प्रेम तर्पण: क्यों खुद को बोझ मान रही थी कृतिका

डाक्टर ने जवाब दे दिया था, ‘‘माधव, हम से जितना बन पड़ा हम कर रहे हैं, लेकिन कृतिकाजी के स्वास्थ्य में कोईर् सुधार नहीं हो रहा है. एक दोस्त होने के नाते मेरी तुम्हें सलाह है कि अब इन्हें घर ले जाओ और इन की सेवा करो, क्योंकि समय नहीं है कृतिकाजी के पास. हमारे हाथ में जितना था हम कर चुके हैं.’’

डा. सुकेतु की बातें सुन कर माधव के पीले पड़े मुख पर बेचैनी छा गई. सबकुछ सुन्न सा समझने न समझने की अवस्था से परे माधव दीवार के सहारे टिक गया. डा. सुकेतु ने माधव के कंधे पर हाथ रख कर तसल्ली देते हुए फिर कहा, ‘‘हिम्मत रखो माधव, मेरी मानो तो अपने सगेसंबंधियों को बुला लो.’’ माधव बिना कुछ कहे बस आईसीयू के दरवाजे को घूरता रहा. कुछ देर बाद माधव को स्थिति का भान हुआ. उस ने अपनी डबडबाई आंखों को पोंछते हुए अपने सभी सगेसंबंधियों को कृतिका की स्थिति के बारे में सूचित कर दिया.

इधर, कृतिका की एकएक सांस हजारहजार बार टूटटूट कर बिखर रही थी. बची धड़कनें कृतिका के हृदय में आखिरी दस्तक दे कर जा रही थीं. पथराई आंखें और पीला पड़ता शरीर कृतिका की अंतिम वेला को धीरेधीरे उस तक सरका रहा था. कृतिका के भाई, भाभी, मौसी सभी परिवारजन रात तक दिल्ली पहुंच गए. कृतिका की हालत देख सभी का बुरा हाल था. माधव को ढाड़स बंधाते हुए कृतिका के भाई कुणाल ने कहा, ‘‘जीजाजी, हिम्मत रखिए, सब ठीक हो जाएगा.’’

तभी कृतिका को देखने डाक्टर विजिट पर आए. कुणाल और माधव भी वेटिंगरूम से कृतिका के आईसीयू वार्ड पहुंच गए. डा. सुकेतु ने कृतिका को देखा और माधव से कहा, ‘‘कोई सुधार नहीं है. स्थिति अब और गंभीर हो चली है, क्या सोचा माधव तुम ने ’’ ‘‘नहींनहीं सुकेतु, मैं एक छोटी सी किरण को भी नजरअंदाज नहीं कर सकता. तुम्हीं बताओ, मैं कैसे मान लूं कि कृतिका की सांसें खत्म हो रही हैं, वह मर रही है, नहीं वह यहीं रहेगी और उसे तुम्हें ठीक करना ही होगा. यदि तुम से न हो पा रहा हो तो हम दूसरे किसी बड़े अस्पताल में ले जाएंगे, लेकिन यह मत कहो कि कृतिका को घर ले जाओ, हम उसे मरने के लिए नहीं छोड़ सकते.’’

सुकेतु ने माधव के कंधे को सहलाते हुए कहा, ‘‘धीरज रखो, यहां जो इलाज हो रहा है वह बैस्ट है. कहीं भी ले जाओ, इस से बैस्ट कोई ट्रीटमैंट नहीं है और तुम चाहते हो कि कृतिकाजी यहीं रहेंगी, तो मैं एक डाक्टर होने के नाते नहीं, तुम्हारा दोस्त होने के नाते यह सलाह दे रहा हूं. डोंट वरी, टेक केयर, वी विल डू आवर बैस्ट.’’

माधव को कुणाल ने सहारा दिया और कहा, ‘‘जीजाजी, सब ठीक हो जाएगा, आप हिम्मत मत हारिए,’’ माधव निर्लिप्त सा जमीन पर मुंह गड़ाए बैठा रहा. 3 दिन हो गए, कृतिका की हालत जस की तस बनी हुई थी, सारे रिश्तेदार इकट्ठा हो चुके थे. सभी बुजुर्ग कृतिका के बीते दिनों को याद करते उस के स्वस्थ होने की कामना कर रहे थे कि अभी इस बच्ची की उम्र ही क्या है, इस को ठीक कर दो. देखो तो जिन के जाने की उम्र है वे भलेचंगे बैठे हैं और जिस के जीने के दिन हैं वह मौत की शैय्या पर पड़ी है. कृतिका की मौसी ने हिम्मत करते हुए माधव के कंधे पर हाथ रखा और कहा, ‘‘बेटा, दिल कड़ा करो, कृतिका को और कष्ट मत दो, उसे घर ले चलो.

‘‘माधव ने मौसी को तरेरते हुए कहा, ‘‘कैसी बातें करती हो मौसी, मैं उम्मीद कैसे छोड़ दूं.’’

तभी माधव की मां ने गुस्से में आ कर कहा, ‘‘क्यों मरे जाते हो मधु बेटा, जिसे जाना है जाने दो. वैसे भी कौन से सुख दिए हैं तुम्हें कृतिका ने जो तुम इतना दुख मना रहे हो,’’ वे धीरे से फुसफुसाते हुए बोलीं, ‘‘एक संतान तक तो दे न सकी.’’ माधव खीज पड़ा, ‘‘बस करो अम्मां, समझ भी रही हो कि क्या कह रही हो. वह कृतिका ही है जिस के कारण आज मैं यहां खड़ा हूं, सफल हूं, हर परेशानी को अपने सिर ओढ़ कर वह खड़ी रही मेरे लिए. मैं आप को ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहता इसलिए आप चुप ही रहो बस.’’

कृतिका की मौसी यह सब देख कर सुबकते हुए बोलीं, ‘‘न जाने किस में प्राण अटके पड़े हैं, क्यों तेरी ये सांसों की डोर नहीं टूटती, देख तो लिया सब को और किस की अभिलाषा ने तेरी आत्मा को बंदी बना रखा है. अब खुद भी मुक्त हो बेटा और दूसरों को भी मुक्त कर, जा बेटा कृतिका जा.’’ माधव मौसी की बात सुन कर बाहर निकल गया. वह खुद से प्रश्न कर रहा था, ‘क्या सच में कृतिका के प्राण कहीं अटके हैं, उस की सांसें किसी का इंतजार कर रही हैं. अपनी अपलक खुली आंखों से वह किसे देखना चाहती है, सब तो यहीं हैं. क्या ऐसा हो सकता है

‘हो सकता है, क्यों नहीं, उस के चेहरे पर मैं ने सदैव उदासी ही तो देखी है. एक ऐसा दर्द उस की आंखों से छलकता था जिसे मैं ने कभी देखा ही नहीं, न ही कभी जानने की कोशिश ही की कि आखिर ये कैसी उदासी उस के मुख पर सदैव सोई रहती है, कौन से दर्द की हरारत उस की आंखों को पीला करती जा रही है, लेकिन कोईर् तो उस की इस पीड़ा का साझा होगा, मुझे जानना होगा,’ सोचता हुआ माधव गाड़ी उठा कर घर की ओर चल पड़ा. घर पहुंचते ही कृतिका के सारे कागजपत्र उलटपलट कर देख डाले, लेकिन कहीं कुछ नहीं मिला. कुछ देर बैठा तो उसे कृतिका की वह डायरी याद आई जो उस ने कई बार कृतिका के पास देखी थी, एक पुराने बकसे में कृतिका की वह डायरी मिली. माधव का दिल जोरजोर से धड़क रहा था.

कृतिका का न जाने कौन सा दर्द उस के सामने आने वाला था. अपने डर को पीछे धकेल माधव ने थरथराते हाथों से डायरी खोली तो एक पन्ना उस के हाथों से आ चिपका. माधव ने पन्ने को पढ़ा तो सन्न रह गया. यह पत्र तो कृतिका ने उसी के लिए लिखा था :

‘प्रिय माधव,

‘मैं जानती हूं कि मैं तुम्हारे लिए अबूझ पहेली ही रही. मैं ने कभी तुम्हें कोई सुख नहीं दिया, न प्रेम, न संतान और न जीवन. मैं तुम्हारे लायक तो कभी थी ही नहीं, लेकिन तुम जैसे अच्छे पुरुष ने मुझे स्वीकार किया. मुझे तुम्हारा सान्निध्य मिला यह मेरे जन्मों का ही फल है, लेकिन मुझे दुख है कि मैं कभी तुम्हारा मान नहीं कर पाई, तुम्हारे जीवन को सार्थक नहीं कर पाई. तुम्हारी दोस्त, पत्नी तो बन गई लेकिन आत्मांगी नहीं बन पाई. मेरा अपराध क्षम्य तो नहीं लेकिन फिर भी हो सके तो मुझे क्षमा कर देना माधव, तुम जैसे महापुरुष का जीवन मैं ने नष्ट कर दिया, आज तुम्हारा कोई तुम्हें अपना कहने वाला नहीं, सिर्फ मेरे कारण.

‘मैं जानती हूं तुम ने मेरी कोई बात कभी नहीं टाली इसलिए एक आखिरी याचना इस पत्र के माध्यम से कर रही हूं. माधव, जब मेरी अंतिम विदाईर् का समय हो तो मुझे उसी माटी में मिश्रित कर देना जिस माटी ने मेरा निर्माण किया, जिस की छाती पर गिरगिर कर मैं ने चलना सीखा. जहां की दीवारों पर मैं ने पहली बार अक्षरों को बुनना सीखा.

जिस माटी का स्वाद मेरे बालमुख में कितनी बार जीवन का आनंद घोलता रहा. मुझे उसी आंगन में ले चलना जहां मेरी जिंदगी बिखरी है. ‘मैं समझती हूं कि यह तुम्हारे लिए मुश्किल होगा, लेकिन मेरी विनती है कि मुझे उसी मिट्टी की गोद में सुलाना जिस में मैं ने आंखें खोली थीं. तुम ने अपने सारे दायित्व निभाए, लेकिन मैं तुम्हारे प्रेम को आत्मसात न कर सकी. इस डायरी के पन्नों में मेरी पूरी जिंदगी कैद थी, लेकिन मैं ने उस का पहले ही अंतिम संस्कार कर दिया, अब मेरी बारी है, हो सके तो मुझे क्षमा करना.

‘तुम्हारी कृतिका.’

माधव सहम गया, डायरी के कोरे पन्नों के सिवा कुछ नहीं था, कृतिका यह क्या कर गई अपने जीवन की उस पूजा पर परदा डाल कर चली गई, जिस में तुम्हारी जिंदगी अटकी है. आज अस्पताल में हरेक सांस तुम्हें हजारहजार मौत दे रही है और हम सब देख रहे हैं. माधव ने डायरी के अंतिम पृष्ठ पर एक नंबर लिखा पाया, वह पूर्णिमा का नंबर था. पूर्णिमा कृतिका की बचपन की एकमात्र दोस्त थी. माधव ने खुद से प्रश्न किया कि मैं इसे कैसे भूल गया. माधव ने डायरी के लिखा नंबर डायल किया.

‘‘हैलो, क्या मैं पूर्णिमाजी से बात कर रहा हूं, मैं उन की दोस्त कृतिका का पति बोल रहा हूं,‘‘

दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘नहीं मैं उन की भाभी हूं. दीदी अब दिल्ली में रहती हैं.’’ माधव ने पूर्णिमा का दिल्ली का नंबर लिया और फौरन पूर्णिमा को फोन किया, ‘‘नमस्कार, क्या आप पूर्णिमाजी बोली रही हैं.’‘

‘‘जी, बोल रही हूं, आप कौन ’’

‘‘जी, मैं माधव, कृतिका का हसबैंड.’’

पूर्णिमा उछल पड़ी, ‘‘कृतिका. कहां है, वह तो मेरी जान थी, कैसी है वह  कब से उस से कोई मुलाकात ही नहीं हुई. उस से कहिएगा नाराज हूं बहुत, कहां गई कुछ बताया ही नहीं,’’ एकसाथ पूर्णिमा ने शिकायतों और सवालों की झड़ी लगा दी. माधव ने बीच में ही टोकते हुए कहा, ‘कृतिका अस्पताल में है, उस की हालत ठीक नहीं है. क्या आप आ सकती हैं मिलने ’’ पूर्णिमा धम्म से सोफे पर गिर पड़ी, कुछ देर दोनों ओर चुप्पी छाई रही. माधव ने पूर्णिमा को अस्पताल का पता बताया. ‘‘अभी पहुंचती हूं,’’ कह कर पूर्णिमा ने फोन काट दिया और आननफानन में अस्पताल के लिए निकल गई. माधव निर्णयों की गठरी बना कर अस्पताल पहुंच गया. कुछ ही देर बाद पूर्णिमा भी वहां पहुंच गई. डा. सुकेतु की अनुमति से पूर्णिमा को कृतिका से मिलने की आज्ञा मिल गई.

पूर्णिमा ने जैसे ही कमरे में प्रवेश किया, कृतिका को देख कर गिरतेगिरते बची. सौंदर्य की अनुपम कृति कृतिका आज सूखे मरते शरीर के साथ पड़ी थी. पूर्णिमा खुद को संभालते हुए कृतिका की बगल में स्टूल पर जा कर बैठ गई. उस की ठंडी पड़ती हथेली को अपने हाथ से रगड़ कर उसे जीवन की गरमाहट देने की कोशिश करने लगी. उस ने उस के माथे पर हाथ फेरा और कहा, ‘‘कृति, यह क्या कर लिया तूने  कौन सा दर्द तुझे खा गया  बता मुझे कौन सी पीड़ा है जो तुझे न तो जीने दे रही है न मरने. सबकुछ तेरे सामने है, तेरा परिवार जिस के लिए तू कुछ भी करने को तैयार रहती थी, तेरा उन का सगा न होना यही तेरे लिए दर्द का कारण हुआ करता था, लेकिन आज तेरे लिए वे किसी सगे से ज्यादा बिलख रहे हैं. इतने समझदार पति हैं फिर कौन सी वेदना तुझे विरक्त नहीं होने देती.’’ कृति की पथराई आंखें बस दरवाजे पर टिकी थीं, उस ने कोई उत्तर नहीं दिया.

पूर्णिमा कृति के चेहरे के भावों को पढ़ने की कोशिश कर रही थी, कुछ देर उस की आंखों में उस की पीड़ा खोजते हुए पूर्णिमा ने धीरे से कहा, ‘‘शेखर, कृति की पथराई आंख से आंसू का एक कतरा गिरा और निढाल हाथों की उंगलियां पूर्णिमा की हथेली को छू गईं. पूर्णिमा ठिठक गई, अपना हाथ कृतिका के सिर पर रख कर बिलख पड़ी, तू कौन है कृतिका, यह कैसी अराधना है तेरी जो मृत्यु शैय्या पर भी नहीं छोड़ती, यह कौन सा रूप है प्रेम का जो तेरी आत्मा तक को छलनी किए डालता है.’’ तभी आवाज आई, ‘‘मैडम, आप का मिलने का समय खत्म हो गया है, मरीज को आराम करने दीजिए.’’

पूर्णिमा कृतिका के हाथों को उम्मीदों से सहला कर बाहर आ गई और पीछे कृतिका की आंखें अपनी इस अंतिम पीड़ा के निवारण की गुहार लगा रही थीं. उस की पुतलियों पर गुजरा कल एकएक कर के नाचने लगा था. कृतिका नाम मौसी ने यह कह कर रखा था कि इस मासूम की हम सब माताएं हैं कृतिकाओं की तरह, इसलिए इस का नाम कृतिका रखते हैं. कृतिका की मां उसे जन्म देते ही इस दुनिया से चल बसी थीं. मौसी उस 2 दिन की बच्ची को अपने साथ लेआई थीं, नानी, मामी, मौसी सब ने देखभाल कर कृतिका का पालन किया था. जैसेजैसे कृतिका बड़ी हुई तो लोगों की सहानुभूति भरी नजरों और बच्चों के आपसी झगड़ों ने उसे बता दिया था कि उस के मांबाप नहीं हैं. परिवार में प्राय: उसे ले कर मनमुटाव रहता था. कई बार यह बड़े झगड़े में भी तबदील हो जाता, जिस के परिणामस्वरूप मासूम छोटी सी कृतिका संकोची, डरी, सहमी सी रहने लगी. वह लोगों के सामने आने से डरती, अकसर चिड़चिड़ाया करती, लोगों की दया भरी दलीलों ने उस के भीतर साधारण हंसनेबोलने वाली लड़की को मार डाला था.

कभी उसे बच्चे चिढ़ाते कि अरे, इस की तो मम्मी ही नहीं है ये बेचारी किस से कहेगी. मासूम बचपन यह सुन कर सहम कर रह जाता. यह सबकुछ उसे व्यग्र बनाता चला गया. बस, हर वक्त उस की पीड़ा यही रहती कि मैं क्यों इस परिवार की सगी नहीं हुई, धीरेधीरे वह खुद को दया का पात्र समझने लगी थी, अपने दिल की बेचैनी को दबाए अकसर सिसकसिसक कर ही रोया करती.

युवावस्था में न अन्य युवतियों की तरह सजनेसंवरने के शौक, न हंसीठिठोली, बस, एक बेजान गुडि़या सी वह सारे काम करती रहती. उस के दोस्तों में सिर्फ पूर्णिमा ही थी जो उसे समझती और उस की अनकही बातों को भी बूझ लिया करती थी. कृतिका को पूर्णिमा से कभी कुछ कहने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी. पूर्णिमा उसे समझाती, दुलारती और डांटती सबकुछ करती, लेकिन कृतिका का जीवन रेगिस्तान की रेत की तरह ही था.

कृतिका के घर के पास एक लड़का रोज उसे देखा करता था, कृतिका उसे नजरअंदाज करती रहती, लेकिन न जाने क्यों उस की आंखें बारबार कृतिका को अपनी ओर खींचा करतीं, कभी किसी की ओर न देखने वाली कृतिका उस की ओर खिंची चली जा रही थी.

उस की आंखों में उसे खिलखिलाती, नाचती, झूमती जिंदगी दिखने लगी थी, क्योंकि एक वही आंखें थीं जिन में सिर्फ कृतिका थी, उस की पहचान के लिए कोई सवाल नहीं था, कोई सहानुभूति नहीं थी. कृतिका के कालेज में ही पढ़ने आया था शेखर. कृतिका अब सजनेसंवरने लगी थी, हंसने लगी थी. वह शेखर से बात करती तो खिल उठती. शेखर ने उसे जीने का नया हौसला और पहचान से परे जीना सिखाया था. पूर्णिमा ने शेखर के बारे में घर में बताया तो एक नई कलह सामने आई. कृतिका चुपचाप सब सुनती रही. अब उस के जीवन से शेखर को निकाल दिया गया. कृतिका फिर बिखर गई, इस बार संभलना मुश्किल था, क्योंकि कच्ची माटी को आकार देना सहज होता है.

कृतिका में अब शेखर ही था, महीनों कृतिका अंधेरे कमरे में पड़ी रही न खाती न पीती बस, रोती ही रहती. एक दिन नौकरी के लिए कौल लैटर आया तो परिवार वालों ने भेजने से इनकार कर दिया, लेकिन इस बार कृतिका अपने संकोच को तिलांजलि दे चुकी थी, उस ने खुद को काम में इस कदर झोंक दिया कि उसे अब खुद का होश नहीं रहता  परिवार की ओर से अब लगातार शादी का दबाव बढ़ रहा था, परिणामस्वरूप सेहत बिगड़ने लगी. उस के लिए जीवन कठिन हो गया था, पीड़ा ने तो उसे जैसे गोद ले लिया हो, रातभर रोती रहती. सपने में शेखर की छाया को देख कर चौंक कर उठ बैठती, उस की पागलों की सी स्थिति होती जा रही थी.

अब कृतिका ने निर्णय ले लिया था कि वह अपना जीवन खत्म कर देगी, कृतिका ने पूर्णिमा को फोन किया और बिलखबिलख कर रो पड़ी, ‘पूर्णिमा, मुझ से नहीं जीया जाता, मैं सोना चाहती हूं.’ पूर्णिमा ने झल्ला कर कहा, ‘हां, मर जा और उन लोगों को कलंकित कर जा जिन्होंने तुझे उस वक्त जीवन दिया था जब तेरे ऊपर किसी का साया नहीं था, इतनी स्वार्थी कैसे और कब हो गई तू  तू ने जीवन भर उस परिवार के लिए क्याक्या नहीं किया, आज तू यह कलंक देगी उपहार में ’

कृतिका ने बिलखते हुए कहा, ‘मैं क्या करूं पूर्णिमा, शेखर मेरे मन में बसता है, मैं कैसे स्वीकार करूं कि वह मेरा नहीं, मैं तो जिंदगी जानती ही नहीं थी वही तो मुझे इस जीवन में खींच कर लाया था. आज उसे जरा सी भी तकलीफ होती है तो मुझे एहसास हो जाया करता है, मुझे अनाम वेदना छलनी कर जाती है, मैं तो उस से नफरत भी नहीं कर पा रही हूं, वह मेरे रोमरोम में बस रहा है.’ पूर्णिमा बोली, ‘कृतिका जरूरी तो नहीं जिस से हम प्रेम करें उसे अपने गले का हार बना कर रखें, वह हर पल हमारे साथ रहे, प्रेम का अर्थ केवल साथ रहना तो नहीं. तुझे जीना होगा यदि शेखर के बिना नहीं जी सकती तो उस की वेदना को अपनी जिंदगी बना ले, उस की पीड़ा के दुशाले से अपने मन को ढक ले, शेखर खुद ब खुद तुझ में बस जाएगा. तुझ से उसे प्रेम करने का अधिकार कोई नहीं छीन सकता.

कृतिका को अपने प्रेम को जीने का नया मार्ग मिल गया था, शेखर उस की आत्मा बन चुका था, शेखर की पीड़ा कृतिका को दर्द देती थी, लेकिन कृतिका जीती गई, सब के लिए परिवार की खुशी के लिए माधव से कृतिका का विवाह हो गया. माधव एक अच्छे जीवनसाथी की तरह उस के साथ चलता रहा, कृतिका भी अपने सारे दायित्वों को निभाती चली गई, लेकिन उस की आत्मा में बसी वेदना उस के जीवन को धीरेधीरे खा रही थी और वही पीड़ा उसे आज मृत्यु शैय्या तक ले आई थी, उसे ब्रेन हैमरेज हो गया था.

रात हो चली थी. नर्स ने आईसीयू के तेज प्रकाश को मद्धम कर दिया और कृतिका की आंखों में नाचता अतीत फिर वर्तमान के दुशाले में दुबक गया. पूर्णिमा ने माधव से कहा कि कृतिका को आप उस के घर ले चलिए मैं भी चलूंगी, मैं थोड़ी देर में आती हूं. पूर्णिमा ने घर आ कर तमाम किताबों, डायरियों की खोजबीन कर शेखर का फोन नंबर ढूंढ़ा और फोन लगाया, सामने से एक भारी सी आवाज आई, ‘‘हैलो, कौन ’’

‘‘हैलो, शेखर ’’

‘‘जी, मैं शेखर बोल रहा हूं.’’

‘‘शेखर, मैं पूर्णिमा, कृतिका की दोस्त.’’

कुछ देर चुप्पी छाई रही, शेखर की आंखों में कृतिका तैर गई. उस ने खुद को संभालते हुए कहा, ‘‘पूर्णिमा… कृतिका… कृतिका कैसी है ’’ पूर्णिमा रो पड़ी, ‘‘मर रही है, उस की सांसें उसी शेखर के लिए अटकी हैं जिस ने उसे जीना सिखाया था, क्या तुम उस के घर आ सकोगे कल ’’ शेखर सोफे पर बेसुध सा गिर पड़ा मुंह से बस यही कह सका, ‘‘हां.’’ कृतिका को ऐंबुलैंस से घर ले आया गया. घर के सामने लोगों की भीड़ जमा हो गई, सब की आंखों में उस माटी में खेलने वाली वह गुडि़या उतर आई, दरवाजे के पीछे छिप जाने वाली मासूम कृति आज अपनी वेदनाओं को साकार कर इस मिट्टी में छिपने आई थी.

दरवाजे पर लगी कृतिका की आंखों से अश्रुधार बह निकली, शेखर ने देहरी पर पांव रख दिया था, कृतिका की पुतलियों में जैसे ही शेखर का प्रतिबिंब उभरा उस की अंतिम सांसों के पुष्प शेखर के कदमों में बिखर गए और शेखर की आंखों से बहती गंगा ने प्रेम तर्पण कर कृतिका को मुक्त कर दिया.

अनन्या पांडे और खुशी कपूर ने टमी फ्लैट करने के लिए फौलो किया यह फौर्मूला, चौंकाने वाली है इनकी फिटनेस रूटीन

बौलीवुड में एक्टर हो य एक्ट्रेस अपनी फिटनेस को लेकर ही हमेशा लाइमलाइट में बने रहते हैं. जिस के लिए वे घंटो जिम और योग में पसीने बहाते हैं. इतना ही नहीं, स्ट्रिक्ट डाइट को भी फोलो करते है. अपने खाने की टाइमिंग को ले कर कभी लापरवाही नहीं करते हैं. एक्ट्रेस अनन्या पांडे, खुशी कपूर इन दिनों अपने फिटनेस वीडियोज को लेकर चर्चा में हैं.

 

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बौलीवुड में अनन्या और खुशी के अलावा जाह्नवी और सारा अली खान भी फिटनेस फ्रीक मानी जाती हैं . ये सभी एक्ट्रेसैस अपनी एक्सरसाइज और डाइट को लेकर काफी सीरियस रहती है. इनकी वीडियो और फोटोज सोशल मीडिया पर धड़ल्ले से वायरल होती रहती है. इनके फैंस यही जानने के लिए बेताब रहते है कि ये स्टार्स क्या खाते हैं, किस तरह की एक्सरसाइज करते हैं, कितने घंटें काम करते हैं.

बौलीवुड की सेक्सी और खूबसूरत एक्ट्रेस अनन्या पांडे आज लाखों दिलों पर राज करती हैं. इनकी स्माइल, ब्यूटी को हर कोई पसंद करता है इन्होंने अपनी एक्टिंग से भी लाखों लोगों को अपना फोलोअर बना लिया है. इतना ही नहीं, इनका स्लिम फिगर कई लड़कियों के लिए ड्रीम फिगर है.

अनन्या पांडे की डाइट

यह एक्ट्रेस औयली फूड और जंक फूड से काफी दूर रहती है. दिन की शुरुआत वह गुनगुना पानी पी कर करती हैं, एक्ट्रेस अपने ब्रेकफास्ट में लो फैट मिल्क और साउथ इंडियन फूड जैसे- इडली, डोसा, उपमा और प्रोटीन के लिए दो अंडे खाती हैं.

अनन्या पांडे अपने लंच में कार्ब्स इंटेक के लिए दो रोटी और उबली हुई सब्जियां खाती हैं. वह ग्रिल्ड फिश खाना पसंद करती हैं. इसके अलावा शाम को स्नैक्स में वह फिल्टर्ड कौफी पीती हैं और साथ ही नट्स खाना पसंद करती हैं. एक्ट्रेस हरी सब्जियां और सलाद खाना बहुत पसंद करती हैं. उनका फेवरेट स्नैक्स वेजिटेबल सलाद है.

डिनर के लिए अनन्या पांडे हरी सब्जियां, सलाद और रोटी प्रेफर करती हैं. साथ ही साथ वह सीजनल फ्रूट्स खाना पसंद करती हैं. वैसे तो चौकलेट्स और पिज़्ज़ा अनन्या का फेवरेट फूड है लेकिन अपनी बौडी की फिटनेस के लिए ऐसा खाना अवोइड करती हैं. हालांकि कभी-कभी चीट डे मनाती हैं, वो भी तब, जब वह अपने जिम वर्कआउट से छुट्टी लेती हैं.

कैसी है अनन्या की एक्सरसाइट रूटीन

एक्ट्रेस अपनी एक्सरसाइज में योगा, जिम, कार्डियो वर्कआउट, डांस, स्विमिंग, साइकलिंग आदि करती हैं. खुद को फिट रखने के लिए एक स्ट्रिक्ट एक्सरसाइज को फोलो करती हैं . वे दिन की शुरुआत योग से करती हैं और जिम जाना कभी नहीं भूलती . इसके अलावा वे अपनी पसंदीदा स्पोर्ट्स रूटीन में रखती है. भरपूर नींद लेती है और खूब सारा पानी पीती है.

खुशी कपूर की डाइट

फिटनेस डीवा खुशी कपूर बेहद स्लिम दिखती है और अपनी फिटनेस को लेकर काफी सतर्क भी रहती हैं. खुशी की डाइट की बात करें तो, वे भरपूर पोषण से जुड़ी डाइट लेती है साथ ही खूब सारा पानी पीना पसंद करती है. बैलेंस्ड डाइट लेती है. चीनी और जंक फूड से दूर रहती है.

खुशी कपूर का एक्सरसाइट रूटीन

खुशी कपूर फिटनेस के लिए जिम जाना पसंद करती है, वहां वे घंटों एक्सरसाइज करती हैं. हाल में वे जिस में टमी कम करने की एक्सरसाइज करती नजर आई. खुशी वर्कआउट में पिलाटे और कार्डियो करना पसंद करती है. ये उनके कर्वी फिगर को बनाएं रखने में काम आता है.

जाह्नवी कपूर की डाइट

जाह्नवी कपूर अपने दिन की शुरुआत पानी पी कर करती है. वह दिन भर में 10 ग्लास पानी पीती है. इसके बाद एक्ट्रेस ब्रेकफास्ट में ब्राउन ब्रेड, पीनट बटर, ओट्स और एग व्हाइट लेती है.

लंच के दौरान एक्ट्रेस सालद, ब्राउन राइट, पत्तेदार सब्जियां, वेजिटेबल सूप, दाल और उबली सब्जियां, वेजिटेबल सूप खाना पसंद है. एक्ट्रेस को रेड मीट खाना भी पसंद है. खुद को फिट रखने के लिए जाह्नवी सौफ्ट ड्रिंक्स और जंक फूड से कोसो दूर रहती है. डिनर के दौरान एक्ट्रेस दाल, सूप और फिश खाना पसंद करती है. जाह्नवी शराब से कोसों दूर है.

जाह्नवी कपूर का एक्सरसाइज रूटीन

एक्ट्रेस अपनी एक्सरसाइज में योगा, जिम, कार्डियो, वेट लिफ्टिंग और साइकलिंग करती है. जिम औफ वाले दिन एक्ट्रेस जोगिंग और स्विमिंग करती है. एक्ट्रेस को रस्सी कूदना बेहद पसंद है. इस तरह की एक्सरसाइज से एक्ट्रेस बेहद फिट रहती है.

सारा अली खान का नाम आज बौलीवुड की हौट और ग्लैमरस एक्ट्रेसेस की लिस्ट में शामिल है. लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब वह 96 किलो की हुआ करती थीं तब उन्हें उनकी माँ ने भी पहचानने से इंकार कर दिया था. उसके बाद सारा ने अपने डाइट में बदलाव किया और खुद को बनाया ग्लैमरस गर्ल.

सारा अली खान की डाइट

चिया पुडिंग से करती है सारा अपनी शुरुआत. इसमें दूध और दही चिया सीड्स के साथ खाया जाता है. इसे फलों, नट्स या फिर शहद जैसी टौपिंग के साथ भी खाया जाता है. इसके अलावा सारा एडवोकाडो टोस्ट खाती है. इसे टेस्टी बनाने के लिए आप इसमें टमाटर, उबले अंडे और सीज़निंग मिलाकर का सकते हैं.

सारा अली खान साफसुथरा खाना खाने और प्रोसेस्ड फूड से परहेज करने में विश्वास रखती हैं. उनकी जाइट में बहुत सारे ताजे फल और सब्जियां, लीन प्रोटीन और हैल्दी वसा शामिल हैं. ब्रेकफास्ट में सारा अली खान नाश्ते से करती है जिसमें वे अंडे का सफेद भाग, दलिया और ताजे फल खाते है.

दिन के खाने में वह सब्जियां और भूरे चावल के साथ ग्रिल्ड चिकन या मछली खाती है. डिनर में वे हल्का खाना पसंद करती है आमतौर पर ग्रिल्ड फिश या चिकन के साथ सलाद, सूप लेती है.

सारा अली खान की एक्सरसाइज

सारा अली खान मौर्निंग में जिम जाती है. इसके अलावा वह हाई इंटेसिटी वाला वर्कआउट करती है. उनके जो कि फैट बर्न करने में कारगर साबित होता है. कार्डियो एक्सरसाइज भी सारा की रूटीन में शामिल है. सारा ने अपनी फिटनेस रूटीन में रनिंग, वौकिंग, साइकिलिंग जैसे एक्सरसाइज को शामिल किया. सारा बौक्सिंग भी किया करती है. सारा पुश अप्स, लीपिंग स्क्वौट्स, वेटलिफ्टिंग, ट्रेडमिल बनी हौपिंग, योगासन, केटलेबल ट्रेनिंग और पिलेट्स स्विस आदि करती है.

मेरी लेडी प्रोफैशर मुझे अकेले में मिलने के लिए कहती है, मैं क्या करूं?

सवाल

मैंने हाल ही में कौलेज में एडमिशन लिया है. मै रेगुलर जाता हूं. वहां एक से बढ़कर एक सुंदर लड़कियां हैं, जो फीमेल प्रोफैशर हैं, वो भी स्मार्ट हैं. मुझे तो पढ़ाई में कम , लड़कियों को देखने में ज्यादा मजा आता है. मेरी एक लेडी प्रोफैसर है, वो मुझसे घंटों तक बातें करती है. ये सिलसिला रोजाना चलता है.

वैसे मुझे भी औरतों में ज्यादा इंट्रेस्ट है. लेकिन उस दिन मेरी प्रोफैसर ने बात करतेकरते मेरी हाथों को कस के पकड़ लिया. मैं हक्काबक्का रह गया. मैंने हाथ छुड़ाकर उनके केबिन से बाहर निकला गया. एक दिन उन्होंने मुझे मैसेज किया कि मेरे घर पर आना मैं तुम्हें ट्यूशन पढ़ाऊंगी, लेकिन मैं कौलेज में भी उनके सामने जाने से कतरा रहा हूं. उस लेडी प्रोफैशर की उम्र करीब 40 के आसपासी होगी और वो अकेले ही रहती हैं. मेरा मन करता है, कभी उनसे अकेले में मिलूं, अगर वो मेरे साथ सैक्स करना चाहती है, तो मुझे भी कोई ऐतराज नहीं है, लेकिन डर लगता है, मुझे कहीं वो फंसा न दें… कृपया कोई सुझाव दें, क्या करूं?

जवाब

देखिए कई बार पुरुष या महिला अपनी सेक्सुअल नीड के लिए किसी का इस्तेमाल करते हैं. ऐसे लोगों से सावधान रहें. अगर आपको रिलेशनशिप में रहना ही है, तो किसी लड़की के साथ दोस्ती करें, रोमांटिक डेट पर जाएं, मौजमस्ती करें.

ये भी ध्यान रखें कि ये महिला आपकी प्रोफेसर है और उम्र में भी आपसे बड़ी है. हो सकता है अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए आपका इस्तेमाल करे, तो इन चीजों से दूर रहें कि ऐसी नौबत ही न आए.

जब टीचर से हो जाए प्यार

प्यार की ना तो कोई उम्र होती है ना ही कोई बंधन..यह कब किससे हो जाए, कोई नहीं जानता… लेकिन कुछ ऐसे रिश्ते हैं, जिनमें प्यार का रिश्ता है, तो दुनिया उसे गलत नजरों से देखती है और वो बादनामी का कारण बनता है.

पुराने जमाने में में टीचर और स्‍टूडेंट का रिश्‍ता बहुत पवित्र माना जाता था, लेकिन अब यह रिश्ता भी पूरा तरह बदल गया है और लोगों का नजरिया भी चेंज हुआ है. कौलेज लाइफ के दौरान ये अक्सर देखा गया है कि लड़के या लड़कियों का पहला क्रश कोई प्रोफेशर ही होता है. कई बार स्टूडेंट-टीचर का रिश्ता इतना आगे बढ़ जाता है कि बात शादी तक भी पहुंच जाती है.

पलक तिवारी और इब्राहिम अली खान का है अफेयर ? श्वेता तिवारी ने इस तरह किया रिएक्ट

छोटे पर्दे की चर्चित एक्ट्रैस श्वेता तिवारी सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं. आए दिन वो अपनी फोटोज शेयर कर चर्चा में बनी रहती हैं लेकिन आजकल उनकी बेटी पलक तिवारी और सैफ अली खान के बेटे इब्राहिम अली खान के अफेयर की खबरें आए दिन सोशल मीडिया पर छाई रहती हैं. दोनों को साथ में कई बार स्टौट भी किया गया है. कई बार ऐसा हुआ कैमरा देखते ही दोनों ने मुंह छुपा लिया. ऐसे में दोनों के रिलेशन को लेकर सभी फैंस की उत्सुकता बढ़ गई कि आखिर माजरा क्या है. अब पलक की मां श्वेता तिवारी ने खुद सामने आकर इन खबरों का खंडन किया है.

दिया दोस्ती का नाम

श्वेता तिवारी की बेटी पलक तिवारी और सैफ अली खान और अमृता सिंह का बेटा इब्राहिम जब पहली बार दोनों साथ में नजर आए थे तो पलक ने अपने रिश्ते को दोस्ती का नाम दिया था. लेकिन दोनों को कई बार साथ में देखा गया. तब लोगों के मन में एक सवाल आया कि कुछ तो दोनों के बीच जरूर कुछ पक रहा है. हर कोई इन दोनों के रिश्ते के बारे में जानने को उत्सुक है. अब दोनों की शादी की अफवाह भी सुर्खियों में है.

अटकलों पर विराम

अफवाहों को देखते हुए पहली बार श्वेता तिवारी ने एक इंटरव्यू में दोनों के रिलेशन को लेकर बात की है और फालतू की अटकलों पर विराम दिया है. श्वेता तिवारी ने हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान, बेटी पलक के रिश्ते पर बात करते हुए कहा, ‘मैंने देखा है कि वह बहुत स्ट्रौन्ग लड़की है. उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई क्या कहता है और क्या नहीं. उसे सब पता है कि सच्चाई क्या है. न्यूज पेपर में क्या आ रहा है, उससे उसको कोई फर्क नहीं पड़ता. उसने अपने बारे में फर्क पड़ता है और न मेरे बारे में. वो जान गई है कि मेमोरी ज्यादा दिन तक नहीं रहती है और कोई एक बंदे के बारे में ज्यादा दिन तक गॉसिप भी नहीं कर सकते हैं.’

हर लड़के के साथ नाम

हर लड़के के साथ पलक का नाम जोड़ने पर श्वेता ने कहा, ‘ पलक बहुत स्ट्रौन्ग लड़की है, लेकिन कल का किसको पता है. पता नहीं कोई एक कमेंट, कोई एक आर्टिकल या कोई भी ऐसी चीज कभी तो उस हिट कर सकती है, जो उसका कौन्फिडेंस हिला सकता है. बस मुझे वही डर है कि ऐसा कभी ना हो. क्योंकि वो अभी बच्ची है. लोग बिना कुछ सोचे समझ कुछ भी लिख देते हैं…हर सेकेंड में एक लड़के के साथ उसका नाम जोड़ दिया जाता है. उसका अफेयर रहता है. मैं समझ नहीं पा रही हूं कि वो कब तक बर्दाश्त कर पाएगी.’

आपको बता दें श्वेता तिवारी की बेटी पलक तिवारी ने कम समय में इंडस्ट्री में अपनी खास पहचान बनाई है. पलक ने हार्डी संधू के साथ हिट म्यूजिक वीडियो ‘बिजली बिजली’ से पहचान बनाई. उनका वीडियो सांग काफी वायरल हुआ था. इसके अलावा पलक ने सलमान खान की फिल्म ‘किसी का भाई किसी की जान’ से बौलीवुड में डेब्यू किया था. अब पलक प्रोफेशनल से ज्यादा पर्सनल लाइफ को लेकर सुर्खियों में बनी हुई हैं.

Raksha Bandhan 2024: सांझा दुख- क्यों थी भाई-बहन के रिश्ते में कड़वाहट

कोरोनाकाल चल रहा है. हम सब अपनेअपने घरों में लौकडाउन का पालन करते हुए भी डरे हुए हैं. पता नहीं कब किस को क्या हो जाए. एक ही तरह की दिनचर्या निभाते हुए मन की उल?ान और बढ़ती ही जा रही है. कब, कहां, और कैसे? हर मौत पर दिमाग में ये सवाल कौंध रहे हैं.

अरे, अभी उन से 10 दिनों पहले ही तो बात हुई थी और आज… विवशता, हताशा और पीड़ा का मिलाजुला रूप हम सब पर भारी है. कैसी महामारी है कि हम अपनों तक पहुंच नहीं पा रहे हैं जब उन को हमारी सब से ज्यादा जरूरत है.

स्पर्श, प्यार के दो बोल और सेवा के लिए तड़पते हमारे अपने, अकेले में किस से गुहार कर रहे होंगे? तकलीफ को सांझ कर मन शांत हो जाता है. हम ऐसी डरावनी बीमारी के खौफ से घिरे हैं कि उस के पास हम बैठ भी नहीं सकते जिस से हमारा जीवनभर का नाता है.

दूर से अपनों की परेशानी देख मन तड़प जाता है और एक टीस कि काश.. ऐसा नहीं होता. हमारे अपने बिछुड़ रहे हैं और ऐसी बिछुड़न, कि हम फिर से मिलने की आस भी नहीं संजो पा रहे हैं.

मेरे दिल में यही सब बातें चल रही थीं कि मां आ कर मेरे पास खड़ी हो गईं. नम आंखें बहुतकुछ कह रही थीं. मुझे सीने से लगाते हुए बोलीं, ‘‘शरद नहीं रहा, बिट्टू. कोरोना के काल ने उस को अपनी चपेट में ले लिया.’’

मैं स्तब्ध मां का चेहरा देखती रही. खामोशी के बीच हमारे अंदर दिल चीर डालने वाला दुख सांझ हो रहा था. आंखें उमड़ रही थीं.

मां के जाते ही औंधेमुंह बिस्तर पर कटे पेड़ की तरह ढह गई मैं. आंसू हमारे सुखदुख की साथी तकिया को भिगोते रहे.

शरद भैया से मेरा खून का रिश्ता नहीं था, पर खून के रिश्तों पर हमेशा भारी रहा है यह आत्मिक रिश्ता. बचपन से ही वे हमारे लिए रोलमौडल रहे. भैया के कंधे पर बैठ हम कहांकहां की सैर कर आते थे. मैं छोटीछोटी समस्याओं पर उन के पास पहुंच, रोते हुए और अपनी फ्रौक से आंसू पोंछते हुए उन की गोद में सिर रख कर शिकायतों का पुलिंदा खोल दिया करती थी. कभी मां सा, कभी भाई सा, तो कभी सहेलियों सा बरताव करते.

वे हंसते हुऐ कहते, ‘थोड़ा रूक जा बिट्टू. जब मैं डाक्टर बन जाऊंगा, तब इन सब को इंजैक्शन लगा कर दर्द का एहसास करवाऊंगा.’

खूब हंसती मैं, और तरहतरह की ऐक्टिंग कर के बताती कि दर्द के कारण वे सब कैसे बिलबिलाएंगे. थोड़ी बड़ी हुई. उन के आने पर चाय मैं ही बनाती थी, क्योंकि उन को मेरे हाथ की बनी चाय पसंद थी.

चाय पीते हुए वे कहते, ‘चाची, बिट्टू की शादी हम इसी शहर में कराएंगे, ताकि हम सब को उस के हाथ की बनी चाय हमेशा मिलती रहे.’

बनावटी गुस्सा दिखाती हुई मैं भैया को मारने लगती. वे मुझे सीने से लगाते हुए कहते, ‘इस को कभी भी अपनेआप से दूर नहीं जाने दूंगा.’

मेरी हर समस्या का समाधान था भैया के पास. मेरे स्कूल से ले कर कालेज तक के सफर में भैया हमेशा मार्गदर्शक रहे मेरे.

एक दिन हंसते हुए मैं उन से बोली, ‘आप की अपनी कोई बहन नहीं है न, इसीलिए आप मु?ा से बहुत प्यार करते हैं.’

मु?ो आज भी याद है वह दिन. उन्हें बिलकुल भी बुरी नहीं लगी मेरी बात. उलटे, उन्होंने मेरी नाक पकड़ कर बोला था, ‘बिट्टू, तुम हर जन्म में मेरी बहन हो, और रहोगी. अपना और पराया क्या होता है? जहां प्रेम की लौ जगी, वही अपना है.’

कुछ वर्षों बाद भैया मैडिकल की पढ़ाई के लिए दूसरे शहर चले गए. मैं बहुत रोई थी. जैसे, मेरी दुनिया बेरंग हो गई हो. सुबह के उजाले से ले कर देररात तक उन के साथ की यादें मु?ो और उदास कर जातीं.

फोन पर जब मैं अपनी समस्याएं बताने लगती तो वे कहते, ‘इतनी समस्याओं का, बस, एक समाधान है तेरी शादी. दूल्हा आ जाएगा तेरी जिंदगी में, तब जा कर इस निरीह भाई को राहत मिलेगी.’

गुस्से से कहती मैं, ‘अच्छा, तो आप मु?ा से छुटकारा चाहते हैं. इतनी जल्दी नहीं छोड़ने वाली मैं आप को. और वैसे भी, पहले आप की शादी होगी, तब मेरी.’

भैया के डाक्टर बनते ही उन की शादी हो गई. खूब नाची थी मैं. खुशी मेरे दामन में नहीं समा रही थी.

बाद के दिनों में वे मुझे चिढ़ाते, ‘चाची, मेरी शादी में नागिन डांस के लिए तो इस को पद्मश्री अवार्ड मिलना चाहिए था.’

वक्त के साथ हम सब बदलते गए. मेरी भी शादी हो गई. जिम्मेदारियों ने पैरों में बेडि़यां डाल दीं. मां की आवाज सुन कर मैं आंसू पोंछते हुए बैठ गई.

अपनी गोद में मेरा सिर रख कर प्यार से हाथ फेरते हुए मां बोलीं, ‘‘बिट्टू, तुम्हारे अंदर एक जीव पल रहा है, वह भी तो तुम्हारे खाने का इंतजार कर रहा है.’’

पेट पर हाथ रख कर सोचने लगी मैं, ‘काश, भैया मेरी कोख में आ जाते. मैं मां बन कर उन का खूब खयाल रखती और अपने से कभी भी दूर न जाने देती.’

बहुत प्रयास करने के बाद मैं ने खुद को संयत कर भाभी को कौल किया. उन के रोने की आवाज मेरे कानों में पिघले सीसे की तरह आहत कर रही थी.

‘‘शरद बगैर मुझ से कुछ बोले चले गए, बिट्टू. मैं अब किस को प्यार करूंगी? किस के सहारे रहूंगी? चारों तरफ अंधेरा दिख रहा है? मेरे तो सिर का ताज ही बिखर गया, बिट्टू.’’

‘‘समय के सामने हम सब विवश हैं, भाभी. धैर्य रखिए. अमन का खयाल रखिए. उस पर इन दुखों का असर नहीं होना चाहिए. टूट जाएगा तो बिखरे को समेटना बहुत मुश्किल होगा, भाभी.’’

तभी अमन की आवाज ने मेरी बची हुई हिम्मत को भी तोड़ कर रख दिया, ‘‘मैं पापा के साथ खेलना चाहता हूं. पापा से मिले हम को एक महीना हो गया है बूआ. सब के पापा हैं, तो मेरे पापा हमें छोड़ कर क्यों चले गए? बताओ बूआ?’’

सांत्वना के शब्द यहीं पर खत्म हो गए थे मेरे. मैं शून्य में निहारते हुए बोली, ‘‘इस का जवाब किसी के पास भी नहीं होगा, अमन बेटा.’’

मां के हाथों में खाने की थाली दिखी, तो आंखों ने सवाल किया और जबान पूछ बैठी, ‘‘मां, पीर पराई है या अपनी है?’’

‘‘वैष्णव जन तो तेने कहिए जो पीर पराई जाने रे,’’ गाती हुई मां वहां से चली गईं.

अनुपमा के खिलाफ वनराज खेलेगा मास्टर प्लान, शो में आएंगे कई बड़े ट्विस्ट

टीवी सीरियल अनुपमा कई सालों से दर्शकों का फेवरेट शो बना हुआ है. इस सीरियल की कहानी में लगातार ट्विस्ट एंड टर्न दिखाए जाते हैं. इस शो में ड्रामा खत्म होने का ही नाम नहीं लेता. फिलहाल शो का लेटेस्ट टैक अनुपमा, अनुज और आध्या के इर्दगिर्द घूम रहा है. तो दूसरी तरफ बापूजी, वनराज और इद्रा की वजह से नया ड्रामा खड़ा होगा. आइए जानते हैं शो के आनेवाले एपिसोड में क्या ट्विस्ट एंड टर्न दिखाए जाएंगे.

मीनू और बापूजी आएंगे आमनेसामने

शो में दिखाया जा रहा है कि अनुपमा और अनुज को विश्वास हो गया है कि आध्या जिंदा है. तो दूसरी तरह शाह हाउस में मीनू की वजह से पाखी और तोषु नया बखेड़ा करने वाले हैं. शो के आने वाले एपिसोड में बापूजी और मीनू का इमोशनल सीन दिखाया जाएगा. एक रिपोर्ट के मुताबिक, मीनू अपने नाना से मिलकर बहुत इमोशनल हो जाएगी तो दूसरी तरफ सागर मीनू के बारे में सबकुछ सचसच बता देगा.

अनुपमा के जीवन की होगी एक नई शुरुआत

अनुपमा अपनी सारी परेशानियों के बीच एक नई शुरुआत करेगी. दरअसल, अनुपमा को एक कौलेज के कैंटीन में खाना बनाने का कौन्ट्रैक्ट मिल तो गया है, लेकिन वह अपना खुद का बिजनेस शुरु करेगी.

वनराज का क्या होगा नया प्लान

वनराज अपनी आदतों से बाज नहीं आएगा. वह अनुपमा को परेशान करने के लिए प्लान बनाएगा. वह आश भवन खत्म करने के लिए मास्टर प्लान बनाएगा ताकि अनुपमा को बर्बाद कर सके. वह बिल्डर और आशा ताई के बेटे से डील करेगा.

अनुपमा को कचरे के ढेर में मिलेगी इंद्राजी

शो में आप ये भी देखेंगे कि अनुपमा अनुज को दवा देने उसके कमरे में जाएगी तब अनुज आध्या की तस्वीर सजा रहा होता है, ऐसे में अनुपमा भी उसकी मदद करने लगेगी. तो दूसरी तरफ आशा भवन में बाला काका सागर को एहसास दिलाते हैं कि उसने मीनू का दिल तोड़कर गलत किया है.

इन सबके बीच शो में एक बड़ा ट्विस्ट देखने को मिलेगा, अनुपमा को इंद्राजी सड़क पर कचरे के ढेर में पड़ी हुई मिलेंगी, ये देखकर अनुपमा के होश उड़ जाएंगे.

टीवी सीरियल का आम लोगों पर पड़ता है बुरा असर

टीवी लोगों के एंटरटैनमेंट सबसे बड़ा साधन है. लोग अपने फ्री टाइम में टीवी सीरियल बड़े चाव से देखते हैं. कई लोग तो ऐसे होते हैं कि उन्हें कितना भी जरूरी काम क्यों न हो, जिस टाइम पर वो सीरियल आता है, वो लेटेस्ट एपिसोड नहीं छूटना चाहिए. हालांकि टीवी सीरियल में अच्छे और बुरे दोनों एंगल दिखाया जाता है, लेकिन लोग ज्यादा बुरी चीजों से आकर्षित होते हैं.

कई ऐसे सीरियल्स हैं, जिनमें दो शादियां, एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर जैसे ट्रैक के सहारे ये शोज दर्शकों के दिलों पर राज कर रहे हैं. तो वहीं अन्य सीरियल में धार्मिक मुद्दे पर भी फोकस किए जाते हैं. कुल मिलाकर ये कह सकते हैं टीवी सीरियल की कहानी में अक्सर कमजोर कड़ी ही दिखाई जाती है, जो लोगों का ध्यान भटकाती है.

टीवि सीरियल का लेखन कमजोर होता जा रहा है. समाज में कई ऐसी घटनाएं हो रही हैं, जिस पर ध्यान देने की जरूरत है. टीवी स्क्रीन पर उस तरह की कहानी दिखाने की जरूरत है, जिससे लोगों को कुछ नया सिखने को मिले न कि रिश्ते में लोग धोखा देना सिखे.

सती: अवनि की जिंदगी में क्या हुआ पति की मौत के बाद

अवनी ने मनीष को दवा खिलाई और बाहर आ कर ड्राइंगरूम में टीवी देखने लगी. तभी अंदर से मनीष
के चिल्लाने की आवाज आई. अवनी भगाती हुई अंदर गई तो देखा मनीष गुस्से से भरा बैठा था.

अवनी को देखते ही बोला,”तुम मेरी नर्स हो या पत्नी? 2 मिनट भी साथ नहीं बैठ सकतीं? तुम्हें नाम, पैसा, 2 बेटे, कोठी क्या कुछ नहीं दिया और मेरे बीमार पड़ते ही तुम ने नजरें फेर लीं?”

अवनी इस से पहले कुछ बोलती, उस के दोनों बेटे रचित, सार्थक और सासससुर भी आ गए थे.

रचित गुस्से में बोला,”मम्मी, शर्म आनी चाहिए आप को। एक दिन टीवी नहीं देखोगी तो कोई तूफान नहीं आ जाएगा।”

सास गुस्से में बोलीं,”पत्नी अपने पति के लिए क्या क्या नहीं करती। मेरे बेटे को कैंसर क्या हुआ अवनी कि तुम ने अपनी नजरें ही फेर लीं…”

अवनी कमरे में एक तरफ अपराधी की तरह बैठी रही, वह अपराध जो उस ने किया ही नहीं था. मनीष के सिर पर अवनी ने जैसे ही हाथ फेरा मनीष ने झटक कर हाथ हटा दिया। अवनी की आंखों मे आंसू आ गए. उसे पता था मनीष कैंसर के कारण चिड़चिड़ा हो गया है पर वह क्या करे? वह पूरी कोशिश करती है पर आखिर है तो इंसान ही. पिछले 3 सालों से मनीष के कैंसर का इलाज चल रहा था. अवनी शुरुआत में रातदिन मनीष के साथ साए की तरह बनी रहती थी. पर धीरेधीरे वह तनमन से थक गई थी.

पर परिवार के सब लोग मनीष का भार अवनी पर डाल कर निश्चिंत हो गए थे. मनीष की बीमारी मानों
अवनी के लिए एक कैदखाना हो गई थी. अवनी के उठनेबैठने, कपड़े पहनने तक पर सब की निगाहें रहती थीं. अवनी अगर थोड़ा सा तैयार हो जाती तो मनीष की नजरों में सवाल तैरने लगते थे. अवनी का बहुत मन होता मनीष को बताने का कि उसे दुख है पर वह जीना नहीं छोड़ सकती.

पिछले 3 सालों से अवनी ने घर से बाहर कदम नहीं रखा था. किसी की शादी या कोई समारोह होता तो अवनी के सासससुर दोनों बेटों के साथ चले जाते थे. अवनी को ऐसा महसूस होने लगा था कि वह मनीष
के जिंदा होते हुए भी सती हो गई है. सती तो शायद पति की चिता के साथ एक बार ही जली थी पर अवनी तो पिछले 3 सालों से तिलतिल कर जल रही थी.

कल रात बहुत देर से अवनी की आंख लगी और मनीष के चिल्लाने की आवाज से एक झटके से खुल गई.
मनीष गुस्से में बड़बड़ा रहा था,”अगर मेरे पास पैसा न होता तो तुम तो मुझे सड़क पर बैठा देतीं।”

अवनी बिना कुछ बोले चुपचाप चाय बनाने चली गई. उस को देखते ही सास बोलीं,”आज तो तुम ने हद
कर दी है, कब मनीष कुछ खाएगा और कब वह दवा लेगा? तुम्हें पता है न कीमोथेरैपी के लिए डाइट का अच्छा होना जरूरी है…”

मनीष को चाय और बादाम दे कर अवनी नहाने चली गई. जब नहा कर बाहर निकली तो देखा कमरे में से
किसी के जोरजोर से हंसने की आवाज आ रही थी. अवनी ने गीले बालों को तौलिए से लपेट रखा था।कुछ गीले बाल छितर कर इधरउधर बिखरे हुए थे और इंडिगो ब्लू रंग का सूट उस पर खूब खिल रहा था.

जैसे ही वह बाहर आई, वह युवक बोला,”अरे भाभीजी को तो देख कर लगता ही नहीं इन के 18 और 20 साल के बेटे भी होंगे।”

मनीष कड़वा सा मुंह बनाते हुए बोला,”हां कुदरत ने सारा बुढ़ापा तेरे भैया के ही नसीब में लिख दिया है,”
और फिर वह फफकफफक कर रोने लगा. अवनी अपराधी की तरह खड़ी रह गई.

अवनी सब समझती थी। कीमोथेरैपी के कारण मनीष के बाल झड़ गए थे। चेहरे पर काले धब्बे पड़ गए थे और आंखे अंदर धंस गई थीं. पर अवनी को समझ नहीं आता था कि वह कैसे मनीष का मनोबल बढ़ाए.

तभी वह युवक बोला,”अरे अवनीजी, आप ने मुझे पहचाना नहीं, मैं मनीष की बुआ का बेटा हूं और रिश्ते में
आप का देवर हूं। मेरा नाम कुणाल है।”

अवनी बोली,”अरे आप बैठो, मैं चायनाश्ते का इंतजाम करती हूं।”

अवनी ने फटाफट कुक की मदद से पनीर के परांठे, ढोकला, सूजी का हलवा और लालमिर्च की चटनी बना
ली थी. जैसे ही वह बाहर निकली तो मनीष को डाइनिंग टेबल पर बैठा देख कर खुश हो गई.

कुणाल बोला,”जल्दीजल्दी नाश्ता लगाएं, बड़ी कस कर भूख लगी है।”

आज शायद लगभग 1 साल के बाद मनीष ने डाइनिंग टेबल पर बैठ कर सब के साथ खाया होगा. कुणाल पूरे समय चुटकले सुनाता रहा और अवनी के नाश्ते की तारीफ करता रहा. न जाने क्यों अवनी को लग रहा था कि कुणाल के आने से पूरे घर में खुशियों की लहर आ गई है. नाश्ते के बाद सब लोग अपनेअपने काम में लग गए और कुणाल ड्राइंगरूम में बैठ कर टीवी पर कोई प्रोग्राम देखने लगा. अवनी भी वहीं बैठ कर सब्जी काटने लगी और सब्जी काटतेकाटते कुणाल से बोली,”और आप के घर में सब कैसे हैं?”

कुणाल हंसते हुए बोला,”मैं ही घर हूं।
और कोई नहीं है मेरे घर में। मैं अच्छा हूं तो घर भी अच्छा है।”

अवनी बोली,”आप ने अब तक शादी नहीं करी क्या?”

कुणाल बोला,”करी थी मगर सोनल शादी के 4 साल बाद मुझ से अलग हो गई थी।”

अवनी ने धीमे से कहा,”सौरी…”

कुणाल हंसते हुए बोला,”अरे इस में सौरी की क्या बात है। अगर कोई मेरी टाइप की मिलेगी तो शादी कर लूंगा।”

कुणाल बिजनैस के सिलसिले में यहां आया हुआ था. वह अगले दिन से रोज सुबह काम पर निकल जाता
और शाम को आ जाता था. उस के आते ही अवनी के चेहरे पर रौनक आ जाती थी. कुणाल अवनी से सुखदुख की बात कर लेती थी.

धीरेधीरे कुणाल और अवनी के बीच अच्छी दोस्ती हो गई थी. कुणाल लगभग 2 महीने रहा और इन 2 महीनों में वह हर वीकैंड पर आउटिंग का प्लान करता था. जब पहली बार कुणाल ने मूवी का प्लान बनाया तो रचित और सार्थक का हमेशा की तरह अपने प्रोग्राम बने हुए थे.

सासससुर जब तैयार हो गए तो कुणाल बोला,”मनीष भैया और अवनी भाभी नही चलेंगे?”

अवनी की सास बोलीं,”अरे मनीष कहीं आताजाता नहीं है। वह तो तेरे कहने पर हम भी बरसों बाद मूवी
देखने जा रहे हैं।”

कुणाल ने जबरदस्ती मनीष को यह कहते हुए तैयार कर लिया कि अगर मन नहीं लगा तो वह खुद बीच में ही मनीष के साथ घर आ जाएगा.

जब इंटरवल में कुणाल और अवनी पौपकौर्न लेने गए तो कुणाल बोला,”ऐसे ही खुश रहा करो, अच्छी लगती हो। भैया बीमार हैं पर आप क्यों उन के साथ समय से पहले ही सती हो रही हो?”

कुणाल जातेजाते अवनी को हिम्मत और साहस दे गया था. अब अवनी महीने में 1 बार जरूर बाहर अपने दोस्तों से मिलने या मूवी देखने चली जाती थी. मनीष की चिड़चिड़ाहट, बच्चों की शिकायतें या
सासससुर की नसीहतों को अब अवनी अनदेखा कर देती थी. जब भी अवनी को अकेलापन लगता या हौसला टूटने लगता तो वह कुणाल से फोन पर बात कर लेती थी. मनीष के अंतिम दिनों में कुणाल भी वहीं आ गया था. कुणाल के आने से अवनी को हर तरह से सहारा मिल गया था.

जब मनीष की मृत्यु हो गई तो कुणाल ही था जो पूरे परिवार के लिए रातदिन खड़ा रहा था. वह पूरे 1 माह रुका और जाने से पहले कुणाल ने अवनी को कहा,”जब कभी भी मेरी जरूरत महसूस हो बस एक कौल कर देना…”

अब अवनी ने फिर से अपनी जिंदगी नई सिरे से शुरू करनी चाही पर उस का अपना परिवार उसे यह करने
से रोक रहा था. जब अवनी ने अपने ससुर से बिजनैस जौइन करने की बात करी तो ससुर बोले,”यह उम्र तुम्हारे बेटों की बिजनैस सीखने की है। तुम घर पर रह कर योगसाधना में अपना ध्यान लगाओ। पूजापाठ करो ताकि अगले जन्म में वैधव्य का दुख न भोगना पड़े।”

अवनी उन की अंधविश्वास भरी बातें सुन कर हैरान रह जाती। अगर वह थोड़ा ढंग से तैयार हो जाती तो सास की तीखी नजरें उसे चुभती रहती थीं. अवनी कभीकभी दुखी हो कर सोचती कि इस से अच्छा तो पहला जमाना था जब पति के साथ ही पत्नी सती हो जाती थी। कम से कम रोज तिलतिल कर मरना तो नहीं पड़ता था.

मनीष की मृत्यु को पूरे 1 साल हो गए थे. आज मनीष की बरसी थी और कुणाल भी आया हुआ था. अवनी
को देखते ही बोला,”यह तुम ने अपना क्या हाल बना लिया है? भैया की मृत्यु हुई है तुम्हारी नहीं।”

अवनी फफकफफक कर रो पड़ी और बोली,”काश, मैं ही मर जाती, कुणाल। मेरे कपड़े पहनने, हंसनेबोलने सब पर पाबंदी है। मेरे खुद के बेटे मुझे खुश देखते ही शक करने लगते हैं। मुझे बाहर काम करने की इजाजत नहीं है। घर पर कोई काम है नहीं, बच्चे बड़े हो गए हैं। बताओ मैं क्या करूं?

“इस पूजापाठ, व्रत में मेरी श्रद्धा नहीं है। मुझे एक सामान्य औरत की तरह जीने का मन है। मुझे देवी नहीं बनना है…”

कुणाल ने एकाएक कहा,”अवनी, मुझ से शादी करोगी?”

अवनी एकदम से हक्कीबक्की रह गई और बोली,”क्या कह रहे हो तुम? मेरे 2-2 जवान बेटे हैं…”

कुणाल बोला,”हां 2-2 बेटे हैं जिन्हें कभी भी तुम्हारी जरूरत नहीं थी।सोच कर बताना, अगर जवाब न भी होगा तो भी तुम्हारा दोस्त बन कर हमेशा खड़ा रहूंगा।”

कुणाल के जाने के बाद अवनी बहुत दिनों तक सोचविचार करती रही मगर उस के अंदर डर उसे भयभीत करता रहता।

कुछ दिनों बाद मनीष के परिवार में ही शादी थी. सब लोग अच्छे से तैयार हुए मगर अवनी जैसे ही तैयार हो
कर बाहर आई तो सास बोलीं,”यह नारंगी रंग की साड़ी के बजाए कोई लाइट कलर पहन लो। लोग क्या सोचेंगे कि तुम्हें जरा भी मनीष के जाने का दुख नहीं है।”

जैसे ही अवनी जाने लगी तो बड़े बेटे रचित की आवाज आई,”मम्मी, यह लिपस्टिक भी हलकी कर लीजिए।लोग आप को ऐसे देखें तो अच्छा नहीं लगता।”

अवनी अंदर जा कर फूटफूट कर रोई और जब बाहर निकली तो वह एक सफेद साड़ी में लिपटी थी।

ससुरजी गुस्से में बोले,”यह जानबूझ कर नाटक क्यों कर रही हो अवनी, ताकि सब को लगे हम एक विधवा पर जुल्म कर रहे हैं…”

आखिरकार अवनी उस शादी में गई ही नहीं मगर उस रात बहुत देर तक वह कुणाल से बात करती रही।
अगले दिन सब के सामने अवनी ने कुणाल से विवाह करने का फैसला सुना दिया। दोनों बेटे सकते में
आ गए थे.

सास रोते हुए बोलीं,”तेरा चक्कर तो कुणाल से शायद बहुत पहले से ही चल रहा था, अवनी. तभी तो तुम मेरे
बीमार बेटे की देखभाल नहीं करती थीं।”

ससुरजी बोले,”बेवकूफ औरत, यह तुम्हारे बेटों की शादी की उम्र है नाकि तुम्हारी. जरा अपनी उम्र का लिहाज तो करो. 2 साल भी तुम से मर्द के बिना नहीं रहा जा रहा है?”

सार्थक गुस्से में बोला,”अगर आप ने कुणाल से शादी करी तो आप हम से रिश्ता तोड़ लेना।”

अवनी के मातापिता भी उस के फैसले से खुश नहीं थे. अवनी की भाभी बोलीं,”दीदी, सार्थक और
रचित के बारे में तो सोचो। कुछ वर्षों बाद आप के पोतेपोती खिलाने की उम्र हो जाएगी और आप डोली में बैठने की तैयारी कर रही हो… अगर आप अकेली होतीं तो ठीक था पर आप के तो 2 जवान बेटे हैं, आप को क्यों किसी सहारे की आवश्यकता है?”

अवनी को समझ नहीं आ रहा था कि वह कैसे किसी को समझाए. जिंदगी का मतलब बस रोटी, कपड़ा और
मकान ही तो नहीं है. सब के विरोध के बावजूद भी अवनी और कुणाल ने कोर्ट में विवाह कर लिया था.

जब सब पुराने रिश्तों से रीति हो कर अवनी कुणाल का हाथ थाम कर उस के घर मे आई तो उस की आंखें
गीली थीं. अवनी कुणाल से बोली,”कुणाल, मुझे मेरे बेटों ने अपनी जिंदगी से बेदखल कर दिया है।”

कुणाल हंसते हुए बोला,”अवनी, देरसवेर रचित और सार्थक तुम्हारा पहलू समझ जाएंगे. सती प्रथा को समाप्त करने के लिए किसी को तो पहल करनी होती है न…”

अवनी के मन में ये पंक्तियां बारबार उमड़ रही थीं,”न बनना चाहती हूं मैं देवी और न ही बनना चाहती हूं सती, मैं हूं एक सामान्य नारी जो हर उम्र में चाहती है जीवन में भावनाओं की गति.

अबोध : मां को देखते ही क्यों रोने लगी गौरा?

लेखक- धर्मेंद्र राजमंगल

माधव कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे, 50 साल की उम्र. सफेद दाढ़ी. उस पर भी बीमारी के बाद की कमजोर हालत. यह सब देख कर घर के लोगों ने माधव को बेटी की शादी कर देने की सलाह दे दी. कहते थे कि अपने जीतेजी लड़की की शादी कर जाओ.

माधव ने अपने छोटे भाई से कह कर अपनी लड़की के लिए एक लड़का दिखवा लिया.

माधव की लड़की गौरा 15 साल की थी. दिनभर एक छोटी सी फ्रौक पहने सहेलियों के साथ घूमती रहती, गोटी खेलती, गांव के बाहर लगे आम के पेड़ पर चढ़ कर गिल्ली फेंकने का खेल भी खेलती.

जैसे ही गौरा की शादी के लिए लड़का मिला, वैसे ही उस का घर से निकलना कम कर दिया गया.

अब गौरा घर पर ही रहती थी. महल्ले की लड़कियां उस के पास आती तो थीं, लेकिन पहले जैसा माहौल नहीं था. गौरा की शादी की खबर जब उन लड़कियों को लगी, तो गौरा को देखने का उन का नजरिया ही बदल गया था. माधव ने फटाफट गौरा की शादी उस लड़के से तय कर दी. माधव की माली हालत तो ठीक नहीं थी, लेकिन जितना भी कर सकते थे, करने में लग गए.

शादी की तारीख आई. लड़के वाले बरात ले कर माधव के घर आ गए. लड़का गौरा से बड़ा था. वह 20-22 साल का था. गौरा को इन बातों से ज्यादा मतलब तो नहीं था, लेकिन इस वक्त उसे अपना घर छोड़ कर जाना कतई अच्छा नहीं

लग रहा था. शादी के बाद गौरा अपनी ससुराल चली गई, लेकिन रोते हुए. गौरा की शादी के कुछ दिन बाद ही माधव की बीमारी ठीक होने लगी, फिर कुछ ही दिनों में वे पूरी तरह से ठीक भी हो गए, मानो उस मासूम गौरा की शादी करने के लिए ही वे बीमार पड़े थे  उधर गौरा ससुराल पहुंची तो देखा कि वहां घर जैसा कुछ भी नहीं था. न साथ खेलने के लिए सहेलियां थीं और न ही अपने घर जैसा प्यार करने वाला कोई. गौरा की सास दिनभर मुंह ऐंठे रहती थीं. ऐसे देखतीं कि गौरा को बिना अपराध किए ही अपराधी होने का अहसास होने लगता.

जिस दिन गौरा अपने घर से विदा हो कर ससुराल पहुंची, उस के दूसरे दिन से ही उस से घर के सारे काम कराए जाने लगे. गौरा को चाय बनाना तो आता था, लेकिन सब्जी छोंकना, गोलगोल रोटी बनाना नहीं आता था. जब ये बातें उस की सास को पता चलीं, तो वे गौरा को खरीखोटी सुनाने लगीं, ‘‘बहू, तेरी मां ने तुझे कुछ नहीं सिखाया. न तो दहेज दिया और न ही ढंग की लड़की. कम से कम लड़की ही ऐसी होती कि खाना तो बना लेती…’’

गौरा चुपचाप सास की खरीखोटी सुनती रहती और जब भी अकेली होती, तो घर और मां की याद कर के खूब रोती. दिनभर घर के कामों में लगे रहना और सास भी जानबूझ कर उस से ज्यादा काम कराती थीं. बेचारी गौरा, जो सास कहतीं, वही करती. शाम को पति के हाथों का खिलौना बन जाती. वह तो ठीक से दो मीठी बातें भी उस से नहीं करता था. दिनभर यारदोस्तों के साथ घूमता और रात  ते ही घर में आता, खाना खाता और गौरा को बेहाल कर चैन से सो जाता.

एक दिन गौरा का बहुत मन हुआ कि घर जा कर अपने मांबाप से मिल ले. मां से तो लिपट कर रोने का मन करता था. मौका देख कर गौरा अपनी सास से बोली, ‘‘माताजी, मैं अपने घर जाना चाहती हूं. मुझे घर की याद आती है.’’ सास तेज आवाज में बोलीं, ‘‘घर जाएगी तो यहां क्या जंगल में रह रही है? यहां कौन सा तुझ पर आरा चल रहा है… घर के बच्चों से ज्यादा तेरी खातिर होती है यहां, फिर भी तू इसे अपना घर नहीं समझती.’’

गौरा घबरा कर रह गई, लेकिन घर की याद अब और ज्यादा आ रही थी. दिन यों ही गुजर रहे थे कि एक दिन माधव गौरा की ससुराल आ पहुंचे. अपने पिता को देख गौरा जी उठी थी. भरे घर में अपने पिता से लिपट गई और खूब सिसकसिसक कर रोई.

माधव का दिल भी पत्थर से मोम हो गया. वे खुद रोए तो नहीं, लेकिन आंखें कई बार भीग गईं. उसी दिन शाम को वे गौरा को अपने साथ ले आए.

घर आ कर गौरा फिर उसी मनभावन तिलिस्म में खो गई. वही गलियां, वही रास्ता, वैसे ही घर, वही आबोहवा, वैसी ही खुशबू. इतने में मां सामने आ गईं. गौरा की हिचकी बंध गई, दोनों मांबेटी लिपट कर खूब रोईं.

घर में आई गौरा ने मां को ससुराल की सारी हालत बता दी और बोली, ‘‘मां, मैं वहां नहीं जाना चाहती. मुझे अब तेरे ही पास रहना है.’’

मां गौरा को समझाते हुए बोलीं, ‘‘बेटी, अब तेरी शादी हो चुकी है. तेरा घर अब वही है. हम चाह कर भी तुझे इस घर में नहीं रख सकते.

‘‘हर लड़की को एक न एक दिन अपनी ससुराल जाना ही होता है. मैं इस घर आई और तू उस घर में गई. इसी तरह अगर तेरी लड़की हुई, तो वह भी किसी और के घर जाएगी. इस तरह तो कोई हमेशा अपने घर नहीं रुक सकता.’’

गौरा चुप हो गई. मां से अब और क्या कहती. जो सास कहती थीं, वही मां भी कहती हैं.

रात को गौरा नींद भर सोई, दूसरी सुबह उठी तो साथ की लड़कियां घर आ पहुंचीं. अभी तक सब की सब कुंआरी थीं, जबकि गौरा शादीशुदा थी. वे सब सलवारसूट पहने घूम रहीं थीं, जबकि गौरा साड़ी पहने हुए थी.

आज गौरा सारी सहेलियों से खुद को अलग पाती थी, उन से बात करने और मिलने में उसे शर्म आती थी. मन करता था कि घर से उठ कर कहीं दूर भाग जाए, जिस से न तो ससुराल जाना पड़े और न ही किसी से शर्म आए.

सुबह के 10 बजने को थे. गौरा ने घर में रखा पुराना सलवारसूट पहना, जिसे वह शादी से पहले पहना करती थी और मां के पास जा कर बड़े प्यार से बोली, ‘‘मां, तुम कहो तो मैं थोड़ी देर बाहर घूम आऊं?’’

गौरा बोलीं, ‘‘हां बेटी, घूम आ, लेकिन जल्दी घर आ जाना. अब तू छोटी बच्ची नहीं है.’’

गौरा मुसकराते हुए घर से निकल गई. उस की नजर गांव के बाहर लगे आम के पेड़ के पास गई. मन खिल उठा. लगा, जैसे वह पेड़ उस का अपना है, कदम बरबस ही गांव से बाहर की ओर बढ़ गए.

हवा के हलके झोंके और खेतोंपेड़ों का सूनापन, चारों तरफ शांत सा माहौल और बेचैन मन, मानो फिर से लौट पड़ा हो गौरा का बचपन. हवा में पैर फेंकती सीधी आम के पेड़ के नीचे जा पहुंची.

यह वही आम का पेड़ था, जिस के ऊपर चढ़ कर गिल्ली फेंकने वाले खेल खेले जाते थे, जहां सहेलियों के साथ बचपन के सुख भरे दिन गुजारे थे. गौरा दौड़ कर आम के पेड़ से लिपट गई. उस मौन खड़े पेड़ से रोरो कर अपने दिल का हाल कह दिया. पेड़ भी जैसे उस का साथी था. उस ने गौरा के मन को बहुत तसल्ली दी  थोड़ी देर तक गौरा पेड़ से लिपटी बचपन के दिनों को याद करती रही, बचपन तो अब भी था, लेकिन कोई उसे छोटी लड़की मानने को तैयार न था. सब कहते कि वह बड़ी हो गई है, लेकिन खुद गौरा और उस का दिल नहीं मानता था कि वह इतनी बड़ी हो गई है कि घर से बाहर किसी और के साथ रहने लगे. बड़ी औरतों की तरह काम करने लगे, सास की खरीखोटी सुनने लगे.

गौरा बैठी सोचती रही, मन में गुबार की आंधी चलती थी, फिर न जाने क्या सोच कर अपना दुपट्टा उतारा और आम के पेड़ पर चढ़ कर छोर को उस की डाली से कस कर बांध दिया. फिर आम के पेड़ से उतर कर दूसरा छोर अपने गले में बांध लिया. अभी तक गौरा ठीकठाक थी. खड़ीखड़ी थोड़ी देर तक वह अपने गांव को देखती रही, फिर एकदम से पैरों को हवा में उठा लिया, शरीर का सारा भार गले में पड़े दुपट्टे पर आ गया, दुपट्टा गले को कसता चला गया, आंखें बाहर निकली पड़ी थीं, मुंह लाल पड़ गया था. थोड़ी ही देर में गौरा की मौत हो गई. अब उसे ससुराल नहीं जाना था और न ही कोई परेशानी सहनी थी. कांटों पर चल रही मासूम सी जिंदगी का अंत हो गया था.

जिस बच्ची के खेलने की उम्र थी, उस उम्र में उसे न जाने क्याक्या देखना पड़ा था. उस की दिमागी हालत का अंदाजा सिर्फ वही लगा सकती थी. एक भी ऐसा शख्स नहीं था, जो उस अबोध बच्ची को समझता, लेकिन आज सब खत्म हो गया था, उस की सारी समस्याएं और उस की जिंदगी.

अगर आपको भी सुबह उठने पर होती है थकान, तो फौलो करें ये टिप्स

अच्छी नींद लोगों की जिंदगी में खाने, पानी और हवा जितना ही महत्वपूर्ण होता है. 7-8 घंटे की नींद फ्रेश रहने के लिए बहुत जरूरी है. यदि आपकी नींद पूरी हो जाती है तो आपका काम करने में भी मन लगता है.

अच्छी नींद बीमारियों को दूर भगाती है. इससे आपका स्किन भी ग्लो करता है और दिल मजबूत रहता है.

लेकिन अगर उठने के बाद भी आपको थकान महसूस हो रही है तो आपका बिजी शेड्यूल इसका कारण हो सकता है. हो सकता है काम के टेंशन के कारण आपको अच्छी नींद ना आ रही हो और इसी कारण आप थकान महसूस कर रहे हों.

लेकिन इससे बचने के भी उपाय हैं. अपनी आदतों में थोड़ा बदलाव करने से सुबह उठने पर आप रिफ्रेश महसूस कर सकते हैं. हम कुछ ऐसे ही टिप्स बता रहे हैं, जिन्हें अपनाने से सुबह उठने पर आपको थकान महसूस नहीं होगी.

1. एक ही समय पर सोएं:

यह आपने बहुत बार सुना होगा और यह सच भी है. आपके शरीर को एक समय पर सोने की आदत हो जाती है और उससे थोड़ा भी इधर-उधर होने पर दिक्कत हो जाती है. कोशिश करें कि रोज एक ही समय पर सोएं और उठें.

2. रूटिन बनाएं:

आपको जो काम करने से शांति मिलती है और अच्छी नींद आती है, वो काम आप सोने से पहले जरूर करें. जैसे, किसी को किताब पढ़ने से अच्छी नींद आती है तो किसी को मेडीटेशन करने से. लेकिन सोने से पहले ज्यादा लिक्विड ना लें इससे आपको वॉशरुम जाना पड़ सकता है, जिससे आपकी नींद खराब हो जाएगी.

3. सोने से पहले गैसेट्स यूज मत करें:

Healthline.org के मुताबिक, ‘सोने से पहले इलेक्ट्रॉनिक्स का यूज करने से दिमाग पर खराब प्रभाव पड़ता है और इससे नींद खराब होती है.’

4. स्किन साफ करना ना भूलें:

सोने से पहले क्लीन्ज, टोन और मोश्चराइज करना ना भूलें. पूरा मेकअप उतार कर सोएं. इससे आपके स्किन को सांस लेने में मदद मिलेगी.

5. खान-पान का ध्यान रखें:

कैफीन, एल्कोहल और चौकलेट आपकी नींद में बाधा उत्पन्न करती है. इससे दिन में लें. अगर आपको अपच की शिकायत है तो ज्यादा तला हुआ खाना न खाएं. डिनर को हल्का रखें.

6. दिन मे ना सोएं:

आपने बच्चों को देखा है, यदि वो दिन में सो जाते हैं तो रात भर जगे रह जाते हैं. यह बात आप पर भी लागू होती है. दिन में सो जाने से रात में आपकी नींद डिस्टर्ब हो जाती है.

7. लाइट बंद कर के सोएं और कमरे का तापमान नॉर्मल रखें:

जलती हुई लाइट में सोने से नींद डिस्टर्ब होती है. रुम में पर्दे लगाकर सोएं और एसी का तापमान नॉर्मल रखे.

8. गद्दे और तकिया आरामदायक होना चाहिए:

अगर तकिया और गद्दे आरामदायक नहीं होंगे तो आपके शरीर में दर्द होने लगेगा औक आपको अच्छी नींद भी नहीं आएगी.

बौयफ्रैंड की हरकत से मुझे गुस्सा आ जाता है, मैं क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

 

सवाल

मैं 25 वर्षीय युवती हूं. मेरा एक बौयफ्रैंड है, जिसे मैं बेहद पसंद करती हूं. एकांत में वह मेरी ब्रैस्ट को सहलाना चाहता है. मेरे ब्रैस्ट सामान्य से बड़ी है और मैं ने सुना है कि शादी से पहले ब्रैस्ट दबाने अथवा सहलाने से वह बड़ी हो जाती है. मु  झे डर है कि यह बेडौल न हो जाए. इसी डर से जब मैं बौयफ्रैंड को मना करती हूं, तो वह नाराज हो जाता है. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

सैक्स से जुड़े मिथकों में यह भी एक आम मिथक है कि ब्रैस्ट को दबाने, सहलाने व चूमने आदि से वह बड़ी होती है. वास्तव में सैक्स के दौरान फोरप्ले में ब्रैस्ट को छूने, सहलाने से वे कड़े जरूर हो जाते हैं और आमतौर पर ऐसा उत्तेजना की वजह से और ब्रैस्ट की नसों में रक्तसंचार बढ़ने की वजह से होता है.

ब्रैस्ट इंप्लांट के अलावा ऐसा कोई जरीया नहीं है जिस से ब्रैस्ट का साइज बड़ा हो जाए. हां, नियमित ऐक्सरसाइज से बौडी को सही शेप जरूर मिलती है पर ब्रैस्ट बड़ी नहीं होती. वह आकर्षक जरूर दिखने लगती है. अत: बौयफ्रैंड को केवल इस वजह से मना न करें और अपने मन से यह भय निकाल दें.

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किशोरावस्था के शुरू होते ही लड़कियों के शरीर में बदलाव आने लगता है. इस का सब से अधिक प्रभाव लड़कियों की बौडी फीगर पर पड़ता है. इस में भी ब्रैस्ट की शेप को ले कर सब से अधिक परेशानियां होती हैं. किसी को अपने छोटी ब्रैस्ट साइज से दिक्कत होती है तो किसी को अपनी बड़ी ब्रैस्ट से. ऐसे में उन्हें लगता है कि अगर उन का ब्रैस्ट साइज परफैक्ट नहीं होगा तो उन का आकर्षण कम हो जाएगा.

जिन लड़कियों की ब्रैस्ट का आकार छोटा या ज्यादा बड़ा होता है वे परेशान रहती हैं. ऐसे में ब्रैस्ट शेपिंग को ले कर तमाम तरह के प्रयास चलते हैं. ब्रैस्ट शेपिंग की सब से बड़ी चिंता का कारण क्लीवेज होती है. फैशनेबल ड्रैस पहनने वाली लड़कियों को लगता है कि अगर उन की क्लीवेज नहीं दिखेगी तो उन्हें सैक्सी, बोल्ड और ब्यूटीफुल नहीं माना जाएगा.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

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