकदूसरे के हाथों में हाथ डाले अंदर चले जा रहे थे. बहुतों के हाथ में गुलाब का फूल, किसी के पास चौकलेट तो किसी के हाथ में गिफ्ट पैक. पर प्रकाश का मन इतना अशांत था कि वह कुछ समझ ही नहीं सका.

हवा जोरों से चलने लगी थी. बादलों की गड़गड़ाहट सुन कर ऐसा मालूम होता था कि किसी भी पल बरस पड़ेंगे. मौसम की तरह प्रकाश का मन भी आशंकाओं से घिर आया था. त्रिशा को लगा, शायद आज यहां नहीं आना चाहिए था. तभी अचानक उस का मोबाइल बज उठा. ‘‘हैप्पी वैलेंटाइंस डे, मैडम,’’ आजाद की आवाज थी.

‘‘ओह, मैं तो बिलकुल भूल ही गई थी,’’ त्रिशा बोली.

‘‘आजकल आप भूलती बहुत हैं. कोई बात नहीं. अब आप का गिफ्ट नहीं मिलेगा, बस, इतनी सी सजा है,’’ आजाद ने आगे कहा, ‘‘अच्छा, अभी हम थोड़ा जल्दी में हैं. शाम को बात करते हैं.’’

आज बैंच खाली मिलने का तो सवाल नहीं था. सो, साफसुथरी जगह देख दोनों घास पर ही बैठ गए. त्रिशा अकस्मात पूछ बैठी, ‘‘क्या तुम वाकई सीरियस हो?’’

‘‘तुम समझती हो कि मैं मजाक कर रहा हूं?’’ प्रकाश का स्वर रोंआसा हो उठा.

त्रिशा ने रुकरुक कर बोलना शुरू किया, ‘‘देखो, 3 वर्ष में हम एकदूसरे को पूरी तरह जानने लगे हैं. मेरा तो कोई काम तुम्हारे बगैर नहीं होता. सच तो यह है, इस शहर में आ कर मैं तो अपनी जिम्मेदारियां ही भुला बैठी हूं. मैं ने तो अभी सोचा भी नहीं कि यहां से जाने के बाद मैं कैसे मैनेज करूंगी. पर प्रकाश, आजाद को मैं ने अपने जीवनसाथी के रूप में देखा है. उन के सिवा मैं किसी और के बारे में सोच भी कैसे…’’

प्रकाश बीच में ही बोल उठा, ‘‘मैं सब जानता हूं, लेकिन जिंदगी इतनी आसान भी नहीं होती, जितना तुम लोग सोच रहे हो. मुझे तुम्हारी फिक्र सताती है. पैसे खर्च कर के ही क्या सबकुछ मिल सकता है? इन सब बातों से अलग, सच तो यह भी है कि मेरे दिल में तुम्हारे लिए चाहत कब पैदा हो गई, मुझे पता ही नहीं चला. मैं तुम्हें ऐसे अकेले नहीं छोड़ सकता. प्लीज, मेरी बात समझने की कोशिश करो, त्रिशा.’’

अगले कुछ पल रुक कर त्रिशा ने कहा, ‘‘मैं अच्छी तरह जानती हूं, तुम मेरी कितनी फिक्र करते हो लेकिन जो प्रस्ताव तुम्हारा है, उस के बारे में सोचने का मेरे लिए सवाल ही पैदा नहीं होता. मैं ने हमेशा यही चाहा था कि मैं जिस कमी के साथ जी रही हूं, जीवनसाथी भी वैसा ही चुनूंगी ताकि हम एकदूसरे की ताकत बन कर कदमकदम पर हौसलाअफजाई कर सकें और आत्मनिर्भर हो कर जी सकें. फिर, आजाद तो मेरे जीवन में एक अलग ही खुशी ले कर आए हैं.

मैं यकीन के साथ कह सकती हूं, उन की खूबियां और जीवन के प्रति उन का पौजिटिव रुख ही हमारे घर को खुशियों से भर देगा. जानती हूं, जीवन के हर मोड़ पर चुनौतियां होंगी, लेकिन हम दोनों का एकदूसरे के प्रति विश्वास, सम्मान और प्यार ही हमें उन चुनौतियों से उबरने की ताकत देगा. रही बात तुम्हारी, तो मैं अपने इतने अच्छे दोस्त को कभी खोना नहीं चाहती. मेरे लिए, प्लीज, मेरे लिए मुझे मेरा सब से अच्छा दोस्त वापस दे दो. अगले महीने मेरी इंगेजमैंट है. अगर तुम इसी तरह परेशान रहोगे तो क्या मुझे तकलीफ नहीं होगी?’’ इतने दिनों का सैलाब अब प्रकाश की आंखों से बह चला.

त्रिशा की जिद और कोशिशों के चलते प्रकाश धीरेधीरे नौर्मल होने लगा. त्रिशा की इंगेजमैंट हुई और फिर शादी के दिन भी करीब आ गए. त्रिशा ने आधी से ज्यादा शौपिंग प्रकाश और शालिनी के साथ ही कर ली थी.

एक शाम त्रिशा के पास प्रकाश के मम्मीपापा का फोन आया. लंबी बातचीत के बाद प्रकाश के पापा ने त्रिशा से कहा, ‘‘बेटा, प्रकाश को शादी के लिए तुम ही तैयार कर सकती हो. हो सके तो उसे समझाओ, इतनी देर करना भी अच्छी बात नहीं. हमारी तो बात ही टाल देता है.’’

त्रिशा हंस पड़ी, ‘‘बस, इतनी सी बात है, अंकल. आप बिलकुल चिंता मत कीजिए. मैं उसे राजी कर लूंगी.’’

यों तो त्रिशा ने पहले भी उस से शादी का जिक्र छेड़ा था, पर हर बार वह उस की बात अनसुनी कर देता था. एक दिन प्रकाश ने त्रिशा से पूछा, ‘‘अच्छा बताओ, तुम्हें शादी पर क्या गिफ्ट दूं?’’

त्रिशा का उत्तर था, ‘‘तुम मुझे जो चाहे गिफ्ट दे देना, पर तुम्हारी शादी के लिए तुम्हारी हां मेरे लिए सब से कीमती गिफ्ट होगा.’’

प्रकाश उस दिन खामोश रहा. त्रिशा की शादी की तैयारियों में प्रकाश ने खुद को इतना उलझा लिया कि उसे अपनी सुध ही नहीं रही. हफ्तेभर पहले छुट्टी ले कर प्रकाश भी त्रिशा के साथ दिल्ली चला आया. यहां आ कर शादी की लगभग सभी जिम्मेदारियां प्रकाश ने संभाल लीं. मेहंदी, हलदी, कोर्ट मैरिज और फिर ग्रैंड रिसैप्शन पार्टी.

यह तय था कि शादी के बाद आजाद भी कुछ दिनों के लिए बेंगलुरु घूम आएंगे. त्रिशा की कंपनी का औफिस लखनऊ में नहीं था, इसलिए बेंगलुरु आ कर त्रिशा ने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया. उस ने सोच रखा था कि लखनऊ जा कर कुछ दिन घरगृहस्थी ठीकठाक कर के थोड़ा उस शहर के बारे में समझने के बाद वहीं किसी दूसरी नौकरी की तलाश करेगी.

‘‘भई, हम जानते हैं, आप बहुत थक गए हैं, पर हमें बेंगलुरु तो आप ही घुमाएंगे,’’ आजाद ने प्रकाश से कहा तो प्रकाश बोला, ‘‘सोच लीजिए, बदले में आप को हमें लखनऊ की सैर करवानी पड़ेगी.’’

‘‘कब आ रहे हैं आप?’’

‘‘बहुत जल्द, अपनी शादी के बाद.’’

‘‘अच्छा, तो जनाब ने शादी का फैसला कर लियाऔर हमें खबर तक नहीं हुई. सुन रही हो त्रिशा.’’

त्रिशा को भी यह सुन कर तसल्ली हुई, ‘‘फैसला तो नहीं किया पर…’’ प्रकाश बोलतेबोलते रुक गया और फिर उस ने बात बदल दी. बेंगलुरु में वह हफ्ता तो जैसे चुटकियों में कट गया.

प्रकाश ने त्रिशा और आजाद को गाड़ी में बैठा कर उन का सारा सामान व्यवस्थित करवा दिया. गाड़ी यहीं से बन कर चलती थी, इसलिए लेट होने का तो सवाल ही नहीं था. जैसे ही गाड़ी प्लेटफौर्म छोड़ने लगी, सभी का मन भारी हो गया. प्रकाश शायद बिना कुछ बोले ही चला गया था. त्रिशा की आंखें भी नम हो आईं.

तभी अचानक सामने बैठे पैसेंजर ने आजाद का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘आप का छोटा बैग मैं इस साइड टेबल पर रख देता हूं. मैं भी लखनऊ जा रहा हूं. आप के सामने की लोअर बर्थ मेरी ही है. कोई भी जरूरत हो तो आप लोग बेझिझक मुझे आवाज दे दीजिएगा. मेरा नाम प्रकाश है.’’ अनजाने ही त्रिशा के होंठों पर मुसकान छा गई.

अगली सुबह घर पहुंचने के कुछ ही देर बाद उन्हें एक कूरियर मिला. यह त्रिशा के नाम का कूरियर था. ‘‘हैप्पी बर्थडे त्रिशा. तुम्हारा सब से कीमती तोहफा भेज रहा हूं,’’ प्रकाश ने लिखा था. उस में त्रिशा के लिए खूबसूरत सी ब्रेल घड़ी थी और एक शादी का कार्ड.

त्रिशा उछल पड़ी, ‘‘वाह, इतना बड़ा सरप्राइज. इतनी जल्दी कैसे होगा सब? महीनेभर बाद की ही तो तारीख है.’’

शादी से 2 दिन पहले आजाद और त्रिशा भोपाल पहुंचे तो प्रकाश ने रचना से उन का परिचय करवाया. ‘‘इतने कम समय में प्रकाश को तो कुछ बताने की फुरसत ही नहीं मिली. अब तुम ही कुछ बताओ न रचना अपने बारे में?’’ त्रिशा ने उत्सुकतावश पूछा.

‘‘बस, अभी आई. पहले जरा मुंह तो मीठा कीजिए, फिर बैठ कर ढेर सारी बातें करते हैं,’’ कहते हुए रचना उठी तो दाहिनी तरफ के सोफे पर बैठे आजाद से टकरातेटकराते बची. अचानक लगने वाले धक्के से आजाद के हाथ से मोबाइल छूट कर फर्श पर गिर पड़ा.

‘‘अरे, आराम से,’’ कहते हुए प्रकाश आजाद का मोबाइल उठाने के लिए झुका.

अपनी गलती पर अफसोस जताते हुए अनायास ही रचना के मुंह से निकल पड़ा, ‘‘ओह, माफी चाहती हूं, डाक्टर साहब. दरअसल, मैं देख नहीं सकती.’’

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