बजट में है इन ब्रांड्स के लिपस्टिक शेड्स, होठों पर लगाने से अपने ही चेहरे से नहीं हटेगी नजर

अगर आप को मेकअप करना पसंद है, तो आप ने मेकअप कीट में लिपस्टिक के कई शेड्स रखी होंगी. आप ने एक से ज्यादा ब्रैंड्स के लिपस्टिक भी अपने होंठों पर अप्लाई किया होगा. यह सब से कौमन कौस्मेटिक है, जिसे हर लड़की अपने पर्स में जरूर रखती है.

होंठों पर लिपस्टिक लगाने से चेहरे की चमक बढ़ जाती है. चेहरे की खूबसूरती बढ़ाने के लिए लिपस्टिक इस्तेमाल करना सब से आसान तरीका है, लेकिन कई बार लिपस्टिक का चुनाव करना भी एक बड़ी परेशानी होती है. ऐसे में हम यहां लिपस्टिक के कुछ ब्रैंड्स के बेहतरीन शेड्स के बारे में बताएंगे, जो आप के स्किनटोन के ऊपर सही मेल खा सकते हैं :

मैट लिपस्टिक

इस लिपस्टिक की खासियत होती है कि यह लंबे समय तक आप के होंठों पर टिक सकती है. अगर आप दिनभर के लिए कहीं बाहर जा रही हैं, तो होंठों पर ये लिपस्टिक अप्लाई कर सकती हैं. हालांकि इस का इस्तेमाल करने से पहले कुछ मिनटों तक होंठों को हाइड्रेट करें, इस के बाद ही मैट लिपस्टिक लगाएं.

Maybelline सैंसेशनल लिक्विड मैट लिपस्टिक

यह लौंग लास्टिंग मैट लिपस्टिक है। इसे अप्लाई करना भी आसान है। यह आप के होकठों को परफैक्ट लुक देगा. इस प्रोडक्ट को अप्लाई करने का सब से बड़ा फायदा है कि यह आप के होंठों को हाइड्रेटेड रखेगा.

इस की कीमत करीब ₹300 है। आप इसे औनलाइन भी और्डर कर सकती हैं. इस की रेटिंग 4 स्टार है.

Max Factor Colour Elixir वैलवेट मैट लिपस्टिक

यह लिपस्टिक होंठों को क्रीमी टैक्सचर देता है. इसे लगाने से आप के होंठ नहीं सूखेंगे. होंठों के मखमली मौइस्चराइजिंग के लिए यह मैट लिपस्टिक बेहतर औप्शन है. इस की कीमत ₹800 है.

Praush Beauty Plush मैट लिपस्टिक – Wine O’ Clock

Praush की मैट लिपस्टिक हर स्किनटोन पर सूट करती है. यह होंठों पर लंबे समय तक टिका रहता है और आप के होंठों को हाइड्रैटेड फिनिशिंग देगा. यह आप को वाइन कलर में मिल जाएगा, जो आजकल ट्रैंड में है. इस लिपस्टिक की कीमथ ₹630 है.

क्रीमी लिपस्टिक

यह मैट लिपस्टिक की तुलना में होंठों को अधिक देर तक मौइश्‍चराइज रखता है. यह लौंग लास्टिंग भी है. अगर आप गरमी के मौसम में इस लिपस्टिक का इस्तेमाल करती हैं, तो इसे फ्रिज में रख सकती हैं.

Faces Canada वैटलेस क्रीमी लिपस्टिक

इस में आप को लिपस्टिक के कई तरह के शेड्स मिल जाएंगे और हर स्किन टाइप के लिए यह उपलब्ध है. यह आप के होंठों को क्रीमी टैक्सचर देगा.

आमतौर पर Faces Canada वैटलेस क्रीम विटामिन ई से भरपूर होता है. यह होंठों को मलाईदार, चिकनी और चमकदार बनावट देता है. यह शीया बटर, जोजोबा तेल और बादाम के तेल से बनाया जाता है. इस लिपस्टिक की कीमत ₹200 है.

Daily Life Forever52 सैंसेशनल लिप (क्रीमी कारमेल -010)

यह स्मजप्रूफ लिपस्टिक है। यह वाटरप्रूफ भी है. इस की खुशबू भी काफी अच्छी है. यह हाइड्रैटिंग और लंबे समय तक चलने वाली क्रीमी कारमेल लिपस्टिक है. इस की भी रेटिंग 4 स्टार है और कीमत ₹400 है.

ग्लौसी लिपस्टिक

ग्लौसी लिपस्टिक होंठों को शाइनी लुक देता है. अगर आप के होंठ सूखते हैं, तो ग्लौसी लिपस्टिक बेहतर औप्शन है. इस से आप के होंठों को सेमी शीयर लुक मिलता है. ग्लौसी लिपस्टिक लेने के लिए आप इन ब्रैंड्स को चूज कर सकती हैं :

डीप पिंक शेड ग्लौसी लिपस्टिक
यह आप के होठों की ब्राइटनैस को बढ़ाता है। इस से आप को मखमली एहसास होगा और यह लंबे समय तक होंठों पर टिका भी रहेगा. इस की कीमत ₹300 है।

GREY ON Glossy लिपस्टिक 87 बैंगनी पिंक (गुलाबी)

यह लिपस्टिक हर स्किनटाइप के लिए उपलब्ध है. इसे होंठों पर लगाना भी आसान है और ज्यादा देर तक टिका भी रहेगा. इसे होंठों पर अप्लाई करने से स्मूद टच मिलेगा. यह आप को ₹200 में मिल जाएगा.

SUGAR Cosmetics पार्टनर इन शाइन ट्रांसफरप्रूफ ग्लौसी लिपस्टिक

यह हाई ग्लौसी लिपस्टिक है. इस में आप को लाल, जुराब और गुलाबी जैसे कई शेड्स मिल जाएंगे. अगर आप बोल्ड या ब्राइट कलर चूज करना चाहती हैं, तो इस में आप को ये शेड्स मिल जाएंगे. यह ग्लौसी लिपस्टिक 24 घंटे होंठों पर टिके रहने का दावा करता है. इस ग्लौसी लिपस्टिक की कीमत ₹700 है.

#कीमतों में बदलाव बाजार के अनुसार संभव हो सकता है.

सुख की गारंटी

एकदिन काफी लंबे समय बाद अनु ने महक को फोन किया और बोली, ‘‘महक, जब तुम दिल्ली आना तो मुझ से मिलने जरूर आना.

‘‘हां, मिलते हैं, कितना लंबा समय गुजर गया है. मुलाकात ही नहीं हुई है हमारी.’’

कुछ ही दिनों बाद मैं अकेली ही दिल्ली जा रही थी. अनु से बात करने के बाद पुरानी यादें, पुराने दिन याद आने लगे. मैं ने तय किया कि कुछ समय पुराने मित्रों से मिल कर उन

पलों को फिर से जिया जाए. दोस्तों के साथ बिताए पल, यादें जीवन की नीरसता को कुछ कम करते हैं.

शादी के बाद जीवन बहुत बदल गया व बचपन के दिन, यादें व बहत कुछ पीछे छूट गया था. मन पर जमी हुई समय की धूल साफ होने लगी…

कितने सुहाने दिन थे. न किसी बात की चिंता न फिक्र. दोस्तों के साथ हंसीठिठोली और भविष्य के सतरंगी सपने लिए, बचपन की मासूम पलों को पीछे छोड़ कर हम भी समय की घुड़दौड़ में शामिल हो गए थे. अनु और मैं ने अपने जीवन के सुखदुख एकसाथ साझा किए थे. उस से मिलने के लिए दिल बेकरार था.

मैं दिल्ली पहुंचने का इंतजार कर रही थी. दिल्ली पहुंचते ही मैं ने सब से पहले अनु को फोन किया. वह स्कूल में पढ़ाती है. नौकरी में समय निकालना भी मुश्किल भरा काम है.

‘‘अनु मैं आ गई हूं… बताओ कब मिलोगी तुम? तुम घर ही आ जाओ, आराम से बैठेंगे. सब से मिलना भी हो जाएगा…’’

‘‘नहीं यार, घर पर नहीं मिलेंगे, न तुम्हारे घर न ही मेरे घर. शाम को 3 बजे मिलते हैं. मैं स्कूल समाप्त होने के बाद सीधे वहीं आती हूं, कौफी हाउस, अपने वही पुराने रैस्टोरैंट में…

‘‘ठीक है शाम को मिलते हैं.’’

आज दिल में न जाने क्यों अजीब सी

बैचेनी हो रही थी. इतने वर्षों में हम मशीनी जीवन जीते संवादहीन हो गए थे. अपने लिए जीना भूल गए थे. जीवन एक परिधि में सिमट गया था. एक भूलभुलैया जहां खुद को भूलने

की कवायत शुरू हो गई थी. जीवन सिर्फ ससुराल, पति व बच्चों में सिमट कर रह गया था. सब को खुश रखने की कवायत में मैं खुद को भूल बैठी थी. लेकिन यह परम सत्य है कि सब को खुश रखना नामुमकिन सा होता है.

दुनिया गोल है, कहते हैं न एक न एक दिन चक्र पूरा हो ही जाता है. इसी चक्र में आज बिछड़े साथी मिल रहे थे. घर से बाहर औपचारिकताओं से परे. अपने लिए हम अपनी आजादी को तलाशने का प्रयत्न करते हैं. अपने लिए पलों को एक सुख की अनुभूति होती है.

मैं समझ गई कि आज हमारे बीच कहनेसुनने के लिए बहुत कुछ होगा. सालों से मौन की यह दीवार अब ढलने वाली है.

नियत समय पर मैं वहां पहुंच गई. शीघ्र ही अनु भी आ गई. वही प्यारी सी मुसकान, चेहरे पर गंभीरता के भाव, पर हां शरीर थोड़ा सा भर गया था, लेकिन आवाज में वही खनक थी. आंखें पहले की तरह प्रश्नों को तलाशती हुई नजर आईं, जैसे पहले सपनों को तलाशती थीं.

समय ने अपने अनुभव की लकीरें चेहरे पर खींच दी थीं. वह देखते ही गले मिली तो मौन की जमी हुई बर्फ स्वत: ही पिघलने लगी…

‘‘कैसी हो अनु, कितने वर्षों बाद तुम्हें देखा है, यार तुम तो बिलकुल भी नहीं बदलीं…’’

‘‘कहां यार, मोटी हो गई हूं… तुम बताओ कैसी हो? तुम्हारी जिंदगी तो मजे में गुजर रही है, तुम जीवन में कितनी सफल हो गई हो… चलो आराम से बैठते हैं…’’

आज वर्षों बाद भी हमें संवादहीनता का एहसास नहीं हुआ… बात जैसे वहीं से शुरू हो गई, जहां खत्म हुई थी. अब हम रैस्टोरैंट में अपने लिए कोना तलाश रहे थे, जहां हमारे संवादों में किसी की दखलंदाजी न हो. इंसानी फितरत होती है कि वह भीड़ में भी अपना कोना तलाश लेता है. कोना जहां आप सब से दुबक कर बैठे हों, जैसे कि आसपास बैठी 4 निगाहें भी उस अदृश्य दीवार को भेद न सकें. वैसे यह सब मन का भ्रमजाल ही है.

आखिरकार हमें कोना मिल ही गया. रैस्टोरैंट के ऊपरी भाग में

कोने की खाली मेज जैसे हमारा ही इंतजार कर रही थी. यह कोना दिल को सुकून दे रहा था. चायनाश्ते का और्डर देने के बाद अनु सीधे मुद्दे पर आ गई. बोली, ‘‘और सुनाओ कैसी हो, जीवन में बहुत कुछ हासिल कर लिया है. आज इतना बड़ा मकाम, पति, बच्चे सब मनमाफिक मिल गए तुम्हें. मुझे बहुत खुशी है…’’

यह सुनते ही महक की आंखों में दर्द की लहर चुपके से आ कर गुजर गई व पलकों के कोर कुछ नम से हो गए. पर मुसकान का बनावटीपन कायम रखने की चेष्टा में चेहरे के मिश्रित हावभाव कुछ अनकही कहानी बयां कर रहे थे.

‘‘बस अनु सब ठीक है. अपने अकेलेपन से लड़ते हुए सफर को तय कर रही हूं, जीवन में बहुत उतारचढ़ाव देखें हैं. तुम तो खुश हो न? नौकरी करती हो, अच्छा काम कर रही हो, अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जी रही हो… सबकुछ अपनी पसंद का मिला है और क्या

सुख चाहिए? मैं तो बस यों ही समय काटने के लिए लिखनेपढ़ने लगी, ‘‘मैं ने बात को घुमा कर उस का हाल जानने की कोशिश करनी चाही.

‘‘मैं भी बढि़या हूं. जीवन कट रहा है. मैं पहले भी अकेली थी, आज भी अकेली हूं. हम साथ जरूर हैं पर कितनी अलग राहें हैं जैसे नदी के 2 किनारे…

‘‘यथार्थ की पथरीली जमीन बहुत कठोर है. पर जीना पड़ता है… इसलिए मैं ने खुद को काम में डुबो दिया है…’’

‘‘क्या हुआ, ऐसे क्यों बोल रही हो? तुम दोनों के बीच कुछ हुआ है क्या?’’

‘‘नहीं यार, पूरा जीवन बीत जाए तो भी हम एकदूसरे को समझ नहीं सकेंगे. कितने वैचारिक मतभेद हैं, शादी का चार्म, प्रेम पता नहीं कहां 1 साल में ही खत्म हो गया. अब पछतावा होता है. सच है, इंसान प्यार में अंधा हो जाता है.’’

‘‘हां, सही कहा, सब एक ही नाव पर सवार होते हैं पर परिवार के लिए जीना पड़ता है.’’

‘‘हां, तुम्हारी बात सही है, पर यह समझौते अंतहीन होते हैं, जिन्हें निभाने में जिंदगी का ही अंत हो जाता है. तुम्हें तो शायद कुदरत से यह सब मिला है पर मैं ने तो अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मारी है. प्रेमविवाह जो किया है.

‘‘सब ने मना किया था कि यह शादी मत करो, पर आज समझ में आया कि मेरा फैसला गलत था. यार, विनय का व्यवहार समझ से परे है. रिश्ता टूटने की कगार पर है. उस के पास मेरे लिए समय ही नहीं है या फिर वह देना नहीं चाहता… याद नहीं कब दो पल सुकून से बैठे हों. हर बात में अलगाव वाली स्थिति होती है.’’

‘‘अनु, सब को मनचाहा जीवनसाथी नहीं मिलता. जिंदगी उतनी आसान नहीं होती, जितना हम सोचते हैं. सुख अपरिभाषित है. रिश्ते निभाना इतना भी आसान नहीं है. हर रिश्ता आप से समय व त्याग मांगता है. पति के लिए जैसे पत्नी उन की संपत्ति होती है जिस पर जितनी चाहे मरजी चला लो. हम पहले मातापिता की मरजी से जीते थे, अब पति की मरजी से जीते हैं. शादी समझौते का दूसरा नाम ही है, हां कभीकभी मुझे भी गुस्सा आता है तो मां से शिकायत करना सीख लिया है. अब दुख नहीं होता. तुम भी हौंसला रखो, सब ठीक हो जाएगा.’’

‘‘नहीं महक, अब उम्मीद बाकी नहीं है. शादी करो तो मुश्किल, न करो तो भी मुश्किल. सब को शादी ही अंतिम पड़ाव क्यों लगता है? मैं ने भी समझौता कर लिया है कि रोनेधोने से समस्या हल नहीं होती.

‘‘अनु, तुम्हारे पास तो पाक कला का हुनर है उसे और निखारो. अपने शौक पूरे करो. एक ही बिंदु पर खड़ी रहोगे तो घुटन होने लगेगी.

‘‘एक बात बताओ कि एक आदमी किसी के सुख का पैमाना कैसे हो सकता है? अरैंज्ड मैरिज में पगपग पर असहमति होती है, यहां पर हर रिश्ता आग की दहलीज पर खड़ा होता है, हर कोई आप से संतुष्ट नहीं होता.’’

‘‘महक बात जो तुम्हारी सही है पर विवाह में कोई एक व्यक्ति, किसी दूसरे के जीने का मापदंड कैसे तय कर सकता है? समय बदल गया है, कानून में भी दंड का प्रावधान है. हमें अपने अधिकारों के लिए सजग रहना चाहिए. कब तक अपनी इच्छाओं का गला घोटें… यहां तो भावनाओं का भी रेप हो जाता है, जहां बिना अपनी मरजी के आप वेदना से गुजरते रहो और कोई इस की परवाह भी न करे.’’

‘‘अनु, जब विवाह किया है तो निभाना भी पड़ेगा. क्या हमें मातापिता, बच्चे,

पड़ोसी हमेशा मनचाहे ही मिलते हैं? क्या सब जगह आप तालमेल नहीं बैठाते? तो फिर पतिपत्नी के रिश्ते में वैचारिक मतभेद होना लाजिमी है. हाथ की सारी उंगलियां भी एकसमान नहीं होतीं, तो

2 लोग कैसे समान हो सकते हैं?

‘‘इन मैरिज रेप इज इनविजिबल, सो रिलैक्स ऐंड ऐंजौय. मुंह फुला कर रहने में कोई मजा नहीं है. दोनों पक्षों को थोड़ाथोड़ा झुकना पड़ता है. किसी ने कहा है न कि यह आग का दरिया है और डूब कर जाना है, तो विवाह में धूप व छांव के मोड़ मिलते रहते हैं.’’

‘‘हां, महक तुम शायद सही हो. कितना सहज सोचती हो. अब मुझे भी लगता है कि हमें फिर से एकदूसरे को मौका देना चाहिए. धूपछांव तो आतीजाती रहती है…’’

‘‘अनु देख यार, जब हम किसी को उस की कमी के साथ स्वीकार करते हैं तो पीड़ा का एहसास नहीं होता. सकारात्मक सोच कर अब आगे बढ़, परिवार को पूर्ण करो, यही जीवन है…’’

विषय किसी उत्कर्षनिष्कर्ष तक पहुंचता कि तभी वेटर आ गया और दोनों चुप हो गईं.

‘‘मैडम, आप को कुछ चाहिए?’’ कहने के साथ ही मेज पर रखे खाली कपप्लेटें समेटने लगा. उस के हावभाव से लग रहा था कि खाली बैठे ग्राहक जल्दी से अपनी जगह छोड़ें.

‘‘हम ने बातोंबातों में पहले ही चाय के कप पी कर खाली कर दिए.’’

‘‘हां, 2 कप कौफी के साथ बिल ले कर आना,’’ अनु ने कहा.

‘‘अनु, समय का भान नहीं हुआ कि 2 घंटे कैसे बीत गए. सच में गरमगरम कौफी की जरूरत महसूस हो रही है.’’

मन में यही भाव था कि काश वक्त हमारे लिए ठहर जाए. पर ऐसा होता नहीं है.

वर्षों बाद मिलीं सहेलियों के लिए बातों का बाजार खत्म करना भी मुश्किल भरा काम है. गरमगरम कौफी हलक में उतरने के बाद मस्तिष्क को राहत महसूस हो रही थी. मन की भड़ास विषय की गरमी, कौफी की गरम चुसकियों के साथ विलिन होने लगी. बातों का रूख बदल गया.

आज दोनों शांत मन से अदृश्य उदासी व पीड़ा के बंधन को मुक्त कर के चुपचाप यहीं छोड़ रही थीं.

मन में कड़वाहट का बीज जैसे मरने लगा. महक घर जाते हुए सोच रही थी कि प्रेमविवाह में भी मतभेद हो सकते हैं तो अरैंज्ड मैरिज में पगपग पर इम्तिहान है. एकदूसरे को समझने में जीवन गुजर जाता है. हर दिन नया होता है. जब आशा नहीं रखेंगे तो वेदना नामक शराब से स्वत: मुक्ति मिल जाएगी.

अनु से बात कर के मैं यह सोचने पर मजबूर हो गई थी कि हर शादीशुदा कपल परेशानी से गुजरता है. शादी के कुछ दिनों बाद जब प्यार का खुमार उतर जाता है तो धरातल की उबड़खाबड़ जमीन उन्हें चैन की नींद सोने नहीं देती है. फिर वहीं से शुरू हो जाता है आरोपप्रत्यारोपों का दौर. क्यों हम अपने हर सुखदुख की गारंटी अपने साथी को समझते हैं? हर पल मजाक उड़ाना व उन में खोट निकालना प्यार की परिभाषा को बदल देता है. जरा सा नजरिया बदलने की देर है.

सामाजिक बधन को क्यों हंस कर जिया जाए. पलों को गुनगुनाया जाए? एक पुरुष या एक स्त्री किसी के सुख की गारंटी कैसे बन सकते हैं? हां, सुख तलाश सकते हैं और बंधन निभाने में ही समझदारी है.

आज मैं ने भी अपने मन में जीवनसाथी के प्रति पल रही कसक को वहीं छोड़

दिया, तो मन का मौसम सुहाना लगने लगा. घर वापसी सुखद थी. शादी का बंधन मजबूरी नहीं प्यार का बंधन बन सकता है, बस सोच बदलने की देर है.

कुछ दिनों बाद अनु का फोन आया, ‘‘शुक्रिया महक, तुम्हारे कारण मेरा जीवन अब महकने लगा है. हम दोनों ने नई शुरुआत कर दी है. अब मेरे आंगन में बेला के फूल महक रहे हैं. सुख की गारंटी एकदूसरे के पास है.’’ दोनों खिलखिला कर हंसने लगीं.

सिर्फ दीपिका पादुकोण ही नहीं ये बौलीवुड स्टार्स भी हो चुके हैं डिप्रेशन के शिकार

आज की फास्ट लाइफ स्टाइल में डिप्रेशन एक कौमन प्रौब्लम बन चुकी है. आम से लेकर खास हर कोई कभी ना कभी इस प्रौब्लम से गुजर चुका है. फिर चाहे वो फिल्म और टीवी इंडस्ट्री के कुछ नामी सितारें ही क्यूं ना हो. जिन्होंने न सिर्फ डिप्रेशन से जूझने में बल्कि इससे निपटने के बारे में खुलकर बात भी की है. जहां कुछ सेलेब्स ने डिप्रेशन की जंग जीत गए तो कुछ ने जिंदगी की जंग हार दी. आइए जानते हैं कि आखिर डिप्रेशन क्यूं होता है? इसके कारण, लक्षण क्या हैं? इससे कैसे दूर रह सकते हैं और कौनकौन से सेलिब्रिटी इसकी चपेट में आ चुके थे.

 

डिप्रेशन के शिकार रह चुके हैं ये सेलिब्रिटीज

सबसे पहले बात करते हैं मिस्टर पेरफेकेशनिस्ट आमिर खान की, जिन्होंने हाल ही में एक कौमेडी शो के दौरान बताया कि वो पिछले दो ढाई साल डिप्रेशन में थे. वहीं बौलीवुड के किंग खान भी इस खतरनाक बीमारी से सामना कर चुके हैं. जब उन्हें कंधे की चोट के दर्द की वजह से डिप्रेशन हुआ था. सुशांत सिंह राजपूत क्रिनिकल डिप्रेशन से गुजर रहे थे, जिसके चलते उन्होंने सुसाइड कर लिया था. इसके अलावा निर्माता करण जौहर भी डिप्रेशन से डेढ़ साल का संघर्ष करते रहें. सिर्फ इतना ही नहीं बौलीवुड एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण,अनुष्का शर्मा, दंगल गर्ल एक्ट्रेस जायरा वसीम, फेमस एक्ट्रेस आलिया भट्ट की बहन शाहीन भट्ट, सिंगर नेहा कक्कड़ , छोटे पर्दे की एक्ट्रेस और मौडल शमा सिकंदर, रश्मि देसाई डिप्रेशन का दर्द झेल चुकी हैं.

किसी को भी हो सकता है डिप्रेशन

डिप्रेशन के बारे में मैरिंगो एशिया हौस्पिटल्स फरीदाबाद की एचओडी-साइकोलौजी डा. जया सुकुल का कहना है कि डिप्रेशन या कोई भी मानसिक दिक्कत आपके पैसे या जेब को देखकर नहीं आती है. ये किसी को भी हो सकता है. यह बात अलग है कि हर वर्ग के इंसान को डिप्रेशन अलग तरीके से परेशान करता है. अमीर आदमी का ज्यादा पता चलता है क्योंकि वह डिप्रेशन के चलते काम से छुट्टी ले सकता है. मगर गरीब आदमी के पास कोई चाइस नहीं होती है, उसे अपना काम पूरा करना पड़ता है. गरीब आदमी के पास कोई बहुत ज्यादा इकोनोमिक या सोशल सपोर्ट नहीं होता है लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि उन्हें डिप्रेशन नहीं होता है. बस उनका दिखने में अलग होता है जैसे बिना किसी कारण बीमारियां होना, बारबार बीमार पड़ना और इम्यून सिस्टम खराब होना-उनकी फिजिकल हेल्थ बहुत ज्यादा बिगड़ जाती है.

डिप्रेशन के कारण

डा. जया सुकुल कहती हैं कि डिप्रेशन में जाने के कई कारण हो सकते हैं. ऐसा भी हो सकता है दो लोग जिनकी समान हिस्ट्री, समान एक्सपीरियंस रहे हों, उनमें से एक को डिप्रेशन हो जाए दूसरे को नहीं. आपके जेनेटिक्स, आपके स्वभाव, आपके आसपास का वातावरण, आपकी मौजूदा स्थिति आपकी सिचुएशन को कैसे प्रभावित करती हैं, ये सब अलग-अलग कारण हैं.

डिप्रेशन के लक्षण और प्रकार

डिप्रेशन मुख्यत: दो तरह से देखा जा सकता है- फंक्शनल और क्लीनिकल डिप्रेशन. जिन लोगों की मानसिक स्थिति डिप्रेशन की वजह से बहुत ज्यादा खराब हो जाती है उनको डिप्रेशन और मेंटल हेल्थ इशू की वजह से शारीरिक दिक्कत आनी शुरू हो जाती हैं.

एंग्जाइटी और डिप्रेशन में फर्क

एंग्जायटी और डिप्रेशन दो बहुत अलग बीमारी हैं और उनके इलाज भी बहुत अलग दवाओं से किए जाते हैं. एंग्जायटी एक तरह की बेसब्रता या घबराहट होती है. डिप्रेशन उदासी का एक क्लीनिकल वर्जन होता है, जहाँ पर आपकी मानसिक और शारीरिक सेहत दोनों खराब होती हैं. कई बार लोगों को एंग्जायटी और डिप्रेशन साथ में हो जाता है मगर वे समान बीमारी नहीं होती.

ठीक होने में कितना समय

डिप्रेशन से परेशान व्यक्ति कब तक ठीक हो सकता है ये इस बात पर निर्भर करता है कि डिप्रेशन उसके अंदर कितना गहरा बैठा हुआ है. कुछ लोगों को 14-15 हफ्ते लगते हैं. कुछ लोगों को कई बार साल भी लग जाते हैं.

डिप्रेशन में क्या करें

डौक्टर का कहना है कि ठीक होने का समय जो काम आप करते हैं उससे भी जुड़ा होता है. अगर आप ठीक से इलाज करा रहे हैं, सही डौक्टर से मिल रहे हैं, जो आपको डौक्टर बता रहे हैं-उसे ठीक से कर रहे हैं, डौक्टर द्वारा बताई दवा ठीक समय पर नियमित रूप से ले रहे हैं. तो जल्दी ठीक हो जाते हैं. डौक्टर की बात मानना, डौक्टर को दिखाना, शर्म न करना, सोशल सपोर्ट इकट्ठा करना कुछ ऐसी चीजें हैं जो आप खुद से कर सकते हैं. लाइफस्टाइल को हेल्दी रखना भी बहुत जरूरी है.

डिप्रेशन बारबार होता है-

अधिकतर मामलों में अगर डिप्रेशन का ठीक से इलाज किया जाए, मरीज सारी ही चीजों में साइकोलॉजिस्ट और साइकेट्रिस्ट दोनों को फौलो करे. अगर उसकी लाइफ में वो हालात दोबारा से पैदा न हों तो डिप्रेशन नहीं होता. कई बार लोग उसी हालात को अच्छे ट्रीटमेंट के बाद ठीक से संभाल पाते हैं. 90 प्रतिशत जनता को लाइफ में एक बार डिप्रेशन जरूर होता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें बार-बार होगा.

किस उम्र में डिप्रेशन के चांस ज्यादा-

डिप्रेशन की समस्या उम्र देखकर नहीं आती है. यह 11-14 वर्ष और 23-27 की उम्र के ग्रुप के लोगों में ज्यादा देखने को मिलता है.

खरीदी हुई दुल्हन: क्या मंजू को मिल पाया अनिल का प्यार

38 साल के अनिल का दिल अपने कमरे में जाते समय 25 साल के युवा सा धड़क रहा था. आने वाले लमहों की कल्पना ही उस की सांसों को बेकाबू किए दे रही थी, शरीर में झुरझुरी सी पैदा कर रही थी. आज उस की सुहागरात है. इस रात को उस ने सपनों में इतनी बार जिया है कि इस के हकीकत में बदलने को ले कर उसे विश्वास ही नहीं हो रहा.

बेशक वह मंजू को पैसे दे कर ब्याह कर लाया है, तो क्या हुआ? है तो उस की पत्नी ही. और फिर दुनिया में ऐसी कौन सी शादी होती होगी जिस में पैसे नहीं लगते. किसी में कम तो किसी में थोड़े ज्यादा. 10 साल पहले जब छोटी बहन वंदना की शादी हुई थी तब पिताजी ने उस की ससुराल वालों को दहेज में क्या कुछ नहीं दिया था. नकदी, गहने, गाड़ी सभी कुछ तो था. तो क्या इसे किसी ने वंदना के लिए दूल्हा खरीदना कहा था. नहीं न. फिर वह क्यों मंजू को ले कर इतना सोच रहा था. कहने दो जिसे जो कहना था. मुझे तो आज रात सिर्फ अपने सपनों को हकीकत में बदलते देखना है. दुनिया का वह वर्जित फल चखना है जिसे खा कर इंसान बौरा जाता है. मन में फूटते लड्डुओं का स्वाद लेते हुए अनिल ने सुहागरात के लिए सजाए हुए अपने कमरे में प्रवेश किया.

अब तक उस ने जो फिल्मों और टीवी सीरियल्स में देखा था उस के ठीक विपरीत मंजू बड़े आराम से सुहागसेज पर बैठी थी. उस के शरीर पर शादी के जोड़े की जगह पारदर्शी नाइटी देख कर अनिल को अटपटा सा लगा क्योंकि उस का तो यह सोचसोच कर ही गला सूखे जा रहा था कि वह घूंघट उठा कर मंजू से बातों की शुरुआत कैसे करेगा. मगर यहां का माहौल देख कर तो लग रहा है जैसे कि मंजू तो उस से भी ज्यादा उतावली हो रही है.

अनिल सकुचाया सा बैड के एक कोने में बैठ गया. मंजू थोड़ी देर तो अनिल की पहल का इंतजार करती रही, फिर उसे झिझकते देख कर खुद ही उस के पास खिसक आई और उस के कंधे पर अपना सिर टिका दिया. यंत्रवत से अनिल के हाथ मंजू के इर्दगिर्द लिपट गए. मंजू ने अपनेआप को हलका सा धक्का दिया और वे दोनों ही बैड पर लुढ़क गए. मंजू ने अनिल के ऊपर झुकते हुए उस के होंठ चूमने शुरू कर दिए तो अनिल बावला सा हो उठा. उस के बाद तो अनिल को कुछ भी होश नहीं रहा. प्रकृति ने जैसे उसे सबकुछ एक ही लमहे में सिखा दिया.

मंजू ने उसे चरम तक पहुंचाने में पूरा सहयोग दिया था. अनिल का यह पहला अनुभव ऐसा था जैसे गूंगे को गुड़ का स्वाद, जिस के स्वाद को सिर्फ महसूस किया जा सकता है, बयान नहीं. एक ही रात में अनिल तो जैसे जोरू का गुलाम ही हो गया था. आज मंजू ने उसे वह तोहफा दिया था जिस के सामने सारी बादशाहत फीकी थी.

सुबह अनिल ने बेफिक्री से सोती हुई मंजू को नजरभर कर देखा. सबकुछ सामान्य ही था उस में. कदकाठी, रंगरूप और चेहरामोहरा सभी कुछ. मगर फिर भी रात जो खास बात हुई थी उसे याद कर के अनिल मन ही मन मुसकरा दिया और सोती हुई पत्नी को प्यार से चूमता हुआ कमरे से बाहर निकल गया.

मंजू जैसी भी थी, अनिल से तो इक्कीस ही थी. अनिल का गहरा सांवला रंग, मुटाया हुआ सा शरीर, कम पढ़ाईलिखाई सभीकुछ उस की शादी में रोड़ा बने हुए थे. अब तो सिर के बाल भी सफेद होने लगे थे. बहुत कोशिशों के बाद भी जब जानपहचान और अपनी बिरादरी में अनिल के रिश्ते की बात नहीं जमी तो उस की बढ़ती हुई उम्र को देखते हुए उस की बूआ ने उस की मां को सलाह दी कि अगर अपने समाज में बात नहीं बन रही है तो किसी गरीब घर की गैरबिरादरी की लड़की के बारे में सोचने में कोई बुराई नहीं है. और तो और, आजकल तो लोग पैसे दे कर भी दुलहन ला रहे हैं. बूआ की बात से सहमत होते हुए भी अनिल की मां ने एक बार उस की कुंडली मंदिर वाले पंडितजी को दिखाने की सोची.

पंडितजी ने कुंडली देख कर मुसकराते हुए कहा, ‘‘बहनजी, शादी का योग तो हर किसी की कुंडली में होता ही है. किसीकिसी की शादी जल्दी तो किसी की थोड़ी देर से, मगर समझदार लोग आजकल कुंडली के फेर में नहीं पड़ते. आप तो कोई ठीकठाक सी लड़की देख कर बच्चे का घर बसा दीजिए. चाहे कुंडली मिले या न मिले. बस, लड़की मिल जाए और शादी के बाद दोनों के दिल.’’

अनिल की मां को बात समझ में आ गई और उन्होंने अपने मिलने वालों व रिश्तेदारों के बीच में यह बात फैला दी कि उन्हें अनिल के लिए किसी भी जातबिरादरी की लड़की चलेगी. बस, लड़की संस्कारी और दिखने में थोड़ी ठीकठाक हो.

बात निकली है तो दूर तलक जाएगी. एक दिन अनिल की मां से मिलने एक व्यक्ति आया जो शादियां करवाने का काम करता था. उसी ने उन्हें मंजू के बारे में बताया और अनिल से उस की शादी करवाने के एवज में 20 हजार रुपए की मांग की. अनिल अपनी मां और बूआ के साथ मंजू से मिलने उस के घर गया. बेहद गरीब घर की लड़की मंजू अपने 5 भाईबहनों में तीसरे नंबर पर थी. उस से छोटा एक भाई और भाई से छोटी एक बहन रीना. मंजू की 2 बड़ी बहनें भी उस की ही तरह खरीदी गई थीं.

25 साल की युवा मंजू उम्र में अनिल से लगभग 12-13 साल छोटी थी. एक कमरे के छोटे से घर में इतने प्राणी कैसे रहते होंगे, यह सोच कर ही अनिल हैरान हो रहा था. उसे तो यह सोच कर हंसी आ रही थी कि कैसी परिस्थितियों में ये बच्चे पैदा हुए होंगे.

खैर, मंजू को देखने के बाद अनिल ने शादी के लिए हां कर दी. अब यह तय हुआ कि शादी का सारा खर्चा अनिल का परिवार ही उठाएगा और साथ ही, मंजू के परिवार को 2 लाख रुपए भी दिए जाएंगे ताकि उन का जीवनस्तर कुछ सुधर सके. 50 हजार रुपए एडवांस दे कर अनिल और मंजू की शादी का सौदा तय हुआ और जल्दी ही घर के 4 जने जा कर मंजू को ब्याह लाए. बिना किसी बरात और शोरशराबे के मंजू उस की पत्नी बन गई.

मंजू निम्नवर्गीय घर से आई थी, इसलिए अनिल के घर के ठाटबाट देख कर वह भौचक्की सी रह गई. बेशक उस का स्वागत किसी नववधू सा नहीं हुआ था मगर मंजू को इस का न तो कोई अफसोस था और न ही उस ने कभी इस तरह का कोई सपना देखा था. बल्कि वह तो इस घर में आ कर फूली नहीं समा रही थी. जितना खाना उस के मायके में दोनों वक्त बनता था उतना तो यहां एक वक्त के खाने में बच जाता है और कुत्तों को खिलाया जाता है. ऐसेऐसे फल और मिठाइयां उसे यहां देखने और खाने को मिल रहे थे जिन के उस ने सिर्फ नाम ही सुने थे, देखे और चखे कभी नहीं.

‘अगर मैं अनिल के दिल की रानी बन गई तो फिर घर की मालकिन बनने से मुझे कोई नहीं रोक सकता’, मंजू ने मन ही मन सोच लिया कि आखिरकार उसे घर की सत्ता पर कब्जा करना ही है.

‘सुना था कि पुरुष के दिल का रास्ता उस के पेट से हो कर जाता है. नहीं. पेट से हो कर नहीं, बल्कि उस की भूख की आनंददायी संतुष्टि से हो कर जाता है. फिर भूख चाहे पेट की हो, धन की हो या फिर शरीर की हो. यदि मैं अनिल की भूख को संतुष्ट रखूंगी तो वह निश्चित ही मेरे आगेपीछे घूमेगा. और फिर, तू मेरा राजा, मैं तेरी रानी, घर की महारानी’, यह सोचसोच कर मंजू खुद ही अपने दिमाग की दाद देने लगी.

‘बनो दिल की रानी’ अपने इस प्लान के मुताबिक, मंजू रोज दिन में 2 बार अनिल को ‘आई लव यू स्वीटू’ का मैसेज भेजने लगी. लंचटाइम में उसे फोन कर के याद दिलाती कि खाना टाइम पर खा लेना. वह शाम को सजधज कर अनिल को उस के इंतजार में खड़ी मिलती.

रात के खाने में भी वह अनिल को गरमागरम फुल्के अपने हाथ से बना कर ही खिलाती थी चाहे उसे घर आने में कितनी भी देर क्यों न हो जाए और खुद भी उस के साथ ही खाती थी. यानी हर तरह से अनिल को यह महसूस करवाती थी कि वह उस की जिंदगी में सब से विशेष व्यक्ति है. और हर रात वह अनिल को अपने क्रियाकलापों से खुश करने की पूरी कोशिश करती थी. उस ने कभी अनिल को मना नहीं किया बल्कि वह तो उसे प्यार करने को प्रोत्साहित करती थी. उम्र में छोटी होने के कारण अनिल उसे बच्ची ही समझता था और उस की हर नादानी को नजरअंदाज कर देता था.

कहने को तो अनिल अपने मांबाप का इकलौता बेटा था मगर कम पढ़ेलिखे होने और अतिसाधारण शक्लसूरत के कारण अकसर लोग उसे कोई खास तवज्जुह नहीं दिया करते थे. वहीं, उस की शादी भी नहीं हो रही थी. सो, अनिल हीनभावना का शिकार होने लगा था. मगर मंजू ने उसे यह एहसास दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी कि वह कितना काबिल और खास इंसान है बल्कि वह तो कहती थी कि अनिल ही उस की सारी दुनिया है.

मंजू के साथ और प्यार से अनिल का आत्मविश्वास भी बढ़ने लगा. मंजू को पा कर अनिल ऐसे खुश था जैसे किसी भूखे व्यक्ति को हर रोज भरपेट स्वादिष्ठ भोजन मिलने लगा हो.

एक दिन मंजू की मां का फोन आया. वे उस से मिलना चाह रही थीं. रात में मंजू ने अनिल की शर्ट के बटन खोलते हुए अदा से कहा, ‘‘मुझे कुछ रुपए चाहिए. मां ने मिलने के लिए बुलाया है. पहली बार जा रही हूं. अब इतने बड़े बिजनैसमैन की पत्नी हूं, खाली हाथ तो नहीं जा सकती न.’’

‘‘तो मां से ले लो न,’’ अनिल ने उसे पास खींचते हुए कहा.

‘‘मां से क्यों? मैं तो अपने हीरो से ही लूंगी. वह भी हक से,’’ कहते हुए मंजू ने अनिल के सीने पर अपना सिर टिका दिया.

‘‘कितने चाहिए? अभी ये रखो. और चाहिए तो कल दे दूंगा,’’ अनिल ने निहाल होते हुए उसे 20 हजार रुपए थमा दिए और फिर मंजू को बांहों में कसते हुए लाइट बंद कर दी.

मंजू 15 दिनों के लिए मायके गईर् थी. मगर 5 दिनों बाद ही अनिल को उस की याद सताने लगी. मंजू की शहदभरी बातें और मस्तीभरी शरारतें उसे रातभर सोने नहीं देतीं. उस ने अगले ही दिन मंजू का तत्काल का टिकट बनवा कर आने के लिए कह दिया. मंजू भी जैसे आने के लिए तैयार ही बैठी थी. उस के वापस आने के बाद अनिल की दीवानगी उस के लिए और भी बढ़ गई. अब मंजू हर महीने अनिल से

10-15 हजार रुपए ले कर अपने मायके भेजने लगी. मंजू ने अनिल से उस का एटीएम कार्ड नंबर और पिन आदि ले लिया. जिस की मदद से वह अपनी बहनों और भाई के लिए कपड़े, घरेलू सामान आदि भी औनलाइन और्डर कर के भेज देती. मंजू के प्यार का नशा अनिल के सिर चढ़ कर बोलने लगा था. ‘सैयां भए कोतवाल तो अब डर काहे का.’ घर में मंजू का ही हुक्म चलने लगा.

बेटे की इच्छा को देख अनिल की मां को न चाहते हुए भी तिजोरी की चाबियां बहू को देनी पड़ीं. सामाजिक लेनदेन आदि भी सबकुछ उसी की सहमति या अनुमति से होता था. अनिल की मां उसे कुछ नहीं कह पाती थीं क्योंकि मंजू ने उन्हें भी यह एहसास करवा दिया था कि उस ने अनिल से शादी कर के अनिल सहित उन के पूरे परिवार पर एहसान किया है.

‘‘सुनिए न, मेरी बड़ी इच्छा है कि मेरा नाम हर जगह आप के नाम के साथ जुड़ा हो,’’ एक दिन मंजू ने अनिल से बड़े ही अपनेपन से कहा.

‘‘अरे, इस में इच्छा की क्या बात है? वह तो जुड़ा ही है. देखो, तुम मेरी अर्धांगिनी हो यानी मेरा आधा हिस्सा. इस नाते मेरी हर चलअचल संपत्ति पर तुम्हारा आधा हक हुआ न,’’ अनिल ने प्यार से मंजू को समझाया.

‘‘वह तो ठीक है, मगर यह सब अगर कानूनी रूप से भी हो जाता तो कितना अच्छा होता. मगर उस में तो कई पेंच होंगे न. चलो, रहने दो. बिना मतलब आप परेशान हो जाएंगे,’’ मंजू ने बालों की लट को उंगलियों में लपेटते हुआ कहा.

‘‘मेरी जान, मेरे तन, मन और धन… सब की मालकिन हो तुम,’’ अनिल ने उसे बांहों में भरते हुए कहा और फिर एक दिन वकील और सीए को बुला कर अपने घरदुकान, बैंक अकाउंट व अन्य चलअचल प्रौपर्टी में मंजू को कानूनन अपना उत्तराधिकारी बना दिया.

इधर एक बच्चे की मां बन कर जहां मंजू ने अनिल के खानदान को वारिस दे कर सदा के लिए उसे अपना कर्जदार बना लिया वहीं मां बनने के बाद मंजू के रूप और यौवन में आए निखार ने अनिल की रातों की नींद उड़ा दी. अनिल को अब अपनी ढलती उम्र का एहसास होने लगा था. वह यह महसूस करने लगा था कि अब उस में पहले वाली ऊर्जा नहीं रही और वह मंजू की शारीरिक जरूरतें पहले की तरह पूरी नहीं कर पाता. अपनी इस गिल्ट को दूर करने के लिए वह मंजू की हर भौतिक जरूरत पूरी करने की कोशिश में लगा रहता. अनिल आंख बंद कर के मंजू की हर बात मानने लगा था.

मंजू बेशक अनिल की प्रौपर्टी की मालकिन बन गई थी मगर उस ने भी अपने दिल का मालिक सिर्फ और सिर्फ अनिल को ही बनाया था. वह यह बात कभी नहीं भूल सकी थी कि जब उस के आसपड़ोस के लोेग उसे ‘खरीदी हुई दुलहन’ कह कर हिकारत से देखते थे तब यही अनिल कैसे उस की ढाल बन कर सामने खड़ा हो जाता था और उसे दुनिया की चुभती हुई निगाहों से बचा कर अपने दिल में छिपा लेता था. उस की सास ने उसे कभी अपने खानदान की बहू जैसा सम्मान नहीं दिया था मगर फिर भी अपनी स्थिति से आज वह खुश थी.

उस ने बहुत ही योजनानुसार अपने परिवार को गरीबी के दलदल से बाहर निकाल लिया था. मंजू ने मोमबत्ती की तरह खुद को जला कर अपने परिवार को रोशन कर दिया था. मंजू ने दुकान के काम में मदद करने के लिए अपने भाई को अपने पास बुला लिया. इसी बीच अनिल की मां चल बसीं, तो अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए मंजू ने अपने मांपापा और छोटी बहन रीना को भी अपने पास ही बुला लिया.

एक दिन वही दलाल अनिल के घर आया जिस ने मंजू से उस की शादी करवाई थी. रीना को देखते ही उस की मां से बोला, ‘‘क्या कीमत लगाओगे लड़की की? किसी को जरूरत हो तो बताना पड़ेगा न?’’

‘‘मेरी बहन किसी की खरीदी हुई दुलहन नहीं बनेगी,’’ मंजू ने फुंफकारते हुए कहा.

‘‘खरीदी हुई दुलहन, बड़ी जल्दी पर निकल आए. अपनी शादी का किस्सा भूल गई क्या?’’ दलाल ने मंजू पर ताना कसते हुए मुंह बनाया.

‘‘मेरी बात और थी. मैं तो बिना सहारे की बेल थी जिसे किसी न किसी पेड़ से लिपटना ही था. मगर रीना के साथ ऐसा नहीं है. देर आए दुरुस्त आए. कुदरत ने उसे अनिल के रूप मे सिर पर छत दे दी है और पांवों के नीचे जमीन भी. अभी मैं जिंदा हूं और अपनी बहन की शादी कैसे करनी है, यह हम खुद तय कर लेंगे. आप जा सकते हैं. लेकिन हां, अनिल को मेरी जिंदगी में लाने के लिए मैं सदा आप की कर्जदार रहूंगी, धन्यवाद,’’ मंजू ने दलाल से हाथ जोड़ते हुए आभार जताया. वहीं पीछे खड़ा अनिल मुसकरा रहा था. आज उस के दिल में मंजू के लिए प्यार के साथसाथ इज्जत भी बढ़ गई थी.

लड़की को भी है मसल्स दिखाने की जरूरत, ‘जो मरजी पहनो’

गैस करो कि यह फोटो कहां का है: यह पक्का है कि यह एआई की बनाया नहीं है. असल में यह है अमेरिका के व्हाइट हाउस जहां राष्ट्रपति रहते हैं और ये स्मार्ट इंडियन सी लगने वाली औरतें अमेरिका की मुसलिम महिला ऐसोसिएशन की हैं जो विदेश मंत्री सैक्रेटरी अंटोनी ब्लिंकेन से मिलने आईं. साउथ एशिया के देशों की औरतों को अभी भी साड़ी और सलवारकमीज में ही अपनी पहचान दिखती है. यह बैकवर्डनैस है या सुंदर दिखने की कोशिश, यह आप तय करें. यह पक्का है कि अगर चीनीजापानी डैलीगेशन होता तो वे वैस्टर्न ड्रैस में ही होतीं.

है हिम्मत तो पास आओ: ये मसल लड़की के हैं, किसी जिम गोइंग लड़के के नहीं. आजकल ऐसी थेरैपी आने वाली है कि जिन के मसल किसी बीमारी से कमजोर हो जाएं उन्हें भी सही ऐक्सरसाइज और प्रोटीन सप्लिमैंट दे कर मसल ऐसे हो जाएं कि सड़कछाप मजनूं दूर से ही भाग जाएं. हमारी तो सोच है कि एक साजिश के तौर पर लड़कियों को पट्टी पढ़ाई जाती है कि वे कमजोर और नाजुक दिखें कि कहीं वे पुरुषों को चैलेंज न करने लगें.

आगे की सोचें: जिम अब सिर्फ ऐक्सरसाइज के सैंटर नहीं रह गए हैं. जिस तरह पौपुलर हो गए हैं, वे कम्युनिटी क्लब से बनने लगे हैं और एक सैंटर ने अपने यहां डांस और कराटे क्लासेज भी लगानी शुरू कर दी हैं. जल्द ही उन में किट्टी पार्टियां भी होने लगें, बर्थडे मनाए जाने लगें और कोई शोक सभा भी और्गनाइज करा दें कि आओ और टू इन वन काम करते जाओ तो बड़ी बात नहीं. सनरेज जिम को ऐडवांस में बैस्ट विशेष की आगे की सोचें और वहां शादियां भी करा दें और तलाक भी. आखिर लोग अभी भी बहुत समय वहीं लगा रहे हैं.

जो मरजी पहनो: हलीमा अदेन ऐसीवैसी नहीं सुपर मौडल्स में गिनी जाती है और उस की शोहरत इतनी है कि एक इंडोनेशियाई कंपनी बटनस्कार्व्स ने उसे ब्रैंड ऐंडोर्स और मौडलिंग करने के लिए चुना है. स्कार्फ अच्छा फैशन स्टेटमैंट है पर हम कहेंगे कि इसे वर्कप्लेस में नहीं पहना जाए. वर्कप्लेस में ड्रैस एक सी और बिना ज्यादा तड़कभड़क वाली हो. हां, अगर काम शो बिजनैस का है तो जो मरजी है पहनो और चाहो तो कुछ भी न पहनो.

मान लेने में बुराई नहीं: अब अगर यह फैशन हौलीवुड से जुड़े किसी डिजाइनर का है तो मान लेने में कोई बुराई नहीं है कि कुछ खास ही होगा. निश निशे की डिजाइन की ड्रैसें न केवल स्टाइलिस्ट मानी जाती हैं और फैब्रिक से ले कर रंग तक की चिंता की जाती है, यह कंपनी का दावा है तो मान लेना ही अच्छा है. औनलाइन के जमाने में ग्राहक तो वैसे भी बस डेटा पीस बन कर रह गए हैं जिन्हें कहीं भी कुछ भी कह कर बेचा जा सकता है.

हम कमजोर नहीं: यह अमेरिका में गवर्नर के औरत होने का फायदा है जो भारत के चीफ मिनिस्टर की तरह का सा होता है कि उस ने औरतों की मांग पर एक कानून बना दिया जिस में डिजिटल हैरसमैंट को डोमैस्टिक वायलैंस के साथ जोड़ दिया है जो डाइवोर्स का कारण बन सकता है. अमेरिका में भी अगर एक पार्टनर डाइवोर्स न देना चाहे तो लंबी कानूनी देरी संभव है. अब व्हाट्सऐप, फेसबुक, इंस्टाग्राम पर अनापशनाप कहने पर भी डाइवोर्स की ग्राउंड ली जा सकती है.

मौड्यूलर किचन चाहते हैं बनवाना, तो फौलो करें ये टिप्स

Writer- रेणु लैसी 

प्राचीनकाल से ले कर वर्तमान तक रसोई का महत्त्व बना हुआ है. किचन ही घर में एक ऐसी जगह है जो परिवार के सभी लोगों को एकदूसरे से जोड़े रखती है. किचन में सिर्फ खाना ही नहीं बनता है बल्कि लोग खाने के साथसाथ अपने मन की बातें भी एकदूसरे से शेयर करते हैं. बीते कई सालों से लोगों ने किचन की डिजाइन में कई तरह के बदलाव लाना पसंद किया है. जैसेजैसे तकनीक में सुधार हुआ, किचन में सुविधाएं भी बेहतर होती गईं.

आजकल मौड्यूलर किचन लोगों की पहली पसंद बनती जा रही है. आप घर बनवा रहे हैं या पुराने घर का नवीकरण करवा रहे हैं तो आप निश्चित ही किचन को भी एक खूबसूरत और अनोखी डिजाइन में देखना पसंद करेंगे. आज हम आप को आधुनिक किचन की डिजाइन के बारे में कुछ महत्त्वपूर्ण बातें बताएंगे:

ओपन किचन या खुली रसोई: आजकल विदेशों की तरह भारत में ओपन किचन लोगों की पहली पसंद बनती जा रही हैं. लोग अब बंद कमरे जैसी किचन से बोर हो गए हैं. इसलिए वे ओपन किचन बनाने में दिलचस्पी रखते हैं. ओपन किचन में कोई दरवाजा नहीं होता. यह बिलकुल खुली हुई और हवादार होती है. चारों तरफ से रोशनी आती रहती है.

ताजा हवा आने से मन खुश रहता है. ओपन किचन अधिकांश हाल और डायनिंगरूम के साथ ही बनाई जाती है, जिस से आप लोगों से बातचीत करते हुए अपना काम कर सकते हैं. आप को बातचीत करने के लिए अपना काम नहीं रोकना पड़ता है. आजकल ओपन किचन की एक से बढ़ कर एक डिजाइनें मौजूद हैं. आप किसी भी इंटीरियर डिजाइनर की सहायता से ओपन किचन बनवा सकती हैं.

बस आप को ओपन किचन की साफसफाई का विशेष ध्यान रखना होगा क्योंकि खुली जगह में धूल के कण आसानी से वस्तुओं में दिखाई देने लगते हैं. इसलिए ओपन किचन को साफ और हमेशा व्यवस्थित रखें.

वाल किचन: छोटी जगह के लिए वाल किचन एक बेहतरीन औप्शन है. आजकल लोग एक दीवार वाली किचन ज्यादा बनवाना पसंद कर रहे हैं. आप रसोई के सामान को एक दीवार के साथ व्यवस्थित रख सकते हैं, जिस से सबकुछ आसानी से मिल जाता है. ढूंढ़ने में समय खराब नहीं होता है. यदि जगह छोटी है तो सामान को स्लाइडिंग दरवाजे के पीछे या कैबिनेट के भीतर रखा जा सकता है. आप एक के ऊपर दूसरा सामान रख सकते हैं, जिस से छोटी जगह का भी उपयोग आसानी से हो जाएगा.

एल शेप किचन: आजकल एल शेप के किचन भी बनवाई जा रही है. यह छोटी और बड़ी दोनों जगहों पर आसानी से बन जाती है. आप कम जगह में ज्यादा सामान को आसानी से स्टोरेज कर सकती हैं. खाना बनाने और भंडारण को अलग  2 भाग में बनाने के लिए आजकल एल की शेप के किचन ज्यादा बनाई जा रही है.

एक तरफ खुली जगह जहां आप खाना बना सकती हैं तो दूसरे भाग में आप सामान रख सकती हैं. अगर आप के पास छोटी किचन है तो एल शेप की किचन बना सकती हैं. यह छोटी किचन को भी बड़ा दिखाएगा. इस पर व्हाइट और ग्रे कलर का उपयोग कर सकती हैं. इस की साफसफाई आसानी से हो जाती है.

यू शेप किचन: आप के पास ज्यादा और बड़ी जगह है तो आप यू शेप की किचन बनाने का मन बना सकती हैं. बड़ी जगह पर यू शेप किचन बनाना काफी लोकप्रिय हो रहा है. यह आप को स्पेशियस स्टोरेज की सुविधा देगा. यू शेप की किचन में आप आसानी से सिंक, कुकटौप, ओवन और रैफ्रिजरेटर को स्टोर कर सकते हैं.

इस का सब से बड़ा फायदा यह है कि यू शेप की किचन में 2-3 लोग आराम से काम कर सकते हैं. आप का परिवार बड़ा है तो यू शेप की किचन बनवाना ही समझदारी है. व्हाइट, ग्रीन ऐंड उडेन फिनिश का टच इस की खूबसूरती बढ़ा देता है. आप चाहें तो और भी कलर का उपयोग कर सकती हैं और अपनी यू शेप किचन की खूबसूरती में चार चांद लगा सकती हैं.

पैरेलल किचन: आप के पास जगह की कमी है तो आप पैरेलल किचन बनवाना ही उचित रहेगा. यह कम जगह में भी आसानी से बन जाती है. अगर आप की किचन एक स्मौल गैलरी की शेप की है तो आप पैरेलल किचन बनाने का निर्णय ले सकती हैं और किचन को क्लासिक लुक दे सकती हैं.

यह देखने में खूबसूरत होने के साथसाथ आप को स्टोरेज की सुविधा भी अच्छी देती है. मगर पैरेलल किचन बहुत ही संकरी होती है. आप किचन में ज्यादा समय नहीं गुजार सकती हैं. लेकिन किचन छोटी होने से आप इस का रखरखाव आसानी से कर सकती हैं.

किचन विद ब्रेकफास्ट टेबल: किचन एल या यू किसी भी शेप में बनवाएं लेकिन ब्रेकफास्ट टेबल बनवाना लोगों की पहली पसंद बनता जा रहा है. यह आसानी से बन जाती है और आप खाना बनाने के साथसाथ टेबल पर खाना सर्व भी कर सकती हैं.

आप के समय की बचत भी होती है और आप के शरीर को भी आराम मिलता है क्योंकि आप को खाना सर्व करने के लिए भागदौड़ नहीं करनी पड़ती. यह मीडियम या बड़े आकार की किचन के लिए बहुत ही अच्छी डिजाइन है.

पिता और बच्चे की बौंडिंग करना चाहते हैं स्ट्रौन्ग, तो ध्यान रखें ये बातें

नवजात के साथ मां जितना भावनात्मक लगाव बनाए रखती है, पिता भी इस के लिए उतना ही उत्सुक रहता है. दोनों के बीच एकमात्र यही अंतर रहता है कि पिता को इस तरह का लगाव रखने के लिए विशेष प्रयास करने पड़ते हैं, जबकि मां का अपने बच्चे से यह स्वाभाविक बन जाता है.

यदि आप भी पिता बनने का सुख पाने वाले हैं, तो हम आप को कुछ ऐसे टिप्स बता रहे हैं, जो इस दुनिया में कदम रखने वाले बच्चे के प्रति आप के गहरे लगाव को विकसित कर सकते हैं. हमारे समाज में लिंगभेद संबंधी दकियानूसी सोच के कारण पुरुष अधिक भावनात्मक रूप से पिता का सुख पाने से कतराते हैं.

मां से ही बच्चे की हर तरह की देखभाल की उम्मीद की जाती है. मां को ही बच्चे का हर काम करना पड़ता है. लेकिन अपने बच्चे के साथ आप जितना जुड़ेंगे और उस की प्रत्येक गतिविधि में हिस्सा लेंगे, बच्चे के प्रति आप का लगाव उतना ही बढ़ता जाएगा. लिहाजा, बच्चे का हर काम करने की कोशिश करें. नैपकिन धोने, डाइपर बदलने, दूध पिलाने, सुलाने से ले कर जहां तक हो सके उस के काम कर उस के साथ अधिक से अधिक समय बिताने की कोशिश करें.

गर्भधारण काल से ही खुद को व्यस्त रखें

गर्भधारण की प्रक्रिया के साथ सक्रियता से जुड़ते हुए पिता भी बच्चे के समग्र विकास में अहम भूमिका निभा सकता है. हर बार पत्नी के साथ डाक्टर के पास जाए. डाक्टर के निर्देशों को सुने और पत्नी को प्रतिदिन उन पर अमल करने में मदद करे. पत्नी को क्या खाना चाहिए तथा प्रतिदिन वह क्या कर रही है, उस पर नजर रखे. इस के अलावा सोनोग्राफी सैशन का नियमित रूप से पालन करे. गर्भ में पल रहे बच्चे के समुचित विकास की प्रक्रिया के साथ घनिष्ठता से जुड़ते हुए पिता भी बच्चे के जन्म के पहले से ही उस के साथ गहरा लगाव कायम कर सकता है.

जहां तक संभव हो बच्चे को संभालें

जब कभी अपने नवजात को अपनी बांहों में लेने का मौका मिले, उसे गंवाएं नहीं. बच्चे को सुलाना, लोरी सुनाना या बच्चे के तकलीफ में रहने के दौरान उसे सीने से लगाए रखना सिर्फ मां की ही जिम्मेदारी नहीं होती है. ये सभी काम करने में खुद पहल करें. अपने बच्चे के साथ जल्दी लगाव विकसित करने के लिए स्पर्श एक अनिवार्य उपाय माना जाता है. अपने बच्चे को आप जितना स्पर्श करेंगे, उसे गले लगाएंगे, गोद में उठाएंगे, बच्चे से आप की और आप से बच्चे की नजदीकी उतनी ही ज्यादा बढ़ती जाएगी.

डकार के लिए बच्चे को थामना

यह बच्चे के साथ लगाव बढ़ाने में विशेष रूप से मदद करता है और मां को भी मदद मिलती है क्योंकि भोजन के बाद मां और शिशु दोनों थक जाते हैं और थोड़ा आराम चाहते हैं. शिशु को कई बार डकार लेने में 10-15 मिनट का वक्त लग जाता है और मां को उस की डकार निकालने के लिए अपने कंधे पर रखना भी मुश्किल हो जाता है क्योंकि वह खुद दुग्धपान कराने के बाद थक जाती है. ऐसे में यदि पिता यह दायित्व संभाल ले और बच्चे को इस तरह से थामे रखे कि उसे डकार आ जाए, तो मां को भी थोड़ा आराम मिल जाता है और शिशु भी अपनी मुद्रा बदल कर आराम पा सकता है.

बच्चे को दिन में एक बार खिलाएं

पत्नी जब बच्चे को नियमितरूप से स्तनपान करा सकती है, तो आप भी उसे बांहों में रख कर बोतल का दूध क्यों नहीं पिला सकते? किसी मां या पिता के लिए अपने बच्चे को खिलाने और यह देख कर संतुष्ट होने से बड़ा कोई एहसास नहीं हो सकता कि भूख शांत होते ही वह निश्चिंत हो गया है. इस से आप को अपने बच्चे के और करीब आने में भी मदद मिलेगी.

बच्चे को नहलाएं

शुरुआती दौर में बच्चे को स्नान कराना महत्त्वपूर्ण होता है, जिस में बच्चा आनंद लेता है. अत: अपने बच्चे को किसी एक वक्त खुद नहलाना, उस के कपड़े धोना तय करें.

बच्चे से बातें करें

जब बच्चा अच्छे मूड में हो तो उस की आंखों में देखें और तब अपने दिल की बात उसे सुनाएं. कुछ लोगों में बच्चों से बातें करने की स्वाभाविक दक्षता होती है जबकि कुछ को इसे विकसित करने में वक्त लगता है. प्रतिदिन अपने बच्चे से बातें करें. धीरेधीरे वह आप की आवाज सुन कर प्रतिक्रिया भी देने लगेगा.

बच्चे के रोजमर्रा के काम निबटाएं

बच्चे के पालनपोषण की प्रक्रिया में आप खुद को जितना व्यस्त रखेंगे, आप का बच्चा और आप का एकदूसरे से लगाव उतना ही गहरा होता जाएगा. कुछ लोगों को डर लगता है कि बच्चे का कोई काम निबटाने में उन के हाथों कुछ गलत न हो जाए, लेकिन इस में घबराने की कोई बात नहीं है क्योंकि मां भी तो धीरेधीरे ही सब कुछ सीखती है. बच्चे का डाइपर बदलना, उस की उलटी साफ करना, उस के कपड़े, बदलना आदि काम सीखना सिर्फ मां की ही जिम्मेदारी नहीं है. बच्चे के साथ खुद को आप जितना अधिक जोड़ेंगे, उस के साथ आप का लगाव भी उतना ही गहरा होता जाएगा.

ऐक्टिंग के अलावा कहानियां भी लिखती हूं : परिवा प्रणति

परिवा प्रणति खूबसूरत और विनम्र अभिनेत्री के रूप में जानी जाती हैं. उन्होंने हिंदी फिल्मों और धारावाहिकों में काम किया है. ‘तु?ा को है सलाम जिंदगीं,’ ‘हमारी बेटियों का विवाह,’ ‘अरमानों का बलिदान,’ ‘हल्ला बोल,’ ‘हमारी बहन दीदी,’ ‘लौट आओ त्रिशा,’ ‘बड़ी दूर से आए हैं’ आदि कई धारावाहिकों में वे काम कर चुकी हैं. परिवा का जन्म बिहार के पटना शहर में हुआ था. उन के पिता वायु सेना अधिकारी हैं. पिता की जौब में बारबार स्थानांतरण होने की वजह से परिवा कई शहरों में रह चुकी हैं. उन की पढ़ाई दिल्ली में पूरी हुई है.

ऐक्टिंग के दौरान परिवा को ऐक्टर और वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर पुनीत सचदेवा से प्यार हुआ और फिर दोनों ने शादी कर ली. उन दोनों का एक बेटा रुशांक सिन्हा है. परिवा अपने खाली समय में पेंटिंग करना, लिखना और सूफी संगीत सुनना पसंद करती हैं. वे पशु प्रेमी हैं. उन्होंने कई बिल्लियां और कुत्ते पाल रखे हैं. इन दिनों परिवा सोनी सब पर चल रही शो ‘वागले की दुनिया’ में वंदना वागले की भूमिका निभा रही हैं, जिसे सभी पसंद कर रहे है.

रियल लाइफ में परिवा 1 बच्चे की मां हैं. काम के साथ परिवार को कैसे संभालती हैं, आइए जानते हैं:

मां की भावना को समझना हुआ आसान

‘वागले की दुनिया’ में परिवा मां की भूमिका निभा रही हैं और रियल लाइफ में मां होने की वजह से उन्हें एक मां की भावना अच्छी तरह से सम?ा में आती है. वे कहती हैं, वंदना वागले की भूमिका मेरे लिए एक आकर्षक भूमिका है. इस में मैं 2 बच्चों सखी और अपूर्वा की मां हूं. इन में बेटी सम?ादार है और बेटा थोड़ा शरारती है. देखा जाए, तो रियल लाइफ में भी बेटियां बेटों से थोड़ी अधिक सम?ादार होती हैं वैसा ही शो में दिखाया गया है.

रियल लाइफ में मेरा बेटा रुशांक सिन्हा 6 साल का है और बहुत शरारती भी है. असल में जब मैं मां बनी तो मां की भावनाओं को समझ सकी, जिस का फायदा मुझे शो में मिल रहा है. मुझे याद आता है, जब मैं काम कर रही थी तो मेरी मां रोज मुझ से बात किए बिना नहीं सोती थीं, लेकिन अब मैं मां की भावना को समझती हूं.’’

काम के साथ करें प्लानिंग

काम के साथ परिवार को संभालने के बारे में पूछने पर परिवा कहती हैं, ‘‘मैं ने हमेशा कोशिश की है कि बच्चे को पता चले कि मेरा काम करना जरूरी है, साथ ही उसे हमेशा कुछ नया सीखने के लिए प्रेरित करती हूं ताकि वह छोटी उम्र से ही कुछ सीखता रहे और व्यस्त रहे. धीरेधीरे मेरा बेटा अब काफी कुछ समझने लगा है कि मेरा काम पर जाना जरूरी है. इस के अलावा मेरे पति और एक हैल्पिंग हैंड है उस का खयाल रखते हैं. कई बार जरूरत पड़ने पर मेरे पेरैंट्स भी सहयोग करने आ जाते हैं. बच्चे को संभालने में पति का अधिक सहयोग रहता है.

‘‘मेरे पति भी हमेशा बेटे को कुछ नया सीखने को प्रेरित करते हैं. उसे अभी टेनिस सिखाने ले जाते हैं. बेटे का कुछ खाने का मन करे तो वे उसे बना कर दे देते हैं. हम दोनों आपस में मिल कर अपने समय के अनुसार बेटे की परवरिश कर रहे हैं. मेरे पति ऐक्टर के अलावा वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर भी है.’’

जरूरत से अधिक प्रोटैक्शन देना ठीक नहीं

अधिकतर बच्चे खाना खाने में पेरैंट्स को परेशान करते है. ऐसे में आप बच्चे को किस प्रकार खाना खिलाती है? पूछने पर पारिवा कहती हैं, ‘‘मैं ने हमेशा घर का खाना खिलाने की कोशिश की है, अगर वह सब्जियां नहीं खाता है तो उन्हें आटे में मिला देती हूं तब वह खा लेता है. अधिक परेशान करने पर नानानानी के पास भेज देती हूं. मेरे पिता फौज में थे इसलिए अनुसाशन बहुत कड़ा रहता है. इसलिए वहां जा कर सब खाने लगता है. मैं बेटे को ले कर अधिक प्रोटैक्टिव नहीं क्योंकि मैं उसे भोंदू बच्चा नहीं बनाना चाहती लेकिन उस की सुरक्षा पर पूरा ध्यान देती हूं और एक आत्मनिर्भर बच्चा बनाना चाहती हूं.

‘‘हम दोनों उस पर अपनी इच्छाओं को नहीं थोपते. उसे निर्णय लेने की आजादी देते हैं. मैं ने देखा है कि कई बार पेरैंट्स अपने बच्चे की गलती नहीं देखते, जो गलत होता है. हमें अपने बच्चे की गलती भी पता होनी चाहिए. मैं बचपन में बहुत सम?ादार बच्ची थी और सुरक्षित माहौल में बड़ी हुई हूं. आजकल के बच्चे जरूरत से अधिक सैसिटिव होते जा रहे हैं जो पहले नहीं था. मु?ा से हमेशा कहा गया कि हमें ‘नो’ सुनना भी आना चाहिए. मेरे पेरैंट्स ने कभी किसी प्रकार का दबाव नहीं डाला. जब मैं ने उन से ऐक्टिंग की बात कही तो उन्होंने मना नहीं किया बल्कि सहयोग दिया.’’

ऐक्टिंग नहीं थी इत्तफाक

परिवा कहती हैं, ‘‘मुझे बचपन में बहुत कुछ बनना होता था, हर 2 महीने में मेरी इच्छा बदलती थी, फिर पता चला कि एक ऐक्टर बहुत कुछ ऐक्टिंग के जरीए बन सकता है. फिर मैं ने इस क्षेत्र में आने का मन बनाया. मैं ऐक्टिंग को बहुत ऐंजौय करती हूं.’’

जर्नी से हूं खुश

परिवा कहती हैं, ‘‘मैं अपनी जर्नी से बहुत खुश हूं. जितना चाहा उस से कहीं अधिक मु?ो मिला है. ऐक्टिंग के अलावा मैं कहानियां भी लिखती हूं. एक किताब लिखने की इच्छा है.

बौडी शेमिंग बना बड़ा सिरदर्द : डौली सिंह

एक पतलीदुबली सांवली सी लड़की जब बौलीवुड की एक्ट्रैस के साथ काम करती है तो जरूर उस में कोई न कोई बात तो होती ही है. हम बात कर रहे हैं एक्ट्रैस, फैशन व्लौगर और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर डौली सिंह की. जिस ने ‘थैंक यू फौर कमिंग’ से बौलीवुड में डैब्यू किया था. उस की यहां तक पहुंचने की जर्नी आसान नहीं रही है, क्योंकि उसे अकसर बौडी शेमिंग का सामना करना पड़ा है. इस का जिक्र उस ने कुछ महीने पहले ही अपने इंस्टाग्राम पर किया है.

 

15 मई, 2024 को डौली ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक लंबीचौड़ी पोस्ट शेयर की और बताया कि कैसे उसे अपने वजन को ले कर शर्मिंदा होना पड़ता है. पोस्ट के कैप्शन में डौली ने लिखा, ‘‘मु?ो आशा है कि मैं किसी के लिए सेफ प्लेस हूं’’ वहीं बात करें उस के नोट की तो उस ने अपने नोट में लिखा, ‘‘हर किसी की तरह मेरा वजन भी बढ़ताघटता रहता है, लेकिन मैं आसानी से अपना वजन कम कर लेती हूं, जो वापस बढ़ना मुश्किल होता है. पिछले कुछ महीनों में बढ़ती उम्र और स्ट्रैस की वजह से मेरा वजन कम हुआ है, लेकिन मु?ो इस की कोई चिंता नहीं थी, क्योंकि मु?ो पता है कि अपनी हैल्दी डाइट और वर्क आउट से मैं दोबारा वजन बढ़ा लूंगी. मु?ो यकीन है कि लोगों के पास मेरे वजन के बारे में कहने के लिए बहुतकुछ होगा, साथ ही वे मु?ो विश्वास दिलाने की कोशिश करेंगे कि मैं ने अपनी चमक खो दी है और मैं अपना ध्यान नहीं रखती हूं.’’

डौली ने अपने इस नोट में अपने बचपन के बौडी शेमिंग के भयानक और भावनात्मक अनुभव का भी जिक्र किया है. उस ने बताया कि 13 साल की उम्र में अपने वजन को ले कर उसे बौडी शेमिंग का दर्द ?ोलना पड़ा. उस ने कहा कि भले ही 30 की उम्र में लोगों के कमैंट्स का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, लेकिन 13 साल की उम्र में उसे इस तरह की बातों से चोट पहुंचती थी. डौली सिंह ने आगे बताते हुए कहा, ‘‘शुक्र है, इंस्टाग्राम पर मेरे दर्शक मुझे स्वीकार कर रहे हैं. मु?ो अब उतनी ट्रोलिंग नहीं मिलती जितनी पहले मिलती थी. लेकिन, अगर आप का वजन कम हुआ है या बढ़ा है तो आप को दूसरों को बताने की जरूरत नहीं है.’’

इतनी नैगेटिव बातों के बाद डौली ने इस नोट में अपने हैप्पी प्लेस का भी जिक्र किया है और बताया है कि लोगों को भी बिना वजन के बढ़नेघटने की चिंता किए बगैर कंफर्टेबल महसूस करने की जरूरत है.

डौली सिंह काफी क्रिएटिव भी है. उस का ह्यूमर काबिल ए तारीफ है. यही वजह है कि उस के कौमेडी वीडियोज दर्शकों को काफी ज्यादा पसंद आते हैं. वह सोशल मीडिया पर अपने फनी किरदारों के लिए हमेशा ही छाई रहती है. जैसे ही वह कोई कौमेडी वीडियो अपने सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर पोस्ट करती है वैसे ही उस के व्यूज लाखों में आ जाते हैं.

सोशल मीडिया पर डौली के कुछ फनी कैरेक्टर हैं जो लोगों के बीच काफी पौपुलर हैं- गुड्डी भाभी, राजू की मम्मी,  श्री, साउथ दिल्ली बहू जैसे अलगअलग किरदारों   में वह कंटैंट क्रिएट करती है.

कैसे की शुरुआत?

23 सितंबर, 1993 को जन्मी डौली उत्तराखंड के नैनीताल से है. उस ने अपनी पढ़ाई दिल्ली विश्वविद्यालय और नैशनल इंस्टिट्यूट औफ फैशन टैक्नोलौजी से पूरी की है. इस के बाद उस ने ‘स्श्चद्बद्यद्य ह्लद्धद्ग ह्यड्डह्यह्य’ के साथ व्लौगिंग स्टार्ट की. इस के अलावा वह ‘द्बष्ठद्ब1ड्ड’ की पौपुलर कंटैंट डेवलपर भी है.

इस के अलावा, सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफौर्म्स जैसे यूट्यूब और इंस्टाग्राम पर काफी एक्टिव रहती है. इंस्टाग्राम पर उसे 1.4 मिलियन लोग फौलो करते हैं और यूट्यूब पर उस के 6 लाख के करीब सब्सक्राइबर्स हैं.

डौली जिस तेजी से बौलीवुड इंडस्ट्री और सोशल मीडिया में अपनी जगह बना रही है उस से यह कहा जा सकता है कि उस ने बौडी शेमिंग की नैगेटिव अवधारणा को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया और वह इस से उभरने में कामयाब रही है.

बौडी शेमिंग से हो सकती है यह परेशानी

वैसे इस बात से बिलकुल भी इनकार नहीं किया जा सकता कि बौडी शेमिंग एक सीरियस मुद्दा है, जो किसी की भी मैंटल हैल्थ को खराब कर सकता है. कभीकभी इस तरह की चीजें लोगों के डिप्रैशन का कारण तक बन जाती हैं और डिप्रैशन हैल्थ के लिए कितना बुरा है यह तो सभी जानते हैं. इस के अलावा भी बौडी शेमिंग का हमारी हैल्थ पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.

बौडी शेमिंग की मार झेल रहा इंसान अकेलापन महसूस कर सकता है, उसे अंदर ही अंदर घुटन महसूस हो सकती है, वह शर्मिंदगी और इन्फिरीओरिटी कौम्प्लैक्स महसूस कर सकता है, लगातार बौडी शेमिंग से वह स्ट्रैस या डिप्रैशन का शिकार हो सकता है, वह खुद को फ्रैंड्स और फैमिली से अलग करना शुरू कर देता है. उसे पैनिक अटैक आने के चांसेस होते हैं.

लड़कियां हैं बड़ा शिकार

कुछ महीनों पहले हुमा कुरैशी और सोनाक्षी सिन्हा की एक फिल्म आई थी, जिस का नाम था ‘डबल एक्स एल.’ इस फिल्म में बहुत अच्छे से यह दिखाया गया था कि, कैसे लड़कियों को कदमकदम पर बौडी शेमिंग का शिकार होना पड़ता है.

बौडी शेमिंग एक बड़ा मुद्दा रहा है. बौडी शेमिंग का शिकार लड़कों के मुकाबले ज्यादा लड़कियां होती हैं. इन्हें अकसर अलगअलग नामों जैसे काली, नाटी, मोटी से पुकारा जाता है. कई रिसर्च में भी यह बात सामने आई है कि लड़कों की तुलना में लड़कियों को अपने वजन के आधार पर अधिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है और इस वजह से उन के साथ ज्यादा छेड़छाड़ की जाती है.

क्या कहता है सर्वे

एक बौडी शेमिंग के सर्वे में कई चौंका देने वाले तथ्य सामने आए. जैसे 84 प्रतिशत महिलाओं के अनुसार, पुरुषों की तुलना में महिलाओं की बौडी शेमिंग ज्यादा होती है. 90प्रतिशत महिलाओं ने माना कि बौडी शेमिंग एक आम व्यवहार है. 47.5 प्रतिशत महिलाओं को स्कूल और वर्कप्लेस पर बौडी शेमिंग का सामना करना पड़ा. 32.5 प्रतिशत  महिलाओं ने कहा कि दोस्त उन के वजन, शेप, रंग और बालों पर नैगेटिव कमैंट करते हैं. 3 प्रतिशत महिलाओं का मानना था कि आत्मविश्वास के लिए अच्छा दिखना जरूरी है.

चाहे कोई कुछ भी कहे, हमेशा खुद से प्यार करें. चाहे आप का रंग, रूप, हाइट कैसी भी हो, खुद को वैसे ही स्वीकारें. किसी की बातों को खुद पर हावी न होने दें. न ही अपनी तुलना कभी किसी से करें. वहीं आप का फ्रैंड सर्कल कैसा है इस का प्रभाव भी आप की मैंटल हैल्थ पर पड़ता है. इसलिए हमेशा ऐसे लोगों से दोस्ती करें जो आप के टैलेंट से आप को आंकें न कि आप की बौडी से, क्योंकि दोस्तों के द्वारा बौडी शेमिंग करना ज्यादा अखरता है.

सुंदर माझे घर: दीपेश ने कैसे दी पत्नी को श्रद्धांजलि

नीरा को प्रकृति से अत्यंत प्रेम था. यही कारण था कि जब दीपेश ने मकान बनाने का निर्णय लिया तो उस ने साफ शब्दों में कह दिया कि वह फ्लैट नहीं, अपना स्वतंत्र घर चाहती है जिसे वह अपनी इच्छानुसार, वास्तुशास्त्र के नियमों के मुताबिक, बनवा सके. उस में छोटा सा बगीचा हो, तरहतरह के फूल हों. यदि संभव हो तो फल और सब्जियां भी लगाई जा सकें.

यद्यपि दीपेश को वास्तुशास्त्र में विश्वास नहीं था किंतु नीरा का वास्तुशास्त्र में घोर विश्वास था. उस का कहना था कि यदि इस में कोई सचाई न होती तो क्यों बड़ेबड़े लोग अपने घर और दफ्तर को बनवाने में वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन करते या कमी होने पर अच्छेभले घर में तोड़फोड़ कराते.

अपने कथन की सत्यता सिद्ध करने के लिए नीरा ने विभिन्न अखबारों की कतरनें ला कर उस के सामने रख दी थीं तथा इसी के साथ वास्तुशास्त्र पर लिखी एक पुस्तक को पढ़ कर सुनाने लगी. उस में लिखा था कि भारत में स्थित तिरुपति बालाजी का मंदिर शतप्रतिशत वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन करते हुए बनाया गया है. तभी उसे इतनी प्रसिद्धि मिली है तथा चढ़ावे के द्वारा वहां जितनी आय होती है उतनी शायद किसी अन्य मंदिर में नहीं होती.

हमारा संपूर्ण ब्रह्मांड पंचतत्त्वों से बना है. जल, वायु, पृथ्वी, अग्नि तथा आकाश के द्वारा हमारा शरीर कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन तथा चरबी जैसे आंतरिक शक्तिवर्धक तत्त्व तथा गरमी, प्रकाश, वायु तथा ध्वनि द्वारा बाहरी शक्ति प्राप्त करता है परंतु जब इन तत्त्वों की समरसता बाधायुक्त हो जाए तो हमारी शक्तियां क्षीण हो जाती हैं. मन की शांति भंग होने के कारण खिंचाव, तनाव तथा अस्वस्थता बढ़ जाती है. तब हमें अपनी आंतरिक और बाहरी शक्तियों को एकाग्र हो कर निर्देशित करना पड़ता है ताकि इन में संतुलन स्थापित हो कर शरीर में स्वस्थता तथा प्रसन्नता और सफलता प्राप्त हो. इन 5 तत्त्वों का संतुलन ही वास्तुशास्त्र है.

दीपेश ने देखा कि नीरा एक पैराग्राफ कहीं से पढ़ रही थी तथा दूसरा कहीं से. जगहजगह उस ने निशान लगा रखे थे. वह आगे और पढ़ना चाह रही थी कि उन्होंने यह कह कर उसे रोक दिया कि घर तुम्हारा है, जैसे चाहे बनवाओ. लेकिन खुद घर बनवाने में काफी परिश्रम एवं धन की जरूरत होगी जबकि उतना ही बड़ा फ्लैट किसी अच्छी कालोनी में उतने ही पैसों में मिल जाएगा.

‘आप श्रम की चिंता मत करो. वह सब मैं कर लूंगी. हां, धन का प्रबंध अवश्य आप को करना है. वैसे, मैं बजट के अंदर ही काम पूरा कराने का प्रयत्न करूंगी, फिर यह भी कोई जरूरी नहीं है कि एकसाथ ही पूरा काम हो, बाद में भी सुविधानुसार दूसरे काम करवाए जा सकते हैं. अब आप ही बताओ, भला फ्लैट में इन सब नियमों का पालन कैसे हो सकता है. सो, मैं छोटा ही सही, लेकिन स्वतंत्र मकान चाहती हूं,’ दीपेश की सहमति पा कर वह गद्गद स्वर में कह उठी थी.

दीपेश ने नीरा की इच्छानुसार प्लौट खरीदा तथा मुहूर्त देख कर मकान बनाने का काम शुरू करवा दिया. मकान का डिजाइन नीरा ने वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन करते हुए अपनी वास्तुकार मित्र से बनवाया था. प्लौट छोटा था, इसलिए सब की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए डुप्लैक्स मकान का निर्माण करवाने की योजना थी. निरीक्षण के लिए उस के साथ कभीकभी दीपेश भी आ जाते थे.

तभी एक दिन सूर्य को डूबते देख कर नीरा भावविभोर हो कर कह उठी थी, ‘लोग तो सूर्यास्त देखने पता नहीं कहांकहां जाते हैं. देखो, कितना मनोहारी दृश्य है. हम यहां एक बरामदा अवश्य निकलवाएंगे जिस से चाय की चुस्कियों के साथ प्रकृति के इस मनोहारी स्वरूप का भी आनंद ले सकें.’

उस समय दीपेश को भी नीरा का स्वतंत्र बंगले का सु झाव अच्छा लगा था.नीरा की सालभर की मेहनत के बाद जब मकान बन कर तैयार हुआ तब सब बेहद खुश थे, खासतौर से, नितिन और रीना. उन को अलगअलग कमरे मिल रहे थे. कहां पर अपना पलंग रखेंगे, कहां उन की पढ़ने की मेज रखी जाएगी, सामान शिफ्ट करने से पहले ही उन की योजना बन गई थी.

अलग से पूजाघर,  दक्षिणपूर्व की ओर रसोईघर तथा अपना बैडरूम दक्षिण दिशा में बनवाया था क्योंकि उस के अनुसार पूर्व दिशा की ओर मुंह कर के पूजा करने में मन को शांति मिलती है. वहीं, उस ओर मुंह कर के खाना बनाने से रसोई में स्वाद बढ़ता है तथा दक्षिण दिशा घर के मालिक के लिए उपयुक्त है क्योंकि इस में रहने वाले का पूरे घर में वर्चस्व रहता है. एक बार फिर मुहूर्त देख कर गृहप्रवेश कर लिया गया था.

सब अतिथियों के विदा होने के बाद रात्रि को सोने से पहले दीपेश ने नीरा का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा था, ‘आज मैं बहुत खुश हूं. तुम्हारी अथक मेहनत के कारण हमारा अपने घर का सपना साकार हो पाया है.’

‘अभी तो सिर्फ ईंटगारे से निर्मित घर ही बना है. अभी मु झे इसे वास्तव में घर बनाना है जिसे देख कर मैं गर्व से कह सकूं, ‘सुंदर मा झे घर,’ मेरा सुंदर घर. जहां प्यार, विश्वास और अपनत्व की सरिता बहती हो, जहां घर का प्रत्येक प्राणी सिर्फ रात बिताने या खाना खाने न आए बल्कि प्यार के अटूट बंधन में बंधा वह शीघ्र काम समाप्त कर के इस घर की छत की छाया के नीचे अपनों के बीच बैठ कर सुकून के पल ढूंढ़े,’ नीरा ने उस की ओर प्यारभरी नजरों से देखते हुए कहा था.

नीरा ने ईंटगारे की बनी उस इमारत को सचमुच घर में बदल दिया. उस के हाथ की बनाई पेंटिंग्स ने घर में उचित स्थानों पर जगह ले ली थी. दीवार के रंग से मेल खाते परदे, वौल हैंगिंग्स, लैंप आदि न केवल घर की मालकिन की रुचि का परिचय दे रहे थे, घर की शोभा को दोगुना भी कर रहे थे.

नीरा ने न केवल ड्राइंगरूम बल्कि बैडरूम और रसोईघर को भी सामान्य साजसामान की सहायता व अपनी कल्पनाशीलता से आधुनिक रूप दे दिया था, साथ ही, आगे बगीचे में उस ने गुलाब, गुलदाऊदी, गेंदा और रजनीगंधा आदि फूलों के पेड़ व घर के पीछे कुछ फलों के पेड़ और मौसमी सब्जियां भी लगाई थीं. अपने लगाए पेड़पौधों की देखभाल वह नवजात शिशु के समान करती थी. कब किसे कितनी खाद और पानी की जरूरत है, यह जानने के लिए उस ने बागबानी से संबंधित एक पुस्तक भी खरीद ली थी.

दीपेश कभीकभी घर सजानेसंवारने में पत्नी की मेहनत और लगन देख कर हैरान रह जाता था. एक बार वह साड़ी खरीदने के लिए मना कर देती थी लेकिन यदि उसे कोई सजावटी या घर के लिए उपयोगी सामान पसंद आ जाता तो वह उसे खरीदे बिना नहीं रह सकती थी.

नीरा की ‘मा झे सुंदर घर’ की कल्पना साकार हो उठी थी. धीरेधीरे एक वर्ष पूरा होने जा रहा था. वह इस अवसर को कुछ नए अंदाज से मनाना चाहती थी. इसीलिए घर में एक साधारण पार्टी का आयोजन किया गया था. घर को गुब्बारों और रंगबिरंगी पट्टियों से सजाया गया था. काम की हड़बड़ी में ऊपर के कमरे से नीचे उतरते समय नीरा का पैर साड़ी में उल झ गया और वह नीचे गिर गई. सिर में चोट आई थी लेकिन उस ने ध्यान नहीं दिया और पार्टी का मजा किरकिरा न हो जाए, यह सोच कर चुपचाप दर्द को  झेलती रही.

‘आज मैं बहुत थक गई हूं. अब सोना चाहती हूं,’ पार्टी समाप्त होने पर नीरा ने थके स्वर में दीपेश से कहा था.

‘अब आलतूफालतू काम करोगी तो थकोगी ही. भला इतना सब ताम झाम करने की क्या जरूरत थी?’ दीपेश ने सहज स्वर में कहा था. ऊपरी चोट के अभाव के कारण दीपेश ने नीरा के गिरने की घटना को गंभीरता से नहीं लिया था.

जब नीरा सुबह अपने समय पर नहीं उठी तब दीपेश को चिंता हुई. जा कर देखा तो पाया कि वह बेसुध पड़ी थी, चेहरे पर अजीब से भाव थे जैसे रातभर दर्द से तड़पती रही हो. दीपेश ने फौरन डाक्टर को बुला कर दिखाया. डाक्टर ने उसे शीघ्र ही अस्पताल में भरती कराने की सलाह देते हुए कहा कि गिरने के कारण सिर में अंदरूनी चोट आई है. ‘सिर की चोट को कभी भी हलके रूप में नहीं लेना चाहिए. कभीकभी साधारण चोट भी जानलेवा हो जाती है.’

डाक्टर की बात सच साबित हुई. लगभग 5 दिन जिंदगी और मौत के साए में  झूलने के बाद नीरा चिरनिद्रा में सो गई. सभी सगेसंबंधी, अड़ोसीपड़ोसी इस अप्रत्याशित मौत का समाचार सुन कर हक्कबक्के रह गए.

नीरा का अंतिम संस्कार करने के बाद दीपेश ने घर में प्रवेश किया तो उस के कुशल हाथों से सजासंवरा घर उसे मुंह चिढ़ाता प्रतीत हुआ. उस के लगाए पेड़पौधे कुछ ही दिनों में सूख गए थे. दीपेश सम झ नहीं पा रहा था कि वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन करने के बाद भी घर वीरान क्यों हो गया? उन के जीवन में तूफान क्यों आया? उस समय वह नितिन और रीना को अपनी गोद में छिपा कर खूब रोया. तब नन्ही रीना उस के आंसू पोंछती हुई बोली थी, ‘डैडी, ममा नहीं हैं तो क्या हुआ, उन की यादें तो हैं.’’

दीपेश ने बच्चों का मन रखने के लिए आंसू पोंछ डाले थे. लेकिन नीरा का चेहरा उन के हृदय पर ऐसा जम गया था कि उस को निकाल पाना उस के लिए संभव ही नहीं था. वह घर कैसा जहां खुशियां न हों, प्यार न हो, स्वप्न न हों.

दीपेश के मांपिताजी नहीं थे, सो, नीरा की मां ने आ कर उन की बिखरती गृहस्थी को फिर से समेटने का प्रयत्न किया था.

एक दिन सवेरे दीपेश का मन टटोलने के लिए मांजी ने कहा, ‘बेटा, जाने वाले के साथ जाया तो नहीं जा सकता, फिर से घर बसा लो. बच्चों को मां व तुम्हें पत्नी मिल जाएगी. आखिर मैं कब तक साथ रहूंगी.’

‘पापा, आप नई मां ले आइए. हम उन के साथ रहेंगे,’ नन्हे नितिन, जो नानी की बात सुन रहा था, ने भोलेपन से कहा और उस की बात का समर्थन रीना ने भी कर दिया.

दीपेश सोच नहीं पा रहे थे कि बच्चे अपने मन से कह रहे हैं या मांजी ने उन के नन्हे मन में नई मां की चाह भर दी है. वह जानता था कि नीरा की यादों को वह अपने हृदय से कभी हटा नहीं सकता. फिर क्यों दूसरा विवाह कर वह उस लड़की के साथ अन्याय करे जो उस के साथ तरहतरह के स्वप्न संजोए इस घर में प्रवेश करेगी.

2 महीने बाद जाते हुए जब मांजी ने दोबारा दीपेश के सामने अपना सु झाव रखा तो वह एकाएक मना न कर सका. शायद इस की वजह यह थी कि रीना को अपनी नानी के साथ काम करते देख कर उस का मन बेहद आहत हो जाता था. कुछ ही दिनों में रीना बेहद बड़ी लगने लगी थी. उस की चंचलता कहीं खो गईर् थी. यही हाल नितिन का भी था. जो नितिन अपनी मां को इधरउधर दौड़ाए बिना खाना नहीं खाता था वही अब जो भी मिलता, बिना नानुकुर के खा लेता था.

बच्चों का परिवर्तित स्वभाव दीपेश को मन ही मन खाए जा रहा था. सो, मांजी के प्रस्ताव पर जब उन्होंने अपने मन की चिंता बताई तो वे बोली थीं, ‘बेटा, यह सच है कि तुम नीरा को भूल नहीं पाओगे. नीरा तुम्हारी पत्नी थी तो मेरी बेटी भी थी. जाने वाले के साथ जाया तो नहीं जा सकता और न किसी के जाने से जीवन ही समाप्त हो जाता.’

दीपेश को मौन पा कर मांजी फिर बोलीं, ‘तुम कहो तो नंदिता से तुम्हारी बात चलाऊं. तुम तो जानते ही हो, नंदिता नीरा की मौसेरी बहन है. उस के पति का देहांत एक कार दुर्घटना में हो गया था. वह भी तुम्हारे समान ही अकेली है तथा स्त्री होने के साथसाथ एक बेटी अर्चना की मां होने के नाते वह तुम से भी ज्यादा मजबूर और बेसहारा है.’

मांजी की इच्छानुसार दीपेश ने घर बसा लिया था लेकिन फिर भी न जाने क्यों जिस घर पर कभी नीरा का एकाधिकार था उसी घर पर नंदिता का अधिकार होना वह सह नहीं पा रहा था.

नंदिता ने दीपेश को तो स्वीकार कर लिया लेकिन बच्चों को स्वीकार नहीं कर पा रही थी. वैसे, दीपेश भी क्या उस समय अर्चना को पिता का प्यार दे पाए थे. घर में एक अजीब सा असमंजस, अविश्वास की स्थिति पैदा हो गई थी. वह अपनी बच्ची को ले कर ज्यादा ही भावुक हो उठती थी.

नंदिता को लगता था, उस की बेटी को कोई प्यार नहीं करता है. घर में अशांति, अविश्वास, तनाव और खिंचाव देख कर बस एक बात उन के दिमाग को मथती रहती थी कि वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन कर बनाया यह घर प्रेम, ममता और अपनत्व का स्रोत क्यों नहीं बन पाया? आंतरिक और बाहरी शक्तियों में समरसता स्थापित क्यों नहीं हो पा रही है? क्यों उन की शक्तियां क्षीण हो रही हैं? उन में क्या कमी है? अपनी आंतरिक और बाहरी शक्तियों को निर्देशित कर उन में संतुलन स्थापित कर क्यों वे न स्वयं खुद रह पा रहे हैं और न दूसरों को खुश रख पा रहे हैं?

नई मां की अपने प्रति बेरुखी देख कर रीना और नितिन अपने में सिमट गए थे. लेकिन बड़ी होती अर्चना ने दिलों की दूरी को पाट दिया था. वह मां के बजाय रीना के हाथ से खाना खाना चाहती, उसी के साथसाथ सोना चाहती, उसी के साथ खेलना चाहती. रीना और नितिन की आंखों में अपने लिए प्यार और सम्मान देख कर नंदिता में भी परिवर्तन आने लगा था. बच्चों के निर्मल स्वभाव ने उस का दिल जीत लिया था या अर्चना को रीना और नितिन के साथ सहज, स्वाभाविक रूप में खेलता देख उस के मन का डर समाप्त हो गया था.

एक बार दीपेश को लगा था कि उन  के घर पर छाई दुखों की छाया हटने लगी है. रीना कालेज में आ गई थी तथा नितिन और अर्चना भी अपनीअपनी कक्षा में प्रथम आ रहे थे. तभी एक दिन नंदिता ऐसी सोई कि फिर उठ ही न सकी. पहले 2 बच्चे थे, अब 3 बच्चों की जिम्मेदारी थी. लेकिन फर्क इतना था कि पहले बच्चे छोटे थे, अब बड़े हो गए थे और अपनी देखभाल स्वयं कर सकते थे व अपना बुराभला सोच और सम झ सकते थे.

रीना ने घर का बोझ उठा लिया. अब दीपेश भी रीना के साथ रसोई तथा अन्य कामों में हाथ बंटाते तथा नितिन और अर्चना को भी अपनाअपना काम करने के लिए प्रेरित करते. घर की गाड़ी एक बार चल निकली थी, लेकिन इस बार के आघात ने उन्हें इतना एहसास करा दिया था कि दुखसुख के बीच में हिम्मत न हारना ही व्यक्ति की सब से बड़ी जीत है. वक्त किसी के लिए नहीं रुकता. जो वक्त के साथ चलता है वही जीवन के संग्राम में विजयी होता है.

इस एहसास और भावना ने दीपेश के अंदर के अवसाद को समाप्त कर दिया था. अब वे औफिस के बाद का सारा समय बच्चों के साथ बिताते या नीरा द्वारा बनाए बगीचे की साजसंभाल करते तथा उस से बचे समय में अपनी भावनाओं को कोरे कागज पर उकेरते. कभी वे गीत बन कर प्रकट होतीं तो कभी कहानी बन कर.

शीघ्र ही उन की रचनाएं प्रतिष्ठित पत्रपत्रिकाओं में स्थान पाने लगी थीं. उन के जीवन को राह मिल गई थी. समय पर बच्चों के विवाह हो गए और वे अपनेअपने घरसंसार में रम गए. उन की लेखनी में अब परिपक्वता आ गई थी.

पेंट करवाने के लिए एक दिन दीपेश ने अपने कमरे की अलमारी खोली, तो कपड़े में लिपटी एक डायरी मिली. डायरी नीरा की थी. वे उसे खोल कर पढ़ने का लोभ छोड़ नहीं पाए. जैसेजैसे डायरी पढ़ते गए, नीरा का एक अलग ही स्वरूप उन के सामने आया था, एक कवयित्री का रूप. पूरी डायरी कविताओं से भरी पड़ी थी. एक कविता- ‘सुंदर मा झे घर’ की पंक्तियां थीं…

क्षितिज के उस पार की

सुखद सलोनी दुनिया को

लाना चाहती हूं…

एक सुंदर घर

बसाना चाहती हूं,

जहां तुम हो

जहां मैं हूं…

कविता लिखने की तिथि देखी तो विवाह की तिथि से एक माह बाद की थी. दीपेश ने पूरी डायरी पढ़ ली तथा उसी समय नीरा की कविताओं का संकलन करवाने का निश्चय कर लिया. एक महीने के अधिक परिश्रम के बाद दीपेश ने नीरा की चुनी हुई कविताओं को संकलित कर पुस्तक के रूप में प्रकाशित करवाने के लिए प्रकाशक को दे दी थीं.

अचानक बज उठी फोन की घंटी ने उन की विचार तंद्रा को भंग किया. नितिन का फोन था, ‘‘पापा, आप कैसे हैं? अपनी दवाइयां ठीक से लेते रहिएगा. आप हमारे पास आ जाइए. आप के अकेले रहने से हमें चिंता रहती है.’’

‘‘बेटा, मैं ठीक हूं. तुम चिंता मत किया करो. वैसे भी, मैं तुम से दूर कहां हूं जब भी इच्छा होगी, मैं आ जाऊंगा.’’

बच्चों की चिंता जायज थी. लेकिन वे इस घर को कैसे छोड़ कर जा सकते हैं जिस की एकएक वस्तु में खट्टीमीठी यादें दफन हैं, साथ गुजारे पलों का लेखाजोखा है. एकदो बार बच्चों के आग्रह पर दीपेश उन के साथ गए भी लेकिन कुछ दिनों बाद ही उन के बरामदे से दिखते अनोखे सूर्यास्त की सुखदसलोनी लालिमा का आकर्षण उन्हें इस घर में खींच लाता था. वह उन की प्रेरणास्रोत थी. उसी से उन्होंने जीवनदर्शन पाया था कि जीवन भले ही समाप्त हो रहा हो लेकिन आस कभी नहीं खोनी चाहिए क्योंकि प्रत्येक अवसान के बाद सुबह होती है और इसी सत्य पर इन की कितनी ही रचनाओं का जन्म यहीं इसी कुरसी पर बैठेबैठे हुआ था.

वह अंदर जाने के लिए मुड़े ही थे कि स्कूटर की आवाज ने उन्हें रोक लिया. प्रकाशक के आदमी ने उन के हाथ में पांडुलिपि देते हुए मुखपृष्ठ के लिए कुछ चित्र दिखाए. एक चित्र पर उन की आंखें ठहर गईं. घर के दरवाजे से निकलती औरत और नीचे कलात्मक अक्षरों में लिखा हुआ था… ‘सुंदर मा झे घर’.

चित्र को देख कर दीपेश को एकाएक लगा, मानो नीरा ही घर के दरवाजे पर उस के स्वागत के लिए खड़ी है. वह नीरा नहीं, बल्कि उस की कल्पना का ही मूर्तरूप था. दीपेश ने बिना किसी और चित्र को देखे उस चित्र के लिए अपनी स्वीकृति दे दी.

दीपेश जानते थे कि आने वाले कुछ दिन उस के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण होंगे. पांडुलिपि का अध्ययन कर प्रकाशक को देना था. किसी विशिष्ट व्यक्ति से मिल कर विमोचन के लिए तारीख को साकार करने का उन का यह छोटा सा प्रयास भर ही तो था. शायद अपनी अर्धांगिनी को श्रद्धांजलि देने का इस से अच्छा सार्थक रूप और भला क्या हो सकता था.

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