बंद गले का कोट: क्या हुआ था सुनील के साथ

मास्को में गरमी का मौसम था. इस का मतलब यह नहीं कि वहां सूरज अंगारे उगलने लगा था, बल्कि यह कहें कि सूरज अब उगने लगा था, वरना सर्दी में तो वह भी रजाई में दुबका बैठा रहता था. सूरज की गरमी से अब 6 महीने से जमी हुई बर्फ पिघलने लगी थी. कहींकहीं बर्फ के अवशेष अंतिम सांसें गिनते दिखाई देते थे. पेड़ भी अब हरेभरे हो कर झूमने लगे थे, वरना सर्दी में तो वे भी ज्यादातर बर्फ में डूबे रहते थे. कुल मिला कर एक भारतीय की नजर से मौसम सुहावना हो गया था. यानी ओवरकोट, मफलर, टोपी, दस्ताने वगैरा त्याग कर अब सर्दी के सामान्य कपड़ों में घूमाफिरा जा सकता था. रूसी लोग जरूर गरमी के कारण हायहाय करते नजर आते थे. उन के लिए तो 24 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पारा हुआ नहीं कि उन की हालत खराब होने लगती थी और वे पंखे के नीचे जगह ढूंढ़ने लगते थे. बड़े शोरूमों में एयर कंडीशनर भी चलने लगे थे.

सुनील दूतावास में तृतीय सचिव के पद पर आया था. तृतीय सचिव का अर्थ था कि चयन और प्रशिक्षण के बाद यह उस की पहली पोस्टिंग थी, जिस में उसे साल भर देश की भाषा और संस्कृति का औपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त करना था और साथ ही दूतावास के कामकाज से भी परिचित होना था. वह आतेजाते मुझे मिल जाता और कहता, ‘‘कहिए, प्रोफेसर साहब, क्या चल रहा है?’’

‘‘सब ठीक है, आप सुनाइए, राजदूत महोदय,’’ मैं जवाब देता.

हम दोनों मुसकानों का आदानप्रदान करते और अपनीअपनी राह लेते. रूस में रहते हुए अपनी भारतीय संस्कृति के प्रति प्रेमप्रदर्शन के लिए और भारतीयों की अलग पहचान दिखाने के लिए मैं बंद गले का सूट पहनता था. रूसी लोग मेरी पोशाक से बहुत आकर्षित होते थे. वे मुझे देख कर कुछ इशारे वगैरा करने लगते. कुछ लोग मुसकराते और ‘इंदीइंदी’ (भारतीयभारतीय) कहते. कुछ मुझे रोक कर मुझ से हाथ मिलाते. कुछ मेरे साथ खडे़ हो कर फोटो खिंचवाते. कुछ ‘हिंदीरूसी भाईभाई’ गाने लगते. सुनील को भी मेरा सूट पसंद था और वह अकसर उस की तारीफ करता था.

यों पोशाक के मामले में सुनील खुद स्वच्छंद किस्म का जीव था. वह अकसर जींस, स्वेटर वगैरा पहन कर चला आता था. कदकाठी भी उस की छोटी और इकहरी थी. बस, उस के व्यवहार में भारतीय विदेश सेवा का कर्मचारी होने का थोड़ा सा गरूर था.

मैं ने कभी उस की पोशाक वगैरा पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन एक दिन अचानक वह मुझे बंद गले का सूट पहने नजर आया. मुझे लगा कि मेरी पोशाक से प्रभावित हो कर उस ने भी सूट बनवाया है. मुझे खुशी हुई कि मैं ने उसे पोशाक के मामले में प्रेरित किया.

‘‘अरे, आज तो आप पूरे राजदूत नजर आ रहे हैं,’’ मैं ने कहा, ‘‘सूट आप पर बहुत फब रहा है.’’

उस ने पहले तो मुझे संदेह की नजरों से देखा, फिर हलके से ‘धन्यवाद’ कहा और ‘फिर मिलते हैं’ का जुमला हवा में उछाल कर चला गया. मुझे उस का यह व्यवहार बहुत अटपटा लगा. मैं सोचने लगा कि मैं ने ऐसा क्या कह दिया कि वह उखड़ गया. मुझे कुछ समझ नहीं आया. इस पर ज्यादा सोचविचार करना मैं ने व्यर्थ समझा और यह सोच कर संतोष कर लिया कि उसे कोई काम वगैरा होगा, इसलिए जल्दी चला गया.

तभी सामने से हीरा आता दिखाई दिया. वह कौंसुलेट में निजी सहायक के पद पर था.

‘‘क्या बात हो रही थी सुनील से?’’ उस ने शरारतपूर्ण ढंग से पूछा.

‘‘कुछ नहीं,’’ मैं ने बताया, ‘‘पहली बार सूट में दिखा, तो मैं ने तारीफ कर दी और वह मुझे देखता चला गया, मानो मैं ने गाली दे दी हो.’’

‘‘तुम्हें पता नहीं?’’ हीरा ने शंकापूर्वक कहा.

‘‘क्या?’’ मुझे जिज्ञासा होना स्वाभाविक था.

‘‘इस सूट का राज?’’ उस ने कहा.

‘‘सूट का राज? सूट का क्या राज, भई?’’ मैं ने भंवें सिकोड़ते हुए पूछा.

‘‘असल में इसे पिछले हफ्ते मिलित्सिया वाले (पुलिस वाले) ने पकड़ लिया था,’’ उस ने बताया, ‘‘वह बैंक गया था पैसा निकलवाने. बैंक जा रहा था तो उस के 2 साथियों ने भी उसे अपने चेक दे दिए. वह बैंक से निकला तो उस की जेब में 3 हजार डालर थे.

‘‘वह बाहर आ कर टैक्सी पकड़ने ही वाला था कि मिलित्सिया का सिपाही आया और इसे सलाम कर के कहा कि ‘दाक्यूमेत पजालस्ता (कृपया दस्तावेज दिखाइए).’ इस ने फट से अपना राजनयिक पहचानपत्र निकाल कर उसे दिखा दिया. वह बड़ी देर तक पहचानपत्र की जांच करता रहा फिर फोटो से उस का चेहरा मिलाता रहा. इस के बाद इस की जींस और स्वेटर पर गौर करता रहा, और अंत में उस ने अपना निष्कर्ष उसे बताया कि यह पहचानपत्र नकली है.’’

‘‘सुनील को जितनी भी रूसी आती थी, उस का प्रयोग कर के उस ने सिपाही को समझाने की कोशिश की कि पहचानपत्र असली है और वह सचमुच भारतीय दूतावास में तृतीय सचिव है. लेकिन सिपाही मानने के लिए तैयार नहीं था. फिर उस ने कहा कि ‘दिखाओ, जेब में क्या है?’ और जेबें खाली करवा कर 3 हजार डालर अपने कब्जे में ले लिए. अब सुनील घबराया, क्योंकि उसे मालूम था कि मिलित्सिया वाले इस तरह से एशियाई लोगों को लूट कर चल देते हैं और फिर उस की कोई सुनवाई नहीं होती. अगर कोई काररवाई होती भी है तो वह न के बराबर होती है. मिलित्सिया वाले तो 100-50 रूबल तक के लिए यह काम करते हैं, जबकि यहां तो मसला 3 हजार डालर यानी 75 हजार रूबल का था.’’

‘‘उस ने फिर से रूसी में कुछ कहने की कोशिश की लेकिन मिलित्सिया वाला भला अब क्यों सुनता. वह तो इस फिराक में था कि पैसा और पहचानपत्र दोनों ले कर चंपत हो जाए, लेकिन सुनील के भाग्य से तभी वहां मिलित्सिया की गाड़ी आ गई. उस में से 4 सिपाही निकले, जिन में से 2 के हाथों में स्वचालित गन थीं. उन्हें देख कर सुनील को लगा कि शायद अब वह और उस के पैसे बच जाएं.

‘‘वे सिपाही वरिष्ठ थे, इसलिए पहले सिपाही ने उन्हें सैल्यूट कर के उन्हें सारा माजरा बताया और फिर मन मार कर पहचानपत्र और राशि उन के हवाले कर दी और कहा कि उसे शक है कि यह कोई चोरउचक्का है. उन सिपाहियों ने सुनील को ऊपर से नीचे तक 2 बार देखा. मौका देख कर सुनील ने फिर से अपने रूसी ज्ञान का प्रयोग करना चाहा, लेकिन उन्होंने कुछ सुनने में रुचि नहीं ली और आपस में कुछ जोड़तोड़ जैसा करने लगे. इस पर सुनील की अक्ल ने काम किया और उस ने उन्हें अंगरेजी में जोरों से डांटा और कहा कि वह विदेश मंत्रालय में इस बात की सख्त शिकायत करेगा.

‘‘उन्हें अंगरेजी कितनी समझ में आई, यह तो पता नहीं, लेकिन वे कुछ प्रभावित से हुए और उन्होंने सुनील को कार में धकेला और कार चला दी. पहला सिपाही हाथ मलता और वरिष्ठों को गालियां देता वहीं रह गया. अब तो सुनील और भी घबरा गया, क्योंकि अब तक तो सिर्फ पैसा लुटने का डर था, लेकिन अब तो ये सिपाही न जाने कहां ले जाएं और गोली मार कर मास्कवा नदी में फेंक दें. उस का मुंह रोने जैसा हो गया और उस ने कहा कि वह दूतावास में फोन करना चाहता है. इस पर एक सिपाही ने उसे डांट दिया कि चुप बैठे रहो.

‘‘सिपाही उसे ले कर पुलिस स्टेशन आ गए और वहां उन्होंने थाना प्रभारी से कुछ बात की. उस ने भी सुनील का मुआयना किया और शंका से पूछा, ‘आप राजनयिक हैं?’

‘‘सुनील ने अपना परिचय दिया और यह भी बताया कि कैसे उसे परेशान किया गया है, उस के पैसे छीने गए हैं. बेमतलब उसे यहां लाया गया है और वह दूतावास में फोन करना चाहता है.

‘‘प्रभारी ने सामने पड़े फोन की ओर इशारा किया. सुनील ने झट से कौंसुलर को फोन मिलाया. कौंसुलर ने मुझे बुलाया और फिर मैं और कौंसुलर दोनों कार ले कर थाने पहुंचे. हमें देख कर सुनील लगभग रो ही दिया. कौंसुलर ने सिपाहियों को डांटा और कहा कि एक राजनयिक के साथ इस तरह का व्यवहार आप लोगों को शोभा नहीं देता.’’

‘‘इस पर वह अधिकारी काफी देर तक रूसी में बोलता रहा, जिस का मतलब यह था कि अगर यह राजनयिक है तो इसे राजनयिक के ढंग से रहना भी चाहिए और यह कि इस बार तो संयोग से हमारी पैट्रोल वहां पहुंच गई, लेकिन आगे से हम इस तरह के मामले में कोई जिम्मेदारी नहीं ले सकते?

‘‘अब कौंसुलर की नजर सुनील की पोशाक पर गई. उस ने वहीं सब के सामने उसे लताड़ लगाई कि खबरदार जो आगे से जींस में दिखाई दिए. क्या अब मेरे पास यही काम रह गया है कि थाने में आ कर इन लोगों की उलटीसीधी बातें सुनूं और तुम्हें छुड़वाऊं.’’

‘‘हम लोग सुनील को ले कर आ गए. अगले 2 दिन सुनील ने छुट्टी ली और बंद गले का सूट सिलवाया और उसे पहन कर ही दूतावास में आया. मैं ने तो खैर उस का स्टेटमेंट टाइप किया था, इसलिए इतने विस्तार से सब पता है, लेकिन यह बात तो दूतावास के सब लोग जानते हैं,’’ हीरा ने अपनी बात खत्म की.

‘‘तभी…’’ मेरे मुंह से निकला, ‘‘उसे लगा होगा कि मैं भी यह किस्सा जानता हूं और उस का मजाक उड़ा रहा हूं.’’

‘‘अब तो जान गए न,’’ हीरा हंसा और अपने विभाग की ओर बढ़ गया.

मुझे अफसोस हुआ कि सुनील को सूट सिलवाने की प्रेरणा मैं ने नहीं, बल्कि पुलिस वालों ने दी थी.

ब्रेकफास्ट में न करें ये छोटीछोटी गलतियां, बिगड़ सकती है आपकी सेहत

‘ब्रेकफास्ट लाइक द किंग,’ ‘लंच लाइक द प्रिंस’ और ‘डिनर लाइक द पौपर’ यह कहावत तो आप ने सुनी ही होगी. इस कहावत को पढ़ कर आप समझ ही गई होंगी कि ब्रेकफास्ट हमारे मील का कितना अहम पार्ट होता है, तभी तो न्यूट्रिशनिस्ट ‘ब्रेकफास्ट लाइक द किंग’ की सलाह देते हैं क्योंकि रात के लंबे ब्रेक के बाद सुबह ब्रेकफास्ट हमारे शरीर को ग्लूकोस प्रदान करने का काम करता है, जिस से हमारे शरीर में ऐनर्जी बूस्ट होती है.

मगर इतना सब जानने के बाद भी कई बार हम अपने खराब लाइफस्टाइल की वजह से ब्रेकफास्ट को ही स्किप कर देते हैं और सीधा लंच करने के औप्शन को ही चूज करते हैं, तो कई बार जानकारी के अभाव में हम खुद को ज्यादा पतला करने के चक्कर में ब्रेकफास्ट को ही स्किप कर देते हैं, जो हमारे मैटाबोलिज्म को और स्लो बना कर हमारे शरीर को फुलाने का काम करता है, तो कई बार हम रोजाना ब्रेकफास्ट तो करते हैं, लेकिन हैल्दी नहीं, जिस से न तो हमारे शरीर को प्रौपर न्यूट्रिशंस मिल पाते हैं और खुद को पूरा दिन थकाथका महसूस करते हैं, जो हमारी ओवरऔल प्रोडक्टिविटी को कम करने का काम करता है.

ऐसे में हमारे लिए यह जानना बहुत जरूरी है कि हम अकसर ब्रेकफास्ट के साथ ऐसी कौन सी गलतियां करते हैं, जो हम पर भारी पड़ सकती हैं:

स्किप द ब्रेकफास्ट

लेट नाइट डिनर करने की हैबिट और वह भी हाई कैलोरीज डिनर, जिस कारण से अकसर ब्रेकफास्ट यह सोच कर स्किप कर देना कि इस से हम अपनी रात को ली कैलोरीज को कंट्रोल कर पाएंगे, जबकि ऐसी सोच बिलकुल गलत है क्योंकि रात की लंबी फास्टिंग के बाद सुबह का ब्रेकफास्ट हमारे मैटाबोलिज्म को बूस्ट कर के हमारे वजन को कंट्रोल तो रखता ही है, साथ ही हमारे ग्लूकोस लैवल को कंट्रोल रख कर हमें पूरा दिन स्ट्रैस से भी दूर रखने में मदद करता है. लेकिन यह गलती न सिर्फ हमारे मैटाबोलिज्म पर भारी पड़ती है, साथ ही इस के कारण ब्लड कोलैस्ट्रौल, दिल की बीमारी व टाइप 2 डायबिटीज का खतरा भी काफी ज्यादा बढ़ जाता है. इसलिए ब्रेकफास्ट को स्किप करने की भूल बिलकुल न करें और जो भी ब्रेकफास्ट करें वह हाई प्रोटीन, फाइबर से भरपूर हो.

फैक्ट: जो लोग ब्रेकफास्ट स्किप करते हैं, देखने में आया है कि वे लंच हैवी लेने के साथ ज्यादा कैलोरीज ले लेते हैं, जो सेहत के लिए तो ठीक है ही नहीं, साथ ही ऐसे लोगों में पूरा दिन आलस देखने को मिलता है यानी वे ज्यादा स्फूर्ति से काम करने में समर्थ नहीं हो पाते हैं.

टिप: ब्रेकफास्ट में आप को प्रोटीन का वन ऐक्सचेंज जरूर लेना चाहिए यानी अप्प्रोक्स 7-8 ग्राम प्रोटीन. इस के लिए आप ब्रेकफास्ट में 1 बाउल स्प्राउट्स, 40 ग्राम पनीर, 40 ग्राम टोफू, 1 अंडा आदि में से किसी को चूज कर सकते हैं. साथ ही एक ऐक्सचेंज कैल्सियम भी लें. इस के लिए ब्रेकफास्ट में मिल्क, कर्ड, लस्सी में से किसी एक को शामिल करें.

मिस द प्रोटीन रिच ब्रेकफास्ट

हम में से अधिकांश लोग ब्रेकफास्ट में वह खाना पसंद करते हैं, जो हमें अच्छा लगता है यानी हम ब्रेकफास्ट में सिर्फ अपनी जीभ के स्वाद का ध्यान रखते हैं, जिस के लिए अकसर हम ब्रेकफास्ट में हाई कार्ब्स ले लेते हैं, जो हमारे ब्लड शुगर लैवल को बढ़ा कर उसे फैट्स में बदलने का काम करता है. यह डायबिटीज के साथसाथ अन्य बीमारियों का भी बड़ा कारण है, जबकि प्रोटीन रिच ब्रेकफास्ट लेने से हमारी मसल्स की हैल्थ तो ठीक रहती ही है, साथ ही इस से हमें लंबे समय तक भूख भी नहीं लगती है, जो हमें पूरा दिन ऐक्स्ट्रा कैलोरीज लेने से रोकने का काम करता है.

यही नहीं बल्कि प्रोटीन रिच ब्रेकफास्ट टीरोसिने नामक ऐमिनो ऐसिड के लैवल को बढ़ाता है, जो डोपामाइन को उत्पन्न कर के हमारी ऐनर्जी और हमारे मूड को बूस्ट करने का काम करता है. लेकिन ब्रेकफास्ट में प्रोटीन न लेने की मिस्टेक यानी ज्यादा कार्ब्स वाला ब्रेकफास्ट लेने से आप के शरीर में ग्लूकोस लैवल तो बढ़ाता ही है, साथ ही आप को जल्दीजल्दी भूख भी लगती है, जो  तेजी से वजन बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है.

फैक्ट: जो लोग प्रोटीन के साथसाथ बैलेंस्ड वे में ब्रेकफास्ट करते हैं , उन्हें जल्दीजल्दी भूख नहीं लगती है. साथ ही उन्हें अपने वेट को मैनेज करने में भी आसानी होती है.

टिप: रोज बदलबदल कर ब्रेकफास्ट करें. प्रोटीन के लिए आप अंडा, चीला, केला, दाल का चीला, पालक रैप, दाल की रोटी, ओटमील जैसे औप्शन को अपनी पसंद के हिसाब से चूज कर सकते हैं.

फास्ट ईटिंग

सिट ऐंड ईट, यह तो हम सब बचपन से सुनते आ रहे हैं. लेकिन आज हमारा लाइफस्टाइल ऐसा हो गया है कि हमारे पास खुद के लिए व ब्रेकफास्ट करने के लिए भी कुछ पल फुरसत के नहीं होते, जिस कारण कई बार हम खड़ेखड़े ही ब्रेकफास्ट करने लगते हैं या फिर औफिस, स्कूल या कालेज के लिए लेट होने पर चलतेचलते ही ब्रेकफास्ट करना उचित समझ लेते हैं, जिस के कारण न तो हम ब्रेकफास्ट को ऐंजौय कर पाते हैं और न ही खाने को अच्छे से चबाते हैं, जिस से पाचनतंत्र पर असर पड़ने के साथसाथ शरीर में न्यूट्रिएंट्स का अवशोषण भी ठीक से नहीं हो पाता है और साथ ही जल्दीजल्दी में कई बार ज्यादा खाने की आदत भी आप को मोटापे का शिकार बना सकती है.

इसलिए सिट ऐंड ईट प्रौपरली वाले सिद्धांत को अपना कर ब्रेकफास्ट करने की आदत डालें. इस से आप अच्छे से खाने को चबाचबा कर खाएंगे भी और खाते वक्त क्वांटिटी का भी ध्यान रख पाएंगे.

फैक्ट: रिसर्च में यह साबित हुआ है कि जब लोग नौर्मल स्पीड से ब्रेकफास्ट करते हैं तो खाने को ज्यादा ऐंजौय करने के साथसाथ उन का पाचनतंत्र भी दूसरों के मुकाबले ज्यादा बेहतर होता है.

टिप: हमेशा उठने के 2-3 घंटे के भीतर आप को ब्रेकफास्ट कर लेना चाहिए ताकि अलर्टनैस बढ़ने के साथसाथ आप का ऐनर्जी लैवल बूस्ट हो सके. मतलब ब्रेकफास्ट करने का आइडियल टाइम 8:30 से 10:00 बजे के बीच होना चाहिए.

टोटली आउट कार्ब्स

हम जब भी खुद के वेट को कंट्रोल करने की बात करते हैं, तो सब से पहले अपने खाने खासकर के अपने ब्रेकफास्ट से पूरी तरह से कार्ब्स को आउट कर देते हैं, जबकि ये हमारी बौडी व ब्रेन को लंबे समय तक फ्यूल प्रदान करने का काम करते हैं. लेकिन अब आप कौंप्लैक्स कार्ब्स, जिन में विटामिंस, मिनरल्स व फाइबर होता हैं वाले ब्रेकफास्ट को बिलकुल अपनी

डाइट से आउट कर देते हैं, तो इस के कारण आप को थकान, चक्कर आना जैसी शिकायत होने लगती है, साथ ही आप ज्यादा शारीरिक कार्य करने में समर्थ नहीं हो पाते हैं. इसलिए ब्रेकफास्ट प्रोटीन रिच लेने के साथसाथ उस में बैलेंस्ड मात्रा में कौंप्लैक्स कार्ब्स भी होने चाहिए ताकि आप खुद को हमेशा ऐनर्जेटिक भी फील कर सकें.

फैक्ट: ओटमील कौंप्लैक्स कार्ब्स का बहुत अच्छा स्रोत है, जो आप के शरीर को ऊर्जा देने के साथसाथ उस में मौजूद फाइबर दिल की बीमारी से भी दूर रखने का काम करता है.

टिप: आप को रोजाना अपने ब्रेकफास्ट में कौंप्लेक्स कार्ब्स के रूप में 2 ऐक्सचेंज जरूर शामिल करने चाहिए. इस के लिए आप वैजिटेबल पोहा, वैजिटेबल उपमा, वैजिटेबल दलिया, ओट्स आदि में से किसी भी एक को ले सकते हैं.

फ्रूट्स की जगह जूस लेने की गलती

अकसर आज हमारे मौडर्न लाइफस्टाइल में मौर्निंग ब्रेकफास्ट में जूस शामिल हो गया है, जबकि जूस कैलोरीज में हाई होने के साथ उस में फाइबर कम हो जाता है, जो भले ही आप के टेस्ट को बढ़ाने का काम करता है, लेकिन इसे लंबी फास्टिंग के बाद सुबह लेने से पाचनतंत्र डिस्टर्ब होने के साथसाथ आप को कब्ज की भी शिकायत हो सकती है. ऐसे में आप ब्रेकफास्ट में जूस की जगह फ्रूट्स शामिल करें क्योंकि ये फाइबर व न्यूट्रिएंट्स से भरपूर होने के कारण आप को पूरा दिन काफी ऐनर्जेटिक रखने का काम करते हैं. साथ ही ये आप की बौडी को भी डिटौक्स करने में मददगार होते हैं.

फैक्ट: 1 गिलास जूस से आप को जीरो फाइबर मिलता है, जबकि 1 रौ एप्पल से आप को 4 ग्राम फाइबर मिलता है.

टिप: आप को रोजाना 150 ग्राम तक फ्रूट लेना चाहिए.

टी, कौफी साथ लेने की आदत

अकसर हम सभी के दिन की शुरुआत चायकौफी से ही होती है. उस के बावजूद हम हमेशा ब्रेकफास्ट के साथ टी, कौफी लेना जरूरी समझते हैं ताकि खुद को फ्रैश फील कर सकें. मगर आप ब्रेकफास्ट के साथ टी, कौफी लेते हैं तो इस से ब्रेकफास्ट के जरीए जो न्यूट्रिशन आप ले रहे होते हैं, वे शरीर में आसानी से अवशोषित नहीं हो पाते हैं. ऐसे में जरूरी है कि आप ब्रेकफास्ट से 1 घंटा पहले व 1 घंटे बाद चाय या कौफी का सेवन करें.

स्वाद और सेहत से भरपूर है काली दाल, आज ही इससे बनाएं ये रेसिपी

दाल प्रोटीन का मुख्य स्रोत है. साबूत छिलके वाली मसूर की दाल बहुत ही स्वादिष्ट बनती है. साबूत छिलके वाली मसूर दाल को काली दाल भी कहते हैं. तो क्यों ना आज रात के खाने में काली दाल बनाएं.

सामग्री

साबुत छिलका वाली मसूर दाल – 200 ग्राम (एक कप)

टमाटर – 3-4 (मध्यम आकार के)

हरी मिर्च – 2-3

अदरक – एक इंच लम्बा टुकड़ा

नमक – स्वादानुसार

देशी घी – 1-2 टेबल स्पून

हींग – 1 चुटकी

जीरा – आधा छोटी चम्मच

हल्दी पाउडर – आधा छोटी चम्मच

धनियां पाउडर – एक छोटी चम्मच

लाल मिर्च – एक चौथाई छोटी चम्मच (यदि आप चाहें)

गरम मसाला – एक चौथाई छोटी चम्मच

हरा धनिया – एक टेबल स्पून

विधि

साबुत मसूर दाल को 8 घंटे या पूरी रात के लिये पानी में भिगो दें. दाल बनाने से पहले दाल से पानी निकाल दें और साफ पानी से दाल धो लें. अब कूकर में दाल, 2 कप पानी, नमक और हल्दी डाल कर दाल पका लें.

जब तक दाल पक रहा है तब तक मसाला तैयार कर लें. टमाटर को 4-5 टुकड़ों में काट लें. हरी मिर्च, अदरक, टमाटर का पेस्ट बना लें.

अब कढ़ाई में घी डालें और गर्म होने के बाद हींग, जीरा डालें. जीरा भुनने पर, हल्दी पाउडर, धनिया पाउडर और लाल मिर्च पाउडर डालें. जब मसाला थोड़ा भून जाए तो उसमें पिसा हुआ टमाटर का मसाला डालें और मसाले को तब तक भूनें जब तक कि मसाले के ऊपर घी तैरने लगे.

अब दाल को मसाला में डाल कर मिलाएं. दाल को जितना गाड़ा या पतला करना चाहती हैं उसके हिसाब से पानी और नमक डाल दीजिए, उबाल आने पर, ढक कर 2 मिनिट पकाएं.

दाल में आधा हरा धनियां और गरम मसाला डाल कर मिलाएं. काली दाल बन कर तैयार है.

वारिसों वाली अम्मां : पुजारिन अम्मां की मौत से मच गई खलबली

कल रात पुजारिन अम्मां ठंड से मर गईं तो महल्ले में शोक की लहर दौड़ गई. हर एक ने पुजारिन अम्मां के ममत्व और उन की धर्मभावना की जी खोल कर चर्चा की पर दबी जबान से चिंता भी जाहिर की कि पुजारिन का अंतिम संस्कार कैसे होगा? पिछले 20-25 सालों से वह मंदिर में सेवा करती आ रही थीं, जहां तक लोगों को याद है इस दौरान उन का कोई रिश्तेनाते का परिचित नहीं आया. उन की जैसी लंबी आयु का कोई बुजुर्ग अब महल्ले में भी नहीं बचा है जो बता सके कि उन का कोई वारिस है भी या नहीं. महल्ले वालों को यह सोच कर ही कंपकंपी छूट रही है कि केवल दाहसंस्कार कराने से ही तो सबकुछ नहीं हो जाएगा, तमाम तरह के कर्मकांड भी तो करने होंगे. आखिर मंदिर की पवित्रता का सवाल है. बिना कर्मकांड के न तो पत्थर की मूर्तियां शुद्ध होंगी और न ही सूतक से बाहर निकल सकेंगी. पर यह सब करे कौन और कैसे?

मजाकिया स्वभाव के राकेशजी हंस कर अपनी पत्नी से बोले, ‘‘क्यों रमा, यह 4 बजे भोर में पुजारिन अम्मां को लेने यमदूत आए कैसे होंगे? ठंड से तो उन की भी हड्डी कांप रही होगी न?’’

इस समाचार को ले कर आई महरी घर का काम करने के पक्ष में बिलकुल नहीं थी. वह तो बस, मेमसाहब को गरमागरम खबर देने भर आई है. चूंकि वह पूरी आल इंडिया रेडियो है इसलिए रमा ने पति की तरफ चुपके से आंखें तरेरीं कि कहीं उन की मजाक में कही बात मिर्च- मसाले के साथ पूरे महल्ले में न फैल जाए.

घड़ी की सूई जब 12 पर पहुंचने को हुई तब जा कर महल्ले वालों को चिंता हुई कि ज्यादा देर करने से रात में घाट पर जाने में परेशानी होगी. पुजारिन अम्मां की देह यों ही पड़ी है लेकिन कोई उन के आसपास भी नहीं फटक रहा है. वहां जाने से तो अशौच हो जाएगा, फिर नहाना- धोना. जितनी देर टल सकता है टले.

धीरेधीरे पूरे महल्ले के पुरुष चौधरीजी के यहां जमा हो गए. चौधरीजी कालीन के निर्यातक हैं. महल्ले में ही नहीं शहर में भी उन का रुतबा है. चमचों की लंबीचौड़ी फौज है जो हथियारों के साथ उन्हें चारों ओर से घेरे रहती है. शायद यह उन के खौफ का असर है कि अंदर से सब उन से डरते हैं लेकिन ऊपर से आदर का भाव दिखाते हैं और एकदूसरे से चौधरीजी के साथ अपनी निकटता का बखान करते हैं.

हां, तो पूरा महल्ला चौधरीजी के विशाल ड्राइंगरूम में जमा हो गया. सब के चेहरे तो उन के सीने तक ही लटके रहे पर चौधरीजी का तो और भी ज्यादा, शायद उन के पेट तक. फिर वह दुख के भाव के साथ उठे और मुंह लटकाएलटकाए ही बोलना शुरू किया, ‘‘भाइयो, पुजारिन अम्मां अचानक हमें अकेला छोड़ कर इस लोक से चली गईं. उन का हम सब के साथ पुत्रवत स्नेह था.’’

वह कुछ क्षण को मौन हुए. सीने पर बायां हाथ रखा. एक आह सी निकली. फिर उन्होंने अपनी बात आगे बढ़ाई, ‘‘मेरी तो दिली इच्छा थी कि पुजारिन अम्मां के क्रियाकर्म का समस्त कार्य हम खुद करें और पूरी तरह विधिविधान से करें किंतु…’’

चौधरीजी ने फिर अपना सीना दबाया और एक आह मुंह से निकाली. उधर उन के इस ‘किंतु’ ने कितनों के हृदय को वेदना से भर दिया क्योंकि महल्ले के लोगों ने चौधरी के इस अलौकिक अभिनय का दर्शन कितने ही आयोजनों में चंदा लेते समय किया है.

चौधरीजी ने फिर कहना शुरू किया, ‘‘किंतु मेरा व्यापार इन दिनों मंदा चल रहा है. इधर घर ठीकठाक कराने में हाथ लगा रखा है, उधर एक छोटा सा शौपिंग मौल भी बनवा रहा हूं. इन वजहों से मेरा हाथ बहुत तंग चल रहा है. और फिर पुजारिन अम्मां का अकेले मैं ही तो बेटा नहीं हूं, आप सब भी उन के बेटे हैं. उन की अंतिम सेवा के अवसर को आप भी नहीं छोड़ना चाहेंगे. मेरे विचार से तो हम सब को मिलजुल कर इस कार्य को संपादित करना चाहिए जिस से किसी एक पर बोझ भी न पड़े और समस्त कार्य अनुष्ठानपूर्वक हो जाए. तो आप सब की क्या राय है? वैसे यदि इस में किसी को कोई परेशानी है तो साफ बोल दे. जैसे भी होगा महल्ले की इज्जत रखने के लिए मैं इस कार्य को करूंगा.’’

चौधरी साहब के इस पूरे भाषण में कहां विनीत भाव था, कहां कठोर आदेश था, कहां धमकी थी इस सब का पूरापूरा आभास महल्ले के लोगों को था. इसलिए प्रतिवाद का कोई प्रश्न ही न था.

अपने पुत्रों की इस विशाल फौज से पुजारिन अम्मां जीतेजी तो नहीं ही वाकिफ थीं. कितने समय उन्होंने फाके किए यह तो वही जानती थीं. हां, आधेअधूरे कपड़ों में लिपटी उन की मृत देह एक फटी गुदड़ी पर पड़ी थी. लगभग डेढ़ सौ घरों वाला वह महल्ला न उन के लिए कपड़े जुटा पाया न अन्न. किंतु आज उन के लिए सुंदर महंगे कफन और लकड़ी का प्रबंध तो वह कर ही रहा है.

कभी रेडियो, टीवी का मुंह न देखने वाली पुजारिन अम्मां के अंतिम संस्कार की पूरी वीडियोग्राफी हो रही है. शाम को टीवी प्रसारण में यह सब चौधरीजी की अनुकंपा से प्रसारित भी हो जाएगा.

इस प्रकार पुजारिन अम्मां की देह की राख को गंगा की धारा में प्रवाहित कर गंगाजल से हाथमुंह धो सब ने अपनेअपने घरों को प्रस्थान किया. घर आ कर गीजर के गरमागरम पानी से स्नान कर और चाय पी कर चौधरी के पास हाजिरी लगाने में किसी महल्ले वाले ने देर नहीं की.

चौधरी खुद तो घाट तक जा नहीं सके थे क्योंकि उन का दिल पुजारिन अम्मां के मरने के दुख को सहन नहीं कर पा रहा था किंतु वह सब के लौटने की प्रतीक्षा जरूर कर रहे थे. उन की रसोई में देशी घी में चूड़ा मटर बन रहा था तो गाजर के हलवे में मावे की मात्रा भरपूर थी. आने वाले हर व्यक्ति की वह अगवानी करते, नौकर गुनगुने पानी से उन के चरण धुलवाता और कालीमिर्च चबाने को देता, पांवपोश पर सब अपने पांव पोंछते और अंदर आ कर सोफे पर बैठ शनील की रजाई ओढ़ लेते. नौकर तुरंत ही चूड़ामटर पेश कर देता, फिर हलवा, चाय, पान वगैरह चौधरीजी की इसी आवभगत के तो सब दीवाने हैं. बातों के सिलसिले में रात गहराई तो देसीविदेशी शराब और काजूबादाम के बीच पुजारिन अम्मां कहीं खो सी गईं.

अगली सुबह महल्ले वालों को एक नई चिंता का सामना करना पड़ा. मंदिर और मूर्तियों की साफसफाई का काम कौन करे. महल्ले के पुरुषों को तो फुरसत न थी. महिलाओं के कामों और उन की व्यस्तताओं का भी कोई ओरछोर न था. किसी को स्वेटर बुनना था तो किसी को अचार डालना था. कोई कुम्हरौड़ी बनाने की तैयारी कर रही थी, तो कोई आलू के पापड़ बना रही थी. उस पर भी यह कि सब के घर में ठाकुरजी हैं ही, जिन की वे रोज ही पूजा करती हैं. फिर मंदिर की देखभाल करने का समय किस के पास है?

महल्ले की सभी समस्याओं का समाधान तो चौधरी को ही खोजना था. हर रोज एक परिवार के जिम्मे मंदिर रहेगा. वह उस की देखभाल करेगा और रात में चौधरीजी को दिनभर की रिपोर्ट के साथ उस दिन का चढ़ावा भी सौंपेगा. हर बार की तरह अब भी महल्ले वालों के पास प्रतिवाद के स्वर नहीं थे.

अभी पुजारिन अम्मां को मरे एक सप्ताह भी नहीं बीता था कि एक दिन 50, 55 और 60 वर्ष की आयु के 3 लोग रामनामी दुपट्टा ओढ़े मंदिर में सपरिवार विलाप करते महल्ले वालों को दिखाई दिए. ये कौन लोग हैं और कहां से आए हैं यह किसी को पता नहीं था पर उन के फूटफूट कर रोने से सारा महल्ला थर्रा उठा.

महल्ले के लोग अपनेअपने घरों से निकल कर मंदिर में आए और यह जानने की कोशिश की कि वे कौन हैं और क्यों इस तरह धाड़ें मारमार कर रो रहे हैं. ये तीनों परिवार केवल हाहाकार करते जाते पर न तो कुछ बोलते न ही बताते.

हथियारधारी लोगों से घिरे चौधरी को मंदिर में आया देख कर महल्ले वाले उन के साथ हो लिए. तीनों परिवार के लोगों ने चौधरीजी को देखा, उन के साथ आए हथियारबंद लोगों को देखा और समझ गए कि यही वह मुख्य व्यक्ति है जो यहां फैले इस सारे नाटक को दिशानिर्देश दे सकेगा. इस बात को समझ कर उन के विलाप करते मुंह से एक बार ही तो निकला, ‘‘अम्मां’’ और उन के हृदय से सटी अम्मां और उन के परिवार की किसी मेले में खींची हुई फोटो जैसे उन के हाथों से छूट गई.

चौधरीजी के साथ सभी ने अधेड़ अम्मां को अपने तीनों जवान बेटों के साथ खड़े पहचाना जो अब अधेड़ हो चुके हैं. घूंघट की ओट से झांकती ये अधेड़ औरतें जरूर इन की बीवियां होंगी और पोते- पोतियों के रूप में कुछ बच्चे.

चौधरी साहब के साथ महल्ले के लोग अपनेअपने ढंग से इन के बारे में सोच रहे थे कि इतने सालों बाद इन बेटों को अपनी मां की याद आई है, वह भी तब जब वह मर गई. किस आशा, किस आकांक्षा से आए हैं ये यहां? क्या पुजारिन अम्मां के पास कोई जमीनजायदाद थी? 3 बेटों की यह माता इतना भरापूरा परिवार होते हुए भी अकेली दम तोड़ गई, आज उस का परिवार यहां क्यों जमा हुआ है? इतने सालों तक ये लोग कहां थे? किसी को भी तो नहीं याद आता कि ये तीनों कभी यहां आए हों या पुजारिन अम्मां कुछ दिनों के लिए कहीं गई हों?

‘‘ठीक है, ठीक है, हाथमुंह धो लो, आराम कर लो फिर हवेली आ जाना. बताना कि क्या समस्या है?’’ चौधरीजी ने घुड़का तो सारा विलाप बंद हो गया. धीरेधीरे भीड़ अपनेअपने रास्ते खिसक ली.

अगर कोई देखता तो जान पाता कि कैसे वे तीनों परिवार लोगों के जाने के बाद आपस में तूतू-मैंमैं करते हुए लड़ पड़े थे. बड़ा बोला, ‘‘मैं बड़ा हूं. अम्मां की संपत्ति पर मेरा हक है. उस का वारिस तो मैं ही हूं. तुम दोनों क्यों आए यहां? क्या मंदिर बांटोगे? पुजारी तो एक ही होगा मंदिर का?’’

मझले के पास अपने तर्क थे, ‘‘अम्मां मुझे ही अपना वारिस मानती थीं. देखोदेखो, उन्होंने मुझे यह चिट्ठी भेजी थी. लो, देख लो दद्दा. अम्मां ने लिखा है कि तू ही मेरा राजा बेटा है. बड़े ने तो साथ ले जाने से मना कर दिया. तू ही मुझे अपने साथ ले जा. अकेली जान पड़ी रहूंगी. जैसे अपने टामी को दो रोटियां डालना वैसे मुझे भी दे देना.’’

अब की बार छोटा भी मैदान में कूद पड़ा, ‘‘तो कौन सा तुम ले गए मझले दद्दा. अम्मां ने मुझे भी चिट्ठी भेजी थी. लो, देखो. लिखा है, ‘मेरा सोना बेटा, तू तो मेरा पेट पोंछना है. तू ही तो मुझे मरने पर मुखाग्नि देगा. बेटा, अकेली भूत सी डोलती हूं. पोतेपोतियों के बीच रहने को कितना दिल तड़पता है. मंदिर में कोई बच्चा, कोई बहू जब अपनी दादी या सास के साथ आते हैं तो मेरा दिल रो पड़ता है. इतने भरेपूरे परिवार की मां हो कर भी मैं कितनी अकेली हूं. मेरा सोना बेटा, ले जा मुझे अपने साथ.’ ’’

सच है, सब के पास प्रमाण है अपनेअपने बुलावे का किंतु कोई भी सोना या राजा बेटा पुजारिन अम्मां को अपने साथ नहीं ले गया. इस के लिए किसी प्रमाण की जरूरत नहीं क्योंकि कोई ले कर गया होता तो आज पुजारिन अम्मां यों अकेली पड़ेपड़े न मर गई होतीं और उन का दाहसंस्कार चंदा कर के न किया गया होता.

पुजारिन अम्मां के 3 पुत्र, जिन्होंने एक क्षण भी बेटे के कर्तव्य का पालन नहीं किया, जिन्हें अपनी मां का अकेलापन नहीं खला, वे आज उस के वारिस बने खड़े हैं. क्या उन का मन जरा भी अपनी मां के भेजे पत्र से विचलित नहीं हुआ. क्या कभी उन्हें एहसास हुआ कि जिस मां ने उन्हें 9 माह तक अपनी कोख में रखा, जिस ने उन्हें सीने से लगा कर रातें आंखों में ही काट दीं, उस मां को वे तीनों मिल कर 9 दिन भी अपने साथ नहीं रख सके.

आज भी उन्हें उस के दाहसंस्कार, उस के श्राद्ध आदि की चिंता नहीं, चिंता है तो मात्र मंदिर के वारिसाना हक की. वे अच्छी तरह से जानते हैं कि मंदिर का पुजारी दीनहीन हो तो कोई चढ़ावा नहीं चढ़ता किंतु पुजारी तनिक भी टीमटाम वाला हो, उस को पूजा करने का दिखावा करना आता हो, भक्तों की जेबों के वजन को टटोलना आता हो तो इस से बढि़या कोई और धंधा हो ही नहीं सकता.

आने वाले समय की कल्पना कर तीनों भाई मन में पूरी योजना बनाए पड़े थे. बस, उन्हें चौधरी का खौफ खाए जा रहा था वरना अब तक तो तीनों भाइयों ने फैसला कर ही लिया होता, चाहे बात से चाहे लात से. 3 अलगअलग ध्रुवों से आए एक ही मां के जने 3 भाइयों को एकदूसरे की ओर दृष्टि फिराना भी गवारा नहीं. एकदूसरे का हालचाल, कुशलक्षेम जानने की तनिक भी जिज्ञासा नहीं, बस, केवल मंदिर पर अधिकार की हवस ही दिल- दिमाग को अभिभूत किए है.

उधर चौधरीजी की चिंता और परेशानी का कोई ओरछोर नहीं है. कितने योजनाबद्ध तरीके से वे मंदिर को अपनी संपत्ति बनाने वाले थे. उन के जैसा विद्वान पुरुष यह अच्छी तरह से जानता है कि मंदिर की सेवाटहल करना महल्ले के लोगों के बस की बात नहीं. उन्हें ही कुछ प्रबंध करना है. प्रबंध भी ऐसा हो जिस से उन का भी कुछ लाभ हो. मंदिर के लिए अभी उन्होंने जो व्यवस्था की है वह तो अस्थायी है.

अभी वह कोई उचित व्यवस्था सोच भी नहीं पाए थे कि ये तीनों जाने कहां से टपक पड़े. पर उन के आने के पीछे छिपी उन की चतुराई को याद कर और उन को देख उन के नाटक में आए बदलाव को याद कर चौधरीजी मुसकरा दिए. तीनों में से किसी एक का चुनाव करना कठिन है. तीनों ही सर्वश्रेष्ठ हैं, तीनों ही योग्य और उपयुक्त हैं. एक निश्चय सा कर चौधरीजी निश्चिन्त हो चले थे.

अगले दिन सुबह ही मंदिर के घंटे की ध्वनि से महल्ले वालों की नींद टूट गई. मंदिर को देखने और पुजारिन अम्मां के वारिसों के बारे में जानने के लिए लोग मंदिर पहुंचे तो देखा तीनों भाई मंदिर के तीनों कमरों में किनारीदार पीली धोती पहने, लंबी चुटिया बांधे और सलीके से चंदन लगाए मूर्तियों के सामने मंत्र बुदबुदा रहे हैं. वे बारीबारी से उठते हैं और वहां खड़े लोगों को तांबे के लोटे में रखे जल का प्रसाद देते हैं. सामने ही तालाजडि़त दानपात्र रखा है जिस पर गुप्तदान, स्वेच्छादान आदि लिखा हुआ है. पुजारी की ओर दक्षिणा बढ़ाने पर वे दानपात्र की ओर इशारा कर देते हैं.

मंदिर के इस बदलाव पर अब महल्ले के लोग भौचक हैं. श्रद्धालुओं की जेबें ढीली हो रही हैं. पुजारीत्रय तथा चौधरीजी के खजाने भर रहे हैं. पुजारिन अम्मां को सब भूल चुके हैं.

क्या आपकी भी है सैंसिटिव स्किन, तो Pain Less वैक्सिंग के लिए फौलो करें ये टिप्स

आजकल के लाइफस्टाइल में ब्यूटीफुल स्किन के लिए जरूरी है वैक्सिंग करना, लेकिन कई बार वैक्सिंग के साथ दर्द को भी झेलना पड़ता है. वैक्सिंग का दर्द झेलना आम बात है पर सेंसिटिव स्किन पर वैक्सिंग कईं बार प्रौब्लम का सामना करने का कारण बन जाता है. इसी प्रौबल्म से छुटकारा पाने के लिए आज हम आपको कुछ टिप्स बताएंगे, जिससे आपको बिना किसी परेशानी के खूबसूरत और क्लीयर स्किन मिल जाएगी.

1. वैक्‍स का सही चुनें तरीका

जिन महिलाओं को वैक्‍सिंग करवाने पर दर्द होता है, उन्‍हें चौकलेट वैक्‍सिंग करवाना चाहिए. हालांकि चौकलेट वैक्‍सिंग थोड़ी महंगी होती है और इसे घर पर नहीं किया जा सकता, पर ये सेंसटिव स्किन वाले लोगों के लिए परफेक्ट होती है. लेकिन ख्याल रखें कि आपको इससे कोई एलर्जी न हों.

2. वैक्सिंग के दर्द को ऐसे करें दूर

अगर आपको भी वैक्‍सिंग करने से दर्द होता है तो 30-40 मिनट पहले एस्‍पिरिन की गोली खा लें या फिर वैक्‍सिंग के तुरंत बाद आइस क्‍यूब रगड़ लें. इससे आपकी स्किन को आराम मिलेगा और रैशेज होने की प्रौब्लम से छुटकारा मिलेगा.

3. वैक्सिंग के बाद स्किन पर रैशेज को ऐसे करें दूर

स्किन पर वैक्‍सिंग करवाने के बाद रैशेज पड़ जाते हैं. यह रैशेज कुछ समय बाद अपने आप ही गायब हो जाते हैं. ऐसा न होने पर आप इसे गायब करने के लिये आइस क्‍यूब को रगड़ सकती हैं. इससे आपको काफी फायदा मिलेगा. लेकिन घबराएं नहीं अगर स्‍किन बहुत ज्‍यादा संवेदनशील है तो रैशेज पड़ना आम बात है.

4. वैक्सिंग के बाद करें ये काम

वैक्सिंग करवाने के बाद 24 घंटे तक स्किन को धूप से बचाकर रखें. वैक्सिंग के बाद स्किन सौफ्ट हो जाती है ऐसे में आप जैसे ही धूप में जाती हैं आपकी स्किन तुरंत काली पड़ जाती है इसीलिए कोशिश करें की धूप में निकलने से पहले स्किन पर SPF 30 लगाना ना भूलें. वहीं अगर आपको वैक्सिंग करवाने से स्किन पर किसी भी तरह की परेशानी होती है तो डौक्टर की सलाह जरूर लें और किसी भी तरह की क्रीम, डियोडरेंट जैसी चीजें लगाने से साफ बचें.

हम बेवफा न थे: हमशां ने क्यों मांगी भैया से माफी

लेखक- दरख्शां अनवर ‘ईराकी’

‘‘अरे, आप लोग यहां क्या कर रहे हैं? सब लोग वहां आप दोनों के इंतजार में खड़े हैं,’’ हमशां ने अपने भैया और होने वाली भाभी को एक कोने में खड़े देख कर पूछा.

‘‘बस कुछ नहीं, ऐसे ही…’’ हमशां की होने वाली भाभी बोलीं.

‘‘पर भैया, आप तो ऐसे छिपने वाले नहीं थे…’’ हमशां ने हंसते हुए पूछा.

‘काश हमशां, तुम जान पातीं कि मैं आज कितना उदास हूं, मगर मैं चाह कर भी तुम्हें नहीं बता सकता,’ इतना सोच कर हमशां का भाई अख्तर लोगों के स्वागत के लिए दरवाजे पर आ कर खड़ा हो गया.

तभी अख्तर की नजर सामने से आती निदा पर पड़ी जो पहले कभी उसी की मंगेतर थी. वह उसे लाख भुलाने के बावजूद भी भूल नहीं पाया था.

‘‘हैलो अंकल, कैसे हैं आप?’’ निदा ने अख्तर के अब्बू से पूछा.

‘‘बेटी, मैं बिलकुल ठीक हूं,’’ अख्तर के अब्बू ने प्यार से जवाब दिया.

‘‘हैलो अख्तर, मंगनी मुबारक हो. और कितनी बार मंगनी करने की कसम खा रखी है?’’ निदा ने सवाल दागा.

‘‘यह तुम क्या कह रही हो? मैं तो कुछ नहीं जानता कि हमारी मंगनी क्यों टूटी. पता नहीं, तुम्हारे घर वालों को मुझ में क्या बुराई नजर आई,’’ अख्तर ने जवाब दिया.

‘‘बस मिस्टर अख्तर, आप जैसे लोग ही दुनिया को धोखा देते फिरते हैं और हमारे जैसे लोग धोखा खाते रहते हैं,’’ इतना कह कर निदा गुस्से में वहां से चली गई.

सामने स्टेज पर मंगनी की तैयारी पूरे जोरशोर से हो रही थी. सब लोग एकदूसरे से बातें करते नजर आ रहे थे. तभी निदा ने हमशां को देखा, जो उसी की तरफ दौड़ी चली आ रही थी.

‘‘निदा, आप आ गईं. मैं तो सोच रही थी कि आप भी उन लड़कियों जैसी होंगी, जो मंगनी टूटने के बाद रिश्ता तोड़ लेती हैं,’’ हमशां बोली.

‘‘हमशां, मैं उन में से नहीं हूं. यह सब तो हालात की वजह से हुआ है…’’ निदा उदास हो कर बोली, ‘‘क्या मैं जान सकती हूं कि वह लड़की कौन है जो तुम लोगों को पसंद आई है?’’

‘‘हां, क्यों नहीं. वह देखो, सामने स्टेज की तरफ सुनहरे रंग का लहंगा पहने हुए खड़ी है,’’ हमशां ने अपनी होने वाली भाभी की ओर इशारा करते हुए बताया.

‘‘अच्छा, तो यही वह लड़की है जो तुम लोगों की अगली शिकार है,’’ निदा ने कोसने वाले अंदाज में कहा.

‘‘आप ऐसा क्यों कह रही हैं. इस में भैया की कोई गलती नहीं है. वह तो आज भी नहीं जानते कि हम लोगों की तरफ से मंगनी तोड़ी गई?है,’’ हमशां ने धीमी आवाज में कहा.

‘‘मगर, तुम तो बता सकती थीं.

तुम ने क्यों नहीं बताया? आखिर तुम भी तो इसी घर की हो,’’ इतना कह कर निदा वहां से दूसरी तरफ खड़े लोगों की तरफ बढ़ने लगी.

निदा की बातें हमशां को बुरी तरह कचोट गईं.

‘‘प्लीज निदा, आप हम लोगों को गलत न समझें. बस, मम्मी चाहती थीं कि भैया की शादी उन की सहेली की बेटी से ही हो,’’ निदा को रोकते हुए हमशां ने सफाई पेश की.

‘‘और तुम लोग मान गए. एक लड़की की जिंदगी बरबाद कर के अपनी कामयाबी का जश्न मना रहे हो,’’ निदा गुस्से से बोली.

‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं?है. मैं अच्छी तरह से जानती हूं कि मम्मी की कसम के आगे हम सब मजबूर थे वरना मंगनी कभी भी न टूटने देते,’’ कह कर हमशां ने उस का हाथ पकड़ लिया.

‘‘देखो हमशां, अब पुरानी बातों को भूल जाओ. पर अफसोस तो उम्रभर रहेगा कि इनसानों की पहचान करना आजकल के लोग भूल चुके हैं,’’ इतना कह कर निदा ने धीरे से अपना हाथ छुड़ाया और आगे बढ़ गई.

‘‘निदा, इन से मिलो. ये मेरी होने वाली बहू के मम्मीपापा हैं. यह इन की छोटी बेटी है, जो मैडिकल की पढ़ाई कर रही है,’’ अख्तर की अम्मी ने निदा को अपने नए रिश्तेदारों से मिलवाया.

निदा सोचने लगी कि लोग तो रिश्ता टूटने पर नफरत करते हैं, लेकिन मैं उन में से नहीं हूं. अमीरों के लिए दौलत ही सबकुछ है. मगर मैं दौलत की इज्जत नहीं करती, बल्कि इनसानों की इज्जत करना मुझे अपने घर वालों ने सिखाया है.

‘‘निदा, आप भैया को माफ कर दें, प्लीज,’’ हमशां उस के पास आ कर फिर मिन्नत भरे लहजे में बोली.

‘‘हमशां, कैसी बातें करती हो? अब जब मुझे पता चल गया है कि इस में तुम्हारे भैया की कोई गलती नहीं है तो माफी मांगने का सवाल ही नहीं उठता,’’ निदा ने हंस कर उस के गाल पर एक हलकी सी चपत लगाई.

कुछ देर ठहर कर निदा फिर बोली, ‘‘हमशां, तुम्हारी मम्मी ने मुझ से रिश्ता तोड़ कर बहुत बड़ी गलती की. काश, मैं भी अमीर घर से होती तो यह रिश्ता चंद सिक्कों के लिए न टूटता.’’

‘‘मुझे मालूम है कि आप नाराज हैं. मम्मी ने आप से मंगनी तो तोड़ दी, पर उन्हें भी हमेशा अफसोस रहेगा कि उन्होंने दौलत के लिए अपने बेटे की खुशियों का खून कर दिया,’’ हमशां ने संजीदगी से कहा.

‘‘बेटा, आप लोग यहां क्यों खड़े हैं? चलो, सब लोग इंतजार कर रहे हैं. निदा, तुम भी चलो,’’ अख्तर के अब्बू खुशी से चहकते हुए बोले.

‘‘मुझे यहां इतना प्यार मिलता है, फिर भी दिल में एक टीस सी उठती?है कि इन्होंने मुझे ठुकराया है. पर दिल में नफरत से कहीं ज्यादा मुहब्बत का असर है, जो चाह कर भी नहीं मिटा सकती,’ निदा सोच रही थी.

‘‘निदा, आप को बुरा नहीं लग रहा कि भैया किसी और से शादी कर रहे हैं?’’ हमशां ने मासूमियत से पूछा.

‘‘नहीं हमशां, मुझे क्यों बुरा लगने लगा. अगर आदमी का दिल साफ और पाक हो, तो वह एक अच्छा दोस्त भी तो बन सकता है,’’ निदा उमड़ते आंसुओं को रोकना चाहती थी, मगर कोशिश करने पर भी वह ऐसा कर नहीं सकी और आखिरकार उस की आंखें भर आईं.

‘‘भैया, आप निदा से वादा करें कि आप दोनों जिंदगी के किसी भी मोड़ पर दोस्ती का दामन नहीं छोड़ेंगे,’’ हमशां ने इतना कह कर निदा का हाथ अपने भैया के हाथ में थमा दिया और दोनों के अच्छे दोस्त बने रहने की दुआ करने लगी.

‘‘माफ कीजिएगा, अब हम एकदूसरे के दोस्त बन गए हैं और दोस्ती में कोई परदा नहीं, इसलिए आप मुझे बेवफा न समझें तो बेहतर होगा,’’ अख्तर ने कहा.

‘‘अच्छा, आप लोग मेरे बिना दोस्ती कैसे कर सकते हैं. मैं तीसरी दोस्त हूं,’’ अख्तर की मंगेतर निदा से बोली.

निदा उस लड़की को देखती रह गई और सोचने लगी कि कितनी अच्छी लड़की है. वैसे भी इस सब में इस की कोई गलती भी नहीं है.

‘‘आंटी, मैं हमशां को अपने भाई के लिए मांग रही हूं. प्लीज, इनकार न कीजिएगा,’’ निदा ने कहा.

‘‘तुम मुझ को शर्मिंदा तो नहीं कर रही हो?’’ अख्तर की अम्मी ने पलट कर पूछा.

‘‘नहीं आंटी, मैं एक दोस्त होने के नाते अपने दोस्त की बहन को अपने भाई के लिए मांग रही हूं,’’ इतना कह कर निदा ने हमशां को गले से लगा लिया.

‘‘निदा, आप हम से बदला लेना चाहती?हैं. आप भी मम्मी की तरह रिश्ता जोड़ कर फिर तोड़ लीजिएगा ताकि मैं भी दुनिया वालों की नजर में बदनाम हो जाऊं,’’ हमशां रोते हुए बोली.

‘‘अरी पगली, मैं तो तेरे भैया की दोस्त हूं, दुख और सुख में साथ देना दोस्तों का फर्ज होता है, न कि उन से बदला लेना,’’ निदा ने कहा.

‘‘नहीं, मुझे यह रिश्ता मंजूर नहीं है,’’ अख्तर की अम्मी ने जिद्दी लहजे में कहा.

तभी अख्तर के अब्बू आ गए.

‘‘क्या बात है? किस का रिश्ता नहीं होने देंगी आप?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘अंकल, मैं हमशां को अपने भाई के लिए मांग रही हूं.’’

‘‘तो देर किस बात की है. ले जाओ. तुम्हारी अमानत है, तुम्हें सौंप देता हूं.’’

‘‘निदा, आप अब भी सोच लें, मुझे बरबाद होने से आप ही बचा सकती हैं,’’ हमशां ने रोते हुए कहा.

‘‘कैसी बहकीबहकी बातें कर रही हो. मैं तो तुम्हें दिल से कबूल कर रही हूं, जबान से नहीं, जो बदल जाऊंगी,’’ निदा खुशी से चहकी.

‘‘हमशां, निदा ठीक कह रही हैं. तुम खुशीखुशी मान जाओ. यह कोई जरूरी नहीं कि हम लोगों ने उस के साथ गलत बरताव किया तो वह भी ऐसी ही गलती दोहराए,’’ अख्तर हमशां को समझाते हुए कहने लगा.

‘‘अगर वह भी हमारे जैसी बन जाएगी, तब हम में और उस में क्या फर्क रहेगा,’’ इतना कह कर अख्तर ने हमशां का हाथ निदा के भाई के हाथों में दे दिया.

‘‘निदा, हम यह नहीं जानते कि कौन बेवफा था, लेकिन इतना जरूर जानते हैं कि हम बेवफा न थे,’’ अख्तर नजर झुकाए हुए बोला.

‘‘भैया, आप बेवफा न थे तो फिर कौन बेवफा था?’’ हमशां शिकायती लहजे में बोली. उस की नजर जब अपने भैया पर पड़ी तो देख कर दंग रह गई. उस का भाई रो रहा था.

‘‘भैया, मुझे माफ कर दीजिए. मैं ने आप को गलत समझा,’’ हमशां अख्तर के गले लग कर रोने लगी.

सच है कि इनसान को हालात के आगे झुकना पड़ता है. अपनों के लिए बेवफा भी बनना पड़ता है.

शादी के बाद भी कर रहे हैं दूसरे पार्टनर की तलाश, कहीं आप रिलेशनशिप शौपिंग के शिकार तो नहीं !

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में प्यार ढूढ़ना बहुत ही मुश्किल है, चाहे पतिपत्नी के रिश्ते हो या गर्लफ्रैंड या बौयफ्रैंड के… ये रिश्ते बहुत नाजुक होते हैं, ये रिश्ते जल्दी जुड़ भी जाते हैं, लेकिन उतने ही तेजी से टूटने की भी संभावना होती है.

इन दिनों तो प्यार ढूढ़ना भी आसान हो गया है, बस हाथ में मोबाइल लीजिए और डेटिंग एप्स इंस्टौल करें, बस इन ऐप्स की मदद से आप अपने प्यार को ढूंढ सकते हैं. इन ऐप्स में लोगों को फ्रौड का शिकार भी बनाया जाता है, लेकिन इन ऐप्स के जरिए कई लोगों को अच्छे लाइफ पार्टनर भी मिल जाते हैं.

कई बार कुछ लोग रिलेशनशिप में रहने के बावजूद भी औप्शन तलाश रहे होते हैं. आखिर लोग एक रिश्ते से संतुष्ट क्यों नहीं होते हैं. इसे आजकल रिलेशनशिप शौपिंग के नाम से जाना जाता है. ये काफी ट्रैंड में है. इस नाम से तो आप समझ ही गए होंगे जैसे पार्टनर खरीदने के लिए निकले हो.

क्या है रिलेशनशिप शौपिंग

इन दिनों कपल्स के बीच रिलेशनशिप शौपिंग का ट्रैंड तेजी से बढ़ रहा है. इसमें व्यक्ति पार्टनर के साथ रहने के बावजूद भी दूसरे रिश्ते की तलाश करता है. इस कंडिशन में व्यक्ति को लगता है कि अगर वह दूसरे रिश्ते में जाता है या दूसरा पार्टनर मिलता है, तो वो उसके लिए आइडियल साबित हो सकता है या पहले वाले से अच्छा हो सकता है. जो व्यक्ती ये सोच रखते हैं, वो सिर्फ अपने फायदे के लिए रिश्ते जोड़ते हैं.

शादी से पहले रिलेशनशिप शौपिंग

अगर आपकी शादी नहीं हुई है, तो रिलेशनशिप शौपिंग आपके लिए बेहतर औप्शन हो सकता है. अगर आप ऐसे पार्टनर की तलाश में हो, जो आपके लिए परफैक्ट साबित हो सकता है, तो इसके लिए आप रिलेशनशिप शौपिंग में इन्वाल्व हो सकते हैं. क्योंकि शादी से पहले किसी रिश्ते में होकर भी दूसरा औप्शन ढूढ़ना आसान है. अगर आपका मौजूदा बौयफ्रैं आपकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतर रहा है, तो आपके लिए रिलेशनशिप शौपिंग बैस्ट औप्शन है. आप अपने बौयफ्रैंड या गर्लफ्रैंड में गलतियां ढूढ़ सकते हैं, अगर आपके रिश्ते में सुधार नहीं आता है, तो दूसरे पार्टनर को ढूढना शुरु कर दें.

शादी के बाद रिलेशनशिप शौपिंग

जरूरी नहीं है कि शादी के बाद रिलेशनशिप शौपिंग आपके लिए बेहतर ही हो. अगर आप करेंट पार्टनर से खुश नहीं है, तो ये जरूरी नहीं है कि दूसरा पार्टनर आपको आइडियल ही मिले. आप अपने साथी से खुश नहीं है, तो प्यार से समझाएं और उन्हें बदलने की कोशिश करें. दूसरा पार्टनर खोजने के बजाय आप दोनों आपसी समझदारी से जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए फ्यूचर का प्लान करें. अपनी मौजूदा स्थिति को सुधारने के लिए दोनों कोशिश करें.

कैसे पता करें कि आप रिलेशनशिप शौपिंग की तरफ बढ़ रहे हैं

  • आप अपने रिश्ते से खुश नहीं है और आपको लगता है कि मौजूदा पार्टनर से आपको कोई बेहतर इंसान मिल सकता है जिसके साथ आप अपनी जिंदगी बिता सकते हैं, तो ये आपके रिश्ते के लिए रेड फ्लैग है और रिलेशनशिप शौपिंग की तलाश में है.
  • आप रिलेशनशिप में होने के बाद भी कमिटमेंट से डरते हैं, तो आपको लगता है कि कोई दूसरा बेहतर साथी मिल सकता है. ये रिलेशनशिप शौपिंग का संकेत है.
  • कई बार लोग अपने साथी से इमोशनली नहीं जुड़े होते हैं, बस साथ रहते हैं और एक ऐसा वक्त आता है कि इसी वजह से वो दूसरों के तरफ आकर्षित होते हैं.

जेठानी की मौत के बाद जेठ मुझसे सैक्स करने के लिए दबाव बनाते हैं, मैं क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मेरी शादी करीब 4 साल पहले दिल्ली में हुई थी. पति बिजनैसमैन हैं. हमारी अरेंज्ड मैरिज हुई थी. शुरुआत में पति के साथ थोड़ी खटपट रहती थी, मगर फिर धीरेधीरे हम एकदूसरे को समझने लगे और सब ठीक चलने लगा. मगर इसी बीच मेरी जेठानी जो परिवार के साथ ऊपर वाले फ्लोर पर रहती थीं अचानक चल बसीं. उन के 2 बच्चे हैं जो इतने बड़े हो चुके हैं कि खुद अपनी देखभाल कर सकें. मेरे जेठ की पास में ही कपड़ों की शौप है. वे अकसर मेरे पति के पीछे भी हमारे घर आतेजाते रहते थे. जेठानी की मौत के बाद मेरे मन में उन के लिए सहानुभूति की भावना रहती थी. मगर उन का रवैया कुछ और ही रहने लगा. वे अकसर मेरे करीब आने का प्रयास करने लगे. एक दिन तो खुलेतौर पर मुझ से हमबिस्तर होने का आग्रह करने लगे. मैं ने उस समय तो उन्हें किसी तरह झटक दिया और जाने को कह दिया, मगर अब मुझे डर लगा रहता है कि न जाने कब वे फिर से ऐसे ही इरादे के साथ आ धमकें. मुझे पति से भी इस संदर्भ में बात करने में हिचक हो रही है, क्योंकि वे अपने बड़े भाई को बहुत मानते हैं. मुझे डर है कि कहीं वे मुझे ही दोषी न मान बैठें. बताएं क्या करूं?

जवाब

सब से पहले तो आप को बिना किसी डर या हिचकिचाहट के अपने पति से बात करनी चाहिए. उन्हें अपने विश्वास में ले कर अपना डर जाहिर करना होगा. यदि वे बिलकुल न मानें तो किसी दिन मौका देख कर कोई सुबूत जुटाने का प्रयास करें.

जेठ जब भी दरवाजा खटखटाएं तो आप मोबाइल का वौइस रिकौर्डर औन कर के अपने पास रख लें तब दरवाजा खोलें.

ऐसे में जेठ यदि कोई गलत बात कहते या ऐसीवैसी कोई हरकत करते हैं तो सब रिकौर्ड हो जाएगा और फिर आप अपने पति को बतौर सुबूत उस रिकौर्डिंग को सुना सकती हैं.

वैसे अच्छा होगा कि आप पति से कहीं और घर लेने का आग्रह करें या फिर जेठ की दोबारा शादी कराने का प्रयास करें. उन्हें पत्नी की कमी खल रही है, इसलिए आप की तरफ आकर्षित हो रहे हैं. नई पत्नी के आ जाने पर संभव है कि वे आप से सामान्य व्यवहार करने लगें.

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रिमझिम फुहारों का मजा लेती दिखीं Hina Khan, बारिश ने कम किया कैंसर का दर्द

टीवी एक्ट्रैस हिना खान अक्षरा के किरदार से दर्शकों के दिल पर राज किया है. उन्होंने फिल्मों और रियलिटी शोज में भी काम कर लोगों का दिल जीता है, लेकिन इन दिनों वह खतरनाक बीमारी ब्रैस्ट कैंसर का दर्द झेल रही हैं, उन्होंने इस दर्द का शिकन अपने चेहरे पर कभी नहीं आने दी. उन्होंने कैंसर को कभी भी अपनी कमजोरी नहीं बनने दी.

मुश्किल समय में भी पौजिटिव रहने का देती हैं संदेश

हिना खान के हेल्थ अपडेट के बारे में फैंस भी जानने के लिए बेचैन रहते हैं. लोग उनको खूब प्यार देते हैं. सोशल मीडिया पर हिना खान की फैंस फौलोइंग मीलियन में है. हिना खान अपने फैंस को हर परिस्थिति में हमेशा पौजिटिव रहने की सीख दे रही हैं. हिना स्टेज 3 के स्तन कैंसर से जूझ रही हैं, लेकिन उन्होंने अपनी जिंदगी को जीना नहीं छोड़ा है. एक्ट्रैस छोटीछोटी चीजों से कितनी खुश हो जाती है, ये छोटेछोटे पल उनकी जिंदगी को कितनी खुशियों से भर देते हैं.

 

हिना खान को बहुत पसंद है बारिश

हाल ही में उन्होंने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर कुछ फोटोज शेयर की है, फोटो में हिना खान की खुशी सातवें आसमान पर दिखाई दे रही है. फोटोज में आप देख सकते हैं कि झील पर बने पुल पर छतरी लेकर हिना खान मस्त अंदाज में पोज दे रही हैं. फैंस हिना की तारीफ करते थक नहीं रहे हैं. इन फोटोज को देखकर कोई भी कह सकता है कि हिना को बारिश बहुत पसंद है. हिना खान ने फैंस के साथ इन फोटोज को शेयर करते हुए कैप्शन में लिखा है कि क्योंकि उसे बारिश और बारिश के दिन खूब पसंद है, ये तस्वीरें कैप्शन के साथ खूब जम रही है.

ये तस्वीरें फैंस को काफी पसंद आ रही है. एक यूजर ने लिखा, ऐसे ही ऊर्जा बनाए रखना और जल्दी ठीक हो जाना तो वहीं दूसरे यूजर ने लिखा कि हमारे पूरे परिवार की ओर से आप के लिए दिल से दुआ है कि आप जल्दी से ठीक हो जाएं. इस तरह के फैंस ने ढेर सारें कौमेंट्स किए हैं. एक फैंस ने तो उनके गाने बारिश बन जाना की कुछ पंक्तियां लिखा, इस गाने में हिना वह शाहीर शेख के साथ नजर आ रही थीं. यूजर ने लिखा, “जब मैं बदल जाऊं. तुम भी बारिश बन जाना. जो कम पड़ जाए सांसें, तू मेरा दिल बन जाना.”

मुंबई की बारिश से लोगों को बहुत परेशानी होती है, लेकिन हिना खान की तस्वीरें साबित करती हैं कि अगर आप छुट्टियों पर नहीं गए तो मानसून के मौसम का मजा अधूरा है.

हिना ने अपने कटे हुए बालों से बनवाया विग

कुछ दिनों पहले हिना खान ने अपने इलाज को लेकर एक इमोशनल पोस्ट शेयर किया और उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने अपने कटे हुए बालों को विग के रूप में इस्तेमाल किया. हिना ने एक इंस्टाग्राम पर एक रील शेयर की जिसमें उन्होंने अपने बालों से बनाई गई विग दिखाई। उन्होंने अपनी पोस्ट को कैप्शन दिया, जिस क्षण मुझे पता चला, मुझे पता था कि मेरे बाल झड़ जाएंगे, मैंने अपने हिसाब से उन्हें कटवाने का फैसला किया. जबकि मेरे बाल लंबे और हैल्दी थे. मैंने अपने खुद के बालों से एक विग बनाने का फैसला किया जो मुझे इस कठिन समय में आरामदायक महसूस करावएगा. जब मैं इसे पहनती हूं, तो लगता है कि मैं अपने खोए हुए बालों से जुड़ गई हूं.

हिना ने आगे कहा कि मुझे कहना चाहिए कि यह एक अच्छा फैसला था जिसपर मुझे बहुत गर्व है
अब जब मैं इसका उपयोग कर रही हूं, तो मैंने सोचा कि यह आप सभी के साथ शेयर करने के लिए एक अच्छी कहानी होगी.

सूर्यकिरण: एक शर्त पर की थी मीना ने नितिश से शादी

मीना और नितीश की गृहस्थी में अचानक तूफान आ गया था. दोनों के विवाह को मात्र 1 साल हुआ था. आधुनिक जीवन की जरूरतें पूरी करते हुए दोनों 45 वसंत देख चुके थे. पहले उच्चशिक्षा प्राप्त करने की धुन, फिर ऊंची नौकरी और फिर गुणदोषों की परख व मूल्यांकन करने के फेर में एक के बाद एक प्रस्तावों को ठुकराने का जो सिलसिला शुरू हुआ तो वह रुकने का नाम ही नहीं लेता था.

मीना के मातापिता जो पहले अपनी मेधावी बेटी की उपलब्धियों का बखान करते नहीं थकते थे. अब अचानक चिंताग्रस्त हो उठे थे.

बड़ी मुश्किल से गुणदोषों, सामाजिक स्तर आदि का मिलान कर के कुछ नवयुवकों को उन्होंने मीना से मिलने को तैयार भी कर लिया था, पर मीना पर तो एक दूसरी ही धुन सवार थी.मीना छूटते ही अजीब सा प्रश्न पूछ बैठती थी, ‘‘आप को बच्चे पसंद हैं या नहीं?’’

ज्यादातर भावी वर, मीना की आशा के विपरीत बच्चों को पसंद तो करते ही थे, अपने परिवार के लिए उन का होना जरूरी भी मानते थे. मगर यही स्वीकारोक्ति मीना को भड़काने के लिए काफी होती थी और संबंध बनने से पहले ही उस के पूर्वाग्रहों की भेंट चढ़ जाता था.

नितीश से अपनी पहली मुलाकात उसे आज भी अच्छी तरह याद हैं. चुस्तदुरुस्त और प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले नितीश को देखते ही वह प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी थी. पर उच्चशिक्षा और ऊंची नौकरी ने उस के आत्मविश्वास को गर्व की कगार तक पहुंचा दिया था. वैसे भी वह नारी अधिकारों के प्रति बेहद सजग थी. छुईमुई सी बनी रहने वाली युवतियों से उसे बड़ी कोफ्त होती थी. इसलिए नितीश को देखते ही उस ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी थी.

‘‘आशा है पत्रों के माध्यम से आप को मेरे बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी?’’ मीना अपने खास अंदाज में बोली थी.

‘‘जी, हां,’’ नितीश उसे ऊपर से नीचे तक निहारते हुए बोला था.

मीना मन ही मन भुनभुना रही थी कि ऐसे घूर रहा है मानो कभी लड़की नहीं देखी हो, पर मुंह से कुछ नहीं बोली थी.

‘‘आप अपने संबंध में कुछ और बताना चाहती है? मौन अंतत: नितीश ने ही तोड़ा था.

‘‘हां, क्यों नहीं. शायद आप जानना चाहें कि मैं ने अब तक विवाह क्यों नहीं किया?’’

‘‘जी हां, अवश्य.’’

‘‘तो सुनिए, मेरे कंधों पर न तो पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ था और न ही कोई अन्य मजबूरी पर अपना भविष्य बनाने के लिए कड़ा परिश्रम किया है मैं ने.’’

‘‘जी हां, सब समझ गया मैं. आप अपने मातापिता की इकलौती संतान हैं. पिता जानेमाने व्यापारी हैं, फिर पारिवारिक समस्याओं का तो प्रश्न ही नहीं उठता. पर मैं इतना खुशहाल नहीं रहा. पिता की लंबी बीमारी के कारण छोटे भाई और बहन के पालनपोषण, पढ़ाईलिखाई, विवाह आदि के बीच इतना समय ही नहीं मिला कि अपने बारे में सोच सकूं.’’

‘‘चलिए जब आप ने स्वयं को मानसिक रूप से विवाह के लिए तैयार कर ही लिया है, तो आप ने यह भी सोच लिया होगा कि आप अपनी भावी पत्नी में किन गुणों को देखना चाहेंगे.’’

‘‘किसी विशेष गुण की चाह नहीं है मुझे. हां, ऐसी पत्नी की चाह जरूर है जो मुझे मेरे सभी गुणोंअवगुणों के साथ अपना सके,’’ नितीश भोलेपन से मुसकराया तो मीना देखती ही रह गई थी. कुछ ऐसा ही व्यक्ति उस के कल्पनालोक में भी था.

‘‘आप के विचार जान कर खुशी हुई पर आप को नहीं लगता कि जीवन साथ बिताने का निर्णय लेने से पहले कुछ और विषयों पर विस्तार से बात करना जरूरी है?’’ मीना कुछ संकुचित स्वर में बोली.

‘‘मैं हर विषय पर विस्तार से बात करने को तैयार हूं. पूछिए क्या जानना चाहती हैं आप?’’

‘‘हम दोनों ने सफलता प्राप्त करने के लिए कड़ा परिश्रम किया है, पर जब 2 सफल व्यक्ति एक ही छत के नीचे रहें तो कई अप्रत्याशित समस्याएं सामने आ सकती है.’’

‘‘शायद.’’

‘‘शायद नहीं, वास्तविकता यही है,’’ मीना झुंझला गई थी.

‘‘मुझे नहीं लगता कि ऐसी कोई समस्या आ सकती है जिसे हम दोनों मिल कर सुलझा न सकें.’’

‘‘सुन कर अच्छा लगा, पर विवाह के बाद घर का काम कौन करेगा?’’

‘‘हम दोनों मिल कर करेंगे. मेरा दृढ़ विश्वास है कि विवाह नाम की संस्था में पतिपत्नी को समान अधिकार मिलने चाहिए,’’ नितीश ने तत्परता से उत्तर दिया.

‘‘और बच्चे?’’

‘‘बच्चे? कौन से बच्चे?’’

‘‘बनिए मत, बच्चों की जिम्मेदारी कौन संभालेगा?’’ ‘‘इस संबंध में तो कभी सोचा ही नहीं मैं ने.’’

‘‘तो अब सोच लीजिए. शतुरमुर्ग की तरह रेत में मुंह छिपाने से तो समस्या हल नहीं हो जाएगी.’’

‘‘मैं बहस के लिए तैयार हूं महोदया,’’ नितीश नाटकीय अंदाज में बोल कर हंस पड़ा.

‘‘तो सुनिए मुझे बच्चे बिलकुल पसंद नहीं हैं या यों कहिए कि मैं बच्चों से नफरत करती हूं.’’

‘‘क्या कह रही हैं आप? उन भोलभाले मासूमों ने आप का क्या बिगाड़ा है.’’

‘‘इन मासूमों की भोली सूरत पर न जाइए. ये मातापिता के जीवन को कुछ इस तरह

जकड़ लेते हैं कि उन्हें जीवन की हर अच्छी चीज को त्याग देना पड़ता है.’’

‘‘मैं आप से सहमत हूं पर फिर भी लोग संतान की कामना करते हैं,’’ नितीश ने तर्क दिया.

‘‘करते होंगे, पर मुझे नहीं लगता कि मैं अपनी नौकरी के साथ आप के बच्चों के पालनपोषण का भार उठा सकूं. मुझे तो उन के नाम से ही झुरझुरी आने लगती है.’’

‘‘आप बोलती रहिए आप की बातों से मेरी उत्सुकता बढ़ती जा रही है.’’

‘‘जरा सोचिए, दोगुनी कमाई और 2 सफल व्यक्ति साथ रहें तो जीवन में आनंद ही आनंद है, पर मैं ने अपने कई मित्रों को बच्चों के चक्कर में रोतेबिलखते देखा है. अच्छा क्या आप बता सकते हैं कि केवल मानव शिशु ही क्यों रोते हैं? मैं ने जानवर या चिडि़या के बच्चों को कभी रोते नहीं देखा,’’ मीना ने अपनी बात समाप्त की.

‘‘आप ठीक कहती हैं. मैं आप से पूर्णतया सहमत हूं, पर परिवार में बच्चे की जगह कोई तोता या कुत्ता नहीं ले सकता.’’

‘‘तो फिर इस समस्या को कैसे सुलझाएंगे आप?’’

‘‘मैं एक समय में एक समस्या सुलझाने में विश्वास करता हूं. पहली समस्या विवाह करने की है. फैसला यह करना है कि हम दोनों एक ही छत के नीचे साथ रह सकते हैं या नहीं. बच्चे जब आएंगे तब देखा जाएगा. अभी से इस झमेले में पड़ने की क्या जरूरत है?’’ नितीश गंभीर स्वर में बोला.

‘‘पर मेरे लिए यह प्रश्न महत्त्वपूर्ण है. मैं किसी भी कीमत पर अपने भविष्य से समझौता नहीं कर सकती. नारीजीवन की सार्थकता केवल मां बनने में है, मैं ऐसा नहीं मानती.’’

‘‘मेरे लिए कोई समस्या नहीं है. अब वह समय तो रहा नहीं जब बच्चे बुढ़ापे की लाठी होते थे. इसलिए यदि आप शादी के बाद परिवार की वृद्धि में विश्वास नहीं करतीं तो मुझे कोई समस्या नहीं है,’’ नितीश ने मानो फैसला सुना दिया.

मीना कुछ देर मौन रही. कोई उस की सारी शर्तों को मान कर उस से विवाह की स्वीकृति देगा ऐसा तो उस ने कभी सोचा भी नहीं था. फिर भी मन में ऊहापोह की स्थिति थी. नितीश सचमुच ऐसा ही है या केवल दिखावा कर रहा है और विवाह के बाद उस का कोई दूसरा ही रूप सामने आएगा.

मगर अनिर्णय की स्थिति अधिक देर तक नहीं रही. सच तो यह था कि उस के विवाह को ले कर घर में पसरा तनाव सारी सीमाएं लांघ गया था. अपने लिए न सही पर मातापिता की खुशी के लिए वह शादी करने को तैयार थी.

मीना की मां ममता तथा पिता प्रकाश बड़ी बेचैनी से मीना और नितीश के फैसले की प्रतीक्षा कर रहे थे. नितीश के मातापिता भी यही चाहते थे कि किसी तरह वह शादी के लिए हां कर दे तो वे चैन की सांस लें.

जैसे ही नितीश और मीना ने विवाह के लिए सहमति जताई तो घर में मानो नई जान पड़ गई. ममता तो मीना के विवाह की आशा ही त्याग चुकी थीं. उन्हें पहले तो अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ और जब हुआ तो वे फफक उठीं. ‘‘ये तो खुशी के आंसू है,’’ ममता झट आंसू पोंछ कर अतिथिसत्कार में जुट गई थीं.

दोनों ही पक्ष जल्द शादी के इच्छुक थे. पहले ही इतनी देर हो चुकी थी. अब 1 दिन की देरी भी उन के लिए अंसहनीय थी.

हफ्ते भर के अंदर ही शादी संपन्न हो गई. शादी के बाद मीना और नितीश जिस आनंदमय स्थिति में थे वैसा आमतौर पर किस्सेकहानियों में होता होगा. मधुयामिनी से लौटी मीना के चेहरे पर अनोखी चमक देख कर उस के मातापिता भी पुलकित हो उठे थे.

मगर जीवन सदा सीधी राह पर ही तो नहीं चला करता. अचानक मीना की सेहत बिगड़ने लगी. वह बुझी सी रहने लगी. दूसरों को भी प्रेरित करने वाली ऊर्जा मानो खो सी हो गई थी.

तबीयत सुधरते न देख नितीश उसे डाक्टर के पास ले गया. डाक्टर ने जब नए मेहमान के आने का शुभ समाचार सुनाया तो मीना का व्यवहार सर्वथा अप्रत्याशित था. वह अपनी सुधबुध खो बैठी. डाक्टर बड़े प्रयत्न से उसे होश में लाईं तो चीखचिल्ला कर मीना ने पूरा नर्सिंगहोम सिर पर उठा लिया. आसपास के लोग डाक्टर रमोला के कक्ष की ओर कुछ इस तरह दौड़ आए मानो कोई अनहोनी घट गईर् हो.

‘‘इस तरह संयम खोने से कोई भी समस्या हल नहीं होगी मीनाजी. मैं ने तो सोचा था कि आप यह शुभ समाचार सुन कर फूली नहीं समाएंगी. खुद को संभालिए. मैं ने ऐसे व्यवहार की आशा तो सपने में भी नहीं की थी. डाक्टर रमोला मीना को समझाने का प्रयत्न कर रही थीं. मगर मीना तो एक ही रट लगाए थी कि वह किसी भी कीमत पर इस अनचाहे गर्भ से छुटकारा पाना चाहती थी.’’

‘‘माफ कीजिए, मैं आप को इस आयु में गर्भपात की सलाह नहीं दूंगी.’’

‘‘मैं आप की सलाह नहीं मांग रही…बहुत नम्रता से कहूं तो अनुरोध कर रही हूं. आप को दोगुनी या तिगुनी फीस भी देने को तैयार हूं.’’

‘‘माफ कीजिए, मैं किसी कीमत पर यह काम कभी न करूंगी और न ही आप को गर्भपात करवाने की सलाह दूंगी.’’

‘‘आप क्या समझती हैं कि शहर में और कोई डाक्टर नहीं है? चलो कहीं और चलते हैं,’’ मीना बड़े तैश में नितीश के साथ डाक्टर रमोला के कक्ष से बाहर निकल गई.

‘‘मेरे विचार से पहले घर चलते है. सोचसमझ कर फैसला करेंगे कि क्या और कैसे करना है? किस डाक्टर के पास जाना है,’’ कार में बैठते ही नितीश ने सुझाव दिया.

‘‘मैं सब समझती हूं. तुम सब की मिलीभगत है. तुम चाहते ही नहीं कि मैं इस मुसीबत से छुटकारा पा सकूं.’’

‘‘क्या कह रही हो मीना? लगता है 1 साल बाद भी तुम मुझे समझ नहीं सकीं. मुझे तुम्हारे स्वास्थ्य की चिंता है. मैं ने तुम्हारे और अपने मातापिता को सूचित कर दिया है. कोई फैसला लेने से पहले सलाह आवश्यक है.’’

‘‘किस से पूछ कर सूचित किया तुम ने? मुझे तो लगता है कि डाक्टर रमोला के कान भी तुम ने ही भरे थे. सब पुरुष एकजैसे होते हैं. साफ क्यों नहीं कहते कि तुम मेरी ग्रोथ से जलते हो. इसीलिए राह में रोड़े अटका रहे हो,’’ मीना एक ही सांस में बोल गई.

मीना का रोनाधोना न जाने कब तक चलता पर तभी उस की मां ममता का फोन आ गया. उन्होंने सख्त हिदायत दी कि वे पहली गाड़ी से पहुंच रही हैं. तब तक धैर्य से काम लो.

मीना छटपटा कर रह गई. वह समझ गई कि इस मुसीबत से निकल पाना आसान नहीं होगा.

दूसरे दिन सवेरे तक घर में मेहमानों की भीड़ लग गई थी. सब ने एकमत से घोषणा कर दी कि कुदरत के इस वरदान को अभिशाप में बदलने का मीना  को कोई अधिकार नहीं.

मीना मनमसोस कर रह गई. फिर भी उस ने निर्णय किया कि अवसर मिलते ही वह इस मुसीबत से छुटकारा अवश्य पा लेगी.

लाख चाहने पर भी मीना को अवसर नहीं मिल रहा था. उस के तथा नितीश के मातापिता एक पल के लिए भी उसे अकेला नहीं छोड़ते थे.

उस की मां ममता ने तो बच्चे को पालने का भार अपने कंधों पर लेने की घोषणा भी कर दी थी. फिर भला नितीश की मां कब पीछे रहने वाली थीं. उन्होंने भी अपने सहयोग का आश्वासन दे डाला था.

अब मीना बेचैनी से उस पल का इंतजार कर रही थी जब बच्चे के जन्म के साथ ही उसे इस शारीरिक तथा मानसिक यातना से छुटकारा मिलेगा. वह अकसर नितीश से परिहास करती कि नारी के साथ तो कुदरत ने भी पक्षपात किया है. तभी तो सारी असुविधाएं नारी के ही हिस्से आई हैं.

समय आने पर बच्चे का जन्म हुआ. सब कुछ ठीकठाक निबट गया तो सब ने राहत की सांस ली.

बच्चे को गोद में लेते हुए ममता तो रो ही पड़ी, ‘‘आज 35-36 साल बाद घर में बच्चे की किलकारियां गूजेंगी. कुदरत इतनी प्रसन्नता देगी, मैं ने तो इस की कल्पना भी नहीं की थी,’’ वे भरे गले से बोलीं.

‘‘यह तो बिलकुल अपने दादाजी पर गया है. वैसे तीखे नैननक्श, वैसा ही रोबीला चेहरा. तुम लोगों ने इस का नाम क्या सोचा है? नितीश की मां बच्चे को दुलारते हुए बोलीं.

‘‘आप लोग ही पालोगे इसे, नाम भी आप ही सोच लेना,’’ नितीश ने शिशु को गोद में ले कर ध्यान से देखा.

मीना कुतूहल से सारा दृश्य देख रही थी. वह बिस्तर पर बैठी थी. नितीश ने बच्चा उस के हाथों में दे दिया.

मीना को लगा मानो पूरे शरीर में बिजली दौड़ गईर् हो. उस ने बच्चे की बंद आंखों पर उंगलियां फेरी, छोटेछोटे हाथों की उंगलियां खोलने का प्रयत्न किया और नन्हे से तलवों को प्यार से सहलाया.

मीना को पहली बार आभास हुआ कि वह इस नन्ही सी जान को स्वयं से दूर करने की बात सोच भी नहीं सकती. उस ने शिशु को कलेजे से लगा लिया. और फिर उस कोमल, मीठे स्पर्शसुख में भीगती चली गई जिसे शब्दों में नहीं बयां किया जा सकता था. दूर खड़ा नितीश मीना के चेहरे के बदलते भावों को देख कर ही सब कुछ समझ गया था जैसे दूर क्षितिज से पहली सूर्यकिरण अपनी मौजूदगी दर्ज करा रही हो.

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