नए दौर की मौडर्न मौम्स और इनकी चुनौतियां

नए दौर की मां को मौडर्न मौम कह सकते हैं क्योंकि मौडर्न होने का अर्थ है बदलते वक्त के साथ सही तालमेल बैठाते हुए आगे बढ़ना. आज की मां भी कुछ ऐसा ही कर रही है इसलिए वह मां नहीं बल्कि मौडर्न मौम कही जा रही है. आज के बदलते समय में वह सिर्फ घर के प्रति अपने सारे दायित्व ही नहीं निभा रही बल्कि बाहर जा कर नौकरी भी कर रही या अपना व्यवसाय भी संभाल रही है.

मौडर्न मौम की इस दोहरी भूमिका ने साबित कर दिया है कि वह मौडर्न या स्मार्ट जमाने की मौडर्न या स्मार्ट मौम है. एक मौडर्न या स्मार्ट मौम को कम समय में बहुत सारी जिम्मेदारियां निभाना हैं जैसे बच्चों को अच्छे संस्कार देना, उन के हर सवाल का जवाब भी देना, संतुष्ट भी करना है, नई तकनीक भी सीखनी है एवं उस का सही इस्तेमाल भी सिखाना है.

बच्चों के साथसाथ खुद को एवं परिवार को भी स्वस्थ रखना है, हार से सीखना भी है एवं प्रतियोगिता के इस दौर में उन के आत्मविश्वास को भी बढ़ाना है. एक मौडर्न मौम इन नई चुनौतियों के साथ आगे बढ़ रही है और अपने सारे दायत्व, कर्तव्य बखूबी निभा रही है.

मौडर्न मौम्स की चुनौतियां

आजकल की अधिकतर मौम्स वर्किंग हैं जिस के कारण उन के पास समय का अभाव बना रहता है इसलिए उन को बच्चों के लिए अलग से समय निकलना कई बार किसी चुनौती से कम नहीं होता जिस के चलते उन के पास बच्चों के साथ अच्छा समय गुजारने, साथ में हंसनेखेलने का वक्त नहीं मिलता. इस कारण बच्चे मां से धीरेधीरे इमोशनली डिटैच होने लगते हैं. फैमिली बौंडिंग का अभाव, बातचीत की कमी से आपसी सहानुभूति, प्यार और पारिवारिक मूल्यों का अभाव देखने को मिलता है.

साथ ही यह समस्या तब और भी गहरी हो जाती है जब वे किसी समस्या या उलझन में होते हैं तो इस वक्त को अकेले झेलने की वजह से बच्चों के मानसिक और शारीरिक सेहत पर भी बुरा असर पड़ने लगता है इसलिए जरूरी है कि बच्चों की परवरिश में मातापिता केवल पोषण और खर्च को ही प्राथमिकता न दें बल्कि उन्हें अपने साथ हमेशा होने का एहसास कराते रहें ताकि वे इमोशनली अटैच रहें, साथ ही वे बच्चों के साथ जो समय बिताएं वे क्वालिटी समय हो.

डिजिटल दुनिया से दूर रखना

पहले के समय बच्चे केवल टीवी देखते थे और वह भी एक निश्चित समय के लिए लेकिन आजकल इस डिजिटल इंटरनैट की दुनिया में बच्चों के हाथ में हर वक्त मोबाइल रहता है जिस के कारण उन के पास वेब पर सभी प्रकार की सामग्री असीमित और अप्रतिबंधित पहुंचती है इसलिए बच्चों को मोबाइल से दूर रखना किसी चुनौती से कम नहीं. ऐसे में आज की मौडर्न मौम बच्चों को सोशल मीडिया से दूर रखना है, साथ ही उन्हें यह भी बताना है कि डिजिटल इंटरनैट की दुनिया में क्या देखना है और क्या नहीं क्योंकि उन को नहीं पता होता है कि उन्हें क्या कंटैंट देखना और क्या नहीं. उन की एक गलती भारी पड़ सकती है.

कई बार बच्चे जानकारी के आभाव में कुछ गलत फोटो, वीडियो और जानकारी शेयर कर देते हैं और कमैंट्स भी कर देते हैं. उन पर नजर बनाए रखने के लिए आज की मां ने हाईटैक तकनीकों का इस्तेमाल करना सीखा है ताकि बच्चे संस्कारों से दूर न हों और किसी गलत आदत का शिकार न बन जाएं इस से बचने के लिए उन्हें इस का सही इस्तेमाल करना सिखाएं.

बच्चों को स्वस्थ रखना एवं जागरूक करना

बच्चों के लालनपालन व परिवार की सेहत का खयाल रखना प्राय: मां की ही जिम्मेदारी कही जाती है. आज जिस तेजी से समय व परिस्थितियां बदल रही हैं, उसी तेजी के साथ बच्चों की खानपान संबंधी आदतें भी बदल रही हैं.

आज वे रोटी और परांठे की जगह बर्गर, सैंडविच और पिज्जा को बढ़ावा दे रहे हैं. जंक फूड कुछ ज्यादा ही खाना पसंद कर रहे हैं. इस का सीधा असर उन की सेहत पर पड़ रहा है. वे मोटापे के शिकार हो रहे हैं इसलिए आज की मौडर्न मौम ने भी समय के अनुरूप खुद को ढालते हुए भोजन के साथ नएनए ऐक्सपैंरिमैंट कर नए तरीकों से बच्चों और परिवार वालों की पौष्टिक जरूरतें पूरी करना शुरू कर दिया है साथ ही बच्चों को बचपन से ही पौष्टिक आहार के बारे में जानकारी देना शुरू कर रही है, कौन सा आहार उन के लिए अच्छा है और उसे खाने से क्या फायदा हो सकता है इस के लिए उन्हें फलों और सब्जियों में मौजूद पौष्टिक तत्त्वों के बारे में बता रही है.

इस के लिए मातापिता भी अच्छे पौष्टिक आहार का सेवन कर रहे हैं ताकि बच्चे आप को देख कर उन्हें खाने की आदत डाल सकें और स्वस्थ खाने को अपनाएं. बच्चों, सर्वांगीण विकास के लिए उन्हें बैलेंस डाइट देना बहुत जरूरी है क्योंकि बच्चों के साथसाथ पूरे परिवार व खुद को स्वस्थ रखने की जिम्मेदारी भी मां के कंधों पर ही होती है.

आउट डोर ऐक्टिविटीज को बढ़ाना

आजकल बच्चों की आउट डोर ऐक्टिविटी बहुत कम हो गई हैं उन का अधिकतर फ्री समय मोबाइल स्क्रीन के सामने गुजरता है. वे गेम्स खेलने के लिए घर के बाहर जाने के बजाय मोबाइल पर खेलना पसंद कर रहे हैं जिस के कारण उन का सही तरीके से शारीरिक विकास होना रुक गया है. इस का प्रभाव उन के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर भी पड़ा है और वे कम उम्र में ही मोटापा, तनाव और अवसाद जैसी समस्याओं से ग्रस्त हो रहे हैं इसलिए एक मौडर्न मौम बच्चों को आउटडोर गेम्स के फायदे बता कर एवं उन के साथ खेल कर उन्हें बढ़ावा दे रही है.

उन की पसंदनापसंद की गेम्स की पहचान कर उन में उन की रुचि बनाए रखने के लिए उन का उचित मार्गदर्शन भी कर रही है.

बच्चे को संतुष्ट करना

मातृत्व की परिभाषा आज के बच्चों के लिए बहुत अलग हो गई है. बच्चे इन दिनों एक डिजिटल बचपन जी रहे हैं और एक डिजिटल वातावरण में बड़े हो रहे हैं. वे फोन चलाना पहले सीख रहे हैं और बोलना बाद में. आज के बच्चे किसी भी चीज के बारे में अस्पष्ट या जानकारी के आभाव में नहीं हैं. हजारों प्रश्न पूछ रहे हैं. उन को संतुष्ट करना मां के लिए व्यस्त जीवन में बहुत कठिन होता जा रहा है क्योंकि आजकल के बच्चों को बहलानाफुसलाना बहुत ही मुश्किल हैं. उन के सवालों की संख्या बढ़ती जा रही हैं.

मां रोजाना अपने बच्चे के साथ ज्यादा समय बिताने की कोशिश करती है इसलिए उन्हें सिखाने और अनुशासन देने का उसे ज्यादा मौका मिलता है.

परित्याग: क्या पहली पत्नी को छोड़ पाया रितेश

रितेश अपने औफिस में काम में व्यस्त था. पेशे से वह एक बहुत बड़ी आर्किटेक्ट फर्म में काम करता था. सारा समय वह काम में डूबा रहता था. उम्र उस की मात्र 32 वर्ष की ही थी, लेकिन उस के दिमाग के घोड़े जब दौड़ते थे, तब अनुभवी आर्किटेक्ट भी चारों खाने चित हो जाते थे.

हमेशा शांत रहने वाला रितेश एकाकी जीवन व्यतीत कर रहा था. घर से औफिस और औफिस से घर तक ही रितेश का जीवन सीमित था. रितेश का व्यक्तित्व साधारण था, गेहुंआ रंग और मध्यम कदकाठी. उस का शरीर किसी को आकर्षित नहीं करता था, लेकिन उस का काम और काम के प्रति समर्पण हर किसी को आकर्षित करता था.

औफिस के नजदीक ही उस ने रहने के लिए एक कमरा किराए पर लिया था. वह औफिस पैदल आया जाया करता था. उस के पास कोई कार, स्कूटर, बाइक वगैरह कुछ भी नहीं था. कमरे में एक बिस्तर, कुछ कपड़े, कुछ किताबें के अतिरिक्त कुछ बरतन, जिन में वह अपना खाना बनाया करता था. दाल, रोटी, चावल बनाना वह सीख गया था और इन्हीं में अपना गुजारा करता था. कभी रोटी नहीं भी बनाता था, फलाहार से काम चल जाता था.

औफिस में रिया नई आई थी. वह भी काम के प्रति समर्पित थी. सुबहसवेरे रिया को औफिस में रितेश नहीं दिखा. वह एक प्रोजैक्ट पर रितेश के साथ काम कर रही थी. उस ने फोन किया, लेकिन रितेश ने फोन नहीं उठाया. रितेश को रात में तेज बुखार हो गया था, जिस कारण वह करवटें बदलता रहा और सुबह नींद आई. तेज नींद के झौंके में फोन की घंटी उसे सुनाई नहीं दी.

औफिस में रितेश के बौस कमलनाथ को आश्चर्य हुआ कि बिना बताए रितेश कहां चला गया. उस ने कोई संदेश भी नहीं छोड़ा. रितेश औफिस के समीप ही रहता था, इसलिए लंच समय में टहलते हुए कमलनाथ रितेश के घर की ओर रिया के संग चल दिए.

रितेश एक मकान की तीसरी मंजिल पर बने एक कमरे में रहता था. जब कमलनाथ और रिया रितेश के कमरे में पहुंचे, तब डाक्टर रितेश का चेकअप कर रहा था. डाक्टर ने दवाई का परचा लिख दिया.

‘‘परचा तो आप ने लिख दिया, लेकिन बिस्तर से उठने की हिम्मत ही नहीं हो रही है,’’ रितेश ने डाक्टर को अपनी लाचारी बताई.

डाक्टर ने अपने बैग से दवा निकाल कर रितेश को दी और कहा, ‘‘यह दवा अभी ले लो. पानी किधर है.’’

पानी की बोतल बिस्तर के पास एक स्टूल पर रखी हुई थी. रितेश ने दवा ली. कमलनाथ ने डाक्टर से रितेश की तबीयत का हालचाल पूछा.

‘‘मैं कुछ टैस्ट लिख देता हूं. लैब का टैक्निशियन खून और पेशाब के सैंपल जांच के लिए यहीं से ले जाएगा. रितेश को तीन दिन से बुखार आ रह था. मुझे टाइफाइड लग रहा है.’’

डाक्टर के जाने के बाद कमलनाथ ने रितेश से दवा का परचा लिया और रिया को कैमिस्ट शौप से दवा लाने को कहा.

‘‘कमरे को देख कर ऐसा लगता है कि तुम अकेले रहते हो?’’ कमलनाथ ने रितेश से पूछा. रितेश ने गरदन हिला कर हां बोल दिया.

‘‘रितेश तुम आराम करो, मैं यहां औफिस बौय को भेज देता हूं. वह तुम्हारी मदद कर देगा. तुम कुछ दिन आराम करो, काम हम देख लेंगे,’’ रिया ने रितेश को दवा दी और कमलनाथ के संग वापस औफिस चली गई.

रितेश को बारबार उतरतेचढ़ते बुखार से कमजोरी हो गई. शाम को औफिस बौय रितेश के लिए बाजार से कुछ फल ले आया और दालचावल बना दिए. अगले दिन जांच रिपोर्ट आने पर टाइफाइड की पुष्टि हो गई.

रितेश औफिस जाने की स्थिति में नहीं था. टाइफाइटड ने उस का बदन निचोड़ लिया, जिस कारण वह औफिस नहीं जा सका.

3 दिन बाद कमलनाथ ने रितेश से उस की तबीयत पूछी और उस के औफिस आने की असमर्थता जताने पर जरूरी काम निबटाने के लिए रिया को उस के घर जा कर काम करने को कहा.

कमजोरी के कारण रितेश ने शेव भी नहीं बनाई थी. स्नान करने के पश्चात उस ने कपड़े बदले थे और चाय बना कर ब्रेड को चाय में डुबो कर खा रहा था.

फाइल और लैपटौप के साथ रिया रितेश के कमरे में पहुंची. पिछली शाम कमलनाथ से बातचीत के बाद रिया के उस के पास आ कर काम करने का कार्यक्रम बन गया था.

रितेश ने कमरा व्यवस्थित कर लिया था. बिस्तर पर नई बेडशीट बिछा दी थी और झाड़ू लगा कर कमरा साफ कर दिया था. 2 कुरसी के साथ एक गोल मेज थी.

सुबह का अखबार पढ़ते हुए रितेश चाय पी रहा था. ब्रेड को चाय में डुबा कर खाते देख रिया अपनी मुसकराहट रोक नहीं सकी. उसे अपने बचपन के दिन याद आ गए, जब वह भी चाय में बिसकुट और ब्रेड डुबो कर खाती थी.

‘‘मुसकराहट के पीछे का राज भी बता दो?’’ रितेश ने आखिर पूछ ही लिया.

रिया लैपटौप और फाइल गोल मेज पर रख कर एक कुरसी पर बैठ गई. रितेश ने रिया को चाय देते हुए कहा, ‘‘अभी बनाई है, गरम है. पहले चाय पी लो, फिर काम करते हैं. बिसकुट मीठे भी हैं और नमकीन भी हैं,’’ कह कर रितेश ने बिसकुट के डब्बे रिया के सामने रखे.

चाय पीने के पश्चात दोनों ने काम आरंभ किया. एक घंटा काम करने के पश्चात रितेश ने आंखें बंद कर लीं.
‘‘सर, आप को थकान हो रही है. कुछ देर के लिए काम रोक लेते हैं, बाद में कर लेते हैं.’’

‘‘टाइफाइड ने बदन निचोड़ लिया है, एकमुश्त काम नहीं होता है. थोड़ा आराम करता हूं, 10-15 मिनट बाद काम करते हैं.’’

‘‘जी सर, आप आराम कीजिए.’’

रितेश ने एफएम रेडियो लगाया. रेडियो पर गीत आ रहा था, ‘जिन्हें हम भूलना चाहें वो अकसर याद आते हैं…’ रितेश ने एफएम स्टेशन बदल दिया, वहां नए गीत आ रहे थे.

‘‘अच्छा गाना था, ‘जिन्हें हम भूलना चाहें वो अकसर याद आते हैं…’ रिया ने रितेश से कहा.

‘‘पुराना गीत है और साथ में थोड़ा उदासी वाला. शायद, आप को पसंद न आए, इसीलिए बदल लिया.’’

‘‘सर, मुझे नएपुराने सभी गीत पसंद हैं,’’ रिया की बात सुन कर रितेश मुसकरा दिया और काम फिर से शुरू कर दिया.

धीमे स्वर में एफएम रेडियो बजता रहा और हर आधे घंटे बाद रितेश काम बंद कर 10 मिनट आराम करता. दोपहर के एक बजे रिया ने रितेश से खाने के बारे में पूछा.

‘‘अभी गरम कर देता हूं. मूंग छिलके वाली दाल के साथ चावल बनाए हैं. आप भी लीजिए,’’ रितेश ने कहा.

‘‘मैं अपना टिफिन लाई हूं. आप आराम कीजिए, मैं खाना गरम कर देती हूं.’’

खाना खाते समय रिया ने रितेश से पारिवारिक प्रश्न पूछ ही लिया, ‘‘सर, आप की तबीयत ठीक नहीं है, अपने घर से किसी को बुला दीजिए.’’

‘‘बूढ़े मातापिता को मैं तकलीफ नहीं देना चाहता हूं. दोचार दिन में ठीक हो जाऊंगा. बहनभाई अपने परिवार के साथ दूसरे शहर में रहते हैं. अब बुखार तो उतर ही गया है.’’

‘‘आप के मातापिता कहां रहते हैं?’’

‘‘बड़े भाई के साथ रहते हैं.’’

‘‘आप विवाह कर लीजिए, एक से दो भले,’’ रिया की बात सुन कर रितेश मुसकरा दिया और खाना खाने के बाद बोला, ‘‘विवाह के कारण ही यहां अकेला रह रहा हूं.’’

‘‘आप की पत्नी अलग रहती है?’’

‘‘मेरा पत्नी से तलाक हो गया है. 4 साल पहले मेरा रीमा से विवाह हुआ था. मैं भी आर्किटेक्ट और रीमा भी आर्किटेक्ट. हम दोनों एक ही कंपनी में काम करते थे.

“उस समय हम कोलकाता में काम करते थे. विवाह के एक महीने बाद ही रीमा अपने मायके गुवाहाटी गई और लौट कर नहीं आई.

“मैं ने उसे बुलाया, गुवाहाटी भी कर्ई बार लेने गया, पर वह मेरे साथ रहने को तैयार नहीं हुई. 6 महीने के प्रयास के बाद मैं ने थक कर बिना किसी कारण के रीमा का परित्याग करने पर हिंदू मैरिज ऐक्ट के अंतर्गत तलाक ले लिया. पिछले वर्ष कोर्ट ने तलाक पर मुहर लगा दी और मैं कोलकाता छोड़ कर दिल्ली आ गया.’’

‘‘कोई कारण तो अवश्य होगा?’’

‘‘उस ने कोर्ट में भी कोई कारण नहीं बताया और तलाक हो गया. विवाह के बाद हम मुश्किल से एक महीना साथ रहे. मुझे आज तक उस का बिना कारण छोड़ कर चले जाने का रहस्य समझ नहीं आया.

“जब उसे रहना ही नहीं था, तब विवाह क्यों किया? खैर, अब एक वर्ष से अकेला रह रहा हूं. अपने गुजारे के लिए खाना बना लेता हूं…

“आप जो गीत सुन रही थीं, वह मेरे हाल पर सही बैठता है. रीमा को भूलना चाहता हूं और वो याद आ जाती है.’’

‘‘वो तो मैं देख रही हूं,’’

रिया पूरे दिन रितेश के साथ रही, मिलजुल कर काम करते रहे और शाम को अपने बौस कमलनाथ को कार्य प्रगति की सूचना दी.

कमलनाथ ने रितेश को आराम करने को कहा कि औफिस आने की जल्दी न करे और रिया को अगले 3-4 दिन रितेश के घर से काम करने को कहा.

‘‘रिया, हमारे बौस भी महान हैं. मुझे आराम करने को कह रहे हैं और तुम्हें मेरे साथ काम करने को कह रहे हैं. जब काम करूंगा, तब आराम कैसे करूंगा.’’

‘‘मैं आप को परेशान नहीं करूंगी. आप अधिक आराम कीजिए और सिर्फ मुझे काम बता दीजिए. काम मैं कर लूंगी, क्योंकि मैं ने ऐसे प्रोजैक्ट पर काम नहीं किया है, इसलिए आप को अधिक नहीं थोड़ा सा परेशान करूंगी.’’

‘‘रिया, मैं तो मजाक कर रहा था, क्योंकि तुम्हें मालूम है कि मैं एक मिनट भी खाली नहीं बैठ सकता हूं.’’

‘‘आप आराम कीजिए, अपना खाना मत बनाना. मैं आप के लिए खाना ले आऊंगी.’’

‘‘शाम को तो बनाना ही होगा.’’

‘‘शाम को जाते समय मैं बना दूंगी.’’

एक सप्ताह तक रिया रितेश के घर आ कर काम करती रही. शनिवार और रविवार की छुट्टी वाले दिन भी रिया रितेश के घर आई. काम करने के साथ दोनों पारिवारिक और औफिस की बातों पर चर्चा करते.

रिया भी तलाकशुदा थी, जिस का अभी 6 महीने पहले ही आपसी रजामंदी से तलाक हुआ था.

रिया अपने टिफिन में रितेश का भी खाना लाती और रात का खाना बना कर जाती. एक सप्ताह में रितेश और रिया ने अपने जीवन को साझा किया और छोटे से समय में कुछ नजदीक होते हुए.

रितेश स्वस्थ होने के बाद औफिस आने लगा. रिया रितेश के लिए खाना यथापूर्वक लाती रही. धीरेधीरे नजदीकियां बढ़ने लगीं और 5 महीने बाद दोनों एकदूसरे के बिना अधूरे से लगने लगे.

एक दिन उन के बौस कमलनाथ ने उन्हें नया जीवन आरंभ करने की सलाह दी.

रितेश और रिया विवाह के बंधन में बंध गए. दिन गुजरते गए और दोनों दो से तीन हो गए. एक पुत्री के आने से दोनों का जीवन पूर्ण हो गया. रितेश कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ता गया.

आर्किटेक्ट एसोसिएशन के अधिवेशन में रितेश का कोलकाता जाना हुआ. वहां रीमा ने उसे देख लिया. रितेश अपना कार्य संपन्न करने के बाद दिल्ली वापस आ गया. थोड़े दिन बाद उसे कोर्ट से नोटिस मिला.

नोटिस रीमा ने दंड प्रक्रिया संहिता (क्रिमिनल प्रोसीजर कोड) के सैक्शन 125 के अंतर्गत गुजारा भत्ता देने के लिए था.

नोटिस मिलने पर उदास रितेश से रिया ने कारण पूछा.

‘‘रिया, जब तुम्हारा तलाक हुआ था, तब गुजारा भत्ता के लिए कोई आदेश जारी हुआ था?’’

‘‘रितेश, मेरा तलाक आपसी सहमति से हुआ था. हमारा लिखित अनुबंध हुआ था, जिस के तहत मुझे एकमुश्त रकम मिली थी. लेकिन तुम यह क्यों पूछ रहे हो?’’

‘‘रीमा ने गुजारा भत्ता के लिए कोर्ट में केस किया है,’’ रितेश ने कोर्ट के नोटिस को रिया के आगे किया.

‘‘जब तुम्हारा तलाक हुआ था, तब गुजारा भत्ता नहीं मांगा था?’’

‘‘रिया, यह नोटिस मुझे इसलिए हैरान कर रहा है कि तलाक के केस के दौरान रीमा ने कोई प्रतिरोध नहीं किया था. शादी के एक महीने के बाद बिना कारण वह मुझे छोड़ गई थी. इसी कारण पर तलाक हो गया था और उस ने गुजारा भत्ता के लिए कोई जिक्र ही नहीं किया था.’’

‘‘अब क्या होगा?’’

‘‘कोर्ट का नोटिस है, वकील से बात करनी होगी. कोलकाता कोर्ट में तलाक हुआ था, वहीं कोर्ट में केस किया है. अब सारी कार्यवाही कोलकाता में होगी. दिल्ली में रहने वाला कोलकाता कोर्ट के चक्कर काटेगा. मुसीबत ही मुसीबत है. काम का हर्ज भी होगा, कोलकाता आनेजाने का खर्चा, वकील की फीस के साथ दिमाग चौबीस घंटे खराब और परेशान रहेगा,’’ कह कर रितेश गहरी सोच में डूब गया.

‘‘तुम चिंता मत करो. अब जो मुसीबत आ गई है, उस का मुकाबला मिल कर करेंगे. आप वकील से बात करो, अधिक चिंता मत करो,’’ रिया को अपने साथ कंधे से कंधे मिला कर खड़ा देख रितेश में हिम्मत आ गई और कोलकाता में उस वकील से बात की, जिस ने उस का तलाक का केस लड़ा था.

वकील बनर्जी बाबू ने रितेश को कोलकाता आ कर एक बार मिलने को कहा, ताकि केस की पैरवी की जा सके.

रितेश के साथ रिया भी कोलकाता में वकील बनर्जी से मिली. वकील बनर्जी तलाक की पुरानी फाइल देख कर कहता है कि आप का तलाक परित्याग के कारण हुआ था. रीमा ने बिना कारण आप का परित्याग किया है. गुजारा भत्ता क्रिमिनल प्रोसीजर कोड के सैक्शन 125 के अंदर मिलता है. उस ने देरी से केस फाइल किया है, जिस का हम विरोध करेंगे और दूसरी आपत्ति हमारी सैक्शन 125 (4) के अंतर्गत करेंगे कि रीमा ने बिना किसी कारण आप का परित्याग किया और आप के साथ रहने से इनकार किया था. इन्हीं वजहों से तलाक मिला था और आप का गुजारा भत्ता देना नहीं बनता है. आप केस जीतेंगे, आप बेफिक्र रहें.’’

रिया ने अपने तलाक का जिक्र किया, तब वकील बनर्जी ने समझाया कि सैक्शन 125 के तहत आपसी रजामंदी से हुए तलाक में समझौते के अंतर्गत गुजारा भत्ता नहीं बनता है, क्योंकि ऐसे केस में एकमुश्त राशि पर समझौता होता है.

रितेश कोर्ट की तारीख पर कोलकाता आया. रीमा से आमनासामना हुआ. रितेश ने कहा, ‘‘रीमा, तुम ने बिना किसी कारण के मेरा परित्याग किया था, जिस कारण हमारा तलाक हुआ और अब तुम गुजारा भत्ता मांग रही हो, जो तुम्हारा हक भी नहीं है और मिलेगा भी नहीं.’’

‘‘रितेश, यह तो मेरा हक है. पहले नहीं मांगा, अब मांग लिया. यह तो देना ही होगा तुम्हें.’’

‘‘जब शादी से भाग गई, तब हक नहीं बनता है.’’

‘‘कानून महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करता है, तुम मेरा हक नहीं छीन सकते हो.’’

‘‘अपने मन से पूछो, जब वैवाहिक जीवन का कोई दायित्व नहीं निभाया. तुम भाग खड़ी हुई. इस को भगोड़ा कहते हैं. कोर्ट भगोड़ों से कोई सहानुभूति नहीं रखती है. तुम अपना केस वापस ले लो.’’

‘‘मैं ने केस वापस लेने के लिए नहीं किया है, गुजारा भत्ता लेने के लिए किया है.’’

‘‘क्या तुम ने शादी गुजारा भत्ता लेने की लिए की थी?’’

‘‘बिलकुल यही समझो.’’

‘‘तुम भारतीय स्त्री के नाम पर एक कलंक हो. विवाह जनमजनम का रिश्ता होता है. पति और पत्नी अपना संपूर्ण जीवन एकदूसरे पर न्यौछावर करते हैं. सुख और दुख में बराबर के भागीदार होते हैं. तुम ने क्या किया? विवाह से भाग खड़ी हुई, सिर्फ गुजारा भत्ता लेने के लिए?’’

‘‘अब जो भी बात होगी, कोर्ट में होगी. मुझे तुम से कोई बात नहीं करनी है,’’ कह कर रीमा चली गई.

कोर्ट में हर दूसरे महीने तारीख पड़ जाती. रितेश को औफिस से छुट्टी ले कर कोलकाता जाना पड़ता. वकील से बात कर के पेशी के दौरान की रणनीति बनानी पड़ती. कभी जज महोदय छुट्टी पर होते, तो कभी रीमा का वकील तारीख ले लेता कि वह दूसरी कोर्ट में व्यस्त है, कभी उस का वकील तारीख लेता और कभी वकीलों की हड़ताल के कारण तारीख मिल जाती. एक बार जज का तबादला हो गया और नए जज ने तारीख दे दी. तारीख पर तारीख के बीच कभीकभार दोचार मिनट की सुनवाई हो जाती.

रितेश कोर्ट के पचड़ों से परेशान था, लेकिन कोई रास्ता नहीं निकल पा रहा था. आखिर तीन वर्ष बाद कोर्ट का फैसला आया.

रीमा की ओर से तर्क दिया गया कि सैक्शन 125 के अंतर्गत तलाक के बाद पत्नी को गुजारा भत्ता का हक है, क्योंकि उस ने दूसरा विवाह नहीं किया. जबकि रितेश की ओर से तर्क दिया गया, क्योंकि रीमा स्वयं विवाह के एक महीने बाद भाग गई थी और कई प्रयासों के बावजूद रितेश के संग नहीं रही और रीमा ने रितेश का परित्याग कर दिया और इसी कारण हिंदू मैरिज एक्ट के अंतर्गत तलाक हुआ और सैक्शन 125 (4) के अंतर्गत रीमा जानबूझ कर रितेश के साथ नहीं रही, इसलिए वह गुजारा भत्ता की हकदार नहीं है.

कोर्ट ने रितेश के पक्ष में फैसला दिया. रितेश प्रसन्न हो गया, लेकिन रीमा ने कोर्ट से बाहर आते ही रितेश को हाईकोर्ट में मिलने की चेतावनी दे दी.

रीमा ने हाईकोर्ट में अपील दायर की. अगले 3 वर्ष कोलकाता हाईकोर्ट के चक्कर काटने में लग गए. हाईकोर्ट ने रीमा के पक्ष में फैसला सुनाया.

हाईकोर्ट ने रीमा के पक्ष में फैसला इस आधार पर दिया कि रीमा का रितेश के साथ तलाक हो गया है. उस ने दोबारा विवाह नहीं किया. सैक्शन 125 के तहत रीमा गुजारा भत्ता की हकदार है.

हाईकोर्ट के फैसले से रितेश मायूस हो गया कि उसे किस जुर्म की सजा मिल रही है. जुर्म उस का इतना कि उस ने अपने साथ औफिस में काम करने वाली सहकर्मी से विवाह किया, जो एक महीने बाद उसे त्याग कर भाग गई. गलती पत्नी की और गुजारा भत्ता दे पति, यह कहां का इंसाफ है.

रिया ने रितेश का हौसला बढ़ाते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की सलाह दी.

‘‘रिया, आज 6 वर्ष हो गए हैं मुकदमा लड़ते हुए. हिम्मत टूट गई है अब. बिना कुसूर के सजा काट रहा हूं मैं.’’

‘‘रितेश, हमारे देश और समाज की यह बहुत बड़ी विडंबना है कि बेकुसूर सजा भुगतता है और कुसूरवार मजे करते हैं. सैक्शन 125 एक भले काम के लिए बनाया गया है, लेकिन इस का दुरुपयोग रीमा जैसी औरतें करती हैं, जो भले पुरुषों से विवाह कर के छोड़ देती हैं और पुरुषों को जीवनभर बिना किसी कारण के दंड भुगतना पड़ता है.’’

रितेश ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की. सुप्रीम कोर्ट में अपील का फैसला तीन वर्ष बाद आया.

सुप्रीम कोर्ट ने रितेश की दलील को अस्वीकार कर दिया कि रीमा ने दूसरी शादी नहीं की, इसलिए रीमा गुजारा भत्ता की हकदार है. विवाह के बाद रीमा ने रितेश का परित्याग किया, जिस कारण हिंदू मैरिज ऐक्ट के अंतर्गत तलाक हो गया. सैक्शन 125 में तलाक के बाद गुजारा भत्ता है.

तलाक के बाद रीमा और रितेश स्वाभाविक रूप से अलग रहेंगे. यह अलग रहना ही गुजारा भत्ता दिलाता है.

रितेश की इस दलील को सुप्रीम कोर्ट ने ठुकरा दिया कि यह किस का परित्याग है. रीमा ने जानबूझ कर बिना कारण के रितेश का परित्याग किया और इस परित्याग के कारण रीमा को गुजारा भत्ता नहीं मिलना चाहिए.

रीमा पढ़ीलिखी आर्किटेक्ट है. वह स्वयं अपने पैरों पर खड़ी हो सकती है, लेकिन रीमा ने स्वयं को बेरोजगार बताया. रीमा ने दोबारा विवाह नहीं किया और बेरोजगार की बात मानते हुए रीमा के हक में फैसला किया.

10 वर्ष की लंबी कानूनी लड़ाई में चंद सिक्कों की जीत से रीमा को क्या मिला, यह रितेश और रिया नहीं समझ सके. ऐसी स्त्रियों को गुजारा भत्ता का कानून भी बेसिरपैर का लगा, लेकिन उन के हाथ सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बंधे हुए थे. आखिर कानून को अंधा क्यों बनाया हुआ है. अबला नारी को संरक्षण मिलना चाहिए, लेकिन अबला पुरुष को सबला नारी से भी बचाना चाहिए. कानून को किताब से निकाल कर व्यावहारिक निर्णय लेने चाहिए. रितेश और रिया जवाब ढूंढ़ने में नाकामयाब हैं. उन के हाथ 10 वर्ष की लंबी लड़ाई के बाद सिर्फ निराशा ही मिली. सचझूठ के आवरण में छिप कर अपना स्वरूप खो बैठा.

तलाक: कौनसी मुसीबत में फंस गई थी जाहिरा

रात का सारा काम निबटा कर जब जाहिरा बिस्तर पर जा कर सोने की कोशिश कर रही थी, तभी उस के मोबाइल फोन की घंटी शोर करने लगी.

जाहिरा बड़बड़ाते हुए बिस्तर से उठी, ‘‘सारा दिन काम करते हुए बदन थक कर चूर हो जाता है. बेटा अलग परेशान करता है. ननद बैठीबैठी और्डर जमाती है… न दिन को चैन, न रात को आराम…’’ फिर वह मोबाइल फोन पर बोली, ‘‘हैलो, कौन?’’

‘मैं शादाब, तुम्हारा शौहर,’ उधर से आवाज आई.

‘‘जी…’’ कहते हुए जाहिरा खुशी से उछल पड़ी,

‘‘जी, कैसे हैं आप?’’

‘मैं ठीक हूं. मेरी बात ध्यान से सुनो. मैं तुम्हें तलाक दे रहा हूं. आज से मेरातुम्हारा मियांबीवी का रिश्ता खत्म. मैं यह बात अम्मी और खाला के सामने बोल रहा हूं. तुम आज से आजाद हो. मेरे घर में रहने का तुम्हें कोई हक नहीं है. बालिग होने पर मेरा बेटा मेरे पास आ जाएगा,’ कह कर शादाब ने मोबाइल फोन काट दिया.

‘‘सुनिए… सुनिए…’’ जाहिरा ने कई बार कहा, पर मोबाइल फोन बंद हो चुका था. जाहिरा ने नंबर मिला कर बात करनी चाही, पर शादाब का मोबाइल फोन बंद मिला. जाहिरा को अपने पैरों के नीचे की जमीन खिसकती नजर आई. आंसुओं की झड़ी लग गई. बिस्तर पर उस का एक साल का बेटा बेसुध सोया था. उसे देख कर जाहिदा के आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे.

जाहिरा दौड़ीदौड़ी अपने ससुर हसन मियां के कमरे में पहुंची. उस की सास शादाब के पास दुबई में थीं. जाहिरा ने दरवाजे के बाहर से आवाज दी, ‘‘अब्बू, दरवाजा खोलिए…’’

‘‘क्या बात है? क्यों चीख रही है?’’ शादाब के अब्बू हसन मियां ने कहा.

‘‘अब्बू…’’ लड़खड़ाते हुए जाहिरा ने कहा ‘‘शादाब ने मुझे फोन पर तलाक दे दिया है,’’ इतना कह कर वह रो पड़ी.

‘‘तो मैं क्या करूं…? यह तुम मियांबीवी के बीच का मामला है. तुम जानो और तुम्हारा शौहर…’’ कह कर हसन मियां ने दरवाजा बंद कर लिया.

जाहिरा रोतेरोते अपने कमरे मेंआ गई. रात यों ही बीत गई. सुबह जाहिरा ने उठ कर देखा कि रसोईघर के दरवाजे पर ताला लटक रहा था. वह परेशान हो गई और पड़ोसियों को पूरी बात बताई. पर पड़ोसी हसन मियां के पक्ष में थे. वह मन मार कर लौट आई.

पड़ोस में रहने वाली विधवा चाची ने जाहिरा को समझाया, ‘‘बेटी, तू फिक्र न कर. मसजिद के हाफिज के पास जा. शायद, वहां इस मसले का कोई हल निकले.’’ उस इलाके की मसजिद के सारे खर्चे माली मदद से चलते थे. हसन मियां मसजिद के सदर थे.

हाफिज के पास जाहिरा की शिकायत बेकार साबित हुई. उन्होंने कहा कि शौहर ने तलाक दे दिया है, अब कुछ नहीं हो सकता. जाहिरा ने कहा, ‘‘हाफिज साहब, फोन पर दिया गया तलाक नाजायज है. मेरी कोई गलती नहीं है. न शौहर से कोई अनबन, अचानक मुझे तलाक…’’ कह कर वह रो पड़ी, ‘‘मेरी गोद में उन का ही बच्चा है. इस की परवरिश कैसे होगी? मेरा क्या कुसूर है?

‘‘शरीअत में ऐसा कुछ नहीं है. आप एक औरत पर जुल्म ढा रहे हैं. मर्द की हर बात अगर जायज है, तो औरत की भी जायज मानो.’’

जाहिरा मौलवी को खूब खरीखोटी सुना कर वापस आ गई और शौहर के खिलाफ कोर्ट में जाने का मन बना लिया.

घर आ कर जाहिरा ने देखा कि घर के बाहर दरवाजे पर ताला लटक रहा था. बिना कुछ कहे वह अपने बेटे को मायके ले कर आ गई. घर पर मांबाप को सारी बात बता कर उस ने तलाक के खिलाफ आवाज उठाने का मन बना लिया और फिर समाज के उन मुल्लाहाफिजों के खिलाफ मोरचा खोल दिया, जो शरीअत के नाम पर लोगों पर दबाव बनाते हैं.

‘‘देहात की गंवार औरत को तुम्हारे गले से बांध दिया था. कहां तुम पढ़ेलिखे खूबसूरत जवान, कहां वह देहातीगंवार… ज्वार के दाने में उड़द का बीज…’’ कह कर शादाब की खाला खिलखिला उठीं.

‘‘शादाब और रेहाना की जोड़ी लगती ठीक है. पढ़ीलिखी बीवी कम से कम अंगरेजी में बात तो कर सकेगी. क्यों आपा, ठीक कह रही हूं न मैं?’’

शादाब की खाला ने अपनी बेटी के कसीदे पढ़ने चालू किए. शादाब की मां ने भी उन की हां में हां मिलाई. शादाब की मां हमीदा बानो की छोटी बहन नूर अपनी बेटी रेहाना को ले कर पिछले 2 महीने से दुबई आई थीं. उन्हें 3 महीने का वीजा मिला था.

रेहाना एमए की छात्रा थी. वह अपने मांबाप की एकलौती औलाद थी, जिसे लाड़प्यार से पाला गया था चुलबुली, खूबसूरत रेहाना ने अपनी मां की शह पा कर शादाब पर डोरे डालने शुरू किए थे, यह जानते हुए भी कि वह शादीशुदा है.

‘‘पर अम्मी, शादाब तो एक बच्चे का बाप है. मैं उस से निकाह कैसे करूंगी?’’ रेहाना ने अपनी अम्मी से पूछा.

‘‘तू फिक्र मत कर. अगर शादाब तेरा शौहर बन गया, तो तू मजे करेगी. विदेश में रहेगी. तू हवाईजहाज से आनाजाना करेगी.

‘‘तू मालामाल हो जाएगी और हमारी गरीबी भी दूर हो जाएगी. बड़ी नौकरी है शादाब की. उस की जायदाद हमारी. तू किसी न किसी तरह उसे अपने वश में कर ले,’’ रेहाना की अम्मी ने समझाया. और फिर उन्होंने ऐसा जाल बिछाया कि उस में मांबेटा उलझ कर रह गए.

‘‘रेहाना, अम्मी कहां हैं?’’ एक दिन दफ्तर से लौट कर शादाब ने पूछा.

‘‘वे पड़ोस में गई हैं. देर रात तक लौटेंगी. वहां उन की दावत है. मेरी अम्मी भी साथ गई हैं.’’

‘‘तुम क्यों नहीं गईं?’’

‘‘आप की वजह से नहीं गई.’’

रेहाना चाय ले कर शादाब के कमरे में पहुंची, जहां वह लेटा हुआ था. आज रेहाना ने ऐसा सिंगार कर रखा था कि शादाब उसे देख कर सुधबुध खो बैठा. चाय दे कर वह उस के करीब बैठ गई. इत्र की भीनीभीनी खुशबू से महकती रेहाना ने रोमांस भरी बातें करना शुरू किया.

शादाब भी उस की बातों का लुत्फ लेने लगा. उस ने रेहाना को अपने सीने से लगाना चाहा, तो बगैर किसी डर के वह शादाब की बांहों में सिमट गई. फिर वे दोनों हवस के गहरे समुद्र में डुबकी लगाने लगे. जब जी भर गया, तो एकदूसरे को देख कर शरमा गए.

जब तक रेहाना वहां रही, शादाब उसे महंगे से महंगा सामान दिलाने लगा. जवानी के जोश में वह सबकुछ भूल गया. अब उसे सिर्फ रेहाना दिखती थी. वह अपनी बीवी को तलाक दे कर रेहाना को बीवी बनाने के सपने देखने लगा था.

वक्त तेजी से गुजर रहा था. रेहाना के वीजा की मीआद खत्म होने वाली थी. शादाब ने रेहाना से जल्द निकाह करने का वादा किया. रेहाना अपनी अम्मी के साथ दुबई में रहने के सपने संजोए भारत वापस आ गई. शादाब ने खाला से 2 महीने के अंदर रेहाना से निकाह करने की अपनी मंशा जाहिर की, तो खाला ने भी खुशीखुशी अपनी रजामंदी जाहिर की.

कुछ वक्त बीत जाने पर जाहिरा ने शहर की बड़ी मसजिद में शादाब के द्वारा दिए गए तलाक के बारे में शिकायत पेश की, जिस की सुनवाई आज होनी थी.

जाहिरा ने कमेटी के सामने, जहां काजी, आलिम, हाफिज, बड़ेबड़े मौलाना सदस्य थे, अपनी बात रखी. उन्होंने बड़े गौर से जाहिरा की फरियाद सुनी. इस से पहले शादाब को मांबाप के साथ कमेटी के सामने हाजिर होने की इत्तिला भेजी गई थी, पर वे नहीं आए.

अपने रसूख का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने कमेटी पर दबाव डालना चाहा था. वे तकरीबन 6 महीने तक कमेटी को चकमा देते रहे थे, बारबार के बुलावे पर भी नहीं आए थे. इस बात को ध्यान में रख कर कमेटी ने कड़ा फैसला लिया और उन्हें जमात से बेदखल करने के साथ कानूनी कार्यवाही करने का फैसला लिया. आज मसजिद में काफी गहमागहमी थी. कावाही शुरू हुई. शादाब, उस के अब्बू व दूसरे रिश्तेदार हाजिर थे.

कमेटी के सदर ने शादाब से पूछा, ‘‘किस वजह से तुम ने अपनी बीवी जाहिरा को तलाक दिया है?’’ ‘‘इस के अंदर शहर में रहने की काबिलीयत नहीं है. यह पढ़ीलिखी भी नहीं है. अंगरेजी नहीं जानती है. इसे ढंग से खाना बनाना तक नहीं आता है.’’ ‘‘बेटी, तुम बताओ कि शादाब मियां जोकुछ कह रहे हैं, वह सही है या गलत?’’ सदर ने पूछा.

‘‘बिलकुल झूठ है. हमारी शादी को 3 साल हो गए हैं. मैं एक बच्चे की मां बन गई हूं. मैं इन की हर बात मानती हूं. मैं ने पूरी 7 जमात पढ़ी है. ‘‘इन के मांबाप व रिश्तेदार मुझे पसंद कर के लाए थे. हम ने भरपूर दहेज दिया था. अभी तक सब ठीकठाक चल रहा था, पर अचानक इन्होंने मुझे फोन पर तलाक दे दिया.’’

‘‘फोन पर तलाक…?’’ कमेटी के सभी सदस्य जाहिरा की यह बात सुन कर सकते में आ गए.

उन्होंने आपस में सोचविचार कर के फैसला दिया, ‘यह तलाक नाजायज है. न तलाक देने की ठोस वजह है, न ही तलाक आमनेसामने बैठ कर दिया गया है. एकतरफा तलाक जायज नहीं है.

‘शादाब मियां के तलाक को गैरकानूनी मान कर खारिज किया जाता है. जाहिरा आज भी उन की बीवी हैं. उन्हें अपनी बीवी को सारे हक देने पड़ेंगे. साथ में रखेंगे. कोई तकलीफ नहीं देंगे, वरना यह कमेटी इन पर तलाक के बहाने औरत पर जुल्म करने का मामला दायर करेगी…’ इतना फरमान सुना कर जमात उठ गई.

उम्र भर का रिश्ता : एक अनजान लड़की से कैसे जुड़ा एक अटूट बंधन

शहर की भीड़भाड़ से दूर कुछ दिन तन्हा प्रकृति के बीच बिताने के ख्याल से मैं हर साल करीब 15 -20 दिनों के लिए मनाली, नैनीताल जैसे किसी हिल स्टेशन पर जाकर ठहरता हूं. मैं पापा के साथ फैमिली बिजनेस संभालता हूं इसलिए कुछ दिन बिजनेस उन के ऊपर छोड़ कर आसानी से निकल पाता हूं.

इस साल भी मार्च महीने की शुरुआत में ही मैं ने मनाली का रुख किया था  मैं यहां जिस रिसॉर्ट में ठहरा हुआ था उस में 40- 50 से ज्यादा कमरे हैं. मगर केवल 4-5 कमरे ही बुक थे. दरअसल ऑफ सीजन होने की वजह से भीड़ ज्यादा नहीं थी. वैसे भी कोरोना फैलने की वजह से लोग अपनेअपने शहरों की तरफ जाने लगे थे. मैं ने सोचा था कि 1 सप्ताह और ठहर कर निकल जाऊंगा मगर इसी दौरान अचानक लॉक डाउन हो गया. दोतीन फैमिली रात में ही निकल गए और यहां केवल में रह गया.

रिसॉर्ट के मालिक ने मुझे बुला कर कहा कि उसे रिसॉर्ट बंद करना पड़ेगा. पास के गांव से केवल एक लड़की आती रहेगी जो सफाई करने, पौधों को पानी देने, और फोन सुनने का काम करेगी. बाकी सब आप को खुद मैनेज करना होगा.

अब रिसॉर्ट में अकेला मैं ही था. हर तरफ सायं सायं करती आवाज मन को उद्वेलित कर रही थी. मैं बाहर लॉन में आ कर टहलने लगा.सामने एक लड़की दिखी जिस के हाथों में झाड़ू था. गोरा दमकता रंग, बंधे हुए लंबे सुनहरे से बाल, बड़ीबड़ी आंखें और होठों पर मुस्कान लिए वह लड़की लौन की सफाई कर रही थी. साथ ही एक मीठा सा पहाड़ी गीत भी गुनगुना रही थी. मैं उस के करीब पहुंचा. मुझे देखते ही वह ‘गुड मॉर्निंग सर’ कहती हुई सीधी खड़ी हो गई.

“तुम्हें इंग्लिश भी आती है ?”

“जी अधिक नहीं मगर जरूरत भर इंग्लिश आती है मुझे. मैं गेस्ट को वेलकम करने और उन की जरूरत की चीजें पहुंचाने का काम भी करती हूं.”

“क्या नाम है तुम्हारा?” मैं ने पूछा,”

“सपना. मेरा नाम सपना है सर .” उस ने खनकती हुई सी आवाज़ में जवाब दिया.

“नाम तो बहुत अच्छा है.”

“हां जी. मेरी मां ने रखा था.”

“अच्छा सपना का मतलब जानती हो?”

“हां जी. जानती क्यों नहीं?”

“तो बताओ क्या सपना देखती हो तुम? मुझे उस से बातें करना अच्छा लग रहा था.

उस ने आंखे नचाते हुए कहा,” मैं क्या सपना देखूंगी. बस यही देखती हूं कि मुझे एक अच्छा सा साथी मिल जाए.  मेरा ख्याल रखें और मुझ से बहुत प्यार करे. हमारा एक सुंदर सा संसार हो.” उस ने कहा.

“वाह सपना तो बहुत प्यारा देखा है तुम ने. पर यह बताओ कि अच्छा सा साथी से क्या मतलब है तुम्हारा?”

“अच्छा सा यानी जिसे कोई गलत आदत नहीं हो. जो शराब, तंबाकू या जुआ जैसी लतों से दूर रहे. जो दिल का सच्चा हो बस और क्या .” उस ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया.

फिर मेरी तरफ देखती हुई बोली,” वैसे मुझे लगता है आप को भी कोई बुरी लत नहीं.”

“ऐसा कैसे कह सकती हो?” मैं ने उस से पूछा.

“बस आप को देख कर समझ आ गया. भले लोगों के चेहरे पर लिखा होता है.”

“अच्छा तो चेहरा देख कर समझ जाती हो कि आदमी कैसा है.”

“जी मैं झूठ नहीं बोलूंगी. औरतें आदमियों की आंखें पढ़ कर समझ जाती हैं कि वह क्या सोच रहा है. अच्छा सर आप की बीवी तो बहुत खुश रहती होगी न.”

“बीवी …नहीं तो. शादी कहां हुई मेरी?”

“अच्छा आप की शादी नहीं हुई अब तक. तो आप कैसी लड़की ढूंढ ढूंढते हैं?”

उस ने उत्सुकता से पूछा.

“बस एक खूबसूरत लड़की जो दिल से भी सुंदर हो चेहरे से भी. जो मुझे समझ सके.”

“जरूर मिलेगी सर. चलिए अब मैं आप का कमरा भी साफ कर दूं.” वह मेरे कमरे की तरफ़ बढ़ गई.

सपना मेरे आगेआगे चल रही थी. उस की चाल में खुद पर भरोसा और अल्हड़ पन छलक रहा था.

मैं ने ताला खोल दिया और दूर खड़ा हो गया. वह सफाई करती हुई बोली,” मुझे पता है. आप बड़े लोग हो और हम छोटी जाति के. फिर भी आप ने मेरे से इतने अच्छे से बातें कीं. वैसे आप यहां के नहीं हो न. आप का गांव कहां है ?”

“मैं दिल्ली में रहता हूं. वैसे हूं बिहार का ब्राम्हण .”

“अच्छा जी, आप नहा लो. मैं जाती हूं. कोई भी काम हो तो मुझे बता देना. मैं पूरे दिन इधर ही रहूंगी.”

“ठीक है. जरा यह बताओ कि आसपास कुछ खाने को मिलेगा?”

“ज्यादा कुछ तो नहीं सर. थोड़ी दूरी पर एक किराने की दुकान है. वहां कुछ मिल सकता है. ब्रेड, अंडा तो मिल ही जाएगा. मैगी भी होगी और वैसे समोसे भी रखता है. देखिए शायद समोसे भी मिल जाएं.”

“ओके थैंक्स.”

मैं नहाधो कर बाहर निकला. समोसे, ब्रेड अंडे और मैगी के कुछ पैकेटस ले कर आ गया. दूध भी मिल गया था. दोपहर तक का काम चल गया मगर अब कुछ अच्छी चीज खाने का दिल कर रहा था. इस तरह ब्रेड, दूध, अंडा खा कर पूरा दिन बिताना कठिन था.

मैं ने सपना को बुलाया,” सुनो तुम्हें कुछ बनाना आता है?”

“हां जी सर बनाना तो आता है. पर क्या आप मेरे हाथ का बना हुआ खाएंगे?”

“हां सपना खा लूंगा. मैं इतना ज्यादा कुछ ऊंचनीच नहीं मानता. जब कोई और रास्ता नहीं तो यही सही. तुम बना दो मेरे लिए खाना.”

मैं ने उसे ₹500 का नोट देते हुए कहा, “चावल, आटा, दाल, सब्जी जो भी मिल सके ले आओ और खाना तैयार कर दो.”

“जी सर” कह कर वह चली गई.

शाम में दोतीन डब्बों में खाना भर कर ले आई,” यह लीजिए, दाल, सब्जी और चपाती. अचार भी है और हां कल सुबह चावल दाल बना दूंगी.”

“थैंक्यू सपना. मैं ने डब्बे ले लिए. अब यह रोज का नियम बन गया. वह मेरे लिए रोज स्वादिष्ट खाना बना कर लाती. मैं जो भी फरमाइश करता वही तैयार कर के ले आती. अब मैं उस से और भी ज्यादा बातें करने लगा. उस से बातें करने से मन फ्रेश हो जाता. वह हर तरह की बातें कर लेती थी. उस की बातों में जीवन के प्रति ललक दिखती थी. वह हर मुश्किल का सामना हंस कर करना जानती थी. अपने बचपन के किस्से सुनाती रहती थी. उस के घर में मां, बाबूजी और छोटा भाई है. अभी वह अपने घर में अकेली थी. घरवाले शादी में पास के शहर में गए थे और वहीं फंस गए थे.

वह बातचीत में जितनी बिंदास थी उस की सोच और नजरिए में भी बेबाकी झलकती थी. किसी से डरना या अपनी परिस्थिति से हार मानना उस ने नहीं सीखा था. किसी भी काम को पूरा करने या कोई नया काम सीखने के लिए अपनी पूरी शक्ति और प्रयास लगाती. हार मानना जैसे उस ने कभी जाना ही नहीं था.

उस की बातों में बचपन की मासूमियत और युवावस्था की मस्ती दोनों होती थी. बातें बहुत करती थी मगर उस की बातें कभी बोरियत भरने वाली नहीं बल्कि इंटरेस्ट जगाने वाली होती थीं. मैं घंटों उस से बातें करता.

उस ने शहर की लड़कियों की तरह कभी कॉलेज में जा कर पढ़ाई नहीं की. गांव के छोटे से स्कूल से पढ़ाई कर के हाल ही में 12वीं की परीक्षा दी थी. पर उस में आत्मविश्वास कूटकूट कर भरा हुआ था. दिमाग काफी तेज था. कोई भी बात तुरंत समझ जाती. हर बात की तह तक पहुंचती. मन में जो ठान लेती वह पूरा कर के ही छोड़ती.

शिक्षा और समझ में वह कहीं से भी कम नहीं थी. अपनी जाति के कारण ही उसे मांबाप का काम अपनाना पड़ा था.

उस की प्रकृति तो खूबसूरती थी ही दिखने में भी कम खूबसूरत नहीं थी. जितनी देर वह मेरे करीब बैठती मैं उस की खूबसूरती में खो जाया करता. वह हमेशा अपनी आंखों में काजल और माथे पर बिंदिया लगाती थी. उन कजरारी आंखों के कोनों से सुनहरे सपनों की उजास झलकती रहती. लंबी मैरून कलर की बिंदी हमेशा उस के माथे पर होती जो उस की रंगबिरंगी पोशाकों से मैच करती. कानों में बाली और गले में एक प्यारा सा हार होता जिस में एक सुनहरे रंग की पेंडेंट उभर कर दिखती.

“सपना तुम्हें कभी प्यार हुआ है ?” एक दिन यूं ही मैं ने पूछा.

मेरी बात सुन कर वह शरमा गई और फिर हंसती हुई बोली,” प्यार कब हो जाए कौन जानता है? प्यार बहुत बुरा रोग है. मैं तो कहती हूं यह कोरोना से भी बड़ा रोग है.”

उस के कहने का अंदाज ऐसा था कि मैं भी उस के साथ हंसने लगा. हम दोनों के बीच एक अलग तरह की बौंडिंग बनती जा रही थी. वह मेरी बहुत केयर करती. मैं भी जब उस के साथ होता तो पूरी दुनिया भूल जाता.

एक दिन शाम के समय मेरे गले में दर्द होने लगा. रात भर खांसी भी आती रही. अगले दिन भी मेरी तबीयत खराब ही रही. गले में खराश और खांसी के साथ सर दर्द हो रहा था. मेरी तबीयत को ले कर सपना परेशान हो उठी. वह मेरे खानपान का और भी ज्यादा ख्याल रखने लगी. मुझे गुनगुना पानी पीने को देती और दूध में हल्दी डाल कर पिलाती.

तीसरे दिन मुझे बुखार भी आ गया. सपना ने तुरंत मेरे घरवालों को खबर कर दी. साथ ही उस ने रिसोर्ट के डॉक्टर को भी फोन लगा लिया. डॉक्टर की सलाह के अनुसार उस ने मुझे बुखार की दवा दी. रिसोर्ट के ही इमरजेंसी सामानों से मेरी देखभाल करने लगी. उस ने मेरे लिए भाप लेने का इंतजाम किया. तुलसी, काली मिर्च, अदरक,सौंठ मिला कर हर्बल टी बनाई. एलोवेरा और गिलोय का जूस पिलाया. वह हर समय मेरे करीब बैठी रहती. बारबार गुनगुना कर के पानी पिलाती.

कोई और होता तो मेरे अंदर कोरोना के लक्षण का देख कर भाग निकलता. मगर वह बिल्कुल भी नहीं घबड़ाई. बिना किसी प्रोटेक्टिव गीयर के मेरी देखभाल करती रही. मेरे बहुत कहने पर उस ने दुपट्टे से अपनी नाक और मुंह ढकना शुरू किया.

इधर मेरे घर वाले बहुत परेशान थे. मेरी तो हिम्मत ही नहीं होती थी मगर सपना ही वीडियो कॉल करकर के पूरे हालातों का विवरण देती रहती. मेरी बात करवाती. खानपान के जरिए जो भी उपाय कर रही होती उस की जानकारी उन्हें देती. मां भी उसे समझाती कि और क्या किया जा सकता है.

इधर पापा लगातार इस कोशिश में थे कि मेरे लिए अस्पताल के बेड और एंबुलेंस का इंतजाम हो जाए. इस के लिए दिन भर फोन घनघनाते रहते. मगर इस पहाड़ी इलाके में एंबुलेंस की सुविधा उपलब्ध नहीं हो सकी. आसपास कोई अच्छा अस्पताल भी नहीं था. इन परिस्थितियों में मैं और मेरे घरवाले सपना की सेवा भावना और केयरिंग नेचर देख कर दंग थे. मम्मी तो उस की तारीफ करती नहीं थकतीं.

मैं भी सोचता कि वह नहीं होती तो मैं खुद को कैसे संभालता. इस बीच मेरा कोरोना टेस्ट हुआ और रिपोर्ट नेगेटिव आई.

सब की जान में जान आ गई. सपना की मेहनत रंग लाई और दोचार दिनों में मैं ठीक भी हो गया.

एकं दिन वह दोपहर तक नहीं आई. उस दिन मेरे लिए समय बिताना कठिन होने लगा. उस की बातें रहरह कर याद आ रही थीं. मुझे उस की आदत सी हो गई थी. शाम को वह आई मगर काफी बुझीबुझी सी थी.

“क्या हुआ सपना ? सब ठीक तो है ? मैं ने पूछा तो वह रोने लगी.

“जी मैं घर में अकेली हूं न. कल शाम दो गुंडे घर के आसपास घूम रहे थे. मुझे छेड़ने भी लगे. बड़ी मुश्किल से जान छुड़ा कर घर में घुस कर दरवाजा बंद कर लिया. सुबह में भी वह आसपास ही घूमते नजर आए. तभी मैं घर से नहीं निकली.”

“यह तो बहुत गलत है. तुम ने आसपास वालों को नहीं बताया ?”

“जी हमारे घर दूरदूर बने हुए हैं. बगल वाले घर में काका रहते हैं पर अभी बीमार हैं. इसलिए मैं ने जानबूझ कर नहीं बताया. मुझे तो अब घर जाने में भी डर लग रहा है. वैसे भी गुंडों से कौन दुश्मनी मोल ले.”

“तुम घबराओ नहीं. अगर आज रात भी वे गुंडे तुम्हें परेशान करें तो कल सुबह अपने जरूरी सामान ले कर यहीं चली आना. अभी कोई है भी नहीं रिसॉर्ट में. तुम यहीं रह जाना. रिसॉर्ट के मालिक ने कुछ कहा तो मैं बात कर लूंगा उस से.”

“जी आप बहुत अच्छे हैं. उस की आंखों में खुशी के आंसू आ गए थे. अगले दिन सुबह ही वह कुछ सामानों के साथ रिसॉर्ट आ गई. वह काफी डरी हुई थी. आंखों से आंसू बह रहे थे.

“जी अब मैं घर में अकेली नहीं रहूंगी. कल भी गुंडे आ कर मुझे परेशान कर रहे थे. मैं सामान ले आई हूं.”

“यह तुम ने ठीक किया सपना. तुम यहीं रहो. यहां सुरक्षित रहोगी तुम.” मैं ने भरोसा दिलाते हुए अपना हाथ उस के हाथों पर रखा.

उस के हाथों के स्पर्श से मेरे अंदर एक सिहरन सी हुई. मैं ने जल्दी से हाथ हटा लिया. मेरी नजरों में शायद उस ने सब कुछ भांप लिया. उस के चेहरे पर शर्म की हल्की सी लाली बिखर गई.

उस दिन उस ने रिसॉर्ट के किचन में ही खाना बनाया.

मेरे लिए थाली सजा कर वह अलग खड़ी हो गई तो मैं ने सहज ही उस से कहा, “तुम भी खाओ न मेरे साथ.”

“जी अच्छा.”उस ने अपनी थाली भी लगा ली.

खाने के बाद भी बहुत देर तक हम बातें करते रहे. उस की सुलझी हुई और सरल बातें मेरे दिल को छू रही थीं. उस के अंदर कोई बनावटीपन नहीं था. मैं उसे बहुत पसंद करने लगा था.

मेरे जज्बात शायद उसे भी समझ आने लगे थे. एक दिन रात में बड़ी सहजता से उस ने मेरे आगे समर्पण कर दिया. मैं भी खुद को रोक नहीं सका. पल भर में वह मेरी जिंदगी का सब से जरूरी हिस्सा बन गई. धीरेधीरे सारी ऊंचनीच और भेदभाव की सीमा से परे हम दोनों दो जिस्म एक जान बन गए थे. लॉक डाउन के उन दिनों ने अनायास ही मुझे मेरे जीवनसाथी से मिला दिया था और अब मुझे यह स्वीकार करने में कोई परेशानी नहीं थी.

यह बात मैं ने अपने पैरंट्स के आगे रखी तो उन्होंने भी सहर्ष स्वीकार कर लिया.

मम्मी ने बड़ी सहजता से कहा,” जब सोच लिया है तो शादी भी कर लो बेटा. पता नहीं लौकडाउन कब खुले. जब यहां आओगे तो तुम्हारा रिसेप्शन धूमधाम से करेंगे. मगर देखो शादी ऑनलाइन रह कर ही करना.”

सपना यह सब बातें सुन कर बहुत शरमा गई. अगले दिन ही हम ने शादी करने का फैसला कर लिया. सपना ने कहा कि वह अपने परिचित काका को ले कर आएगी जो गांव में शादियां कराते हैं. साथ ही अपने मुंहबोले भाई को भी लाएगी जो कुछ दूर रहता है. हम ने सारी प्लानिंग कर ली थी. वह अपनी मां की शादी के समय के गहने और कपड़े पहन कर आने वाली थी. मैं ने भी अपना सफारी सूट निकाल लिया. अगले दिन हमारी शादी थी. हम ने रिसॉर्ट में रखे सामानों का उपयोग शादी की सजावट के लिए कर लिया. रिजोर्ट का एक बड़ा हिस्सा सपना और मैं ने मिल कर सजा दिया था.

अगले दिन सपना अपने घर से सजसंवर कर काका और भाई साथ आई. वह जानबूझ कर घूंघट लगा कर खड़ी हो गई. मैं ने घूंघट हटाया तो देखता ही रह गया. सुंदर कपड़ों और गहनों में वह इतनी खूबसूरत लग रही थी जैसे कोई परी उतर आई हो.

हम ने मेरे मम्मीपापा और परिवार वालों की मौजूदगी में ऑनलाइन शादी कर ली. अब बारी आई शादी की तस्वीरें लेने की. सपना के भाई ने रिसॉर्ट के खास हिस्सों में बड़ी खूबसूरती से तस्वीरें ली. अलगअलग एंगल से ली गई इन तस्वीरों को देख कर एक शानदार शादी का अहसास हो रहा था. रिसॉर्ट किसी फाइव स्टार होटल का फील दे रहा था.

हम ने तस्वीरें घरवालों और रिश्तेदारों को फॉरवर्ड कीं तो सब पूछने लगे कि कौन से होटल में इतनी शानदार शादी रचाई और वह भी लौकडाउन में.

हमारी शादी को 3 महीने बीत चुके हैं. आज हमारा रिसेप्शन हो रहा है. सारे रिश्तेदार इकट्ठे हैं. रिसेप्शन पूरे धूमधाम के साथ संपन्न हो रहा है. खानेपीने का शानदार इंतजाम है. इस भीड़ और तामझाम के बीच मुझे अपनी शादी का दिन बहुत याद आ रहा है कि कैसे केवल 2 लोगों की उपस्थिति में हम ने उम्रभर का रिश्ता जोड़ लिया था.

इस बार तीज पर बनाएं टेस्टी स्पौंज रसगुल्ला, बढ़ जाएगा खाने का स्वाद

बंगाल के फेमस स्पौंज रसगुल्ले हर किसी को पसंद होते हैं, लेकिन मार्केट में मिलने वाले रसगुल्लों में वो स्वाद नही आता साथ ही ये हेल्दी भी नही होते. पर आज हम आपको स्पौंज रसगुल्ले की रेसिपी के बारे में बताएगें, जिसे आप अपनी फैमिली और फ्रेंड्स को हरियाली में खिला सकते हैं.

हमें चाहिए

दूध – 1 लीटर (5 कप, फुल क्रीम मिल्क)

चीनी – 300 ग्राम (1. 5 कप)

नीबू – 2 (रस निकाल लीजिये)

बनाने का तरीका

– किसी बर्तन को थोड़ा पानी डालकर धो लीजिये और दूध डालकर गरम करने के लिये रखिये. दूध में उबाल आने पर दूध को आग से नीचे उतार लीजिये, और थोड़ा सा ठंडा कर लीजिये (दूध को 80 प्रतिशत तक गरम रहने दीजिये). नीबू के रस में जितना रस है, उतना ही पानी मिला दीजिये.

– दूध में थोड़ा थोड़ा 1 – 1 टेबल स्पून करके नीबू का रस डालिये और मिक्स कीजिये, दूध के अच्छी तरह फटने तक नीबू का रस डालिये, और मिक्स करते जाइये, जैसे ही दूध अच्छी तरह फट जाय नीबू का रस डालना बन्द कर दीजिये, और फटे हुये दूध को किसी सूती, साफ कपड़े में छान लीजिये. कपड़े को छलनी के ऊपर बिछाइये और नीचे कोई बर्तन रख दीजिये, फटे हुये दूध को कपड़े के ऊपर डालिये. फटे दूध से निकला पानी, नीचे रखे बर्तन में आ जायेगा और छैना कपड़े में रह जायेगा. छैना के ऊपर 1-2 कप ठंडा पानी डालिये, छैना ठंडा भी हो जायेगा और छैना से नीबू का खट्टा स्वाद भी खतम हो जायेगा. कपड़े को चारों ओर से उठाकर, हाथ से छैना को दबाते हुये छैना से सारा पानी निचोड़ दीजिये.  नरम नरम छैना बनकर तैयार है.

– छैना को किसी प्लेट में निकालिये, हाथ और उंगलियों से छैना को दबाते हुये, पलट पलट कर 4-5 मिनिट तक मल मल कर नरम और चिकना कीजिये. नरम किये हुये छैना को 10 – 12, भागों में बांट लीजिये. एक भाग उठाइये और हाथ से लड्डू की तरह दबाकर पहले उसे बाइन्ड कीजिये, और अब गोल आकार देकर चिकना कीजिये. तैयार गोले को किसी प्लेट में लगा कर रखिये. सारे गोले बनाकर तैयार कर लीजिये.

– रसगुल्ले कुकर में पका लीजिये, कुकर में रसगुल्ले बहुत जल्दी पक जाते हैं, क्योंकि खुले भगोने की अपेक्षा कुकर में तापमान अधिक हो जाता है, रसगुल्ले पकाने के लिये, ज्यादा तापमान की आवश्यकता होती है.

– कुकर में चीनी और 4 कप पानी डालिये, उबाल आने दीजिये, उबाल आने पर छैना के बने गोले कुकर में एक एक करके डालिये, और कुकर का ढक्कन बन्द कर दीजिये. कुकर में 1 सीटी आने के बाद, आग मीडियम कर दिजिये, और रसगुल्ले को 7-8 मिनिट तक और पकने दीजिये, आग बन्द कर दीजिये.

– किसी बर्तन में पानी ले लीजिये उसमें कुकर को रखकर, कुकर को ठंडा कीजिये या कुकर को नल के नीचे लगा दीजिये, ताकि वह जल्दी से ठंडा हो जाय और खुल जाय. सावधानी से ढक्कन खोलिये, कुकर से रसगुल्ले चाशनी के साथ निकाल कर किसी प्याले में रखिये और रसगुल्ले को ठंडे होने दीजिये, ताकि वह चाशनी का रस भी सोख ले और अपनी फैमिली और फ्रेंड्स को डेजर्ट में खिलाएं.

मुझे डायबिटीज है, क्या इस के कारण गर्भधारण करने में परेशानी हो रही है?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मेरी उम्र 32 साल है. मेरी शादी को 3 साल हो गए लेकिन मेरी कोई संतान नहीं है? मुझे डायबिटीज है. क्या इस के कारण गर्भधारण करने में परेशानी हो रही है?

जवाब

कई अनुसंधानों में यह बात सामने आई है कि वे महिलाएं जिन्हें भी डायबिटीज है उन्हें उन महिलाओं की तुलना में गर्भधारण करने में समस्या आती है जिन्हें डायबिटीज नहीं है. डायबिटीज से पीडि़त महिलाओं में पौलिसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (पीसीओएस) और डिसमैटाबोलिक सिंड्रोम एक्सैस दोनों की आशंका अत्यधिक बढ़ जाती है जो महिलाओं में बां?ापन के सब से बड़े कारण हैं. अगर आप का वजन अधिक है तो उसे कम करने का प्रयास करें. नियमित रूप से ऐक्सरसाइज करें, अपने खानपान का ध्यान रखें, तनाव न पालें. डाक्टर द्वारा सु?ाई दवाएं ठीक समय पर लें. जितने बेहतर तरीके से डायबिटीज का प्रबंधन करेंगी आप के लिए गर्भधारण करना उतना आसान होगा.

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सवाल

मैं 46 वर्षीय घरेलू महिला हूं. मुझे डायबिटीज है और मेरा वजन सामान्य से 20 किलोग्राम अधिक है. क्या वजन अधिक होने से डायबिटीज के प्रबंधन में परेशानी आती है?

जवाब

मोटापे के कारण इंसुलिन की कार्यक्षमता कम हो जाती है. मोटे लोगों के शरीर में इंसुलिन होता तो है, लेकिन काम नहीं कर पाता जिस से शुगर का स्तर बढ़ जाता है. वजन कम होने से इंसुलिन की कार्यक्षमता बढ़ती है. अपना स्वस्थ वजन बनाए रखें. अगर वजन अधिक है तो उसे कम करने का प्रयास करें. अगर रोजाना आप अपनी जरूरत से 100-150 कैलोरी का इनटैक कम करेंगी तो 1 साल में बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के अपना वजन 7 से 10 किलोग्राम तक कम कर लेंगी. आप जिम जौइन कर सकती हैं या अपना मनपसंद कोई दूसरा वर्कआउट जैसे वाकिंग, रनिंग, स्विमिंग या साइक्लिंग भी कर सकती हैं ताकि आप का वजन तेजी से कम हो जाए.

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सवाल

मैं 42 वर्षीय कामकाजी महिला हूं. मुझे पिछले 4 साल से डायबिटीज है. सामान्य जीवन जीने के लिए क्या करना चाहिए?

जवाब

डायबिटीज के मरीजों के लिए जरूरी है कि वे अपना ब्लड प्रैशर 130/80 से कम रखें और खाली पेट रक्त में शुगर की मात्रा 110 मिलीग्राम और खाना खाने के 2 घंटे बाद 150 मिलीग्राम से कम रखें. सब से जरूरी है महिलाएं अपनी कमर का घेरा 32 इंच से कम रखें. बुरे कोलैस्ट्रौल (एलडीएल) को 100 से कम और अच्छे कोलैस्ट्रौल (एचडीएल) 50 से अधिक रखें. ये सभी सावधानियां डायबिटीज के मरीजों को लंबा और सामान्य जीवन जीने में सहायक होती हैं.

डा. ए.के. झिंगन

चेयरमैन, डेल्ही डायबिटीज रिसर्च सैंटर,

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या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

जानें रैंट ऐग्रीमैंट से जुड़ी खास बातें, जो आएंगे आपके काम

किराया आज के समय में आय का एक अच्छा और बेहतर साधन है. आज जहां कोई भी मकान जैसी प्रौपर्टी का मालिक अपनी खाली पड़ी प्रौपर्टी को किराए पर दे कर अपनी आय बढ़ा सकता है, वहीं दूसरी तरफ किराए के मकान उन लोगों के लिए वरदान समान हैं, जो पैसे न होने के कारण अपना आशियाना नहीं बना पाते. लेकिन किराए पर ऐसी प्रौपर्टी को लेते या देते समय जो सब से महत्त्वपूर्ण चीज होती है, वह है रैंट एग्रीमैंट.

रैंट एग्रीमैंट वह होता है, जो किसी भी प्रौपर्टी को किराए पर देने से पहले किराएदार और मकानमालिक के समझौते से तैयार किया जाता है. इस रैंट एग्रीमैंट में मकानमालिक की सारी शर्तें लिखित रूप में होती हैं, जिस पर मकानमालिक व किराएदार की सहमति के बाद ही दस्तखत होते हैं. रैंट एग्रीमैंट भविष्य के लिए लाभदायक सिद्ध होता है. अगर किसी भी प्रकार के बदलाव का प्रस्ताव मकानमालिक या किराएदार द्वारा रखा जाना हो, तो उस के लिए 30 दिन पहले नोटिस दिया जाता है.

रैंट ऐग्रीमैंट में बहुत सी ऐसी बातों को ध्यान में रखना जरूरी होता है, जो मकानमालिक और किराएदार दोनों के लिए आवश्यक होती हैं. वे बातें इस प्रकार हैं :

– रैंट एग्रीमैंट हमेशा स्टैंप पेपर पर ही बनाया जाता है. इस पर मकानमालिक और किराएदार दोनों के दस्तखत होने जरूरी होते हैं.

– रैंट एग्रीमैंट में किराएदार व मकानमालिक का नाम साफसाफ लिखा होना चाहिए. साथ ही किराए पर दी जाने वाली जगह का पूरा पता भी दिया होना चाहिए.

– रैंट एग्रीमैंट में किराए की ठीक जानकारी आवश्यक होती है, साथ ही किराया देने की समय अवधि की तारीख भी होनी चाहिए और किस दिन से विलंब शुल्क लगाया जाएगा, यह भी साफसाफ लिखा होना चाहिए.

– रैंट एग्रीमैंट में किराएदार द्वारा जमा की जाने वाली सिक्योरिटी मनी का उल्लेख होना ही चाहिए.

– तारीख व दिन से कितने समय के लिए प्रौपर्टी किराए पर दी जा रही है, यह लिखा होना भी बहुत जरूरी होता है.

– मकानमालिक द्वारा क्याक्या सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं, उस की जानकारी भी रैंट एग्रीमैंट में होनी चाहिए तथा प्रौपर्टी के साथ अन्य कौन सी सामग्री भी साथ प्रदान की जा रही है, जैसे पंखा, गीजर, लाइट फिटिंग आदि भी लिखे होने चाहिए.

– किराएदार को घर छोड़ने या मकानमालिक द्वारा घर छुड़वाने से एक महीने पहले नोटिस देना जरूरी होता है.

– मकानमालिक रैंट एग्रीमैंट बनवाने के लिए किसी वकील से भी बातचीत कर सकता है या स्टैंडर्ड रैंट एग्रीमैंट फार्म का प्रयोग कर सकता है.

– रैंट के घर में रहने वाले व प्रयोग करने वाले 18 वर्ष की आयु से ऊपर के विवाहित और अविवाहित सभी सदस्यों के नाम रैंट एग्रीमैंट में लिखे जाते हैं, जिस से बाद में प्रौपर्टी की देखरेख की जिम्मेदारी सभी की हो और किराए से जुड़ी रकम भी किसी एक से ली जा सके.

– मकान मालिक किराएदार के बारे में पूछताछ कर सकता है, जिस से वह उस से जुड़ी आसामाजिक गतिविधियों व आपराधिक पृष्ठभूमि को जान सके.

कुछ महत्त्वपूर्ण बातें

रैंट एग्रीमैंट से जुड़ी ऐसी ही कुछ बारीकियां जानने के लिए दिल्ली के एक लीगल एडवाइजर यश गुप्ता से बातें हुईं. उन्होंने कुछ महत्त्वपूर्ण बातें समझाईं-

किसी भी रैंट एग्रीमैंट को साइन करते समय या बनवाते समय मकानमालिक और किराएदार दोनों को ही कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखना चाहिए. जैसे, मकानमालिक को जहां किराएदार से जुड़ी पूरी जानकारी होनी चाहिए, वहीं कहीं मकानमालिक कोई धोखा तो नहीं कर रहा. इस की जानकारी किराएदार को होनी चाहिए. दूसरा, कितने समय से कितने समय तक के लिए प्रौपर्टी किराए पर दी जा रही है, साथ ही बिजली, पानी व हाउस टैक्स का बिल कौन देगा. क्या वह किराए में ही सम्मिलित है या किराए से अलग है. यह स्पष्ट होना चाहिए.

किराया कितने समय बाद बढ़ाया जाएगा और कितना, यह सब भी रैंट एग्रीमैंट में साफसाफ शब्दों में लिखा जाना चाहिए. मकानमालिक की सबलैटिंग से जुड़ी नीति के बारे में भी रैंट एग्रीमैंट में लिखा होना चाहिए. किराए के मकान के कायदेकानून की जानकारी होना आवश्यक ओ.पी. सक्सेना (ऐडीशनल पब्लिक प्र्रौसीक्यूटर, दिल्ली सरकार)

रैंट कंट्रोल ऐक्ट : यह कानून किसी भी रिहायशी या व्यावसायिक प्रौपर्टी, जो किराए पर ली या दी जाती है, उस पर लागू होता है और किराएदार एवं मकानमालिक के सिविल राइटस की रक्षा करता है. इस कानून का सही फायदा उस दशा में होता है, जब प्रौपर्टी का किराया रु. 3500 प्रति माह तक या इस से कम हो. यदि किराया रु. 3500 से ज्यादा है और किराएदार व मकानमालिक में कोई विवाद उत्पन्न होता है, तो अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा.

रैंट एग्रीमैंट : रैंट एग्रीमैंट नोटरी के वकील की मदद से बनवाया जा सकता है. इस में कुछ खास बातों का ध्यान में रखना आवश्यक है.

1. किराएदार व मकानमालिक का पूरा नाम व सही पता दर्ज हो.

2. किराए के लिए निर्धारित की गई रकम के साथ डिपाजिट की गई सिक्योरिटी व एडवांस का जिक्र अवश्य हो.

3. यदि बिजल पानी का भुगतान किराए में नहीं है, तो इस का जिक्र भी आवश्यक है.

4. किराएदार से जबरन मकान खाली नहीं कराया जा सकता : रैंट एग्रीमैंट में एक महीने के नोटिस का प्रावधान होने के बावजूद कोई भी मकानमालिक किराएदार से जबरदस्ती मकान खाली नहीं करा सकता. यदि कोई मकानमालिक ऐसा करने की कोशिश करे, तो अदालत में उस के खिलाफ अर्जी दी जा सकती है और स्टे आर्डर लिया जा सकता है.

रि-टीनेंसी का केस न हो : मकान लेने से पहले किराएदार को यह जान लेना आवश्यक है कि जिस से वह मकान ले रहा है, वही मकान का असली मालिक है. यदि ऐसा नहीं है, तो मकान किराए पर देने वाले के पास टीनेंसी का अधिकार होना चाहिए. यदि यह सावधानी न बरती जाए, तो मकान का असली मालिक बिना किसी नोटिस के मकान खाली करा सकता है.

किराएदार की पूरी जानकारी : मकानमालिक के लिए आवश्यक है कि वह किराएदार की सही पहचान, मूल निवास, कार्यालय व आचरण के साथ इस बात की भी पूरी जानकारी जुटा ले कि वह किराया देने की हैसियत रखता है या नहीं. बाद में यदि किराएदार 1-2 महीने तक किराया नहीं भी दे पाता, तो मकानमालिक बिना अदालत का सहारा लिए मकान खाली नहीं करा सकता.

मकान की मैंटेनंस : मकान में होने वाली रिपेयरिंग व साल में एक बार रंगाईपुताई का दायित्व मकानमालिक का बनता है. किराएदार को कानूनन ये अधिकार प्राप्त हैं तथा इस के बारे में वह मकानमालिक को कह सकता है और रैंट एग्रीमैंट में भी इस का जिक्र कर सकता है.

किराए की बढ़ोतरी : रैंट एग्रीमैंट 11 महीने तक वैध होता है और नए एग्रीमैंट में पहले कानूनन किराए में 10% की वृद्धि का प्रावधान है. यदि मकानमालिक इस से ज्यादा किराया बढ़ाने का दबाव बनाता है, तो किराएदार को आपत्ति जताने का अधिकार है. किराया तय करने से पहले उस क्षेत्र के आसपास के मकानों से किराए का अंदाजा अवश्य लें.

बचपन की वापसी: क्या हुआ था रोहित के साथ ?

आज मुझे कहीं भीतर तक गुदगुदी हुई थी. वैसे तो बात झुंझलाने लायक थी परंतु मैं खुशी से विभोर हो उठी थी. मेरा सातवर्षीय बेटा रोहित धूलपसीने से सराबोर तूफानी गति से कमरे के भीतर आया. गंदे पैरों से साफसुथरी चादर बिछे पलंग पर 2-4 बार कूदा, फिर पलंग से ही उस कुरसी के हत्थे पर कूदा जिस पर मैं बैठी थी. हत्थे से वह मेरी गोद में लुढ़क गया और मचलमचल कर अपने धूलपसीने से मेरी साफसुथरी रेशमी साड़ी को सराबोर कर दिया. 2-4 मिनट मुझ से लिपटचिपट कर ममता की सुरक्षा से आश्वस्त हो, फ्रिज की ओर लंबी कूद लगाई. एक बोतल निकाल कर गटागट पानी पिया. फिर जिस गति से आया था उसी गति से वापस बाहर खेलने के लिए निकल गया.

रोहित की उस हुड़दंगी हरकत के बावजूद मैं खुश इसलिए हुई क्योंकि ऐसी हरकत ने उस का बचपना लौट आने का दृढ़ संकेत दिया था. मेरी यह बात शायद अटपटी या मूर्खतापूर्ण लगे क्योंकि किसी बच्चे का बचपना लौटने का भला क्या मतलब है? बच्चा है तो बचपना तो होगा ही.

बिलकुल ठीक बात है. रोहित में भी बचपना था. शुरू के 4 साल तक तो उस का बचपना ऐसा मोहक था कि सूरदास के श्याम का चित्रण भी मुझे फीका लगता था. एक बरफी के टुकड़े या टौफी के लिए ठुमकठुमक कर जब भी वह अपने मासूम करतब दिखाता तो बरबस ही रसखान की ‘छछिया भरि छाछ पे नाच नचावें’ वाली पंक्तियां याद आ जाती थीं. उस की संगीतमय, लयदार, तुतलाती बोली पर मैं यशोदा मैया की तरह बलिबलि जाती थी.

लेकिन ऐसा बस 4 सालों तक ही हुआ. उस के बाद अचानक उस का बचपना कम होता गया और वह मुरझा सा गया. उस के मुरझाने का जिम्मेदार अन्य कोई नहीं बल्कि मैं ही थी, उस की मां.

किसी भी मां की तरह मैं ने सपने में भी नहीं चाहा था कि मेरी कोख का फूल असमय मुरझाए. बल्कि मेरी कल्पना का फूल तो कुछ ज्यादा ही खिलाखिला, रंगीन, स्वस्थ, प्यारा व मनमोहक था. शायद कल्पना की यह ज्यादती ही मेरी शत्रु बन गई, मेरे रोहित के बचपने के लिए घातक बन गई.

रोहित के 4 साल का होने तक तो मैं सचमुच एक खुशहाल मां रही. मैं ने जो भी कल्पनाएं की थीं वे मानो किसी जादू की बदौलत पूरी होती गईं. बल्कि कल्पना की जो ज्यादती की थी वह भी पूरी होती गई.

मैं ने चाहा था कि पहलापहला मेरा लड़का हो. वही हुआ. वह किसी मौडल बेबी की तरह घुंघराले बालों वाला, तंदुरुस्त, गोरा व चमकदार हो, रोहित वैसा ही पनपा. मेरी कल्पना के मुताबिक ही उस ने 2-3 शिशु सौंदर्य प्रतियोगिताएं जीतीं. अपने सुदर्शन पति के साथ स्वयं सुदर्शना बनी अपने किलकारते बेटे को प्रैम में लिटा कर जब मैं पार्क में टहलती थी तो कोई गहरी साध पूरी हुई लगती थी.

संतान के मामले में हर ओर से प्रथम गिने जाने की मेरी आदत सी पड़ गई. मुझे इस बात का अभिमान भी हो चला था.

फिर मानो मेरे अभिमान पर किसी ने चोट करनी शुरू कर दी. उस दिन रोहित को सजाधजा कर तथा खुद भी सजधज कर मैं व मेरे पति दाखिले के वास्ते रोहित को स्कूल ले गए. वह स्कूल शहर का सब से अग्रणी अंगरेजीदां स्कूल था. हालांकि वह हमारे घर से 20 किलोमीटर की दूरी पर था परंतु सिर्फ दूरी के कारण उस सब से प्रसिद्ध स्कूल को नकारना मुझे मान्य नहीं था. फिर उस स्कूल की एक शानदार स्कूल बस चलती थी जोकि हमारे घर के नजदीक ही रुकती थी. स्कूल की यूनिफौर्म में रोहित को बस स्टाप तक लाना व बस में चढ़ा कर उसे ‘बायबाय’ करने वाली कल्पना को साकार करने के लिए यह बेहद उपयुक्त मौका था.

लेकिन ये सब कल्पनाएं धराशायी होती लगीं, जब रोहित को स्कूल में प्रवेश न मिला. इस का कारण यह था कि प्रवेश परीक्षा में रोहित कुछ भी नहीं कर पाया था. दरअसल, मैं ने उसे कुछ सिखाया ही नहीं था. मुझे यह एहसास ही नहीं था कि इतने छोटे बच्चे की लिखित परीक्षा भी होगी. फिर मैं ने दांतों तले उंगली दबा कर रोहित से भी छोटे बच्चों को वहां पैंसिल थामे ‘ए’ से ‘जेड’ तक लिखते देखा. एक 4 साल का बच्चा तो वहां ऐसा था जो  बड़ेबड़े सवाल हल कर के सब को चौंका  रहा था. कहते हैं उस का टीवी में भी प्रदर्शन हो चुका था.

स्कूल से विफल लौट कर मैं अपने कमरे में खूब रोई. इतना रोई कि घर वाले परेशान हो उठे. सुंदर सी ‘रिपोर्ट कार्ड’ में शतप्रतिशत नंबर व शानदार रिपोर्ट लाता रोहित, नर्सरी राइम को पश्चिमी धुन में सुनाता रोहित, मीठीमीठी अंगरेजी में सब से बतियाता रोहित…सारे सपने चूरचूर हो गए थे.

बहरहाल, यह बेहिसाब रोनाधोना काम आया. मेरे लगभग विरक्त ससुर विचलित हो उठे. पहले तो वे मुझे सुनासुना कर मेरी सास को समझाते रहे कि बच्चे को पास के रवींद्र ज्ञानार्जन निकेतन में डाल दो, वहां अंगरेजी भी पढ़ाते हैं परंतु माहौल हिंदुस्तानी रहता है. अपने त्योहार, संस्कृति आदि के बीच रह कर बच्चा बड़ा होता है. पुस्तकें भी बाल मनोवैज्ञानिकों द्वारा स्वीकृत, सरल व क्रमबद्ध होती हैं. परंतु उन की ये सब बातें मुझे उन्हीं के हिसाब की पुरातन व बूढ़ी लगीं. मेरा रुदन जारी रहा.

फिर मेरी सास के उकसाने पर वे कहीं बाहर गए. थोड़ी ही देर में लौट आए और मुझे सुनाते हुए मेरी सास से बोले, ‘‘इस से कह दो कि कल रोहित का दाखिला उसी स्कूल में हो जाएगा. शिक्षा निदेशक ने प्राचार्य से कह दिया है.’’

यह कह कर वे अपने कमरे में चले गए और मैं बौखलाई सी चुप हो गई. बस, ऐसे ही किन्हीं इक्कादुक्का मौकों पर याद आता था कि बिलकुल साधारण और सरल व्यवहार वाले मेरे वृद्ध ससुर न सिर्फ अवकाशप्राप्त उपकुलपति हैं बल्कि अपने तमाम छात्र पदाधिकारियों के बीच आदरणीय हैं.

मैं मन ही मन ससुरजी की जयजयकार कर प्रफुल्लित हो उठी. रात को जब पतिदेव दफ्तर से लौटे तो उन्हें दरवाजे पर ही यह बात बताई. वे खुश होने के साथ थोड़ा चिंतित भी हो उठे कि क्या रोहित अन्य बच्चों के बराबर आ पाएगा? मैं ने कहा, ‘‘चिंता की बात न करें. महीने भर के भीतर ही रोहित कक्षा में प्रथम होगा.’’

उस के बाद दाखिला, वरदी, किताबें, जूते, टाई आदि खरीदने, पहनाने के

2-4 खुशनुमा दिन निकले. स्कूल द्वारा अनापशनाप फंडों के नाम पर ढेर सारा पैसा बटोरने से कोफ्त तो हुई पर खुशी की इतनी भरमार थी कि उस का ज्यादा असर नहीं पड़ा.

पहले दिन रोहित जब स्कूल बस में चढ़ा तो उस का चेहरा घबराहट के मारे सफेद पड़ा हुआ था. फिर भी वह मुसकराने का प्रयत्न कर रहा था क्योंकि मैं ने उसे बहादुर बच्चा बने रहना तथा कतई न रोने का पाठ अच्छी तरह पढ़ा रखा था. मैं जब उसे बैठा कर बस से उतरने लगी तो वह दहाड़ मार कर रो पड़ा. मेरा दिल भी कांप गया तथा मैं इस इरादे से उस के पास बैठ गई कि स्कूल तक छोड़ आऊंगी. लेकिन तभी मशीनी मिठास भरी अंगरेजी बोलती हुई सिस्टर ने रोहित को लौलीपौप दे कर चुप कराया तथा मुझे ‘कोई चिंता न करें, हम सब संभाल लेंगे’ कहते हुए नीचे उतार दिया. जब बस चली तो मुझे फिर रोहित का कातर रुदन सुनाई पड़ा. बहरहाल, मैं मन कड़ा कर वापस घर आ गई. आखिर स्कूल जाना तो उसे सीखना ही था.

सुबह 7 बजे का निकला रोहित 4 बजे वापस घर पहुंचा. एक तो ऐसे ही स्कूल का समय लंबा था, ऊपर से दूर होने के कारण 2 घंटे आनेजाने में खपते थे. वापसी में रोहित रोंआसा होने के साथसाथ उनींदा भी था. वह आते ही मुझ से लिपट कर जोर से रोने लगा और ‘स्कूल नहीं जाऊंगा’ की रट लगाने लगा. मेरे अंदर की मां काफी कसमसाई थी, परंतु जो धुन सवार थी उस की तीव्रता में वह कसमसाहट खो गई. मैं उसे अंगरेजी बोलती हुई प्यार करने लगी और उसे उकसाने लगी कि अपना रोना वह अंगरेजी में रोए. चौकलेट दे कर उसे चुप कराया और दुलारतेपुचकारते हुए खाना खिलाया.

ऐसा शुरू में कुछ दिन हुआ और फिर शीघ्र ही यह सब आदत में आ गया. सप्ताहभर बाद जब स्कूल से लौट कर अलसाया सा रोहित खाना खा रहा था, मैं ने उस के बस्ते को जांचा. मैं उदास हो गई. जब देखा कि गणित व अंगरेजी की कापियों में लाल स्याही से अध्यापिकाओं ने लिख रखा था, ‘बच्चा कमजोर व पिछड़ा है. अभिभावक विशेष तैयारी कराएं. गृहकार्य में ‘ए’ से ‘जेड’ तक 10 बार लिखना था.

खैर, उस समय जल्दीजल्दी रोहित को खाना खिला कर मैं वहीं मेज पर उसे ‘ए बी सी डी’ सिखाने बैठ गई.

दो एक वर्ण तो उस ने लिख लिए परंतु फिर वह टालमटोल करने लगा. उसे नींद भी आ रही थी और वह बाहर बच्चों के साथ खेलना भी चाह रहा था. मैं थोड़ा खीज गई. मैं चाह रही थी कि एक ही दिन में वह पूरी वर्णमाला सीख ले. मैं ने उसे पीट कर सिखाना शुरू कर दिया. उस ने 2-1 वर्ण और सीख लिए. उस के बाद तो जैसे वह न सीखने पर अड़ गया. मैं सिखाने पर अड़ गई. मारने पर वह बेशर्म की तरह रोया. मुझे और गुस्सा आ गया.

इधर मेरी सास उलाहना देने लगीं, ‘‘अरे, अभी बच्चा है, सीख जाएगा धीरेधीरे. उसे खेलने दे कुछ देर. सुबह का गया स्कूल से थक कर आया है.’’

सास से मेरा मेल कम ही खाता था. उन की ये बातें तो मुझे बिलकुल नहीं सुहाईं. मैं रोहित को उठा कर अपने कमरे में ले गई. उस के छोटे से हाथ में जबरदस्ती पैंसिल थमा कर उस के सामने स्केल ले कर खड़ी हो गई कि देखूं, कैसे नहीं सीखता. स्केल से रोहित डरता था, ऊपर से मेरी मुखमुद्रा देख कर उस के बालक मन को कुछ अंदाजा हो गया. वह सहम कर चुप हो गया. पूरी चेष्टा कर के उस ने घंटेभर में 8-10 टेढ़ेमेढ़े वर्ण लिखने सीख लिए. मैं ने खुश हो कर उसे प्यार किया. वह भी एक थकी हुई बचकानी हंसी हंसा. फिर जल्दी ही वह सो गया.

इस तरह से रोहित से बचपना छीनने की शुरुआत हुई. मैं ने रोहित के पीछे पड़ कर रोज उसे पढ़ानालिखाना शुरू कर दिया. सुबह उठते ही उसे स्कूल जाने के लिए तैयार करती थी. तैयार करतेकरते भी उस से कुछ पूछतीबताती रहती थी. वह भी मशीनी तौर पर बताए और याद किए जाता था. शाम को स्कूल से लौटते ही मैं उस का बस्ता टटोलती थी तथा खाना दे कर कपड़े बदलवाती. फिर उस की अनेक आवश्यकताओं को जल्दी से निबटा कर उस को पढ़ाने बैठ जाती. इधर, सास ने ज्यादा भुनभुनाना शुरू कर दिया था. उन का गुस्सा भी मैं रोहित को पढ़ाते हुए निकालती.

छमाही परीक्षाओं में रोहित अपनी कक्षा में प्रथम आया. मेरी खुशी का ठिकाना न रहा. घर में जो भी पड़ोसी या मेहमान आता, उसे मैं वह रिपोर्ट कार्ड जरूर दिखाती.

समय गुजरता गया. मैं अन्य सब बातों की उपेक्षा कर इस चेष्टा में लगा रही कि रोहित कक्षा में प्रथम बना रहे. धीरेधीरे वह शारीरिक तौर पर कमजोर पड़ने लगा. उस की आंखें सूनीसूनी रहने लगीं. खेलने में उस का मन न लगता. चिड़चिड़ाने भी लगा था. कई बार वह अजीब सी जिद कर के ऐसे रोने लगता कि मुझे गुस्सा आ जाए. उसे प्यार करने पर अब संतुष्टि सी नहीं होती थी. वह कुछ अजीब सी बातें व हरकतें करने लगा था. मुझे जबतब उस पर गुस्सा आने लगा.

कमजोर पड़ता देख उसे मोटा करने के लिए मैं टौनिक देने लगी. मक्खन व शहद जैसी चीजें ज्यादा खिलाने लगी, पर वह और कमजोर होता गया. अच्छीअच्छी चीजें जब मैं जबरदस्ती उसे खिला देती तो उसे उलटी हो जाती. उस से मैं परेशान व दुखी हो जाती.

फिर वह पढ़ाई में भी पिछड़ने लगा. कहां तो शुरू में उस ने सबकुछ तेजी से सीखा, परंतु तीसरी कक्षा में वह ठीक न चल पाया. घर में सबकुछ सही सुना कर वह परीक्षा में गलत कर आता. इस का उसे अफसोस भी होता और मेरी डांट अलग पड़ती. मैं दिनरात किताब लिए उस के पीछे  पड़ी रहती. वह भी रटता रहता परंतु फिर भी वह पिछड़ने लगा था.

मेरी कल्पना के सारे विस्तार एकसाथ सिकुड़ने लगे. मैं बौखलाने लगी. कई बार मुझे रोना आ जाता. मुझे लगता कि कहीं कुछ गलती तो जरूर हुई है. पर मैं यकीन नहीं कर पाती कि जो मैं ने इतना जोरशोर व मेहनत से किया था उस में कुछ गलत था.

गरमियों के अवकाश के दौरान रोहित अधिकतर बीमार रहा. खेलना तो वह जैसे भूल ही गया था. एक दिन उस का बुखार कुछ ज्यादा ही बढ़ गया. वह बेहोश सा हो गया जिस से मैं घबरा गई. मेरी घबराहट और बढ़ गई जब वह बेहोशी में कभी पहाड़े सुनाने लगा तो कभी अंगरेजी के प्रश्नोत्तर. ऐसा वह लगातार देर तक करता रहा. मैं डर गई.

मेरे पति देर रात तक दफ्तर से लौटते थे, इसलिए मुझे हिम्मत बंधाने के खयाल से मेरे सासससुर पास बैठे थे. वे पहाड़े व प्रश्नोत्तर उन्होंने भी सुने. मुझे लगा कि सास तीखा उलाहना देंगी, पर उन्होंने कुछ नहीं कहा बल्कि मुझे हिम्मत बंधाने लगीं, ‘‘दवा दे दी है, बुखार उतरता ही होगा.’’

आज कभी न बोलने वाले मेरे ससुर बोले, ‘‘बेटी, जमाने के मायाजाल में इतना न फंसो कि प्रकृति की लय से कदम ही टूट जाएं. तुम्हारी धुन के कारण रोहित अपनी सब से मूल्यवान वस्तु गंवा चुका है यानी अपना बचपना. जरा 3 साल पहले के रोहित को याद करो. क्या यह वही रोहित है? खूब पढ़ालिखा कर इसे क्या बना दोगी? समाज व जिंदगी में ठीक तरह से बरत सके, इस के लिए पढ़ाई जरूरी तो है परंतु उस का मकसद व तरीका मानसिक विकास वाला होना चाहिए.

‘‘तुम ने तो मानसिक विकास के बजाय इसे मानसिक कुंठा का शिकार बना दिया और खुद भी मनोरोगी बन रही हो. जो भी है, अभी बात हाथ से निकली नहीं है. इन 3 सालों में अंगरेजियत भरी इस टीमटाम के खोखलेपन को तुम भी काफीकुछ समझ चुकी होगी.

‘‘बच्चे को जूते, टाई और बैल्ट में कस कर हर समय बाबू साहब बनाने के बजाय उसे अन्य बच्चों के साथ उछलकूद करने दो. बच्चे की यही प्राकृतिक आवश्यकता भी है. उसे फिर टौनिक देने की जरूरत नहीं रहेगी. उसे किसी नजदीक के छोटे व कम समय वाले स्कूल में डालो ताकि वह जल्दी घर आ सके और मां के प्यार की खुशबू पा सके. अंगरेजी के वाक्य रटाने के बजाय उसे समझ आने वाली भाषा में उन वाक्यों की गहराई को समझाओ ताकि उस का मानसिक विकास हो.

‘‘उसे खेलखेल में पढ़ाने के तरीके ईजाद करो. पढ़ाई उतनी ही कराओ जितनी कि उस का नन्हा दिमाग जज्ब कर सके. बच्चे को प्रथम लाने के चक्कर में न रहो. उस के दिमाग को विकसित करो. वैसे भी तुम पाओगी कि अधिकतर सही विकास वाले बच्चे ही अच्छे नंबर लाते हैं, विशेषकर बड़ी कक्षाओं में.’’

ससुरजी की बात मैं ने बहुत ध्यान से सुनी. यह लगभग वही आवाज थी जोकि आजकल मेरे मन में उठने लगी थी.

कुछ देर बाद रोहित का बुखार जब कुछ कम हुआ तो सासससुर अपने कमरे में चले गए. मेरी सोई हुई ममता कुछ ऐसी जागी कि थरथराते हुए मैं ने रोहित को अपने से चिपका लिया. रोहित क्षणभर को नींद से जागा और कुछ अविश्वास से मुझे देखा. फिर ‘मां’ कहता हुआ मुझ से कस कर लिपट कर सो गया.

दूसरे दिन मैं ने अपने सासससुर  को सुनाते हुए पति से कहा, ‘‘सुनिए, रवींद्र ज्ञानार्जन निकेतन का प्रवेशफार्म ले आना. इस बार रोहित को यहीं डालेंगे.’’

क्या है फिटनैस में बायोहैकिंग, आपके लिए जानना है बेहद जरूरी

30 साल की शैली एक ऐडवरटाइजिंग कंपनी में काम करती है. उसे हर समय कुछ न कुछ खाते रहने की आदत थी. सुबह उठते ही उस का खाना शुरू हो जाता था. रात 12 बजे तक वह चाउमिन वगैरह बना कर खाती रहती. वह अपने बढ़े हुए वजन और झड़ते बालों की वजह से बहुत परेशान रहती थी. चेहरे पर हमेशा टैंशन की लकीरें खिंची रहती थीं. इन सब का असर उस के काम पर भी पड़ता था. फिर उस ने एक मैगजीन में बायोहैकिंग के बारे में पढ़ा और उस के जीवन की दिशा ही बदल गई.

शैली एक न्यूट्रिशनिस्ट से मिली जिस ने उसे इंटरमिटैंट फास्टिंग डाइट सजेस्ट किया. उसे रात 7 बजे से सुबह 11 बजे तक कुछ भी नहीं खाने का निर्देश दिया. उस के बाद 8 घंटे वह कुछ भी खा सकती थी.

शैली ने अपनी दिनचर्या में बदलाव शुरू किया. उस ने इस बात का खयाल रखा कि उस के शरीर को सही कैलोरी और हर तरह के पौष्टिक तत्त्व मिल जाएं. ऐक्सरसाइज और मैडिटेशन को दिनचर्या का नियमित हिस्सा बना लिया. गैजेट्स, टीवी और मोबाइल वगैरह को बैडरूम से दूर रखने लगी.

नतीजा यह हुआ कि वह काफी ऐनर्जेटिक रहने लगी. उस का वजन भी काफी घट गया और बाल गिरने की समस्या खत्म हो गई. अब उस के चेहरे पर तनाव नहीं बल्कि मुसकान खिली रहती थी और जिंदगी के हर मोरचे पर सफल होने लगी. इस तरह बायोहैकिंग के जरीए उसे अपनी परेशानी का हल मिल गया.

बायोहैकिंग क्या है?

अपने शरीर के सिस्टम को समझ कर अच्छी सेहत और बेहतर जिंदगी पाने का आसान तरीका ही बायोहैकिंग कहलाता है. इस प्रक्रिया में अपनी शारीरिक और मानसिक कार्यप्रणाली को डिकोड कर जीवनशैली में बदलाव ला कर अपने स्वास्थ्य में मनचाहा परिवर्तन लाया जा सकता है. आज तकनीक के प्रयोग ने बायोहैकिंग को बहुत आसानी से संभव बना दिया है. ऐसे अनेक डिवाइस हैं जो बायोहैकिंग के काम को आसान बना रहे हैं. बायोहैकिंग के द्वारा हम अपने लाइफस्टाइल और सेहत की खामियों को समझ कर उन्हें ठीक करते हैं और अपने जीवन जीने के अंदाज और क्वालिटी को बेहतर बनाते हैं. इस तरह सेहतमंद और लंबी आयु की तरफ कदम बढ़ाते हैं.

इस संदर्भ में डाइटीशन शमन मित्तल कहती हैं कि फिटनैस में बायोहैक का मतलब है अपनी बौडी के लिए हैक्स ढूंढ़ना. हैक मतलब इजी वे यानी कुछ करने का आसान तरीका. अगर मु?ो एक दिन में शरीर का 2 किलोग्राम वजन घटाना है तो मैं पूरा दिन नमक नहीं खाऊंगी. इस से मेरे शरीर का वाटर रिटैंशन कम हो जाएगा. वाटर लैवल कम होने से वजन खुद ही डेढ़दो किलोग्राम तक कम हो जाएगा. इसे हम बायोहैक कह सकते हैं.

कार्ब्स डाइट

अगर किसी इंसान की डाइट में बहुत सारा कार्ब्स है और इसी वजह से उस का वजन बढ़ रहा है तो हम उसे नो कार्ब्स डाइट देंगे. इस से उस का वजन कम हो जाएगा. यानी उसे बैलेंस्ड डाइट के बजाय नो कार्ब डाइट दे कर वजन कम किया जाए तो यह बौडी हैकिंग कहलाएगा. यह उस के लिए वजन कम करने का एक आसान तरीका है.

अगर कोई इंसान हर समय खाता रहता है यानी रात 12 बजे तक कुछ न कुछ खाते रहने के बाद सुबह उठ कर फिर खाने लगता है तो हम उसे इंटरमिटैंट फास्टिंग डाइट चार्ट सजैस्ट करेंगे. इस से उस का वजन घटना शुरू हो जाएगा. यह भी उस के लिए वजन घटाने का एक आसान तरीका होगा.

यहां बायो वर्ड का प्रयोग होता है क्योंकि कुछ हैक्स ऐसे हैं जो आप के जींस को, पैरामीटर को, डायबिटीज को, ब्लड प्रैशर को देख कर बनाए जाते हैं. हमारे लाइफस्टाइल और सेहत पर जींस का इफैक्ट भी काफी रहता है. अगर आप के घर में मां और नानी को या किसी और को भी पीसीओडी है जो हैरिडिटरी है तो इस के होने के चांसेज काफी बढ़ जाते हैं.

इसी तरह थायराइड, डायबिटीज या ओबेसिटी जो भी जो पीढि़यों से हो सकता है वह आप को हो सकते हैं. हमें इन से बचने के लिए पहले से अपनी डाइट पर नजर रखनी होगी. लाइफस्टाइल चेंजेस करने भी जरूरी होंगे ताकि उस जींस का असर न पड़े. थायराइड हेरिडिटरी है तो हम सोयाबीन, कैबेज जैसी चीजें नहीं खाएंगे ताकि उस से बच सकें.

व्यक्ति की फैमिली हिस्ट्री और लाइफस्टाइल का भी बहुत असर पड़ता है. मसलन, दुकानदार केवल दुकान पर बैठे रहते हैं. उन की फिजिकल ऐक्टिविटी न के बराबर होती है. वे खाना भी ज्यादा औयली खाते हैं और खाने में पोषक तत्त्वों की कमी रहती है. ऐसे में जरूरी है कि वे अपना वजन कम करें और सही खाना खाएं, साथ ही फिजिकल ऐक्टिविटीज या ऐक्सरसाइज भी भरपूर करें.

अपने शरीर की भाषा को समझना

सब से पहले अपने शरीर को समझने का प्रयास करें. हर किसी का शरीर या दिमाग किसी चीज के प्रति अलग तरह से रिएक्ट करता है. मसलन, किसी को ठंड ज्यादा लगती है, किसी को तभी नींद आती है जब कमरे में अंधेरा हो जाए तो किसी को कुनकुने पानी से नहाना भाता है तो कोई कसरत नहीं करे तो पूरा दिन बुझा-बुझा सा रहता है. दरअसल, ये आदतें आप को अपने शरीर व मन की भाषा को समझने में मदद करती हैं.

अगर आप बायो हैकर बनना चाहते हैं तो पहली शर्त यह है कि आप अपने शरीर व मन में होने वाली इन प्रतिक्रियाओं के प्रति सजग रहें. आप का शरीर किस बात पर किस तरह रिएक्ट करता है, आप की हैरिडिटरी समस्याएं क्या हैं या फिर आप के मन को किस बात से सुकून मिलता है, अपने लाइफस्टाइल में आप से कहां गलती हो रही है, इस तरह की जानकारी रख कर आप अपने स्वास्थ्य में मनचाहा बदलाव लाने का प्रयास कर सकते हैं.

बायोहैकिंग के तरीके

इंटरमिटैंट फास्टिंग: इंटरमिटैंट फास्टिंग एक पौपुलर डाइट और फिटनैस ट्रैंड है. इंटरमिटैंट फास्टिंग एक फूड प्लानिंग है जो इस बात पर फोकस करती है कि कब खाना चाहिए बजाय इस के कि क्या खाना चाहिए. रोजाना 8, 12 या 16 घंटे का फास्ट या हफ्ते में 2 बार 24 घंटे का फास्ट, इंटरमिटैंट फास्टिंग की दो सामान्य विधियां हैं जो वजन घटाने में मदद करती हैं. इंटरमिटैंट फास्टिंग से शरीर का मैटाबोलिज्म बढ़ता है और यह वजन घटाने में भी काफी मददगार साबित होती है. रक्तचाप को कम करने में मदद मिलती है. उम्र भी बढ़ती है. कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों का खतरा भी कम होता है.

सुपरफूड्स

पोषक तत्त्वों से भरपूर सुपरफूड्स आप की पूरी सेहत को सुधारते हैं और इन में मौजूद ऐंटीऔक्सीडैंट्स व माइक्रोन्यूट्रिएंट्स वजन घटाने की प्रक्रिया को बढ़ाते हैं. सुपरफूड्स जरूरी विटामिन और मिनरल्स का पावरहाउस हैं जो शरीर को ज्यादा ऐनर्जी और स्टैमिना देने में मदद करते हैं और पाचन सहित पूरे स्वास्थ्य में सुधार करते हैं.

एलिमिनेशन डाइट

इस का अर्थ है अपनी डाइट से कोई एक भोजन निकाल देना. इस के बाद आप यह देखने के लिए फिर उसे अपनी डाइट में शामिल कर सकती हैं कि वह आप के शरीर पर क्या असर डाल रहा है. अपनी डाइट को बायोहैक करने के लिए आप को यह देखना होगा कि कौन सी चीज आप के शरीर में समस्या पैदा कर रही है और यह पता करने का सब से अच्छा तरीका है एलिमिनेशन डाइट. यह डाइट दस्त, कब्ज और ब्लौटिंग समेत बहुत सी दूसरी समस्याओं से राहत देती है और इस से आप का मूड, दिमाग और परफौर्मैंस बेहतर होती है.

अच्छी नींद

नींद के 2 महत्त्वपूर्ण चरण हैं- नौनरैपिड आई मूवमैंट या गहरी नींद और रैपिड आई मूवमैंट. गहरी नींद हमारे शरीर की मरम्मत और उपचार करती है और नींद हमारे कौग्निटिव परफौर्मैंस और इमोशनल प्रोसैसिंग को बढ़ाती है. आप को रात में अच्छी नींद लेनी है तो अपने सोने और उठने का एक निश्चित समय तय करें. रोज कम से कम 7-8 घंटे की नींद जरूर लें.

अपने कमरे को सोने के लिए अनुकूल बना कर रखें यानी कमरे में शांति हो, लाइट नहीं जल रही हो, किसी का आनाजाना न हो और साथ ही सोते समय किसी तरह के गैजेट का प्रयोग न करें. एक और चीज जो आप को अच्छी नींद लेने में मदद कर सकती है वह है रात में कमरे का तापमान 19 डिग्री सैल्सियस के आसपास रखना. मतलब कमरे में न गरमी हो और न ठंड.

फिजिकल ऐक्टिविटीज

शरीर को फिट रखने के लिए अपनी क्षमतानुसार फिजिकल ऐक्टिविटी जैसे वाकया ऐक्सरसाइज वगैरह बहुत जरूरी होती है.

शरीर के अलगअलग हिस्सों के लिए

अलगअलग प्रकार के वर्कआउट होते हैं जिन्हें आप आजमा सकते हैं.  दौड़ना, टहलना, तेज चलना, तैरना, साइकिल चलाना, टैनिस, स्क्वैश और फुटबौल जैसे तेज गति वाले खेल खेलना, जिम करना आदि.

प्रकृति के करीब

प्रकृति का साथ आप के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है. हम शहरों में रहते हैं जहां हमें कई तरह के प्रदूषण के संपर्क में रहना होता है. कोशिश करें कि वीकैंड में कहीं पार्क आदि में घूमने जाएं ताकि आप प्रकृति से जुड़ सकें. आप समुद्र तट या ऐसी किसी जगह भी जा सकते हैं जहां आप को प्रकृति का साथ मिले. इस से आप के दिमाग को सुकून मिलेगा और आप ज्यादा फिट और ऐनर्जेटिक महसूस करेंगे, साथ ही तनाव जो हमारे जीवन में एक रोजमर्रा का हिस्सा है उस में कमी आएगी. याद रखें हमारा मानसिक स्वास्थ्य हमारे रिश्तों को भी प्रभावित कर सकता है.

क्षमता को जान कर ही बायोहैक आजमाएं

आप को अपने जीवन जीने के तरीके में बदलाव लाना होगा और वह करना होगा जो आप के शरीर को बेहतर बनाने के साथसाथ आप को सुकून और खुशी भी दे सके. हालांकि शरीर के साथ एक तय सीमा तक ही प्रयोग करना चाहिए. मसलन, आप को वजन घटाना है तो खानपान में बदलाव करें और उपवास करें. मगर इस का मतलब यह नहीं कि कम खाने की वजह से आई कमजोरी से आप चक्कर खाते रहें. यह सही नहीं होगा. इसलिए शरीर की क्षमता को जान कर ही बायोहैक आजमाएं. अच्छा होगा आप कोई बीच का रास्ता निकालें.

ध्यान रखने योग्य बातें

  •  जीवनशैली से जुड़ी समस्याएं हैं तो चिकित्सकीय परामर्श ले कर ही बायोहैक की तरफ कदम बढ़ाएं.
  • स्मार्टवाच, फिटनैस ट्रैकिंग बैंड, स्मार्टफोन या किसी भी डिवाइस के आंकड़ों पर आंख मूंद कर भरोसा न करें.
  • आंकड़ों के बढ़ते या घटते स्तर को देख कर तनाव न बढ़ाएं. ये बस अनुमान लगाने में मदद करते हैं.
  • सप्लिमैंट्स या शारीरिक, मानसिक क्षमता बढ़ाने के लिए दवाइयों का सेवन चिकित्सकीय परामर्श से करें.

अपने हिस्से की लड़ाई

मैं 30 की हो चली हूं. मेरा मानना है कि सब को अपनेअपने हिस्से की लड़ाई लड़नी पड़ती है. एक लड़ाई मैं ने भी लड़ी थी, उस समय जब मैं थर्ड ईयर में थी. पर आज जिंदगी मेरे लिए सांसों का एक पुलिंदा बन चुकी है, जिसे मुझे ढोना है और मैं ढोए जा रही हूं, नितांत अकेली.

मैं नहीं जानती कि मेरी कहानी सुन कर कितनी युवतियां मुझे मूर्ख कहेंगी? कितनी मेरे साहस को सराहेंगी? यह जानने के बाद भी कि मेरे साहस ने ही मुझ से मेरे मातापिता छीने. वह प्यार छीना जो मेरे लिए बेशकीमती था. आज कोई नहीं है, जिसे मैं अपना कह सकूं. केवल और केवल एक हताशा है जो हर पल मेरे साथ रहती है और मेरी जीवनसंगिनी बन चुकी है.

आज मैं एक कालेज में लैक्चरर के पद पर नियुक्त हूं. स्टूडैंट्स को पढ़ाते समय जब कभी किताब खोलती हूं तो मेरी यादों की किताब के पन्ने तेजी से उलटनेपलटने लगते हैं. मुझे याद आ जाते हैं, कालेज के वे दिन जब मेरी मुलाकात आकाश से हुई थी. मैं अपनी सहेलियों में सब से ज्यादा सुंदर थी. मेरी बड़ीबड़ी हिरनी सी बोलती आंखों, गोरेचिट्टे छरहरे शरीर और कमर तक लहराते बालों पर ही तो वह मरमिटा था.

आमतौर पर बीए फाइनल या एमए करतेकरते परिवार में लड़कियों की शादी तय करने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. कुछ लड़कियां अपने मातापिता द्वारा पसंद किए गए लड़कों के साथ शादी कर के अपनी गृहस्थी बसा लेती हैं, तो कुछ अपने प्रेमी को वर के रूप में पा कर नई जिंदगी की शुरुआत कर लेती हैं.

कालेज में इस उम्र की लड़कियों के बीच अधिकतर भावी पति ही चर्चा का विषय होते हैं. एक दिन मेरे और सहेलियों के बीच इस बात पर बहस छिड़ गई कि शादी से पहले मंगेतर या प्रेमी के साथ क्या सैक्स उचित है?

कई लड़कियों का मानना था कि इस में अनुचित ही क्या है, जो कल होना है वह आज हो रहा है. आजकल लड़के कुछ ज्यादा ही डिमांडिंग हो गए हैं. यदि उन की डिमांड्स पूरी न हों तो यह भी संभव है कि विवाहपूर्व ही लड़के लड़की के संबंधों में दरार आ जाए. कुछ कह रही थीं कि इस में खतरा भी है. मान लो किन्हीं कारणों से यदि शादी नहीं हो पाई तो यह भी हो सकता है कि लड़का आप को ब्लैकमेल करना शुरू कर दे या यह भी हो सकता है कि लड़के से ब्रेकअप के बाद भविष्य में होने वाली शादी में, इस प्रकार का संबंध अड़चन बन जाए.

मैं शादी से पहले यौन संबंधों की पक्षधर कभी नहीं थी. मेरी नजर में ऐसे रिश्ते कैलकुलेटेड होते हैं, जो मात्र लड़की का शरीर पाने के लिए बनाए जाते हैं. इन में प्यार नहीं होता. वे लड़के जो अपनी भावी पत्नी या प्रेमिका से शादी से पहले सैक्स की डिमांड करते हैं, उन के लिए नारी केवल एक संपत्ति होती है, जिस का उपयोग वे अपनी इच्छानुसार करना चाहते हैं. वे यह भी नहीं सोचते कि जिस ने आप को अपना सर्वस्व समर्पित किया, अपने प्यार से आप को स्पंदित किया, उस के भी अपने कुछ जज्बात हैं? उस की भी अपनी कोई सोच है. यदि कुछ अवांछित हो गया तो भुगतना तो लड़की को ही पड़ेगा. खैर, यह अपनीअपनी लड़ाई है, जिसे प्रत्येक लड़की को अपनेअपने तरीके से लड़ना पड़ता है. मैं ने अपना प्रश्न रखा था. बहस का कोई परिणाम नहीं निकला.

मेरे और आकाश के रोमांस को लगभग 2 महीने हो चले थे. उस के लिए हर दिन वेलैंटाइन डे हुआ करता था, वह कालेज के गेट पर मेरे आने से पहले एक गुलाब लिए खड़ा रहता. मुझे देखते ही उस की आंखें नशीली हो उठतीं. चेहरे पर कातिलाना मुसकराहट उभर आती. मेरा भी मन पुलकित हो उठता. प्रेम की ताजा और स्फूर्त गंध हम दोनों के बीच बहने लगती. वह मुझे बड़े आशिकाना अंदाज में फूल भेंट करता और कहता, ‘स्वागत है आप का, हुस्न ए मलिका अनामिका.’ उस के शब्द सुनते ही जाने कितने प्यार के पटाखे मेरे मन में भड़ाकभड़ाक की आवाज के साथ फटने लगते थे.

उन 2 महीने में मैं ने कभी यह महसूस नहीं किया कि वह प्रेम को सीधे सैक्स से जोड़ कर देखता है या उस में मेरे प्रति कोई दैहिक आकर्षण है. मुझे तो वह हर पल भावनात्मक रूप से ही जुड़ा हुआ मिला. यही उस की विशेषता थी जो मुझे उस से बांधे रखती थी. यही वह गुण था जो उसे अन्य लड़कों से भिन्न बनाता था. उस की उपस्थिति से ही मेरे मन के तार झंकृत होने लगते थे.

फिर एक दिन वह हो गया जिस की मुझे अपेक्षा नहीं थी. लाइब्रेरी के सामने वाली गैलरी में किसी को अपने आसपास न पा कर उस ने मुझे अपनी बांहों में भर लिया और अपने अधर मेरे अधरों पर टिकाने की कोशिश करने लगा. मेरे लिए यह स्थिति असह्य थी. क्रोध आंखों में उतर आया. शरीर कंपकंपा गया.

‘आकाश… हाउ डेयर यू?’ मैं ने  उसे धकेलते हुए गुस्से से कहा, ‘‘तुम ने मुझे समझ क्या रखा है? एक भोग्या? आई नैवर ऐक्सपैक्टेड दिस फ्रौम यू? गैट लौस्ट.’’ फिर पता नहीं कितनी देर तक मेरे शरीर में अंगारे दहकते रहे थे. मस्तिष्क में चिनगारियां फूटती रही थीं. मन सुलगता रहा था.

मैं ने देखा, आकाश का हाल मुझ से बिलकुल उलटा था. चेहरा उड़ाउड़ा सा था. मानो कीमती वस्तु के अचानक खो जाने का डर उस के चेहरे पर साफ झलक रहा था.

‘‘आई एम सौरी,’’ कंपकंपाते हाथों से उस ने मेरी बांहें पकड़ते हुए कहा था, ‘‘पता नहीं मैं कैसे सुधबुध खो बैठा? मेरा मकसद तुम्हारा दिल दुखाने का नहीं था. इतने अरसे से हम मिलते रहे हैं, पहले तो कभी ऐसा नहीं हुआ? प्लीज, आई एम सौरी अगेन.’’

उस दिन आकाश ने मेरी बांहें उस समय तक नहीं छोड़ी थीं, जब तक कि मैं ने उसे माफ नहीं कर दिया था.

एक जवान लड़की की मां, लड़की को ले कर किनकिन परेशानियों से जूझती हुई जीती है, यह मेरी मां इंद्रा ही जानती थीं या वे स्त्रियां जानती हैं, जिन की बेटियां जवान हो जाती हैं.

मेरे लिए मां हर पल परेशान रहती थीं. मेरे घर से बाहर निकलने से ले कर लौटने तक, चैन की सांस नहीं ले पाती थीं. हीरा सब के सामने हो तो कौन उसे लूटने का प्रयास नहीं करेगा? वे इसी भय से मुक्ति चाहती थीं. उन का कहना था कि मैं एक बार घर से विदा हो कर अपने पति के घर चली जाऊं, तब जा कर उन्हें चैन मिलेगा. पिताजी भी यही चाहते थे कि मैं फाइनल ईयर करतेकरते ही लाइफ में सैटल हो जाऊं.

बड़े प्रयासों के बाद उन्हें एक अच्छे परिवार वाला शिक्षित, सौम्य और संस्कारी लड़का मिला. वह आगरा में एक प्राइवेट फर्म में अच्छे पद पर कार्यरत था. लड़के के पिता ने पिताजी से कहा कि आप आगरा आइए. हमारा घर देखिए. लड़केलड़की को मिल लेने दीजिए, यदि सबकुछ ठीकठाक रहा तो शादी की बात भी हो जाएगी.

मां लड़के के पिता की बातें सुनते ही रोमांचित हो गई थीं. प्रतीत हुआ था जैसे उन का नाम किसी अवार्ड फंक्शन के लिए नामांकित हो गया हो. उन्होंने दूसरे दिन ही आगरा जाने की तैयारियां कर डालीं.

युवकयुवतियों के सिर से प्यार का भूत उतरे नहीं उतरता. मेरे सिर से भी नहीं उतरा था. मैं इस रिश्ते के लिए तैयार ही नहीं हुई. मैं ने स्पष्ट शब्दों में मां से कह दिया था, ‘‘मां, आकाश मेरा प्यार है. मैं शादी करूंगी तो उसी से, वरना नहीं.’’

मां बोली थीं, ‘‘हमारे खानदान में दूरदूर तक किसी ने प्रेमविवाह नहीं किया है तो मैं तुझे कैसे करने दूंगी? और यह जो तू प्यारप्यार करती है, यह प्यार नहीं है, एक हवस है. जैसे ही यह खत्म हुई वैसे ही प्यार का नशा भी उतर जाएगा. तुझे शादी तो हमारी इच्छा से ही करनी पड़ेगी.’’

‘‘यह नहीं होगा, मां,’’ मैं ने स्पष्ट कहा, ‘‘इस से बेहतर है कि मैं जिंदगी भर कुंआरी ही रहूं.’’

‘‘और यदि हमारे मनमुताबिक नहीं हुआ तो हम दोनों तुझ से रिश्ता ही तोड़ लेंगे,’’ मां अपना आपा खो चुकी थीं.

अंतत: मैं आगरा जाने के लिए तैयार हो गई थी. आगरा में मैं ने लड़के से मिलते ही अपने संबंध के बारे में सबकुछ साफसाफ बता दिया था. लड़का सुलझा हुआ था. पीढि़यों और विचारों के अंतर को भलीभांति समझता था. उस ने ही इस शादी से इनकार कर दिया.

अब मां को अपनी परेशानियों का अंत आसपास कहीं भी दिखाई नहीं दिया. निवाला हर बार मुंह के पास आतेआते नीचे गिर जाता था. लड़का पसंद आता भी तो शादी की बात किसी न किसी कारण से अधूरी रह जाती.

फिर धीरेधीरे उन की हताशा ने मेरे सुख में ही अपना सुख तलाशना शुरू कर दिया. उन्होंने अपने मन में मेरे और आकाश के प्यार को रोकने के लिए जिद का जो बांध बांध रखा था, समय के साथसाथ वह टूटने लगा. पहले कुछ दरारें दिखाई दीं, फिर समूचा बांध ही ध्वस्त हो गया.

फिर एक दिन पिताजी की उपस्थिति में मां ने मुझे अपना फैसला सुना दिया, ‘‘हमें तेरी और आकाश की शादी मंजूर है. उसे एक दिन मातापिता के साथ बुला लो. उन की सहमति मिलते ही हम, तुम दोनों की सगाई कर देंगे.’’

यह सुन कर जो खुशी मुझे मिली थी, उस का वर्णन ठीक तरह से कर ही नहीं पाऊंगी. पोरपोर से प्यार शोर मचा रहा था. जीत जश्न मनाने लगी थी. आकाश का हाल भी मुझ जैसा ही था. हमारी मुट्ठियों में सारा आसमान सिमट आया था. बस, हमें और क्या चाहिए था?

दूसरे दिन ही दोनों परिवार इकट्ठे हुए. दोनों परिवारों ने अपने बच्चों की खुशियों के लिए रिश्ता मंजूर कर लिया और फिर 20 दिन बाद हमारी सगाई हो गई थी. मुझे शुरू से ही यह स्लोगन बहुत अच्छा लगता था, ‘ये दिन भी न रहेंगे.’ हमारा दुख सुख में बदल चुका था. उस के बाद तो हम ने जमाने को पीछे मुड़ कर देखना ही छोड़ दिया था.

सगाई के कुछ दिन बाद ही मेरा जन्मदिन था. जन्मदिन पर आकाश ने मुझे उपहार में 50 हजार रुपए की नीले रंग की साड़ी दी थी और होटल वेलैंटाइन में एक शानदार डिनर पार्टी भी. उस दिन मैं बहुत खुश थी. देर रात तक पार्टी चलती रही थी. पार्टी खत्म होते ही मैं उस रूम में चली आई थी, जो आकाश ने मेरे आराम के लिए बुक किया था. उस समय वह अपने दोस्तों में व्यस्त था.

रात को 2 बजे आकाश मेरे कमरे में घुसा था. उस के मुंह से शराब की दुर्गंध आ रही थी. कमरे में घुसते ही वह बोला, ‘‘आई नीड यू डार्लिंग, कम औन.’’

उस के इरादे समझते ही मैं बेड से उठ गई थी. तीखे शब्दों में मैं ने उस से कहा था, ‘‘तुम अच्छी तरह जानते हो आकाश, शादी से पहले मुझे ऐसे संबंध पसंद नहीं हैं’’ ऐसा बोलते समय मैं भय से कांप भी रही थी.

‘‘डौंट टैल मी, ये लड़कियों के चोचले हैं. मैं बखूबी जानता हूं. और डार्लिंग अब तो हमारी सगाई भी हो चुकी है. यू आर माई वुड बी वाइफ नाऊ,’’ कह कर वह मेरी ओर बढ़ने लगा था.

मैं उस का एग्रेशन देख कर ही समझ गई थी कि मुझे पाना उस की जिद है. आज वह यह जिद पूरा कर के ही रहेगा. वह अपनी जिद पर अड़ा रहा और मैं अपनी जिद पर.

जब मैं नहीं झुकी तो उस ने मुझे चेतावनी दे डाली, ‘‘अगर तुम्हें मेरी इच्छा की कोई परवा नहीं है तो मुझे भी तुम्हारी कोई परवा नहीं है. मैं तुम से अपने संबंध अभी, इसी वक्त तोड़ता हूं. अब हमारी शादी कभी नहीं होगी. अपने ऐथिक्स का सेहरा अपने सिर पर बांध जिंदगीभर डोलती रहना.’’

वह उठ कर कमरे से बाहर जाने का प्रयास करने लगा. मैं काटो तो खून नहीं वाली स्थिति में आ गई. मैं ने तेजी से आगे बढ़ कर उसे फिर सोफे पर बिठा दिया. मैं गिड़गिड़ाने लगी थी, ‘‘यह क्या कह रहे हो आकाश? तुम नशे में हो. नहीं समझ पा रहे हो कि जो कुछ तुम ने कहा है, यदि ऐसा हुआ तो इस का असर हमारी जिंदगियों को तबाह कर देगा. जिस प्यार को मैं ने मुश्किल से पाया है, वह मेरी मुट्ठी से रेत की तरह फिसल जाएगा. प्लीज, जरा यह तो सोचो?’’

पर वह जरा भी विचलित नहीं हुआ. कहने लगा, ‘‘माई डिसीजन इज फाइनल, तुम्हें क्या करना है, इस का फैसला तुम कर लो.’’ मेरी पकड़ से छूटने का प्रयास करते हुए उस ने अपना फैसला सुना दिया.

मैं उसे और नहीं रोक पाई थी. सारी मिन्नतें, कसमें, वादे सब नाकाम होते चले गए थे. वह तेजी से उठा और कमरे से निकल गया.

उस सवेरे 3 जिंदगियां मर गई थीं. मेरी, मां की और पिताजी की. पिताजी ने आकाश के विरुद्ध पुलिस में शिकायत करने का निश्चय किया तो मां ने उन्हें रोक दिया. मेरी बदनामी का डर था. उस के बाद हम ने शहर ही छोड़ दिया. कुछ समय बाद न मां रहीं, न पिताजी. दोनों को सदमा निगल गया. रह गई तो सिर्फ मैं, हताश, अपनी जिंदगी को ढोती हुई.

पीरियड खत्म हो गया है. किताब भी बंद हो गई है. पर मैं अभी भी अनिश्चितता की स्थिति में हूं. मुझे नहीं पता कि मैं अपनी लड़ाई जीती हूं या हारी? मां और पिताजी की मौत का बोझ मेरे सिर पर है. यह मुझे आज की युवतियां ही बता पाएंगी कि मेरा आकाश की इच्छाओं के सामने झुकना सही था या गलत? मुझे तो इसी तरह जीना है. सिर्फ इसी तरह.

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