Raksha Bandhan : अभी तक नहीं लिया है भाईबहन के लिए कोई गिफ्ट, तो फौलो करें ये बजट फ्रैंडली आइडियाज

रक्षाबंधन का त्यौहार भाई-बहन का खास त्यौहार है, इस दिन को मनाने के लिए बहने पूरे साल इंतजार करती है, भाई भी अपनी कलाई पर राखी बंधवाकर ख़ुशी का अनुभव करता है. इसके बाद होती है गिफ्ट का आदान-प्रदान, जो भाई-बहन एक दूसरे को देते है. यहां कुछ गिफ्टिंग आईडियाज लाये हैं, जो बजट फ्रेंडली होने के साथ-साथ आपके गिफ्टिंग सर्च  को आसान बनाने वाली है.

भाई के लिए गिफ्ट आईडियाज

  • रिस्टवाच, एक सुंदर आप्शन है, रिस्टवाच बजट के अनुसार भाई को दिया जा सकता है, जो दिखने में सुंदर और एलीगेंट हो.
  • डिज़ाइनर कप मग पर भाई का नाम लिखवाकर राखी के साथ दिया जा सकता है.
  • फोटो फ्रेम में भाई बहन के बचपन के कई तस्वीरों के कोलाज बनाकर लगाने से एक यादगार और अलग गिफ्ट हो सकता है.
  • प्रेरणादायक बुक्स भी एक अच्छा आप्शन भाई के लिए होता है.
  • कस्टमाइज्ड वालेट जिसपर भाई का नाम लिखवाकर गिफ्ट किया जा सकता है.
  • आजकल के लड़के हेयर स्टाइल करते है, इसलिए हेयर ड्रायर भी उनके लिए अच्छा साबित होगा.
  • संगीत के प्रेमी भाई के लिए इयर बड्स काफी अच्छा गिफ्ट है, इसे ऑनलाइन ख़रीदा जा सकता है.
  • फिटनेस लवर भाई को ग्रूमिंग किट्स, जिम के सब्सक्रिप्शन, गिफ्ट वाउचर, डेकोरेटिव पीस, सुंदर टीशर्ट आदि है.
  • इसके अलावा कई तरह के परफ्यूम या बौडी स्प्रे भी एक अच्छा आप्शन गिफ्ट के लिए है.

पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए इकोफ्रेंडली राखियाँ गार्गी डिजाईनर्स ने निकाले है, ये राखियाँ प्लास्टिक मुक्त, और रीसाइकल्ड डेनिम राखियाँ है.

बहन के लिए गिफ्ट आईडियाज

  • बहन के लिए को ट्रेंडी ज्वेलरी रियल या आर्टिफिसियल, जो हर बजट में उपलब्ध है, अपने पॉकेट के अनुसार दिया जा सकता है, एलीगेंट चैन के साथ लॉकेट, ब्रेसलेट्स, इयररिंग्स आदि स्टाइलिश और ट्रेंडी होने के साथ-साथ आकर्षक भी होते है.
  • वैसे तो घडी पहनने का ट्रेंड ख़त्म हो चुका है, लेकिन स्टाइलिश, ट्रेंडी घडियां जो दिखने में ब्रेसलेट्स की तरह सुंदर होती है, गिफ्ट के रूप में दिया जा सकता है.
  • स्किनकेयर और ब्यूटी प्रोडक्ट भी महिलाओं की पसंद का होता है, इसमें उन्हें पार्लर या जिम के सबस्क्रिप्शन, गिफ्ट वाउचर एक अच्छा आप्शन है. रक्षा बंधन पर मिलाप कास्मेटिक का ट्रू ब्लैक मस्कारा गिफ्ट किया जा सकता है.
  • बुक्स पढने की शौकीन महिलाओं को बुक्स या किसी महिला मैगज़ीन के सबस्क्रिप्शन भी दिए जा सकते है.
  • प्लांट के शौकीन बहनों के लिए कलरफुल प्लांट्स भी एक अच्छा गिफ्ट आप्शन है. इसके अलावा हेड फ़ोन, विंड बेल, डेकोरेटिव पीस, परफ्यूम आदि भी एक अच्छा गिफ्ट है.
  • फैशन एक्सेसरीज महिलाओं की खास पसंदीदा है, जिसे वे अपने अनुसार प्रयोग कर सकती है. फैशन और एक्सेसरीज डिज़ाइनर केमेलिया दलाल कहती है कुछ पर्सनलाइज्ड गिफ्ट जो खास बहन की मनपसंद हो, उसे भी दे सकते है, जिसमे हैण्ड बैग्स या बटुआ, डिज़ाइनर शूज आदि अच्छा आप्शन है, जो हैण्डमेड होने के साथ-साथ कलरफुल बीड्स, जिप्सी एम्ब्रायडरी, बोहो स्टाइल के होते है, जो यूनिक होते है और किसी भी पार्टी या अवसर पर एक अलग लुक देती है.

Stree 2 Review : टिकट खरीदने से पहले जान लीजिए ‘स्त्री 2’ का रिव्यू, यह फिल्म फ्लौप है या हिट?

अवधिः 2 घंटे 30 मिनट
रेटिंगः एक स्टार
Stree 2 Review : 2018 में हौरर कौमेडी फिल्म ‘स्त्री’ प्रदर्शित हुई थी, जिसे अच्छी सफलता मिली थी.पर तब इस के निर्माण से दिनेश वीजन व निर्देशक अमर कौशिक के साथ ही राज एंड डीके और लेखक के तौर पर सुमित अरोड़ा जुड़े हुए थे.अभिनेता राज कुमार राव की इस फिल्म के बाद प्रदर्शित कोई भी फिल्म सफलता नही बटोर पाई. लेकिन निर्माता दिनेश वीजन और निर्देशक अमर कौशिक अब 6 वर्ष बाद ‘स्त्री’ का ही सिक्वअल ‘स्त्री 2’ ले कर आए हैं, जिस के लेखन की जिम्मेदारी नितिन भट्ट ने संभाली है. ‘स्त्री 2’ में तमन्ना भाटिया का आइटम डांस नंबर ‘आज की रात..’ (इस आइटम डांस नंबर में तमन्ना भाटिया ने जिस्म की नुमाइश  की सारी हदें पार कर दी हैं. ) फिल्म के रिलीज से पहले ही इस कदर लोकप्रिय हो गया था कि निर्माताओं ने इसी डांस नंबर के आधार पर ऐसा गिमिक रचा कि आज इस फिल्म से जुड़े लोगों के चेहरों पर मुस्कान नजर आ रही है. निर्माताओं ने इस फिल्म की टिकट की दरें दोगुनी से भी अधिक कर दी है. मुंबई के मल्टीप्लैक्स मेें 600 रुपए से 2 हजार रुपए तक की टिकट दर हैं. फिल्म 15 अगस्त को सिनेमाघरों पहुंची, मगर इस की एडवांस बुकिंग एक सप्ताह पहले ही शुरू कर दी गई. इतना ही नहीं निर्माताओं ने 14 अगस्त की रात साढ़े नौ बजे देश के लगभग हर शहर में इस फिल्म के ‘पेड प्रिव्यू शो ’ भी रख दिए. निर्माताओं का दावा है कि 14 अगस्त को ‘पेड प्रिव्यू’ से ‘स्त्री 2’ ने 8 करोड़ रुपए कमाए, जबकि 15 अगस्त के दिन इस फिल्म ने बौक्स औफिस पर 45 करोड़ रुपए कमा लिए. यानी कि फिल्म 53 करोड़ रुपए कमा चुकी है. इस में से निर्माता के हाथ में लगभग 25 करोड़ रुपए आने चाहिए. मजेदार बात यह है कि 3 घंटे बाद फिल्म के पीआरओ ने पत्रकारों के पास संदेश भेजा कि फिल्म ‘स्त्री 2’ ने पहले ही दिन 76 करोड़ 50 लाख रुपए इकट्ठे कर लिए हैं. यह आंकड़े कितने सही व कितने गलत हैं, इस पर चर्चा करना बेकार है. जहां कौरपोरेट जुड़ा हो, वहां कई निराले खेल होेते ही रहते हैं. 2024 में जब सात माह बीत जाने के बाद भी किसी फिल्म को सफलता न मिली हो, तब अगस्त माह के तीसरे सप्ताह में धमाल मचाने के लिए कौरपोरेट का कमर कसना अनिवार्य सा हो जाता है. अतीत में भी देख चुके हैं कि किस तरह कौरपोेरेट बुकिंग के माध्यम से सब से अधिक कमाई वाली फिल्म का नाम घोषित किया जा चुका है. वैसे भी ‘स्त्री 2’ के निर्माण के साथ मुकेश अंबानी की कंपनी ‘जियो स्टूडियो’ भी जुड़ा हुआ है.
बहरहाल,अगर ‘स्त्री 2’ ने वास्तव में निर्माताओं या पीआरओ के दावे के अनुरूप कमाई की है तो यह बौलीवुड इंडस्ट्री के लिए सुखद एहसास है. वह भी उस वक्त जब चार दिन पहले ही खबर आई हो कि बौलीवुड के मशहूर निर्माता व निर्देशक करण जोहर की फिल्म प्रोडक्शन कंपनी ‘धर्मा प्रोडक्शन’बिक गया. ‘स्त्री 2’की सफलता से सब से ज्यादा खुश  अभिनेता राज कुमार राव हुए है, जिन की 2018 से एक भी फिल्म सफल नहीं हो रही थी. और तो और अब राज कुमार राव के नजदीकी सूत्र दावा कर रहे हैं कि फिल्म ‘स्त्री 2’ के पहले दिन का कलेक्शन देखते ही राज कुमार राव हवा में उड़ने लगे हैं. उन्होंने अपनी पारिश्रमिक राशि सीधे दोगुनी करते हुए 30 करोड़ रुपए प्रति फिल्म कर दी है, यह तब है जबकि बौलीवुड के हर तब के से मांग उठ रही है कि कलाकारों को अपनी फीस घटानी चाहिए. फिल्म की लागत में कटौती की जानी चाहिए.
stree 2
फिल्म ‘स्त्री 2’ के निर्माता व पीआरओ ‘समोसा क्रिटिक’ की मदद से लगातार प्रचारित कर रहे हैं कि ‘स्त्री 2’ का वीकेंड बौक्स औफिस कलेक्शन 300 करोड़ रुपए से अधिक होगा. निर्माता अपनी तरफ से सही या गलत आंकड़े दने के लिए स्वतंत्र है,क्योंकि मीडिया के पास इतनी ताकत नहीं है कि वह निर्माता से पूछ सके कि जीएसटी कितनी भरी? हो सकता है कि यह सच भी हो. मगर जब हम ने फिल्म ‘स्त्री 2’ देखी तो हमें यह फिल्म विषयवस्तु और कला दोनों ही स्तर पर घटिया फिल्म लगी. यहां तक इस का वीएफएक्स भी काफी कमजोर है. फिल्मकार ने इसे पितृसत्तात्मक सोच का महिमामंडन करने के एजेंडे के साथ बनाया है, जिस में  धर्म व अंधविश्वास का तड़का है तो वहीं द्विअर्थी संवाद और महाभारत व दुर्गा सप्तसती के एक अध्याय को भी पिरो दिया है. यह फिल्मकार वर्तमान आधुनिक पीढ़ी को कितना मूर्ख समझते हैं, यह तो वही जाने.
इस फिल्म की एडवांस बुकिंग में कुछ योगदान तमन्ना भाटिया के आइटम डांस नंबर ‘आज की रात..’ का भी है,जो काफी लोकप्रिय हो गया था. लेकिन इस गाने के आधार पर जिन दर्शकों ने टिकट खरीदे हैं, उन के साथ तो सीधे धोखा किया गया. जी हां, फिल्म के अंदर इस गाने को पूरा नहीं रखा गया है, सिर्फ गाने की झलक है. इतना ही नहीं गाने के बीच में श्रृद्धा कपूर को कहीं ‘सरकटा’ की तलाश करते हुए दिखा कर गाने की उस झलक का भी मजा खराब कर दिया गया.
कहानीः
फिल्म ‘स्त्री 2’ की कहानी वहीं से शुरू होती है, जहां ‘स्त्री’ की कहानी खत्म हुई थी. पहले भाग में  एक अनाम रहस्यमयी युवती ने असीमित शक्तियां पाने के लिए ‘स्त्री’ की चोटी काट कर अपनी चोटी में मिला ली थी, इसी रहस्यमयी अनाम लड़की को विक्की चाहने लगा था.वह अब भी उसे चाहता है. उस के सपने भी देखता है और इस चक्कर में इतना पिट चुका है कि असल में उस के सामने आने पर भी उसे यकीन नहीं होता. पर पहले भाग में स्त्री बस में बैठ कर चली गई थी. उस के जाने के बाद से चंदेरी की दीवारों पर लिखा है, ‘ओ स्त्री रक्षा करना’.
पहले भाग में स्त्री अपना बदला लेने के लिए पुरुषों का अपहरण किया था पर सच जानने के बाद उस ने ‘चंदेरी’ के निवासियों की रक्षा करने का वादा किया था. लेकिन इस बार ‘सरकटा’ नामक दानव उन युवा महिलाओं का अपहरण कर रहा है जो कि स्वतंत्र व आधुनिक जीवन जीने में यकीन करती हैं. फिल्म की शुरुआत होती है कि चंदेरी गांव में सब कुछ ठीक ही चल रहा है. विक्की (राजकुमार राव) को आज भी उस अनाम रहस्यमयी लड़की (श्रद्धा कपूर) का इंतजार है. इसीलिए वह किसी अन्य लड़की से विवाह नहीं करना चाहता. अचानक एक दिन पोस्टमैन रूद्र को एक चिट्ठी दे जाता है, जिस में किसी ने चंदेरी पुराण के कुछ फटे हुए पन्ने भेजा है. तभी अचानक बाजार में विक्की के सामने ही बिट्टू (अपारशक्ति खुराना) की गर्लफ्रेंड चिठ्ठी को ‘सरकटा’ तबाही मचा कर अपने साथ ले कर चला जाता है. तभी वहां रूद्र (पंकज त्रिपाठी) पहुंच कर उस चिट्ठी के बारे में बताते हैं. इस चिट्ठी में चंदेरी पुराण के फटे पन्नों के साथ विक्की एक दूसरा कागज भी निकालता है. जिस से निष्कर्ष निकलता है कि दिल्ली में रहने वाले जना (अभिषेक बनर्जी) की मदद से सरकटा का पता लगाया जा सकता है. यह लोग जना के माध्यम से कोशिश करते हैं पर जना असफल हो जाता है. इसी बीच रहस्यमयी अनाम लड़की (श्रद्धा कपूर) भी चंदेरी वापस आ जाती है. मगर जब सरकटा रूद्र की नर्तक प्रेमिका शमा (तमन्ना भाटिया) का भी अपहरण कर लेता है और गांव के बिट्टू सहित कई मर्दों को अपने वश में कर के महिलाओं की आजादी पर बंदिश लगवा देता है. तब रूद्र, श्रद्धा, विक्की और जना सरकटा के संहार के लिए कमर कस लेते हैं. अब यह चौकड़ी चंदेरी को दानव से सुरक्षा देने में सफल होगी या नहीं, इस के लिए फिल्म देखनी  पड़ेगी. वैसे फिल्म खत्म होने के बाद भी खत्म नहीं होती है. क्योंकि जब आप सोचते हैं कि फिल्म खत्म हो गई, तब फिल्म में दो गाने आते हैं. एक गाने में परदे पर श्रद्धा कपूर,राज कुमार राव के साथ गाती दिखती हैं, तो दूसरे में वह वरुण धवन के साथ नजर आती हैं. इस का रहस्य भी फिल्म देख कर ही समझा जा सकता है.
समीक्षाः
असम में जन्में अमर कौशिक ने 2008 में राज कुमार गुप्ता के साथ बतौर सहायक निर्देशक ‘नो वन किल्ड जेसिका’ की थी. फिर स्वतंत्र निर्देशक के रूप में 2018 में उन्होंने फिल्म ‘स्त्री’ निर्देशित की थी, जिस के लेखन व निर्माण से राज एंड डीके और सुमित अरोड़ा जुड़े हुए थे और उस वक्त ‘स्त्री’ की सफलता का श्रेय राज एंड डीके के सिर ही गया था. फिर अमर कौशिक ने 2019 में फिल्म ‘बाला’ और 2022 में फिल्म ‘भेड़िया’ निर्देशित की थी. इन दोनों फिल्मों ने बौक्स औफिस पर पानी तक नहीं मांगा था. अब असफलता का दंश झेल रहे अमर कौशिक ने 2018 की ‘स्त्री’ का सिक्वअल ‘स्त्री 2’ निदेशित की है, जिस में राज एंड डीके व सुमित अरोड़ा का कोई जुड़ाव नहीं है. लेखक के तौर पर इस बार नरेन भट्ट जुड़े हैं, जिन्होंने एक एजेंडे को ही पिरोने का पूरा प्रयास किया है. नरेन भट्ट का ज्ञान कितना कम है, इस का एहसास इस बात से लगाया जा सकता है कि फिल्म में संवाद है कि अगर ‘सरकटा’ पर जल्द काबू  पाया गया तो यह ‘चंदेरी’ को दो सौ वर्ष पीछे ले जाएगा. नरेन भट्ट को पता ही नहीं है कि दो सौ वर्ष पहले भी भारतीय नारी सशक्त थीं. अहिल्याबाई होल्कर से ले कर झांसी की रानी लक्ष्मीबाई सहित तमाम वीरांगनाएं इसी देश की हैं. लेकिन फिल्म ‘स्त्री 2’ के सर्जकों ने फिल्म में पितृसत्तात्मक सोच के तहत ही ‘सरकटा’ को रचा है. सरकटा उन युवा महिलाओं का अपहरण कर अपने अड्डे पर बंदी बना कर रख रहा है जो कि मौडर्न हैं, पढ़ीलिखी हैं, आधुनिक पोशाक पहनती हैं और आधुनिक यानी प्रगतिशील सोच रखती हैं. ‘सरकटा’ के आतंक के चलते पुरूषों ने घर की महिलाओं को घर के अंदर कैद कर दिया है. औरतों ने अपने खुले गले के ब्लाउज में कपड़ा जुड़वा कर को बंद गले का करवा दिया. लड़कियों का स्कूल जाना बंद कर दिया गया है. अब मंदिर में पूजा व आरती भी सिर्फ पुरूष ही करते हैं. यानी महिलाओं को पूूरी तरह से चौकाचूल्हे तक सीमित कर दिया गया. इस तरह जम कर पितृसत्तात्मक सोच का महिमामंडन किया गया है. फिल्म में सैकड़ों पुरूष मिल कर आरती करते हैं, इस तरह के दृश्य कई बार दिखा कर धर्म का महिमामंडन किया गया है. दुर्गा सप्तषती के एक अध्याय में रक्तबीज नामक राक्षस को दुर्गा देवी मारने आती है तो उस पर जितनी बार वार किया जाता है,जितना खून उस के शरीर से गिरता है, उतने ही ही असुर पैदा होते रहते हैं. फिल्मकार ने फिल्म ‘स्त्री 2’ में दिखाया है कि विक्की जितनी बार ‘सरकटा’ के हाथ में मौजूद ‘सिर’ के दो टुकड़े करता है, उतनी ही बार उस से कई गुना ज्यादा ‘कटे हुए सिर’ पैदा हो जाते हैं. और तो और जब ‘स्त्री’ चंदेरी को बचाने के लिए ‘सरकटा’ का विनाश करने के लिए आती है,जो कि हकीकत में भूत है तो वह भी लाल रंग की साड़ी में ‘देवी’ की ही तरह आती है. इस बार फिल्मकार ने ‘महाभारत’ को भी नहीं छोड़ा. जना के पास अचानक ऐसी ताकत आ जाती है कि वह ‘महाभारत’ के संजय की तरह ‘सरकटा’ की गुफा के बाहर बिट्टू व रूद्र के पास बैठे हुए गुफा के अंदर जो कुछ हो रहा होता है, उस का आंखों देखा हाल बताता रहता है. फिल्मकार का मन इतने से भी नहीं भरा तो रहयस्मयी लड़की से ‘काला जादू’ की बात भी करवा डाली. इस तरह के मनगढ़ंत व अविश्वसनीय दृश्यों का महिमामंडन कर फिल्मकार समाज व देश के साथ ही हमारी युवा पीढ़ी को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं? यह सब लेखक व निर्देशक का दिमागी दिवालियापन के अलावा कुछ नहीं है.
लेखन व निर्देशन में इतनी गलतियां है कि क्या कहा जाए. फिल्म की सब से बडी कमजोर कड़ी इस की पटकथा हैं. इंटरवल तक लगता है कि फिल्म की कहानी को लेखक व निर्देशक जबरन खींचने का प्रयास कर रहे हैं,जिस के चलते यह फिल्म सिरदर्द बन जाती है. निर्देशक ने पटकथा पर ध्यान देने की बजाय साउंड इंजीनियर की मदद से अति लाउड साउंड परोस कर लोगों को जबरन हंसने पर मजबूर करते हुए नजर आए हैं. ‘स्त्री’ के मुकाबले ‘स्त्री 2’ में ठहराव और नेचुरल हंसी का भी अभाव है. लेखक ने ‘सरकटा’ की बैकग्राउंड कहानी को ठीक से नहीं गढ़ा.फिल्म ‘स्त्री 2’ देखते समय ‘मुंज्या’ के घने जंगल और ‘लौर्ड औफ द रिंग्स’ की गुफाओं की याद आती है. इसी तरह अचानक भेड़िया कैसे ‘सरकटा’ की गुफा में पहुंच जाता है, जहां जाने का रास्ता किसी के पास नहीं है. वीएफएक्स काफी कमजोर है. ‘सरकटा’ अपहृत महिलाओं के सिर मुंडवा कर उन्हें सफेद साड़ी पहना कर रखता है. पहली बात तो यह सब उसके पास आया कहां से? दूसरी बात  गुफा में जिस तरह से अपहृत औरतों को दिखाया गया है, यह आपत्तिजनक है. मूल फिल्म ‘स्त्री’ में जो आकर्षक मासूमियत थी, साथ ही चीजों को चित्रित करने के तरीके में एक मूल लकीर भी थी, वह सब ‘स्त्री 2’से गायब है.फिल्म में पागलखाना के अंदर रहने वालों का चित्रण अत्यंत आपत्तिजनक है. फिल्म के चारों पुरूष किरदारों को अस्थिर दिमाग वाले व मूर्ख दिखाने के पीछे फिल्मकार की क्या सोच है, यह तो वही जाने.
अभिनयः
इस फिल्म में किसी भी कलाकार का अभिनय स्तरीय नहीं है. पंकज कपूर और राज कुमार राव अपने चिरपरिचित लहजे में ही नजर आए हैं. दोनों अपनेआप को दोहराते नजर आते हैं. पंकज त्रिपाठी व राज कुमार राव दोनों बेहतरीन कलाकार हैं पर इस फिल्म में जो कुछ किया है, उसे देख कर आश्चर्य ही हुआ. अपारशक्ति खुराना और अभिषेक बनर्जी को मान लेना चाहिए कि उन्हें अभिनय नहीं आता है. श्रृद्धा कपूर की प्रतिभा को जाया किया गया है.
निर्माताःदिनेश विजन और ज्योति देशपांडे
लेखकः निरेन भट्ट (राज और डीके के ‘स्त्री’ में रचे किरदारों पर आधारित)
निर्देशक: अमर कौशिक
कलाकारः श्रद्धा कपूर , राज कुमार राव,पंकज त्रिपाठी, अपारशक्ति खुराना, अभिषेक बनर्जी,वरुण धवन और अक्षय कुमार

तोसे लागी लगन: क्या हो रहा था ससुराल में निहारिका के साथ

मनोविज्ञान की छात्रा निहारिका सांवलीसलोनी सूरत की नवयुवती थी. तरूण से विवाह करना उस की अपनी मरजी थी, जिस में उस के मातापिता की रजामंदी भी थी. तरूण हैदराबाद का रहने वाला था और निहारिका लखनऊ की. दोनों दिल के रिश्ते में कब बंधे यह तो वे ही जानें.

सात फेरों के बंधन में बंध कर दोनों एअरपोर्ट पहुंचे. हवाईजहाज ने जब उड़ान भरी तो निहारिका ने आंखे बंद कर लीं और कस कर तरूण को थाम लिया। स्थिति सामान्य हुई तो लज्जावश नजरें झुक गईं पर तरुण की मंद मुसकराहट ने रिश्ते में मिठास घोल दी थी.

“हम पग फेरे के लिए इसी हवाई जहाज से वापस आएंगे,” निहारिका ने आत्मियता से कहा.

“नहीं, अब आप कहीं नहीं जाएंगी, हमेशाहमेशा मेरे पास रहेंगी,” तरूण ने निहारिका के कंधे पर सिर रखते हुए कहा.

सैकड़ों की भीड़ में नवविवाहिता जोड़ा एकदूसरे की आंखों में खोने लगा था.

तरूण की मां ने पड़ोसियों की मदद से रस्मों को निभाते हुए निहारिका का गृहप्रवेश करवाया. घर में बस 3 ही
सदस्य थे. शुरू के 2-4 दिन वह अपने कमरे में ही रहती थी फिर धीरेधीरे उस ने पूरा घर देखा। पूरा घर पुरानी कीमती चीजों से भरा पङा था। एक कोने में कोई पुरानी मूर्ति रखी हुई थी. निहारिका ने उसे हाथ में उठाया ही था कि पीछे से आवाज आई,”क्या देख रही हो, चुरा मत लेना।”

आवाज में कड़वाहट घुली हुई थी. निहारिका ने पीछे मुड़ कर देखा, तरूण की मां खड़ी थीं.

“नहीं मम्मीजी, बस यों ही देख रही थी,” निहारिका ने सहम कर जबाव दिया.

ससुराल में पहली बार इस तरह का व्यवहार… उस का मन भारी हो गया. मां की याद आने लगी. रात को बातों ही बातों में तरूण के सामने दिन वाले घटना का जिक्र हो आया.

“हां वे थोड़ी कड़क मिजाज हैं… पर प्लीज, तुम उन की किसी बात को दिल पर मत लेना। वे दिल की बेहद अच्छी हैं,” तरुण अपनी तरफ से निहारिका को बहलाने लगा.

एक दिन दोपहर को जब निहारिका लेटी हुई कोई पत्रिका पढ़ रही थी तभी तरूण की मां मनोहरा देवी उस के कमरे में आईं. उन्हें देख वह उठ कर बैठ गई। उस के बाद सासबहु में इधरउधर की बातें हुईं, बातों ही बातों में निहारिका के गहनों का जिक्र हो आया तो निहारिका खुशी से उन्हें गहने दिखाने लगीं. बातों का सिलसिला चलता रहा। करीब आधे
घंटे बाद जब निहारिका गहनों को डब्बे में डालने लगीं तो सोने के कंगन गायब थे. वह परेशान हो कर उसे ढूंढ़ने लगी.

आश्चर्य भी हो रहा था उसे। सासुमां से कुछ पूछे इतनी हिम्मत कहां थी उस में. रात को तरूण से बताया तो उस ने भी ज्यादा तवज्जो नहीं दी.

“तुम औरतें केवल पहनना जानती हो, यहीं कहीं रख कर भूल गईं होगी। मिल जाएंगे। अभी सो जाओ,” दिनभर का थका हुआ तरूण करवट बदल कर सो गया.

‘नईनवेली दुलहन का ज्यादा बोलना भी ठीक नहीं,’ यह सोच कर निहारिका चुपचाप रह गई.

लेकिन वह मनोविज्ञान की छात्रा थी। अनकहे भावों को पढ़ना जानती थी, पर कहे किस से? तरूण के बारे में सोचते ही कंगन बेकार लगने लगे. लेकिन अगले ही दिन घर में सोने की एक और मूर्ति दिखाई दिए.

“मम्मीजी, बहुत सुंदर है यह मूर्ति। कहां से खरीद कर लाईं आप?” निहारिका ने तारीफ करते हुए पूछा.

“कहीं से भी, तुम से मतलब…” मनोहरा देवी ने तुनक कर जवाब दिया.

निहारिका स्तब्ध रह गई.

15 दिन के अंदरअंदर उस के नाक की नथ कहीं गुम हो गई थी. पानी सिर के ऊपर जा रहा था. तरूण कुछ सुनने को तैयार न था। स्थिति दिनबदिन बिगड़ती जा रही थी.

एक दिन दोपहर के भोजन के बाद सभी अपनेअपने कमरे में आराम करने गए। उस वक्त मनोहरा देवी पूरे गहने पहन कर स्वयं को आईने में निहार रही थीं। तरहतरह के भावभंगिमा कर रही थीं. संयोगवश उसी वक्त निहारिका किसी काम से उन के पास आना चाहती थी. अपने कमरे से निकली ही थी कि खिड़की से ही उसे वह मंजर दिख गया.

उस वक्त उन के शरीर पर वे गहने भी थे जो उस के डब्बे से गायब हुए थे. शक को यकीन में बदलते देख निहारिका सिहर उठी। उस ने चुपके से 1-2 तसवीरें ले लीं।

रात को डिनर खत्म करने के बाद…

“तरूण, मुझे कुछ गहने चाहिए थे…” निहारिका अभी वाक्य पूरा भी नहीं कर पाई थी कि तरूण बोला,”मेरी खूबसूरत बीबी को गहनों की क्या जरूरत है? सच कह रहा हूं नीरू, तुम बहुत बहुत खूबसूरत हो।”

पर तरुण की बातें अभी उसे बेमानी लग रही थीं क्योंकि वह जहां पहुंचना चाहती वह रास्ता ही तरुण ने बंद कर
दिया था. हार कर निहारिका ने वे फोटोज दिखाए जिसे देखते ही तरुण उछल पड़ा। उस की आंखें आश्चर्य से फैल गईं।

“मम्मी के पास इतने गहने हैं, मुझे तो पता ही नहीं था,” तरूण ने आश्चर्य से फैली आंखों को सिकोड़ते हुए कहा.

“नहीं यह अच्छी बात नहीं है। तरूण, तुम ने शायद देखा नहीं। इन में वे गहने भी हैं जो मेरे डब्बे से गायब हुए थे,” निहारिका ने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा.

मामला संजीदा था लेकिन उसे दबाना और भी मुश्किल स्थिति को जन्म दे
सकता था.

“मां के गहने यानी तुम्हारे गहने…” तरूण को शर्मिंदगी महसूस हो रही थी तो उस ने बात को टालते हुए कहा.

“तरूण, तुम क्यों समझना नहीं चाहते या फिर…” निहारिका उस के चेहरे पर आ रहे भाव को पढ़ने की कोशिश करने लगी, क्योंकि जो बात सामने आ रही थी वह अजीब सी थी.

“या फिर क्या…” तरूण ने तैश से कहा.

“यही कि तुम जानबूझ कर कुछ छिपाना चाहते हो,” निहारिका ने गंभीर आवाज में कहा.

“मैं क्या छिपा रहा हूं?”

निहारिका चुप रही।

“बोलो नीरू, मैं क्या छिपा रहा हूं?”

“यही कि मम्मी जी क्लाप्टोमैनिया की शिकार हैं…”

“क्या… यह क्या होता है?” तरुण ने कभी नहीं सुना था यह नाम.

“यह एक तरह की बीमारी है। इस बीमारी में व्यक्ति चीजें चुराता है और भूल जाता है,” निहारिका एक ही सांस में सारी बातें कह गई.

“देखो नीरू, मैं मानता हूं मेरी मां बीमार हैं पर चोरी… तरूण बौखला गया.

“वे चोर नहीं हैं। प्लीज मुझे गलत मत समझो,” निहारिका ने अपनी सफाई दी.

“तुम्हें पग फेरे के लिए घर जाना था न, बताओ कब जाना है?” तरूण बहस को और बढ़ाना नहीं चाहता था.

निहारिका स्तब्ध रह गई.

दोनों ने करवट फेर ली लेकिन नींद किसी के आंखों में न थी. तरूण ने वापस जाने के लिए कह दिया था। सपनों में जो ‘होम स्वीट होम’ का सपना था वह टूट कर चकनाचूर हो गया था.

निहारिका ने हार नहीं मानी। उस ने अपने प्रोफैसर साहब से बात की,”सर, मुझे आप की मदद चाहिए,” निहारिका का दृढ़ स्वर बता रहा था कि वह अपने काम के प्रति कितनी संकल्पित है.

“अवश्य मिलेगी, काम तो बताओ,” प्रोफेसर की आश्वस्त करने वाली आवाज ने निहारिका को निस्संकोच हो अपनी बात रखने का हौसला दिया। इस से पहले वह अपराधबोध से दबी जा रही थी.

“सर, मेरी सासूमां यहांवहां से चुरा कर वस्तुएं ले आती हैं और पूछे जाने पर इनकार कर देती हैं,” निहारिका के आंसुओं ने अनकही बात भी कह दी थी.

“घबराओ मत, धीरज से काम लो निहारिका। सब ठीक हो जाएगा। कभीकभी जीवन का एकाकीपन इस की वजह बन जाती है। आगे तुम खुद समझदार हो,” प्रोफैसर साहब ने रिश्ते की नाजुकता को समझते हुए कहा.

“क्लाप्टोमैनिया लाइलाज बीमारी नहीं, अपनापन और लगाव से इसे दूर किया जा सकता है,” प्रोफैसर साहब के आखिरी वाक्य ने निहारिका के मनोबल को बढ़ा दिया था. वह उन के द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करने लगी। इलाज का पहला कदम था गाढ़ी दोस्ती…

“मम्मीजी, आज से मैं आप के कमरे में आप के साथ रहूंगी, आप के बेटे से मेरी लड़ाई हो गई है,” निहारिका ने अपना तकिया मनोहरा देवी के बिस्तर पर रखते हुए कहा.

“रहने दो, बीच रात में उठ कर न चली गई तो कहना,” मनोहरा देवी ने अपना अनुभव बांटते हुए कहा.

“कुछ भी हो जाए नहीं जाउंगी,” निहारिका ने आत्मविश्वास से कहा.

रात में उन दोनों ने एकदूसरे के पसंद की फिल्में देखीं। धीरेधीरे दोनों एकदूसरे के करीब आने लगीं. मनोहरा देवी जब भी बाहर जाने के लिए तैयार होतीं तो निहारिका साथ चलने के लिए तैयार हो जाती या उन्हें अकेले जाने से रोक लेती। कभी मानमुनहार से तो कभी जिद्द से.

ऐसा नहीं था कि तरूण कुछ भी जानता नहीं था, कितनी बार उसे भी शर्मिंदगी उठानी पड़ी थी पर मां तो आखिर मां है न… सबकुछ सह जाता था. मां को समझाने की कोशिश भी की पर बिजनैस की व्यस्तता की वजह से ध्यान बंट गया था। निहारिका की कोशिश रंग ला रही थी, यह बात उस से छिपी नहीं थी. अपनी नादानी पर शर्मिंदा भी था। अपने बीच
के मनमुटाव को कम करने के लिए निहारिका के पसंद की चौकलैट फ्लैवर वाली आइस्क्रीम लाया था जिसे अपने हाथों से खिला कर कान पकड़ कर माफी मांगी थी। उठकबैठक भी करने को तैयार था पर नीरू ने गले लगा कर रोक दिया
था.

“नीरू, तुम ने जिस तरह से मम्मी को संभाला है न उस के लिए तहेदिल से शुक्रगुजार हूं, तरूण ने नम आंखों से कहा.

“अभी नहीं, अभी हमें उन सभी चीजों की लिस्ट बनानी होगी जो मम्मीजी कहीं और से ले आई हैं, उन्हें लौटाना भी होगा,” निहारिका ने इलाज का दूसरा कदम उठाया.

“लौटाना क्यों है नीरू, इस से तो बात…” तरूण ने अपने घर की इज्जत की परवाह करते हुए कहा.

“लोगों को समझने दो। क्लापटोमेनिया एक बीमारी है, समाज को उन्हें उसी रूप में स्वीकारने दो, वे भी समाज का
हिस्सा हैं, कमरे में बंद रखना उपाय नहीं है,” निहारिका की 1-1 बात उस के आत्मविश्वास का परिचय दे रही
थी. निहारिका के रूप का दीवाना तो वह पहले से ही था पर आज अपनी मां के प्रति फिक्रमंद देख मन ही मन अपनी पसंद पर गर्व करने लगा था.
रातरात भर जाग कर दोनों ने उन सभी सामानों का लिस्ट बनाई जो घर के नहीं थे, सब को गिफ्ट की तरह रैपिंग किया। अंदर एक परची पर ‘सौरी’ लिख कर वस्तुओं को लोगों के घर तक पहुंचाया. पतिपत्नी दोनों ने
मिल कर मुश्किल काम को आसान कर लिया था. धीरेधीरे स्थिति सामान्य होने लगी थी.

मंगलवार की सुबह मम्मीजी को बाजार जाना था।

“मम्मी, तुम जल्दी से तैयार हो जाओ जाते वक्त छोड़ दूंगा,” तरूण ने नास्ता करते हुए कहा,

“नहींनहीं तुम जाओ, मैं नीरू के साथ चली जाउंगी।”

निहारिका ने तरुण की ओर देख कर अपनी पीठ अपने हाथों से थपथपाई।प्रतिउत्तर में तरूण ने हाथ जोड़ने का अभिनय किया. निहारिका मुसकरा दी।

तभी निहारिका की मम्मी का फोन आया,”बेटाजी, नीरू को मायके आए हुए बहुत दिन हो गए, पग फेरे के लिए भी नहीं आए आप दोनों, हो सके तो इस इस दशहरे में कुछ दिनों के लिए उसे छोड़ जाते,” निहारिका की मां अपनी बात एक ही सांस में कह गई थीं.

“माफी चाहूंगा मम्मीजी, लेकिन मेरी मम्मी अब नीरू के बगैर एक पल भी नहीं रहना चाहतीं, ऐसे में मैं उसे वहां
छोड़ना नहीं चाहता…” तरूण ने गर्व से कहा.

“कोई बात नहीं बेटाजी, बेटी अपने घर में खुश रहे, राज करे इस से ज्यादा और क्या चाहिए,” मां ने रुंधे गले से कहा और फोन रख दिया. तरूण के स्वर ने उसे उस घर में मुख्य भूमिका में ला दिया था. निहारिका का होम स्वीट होम का सपना साकार हो रहा था.

बदला : क्या हुआ था सुगंधा के साथ

लेखक- अवधेश कुमार त्रिपाठी

‘‘सुगंधा, तुम बहुत खूबसूरत हो. तुम्हारी खूबसूरती पर मैं एक क्या कई जन्म कुरबान कर सकता हूं.’’

‘‘चलो हटो, तुम बड़े वो हो. कुछ ही मुलाकातों में मसका लगाना शुरू कर दिया. मुझे तुम्हारी कुरबानी नहीं, बल्कि प्यार चाहिए,’’ फिर अदा से शरमाते हुए सुगंधा ने रमेश के सीने पर अपना सिर टिका दिया.

रमेश ने सुगंधा के बालों में अपनी उंगलियां उलझा दीं और उस के गालों को सहलाते हुए बोला, ‘‘सुगंधा, मैं जल्दी ही तुम से शादी करूंगा. फिर अपना घर होगा, अपने बच्चे होंगे…’’

‘‘रमेश, तुम शादी के वादे से मुकर तो नहीं जाओगे?’’

‘‘सुगंधा, तुम कैसी बात करती हो? क्या तुम को मुझ पर भरोसा नहीं?’’

सुगंधा रमेश की बांहों व बातों में इस कदर डूब गई कि रमेश का हाथ कब उस के नाजुक अंगों तक पहुंच गया, उस को पता ही नहीं चला. फिर यह सोच कर कि अब रमेश से उस की शादी होगी ही, इसलिए उस ने रमेश की हरकतों का विरोध नहीं किया.

दोनों की मुलाकातें बढ़ती गईं और हर मुलाकात के साथ जीनेमरने की कसमें खाई जाती रहीं. रमेश ने शादी का वादा कर के सुगंधा के साथ जिस्मानी संबंध बना लिया और फिर अकसर दोनों होटलों में मिलते और जिस्म की भूख मिटाते. इस तरह दोनों जब चाहते जवानी का मजा लूटते.

रमेश इलाहाबाद के पास के एक गांव का रहने वाला था. उस के परिवार में मातापिता और एक छोटा भाई दिनेश था. छोटे से परिवार में सभी अपनेअपने कामों में लगे हुए थे. पिताजी पोस्टमास्टर के पद से रिटायर हो कर अब घर पर ही रह कर खेतीबारी का काम देखने लगे थे. छोटा भाई दिनेश दिल्ली यूनिवर्सिटी से एमए कर रहा था.

लखनऊ में एक विदेशी फर्म में कैशियर के पद पर काम करने की वजह से रमेश लखनऊ में एक फ्लैट ले कर रह रहा था. चूंकि घरपरिवार ठीक था और नौकरी भी अच्छी थी, इसलिए उस की शादी भी हो गई थी. बीवी को वह साथ नहीं रखता था, क्योंकि मां से घर का काम नहीं होता था.

रमेश जिस फर्म में काम करता था, उसी फर्म में सुगंधा क्लर्क के पद पर काम करने आई थी.

सुगंधा को देखते ही रमेश उस पर मोहित हो गया और डोरे डालना शुरू कर दिया.

रमेश की शराफत, पद और हैसियत देख कर सुगंधा भी उसे पसंद करने लगी.

रमेश ने सुगंधा को बताया कि वह कुंआरा है और उस से शादी करना चाहता है. अब चूंकि रमेश ने उस से शादी का वादा किया, तो वह पूरी तरह उस की बातों में ही नहीं, आगोश में भी आ गई.

समय सरकता गया. रमेश सुगंधा की देह में इस कदर डूब गया कि घर भी कम जाने लगा. वह घर वालों को पैसा भेज देता और चिट्ठी में छुट्टी न मिलने का बहाना लिख देता था.

एक दिन पार्क में जब वे दोनों मिले, तो सुगंधा ने रमेश से कहा, ‘‘रमेश, अब हमें शादी कर लेनी चाहिए. अभी तक आप ने मुझे अपने घर वालों से भी नहीं मिलाया है. मुझे जल्दी ही अपने मातापिता से मिलवाइए और उन्हें शादी के बारे में बता दीजिए.’’

रमेश सुगंधा को आगोश में लेते हुए बोला, ‘‘अरी मेरी सुग्गो, अभी शादी की जल्दी क्या है? शादी भी कर लेंगे, कहीं भागे तो जा नहीं रहे हैं?’’

‘‘नहीं, मुझे शादी की जल्दी है. रमेश, अब मुझे अकेलापन अच्छा नहीं लगता है,’’ सुगंधा ने कहा.

‘‘ठीक है, कल शाम को मेरे कमरे पर आ जाना. वहीं शादी के बारे में बात करेंगे,’’ रमेश ने सुगंधा के नाजुक अंगों से खेलते हुए कहा.

‘‘मैं शाम को 8 बजे आप के कमरे पर आऊंगी,’’ रमेश ने सुगंधा के होंठों का एक चुंबन ले कर उस से विदा ली.

रमेश ने अभी तक शादी का वादा कर सुगंधा के साथ खूब मौजमस्ती की, लेकिन उस की शादी की जिद से उसे डर लगने लगा था. सच तो यह था कि वह सुगंधा से छुटकारा पाना चाहता था, क्योंकि एक तो सुगंधा से उस का मन भर गया था. दूसरे, वह उस से शादी नहीं कर सकता था.

शाम को 8 बजने वाले थे कि रमेश के कमरे पर सुगंधा ने दस्तक दी. रमेश ने समझ लिया कि सुगंधा आ गई है. उस ने दरवाजा खोला और उसे बैडरूम में ले गया.

‘‘हां, अब बताओ सुगंधा, तुम्हें शादी की क्यों जल्दी है? अभी कुछ दिन और मौजमस्ती से रहें, फिर शादी करेंगे,’’ रमेश ने उसे सीने से चिपकाते हुए कहा.

‘‘नहीं, जल्दी है. उस की कुछ वजहें हैं.’’

‘‘क्या वजहें हैं?’’ रमेश ने चौंकते हुए पूछा.

तभी बाहर दरवाजे पर हुई दस्तक से दोनों चौंके. रमेश सुगंधा को छोड़ कर दरवाजा खोलने के लिए चला गया. सुगंधा घबरा कर एक तरफ दुबक कर बैठ गई.

इतने में रमेश को धकेलते हुए 3 लोग बैडरूम में आ गए.

‘‘अरे, तू तो कहता था कि यहां अकेले रहता?है. ये क्या तेरी बीवी है या बहन,’’ उन में से एक पहलवान जैसे शख्स ने कहा.

‘‘देखो, जबान संभाल कर बात करो,’’ रमेश ने कहा.

तभी एक ने रमेश के गाल पर जोर का थप्पड़ मारा और उसे जबरदस्ती कुरसी पर बैठा कर बांध दिया. तीनों सुगंधा की ओर बढ़े और उसे बैड पर पटक दिया.

सुगंधा चीखतीचिल्लाती रही. उन से हाथ जोड़ती रही, पर उन्होंने एक न सुनी और बारीबारी से तीनों ने उस के साथ बलात्कार किया. उधर रमेश कुरसी से बंधा कसमसाता रहा.

जब सुगंधा को होश आया, तो वह लुट चुकी थी. उस का अंगअंग दुख रहा था. वह रोने लगी. रमेश उसे हिम्मत बंधाता रहा.

फिर सुगंधा के आंसू पोंछते हुए रमेश ने कहा, ‘‘सुगंधा, इस को हादसा समझ कर भूल जाओ. हम जल्दी ही शादी कर लेंगे, जिस से यह कलंक मिट जाएगा.’’

सुगंधा उठी और अपने घर चली गई. वह एक हफ्ता की छुट्टी ले कर कमरे पर ही रही और भविष्य के बारे में सोच कर परेशान होती रही थी, लेकिन रमेश द्वारा शादी का वादा उसे कुछ राहत दे रहा था.

सुगंधा हफ्तेभर बाद रमेश से मिली, तब बोली कि अब वह जल्द ही उस से शादी कर ले, क्योंकि वह बहुत परेशान है और वह उस के बच्चे की मां बनने वाली है.

‘‘क्या कहा तुम ने? तुम मेरे बच्चे की मां बनने वाली हो? सुगंधा, तुम होश में तो हो. अब तो यह तुम मुझ पर लांछन लगा रही हो. मालूम नहीं, यह मेरा बच्चा है या किसी और का,’’ रमेश ने हिकारत भरी नजरों से देखते हुए कहा.

‘‘नहींनहीं रमेश, ऐसा मत कहो. यह तुम्हारा ही बच्चा है. हादसे वाले दिन मैं तुम से यही बात बताने वाली थी,’’ सुगंधा ने कहा, पर रमेश ने धक्का दे कर उसे निकाल दिया.

सुगंधा जिंदगी के बोझ से परेशान हो उठी. जब लोगों को मालूम होगा कि वह बगैर शादी के मां बनने वाली है, तो लोग उसे जीने नहीं देंगे. अब वह जान दे देगी.

अचानक रमेश का चेहरा उस के दिमाग में कौंधा, ‘धोखेबाज ने आखिर अपना असली रूप दिखा ही दिया.’

एक दिन जब सुगंधा बाजार जा रही थी, तो देखा कि रमेश किसी से बातें कर रहा था. उस आदमी का डीलडौल उसे कुछ पहचाना सा लगा.

सुगंधा ने छिपते हुए नजदीक जा कर देखा, तो रमेश जिन लोगों से हंस कर बातें कर रहा था, वे वही लोग थे, जिन्होंने उस रात उस के साथ बलात्कार किया था.

अब सुगंधा रमेश की साजिश समझ गई थी. उस ने मन में ठान लिया कि अब वह मरेगी नहीं, बल्कि रमेश जैसे भेडि़ए से बदला लेगी.

रमेश से बदला लेने की ठान लेने के बाद सुगंधा ने पहले परिवार के बारे में पता लगाया. जब मालूम हुआ कि रमेश शादीशुदा है, तो वह और भी जलभुन गई. उसे पता चला कि उस का छोटा भाई दिनेश दिल्ली में पढ़ाई कर रहा था. उस ने लखनऊ की नौकरी छोड़ दी.

दिल्ली जा कर सब से पहले सुगंधा ने अपना पेट गिराया, फिर उस ने वहीं एक कमरा किराए पर ले लिया, जहां दिनेश रहता था. धीरेधीरे उस ने दिनेश पर डोरे डालना शुरू किया.

दिनेश को जब सुगंधा ने पूरी तरह अपने जाल में फांस लिया, तब उस ने दिनेश को शादी के लिए उकसाया. उस ने शादी की रजामंदी दे दी.

दिनेश ने रेलवे परीक्षा में अंतिम रूप से कामयाबी पा ली. अब वह अपनी मरजी का मालिक हो गया. उस ने सुगंधा से शादी के लिए अपने मातापिता को लिख दिया. लड़का अपने पैरों पर खड़ा हो गया है, इसलिए उन्होंने भी शादी की इजाजत दे दी.

सुगंधा ने भी शर्त रखी कि शादी कोर्ट में ही करेगी. दिनेश को कोई एतराज नहीं हुआ.

जब दिनेश ने अपने मातापिता को लिखा कि उस ने कोर्ट में शादी कर ली है, तो उन्हें इस बात का मलाल जरूर हुआ कि घर में शादी हुई होती, तो बात ही कुछ और थी. अब जो होना था हो गया. उन्होंने गृहभोज के मौके पर दोनों को घर बुलाया.

पूरा घर सजा था. बहुत से मेहमान, दोस्त, सगेसंबंधी इकट्ठा थे. रमेश भी उस मौके पर अपने दोस्तों के साथ आया था. दुलहन घूंघट में लाई गई.

मुंह दिखाई के समय रमेश और उस के दोस्त उपहार ले कर पहुंचे. रमेश ने जब दुलहन के रूप में सुगंधा को देखा, तो उस के पैरों के नीचे की जमीन ही खिसक गई.

रमेश और उस के दोस्त जिन्होंने सुगंधा के साथ बलात्कार किया था, सब का चेहरा शर्म से झुक गया.

इस तरह सुगंधा ने अपना बदला लिया.

Raksha Bandhan 2024 – सीमा रेखा: जब भाई के लिए धीरेन भूल गया पति का फर्ज

‘‘सोमू, उठ जाओ बाबू…’’ धीरेन दा लगातार आवाज दिए जा रहे थे जिस से रूपल की नींद में बाधा पड़ने लगी तो वह कसमसाती हुई सोमेन के आगोश से न चाहते हुए भी अलग हो गई और पति सोमेन को लगभग धकियाती हुई बोली, ‘‘अब जाओ, उठो भी, नहीं तो तुम्हारे दादा सुबहसुबह पूरे घर को सिर पर उठा लेंगे. छुट्टी वाले दिन भी आराम नहीं करने देते.’’

सोमेन अंगड़ाई लेता हुआ उठ बैठा और ‘आया दादा’ कहता हुआ बाथरूम की ओर लपका. जब फे्रश हो कर जोगिंग करने के लिए टै्रकसूट और जूते पहन कर कमरे से बाहर निकला तो दादा रोज की तरह गरम चाय लिए उस का इंतजार करते मिले.

उसे देखते ही मुसकरा कर प्यालों में चाय डालते हुए बोले, ‘‘सोमू, रूपल और बच्चों से भी क्यों नहीं कहता कि सुबह जल्दी उठ कर कुछ देर व्यायाम कर लें. सुबह की ताजा हवा से दिन भर तरावट महसूस होती है और साथ में स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है.’’

‘‘दादा, रोज तो उन्हें जल्दी जागना ही पड़ता है, सो कम से कम रविवार को उन्हें नींद का मजा लेने दीजिए. चलिए, हम दोनों जोगिंग पर चलते हैं,’’ कहता हुआ सोमेन चाय की खाली प्याली रख कर उठ खड़ा हुआ. दोनों भाइयों ने नजदीक के पार्क में धीमी गति से जोगिंग की. फिर धीरेन दा बैंच पर बैठ कर हाथपांव हिलाने लगे और उन के पास ही सोमेन एक्सरसाइज करने लगा. धीरेन दा 55 से ऊपर के हो चले थे और सोमेन भी 34 बसंत पार कर चुका था. लेकिन धीरेन दा हरपल सोमेन का ऐसे खयाल रखते जैसे वह कोई नादान बालक हो.

धीरेन दा की दुनिया सोमेन से शुरू हो कर उसी पर खत्म हो जाती थी. कुदरत की इच्छा के आगे किसी का बस नहीं चलता. धीरेन दा के जन्म के बाद काफी कोशिशों के बावजूद उन के मातापिता की कोई दूसरी संतान नहीं हुई फिर भी वे डाक्टर की सलाह पर दवा लेते रहे और फिर 16 साल बाद अचानक सोमेन का जन्म हुआ. सोमेन के जन्म से धीरेन दा बहुत खुश थे मानो सोमेन के रूप में उन्हें कोई जीताजागता खिलौना मिल गया हो. उन के बाबूजी की माली हालत कुछ खास अच्छी नहीं थी इसलिए मां को ही घर का हर काम करना पड़ता था. ऐसे में मां का हाथ बंटाने के लिए धीरेन दा ने सोमेन की सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली थी.

सोमेन ज्यादातर समय धीरेन दा की गोद में होता या जहां वह पढ़ते थे उन के पास ही पालने में सोया या खेलता रहता. देखतेदेखते सोमेन 4 साल का हो गया. धीरेन दा उस दिन बहुत खुश थे क्योंकि बी. काम. फाइनल में उन्होंने अपने विश्वविद्यालय में टाप किया था. घर आ कर जब उन्होंने यह खबर मांबाबूजी को सुनाई तो वे बहुत खुश हुए. इस खुशी को अपने पड़ासियों के साथ बांटने के लिए वे दोनों मिठाई लेने ऐसे निकले कि कफन ओढ़ कर घर वापस आए.

रास्ते में एक बस ने उन्हें बुरी तरह से कुचल दिया था. एक पल को धीरेन दा को यों लगा मानो उन का सबकुछ खत्म हो गया. पर मासूम सोमेन को बिलखते देख उन्हें भाई से पिता रूप में परिवर्तित होने में तनिक भी वक्त नहीं लगा. उसी वक्त उन्होंने मन ही मन प्रण किया कि वह न सोमेन को अनाथ होने देंगे और न ही कभी उसे मातापिता की कमी महसूस होने देंगे. इस घटना के कुछ महीनों बाद ही धीरेन दा की बैंक में नौकरी लग गई. नौकरी मिलने के 1 साल बाद उन्होंने रजनी के साथ विवाह रचा लिया. रजनी के गृहप्रवेश करते ही धीरेन दा की दुनिया बदल गई.

सोमेन को भी रजनी भाभी कम और मां ज्यादा लगतीं. 2 साल का प्यार भरा समय कैसे गुजर गया, पता ही न चला. एक दिन रजनी को अपने भीतर एक नवजीवन के पनपने का एहसास हुआ तो धीरेन दा की खुशियों की सीमा न रही. सोमेन को भी चाचा बनने की बेहद खुशी थी. पर उन लोगों की सारी खुशियां रेत के घरौंदे की तरह पलक झपकते ही बिखर गईं. एक दिन रजनी बारिश में भीगते कपड़ों को समेटने गई और फिसल कर गिर पड़ी. अंदरूनी चोट इतनी गहरी थी कि लाख कोशिशों के बावजूद डाक्टर मां और बच्चे में से किसी को नहीं बचा सके.

रजनी की मौत के बाद धीरेन दा ने किसी भी स्त्री के लिए अपने दिल के दरवाजे हमेशाहमेशा को बंद कर लिए. अब उन के जीने का मकसद सिर्फ और सिर्फ सोमेन था. अब वह सोमेन की नींद सोते और जागते थे. उस की हर जरूरत का ध्यान रखना, उसे खुश रखना और उस के विकास के बारे में चिंतनमनन करना ही जैसे उन का एकमात्र ध्येय रह गया था. कंप्यूटर इंजीनियरिंग की पढ़ाई खत्म होते ही जब सोमेन को एक बड़ी इंटरनेशनल कंपनी में नौकरी मिल गई तो सोमेन से कहीं ज्यादा खुशी धीरेन दा को हुई. सोमेन के प्रति उन की बस आखिरी जिम्मेदारी बाकी रह गई थी और वह जिम्मेदारी थी सोमेन की शादी.

साल भर बाद धीरेन दा ने अपने मित्र रमेशजी की मदद से आखिर रूपल जैसी गुणवती, सुंदर और मासूम लड़की को अपने अनुज के लिए तलाश ही लिया. रूपल के रूप में उन्हें एक बेटी का ही रूप नजर आता. रूपल थी भी इतनी प्यारी और नेकदिल कि सोमेन और धीरेन दा के दिलों में बसने के लिए उसे जरा भी वक्त नहीं लगा. सबकुछ ठीक चल रहा था. रूपल को कुछ अखरता था तो वह धीरेन दा का सोमेन को ले कर जरूरत से ज्यादा पजेसिव होना.

भाई के प्यार में वह इस कदर डूबे हुए थे कि अकसर रूपल की उपस्थिति को नजरअंदाज कर जाते. वह भूल जाते कि उन की तरह रूपल भी सुबह से सोेमेन का इंतजार कर रही है. पति को देखने को व्याकुल उस नवविवाहिता की आंखें शाम से ही दरवाजे पर टिकी हुई हैं. सोमेन भी घर आते ही रूपल को बांहों में ले कर प्यार की बौछार कर देने को आतुर रहता पर घर में प्रवेश करते ही धीरेन दा को अपना इंतजार करते बैठा देखता तो मर्यादा के तहत मन को वश में कर वहीं बैठ जाता और उन से वार्तालाप में मस्त हो जाता. बीच में कभी कपड़े बदलने के बहाने से तो कभी बाथरूम जाने के बहाने से अंदर जा कर झुंझलाईबौखलाई रूपल पर ऐसे तेज गति से चुंबनों की झड़ी लगा देता कि रूपल सारा गुस्सा भूल कर कह उठती, ‘‘अब बस भी करो मेरे सुपर फास्ट राजधानी एक्सप्रेस, बाहर भैया चाय के लिए प्रतीक्षा कर रहे हैं.’’

फिर दोनों भाई शतरंज खेलते. इस बीच खाना बना कर रूपल बेमन से टीवी का चैनल बदलती रहती. कभी सोमेन आवाज लगाता तो चाय या पानी दे जाती. उस की मनोस्थिति से सर्वथा अनजान धीरेन दा शतरंज की बिसात पर नजरें जमाए हुए कहते, ‘‘रूपल, तुम भी शतरंज खेलना सीख जाओ तो मजा आ जाए.’’ ‘‘जी दादा, सीखूंगी,’’ संक्षिप्त सा उत्तर दे कर वह वापस अंदर की ओर मुड़ जाती. तब सोमेन का मन शतरंज छोड़ कर उठ जाने को करता. वह चाहता कि रूठी हुई रूपल को हंसाए, गुदगुदाए पर दादा का एकाकीपन अकसर उस के मन पर अंकुश लगा देता.

रात को अपने अंतरंग क्षणों में वह रूपल को मना लेता और समझा भी देता कि धीरेन दा ने सिर्फ मेरे लिए अपनी सारी खुशियों की आहुति दे दी. अब हमारे किसी काम से उन्हें यह एहसास नहीं होना चाहिए कि हम उन की परवा या कद्र नहीं करते. रूपल ने भी धीरेधीरे यह सोच कर नाराज होना छोड़ दिया कि जब बच्चे हो जाएंगे तब सब ठीक हो जाएगा पर वैसा कुछ हुआ नहीं.

पिंकी व बंटी के होने के बाद भी धीरेन दा की वजह से सोमेन रूपल को वक्त नहीं दे पाता. यों ही और 8 साल बीत गए. अब तो पिंकी 10 और बंटी 8 साल के हो गए थे. अगर बच्चे कहते, ‘‘पापा, हमें किसी बच्चों के पार्क में या चिडि़याघर दिखाने ले चलिए,’’ तो सोमेन का जवाब होता कि बेटे, हम वहां जाएंगे तो ताऊजी अकेले हो जाएंगे. ‘‘तो फिर ताऊजी को भी साथ में ले चलिए न,’’ पिंकी ठुनकती हुई कहती. इस पर सोमेन प्यार से उसे समझाते हुए कहता, ‘‘बेटे, इस उम्र में ज्यादा चलनाफिरना ताऊजी को थका देता है. हम फिर कभी जाएंगे,’’ और वह दिन बच्चों के लिए कभी नहीं आया था.

यह सब देखसुन कर रूपल कुढ़ कर रह जाती. उस ने अपनी सारी इच्छाएं दफन कर डालीं पर अब बच्चों के चेहरों पर छाई मायूसी उस के मन में धीरेन दा के लिए आक्रोश भर देती. इन सब का परिणाम यह हुआ कि धीरेधीरे रूपल के व्यवहार में अंतर आने लगा और बोली में भी कड़वापन झलकने लगा. धीरेन दा कुछ महीनों से रूपल के व्यवहार में आए परिवर्तन को देख रहे थे पर बहुत सोचने पर भी उस की तह तक नहीं पहुंच पाए. अंत में हार कर उन्होंने अपने मित्र रमेश से परामर्श करने की सोची.

रमेश से उन का कोई दुराव- छिपाव न था. एक बार फिर रमेश ने उन्हें मर्यादा और व्यावहारिक ज्ञान से रूबरू कराया. रमेश ने धीरेन दा की कही हरेक बातें ध्यान से सुनीं और उन से उन के और घर के हर सदस्यों की दिनचर्या के बारे में विस्तार से जानकारी हासिल की, फिर थोड़ी देर के लिए खामोश हो गए. पल भर के मौन के बाद धीरेन दा को समझाने के लहजे में बोले, ‘‘देख, धीरेन, ऐसा नहीं है कि रूपल अब तुम्हें बड़े भाई का मान नहीं देती. पर मेरे यार, तुम एक बात भूल गए कि कोई भी इनसान किसी एक का नहीं होता.

‘‘सोमेन की शादी से पहले की बात और थी. तब तुम्हारे सिवा उस का कोई नहीं था लेकिन विवाह के बाद वह किसी का पति और किसी का पिता बन गया. तुम्हारी ही तरह पिंकी, बंटी और रूपल को सोमेन से विभिन्न अपेक्षाएं हैं जो वह सिर्फ इसलिए पूरी नहीं कर पा रहा कि कहीं तुम स्वयं को उपेक्षित न समझ बैठो. उलटे तुम्हें हमेशा खुश रखने के प्रयास में वह न तो अच्छा पति साबित हो रहा है और न ही एक अच्छा पिता. हर रिश्ता एक मर्यादा और सीमारेखा से बंधा होता है जिस का अतिक्रमण बिखराव और ऊब की स्थिति ला देता है.

‘‘मेरे यार, अनजाने ही सही, तुम भी रिश्तों की सीमारेखा को लांघने लगे हो. माना कि तुम्हारी नीयत में कोई खोट नहीं पर कौन सी ऐसी पत्नी होगी जो कुछ वक्त अपने पति के साथ अकेले बिताना नहीं चाहेगी या फिर कौन से बच्चे अपने पापा के साथ कहीं घूमने नहीं जाना चाहेंगे. कहते हैं न, जब आंख खुली तभी सवेरा समझो. अब भी देर नहीं हुई है. तुम्हारे घर की खोती हुई खुशियां और रूपल की निगाहों में तुम्हारे प्रति सम्मान फिर से वापस आ सकता है. बस, तुम अपने और सोमेन के रिश्ते को थोड़ा विस्तृत कर लो. खुले मन से अपने साथ रूपल और बच्चों को समाहित कर लो…’’

सहसा धीरेन दा के चेहरे पर एक चमक आ गई और वह रमेशजी को बीच में ही टोकते हुए बोले, ‘‘बस यार, मेरी आंखें खोलने के लिए तुम्हारा बहुतबहुत धन्यवाद. अब मैं चलता हूं, पहले ही बहुत देर हो चुकी है…अब मैं और देर नहीं करना चाहता,’’ फिर तेजतेज कदमों से वह घर की ओर चल पड़े मानो भागते हुए समय को खींच कर पीछे ले जाएंगे. रमेशजी ने जाते हुए अपने मित्र को और रोकना उचित नहीं समझा और मुसकरा पड़े.

अगले दिन रविवार था. सालों के नियम को भंग करते हुए धीरेन दा अकेले ही सुबहसुबह कहीं गायब हो गए. रूपल की नींद खुली तो सुबह के 8 बज रहे थे. वह उठ कर पूरे घर का एक चक्कर लगा आई. बाहर का दरवाजा भी यों ही उढ़का हुआ था. घबरा कर उस ने सोमेन को जगाया, ‘‘सुनोसुनो, जल्दी उठो, 8 बज गए हैं और दादा का कहीं पता नहीं है. दरवाजा भी खुला हुआ है.’’ सोमेन घबरा कर उठ बैठा. बच्चे भी मम्मीपापा के बीच का होहल्ला सुन कर जाग गए. सब मिल कर सोचने लगे कि धीरेन दा कहां जा सकते हैं?

आखिर 10 बजे घर के बाहर आटो रुकने की आवाज आई. पिंकी व बंटी दरवाजे से बाहर झांक कर चिल्लाए, ‘‘ताऊजी आ गए, ताऊजी आ गए.’’ सोमेन और रूपल ने चैन की सांस ली. धीरेन दा के घर में घुसते ही रूपल ने सवालों की झड़ी लगा दी, ‘‘दादा, आप कहां चले गए थे? कह कर क्यों नहीं गए? हम से नाराज हैं क्या? क्या हम से कोई गलती हो गई?’’ धीरेन दा मुसकराते हुए बोले, ‘‘अरे, नहीं बेटा, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं तो अपनी गलती सुधारने गया था.’’

कुछ न समझने की स्थिति में सोमेन और रूपल एकदूसरे का मुंह देखने लगे. धीरेन दा बोले, ‘‘अरे, बाबा, मैं तुम लोगों को सरप्राइज देना चाहता था इसलिए ‘सिंह इज किंग’ की 2 टिकटें लाया हूं. आइनोक्स में यह फिल्म लगी है, आज तुम दोनों देख आना.’’ रूपल की आंखें आश्चर्य और खुशी से भर गईं. आज तक उसे आइनोक्स में फिल्म देखने का मौका जो नसीब नहीं हुआ था. वह तो कहीं भी आनेजाने की उम्मीद ही छोड़ बैठी थी.

‘‘पर दादा, बच्चे और आप…’’ ‘‘उस की तुम चिंता मत करो. हम तीनों आज ‘एडवेंचर आइलैंड’ जाएंगे, बाहर खाना खाएंगे और खूब मस्ती करेंगे. क्यों बच्चो?’’ ‘‘दादाजी, आप कितने अच्छे हैं?’’ यह कहते हुए दोनों बच्चे धीरेन दा के पैरों से लिपट गए तो धीरेन दा भावुक हो उठे. इधर सोमेन और रूपल की आंखों से छलका हुआ अनकहा ‘धन्यवाद’ भी…

कितने तरह के होते हैं हेयर ब्रश, जानें उपयोग करने का सही तरीका

59 वर्षीया हेयर डे्रसर मारिया शर्मा की शख्सियत अनूठी है. स्वभाव से हंसमुख, मृदुभाषी मारिया ने फिल्मी दुनिया में 40 वर्ष पूरे किए हैं. आज वे कंगना राणावत की हेयर डे्रसर हैं. इतने सालों में उन्होंने रेहाना सुल्ताना से ले कर आज की बहुत सी युवा हीरोइनों के बाल संवारे हैं. जब वे केवल 18 वर्ष की थीं तब उन्होंने इस क्षेत्र में कदम रखा. साल 2009 में उन्हें दादा साहब फालके अवार्ड से नवाजा गया.

उन का शुरुआती दौर काफी संघर्षपूर्ण रहा. तब किसी प्रकार के प्रशिक्षण का प्रावधान नहीं था. क्रिश्चियन परिवार में जन्मी मारिया को बचपन से ही बालों को संवारने का शौक था. वे किसी भी अवसर पर आसपास की सभी सहेलियों के बालों को खुद संवारा करती थीं. उन्हें बचपन से बालों की सजावट से लगाव था. उन्हें अलगअलग अंदाज में संवारने का शौक था. हीरोइनों के बाल संवारते हुए ही उन्होंने सारे प्रशिक्षण प्राप्त किए. फलस्वरूप उन्होंने हीरोइनों को बालों के कई स्टाइलों से अवगत कराया, जिस में तार का जूड़ा, चाइनीज स्टाइल, ब्राइडल स्टाइल और ट्विस्ट स्टाइल काफी मशहूर हैं.

इस काम में उन की बड़ी बेटी रचना भी हाथ बंटाती है. उन की छोटी बेटी मिनाली मौडल और बेटा अनिल व्यवसायी है. हेयर ब्रश के बारे में उन से बातचीत हुई तो उन्होंने बताया कि हेयर ब्रश का इस्तेमाल सही ढंग से करना जरूरी होता है. हेयर ब्रश बालों के आधार पर चुना जाना चाहिए. आइए जानें, उन से कुछ जरूरी बातें :

हेयर ब्रश कितने तरह के होते हैं?

हेयर ब्रश कई तरह के होते हैं. छोटे, बड़े और गोल. बडे़ ब्रश में ब्रसल्स होते हैं, जो 2 प्रकार के होते हैं- कांटों वाला और गोल ब्रसल्स वाला. जिन के बाल घने होते हैं. उन के लिए कांटों वाला ब्रश उपयोगी होता है. जिन के बाल पतले होते हैं, उन्हें गोल ब्रसल्स वाले हेयर ब्रश सूट करते हैं. दोनों ही हेयर ब्रश को वौल्यूम दिखाने के लिए प्रयोग किया जाता है.

इन का उपयोग कैसे किया जाता है?

बालों को सेट करने के लिए ब्लोड्राई करना जरूरी है. अगर बाल काफी पतले हों तो एक साइज छोटा हेयर ब्रश ले कर ब्लोड्राई करने से आउट टर्न और फुल आउट टर्न दोनों ही संभव है. मीडियम हेयर ब्रश हलका आउट टर्न और फ्लिप आउट करने के लिए उपयोगी होता है.

छोटे हेयर ब्रश का प्रयोग कहां होता है?

छोटा हेयर ब्रश, जो गोल आकार में होता है, इस से रोलर इफेक्ट दिया जाता है. जिन के बाल स्टेप कट में हों उन के लिए छोटे हेयर ब्रश से फुल आउट टर्न कर ब्लोड्राई करने से अच्छा लगता है. बालों में फ्रिंज निकालने के लिए भी छोटे हेयर ब्रश इस्तेमाल किए जाते हैं.

फ्लैट हेयर ब्रश का प्रयोग कहां किया जाता है?

जिन के बाल घुंघराले हों उन के लिए फ्लैट हेयर ब्रश उपयोगी होता है, जिस में कांटे होते हैं. बालों को सीधा कर के ब्लोड्राई करने से बाल सीधे दिखते हैं. इस के अलावा अगर बाल बहुत पतले हों और आगे छोटेछोटे हों तब उन के लिए छोटे फ्लैट हेयर ब्रश को ले कर ब्लोड्राई कर सकते हैं. माथे पर आगे के बेबी हेयर के  लिए भी छोटे फ्लैट हेयर ब्रश का ही इस्तेमाल किया जाता है. इस के अलावा ब्रसल्स ब्रश बैक कांबिंग के लिए भी प्रयोग किया जाता है. इस से बाल साफसुथरे दिखते हैं. थोड़े से बेबी बाल होने पर पानी लगा कर सेमी वेट कर के अंत में सीरम लगाया जाता है. अगर बाल पतले हों तो मूज लगा कर थोड़ा सूखने दें, फिर ब्लोड्राई करें. ब्रश के प्रयोग के बाद उस का रखरखाव भी अच्छे तरीके से करना चाहिए ताकि आप अधिक दिनों तक उस का उपयोग कर सकें. ये ब्रश काफी महंगे होते हैं, जो अधिकतर विदेशों से मंगाए जाते हैं. भारत में मिलने वाले ब्रश अधिक दिनों तक नहीं चलते. जल्दी ही इन के ब्रसल्स खराब हो जाते हैं.

ब्रश का रखरखाव कैसे करना सही होता है?

कांटेदार ब्रश को डेटोल के पानी से धो कर रखें और अगर ब्रसल्स वाले हेयर ब्रश हों तो उन्हें साफ कर स्टरलाइज करें. पानी में डालने से पहले ब्रश के ऊपर चिपके हुए बाल कंघी की सहायता से पूरी तरह निकाल दें.

फर्स्ट डेट के बाद Boyfriend की सैकंड डेट में दिलचस्पी है या नहीं, कैसे पता लगाएं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मेरा कोई बौयफ्रैंड नहीं रहा. 24 साल की हो चुकी हूं. डेटिंग ऐप के बारे में काफी कुछ पढ़ा और सुना है. इसलिए सोचा, क्यों न मैं भी इन ऐप्स का सहारा लूं. एक बार जब मैं इन ऐप्स से जुड़ी तो मु झे मजा आने लगा. कई लड़कों के साथ चैटिंग की. अब कई दिनों से, लगभग 3 महीने हो गए होंगे, मैं एक लड़के से रैगुलर चैट कर रही हूं. मु झे वह बहुत अच्छा लगने लगा है. मैं उस से प्यार करने लगी हूं. वह  अब मु झ से पर्सनली मिलना चाहता है. मिलना तो मैं भी चाहती हूं लेकिन पता नहीं क्यों डर लग रहा है कि कहीं पर्सनली मिल कर मैं उसे पसंद न आई तो? मैं कैसे पता लगाऊं कि फर्स्ट डेट के बाद उसे सैकंड डेट में दिलचस्पी है या नहीं?

जवाब-

आप की घबराहट जायज है क्योंकि चैट करते हुए रोमांटिक बातें करना एक बात है और पार्टनर के सामने बैठ कर उस से आंखें मिलाते हुए रोमांटिक टौक दिलचस्प बनाना दूसरी बात है. एक तरह से दोनों को ही डर होता है कि वे एकदूसरे की अपेक्षाओं पर खरे उतरेंगे या नहीं. आप डर रही हैं, हो सकता है उसे भी डर लग रहा हो.

फिलहाल यहां हम आप की बात करते हैं कि आप कैसे पता लगाएंगी कि वह आप से दोबारा मिलने की इच्छा रखता है या नहीं या आप उसे कितनी पसंद आई हैं. जरूरी नहीं कि सामने वाला हर बात बोले, कुछ हमें खुद भी सम झनी होती हैं.

जब आप दोनों मिलें और वक्त कैसे निकल गया, पता न चले तो यह गुड साइन है. लेकिन वह डेट को जल्दी से जल्दी खत्म करना चाहेगा तो हो सकता है कि उसे आप का साथ पसंद नहीं आया. अकसर पहली डेट पर ही सैकंड डेट की प्लानिंग हो जाती है लेकिन वह आप से दूसरी बार मिलना ही न चाहता तो यकीनन वह दूसरी डेट का जिक्र तक न करेगा.  इतना ही नहीं, अगर आप भी इस बात का जिक्र करेंगी तो वह कोई बहाना बना देगा.

किसी से मिलने के बाद हम सामने वाले पार्टनर को मैसेज या कौल कर के पहली डेट की यादों को सा झा करते हैं. यदि वह ऐसा नहीं करता तो सम झ जाएं कि आप उस की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरीं. डेट पर जाने पर लोग एकदूसरे की पर्सनैलिटी, स्टाइल को कौंप्लीमैंट करते हैं लेकिन वह आप को एक टैक्स्ट मैसेज भी नहीं करता तो सम झ जाइए उसे दूसरी डेट में कोई दिलचस्पी नहीं.

अकसर फर्स्ट डेट के बाद कपल्स एकदूसरे के साथ सहज हो जाते हैं. अपनी पर्सनल बातें एकदूसरे से शेयर करना शुरू कर देते हैं. आप ध्यान रखें कि वह आप से अपनी कितनी पर्सनल बातें करता है या आप की निजी जिंदगी के बारे में जानने में कितना ख्वाहिशमंद है.

तो फिर डरिए मत, अच्छा सोच कर ही फर्स्ट डेट पर जाएं. हमारी बताई बातों को ध्यान में रखते हुए सारी स्थिति सम झें या सही निर्णय लीजिए और समझिए कि सामने वाला आप का सोलमेट बनेगा या नहीं.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर पर 9650966493 भेजें.

नाश्ते के लिए हैल्दी औप्शन है पोहा चिवड़ा, जानें इसकी आसान रेसिपी

पोहा ना केवल स्वादिष्ट होता बल्कि स्वास्थ्यवर्धक भी है. हल्का क्रंची पोहा चिवड़ा आपके लिए नमकीन है, जिसे ब्रैकफास्ट में आप अपनी फैमिली को खिला सकते हैं.

सामग्री:

– चिवड़ा  (200 ग्राम)

– तेल (50 ग्राम)

– मुंगफली (50 ग्राम)

– चना दाल (3 चम्मच)

– बादाम ( 8-10)

– काजू  (6-8)

–  नारियल (25 ग्राम)

– किशमिश (10-12)

– करि पत्ता (10-15)

– हरी मिर्च(4)

– तिल (1/2 चम्मच)

– हल्दी(1/2 चम्मच)

– नमक(स्वादानुशार)

पोहा बनाने कि विधि:

– सबसे पहले पोहा (चिवड़ा) को ले और उसे छननी से छान ले.

– फिर उसे कढ़ाई या पैन में डालकर कुरकुरा होने तक भूनें.

– और यहां पे हमारी पोहा कड़ा हो गयी है, और इसे तोड़ने पे आसानी से टूट जा रही है.

– पोहा को निकाल कर अलग रख दें और उसी कढ़ाई में तेल डालें.

– अब उसमे चना दाल और मूंगफली को दाल दे और उसे फ्राई करें.

– फ्राई होने के बाद उसे किसी बर्तन में निकाल लें.

– फिर उसी तेल में बादाम और काजू को भी डालकर फ्राई कर लें.

– फिर नारियल और किशमिश को डाले और उसे 1 से 2 सेकंड भूनकर निकाल लें.

– अब उसी तेल में करि पत्ता और मिर्च डाल दें.

– फिर उसमे तिल को भी डाल दे और उसे थोड़ी देर भुनें

– फिर  उसमे हल्दी डाल दें.

– फिर बिना देर किये उसमे भुने हुए ड्राई फ्रूट्स को डाल दें

– अब उसमे चिवड़ा डाल दें.

– फिर उसमे नमक डालकर उसे अच्छे से मिलाये और 2 मिनट तक भुनें.

– अब पोहा चिवड़ा बनकर तैयार हो गयी है.

क्या आपके भी सिर में होता है तेज दर्द, कहीं ये ब्रेन ट्यूमर तो नहीं !

22 वर्षीय निधि को कुछ समय से सिर दर्द, दाएं हाथ, पैर में कमजोरी, बोलने में परेशानी आदि कई चीजे हो रही थी. फैमिली डौक्टर ने पहले इसे एसिडिटी बताया, फिर विटामिन्स की कमी आदि न जाने कितने दिनों से यही चल रहा था, लेकिन कुछ ठीक नहीं हो रहा था, केवल दर्द की दवा लेने से सिर दर्द कम होता था, ऐसे करीब 4 से 5 महीने बीत गए, पर निधि को आराम न था. एक दिन निधि की सहेली की माँ निधि से मिलने आई और उन्होंने निधि को किसी अस्पताल में ले जाकर किसी न्यूरोसर्जन से बात करने की सलाह दी. निधि को अस्पताल ले जाने पर उसकी खून की जांच के साथ-साथ (MRIScan)भी की गयी, जिसमें मस्तिष्क के बाएं भाग में ट्यूमर पाया गया. मस्तिष्क के नाजुक भागों को बचाने के लिए, निधि को तुरंत Awake Brain Surgery के द्वारा ऑपरेट किया गया, जिसमें रोगी की होश और अलर्ट रखते हुए ही सर्जरी की जाती है. इसके बाद बायोप्सी से कैंसर ग्लायोमा ग्रेड 4 ( Glioma WHO – IV ) के जाँच की पुष्टि होने पर मरीज का कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी से इलाज किया गया. अब निधिपूरी इलाज के बाद बेहतर चल सकती है, अपने दाएं हाथ का प्रयोग कर सकती है और उसके बोलने में भी सुधार आया है. ऑपरेशन के 12 महीने पश्चात किया हुआ एमआरआई स्कैन, कैंसर को कंट्रोल में दिखाता है, जो अच्छी बात है. निधि का जीवन फिर से सामान्य हो गया.ये सही है कि समय पर ब्रेन ट्यूमर का पता लगने पर इलाज़ भी संभव है.

समझे ब्रेन ट्यूमर को

असल में मस्तिष्क, शरीर का अभिन्न अंग है, जिसका काम पूरे शरीर की क्रियाओं को संचालन करना होता है. ब्रेन, कई प्रकार की कोशिकाओं से बना होता है. शरीर के अन्य भागों की तरह, यह भी कई प्रकार के ट्यूमर से ग्रसित हो सकता है. ब्रेन ट्यूमर से स्वस्थ मस्तिष्क पर दबाव बढ़ने के कारण उसको  हानि पहुंच सकती है. इसलिए प्राथमिक लक्षण उत्पन्न होने पर, तुरंत न्यूरो विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए.

कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल के न्यूरोसर्जन डॉ. अक्षत कयाल कहते है कि ब्रेन के सभी ट्यूमर कैंसर युक्त नहीं होते, लगभग 50 प्रतिशत ट्यूमर कैंसर रहित होते है, जिनका समय पर इलाज मरीज को पूर्ण रूप से स्वस्थ कर सकता है. कैंसर युक्त ब्रेन ट्यूमर ( Glioma स्टेज 3 एवं 4 ) का इलाज अत्यावश्यक है. इनके शीघ्र इलाज से मरीज को दीर्घायु प्रदान कर सकते है और उस मरीज की कार्य क्षमता एवं जीवन की गुणवत्ता को भी अधिक बढ़ा सकते है.

ब्रेन ट्यूमर के लक्षण

स्कल के अंदर सीमित जगह होने के कारण, कोई भी ट्यूमर, मौजूदा जगह में अपने लिए अतिरिक्त स्थान बनाने की कोशिश करता है, जिससे मस्तिष्क पर दबाव पड़ता है और इसके लक्षण प्रकट होने लगते है. अधिकतर मरीजों में सिर दर्द, उल्टी, नजर का धुंधलापन, दोहरा दिखाई देना ( डिप्लोपिया ) एवं मिर्गी के दौरे, प्रमुख लक्षण होते है. अन्य असामान्य लक्षण जैसे चेहरे का तिरछापन, शरीर के दाएं या बाएं भाग में कमजोरी, बोलने, सुनने और निगलने में परेशानी आदि है.

ब्रेन ट्यूमर की जांच

न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. अक्षत कयाल आगे कहते है कि मरीज के लक्षणों के आधार पर ब्रेन ट्यूमर की डायग्नोसिस की जातीहै. डायग्नोसिस की पुष्टि करने के लिए एमआरआई स्कैन ( MRI Scan ) की आवश्यकता होती है, जिसकी सलाह न्यूरो सर्जन,मरीज की जांच करने के बाद ही दे सकता है. जिन मरीजों में कोई लक्षण नहीं होते, उनमें ब्रेन ट्यूमर की डायग्नोसिससंदेह के आधार पर एमआरआई स्कैन कर पता करते है.

ब्रेन ट्यूमर का इलाज

  • किसी भी ब्रेन ट्यूमर के इलाज में ऑपरेशन की भूमिका प्रमुख रहती है.अधिकतरन्यूरो सर्जन, ऑपरेशन के द्वारा, सुरक्षित तरीके से ट्यूमर का अधिकतम भाग निकालते है.
  • छोटे कैंसर मुक्त ट्यूमर्स को समय-समय पर एम आर आई स्कैन ( MRI Scan ) द्वारा निगरानी में रखा जा सकता है और इसे फोकस रेडिएशन से नष्ट भी किया जा सकता है.
  • बड़े टयूमर, सर्जरी के द्वारा सुरक्षित रूप से पूरी तरह निकाले जा सकते है. ब्रेन के ट्यूमर, जिनमें कैंसर होने की संभावना होती है, उन्हें भी सर्जरी द्वारा सुरक्षित रूप से अधिक से अधिक निकाल दिया जाता है. इसके बादबायोप्सी की रिपोर्ट के आधार पर बची हुई ट्यूमर का कीमोथेरेपी या रेडिएशन थेरेपी द्वारा इलाज किया जाता है. इससे मरीज की लॉन्ग लाइफ और अच्छी कार्य क्षमता मिल सकती है.

इसके अलावा देश के सभी बड़े शहरों में  ब्रेन ट्यूमर के ऑपरेशन की सुविधा, सरकारी एवं गैर सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध है. देश के महानगरों में,  ब्रेन ट्यूमर के इलाज के लिए विश्व स्तरीय टेक्नोलॉजी उपलब्ध है. इन शहरों के सभी बड़े अस्पतालों में , ब्रेन ट्यूमर की सर्जरी न्यूरो नेविगेशन, इंट्राऑपरेटिव एम आर आई, न्यूरो एंडोस्कोपी, इंट्राऑपरेटिव न्यूरोमोनिटरिंग, फंक्शनल एम आर आई, आदि के साथ की जाती है. अगर ब्रेन के नाजुक भाग से ट्यूमर की निकटता पाई जाती है, तब सर्जरी मरीज के होश में रहते हुए ही की जाती है. उपरोक्त सभी विधियां, मरीज के ट्यूमर को सुरक्षित रूप से निकालने में मददगार साबित होती है. ब्रेन ट्यूमर की सर्जरी का प्राथमिक उद्देश्य, मरीज को उत्तम कार्य क्षमता के साथ लम्बी आयु प्रदान करना होता है.

महानगरों के प्राइवेट अस्पतालों में, ब्रेन ट्यूमर के इलाज का खर्च डेढ़ लाख से तीन लाख तक हो सकता है. सरकारी अस्पतालों में यह सर्जरी न्यूनतम खर्च में हो जाती है. प्राइवेट अस्पतालों में भी गरीबी रेखा के नीचे एवं वंचित वर्ग के लिए चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा मदद की सुविधाएं होती है.

आज ब्रेन ट्यूमर का इलाज भारत में आधुनिक तकनीक से सफलतापूर्वक करवाना संभव है.इस तरह की सर्जरी आज पूर्ण रूप से सुरक्षित है.लक्षणों की जल्दी पहचान और जल्द इलाज ही इस रोग के सर्वोत्तम निदान के लिए आवश्यक है.

विरक्ति: बूढ़े दंपति को कैसे हुआ एच.आई.वी.

लेखक- गोपाल काबरा

मैं उन से मिलने गया था. पैथोलाजी विभाग के अध्यक्ष और ब्लड बैंक के इंचार्ज डा. कांत खराब मूड में थे, विचलित और विरक्त.

‘‘सब बेमानी है, बकवास है. महज दिखावा और लफ्फाजी है,’’ माइक्रो- स्कोप में स्लाइड देखते हुए वह कहे जा रहे थे, ‘‘सोचता हूं सब छोड़छाड़ कर बच्चों के पास चला जाऊं. बहुत हो गया.’’

‘‘क्या हुआ, सर? क्या हो गया?’’ मैं ने पूछा तो कुछ क्षण चुपचाप माइक्रोस्कोप में देखते रहे, फिर बोले, ‘‘एच.आई.वी., एड्स… ऐसा शोर मचा रखा है जैसे देश में यही एक महामारी है.’’

‘‘सर, खूब फैल रही है. कहते हैं अगर रोकथाम नहीं की गई तो स्थिति भयानक हो जाएगी. महामारी…’’

मेरी बात बीच में ही काटते हुए डा. कांत तल्ख लहजे में बोले, ‘‘महामारी, रोकथाम. क्या रोकथाम कर रहे

हो. पांचसितारा होटल

में कानफ्रेंस, कंडोम वितरण. महामारी तो तुम लोगों के आडंबर और हिपोक्रेसी की है. बड़ी चिंता है लोगों की. इतनी ही चिंता है तो हिपे- टाइटिस बी. के बारे में क्यों नहीं कुछ करते. देश में महामारी हिपे टाइ-टिस बी. की है.

‘‘हजारों लोग हर साल मर रहे हैं, लाखों में संक्रमण है. यह भी तो वैसा ही रक्त प्रसारित, विषाणुजनित रोग है. इस की चिंता क्यों नहीं. असल में चिंता तो विदेशी पैसे और बिलगेट्स की है. एड्स उन की चिंता है तो हमारी चिंता भी है.’’

‘‘क्या हुआ, सर? आज तो आप बहुत नाराज हैं,’’ मैं बोला.

‘‘होना क्या है, तुम लोगों की बकवास सुनतेदेखते तंग आ गया हूं. एच.आई.वी., एड्स, दोनों का एकसाथ ऐसे प्रयोग करते हो जैसे संक्रमण न हुआ दालचावल की खिचड़ी हो गई. क्या दोनों एक ही बात हैं. क्या रोकथाम कर रहे हो? तुम्हें याद है यूनिवर्सिटी वाली उस महिला का केस?’’

‘‘कौन सी, सर? उस अविवाहित महिला का केस जिस ने रक्तदान किया था और जिस का ब्लड एच.आई.वी. पाजिटिव निकला था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हां, वही,’’ डा. कांत बोले.

‘‘उस को कैसे भूल सकते हैं, सर. गुस्से से आगबबूला हो रही थी. हम ने तो उसे गुडफेथ में बुला कर रिजल्ट बताया था वरना कानूनन एच.आई.वी. पोजि-टिव ब्लड को नष्ट करना भर लाजमी होता है. हमारा पेशेंट तो रक्त लेने वाला होता है, देने वाला तो स्वेच्छा से आता है. देने वाले में रोग निदान के लिए तो हम टेस्ट करते नहीं.’’

डा. कांत कुछ नहीं बोले, चुपचाप सुनते रहे.

‘‘वह महिला अविवाहित थी. उस के किसी से यौन संबंध नहीं थे. उस ने कभी रक्त नहीं लिया और न ही किसी प्रकार के इंजेक्शन आदि. इसीलिए तो हम ने उस की प्री टेस्ट काउंसिलिंग कर वेस्टर्न ब्लोट विधि से टेस्ट करवाने की सलाह दी थी. हम ने उसे बता दिया था कि जिस एलिसा विधि से हम टेस्ट करते हैं वह सेंसिटिव होती है, स्पेसिफिक नहीं. उस में फाल्स पाजिटिव होने के चांसेज होते हैं. सब तो समझा दिया था, सर. उस में हम ने क्या गलती की थी?’’

‘‘गलती की बात नहीं. इन टेस्टों के चलते उस महिला को जो मानसिक क्लेश हुआ उस के लिए कौन जिम्मेदार है?’’

‘‘सर, उस के लिए हम क्या कर सकते थे. जीव विज्ञान में कोई भी टेस्ट 100 प्रतिशत तो सही होता नहीं. हर टेस्ट की अपनी क्षमता होती है. हर टेस्ट में फाल्स पाजिटिव या फाल्स निगेटिव होने की संभावना

होती है. सेंसिटिव में फाल्स पाजिटिव और स्पेसिफिक में फाल्स निगेटिव.’’

‘‘बड़ी ज्ञान की बातें कर रहे हो,’’ डा. कांत बोले, ‘‘यह बात आम लोगों को समझाने की जिम्मेदारी किस की है? खुद को उस महिला की जगह, उस की समझ और सोच के हिसाब से रख कर देखो. उसे कितना संताप हुआ होगा. खैर, उसे छोड़ो. उस लड़के की बात करो जो अपनी लिम्फनोड की बायोप्सी ले कर आया था. उस का तो वेस्टर्न ब्लोट टेस्ट भी पाजिटिव आया था. वह तो कनफर्म्ड एच.आई.वी. पाजिटिव था. उस में क्या किया? क्या किया तुम ने रोकथाम के लिए?’’

‘‘वही जवान लड़का न सर, जिस की किसी बाहर के सर्जन ने गले की एक लिम्फनोड निकाल कर भिजवाई थी? जिस लड़के को कभीकभार बुखार, शरीर गिरागिरा रहना और वजन कम होने की शिकायत थी, पर सारे टेस्ट करवाने पर भी कोई रोग नहीं निकला था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हां, वही,’’ डा. कांत बोले, ‘‘याद है तुम्हें, वह बायोप्सी रक्त कैंसर की आरंभिक अवस्था न हो, इस का परीक्षण करवाने आया था. टेस्ट में रक्त कैंसर के लक्षण तो नहीं पाए गए थे, पर उस की लिम्फनोड में ऐसे माइक्रोस्कोपिक चेंजेज थे जो एच.आई.वी. पाजिटिव मामलों में देखने को मिलते हैं.’’

‘‘जी, सर याद है. उस की स्वीकृति ले कर ही हम ने उस का एच.आई.वी. टेस्ट किया था और वह पाजिटिव निकला था. उसे हम ने पाजिटिव टेस्ट के बारे में बताया था. उस की भी हम ने काउंसिलिंग की थी. किसी प्रकार के यौन संबंधों से उस ने इनकार किया था. रक्त लेने, इंजेक्शन, आपरेशन आदि किसी की भी तो हिस्ट्री नहीं थी. हम ने सब समझा कर नियमानुसार ही उसे वैस्टर्न ब्लोट टेस्ट करवाने की सलाह दी थी.’’

‘‘नियमानुसार,’’ बड़े तल्ख लहजे में डा. कांत ने दोहराया, ‘‘जब उस ने आ कर बताया था कि उस का वैस्टर्न ब्लोट टेस्ट भी पाजिटिव है तब तुम ने नियमानुसार क्या किया था? याद है उस ने आ कर माफी मांगी थी. हम से झूठ बोलने के लिए माफी. उस ने बाद में बताया था कि उस की शादी हो चुकी है, गौना होना है. मंगेतर कालिज में पढ़ रही थी. उस ने यौन संबंध न होने का झूठ भी स्वीकारा था. उस ने कहा था वह और उस के कुछ दोस्त एक लड़की के यहां जाते थे, याद है?’’

‘‘जी, सर, अच्छी तरह याद है, भले घर का सीधासादा लड़का था. उस ने सब कुछ साफसाफ बता दिया था. बड़ा घबराया हुआ था. जानना चाहता था कि उस का क्या होगा. हम ने उस की पूरी पोस्ट टेस्ट काउंसिलिंग की थी. बता दिया था उसे, कैसे सुरक्षित जीवन जीना…’’

‘‘नियमानुसार जबानी जमाखर्च हुआ और एड्स की रोकथाम

की जिम्मेदारी

पूरी हो गई,’’

डा. कांत ने बीच में बात काटी.

‘‘और क्या कर सकते थे, सर?’’ मैं ने पूछा.

‘‘जिस लड़की के साथ उस का विवाह हो चुका था और गौना होना था उसे ढूंढ़ कर बताना आवश्यक नहीं था? उस के प्र्रति क्या तुम्हारा दायित्व नहीं था? तुम कौन सा वह केस बता रहे थे जिस में उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय दिया है कि अगर आप का कोई रोगी एच.आई.वी. या ऐसे ही किसी संक्रमण से ग्रसित है और वह किसी व्यक्ति को संक्रमण फैला सकता है तो ऐसे व्यक्ति को इस खतरे के बारे में न बताने पर डाक्टर को दोषी माना जाएगा. अगर उस चिह्नित रोगी व्यक्ति को संक्रमण हो जाए तो उस डाक्टर के खिलाफ फौजदारी की काररवाई भी हो सकती है.’’

‘‘जी सर, डा. एक्स बनाम अस्पताल एक्स नाम का मामला था,’’ मैं ने कहा.

‘‘हां, वही, अजीब नाम था केस का,’’ डा. कांत ने कहना जारी रखा, ‘‘लिम्फनोड वाले लड़के ने अपने दोस्तों के बारे में बताया था. क्या उन दोस्तों को पहचान कर उन का भी एच.आई.वी. टेस्ट करना आवश्यक नहीं था? क्या उस लड़की या वेश्या, जिस के यहां वे जाते थे उसे पहचानना, उस का टेस्ट करना आवश्यक नहीं था? एड्स की रोकथाम के लिए क्या उसे पेशे से हटाना जरूरी नहीं था?’’

‘‘जरूरी तो था, सर, पर नियमों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, और न ही ऐसी कोई व्यवस्था है जिस से हम यह सब कर सकें,’’ मैं ने अपनी मजबूरी बताई.

‘‘तो फिर एड्स की रोकथाम क्या खाक करोगे. बेकार के ढकोसले क्यों करते हो? जो एच.आई.वी. पाजिटिव है उसे बताने की क्या आवश्यकता है. उसे जीने दो अपनी जिंदगी. जब एच.आई.वी. पाजिटिव व्यक्ति एड्स का रोगी हो कर आए तब जो करना हो वह करना.’’

‘‘लेकिन सर,’’ मैं ने कहना शुरू किया तो डा. कांत ने फिर बीच में ही टोक दिया.

‘‘लेकिन दुर्भाग्य तो यह है कि एच.आई.वी. संक्रमण, वेश्या के पास जाने या यौन संबंधों से ही नहीं, किसी शरीफ आदमी और महिला को चिकित्सा प्रक्रिया से भी हो सकता है,’’ वह बोले.

‘‘हां, सर, एच.आई.वी. संक्रमण होने के तुरंत बाद जिसे हम विंडो पीरियड कहते हैं, ब्लड टेस्ट पाजिटिव नहीं आता. लेकिन ऐसा व्यक्ति अगर रक्तदान करे तो उस से रक्त पाने वाले को संक्रमण हो सकता है.’’

सुन कर डा. कांत बोले, ‘‘मैं इस चिकित्सा प्रक्रिया की बात नहीं कर रहा. ऐसा न हो उस के पूरे प्रयास किए जाते हैं, जिस केस को ले कर मुझे ग्लानि विरक्ति और अपनेआप को दोषी मान कर क्षोभ हो रहा है और जिसे ले कर मैं सबकुछ छोड़ने की बात कर रहा हूं, वह कुछ और ही है.’’

मैं कुछ बोला नहीं. चुपचाप उन के बताने का इंतजार करता रहा. अवश्य ही कोई खास बात होगी जिस ने डा. कांत जैसे वरिष्ठ चिकित्सक को इतना विचलित कर दिया कि वह सबकुछ छोड़ने की सोच रहे हैं.

काफी देर चुप रहने के बाद बड़ी संजीदगी से लरजती आवाज में वह बोले, ‘‘कल देर रात घर आए थे, मियांबीवी दोनों. काफी बुजुर्ग हैं. रिटायर हुए भी 15 साल हो चुके हैं. बेटेपोतों के भरे परिवार के साथ रहते हैं.

‘‘कहने लगे, दोनों सोच रहे हैं कहीं जा कर चुपके से आत्महत्या कर लें क्योंकि एच.आई.वी पाजिटिव होना बता कर मैं ने उन्हें किसी लायक नहीं रखा है. मैं ने उन्हें किसलिए बताया कि वे एच.आई.वी. पाजिटिव हैं. उन दोनों का किसी से यौन संबंध नहीं हो सकता और न ही रक्तदान करने की उन की उम्र है. फिर उन से संक्रमण होने का किसे खतरा था जो मैं ने उन्हें एच.आई.वी. पाजिटिव होने के बारे में बताया? जब एच.आई.वी. का निदान कर कुछ किया ही नहीं जा सकता तो फिर बताया किसलिए? वे कैसे सहन करेंगे, अपने बच्चों, पोतों का बदला हुआ रुख जब उन्हें मालूम होगा. उन को संक्रमण का कोई खतरा नहीं है पर अज्ञात का भय, जब बच्चे उन के पास आने से कतराएंगे. कहने लगे, उचित यही होगा कि नींद की गोलियां खा कर जीवन समाप्त कर लें.’’

कहतेकहते डा. कांत चुप हो गए तो मैं ने कहा, ‘‘सर, मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा. एड्स संक्रमण ऐसे तो होता नहीं. जब संक्रमण हुआ है तो उसे भुगतना और फेस भी करना ही होगा.’’

जवाब में डा. कांत ने कहा, ‘‘मेरी भी समझ में नहीं आया था कि उन्हें संक्रमण हुआ कैसे. मैं उन्हें अरसे से बहुत नजदीक से जानता हूं. घनिष्ठ घरेलू संबंध हैं. बड़ा साफसुथरा जीवन रहा है उन का. किसी प्रकार के बाहरी यौन संबंधों का सवाल ही नहीं उठता और उन का विश्वास करने का भी कोई कारण नहीं.

‘‘जीवन में कुछ भी ऐसा नहीं था कि जिस से चाहेअनचाहे एच.आई.वी. संक्रमण हो सकता. सब पूछा था, काफी चर्चा हुई. वे बारबार मुझ से ही पूछते थे कि फिर कैसे हो गया संक्रमण. अंत में उन्होंने मुझे बताया कि वे डायबिटीज के रोगी अवश्य हैं. उन्हें इंसुलिन या अन्य इंजेक्शन तो कभी लेने नहीं पड़े पर वे नियमित रूप से टेस्ट करवाने एक प्राइवेट लैब में जाते थे. उन्होंने बताया, उस लैब में उंगली से ब्लड एक प्लंजर से लेते थे. दूसरे रोगियों में भी वही प्लंजर काम में लिया जाता था.

‘‘क्या उस से उन को संक्रमण हुआ है, क्योंकि इस के अलावा तो उन्होंने कभी कोई इंजेक्शन नहीं लिए. जब मैं ने बताया कि यह संभव है तो उन्होंने कहा कि इस लैब के खिलाफ काररवाई क्यों नहीं करते? लैब को ऐसा करने से रोका क्यों नहीं गया? जो उन्हें हुआ है वह दूसरे मासूम लोगों को भी हो सकता है या हुआ होगा.’’

कुछ पल शांत रह कर वह फिर बोले, ‘‘और मैं सोच रहा था कि आत्महत्या उन्हें करनी चाहिए या मुझे? क्या लाभ है ऐसे रोगों का निदान करने में जिन का इलाज नहीं कर सकते और जिन की रोकथाम हम करते नहीं. महज ऐसे रोेगियों का जीना दुश्वार करने से लाभ? क्या सोचते होंगे वे लोग जिन का निदान कर मैं ने जीना दूभर कर दिया?’’

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