मैं गोरा होने के लिए चेहरे पर हल्दी लगाती हूं, लेकिन इससे दाने निकल रहे हैं…

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मेरा रंग सांवला है और गोरा होने के लिए मै रोजाना चेहरे पर हल्दी का पेस्ट लगाती हूं, लेकिन इससे मेरा स्किन खराब हो रहा है और चेहरे पर दाने भी निकल रहे हैं, मैं क्या करूं ?

Turmeric honey facial mask

जवाब

खूबसूरत दिखने के लिए गोरा रंग होना जरूरी नहीं है. सांवली लड़कियां भी बहुत खूबसूरत होती हैं और आप गोरा रंग पाने के लिए घरेलू उपाय पर भरोसा न करें, कई बार ये स्किन को काफी नुकसान पहुंचाते हैं. कुछ लोगों के लिए हल्दी काफी नुकसानदायक होती है. इससे स्किन में जलन, खुजली और लालिमा हो सकती है. जिन लोगों की स्किन सेंसिटिव होती है, उन्हें हल्दी के इस्तेमाल से बचना चाहिए. अगर आप जरूरत से ज्यादा चेहरे पर हल्दी लगाते हैं, तो फायदे की जगह आपको नुकसान हो सकता है.

आप तुरंत ही चेहरे पर हल्दी लगाना बंद कर दें. चाहें तो आप गुलाबजल या एलोवेरा जेल चेहरे पर लगा सकती है, जिससे दाने कम होने में मदद मिल सकती है या आप किसी एक्सपर्ट से भी सलाह ले सकती है. ये ज्यादा बेहतर होगा.

सांवली लड़कियां फौलो करें ये मेकअप टिप्स,  लगेंगी सबसे खूबसूरत

  • खूबसूरत दिखने के लिए सही मेकअप का चुनाव सबसे जरूरी होता है. अगर आप अपनी स्किन टोन के हिसाब से मेकअप करती हैं, तो इससे आपका चेहरा खिलाखिला नजर आएगा.
  • सांवली लड़कियां को हमेशा अपने स्किन टोने से एक या दो शेड गहरे और डार्क रंग का फाउंडेशन लगाना चाहिए.
  • आप अपनी स्किन पर औरेंज शेड का फाउंडेशन भूलकर भी न लगाएं.
  • सांवली त्वचा पर ब्लैक मस्कारा भी लगाने से बचें, ब्राउन मस्कारा लगाएं.
  • जिन लड़कियों की सांवली स्किन है, उन्हें बहुत लाइट कलर की लिपस्टिक नहीं लगानी चाहिए. सांवली स्किन पर डार्क और हल्के रंग की लिप्सटिक अच्छी लगती  है.

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टीवी की ये बोल्ड बहुएं अपने किरदार से लोगों की बोलती करती हैं बंद

टीवी ऐक्ट्रैस अपनी ऐक्टिंग और फैशन सेंस के लिए काफी लाइमलाइट में रहती हैं। छोटे परदे पर ये यंग ऐक्ट्रैस बोल्ड बहुओं का किरदार निभा कर फैंस के दिल पर राज करती हैं. टीवी की ये बहुएं किसी बौलीवुड ऐक्ट्रैसेस से कम नहीं हैं. सोशल मीडिया पर इन की जबरदस्त फैन फौलोइंग हैं.

ये टीवी ऐक्ट्रैसेस सीरियल्स में बोल्डनैस का तड़का लगाती हैं. इन यंग ऐक्ट्रैसेस के किरदार को इतने बेहतरीन अंदाज में दिखाया गया है जो बड़े उम्र के लोगों को भी जीवन का पाठ पढ़ाती हैं.

शादी के बाद क्यों लड़कियां सुनती हैं ताने

जब कोई लड़की किसी के घर की बहू बनती है, तो बिना किसी गलती के भी उसे ताने सुनाए जाते हैं, ऐसा लगता है कि उस की शादी सिर्फ खरीखोटी बातें सुनने के लिए ही की जाती हैं. समाज में ऐसे कई लोग होते हैं, जो अपनी बहुओं को दबा कर रखते हैं। कई बार इसी वजह से पतिपत्नी का रिश्ता भी टूट जाता है. वहीं जो महिलाएं अपने हक के लिए आवाज उठाती हैं, फिर भी उन्हें भलाबुरा कहा जाता है.

‘औरत होना मतलब कमजोर होना’ भारतीय समाज में अकसर लोगों की यही सोच होती है. महिलाएं किसी भी मामले में पुरुषों से कम नहीं हैं. हर क्षेत्र में महिलाएं कंधे से कंधा मिला कर काम कर रही हैं.

किसी बहू को किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है और उसे अपने हक के लिए कैसे लड़ना चाहिए या किसी दूसरे के साथ गलत हो रहा है, तो उस के लिए भी आवाज बुलंद करनी चाहिए. सीरियल्स में ये यंग ऐक्ट्रैसेस ने काफी बोल्ड किरदार निभाया है जो अपनी हक की लड़ाई खुद लड़ रही हैं. आइए, जानते हैं इन मशहूर किरदारों के बारे में :

झनक

टीआरपी लिस्ट में शामिल झनक दर्शकों का फेवरिट शो बना है. झनक के किरदार में हीबा नवाब फैंस का दिल जीत रही है. इस सीरियल के पहले भी हीबा ने कई शोज में काम किया है, लेकिन झनक के किरदार से ऐक्ट्रैस ज्यादा पौपुलर हो रही है.

इस शो में झनक अपने हक की लड़ाई खुद लड़ रही है. लोगों के दबाव में आ कर झनक और अनि की शादी होती है, लेकिन दोनों इस शादी को नहीं मानते हैं. अनि की फैमिली झनक को नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ती है. हालांकि झनक का पति उस का सपोर्ट करता है, लेकिन अपने परिवार के सामने वह खुल कर सामने नहीं आता.

इसी बीच झनक और अनि दोनों एकदूसरे से प्यार करने लगते हैं और वे इंटिमेट भी होते हैं. शो में दिखाया जा रहा है कि झनक अनिरूद्ध के बच्चे की मां बनने वाली है, लेकिन अनि इनकार कर देता है कि वह उस का बच्चा नहीं है.

इन दिनों शो में हाई वोल्टेज ड्रामा चल रहा है, झनक अपने बच्चे के हक के लिए लड़ाई लड़ रही है. उस का बोल्ड अंदाज देखने को मिल रहा है. वह बोस परिवार की बोलती बंद करते नजर आ रही है.

सई

धारावाहिक ‘गुम है किसी के प्यार में’ सई का करिदार निभाने वाली भाविका शर्मा का बेबाक अंदाज घरघर में मशहूर है. कैसे वह बिना डरे अपनी बात रखती है, जो सही होता है, उसे साबित करने के लिए जीजान लगा देती है. वह अपनी हक के लिए किसी से भी लड़ सकती है, चाहे वह शख्स उस का पति ही क्यों न हो.

इस शो के दूसरे सीजन में दिखाया गया था कि वह आईएएस बनना चाहती थी. ईशान से शादी करने के बाद उस के ससुरालवालों ने कालेज जाने पर रोक लगा दी थी, लेकिन उस ने अपने लिए खुद आवाज उठाई और यहां तक कि कालेज की फीस देने के लिए भी सई ने किसी से भी मदद नहीं ली. पार्ट टाइम जौब कर के वह अपनी पढ़ाई का खर्चा उठाना चाहती थी. फैंस ने इस सीजन में भाविका शर्मा के बेबाक अंदाज को काफी पसंद किया था.

अनुपमा

टीवी का सब से पौपुलर सीरियल अनुपमा टीआरपी के टौप लिस्ट में शामिल है. ऐक्ट्रैस रुपाली गांगुली ने अनुपमा के किरदार को बखूबी निभाया है. उन्होंने इस शो में 4 बच्चों की मां के रोल में गजब की ऐक्टिंग की है. 4 बच्चों की मां होने के बाद भी अपने सपने को कैसे पूरा किया जाता है, यह अनुपमा काफी बोल्ड अंदाज में बता रही है.

डरीसहमी रहने वाली अनुपमा एक बोल्ड महिला बनती है, अपने सपने और अपनी हक की लड़ाई खुद लड़ती है. यहां तक कि वह दूसरों के लिए भी आवाज उठाती है। अपनी ही सौतन काव्या का साथ देती है और उस का हक भी दिलवाती है.

इन टीवी सीरियल्स में ये ऐक्ट्रैसेस बहुओं के किरदार में आज की महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं.

बीबीआई: क्या आसान है पत्नी की नजरों से बचना

आप सोच रहे होंगे कि हम ने ‘सी’  की जगह गलती से ‘बी’ लिख दिया है. नहीं, यहां गलती नहीं की है. वैसे हम उन की नजर में गलतियों की गठरी हैं. भले ही खुद को गलतीलैस समझते हों? वे ट्रेन व हम पटरी हैं. सीबीआई की इस समय धूम मची हुई है. एफआईआर, छापे व जांच की बूम है. मुगालते में न रहें. जो सीबीआई के फंदे में फंसा सब से पहले तो वह धंधे से गया. फिर उस के सारे दोस्तरिश्तेदार उसे पहचानने की बात पर अंधे हो गए. सीबीआई के गहन अन्वेषण व बयान लेने में अच्छेअच्छे सयाने चारों खाने चित हो जाते हैं. सीबीआई तो जिस ने गलत काम किया हो उसे पकड़ती है या फिर जिस से काम करतेकरते गलती हो गई हो. लेकिन उसे पता न हो कि उस ने गलती की है या जो अपनी डफली अपना राग अलापता हो कि उस ने गलती की ही नहीं है. गलती तो उस की जांच करने वाले कर रहे हैं. इसीलिए आजकल बहुत से सयाने लोगों ने काम करना ही बंद कर दिया है और बाकायदा उदाहरण से अपनी बात को जस्टीफाई करने की कोशिश कर रहे हैं कि न सड़क पर गाड़ी चलाओ और न ही ऐक्सीडैंट का भय पालो. अब यह

कोई बात हुई कि काम ही न करो? बस घर बैठे वेतन लो. औफिस में कूलर, पंखे की हवा में गप्पें मारते रहो. एक और अन्वेषण ब्यूरो इस देश में है, जो सीबीआई से भी ज्यादा खतरनाक है. इस की तो अपनी तानाशाही चलती है. सीबीआई को सरकार केस सौंपती है. लेकिन यह सरकार अपने केस का स्वयं संज्ञान लेती है. पुलिस भी स्वयं है और न्यायाधीश भी, अदालत भी स्वयं और दंड के प्रावधान भी इसी के हैं और यह है बीबीआई. बहुत से लोगों ने इस का नाम नहीं सुना होगा. लानत है ऐसे लोगों पर कि इतनी पुरानी व विश्वसनीय संस्था के बारे में नहीं सुना. दरअसल, यह एक सदस्यीय आयोग है. इस का कार्यालय जहां आप रहते हैं वहीं है. इस का कार्यकाल उतना ही है जितना आप की जिंदगी का कार्यकाल. यह आयोग बड़ा जैंडर सैंसिटिव है. अब आप की यहां दाल नहीं गलती तो इसे जैंडर डिसिक्रिमिनेटरी कहने की ग…ग…गलती न करें.

बीबीआई आप पर पैनी नजर रखती है. इस के टूल हथौड़ी व छैनी से भी ज्यादा तेज मार करते हैं. आप कार्यालय के लिए घर से कब निकलते हैं, वहां कब पहुंचते हैं, लौटते कब हैं, लंच के लिए घर कब आते हैं या किसी दिन नहीं आए तो कारण, सैलरी कितनी है, कब जमा हो गई है, आप की जेब में कितने पैसे हैं, आप ने कब कितने खर्च किए हैं, आप की महिला दोस्त कितनी हैं मतलब महिला सहकर्मी कितनी हैं, आप आज नहाते समय गाना ज्यादा देर तक क्यों गुनगुना रहे थे, दोस्तों के साथ जाम कब टकराते हैं, खुद पर कितने और कब खर्च कर लेते हैं? जैसी चीजों पर पैनी नजर रहती है. यह एजेंसी उड़ती चिडि़या के पर पहचान लेती है. इतनी तीखी नजर तो ‘सीआईए’ भी नहीं रखती होगी. आप के 1-1 पल का, कल, आज और आने वाले कल का भी हिसाब इस एजेंसी के पास है. हां, हम फिर से कह रहे हैं कि यह उच्च स्तरीय स्पैशलाइजेशन वाली एजेंसी है. जैसे ही किसी की शादी होती है वह इस एजेंसी के राडार में आ जाता है. यह एजेंसी जैसा चाहती है आदमी वैसा करता है. यदि यह बोले कि आज नाश्ता नहीं करना है तो वह नहीं करेगा या वह बोले कि आज उपवास करना है तो वह उपवास पर रहेगा. चाहे उस की इच्छा हो या न हो.

यह एजेंसी तय करेगी कि आप की मां व आप के पिता कब आप के पास आएंगे और कब नहीं? आने के बाद टर्म ऐंड कंडीशंस उन के स्टे की क्या होंगी या आप के सासससुर के आने पर लिबरल टर्म्स क्या रहेंगी? बल्कि कहें कि उन का स्टे टर्मलैस रहेगा. यह सब यह एजेंसी ही तय करती है. यह सर्वव्यापी है. यह वेदकाल की आकाशवाणी सदृश है, जो इस ने कह दिया अंतिम है. यह एजेंसी सारे साधनों से संपन्न है. इस के अपने आदमी व अपने तरीके हैं. इस के अपने टूल किट में बेलन, धांसू तरीके से बहाने वाले आंसू, मायका, बिना जायके का भोजन, लताड़, खिंचाई, मुंह फुलाई, कोपभवन आदि रहते हैं, जिन्हें वह वक्त की नजाकत देख कर उपयोग करती है. ये इंद्र के वज्र व कृष्ण के सुदर्शन चक्र से भी ज्यादा प्रभावशाली होते हैं और आप के जीवनचक्र को पूरी तरह नियंत्रित करते हैं. यह आप की जिंदगीरूपी कार का स्टेयरिंग व्हील है. इन सब से यह आप की निगरानी करती है. आप के 1-1 पल की खबर रखती है. एक उदाहरण लें. आप औफिस जा रहे हैं. आप ने अपने हिसाब से कपड़े पहन लिए हैं. यहीं आप ने गलती कर दी. जिस दिन से 7 फेरे लिए हैं आप को अपने हिसाब से नहीं इस एजेंसी के हिसाब से चलना है. इस एजेंसी का फरमान आ गया कि नहीं ये कपड़े पहन कर आप नहीं जाएंगे तो आप को तुरंत कपड़े चेंज करने पड़ेंगे. इस की चौइस पर चूंचपड़ की कतई गुंजाइश नहीं है. मानव अधिकारों मतलब पति के अधिकारों की बात नहीं करेंगे. यहां ये फालतू की चीजें नहीं होतीं.

आप अभी तक इस एजेंसी के बारे में नहीं जान पा रहे हैं. लानत है आप को, रोज इस एजेंसी की डांटरूपी लात खाने के बाद भी उस का दिया रूखा दालभात भी ऐसे खाते हो जैसेकि छप्पन भोग मिल गया हो. इतनी ताकतवर है यह एजेंसी. फिर भी समझने में देर लगा रहे हो. वह सही कहती है कि तुम मंद बुद्धि, नासमझ हो. जेल में तो फिर भी हाई प्रोफाइल कैदी मिला खाना ठुकरा सकता है, बेस्वाद होने के आधार पर, लेकिन यहां यह विकल्प नहीं है. यदि कभी ऐसी जुर्रत की तो फिर भूखे ही रहना पड़ता है. गंगू फेंक नहीं रहा है स्वयं भुक्तभोगी है. यह जमानती वारंट कभी जारी नहीं करती है. आप की सारी गलतियां या अपराध गैरजमानती ही होते हैं इस के यहां. यह एजेंसी घरघर में है. इस ने सारे घरों में कब्जा कर रखा है. देश की जनसंख्या 120 करोड़ है. इस में शादीशुदा लगभग 70 करोड़ होंगे यानी 70 करोड़ एजेंसियां हैं. आप की शादी हुई और यह एजेंसी हरकत में आना शुरू हो जाती है. आप पर सुहागरात के बाद से ही नजर रखनी शुरू कर देती है. सुहागरात के दिन भी नजर रखती है. लेकिन यह प्यार की नजर होती है. उस के बाद तो बेशक शक व वर्चस्व की नजर होती है.

आप भले ही बत्ती वाले साहब हों. लाल, पीली, नीली बत्ती में लोगों पर रुतबा झाड़ते हों, लेकिन इस की बिना रंग व शेप की अदृश्य लताड़रूपी बत्ती तो आप को जब चाहे छठी का दूध याद दिला देती है. दिन में ही आप की बत्ती गुल कर देती है. ‘जोरू का गुलाम’ जुमला ऐसे ही नहीं बना है. इस एजेंसी का नाम है बीबीआई यानी बीवी ब्यूरो औफ इन्वैस्टीगेशन. सीबीआई तो एक है, यह सब घरों में है. यह ज्यादा ऐक्टिव 25 से 50 साल की उम्र वाले पतियों के घर में रहती है. आप की जवानी जब उतार पर आ जाती है तो फिर यह एजेंसी थोड़ा सा लिबरल या कहें कि लापरवाह हो जाती है. लेकिन इस का वजूद फिर भी रहता है. यह 45 की उम्र से ही बातबात में कहना शुरू कर देती है कि लगता है आप सठिया गए हो, लगता है आप बुढ़ा गए हो और यह सब सुनतेसुनते वास्तव में आप गए यानी गौन केस हो जाते हैं. सीबीआई कुछ नहीं है इस के सामने जो सब की जांच करती है. उस के अधिकारी भी घर की एजेंसी के राडार पर रहते हैं. यहां भी जो कुंआरे हैं वे ही नियंत्रणमुक्त रहते होंगे.

यह एजेंसी यह नहीं देखती कि आप पीएम हैं, सीएम हैं, जीएम हैं या कोई भी एम, इस का जो अपना तरीका है जरूरत पड़ने पर उसे इस्तेमाल करती ही है और यह अधिकार उसे 7 फेरे लेते ही मिल जाता है और आजीवन रहता है. अब आप दांपत्य जीवन जैसे अनोखे जीवन को इतना सब पढ़ कर उम्रकैद मत कहने लगना. वह जो निगरानी करती है या लताड़ मारती है वह आप की भलाई के लिए है. आप को ऐब व बुराई से बचाने का उस का घरेलू ऐप है यह. तो गंगू कह रहा है उस के निगरानी राडार को अपने खुशहाल जीवन का आधार बना लें. हम यहां यह लेख लिखते हुए बड़े खुश हो रहे हैं और वहां रसोई से उसे आभास हो गया है कि घंटे भर से क्या बात है उस का पति के रूप में पट्टे पर मिला बंधुआ मजदूर बड़ा खामोश है? उस का यह मैन हीमैन बनने की कोशिश तो नहीं कर रहा है? उस के कदमों की आवाज धीरेधीरे बढ़ती जा रही है. अब क्या होगा?

किट्टी की किटकिट

अब यह गुजरे जमाने की बात हो गई है जब किट्टी पार्टियां केवल अमीर घरों की महिलाओं का शौक होती थीं. आजकल महानगरों में ही नहीं वरन छोटेछोटे शहरों में भी किट्टी पार्टियां आयोजित की जाती हैं और मध्यवर्गीय परिवारों की गृहिणियां भी पूरे जोशखरोश के साथ इन पार्टियों में शिरकत कर के गौरवान्वित महसूस करती हैं.

अमूमन इन पार्टियों का समय लगभग 11 से 1 बजे के बीच रखा जाता है जब पतिदेव औफिस और बालगोपाल स्कूल जा चुके होते हैं. उस समय घर पर गृहस्वामिनी का निर्विघ्न एवं एकछत्र राज होता है. हर छोटेबड़े शहर में चाहे कोई महल्ला हो, सोसायटी हो, मल्टी स्टोरी बिल्डिंग हो, इन पार्टियों का दौर किसी न किसी रूप में चलता रहा है.

इन पार्टियों की खासीयत यह होती है कि टाइमपास के साथसाथ ये मनोरंजन का भी अच्छा जरीया होती हैं जहां, गृहिणियां गप्पें लड़ाने के साथसाथ हंसीठिठोली भी करती हैं और एकदूसरे के कपड़ों व साजशृंगार का बेहद बारीकी से निरीक्षण भी करती हैं. किट्टी पार्टियों की मैंबरानों में सब से महत्त्वपूर्ण बात यह होती है कि सब से सुंदर एवं परफैक्ट दिखने की गलाकाट होड़ चलती रहती है, जिस का असर बेचारे मियांजी की जेब को सहना पड़ता है.

मैचिंग पर्स, मैचिंग ज्वैलरी और सैंडल की जरूरत तो हर किट्टी में लाजिम है. ऐतराज जताने की हिम्मत बेचारे पति में कहां होती है. यदि उस ने भूल से भी श्रीमतीजी से यह पूछने की गुस्ताखी कर दी कि क्यों हर महीने फालतू खर्चा करती हो, तो अनेक तर्क प्रस्तुत कर दिए जाते हैं जैसे मिसेज चोपड़ा तो हर किट्टी में अलगअलग डायमंड और प्लैटिनम के गहने पहन कर आती हैं. मैं तो किफायत में आर्टिफिशियल ज्वैलरी से ही काम चला लेती हूं. यदि मैं सुंदर दिखती हूं, अच्छा पहनती हूं तो सोसायटी में तुम्हारी ही इज्जत बढ़ती है. इन तर्कों के आगे बहस करने का जोखिम पतिदेव उठा नहीं पाते और बात को वहीं खत्म करने में बुद्धिमानी समझते हैं.

किट्टी पार्टियों में पैसों का लेनदेन भी जोर पकड़ता जा रहा है. पहले जहां किट्टी पार्टियां क्व500 से ले कर क्व1000 तक की होती थीं, वहीं आजकल इन में जमा होने वाली राशि क्व2 हजार से ले कर क्व10 हजार तक हो गई है.

श्रीमतीजी हर महीने पतिदेव से यह कह कर किट्टी के नाम पर पैसे वसूल लेती हैं कि तुम्हारे पैसे कहीं भागे थोड़े जा रहे हैं. जब मेरी किट्टी पड़ेगी तो सारे पैसे वापस घर ही तो आने हैं. मगर यह सच ही है कि कथनी एवं करनी में बड़ा अंतर होता है.

जब किट्टी के पैसे श्रीमतीजी के हाथ लगते हैं तो सालों से दबी तमन्नाएं अंगड़ाइयां लेने लगती हैं. उन के मनमस्तिष्क में अनेक इच्छाएं जाग्रत हो जाती हैं जैसे इस बार डायमंड या गोल्ड फेशियल कराऊंगी सालों से फू्रट फेशियल से ही काम चलाया है. बच्चों  की बोतल स्टील वाली ले लेती हूं. पानी देर तक ठंडा रहता है. अगली किट्टी में पहनने के लिए एक प्लाजो वाला सूट सिलवा लेती हूं. लेटैस्ट ट्रैंड है, पायलें पुरानी हो गई हैं कुछ पैसे डाल कर नई ले लेती हूं.

वे एक शातिर मैनेजर की तरह धीरेधीरे अपनी योजनाओं का क्रियान्वयन भी कर लेती हैं. अगर कभी नई बोतल देख पतिदेव ने पूछ लिया कि यह कब ली तो उस के जवाब में कड़ा तर्क कि बच्चों की सुविधाओं में मैं कंजूसी कभी नहीं करूंगी. अपना काम मैं चाहे जैसे भी चला लूं. इन ठोस तर्कों के आगे श्रीमानजी निरुत्तर हो जाते हैं.

आजकल किट्टी पार्टियां कई प्रकार की होने लगी हैं जैसे सुंदरकांड की किट्टी पार्टी जिस में मंडली इकट्ठा हो कर भजनकीर्तन के बाद ठोस प्रसाद ग्रहण करती है, हंसीठिठोली करती है और फिर एकदूसरे से बिदा लेती है.

अमीर तबके की महिलाएं तो थीम किट्टी करती हैं जैसे सावन में हरियाली जिस में हरे वस्त्र, आभूषण पहनने अनिवार्य हैं या जाड़ों में क्रिसमस थीम जहां लाल एवं श्वेत वस्त्रधारी मैंबरान का स्वागत सैंटाक्लाज करता है या फिर वैलेंटाइन थीम, ब्लैक ऐंड व्हाइट किट्टी या विवाह की थीम भी रखी जाती है जहां मैंबरानों के लिए अपनी शादी के दिनों में प्रयोग किए वस्त्र या आभूषण पहनने जरूरी होते हैं.

किट्टी की मैंबरान भी कई प्रकार की होती हैं जैसे अगर अर्ली कमिंग पर गिफ्ट है और किट्टी शुरू होने का निर्धारित समय 12 बजे है तो वे गिफ्ट के आकर्षण में बंधीं अपनेआप को समय की पाबंद दिखाते हुए तभी डोरबैल बजा देती हैं, जब 12 बजने में अभी 25 मिनट बाकी होते हैं. उधर बेचारी मेजबान अभी एक ही आंख में लाइनर लगा पाती है. वह मन ही मन कुढ़ती पर चेहरे पर झूठी मुसकान लिए आगंतुकों को बैठा कर अधूरा मेकअप पूरा करती है.

वहीं दूसरी प्रकार की किट्टी मेजबान ऐसी होती है कि वह अपनी पूरी ऊर्जा, समय और पैसा किट्टी से पहले इस बात में व्यय करती है कि उस की मेजबानी सर्वश्रेष्ठ हो. वह किट्टी से पहले परदे, कुशनकवर तो लगाती ही है, साथ ही बजट की परवाह किए बगैर 4-5 व्यंजन भी पार्टी में परोसती है ताकि हर मैंबरान मुक्त कंठ से उस की मेजबानी की प्रशंसा करे और वह खुशी के मारे फूलफूल कुप्पा होती रहे.

किट्टी पार्टी की कुछ सदस्य तो भाग्यशाली सिद्ध हो चुकी होती हैं कि चाहे जो भी हो तंबोला में वे खूब पैसे जीतती हैं. इस के विपरीत कुछ सदस्य तो जोशीली मुद्रा के साथ गेम्स जीतने के लिए जान की बाजी लगाने से गुरेज नहीं करती हैं. उन्हें हर हाल में गेम जीतना ही होता है. भले उन का मेकअप बिगड़ जाए, बाल खराब हो जाएं. अगर उस दिन भाग्य ने उन का साथ नहीं दिया तो झल्लाहट और खिसियाहट में किसी न किसी सहेली से उन का झगड़ा जरूर हो जाता है.

किट्टी में कुछ नजाकत एवं नफासत वाली मैंबरान भी होती हैं, जिन का उद्देश्य गेम जीतना कतई नहीं होता, वे संपूर्ण सजगता एवं सौम्यता से अपनी साड़ी का पल्लू, नैनों के काजल, मसकारा का खयाल रखते हुए गेम खेलने की औपचारिकता पूरी करती हैं.

एक अन्य प्रकार की मैंबरान ऐसी होती हैं जो गेम से पूर्व ही अपना रक्तचाप बढ़ा लेती हैं. उन का पेट बगैर कपालभाति के फूलनेपिचकने लगता है. वे स्वभावत: डरपोक किस्म की होती हैं जो अपनी पारी से पहले लघुशंका का निवारण करने जरूर जाती हैं. पता नहीं क्यों उन्हें ऐसा लगता है कि कहां फंस गईं. खेलकूद उन के बस का नहीं है. वे हार कर भी राहत की सांस लेती हैं यह सोच कर कि चलो उन की पारी निकल गई. बला टली.

जहां कुछ मेजबान जबरदस्त दिलदार होती हैं वहीं कुछ परले दर्जे की कंजूस जो कम से कम बजट में किट्टी निबटा देती हैं. इस प्रकार की मैंबरान गिफ्ट भी सोचसमझ कर चुनती हैं ताकि रुपयों की ज्यादा से ज्यादा बचत हो सके.

किट्टी पार्टी के दौरान ज्यादातर कुछ प्रौढ़ एवं जागरूक महिलाएं विचार रखती हैं कि अगली बार से खाने और मौजमस्ती के साथसाथ कुछ रचानात्मक एवं सृजनात्मक कल्याणकारी योजनाएं भी रखी जाएं, पर ये बातें सब की सहमति के बावजूद अगली किट्टी में हवाहवाई हो जाती हैं.

किट्टी पार्टी कुछ बहुओं के लिए अपनी सासों को महिलामंडित करने का एक मौका भी होता है जो वे घर में नहीं कर पातीं. वहीं कुछ सासों के लिए बहुओं की मीनमेख निकालने का भी मौका होता है. कुछ तो इतनी समर्पित किट्टी मैंबरान होती हैं कि चाहे कोई भी बाधा आ जाए काम वाली छुट्टी कर जाए, बच्चों की तबीयत खराब हो वे उन्हें बुखार की दवा दे कर भी किट्टी में जरूर उपस्थित होती हैं.

किट्टी पार्टियों का एक दूसरा संजीदा पहलू यह भी है कि भारतीय गृहिणियां किट्टी के माध्यम से ही थोड़ी देर के लिए स्वयं से रूबरू होती हैं और उस के बाद वे नई ऊर्जा, नवउत्साह के साथ अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करती हैं.

भारतीय मध्यवर्गीय समाज की मानसिकता के अनुसार किट्टी पार्टियों को अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता. जो महिलाएं किट्टी पार्टियां करती हैं उन्हें ज्यादातर स्वच्छंद एवं उच्शृंखल महिलाओं की श्रेणी में रखा जाता है, क्योंकि चाहे वे परिवार के लिए कितनी भी समर्पित रहें, परंतु यदि वे स्वयं के मनोरंजन हेतु कहीं सम्मिलित होती हैं, तो समाज उन्हें कठघरे में खड़ा करता है, हेय दृष्टि से देखता है, मेरे विचार से यह गलत है.

भारतीय गृहिणियां ताउम्र सुबह से शाम तक साल के बारहों महीने सिर्फ अपने घरपरिवार और बच्चों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को पूरी ईमानदारी एवं कर्तव्यनिष्ठा से पूर्ण करती हैं. उन का इतना हक तो बनता ही है कि जीवन के कुछ पल स्वयं के लिए बिना किसी आत्मग्लानि के व्यतीत करें और समाज उन के नितांत पलों को प्रश्नवाचक दृष्टि से न देखे. अंत में मैं इन पंक्तियों के साथ किट्टी की किटकिट को विराम देती हूं-

व्यतीत करना चाहती हूं,

सिर्फ एक दिन खुद के लिए,

जिस में न जिम्मेदारियों का दायित्व हो,

न कर्तव्यों का परायण,

न कार्यक्षेत्र का अवलोकन हो,

न मजबूरियों का समायन,

बस मैं,

मेरे पल,

मेरी चाहतें और

मेरा संबल,

मन का खाऊं,

मन का पहनूं,

शाम पड़े सखियों से गपशप,

फिर से जीना चाहती हूं,

एकसाथ में बचपन यौवन,

काश, मिले वो लमहे मुझे,

एक दिन अगर जी पाती हूं.

स्कूली गर्लफ्रैंड आफत या जरूरत

अकसर स्कूल के दिनों में लङके गर्लफ्रैंड बनाने के लिए बङे उतावले दिखते हैं. उन के पास एक गर्लफ्रैंड तो होती है, घुमा वे कितनों को रहे होते हैं. उन का हाल शाहरुख खान के उस गाने की लाइन की तरह होता है जिस में कहते हैं,“हां, यहां कदमकदम पर लाखों हसिनाएं हैं…”

लेकिन लङके यह भूल जाते हैं कि ये हसिनाएं यानी उन की बनाई गई गर्लफ्रैंड्स उन के लिए किसी सिरदर्दी और जिम्मेदारी से कम नहीं है जिस के लिए वे अभी तक तैयार भी नहीं हो पाए हैं.

आइए, जानते हैं कैसे लङकों के लिए गर्लफ्रैंड रखना एक बड़ी जिम्मेदारी और सिरदर्दी का काम है :

* स्कूल में लङकों के लिए गर्लफ्रैंड का रिश्ता एक बड़ा डिस्ट्रैक्शन साबित हो सकती है. आप हमेशा उस के बारे में सोचते रहते हैं. स्कूल में अपना समय देने के बजाए आप की गर्लफ्रैंड हमेशा आप से समय मांगती रहती है.

ऐसे में आप अपने स्कूल से जुड़ी ऐक्टिविटीज को समय नहीं दे पाते और अगर देते हैं तो वह नराज हो जाती है, जिस से आप की पढ़ाई प्रभावित होती है, क्योंकि आप ध्यान नहीं लगा पाते.

* जब गर्लफ्रैंड से रिश्ते शुरू होते हैं और खत्म होते हैं तो लङकों की आपसी दोस्ती आमतौर पर महत्त्वपूर्ण तरीकों से प्रभावित होती है क्योंकि स्कूल में लङके सामाजिक और भावनात्मक रूप से कम परिपक्व होते हैं। वे अपने दोस्तों को अनदेखा कर के, उन के प्रति असंवेदनशील हो कर और नए गर्लफ्रैंड के साथ अपने 2 हफ्ते के रिश्ते के दौरान उन्हें अलगथलग महसूस करा कर उन्हें चोट पहुंचाते हैं जिस से उन के दोस्तों के बीच उन का नैगेटिव इंप्रैशन पङता है.

स्कूल के दिनों में हमें सेम जैंडर के दोस्तों का होना बहुत सहारा देता है. खासकर प्यूबरटीज के दिनों में जब भावनाओं का सैलाब सा दिमाग में उमड़ रहा होता है. लङके अकसर इन दिनों अपने मांबाप से बातबात पर बहस कर रहे होते हैं. ऐसे में दोस्त उन का सहारा बनते हैं.

* सुननी पङेगी गर्लफ्रैंड की ही : एक व्यक्ति के साथ स्कूल का सारा समय निकालना पड़ेगा। ऐसे में आप नए दोस्त बनाने से रह जाएंगे. आप मौजमस्ती नहीं कर पाएंगे. सोचिए कि क्या आप की गर्लफ्रैंड आप को दूसरों से बात करने देगी.

हमेशा किसी सीसीटीवी की तरह उस की नजर केवल आप पर रहेगी. किसी दूसरी लड़की से बात तक करना आप के लिए दुश्वार हो जाएगा. आप ने किसी लड़की की गलती से मदद भी कर दी तो आप गलत ठहरा दिए जाएंगे और आप को ब्रैकअप की धमकियां मिलने लगेंगी. ऐसे में आप अच्छे दोस्तों से वंचित रह सकते हैं.

* महंगी पङती है गर्लफ्रैंड : जब आप की स्कूल में गर्लफ्रैंड होगी तो आप को उसे घुमाना पड़ेगा, उस के लिए चौकलेट्स और टैडीबियर लाने पड़ेंगे, उसे उस की दूसरी गर्लफ्रैंड्स के साथ रैस्टोरेंट नहीं तो पटरी पर ही सही, कुछ न कुछ खिलाना पड़ेगा. बर्थडे हो या फिर वैलेंटाइन, आप के लिए उन्हें गिफ्ट देना जरूरी सा रिवाज हो जाएगा. नहीं तो उस के नाराज होने के 100% चांसेस होते हैं जिस के लिए घर से मिलने वाली पौकेटमनी पूरी पङेगी ऐसा होना मुश्किल है।

ऐसे में लङके अकसर घरों से चोरी करना शुरू कर देते हैं. कभी मम्मी के पर्स से तो कभी पापा के पर्स से और कभी स्कूल की जरूरतों का हवाला दे कर झूठ बोलना भी शुरू हो जाता है. ऐसे में गर्लफ्रैंड रखना किसी हाईब्रीड डौग को पालने जैसा हो जाता है.

* ब्रेकअप कर सकता है मैंटल हैल्थ पर असर : स्कूलों में लङके मैच्योर होने की तरफ बढ रहे होते हैं. प्यूबरटी इसी समय टीनऐजर्स को हीट करती है. ऐसे मे आप इमोशनली वीक हो सकते हैं हालाकि लङकों में ऐसा कम देखा गया है। अकसर इन दिनों में लङके बगावती हो जाते हैं लेकिन गर्लफ्रैंड के मामलो में वे कमजोर ही रहते हैं. ऐसे में अगर उन की गर्लफ्रैंड के साथ लड़ाई या ब्रेकअप हो जाता है तो वे मैंटली और अनस्टेबल हो जाते हैं. न पढ़ाई पर
फोकस हो पाता है और न ही स्कूल ऐक्टीविटीज में मन लगता है.

ऐसे में लङके अपना पूरा फोकस गर्लफ्रैंड को मनाने में लगा देते हैं जिस से उन की पढ़ाई प्रभावित होती है.

इसीलिए जरूरी हो जाता है कि स्कूल के दिनों में केवल और केवल पढ़ाई पर ध्यान दिया जाए. गर्लफ्रैंड और बायफ्रैंड्स के बजाय आप अच्छे दोस्तों पर फोकस करें जो आप के बौद्धिक विकास में मदद करे. स्कूल का समय आप के भविष्य को निर्धारित करता है, भविष्य में आप कितना अचीव कर पाएंगे यह कुछ हद तक हाई स्कूल में ही निर्धारित हो जाता है.

फैस्टिवल में होमटाउन जाने से पहले करें ये खास तैयारियां, सफर होगा आसान

फैस्टिवल का मौसम शुरू हो गया है ऐसे में घर परिवार के साथ फैस्टिवल एंजौय करने का अपना ही मजा होता है. अगर आप अपने घर-परिवार से दूर है और परिवार के साथ फैस्टिवल मनाना चाहते है तो पहले से ही अपने घर जाने की प्लानिंग करेंगे तो बेहतर रहेगा. क्योंकि प्लानिंग से यात्रा सुखद और सुगम बन जाती है. वैसे भी यात्रा करना हर किसी को पसंद होता है और जब यात्रा खुद के घर की हो तो उत्सुकता और बढ़ जाती है. इसलिए यात्रा करते वक्त हमें बहुत सी बातों का ध्यान रखना चाहिए. क्या हैं वो टिप्स आइए जानें.

प्लान से बनाएं यात्रा को आसान

यात्रा में जाने से पहले प्लान बनाना बहुत जरूरी होता है.फिर चाहे अपने होम टाउन यानी घर ही क्यों ना जाना हो. क्योंकि प्लान यात्रा को आसान बनाता है. यदि प्लान सही है तो आप यात्रा का भरपूर आनंद ले सकते हैं. लेकिन अगर आप बिना प्लान के यात्रा करने निकलते हैं तो आपको कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. अगर आप भी अपने घर जाने का सोच रहें हैं तो आइए जानते हैं विस्तार से कि आप पनी यात्रा को कैसे खास बना सकते हैं.

टिकट की करें बुकिंग-

सबसे पहले आप ये डिसाइड करें कि आपको जाना किस तरह से है मतलब अगर आप हवाई जहाज या ट्रेन से जा रहे हैं, तो पहले ही टिकट बुक करवा लें. इससे आपके पैसे बचेंगे टिकट भी आराम से मिल जाएगा. अगर आप बाई रोड अपने कन्वेंस से जा रहें हैं तो अपनी गाड़ी को चेक कर लें कि लौन्ग रूट में जानें लायक है की नहीं. एक दिन पहले पेट्रोल या डीजल भरवा लें. फास्ट टैग को रिचार्ज कर लें ताकि टोल टैक्स देने में आपको परेशानी का सामना ना करना पड़े.

डाक्यूमेंट्स साथ रखें-

यात्रा के लिए निकलने से पहले अपने डाक्यूमेंट्स को साथ जरूर रखें. क्योंकि इनकी कभी भी जरूरत पड़ सकती है. अपने डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड, पहचान पत्र, आधार कार्ड आदि को साथ रखें.

इमरजेंसी फोन नंबर रखें-

यात्रा के दौरान अपने गंतव्य के लिए आपातकालीन सेवाओं का नंबर अवश्य देख लें. इन नंबरों को किसी नोट पैड पर लिख लें या अपने फोन में सेव कर लें ताकि आपातकालीन स्थिति में आप इन नंबरों का उपयोग करके अपने लिए मदद मंगवा सकें.

दवाएं जरूर रखें-

अगर आपको पहले से ही हेल्थ से जुड़ी किसी प्रकार की समस्या है, तो यात्रा करने से पहले अपने डौक्टर से परामर्श करें.यात्रा के समय कुछ जरूर दवाओं को अपने साथ जरूर रखें. अगर आप पहले से ही डायबिटीज और बीपी के पेशेंट हैं या जो आपके साथ जा रहा है वो है तो उसकी दवाएं साथ ही शुगर और बीपी को जांचने की मशीन को अपने साथ जरूर रखें. ताकि रास्ते में आपको कोई परेशानी ना हो. इसके अलावा मामूली चोट या फिर उल्टी जैसा समस्या के लिए भी दवाओं को अपने साथ रखना ना भूलें.

आवश्यकतानुसार रखें-

यात्रा करते समय अपने साथ कभी भी ज्यादा कैश साथ में न रखें. कैश केवल उतना ही अपने साथ लेकर जाएं, जिसकी आपको आवश्यकता होगी. इसके अलावा अपना सारा पैसा कभी भी एक जगह न रखें. दो या तीन अलगअलग स्थानों पर नकदी और क्रेडिट कार्ड रखें ताकि यदि आपकी कोई एक चीज चोरी भी हो जाए तो आप पूरी तरह से खाली हाथ न रहें.

महंगी ज्वैलरी ना पहनें-

यात्रा के समय कभी भी महंगे गहने ना पहनें क्योंकि ऐसा करना आज के समय में खुद को मुसीबत में डालने से कम नहीं है.अगर आप भीड़भाड़ वाले इलाकों में यात्रा कर रहे हैं तो अपना सभी कीमती समान घर पर ही छोड़ दें फिर यात्रा करें.

नशे से रहें दूर-

यात्रा के दौरान भूलकर भी नशा ना करें.अक्सर देखने को मिलता है कि लोग मजा लेने के कारण जरूरत से ज्यादा नशा कर लेते हैं, जिसकी वजह से सिर्फ दुर्घटना ही नहीं बल्कि चोरी जैसी घटना के भी शिकार हो जाते हैं.

नींद पूरी करें-

यात्रा के दौरान आपको थकावट होती है इसलिए 7 से 8 घंटे की नींद जरूर पूरी करें. इससे आपके शरीर को सफर के दौरान होने वाले तनाव और थकान से भी रिलैक्स मिलेगा और आप ट्रिप को एंजौय भी कर सकते हैं. अगर आप लौन्ग ड्राइव पर खुद ड्राइव करके जा रहें हैं तो बहुत जरूरी है कि आप पूरी नींद लें और नींद के साथ समझौता ना करें.

खानपान का ध्यान रखें-

यात्रा के समय खानपान का ध्यान जरूर रखें. आपकी जरा सी लापरवाही आपकी तबीयत के खराब होने का कारण बन सकता है. सफर में हेल्दी फूड्स खाएं और पानी पीते रहें जिससे आपका शरीर हाइड्रैट रखें. क्योंकि सफर में डिहाइड्रेशन के कारण जी घबराना, उल्टी या सिर में दर्द जैसी समस्या हो सकती हैं. इसलिए फल फ्रूट अपने साथ लेकर जाएं. यात्रा में मसालेदार खाना भूल कर भी ना खाएं साथ
ओवरईटिंग से बचें.

परिवार को दें उपहार-

आप अपने घर जा रहे हैं तो परिवार वालों के लिए गिफ्ट जरूर ले जाए. अगर आप पैरेंट्स को कोई गिफ्ट देना ही चाहते हैं तो गिफ्ट के रूप में कपड़े दें. इससे आपसी प्यार बढ़ता है. इसके अलावा आप चाहें तो उन्हें सोने की गिन्नी बतौर गिफ्ट के रूप में दे सकते हैं. आप अपनी क्षमतानुसार उन्हें सोने या चांदी से बनी कोई ज्वैलरी बतौर गिफ्ट दें. गिफ्ट के रूप में आप अपनी व पैरेंट्स की कुछ पुरानी तस्वीरों को आपस में मिलाकर एक खूबसूरत सा कोलार्ज बनवा सकते हैं और उन्हें गिफ्ट कर सकते हैं या फिर आप जहां रहते हैं वहां की कोई फेमस चीज भी गिफ्ट में दे सकते हैं.

कपड़ों की पैकिंग

अपनी यात्रा से कुछ दिन पहले एक पैकिंग लिस्ट बना जो जरूरी लगे उन्हें पहले ही रख लें. बाकी चीजों को बाद में शामिल करें. अपने बैग में बस 3 फुटवियर रखें. लिमिटेड कपड़ों को ही पैक करें. अपने बैग में मिक्स एंड मैच ज्यादा रखें. अगर आपको घर जाकर आस पड़ोस के लोगों को ये दिखाना है कि आप कहां से आए हैं और आपका स्टाइल क्या है तो उसके अकौर्डिंग ड्रेस रखें .

ऐसे कपड़े मैनेज कर करें जिन्हें आप तरहतरह से स्टाइल करके पहन सकते हैं.

बेसिक चीजों की पैकिंग-

शैंपू, कंडीशनर, टूथपेस्ट आदि के लिए अलग-अलग कंटेनर्स की जगह आप सौलिड टायलेट्रीज रखें सौलिड शैम्पू और कंडीशनर, शावर जेल के बजाय सोप बार, डिओडोरेंट स्टिक आदि का चुनाव करें.

फैस्टिव सीजन में ट्राई करें ट्रैडिशनल प्रिंट के आउटफिट, मिलेगा स्टाइलिश लुक

फैस्टिव सीजन प्रारम्भ हो चुका है, त्योहारों पर आमतौर पर नये कपड़े लिए जाते हैं. जब भी हम फैस्टिवल्स के लिए ड्रैस लेने का प्लान करते हैं तो सबसे बड़ा प्रश्न होता है कि ऐसा क्या लिया जाए जो फैशनेबल और बजट फ्रेंडली दोनों हो. फैशन तो हर दूसरे माह पर बदलता रहता है ऐसे में हमारी ड्रेस कुछ समय बाद ही आउट औफ फैशन हो जाती है और फिर उसे पहनने का मन नहीं करता. फैशनेबल की अपेक्षा यदि ट्रैडिशनल प्रिंट के बने ड्रैसेज खरीदना उपयुक्त रहता है क्योंकि ये प्रिंट कभी भी आउट औफ फैशन नहीं होते और इस तरह इन पर खर्च किया गया पैसा भी बेकार नहीं होता. आजकल बाजार में इन प्रिंट के फैब्रिक और रेडीमेड ड्रैसेज दोनों ही उपलब्ध हैं. इन्हें किसी भी सामान्य और खास अवसरों पर कैरी किया जा सकता है. ये ईजी तो यूज भी होने के साथ साथ इन प्रिंट से बने ड्रेसेज महिला पुरुष दोनों ही कैरी कर सकते हैं. आज हम आपको इन्हीं ट्रेडिशनल प्रिंट्स के बारे में बता रहे हैं ताकि आने वाले फैस्टिवल्स पर आप इन प्रिंट्स के ड्रैसेज खरीद सकें.

बांधनी प्रिंट

राजस्थान के मशहूर बांधनी प्रिंट में हर रेंज के कुर्ते, साड़ियां, सूट मैटेरियल आदि बाज़ार में उपलब्ध हैं. ये सिल्क, कौटन, ग्लेज्ड कौटन आदि फैब्रिक में बनाए जाते हैं. फैस्टिव सीजन में आप बांधनी प्रिंट से बने अनारकली और ए लाइन कुर्ते के साथ एंकल लेंथ सिगरेट पेंट्स, या पलाजो पेंट्स के साथ कैरी कर सकतीं हैं. फेस्टिवल्स के लिए आप कौटन की अपेक्षा सिल्क या ग्लेज्ड कौटन फैब्रिक का चयन करें.

इकत प्रिंट

उड़ीशा में बनाए जाने वाले इकत प्रिंट को बाँधकला और बंध के नाम से भी जाना जाता है. इकत प्रिंट से बनी लांग मैक्सी, टौप या लांग गाउन और साड़ी को आप फेस्टिव सीजन में बहुत आराम से ट्राई कर सकती हैं. ये दिखने में बेहद खूबसूरत और ट्रैंडी लगते हैं. जेंट्स और लेडीज दोनों ही इस प्रिंट के ड्रेसेज ट्राई कर सकते हैं.

पटोला प्रिंट

गुजरात के पाटन में धागों से डबल साइड पर बनाया जाने वाला पटोला प्रिंट सिल्क फैब्रिक बनाया जाता है जिससे मूलत साड़ियां बनायी जाती हैं. यह डबल इक़त पैटर्न में बनायी जाती है. सिल्क कपड़े पर बनायी जाने के कारण इनकी कीमत बहुत अधिक होती है. आजकल चिकनकारी, बॉर्डर पल्लू पटोला और अन्य फैब्रिक पर भी मिक्स एंड मैच करके हल्का फुल्का पटोला प्रिंट बनाया जाने लगा है जो कम कीमत में भी मिल जातीं हैं. यदि आप ओरिजनल पटोला पहनना चाहती हैं तो विश्वसनीय दुकान से ही खरीदें ताकि किसी भी प्रकार की ठगी का शिकार होने से बचीं रहें.

कलमकारी प्रिंट

कलमकारी प्रिंट की उत्पत्ति आंध्र प्रदेश से हुई. इसे बेंबू से बने पेन और प्राकृतिक रंगों से बनाया जाता है. आजकल इसे ब्लौक्स से भी बनाया जाने लगा है. इसका कौटन बेहद सौफ्ट होता है जो शरीर के लिए काफ़ी आरामदायक रहता है. इससे आप लांग, अनारकली या फिर शोर्ट कुर्ता बनवा सकती हैं. इसे बनवाते समय मिनिमल डिजायन और लेसेज का प्रयोग क्रेन ताकि इसकी ओरिजिनैलिटी बनी रहे. आजकल बाजार में कलमकारी प्रिंट की रेडीमेड ड्रेसेज भी उपलब्ध हैं जो काफी सुन्दर और बजट फ्रेंडली भी होती हैं.

चिकनकारी

यह लखनऊ की प्रसिद्ध शैली है जो यहां की कशीदाकारी का सर्वोत्कृष्ट नमूना है. चिकनकारी अब पूरे देश में अपनी ख्याति फैला चुकी है. इसे मूलत जॉर्जेट और फाइन कौटन पर कौटन के धागों से बनाया जाता है परंतु आजकल सिल्क पर भी चिकनकारी की जाने लगी है. कॉटन और जॉर्जेट की अपेक्षा ये क़ीमत में अधिक होती हैं. इनकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि इन्हें किसी विशेष देखभाल की आवश्यकता नहीं होती. बाजार में चिकनकारी की साड़ियां, ड्रैसेज, फैब्रिक उपलब्ध हैं.

बाघ प्रिंट

बाघ मध्य प्रदेश के धार जिले के बाग नामक स्थान पर लकड़ी के ब्लौक्स के द्वारा काले और लाल प्राकृतिक रंगों से बनाया जाता है. इसे प्योर कौटन और सिल्क दोनों पर बनाया जाता है. इसमें ब्लौक्स से पतला बौर्डर और ज्यामितीय और फूलों के डिजाइंस बनाए जाते हैं. आप अपनी पसंद के अनुसार कोई भी ड्रेस इस प्रिंट से बनवा सकती हैं.

टेस्टी और हेल्दी मसालेदार पनीर भुर्जी आपने खाया क्या, नोट करें ये रेसिपी

पनीर से कई तरह के व्यंजन बनाए जा सकते हैं. जैसे- मटर पनीर, शाही पनीर और भी कई तरह के व्यंजन है पर आज आपको स्वादिष्ट पनीर भुर्जी की रेसिपी बताने जा रहे हैं. जिससे आप झटपट बना सकती हैं. यह खाने में बेहद स्वादिष्ट होती है. और इसको बनाना भी एकदम आसान है.

सामग्री:

– पनीर (100 ग्राम)

– 2 टमाटर

– 1 प्याज (बारीक कटा हुआ)

– 2 हरी मिर्च

– अदरक पिसा हुआ

– 2 कली लहसुन

सूखे मसाले

– जीरा

– लाल मिर्च

– हल्दी

– गरम मसाला

– तलने के लिए तेल या घी

–  नमक (स्वादानुसार)

बनाने की विधि

– सबसे पहले पनीर को कद्दूकस कर लें.

– तेल अथवा घी गर्म करके जीरा, प्याज, हरी मिर्च, अदरक व लहसुन डाल दें.

– गुलाबी होने तक भूनें, उसके बाद टमाटर डालकर उसका पानी सूखने तक चलाती रहें.

– सूखा मसाला डालकर हिलाएं.

– मसाले में पनीर डालकर हल्के हाथ से हिलाएं.

– अब आपकी पनीर भुर्जी तैयार है.

ममा आई हेट यू : क्या आद्या की मां से नफरत खत्म हो पाई?

‘‘आद्या,तुम्हारी मम्मी का फोन है,’’ अपनी बेटी संगीता का फोन आने पर शोभा ने अपनी 10 साल की नातिन को आवाज देते हुए कहा. वह दूसरे कमरे में टैलीविजन देख रही थी. जब कोई उत्तर नहीं मिला तो वे उठ कर उस के पास गईं और अपनी बात दोहराई.

‘‘उफ, नानी मैं ने कितनी बार कहा है कि मुझे उन से कोई बात नहीं करनी. फिर आप क्यों मुझे बारबार कहती हो बात करने को?’’ आद्या ने लापरवाही से कहा.

शोभा उस के उत्तर को जानती थीं, लेकिन वे अपनी बेटी संगीता को खुद उत्तर न दे कर आद्या की आवाज स्पीकर पर सुनवा कर उस से ही दिलवाना चाहती थीं वरना संगीता उन पर इलजाम लगाती कि वही उस की बेटी से बात नहीं करवाना चाहती.

फोन बंद करने के बाद शोभा ने आद्या की मनोस्थिति पता करने के लिए उस से कहा, ‘‘बेटा, वह तुम्हारी मां है. तुम्हें उन से बात करनी चाहिए…’’

अभी उन की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि आद्या चिल्ला कर बोली, ‘‘यदि उन्हें मेरी जरा भी चिंता होती तो इस तरह मुझे छोड़ कर दूसरे आदमी के साथ नहीं चली जातीं… मेरी फ्रैंड वान्या को देखो, उस की मां उस के साथ रहती हैं और उसे कितना प्यार करती हैं. जब से मैं ने मां को फेसबुक पर किसी दूसरे आदमी के साथ देखा है, मुझे उन से नफरत हो गई है, अमेरिका में ममा और पापा के साथ रहना मुझे कितना अच्छा लगता था, लेकिन ममा को पापा से झगड़ा कर के इंडिया आते समय एक बार भी मेरा खयाल नहीं आया कि मेरा क्या होगा…मैं पापा के बिना रहना चाहती हूं या नहीं… पापा ने भी तो मुझे एक बार भी नहीं रोका… और फिर यहां आ कर उन्हें भी मुझ से अलग ही रहना था तो फिर मुझे पैदा करने की जरूरत ही क्या थी… मैं जब अपनी फ्रैड्स को अपने मम्मीपापा के साथ देखती हूं, तो कितना ऐंब्रैस फील करती हूं… आप को पता है? और वे सब मुझे इतनी सिंपैथी से देखती हैं. जैसे मैं ने ही कोई गलती की है… ऐसा क्यों नानी? मैं जानती हूं, ममा मुझ से फोन पर क्या कहना चाहती हैं… वे चाहती हैं कि मैं अपने अमेरिका में रहने वाले पापा से कौंटैक्ट करूं, ताकि वे मुझे अपने पास बुला लें और उन का मुझ से  हमेशा के लिए पीछा छूट जाए. उस के बाद वे मुझ से मिलने के बहाने अमेरिका आती रहें, क्योंकि आप को पता है न कि अमेरिका में रहने के लिए ही उन्होंने एनआरआई से लवमैरिज की थी. हमेशा तो फोन पर मुझ से यही पूछती हैं कि मैं ने उन से बात की या नहीं, लेकिन नानी मैं उन के पास नहीं जाना चाहती. मैं तो आप के पास ही रहना चाहती हूं. मैं ममा से कभी बात नहीं करूंगी, ममा आई हेट यू… आई हेट हर… नानी.

आद्या ने एक ही सांस में सारा आक्रोश उगल दिया और किसी अपने बिस्तर पर औंधी हो कर रोने लगी.

शोभा अवाक उस की बातें सुनती रह गईं कि इतनी छोटी उम्र में आद्या को हालात ने कितना परिपक्व बना दिया था.

आद्या के तर्क को सुनने के बाद शोभा गहरे सोच में डूब गईं. इतना समझाने के बाद भी कि अमेरिका में इतनी दूर रहने वाले लड़के के चरित्र के बारे में क्या गारंटी है, विवाह का निर्णय लेने के लिए सिर्फ फेसबुक की जानपहचान ही काफी नहीं है. लेकिन उन की बेटी संगीता ने एक नहीं सुनी और जिद कर के उस से विवाह किया था

विवाह के सालभर बाद ही आद्या पैदा हो गई. उस के पैदा होने के समय शोभा अमेरिका गई थी, लेकिन सुखसुविधा की कोई कमी न होते हुए भी घर में हर समय कलह का वातवरण ही रहता था, क्योंकि राहुल की आदतें बहुत बिगड़ी हुई थीं. उस के विवाह करने का एकमात्र उद्देश्य तो पत्नी के रूप में अनपेड मेड लाना था.

एक दिन ऐसा आया जब संगीता 4 साल की आद्या को ले कर भारत उन के पास लौट आई, लेकिन संगीता को अमेरिका के ऐश्वर्यपूर्ण जीवन जीने की इतनी आदत पड़ गई थी कि उस का अपनी आईटी कंपनी की नौकरी से गुजारा ही नहीं होता था.

4 साल बीततेबीतते उस ने अपने मातापिता को बताए बिना किसी बड़े बिजनैसमैन से दूसरी शादी कर ली. वह उस से विवाह करने के लिए इसी शर्त पर राजी हुआ कि वह अपनी बेटी को साथ नहीं रखेगी.

धीरेधीरे उम्र के साथ आद्या को सारे हालात समझ में आने लगे और उस का अपनी मां के लिए आक्रोश भी बढ़ने लगा, जिस की प्रतिक्रिया औरौं पर भी दिखने लगी. वह कुंठित हो कर अपनी स्थिति का अनुचित लाभ उठाने लगी. अपनी नानी से भी हर बात में तर्क करने लगी थी. स्कूल से आने के बाद वह घर में टिकती ही नहीं थी. उस की अपनी कालोनी में ही 2-3 लड़कियों से दोस्ती हो गई थी. उन के साथ ही सारा दिन रहती थी.

वहां रहने वाले परिवारों के लोग भी उस की बदसलूकी की उस की नानी से शिकायत करने लगे तो शोभा को बहुत चिंता हुई, लेकिन वह समझाने से भी कुछ समझना नहीं चाहती थी उस का व्यवहार जब सीमा पार करने लगा तो शोभा उसे एक काउंसलर के पास ले गईं. उस ने आद्या से बहुत सारे प्रश्न पूछे. उस का जीवन के प्रति नकारात्मक सोच देख कर उन्होंने शोभा को समझाया कि जोरजबरदस्ती उस से कोई कार्य न करवाया जाए और डांटने से स्थिति और बिगड़ जाएगी. जहां तक हो उसे प्यार से समझाने की कोशिश की जाए.

काउंसलर के कथन का भी आद्या पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा. उस के बाद से वह शोभा को इमोशनली ब्लैकमेल करने लगी. जब भी शोभा उसे कुछ समझातीं तो वह तुरंत कहती, ‘‘आप को डाक्टर साहब ने क्या कहा था. कि मेरे मामलों में ज्यादा दखलंदाजी न करें. मेरी तबीयत ठीक नहीं है… आखिर मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ कि ममापापा ने मुझे अपने से अलग कर दिया है. आखिर मेरा कुसूर क्या है? इतना कह कर वह रोने लगती और फिर खाना छोड़ कर खुद को कमरे में बंद कर लेती.

अपरिपक्व उम्र की होने के कारण

उसे इस बात की समझ ही नहीं थी कि उस के इस तरह के व्यवहार से उस की नानी कितनी आहत होती हैं, वे कितनी असहाय हैं, उस की इस स्थिति की दोषी वे तो बिलकुल नहीं है.

शोभा ने उसे बहुत समझाया कि उस के तो नानानानी हैं उसे बहुत समझाया कि उस के तो नानानानी हैं उसे संभालने के लिए, बहुत सारे बच्चों को तो कोईर् देखने वाला भी नहीं होता और अनाथाश्रम में पलते हैं. इस के जवाब में आद्या बोलती कि अच्छा होता वह भी अनाथाश्रम में पलती, कम से कम उसे अपने मातापिता के बारे में तो पता नहीं होता कि वे स्वयं तो मौज की जिंदगी काट रहे हैं और उसे दूसरों के सहारे छोड़ दिया है.

शोभा आद्या का व्यवहार देख कर बहुत चिंतित रहती थीं, उन्हें अपनी बेटी संगीता पर बहुत गुस्सा आता कि विवाह करने से पहले एक बार तो उस ने अपनी बेटी के बारे में सोचा होता कि वह क्या चाहती है? आखिर वह उसे दुनिया में लाई है, तो उस के प्रति भी तो उस की कोई जिम्मेदारी बनती है. कोई मां इतनी स्वार्थी कैसे हो सकती है. उस के गलत कदम उठाने की सजा उन्हें और आद्या को भुगतनी पड़ रही है. जवाब में वह कहती कि वह आद्या के लिए कुछ भी करेगी. बस अपने साथ ही तो नहीं रख सकती.

ज्यादा समस्या है तो उसे होस्टल में डाल देगी.

शोभा को उस की बातें इतनी हास्यास्पद लगतीं कि उस की बेटी की इतनी भी समझ नहीं है कि पहले के जमाने की उपेक्षा नए जमाने के बच्चे को पालना कितना जटिल है और वह भी ऐसे बच्चे को, जो सामान्य वातावरण में नहीं पल रहा.

किसी ने सच ही कहा है कि बच्चे की सही परवरिश उस के मातापिता ही कर सकते हैं और मांबाप में अलगाव की स्थिति में किसी एक के द्वारा उसे प्यार और उस की देखभाल के लिए उसे समय देना जरूरी है वरना बच्चा दिशाहीन हो कर भटक सकता है. केवल भौतिक सुख ही उस के सही पालनपोषण के लिए पर्याप्त नहीं होते.

जिन बच्चों के मातापिता उन्हें बचपन में ही किसी न किसी कारण अपने से अलग कर देते हैं, वे अधिकतर बड़े होने पर सामान्य व्यक्तित्व के न हो कर दब्बू, आत्मविश्वासहीन और अपराधिक प्रवृत्ति के बन जाते हैं, क्योंकि बच्चे जितना अपने मातापिता की परवरिश में अनुशासित बन सकते हैं उतना किसी के भी साथ रह कर नहीं बल्कि स्थितियों का लाभ उठा कर इमोशनली ब्लैकमेल करते हैं और दया का पात्र बन कर ही आत्मसंतुष्टि महसूस करते हैं. मातापिता की जिम्मेदारी है कि विशेष स्थितियों को छोड़ कर अपने किसी स्वार्थवश बच्चों को किसी के सहारे न छोड़े, नानीदादी के सहारे भी नहीं. बच्चा पैदा होने के बाद उन का प्राथमिक कर्तव्य बच्चों का पालनपोषण ही होना चाहिए, क्योंकि वे ही उन्हें प्यार दे सकते हैं.

मोटी बिंदी लगाने से माथे पर परमानैंट स्पौट हो गया है, मैं क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मेरी उम्र 35 साल है. मैं अपने माथे पर मोटी बिंदी लगाती हूं. इस वजह से उस जगह पर एक परमानैंट स्पौट हो गया है. क्या इस स्पौट को किसी घरेलू उपाय से रिमूव किया जा सकता है?

जवाब-

घरेलू उपायों पर समय व्यर्थ न करते हुए जितना जल्दी हो सके इस के लिए आप स्किन स्पैशलिस्ट से मिलें. अपनी मरजी से कोई दवा या क्रीम का इस्तेमाल नहीं करे. दरअसल, खराब क्वालिटी की बिंदी में मोनोबैंजाइल इस्टस औफ हाइड्रोक्यूनोन पदार्थ पाया जाता है, जिस से स्किन पर दाग पड़ जाता है. इसलिए ब्रैंडेड बिंदी ही लगाएं.

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बढ़ते फैशन के दौर में बिंदी का चलन फिर से देखने को मिल रहा है. फैशन के अनुसार छोटी बिंदी को आजकल ज्यादा पसंद किया जा रहा है. महिलाएं हों या लड़कियां छोटी बिंदी लगाना ज्यादा पसंद कर रही हैं. आइए, जानते हैं बिंदी लगते वक्त किन किन बातों का ध्यान रखें-

अगर आप रंग-बिरंगी छोटी बिंदी लगा रही हैं तो अपने कपड़ों से मैच करता हुआ ही लगाएं. अगर आपने शौर्ट कुर्ती पहनी है, तो इस पर छोटी बिंदी बहुत खूबसूरत लगेगी.

छोटी बिंदी साड़ियों के साथ भी बहुत फबती है. खास कर प्रिंट और कॉटन की साड़ियों के साथ. अगर आपका सिंपल के साथ खूबसूरत दिखने का मन है तो आप लाइट मेकअप के साथ छोटी बिंदी जरूर लगाएं.

छोटी बिंदियों में काली और लाल बिंदी सभी परिधानों के साथ खूब जचती है. अगर आपको लाल बिंदी ज्यादा पसंद है तो आप इसे कई कपड़ों के साथ मैच कर सकती हैं. काला, पीला, लाल, नीला, सफ़ेद,रानीपिंक, डार्कग्रीन, आसमानी, क्रीम आदि. इन रंगों के कपड़ों पर लाल बिंदी बहुत सुंदर लगती है.

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या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

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