नागिन एक्ट्रैस Mouny Roy का बढ़ गया था 30 किलो वजन, इस बीमारी की वजह से कर रही थी बैडरैस्ट

नागिन फेम एक्ट्रैस मौनी राय (Mouny Roy) कई टीवी सीरियल्स में काम कर चुकी हैं. वह अपनी एक्टिंग के साथसाथ परफैक्ट फिगर के लिए भी जानी जाती हैं. एक्ट्रैस ने टीवी के अलावा बौलीवुड फिल्मों में भी काम किया है. मौनी राय ने हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान चौंकाने वाला खुलासा किया है.

3 महीने तक बैडरेस्ट पर थीं

मौनी ने बताया कि नागिन सीरियल करने से पहले उनका वजन 30 किलो बढ़ गया था जिसके कारण एक्ट्रैस परेशान हो गई थी. मौनी राय ने वजन बढ़ने का कारण बैडरैस्ट बताई.

एक्ट्रैस को हुई थी ये बीमारी

दरअसल नागिन फेम एक्ट्रैस को 7-8 साल पहले L4-L5, स्लिप डिस्क डिजनरेशन और कैल्शियम स्टोन था. जिस वजह उन्हें ज्यादा दवाइयां खानी पड़ती थी और वह 3 महीने तक बैड रैस्ट पर थी. ऐसे में उनका वजन 30 किलो बढ़ गया था.

वजन बढ़ने की वजह से लगा था जिंदगी खत्म हो गई

मौनी ने आगे बताया कि इतना वजन बढ़ने के बाद उन्हें लगा था कि उनकी जिंदगी खत्म हो गई. एक्ट्रैस ने यह भी कहा उस समय वह लाइमलाइट में नहीं थी. इस वजह उन्हें किसी ने देखा नहीं था.

मौनी राय ने कैसे कम किया अपना वजन

वजन कम करने के लिए मौनी ने दवाइयां खाना कम कर दी. ऐसे में उनके वजन पर फर्क पड़ा. एक्ट्रैस ने कुछ दिनों तक जूस पिया फिर उन्हें अहसास हुआ कि यह वजन कम करने का अनहैल्दी तरीका है.
फिर उन्होंने खाना शुरू किया, पहले वह बहुत ज्यादा खाना खा लेती थी लेकिन वेट कंट्रोल करने के लिए खाना कम कर दिया. एक्ट्रैस ने आगे बताया कि वह एक न्यूट्रिशनिस्ट के पास पहुंची, जो उनका वेट कंट्रोल करने में काफी मदद की.

क्यों होती है स्लिप डिस्क

बदलते लाइफस्टाइल की वजह से स्लिप डिस्क की समस्या किसी को भी हो सकती है. यह शारीरिक कमजोरी से संबंधित बीमारी है. गलत पौस्चर में बैठना, काम की वजह से देर तक बैठे रहना रीढ़ की सेहत पर भारी पड़ता है. पहले जहां लोगों को बढ़ती उम्र में स्लिप डिस्क की समस्या होती थी आज युवा भी इस समस्या के शिकार हो रहे हैं.

दरअसल, हमारे शरीर में रीढ़ की हड्डी में 33 कशेरुकाएं यानी हड्डियों की श्रृंखला होती है और ये डिस्क से जुड़ी रहती है. एक्सपर्ट के अनुसार, ये रबड़ की तरह होती है, जो हड्डियों को जोड़ने और लचीलापन बनाए रखने में मदद करती हैं. ये डिस्क रीढ़ की हड्डियों के सुरक्षा कवच होते हैं.किसी भी वजह से चोट लगने या कमजोरी के कारण डिस्क का आंतरिक भाग बाहरी रिंग से बाहर निकल सकता है, इसे स्लिप डिस्क कहा जाता है.

स्लिप डिस्क होने के लक्षण

  • जब कमर में तेज दर्द हो, जो बिलकुल बर्दाश्त करने लायक नहीं होता है. ऐसे में कमर की सारी मांशपेशियां जकड़ने लगती है, इस कंडिशन में व्यक्ती ठीक से खड़ा भी नहीं हो पाता है.
  • स्लिप डिस्क होने पर उन हिस्सों में झनझनाहट और जलन महसूस होती है. वहां की मांसपेशियां भी कमजोर होने लगती है.
  • खांसते या छींकते समय भी गर्दन, पीठ के ऊपरी हिस्से या बांहों के नीचे दर्द होता है.
  • सिर और गर्दन को पीछे झुकाने या ऊपर देखने पर पीठ के ऊपर वाले हिस्से में दर्द रहता है.

फेस्टाग्राम : भावी सासूमां और बहू हो गई रील्स लवर्स

आजकल छोटे कसबों में रहने वाली औरतों को कोई पिछड़ा हुआ न सम झे. इन छोटे कसबों की औरतें पहननेओढ़ने और पार्टी करने के मामले में शहर वालियों को भी पीछे करने लगी हैं.

अभी परसों कविता के यहां पर किट्टी पार्टी थी जिस में मेरी मुलाकात सनोबर से हुई. अरे वही सनोबर जो एक छोटे से गांव से आई थी. भाई वाह, क्या कमाल का कायाकल्प हो गया है उस का जब वह अपने गांव से इस कसबे में रहने आई थी तो उस के चेहरे पर छोटी जगह से होने के कारण एक डर और दबेपन का भाव  झलकता रहता था और बातचीत करने में भी हिचकती थी पर अब तो उस के चेहरे की चमक कुछ और ही बयां करती है.

सनोबर के लंबे बालों की जगह अब छोटे बालों ने ले ली है, कपड़ों में भी आधुनिकता की  झलक है जो थोड़े से छोटे हो गए हैं और उस

का शरीर भी किसी सांचे में ढला हुआ सा लगता है. अब तो ऐरोबिक कसरतें करती है वह और उस का सावलां रंग भी अब तो गोरागुलाबी हो चला है.

‘‘इतना फिट और खूबसूरत कैसे रह लेती हो सनोबर?’’ मैं ने हलकी सी  िझ झक के साथ कहा तो सनोबर ने दंभ भरे अंदाज में मु झे बताया कि यह सब सफलता की चमक है, सफलता? कैसी सफलता? मेरी आंखों में छिपे सवाल को भांप कर सनोबर ने समाधान करते हुए बताया कि दरअसल वह डांस के रील्स बनाती है और फिर उन्हें इंस्टाग्राम और अन्य तमाम तरह के सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर अपलोड करती है और फिर लोग लाइक और कमैंट करते हैं और उस की रील्स पसंद आने पर उसे फौलो भी करते हैं. सनोबर के 5 हजार से भी ज्यादा फौलोअर्स हैं और इतने फौलोअर्स होने से उसे एक तरह से सैलिब्रिटी स्टेटस तो हासिल है ही, साथ ही साथ वह इन रील्स को बना कर पैसे भी कमाती है.

कहीं न कहीं सनोबर की सफलता ने मु झे भी इंस्पायर किया कि मैं भी कुछ करूं और आजकल भला रील्स बनाने से ज्यादा सरल क्या होगा? किसी अधिक ताम झाम की जरूरत नहीं, थोड़ाबहुत शक्लसूरत ठीक हो तो अच्छी बात है और अगर नहीं भी हो तो फिल्टर लगा कर काम चल जाता है, बस शुरुआती दौर में लोग आप को लाइक करने लगें तो आगे का काम और आसान हो जाता है. हां तो लोगों के लाइक आने में कौन सी कठिनाई है. अरे भले मैं एक ट्रैंड डांसर न सही पर बचपन में पड़ोस वाली आंटी को भरतनाट्यम करते देखते थे तभी से क्लासिकल डांस के प्रति रुचि जागी थी और

मैं शौकिया क्लासिकल डांस करने लगी थी और अब तो मेरे पास सीखने के लिए इंटरनैट उपलब्ध है तो ऐसे में जब मैं अपनी क्लासिकल डांसिंग मूव्स दिखाऊंगी तो लोग मुझे जरूर पसंद करेंगे और मेरी रील को वायरल होने से कौन रोकेगा भला?

मगर मेरे साथ एक कड़क सासससुर की निगरानी की समस्या भी थी. शायद ही मेरी सासूमां को मेरा डांस करना भाता. पर कला तो कला है और उसे दबा कर रखने में उस का नष्ट हो जाना तय है, यही सोच कर मैं ने अपनी डांस की एक पोशाक निकाली जिसे मैं ने अपने रिश्तेदार की शादी में जाने के लिए खरीदा था. अब इस में ढेरों सिकुड़नें पड़ चुकी थीं क्योंकि जब मेरी बेटी गर्भ में थी तभी इसे अलमारी में रख दिया गया था और अलमारी की सफाई के दौरान ही इसे निकालते और धूप में सुखाकर वापस रख दिया जाता और आज पूरे 5 साल बाद इसे पहनने के मकसद से बाहर निकाला गया है. पोशाक की हालत देख कर इसे ड्राई क्लीन की जरूरत महसूस हुई तो फट से इसे कसबे की सब से अच्छी लौंड्री से ड्राईक्लीन कराया.

लांड्री वाले भी बड़े पारखी होते हैं, कपड़े के वजन और डिजाइन देखकर पोशाक की अहमियत जान लेते है और उसी के अनुसार बिल को ज्यादा या कम बनाते हैं.

खैर, कुछ पाने के लिए कुछ खोना तो पड़ता ही है. मन में ललक थी एक सैलिब्रिटी स्टेटस पाने की सो मैं ने बिल चुकाया और चौराहे वाले पार्लर में चेहरे का रंगरोगन कराया. किसी भी नृत्य की विधा में चेहरे और आंखों के उपयोग की अहमियत को तो आप जानते ही हैं इसलिए आंखों पर मेकअप वाली लड़की को विशेष ध्यान देने को कहा. चेहरा ठीक हुआ तो घर आ कर डांस के लिए जगह तलाशनी थी मैं ने क्योंकि डांस ऐसी जगह करना था जो मेरी सास को बिलकुल डिस्टर्ब न करे.

वैसे तो मेरी सास हर घरेलू काम में परफैक्ट हैं और ऐसा ही परफैक्शन वे मु झ से चाहती हैं पर शायद ही वे कभी मेरे काम से संतुष्ट रही हों पर फिर भी हम सासबहू का रिश्ता ठीकठाक ही चल रहा था. इसलिए नीचे के कमरों को छोड़ कर मैं ने अपनी छत को चुना क्योंकि वहां पर कोई डिस्टरबैंस भी नहीं होगी और ठीक रोशनी मिलेगी जिस से वीडियो की क्वालिटी अच्छी आएगी.

वीडियो शूट करने के लिए पड़ोस की 20 साल की लड़की गरिमा को मैं ने अपना मोबाइल थमाया और बड़े ही मनोयोग से भरतनाट्यम की मुद्राएं बना कर नृत्य करने लगे. अभी थोड़ा ही वीडियो बना था कि मेरी 5 साल की बिटिया छुटकी रोने लगी. उस के रोने से

मेरी सास का ध्यान उस तरफ गया और वे तो मेरी रील्स बनाने और नाचने की तैयारियों को देख कर पहले से मुंह बनाए बैठी थीं सो अब

उन्हें मुझ पर चिल्लाने का पूरा अधिकार मिल चुका था. ‘‘अरे आजकल तो औरतों को अपने नाचगाने से फुरसत ही नहीं, जब बच्चे नहीं संभाले जाते तो उन्हें पैदा ही मत करो, हमारे जमाने में तो…’’ और इस के आगे सास ने क्याक्या कहा मैं ने सुनने की कोशिश भी नहीं करी और चुपचाप अपने कमरे में आ कर बेटी को चुप कराने लगी.

कुछ सासूमां की बातें और कुछ डांस ठीक से न कर पाने के कारण मन खिन्न हो चुका था और वैसे भी इतने दिनों से डांस करना छूट चुका था सो शरीर का लचीलापन भी कम हो गया था और मैं हांफने लगी थी. अगले कई दिनों तक मैं ने डांस नहीं किया पर फिर एक दिन जब सासूमां मार्केट गई थीं तब गरिमा की जिद पर मैं ने फिर से डांस किया और एक छोटा सा वीडियो बना कर रील के रूप में इंस्टाग्राम पर पोस्ट कर दिया और तमाम हैशटैग बना कर अपने दोस्तों को टैग भी करना नहीं भूली.

रील के पोस्ट होने के ठीक बाद ही मैं लाइक्स और कमैंट का इंतजार करने लगी और इसी उम्मीद में घर का सब काम छोड़ कर आती और मोबाइल में नोटिफिकेशन चैक करती पर रात तक सिर्फ 10-12 लाइक्स ही आए थे. थोड़ी निराशा जरूर हुई पर वैसे मैं ने रील बनाने से पहले गूगल पर पढ़ा था कि रील बनाते ही आप फेमस नहीं हो जाओगे बल्कि इस के लिए बहुत धैर्य रखना होगा.

मुझे निराश देख कर गरिमा ने मुझे इशारों

में बताया कि लोग मसालेदार वीडियो ज्यादा देखना चाहते हैं. ऐसे में भला मेरे शुद्ध भरतनाट्यम के मूव्स को भला कौन देखना चाहेगा? और हो सकता है कि मेरे वीडियो

ठीक औडियंस तक पहुंच ही न पा रहे हों. अभी मैं दुविधा में ही थी कि मेरे पति कुमार आ गए. वे थोड़े परेशान लग रहे थे. कारण

पूछने पर पता चला कि कंपनी ने कुमार का प्रमोशन कर के उन का ट्रांसफर भी कर दिया है और अब उन्हें इस पैतृक कसबे को छोड़कर कानपुर जाना होगा,

ट्रांसफर का नाम सुनते ही मां और पापा का मन भारी हो गया. होता भी क्यों नहीं? कुमार को लखनऊ से अपनी ग्रैजुएशन खत्म करते ही जौब मिल गई थी और उन की कंपनी ने उन के पैतृक कसबे में ही अपने काम के विस्तार के लिए भेज दिया था. बड़े कम लोग होते हैं जिन्हें उन के मांबाप के पास रह कर ही नौकरी मिल जाती है और मांबाप की सेवा का अवसर भी पर अब तो इन्हें कानपुर जाना था.

रात का खाना किसी से नहीं खाया गया, मु झ से भी नहीं. सुबह सासूमां ने बनावटी हिम्मत दिखाते हुए कहा, ‘‘कानपुर कौन सा दूर है, हम दोनों हर महीने आते रहेंगे अपनी छुटकी के पास.’’

‘‘तो क्या आप लोग हमारे साथ नहीं चलोगे?’’ कुमार के इस सवाल के जवाब में बाबूजी ने कहा कि उम्र के इस पड़ाव में अपना घर छोड़ कर कहीं और नहीं जाना.

कुमार ने बहुत रिक्वैस्ट करी पर मांपापा नहीं माने, कुमार के साथ मु झे भी कानपुर जाना पड़ा. जब से ब्याह कर आई थी तब से इसी घर में सासससुर के साथ रही पर अब उन से दूर जाना थोड़ा बुरा तो लग ही रहा था पर अपने पति के साथ किसी बड़े शहर में जाना, बड़ी बिल्डिंगों के फ्लैट में रहना, मौल में ऐस्कलेटर पर चढ़तेउतरते हुए सैल्फी लेना यह सब मन को सुहा तो रहा ही था और फिर कुमार के साथ जब अकेली रहूंगी तो जी भर कर मनचाही रील्स भी तो बना सकूंगी, ये सब सोचते हुए उत्साह बढ़ रहा था, जरूरी पैकिंग कर ली गई थी और अगले दिन हम कानपुर के लिए रवाना हो गए.

कानपुर में फ्लैटरूपी आवास, कुमार की कंपनी ने दिलाया था इसलिए हमें कोई परेशानी नहीं हुई. हम ने अपना सामान भी सैट कर लिया और डिनर बाहर जा कर किया. नई जगह में आ कर मन प्रफुल्ल था और अपने कानपुर प्रवास के दूसरे ही दिन मैं ने धड़ल्ले से रील्स बनानी शुरू कर दीं. यहां तो सास की कोई पाबंदी भी नहीं थी. मैं ने कुछ नई साडि़यां खरीदीं और नाभिप्रदर्शना ढंग से बांध कर हिंदी फिल्मों के गानों पर रील्स बना इंस्टाग्राम पर पोस्ट कीं जिन पर अपेक्षाकृत कुछ अधिक लाइक्स भी आए थे. मु झे लगा कि इंस्टाग्राम पर स्टार बनने से मु झे कोई नहीं रोक सकता पर ऐसा नहीं था क्योंकि महीनों बीत जाने पर और सैकड़ों रील्स डालने के बाद भी मेरी कोई रील ऐसी नहीं थी जिस के हजारों लाइक्स आए हों और यह काम काफी कठिन है यह हमारी सम झ में आ चुका था.

इंस्टाग्राम से मन हटा तो पड़ोसी रीना ने फेसबुक का नाम कुछ लिखने और फोटोज पोस्ट करने के लिए सु झाया, मु झे ठीक लगा कि फेसबुक पर कोई किस्साकहानी लिखा जाए. मसलन, पहलेपहल मैं ने लिखा, ‘‘सिर में तेज दर्द है, कुछ अच्छा नहीं लग रहा.’’

इस छोटी सी बात के बदले कई राय और घरेलू नुसखे बताने वाले कमैंट आ गए. जुड़े लोगों की संख्या देख कर भी उत्साह जगा और फिर कुछ और लिखने को प्रेरित हुई. कभी कविता तो कभी बचपन की यादें तो कभी अपनी नन्ही बेटी की शैतानियों के बारे में लिखती रही तो मेरी पोस्ट अच्छे ढंग से वायरल होने लगीं, कभी लिखने को कुछ न होता तो मनगढ़ंत कहानी बना कर पोस्ट कर देती. अब तो मेरे कई रिश्तेदार भी मुझ से सोशल मीडिया पर जुड़ने लगे और मेरी तारीफ करने लगे थे.

कहते हैं कि अच्छा समय बहुत जल्दी गुजर जाता है. मुझे कानपुर आए कब 1 साल हो गया पता ही नहीं चला और आज ही सासूमां का फोन आया था कि वे कल शाम को कानपुर हमारे पास आ रही हैं.

अब जब से मैं ने अपनी सास के आने की खबर सुनी थी तब से तो मेरे होश ही उड़ गए. यहां पर 2 कमरों के फ्लैट में काम ही कितना था? कुमार लंच ले नहीं जाते थे सो अपने लिए 4 परांठे बना कर ही काम चला लेती थी. कभी जोमैटो का सहारा ले लेती. इधर जब से लिखना शुरू किया तब से तो और भी काहिल हो गई थी और मन को यह कह कर सम झा लेती कि अरे अब तू बड़ी फेसबुकिया लेखक हो गई है. इतना आराम तो कर ही सकती है पर अब सासूमां आ रही हैं तो सब से पहले तो वे मेरी किचन में  झांकेंगी और किचन के सारे कनस्तरों में उन्हें घुन और कीड़े ही नजर आएंगे. किचन से ही लगा हुआ एक छोटा सा स्टोर था. मैं ने सोचा लगे हाथों इस का भी मुआयना कर लूं सो देखा कि 2 किलोग्राम चने की दाल में घुन लग चुका था और चावलों में भी कीड़े पड़ गए थे.

1 लिटर पुराना शहद भी मिला, सोचा  झाड़ू करने वाली रजनी को यह सामान दे दूंगी पर उस ने भी मुंह बना कर कह दिया, ‘‘इस में तो अनाज से ज्यादा घुन है मैडम हम ऐसा सामान नहीं खाते.’’

मन मसोस कर मैं फिर से स्टोर में रखे सामान को तलाशने की नीयत से गई तो देखा कि अचार में फफूंद लगी हुई है और नीबू का अचार भी खराब हो रहा है. वैसे इतना सब सामान लाने में कुमार की गलती है. अरे, जब कम खर्चा है तो छोटी पैकिंग वाला सामान लाओ भला किलोकिलो क्यों लाते हो? मैं बहुत  झुं झुलाई और वहां अचार के डब्बे को हाथ में ले कर एक सैल्फी खींची और फेसबुक पर अपलोड कर दी. उस के साथ में कैप्शन लिख दिया कि कड़क और सख्त सासूमां के आने के साइड इफैक्ट. आगे लिखा कि जब सासूमां के साथ रहती थी तब उन्होंने रील्स बनाने को मना कर दिया था अब वे फिर से मेरे पास आ रही हैं,पता नहीं फेसबुक पर आप लोगों से कब मुलाकात होगी और इतना लिख कर बड़ी जल्दी से पोस्ट का बटन दबा दिया और मुक्त भाव से बिखरे सामान को ठीक करने में लग गई.

शाम तक काफी हद तक घर ठीक भी हो गया, अचानक मन में खयाल आया कि भले ही यह फ्लैट छोटा है, थोड़ाबहुत पैदल चल कर ही काम हो जाता है पर कितना अच्छा होता कि वेनिस की तरह यहां भी चारों तरफ पानी होता और एक से दूसरी जगह जाने के लिए हमें सुंदरसुंदर नावों का सहारा लेना पड़ता. खयाल अच्छा था पर अभी मैं इन खयालों में और डूबती कुमार के फोन ने मेरे विचारों पर रोक लगा दी.

‘‘अरे वह तुम्हारी चचेरी ननद बेबी का फोन आया था, बड़ी तारीफ कर रही थी तुम्हारे फेसबुकिया लेखन की और वह जो तुम ने मेरी मां पर कोई पोस्ट डाली है उस के बारे में भी जिक्र कर रही थी.’’

पोस्ट और अपनी चचेरी ननद का नाम सुनते ही मेरे मन में कुछ खटका. मैं सम झ गई थी कि अब तक मेरी सासूमां तक वह अचार वाली पोस्ट तो पहुंच ही गई होगी और सासूमां के बारे में लिखे शब्द उन्हें बता भी दिए गए होंगे.

मैं ने तुरंत मोबाइल खोला और पोस्ट हटानी चाहीें पर अब तक तो उस पोस्ट पर सैकड़ों लाइक्स आ चुके थे और इतनी देर में तो मेरी ननद ने अपना काम कर ही दिया होगा पर अब मैं सिर्फ इस पोस्ट को डिलीट करने के अलावा कर ही क्या सकती थी.

शाम को सासससुर आ गए ढेरों सामान लाए थे जिस में देशी घी और अचार मुख्य रूप से था, मेरी बेटी तो अपने दादादादी से अलग ही नही हो रही थी.

सच कहूं तो सासूमां के सामने काफी असहज महसूस कर रही थी मैं और उस का कारण मेरी सासूमां के हैशटैग वाली पोस्ट थी, पर तीर तो कमान से निकल ही चुका था इसलिए मैं पूरे मनोयोग से सासूमां की सेवा करने में लग गई. उन की पसंद का पूरा ध्यान रखा और देर रात तक उन के पास बैठ कर पुरानी यादों को ताजा करती रही.

‘‘तुम्हारी ननद बेबी कह रही थी कि अब तुम बड़ी अच्छी कविताकहानी लिखने लगी हो.’’

मैं यह बात सुन कर सन्न रह गई कि निश्चित ही बेबी ने सासूमां को उस पोस्ट के बारे में सबकुछ बता दिया होगा तभी तो वे पूछताछ कर रही हैं. मैं हकला गई.

सासूमां ने आगे कहना शुरू किया, ‘‘अरे तू चाहे नाचे या गीत लिखे या गाए पर जो भी कर एक स्त्री की मर्यादा में रह कर कर. उस कसबे में थे तो हमें भी आसपास की लोकलाज का ध्यान रखना था, परिवार की इज्जत का खयाल रखने के लिए हम ने भी घूंघट में जीवन काट दिया पर अब जीवन की सां झ आ गई है, अब तक तो हम ने सब का ध्यान रखा और अब भी हम लोगों के लिए जीते रहेंगे तो भला हम कब जीवन जी पाएंगे इसलिए अब जो हमें अच्छा लगेगा हम वही करेंगे.’’

सासूमां थोड़ा रुकीं और फिर बोलीं, ‘‘वह जो तुम लोगों का नाच का अड्डा है न वह जो ग्राम है न, क्या कहते हैं उसे? हां इंस्टाग्राम, उस जगह पर आजकल तो बहुएं अपनी सास के साथ मिल कर खूब रील्स बनाती है. अरे, अब हम से नाचवाच तो होगा नहीं पर कुरसी पर बैठेबैठे आंखों के इशारे तो हम भी कर सकते हैं.’’

सासूमां शरमाते हुए कह रही थीं. मैं अब तक उन की सारी मजबूरी और छोटी जगह में रहने के कारण एक दायरे में बंधे रहने की विवशता सम झ चुकी थी.

इतनी देर में दूसरे कमरे से कुमार और ससुर साहब उठ कर हमारा डांस देखने के लिए आ गए थे और सब सासूमां का यह रूप देख कर मारे खुशी से फूले नहीं समा रहे थे.

फट से मैं ने मोबाइल उठाया और अपनी सासूमां के साथ एक छोटा सा शूट किया. पाशर्व में गाना बज रहा था, ‘‘सास गाली देवे, ननद चुटकी लेवे ससुराल गेंदा फूल…’’

गाना भले ही बहुत  झुमाने वाला नहीं था मगर सोलफूल था जिस में सासूमां पहले तो बैठेबैठे अपने ऐक्सप्रैशन देती रहीं पर फिर वे जल्दी से बैड से उतर कर मेरे साथ नाचने लगीं और तब तक नाचती रही जब तक वे थक नहीं गईं. यह देख कर ससुर और कुमार भी हमारे साथ नाच में शामिल हो गए थे.

इसी बीच मैं सब की नजर बचा कर इस मजेदार मौके को फेसबुक और इंस्टाग्राम दोनों जगह लाइव और पोस्ट करने में लग गई थी. इंस्टाग्राम पर रील्स के रूप में तो फेसबुक पर एक कहानी के रूप में.

मैं और मेरी सास के भले ही फौलोअर्स नहीं थे पर हम दोनों अपनेआप में ही एक सैलिब्रिटी स्टेटस हासिल कर चुकी थीं और मेरी ससुराल सच में एक गेंदाफूल ही तो थी जिस मे रिश्तों के रंग थे, आपसी प्रेम की सुगंध थी. यहां इंस्टाग्राम की रील्स थी तो फेसबुक की कहानियां भी और मैं और मेरी सास अब मिल कर चला रहे थे जीवन का फेस्टाग्राम.

दोस्त की बीवी मुझ से संबंध बनाना चाहती है…

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मुझे अपने कलिग से अच्छी दोस्ती हो गई और हमारी यह दोस्ती पारिवारिक भी होती जा रही है. वह भी अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहता है और मेरी भी कुछ दिनों पहले ही शादी हुई है, तो मैं भी अपने पत्नी के साथ रहता हूं. हम दोनों का अकसर एकदूसरे के घर आनाजाना लगा रहता है.

मेरे दोस्त की पत्नी 2 बच्चों की मां है, लेकिन उस ने अपने फिगर को बहुत खूबसूरती से मैंटेन किया है. वह जिम भी जाती है. वह दिखने में बहुत खूबसूरत है. अभी कुछ दिनों पहले मेरी पत्नी मायके गई थी। ऐसे में मैं रात का खाना खाने अपने दोस्त के घर गया था. जब मैं उस के घर गया तो भाभीजी ने मुझे खाना खिलाया। मेरा दोस्त कहीं बाहर गया था. किचन में कुछ सामान गिरने की आवाज आई. मैं इसी बहाने भाभीजी के करीब गया. वह मना नहीं की और हम दोनों बच्चों से छिप कर एक कमरे में चले गए। भाभीजी ने बताया कि पति को घर आने में समय लगेगा. मैं ने उन्हें किस किया.

मैं इंटिमेट होने के लिए फोरप्ले कर ही रहा था कि तभी दरवाजे की घंटी बजी. हम दोनों चौंक गए और खुद को संभाला. भाभीजी तो कमरे से बाहर निकल कर दरवाजा खोलने चली गईं, मैं अभी कमरे से बाहर जा ही रहा था कि मेरे दोस्त ने मुझे देख लिया, लेकिन उसे शक नहीं हुआ. उस ने बस इतना ही पूछा कि मेरा कमरा कैसा लगा? मैं ने बात बनाते हुए कहा कि भाभीजी ने कमरे को काफी अच्छे तरीके से सजाया है. वह भी बस मुझे ही देखे जा रही थी.

अब जब भी मैं दोस्त के घर जाता हूं मेरी निगाहें भाभीजी पर होती हैं। वे भी उसी निगाह से मुझे देखती हैं. मेरी पत्नी भी मेरे पास आ गई है. मैं जब भी उस के साथ सैक्स करता हूं तो मुझे भाभीजी की याद आती है. सोचता हूं कि कब मैं अपनी अधूरी इच्छा पूरी कर पाऊंगा. इसी वजह से किसी भी काम में मन नहीं लगता. आप ही बताएं मैं क्या करूं?

जवाब

देखिए, आप शादीशुदा हैं और जिस महिला से आप संबंध बनाना चाहते हैं, वह आप के दोस्त की पत्नी है जिस के 2 बच्चे भी हैं. कोई भी किसी के प्रति आकर्षित हो सकता है, लेकिन शादीशुदा जिंदगी को अनदेखा कर अपने सुख के लिए मन में ऐसी इच्छा पालना गलत साबित हो सकता है.

अभी आप की नईनई शादी हुई है. आप की पत्नी को आप से ढेर सारी उम्मीदें होंगी. ऐसे में आप अपनी पत्नी को प्यार और सम्मान दें. उन की इच्छाओं को पूरी करें. आप कहीं घूमने जाएं। जो प्यार आप अपने दोस्त की पत्नी को देना चाहते हैं, वह प्यार आप अपनी पत्नी को दें. इस से आप की भी जिंदगी बेहतर होगी और दोनों दोस्त का घर भी टूटने से बच जाएगा.

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 हमें इस ईमेल आईडी पर भेज सकते हैं- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

ए दिल तुझे कसम है

शाम के 4 बज रहे थे. गरमी से काजल की हालत खराब थी. वह सुबह 10 बजे घर से निकली थी. अभी मैट्रो से घर वापस आई थी. अब आ कर देखा तो लाइट नहीं थी. गरमी ने इस साल पूरे देश को जला रखा था. लोग दिनभर हाय गरमी हाय गरमी कर रहे थे. समृद्ध लोग ग्लोबल वार्मिंग पर बात करते हुए दिनबदिन कम होती जा रही हरियाली को कोसते, फिर घर आ कर एसी चला कर टांगें फैला कर पसर जाते. काजल दिनभर दिल्ली में एक सरकारी औफिस से दूसरे सरकारी औफिस धक्के खाती रही थी, लंच भी नहीं किया था. कहीं किसी दुकान पर एक गिलास लस्सी पी ली थी. अब रास्ते से ही उस के सिर में दर्द था. पूरा रास्ता सोचती रही कि घर जा कर नहाधो कर चायब्रैड खाएगी.

घर का दरवाजा खोलते ही दिल भारी सा हुआ. लगा, स्नेह में डूबी एक आवाज आएगी, ‘‘बड़ी देर लगा दी, बेटा,’’ पर अब यह आवाज तो कभी नहीं आएगी, सोचते हुए एक ठंडी सांस  ली और अपना बैग सोफे पर रख टौवेल उठा कर वाशरूम चली गई. वाशरूम में जा कर खूंटी पर टौवेल टांगा ही था कि फिक्र हुई कि मेन गेट अंदर से ठीक से बंद तो कर लिया है न.

आजकल यही तो होता है पता नहीं कितनीकितनी बार घर के दरवाजे चैक करती रहती है.

छत पर जाने वाले दरवाजे का ताला पता नहीं कितनी बार चैक करती, ठीक से बंद है या नहीं. शरीर पर पानी पड़ा तो चैन की सांस आई. पूरा दिन बदन जैसे आग में तपता रहा था. नहातेनहाते रोने लगी कि आओ मम्मी देखो, आप की फूल जैसी बच्ची कहांकहां दिनभर धक्के खा कर आई है, अब आप की बच्ची फूल सी नहीं रही. आप को पता है कि अपनी जिस बेटी को आप फूल सी बना कर पालते रहे, वह फूल अब कांटों से घिरा है?

शावर से गिरते पानी में आंसू मिलते रहे. नहा कर निकली, बस एक हलका छोटा सा  स्लीवलैस टौप पहन लिया. नीचे नामभर की शौर्ट्स पहनी. अकेली ही तो थी घर में, कुछ पहनने का मन नहीं किया. अब बस 1 कप चाय और 2 ब्रैडस्लाइस, फिर थोड़ी देर आराम करेगी. फ्रिज खोला, सिर पकड़ लिया, सुबह जल्दी निकलने के चक्कर में भूल गई थी, दूध खत्म हो गया है. ब्रैड भी तो नहीं है.

पापा के रहते ऐसा कभी नहीं होता था. वह इस बात का हमेशा ध्यान रखते कि फ्रिज भरा रहे. क्या खाए, कुछ सम झ नहीं आया तो मैगी बनने रख दी. पानी, मैगी मसाला, नूडल्स एकसाथ सबकुछ डाल दिया. आंच धीमी कर थोड़ी देर लेटने चली गई. बिस्तर पर लेटी क्या, औंधी पड़ी थी.

काजल 35 साल की देखने में ठीकठाक, पढ़ीलिखी, आधुनिक, अब दुनिया में अकेली रह गई अविवाहित लड़की. 24 साल की थी तो उस की मम्मी की अचानक हार्ट फेल से डैथ हो गई थी. पितापुत्री पर कहर सा टूटा था. शांत सीधे से सरकारी अफसर पापा की देखरेख के लिए उस ने दिल्ली से बाहर शादी करने का मन नहीं बनाया, जिन पापा का हमेशा साथ देने के लिए उन की एक आवाज पर हाजिर रहती, वही अब अचानक हमेशा के लिए छोड़ कर चले गए थे. उस के पापा का भी हार्ट फेल हुआ था. भरी दुनिया में काजल उन के अचानक जाने से ठगी सी रह गई थी. इस के लिए तो सोचा ही नहीं था पर भला इंसान जो सोचता है, क्या हमेशा वही होता है? वक्त की हर शय गुलाम, वक्त का हर शय पर राज.

अभी तक काजल अपना पूरा ध्यान अपने पापा में, घर में और अपने किसी न किसी कोर्स में लगाती रही थी. अब जाने कितने काम निकल आए थे, पैंशन पेपर्स और प्रौपर्टी ट्रांसफर के पेपर्स बनवाने के लिए उसे बहुत धक्के खाने पड़ रहे थे. मैगी बनने की खुशबू आई तो भूख फिर जाग गई. पेट कोई  दुखदर्द नहीं देखता. पेट शायद हमेशा ही एक छोटे बच्चे की तरह रहता है, जब उस का टाइम हो, उसे जरूरत हो तो बस चाहिए. काजल उठी, मैगी प्लेट में डाली, उसे अपने पापा की याद आई, उन्हें भी मैगी पसंद थी. दोनों पितापुत्री बहुत शौक से मैगी खाते थे. मम्मी डांटती रह जाती कि दोनों अनहैल्दी चीजें खाते हो. काजल की आंखों के आगे वे दृश्य उपस्थित हो गए. ऐसा तो अब पता नहीं कितनी बार होता था.

टीवी देखते हुए मैगी जल्दीजल्दी खाई, बहुत भूख लग रही थी. अपनी पसंद की चीज देखते ही वैसे भी भूख बढ़ जाती है. खास दोस्त तनु और रवीना के फोन आ रहे थे. उस ने दोनों को मैसेज डाल दिया कि बहुत थकी हुई हूं, बाद में कौल करूंगी. ये दोनों सहेलियां उस की शुभचिंतक थीं, दोनों मैरिड थीं. तनु कोलकाता में और रवीना रोहिणी, दिल्ल में ही रहती थी. दोनों उस की खोजखबर लेती रहतीं.

मैगी खा कर वह बैड पर लेटी ही थी कि डोरबेल बजी. मेन गेट पर बड़ीबड़ी ग्रिल वाला डिजाइन था, किचन की खिड़की से दिख जाता कि कौन है. काजल ने किचन से  झांका, उमेश था. उसे देखते ही काजल का मूड खराब हो गया. उस का चचेरा भाई. काजल के काफी रिश्तेदार आसपास ही थे पर वह उन सब से बहुत परेशान हो चुकी थी.

जब से उस के पापा गए थे, उन की मौरल पौलिसिंग बढ़ गई थी. उस की किसी चीज की किसी को चिंता नहीं थी, उस की किसी परेशानी से मतलब नहीं था पर वह कब क्या कर रही है, इस की उन्हें पूरी जानकारी होना वे सब अपना फर्ज सम झते. उन सब को काजल को परेशान होते देख एक आनंद आता.

काजल सोच में ही थी कि क्या करे. दरवाजा खोले या नहीं. तभी उमेश जोर से आवाज देने लगा, ‘‘अरे, काजल दरवाजा खोल. अभी मैं ने तु झे आते देखा है अरे, कहां है?’’

काजल ने अभी जो आरामदायक कपड़े पहने थे, वे जल्दी से उतारे, एक कुरता और जींस पहन दरवाजा खोला. उमेश उस से 2 साल बड़ा था, विवाहित था, एक बेटे जय का पिता था. उमेश की पत्नी मेखला भी काजल को खास पसंद नहीं थी. उस के दिल में काजल के प्रति ईर्ष्या का भाव है, काजल को हमेशा यही महसूस हुआ. काजल ने बिना गेट खोले रूखे स्वर में पूछा, ‘‘क्या है? मैं अभी आराम कर रही हूं. अगर कोई जरूरी काम नहीं है तो बाद में आना.’’

‘‘अरे, दरवाजा तो खोल, तेरा भाई तेरा हाल पूछने आया है. कहां गई थी? मैं अभी दुकान पर ही था, तु झे आता देखा तो आ गया.’’

काजल ने चिढ़ते हुए दरवाजा खोल दिया, ‘‘दुकान छोड़ कर आ गया?’’

अंदर आ कर उमेश सोफे पर पसर गया, कहा, ‘‘चल, चाय पिला दे.’’

‘‘दूध नहीं है.’’

‘‘सुबह से बाहर थी, कहां घूम कर

आई है?’’

‘‘तु झे क्या मतलब है?’’

उमेश ने उसे ऊपर से नीचे तक घूरा, फिर कहा, ‘‘बड़ी थकी हुई लग रही है? कहां ऐश हो रही है?’’

‘‘यह ऐश तुम लोगों को भी मिले, यही कह सकती हूं.’’

उमेश की पास में ही कपड़ों की दुकान थी. यहां सब रिश्तेदारों के घर आसपास थे, काजल के काम तो कोई नहीं आ रहा था, उलटा जब भी कोई आता उसे चार बातें सुना जाता.

काजल ने कहा, ‘‘देख उमेश मु झे अभी बहुत काम हैं, अभी तू जा और हो सके तो तुम सभी लोग यहां आना छोड़ दो.’’

‘‘जब से अकेली रह गई है, बहुत बदतमीज होती जा रही है. अकेले छोड़ दें ताकि तू खानदान की नाक कटवा दे? पापा भी कह रहे थे कि तू किसी का फोन नहीं उठाती,’’ फिर उस की आंखों में जो भाव आए, काजल का मन हुआ उसे धक्के दे कर निकाल दे.

उमेश कह रहा था, ‘‘वैसे तू कुछ पतली सी हो गई है और अच्छी लगने लगी है.’’

काजल अभी तक खड़ी ही थी ताकि वह सम झ जाए कि काजल चाहती है कि वह जल्दी चला जाए. काजल ने जानबू झ कर कहा, ‘‘चल, तेरे पास इतनी फुरसत है तो दूध ला कर दे दे.’’

‘‘पागल हो गई है क्या, तेरा हालचाल पूछने के लिए दुकान छोड़ कर आया हूं, काम देखना है,’’ काम सुनते ही उमेश हमेशा की तरह जाने के लिए उठ कर खड़ा हो गया और चला गया.

काजल को अब 1-1 रिश्तेदार की हकीकत सम झ आ गई थी कि कोई उस का साथ नहीं देगा बल्कि उस की परेशानियां ही बढ़ाई जाती हैं. अब वह वक्त के साथ इन सब से निबटना सीख चुकी थी. उस ने फिर अंदर से गेट बंद किया और कपड़े फिर बदले और जा कर लेट गई. तभी काजल के मामा राजीव का फोन आया, ‘‘कहां घूमती रहती है? मांबाप के जाने के बाद एकदम बेलगाम हो गई है. मैं दिन में 2 बार आया, कहां थी?’’

‘‘जहां आज मैं गई थी, आप मेरे साथ कल चलना, मामाजी. मैं भी चाहती हूं कि कोई बड़ा मेरे साथ जाए तो मेरा पेपर वर्क थोड़ा जल्दी हो जाए.’’

यह बात सुन कर मामाजी की आवाज ढीली हो गई, कहा, ‘‘तू तो जानती ही है कि मेरी तबीयत कितनी खराब रहती है. ऐसा कर उमेश को ले जा, उन लोगों का भी तो फर्ज है कुछ.’’

‘‘आप का बेटा क्या सोशल मीडिया पर ही मु झे फौलो करेगा कि मैं कब क्या कर रही हूं. उसे बोलो मामाजी, रियल लाइफ में मेरे साथ चला करे.’’

‘‘वह तो अपनी जौब में बिजी है न.’’

‘‘पता है मु झे सब लोग कितने बिजी हो.’’

‘‘सचमुच बदतमीज होती जा रही है,’’ कह कर मामाजी ने फोन रख दिया.

काजल का मन खराब हो गया. इन सब से बात कर के वह बहुत देर तक उदास रहती. कोई उस से नहीं पूछता कि वह कैसी है, उसे कोई परेशानी तो नहीं. सब ऐसे व्यवहार करते हैं जैसे वह दिनरात कोई गलत काम कर रही है. अब अकेली रह गई है तो सब के लिए जवाबदेही बढ़ गई है? अकेली मतलब बुरी? इतना पढ़लिख लिया है, कोई जौब भी ढूंढ़ ही लेगी पर यह समाज क्या हमेशा ऐसा ही रहेगा? ये सब उस की पर्सनल लाइफ की खोजबीन ही करते रहेंगे? हमारे समाज में अकेली अविवाहित युवा, युवा विधवा, युवा तलाकशुदा का जीवन कितना संघर्षभरा है, ये वही जानती हैं. समाज इन्हें नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ता.

काजल ने तनु और रवीना को लेटेलेटे ग्रुप कौल किया, दोनों उस से उस का हालचाल लेती रहीं. उमेश और मामा से हुई बात बताते हुए काजल को रोना आ गया. दोस्त भी उदास हुईं, तनु ने कहा, ‘‘तु झे इन सब से एक दूरी बनानी होगी, तभी तू शांति से अपने काम कर पाएगी. कल कोई जौब करेगी तब भी ये सब तेरा जीना मुश्किल ही करेंगे.’’

‘‘तो क्या करूं? उमेश जब चाहे, मुंह उठा कर चला आता है जैसी नजरों से देखता है. उसे पीटने का मन करता है. एक दिन कह रहा था कि मूवी चलेगी? मैं ने मना किया तो कहने लगा कि ‘‘मु झे ही अपना बौयफ्रैंड सम झ ले, तेरी सारी परेशानियां कम हो जाएंगी.

‘‘मैं ने कहा कि चाचा को बताती हूं तो हंस दिया कि अरे मेरी बहन है तू, मजाक नहीं कर सकता क्या? चचेरे भाईबहन तो कितने ही मजाक करते हैं और फिर बेशर्मी से हंस दिया कि तु झे क्या पता, मजाक के साथसाथ क्याक्या चलता है कजिंस में मु झे सम झ नहीं आ रहा है कि मैं कैसे इन सब से निबटूं?

‘‘अब पैंशन औफिस में क्या कह रहे हैं?’’

‘‘15 दिन बाद आने के लिए कहा है. सोच रही हूं, एक वैलनैस सैंटर खुला है दिल्ली से निकलते ही, नोएडा वाले रोड पर. मु झे मैंटल पीस चाहिए, तुम लोगों को भी सही लगता है तो कुछ दिनों के लिए चली जाऊं?’’

दोनों कुछ देर सोचती रहीं, फिर रवीना ने कहा, ‘‘हां, अभी एकाध हफ्ता कहीं मूड चेंज करने के लिए चली जा. ठीक लगे तो रुकना नहीं तो या मेरे पास या तनु के घर आ जाना. हमारा घर तेरा अपना ही है, संकोच मत करना. अभी अंकल को गए 4 महीने ही तो हुए हैं, घर में मन भी नहीं लगता होगा. सम झ रही हूं, तेरे रिश्तेदार किसी काम के नहीं. तेरी मानसिक शांति ही भंग करते हैं और इस उमेश के लिए तो गेट खोला ही मत कर.’’

‘‘हां, यह फोन पर भी उलटेसीधे मैसेज भेजता रहता है.’’

‘‘पढ़वा दे इस की पत्नी को, दिमाग ठिकाने आ जाएगा.’’

‘‘सोच रही हूं, काफी रिश्तेदारों को ब्लौक कर दूं. अभी भी तो बुरी लड़की ही सम झ रहे हैं, बात नहीं होगी तो मेरा दिमाग तो नहीं खाएंगे.’’

‘‘हां, कर दे ब्लौक.’’

‘‘सचमुच कर दूं?’’

‘‘हां, कर दे.’’

थोड़ी देर बाद सब ने फोन रख दिया. फोन रखने के बाद काजल ने सोचा, वह अकेली रहती है, अब उस का कोई नहीं. जो भी दोस्त हैं, दूर हैं. 1-2 दोस्त और भी हैं, अमित और नैना. दोनों उस के साथ पढ़े हैं. अमित तो उस के घर से 2 किलोमीटर दूर ही है, नैना पटपड़गंज में. दोनों पापा के जाने के बाद उस के घर कई बार आ चुके हैं, मुसीबत में काम भी आएंगे, उसे यह भी यकीन है. ये रिश्तेदार उसे सिर्फ ताने मारते हैं, उस का मजाक उड़ाते हैं, ये सब उस के किसी काम नहीं आने वाले हैं. उमेश की गंदी नजरों से बचना ही अब बहुत मुश्किल होता जा रहा है पर अपनी सेफ्टी के लिए उसे कई कदम उठाने ही होंगे. अकेली है तो क्या जीना छोड़ दे?

काजल ने अब उमेश को और कई लोगों को फोन पर ब्लौक कर ही दिया. देखा जाएगा और बुरी सम झ लें, क्या फर्क पड़ जाएगा. फिर उस ने आसपास के वैलनैस सैंटर ढूंढे़. उस का मन था कि दिल्ली से थोड़ा बाहर निकले. यहां की हवा में तो अब सांस भी मुश्किल से आती थी, हर तरफ धुआं ही धुआं, गरमी, अजीब सा मौसम और माहौल. उसे नोएडा वाला ही सैंटर सम झ आया, नैचुरल वैलनैस सैंटर. उस के पास उस के अकाउंट में इतने पैसे थे कि उस के खर्चे आराम से पूरे हो रहे थे. यहां 15 हजार 1 हफ्ते का था, उसे पहले तो ज्यादा लगे पर उस ने सोचा कि उस की मैंटल हैल्थ के लिए यहां से कुछ दिन दूर होना उस के लिए जरूरी है. उस ने रजिस्ट्रेशन करवा लिया. उसे अब अगले दिन ही सुबह निकलना था. वह अब कुछ तैयारी करने लगी. बाहर निकल कर दूध और भी कुछ चीजें लेने निकलीं.

काजल ने सोचा इस समय बस थोड़ी सी खिचड़ी बना लेगी. सुबह चायब्रैड खा कर निकल जाएगी. 5 मिनट दूर ही सब दुकानें थीं. उस ने घर का कुछ सामान लिया. इस समय रात के 8 बज रहे थे. इस समय भी इतनी उमस थी, पसीना पोंछती सब सामान ले कर घर की तरफ बढ़ ही रही थी कि उमेश ने आ कर पीछे से जोर से बोलते हुए डरा ही दिया, ‘‘तेरे फोन को क्या हुआ?’’

काजल तेजी से चली, कहा, ‘‘मेरे पीछे आया तो तेरे घर जा कर मेखला के सामने क्याक्या कहूंगी, कई दिन याद रखेगा, सम झा?’’

पत्नियों के नाम से अच्छेअच्छों को डर लगता है. भरी भीड़ में उमेश उस समय तो चुप हो गया पर मन में सोचा, इसे तो बाद में देख लूंगा.

घर जा कर काजल ने अपने दिल की बेतरतीब धड़कनें संभालीं. हमारे समाज में एक अकेली लड़की की परेशानी सम झना आसान नहीं है. कैसेकैसे भेडि़ए अपनों की शक्ल में आसपास घूमते हैं, अपनों से ही अपनी सुरक्षा करनी होती है. उस ने नैना और अमित को भी फोन कर के सब बता दिया और सब दोस्तों को अगले हफ्ते लगातार टच में रहने के लिए कहा.

काजल ने अगले दिन निकलने के लिए अपनी पैकिंग की, खिचड़ी बनाई, स्नेहिल सुधा जिसे काजल, आंटी कहती थी, जो उस की मम्मी के समय से घर के काम करती थीं, उन्हें सुबह जल्दी आने के लिए कहा. घर में हर तरफ उसे अपने मम्मीपापा दिखते, लगता कहीं नहीं गए हैं, उस के आसपास ही हैं. मगर यह तो मन को बहलाने वाली बात थी. वह अकेली है, वह जानती थी. उस ने गूगल पर इस नैचुरल वैलनैस सैंटर के बारे में और पढ़ा. वहां प्राकृतिक माहौल में मैडिटेशन, ऐक्सरसाइज, हैल्दी लाइफस्टाइल के बारे में सिखाया जाता था. रिव्यू अच्छे थे. उसे सब ठीक ही लग रहा था. इस का एड उसे न्यूजपेपर में काफी टाइम से दिख रहा था.

अगले दिन सुधा आंटी से काम कराते हुए काजल ने अपने जाने के बारे में बता दिया. सुधा को अब उस की फिक्र रहती, उसे अपना ही सम झती थी. अब नौकर और मालिक का रिश्ता न था, इंसानियत और स्नेह

का रिश्ता था. सुधा ने उसे सुरक्षा सबंधी कई निर्देश दिए. वह भी जानती थीं काजल आज की पढ़ीलिखी लड़की है, अलर्ट रहती है. इतने सालों से एक मासूम बच्ची को मजबूत बनते देख रही थी.

काजल मैट्रो से नोएडा पहुंच गई. सैंटर तक पहुंचने में उसे कोई दिक्कत नहीं हुई. आजकल तो वह वैसे भी पता नहीं कहांकहां किसकिस विभाग में चक्कर काट रही थी. अब तो मशीन की तरह एक से दूसरी जगह पहुंचती रहती. दिल्ली में ही जन्मी और पलीबढ़ी थी. रिसैप्शन पर उस ने एक फौर्म भरा, अपनी कुछ डिटेल्स दी. वहां की हरियाली ने उस का मन मोह लिया. लगा ही नहीं कि आसपास इतना सुंदर कोई सैंटर था. बहुत शांति थी. वहां के स्टाफ की एक 20-21 साल की लड़की मुसकराते हुए उसे एक रूम तक ले गई, कहा, ‘‘काजल, आप फ्रैश हो लें. फिर 1 घंटे बाद हौल में मिलते हैं.’’

काजल ने पूछ लिया, ‘‘यहां कितने लोग हैं? सब को 1-1 रूम मिलता है?’’

‘‘इस हफ्ते के बैच में यहां 20 लोग हैं,

2 पुरुषों को एक रूम शेयर करना होता है, किसी लड़की को एक ही रूम दिया जाता है. उसे शेयर नहीं करना पड़ता.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘उन की प्राइवेसी का ध्यान रखना पड़ता है,’’ कहते हुए वह जब मुसकराई तो उस की स्माइल काजल को कुछ भाई नहीं.

1 घंटा काजल ने आराम किया, अपने दोस्तों को, यहां तक कि सुधा आंटी को भी अभी तक के अपडेट्स दे दिए. सभी ने उसे ध्यान से रहने के लिए कहा. सभी को उस की चिंता थी. सभी चाहते तो यही थे कि वह किसी अनजान जगह न जाए पर पिछले कुछ महीनों से काजल जिस उदास दौर से गुजर रही थी, सब ने उस की हां में हां यही सोच कर मिला दी थी कि कहीं निकलेगी तो उस का मन बहलेगा. हौल में पहुंच कर वहां आए लोगों पर एक नजर डाली. सभी उम्र के लोग थे. काजल ने एक बात जरूर नोट की कि स्टाफ की लड़कियां बैच के पुरुषों को कुछ अलग तरह से अटैंड कर रही थीं. उसे अजीब सा लगा. इन लड़कियों की ड्रैस थी, वाइट कलर का टौप और वाइट कलर की ही ढीली सी पैंट. यह ड्रैसकोड काफी स्टाइलिश लग रहा था. फिर वहां 2 लड़के और 2 लड़कियां आए, इन लड़कों ने बड़े स्टाइलिश कुरतेपजामे पहने हुए थे, लड़कियों ने कुरता और लैगिंग. ये चारों वहां बने एक छोटे से स्टेज पर गुरुओं की तरह बैठ कर सब का वैलकम करते हुए अपने वैलनैस प्रोग्राम के बारे में बताने लगे. बैच के लोग इन के सामने जमीन पर बिछी दरी पर बैठे थे.

स्टाइलिश गुरुओं ने सब पर नजर डाली, फिर एक गुरु की नजर काजल पर अटक गई. काजल कुछ असहज हुई. फिर कुछ प्राणायाम हुआ, कुछ ओशो जैसी बातें हुईं. काजल को याद आया कि ये सब ज्ञान की बातें तो इंस्टाग्राम पर रील्स पर खूब घूमती हैं. काफी कुछ यौगिक क्रियाओं पर बातें हुईं. कभी कोई गुरु बोल रहा था, कभी कोई, जैसे सब ने अपनीअपनी बातें रट रखी हों. काजल हैरान सी थी कि सबकुछ कितना मैनेज्ड है. 2 घंटे बाद कहा गया कि जा कर सब लोग थोड़ा आराम कर लें, फिर सैंटर में थोड़ा टहल कर आएं, लंच सब साथ करेंगे. बता दिया गया कि कैंटीन किधर है.

यहां इतनी गरमी, घुटन नहीं थी जितनी काजल को दिल्ली में लग रही थी. इस का कारण यहां की हरियाली होगा. काजल को यहां सब शांत लग रहा था, शांत पर कुछ अलग. लोग आपस में एकदूसरे से पूछने लगे कि कौन कहां से क्यों आया है. कारण लगभग एक सा ही था. बोरिंग लाइफ में

कुछ चेंज के लिए. काजल को छोड़ कर सब के साथ एक न एक परिवार वाला या दोस्त था. वही बिलकुल अकेली थी. सब रूम शेयर कर रहे थे. उसी के पास सिंगल रूम था. सादा स्वादिष्ठ खाना सब ने साफसुथरी कैंटीन में साथ ही खाया. चारों गुरुओं ने भी अपने नाम पल्लवी, ऋतु, रजत और चिराग बताए और अपना परिचय दिया. सब ने कोई न कोई बड़ी डिग्री ली हुई थी पर अब शौकिया अच्छे मनपसंद काम में समय बिता रहे थे.

खाना हो गया तो रजत ने कहा, ‘‘अब आप लोग जो चाहें करें, 4 बजे वापस हौल में आ जाएं, 1 घंटा कुछ बातें करेंगे, फिर शाम की सैर, फिर कुछ ऐक्सरसाइज. यहां वहां सामने एक छोटी सी लाइब्रेरी भी है, जो चाहे, वह करें. हौल में फोन बंद ही रखें.’’

रजत ने काजल से कहा, ‘‘आप अकेली हैं, चाहें तो हमारे स्टाफ के साथ घूम सकती हैं या हम लोग भी हैं, हमारे साथ भी टाइम बिता सकती हैं,’’ कहतेकहते उस ने काजल को जिन नजरों से देखा, उसे उमेश याद आ गया. वह दुखी तो थी पर मूर्ख तो बिलकुल नहीं थी.

काजल ने सामान्य से स्वर में कहा, ‘‘थैंक्स, अभी तो मैं थोड़ी देर सामने पेड़ के नीचे रखी चेयर पर कुछ देर बैठना चाहूंगी. फिर हौल में ही मिलती हूं.’’

‘‘श्योर, एज यू विश, ऐंजौय द ब्यूटी औफ दिस प्लेस,’’ कह कर वह चला गया.

काजल इधरउधर देखती हुई पेड़ के नीचे रखी 2 सुंदर चेयर्स में से एक पर बैठ गई. यहां अच्छा तो लग रहा था पर मन में कुछ खटक रहा था. दोस्तों के व्हाट्सऐप पर कई मैसेज आए हुए थे कि ठीक हो न, सब ठीक है? कुछ रिश्तेदारों के भी मैसेज थे कि कहां घूम रही हो? तुम्हारे घर पर ताला क्यों लगा है? सुबहसुबह कहां निकल जाती हो?

काजल ने अपने दोस्तों से बात की, सब बताया कि अभी तक क्या चल रहा है. इन रिश्तेदारों को ब्लौक कर दिया जिन्हें बस सवाल पूछने थे.

तभी काजल को एक लगभग 50 साल का व्यक्ति अपनी ओर आता दिखा, स्टाइलिश सूट में, मौडर्न शूज, शानदार परफ्यूम की खुशबू बिखेरता उस के सामने आ कर खड़ा हो गया. अपना परिचय दिया, ‘‘हैलो काजल, मैं रवि कुमार. यहां का ओनर, यहां का कांसैप्ट मेरा ही है. आप डिस्टर्ब न हों तो मैं थोड़ी देर आप को कंपनी देना चाहूंगा. आप अकेली हैं, आप को अभी तक यहां कोई प्रौब्लम तो नहीं, बस आप से मिलने आ गया.’’

‘‘नो प्रौब्लम, रविजी, आप से मिल कर खुशी हुई. आइए, बैठिए.’’

रवि उस की ऐजुकेशन, उस के पेरैंट्स के बारे में बात करता रहा, उस के आगे के प्लान पर बात करता रहा. अपने बारे में बताता रहा, उस ने शादी नहीं की थी. वह सालों से इसी कौंसैप्ट पर काम करने में बिजी रहा. फिर कहने लगा, ‘‘आप यहां 1 हफ्ता आराम से रहिए, रातदिन किसी भी टाइम कंपनी चाहिए तो मु झे फोन कर दीजिए, मैं आप की सेवा में हाजिर हो जाऊंगा, आप भी अकेली, मैं भी अकेला. यह रहा मेरा कार्ड,’’ कह कर वह जिस तरह से हंसा, काजल को उमेश की मक्कारी वाली हंसी याद आ गई. वह सोचने लगी कि यहां के लोगों को देख कर उसे उमेश का ध्यान क्यों आ रहा है. आंखों से ही बहुत कुछ कह कर रवि कुमार चला गया. काजल ने ठंडी सांस ली. उफ, उसे क्यों लग रहा है जैसे यह वैलनैस सैंटर किसी मौडर्न बाबा का मौडर्न आश्रम है, अकेली लड़की पर यहां कुछ खास मेहरबानी हो रही है. उसे उमेश जैसी नजरों से देखा जा रहा है. उसे हवा में ही किसी खतरे की गंध आई. उस ने फौरन अमित को फोन लगा दिया, ‘‘अमित, तुम मु झे यहां आ कर तुरंत ले जाओ, बोलना फैमिली इमरजैंसी है. ये लोग कुछ कहें तो अड़ जाना. सख्ती से बात करना.’’

‘‘क्या हुआ? तुम ठीक तो हो?’’

‘‘बस, मु झे आज ही यहां से ले जाओ. और हां, ये लोग हौल में फोन बंद करने के लिए कहते हैं. अब तुम देख लेना कि क्या कैसे करना है. यहां अंदर आ जाओ तो कौल करना, मैं सम झ जाऊंगी कि तुम आ गए हो.’’

‘‘चिंता मत करो, अभी औफिस से निकल रहा हूं.’’

काजल ने बाकी दोस्तों को भी सब बता दिया. सब परेशान हो गए पर सब को यही ठीक लगा कि किसी अनहोनी का इंतजार न किया जाए. अभी निकला जाए.’’

काजल हौल में सब के साथ बैठी थी, उस के कुरते में फोन वाइब्रेट कर रहा था पर इस समय वह फोन उठा नहीं सकती थी. उस ने रूमाल निकालने के बहाने देख लिया कि अमित कौल कर रहा है. वह अब कुछ निश्चिंत हो गई. इस समय मंच पर रजत और पल्लवी सही तरह से सांस लेने की टैक्नीक बता रहे थे. काजल का अब पूरा ध्यान 1-1 आवाज पर था. किसी ने आ कर रजत के कान में कुछ कहा, उस के चेहरे पर नागवारी के भाव आए.

रजत ने पल्लवी को धीरे से कुछ कहा, फिर उस ने घोषणा की, ‘‘काजल, हौल से बाहर जाइए, आप से कोई मिलने आया है. कुछ अर्जैंट है.’’

काजल कुछ न सम झने की ऐक्टिंग करते हुए बाहर निकली, औफिस की तरफ गई, वहां खड़े अमित ने बहुत ही गंभीर स्वर में कहा, ‘‘तुम्हारा फोन ही नहीं लग रहा है, बहुत बुरी खबर है.’’

‘‘अरे, क्या हुआ?’’

‘‘तुम्हारे कजिन की ऐक्सीडैंट में डैथ हो

गई है.’’

‘‘उफ…’’

‘‘जल्दी चलो, तुम्हारे चाचा ने फौरन

बुलाया है.’’

वहीं कुछ दूरी पर रवि कुमार भी खड़ा था. उस का चेहरा ऐसा था जैसे हाथ आए खजाने को कोई छीन कर भाग गया हो. फिर भी उस ने कोशिश की, ‘‘सो सौरी, काजल. बहुत दुख हुआ. आप चाहें तो दोबारा आ जाएं. आप की फीस तो जमा ही रहेगी, हम उसे तो वापस नहीं कर सकते.’’

‘‘जी, थैंक यू, कोशिश करूंगी कि जल्दी आ जाऊं.’’

काजल ने पहले से तैयार अपना बैग जल्दी से जाकर उठाया. वहां से अमित और काजल भागते हुए ही निकले. अमित अपनी कार ले कर आया था. कार में बैठते हुए अपनी सीट बैल्ट लगाते हुए दोनों ने चैन की सांस ली, अमित ने पूछा, ‘‘अब बताओ यार क्या हुआ था?’’

‘‘अभी तक तो कुछ नहीं हुआ था पर मु झे पूरा यकीन है कि यह मौडर्न वैलनैस सैंटर किसी ऐयाश बाबा के आश्रम का ही नया रूप है. नए रैपर में पुरानी मिठाई ही है.’’

‘‘फिर तो समय रहते वहां से निकलना ही ठीक था. इस जगह की शिकायत करनी है?’’

‘‘अभी मेरे पास कोई पू्रफ नहीं है.’’

‘‘हां, यह बात भी है.’’

दोनों बहुत सी बातें करते रहे. काजल ने एक जगह कहा, ‘‘बस मु झे यहीं उतार दो, यहां से मैं मैट्रो पकड़ सकती हूं. मु झे घर छोड़ने जाओगे तो तुम्हें लंबा रास्ता पड़ेगा. थैंक यू, दोस्त. अब तुम ही लोग हो मेरे पास,’’ कहतेकहते काजल का गला भर आया.

अमित ने कहा, ‘‘किसी बात की टैंशन न ले, घर जा कर आराम कर. जल्द ही सब मिलते हैं.’’

इस तरह की अकेली रहने वाली लड़कियों के पास कुछ अच्छे दोस्त भी होते हैं जिन पर ये यकीन कर सकती हैं. ऐसे दोस्तों के कारण इन की दुनिया कुछ सुंदर तो हो ही जाती है. दोस्ती में अगर स्वार्थ, ईर्ष्या न हो तो यह रिश्ता दुनिया का सब से सुंदर रिश्ता होता है.

काजल ने मैट्रो पकड़ी. उसे अच्छा लग रहा था कि आज सुबह से उसे किसी रिश्तेदार का फोन नहीं आया न आगे आना था. सब से कटने का वह मन बना ही चुकी थी. उस ने घर आ कर सुधा आंटी को बता दिया कि वह आ गई है. उस के जल्दी आने पर वह चिंतित हुई. उसे चैन नहीं आया कि काजल तो

1 हफ्ते के लिए गई थी, आज ही कैसे आ गई? वह देखने आ ही गई, ‘‘काजल. आज ही कैसे आ गई, बेटा?’’

काजल ने सब कह सुनाया. आंटी हैरान हुई, दुखी भी हुई. बोली, ‘‘कितनी सम झदार हो तुम, आज का दिन मुश्किल सा रहा होगा पर ऐसी बातें तुम्हें बहुत मजबूत बना देंगी. आराम करो, बेटा सुबह आती हूं. अपनी मम्मी वाला गाना याद कर लो,’’ स्नेह भरे स्वर में कह कर आंटी तो चली गई पर आंटी की कही बात को काजल देर तक सोचती रही, मथती रही. लगा, मम्मी घर के ही किसी कोने में गुनगुना रही हैं कि ऐ दिल तु झे कसम है, तू हिम्मत न हारना, दिन जिंदगी के जैसे भी गुजरें, गुजारना…’’

काजल को यह गाना याद कर मम्मी की याद आई तो कुछ आंसू भी गालों पर बह चले पर अपने दिल पर हाथ रख कर कहा कि चल दिल, हिम्मत नहीं हारनी है, जीना है और हिम्मत से जीना है और फिर उस ने अपने सब दोस्तों को यह एक लाइन गा कर वौइस मैसेज भेज दिया. काजल का मैसेज सब फौरन देखते थे. सब की हार्ट वाली इमोजी और थम्सअप आ गया.

डैडलाइन : आखिर विदित के चौंकने की क्या थी वजह ?

गाड़ी ने स्पीड पकड़ी तो पूजा और नेहा की बातों ने भी स्पीड पकड़ ली. दोनों पिछले 4 दिनों में स्वाति की शादी में की मस्ती के 1-1 पल को फिर से जीने लगीं. तभी नेहा के मोबाइल पर आए मैसेज ने उस के मस्ती भरे मूड पर विराम लगा दिया.

‘‘क्या हुआ? सब ठीक तो है?’’ पूजा ने पूछा.

‘‘हांहां बिलकुल. बौस ने कुछ काम भेजा है, देखती हूं,’’ और नेहा लैपटौप खोल कर बैठ गई.

पूजा भी आसपास के यात्रियों को देखने लगी. सामने वाली सीट पर कोने में बैठी एक महिला को लगातार अपनी ओर ताकते देख पूजा थोड़ा असहज हो उठी. मगर पूजा से नजरें मिलते ही वह महिला मुसकराते हुए उठी और पूजा की बगल में आ कर बैठ गई. नेहा सहित अन्य सहयात्रियों को मजबूरन उस के लिए जगह बनानी पड़ी.

‘‘आप तारिणी की क्लासटीचर हैं न?’’ बैठते ही उस ने सवाल दाग दिया.

‘‘तारिणी? ओह हां. मेरी ही क्लास में है. आप उस की… मदर?’’

‘‘हां ठीक पहचाना आपने,’’ वह उत्साहित हो कर पूजा के और पास खिसक ली, ‘‘पेरैंट्स मीटिंग में मिले थे हम आप से.’’

उस का देशी लहजा सुन कुछ सहयात्री मंदमंद मुसकराने लगे. पर पूजा अप्रभावित बनी रही. स्कूल पेरैंट्स मीटिंग में सभी तरह के अभिभावकों से मिलतेमिलते वह इन सब की अभ्यस्त हो चुकी थी.

‘‘हम जानते हैं वह पढ़ाई में ज्यादा अच्छी नहीं है पर फिर भी हम चाहते हैं कि वह जिंदगी में कुछ बन जाए… डाक्टर, टीचर, वकील, कुछ भी… बस कैसे भी हो, अपने पैरों पर खड़ी हो जाए. हम ने भी शादी के बाद ही बीए, एमए सब किया और अब बीएड कर रहे हैं.’’

‘‘वाह, बहुत अच्छा,’’ पूजा ने प्रोत्साहित किया.

‘‘पर उस का ध्यान दूसरी चीजों में ज्यादा है. उसे अच्छा खानेपहनने का शौक है, सिनेमा देखने का शौक है. अपनी ओर से मैं उस पर पूरी नजर रखे हूं पर आप से भी थोड़ी उम्मीद रखती हूं… वह क्या है कि…’’ वह महिला पूजा को अपनी दर्दभरी दास्तां सुनाने लग गई.

नेहा ने अपना पूरा ध्यान लैपटौप पर केंद्रित कर लिया था. कुछ अन्य सहयात्री भी उकता कर आपस में बतियाने लगे. मगर पूजा सहित 1-2 और सहयात्री उस महिला की आपबीती ध्यान से सुनने लगे.

नेहा का काम समाप्त हुआ तब तक दोनों सहेलियों का स्टेशन आने में थोड़ा ही वक्त बचा था. वह महिला शायद अपनी आपबीती सुना चुकी थी क्योंकि पूजा उसे धैर्य बंधा रही थी कि उस की बेटी अपनी मां से सीख ले कर अवश्य कुछ बन कर दिखाएगी.

वह महिला अपनी सीट पर लौट गई तो नेहा अपनी उत्सुकता नहीं रोक सकी. पूछा, ‘‘कैसी है इस की बेटी?’’

‘‘क्लास की सब से डफर स्टूडैंट है. पास होने के भी लाले पड़ रहे हैं,’’ पूजा धीरे से उस के कान में फुसफुसाई.

‘‘तो फिर तुम ने उस से खरीखरी बात बोली क्यों नहीं कि वह अपनी बेटी से बेकार ही उम्मीद न लगाए?’’

‘‘तुम ने शायद गौर नहीं किया कि उस की जिंदगी कितनी संघर्षपूर्ण रही है. कितनी उम्मीदों से वह अपनी उस इकलौती संतान को पाल रही है और कितनी उम्मीद से वह मेरे पास आई थी. क्या वह अपनी बेटी और उस के कैलिबर को नहीं जानती? मु झ से बेहतर जानती है पर फिर भी उस ने उम्मीद नहीं छोड़ी है. निरंतर प्रयत्नरत है. तो मैं उस की उम्मीदें तोड़ने वाली कौन होती हूं? और हो सकता है कल को ये मांबेटी मु झे ही गलत सिद्ध कर दें बल्कि इस महिला का जीवट देख कर तो मैं चाहती हूं कि वह मु झे गलत सिद्ध करे… नेहा, सामने वाला जब दिल से सवाल कर रहा हो तो उसे दिमाग से जवाब देना मेरी नजर में तो अक्लमंदी नहीं है.’’

पूजा की बातों ने नेहा को गहराई तक प्रभावित किया. विशेषकर उस के कहे अंतिम वाक्य ने तो नेहा को आत्मविश्लेषण के लिए मजबूर कर दिया. अभी 4 दिन पहले की ही तो बात है. शादी में जाने की तैयारी निबटा कर वह लैपटौप पर प्रोजैक्ट का काम समाप्त कर लेने के इरादे से बैठी ही थी कि नहा कर बेहद रोमांटिक मूड में कमरे में घुसे विदित ने उसे बांहों में भर लिया.

‘‘इतने दिनों के लिए दूर जा रही हो. एडवांस में भरपाई करना तो बनता है जान.’’

नेहा  झटके से दूर खिसक गई, ‘‘नो विदित प्लीज. 4 दिन शादी में कुछ काम नहीं हो पाएगा. इसलिए मैं ने पहले से ही इस प्रोजैक्ट के लिए आज की डैडलाइन फिक्स कर दी थी. चाहे रातभर बैठना पड़े पर मु झे इसे आज पूरा करना ही होगा.’’

नेहा को याद आ रहा था सिर्फ यही नहीं प्यार में डूब कर विदित कई बार उस से अब 2 से 3 हो जाने का आग्रह भी कर चुका था पर नेहा को हर बार ही ऐसे अवसरों पर कभी अपनी प्रमोशन याद आ जाती तो कभी नए फ्लैट या कार की ईएमआई की डैडलाइन.

‘‘सालभर बाद मैं ऐसोसिएट होने वाली हूं. फिर प्लान करें तो बेहतर नहीं होगा? आखिर पेट में 9 महीने रख कर तो मु झे ही घूमना है न?’’

हर काम में सहयोग करने वाला विदित भला इस में क्या सहयोग कर सकता था?

इसलिए मन मार कर उसे अपनी उत्तेजना के आवेग को शांत करना पड़ा. इधर ऐसोसिएट हो जाने के बाद अब नेहा पर जल्द से जल्द वीपी बन जाने का भूत सवार हो गया था.

‘‘मैं ने वीपी बनने की डैडलाइन तय कर ली है… 2 साल के अंदरअंदर,’’ वह अकसर गर्व से कहती.

ऐसा नहीं कि प्रमोशन की चाह केवल नेहा को ही थी और विदित अपने कैरियर के प्रति सर्वथा उदासीन था. फर्क था तो बस इतना कि दोनों की प्राथमिकताएं अलग थीं. तभी तो विदित उस के सम्मुख छोटे से ले कर बड़ा प्रस्ताव तक दिल से रखता था. चाहे वह होटल में डिनर का प्रस्ताव हो या 2 से 3 हो जाने का प्रस्ताव. लेकिन उस ने आज तक रखे ऐसे हर प्रस्ताव का जवाब दिमाग से दे कर विदित को कितना हर्ट किया है इस का एहसास नेहा को आज हो रहा था.

मोबाइल बजा तो नेहा की चेतना लौटी. बौस का फोन था. स्टेशन से सीधे औफिस आने का निर्देश था. जरूरी मीटिंग रखी गई थी.

‘‘पर सर एक बार फ्रैश…’’ नेहा ने कहना चाहा.

‘‘हमारा औफिस घर जैसी सुविधाएं इसीलिए उपलब्ध करवाता है ताकि कर्मचारी का बेकार समय नष्ट न हो. नेहा, तुम औफिस आ कर भी फ्रैश हो सकती हो,’’ और उधर से फोन काट दिया गया.

बहस की कोई गुंजाइश न देख नेहा खुद को सीधे औफिस जाने के लिए तैयार

करने लगी. तभी विदित की कौल आ गई, ‘‘हाय डार्लिंग, कैसी रही विजिट? मैं तुम्हें लेने स्टेशन निकल रहा हूं.’’

‘‘नहींनहीं, तुम मत आना. मैं तुम्हें फोन करने ही वाली थी. बौस ने गाड़ी भेज दी है. मु झे सीधे औफिस पहुंचना होगा. जरूरी मीटिंग है.’’

‘‘क्या जानू, इतने दिनों बाद आई हो और… अच्छा, शाम को घर जल्दी पहुंचने की कोशिश करना. मेरा यार बलजीत डिनर पर आ रहा है अपनी नईनवेली दुलहन के साथ. हम लोग तो उस की शादी में भी नहीं जा पाए थे.’’

‘‘पर मैं डिनर कैसे मैनेज करूंगी? आई मीन इतने दिनों बाद लौटी हूं. घर में क्या है, क्या नहीं पहले देखना पड़ेगा तभी तो कुक को बता बताऊंगी कि क्या बनाना है?’’ हमेशा की तरह वर्कप्रैशर बढ़ते ही नेहा  झल्ला उठी थी.

‘‘ओके रिलैक्स डार्लिंग, तुम चिंता मत करो. खाना मैं बाहर से पैक करवा कर ले आऊंगा. तुम बस डिनर टाइम तक घर जरूर पहुंच जाना.’’

‘‘ठीक है, मैं कोशिश करूंगी,’’ एक ठंडी सांस छोड़ते हुए नेहा ने फोन बंद कर दिया.

‘‘4 दिन वहां शादी में नैटवर्क नहीं मिल रहा था तो कितने आराम से दिन गुजरे. घर पहुंचने से पहले ही फिर वही आपाधापी वाली जिंदगी शुरू हो गई.

न जाने वैसे चिंतामुक्त दिन फिर कब मिलेंगे?’’ नेहा ने गौर किया उस की मनोस्थिति से सर्वथा अनजान पूजा अपने फोन पर लगी हुई थी.

‘‘चुनचुन ने ज्यादा परेशान तो नहीं किया न तुम्हें? क्या? अच्छा जनाब. मेरे बिना बापबेटी ज्यादा आराम से रहे. ठीक है तो फिर मैं घर ही क्यों लौटूं? मैं अपनी फ्रैंड के यहां जा रही हूं… क्या? घंटे भर से स्टेशन पर सूख रहे हो? हाय, उफ, तो इतनी जल्दी लेने क्यों आए? अच्छा अब कुछ नारियल पानी या जूस वगैरह पी लो और चुनचुन को भी पिला दो. उस से कहना ममा उस के लिए बहुत सुंदर फ्रौक ले कर आई है… तुम्हारे लिए? कुछ नहीं… अरे बाबा, ऐसा हो सकता है कि बाहर जाऊं और तुम्हारे लिए कुछ न लाऊं? सरप्राइज है, घर पहुंच कर बताऊंगी… क्या मेरे लिए भी घर पर सरप्राइज है? क्या? बताओ न?’’ पूजा आस पास का सबकुछ भूल फोन पर ही बच्चों की तरह ठुनकने लगी थी. उसे देख कर कोई अनुमान भी नहीं लगा सकता था कि वह एक बेहद जिम्मेदार और अनुभवी शिक्षिका है. नेहा को अपनी ओर टकटकी बांधे देख पूजा लजा गई और सामान समेटने का उपक्रम करने लगी.

खाली होती रेल नेहा को अपने अंदर भी एक रीतेपन का एहसास करा रही थी. पूजा को गरमजोशी और आत्मीयता से पति और बच्ची से मिलते देख रीतेपन की यह कसक और भी गहरा उठी. ड्राइवर ने आगे बढ़ कर उस के हाथ से सूटकेस थाम लिया तो नेहा जल्दीजल्दी कदम बढ़ा कर गाड़ी में जा कर बैठ गई.

पूरा दिन एक के बाद एक मीटिंग और प्रेजैंटेशन ने उसे बुरी तरह थका दिया, ‘आज तो घर लौट कर भी आराम नहीं है,’ सोचते हुए नेहा घर में घुसी तो मनपसंद गरमगरम सूप की सुगंध ने उस के मुंह में पानी भर दिया.

‘‘आओ नेहा, बिलकुल सही वक्त पर आई हो. पहले अपना फैवरिट सूप पी कर थकान मिटा लो. फिर चेंज वगैरह कर लेना. बलजीत से तो तुम पहले मिल ही चुकी हो. ये जस्सीजी हैं. इन्होंने तो आते ही साधिकार रसोई संभाल ली है. मेरे मना करतेकरते भी देखो सूप गरम कर के ले ही आईं.’’

नेहा ने थैंक्यू कहते हुए सूप उठा लिया. बोली, ‘‘इस वक्त मु झे वाकई इस की बहुत जरूरत थी. सौरी जस्सीजी, जो काम मु झे करना चाहिए था आप को करना पड़ रहा है.’’

‘‘अरे कोई गल नहीं भरजाईजी. जस्सी तो जहां जाती है उस घर और घर वालों को अपना बना कर छोड़ती है. मेरे तो सारे घर वालों को इस ने अपने वश में कर लिया है. घर में कोई मेरी तो सुनता ही नहीं, सब इसी की बात मानते हैं. आज तो इस ने खाना लगाया ही है, कभी बनवा कर देखो. उंगुलियां चाटते रह जाओगे,’’ बलजीत ने गर्व से कहा तो जस्सी लजा गई.

नेहा को पूरी उम्मीद थी विदित यह मौका हाथ से नहीं जाने देंगे. अब वे अवश्य दोस्त के सामने अपने दिल की भड़ास निकालेंगे. अत: चेंज करने के बहाने वह उठ कर अंदर चली गई. चेंज कर के रसोई में पहुंची तो पाया जस्सी वहां पहले से मौजूद थी. विदित द्वारा पैक करवा कर लाया खाना वह डोगों में सजा रही थी.

‘‘बलजीत भैया आप की तारीफ ठीक ही कर रहे थे. आप वाकई गृहलक्ष्मी हैं,’’ नेहा कहे बिना नहीं रह सकी.

‘‘अरे, असली तारीफ तो अब हो रही है. ध्यान से सुनिए,’’ जस्सी ने कहा तो नेहा कान लगा कर सुनने लगी. विदित यह सब क्या कह रहा है? नेहा को अपने कानों पर भरोसा नहीं हो रहा था.

‘‘बलजीत, नेहा मेरे लिए बहुत खास है. वह आम महिलाओं की तरह चूल्हाचैका संभालने या बच्चे पैदा करने के लिए नहीं बनी है. कुदरत ने उसे किसी खास प्रयोजन हेतु इस दुनिया में भेजा है. अपने काम के प्रति उस का समर्पण ऐसा है कि बड़ेबड़े प्रोजैक्ट वह डैडलाइन तय कर चुटकियों में तैयार कर लेती है. मगर बेचारी को इस की कीमत भी चुकानी पड़ रही है. अब आज का ही उदाहरण ले लो. बेचारी सहेली की शादी से लौटी नहीं कि इधर मैं ने उम्मीदें लगानी शुरू कर दीं. उधर उस के बौस ने तो गाड़ी भेज कर स्टेशन से ही औफिस बुलवा लिया. इसलिए मेरा प्रयास रहता है उस पर घर परिवार की कम से कम जिम्मेदारियां लादूं ताकि वह अपना प्रबुद्ध दिमाग और बेशकीमती समय बड़ेबड़े कामों में लगा सके.’’

‘‘आप तो बहुत लकी हैं भाभी,’’ कहते हुए जस्सी ने आत्मीयता से नेहा के गालों पर लुढ़क आए आंसू पोंछ दिए तो नेहा की तंद्रा लौटी. कुछ पलों के लिए शायद वह किसी और ही दुनिया में चली गई थी.

रात में विदित चेंज कर बैडरूम में घुसे तो चौंक उठे. नेहा बत्ती बु झाए आकर्षक नाइटी में बिस्तर पर उन का इंतजार कर रही थी.

‘‘आज तो जनाब के तेवर कुछ बदलेबदले लग रहे हैं,’’ फिर लैपटौप की ओर इंगित करते हुए कहा, ‘‘गोद का बच्चा भी इधर छिटका पड़ा है. आज की कोई डैडलाइन तय नहीं कर रखी है क्या?’’

‘‘कर रखी है न, 2 से 3 होने की,’’ कह नेहा ने शरारत से विदित को रजाई में खींच लिया.

मानसून के लिए बैस्ट हैं ये 3 नेचुरल फेस स्क्रब, आप भी करें ट्राई

मानसून का मौसम हमारी त्वचा के लिए एक चुनौतीपूर्ण समय हो सकता है. नमी और उमस के कारण त्वचा तैलीय और बेजान हो जाती है. ऐसे में चेहरे की सही देखभाल बेहद महत्वपूर्ण है. फेस स्क्रब का नियमित उपयोग त्वचा को साफ, ताजा और चमकदार बनाए रखने में मदद करता है. बदलते मौसम के कारण हमारी त्वचा में कई परिवर्तन होते हैं, जो विभिन्न त्वचा प्रकारों पर अलग-अलग तरीके से प्रभाव डालते हैं. आइए, जानें कि मानसून के मौसम में त्वचा पर क्या प्रभाव पड़ता है. मानसून के मौसम में त्वचा की देखभाल अत्यंत महत्वपूर्ण होती है. विभिन्न त्वचा प्रकारों पर मानसून का अलग-अलग प्रभाव होता है, इसलिए सही स्किनकेयर रूटीन अपनाना आवश्यक है. एक्सफोलिएशन त्वचा की सफाई और नमी संतुलन बनाए रखने में मदद करता है, जिससे त्वचा स्वस्थ और चमकदार बनी रहती है. इस मौसम में नियमित एक्सफोलिएशन को अपने स्किनकेयर रूटीन में शामिल करें और खूबसूरत त्वचा का आनंद लें.

विभिन त्वचाओं पर मानसून का प्रभाव

तैलीय त्वचा: तैलीय त्वचा वाले लोगों को मानसून के मौसम में अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है. हवा में नमी की मात्रा बढ़ जाने के कारण त्वचा की तेल ग्रंथियां अधिक सक्रिय हो जाती हैं, जिससे त्वचा पर तेल और पसीना अधिक मात्रा में आता है. इससे पोर क्लोजिंग और मुंहासों की समस्या हो सकती है.

शुष्क त्वचा: शुष्क त्वचा वाले लोगों को मानसून के मौसम में भी नमी की कमी महसूस हो सकती है. त्वचा की बाहरी परत में पानी की मात्रा कम हो जाती है, जिससे त्वचा खुरदरी और रूखी हो जाती है. नमी की कमी के कारण त्वचा पर खुजली और जलन भी हो सकती है.

कॉम्बिनेशन त्वचा: संवेदनशील त्वचा वाले लोगों को मानसून के मौसम में एलर्जी और संक्रमण का खतरा अधिक होता है. हवा में बढ़ी हुई नमी और प्रदूषण से त्वचा में जलन और लालिमा हो सकती है. संवेदनशील त्वचा पर छोटे-छोटे दाने और रैशेज भी हो सकते हैं.

सामान्य त्वचा: सामान्य त्वचा वाले लोगों को मानसून के मौसम में कुछ हद तक राहत मिलती है, लेकिन वे भी इस दौरान त्वचा संबंधी समस्याओं से पूरी तरह मुक्त नहीं रहते. मानसून के मौसम में त्वचा की नमी संतुलन बनाए रखना महत्वपूर्ण होत  है.

एक्सफोलिएशन का महत्व

मानसून के मौसम में एक्सफोलिएशन बहुत महत्वपूर्ण होता है. यह प्रक्रिया हमारी त्वचा की मृत कोशिकाओं को हटाने में मदद करती है, जिससे त्वचा की नमी संतुलित रहती है और त्वचा चमकदार और स्वस्थ दिखती है.

मानसून के मौसम के लिए तीन बेहतरीन फेस स्क्रब

यहां हम तीन ऐसे ष्ठढ्ढङ्घ फेस स्क्त्रब के बारे में बताएंगे, जो आप आसानी से घर पर बना सकते हैं और मानसून के मौसम में अपनी त्वचा को स्वस्थ रख सकते हैं.

ओट्स और शहद फेस स्क्रब: ओट्स एक नेचुरल एक्सफोलिएटर है जो त्वचा से मृत कोशिकाओं को हटाने में मदद करता है. शहद त्वचा को मॉइस्चराइज करता है और दही त्वचा को शीतलता और चमक प्रदान करता है. यह स्क्त्रब तैलीय त्वचा के लिए विशेष रूप से लाभकारी है, क्योंकि यह अतिरिक्त तेल को हटाने में मदद करता है.

सामग्री: 2 बड़े चम्मच ओट्स, 1 बड़ा चम्मच शहद, 1 बड़ा चम्मच दही.

विधि: ओट्स को अच्छे से पीस लें ताकि यह पाउडर की तरह बन जाए. एक कटोरी में ओट्स पाउडर, शहद और दही को मिलाएं.

इस मिश्रण को अपने चेहरे पर लगाएं और हल्के हाथों से 5-10 मिनट तक मसाज करें. इसके बाद गुनगुने पानी से चेहरा धो लें.

कॉफी और नारियल तेल फेस स्क्रब: कॉफी पाउडर त्वचा को एक्सफोलिएट करता है और उसे तरोताजा करता है. नारियल तेल त्वचा को गहराई से मॉइस्चराइज करता है और चीनी त्वचा की सतह को कोमल बनाती है. यह स्क्रब सूखी त्वचा के लिए बहुत अच्छा है और त्वचा को नमी प्रदान करता है.

सामग्री: 2 बड़े चम्मच कॉफी पाउडर, 1 बड़ा चम्मच नारियल तेल, 1 बड़ा चम्मच चीनी.

विधि: एक कटोरी में कॉफी पाउडर, नारियल तेल और चीनी को मिलाएं.

इस मिश्रण को अपने चेहरे पर लगाएं और हल्के हाथों से गोलाकार गति में मसाज करें. 5-7 मिनट के बाद चेहरा गुनगुने पानी से धो लें.

बेसन और हल्दी फेस स्क्रब: बेसन त्वचा को साफ और उज्ज्वल बनाता है, हल्दी एंटीसेप्टिक और एंटीइन्फ्लेमेटरी गुणों से भरपूर होती है जो त्वचा की समस्याओं को दूर करने में मदद करती है. गुलाब जल त्वचा को ताजगी प्रदान करता है. यह स्क्रब संवेदनशील त्वचा के लिए बहुत अच्छा है और त्वचा को प्राकृतिक चमक देता है.

सामग्री: 2 बड़े चम्मच बेसन, 1/2 छोटा चम्मच हल्दी, 2 बड़े चम्मच गुलाब जल.

विधि: एक कटोरी में बेसन, हल्दी और गुलाब जल को मिलाएं. इस मिश्रण को अपने चेहरे पर लगाएं और हल्के हाथों से मसाज करें. 10 मिनट के बाद चेहरा ठंडे पानी से धो लें.

स्क्रब के उपयोग के टिप्स

सप्ताह में दो बार करें स्क्रब: चेहरे पर स्क्त्रब का अत्यधिक उपयोग त्वचा को नुकसान पहुंचा सकता है. इसलिए सप्ताह में केवल 2 बार ही स्क्रब करें.

हल्के हाथों से करें मसाज: स्क्रब करते समय हमेशा हल्के हाथों से मसाज करें ताकि त्वचा पर खरोंच न आए.

स्क्रब के बाद मॉइस्चराइजर का उपयोग करेंर् स्क्रब करने के बाद त्वचा को मॉइस्चराइज करना बेहद जरूरी है ताकि त्वचा में नमी बरकरार रहे.

प्राकृतिक सामग्री का उपयोग करें: स्क्रब बनाते समय हमेशा ताड़ी और प्राकृतिक सामग्री का उपयोग करें ताकि त्वचा को किसी भी प्रकार की हानि न हो.

पैच टेस्ट अवश्य करे: किसी भी बनाये गए ष्ठढ्ढङ्घ को लगाने से पहले थोड़ा सा त्वचा पर लगा कर जरूर चेक करें की किसी प्रकार का नुक्सान न हो.

मानसून के मौसम में त्वचा की देखभाल

के लिए इन ष्ठढ्ढङ्घ फेस स्क्त्रब का उपयोग करना बेहद फायदेमंद हो सकता है. यह न केवल त्वचा को साफ और तरोताजा बनाए रखते हैं, बल्कि त्वचा को पोषण भी प्रदान करते हैं. इन सरल और प्रभावी स्क्रब्स को घर पर बनाकर आप मानसून में भी अपनी त्वचा को स्वस्थ और चमकदार बनाए रख सकते हैं. नियमित रूप से इन स्क्रब्स का उपयोग करें और पाएं एक चमकदार और स्वस्थ त्वचा.

-ब्लॉसम कोचर, सौंदर्य विशेषज्ञा द्

अधूरा ज्ञान देता मोबाइल

सोशल मीडिया ने आज आम लोगों की खासतौर पर  लड़कियों, औरतों, मांओं, प्रौढ़ों, वृद्धाओं की सोच को कुंद कर दिया है क्योंकि उन्हें लगता है कि जो उन के मोबाइल की स्क्रीन पर दिख रहा है वही अकेला और अंतिम सच है, वही देववाणी है, वही धर्मादेश है, वही हो रहा है. अब यह न कोई बताने वाला बचा है कि जो दिखा है वह उस का भेजा है जो आप जैसी सोच का है, आप के वर्ग का है, आप की बिरादरी का है क्योंकि सोशल मीडिया चाहे अरबों को छू रहा हो, एक जना उन्हीं को फौलो कर सकता है जिन्हें वह जानता है या जानना चाहता है.

सोशल मीडिया की यह खामी कि इसे कोई ऐडिट नहीं करता, कोई चैक नहीं करता. इस पर कमैंट्स में गालियां तक दी जा सकती हैं. सोशल मीडिया को जानकारी का अकेले सोर्स मानना सब से बड़ी गलती है. यह दिशाहीन भी है, यह भ्रामक भी है,  झूठ भी है. यह जानकारी दे रहा है पर टुकड़ों में.

नतीजा यह है कि आज की लड़कियां, युवतियां, मांएं, औरतें पढ़ीलिखी व कमाऊ होते हुए भी देश व समाज को बदलने के बारे में न कुछ जान पा रही हैं, न कह पा रही हैं, न कर पा रही हैं क्योंकि उन्हें हर बात की जानकारी अधूरी है. यह उन से मिली है जो खुद अनजान हैं, उन के अपने साथी हैं. सभी प्लेटफौर्मों से आप उन्हीं के पोस्ट देखते हो जिन्हें फौलोे कर रहे हों और अगर कहीं महिलाओं के अधिकारों की बात हो भी रही हो तो वह दब जाती है क्योंकि जो फौरवर्ड कोई नहीं कर रहा. औरतों की समस्याएं कम नहीं हैं. आज भी हर लड़की पैदा होते ही सहमीसहमी रहती है. उसे गुड टच बैड टच का पाठ पढ़ा कर डरा दिया जाता है. उसे मोबाइल पकड़ा कर फिल्मों, कार्टूनों में उल झा दिया जाता है. उसे घर से बाहर के वायलैंस के सीन इतने दिखते हैं कि वह हर समय डरी रहती है. हर समय घर में मोरचा तो खोले रहती हैं पर घर के बाहर का जीवन क्या है यह उसे पता ही नहीं होता.

हमारी टैक्स्ट बुक्स आजकल एकदम खाली या भगवा पब्लिसिटी का सोर्स बन गई हैं. उन से जीने की कला नहीं आती. घरों में मोबाइल और सोशल मीडिया की वजह से संवाद कम हो जाता है, अनजानों की रील्स और आधीअधूरी जानने वालों की पोस्टों से ही फुरसत नहीं होती कि घर में रहने वाले कैसे रह रहे हैं, क्या सोच रहे हैं, क्या कर रहे हैं. यह संवादहीनता ही घरों में विवादों की जड़ है. कोई दूसरे को सम झ ही नहीं रहा क्योंकि मोबाइल पर एकतरफा बात हो रही है और यह बात भी ऐसी कि अगर अच्छी हो तो उसे संजो कर नहीं रख सकते.

धर्म वाले अभी भी धंधा चालू रख रहे हैं. वे मोबाइलों पर आरतियों, कीर्तनों, धार्मिक उपदेशों,  झूठी महानता की कहानियों, रीतिरिवाजों को विज्ञान से जोड़ कर बकवास पोस्ट करे जा रहे हैं. चूंकि सोशल मीडिया एक तरफा मीडियम है, उसे देखने वालों को सच झूठ पता नहीं चल पा रहा. यह औरतों को ज्यादा भयभीत कर रहा है क्योंकि आज भी उन्हें डर है कि उन का बौयफ्रैंड या पति धोखा न दे जाए. औरतों को जो कहना होता है वे अब कह नहीं पा रहीं क्योंकि ऐसे प्लेटफौर्म कम होते जा रहे हैं, जहां कुछ गंभीर कहा जा सकता था.

बलौर्ग्स को भी इंस्टाग्राम और यूट्यूब को शौर्ट रील्स की फालतू की चुहुलबाजी, बेमतलब की ड्रैसों, फूहड़ नाचगानों ने कहीं पीछे कोने में धकेल दिया है.

जीवन आज भी फिजिकल चीजों से चलता है. सिर्फ पढ़ने या जानने के अतिरिक्त सबकुछ फिजिकल है, ब्रिक ऐंड मोर्टार का है, वर्चुअल नहीं है. आज जो भी हमारे चारों ओर है वह फिजिकल वर्ल्ड की देन है, यहां तक कि मोबाइल भी जो ब्रिक ऐंड मोर्टार व इंजीनियरिंग मशीनों से भरी फैक्टरियों से निकलते हैं, दुकानों में बिकते हैं. इस फिजिकल वर्ल्ड को भूल कर वर्चुअल वर्ल्ड में खो जाना एक तरह से धर्म की जीत है जो चाहता है कि भक्त काम करें पर फिजिकल चीजें उसे दे दें और खुद भक्ति में रमे रहें, किसी भगवान के आगे पसरे रहें, दान देते रहें.

फिजिकल वर्ल्ड का नुकसान आम लड़कियों को हो रहा है, युवतियों को हो रहा है, प्रौढ़ मांओंको हो रहा है, वृद्धाओं को हो रहा है जिन के पास अपना कहने को सिर्फ मोबाइल पर आने वाली सैकड़ों की तसवीरें और जल्दी मिट जाने वाले शब्दों के अलावा कुछ ज्यादा नहीं. अंबानी, अडानी, ऐलन मस्क को छोड़ दीजिए. वे धार्मिक कौंसपिरेसी का हिस्सा हैं, औरतों के दुश्मन हैं, उन्हें नाचने, अपनी वैल्थ दिखाने के लिए पास रखते हैं.

घर पर बनाएं रेस्टोरैंट स्टाइल गोभी मंचुरियन, ये रही रेसिपी

गोभी मंचूरियन एक देसी चाइनीज व्यंजन है जो ज्यादातर रेस्टोरैंट में मिलता है और सभी उम्र के लोगों का पसंदीदा है. अपने घर पर रेस्टॉरंट जैसा स्वादिष्ट और कुरकुरा गोभी मंचूरियन बनाने की विधि जानें.

हमें चाहिए

पकोड़े बनाने के लिए:

1 कप कद्दूकस की हुई गोभी

1 बारीक कटी हुई हरी मिर्च

1 छोटा चम्मच कटा हुआ अदरक

1/4 कप बेसन

नमक स्वादानुसार

2 कप (300 मिलीलीटर) पानी

तलने के लिए तेल

1 पैकेट चिंग्स सीक्रेट वेज मंचूरियन मसाला

1 कप (100 ग्राम) कटी हुई सब्जी – प्याज, गाजर, शिमला मिर्च

गार्निशिंग के लिए कटे हुए हरे प्याज का पत्ता

बनाने का तरीका

  1. कद्दूकस की हुई गोभी से पानी बाहर निचोड़ दें और पैन में डालें.
  2. 1 इंच बारीक कटा हुआ अदरक डालें.
  3. मिश्रण में मिर्च, बेसन और नमक डालें और अच्छी तरह मिलाएँ.
  4. छोटे आकार के गोले बनाएं और एक तरफ गहरे तलने (डीप फ्राई) के लिए रखें. अतिरिक्त तेल निकालें.
  5. वेज मंचूरियन मसाला का एक पैक एक कटोरे में डालें और उसमें पानी डालें. इससे अच्छी तरह से मिलाएं.
  6. पैन में 3 चम्मच तेल गरम करें. उसमें कटा हुआ प्याज, शिमला मिर्च और गाजर डालें और फ्राई करें. ज़्यादा न पकाएं.

7. इसमें पानी और वेज मंचूरियन मसाला मिश्रण मिलाएं. इस मिश्रण में गोभी के गोलों को डालें, 15 मिनट तक उबालें और ग्रेवी गाढ़ी होने पर गैस बंद कर दें. कटे हुए हुआ हरे प्याज पत्ते के साथ गार्निश करें और गर्म परोसें.

रेसिपी सहयोग: शेफ प्रणव जोशी

अबौर्शन के कारण मेरी मैरिड लाइफ में प्रौब्लम हो रही है, मैं क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 35 वर्षीय विवाहिता हूं. मेरी 13 साल की बेटी है. 2 बार गर्भपात से भी गुजर चुकी हूं. मेरी वैजाइना बिलकुल ढीली हो गई है. इस वजह से मेरे पति और मुझे सैक्स के समय संतुष्टि नहीं मिलती. कोई ऐसा इलाज बताएं जिस से कि यह पहले जैसी टाइट हो जाए. इंटरनैट पर मैं ने कुछ जैल क्रीम के बारे में पढ़ा था. क्या जैल क्रीम असरदायक होती है? पति औपरेशन के लिए राजी नहीं हैं. बताएं, क्या करूं? 

जवाब-

आप का इशारा शायद ऐस्ट्रोजन युक्त क्रीम और जैली की ओर है. इस की उपयोगिता उन महिलाओं के लिए होती हैं, जो मेनोपौज से गुजर चुकी होती हैं, जिन के शरीर में प्राकृतिक रूप से ऐस्ट्रोजन बनना बंद हो चुका होता है उन की योनि की प्राकृतिक नमी भी खत्म हो चुकी होती है. यह स्थिति 45 से 50 साल की उम्र के बाद ही कुछ महिलाओं में देखने को मिलती है. उस शुष्क हुई योनि की अंदरूनी सतह में कोशिकीय भरणपोषण और तरलता लौटाने में ऐस्ट्रोजन युक्त क्रीम उपयोगी सिद्ध होती है. आप के मामले में जरूरत योनि की ढीली हुई पेशियों में फिर से पहले जैसी चुस्ती लौटाने की है. इस के लिए नियम से श्रोणि पेशियों का व्यायाम करें. यह व्यायाम बिलकुल सरल है. आप इसे लेटे हुए, बैठे हुए या खड़े हुए किसी भी मुद्रा में कर सकती हैं. बस, श्रोणि पेशियों को इस प्रकार सिकोड़ें और भींच कर रखें मानो मूत्रत्याग की क्रिया पर रोक लगा रही हैं. 10 की गिनती तक श्रोणि पेशियों को भींचे रखें और फिर उन्हें ढीला छोड़ दें. अगले 10 सैकंड तक श्रोणि पेशियों को आराम दें. इस के लिए 10 तक गिनती गिनें. यह व्यायाम पहले दिन 10-12 बार दोहराएं. फिर धीरेधीरे बढ़ाते हुए सुबहशाम 20-25 बार करने का नियम बना लें. 2-3 महीनों के भीतर ही आप योनि की पेशियों को फिर से कसा हुआ पाएंगी.

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प्रैग्नेंसी में रखें ये हैल्दी आदतें, मां और बच्चा दोनों रहेंगे सुरक्षित

गर्भावस्था के दौरान मां की सेहत का तुरंत और लंबे समय में बच्चे की सेहत पर गहरा प्रभाव पड़ता है. गर्भकाल की डायबिटीज और एनीमिया, यानी कि मां में एनीमिया और डायबिटीज बच्चे की सेहत पर बुरा असर डाल सकते हैं. मां में एनीमिया हो तो बच्चे का जन्म के समय 6.5 प्रतिशत मामलों में वजन कम होने और 11.5 प्रतिशत मामलों में समय से पहले प्रसव की समस्या हो सकती है. गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज की वजह से बच्चे को 4.9 प्रतिशत मामलों में एनआईसीयू (नवजात गहन चिकित्सा इकाई) में भरती होने और 32.3 प्रतिशत मामलों में सांस प्रणाली की समस्याएं होने का खतरा रहता है.

गर्भावस्था में इन समस्याओं की वजह से पैदा हुए बच्चों में मोटापे, दिल के विकार और टाइप 2 डायबिटीज होने का खतरा उम्रभर रहता है.

गर्भावस्था के दौरान हाइपरटैंशन, जो कि 20वें सप्ताह में होता है, पर भी ध्यान देने की आवश्यकता होती है. इस से गर्भनाल (एअंबीलिकल कौर्ड) की रक्तधमनियां सख्त हो जाती हैं जिस से भू्रूण तक औक्सीजन और पोषण उचित मात्रा में नहीं पहुंच पाता. इस वजह से गर्भाशय में बच्चे की वृद्धि में रोक, जन्म के समय बच्चे का कम वजन, ब्लडशुगर में कमी और लो मसल टोन जैसी समस्याएं हो सकती हैं. कुछ मामलों में आगे चल कर किशोरावस्था में बच्चे में हाइपरटैंशन की समस्या भी हो सकती है.

मां में मोटापा हो तो गर्भावस्था में डायबिटीज होने की संभावना होती है जिस वजह से समय से पहले प्रसव और बच्चे में डायबिटीज व मोटापा होने के खतरे रहते हैं. गर्भावस्था के दौरान मां के पोषण में मामूली कमी का भी प्रतिकूल असर बच्चे की सेहत पर पड़ सकता है, जैसे कि गर्भावस्था में विटामिन डी की कमी से आगे चल कर जच्चा और बच्चा दोनों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा हो सकती हैं.

डा. संजय कालरा, कंसल्टैंट एंडोक्राइनोलौजिस्ट, भारती हौस्पिटल, करनाल एवं वाइस पै्रसिडैंट, साउथ एशियन फैडरेशन औफ एंडोक्राइन सोसायटीज, कहते हैं कि अगर मां को गर्भावस्था में डायबिटीज या हाइपरटैंशन हो जाए तो बच्चे की सेहत का, खासतौर पर शुरुआती दिनों में, पूरा ध्यान रखना चाहिए. बच्चे के ग्रोथ चार्ट पर नियमित ध्यान देते रहना चाहिए और रोगों की रोकथाम वाली जीवनशैली अपनानी चाहिए. आहार में आयरन, फोलेट और विटामिन बी12 की कमी की वजह से गर्भवती महिलाओं में एनीमिया होने की संभावना काफी ज्यादा होती है.

गर्भावस्था में आयरन की अत्यधिक जरूरत होने की वजह से यह समस्या और भी बढ़ जाती है. एनीमिया की वजह से गर्भनाल से भ्रूण तक औक्सीजन जाने में कमी से शिशु के विकास में कमी हो सकती है और एंडोक्राइन ग्रंथि की कार्यप्रणाली पर असर पड़ सकता है.

भारतीय महिलाओं को आयरन और हेमाटोपौयटिक (रक्तोत्पादक) विटामिन देने चाहिए ताकि गर्भावस्था से पहले और गर्भावस्था के दौरान हीमोग्लोबीन का उचित स्तर बना रहे. गर्भावस्था में डायबिटीज और हाइपरटैंशन के  आने वाले जीवन में पड़ने वाले प्रभावों से बचने के लिए मां और बच्चे दोनों को ही रोगों की रोकथाम वाली जीवनशैली अपनानी चाहिए.

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