जैकी श्राफ ने विद्या बालन को दिया ये खास गिफ्ट, एक्ट्रैस को आया बेहद पसंद

फिल्मों से ज्यादा अपनी रील कंटेंट से इंटरनेट पर सुर्खियां बटोरने वाली बौलीवुड की फेमस एक्ट्रेस विद्या बालन इंडस्ट्री में उन नामो में से है जो सोशल मीडिया पर बहुत एक्टिव है और एक से बढ़ कर एक रील्स पोस्ट कर अपने फैंस को हंसाती रहती हैं. लेकिन इस बार विद्या ने कूल गिफ्ट की क्लिप पोस्ट की है जो उन्हें एक्टर जैकी श्रॉफ ने भेंट की है. आइए जानते हैं वो कूल गिफ्ट क्या है.

कूल गिफ्ट

विद्या बालन ने इंस्टाग्राम स्टोरी पर एक क्लिप पोस्ट की है. जिसमें वह अपनी कार की पिछली सीट पर बैठी हुई हैं. वीडियो में उन्होंने फ्लावर्स के को-आर्ड्स पहने हैं और गले में पौधों का हार पहना हुआ है, जो उन्हें बौलीवुड एक्टर जैकी श्राफ ने गिफ्ट में दिया है.
गिफ्ट में एक पौधे से बना लौकेट है, जिसे विद्या ने पहना हुआ है और वह लाइफ स्टाइल में स्वस्थ पर्यावरण के महत्व और लाभों को शेयर कर रही हैं.

हेल्दी लाइफ स्टाइल

इस “कूल” गिफ्टिंग आइडिया के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा: “यह एक पौधा है जो मुझे जैकी श्राफ ने दिया है। भिडू। मुझे लगता है कि वह बहुत कूल हैं. यह मुझे ऑक्सीजन प्रदान कर रहा है तो एक लंबी सांस लो और तरोताजा महसूस करो. लेकिन वास्तव में, यह एक अच्छा विचार है. मुझे यह पसंद है.”जैकी श्रॉफ से मिले पर्यावरण अनुकूल उपहार को दिखाया और कहा कि यह “बहुत कूल” है.

जैकी श्राफ का इको फ्रेंडली गिफ्ट

आपको बता दें बौलीवुड एक्टर जैकी श्राफ पर्यावरण के बड़े समर्थक है और इसका बहुत ख्याल रखने के लिए जाने जाते हैं साथ ही कई मौकों पर वे प्रकृति के कल्याण को बढ़ावा देते हुए दिखाई पड़ते है और अक्सर दूसरों को यह गिफ्ट देने के लिए जाने जाते है. हाल ही में उन्होंने ये गिफ्ट विद्या बालन को दिया.
फिल्मों की बात करें तो विद्या आखिरी बार शीर्षा गुहा द्वारा निर्देशित रोमांटिक कौमेडी ‘दो और दो प्यार’ में नजर आई थीं. इसमें प्रतीक गांधी, इलियाना डिक्रूज़ और सेंधिल राममूर्ति नजर आए. अब विद्या बालन भूल भुलैया 3 में ओजी मंजुलिका के रूप में नजर आएंगी. ये फिल्म दिवाली पर सिनेमाघरों में रिलीज होगी.
सोशल मीडिया पर विद्या बालन ने एक वीडियो शेयर किया है जिसमें वह जैकी श्राफ द्वारा उन्हें दिए गए पर्यावरण के अनुकूल तोहफे को दिखा रही हैं. जैकी श्राफ द्वारा दिए गए गिफ्ट में एक पौधे से बना लॉकेट है, जिसे विद्या ने पहना हुआ है और वह लाइफ स्टाइल में स्वस्थ पर्यावरण के महत्व और लाभों को शेयर कर रही हैं.

सलीम खान और जावेद अख्तर की जोड़ी पर बनी डाक्यूमेंट्री एंग्री यंग मैन आज होगी रिलीज, जानें कुछ खास बातें

सलीम जावेद पर बनी डाक्यूमेंट्री सीरीज़ चर्चा में है. जो की प्राइम वीडियो पर 20 अगस्त को रिलीज हो रही है. सलीम जावेद फिल्म इंडस्ट्री का एक ऐसा नाम है जिन्होंने कहानीकारों की इज्जत में इजाफा किया है. उनकी साझेदारी हमेशा सर्वश्रेष्ठ लेकर आई है एंग्री यंग मैन सीरीज उनकी रचनात्मक प्रतिभा और भारतीय सिनेमा पर विशाल प्रभाव को प्रस्तुत करती है. सलीम खान और जावेद अख्तर की जोड़ी जो सलीम जावेद के नाम से जानी जाती है इस जोड़ी ने 1970 के दशक में हिंदी सिनेमा में क्रांति ला दी थी और बतौर कहानीकार एक के बाद एक कई सारी हिट फिल्में दी थी. जैसे शोले, जंजीर, दीवार, यादों की बारात डौन सहित 15 -16 हिट फिल्में दी है. लेकिन उसके बाद इस जोडी ने 1987 में आख़िरी फ़िल्म मिस्टर इंडिया दी थी जो ब्लौकबस्टर साबित हुई थी .
इस फिल्म के बाद दोनों अलग हो गए . गौरतलब है जो ताकत एक साथ जुड़कर काम करने में है वह अलग होकर करने में नहीं है जिसके चलते सलीम जावेद के अलग होने के बाद जब उन्होंने स्वतंत्र रूप से लिखना शुरू किया तो उनके लेखन में वह बात नजर नहीं आई जो 70 के दशक में जोड़ी के साथ लिखने में दिखती थी.
नम्रता राव निर्देशित 3 एपिसोड की यह डाक्यूमेंट्री सलीम जावेद के इसी जुड़ाव अलगाव और बतौर जोड़ी बेहतरीन सफर को दर्शाती है. एंग्री यंग मैन की प्रेस कांफ्रेंस के दौरान मिडिया के सामने उपस्थित सलीम जावेद ने वादा किया है कि वह एक बार फिर से एक साथ फिल्म लिखेंगे साथ ही मजाक के तौर पर सलीम जावेद ने यह भी कह दिया कि पहले भी हम ज्यादा पैसा लेते थे और आज भी कम पैसे नहीं लेंगे.

सलीम जावेद के लेखन की खासियत….

सलीम जावेद जोड़ी की फिल्मों की सफलता की सबसे बड़ी वजह यह थी कि वह अपनी कहानी के जरिए
 समाज के उन पहलुओं को उजागर किया जो हिंदू समाज में निचले स्तर पर औऱ पिछड़े हुए माने जाते थे. जिन्हें अपशगुन, अछूत और गरीब कहकर समाज द्वारा दूतकारा जाता था . जैसे की फिल्म शोले में ठाकुर की विधवा बहू जो कि जया बच्चन बनी थी.  जिस विधवा की शादी  ठाकुर एक ऐसे इंसान जय से करवाने के लिए राजी हो जाते है जो हर तरह से ठाकुर के मुकाबले कमतर है. जैसे वह गुंडा हैं, गरीब है, और अनाथ है . इसी तरह सलीम जावेद की कहानी में भगवान से ज्यादा फिल्म का हीरो हाइलाइट होता है. शोले में ठाकुर भगवान के पास जाने के बजाय दो गुंडो को गब्बर सिंह को मारने के लिए बुलाता है. इसी तरह फिल्मों में शादियां और भगवान के बजाय प्रेम विवाह और इंसानी ताकत को ज्यादा महत्व दिया गया है. जब कि उन दिनों बन रही फिल्मो में ज्यादातर रीति रिवाज, भगवान ,मंदिर, शादी,को ज्यादा  दिखाया जाता था. लेकिन सलीम जावेद की फिल्मों में हीरो भगवान को भी चुनौती देता नजर आता था. जैसे अमिताभ बच्चन फ़िल्म दीवार में शिव के मंदिर में जाकर शिव भगवान को चुनौती देते नजर आए यह कहकर .. खुश तो बात होगे तुम… जो मैं तुम्हारे पास आया…
गौरतलब है सलीम जावेद की जोड़ी ने अपनी कहानी के जरिये अपने हीरो को एंग्री यंग मैन के  रूप में प्रस्तुत किया. उनके द्वारा लिखे हुए डायलौग आज भी सभी की जुबान पर हैं जैसे.. आज भी मैं फेक हुए पैसे नहीं उठाता, मां तुम साइन करोगी या नहीं, बसंती इन कुत्तों के सामने मत नाचना, कितने आदमी थे, अरे ओ कालिया ,फ़िल्म जंजीर का डायलॉग जब तक बैठने को ना कहा जाए खड़े रहो… आदि. जावेद ने अपनी कहानी के जरिए ना सिर्फ रिश्तो की अहमियत समझाई  बल्कि समाज की कूनीतियो पर भी सवाल उठाया. और समाज के पिछड़े हुए लोगों को अपनी फिल्मों के जरिए सम्मान भी दिलाया उनकी हर फिल्म में जिंदगी को लेकर कोई ना कोई सीख होती थी जिसकी वजह से दर्शक उनकी फिल्मों की तरफ आकर्षित होते थे.
एंग्री मैन यंग मैन डाक्यूमैंट्री के जरिए उनकी इन्हीं प्रभावशाली शैली को और इस जोड़ी के खूबसूरत सफर को दर्शाने की कोशिश की गई है.

अक्षय कुमार बेटे को सोशल मीडिया पर लोगों ने कहा गे, भड़के एक्टर और दिया ये रिएक्शन

खिलाड़ी अक्षय कुमार उन हीरोज में से एक हैं जो सारे खान हीरोज को अकेले टक्कर देने की ताकत रखते हैं. फिल्मों में कई तरह के अतरंग किरदार निभाने वाले अक्षय कुमार किसी न किसी बात को लेकर चर्चा में बने रहते हैं. जेसे की कनाडा का पासपोर्ट होने की वजह से अक्षय कुमार की नागरिकता पर कई बार सवाल उठाए गए जिसको लेकर अक्षय बहुत आहत भी हुए कभी अपनी लगातार फ्लौप फिल्मों को लेकर चर्चा में रहे तो कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इंटरव्यू के दौरान बचकाना सवाल जैसे कि आम चूस के खाते हैं या काट को लेकर चर्चा में रहे.

 

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लेकिन फिलहाल अक्षय कुमार तमतमाए हुए हैं.  क्योंकि इस बार अक्षय अपने बेटे आरव को लेकर चर्चा में है. हाल ही में सोशल मीडिया में कुछ लोगों ने यह खबर फैला दी कि अक्षय कुमार के बेटे आरव कुमार गै हैं. क्योंकि आरव की चाल लड़कियों की तरह है और इसके अलावा खबरों के अनुसार पिछले दिनों आरव की एक फोटो वायरल हुई जिसमें आरव एक आदमी को लिप किस करते हुए नजर आ रहे हैं. इसके अलावा आरव मिडिया से खास दूरी बनाए रखते हैं और एयरपोर्ट पर भी मीडिया से नजरे बचा कर छिपते छुपाते आवागमन करते नजर आते हैं. इन्ही सब खबरों के बाद सोशल मीडिया में आरव की गे होने की खबर वायरल होने लगी .
अक्षय कुमार को जब अपने बेटे को लेकर इस वायरल खबर का पता चला तो उन्होंने सोशल मीडिया पर खुद आकर इस खबर को पूरी तरह खारिज करते हुए कहा है मेरा बेटा कोई गै नहीं है. अक्षय के अनुसार इस खबर ने मुझे बहुत आहत किया है इसलिए अगर मुझसे गुस्से में कोई गलत बात निकल जाए तो माफ करना, लेकिन इस तरह की खबर सुनने के बाद मुझे बहुत गुस्सा आया है.
अक्षय ने अपने बेटे के लिए सफाई देते हुए कहा आरव को फिल्मों में कोई दिलचस्पी नहीं है इसलिए वह मीडिया से दूर रहता है. उसे भविष्य में फैशन डिजाइनर बनना है इसलिए वह लंदन में ही फैशन डिजाइनर की पढ़ाई कर रहा है, क्योंकि वह स्वभाव से शर्मिला है इसलिए उसको सबके सामने लाइमलाइट में आना पसंद नहीं है.

अंदाज: ससुराल के रूढ़िवादी माहौल को क्या बदल पाई रंजना?

अपनेसहयोगियों के दबाव में आ कर रंजना ने अपने पति मोहित को फोन किया, ‘‘ये सब लोग कल पार्टी देने की मांग कर रहे हैं. मैं इन्हें क्या जवाब दूं?’’

‘‘मम्मीपापा की इजाजत के बगैर किसी को घर बुलाना ठीक नहीं रहेगा,’’ मोहित की आवाज में परेशानी के भाव साफ झलक रहे थे.

‘‘फिर इन की पार्टी कब होगी?’’

‘‘इस बारे में रात को बैठ कर फैसला करते हैं.’’

‘‘ओ.के.’’

रंजना ने फोन काट कर मोहित का फैसला बताया तो सब उस के पीछे पड़ गए, ‘‘अरे, हम मुफ्त में पार्टी नहीं खाएंगे. बाकायदा गिफ्ट ले कर आएंगे, यार.’’

‘‘अपनी सास से इतना डर कर तू कभी खुश नहीं रह पाएगी,’’ उन लोगों ने जब इस तरह का मजाक करते हुए रंजना की खिंचाई शुरू की तो उसे अजीब सा जोश आ गया. बोली, ‘‘मेरा सिर खाना बंद करो. मेरी बात ध्यान से सुनो. कल रविवार रात 8 बजे सागर रत्ना में तुम सब डिनर के लिए आमंत्रित हो. कोई भी गिफ्ट घर भूल कर न आए.’’

रंजना की इस घोषणा का सब ने तालियां बजा कर स्वागत किया था.

कुछ देर बाद अकेले में संगीता मैडम ने उस से पूछा, ‘‘दावत देने का वादा कर के तुम ने अपनेआप को मुसीबत में तो नहीं फंसा लिया है?’’

‘‘अब जो होगा देखा जाएगा, दीदी,’’ रंजना ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

‘‘अगर घर में टैंशन ज्यादा बढ़ती लगे तो मुझे फोन कर देना. मैं सब को पार्टी कैंसल हो जाने की खबर दे दूंगी. कल के दिन बस तुम रोनाधोना बिलकुल मत करना, प्लीज.’’

‘‘जितने आंसू बहाने थे, मैं ने पिछले साल पहली वर्षगांठ पर बहा लिए थे दीदी. आप को तो सब मालूम ही है.’’

‘‘उसी दिन की यादें तो मुझे परेशान कर रही हैं, माई डियर.’’

‘‘आप मेरी चिंता न करें, क्योंकि मैं साल भर में बहुत बदल गई हूं.’’

‘‘सचमुच तुम बहुत बदल गई हो, रंजना? सास की नाराजगी, ससुर की डांट या ननद की दिल को छलनी करने वाली बातों की कल्पना कर के तुम आज कतई परेशान नजर नहीं आ रही हो.’’

‘‘टैंशन, चिंता और डर जैसे रोग अब मैं नहीं पालती हूं, दीदी. कल रात दावत जरूर होगी. आप जीजाजी और बच्चों के साथ वक्त से पहुंच जाना,’’ कह रंजना उन का कंधा प्यार से दबा कर अपनी सीट पर चली गई.

रंजना ने बिना इजाजत अपने सहयोगियों को पार्टी देने का फैसला किया है, इस खबर को सुन कर उस की सास गुस्से से फट पड़ीं, ‘‘हम से पूछे बिना ऐसा फैसला करने का तुम्हें कोई हक नहीं है, बहू. अगर यहां के कायदेकानून से नहीं चलना है, तो अपना अलग रहने का बंदोबस्त कर लो.’’

‘‘मम्मी, वे सब बुरी तरह पीछे पड़े थे. आप को बहुत बुरा लग रहा है, तो मैं फोन कर के सब को पार्टी कैंसल करने की खबर कर दूंगी,’’ शांत भाव से जवाब दे कर रंजना उन के सामने से हट कर रसोई में काम करने चली गई.

उस की सास ने उसे भलाबुरा कहना जारी रखा तो उन की बेटी महक ने उन्हें डांट दिया, ‘‘मम्मी, जब भाभी अपनी मनमरजी करने पर तुली हुई हैं, तो तुम बेकार में शोर मचा कर अपना और हम सब का दिमाग क्यों खराब कर रही हो? तुम यहां उन्हें डांट रही हो और उधर वे रसोई में गाना गुनगुना रही हैं. अपनी बेइज्जती कराने में तुम्हें क्या मजा आ रहा है?’’

अपनी बेटी की ऐसी गुस्सा बढ़ाने वाली बात सुन कर रंजना की सास का पारा और ज्यादा चढ़ गया और वे देर तक उस के खिलाफ बड़बड़ाती रहीं.

रंजना ने एक भी शब्द मुंह से नहीं निकाला. अपना काम समाप्त कर उस ने खाना मेज पर लगा दिया.

‘‘खाना तैयार है,’’ उस की ऊंची आवाज सुन कर सब डाइनिंगटेबल पर आ तो गए, पर उन के चेहरों पर नाराजगी के भाव साफ नजर आ रहे थे.

रंजना ने उस दिन एक फुलका ज्यादा खाया. उस के ससुरजी ने टैंशन खत्म करने के इरादे से हलकाफुलका वार्त्तालाप शुरू करने की कोशिश की तो उन की पत्नी ने उन्हें घूर कर चुप करा दिया.

रंजना की खामोशी ने झगड़े को बढ़ने नहीं दिया. उस की सास को अगर जरा सा मौका मिल जाता तो वे यकीनन भारी क्लेश जरूर करतीं.

महक की कड़वी बातों का जवाब उस ने हर बार मुसकराते हुए मीठी आवाज में दिया.

शयनकक्ष में मोहित ने भी अपनी नाराजगी जाहिर की, ‘‘किसी और की न सही पर तुम्हें कोई भी फैसला करने से पहले मेरी इजाजत तो लेनी ही चाहिए थी. मैं कल तुम्हारे साथ पार्टी में शामिल नहीं होऊंगा.’’

‘‘तुम्हारी जैसी मरजी,’’ रंजना ने शरारती मुसकान होंठों पर सजा कर जवाब दिया और फिर एक चुंबन उस के गाल पर अंकित कर बाथरूम में घुस गई.

रात ठीक 12 बजे रंजना के मोबाइल के अलार्म से दोनों की नींद टूट गई.

‘‘यह अलार्म क्यों बज रहा है?’’ मोहित ने नाराजगी भरे स्वर में पूछा.

‘‘हैपी मैरिज ऐनिवर्सरी, स्वीट हार्ट,’’ उस के कान के पर होंठों ले जा कर रंजना ने रोमांटिक स्वर में अपने जीवनसाथी को शुभकामनाएं दीं.

रंजना के बदन से उठ रही सुगंध और महकती सांसों की गरमाहट ने चंद मिनटों में जादू सा असर किया और फिर अपनी नाराजगी भुला कर मोहित ने उसे अपनी बांहों के मजबूत बंधन में कैद कर लिया.

रंजना ने उसे ऐसे मस्त अंदाज में जी भर कर प्यार किया कि पूरी तरह से तृप्त नजर आ रहे मोहित को कहना ही पड़ा, ‘‘आज के लिए एक बेहतरीन तोहफा देने के लिए शुक्रिया, जानेमन.’’

‘‘आज चलोगे न मेरे साथ?’’ रंजना ने प्यार भरे स्वर में पूछा.

‘‘पार्टी में? मोहित ने सारा लाड़प्यार भुला कर माथे में बल डाल लिए.’’

‘‘मैं पार्क में जाने की बात कर रही हूं, जी.’’

‘‘वहां तो मैं जरूर चलूंगा.’’

‘‘आप कितने अच्छे हो,’’ रंजना ने उस से चिपक कर बड़े संतोष भरे अंदाज में आंखें मूंद लीं.

रंजना सुबह 6 बजे उठ कर बड़े मन से तैयार हुई. आंखें खुलते ही मोहित ने उसे सजधज कर तैयार देखा तो उस का चेहरा खुशी से खिल उठा.

‘‘यू आर वैरी ब्यूटीफुल,’’ अपने जीवनसाथी के मुंह से ऐसी तारीफ सुन कर रंजना का मन खुशी से नाच उठा.

खुद को मस्ती के मूड में आ रहे मोहित की पकड़ से बचाते हुए रंजना हंसती हुई कमरे से बाहर निकल गई.

उस ने पहले किचन में जा कर सब के लिए चाय बनाई, फिर अपने सासससुर के कमरे में गई और दोनों के पैर छू कर आशीर्वाद लिया.

चाय का कप हाथ में पकड़ते हुए उस की सास ने चिढ़े से लहजे में पूछा, ‘‘क्या सुबहसुबह मायके जा रही हो, बहू?’’

‘‘हम तो पार्क जा रहे हैं मम्मी,’’ रंजना ने बड़ी मीठी आवाज में जवाब दिया.

सास के बोलने से पहले ही उस के ससुरजी बोल पड़े, ‘‘बिलकुल जाओ, बहू. सुबहसुबह घूमना अच्छा रहता है.’’

‘‘हम जाएं, मम्मी?’’

‘‘किसी काम को करने से पहले तुम ने मेरी इजाजत कब से लेनी शुरू कर दी, बहू?’’ सास नाराजगी जाहिर करने का यह मौका भी नहीं चूकीं.

‘‘आप नाराज न हुआ करो मुझ से, मम्मी. हम जल्दी लौट आएंगे,’’ किसी किशोरी की तरह रंजना अपनी सास के गले लगी और फिर प्रसन्न अंदाज में मुसकराती हुई अपने कमरे की तरफ चली गई.

वह मोहित के साथ पार्क गई जहां दोनों के बहुत से साथी सुबह का मजा ले रहे थे. फिर उस की फरमाइश पर मोहित ने उसे गोकुल हलवाई के यहां आलूकचौड़ी का नाश्ता कराया.

दोनों की वापसी करीब 2 घंटे बाद हुई. सब के लिए वे आलूकचौड़ी का नाश्ता पैक करा लाए थे. लेकिन यह बात उस की सास और ननद की नाराजगी खत्म कराने में असफल रही थी.

दोनों रंजना से सीधे मुंह बात नहीं कर रही थीं. ससुरजी की आंखों में भी कोई चिंता के भाव साफ पढ़ सकता था. उन्हें अपनी पत्नी और बेटी का व्यवहार जरा भी पसंद नहीं आ रहा था, पर चुप रहना उन की मजबूरी थी. वे अगर रंजना के पक्ष में 1 शब्द भी बोलते, तो मांबेटी दोनों हाथ धो कर उन के पीछे पड़ जातीं.

सजीधजी रंजना अपनी मस्ती में दोपहर का भोजन तैयार करने के लिए रसोई में चली आई. महक ने उसे कपड़े बदल आने की सलाह दी तो उस ने इतराते हुए जवाब दिया, ‘‘दीदी, आज तुम्हारे भैया ने मेरी सुंदरता की इतनी ज्यादा तारीफ की है कि अब तो मैं ये कपड़े रात को ही बदलूंगी.’’

‘‘कीमती साड़ी पर दागधब्बे लग जाने की चिंता नहीं है क्या तुम्हें?’’

‘‘ऐसी छोटीमोटी बातों की फिक्र करना अब छोड़ दिया है मैं ने, दीदी.’’

‘‘मेरी समझ से कोई बुद्धिहीन इनसान ही अपना नुकसान होने की चिंता नहीं करता है,’’ महक ने चिढ़ कर व्यंग्य किया.

‘‘मैं बुद्धिहीन तो नहीं पर तुम्हारे भैया के प्रेम में पागल जरूर हूं,’’ हंसती हुई रंजना ने अचानक महक को गले से लगा लिया तो वह भी मुसकराने को मजबूर हो गई.

रंजना ने कड़ाही पनीर की सब्जी बाजार से मंगवाई और बाकी सारा खाना घर पर तैयार किया.

‘‘आजकल की लड़कियों को फुजूलखर्ची की बहुत आदत होती है. जो लोग खराब वक्त के लिए पैसा जोड़ कर नहीं रखते हैं, उन्हें एक दिन पछताना पड़ता है, बहू,’’ अपनी सास की ऐसी सलाहों का जवाब रंजना मुसकराते हुए उन की हां में हां मिला कर देती रही.

उस दिन उपहार में रंजना को साड़ी और मोहित को कमीज मिली. बदले में उन्होंने महक को उस का मनपसंद सैंट, सास को साड़ी और ससुरजी को स्वैटर भेंट किया. उपहारों की अदलाबदली से घर का माहौल काफी खुशनुमा हो गया था.

यह सब को पता था कि सागर रत्ना में औफिस वालों की पार्टी का समय रात 8 बजे का है. जब 6 बजे के करीब मोहित ड्राइंगरूम में पहुंचा तो उस ने अपने परिवार वालों का मूड एक बार फिर से खराब पाया.

‘‘तुम्हें पार्टी में जाना है तो हमारी इजाजत के बगैर जाओ,’’ उस की मां ने उस पर नजर पड़ते ही कठोर लहजे में अपना फैसला सुना दिया.

‘‘आज के दिन क्या हम सब का इकट्ठे घूमने जाना अच्छा नहीं रहता, भैया?’’ महक ने चुभते लहजे में पूछा.

‘‘रंजना ने पार्टी में जाने से इनकार कर दिया है,’’ मोहित के इस जवाब को सुन वे तीनों ही चौंक पड़े.

‘‘क्यों नहीं जाना चाहती है बहू पार्टी में?’’ उस के पिता ने चिंतित स्वर में पूछा.

‘‘उस की जिद है कि अगर आप तीनों साथ नहीं चलोगे तो वह भी नहीं जाएगी.’’

‘‘आजकल ड्रामा करना बड़ी अच्छी तरह से आ गया है उसे,’’ मम्मी ने बुरा सा मुंह बना कर टिप्पणी की.

मोहित आंखें मूंद कर चुप बैठ गया. वे तीनों बहस में उलझ गए.

‘‘हमें बहू की बेइज्जती कराने का कोई अधिकार नहीं है. तुम दोनों साथ चलने के लिए फटाफट तैयार हो जाओ वरना मैं इस घर में खाना खाना छोड़ दूंगा,’’ ससुरजी की इस धमकी के बाद ही मांबेटी तैयार होने के लिए उठीं.

सभी लोग सही वक्त पर सागर रत्ना पहुंच गए. रंजना के सहयोगियों का स्वागत सभी ने मिलजुल कर किया. पूरे परिवार को यों साथसाथ हंसतेमुसकराते देख कर मेहमान मन ही मन हैरान हो उठे थे.

‘‘कैसे राजी कर लिया तुम ने इन सभी को पार्टी में शामिल होने के लिए?’’ संगीता मैडम ने एकांत में रंजना से अपनी उत्सुकता शांत करने को आखिर पूछ ही लिया.

रंजना की आंखों में शरारती मुसकान की चमक उभरी और फिर उस ने धीमे स्वर में जवाब दिया, ‘‘दीदी, मैं आज आप को पिछले 1 साल में अपने अंदर आए बदलाव के बारे में बताती हूं. शादी की पहली सालगिरह के दिन मैं अपनी ससुराल वालों के रूखे व कठोर व्यवहार के कारण बहुत रोई थी, यह बात तो आप भी अच्छी तरह जानती हैं.’’

‘‘उस रात को पलंग पर लेटने के बाद एक बड़ी खास बात मेरी पकड़ में आई थी. मुझे आंसू बहाते देख कर उस दिन कोई मुसकरा तो नहीं रहा था, पर मुझे दुखी और परेशान देख कर मेरी सास और ननद की आंखों में अजीब सी संतुष्टि के भाव कोई भी पढ़ सकता था.

‘‘तब मेरी समझ में यह बात पहली बार आई कि किसी को रुला कर व घर में खास खुशी के मौकों पर क्लेश कर के भी कुछ लोग मन ही मन अच्छा महसूस करते हैं. इस समझ ने मुझे जबरदस्त झटका लगाया और मैं ने उसी रात फैसला कर लिया कि मैं ऐसे लोगों के हाथ की कठपुतली बन अपनी खुशियों व मन की शांति को भविष्य में कभी नष्ट नहीं होने दूंगी.

‘‘खुद से जुड़े लोगों को अब मैं ने 2 श्रेणियों में बांट रखा है. कुछ मुझे प्रसन्न और सुखी देख कर खुश होते हैं, तो कुछ नहीं. दूसरी श्रेणी के लोग मेरा कितना भी अहित करने की कोशिश करें, मैं अब उन से बिलकुल नहीं उलझती हूं.

‘‘औफिस में रितु मुझे जलाने की कितनी भी कोशिश करे, मैं बुरा नहीं मानती. ऐसे ही सुरेंद्र सर की डांट खत्म होते ही मुसकराने लगती हूं.’’

‘‘घर में मेरी सास और ननद अब मुझे गुस्सा दिलाने या रुलाने में सफल नहीं हो पातीं. मोहित से रूठ कर कईकई दिनों तक न बोलना अब अतीत की बात हो गई है.

‘‘जहां मैं पहले आंसू बहाती थी, वहीं अब मुसकराते रहने की कला में पारंगत हो गई हूं. अपनी खुशियों और मन की सुखशांति को अब मैं ने किसी के हाथों गिरवी नहीं रखा हुआ है.

‘‘जो मेरा अहित चाहते हैं, वे मुझे देख कर किलसते हैं और मेरे कुछ किए बिना ही हिसाब बराबर हो जाता है. जो मेरे शुभचिंतक हैं, मेरी खुशी उन की खुशियां बढ़ाने में सहायक होती हैं और यह सब के लिए अच्छा ही है.

‘‘अपने दोनों हाथों में लड्डू लिए मैं खुशी और मस्ती के साथ जी रही हूं, दीदी. मैं ने एक बात और भी नोट की है. मैं खुश रहती हूं तो मुझे नापसंद करने

वालों के खुश होने की संभावना भी ज्यादा हो जाती है. मेरी सास और ननद की यहां उपस्थिति इसी कारण है और उन दोनों की मौजूदगी मेरी खुशी को निश्चित रूप से बढ़ा रही है.’’

संगीता मैडम ने प्यार से उस का माथा चूमा और फिर भावुक स्वर में बोलीं, ‘‘तुम सचमुच बहुत समझदार हो गई हो, रंजना. मेरी तो यही कामना है कि तुम जैसी बहू मुझे भी मिले.’’

‘‘आज के दिन इस से बढिया कौंप्लीमैंट मुझे शायद ही मिले, दीदी. थैंक्यू वैरी मच,’’ भावविभोर हो रंजना उन के गले लग गई. उस की आंखों से छलकने वाले आंसू खुशी के थे.

सूखता सागर: करण की शादी को लेकर क्यों उत्साहित थी कविता?

भैया का ड्राइवर कार से स्टेशन तक छोड़ गया था. अटैची, बैग और थैला कुली को दे कर कविता छोटू और बबली के हाथ थाम प्लेटफार्म की तरफ बढ़ गई. बैंच पर बैठने के बाद कविता सोच में डूब गई कि लो भतीजे करण की शादी भी निबट गई. इतने महीनों से तैयारी चल रही थी, कितना उत्साह था इस शादी में आने का. पूरे 8 वर्ष बाद घर में शादी का समारोह होने जा रहा था. भैया ने तो काफी समय पहले ही सब को बुलावे के पत्र डाल दिए थे, फिर आए दिन फोन पर शादी की तैयारी की चर्चा होती रहती कि दुलहन का लहंगा जयपुर में बन रहा है… ज्वैलरी भी खास और्डर पर बनवाई जा रही है… मेहमानों के ठहरने की भी खास व्यवस्था की जा रही है…

इस में संदेह नहीं कि काफी खर्चा किया होगा भैयाभाभी ने. उन के इकलौते बेटे की शादी जो थी. पर पता नहीं क्यों इतने अच्छे इंतजाम के बावजूद कविता वह उत्साह या उमंग अपने भीतर नहीं पा सकी, जिस की उसे अपेक्षा थी. एक तो चलने के ऐन वक्त पर ही पति अनिमेष को जरूरी काम से रुकना पड़ गया था. वह तो डर रही थी कि पता नहीं भैयाभाभी क्या सोचेंगे कि इतने आग्रह से इतने दिन पहले से बुला रहे थे और दामादजी को ऐन वक्त पर कोई काम आ गया. पूरे रास्ते वह इसी भावना से आशंकित रही थी. मगर कानपुर पहुंचने पर जैसा ठंडा स्वागत हुआ उस से उस की यह धारणा बदल गई.

यहां भी तो स्टेशन पर यही ड्राइवर खड़ा था, उस के नाम की तख्ती लिए हुए. ठीक है भैया व्यस्त होंगे पर कोई और भी तो आ सकता था, लेने. घर पहुंचने पर भी किसी ने ध्यान नहीं दिया कि वह अकेली ही बच्चों के साथ आई है.

‘‘चलो कविता आ गई, बच्चे ठीक हैं, ऐसा करो श्यामलाल को साथ ले कर अपने कमरे में सामान रखवा लो, वहीं तुम्हारा चायनाश्ता भी पहुंच जाएगा. फिर नहाधो कर तैयार हो कर नीचे डाइनिंगहौल में लंच के लिए आओगी तो सब से मिल लेना,’’ भाभी बोलीं.

थकान तो थी ही सफर की, पर अब कविता का मन भी बुझ चला था. दोनों बड़ी बहनें पहले ही आ चुकी थीं. वे भी अपनेअपने कमरे में थीं. एक बड़े होटल में भैया ने सब के ठहरने का इंतजाम किया था.

थर्मस में चाय और साथ में नाश्ते की प्लेटें रख कर नौकर चला गया. चाय पी कर कुछ देर लेटने का मन हो रहा था पर बच्चों का उत्साह देख कर उन्हें नहला कर तैयार कर दिया. स्वयं भी तैयार हुई.

तभी कमरे में इंटरकौम की घंटी बजने लगी. शायद खाने के लिए सब लोग नीचे पहुंचने लगे थे. बड़ी दीदी और मझली दीदी से वहीं मिलना हुआ.

‘‘अरे कविता, इधर आ… बहुत दिनों बाद मिली है,’’ मझली दीदी ने दूर से ही आवाज दी.

बड़ी दीदी के घुटनों में तकलीफ थी, इसलिए सब उन्हें घेरे बैठे थे. भैया भी 2 मिनट को उधर आए. कुछ देर की औपचारिकता के बाद उन्हें ध्यान आया, ‘‘अरे, अनिमेष कहां है?’’

‘‘आ नहीं पाए भैया, क्या करें ऐन वक्त पर ही…’’

वह कुछ और कहने की भूमिका बना ही रही थी कि भैया ने बीच में ही टोक दिया, ‘‘कोई बात नहीं, तुम आ गईं, बच्चे आ गए… चलो अब बहनों के साथ गपशप करो,’’ कहते हुए भैया आगे बढ़ गए.

बड़ी दीदी के पास अपने घरपरिवार की उलझनें थीं तो मझली दीदी यहां अपनी बेटी के लिए रिश्ता खोज रही थीं.

‘‘दीदी, हम लोग एक ही हौल में रहते तो अच्छा रहता, देर रात तक गपशप करते… अब अपनेअपने कमरे में बंद हैं तो किसी की शक्ल तक नहीं दिखती कि कौनकौन मेहमान आए हैं, कहां ठहरे हैं, कैसे हैं. बस, खाने के समय मिल लो,’’ कविता के मुंह से निकल ही गया.

पर बड़ी दीदी तो अपनी ही उधेड़बुन में थीं. बोलीं, ‘‘मुझे तो अभी बाजार निकलना होगा. दर्द तो है घुटनों में पर किसी का साथ मिल जाता तो हो आती, बहू ने साडि़यां मंगवाई थीं… आज ही समय है. भाभी से ही कहती हूं कि गाड़ी का इंतजाम कर दें…’’

उधर मझली दीदी को अपनी ननद के घर जा कर रिश्ते की बात करनी थी. अत: खाना खा कर कविता चुपचाप अपने कमरे में आ गई.

उधर बच्चे भी उकताने लगे थे, ‘‘ममा, हम किस के साथ खेलें? हमारी उम्र का तो कोई है ही नहीं.’’

‘‘नीचे बगीचे में घूम आओ या फिर टीवी देख लेना.’’

बच्चों को भेज कर कविता लेट तो गई, पर नींद आंखों से कोसों दूर थी. 12 वर्ष पहले उस का स्वयं का विवाह हुआ था. फिर 8 साल पहले चचेरी बहन पिंकी का. अभी तक सारे विवाह अपने पुश्तैनी घर में ही होते रहे थे. घर छोटा था तो क्या हुआ, सारे मेहमान उस में आ जाते. आंगन में ही रात को सब की खाटें बिछ जातीं. दिन भर गहमागहमी रहती. शादी का माहौल दिखता. ढोलक की थाप पर नाचगाना होता. पिंकी के विवाह में जब आशा बूआ नाच रही थीं तो बच्चे हंसहंस कर लोटपोट हो रहे थे.

‘‘हाय दइया ततैयों ने खा लयोरे…’’ कहते हुए वे साड़ी घुटनों तक उठा लेतीं.

सब लोग हा…हा… कर के हंसते. तभी बड़ी ताईजी सब को डांटतीं कि बेटी का ब्याह है कोई नौटंकी नहीं हो रही, समझीं? पर फिर भी सब हंसते रहते और वही माहौल बना रहता. आज मांबाबूजी हैं नहीं, ताईजी भी इतनी बूढ़ी हैं कि कहीं आ जा नहीं सकतीं. बस छोटी बूआ आई हैं, दीदी बता रही थीं. पर वे भी शायद अकेली किसी कमरे में होंगी.

हां, दीदी कह तो रही थीं किसी से कि एक थाली कमरे में भिजवा दो. उस समय तो हलवाइयों की रौनक, मिठाई, नमकीन सब की खुशबू हुआ करती थी शादीब्याह के माहौल में, पर यहां तो बस चुपचाप अपने कमरे में बंद हैं. लग ही नहीं रहा है कि अपने घर की शादी में आए हैं.

शाम को बरात को रवाना होना था, बरात क्या होटल में ठहरे मेहमानों को ही चलना था, पास ही के एक दूसरे होटल में लड़की वाले ठहरे थे, वहीं शादी होनी थी.

पर जब तक कविता तैयार हो कर बच्चों को ले कर नीचे आई तो पता चला कि भैयाभाभी और करण तो पहले ही जा चुके हैं. कुछ लोग अब जा रहे थे, दोनों दीदियां भी नीचे खड़ी थीं.

‘‘अरे दीदी, करण का तिलक भी तो होना था,’’ कविता को याद आया.

‘‘अब रहने दे, सब लोग वहां पहुंच चुके हैं… नीचे ड्राइवर इंतजार कर रहा है,’’ कहते हुए मझली दीदी आगे बढ़ गईं.

ऐसा लग रहा था जैसे किसी दूसरे परिचित की शादी हो, खाने की अलगअलग मेजें लगी थीं, जैसा कि होटलों में होता है. सब लोग मेजों पर पहुंचने लगे.

‘‘फेरों के समय तो अपनी कोई जरूरत है नहीं,’’ बड़ी दीदी कह रही थीं.

‘‘और क्या, मेरी तो वैसे भी रात को देर तक जागने की आदत है नहीं. सुबह फिर जल्दी उठना है, 7 बजे की ट्रेन है, तो 6 बजे तक तो निकलना ही होगा,’’ मझली दीदी बोलीं.

तभी भाभी की छोटी बहन ममता हाथ में ढेर से पैकेट लिए आती दिखी.

‘‘दीदी आप लोग तो कल ही जा रहे हो न तो अपनेअपने गिफ्ट संभालो,’’ कहते हुए उस ने सभी को पैकेट और मिठाई के डब्बे थमा दिए.

‘‘पर मेरी तो ट्रेन सुबह 10 बजे की है, अभी इतनी जल्दी क्या है?’’ कविता के मुंह से निकला.

‘‘वह तो ठीक है पर दीदी जीजाजी को कहां सुबह समय मिल पाएगा, रात भर के थके होंगे. हां, आप अपने नाश्ते के समय लंच का डब्बा जरूर सुबह ले लेना.’’

मझली दीदी ने तो तब तक एक पैकेट के कोने से अंदर झांक भी लिया, ‘‘साड़ी तो बढि़या दी है भाभी ने,’’ वे फुसफुसाईं.

पर कविता चुप थी. अंदर कमरे में आ कर भी उसे देर तक नींद नहीं आई थी. रिश्ते क्या इतनी जल्दी बदल जाते हैं? क्या अब लेनादेना ही शेष रह गया है? प्रश्न ही प्रश्न थे उस के मन में जो अनुत्तरित थे.

सुबह चायनाश्ते के बाद वह तैयार हो कर नीचे उतरी तो भैयाभाभी नीचे ही खड़े थे.

‘‘कविता, तुम्हारा गिफ्ट पैक मिल गया है न… और हां, ड्राइवर नीचे ही है. तुम्हें स्टेशन तक छोड़ देगा. श्याम, गाड़ी में सामान रखवा दो,’’ भैया ने नौकर को आवाज दी.

इस तरह कविता की विदाई भी हो गई. दोनों दीदियां सुबह ही जा चुकी थीं. ड्राइवर को किसी और को भी छोड़ना था, इसलिए कविता को 2 घंटे पहले ही स्टेशन उतार गया.

बैंच पर बैठेबैठे कविता अनमनी सी हो गई थी. अभी भी घोषणा हो रही थी कि ट्रेन और 2 घंटे लेट है.

‘‘लो…’’ उस के मुंह से निकल ही गया.

‘‘ममा, हमें तो भूख लगी है…’’ छोटू की आवाज गूंजी तो उस ने एक पैकेट खोल लिया.

‘‘और कुछ खाना हो तो सामने से ले आऊं, अभी ट्रेन के आने में देर है.’’

‘‘हां ममा, जूस पीना है.’’

‘‘मुझे भी…’’

‘‘ठीक है, अभी लाती हूं.’’

‘बच्चे साथ थे तो मन कुछ बहल गया… अकेली होती तो…’ सोचते हुए कविता आगे बढ़ गई.

ट्रेन में बैठ कर बच्चे तो सो गए पर कविता चुपचाप खिड़की के बाहर देख रही थी… ‘पीछे छूटते वृक्ष, इमारतें… शायद ऐसे ही बहुत कुछ छूटता जाता है…’ सोचते हुए उस ने भी आंखें मूंद लीं.

डांस भी एक ऐक्टिंग ही है : सुखदा खांडकेकर

नासिक की रहने वाली सुंदर, मृदुभाषी अभिनेत्री सुखदा खांडकेकर ने नाटकों, हिंदी, मराठी फिल्मों और कई शोज में काम किया है. उन्होंने संजय लीला भंसाली की 2015 की हिट फिल्म ‘बाजीराव मस्तानी’ में बाजीराव की बहन अनुबाई की भूमिका निभा कर लोकप्रियता हासिल की. इस के अलावा सुखदा एक प्रशिक्षित कत्थक डांसर है और उन्होंने कई इवैंट्स के लिए कोरियोग्राफी का काम भी किया है.

बचपन से ही कला के माहौल में पैदा हुई सुखदा को ऐक्टिंग का शौक था, जिस में उन्हें पैरंट्स और पति ने साथ दिया है. इन दिनों सुखदा ने सोनी टीवी की शो ‘पुकार’ में 25 साल के बच्चे की मां की भूमिका निभाई है.

आइए, जानते हैं उन की कहानी उन की ही जबानी :

इस शो में काम करने की खास वजह

सरस्वती का चरित्र बहुत हो अलग है, मैं ने हमेशा कैरैक्टर ड्रिवन ऐक्टिंग ही करने का निर्णय लिया है. मैं ने मराठी और हिंदी दोनों इंडस्ट्री में काम किया है, जिस में विज्ञापनों, टीवी शोज, थिएटरों, फिल्में आदि सबकुछ हैं. इस की वजह है कि मैं चरित्र को चुनती हूं, भाषा को नहीं. मैं ने उर्दू और अंगरेजी में भी काम किया है, ऐसे में मुझे जब इस शो की कहानी का पता चला, जिस में कहानी एक मां सरस्वती के इर्दगिर्द घूमती हुई है, जिस में कई प्रकार के ऐक्स्प्रेशन, ड्रामा सबकुछ है, तो मुझे कुछ और सोचने की आवश्यकता नहीं पड़ी. डर इस बात से रहा है कि मैं इस चरित्र से कुछ साल छोटी हूं और टाइपकास्ट नहीं होना चाहती थी, लेकिन क्रिऐटिव डाइरैक्टर तुषार भारद्वाज ने समझाया कि यह जबरदस्ती सफेद बालों वाली मां मैं मां नहीं है, मैं जैसी हूं, वैसी ही मुझे दिखाया जाएगा, जो ऐलिगेंट लुक वाली होगी, जो मुझे करने में किसी प्रकार की आपत्ति नहीं हुई.

मां की भूमिका निभाना मुश्किल नहीं

कम उम्र में मां की भूमिका निभाने को ले कर पूछने पर सुखदा कहती स्क्रिप्ट सही होने पर अभिनय करना मुश्किल नहीं होता, उसे जितनी बार पढ़ी जाती है, किरदार तक पहुंचना आसान होता है. इस के अलावा मैं एक थिऐटर आर्टिस्ट हूं और किसी भी किरदार को करना मेरे लिए चुनौती होती है.

मिली प्रेरणा

अभिनय में आने की प्रेरणा के बारे में पूछने पर सुखदा कहती हैं कि मैं ने 5 साल की उम्र से कत्थक सीखा है. बचपन में मेरी मां किसी भी क्रिऐटिविटी वाले वर्कशौप के लिए मुझे ऐनरोल कर देती थी. 18 वर्ष तक होतेहोते मेरी पढ़ाई के साथसाथ डांस और ऐक्टिंग सभी एकसाथ चल रही थी. कालेज में भी मैं ने ऐक्टिंग किया है. मैं क्लीनिकल साइकोलौजिस्ट हूं, पुणे जा कर मास्टर्स किया.

मुंबई से जब मैं पुणे पढ़ाई के लिए आई, तो पढ़ाई के साथ डांस चलता रहा और ऐक्टिंग भी म्यूजिक विडियो के साथ चल रहा था. मैं डांस और ऐक्टिंग को अलग नहीं कर पाई, क्योंकि डांस में भी ऐक्टिंग होता है और मेरी डांस की प्रस्तुति के बाद कौम्पलीमैंट्स भी खूब मिलते थे कि मैँ बहुत सुंदर और ऐलिगेंट दिखती हूं. मेरी मनोविज्ञान की पढ़ाई भी अभिनय में सहायता करती है, क्योंकि मैँ चरित्र के मूड को जल्दी समझ जाती हूं.

परिवार का सहयोग

अपने परिवार के सहयोग के बारें में सुखदा कहती हैं कि परिवार में कोई ऐक्टिंग फील्ड से नहीं है, लेकिन कला के क्षेत्र से अवश्य है. मेरी मां चित्रा देशपांडे एक संगीतज्ञ हैं, उन्होंने 35 साल तक सब को संगीत सिखाया है और अब हम दोनों की संस्था ‘आकार’ है.

मेरे पिता सुधीर पांडे एक पेंटर और स्कल्प्चरिस्ट थे, जो गिनीज बुक औफ वर्ल्ड रिकौर्ड होल्डर थे. कुछ साल पहले हम ने उन्हें खो दिया है. मेरे बड़े भाई पेंटर और आर्किटेक्ट है और विदेश में रहता है. परिवार में कला एकदूसरे से अलग भले है, लेकिन सभी कलाकर हैं. अभी जहां मेरी शादी हुई है, मेरे पति अभिजीत खांडकेकर भी ऐक्टर हैं. इसलिए मेरे सासससुर भी मेरे काम की बहुत सराहना करते हैं. सभी का सहयोग मेरे साथ रहता है.

पति का मिलना

पति अभिजीत से मिलने के बारें में सुखदा हंसती हुई कहती हैं कि भले ही हम दोनों नाशिक से हैं, लेकिन कभी नासिक में मिले नहीं थे. उन के पहले मराठी शो के दौरान मैं ने उन्हे फेसबुक पर सिर्फ बधाई दी थी, क्योंकि वे नाशिक के हैं और उन की एक बड़ी होर्डिंग मैं ने मुंबई में देखी थी. उन्होंने मेरी बधाई का उत्तर
दिया, ऐसे हमारी दोस्ती हुई और अंत में शादी में बदल गई.

पति अभिजीत की एक खूबी के बारें में पूछने पर सुखदा का कहना है कि मेरे पति हर काम में बहुत अधिक अनुशासन रखते हैं, समय पर काम पर जाना, घर लौटना, सब का खयाल रखना आदि करते हैं. यह अनुसाशन कई बार मुझे इरिटैट भी करती है। मसलन, शौपिंग पर जाने पर अगर समय में थोड़ीबहुत देर हुई, तो उन्हें अच्छा नहीं लगता.

संघर्ष के दिन

सुखदा अपने काम के लिए किए गए प्रयास को संघर्ष नहीं बल्कि अड़चन कहती हैं, क्योंकि संघर्ष की परिभाषा हर व्यक्ति के लिए अलगअलग है. उन का कहना है कि मेरी पहली प्रोफैशनल ऐक्टिंग एक उर्दू सीरीज थी, जिसे एक ब्रिटिश प्रोड्यूसर पाकिस्तान और बांग्लादेश के एनजीओ के लिए बनाया था. यह कमर्शियल प्रोजैक्ट नहीं था, लेकिन मेरे लिए बड़ा ब्रेक था. मुझे जो भी काम मिला अच्छा लगा है. मैं ने कभी बड़ा बैनर या पैसा नहीं देखा, बल्कि अभिनय के स्ट्रैंथ को देखा है. यही वजह है कि लगातार मुझे काम मिलता गया. फिर चाहे वह नाटकों में काम हो या हिंदी फिल्मों में, हर काम मेरे लिए एक चुनौती रही है, लेकिन मेरा ध्यान हमेशा काम पर केंद्रित रहता है. कई बार मुझे काम नहीं भी मिला है और मैँ कुछ दिनों तक घर पर भी बैठी रही, मायूसी भी हुई, लेकिन इन सभी चीजों को मैं ने सहजता से लिया है.

सुखदा के लिए जीवन जीने का मंत्र खुद को और आसपास को खुश रखना है, क्योंकि इस से उन्हें बहुत अच्छा महसूस होता है.

घर में बनाना है वार्डरोब, तो रखें इन बातों का ख्याल

राधिका ने नया नया घर बनवाया घर बहुत ही सुन्दर है, लेकिन एक खामी रह गई और वो थी वार्डरोब की. वार्डरोब बनवाई तो थी, लेकिन एक नार्मल डिजाइन की जिस कारण उसे घर का सामान रखने में आए दिन परेशानी होती और बहुत ही जल्दी सारा रखा हुआ सामान बिखरा बिखरा सा हो जाता. एक दिन न वह अपनी सहेली के घर गई तो उसकी आंखें खुली की खुली रह गई उसका घर राधिका के घर से बहुत ही छोटा था, लेकिन हर एक सामान बहुत ही स्लिके से रखा था और इसका श्रेय जाता है उसके घर में बनी वार्डरोब का जो उसके घर में आकर्षण का केंद्र बनी हुई थी तो आप भी वार्डरोब बनवाने से पहले जान लें कुछ खास बातें जिससे आप का घर भी शानदार लगेगा. वार्डरोब का सही चयन आपके घर को ज़्यादा विशाल और व्यवस्थित दिखाता है जबकि एक गलत तरीके से चुनी गई वर्डरोब इसे तंग और अव्यवस्थित महसूस करा सकती है.

अपने घर में वर्डरोब के डिजाइन को चुनते समय जरूरी हैं कि कुछ बातों का ध्यान अवश्य रखें.
वार्डरोब बनवाना चाहते हैं तो जान लें कि यह लम्बे समय का इन्वेस्टमेंट हैं इसलिए अच्छे प्रौडक्ट का प्रयोग करें.

वर्डरोब का डिजाइन घर के अनुसार होना चाहिए यदि घर छोटा है तो स्लाइडिंग वाले वार्डरोब बनवाएं ये जगह कम घेरती हैं और अगर आपके पास सही जगह हैं तो आप पल्ले वाली वार्डरोब बनवाएं क्योंकि इनमे सामान रखने का स्पेस ज्यादा होता है.इसे एमडीएफ बोर्ड, BWP प्लाईवुड, HDHMR, शटर के लिए मिरर और ग्लास तथा लैकवर्ड ग्लास में बनवा सकते हैं.

कांच के डोर बनवाना चाहती हैं तो जान ले की इनकी देख रेख लकड़ी की वोर्डरोब से ज्यदा है और ध्यान रखें कि अच्छी क्वालिटी का कांच लगवाएं.

स्मार्ट स्टोरज के लिए वोर्डरोब आर्गेनाइजर अवश्य लगवाएं बास्केट पुलआउट, दीवार में लगे हैंगर, बिल्टइन आयरन बोर्ड दराज, टाई और बेल्ट पुल-आउट,पेंट और साड़ी पुल-आउट,पुल आउट शू रैक अवश्य बनवाएं साथ ही आप अटैच्ड ड्रेसिंग भी तैयार करा सकते हैं जिसमे एल ई डी लाइट लगवाने ना भूलें.

बेहतर क्वालिटी का सामान लम्बे समय तक चलता है इसलिए घर चाहे छोटा हो या बड़ा आपकी वर्डरोब स्मार्ट होंगी तो आपके घर कि स्मार्टनेस साफ झलकेगी.

एक्सपर्ट की राय

यदि आप आकार, क्षमता, शैली, डिजाइन, सामग्री और इसकी गुणवत्ता को हमेशा ध्यान में रखें. क्योंकि बेहतर क्वालिटी का सामान ज्यादा लम्बे समय तक चलता है.आजकल फर्श से छत तक बनी वर्डरोब का चलन अधिक है. यदि आप कांच के डोर वाली अलमारी बनवाने जा रहे हैं तो अच्छी क्वालिटी का कांच लगवाएं व साथ ही ध्यान रखें कि इनकी देख रेख लकड़ी की अलमारी से अधिक होती है.आजकल हेंडल लेस अलमारी व लाइटिंग का काफ़ी चलन है. साथ ही वर्डरोब के साथ ड्रेसिंग भी बनवा सकती हैं.

रिश्तों की गणित में अप्लाई करें 3+1 रूल, जिंदगीभर निभाना है साथ तो ये आएगा काम

अखिल को अक्सर घर काटने को दौड़ता पत्नी बच्चे सब पराएपराए से लगते थे. उसका मन करता,घर से कहीं बाहर निकल जाये और सड़कों पर तब तक घूमता रहे,जब तक थक कर टूट न जाए और फिर घर लौटकर आये तो गहरी नींद सो जाए,ताकि उसकी पत्नी के ऊंचे बोलने की आवाज और बच्चों की चिल्लपे उसे सुनाई ही न दें. उसे लगता उसके अपने परिवार के लोग ही उसके सबसे बड़े दुश्मन हैं. उसके परिवार ने ही उसकी सुख शांति छीन ली है .

उसे अपने मित्र समर से ईर्ष्या होती. सोचता कितनी सुशिक्षित,और सभ्य पत्नी मिली है समर को,जिसकी एक मुस्कान और झलक देखकर ही मन खिल उठता है. फिर सोचता,उसकी पत्नी भी देखने में तो बुरी नहीं है.लेकिन दो बच्चों की मां बनते ही अपनी दुनिया में ऐसे खो गयी है,जैसे और किसी काम से उसका वास्ता ही न हो.थक जाए तो अपनी खीझ बच्चों पर उतारती है.

अखिल ऐसा अनुभव करता , जैसे उसने शादी करके बहुत बड़ी मुसीबत मोल ले ली है. शादी से पहले उसने जो भी सपने देखे थे,वो सब मिट्टी में मिल गये हैं. अब तो मौत ही उसे इस जीवन से छुटकारा दिला सकती है.

समर के समझाने पर अखिल साइकैटरिस्ट से मिला. अखिल ने जब अपने दिल की बात उन से कही तो उन्होंने अखिल को समझाया और फिर जीवन के प्रति अखिल का नजरिया बदल गया. आइए जानते हैं उन्होंने अखिल से क्या कहा.

एक समय था जब शादी को सात जन्मों का बंधन माना जाता था. प्यार के रिश्ते को मरते दम तक निभाने की कसमें खाई जाती थीं. लेकिन आज के समय में प्यार, साथ और अपनेपन के ये रिश्ते बदल गए हैं. अब कपल्स इतने प्रैक्टिकल हो गए हैं कि थोड़ा सा भी मतभेद या मनभेद उनके रिश्ते पर हावी हो जाता है. वे स्थितियों को संभालने की जगह, उनसे पीछा छुड़वाना बेहतर समझते हैं. रिश्ता निभाने की जगह, उससे दूर जाना अच्छा समझते हैं. हालांकि रिश्तों की गणित में अगर आप गुणा और जोड़ करना सीख लें तो जिंदगी बेहतर हो सकती है. ऐसे में सवाल ये है कि क्या कोई ऐसा फार्मूला है, जो प्यार और रिश्ते दोनों को संभाल सके. तो इसका जवाब है, जी हां. यह शानदार फार्मूला है 3+1 रूल.

जानिए क्या है 3+1 का रूल

मशहूर मोटिवेशनल स्पीकर और लेखक साइमन सिनेक ने रिश्तों का यह अनोखा रूल बनाया है. सिनेक का कहना है कि अगर कोई भी कपल चाहे वो पति-पत्नी हो या गर्लफ्रेंड-बौयफ्रैंड 3+1 रूल को फौलो करता है तो रिश्ता निभाने की संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है. इस रूल में तीन बातें मुख्य हैं और एक उनका सार है.

भावनात्मक अनुकूलता है जरूरी

कोई भी रिश्ता भावनाओं के बिना अधूरा है. भावनाएं रिश्ते के हरे भरे पेड़ की जड़ों की तरह हैं. ये जड़ें जितनी गहरी और मजबूत होंगी, रिश्तों की हरियाली उतनी ही ज्यादा होगी. इसलिए रिलेशनशिप में पार्टनर्स को एक दूसरे की फीलिंग समझनी चाहिए और उनका सम्मान भी करना चाहिए. साथ ही जरूरत के समय आपस में इमोशनल सपोर्ट भी देना चाहिए. इससे रिश्ते में मजबूती आती है.

बौद्धिक अनुकूलता से बढ़ेगा सम्मान

जब पार्टनर एकदूसरे की महत्वाकांक्षाओं, करियर, गोल्स को समझ कर, उन्हें पाने के लिए साथ कोशिश करते हैं तो ऐसा करना आपके रिश्ते को मजबूती देता है. एक दूसरे से ​कुछ सीखने और कुछ सिखाने की प्रवृति आपके रिश्ते के जोड़ को मजबूती देगी. इससे रिश्ते में हमेशा नयापन बना रहता है. साथ ही सम्मान की भावना भी बढ़ती है.

आकर्षण नहीं नजदीकी पर करें फोकस

रिश्ते में कई बार आकर्षण को लोग प्यार समझ लेते हैं. लेकिन ऐसा रिश्ता लंबे समय तक नहीं चल पाता है. इसलिए रिलेशन में सेक्शुअल कंपैटिबिलिटी होना जरूरी है. एक दूसरे की जरूरतों को समझें, उनका सम्मान करें और इस मुद्दे पर खुलकर बात करें. इससे आपका रिश्ता मजबूत होगा.

यह है सबसे बड़ा गुरु मंत्र

इन तीनों रूल्स के अलावा एक और रूल है, जो रिश्तों के घरोंदे को खूबसूरती देता है. दरअसल, हर कपल की परिस्थितियां, प्राथमिकताएं, समय और जरूरतें अलग-अलग होती हैं. इसलिए ये जरूरी नहीं है कि सब पर एक ही रूल लागू हो. इसलिए +1 रूल की जरूरत है. इसका मतलब है कि आप रिश्ते को अपने अनुसार संभालें और संवारें. एक-दूसरे का साथ देने के साथ ही एक दूसरे का सम्मान करें, प्यार करें और परिस्थितियों को समझने का प्रयास करें.

गे भी नाम और पैसा कमा सकते हैं : ओजस राजानी मेकअप ऐंड हेयर स्पैशलिस्ट

मेकअप आर्टिस्ट, हेयर स्टाइलिस्ट, मौडल व स्टाइलिंग के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मशहूर  ओजस राजानी ग्लैमर वर्ल्ड में अपनी खास पहचान रखते हैं.
गे कम्युनिटी से ताल्लुक रखने वाले ओजस सब से पहले सीए थे. लेकिन बाद में उन्होंने मेकअप और स्टाइलिंग की तरफ अपना रुझान दिखाया। अमेरिका के मिआमी स्कूल औफ हेयर ऐंड मेकअप से ग्रैजुएट कर के कड़ी मेहनत के साथ छोटी सी उम्र में भी अपने काम के जरीए ओजस ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त की.
अपने काम के लिए उन्हें कई सारे अवार्ड भी मिले. लेकिन गे होने की वजह से उन को लोगों से तिरस्कार भी झेलना पड़ा. बौलीवुड में उर्मिला मातोंडकर के साथ मेकअप और हेयर से शुरुआत करने के बाद ऐश्वर्या राय, शिल्पा शेट्टी, श्रीदेवी, कैटरीना कैफ जैसी नामचीन अभिनेत्रियों का ओजस मेकअप, हेयरस्टाइल और स्टाइलिंग कर चुके हैं। इस के अलावा ओजस की अकादमी ओजस राजानी हेयर ऐंड मेकअप स्टाइलिंग अकादमी भी है जिस में वे कई लोगों को मेकअप हेयर स्टाइलिंग सिखाते हैं.
ओजस राजानी का सीए से मेकअप आर्टिस्ट तक का सफर कैसा रहा, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काम करने का उन का अनुभव कितना आसान और कितना मुश्किल था, गे होने की वजह से उन्हें किनकिन मुश्किलों का सामना करना पड़ा? ऐसे ही कई सवालों के दिलचस्प जवाब दिए ओजस ने :
ओजस, आप का बतौर सीए काम करने से मेकअप आर्टिस्ट बनने तक का सफर कितना आसान और कितना मुश्किल था क्योंकि एक तरफ दिमाग का इस्तेमाल था और दूसरी तरफ कला और हुनर का इम्तिहान था?*
मैं अपनेआप को डेस्टिनी चाइल्ड मानता हूं क्योंकि मैं ने जो भी पाया है अपने मेहनत के आधार पर पाया है। शुरुआत मैं ने बतौर स ए की थी क्योंकि मेरे पिता चाहते थे कि मैं पढ़लिख कर कुछ बन जाऊं क्योंकि उन दिनों मौडलिंग या मेकअप आर्टिस्ट के कैरियर में खास पैसा नहीं होता था और न ही उतना सम्मान मिलता था. इसीलिए मैं ने अपने डैडी की बात मान कर सीए किया और नौकरी करने लगा. लेकिन वहां पर मुझे गे होने की वजह से तिरस्कार सहना पड़ता था. कई लोग मुझ से बात करना पसंद नहीं करते थे. मेरे साथ काम करना भी नहीं चाहते थे. मुझे बायलाबायला कह के चढ़ाते थे. उस वक्त मुझे ऐसा ही लगता था कि अगर मैं ऐसा हूं तो इस में मेरी क्या गलती है.
बचपन से ही मुझे मेकअप करने का और लड़कियों को सजतेसंवरते देखने का शौक था. बचपन में मैं अपनी मम्मी और मौसी को मेकअप कर के दिया करता था क्योंकि मुझे मेकअप का और हेयर स्टाइलिंग का शौक था। इसलिए शादीविवाह में भी मैं लोगों को मेकअप कर के और अच्छा हेयर स्टाइल बना कर दिया करता था जिस की मुझे बहुत तारीफ मिली.
ऐसे में जब सीए की नौकरी के दौरान मुझे लोगों से तिरस्कार मिला तो मैं ने जौब छोड़ने की सोची. लेकिन मेरे बौस मुझे नौकरी से नहीं निकालना चाहते थे क्योंकि मेरी वजह से, मेरे अच्छे कामों की वजह से उन की कंपनी को बहुत फायदा हो रहा था. लेकिन मैं ने उन से कहा कि मैं 10 दिन का ब्रेक लेता हूं फिर देखता हूं कि मैं जौब कर पाता हूं या नहीं. इस दौरान मेरी मौसी ने मुझे अमेरिका चलने के लिए कहा. मैं अपनी मौसी के साथ अमेरिका गया और वहां पर मेकअप फौर हेयर स्टाइलिंग का कोर्स किया. साथ ही मैं अपनी मौसी की कंपनी में काम भी करने लगा और विदेश में ही मेकअप और हेयर स्टाइलिंग करने की शुरुआत कर दी थी.
मुझे जिस तरह का तिरस्कार मिला था उस के बाद मैं ने ठान लिया था कि मैं साबित कर के दिखाऊंगा की गे भी कमाल कर सकता है. अच्छा इंसान और अच्छा काम कर के नाम और पैसा कमा सकता है और मैं ने अपने काम से जैसेकि मैं मौडलिंग भी करता था और मेकअप हेयर स्टाइलिंग भी करता था.
उस के बाद मैं इतना पैसा कमाया कि 24 साल की उम्र में खुद का फ्लैट खरीद लिया. यह कामयाबी देख कर मेरे मम्मीपापा बहुत खुश थे.
आप ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस प्रोफैशन को अपनाया। दोनों जगह काम करने का अनुभव कैसा रहा?
सब से अच्छी बात तो यह थी कि विदेश में मुझे कोई मेरे जैंडर को ले कर दुख नहीं पहुंचाता था. दूसरी बात यह अच्छी थी कि वहां पर टाइम की वैल्यू है। अगर 8 बजे का मेकअप टाइम होता था तो सैलिब्रिटी 7:45 बजे ही आ कर बैठ जाते थे. उस दौरान हम ने बहुत सारे शोज किए थे। पामेला एंडरसन के साथ वैब सीरीज की थी. विदेशी ऐक्टर बेंड्री रौड्रिक्स के साथ काम भी किया था जिन्होंने बाद में बौलीवुड में वासु भगनानी की फिल्म आउट औफ कंट्रोल रितेश देशमुख के साथ की थी.
इस के अलावा मैं ने वहां ब्रिटनी स्पीयर्स के साथ भी काम किया. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुत तारीफ और ख्याति मिली। इस की वजह से मुझे वर्क सैटिस्फेक्शन मिलता था. मैं वहां पर 7 साल था और उस दौरान मैं ने बहुत पैसा और नाम कमाया.
 बौलीवुड हीरोइनों के साथ भी आप ने काफी काम किया है। बौलीवुड में आप की शुरुआत कैसे हुई?
अमेरिका में 7 साल काम करने के बाद 10 दिन की छुट्टी मनाने मैं मुंबई आया था। उसी दौरान मैं ने एक फोटोग्राफर को अपना विदेश में  किया हुआ मेकअप और हेयर स्टाइलिंग का काम दिखाया था. उस फोटोग्राफर को मेरा काम इतना अच्छा लगा कि उस ने मुझे कहा कि उर्मिला मातोंडकर को मेकअप आर्टिस्ट की जरूरत है। मैं उस से मिल लूं. अमेरिका के लिए मेरा रिटर्न टिकट होने के बावजूद मैं उर्मिला से मिलने गया. बचपन से बौलीवुड का दीवाना हूं। बौलीवुड के गाने, डांस व हिंदी फिल्में देखना मुझे बहुत पसंद था. इसलिए जब मैं उर्मिला के पास गया और उन का मैं ने मेकअप किया तो उन को मेरा काम बहुत पसंद आया. बाद में फिल्म रंगीला के लिए मैं ने उर्मिला का मेकअप स्टाइलिंग किया जिस के लिए मुझे बहुत सारे अवार्ड मिले। उस के बाद मैंने ऐश्वर्या राय के की मेकअप स्टाइलिंग की। उन को मेरा काम इतना पसंद आया कि उस के बाद मैं उन के साथ 8-10 फिल्में कीं, जैसे ‘हम दिल दे चुके सनम’, ‘राबर्ट’, ‘देवदास’, ‘जोधा अकबर’ आदि।
श्रीदेवी, शिल्पा शेट्टी, मलाइका अरोड़ा, कैटरीना कैफ कई हीरोइनों का मेकअप किया। आज मुझे 30 साल हो गए हैं इस लाइन में। आज भी मुझे उतना ही काम आ रहा है जितना कि पहले आता था.
आप ने जितनी भी हीरोइनों के साथ काम किया उन में से किस का स्वभाव आप को सब से अच्छा लगा और किस के साथ काम कर के आप को बहुत फायदा हुआ?
ऐसे तो सभी बहुत अच्छी हैं. लेकिन श्रीदेवीजी को मैं दिल से सम्मान देता हूं। उन के जैसी कलाकार मैं ने आज तक नहीं देखी. मैं ने उन के साथ काफी काम किया है. उन को कभी किसी पर चिल्लाते हुए नहीं देखा. श्रीजी सब के साथ बहुत प्यार से पेश आती थीं.
मुझे उन्होंने इतना सम्मान दिया कि जब मैं उन को मेकअप करना शुरू करता था तो वह मेरा आशीर्वाद ले कर ही मेकअप की शुरुआत करती थीं. उन के लिए जब कोई कहता है कि वह बहुत शराब पीती थीं तो मुझे बहुत दुख होता है क्योंकि वह ऐसी बिलकुल भी नहीं थी. मैं उन के साथ काफी समय रहा। मैं ने उन को कभी भी गलत व्यवहार करते नहीं देखा। श्रीदेवी के अलावा मलाइका अरोड़ा और उर्मिला समय की बहुत पाबंद हैं। वे समय से पहले मेकअप के लिए आ जाती थीं. अपने अब तक के कैरियर में मैं ने हर हीरोइन में कोई खास खूबी देखी है जिस की वजह से वह सफलता की तरफ अग्रसर हैं.
आप ने अब तक जितनी भी हीरोइनों का मेकअप किया उन में से आप को सब से खूबसूरत कौन लगी, जिन को मेकअप की भी जरूरत नहीं है?
 कैटरीना कैफ बहुत सुंदर हैं। उन की स्किन और हेयर दोनों ही बहुत अच्छे हैं। उन को देखकर लगता है कि उन को मेकअप की जरूरत नहीं है. साथ ही कैटरीना का स्वभाव भी बहुत अच्छा है। मेरा उन के साथ काम करने का अनुभव बहुत अच्छा रहा.
एक फिल्म को कामयाब बनाने में उस से जुड़े कई लोग, जो परदे के पीछे होते हैं लेकिन उन को उतना सम्मान और पहचान नहीं मिलता जितना कि एक ऐक्टर को मिलता है. ऐसे में आप के 30 साल के कैरियर में आप को कितना सम्मान और तारीफ मिली जो आप के लिए यादगार रहा?*
मुझे अपने कैरियर के दौरान कई सारे अवार्ड और सम्मान मिले। फिल्म ‘राबर्ट’ के लिए भी मुझे कई अवार्ड मिले थे जैसे स्टार, जीसिने, स्क्रीन अवार्ड। इस के अलावा जब कांस फैस्टिवल में मैं ने ऐश्वर्या का हेयर स्टाइलिंग और मेकअप किया था उस दौरान लोरियल लौंच हुआ था। उस दौरान भी मुझे बहुत सम्मान मिला.
ऐश के मेकअप की बहुत तारीफ हुई. उसी दौरान मुझे लंदन से एक लड़की का फोन आया था जिस का कहना था कि उस की शादी के लिए ऐश्वर्या का फिल्म ‘देवदास’ वाला लुक चाहिए. विदेश से मेरे काम की तारीफ का कौल आना मेरे लिए बहुत बड़ा क था . उसके बाद मैंने दुल्हन का मेकअप करना भी शुरू किया. एक मेकअप आर्टिस्ट को सब से ज्यादा तब खुशी होती है जब उन से कोई कहता है कि आप ने इतना अच्छा मेकअप किया है कि लग ही नहीं रहा है कि मेकअप हुआ है. ऐसे ही कई कौंप्लीमैंट्स मुझे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मिले.
बतौर गे मेकअप आर्टिस्ट होने के क्या प्लस और माइनस पौइंट हैं?
अगर आप देखें तो मेकअप आर्टिस्ट या तो ज्यादतर मराठी मर्द होते हैं या गे होते हैं. काम दोनों का ही अच्छा होता है लेकिन हीरोइन गे मेकअप आर्टिस्ट के साथ ज्यादा कंफर्टेबल होती हैं क्योंकि उन से उन को कोई खतरा नहीं होता. मुझे आज भी याद है कि हमारे साथ एक आदमी मेकअप के लिए आता था तो मुझे एक हीरोइन ने कहा कि उस को साथ मत लाना क्योंकि उस की नजर अच्छी नहीं है.
इस के अलावा क्योंकि गे ज्यादा इंटैलिजेंट होते हैं इसलिए वे नएनए लुक्स पर ट्राई करते रहते हैं, मेकअप के टिप्स लेते रहते हैं इसलिए उन को ज्यादा फायदा होता है.
माइनस पौइंट यह है कि पुराने जो मेकअप आर्टिस्ट हैं उन को कोई पहचान नहीं मिली. इतने साल काम करने के बावजूद उन को कहीं सम्मानित नहीं किया जाता. आज के दौर में तो काफी सारी सुविधाएं है जिस से हम बहुत कुछ नया सीख सकते है। लेकिन पहले ऐसा नहीं था। सब को अपने मन मुताबिक ही मेकअप करना पड़ता था. जिस की वजह से पहले की कई हीरोइनें हैं जब मेकअप करती थीं तो ऐसा लगता था जैसे चूना लगा लिया है। वहीं मुमताज, टीना मुनीम, जीनत अमान का मेकअप बहुत ही अच्छा और गुलाबी नैचुरल होता था .
कई सारी लड़कियां खूबसूरत दिखना चाहती हैं। उन के पास इतने पैसे नहीं हैं कि वे महंगे प्रोडक्ट्स खरीद सकें. ऐसे में आप क्या टिप्स देना चाहेंगे जो खूबसूरती में चार चांद लगाए?
हम ने जब मेकअप शुरू किया था तब महंगे प्रोडक्ट्स नहीं थे. मेकअप लगाने का एक तरीका होता है। उंगलियों से मेकअप नहीं करना चाहिए बल्कि पफ या ब्रश का इस्तेमाल करना चाहिए. ज्यादातर कोशिश करें कि पेन केक या इस्टिक वाला प्रोडक्ट न हो। इस के बजाय लिक्विड मेकअप करें। वह चेहरे के लिए ज्यादा अच्छा होता है। लाइट और नैचुरल लगता है और स्क्रीन के लिए भी अच्छा होता है. बहुत ज्यादा मेकअप चूना लगाया जैसा लगता है इसलिए उस से बचें.
आप के सफल कैरियर में आप की मांबाप का बहुत साथ रहा है. आप उन को कैसे धन्यवाद देना चाहेंगे?
आप सही कह रही हैं। मैं आज जो भी कुछ हूं अपने मां बाप के सहयोग की वजह से ही हूं. उन्होंने मेरा हमेशा साथ दिया। मेरी मां बौलीवुड प्रेमी थीं। उन को पुराने गाने बहुत अच्छे लगते थे। उनका फेवरिट सौंग ‘झिलमिल सितारों का आंगन होगा…’ है।
मेरी मां हमेशा हमें यह गाना सुनाया करती थीं. मातापिता दोनों ही कोरोना में चल बसे। अपनी मां की आवाज उन का गाया गाना आज भी मेरे दिमाग में कहीं न कहीं बसा है। मैं ने उन से वादा किया था कि मैं उन का नाम रोशन करुंगा और साबित कर दूंगा की एक गे भी कमाल कर सकता है. आज मैं ने उन को सफल हो कर दिखाया। वे मेरी तरक्की से बहुत खुश थे. आज भी मैं उन्हें अपने पास महसूस करता हूं.

इक विश्वास था

मेरी बेटी की शादी थी और मैं कुछ दिनों की छुट्टी ले कर शादी के तमाम इंतजाम को देख रहा था. उस दिन सफर से लौट कर मैं घर आया तो पत्नी ने आ कर एक लिफाफा मुझे पकड़ा दिया. लिफाफा अनजाना था लेकिन प्रेषक का नाम देख कर मुझे एक आश्चर्यमिश्रित जिज्ञासा हुई.

‘अमर विश्वास’ एक ऐसा नाम जिसे मिले मुझे वर्षों बीत गए थे. मैं ने लिफाफा खोला तो उस में 1 लाख डालर का चेक और एक चिट्ठी थी. इतनी बड़ी राशि वह भी मेरे नाम पर. मैं ने जल्दी से चिट्ठी खोली और एक सांस में ही सारा पत्र पढ़ डाला. पत्र किसी परी कथा की तरह मुझे अचंभित कर गया. लिखा था :

आदरणीय सर, मैं एक छोटी सी भेंट आप को दे रहा हूं. मुझे नहीं लगता कि आप के एहसानों का कर्ज मैं कभी उतार पाऊंगा. ये उपहार मेरी अनदेखी बहन के लिए है. घर पर सभी को मेरा प्रणाम.

आप का, अमर.

मेरी आंखों में वर्षों पुराने दिन सहसा किसी चलचित्र की तरह तैर गए.

एक दिन मैं चंडीगढ़ में टहलते हुए एक किताबों की दुकान पर अपनी मनपसंद पत्रिकाएं उलटपलट रहा था कि मेरी नजर बाहर पुस्तकों के एक छोटे से ढेर के पास खड़े एक लड़के पर पड़ी. वह पुस्तक की दुकान में घुसते हर संभ्रांत व्यक्ति से कुछ अनुनयविनय करता और कोई प्रतिक्रिया न मिलने पर वापस अपनी जगह पर जा कर खड़ा हो जाता. मैं काफी देर तक मूकदर्शक की तरह यह नजारा देखता रहा. पहली नजर में यह फुटपाथ पर दुकान लगाने वालों द्वारा की जाने वाली सामान्य सी व्यवस्था लगी, लेकिन उस लड़के के चेहरे की निराशा सामान्य नहीं थी. वह हर बार नई आशा के साथ अपनी कोशिश करता, फिर वही निराशा.

मैं काफी देर तक उसे देखने के बाद अपनी उत्सुकता दबा नहीं पाया और उस लड़के के पास जा कर खड़ा हो गया. वह लड़का कुछ सामान्य सी विज्ञान की पुस्तकें बेच रहा था. मुझे देख कर उस में फिर उम्मीद का संचार हुआ और बड़ी ऊर्जा के साथ उस ने मुझे पुस्तकें दिखानी शुरू कीं. मैं ने उस लड़के को ध्यान से देखा. साफसुथरा, चेहरे पर आत्मविश्वास लेकिन पहनावा बहुत ही साधारण. ठंड का मौसम था और वह केवल एक हलका सा स्वेटर पहने हुए था. पुस्तकें मेरे किसी काम की नहीं थीं फिर भी मैं ने जैसे किसी सम्मोहन से बंध कर उस से पूछा, ‘बच्चे, ये सारी पुस्तकें कितने की हैं?’

‘आप कितना दे सकते हैं, सर?’

‘अरे, कुछ तुम ने सोचा तो होगा.’

‘आप जो दे देंगे,’ लड़का थोड़ा निराश हो कर बोला.

‘तुम्हें कितना चाहिए?’ उस लड़के ने अब यह समझना शुरू कर दिया कि मैं अपना समय उस के साथ गुजार रहा हूं.

‘5 हजार रुपए,’ वह लड़का कुछ कड़वाहट में बोला.

‘इन पुस्तकों का कोई 500 भी दे दे तो बहुत है,’ मैं उसे दुखी नहीं करना चाहता था फिर भी अनायास मुंह से निकल गया.

अब उस लड़के का चेहरा देखने लायक था. जैसे ढेर सारी निराशा किसी ने उस के चेहरे पर उड़ेल दी हो. मुझे अब अपने कहे पर पछतावा हुआ. मैं ने अपना एक हाथ उस के कंधे पर रखा और उस से सांत्वना भरे शब्दों में फिर पूछा, ‘देखो बेटे, मुझे तुम पुस्तक बेचने वाले तो नहीं लगते, क्या बात है. साफसाफ बताओ कि क्या जरूरत है?’

वह लड़का तब जैसे फूट पड़ा. शायद काफी समय निराशा का उतारचढ़ाव अब उस के बरदाश्त के बाहर था.

‘सर, मैं 10+2 कर चुका हूं. मेरे पिता एक छोटे से रेस्तरां में काम करते हैं. मेरा मेडिकल में चयन हो चुका है. अब उस में प्रवेश के लिए मुझे पैसे की जरूरत है. कुछ तो मेरे पिताजी देने के लिए तैयार हैं, कुछ का इंतजाम वह अभी नहीं कर सकते,’ लड़के ने एक ही सांस में बड़ी अच्छी अंगरेजी में कहा.

‘तुम्हारा नाम क्या है?’ मैं ने मंत्रमुग्ध हो कर पूछा.

‘अमर विश्वास.’

‘तुम विश्वास हो और दिल छोटा करते हो. कितना पैसा चाहिए?’

‘5 हजार,’ अब की बार उस के स्वर में दीनता थी.

‘अगर मैं तुम्हें यह रकम दे दूं तो क्या मुझे वापस कर पाओगे? इन पुस्तकों की इतनी कीमत तो है नहीं,’ इस बार मैं ने थोड़ा हंस कर पूछा.

‘सर, आप ने ही तो कहा कि मैं विश्वास हूं. आप मुझ पर विश्वास कर सकते हैं. मैं पिछले 4 दिन से यहां आता हूं, आप पहले आदमी हैं जिस ने इतना पूछा. अगर पैसे का इंतजाम नहीं हो पाया तो मैं भी आप को किसी होटल में कपप्लेटें धोता हुआ मिलूंगा,’ उस के स्वर में अपने भविष्य के डूबने की आशंका थी.

उस के स्वर में जाने क्या बात थी जो मेरे जेहन में उस के लिए सहयोग की भावना तैरने लगी. मस्तिष्क उसे एक जालसाज से ज्यादा कुछ मानने को तैयार नहीं था, जबकि दिल में उस की बात को स्वीकार करने का स्वर उठने लगा था. आखिर में दिल जीत गया. मैं ने अपने पर्स से 5 हजार रुपए निकाले, जिन को मैं शेयर मार्किट में निवेश करने की सोच रहा था, उसे पकड़ा दिए. वैसे इतने रुपए तो मेरे लिए भी माने रखते थे, लेकिन न जाने किस मोह ने मुझ से वह पैसे निकलवा लिए.

‘देखो बेटे, मैं नहीं जानता कि तुम्हारी बातों में, तुम्हारी इच्छाशक्ति में कितना दम है, लेकिन मेरा दिल कहता है कि तुम्हारी मदद करनी चाहिए, इसीलिए कर रहा हूं. तुम से 4-5 साल छोटी मेरी बेटी भी है मिनी. सोचूंगा उस के लिए ही कोई खिलौना खरीद लिया,’ मैं ने पैसे अमर की तरफ बढ़ाते हुए कहा.

अमर हतप्रभ था. शायद उसे यकीन नहीं आ रहा था. उस की आंखों में आंसू तैर आए. उस ने मेरे पैर छुए तो आंखों से निकली दो बूंदें मेरे पैरों को चूम गईं.

‘ये पुस्तकें मैं आप की गाड़ी में रख दूं?’

‘कोई जरूरत नहीं. इन्हें तुम अपने पास रखो. यह मेरा कार्ड है, जब भी कोई जरूरत हो तो मुझे बताना.’

वह मूर्ति बन कर खड़ा रहा और मैं ने उस का कंधा थपथपाया, कार स्टार्ट कर आगे बढ़ा दी.

कार को चलाते हुए वह घटना मेरे दिमाग में घूम रही थी और मैं अपने खेले जुए के बारे में सोच रहा था, जिस में अनिश्चितता ही ज्यादा थी. कोई दूसरा सुनेगा तो मुझे एक भावुक मूर्ख से ज्यादा कुछ नहीं समझेगा. अत: मैं ने यह घटना किसी को न बताने का फैसला किया.

दिन गुजरते गए. अमर ने अपने मेडिकल में दाखिले की सूचना मुझे एक पत्र के माध्यम से दी. मुझे अपनी मूर्खता में कुछ मानवता नजर आई. एक अनजान सी शक्ति में या कहें दिल में अंदर बैठे मानव ने मुझे प्रेरित किया कि मैं हजार 2 हजार रुपए उस के पते पर फिर भेज दूं. भावनाएं जीतीं और मैं ने अपनी मूर्खता फिर दोहराई. दिन हवा होते गए. उस का संक्षिप्त सा पत्र आता जिस में 4 लाइनें होतीं. 2 मेरे लिए, एक अपनी पढ़ाई पर और एक मिनी के लिए, जिसे वह अपनी बहन बोलता था. मैं अपनी मूर्खता दोहराता और उसे भूल जाता. मैं ने कभी चेष्टा भी नहीं की कि उस के पास जा कर अपने पैसे का उपयोग देखूं, न कभी वह मेरे घर आया. कुछ साल तक यही क्रम चलता रहा. एक दिन उस का पत्र आया कि वह उच्च शिक्षा के लिए आस्ट्रेलिया जा रहा है. छात्रवृत्तियों के बारे में भी बताया था और एक लाइन मिनी के लिए लिखना वह अब भी नहीं भूला.

मुझे अपनी उस मूर्खता पर दूसरी बार फख्र हुआ, बिना उस पत्र की सचाई जाने. समय पंख लगा कर उड़ता रहा. अमर ने अपनी शादी का कार्ड भेजा. वह शायद आस्ट्रेलिया में ही बसने के विचार में था. मिनी भी अपनी पढ़ाई पूरी कर चुकी थी. एक बड़े परिवार में उस का रिश्ता तय हुआ था. अब मुझे मिनी की शादी लड़के वालों की हैसियत के हिसाब से करनी थी. एक सरकारी उपक्रम का बड़ा अफसर कागजी शेर ही होता है. शादी के प्रबंध के लिए ढेर सारे पैसे का इंतजाम…उधेड़बुन…और अब वह चेक?

मैं वापस अपनी दुनिया में लौट आया. मैं ने अमर को एक बार फिर याद किया और मिनी की शादी का एक कार्ड अमर को भी भेज दिया.

शादी की गहमागहमी चल रही थी. मैं और मेरी पत्नी व्यवस्थाओं में व्यस्त थे और मिनी अपनी सहेलियों में. एक बड़ी सी गाड़ी पोर्च में आ कर रुकी. एक संभ्रांत से शख्स के लिए ड्राइवर ने गाड़ी का गेट खोला तो उस शख्स के साथ उस की पत्नी जिस की गोद में एक बच्चा था, भी गाड़ी से बाहर निकले.

मैं अपने दरवाजे पर जा कर खड़ा हुआ तो लगा कि इस व्यक्ति को पहले भी कहीं देखा है. उस ने आ कर मेरी पत्नी और मेरे पैर छुए.

‘‘सर, मैं अमर…’’ वह बड़ी श्रद्धा से बोला.

मेरी पत्नी अचंभित सी खड़ी थी. मैं ने बड़े गर्व से उसे सीने से लगा लिया. उस का बेटा मेरी पत्नी की गोद में घर सा अनुभव कर रहा था. मिनी अब भी संशय में थी. अमर अपने साथ ढेर सारे उपहार ले कर आया था. मिनी को उस ने बड़ी आत्मीयता से गले लगाया. मिनी भाई पा कर बड़ी खुश थी.

अमर शादी में एक बड़े भाई की रस्म हर तरह से निभाने में लगा रहा. उस ने न तो कोई बड़ी जिम्मेदारी मुझ पर डाली और न ही मेरे चाहते हुए मुझे एक भी पैसा खर्च करने दिया. उस के भारत प्रवास के दिन जैसे पंख लगा कर उड़ गए.

इस बार अमर जब आस्ट्रेलिया वापस लौटा तो हवाई अड्डे पर उस को विदा करते हुए न केवल मेरी बल्कि मेरी पत्नी, मिनी सभी की आंखें नम थीं. हवाई जहाज ऊंचा और ऊंचा आकाश को छूने चल दिया और उसी के साथसाथ मेरा विश्वास भी आसमान छू रहा था.

मैं अपनी मूर्खता पर एक बार फिर गर्वित था और सोच रहा था कि इस नश्वर संसार को चलाने वाला कोई भगवान नहीं हमारा विश्वास ही है.

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