बैडरैस्ट: आखिर जया को कौनसी बीमारी हुई थी?

और्थोपैडिक डाक्टर अमित ने जब मुझे 10 दिन की बैडरैस्ट बताई तो तेज दर्द में भी मैं ने अपने होंठों पर आने के लिए तैयार हंसी रोक ली. मनमयूर नाच उठा. मन में दर्द में आह और बैडरैस्ट सोच कर वाह एकएक निकल रही थीं. मेरे पति विजय ने बैडरैस्ट सुन कर मुझे देखा तो मैं ने फौरन अपना चेहरा गंभीर कर लिया.

आप ने यह तो सुना ही होगा न कि हर औरत के अंदर एक अभिनेत्री होती है. विजय के मुंह से बैडरैस्ट सुन कर आह ही निकली थी. डाक्टर के सारे निर्देश समझ कर विजय ने जाने के लिए उठते हुए मुझे हाथ का सहारा दे कर उठाया. मेरे मुंह से एक कराह निकल ही गई.

‘‘बहुत ध्यान से जया… 10 दिन की बैडरैस्ट है,’’ मुझसे कह डाक्टर अमित ने मेरे दवा के परचे पर भी बड़ेबड़े अक्षरों में सीबीआर यानी कंप्लीट बैडरैस्ट लिख दिया.

डाक्टर अमित को हम काफी सालों से जानते हैं पर सच कहती हूं 60 साल के डाक्टर अमित आज तक मुझे इतने अच्छे नहीं लगे थे जितने आज लगे. अचानक मुझे अपनी कल्पना में डाक्टर अमित एक सुपरमैन की तरह लगे जो घर के कामों में पिसती औरत को कुछ दिन आराम करवाने आए हों. उन का मन ही मन शुक्रिया करते हुए मैं मन में खुद से कहने लगी कि जया, कर ले अब अपना सपना पूरा… कितने अरमान थे कभी बैडरैस्ट मिले… कम से कम कुछ दिन तो चैन से लेट कर टीवी देखेगी, किताबें पढ़ेगी. बस खाएगीपीएगी, नहाएगी फिर अच्छे से कपड़े पहन कर लेट जाएगी. फ्रैंड्स देखने आएंगी, गप्पें मारेंगे. बढि़या टाइम पास होगा. चलो, जया ऐंजौय योर बैडरैस्ट. जी ले अपनी जिंदगी. यह बैडरैस्ट डाक्टर रोजरोज नहीं बोलेगा. 40 साल में पहली बार बोला है. जया, जीभर कर इस बैडरैस्ट का 1-1 पल जी लेना.

मु?ो सोच में डूबे देख विजय ने कहा, ‘‘डौंट वरी जया. बस अब तुम घर चल कर आराम करना. हम सब मैनेज कर लेंगे.’’

मैं कुछ नहीं बोली. बहुत दर्द तो था ही.

विजय ने मु?ो ध्यान से कार की सीट पर बैठा

कर सीटबैल्ट भी खुद ही बांध दी. मैं ने सोचा वाह, इतना ध्यान रखा जाएगा, बढि़या है पर प्रत्यक्षत: इतना ही कहा, ‘‘सम?ा नहीं आ रहा कैसे होगा…डाक्टर का क्या है. ?ाट से बैडरैस्ट बोल दिया.’’

‘‘चिंता क्यों करती हो? हम हैं न… बच्चों के साथ मिल कर मैं सब संभाल लूंगा.’’

विजय ने कार स्टार्ट की. स्पीड ब्रेकर्स, गड्ढों का ध्यान रखते हुए गाड़ी चला रहे थे ताकि ?ाटका आदि लगने पर मु?ो दर्द न हो. दरअसल, हुआ यह था कि मैं आज सुबह तेजी से सीढि़यां उतरते हुए सब्जी लेने जा रही थी कि मेरा पैर फिसल गया… मैं बड़ी मुश्किल से उठ पाई थी. टैस्ट्स और ऐक्सरे के बाद डाक्टर अमित ने कहा कि यह प्रो स्लिप डिस्क इंजरी है… बच गई तुम, जया नहीं तो मुश्किल हो जाती.

मेरा मूड हलका करने के लिए विजय ने कहा ‘‘क्यों दौड़तीभागती हो इतना जया? कितनी बार कहा कि घोड़े की तरह इधर से उधर मत भागती फिरा करो… तुम आराम से क्यों नहीं चलती, डियर?’’

‘‘इस का सारा क्रैडिट मेरे पापी मायके वालों को है, जिन्होंने सब से छोटी होने के

कारण मुझे हर काम बताते हुए यही कहा कि जया, जाओ भाग कर यह ले आओ, भाग कर

वह ले आओ. किसी ने कभी यह कहा ही नहीं कि जाओ जया आराम से ले आओ. तो जनाब, मु?ो तो हर काम भागभाग कर करने की ही

आदत है.’’

मेरी नाटकीयता के साथ कही इस बात पर विजय हंस पड़े. बोले, ‘‘वाह, दर्द में भी हंसना कोई तुम से सीखे.’’

अब मैं उन्हें यह तो नहीं बता सकती थी कि दर्द में मु?ो बस बैडरैस्ट दिख रही है… मेरा सपना पूरा होने जा रहा है.

घर पहुंचे तो बच्चे नीरुषा और तन्मय परेशान से हमारी ही राह देख रहे थे. दोनों ने सवालों की ?ाड़ी लगा दी. विजय ने मुझे बैड तक ले जा कर लिटाते हुए उन्हें सब बताया.

पहले तो बच्चों ने आह कह कर गंभीर प्रतिक्रिया दी, फिर अचानक दोनों

जोश से भर गए. नीरुषा ने कहा, ‘‘मम्मी, हम सब मिल कर आप का ध्यान रखेंगे, डौंट वरी…’’

तन्मय भी बोला, ‘‘हां, बस आप लेटेलेटे हमें बताते रहना कि क्या काम करना है.’’

मैं ने मन ही मन सोचा कि चलो अब शायद सचमुच आराम मिलेगा. कितने प्यारे बच्चे हैं… कितना प्यारा पति है. मु?ो बड़ा लाड़ सा आया तीनों पर. फिर कहा, ‘‘मेड से कुछ और काम भी कह दूंगी…थोड़ी हैल्प हो जाएगी.’’

विजय बोले, ‘‘मैं ने आज छुट्टी ले ली है.’’

तभी नीरुषा बोली, ‘‘कल मैं कालेज नहीं जाऊंगी.’’

तन्मय भी कहां पीछे रहता. बोला ‘‘नहीं दीदी, आप चली जाना, मैं स्कूल नहीं जाऊंगा.’’

‘‘नहीं, मेरा कालेज जाना जरूरी नहीं, तुम स्कूल जाना.’’

तन्मय का मुंह उतर गया तो मु?ो हमेशा की तरह फ्रंट पर आना पड़ा, ‘‘ऐसा करो कि तीनों बारीबारी से 1-1 दिन रह लेना… तब तक तो मु?ो आराम हो ही जाएगा. चलो, आज तुम दोनों जाओ… आज तो विजय हैं.’’

दोनों बेमन से जाने के लिए उठ गए. विजय ने औफिस के 2-4 फोन निबटाए.

फिर मैं ने कहा, ‘‘सुनो, मैं ने नाश्ता तो बना ही दिया था. चलो, सब नाश्ता कर लेते हैं. बस मेरे लिए 1 कप चाय बना दो प्लीज.’’

विजय का चेहरा उतर गया, ‘‘चाय?’’

‘‘हां.’’

घर में सिर्फ मु?ो ही चाय पीने की आदत है. ज्यादा नहीं. 1 कप सुबह उठ

कर, 1 नाश्ते के साथ और 1 शाम को.

इस से ज्यादा एक बार भी नहीं. बच्चे तैयार हो रहे थे. मेड सुबह का काम कर के जा चुकी थी.

विजय ने किचन से वापस आ कर पूछा, ‘‘जया, मंजू चाय का बरतन कहां

रख गई?’’

‘‘टोकरे में रखे धुले बरतनों में होगा.’’

‘‘मतलब टोकरे में ढूंढूं?’’

थोड़ी देर में टोकरे के बरतनों की आवाज से लगा कि चाय का बरतन नहीं, पूरे टोकरे के बरतन एकसाथ नीचे गिर गए हैं. मैं ने आज नाश्ते में पोहा बनाया था. बस बना कर ही ताजा सब्जी लेने उतर रही थी जब यह हादसा हुआ. बच्चे तैयार हो कर अपना और मेरा नाश्ता ले कर मेरे पास ही आ गए, ‘‘मम्मी, आप भी खा लो. दवा लेनी होगी.’’

‘‘विजय चाय ला रहे हैं… तुम लोग शुरू करो… मैं खाती हूं.’’

विजय ?ोंपते हुए बड़ी देर बाद आधा कप चाय ले कर आए तो मैं ने पूछा, ‘‘अरे, इतनी कम बनाई?’’

‘‘नहीं, वह छानते हुए गिर गई.’’

बच्चे जोर से हंस पड़े. मैं ने भी हंसते हुए कहा, ‘‘हंसो मत, तुम लोगों का भी नंबर आने वाला है.’’

विजय ने प्यारे, मीठे स्वर में कहा, ‘‘पी कर बताओ. जया कैसी बनी है? सालों बाद बनाई है.’’

मैं ने पहला घूंट भरा. तीनों एकटक मेरा चेहरा देख रहे थे. मैं ने जानबू?ा कर गंभीरता से कहा, ‘‘तुम से यह उम्मीद नहीं थी, विजय.’’

‘‘क्या हुआ… पीने लायक नहीं है?’’

‘‘अरे, अच्छी बनी है.’’

अब तीनों एकसाथ हंस पड़े. विजय ने बच्चों को गर्व से देखा. मैं कहतीकहती रुक गई कि विजय प्लीज, चाय वापस ले जाओ. मैं कल से चाय पीने की अपनी गंदी आदत छोड़ दूंगी पर कह नहीं पाई. तब ऐसा तो कुछ भी नहीं लगा कि महबूब के हाथ से जहर भी अमृत लग रहा है और उस की आंखों में देखते हुए सब पी गए. जी नहीं, ऐसा कुछ नहीं हुआ. चाय खराब थी पर पोहे के साथ गटक ली. विजय सब काम कर सकते हैं पर किचन में जरा अनाड़ी हैं, छोड़ो आज ?ाठ नहीं बोलूंगी… जरा नहीं पूरे अनाड़ी हैं और मजेदार बात यह है कि उन्हें लगता है कि उन्हें किचन के काम आते हैं. जनाब की इस गलतफहमी को मैं कभी दूर नहीं कर पाई.

बच्चे चले गए तो विजय ने कहा, ‘‘अब तुम आराम करो.’’

मैं सुहाने सपनों में खोई लेटी थी.

10 दिन रैस्ट… डिलिवरी के समय ही कुछ दिन लेटी थी. उस के बाद तो रैस्ट शब्द याद ही नहीं आया आज तक. खैर, मन ही मन काफी कुछ सोचने के बाद मैं ने व्हाट्सऐप पर अपनी 3 खास सहेलियों गीता, नीरा और संजू को बैडरैस्ट की न्यूज दे दी. हम चारों को व्हाट्सऐप पर गु्रप है. तीनों के ज्ञान, जोक्स शुरू हो गए.

 

तभी विजय आए, ‘‘जया, फोन रख कर आराम कर लो,’’ और फिर मेरी

बगल में ही लेट गए. थोड़ी देर हम आम बातें करते रहे. फिर अचानक उन के खर्राटे शुरू हो गए. लो हो गया आराम… मैं ने अपना साइड में रखा नौवेल उठा लिया. ‘इस टाइम सोने की आदत तो है नहीं. चलो नौवेल ही पढ़ लूं,’ सोच मैं हिली तो मेरे शरीर में तेज दर्द की लहर दौड़ गई.

एक कराह सी निकली तो विजय की नींद खुल गई. मु?ो देख बोले, ‘‘उठना मत. कुछ चाहिए तो मु?ो बताना,’’ कह कर करवट बदल कर फिर सो गए.

मु?ो बस वाशरूम जाने की परमिशन थी. मैं रोज 1 बजे लंच करती हूं. मेरा टाइम तय है. 1 बजा तो मु?ो भूख लगने लगी. विजय सो रहे थे. डेढ़ बजे तक मैं ने वेट किया, फिर आवाज दे दी, ‘‘विजय, लंच कर लें?’’

ऊंघती हुई आवाज आई, ‘‘अभी तो खाया था?’’

‘‘भूख लगी है, विजय,’’ मु?ो अपने स्वर में अतिरिक्त गंभीरता का पुट देना पड़ा. जानती हूं इस का असर.

विजय तुंरत उठ गए, ‘‘क्या लाऊं?’’

‘‘तुम लोगों के टिफिन के लिए जो खाना बनाया था, वही रखा है, ले आओ.’’

कुछ ही पलों बाद वे फिर आए, ‘‘खाना गरम करना है?’’

आदतन मु?ो मस्ती सू?ा, ‘‘रोज तो गरम कर के खाती हूं, आज तुम्हारी मरजी है जैसा दोगे खा लूंगी.’’

विजय हंस दिए, ‘‘इतनी बेचारी बन कर मत दिखाओ. गरम कर के ला रहा हूं.’’

विजय मेरा और अपना खाना ले आए. खाना हम ने अच्छे मूड में हंसतेबोलते खाया. मेरा खाना खत्म हुआ तो मैं प्लेट रखने व हाथ धोने के लिए उठने लगी.

तब विजय ने उठने नहीं दिया. बोले, ‘‘मैं तुम्हारे हाथ यहीं धुलवा दूंगा.’’

‘‘नहीं, इतना तो उठूंगी,’’ कह कदम आगे बढ़ाने पर कमर में दर्द की लहर दौड़ गई पर जरा हिम्मत कर के किचन तक चली ही गई. किचन में आने न देने का कारण भी फौरन स्पष्ट हो गया. विजय खिसियाए से मु?ो देख रहे थे. सुबह से दोपहर तक ही किचन की काफी दयनीय स्थिति हो चुकी थी. सुबह टोकरे में जो चाय का बरतन ढूंढ़ा गया था तो बाकी के सारे बरतन किचन में बिखरे अपनी दर्दनाक कहानी सुना रहे थे.

मैं जड़ सी खड़ी रही तो विजय ने मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘जया, खड़ी मत रहो. दर्द होगा. तुम चलो, मैं सब समेट कर आता हूं.’’

मैं चुपचाप लेट गई. किचन तक आनेजाने में काफी दर्र्द हुआ था. विजय ने मु?ो दोपहर की दवाई दी. थोड़ी देर बाद मेरी आंख लग गई. मैं गहरी नींद सोई. विजय के खर्राटों से ही फिर 4 बजे आंख खुली. रोज की तरह चाय पीने का मन हुआ, पर विजय के हाथ की चाय पीने की हिम्मत नहीं थी. संजू मेरी बराबर की बिल्डिंग में रहती है. मैं ने उसे मैसेज डाला, ‘‘आ जाओ, चाय पीनी है, बना कर दो.’’

उस ने खुशी से रोने वाली इमोजी भेजी. पूछा, ‘‘विजय से नहीं बनवाओगी?’’

मैं ने भी सिर पर हाथ मारने वाली इमोजी भेज दी, थोड़ी मस्ती में चैट की, फिर संजू आ गई. चाय उसी ने बनाई तो विजय ने भी चैन की सांस ली.

संजू ने कहा, ‘‘डिनर मैं बना लाऊंगी.’’

मैं ने कहा, ‘‘हां, बना लाना आज. कल से अंजू को बोल दूंगी… दोनों टाइम का बना लाएगी.’’

तभी नीरा और गीता भी आ गईं. गीता ही फिर थोड़ी देर बाद सब के

लिए चाय बना लाई. मेरे दर्द की बात होती रही. दर्द तो था ही, फिर मैं शरारत से इठलाते हुए बोली, ‘‘मैं तो अभी बैडरैस्ट करूंगी, तुम लोग आती रहना.’’

गीता ने घुड़का, ‘‘ज्यादा उड़ो मत. हमारा भी टाइम आएगा… कभी तो हम भी बैडरैस्ट करेंगे.’’

नीरा ने भी कहा, ‘‘हां, बिलकुल.

ऐसा थोड़े ही है कि हम कभी बैडरैस्ट नहीं करेंगे. चिढ़ाओ मत हमें, सब का टाइम आता है.’’

हम सब जी भर कर हंसे. गीता मस्ती मैं बोली, ‘‘यार, जरा टिप्स दो, कैसे गिरना है कि ज्यादा बुरा हाल भी न हो और बैडरैस्ट भी हो जाए.’’

हम मस्ती कर ही रहे थे कि बच्चे भी आ गए. सब से मिल कर, थोड़ी देर बैठ कर फिर फ्रैश होने चले गए.

डिनर संजू ले आई थी. सब ने खाया तो मु?ो याद आया, ‘‘अरे, कोई मशीन चला दो. कपड़े धोते हैं…’’

तीनों ने एकदूसरे का मुंह देखा. विजय ने कहा, ‘‘अब तो थक गए, कोई इमरजैंसी तो है नहीं, कल धो लेंगे.’’

मैं ने मन में कहा कि थक गए? सोसो कर? मैं बस वाशरूम जाने के लिए ही किसी न किसी का सहारा ले कर उठी थी. मैं ने सचमुच आराम किया था. मु?ो अच्छा लग रहा था.

अगले दिन नीरुषा ने मु?ा से कहा, ‘‘मम्मी, पापा को औफिस भेज दो न. मेरा मन कर रहा है आप के पास रुक कर आप का खयाल रखने का.’’

नीरुषा ने मु?ा से लिपट कर यह बात ऐसे कही कि मना करने का सवाल ही नहीं उठता था. मैं ने सोचा, विजय दिनभर आराम ही तो करेंगे… बेटी का मन है तो वही रह लेगी. अत: मैं ने हामी भर दी. फिर कहा, ‘‘चलो, अब चाय पिला दो.’’

‘‘पापा नहीं बनाएंगे?’’

मैं ने जल्दी से कहा कि ‘‘थक गए? सोसो कर?’’

उसे हंसी आ गई. बोली, ‘‘सम?ा गई… बनाती हूं.’’

विजय और तन्मय चले गए. अंजू ने सफाई के साथसाथ खाने का काम भी कर दिया. नीरुषा मेरे पास ही लेट कर अपने फोन में व्यस्त रही. बीचबीच में कुछ बात कर लेती. पूरा दिन नीरुषा ने अच्छा रिलैक्स कर के बिताया. खूब सोई, गाने सुने. मैं ने उसे जब भी कोई काम कहा वह मु?ा से लिपट गई, ‘‘मम्मी, आप के पास ही लेटने का मन है. काम तो हो ही जाएगा.’’

दिनभर धोबी, कूरियर वाले किसी ने भी डोरबैल बजाई तो नीरुषा ?ां?ालाई, ‘‘उफ, मम्मी दिनभर कितनी घंटियां बजती हैं. कोई आराम से लेट भी नहीं सकता.’’

शाम को उसे चाय के लिए उठाया तो नींद में बोली, ‘‘मम्मी, चाय क्यों पीती हो? अच्छी चीज नहीं है?’’

मु?ो हंसी आ गई, ‘‘अच्छा, आज याद आया? चलो, उठो बना लो.’’

शाम को 2-3 पड़ोसिनें देखने आ गईं.

अंजू उन के घर भी काम करती थी, तो पता चलना ही था.

रात को तन्मय शुरू हो गया, ‘‘कल मैं मम्मी के पास रहूंगा…’’

विजय और नीरुषा ने मना किया तो उस का मुंह लटक गया. मैं ने हां में सिर हिलाया तो प्यार से मु?ा से लिपट गया.

अगले दिन 11 बजे उस ने मु?ा से पूछा, ‘‘मम्मी, आप को अभी मु?ा से कोई काम तो

नहीं है?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘कुछ चाहिए?’’

‘‘नहीं, बेटा.’’

‘‘मम्मी, थोड़ी देर खेल आऊं?’’

‘‘जाओ.’’

‘‘प्यारी मम्मी,’’ कह तन्मय ने अपनी बांहें मेरे गले में डाल दीं, ‘‘मम्मी, आप के लंच तक आ जाऊंगा. आप उठना नहीं. बाय, लव यू,’’ कह कर तन्मय यह जा, वह जा.

मुझे पता है कि खेलने का दीवाना तन्मय घर रह कर  यह मौका कैसे छोड़ देता. बाहर

बच्चों के खेलने की आवाजें मु?ो भी आ रही थीं तो भला तन्मय ने क्यों न सुनी होंगी. 1 बजे वह आ गया. तब तक मैं अपना नौवेल पढ़ रही थी. फोन पर भी थी, अच्छा टाइम पास हो रहा था. हम दोनों ने खाना खाया. तन्मय सो गया. मैं ने भी थोड़ी देर ?ापकी ली. दर्द में थोड़ा आराम लग रहा था. उठ कर नहाने में भी किसी का सहारा नहीं लेना पड़ा. अब मेरा मन उठ कर चलनेफिरने का होने लगा. 4 बजे सोचा, चाय आज खुद ही बना लेती हूं.

उठी तो दर्द तो हुआ पर धीरेधीरे कदम रखते हुए चल कर आदतन बच्चों के कमरे में नजर डाली. देखते ही चक्कर आ गया. पूरा कमरा अस्तव्यस्त, हर जगह सामान बिखरा. बहुत गुस्सा आया.

किचन में गई तो वहां भी हाल खराब. अंजू भी अपने हिसाब से बस निबटा ही गई थी. गैस चूल्हा गंदा, फ्रिज पर गंदे हाथों के निशान, बरतन कहीं के कहीं. वाशप्लैश पर नजर डाली. धुलने वाले कपड़ों का अंबार. उफ, बहुत काम इकट्ठा हो गया. मैं बु?ो मन से धीरेधीरे चलती हुई अपनी चाय ले कर लिविंगरूम में सोफे पर बैठ गई. अंजू ने डस्टिंग की ही नहीं थी. हर जगह धूल. 2 दिन के पेपर सोफे पर ही थे. सफाईपसंद विजय को ये सब कैसे नहीं दिखाई दिया, हैरानी हुई. पैर ज्यादा देर लटकाने नहीं थे. मैं फिर ठंडी सांस ले कर बैड पर आ कर लेट गई.

तभी गीता का फोन आ गया, ‘‘कैसी चल रही है बैडरैस्ट?’’

मैं ने कहा, ‘‘चुप हो जाओ. अभीअभी पूरे घर की हालत देख कर लेटी हूं.’’

गीता हंस पड़ी, ‘‘क्यों, क्या हुआ?’’

‘‘आ कर देख लो.’’

‘‘तुम्हें आराम मिल रहा है न? बस ऐंजौय करो.’’

‘‘मु?ो अब डर लग रहा है कि ठीक हो जाने के बाद यह बैडरैस्ट मु?ो बहुत महंगी पड़ने वाली है.’’

‘‘हाहा, बड़ी आई थी हमें चिढ़ाने वाली?’’

रात को सब साथ बैठे तो मैं ने कहा, ‘‘तुम लोग प्लीज घर ठीक कर लो… सारा सामान बिखरा है… बच्चो, अपनाअपना कमरा ठीक कर लो… विजय प्लीज लिविंगरूम संवार लो.’’

‘‘अरे, तुम इतना क्यों उठीं? तुम्हें अभी बैडरैस्ट करनी है.’’

‘‘अच्छा ही हुआ कि उठी. सम?ा आया कि बैडरैस्ट महंगी पड़ेगी… ठीक होने पर 4 गुना काम करना पड़ेगा.’’

तीनों ?ोंप गए. बच्चों ने मासूम शक्ल बना कर कहा, ‘‘आप को यह अच्छा नहीं लगा कि हम छुट्टी ले कर आप के पास रहें? फाम का क्या है मम्मी, आप ठीक हो कर कर ही लोगी. आप के लिए काम इंपौर्टैंट है या हमारी कंपनी?’’

मैं निरुत्तर हो गई. कह नहीं पाई कि भाई, काम कर दो कुछ पहले. कंपनी मिलती रहेगी… कोई भागा नहीं जा रहा है… यह जो हर जगह सामान फैला है… मेरे ठीक होने का इंतजार हो रहा है. डांटना, उलाहने देना मेरे स्वभाव में नहीं. सो बस अब लेटेलेटे अपने तथाकथित ध्यान रखने वालों की हरकतें नोट कर रही थी.

सोच रही थी कि इन लोगों के हिसाब से तो सबकुछ टाला जा सकता है… मशीन चलाने की कोई जल्दी नहीं क्योंकि अभी तो काम चल ही रहा है, बहुत कपड़े हैं… जो एक टाइम भी दाल खा कर खुश नहीं होते वे सुबहशाम दाल खा रहे हैं क्योंकि सब्जी लेने भी जाना पड़ेगा… जो नीरुषा दही के बिना खाना नहीं खाती, अब दही जमाना याद दिलाने पर कहती है कि मम्मी जरूरत नहीं है. दही के बिना भी खाना ठीक लग रहा है. फ्रूट्स लाने को कहा तो उसे फोन कर दिया गया.

एक दिन बहुत कहने पर नीरुषा ने वाशिंग मशीन चला ही दी. फ्लैट की सीमित जगह में इतने कपड़े कहां, कैसे सुखाने हैं, इस पर जबरदस्त विचारविमर्श हुआ, जिसे मैं ने चुपचाप आंखें बंद कर अपनी हंसी रोक कर सुना. अंजू को तो यह दिन बड़ी मुश्किल से मिला. रोज मु?ा से मेरी तबीयत पूछती और पहले से भी ज्यादा फुरती से काम निबटा कर भागती. पति और बच्चों को तो टोका जा सकता पर मेड के आगे तो अच्छोंअच्छों की बोलती बंद रहती है कि कहीं कुछ कह दिया तो भाग न जाए. मेड से तो हम लोग इतने प्यार से बोलते हैं कि इतना पति और बच्चों से बोल लें तो बेचारे निहाल हो जाएं.

मु?ो जरा बेहतर लगा तो मैं ने कहा, ‘‘अब तुम सब जाओ, मैं मैनेज कर लूंगी. काफी आराम कर लिया.’’

अब मु?ो लेटेलेटे चैन भी नहीं आ रहा था. मैं ने सब को छुट्टी दी. तीनों आश्वस्त हो कर चले गए तो मैं ने थोड़ाथोड़ा धीरेधीरे काम संभालना शुरू किया. 3 बजे गीता आई तो मैं तीसरी बार मशीन के कपड़े निकाल कर सुखा रही थी. उस ने फौरन नीरा और संजू को भी बुला लिया. तीनों इकट्ठा हुईं तो पूरे घर पर एक नजर डाली. तीनों हंसने लगीं. मैं ने इन दिनों उन्हें इस बात पर खूब चिढ़ाया था कि तुम लोग बस मूर्ख औरतों की तरहकाम करती रहो… मैं तो बैडरैस्ट पर हूं. देखो मु?ो… आजकल तो मेरा स्टेटस भी यही था, बैडरैस्ट.

मैं ने धीरेधीरे चलते हुए कहा, ‘‘यार, अगर पता होता कि बैडरैस्ट के बाद दोगुनी मेहनत

करनी पड़ेगी तो बैडरैस्ट पर कभी खुशियां न मनाई होतीं.’’

नीरा जोर से हंसी, ‘‘क्यों, आराम नहीं मिला? कितनी अच्छी सेवा हो रही थी है न?’’

‘‘छुट्टी ले ले कर सब ने बस आराम ही किया, काम सुनते ही कहते थे कि अरे, हो जाएगा. तुम बस आराम करो.’’

मेरे नाटकीय ढंग से बताने पर सब हंसने लगीं.

संजू बोली, ‘‘मेरी आंखों के आगे तो इस का पहले दिन का चेहरा आ रहा है जब बैडरैस्ट बताते हुए मुंह अनोखी चमक से चमक उठा था मैडम का. जया मैडम, हमारा पति है, बच्चे हैं, भरीपूरी गृहस्थी है, एकल परिवार है और सब से बड़ी बात हम औरतें हैं, बैडरैस्ट हमारे लिए कोई खुशी की बात नहीं हो सकती… ठीक होने पर डबल काम करने पड़ते हैं.’’

मैं ने हंसते हुए कहा, ‘‘हां, इसीलिए सब को भेज दिया… काम कोई कर नहीं रहा था… जब खुद ही करना है तो इन लोगों को घर में क्या रखना.’’

मेरी लास्ट लाइन पर सब जोर से हंस पड़ीं. सब बातें करते हुए मेरा हाथ भी बंटा रही थीं. घर गया तो नीरा सब के लिए चाय बना लाई. गीता ने कहा, ‘‘चलो, यह तय हुआ कि अब बैडरैस्ट की तमन्ना नहीं करेंगे.’’

हम सब ने हंसते हुए हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘हां, नहीं चाहिए बैडरैस्ट.’’

किस्सा डाइटिंग का: क्या अपना वजन कम कर पाए गुप्ताजी

एक दिन सुबहसुबह पत्नी ने मुझ से कहा, ‘‘आप ने अपने को शीशे में  देखा है. गुप्ताजी को देखो, आप से 5 साल बड़े हैं पर कितने हैंडसम लगते हैं और लगता है जैसे आप से 5 साल छोटे हैं. जरा शरीर पर ध्यान दो. कचौरी खाते हो तो ऐसा लगता है कि बड़ी कचौरी छोटी कचौरी को खा रही है. पेट की गोलाई देख कर तो गेंद भी शरमा जाए.’’

मैं आश्चर्यचकित रह गया. यह क्या, मैं तो अपने को शाहरुख खान का अवतार समझता था. मैं ने शीशे में ध्यान से खुद को देखा, तो वाकई वे सही कह रही थीं. यह मुझे क्या हो गया है. ऐसा तो मैं कभी नहीं था. अब क्या किया जाए? सभी मिल कर बैठे तो बातें शुरू हुईं. बेटे ने कहा, ‘‘पापा, आप को बहुत तपस्या करनी पड़ेगी.’’

फिर क्या था. बेटी भी आ गई, ‘‘हां पापा, मैं आप के लिए डाइटिंग चार्ट बना दूं. बस, आप तो वही करते जाओ जोजो मैं कहूं, फिर आप एकदम स्मार्ट लगने लगेंगे.’’

मैं क्या करता. स्मार्ट बनने की इच्छा के चलते मैं ने उन की सारी बातें मंजूर कर लीं पर फिर मुझे लगा कि डाइटिंग तो कल से शुरू करनी है तो आज क्यों न अंतिम बार आलू के परांठे खा लिए जाएं. मैं ने कहा कि थोड़ी सी टमाटर की चटनी भी बना लेते हैं. पत्नी ने इस प्रस्ताव को वैसे ही स्वीकार कर लिया जैसे कि फांसी पर चढ़ने वाले की अंतिम इच्छा को स्वीकार करते हैं.

मैं ने भरपेट परांठे खाए. उठने ही वाला था कि बेटी पीछे पड़ गई, ‘‘पापा, एक तो और ले लो.’’

पत्नी ने भी दया भरी दृष्टि मेरी ओर दौड़ाई, ‘‘कोई बात नहीं, ले लो. फिर पता नहीं कब खाने को मिलें.’’

आमतौर पर खाने के मामले में इतना अपमान हो तो मैं कदापि नहीं खा सकता था पर मैं परांठों के प्रति इमोशनल था कि बेचारे न जाने फिर कब खाने को मिलें.

रात को सो गया. सुबह अलार्म बजा. मैं ने पत्नी को आवाज दी तो वे बोलीं, ‘‘घूमने मुझे नहीं, आप को जाना है.’’

मैं मरे मन से उठा. रात को प्रोग्राम बनाते समय सुबह 5 बजे उठना जितना आसान लग रहा था अब उतना ही मुश्किल लग रहा था. उठा ही नहीं जा रहा था.

जैसेतैसे उठ कर बाहर आ गया. ठंडीठंडी हवा चल रही थी. हालांकि आंखें मुश्किल से खुल रही थीं पर धीरेधीरे सब अच्छा लगने लगा. लगा कि वाकई न घूम कर कितनी बड़ी गलती कर रहा था. लौट कर मैं ने घर के सभी सदस्यों को लंबा- चौड़ा लैक्चर दे डाला. और तो और अगले कुछ दिनों तक मुझे जो भी मिला उसे मैं ने सुबह उठ कर घूमने के फायदे गिनाए. सभी लोग मेरी प्रशंसा करने लगे.

पर सब से खास परीक्षा की घड़ी मेरे सामने तब आई जब लंच में मेरे सामने थाली आई. मेरी थाली की शोभा दलिया बढ़ा रहा था जबकि बेटे की थाली में मसालेदार आलू के परांठे शोभा बढ़ा रहे थे. चूंकि वह सामने ही खाना खा रहा था इसलिए उस की महक रहरह कर मेरे मन को विचलित कर रही थी.

मरता क्या न करता, चुपचाप मैं जैसेतैसे दलिए को अंदर निगलता रहा और वे सभी निर्विकार भाव से मेरे सामने आलू के परांठों का भक्षण कर रहे थे, पर आज उन्हें मेरी हालत पर तनिक भी दया नहीं आ रही थी.

खाने के बाद जब मैं उठा तो मुझे लग ही नहीं रहा था कि मैं ने कुछ खाया है. क्या करूं, भविष्य में अपने शारीरिक सौंदर्य की कल्पना कर के मैं जैसेतैसे मन को बहलाता रहा.

डाइटिंग करना भी एक बला है, यह मैं ने अब जाना था. शाम को जब चाय के साथ मैं ने नमकीन का डब्बा अपनी ओर खिसकाया तो पत्नी ने उसे वापस खींच लिया.

‘‘नहीं, पापा, यह आप के लिए नहीं है,’’ यह कहते हुए बेटे ने उसे अपने कब्जे में ले लिया और खोल कर बड़े मजे से खाने लगा. मैं क्या करता, खून का घूंट पी कर रह गया.

शाम को फिर वही हाल. थाली में खाना कम और सलाद ज्यादा भरा हुआ था. जैसेतैसे घासपत्तियों को गले के नीचे उतारा और सोने चल दिया. पर पत्नी ने टोक दिया, ‘‘अरे, कहां जा रहे हो. अभी तो तुम्हें सिटी गार्डन तक घूमने जाना है.’’

मुझे लगा, मानो किसी ने पहाड़ से धक्का दे दिया हो. सिटी गार्डन मेरे घर से 2 किलोमीटर दूर है. यानी कि कुल मिला कर आनाजाना 4 किलोमीटर. जैसेतैसे बाहर निकला तो ठंडी हवा बदन में चुभने लगी. आंखों में आंसू भले नहीं उतरे, मन तो दहाड़ें मार कर रो रहा था. मैं जब बाहर निकल रहा था तो बच्चे रजाई में बैठे टीवी देख रहे थे. बाहर सड़क पर भी दूरदूर तक कोई नहीं था पर क्या करता, स्मार्ट जो बनना था, सो कुछ न कुछ तो करना ही था.

फिर यही दिनचर्या चलने लगी. एक ओर खूब जम कर मेहनत और दूसरी ओर खाने को सिर्फ घासफूस. अपनी हालत देख कर मन बहुत रोता था. लोग बिस्तर में दुबके रहते और मैं घूमने निकलता था. लोग अच्छेअच्छे पकवान खाते और मैं वही बेकार सा खाना.

तभी एक दिन मैं ने सुबह 9 बजे अपने एक मित्र को फोन किया. मुझे यह जान कर आश्चर्य हुआ कि वह अभी तक सो कर ही नहीं उठा था जबकि उस ने मुझे घूमने के मामले में बहुत ज्ञान दिया था. करीब 10 बजे मैं ने दोबारा फोन किया. तो भी जनाब बिस्तर में ही थे. मैं ने व्यंग्य से पूछा, ‘‘क्यों भई, तुम तो घूमने के बारे में इतना सारा ज्ञान दे रहे थे. सुबह 10 बजे तक सोना, यह सब क्या है.’’

मित्र हंसने लगा, ‘‘अरे भई, आज संडे है. सप्ताह में एक दिन छुट्टी, इस दिन सिर्फ आराम का काम है.’’

मुझे लगा, यही सही रास्ता है. मैं ने फौरन एक दिन के साप्ताहिक अवकाश की घोषणा कर दी और फौरन दूसरे ही दिन उसे ले भी लिया. देर से सो कर उठना कितना अच्छा लगता है और वह भी इतने संघर्ष के बाद. उस दिन मैं बहुत खुश रहा. पर बकरे की मां कब तक खैर मनाती, दूसरे दिन तो घूमने जाना ही था.

तभी बीच में एक दिन एक रिश्तेदार की शादी आ गई. खाना भी वहीं था. पहले यह तय हुआ था कि मेरे लिए कुछ हल्काफुल्का खाना बना लिया जाएगा पर जब जाने का समय आया तो पत्नी ने फैसला सुनाया कि वहीं पर कुछ हल्का- फुल्का खाना खा लेंगे. बस, मिठाइयों पर थोड़ा अंकुश रखें तो कोई परेशानी थोड़े ही है.

उन के इस निर्णय से मन को बहुत राहत पहुंची और मैं ने वहां केवल मिठाई चखी भर, पर चखने ही चखने में इतनी खा गया कि सामान्य रूप से कभी नहीं खाता था. उस रात को मुझे बहुत अच्छी नींद आई थी क्योंकि मैं ने बहुत दिनों बाद अच्छा खाना खाया था लेकिन नींद भी कहां अपनी किस्मत में थी. सुबह- सुबह कम्बख्त अलार्म ने मुझे फिर घूमने के लिए जगा दिया. जैसेतैसे उठा और घूमने चल दिया.

मेरी बड़ी मुसीबत हो गई थी. जो चीजें मुझे अच्छी नहीं लगती थीं वही करनी पड़ रही थीं. जैसेतैसे निबट कर आफिस पहुंचा. पर यहां भी किसी काम में मन नहीं लग रहा था. सोचा, कैंटीन जा कर एक चाय पी लूं. आजकल घर पर ज्यादा चाय पीने को नहीं मिलती थी. चूंकि अभी लंच का समय नहीं था इसलिए कैंटीन में ज्यादा भीड़ नहीं थी पर मैं ने वहां शर्मा को देखा. वह मेरे सैक्शन में काम करता था और वहां बैठ कर आलूबड़े खा रहा था. मुझे देख कर खिसिया गया. बोला, ‘‘अरे, वह क्या है कि आजकल मैं डाइटिंग पर चल रहा हूं. अब कभीकभी अच्छा खाने को मन तो करता ही है. अब इस जबान का क्या करूं. इसे तो चटपटा खाने की आदत पड़ी है पर यह सब कभीकभी ही खाता हूं. सिर्फ मुंह का स्वाद चेंज करने के लिए…मेरा तो बहुत कंट्रोल है,’’ कह कर शर्मा चला गया पर मुझे नई दिशा दे गया. मेरी तो बाछें खिल गईं. मैं ने फौरन आलूबड़े और समोसे मंगाए और बड़े मजे से खाए.

उस दिन के बाद मैं प्राय: वहां जा कर अपना जायका चेंज करने लगा. हां, एक बात और, डाइटिंग का एक और पीडि़त शर्मा, जोकि अपने कंट्रोल की प्रशंसा कर रहा था, वह वहां अकसर बैठाबैठा कुछ न कुछ खाता रहता था. शुरूशुरू में वह मुझ से शरमाया भी पर फिर बाद में हम लोग मिलजुल कर खाने लगे.

बस, यह सिलसिला ऐसे ही चलने लगा. इधर तो पत्नी मुझ से मेहनत करवा रही थी और दूसरी ओर आफिस जाते ही कैंटीन मुझे पुकारने लगती थी. मैं और मेरी कमजोरी एकदूसरे पर कुरबान हुए जा रहे थे. पत्नी ध्यान से मुझे ऊपर से नीचे तक देखती और सोच में पड़ जाती.

फिर 2 महीने बाद वह दिन भी आया जहां से मेरा जीवन ही बदल गया. हुआ यों कि हम सब लोग परिवार सहित फिल्म देखने गए. वहां पत्नी की निगाह वजन तौलने वाली मशीन पर पड़ी. 2-2 मशीनें लगी हुई थीं. फौरन मुझे वजन तौलने वाली मशीन पर ले जाया गया. मैं भी मन ही मन प्रसन्न था. इतनी मेहनत जो कर रहा था. सुबहसुबह उठना, घूमनाफिरना, दलिया, अंकुरित नाश्ता और न जाने क्याक्या.

मैं शायद इतने गुमान से शादी में घोड़ी पर भी नहीं चढ़ा होऊंगा. सभी लोग मुझे घेर कर खड़े हो गए. मशीन शुरू हो गई. 2 महीने पहले मेरा वजन 80 किलो था. तभी मशीन से टिकट निकला. सभी लोग लपके. टिकट मेरी पत्नी ने उठाया. उस का चेहरा फीका पड़ गया.

‘‘क्या बात है भई, क्या ज्यादा कमजोर हो गया? कोई बात नहीं, सब ठीक हो जाएगा,’’ मैं ने पत्नी को सांत्वना दी.

पर यह क्या, पत्नी तो आगबबूला हो गई, ‘‘खाक दुबले हो गए. पूरे 5 किलो वजन बढ़ गया है. जाने क्या करते हैं.’’

मैं हक्काबक्का रह गया. यह क्या? इतनी मेहनत? मुझे कुछ समझ में नहीं आया. कहां कमी रह गई, बच्चों के तो मजे आ गए. उस दिन की फिल्म में जो कामेडी की कमी थी, वह उन्होंने मुझ पर टिप्पणी कर के पूरी की. दोनों बच्चे बहुत हंसे.

मैं ने भी बहुत सोचा और सोचने के बाद मुझे समझ में आया कि आजकल मैं कैंटीन ज्यादा ही जाने लगा था. शायद इतने समोसे, आलूबडे़, कचौरियां कभी नहीं खाईं. पर अब क्या हो सकता था. पिक्चर से घर लौटने के बाद रात को खाने का वक्त भी आया. मैं ने आवाज लगाई, ‘‘हां भई, जल्दी से मेरा दलिया ले आओ.’’

पत्नी ने खाने की थाली ला कर रख दी. उस में आलू के परांठे रखे हुए थे. ‘‘बहुत हो गया. हो गई बहुत डाइटिंग. जैसा सब खाएंगे वैसा ही खा लो. और थोड़े दिन डाइटिंग कर ली तो 100 किलो पार कर जाओगे.’’

मैं भला क्या कहता. अब जैसी पत्नीजी की इच्छा. चुपचाप आलू के परांठे खाने लगा. अब कोई नहीं चाहता कि मैं डाइटिंग करूं तो मेरा कौन सा मन करता है. मैं ने तो लाख कोशिश की पर दुबला हो ही नहीं पाया तो मैं भी क्या करूं. इसलिए मैं ने उन की इच्छाओं का सम्मान करते डाइटिंग को त्याग दिया.

आदिवासी हेयर औयल और इन्फ्लुएंसर्स की दौड़

क्या मेरा अकेला ऐसा मोबाइल है जिस पर हर कुछ टाइम बाद आदिवासी हेयर औयल का विज्ञापन चलने लगा है? डाबर और हिंदुस्तान लीवर के रेडियस से क्या इतने लोग बचे रह गए हैं कि तेल के स्टार्टअप धंधे में अभी भी पैसा कमाया जा सकता है? आखिर ऐसा क्या है आदिवासी हेयर औयल में कि देशभर के तमाम बड़ेछोटे इन्फ्लुएंसर्स, यहां तक कि फराह खान जैसी फिल्म डायरैक्टर भी इस का प्रचार करने में लगे हैं? क्या आदिवासी हेयर औयल सच में चमत्कारिक प्रोडक्ट है? यह तमाम वे सवाल हैं जो आजकल सोशल मीडिया यूज करने वालों के मन में चल रहे हैं.

आजकल उत्तर भारत का हर छोटाबड़ा इन्फ्लुएंसर आदिवासी हेयर औयल का प्रचार कर रहा है. यहां तक कि फिल्म से जुड़ी हस्तियां भी इस तेल का प्रचार कर रही हैं. इंस्टाग्राम, फेसबुक से ले कर यूट्यूब तक जिधर देखो उधर आदिवासी तेल खरीदने की चर्चाएं चल रही हैं और इस आयुर्वेदिक प्रोडक्ट को चमत्कारिक बताया जा रहा है. कई आम लोग भी इस औयल को सर्च कर रहे हैं और खरीद रहे हैं.

इन के अधिकतर विज्ञापन बेहद साधारण और मोबाइल से शूट किए गए लगते हैं. देख कर लगता है जो तेल बना रहे हैं उन में से ही कुछ एक्ट कर लेते हैं. इन में अकसर लंबे और घने जटाओं वाला एक शख्स जमीन पर रखी कई तरह की जड़ीबूटियों के साथ दिखाई देता है. वह दावे करता है कि इस में 108 प्रकार की जड़ीबूटियों का इस्तेमाल किया गया है और यह पूरी तरह से और्गेनिक है, जो कुछ महीनों में ही बालों की ग्रोथ और स्ट्रैंथ बढ़ाता है. हालांकि कई आयुर्वेदिक प्रोड्क्ट्स में पहले भी स्टेरौइड पाए जा चुके हैं तो जब तक इस तेल की बायोकैमिकल रिपोर्ट किसी विश्वसनीय एजेंसी से नहीं आ जाती संदेह जताया जा सकता है. दावे के अनुसार इसे लगाने से सफेद बाल जड़ से काले और बंजर टांट में हरियाली उग आती है.

आदिवासी हेयर औयल की वार सोशल मीडिया पर ज्यादा बड़ी इसलिए हो गई है कि मैसूर के हक्कीपक्की आदिवासी कम्युनिटी के कई उत्पादक एकसाथ उग आए हैं. इन के प्रोडक्ट की सिमिलेरिटी ऐसी है कि लगता है ये आसपास के लोग या रिश्तेदार हों, जिन का नुस्खा, प्रचार का तरीका और तेल की लेबलिंग एक सी होती है. ऐसा भी लगता है जैसे इन सब की मार्केटिंग ही अपने हेयर औयल को असली और दूसरे को नकली बता कर चल रही है ताकि सभी का बज बना रहे.

इन सब के विज्ञापन का पैटर्न एक सा है. इस में एक शख्स अपने घने बालों पर हाथ फेरता दिखाई देता है. अपने बालों को वह कभी खोल कर दिखाता है कभी बांधता है. बाल ऐसे कि गंजी टांट वालों को उसे देख कर रश्क हो जाए. वीडियो में पीछे एक पोस्टर टंगा रहता है जिस में कुछ जड़ीबूटियों के चित्र और 2-3 नंबर लिखे रहते हैं. उस के साथ 6-7 लोगों की एक छोटी टीम भी दिखाई पड़ती है जिस में 3-4 महिलाएं होती हैं. ये महिलाएं अपने घुटनों से नीचे आए सिर के बालों को दिखाती हैं. बालों को लहराती हैं और कैमरा एंगल बौटम से टौप की तरफ जाता है. इन का चेहरा कम ही दिखाई देता है. ये ज्यादातर कैमरे की तरफ पीठ कर खड़ी रहती हैं.

प्रधानमंत्री मोदी के बाद यदि सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स को कोई एकसाथ एक जगह ला पाया है तो वह आदिवासी हेयर औयल ही है. इस ने तमाम इन्फ्लुएंसर्स को अपने प्रचार में लगा दिया है. ठगेश, मिस्टर इंडियन हैकर्स, सौरभ जोशी, फुकरा इंसान, मलिक और उस की बीवियां, एल्विश यादव, आरजे नावेद जैसे कुछ बड़े नाम हैं जो इस का प्रचार करते दिखाई दिए हैं.

ये वे इन्फ्लुएंसर्स हैं जिन के सब्सक्राइबर्स नहीं होते बल्कि आर्मी होती है. मगर कई ऐसे ढेरों छोटे इन्फ्लुएंसर्स भी हैं जिन के फौलोअर्स 1 मिलियन से ज्यादा हैं. वे भी इस के लिए प्रचार कर रहे हैं. ये सारे लोग एक के बाद एक तेल के प्रचार के लिए मैसूर जा रहे हैं, जहां यह कम्युनिटी रहती है. इन्हें ट्रैवल अलाउंस, रहना, खानापीना और फौलोअर्स के अकोर्डिंग अच्छा पैकेज भी मिल रहा है. यानी अच्छाखासा पैसा हेयर औयल प्रचार में लगा रही है. अपनी वीडियो में ये इन्फ्लुएंसर्स हक्कीपिक्की कम्युनिटी का जिक्र करते हैं. रिषभ भिदुरी जैसे कुछ इन्फ्लुएंसर्स ने इन्हें ले कर पोडकास्ट तक किया है और इस कम्युनिटी को सब से पुरानी कम्युनिटी घोषित कर इन्हें महाराणा प्रताप के वंशज तक बता दिया है.

दरअसल, यह बात भी है कि बरसात के मौसम में अकसर हेयर ग्रोथ को ले कर कंपनियों के दावे वाले विज्ञापन चलते रहते हैं. नमी के चलते सब से ज्यादा इसी समय बाल ?ाड़ने और टूटने लगते हैं. इसी समय लोग अपने बालों को ले कर चिंता में रहते हैं. पिछले साल तक ट्राया खूब दिखाई देता था. हर दूसरे सोशल मीडिया फीड में इसी का एड चला करता था. आकाश बनर्जी, श्याम मीरा सिंह इस ने भी प्रचार के लिए इन्फ्लुएंसर्स का इस्तेमाल किया.

एक्टर राजकुमार राव, नीना गुप्ता और आयुष्मान खुराना जैसे बड़ेबड़े सैलिब्रिटीज आज भी इस का प्रचार करते हैं. लेकिन तमाम सोशल मीडिया रिव्यू के अनुसार हेयर ग्रोथ को ले कर जिस तरह के दावे किए गए उन में दम दिखाई नहीं दिया. ‘अंश ट्रांसफौर्मेशन’ नाम के एक यूट्यूबर ने इसी पर अपना रिव्यू सोशल मीडिया पर डाल दिया जिस ने बताया कि 9 महीने इस्तेमाल करने के बाद भी मामला जम नहीं पाया. हालांकि यह भी संभव है कि रिव्यू करने वाले खुद किसी और कंपनी से स्पौंसर्ड हों.

जहां तक तेल की बात है तो किसी भी सर्टिफाइड औयल को स्कैल्प पर रैगुलरली मसाज करने से बालों की रूट्स स्ट्रौंग होती हैं. इस से ब्लड सर्कुलेशन बढ़ता है. लेकिन इस के लिए कोई भी तेल, जैसे पैराशूट का कोकोनैट औयल, डाबर आंवला औयल, सरसों औयल, केश 99 या आदिवासी हेयर औयल यूज किया जा सकता है.

यह बात भी कुछ ही हद तक सही है कि तेल लगाने से हेयर फौल कम हो सकता है. पर एक कंडीशन पर कि बालों के झड़ने का कारण ड्राईनैस और फ्रिंजीनैस हो. यदि जेनेटिक, हार्मोनल, डीएसटी या न्युट्रीशियल डैफिशिएंसी कारणों से बाल झड़ रहे हैं तो दुनिया का कोई भी तेल काम नहीं करने वाला. दूसरा यह कि हेयर औयल लगाने से न तो नए बाल आते हैं न ही सफेद बाल काले हो सकते हैं. फिर बालों के उग आने के दावे क्या हैं?

अगर बात बालों के हेयर ग्रोथ की हो तो मिनौक्सिडिल नाम का एक हेयर ग्रोथ स्टेरौइड लंबे समय से लोग यूज करते हैं, इसे बालों की जड़ों में लगाया जाता है, ये पतले बालों को तेजी से मोटा करता है, लेकिन टकली जगह नए बाल नहीं उगा सकता. लोगों को तेजी से चमत्कारिक फायदा भी इस स्टेरौइड से मिलता है लेकिन लंबे समय तक इस स्टेरौइड को यूज करने के सीरियस साइड इफैक्ट्स भी हैं. फिर भी बहुत से हेयर ग्रोथ देने वाले प्रोडक्ट्स में मिनौक्सिडिल मिलाया या थोड़ी ज्यादा मात्रा में मिलाया जाता है.

हेयर ग्रोथ कंपनियां जो हेयर ग्रोथ की बातें करती हैं वे कहीं न कहीं आंशिक या खुले तौर से इस का इस्तेमाल करती हैं, लेकिन वे सीधेसीधे नहीं बतातीं कि उन्होंने इसे अपने प्रोडक्ट में मिलाया है, क्योंकि इस से उन के प्रोडक्ट का और्गेनिक होने का ठप्पा कमजोर पड़ता है. तमाम चाइनीज हर्बल प्रोडक्ट्स में स्टेरौइड मिला कर हर्बल और नैचुरल के नाम पर बेचा जा रहा है.

बात यहां ट्राया या आदिवासी तेल की नहीं है, बल्कि इन का प्रचार करने वाले इन्फ्लुएंसर्स की है कि क्या हमें अपने फेवरेट इन्फ्लुएंसर्स की बातों को मानना चाहिए? और मानना चाहिए तो कितना मानना चाहिए? क्या उन की बातों में सही में दम है और अगर वे बस पैसों के लिए ऐसा कर रहे हैं तो क्या उन्हें फौलो करना चाहिए?

क्योंकि यह तो तय है कि जैसे शाहरुख खान, अक्षय कुमार और अजय देवगन पैसों के लिए गुटके कंपनी का एड करते हैं मगर गुटका नहीं खाते, ठीक वैसे ही ये सारे इन्फ्लुएंसर्स इन प्रोडक्ट्स का सिर्फ एड कर रहे हैं वे इसे इस्तेमाल नहीं करते. कंपनियां इन के पास जा ही इसलिए रही हैं ताकि फौलोअर्स, यानी आप की संख्या के आधार पर उन्हें पैसा दिया जाए. इन्फ्लुएंसर्स तो आप की संख्या दिखा कर मालामाल हो रहे हैं, लेकिन उस के एवज में ऐसा न हो कि आप खुद को ठगा महसूस करें. बस अब सवाल आप के ऊपर है कि कहीं आप तो इस ट्रैंड में नहीं बह रहे?

क्रिएटिविटी बढ़ाने के साथ स्ट्रैस रिलीफ तक, घूमनेफिरने से होते हैं कई फायदे

एक मल्टीनैशनल कंपनी में काम करने वाली मुंबई की 30 वर्षीय सुजाता हर साल 7 दिन के लिए ट्रैवल पर निकल जाती है, क्योंकि काम से थक जाने के बाद उन्हे कही जाना सुकून देता है, वह अधिकतर सिंगल टूर करती है, जिसमें वह वहां की रीतिरिवाज, संस्कृति, खान पान, पोशाक आदि पर अधिक ध्यान देती है. वह देश में ही नहीं, विदेश में भी कई बार घूमने जा चुकी है. उनके हिसाब से बजट के हिसाब से ट्रैवलिंग आजकल किया जा सकता है, ट्रैवल पर जाने के लिए बड़ी बजट की जरूरत नहीं होती, अपने देश में ही पहाड़ों पर कई ऐसे शहर और गांव है, जहां जाने पर भी सुकून मिलता है. इसमें वह अधिकतर उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में जाना पसंद करती है, जबकि विदेश में अमेरिका, यूरोप, साउथ अफ्रीका, थाईलैंड आदि जगहों पर सुजाता घूम चुकी है.

विज्ञान क्या कहता है

किसी स्थान की यात्रा करने से मस्तिष्क को उस स्थान की दृश्य, रहनसहन, आवाज, परिवेश आदि से एक उत्तेजना मिलती है, जिससे व्यक्ति में ज्ञान संबंधी फ्लैक्सिबिलिटी बढ़ती है. मस्तिष्क में नई चीजों को अडाप्ट करने की क्षमता विकसित होती है, विचार बदलते है, क्योंकि जब व्यक्ति किसी नए जगह की यात्रा करता है, तो वहां के नए लोग और संस्कृति के साथ साथ नई परिवेश से व्यक्ति परिचित होता है, फिर चाहे वह अनुभव अच्छे हो या बुरे एक एडवेंचर का एहसास होता है. यही वजह है कि आज के यूथ से लेकर वरिष्ठ नागरिक सभी पर्यटन को अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मान चुके है.  कुछ तो इसके लिए पूरे साल थोड़ेथोड़े कर पैसे जमाकर घूमने जाते है, उनके लिए बिना ट्रैवल किए एक स्थान पर सालों से रहना मुश्किल होता है.

बढ़ी है पर्यटन व्यवसाय

देखा जाए तो पर्यटन का विकास पिछले कुछ 10 से 15 सालों से अधिक हुआ  है. इसकी वजह पतिपत्नी का आत्मनिर्भर होना है, जिससे वे आराम से किसी नए स्थान को इक्स्प्लोर कर सकते है. ट्रैवल एजेंसी भी मानती है कि पिछले 10 सालों से उनका व्यवसाय बढ़ा है, खास कर आज के युवा खासकर महिलायें और वरिष्ठ नागरिक कही घूमने जाना पसंद करते है, इसलिए वे सीनियर सिटिज़न ग्रुप और लेडिज ग्रुप का आयोजन करती है और ये देश में ही नहीं विदेश में भी जाते है. ट्रैवल चाहे किसी भी रूप में हो हमेशा कुछ अच्छा सीखने का मौका देती है. इसके फायदे निम्न है,

रिलेक्स्ड फिलिंग

असल में ट्रैवलिंग किसी भी व्यक्ति को रिलेक्स्ड फ़ील करवाने के अलावा  उस स्थान को जानने की उत्सुकता, संस्कृति और इतिहास से परिचय करवाती है. साथ ही किसी भी नकारात्मक सोच को हटाती है, जिससे डिप्रेशन होने का रिस्क नहीं होता.

स्ट्रेस रिलीफ

ट्रैवल से तनाव कम होता है और स्ट्रेस कम होने पर व्यक्ति किसी भी समस्या का समाधान जल्दी ढूंढ लेता है. विज्ञान के अनुसार स्ट्रेस कम होने पर कॉर्टिसॉल का लेवल कम होता है, जिससे व्यक्ति अधिक से आधिक खुद को काम पर केंद्रित रख सकता है.

बढ़ती है क्रीएटिवटी

ट्रैवलिंग क्रीऐटिवटी को बढ़ाती है, क्योंकि नई जगह की नई आइडियास, वहां की खानपान, संस्कृति को व्यक्ति सामने देख पाता है. यही वजह है कि क्रिएटिव फील्ड में काम करें वाले अधिकतर ट्रैवल करते है.

बढ़ती है लर्निंग 

किसी नए जगह की यात्रा करने पर व्यक्ति की स्किल्स, वहाँ की इतिहास, भाषा और सोच में बदलाव होता है. इसके अलावा नए फ्रेंड्स बनते है और स्थानीय लोगों से संवाद बढ़ती है.

रिश्तों में बढ़ती है मिठास

लव्ड वन के साथ ट्रैवल करने से रिश्तों में मिठास बढ़ती है, रिसर्च बताती है कि तकरीबन 52 प्रतिशत कपल्स के रिश्ते छुट्टियों में कही घूमने जाने के बाद से इम्प्रूव हुए.

बनते है यादगार पल

यात्रा से कई यादगार पल बन जाते है, जिसे बाद में याद करने पर खुशी मिलती है. आप जब भी घूमने जाए, निम्न बातों पर अवश्य ध्यान दें, ताकि आप यात्रा सुखद और यादगार हो,

  • उस स्थान की नई जगह और संस्कृति को जाने,
  • वहां की लोकल खाने और पेय पदार्थ को टेस्ट करें,
  • वहां की तस्वीरें ले और जर्नी को यादगार बनाएं,
  • वहां की खास वस्तु की सौवेनियर्स की शौपिंग करें, पर अधिक शौपिंग से बचें,
  • आउट्डोर एक्टिविटीज में भाग लें मसलन हाइकिंग, वाटर स्पोर्ट्स आदि
  • सभी ऐतिहासिक साइट्स और लैंडमार्क्स को देखें और उसके बारें में जानने की कोशिश करें.

वैज्ञानिक मानते हैं कि ट्रैवल मस्तिष्क को बदल देती है, क्योंकि नई भाषा, गंध, टेस्ट और दृश्य सभी से व्यक्ति को एक नई ऊर्जा मिलती है.  यही वजह है कि एंटरटेन्मेंट इंडस्ट्री में समय मिलते ही कलाकर अपने परिवार या अकेले यात्रा पर निकल जाते है, इस बारें में उनका कहना क्या है आइए जानते है.

माधुरी दीक्षित

माधुरी दीक्षित हर साल व्यस्त दिनचर्या से समय निकाल कर ट्रैवल करती है, जो अधिकतर अमेरिका में होता है, उनके हिसाब से ट्रैवलिंग से मुझे अधिक काम करने की प्रेरणा मिलती है और मैँ अधिकतर अमेरिका जाती हूँ, क्योंकि वहाँ मेरे काफी फैंस और दोस्त है.

अजय देवगन

अजय देवगन कहते है कि काम से अलग मैं जिस किसी भी स्थान पर जाता हूँ, वह मेरे लिए ट्रैवल होता है, जिसे मैं अपने परिवार के साथ गुजारना चाहता हूँ और यह मेरे लिए बहुत आवश्यक होता है, क्योंकि काम से थकने के बाद एक शांतिपूर्ण यात्रा पूरी थकान को मिटा देती है. इसमें मैँ अधिकतर लॉन्ग ड्राइव पर जाना पसंद करता हूँ, देश में राजस्थान, लद्दाख और विदेश में लंदन और आस्ट्रेलिया मेरा पसंदीदा जगह है. मैँ शौपिंग नहीं करता, लेकिन वहां की हैन्डीक्राफ्ट को खरीदना पसंद करता हूँ.

सारा अली खान

सारा कहती है कि समुद्र ऊंची – ऊंची लहरे, आसपास की शांति और पहाड़ों की खूबसूरत वादियाँ मुझे हमेशा से ही आकर्षित करती है. मैँ एक पर्यटक के रूप में इन्ही स्थानों पर जाना पसंद करती हूँ. मेरे हिसाब से जब आप ऐसी जगहों की यात्रा करते है, तो सही माइने में आप खुद को पहचान पाते है.

जान्हवी कपूर

अभिनेत्री जान्हवी  कपूर को ट्रैवल करना बहुत पसंद है, उन्होंने बचपन से अपने पेरेंट्स के साथ कई स्थानों पर यात्रा की है. उनका मानना है कि ट्रैवल से व्यक्ति खुद को समझ पाता है और यह जरूरी है, क्योंकि हर जगह का अपना एक इतिहास होता है, जिसे ट्रैवल के द्वारा ही जाना जा सकता है. इसमें मुझे इटली का परिवेश बहुत अच्छा लगा, जहां शाम को साथ बैठकर लोग गपशप और गाना बजाना करते है.

बौक्स में

ट्रैवल पर बनी कुछ फिल्में, जो यात्रा को प्रेरित करती है,

दिल चाहता है (2001), हम तुम (2004)

रंग दे बसंती (2006), जब वी मेट (2007)

लव आजकल (2009), थ्री इडियट्स (2009)

जिंदगी न मिलेगी दुबारा (2011), हाइवै (2014)

क्वीन (2014) पी के (2014), पिकू (2015) आदि.

शाम के नाश्ते में बनाएं लेयर्ड काठी रोल, नोट करें ये आसान रेसिपी

मौसम कोई भी हो दोपहर के खाने के बाद शाम को भूख लगना स्वाभाविक ही है. आहार विशेषज्ञों के अनुसार इस समय बहुत भारी नाश्ता भी नहीं करना चाहिए अन्यथा रात्रि का भोजन करने की इच्छा नहीं होती. ऐसे में हमें चाहिए होती है कोई ऐसी रेसिपी जिसे बनाने में न तो अधिक समय लगे, दूसरे घर में उपलब्ध सामग्री से बन भी जाये, तीसरे हैल्दी भी हो. आज हम आपको घर में रोज बनने वाली चपाती से ऐसी ही रेसिपी बनाना बता रहे हैं जिसे आप बहुत आसानी से घर पर बना तो सकती ही हैं साथ ही मेहमानों के आने से पहले इसे बनाकर फ्रिज में स्टोर भी कर सकतीं हैं. तो आइये देखते हैं कि इसे कैसे बनाया जाता है-

कितने लोगों के लिए 4

बनने में लगने वाला समय 15 मिनट

मील टाइप वेज

सामग्री (रोल के लिए)

गेहूं की चपाती 4
बेसन 1 कप
नमक 1 टीस्पून
अदरक, लहसुन पेस्ट ½ टीस्पून
बारीक कटा हरा धनिया 1 टीस्पून
घी 1 टीस्पून
सामग्री(फिलिंग के लिए)
शिमला मिर्च 1
प्याज 1
बारीक कटी हरी मिर्च 4
बीन्स 4
टमाटर 1
हरी चटनी 1 टेबलस्पून
टोमेटो सौस 1 टेबलस्पून
काला नमक ¼ टीस्पून
चाट मसाला ¼ टीस्पून
बारीक कटी हरी धनिया 1 टीस्पून
बटर 1 टीस्पून

विधि

बेसन में नमक, अदरक, लहसुन, हरी धनिया और ½ कप पानी के साथ मिलाकर गाढ़ा पेस्ट तैयार कर लें. इसे 10 मिनट के लिए ढककर रख दें. सभी सब्जियों को आधा आधा इंच लम्बाई में काट लें. कटी सब्जियों को बटर में डालकर 2-3 मिनट के लिए तेज आंच पर मसाले डालकर सौते कर लें ताकि इनका कच्चापन निकल जाये. हरा धनिया डालकर ठंडा होने दें.

अब एक बड़ा चम्मच बेसन को नानस्टिक तवे पर पतला पतला फैलाकर ऊपर से तैयार चपाती रखकर हल्के से दबा दें. धीमी आंच पर 2-3 मिनट पकाकर पलट दें. अब इस पर हरी चटनी और टोमेटो सौस की लेयर लगाकर बीच में 1 बड़ा चम्मच फिलिंग रखकर फोल्ड कर दें. तैयार रोल को घी लगाकर सुनहरा होने तक सेंककर सर्व करें. आप इसे तैयार करके फीजर में 1 सप्ताह तक फ्रीज करके आवश्यकतानुसार प्रयोग कर सकते हैं.

नई मां के लिए जरूरी टिप्स, ‘ब्रैस्ट फीडिंग होगा आसान’

नवजात के साथ मां जितना भावनात्मक लगाव बनाए रखती है, पिता भी इस के लिए उतना ही उत्सुक रहता है. दोनों के बीच एकमात्र यही अंतर रहता है कि पिता को इस तरह का लगाव रखने के लिए विशेष प्रयास करने पड़ते हैं, जबकि मां का अपने बच्चे से यह स्वाभाविक बन जाता है.

यदि आप भी पिता बनने का सुख पाने वाले हैं, तो हम आप को कुछ ऐसे टिप्स बता रहे हैं, जो इस दुनिया में कदम रखने वाले बच्चे के प्रति आप के गहरे लगाव को विकसित कर सकते हैं. हमारे समाज में लिंगभेद संबंधी दकियानूसी सोच के कारण पुरुष अधिक भावनात्मक रूप से पिता का सुख पाने से कतराते हैं.

मां से ही बच्चे की हर तरह की देखभाल की उम्मीद की जाती है. मां को ही बच्चे का हर काम करना पड़ता है. लेकिन अपने बच्चे के साथ आप जितना जुड़ेंगे और उस की प्रत्येक गतिविधि में हिस्सा लेंगे, बच्चे के प्रति आप का लगाव उतना ही बढ़ता जाएगा. लिहाजा, बच्चे का हर काम करने की कोशिश करें. नैपकिन धोने, डाइपर बदलने, दूध पिलाने, सुलाने से ले कर जहां तक हो सके उस के काम कर उस के साथ अधिक से अधिक समय बिताने की कोशिश करें.

गर्भधारण काल से ही खुद को व्यस्त रखें

गर्भधारण की प्रक्रिया के साथ सक्रियता से जुड़ते हुए पिता भी बच्चे के समग्र विकास में अहम भूमिका निभा सकता है. हर बार पत्नी के साथ डाक्टर के पास जाए. डाक्टर के निर्देशों को सुने और पत्नी को प्रतिदिन उन पर अमल करने में मदद करे. पत्नी को क्या खाना चाहिए तथा प्रतिदिन वह क्या कर रही है, उस पर नजर रखे. इस के अलावा सोनोग्राफी सैशन का नियमित रूप से पालन करे. गर्भ में पल रहे बच्चे के समुचित विकास की प्रक्रिया के साथ घनिष्ठता से जुड़ते हुए पिता भी बच्चे के जन्म के पहले से ही उस के साथ गहरा लगाव कायम कर सकता है.

जहां तक संभव हो बच्चे को संभालें

जब कभी अपने नवजात को अपनी बांहों में लेने का मौका मिले, उसे गंवाएं नहीं. बच्चे को सुलाना, लोरी सुनाना या बच्चे के तकलीफ में रहने के दौरान उसे सीने से लगाए रखना सिर्फ मां की ही जिम्मेदारी नहीं होती है. ये सभी काम करने में खुद पहल करें. अपने बच्चे के साथ जल्दी लगाव विकसित करने के लिए स्पर्श एक अनिवार्य उपाय माना जाता है. अपने बच्चे को आप जितना स्पर्श करेंगे, उसे गले लगाएंगे, गोद में उठाएंगे, बच्चे से आप की और आप से बच्चे की नजदीकी उतनी ही ज्यादा बढ़ती जाएगी.

डकार के लिए बच्चे को थामना

यह बच्चे के साथ लगाव बढ़ाने में विशेष रूप से मदद करता है और मां को भी मदद मिलती है, क्योंकि भोजन के बाद मां और शिशु दोनों थक जाते हैं और थोड़ा आराम चाहते हैं. शिशु को कई बार डकार लेने में 10-15 मिनट का वक्त लग जाता है और मां को उस की डकार निकालने के लिए अपने कंधे पर रखना भी मुश्किल हो जाता है क्योंकि वह खुद दुग्धपान कराने के बाद थक जाती है. ऐसे में यदि पिता यह दायित्व संभाल ले और बच्चे को इस तरह से थामे रखे कि उसे डकार आ जाए, तो मां को भी थोड़ा आराम मिल जाता है और शिशु भी अपनी मुद्रा बदल कर आराम पा सकता है.

बच्चे को दिन में एक बार खिलाएं

पत्नी जब बच्चे को नियमितरूप से स्तनपान करा सकती है, तो आप भी उसे बांहों में रख कर बोतल का दूध क्यों नहीं पिला सकते? किसी मां या पिता के लिए अपने बच्चे को खिलाने और यह देख कर संतुष्ट होने से बड़ा कोई एहसास नहीं हो सकता कि भूख शांत होते ही वह निश्चिंत हो गया है. इस से आप को अपने बच्चे के और करीब आने में भी मदद मिलेगी.

बच्चे को नहलाएं

शुरुआती दौर में बच्चे को स्नान कराना महत्त्वपूर्ण होता है, जिस में बच्चा आनंद लेता है. अत: अपने बच्चे को किसी एक वक्त खुद नहलाना, उस के कपड़े धोना तय करें.

बच्चे से बातें करें

बच्चा जन्म लेने से पहले से ही आवाज पहचानने लगता है. बच्चे के जन्म लेने के बाद उस से बात करने का एक छोटा सा सत्र तय कर लें.

जब बच्चा अच्छे मूड में हो तो उस की आंखों में देखें और तब अपने दिल की बात उसे सुनाएं. कुछ लोगों में बच्चों से बातें करने की स्वाभाविक दक्षता होती है जबकि कुछ को इसे विकसित करने में वक्त लगता है. प्रतिदिन अपने बच्चे से बातें करें. धीरेधीरे वह आप की आवाज सुन कर प्रतिक्रिया भी देने लगेगा.

बच्चे के रोजमर्रा के काम निबटाएं

बच्चे के पालनपोषण की प्रक्रिया में आप खुद को जितना व्यस्त रखेंगे, आप का बच्चा और आप का एकदूसरे से लगाव उतना ही गहरा होता जाएगा. कुछ लोगों को डर लगता है कि बच्चे का कोई काम निबटाने में उन के हाथों कुछ गलत न हो जाए, लेकिन इस में घबराने की कोई बात नहीं है, क्योंकि मां भी तो धीरेधीरे ही सब कुछ सीखती है. बच्चे का डाइपर बदलना, उस की उलटी साफ करना, उस के कपड़े, बदलना आदि काम सीखना सिर्फ मां की ही जिम्मेदारी नहीं है. बच्चे के साथ खुद को आप जितना अधिक जोड़ेंगे, उस के साथ आप का लगाव भी उतना ही गहरा होता जाएगा.

साथ साथ: कौनसी अनहोनी हुई थी रुखसाना और रज्जाक के साथ

आपरेशन थियेटर के दरवाजे पर लालबत्ती अब भी जल रही थी और रुखसाना बेगम की नजर लगातार उस पर टिकी थी. पलकें मानो झपकना ही भूल गई थीं, लग रहा था जैसे उसी लालबत्ती की चमक पर उस की जिंदगी रुकी है.

रुखसाना की जिंदगी जिस धुरी के चारों तरफ घूमती थी वही रज्जाक मियां अंदर आपरेशन टेबल पर जिंदगी और मौत से जूझ रहे थे. जिन बांहों का सहारा ले कर वह कश्मीर के एक छोटे से गांव से सुदूर कोलकाता आई थी उन्हीं बांहों पर 3-3 गोलियां लगी थीं. शायद उस बांह को काट कर शरीर से अलग करना पड़े, ऐसा ही कुछ डाक्टर साहब कह रहे थे उस के मकान मालिक गोविंदरामजी से. रुखसाना की तो जैसे उस वक्त सुनने की शक्ति भी कमजोर पड़ गई थी.

क्या सोच रहे होंगे गोविंदरामजी और उन की पत्नी शीला उस के और रज्जाक के बारे में? कुछ भी सोचें पर भला हो शीला बहन का जो उन्होंने उस के 1 साल के पुत्र रफीक को अपने पास घर में ही रख लिया, वरना वह क्या करती? यहां तो अपने ही खानेपीने की कोई सुध नहीं है.

रुखसाना ने मन ही मन ठान लिया कि अब जब घर लौटेगी तो गोविंद भाई साहब और शीला भाभी को अपने बारे में सबकुछ सचसच बता देगी. जिन से छिपाना था जब उन्हीं से नहीं छिपा तो अब किस का डर? और फिर गोविंद भाई और शीला भाभी ने उस के इस मुसीबत के समय जो उपकार किया, वह तो कोई अपना ही कर सकता है न. अपनों की बात आते ही रुखसाना की आंखों के आगे उस का अतीत घूम गया.

ऊंचेऊंचे बर्फ से ढके पहाड़, हरेभरे मैदान, बीचबीच में पहाड़ी झरने और उन के बीच अपनी सखियों और भाईबहनों के साथ हंसताखेलता रुखसाना का बचपन.

वह रहा सरहद के पास उस का बदनसीब गांव जहां के लोग नहीं जानते कि उन्हें किस बात की सजा मिल रही है. साल पर साल, कभी मजहब के नाम पर तो कभी धरती के नाम पर, कभी कोई वरदीधारी तो कभी कोई नकाबधारी यह कहता कि वतन के नाम पर वफा करो… धर्म के नाम पर वफा करो, बेवफाई की सजा मौत है.

रुखसाना को अब भी याद है कि दरवाजे पर दस्तक पड़ते ही अम्मीजान कैसे 3 बहनों को और जवान बेवा भाभी को अंदर खींच कर तहखाने में बिठा देती थीं और अब्बूजान सहमेसहमे दरवाजा खोलते.

इन्हीं भयावह हालात में जिंदगी अपनी रफ्तार से गुजर रही थी.

कहते हैं हंसतेखेलते बचपन के बाद जवानी आती ही आती है पर यहां तो जवानी मातम का पैगाम ले कर आई थी. अब्बू ने घर से मेरा निकलना ही बंद करवा दिया था. न सखियों से हंसना- बोलना, न खुली वादियों में घूमना. जब देखो इज्जत का डर. जवानी क्या आई जैसे कोई आफत आ गई.

उस रोज मझली को बुखार चढ़ आया था तो छोटी को साथ ले कर वह ही पानी भरने आई थी. बड़े दिनों के बाद घर से बाहर निकलने का उसे मौका मिला था. चेहरे से परदा उठा कर आंखें बंद किए वह पहाड़ी हवा का आनंद ले रही थी. छोटी थोड़ी दूरी पर एक बकरी के बच्चे से खेल रही थी.

सहसा किसी की गरम सांसों को उस ने अपने बहुत करीब अनुभव किया. फिर आंखें जो खुलीं तो खुली की खुली ही रह गईं. जवानी की दहलीज पर कदम रखने के बाद यह पहला मौका था जब किसी अजनबी पुरुष से इतना करीबी सामना हुआ था. इस से पहले उस ने जो भी अजनबी पुरुष देखे थे वे या तो वरदीधारी थे या नकाबधारी…रुखसाना को उन दोनों से ही डर लगता था.

लंबा कद, गठा हुआ बदन, तीखे नैननक्श, रूखे चेहरे पर कठोरता और कोमलता का अजीब सा मिश्रण. रुखसाना को लगा जैसे उस के दिल ने धड़कना ही बंद कर दिया हो. अपने मदहोशी के आलम में उसे इस बात का भी खयाल न रहा कि वह बेपरदा है.

तभी अजनबी युवक बोल उठा, ‘वाह, क्या खूब. समझ नहीं आता, इस हसीन वादी को देखूं या आप के हुस्न को. 3-4 रात की थकान तो चुटकी में दूर हो गई.’

शायराना अंदाज में कहे इन शब्दों के कानों में पड़ते ही रुखसाना जैसे होश में आ गई. लजा कर परदा गिरा लिया और उठ खड़ी हुई.

अजनबी युवक फिर बोला, ‘वैसे गुलाम को रज्जाक कहते हैं और आप?’

‘रुखसाना बेगम,’ कहते हुए उस ने घर का रुख किया. इस अजनबी से दूर जाना ही अच्छा है. कहीं उस ने उस के दिल की कमजोरी को समझ लिया तो बस, कयामत ही आ जाएगी.

‘कहीं आप अब्दुल मौला की बेटी रुखसाना तो नहीं?’

‘हां, आप ने सही पहचाना. पर आप को इतना कैसे मालूम?’

‘अरे, मुझे तो यह भी पता है कि आप के मकान में एक तहखाना है और फिलहाल मेरा डेरा भी वहीं है.’

अजनबी युवक का इतना कहना था कि रुखसाना का हाथ अपनेआप उस के सीने पर ठहर गया जैसे वह तेजी से बढ़ती धड़कनों को रोकने की कोशिश कर रही हो. दिल आया भी तो किस पत्थर दिल पर. वह जानती थी कि तहखानों में किन लोगों को रखा जाता है.

पिछली बार जब महजबीन से बात हुई थी तब वह भी कुछ ऐसा ही कह रही थी. उस का लोभीलालची अब्बा तो कभी अपना तहखाना खाली ही नहीं रखता. हमेशा 2-3 जेहादियों को भरे रखता है और महजबीन से जबरदस्ती उन लोगों की हर तरह की खिदमत करवाता है. बदले में उन से मोटी रकम ऐंठता है. एक बार जब महजबीन ने उन से हुक्मउदूली की थी तो उस के अब्बू के सामने ही जेहादियों ने उसे बेपरदा कर पीटा था और उस के अब्बू दूसरी तरफ मुंह घुमाए बैठे थे.

तब रुखसाना का चेहरा यह सुन कर गुस्से से तमतमा उठा था पर लाचार महजबीन ने तो हालात से समझौता कर लिया था. उस के अब्बू में तो यह अच्छाई है कि वह पैसे के लालची नहीं हैं और जब से उस के सीधेसादे बड़े भाई साहब को जेहादी उठा कर ले गए तब से तो अब्बा इन जेहादियों से कुछ कटेकटे ही रहते हैं. पर अब सुना है कि अब्बू के छोटे भाई साहब जेहादियों से जा मिले हैं. क्या पता यह उन की ही करतूत हो.

एक अनजानी दहशत से रुखसाना का दिल कांप उठा था. उसे अपनी बरबादी बहुत करीब नजर आ रही थी. भलाई इसी में है कि इस अजनबी को यहीं से चलता कर दे.

कुछ कहने के उद्देश्य से रुखसाना ने ज्यों ही पलट कर उस अजनबी को देखा तो उस के जवान खूबसूरत चेहरे की कशिश रुखसाना को कमजोर बना गई और होंठ अपनेआप सिल गए. रज्जाक अभी भी मुहब्बत भरी नजरों से उसी को निहार रहा था.

नजरों का टकराना था कि फिर धड़कनों में तेजी आ गई. उस ने नजरें झुका लीं. सोच लिया कि भाई साहब बड़े जिद्दी हैं. जब उन्होेंने सोच ही लिया है कि तहखाने को जेहादियों के हाथों भाड़े पर देंगे तो इसे भगा कर क्या फायदा? कल को वह किसी और को पकड़ लाएंगे. अपना आगापीछा सोच कर रुखसाना चुपचाप रज्जाक को घर ले आई थी.

बेटे से बिछुड़ने का गम और ढलती उम्र ने अब्बू को बहुत कमजोर बना दिया था. अपने छोटे भाई के खिलाफ जाने की शक्ति अब उन में नहीं थी और फिर वह अकेले किसकिस का विरोध करते. नतीजतन, रज्जाक मियां आराम से तहखाने में रहने लगे और रुखसाना को उन की खिदमत में लगा दिया गया.

रुखसाना खूब समझ रही थी कि उसे भी उस के बचपन की सहेली महजबीन और अफसाना की तरह जेहादियों के हाथों बेच दिया गया है पर उस का किस्सा उस की सहेलियों से कुछ अलग था. न तो वह महजबीन की तरह मजबूर थी और न अफसाना की तरह लालची. उसे तो रज्जाक मियां की खिदमत में बड़ा सुकून मिलता था.

रज्जाक भी उस के साथ बड़ी इज्जत से पेश आता था. हां, कभीकभी आवेश में आ कर मुहब्बत का इजहार जरूर कर बैठता था और रुखसाना को उस का पे्रम इजहार बहुत अच्छा लगता था. अजीब सा मदहोशी का आलम छाया रहता था उस समय तहखाने में, जब दोनों एक दूसरे का हाथ थामे सुखदुख की बातें करते रहते थे.

रज्जाक के व्यक्तित्व का जो भाग रुखसाना को सब से अधिक आकर्षित करता था वह था उस के प्रति रज्जाक का रक्षात्मक रवैया. जब भी किसी जेहादी को रज्जाक से मिलने आना होता वह पहले से ही रुखसाना को सावधान कर देता कि उन के सामने न आए.

उस दिन की बात रुखसाना को आज भी याद है. सुबह से 2-3 जेहादी तहखाने में रज्जाक मियां के पास आए हुए थे. पता नहीं किस तरह की सलाह कर रहे थे…कभीकभी नीचे से जोरों की बहस की आवाज आ रही थी, जिसे सुन कर रुखसाना की बेचैनी हर पल बढ़ रही थी. रज्जाक को वह नाराज नहीं करना चाहती थी इसलिए उस ने खाना भी छोटी के हाथों ही पहुंचाया था. जैसे ही वे लोग गए रुखसाना भागीभागी रज्जाक के पास पहुंची.

रज्जाक घुटने में सिर टिकाए बैठा था. रुखसाना के कंधे पर हाथ रखते ही उस ने सिर उठा कर उस की तरफ देखा. आंखें लाल और सूजीसूजी सी, चेहरा बेहद गंभीर. अनजानी आशंका से रुखसाना कांप उठी. उस ने रज्जाक का यह रूप पहले कभी नहीं देखा था.

‘क्या हुआ? वे लोग कुछ कह गए क्या?’ रुखसाना ने सहमे लहजे में पूछा.

‘रुखसाना, खुदा ने हमारी मुहब्बत को इतने ही दिन दिए थे. जिस मिशन के लिए मुझे यहां भेजा गया था ये लोग उसी का पैगाम ले कर आए थे. अब मुझे जाना होगा,’ कहतेकहते रज्जाक का गला भर आया.

‘आप ने कहा नहीं कि आप यह सब काम अब नहीं करना चाहते. मेरे साथ घर बसा कर वापस अपने गांव फैजलाबाद लौटना चाहते हैं.’

‘अगर यह सब मैं कहता तो कयामत आ जाती. तू इन्हें नहीं जानती रुखी…ये लोग आदमी नहीं हैवान हैं,’ रज्जाक बेबसी के मारे छटपटाने लगा.

‘तो आप ने इन हैवानों का साथ चुन लिया,’ रुखसाना का मासूम चेहरा धीरेधीरे कठोर हो रहा था.

‘मेरे पास और कोई रास्ता नहीं है रुखी. मैं ने इन लोगों के पास अपनी जिंदगी गिरवी रखी हुई है. बदले में मुझे जो मोटी रकम मिली थी उसे मैं बहन के निकाह में खर्च कर आया हूं और जो बचा था उसे घर से चलते समय अम्मीजान को दे आया था.’

‘जिंदगी कोई गहना नहीं जिसे किसी के भी पास गिरवी रख दिया जाए. मैं मन ही मन आप को अपना शौहर मान चुकी हूं.’

‘इन बातों से मुझे कमजोर मत बनाओ, रुखी.’

‘आप क्यों कमजोर पड़ने लगे भला?’ रुखसाना बोली, ‘कमजोर तो मैं हूं जिस के बारे में सोचने वाला कोई नहीं है. मैं ने आप को सब से अलग समझा था पर आप भी दूसरों की तरह स्वार्थी निकले. एक पल को भी नहीं सोचा कि आप के जाने के बाद मेरा क्या होगा,’ कहतेकहते रुखसाना फफकफफक कर रो पड़ी.

रज्जाक ने उसे प्यार से अपनी बांहों में भर लिया और गुलाबी गालों पर एक चुंबन की मोहर लगा दी.

चढ़ती जवानी का पहला आलिंगन… दोनों जैसे किसी तूफान में बह निकले. जब तूफान ठहरा तो हर हाल में अपनी मुहब्बत को कुर्बान होने से बचाने का दृढ़ निश्चय दोनों के चेहरों पर था.

रुखसाना के चेहरे को अपने हाथों में लेते हुए रज्जाक बोला, ‘रुखी, मैं अपनी मुहब्बत को हरगिज बरबाद नहीं होने दूंगा. बोल, क्या इरादा है?’

मुहब्बत के इस नए रंग से सराबोर रुखसाना ने रज्जाक की आंखों में आंखें डाल कर कुछ सोचते हुए कहा, ‘भाग निकलने के अलावा और कोई रास्ता नहीं रज्जाक मियां. बोलो, क्या इरादा है?’

‘पैसे की चिंता नहीं, जेब में हजारों रुपए पडे़ हैं पर भाग कर जाएंगे कहां?’ रज्जाक चिंतित हो कर बोला.

महबूब के एक स्पर्श ने मासूम रुखसाना को औरत बना दिया था. उस के स्वर में दृढ़ता आ गई थी. हठात् उस ने रज्जाक का हाथ पकड़ा और दोनों दबेपांव झरोखे से निकल पड़े. झाडि़यों की आड़ में खुद को छिपातेबचाते चल पड़े थे 2 प्रेमी एक अनिश्चित भविष्य की ओर.

रज्जाक के साथ गांव से भाग कर रुखसाना अपने मामूजान के घर आ गई. मामीजान ने रज्जाक के बारे में पूछा तो वह बोली, ‘यह मेरे शौहर हैं.’

मामीजान को हैरत में छोड़ कर रुखसाना रज्जाक को साथ ले सीधा मामूजान के कमरे की तरफ चल दी. क्योंकि एकएक पल उस के लिए बेहद कीमती था.

मामूजान एक कीमती कश्मीरी शाल पर नक्काशी कर रहे थे. दुआसलाम कर के वह चुपचाप मामूजान के पास बैठ गई और रज्जाक को भी बैठने का इशारा किया.

बचपन से रुखसाना की आदत थी कि जब भी कोई मुसीबत आती तो वह मामूजान के पास जा कर चुपचाप बैठ जाती. मामूजान खुद ही समझ जाते कि बच्ची परेशान है और उस की परेशानी का कोेई न कोई रास्ता निकाल देते.

कनखियों से रज्जाक को देख मामूजान बोल पड़े, ‘इस बार कौन सी मुसीबत उठा लाई है, बच्ची?’

‘मामूजान, इस बार की मुसीबत वाकई जानलेवा है. किसी को भनक भी लग गई तो सब मारे जाएंगे. दरअसल, मामूजान इन को मजबूरी में जेहादियों का साथ देना पड़ा था पर अब ये इस अंधी गली से निकलना चाहते हैं. हम साथसाथ घर बसाना चाहते हैं. अब तो आप ही का सहारा है मामू, वरना आप की बच्ची मर जाएगी,’ इतना कह कर रुखसाना मामूजान के कदमों में गिर कर रोने लगी.

अपने प्रति रुखसाना की यह बेपनाह मुहब्बत देख कर रज्जाक मियां का दिल भर आया. चेहरे पर दृढ़ता चमकने लगी. मामूजान ने एक नजर रज्जाक की तरफ देखा और अनुभवी आंखें प्रेम की गहराई को ताड़ गईं. बोले, ‘सच्ची मुहब्बत करने वालों का साथ देना हर नेक बंदे का धर्म है. तुम लोग चिंता मत करो. मैं तुम्हें एक ऐसे शहर का पता देता हूं जो यहां से बहुत दूर है और साथ ही इतना विशाल है कि अपने आगोश में तुम दोनों को आसानी से छिपा सकता है. देखो, तुम दोनों कोलकाता चले जाओ. वहां मेरा अच्छाखासा कारोबार है. जहां मैं ठहरता हूं वह मकान मालिक गोविंदरामजी भी बड़े अच्छे इनसान हैं. वहां पहुंचने के बाद कोई चिंता नहीं…उन के नाम मैं एक खत लिखे देता हूं.’

मामूजान ने खत लिख कर रज्जाक को पकड़ा दिया था जिस पर गोविंदरामजी का पूरा पता लिखा था. फिर वह घर के अंदर गए और अपने बेटे की जीन्स की पैंट और कमीज ले आए और बोले, ‘इन्हें पहन लो रज्जाक मियां, शक के दायरे में नहीं आओगे. और यहां से तुम दोनों सीधे जम्मू जा कर कोलकाता जाने वाली गाड़ी पर बैठ जाना.’

जिस मुहब्बत की मंजिल सिर्फ बरबादी नजर आ रही थी उसे रुखसाना ने अपनी इच्छाशक्ति से आबाद कर दिया था. एक युवक को जेहादियों की अंधी गली से निकाल कर जीवन की मुख्यधारा में शामिल कर के एक खुशहाल गृहस्थी का मालिक बनाना कोई आसान काम नहीं था. पर न जाने रुखसाना पर कौन सा जनून सवार था कि वह अपने महबूब और मुहब्बत को उस मुसीबत से निकाल लाई थी.

पता ही नहीं चला कब साल पर साल बीत गए और वे कोलकाता शहर के भीड़़ का एक हिस्सा बन गए. रज्जाक बड़ा मेहनती और ईमानदार था. शायद इसीलिए गोविंदराम ने उसे अपनी ही दुकान में अच्छेखासे वेतन पर रख लिया था और जब रफीक गोद में आया तो उन की गृहस्थी झूम उठी.

शुरुआत में पहचान लिए जाने के डर से रज्जाक और रुखसाना घर से कम ही निकलते थे पर जैसेजैसे रफीक बड़ा होने लगा उसे घुमाने के बहाने वे दोनों भी खूब घूमने लगे थे. लेकिन कहते हैं न कि काले अतीत को हम बेशक छोड़ना चाहें पर अतीत का काला साया हमें आसानी से नहीं छोड़ता.

रोज की तरह उस दिन भी रज्जाक काम पर जा रहा था और रुखसाना डेढ़ साल के रफीक को गोद में लिए चौखट पर खड़ी थी. तभी न जाने 2 नकाबपोश कहां से हाजिर हुए और धांयधांय की आवाज से सुबह का शांत वातावरण गूंज उठा.

उस खौफनाक दृश्य की याद आते ही रुखसाना जोर से चीख पड़ी तो आसपास के लोग उस की तरफ भागे. रुखसाना बिलखबिलख कर रो रही थी. इतने में गोविंदराम की जानीपहचानी आवाज ने उस को अतीत से वर्तमान में ला खड़ा किया, वह कह रहे थे, ‘‘रुखसाना बहन, अब घबराने की कोई जरूरत नहीं. आपरेशन ठीकठाक हो गया है. रज्जाक मियां अब ठीक हैं. कुछ ही घंटों में उन्हें होश आ जाएगा.’’

रुखसाना के आंसू थे कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे. उसे कहां चोट लगी थी यह किसी की समझ से परे था.

इतने में किसी ने रफीक को उस की गोद में डाल दिया. रुखसाना ने चेहरा उठा कर देखा तो शीला बहन बड़े प्यार से उस की तरफ देख रही थीं. बोलीं, ‘‘चलो, रुखसाना, घर चलो. नहाधो कर कुछ खा लो. अब तो रज्जाक भाई भी ठीक हैं और फिर तुम्हारे गोविंदभाई तो यहीं रहेंगे. रफीक तुम्हारी गोद को तरस गया था इसलिए मैं इसे यहां ले आई.’’

रुखसाना भौचक्क हो कर कभी शीला को तो कभी गोविंदराम को देख रही थी. और सोच रही थी कि अब तक तो इन्हें उस की और रज्जाक की असलियत का पता चल गया होगा. तो पुलिस के झमेले भी इन्होंने झेले होंगे. फिर भी कितने प्यार से उसे लेने आए हैं.

रुखसाना आंखें पोंछती हुई बोली, ‘‘नहीं बहन, अब हम आप पर और बोझ नहीं बनेंगे. पहले ही आप के हम पर बड़े एहसान हैं. हमें हमारे हाल पर छोड़ दीजिए. कुछ लोग दुनिया में सिर्फ गम झेलने और मरने को आते हैं. हम अपने गुनाह की सजा आप को नहीं भोगने देंगे. आप समझती होंगी कि वे लोग हमें छोड़ देंगे? कभी नहीं.’’

‘‘रुखसाना कि वे आतंकवादी गली से बाहर निकल भी न पाए थे कि महल्ले वाले उन पर झपट पड़े. फिर क्या था, जिस के हाथों में जो भी था उसी से मारमार कर उन्हें अधमरा कर दिया, तब जा कर पुलिस के हवाले किया. दरअसल, इनसान न तो धर्म से बड़ा होता है और न ही जन्म से. वह तो अपने कर्म से बड़ा होता है. तुम ने जिस भटके हुए युवक को सही रास्ता दिखाया वह वाकई काबिलेतारीफ है. आज तुम अकेली नहीं, सारा महल्ला तुम्हारे साथ है .’’

शीला की इन हौसला भरी बातों ने रुखसाना की आंखों के आगे से काला परदा हटा दिया. रुखसाना ने देखा शाम ढल चुकी थी और एक नई सुबह उस का इंतजार कर रही थी. महल्ले के सभी बड़ेबुजुर्ग और जवान हाथ फैलाए उस के स्वागत के लिए खड़े थे. वह धीरेधीरे गुनगुनाने लगी, ‘हम साथसाथ हैं.’

मेरा बौयफ्रैंड मुझ से 5 साल बड़ा है, क्या इससे फिजिकल रिलेशनशिप पर कोई फर्क पड़ेगा?

सवाल-

मैं 26 साल की हूं और मेरा बौयफ्रैंड मुझ से 5 साल बड़ा है. क्या इस वजह से सैक्स संबंध में कोई परेशानी आ सकती है? मैं उस से सैक्स करना चाहती हूं पर कभीकभी लगता है कि वह मेरा साथ नहीं दे पाता, क्योंकि एक बार जब देर तक फोरप्ले करने के बाद वह अपना पैनिस इंसर्ट करने की कोशिश कर रहा था तो बारबार की कोशिशों के बावजूद वह कामयाब नहीं हो पा रहा था. क्या उसे कोई परेशानी है? कृपया सलाह दें?

जवाब-

आप के पार्टनर की उम्र इतनी भी नहीं है कि वह सैक्स करने में सक्षम नहीं हो. सच तो यह है कि अगर उचित आहार संबंधी निर्देशों का पालन करें और नियमित व्यायाम की आदत डालें तो सैक्स का आनंद लंबी आयु तक किया जा सकता है.

ऐसा आमतौर पर सैक्सुअल इंटरकोर्स की जानकारी के अभाव में होता है. हो सकता है हड़बड़ी में अथवा किसी भय की वजह से वह सैक्स संबंध बनाने में नाकामयाब रहा हो. सैक्स आराम से निबटाने वाली प्रक्रिया है, जिस में दोनों का ही मन शांत हो और वातावरण भी शांत हो.

बेहतर होगा कि सैक्स से पहले आप दोनों फोरप्ले का आनंद लें. जब साथी पूरी तरह सैक्स के लिए तैयार हो जाए तभी पैनिस इंसर्ट करने को कहें. यकीनन, आप दोनों को ही इस में चरमसुख मिलेगा. पर ध्यान रहे, पुरुष साथी से इस दौरान कंडोम का इस्तेमाल करने को जरूर कहें.

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सैक्स: मजा न बन जाए सजा

पहले प्यार होता है और फिर सैक्स का रूप ले लेता है. फिर धीरेधीरे प्यार सैक्स आधारित हो जाता है, जिस का मजा प्रेमीप्रेमिका दोनों उठाते हैं, लेकिन इस मजे में हुई जरा सी चूक जीवनभर की सजा में तबदील हो सकती है जिस का खमियाजा ज्यादातर प्रेमी के बजाय प्रेमिका को भुगतना पड़ता है भले ही वह सामाजिक स्तर पर हो या शारीरिक परेशानियों के रूप में. यह प्यार का मजा सजा न बन जाए इसलिए कुछ बातों का ध्यान रखें.

सैक्स से पहले हिदायतें

बिना कंडोम न उठाएं सैक्स का मजा

एकदूसरे के प्यार में दीवाने हो कर उसे संपूर्ण रूप से पाने की इच्छा सिर्फ युवकों में ही नहीं बल्कि युवतियों में भी होती है. अपनी इसी ख्वाहिश को पूरा करने के लिए वे सैक्स तक करने को तैयार हो जाते हैं, लेकिन जोश में होश न खोएं. अगर आप अपने पार्टनर के साथ प्लान कर के सैक्स कर रहे हैं तो कंडोम का इस्तेमाल करना न भूलें. इस से आप सैक्स का बिना डर मजा उठा पाएंगे. यहां तक कि आप इस के इस्तेमाल से सैक्सुअल ट्रांसमिटिड डिसीजिज से भी बच पाएंगे.

अब नहीं चलेगा बहाना

अधिकांश युवकों की यह शिकायत होती है कि संबंध बनाने के दौरान कंडोम फट जाता है या फिर कई बार फिसलता भी है, जिस से वे चाह कर भी इस सेफ्टी टौय का इस्तेमाल नहीं कर पाते. वैसे तो यह निर्भर करता है कंडोम की क्वालिटी पर लेकिन इस के बावजूद कंडोम की ऐक्स्ट्रा सिक्योरिटी के लिए सैक्स टौय बनाने वाली स्वीडन की कंपनी लेलो ने हेक्स ब्रैंड नाम से एक कंडोम बनाया है जिस की खासीयत यह है कि सैक्स के दौरान पड़ने वाले दबाव का इस पर असर नहीं होता और अगर छेद हो भी तो उस की एक परत ही नष्ट होती है बाकी पर कोई असर नहीं पड़ता. जल्द ही कंपनी इसे मार्केट में उतारेगी.

ऐक्स्ट्रा केयर डबल मजा

आप के मन में विचार आ रहा होगा कि इस में डबल मजा कैसे उठाया जा सकता है तो आप को बता दें कि यहां डबल मजा का मतलब डबल प्रोटैक्शन से है, जिस में एक कदम आप का पार्टनर बढ़ाए वहीं दूसरा कदम आप यानी जहां आप का पार्टनर संभोग के दौरान कंडोम का इस्तेमाल करे वहीं आप गर्भनिरोधक गोलियों का. इस से अगर कंडोम फट भी जाएगा तब भी गर्भनिरोधक गोलियां आप को प्रैग्नैंट होने के खतरे से बचाएंगी, जिस से आप सैक्स का सुखद आनंद उठा पाएंगी.

कई बार ऐसी सिचुऐशन भी आती है कि दोनों एकदूसरे पर कंट्रोल नहीं कर पाते और बिना कोई सावधानी बरते एकदूसरे को भोगना शुरू कर देते हैं लेकिन जब होश आता है तब उन के होश उड़ जाते हैं. अगर आप के साथ भी कभी ऐसा हो जाए तो आपातकालीन गर्भनिरोधक गोलियों का सहारा लें लेकिन साथ ही डाक्टरी परामर्श भी लें, ताकि इस का आप की सेहत पर कोई दुष्प्रभाव न पड़े.

पुलआउट मैथड

पुलआउट मैथड को विदड्रौल मैथड के नाम से भी जाना जाता है. इस प्रक्रिया में योनि के बाहर लिंग निकाल कर वीर्यपात किया जाता है, जिस से प्रैग्नैंसी का खतरा नहीं रहता. लेकिन इसे ट्राई करने के लिए आप के अंदर सैल्फ कंट्रोल और खुद पर विश्वास होना जरूरी है.

सैक्स के बजाय करें फोरप्ले

फोरप्ले में एकदूसरे के कामुक अंगों से छेड़छाड़ कर के उन्हें उत्तेजित किया जाता है. इस में एकदूसरे के अंगों को सहलाना, उन्हें प्यार करना, किसिंग आदि आते हैं. लेकिन इस में लिंग का योनि में प्रवेश नहीं कराया जाता. सिर्फ होता है तन से तन का स्पर्श, मदहोश करने वाली बातें जिन में आप को मजा भी मिल जाता है, ऐंजौय भी काफी देर तक करते हैं.

अवौइड करें ओरल सैक्स

ओरल सैक्स नाम से जितना आसान सा लगता है वहीं इस के परिणाम काफी भयंकर होते हैं, क्योंकि इस में यौन क्रिया के दौरान गुप्तांगों से निकलने वाले फ्लूयड के संपर्क में व्यक्ति ज्यादा आता है, जिस से दांतों को नुकसान पहुंचने के साथसाथ एचआईवी का भी खतरा रहता है.

यदि इन खतरों को जानने के बावजूद आप इसे ट्राई करते हैं तो युवक कंडोम और युवतियां डेम का इस्तेमाल करें जो छोटा व पतला स्क्वेयर शेप में रबड़ या प्लास्टिक का बना होता है जो वैजाइना और मुंह के बीच दीवार की भूमिका अदा करता है जिस से सैक्सुअल ट्रांसमिटिड डिजीजिज का खतरा नहीं रहता.

पौर्न साइट्स को न करें कौपी

युवाओं में सैक्स को जानने की इच्छा प्रबल होती है, जिस के लिए वे पौर्न साइट्स को देख कर अपनी जिज्ञासा शांत करते हैं. ऐसे में पौर्न साइट्स देख कर उन के मन में उठ रहे सवाल तो शांत हो जाते हैं लेकिन मन में यह बात बैठ जाती है कि जब भी मौका मिला तब पार्टनर के साथ इन स्टैप्स को जरूर ट्राई करेंगे, जिस के चक्कर में कई बार भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है. लेकिन ध्यान रहे कि पौर्न साइट्स पर बहुत से ऐसे स्टैप्स भी दिखाए जाते हैं जिन्हें असल जिंदगी में ट्राई करना संभव नहीं लेकिन इन्हें देख कर ट्राई करने की कोशिश में हर्ट हो जाते हैं. इसलिए जिस बारे में जानकारी हो उसे ही ट्राई करें वरना ऐंजौय करने के बजाय परेशानियों से दोचार होना पड़ेगा.

सस्ते के चक्कर में न करें जगह से समझौता

सैक्स करने की बेताबी में ऐसी जगह का चयन न करें कि बाद में आप को लेने के देने पड़ जाएं. ऐसे किसी होटल में शरण न लें जहां इस संबंध में पहले भी कई बार पुलिस के छापे पड़ चुके हों. भले ही ऐसे होटल्स आप को सस्ते में मिल जाएंगे लेकिन वहां आप की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं होती.

हो सकता है कि रूम में पहले से ही कैमरे फिट हों और आप को ब्लैकमैल करने के उद्देश्य से आप के उन अंतरंग पलों को कैमरे में कैद कर लिया जाए. फिर उसी की आड़ में आप को ब्लैकमेल किया जा सकता है. इसलिए सावधानी बरतें.

अलकोहल, न बाबा न

कई बार पार्टनर के जबरदस्ती कहने पर कि यार बहुत मजा आएगा अगर दोनों वाइन पी कर रिलेशन बनाएंगे और आप पार्टनर के इतने प्यार से कहने पर झट से मान भी जाती हैं. लेकिन इस में मजा कम खतरा ज्यादा है, क्योंकि एक तो आप होश में नहीं होतीं और दूसरा पार्टनर इस की आड़ में आप के साथ चीटिंग भी कर सकता है. हो सकता है ऐसे में वह वीडियो क्लिपिंग बना ले और बाद में आप को दिखा कर ब्लैकमेल या आप का शोषण करे.

न दिखाएं अपना फोटोमेनिया

भले ही पार्टनर आप पर कितना ही जोर क्यों न डाले कि इन पलों को कैमरे में कैद कर लेते हैं ताकि बाद में इन पलों को देख कर और रोमांस जता सकें, लेकिन आप इस के लिए राजी न हों, क्योंकि आप की एक ‘हां’ आप की जिंदगी बरबाद कर सकती है.

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सैक्स के बाद के खतरे

ब्लैकमेलिंग का डर

अधिकांश युवकों का इंट्रस्ट युवतियों से ज्यादा उन से संबंध बनाने में होता है और संबंध बनाने के बाद उन्हें पहचानने से भी इनकार कर देते हैं. कई बार तो ब्लैकमेलिंग तक करते हैं. ऐसे में आप उस की ऐसी नाजायज मांगें न मानें.

बीमारियों से घिरने का डर

ऐंजौयमैंट के लिए आप ने रिलेशन तो बना लिया, लेकिन आप उस के बाद के खतरों से अनजान रहते हैं. आप को जान कर हैरानी होगी कि 1981 से पहले यूनाइटेड स्टेट्स में जहां 6 लाख से ज्यादा लोग ऐड्स से प्रभावित थे वहीं 9 लाख अमेरिकन्स एचआईवी से. यह रिपोर्ट शादी से पहले सैक्स के खतरों को दर्शाती है.

मैरिज टूटने का रिस्क भी

हो सकता है कि आप ने जिस के साथ सैक्स रिलेशन बनाया हो, किसी मजबूरी के कारण अब आप उस से शादी न कर पा रही हों और जहां आप की अब मैरिज फिक्स हुई है, आप के मन में यही डर होगा कि कहीं उसे पता लग गया तो मेरी शादी टूट जाएगी. मन में पछतावा भी रहेगा और आप इसी बोझ के साथ अपनी जिंदगी गुजारने को विवश हो जाएंगी.

डिप्रैशन का शिकार

सैक्स के बाद पार्टनर से जो इमोशनल अटैचमैंट हो जाता है उसे आप चाह कर भी खत्म नहीं कर पातीं. ऐसी स्थिति में अगर आप का पार्टनर से बे्रकअप हो गया फिर तो आप खुद को अकेला महसूस करने के कारण डिप्रैशन का शिकार हो जाएंगी, जिस से बाहर निकलना इतना आसान नहीं होगा.

कहीं प्रैग्नैंट न हो जाएं

आप अगर प्रैग्नैंट हो गईं फिर तो आप कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगी. इसलिए जरूरी है कोई भी ऐसावैसा कदम उठाने से पहले एक बार सोचने की, क्योंकि एक गलत कदम आप का भविष्य खराब कर सकता है. ऐसे में आप बदनामी के डर से आत्महत्या जैसा कदम उठाने में भी देर नहीं करेंगी.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Teej Special : कैमिकल वाली मेहंदी स्किन के लिए होती है खतरनाक, इस तरह बचें

मेहंदी लगाना हर महिलाओं को पसंद होता है कोई भी त्योहार हो, शादी या कोई भी फंकशन मेहंदी के बिना जश्न अधूरा ही रहता है. हर खुशियों में शामिल होने वाली मेहंदी के तारीफ तो हम सभी करते है लेकिन इससे होने वाली परेशानियों को हम नजरअंदाज कर देते है. पहले के समय में मेहंदी घर में ही पिस कर बनाया जाता था.लेकिन अब मेहंदी बाजारों में आसानी से मिल जाती हैऔर ज़्यादातर महिलाएं इन्हीं का इस्तेमाल करती है. बाजार में मिलने वाली मेहंदी हमारे स्किन के लिए खतरनाक भी साबित हो सकती है.

1. कैमिकल वाली मेहंदी

गाढ़े रंग के मेहंदी जब हथेली पर रच जाएं तो महिलाएं बहुत खुश हो जाती है. लेकिन इस गाढ़े रंग के पीछे खतरनाक रसायन होते हैं. पीपीडी, डायमीन, अमोनिया, हाइड्रोजन, औक्सीडेटिन ये कुछ ऐसे खतरनाक रसायन है जो मेंहंदी में मिलाएं जाते है.

2. कैमिकल का पड़ता है स्किन पर असर

खतरनाक कैमिकल के वजह से हथेली रूखी तो हो ही जाती है साथ ही इससे सूजन, जलन, खुजली जैसी दिक्कत भी हो जाती है. अगर ये खतरनाक कैमिकल में तैयार मेहंदी सूरज की किरणों के संपर्क में आ जाए तो इससे कैंसर होना का भी डर रहता है.

3. बालों में सोच-समझकर लगाए मेहंदी

आज के टाइम पर मेहंदी लगाना यानी खतरनाक कैमिकल से हाथ मिलाना हैं. मेहंदी को जहां हम सुंदर सुंदर डिज़ाइनों में हथेली पर लगाते है वहीं हम बालों की खूबसूरती निखारने के लिए भी मेहंदी का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन बालों में मेहंदी लगाने से कई तरह की दिक्कत हो सकती है जिस पर हम कभी गौर नहीं करते.

4. बाजारों में मिलती हैं कईं तरह की कैमिकल वाली मेंहंदी

बाजार में मिलने वाली मेहंदी में कई प्रकार के रसायन मिले होते है,जो पहले तो आपकी हाथों में मेहंदी के रंग को काफी गाढ़ा करते हैं, लेकिन उसके बाद यह आपकी स्कीन को उतना ही नुकसान पहुंचाते हैं.

परिंदा : अजनबी से एक मुलाकात ने कैसे बदली इशिता की जिंदगी

लेखक-रत्नेश कुमार

‘‘सुनिए, ट्रेन का इंजन फेल हो गया है. आगे लोकल ट्रेन

से जाना होगा.’’

आवाज की दिशा में पलकें उठीं तो उस का सांवला चेहरा देख कर पिछले ढाई घंटे से जमा गुस्सा आश्चर्य में सिमट गया. उस की सीट बिलकुल मेरे पास वाली थी मगर पिछले 6 घंटे की यात्रा के दौरान उस ने मुझ से कोई बात करने की कोशिश नहीं की थी.

हमारी ट्रेन का इंजन एक सुनसान जगह में खराब हुआ था. बाहर झांक कर देखा तो हड़बड़ाई भीड़ अंधेरे में पटरी के साथसाथ घुलती नजर आई.

अपनी पूरी शक्ति लगा कर भी मैं अपना सूटकेस बस, हिला भर ही पाई. बाहर कुली न देख कर मेरी सारी बहादुरी आंसू बन कर छलकने को तैयार थी कि उस ने अपना बैग मुझे थमाया और बिना कुछ कहे ही मेरा सूटकेस उठा लिया. मेरी समझ में नहीं आया कि क्या कुछ क हूं.

‘‘रहने दो,’’ मैं थोड़ी सख्ती से बोली.

‘‘डरिए मत, काफी भारी है. ले कर भाग नहीं पाऊंगा,’’ उस ने मुसकरा कर कहा और आगे बढ़ गया.

पत्थरों पर पांव रखते ही मुझे वास्तविकता का एहसास हुआ. रात के 11 बजे से ज्यादा का समय हो रहा था. घनघोर अंधेरे आकाश में बिजलियां आंखें मटका रही थीं और बारिश धीरेधीरे जोश में आ रही थी.

हमारे भीगने से पहले एक दूसरी ट्रेन आ गई लेकिन मेरी रहीसही हिम्मत भी हवा हो गई. ट्रेन में काफी भीड़ थी. उस की मदद से मुझे किसी तरह जगह मिल गई मगर उस बेचारे को पायदान ही नसीब हुआ. यह बात तो तय थी कि वह न होता तो उस सुनसान जगह में मैं…

आखिरी 3-4 स्टेशन तक जब ट्रेन कुछ खाली हो गई तब मैं उस का नाम जान पाई. अभिन्न कोलकाता से पहली बार गुजर रहा था जबकि यह मेरा अपना शहर था. इसलिए कालिज की छुट्टियों में अकेली ही आतीजाती थी.

हावड़ा पहुंच कर अभिन्न को पता चला कि उस की फ्लाइट छूट चुकी है और अगला जहाज कम से कम कल दोपहर से पहले नहीं था.

‘‘क्या आप किसी होटल का पता बता देंगी?’’ अभिन्न अपने भीगे कपड़ों को रूमाल से पोंछता हुआ बोला.

हम साथसाथ ही टैक्सी स्टैंड की ओर जा रहे थे. कुली ने मेरा सामान उठा रखा था.

लगभग आधे घंटे की बातचीत के बाद हम कम से कम अजनबी नहीं रह गए थे. वह भी कालिज का छात्र था और किसी सेमिनार में भाग लेने के लिए दूसरे शहर जा रहा था. टैक्सी तक पहुंचने से पहले मैं ने उसे 3-4 होटल गिना दिए.

‘‘बाय,’’ मेरे टैक्सी में बैठने के बाद उस ने हाथ हिला कर कहा. उस ने कभी ज्यादा बात करने की कोशिश नहीं की थी. बस, औपचारिकताएं ही पूरी हुई थीं मगर विदा लेते वक्त उस के शब्दों में एक दोस्ताना आभास था.

‘‘एक बात पूछूं?’’ मैं ने खिड़की से गरदन निकाल कर कुछ सोचते हुए कहा.

एक जोरदार बिजली कड़की और उस की असहज आंखें रोशन हो गईं. शायद थकावट के कारण मुझे उस का चेहरा बुझाबुझा लग रहा था.

उस ने सहमति में सिर हिलाया. वैसे तो चेहरा बहुत आकर्षक नहीं था लेकिन आत्मविश्वास और शालीनता के ऊपर बारिश की नन्ही बूंदें चमक रही थीं.

‘‘यह शहर आप के लिए अजनबी है और हो सकता है आप को होटल में जगह न भी मिले,’’ कह कर मैं थोड़ी रुकी, ‘‘आप चाहें तो हमारे साथ हमारे घर चल सकते हैं?’’

उस के चेहरे पर कई प्रकार की भावनाएं उभर आईं. उस ने प्रश्न भरी निगाहों से मुझे देखा.

‘‘डरिए मत, आप को ले कर भाग नहीं जाऊंगी,’’ मैं खिलखिला पड़ी तो वह झेंप गया. एक छोटी सी हंसी में बड़ीबड़ी शंकाएं खो जाती हैं.

वह कुछ सोचने लगा. मैं जानती थी कि वह क्या सोच रहा होगा. एक अनजान लड़की के साथ इस तरह उस के घर जाना, बहुत अजीब स्थिति थी.

‘‘आप को बेवजह तकलीफ होगी,’’ आखिरकार अभिन्न ने बहाना ढूंढ़ ही निकाला.

‘‘हां, होगी,’’ मैं गंभीर हो कर बोली, ‘‘वह भी बहुत ज्यादा यदि आप नहीं चलेंगे,’’ कहते हुए मैं ने अपने साथ वाला गेट खोल दिया.

वह चुपचाप आ कर टैक्सी में बैठ गया. इंसानियत के नाते मेरा क्या फर्ज था पता नहीं, लेकिन मैं गलत कर रही हूं या सही यह सोचने की नौबत ही नहीं आई.

मैं रास्ते भर सोचती रही कि चलो, अंत भला तो सब भला. मगर उस दिन तकदीर गलत पटरी पर दौड़ रही थी. घर पहुंच कर पता चला कि पापा बिजनेस ट्रिप से एक दिन बाद लौटेंगे और मम्मी 2 दिन के लिए रिश्तेदारी में दूसरे शहर चली गई हैं. हालांकि चाबी हमारे पास थी लेकिन मैं एक भयंकर विडंबना में फंस गई.

‘‘मुझे होटल में जगह मिल जाएगी,’’ अभिन्न टैक्सी की ओर पलटता हुआ बोला. उस ने शायद मेरी दुविधा समझ ली थी.

‘‘आप हमारे घर से यों ही नहीं लौट सकते हैं. वैसे भी आप काफी भीग चुके हैं. कहीं तबीयत बिगड़ गई तो आप सेमिनार में नहीं जा पाएंगे और मैं इतनी डरपोक भी नहीं हूं,’’ भले ही मेरे दिल में कई आशंकाएं उठ रही थीं पर ऊपर से बहादुर दिखना जरूरी था.

कुछ देर में हम घर के अंदर थे. हम दोनों बुरी तरह से सहमे हुए थे. यह बात अलग थी कि दोनों के अपनेअपने कारण थे.

मैं ने उसे गेस्टरूम का नक्शा समझा दिया. वह अपने कपड़ों के साथ चुपचाप बाथरूम की ओर बढ़ गया तो मैं कुछ सोचती हुई बाहर आई और गेस्टरूम की कुंडी बाहर से लगा दी. सुरक्षा की दृष्टि से यह जरूरी था. दुनियादारी के पहले पाठ का शीर्षक है, शक. खींचतेधकेलते मैं सूटकेस अपने कमरे तक ले गई और स्वयं को व्यवस्थित करने लगी.

‘‘लगता है दरवाजा फंसता है?’’ अभिन्न गेस्टरूम के दरवाजे को गौर से देखता हुआ बोला. उस ने कम से कम 5 मिनट तक दरवाजा तो अवश्य ठकठकाया होगा जिस के बारे में मैं भूल गई थी.

‘‘हां,’’ मैं ने तपाक से झूठ बोल दिया ताकि उसे शक न हो, पर खुद पर ही यकीन न कर पाई. फिर मेरी मुश्किलें बढ़ती जा रही थीं.

किचन से मुझे जबरदस्त चिढ़ थी और पढ़ाई के बहाने मम्मी ने कभी जोर नहीं दिया था. 1-2 बार नसीहतें मिलीं भी तो एक कान से सुनी दूसरे से निकल गईं. फ्रिज खोला तो आंसू जमते हुए महसूस होने लगे. 1-2 हरी सब्जी को छोड़ कर उस में कुछ भी नहीं था. अगर घर में कोई और होता तो आसमान सिर पर उठा लेती मगर यहां खुद आसमान ही टूट पड़ा था.

एक बार तो इच्छा हुई कि उसे चुपचाप रफादफा करूं और खुद भूख हड़ताल पर डट जाऊं. लेकिन बात यहां आत्मसम्मान पर आ कर अटक गई थी. दिमाग का सारा सरगम ही बेसुरा हो गया था. पहली बार अफ सोस हुआ कि कुछ पकाना सीख लिया होता.

‘‘मैं कुछ मदद करूं?’’

आवाज की ओर पलट कर देखा तो मन में आया कि उस की हिम्मत के लिए उसे शौर्यचक्र तो मिलना ही चाहिए. वह ड्राइंगरूम छोड़ कर किचन में आ धमका था.

‘दफा हो जाओ यहां से,’ मेरे मन में शब्द कुलबुलाए जरूर थे मगर प्रत्यक्ष में मैं कुछ और ही कह गई, ‘‘नहीं, आप बैठिए, मैं कुछ पकाने की कोशिश करती हूं,’’ वैसे भी ज्यादा सच बोलने की आदत मुझे थी नहीं.

‘‘देखिए, आप इतनी रात में कुछ करने की कोशिश करें इस से बेहतर है कि मैं ही कुछ करूं,’’ वह धड़धड़ा कर अंदर आ गया और किचन का जायजा लेने लगा. उस के होंठों पर बस, हलकी सी मुसकान थी.

मैं ठीक तरह से झूठ नहीं बोल पा रही थी इसलिए आंखें ही इशारों में बात करने लगीं. मैं चाह कर भी उसे मना नहीं कर पाई. कारण कई हो सकते थे मगर मुझे जोरदार भूख लगी थी और भूखे इनसान के लिए तो सबकुछ माफ है. मैं चुपचाप उस की मदद करने लगी.

10 मिनट तक तो उस की एक भी गतिविधि समझ में नहीं आई. मुझे पता होता कि खाना पकाना इतनी चुनौती का काम है तो एक बार तो जरूर पराक्रम दिखाती. उस ने कढ़ाई चढ़ा कर गैस जला दी. 1-2 बार उस से नजर मिली तो इच्छा हुई कि खुद पर गरम तेल डाल लूं, मगर हिम्मत नहीं कर पाई. मुझे जितना समझ में आ रहा था उतना काम करने लगी.

‘‘यह आप क्या कर रही हैं?’’

मैं पूरी तल्लीनता से आटा गूंधने में लगी थी कि उस ने मुझे टोक  दिया. एक तो ऐसे काम मुझे बिलकुल पसंद नहीं थे और ऊपर से एक अजनबी की रोकटोक, मैं तिलमिला उठी.

‘‘दिखता नहीं, आटा गूंध रही हूं,’’ मैं ने मालिकाना अंदाज में कहा, पर लग रहा था कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है. मैं ने एक बार उस की ओर नजर उठाई तो उस की दबीदबी हंसी भी दुबक गई.

‘‘आप रहने दें, मैं कर लूंगा,’’ उस ने विनती भरे स्वर में कहा.

आटा ज्यादा गीला तो नहीं था मगर थोड़ा पानी और मिलाती तो मिल्क शेक अवश्य बन जाता.

हाथ धोने बेसिन पर पहुंची तो आईना देख कर हृदय हाहाकार कर उठा. कान, नाक, होंठ, बाल, गाल यानी कोई ऐसी जगह नहीं बची थी जहां आटा न लगा हो. एक बार तो मेरे होंठों पर भी हंसी फिसल गई.

मैं जानबूझ कर किचन में देर से लौटी.

‘‘आइए, खाना बस, तैयार ही है,’’ उस ने मेरा स्वागत यों किया जैसे वह खुद के घर में हो और मैं मेहमान.

इतनी शर्मिंदगी मुझे जीवन में कभी नहीं हुई थी. मैं उस पल को कोसने लगी जिस पल उसे घर लाने का वाहियात विचार मेरे मन में आया था. लेकिन अब तीर कमान से निकल चुका था. किसी तरह से 5-6 घंटे की सजा काटनी थी.

मैं फ्रिज से टमाटर और प्याज निकाल कर सलाद काटने लगी. फिलहाल यही सब से आसान काम था मगर उस पर नजर रखना नहीं भूली थी. वह पूरी तरह तन्मय हो कर रोटियां बेल रहा था.

‘‘क्या कर रही हैं आप?’’

‘‘आप को दिखता कम है क्या…’’ मेरे गुस्से का बुलबुला फटने ही वाला था कि…

‘‘मेरा मतलब,’’ उस ने मेरी बात काट दी, ‘‘मैं कर रहा हूं न,’’ उसे भी महसूस हुआ होगा कि उस की कुछ सीमाएं हैं.

‘‘क्यों, सिर्फ काटना ही तो है,’’ मैं उलटे हाथों से आंखें पोंछती हुई बोली. अब टमाटर लंबा रहे या गोल, रहता तो टमाटर ही न. वही कहानी प्याज की भी थी.

‘‘यह तो ठीक है इशिताजी,’’ उस ने अपने शब्दों को सहेजने की कोशिश की, ‘‘मगर…इतने खूबसूरत चेहरे पर आंसू अच्छे नहीं लगते हैं न.’’

मैं सकपका कर रह गई. सुंदर तो मैं पिछले कई घंटों से थी पर इस तरह बेवक्त उस की आंखों का दीपक जलना रहस्यमय ही नहीं खतरनाक भी था. मुझे क्रोध आया, शर्म आई या फिर पता नहीं क्या आया लेकिन मेरा दूधिया चेहरा रक्तिम अवश्य हो गया. फिर मैं इतनी बेशर्म तो थी नहीं कि पलकें उठा कर उसे देखती.

उजाले में आंखें खुलीं तो सूरज का कहीं अतापता नहीं था. शायद सिर पर चढ़ आया हो. मैं भागतीभागती गेस्टरूम तक गई. अभिन्न लेटेलेटे ही अखबार पलट रहा था.

‘‘गुडमार्निंग…’’ मैं ने अपनी आवाज से उस का ध्यान खींचा.

‘‘गुडमार्निंग,’’ उस ने तत्परता से जवाब दिया, ‘‘पेपर उधर पड़ा था,’’ उस ने सफाई देने की कोशिश की.

‘‘कोई बात नहीं,’’ मैं ने टाल दिया. जो व्यक्ति रसोई में धावा बोल चुका था उस ने पेपर उठा कर कोई अपराध तो किया नहीं था.

‘‘मुझे कल सुबह की फ्लाइट में जगह मिल गई है,’’ उसे यह कहने में क्या प्रसन्नता हुई यह तो मुझे पता नहीं लेकिन मैं आशंकित हो उठी, ‘‘सौरी, वह बिना पूछे ही आप का फोन इस्तेमाल कर लिया,’’ उस ने व्यावहारिकतावश क्षमा मांग ली, ‘‘अब मैं चलता हूं.’’

‘‘कहां?’’

अभिन्न ने मुझे यों देखा जैसे पहली बार देख रहा हो. प्रश्न तो बहुत सरल था मगर मैं जिस सहजता से पूछ बैठी थी वह असहज थी. मुझे यह भी आभास नहीं हुआ कि यह ‘कहां’ मेरे मन में कहां से आ गया. मेरी रहीसही नींद भी गायब हो गई.

कितने पलों तक कौन शांत रहा पता नहीं. मैं तो बिलकुल किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई थी.

‘‘10 बज गए हैं,’’ ऐसा नहीं था कि घड़ी देखनी मुझे नहीं आती हो मगर कुछ कहना था इसलिए उस ने कह दिया होगा.

‘‘ह…हां…’’ मेरी शहीद हिम्मत को जैसे संजीवनी मिल गई, ‘‘आप चाहें तो इधर रुक सकते हैं, बस, एक दिन की बात तो है.’’

मैं ने जोड़तोड़ कर के अपनी बात पूरी तो कर दी मगर अभिन्न दुविधा में फंस गया.

उस की क्या इच्छा थी यह तो मुझे पता न था लेकिन उस की दुविधा मेरी विजय थी. मेरी कल्पना में उस की स्थिति उस पतंग जैसी थी जो अनंत आकाश में कुलांचें तो भर सकती थी मगर डोर मेरे हाथ में थी. पिछले 15 घंटों में यह पहला सुखद अनुभव था. मेरा मन चहचहा उठा.

‘‘फिर से खाना बनवाने का इरादा तो नहीं है?’’

उस के इस प्रश्न से तो मेरे अरमानों की दुनिया ही चरमरा गई. पता नहीं उस की काया किस मिट्टी की बनी थी, मुझे तो जैसे प्रसन्न देख ही नहीं सकता था.

‘‘अब तो आप को यहां रुकना ही पड़ेगा,’’ मैं ने अपना फैसला सुना दिया. वास्तव में मैं किसी ऐसे अवसर की तलाश में थी कि कुछ उस की भी खबर ली जा सके.

‘‘एक शर्त पर, यदि खाना आप पकाएं.’’

उस ने मुसकरा कर कहा था, सारा घर खिलखिला उठा. मैं भी.

‘‘चलिए, आज आप को अपना शहर दिखा लाऊं.’’

मेरे दिमाग से धुआं छटने लगा था इसलिए कुछ षड्यंत्र टिमटिमाने लगे थे. असल में मैं खानेपीने का तामझाम बाहर ही निबटाना चाहती थी. रसोई में जाना मेरे लिए सरहद पर जाने जैसा था. मैं ने जिस अंदाज में अपना निर्णय सुनाया था उस के बाद अभिन्न की प्रतिक्रियाएं काफी कम हो गई थीं. उस ने सहमति में सिर हिला दिया.

‘‘मैं कुछ देर में आती हूं,’’ कह कर मैं फिर से अंदर चली गई थी.

आखिरी बार खुद को आईने में निहार कर कलाई से घड़ी लपेटी तो दिल फूल कर फुटबाल बन गया. नानी, दादी की मैं परी जैसी लाडली बेटी थी. कालिज में लड़कों की आशिक निगाहों ने एहसास दिला दिया था कि बहुत बुरी नहीं दिखती हूं. मगर वास्तव में खूबसूरत हूं इस का एहसास मुझे कभीकभार ही हुआ था. गहरे बैगनी रंग के सूट में खिलती गोरी बांहें, मैच नहीं करती मम्मी की गहरी गुलाबी लिपस्टिक और नजर नहीं आती काजल की रेखाएं. बचीखुची कमी बेमौसम उमड़ आई लज्जा ने पूरी कर दी थी. एक बार तो खुद पर ही सीटी बजाने को दिल मचल गया.

घड़ी की दोनों सुइयां सीधेसीधे आलिंगन कर रही थीं.

‘‘चलें?’’ मैं ने बड़ी नजाकत से गेस्टरूम के  दरवाजे पर दस्तक दी.

‘‘बस, एक मिनट,’’ उस ने अपनी नजर एक बार दरवाजे से घुमा कर वापस कैमरे पर टिका दी.

मैं तब तक अंदर पहुंच चुकी थी. थोड़ी ऊंची सैंडल के कारण मुझे धीरेधीरे चलना पड़ रहा था.

उस ने मेरी ओर नजरें उठाईं और जैसे उस की पलकें जम गईं. कुछ पलों तक मुझे महसूस हुआ सारी सृष्टि ही मुझे निहारने को थम गई है.

‘‘चलें?’’ मैं ने हौले से उस की तंद्रा भंग की तो लगा जैसे वह नींद से जागा.

‘‘बिलकुल नहीं,’’ उस ने इतने सीधे शब्दों में कहा कि मैं उलझ कर रह गई.

‘‘क्यों? क्या हुआ?’’ मेरी सारी अदा आलोपित हो गई.

‘‘क्या हुआ? अरे मैडम, लंगूर के साथ हूर देख कर तो शहर वाले हमारा काम ही तमाम कर देंगे न,’’ उस ने भोलेपन से जवाब दिया.

ऐसा न था कि मेरी प्रशंसा करने वाला वह पहला युवक था लेकिन ऐसी विचित्र बात किसी ने नहीं कही थी. उस की बात सुन कर और लड़कियों पर क्या गुजरती पता नहीं लेकिन शरम के मारे मेरी धड़कनें हिचकोले खाने लगीं.

टैक्सी में उस ने कितनी बार मुझे देखा पता नहीं लेकिन 3-4 बार नजरें मिलीं तो वह खिड़की के बाहर परेशान शहर को देखने लगता. यों तो शांत लोग मुझे पसंद थे मगर मौन रहना खलने लगा तो बिना शीर्षक और उपसंहार के बातें शुरू कर दीं.

अगर दिल में ज्यादा कपट न हो तो हृदय के मिलन में देर नहीं लगती है. फिर हम तो हमउम्र थे और दिल में कुछ भी नहीं था. जो मन में आता झट से बोल देती.

‘‘क्या फिगर है?’’

उस की ऊटपटांग बातें मुझे अच्छी लगने लगी थीं. मैं ने शरमाते हुए कनखियों से उस की भावभंगिमाएं देखने की कोशिश की तो मेरे मन में क्रोध की सुनामी उठने लगी. वह मेरी नहीं संगमरमर की प्रतिमा की बात कर रहा था. जब तक उस की समझ में आता कि उस ने क्या गुस्ताखी की तब तक मैं उसे खींचती हुई विक्टोरिया मेमोरियल से बाहर ले आई.

‘‘मैं आप की एक तसवीर उतार लूं?’’ अभिन्न ने अपना कैमरा निकालते हुए पूछा.

‘‘नहीं,’’ जब तक मैं उस का प्रश्न समझ कर एक अच्छा सा उत्तर तैयार करती एक शब्द फुदक कर बाहर आ गया. मेरे मन में थोड़ा नखरा करने का आइडिया आया था.

‘‘कोई बात नहीं,’’ उस ने यों कंधे उचकाए जैसे इसी उत्तर के लिए तैयार बैठा हो.

मैं गुमशुम सी तांबे की मूर्ति के साथ खड़ी हो गई जहां ज्यादातर लोग फोटो खिंचवाते थे. वह खुशीखुशी कैमरे में झांकने लगा.

‘‘जरा उधर…हां, ठीक है. अब जरा मुसकराइए.’’

उस की हरकतें देख मेरे चेहरे पर वे तमाम भावनाएं आ सकती थीं सिवा हंसने के. मैं ने उसे चिढ़ाने के लिए विचित्र मुद्रा में बत्तीसी खिसोड़ दी. उस ने झट बटन दबा दिया. मेरा नखरे का सारा नशा उतर गया.

रास्ते में पड़े पत्थरों को देख कर खयाल आया कि चुपके से एक पत्थर उठा कर उस का सिर तोड़ दूं. कमाल का लड़का था, जब साथ में इतनी सुंदर लड़की हो तो थोड़ाबहुत भाव देने में उस का क्या चला जाता. मेरा मन खूंखार होने लगा.

‘‘चलिए, थोड़ा रक्तदान कर दिया जाए?’’ रक्तदान का चलताफिरता शिविर देख कर मुझे जैसे मुंहमांगी मुराद मिल गई. मैं बस, थोड़ा सा कष्ट उसे भी देना चाहती थी.

‘‘नहीं, अभी नहीं. अभी मुझे बाहर जाना है.’’

‘‘चलिए, आप न सही मगर मैं रक्तदान करना चाहती हूं,’’ मुझे उसे नीचा दिखाने का अवसर मिल गया.

‘‘आप हो आइए, मैं इधर ही इंतजार करता हूं,’’ उस ने नजरें चुराते हुए कहा.

मैं इतनी आसानी से मानने वाली नहीं थी. उसे लगभग जबरदस्ती ले कर गाड़ी तक पहुंची. नामपता लिख कर जब नर्स ने सूई निकाली तो मेरी सारी बहादुरी ऐसे गायब हो गई जैसे मैं कभी बहादुर थी ही नहीं. पलभर के लिए इच्छा हुई कि चुपचाप खिसक लूं मगर मैं उसे दर्द का एहसास कराना चाहती थी.

किसी तरह खुद को बहलाफुसला कर लेट गई. खुद का खून देखने का शौक कभी रहा नहीं इसलिए नर्स की विपरीत दिशा में देखने लगी. गाड़ी में ज्यादा जगह न होने की वजह से वह बिलकुल पास ही खड़ा था. चेहरे पर ऐसी लकीरें थीं जैसे कोई उस के दिल में सूई चुभो रहा हो.

दर्द और घबराहट का बवंडर थमा तो वह मेरी हथेली थामे मुझे दिलासा दे रहा था. मेरी आंखों में थोड़े आंसू जरूर जमा हो गए होंगे. मन भी काफी भारी लगने लगा था.

बाहर आने से पहले मैं ने 2 गिलास जूस गटक लिया था और बहुत मना करने के बाद भी डाक्टरों ने उस का ब्लड सैंपल ले लिया.

इंडियन म्यूजियम से निकल कर हम ‘मैदान’ में आ गए. गहराते अंधकार के साथ हमेशा की तरह लोगों की संख्या घटने लगी थी और जोड़े बढ़ने लगे थे. यहां अकसर प्रेमी युगल खुले आकाश के नीचे बैठ सितारों के बीच अपना आशियाना बनाते थे. इच्छा तो बिलकुल नहीं थी लेकिन मैं ने सोच रखा था कि खानेपीने का कार्यक्रम निबटा कर ही वापस लौटूंगी. हम दोनों भी अंधेरे का हिस्सा बन गए.

मैं कुछ ज्यादा ही थकावट महसूस कर रही थी. इसलिए अनजाने ही कब उस की गोद में सिर रख कर लेट गई पता ही नहीं चला. मेरी निगाहें आसमान में तारों के बीच भटकने लगीं.

वे अगणित सितारे हम से कितनी दूर होते हैं. हम उन्हें रोज देखा करते हैं. वे भी मौन रह कर हमें बस, देख लिया करते हैं. हम कभी उन से बातें करने की कोशिश नहीं करते हैं. हम कभी उन के बारे में सोचते ही नहीं हैं क्योंकि हमें लगता ही नहीं है कि वे हम से बात कर सकते हैं, हमें सुन सकते हैं, हमारे साथ हंस सकते हैं, सिसक सकते हैं. हम कभी उन्हें याद रखने की कोशिश नहीं करते हैं क्योंकि हम जानते हैंकि कल भी वे यहीं थे और कल भी वे यही रहेंगे.

मुझे अपने माथे पर एक शीतल स्पर्श का एहसास हुआ. शायद शीतल हवा मेरे ललाट को सहला कर गुजर गई.

सुबह दरवाजे पर ताबड़तोड़ थापों से मेरी नींद खुली. मम्मी की चीखें साफ सुनाई दे रही थीं. मैं भाग कर गेस्टरूम में पहुंची तो कोई नजर नहीं आया. मैं दरवाजे की ओर बढ़ गई.

4 दिन बाद 2 चिट्ठियां लगभग एकसाथ मिलीं. मैं ने एक को खोला. एक तसवीर में मैं तांबे की मूर्ति के बगल में विचित्र मुद्रा में खड़ी थी. साथ में एक कागज भी था. लिखा था :

‘‘इशिताजी,

मैं बड़ीबड़ी बातें करना नहीं जानता, लेकिन कुछ बातें जरूर कहना चाहूंगा जो मेरे लिए शायद सबकुछ हैं. आप कितनी सुंदर हैं यह तो कोई भी आंख वाला समझ सकता है लेकिन जो अंधा है वह इस सच को जानता है कि वह कभी आप को नहीं देख पाएगा. जैसे हर लिखे शब्द का कोई अर्थ नहीं होता है वैसे ही हर भावना के लिए शब्द नहीं हैं, इसलिए मैं ज्यादा लिख भी नहीं सकता. मगर एक चीज ऐसी है जो आप से कहीं अधिक खूबसूरत है, वह है आप का दिल.

हम जीवन में कई चीजों को याद रखने की कोशिश नहीं करते हैं क्योंकि वे हमेशा हमारे साथ होती हैं और कुछ चीजों को याद रखने का कोई मतलब नहीं होता क्योंकि वे हमारे साथ बस, एक बार होती हैं.

सच कहूं तो आप के साथ गुजरे 2 दिन में मैं ठीक से मुसकरा भी नहीं सका था. जब इतनी सारी हंसी एकसाथ मिल जाए तो इन्हें खोने का गम सताने लगता है. उन 2 दिनों के सहारे तो मैं दो जनम जी लेता फिर ये जिंदगी तो दो पल की है. जानता हूं दुनिया गोल है, बस रास्ते कुछ ज्यादा ही लंबे निकल आते हैं.

जब हम अपने आंगन में खड़े होते हैं तो कभीकभार एक पंछी मुंडेर पर आ बैठता है. हमें पता नहीं होता है कि वह कहां से आया. हम बस, उसे देखते हैं, थोड़ा गुस्साते हैं, थोड़ा हंसते भी हैं और थोड़ी देर में वह वापस उड़ जाता है. हमें पता नहीं होता है कि वह कहां जाएगा और उसे याद रखने की जरूरत कभी महसूस ही नहीं होती है.

जीवन के कुछ लमहे हमारे नाम करने का शुक्रिया.

-एक परिंदा.’’

दूसरी चिट्ठी में ब्लड रिपोर्ट थी. मुझे अपने बारे में पता था. अभिन्न की जांच रिपोर्ट देख कर पलकें उठाईं तो महसूस हुआ कि कोई परिंदा धुंधले आकाश में उड़ चला है…अगणित सितारों की ओर…दिल में  चुभन छोड़ कर.

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