जालीदार बैकलेस ब्लाउज में Sonam Kapoor दिखीं बेहद स्टाइलिश, पार्टी के लिए ये लुक आप भी करें ट्राई

बौलीवुड की फैशन क्वीन सोनम कपूर अक्सर सुर्खियों में छायी रहती हैं. वह सोशल मीडिया पर आए दिन फोटोज शेयर करती रहती हैं. अब एक्ट्रैस ने अपनी बैस्ट फ्रैंड मसाबा गुप्ता के साथ कुछ खूबसूरत तस्वीरें शेयर की हैं.

मसाबा गुप्ता की बेबी शावर पार्टी में सोनम ग्लैमरस अंदाज

फैशन डिजाइनर मसाबा गुप्ता और सोनम बैस्ट फ्रैंड्स हैं. मसाबा जल्द ही मां बनने वाली हैं. ऐसे में सोनम ने मसाबा के लिए बेबी शावर पार्टी रखी थी. इस पार्टी को तस्वीरें एक्ट्रैस ने सोशल मीडिया पर फैंस के साथ शेयर किया है.

बैकलेस ब्लाउज में कहर ढा रही हैं सोनम कपूर

ये फोटोज जमकर वायरल हो रही हैं. तस्वीरों से पता चलता है कि इस फंक्शन में सोनम का स्टाइलिश लुक देखने को मिला था. एक्ट्रैस बैकलेस ब्लाउज में कमाल की लग रही हैं. उन्होंने ब्राउन साड़ी के साथ इस डिजाइनिंग ब्लाउज को कैरी किया है. इसे क्रोसिए के साथ बनाया गया है.

इस डिजाइनिंग ब्लाउज के पीछे एक डोरी भी लगी हुई है. जो काफी स्टाइलिश दिख रहा है. एक्ट्रैस ने अपना लुक ब्लाउज की मैचिंग के ज्वैलरी के साथ कंपलीट किया है. जो उनके लुक को चार चांद लगा रहा है. सोनम ने इस डिजाइनिंग ब्लाउज के साथ ब्राउन कलर की प्लेन साड़ी पहनी है. इस पर व्हाइट कलर का पतला सा लैस वाला बौर्डर भी बना है. जिससे साड़ी काफी अट्रैक्टिव लग रही है. एक तस्वीर में वो मसाबा गुप्ता के बेबी बंप पर हाथ रखे हुए नजर आ रही हैं.

सोनम ने अप्लाई किया सटल मेकअप

मेकअप की बात करे तो सोनम ने सटल मेकअप अप्लाई किया है. उनके कान के बड़ेबड़े झुमके उनके लुक को गौर्जियस बना रहे हैं. एक्ट्रैस का ये लुक फैंस को खूब पसंद आ रहा है. बेबी शावर पार्टी की तस्वीरें शेयर करते हुए सोनम ने इंस्टाग्राम पर लिखा है कि ”हर विवरण को प्यार से तैयार किया गया. जो मेरी ड्रीम टीम द्वारा स्टाइल किया गया.

सोनम के वर्कफ्रंट की बात करे तो वह फिल्मों से काफी दूर हैं. इन दिनों एक्ट्रैस अपनी फैमिली और फ्रैंड्स के साथ क्वालिटी टाइम बिता रही हैं.

प्रैगनैंसी के बाद स्ट्रैच मार्क्स से परेशान हूं, इस निशान को हटाने के लिए क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं कुछ महीनों पहले ही मां बनी हूं. कुछ दिनों से मेरे पेट, कूल्हे और स्तन पर भी स्ट्रैच मार्क्स के निशान नजर आ रहे हैं. मैं इस निशान को हटाने के लिए क्रीम का इस्तेमाल कर रही हूं पर कोई फर्क नजर नहीं आ रहा है. इस निशान को हटाने के लिए कोई समाधान बताएं…

जवाब

प्रेग्नेंसी के दौरान स्ट्रैच मार्क्स आना आम समस्या है. जो डिलीवरी के बाद स्किन पर ज्यादा दिखती है. स्ट्रैच मार्क्स त्वचा के खिचाव के कारण होते हैं. हालांकि इस निशान को पूरी तरह से हटाना मुश्किल है.

स्ट्रैच मार्क्स होने के कारण

  • प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं का वजन तेजी से बढ़ता है.जिससे त्वचा पर अधिक दबाव पड़ता है और स्ट्रेच मार्क्स नजर आने लगते हैं.
  • अगर आपको पहले से ही स्ट्रैच मार्क्स के निशान है, तो प्रेग्नेंसी के दौरान नए स्ट्रैच मार्क्स आने की संभावना होने लगती है.

स्ट्रैच मार्क्स कम करने के आसान टिप्स

स्किन को मौइश्चराइज करें

बौडी जिन पार्ट्स पर स्ट्रेच मार्क्स हैं, आप वहां मौइस्चराइज करते रहें. इसके लिए शिया बटर, बादाम के तेल से हल्के हाथों से मालिश करें. आप एक्सपर्ट की सलाह से भी किसी क्रीम का इस्तेमाल कर सकती हैं. इससे त्वचा हाइड्रेटेड रहती है.

त्वचा को हाइड्रैटेड रखें

स्किन को हाइड्रैटेड रखने के लिए रोजाना पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं. इससे आपकी स्किन सौफ्ट होती है, जिससे स्ट्रैच मार्क्स कम होने में मदद मिलती है.

वेट कंट्रोल

प्रेग्नेंसी के बाद वजन कंट्रोल करने के लिए आप एक्सपर्ट की सलाह ले सकती हैं.

डाइट का रखें खास ख्याल

आप अपनी डाइट में पोषक तत्वों से भरपूर खाना खाएं. विटामिन-ए, विटामिन-सी, विटामिन-ई, और जिंक से भरपूर चीजों को अपने खाने में शामिल करें.

धूप में निकलते समय करें ये काम

यूवी किरणें त्वचा को नुकसान पहुंचाती है. इसलिए धूप में जाने से पहले स्किन प्रोटैक्शन के लिए हाई एसपीएफ वाला ब्रौडस्पेक्ट्रम सनस्क्रीन लगाएं.

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या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

बच्चों की भावना : अकी के बदले व्यवहार के पीछे क्या थी वजह

‘‘अकी, बेटा उठो, सुबह हो गई, स्कूल जाना है,’’ अनुभव ने अपनी लाडली बेटी आकृति को जगाने के लिए आवाज लगानी शुरू की.

‘‘हूं,’’ कह कर अकी ने करवट बदली और रजाई को कानों तक खींच लिया.

‘‘अकी, यह क्या, रजाई में अब और ज्यादा दुबक गई हो, उठो, स्कूल को देर हो जाएगी.’’

‘‘अच्छा, पापा,’’ कह कर अकी और अधिक रजाई में छिप गई.

‘‘यह क्या, तुम अभी भी नहीं उठीं, लगता है, रजाई को हटाना पड़ेगा,’’ कह कर अनुभव ने अकी की रजाई को धीरे से हटाना शुरू किया.

‘‘नहीं, पापा, अभी उठती हूं,’’ बंद आंखों में ही अकी ने कहा.

‘‘नहीं, अकी, साढ़े 5 बज गए हैं, तुम्हें टौयलेट में भी काफी टाइम लग जाता है.’’

यह सुन कर अकी ने धीरे से आंखें खोलीं, ‘‘अभी तो पापा रात है, अभी उठती हूं.’’

अनुभव ने अकी को उठाया और हाथ में टूथब्रश दे कर वाशबेसन के आगे खड़ा कर दिया.

सर्दियों में रातें लंबी होने के कारण सुबह 7 बजे के बाद ही उजाला होना शुरू होता है और ऊपर से घने कोहरे के कारण लगता ही नहीं कि सुबह हो गई. आकृति की स्कूल बस साढ़े 6 बजे आ जाती है. वैसे तो स्कूल 8 बजे लगता है, लेकिन घर से स्कूल की दूरी 14 किलोमीटर तय करने में बस को पूरा सवा घंटा लग जाता है.

जैसेतैसे अकी स्कूल के लिए तैयार हुई. फ्लैट से बाहर निकलते हुए आकृति ने पापा से कहा, ‘‘अभी तो रात है, दिन भी नहीं निकला. मैं आज स्कूल जल्दी क्यों जा रही हूं.’’

‘‘आज कोहरा बहुत अधिक है, इसलिए उजाला नहीं हुआ, ऐसा लग रहा है कि अभी रात है, लेकिन अकी, घड़ी देखो, पूरे साढ़े 6 बज गए हैं. बस आती ही होगी.’’

कोहरा बहुत घना था. 7-8 फुट से आगे कुछ नजर नहीं आ रहा था. सड़क एकदम सुनसान थी. घने कोहरे के बीच सर्द हवा के झोंकों से आकृति के शरीर में झुरझुरी सी होती और इसी झुरझुराहट ने उस की नींद खोल दी. अपने बदन को बे्रक डांस जैसे हिलातेडुलाते वह बोली, ‘‘पापा, लगता है, आज बस नहीं आएगी.’’

‘‘आप को कैसे मालूम, अकी?’’

‘‘देखो पापा, आज स्टाप पर कोई बच्चा नहीं आया है, आप स्कूल फोन कर के मालूम करो, कहीं आज स्कूल में छुट्टी न हो.’’

‘‘आज छुट्टी किस बात की होगी?’’

‘‘ठंड की वजह से आज छुट्टी होगी. इसलिए आज कोई बच्चा नहीं आया. देखो पापा, इसलिए अभी तक बस भी नहीं आई है.’’

‘‘बस कोहरे की वजह से लेट हो गई होगी.’’

‘‘पापा, कल मोटी मैडम शकुंतला राधा मैडम से बात कर रही थीं कि ठंड और कोहरे के कारण सर्दियों की छुट्टियां जल्दी हो जाएंगी.’’

‘‘जब स्कूल की छुट्टी होगी तो सब को मालूम हो जाएगा.’’

‘‘आप ने टीवी में न्यूज सुनी, शायद आज से छुट्टियां कर दी हों.’’

आकृति ही क्या सारे बच्चे ठंड में यही चाहते हैं कि स्कूल बंद रहे, लेकिन स्कूल वाले इस बारे में कब सोचते हैं. चाहे ठंड पहले पड़े या बाद में, छुट्टियों की तारीखें पहले से तय कर लेते हैं. ठंड और कोहरे के कारण न तो छुट्टियां करते हैं न स्कूल का टाइम बदलते हैं. सुबह के बजाय दोपहर का समय कर दें, लेकिन हम बच्चों की कोई नहीं सुनता है. सुबहसुबह इतनी ठंड में बच्चे कैसे उठें. आकृति मन ही मन बड़बड़ा रही थी.

तभी 3-4 बच्चे स्टाप पर आ गए. सभी ठंड में कांप रहे थे. बच्चे आपस में बात करने लगे कि मजा आ जाएगा यदि बस न आए. तभी एक बच्चे की मां अनुभव को संबोधित करते हुए बोलीं, ‘‘भाभीजी के क्या हाल हैं. अब तो डिलीवरी की तारीख नजदीक है. आप अकेले कैसे मैनेज कर पाएंगे. अकी की दादी या नानी को बुलवा लीजिए. वैसे कोई काम हो तो जरूर बताइए.’’

‘‘अकी की नानी आज दोपहर की टे्रन से आ रही हैं,’’ अनुभव ने उत्तर दिया.

तभी स्कूल बस ने हौर्न बजाया, कोहरे के कारण रेंगती रफ्तार से बस चल रही थी. किसी को पता ही नहीं चला कि बस आ गई. बच्चे बस में बैठ गए. सभी पेरेंट्स ने बस ड्राइवर को बस धीरे चलाने की हिदायत दी.

बस के रवाना होने के बाद अनुभव जल्दी से घर आया. स्नेह को लेबर पेन शुरू हो गया था, ‘‘अनु, डाक्टर को फोन करो. अब रहा नहीं जा रहा है,’’ स्नेह के कहते ही अनुभव ने डाक्टर से बात की. डाक्टर ने फौरन अस्पताल आने की सलाह दी.

अनुभव कार में स्नेह को नर्सिंग होम ले गया. डाक्टर ने चेकअप के बाद कहा, ‘‘मिस्टर अनुभव, आज ही आप को खुशखबरी मिल जाएगी.’’

अनुभव ने अपने बौस को फोन कर के स्थिति से अवगत कराया और आफिस से छुट्टी ले ली. अनुभव की चिंता अब रेलवे स्टेशन से आकृति की नानी को घर लाने की थी. वह सोच रहा था कि नर्सिंग होम में किस को स्नेह के पास छोड़े.

आज के समय एकल परिवार में ऐसे मौके पर यह एक गंभीर परेशानी रहती है कि अकेला व्यक्ति क्याक्या और कहांकहां करे. सुबह आकृति को तैयार कर के स्कूल भेजा और फिर स्नेह के साथ नर्सिंग होम. स्नेह को अकेला छोड़ नहीं सकता, मालूम नहीं कब क्या जरूरत पड़ जाए.

आकृति की नानी अकेले स्टेशन से कैसे घर आएंगी. घर में ताला लगा है. नर्सिंग होम के वेटिंगरूम में बैठ कर अनुभव का मस्तिष्क तेजी से चल रहा था कि कैसे सबकुछ मैनेज किया जाए. वर्माजी को फोन लगाया और स्थिति से अवगत कराया तो आधे घंटे में मिसेज वर्मा थर्मस में चाय, नाश्ता ले कर नर्सिंग होम आ गईं.

‘‘बेटा, पहले तो आप चाय और नाश्ता लीजिए, मैं यहां स्नेह के पास बैठती हूं. आप आकृति की नानी को रेलवे स्टेशन से ले आइए.’’

अनुभव ने बिस्कुट के साथ चाय पी और रेलवे स्टेशन रवाना हुआ. स्टेशन पहुंचने पर पता चला कि गाड़ी 2 घंटे लेट है. रेलवे प्लेटफार्म के बेंच पर बैठा अनुभव सोचने लगा कि एकल परिवार के जहां एक तरफ अपने सुख हैं तो दूसरी ओर दुख भी. आज जब प्रसव के समय किसी अपने की जरूरत है, तो अकेले सभी कार्य खुद को करने पड़ रहे हैं. लेकिन यह उस की मजबूरी है. नौकरी जहां मिलेगी, वहीं रहना पड़ेगा. ऐसे समय में पड़ोस ही सगा होता है. पता नहीं डाक्टर भी डिलीवरी की गलत तारीख क्यों बताते हैं. तारीख के हिसाब से आकृति की नानी को 10 दिन पहले बुलाया है, लेकिन कुदरत के सामने किसी का बस चलता तो नहीं न.

पड़ोसी वर्माजी की भी कुछ ऐसी स्थिति है. दोनों बुजुर्ग दंपती रिटायरमेंट के बाद अकेले रह रहे हैं. एक बेटा विदेश में नौकरी कर रहा है, 2-3 साल बाद 2 महीने के लिए मिलने आता है और दूसरा बेटा बंगलौर में आईटी कंपनी में नौकरी करता है. साल में 10 दिन के लिए मिलने आता है. 2 बेटियां हैं, एक अहमदाबाद में रहती है, दूसरी नोएडा में, जो हर रविवार को सपरिवार मिलने आती है. बाकी सप्ताह भर वर्मा दंपती अकेले. इसी कारण अनुभव और वर्माजी के बीच काफी नजदीकियां हो गई थीं.

अनुभव और स्नेह दोनों नौकरी करते थे. आकृति की वजह से वर्मा दंपती की नजदीकियां बढ़ीं. दोपहर को आकृति स्कूल से आती तो अधिक समय उस का वर्माजी के घर बीतता. घर के कार्य के लिए अनुभव ने नौकरानी रखी हुई थी, लेकिन नौकरानी आकृति का कम और अपना ध्यान अधिक रखती थी. इस कारण कई नौकरानियां आईं और चली गईं, लेकिन वर्मा परिवार से संबंध बढ़ता ही गया. अकेलेपन को दूर करने के लिए एक छोटे बच्चे का सहारा वर्माजी को अपने खुद के बच्चों की दूरी भुला देता था. इस में दोष किसी का नहीं है.

तभी रेलवे की घोषणा ने अनुभव को विचलित कर दिया. गाड़ी 2 घंटे और लेट है. उफ, ये रेलवे वाले कभी नहीं सुधरेंगे. एक बार में क्यों नहीं बता देते कि गाड़ी कितनी देर से आएगी. सुबह से एकएक घंटे बाद और अधिक देरी से आने की घोषणा कर रहे हैं. सर्दियों में कोहरे के कारण गाडि़यां अकसर देरी से चलती हैं. अनुभव आज और अधिक इंतजार नहीं कर सकता था. लेकिन इस समय वह केवल झुंझला कर रेलवे प्लेटफार्म के एक छोर से दूसरे छोर के चक्कर लगा रहा था. तभी मोबाइल की घंटी बजी. दूसरी तरफ वर्माजी थे.

‘‘मुबारक हो, अनु बेटे. अकी का भाई आया है. स्नेह और छोटा काका एकदम ठीक हैं. तुम चिंता मत करो. मैं घर जा रहा हूं, अकी के स्कूल से वापस आने का समय हो गया है. चिंता मत करना.’’

यह सुन कर अनुभव की जान में जान आई. अब शांति से बेंच पर बैठ गया. निश्ंिचत हो कर अब अनुभव टे्रन का इंतजार करने लगा. गाड़ी पूरे 6 घंटे देरी से आई. बच्चे की खुशखबरी सुन कर नानी की सफर की सारी थकान मिट गई.

‘‘अनु बेटे, अब सीधा नर्सिंग होम ले चल. पहले छोटे काके को देख कर स्नेह से मिल लूं.’’

नर्सिंग होम में स्नेह के पास झूले में छोटा काका सो रहा था. नानी को देख कर वर्मा दंपती ने बधाई दी. नानी ने नर्स और आया को रुपए न्योछावर किए और छोटे काके को गोद में लिया. छोटे काके को गोद में लेते देख आकृति बोली, ‘‘नानी, मैं ने आप से पहले छोटे काका को देखा. नानी, कितना गोरा है. देखो, कितना सौफ्ट है लेकिन एकदम गंजा है. सिर पर एक भी बाल नहीं है.’’

नानी ने लाड़ में कहा, ‘‘बाल भी आ जाएंगे. अकी से भी ज्यादा. जब तुम पैदा हुई थीं, तुम्हारे भी सिर में बाल नहीं थे, अब देखो, कितने लंबे बाल हैं.’’

‘‘नानी, मुझे दो न छोटे काका को, मम्मी तो हाथ भी नहीं लगाने दे रहीं.’’

नानी ने प्यार से कहा, ‘‘अभी बहुत छोटा है, मेरे पास बैठो, तुम्हारी गोदी में देती हूं.’’

गोदी में काका को पा कर आकृति उल्लास से भर कर बोली, ‘‘नानी, देखो, अभी आंखें खोल रहा था, देखो, कितने अच्छे तरीके से मुसकरा रहा है.’’

ऐसे हंसतेखेलते शाम हो गई. स्नेह ने नानी को घर जा कर आराम करने को कहा. आकृति का मन जाने को नहीं हो रहा था.

‘‘नानी, थोड़ा रुक कर चलते हैं. अभी काका जाग रहा है. जब सो जाएगा, तब चलेंगे.’’

‘‘अकी, अब घर चलो, होमवर्क भी करना होगा और फिर तुम उठने में देर कर देती हो,’’ अनुभव ने आकृति से कहा.

घर में होमवर्क करते समय अकी का ध्यान छोटे काका में लगा हुआ था. जैसेतैसे होमवर्क पूरा किया. रात को एक बार फिर वह अनुभव के साथ नर्सिंग होम गई और काफी देर तक छोटे काका को निहारती रही, पुचकारती रही.

रात को घर आने में देरी हो गई. पूरे दिन की थकान के बाद स्नेह और अपने बेटे को सही देख कर संपूर्ण निश्ंिचतता के साथ अनुभव सोया तो सुबह उठने में देरी हो गई.

वर्मा आंटी ने कालबेल बजाई तब जा कर अनुभव की आंख खुली.

‘‘बेटे, क्या बात है, क्या अकी स्कूल नहीं जाएगी. मैं ने उस का नाश्ता भी बना दिया है.’’

‘‘आंटी, मालूम नहीं आज घड़ी का अलार्म कैसे नहीं सुनाई दिया. अभी अकी को उठाता हूं. स्कूल की तो अगले सप्ताह से छुट्टियां हैं.’’

‘‘कोई बात नहीं, बेटा. मैं तुम्हारी चाय और अकी का नाश्ता रसोई में रख देती हूं और हां, स्नेह और नानी की चाय ले कर नर्सिंग होम जा रही हूं. तुम आराम से अकी को स्कूल के लिए तैयार करो.’’

अनुभव के उठने पर बड़ी मुश्किल से अकी स्कूल जाने के लिए तैयार हुई. चूंकि स्कूल बस आज निकल गई, इसलिए अनुभव को कार ले जानी पड़ी. अनुभव अकी को ले कर स्कूल पहुंचा तो गेट पर प्रिंसिपल खड़ी थीं और देरी से आने वाले बच्चों को घर वापस भेज रही थीं.

अनुभव ने काफी मिन्नत की लेकिन प्रिंसिपल के ऊपर कोई असर नहीं पड़ा, उलटे वह अनुभव पर बिफर पड़ीं, ‘‘आप अभिभावकों का कर्तव्य है कि बच्चों को नियमित समय पर स्कूल भेजें, उन को अनुशासित करें, लेकिन आप उन को शह दे कर और अधिक बिगाड़ रहे हैं. मैं स्कूल का नियम किसी को नहीं तोड़ने दूंगी. आप अपने बच्चे को वापस ले जाइए.’’

‘‘मैडम प्लीज, आगे से देर नहीं होगी. आज अधिक सर्दी और धुंध के कारण देर हुई है,’’ अनुभव ने विनती की.

‘‘अगर आप का घर दूर है तो आप घर के पास किसी स्कूल में बच्चे को दाखिल करवाइए. मुझे अपने स्कूल का अनुशासन नहीं तोड़ना,’’ पिं्रसिपल ने कड़क स्वर में कहा.

इस के आगे अनुभव कुछ नहीं कह सका और चुपचाप अकी के साथ कार स्टार्ट कर घर के लिए रवाना हो गया. अनुभव का मूड खराब हो गया कि कितने कठोर हैं स्कूल वाले जो बच्चों के साथ उन के मातापिता से भी कितने गलत तरीके से पेश आते हैं. इतनी ठंड में छोटे बच्चों को सुबह उठाना, तैयार करना कितना मुश्किल होता है. ठंड की परेशानी को समझना चाहिए. स्कूल के समय को बदलना चाहिए. यदि 1 घंटा देरी से सर्दियों में स्कूल लगाया जाए तो सब समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है. चाहे कुछ हो जाए, इस साल अकी का स्कूल बदलवा दूंगा. घर के पास जिस भी स्कूल में दाखिला मिलेगा, उसी में करवा दूंगा. आखिर मैं भी तो घर के पास के सरकारी स्कूल में पढ़ा हूं. क्या जिंदगी की दौड़ में पिछड़ गया. स्कूल के बड़े नाम में क्या रखा है.

अनुभव यह सोचता हुआ धीरेधीरे कार चला रहा था. अकी समझ गई कि पापा पिं्रसिपल की बात से उदास और नाराज हो गए हैं. अकी ने सीडी प्लेयर औन कर पापा की मनपसंद सीडी लगा दी. मुसकरा कर अनुभव ने अकी को देखा और कार की रफ्तार तेज की. आखिर बच्चे भी सब समझते हैं. हमें कुछ कहते नहीं, शायद डरते हैं क्योंकि हम डांट मार कर उन्हें चुप करा देते हैं.

‘‘अकी, जब स्कूल की छुट्टी हो गई है तब कुछ समय नानी, स्नेह और छोटे काका के संग गुजारा जाए,’’ यह कहते हुए अनुभव ने कार सीधे नर्सिंग होम की तरफ मोड़ दी. अकी बहुत खुश हुई कि छोटे काका के साथ उसे सारा दिन गुजारने को मिलेगा.

स्कूल बैग के साथ अकी को देख कर स्नेह कुछ नाराज हुई, ‘‘आप ने अकी की छुट्टी क्यों करवाई.’’

अनुभव ने कहा कि इस विषय में घर चल कर बात करेंगे.

शाम को स्नेह को नर्सिंग होम से छुट्टी मिल गई. अनुभव ने अकी से कहा कि आज स्कूल की छुट्टी हो गई तो वह अपनी फें्रड से होमवर्क पूछ कर पूरा कर ले.

अकी ने जैसेतैसे होमवर्क किया और फिर नानी के पास सट के बैठ गई कि इसी बहाने वह छोटे काका के पास रह लेगी. रात काफी हो गई थी, खुशी में बातोंबातों में आंखों से नींद गायब थी, घड़ी देख कर स्नेह ने अकी को सोने को कहा कि कल सुबह भी कहीं लेट न हो जाए.

अभी अकी को एक सप्ताह और स्कूल जाना था, ठंड इस साल कुछ अधिक थी. सुबह जबरदस्त कोहरा होने लगा. रोज सुबह अकी को इतनी जल्दी स्कूल के लिए तैयार होते देख कर नानी ने स्नेह से कहा, ‘‘बेटी, किसी पास के स्कूल में अकी को दाखिल करवा दे. इतना अधिक परिश्रम छोटे बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए घातक है.’’

‘‘मां, मैं स्कूल चेंज नहीं कराऊंगी. बहुत नामी और बढि़या स्कूल है.’’

इस का जवाब अनुभव ने दिया, ‘‘स्नेह, नानी ठीक कह रही हैं, मैं ने सोच लिया है कि इस साल रिजल्ट निकलने पर अकी का दाखिला किसी पास के स्कूल में करवा दूंगा,’’ और फिर उस ने पूरी बात स्नेह को विस्तारपूर्वक बताई कि कैसे फटकार लगा कर प्रिंसिपल ने उसे अपमानित किया. ऐसी बात सुन कर स्नेह उदास हो गई कि उस का अकी को एक नामी स्कूल में पढ़ाने का अरमान साकार नहीं हो पाएगा. लेकिन अनुभव के दृढ़ निश्चय और नानी के सहयोग के आगे स्नेह को झुकना पड़ा.

आकृति यह सुन कर बहुत खुश हुई कि अब उसे नए सत्र से पास के किसी स्कूल में जाना होगा. इतनी जल्दी भी नहीं उठना पड़ेगा. स्कूल बस में वह बहुत अधिक परेशान होती थी. बड़े बच्चे बस की सीटों पर छोटे बच्चों को बैठने नहीं देते थे. स्कूल टीचर भी उन्हें कुछ नहीं कहती थीं. उलटे सब से आगे की सीटों पर बैठ जाती थीं.

गरमियों में तो इतना ज्यादा पसीना आता, घबराहट होती कि तबीयत खराब हो जाती थी, लेकिन पापामम्मी तो इस बारे में सोचते ही नहीं. सर्दियों में कितनी ज्यादा ठंड होती है. स्कर्ट पहन कर जाना पड़ता है. ऊपर से कोट पहना देते हैं, लेकिन स्कर्ट पहनने से टांगों में बहुत ज्यादा ठंड लगती है. छोटे बच्चों की परेशानी कोई नहीं समझता.

ठंड बढ़ती जा रही थी. बच्चों की परेशानी को महसूस कर प्रशासन ने सरकारी स्कूलों की छुट्टी समय से पहले घोषित कर दी. अभिभावकों के दबाव में आ कर निजी स्कूलों में भी निर्धारित समय से पहले सर्दियों की छुट्टियां घोषित कर दीं. जिस दिन छुट्टियों की घोषणा की, आकृति अत्याधिक खुशी के साथ झूमती हुई, नाचती हुई स्कूल से वापस आई. जैसे नानी ने फ्लैट का दरवाजा खोला, आकृति नानी से लिपट गई.

‘‘नानी, मेरी प्यारी नानी, आज मैं आजाद पंछी हूं. हमारी कल से पूरे 20 दिन की छुट्टी. अब मैं रोज छोटे काका के संग खेलूंगी,’’ और अपना स्कूल बैग एक तरफ पटक दिया और आईने के सामने कमर मटकाते हुए गीत गाने लगी.

तभी स्नेह ने आवाज लगाई, ‘‘अकी, काका सो रहा है, शोर मत मचाओ.’’

‘‘गाना भी नहीं गाने देते,’’ कह कर अकी बाथरूम में मुंह धोने के लिए चली गई और गीत गाने लगी, ‘‘मैं ने जिसे अभी देखा है, उसे कह दूं, प्रीटी वूमन, देखो, देखो न प्रीटी वूमन, तुम भी कहो न प्रीटी वूमन.’’

अकी का गाना सुन कर स्नेह ने उस की नानी से कहा, ‘‘मम्मी, जा कर अकी को बाथरूम से निकालो, वरना वह 2 घंटे से पहले बाहर नहीं आएगी.’’

नानी ने अकी को बाथरूम में जा कर कहा, ‘‘प्रीटी वूमन, बहुत बनसंवर लिए. अब बाहर आ जाइए. छोटा काका आप को बुला रहा है.’’

‘‘सच्ची,’’ कह कर अकी ने फर्राटे की दौड़ लगाई, ‘‘यह क्या नानी, छोटा काका तो सो रहा है, आप ने मेरा मजाक उड़ा कर सारा मूड खराब कर दिया,’’ अकी ने मुंह बनाते हुए कहा.

‘‘मूड कैसे बनेगा, मेरी लाड़ो का,’’ नानी ने अकी को अपनी गोद में बिठाते हुए पूछा.

‘‘जब पापा गाना गाएंगे तब मैं पापा के साथ मिल कर गाऊंगी.’’

‘‘वह क्यों?’’

‘‘नानी, आप को नहीं पता, पापा को यह गाना बहुत अच्छा लगता है. मम्मी को देख कर गाते हैं.’’

‘‘अच्छा अकी, पापा का गाना तो बता दिया, मम्मी कौन सा गाना गाती हैं, पापा को देख कर?’’ इस से पहले अकी कुछ कहती, स्नेह तुनक कर बोली, ‘‘मां, तुम यह क्या बातें ले कर बैठ गईं.’’

यह सुनते ही अकी नानी के कान में धीरे से बोली, ‘‘नानी, मम्मी को थोड़ा समझाओ. हमेशा डांटती रहती हैं.’’

छुट्टियों में अकी को बेफिक्र देख कर नानी ने स्नेह से कहा कि बच्चों के कुदरती विकास के लिए जरूरी है कि उन्हें पूरा समय मिले, पढ़ने के साथ खेलने का मौका मिले. क्या तू भूल गई, किस तरह बचपन में तू पड़ोस की लड़कियों के साथ खेलती थी और पूरा महल्ला शोर से सिर पर उठाती थी. हम अपना बचपन भूल जाते हैं कि हम ने भी शैतानियां की थीं. बच्चों पर आदर्श थोपते हैं, जो एकदम अनुचित है.

‘‘मां, तुम भाषण पर आ गई हो,’’ स्नेह ने तुनक कर कहा.

‘‘तुम खुद देखो कि अकी आजकल कितनी खुश है, जितने दिन स्कूल गई, एकदम थकी सी रहती थी, अब एकदम चुस्त रहती है. इसलिए कहती हूं कि अनुभव की बात मान ले.’’

‘‘मम्मी, तुम और अनु एक जैसे हो, एकदूसरे की हां में हां मिलाते रहते हो. मेरी भावनाओं की तरफ सोचते भी नहीं हो. आखिर आप ने मुझे इतना क्यों पढ़ाया. एमबीए के बाद शादी कर दी. मेरा कैरियर भी नहीं बनने दिया. मुश्किल से 1 साल भी नौकरी नहीं की, शादी हो गई. शादी के बाद शहर बदल गया, फिर अकी के जन्म के कारण नौकरी नहीं की. अकी स्कूल जाने लगी, तब बड़ी मुश्किल से अनु को राजी किया. 3-4 साल ही नौकरी की, अब फिर छोटे काका के जन्म पर नौकरी छोड़नी पड़ रही है.’’

‘‘स्नेह, एक बात तुम समझ लो, परिवार के लालनपालन और बच्चों में अच्छी आदतों की नींव डालने के लिए मांबाप को अपनी कई इच्छाओं को मारना पड़ता है. परिवार को सही तरीके से पालना नौकरी करने से अधिक कठिन है. गृहस्थी की कठिन राह से परेशान लोग संन्यास लेते हैं, लेकिन दरदर भटकने पर भी न तो शांति मिलती है और न ही सुख. कठिन गृहस्थी में ही सच्चा सुख है.’’

स्नेह मां के आगे निरुत्तर हो गई और आकृति को घर के पास वाले स्कूल में दाखिल करने को राजी हो गई. सर्दियों की छुट्टियों में वर्माजी की लड़की भी अपने परिवार के साथ रहने आ गई. वर्माजी की नातिन वृंदा आकृति की हमउम्र थी. दोनों सारा दिन एकसाथ धमाचौकड़ी करती रहतीं और नानी, स्नेह, छोटा काका वर्मा परिवार के साथ सोसाइटी के लौन में धूप सेंकते. एक दिन धूप सेंकते वर्माजी ने अपनी लड़की को सलाह दी कि वह भी वृंदा को पास के स्कूल में दाखिल करवा दे. वे आकृति की नानी के गुण गाने लगे कि उन्होंने स्नेह को आकृति के स्कूल बदलने के लिए राजी कर लिया है.

स्नेह मुंह बना कर बोली, ‘‘क्या अंकल आप भी स्कूल पुराण ले कर बैठ गए. बड़ी मुश्किल से तो नानी की कथा बंद की है.’’

‘‘बेटे, इस का जिक्र बहुत जरूरी है. देखो, जब हम स्कूल में पढ़ते थे तब गरमियों और सर्दियों में स्कूल का अलग समय होता था. गरमी में सुबह 7 बजे और सर्दियों में 10 बजे स्कूल लगता था. गरमी में 12 बजे घर वापस आ जाते थे और सर्दी में धूप में बैठ कर पढ़ते थे.’’

‘‘अच्छा,’’ वृंदा ने हैरान हो कर पूछा, ‘‘आप कुरसीमेज क्लास से रोज बाहर लाते थे और फिर अंदर करते थे. अपने सर पर उठाते थे, क्या नानाजी?’’

‘‘नहीं बेटे, हमारे समय में तो मेजकुरसी नहीं होते थे. जमीन पर दरी बिछा कर बैठते थे. धूप निकलते ही मास्टरजी हुक्म देते थे और सारे बच्चे फटाफट दरियां उठा कर क्लासरूम के बाहर धूप में बैठ जाते थे. मजे की बात तो बरसात में होती थी. स्कूल की छत टपकती थी. जिस दिन बारिश होती थी, उस दिन छुट्टी हो जाती थी, मास्टरजी कहते थे, रेनी डे, बच्चो, आज की छुट्टी.’’

यह सुन कर वृंदा और आकृति जोरजोर से हंसने लगीं…रेनी डे, होलीडे, कहतेकहते और हंसतेहंसते दोनों लोटपोट हो गईं.

अब अनुभव कहने लगा, ‘‘वर्मा अंकल के बाद मेरी भी सुनो, मेरा स्कूल 2 शिफ्टों में लगता था. छठी क्लास तक दूसरी शिफ्ट में स्कूल लगता था. खाना खा कर 1 बजे स्कूल जाते थे. 6 बजे वापस आते थे, मजे से सुबह 7-8 बजे सो कर उठते थे, सुबह स्कूल जाने की कोई जल्दी नहीं होती थी.’’

आकृति और वृंदा को स्कूल की बातों में बहुत अधिक रस आ रहा था और वे हंसतेहंसते लोटपोट होती जा रही थीं.

अकी को छुट्टियों में इतना अधिक खुश देख कर स्नेह ने पास के स्कूल का महत्त्व समझा और फाइनल परीक्षा के बाद नए सत्र में घर के पास स्कूल में अकी का दाखिला करा दिया. घर से स्कूल का पैदल रास्ता सिर्फ 5 मिनट का था. 2 दिन में ही अकी इतनी अधिक खुश हुई और स्नेह से कहा, ‘‘मम्मी, यह स्कूल बहुत अच्छा है, मेरी 2 फ्रेंड्स साथ वाली सोसाइटी में रहती हैं. मम्मी, आप को मालूम है, वे साइकिल पर स्कूल आती हैं, मुझे भी साइकिल दिला दो, 2 मिनट में स्कूल पहुंच जाऊंगी.’’

अनुभव ने आकृति को साइकिल दिला दी. अब अकी को न तो टेंशन था सुबह जल्दी उठ कर स्कूल जाने की और न स्कूल बस मिस हो जाने का. सारा दिन वह खुश रहती था. होमवर्क करने के बाद काफी समय छोटे काका के साथ खेलती और बेफिक्र चहकती रहती.

6 महीने में एकदम लंबा कद पा गई आकृति को देख कर स्नेह खुशी से फूली नहीं समाती थी. जो अकी कल तक सारा दिन थकीथकी रहती थी, आज वह कहने लगी, ‘‘मम्मी, मुझे चाय बनाना सिखाओ, मैं आप को सुबह बेड टी पिलाया करूंगी.’’

सुन कर स्नेह को अपनी मां की कही बातें बारबार याद आतीं कि बच्चों के बहुमुखी विकास के लिए उन का बेफिक्र होना बहुत जरूरी है. उन पर उन की क्षमता से अधिक बोझ नहीं डालना चाहिए. बच्चों की खुशी में ही हमारी खुशी होती है.

आंधी से बवंडर की ओर: अर्पिता को क्यों मशीनी सिस्टम का हिस्सा बनाना चाहती थी उसकी मां?

फन मौल से निकलतेनिकलते, थके स्वर में मैं ने अपनी बेटी अर्पिता से पूछा, ‘‘हो गया न अप्पी, अब तो कुछ नहीं लेना?’’

‘‘कहां, अभी तो ‘टी शर्ट’ रह गई.’’

‘‘रह गई? मैं तो सोच रही थी…’’

मेरी बात बीच में काट कर वह बोली, ‘‘हां, मम्मा, आप को तो लगता है, बस थोडे़ में ही निबट जाए. मेरी सारी टी शर्ट्स आउटडेटेड हैं. कैसे काम चला रही हूं, मैं ही जानती हूं…’’

सुन कर मैं निशब्द रह गई. आज की पीढ़ी कभी संतुष्ट दिखती ही नहीं. एक हमारा जमाना था कि नया कपड़ा शादीब्याह या किसी तीजत्योहार पर ही मिलता था और तब उस की खुशी में जैसे सारा जहां सुंदर लगने लगता.

मुझे अभी भी याद है कि शादी की खरीदारी में जब सभी लड़कियों के फ्राक व सलवारसूट के लिए एक थान कपड़ा आ जाता और लड़कों की पतलून भी एक ही थान से बनती तो इस ओर तो किसी का ध्यान ही नहीं जाता कि लोग सब को एक ही तरह के कपड़ों में देख कर मजाक तो नहीं बनाएंगे…बस, सब नए कपड़े की खुशी में खोए रहते और कुछ दिन तक उन कपड़ों का ‘खास’ ध्यान रखा जाता, बाकी सामान्य दिन तो विरासत में मिले कपड़े, जो बड़े भाईबहनों की पायदान से उतरते हुए हम तक पहुंचते, पहनने पड़ते थे. फिर भी कोई दुख नहीं होता था. अब तो ब्रांडेड कपड़ों का ढेर और बदलता फैशन…सोचतेसोचते मैं अपनी बेटी के साथ गाड़ी में बैठ गई और जब मेरी दृष्टि अपनी बेटी के चेहरे पर पड़ी तो वहां मुझे खुशी नहीं दिखाई पड़ी. वह अपने विचारों में खोईखोई सी बोली, ‘‘गाड़ी जरा बुकशौप पर ले लीजिए, पिछले साल के पेपर्स खरीदने हैं.’’

सुन कर मेरा दिल पसीजने लगा. सच तो यह है कि खुशी महसूस करने का समय ही कहां है इन बच्चों के पास. ये तो बस, एक मशीनी जिंदगी का हिस्सा बन जी रहे हैं. कपड़े खरीदना और पहनना भी उसी जिंदगी का एक हिस्सा है, जो क्षणिक खुशी तो दे सकता है पर खुशी से सराबोर नहीं कर पाता क्योंकि अगले ही पल इन्हें अपना कैरियर याद आने लगता है.

इसी सोच में डूबे हुए कब घर आ गया, पता ही नहीं चला. मैं सारे पैकेट ले कर उन्हें अप्पी के कमरे में रखने के लिए गई. पूरे पलंग पर अप्पी की किताबें, कंप्यूटर आदि फैले थे…उन्हीं पर जगह बना कर मैं ने पैकेट रखे और पलंग के एक किनारे पर निढाल सी लेट गई. आज अपनी बेटी का खोयाखोया सा चेहरा देख मुझे अपना समय याद आने लगा…कितना अंतर है दोनों के समय में…

मेरा भाई गिल्लीडंडा खेलते समय जोर की आवाज लगाता और हम सभी 10-12 बच्चे हाथ ऊपर कर के हल्ला मचाते. अगले ही पल वह हवा में गिल्ली उछालता और बच्चों का पूरा झुंड गिल्ली को पकड़ने के लिए पीछेपीछे…उस झुंड में 5-6 तो हम चचेरे भाईबहन थे, बाकी पासपड़ोस के बच्चे. हम में स्टेटस का कोई टेंशन नहीं था.

देवीलाल पान वाले का बेटा, चरणदास सब्जी वाले की बेटी और ऐसे ही हर तरह के परिवार के सब बच्चे एकसाथ…एक सोच…निश्ंिचत…स्वतंत्र गिल्ली के पीछेपीछे, और यह कैच… परंतु शाम होतेहोते अचानक ही जब मेरे पिता की रौबदार आवाज सुनाई पड़ती, चलो घर, कब तक खेलते रहोगे…तो भगदड़ मच जाती…

धूल से सने पांव रास्ते में पानी की टंकी से धोए जाते. जल्दी में पैरों के पिछले हिस्से में धूल लगी रह जाती…पर कोई चिंता नहीं. घर जा कर सभी अपनीअपनी किताब खोल कर पढ़ने बैठ जाते. रोज का पाठ दोहराना होता था…बस, उस के साथसाथ मेडिकल या इंजीनियरिंग की पढ़ाई अलग से थोड़ी करनी होती थी, अत: 9 बजे तक पाठ पूरा कर के निश्ंिचतता की नींद के आगोश में सो जाते पर आज…

रात को देर तक जागना और पढ़ना…ढेर सारे तनाव के साथ कि पता नहीं क्या होगा. कहीं चयन न हुआ तो? एक ही कमरे में बंद, यह तक पता नहीं कि पड़ोस में क्या हो रहा है. इन का दायरा तो फेसबुक व इंटरनेट के अनजान चेहरे से दोस्ती कर परीलोक की सैर करने तक सीमित है, एक हम थे…पूरे पड़ोस बल्कि दूरदूर के पड़ोसियों के बच्चों से मेलजोल…कोई रोकटोक नहीं. पर अब ऐसा कहां, क्योंकि मुझे याद है कि कुछ साल पहले मैं जब एक दिन अपनी बेटी को ले कर पड़ोस के जोशीजी के घर गई तो संयोगवश जोशी दंपती घर पर नहीं थे. वहीं पर जोशीजी की माताजी से मुलाकात हुई जोकि अपनी पोती के पास बैठी बुनाई कर रही थीं. पोती एक स्वचालित खिलौना कार में बैठ कर आंगन में गोलगोल चक्कर लगा रही थी, कार देख कर मैं अपने को न रोक सकी और बोल पड़ी…

‘आंटी, आजकल कितनी अच्छी- अच्छी चीजें चल गई हैं, कितने भाग्यशाली हैं आज के बच्चे, वे जो मांगते हैं, मिल जाता है और एक हमारा बचपन…ऐसी कार का तो सपना भी नहीं देखा, हमारे समय में तो लकड़ी की पेटी से ही यह शौक पूरा होता था, उसी में रस्सी बांध कर एक बच्चा खींचता था, बाकी धक्का देते थे और बारीबारी से सभी उस पेटी में बैठ कर सैर करते थे. काश, ऐसा ही हमारा भी बचपन होता, हमें भी इतनी सुंदरसुंदर चीजें मिलतीं.’

‘अरे सोनिया, सोने के पिंजरे में कभी कोई पक्षी खुश रह सका है भला. तुम गलत सोचती हो…इन खिलौनों के बदले में इन के मातापिता ने इन की सब से अमूल्य चीज छीन ली है और जो कभी इन्हें वापस नहीं मिलेगी, वह है इन की आजादी. हम ने तो कभी यह नहीं सोचा कि फलां बच्चा अच्छा है या बुरा. अरे, बच्चा तो बच्चा है, बुरा कैसे हो सकता है, यही सोच कर अपने बच्चों को सब के साथ खेलने की आजादी दी. फिर उसी में उन्होंने प्यार से लड़ कर, रूठ कर, मना कर जिंदगी के पाठ सीखे, धैर्य रखना सीखा. पर आज इसी को देखो…पोती की ओर इशारा कर वे बोलीं, ‘घर में बंद है और मुझे पहरेदार की तरह बैठना है कि कहीं पड़ोस के गुलाटीजी का लड़का न आ जाए. उसे मैनर्स नहीं हैं. इसे भी बिगाड़ देगा. मेरी मजबूरी है इस का साथ देना, पर जब मुझे इतनी घुटन है तो बेचारी बच्ची की सोचो.’

मैं उन के उस तर्क का जवाब न दे सकी, क्योंकि वे शतप्रतिशत सही थीं.

हमारे जमाने में तो मनोरंजन के साधन भी अपने इर्दगिर्द ही मिल जाते थे. पड़ोस में रहने वाले पांडेजी भी किसी विदूषक से कम न थे, ‘क्वैक- क्वैक’ की आवाज निकालते तो थोड़ी दूर पर स्थित एक अंडे वाले की दुकान में पल रही बत्तखें दौड़ कर पांडेजी के पास आ कर उन के हाथ से दाना  खातीं और हम बच्चे फ्री का शो पूरी तन्मयता व प्रसन्न मन से देखते. कोई डिस्कवरी चैनल नहीं, सब प्रत्यक्ष दर्शन. कभी पांडेजी बोट हाउस क्लब से पुराना रिकार्ड प्लेयर ले आते और उस पर घिसा रिकार्ड लगा कर अपने जोड़ीदार को वैजयंती माला बना कर खुद दिलीप कुमार का रोल निभाते हुए जब थिरकथिरक कर नाचते तो देखने वाले अपनी सारी चिंता, थकान, तनाव भूल कर मुसकरा देते. ढपली का स्थान टिन का डब्बा पूरा कर देता. कितना स्वाभाविक, सरल तथा निष्कपट था सबकुछ…

सब को हंसाने वाले पांडेजी दुनिया से गए भी एक निराले अंदाज में. हुआ यह कि पहली अप्रैल को हमारे महल्ले के इस विदूषक की निष्प्राण देह उन के कमरे में जब उन की पत्नी ने देखी तो उन की चीख सुन पूरा महल्ला उमड़ पड़ा, सभी की आंखों में आंसू थे…सब रो रहे थे क्योंकि सभी का कोई अपना चला गया था अनंत यात्रा पर, ऐसा लग रहा था कि मानो अभी पांडेजी उठ कर जोर से चिल्लाएंगे और कहेंगे कि अरे, मैं तो अप्रैल फूल बना रहा था.

कहां गया वह उन्मुक्त वातावरण, वह खुला आसमान, अब सबकुछ इतना बंद व कांटों की बाड़ से घिरा क्यों लगता है? अभी कुछ सालों पहले जब मैं अपने मायके गई थी तो वहां पर पांडेजी की छत पर बैठे 14-15 वर्ष के लड़के को देख समझ गई कि ये छोटे पांडेजी हमारे पांडेजी का पोता ही है…परंतु उस बेचारे को भी आज की हवा लग चुकी थी. चेहरा तो पांडेजी का था किंतु उस चिरपरिचित मुसकान के स्थान पर नितांत उदासी व अकेलेपन तथा बेगानेपन का भाव…बदलते समय व सोच को परिलक्षित कर रहा था. देख कर मन में गहरी टीस उठी…कितना कुछ गंवा रहे हैं हम. फिर भी भाग रहे हैं, बस भाग रहे हैं, आंखें बंद कर के.

अभी मैं अपनी पुरानी यादों में खोई, अपने व अपनी बेटी के समय की तुलना कर ही रही थी कि मेरी बेटी ने आवाज लगाई, ‘‘मम्मा, मैं कोचिंग क्लास में जा रही हूं…दरवाजा बंद कर लीजिए…’’

मैं उठी और दरवाजा बंद कर ड्राइंगरूम में ही बैठ गई. मन में अनेक प्रकार की उलझनें थीं… लाख बुराइयां दिखने के बाद भी मैं ने भी तो अपनी बेटी को उसी सिस्टम का हिस्सा बना दिया है जो मुझे आज गलत नजर आ रहा था.

सोचतेसोचते मेरे हाथ में रिमोट आ गया और मैंने टेलीविजन औन किया… ब्रेकिंग न्यूज…बनारस में बी.टेक. की एक लड़की ने आत्महत्या कर ली क्योंकि वह कामर्स पढ़ना चाहती थी…लड़की ने मातापिता द्वारा जोर देने पर इंजीनियरिंग में प्रवेश लिया था. मुझे याद आया कि बी.ए. में मैं ने अपने पिता से कुछ ऐसी ही जिद की थी… ‘पापा, मुझे भूगोल की कक्षा में अच्छा नहीं लग रहा क्योंकि मेरी सारी दोस्त अर्थशास्त्र में हैं. मैं भूगोल छोड़ रही हूं…’

‘ठीक है, पर मन लगा कर पढ़ना,’ कहते हुए मेरे पिता अखबार पढ़ने में लीन हो गए थे और मैं ने विषय बदल लिया था. परंतु अब हम अपने बच्चों को ‘विशेष कुछ’ बनाने की दौड़ में शामिल हो कर क्या अपने मातापिता से श्रेष्ठ, मातापिता साबित हो रहे हैं, यह तो वक्त बताएगा. पर यह तो तय है कि फिलहाल इन का आने वाला कल बनाने की हवस में हम ने इन का आज तो छीन ही लिया है.

सोचतेसोचते मेरा मन भारी होने लगा…मुझे अपनी ‘अप्पी’ पर बेहद तरस आने लगा. दौड़तेदौड़ते जब यह ‘कुछ’ हासिल भी कर लेगी तो क्या वैसी ही निश्ंिचत जिंदगी पा सकेगी जो हमारी थी… कितना कुछ गंवा बैठी है आज की युवा पीढ़ी. यह क्या जाने कि शाम को घर के अहाते में ‘छिप्पीछिपाई’, ‘इजोदूजो’, ‘राजा की बरात’, ‘गिल्लीडंडा’ आदि खेल खेलने में कितनी खुशी महसूस की जा सकती थी…रक्त संचार तो ऐसा होता था कि उस के लिए किसी योग गुरु के पास जा कर ‘प्राणायाम’ करने की आवश्यकता ही न थी. तनाव शब्द तो तब केवल शब्दकोश की शोभा बढ़ाता था… हमारी बोलचाल या समाचारपत्रों और टीवी चैनलों की खबरों की नहीं.

अचानक मैं उठी और मैं ने मन में दृढ़ निश्चय किया कि मैं अपनी ‘अप्पी’ को इस ‘रैट रेस’ का हिस्सा नहीं बनने दूंगी. आज जब वह कोचिंग से लौटेगी तो उस को पूरा विश्वास दिला दूंगी कि वह जो करना चाहती है करे, हम बिलकुल भी हस्तक्षेप नहीं करेंगे. मेरा मन थोड़ा हलका हुआ और मैं एक कप चाय बनाने के लिए रसोई की ओर बढ़ी…तभी टेलीफोन की घंटी बजी…मेरी ननद का फोन था…

‘‘भाभीजी, क्या बताऊं, नेहा का रिश्ता होतेहोते रह गया, लड़का वर्किंग लड़की चाह रहा है. वह भी एम.बी.ए. हो. नहीं तो दहेज में मोटी रकम चाहिए. डर लगता है कि एक बार दहेज दे दिया तो क्या रोजरोज मांग नहीं करेगा?’’

उस के आगे जैसे मेरे कानों में केवल शब्दों की सनसनाहट सुनाई देने लगी, ऐसा लगने लगा मानो एक तरफ कुआं और दूसरी तरफ खाई हो…अभी मैं अपनी अप्पी को आजाद करने की सोच रही थी और अब ऐसा समाचार.

क्या हो गया है हम सब को? किस मृगतृष्णा के शिकार हो कर हम सबकुछ जानते हुए भी अनजान बने अपने बच्चों को उस मशीनी सिस्टम की आग में धकेल रहे हैं…मैं ने चुपचाप फोन रख दिया और धम्म से सोफे पर बैठ गई. मुझे अपनी भतीजी अनुभा याद आने लगी, जिस ने बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम कर रहे अपने एक सहकर्मी से इसलिए शादी की क्योंकि आज की भाषा में उन दोनों की ‘वेवलैंथ’ मिलती थी. पर उस का परिणाम क्या हुआ? 10 महीने बाद अलगाव और डेढ़ साल बाद तलाक.

मुझे याद है कि मेरी मां हमेशा कहती थीं कि पति के दिल तक पेट के रास्ते से जाया जाता है. समय बदला, मूल्य बदले और दिल तक जाने का रास्ता भी बदल गया. अब वह पेट जेब का रास्ता बन चुका था…जितना मोटा वेतन, उतना ही दिल के करीब…पर पुरुष की मूल प्रकृति, समय के साथ कहां बदली…आफिस से घर पहुंचने पर भूख तो भोजन ही मिटा सकता है और उस को बनाने का दायित्व निभाने वाली आफिस से लौटी ही न हो तो पुरुष का प्रकृति प्रदत्त अहं उभर कर आएगा ही. वही हुआ भी. रोजरोज की चिकचिक, बरतनों की उठापटक से ऊब कर दोनों ने अलगाव का रास्ता चुन लिया…ये कौन सा चक्रव्यूह है जिस के अंदर हम सब फंस चुके हैं और उसे ‘सिस्टम’ का नाम दे दिया…

मेरा सिर चकराने लगा. दूर से आवाज आ रही थी, ‘दीदी, भागो, अंधड़ आ रहा है…बवंडर न बन जाए, हम फंस जाएंगे तो निकल नहीं पाएंगे.’ बचपन में आंधी आने पर मेरा भाई मेरा हाथ पकड़ कर मुझे दूर तक भगाता ले जाता था. काश, आज मुझे भी कोई ऐसा रास्ता नजर आ जाए जिस पर मैं अपनी ‘अप्पी’ का हाथ पकड़ कर ऐसे भागूं कि इस सिस्टम के बवंडर बनने से पहले अपनी अप्पी को उस में फंसने से बचा सकूं, क्योंकि यह तो तय है कि इस बवंडर रूपी चक्रव्यूह को निर्मित करने वाले भी हम हैं…तो निकलने का रास्ता ढूंढ़ने का दायित्व भी हमारा ही है…वरना हमारे न जाने कितने ‘अभिमन्यु’ इस चक्रव्यूह के शिकार बन जाएंगे.

लोग मेरे चरित्र के बारे में बात करना चाहते हैं : रसिका दुग्गल

जमशेदपुर में जन्मीं, सुंदर व मृदुभाषी रसिका दुग्गल ने दिल्ली से सोशल कम्यूनिकेशन मीडिया में पोस्टग्रैजुएट डिप्लोमा के बाद एफटीआईआई में भी पोस्ट ग्रैजुएट किया है. उन्होंने कैरियर की शुरुआत वर्ष 2007 में पहली हिंदी फिल्म ‘अनवर’ में एक छोटी सी भूमिका के साथ किया था. इस के बाद फिल्म ‘नो स्मोकिंग’, ‘हाईजैक’, ‘तहन’, ‘अज्ञात’, ‘क्षय’ आदि फिल्मों के साथसाथ ‘पाउडर’, ‘रिश्ता डौट कौम’, ‘किस्मत’ आदि टीवी शो में दिखाई दीं.

उन की फिल्मी जर्नी सफल नहीं रही, लेकिन ओटीटी ने उन्हें खुल कर काम करने का मौका दिया और वह पौपुलर हुईं. इतना ही नहीं, उन्हें आजतक अधिकतर रोनेधोने के कम से कम 2 सीन्स फिल्मों में दिए जाते थे, जिस से वह कई बार परेशान हो जाती थीं और टाइपकास्ट से बचने की कोशिश कर रही थीं. ओटीटी ने उन्हें उन्हे इस का अवसर दिया.

हाल ही में उन की वैब सीरीज ‘शेखर होम’ रिलीज हो चुकी है, जो एक डिटैक्टिव सीरीज है, जिस में उन के काम को काफी सराहना मिल रही है. उन्होंने अपनी जर्नी के बारें में बात की। पेश हैं, कुछ अंश :

स्क्रिप्ट का अच्छा होना जरूरी

यह सीरीज रसिका के लिए एक नई चुनौती रही, जिसे करने में बहुत अच्छा लगा. वे कहती हैं कि इस से पहले मैं ने ‘डिटैक्टिव’ ड्रामा के बारे में ऐक्स्प्लोर नहीं किया था, जिस का मौका इस सीरीज में मिला. साथ ही मुझे के के मेनन के साथ काम करने की इच्छा भी थी, क्योंकि उन की फिल्म ‘हजारों ख़्वाहिशें ऐसी’ मेरी पसंदीदा फिल्म है और जब मैं ने सुना कि शेखर होम उन की वैब सीरीज है, तो मेरे लिए मना करने की कोई वजह नहीं थी.

मेरे पास स्क्रिप्ट आई और इस की कहानी मुझे अच्छी लगी, क्योंकि इस से पहले मैं ने फिल्म ‘डार्क फेज’
की थी और यह उस से अलग भूमिका थी.

छोटी फिल्मों की रिलीज में परेशानी

रसिका काफी सालों से इंडस्ट्री में काम कर रही हैं, लेकिन फिल्मों से अधिक वे ओटीटी में सफल रहीं, क्योंकि उन की सीरीज ‘मिर्जापुर’, ‘मेड इन हेवन’, ‘आउट औफ लव’, ‘ए सूटेबल बौय’ आदि सभी सफल रही.

इस की वजह वे बताती हैं कि ओटीटी से पहले मैं ने कई फिल्में कीं, लेकिन वह मास तक नहीं पहुंच पाई. मैं चाहती थी कि बड़ी संख्या में दर्शकों तक मेरी फिल्में पहुंचे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. हालांकि फिल्में बहुत अच्छी थीं, फिर चाहे वह फिल्म ‘मंटो’ हो या ‘किस्सा’, इन फिल्मों को रिलीज करना मुश्किल था, क्योंकि कम बजट की छोटी फिल्म, जिस में कोई बड़ा स्टार न हो रिलीज करना मुश्किल होता है, लेकिन वैब
सीरीज ‘मिर्जापुर’ के बाद ‘दिल्ली क्राइम’ और फिर ‘आउट औफ लव’ इन सब के रिलीज होने के साथसाथ मुझे दर्शकों तक पहुंचने का अवसर मिला, जो मुझे बहुत अच्छा लगा, क्योंकि जितने अधिक लोग आप को, आप के काम से पहचानें, प्रसंशा करें, तो अच्छा फील होता है.

इस के अलावा छोटी फिल्मों को आज डिस्ट्रीब्यूटर से ले कर स्ट्रीमिंग के लिए भी प्लेटफौर्म मिलना कठिन हो चुका है. शोज की स्ट्रीमिंग कुछ हद तक हो रही है, लेकिन छोटी फिल्मों को लोग खरीदना नहीं चाहते. छोटी फिल्मों के रिलीज की समस्या अभी भी है. फिल्म ‘फेयरी फोक’ को रिलीज के लिए कोई जगह नहीं
मिल रही थी, बहुत मुश्किल से थिएटर में रिलीज हो पाई. स्ट्रीमिंग प्लेटफौर्म वालों ने एक दायरा तय कर लिया है, उस में अगर फिल्म फिट होती है, तभी वे उसे लेते हैं , नहीं तो मना कर देते हैं। इस तरह से यह मंच कमिशंड हो चुकी है.

दर्शकों को समझना जरूरी

काम के जरिए दर्शकों से जुड़ना ही किसी कलाकार के लिए सफलता की सीढ़ी मानी जाती है, जो रसिका को वैब सीरीज से मिली. वे कहती हैं कि वैब सीरीज ‘मिर्जापुर’ सभी शो से एकदम अलग थी और उस शो की पहुंच बाकी किसी भी शो से बहुत अधिक थी। जहां भी मैं जाती हूं, लोग आज भी मुझे उस शो का जिक्र करते हैं और मेरे चरित्र के बारे में बात करना चाहते हैं, अपनी प्रतिक्रिया बताते हैं, जो मुझे बहुत अच्छा लगता है.

अगर कोई शो अच्छा है, तो मुझे कुछ नया करने का प्रोत्साहन मिलता है, साथ ही बिना दर्शकों को जानें हमारा रिश्ता फिल्मों के जरीए जुड़ जाता है और यह एक अच्छा अनुभव होता है.

प्रभावित करती है चरित्र

सभी फिल्में और वैब सीरीज रसिका को किसी न किसी रूप में प्रभावित किया है, लेकिन अगर उन से समानता की बात की जाए, तो रसिका खुद को दिल्ली क्राइम की नीति सिंह से खुद को जोड़ पाती हैं.

वे कहती हैं कि शो ‘दिल्ली क्राइम’ की नीति सिंह की शुरुआती भूमिका मुझे मेरे कालेज के दिनों को याद दिलाती है, क्योंकि उस उम्र में आदर्शवादिता और खुद पर परिस्थिति को बदल डालने का विश्वास मेरे अंदर था. इस के अलावा मैं आत्मविश्वास के साथसाथ सौफ्ट स्पोकेन भी हूं. कई बार लोग सौफ्ट स्पोकेन को वीकनैस से जोड़ लेते हैं, जबकि ऐसा नहीं होता. मैं ने ऐसी स्थिति को कई बार फेस किया है, क्योंकि सौफ्ट स्पोकेन होने की वजह से लोगों ने मुझे कई बार सीरीयसली नहीं लिया जबकि मृदुभाषी होने में एक बड़ी शक्ति छिपी होती है, जिस का फायदा मुझे मिला है.

संघर्ष है चुनौती

रसिका संघर्ष को चुनौती मानती हुई कहती हैं,”यह व्यक्ति को मोटिवेट करती है, खुद को आगे बढ़ने का मौका देती है और व्यक्ति को जमीन से जुड़ा रखती है, लेकिन मायूस न हो कर इसे सही अर्थ में लिया जाना चाहिए, ताकि आप निराश न हों. चुनौती हमेशा अच्छा होता है, आप को तरोताजा रखती है, नहीं तो
लाइफ बोरिंग हो जाती है. अगर आप को कुछ अच्छा करने की इच्छा है, तो
चुनौती आती है, अभी मैं आगे एक कौमेडी फिल्म करने की इच्छा रखती हूं.”

सफाई किसी एक की जिम्मेदारी नहीं

हमारे यहां साफसफाई एक त्योहार या मेहमान से जुड़ी एक अनयूजुअल चीज है वरना तो हम गंदगी के पूरी तरह आदी हैं. पहले दिल्ली की जम कर जी 20 के बाद साफसफाई हुई थी पर अब उस के निशान तक बचे नहीं सिवा कुछ फटे पोस्टरों के जिन में नरेंद्र मोदी विश्व नेता सा पोज बनाए दिख रहे हैं. जुलाई के अंतिम वीक में वर्ल्ड हैरीटेज कमेटी की दिल्ली की बैठक के लिए की गई साफसफाई भी इतनी बड़ी न्यूज थी कि कई अखबारों ने छापा कि एनक्रोचमैंट और क्लीनिंग जोर से चालू है.

हमारे डीएनए में सफाई अभी तक घुस नहीं पाई है क्योंकि हम ने कास्ट सिस्टम के मुताबिक क्लीनिंग की मोनोपौली केवल एक से लोगों को दे रखी है जो अब एक तरह से रिवोल्ट के कगार पर हैं. वे यह काम छोड़ कर कंस्टीम्यूशन की इक्वैलिटी की बात करने लगे हैं. वे मन मार कर सफाई करते हैं क्योंकि जहां वे खुद रहते हैं वहां की सफाई का कौंट्रैक्ट भी कोई म्यूनिसिपल बौडी किसी को नहीं देती. वहां तो गंदगी बस बरसात होने पर बह जाती है.

हमारे शहर गंदे हैं तो इसलिए कि क्लीनिंग थोड़ी सी ह्यूमन लेबर मांगती है. अगर आप ने कूड़ा डस्टबिन में डाला तो भी डस्टबिन को खाली कर के उस कूड़े को शहर के बाहर कही डंप करना भी एक मुश्किल काम है जिस में पैसा, प्लानिंग दोनों लगते हैं. हम चाहते हैं कि न पैसा लगे, न ऐनर्जी और सबकुछ अपनेआप क्लीन हो जाए.

शहरों की क्लीनिंग तभी संभव है जब पूरा शहर, ऊंचानीचा, जवान, बच्चा, बूढ़ा, सब लगें, सब को एहसास हो जैसे प्रोडक्शन की चेन होती है वैसे ही वेस्ट मैनेजमैंट की चेन है. प्रोडक्शन की चेन में भी हर स्टेज पर हर किसी को अपना कंट्रीब्यूशन देना होगा. नई चीजें डिजाइन करनी होंगी, डिस्पोजल की इंडियन टैक्नीक डैवलप करनी होगी जो बड़े शहरों में ही नहीं, छोटे गांवों में भी चल सके.

लोगों को अपनी गलियां खुद के जौइंट ऐर्फ्ट से साफ करने की प्रैक्टिस करनी होगी क्योंकि यहां मैकेनाइज्ड स्टीपिंग ट्रक नहीं चल सकते. लोगों को घरेलू वेस्ट ऐसे कंटेनरों में डालने की आदत डालनी होगी जो इसे कंप्रैस कर के, कर्ब कर के छोटा कर सकें जिसे घर वाले खुद आसानी से डिस्पोज कर सकें.

यह करो या कूड़ेदान में रहो जैसे सदियों से रहे हो. यह न भूलें कि अभी 100 साल पहले जब पानी घरों में मटकों में आता था, शहर भभका मारते थे और लोग उसी में मरतेखपते जीते थे. आज की थोड़ीबहुत सफाई टैक्नोलौजी की देन है पर चूंकि हमारे पास एससी जमात आती है, हमें यह कार्य करना अपने स्टेटस के खिलाफ  लगता है. जब तक हम इसे खुद नहीं सीखेंगे, शहर भी गंदे रहेंगे, टूरिस्ट प्लेसेज भी और घर भी.

पाना चाहती हैं सेलिब्रिटी जैसा लुक, तो ट्राई करें मल्टी डायमेंशनल हेयर कलर

फैशन के रंग भी बड़े निराले होते हैं. कल तक जहां काले घने बालों का फैशन था, वहीं आज के बदलते दौर में काली रेशमी जुल्फे रेड, ब्लू, औरेंज और पीकौक जैसे डिफरैंट कलर की नजर आने लगी हैं. इन कलरफुल जुल्फों का फैशन इस कदर जोर शोर से है कि आज टीनएज गर्ल्स से लेकर लेडीज भी इसको अपना रही हैं. तो क्यों न आप भी ट्रैंड को फौलो करते हुए भीड़ से अलग हट कर अपनी खास पहचान बनाएं.

सबकुछ ट्रेंड के अनुसार ही

जावेद हबीब सलोन के हेयर आर्टिस्ट आरिफ मियां का कहना है कि फैशनेबल और ट्रैंडी दिखना आजकल हर कोई चाहता है. अब ब्राउन, गोल्डन और बरगंडी हेयर के दिन गए अब फैशनेबल लड़कियों के लिए खासतौर पर मार्केट में ऐसे फंकी कलरफुल हेयर कलर आए हैं, जिसे आप अपने हेयर पर लगाकर लुक को चेंज कर पर्सनैलिटी को निखार सकती है.

फंकी हेयर कलर ट्रेंड

वहीं रिच लुक्स यूनिसेक्स सलोन के हेयर स्टाइलिश राजेन्द्र सिंह का कहना है कि लुक स्विच करने के लिए हेयर कलर भी बदला जा सकता है. नए ट्रैंड में नए कलर्स के साथ एक्सपैरिमेंट करना चाहते हैं तो इनमें से कोई एक फंकी शेड्स चुन सकते हैं. जैसे-फ्लर्टी रेड, मिस्टिक ब्लू, जेस्टी येलो, वंडर ब्लू, ग्लोरियस ग्रीन, क्रेजी वायलेट, पर्की ग्रीन,ऊम्फी औरेंज, ग्रोवी पिंक ये फंकी कलर अमोनिया फ्री और पेरोक्साइड फ्री है. इसके अलावा आप और्गन सीक्रेट्स हेयर कलर भी ट्राई कर सकती है जिसमें क्रिमसन रेड, हनी ब्लोंड, प्लम, बीज ब्लोंड, सेंडर ब्लोंड, ऐश ब्लोंड.

आजकल ट्रैंड कब बदल जाए कह नहीं सकते कुछ समय पहले तक सिर्फ हेयर की अंदर की तरफ की एक लट को डिफरैंट कलर से हाई लाइट करने का ट्रेंड था जिसमे आप अपनी पसंद का रेडवाइन, रेड चेरी, ब्लू, ग्रीन और पिकौक कलर कुछ भी करवा सकती थी लेकिन अब कुछ लड़कियां फंकी ग्लोबल कलर करवाने लगी है इससे आपका पूरा लुक ही बदल जाता है.

मैंटेन करना आसान नहीं

फैशन हेयर कलर मैंटेन करने के लिए आपको अपने हेयर एक्सपर्ट से कई अपाइंटमेंट की आवश्यकता पड़ेगी इससे आपका टाइम और रुपए ज्यादा खर्च होगा.

फैशन के रंग जल्दी फेड पड़ जाते हैं

फैशन के रंग जल्दी फेड हो जाते हैं क्योंकि ये कोई परमानेंट ट्रीटमेंट नहीं है इसलिए अपने हेयर एक्सपर्ट के टच में रहे और हेयर को लेकर जो भी प्रोटेक्शन आपको बताए जाए उसका पालन करे. जैसे कलर प्रोटेक्शन शैम्पू, कंडीशनर, मास्क सीरम का प्रयोग करें.

सेमी और परमानेंट हेयर कलर

आप चाहें तो अपने मनचाहे हेयर कलर की स्ट्रिप्स कलर करवा सकती हैं या फिर दो या तीन शेडों में अपने पूरे हेयर को कलर करवा सकती हैं. मार्केट में हेयर कलर दो प्रकार के मौजूद हैं, जिनमें परमानेंट व सेमी परमानेंट दोनों प्रकार के कलर आते हैं. यदि आप कुछ सप्ताह के लिए हेयर कलर करवाना चाहते हैं तो सेमी परमानेंट हेयर कलर आपके लिए बेस्ट होगा लेकिन ज्यादा लंबे समय तक हेयर को कलर्ड बनाने के लिए आप परमानेंट हेयर कलर का उपयोग कर सकती हैं.

फंकी हेयर कलर करवाने से पहले रखें इन बातों का खास ध्यान-

  • किसी अच्छे पार्लर या सैलून में हेयर एक्सपर्ट से ही ब्रांड का हेयर कलर करवाएं.
  • पहली बार फंकी कलर करवा रही है तो अपने हेयर की नीचे की लटो में कलर करवा कर देखे की ये कलर आपको सूट कर रहा है या नही.
  • हेयर पर कलर करते समय अपनी आईज की सुरक्षा का पूरा ख्‍याल रखें.
  • तेज धूप से आपके कलर किए हुए बाल खराब हो सकते हैं. अत: उन्हें धूप से बचाए और एक्सपर्ट के बताएं हुए कंडीशनर/मास्क और सीरम जरूर लगाएं.
  • इस बार अपने लुक को डिफरैंट दिखाने के लिए इन फंकी कलर्स को आजमा कर जरूर देखें और फैशन की ट्रैंड में आप भी शामिल हो जाए.

महंगी ज्वैलरी को लंबे समय तक बनाए रखना चाहती हैं नया, तो अपनाएं ये आसान तरीका

रश्मि को ज्वैलरी पहनने का बहुत शौक है, आजकल गोल्ड और डायमंड ज्वैलरी पहनना तो अपनी जान को ही खतरे में डालने जैसा है इसलिए उसने भांति भांति की आर्टिफिशियल ज्वैलरी खरीद रखी है पर इसके बावजूद जब भी वह ज्वैलरी पहनना चाहती है तो कभी कान का एक टौप्स नहीं मिलता, कभी नैकलेस की मैचिंग के कान इयरिंग्स नहीं मिलते. और इसका कारण है ज्वैलरी का व्यवस्थित ढंग से न रखा जाना.

आशिमा जब भी बाजार जाती है विविध प्रकार की ज्वेलरी खरीद लेती है पर सही ढंग से न रखे जाने के कारण वह बहुत जल्दी काली पड़ जाती है या चमक खत्म हो जाने के कारण पुरानी सी दिखने लगती है.
आजकल आर्टिफिशियल ज्वैलरी से बाजार भरा पड़ा है. ये दिखने में बहुत खूबसूरत और दाम में काफी सस्ती होती हैं इसलिए ये हर किसी के लिए बजट फ्रैंडली भी होती हैं. ज्वैलरी कोई भी हो सबसे जरूरी होता है उसका रखरखाव. रखरखाव और पर्याप्त देखभाल के अभाव में महंगी से महंगी ज्वैलरी भी खराब हो जाती है और सही देखभाल से सस्ती ज्वैलरी भी सालों साल चलती है. यूं तो आजकल बाजार में विविध रंग और डिजाइन के ज्वैलरी बौक्सेज मौजूद हैं परन्तु कई बार ये काफी महंगे होते हैं जिन्हें हर कोई नहीं खरीद पाता आज हम आपको घर में ही मौजूद कुछ चीजों की मदद से ज्वैलरी स्टोर करने के आइडियाज दे रहे हैं जिनकी मदद से आप अपनी किसी भी ज्वैलरी को बड़े आराम से स्टोर कर सकती हैं.

1-हुक्स देंगे नया लुक

आजकल बाजार में विविध आकार और रंग के सेल्फ एडहेसिव हुक्स मौजूद हैं इन्हें आप औनलाइन या औफलाइन अपनी सुविधानुसार खरीद सकती हैं. इनमें पीछे की तरफ ग्लू लगा रहता है और इनके पीछे लगी प्लास्टिक की पतली चिप को हटाकर आप इन्हें अपनी कवर्ड के किसी भी प्लेन सरफेस पर चिपका सकतीं हैं. ये सिंगल और मल्टीपल हुक्स दोनों ही फौर्म में मार्केट में उपलब्ध हैं. इन्हें अपनी आवश्यकतानुसार अपनी वार्डरोब में चिपकाकर आप अपनी हर तरह की ज्वैलरी हैंग करके रख सकती हैं. सामने दिखने के कारण इन्हें निकालना भी काफी आसान रहता है.

2-हैंगर हैं बहुत यूजफुल

हैंगर का प्रयोग आमतौर पर कपड़े टांगने के लिए किया जाता है परन्तु आप इन पर अपनी ज्वैलरी भी स्टोर कर सकती हैं. एल्युमिनियम के हैंगर को एक साइड से खोलकर चौड़ा कर लें और फिर इसमें आप अपनी विविध प्रकार की लंबी, छोटी मालायें, चैन्स और इयरिंग्स आदि को हैंग करके खुली साइड को फिर से इस तरह बंद कर दें कि यह आसानी से खुल जाए.

लकड़ी और प्लास्टिक के हैंगर पर कपड़े सुखाते समय लगाए जाने वाले क्लिप से इन्हें हैंग करें.
3-कप और प्लेट्स हैं बहुत काम के किचिन के अनुपयोगी कप और प्लेट्स को आप अपनी ड्रेसिंग टेबल की ड्राअर में रखकर इसमें आप दो तीन टौप्स, इयरिंग्स आदि आसानी से रख सकती हैं. चैन्स और नैकलेस को आप कप के ऊपर या हैंडल में हैंग कर सकतीं हैं. आप डिस्पोजल ग्लास और कप्स का प्रयोग भी कर सकती हैं.

4- कलरफुल बटन्स

बड़े साइज के बटन्स के होल में आप नोज पिन, इयरिंग्स, आदि को हुक करके किसी भी डिब्बे में रख सकतीं हैं इससे ये गुमेगी भी नहीं और देखने में भी अच्छी लगेगी.

5- कांच की बौटल्स

लकड़ी के किसी भी पुराने बौक्स को सुतली या धागे की सहायता से दीवार पर हैंग कर दें. अब फेविकोल से इसमें 2 खाली कांच की बोतलें चिपकाकर इस पर आप अपनी चूड़ियां, ब्रेसलेट, हेयरबैंड्स आदि को हैंग कर सकतीं हैं. ये दिखने में भी एक शोपीस जैसा लगता है.

6-किचिन नैपकिन रोल

किचिन में टिश्यू पेपर रोल का प्रयोग किया जाना आजकल बहुत आम बात है. टिश्यू पेपर के प्रयोग के बाद खाली रोल का उपयोग आप अपनी बैंगल्स, ब्रेसलेट को रखने के लिए कर सकती हैं.

7-थर्माकोल शीट्स हैं बड़े काम की

अक्सर घर में आने वाले इलेक्ट्रौनिक सामान को थर्माकोल शीट्स में पैक किया जाता है. इस थर्माकोल शीट को आप अपनी वार्डरोब के आकार के अनुसार काटकर डबल साइड टैप से वार्डरोब में चिपका दें. अब इसमें विविध आकार के हुक्स लगाकर अपनी ज्वैलरी को टांग सकती हैं.

हौसले बुलंद रहें सरकार: क्या पत्नी को खुश करना है बेहद मुश्किल

आजकल पता नहीं ऐसा क्यों हो रहा है कि शाम को जब भी मैं औफिस से सहीसलामत घर लौट कर आता हूं तो पत्नी हैरान हो कर पूछती है, ‘आ गए आज भी वापस?’ कई बार तो मुझे उस के पूछने से ऐसा लगता है मानो मुझे शाम को सकुशल घर नहीं आना चाहिए था. उस के हिसाब से लगता है, वह मुझ से ऊब गई हो जैसे. वैसे, एक ही बंदे के साथ कोई 20 साल तक रहे, तो ऊबन, चुभन हो ही जाती है. मुझे भी कई बार होने लगती है.

हर रोज मेरे सकुशल घर आने पर उस में बढ़ती हैरानी को देख सच पूछो तो मैं भी परेशान होने लगा हूं. कई बार इस परेशानी में रात को नींद नहीं आती. अजीबअजीब से सपने आते हैं. कल रात के सपने ने तो मुझे तड़पा ही दिया.

मैं ने सपने में देखा कि जब मैं औफिस से सब्जी ले कर घर आ रहा था तो मेरा एनकाउंटर हो गया है. पुलिस कहानियां बना अपने को शेर साबित कर रही है. मीडिया में मरने के बाद मैं कुलांचे मार रहा हूं. इस देश में आम आदमी मरने के बाद ही कुलांचे मारता है वह भी मीडिया की कृपा से. बहरहाल, मामला आननफानन सरकार के द्वार पहुंचा तो उस ने मामले को सांत्वना देनी चाही. प्रशासन मेरी पत्नी के द्वार सांत्वना देने के बजाय मामला दबाने आ धमका. वह तो मेरे जाने से पहले ही प्रशासन का इंतजार कर रही थी जैसे.

मेरे फेक एनकाउंटर के बाद सरकार और पत्नी के बीच जो बातें हुईं, प्रस्तुत हैं, आने वाले समय में किए जाने वाले फेक एनकाउंटरों में शहीद होने वालों को प्रसन्न करने वाले उन बातों के कुछ अंश :

‘बहनजी, गलती हो गई, हमारे पुलिस वाले से आप के पति का एनकाउंटर हो गया,’ कोई सरकार सा मेरी बीवी के आगे दोनों हाथ जोड़े सांत्वना देने के बदले मेरी मौत की सौदेबाजी करने के पूरे मूड में.

‘कोई बात नहीं सर. पुलिस से बहुधा गलती हो ही जाती है. हमारी पुलिस है ही गलती का पुतला. उन के जाने के बाद ही सही, आप हमारे द्वार आए, हमें तो कुबेर मिल गया. अब हमें उन के एनकाउंटर का तनिक गम नहीं. वैसे भी इस धरती पर जो आया है, उसे किसी न किसी दिन तो जाना ही है. बंदा जाने के बाद भी कुछ दे कर जाए तो बहुत अच्छा लगता है सर.’ आह, मेरी बीवी का दर्द. वारि जाऊं बीवी की मेरे लिए श्रद्धांजलि के प्रति. काश, ऐसी बीवी ब्रह्मचारियों को भी मिले.

‘देखो बहनजी, हम वैसा दूसरा पति तो आप को ला कर दे नहीं सकते पर हम ऐसा करते हैं…’ सरकार ने बीच में अपनी वाणी रोकी तो मेरी बीवी की आर्थिक चेतना जैसे जागृत हुई. उन के जाने के बाद अब तो सरकार मुझे, बस, आप का ही सहारा है,’ पत्नी कुछ तन कर बैठी.

‘तो आप को अपने यहां आप के पति की जगह पर सरकारी नौकरी में लगा देते हैं. आप चाहो तो कल से ही आ जाओ. इस के साथ ही साथ आप को एक सरकारी टू रूम सैट भी हम अभी दे देते हैं. चाबियां निकालो यार. आप के खाते में अपनी गलतीसुधार के लिए जिंदा जनता के पैसों में से 20 लाख रुपए जमा करवा देते  हैं,’ सरकार ने मुसकराते हुए घोषणा की तो पत्नी के कान खड़े हुए.

‘पर सर, उस मामले में तो आप ने उन की पत्नी को पीआरओ बनाया है. वहां भी पति ही गया है. पति तो सारे एक से होते हैं. फिर मेरे साथ मुआवजे को ले कर भेदभाव क्यों? उस के खाते में आप ने 25 लाख रुपए डाले. उस के बच्चों की पढ़ाई के लिए 5-5 लाख रुपए की एफडी बना दी. मेरी आप से इतनी विनती है कि कम से कम पतियों के एनकाउंटर के मामले में हम महिलाओं के साथ भेदभाव तो न कीजिए. चलो, ऐसा करती हूं सास के खाते में डालने वाले पैसे आप की सरकार पर छोड़े. पर…’

‘देखिए बहनजी, आप उन से अपनी तुलना मत कीजिए. कहां राजा भोज, कहां आप का गंगू तेली.’

‘सरकार माफ करना, आप जात पर उतर रहे हैं,’ पत्नी ने सरकार को वैसे ही आंखें दिखाईं जैसे मुझे दिखाती थी तो सरकार सहमी. पत्नी की आंखों से बड़ेबड़े तीसमारखां सहम जाते हैं. ऐसे में भला सरकार की क्या मजाल.

‘जात पर नहीं बहनजी, मैं तो मुहावरे पर उतरा था,’ सरकार को लग गया कि किसी गलत बीवी से पाला पड़ा है. सो, सरकार ने मुहावरे पर स्पष्टीकरण जारी किया.

‘पर फिर भी?’

‘देखिए बहनजी, सरकार को आप भी ब्लैकमेल मत कीजिए. सच पूछो तो, कहां उन की बीवी, कहां आप? वह मामला कुछ अधिक ही पेचीदा हो गया था. मीडिया बीच में आ गया था वरना…’

‘तो आप को क्या लगता है कि मेरे मामले में मीडिया बीच में नहीं आएगा? नहीं आएगा तो मैं ढोल बजाबजा कर सब को बताऊंगी कि मेरे पति को इन की पुलिस ने फ्री में निशाना बना दिया है,’ मेरी पत्नी की धमकी सुन सरकार डरीसहमी.

‘प्लीज, बहनजी, आप जो चाहेंगी हम करेंगे, पर मीडिया को बीच में मत डालिए. यह मसला मेरे, आप के और आप के पति के बीच हुए एनकाउंटर का है. मतलब हम तीनों के बीच का. अब पुलिस से गलती हो गई तो हो गई. सरकारी कर्मचारियों से बहुधा गलती हो ही जाती है. नशे में ही रहते हैं हरदम. पर इस गलती के लिए हम उन की जान भी तो नहीं ले सकते न. पर अब आप को भविष्य में आप के पति से भी अधिक खुश रखने के लिए दिल खोल कर मुआवजा तो दे सकते हैं न. सो दे रहे हैं. वैसे भी बहनजी, आज के इस दौर में क्या रखा है पतिसती में? अब तो कोर्ट ने भी साफ कर दिया है कि…’

‘देखो सर, अपने पति के फेक एनकाउंटर के बदले जितना आप ने पिछली दीदी को दिया है, उतना तो कम से कम लूंगी ही. इधर हर रोज पैट्रोलडीजल के दाम तो सुबह होते ही 4 इंच बढ़े होते हैं, पर अब आप ने गैस के दाम भी बढ़ा दिए. अब हमारे पास दिल जलाने के और बचा ही क्या? ऐसे में आप खुद ही देख लीजिए कि पति का मुआवजा ईमानदारी से दीदी को दिए मुआवजे से अधिक नहीं, तो उतना तो कम से कम बनता ही है.’

‘देखो बहनजी, हम ठहरे ब्रह्मचारी. हमें न पति के रेट पता हैं न पत्नी के. इस झंझट से बचने के लिए ही तो हम ने विवाह नहीं करवाया. तो अच्छा, ऐसा करते हैं, चलो, न मेरी न आप की. जो मेरे सलाहकार आप के पति के एनकाउंटर का तय करेंगे, सो आप को दे दूंगा. मेरा क्या? मेरे लिए तो सब टैक्स देने वालों का है. मैं तो बस बांटनहार हूं. अब पुलिस से गलती हो गई तो भुगतनी भी तो मुझे ही पड़ेगी. पर जो आप सरकार पर थोड़ा रहम करतीं तो…’ बीवी चुप रही.

आखिर, सरकार ने मेरी पत्नी को सांत्वना देते सहर्ष घोषणा की कि सरकार बहनजी के पति के फेक एनकाउंटर के मुआवजे के दुख में शरीक होते हुए उन्हें पुलिस में थानेदार की नौकरी, रहने को थ्री बैडरूम सरकारी आवास, उन के खाते में 25 लाख रुपए, बच्चों की सगाई के लिए 10-10 लाख रुपए और सास के लिए 5 लाख रुपए देने की सहर्ष घोषणा करती है.

सरकार की इस घोषणा के बाद मत पूछो कि पत्नी कितनी खुश. उस वक्त मेरा फेक एनकाउंटर उसे कितना पसंद आया, मत पूछो. उस ने ऊपर वाले को दोनों हाथ जोड़े और कहा, ‘हे ऊपर वाले, मेरे हर पति का ऐसा फेक एनकाउंटर हर जन्म में 4-4 बार हो.’

और मैं पत्नी से भी ज्यादा खुश. उसे इतना प्रसन्न मैं ने उस वक्त पहली बार देखा, तो मन गदगद हो गया. मेरी अंधी आंखें खुशी के आंसुओं से लबालब हो आईं. वाह, अपने एनकाउंटर के बाद ही सही, पत्नी को खुश तो देख सका.

हे जनपोषण को चौबीसों घंटे वचनबद्ध मित्रो, आप ने मेरा फेक एनकाउंटर कर मुझे मृत्यु नहीं, खुशियों भरा नया जीवन प्रदान किया है. आप के हौसले यों ही बुलंद रहें.

इन विटामिन्स की कमी से शरीर में हो सकती हैं कई बीमारियां, भूलकर भी न करें नजरअंदाज

शरीर के लिए विटामिंस से भरपूर डाइट लेना बहुत जरूरी है वरना शरीर में अनेक बीमारियां घर करने लगती हैं. विटामिंस कमी के कारण शरीर में कुछ लक्षण दिखाई देने लगते हैं, जिन्हें पहचान कर यदि समय रहते डाइट में जरूरी बदलाव कर लें तो शरीर को बड़ी तकलीफों से बचा सकते हैं.

आइए, जानते हैं उन लक्षणों के बारे में जिन से पता चलता है कि शरीर में किस विटामिन की कमी है.

विटामिन ए की कमी के लक्षण

स्किन का ड्राई होना: स्किन का ड्राई होना विटामिन ए की कमी का मुख्य लक्षण होता है. विटामिन ए से स्किन की कोशिकाओं का निर्माण होता है. विटामिन ए उन की मरम्मत करने का भी काम करता है. पर्याप्त विटामिन ए नहीं मिलने से ऐग्जिमा और अन्य स्किन संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.

आंखों में समस्या: आंखों की समस्याएं विटामिन ए की कमी से होने वाली समस्याओं में सब से मुख्य हैं. विटामिन ए की कमी का पहला संकेत आंखों का ड्राई होना है. इस की कमी से रतौंधी नामक बीमारी भी हो सकती है. व्यक्ति को शाम या रात को कम दिखाई देना शुरू हो जाता है. आंखें तेज प्रकाश को सहन नहीं कर पाती हैं.

बांझपन: विटामिन ए पुरुषों और महिलाओं दोनों ही के प्रजनन स्वास्थ्य के लिए आवश्यक होता है, साथ ही यह शिशुओं के उचित विकास के लिए भी आवश्यक होता है. यदि किसी स्त्री को गर्भवती होने में परेशानी हो रही है तो विटामिन ए की कमी इस का एक कारण हो सकता है.

बच्चों का विकास धीमा होना: जिन बच्चों को पर्याप्त मात्रा में विटामिन ए नहीं मिलता है उन का विकास बहुत धीमा होता है. मानव शरीर के समुचित विकास के लिए विटामिन ए बेहद जरूरी है.

गले और छाती में संक्रमण: गले या छाती में बारबार संक्रमण, विशेष रूप से विटामिन ए की कमी का संकेत हो सकता है. विटामिन ए श्वसनतंत्र के संक्रमण से बचाता है.

घाव भरने में समस्या: जब शरीर में चोट लगती है तो उस के घाव या फिर सर्जरी के बाद ठीक नहीं होने वाले घाव विटामिन ए की कमी के लक्षण हो सकते हैं. ऐसा इसलिए है, क्योंकि विटामिन ए स्वस्थ स्किन के लिए एक महत्त्वपूर्ण घटक कोलोजन के निर्माण को बढ़ावा देता है.

मुंहासे होना: मुंहासे होना भी विटामिन ए की कमी का लक्षण हो सकता है. विटामिन ए स्किन के विकास को बढ़ावा देता है और सूजन से लड़ता है, इसलिए यह मुंहासों को रोकने या उन का इलाज करने में मदद करता है.

विटामिन ए की प्राप्ति के स्रोत: अंडे, दूध, यकृत, गाजर, पीली या नारंगी सब्जियां जैसे स्क्वैश, पालक, स्वीट पोटैटो, दही, सोयाबीन व अन्य पत्तेदार हरी सब्जियां.

विटामिन बी12 की कमी के लक्षण

हाथों या पैरों में झुनझुनी: विटामिन बी12 की कमी के कारण हाथों या पैरों में झुनझुनी हो सकती है. यह लक्षण इसलिए होता है क्योंकि विटामिन बी12 तंत्रिकातंत्र के संचालन में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

चलने में परेशानी: समय के साथ विटामिन बी12 की कमी के कारण व्यक्ति को चलने की समस्य हो सकती है. मांसपेशियों में कमजोरी भी महसूस हो सकती है.

पीली स्किन: पीलिया विटामिन बी12 की कमी का एक प्रमुख लक्षण है. पीलिया तब होता है जब किसी व्यक्ति का शरीर पर्याप्त मात्रा में लाल रक्त कोशिकाओं का उत्पादन करने में सक्षम नहीं होता है.

विटामिन बी12 लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इस की कमी से लाल रक्त कोशिकाओं की कमी हो सकती है, जिस से पीलिया होने की संभावना बढ़ जाती है.

थकान: विटामिन बी12 की कमी के कारण व्यक्ति को थकावट महसूस हो सकती है. इस की वजह शरीर में चारों ओर औक्सीजन ले जाने के लिए पर्याप्त लाल रक्त कोशिकाओं की कमी होती है, जिस से व्यक्ति बेहद थका हुआ महसूस करता है.

तेज हृदय गति: हृदय की गति का तेज होना भी विटामिन बी12 की कमी का लक्षण हो सकता है. शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या कम होने पर दिल तेजी से धड़कना शुरू कर देता है.

मुंह का दर्द: विटामिन बी12 की कमी से मुंह में छाले या जलन की समस्या हो सकती है.

मानसिक समस्या: विटामिन बी12 की कमी से व्यक्ति की सोचने या तर्क करने की क्षमता प्रभावित होती है. वह चिड़चिड़ा या अवसादग्रस्त हो सकता है.

विटामिन बी की प्राप्ति के स्रोत: दूध और उस से बने उत्पादों में, अंडे के सफेद भाग में और मछली एवं मुरगे में विटामिन बी भरपूर मात्रा में होता है. अखरोट में भी बिटामिन बी पाया जाता है. सुपारी, अंगूर, पिस्ता, नारंगी आदि में भी यह विटामिन भरपूर होता है.

विटामिन सी की कमी के लक्षण

थकान: असामान्य रूप से थकान महसूस होना विटामिन सी की कमी का संकेत हो सकता है. दरअसल, यह विटामिन शरीर में कार्निटाइन को कम करता है, जिस से मैटाबोलिज्म और ऐनर्जी बढ़ती है. ऐसे में इस की कमी के कारण आप बेवजह थकान महसूस कर सकते हैं.

त्चचा पर नील के निशान: अगर शरीर पर नील के निशान पड़ने लगें तो समझ लें कि शरीर में विटामिन सी की कमी हो गई है. इस से रक्त वाहिकाएं कमजोर हो जाती हैं, जिस से शरीर पर ऐसे निशान पड़ने लगते हैं.

नाक या मसूढ़ों से खून आना: अगर आप की नाक या मसूढ़ों से अकसर खून आने लगा है तो यह भी विटामिन सी की कमी का लक्षण हो सकता है.

जोड़ों में दर्द और सूजन: जोड़ों में तेज दर्द और सूजन होना भी इस की कमी की तरफ इशारा करता है. जोड़ों में कोलोजन का स्तर कम हो जाता है, जिस से दर्द व सूजन की समस्या हो सकती है.

ऐनीमिया: शरीर में विटामिन सी की कमी होने से आयरन का बैलेंस भी बिगड़ जाता है, जिस से ऐनीमिया का खतरा हो सकता है.

रूखे बाल और हेयर फौल: अगर आप के बाल असामान्य रूप से झड़ रहे हैं, तो यह भी विटामिन सी की कमी का संकेत हो सकता है. इस के अलावा रूखे, बेजान और दोमुंहे बाल भी इस की कमी की ओर इशारा करते हैं.

अचानक वजन बढ़ना: अगर ऐक्सरसाइज और डाइटिंग के बावजूद वजन बढ़ रहा है, तो समझ लें कि शरीर में विटामिन सी की कमी हो गई है. दरअसल, विटामिन सी मैटाबोलिज्म को रैग्युलेट करती है. शरीर में इस की कमी से मैटाबोलिज्म धीमा हो जाता है और वजन बढ़ने लगता है.

रूखी स्किन: अगर आप की स्किन पर मुंहासे दिखने लगे हैं या स्किन जरूरत से ज्यादा रूखी रहने लगी है तो यह विटामिन सी की कमी के कारण हो सकता है.

जल्दीजल्दी इन्फैक्शन होना: विटमिन सी शरीर के इम्यून सिस्टम को मजबूत बना कर इसे इन्फैक्शन से बचाने में मदद करता है. इस की कमी होने पर आप बैक्टीरियल और वायरल इन्फैक्शन की चपेट में आ सकते हैं.

विटामीन सी की प्राप्ति के स्रोत: खट्टे रसदार फल जैसे आंवला, नारंगी, नीबू, संतरा, बेर, कटहल, पुदीना, अंगूर, टमाटर, अमरूद, सेब, दूध, चुकंदर, चौलाई, पालक आदि विटामिन सी के अच्छे स्रोत हैं. इन के अलावा दालों में भी विटामिन सी पाया जाता है.

विटामिन डी की कमी के लक्षण

थकान महसूस करना: हड्डियों में दर्द और कमजोरी महसूस होना. इस के अलावा शरीर के अलगअलग हिस्सों की मांसपेशियों में लगातार दर्द भी इस का एक लक्षण है. आमतौर पर औरतों में विटामिन डी की कमी से डिप्रैशन या स्ट्रैस की समस्या ज्यादा होती है. इस विटामिन की कमी से इंसान के बाल तेजी से झड़ने लगते हैं. चोट लगने पर उस के भरने में काफी समय लगता है.

विटामिन डी की कमी का असर मूड पर भी होता है. इस की कमी का असर सैरोटोनिन हारमोन पर भी पड़ता है, जो मूड स्विंग्स की समस्या पैदा करता है. विटामिन डी की बहुत ज्यादा कमी होने पर जरा सी चोट लगने पर हड्डी टूटने, खासतौर पर जांघों, पेल्विस और हिप्स में दर्द होता है.

विटामिन डी की प्राप्ति के स्रोत: धूप, मछली, अंडा, दूध, मशरूम, संतरा आदि.

विटामिन ई की कमी से होने वाली समस्याएं

ऐनीमिया यानी शरीर में खून की कमी, बालों का विकास रुक जाना, स्किन ड्राई रहना, मांसपेशियों में दर्द और कमजोरी, रोग प्रतिरोधक क्षमता का कमजोर होना, आंखों की रोशनी कम हो जाना आदि.

विटामिन ई की प्राप्ति के स्रोत: कीवी, पीनट बटर, सूरजमुखी के बीज, पालक, ऐवोकाडो, बादाम, ब्रोकली, टमाटर, मूंगफली, पपीता, शिमलामिर्च आदि.

विटामिन के की कमी के लक्षण

विटामिन के की कमी के कारण शरीर में रक्त का थक्का नहीं जमता और इस वजह से इस से जुड़ी समस्याएं नजर आने लगती हैं.

आसानी से चोट लगना या स्किन पर चोट के निशान दिखाई देना, हलकी चोट लगने पर भी बहुत खून बहना, नाक या मसूढ़ों से अचानक खून आना, मलमूत्र में खून आना, मासिकधर्म के समय खून का काफी ज्यादा बहाव, अधिक गंभीर मामलों में खोपड़ी के भीतर रक्तस्राव भी शामिल हो सकता है.

विटामिन के की प्राप्ति के स्रोत: पालक, ब्रोकली, शतावरी, स्प्राउट्स, गोभी, शलगम, डेयरी उत्पाद, अनाज, वनस्पति तेल, सोयाबीन, अनार, हरी सेम, पत्तागोभी, कीवी, काजू आदि.

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