युवा महिलाओं में बढ़ता ब्रैस्ट कैंसर, इन लक्षणों पर जरूर दें ध्यान

मुंबई की 27 वर्षीय चंद्रिका राव के पैरों तले की जमीन तब खिसक गई जब उसे पता चला कि उस के दोनों स्तनों में कैंसर की गांठें हैं. वह एक बड़ी कंपनी में उच्च पद पर कार्यरत है. पहले तो उसे इसका पता नहीं चला क्योंकि उस का नियमित मासिकधर्म बंद हो चुका था. वह अपने फैमिली डाक्टर के पास गई. उन्होंने दवा दी और मासिकधर्म नियमित हो गया. लेकिन धीरेधीरे उस की खानपान में रुचि कम होने लगी.

एक दिन नहाते वक्त चंद्रिका को अपने स्तन के दाहिने भाग में गांठ का अनुभव हुआ. वह तुरंत डाक्टर के पास गई. उन्होंने फिर मसल्स की गांठ समझ कर दवा दे कर भेज दिया. इस तरह कई महीने बीते.

जब कुछ फर्क नहीं पड़ा तो कैंसर की जांच और मैमोग्राफ्री की गई जिस में दोनों स्तनों में कैंसर की गांठें पाई गईं. फिर चंद्रिका अपनी मां माधुरी के साथ राहेला हौस्पिटल गई जहां उस का सफल इलाज हुआ. आज वह खुश है कि उसे नई जिंदगी मिली है.

जानें क्या है स्तन कैंसर

स्तन कैंसर असामान्य कोशिकाओं की एक प्रकार की अनियमित वृद्धि है जो स्तन के किसी भी हिस्से में पनप सकता है. यह निपल में दूध ले जाने वाली नलियों में दूध उत्पन्न करने वाले छोटे कोशों और ग्रंथिहीन टिशुओं में भी हो सकता है. स्तन कैंसर का प्रकोप महिलाओं में अधिक है खासकर शहरी महिलाओं में स्तन कैंसर के मरीज अधिक हैं जबकि गांव की महिलाओं में कम.

महाराष्ट्र के मुंबई में हर 1 लाख महिलाओं से 27 स्तन कैंसर से ग्रस्त पाई जाती हैं, जबकि गांव में 1 लाख महिलाओं में केवल 8 महिलाए इस रोग की शिकार हैं. आजकल इस की आयु सीमा भी कम हो रही है. पहले अधिकतर महिलाएं 40 वर्ष के बाद इस का शिकार होती थीं, जबकि आज 30 वर्ष या इस से भी कम उम्र में भी. इस रोग की शिकार हो रही हैं. इस की वजह यह है कि महिलाएं आजकल अधिकतर रोजगार के लिए घर से बाहर जाती हैं, जिस से कई रिस्क फैक्टर उन के लिए तैयार रहते हैं.

करीब 5% ब्रैस्ट कैसर की मरीज ऐसी होती है, जिन्हें वंश से यह बीमारी मिलती है क्योंकि इस से माता या पिता के जीन्स उन में आते हैं. चौंकाने वाली बात यह भी है कि कम उम्र में स्तन कैसर की शिकार हुई महिलाओं के दोनों स्तनों में इस का प्रकोप पाया गया है.

कम उम्र में कैसर की सब से बड़ी वजह आज की हमारी जीवनशैली है, जो पश्चिमी सभ्यता पर आधारित हो चुकी है. सैचुरेटेड औयल अधिक खाते हैं. व्यायाम नहीं करते, तनाव अधिक लेते हैं. शादियां देरी से होती हैं और अगर बच्चा हुआ तो उसे स्तनपान नहीं करातीं. ये सभी कारक स्तन कैंसर को तेजी से बढ़ा रहे हैं. जो चिंता का विषय है. ऐसे में अगर समय रहते मरीज डाक्टर के पास पहुंचते हैं तो इस रोग पर काबू पाया जा सकता है.

सचेत रहें

स्तन कैंसर को समझने में समय लगता है. युवा महिलाएं कई बार सचेत नहीं होतीं. फलस्वरूप वे प्रारंभिक लक्षण को गंभीरता से नहीं लेती. साथ ही समाज और परिवार भी इसे स्वीकारता नहीं है और बीमारी बढ़ती जाती है, जो आगे चल कर खतरा बन जाती है.

मैमोग्राफ्री स्तन कैंसर के प्रारंभिक अवस्था का पता लगाने का सब से अच्छा उपाय है. इस के द्वारा कम मात्रा में रैडिएशन का प्रयोग कर स्तन का ऐक्सरे किया जाता है, जिस के द्वारा कैंसर की गांठ का आकार कितना बड़ा है यह समझा जाता है. इस की सुविधा हर छोटेबड़े शहर में उपलब्ध है. अगर आत्म परीक्षण के आद किसी महिला को स्तन में गांठ महसूस हो तो तुरंत मैमोग्राफ्री करवाना जरूरी होता है. 40 वर्ष के बाद महिला को हर 2 साल बाद मैमोग्राफ्री करानी चाहिए. 50 वर्ष के बाद हर वर्ष मैमोग्राफ्री आवश्यक है. अगर गांठ हो तो मैमोग्राफी के बाद सोनोग्राफी करवानी चाहिए ताकि कैंसर के आकार और स्वरूप का पता चले.

इलाज है न

स्तन कैंसर का इलाज आमतौर पर सर्जरी के द्वारा किया जाता है. पूरा स्तन निकलवाने या केवल कैंसर युक्त गांठ के आसपास के कुछ स्वस्थ टिशुओं की कुछ मात्रा निकलवाने के 2 विकल्प हैं- सर्जरी के बाद डाक्टर रैडिएशन थेरैपी, कीमोथेरैपी, हारमोनल थेरैपी या इन सभी थेरैपीज के मिलेजुले उपचार करते हैं.

अधिकतर सर्जरी में गांठ निकालने के बाद एक खास मशीन से सिंकाई की जाती है जिस की सुविधा गांवों और छोटे कसबों में नहीं है. मरीज को बड़े शहर में आ कर सर्जरी के बाद 5-6 हफ्ते इसे करवाना पड़ता है. इस का खर्चा काफी आता है. इस दिशा में एक नई पद्धति आ चुकी है, जिसे इंट्राऔपरेटिव रैडिएशन थेरैपी कहते हैं. इस में सर्जरी के तुरंत बाद औपरेशन टेबल पर रैडिएशन की उचित मात्रा उस क्षेत्र में दे दी जाती है. इस से 5-6 सप्ताह में 25 से 30 सेशन लगते है. इस से गांठ में कमी आती है. खर्चा भी काफी कम होता है. इस का साइड इफैक्ट कम है.

आत्मविश्वास बनाए रखें

स्तन की सर्जरी के बाद स्तन को फिर से पुनर्स्थापित करना भी आसान नहीं. लेकिन आजकल की महिलाएं भी इसे करवाने से हिचकिचाती नहीं क्योंकि अगर शरीर का कोई भाग काट कर अलग कर दिया जाता है तो महिला के आत्मविश्वास में कमी आती है. वह तनाव की शिकार होती है. स्तन के बिना वे अपनेआप को पूरा नहीं समझ सकतीं. इसलिए ब्रैस्ट रिकंस्ट्रक्शन करवाना उचित होता है. इसे हमेशा कौस्मैटिक सर्जन ही करते हैं.

रिकंस्ट्रक्शन मास्टेक्टोमी (पूरा स्तन निकालना) के तुरंत बाद करवाई जा सकती है. लेकिन सर्जरी कैसे हुई है यह रिकंस्ट्रक्शन के समय ध्यान रखना पड़ता है.

द्य मास्टेक्टोमी में पूरी ब्रैस्ट स्किन और निपल सहित निकाल देते हैं. इस में शरीर के अन्य भाग से त्वचा, वसा, मांस (मसल्स) ब्लडवैसेज निकाल कर पुनर्स्थापित किया जाता है. यह मांस अधिकतर टमी, जांघ, और कमर के ऊपरी भाग से लिया जाता है.

Raksha Bandhan 2024 : राखी पर गिफ्ट की कीमत नहीं, देखें भाईबहन का प्यार

अब संयुक्त परिवार वाला समय नहीं रहा जब कई सारे भाईबहन होते थे. उस वक्त एक या दो भाई बहन से बातचीत बंद हो जाए तो भी चलता था. मगर आजकल जब आप के पास कुल एक भाई या बहन है तो आप बिलकुल भी रिस्क नहीं ले सकते. आप को उस इकलौते भाई या बहन को बहुत संजो कर रखना होगा. जरूरत के वक्त वही आप के काम आएगा. उसे ही आप अपना परिवार कह सकती हैं. उस की फॅमिली के साथ ही आप अपनापन बांट सकती हैं. उसी के साथ आप ने पूरा बचपन की शैतानियां और किशोरावस्था के राज बांटे हैं. वही आप को समझता है और उसी के साथ आप सुरक्षित महसूस करती हैं. फिर उस भाई जैसे अनमोल रत्न को आप खो कैसे सकती हैं. इसलिए सारे ईगो परे हटा कर भाई पर जी भर कर प्यार लुटाइए.

त्यौहार प्यार बढ़ाने का दिन है –

त्यौहार के रूप में आप को बहाने मिल जाते हैं अपनों के करीब आने का, पुरानी गलती सुधारने का और कुछ ऐसा कर दिखाने का जिस से सामने वाला आप को फिर से गले लगा ले. इस मौके को न गंवाएं. आप अपने भाई या बहन के लिए कोई प्यारा सा गिफ्ट खरीदें जो उस की पसंद का भी हो और सालों उस के पास भी रह सके.

गिफ्ट की कीमत नहीं प्यार देखें – 

रक्षाबंधन के मौके पर आप के भाई या भाभी ने आप को जो भी गिफ्ट दिया हो उसे प्यार लें. किसी भी तरह का असंतोष या नाराजगी न दिखाएं क्योंकि गिफ्ट में पैसा नहीं भावनाएं देखी जाती हैं. आज आप लड़ाई कर लेंगी तो कल को उस छोटे से गिफ्ट के लिए भी तरसेंगी. इसलिए छोटी सी बात पर अपने रिश्तों में किसी तरह की कड़वाहट न आने दें. बहुत सी बहनों की आदत होती है कि रक्षा बंधन से महीने भर पहले से ही अपने भाई या भाभी को गाइड करने लगती हैं या फरमाइश करने लगती हैं कि इस बार उन्हें यह गिफ्ट चाहिए. भाई पर इस तरह हक़ ज़माना गलत नहीं मगर कई बार संभव है कि आप का भाई ज्यादा पैसे खर्च करने की हालत में न हो या उस की कोई और प्रॉब्लम हो. ऐसे में अपनी फरमाइश रखने के बजाए प्यार से इन्तजार करें कि वह क्या देता है. जो भी उपहार आप को मायके से मिले उसे सम्मान के साथ स्वीकार करें.

त्यौहार के दिन कोई झगड़ा नहीं – 

साल भर के बाद रक्षा बंधन का दिन आता है. इस खूबसूरत दिन को लड़झगड़ कर बर्बाद कतई न करें. लड़ने के तो सौ बहाने मिल जाएंगे मगर फिर साल भर आप के दिल में कठोर बातें जब तीर बन कर चुभती रहेंगी तो आप खुद को माफ़ नहीं कर पाएंगी. इसलिए किसी भी तरह बात न बढ़ा कर प्यार और सम्मान के साथ उस दिन को गुजरने दे.

इस दिन के लिए कोई बहाना या एक्सक्यूज़ नहीं –

इस दिन भाई या उस के परिवार से मिलने जरूर जाएं. कोई बहाना या एक्सक्यूज़ न बनाएं. क्योंकि एक बार आप जाने से मन करेंगी तो अगली बार से आप को बुलाना भी कम कर दिया जाएगा. धीरेधीरे दूरी बढ़ती जाएगी. इसलिए मिलने के नियम को कठोरता से बरकरार रखें. खासकर जब आप एक ही शहर में हैं तब तो कोई भी बहाना बनाने की बात सोचें भी नहीं. इस दिन दूसरे मुद्दे बीच में न लाएं. सिर्फ भाई बहन का प्यार और मां बाप का दुलार ही याद रहे. रिश्ते में कितने भी मसलें हों मगर इस दिन जरूर मिलें.

पुराने बचपन के दिन याद करें –

जब आप भाई से मिलें तो कुछ समय के लिए सारी परेशानियां और उलझनें भूल जाएं. कुछ समय बस एकदूसरे के साथ बिताएं. बचपन की वो यादें और शरारतें याद करें. अपने बच्चों को भी पुराने किस्से सुनाएं. इस से वे भी इस रिश्ते का सम्मान करना सीखेंगे. पुरानी यादों के बहाने आप एकदूसरे के और करीब भी आएंगे.

बात पसंद न आए तो तुरंत कहें –

इस रिश्ते में सब से ज्यादा दरार तब आने लगती है जब भाई और बहन आपस में अपनी भावनाओं को शेयर नहीं करते. अगर आप को बहन या भाई से कोई शिकायत है तो उस से खुल कर बात करें. मन में बात रखने से मसला सुलझेगा नहीं बल्कि आप के बीच की दूरियां बढ़ेगी. इस से मन में नेगेटिव फीलिंग्स बढ़ेगी जो किसी गलत समय बाहर निकलेगी और रिश्ते के मिठास को पूरी तरह ख़त्म कर देगी.

दोस्तों की तरह शेयर करें छोटीछोटी बात – 

शादी के बाद भी आपस में अपने दुखसुख शेयर करें. इस से आप के बीच की दूरियां कम होगी और रिश्ता मजबूत होगा. अगर हर छोटी छोटी बात एकदूसरे से शेयर की जाए तो भाईबहन का रिश्ता दोस्ती का रिश्ता बन जाता है. आप किसी मुसीबत में भी है तो भाई से तुरंत बात शेयर करें. इस से आप की प्रॉब्लम का सलूशन भी निकल जाएगा और आप के बीच का तालमेल भी ठीक रहेगा.

एकदूसरे के लिए रखें त्याग की भावना –

अक्सर देखा जाता है कि भाईबहन किसी चीज को ले कर लड़ने लगते है कि वह उसे क्यों मिली मुझे क्यों नहीं. ऐसी स्थिति में एकदूसरे के प्रति ईर्ष्या की भावना पैदा होती है जो उन के रिश्ते में दरार ले कर आती है. इस के विपरीत त्याग की भावना आप को करीब लाती है.अनोखा होता है भाईबहन का प्यार

खट्टी मिठ्ठी तकरार में छिपा होता है प्यार –

शायद ही ऐसे कोई भाई बहन होंगे जिन के बीच छोटी मोटी नोकझोंक न होती है. लेकिन उन की इस तकरार के पीछे भी प्यार छिपा होता है जिसे वह वक्त आने पर एकदूसरे के लिए दिखाने में बिल्कुल भी पीछे नहीं रहते हैं. यही कारण है कि भाई और बहन का रिश्ता देखने में तो उतना मजबूत नहीं लगता, मगर समय पड़ने पर दोनों का प्यार साफ नजर आता है. वह एकदूसरे से प्यार करते हैं तो नफरत भी करते हैं. एकदूसरे का मजाक उड़ाते हैं तो तालमेल भी बिठा लेते हैं. भाई बहनों की बॉन्डिंग बहुत स्ट्रॉन्ग होती है. भाई या बहन हो तो जिंदगी का मजा दोगुना हो जाता है. शायद यही वजह है कि एक बेटा और एक बेटी से परिवार को पूरा माना जाता है. इस से बच्चों का बचपन भी अच्छा रहता है और उन के बीच एक मजबूत रिश्ता भी बनता है.

बन जाते हैं बेस्ट फ्रेंड –

जिंदगी में कई बातें ऐसी होती हैं जिन्हें आप मातापिता से खुल कर शेयर नहीं कर पाते हैं लेकिन अपने भाई या बहन से आसानी से साझा कर पाते हैं. इसी दौरान आप एकदूसरे के बेस्ट फ्रेंड भी बन जाते हैं. वहीं कई घर ऐसे भी होते हैं जहां बड़ा भाई या बहन पैरेंट्स की जगह मजबूत सहारा बन कर आप की जिंदगी में खड़ा होता है. ऐसे में आप अपनी छोटी से छोटी बात उन से शेयर करने लग जाते हैं और आप का रिलेशनशिप स्ट्रांग होता चला जाता है.

मुश्किल वक्त में देते हैं एकदूसरे का साथ –

जब भी किसी लड़की को कोई लड़का परेशान कर रहा होता है तो वह सब से पहले अपने भाई के पास जाती है. बहनों को ले कर भाई हमेशा ही बहुत प्रोटेक्टिव रहते हैं. उन्हें कोई भी तकलीफ हो तो वे पूरा घर सिर पर उठा लेते हैं. वहीं बहन भी अपने भाई को पैरेंट्स की हर डांट से बचाने के साथ ही उन के कठिन समय में उन का साथ देने का काम करती हैं. परेशानी के समय भाई या बहन के पास आप को रोने के लिए सब से मजबूत और कोमल कंधे मिलते हैं. यही बातें भाई और बहन के रिश्ते को मजबूत बनाती हैं.

एक आदमी मेरी बेटी को टौफी का लालच देकर उसे कमरे में ले जा रहा था…

सवाल

मेरी 5 साल की बेटी है. वह अक्सर बाहर निकलकर बच्चों के साथ पार्क में खेलने चली जाती है. पार्क घर के सामने ही है. एक दिन मेरी बच्ची किसी दूसरे पार्क में खेलने चली गई थी. मैं बहुत ज्यादा परेशान हो गई, पुलिस स्टेशन भी जाने वाली थी, तब तक एक पड़ोसी  मेरी बेटी को घर आकर छोड़ गया.
तभी से उस आदी का मेरे घर आनाजाना लगा रहता है. वह मेरी बेटी के साथ खेलता भी है. लेकिन एक दिन मैंने उसे नोटिस किया, वह मेरी बच्ची को चौकलेट लालच देकर उसे कमरे में चलने के लिए कह रहा था. जब मैं वहां गई तो वह कहने लगा कि ये बाहर जाने की जिद कर रही थी इसलिए मैं इसे चौकलेट देकर कमरे में ले जा रहा था. लेकिन मेरी बेटी ने ऐसा कुछ नहीं कहा था. मैंने इस बात को इग्नोर किया.

लेकिन उस दिन तो मैं शौक्ड रह गई कि जब वह आदमी मेरी बेटी को अजीब तरीके से टच कर रहा था. मैं अपनी बच्ची को घर लेते आई और उस लड़के को जोर की फटकार लगाई. मैं अब अपनी बच्ची को अकेले खेलने नहीं जाने देती हूं, वह बहुत रोने लगती है, तो फिर उसे मैं खुद ले जाती हूं. मुझे डर लग रहा है कि कहीं वह आदमी मेरी बेटी के साथ कुछ गलत कर दिया तो.. कृपया कोई सलाह दें…

जवाब

आजकल छोटे बच्चों को अपराध का ज्यादा निशाना बनाया जा रहा है. दरअसल, कम उम्र के बच्चे कमजोर और नासमझ होते हैं और दूसरों से जल्दी घुलमिल जाते हैं और विश्वास कर लेते हैं.
आपने बिलकुल सही किया उस लड़के को फटकार और आप अपनी बच्ची को खुद अपने साथ बाहर लेकर जा रही हैं, ये भी ठीक है. लेकिन हर जगह तो आप अपनी बच्ची के साथ नहीं जा पाएंगी, ऐसे में उसे खुद को ही प्रोटैक्ट करना होगा.

इसके लिए आपको अपनी बेटी को Good Touch और Bad Touch के बारे में बताना जरूरी है. ये बच्चों के लिए बहुत ही जरूरी विषय है. अक्सर पैरेंट्स अपने बच्चों को गुड टच और बैड टच के बारे में बताने में संकोच करते हैं. कई बार इसी जनाकारी के अभाव में बच्चे यौन शोषण के शिकार होते हैं.

बच्चे को इस तरह बताएं गुड टच और बैड टच के बारे में…

बच्चे को इस तरह समझाएं कि अगर कोई उन्हें टच करता है और वो कम्फर्टेबल फील करते हैं, तो ये गुड टच होता है और जब कोई पाइवेट पार्ट्स टच करता है, तो यह बैड टच कहलाता है.  बच्चों के मन से डर दूर करें और उनमें आत्मविश्वास जगाने की कोशिश करें,  उन्हें ना कहना सिखाएं. अगर उन्हें कोई गलत तरीके से छूने की कोशिश करे तो डरे नहीं बल्कि उन्हें ऐसा न करने के लिए बोलें. अगर कोई उनके साथ गलत करता है, तो उन्हें उसी समय बचने के लिए शोर मचाने का तरकीब बच्चों को सिखाएं ताकि कोई उनकी उस समय मदद कर सके.

प्रेग्नेंसी में दीपिका पादुकोण का नया लुक आया सामने, ‘गोल्डन हाइलाइट्स के साथ नया हेयर स्टाइल’

अक्सर देखा गया प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाएं अपने लुक के प्रति लापरवाह हो जाती है. उन्हें ऐसा लगता है कि बेबी बंप और ओवरवेट होने के कारण वो ग्लैमरस नहीं लग सकती लेकिन ऐसा नहीं है. अगर आप भी प्रेग्नेंसी में ग्लैमरस लुक की तलाश में तो बौलीवुड की इस हसीना के प्रग्नेंसी लुक पर नजर डाल कर बेहतर लुक कैरी कर सकती हैं.

 

प्रेग्नेंसी के 8वें महीने में गौर्जियस लुक

बौलीवुड की फेमस एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण अपने प्रेग्नेंसी के 8वें महीने में हैं और उनके फेस पर प्रेग्नेंसी का ग्लो साफ दिख ही रहा है. इस बीच, दीपिका ने अपनी डिलीवरी से पहले अपने को और बेहतर दिखाने के लिए लुक को बदल लिया है, दीपिका का प्रेग्नेंसी लुक क्या है आइए जानते हैं.

गोल्डन हाइलाइट्स के साथ नया हेयर स्टाइल

आपको बता दें दीपिका पादुकोण ने हाल ही में अपना नया हेयरस्टाइल और हेयर कलर कैरी किया है, जो सुर्खियों में है. दीपिका के हेयर स्टाइलिस्ट ने इंस्टाग्राम पर उनके नए हेयरकट की एक वीडियो शेयर की, इस वीडियो में दीपिका लाइट गोल्डन हाइलाइट्स के साथ अपने नए हेयर स्टाइल को फ्लौन्ट करती नजर आ रही हैं. इसमें दीपिका ने एक स्मार्ट येलो और व्हाइट स्ट्राइप शर्ट पहनी हुई है और साथ ही वह अपनी खूबसूरत रिस्ट वाच को भी दिखाती नजर आ रही हैं. इस वीडियो के कैप्शन में लिखा गया, “अनफौर्गेटेबल हेयर, अनफौर्गेटेबल आप.”

दीपिका के नए प्रेग्नेंसी लुक की हुई तारीफ

प्रेग्नेंट दीपिका पादुकोण के नए हेयरस्टाइल की वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है और फैंस भी दीपिका के नए लुक की जमकर तारीफ कर रहे हैं. एक यूजर ने लिखा, “मुझे यह हेयरकट बहुत पसंद है, यह बहुत सुंदर है और दीपिका भी बहुत खूबसूरत लग रही हैं. अमेजिंग!” एक और यूजर ने लिखा, “ओएमजी, वह वाल्यूम, वह लेयर्स और कलर्स सब कुछ पाइंट पर है.” वहीं, एक अन्य ने लिखा, “फाइनली सम आसम हेयरकट एंड सुपर ब्यूटीफुल हेयर्स.”

एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह ने फरवरी 2024 में प्रग्नेंसी की खुशखबरी शेयर की थी कि वे सितंबर में अपने पहले बच्चे की उम्मीद कर रहे हैं.

दीपिका का प्रग्नेंसी में सेल्फकेयर

दीपिका ने सातवें मंथ की भी इंस्टाग्राम पर एक फोटो शेयर की थी. जिसमें वह ‘सेल्फ केयर मंथ’ को सेलिब्रेट करते हुए नजर आ रही थीं. इस फोटो में दीपिका ऊपर पैर करके लेटी हुई नजर आईं थीं. इस दौरान उनका बेबी बंप भी दिखाई दे रहा था. इस वीडियो में दीपिका ने बताया, मुझे अच्छा वर्कआउट पसंद है. मैं ‘अच्छा दिखने’ के लिए नहीं बल्कि ‘फिट महसूस करने’ के लिए वर्कआउट करती हूं। जहां तक मुझे याद है व्यायाम मेरी जीवनशैली का हिस्सा रहा है. हालांकि, जब मैं वर्कआउट में फिट नहीं हो पाती, तो मैं 5 मिनट की इस सरल दिनचर्या का अभ्यास करती हूं. मैं इसे हर दिन करती हूं, चाहे मैं वर्कआउट करूं या नहीं.

दीपिका पादुकोण इन दिनों रोहित शेट्टी की फिल्म ‘सिंघम अगेन’ में बिजी है. दीपिका के नए हेयरस्टाइल और आने वाले बेबी के साथ-साथ उनके वर्क प्रोजेक्ट्स ने भी उसमें एक नई एनर्जी भर दी है.

लोन न चुकाने के कारण राजपाल यादव की करोड़ों की संपत्ति जब्त, गले की फांस बनी ‘अता पता लापता’

बौलीवुड अभिनेता राजपाल यादव पर मुश्किलों का पहाड़ टूट पड़ा है. उनकी करोड़ों की संपत्ति को सेंट्रल बैंक ने कुर्क कर ली है. राजपाल यादव ने फिल्म का निर्माण करने के लिए बैंक से 3 करोड़ का लोन लिया था. ये पूरी कहानी फिल्म ‘अता पता लापता’ से जुड़ी है, जिसे राजपाल ने खुद डायरेक्ट किया था और यह प्रोडक्शन हाउस उनकी पत्नी राधा यादव के नाम पर था. इसके लिए राजपाल यादव ने पिता की जमीन भवन को भी गारंटी के तौर पर बैंक में बंधक बनाया था. बैंक में लोन न चुकाने के कारण मुंबई की सेंट्रल बैंक ने यह कदम उठाया है.

फिल्म प्रोडक्शन के लिए लिया था लोन

एक्टर ने बैंक से 3 करोड़ रुपये का कर्ज लिया था. इंट्रेस्ट के साथ अब कुल 11 करोड़ हो गया है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक लोन चुका न पाने के कारण सेंट्रल बैंक की बांद्रा-कुर्ला कांप्लेक्स स्थित मुंबई शाखा की टीम शाहजहांपुर पहुंची और उन्होंने फिल्म अभिनेता राजपाल के पिता का मकान और उनकी जमीन को सील कर दिया है.

श्री नौरंग गोदावरी एंटरटेनमेंट लिमिटेड किसके नाम पर है 

राजपाल यादव ने अपने मातापिता के नाम पर ये प्रोडक्शन हाउस बनवाया था. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक राजपाल यादव के छोटे भाई राजेश यादव ने बताया है कि कुछ दिक्कतों की वजह से बैंक से लिया हुआ लोन समय से जमा नहीं हो पाया. जल्द ही बैंक से संपर्क कर लोन की वापसी सुनिश्चित की जाएगी. तो वहीं सदर थाना प्रभारी रविंद्र सिंह ने बताया कि प्रौपर्टी सील की गई है, इसकी जानकारी हुई है, लेकिन सील करने की कार्रवाई को लेकर कोई सूचना संबंधित बैंक अधिकारियों ने नहीं दी.

साल 2018 में भी राजपाल यादव को जाना पड़ा था जेल

आपको बता दें कि इससे पहले भी राजपाल यादव 3 महीने के लिए जेल जा चुके हैं. यह घटना साल 2018 की है.  रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली की एक कंपनी मुरली प्रोजेक्ट्स ने राजपाल यादव की कंपनी ‘श्री नौरंग गोदावरी एंटरटेनमेंट’ के खिलाफ सिविल केस फाइल किया था. यह लोन एक्टर ने साल 2010 में लिया था.

राजपाल यादव ने इन हिट फिल्मों में किया है काम

राजपाल यादव ने कई फिल्मों में काम किया है. बौलीवुड के जानेमाने कौमेडियन के रूप में जाना जाता है. कई फिल्मों में उन्होंने लीड रोल भी निभाया है, लेकिन ऐसी कई फिल्में हैं, जिसमें उन्हें साइड रोल मिली है. लेकिन उन्होंने अपनी कौमेडी से इन फिल्मों में जान डाल दी है. फिल्म ‘चुप चुप के’, ‘भूल भुलैया’, ‘ढोल’, ‘खट्टा-मीठा’ जैसी फिल्मों में अपने किरदार से दर्शकों का खूब मनोरंजन किया है.

Raksha Bandhan 2024 : इंसाफ- नंदिता ने कैसे निभाया बहन का फर्ज

नंदिता ने सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस छोटे भाई को पढ़ा- लिखा कर उस ने अफसर की कुरसी तक पहुंचाया है, एक अच्छे परिवार में शादी करवा कर जिस की गृहस्थी बसाई है वही भाई उस के साथ ऐसा बरताव करेगा. उस ने नया फ्लैट खरीदने के लिए डेढ़ लाख रुपए देने से इनकार ही तो किया था. उस ने तब उस को समझाया भी था कि हमारा यह पुश्तैनी मकान है. अच्छे इलाके में है. 2 परिवार आराम से रह सकें, इतनी जगह इस में है.

तब नवीन ने बड़ी बहन के प्रति आदरभाव को तारतार करते हुए कह डाला, ‘दीदी, मां और बाबूजी के साथ ही इस पुराने मकान की रौनक भी चली गई है. अब यह पलस्तर उखड़ा मकान हमें काटने को दौड़ता है. मोनिका तो यहां एक दिन भी रहना नहीं चाहती. मायके में वह शानदार मकान में रहती थी. कहती है कि इस खंडहर में रहना पड़ेगा, उस को यह शादी के पहले मालूम होता तो वह मुझ से शादी भी नहीं करती. वह सोतेजागते नया फ्लैट खरीदने की रट लगाए रहती है. आखिर, मैं उस के तकाजे को कब तक अनसुना करूं.’

नंदिता ने बहुतेरा समझाया था कि छोटी बहन नमिता की शादी महीने दो महीने में करनी है. अगर जमापूंजी फ्लैट खरीदने में निकल गई तो उस की शादी के लिए पैसे कहां से आएंगे. उस का तो जी.पी.एफ. अकाउंट भी खाली हो चुका है.

नवीन उस दिन बहुत उखड़ा हुआ था. आव देखा न ताव, बोल पड़ा, ‘यह आप की चिंता है, दीदी. मैं इस पचड़े में नहीं पड़ना चाहता. नमिता की शादी करना आप की जिम्मेदारी है. उस को आप कैसे निभाएंगी, आप जानें.’

नंदिता आश्चर्य से छोटे भाई का मुंह देखने लगी. नवीन इस तरह की बातें कहेगा, उस ने तो सपने में भी नहीं सोचा था. वह भी बिफर उठी थी, ‘तुम नमिता के बड़े भाई हो, इस परिवार के एकमात्र पुरुष. इस तरह अपनी जिम्मेदारी से पिंड कैसे छुड़ा सकते हो तुम.’

‘देखो, दीदी, अब मैं कोई दूधपीता बच्चा नहीं हूं. सच बात तो यह है कि जिम्मेदारी जिस को सौंपी जाती है वही उस को निभाने के लिए पाबंद होता है. आप परिवार में सब से बड़ी हैं,’ नवीन ने आज अपने मन की सारी भड़ास निकालने का फैसला ही कर लिया था. बोला, ‘बाबूजी ने अंतिम समय हम लोगों की सारसंभाल की जिम्मेदारी आप को सौंपी थी और आप ने तब भी उन से वादा किया था कि आप अपनी इस जिम्मेदारी को निभाएंगी.’

यह कह कर तो नवीन ने नंदिता के मुंह पर ताला ही लगा दिया था. कुछ कहने, समझाने की उस ने गुंजाइश ही नहीं छोड़ी थी. वह चुपचाप ड्राइंगरूम से उठ कर अपने कमरे में जा कर बिस्तर पर पड़ गई. उस

का दिमाग पुरानी स्मृतियों के झंझा-वातों से भर उठा. बीती घटनाएं फिल्म के दृश्यों की तरह एक के बाद एक उस के स्मृतिपटल पर उभरने लगीं :

जब थोड़ी सी बीमारी के बाद मां की मृत्यु हुई वह बी.ए. फाइनल में थी. मेरिट में आने का मनसूबा बांधे बैठी थी वह. परिवार की सब से बड़ी संतान और लड़की होने से घर की देखभाल का जिम्मा न जाने कब उस के कमजोर कंधों पर आ पड़ा, वह समझ ही नहीं पाई. घर की गाड़ी के पहिए उस को धुरी मान कर घूमने लगे.

‘मेरी समझदार बेटी नंदिता सब संभाल लेगी,’ बाहरभीतर सब तरफ यह घोषणा कर के पिताजी ने तो घर की सारी जिम्मेदारियों से खुद को जैसे बरी कर लिया था.

नंदिता 3 भाईबहन हैं. नंदिता से छोटा नवीन है और नवीन से छोटी नमिता. नवीन को पढ़ने, दोस्तों के साथ मौजमस्ती करने और बाकी समय में क्रिकेट खेलने से फुरसत ही नहीं मिलती थी. नमिता तो परिवार की लाड़ली होने का पूरापूरा फायदा उठाती रही. कभी मूड होता तो घर के काम में नंदिता का हाथ बंटाती वरना सहेलियों और कालिज की पढ़ाई में ही अपने को व्यस्त रखती.

नंदिता जानती थी कि नमिता को आखिर एक दिन पराए घर जाना है. घर के रोजमर्रा के काम में भी वह रुचि ले, ऐसी कोशिश नंदिता करती रहती थी पर नमिता यह कह कर उस पर पानी फेर देती कि अभी तो मुझे आप अपने राज में आजाद पंछी की जिंदगी जी लेने

दो, जब ससुराल पहुंचूंगी तो सब सीख लूंगी. समय अपनेआप सब सिखा देता है. आप आज घर को जिस कुशलता से संभाल रही हैं वह भी तो समय की जरूरत

ने ही आप को सिखाया है, दीदी.

नंदिता ने इस के बाद तो किसी से शिकवाशिकायत करना छोड़ ही दिया था. प्रथम श्रेणी में बी.ए. करने के बाद वह समाजशास्त्र में एम.ए. कर के पीएच.डी. करना चाहती थी. पर सोचा हुआ सब कहां हो पाता है. पिताजी ने घर की जिम्मेदारियों का वास्ता दे कर बी.ए. करने के बाद उस को घर बैठा लिया था. बेचारी मन मसोस कर रह गई थी.

एक दिन भयानक हादसा हुआ. दौरे से लौटते समय एक सड़क दुर्घटना में उस के पिता इन तीनों भाईबहनों को अनाथ कर के संसार से विदा हो गए. नंदिता पर तो जैसे मुसीबतों का पहाड़ ही टूट पड़ा. तब कुल 25 वर्ष की उम्र थी उस की. पिता के दफ्तर वालों ने बड़ी मदद की. उस को पिता के दफ्तर में ही क्लर्क की नौकरी दे दी.

जैसेतैसे परिवार की गाड़ी चलने लगी. कई बार पैसे की तंगी उस का रास्ता रोक कर खड़ी हुई पर नंदिता ने नवीन और नमिता को यह एहसास नहीं होने दिया कि वे अनाथ हैं. उन की पढ़ाई बदस्तूर चलती रही.

नवीन पढ़ने में होशियार था. उस ने प्रथम श्रेणी में बी.ए. की परीक्षा पास की और खंड विकास अधिकारी के पद पर नौकरी पाने में सफल रहा.

एक दिन नंदिता के मन में आया कि अब नवीन की शादी कर दे. बहू के आने पर घर के काम में दिनरात खटने से उस को भी कुछ राहत मिल जाएगी. उस ने लड़की तलाशनी शुरू की. छोटे मामाजी की मदद से नवीन की शादी बड़े अफसर की बेटी मोनिका के साथ हो गई.

नंदिता ने मोनिका को ले कर जो आशाएं मन में पाल रखी थीं वे कुछ महीने बीततेबीतते मिट्टी में मिल गईं. बड़े बाप की बेटी ने ससुराल में ऐसे रंग दिखाए कि नंदिता को घर के काम में उस की तरफ से किसी भी तरह की मदद की उम्मीद छोड़नी पड़ी.

नंदिता को हालांकि सकारात्मक उत्तर की जरा भी आस नहीं थी, फिर भी हिम्मत बटोर कर एक दिन उस ने मोनिका से कह डाला, ‘मोनिका, मुझे भी 10 बजे दफ्तर जाना पड़ता है. मैं चाहती हूं कि रोटियां तुम सेंक लिया करो. किचन का बाकी काम तो मैं निबटा ही लूंगी. तुम से इतनी मदद मिलने पर दफ्तर जाने के लिए मैं अपनी तैयारी भी सहूलियत से कर सकूंगी.’

‘नहीं, दीदी,’ मोनिका ने रूखा सा जवाब दिया, ‘यह मुझ से नहीं होगा. मैं तो सो कर ही सुबह 9 बजे उठती हूं. नवीन के भी बहुत सारे काम मुझे करने पड़ते हैं. रोज रोटियां सेंकने का जिम्मा मैं नहीं ले सकती. वैसे भी किचन के गोरखधंधे में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है. हमारे यहां तो नौकर ही यह सब करते थे. मुझे तो आप बख्श ही दीजिए.’

इस के बाद तो नंदिता ने घर के कामकाज को ले कर चुप्पी ही साध ली. खुद ही गृहस्थी की गाड़ी को एक मशीन की तरह ढोती चली गई. परिवार के बाकी सदस्य तो सब देख कर भी अनजान बन बैठे. इस बीच मौसाजी की एक बात को ले कर घर में भूचाल ही आ गया और कई दिन उस का कंपन थमा ही नहीं. उस दिन मौसाजी ने सहज भाव से इतना ही तो कहा था कि उन्होंने भी नंदिता के लिए एक अच्छा सा लड़का देखा है. लड़का क्लास टू आफिसर है. परिवार भी खानदानी है, आदर्श विचारों के लोग हैं. दहेज की मांग भी नहीं है. नंदिता वहां बहुत सुखी रहेगी.

मौसाजी की बात सुन कर एक मिनट के लिए तो जैसे सन्नाटा ही छा गया. नवीन और मोनिका एकदूसरे का मुंह ताकने लगे. दोनों के चेहरों पर हैरानी और परेशानी की गहरी रेखाएं खिंचती चली गईं.

‘यह क्या बात ले बैठे आप भी, मौसाजी,’ नवीन ने सकुचाते हुए अपनी बात रखी, ‘दीदी तो इस घर की सबकुछ हैं. वह तो आत्मा हैं हमारे परिवार की. बाबूजी उन्हीं को तो घर की सारी जिम्मेदारियां सौंप गए थे. अभी नमिता की शादी होनी है. हम पतिपत्नी भी अभी ठीक से सैटिल नहीं हो पाए हैं. दुनियादारी की हम लोगों को समझ ही कहां है. दीदी दूसरे घर चली गईं तो इस घर का क्या होगा. हम तो कहीं के नहीं रहेंगे.’

मौसाजी हक्केबक्के थे. मोनिका के शब्दों ने तो उन्हें आहत ही कर डाला था. वह तैश में आ कर बोली थी, ‘दीदी यों ही सब संभालती रहेंगी, यह विश्वास कर के ही तो मैं नवीन के साथ शादी करने के लिए राजी हुई थी. वह हमें अधबीच में छोड़ कर इस घर से नहीं जाएंगी, यह आप साफसाफ सुन लीजिए, मौसाजी.’

नंदिता को लगा जैसे कई बिच्छुओं ने एकसाथ उस के शरीर में अपने जहरीले पैने डंक घुसेड़ दिए हैं और वह चीख भी नहीं पा रही है.

मोनिका की बात ने बुजुर्ग मौसाजी के दिल को छलनी कर डाला. एक लंबी जिंदगी देखी है उन्होंने, समझ गए कि माटी के पक्के बरतनों पर कोई रंग नहीं चढ़ता. बिना कुछ कहेसुने वह तुरंत घर से बाहर हो गए. वह जानते थे कि जिन की आंखों की शरम मर जाती है, जिन के मन में मानवीय रिश्तों की कोई कीमत नहीं रहती, ऐसे लोगों को अच्छी नसीहतें देना रेत का घरौंदा बनाने जैसा है. नंदिता भी वहां ज्यादा देर बैठी न रह सकी.

उस दिन के बाद घर में रोज की जिंदगी तो पिछली रफ्तार से ही चलती रही पर जैसे उस में जगहजगह स्पीड ब्रेकर खडे़ हो गए थे. इन स्थितियों ने नंदिता को काफी दुखी कर दिया. वह चुपचुप रहने लगी. सिर्फ नमिता के साथ ही वह खुल कर बात करती थी, नवीन और मोनिका के साथ उस के संवाद का दायरा काफी सिकुड़ता चला गया था. ज्यादातर वह अपने कमरे में कैदी सी पड़ी रहने लगी थी. कोई कुछ पूछता तो ‘हां’ या ‘ना’ में जवाब दे कर चुप हो जाती थी. जब अकेली होती तो खुद से पूछने लगती कि उस के स्नेह, परिश्रम और त्याग का उस को क्या यही प्रतिफल मिलना चाहिए था.

नवीन और मोनिका की निष्ठुरता से जूझते हुए भी नंदिता छोटी बहन के लिए अपनी जिम्मेदारी के बारे में बराबर सचेत रही. वह चुपचाप उस के लिए लड़के की तलाश में लगी रहती. एक अच्छा लड़का उस को पसंद आया. प्राइवेट कंपनी में एक्जीक्यूटिव था. अच्छी तनख्वाह थी. देखने में भी ठीक ही था. परिवार में पढ़ालिखा और उदार विचारों वाला था. उम्र में 7 साल का अंतर नंदिता की नजर में ज्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं था. अमूमन लड़के और लड़की की उम्र में 5-6 साल का अंतर तो आजकल आम बात है.

लड़के का नाम था, कपिल. एक दिन रविवार को नंदिता ने कपिल को अपने घर चाय पर बुला लिया. उद्देश्य था वह नमिता को ठीक से देख ले, आपस में जो भी पूछताछ करनी हो, कर ले. बाकी बातें तो कपिल के मातापिता से मिल कर उस को स्वयं ही तय करनी हैं. मौसाजी और मामाजी को भी अपने साथ ले लेगी. नवीन और मोनिका को इस बात की भनक लग चुकी थी पर नंदिता ने इस काम में उन की कोई भूमिका तय नहीं की थी इसलिए दोनों चुप थे.

कपिल वक्त का पाबंद निकला. शाम के 5 बजतेबजते पहुंच गया. एक सलोना सा युवक भी उस के साथ था.

‘कपिलजी, एक बात पूछूं?’ नंदिता ने शुरुआत की, ‘आप पिछले कुछ दिनों से मेरे दफ्तर में खूब आजा रहे हैं. कोई काम तो वहां नहीं अटका है आप का?’

‘जी नहीं, कोई काम नहीं अटका. यों ही आया होऊंगा.’

‘आप सरीखा समझदार आदमी किसी सरकारी दफ्तर में यों ही चक्कर काटेगा, यह बात मेरे गले नहीं उतर रही.’

‘समझ आने पर बात आप के गले उतर जाएगी…आप बिलकुल चिंता न करें. अभी तो बस, इतना ही बताइए कि मेरे लिए क्या आज्ञा है?’

नंदिता ने जांच लिया कि लड़का सचमुच तेज है. उस को बातों में भरमाया नहीं जा सकता. सो बिना भूमिका के उस ने काम की बात शुरू कर दी, ‘आजकल शादीब्याह के मामले में आगे बढ़ने के लिए पहली और सब से जरूरी औपचारिकता है लड़कालड़की के बीच सीधा संवाद. मैं चाहती हूं कि आप कमरे में जा कर नमिता से बात करें. जो पूछना हो पूछ लें और जो बताना हो वह बताएं.’

‘मैं भला क्यों करूं यह सब पूछताछ नमिता से,’ कपिल ने शरारती लहजे में कहा.

‘आप को नमिता को अपने लिए चुनना है. इसलिए नमिता से पूछताछ आप नहीं करेंगे तो भला कौन करेगा,’ नंदिता पसोपेश में पड़ गई. सच बात तो यह थी कि कपिल की पहेली को वह समझ ही नहीं पा रही थी.

‘आप से यह किस ने कह दिया कि नमिता को मुझे अपने लिए चुनना है?’

‘कपिलजी, आप को आज यह हो क्या गया है. कैसी उलटीपुलटी बातें कर रहे हैं आप.’

‘मेरी बात तो एकदम सीधीसीधी है, नंदिताजी.’

‘सीधी किस तरह है. मैं ने नमिता के बारे में ही तो आज आप को यहां बुलाया है. आप यह बेकार का कन्फ्यूजन क्यों पैदा कर रहे हैं?’

‘कन्फ्यूजन वाली कोई बात नहीं है, मैं तो बस, आप से बात करने आया हूं.’

‘मतलब.’

‘यही कि मुझे तो जिंदगी में एक का चुनाव करना था, सो मैं ने कर लिया है.’

‘किस का?’

‘नंदिताजी का, नमिताजी की बड़ी बहन का.’

नंदिता को लगा जैसे वह आसमान से गिर पड़ी है. एक बार तो उसे महसूस हुआ कि कपिल उस के साथ ठिठोली कर रहा है. पर उस के हावभाव से तो ऐसा कुछ भी नहीं लग रहा था.

वह बोली, ‘यह क्या गजब कर रहे हैं आप. मैं इतनी स्वार्थी नहीं हूं कि अपनी लाड़ली बहन के सौभाग्य का सिंदूर झपट कर अपनी मांग में सजा लूं. नमिता मेरी छोटी बहन ही नहीं मेरी प्यारी बेटी भी है. मां के देहांत के बाद मैं ने प्यारदुलार दे कर उसे बड़े जतन से पाला है. मैं उस के साथ ऐसा अनर्थ तो सपने में भी नहीं कर सकती.’

नंदिता की आंखों में आंसू छलछला आए. सारा वातावरण संजीदगी से भर गया.

कपिल ने बात को स्पष्ट करते हुए कहा, ‘नंदिताजी, आप सच मानिए, पिछले एक महीने से मैं आप के बारे में ही सारी जानकारी इकट्ठी करने में लगा था. उसी की खातिर आप के दफ्तर भी जाया करता था. आप के साथ घोर अन्याय हुआ है, फिर चाहे वह हालात ने किया हो, आप के पिता ने या फिर आप के भाई ने. आप ने अपने परिवार के लिए जो तपस्या की है उस के एवज में तो आप को वरदान मिलना चाहिए था. पर सब जानते हैं कि अब तक अभिशाप ही आप के पल्ले पड़ा है. क्या अपनी गृहस्थी बसाने का आप का कोई सपना नहीं है? सचसच बताइए?’

नंदिता ने संयत होते हुए कहा, ‘वह सब तो ठीक है पर नमिता के सौभाग्य को अपने सपने पर कुर्बान करने के लिए मैं न तो कल तैयार थी और न आज तैयार हूं. उसे मैं जिंदगी भर कुछ न कुछ देती ही रहना चाहती हूं. उस के अधिकार की कोई वस्तु छीनना मुझे कतई गवारा नहीं है. यह मुझ से कभी नहीं होगा. आप जा सकते हैं. आप का प्रस्ताव मुझे कतई मंजूर नहीं है.’

‘आप को मेरा प्रस्ताव मंजूर हो या न हो पर हम तो इस घर से जल्दी ही दुलहनियां ले कर जाएंगे,’ कपिल ने वातावरण को हलका बनाने की गरज से कहा.

‘मेरे जीते जी तो यह कभी नहीं होगा.’

‘जरूर होगा. इस घर से एक दिन 2 दूल्हे 2 दुलहनियां ले कर ही विदा होंगे.’

नंदिता जैसे सोते से जाग उठी. पूछा, ‘और वह दूसरा लड़का?’

‘यह रहा,’ साथ में बैठे सलोने युवक की ओर इशारा करते हुए कपिल ने जवाब दिया, ‘और इन दोनों को किसी कमरे में जा कर आपस में पूछपरख करने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी.’

‘क्यों?’

‘क्योंकि ये दोनों कालिज के सहपाठी हैं. एकदूसरे को खूब जानते हैं. साथसाथ जीनेमरने की कसमें भी खा चुके हैं, बहुत पहले.’

‘पर ये हैं कौन? परिचय तो दीजिए इन का.’

अचानक नमिता ड्राइंगरूम में आई. वह पास के कमरे में नंदिता और कपिल की बातें कान लगाए सुन रही थी.

‘मैं देती हूं इन का परिचय,’ नमिता बोली, ‘दीदी, इन का नाम विकास है और यह कपिलजी के चचेरे भाई हैं. डिगरी कालिज में 3 साल हम क्लासमेट रहे हैं. मेलजोल अब भी है. दोनों ने साथसाथ जीवन का सफर तय करने का फैसला बहुत पहले कर लिया था.’

‘लेकिन पगली, इस बारे में मुझे तो बताती. मैं तेरी दुश्मन थोड़े ही हूं,’ नंदिता ने नमिता को अपने पास सोफे पर बिठाते हुए कहा.

‘आप वैसे भी इन दिनों काफी परेशान रहती हैं, दीदी. मैं विकास और अपने बारे में आप को बता कर आप की परेशानियों को बढ़ाना नहीं चाहती थी. मैं ने आप से यह बात छिपाने की गलती की है. मुझे माफ कर दो, दीदी.’

‘इस में माफी जैसी कोई बात नहीं है मेरी प्यारी बहना. तू ने जो भी किया अपनी समझ से अच्छा ही किया है. विकासजी, इस बारे में आप को कुछ कहना है या फिर फैसला सुना दिया जाए?’

‘मुझे कुछ नहीं कहना. जो कहना था वह नमिता कह चुकी है. नंदिताजी, आप तो बस, फैसला सुना दीजिए,’ विकास बोला.

‘कपिलजी ने ठीक ही कहा है, इस घर से जल्दी ही 2 दूल्हे, 2 दुलहनियां ले कर विदा होंगे,’ इतना कह कर नंदिता ने नमिता को गले लगा लिया.

आज बरसों बाद नंदिता की सूखी आंखों में खुशी के आंसू छलछला आए. उसे लगा आज पहली बार कुदरत ने उस के साथ इंसाफ किया है. इस तरह अचानक मिले इंसाफ से कितनी खुशी होती है, इस का एहसास भी उसे पहली बार हुआ.

Raksha Bandhan 2024 : जरा सी बात- क्यों ननद से नाराज थी प्रथा

प्रथा नहीं जानती थी कि यों जरा सी बात का बतंगड़ बन जाएगा. हालांकि अपने क्षणिक आवेश का उसे भी बहुत दुख है, लेकिन अब तो बात उस के हाथ से जा चुकी है. वैसे भी विवाहित ननदों के तेवर सास से कम नहीं होते. फिर रजनी तो इस घर की लाडली छोटी बेटी थी. सब के स्नेह की इकलौती अधिकारी… उस के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे परिवार के लिए ये जरा सी बात बहुत बड़ी बात थी.

‘हां, जरा सी बात ही तो थी… क्या हुआ जो आवेश में रजनी को एक थप्पड़ लग गया. उसे इतना तूल देने की क्या जरूरत थी. वैसे भी मैं ने किसी द्ववेष से तो उसे थप्पड़ नहीं मारा था. मैं तो रजनी को अपनी छोटी बहन मानती हूं. रजनी की जगह मेरी अपनी बहन होती तो क्या इसे पी नहीं जाती. लेकिन रजनी लाख बहन जैसी होगी, बहन तो नहीं है न. इसीलिए तांडव मचा रखा है,’ प्रथा जितना सोचती उतना ही उल झती जाती. मामले को सुल झाने का कोई सिरा उस के हाथ नहीं आ रहा था.

दूसरा कोई मसला होता तो प्रथा पति भावेश को अपनी बगल में खड़ा पाती, लेकिन यहां तो मामला उस की अपनी छोटी बहन का है, जिसे रजनी ने अपने स्वाभिमान से जोड़ लिया है. अब तो भावेश भी उस से नाराज है. किसकिस को मनाए… किसकिस को सफाई दे… प्रथा सम झ नहीं पा रही थी.

हालांकि ननद पर हाथ उठते ही प्रथा को अपनी गलती का एहसास हो गया था. लेकिन वह जली हुई साड़ी बारबार उसे अपनी गलती नहीं मानने के लिए उकसा रही थी. दरअसल, प्रथा को अपनी सहेली की शादी की सालगिरह पार्टी में जाना था. भावेश पहले ही तैयार हो कर उसे देर करने का ताना मार रहा था ऊपर से जिस साड़ी को वह पहनने की सोच रही थी वह आयरन नहीं की हुई थी.

छुट्टियों में मायके आई हुई ननद ने लाड़ दिखाते हुए भाभी की साड़ी को आयरन करने की जिम्मेदारी ले ली. प्रथा ननद पर री झती हुई बाथरूम में घुस गई. इधर ननदोईजी का फोन आ गया और उधर रजनी बातों में डूब गई. बातों में व्यस्त रजनी आयरन को साड़ी पर से उठाना भूल गई और जब प्रथा बाथरूम से निकली तो अपनी साड़ी को जलते देख कर अपना होश खो बैठी. उस ने ननद को उस की गलती का एहसास करवाने के लिए गुस्से में उस से मोबाइल छीनने की कोशिश की, लेकिन खतरे से अनजान रजनी के अचानक मुंह घुमा लेने से प्रथा का हाथ उस के गाल पर लग गया जिसे उस ने ‘थप्पड़’ कह कर पूरे घर को सिर पर उठा लिया.

देखते ही देखते घर में भूचाल आ गया. घर भर की लाडली बहू अचानक किसी खलनायिका सी अप्रिय हो गई.

मनहूसियत के साए में भी भला कभी रूमानियत खिली है? प्रथा का पार्टी में जाना तो कैंसिल होना ही था. अब सासननद तो रसोई में घुसने से रही क्योंकि वह तो पीडि़त पक्ष था. लिहाजा प्रथा को ही रात के खाने में जुटना पड़ा.

खाने की मेज पर सब के मुंह चपातियों की तरह फूले

हुए थे. ननद ने खाने की तरफ देखना तो दूर खाने की मेज पर आने तक से इनकार कर दिया. सास ने बहुत मनाया कि किसी तरह दो कौर हलक से नीचे उतार ले, लेकिन रूठी हुई रानियां भी भला बनवास से कम मानी हैं कभी?

रजनी की जिद थी कि भाभी उस से माफी मांगे. सिर्फ दिखावे भर की नहीं, बल्कि पश्चात्ताप के आंसुओं से तर माफी. उधर प्रथा इसे अपनी गलती ही नहीं मान

रही थी तो माफी और पश्चात्ताप का तो प्रश्न ही नहीं उठता, बल्कि वह तो चाह रही थी कि रजनी को उस की कीमती साड़ी जलाने का अफसोस करते हुए स्वयं उस से माफी मांगनी चाहिए.

जिस तरह से एक घर में 2 महत्त्वाकांक्षाएं नहीं रह सकतीं उसी तरह से यहां भी यह जरा सी बात अब प्रतिष्ठा का सवाल बनने लगी थी. रजनी अब यहां एक पल रुकने को तैयार नहीं थी. वहीं सास को डर था कि बात समधियाने तक जाएगी तो बेकार ही धूल उड़ेगी. किसी तरह सास उसे मामला सुलटने तक रुकने के लिए मना सकी. एक उम्मीद भी थी कि हो सकता है 1-2 दिन में प्रथा को अपनी गलती का एहसास हो जाए.

ससुरजी का कमरा और सास की अध्यक्षता… देर रात तक चारों की मीटिंग चलती रही. प्रथा इस मीटिंग से बहिष्कृत थी. अपने कमरे में विचारों में डूबी प्रथा के लिए पति को अपने पक्ष में करना कठिन नहीं था. पुरुष की नाराजगी भला होती ही कितनी देर तक है… कामिनी स्त्री की पहल जितनी ही न… एक रति शस्त्र में ही पुरुष घुटनों पर आ जाता है. लेकिन आज प्रथा इस अमोघ बाण को चलाने के मूड में भी तो नहीं थी. वह भी देखना चाहती थी कि इस ससुरजी के कमरे में होने वाले मंथन से उस के हिस्से में क्या आता है. जानती थी कि हलाहल ही होगा लेकिन बस आधिकारिक घोषणा का इंतजार कर रही थी.

ढलती रात भावेश ने कमरे में प्रवेश किया. प्रथा जागते हुए भी सोने का नाटक करती रही. भावेश ने उस की कमर के गिर्द घेरा डाल दिया. प्रथा ने कसमसा कर अपना मुंह उस की तरफ घुमाया.

‘‘प्रथा, तुम सुबह रजनी से माफी मांग लेना. बड़ी मुश्किल से उसे इस बात के लिए राजी कर पाए हैं कि वह इस बात को यहीं खत्म कर दे,’’ भावेश ने अपनी आवाज को यथासंभव धीरे रखा ताकि बात बैडरूम से बाहर न जाए.

उस का प्रस्ताव सुनते ही प्रथा के सीने में जलन होने लगी. बोली, ‘‘भावेश तुम भी… जिस ने गलती की उसी का पक्ष ले रहे हो?  एक तो तुम्हारी उस नकचढ़ी बहन ने मेरी इतनी कीमती साड़ी जला दी, ऊपर से तुम चाहते हो कि मैं नाराजगी जाहिर करने का अपना अधिकार भी खो दूं? गिर जाऊं उस के पैरों में? नहीं, मु झ से यह नहीं होगा… किसी सूरत में नहीं.’’

‘‘साड़ी ही तो थी न, जाने दो. मैं वैसी 5 नई ला दूंगा. तुम प्लीज उस से माफी मांग लो,’’ भावेश ने फिर खुशामद की.

मगर प्रथा ने कोई जवाब नहीं दिया और पीठ फेर कर सो गई, जो उस के स्पष्ट इनकार का द्योतक था.

भावेश ने उसे मजबूत बांह से पकड़ कर जबरदस्ती अपनी तरफ फेरा. प्रथा को उस की यह हरकत बहुत ही नागवार लगी.

‘‘एक थप्पड़ ही तो मारा था न… वह भी उस की गलती पर. यदि वह तुम्हारी

बहन न हो कर मेरी बहन होती तब भी क्या ऐसा ही बवाल मचता? नहीं न? बात आईगई हो जाती. तुम बहनभाई कभी आपस में नहीं लड़े क्या? क्या तुम ने या तुम्हारे मांपापा ने आज तक कभी उस पर हाथ नहीं उठाया? फिर आज ये महाभारत क्यों छिड़ गई?’’ प्रथा ने उस का हाथ  झटकते हुए कहा.

भावेश ने बात आगे न बढ़ाना ही उचित सम झा. उस रात शायद घर का कोई भी सदस्य नहीं सोया होगा. सब अपनेअपने मन को मथ रहे थे. विचारों की  झड़ी लगी थी. रजनी अपनी मां के आंचल को भिगो रही थी तो प्रथा तकिए को.

सुबह प्रथा ने अपनी नैतिक जिम्मेदारी सम झते हुए सब को चाय थमाई, लेकिन आज इस चाय में किसी को कोई मिठास महसूस नहीं हुई. रजनी और सास ने तो कप को छुआ तक नहीं. बस, घूरती रहीं. हरकोई बातचीत शुरू होने की प्रतीक्षा कर रहा था.

‘‘भाई, तुम किसे ज्यादा प्यार करते हो मु झे या अपनी बीवी को?’’ अचानक रजनी का अटपटा प्रश्न सुन कर भावेश चौंक गया. उस ने अपनी मां की तरफ देखा. मां ने कन्नी काट ली. पिता ने अपना सिर अखबार में घुसा लिया. प्रथा की निगाहें भी भावेश के चेहरे पर टिक गई.

‘‘यह कैसा बेतुका प्रश्न है?’’ भावेश ने धर्मसंकट से बचना चाहा, लेकिन यह इतना आसान कहां था.

‘‘अटपटाचटपटा मैं नहीं जानती. आप जवाब दो कि यदि आप को बहन औैर बीवी में से एक को चुनना पड़े तो आप किसे चुनेंगे?’’ रजनी ने उसे रणछोड़ नहीं बनने दिया.

भावेश ने देखा कि प्रथा बिना उस के जवाब की प्रतीक्षा किए बाथरूम में घुस गई. उस ने राहत की सांस ली. वह रजनी की बगल वाली कुरसी पर आ कर बैठ गया. भावेश ने स्नेह से बहन की गले में अपने हाथ डाल धीरे से गुनगुनाया, ‘‘फूलों का तारों का…सब कहना है…एक हजारों में… मेरी बहना है…’’

दृश्य देख कर मां मुसकराई. पिता का सीना गर्व से चौड़ा हो गया. रजनी को अपने प्रश्न का जवाब मिल गया था.

‘‘भाई, यदि आप मु झे सचमुच प्यार करते हो तो भाभी को तलाक दे दो,’’ रजनी ने भाई के कंधे पर सिर टिकाते हुए कहा. उस की आंखें  झर रही थीं.

बहन की बात सुनते ही भावेश को सांप सूंघ गया. उस ने रजनी का मुंह अपने हाथों में ले लिया, ‘‘यह क्या कह रही हो तुम? जरा सी बात पर इतना बड़ा फैसला? तलाक का मतलब जानती हो न? एक बार फिर से सोच कर देखो. मेरे खयाल से प्रथा की गलती इतनी बड़ी तो नहीं है जितनी बड़ी तुम सजा तय कर रही हो,’’ भावेश ने रजनी को सम झाने की कोशिश की. फिर अपनी बात के समर्थन में उस ने मांपापा की तरफ देखा, लेकिन मां ने अनसुना कर दिया और पापा तो पहले से ही अखबार में घुसे हुए थे. भावेश निराश हो गया.

‘‘जरा सी बात? क्या बहन के स्वाभिमान पर चोट भाई के लिए जरा सी बात हो सकती है? हम बहनें इसी दिन के लिए राखियां बांधती हैं क्या?’’ रजनी ने गुस्से से कहा.

‘‘रजनी ठीक ही कहती है. वो 2 साल की ब्याही लड़की तुम्हें अपनी सगी बहन से ज्यादा प्यारी हो गई? आज उस ने रजनी से माफी मांगने से मना किया है कल को सासससुर की इज्जत को भी फूंक मार देगी,’’ बहनभाई की बहस को नतीजे पर पहुंचाने की मंशा से मां बोली.

‘‘मनरेगा में बरसात से पहले ही नदीनालों पर बांध बनवाए जा रहे हैं ताकि तबाही होने से रोकी जा सके. सरकार का यह फैसला प्रशंसनीय है,’’ पापा ने अखबार की खबर पढ़ कर सुनाई.

भावेश सम झ गया कि इन का पलड़ा भी बेटी की तरफ ही  झुका हुआ है.

कहां तो भावेश सोच रहा था कि इस बार बहन के प्यार को रिश्तों के पलड़े पर रख कर मकान पर उस के हिस्से वाले आधे भाग को भी अपने नाम करवा लेगा, लेकिन यहां तो खुद उस का प्यार ही पलडे़ पर रखा जा रहा है. प्रथा का थप्पड़ उस के मंसूबों की लिखावट पर पानी फेर रहा है. उस ने वैभव ने प्रथा को शीशे में उतारना तय कर लिया. वह इस जरा सी बात के लिए अपना इतना बड़ा नुकसान नहीं कर सकता. फिर वैसे भी यदि वह नुकसान में होगा तो प्रथा भी कहां फायदे में रहेगी.

रजनी दिनभर अपने कमरे में पड़ी रही. सब ने

कोशिश कर देख ली, लेकिन वह तो प्रथा को तलाक देने की बात पर अड़ ही गई. हालांकि सब को उस की यह जिद बचकानी ही लग रही थी, लेकिन मन में कहीं न कहीं यह भय भी सिर उठा रहा था कि इस बार की जीत कहीं प्रथा के सिर पर सींग न उगा दे. कहीं ऐसा न हो कि वह छोटेबड़े का लिहाज ही बिसरा दे…  झाडि़यों को बेतरतीब होने से पहले ही कतर देना ठीक रहता है. इसलिए प्रथा को एक सबक सिखाने के पक्ष में तो सभी थे.

‘‘प्रथा, सुनो न,’’ रात को सोने से पहले भावेश ने स्वर पर चाशनी चढ़ाई. प्रथा ने सिर्फ आंखों से पूछा, ‘‘क्या है?’’

‘‘रजनी को सौरी बोल भी दो न. उस का बालहठ सम झ कर. जरा सोचो. यदि यह बात उस की ससुराल चली गई तो वे लोग हमारे बारे में क्या सोचेंगे खासकर तुम्हारे बारे में? तुम जानती हो न कि रजनी के ससुरजी तुम्हें कितना मान देते हैं,’’ भावेश ने निशाना साध कर चोट की. निशाना लगा भी सही जगह पर प्रहार अधिक दमदार न होने के कारण अपने लक्ष्य को बेध नहीं सका.

‘‘इसे बालहठ नहीं इसे तिरिया हठ कहते हैं.’’ प्रथा ने ननद पर व्यंग्य कसते हुए पति के कमजोर ज्ञान पर तीर चला दिया.

भावेश को पत्नी की यह बात खली तो बहुत, लेकिन मौके की नजाकत को भांपते हुए उस ने इसे खुशीखुशी सह लिया.

‘‘अरे हां, तुम तो साहित्य में मास्टर्स हो. वह कहावत सुनी ही होगी कि जरूरत पड़ने पर गधे को भी बाप बनाना पड़ता है. सम झ लो कि आज अपनी जरूरत है और हमें रजनी को मनाना है,’’ भावेश ने आवेश में प्रथा के हाथ पकड़ लिए.

कहावत के अनुसार उस में रजनी के पात्र की कल्पना कर के अनायास प्रथा के चेहरे पर मुसकान आ गई. भावेश को लगा मानो अब उस के प्रयास सही दिशा में जा रहे हैं. उस ने प्रथा को सारी बात बताते हुए उसे अपनी योजना में शामिल कर लिया.

रूठे हुए पतिपत्नी के मिलन के बीच एक प्यारभरी मनुहार की ही तो दूरी होती है. अभिसार के एक इसरार के साथ ही यह दूरी खत्म हो गई. शक्कर के दूध में घुलते ही उस की मिठास कई गुणा बढ़ जाती है.

अगली सुबह प्रथा को सब को गुनगुनाते हुए चाय बनाते देखा तो इस परिवर्तन पर किसी को यकीन नहीं हुआ. भावेश अवश्य राजभरी पुलक के साथ मेज पर हाथों से तबला बजा रहा था. मांपापा उठ कर कमरे से बाहर आ चुके थे. रजनी अभी भी भीतर ही थी. प्रथा ने 3 कप चाय बाहर रखे और 2 कप ले कर रजनी को उठाने चल दी. मांपापा की आंखें लगातार उस का पीछा कर रही थीं.

‘‘आई एम सौरी रजनी. मु झे इस तरह रिएक्ट नहीं करना चाहिए था. प्लीज, मु झे माफ कर दो,’’ प्रथा ने बिस्तर में गुमसुम बैठी ननद के पास बैठते हुए कहा.

रजनी को सुबहसुबह इस माफीनामे की उम्मीद नहीं थी. वह अचकचा गई.

‘‘कल तक मैं इसे जरा सी बात ही सम झ रही थी औैर तुम्हारी जिद को तुम्हारा बचपना, लेकिन कल रात जब से मैं ने ‘थप्पड़’, मूवी देखी है तब से तुम्हारे दर्द को बहुत नजदीक से महसूस कर पा रही हूं. मैं इस बात से शर्मिंदा हूं कि एक स्त्री हो कर मैं तुम्हारे स्वाभिमान की रक्षा नहीं कर पाई. मैं सचमुच तुम से माफी मांगती हूं… दिल से.’’

रजनी ने देखा प्रथा की पलकें सचमुच नम थी. उस ने एक पल सोचा और फिर भाभी के गले में बाहें डाल दीं.

भावेश खुश था कि वह अपनी योजना को अमलीजामा पहनाने में कामयाब हुआ. मांपापा खुश थे,

क्योंकि बेटी भी खुश थी और रजनी भी, क्योंकि एक स्त्री ने दूसरी स्त्री के स्वाभिमान को पोषित किया था.

धर्म से बड़ा नुकसान है औरतों को…

लोकसभा चुनावों के 4 जून, 2024 को जो नतीजे आए उन्होंने शायद बहुत कुछ बदलाव की नींव डाली है. इस से पहले 5 दशकों से हिंदूमुसलिम विवादों को उभारना और उन से मोटा पैसा और बड़ी पावर पाना ही देश का एकमात्र पर्पज रह गया था.

4 जून, 2024 को जो चोट हिंदूमुसलिम खाई खोद कर हिंदू को लूटने वालों को लगी है, उस से उबरने में समय लगेगा.

यह सोचना कि यह एक बदलाव का दिन साबित होगा, कुछ ज्यादा ही होगा. लोग भारतीय जनता पार्टी से नाराज अभी भी ज्यादा नहीं हैं.

फर्क इतना पड़ा है कि भाजपा को न चाहने वाले जो बिखरे रहते थे और भगवाधारी जो इन बिखरों को अकेला मान कर प्रवचनों, सड़क की गुंडई, संस्कारों और रीतिरिवाजों को थोप, हिंदू लड़कियों के हकों को मारते, पूजापाठ की दुकानों में धकेलने का काम जोरशोर से कर रहे थे, उसे ही देशभक्ति कह रहे थे, उसे ही विकास कह रहे थे, उसे ही सुशासन बता रहे थे, उसे ही नौकरी और रोजगार मान रहे थे, अब कुछ शांत बैठेंगे.

4 जून, 2024 के नतीजों के बाद 13 उपचुनाव हुए जिन में भारतीय जनता पार्टी, जिस हिंदू समाज, हिंदू धर्म और हिंदू रीतिरिवाजों की मोनोपोली खुदबखुद अपने पर ले ली है, 11 में हार गई तो लगा कि इस सामाजिक खुली बेईमानी से कुछ राहत मिलेगी.

इस 30-40 साल के दौर में मुसलमानों और ईसाइयों को जो भुगतना पड़ा, वह तो जगजाहिर है पर जो हिंदू औरतों को भुगतना पड़ा, वह और ज्यादा गंभीर व गहरा है. हिंदू पोंगापंथी ने हिंदू औरतों पर बहुत गहरी चोट मारी है.

इन 30-40 सालों में हिंदू औरतों को लौजिकल और प्रैक्टिकल सोच से परे धकेल कर पूजापाठ में बिजी कर दिया गया. घरघर छोटे मंदिर गलियों, महल्लों, शहरों में बने बड़े मंदिरों के अलावा बाढ़ सी आ गई और ‘हिंदू धर्म को बचाना है, हिंदू खतरे में है…’ के नारों से बहका कर हिंदू औरतों ने और जोर से घंटियां और आरतियां करनी शुरू कर दी हैं.

सूरजपाल यानी भोले बाबा के सत्संग जैसे सत्संग सैकड़ों की तादाद में होने लगे हैं जिन में औरतों को धकेला जाता है. उन सब बाबाओं के प्रवचनों में एक तो चमत्कारों की बात होती है और दूसरी अपनी स्थिति को पिछले जन्मों का फल मान लेने की.

हिंदू औरतों ने मान लिया कि वे पढ़लिख कर काम कर के, कमरतोड़ मेहनत कर के भी खुश तभी रह सकती हैं जब पति को परमेश्वर मानें और प्रवचकों को इन पति परमेश्वरों का पितामह. उन के बहकावे में आ कर उन्होंने भेदभाव और जुल्म के खिलाफ मुंह खोलना बंद कर दिया. उन की मुट्ठी तनती है तो वे मुसलिमों, ईसाइयों या अगर वे ऊंची जातियों की हैं तो दलितों और पिछड़ों के खिलाफ बोलने या करने में तनती है.

हिंदू औरतों ने देश और परिवार के सुख के लिए फैक्टरियों, औफिसों, लैब्स, स्कूलकालेजों में नहीं तीर्थों में अपना समय और अपनी बचत का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. जब भी कहीं कोई दुर्घटना किसी तीर्थ समागम या तीर्थस्थल पर होती है तो मरने वालों में औरतों की गिनती ज्यादा होती है.

पुरुष समाज ने उस दौर को सुखदायक सम?ा क्योंकि इस से पहले औरतों के हकों की बातें बढ़चढ़ कर होने लगी थीं.

1947 के बाद भारी विरोध के बावजूद वह जवाहरलाल नेहरू, जिसे भगवाई जमात पानी पीपी कर आज भी कोसते हैं, ने औरतों को पुरुषों को धर्म के सहारे मिली औरतों पर गुलामी थोपने की ताकत को काटना शुरू कर दिया था.

1950 में तो नहीं पर 1955-56 में हिंदू कानूनों में बदलाव ला कर औरतों को अपार शक्ति दी गई जो कभी किसी सामाजिक, धार्मिक या राजनीतिक मंच से नहीं दी गई थी. औरतों को मरने पर पति की संपत्ति का हिस्सा मिला, पति पर एकाधिकार मिला, छोड़े जाने पर मुआवजे का हक मिला.

यह बात दूसरी है कि धर्म की जड़ें इतनी गहरी थीं कि इन कानूनों से जो हकों के पेड़ लगे वे इतने घने नहीं हो सके कि पुरुषों के लगाए कीकरों के कांटों से सुरक्षा दे सकें. इसी से बेचैन हो कर धर्म ने पलटवार करना शुरू कर दिया और कभी गौमाता के नाम पर, कभी पाकिस्तान का भय दिखा कर तो कभी इन कानूनों को लागू करने में ढीलढाल कर के औरतों को उस बराबरी का हक नहीं लेने दिया जिस को प्रकृति ने उन्हें दिया था. धर्म को राजनीति में घुसेड़ देने का सब से बड़ा नुकसान औरतों को हुआ क्योंकि घरघर में हिंदू अलख जगाने का काम पुरुषों के आदेशों पर औरतों के सिर पर मढ़ दिया गया.

साइंस और टैक्नोलौजी ने, इंडीपैंडैंट प्रैस ने, किताबों ने, खुलते कम्यूनिकेशन के नए तरीकों ने कुछ बदला पर उस पर धर्म और पुरुषों ने ज्यादा कब्जा कर लिया. पुरुषों को यह सम?ाने ही नहीं दिया गया कि उन के घर की सब से बड़ी सुरक्षा, उन की सब से बड़ी खुशी, उन के हंसतेखेलते जीवन की अकेली चाबी औरतों के हाथों में है. धर्म ने मानसिक क्रांतियों के बावजूद औरतों को व्यर्थ के पूजापाठ के कठघरों में बंद कर दिया.

धर्म ने यहां तक कर दिया कि औरतें क्या पहनें, क्या खाएं, कब खाएं यह वह तय करेगा. व्रतउपवास पहले भी होते थे पर अब उन्हें हिंदू जागरण के नाम पर घरों से निकाल कर सड़कों पर ले आया गया और यह पक्का किया गया कि कोई घर न बचे. हर महल्ले में धर्म कमेटियां किसी न किसी रूप में बन गईं. वास्तु, योग, आयुर्वेद के नाम पर औरतों को छला जाने लगा. पुरुष बागों में मौज करते, औरतों को चूल्हों में बंद रखा. पढ़ीलिखी, कमाऊ औरतों को भी धकेला. तीर्थ, मंदिरों तक पैदल जाने, चढ़ावा चढ़ाने को मजबूर किया गया.

क्या यह अब थमा है? पता नहीं. धर्म इस तरह के स्पीडब्रेकरों का मुकाबला हमेशा करता रहा है. धर्म की संयुक्त साजिशाना ताकत बहुत मजबूत है, मिलिटरी की तरह की.

मेरे बाल अक्सर चिपचिपे रहते हैं, मैं क्या करूं?

अगर आप भी अपनी समस्या भेजना चाहते हैं, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें..

सवाल

मेरी स्कैल्प औयली है जिस से मेरे बाल चिपचिपे रहते हैं. इन्हें रोजाना धोने से मुझे लगता है कि मेरे बाल खराब हो सकते हैं. मैं ऐसा क्या करूं जिस से मेरे बाल स्वस्थ और शाइनी बने रहें?

जवाब

शरीर में हारमोनल परिवर्तन, मानसिक तनाव के कारण भी स्कैल्प औयली हो जाती है. बारबार कंघी करने से भी वह औयली हो सकती है. उस के औयली होने पर बाल चिपचिपे हो जाते हैं. औयली स्कैल्प होने पर डेली शैंपू करने से लाभ होता है क्योंकि शैंपू में मौजूद तत्त्व बालों के प्राकृतिक प्रोटीन को सुरक्षित रखने के साथसाथ बालों को स्वच्छ रखने में भी सहायता करते हैं. शैंपू के कारण स्कैल्प से अधिक औयल बाहर नहीं आता क्योंकि शैंपू औयल को रोक देता है. लेकिन इसी के साथ ही इस बात का भी ध्यान रखें कि शैंपू के साथ क्रीमी कंडीशनर न लगाएं. क्रीमी कंडीशनर लगाने से बालों पर जल्दी औयल आ जाता है. यदि चाहें तो कंडीशनर वाले शैंपू का इस्तेमाल कर सकती हैं या फिर 1 मग पानी में एक नीबू निचोड़ लें और बाल धोने के बाद लास्ट रिंस उस से कर लें. बाल खिलेखिले व चमकदार हो जाएंगे.

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भाई के लिए मंगवा रही हैं औनलाइन राखी, तो इन बातों का रखें ध्यान

एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाली आशी ने अपने भाई भाभी के लिए बहुत सुंदर सी राखी का एक काम्बो और्डर किया जिसमें राखी के साथ एक मिठाई का पैक और डेकोरेटिव पीस भी शामिल था पर जब आर्डर आया तो उसमें राखी और मिठाई तो थी परन्तु डेकोरेटिव पीस गायब था. आशी ने जब साइट पर जाकर रिटर्न पालिसी चैक की तो वह भी उस आर्डर में शामिल नहीं थी. अब आशी को अपनी ही बेवकूफी पर गुस्सा आ रहा था कि उसने पहले ही रिटर्न पॉलिसी को चेक क्यों नहीं किया.

रक्षाबन्धन प्रति वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, इस दिन बहनें अपने भाई को राखी बांधती हैं. कुछ समय पूर्व तक तो सभी बाजार से ही राखी खरीदते थे परन्तु आजकल औनलाइन मार्केट भी औफलाइन मार्केट से कुछ कम नहीं है. अक्सर जिन लोगों के पास बाजार जाने का समय नहीं होता वे औनलाइन ही शौपिंग करना पसंद करते हैं, यदि आप भी रक्षाबन्धन पर औनलाइन राखी मंगवाना चाहती हैं तो निम्न टिप्स का ध्यान अवश्य रखें-

औथेंटिक वैबसाइट से ही लें

अर्चना फेसबुक स्क्रौल कर रही थी तभी उसे एक साइट पर बहुत सुंदर सुंदर राखियां दिखीं उसने भी फटाफट अपने भाइयों के लिए 10 राखियां और्डर कर डालीं. जिस साइट से उसने और्डर की थीं उसने न तो कोई ट्रैक न दिया था और न ही कोई डिलीवरी डेट अब अर्चना परेशान थी कि पता नहीं कब तक राखियां आएंगी. आजकल अनेकों औनलाइन साइट्स और प्लेटफौर्म मौजूद हैं परन्तु हमेशा फ्लिपकार्ट, मन्त्रा और अमेजन जैसी विश्वसनीय वैबसाइट से ही खरीददारी करें ताकि किसी भी प्रकार की धोखाधड़ी होने पर आप शिकायत दर्ज करा सकें साथ ही इन साइट्स पर डिलीवरी डेट और ट्रैकिंग की भी पूरी जानकारी दी रहती है.

तुलना करें

तनीषा ने जो राखी 500 रुपये में और्डर की थी वही राखी एक अन्य वेबसाइट पर 300 रुपये में उपलब्ध थी, अब तनीषा को पछतावा हो रहा था कि काश उसने ऑर्डर करने से पहले दूसरी साइट पर भी चेक कर लिया होता. एक ही साइट से न खरीदकर आप कई साइट्स पर जाकर पहले राखी के रेट और क़्वालिटी की तुलना करें फिर ऑर्डर करें क्योंकि औनलाइन प्लेटफौर्म पर भी एक ही चीज को अलग अलग वेंडर्स के द्वारा बेचा जाता है जिससे रेट्स में विविधता आ जाती है.

क्वालिटी चेक करें

औनलाइन राखी को आप हाथ से छूकर तो नहीं देख सकतीं परन्तु फिर भी रेट और राखी में लगाये गए सामान को जूम करके अवश्य देखें इससे आपको काफी हद तक क्वालिटी का अंदाजा हो जायेगा. बहुत सस्ती और एकदम हल्की क्वालिटी की राखी लेने से बचें.

डिलीवरी की डेट देखें

सुमिता ने अपने भाई के पते पर ही अमेजन से सीधे राखी और्डर कर दी परन्तु चूंकि राखी को रक्षाबन्धन से कुछ दिन पूर्व ही और्डर किया गया था, और इन दिनों हर साइट्स पर डिलीवरी का बहुत प्रेशर रहता है इसलिए सुमिता के भाई को राखी रक्षाबन्धन के 3 दिन बाद मिल पाई इसलिए आप रक्षाबन्धन की डेट से कम से कम 15 दिन पहले और्डर करें ताकि पसंद न आने पर आप राखी को रिटर्न करके दूसरी मंगवा सकें और समय पर अपने भाई को राखी बांध सकें.

रिटर्न पौलिसी चेक करें

प्रत्येक औनलाइन प्लेटफौर्म पर हर प्रोडक्ट की रिटर्न पौलिसी 1 सप्ताह से लेकर 1 माह तक होती है परन्तु यह सभी की एक जैसी न होकर अलग अलग होती है इसलिए किसी भी राखी को खरीदते समय उसकी रिटर्न पॉलिसी अवश्य देख लें ताकि पसंद न आने पर आप उसे वापस कर सकें.

रिव्यू और रेटिंग देख लें

चयनिका को एक साइट पर बहुत सुंदर सी राखी दिखी तो उसने उसे लेने का मन बना लिया परन्तु जब उसने उस राखी के रिव्यू पढ़े तो उसे पता चला कि कस्टमर्स ने उस राखी को केवल 1 रेटिंग दी है जिससे वह उस बेकार क़्वालिटी की राखी खरीदने से बाल बाल बच गयी. ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर कस्टमर्स के रिव्यू और रेटिंग पढ़कर आपको राखी की क्वालिटी का अंदाजा हो इसलिए ऑर्डर करने से पहले एकबार राखी के रिव्यू अवश्य पढ़ लें.

डिस्क्रिप्शन देखें

अनामिका ने जब औनलाइन खरीदी राखी को रक्षाबन्धन के दिन खोला तो पाया कि राखी का धागा बहुत छोटा है जो उसके हैल्दी भाई की कलाई में ही पूरा नहीं आ पायेगा. राखी को ऑर्डर करते समय उसकी लम्बाई, प्रयोग की गई चीजों आदि के बारे में डिटेल जानकारी डिस्क्रिप्शन बॉक्स में अच्छी तरह जरूर पढ़ लें ताकि ऑर्डर करने के बाद पछताना न पड़े.

कौम्बो लेने से बचें

आजकल राखी के बहुत सारे कौम्बो पैक औनलाइन साइट्स पर उपलब्ध हैं इनमें मिठाईयां, डेकोरेटिव आइटम्स और कप आदि शामिल होते हैं जो राखी की कीमत को बहुत अधिक बढ़ा देते है इन्हें लेने से बचें क्योंकि मिठाइयों को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए प्रिजर्वेटिव का प्रयोग किया जाता है साथ ही कप जैसे आइटम्स की क्वालिटी अच्छी नहीं होती.

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