प्यार के माने: निधि को क्या अजीत से था प्यार

उससे मेरा कोई खास परिचय नहीं था. शादी से पहले जिस औफिस में काम करती थी, वहीं था वह. आज फ्रैंच क्लास अटैंड करते वक्त उस से मुलाकात हुई. पति के कहने पर अपने फ्री टाइम का सदुपयोग करने के विचार से मैं ने यह क्लास जौइन की थी.

‘‘हाय,’’ वह चमकती आंखों के साथ अचानक मेरे सामने आ खड़ा हुआ.

मैं मुसकरा उठी, ‘‘ओह तुम… सो नाइस टु मीट यू,’’ नाम याद नहीं आ रहा था मुझे उस का.

उस ने स्वयं अपना नाम याद दिलाया, ‘‘अंकित, पहचाना आप ने?’’

‘‘हांहां, बिलकुल, याद है मुझे.’’

मैं ने यह बात जाहिर नहीं होने दी कि मुझे उस का नाम भी याद नहीं.

‘‘और सब कैसा है?’’ उस ने पूछा.

‘‘फाइन. यहीं पास में घर है मेरा. पति आर्मी में हैं. 2 बेटियां हैं, बड़ी 7वीं कक्षा में और छोटी तीसरी कक्षा में पढ़ती है.’’

‘‘वाह ग्रेट,’’ वह अब मेरे साथ चलने लगा था, ‘‘मैं 2 सप्ताह पहले ही दिल्ली आया हूं. वैसे मुंबई में रहता हूं. मेरी कंपनी ने 6 माह के प्रोजैक्ट वर्क के लिए मुझे यहां भेजा है. सोचा, फ्री टाइम में यह क्लास भी जौइन कर लूं.’’

‘‘गुड. अच्छा अंकित, अब मैं चलती हूं. यहीं से औटो लेना होगा मुझे.’’

‘‘ओके बाय,’’ कह वह चला गया.

मैं घर आ गई. अगले 2 दिनों की छुट्टी ली थी मैं ने. मैं घर के कामों में पूरी तरह व्यस्त रही. बड़ी बेटी का जन्मदिन था और छोटी का नए स्कूल में दाखिला कराना था.

2 दिन बाद क्लास पहुंची तो अंकित फिर सामने आ गया, ‘‘आप 2 दिन आईं नहीं. मुझे लगा कहीं क्लास तो नहीं छोड़ दी.’’

‘‘नहीं, घर में कुछ काम था.’’

वह चुपचाप मेरे पीछे वाली सीट पर बैठ गया. क्लास के बाद निकलने लगी तो फिर मेरे सामने आ गया, ‘‘कौफी?’’

‘‘नो, घर जल्दी जाना है. बेटी आ गई होगी, और फिर पति आज डिनर भी बाहर कराने वाले हैं,’’ मैं ने उसे टालना चाहा.

‘‘ओके, चलिए औटो तक छोड़ देता हूं,’’ वह बोला.

मुझे अजीब लगा, फिर भी साथ चल दी. कुछ देर तक दोनों खामोश रहे. मैं सोच रही थी, यह तो दोस्ती की फिराक में है, जब कि मैं सब कुछ बता चुकी हूं. पति हैं, बच्चे हैं मेरे. आखिर चाहता क्या है?

तभी उस की आवाज सुनाई दी, ‘‘आप को किरण याद है?’’

‘‘हां, याद है. वही न, जो आकाश सर की पीए थी?’’

‘‘हां, पता है, वह कनाडा शिफ्ट हो गई है. अपनी कंपनी खोली है वहां. सुना है किसी करोड़पति से शादी की है.’’

‘‘गुड, काफी ब्रिलिऐंट थी वह.’’

‘‘हां, मगर उस ने एक काम बहुत गलत किया. अपने प्यार को अकेला छोड़ कर चली गई.’’

‘‘प्यार? कौन आकाश?’’

‘‘हां. बहुत चाहते थे उसे. मैं जानता हूं वे किरण के लिए जान भी दे सकते थे. मगर आज के जमाने में प्यार और जज्बात की कद्र ही कहां होती है.’’

‘‘हूं… अच्छा, मैं चलती हूं,’’ कह मैं ने औटो वाले को रोका और उस में बैठ गई.

वह भी अपने रास्ते चला गया. मैं सोचने लगी, आजकल बड़ी बातें करने लगा है, जबकि पहले कितना खामोश रहता था. मैं और मेरी दोस्त रिचा अकसर मजाक उड़ाते थे इस का. पर आज तो बड़े जज्बातों की बातें कर रहा है. मैं मन ही मन मुसकरा उठी. फिर पूरे रास्ते उस पुराने औफिस की बातें ही सोचती रही. मुझे समीर याद आया. बड़ा हैंडसम था. औफिस की सारी लड़कियां उस पर फिदा थीं. मैं भी उसे पसंद करती थी. मगर मेरा डिवोशन तो अजीत की तरफ ही था. यह बात अलग है कि अजीत से शादी के बाद एहसास हुआ कि 4 सालों तक हम ने मिल कर जो सपने देखे थे उन के रंग अलगअलग थे. हम एकदूसरे के साथ तो थे, पर एकदूसरे के लिए बने हैं, ऐसा कम ही महसूस होता था. शादी के बाद अजीत की बहुत सी आदतें मुझे तकलीफ देतीं. पर इंसान जिस से प्यार करता है, उस की कमियां दिखती कहां हैं?

शादी से पहले मुझे अजीत में सिर्फ अच्छाइयां दिखती थीं, मगर अब सिर्फ रिश्ता निभाने वाली बात रह गई थी. वैसे मैं जानती हूं, वे मुझे अब भी बहुत प्यार करते हैं, मगर पैसा सदा से उन के लिए पहली प्राथमिकता रही है. मैं भी कुछ उदासीन सी हो गई थी. अब दोनों बच्चियों को अच्छी परवरिश देना ही मेरे जीवन का मकसद रह गया था.

अगले दिन अंकित गेट के पास ही मिल गया. पास की दुकान पर गोलगप्पे खा रहा था. उस ने मुझे भी इनवाइट किया पर मैं साफ मना कर अंदर चली गई.

क्लास खत्म होते ही वह फिर मेरे पास आ गया, ‘‘चलिए, औटो तक छोड़ दूं.’’

‘‘हूं,’’ कह मैं अनमनी सी उस के साथ चलने लगी.

उस ने टोका, ‘‘आप को वे मैसेज याद हैं, जो आप के फोन में अनजान नंबरों से आते थे?’’

‘‘हां, याद हैं. क्यों? तुम्हें कैसे पता?’’ मैं चौंकी.

‘‘दरअसल, आप एक बार अपनी फ्रैंड को बता रही थीं, तो कैंटीन में पास में ही मैं भी बैठा था. अत: सब सुन लिया. आप ने कभी चैक नहीं किया कि उन्हें भेजता कौन है?’’

‘‘नहीं, मेरे पास इन फुजूल बातों के लिए वक्त कहां था और फिर मैं औलरैडी इंगेज थी.’’

‘‘हां, वह तो मुझे पता है. मेरे 1-2 दोस्तों ने बताया था, आप के बारे में. सच आप कितनी खुशहाल हैं. जिसे चाहा उसी से शादी की. हर किसी के जीवन में ऐसा कहां होता है? लोग सच्चे प्यार की कद्र ही नहीं करते या फिर कई दफा ऐसा होता है कि बेतहाशा प्यार कर के भी लोग अपने प्यार का इजहार नहीं कर पाते.’’

‘‘क्या बात है, कहीं तुम्हें भी किसी से बेतहाशा प्यार तो नहीं था?’’ मैं व्यंग्य से मुसकराई तो वह चुप हो गया.

मुझे लगा, मेरा इस तरह हंसना उसे बुरा लगा है. शुरू से देखा था मैं ने. बहुत भावुक था वह. छोटीछोटी बातें भी बुरी लग जाती थीं. व्यक्तित्व भी साधारण सा था. ज्यादातर अकेला ही रहता. गंभीर, मगर शालीन था. उस के 2-3 ही दोस्त थे. उन के काफी करीब भी था. मगर उसे इधरउधर वक्त बरबाद करते या लड़कियों से हंसीमजाक करते कभी नहीं देखा था.

मैं थोड़ी सीरियस हो कर बोली, ‘‘अंकित, तुम ने बताया नहीं है,’’ तुम्हारे कितने बच्चे हैं और पत्नी क्या करती है?

‘‘मैडम, आप की मंजिल आ गई, उस ने मुझे टालना चाहा.’’

‘‘ठीक है, पर मुझे जवाब दो.’’

मैं ने जिद की तो वह मुसकराते हुए बोला, ‘‘मैं ने अपना जीवन एक एनजीओ के बच्चों के नाम कर दिया है.’’

‘‘मगर क्यों? शादी क्यों नहीं की?’’

‘‘क्योंकि हर किसी की जिंदगी में प्यार नहीं लिखा होता और बिना प्यार शादी को मैं समझौता मानता हूं. फिर समझौता मैं कभी करता नहीं.’’

वह चला गया. मैं पूरे रास्ते उसी के बारे में सोचती रही. मैं पुराने औफिस में अपनी ही दुनिया में मगन रहती थी. उसे कभी अहमियत नहीं दी. मैं उस के बारे में और जानने को उत्सुक हो रही थी. मुझे उस की बातें याद आ रही थीं. मैं सोचने लगी, उस ने मैसेज वाली बात क्यों कही? मैं तो भूल भी गई थी. वैसे वे मैसेज बड़े प्यारे होते थे. 3-4 महीने तक रोज 1 या 2 मैसेज मुझे मिलते, अनजान नंबरों से. 1-2 बार मैं ने फोन भी किया, मगर कोई जवाब नहीं मिला.

घर पहुंच कर मैं पुराना फोन ढूंढ़ने लगी. स्मार्ट फोन के आते ही मैं ने पुराने फोन को रिटायर कर दिया था. 10 सालों से वह फोन मेरी अलमारी के कोने में पड़ा था. मैं ने उसे निकाल कर उस में नई बैटरी डाली और बैटरी चार्ज कर उसे औन किया. फिर उन्हीं मैसेज को पढ़ने लगी. उत्सुकता उस वक्त भी रहती थी और अब भी होने लगी कि ये मैसेज मुझे भेजे किस ने थे?

जरूर अंकित इस बारे में कुछ जानता होगा, तभी बात कर रहा था. फिर मैं ने तय किया कि कल कुरेदकुरेद कर उस से यह बात जरूर उगलवाऊंगी. पर अगले 2-3 दिनों तक अंकित नहीं आया. मैं परेशान थी. रोज बेसब्री से उस का इंतजार करती. चौथे दिन वह दिखा.मुझ से रहा नहीं गया, तो मैं उस के पास चली गई. फिर पूछा, ‘‘अंकित, इतने दिन कहां थे?’’

वह चौंका. मुझे करीब देख कर थोड़ा सकपकाया, फिर बोला, ‘‘तबीयत ठीक नहीं थी.’’

‘‘तबीयत तो मेरी भी कुछ महीनों से ठीक नहीं रहती.’’

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’ उस ने चिंतित स्वर में पूछा.

‘‘बस किडनी में कुछ प्रौब्लम है.’’

‘‘अच्छा, तभी आप के चेहरे पर थकान और कमजोरी सी नजर आती है. मैं सोच भी रहा था कि पहले जैसी रौनक चेहरे पर नहीं दिखती.’’

‘‘हां, दवा जो खा रही हूं,’’ मैं ने कहा.

फिर सहज ही मुझे मैसेज वाली बात याद आई. मैं ने पूछा, ‘‘अच्छा अंकित, यह बताओ कि वे मैसेज कौन भेजता था मुझे? क्या तुम जानते हो उसे?’’

वह मेरी तरफ एकटक देखते हुए बोला, ‘‘हां, असल में मेरा एक दोस्त था. बहुत प्यार करता था आप से पर कभी कह नहीं पाया. और फिर जानता भी था कि आप की जिंदगी में कोई और है, इसलिए कभी मिलने भी नहीं आया.’’

‘‘हूं,’’ मैं ने लंबी सांस ली, ‘‘अच्छा, अब कहां है तुम्हारा वह दोस्त?’’

वह मुसकराया, ‘‘अब निधि वह इस दुनिया की भीड़ में कहीं खो चुका है और फिर आप भी तो अपनी जिंदगी में खुश हैं. आप को परेशान करने वह कभी नहीं आएगा.’’

‘‘यह सही बात है अंकित, पर मुझे यह जानने का हक तो है कि वह कौन है और उस का नाम क्या है’’

‘‘वक्त आया तो मैं उसे आप से मिलवाने जरूर लाऊंगा, मगर फिलहाल आप अपनी जिंदगी में खुश रहिए.’’

मैं अंकित को देखती रह गई कि यह इस तरह की बातें भी कर सकता है. मैं मुसकरा उठी. क्लास खत्म होते ही अंकित मेरे पास आया और औटो तक मुझे छोड़ कर चला गया. उस शाम तबीयत ज्यादा बिगड़ गई. 2-3 दिन मैं ने पूरा आराम किया. चौथे दिन क्लास के लिए निकली तो बड़ी बेटी भी साथ हो ली. उस की छुट्टी थी. उसी रास्ते उसे दोस्त के यहां जाना था. इंस्टिट्यूट के बाहर ही अंकित दिख गया. मैं ने अपनी बेटी का उस से परिचय कराते हुए बेटी से कहा, ‘‘बेटा, ये हैं आप के अंकित अंकल.’’

तभी अंकित ने बैग से चौकलेट निकाला और फिर बेटी को देते हुए बोला, ‘‘बेटा, देखो अंकल आप के लिए क्या लाए हैं.’’

‘‘थैंक्यू अंकल,’’ उस ने खुशी से चौकलेट लेते हुए कहा, ‘‘अंकल, आप को कैसे पता चला कि मैं आने वाली हूं?’’

‘‘अरे बेटा, यह सब तो महसूस करने की बात है. मुझे लग रहा था कि आज तुम मम्मी के साथ आओगी.’’

वह मुसकरा उठी. फिर हम दोनों को बायबाय कह कर अपने दोस्त के घर चली गई. हम अपनी क्लास में चले गए.

अंकित अब मुझे काफी भला लगने लगा था. किसी को करीब से जानने के बाद ही उस की असलियत समझ में आती है. अंकित भी अब मुझे एक दोस्त की तरह ट्रीट करने लगा, मगर हमारी बातचीत और मुलाकातें सीमित ही रहीं.

इधर कुछ दिनों से मेरी तबीयत ज्यादा खराब रहने लगी थी. फिर एक दिन अचानक मुझे हौस्पिटल में दाखिल होना पड़ा. सभी जांचें हुईं. पता चला कि मेरी एक किडनी बिलकुल खराब हो गई है. दूसरी तो पहले ही बहुत वीक हो गई थी, इसलिए अब नई किडनी की जरूरत थी. मगर मुझ से मैच करती किडनी मिल नहीं रही थी. सब परेशान थे. डाक्टर भी प्रयास में लगे थे.

एक दिन मेरे फोन पर अंकित की काल आई. उस ने मेरे इतने दिनों से क्लास में न आने पर हालचाल पूछने के लिए फोन किया था. फिर पूरी बात जान उस ने हौस्पिटल का पता लिया. मुझे लगा कि वह मुझ से मिलने आएगा, मगर वह नहीं आया. सारे रिश्तेदार, मित्र मुझ से मिलने आए थे. एक उम्मीद थी कि वह भी आएगा. मगर फिर सोचा कि हमारे बीच कोई ऐसी दोस्ती तो थी नहीं. बस एकदूसरे से पूर्वपरिचित थी, इसलिए थोड़ीबहुत बातचीत हो जाती थी. ऐसे में यह अपेक्षा करना कि वह आएगा, मेरी ही गलती थी.

समय के साथ मेरी तबीयत और बिगड़ती गई. किडनी का इंतजाम नहीं हो पा रहा था. फिर एक दिन पता चला कि किडनी डोनर मिल गया है. मुझे नई किडनी लगा दी गई. सर्जरी के बाद कुछ दिन मैं हौस्पिटल में ही रही. थोड़ी ठीक हुई तो घर भेज दिया गया. फ्रैंच क्लासेज पूरी तरह छूट गई थीं. सोचा एक दफा अंकित से फोन कर के पूछूं कि क्लास और कितने दिन चलेंगी. फिर यह सोच कर कि वह तो मुझे देखने तक नहीं आया, मैं भला उसे फोन क्यों करूं, अपना विचार बदल दिया.

समय बीतता गया. अब मैं पहले से काफी ठीक थी. फिर भी पूरे आराम की हिदायत थी.

एक दिन शाम को अजीत मेरे पास बैठे हुए थे कि तभी फ्रैंच क्लासेज का जिक्र हुआ. अजीत ने सहसा ही मुझ से पूछा, ‘‘क्या अंकित तुम्हारा गहरा दोस्त था? क्या रिश्ता है तुम्हारा उस से?’’

‘‘आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं?’’ मैं ने चौंकते हुए कहा.

‘‘अब ऐसे तो कोई अपनी किडनी नहीं देता न. किडनी डोनर और कोई नहीं, अंकित नाम का व्यक्ति था. उस ने मुझे बताया कि वह तुम्हारे साथ फ्रैंच क्लास में जाता है और तुम्हें अपनी एक किडनी देना चाहता है. तभी से यह बात मुझे बेचैन किए हुए है. बस इसलिए पूछ लिया.’’

अजीत की आंखों में शक साफ नजर आ रहा था. मैं अंदर तक व्यथित हो गई, ‘‘अंकित सचमुच केवल क्लासफैलो था और कुछ नहीं.’’

‘‘चलो, यदि ऐसा है, तो अच्छा वरना अब क्या कहूं,’’ कह कर वे चले गए. पर उन का यह व्यवहार मुझे अंदर तक बेध गया कि क्या मुझे इतनी भी समझ नहीं कि क्या गलत है और क्या सही? किसी के साथ भी मेरा नाम जोड़ दिया जाए.मैं बहुत देर तक परेशान सी बैठी रही. कुछ अजीब भी लग रहा था. आखिर उस ने मुझे किडनी डोनेट की क्यों? दूसरी तरफ मुझ से मिलने भी नहीं आया. बात करनी होगी, सोचते हुए मैं ने अंकित का फोन मिलाया, मगर उस ने फोन काट दिया. मैं और ज्यादा चिढ़ गई. फोन पटक कर सिर पकड़ कर बैठ गई.

तभी अंकित का मैसेज आया, ‘‘मुझे माफ कर देना निधि. मैं आप से बिना मिले चला आया. कहा था न मैं ने कि दीवानों को अपने प्यार की खातिर कितनी भी तकलीफ सहनी मंजूर होती है. मगर वे अपनी मुहब्बत की आंखों में तकलीफ नहीं सह सकते, इसलिए मिलने नहीं आया.’’

मैं हैरान सी उस का यह मैसेज पढ़ कर समझने का प्रयास करने लगी कि वह कहना क्या चाहता है. मगर तभी उस का दूसरा मैसेज आ गया, ‘‘आप से वादा किया था न मैं ने कि उस मैसेज भेजने वाले का नाम बताऊंगा. दरअसल, मैं ही आप को मैसेज भेजा करता था. मैं आप से बहुत प्यार करता हूं. आप जानती हैं न कि इनसान जिस से प्यार करता है उस के आगे बहुत कमजोर महसूस करने लगता है. बस यही समस्या है मेरी. एक बार फिर आप से बहुत दूर जा रहा हूं. अब बुढ़ापे में ही मुलाकात करने आऊंगा. पर उम्मीद करता हूं, इस दफा आप मेरा नाम नहीं भूलेंगी, गुडबाय.’’

अंकित का यह मैसेज पढ़ कर मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं मुसकराऊं या रोऊं. अंदर तक एक दर्द मेरे दिल को बेध गया था. सोच रही थी, मेरे लिए ज्यादा गहरा प्यार किस का है, अजीत का, जिन्हें मैं ने अपना सब कुछ दे दिया फिर भी वे मुझ पर शक करने से नहीं चूके या फिर अंकित का, जिसे मैं ने अपना एक पल भी नहीं दिया, मगर उस ने आजीवन मेरी खुशी चाही.

‘अनुपमा’ फेम वनराज ने क्यों छोड़ा शो ? औफ स्क्रीन भी रुपाली और सुधांशु के नहीं थे अच्छे रिश्ते!

फेमस शो ‘अनुपमा’ को सभी उम्र के लोगों का प्यार मिला है. इस शो में सिर्फ रुपाली गांगुली ही नहीं बल्कि एकएक किरदार ने दर्शकों के दिलों में खास जगह बनाई है. इस बीच इस शो में वनराज का रोल प्ले करने वाले सुधांशु पांडे को लेकर एक खबर आ रही है कि उन्होंने इस शो को छोड़ दिया है.

इंस्टाग्राम पर सुर्खियों में खबर-

सुधांशु पांडे ने शो छोड़ने की खबर इंस्टाग्राम पर लाइव आकर दी. इस खबर के बाद से ही लोगों में बेचैनी बढ़ गई, उनकी पोस्ट पर यूजर्स रिएक्शन दे रहे हैं और वापस शो में आने के लिए कह रहे हैं. वहीं, इन सबके बीच सुधांशु और ‘अनुपमा’ सीरियल के निर्माता राजन शाही ने एकदूसरे को इंस्टाग्राम पर अनफौलो भी कर दिया है. जिसके बाद फैंस को चिंता हो रही है कि उनदोनों के बीच आखिर ऐसा हुआ क्या है.

सुधांशु पांडे का इंस्टाग्राम पर बयान

सुधांशु पांडे ने अपने इंस्टाग्राम पर लाइव कहा, उनका ‘बैंड ऑफ बौयज’ वापस आ गया है और उसका पहला वीडियो सौंग जारी कर दिया गया है. हमारा पूरा एल्बम रिलीज हो चुका है, जिसमें कुल 5 सौंग है. उनको बहुत सारा प्यार मिल रहा है. मैं चाहता हूं आप सारे सौंग्स को बहुत सारा प्यार देते रहे. हमारे सौंग्स आपको बहुत पसंद आएंगे. आपको हम लोग अपना वो रूप दिखाएंगे, जिसके बारे में आपने कभी नहीं सोचा होगा.”

एकदूसरे को किया अनफौलो

रिपोर्ट के मुताबिक सुधांशु पांडे और अनुपमा के निर्माता राजन शाही ने इंस्टाग्राम पर एकदूसरे को अनफौलो कर दिया है. बताया जा रहा है कि पहले राजन ने सुधांशु को उनके बर्थडे पर विश भी नहीं किया था.

फैंस का कयास

इन सब खबरों के मुताबिक सुधांशु के फैंस ये कयास लगा रहे हैं कि उनके बीच कुछ तो अनबन हुई है
हालांकि अभी कुछ भी कंफर्म नहीं है कि आखिर क्या मामला है, कुछ लोग कयास लगा रहे हैं कि इसकी वजह रुपाली गांगुली हैं, क्योंकि दोनों की सेट पर बनती नहीं थी. साल 2022 में सुधांशु पांडे और रुपाली गांगुली के बीच अनबन की खबरें भी सुर्खियों में रहीं. कहा गया कि दोनों कलाकार एकदूसरे से बात नहीं कर रहे हैं. अब ये कहा जा रहा है कि सुधांशु ने प्रोड्यूसर राजन शाही को इंस्टाग्राम से अनफौलो कर दिया है. यानी साफ है कि दोनों के बीच अनबन है. इस बारे में तो राजन शाही और सुधांशु ही सही बता सकते हैं की बात आखिर है क्या.

सुधांशु की शो में जर्नी

सुधांशु पांडे ने फेमस शो’अनुपमा’ में 4 सालों तक काम किया. अनुपमा के पहले पति के ग्रे शेड कैरेक्टर में सुधांशु पांडे के काम को लोगों ने काफी पसंद किया और उन्होंने फैंस का दिल जीत लिया. सुधांशु ने अपने फैंस का धन्यवाद किया, जिन्होंने उन्हें इन चार सालों में इतना प्यार दिया. आपको बता दें 2 साल पहले सुधांशु की तरह ही पारस कलनावतऔर आशीष मेहरोत्रा ने भी अचानक शो छोड़ दिया था.

‘चार बीवियों के साथ चक्कर चलाएंगे कपिल शर्मा’ फिर बौलीवुड में कमबैक

स्टैंड अप कौमेडियन कपिल शर्मा जो अपने कौमेडी अंदाज से देशविदेश में सबको हंसाहंसा कर करोड़ों रुपए कमा चुके हैं और आज के समय में आलीशान जीवन जी रहे हैं. उसी कपिल शर्मा का एक्टर बनने का भी सपना है ,जो वह अभी तक पूरा नहीं कर पाए हैं. 9 साल पहले अपनी पहली अब्बास मस्तान निर्देशित फिल्म किस किसको प्यार करूं, जिसमे वह बतौर हीरो तीनतीन हीरोइन के साथ नजर आए थे . और इस फिल्म ने 43 करोड़ का बिजनेस करके एवरेज सफलता भी हासिल की थी.

बावजूद इसके कपिल शर्मा बतौर हीरो कामयाब नहीं हो पाए, लेकिन अपनी कौमेडी के जरिए कपिल शर्मा ने पूरी फिल्म इंडस्ट्री वालों के दिल में अपनी खास जगह जरूर बना ली . जिसके चलते सलमान शाहरूख से लेकर अक्षय अमिताभ बच्चन धर्मेंद्र तक हर कोई उनकी कौमेडी का कायल है.

गौरतलब है अपनी इसी लोकप्रियता के चलते एक बार फिर कपिल शर्मा अब्बास मस्तान के साथ ही किस किसको प्यार करूं पार्ट 2 में नजर आएंगे . फिल्म के स्क्रिप्ट पर जोरशोर से काम चल रहा है और इसकी शूटिंग साल के आखिरी महीने से शुरू होने वाली है. क्योंकि दर्शकों ने कपिल को हमेशा हंसते हंसाते हुए ही पसंद किया है . इसलिए इस फिल्म का जौनर कौमेडी ही होगा.

कपिल शर्मा ने इससे पहले नंदिता दास निर्देशित झिंगाटो फिल्म भी की थी जिसमे उनका फूड डिलवरी ब्वाय का सीरियस रोल था जो दर्शकों ने पसंद नहीं किया और फिल्म फ्लौप रही . इसके अलावा हाल ही में प्रदर्शित फिल्म क्रू में तब्बू के साथ दोस्ती खाते में कपिल शर्मा ने बतौर मेहमान कलाकार तब्बू के पति का छोटासा रोल किया था.

इतना ही नहीं इससे पहले किसकिस को प्यार करूं की सफलता के बाद कपिल शर्मा ने बतौर निर्माता और एक्टर फिल्म फिरंगी का निर्माण भी किया था. इस फिल्म की अपार असफलता के बाद कपिल शर्मा को बतौर निर्माता भारी नुकसान उठाना पड़ा था. इसके बाद कपिल शर्मा ने फिल्मों में काम करने की कोशिश पर ब्रेक लगाते हुए टीवी पर अपना ध्यान केंद्रित कर दिया था. फिलहाल कपिल शर्मा अपने कौमेडी शो के जरिए नेटफ्लिक्स पर धमाल मचा रहे हैं. बतौर हीरो उनकी पहली फिल्म किस किसको प्यार करूं की सीक्वल को दर्शकों का कितना प्यार मिलेगा यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा.

प्यार दोबारा भी होता

 कहानी- आशा सर्राफ

सागरशांत गहरी सोच में डूबा नजर आता. मगर आज किसी ने कंकड़ फेंक लहरों को हिला दिया था. ध्यान भंग था सागर का. कुछ ऐसा ही राजीव के साथ भी हो रहा था. हां, उस का दिल भी सागर की तरह था और इस दिल में सिर्फ एक मूर्ति बसी थी. किसी अन्य का खयाल दूरदूर तक न था. सिर्फ वह और संजना. दुनिया में रहते हुए भी दुनिया से बेखबर. वह बेहद प्यार करता था अपनी पत्नी को. संजना को देख कर उसे लगा था कि एक वही है जिसे वह ताउम्र प्यार कर सकता है.

कहने को तो अरेंज्ड मैरिज थी पर लगता जैसे कई जन्मों से एकदूसरे को जानते हैं. संजना को देख कर ही राजीव का दिल धड़का. दिल

भी अजीब है. हर चीज का संकेत पहले ही दे देता है.

3 साल शादी को हो गए थे. कोई संतान नहीं हुई. फिर भी उसे कोई गम नहीं था. उस के लिए संजना ही संपूर्ण थी. कितने शहर दोनों घूमे. संजना के बगैर राजीव को अपना वजूद ही नजर नहीं आता. संजना के गर्भवती होने पर कितना खुश था वह… जैसे उस का संसार पूर्ण होने वाला है. मगर कुदरत को कुछ और ही मंजूर था. बेटी को जन्म देते समय अधिक रक्तस्राव के कारण संजना का निधन हो गया. उस की मौत ने उसे अंदर तक हिला दिया. घर की हर वस्तु पर

संजना की परछाईं नजर आती. परछाईं तो उस की स्वयं की बेटी थी. जब भी वह बेटी का चेहरा देखता दिल काबू में न रहता. दम घुटने लगा उस का. वह नहीं रह पाया. न ही बेटी को देख मोह हुआ. उस की मां ने कितना सम झाया पर वह नहीं माना. उस ने अपना ट्रांसफर बैंगलुरु से मुंबई करवा लिया.

मांपिताजी पोती के आने से खुश थे. जब भी वह बैंगलुरु जाता 1 दिन से अधिक न रुक पाता. उस शहर, उस घर में उस का दम घुटता. उसे लगता अगर वह यहां और रहा तो पागल हो जाएगा.

मुंबई में किराए पर फ्लैट ले कर अकेले रहने लगा. अब उस का दिल सूख चुका था. मौसम बदले, महीने बदले, वह यंत्रवत अपना कार्य करता. पर आज इस दिल में हलचल मची थी.

‘‘नहीं, यह नहीं हो सकता,’’ वह बुदबुदाने लगा.

दिल एक बार ही धड़कता है जो उस का धड़क चुका. फिर आज क्यों? क्यों ऐसी बेचैनी? क्या वह किसी के प्रति आकर्षित हो रहा है? नहीं, यह संजना के प्रति अन्याय होगा. पर दिल नहीं सुन रहा था. उस ने स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि कभी वह ऐसा महसूस करेगा. क्यों वह बेचैन हो रहा है? क्यों उसे चिंता हो रही है? एक पड़ोसी की दूसरे पड़ोसी की चिंता हो सकती है, यह स्वाभाविक है. इस से अधिक और कुछ नहीं. कुछ पलों के लिए  झटकता पर फिर उस का चेहरा सामने आने लगता.

6 महीने पहले राजीव के पड़ोस में एक औरत रहने आई थी. लड़की नहीं कह सकते,

क्योंकि 30 के ऊपर की लग रही थी. एक फ्लोर में 2 ही फ्लैट थे. घर में नैटवर्क सही न होने के कारण वह बाहर फोन से बातें कर रहा था. पड़ोस में वह औरत अपने सामान को ठीक से रखवा रही थी. हलकी सी नजर राजीव ने डाली थी उस पर इस के अलावा कुछ नहीं.

औफिस जातेआते प्राय: रोज ही टकरा जाते. लिफ्ट में अकेले साथ

जाते हुए कभीकभी राजीव को कुछ महसूस होता. यों तो हजारों के साथ लिफ्ट में आताजाता पर इस के होने से कुछ आकर्षण महसूस करता. शायद अकेले होने के कारण या फिर शरीर की अपनी जरूरत होने के कारण.

एक दिन लिफ्ट से निकलते वक्त उस औरत का पांव मुड़ गया. वह गिरने ही वाली थी कि राजीव ने उसे पकड़ लिया. बांह पकड़ उसे लिफ्ट के बाहर रखी कुरसी पर बैठा दिया.

‘‘क्या हुआ?’’ पूछते हुए उस ने पांव को हाथ लगा कर देखना चाहा पर उस औरत ने  झटके से पांव खींच लिया.

‘‘नहीं, ठीक है… थोड़ी देर में ठीक हो जाएगा,’’ कहते हुए उस ने पांव को आगेपीछे किया.

‘‘कुछ मदद चाहिए?’’ राजीव ने पूछा.

‘‘नहीं, धन्यवाद. संभाल लूंगी.’’

राजीव भी औफिस के लिए निकल गया. मगर उस की बांह पकड़ना… किसी के इतने करीब आना… उस का दिल धड़का गया.

2-3 दिन वह लंगड़ा कर ही चलती रही थी. अब हलकी सी मुसकराहट का आदानप्रदान होने लगा. कभीकभी 1-2 बातें भी होने लगीं. उस की मुसकराहट अब राजीव के दिल में जगह बनाने लगी थी.

2-3 दिन से वह दिखाई नहीं दे रही थी. यही बेचैनी उस के दिल में तूफान मचा रही थी. वह अपने ही घर में चहलकदमी करने लगा. कभी दरवाजा खोलता, तो कभी बंद करता. पता नहीं कौन है? क्या करती है? कुछ भी जानकारी नहीं थी. नजर आता तो सिर्फ उस का चेहरा.

तभी दरवाजे की घंटी बजी. उस ने दरवाजा खोला तो सामने कामवाली थी.

‘‘साहब, जरा मेम साहब को देखो न… बहुत बीमार हैं,’’ वह हड़बड़ाते हुए बोली.

राजीव घबराते हुए उस के पास पहुंचा. माथे पर हाथ रखा तो तप रहा था.

‘‘किसी को दिखाया?’’ चिंतित स्वर में राजीव ने पूछा.

उस ने हलके से न में सिर हिला दिया.

राजीव ने डाक्टर को फोन कर बुलाया और फिर उस के माथे पर पानी की पट्टियां लगाता रहा. कामवाली भी जा चुकी थी. डाक्टर ने आ कर दवा लिखी. दवा खाने से उस का बुखार कम होने लगा.

दूसरे दिन थोड़ा स्वस्थ देख राजीव ने पूछा, ‘‘आप के घर से किसी को बुलाना है तो कह दीजिए मैं कौल कर देता हूं?’’

उस ने न में हलके से सिर हिलाया.

‘‘कोई रिश्तेदार है यहां पर?’’

उस ने फिर न में सिर हिलाया.

उस के खानेपीने की, दवा देने की जिम्मेदारी राजीव ने खुद पर ले ली. वह काफी सकुचा रही थी पर स्वस्थ न होने के कारण कुछ बोल नहीं पाई.

2-3 दिन बाद स्वस्थ होने पर वह आभार प्रकट करने लगी, ‘‘माफ कीजिए, मेरे कारण आप को बहुत कष्ट हुआ.’’

‘‘माफी किस बात की? पड़ोसी ही पड़ोसी के काम आता है. आइए बैठिए,’’ अंदर आने का इशारा करते हुए राजीव बोला.

‘‘नहीं, आज नहीं. फिर कभी. अभी औफिस जाना है,’’ कह वह औफिस के लिए निकलने लगी.

‘‘रुकिए मैं भी आ रहा हूं,’’ कहते हुए राजीव ने भी अपना बैग उठा लिया.

वह मुसकराते हुए लिफ्ट का बटन दबाने लगी.

अब अकसर दोनों आतेजाते बातें करने लगे. कभीकभी डिनर भी साथ कर लेते. दोनों में दोस्ती हो गई. पर अभी भी वे एकदूसरे के निजी जीवन से अनजान थे.

घर से बाहर दूरदूर तक पहाड़ दिखाई देते थे. हरियाली भी खूब थी.

राजीव के दोस्त प्राय: कहते कि तुम कितनी अच्छी जगह रहते हो. पर राजीव को कभी महसूस ही नहीं होता था. उसे हरियाली कभी दिखाई ही नहीं दी. दिल सूना होने से सब सूना और बेजान ही दिखाई देता है. अब कुछ महीनों से यह हरियाली की  झलक दिखाई दे रही थी. बारिश ने आ कर और अधिक हराभरा कर दिया था.

एक शाम दोनों डिनर पर गए.

‘‘मैं अभी तक आप का नाम ही नहीं जान पाया,’’ कुरसी पर बैठते हुए राजीव ने कहा.

‘‘रोशनी,’’ मुसकराते हुए वह बोली.

‘‘अच्छा तो इसीलिए यह रैस्टोरैंट जगमगा रहा है,’’ जाने कितने महीनों बाद राजीव ने चुहलबाजी की थी.

‘‘जगमगाहट देख कर पेट नहीं भरेगा. कुछ और्डर कीजिए,’’ रोशनी मुसकराते हुए बोली.

राजीव ने खाने का और्डर किया.

‘‘मैं आप के बारे में कुछ नहीं जानता. मगर आप बताना चाहें तो मैं सुनना चाहूंगा,’’ राजीव खाना खाते हुए बोला.

रोशनी नजरें नीचे कर  झेंपने लगी.

‘‘ठीक है आप न बताना चाहें तो कोई बात नहीं.’’

‘‘नहीं ऐसी कोई बात नहीं. इतनी दोस्ती तो है कि मैं बता सकूं. बाहर बताती हूं,’’ नजरें अभी भी उस की  झुकी हुई थीं.

खाना खाने के बाद दोनों बाहर टहलने लगे. टहलतेटहलते स्वयं को संभाल रोशनी कहने लगी, ‘‘मैं एमबीए करने लगी. वह भी मु झ से प्यार करता था. हम दोनों लिवइन में रहने लगे. मेरे परिवार वालों ने बहुत सम झाया, डांटा भी पर मैं उस के बिना नहीं रह सकती थी. मम्मीपापा ने कहा शादी कर के साथ रहो. पर मैं नहीं मानी. मु झे लगता था जब प्यार करते हैं तो शादी जैसा बंधन क्यों और फिर उस वक्त हम शादी कर भी नहीं सकते थे. गुस्से में आ कर मेरे परिवार वालों ने रिश्ता तोड़ लिया. मु झे जौब मिल गई थी. उसे भी जौब मिल गई पर दूसरे शहर में.हम लोग कोशिश कर रहे थे कि एक ही शहर में मिल जाए.

‘‘तब तक कभी वह आ जाता, कभी मैं चली जाती. 1 साल बाद वह प्राय: आने में आनाकानी करने लगा. मैं ही कभीकभी चली जाती. वह प्राय: उखड़ाउखड़ा रहता. बहुत

जोर देने पर उस ने कहा कि अब उसे किसी और से प्यार हो गया है. क्या ऐसा हो सकता है?

प्यार तो एक बार ही होता है न? दिल एक बार ही धड़कता है न?’’ कहते हुए वह फफक पड़ी.

राजीव ने उसे बांह से पकड़ बैंच पर बैठाया.

‘‘नहीं, आप बताइए प्यार दोबारा हो सकता है?’’ उस ने रोते हुए जिज्ञासा भरी नजरों से राजीव की तरफ देखा.

राजीव की नजरें  झुक गईं.

‘‘मतलब? तब पहले वाला प्यार नहीं था. सिर्फ लगाव था?’’ राजीव को  झुकी नजरें देख रोशनी बोली.

‘‘नहीं वह भी प्यार था पर…’’

‘‘पर… बदल गया?’’

‘‘बदला नहीं हो सकता है फिर से…’’

बात बीच में छोड़ राजीव खामोश हो गया.

‘‘आप कहना क्या चाहते हैं? साफसाफ कहिए,’’ रोशनी के आंसू सूख चुके थे.

‘‘मैं भी यही सम झता था,’’ गहरी सांस छोड़ते हुए राजीव बोला, ‘‘प्यार एक बार ही होता है… दिल एक बार ही धड़कता है. मैं अपनी पत्नी को बेहद चाहता था पर बेटी होने के दौरान उस की मृत्यु हो गई. ऐसा लगता था उस के अलावा मेरा दिल अब किसी के लिए नहीं धड़केगा पर जब…’’ कहतेकहते अचानक चुप

हो गया.

‘‘पर जब क्या?’’ जिज्ञासाभरी नजरों से रोशनी ने राजीव की तरफ देखा.

राजीव ने नजरें घुमा लीं.

‘‘क्या कोई और मिल गई?’’ बड़ीबड़ी आंखों से घूरते हुए वह बोली.

राजीव ने एक गहरी नजर रोशनी पर डाली और फिर कहा, ‘‘चलो, चलते हैं.’’

‘‘नहीं पहले बात खत्म करो,’’ कह रोशनी ने राजीव का हाथ कस कर पकड़ लिया.

‘‘चलो चलते हैं.’’

‘‘नहीं पहले बताओ.’’

‘‘क्या बताऊं. हां… होने लगा प्यार तुम से,’’ राजीव ने उत्तेजित हो कर कहा. आंसू निकल आए थे उस की आंखों से.

‘‘नहीं, यह नहीं हो सकता,’’ रोशनी के हाथ ढीले पड़ गए.

‘‘यह जरूरी नहीं कि जो मैं महसूस करता हूं तुम भी करो. इस सब से हमारी दोस्ती पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा,’’ कहते हुए उस ने गाड़ी स्टार्ट की.

दूसरे दिन दोनों ने औपचारिक बातें कीं. स्वयं को संयत कर लिया था दोनों ने.

2 दिन के दौरे पर रोशनी दूसरे शहर गई थी.

मां की तबीयत खराब होने की खबर सुन राजीव भी बैंगलुरु चला गया. इस बार अपनी बेटी को देख वह मुसकरा उठा. जाने क्यों विरक्ति नहीं लग रही थी. दिल बहुत शांत था. संजना की यादें सता नहीं रही थीं, बल्कि यह एहसास दिला रही थीं कि उस ने जितना भी जीवन जीया प्यार से जीया. संजना वजूद नहीं एक हिस्सा लग रही थी, जिसे वह हमेशा बना कर रखेगा.

मां भी राजीव को देख आश्चर्यचकित थीं. उन्हें लगा जैसे पहले वाला राजीव उन्हें वापस मिल गया है. बेटे को प्रसन्न व शांत देख वे जल्द ही स्वस्थ हो गईं. पहली बार वह अपनी बेटी को बाहर घुमाने ले गया. जैसे बेटी से परिचय ही अभी हुआ हो. वहीं स्कूल में दाखिला भी करा दिया. 1 सप्ताह वहां रह वह मुंबई लौट आया.

सुबह जब राजीव नहा रहा था तब बारबार दरवाजे की घंटी बज रही थी.

‘‘कौन है जो इतनी बेचैनी से घंटी बजाए जा रहा है?’’ बाथ गाउन पहने वह बाहर निकला.

दरवाजा खोलते ही रोशनी तेजी से अंदर आ कर चीखने लगी, ‘‘कहां गए थे आप? बता कर भी नहीं गए? फोन नंबर भी नहीं दिया… आप को पता है मेरी क्या हालत हुई? मैं सोचसोच कर मरे जा रही थी… कहीं आप भी मु झे छोड़ कर तो नहीं चले गए? यों तो कहते हो प्यार करने लगा और ऐसे कोई परवाह ही नहीं,’’ और कहतेकहते वह रो पड़ी.

मुसकराते हुए राजीव ने रोशनी को बांहों में ले लिया. अब रोशनी को भी एहसास हो चुका था कि प्यार दोबारा भी होता है. ‘‘इस बार अपनी बेटी को देख वह मुसकरा उठा.

जाने क्यों विरक्ति नहीं लग रही थी. दिल बहुत शांत लग रहा था…’’

बच्चे के व्यवहार में बदलाव का कारण कहीं कार्टून कैरेक्टर तो नहीं ?

रोहन की मां रीना आज खुद को कुसूरवार मानती है क्योंकि जब रिहान छोटा था तो वह उसे एक जगह बैठाने के चक्कर में कार्टून चैनल लगा कर बैठा दिया करती थी, जिस से वह आराम से अपना घर का काम कर ले.

वह बैठा कार्टून देखता रहता.लेकिन धीरेधीरे यह अब उस की आदतों में शुमार हो गया और अब रिहान इतना ज्यादा चिङचिङा व जिद्दी हो गया कि रीना के लिए उसे पालना किसी चुनौती से कम नहीं रहा।

रिहान स्वभाव से बहुत ही चंचल है लेकिन थोड़ा शरारती भी है.उसे कार्टून देखना बहुत पसंद है.उस का पसंदीदा कार्टून सिंघम है.और वह भी इतना पसंद कि हर वक्त उस की कौपी करता है.कभी उस की चाल की, कभी बोलने की, तो कभी उस की तरह स्टंट करने की, जिस से उस की मां राखी बहुत ही परेशान रहती.

कभी स्कूल से शिकायतों का भंडार सुनने को मिलता तो कभी आएदिन स्टंट के चक्कर में चोट खाता.वह यही सोचती की कैसे इस की इन आदतों को छुड़वाए.

देखा जाए तो इस का कारण रीना खुद है क्योंकि पहले तो वह खुद उस को कार्टून देखने को कहती, जिस से वह मारधाङ वाले कार्टून ज्यादा देखता.

हद तो तब होती जब रीना खुद उस के साथ बैठ कर टीवी देखती.इसलिए जरूरी है कि समय रहते मातापिता ऐसी गलती न करें व बताई गई हमारी इन बातों पर ध्यान दें जिस से आप अपने बच्चे के स्वभाव में परिवर्तन ला सकते हैं :

नकारात्मक प्रभाव

आजकल बच्चे कार्टून चैनल की गिरफ्त में आ कर बचपन में खेलनेकूदने की गतिविधियों से अपरिचित होते जा रहे हैं जिस कारण अनेक बीमारियों का शिकार भी होने लगे हैं लेकिन जिस तरह सिक्के के दो पहलू होते हैं उसी तरह हर चीज के 2 पहलू होते हैं- सकरात्मक व नकरात्मक प्रभाव.

कार्टून देखने से कल्पनाशक्ति में वृद्धि होती है.वे नईनई चीजें सीखते व आगे की सोचते हैं.साथ ही अकेलेपन व तनाव को दूर कर चेहरे पर मुसकान बिखेरते हैं.कई बार कार्टून की मिमिक्री करकर के ही मिमिक्री की कला सीख जाते हैं, जिस में आगे चल कर वह कैरियर भी बना सकते हैं.लेकिन कई बार बच्चों पर इस के नकरात्मक प्रभाव भी पड़ जाते हैं.

बच्चों के सामने हिंसा वाली फिल्में न देखें

बच्चों के सामने हिंसा भड़काने वाले कोई भी प्रोग्राम न देखें और न ही उन्हें देखने दें क्योंकि बच्चे जैसा देखते हैं वे बहुत जल्दी सीखते हैं.जिस तरह के कार्टून या फिल्म घर के बड़े देखते हैं उसी तरह उन का भी रुझान होने लगता है और अपनी पसंद के करैक्टर को कौपी करने लगते हैं.बातोंबातों में किसी कार्टून करैक्टर की तरह अभद्र भाषा का प्रयोग करने लगें तो जरूरी है कि उसे सही और गलत में फर्क समझाएं व कोशिश करें कि टीवी देखते समय आप उस के पास बैठे हों.ध्यान रखें कि वे किस तरह का कार्टून देख रहा है.टीवी देखने का समय निर्धारित करें.

आप खुद भी किसी की नकल बच्चे के सामने न करें और न ही करने दें. कई बार हम सिर्फ ऐक्टिंग करतेकरते ही कब अपनी आदतों में उसे अपना लेते हैं पता भी नहीं चलता और बाद में ऐसी आदतों को छुड़ा पाना बहुत ही मुश्किल हो जाता है जोकि आप के ओवरआल लुक को प्रभावित करता है.कई बार ये आदतें बड़े होने तक भी नहीं छूटतीं जिस से आत्मविश्वास डगमगा जाता है.

ध्यान रखें

  • जब हम टीवी देखते हैं तो भूल जाते हैं कि बच्चे भी हमारे साथ देख रहे हैं और वे ऐसी चीजों को अपनी दुनिया में अपना लेते हैं जिस से वे भी आक्रोश से भरे कार्टून देखना पसंद करने लगते हैं.
  • अधिकतर बच्चे मारधाङ वाले कार्टून कैरेक्टर को बहुत पसंद करते हैं और उन की तरह फाइट करना चाहते हैं जिस के चलते उन्हें चोट लग जाती है और कभीकभी तो ऐसे स्टंट जानलेवा भी साबित हो जाते हैं.’
  • ऐसे में यदि आप उस का व्यवहार आक्रमक महसूस कर रहे हैं तो उसे कार्टून की दुनिया से निकाल कर हकीकत का सामना कराना अति आवश्यक हो जाता है.ऐसे कार्टून आक्रोश बढ़ाते हैं जोकि कई बार हानिकारक सिद्ध होते हैं और हमारे व्यक्तित्व पर नकरात्मक प्रभाव डालते है.
  • इसलिए बच्चों को न सिर्फ कार्टून बल्कि डिस्कवरी व हिस्ट्रीकल चैनल की तरफ भी रुझान बढ़ाएं।

लड़कियों का जिम जाना है जरूरी , ‘मनचलों की मस्कुलर बौडी से डरने के गए दिन ‘

12 वीं क्लास में पढ़ने वाली काव्या पर जब 2 अनजान मनचलों ने कमैंट पास किया तो उस से रहा नहीं गया. वह उन लड़कों से भिड़ गई और लड़कियों की तरह काव्या उन से डरी नहीं बल्कि उन का डट कर सामना किया. पहले सिर्फ जबानी लड़ाई हुई, फिर बात हाथापाई पर आ गई. काव्या ने भी अपने हाथपैर चलाने शुरू कर दिए. मनचले काव्या की हिम्मत देख कर डर गए और वहां से भाग खड़े हुए.

काव्या का उन मनचलों से न डरने का कारण था उस का आत्मविश्वास. यह आत्मविश्वास उसे जिम जा कर मसल्स बना कर मिला, जहां उस ने जाना कि हर लड़की अपनी लड़ाई खुद लड़ने में सक्षम है, बस उसे अपनी ताकत का एहसास होना चाहिए.

जिस वक्त लड़कियां पार्लर का रुख कर रही थीं उस वक्त काव्या ने जिम को चुना. वह जानती थी कि आज के समय में जिम जाना बेहद जरूरी है. एक ओर जहां देश में महिलाओं के प्रति हिंसा और बलात्कार जैसे मामले दिनबदिन बढ़ रहे हैं वहीं दूसरी ओर महिलाओं को अपनी सुरक्षा खुद ही करनी होगी क्योंकि मणिपुर में हुई महिलाओं के खिलाफ भयानक हिंसा ने यह साबित कर दिया कि महिलाओं की सुरक्षा अब सरकार के हाथ में नहीं. इस घटना ने न सिर्फ सरकार की काररवाई पर सवाल खड़े किए बल्कि उस के अस्तित्व पर भी प्रश्नचिह्न लगा दिया. महिलाओं को यह भी समझ दिया कि उन्हें अपनी रक्षक खुद ही बनना होगा.

अकसर होता यह है कि लड़कियां फैशन के मारे ब्यूटीपार्लर का रुख कर लेती हैं और अपनी शारीरिक ताकत पर बिलकुल भी ध्यान नहीं देती हैं. माना कि खूबसूरती महिलाओं के लिए जरूरी है लेकिन इस से भी कई ज्यादा जरूरी है आप की  शारीरिक ताकत जो आप को हर मुश्किल का सामना करने की हिम्मत और कौन्फिडैंस देती है.

ऐक्सपीरियंस

जिम से जुड़ा अपना ऐक्सपीरियंस बताते हुए मध्य प्रदेश की जिला खेल अधिकारी उमा पटेल कहती हैं हर दिन शाम को औफिस का काम निबटाने के बाद मैं जिम जाती हूं. 2 घंटे व्यायाम करने के बाद स्वयं को चुस्तदुरुस्त रखती हूं. मैं ने  खेल और जिम को ही अपनी हौबी बना लिया है. मैं 2006 से जिम में नियमित समय दे रही हूं. यही वजह है कि आज मेरे नाम कई खिताब हैं. वे कहती हैं कि लगातार मेहनत और जिम जाने के कारण मैं एमपी की स्ट्रौंग वूमन भी बनी हूं.

वहीं स्वास्थ्य विभाग से जुड़ी रोशनी प्रजापति कहती हैं, ‘‘मुझे जिम जाने का बहुत फायदा मिला. जिम में वर्कआउट कर के मैं ने 10 किलोग्राम वजन घटा लिया है. मैं करीब 10 महीने से जिम जा रही हैं. जिम भी हमारे डेली रूटीन में शामिल होना चाहिए. इस के कितने फायदे होते हैं, यह जिम जाने वाले से अच्छा कोई नहीं बता सकता.’’

दुनियाभर में महिलाओं की एक बड़ी आबादी आलोचना के डर से जिम जाने से कतराती है. उन के दिमाग में लगातार कई सवाल घूमते रहते हैं कि क्या वे ठीक से कसरत कर रही हैं या लोग उन्हें घूर रहे हैं या उन्हें बहुत पसीना आ रहा है. जब भी वे जिम में ऐंट्री करती हैं तो उन के दिमाग में लाखों सवालों के जवाब खोजने की चाह होती है.

अगर आप भी उन महिलाओं में से हैं जिन्हें जिम में जाते समय डर लगता है तो आप को चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. इस चिंता में सिर्फ आप अकेली नहीं हैं. एक नए सर्वे के अनुसार, जिमटिमिडेशन यानी जिम जाने का डर यह सोच कर कि हरकोई उन्हें जज कर रहा है, के कारण बहुत सी महिलाएं घर पर ही रहती हैं.

क्या कहता है अध्ययन

आप को यह जान कर हैरानी होगी कि लगभग 65त्न महिलाएं आलोचना के डर से जिम जाने से बचती हैं, जबकि सिर्फ 36त्न पुरुषों पर इस का असर होता है. यह अध्ययन अमेरिका में 1 हजार लोगों पर किया गया था. जिस में लगभग 55त्न महिलाओं को लगता है कि उन्हें पर्याप्त रूप से फिट न दिखने के कारण आलोचना का सामना करना पड़ता है, जबकि 49त्न महिलाएं अपनी वर्कआउट ड्रैस को ले कर चिंतित रहती हैं और 25त्न को स्टीरियोटाइप होने का डर रहता है.

न डरें मस्कुलर बौडी से दें जवाब

इस समाज ने हमेशा लड़कियों को नाजुकता से जोड़ कर देखा है. एक शरमीली लड़की ही एक सोसाइटी को भाती है. जब कभी भी लड़की की छवि दिमाग में बनती है तो वह नाजुकता से भरी होती है. कोई अपने दिमाग में मसल्स वाली लड़की को देख नहीं पाता क्योंकि मसल्स को हमेशा पुरुषों से जोड़ कर देखा गया है. लेकिन अब समय बदल गया है कि जिम में अब हजारों लड़कियां ऐक्सरसाइज कर रही हैं, मसल्स बना रही हैं, बौडी बिल्डर बन रही हैं, जिम ट्रेनर बन रही हैं, जिम में अपना कैरियर बना रही हैं.

ऐसे में लड़कियों को मसल्स बनी बौडी से नहीं डरना चाहिए, बल्कि उन्हें अपनी बौडी को बेहतरीन बनाने के लिए मसल्स के साथसाथ एब्स भी बनाने पर फोकस करना चाहिए. आप के मसल्स आप की मेहनत को प्रदर्शित करते हैं साथ ही ये आप को शारीरिक रूप से स्ट्रौंग और फिट दिखाते हैं.

रही बात बौडी शेमिंग की तो इस का अच्छा उदाहरण सोशल मीडिया पर देखने को मिला जहां फिटनैस कोच ने ट्रोलर्स की जम कर लताड़ लगाई.

क्या है पूरा मामला

दिल्ली की एक फिटनैस कोच, जिसे अपनी मांसपेशियों वाली तसवीर शेयर करने के लिए सोशल मीडिया पर काफी ट्रोल किया गया था, ने एक दमदार पोस्ट के जरीए ट्रोलर्स को जवाब दिया. ऐक्स (अतीत में ट्विटर) यूजर आंचल ने कई अपनी पोस्ट शेयर कहीं, जिन में उन्होंने जिम में छाती की ऐक्सरसाइज के बारे में बात कीं. अपनी पोस्ट में उन्होंने ‘मस्कुलर फोटो’ भी शामिल किया. उन का हौसला बढ़ाने के बजाय ट्रौलर्स उन्हें ट्रोल करने लगे.

सोशल मीडिया पर उन्हें बेरहमी से ट्रोल किया गया और उन के शरीर को ले कर शर्मिंदगी जताई गई, जिस में यूजर्स ने कहा कि उन में स्त्रीत्व की कमी है.

आंचल ने एक पोस्ट के जरीए इन ट्रौलर्स को जवाब दिया. आंचल कोच ने लिखा, ‘‘हाल ही में मुझे मस्कुलर फोटो पोस्ट करने के लिए ऐक्स पर अविश्वसनीय नफरत मिली. मुझे नफरत से कोई ठेस नहीं पहुंची. लेकिन किसी ने भी उस ट्वीट को नहीं पढ़ा जो ज्ञान से भरा था, यह मुझे थोड़ा परेशान कर गया.’’

उन्होंने व्यंग्यात्मक तरीके में कहा, ‘‘मुझे यकीन नहीं होता कि एक लड़की हजारोंहजारों पुरुषों के अहंकार को चकनाचूर कर सकती है और जो महिलाएं मुझे ट्रोल कर रही हैं, वे बेहतर हो जाएं.’’

आप भी अपनी जबान के जरीए समाज के असामाजिक तत्त्वों की बैंड बजा सकती हैं. इसलिए मस्कुलर बौडी से जरा भी न डरें.

क्यों चुनें जिम

आज के दौर में लड़कियों के लिए फिट और स्वस्थ रहना बेहद जरूरी है. अकसर देखा गया है कि कई लड़कियां अपनी सुंदरता को बढ़ाने के लिए पार्लर का सहारा लेती है. हालांकि सुंदरता बाहरी साजसज्जा से ही नहीं बल्कि अंदरूनी सेहत से भी आती है. बाहरी रूप से आप फिट ऐंड फाइन हों लेकिन आप की शारीरिक ताकत इतनी खराब हो कि सीढि़यां चढ़ते ही आप की सांस फूलने लगे. आप मैट्रो या घर की 20 सीढि़यां भी न चल पाएं तो आप की सुंदरता का क्या मतलब? इसलिए अपनेआप को फिट रखने के लिए जिम जाएं न कि पार्लर.

पार्लर में आप अपनेआप को सुंदर बनाने के लिए घंटों का इंतजार करती हैं फिर कहीं जा कर आप का नंबर आता है. फिर बौडी की क्लीनिंग, मेकअप, फैशियल, मैनीक्योर, पैडीक्योर में घंटों का समय बीत जाता है और पैसों की अलग बरबादी. वहीं अगर आप जिम को चुनती हैं तो आप तंदुरुस्त बौडी पाती हैं, जिस में आप के मसल्स बढ़ने लगते हैं.

आप की इम्युनिटी पावर बढ़ती है. आप पहले से ज्यादा ऐक्टिव हो जाती हैं. पहले जिन कामों को करने में आप को घंटों लगते थे अब आप उन्हें मिनटों में खत्म कर लेती हैं. आप की बौडी का ऐक्स्ट्रा फैट बर्न होने लगता है. डबल चिन खत्म होने लगती है. आप पहले से ज्यादा अट्रैक्टिव और कौन्फिडैंट फील करती हैं. लोग आप की फिट बौडी को देख कर आप की बातों में इंट्रैस्ट लेने लगते हैं.

वहीं जब आप डबल चिन और तोंद के साथ बाहर निकलती थीं तो न तो आप से लड़के अट्रैक्ट होते थे और न ही आप कौन्फिडैंट फील कर पाती थीं. दूसरों को स्लिम, फिट देख कर आप कौन्फिडैंस लौ फिल करतीं. लेकिन इस सारी असुरक्षा को खत्म किया आप की जिम की पहल ने. ऐक्सरसाइज आप को फिट रखने के साथसाथ कौन्फिडैंस भी देती है. इसलिए लड़कियों को पार्लर की जगह जिम जाने पर जोर देना चाहिए. उन्हें अपने मसल्स बनाने पर फोकस करना चाहिए न कि अपना समय और पैसा पार्लर पर बरबाद करना चाहिए.

बाल रखें छोटे

जिम में लड़कियों को बाल छोटे रखने से उन्हें ऐक्सरसाइज करने के दौरान आसानी होती है और बाल चेहरे पर नहीं आते, जिस से वे बेहतर तरीके से ऐक्सरसाइज कर सकती हैं. इस के अलावा लंबे बालों से पसीना ज्यादा होता है और उन की संभाल में भी परेशानी होती है. इस के अलावा पसीने से भीगे लंबे बालों में बैक्टीरिया और फंगस का खतरा ज्यादा होता है. वहीं लंबे बाल मशीनों में फंस सकते हैं. छोटे बालों को बारबार ठीक करने की जरूरत नहीं पड़ती है.

मगर अगर आप को डर है कि छोटे बाल होने पर आप पर तंज कसे जाएंगे, स्कूलकालेज में लोग आप के स्त्रीत्व पर सवाल उठाएंगे, आप को ताने देंगे तो हम आप को सलाह देंगे कि आप समाज की इन दकियानूसी बातों में न फंसें. आप अपने लिए वह चुनें जो आप के लिए सुविधाजनक और फायदेमंद हो.

वहीं टीनऐज गर्ल्स जो सोचती हैं कि सिर्फ पढ़ाई करना और खूबसूरती को बनाए रखना ही उन के लिए काफी है तो हम आप को बता दें कि सिर्फ इतना आप के लिए काफी नहीं है. आप को अपनी बौडी को बैलेंस करने के लिए जिम जा कर ऐक्सरसाइज करना भी जरूरी है. इस के कई फायदे हैं.

जिम करना शरीर के साथसाथ दिमाग के लिए भी फायदेमंद है. ऐसी कई रिसर्च हुई हैं जो इस बात को साबित करती हैं कि कार्डियो ऐक्सरसाइज आप के दिमाग की शक्ति बढ़ाने में  मदद करती है. आप का दिगाम एक प्रकार के प्रोटीन का उत्पादन करता है जो आप के फैसले लेने की क्षमता को बढ़ाता है. ऐक्सरसाइज करने से बौडी में प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाती है. इसलिए टीनऐज में आप के लिए पढ़ाई के साथसाथ जिम जाना भी फायदेमंद साबित होता है.

आत्मविश्वास बढ़ाने में है मददगार

जिम में ऐक्सरसाइज करने से आप फिट रहती हैं. जब आप फिट रहती हैं तो खूबसूरत दिखती हैं. आप का फेस ग्लो करता है. इस के अलावा जब आप खूबसूरत दिखती हैं तब आप का आत्मविश्वास अपनेआप बढ़ जाता है. आत्मविश्वास एक ऐसी चीज है जो आप को औरों से बेहतर बनाता है. इसलिए अपनी पढ़ाई के साथसाथ नियमित रूप से जिम जा कर ऐक्सरसाइज भी करें.

जलेबी से लेकर करी तक, जानें इन भारतीय खानों का दिलचस्प इतिहास

मुगलों, तुर्कों से ले कर अंगरेजों और पुर्तगालियों तक सभी ने भारत से बहुत कुछ लिया लेकिन सिर्फ लिया ही, यह कहना जरा बेईमानी हो जाएगा. मुगलों का दिया मुगलई जायका, अंगरेजों की दी चाय की चुसकी और पुर्तगालियों का काजू आज लगभग हर आम भारतीय के रोजमर्रा के स्वाद में चाशनी की तरह घुलमिल चुका है. न सिर्फ भारतीय खाने पर बल्कि उसे बनाने की तकनीक पर भी कई विदेशी पाककलाओं की अमिट छाप है.

आइए, जानते हैं भारतीय खाने से जुड़ी ऐसी ही कुछ दिलचस्प बातें:

इडली: दक्षिण भारतीय खाने का अहम हिस्सा इडली आज लगभग हर भारतीय के नाश्ते की टेबल पर होती है क्योंकि यह सेहतमंद मानी जाती है. मगर क्या यह वाकई भारतीय आविष्कार है? कर्नाटक के फूड साइंटिस्ट और फूड हिस्टोरियन के. टी. आचार्य का मानना है कि इडली इंडोनेशिया की राइस स्टीम्ड डिश केडली का अवतार है. 7वीं से ले कर 12वीं शताब्दी तक इंडोनेशिया के कई हिंदू राजा भारत में छुट्टियां मनाने या फिर दुलहन ढूंढ़ने आया करते थे. राजाओं के साथ उन के कुक भी आते थे. इन राजाओं के साथ आई केडली आज भारत में राइस इडली, रवा इडली और रागी इडली जैसे कई जायकों में मिल जाती है. कुछ फूड हिस्टोरियन का यह भी मानना है कि इडली विशुद्ध भारतीय है लेकिन इसे स्टीम करने की कला इंडोनेशिया से मिली है.

जलेबी: देश के हर छोटेबड़े शहरकसबे के नुक्कड़ वाले हलवाई की दुकान पर दिनभर चाहे जो कुछ बिके लेकिन सुबह और शाम तो जलेबी के ही नाम होती है. सुन कर शायद जलेबी के दीवानों को अच्छा न लगे मगर सच यही है कि जलेबी विशुद्ध भारतीय डिश नहीं. 10वीं शताब्दी की मुहम्मद बिन हसन अल बगदादी की लिखी कुक बुक ‘किताब अल तबीख’ में रमजान के महीने में इफ्तारी में खाई जाने वाली एक डिश जुलबिया के बारे में लिखा है. यही जुलबिया तुर्क और पर्सिया के व्यापारियों के साथ सफर करतेकरते भारत आने के बाद जलेबी बन गई. वैसे इसे भारतीय बताने वाली भी एक किताब है. 16वीं शताब्दी में रघुनाथ की लिखी किताब ‘भोजनकुतूहलम’ में जलेबी बनाने की जो विधि बताई गई है लगभग उसी तरह से आज भी इसे बनाया जाता है. खैर, आप जलेबी का जायका लीजिए इतिहास बाद में देखा जाएगा.

आगरा का पेठा: इस मीठी डिश के पीछे सोच चाहे मुगलों की हो लेकिन इस की पैदाइश भारत के आगरा शहर में ही हुई. किस्साकारों की मानें तो ताजमहल के निर्माण के दौरान लगभग 21 हजार मजदूर काम कर रहे थे जो रोज का खाना खाखा कर बोर होने लगे थे. इसी बीच एक दिन शाहजहां ने ताजमहल के आर्किटैक्ट उस्ताद ईसा से कहा कि कामगरों में जोश भरने के लिए कोई ऐसी डिश तैयार की जाए जो ताजमहल के जैसी नायाब हो. जब यह बात शाही कुक तक पहुंची तो उन्होंने अपनी टीम के साथ मिल कर पेठा का आविष्कार किया. अब यह बात अलग है कि आगरा से ले कर लगभग हर शहर के गलीनुक्कड़ पर यह डिश अपनेअपने तरीके से बनाई और बेची जा रही है.

लड्डू: उत्सव हो या खुशी का मौंका मुंह मीठा कराने के लिए लड्डू को ही प्राथमिकता दी जाती है. इतिहासकारों की मानें तो लड्डू का आविष्कार चौथी सदी ईसा पूर्व वैद्य सुश्रुत ने किया था. सुश्रुत मरीजों को दवा देने के लिए हर्ब्स, बीज और दूसरी औषधियां मिला कर लड्डू बनाते थे. फिर समय के साथ तिलगुड़, मेवा इत्यादि के अलगअलग लड्डू बनने लगे. फिर मौसम के बदलने के अनुसार लड्डू की नईनई रैसिपीज बनने लगीं. यानी लंबे समय तक लड्डू को एक स्वादिष्ठ औषधि के रूप में खाया जाता रहा. माना जाता है कि चोल साम्राज्य के सैनिक अपनी लंबी यात्राओं में लड्डू साथ रखते थे. लड्डू धार्मिक आयोजनों में कैसे आ गए इस का कोई साक्ष्य नहीं मिलता.

एक दिलचस्प कहानी ठग्गू के लड्डू की भी है कि गुड़ से बने औषधीय गुण वाले लड्डूओं में चीनी का प्रयोग ब्रिटिश काल में शुरू हुआ और चीनी सेहत के लिए अच्छी नहीं मानी जाती. इस तरह लड्डू की रैसिपी में ठगी कर के ठग्गू के लड्डू बने और मशहूर हुए. खैर, न तो अब वे लड्डू रहे और न ही कोई जानता है कि असली ठग्गू के लड्डू की दुकान कहां खुली थी.

करी: करी के बिना भारतीय खाने की कल्पना भी नहीं की जा सकती. हालांकि, करी भारतीय खाने का हिस्सा कब बनी इस पर इतिहासकारों और शोधकर्ताओं के अलगअलग मत हैं. कुछ इतिहासकारों के अनुसार करी इंडस वैली सिविलाइजेशन के दौर की देन है तो कुछ इतिहासकार मानते हैं कि करी का विकास ब्रिटिश काल के दौरान हुआ. ब्रिटिशों ने भारत में अपने समय के दौरान भारतीय मसालों को मांस या सब्जियों के साथ मिलाया और इसे चावल के साथ परोसा. इस मिश्रण को करी कहा गया, जो माना जाता है कि तमिल शब्द ‘करी’ जिस का अर्थ है सौस का रूप था. दूसरी ओर, कई शोधकर्ताओं का मानना है कि करी भारतीय भोजन का हिस्सा सदियों से रही है. भारतीय भोजन में मसालों का उपयोग प्राचीनकाल से ही किया जाता रहा है. प्राचीन ग्रंथों और ऐतिहासिक दस्तावेजों में भी मसालों और उन के मिश्रण का उल्लेख मिलता है जो करी के स्वरूप में आ सकते हैं.

समोसा: समोसे के स्वाद की ही तरह इस की कहानी और इस का सफर भी बेहद दिलचस्प है. समोसे का इतिहास 10वीं सदी के मिडल ईस्ट से जुड़ा हुआ है. समोसा, जिसे उस समय ‘संबोसा’ कहा जाता था, का पहली बार उल्लेख ईरानी इतिहासकार अबुलफजल बेहेकी की ‘तारीख ए बेहेगी’ में किया गया था. समोसे का मूल आकार बहुत छोटा था और यही कारण था कि इसे सफर करने वाले थैलियों में आसानी से पैक कर के ले जा सकते थे और चलतेफिरते खा सकते थे. दिल्ली सल्तनत के मशहूर शायर अमीर खुसरो ने जब कीमा, प्याज और घी इत्यादि के मिश्रण से बने समोसे का जिक्र उस दौर में किया तब इसे भारत में पहचान मिली.

14वीं सदी के ट्रैवेलर और राइटर इब्न बतूता ने भी समोसे का उल्लेख किया. उन्होंने ‘संबुसक’ (समोसा) का वर्णन किया, जोकि कीमा, अखरोट, पिस्ता, बादाम और मसालों के मिश्रण से तैयार किया जाता था. यह समोसा मोहम्मद बिन तुगलक के दरबार में शाही भोजन के हिस्से के रूप में परोसा जाता था. मिडल ईस्ट से ले कर भारत तक समोसे ने सिर्फ अपने नाम ही नहीं बदले बल्कि अपनी फिलिंग को भी बदला यानी जैसा देश वैसा भेष. भारत में तो चाय, चटनी और समोसे की दोस्ती अटूट है.

वैसे आप तो बस खाने के स्वाद से मतलब रखिए, किस ने किस डिश का आविष्कार किया, कौन सी डिश पर्शिया से आई इस सब से आप का क्या लेनादेना. जायकेदार खाना असीम आनंद देता है और हमें आनंद के सिवाय भला और क्या चाहिए.

मेरे शाई नेचर की वजह से कोई बौयफ्रैंड नहीं बन पाया मैं अपनी जिंंदगी को रोमांटिक बनाना चाहती हूं, क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

डेटिंग ऐप पर मुझे कई लड़के मिलते हैं. अगर मुझे पता चले कि कोई लड़का मुझे पसंद करता है, लेकिन मेरी उस में रोमांटिक दिलचस्पी नहीं है तो मैं क्या रिप्लाई दूं? उन के लिए अपनी भावनाओं को क्लियर रखें और उन्हें पोलाइटली रिजैक्ट कर दें. मैं बचपन से शाई नेचर की रही हूं. यही कारण रहा कि चाहते हुए भी कोई बौयफ्रैंड नहीं बना पाई. एक तरफ से मुझे समझ नहीं आता कि मैं किसी लड़के से बात की शुरुआत करूं कैसे? मुझे अपने सर्कल में एक लड़के पर क्रश है. मुझे पता है उस की तरफ से कोई पहल नहीं होगी लेकिन मैं उसे अपनी जिंदगी से जाने नहीं देना चाहती. मैं ने सोच लिया है कि कोशिश मैं ही करूंगी उसे अपना बनाने के लिए. लेकिन यह सब कैसे करूं, मेरी हैल्प कीजिए.

जवाब

ठीक है, सीधा मुद्दे पर आते हैं. लड़के से नजरें मिलाएं और उस की तरफ एक गर्मजोशीभरी मुसकान भेजें. इस के बाद चुपचाप उस की तरफ चलें और एक सिंपल टौक स्टार्ट करें. अगर आप किसी इवैंट में हैं तो आप को इवैंट कैसा लग रहा है, यह पूछ सकती हैं.

अगर आप को शर्म आती है तो आप किसी दोस्त को साथ चलने के लिए कह सकती हैं या किसी म्यूच्युअल फ्रैंड को उस से मिलवाने के लिए कह सकती हैं. जब आप उस से बात करें तो ध्यान दें कि क्या वह आप की बातों पर ध्यान दे रहा है, आप दोनों की बातचीत पर उस के दोस्त कैसी प्रतिक्रिया देते हैं और उस की बौडी लैंग्वेज कैसी है.

एक बात दिमाग में क्लियर रखें कि उस लड़के का भी आप में इंट्रैस्ट होना चाहिए, बात तभी बनेगी. लाइफ में कुछ ऐसा होता गया कि मैं कैरियर बनाने और फैमिली की जिम्मेदारियों में उल झा रहा और इस बीच अपने बारे में कुछ सोचा नहीं. शादी नहीं की. उम्र अब 37 वर्ष की हो गई है. मु झे अब अपनी उम्र से बड़ी महिला से प्यार हो गया है. वह भी मु झ में इंट्रैस्टेड है. क्या अब उस से डेटिंग करना उचित है? मु झे ही कुछ अजीब लग रहा है सोच कर.

इस उम्र में डेटिंग करना बिलकुल फायदेमंद है. समाज के बारे में मत सोचिए. आप की लाइफ है, आप को जीनी है. अब आप फाइनैंशियली और पर्सनली अपनी जिंदगी में सैटल हो चुके हैं. लाइफ का आप को पूरा एक्सपीरिएंस मिल चुका है. मैच्योर ऐज में प्यार पाने से इमोशनली बौंडिंग के कारण मजबूत रिश्ते और अधिक खुशी की संभावना बढ़ जाती है.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर पर 9650966493 भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

रिश्ता और समझौता: अरेंज मैरिज के लिए कैसे मान गई मौर्डन सुमन?

अमेरिका के जेएफके अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे में सारी औपचारिकताओं को पूरा कर के जब अपना सामान ले कर सुमन बाहर आई तो उस ने अपनी चचेरी बहन राधिका को हाथ लहराते देखा. सुमन बड़ी मुसकान के साथ उस की ओर बढ़ी और फिर दोनों एकदूसरे से गले मिलीं.

‘‘अमेरिका के न्यूयौर्क में आप का स्वागत है सुमन,’’ कह कर राधिका ने सुमन के गाल पर किस किया.

सुमन ने भी उसे गले लगाया और फिर दोनों निकास द्वार की ओर बढ़ने लगीं.

राधिका, सुमन की चाची की बेटी है. वे लगभग हमउम्र हैं. दोनों का बचपन इंदौर में अपने नानाजी के घर में एकसाथ गुजरा था. हर छुट्टी पर परिवार के सभी सदस्य अपने नाना के घर इंदौर में इकट्ठा होते थे और उन दिनों की खूबसूरत यादें सुमन के दिमाग में अभी भी ताजा हैं. अपने नानानानी की मृत्यु के बाद सुमन की मां ने अपनी बहनों से अपना संपर्क बनाए रखा और वे अकसर मुंबई आती थीं. राधिका ने खुद सुमन के घर में रह कर मुंबई में ही कैमिस्ट्री में पौस्टग्रैजुएशन किया था और उस समय सुमन भी कंप्यूटर साइंस में पोस्ट ग्रैजुएशन कर रही थी. राधिका नौकरी के सिलसिले में न्यूयौर्क चली गई और सुमन को मुंबई में एक मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी मिल गई.

‘‘चाची और चाचा कैसे हैं,’’ गाड़ी को पार्किंग से बाहर निकालते हुए राधिका ने पूछा.

सुमन मुसकराते हुए बोली, ‘‘वे ठीक हैं.’’

अब दोनों ओर से चुप्पी थी. अमेरिकी धरती पर उतरते ही सुमन से कोई भी निजी सवाल पूछ कर राधिका उसे उलझन में नहीं डालना चाहती थी. इसी बीच सुमन का फोन बजा. आशीष का था. सुमन को झिझक हुई तो राधिका ने कहा, ‘‘तुम कौल लेने में क्यों संकोच कर रही हो?’’

तब सुमन ने कहा, ‘‘हैलो.’’

‘‘हाय स्वीट हार्ट,’’ दूसरी ओर से आशीष की आवाज थी,‘‘तम न्यूयौर्क पहुंच गई हो… यात्रा कैसी रहीं. कोई कठिनाई तो नहीं हुई?’’ उस की आवाज में चिंता बहुत स्पष्ट थी.

‘‘हां आशीष मैं बिना किसी दिक्कत के न्यूयौर्क पहुंच चुकी हूं… सफर अच्छा था… बस थोड़ी थकान महसूस कर रही हूं.  मेरी बहन राधिका हवाईअड्डे मुझे लेने आ गई थीं. अब हम अपने घर जा रही हैं… मैं तुम्हें बाद में फोन करूंगी,’’ और फिर फोन काट दिया.

फिर घंटी बजी. सुमन की मां थीं. मां ने पूछा, ‘‘बेटा, तुम ठीक हो? क्या राधिका एअरपोर्ट आ गई थी? सुमन ने फोन राधिका को पकड़ा दिया. राधिका बोली, ‘‘मौसी मैं एअरपोर्ट कैसे नहीं आती… आप सुमन की चिंता न करो… वह यहां बिलकुल सुरक्षित है. हम घर पहुंच कर आप को फोन करते हैं.’’

‘‘ठीक है,’’ कह सुमन की मां ने फोन काट दिया.

राधिका का तीसरी मंजिल पर

3 बैडरूम वाला अपार्टमैंट था.

जैसे ही राधिका और सुमन ने घर में प्रवेश किया एक फिरंगी लड़की एक बैडरूम से बाहर आई और सुमन को गले लगा कर मुसकराते हुए उस का अभिवादन करते हुए बोली, ‘‘यूएस में आप का स्वागत है और आशा है कि आप मेरे साथ रहना पसंद करेंगी.’’

सुमन सोच में पड़ गई कि राधिका अकेली रह रही है तो यह लड़की कौन?

राधिका उसे कौफी का कप पकड़ाते हुए बोली,

‘‘सुमन यह जेनिफर है. हम ने इस अपार्टमैंट को मिल कर किराए पर लिया है. वह एक सौफ्टवेयर कंपनी में काम करती है और वे ही अपनी कंपनी में तुम्हें नौकरी दिलाने में मदद करने वाली है… न्यूयौर्क बहुत महंगा शहर है… हम इस तरह एक अपार्टमैंट अकेले किराए पर नहीं ले सकते. वह बहुत व्यस्त रहती है, इसलिए ज्यादातर खाना बाहर से मंगवाती है… हमारे बीच कोई समस्या नहीं. अब तुम भी आ गई तो हम तीनों अपार्टमैंट साझा कर सकती हैं,’’ राधिका ने कौफी पीते हुए कहा.

सुमन चुप रही. वैसे भी वह केवल 2 साल के लिए अमेरिका आई है और फिर भारत अपने प्रेमी आशीष के पास वापस चली जाएगी. इस बीच जब जेनिफर उन दोनों के पास आई तो वह औफिस जाने के लिए पूरी तरह तैयार थी. उस ने एक ईमेल आईडी देते हुए सुमन से कहा,‘‘राधिका ने मुझे बताया था कि आप को सौफ्टवेयर सैक्शन में नौकरी की जरूरत है और मैं उसी फील्ड में काम करती हूं… वास्तव में मेरी खुद की टीम में एक शख्स की जरूरत है. आज ही अपना सीवी इस आईडी पर भेजें ताकि जल्दी आप की नियुक्ति हो जाए. बाय… शाम को मिलते हैं,’’ और फिर राधिका को गले लगा अपनी गाड़ी की चाबी ले कर दफ्तर के लिए निकल गई.

‘‘तो क्या चल रहा है? सुमन तुम मुझ से दिल खोल कर बात कर सकती हो, क्योंकि हम केवल चचेरी बहनें ही नहीं बचपन की दोस्त भी हैं. याद है तुम्हें हम उन छोटेछोटे रहस्यों को कैसे साझा करते थे… मैं ने आज छुट्टी ले ली है ताकि तुम्हारे साथ समय बिता सकूं और तुम्हारी चीजों को व्यवस्थित करने के लिए मदद कर सकूं,’’ राधिका ने कहा.

सुमन ने लंबी सांस ली. मुंबई में अच्छी सैलरी वाली नौकरी से इस्तीफा दे कर

अमेरिका क्यों आई है, राधिका को यह बताने के लिए सुमन ने खुद को तैयार किया.

कुछ दिन पहले ही सुमन ने मां को पिता की मौजूदगी में बताया था.

‘‘सुमन तुम यह क्या कह रही हो? तुम

ऐसे सोच भी कैसे सकती हो,’’ उस की मां चिल्लाई थीं.

‘‘क्या आप ने सुना है कि आप की बेटी एक ऐसे लड़के से प्यार करती है, जो हमारी बिरादरी का नहीं है और इस से भी ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि वह उस के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहना चाहती है ताकि वे एकदूसरे को बेहतर तरीके से समझ सकें. फिर वे तय करेंगे कि शादी करनी है या नहीं,’’ यह कहते हुए सुमन की मां मुश्किल से सांस ले पा रही थीं.

सुमन की मां हर छोटी सी छोटी बात पर भी भावुक हो जाती है, उस के विपरीत उस के पिता एक संतुलित व्यक्ति हैं. उन्होंने ध्यान से अपनी बेटी की बात सुनी.

सुमन ने कहा, ‘‘पापा, आशीष और मैं एकदूसरे से प्यार करते हैं, लेकिन हम शादी में जल्दबाजी नहीं करना चाहते. मेरे अपने दफ्तर में 4 मित्र जोड़ों ने जल्दबाजी में शादी कर ली और फिर 1 साल के भीतर ही उन की शादी टूट गई. ऐसा इसलिए क्योंकि वे एकदूसरे को ठीक से समझे बगैर शादी कर बैठे. हम यह गलती नहीं दोहराना चाहते हैं. इन दिनों मुंबई में लिव इन रिलेशनशिप में रहना आम बात है. मेरे अपने दोस्त ऐसे ही रहते हैं. ऐसे साथ रहने से हम अपने साथी की ताकत और कमजोरी को समझ सकते हैं और एकदूसरे को बेहतर तरीके से जान सकते हैं. फिर तय कर सकते हैं कि एकदूसरे के लिए सही हैं या नहीं, हमारी शादी सफल हो सकती है या नहीं,’’ सुमन ने समझाया.

सुमन की मां बेशक सदमे की स्थिति में थीं, लेकिन उस के पिता हमेशा की तरह शांत थे. उन्होंने सुमन को अपनी बगल में बैठाया और फिर बोले, ‘‘तुम्हारे दोस्तों की शादियां टूट गईं और तुम्हें लगता कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उन्होंने एकदूसरे को समझे बिना जल्दबाजी में शादी की. इस मामले में मेरा खयाल है कि तुम दोनों 1-2 साल के लिए अपनी दोस्ती बरकरार रख कर एकदूसरे को समझने की कोशिश करो और फिर शादी कर लो. यह लिव इन रिश्ता क्यों?’’ रामनाथ ने पूछा.

सुमन ने कहा, ‘‘पापा यही समस्या है. दरअसल, जब हम दोस्त होते हैं तो हम हमेशा दूसरे व्यक्ति को केवल अपना बेहतर पक्ष दिखाते हैं. हम सभी का एक और पक्ष है, जिसे हम जानबूझ कर दूसरों से छिपाते हैं. विवाह में ऐसा नहीं है. आप को अपने पूरे जीवन में एक व्यक्ति के साथ मिलजुल कर रहना होगा और आप को छोटी सी छोटी चीजें जैसे खाने से ले कर पैसे तक बड़े मामलों पर दोनों के बीच सहमति की जरूरत होती है.

‘‘उदाहरण के लिए मेरी एक दोस्त ने अपने बौयफ्रैंड से 4 साल तक डेटिंग करने के बाद शादी की. लेकिन शादी के बाद ही उसे समझ में आ गया कि जिस से उस ने ब्याह किया वह एक पुरुषवादी व्यक्ति है. यद्यपि मेरी सहेली उस से अधिक कमा रही थी, फिर भी उस के पति ने उस के साथ बदसलूकी की और पुराने जमाने की पत्नियों की तरह अपने परिवार की सेवा करने के लिए उसे मजबूर किया. इस के अलावा मेरी सहेली से उस की कमाई का हिस्सा मांगा… दुख की बात तो यह है कि उस लड़के ने मेरी सहेली की अपने मातापिता को किसी भी रूप से सहायता करने से सख्त मनाकर दिया. जब हम दोस्त होते हैं तब हमें एक मर्द के इस पहलू को नहीं जान सकते, क्योंकि उस वक्त सभी इंसान अपना अच्छा पक्ष ही दिखाएगा,’’ सुमन ने बताया.

थोड़ी देर रुक वह आगे बोली, ‘‘पापा, आज भी बहुत से भारतीय पुरुष हैं जो सोचते हैं कि वे घर के बौस हैं. पत्नी को केवल उन की आज्ञा का पालन करना चाहिए. स्त्री को उचित अधिकार और सम्मान नहीं दिए जाने की वजह से ही इन दिनों कई भारतीय शादियां टूट रही हैं. मैं नहीं चाहती कि मेरे साथ भी ऐसा हो. मैं ने सोचा कि जब हम एकसाथ रहते हैं तो हमारी सचाई एकदूसरे के सामने आती है तब हमें पता चलता है कि हम एकदूसरे के लिए सही हैं या नहीं.’’

रामनाथ ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तुम सही हो और मैं इस विषय में तुम से पूरी तरह सहमत हूं, लेकिन यह लिव इन रिलेशनशिप भी उतनी आसान नहीं जितना तुम समझ रही हो. यह भी बहुत सारी समस्याओं को जन्म देती है. तुम एक शिक्षित लड़की हो और मुझे तुम्हें बहुत समझाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि तुम स्मार्ट और बुद्धिमान हो. शादी जैसे बंधन के बिना लड़का और लड़की पतिपत्नी की तरह रहने से भी समस्याएं हो सकती हैं. पहली बात यह है कि दोनों तरफ कोई प्रतिबद्धता नहीं है और यह किसी भी रिश्ते के लिए अच्छा नहीं है.

‘‘अगर इस तरह साथ रहने में जिन दिक्कतों का लड़का और लड़की को सामना करना पड़ता है, उन के बारे में मैं कहूं तो तुम समझोगी कि मैं पिछली पीढ़ी का बूढ़ा आदमी हूं और लिव इन रिलेशनशिप के खिलाफ कहता हूं. इसलिए मेरे पास एक सुझाव है. लिव इन रिलेशनशिप की अवधारणा पश्चिमी देशों से आई है न? लेकिन अब वे महसूस कर रहे हैं कि शादी की हमारी परंपरा बेहतर है. हमारी राधिका न्यूयौर्क में है और तुम वहां जा कर काम करो और पश्चिमी लोगों के साथ काम करते दौरान उन के जीवन को करीब से देखो. तब तुम अपने लिए क्या सही है यह निर्णय करने की स्थिति में होगी और वह तुम्हारे लिए बेहतर होगा.’’

सुमन को भी लगा कि यह एक अच्छा विचार है.

‘‘तो मैं अब अमेरिका में हूं, जहां लिव इन रिलेशनशिप की संस्कृति को समझना है,’’ सुमन ने हंसते हुए कहा.

राधिका भी हंस पड़ी, ‘‘तुम्हें पता है कि जेनिफर अगले हफ्ते वास्तव में अपने बौयफ्रैंड के साथ इसी बिल्डिंग में एक और फ्लैट में जाने की योजना बना रही है. एक नई लड़की क्लारा हमारी रूममेट होगी,’’ कह कर राधिका चाय के कप रखने चल दी और सुमन खिड़की से नीचे चल रही गाडि़यों की जलूस देखने लगी.

धीरेधीरे 3 साल बीत गए. हर हरिवार को सुमन के मातापिता उस से कम

से कम 2 घंटे तक इंटरनैट पर बात करते थे. इकलौती औलाद होने के नाते सुमन के मातापिता उस पर अपनी जान छिड़कते थे. खासकर सुमन की मां जो अपनी बेटी से अलग नहीं रह पा रही थी. उन्होंने अपने पति से कहा कि वे अमेरिका जाएं अपनी बेटी के पास.

रामनाथ ने उन्हें यह कहते हुए रोक दिया, ‘‘नहीं हम वहां नहीं जा रहे हैं. हम ने सुमन को वहां संस्कृति का निजी ज्ञान प्राप्त करने के लिए भेजा है, जिस की भारतीय युवा पीढ़ी इतने उत्साह से पीछा कर रही हैं.’’

सुमन की मां के पास इसे मानने के अलावा कोई और चारा नहीं था.

आशीष हर हफ्ते उस से इंटरनैट पर बात करता था, क्योंकि उसे भी सुमन से अलग रहना अच्छा नहीं लग रहा था. जब उस ने भी यूएस आने का प्रस्ताव रखा तो सुमन ने तुरंत मना कर दिया और कहा, ‘‘मैं ने अपने पिताजी से वादा किया है कि मैं आप को यहां नहीं बुलाऊंगी… और मैं अपना वादा नहीं तोड़ूंगी.’’

आशीष मान गया.

नौकरी भी अच्छी चल रही थी. न्यूयौर्क एक तेजी से आगे बढ़ने वाला शहर है, जो उस के मुंबई से भी ज्यादा तेज है. सुमन को सुबह 8 बजे अपने दफ्तर में पहुंचना है और वह जिस फ्लैट में रह रही है, वहां से पहुंचने में समय लगता. लेकिन न्यूयौर्क में आवागमन करना कोई समस्या नहीं है.

सुमन हर सुबह अपने और राधिका के लिए भारतीय नाश्ता बनाती और लंच भी पैक कर के औफिस के लिए निकल जाती.

एक रिसर्च स्कौलर होने के कारण राधिका की नौकरी लैब में थी और उस के काम का निश्चित समय नहीं था. कभीकभी 3-3 दिन तक घर नहीं आती और इस की सूचना सुमन को पहले ही दे देती थी ताकि वह उस का इंतजार न करे.

अब तक सुमन और क्लारा अच्छे दोस्त बन गए थे. सुमन को लगा कि क्लारा एक अच्छी लड़की है. लेकिन उस के साथ एकमात्र समस्या यह थी कि वह हर रविवार को कुछ मांसाहारी भोजन बनाती थी. उस की गंध को बरदाश्त करना शाकाहारी सुमन के लिए बहुत मुश्किल था. लेकिन धीरेधीरे सुमन उस गंध की आदी हो गई.

सुमन को रविवार को भी जल्दी उठना पड़ता था, क्योंकि क्लारा के रसोई में आने से पहले ही सुमन अपना और राधिका का खाना बना सके.

एक रविवार सुमन टीवी देख रही थी. तभी दरवाजे की घंटी बजी. उस ने दरवाजा खोला तो सामने जेनिफर थी, जो अब उस की सहकर्मी है. उस के पास एक बैग था और उस की आंखें सूजी थीं. उस का हुलिया देख कर सुमन हैरान हो गई.

जेनिफर अंदर आई और बेकाबू हो कर बिलखबिलख कर रोने लगी. सुमन समझ नहीं पा रही थी कि कैसे रिएक्ट करें. फिर उस ने खुद को संभाला और पूछा, ‘‘क्या हुआ जेनी तुम रो क्यों रही हो? कुछ तो बताओ… क्या मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकती हूं?’’ सुमन ने जेनिफर को गले लगाते हुए कहा.

‘‘सुमन मेरा बौयफ्रैंड अव्वल नंबर का धोखेबाज निकला. उस का किसी दूसरी लड़की के साथ अफेयर चल रहा है. उस ने मुझ से यह बात छिपाई और ऊपर से मेरे सारे पैसे उस लड़की पर खर्च कर दिए. अब मैं बिलकुल कंगाल हूं. जब मैं ने उस से पूछा तो उस ने कहा कि हम दोनों अलग हो जाएंगे. हम कानूनी रूप से विवाहित तो नहीं जो मैं अदालत से मदद ले सकूं… गुजाराभत्ता के रूप में मोटी रकम ले सकूं. अगर इस में एक व्यक्ति दगाबाज निकले तो दूसरा कुछ भी नहीं कर सकता और मैं उसी हालत में हूं. मेरी सारी बचत को उस ने लूट लिया.’’

सुमन उसे सांत्वना देने की कोशिश कर रही थी. जेनिफर ने पूछा, ‘‘क्या मैं आप लोगों के साथ तब तक रह सकती हूं जब तक कि मुझे एक और अपार्टमैंट और रूममेट नहीं मिलता है?’’

सुमन ने कहा, ‘‘बेशक

जेनी यह भी कोई पूछने वाली बात है क्या?’’

जेनिफर की हालत देख कर क्लारा को भी तरस आ गया और उसे अपने साथ रहने की इजाजत दे दी.

शाम को दफ्तर से आने पर राधिका ने पूरी कहानी सुनी. उसे अजीब सी बेचैनी हुई कि एक आदमी इतना मतलबी कैसे हो सकता है और उस के साथ ऐसा व्यवहार भी कर सकता है, जो उस से प्यार कर के उस के साथ रहने आई थी. वह सोच भी नहीं सकती कि एक इंसान इतनी ओछी हरकत कर सकता है. तीनों सहेलियां एकसाथ खाना खा कर इसी बारे में बात करती रहीं.

बातोंबातों में क्लारा ने अपनी समस्या बताई, ‘‘मैं भी ऐसी मुश्किल घड़ी से गुजर चुकी हूं. जब मैं अपने बौयफ्रैंड से ब्रेकअप कर के बाहर आई थी तो पूरी तरह टूट चुकी थी और मेरा बैंक बैलेंस भी शून्य था. हमारे देश में यह एक मामूली समस्या बन चुकी है. ऐसा नहीं है कि केवल लड़के ही धोखा देते हैं. कभीकभी लड़कियां भी ऐसी गिरी हरकत करती हैं. इस तरह के रिश्ते की नींव आपसी विश्वास के अलावा कुछ भी नहीं है और अकेले ही इस स्थिति का सामना करना पड़ता है.

‘‘एक तरह से मुझे लगता है कि आप का देश अच्छा है सुमन. आप की शादियों में सभी बुजुर्ग और परिवार के अन्य सदस्य शामिल होते हैं और यह 2 व्यक्तियों का नहीं, बल्कि 2 परिवारों का मिलन बन जाता है. हमारे मामले में हम इस बड़ी दुनिया में अकेले हैं. 18 साल की उम्र में हम अपने परिवारों से बाहर आते हैं और हमें अकेले ही दुनिया का सामना करना पड़ता है. मेरे 3 ब्रेकअप हो चुके हैं और तुम जानती हो कि हर ब्रेकअप कितना दर्दनाक होता है… एक बार मैं एक गहरे मानसिक अवसाद में चली गई और अभी भी उस अवसाद के लिए गोलियां ले रही हूं… अब मैं अकेली हूं. वास्तव में मैं अब एक नए रिश्ते से डर रही हूं कि इस बार भी मुझे प्यार के बदले में छल ही मिलेगा,’’ और फिर क्लारा ने लंबी सांस भरी.

‘‘सुमन हर हफ्ते आप के मातापिता आप से बात करते हैं और यह एक अच्छा एहसास है कि इस दुनिया में कोई है, जो आप को बहुत प्यार देता है और आप की चिंता करता है. जब मैं 10 साल की थी तब मेरे मातापिता अलग हो गए थे और इस से मैं बहुत परेशान थी. मुझे अपनी मां के नए प्रेमी को स्वीकारने में बहुत समय लगा. मेरे पिताजी समय मिलने पर कभी फोन किया करते थे, लेकिन कभी भी मेरे साथ समय नहीं बिताया. मेरे 2 सौतेली बहनें और 2 सौतेले भाई हैं. मेरे पिता के अन्य महिलाओं के माध्यम से बच्चे हैं और मेरी मां के भी अन्य पुरुषों के साथ बच्चे हैं. मेरी मां कभी हम सब को मिलने के लिए बुलाती है. उस समय हम एकदूसरे से मिलते हैं… वह अवसर बहुत औपचारिक होता था,’’ क्लारा ने दुखी मन से बताया.

‘‘हमारे गुजाराभत्ता कानून महिलाओं के लिए बहुत सख्त और अनुकूल है और यही कारण है कि ज्यादातर अमीर पुरुष कानूनी शादी पसंद नहीं करते हैं. अगर हम शादीशुदा हैं और अलग हो गए हैं तो उन्हें हमारे द्वारा लिए गए पैसे वापस करने होंगे और गुजाराभत्ता के रूप में मोटी रकम भी चुकानी होगी. अब इस प्रकार के संबंधों में कानून कोई भूमिका नहीं निभाता है. हमें इसे अकेले ही निबटना होगा.

‘‘हर बार जब रिश्ते में धोखा खाते हैं तो लड़कियां हमेशा के लिए टूट जाती हैं. मुझे एक गहरी प्रतिबद्धता के साथ संबंध पसंद हैं. सुमन जब मैं आप की मां को आप से बात करते हुए देखती हूं, हालांकि मुझे आप की भाषा नहीं पता, मगर उन की अभिव्यक्ति से पता चलता है कि वे आप से कितना प्यार करती हैं… आप की खातिर किसी भी तरह का दुख भोगने के लिए तैयार हैं… हमारे देश में ऐसा नहीं है. यहां हर किसी को एक अलग व्यक्ति माना जाता है,’’ क्लारा की इस बात पर जेनिफर ने भी हामी भर ली.

राधिका सुमन की तरफ देख कर मुसकराई. सुमन समझ सकती थी कि वह क्या कहना चाहती है. सुमन को लगा कि हर जगह समस्याएं हैं. लिव इन रिलेशनशिप भी इतना आसान नहीं है, जितना हरकोई कल्पना करता है. भारतीय परिस्थितियों और भारतीय पुरुषों के साथ तो यह और भी कठिन है.

सुमन सोच में पड़ गई. एक बात उस की समझ में आई कि यदि आप के पास कानूनी सुरक्षा है, तो आप एक तरह से सुरक्षित हैं कि आप से आप का पैसा नहीं छीना जाएगा और ब्रेकअप के बाद आदमी को मुआवजा देना होगा और फिर जब आप विवाहित होते हैं तो आप की सामाजिक स्वीकृति भी होती है.

उस रविवार को जब उस के मातापिता लाइन पर आए तो सुमन ने अपने पिताजी से

कहा, ‘‘मैं अब उलझन में नहीं हूं पापा… ऐसा लग रहा है कि ऐसा कोई भी तरीका नहीं है, जो बिलकुल सही या बिलकुल गलत है.’’

‘‘तुम ठीक कह रही हो बेटा. कोई भी व्यवस्था हर माने में सही या गलत नहीं हो सकती… हमें ही समझदारी के साथ काम करना पड़ेगा.

‘‘बेटा कोई भी शादी या रिश्ता इस दुनिया में ऐसा नहीं चाहे वह न्यूयौर्क हो या मुंबई ऐसा नहीं जो सौ फीसदी परफैक्ट हो. कोई न कोई कमी तो होती ही है और उसे नजरअंदाज कर के आगे बढ़ने में ही बेहतरी होती है. किसी भी रिश्ते की सफलता के लिए हर किसी को कुछ देना पड़ता है. तुम ही एक उदाहरण हो. तुम शुद्ध शाकाहारी हो मगर क्लारा के साथ एक ही रसोई को साझा कर रही हो क्यों? क्योंकि तुम क्लारा को ठेस पहुंचाना नहीं चाहती और उस से भी बढ़ कर तुम क्लारा से अपने रिश्ते का मूल्य समझती हो और उस की इज्जत करती हो, है न? जीवन भी इसी तरह है. अगर आप रिश्ते को बनाए रखना चाहते हैं तो मुकाम पर आप को हर हाल में समझौता करना होगा.’’

‘‘हर संस्कृति की अपनी ताकत और कमजोरी होती है. अमेरिकी संस्कृति की अपनी ताकत है कि यह हर व्यक्ति को मजबूत और आत्मनिर्भर बनाती है और वह कम उम्र में ही दुनिया से अकेले लड़ने की सीख देती है. मगर उस के लिए उन लोगों को किनकिन कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है यह आप ने खुद देख लिया.

‘‘हमारी भारतीय संस्कृति हमेशा परिवार की अवधारणा में विश्वास करती है और रिश्ते हमेशा हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता रहे हैं. इस में कुछ ताकत और कमजोरी हो सकती है. समझौता हर रिश्ते का एक अभिन्न हिस्सा है, चाहे 2 लोग दोस्त हों या विवाहित.’’

अपने पिता से बात करने के बाद सुमन बहुत हलका महसूस कर रही थी. ‘जब वह एक रूममेट के लिए समझौता कर सकती है, वह भी एक विदेशी से तो फिर उस आदमी के लिए क्यों नहीं जो जीवनभर उस का साथी बनने वाला है, जो उस की सफलताओं और असफलताओं में उस के जीवन का हिस्सा बनने जा रहा है… वह है उस के जीवन का एक हिस्सा… यदि उस के लिए नहीं तो फिर वह किस के लिए समझौता करेगी,’ सुमन सोच रही थी.

अब सुमन ने फैसला कर लिया. वह आशीष से शादी करने के लिए तैयार थी और उस के साथ आने वाले समझौतों के लिए भी आशीष को वह मनाएगी ही क्योंकि 2 साल से वह भी उसी का इंताजर कर रहा है. आखिर समझौते के बिना जिंदगी ही क्या है.

Teej 2024 : घर पर करना चाहती हैं पार्लर जैसा मेकअप, तो फौलो करें ये टिप्स

यह तो आपको पता ही होगा कि आपके व्‍यक्तित्‍व को निखारने में मेकअप का बड़ा अहम रोल होता है. अगर सही जानकारी हो तो घर पर ही पार्टी मेकअप किया जा सकता है. पार्टी मेकअप का मतलब सिर्फ ब्यूटी पार्लर ही नहीं है. और अगर आपका व्‍यक्तित्‍व निखरा होगा, तो आपमें आत्‍मविश्‍वास भी अधिक होगा. इसलिए मेकअप को नजरअंदाज करना सही नहीं होगा.

पार्टी के‍ लिए तैयार होते समय हर महिला की चाहत सबसे अलग और खूबसूरत दिखने की होती है. मेकअप उसी का एक चरण है. यह आपकी खूबसूरती को निखारने के साथ-साथ आपके रूप को अधिक आकर्षक भी बनाता है.

सही प्रकार से किया गया मेकअप आपके चेहरे को चुंबक की तरह बना देता है कि जिसकी नजर एक बार गयी, फिर वह अपनी नजर हटा ही नहीं पाएगा.

लेकिन, पार्टी में कैसा मेकअप किया जाए, इस बात को लेकर अक्‍सर दुविधा रहती है. एक बात तो हम आपको बता ही देते हैं कि ज्‍यादा मेकअप सुंदरता हासिल करने का तरीका नहीं है. सही प्रकार से और सही अनुपात में किया जाने वाला मेकअप ही आपके रूप को नया निखारने में मदद करता है. जहां तक बात घर पर स्‍वयं मेकअप करने की है, तो इसके लिए सबसे जरूरी है सही उत्‍पादों का चयन. अच्‍छे और सही उत्‍पाद आपको मनमाफिक रूप हासिल करने में मदद करेंगे.

फेस मेकअप

अपने चेहरे को मेकअप के जरिये निखारने के लिए सबसे पहले क्लींजिंग से चेहरे को अच्छी तरह से साफ करें. फिर टोनिंग और मॉश्चरराइजिंग करें. इसके बाद कंसीलर लगाएं. कंसीलर से फेस के दाग-धब्बों को छिपाने में मदद मिलती है. फिर फाउंडेशन लगाएं. ध्यान रहे कि फाउंडेशन, स्किन कलर से मैच करता हुआ ही हो. शिमर लुक देने के लिए क्रीम ब्लशर लगाएं. इसके बाद फेस पाउडर लगाएं और एक नेचुरल बेस बनाएं.

आंखों का मेकअप

रात की पार्टी के लिए आंखों पर डार्क मेकअप आकर्षक बनाता है. दिन के समय लाइट शेड्स वाले आईशैडो का प्रयोग करे. लगाने से पहले ऊपरी पलकों पर फाउंडेशन और लूज पाउडर बारी-बारी से हल्के ब्रश से लगाएं, साथ ही आई पेंसिल से ऊपर की पलकों के ऊपर पतली रेखा खींच कर उसे ब्रश से फैला दें, ताकि आईलिड बड़ी दिखे. यहां एक बात का ध्यान रहे कि थकी आंखों पर अधिक अथवा गहरा मेकअप भूल कर भी न करें.

हेयरस्टाइल हो कुछ खास

मेकअप के अलावा आपको हेयरस्टाइल भी बहुत मायने रखता है. हेयरस्टाइल्स में भी आप कुछ नया ट्राई कर सकती हैं. लूज र्कल्स और रोमांटिक अपडोज के साथ बालों को स्टाइलिश लुक देने का ट्रेंड होगा. इसके साथ ही टाइट पॉनीटेल लो या हाई फिर से फैशन में है.

होठों का मेकअप

होठों को पतला दिखाने के लिए लिपस्टिक के शेड से मैच करते लिप लाइनर का प्रयोग होठों के अंदर की तरफ यानी इनर लाइन पर करें. डार्क शेड का प्रयोग बिल्कुल न करें और लिप ग्लॉस का सिंगल कोट चढ़ाएं. इसके विपरीत होठों को मोटा दिखाने के लिए लिप लाइनर को होठों के बाहरी किनारों पर लगाएं. लिपस्टिक का कोई भी रिच शेड लगाएं और लिप ग्लॉस की सहायता से ऊपर व नीचे के होंठ के बीच के हिस्से को हाईलाइट करें.

बस तो फिर देर किस बात की. पार्टी में जाने के लिए आप पूरी तरह तैयार हैं.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें